Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

HBSE 12th Class Hindi छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
छोटे चौकोने खेत को कागज़ का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है?
उत्तर:
कवि अपने कवि-कर्म को किसान के कर्म के समान बताना चाहता है अर्थात् कविता की रचना खेती करने जैसी है। इसीलिए कवि ने कागज़ के पन्ने को छोटा चौकोना खेत कहा है। जिस प्रकार खेत में बीज बोकर उसमें पानी और रसायन दिया जाता है और फिर उससे अंकुर और फल-फूल उत्पन्न होते हैं। उसी प्रकार कागज़ के पन्ने पर कवि के संवेदनशील भाव शब्दों का सहारा पाकर अभिव्यक्त होते हैं जिससे पाठक को आनंद प्राप्त होता है।।

प्रश्न 2.
रचना के संदर्भ में अंधड़ और बीज क्या हैं?
उत्तर:
अंधड़ का तात्पर्य है-संवेदनशील भावनाओं का आवेग। कवि के मन में अनजाने में कोई भाव जाग उठता है। जैसे एक दुबले-पतले भिक्षुक को देखकर निराला के मन में भावनाओं का अंधड़ उठ खड़ा हुआ था और उसने ‘भिक्षुक’ कविता की रचना की। बीज का अर्थ है-किसी निश्चित विषय-वस्तु का मन में जागना। जब कोई विषय कवि के मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है और वह बिंब के रूप में अभिव्यक्त होने के लिए कुलबुलाने लगता है तो उसे हम बीज रोपना कह सकते हैं।

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प्रश्न 3.
रस का अक्षयपात्र से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है?
उत्तर:
कवि की काव्य-रचना को रस का अक्षय पात्र कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि कविता में निहित सौंदर्य, रस भाव आदि कभी नष्ट नहीं होते। वे अनंतकाल तक कविता में विद्यमान रहते हैं। किसी भी काल अथवा युग का पाठक उस कविता को पढ़कर आनन्दानुभूति प्राप्त कर सकता है। इसलिए कविता को कवि ने ‘रस का अक्षयपात्र’ कहा है।

व्याख्या करें

(1) शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

(2) रोपाई क्षण की
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
उत्तर:
(1) जब कवि के मन में भावों का कोई बीज जागता है तो उसे कल्पना का रसायन मिल जाता है। फलतः कवि अहम्मुक्त हो जाता है। धीरे-धीरे वह भाव शब्द रूपी अंकुरों के माध्यम से फूटकर बाहर आने लगता है। अंततः कवि के विशेष भाव पत्ते, फल-फूल के समान विकसित होने लगते हैं। जैसे पौधा फल-फूल से लदकर झुक जाता है, उसी प्रकार कविता पाठकों के लिए अपनी भाव संपदा समर्पित करती है।।

(2) कवि यह कहना चाहता है कि कविता में बीज तो क्षण भर में बोया जाता है। कवि के मन में भी भावनाओं के आवेग के कारण ही कविता किसी क्षण फूट पड़ती है परंतु उसकी फसल कभी नष्ट नहीं होती। वह अनंतकाल तक फल देती रहती है। कविता का रस कभी कम नहीं होता। किसी भी युग का कोई भी पाठक कविता का आनंद प्राप्त कर सकता है।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
शब्दों के माध्यम से जब कवि दृश्यों, चित्रों, ध्वनि-योजना अथवा रूप-रस-गंध को हमारे ऐन्द्रिक अनुभवों में साकार कर देता है तो बिंब का निर्माण होता है। इस आधार पर प्रस्तुत कविता से बिंब की खोज करें।
उत्तर:
इन कविताओं में चाक्षुष बिंबों की सुंदर योजना की गई है। ये बिंब इस प्रकार हैं

  1. छोटा मेरा खेत चौकोना
  2. कागज़ का एक पन्ना
  3. कोई अंधड़ कहीं से आया
  4. शब्द के अंकुर फूटे
  5. पल्लव-पुष्पों से नमित
  6. झूमने लगे फल
  7. अमृत धाराएँ फूटतीं
  8. नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें
  9. कजरारे बादलों की छाई नभ छाया
  10. तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया

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प्रश्न 2.
जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो, रूपक कहलाता है। इस कविता में से रूपक का चुनाव करें।
उत्तर:
इन कविताओं में निम्नलिखित रूपकों का प्रयोग हुआ है-

उपमेयउपमान
(1) (भावनात्मक जोश)अंधड़
(2) आनंदपूर्ण भावअमृत धाराएँ
(3) (रस)फल
(4) (विषय)बीज
(5) कागज़ का एक पन्नाछोटा मेरा खेत चौकोना
(6) कल्पनारसायन
(7) रस का अनुभव करनाकटाई
(8) अलंकार, सौंदर्यपल्लव-पुष्प
(9) शब्दअंकुर

कला की बात

प्रश्न 1.
बगुलों के पंख कविता को पढ़ने पर आपके मन में कैसे चित्र उभरते हैं? उनकी किसी भी अन्य कला माध्यम में अभिव्यक्ति करें।
उत्तर:
शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें। यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

HBSE 12th Class Hindi छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न-
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
1. कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हआ विशेष।
उत्तर:

  1. इन काव्य-पंक्तियों में कवि ने रूपक के माध्यम से विचारों के रचना रूप ग्रहण करने तथा अभिव्यक्ति का माध्यम बनने पर प्रकाश डाला है।
  2. रूपक अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. ‘पल्लव-पुष्पों में अनुप्रास अलंकार है।
  4. संपूर्ण पद्यांश में प्रतीकात्मता का समावेश है।
  5. तत्सम प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

2. झूमने लगे फल,
रस अलौकिक
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
उत्तर:

  1. इस पद्यांश में कवि ने कविता की तुलना अनंतकाल तक रस देने वाले फल के साथ की है। यह तुलना बड़ी सटीक, सुंदर और सार्थक बन पड़ी है।
  2. ‘रस’ शब्द में श्लेष अलंकार का प्रयोग है। इसके दो अर्थ हैं-फलों का रस तथा काव्य-आनंद। कवि ने काव्य-रस को अलौकिक कहा है। इसलिए कविता का आनंद शाश्वत होता है।
  3. तत्सम प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सरल, उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

3. कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
उत्तर:

  1. कजरारे बादलों में साँझ की तैरती काया की अभिव्यक्ति बगुलों के माध्यम से की गई है। इसमें उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  2. ‘हौले हौले’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  3. सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक हैं।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटा मेरा खेत’ कविता में ‘बीज गल गया निःशेष’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘बीज गल गया’ निःशेष के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जब कविता का मूल भाव कवि के मन में पूरी तरह से रच-बस जाता है अर्थात् वह उसे आत्मसात कर लेता है, तब वह अहममुक्त हो जाता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिस प्रकार बीज मिट्टी में गल कर अंकुर रूप धारण कर लेता है उसी प्रकार कविता का मूल भाव कवि के मन में आत्मसात् हो जाता है। कवि निजता से मुक्त हो जाता है। तभी उसके हृदय से कविता फूटती है।

प्रश्न 2.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता का मूल भाव क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘छोटा मेरा खेत’ कविता के माध्यम से कवि ने कविता की रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है। कविता का जन्म किसी अज्ञात प्रेरणा से विशेष क्षण में होता है। कोई विषय अचानक कवि की संवेदना को प्रभावित करता है। कवि अहंकारमुक्त होकर पूर्ण तन्यमता के साथ उस मूल भाव को अपने मन में बैठा लेता है। तत्पश्चात् शब्द, भाव, अलंकार आदि पौधे के पत्तों के समान स्वतः फूटने लगते हैं। जहाँ पौधे की फसल नश्वर होती है, वहाँ कविता का फल अर्थात् रस शाश्वत होता है। कविता का रस हम अनंत काल तक ले सकते हैं। यह कभी भी नष्ट नहीं होता। किसी भी काल अथवा युग का पाठक किसी भी समय कविता का आनंद प्राप्त कर सकता है।

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प्रश्न 3.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने अपने कर्म और किसान की मेहनत को एक समान बताया है। कवि और किसान दोनों ही कठोर परिश्रम करते हैं। यदि किसान की कर्म-भूमि खेत है तो कवि की कर्म-भूमि कविता है। किसान खेत पर हल चलाता है, परंतु कवि कागज़ पर कलम चलाता है। अंतर केवल यह है कि किसान का खेत विशाल होता है जिससे वह अनाज पैदा करता है परंतु कवि का खेत छोटा होता है, जिस पर वह कविता रूपी खेती को उगाता है। छोटे-से खेत पर ही कविता का महल खड़ा किया जाता है। खेत से पैदा होने वाली फसल केवल एक बार पक कर तैयार होती है, परंतु कविता एक अमर रचना होती है। अनंत काल तक कविता का आनंद प्राप्त किया जा सकता है। अतः कविता का आनंद शाश्वत होता है।

प्रश्न 4.
‘रोपाई क्षण की कटाई अनंतता की’ पंक्तियों में कवि किस विरोधाभास को व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर:
इस कथन का अर्थ यह है कि कविता की रचना थोड़े समय में हो जाती है। कविता का मूल भाव किसी विशेष क्षण में कवि के मन में जन्म लेता है। तत्पश्चात् कवि कविता की रचना करता है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि कविता की रचना में होती है उसकी अवधि बहुत छोटी होती है, परंतु अनंतकाल तक पाठक उसका रस लेते रहते हैं। उदाहरण के रूप में सूरदास ने ‘सूरसागर’ की रचना की। परंतु आज सैकड़ों वर्ष बीतने पर भी यह काव्य-ग्रंथ पाठकों को आनंदानुभूति प्रदान करता है। यह प्रक्रिया आगे भी चलती रहेगी। अतः कवि का यह कहना ‘रोपाई क्षण की कटाई अनंत’ उचित ही है।

प्रश्न 5.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता में रस का अक्षय पात्र किसे कहा गया और क्यों?
उत्तर:
कवि के द्वारा कागज़ पर उकेरे गए काव्य को रस का पात्र कहा गया है। काव्य-रचना कभी भी नष्ट नहीं होती। अनेक पाठक और श्रोता काव्य से आनंद अनुभूति प्राप्त करते हैं। अतः काव्य का रस अनश्वर है। यह रस कभी घटता नहीं है और ज्यों-का-त्यों बना रहता है। संसार की महान काव्य-रचनाएँ आज भी पाठकों को उतनी ही रसानुभूति प्रदान करती हैं जितनी कि पहले के पाठकों को। निश्चय से कविता रस का अक्षय भंडार है। कविता का रस न मिटने वाला रस है।

प्रश्न 6.
‘बगुलों के पंख’ कविता के सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘बगुलों के पंख’ कविता में सहज और स्वाभाविक सुंदरता है। उसका भाव पक्ष जितना सुंदर है, उतना ही कला पक्ष भी प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा प्रयोग है। इसमें सायंकाल को काले बादलों के मध्य आकाश में बगुले पंक्तिबद्ध होकर विहार करते हैं जिसका कवि चित्रण करता है। यह चित्रण बड़ा ही मनोहारी और आकर्षक है।

कवि ने सहज, सरल और सुकोमल पदावली का प्रयोग किया है। शब्द छोटे-छोटे हैं। अनुनासिकता वाले शब्दों के कारण यह कविता बड़ी मधुर बन पड़ी है। ‘आँखें चुराना’ मुहावरे का सफल प्रयोग किया गया है। पांती बँधे, हौले हौले, बगुलों की पाँखें जैसे प्रयोग बड़े ही कोमल बन पड़े हैं। पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 7.
‘बगुलों के पंख’ कविता का मूलभाव लिखिए।
उत्तर:
इस लघु कविता में कवि ने प्रकृति सौंदर्य का मनोरम वर्णन किया है। आकाश में काले-काले बादल दिखाई दे रहे हैं। उन बादलों में सफेद पंखों वाले बगुले पंक्तिबद्ध होकर उड़े जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि सायंकाल में कोई श्वेत काया तैर रही है। बगुलों की पंक्तियों का यह सौंदर्य कवि की आँखों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कवि चाहता है कि वह इन बगुलों को निरंतर देखता रहे। परंतु बगुले तो उड़े जा रहे हैं। यदि उन्हें कोई रोक ले तो कवि इस सौंदर्य को निरंतर देखता रह सकता है।

बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘बगुलों के पंख’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) फ़िराक गोरखपुरी
(B) उमाशंकर जोशी
(C) विष्णु खरे
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(B) उमाशंकर जोशी

2. उमाशंकर जोशी का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1910 में
(B) सन् 1912 में
(C) सन् 1911 में
(D) सन् 1913 में
उत्तर:
(C) सन् 1911 में

3. सन् 1947 में उमाशंकर जोशी ने किस पत्रिका का संपादन किया?
(A) दिनमान
(B) नवजीवन
(C) संस्कृति
(D) परंपरा
उत्तर:
(C) संस्कृति

4. उमाशंकर जोशी का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1978 में
(B) सन् 1982 में
(C) सन् 1985 में
(D) सन् 1988 में
उत्तर:
(D) सन् 1988 में

5. उमाशंकर जोशी ने कालिदास के किस नाटक का गुजराती में अनुवाद किया?
(A) अभिज्ञान शाकुंतलम्
(B) विक्रमोवंशीयम्
(C) नागानंदन
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(A) अभिज्ञान शाकुंतलम्

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6. उमाशंकर जोशी ने भवभूति के किस नाटक का गुजराती में अनुवाद किया?
(A) मृच्छकटिकम्
(B) अभिज्ञान शाकुंतलम्
(C) उत्तररामचरित
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(C) उत्तररामचरित

7. ‘विश्व शांति’ के कवि का क्या नाम है?
(A) महादेवी वर्मा
(B) रवींद्रनाथ टैगोर
(C) उमाशंकर जोशी
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(C) उमाशंकर जोशी

8. ‘गंगोत्री’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) धर्मवीर भारती
(B) उमाशंकर जोशी
(C) रवींद्रनाथ टैगोर
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(B) उमाशंकर जोशी

9. ‘विसामो’ उपन्यास के लेखक का नाम क्या है?
(A) उमाशंकर जोशी
(B) फ़िराक गोरखपुरी
(C) विष्णु खरे
(D) हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
उत्तर:
(A) उमाशंकर जोशी

10. ‘शहीद’ किस विधा की रचना है?
(A) एकांकी
(B) कहानी
(C) काव्य
(D) उपन्यास
उत्तर:
(B) कहानी

11. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में किसके अंकुर फूटने की बात कही है?
(A) शब्द के
(B) गीत के
(C) वृक्ष के
(D) बीज के
उत्तर:
(A) शब्द के

12. ‘बगुलों के पंख’ कविता में किस वक्त की सतेज श्वेत काया तैरने की बात कही है?
(A) प्रातः
(B) दोपहर
(C) साँझ
(D) रात
उत्तर:
(C) साँझ

13. उमाशंकर जोशी को किस महत्त्वपूर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
(A) साहित्य अकादमी
(B) भारतीय ज्ञानपीठ
(C) शिखर ज्ञानपीठ
(D) कबीर सम्मान
उत्तर:
(B) भारतीय ज्ञानपीठ

14. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में किसकी रोपाई की बात कही गई है?
(A) क्षण की
(B) फसल की
(C) खेत की
(D) बीज की
उत्तर:
(A) क्षण की

15. बगुलों के पंख काले बादलों के ऊपर तैरते हुए किसके समान प्रतीत होते हैं?
(A) प्रातःकाल की सिंदूरी काया
(B) साँझ की श्वेत काया
(C) साँझ की पीली काया
(D) रात्रि की काली काया
उत्तर:
(C) साँझ की पीली काया

16. कैसे बादल छाए हुए थे?
(A) धिकरारे
(B) कजरारे
(C) गोरे
(D) बिखरे
उत्तर:
(B) कजरारे

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17. बगुलों का कौन-सा सौंदर्य अपने आकर्षण में बाँध रहा है?
(A) काया रूपी सौंदर्य
(B) माया रूपी सौंदर्य
(C) रूप रूपी सौंदर्य
(D) पंक्तिबद्ध सौंदर्य
उत्तर:
(D) पंक्तिबद्ध सौंदर्य

18. ‘छोटे चौकोने खेत’ उपमान का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
(A) फसल
(B) कागज़ का पन्ना
(C) पल्लव
(D) वर्गाकार
उत्तर:
(B) कागज़ का पन्ना

19. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में किसकी धाराएँ फूटने की बात कही गई है?
(A) नदी
(B) अमृत
(C) जंगल
(D) धूप
उत्तर:
(B) अमृत

20. ‘कागज़ का पन्ना’ के लिए कवि ने क्या उपमान दिया है?
(A) चौकोना खेत
(B) बीज
(C) रस का अक्षय पात्र
(D) अनाज का भंडार
उत्तर:
(A) चौकोना खेत

21. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कौन झूमने लगे?
(A) पेड़
(B) शराबी
(C) गायक
(D) फल
उत्तर:
(D) फल

22. बगुलों के पंखों द्वारा क्या चुराने की बात कही गई है?
(A) हृदय
(B) बुद्धि
(C) मन
(D) आँख
उत्तर:
(D) आँख

23. रस का पात्र कैसा है?
(A) अक्षय
(B) कमजोर
(C) नीरस
(D) निन्दनीय
उत्तर:
(A) अक्षय

24. ‘नभ में पाँती-बाँधे बगुलों के पंख’ किसके लिए प्रसिद्ध हैं?
(A) प्रतीक के लिए
(B) बिंब के लिए
(C) अलंकार के लिए
(D) लक्ष्यार्थ के लिए
उत्तर:
(B) बिंब के लिए

25. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने अपने खेत में कौन-सा बीज बोया?
(A) धान रूपी बीज
(B) विचार रूपी बीज
(C) प्रेम रूपी बीज
(D) शब्द रूपी बीज
उत्तर:
(D) शब्द रूपी बीज

26. आकाश में किसकी पंक्ति की सुन्दरता का चित्रण किया गया है?
(A) बगुलों
(B) हंसों
(C) बत्तखों
(D) कबूतरों
उत्तर:
(A) बगुलों

27. ‘छोटा मेरा खेत’ में किसकी कटाई की बात कही है?
(A) अनंतता की
(B) अंकुर की
(C) क्षण की
(D) फसल की
उत्तर:
(A) अनंतता की

28. बगुलों के पंखों का रंग कैसा है?
(A) मटमैला
(B) सफ़ेद
(C) काला
(D) नीला
उत्तर:
(B) सफेद

29. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में किस रस की अमृतधारा को अक्षय बताया गया है?
(A) साहित्य
(B) वात्सल्य
(C) करुण
(D) शृंगार
उत्तर:
(A) साहित्य

30. ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने निम्न में से किसे रसायन कहा है?
(A) दूरियाँ
(B) कल्पना
(C) शब्द
(D) साहित्य
उत्तर:
(B) कल्पना

31. ‘बगुलों के पंख’ कविता में साँझ की सतेज श्वेत काया क्या कर रही है?
(A) तैर रही है
(B) उड़ रही है
(C) भाग रही है
(D) नहा रही है
उत्तर:
(A) तैर रही है

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32. कवि ने अभिव्यक्ति रूपी बीज किस पर बोया था?
(A) कागज के पृष्ठ पर
(B) आँगन में
(C) छत पर
(D) खेत में
उत्तर:
(A) कागज के पृष्ठ पर

33. कवि का छोटा खेत किस आकार का था?
(A) चौकोना
(B) तिकोना
(C) आयताकार
(D) वक्र
उत्तर:
(A) चौकोना

34. लुटते रहने से जरा भी कम क्या नहीं होती?
(A) संपत्ति
(B) रस-धारा
(C) औषधि
(D) पुस्तक
उत्तर:
(B) रस-धारा

35. नभ में पंक्तिबद्ध कौन थे?
(A) हंस
(B) चातक
(C) बगुले
(D) पिक
उत्तर:
(C) बगुले

छोटा मेरा खेत पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1) छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष। [पृष्ठ-64]

शब्दार्थ-चौकोना = चार कोने वाला। अंधड़ = आँधी का तेज झोंका। क्षण = पल । रसायन = खाद। निःशेष = पूरी तरह से। अंकर = छोटा पौधा। पल्लव-पुष्प = कोमल पत्ते और फूल। नमित = झुका हुआ।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ में से उद्धृत है। इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने कवि-कर्म की तुलना किसान-कर्म से की है।

व्याख्या-कवि कहता है कि मैं भी एक किसान हूँ। कागज़ का एक पन्ना मेरे लिए चौकोर खेत के समान है। अंतर केवल इतना है कि किसान ज़मीन से फसल उगाता है और मैं कागज़ पर कविता उगाता हूँ। जिस प्रकार किसान चौकोर खेत में बीज बोता है, उसी प्रकार मेरे मन में भावना की आँधी ने कागज़ के पन्ने पर क्षण का बीज बो दिया। यह भाव रूपी बीज पहले मेरे मन रूपी खेत में बोया जाता है। जिस प्रकार खेत में बोया गया बीज विभिन्न प्रकार के रसायनों अर्थात् हवा, पानी, खाद आदि लेकर स्वयं को पूरी तरह से गला देता है और उसमें से अंकुरित पत्ते और फूल फूट कर निकलते हैं, उसी प्रकार कवि के मन के भाव कल्पना रूपी रसायन को पीकर सर्वजन का विषय बन जाते हैं। वे भाव मेरे न रहकर सभी पाठकों के भाव बन जाते हैं। उन भावों में से शब्द रूपी अंकुर फूटते हैं और ये भाव रूपी पत्तों से लदकर कविता विशेष रूप से झुक जाती है और सभी के आगे नतमस्तक हो जाती है अर्थात् उसे जो चाहे पढ़ सकता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने रूपक के द्वारा कवि-कर्म की तुलना किसान के कर्म के साथ की है।
  2. संपूर्ण पद में सांगरूपक अलंकार का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  3. ‘पल्लव-पुष्प’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है। इसी प्रकार ‘पल्लव-पुष्प’, ‘गल गया’ और ‘बोया गया’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हआ है।
  4. अंधड़ शब्द इस बात का द्योतक है कि कविता कभी भी पूर्व-नियोजित नहीं होती। अचानक कोई भाव कवि के मन में प्रस्फुटित होता है और वह कविता का रूप धारण कर लेता है।
  5. सहज, सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है।
  6. ‘बीज गल गया निःशेष’ यह सूचित करता है कि कवि के हृदय का भाव जब तक अहम्मुक्त नहीं होता तब तक वह कविता का रूप धारण नहीं कर सकता।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने अपनी तुलना किसके साथ और क्यों की है?
(ग) अंधड़ किसका प्रतीक है? स्पष्ट करो।
(घ) इस पद्यांश के आधार पर कवि की रचना प्रक्रिया क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) कवि-उमाशंकर जोशी कविता ‘छोटा मेरा खेत’.

(ख) कवि ने अपनी तुलना एक किसान के साथ की है। जिस प्रकार किसान अपने खेत में बीज बोता है फिर उसे जल, खाद देकर फसलें उगाता है उसी प्रकार कवि भी कागज़ के पन्ने पर भाव रूपी बीजों को उगाकर कविता की रचना करता है। .

(ग) अंधड़ कवि के मन में अचानक उत्पन्न भावना का प्रतीक है। जिस प्रकार आँधी के साथ कोई बीज उड़कर खेत में गिरता है और अंकुरित होकर पौधा बन जाता है, उसी प्रकार कवि के हृदय में अचानक कोई भाव उमड़ता है जिससे कविता जन्म लेती है।

(घ) कविता की रचना-प्रक्रिया फसल उगाने के समान है। सर्वप्रथम कवि के मन में बीज रूपी भाव उमड़ता है। वह भाव कल्पना के रसायन से रंग-रूप धारण करता है। तब वह अहममुक्त होकर संप्रेषणीय बन जाता है। फिर कवि शब्दों के द्वारा अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है और इस प्रकार कविता की रचना होती है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

[2] झूमने लगे फल,
रस अलौकिक
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेर खेत चौकोना। [पृष्ठ-64]

शब्दार्थ-अलौकिक = दिव्य। अमृत धाराएँ = रस की धाराएँ। रोपाई = बुआई। अनंतता = हमेशा के लिए। अक्षय = कभी नष्ट न होने वाला। पात्र = बर्तन।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ में से अवतरित है। इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि कविता किसी विशेष क्षण में उपजे भाव से उत्पन्न होती है।

व्याख्या कवि कहता है कि जब कवि के हृदय में पलने वाला भाव कविता रूपी फल के रूप में पक जाता है और झूमने लगता है तो उससे एक दिव्य रस टपकने लगता है। इससे आनंद की धाराएँ फूटने लगती हैं। भावों की बुआई तो एक क्षण भर में हुई थी, लेकिन कविता की कटाई अनंतकाल तक चलती रहती है अर्थात् अनंतकाल तक पाठक कविता के रस का आनंद प्राप्त करते रहते हैं। कविता रूपी फसल का आनंद अनंत है। उस रस को जितना भी लुटाओ कभी खाली नहीं होता अर्थात् कविता युगों-युगों तक रस प्रदान करती रहती है। कवि इसे रस का अक्षय पात्र कहता है। यह कविता कवि का चार कोनों वाला छोटा-सा खेत है। जिसमें नश्वर रस समाया हुआ है अर्थात् कविता शाश्वत होती है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि कविता का आनंद शाश्वत होता है। अनंतकाल तक कविता से रसानुभूति प्राप्त की जा सकती है।
  2. रस शब्द में श्लेष अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. तत्सम् प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  4. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है। संपूर्ण पद में चाक्षुष बिंब की सुंदर योजना हुई है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबधी प्रश्नोत्त
प्रश्न-
(क) कवि ने छोटा मेरा खेत चौकोना किसे और क्यों कहा है?
(ख) फल, रस और अमृत धाराएँ किसका प्रतीक हैं?
(ग) कवि ने रस का अक्षय पात्र किसे और क्यों कहा है?
(घ) ‘रोपाई क्षण की कटाई अनंतता’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) यहाँ कवि ने अपनी काव्य-रचना को छोटा मेरा खेत चौकोना कहा है। जिस प्रकार किसान चार कोनों वाले खेत में फसलें उगाता है, उसी प्रकार कवि कागज़ पर अपनी कविता लिखता है।

(ख) फल, रस और अमृत धाराएँ काव्य-रचना से प्राप्त होने वाले आनंद और रस का प्रतीक हैं।।

(ग) कवि ने कविता को ही रस का अक्षय पात्र कहा है। कारण यह है कि कविता का रस अनंत है। वह कभी समाप्त नहीं होता। किसी भी युग अथवा काल का व्यक्ति उसे पढ़कर आनंद प्राप्त कर सकता
है। इसीलिए वह रस का अक्षय पात्र कही गई है।

(घ) कविता अचानक भावनामय क्षण में लिखी जाती है परंतु वह अनंतकाल तक पाठकों को आनंदानुभूति प्रदान करती रहती है। कविता का आनंद चाहे जितना भी लुटाया जाए वह कभी समाप्त नहीं होता।

बगुलों के पंख पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें। [पृष्ठ-65]

शब्दार्थ-नभ = आकाश। पाँती = पंक्ति। कजरारे = काले। साँझ = सायंकाल। श्वेत = सफेद। सतेज = चमकीला। काया = शरीर। माया = जादू। तनिक = कुछ देर के लिए, थोड़ा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित ‘बगुलों के पंख’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसके कवि उमाशंकर जोशी हैं। यहाँ कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि आकाश में बगुले अपने पंख फैलाकर पंक्तिबद्ध होकर उड़े चले जा रहे हैं। वे इतने आकर्षक और मनोहारी हैं कि मेरी आँखें एकटक उन्हीं को देख रही हैं। लगता है वे मेरी आँखों को चुराकर ले जा रहे हैं। आकाश में काले बादलों की छाया फैली हुई है। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सायंकाल की श्वेत, चमकीली काया आकाश में तैर रही है। यह साँझ धीरे-धीरे आकाश में विहार कर रही है और मुझे अपने जादू में बाँधे हुए है। कवि के मन में अचानक यह भय पैदा होता है कि कहीं यह रमणीय दृश्य उसकी आँखों से ओझल न हो जाए। इसीलिए वह कहता है कि कोई इसे थोड़ी देर तक रोक कर रखो। मैं इस सुंदर दृश्य को थोड़ी देर तक देखना चाहता हूँ। आकाश में पंक्तिबद्ध बगुलों के पंख मेरी आँखों को चुरा कर ले जा रहे हैं। मैं एकटक उन्हें देख रहा हूँ। इन्हें रोक लो। ताकि मैं इस सुंदर दृश्य का आनंद ले सकूँ।

विशेष –

  1. यहाँ कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का चित्रण करते हुए साँझ के आकाश में बगुलों की पंक्ति का मनोरम चित्रण किया है।
  2. प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है। अतः मानवीकरण अलंकार है। पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
  3. ‘आँखें चुराना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।
  4. तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है। शब्द-चयन भावानुकूल और अर्थ की अभिव्यक्ति में सक्षम है।
  5. ‘पाँती बाँधी’ ‘हौले हौले’ आदि प्रयोग विशेष रूप से कोमल बन पड़े हैं
  6. संपूर्ण पद में चाक्षुष बिंब की सुंदर योजना हुई है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि किस दृश्य पर मुग्ध हो गया है?
(ग) ‘आँखें चुराने’ का अर्थ क्या है?
(घ) कवि किसे रोके रखना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
(क) कवि-उमाशंकर जोशी                                          कविता-बगुलों के पंख

(ख) कवि काले बादलों की छाई घटा में सायंकाल के समय आकाश में उड़ने वाले बगुलों की पंक्ति देखकर उस पर मुग्ध हो गया है, क्योंकि प्रकृति का यह दृश्य मनोहारी बन पड़ा है।

(ग) ‘आँखें चुराने’ का अर्थ है-ध्यान को आकृष्ट कर लेना जिससे देखने वाला व्यक्ति दृश्य पर मुग्ध हो जाए।

(घ) कवि सायंकाल में काले बादलों के बीच आकाश में उड़ते हुए बगुलों की पंक्तियों के दृश्य को रोकना चाहता है ताकि वह इस दृश्य को निरंतर निहार सके। प्रकृति के इस मनोरम दृश्य ने कवि को अपनी ओर भावुक कर लिया है।

छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Summary in Hindi

छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख कवि-परिचय

प्रश्न-
उमाशंकर जोशी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
उमाशंकर जोशी का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय – श्री उमाशंकर जोशी का जन्म 12 जुलाई, 1911 को गुजरात में हुआ। उन्होंने बीसवीं सदी की गुजराती कविता तथा साहित्य को नई भंगिमा और नया स्वर प्रदान किया। भारतीय साहित्य के लिए उनका साहित्यिक अवदान विशेष महत्त्व रखता है। उन्हें भारतीय संस्कृति और परंपरा का समुचित ज्ञान था। सर्वप्रथम उन्होंने कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ और भवभूति के ‘उत्तररामचरित’ का गुजराती भाषा में अनुवाद किया। एक कवि के रूप में उन्होंने गुजराती कविता को प्रकृति से जोड़ा और पाठक को आम जिंदगी के अनुभवों से परिचित कराया। जोशी जी में देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। भारत की आज़ादी की लड़ाई से उनका गहरा रिश्ता रहा है। इसके लिए उनको जेल भी जाना पड़ा। वे एक प्रसिद्ध कवि, विद्वान तथा लेखक के रूप में जाने जाते हैं। दिसंबर, 1988 में इस गुजराती साहित्यकार का निधन हो गया।

2. पुरस्कार – सन् 1968 में जोशी जी गुजराती साहित्य परिषद् के अध्यक्ष बने। 1978 से 1982 तक वे साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष रहे। सन् 1970 में वे गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी बने। सन् 1967 में उन्हें गुजराती साहित्य के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ और सन् 1973 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुआ।

3. प्रमुख रचनाएँ –
(क) काव्य-संग्रह ‘विश्व शांति’, ‘गंगोत्री’, ‘निशीथ’, ‘प्राचीना’, ‘आतिथ्य’, ‘वसंत वर्षा’, ‘महाप्रस्थान’, ‘अभिज्ञा’ (एकांकी)।
(ख) कहानी-‘सापनाभारा’ तथा ‘शहीद’।
(ग) उपन्यास-‘श्रावणी मेणो’ एवं ‘विसामो’।
(घ) निबंध-‘पारकांजण्या’।
(ङ) संपादन-‘गोष्ठी’, ‘उघाड़ीबारी’, ‘क्लांतकवि’, ‘म्हारासॉनेट’, ‘स्वप्नप्रयाण’।

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4. काव्यगत विशेषताएँ-कवि उमाशंकर की कविता में प्रकृति का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया गया है। उन्होंने प्रकृति के आलंबन, उद्दीपन तथा मानवीकरण रूपों का सुंदर एवं प्रभावशाली चित्रण किया है। वे जीवन के सामान्य प्रसंगों पर कविता लिखते रहे हैं। उदाहरण के रूप में ‘छोटा मेरा खेत’ में उन्होंने अपनी कविता रचना की प्रक्रिया की तुलना किसान के खेत के साथ की है। जिस प्रकार किसान अपने खेत में बीज बोता है और बीजों में से अंकुर फूटकर पौधों का रूप धारण करते हैं, उसी प्रकार कागज़ के पन्ने पर कवि रचना लिखता है, जिसमें से शब्दों के अंकुर निकलते हैं और अन्ततः रचना एक पूर्ण स्वरूप ग्रहण करती है। इसी प्रकार ‘बगुलों के पंख’ नामक कविता सुंदर दृश्यों की कविता कही जा सकती है। जिसका प्राकृतिक सौंदर्य पाठक को भी आकर्षित किए बिना नहीं रह सकता। जोशी जी आधुनिकतावादी भारतीय कवि थे। कविता के अतिरिक्त अन्य विधाओं में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। साहित्य की आलोचना में उनका विशेष स्थान रहा है। निबंधकार के रूप में वे गुजराती साहित्य में बेजोड़ माने जाते हैं।

5. भाषा-शैली-जोशी जी ने प्रायः सहज, सरल और साहित्यिक भाषा का ही प्रयोग किया है। कवि का शब्द-चयन पूर्णतया भावानुकूल तथा प्रसंगानुकूल है। वे प्रायः सटीक शब्दों का प्रयोग करते हैं। यत्र-तत्र वे अलंकार प्रयोग द्वारा अपनी काव्य-भाषा को सजाते भी हैं। वे जीवन के सामान्य प्रसंगों के लिए सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते देखे गए हैं। इसलिए भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से उनका साहित्य उच्चकोटि का है।

छोटा मेरा खेत कविता का सार

प्रश्न-
उमाशंकर जोशी द्वारा रचित ‘छोटा मेरा खेत’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इस कविता में कवि ने रूपक का सहारा लेते हुए कवि कर्म को कृषक कर्म के समान सिद्ध किया है। किसान पहले अपने खेत में बीज बोता है। बीज फूटकर पौधा बन जाता है और फिर पुष्पित-पल्लवित होकर पक जाता है। तत्पश्चात् उसकी कटाई करके अनाज निकाला जाता है, जिससे लोगों का पेट भरता है। कवि के अनुसार कागज़ उसका खेत है जब उसके मन में भावनाओं की आंधी आती है तो उसमें बीज बोया जाता है। कल्पना का आश्रय पाकर बीज रूपी भाव विकसित हो जाता है। शब्दों के अंकुर निकलते ही रचना अपना स्वरूप ग्रहण करती है। इस रचना में एक अलौकिक रूप होता है जो अनंत काल तक पाठकों को आनंद प्रदान करती रहती है। कवि की खेती का रस कभी समाप्त नहीं होता।

बगुलों के पंख कविता का सार

प्रश्न-
उमाशंकर जोशी द्वारा रचित ‘बगुलों के पंख’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इस लघु कविता में कवि ने प्रकृति सौंदर्य का मनोरम वर्णन किया है। आकाश में काले-काले बादल दिखाई दे रहे हैं। उन बादलों में सफेद पंखों वाले बगुले पंक्तिबद्ध होकर उड़े जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि सायंकाल में कोई श्वेत काया तैर रही है। बगुलों की पंक्तियों का यह सौंदर्य कवि की आँखों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कवि चाहता है कि वह इन बगुलों को निरंतर देखता रहे। परंतु बगुले तो उड़े जा रहे हैं। यदि उन्हें कोई रोक ले तो कवि इस सौंदर्य को निरंतर देखता रह सकता है।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

HBSE 12th Class Hindi बाज़ार दर्शन Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
बाज़ार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
उत्तर:
बाज़ार का जादू चढ़ने पर मनुष्य बाज़ार की आकर्षक वस्तुओं को खरीदने लगता है और अकसर अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लेता है, परंतु जब बाज़ार का जादू उतर जाता है तो उसे पता चलता है कि जो वस्तुएँ उसने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए खरीदी थीं, वे तो उसके आराम में बाधा उत्पन्न कर रही हैं।

प्रश्न 2.
बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनका आचरण समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार हो सकता है?
उत्तर:
भगत जी चौक बाज़ार में चारों ओर सब कुछ देखते हुए चलते हैं, लेकिन वे बाज़ार के आकर्षण की ओर आकृष्ट नहीं होते। वे न तो बाजार को देखकर भौंचक्के हो जाते हैं और न ही बाजार की बनावटी चमक-दमक हुई अनेक प्रकार की वस्तुओं के प्रति न तो उन्हें लगाव होता है और न ही अलगाव, बल्कि वे तटस्थ भाव तथा संतुष्ट मन से सब कुछ देखते हुए चलते हैं। उन्हें तो केवल जीरा और काला नमक ही खरीदना होता है। इसलिए वे फैंसी स्टोरों पर न रुककर सीधे पंसारी की दुकान पर चले जाते हैं। उनके जीवन का यह पहलू सशक्त उभरकर हमारे सामने आता है।

निश्चय से भगत जी का यह आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है। अनावश्यक वस्तुओं का घर में संग्रह करने से घर-परिवार में अशांति ही बढ़ती है। यदि मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार ही वस्तुओं की खरीद करता है तो इससे बाज़ार में महंगाई भी नहीं बढ़ेगी और लोगों में संतोष की भावना उत्पन्न होगी जिससे समाज में शांति की व्यवस्था उत्पन्न होगी।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

प्रश्न 3.
‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें है?
उत्तर:
‘बाज़ारूपन’ का अर्थ है-ओछापन। इसमें दिखावा अधिक होता है और आवश्यकता बहुत कम होती है। इसमें गंभीरता नहीं होती केवल ऊपरी सोच होती है। जिन लोगों में बाजारूपन होता है, वे बाजार को निरर्थक बना देते हैं, उसके महत्त्व को घटा देते हैं।

परंतु जो लोग आवश्यकता के अनुसार बाज़ार से वस्तुएँ खरीदते हैं, वे ही बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं। ऐसे लोगों के कारण ही बाज़ार में केवल वही वस्तुएँ बेची जाती हैं जिनकी लोगों को आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में बाज़ार हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन बनता है। भगत जी जैसे लोग जानते हैं कि उन्हें बाज़ार से क्या खरीदना है। अतः ऐसे लोग ही बाज़ार को सार्थक बनाते हैं।

प्रश्न 4.
बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
यह कहना सही है कि बाज़ार किसी भी व्यक्ति का लिंग, जाति, धर्म अथवा क्षेत्र नहीं देखता। चाहे सवर्ण हो या अवर्ण, सूचित-अनुसूचित जातियों के लोग आदि सभी उसके लिए एक समान हैं। बाज़ार यह नहीं पूछता कि आप किस जाति अथवा धर्म से संबंधित हैं, वह तो केवल ग्राहक को महत्त्व देता है। ग्राहक के पास पैसे होने चाहिए, वह उसका स्वागत करता है। इस दृष्टि से बाज़ार निश्चय से सामाजिक समता की रचना करता है, क्योंकि बाज़ार के समक्ष चाहे ब्राह्मण हो या निम्न जाति का व्यक्ति हो, मुसलमान हो या ईसाई हो, सभी बराबर हैं। वे ग्राहक के सिवाय कुछ नहीं हैं। इस दृष्टिकोण से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। दुकानदार के पास सभी प्रकार के लोग बैठे हुए देखे जा सकते हैं। वह किसी से यह नहीं पूछता कि वह किस जाति अथवा. धर्म को मानने वाला है, परंतु मुझे एक बात खलती है, आज बढ़ती हुई आर्थिक विषमता के कारण केवल अमीर व्यक्ति ही बाज़ार में खरीददारी कर सकता है। महंगाई के कारण गरीब व्यक्ति बाज़ार जाने का साहस भी नहीं करता। फिर भी यह सत्य है कि बाज़ार सामाजिक समता की स्थापना करता है।

प्रश्न 5.
आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें (क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ। (ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
उत्तर:
सचमुच पैसे में बड़ी शक्ति है। पैसे का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जब हम पैसे के अभाव को महसूस करते हैं। लेकिन यह भी सही है कि जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं है।
(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ-भले ही हमारे देश में कहने को तो लोकतंत्र है, लेकिन गरीब व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता। आज के माहौल में विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कम-से-कम दो करोड़ रुपये तो चाहिए ही। आम आदमी इतने पैसे कहाँ से जुटा सकता है। अतः हमारे चुनाव भी पैसे की शक्ति के परिचायक बन चुके हैं। अमीर तथा दबंग लोग ही चुनाव लड़ते हैं और जीतकर पैसे बनाते हैं। चाहे कोई एम०एल०ए० हो या संसद सदस्य सभी करोड़पति हैं। इसी से पैसे की शक्ति का पता चल जाता है।

(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई-पैसे में पर्याप्त शक्ति होती है, लेकिन जीवन में अनेक अवसर ऐसे भी आते हैं जब पैसे की शक्ति काम नहीं आती। सेठ जी के पुत्र को कैंसर हो गया। सेठ जी ने उसके उपचार पर लाखों रुपये खर्च कर दिए। यहाँ तक कि वह उसे ईलाज के लिए अमेरिका भी ले गया, लेकिन उसका बेटा बच नहीं सका। सेठ जी के पैसे की शक्ति भी काम नहीं आई।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
बाज़ार दर्शन पाठ में बाजार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।
(क) मन खाली हो
(ख) मन खाली न हो
(ग) मन बंद हो
(घ) मन में नकार हो
उत्तर:
(क) मन खाली हो-एक बार मैं बिना किसी उद्देश्य से एक मॉल में प्रवेश कर गया। मेरी जेब में पैसे भी काफी थे। यहाँ-वहाँ भटकते हुए मैं यह निर्णय नहीं कर पाया कि मैं घर के लिए कौन-सी वस्तु खरीदकर ले जाऊँ। आखिर मैंने बड़ा-सा एक रंग-बिरंगा खिलौना खरीद लिया। घर पहुँचते ही पता चला कि वह खिलौना चीन का बना हुआ था। एक घंटे बाद ही वह खिलौना खराब हो गया। अतः अब वह हमारे स्टोर की शोभा बढ़ा रहा है। यह सब मन खाली होने का परिणाम है।

(ख) मन खाली न हो-सर्दी आरंभ हो चुकी थी। मेरी माँ ने कहा कि बेटा एक गर्म जर्सी खरीद लो। दो-चार दिन बाद मैं अपने पिता जी के साथ बाज़ार चला गया। हमने बाज़ार में अनेक वस्तुएँ देखीं, लेकिन कुछ नहीं खरीदा। मैंने तो सोच लिया कि मुझे केवल एक गर्म जर्सी ही खरीदनी है। अन्ततः हम लायलपुर जनरल स्टोर पर गए। मैंने वहाँ से मनपसंद जर्सी खरीद ली और मैं पिता जी के साथ घर लौट आया।

(ग) मन बंद हो-एक दिन सायंकाल मैं अपने मित्रों के साथ बाज़ार गया। लेकिन मेरा मन बड़ा ही उदास था। दुकानदारों की आवाजें मुझे व्यर्थ लग रही थीं। मुझे बाज़ार की रौनक से भी अपकर्षण हो गया। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। मित्रों ने यहाँ-वहाँ से कछ सामान लिया लेकिन मैं खाली हाथ ही घर लौट आया।

(घ) मन में नकार हो मैं कुछ दिनों से दूरदर्शन पर जंकफूड के बारे में बहुत कुछ सुन रहा था। धीरे-धीरे मेरे मन में जंक फूड के प्रति घृणा-सी उत्पन्न हो गई। मैं अपने मित्रों के साथ एक अच्छे होटल में गया। वहाँ पर पीज़ा, बरगर, डोसा, चने-भटूरे आदि बहुत कुछ था। लेकिन मेरे मन में नकार की स्थिति बनी हुई थी। मेरा मन तो सादी दाल-रोटी खाने को कर रहा था। अतः मैं मित्रों के साथ वहाँ से भूखा ही लौटा और घर में अपनी माँ के हाथों से बनी सब्जी-रोटी ही खाई।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

प्रश्न 2.
बाज़ार दर्शन पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?
उत्तर:
बाज़ार दर्शन पाठ में दो प्रकार के ग्राहकों की बात की गई है। प्रथम श्रेणी में वे ग्राहक आते हैं, जिनके मन खाली हैं तथा जिनके पास खरीदने की शक्ति ‘पर्चेजिंग पावर’ भी है। ऐसे लोग बाजार की चकाचौंध के शिव से अनावश्यक सामान खरीदकर अपने मन की शांति भंग करते हैं। द्वितीय श्रेणी में वे ग्राहक आते हैं जिनका मन खाली नहीं होता अर्थात जो मन में यह निर्णय करके बाज़ार जाते हैं कि वे बाज़ार से अमुक आवश्यक वस्तु खरीदकर लाएँगे। ऐसे ग्राहक भगत जी के समान होते हैं। मैं द्वितीय श्रेणी की ग्राहक हूँ। मैं हमेशा मन में यह निर्णय करके बाज़ार जाती हूँ कि मुझे बाज़ार से क्या खरीद कर लाना है।

प्रश्न 3.
आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाज़ार में नज़र आती है?
उत्तर:
आज के महानगरों में विभिन्न प्रकार के बाज़ार हैं-साप्ताहिक बाज़ार सप्ताह में एक बार लगता है। इसी प्रकार थोक बाज़ार, कपड़ा बाज़ार और करियाना बाज़ार भी हैं। फर्नीचर बाज़ार से केवल फर्नीचर मिलता है और पुस्तक बाज़ार से पुस्तकें। ये सभी हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं। लेकिन मॉल आम लोगों के लिए नहीं है। उनमें केवल वही लोग जा सकते हैं जिनके पास काला धन होता है। गरीब लोगों के लिए वहाँ पर कोई स्थान नहीं है। सामान्य बाज़ार तथा हाट में अमीर-गरीब सभी लोग जाते हैं, क्योंकि इन बाजारों में आवश्यक वस्तुएँ उचित मूल्य पर मिल जाती हैं। पर्चेजिंग पावर मॉल में ही देखी जा सकती है जहाँ लोग अपना स्टेट्स दिखाते हैं। अनाप-शनाप खाते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं। पूंजीपतियों के पास ही क्रय शक्ति होती है।

प्रश्न 4.
लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
लेखक के अनुसार ‘पर्चेजिंग पावर’ दिखाने वाले पूँजीपति लोग ही बाज़ार के ‘बाज़ारूपन’ को बढ़ाते हैं। इन लोगों के कारण बाज़ार में छल-कपट तथा शोषण को बढ़ावा मिलता है। दुकानदार अकसर ग्राहक का शोषण करता हुआ नज़र आता है। लेकिन कभी-कभी हमारी आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। हाल ही में आटा, चावल, चीनी, दालों तथा सब्जियों के दाम आकाश को छूने लग गए हैं। ये सभी वस्तुएँ हमारी नित्य-प्रतिदिन की आवश्यकता की वस्तुएँ हैं। लेकिन दुकानदार तथा बिचौलिए खुले आम हमारा शोषण कर रहे हैं। यदि घर में गैस का सिलिंडर नहीं है तो हम इसे अधिक दाम देकर खरीद लेते हैं और शोषण का शिकार बनते हैं। मैं लेखक के इस विचार से सहमत हूँ कि प्रायः आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 5.
स्त्री माया न जोड़े यहाँ माया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ होंगी जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?
उत्तर:
माया जोड़ने का अर्थ है-घर के लिए आवश्यक वस्तुओं का संग्रह करना और चार पैसे जोड़ना। स्त्री ही घर-गृहस्थी है। उसे ही घर-भर की सुविधाओं का ध्यान रखना होता है। वह प्रायः घर के लिए वही वस्तुएँ खरीदती है जो नितांत आवश्यक होती हैं।

अनेक बार कुछ स्त्रियाँ देखा-देखी अनावश्यक वस्तुएँ भी खरीद लेती हैं। वे पुरुषों की नज़रों में सुंदर दिखने के लिए अपना बनाव-श्रृंगार भी करती हैं और इसके लिए आकर्षक वस्त्र तथा आभूषण भी खरीदती हैं। पुरुष-प्रधान समाज में स्त्री की यह मज़बूरी बन गई है कि वह माया को जोड़े अन्यथा उसका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

आपसदारी

प्रश्न 1.
ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिए-
चाह गई चिंता गई मनुआँ बेपरवाह
जाके कछु न चाहिए सोइ सहंसाह। कबीर
उत्तर:
भगत जी बाज़ार से उतना ही सामान खरीदते हैं, जितनी उनको आवश्यकता होती है। ज़रूरत-भर जीरा-नमक लेने के बाद उनके लिए सारा बाज़ार और चौक न के बराबर हो जाता है। लगभग यही भाव कबीर के दोहे में व्यक्त हुआ है। जब मनुष्य की इच्छा पूरी हो जाती है तो उसका मन बेपरवाह हो जाता है। उस समय वह एक बादशाह के समान होता है। भगत जी की संतुष्ट निस्पृहता कबीर की इस सूक्ति से सर्वथा मेल खाती है। कबीर ने तो यह लिखा है, लेकिन भगत जी ने इस दोहे की भावना को अपने जीवन में ही उतार लिया है।

प्रश्न 2.
विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फिल्म बनी है) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे/देखेंगी कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?
गड़रिया बगैर कहे ही उस के दिल की बात समझ गया, पर अँगूठी कबूल नहीं की। काली दाढ़ी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुए बोला ‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूँ। मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अंगूठी मेरे किस काम की! न यह अँगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़ें भी मेरी तरह गँवार हैं। घास तो खाती हैं, पर सोना सूंघती तक नहीं। बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।’-विजयदान देथा
उत्तर:
निश्चय से भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि गड़रिए की जीवन-दृष्टि से मेल खाती है। मानव जितना भौतिक सुखों के पीछे भागता है, उतना ही वह अपने लिए असंतोष तथा अशांति का जाल बुनता जाता है। इस जाल में फंसे हुए मानव की स्थिति मृग की तृष्णा के समान है। सुख तो मिलता नहीं, अलबत्ता वह धन-संग्रह के कारण अपने जीवन को नरक अवश्य बना लेता है। उसकी असंतोष की आग कभी नहीं बुझती। इस संदर्भ में कविवर कबीरदास ने कहा भी है
माया मुई न मन मुआ मरि मरि गया सरीर।
आसा तृष्णा ना मिटी कहि गया दास कबीर।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

प्रश्न 3.
बाज़ार पर आधारित लेख नकली सामान पर नकेल ज़रूरी का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
(क) नकली सामान के खिलाफ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?
(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनज़र रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व है?
(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए।
नकली सामान पर नकेल ज़रूरी
अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का ज़िक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों मे खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है।

उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरिमा जी का कहना है, ‘इसमें दो राय नहीं कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली रीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँववालों के अज्ञान और उनके बीच जागरूकता के अभाव का पूरा फायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून ज़रूर हैं लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है।

इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्रस रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस.एन. कपूर का कहना है, ‘टीवी ने दूर-दराज़ के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुंचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं। नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।’

बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरूकता के लिहाज़ से शहरी समाज भी कोई ज़्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरूकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रहा है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्योंकर न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की ज़रूरत है वह तत्काल हो।
-हिंदुस्तान 6 अगस्त 2006, साभार
उत्तर:
(क) नकली सामान के खिलाफ जागरूकता उत्पन्न करना नितांत आवश्यक है। यह कार्य स्कूल तथा कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा मिलकर किया जा सकता है। इसी प्रकार समाचार पत्र, दूरदर्शन, रेडियो आदि संचार माध्यम भी नकली सामान के विरुद्ध अभियान चला सकते हैं। इसके लिए नुक्कड़ नाटक भी खेले जा सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को नकली सामान के विरुद्ध सावधान किया जाए।

(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनज़र रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का यह दायित्व है कि ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सही वस्तुओं का उत्पादन करें। अन्यथा उनका व्यवसाय अधिक दिन तक नहीं चल पाएगा।

(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे लोगों की यह मानसिकता है कि ब्रांडेड वस्तुएँ बनाने वाली कंपनियाँ ग्राहक के संतोष को ध्यान में रखती हैं, परंतु जो कंपनियाँ नकली सामान बनाती हैं, सरकार को भी उन पर नकेल करनी चाहिए।
टिप्पणी-इन सभी बिंदुओं पर विद्यार्थी अपनी कक्षा में अपने-अपने विचार प्रस्तुत कर सकते हैं, परंतु यह विचार-विमर्श शिक्षक की देख-रेख में होने चाहिए।
उपभोक्ता क्लब में भी इस गद्यांश का वाचन किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।
उत्तर:
ईदगाह कहानी में हामिद के सभी मित्र बाज़ार में चाट पकौड़ी और मिठाइयाँ खाते हैं। इसी प्रकार वे मिट्टी के खिलौने भी खरीदते हैं। इन बच्चों को घर से काफी पैसे ईदी के रूप में मिले थे। परंतु हामिद को तो बहुत कम पैसे मिले थे। हामिद के मुँह में भी पानी भर आया। लेकिन उसने मन में प्रतिज्ञा की थी कि वह अपनी दादी अमीना के लिए एक चिमटा खरीदकर ले जाएगा। हामिद के मित्र “बाज़ार दर्शन” के कपटी ग्राहकों के समान हैं। वे बाज़ार से अनावश्यक सामान खरीदते हैं और बाद में पछताते हैं, परंतु हामिद भगत जी के समान सब मित्रों के साथ घुलमिल कर रहता है, परंतु केवल आवश्यक वस्तु ही खरीदता है।

विज्ञापन की दुनिया

प्रश्न 1.
आपने समाचारपत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।
1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु
2. विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य
3. विज्ञापन की भाषा
HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन 1
उत्तर:
भारतीय जीवन बीमा निगम’ का उपरोक्त विज्ञापन सामान्य व्यक्ति को भी बीमा कराने की प्रेरणा देता है। इस विज्ञापन ने मुझे भी निम्नलिखित बिंदुओं में से प्रभावित किया है
(1) विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय वस्तु-विज्ञापन में दिखाया गया परिवार (पति-पत्नी तथा उनका बेटा-बेटी) बीमा कराने के बाद सुरक्षित एवं प्रसन्न दिखाई देता है। अतः यह विज्ञापन विषय-वस्तु तथा चित्र के सर्वथा अनुकूल एवं प्रभावशाली है।

(2) एक स्वस्थ एवं जागरूक परिवार हमेशा अपने भविष्य के प्रति चिंतित होता है। उपर्यक्त चित्र में परिवार के मुखिया ने अपनी पत्नी तथा बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए ‘जीवन निश्चय’ बीमा करवाया है। यह एक एकल प्रीमियम प्लान है जोकि 5, 7, तथा 10 वर्ष की अवधि के बाद गांरटीयुक्त परिपक्वता लाभ दिलाता है।

(3) विज्ञापन की भाषा-प्रस्तुत विज्ञापन की भाषा ‘गांरटी हमारी, हर खुशी तुम्हारी’ मुझे अत्यधिक पसंद है जिसे सुनकर कोई भी समझदार व्यक्ति अपने परिवार के लिए यह बीमा अवश्य लेना चाहेगा। स्लोगन सुनकर या पढ़कर ही ग्राहक इसकी ओर आकर्षित हो जाता है।

प्रश्न 2.
अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो।
उत्तर:
आज के वैज्ञानिक युग में सामान की बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन का सहारा लेना ज़रूरी है। मैं अपने उत्पाद को ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए निम्नलिखित उपाय करूँगा

  1. दूरदर्शन के लोकप्रिय सीरियल पर विज्ञापन दूंगा।
  2. किसी लोकप्रिय समाचार पत्र में अपने उत्पाद का विज्ञापन दूंगा। इसके लिए मैं अखबार में छपे हुए पर्चे भी डलवा सकता हूँ।
  3. मोबाइल पर एस०एम०एस० द्वारा भी विज्ञापन दे सकता हूँ।
  4. रेडियो पर भी उत्पाद का प्रचार-प्रसार किया जा सकता है।
  5. एजेंटों को घर-घर भेज कर भी उत्पाद का प्रचार किया जा सकता है।

मैं उपर्युक्त साधनों में से समाचार पत्र व दूरदर्शन पर विज्ञापन देना अधिक पसंद करूँगा। मैं उपभोक्ता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखुंगा, ताकि लोगों तक अच्छी वस्तुएँ पहुँच सकें।

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भाषा की बात

प्रश्न 1.
विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
(क) भाषा का औपचारिक रूप-

  • कोई अपने को न जाने तो बाज़ार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोडे………. असंतोष तृष्णा से घायल कर मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना डाल सकता है।
  • उनका आशय था कि पत्नी की महिमा है, उस महिमा का मैं कायल हूँ।
  • एक और मित्र की बात है यह दोपहर के पहले गए और बाज़ार से शाम को वापिस आए।

(ख) भाषा का अनौपचारिक रूप-

  • यह देखिए, सब उड़ गया। अब जो रेल टिकट के लिए भी बचा हो।
  • बाज़ार है कि शैतान का जाल है? ऐसा सज़ा-सज़ा कर माल रखते हैं कि बेहया ही हो जो न फँसे।
  • बाज़ार को देखते क्या रहे?

लाए तो कुछ नहीं। हाँ पर यह समझ न आता था कि न लूँ तो क्या?

प्रश्न 2.
पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे हैं जहाँ वह पाठक-वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं?
उत्तर:
पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्य:

  1. लेकिन ठहरिए। इस सिलसिले में एक और महत्त्व का तत्त्व है जिसे नहीं भूलना चाहिए।
  2. यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत ज़रूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए।
  3. क्या जाने उसे भोले आदमी को अक्षर-ज्ञान तक भी है या नहीं। और बड़ी बातें तो उसे मालूम क्या होंगी और हम न जाने कितनी बड़ी-बड़ी बातें जानते हैं।
  4. पर उस जादू की जकड़ से बचने का सीधा-सा उपाय है।
  5. कहीं आप भूल न कर बैठना।

इस प्रकार के वाक्य निश्चय से पाठक को सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। अतः इन वाक्यों की निबंध में विशेष उपयोगिता मानी गई है।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।
(क) पैसा पावर है।
(ख) पैसे की उस पर्चेजिंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।
(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।
(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।
ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल। अब तक आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
उत्तर:
कोड मिक्सिंग हिंदी भाषा में प्रायः होता रहता है। आधुनिक हिंदी भाषा देशज तथा विदेशज शब्दों को स्वीकार करती हुई आगे बढ़ रही है। पुस्तक के पठित पाठों के आधार पर निम्नलिखित उदाहरण उल्लेखनीय हैं

  1. दाल से एक मोटी रोटी खाकर मैं ठाठ से यूनिवर्सिटी पहुँची। (भक्तिन)
  2. पैसा पावर है। पर उस के सबूत में आस-पास माल-ढाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है। पैसे को देखने के लिए बैंक हिसाब देखिए……..।
  3. वहाँ के लोग कैसे खूबसूरत होते हैं, उम्दा खाने और नफीस कपड़ों के शौकीन, सैर-सपाटे के रसिया, जिंदादिली की तस्वीर।
  4. बाज़ार है कि शैतान का जाल है।
  5. अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली केटिली ही होते हैं।

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प्रश्न 4.
नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए
(क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है।
(ख) लोग संयमी भी होते हैं।
(ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।
ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे
मुझे भी किताब चाहिए। (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)
मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।)
आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का भी निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों।
उत्तर:
(क) ही
मित्र! केवल आप ही मेरी सहायता कर सकते हैं।
मैं ही तो तुम्हारे घर में था।
पिता जी ने आज ही दिल्ली जाना था।

(ख) भी
मैं भी तुम्हारे साथ सैर पर चलूँगा।
राधा ने भी स्कूल में प्रवेश ले लिया है।
तुम भी काम की तरफ ध्यान दो।

(ग) तो
यदि तुम मेरी सहायता नहीं करोगे तो मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूँगा।
यूँ ही शोर मत करो। मेरी बात तो सुनो।
मैं यहीं तो खड़ा था।

(ग) ही, तो, भी
(1) यदि यह बात है तो तुम भी राधा के ही साथ चले जाओ।
(2) तुम भी तो हमेशा गालियाँ ही बकते रहते हो।

चर्चा करें

1. पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है?
बाज़ार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद के लिए संकेत दिया जा रहा है-
(क) सामाजिक विकास के कार्यों में।
(ख) ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में…….।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक के सहयोग से कक्षा में अपने सहपाठियों के साथ चर्चा करें तथा प्रत्येक विद्यार्थी को अपने विचार प्रकट करने का अवसर दिया जाए।

HBSE 12th Class Hindi बाज़ार दर्शन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ में कितने प्रकार के ग्राहकों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
इस पाठ में पहला ग्राहक लेखक का मित्र है, जो बाज़ार में मामूली सामान लेने गया था, परंतु बाज़ार से बहुत-से बंडल खरीदकर ले आया। लेखक का दूसरा मित्र दोपहर में बाज़ार गया, लेकिन सायंकाल को खाली हाथ घर लौट आया। उसके मन में बाज़ार से बहुत कुछ खरीदने की इच्छा थी, परंतु बाज़ार से खाली हाथ लौट आया।

तीसरा ग्राहक लेखक के पड़ोसी भगत जी हैं जो आँख खोलकर बाज़ार देखते हैं, पर फैंसी स्टोरों पर नहीं रुकते। वे केवल पंसारी की एक छोटी-सी दुकान पर रुकते हैं। जहाँ से काला नमक तथा जीरा खरीदकर वापिस लौट आते हैं। तीसरा ग्राहक अर्थात् भगत जी केवल आवश्यक वस्तुएँ ही खरीदते हैं।

प्रश्न 2.
‘बाज़ार दर्शन’ नामकरण की सार्थकता का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत निबंध में बाज़ार के बारे में समुचित प्रकाश डाला गया है। लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि कौन-सा ग्राहक किस दृष्टि से बाज़ार का प्रयोग करता है। लेखक ने इस निबंध में बाज़ार की उपयोगिता पर समुचित प्रकाश डाला है। जो लोग बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर अपनी पर्चेज़िग पावर का प्रदर्शन करते हैं, वे बाज़ार को निरर्थक सिद्ध करते हैं, परंतु कुछ ऐसे ग्राहक हैं जो बाज़ार से आवश्यकतानुसार सामान खरीदते हैं और संतुष्ट रहते हैं। इस प्रकार के लोग बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं। यहाँ लेखक ने बाज़ार के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला है, साथ ही दुकानदार तथा ग्राहक की मानसिकता का उद्घाटन किया है। अतः ‘बाज़ार-दर्शन’ नामकरण पूर्णतः सार्थक है।

प्रश्न 3.
‘मन खाली नहीं रहना चाहिए’, खाली मन होने से लेखक का क्या मन्तव्य है?
उत्तर:
‘मन खाली नहीं रहना चाहिए’ से अभिप्राय है कि जब हम बाज़ार में जाएँ तो मन में आवश्यक वस्तुएँ खरीदने के बारे में सोचकर ही जाएँ, बिना उद्देश्य के न जाएँ। जब कोई व्यक्ति निरुद्देश्य बाज़ार जाता है तो वह अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर लाता है। इससे बाज़ार में एक व्यंग्य-शक्ति उत्पन्न होती है। ऐसा करने से न तो बाजार को लाभ पहुँचता है, न ही ग्राहक को, बल्कि केवल प्रदर्शन की वृत्ति को ही बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 4.
‘बाज़ार का जादू सब पर नहीं चलता’। भगत जी के संदर्भ में इस कथन का विवेचन करें।
उत्तर:
बाज़ार में एक जादू होता है जो प्रायः ग्राहकों को अपनी ओर खींचता है, किंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जिनका मन भगत जी की तरह संतुष्ट होता है। बाज़ार का आकर्षण उनके मन को प्रभावित नहीं कर पाता। लेखक के पड़ोसी भगत जी दिन में केवल छः आने ही कमाते थे। वे इस धन-राशि से अधिक नहीं कमाना चाहते थे। उनके द्वारा बनाया गया चूरन बाज़ार में धड़ाधड़ बिक जाता था। जब उनकी छः आने की कमाई पूरी हो जाती तो बचे चूरन को वह बच्चों में मुफ्त बाँट देते थे। वे चाहते तो थोक में चूरन बनाकर बेच सकते थे। परंतु उनके मन में धनवान होने की कोई इच्छा नहीं थी। उनके सामने फैंसी स्टोर इस प्रकार दिखाई देते थे जैसे उनका कोई अस्तित्व नहीं है। वे केवल बाजार से अपनी आवश्यकता का सामान खरीदने के लिए जाते थे और बाजार की आकर्षक वस्तुओं की ओर नहीं ललचाते थे। इसलिए कह सकते हैं कि बाज़ार का जादू सब पर नहीं चलता।

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प्रश्न 5.
लेखक के पड़ोस में कौन रहता है तथा उनके बारे में क्या बताया गया है?
उत्तर:
लेखक के पड़ोस में एक भगत जी रहते हैं जो चूरन बेचने का काम करते हैं। वे न जाने कितने वर्षों से चूरन बेच रहे हैं लेकिन उन्होंने छः आने से अधिक कभी नहीं कमाया। वे चौक बाज़ार में काफी लोकप्रिय हैं। जब उन्हें छः आने की कमाई हो जाती है तो वे बच्चों में मुफ्त चूरन बाँट देते हैं, परंतु भगत जी ने बाज़ार के गुर को नहीं पकड़ा अन्यथा वे मालामाल हो जाते। वे अपना चूरन न तो चौक में बेचते हैं न पेशगी ऑर्डर लेते हैं। लोगों की उनके प्रति बड़ी सद्भावना है। वे हमेशा स्वस्थ प्रसन्न तथा संतुष्ट रहते हैं। सच्चाई तो यह है कि चूरन वाले भगत जी पर बाज़ार का जादू नहीं चल सका।

प्रश्न 6.
लेखक ने भगत जी से मुलाकात होने पर उनसे क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की है?
उत्तर:
एक बार लेखक को बाज़ार चौक में भगत जी दिखाई दिए। लेखक को देखते ही उन्होंने जय-जयराम किया और लेखक ने भी उनको जय-जयराम किया। उस समय भगत जी की आँखें बंद नहीं थीं। बाज़ार में और भी बहुत-से लोग और बालक मिले। वे सभी भगत जी द्वारा पहचाने जाने के इच्छुक थे। भगत जी ने हँसकर सभी को पहचाना, सबका अभिवादन किया और सबका अभिवादन लिया। वे बाज़ार की सज-धज को देखते हुए चल रहे थे। परंतु भगत जी के मन में उनके प्रति अप्रीति नहीं थी विद्रोह भी नहीं था, बल्कि प्रसन्नता थी। वे खुली आँख, संतुष्ट और मग्न से बाज़ार चौक में चल रहे थे।

प्रश्न 7.
चौक बाज़ार में चलते हुए भगत जी कहाँ पर जाकर रुके और उन्होंने क्या किया?
उत्तर:
चौक बाज़ार में चलते हुए भगत जी एक पंसारी की दुकान पर रुके। बाज़ार में हठपूर्वक विमुखता उनमें नहीं थी। अतः उन्होंने पंसारी की दुकान से आवश्यकतानुसार काला नमक व जीरा लिया और वापिस लौट पड़े। इसके बाद तो सारा चौक उनके लिए नहीं के बराबर हो गया। क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें जो कुछ चाहिए था वह उन्हें मिल गया है।

प्रश्न 8.
बाजार के जादू चढ़ने-उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
बाज़ार का जादू मनुष्य के सिर पर चढ़कर बोलता है। बाज़ार कहता है-मुझे लूटो, और लूटो। इस पर बाज़ार मनुष्य को विकल बना देता है और वह अपना विवेक खो बैठता है। बाज़ार का जादू उतरने पर मनुष्य को लगता है कि उसका बजट बिगड़ गया है। वह फिजूल की चीजें खरीद लाया है। यही नहीं, उसके सुख-चैन में भी खलल पड़ गया है।

प्रश्न 9.
लेखक ने किस बाज़ार को मानवता के लिए विडंबना कहा है और क्यों?
उत्तर:
लेखक ने उस बाज़ार को मानवता के लिए विडंबना कहा है, जिसमें ग्राहकों की आवश्यकता-पूर्ति के लिए क्रय-विक्रय नहीं होता, बल्कि अमीर लोगों की क्रय-शक्ति को देखते हुए अनावश्यक वस्तुएँ बेची जाती हैं। पूँजीपति अपनी क्रय-शक्ति का प्रदर्शन इस बाज़ार में करते हैं जिससे बाज़ार में छल-कपट तथा शोषण को बढ़ावा मिलता है। यही नहीं, सामाजिक सद्भाव भी नष्ट होता है। इस प्रकार के बाज़ार में ग्राहक और बेचक दोनों ही एक-दूसरे को धोखा देने का प्रयास करते हैं। अतः इस प्रकार का बाज़ार समाज के लिए हानिकारक है। यदि हम इसे मानवता के लिए विडंबना कहते हैं तो अनुचित नहीं होगा।

प्रश्न 10.
इस पाठ में बाज़ार को ‘जादू’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
प्रायः जादू दर्शक को मोहित कर लेता है। उसे देखकर हम ठगे से रह जाते हैं और अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। इसी प्रकार बाजार में भी बड़ी आकर्षक और सुंदर वस्तुएँ सजाकर रखी जाती हैं। ये वस्तुएँ हमारे मन में आकर्षण पैदा करती हैं। हम बाज़ार के रूप जाल में फँस जाते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लेते हैं। इसीलिए बाज़ार को ‘जादू’ कहा गया है।

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प्रश्न 11.
भगत जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भगत जी लेखक के पड़ोस में रहते थे। वे निर्लोभी तथा संतोषी व्यक्ति थे। वे न तो अधिक धन कमाना चाहते थे और न ही धन का संग्रह करना चाहते थे। वे चूरन बनाकर बाज़ार में बेचते थे। जब वे छः आने की कमाई कर लेते थे, तो बचा हुआ चूरन बच्चों में मुफ्त बाँट देते थे।

भगत जी पर बाज़ार के आकर्षण का कोई प्रभाव नहीं था। वे बाज़ार को आवश्यकता की पूर्ति का साधन मानते थे। इसीलिए वे पंसारी की दुकान से काला नमक और जीरा खरीदकर घर लौट जाते थे। भगत जी बाज़ार में सब कुछ देखते हुए चलते थे, लोगों का अभिवादन लेते थे और करते भी थे। वे हमेशा बाज़ार तथा व्यापारियों और ग्राहकों का कल्याण मंगल चाहते थे।

प्रश्न 12.
‘बाजार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त होता है?
उत्तर:
पैसे की पावर का रस निम्नलिखित दो रूपों में प्राप्त होता है-

  1. अपना बैंक बैलेंस देखकर।
  2. अपना बंगला, कोठी, कार तथा घर का कीमती सामान देखकर।

प्रश्न 13.
भगत जी बाज़ार को सार्थक तथा समाज को शांत कैसे कर रहे हैं? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
भगत जी निश्चित समय पर पेटी उठाकर चूरन बेचने के लिए बाज़ार में निकल पड़ते हैं। छः आने की कमाई होते ही वे चूरन बेचना बंद कर देते हैं और बचा हुआ चूरन बच्चों में मुफ्त बाँट देते हैं। वे पंसारी से आवश्यकतानुसार नमक और जीरा खरीद कर लाते हैं तथा सबको जय-जयराम कहकर सबका स्वागत करते हैं। वे बाज़ार की चमक-दमक से आकर्षित नहीं होते, बल्कि बड़े संतुष्ट और मग्न होकर बाजार में चलते हैं। इस प्रकार वे बाजार को सार्थक करते हैं और समाज को शांत रहने का उपदेश देते हैं।

प्रश्न 14.
कैपिटलिस्टिक अर्थशास्त्र को लेखक ने मायावी तथा अनीतिपूर्ण क्यों कहा है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार कैपिटलिस्टिक अर्थशास्त्र धन को अधिक-से-अधिक बढ़ाने पर बल देता है। इसलिए यह मायावी तथा छली है। बाज़ार का मूल दर्शन आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, लेकिन इस लक्ष्य को छोड़कर व्यापारी अधिकाधिक धन कमाने की कोशिश करते हैं। वे ग्राहक को आवश्यकता की उचित वस्तु सही मूल्य पर न देकर उससे अधिक दाम लेते हैं। इससे व्यापार में कपट बढ़ता है और ग्राहक की हानि होती है। यही नहीं, इससे शोषण को भी बल मिलता है जो कि अनीतिपूर्ण है। ऐसे पूँजीवादी बाज़ार से मानवीय प्रेम, भाईचारा तथा सौहार्द समाप्त हो जाता है। इसके साथ-साथ पूँजीवादी अर्थशास्त्र के कारण बाज़ार में फैंसी वस्तुओं को बेचने पर अधिक बल देता है जिससे लोग बिना आवश्यकता के उसके रूप-जाल में फँस जाते हैं। यह निश्चय से बाज़ार का मायावीपन है।

प्रश्न 15.
लेखक के दोनों मित्रों के स्वभाव में कौन-सी समानता है और कौन-सी असमानता है?
उत्तर:
समानता-लेखक के दोनों मित्र खाली मन से बाज़ार गए। पहला मित्र मन में थोड़ा-सा सामान लेने का लक्ष्य रखकर बाज़ार गया, लेकिन उसका मन कुछ भी खरीदने के लिए खाली था। दूसरा मित्र बिना उद्देश्य के बाज़ार में घूमने गया और उसके रूप-जाल में फँस गया। दोनों में से एक ने कुछ खरीदा और दूसरा केवल मन में सोचता ही रह गया।

असमानता-पहले मित्र के पास पैसा अधिक है। वह पैसा खर्च करना जानता है। परंतु दूसरा मित्र दुविधाग्रस्त है लेकिन शीघ्र निर्णय नहीं ले पाता।

प्रश्न 16.
लेखक के अनुसार परमात्मा और मनुष्य में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक के अनुसार परमात्मा स्वयं में पूर्ण है। उसमें कोई भी इच्छा शेष नहीं है। वह शून्य है, परंतु मनुष्य अपूर्ण है। प्रत्येक मानव में कोई-न-कोई इच्छा बनी रहती है। उसकी सभी इच्छाएँ कभी पूर्ण नहीं होतीं। इसका कारण स्वयं मनुष्य है। परंतु यदि मानव इच्छाओं से मुक्त हो जाए तो वह भी परमात्मा की तरह संपूर्ण हो सकता है।

प्रश्न 17.
भगत जी का चूरन हाथों-हाथ कैसे बिक जाता है?
उत्तर:
भगत जी शुद्ध चूरन बनाते थे और सब लोग उनका चूरन खरीदने के लिए उत्सुक रहते थे। लोग उन्हें सद्भावना देते थे और उनसे सद्भावना लेते थे। इसलिए भगत जी स्वयं लोगों में लोकप्रिय थे और उनका चूरन भी लोगों में प्रसिद्ध था।

प्रश्न 18.
प्रथम मित्र ने फालतू वस्तुएँ खरीदने के लिए किसे जिम्मेवार ठहराया, परंतु सच्चाई क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रथम मित्र ने फालतू वस्तुएँ खरीदने के लिए अपनी पत्नी की इच्छा तथा बाज़ार के जादू भरे आकर्षण को दोषी माना है। परंतु असली दोषी तो पैसे की गर्मी तथा मन का खाली होना है। इन दोनों स्थितियों में बाजार का जादू भरा आकर्षण ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।

प्रश्न 19.
खाली मन और बंद मन में क्या अंतर है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार खाली मन का अर्थ है मन में कोई इच्छा धारण करके न चलना। परंतु बंद मन का अर्थ है-मन में किसी प्रकार की इच्छा को उत्पन्न न होने देना और मन को बलपूर्वक दबाकर रखना।

प्रश्न 20.
“चाँदनी चौक का आमंत्रण उन पर व्यर्थ होकर बिखर जाता है”-इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह गंद्य पंक्ति भगत जी के लिए कही गई है। भगत जी निस्पृही मनोवृत्ति वाले व्यक्ति हैं। वे अपने मन में सांसारिक आकर्षणों को संजोकर नहीं रखते। यही कारण है कि चाँदनी चौक का आकर्षण उनके मन को प्रभावित नहीं कर पाता। बाज़ार के जादू तथा आकर्षण के मध्य रहते हुए वे उसके मोहजाल से बच जाते हैं। वे एक संतुष्ट व्यक्ति हैं। इसलिए चाँदनी चौक का आकर्षण उनको प्रभावित नहीं कर पाता।

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प्रश्न 21.
पैसे की व्यंग्य-शक्ति किस प्रकार साधारण व्यक्ति को चूर-चूर कर देती है और किस व्यक्ति के सामने चूर-चूर हो जाती है?
उत्तर:
पैसे में बहुत व्यंग्य-शक्ति होती है। पैसे वाले व्यक्ति का बंगला, कोठी एवं कार को देखकर साधारण जन के हृदय में लालसा, ईर्ष्या तथा तृष्णा उत्पन्न होने लगती है। पैसे की कमी के कारण वह व्याकुल हो जाता है। वह सोचता है कि उसका जन्म किसी अमीर परिवार में क्यों नहीं हुआ।

परंतु भगत जी जैसे व्यक्ति में न अमीरों को देखकर ईर्ष्या होती है, न तृष्णा होती है। पैसे की व्यंग्य-शक्ति उन्हें छू भी नहीं हैं कहता है कि तुम मुझे ले लो, परंतु वे पैसे की परवाह नहीं करते, इसलिए भगत जी जैसे निस्पृह व्यक्ति के सामने पैसे की व्यंग्य-शक्ति चूर-चूर हो जाती है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘बाज़ार दर्शन’ के रचयिता हैं
(A) महादेवी वर्मा
(B) फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
(C) धर्मवीर भारती
(D) जैनेंद्र कुमार
उत्तर:
(D) जैनेंद्र कुमार

2. जैनेंद्र का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) मध्य प्रदेश
(C) बिहार
(D) झारखंड
उत्तर:
(A) उत्तर प्रदेश

3. जैनेंद्र का जन्म उत्तर प्रदेश के किस नगर में हुआ?
(A) आगरा
(B) अलीगढ़
(C) मेरठ
(D) कानपुर
उत्तर:
(B) अलीगढ़

4. जैनेंद्र का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1907 में
(B) सन् 1908 में
(C) सन् 1905 में
(D) सन् 1906 में
उत्तर:
(C) सन् 1905 में

5. जैनेंद्र का जन्म अलीगढ़ के किस कस्बे में हुआ?
(A) कौड़ियागंज
(B) गौड़ियागंज
(C) लखीमपुर
(D) रामपुरा
उत्तर:
(A) कौड़ियागंज

6. जैनेंद्र कुमार ने उपन्यासों तथा कहानियों के अतिरिक्त किस विधा में सफल रचनाएँ लिखीं?
(A) एकांकी
(B) नाटक
(C) निबंध
(D) रेखाचित्र
उत्तर:
(C) निबंध

7. भारत सरकार ने जैनेंद्र कुमार को किस उपाधि से सुशोभित किया?
(A) पद्मश्री
(B) पद्मभूषण
(C) पद्मसेवा
(D) वीरचक्र
उत्तर:
(B) पद्मभूषण

8. जैनेंद्र कुमार को पद्मभूषण के अतिरिक्त कौन-कौन से दो प्रमुख पुरस्कार प्राप्त हुए?
(A) शिखर सम्मान और भारत-भारती सम्मान
(B) प्रेमचंद सम्मान और उत्तर प्रदेश सम्मान
(C) साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारत-भारती पुरस्कार
(D) ज्ञान पुरस्कार और गीता पुरस्कार
उत्तर:
(C) साहित्य अकादमी पुरस्कार और भारत-भारती पुरस्कार

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9. जैनेंद्र कुमार के प्रथम उपन्यास ‘परख’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1930 में
(B) सन् 1931 में
(C) सन् 1932 में
(D) सन् 1929 में
उत्तर:
(D) सन् 1929 में

10. जैनेंद्र कुमार का निधन किस वर्ष में हुआ?
(A) सन् 1990 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1988 में
(D) सन् 1992 में
उत्तर:
(A) सन् 1990 में

11. ‘कल्याणी’ उपन्यास का प्रकाशन कब हआ?
(A) सन् 1939 में
(B) सन् 1932 में
(C) सन् 1928 में
(D) सन् 1931 में
उत्तर:
(A) सन् 1939 में

12. ‘त्यागपत्र’ उपन्यास का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1936 में
(B) सन् 1938 में
(C) सन् 1937 में
(D) सन् 1941 में
उत्तर:
(C) सन् 1937 में

13. जैनेंद्र की रचना ‘मुक्तिबोध’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी
(B) नाटक
(C) उपन्यास
(D) एकांकी
उत्तर:
(C) उपन्यास

14. जैनेंद्र के उपन्यास ‘सुनीता’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1938 में
(B) सन् 1932 में
(C) सन् 1937 में
(D) सन् 1935 में
उत्तर:
(D) सन् 1935 में

15. ‘अनाम स्वामी’ किस विधा की रचना है?’
(A) निबंध
(B) नाटक
(C) उपन्यास
(D) कहानी
उत्तर:
(C) उपन्यास

16. ‘वातायन’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी-संग्रह
(B) उपन्यास
(C) निबंध-संग्रह
(D) एकांकी-संग्रह
उत्तर:
(A) कहानी-संग्रह

17. ‘नीलम देश की राजकन्या’ कहानी-संग्रह का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1931 में
(B) सन् 1933 में
(C) सन् 1935 में
(D) सन् 1936 में
उत्तर:
(B) सन् 1933 में

18. ‘प्रस्तुत प्रश्न निबंध संग्रह का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1932 में
(B) सन् 1936 में
(C) सन् 1933 में
(D) सन् 1934 में
उत्तर:
(B) सन् 1936 में

19. ‘पूर्वोदय’ निबंध-संग्रह का प्रकाशन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1950 में
(C) सन् 1952 में
(D) सन् 1953 में
उत्तर:
(A) सन् 1951 में

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20. ‘विचार वल्लरी’ निबंध-संग्रह का प्रकाशन वर्ष कौन-सा है?
(A) सन् 1950
(B) सन् 1951
(C) सन् 1952
(D) सन् 1954
उत्तर:
(C) सन् 1952

21. ‘मंथन’ के रचयिता कौन हैं?
(A) धर्मवीर भारती
(B) महादेवी वर्मा
(C) फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
(D) जैनेंद्र कुमार
उत्तर:
(D) जैनेंद्र कुमार

22. ‘मंथन’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) निबंध
(C) कहानी
(D) रेखाचित्र
उत्तर:
(B) निबंध

23. ‘मंथन’ का प्रकाशन किस वर्ष में हुआ?
(A) सन् 1953 में
(B) सन् 1952 में
(C) सन् 1954 में
(D) सन् 1955 में
उत्तर:
(A) सन् 1953 में

24. ‘जड़ की बात’ का प्रकाशन वर्ष है?
(A) 1936
(B) 1937
(C) 1945
(D) 1946
उत्तर:
(C) 1945

25. ‘साहित्य का श्रेय और प्रेय’ के रचयिता हैं-
(A) महादेवी वर्मा
(B) कुंवर नारायण
(C) जैनेंद्र कुमार
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(C) जैनेंद्र कुमार

26. साहित्य का श्रेय और प्रेय की रचना कब हुई?
(A) 1952 में
(B) 1953 में
(C) 1951 में
(D) 1954 में
उत्तर:
(B) 1953 में

27. ‘सोच-विचार’ के रचयिता हैं-
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) धर्मवीर भारती
(C) रघुवीर सहाय
(D) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(A) जैनेंद्र कुमार

28. संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की कौन-सी विशेषता प्रभावित होती है?
(A) निर्बलता
(B) सबलता
(C) संपन्नता
(D) धनाढ्यता
उत्तर:
(A) निर्बलता

29. बाजार चौक में भगतजी क्या बेचते थे?
(A) मिठाई
(B) चूरन
(C) सब्जी
(D) फल
उत्तर:
(B) चूरन

30. लेखक ने चूरन वाले को ‘अकिंचित्कर’ कहा है, जिसका अर्थ है-
(A) ठग
(B) अर्थहीन
(C) व्यापारी
(D) भिखारी
उत्तर:
(B) अर्थहीन

31. चूरन बेचने वाले महानुभाव को लोग किस नाम से पुकारते थे?
(A) फेरीवाला
(B) चूरन वाला
(C) मनि राम
(D) भगत जी
उत्तर:
(D) भगत जी

32. ‘बाज़ार दर्शन’ का प्रतिपाद्य है
(A) बाज़ार के उपयोग का विवेचन
(B) बाज़ार से लाभ
(C) बाज़ार न जाने की सलाह
(D) बाज़ार जाने की सलाह
उत्तर:
(A) बाज़ार के उपयोग का विवेचन

33. लेखक का मित्र किसके साथ बाज़ार गया था?
(A) अपने पिता के साथ
(B) मित्र के साथ
(C) पत्नी के साथ
(D) अकेला
उत्तर:
(C) पत्नी के साथ

34. क्या फालतू सामान खरीदने के लिए पत्नी को दोष देना उचित है?
(A) हाँ
(B) नहीं
(C) कह नहीं सकता
(D) बाज़ार का दोष है
उत्तर:
(B) नहीं

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35. लेखक के अनुसार पैसा क्या है?
(A) पावर है
(B) हाथ की मैल है
(C) माया का रूप है
(D) पैसा व्यर्थ है
उत्तर:
(A) पावर है

36. जैनेन्द्र जी ने केवल बाजार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को क्या बताया है?
(A) नीतिशास्त्र
(B) सुनीतिशास्त्र
(C) अनीतिशास्त्र
(D) अधोनीतिशास्त्र
उत्तर:
(C) अनीतिशास्त्र

37. हमें किस स्थिति में बाज़ार जाना चाहिए?
(A) जब मन खाली हो
(B) जब मन खाली न हो
(C) जब मन बंद हो
(D) जब मन में नकार हो
उत्तर:
(B) जब मन खाली न हो

38. बाज़ार किसे देखता है?
(A) लिंग को
(B) जाति को
(C) धर्म को
(D) क्रय-शक्ति को
उत्तर:
(D) क्रय-शक्ति को

39. ‘बाज़ारूपन’ से क्या अभिप्राय है?
(A) बाज़ार से सामान खरीदना
(B) बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदना
(C) बाज़ार से आवश्यक वस्तुएँ खरीदना
(D) बाज़ार को सजाकर आकर्षक बनाना
उत्तर:
(B) बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदना

40. बाजार में जादू को कौन-सी इन्द्रिय पकड़ती है?
(A) आँख
(B) नाक
(C) हाथ
(D) मुँह
उत्तर:
(A) आँख

41. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर धन की ओर कौन झुकता है?
(A) निर्धन
(B) विवश
(C) निर्बल
(D) असहाय
उत्तर:
(C) निर्बल

42. फिजूल सामान को फिजूल समझने वाले लोगों को क्या कहा गया है?
(A) स्वाभिमानी
(B) खर्चीला
(C) मूर्ख
(D) संयमी
उत्तर:
(D) संयमी

43. जैनेन्द्र कुमार के मित्र ने बाजार को किसका जाल कहा है?
(A) शैतान का जाल
(B) जी का जंजाल
(C) आलवाल
(D) प्रणतपाल
उत्तर:
(A) शैतान का जाल

बाज़ार दर्शन प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उस महिमा का मैं कायल हूँ। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है। और यह व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं, स्त्रीत्व का प्रश्न है। स्त्री माया न जोड़े, तो क्या मैं जोई? फिर भी सच सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्त्व की महिमा सविशेष है। वह तत्त्व है मनीबैग, अर्थात पैसे की गरमी या एनर्जी। [पृष्ठ-86]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है।

व्याख्या-लेखक का मित्र अपनी पत्नी के साथ बाजार से बहुत-सा सामान लेकर लौटा था। इस पर लेखक ने उससे कहा कि यह सब क्या है। इस पर मित्र ने उत्तर दिया कि उसकी पत्नी जो साथ थी, इसलिए उसे बहुत-सा सामान लाना पड़ा। लेखक का कहना है कि मित्र के कहने का भाव था कि यह पत्नी की महत्ता का परिणाम है। कोई भी व्यक्ति पत्नी के कहने को टाल नहीं सकता। लेखक भी पत्नी के महत्त्व को स्वीकार करने वाला है। प्राचीनकाल से ही इस विषय को लेकर पति की अपेक्षा पत्नी को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि घर का सामान खरीदने में पत्नी की बात ही सुनी जाती है।

इसमें किसी के महत्त्व का प्रश्न नहीं है, बल्कि नारी का प्रश्न है। घर-गृहस्थी में प्रायः पत्नी की ही चलती है। लेखक कहता है कि स्त्री यदि धन-संपत्ति नहीं जोड़ेगी तो लेखक अर्थात् पुरुष तो नहीं जोड़ सकता। यह एक कड़वी सच्चाई है। हर आदमी इस बात में पत्नी का ही सहारा लेता है। परंतु बाज़ार से सामान खरीदने के लिए एक अन्य तत्त्व का भी विशेष महत्त्व है और वह है-धन से भरा हुआ थैला। अन्य शब्दों में हम इसे पैसे की गरमी भी कह सकते हैं। भाव यह है कि जिसके पास पैसे की गरमी होगी, वह निश्चय से सामान खरीदने में अपनी पत्नी का सहयोग करेगा।

विशेष-

  1. इसमें लेखक ने पत्नी की महिमा का प्रतिपादन किया है। बाज़ार से सामान खरीदने में भी पत्नी की ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।
  2. इसके साथ-साथ लेखक ने धन के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला है, क्योंकि धन के कारण ही मनुष्य की क्रय-शक्ति बढ़ती है।
  3. यहाँ लेखक ने सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम शब्दों के अतिरिक्त उर्द (कायल) एवं अंग्रेजी (मनीबैग, एनर्जी) शब्दों का संदर मिश्रण किया है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

गद्यांश ,पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बाज़ार से सामान खरीदने पर पुरुष पत्नी के नाम का ही सहारा क्यों लेते हैं?
(ग) लेखक के अनुसार बाज़ार से अनचाही वस्तुएँ खरीदने का क्या कारण है?
(घ) आदिकाल से पति-पत्नी में से किसे अधिक महत्त्व दिया जाता है?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम बाज़ार दर्शन, लेखक-जैनेंद्र कुमार

(ख) बाज़ार से सामान खरीदने पर पुरुष हमेशा सारा दोष पत्नियों के सिर मढ़ देते हैं और साथ में यह तर्क देते हैं कि स्त्री माया का रूप है। अतः उसका स्वभाव ही माया जोड़ना है।

(ग) बाज़ार से अनचाही वस्तुएँ खरीदने का मुख्य कारण मनीबैग है अर्थात जिसके पास धन की शक्ति होती है वही व्यक्ति बाज़ार से चाही-अनचाही वस्तुएँ खरीदकर लाता है।

(घ) आदिकाल से सामान खरीदने के बारे में पति की अपेक्षा पत्नी को ही अधिक महत्त्व दिया जाता है। चाहे पुरुष बाज़ार से अनचाहा सामान खरीदकर लाए, परंतु वह सारा दोष पत्नी को ही देता है।

[2] पैसा पावर है। पर उसके सबूत में आस-पास माल-टाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है! पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब देखिए, पर माल-असबाब मकान-कोठी तो अनदेखे भी दीखते हैं। पैसे की उस ‘पर्चेजिंग पावर’ के प्रयोग में ही पावर का रस है। लेकिन नहीं। लोग संयमी भी होते हैं। वे फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं। वे पैसा बहाते नहीं हैं और बुद्धिमान होते हैं। बुद्धि और संयमपूर्वक वह पैसे को जोड़ते जाते हैं, जोड़ते जाते हैं। वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के जुड़ा होने पर उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है। [पृष्ठ-86]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक सद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाजार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक पैसे की शक्ति पर प्रकाश डालता हुआ कहता है कि

व्याख्या-पैसा निश्चय से ही एक शक्ति है, परंतु वह शक्ति तभी दिखाई दे सकती है जब उसके परिणामस्वरूप घर में काफी सारा सामान एकत्रित किया गया हो! क्योंकि सामान के बिना पैसे की शक्ति का कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि किसी के पास पैसा है अथवा नहीं, यह उसके बैंक के हिसाब-किताब से जाना जा सकता है जो कि लोगों के लिए संभव नहीं है। यदि किसी के पास बहुत बड़ा मकान, आलीशान कोठी और घर में तरह-तरह का सामान होगा, कार होगी, तो बिना देखे ही उसका पैसा दिखाई देगा। लेखक कहता है कि यदि कोई पैसे की क्रय-शक्ति का प्रयोग करता है तो पैसे के प्रयोग में पैसे की शक्ति का आनंद लिया जा सकता है।

परंतु कुछ लोग ऐसे नहीं होते। वे संयम और नियम से काम लेते हैं। बेकार सामान को वे बेकार समझकर नहीं खरीदते। उसे खरीदना वे फिजूलखर्ची मानते हैं। वे पैसे को व्यर्थ में नष्ट नहीं करते। इसीलिए ऐसे लोग समझदार कहे जाते हैं। वे अपनी बुद्धि का प्रयोग करके और किफायत करते हुए धन का संग्रह करते हैं और इस प्रकार धन को जोड़ते हुए चले जाते हैं। उन्हें पैसे की शक्ति पर पूरा भरोसा होता है। परंतु वे पैसे के प्रयोग की कभी भी जाँच नहीं करते। केवल धन का संग्रह होने के कारण ही उनके मन में अभिमान भरा रहता है। वे गर्व के कारण फूले नहीं समाते। ऐसे लोग केवल धन का संग्रह करते हैं, उसे खर्च नहीं करते।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने स्पष्ट किया है कि पैसे की सार्थकता उसकी क्रय-शक्ति में निवास करती है। एक धनवान व्यक्ति के धनी होने का पता हमें उसके घर, मकान तथा उसके कीमती सामान को देखकर चलता है, न बैंक में रखे पैसे को देखकर।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है, जिसमें तत्सम, तद्भव, उर्दू (खाक, माल, असबाब, फिजूल) तथा अंग्रेज़ी (पर्चेजिंग पावर, बैंक) शब्दों का सुंदर मिश्रण हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विश्लेषणात्मक तथा विवेचनात्मक शैलियों का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) पैसे को पावर कहने का क्या आशय है?
(ख) लोग पैसे की पावर का प्रयोग किस प्रकार करते हैं?
(ग) यहाँ ”संयमी’ किन लोगों को कहा गया है?
(घ) किन लोगों का मन गर्व से फूला हुआ रहता है?
उत्तर:
(क) पैसे को पावर कहने का आशय यह है कि धन ही मनुष्य की शक्ति का प्रतीक है। धन के द्वारा वह अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त कर सकता है और स्वयं को औरों से अधिक ताकतवर सिद्ध कर सकता है। धन से ही मनुष्य की क्रय-शक्ति बढ़ जाती है।

(ख) लोग पैसे की पावर का प्रयोग घर का सामान, बंगला, कोठी, कार आदि खरीदकर करते हैं। वे अन्य लोगों को अपनी क्रय-शक्ति दिखाकर अपने शक्तिशाली होने का प्रमाण देते हैं।

(ग) यहाँ ‘संयमी’ शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया गया है जो पैसे को खर्च नहीं करते। वस्तुतः इस शब्द में करारा व्यंग्य छिपा हुआ है। कंजूस लोग धन का संग्रह करके स्वयं को बुद्धिमान सिद्ध करते हैं। अतः यहाँ लेखक ने कंजूस अमीरों पर करारा व्यंग्य किया है।

(घ) अमीर लोगों का मन इकट्ठे किए गए धन के कारण गर्व से फूला हुआ रहता है। वे धन को खर्च करना नहीं जानते।

[3] मैंने मन में कहा, ठीक। बाज़ार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज़ है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाज़ार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाज़ार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह! [पृष्ठ-87]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने बाज़ार की प्रवृत्ति पर समुचित प्रकाश डाला है।

व्याख्या-इससे पूर्व लेखक का मित्र कहता है कि बाज़ार तो शैतान का जाल है, जिसमें सजा-सजाकर सामान रखा जाता है। इसलिए भोले-भाले लोग उसके जाल में फंस जाते हैं। इस पर लेखक मन-ही-मन सोचता है कि यह तो सर्वथा उचित है। बाजार मनुष्य को अपने प्रति आकर्षित करता है। मानों वह कहता है कि यहाँ आओ। मुझे आकर लूट लो। अन्य सब बातों को भूल जाओ और मेरी तरफ देखो, मैं जो यहाँ सजधज कर तैयार खड़ा हूँ किसी और के लिए नहीं अपितु तुम्हारे लिए खड़ा हूँ। यदि तुम कुछ भी खरीदना नहीं चाहते तो न खरीदो, परंतु मुझे देखने में क्या बुराई है। मेरे पास आओ और मुझे अच्छी तरह से देखो।

बाजार द्वारा दिया गया यह आमंत्रण विशेष प्रकार का है। यह आमंत्रण ऐसा है जिसमें कोई खुशामद नहीं है, क्योंकि खुशामद के कारण मनुष्य में अपमान की भावना उत्पन्न होती है। जो जितना बड़ा होता है, उसका आमंत्रण भी मौन रूप से होता है जिससे ग्राहक में सामान खरीदने की इच्छा पैदा होती है। इच्छा से अभिप्राय मनुष्य में किसी-न-किसी चीज की कमी है। जब मनुष्य बाज़ार में खड़ा हो जाता है तो उसे यह लगने लगता है कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में सामान नहीं है। उसे और अधिक सामान खरीदना चाहिए। यह चाहत वस्तुएं खरीदने के लिए मजबूर करती है। वह सोचता है कि उसके पास सीमित साधन हैं जबकि बाज़ार में असंख्य और अनेक वस्तुएँ पड़ी हैं। इसलिए उसे अधिकाधिक वस्तुएँ खरीदनी चाहिएँ।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने बाज़ार की महिमा पर समुचित प्रकाश डाला है जो कि ग्राहक को स्वतः अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है, जिसमें तत्सम, तद्भव, उर्दू (हर्ज, खूबी) आदि शब्दों का सुंदर मिश्रण हुआ है।
  3. छोटे-छोटे वाक्यों के कारण भाव स्वतः स्पष्ट होने लगता है।
  4. आत्मकथात्मक शैली द्वारा लेखक ने बाज़ार के आकर्षण पर समुचित प्रकाश डाला है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बाज़ार में माल देखने के लिए आमंत्रण क्यों दिया जाता है?
(ख) कौन-सा आमंत्रण ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करता है और क्यों?
(ग) बाज़ार का चौक लोगों में किस प्रकार की भावना उत्पन्न करता है?
(घ) ग्राहक यह क्यों सोचने लगता है कि उसके पास कितना परिमित है और कितना अतुलित है?
उत्तर:
(क) बाज़ार में माल देखने के लिए आमंत्रण इसलिए दिया जाता है ताकि देखने वाले के मन में वस्तुएँ खरीदने की लालसा जागृत हो और वह बिना आवश्यकता के भी सामान खरीदने लग जाए।

(ख) बाज़ार का मौन-मूक आमंत्रण ही ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। बाज़ार किसी को आवाज़ देकर अपने पास नहीं बुलाता। वस्तुतः बाज़ार की आकर्षक वस्तुएँ ही ग्राहक को यह सोचने को मजबूर कर देती हैं कि वह भी बाज़ार से कुछ-न-कुछ खरीद कर अवश्य ले जाए।

(ग) बाज़ार का चौक लोगों में वस्तुएँ खरीदने की कामना को जागृत करता है। लोग उन वस्तुओं को भी खरीद लेते हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं होती।

(घ) बाज़ार में वस्तुओं के भंडार को देखकर ग्राहक को लगता है कि उसके घर में बहुत कम वस्तुएँ हैं जबकि यहाँ तो असीमित और अपार सामान सजा है। अतः उसे भी यहाँ से और वस्तुएँ खरीद लेनी चाहिए।

[4] बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाज़ार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है! मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान ज़रूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी चीज़ों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को ज़रूर सेंक मिल जाता है पर इससे अभिमान की गिल्टी की और खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ होगी? [पृष्ठ-88]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने स्पष्ट किया है कि बाज़ार में एक ऐसा जादू होता है जो ग्राहक को तत्काल मोहित कर लेता है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि बाजार की सजधज में एक ऐसा जादू है जो देखने वाले की आँखों के माध्यम से अपना प्रभाव छोड़ जाता है। वस्तुतः उसका जादू नई-नई वस्तुओं के सुंदर रूप पर निर्भर करता है। जिस प्रकार चुंबक का जादू केवल लोहे पर ही चलता है, ईंट व पत्थर पर नहीं, उसी प्रकार बाज़ार के जादू की एक सीमा होती है। यदि किसी व्यक्ति के पास बहुत सारा पैसा हो, परंतु उनका मन पूर्णतः खाली हो तो ऐसे लोगों पर बाज़ार के जादू का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार अगर किसी के पास पैसे नहीं हैं और उसके मन में वस्तुएँ खरीदने की इच्छाएँ हों तो उस पर भी बाज़ार का आकर्षण कारगर सिद्ध होता है। यदि किसी व्यक्ति के पास धन का अभाव है परंतु उसके मन में इच्छा है तो बाज़ार की सजी असंख्य वस्तुओं का आकर्षण उसे अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।

भाव यह है कि व्यक्ति कहीं से भी उधार लेकर वस्तुएँ खरीदने में नहीं हिचकिचाएगा, परंतु यदि दुर्भाग्य से किसी ग्राहक के पास काफी सारे पैसे हों, तब उसका मन किसी की बात को नहीं सुनता। तब उस व्यक्ति का मन यह अनुभव करता है जो कुछ बाज़ार में है, मैं सब कुछ खरीद लूँ। मुझे बाज़ार की सभी वस्तुओं की इच्छा है। वह सोचता है कि बाज़ार की ये सब वस्तुएँ मेरे लिए आरामदायक सिद्ध होंगी, बाज़ार के जादू के प्रभाव के कारण मनुष्य ऐसे सोचने लगता है, जैसे ही बाज़ार का जादू अर्थात् आकर्षण उसके मन से उतर जाता है वैसे ही उसे यह महसूस होता है कि ये सब वस्तुएँ तो उसके लिए बेकार हैं। इन वस्तुओं की अधिकता उसे आराम देने में सहायक सिद्ध नहीं होगी, बल्कि उसके जीवन में बाधा उत्पन्न करेंगी। तब व्यक्ति में बाज़ार के आकर्षण के प्रति अपकर्षण उत्पन्न हो जाता है और वह सोचने लगता है कि मैंने ये वस्तुएँ व्यर्थ में ही खरीद ली हैं। मुझे तो उनकी आवश्यकता ही नहीं थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि बाज़ार का जादू भले ही आकर्षक होता है, परंतु उसका आकर्षण क्षणिक होता है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसमें हिंदी के तत्सम, तद्भव तथा उर्दू (बाज़ार, जादू, राह, असर, वक्त, जरूरी, सवारी, खलल) आदि शब्दों का सुंदर मिश्रण हुआ है।
  3. छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग भावाभिव्यक्ति में सफल रहा है।
  4. विवेचनात्मक शैली के प्रयोग से निबंध की भाषा में निखार आ गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) बाज़ार का जादू ‘रूप का जादू’ कैसे है?
(ख) ‘जेब भरी हो, और मन खाली हो’ का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) बाज़ार का जादू किस प्रकार के व्यक्तियों को प्रभावित करता है?
(घ) बाज़ार के जादू का असर खत्म होने पर क्या अनुभव होने लगता है?
उत्तर:
(क) बाज़ार में अनेक प्रकार की वस्तुओं को सजा-सजा कर प्रस्तुत किया जाता है। ग्राहक नई-नई वस्तुओं के सुंदर रूप को देखकर धोखा खा जाता है और उनके मन में वस्तुओं को खरीदने की इच्छा उत्पन्न होने लगती है।

(ख) जब व्यक्ति के मन में बाज़ार से कुछ भी खरीदने की इच्छा नहीं होती, तब उसके मन को खाली कहा जाता है, परंतु यदि उसके पास बहुत सारे पैसे होते हैं तो लोग अपने धन की शक्ति को दिखाने के लिए वस्तुओं का क्रय करते हैं। अतः जेब भरी होने का अर्थ है-बहुत सारा धन होना और मन खाली का अर्थ है कि कोई निश्चित सामान खरीदने की इच्छा न होना।

(ग) बाज़ार का जादू केवल उन व्यक्तियों को प्रभावित करता है जिनके पास पैसे की भरमार होती है, लेकिन मन में कोई वस्तु खरीदने की लालसा नहीं होती, परंतु बाज़ार की सजी-धजी वस्तुएँ ऐसे लोगों को अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने के लिए मजबूर कर देती हैं।

(घ) जब बाज़ार के आकर्षण का प्रभाव समाप्त हो जाता है तब ग्राहक यह अनुभव करने लगता है कि जो लुभावनी वस्तुएँ उसने आराम के लिए खरीदी थीं, वे तो उसके किसी काम की नहीं हैं। वे आराम देने की बजाए उसके जीवन में बाधा उत्पन्न कर रही हैं और उसके मन की शांति को भंग कर रही हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

[5] पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा-सा उपाय है। वह यह कि बाजार जाओ तो खाली मन न हो मन खाली हो, तब बाज़ार न जाओ। कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य में भरा हो तो बाज़ार भी फैला-का-फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाज़ार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाज़ार की असली कृतार्थता है। आवश्यकता के समय काम आना। [पृष्ठ-88]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक बाज़ार के जादू से बचने का एक श्रेष्ठ उपाय बताता है कि जब भी हम बाज़ार जाएँ, उस समय हमारा मन खाली नहीं होना चाहिए।

ख्या-जब भी बाजार जाना हो तो हमारे मन में किसी प्रकार का भटकाव एवं भ्रम नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें एक निश्चित वस्तु का लक्ष्य रखकर ही बाज़ार जाना चाहिए। बाज़ार के जादू से बचने का सीधा-सरल उपाय यही है। यदि तुम्हारे मन में कोई वस्तु खरीदने का लक्ष्य न हो तो बाज़ार मत जाओ। लेखक एक उदाहरण देता हुआ कहता है कि लू से बचने का एक ही उपाय है कि पानी पीकर ही लू में बाहर जाना चाहिए। यदि शरीर में पानी होगा तो लू शरीर को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं कर पाएगी। अतः यदि हमारे मन में किसी वस्तु को खरीदने का लक्ष्य है तो बाज़ार की व्यापकता और आकर्षण हमारे लिए किसी काम का नहीं रहेगा, वह हमें कोई पीड़ा नहीं दे सकेगा, बल्कि हम आनन्दपूर्वक बाज़ार का दर्शन कर सकेंगे। दूसरी ओर बाज़ार भी तुम्हारे प्रति कृतज्ञता का भाव रखेगा, क्योंकि तुमने उसे थोड़ा-बहुत सही लाभ पहुंचाया है। बाज़ार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह आवश्यकता पड़ने पर हमारे काम आता है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने बाज़ार के प्रभाव से बचने का एक सरल उपाय यह बताया है कि हमें मन में कोई निश्चित वस्तु खरीदने का लक्ष्य रखकर ही बाज़ार में जाना चाहिए, तभी हम बाज़ार के जादू से बच सकेंगे।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विवेचनात्मक शैली के प्रयोग के कारण भाव पूरी तरह स्पष्ट हुए हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बाज़ार के जादू की जकड़ से बचने का सीधा उपाय क्या है?
(ख) लू में जाते समय हम पानी पीकर क्यों जाते हैं?
(ग) बाज़ार की सार्थकता किसमें है?
(घ) मन में लक्ष्य रखने का तात्पर्य क्या है?
(ङ) बाज़ार हमें किस स्थिति में आनंद प्रदान करता है?
उत्तर:
(क) बाज़ार के जादू से बचने का सीधा एवं सरल उपाय यह है कि हमें खाली मन के साथ बाज़ार नहीं जाना चाहिए, बल्कि किसी वस्तु को खरीदने का लक्ष्य रखकर ही बाज़ार जाना चाहिए।

(ख) हम लू में पानी पीकर इसलिए घर से बाहर जाते हैं ताकि हमारे शरीर में पानी हो। यदि हमारे शरीर में पानी होगा तो लू हमें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकेगी।

(ग) बाज़ार की सार्थकता ग्राहकों की आवश्यकताएँ पूरी करने में है। जब ग्राहकों को अपनी ज़रूरत की वस्तुएँ बाजार से मिल जाती हैं तो बाज़ार अपनी सार्थकता को सिद्ध कर देता है।

(घ) मन में लक्ष्य भरने का तात्पर्य यह है कि उपभोक्ता बाज़ार जाते समय किसी निश्चित वस्तु को खरीदने का लक्ष्य बनाकर ही बाज़ार में जाए। यदि वह बिना लक्ष्य के बाज़ार जाएगा तो वह निश्चित रूप से बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर ले आएगा, जो बाद में उसकी अशांति का कारण बनेंगी।

(ङ) जब उपभोक्ता बाज़ार से व्यर्थ की वस्तुएँ खरीदने की बजाय केवल अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदता है तो बाज़ार उसे आनंद प्रदान करने लगता है इससे बाज़ार भी कृतार्थ हो जाता है।

[6] यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत ज़रूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। शेष सब अपूर्ण है। इससे मन बंद नहीं रह सकता। सब इच्छाओं का निरोध कर लोगे, यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोधस्तपः’ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो वह तप झूठ है। वैसे तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है। [पृष्ठ-88-89]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने मन के खाली होने तथा बंद होने के अंतर को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि हमें इस अंतर को भली प्रकार से पहचान लेना चाहिए कि हमारा मन खाली है अथवा भरा हुआ है। मन को खाली रखने का मतलब यह नहीं है कि हम अपने मन को पूर्णतः बंद कर दें अर्थात् हम मन में सोचना ही बंद कर दें। यदि हमारा मन चिंतनहीन हो जाएगा तो वह निश्चय से शून्य हो जाएगा। इसका अर्थ है मन का मर जाना और उसकी इच्छाएँ समाप्त हो जाना। इस स्थिति पर अधिकार प्राप्त करने का अधिकार केवल ईश्वर को है, जो कि अपने अन्दर सनातन भाव को लिए है। ईश्वर के अतिरिक्त संपूर्ण सृष्टि अधूरी है, पूर्ण नहीं है, क्योंकि संपूर्णता केवल परमात्मा के पास है। इसलिए हमारा मन इच्छाओं से रहित नहीं हो सकता। यह कहना सरासर झूठ है कि कोई व्यक्ति सभी इच्छाओं को त्याग सकता है और यह कहना भी गलत है कि इच्छाओं का निरोध ही तपस्या है। यदि कोई इस प्रकार के नकारात्मक अर्थ को स्वीकार करके उसे तपस्या का नाम देता है, वह भी सरासर झूठ है। लेखक के अनुसार तपस्या का मार्ग रेगिस्तान के समान व्यर्थ और बेकार है। वह मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग नहीं है। आनंद पूर्ण साधना यही है कि मानव संसार में रहते हुए उसके बंधनों से बचने का प्रयास करे।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह कहने का प्रयास किया है कि मन को मारने की कोई आवश्यकता नहीं है। मन में इच्छाएँ तो होनी ही चाहिएँ।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें ‘इच्छानिरोधस्तपः’ संस्कृत की सूक्ति का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. वाक्य-विन्यास भावाभिव्यक्ति में पूरी तरह सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) मन के खाली होने तथा बंद होने में क्या अंतर है?
(ख) लेखक ने ईश्वर और मानव की प्रकृति में क्या अंतर बताया है?
(ग) लेखक ने किस प्रवृत्ति को नकारात्मक कहा है?
(घ) लेखक ने तप के रास्ते को रेगिस्तान का गंतव्य क्यों कहा है? इसके पीछे कौन-सा व्यंग्य छिपा है?
उत्तर:
(क) मन के खाली होने का अर्थ है- मन में कोई निश्चित लक्ष्य अथवा कोई विशेष इच्छा न होना। दूसरी ओर मन के बंद होने का आशय है कि मन की सभी इच्छाओं का समाप्त हो जाना अर्थात् मर जाना। ये दोनों स्थितियाँ एक-दूसरे के विपरीत हैं।

(ख) ईश्वर और मानव की प्रकृति में मुख्य अंतर यह है कि ईश्वर अपने आप में संपूर्ण है। उसकी कोई भी इच्छा शेष नहीं है, परंतु मानव हमेशा अपूर्ण होता है। उसमें हमेशा इच्छाएँ उत्पन्न होती रहती हैं तथा नष्ट होती रहती हैं।

(ग) लेखक के अनुसार मानव द्वारा अपनी सब इच्छाओं पर नियंत्रण पा लेना ही नकारात्मक प्रवृत्ति है। जो लोग मन को मारने की प्रवृत्ति को तपस्या का नाम देते हैं, वे सर्वथा झूठ का आश्रय लेते हैं। कोई भी मनुष्य अपने मन की सब इच्छाओं पर काबू नहीं पा सकता।

(घ) तप का रास्ता एक सारहीन और व्यर्थ का रास्ता है। जो लोग यह समझते हैं कि इच्छाओं को मारकर ही तप किया जा सकता है, वे झूठ बोलते हैं। वस्तुतः संसार में रहकर उसके बंधनों से बचने का प्रयास करना ही मोक्ष है। जो कि आनंदपूर्वक साधना कही जा सकती है। रेगिस्तान की राह द्वारा लेखक यह व्यंग्य करता है कि सभी इच्छाओं को समाप्त करना संभव नहीं है। यह तो रेगिस्तान के मार्ग की तरह शुष्क तथा बेकार का परिश्रम है।

  1. [7] ठाठ देकर मन को बंद कर रखना जड़ता है। लोभ का यह जीतना नहीं है कि जहाँ लोभ होता है, यानी मन में, वहाँ नकार हो! यह तो लोभ की ही जीत है और आदमी की हार। आँख अपनी फोड़ डाली, तब लोभनीय के दर्शन से बचे तो क्या हुआ? ऐसे क्या लोभ मिट जाएगा? और कौन कहता है कि आँख फूटने पर रूप दीखना बंद हो जाएगा? क्या आँख बंद करके ही हम सपने नहीं लेते हैं? और वे सपने क्या चैन-भंग नहीं करते हैं? इससे मन को बंद कर डालने की कोशिश तो अच्छी नहीं। वह अकारथ है यह तो हठवाला योग है। शायद हठ-ही-हठ है, योग नहीं है। इससे मन कृश भले हो जाए और पीला और अशक्त जैसे विद्वान का ज्ञान। वह मुक्त ऐसे नहीं होता। इससे वह व्यापक की जगह संकीर्ण और विराट की जगह क्षुद्र होता है। इसलिए उसका रोम-रोम मूंदकर बंद तो मन को करना नहीं चाहिए। वह मन पूर्ण कब है? हम में पूर्णता होती तो परमात्मा से अभिन्न हम महाशून्य ही न होते? अपूर्ण हैं, इसी से हम हैं। सच्चा ज्ञान सदा इसी अपूर्णता के बोध को हम में गहरा करता है। सच्चा कर्म सदा इस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है। [पृष्ठ-89]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके नेर हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंन उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक स्पष्ट करता है कि मन की सभी इच्छाओं एवं उमंगों को मार डालना निर्जीवता है। इस संदर्भ में लेखक कहता है कि

व्याख्या-सुख-सुविधाएँ प्रदान करके मन को शांत रखना निर्जीवता ही कही जाएगी। ऐसा करके हम लोभ पर विजय प्राप्त नहीं करते। यदि हमारे मन में लोभ है तो हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक हो जाएगा। जिस मन में लोभ पैदा होता है यदि हम उसे पूरी तरह बंद कर दें तो निश्चय से यह मनुष्य की हार कही जाएगी। यदि कोई व्यक्ति अपनी आँखों को ही नष्ट कर देगा और सोचेगा कि वह लोभ को प्रेरणा देने वाली वस्तु को देखने से बच जाएगा तो उसकी यह सोच व्यर्थ कही जाएगी। इससे तो उसकी अपनी हानि होगी। इस प्रकार से लोभ-लालच को मिटाया नहीं जा सकता। यह कहना सर्वथा अनुचित है कि आँखें नष्ट करने से सुंदर रूप दिखाई देना बंद हो जाएगा। इस तथ्य से सभी लोग परिचित हैं कि हम सभी आँखें बंद करके ही सपने लेते हैं। उनमें अनेक सपने ऐसे होते हैं जो हमारी सुख-शांति को भंग करते हैं और हमें आराम से नहीं बैठने देते। इसलिए मन को बंद करने की ऐसी कोशिश करना व्यर्थ ही कहा जाएगा। यह एक बेकार का कार्य है। इसे हम योग नहीं कह सकते, केवल हठ ही कह सकते हैं।

इससे हमारा मन उसी प्रकार शक्तिहीन तथा कमजोर होता है जैसे किसी विद्वान का ज्ञान शक्तिहीन या कमज़ोर होना। इससे मुक्ति नहीं मिलती। मन को बंद करने से मनुष्य की व्यापकता तथा विराटता समाप्त हो जाती है तथा क्षुद्रता एवं संकीर्णता उत्पन्न होती है। इसलिए लेखक का विचार है कि हमें मन की इच्छाओं को मारना नहीं चाहिए। इससे हमारा मन कभी भी पूर्ण नहीं बन सकता। यदि हमारे अन्दर पूर्णता होती तो हम परमात्मा से कभी अलग न होते। यह अपूर्णता ही हमारे जीवन का सबसे बड़ा आधार है। इसी के कारण हमारा अस्तित्व बना हुआ है। सच्चा ज्ञान वही है जो हमारी इस अपूर्णता के ज्ञान को और अधिक गहरा बनाता है। जब हम अपनी इस अपूर्णता को स्वीकार कर लेते हैं तो हम सच्चा कर्म करने में सक्षम होते हैं। अतः यह सोचना ही व्यर्थ है कि हम अपने मन को मारकर ईश्वर के समान पूर्ण हो जाएँगे।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने इस बात पर बल दिया है कि मनुष्य को अपने मन की इच्छाओं को समाप्त नहीं करना चाहिए। इसीलिए लेखक कहता है कि सच्चा ज्ञान अपूर्णता के बोध में है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. गंभीर विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लेखक मन को बंद रखने के विरुद्ध क्यों है?
(ख) किस स्थिति में लोभ की जीत और आदमी की हार होती है?
(ग) आँख फोड़ डालने के पीछे क्या व्यंग्य छिपा है?
(घ) आँख फोड़ डालने पर भी मनुष्य बेचैन तथा व्याकुल क्यों रहता है?
(ङ) लेखक ने किसे हठ योग कहा है?
(च) लेखक के अनुसार सच्चा ज्ञान क्या है?
उत्तर:
(क) लेखक का विचार है कि मन को बंद रखना अर्थात् मन की सभी इच्छाओं को समाप्त कर देना किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इच्छाओं को मार डालने से हमारा मन ही जड़ हो जाएगा और उर गतिशीलता नष्ट हो जाएगी।

(ख) जब मनुष्य अपने उस मन को पूरी तरह बंद कर देता है जिसमें लोभ उत्पन्न होता है तो उस स्थिति में लोभ की विजय होती है और आदमी की हार होती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि मनुष्य ने लोभ से डर कर अपने मन के द्वार बंद कर दिए हैं। उसमें लोभ से संघर्ष करने की शक्ति नहीं रही।

(ग) ‘आँख फोड़ डालने’ का व्यंग्य यह है कि संसार की गतिविधियों को अनदेखा करना और उसकी ओर से मन को हटा लेना और मन में यह निर्णय ले लेना कि वह संसार के आकर्षणों की ओर ध्यान नहीं देगा।

(घ) जब मनुष्य संसार की सारी गतिविधियों को अनदेखा करने लगता है तब भी उसके मन में अनेक प्रकार के सपने बनते-बिगड़ते रहते हैं। अतः मनुष्य अपने उन सपनों के बारे में सोचता हुआ हमेशा बेचैन ही रहता है और उसके मन को शांति नहीं मिलती।

(ङ) संसार की सभी इच्छाओं, स्वादों और आनंदों का निषेध करना ही हठ योग कहलाता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि जब मनुष्य अपने मन में यह हठ कर लेता है कि वह संसार की गतिविधियों की ओर ध्यान नहीं देगा और अपनी इच्छाओं को मार लेगा, तभी वह हठ योग की ओर अग्रसर होने लगता है।

(च) लेखक के अनुसार सच्चा ज्ञान वही है जो हमें हमारी अपूर्णता का बोध कराता है। इस प्रकार के ज्ञान से हम पूर्णता प्राप्त करने के लिए प्रेरित होते हैं और कर्म करने लगते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

[8] क्या जाने उस भोले आदमी को अक्षर-ज्ञान तक भी है या नहीं। और बड़ी बातें तो उसे मालूम क्या होंगी। और हम-आप न जाने कितनी बड़ी-बड़ी बातें जानते हैं। इससे यह तो हो सकता है कि वह चूरन वाला भगत हम लोगों के सामने एकदम नाचीज़ आदमी हो। लेकिन आप पाठकों की विद्वान श्रेणी का सदस्य होकर भी , मैं यह स्वीकार नहीं करना चाहता हूँ कि उस अपदार्थ प्राणी को वह प्राप्त है जो हम में से बहुत कम को शायद प्राप्त है। उस पर बाजार का जादू वार नहीं कर पाता। माल बिछा रहता है, और उसका मन अडिग र पैसा उससे आगे होकर भीख तक माँगता है कि मुझे लो। लेकिन उसके मन में पैसे पर दया नहीं समाती। वह निर्मम व्यक्ति पैसे को अपने आहत गर्व में बिलखता ही छोड़ देता है। ऐसे आदमी के आगे क्या पैसे की व्यंग्य-शक्ति कुछ भी चलती होगी? [पृष्ठ-90]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक चूरन बेचने वाले भगत जी की बात कर रहा है जो बिना आवश्यकता के बाज़ार में देखता तक नहीं।

व्याख्या-लेखक कहता है कि शायद उस भोले भगत जी को अक्षर-ज्ञान है या नहीं अर्थात् वह अनपढ़ व्यक्ति लगता है। इसलिए वह बड़ी-बड़ी बातें नहीं करना चाहता है और न ही उसे बड़ी-बड़ी बातों का पता है। अन्य लोग तो बड़ी-बड़ी बातें जानते भी हैं और करते भी हैं। इससे लोग यह निष्कर्ष भी निकाल सकते हैं कि भगत जी उनके सामने मामूली व्यक्ति हैं जिसका कोई महत्त्व नहीं है। भले ही लेखक पाठकों की पढ़ी-लिखी श्रेणी का ही व्यक्ति है, परंतु वह इस दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करता। भगत जी जैसे मामूली व्यक्ति को जो कुछ प्राप्त है, वह शायद हम में से बहुत कम लोगों को प्राप्त है। सत्य तो यह है कि भगत जी पर बाज़ार का जादू चल ही नहीं सकता। उसके सामने बाज़ार का माल फैला रहता है, परंतु उसका मन कभी चंचल नहीं होता। वह स्थिर रहता है।

पैसा उसके सामने भीख माँगता हुआ कहता है कि मुझे स्वीकार कर लो, परंतु भगत जी पैसे की माँग को ठुकरा देते हैं। उन्हें पैसे पर दया नहीं आती। जिससे पैसे का गर्व टूटकर बिखर जाता है। पैसे के संबंध में भगत जी एक कठोर हृदय वाले व्यक्ति हैं। ऐसा लगता है कि मानों पैसा उसके आगे रोने लगता है और भगत जी के स्वाभिमान के आगे नतमस्तक हो जाता है। इस प्रकार के व्यक्ति पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता पैसे की व्यंग्य-शक्ति उसके आगे कुंठित हो जाती है और अपने आपको कोसने लगती है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक यह स्पष्ट करता है कि यदि व्यक्ति के मन में संयम, विवेक और संतोष वृत्ति है तो सांसारिक आकर्षण उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। ऐसा व्यक्ति मायावी आकर्षणों की परवाह किए बिना आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करता
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. यहाँ विवेचनात्मक तथा विश्लेषणात्मक शैलियों का प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) यहाँ लेखक ने किस भोले आदमी की बात की है और किस बात में उसका भोलापन दिखाई देता है?
(ख) लेखक ने चूरन वाले भगत जी को अपदार्थ क्यों कहा है?
(ग) भगत जी के पास ऐसा क्या है जो बड़े-बड़े विद्वानों के पास नहीं है?
(घ) भगत जी पर बाज़ार के जादू का प्रभाव क्यों नहीं होता? (ङ) पैसे की व्यंग्य-शक्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) यहाँ चूरन वाले भगत जी को भोला आदमी कहा गया है। दुनिया की नज़रों में वे बहुत सीधे और भोले व्यक्ति हैं। संसार के अन्य लोग तो अवसर मिलने पर बाज़ार की सभी वस्तुएँ खरीद लेना चाहते हैं, परंतु भगत जी आवश्यकता के बिना कुछ नहीं खरीदते। इसलिए उन्हें भोला व्यक्ति कहा गया है।

(ख) अपदार्थ का अर्थ है-बेचारा या अंकिचन संसार की नज़रों में भगत जी न अमीर हैं और न ही शिक्षित हैं, इसलिए लोग उन्हें अपदार्थ कहते हैं।

(ग) भगत जी एक संतोषी, विवेकशील तथा संयमी व्यक्ति हैं। ये गुण संसार के बड़े-बड़े विद्वानों में भी नहीं मिलते। संसार के अधिकांश लोग लोभी, लालची होते हैं।

(घ) भगत जी सीधा-सादा जीवन व्यतीत करते हैं। उनके मन में आकर्षक वस्तुएँ खरीदने की तृष्णा नहीं है। इसलिए बाज़ार का जादू उनको प्रभावित नहीं कर पाता। वे अपनी आवश्यकतानुसार जीरा व काला नमक लेकर घर लौट आते हैं।

(ङ) पैसे,की व्यंग्य-शक्ति का अभिप्राय है कि पैसे की शक्ति लोगों को लुभाती है, उन्हें लोभी बनाती है तथा तृष्णा से व्याकुल कर देती है, परंतु भगत जी पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे तो बाज़ार की अनावश्यक वस्तुओं को देखते तक नहीं। फलस्वरूप पैसे की व्यंग्य-शक्ति विफल हो जाती है।

[9] पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए। वह दारुण है। मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटर। वह क्या निकली मेरे कलेजे को कौंधती एक कठिन व्यंग्य की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे किसी ने आँखों में उँगली देकर दिखा दिया हो कि देखो, उसका नाम है मोटर, और तुम उससे वंचित हो! यह मुझे अपनी ऐसी विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं। मैं सोचने को हो आता हूँ कि हाय, ये ही माँ-बाप रह गए थे जिनके यहाँ मैं जन्म लेने को था! क्यों न मैं मोटरवालों के यहाँ हुआ! उस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि ज़रा में मुझे अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकती है।। [पृष्ठ-90]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने पैसे की व्यंग्य-शक्ति के प्रभाव को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

व्याख्या-पैसे की व्यंग्य-शक्ति बडी विचित्र और कठोर है, लेखक उस शक्ति का वर्णन करता हआ कहता है कि एक व्यक्ति बाज़ार में पैदल जा रहा था। उसके पास से धूल उड़ाती एक मोटरकार निकल जाती है। उस मोटरकार के निकलते ही पैदल चलने वाले व्यक्ति के कलेजे को पार करती हुई एक कठोर व्यंग्य की लकीर निकल जाती है। उस व्यक्ति के हृदय में एक जलन-सी होने लगती है मानों कोई उसकी आँखों में उँगली डालकर यह दिखाने का प्रयास करता है कि तुम्हारे सामने से मोटरकार गुजर गई है। यह मोटरकार तुम्हारे पास नहीं है। इससे पैदल चलने वाले व्यक्ति को अपनी मजबूरी का पता चल जाता है और वह अपनी हालत के बारे में सोचने के लिए मजबूर हो जाता है। वह सोचने लगता है कि उसके पास इस प्रकार की मोटरकार क्यों नहीं है। बड़े दुख मैंने ऐसे माँ-बाप के यहाँ जन्म लिया जिनके पास मोटरकार नहीं है। मैं मोटरकारों वालों के यहाँ क्यों नहीं जन्मा? उस व्यंग्य में इतनी तीव्र शक्ति होती है कि मैं अपने सगे-संबंधियों से भी घृणा करने लगता हूँ और मेरे अन्दर अकृतज्ञता का भाव उत्पन्न हो जाता है।

विशेष-

  1. यहाँ पर लेखक यह बताना चाहता है कि पैसे की व्यंग्य-शक्ति मनुष्य में ईर्ष्या और द्वेष की भावना उत्पन्न करती है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावानुकूल है।
  4. आत्मसंबोधनात्मक शैली के कारण भावाभिव्यक्ति पूर्णतः स्पष्ट हो गई है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) लेखक ने पैसे की व्यंग्य-शक्ति को दारुण क्यों कहा है?
(ख) पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटरकार का पैदल चलने वाले पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ग) पैदल चलने वाला व्यक्ति क्या सोचने के लिए मजबूर हो जाता है?
(घ) पैदल चलने वाला व्यक्ति किन कारणों से सगे-संबंधियों के प्रति कृतघ्न हो जाता है?
उत्तर:
(क) पैसे की शक्ति को लेखक ने दारुण इसलिए कहा है क्योंकि वह आम आदमी में ईर्ष्या, जलन तथा तृष्णा को उत्पन्न करती है। अपने से अमीर व्यक्ति के समान वह भी सुख-सुविधाएँ प्राप्त करना चाहता है।

(ख) पास ही धूल उड़ाती निकली मोटरकार ने पैसे की व्यंग्य-शक्ति का प्रभाव दिखा दिया। पैदल चलने वाले व्यक्ति को यह तत्काल ही महसूस हो गया कि उसके पास मोटरकार नहीं है, इससे उसे अपनी हीनता महसूस होने लगी।

(ग) पैदल चलने वाला व्यक्ति यह सोचने के लिए मजबूर हो जाता है कि वह ऐसे माँ-बाप के यहाँ क्यों जन्मा, जिनके पास मोटरकार नहीं है। काश! मैं मोटरकार वाले माँ-बाप के यहाँ जन्म लेता।

(घ) पैदल चलने वाला व्यक्ति पैसे की व्यंग्य-शक्ति के कारण ही अपने सगे-संबंधियों के प्रति कृतघ्न हो जाता है। वह यहाँ तक सोचने लगता है कि उसका जन्म भी किसी अमीर परिवार में होता।

[10] उस बल को नाम जो दो; पर वह निश्चय उस तल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्त्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं; आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं। मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर देखू और प्रतिपादन करूँ। मुझे शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकूँ। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है। [पृष्ठ-90-91]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाजार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। इससे पूर्व लेखक यह स्पष्ट कर चुका है कि लोक वैभव की व्यंग्य-शक्ति उस सामान्य चूरन वाले व्यक्ति के सामने चूर-चूर हो गई थी। उसमें ऐसा कौन-सा बल था जो इस तीखे व्यंग्य के सामने अजेय बना रहा। इस संदर्भ में लेखक कहता है कि

व्याख्या-उस बल को कोई भी नाम दिया जा सकता है। वह निश्चय से कोई ऐसी गहरी वस्तु नहीं है जिस पर खड़ा होकर संसार का धन-वैभव बढ़ता है। वह बल धन-संपत्ति को नहीं बढ़ाता और न ही वह उससे संबंधित है। वह तो एक अलग प्रकार का तत्त्व है जिसे लोग आध्यात्मिक शक्ति कहते हैं। उसे धार्मिक, नैतिक अथवा आत्मिक शक्ति भी कहा जा सकता है। लेखक स्वीकार करता है कि उसके पास ऐसी सोच-समझ नहीं है जिसके द्वारा वह गहराई में जाए और उस शक्ति की व्याख्या करे। लेखक यह भी स्वीकार करता है शब्दों में अंतर से उसका कोई संबंध नहीं है।

वह यह भी स्वीकार करता है कि वह ऐसा विद्वान नहीं है जो यहाँ-वहाँ भटकता फिरे। लेकिन फिर भी वह अपनी समझ से प्रकाश डालता हुआ कहता है कि जिन लोगों में धन प्राप्त करने की इच्छा है, धन का संग्रह करने की चाह है, ऐसे लोगों के पास वह बल नहीं है, परंतु उस बल को यदि सच्चा बल मान लिया जाए तो धन-संग्रह की इच्छा और धन-वैभव की चाह मनुष्य को कमज़ोर ही बनाती है और कमज़ोर व्यक्ति ही धन की ओर भागता है जिसे लेखक बलहीनता कहता है। अन्य शब्दों में लेखक कहता है ऐसी स्थिति में मनुष्य पर धन की विजय होती है अर्थात् वह धन का गुलाम हो जाता है। यह चेतन पर जड़ की विजय है। मनुष्य तो चेतनशील है, परंतु धन-वैभव जड़ है। फिर भी वह चेतनशील मनुष्य पर विजय प्राप्त कर लेता है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने उस बल की चर्चा की है जो धन-वैभव के तीखे व्यंग्य के आगे अजेय बना रहता है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावानुकूल है।
  4. आत्मविश्लेषणात्मक शैली द्वारा आध्यात्मिक शक्ति की विवेचना की गई है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लोग किस बल को ‘स्पिरिचुअल’ कहते हैं। लेखक ने इस बल को और कौन-से नाम दिए हैं?
(ख) लेखक के अनुसार कौन व्यक्ति सबल है और कौन निर्बल है?
(ग) व्यक्ति की निर्बलता किस बात से प्रमाणित होती है?
(घ) मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) सांसारिक वैभव के सामने न झुकने वाला बल ही स्पिरिचुअल है। लेखक ने इसे आत्मिक, धार्मिक और नैतिक बल कहा है।

(ख) जिस व्यक्ति में न तो संचय की तृष्णा है और न ही वैभव की चाह है, वह सबल है, परंतु जिसमें ये दोनों चीजें हैं वह निर्बल है। निर्बल व्यक्ति ही धन की ओर झुकता है, सबल नहीं।

(ग) व्यक्ति की निर्बलता इस बात से प्रमाणित होती है कि उसमें धन-संपत्ति का संचय करने की तृष्णा और वैभव की चाह होती है।

(घ) मनुष्य में जब धन का संग्रह करने की तष्णा पैदा होती है तो यह मनुष्य पर धन की विजय है। मनुष्य एक चेतनशील प्राणी है और धन जड़ और निर्जीव है। इसलिए यह जड़ पर चेतन की विजय कहलाती है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

[11] एक बार चूरन वाले भगत जी बाज़ार चौक में दीख गए। मुझे देखते ही उन्होंने जय-जयराम किया। मैंने भी जयराम कहा। उनकी आँखें बंद नहीं थीं और न उस समय वह बाज़ार को किसी भाँति कोस रहे मालूम होते थे। राह में बहुत लोग, बहुत बालक मिले जो भगत जी द्वारा पहचाने जाने के इच्छुक थे। भगत जी ने सबको ही हँसकर पहचाना। सबका अभिवादन लिया और सबको अभिवादन किया। इससे तनिक भी यह नहीं कहा जा सकेगा कि चौक-बाज़ार में होकर उनकी आँखें किसी से भी कम खुली थीं। लेकिन भौंचक्के हो रहने की लाचारी उन्हें नहीं थी। व्यवहार में पसोपेश उन्हें नहीं था और खोए से खड़े नहीं वह रह जाते थे। भाँति-भाँति के बढ़िया माल से चौक भरा पड़ा है। उस सबके प्रति अप्रीति इस भगत के मन में नहीं है। जैसे उस समूचे माल के प्रति भी उनके मन में आशीर्वाद हो सकता है। विद्रोह नहीं, प्रसन्नता ही भीतर है, क्योंकि कोई रिक्त भीतर नहीं है। देखता हूँ कि खुली आँख, तुष्ट और मग्न, वह चौक-बाज़ार में से चलते चले जाते हैं। राह में बड़े-बड़े फैंसी स्टोर पड़ते हैं, पर पड़े रह जाते हैं। कहीं भगत नहीं रुकते। रुकते हैं तो एक छोटी पंसारी की दुकान पर रुकते हैं। वहाँ दो-चार अपने काम की चीज़ ली और चले आते हैं। बाजार से हठ पूर्वक विमुखता उनमें नहीं है। [पृष्ठ-91]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यहाँ लेखक उस घटना का हवाला देता है जब उन्हें बाज़ार चौक में भगत जी दिखाई दिए थे। उस समय भी भगत जी संतुष्ट और प्रसन्न थे।

व्याख्या-लेखक कहता है कि एक बार उन्हें चूरन वाले भगत जी बाज़ार चौक में मिल गए। लेखक को देखते ही भगत जी ने उनसे जय-जयराम किया। लेखक ने भी उत्तर में उनका अभिवादन किया। उस समय भी उनकी आँखें पूरी तरह से खुली थीं। ऐसा लगता था कि वे किसी भी प्रकार बाज़ार की निंदा या आलोचना नहीं कर रहे थे। भाव यह था कि उनको बाज़ार से किसी प्रकार की आसक्ति नहीं थी। बाज़ार में बहुत-से लोग व बालक थे। वे चाहते थे कि भगत जी उन्हें पहचानें। भगत जी ने हँसते हुए सभी को पहचाना। सभी से अभिवादन लिया और सभी को अभिवादन किया। इससे पता चलता है कि भगत जी बहुत मिलनसार व्यक्ति थे। साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि भगत जी चौक बाज़ार में चलते समय बाज़ार और वहाँ के लोगों की तरफ ध्यान न दे रहे हों। वे सब लोगों को देख रहे थे और बाज़ार की वस्तुओं को भी देख रहे थे, परंतु उनमें हैरान होने की मजबूरी नहीं थी। न ही उनके व्यवहार में किसी प्रकार का असमंजस था।

वे बाज़ार को हैरान होकर देखकर खड़े भी नहीं होते थे। बाज़ार चौक बढ़िया-से-बढ़िया वस्तुओं से भरा हुआ था। उन वस्तुओं में एक विचित्र आकर्षण भी था। परंतु भगत के मन में इन वस्तुओं के प्रति घृणा की भावना भी नहीं थी। ऐसा लगता था मानों वे बाज़ार के माल को मन-ही-मन आशीर्वाद दे रहे हों। उनके मन में विद्रोह की भावना नहीं थी, बल्कि प्रसन्नता की भावना थी। कारण यह है कि किसी का भी मन किसी समय खाली नहीं होता। कोई-न-कोई विचार मन में चलता रहता है। भगत जी का मन इस समय प्रसन्न था। लेखक ने देखा कि भगत जी खुली आँखों से संतुष्ट तथा निमग्न होकर चौक बाज़ार के बीचों-बीच चले जा रहे हैं। मार्ग में बड़े-बड़े फैंसी स्टोर भी हैं, परंतु भगत जी कहीं भी नहीं रुकते। वे निरंतर बाज़ार को देखते हुए आगे बढ़ते चले जाते हैं और अंत में पंसारी की एक छोटी-सी दुकान पर जाकर रुक जाते हैं। वहाँ से वे दो चार आने का सामान खरीद लेते हैं और लौट आते हैं। बाज़ार के प्रति उनके मन में कोई विद्रोह का भाव या विमुखता भी नहीं थी। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि बाज़ार के प्रति भगत जी का न तो कोई लगाव था, न अलगाव था। वे केवल अपनी आवश्यकता की वस्तु खरीदने के लिए बाज़ार में जाते हैं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने भगत जी के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया है कि हमें केवल बाज़ार से आवश्यकता-पूर्ति का सामान ही खरीदना चाहिए, अनावश्यक सामान नहीं खरीदना चाहिए।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास बड़ा ही सटीक व भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भगत जी की चारित्रिक विशेषताओं का उद्घाटन किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) “भगत जी की आँखें बंद नहीं थीं” इससे क्या अभिप्राय है?
(ख) बाज़ार में भगत जी प्रसन्न और संतुष्ट क्यों दिखाई देते हैं?
(ग) रास्ते में लोग और बालक भगत जी द्वारा पहचाने जाने के इच्छुक क्यों थे?
(घ) भगत जी फैंसी माल को देखकर भी भौंचक्के क्यों नहीं होते? (ङ) भगत जी बाज़ार किसलिए जाते थे?
उत्तर:
(क) इस पंक्ति का अभिप्राय है कि भगत जी खुली आँखों से बाज़ार को देखते हुए चल रहे थे। उन्होंने बाज़ार की वस्तुओं के लोभ से बचने के लिए अपनी आँखें बंद नहीं की। इससे यह स्पष्ट होता है कि बाजार के प्रति उनके मन में न तिरस्कार की भावना थी, न निषेध की भावना थी।

(ख) भगत जी बाज़ार में प्रसन्न व संतुष्ट इसलिए दिखाई देते हैं क्योंकि उन्हें बाज़ार से अपनी आवश्यकतानुसार काला नमक व जीरा मिल जाता है। इसके अतिरिक्त बाज़ार की वस्तुओं के प्रति उनके मन में न तिरस्कार है और न ही उन्हें खरीदने की इच्छा है। बाज़ार का आकर्षण उनके मन में विकार उत्पन्न नहीं करता। इसलिए वह सहज भाव से प्रसन्न व संतुष्ट दिखाई देते हैं।

(ग) भगत जी रास्ते में चलते हुए सबसे जय-जयराम करते थे। वे सबसे हँसकर मिलते थे और उनका अभिवादन भी करते थे। कारण यह था कि वे बड़े मिलनसार व्यक्ति थे। इसलिए रास्ते के लोग चाहते थे कि भगत जी पहचान कर उनका अभिवादन करें।

(घ) बाज़ार की फैंसी वस्तुओं को देखकर वही लोग भौंचक्के होते हैं जिनके मन में उन वस्तुओं को खरीदने की इच्छा होती है। ऐसे लोग तृष्णा के कारण ही आकर्षक वस्तुओं को देखकर भौंचक्के होते हैं। भगत जी के मन में फैंसी माल के प्रति कोई तृष्णा नहीं थी और न ही उन्हें इसकी आवश्यकता थी। इसलिए वे फैंसी माल को देखकर भौंचक्के नहीं हुए।

(ङ) भगत जी बाज़ार में काला नमक व जीरा खरीदने के लिए जाते थे। इनसे वे चूरन बनाकर बाज़ार में बेचते थे।

[12] लेकिन अगर उन्हें जीरा और काला नमक चाहिए तो सारे चौक-बाज़ार की सत्ता उनके लिए तभी तक है, तभी तक उपयोगी है, जब तक वहाँ जीरा मिलता है। ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं बराबर हो जाता है। वह जानते हैं कि जो उन्हें चाहिए वह है जीरा नमक। बस इस निश्चित प्रतीति के बल पर शेष सब चाँदनी चौक का आमंत्रण उन पर व्यर्थ होकर बिखरा रहता है। चौक की चाँदनी दाएँ-बाएँ भूखी-की-भूखी फैली रह जाती है क्योंकि भगत जी को जीरा चाहिए वह तो कोने वाली पंसारी की दुकान से मिल जाता है और वहाँ से सहज भाव में ले लिया गया है। इसके आगे आस-पास अगर चाँदनी बिछी रहती है तो बड़ी खुशी से बिछी रहे, भगत जी से बेचारी का कल्याण ही चाहते हैं। [पृष्ठ-91]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि भगत जी के लिए बड़े-बड़े फैंसी स्टोरों का कोई महत्त्व नहीं है। उनके लिए केवल छोटी-सी पंसारी की दुकान का महत्त्व है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि भगत जी के रास्ते में बड़े-बड़े फैंसी स्टोर हैं, पर भगत जी कहीं पर नहीं रुकते। भगत जी के सामने वे फैंसी स्टोर ज्यों-के-त्यों पड़े रह जाते हैं। क्योंकि भगत जी तो एक छोटी-सी पंसारी की दुकान पर जाकर रुकते हैं। जहाँ से वे दो-चार आने का सामान लेकर लौट पड़ते हैं। इस स्थिति में भगत जी के मन में न तो बाज़ार के लिए हठ है और न ही विमुखता। उन्हें तो केवल जीरा और काला नमक चाहिए था जिसे उन्होंने खरीद लिया। भगत जी के लिए चौक बाज़ार का अस्तित्व तब तक है जब तक उन्हें बाज़ार से जीरा व काला नमक उपलब्ध होता है। जब उन्होंने अपनी आवश्यकतानुसार जीरा खरीद लिया तो सारा चौक उनके लिए कोई महत्त्व नहीं रखता।

उनके लिए तो केवल जीरे और नमक का महत्त्व है, जो उन्हें बाज़ार से मिल गया। भगत जी के इसी निश्चित विश्वास के कारण शेष संपूर्ण चाँदनी चौक का निमंत्रण उनके लिए बेकार है। भगत जी उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देते। चौक का आकर्षण दोनों दिशाओं में मानों भूख से व्याकुल होकर देखता रह जाता है। भगत जी को केवल जीरा ही चाहिए था जिसे उन्होंने केवल पंसारी की दुकान से बड़े सहज भाव से खरीद लिया। चाँदनी चौक के आकर्षण से न भगत जी को कोई लगाव है, न अलगाव है। चाँदनी चौक का संपूर्ण सौंदर्य उनके लिए फैला रहता है। भगत जी उस बाज़ार का भला ही चाहते हैं, परंतु उसके आकर्षण के प्रति आसक्त नहीं होते और अपनी ज़रूरत की वस्तुएँ खरीदकर लौट जाते हैं।

विशेष-

  1. इसमें लेखक ने चाँदनी चौक के आकर्षण के प्रति भगत जी के तटस्थ भाव का सजीव वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास बड़ा ही सटीक व भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भगत जी पर समूचा प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) भगत जी बड़े-बड़े फैंसी स्टोरों के पास क्यों नहीं रुकते?
(ख) भगत जी एक छोटी पंसारी की दुकान पर क्यों रुकते हैं?
(ग) सारा चौक भगत जी के लिए नहीं के बराबर कब और क्यों हो जाता है?
(घ) चौक की चाँदनी भगत जी के लिए कोई महत्त्व क्यों नहीं रखती?
उत्तर:
(क) भगत जी बड़े-बड़े फैंसी स्टोरों के पास इसलिए नहीं रुकते क्योंकि उनके लिए फैंसी स्टोर का आकर्षक सामान अनावश्यक है। वे फैंसी स्टोर के आकर्षणों के शिकार नहीं होते और आगे बढ़ते चले जाते हैं।

(ख) भगत जी बाज़ार में बेचने के लिए चूरन तैयार करते हैं। अतः उन्हें अपनी आवश्यकता का सामान अर्थात् काला नमक व जीरा इसी छोटी-सी पंसारी की दुकान पर मिल जाता है। इसलिए वह पंसारी की दुकान पर रुक जाते हैं।

(ग) जब भगत जी बाज़ार से अपनी ज़रूरत के अनुसार जीरा और नमक खरीद लेते हैं तो सारा चौक तथा बाज़ार उनके लिए नहीं के बराबर हो जाता है, क्योंकि उन्हें जो कुछ चाहिए था, वह उसे लेकर लौट आते हैं।

(घ) भगत जी केवल अपनी ज़रूरत का सामान खरीदने ही चाँदनी चौक बाज़ार में जाते हैं। चाँदनी चौक का आकर्षण भगत जी को व्यामोहित नहीं कर पाता। इसलिए सारा चौक भगत जी के लिए कोई महत्त्व नहीं रखता।

[13] यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाज़ार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति-शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाज़ार को देते हैं। न तो वे बाज़ार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाज़ार का बाज़ारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी। [पृष्ठ-91]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाजार दर्शन’ लेखक का एक महत्त उपभोक्तावाद तथा बाजारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बाज़ार की सार्थकता पर समुचित प्रकाश डाला है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि वही व्यक्ति बाज़ार को सार्थक बना सकता है जिसे पता है कि उसे बाज़ार से क्या खरीदना है, परंतु जो लोग यह नहीं जानते कि उन्हें क्या खरीदना है, उनका मन खाली होता है। वे अपनी क्रय-शक्ति के अभिमान में बाज़ार को केवल अपनी विनाशक शक्ति प्रदान करते हैं। लेखक इसे शैतानी-शक्ति अथवा व्यंग्य की शक्ति कहता है। कहने का भाव यह है कि इस प्रकार के लोग अपनी पर्चेजिंग पावर का अभिमान प्रकट करते हुए बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लेते हैं। उनकी यह शक्ति एक शैतानी शक्ति है जो कि समाज तथा बाज़ार का ही विनाश करती है। इस प्रकार के लोग न तो स्वयं बाज़ार से कोई लाभ उठा सकते हैं और न ही बाज़ार को सच्चा लाभ पहुंचा सकते हैं। इस प्रकार के लोगों के कारण बाज़ार के बाजारूपन को बढ़ावा मिलता है। यही नहीं, इससे छल-कपट की भी वृद्धि होती है और कपट बढ़ने का अर्थ यह है कि लोगों में सद्भाव घट जाता है अर्थात् अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने वाले लोग बाज़ार में छल-कपट को बढ़ावा देते हैं तथा आपसी सद्भावना को नष्ट करते हैं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने बाज़ार की सार्थकता को स्पष्ट करते हुए बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य किया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बाज़ार की सार्थकता से क्या अभिप्राय है?
(ख) किस प्रकार के लोग बाजारूपन को बढ़ावा देते हैं और कैसे?
(ग) धन की शक्ति बाज़ार को किस प्रकार प्रभावित करती है?
(घ) किन कारणों से बाज़ार में सद्भाव घटता है तथा कपट बढ़ता है?
उत्तर:
(क) लेखक के अनुसार वही बाज़ार सार्थक है जो ग्राहकों को आवश्यक सामान उपलब्ध कराता है। जो बाज़ार अनावश्यक तथा आकर्षक वस्तुओं का प्रदर्शन करता है, वह लोगों की इच्छाओं को भड़काकर अपनी निरर्थकता व्यक्त करता है।

(ख) जो लोग धन की ताकत के बल पर अनावश्यक वस्तुओं को बाजार से खरीदते हैं वे लोग ही बाजारूपन तथा छल-कपट को बढ़ावा देते हैं। इस प्रकार के लोग मानों “ह दिखाना चाहते हैं कि उनमें कितना कुछ खरीदने की ताकत है। इससे लोगों में अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने की होड़ लग जाती है। फलस्वरूप वस्तुएँ आवश्यकता के लिए नहीं, बल्कि झूठी शान के लिए खरीदी जाती हैं जिससे छल-कपट तथा शोषण को बढ़ावा मिलता है।

(ग) धन की शक्ति बाज़ार में शैतानी-शक्ति को बढ़ावा देती है। अमीर लोग बाज़ार से अनावश्यक फैंसी वस्तुएँ खरीद कर अपनी शान का ढोल पीटते हैं। दूसरी ओर दुकानदार अर्थात् विक्रेता कपट का सहारा लेते हुए उसका शोषण करता है जिससे ग्राहक और दुकानदार में सद्भाव नष्ट हो जाता है। दुकानदार और ग्राहक एक-दूसरे को धोखा देने में लगे रहते हैं।

(घ) जब बाजार ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने का साधन बनता है तब लोगों में सदभावना बढ़ती है, परंतु जब ग्राहक अपनी शान का डंका बजाने के लिए अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने लगता है तो बाज़ार भी छल-कपट का सहारा लेने लगता है जिससे दुकानदार और ग्राहक में सद्भाव नहीं रहता। दोनों एक-दूसरे को धोखा देने की ताक में लगे रहते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

[14] इस सद्भाव के हास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे गाहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक ही हानि में दूसरे का अपना लाभ दीखता है और यह बाज़ार का, बल्कि इतिहास का; सत्य माना जाता है ऐसे बाजार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाज़ार मानवता के लिए विडंबना हैं और जो ऐसे बाज़ार का पोषण करता है, जो उसका शास्त्र बना हुआ है; वह अर्थशास्त्र सरासर औंधा है वह मायावी शास्त्र है वह अर्थशास्त्र अनीति-शास्त्र है। [पृष्ठ-91-92]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘बाज़ार दर्शन’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार तथा निबंधकार जैनेंद्र कुमार हैं। ‘बाज़ार दर्शन’ लेखक का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें उन्होंने उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा की है। यह निबंध बाज़ार के आकर्षण तथा क्रय-विक्रय की शक्ति पर समुचित प्रकाश डालता है। यहाँ लेखक यह स्पष्ट करता है कि किस प्रकार दुकानदार तथा ग्राहक के बीच सदभाव का पतन होने लगता है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि जब दुकानदार तथा ग्राहक के बीच सद्भाव नष्ट हो जाता है तो वे दोनों न तो आपस में भाई-भाई होते हैं, न मित्र होते हैं और न ही पड़ोसी होते हैं, बल्कि दोनों एक-दूसरे के साथ ग्राहक और बेचक जैसा व्यवहार करने लगते हैं। दुकानदार सौदेदारी करता है और ग्राहक भी मूल्य घटाने का काम करता है। ऐसा लगता है कि मानों दोनों एक-दूसरे को धोखा देने का प्रयास कर रहे हैं। यदि एक को हानि होती है तो दूसरे को लाभ पहुँचता है। जो कि बाज़ार का नियम नहीं है, बल्कि इतिहास का नियम है। यह कटु सत्य है कि इस प्रकार के बाज़ार में लोगों के बीच आवश्यकताओं का लेन-देन नहीं होता, केवल छल-कपट होता है। सच्चाई तो यह है कि दुकानदार शोषक बनकर ग्राहकों का शोषण करने लगता है जिससे छल-कपट को सफलता मिलती है तथा भोले-भाले लोग उसका शिकार बनते हैं। इस प्रकार का बाज़ार संपूर्ण मानव जाति के लिए सबसे बड़ा धोखा है। जो लोग इस प्रकार के बाज़ार को बढ़ावा देते हैं और उनके द्वारा जो शास्त्र बनाया गया है वह अर्थशास्त्र बिल्कुल उल्टा है। वह धोखे का शास्त्र है। इस प्रकार का अर्थशास्त्र अनीति पर टिका है जो कि ग्राहक का कदापि कल्याण नहीं कर सकता।

विशेष-

  1. इसमें लेखक ने छल तथा कपट को बढ़ावा देने वाले बाज़ार की भर्त्सना की है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सार्थक व सटीक है।
  4. विवेचनात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) लेखक किस सद्भाव के ह्रास की बात करता है?
(ख) लेखक ने किस अर्थशास्त्र को अनीति शास्त्र कहा है?
(ग) बाज़ार में शोषण क्यों होने लगता है?
(घ) लेखक ने किस प्रकार के बाज़ार को मानवता का शत्रु कहा है?
उत्तर:
(क) यहाँ लेखक ने दुकानदार तथा ग्राहक के बीच होने वाले सद्भाव की चर्चा की है। जब ग्राहक अपनी झूठी शान दिखाने के लिए अपनी पर्चेजिंग पावर के द्वारा बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदता है तब बाज़ार में कपट को बढ़ावा मिलता है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि ग्राहक और दुकानदार के बीच सद्भाव समाप्त हो जाता है।

(ख) लेखक ने उस अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र कहा है जो कि बाज़ार में बाजारूपन तथा छल-कपट को बढ़ावा देता है। इस प्रकार का बाज़ार अनीति पर आधारित होता है और वह ग्राहकों से धोखाधड़ी करने लगता है।

(ग) जब बाजार में बाजारूपन बढ़ जाता है और छल-कपट बढ़ने लगता है तो दुकानदार और ग्राहक दोनों ही एक-दूसरे का शोषण करने लगते हैं। दुकानदार ग्राहक को ठगना चाहता है और ग्राहक दुकानदार को।

(घ) लेखक का कहना है कि जो बाज़ार छल-कपट तथा शोषण पर आधारित होता है वह मानवता का शत्रु है। इस प्रकार के बाज़ार में सीधे-सादे ग्राहक हमेशा ठगे जाते हैं। कपटी लोग निष्कपटों को अपना शिकार बनाते रहते हैं।

बाज़ार दर्शन Summary in Hindi

बाज़ार दर्शन लेखिका-परिचय

प्रश्न-
श्री जैनेंद्र कुमार का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री जैनेंद्र कुमार का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-श्री जैनेंद्र कुमार सुप्रसिद्ध कथाकार थे, किंतु उन्होंने उच्चकोटि का निबंध-साहित्य लिखा। उनका जन्म सन् 1905 को अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक गाँव में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा हस्तिनापुर जिला मेरठ में हुई। उन्होंने 1919 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् उन्होंने काशी विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया, किंतु गांधी जी के आह्वान पर पढ़ाई छोड़कर वे असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। गांधी जी जीवन-दर्शन का प्रभाव उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जैनेंद्र जी ने कथा-साहित्य के साथ-साथ उच्चकोटि के निबंधों की रचना भी की है। सन् 1970 में उनकी महान् साहित्यिक सेवाओं के कारण भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी सन् 1973 में इन्हें डी० लिट् की मानद उपाधि से विभूषित किया। जैनेंद्र कुमार को ‘साहित्य अकादमी’ तथा ‘भारत-भारती’ पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। सन् 1990 में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-श्री जैनेंद्र कुमार की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • उपन्यास-परख’ (1929), ‘सुनीता’ (1935), ‘कल्याणी’ (1939), ‘त्यागपत्र’ (1937), ‘विवर्त’ (1953), ‘सुखदा’ (1953), ‘व्यतीत’ (1953), ‘जयवर्द्धन’ (1953), ‘मुक्तिबोध’।
  • कहानी-संग्रह-‘फाँसी’ (1929), ‘वातायन’, (1930), ‘नीलम देश की राजकन्या’ (1933), ‘एक रात’ (1934), ‘दो चिड़िया’ (1935), ‘पाजेब’ (1942), ‘जयसंधि’ (1929)।
  • निबंध-संग्रह-‘प्रस्तुत प्रश्न’ (1936), ‘जड़ की बात’ (1945), ‘पूर्वोदय’ (1951), ‘साहित्य का श्रेय और प्रेय’ (1953), ‘मंथन’ (1953), ‘सोच-विचार’ (1953), ‘काम, प्रेम और परिवार’ (1953), ‘ये और वे’ (1954), ‘साहित्य चयन’ (1951), ‘विचार वल्लरी’ (1952)।

3. साहित्यिक विशेषताएँ-जैनेंद्र कुमार ने प्रायः विचार-प्रधान निबंध ही लिखे हैं। उनके निबंधों में लेखक एक गंभीर चिंतक के रूप में हमारे सामने आता है। ये विषय साहित्य, समाज, राजनीति, संस्कृति, धर्म तथा दर्शन से संबंधित हैं। भले ही हिंदी साहित्य में वे एक मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार तथा कहानीकार के रूप में प्रसिद्ध हैं, परंतु निबंध-लेखक के रूप में उन्हें विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। वस्तुतः उनके निबंधों में वैचारिक गहनता के गुण देखे जा सकते हैं। एक गंभीर चिंतक होने के कारण वे अपने प्रत्येक निबंध के विषय में सभी पहलुओं पर समुचित प्रकाश डालते हैं।

इसके लिए हम उनके निबंध बाज़ार दर्शन को ले सकते हैं जिसमें उपभोक्तावाद तथा बाज़ारवाद पर व्यापक चर्चा देखी जा सकती है। भले ही यह निबंध कुछ दशक पहले लिखा गया हो, परंतु आज भी इसकी उपयोगिता असंदिग्ध है। इसमें लेखक यह स्पष्ट करता है कि यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाज़ार का उपयोग करेंगे तो निश्चय ही हम उससे लाभ उठा सकेंगे, परंतु यदि हम खाली मन के साथ बाज़ार में जाएँगे तो उसकी चमक-दमक में फँसकर अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर लाएँगे जो आगे चलकर हमारी शांति को भंग करेंगी।

वे अपने प्रत्येक निबंध में अपने दार्शनिक अंदाज में अपनी बात को समझाने का प्रयास करते हैं। परंतु फिर भी कहीं-कहीं उनके विचार अस्पष्ट और दुरूह बन जाते हैं जिसके फलस्वरूप साधारण पाठक का साधारणीकरण नहीं हो पाता।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

4. भाषा-शैली-यद्यपि कथा-साहित्य में जैनेंद्र कुमार ने सहज, सरल तथा स्वाभाविक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है, परंतु निबंधों में उनकी भाषा दुरूह एवं अस्पष्ट बन जाती है। फिर भी वे संबोधनात्मक तथा वार्तालाप शैलियों का प्रयोग करते समय अपनी बात को सहजता तथा सरलता से करने में सफल हुए हैं। यद्यपि वे भाषा में प्रयुक्त वाक्यों के संबंध में व्याकरण के नियमों का पालन नहीं करते, फिर भी उनके द्वारा प्रयक्त वाक्यों की अशद्धि कहीं नहीं खटकती। उनकी भाषा में रोचकता आदि से अंत तक बनी रहती है। वे अपनी भाषा में प्रचलित शब्दों का ही प्रयोग करते हैं। यत्र-तत्र वे अंग्रेज़ी, उर्दू तथा देशज शब्दों का मिश्रण कर लेते हैं।

श्री तारा शंकर के शब्दों में-“जैनेंद्र की सबसे बड़ी विशेषता इनकी रचना का चमत्कार, कहने का ढंग या शैली है। उनकी भाषा के वाक्य प्रायः छोटे-छोटे, चलते, परंतु साथ ही मानों फूल बिखेरते चलते हैं। वे पारे की तरह ढुलमुल करते रहते हैं। जैनेंद्र को न तो उर्दू से घृणा है, न अंग्रेज़ी से परहेज है और न ही संस्कृत से दुराव है। इसलिए उनकी भाषा सहज, सरल तथा प्रवाहमयी है।” एक उदाहरण देखिए-“यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाज़ार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाज़ार को देते हैं। न तो वे बाज़ार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं।”

बाज़ार दर्शन पाठ का सार

प्रश्न-
जैनेंद्र कुमार द्वारा रचित ‘बाज़ार दर्शन’ नामक निबंध का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तत निबंध हिंदी के सप्रसिद्ध निबंधकार, कथाकार जैनेंद्र कमार का एक उल्लेखनीय निबंध है। इसमें लेखक ने बाज़ार के उपयोग तथा दुरुपयोग का सूक्ष्म विवेचन किया है। लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि बाज़ार हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। हम बाज़ार से केवल वही वस्तुएँ खरीदें जिनकी हमें आवश्यकता है।
1. पैसे की गरमी का प्रभाव लेखक का एक मित्र अपनी पत्नी के साथ बाज़ार में गया। वहाँ से लौटते समय वह अपने साथ बहुत-से बंडल लेकर लौटा। लेखक द्वारा पूछने पर उसने उत्तर दिया कि श्रीमती जो उसके साथ गई थी। इसलिए काफी कुछ अनावश्यक वस्तुएँ खरीदकर लाया है। लेखक का विचार है कि पत्नी को दोष देना ठीक नहीं है। फालतू वस्तुओं को खरीदने के पीछे ग्राहक की पैसे की गरमी है। वस्तुतः पैसा एक पावर है जिसका प्रदर्शन करने के लिए लोग बंगला, कोठी तथा फालतू का सामान खरीद लेते हैं। दूसरी ओर कुछ लोग पैसे की पावर को समझकर उसे जोड़ने में ही लगे रहते हैं और मन-ही-मन बड़े प्रसन्न होते हैं। मित्र ने लेखक को बताया कि यह सब सामान खरीदने पर उसका सारा मनीबैग खाली हो गया है।

2. बाज़ार का प्रभावशाली आकर्षण-फालतू सामान खरीदने का सबसे बड़ा कारण बाज़ार का आकर्षण है। मित्र ने लेखक को बताया कि बाज़ार एक शैतान का जाल है। दुकानदार अपनी दुकानों पर सामान को इस प्रकार सजाकर रखते हैं कि ग्राहक फँस ही जाता है। वस्तुतः बाजार अपने रूप-जाल द्वारा ही ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। ब आग्रह नहीं होता। वह ग्राहकों को लूटने के लिए प्रेरणा देता है। यही कारण है कि लोग बाज़ार के आकर्षक जाल का शिकार बन जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति खाली मन से बाज़ार जाता है तो वह निश्चय से लुट कर ही आता है।

लेखक का एक अन्य मित्र दोपहर के समय बाज़ार गया, परंतु वह शाम को खाली हाथ लौट आया। जब लेखक ने पूछा तो उसने बताया कि बाज़ार में सब कुछ खरीदने की इच्छा हो रही थी। परंतु वह एक भी वस्तु खरीदकर नहीं लाया। पूछने पर उसने बताया कि यदि मैं एक वस्तु खरीद लेता तो उसे अन्य सब वस्तुएँ छोड़नी पड़ती। इसलिए मैं खाली हाथ लौट आया। लेखक का विचार है कि यदि हम किसी वस्तु को खरीदने का विचार बनाकर बाज़ार जाते हैं तो फिर हमारी ऐसी हालत कभी नहीं हो सकती।

3. बाज़ार के जादू का प्रभाव-बाज़ार में रूप का जादू होता है। जब ग्राहक का मन खाली होता है, तब वह उस पर अपना असर दिखाता है। खाली मन बाज़ार की सभी वस्तुओं की ओर आकर्षित होता है और यह कहता है कि सभी वस्तुएँ खरीद ली जाएँ। परंतु जब बाज़ार का जादू उतर जाता है तब ग्राहक को पता चलता है कि उसने जो कुछ खरीदा है, वह उसे आराम पहुँचाने की बजाय बेचैनी पहुंचा रहा है। इससे मनुष्य में अभिमान बढ़ता है, परंतु उसकी शांति भंग हो जाती है। बाज़ार के जादू का प्रभाव रोकने का एक ही उपाय है कि हम खाली मन से बाज़ार न जाएँ बल्कि यह निर्णय करके जाएँ कि हमने अमुक वस्तु खरीदनी है। ऐसा करने से बाज़ार ग्राहक से कृतार्थ हो जाएगा। आवश्यकता के समय काम आना बाज़ार की वास्तविक कृतार्थता है।

4. खाली मन और बंद मन की समस्या-यदि ग्राहक का मन बंद है तो इसका अभिप्राय है कि मन शून्य हो गया है। मनुष्य का मन कभी बंद नहीं होता है। शून्य होने का अधिकार केवल ईश्वर का है। कोई भी मनुष्य परमात्मा के समान पूर्ण नहीं है, सभी अपूर्ण हैं। इसलिए मानव-मन में इच्छाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। इच्छाओं का विरोध करना व्यर्थ है। यह तो एक प्रकार से ठाट लगाकर मन को बंद करना है। ऐसा करके हम लोभ को नहीं जीतते, बल्कि लोभ हमें जीत लेता है।

जो लोग मन को बलपूर्वक बंद करते हैं। वे हठयोगी कहे जा सकते हैं। इससे हमारा मन संकीर्ण तथा क्षुद्र हो जाता है। प्रत्येक मानव अपूर्ण है, हमें इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए। सच्चा कर्म हमें अपूर्णता का बोध कराता है। अतः हमें मन को बलपूर्वक रोकना नहीं चाहिए अपितु बात को सुनना चाहिए। क्योंकि मन की सोच उद्देश्यपूर्ण होती है, परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हम मन को मनमानी करने की छूट दें, क्योंकि वह अखिल का एक अंग है। अतः हमें समाज का एक अंग बनकर रहना होता है।

5. भगत जी का उदाहरण लेखक के पड़ोस में चूरन बेचने वाले एक भगत जी रहते हैं। उनका यह नियम है कि वह प्रतिदिन छः आने से अधिक नहीं कमाएँगे। इसलिए वह अपना चूरन न थोक व्यापारी को बेचते हैं न ही ऑर्डर पर बनाते हैं। जब वे बाज़ार जाते हैं तो वह बाज़ार की सभी वस्तुओं को तटस्थ होकर देखते हैं। उनका मन बाज़ार के आकर्षण के कारण मोहित नहीं होता। वे सीधे पंसारी की दुकान पर जाते हैं जहाँ से वे काला नमक तथा जीरा खरीद लेते हैं और अपने घर लौट आते हैं।

भगत जी द्वारा बनाया गया चूरन हाथों-हाथ बिक जाता है। अनेक लोग भगत के प्रति सद्भावना प्रकट करते हुए उनका चूरन खरीद लेते हैं। जैसे ही भगत जी को छः आने की कमाई हो जाती है तो वे बचा हुआ चूरन बच्चों में बाँट देते हैं। वे हमेशा स्वस्थ रहते हैं। लेखक का कहना है कि भगत जी पर बाज़ार का जादू नहीं चलता। भले ही भगत जी अनपढ़ हैं और बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते परंतु उस पर बाज़ार के जादू का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। पैसा मानों उनसे भीख माँगता है कि मुझे ले लो परंतु भगत जी का मन बहुत कठोर है और उन्हें पैसे पर दया नहीं आती। वह छः आने से अधिक नहीं कमाना चाहते।।

6. पैसे की व्यंग्य शक्ति का प्रभाव पैसों में भी एक दारुण व्यंग्य शक्ति है। जब हमारे पास से मोटर गुज़रती है तो पैसा हम पर एक गहरा व्यंग्य कर जाता है तब मनुष्य अपने आप से कहता है कि उसके पास मोटरकार क्यों नहीं है? वह कहता है कि उसने मोटरकार वाले माता-पिता के घर जन्म क्यों नहीं लिया? पैसे की यह व्यंग्य-शक्ति अपने सगे-संबंधियों के प्रति कृतघ्न बना देती है, परंतु चूरन बेचने वाले भगत जी पर इस व्यंग्य-शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसके सामने व्यंग्य-शक्ति पानी-पानी हो जाती है। भगत जी में ऐसी कौन-सी शक्ति है जो पैसे के व्यंग्य के समक्ष अजेय बनी रहती है। हम उसे कुछ भी नाम दे सकते हैं, परंतु यह भी एक सच्चाई है कि जिस मन में तृष्णा होती है, उसमें शक्ति नहीं होती। जिस मनुष्य में संचय की तृष्णा और वैभव की चाह है, वह मनुष्य निश्चय से निर्बल है। इसी निर्बलता के कारण वह धन-वैभव का संग्रह करता है।

7. बाज़ार के बारे में भगत जी का दृष्टिकोण एक दिन भगत जी की लेखक के साथ मुलाकात हुई। दोनों में राम-राम हुई। लेखक यह देखकर दंग रह गया कि भगत जी सबके साथ हँसते हुए बातें कर रहे हैं। वे खुली आँखों से बाज़ार में आते-जाते हैं। वे बाज़ार की सभी वस्तुओं को देखते हैं। बाज़ार के सामान के प्रति उनके मन में आदर की भावना है। मानों वे सबको दे रहे हैं क्योंकि उनका मन भरा हआ है। वे खली आँख तथा संतष्ट मन से सभी फैंसी स्टोरों को छोडकर पंसारी की दकान से काला नमक और जीरा खरीदते हैं। ये चीज़े खरीदने पर बाज़ार उनके लिए शून्य बन जाता है, मानों उनके लिए बाज़ार का अस्तित्व नहीं है। चाहे चाँदनी चौक का आकर्षण उन्हें बुलाता रहे या चाँदनी बिछी रहे, परंतु वे सभी का कल्याण, मंगल चाहते हुए घर लौट आते हैं। उनके लिए बाज़ार का मूल्य तब तक है, जब तक वह काला नमक और जीरा नहीं खरीद लेते।

8. बाज़ार की सार्थकता-लेखक के अनुसार बाज़ार की सार्थकता वहाँ से कुछ खरीदने पर है। जो लोग केवल अपनी क्रय-शक्ति के बल पर बाज़ार में जाते हैं, वे बाज़ार से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकते और न ही बाज़ार उन्हें कोई लाभ पहुंचा सकता है। ऐसे लोगों के कारण ही बाज़ारूपन तथा छल-कपट बढ़ रहा है। यही नहीं, मनुष्यों में भ्रातृत्व का भाव भी नष्ट हो रहा है। इस मनोवृत्ति के कारण बाज़ार में केवल ग्राहक और विक्रेता रह जाते हैं। लगता है कि दोनों एक-दूसरे को धोखा देने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रकार का बाज़ार लोगों का शोषण करता है और छल-कपट को बढ़ावा देता है। अतः ऐसा बाज़ार मानव के लिए हानिकारक है। जो अर्थशास्त्र इस प्रकार के बाज़ार का पोषण करता है, वह अनीति पर टिका है। उसे एक प्रकार का मायाजाल ही कहेंगे। इसलिए बाज़ार की सार्थकता इसमें है कि वह ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करे और बेकार की वस्तुएँ न बेचे।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

कठिन शब्दों के अर्थ

आशय = प्रयोजन, मतलब। महिमा = महत्त्व, महत्ता। प्रमाणित = प्रमाण से सिद्ध । माया = धन-संपत्ति। मनीबैग = धन का थैला, पैसे की गरमी। पावर = शक्ति। माल-टाल = सामान। पजे ग पावर = खरीदने की शक्ति। फिजूल = व्यर्थ। असबाब = सामान। करतब = कला। दरकार = आवश्यकता, ज़रूरत। बेहया = बेशर्म, निर्लज्ज। हरज़ = हानि। आग्रह = खुशामद करना। तिरस्कार = अपमान। मूक = मौन। काफी = पर्याप्त। परिमित = सीमित। अतुलित = जिसकी तुलना न हो सके। कामना = इच्छा। विकल = व्याकुल । तृष्णा = लालसा। ईर्ष्या = जलन। त्रास = दुख, पीड़ा। बहुतायत = अधिकता। सेंक = तपन, गर्मी। खुराक = भोजन। कृतार्थ = अनुगृहीत। शून्य = खाली। सनातन = शाश्वत। निरोध = रोकना। राह = रास्ता, मार्ग।

अकारथ = व्यर्थ। व्यापक = विशाल, विस्तृत। संकीर्ण = संकरा। विराट = विशाल । क्षुद्र = तुच्छ, हीन। अप्रयोजनीय = बिना किसी मतलब के। खुशहाल = संपन्न। पेशगी = अग्रिम राशि। बँधे वक्त = निश्चित समय पर। मान्य = सम्माननीय। नाचीज़ = महत्त्वहीन, तुच्छ। अपदार्थ = महत्त्वहीन, जिसका अस्तित्व न हो। दारुण = भयंकर। निर्मम = कठोर। कुंठित = बेकार, व्यर्थ। लीक = रेखा। वंचित = रहित। कृतघ्न = अहसान को न मानने वाला। लोकवैभव = सांसारिक धन-संपत्ति। अपर = दूसरा। स्पिरिचुअल = आध्यात्मिक। प्रतिपादन = वर्णन। सरोकार = मतलब। स्पृहा = इच्छा। अकिंचित्कर = अर्थहीन। संचय = संग्रह। निर्बल = कमज़ोर। अबलता = निर्बलता, कमजोरी। कोसना = गाली देना। अभिवादन = नमस्कार। पसोपेश = असमंजस। अप्रीति = शत्रुता। ज्ञात = मालूम। विनाशक = नष्ट करने वाला, नाशकारी। सद्भाव = स्नेह तथा सहानुभूति की भावना। बेचक = बेचने वाला या व्यापारी। पोषण = पालन।

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पाठ के साथ

प्रश्न 1.
कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।
उत्तर:
लुट्टन ढोल की आवाज़ से अत्यधिक प्रभावित था। वह ढोल की एक-एक थाप को सुनकर उत्साहित हो उठता था। ढोल की प्रत्येक थाप उसे कुश्ती का कोई-न-कोई दाँव-पेंच अवश्य बताती थी, जिससे प्रेरणा लेकर वह कुश्ती करता था। ढोल की ध्वनियाँ उसे इस प्रकार के अर्थ संकेतित करती थीं

  • चट्-धा, गिड-धा – आ-जा, भिड़ जा।
  • चटाक्-चट्-धा – उठाकर पटक दे।
  • ढाक्-ढिना – वाह पढे।
  • चट-गिड-धा – डरना मत
  • धाक-धिना, तिरकट-तिना – दाँव को काट, बाहर निकल जा
  • धिना-धिना, धिक-धिना – चित्त करो, पीठ के बल पटक दो।

ये शब्द हमारे मन में भी उत्साह भरते हैं और संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं।

प्रश्न 2.
कहानी के किस-किस मोड़ पर लट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर:

  1. सर्वप्रथम माता-पिता के निधन के बाद लुट्टन अनाथ हो गया और उसकी विधवा सास ने ही उसका पालन-पोषण किया।
  2. श्यामनगर दंगल में लुट्टन ने चाँद सिंह को हरा दिया और राज-दरबार में स्थायी पहलवान बन गया।
  3. पंद्रह साल बाद राजा साहब स्वर्ग सिधार गए और विलायत से लौटे राजकुमार ने उसे राज-दरबार से हटा दिया और वह अपने गाँव लौट आया।
  4. गाँव के लोगों ने कुछ दिन तक लुट्टन का भरण-पोषण किया, परंतु बाद में उसका अखाड़ा बंद हो गया।
  5. गाँव में अनावृष्टि के बाद मलेरिया और हैजा फैल गया और लुट्टन के दोनों पुत्रों की मृत्यु हो गई।
  6. पुत्रों की मृत्यु के चार-पाँच दिन बाद रात को लुट्टन की भी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 3.
लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?
उत्तर:
लुट्टन न ने किसी गुरु से कुश्ती के दाँव-पेंच नहीं सीखे थे। उसे केवल ढोलक की उत्तेजक आवाज़ से ही प्रेरणा मिलती थी। ढोलक की थाप पड़ते ही उसकी नसें उत्तेजित हो उठती थीं। और उसका तन-बदन कुश्ती के लिए मचलने लगता था। श्यामनगर के मेले में उसने चाँद सिंह को ढोल की आवाज़ पर ही चित्त किया था। इसीलिए कुश्ती जीतने के बाद उसने सबसे पहले ढोल को प्रणाम किया। वह ढोल को ही अपना गुरु मानता था।

प्रश्न 4.
गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?
उत्तर:
लुट्टन पहलवान पर ढोल की आवाज़ का गहरा प्रभाव था। ढोल की आवाज़ उसके शरीर की नसों में उत्तेजना भर देती थी। अतः जिंदा रहने के लिए ढोल की आवाज़ उसके लिए जरूरी थी। यह आवाज़ गाँव के लोगों को भी उत्साह प्रदान करती थी। गाँव में महामारी के कारण लोगों में सन्नाटा छाया हुआ था। इसी ढोल की आवाज़ से लोगों को जिंदगी का अहसास होता था। लोग समझते थे कि जब लुट्टन का ढोल बज रहा है तो मौत से डरने की कोई बात नहीं है। अपने बेटों की मृत्यु के बावजूद भी वह मृत्यु के सन्नाटे को तोड़ने के लिए निरंतर ढोल बजाता रहा।

प्रश्न 5.
ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?
उत्तर:
ढोलक की आवाज़ से रात का सन्नाटा और डर कम हो जाता था तथा मलेरिया और हैज़ा से अधमरे लोगों में एक नई चेतना उत्पन्न हो जाती थी। बच्चे हों अथवा बूढ़े या जवान, सभी की आँखों के सामने दंगल का दृश्य नाचने लगता था और वे उत्साह से भर जाते थे। लुट्टन का सोचना था कि ढोलक की आवाज़ गाँव के लोगों में भी उत्साह उत्पन्न करती है और गाँव के फैले हुए सन्नाटे में जीवन का अहसास होने लगता था। भले ही लोग रोग के कारण मर रहे थे, लेकिन जब तक वे जिंदा रहते थे तब तक मौत से नहीं डरते थे। ढोलक की आवाज़ उनकी मौत के दर्द को सहनीय बना देती थी और वे आराम से मरते थे।

प्रश्न 6.
महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?
उत्तर:
महामारी फैलने के बाद परे गाँव की तस्वीर बदल गई थी। सूर्योदय होते ही पूरे गाँव में हलचल मच जाती थी। भले ही बीमार लोग रोते थे और हाहाकार मचाते थे फिर भी उनके चेहरों पर एक कांति होती थी। सवेरा होते ही गाँव के लोग अपने उन स्वजनों के पास जाते थे जो बीमार होने के कारण खाँसते और कराहते थे। वे जाकर उन्हें सांत्वना देते थे जिससे उनका जीवन उत्साहित हो उठता था।

परंतु सूर्यास्त होते ही सब लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में चले जाते थे। किसी की आवाज़ तक नहीं आती थी। रात के घने अंधकार में एक चुप्पी-सी छा जाती थी। बीमार लोगों के बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती थी। माताएँ अपने मरते हुए पुत्र को ‘बेटा’ भी नहीं कह पाती थी। रात के समय पूरे गाँव में कोई हलचल नहीं होती थी।

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प्रश्न 7.
कुश्ती या दंगल पहले लोगों या राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था
(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?
(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?
उत्तर:
पहले कुश्ती या दंगल करना एक आम बात थी। यह लोगों व राजाओं का प्रिय शौक था। राजा तथा अमीर लोग पहलवानों का बड़ा सम्मान करते थे। यहाँ तक कि गाँव की पंचायतें भी पहलवानों को आदर-मान देती थी। यह कुश्ती या दंगल उस समय मनोरंजन का श्रेष्ठ साधन था।
(क) अब पहलवानों को कोई सम्मान नहीं मिलता। केवल कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में ही दंगल आयोजित किए जाते हैं। अब राजा-महाराजाओं का जमाना भी नहीं है। उनका स्थान विधायकों, संसद-सदस्यों तथा मंत्रियों ने ले लिया है। उनके पास इन कामों के लिए कोई समय नहीं है। दूसरा, अब मनोरंजन के अन्य साधन प्रचलित हो गए हैं। कुश्ती का स्थान अब क्रिकेट, फुटबॉल आदि खेलों ने ले लिया है।

(ख) कुश्ती या दंगल की जगह अब क्रिकेट, बैडमिंटन, टेनिस, वॉलीबॉल, फुटबॉल, घुड़दौड़ आदि खेल प्रचलित हो गए हैं।

(ग) कुश्ती को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक उपाय अपनाए जा सकते हैं। गाँव की पंचायतें अखाड़े तैयार करके अनेक युवकों को इस ओर आकर्षित कर सकती हैं। दशहरा, होली, दीवाली आदि पर्यों पर कुश्ती आदि का आयोजन किया जा सकता है। सरकार की ओर से भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पहलवानों को पर्याप्त धन-राशि तथा सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। इसी प्रकार सेना, रेलवे, बैंक, एयर लाइंज आदि में भी पहलवानों को नौकरी देकर कुश्ती को बढ़ावा दिया जा सकता है। हाल ही में जिन पहलवानों ने मैडल जीते थे, उनको सरकार की ओर से अच्छी सरकारी नौकरियाँ दी गई हैं और अच्छी धन-राशि देकर सम्मानित किया गया है।

प्रश्न 8.
आशय स्पष्ट करें-
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
उत्तर:
यहाँ लेखक अमावस्या की घनी काली रात में चमकते व टूटते हुए तारों की रोशनी पर प्रकाश डालता है। जब भी कोई तारा टूट कर जमीन पर गिरता तो ऐसा लगता था मानों वह महामारी से पीड़ित लोगों की दयनीय स्थिति पर सहानुभूति प्रकट करने के लिए आकाश से टूटकर पृथ्वी की ओर दौड़ा चला आ रहा है। लेकिन वह बेचारा कर भी क्या सकता था। दूरी होने के कारण उसकी ताकत और रोशनी नष्ट हो जाती थी। आकाश के दूसरे तारे उसकी असफलता को देखकर मानों हँसने लगते थे। भाव यह है कि आकाश से एक-आध तारा टूटकर गिरता था, किंतु अन्य तारे अपने स्थान पर खड़े-खड़े चमकते रहते थे।

प्रश्न 9.
पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ में ऐसे अनेक स्थल हैं जहाँ पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
1. अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। आशय यह है कि रात को ओस पड़ रही थी। लेखक ने इसे लोगों की दयनीय स्थिति के साथ जोड़ दिया है। लेखक यहाँ यह कहना चाहता है कि जाड़े की अँधेरी रात में ओस के बिंदु रात के आँसुओं के समान दिखाई दे रहे थे। संपूर्ण वातावरण में दुख के कारण मौन छाया हुआ था। यहाँ लेखक ने अँधेरी रात का मानवीकरण किया है जो कि गाँव के दुख से दुखी होकर रो रही है।

2. रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती…..
आशय यह है कि महामारी ने रात को भी भयानक बना दिया था और वह भयानक रूप धारण करके गुजरती जा रही थी। यहाँ पुनः रात्रि का मानवीकरण किया गया है।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसी किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे/करेंगी?
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ में मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति का वर्णन किया गया है। डेंगू बुखार के कारण लगभग ऐसी स्थिति पूरे देश में उत्पन्न हो गई थी। अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान के डॉक्टर भी इसकी चपेट में आ गए थे। यह बीमारी एक विशेष प्रकार के मच्छर के काटने से होती है। यदि हमारे गाँव में इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी तो मैं निम्नलिखित उपाय करूँगा

  • मैं गाँव में स्वच्छता अभियान चलाऊँगा और लोगों को समझाऊँगा कि वे कहीं पर पानी इकट्ठा न होने दें।
  • लोगों को डेंगू से बचने के उपाय बताऊँगा।
  • पंचायत से मिलकर गाँव में रक्तदान शिविर लगवाने का प्रयास करूँगा।
  • डेंगू का शिकार बने लोगों की सूचना सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों को दूंगा।

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प्रश्न 2.
ढोलक की थाप मृत गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी-कला से जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर:
कला और जीवन का गहरा संबंध है। कला के अनेक भेद हैं। काव्य और संगीत श्रेष्ठ कलाएँ मानी गई हैं। कविताएँ निराश योद्धाओं में भी प्राण भर देती हैं। वीरगाथा काल का सारा साहित्य इसी प्रकार का है। चंदबरदाई अपनी कविता द्वारा राजा पृथ्वीराज चौहान और उसकी सेना को उत्साहित करते रहते थे। इसी प्रकार बिहारी ने अपने एक दोहे द्वारा राजा जयसिंह को अपनी नवोढ़ा पत्नी को छोड़कर अपने राजकाज को संभालने के योग्य बनाया। कवि के एक पत्र की दो पंक्तियों ने महाराणा प्रताप के इस निश्चय को दृढ़ कर दिया कि वह सम्राट अकबर के सामने नहीं झुकेगा। आज भी आल्हा काव्य को सुनकर लोगों में जोश भर जाता है। यही नहीं, लोक गीतों को सुनकर लोगों के पैर अपने-आप थिरकने लगते हैं।

प्रश्न 3.
चर्चा करें कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं है।
उत्तर:
केवल सरकारी सहायता से ही कलाओं का विकास नहीं होता। शेष कलाकार किसी का आश्रय पाकर कलाकृतियाँ नहीं बनाते। ग्रामीण अंचल के ऐसे अनेक कलाकार हैं, जो स्वयं अपनी कला के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्हें किसी का आश्रय नहीं लेना पड़ता। लोकतंत्र में यह आवश्यक है कि जनता के सहयोग से ही कलाओं का विकास करें। फिर भी समाज द्वारा कलाकारों को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए-
→ चिकित्सा
→ क्रिकेट
→ न्यायालय
→ या अपनी पसंद का कोई क्षेत्र
उत्तर:
कुश्ती से जुड़ी शब्दावली
अखाड़ा, दंगल, ताल ठोकना, दाँव काटना, चित्त करना, पढे।

चिकित्सा-डॉक्टर, मैडीसन, अस्पताल, वार्ड ब्वाय, ओ०पी०डी०, नर्सिंग होम, ओव्टी०, मलेरिया औषधि आदि।
क्रिकेट-बॉलिंग, बैटिंग, एल०बी०डब्ल्यू, विकेट, फालो-ऑन, टॉस जीतना, नो बॉल, क्लीन बोल्ड आदि।
न्यायालय-एडवोकेट, जज, कचहरी, सम्मन, आरोप-पत्र, आरोपी कैदी आदि।
संगीत-लय, ताल, वाद्य यंत्र, हारमोनियम, तबला, साज, गायन आदि।

प्रश्न 2.
पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई सर्जनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों, वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं।
→ फिर बाज़ की तरह उस पर टूट पड़ा।
→ राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
→ पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
इन विशिष्ट भाषा-प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
राजा साहब से अनुमति लेकर लुट्टन पहलवान अखाड़े में उतरा। पहले तो चाँद सिंह ने अनेक दाँव लगाए, परंतु ढोलक की आवाज़ सुनते ही लुट्टन उस पर बाज़ की तरह टूट पड़ा। देखते-ही-देखते उसने अपना दाँव लगाया। परंतु वह चाँद सिंह को चित्त नहीं कर पाया। ढोल अभी भी बज रहा था। लुट्टन पहलवान के उत्साह ने जोश मारा और उसने अगले ही दाँव में चाँद सिंह को चित्त कर दिया। चारों ओर लुट्टन की जय-जयकार होने लगी। इधर राजा साहब की स्नेह-दृष्टि लुट्टन पर पड़ी। अतः शीघ्र ही उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लग गए। अब लुट्टन का जीवन सुख से कट रहा था। परंतु अचानक उसकी पत्नी दो पहलवान पुत्रों को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई।

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प्रश्न 3.
जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई है? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है?
उत्तर:
क्रिकेट एक लोकप्रिय खेल है। हमारे देश में लगभग सारा वर्ष ही क्रिकेट के मैच होते रहते हैं। इसकी कमेंट्री के लिए दो-तीन व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है जो मैच की कमेंट्री लगातार करते रहते हैं। इस कमेंट्री का प्रसारण रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा किया जाता है।

प्रस्तुत पाठ में कुश्ती की भी कमेंट्री की गई है। दोनों में समानता यह है कि दर्शक अपनी-अपनी टीम के खिलाड़ियों के उत्साह वर्धन के लिए तालियाँ बजाते हैं और खूब चीखते-चिल्लाते हैं। प्रायः दर्शक दो भागों में बँट जाते हैं। परंतु दोनों की कमेंट्री में काफी अंतर दिखाई देता है। कुश्ती में कोई निश्चित कामेंटेटर नहीं होता और न ही कमेंट्री करने की कोई उचित व्यवस्था होती है। कुश्ती की कमेंट्री के प्रसारण की भी कोई उचित व्यवस्था नहीं होती। इसलिए यह खेल अधिक लोकप्रिय नहीं हो पाया।

HBSE 12th Class Hindi पहलवान की ढोलक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पहलवान की ढोलक के आधार पर लट्टन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में लुट्टन ही प्रमुख पात्र है, बल्कि वह कथानक का केंद्र-बिंदु है। उसी के चरित्र के चारों ओर कथानक घूमता रहता है। अन्य शब्दों में हम उसे कहानी का नायक भी कह सकते हैं। नौ वर्ष की आयु में लुट्टन अनाथ हो गया था। शादी होने के कारण उसकी सास ने उसका लालन-पालन किया। गाँव में वह गाएँ चराया करता था और उनका धारोष्ण दध पीता था। किशोरावस्था से ही व्यायाम करने लगा जिससे उसकी भजाएँ तथा सीना चौड़ा हो गया। अपने क्षेत्र में वह एक अच्छा पहलवान समझा जाता था। वह बहुत ही साहसी और वीर पुरुष था। एक पहलवान के रूप में उसने पंजाब के प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को हराया तथा राज-पहलवान का स्थान अर्जित किया। यही नहीं, उसने काले खाँ को भी चित्त करके लोगों के भ्रम को दूर कर दिया।

आरंभ से ही लुट्टन एक भाग्यहीन व्यक्ति था। बचपन में ही उसके माता-पिता चल बसे, बाद में उसके दोनों बेटे महामारी का शिकार बन गए। यही नहीं, राजा श्यामानंद के स्वर्गवास होने पर उसकी दुर्दशा हो गई। परंतु लुट्टन ने गाँव में रहते हुए प्रत्येक परिस्थिति का सामना किया। उसने महामारी की विभीषिका का डटकर सामना किया और सारी रात ढोल बजाकर लोगों को महामारी से लड़ने के लिए उत्साहित किया। वह एक संवेदनशील व्यक्ति था, जो सुख-दुख में गाँव वालों का साथ देता रहा।

प्रश्न 2.
महामारी से पीड़ित गाँव की दुर्दशा कैसी थी? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
गाँव में महामारी ने भयानक रूप धारण कर लिया था। मलेरिया और हैजे के कारण प्रतिदिन दो-चार मौतें हो जाती थीं। सूर्योदय के बाद दिन के समय लोग काँखते-कूँखते और कराहते रहते थे। खाँसी से उनका बुरा हाल था। रात के समय उनमें बोलने की शक्ति भी नहीं होती थी। कभी-कभी “हरे राम” “हे भगवान” की आवाज़ आ जाती थी। कमज़ोर बच्चे माँ-माँ कहकर पुकारते थे। परंतु रात के समय भयानक चुप्पी छा जाती थी। ऐसा लगता था कि मानो अँधेरी रात आँसू बहा रही है। दूसरी ओर, सियार, उल्लू मिलकर रोते थे जिससे रात और अधिक भयानक हो जाती थी।

प्रश्न 3.
रात के भयानक सन्नाटे में पहलवान की ढोलक का क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर:
शाम होते ही लुट्टन पहलवान अपनी ढोलक बजाना शुरू कर देता था। ढोलक की आवाज़ में एक आशा का स्वर था। मानो वह रात भर महामारी की भयंकरता को ललकारता रहता था। ढोलक की आवाज़ मृत्यु से जूझने वाले लोगों के लिए संजीवनी शक्ति का काम करती थी।

प्रश्न 4.
लट्टन अपना परिचय किस प्रकार देता था?
उत्तर:
लुट्टन ने अपने क्षेत्र में अनेक पहलवानों को धूल चटा दी थी। इसलिए वह अपने-आपको होल इंडिया (भारत) का प्रसिद्ध पहलवान कहता था। वस्तुतः उसमें उत्साह की भावना अधिक थी। वह अपने जिले को ही पूरा देश समझता था। उसके कहने का भाव था कि वह एक प्रसिद्ध पहलवान है, जिसने अनेक पहलवानों को हराया है।

प्रश्न 5.
लुटन सिंह ने चाँदसिंह को किस प्रकार हराया?
उत्तर:
लुट्टन सिंह और चाँदसिंह के बीच हुई कुश्ती अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी। यदि लुट्टन सिंह यह कुश्ती हार जाता तो उसका जीवन मिट्टी में मिल जाता और चाँद सिंह को राजदरबार में सम्मानित किया जाता। लुट्टन सिंह ने ढोलक की थाप की आवाज के अनुकूल दाँव पेंच लगाए। कुछ मिनटों के संघर्ष के बाद लुट्टन सिंह ने चाँद सिंह को गर्दन से पकड़ा और उठाकर चित्त कर दिया। जो लोग चाँद सिंह की जय-जयकार कर रहे थे, उनकी बोलती बन्द हो गई और अब जब लोग लुट्टन सिंह की जय-जयकार करने लगे तो राजा ने भी लुट्टन सिंह को कहा कि उसने मिट्टी की लाज रख ली।

प्रश्न 6.
श्यामनगर के दंगल ने किस प्रकार लुट्टन को कुश्ती लड़ने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर:
श्यामनगर के राजा श्यामानंद कुश्ती के बड़े शौकीन थे। राजा साहब ने ही वहाँ दंगल का आयोजन किया था। लुट्टन केवल दंगल देखने के लिए ही गया था। लेकिन “शेर के बच्चे” की उपाधि प्राप्त पंजाब के पहलवान चाँद सिंह ने सबको चुनौती दे डाली, परंतु कोई भी पहलवान उससे कुश्ती करने के लिए तैयार नहीं हुआ। इस प्रकार चाँद सिंह गर्जना करता हुआ किलकारियाँ मारने लगा। ढोलक की आवाज़ सुनकर लुट्टन की नस-नस में उत्साह भर गया और उसने चाँद सिंह को चुनौती दे डाली।

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प्रश्न 7.
लुट्टन द्वारा चाँद सिंह को चुनौती देने से चारों ओर खलबली क्यों मच गई?
उत्तर:
जब लुट्टन ने चाँद सिंह को चुनौती दी और अखाड़े में आया तो चाँद सिंह उसे देखकर मुस्कुराया। वह बाज की तरह लुट्टन पर टूट पड़ा। चारों ओर दर्शकों में खलबली मच गई। लोग लुट्टन की ताकत से अपरिचित थे। अनेक लोग यह सोच रहे थे कि यह नया पहलवान चाँद सिंह के हाथों मारा जाएगा। कुछ लोग तो कह रहे थे कि यह पागल है, अभी मारा जाएगा। इसलिए दंगल के चारों ओर खलबली मच गई।

प्रश्न 8.
राजा साहब ने लुट्टन को कुश्ती लड़ने से क्यों रोका?
उत्तर:
राजा साहब लुट्टन की शक्ति को नहीं जानते थे। उन्होंने उसे पहली बार देखा था। दूसरा राजा साहब चाँद सिंह को नते थे। उन्हें लगा कि यह व्यक्ति अपनी ना-समझी और अनजाने में चाँद सिंह के हाथों मारा जाएगा। इसलिए राजा साहब ने उस पर दया करते हुए उसे कुश्ती लड़ने से रोका।

प्रश्न 9.
लुट्टन और चाँद सिंह में से लोग किसका समर्थन कर रहे थे और क्यों?
उत्तर:
लुट्टन और चाँद सिंह की कुश्ती में अधिकांश लोग और कर्मचारी चाँद सिंह का समर्थन कर रहे थे। वे चाँद सिंह की शक्ति से परिचित थे। लेकिन लुट्टन को कोई नहीं जानता था। चाँद सिंह पंजाब का पहलवान था और उसे “शेर के बच्चे” की उपाधि मिल चुकी थी। लोगों का विश्वास था कि चाँद सिंह लुट्टन को धराशायी कर देगा।

प्रश्न 10.
कुश्ती में लुट्टन को किसका समर्थन मिल रहा था?
उत्तर:
दंगल में जुड़े सभी लोग चाँद सिंह का ही समर्थन कर रहे थे। केवल ढोल की आवाज़ ही लुट्टन को कुश्ती लड़ने की प्रेरणा दे रही थी और उसका उत्साह बढ़ा रही थी। वह ढोल की आवाज़ के मतलब समझ रहा था। मानों कह रहा था दाव काटो बाहर हो जा। उठा पटक दे! चित करो, वाह बहादुर आदि। इस प्रकार ढोल उसकी हिम्मत को बढ़ा रहा था।

प्रश्न 11.
चाँद सिंह को हराने के बाद राजा साहब ने लुट्टन के साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
राज कर्मचारियों के विरोध के बावजूद राजा साहब ने लुट्टन को लुट्टन सिंह नाम दिया और उसे अपने दरबार में राज पहलवान नियुक्त कर दिया। साथ ही उसे राज पहलवान की सुविधाएँ भी प्रदान की।

प्रश्न 12.
राज पंडित तथा क्षत्रिय मैनेजर ने लट्टन सिंह को राज पहलवान बनाने का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
राज पंडित और मैनेजर दोनों ही जातिवाद में विश्वास रखते थे। वे चाँद सिंह का इसलिए समर्थन कर रहे थे कि वह क्षत्रिय था। जब लुट्टन को लुट्टन सिंह नाम दिया गया तो राज पंडितों ने मुँह बिचकाकर कहा “हुजूर! जाति का ……. सिंह……।” क्षत्रिय मैनेजर ने भी लुट्टन सिंह की जाति को आधार बनाकर यह कहा कि यह तो सरासर अन्याय है। इसलिए राजा साहब को कहना पड़ा कि उसने क्षत्रिय का काम किया है। इसलिए उसे राज पहलवान बनाया गया है।

प्रश्न 13.
लुट्टन सिंह के जीवन की त्रासदी का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सर्वप्रथम माता-पिता के निधन के बाद लुट्टन अनाथ हो गया और उसकी विधवा सास ने ही उसका पालन-पोषण किया। श्यामनगर दंगल में लुट्टन ने चाँद सिंह को हरा दिया और राज-दरबार में स्थायी पहलवान बन गया। पंद्रह साल बाद राजा साहब स्वर्ग सिधार गए और विलायत से लौटे राजकुमार ने उसे राज-दरबार से हटा दिया और वह अपने गाँव लौट आया। गाँव के लोगों ने कुछ दिन तक लुट्टन का भरण-पोषण किया, परंतु बाद में उसका अखाड़ा बंद हो गया। गाँव में अनावृष्टि के बाद मलेरिया और हैजा फैल गया और लुट्टन के दोनों पुत्रों की मृत्यु हो गई। पुत्रों की मृत्यु के चार-पाँच दिन बाद रात को लुट्टन की भी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 14.
मेले में जाकर लुट्टन का व्यवहार कैसा होता था?
उत्तर:
मेले में जाते ही लुट्टन सिंह बच्चों के समान हरकतें करने लगता था। वह लंबा चोगा पहनकर हाथी की मस्त चाल चलता था। मज़ाक-मज़ाक में वह दो सेर रसगुल्ले खा जाता था और आठ-दस पान एक साथ मुँह में रखकर चबाता था। वह अपनी आँखों पर रंगीन चश्मा धारण करता था और हाथ में खिलौने लेकर मुँह से पीतल की सीटी बजाता था।

प्रश्न 15.
एक पिता के रूप में लुट्टन का व्यवहार कैसा था?
उत्तर:
लुट्टन सिंह एक सुयोग्य पिता कहा जा सकता है। उसने अपने दोनों बेटों का बड़ी सावधानी से पालन-पोषण किया। पत्नी की मृत्यु के बाद बेटों का दायित्व उसी के कंधों पर था। उसने अपने बेटों को पहलवानी के गुर सिखाए। महामारी का शिकार बनने के बाद भी वह अपने बेटों का उत्साह बढ़ाता रहा। जब उसके बेटों की मृत्यु हो गई तो उसने बड़े सम्मान के साथ उनके शवों को नदी में विसर्जित किया।।

प्रश्न 16.
लुट्टन सिंह को राज-दरबार क्यों छोड़ना पड़ा?
उत्तर:
राजा साहब का स्वर्गवास होने पर उनका बेटा विलायत से पढ़कर लौटा था। वह कुश्ती को एक बेकार शौक समझता था। क्योंकि उसे घुड़दौड़ का शौक था। क्षत्रिय मैनेजर और राज पुरोहित भी नए राजा की हाँ-में-हाँ मिला रहे थे। इसलिए नए राजा ने लुट्टन की आजीविका की चिंता न करते हुए उसे राज-दरबार से निकाल दिया।

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प्रश्न 17.
लुट्टन सिंह ढोल को अपना गुरु क्यों मानता था?
उत्तर:
लुट्टन सिंह ने अपने क्षेत्र के पहलवानों के साथ कुश्ती करते हुए कुश्ती के सारे दाँव-पेंच सीखे थे। लेकिन ढोल की थाप ही उसके उत्साह को बढ़ाती थी और उसे कुश्ती जीतने की प्रेरणा देती थी। वह ढोल का बड़ा आदर करता था। ढोल की थाप का अनुसरण करते हुए ही उसने “शेर के बच्चे” चाँद सिंह को धूल चटाई और नामी पहलवान काले खाँ को हराया। चाँद सिंह को हराने के बाद सबसे पहले वह ढोल के पास आया और उसे प्रणाम किया और हमेशा के लिए उसे अपना गुरु मान लिया।

प्रश्न 18.
‘मनुष्य का मन शरीर से अधिक महत्त्वपूर्ण है। दंगल में लुट्टन ने इस उक्ति को कैसे सिद्ध कर दिखाया?
उत्तर:
लुट्टन ने जवानी के जोश में नामी पहलवान चाँद सिंह उर्फ “शेर के बच्चे” को दंगल में ललकार दिया। सभी लोग, राजा तथा पहलवान यही सोचते थे कि लुट्टन सिंह चाँद सिंह के सामने टिक नहीं पाएगा। आज तक किसी ने भी उसे श्यामनगर के दंगल में भाग लेते हुए नहीं देखा था। राजा साहब तथा अन्य लोगों ने उसे बहुत समझाया कि वह चाँद सिंह का मुकाबला न करे। परंतु लुट्टन ने अपने मन की आवाज़ को सुना और यह सिद्ध कर दिखाया कि मनुष्य का मन उसके शरीर से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 19.
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
‘पहलवान की ढोलक’ सोद्देश्य रचना है। इस कहानी में लेखक ने मानवीय मूल्यों का वर्णन किया है। कहानी का नायक लुट्टन पहलवान है। वह व्यक्ति दुःखों व मुसीबतों की चिंता किए बिना दूसरों के कल्याण व भलाई की बात सोचता है। गांव में मलेरिया फैल जाने पर उसने अपनी ढोलक की आवाज से गांव के लोगों के दिलों में ऐसा साहस भर दिया कि उन्होंने मलेरिया और हैजा जैसी बीमारियों का मुकाबला किया। ढोलक की थाप से लोग जाड़े भरी रात भी काट लेते थे। उसने चाँद सिंह जैसे पहलवान को हराकर लोगों के दिल जीत लिए थे किन्तु मन में जरा भी अहंकार नहीं था। लुट्टन ने यह भी बताया कि जहाँ व्यक्ति का आदर मान न हो वहाँ एक क्षण भी नहीं ठहरना चाहिए। दुःख व संकट की घड़ी में भी मानव को साहस रखना चाहिए। इस प्रकार सार रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कहानी में मानवीय मूल्यों को उजागर करना ही लेखक का मूल उद्देश्य है।

प्रश्न 20.
राजदरबार से निकाले जाने के बाद लट्टन पहलवान और उसके बेटों की आजीविका कैसे चलती थी?
उत्तर:
राजा साहब का अचानक स्वर्गवास हो गया और नए राजकुमार ने विलायत से लौटकर राज-काज अपने हाथ में ले लिया। राजकुमार ने प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने की दृष्टि से तीनों पहलवानों की छुट्टी कर दी। अतः तीनों बाप-बेटे ढोल कंधे पर रखकर अपने गाँव लौट आए। गाँव वाले किसानों ने इनके लिए एक झोंपड़ी डाल दी, जहाँ ये गाँव के नौजवानों व ग्वालों को कुश्ती सिखाने लगे। खाने-पीने के खर्च की ज़िम्मेदारी गाँव वालों ने ली थी। किंतु गाँव वालों की व्यवस्था भी ज़्यादा दिन न चल सकी। अतः अब लुट्टन के पास सिखाने के लिए अपने दोनों पुत्र ही थे।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘पहलवान की ढोलक’ रचना के लेखक का नाम क्या है?
(A) महादेवी वर्मा
(B) फणीश्वर नाथ रेणु
(C) धर्मवीर भारती
(D) विष्णु खरे
उत्तर:
(B) फणीश्वर नाथ रेणु

2. ‘पहलवान की ढोलक’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी
(B) निबंध
(C) रेखाचित्र
(D) संस्मरण
उत्तर:
(A) कहानी

3. फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1923 में
(B) सन् 1922 में
(C) सन् 1921 में
(D) सन् 1920 में
उत्तर:
(C) सन् 1921 में

4. फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म किस राज्य में हुआ?
(A) मध्य प्रदेश
(B) उत्तर प्रदेश
(C) उत्तराखण्ड
(D) बिहार
उत्तर:
(D) बिहार

5. फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म बिहार के किस जनपद में हुआ?
(A) पटना
(B) अररिया
(C) सहरसा
(D) मुज़फ्फरगढ़
उत्तर:
(B) अररिया

6. फणीश्वर नाथ रेणु किस प्रकार के कथाकार हैं?
(A) महानगरीय
(B) ऐतिहासिक
(C) आंचलिक
(D) पौराणिक
उत्तर:
(C) आँचलिक

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7. रेणु के जन्म स्थान का नाम क्या है?
(A) रामपुर
(B) विराटपुर
(C) मेरीगंज
(D) औराही हिंगना
उत्तर:
(D) औराही हिंगना

8. रेणु ने किस वर्ष स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया?
(A) 1942
(B) 1943
(C) 1946
(D) 1933
उत्तर:
(A) 1942

9. रेणु का निधन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1987 में
(B) सन् 1977 में
(C) सन् 1976 में
(D) सन् 1978 में
उत्तर:
(B) सन् 1977 में

10. रेणु किस विचारधारा के साहित्यकार थे?
(A) प्रगतिवादी
(B) प्रयोगवादी
(C) छायावादी
(D) स्वच्छन्दतावादी
उत्तर:
(A) प्रगतिवादी

11. किस उपन्यास के प्रकाशन से रेणु को रातों-रात ख्याति प्राप्त हो गई?
(A) परती परिकथा
(B) मैला आँचल
(C) दीर्घतपा
(D) जुलूस
उत्तर:
(B) मैला आँचल

12. ‘मैला आँचल’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1956 में
(B) सन् 1955 में
(C) सन् 1954 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(C) सन् 1954 में

13. रेणु के उपन्यास ‘परती परिकथा’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1954 में
(B) सन् 1956 में
(C) सन् 1957 में
(D) सन् 1955 में
उत्तर:
(C) सन् 1957 में

14. रेणु के उपन्यास ‘दीर्घतपा’ का प्रकाशन वर्ष क्या है?
(A) सन् 1963 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1961 में
(D) सन् 1960 में
उत्तर:
(A) सन् 1963 में

15. ‘कितने चौराहे’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी-संग्रह
(B) निबंध-संग्रह
(C) उपन्यास
(D) नाटक
उत्तर:
(C) उपन्यास

16. ‘कितने चौराहे’ का प्रकाशन वर्ष क्या है?
(A) सन् 1965
(B) सन् 1966
(C) सन् 1964
(D) सन् 1967
उत्तर:
(B) सन् 1966

17. ‘ठुमरी’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी-संग्रह
(B) निबंध-संग्रह
(C) उपन्यास
(D) संस्मरण
उत्तर:
(A) कहानी-संग्रह

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18. ‘ठुमरी’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1954 में
(B) सन् 1965 में
(C) सन् 1952 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(D) सन् 1957 में

19. रेणु जी का कौन-सा उपन्यास उनके मरणोपरांत प्रकाशित हुआ?
(A) जुलूस
(B) कितने चौराहे
(C) पलटू बाबूरोड
(D) दीर्घतपा
उत्तर:
(C) पलटू बाबूरोड

20. ‘ऋण जल धन जल’ किस विधा की रचना है?
(A) संस्मरण
(B) कहानी-संग्रह
(C) रिपोर्ताज़
(D) निबंध-संग्रह
उत्तर:
(A) संस्मरण

21. इनमें से कौन-सी रचना संस्मरण विधा की है?
(A) नेपाली क्रांति कथा
(B) अग्निखोर
(C) पटना की बाढ़
(D) वन तुलसी की गंध
उत्तर:
(D) वन तुलसी की गंध

22. रेणु की किस कहानी पर लोकप्रिय फिल्म बनी?
(A) ठुमरी
(B) पहलवान की ढोलक
(C) तीसरी कसम
(D) अग्निखोर
उत्तर:
(C) तीसरी कसम

23. ‘नेपाली क्रांति कथा’ और ‘पटना की बाढ़’ किस विधा की रचनाएँ हैं?
(A) रिपोर्ताज़
(B) संस्मरण
(C) कहानी-संग्रह
(D) उपन्यास
उत्तर:
(A) रिपोर्ताज़

24. ‘पहलवान की ढोलक’ मुख्य रूप से किसका वर्णन करती है?
(A) लुट्टन पहलवान की गरीबी का
(B) लुट्टन पहलवान की जिजीविषा और हिम्मत का
(C) लुट्टन की त्रासदी का ।
(D) लुट्टन की निराशा का
उत्तर:
(B) लुट्टन पहलवान की जिजीविषा और हिम्मत का

25. लट्टन कितनी आयु में अनाथ हो गया था?
(A) 7 वर्ष की आयु में
(B) 8 वर्ष की आयु में
(C) 10 वर्ष की आयु में
(D) 9 वर्ष की आयु में
उत्तर:
(D) 9 वर्ष की आयु में

26. किस पहलवान को शेर का बच्चा कहा गया?
(A) सूरज सिंह
(B) तारा सिंह
(C) धारा सिंह
(D) चाँद सिंह
उत्तर:
(D) चाँद सिंह

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27. गाँव में कौन-से रोग फैले हुए थे?
(A) डेंगू
(B) मलेरिया और हैज़ा
(C) तपेदिक
(D) मधुमेह
उत्तर:
(B) मलेरिया और हैज़ा

28. ढोलक की आवाज़ गाँव में क्या करती थी?
(A) संजीवनी शक्ति का काम
(B) भय
(C) निराशा
(D) घबराहट
उत्तर:
(A) संजीवनी शक्ति का काम

29. ‘शेर के बच्चे के गुरु का नाम था-
(A) दारा सिंह
(B) अजमेर सिंह
(C) समर सिंह
(D) बादल सिंह
उत्तर:
(D) बादल सिंह

30. लुट्टन पहलवान के कितने पुत्र थे?
(A) तीन
(B) चार
(C) दो
(D) एक
उत्तर:
(C) दो

31. लट्टन ने चाँद सिंह को कहाँ के दंगल में हराया था?
(A) राम नगर के
(B) प्रेम नगर के
(C) श्याम नगर के
(D) कृष्णा नगर के
उत्तर:
(C) श्याम नगर के

32. पंजाबी जमायत किसके पक्ष में थी?
(A) काले खाँ के
(B) चाँदसिंह के
(C) लुट्टन के
(D) छोटे सिंह के
उत्तर:
(B) चाँदसिंह के

33. पहलवान क्या बजाता था?
(A) वीणा
(B) तबला
(C) मृदंग
(D) ढोलक
उत्तर:
(D) ढोलक

34. लुट्टन पहलवान अपने दोनों हाथों को दोनों ओर कितनी डिग्री की दूरी पर फैलाकर चलने लगा था?
(A) 30 डिग्री
(B) 60 डिग्री
(C) 45 डिग्री
(D) 75 डिग्री
उत्तर:
(C) 45 डिग्री

35. लुट्टन को किसका आश्रय प्राप्त हो गया?
(A) ज़मींदार का
(B) ग्राम पंचायत का
(C) राजा साहब का
(D) सरकार का
उत्तर:
(C) राजा साहब का

36. दंगल का स्थान किसने ले लिया था?
(A) क्रिकेट ने
(B) फुटबाल ने
(C) घोड़ों की रेस ने
(D) भाला फेंक ने
उत्तर:
(C) घोड़ों की रेस ने

37. लुट्टन के दोनों पुत्रों की मृत्यु किससे हुई?
(A) करंट लगने से
(B) साँप के काटने से
(C) सड़क दुर्घटना से
(D) मलेरिया-हैजे से
उत्तर:
(D) मलेरिया-हैजे से

38. रात्रि की भीषणता को कौन ललकारती थी?
(A) चाँदनी
(B) बिजली
(C) पहलवान की ढोलक
(D) भावुकता
उत्तर:
(C) पहलवान की ढोलक

39. लट्टन पहलवान कितने वर्ष तक अजेय रहा?
(A) दस वर्ष
(B) पंद्रह वर्ष
(C) अठारह वर्ष
(D) बीस वर्ष
उत्तर:
(B) पंद्रह वर्ष

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40. लुट्टन सिंह ने दूसरे किस नामी पहलवान को पटककर हरा दिया था?
(A) अफजल खाँ को
(B) काला खाँ को
(C) कल्लू खाँ को
(D) अब्दुल खाँ को
उत्तर:
(B) काला खाँ को

पहलवान की ढोलक प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] जाड़े का दिन। अमावस्या की रात-ठंडी और काली। मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव भयात शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोंपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य! अँधेरा और निस्तब्धता!

अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे। [पृष्ठ-108]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी साहित्य के महान आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। इसमें लेखक ने अपनी आंचलिक रचनाओं के माध्यम से ग्रामीण लोक संस्कृति तथा लोकजीवन का लोकभाषा के माध्यम से प्रभावशाली वर्णन किया है। प्रस्तुत कहानी में गाँव, अंचल तथा संस्कृति का सजीव चित्रण किया गया है। यहाँ लेखक मलेरिया तथा हैजे से पीड़ित गाँव की एक अमावस्या की रात का वर्णन करते हुए कहता है कि-

व्याख्या-भयंकर सर्दी का दिन था। अमावस्या की घनी काली रात थी। ठंड इस काली रात को और अधिक काली बना रही थी। पूरा गाँव मलेरिया तथा हैजे से ग्रस्त था। संपूर्ण गाँव भय से व्यथित बच्चे के समान थर-थर काँप रहा था। गाँव का प्रत्येक व्यक्ति सर्दी का शिकार बना हआ था। पुरानी तथा उजड़ी हुई बाँस तथा घास-फूस से बनी झोंपड़ियों में अँधेरा छाया हुआ था, साथ ही मौन का राज्य भी उनमें मिला हुआ था। चारों ओर अंधकार तथा चुप्पी थी। कहीं किसी प्रकार की हलचल सुनाई नहीं देती थी।

लेखक रात का मानवीकरण करते हुए कहता है कि ऐसा लगता था कि मानों अँधेरी काली रात चुपचाप रो रही है और अपनी चुप्पी को छिपाने का प्रयास कर रही है। ऊपर आकाश में टिमटिमाते हुए तारे अपनी रोशनी फैलाने का प्रयास कर रहे थे। ज़मीन पर कहीं रोशनी का नाम तक दिखाई नहीं दे रहा था। दुखी लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के लिए यदि कोई संवेदनशील तारा ज़मीन की ओर जाने का प्रयास भी करता था तो उसका प्रकाश और ताकत रास्ते में ही समाप्त हो जाती थी, जिससे आकाश में अन्य तारे उसकी असफल संवेदनशीलता पर मानों खिलखिलाकर हँसने लगते थे। भाव यह है कि उस घने के एक तारा टूट कर पृथ्वी की ओर गिरने का प्रयास कर रहा था। शेष तारे ज्यों-के-त्यों आकाश में जगमगा रहे थे।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने शीतकालीन अमावस्या की रात की सर्दी, मलेरिया तथा हैजे से पीड़ित गाँव के लोगों की व्यथा का बड़ा ही सजीव वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का सजीव वर्णन हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) गाँव में अंधकार और सन्नाटे का साम्राज्य क्यों फैला हुआ था?
(ग) गाँव के लोग किन बीमारियों से पीड़ित थे?
(घ) अँधेरी रात को आँसू बहाते क्यों दिखाया गया है?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम ‘पहलवान की ढोलक’, लेखक-फणीश्वर नाथ रेणु।

(ख) अमावस्या की ठंडी और काली रात के कारण गाँव में अंधकार और सन्नाटा फैला हुआ था।

(ग) गाँव के लोग मलेरिया तथा हैजे से पीड़ित थे।

(घ) गाँव में मलेरिया तथा हैजा फैला हुआ था तथा महामारी के कारण हर रोज लोग मर रहे थे। चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया हुआ था। इसलिए लेखक ने कहा है कि ऐसा लगता था कि मानों अँधेरी रात भी आँसू बहा रही थी।

[2] सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज़ कभी-कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज़, ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में | बाधा नहीं पड़ती थी। कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की एक विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे। [पृष्ठ-108]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से अवतरित है। इसके लेखक हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। इसमें लेखक ने अपनी आँचलिक रचनाओं के माध्यम से ग्रामीण लोक संस्कृति तथा लोकजीवन का लोकभाषा के माध्यम से प्रभावशाली वर्णन किया है। प्रस्तुत कहानी में गाँव, अंचल तथा संस्कृति का सजीव चित्रण किया गया है। यहाँ लेखक मलेरिया तथा हैज़े से ग्रस्त गाँव की अमावस्या की काली रात का वर्णन करते हुए कहता है कि-

व्याख्या-गाँव में अंधकार और चुप्पी का साम्राज्य फैला हुआ था। बीच-बीच में झोंपड़ियों से कभी-कभी बीमार लोगों की आवाज़ निकल आती थी। इसी स्थिति का वर्णन करते हुए लेखक कहता है कि सियारों की चीख-पुकार तथा उल्लू की भयानक आवाजें उस मौन को भंग कर देती थीं। गाँव की झोंपड़ियों में बीमार लोग पीड़ा से कराहने लगते थे और कभी-कभी हैज़े के कारण उल्टी कर देते थे। बीच-बीच में हरे-राम, हे भगवान की आवाजें सुनने को मिल जाती थीं। भाव यह है कि गाँव के असंख्य लोग हैज़े और मलेरिया से ग्रस्त थे। कभी-कभी कमज़ोर बच्चे अपने कमज़ोर गलों से ‘माँ-माँ’ कहकर रोने लगते थे। इस प्रकार रात की चुप्पी पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता था, लेकिन कुत्तों में परिस्थितियों को पहचानने की विशेष योग्यता होती है क्योंकि वे जान चुके थे कि गाँव में अनावृष्टि और महामारी फैली हुई है इसलिए उन्हें खाने को कुछ नहीं मिलेगा। वे कूड़े के ढेर पर गठरी के रूप में सिकुड़ कर पड़ संध्या अथवा गहरी रात होते ही सब मिलकर रोने लगते थे अर्थात् वे भूख से व्याकुल होकर भौंकते और चिल्लाते थे।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने मलेरिया तथा हैज़े से ग्रस्त लोगों की दयनीय स्थिति का बड़ा ही संवेदनशील वर्णन किया है तथा कुत्तों की प्रकृति पर भी समुचित प्रकाश डाला है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) रात की निस्तब्धता को कौन भंग करते थे और क्यों?
(ख) सियारों और पेचक की आवाजें डरावनी क्यों थीं?
(ग) झोंपड़ियों से किसकी आवाजें सुनाई दे रही थीं और क्यों?
(घ) कुत्तों में क्या विशेषता होती है और वे गहरी रात में क्यों रोते थे?
उत्तर:
(क) सियारों की चीख-पुकार, उल्लुओं की डरावनी आवाजें, रोगियों की कराहने की आवाजें और कुत्तों का मिलकर रोना, ये सभी रात की निस्तब्धता को भंग करते थे। ऐसा लगता था कि ये सभी महामारी से दुखी होकर विलाप कर रहे थे।

(ख) सियारों और उल्लुओं की आवाजें इसलिए डरावनी लग रही थीं, क्योंकि गाँव में महामारी फैली हुई थी। प्रतिदिन दो-तीन लोग मर रहे थे। ऐसे में सियार और उल्लू भी चीख-पुकार कर रो रहे थे, मानों वे एक-दूसरे को मौत का समाचार दे रहे हों।

(ग) झोंपड़ियों से बीमार तथा कमज़ोर रोगियों के कराहने तथा रोने और उल्टियाँ करने की आवाजें भी आ रही थीं। कभी-कभी ये रोगी हे राम, हे भगवान कहकर ईश्वर को पुकार उठते थे और छोटे बच्चे माँ-माँ कहकर रोने लगते थे।

(घ) कुत्ते आसपास के वातावरण में चल रहे खुशी और गमी को पहचानने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। महामारी के कारण उन्होंने जान लिया था कि लोग महामारी के कारण प्रतिदिन मर रहे हैं। किसी के घर में चूल्हा नहीं जलता, इसलिए कुत्तों को भी खाने को कुछ नहीं मिलता वे कूड़े के ढेर पर दुबककर बैठे रहते थे और रात को मिलकर एक-साथ रोते थे।

[3] लुट्टन के माता-पिता उसे नौ वर्ष की उम्र में ही अनाथ बनाकर चल बसे थे। सौभाग्यवश शादी हो चुकी थी, वरना वह भी माँ-बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ दिया करते थे; लट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार हुई थी। नियमित कसरत ने किशोरावस्था में ही उसके सीने और बाँहों को सुडौल तथा मांसल बना दिया था। जवानी में कदम रखते ही वह गाँव में सबसे अच्छा पहलवान समझा जाने लगा। लोग उससे डरने लगे और वह दोनों हाथों को दोनों ओर 45 डिग्री की दूरी पर फैलाकर, पहलवानों की भाँति चलने लगा। वह कुश्ती भी लड़ता था। [पृष्ठ-110]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। इसमें लेखक ने अपनी आंचलिक रचनाओं के माध्यम से ग्रामीण लोक संस्कृति तथा लोकजीवन का लोकभाषा के माध्यम से प्रभावशाली वर्णन किया है। प्रस्तुत कहानी में गाँव, अंचल तथा संस्कृति का सजीव चित्रण किया गया है। यहाँ लेखक ने लुट्टन पहलवान की बाल्यावस्था का यथार्थ वर्णन किया है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि लुट्टन नौ साल का हुआ, तब उसके माता-पिता चल बसे और वह अनाथ हो गया। परंतु यह एक अच्छी बात थी कि उसका विवाह हो चुका था, नहीं तो वह भी मृत्यु का शिकार बन जाता। उसकी सास विधवा थी। उसी ने उसका लालन-पालन किया। बचपन में वह गाय चराने जाया करता था। गाय तथा भैंसों के थनों से निकला ताजा दूध पीता था तथा खूब व्यायाम करता था। अकसर गाँव के लोग उसकी सास को अनेक कष्ट देकर उसे परेशान करते थे। इसीलिए लुट्टन ने यह फैसला कि वह व्यायाम करके पहलवान बनेगा और लोगों से बदला लेगा। वह हर रोज नियमानुसार व्यायाम करता था, इसलिए किशोरावस्था में ही उसकी छाती चौड़ी हो गई थी और भुजाएँ खूब पुष्ट और सुदृढ़ बन गई थीं। जैसे ही लुट्टन ने यौवन में कदम रखा तो लोगों ने समझ लिया कि यह गाँव का सबसे अच्छा पहलवान है। अब गाँव के लोग उससे डरने लग गए थे। वह अपने हाथों को दोनों तरफ 45 डिग्री के फासले पर फैलाकर चलता था, जिससे उसकी चाल पहलवानों जैसी थी। कभी-कभी वह अन्य पहलवानों से से कुश्ती भी लड़ लेता था। भाव यह है कि जवानी में कदम रखते ही लुट्टन एक अच्छा पहलवान बन चुका था और लोगों पर उसका प्रभाव छा गया था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने लुट्टन के आरंभिक जीवन का यथार्थ वर्णन किया है और यह बताने का प्रयास किया है कि वह गाँव में एक अच्छा पहलवान समझा जाता था।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है जिसमें, उम्र, कसरत, वरना, कुश्ती, तकलीफ आदि उर्दू शब्दों का सफल वर्णन हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) विधवा सास ने लुट्टन पहलवान का लालन-पालन क्यों किया?
(ख) किस आयु में लुट्टन अनाथ हो गया था?
(ग) लुट्टन ने पहलवानी क्यों शुरू की?
(घ) कौन-सा काम करके लुट्टन बचपन में बड़ा हुआ?
(ङ) लोग लुट्टन से क्यों डरने लगे थे?
(च) “वरना वह भी माँ-बाप का अनुसरण करता” इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) विधवा सास ने लुट्टन पहलवान का लालन-पालन इसलिए किया क्योंकि नौ वर्ष की आयु में ही उसके माता-पिता चल बसे थे। तब तक उसकी शादी हो चुकी थी। अतः उसकी सास ने ही उसका लालन-पालन किया।

(ख) नौ वर्ष की आयु में लुट्टन के माता-पिता चल बसे और वह अनाथ हो गया था।

(ग) गाँव के लोग लुट्टन की सास को तरह-तरह के कष्ट देते थे अतः लुट्टन के मन में आया कि वह उन लोगों से बदला ले जिन्होंने उसकी सास को तंग किया था। इसीलिए उसने अपना शरीर मज़बूत बनाने के लिए पहलवानी शुरू कर दी।

(घ) लुट्टन बचपन में गाएँ चराकर और कसरत करके बड़ा हुआ। (ङ) लुट्टन अब एक नामी पहलवान बन चुका था। उसका शरीर हृष्ट-पुष्ट था। इसलिए लोग उससे डरने लगे थे।

(च) इस पंक्ति का भाव यह है कि सौभाग्य से लुट्टन का विवाह हो चुका था। अगर उसका विवाह न हुआ होता तो उसकी देखभाल करने वाला कोई न होता। नौ वर्ष की आयु में उसके माता-पिता चल बसे तो उसकी सास ने ही उसका लालन-पालन किया। अन्यथा अपने माता-पिता की भाँति वह भी मृत्यु को प्राप्त हो जाता।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक

[4] एक बार वह ‘दंगल’ देखने श्यामनगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज़ ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। ‘शेर के बच्चे का असल नाम था चाँद सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ, पंजाब से पहले-पहल श्यामनगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग-प्रत्यंग से सुंदरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उम्र के सभी पट्ठों को पछाड़कर उसने ‘शेर के बच्चे की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लँगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान, उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँद सिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था। [पृष्ठ-110]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। यहाँ लेखक ने श्यामनगर के दंगल का वर्णन किया है, जिसमें पंजाब के पहलवान चाँद सिंह (शेर के बच्चे) ने सभी पहलवानों को कुश्ती के लिए ललकारा था। लेखक कहता है कि

व्याख्या-एक बार लुट्टन श्यामनगर के मेले में आयोजित दंगल को देखने गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उसमें भी कुश्ती लड़ने की इच्छा उत्पन्न हुई। यौवनकाल की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज़ ने उसके अंदर प्रबल जोश भर दिया। वस्तुतः ढोल की आवाज़ सुनकर लुट्टन की नसों में उत्तेजना उत्पन्न हो जाती थी। पहलवानी का माहौल देखकर लुट्टन अपने आपको रोक नहीं पाया और उसने ‘शेर के बच्चे’ (चाँद सिंह) को कुश्ती के लिए ललकार दिया। शेर के बच्चे का मूल नाम चाँद सिंह था। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ पहली बार श्यामनगर के मेले में आया था। वह बड़ा ही हृष्ट-पुष्ट और सुंदर नौजवान था। उसके शरीर के प्रत्येक अंग से सौंदर्य टपकता था। तीन दिनों में ही उसने पंजाबी तथा पठान पहलवानों के समूह को तथा अपनी आयु के सभी पहलवानों को हरा दिया जिसके फलस्वरूप उसे ‘शेर के बच्चे’ की उपाधि प्राप्त हुई। फलस्वरूप वह दंगल के मैदान में लँगोट कसकर चलता रहता था। वह एक विचित्र प्रकार की किलकारी भरता था और उछल-उछल कर चलता था। स्थानीय युवक पहलवान उससे कुश्ती करने में घबराते थे। कोई भी उसका मुकाबला करने को तैयार नहीं था। अपनी पदवी को सच्चा सिद्ध करने के लिए चाँद सिंह दहाड़कर अन्य पहलवानों को भयभीत करने का प्रयास करता था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने पंजाब से आए हुए पहलवान चाँद सिंह के हृष्ट-पुष्ट शरीर तथा उसकी पहलवानी का बड़ा ही सुंदर व सजीव वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लुट्टन किस कारण कुश्ती करने के लिए प्रेरित हुआ?
(ख) बिजली उत्पन्न करने का क्या आशय है?
(ग) ‘शेर का बच्चा’ किसे कहा गया है और क्यों?
(घ) ‘शेर का बच्चा’ किस प्रकार दंगल में चुनौती देता हुआ घूम रहा था?
उत्तर:
(क) पहलवानों की कुश्ती तथा उसके दाँव-पेंच देखकर लुट्टन अपने-आप पर नियंत्रण नहीं रख सका। फिर जवानी की मस्ती तथा ढोल की ललकारती हुई आवाज़ ने लुट्टन को कुश्ती करने के लिए प्रेरित किया।

(ख) बिजली उत्पन्न करने का आशय है कि प्रबल जोश उत्पन्न करना। ढोल की आवाज़ सुनने से लुट्टन की नसों में उत्तेजना उत्पन्न हो जाती थी और उसके तन-बदन में एक बिजली-सी कौंधने लगती थी।

(ग) ‘शेर का बच्चा’ पंजाब के पहलवान चाँद सिंह को कहा गया है। उसने श्यामनगर के मेले में तीन दिनों में ही पंजाबी तथा पठानों के गिरोह तथा अपनी उम्र के सभी पहलवानों को कुश्ती में हराकर यह पदवी प्राप्त की थी।

(घ) ‘शेर का बच्चा’ अर्थात चाँद सिंह दंगल के मैदान में लँगोट कसकर सभी पहलवानों को खली चनौती दिया फिरता था। वह अपने-आपको शेर का बच्चा सिद्ध करने के लिए विचित्र प्रकार की किलकारी मारा करता था। वह छोटी-छोटी छलाँगें लगाकर उछलता-कूदता हुआ बीच-बीच में दहाड़ उठता था।

[5] भीड़ अधीर हो रही थी। बाजे बंद हो गए थे। पंजाबी पहलवानों की जमायत क्रोध से पागल होकर लट्टन पर गालियों की बौछार कर रही थी। दर्शकों की मंडली उत्तेजित हो रही थी। कोई-कोई लट्टन के पक्ष से चिल्ला उठता था-“उसे लड़ने दिया जाए!” अकेला चाँद सिंह मैदान में खड़ा व्यर्थ मुसकुराने की चेष्टा कर रहा था। पहली पकड़ में ही अपने प्रतिद्वंद्वी की शक्ति का अंदाज़ा उसे मिल गया था। विवश होकर राजा साहब ने आज्ञा दे दी-“लड़ने दो!” [पृष्ठ-111]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। इसमें लेखक ने अपनी आँचलिक रचनाओं के माध्यम से ग्रामीण लोक संस्कृति तथा लोकजीवन का लोकभाषा के माध्यम से प्रभावशाली वर्णन किया है। प्रस्तुत कहानी में गाँव, अंचल तथा संस्कृति का सजीव चित्रण किया गया है। यहाँ लेखक ने उस स्थिति का वर्णन किया है जब लुट्टन राजा साहब से कुश्ती लड़ने की आज्ञा माँग रहा था।

व्याख्या-लेखक कहता है कि लोगों की भीड़ बेचैन होती जा रही थी। यहाँ तक कि बाजे बजने भी बंद हो गए थे। लुट्टन बार-बार हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता हआ राजा साहब से कश्ती लड़ने की आज्ञा माँग रहा था। दूसरी ओर, पंज समूह क्रोध के कारण पागल हो रहा था। वे सभी लुट्टन पहलवान को गालियाँ दे रहे थे। कुछ लोग लुट्टन का पक्ष लेकर चिल्लाते हुए कह रहे थे कि उसे लड़ने की आज्ञा दी जानी चाहिए। उधर अकेला चाँद सिंह मैदान में खड़ा हुआ बेकार में हँसने की कोशिश कर रहा था। पहली पकड़ में उसे अंदाजा हो गया था कि उसका विरोधी ताकतवर है। उसे हराना आसान नहीं है। आखिर राजा साहब ने लुट्टन को अपनी स्वीकृति दे दी और कहा कि उसे लड़ने दिया जाए।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने दंगल का बड़ा ही सजीव वर्णन किया है, साथ ही लुट्टन की ताकत का भी हल्का-सा संकेत दिया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सार्थक तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैलियों का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भीड़ अधीर क्यों हो रही थी?
(ख) पंजाबी पहलवानों की जमायत लुट्टन को गालियाँ क्यों दे रही थी?
(ग) चाँद सिंह मैदान में खड़ा होकर व्यर्थ मुसकुराने की चेष्टा क्यों कर रहा था?
(घ) आखिर राजा साहब ने क्या किया?
उत्तर:
(क) भीड़ इसलिए अधीर हो रही थी क्योंकि वह चाँद सिंह और लुट्टन की कुश्ती को देखना चाहती थी। कुछ लोग लुट्टन का पक्ष लेते हुए कह रहे थे कि उसे कुश्ती लड़ने की आज्ञा मिलनी चाहिए।

(ख) पंजाबी पहलवानों की जमायत लुट्टन को इसलिए गालियाँ दे रही थी क्योंकि वे यह नहीं चाहते थे कि लुट्टन चाँद सिंह के साथ कुश्ती करे।

(ग) चाँद सिंह मैदान में खड़ा इसलिए व्यर्थ मुसकुराने की चेष्टा कर रहा था क्योंकि उसने पहली पकड़ में यह जान लिया था कि उसका विरोधी लुट्टन ताकतवर है और उसे हराना आसान नहीं है।

(घ) अंत में मजबूर होकर राजा साहब ने लुट्टन को चाँद सिंह से कुश्ती लड़ने की आज्ञा दे दी।

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[6] लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटने-फटने को हो रही थी। राजमत, बहुमत चाँद के पक्ष में था। सभी चाँद को शाबाशी दे रहे थे। लट्टन के पक्ष में सिर्फ ढोल की आवाज़ थी, जिसकी ताल पर वह अपनी शक्ति और दाँव-पेंच की परीक्षा ले रहा था अपनी हिम्मत को बढ़ा रहा था। अचानक ढोल की एक पतली आवाज़ सुनाई पड़ी-
‘धाक-धिना, तिरकट-तिना, धाक-धिना, तिरकट-तिना…..!!’
लुट्टन को स्पष्ट सुनाई पड़ा, ढोल कह रहा था-“दाँव काटो, बाहर हो जा दाँव काटो, बाहर हो जा!!” [पृष्ठ-111]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। इसमें लेखक ने अपनी आँचलिक रचनाओं के माध्यम से ग्रामीण लोक संस्कृति तथा लोकजीवन का लोकभाषा के माध्यम से प्रभावशाली वर्णन किया है। यहाँ लेखक ने लुट्टन और चाँद सिंह की कुश्ती का वर्णन किया है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि चाँद सिंह ने लुट्टन को कसकर दबा लिया था जिस कारण लुट्टन थोड़ा कमज़ोर पड़ गया था। घबराहट के कारण उसकी आँखें बाहर निकलती नज़र आ रही थीं। उसकी छाती पर भी दबाव बढ़ता जा रहा था। राजा साहब के अधिकारी चाँद सिंह का समर्थन कर रहे थे। सभी उसे शाबाशी दे रहे थे। लुट्टन का समर्थन करने वाला कोई नहीं था। केवल ढोल की आवाज़ की ताल पर लुट्टन अपनी ताकत और दाँव-पेंच को जाँच रहा था और अपना हौसला बढ़ा रहा था। भाव यह है कि ढोल की आवाज़ उसके लिए प्रेरणा का काम कर रही थी। अचानक उसे ढोल की बारीक-सी आवाज़ सुनाई पड़ी, मानों ढोल लुट्टन से कह रहा था कि चाँद सिंह के दाँव को काटो और बाहर निकल जाओ। लुट्टन ने ऐसा ही किया। .

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने हारते हुए लुट्टन की स्थिति पर प्रकाश डाला है और साथ ही यह बताया है कि कैसे ढोल की आवाज़ ने लुट्टन की हार को जीत में बदल दिया।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है, जिसमें कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का अत्यधिक प्रयोग किया गया है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लुट्टन की आँखें बाहर क्यों निकल रही थीं?
(ख) राजमत और बहुमत चाँद का पक्ष क्यों ले रहा था?
(ग) लुट्टन के पक्ष में कौन था?
(घ) ढोल की आवाज़ लुट्टन से क्या कह रही थी?
उत्तर:
(क) लुट्टन की आँखें इसलिए बाहर निकल रही थी क्योंकि चाँद सिंह ने लुट्टन को कसकर दबा लिया था और उसे पहले दाँव में ही चित्त करने की कोशिश कर रहा था।

(ख) राजमत और बहुमत चाँद सिंह के पक्ष में इसलिए था क्योंकि एक तो वह ‘शेर के बच्चे’ की पदवी प्राप्त कर चुका था और दूसरा वह क्षत्रिय पंजाब का नामी पहलवान था। इसलिए सब लोग चाँद सिंह को ही शाबाशी दे रहे थे।

(ग) लुट्टन के पक्ष में केवल ढोल की आवाज़ थी। उसी आवाज़ पर लुट्टन अपनी शक्ति और दाँव-पेंच की परीक्षा ले रहा था।

(घ) ढोल की आवाज़ लुट्टन को स्पष्ट कह रही थी कि चाँद सिंह के दाँव को काटकर बाहर निकल जाओ।

[7] पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँद सिंह की आँखें पोंछ रही थी। लुट्टन को राजा साहब ने पुरस्कृत ही नहीं किया, अपने दरबार में सदा के लिए रख लिया। तब से लुट्टन राज-पहलवान हो गया और राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे। राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया-“हुजूर! जाति का…… सिंह…!”, मैनेजर साहब क्षत्रिय थे। ‘क्लीन-शेव्ड’ चेहरे को संकुचित करते हुए, अपनी शक्ति लगाकर नाक के बाल उखाड़ रहे थे। चुटकी से अत्याचारी बाल को रगड़ते हुए बोले-“हाँ सरकार, यह अन्याय है!” [पृष्ठ-112]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। प्रस्तुत कहानी में गाँव, अंचल तथा संस्कृति का सजीव चित्रण किया गया है। जब लुट्टन पहलवान ने पंजाबी पहलवान चाँद सिंह को दंगल में चित्त कर दिया था तब राजा साहब ने उसे अपने दरबार में राज-पहलवान बना दिया था।

व्याख्या-लेखक कहता है कि लुट्टन पहलवान ने पंजाबी पहलवान चाँद सिंह पर विजय प्राप्त कर ली। फलस्वरूप चाँद सिंह की आँखों में हार के आँस आ गए। उसके पंजाबी पहलवान साथी भी बहुत दुखी थे। वे सब मिलकर चाँद सिंह को सांत्वना दे रहे थे। दूसरी ओर, राजा साहब ने लट्टन को न केवल इनाम दिया, बल्कि उसे हमेशा के लिए अपने दरबार में राज-पहलवान बन चुका था। राजा साहब उसे लुट्टन सिंह के नाम से बुलाने लगे, परंतु राज पुरोहित उससे खुश नहीं हुए। उन्होंने मुँह बिचकाते हुए राजा से कहा कि महाराज! यह तो छोटी जाति का व्यक्ति है। इसे सिंह कहना कहाँ तक उचित है। राजा साहब का मैनेजर एक क्षत्रिय था। उससे भी यह सहन नहीं हुआ कि एक छोटी जाति वाला व्यक्ति राज-पहलवान बने। उसने दाढ़ी-मूंछ मुँडवा रखी थी तथा उसका चेहरा बड़ा सिकुड़ा हुआ था। वह बार-बार अपनी नाक के बाल उखाड़ता जा रहा था। अपनी नाक के एक बाल को रगड़ते हुए उसने महाराज से कहा कि हाँ सरकार, यह तो सरासर न्याय विरोधी कार्य है। मैनेजर साहब के कहने का यह अभिप्राय था कि एक छोटी जाति के व्यक्ति को राज-पहलवान नहीं बनाया जाना चाहिए। यह पदवी तो किसी क्षत्रिय पहलवान को ही मिलनी चाहिए।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने स्पष्ट किया है कि उस समय भारतीय समाज में ऊँच-नीच का बहुत भेद-भाव था। इसलिए राज पुरोहित तथा क्षत्रिय मैनेजर लुट्टन पहलवान के राज-पहलवान बनने का विरोध कर रहे थे।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक, सटीक तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँद सिंह की आँखें क्यों पोंछ रही थी?
(ख) राजा साहब ने लुट्टन के लिए क्या किया ?
(ग) राजा साहब ने किस लिए लुट्टन पहलवान को अपने दरबार में रख लिया था?
(घ) लुट्टन सिंह का विरोध किसने ओर क्यों किया?
(ङ) प्राचीन काल में जातिप्रथा की बुराई कहाँ तक व्याप्त थी?
उत्तर:
(क) पंजाब से आए पहलवान को अभी-अभी ‘शेर के बच्चे’ की उपाधि प्राप्त हुई थी, परंतु लुट्टन पहलवान ने सबके सामने उसको धूल चटा दी थी। इसलिए वह दुखी था और उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। पंजाबी पहलवान के साथ उसके सभी साथी भी दुखी थे। वे सभी मिलकर चाँद सिंह को सांत्वना दे रहे थे।

(ख) राजा साहब ने लुट्टन को हमेशा के लिए अपने दरबार में रख लिया और उसे इनाम दिया, चूँकि वह राज-पहलवान बन चुका था, इसलिए राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे थे।

(ग) राजा साहब ने लुट्टन पहलवान को अपने दरबार में इसलिए रख लिया क्योंकि उसने ‘शेर के बच्चे’ चाँद सिंह को दंगल में हराया था। उसने सर्वश्रेष्ठ पहलवान बनकर अपनी मिट्टी की लाज को बचाया था। दूसरा, राजा साहब पहलवानों के प्रशंसक भी थे।

(घ) राजपुरोहित तथा क्षत्रिय मैनेजर दोनों ने लुट्टन के राज पहलवान बनने का विरोध किया। पहले तो राज पंडित ने मुँह बिचकाते हुए इस बात का विरोध किया कि छोटी जाति के लुट्टन को लुट्टन सिंह कहकर दरबार में रखना ठीक नहीं है। इसी प्रकार क्षत्रिय मैनेजर चाहता था कि किसी क्षत्रिय को राज पहलवान नियुक्त किया जाना चाहिए।

(ङ) प्राचीन काल में भारतीय समाज में जाति-पाति और ऊँच-नीच का काफी भेदभाव व्याप्त था। राजाओं के यहाँ बड़े-बड़े अधिकारी ऊँची जाति के होते थे और वे छोटी जाति के लोगों से घृणा करते थे। बल्कि वे छोटी जाति के प्रतिभा संपन्न लोगों को उभरने नहीं देते थे और उन्हें दबाकर रखते थे।

[8] राजा साहब ने मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना ही कहा-“उसने क्षत्रिय का काम किया है।” उसी दिन से लट्टन सिंह पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन और व्यायाम तथा राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। कुछ वर्षों में ही उसने एक-एक कर सभी नामी पहलवानों को मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखा दिया। काला खाँ के संबंध में यह बात मशहूर थी कि वह ज्यों ही लँगोट लगाकर ‘आ-ली’ कहकर अपने प्रतिद्वंद्वी पर टूटता है, प्रतिद्वंद्वी पहलवान को लकवा मार जाता है लुट्टन ने उसको भी पटककर लोगों का भ्रम दूर कर दिया। [पृष्ठ-112]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। लेखक ने अपने उपन्यासों, कहानियों तथा संस्मरणों द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। प्रस्तुत कहानी में लेखक ने आंचलिक जीवन तथा लोक संस्कृति का सजीव वर्णन किया है। यहाँ लेखक ने उस स्थिति का वर्णन किया है जब राजा साहब के क्षत्रिय मैनेजर तथा राज-पुरोहित द्वारा लुट्टन पहलवान को राज पहलवान बनाने का विरोध किया था। राजा साहब ने उनको दो टूक उत्तर दिया।

व्याख्या-राजा साहब क्षत्रिय मैनेजर तथा राजपुरोहित द्वारा उठाई गई आपत्ति के फलस्वरूप मुस्कुराकर बोले कि लुट्टन ने चाँद सिंह पहलवान को धूल चटाकर एक क्षत्रिय का ही काम किया है। इसलिए यह कहना गलत होगा कि वह क्षत्रिय नहीं है। उस दिन के बाद लुट्टन सिंह पहलवान का यश चारों ओर फैलने लगा। दूर-दूर तक के लोग जान गए कि लुट्टन राज-दरबार का पहलवान बन गया है। अब उसे खाने के लिए पौष्टिक भोजन मिलता था। वह खूब कसरत भी करता रहता था। इस पर राजा साहब की कृपा-दृष्टि भी उस पर बनी हुई थी। इससे उसका यश और भी बढ़ गया। कुछ ही वर्षों में लुट्टन सिंह ने आस-पास के सभी मशहूर पहलवानों को पराजित कर दिया था, जिससे उसका नाम काफी प्रसिद्ध हो गया। भाव यह है कि लुट्टन सिंह ने आस-पास के सभी पहलवानों को कुश्ती में पछाड़ दिया था।

उस समय काले खाँ नाम का एक प्रसिद्ध पहलवान था। उसके बारे में मशहूर था कि जब वह लँगोट बाँधकर ‘आ-ली’ कहता हुआ अपने विरोधी पर हमला करता है तो उसके विरोधी को लकवा मार जाता है अर्थात् उसके द्वारा हमला करते ही विरोधी पहलवान धराशायी हो जाता है। लुट्टन ने उसे भी दंगल में पटकनी दे दी जिससे लोगों के मन में काले खाँ को लेकर जो गलतफहमी थी, वह दूर हो गई। भाव यह है कि लुट्टन ने दूर-दूर के सुप्रसिद्ध पहलवानों को हराकर अपनी धाक जमा ली थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने लुट्टन की पहलवानी तथा उसके यश का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) राजा साहब ने मुसकुराते हुए यह क्यों कहा कि लुट्टन ने क्षत्रिय का काम किया है?
(ख) लुट्टन पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक कैसे फैल गई?
(ग) काला खाँ कौन था? लुट्टन ने उसे किस प्रकार हराया?
(घ) मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखाने का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) राजा साहब ने मुसकुराते हुए यह इसलिए कहा कि लुट्टन ने क्षत्रिय का काम किया है क्योंकि नामी पहलवान चाँद सिंह को हराना कोई आसान काम नहीं था। लुट्टन ने स्थानीय निवासियों की लाज को बचाया। जो काम पहले क्षत्रिय करते थे, वही काम छोटी जाति वाले ने किया। इसलिए राजा साहब को कहना पड़ा कि लुट्टन ने क्षत्रिय का काम किया है।

(ख) लुट्टन ने पंजाब के प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को धूल चटाई जिससे लोगों में उसका नाम प्रसिद्ध हो गया। दूसरा, लुट्टन सिंह ने राजा श्यामानंद के दरबार में राज पहलवान का पद पा लिया। इसलिए उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई।

(ग) काला खाँ एक नामी पहलवान था। उसे कोई भी हरा नहीं पाया था। उसके बारे में यह बात प्रसिद्ध थी कि जैसे ही वह लँगोट बाँधकर ‘आ-ली’ कहता है तो उसके विरोधी को लकवा मार जाता है। लट्टन सिंह ने उसे हराकर सब लोगों के भ्रम को दूर कर दिया।

(घ) ‘मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखाना’ का आशय है कि अपने विरोधी पहलवान को धरती पर पीठ के बल पटक देना, ताकि उसकी पीठ ज़मीन से लग जाए। कुश्ती की शब्दावली में इसे चित्त करना (हरा देना) कहते हैं।

[9] किंतु उसकी शिक्षा-दीक्षा, सब किए-कराए पर एक दिन पानी फिर गया। वृद्ध राजा स्वर्ग सिधार गए। नए राजकुमार ने विलायत से आते ही राज्य को अपने हाथ में ले लिया। राजा साहब के समय शिथिलता आ गई थी, राजकुमार के आते ही दूर हो गई। बहुत से परिवर्तन हुए। उन्हीं परिवर्तनों की चपेटाघात में पड़ा पहलवान भी। दंगल का स्थान घोड़े की रेस ने लिया। [पृष्ठ-114]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से अवतरित है। इसके लेखक हिंदी के सप्रसिद्ध आँचलिक कथाकार तथा निबंधकार ‘फणीश्वर नाथ रेण’ हैं। लेखक ने अनेक संस्मरणों द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। प्रस्तुत कहानी में लेखक ने आंचलिक जन-जीवन तथा लोक संस्कृति का सजीव वर्णन किया है तथा पहलवानी को एक कला के रूप में प्रस्तुत किया है। यहाँ लेखक ने लट्टन सिंह के जीवन में आए परिवर्तन की ओर संकेत करते हुए लिखा है-

व्याख्या-लुट्टन सिंह ने पहलवानी के क्षेत्र में जो शिक्षण-परीक्षण प्राप्त किया था और राज दरबार में अपना स्थान बनाया था, वह सबं समाप्त हो गया था। यहाँ तक कि अपने बच्चों को भावी पहलवान बनाने के सपने भी चूर-चूर हो गए, क्योंकि वृद्ध राजा श्यामनंद का देहांत हो गया था। नया राजकुमार विलायत से शिक्षा प्राप्त करके लौटा था। उसने आते ही राज्य व्यवस्था संभाल ली। राजा साहब के समय में राज्य व्यवस्था कुछ ढीली पड़ गई थी, परंतु राजकुमार ने आते ही सब कुछ ठीक कर दिया। उसने अनेक परिवर्तन किए। उन परिवर्तनों का एक धक्का लुट्टन पहलवान को भी लगा। अब राजकुमार ने कुश्ती दंगल में रुचि लेनी बंद कर दी और वह घोड़े की रेस में रुचि लेने लगा। भाव यह है कि राजदरबार से लुट्टन सिंह और उसके दोनों बेटों को निकाल दिया गया, क्योंकि राजकुमार पश्चिमी सभ्यता में पला नौजवान था और वह पहलवानों का खर्चा उठाना नहीं चाहता था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने स्पष्ट किया है कि वृद्ध राजा की मृत्यु के बाद नए राजकुमार ने लुट्टन सिंह पहलवान का राज्याश्रय छीन लिया था।
  2. सहज, सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक व सटीक है तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लुट्टन सिंह पहलवान के किए कराए पर पानी क्यों फिर गया?
(ख) वृद्ध राजा के स्वर्ग सिधार जाने पर नए राजकुमार ने विलायत से आते ही क्या किया?
(ग) राज्य परिवर्तन से किस प्रकार के लाभ-हानि होते हैं?
(घ) राज दरबार में बने रहने के लिए आपके अनुसार कौन-सी आवश्यकता होनी जरूरी है?
उत्तर:
(क) लुट्टन ने अपने क्षेत्र के सभी पहलवानों को हराने के बाद राज दरबार में अपना स्थान बनाया था। वह पंद्रह साल तक राजदरबार में रहा। वह चाहता था कि आगे चलकर उसके दोनों बेटे भावी पहलवान बनें। उसने उन दोनों को पहलवानी का प्रशिक्षण भी दिया। परंतु वृद्ध राजा के देहांत के बाद उसके सारे सपने टूट गए। नए राजा ने पहलवानी के खर्चों को व्यर्थ सिद्ध किया और लुट्टन सिंह और उसके दोनों लड़कों को राजदरबार से निकाल दिया।

(ख) नए राजकुमार ने विलायत से आते ही राज्य व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया। राजा साहब के समय राज्य व्यवस्था में काफी शिथिलता आ चुकी थी। राजकुमार ने इस शिथिलता को दूर किया और बहुत से परिवर्तन किए। उन्हीं परिवर्तनों में से एक धक्का पहलवान को भी लगा।

(ग) राज्य परिवर्तन होने से किसी को लाभ होता है किसी को हानि। उदाहरण के रूप में जब राजकुमार राजा बना तो लुट्टन सिंह पहलवान को हानि हुई क्योंकि उसे राजदरबार से निकाल दिया गया। दूसरी ओर घुड़दौड़ से संबंधित कर्मचारियों को आश्रय मिल गया और उन्हें दरबार से धन मिलने लगा।

(घ) प्रस्तुत कहानी को पढ़ने से पता चलता है कि राज दरबार में रहने के लिए राजाश्रय के साथ-साथ राजा के विश्वस्त मैनेजरों के साथ-साथ उसके सलाहकारों की कृपा दृष्टि भी बनी रहनी चाहिए, अन्यथा दरबार में राजाश्रित व्यक्ति का वही हाल होगा, जो लुट्टन सिंह का हुआ।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक

[10] अकस्मात गाँव पर यह वज्रपात हुआ। पहले अनावृष्टि, फिर अन्न की कमी, तब मलेरिया और हैजे ने मिलकर गाँव को भूनना शुरू कर दिया। गाँव प्रायः सूना हो चला था। घर के घर खाली पड़ गए थे। रोज़ दो-तीन लाशें उठने लगी। लोगों में खलबली मची हुई थी। दिन में तो कलरव, हाहाकार तथा हृदय-विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर कुछ प्रभा दृष्टिगोचर होती थी, शायद सूर्य के प्रकाश में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूँखते कराहते अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे “अरे क्या करोगी रोकर, दुलहिन! जो गया सो तो चला गया, वह तुम्हारा नहीं था; वह जो है उसको तो देखो।” [पृष्ठ-114]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके लेखक हिंदी के सुप्रसिद्ध आँचलिक कहानीकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। लेखक ने अपने असंख्य उपन्यासों, कहानियों एवं संस्मरणों द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। प्रस्तुत कहानी में लेखक आँचलिक जन-जीवन तथा लोक-संस्कृति का सजीव वर्णन करता है, तथा पहलवानी को एक कला के रूप में प्रस्तुत करता है। यहाँ लेखक ने गाँव में अनावृष्टि, मलेरिया तथा हैजे के प्रकोप का बड़ा ही संवेदनशील वर्णन किया है

व्याख्या-लेखक कहता है कि अचानक गाँव पर बिजली गिर पड़ी। पहले तो वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ा जिससे अन्न की भारी कमी हो गई और लोग भूख से मरने लगे। इसके बाद मलेरिया तथा हैजे के कारण गाँव के लोग मृत्य को प्राप्त धीरे-धीरे सारा गाँव सूना होता जा रहा था। अनेक घर तो खाली हो गए थे। प्रतिदिन गाँव से दो-तीन शव निकाले जाते थे जिससे लोगों में काफी घबराहट फैली हुई थी। कहने का भाव यह है कि हर रोज दो-चार मनुष्यों के मरने से गाँव के लोगों में खलबली मच गई थी। दिन में शोर-शराबा, हाय-हाय तथा हृदय को फाड़ने वाले विलाप की आवाजें आती थीं। फिर भी लोगों के चेहरों पर थोड़ा बहुत तेज दिखाई देता था। कारण यह है कि सूर्य के उदय होते ही उसकी रोशनी में लोग खाँसते और कराहते हुए अपने घरों से बाहर निकलकर अपने पड़ोसी तथा रिश्तेदारों को सांत्वना देते थे। वे रोती हुई स्त्री से कहते थे कि हे बहू! अब रोने से क्या लाभ है, जो इस संसार से चला गया, वह अब लौटकर आने वाला नहीं है। यूँ समझ लो कि वह तुम्हारा था ही नहीं। जो इस समय तुम्हारे पास जिंदा है, उसकी देखभाल करो। कहने का भाव यह है कि अनावृष्टि, मलेरिया तथा हैज़े के कारण पूरे गाँव में मृत्यु का तांडव नाच चल रहा था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने लुट्टन सिंह पहलवान के गाँव में फैली अनावृष्टि, मलेरिया तथा हैज़े के कारण उत्पन्न विनाश का हृदय-विदारक वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैलियों का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) किन कारणों से गाँव में वज्रपात हुआ?
(ख) गाँव प्रायः सूना क्यों होता जा रहा था?
(ग) दिन में लोगों के चेहरे पर कुछ प्रभा क्यों दृष्टिगोचर होती थी?
(घ) लोग अपने पड़ोसियों तथा आत्मीयों को क्या कहकर ढांढस देते थे?
उत्तर:
(क) गाँव में पहले तो अनावृष्टि हुई जिससे अनाज की कमी हो गई, तत्पश्चात् मलेरिया तथा हैजे के प्रकोप ने गाँव को नष्ट करना आरंभ कर दिया।

(ख) मलेरिया तथा हैजे की महामारी की चपेट में आने के कारण लोग मृत्यु का ग्रास बन रहे थे। प्रतिदिन गाँव से दो-तीन लाशें उठने लगी थीं, इसीलिए गाँव सूना होता जा रहा था। कुछ मकान तो खाली पड़े हुए थे।

(ग) दिन के समय लोग काँखते-कूँखते-कराहते हुए अपने घरों से बाहर निकलकर अपने पड़ोसियों और सगे-संबंधियों को सांत्वना देते थे। इससे उनके चेहरे पर प्रभा रहती थी।

(घ) लोग अपने पड़ोसियों तथा रिश्तेदारों को ढांढस बंधाते हुए कहते थे कि-अरी बहू! अब रोने का क्या लाभ है? जो इस संसार से चला गया, वह अब लौटकर आने वाला नहीं है। यूँ समझ लो कि वह तुम्हारा था ही नहीं। जो इस समय तुम्हारे पास जिंदा है, उसकी देखभाल करो।

[11] रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज़ में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूंदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे। [पृष्ठ-115]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके कहानीकार आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। लेखक ने असंख्य उपन्यासों, कहानियों, संस्मरणों द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। प्रस्तुत कहानी में लेखक ने आंचलिक जन-जीवन तथा लोक-संस्कृति का सजीव वर्णन किया है तथा पहलवानी को एक कला के रूप में प्रस्तुत किया है। यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि रात की भयानकता में पहलवान की ढोलक की आवाज़ आधे मरे हुए तथा दवाई-इलाज से रहित लोगों को संजीवनी शक्ति प्रदान करती थी। इसी स्थिति का वर्णन करते हुए लेखक कहता
है

व्याख्या-मलेरिया और हैजे के कारण गाँव में निरंतर लोगों की मृत्यु हो रही थी। चारों ओर विनाश फैला हुआ था। दिन की अपेक्षा रात अधिक भयानक होती थी, परंतु पहलवान की ढोलक की आवाज़ इस भयानकता का सामना करती थी। लुट्टन पहलवान शाम से लेकर सवेरे तक, चाहे किसी भी विचार से ढोलक बजाता था, परंतु गाँव के मृतःप्राय तथा औषधि और इलाज रहित लोगों के लिए यह संजीवनी का काम करती थी अर्थात् ढोलक की आवाज़ बीमार तथा लाचार प्राणियों को थोड़ी-बहुत शक्ति देती थी। गाँव के बूढ़े-बच्चों एवं जवानों में निराशा छाई हुई थी, परंतु ढोलक की आवाज़ सुनकर उनकी आँखों के सामने दंगल का नज़ारा नाच उठता था। लोगों के शरीर की नाड़ियों में जो धड़कन और ताकत समाप्त हो चुकी थी ढोलक की आवाज़ सुनते ही मानों उनके शरीर में बिजली दौड़ जाती हो। इतना निश्चित है कि ढोलक की आवाज़ में ऐसा कोई गुण नहीं है जो मलेरिया के बुखार को दूर कर सके और न ही कोई ऐसी ताकत है जो महामारी से उत्पन्न विनाश की ताकत को रोक सकती थी। परंतु यह भी निधि कि ढोलक की आवाज़ सुनकर मरने वाले लोगों को कष्ट नहीं होता था और न ही वे मौत से डरते थे। भाव यह है कि ढोलक की आवाज़ सुनकर गाँव के अधमरे और मृतःप्राय लोग मृत्यु का आलिंगन कर लेते थे।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने रात की भयानकता का यथार्थ वर्णन किया है जिसके कारण लोग महामारी का शिकार बन रहे थे, परंतु ढोलक की आवाज़ उनके लिए संजीवनी शक्ति के समान थी।
  2. सहज, सरल, तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) रात की विभीषिका से लेखक का क्या अभिप्राय है?
(ख) रात की विभीषिका में कौन लोगों को सहारा देता था?
(ग) पहलवान की ढोलक की आवाज़ का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता था?
(घ) ढोलक की आवाज़ किन लोगों में संजीवनी का काम करती थी?
उत्तर:
(क) रात की विभीषिका से लेखक का अभिप्राय महामारी से उत्पन्न विनाश से है। प्रतिदिन न जाने कितने लोग बीमारी के शिकार बन जाते थे। महामारी की चपेट में आ जाते थे। घर-के-घर खाली होते जा रहे थे। हर रोज़ घरों से दो-चार शव निकाले जाते थे।

(ख) रात की भयानकता के कारण लोगों में मौत का डर समाया रहता था, परंतु पहलवान की ढोलक की आवाज़ गाँव के सभी लोगों को सहारा देती थी। चाहे बीमार लोगों को कोई औषधि न मिलती हो, परंतु उन्हें उत्साह अवश्य मिलता था।

(ग) पहलवान की ढोलक की आवाज़ सुनकर लोगों के निराश तथा मरे हुए मनों में भी उत्साह की लहरें उत्पन्न हो जाती थीं। उनकी आँखों के सामने दंगल का नजारा नाचने लगता था और वे मरते समय मृत्यु से डरते नहीं थे।

(घ) ढोलक की आवाज़ गाँव के अधमरे, औषधि, उपचार तथा पथ्यहीन प्राणियों में संजीवनी का काम करती थी।

[12] उस दिन पहलवान ने राजा श्यामानंद की दी हुई रेशमी जाँघिया पहन ली। सारे शरीर में मिट्टी मलकर थोड़ी कसरत की, फिर दोनों पुत्रों को कंधों पर लादकर नदी में बहा आया। लोगों ने सुना तो दंग रह गए। कितनों की हिम्मत टूट गई। किंत, रात में फिर पहलवान की ढोलक की आवाज़, प्रतिदिन की भाँति सुनाई पड़ी। लोगों की हिम्मत दुगुनी बढ़ गई। संतप्त पिता-माताओं ने कहा-“दोनों पहलवान बेटे मर गए, पर पहलवान की हिम्मत तो देखो, डेढ़ हाथ का कलेजा है!” चार-पाँच दिनों के बाद। एक रात को ढोलक की आवाज़ नहीं सुनाई पड़ी। ढोलक नहीं बोली। पहलवान के कुछ दिलेर, किंतु रुग्ण शिष्यों ने प्रातःकाल जाकर देखा-पहलवान की लाश ‘चित’ पड़ी है। [पृष्ठ-115]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘पहलवान की ढोलक’ से उद्धृत है। इसके कहानीकार आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु हैं। लेखक ने असंख्य उपन्यासों, कहानियों, संस्मरणों द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। प्रस्तुत कहानी में लेखक ने आँचलिक जन-जीवन तथा लोक-संस्कृति का सजीव वर्णन किया है तथा पहलवानी को एक कला के रूप में प्रस्तुत किया है। यहाँ लेखक ने लुट्टन सिंह पहलवान के आखिरी क्षणों का संवेदनशील वर्णन किया है

व्याख्या-लुट्टन सिंह पहलवान के दोनों बेटे भी महामारी का शिकार बन गए, परंतु पहलवान के चेहरे पर कोई दुख का भाव नहीं था। उस दिन उसने राजा श्यामानंद द्वारा दिया गया रेशमी जाँघिया पहना और सारे शरीर पर मिट्टी मली। तत्पश्चात् उसने खूब व्यायाम किया और दोनों बेटों की लाशों को अपने कँधों पर लादकर पास की नदी में प्रवाहित कर दिया। जब लोगों ने इस समाचार को सुना तो सभी हैरान रह गए। कुछ लोगों की तो हिम्मत टूट गई। उनका सोचना था कि दोनों बेटों के मरने के बाद पहलवान निराश हो गया होगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ। हर रोज़ की तरह रात के समय पहलवान की ढोलक की आवाज़ सुनाई दे रही थी। इससे निराश लोगों की हिम्मत दोगुनी बढ़ गई। दुखी पिता और माताओं ने यह कहा कि भले ही लुट्टन पहलवान के दोनों बेटे मर गए हैं, परंतु उसमें बड़ी हिम्मत और हौंसला है। उसका दिल बड़ा मज़बूत है। ऐसा दिल आम लोगों के पास नहीं होता।

लेकिन चार-पाँच दिन बीतने के बाद एक रात ऐसी आई कि ढोलक की आवाज़ बंद हो गई। ढोलक की आवाज़ सुनाई नहीं दी। सुबह पहलवान के कुछ उत्साही और बीमार शिष्यों ने जाकर देखा तो पहलवान की लाश ज़मीन पर चित्त पड़ी है अर्थात् उसकी लाश पीठ के बल पड़ी है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने लुट्टन पहलवान तथा उसके दोनों बेटों की मृत्यु का संवेदनशील वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैलियों का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) लुट्टन पहलवान ने अपने दोनों बेटों के शवों को किस प्रकार दफनाया?
(ख) लोग पहलवान की किस बात पर हैरान थे?
(ग) किस घटना से लोगों की हिम्मत टूट गई?
(घ) पहलवान की ढोलक बजनी क्यों बंद हो गई?
(ङ) पहलवान की मौत का कैसे पता चला?
(च) मौत के बारे में पहलवान की क्या इच्छा थी और क्यों?
उत्तर:
(क) लुट्टन पहलवान ने राजा श्यामानंद का दिया हुआ रेशमी जाँघिया पहना। फिर शरीर पर मिट्टी रगड़कर खूब व्यायाम किया और अपने दोनों बेटों के शवों को कंधों पर लादकर नदी में प्रवाहित कर आया।

(ख) लोग पहलवान की हिम्मत के कारण हैरान थे। पिता होते हुए भी वह अपने बेटों की मौत पर नहीं रोया। मरते दम तक वह ढोल बजाता रहा। यही नहीं, अपने बेटों को बीमारी से लड़ने के लिए उत्साहित करता रहा। उनकी मृत्यु होने पर वह उन दोनों की लाशों को अपने कंधों पर लादकर नदी में प्रवाहित कर आया।

(ग) लोगों ने देखा कि उन सबका उत्साह बढ़ाने वाले पहलवान के दोनों बेटे मर गए हैं और वह उनकी लाशों को अपने कंधों पर लादकर नदी में प्रवाहित कर आया था। इस घटना से लोगों की हिम्मत टूट गई थी। वे यह समझने लगे कि अब तो पहलवान बहुत ही निराश हो गया है। अतः वह अब ढोल नहीं बजाएगा।

(घ) पहलवान ने अपने आखिरी दम तक ढोलक को बजाना जारी रखा। उसकी मृत्यु होने के बाद ही ढोलक बजनी बंद हो गई। (ङ) जब ढोलक का बजना बंद हो गया तो लोगों ने समझ लिया कि अब पहलवान भी संसार से विदा हो चुका है।

(च) मौत के बारे में पहलवान की यह इच्छा थी कि उसके शव को चिता पर चित्त न लिटाया जाए क्योंकि वह जीवन में कभी भी किसी से चित्त नहीं हुआ था। इसलिए उसने अपने शिष्यों को कह रखा था कि उसके शव को चिता पर पेट के बल लिटाया जाए और मुखाग्नि देते समय ढोलक बजाई जाए।

पहलवान की ढोलक Summary in Hindi

पहलवान की ढोलक लेखक-परिचय

प्रश्न-फणीश्वर नाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
फणीश्वर नाथ रेणु का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-श्री फणीश्वर नाथ रेणु हिंदी साहित्य में एक आंचलिक कथाकारक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म 4 मार्च, 1921 को बिहार के पूर्णिया (अब अररिया) जनपद के औराही हिंगना नामक गाँव में हुआ। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की। बाद में रेणु जी ने फर्बिसगंज, विराटनगर, नेपाल तथा हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से शिक्षा प्राप्त की। राजनीति में उनकी सक्रिय भागीदारी थी और वे आजीवन दमन तथा शोषण के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। सन् 1942 में रेणु ने स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया और तीन वर्ष तक नज़रबंद रहे। जेल से छूटने के बाद उन्होंने ‘किसान आंदोलन’ का नेतृत्व किया। यही नहीं, उन्होंने नेपाल की राणाशाही के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष भी किया, लेकिन 1953 में साहित्य-सृजन में जुट गए। राजनीतिक आंदोलन से उनका गहरा जुड़ाव रहा। पुलिस तथा प्रशासन का दमन सहते हुए वे साहित्य-सृजन में जुटे रहे। सत्ता के दमन चक्र का विरोध करते हुए उन्होंने राष्ट्रीय सम्मान ‘पद्मश्री’ की उपाधि का भी त्याग कर दिया। 11 अप्रैल, 1977 को इस महान् आँचलिक रचनाकार का निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-रेणु जी मूलतः कथाकार हैं, लेकिन उन्होंने कुछ संस्मरण तथा रिपोर्ताज भी लिखे हैं।

  • उपन्यास ‘मैला आँचल’ (1954), ‘परती परिकथा’ (1957), ‘दीर्घतपा’ (1963), ‘जुलूस’ (1965), ‘कितने चौराहे’ (1966), ‘पलटू बाबूरोड’ ‘मरणोपरांत’ (1979)।
  • कहानी-संग्रह ‘ठुमरी’ (1957) ‘अग्निखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘एक श्रावणी दोपहरी की धूप’, ‘तीसरी कसम’।
  • संस्मरण-‘ऋण जल धन जल’, ‘वन तुलसी की गंध’, ‘श्रुत-अश्रुत पूर्व’।।
  • रिपोर्ताज-‘नेपाली क्रांति कथा’, ‘पटना की बाढ़’।

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3. साहित्यिक विशेषताएँ-फणीश्वर नाथ रेणु को अपने पहले उपन्यास ‘मैला आँचल’ से विशेष ख्याति मिली। इसकी कथा भूमि उत्तरी-बिहार के पूर्णिया अँचल की है। इसके बाद लेखक ने प्रायः आँचलिक उपन्यासों तथा कहानियों उन्होंने बिहार के सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक चेतना का बड़ी बारीकी से चित्रण किया है। उनका साहित्य आँचलिक प्रदेश की लोक संस्कृति तथा लोक विश्वासों और लोगों के जीवन-क्रम पर पड़ने वाले प्रभावों को बड़ी आत्मीयता से उकेरता है। वस्तुतः मैला आँचल के प्रकाशन के शीघ्र बाद उन्हें रातों-रात एक महान साहित्यकार की उपाधि प्राप्त हो गई। जहाँ अन्य साहित्यकार स्वतंत्रता प्राप्ति को आधार बनाकर साहित्य की रचना करने लगे, वहाँ रेणु ने अपनी रचनाओं के द्वारा अँचल की समस्याओं की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। ‘पहलवान की ढोलक’ रेणु जी की एक प्रतिनिधि कहानी है, जिसमें लेखक ने ग्रामीण अंचल की संस्कृति को बड़ी सजीवता के साथ अंकित किया है। उनके संपूर्ण कथा साहित्य में कथावस्तु, पात्रों का चरित्र-चित्रण, देशकाल, कथोपकथन, भाषा-शैली तथा उद्देश्य की दृष्टि से सर्वत्र आँचलिकता का ही आभास होता है। वे सच्चे अर्थों में आंचलिक कथाकार कहे जा सकते हैं।

4. भाषा-शैली-रेणु जी ने अपनी रचनाओं में प्रायः आँचलिक भाषा का ही प्रयोग किया है। भले ही उनकी रचनाओं की भाषा हिंदी है, परंतु उसमें यत्र-तत्र आँचलिक शब्दों का अत्यधिक प्रयोग किया गया है। लेखक ने अपनी प्रत्येक रचना में सहज एवं सरल, हिंदी भाषा का प्रयोग करते समय तत्सम, तद्भव तथा आँचलिक शब्दों का सुंदर मिश्रण किया है। कहीं-कहीं वे अंग्रेज़ी शब्दों का देशीकरण भी कर लेते हैं और कहीं-कहीं मैनेजर, क्लीन-शेव्ड, होरीबुल, टैरिबुल आदि अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने से भी नहीं चूकते। उनकी रचनाएँ विशिष्ट भाषा प्रयोग के लिए प्रसिद्ध हैं।

एक उदाहरण देखिए-“लुट्टन पहलवान ने चाँद सिंह को ध्यान से देखा फिर बाज़ की तरह उस पर टूट पड़ा। देखते-ही-देखते पासा पलटा और चाँद सिंह चाहकर भी जीत न सका। राजा साहब की स्नेह दृष्टि लुट्टन पर पड़ी, बस फिर क्या था, उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लग गए। जीवन सुख से कटने लगा। पर दो पहलवान पुत्रों को जन्म देकर उसकी स्त्री चल बसी।”

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि फणीश्वर नाथ रेणु की साहित्यिक रचनाएँ कथ्य तथा शिल्प दोनों दृष्टियों से उच्च कोटि की आँचलिक रचनाएँ हैं। उन्होंने बिहार के जन-जीवन का जो यथार्थपरक वर्णन किया है, वह बेमिसाल बन पड़ा है। वे प्रायः वर्णनात्मक, विवेचनात्मक, मनोविश्लेषणात्मक, प्रतीकात्मक तथा संवादात्मक शैलियों का सफल प्रयोग करते हैं।

पहलवान की ढोलक पाठ का सार

प्रश्न-
फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित ‘पहलवान की ढोलक’ नामक कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
फणीश्वर नाथ रेणु एक आंचलिक कथाकार हैं। उन्होंने ग्रामीण जन-जीवन से संबंधित अनेक कहानियाँ लिखी हैं। ‘पहलवान की ढोलक’ उनकी एक महत्त्वपूर्ण कहानी है जिसमें उन्होंने लुट्टन नामक पहलवान की जीने की इच्छा और उसकी हिम्मत का यथार्थ वर्णन किया है।
1. गाँव में मलेरिया और हैजे का प्रकोप-गाँवों में हैजा और मलेरिया बुरी तरह से फैल चुका था। रात का घना काला अंधकार और भयानक सन्नाटा छाया हुआ था। भले ही यह अमावस्या की काली रात थी, लेकिन आकाश में तारे चमक रहे थे। पास ही जंगल से गीदड़ों और उल्लुओं की डरावनी आवाजें सुनाई दे रही थीं। उनकी आवाज़ों से रात का सन्नाटा भंग हो रहा था। गाँव की झोंपड़ियों में लेटे हुए मरीज ‘हरे राम’! हे भगवान। कह कर ईश्वर की सहायता माँग रहे थे, बच्चे अपने निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ कहते हुए रो रहे थे। भयंकर सर्दी में कुत्ते राख की ढेरियों पर अपने शरीर सिकोड़कर लेटे हुए थे। जब कुत्ते सर्दी के मारे रोने लगते थे तो उस वातावरण में भयानकता व्याप्त हो जाती थी। रात्रि का यह वातावरण बड़ा भयावह लग रहा था। लेकिन लुट्टन पहलवान की ढोलक निरंतर बज रही थी। चाहे दिन हो या रात हो, उसकी ढोलक निरंतर बजती रहती थी-‘चट्-धा, गिड़-धा…. चट्-धा, गिड़-धा!’ अर्थात् ‘आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा!’… बीच-बीच में ‘चटाक्-चट्-धा!’ यानी उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!’ इस प्रकार लुट्टन पहलवान के ढोलक की थाप गाँव के लोगों में संजीवनी भर देती थी। इसी ढोलक की आवाज़ के सहारे लोग रात के जाड़े को काट लेते थे। पूरे जिले में लुट्टन पहलवान काफी प्रसिद्ध था।

2. बाल्यावस्था में लुट्टन का विवाह लुट्टन की शादी बचपन में ही हो गई थी। नौ वर्ष का होते-होते उसके माता-पिता का देहांत हो गया। सास ने ही उसका पालन-पोषण किया। वह अकसर गाय चराने जाता था, ताजा दूध पीता था और खूब व्यायाम करता था, परंतु गाँव के लोग उसकी सास को तकलीफ पहुँचाते रहते थे। इसी कारण वह पहलवान बन गया और कुश्ती लड़ने लगा। धीरे-धीरे वह आसपास के गाँवों में नामी पहलवान बन गया था, परंतु उसकी कश्ती ढोल की आवाज के साथ जुड़ी हुई थी।

3. श्यामनगर के दंगल का आयोजन एक बार श्यामनगर में दंगल का आयोजन हुआ। लुट्टन भी दंगल देखने गया। इस दंगल में चाँद सिंह नामक पहलवान अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ आया था। उसने लगभग सभी पहलवानों को हरा दिया, जिससे उसे “शेर के बच्चे” की उपाधि मिली। किसी पहलवान में यह हिम्मत नहीं थी कि वह उसका सामना करता। श्यामनगर के राजा चाँद सिंह को अपने दरबार मे रखने की सोच ही रहे थे कि इसी बीच लुट्टन ने चाँद सिंह को चुनौती दे डाली। लुट्टन ने अखाड़े में अपने लंगोट लगाकर किलकारी भरी। लोगों ने उसे पागल समझा। कुश्ती शुरू होते ही चाँद सिंह लुट्टन पहलवान पर बाज की तरह टूट पड़ा। यह देखकर राजा साहब ने कुश्ती रुकवा दी और लुट्टन को समझाया कि वह चाँद सिंह से कुश्ती न लड़े। लेकिन लुट्टन ने राजा साहब से कुश्ती लड़ने की आज्ञा माँगी। इधर राजा साहब के मैनेजर और सिपाहियों ने भी उसे बहुत समझाया, लेकिन लुट्टन ने कहा कि यदि राजा साहब उसे लड़ने की अनुमति नहीं देंगे तो वह पत्थर पर अपना सिर मार-मार मर जाएगा। भीड़ काफी बेचैन हो रही थी। पंजाबी पहलवान लुट्टन को गालियाँ दे रहे थे और चाँद सिंह मुस्कुरा रहा था, परंतु कुछ लोग चाहते थे कि लुट्टन को कुश्ती लड़ने का मौका मिलना चाहिए। आखिर मजबूर होकर राजा साहब ने लुट्टन को कुश्ती लड़ने की आज्ञा दे दी।

4. लट्टन और चाँद सिंह की कुश्ती-ज़ोर-ज़ोर से बाजे बजने लगे। लुट्टन का अपना ढोल भी बज रहा था। अचानक चाँद सिंह ने लुट्टन पर हमला किया और उसे कसकर दबा लिया। उसने लुट्टन की गर्दन पर कोहनी डालकर उसे चित्त करने की कोशिश की। दर्शक चाँद सिंह को उत्साहित कर रहे थे। उसका गुरु बादल सिंह भी चाँद सिंह को गुर बता रहा था। ऐसा लग रहा था कि लुट्टन की आँखें बाहर निकल आएँगी। उसकी छाती फटने को हो रही थी। सभी यह सोच रहे थे कि लुट्टन हार जाएगा। केवल ढोल की आवाज़ की ताल ही एक ऐसी शक्ति थी जो लुट्टन को हिम्मत दे रही थी।

5. लुट्टन की विजय-ढोल ने “धाक धिना”, “तिरकट तिना” की आवाज़ दोहराई। लुट्टन ने इसका अर्थ यह लगाया कि चाँद सिंह के दाँव को काटकर बाहर निकल जा। सचमुच लुट्टन बाहर निकल गया और उसने चाँद सिंह की गर्दन पर कब्जा कर लिया। ढोल ने अगली आवाज़ निकाली “चटाक् चट् धा” अर्थात् उठाकर पटक दे और लुट्टन ने चाँद सिंह को उठाकर धरती पर दे मारा। अब ढोलक ने “धिना-धिना धिक धिना” की आवाज़ निकाली। जिसका यह अर्थ था कि लुट्टन ने चाँद सिंह को चारों खाने चित्त लक ने “धा-गिड-गिड” वाह बहादर की ध्वनि निकाली। लट्टन जीत गया था। लोग माँ दुर्गा, महावीर तथा राजा श्यामानंद की जय-जयकार करने लग गए। लुट्टन ने श्रद्धापूर्वक ढोल को प्रणाम किया और फिर राजा साहब को गोद में उठा लिया। राजा साहब ने लुट्टन को शाबाशी दी और उसे हमेशा के लिए अपने दरबार में रख लिया।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक

6. राज-दरबार में लुट्टन का काल-पंजाबी पहलवान चाँद सिंह के आँसू पोंछने लगे। बाद में राज-पंडित तथा क्षत्रिय मैनेजर ने नियुक्ति का विरोध भी किया। उनका कहना था कि राज-दरबार में केवल क्षत्रिय पहलवान की ही नियुक्ति होनी चाहिए, परंतु राजा साहब ने उनका समर्थन नहीं किया। शीघ्र ही राज्य की ओर से लुट्टन के लिए सारी व्यवस्था कर दी गई। कुछ दिनों में लुट्टन ने आसपास के सभी पहलवानों को पराजित कर दिया। यहाँ तक कि काले खाँ पहलवान भी लुट्टन से हार गया। राज-दरबार का आसरा मिलने के बाद लुट्टन घुटने तक लंबा चोगा पहने अस्त-व्यस्त पगड़ी पहने हुए मेलों में हाथी की चाल चलते हुए घूमता था। हलवाई के कहने पर वह दो सेर, रसगुल्ले खा जाता था। यहाँ तक कि आठ दस पान एक-ही बार मुँह में रखकर चबा जाता था, परंतु उसके शौक बच्चों जैसे थे। वह आँखों पर रंगीन चश्मा लगाता था। हाथ में खिलौने नचाता था और मुँह से पीतल की सीटी बजाता था।

7. लुट्टन का प्रभाव-लुट्टन हर समय हँसता रहता था। दंगल में कोई भी उससे कुश्ती करने की हिम्मत नहीं करता था। यदि कोई उससे कुश्ती करना भी चाहता तो राजा साहब उसे अनुमति नहीं देते थे। इस प्रकार राजदरबार में रहते हुए लुट्टन ने पंद्रह वर्ष व्यतीत कर दिए। लुट्टन की सास और पत्नी दोनों मर चुके थे। उसके दो बेटे थे। वे दोनों अच्छे पहलवान थे। लोग कहते थे कि ये दोनों लड़के बाप से भी अच्छे पहलवान निकलेंगे। शीघ्र ही दोनों को राजदरबार के भावी पहलवान घोषित कर दिया गया। तीनों का भरण-पोषण राजदरबार की तरफ से हो रहा था। लुट्टन अपने लड़कों से कहा करता था कि मेरा गुरु कोई मनुष्य न होकर, ढोल है। मैं इसे ही प्रणाम करके अखाड़े में उतरता हूँ। तुम दोनों भी इसी को प्रणाम करके अखाड़े में उतरना। शीघ्र ही उसने अपने बेटों को पहलवानी के सारे गुर सिखा दिए।

8. राजा साहब की मृत्यु और लुट्टन का बेटों सहित गाँव लौटना अचानक राजा साहब का स्वर्गवास हो गया। नया राजकुमार विलायत से पढ़कर लौटा था। शीघ्र ही उसने राजकाज को सँभाल लिया। उसने राज प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के लिए अनेक प्रयत्न किए जिससे लुट्टन और उसके बेटों की छुट्टी कर दी गई। लुट्टन अपने बेटों को साथ लेकर और ढोल कंधे पर रखकर गाँव लौट आया। गाँव के लोगों ने उनके लिए एक झोंपड़ी बना दी। जहाँ लुट्टन गाँव के नौजवानों और ग्वालों को कुश्ती की शिक्षा देने लगा। खाने-पीने का खर्च भी गाँव वाले उठा रहे थे, परंतु यह व्यवस्था अधिक दिन तक नहीं चल पाई। गाँव के सभी नौजवानों ने अखाड़े में आना बंद कर दिया। अब लुट्टन केवल अपने दोनों लड़कों को ही कुश्ती के गुर सिखा रहा था।

9. लुट्टन के जीवन तथा परिवार का अंत-अचानक गाँव पर भयानक संकट आ गया। पहले तो गाँव में सूखा पड़ गया, जिससे गाँव में अनाज की भारी कमी हो गई। शीघ्र ही मलेरिया और हैजे का प्रकोप फैल गया। गाँव में एक के बाद एक घर उजड़ने लगे। प्रतिदिन दो-तीन मौतें हो जाती थीं। लोग रोते हुए एक-दूसरे को सांत्वना देते थे। दिन छिपते ही लोग अपने घरों में छिप जाते थे। चारों ओर मातम छाया रहता था। केवल पहलवान की ढोलक बजती रहती थी। गाँव के बीमार कमजोर तथा अधमरे लोगों के लिए ढोलक की आवाज़ संजीवनी शक्ति का काम कर रही थी।

एक दिन तो पहलवान पर भी वज्रपात हो गया। उसके दोनों बेटे भी मृत्यु का ग्रास बन गए। लुट्टन ने लंबी साँस लेते हुए यह कहा कि “दोनों बहादुर गिर पड़े।” उस दिन लुट्टन ने राजा साहब द्वारा दिया रेशमी जांघिया पहना और शरीर पर मिट्टी मलकर खूब कसरत की। फिर वह दोनों बेटों को कंधे पर लादकर नदी में प्रवाहित कर आया। यह घटना देखकर गाँव वालों के भी हौंसले पस्त हो गए। चार-पाँच दिन बाद एक रात को ढोलक की आवाज बंद हो गई। लोग समझ गए कि कोई अनहोनी हो गई है। सुबह होने पर शिष्यों ने झोंपड़ी में जाकर देखा कि लुट्टन पहलवान की लाश चित्त पड़ी थी। शिष्यों ने गाँव वालों को बताया कि उनके गुरु लुट्टन ने यह इच्छा प्रकट की थी कि उसके शव को चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह जिंदगी में कभी चित नहीं हुआ और चिता को आग लगाने के बाद ढोल बजाया जाए। गाँव वालों ने ऐसा ही किया।

कठिन शब्दों के अर्थ

अमावस्या = चाँद रहित अंधेरी रात। मलेरिया = एक रोग जो मच्छरों के काटने से फैलता है। हैजा = प्रदूषित पानी से फैलने वाला रोग। भयार्त्त = भय से व्याकुल। शिशु = छोटा बच्चा। सन्नाटा = चुप्पी। निस्तब्धता = चुप्पी, मौन। चेष्टा = कोशिश। भावुक = कोमल मन वाला व्यक्ति। ज्योति = प्रकाश। शेष होना = समाप्त होना। क्रंदन = चीख-पुकार। पेचक = उल्लू । कै करना = उल्टी करना। मन मारना = थक कर हार जाना। टेर = पुकार । निर्बल = कमज़ोर। कंठ = गला। ताड़ना = भाँपना। घूरा = गंदगी का ढेर। संध्या = सांझ। भीषणता = भयंकरता। ताल ठोकना = चुनौती देना, ललकारना। मृत = मरा हुआ। संजीवनी = प्राण देने वाली बूटी। होल इंडिया = संपूर्ण भारत । अनाथ = बेसहारा। अनुसरण करना = पीछे-पीछे चलना। धारोष्ण = गाय-भैंस के थनों से निकलने वाला ताजा दूध । नियमित = हर रोज। सुडौल = मज़बूत। दाँव-पेंच = कुश्ती लड़ने की युक्तियाँ। बिजली उत्पन्न करना = तेज़ी उत्पन्न करना। चुनौती = ललकारना। अंग-प्रत्यंग = प्रत्येक अंग। पट्टा = पहलवान। टायटिल = पदवी। किलकारी = खुशी की आवाज़। दुलकी लगाना = उछलकर छलांग लगाना। किंचित = शायद। स्पर्धा = मुकाबला। पैंतरा = कुश्ती का दांव-पेंच। गोश्त = माँस । अधीर = व्याकुल । जमायत = सभा। उत्तेजित = भड़कना। प्रतिद्वंद्वी = मुकाबला करने वाला। विवश = मजबूर। हलुआ होना = पूरी तरह से कुचला जाना। चित्त करना = पीठ लगाना, हराना। आश्चर्य = हैरानी। जनमत = लोगों का साथ।

चारों खाने चित्त करना = पूरी तरह से हरा देना। सन-जाना = भर जाना। आपत्ति करना = अस्वीकार। गद्गद् होना = प्रसन्न होना। पुरस्कृत करना = इनाम देना। मुँह बिचकाना = घृणा करना। संकुचित = सिकुड़ा हुआ। कीर्ति = यश। पौष्टिक = पुष्ट करने वाला। चार चाँद लगाना = शान बढ़ाना। आसमान दिखाना = हरा देना, चित्त करना। टूट पड़ना = आक्रमण करना। लकवा मारना = पंगु हो जाना। भ्रम दूर करना = संदेह को दूर करना। दर्शनीय = देखने योग्य । अस्त-व्यस्त = बिखरा हुआ। मतवाला = मस्त। चुहल = शरारत। उदरस्थ = पेट में डालना। हुलिया = रूप-सज्जा। अबरख = रंगीन चमकीला कागज़। वृद्धि = बढ़ोतरी। देह = शरीर । अजेय = जो जीता न जा सके। अनायास = अचानक। भरण-पोषण = पालन-पोषण। प्रताप = शक्ति। पानी फिरना = समाप्त होना। विलायत = विदेश। शिथिलता = ढिलाई । चपेटाघाट = लपेट में लेकर प्रहार करना। टैरिबल = भयानक। हौरिबल = अत्यधिक भयंकर। छोर = किनारा । चरवाहा = पशु चराने वाला। अकस्मात = अचानक। वज्रपात होना = वज्र का प्रहार होना, बहुत दुख होना। अनावृष्टि = सूखा पड़ना। कलरव = शोर। हाहाकार = रोना-पीटना। हृदय-विदारक रुदन = दिल को दहलाने वाला रोना। प्रभा = प्रकाश। काँखते-कूँखते = सूखी खाँसी करते हुए। आत्मीय = अपने प्रिय। ढाढ़स देना = तसल्ली देना। विभीषिका = भयानक स्थिति। अर्द्धमृत = आधे मरे हुए। औषधि = दवाई। पथ्य-विहीन = औषधि रहित। संजीवनी शक्ति = जीवन देने वाली ताकत। स्पंदन-शक्ति-शून्य = धड़कन रहित। स्नायु = नसें। आँख मूंदना = मरना। क्रूर काल = कठोर मृत्यु। असह्य वेदना = ऐसी पीड़ा जो सहन न की जा सके। दंग रहना = हैरान होना। हिम्मत टूटना = निराश होना। संतप्त = दुखी। डेढ़ हाथ का कलेजा = बहुत बड़ा कलेजा। रुग्ण = बीमार।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class Hindi भक्तिन Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?
उत्तर:
भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था। लक्ष्मी धन-संपत्ति की देवी होती है। परंतु इस लक्ष्मी के भाग्य में धन तो नाममात्र भी नहीं था। उसे हमेशा गरीबी भोगनी पड़ी। केवल कुछ दिनों के लिए उसे भरपेट भोजन मिल सका, जब वह अपने पति के साथ परिवार से अलग होकर रहने लगी थी। अन्यथा आजीवन दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। अतः धन की देवी लक्ष्मी का मान रखने के लिए वह हमेशा अपने नाम को छुपाती रही। उसने केवल लेखिका को अपना सही नाम बताया, परंतु साथ ही यह भी निवेदन कर दिया कि वह उसे लछमिन (लक्ष्मी) नाम से कभी न पुकारे।

भक्तिन को लछमिन (लक्ष्मी) नाम उसके माता-पिता ने दिया होगा। इस नाम के पीछे उनकी स्नेह-भावना रही होगी। शायद उन्होंने यह भी सोचा होगा कि यह नाम रखने से उनके अपने घर में धन का आगमन होगा और विवाह के बाद वह किसी खाते-पीते परिवार में ब्याही जाएगी। अतः उन्होंने अपनी बेटी को लक्ष्मी स्वरूप मानकर उसका यह नाम रखा होगा।

प्रश्न 2.
दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अकसर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर:
भक्तिन ने दो नहीं, अपितु तीन कन्याओं को जन्म दिया था। कन्या-रत्न उत्पन्न करने के बावजूद भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी रही। इससे यह सिद्ध होता है कि भारतीय समाज युगों से बेटियों की अपेक्षा बेटों को महत्त्व देता रहा है। भक्तिन की जिठानियाँ यह सोचकर स्वयं को भाग्यवान समझती रहीं और भक्तिन की उपेक्षा करती रहीं। भक्तिन के संदर्भ में यह धारणा सही प्रतीत होती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। भक्तिन को उपेक्षा तथा घृणा घर की स्त्रियों से ही प्राप्त हुई। उसका पति तो उसे हमेशा सम्मान एवं आदर देता रहा।

सच्चाई तो यह है कि स्त्रियाँ स्वयं ही अपने-आप को पुरुषों से हीन समझती हैं। इसीलिए वे पुत्रवती होने की कामना करती हैं। इसके पीछे समाज की यह धारणा भी चली आ रही है कि बेटे ही वंश को आगे बढ़ाते हैं, बेटियाँ नहीं। कन्या भ्रूण हत्या के पीछे भी नारियों की सहमति हमेशा होती है। विशेषकर, सास ही बहू को इस काम के लिए उकसाती है। स्त्रियाँ ही लड़का-लड़की के भेदभाव को बढ़ावा देती हैं। वे ही दहेज की माँग रखती हैं। यही नहीं, बहू को कष्ट देने में सास की विशेष भूमिका रहती है। अतः यह कहना सर्वथा उचित होगा कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है।

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प्रश्न 3.
भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?
उत्तर:
भक्तिन की विधवा बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के तीतरबाज़ साले ने जोर ज़बरदस्ती की, वह निश्चय से रेप था। उसे इस दुराचरण के लिए दंड मिलना चाहिए था। लेकिन गाँव की पंचायत ने न्याय न करके अन्याय किया और लड़की की अनिच्छा के बावजूद उसे तीतरबाज़ युवक की पत्नी घोषित कर दिया। विवाह के मामले में लड़की की रजामंदी की ओर हमारा समाज ध्यान नहीं देता। यह निश्चय से मानवाधिकार का हनन है। विशेषकर, गाँवों की पंचायतें हमेशा लड़कियों के स्वर को दबाने का काम करती रही हैं, जिससे भक्तिन की बेटी के समान कोई भी लड़की विरोध करने का साहस नहीं करती। अतः भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना स्त्री के मानवाधिकार को कुचलना है।

प्रश्न 4.
भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं- लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:
लेखिका को पता है कि भक्तिन में अनेक गुणों के बावजूद कुछ दुर्गुण भी हैं। भक्तिन के निम्नलिखित कार्य ही दुर्गुण कहे जा सकते हैं और लेखिका भी ऐसा ही मानती है।

  1. भक्तिन लेखिका के इधर-उधर पड़े पैसों को भंडार-घर की मटकी में छिपाकर रख देती है। पूछने पर वह इसे चोरी नहीं मानती, बल्कि तर्क देकर इसे पैसे सँभालकर रखना कहती है और लेखिका को ये पैसे लौटाती नहीं।
  2. जब उसकी मालकिन कभी उस पर क्रोधित होती है तो वह बात को इधर-उधर कर बताती है और इसे झूठ बोलना नहीं मानती।
    शास्त्रीय कथनों का वह इच्छानुसार व्याख्या करती है।।
  3. वह दूसरों के कहे को नहीं मानती, बल्कि दूसरों को भी अपने अनुसार बना लेती है।
  4. स्वामिनी द्वारा चले जाने के आदेश को वह हँसकर टाल देती है और लेखिका के घर को छोड़कर नहीं जाती।

प्रश्न 5.
भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
उत्तर:
भक्तिन स्वयं को बहुत समझदार समझती है। वह प्रत्येक बात का अपने ढंग से अर्थ निकालना जानती है। जब लेखिका ने उसे सिर मुंडवाने से रोकना चाहा तो भक्तिन ने शास्त्रों की दुहाई दी और यह कहा कि शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है-“तीरथ गए मँडाए सिद्ध”। लगता है यह उक्ति उसकी अपनी गढी हई है अथवा लोगों से सनी-सुनाई है।

प्रश्न 6.
भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गईं?
उत्तर:
भक्तिन स्वयं पूर्णतया देहाती थी। वह अपनी देहाती जीवन-पद्धति को नहीं छोड़ सकी। इसलिए उसने महादेवी को भी अपने साँचे में ढाल लिया। उसे जो कुछ सहज और सरल पकाना आता था, महादेवी को वही खाना पड़ता था। लेखिका को रात को बने मकई के दलिए के साथ मट्ठा पीना पड़ता था। बाजरे के तिल वाले पुए खाने पड़ते थे और ज्वार के भुने हुए भुट्टे की खिचड़ी भी खानी पड़ती थी। यह सब देहाती भोजन था और यही महादेवी को खाने के लिए मिलता था। अतः महादेवी भी भक्तिन के समान देहाती बन गई।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
आलो आँधारि की नायिका और लेखिका बेबी हालदार और भक्तिन के व्यक्तित्व में आप क्या समानता देखते हैं?
उत्तर:
बेबी हालदार और भक्तिन दोनों ही नारी जाति के अधिकारों के लिए संघर्ष करती हैं। जिस प्रकार बेबी हालदार अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए सभी झुग्गी वालों का विरोध करती है और पति के अभाव में भी मेहनत द्वारा अपने बच्चों को पालती है, उसी प्रकार भक्तिन भी अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ते हुए अपने जेठ तथा जिठानियों के अन्याय का विरोध करती है। वह निरंतर संघर्ष करके अंत तक अपनी ज़मीन-जायदाद की हकदार बनी रहती है। पुनः ये दोनों नायिकाएँ दूसरे विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा देती हैं तथा सादा और सरल जीवन व्यतीत करती हैं।

प्रश्न 2.
भक्तिन की बेटी के मामले में जिस तरह का फैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज़ बात नहीं है। अखबारों या टी०वी० समाचारों में आनेवाली किसी ऐसी ही घटना को भक्तिन के उस प्रसंग के साथ रखकर उस पर चर्चा करें।
उत्तर:
आज भी ग्राम पंचायतें रूढ़ियों एवं जड़-परंपराओं का ही पालन कर रही हैं। विशेषकर, बेटियों के मामले में हमारी पंचायतें रूढ़ियाँ ही अपनाती हैं। भले ही गाँव के दबंग लोग निम्न जाति की औरतों अथवा लड़कियों के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करें, लेकिन ग्राम पंचायतें उनके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठा पातीं। अकसर अखबारों या टी०वी० पर इस प्रकार के समाचार पढ़ने या देखने को मिलते रहते हैं कि एक ही गाँव के युवक-युवती के विवाह को भाईचारे के नाम पर अवैध घोषित किया जाता है और उन्हें भाई-बहन बन कर रहना पड़ता है। जो भी पंचायत के तुगलकी फरमान का उल्लंघन करता है उसका वध तक कर दिया जाता है। अतः विवाह के मामले में हमारी पंचायतों का रुख आज भी रूढ़िवादी है।

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प्रश्न 3.
पाँच वर्ष की वय में ब्याही जानेवाली लड़कियों में सिर्फ भक्तिन नहीं है, बल्कि आज भी हज़ारों अभागिनियाँ हैं। बाल-विवाह और उम्र के अनमेलपन वाले विवाह की अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर दोस्तों के साथ परिचर्चा करें।
उत्तर:
निम्नलिखित बिंदुओं पर विद्यार्थी अपने मित्रों के साथ परिचर्चा कर सकते हैं

  1. भले ही हमारे देश में बाल-विवाह तथा अनमेल विवाह के विरुद्ध कानून बने हुए हैं, लेकिन फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में इन कानूनों का उल्लंघन होता रहता है।
  2. राजस्थान में एक विशेष पर्व के अवसर पर हज़ारों की संख्या में बाल-विवाह होते हैं।
  3. गाँवों में तो बाल-विवाह की बात आम है, परंतु शहरों में भी इस प्रकार के विवाह होते रहते हैं।
  4. लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए सरकारी तथा गैर-सरकारी स्तर पर लोगों को बाल-विवाह तथा अनमेल विवाह के दुष्परिणामों से अवगत कराना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
महादेवी जी इस पाठ में हिरनी सोना, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि आदि के माध्यम से पशु-पक्षी को मानवीय वाली लेखिका के रूप में उभरती हैं। उन्होंने अपने घर में और भी कई पशु-पक्षी पाल रखे थे तथा उन पर रेखाचित्र भी लिखे हैं। शिक्षक की सहायता से उन्हें ढूँढ़कर पढ़ें। जो मेरा परिवार नाम से प्रकाशित है।
उत्तर:
पुस्तकालय से ‘मेरा परिवार’ गद्य रचना को लेकर विद्यार्थी स्वयं पढ़ें। इस गद्य रचना में गिल्लू, सोना, नीलकंठ, गोरा, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि के बारे में विस्तार से पढ़ा जा सकता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए विशिष्ट भाषा-प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट कीजिए
(क) पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले
(ख) खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी
(ग) अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण
उत्तर:
अर्थ-छवि:
(क) प्रथम पंक्ति का अर्थ है कि भक्तिन ने उसी प्रकार पहली कन्या के बाद दो अन्य कन्याओं को जन्म दिया, जैसे किसी पुस्तक के नए संस्करण प्रकाशित होते हैं।

(ख) टकसाल में सिक्के ढालने का काम होता है, परंतु हमारे समाज में लड़के को खरा सिक्का और लड़की को खोटा सिक्का माना गया है। ऐसा माना जाता है कि कन्या पराया धन होती है तथा उसके विवाह में दान-दहेज देना पड़ता है। यहाँ भक्तिन द्वारा एक-एक करके तीन लड़कियों को जन्म देने के कारण व्यंग्य रूप से उसे खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी कहा गया है।

(ग) वस्तुतः भक्तिन अपने पिता की बीमारी का पता करने के लिए अपने मायके गई तो उस समय गाँव की औरतों द्वारा फुसफुसाते हुए यह बात बार-बार कही गई ‘वो आई, लक्ष्मी आ गई’। औरतों की इस फुसफुसाहट में भक्तिन के प्रति स्पष्ट सहानुभूति प्रकट की जा रही थी। क्योंकि उसकी विमाता ने बीमारी के दौरान ज़मीन-जायदाद के चक्कर में उसे सूचना नहीं भेजी थी।

प्रश्न 2.
‘बहनोई’ शब्द ‘बहन (स्त्री.) + ओई’ से बना है। इस शब्द में हिंदी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई है। पुंलिंग शब्दों में कुछ स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्रीलिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया कई भाषाओं में दिखती है, पर स्त्रीलिंग शब्द में कुछ पुं. प्रत्यय जोड़कर पुंलिंग शब्द बनाने की घटना प्रायः अन्य भाषाओं में दिखलाई नहीं पड़ती। यहाँ पुं. प्रत्यय ‘ओई’ हिंदी की अपनी विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और उनमें लगे पुं. प्रत्ययों की हिंदी तथा और भाषाओं में खोज करें।
उत्तर:
ननद शब्द स्त्रीलिंग है। इसमें ‘ओई’ (पुं. प्रत्यय) जोड़कर ‘ननदोई’ शब्द बनाया जाता है। जिसका अर्थ है- ननद का पति। विद्यार्थी शब्दकोश की सहायता से पुं. प्रत्ययों की जानकारी प्राप्त करें।

प्रश्न 3.
पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझ कर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में ढाल कर प्रस्तुत कीजिए।
(क) ई कउन बड़ी बात आय। रोटी बनाय जानित है, दाल राँध लेइत है, साग-भाजी /उक सकित है, अउर बाकी का रहा।
(ख) हमारे मालकिन तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़े लागब तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।
(ग) ऊ बिचरिअउ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं, अउर तुम पचै घूमती-फिरती हौ, चलौ तनिक हाथ बटाय लेउ।
(घ) तब ऊ कुच्छौ करिहैं धरि ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं।
(ङ) तुम पचै का का बताईयहै पचास बरिस से संग रहित है।
(च) हम कुकुरी बिलारी न होय, हमार मन पुसाई तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा पूँजब और राज करब, समुझे रहो।।
उत्तर:
(क) यह कौन-सी बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ, दाल राँध (पका) लेती हूँ, साग-सब्जी छौंक सकती हूँ और बाकी क्या रहा।

(ख) हमारी मालकिन तो रात-दिन पुस्तकों में लगी रहती है। अब यदि मैं भी पढ़ने लग गई तो घर-गृहस्थी को कौन देखेगा।

(ग) वह बेचारी तो रात-दिन काम में लगी रहती है और तुम लोग घूमते-फिरते हो। जाओ, थोड़ा उनकी सहायता करो।

(घ) तब वह कुछ करता-धरता नहीं है, बस गली-गली में गाता-बजाता फिरता है।

(ङ) तुम लोगों को क्या बताऊँ पचास वर्षों से साथ रह रही हूँ।

(च) मैं कोई कुत्तिया या बिल्ली नहीं हूँ। मेरा मन करेगा तो मैं दूसरे के यहाँ जाऊँगी, नहीं तो तुम्हारी छाती पर बैठकर अनाज भूगूंगी और राज करूँगी, यह बात अच्छी तरह से समझ लो।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

प्रश्न 4.
भक्तिन पाठ में पहली कन्या के दो संस्करण जैसे प्रयोग लेखिका के खास भाषाई संस्कार की पहचान कराता है, साथ ही ये प्रयोग कथ्य को संप्रेषणीय बनाने में भी मददगार हैं। वर्तमान हिंदी में भी कुछ अन्य प्रकार की शब्दावली समाहित हुई है। नीचे कुछ वाक्य दिए जा रहे हैं जिससे वक्ता की खास पसंद का पता चलता है। आप वाक्य पढ़कर बताएँ कि इनमें किन तीन विशेष प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हुआ है? इन शब्दावलियों या इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए आप भी कुछ वाक्य बनाएँ और कक्षा में चर्चा करें कि ऐसे प्रयोग भाषा की समृद्धि में कहाँ तक सहायक है?
→ अरे! उससे सावधान रहना! वह नीचे से ऊपर तक वायरस से भरा हुआ है। जिस सिस्टम में जाता है उसे हैंग कर देता है।
→ घबरा मत! मेरी इनस्वींगर के सामने उसके सारे वायरस घुटने टेकेंगे। अगर ज़्यादा फाउल मारा तो रेड कार्ड दिखा के हमेशा के लिए पवेलियन भेज दूंगा।
→ जानी टेंसन नई लेने का वो जिस स्कूल में पढ़ता है अपुन उसका हैडमास्टर है।
उत्तर:
उपर्युक्त वाक्यों में कंप्यूटर, खेल जगत तथा मुंबई फिल्मी दुनिया की शब्दावली का प्रयोग देखा जा सकता है।
(i) वायरस, सिस्टम तथा हैंग तीनों ही कंप्यूटर-प्रणाली के शब्द हैं। इनके अर्थ हैं-

  • वायरस – दोष
  • सिस्टम – प्रणाली
  • हैंग – ठहराव

अथवा गतिरोध या बाधा इस वाक्य का अर्थ होगा कि अरे भाई उस व्यक्ति से खबरदार रहना, वह पूर्णतया दोषों से ग्रस्त है। जिसके यहाँ भी जाता है, वहाँ पर वह सारी व्यवस्था को खराब कर देता है।।

(ii) इनस्वींगर, फाउल, रेड कार्ड तथा पवेलियन, ये चारों शब्द क्रिकेट खेल जगत से संबंधित हैं।
इनस्वींगर – भीतर तक भेदने की कोशिश करना।

  • फाउल – दोषपूर्ण कार्य
  • रेड कार्ड – बाहर जाने का इशारा
  • पवेलियन – वापिस घर भेजना, बाहर कर देना।

इस वाक्य का अर्थ होगा कि घबरा मत! मैं इस प्रकार का कार्य करूँगा कि उसे भीतर तक चोट लगेगी और उसकी सारी हेकड़ी निकल जाएगी। यदि उसने अधिक गड़बड़ी की तो मैं बच्चू को ऐसी कानूनी कार्रवाई में फँसाऊँगा कि वह यहाँ से बाहर हो जाएगा।

(iii) जानी! (संबोधन), टेंसन, स्कूल, हैडमास्टर ये चारों शब्द मुंबई फिल्मी जगत के हैं।

  • जानी – हल्का-फुल्का संबोधन
  • टेसन – चिंता करना
  • स्कूल में पढ़ना – काम करना
  • हैडमास्टर होना – बढ़-चढ़ कर होना, उस्तादों का उस्ताद होना।

इस वाक्य का अर्थ होगा कि प्रिय मित्र! तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। वह जो कुछ भी कर रहा है, मैं उस काम का अच्छा जानकार हूँ। सब कुछ ठीक कर दूंगा।

HBSE 12th Class Hindi भक्तिन Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
भक्तिन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भक्तिन महादेवी की प्रमुख सेविका थी। वह महादेवी की आयु से लगभग पच्चीस वर्ष बड़ी थी। इसलिए वह स्वयं को लेखिका की अभिभाविका समझती थी। उसकी सेवा-भावना में अभिभाविका जैसा अधिकार था, परंतु उसके हृदय में माँ की ममता भी थी। यद्यपि गृहस्थ जीवन में भक्तिन को अधिक सुख प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन महादेवी के यहाँ रहते हुए उसे सुखद जीवन प्राप्त हुआ। भले ही वह स्वभाव से कर्कश तथा दुराग्रही थी। परंतु महादेवी के प्रति उसमें आदर-सम्मान तथा समर्पण की भावना थी। वह अपनी स्वामिन को सबसे महान मानती थी। उसने लेखिका की भलाई चाहने के लिए उसकी रुचि तथा आदतों में परिवर्तन कर दिया।

वह छाया के समान महादेवी के साथ लगी रहती थी, भले ही महादेवी के कुत्ते-बिल्ली तक सो जाते थे, परंतु भक्तिन तब तक नहीं सोती थी, जब तक उसकी मालकिन जागती रहती थी। जहाँ आवश्यकता पड़ती, वह तत्काल सहायता के लिए पहुँच जाती थी। यद्यपि भक्तिन युद्ध तथा जेल जाने से बहुत डरती थी, परंतु अपनी मालकिन के लिए वह जेल जाने को भी तैयार थी। जब नगर भर में युद्ध के बादल मंडरा रहे थे तो भी भक्तिन ने अपनी मालकिन का साथ नहीं छोड़ा। इसलिए भक्तिन ने जल्दी ही एक सच्ची अभिभाविका का पद प्राप्त कर लिया। इसके साथ-साथ भक्तिन संस्कारवान, परिश्रमी तथा मधुर स्वभाव की नारी भी थी। यही कारण है कि उसका पति उससे अत्यधिक प्रेम करता था।

प्रश्न 2.
भक्तिन का नामकरण किसने किया और क्यों?
उत्तर:
भक्तिन का असली नाम लछमिन (लक्ष्मी) था, परंतु महादेवी की सेवा करते हुए वह अपना मूल नाम छिपाना चाहती थी। क्योंकि यह नाम उसके जीवन के सर्वथा प्रतिकूल था। भक्तिन के हाव-भाव, चाल-चलन, घुटा हुआ सिर और कंठी माला को देखकर ही लेखिका ने उसका यह नामकरण किया।

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प्रश्न 3.
भक्तिन की पारिवारिक पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
उत्तर:
भक्तिन ऐतिहासिक गाँव झूसी के एक प्रसिद्ध शूरवीर अहीर की इकलौती पुत्री थी। उसका पिता उसको बहुत प्यार करता था। लेकिन उसे विमाता की देखरेख में आरंभिक जीवन व्यतीत करना पड़ा। पाँच वर्ष की आयु में उसका विवाह हँडिया गाँव के एक संपन्न गोपालक के सबसे छोटे बेटे के साथ हो गया। नौ वर्ष की आयु में उसका गौना कर दिया गया। उसके पिता का बेटी के प्रति अत्यधिक स्नेह होने के कारण विमाता ने उसकी बीमारी का समाचार उसके पास नहीं भेजा।

प्रश्न 4.
भक्तिन के ससुराल वाले उसकी उपेक्षा क्यों करते थे?
उत्तर:
पहली बात तो यह है कि भक्तिन सबसे छोटी बहू थी। इसलिए घर की सास और जिठानियाँ उसे दबाकर रखना चाहती थीं। दूसरा, भक्तिन ने एक के बाद एक तीन बेटियों को जन्म दिया। परंतु सास तथा जिठानियों ने केवल बेटों को जन्म दिया था। इसलिए लड़कियों को जन्म दिए जाने के कारण भक्तिन के ससुराल वाले उसकी उपेक्षा करते थे।

प्रश्न 5.
भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़कियों में भेदभाव क्यों किया जाता है स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण समाज में आज भी लड़का-लड़की में भेदभाव किया जाता है। गाँव के लोग लड़के को सोने का खरा सिक्का और लड़कियों को खोटा सिक्का कहते हैं। यही नहीं, लड़की को पराया धन भी कहा जाता है। लड़कियों को जन्म देने के कारण भक्तिन की ससुराल में उपेक्षा की गई और घर के सारे काम करवाए गए। परंतु घर के काले-कलूटे तथा निकम्में पुत्रों को जन्म देने वाली जिठानियाँ अपने पतियों से पिटकर भी घर में आराम करती थीं। उनके काले-कलूटे लड़कों को खाने में राब और मलाई मिलती थी और भक्तिन और उसकी लड़कियों को घर का सारा काम करने के बावजूद भी खाने में काले गुड़ की डली के साथ चना-बाजरा चबाने को मिलता था। आज भी हमारे भारतीय ग्रामीण समाज में अधिकांश लड़कियों को घर के काम-काज तक ही सीमित रखा जाता है और उन्हें उचित शिक्षा भी नहीं मिल पाती।

प्रश्न 6.
महादेवी ने भक्तिन के जीवन को कितने परिच्छेदों में बाँटा है? प्रत्येक का उल्लेख करें।
उत्तर:
महादेवी ने भक्तिन के जीवन को चार परिच्छेदों में व्यक्त किया है। प्रथम परिच्छेद भक्तिन के विवाह-पूर्व जीवन से संबंधित है। द्वितीय परिच्छेद ससुराल में सधवा के रूप से संबंधित है। तृतीय परिच्छेद का संबंध उसके वैधव्य तथा विरक्त जीवन से है। चतुर्थ परिच्छेद का संबंध उसके उस जीवनकाल से है, जिसमें वह महादेवी की सेवा करती है।

प्रश्न 7.
पति की मृत्यु के बाद ससुराल वाले उसका पुनर्विवाह क्यों करना चाहते थे?
उत्तर:
भक्तिन उनतीस वर्ष की आयु में ही विधवा हो गई थी। उसने अपनी मेहनत द्वारा अपने खेत और बाग हरे-भरे कर लिए थे। उसके पास दुधारू गाय और भैंस थी। उसके जेठ तथा जिठौत यह चाहते थे कि यदि भक्तिन का दूसरा विवाह हो जाएगा तो उसके घर तथा खेत-खलिहान पर उनका अधिकार स्थापित हो जाएगा। लेकिन भक्तिन उनके मंतव्य को अच्छी प्रकार समझ गई थी और उसने पुनर्विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

प्रश्न 8.
क्या ससुराल से अलग होकर भक्तिन ने सही किया?
उत्तर:
ग्रामीण संस्कृति की दृष्टि से भक्तिन का संयुक्त परिवार से अलग होना अनुचित कहा जा सकता है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह बिल्कुल सही है। ससुराल वालों ने भक्तिन को हर प्रकार से दबाया, अपमानित किया और उपेक्षित किया। सास और जिठानियों ने भक्तिन के साथ नौकरों जैसा व्यवहार किया। यहाँ तक कि उसकी बेटियों को भी चना-बाजरा खाकर गुजारा करना पड़ता था। इसलिए भक्तिन ने ससुराल वालों के अत्याचारों से तंग आकर अपना अलग घर बसाया। हालात को देखते हुए भक्तिन का यह निर्णय सर्वथा उचित कहा जाएगा।

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प्रश्न 9.
भक्तिन को बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भक्तिन झूसी गाँव के एक शूरवीर अहीर की इकलौती बेटी थी। पिता ने ही उसका नाम लछमिन (लक्ष्मी) रखा था। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उसका विवाह कर दिया गया और नौ वर्ष की आयु में उसका गौना कर दिया गया। परंतु विमाता ने भक्तिन के पिता की मरणांतक बीमारी की सूचना नहीं दी। यहाँ तक कि संपत्ति की रक्षा के लिए विमाता ने उसके पिता की मृत्यु की बात को छिपाकर रखा। परंतु जब नैहर पहुँचकर भक्तिन को यह सब पता चला तो वह बड़े बाप की बेटी का सारा वैभव ठुकराकर एक चूंट पानी पिए बिना वापिस ससुराल लौट आई थी। यही कारण है कि उसे बड़े बाप वाली बेटी कहा गया है।

प्रश्न 10.
भक्तिन ने अपने वैधव्य को किस प्रकार व्यतीत करने का फैसला किया?
उत्तर:
भक्तिन अपने शूरवीर पिता की इकलौती पुत्री थी। उसमें अच्छे संस्कार भी थे। उसका पति भी उससे अत्यधिक प्रेम करता था। अतः उसने पति की यादों के सहारे अपना जीवन व्यतीत करने का फैसला किया। उसने यह भी सोच लिया कि वह सांसारिक मोह-माया से नाता तोड़कर अपनी गृहस्थी चलाएगी। अतः उसने शास्त्र की मर्यादानुसार अपने केश मुंडवा लिए।

प्रश्न 11.
‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि हमारे समाज में विधवा के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है?
उत्तर:
इस पाठ से स्पष्ट है कि हमारा समाज विधवा को अपना शिकार मानता है। आज भी हमारे समाज में विधवा को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। चाहे कोई उसका अपना हो या पराया। कोई भी उसे आदर-सम्मान न जेठ-जिठानियाँ तो उसे घर की संपत्ति से वंचित करना चाहते हैं। भक्तिन की बेटी जब विधवा हो गई, तब जेठ के लड़के ने अपने तीतरबाज़ साले को उस विधवा के साथ विवाह करने के लिए प्रेरित किया, ताकि उसकी संपत्ति को प्राप्त किया जा सके। इस प्रकार के घृणित कार्य में स्त्रियाँ भी पुरुषों का साथ देती हुई देखी गई हैं। यहाँ तक कि गाँव की पंचायतें भी विधवा की लाज की रक्षा नहीं करतीं। वे भी विधवाओं के लिए बेड़ियाँ तैयार करती हैं। ऐसी स्थिति में विधवाओं का सम्मानजनक पुनर्विवाह ही उचित होगा।

प्रश्न 12.
इस पाठ के आधार पर पंचायतों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस पाठ को पढ़ने से पता चलता है कि गाँव की पंचायतें गूंगी, अयोग्य तथा लाचार हैं। पंचायत के सभी सदस्य न्याय के आधार नहीं हैं। वे हमेशा शक्तिशाली का पक्ष लेते हैं। उनका न्याय केवल मज़ाक बनकर रह गया है। हमारी पंचायतें कलयुग की दुहाई देकर अत्याचारी की रक्षा करती हैं और पीड़ित व्यक्ति पर अत्याचार करती हैं। भक्तिन की विधवा बेटी के साथ कुछ ऐसा ही किया गया। भक्तिन की इच्छा के विरुद्ध पंचायत ने उसकी बेटी का विवाह उस तीतरबाज़ युवक से करने की घोषणा की कि जो कुछ भी काम-धाम नहीं करता था। यह तो मानों रावण के साथ सीता का विवाह करने वाली बात हो गई।

प्रश्न 13.
तीन कन्याओं को जन्म देने के बाद भी भक्तिन पुत्र की इच्छा में अंधी अपनी जिठानियों की घृणा तथा उपेक्षा की पात्र बनी रही। इस प्रकार के उदाहरण भारतीय समाज में अभी भी देखने को मिलते हैं। इसका कारण तथा समाधान प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
कारण-आज भी भारतीय समाज इस समस्या से ग्रस्त है। प्रायः लोग बेटी की अपेक्षा बेटे को अधिक महत्त्व देते हैं। लोग समझते हैं कि पुत्र कमाऊ होता है और बुढ़ापे का सहारा होता है। यही कारण है कि समाज में पुरुष को नारी की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली माना जाता है। विशेषकर, ग्रामीण समाज में कन्याओं को दबाकर रखा जाता है और उन्हें उचित शिक्षा भी नहीं दी जाती।

समाधान-यदि लड़कियों को उचित शिक्षा दी जाए और उन्हें नौकरी करने तथा व्यवसाय करने के अवसर प्रदान किए जाएँ तो इस समस्या का कुछ सीमा तक हल निकाला जा सकता है। मध्यवर्गीय परिवारों में यह प्रवृत्ति ज़ोर पकड़ती जा रही है कि बेटे तो अपनी बहुओं को लेकर अपने माँ-बाप से अलग हो जाते हैं, लेकिन बेटियाँ अंत तक अपने माता-पिता का साथ निभा सकती हैं। हमें लड़के-लड़की को ईश्वर की संतान मानकर उनमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 14.
भोजन के बारे में भक्तिन का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
भक्तिन एक ठेठ ग्रामीण नारी थी। वह सीधा-सादा भोजन ही पसंद करती थी। रसोई की पवित्रता पर वह विशेष ध्यान देती थी। इसलिए उसने महादेवी के घर आकर नहा-धोकर, स्वच्छ साड़ी पर जल छिड़क कर उसे धारण किया और रसोई में मोटे कोयले से रेखा खींचकर भोजन बनाया। उसे गर्व था कि वह साधारण और सरल भोजन बना सकती है। अतः वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उसके द्वारा पकाए भोजन का तिरस्कार करे।

प्रश्न 15.
पति की मृत्यु के बाद भक्तिन के सामने कौन-कौन सी समस्याएँ पैदा हुईं?
उत्तर:
पति की मृत्यु के पश्चात भक्तिन के समक्ष कछ भयंकर समस्याएँ उत्पन्न हो गईं। अभी उसकी दो छोटी बेटियाँ कुँवारी बैठी थीं। दूसरा, सगे-संबंधी उसकी घर-संपत्ति पर आँखें गड़ाए बैठे थे। वे लोग चाहते थे कि भक्तिन दूसरा विवाह कर ले, ताकि उसकी संपत्ति उन्हें मिल जाए। परंतु भक्तिन ने इन मुसीबतों का डट कर सामना किया और अपनी मेहनत के बल पर सब कुछ संभाल लिया। तत्पश्चात् भक्तिन की बड़ी बेटी भी विधवा हो गई जिसके फलस्वरूप उसे कई कष्टों का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 16.
किस घटना के फलस्वरूप भक्तिन को घर छोड़कर महादेवी के यहाँ नौकरी करनी पड़ी?
उत्तर:
जैसे-तैसे भक्तिन ने मेहनत करके अपने खेत-खलिहान, अमराई तथा गाय-भैंसों को अच्छी तरह से संभाल लिया था। उसने अपनी छोटी बेटियों का विवाह भी कर दिया और समझदारी दिखाते हुए बड़े दामाद को घर-जमाई बना लिया। परंतु दुर्भाग्य तो उसके पीछे लगा हुआ था। अचानक उसका दामाद गुजर गया। जिठौतों ने चाल चलकर बलपूर्वक अपने तीतरबाज़ साले को भक्तिन की विधवा बेटी के गले मड़ दिया। जिससे दिन-भर घर में कलह-क्लेश रहने लगा। धीरे-धीरे सारी धन-संपत्ति नष्ट होने लगी। लगान न देने के दंड के रूप में ज़मींदार ने भक्तिन को दिन-भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान उसकी कर्मठता पर कलंक के समान था। अतः अगले दिन ही वह काम की तलाश में महादेवी के यहाँ पहुँच गई।

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प्रश्न 17.
“इस देहाती वृद्धा ने जीवन की सरलता के प्रति मुझे जाग्रत कर दिया था कि मैं अपनी असुविधाएँ छिपाने लगी।” महादेवी ने यह कथन किस संदर्भ में कहा है?
उत्तर:
महादेवी ने यह कथन भक्तिन के संदर्भ में कहा है। भक्तिन एक तर्कशील नारी थी और अपनी बात को सही सिद्ध थी। भक्तिन केवल पेट की भूख को शांत करने के लिए सीधा-सादा खाना बनाती थी। धीरे-धीरे महादेवी उसकी इस प्रवृत्ति से प्रभावित होने लगी। वह भी जीवन की सहजता और सरलता के प्रति आकर्षित हो गई और उसने अपनी असुविधाओं को छिपाना आरंभ कर दिया।

प्रश्न 18.
युद्ध के खतरे के बावजूद भक्तिन अपने गाँव क्यों नहीं लौटी?
उत्तर:
युद्ध के खतरे में भी भक्तिन अपनी मालकिन को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। उसने अपनी सुरक्षा की परवाह नहीं की और महादेवी के साथ रहना उचित समझा। उसने महादेवी से यह प्रार्थना की कि युद्ध के खतरे को टालने के लिए वह उसके गाँव में चल पड़े। वहाँ पर भी पढ़ने-लिखने तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था हो जाएगी।

प्रश्न 19.
भक्तिन ने त्याग का कौन-सा उदाहरण प्रस्तुत किया?
उत्तर:
भक्तिन स्वभाव से बड़ी कंजूस औरत थी और एक-एक पाई पर अपनी जान देती थी। परंतु उसके त्याग की पराकाष्ठा उस समय देखी जा सकती है, जब उसने पाई-पाई करके जोड़ी हुई धन-राशि 105 रुपये महादेवी की सेवा में अर्पित कर दिए।

प्रश्न 20.
भक्तिन के मन में जेल के प्रति क्या भाव थे और उसने भय पर किस प्रकार विजय प्राप्त की?
उत्तर:
भक्तिन जेल का नाम सुनते ही काँप उठती थी। उसे लगता था कि ऊँची-ऊँची दीवारों में कैदियों को अनेक कष्ट दिए जाते हैं। परंतु जब उसे पता चला कि देश को स्वतंत्र कराने के लिए विद्यार्थी भी कारागार में जा रहे हैं और उसकी स्वामिन को भी जेल जाना पड़ सकता है तो उसका भय दूर हो गया और वह भी अपनी स्वामिन के साथ जेल जाने को तैयार हो गई।

प्रश्न 21.
“भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं।” महादेवी के इस कथन का क्या आशय है? .
उत्तर:
भक्तिन को अच्छी सेविका कहना उचित नहीं है, क्योंकि उसमें अनेक दुर्गुण भी थे। सत्य-असत्य के बारे में उसका अपना दृष्टिकोण था। उसका यह दृष्टिकोण लोक-व्यवहार पर खरा नहीं उतर सकता। इसलिए लेखिका भक्तिन को अच्छी नहीं कह सकती।

प्रश्न 22.
भक्तिन जीवन भर अपरिवर्तित रही-इसका क्या कारण है?
उत्तर:
भक्तिन अपनी आस्था और आदतों की पक्की थी। वह अपनी जीवन-पद्धति को ही सही मानती थी। अडिग रहकर वह अपने तौर-तरीके अपनाती रही। उसने कभी रसगुल्ला नहीं खाया और न ही शहरी शिष्टाचार को अपनाया। उसने ‘आँय’ कहने आदत को कभी भी ‘जी’ में नहीं बदला। उसने महादेवी को ग्रामीण परिवेश में बदल दिया, परंतु स्वयं नहीं बदली।

बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. भक्तिन’ पाठ की रचयिता हैं-
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) महादेवी वर्मा
(C) सुभद्रा कुमारी चौहान
(D) रांगेय राघव
उत्तर:
(B) महादेवी वर्मा

2. ‘भक्तिन’ पाठ किस रचना में संकलित है?
(A) स्मृति की रेखाएँ
(B) अतीत के चलचित्र
(C) पथ के साथी
(D) मेरा परिवार
उत्तर:
(A) स्मृति की रेखाएँ

3. भक्तिन किस विधा की रचना है?
(A) निबंध
(B) कहानी
(C) संस्मरणात्मक रेखाचित्र
(D) आलोचना
उत्तर:
(C) संस्मरणात्मक रेखाचित्र

4. महादेवी वर्मा का जन्म कब हुआ?
(A) 1906 में
(B) 1908 में
(C) 1905 में
(D) 1907 में
उत्तर:
(D) 1907 में

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5. महादेवी वर्मा का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) मध्य प्रदेश
(B) उत्तर प्रदेश
(C) राजस्थान
(D) दिल्ली
उत्तर:
(B) उत्तर प्रदेश

6. महादेवी का जन्म किस नगर में हुआ?
(A) फर्रुखाबाद
(B) इलाहाबाद
(C) कानपुर
(D) लखनऊ
उत्तर:
(A) फर्रुखाबाद

7. कितनी आयु में महादेवी का विवाह हुआ?
(A) सात वर्ष में
(B) आठ वर्ष में
(C) नौ वर्ष में
(D) बारह वर्ष में
उत्तर:
(C) नौ वर्ष में

8. महादेवी वर्मा ने किस विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की?
(A) अंग्रेज़ी
(B) हिंदी
(C) इतिहास
(D) संस्कृत
उत्तर:
(D) संस्कृत

9. महादेवी वर्मा ने किस विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(B) कानपुर विश्वविद्यालय
(C) बनारस विश्वविद्यालय
(D) आगरा विश्वविद्यालय
उत्तर:
(A) इलाहाबाद विश्वविद्यालय

10. महादेवी को किस शिक्षण संस्थान की प्रधानाचार्या नियुक्त किया गया?
(A) संस्कृत महाविद्यालय
(B) एस०डी० महाविद्यालय
(C) प्रयाग महिला विद्यापीठ
(D) वनस्थली विद्यापीठ
उत्तर:
(C) प्रयाग महिला विद्यापीठ

11. भारत सरकार ने महादेवी को किस पुरस्कार से सम्मानित किया?
(A) वीरचक्र
(B) शौर्यचक्र
(C) पद्मश्री
(D) पद्मभूषण
उत्तर:
(D) पद्मभूषण

12. किन विश्वविद्यालयों ने महादेवी को डी० लिट्० की मानद उपाधि से विभूषित किया?
(A) पंजाब विश्वविद्यालय तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
(B) विक्रम, कुमायूँ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय
(C) आगरा विश्वविद्यालय तथा कानपुर विश्वविद्यालय
(D) मेरठ विश्वविद्यालय तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय
उत्तर:
(B) विक्रम, कुमायूँ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय

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13. महादेवी वर्मा का देहांत कब हुआ?
(A) 12 सितंबर, 1986
(B) 11 दिसंबर, 1987
(C) 12 जनवरी, 1985
(D) 11 नवंबर, 1988
उत्तर:
(B) 11 दिसंबर, 1987

14. ‘अतीत के चलचित्र’ किसकी रचना है?
(A) महादेवी वर्मा की
(B) सुभद्राकुमारी चौहान की
(C) जयशंकर प्रसाद की
(D) मुक्तिबोध की
उत्तर:
(A) महादेवी वर्मा की

15. ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य संग्रह
(B) निबंध संग्रह
(C) कहानी संग्रह
(D) रेखाचित्र संग्रह
उत्तर:
(B) निबंध संग्रह

16. ‘स्मृति की रेखाएँ’ की रचयिता है
(A) महादेवी वर्मा
(B) रांगेय राघव
(C) हरिवंशराय बच्चन
(D) रघुवीर सहाय
उत्तर:
(A) महादेवी वर्मा

17. ‘पथ के साथी’ किसकी रचना है?
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) धर्मवीर भारती
(C) फणीश्वरनाथ रेणु
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(D) महादेवी वर्मा

18. भक्तिन कहाँ की रहने वाली थी?
(A) हाँसी।
(B) झाँसी
(C) झूसी
(D) अँझूसी
उत्तर:
(C) झूसी

19. भक्तिन महादेवी से कितने वर्ष बड़ी थी?
(A) पंद्रह वर्ष
(B) पच्चीस वर्ष
(C) तीस वर्ष
(D) बीस वर्ष
उत्तर:
(B) पच्चीस वर्ष

20. भक्तिन के सेवा-धर्म में किस प्रकार का अधिकार है?
(A) अभिभाविका जैसा
(B) स्वामी जैसा
(C) सेविका जैसा
(D) माँ जैसा
उत्तर:
(A) अभिभाविका जैसा

21. भक्तिन का स्वभाव कैसा है?
(A) कोमल और मधुर
(B) कर्कश और कठोर
(C) अभिमानी और क्रूर
(D) छल-कपट से पूर्ण
उत्तर:
(B) कर्कश और कठोर

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22. भक्तिन किसके समान अपनी मालकिन के साथ लगी रहती थी?
(A) छाया के समान
(B) धूप के समान
(C) वायु के समान
(D) पालतु पशु के समान
उत्तर:
(A) छाया के समान

23. भक्तिन का शूरवीर पिता किस गाँव का रहने वाला था?
(A) मूंसी
(B) लूसी
(C) झूसी
(D) हँडिया
उत्तर:
(C) झूसी

24. भक्तिन का वास्तविक नाम क्या था?
(A) भक्तिन
(B) लछमिन (लक्ष्मी)
(C) दासिन
(D) पार्वती
उत्तर:
(B) लछमिन (लक्ष्मी)

25. महादेवी वर्मा क्या पढ़ते-पढ़ते शहर और देहात के जीवन के अन्तर पर विचार किया करती थीं?
(A) पतंजलि सूत्र
(B) शाल्व सूत्र
(C) ज्ञान सूत्र
(D) न्याय सूत्र
उत्तर:
(D) न्याय सूत्र

26. भक्तिन का विवाह किस आयु में हुआ?
(A) सात वर्ष
(B) आठ वर्ष
(C) चार वर्ष
(D) पाँच वर्ष
उत्तर:
(D) पाँच वर्ष

27. भक्तिन का गौना किस आयु में हुआ?
(A) नौ वर्ष
(B) बारह वर्ष
(C) तेरह वर्ष
(D) दस वर्ष
उत्तर:
(A) नौ वर्ष

28. लेखिका के द्वारा पुकारी जाने पर भक्तिन क्या कहती थी?
(A) जी
(B) आई मालकिन
(C) आँय
(D) हाँ, जी
उत्तर:
(C) आँय

29. महादेवी को ‘यामा’ पर कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) शिखर सम्मान
(B) साहित्य अकादमी पुरस्कार
(C) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(D) पहल सम्मान
उत्तर:
(C) ज्ञानपीठ पुरस्कार

30. उत्तर प्रदेश संस्थान ने महादेवी को कौन-सा पुरस्कार प्रदान करके सम्मानित किया?
(A) भारत भारती पुरस्कार
(B) राहुल पुरस्कार
(C) प्रेमचंद पुरस्कार
(D) शिखर पुरस्कार
उत्तर:
(A) भारत भारती पुरस्कार

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31. महादेवी वर्मा को पद्मभूषण की उपाधि कब मिली?
(A) 1958 में
(B) 1957 में
(C) 1956 में
(D) 1960 में
उत्तर:
(C) 1956 में

32. भक्तिन की विचित्र समझदारी की झलक विद्यमान थी-
(A) ओठों के कोनों में
(B) छोटी आँखों में
(C) विश्वास भरे कंठ में
(D) ऊँची आवाज़ में
उत्तर:
(B) छोटी आँखों में

33. ‘कृषीवल’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) किसान
(B) मजदूर
(C) बैल
(D) अन्न
उत्तर:
(C) बैल

34. ससुराल में भक्तिन के साथ सद्व्यवहार किसने किया?
(A) जिठानियों ने
(B) पति ने
(C) सास ने
(D) ससुर ने
उत्तर:
(B) पति ने

35. भक्तिन के ओंठ कैसे थे?
(A) पतले
(B) मोटे
(C) कटे-फटे
(D) अवर्णनीय
उत्तर:
(A) पतले

36. भक्तिन के ससुराल वालों ने उसके पति की मृत्यु पर उसे पुनर्विवाह के लिए क्यों कहा?
(A) ताकि भक्तिन सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर सके
(B) ताकि वे भक्तिन की घर-संपत्ति को हथिया सकें
(C) ताकि वे भक्तिन से छुटकारा पा सकें
(D) ताकि वे भक्तिन को पुनः समाज में सम्मान दे सकें
उत्तर:
(B) ताकि वे भक्तिन की घर-संपत्ति को हथिया सकें

37. हमारा समाज विधवा के साथ कैसा व्यवहार करता है?
(A) स्नेहपूर्ण
(B) असम्मानपूर्ण
(C) सहानुभूतिपूर्ण
(D) सम्मानपूर्ण
उत्तर:
(B) असम्मानपूर्ण

38. भक्तिन पाठ के आधार पर पंचायतों की क्या तस्वीर उभरती है?
(A) पंचायतें गूंगी, लाचार और अयोग्य हैं।
(B) वे सही न्याय नहीं कर पाती
(C) वे दूध का दूध और पानी का पानी करती हैं
(D) वे अपने स्वार्थों को पूरा करती हैं
उत्तर:
(A) पंचायतें गूंगी, लाचार और अयोग्य हैं

39. सेवक धर्म में भक्तिन किससे स्पर्धा करने वाली थी?
(A) शबरी
(B) सुग्रीव
(C) हनुमान
(D) लक्ष्मण
उत्तर:
(C) हनुमान

40. भक्तिन का शरीर कैसा था?
(A) मोटा
(B) दुबला
(C) लम्बा
(D) दिव्य
उत्तर:
(B) दुबला

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

41. खोटे सिक्कों की टकसाल का अर्थ क्या है?
(A) निकम्मे काम करने वाली पत्नी
(B) बेकार पत्नी
(C) जिस टकसाल से खोटे सिक्के निकलते हैं
(D) कन्याओं को जन्म देने वाली पत्नी
उत्तर:
(D) कन्याओं को जन्म देने वाली पत्नी

42. महादेवी ने लछमिन को भक्तिन कहना क्यों आरंभ कर दिया?
(A) उसके व्यवहार को देखकर
(B) उसके वैराग्यपूर्ण जीवन को देखकर
(C) उसके गले में कंठी माला देखकर
(D) उसकी शांत मुद्रा को देखकर
उत्तर:
(C) उसके गले में कंठी माला देखकर

43. भक्तिन क्या नहीं बन सकी?
(A) गोरखनाथ
(B) एकनाथ
(C) सत्यवादी हरिश्चन्द्र
(D) मीराबाई
उत्तर:
(C) सत्यवादी हरिश्चन्द्र

44. भक्तिन किससे डरती थी?
(A) बादल से
(B) हिरन से
(C) कारागार से
(D) संसार से
उत्तर:
(C) कारागार से

45. भक्तिन के पति का जब देहांत हुआ तो भक्तिन की आयु कितने वर्ष थी?
(A) उन्नीस
(B) पच्चीस
(C) उनतीस
(D) तीस
उत्तर:
(C) उनतीस

भक्तिन प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनाम धन्या
गोपालिका की कन्या है-नाम है लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया; पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ। [पृष्ठ-71]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व पर बहुत ही रोचक प्रकाश डाला है। इसमें लेखिका भक्तिन की तुलना रामभक्त हनुमान से करती हैं।

व्याख्या-लेखिका ने भक्तिन की कर्मठता एवं उनके प्रति लगाव तथा सेविका-धर्म की तुलना अंजनी-पुत्र महावीर हनुमान जी से की है। लेखिका कहती है कि सेवक-धर्म में रामभक्त हनुमान जी रामायण के एक महान पात्र हैं। भक्तिन सेवक-धर्म में उनका मुकाबला करने वाली एक नारी थी। वह किसी अंजना की बेटी न होकर एक संज्ञाहीन, परंतु धन्य माँ गोपालिका की बेटी थी। उसका नाम लछमिन अथवा लक्ष्मी था। भले ही वह एक अहीरन की पुत्री थी, परंतु वह बहुत ही कर्मनिष्ठ थी। लेखिका स्पष्ट करती है कि जिस प्रकार मेरे नाम का विस्तार मेरे लिए धारण न करने योग्य है, उसी प्रकार भक्तिन के मस्तक की सिकुड़ी रेखाओं में लक्ष्मी का धन-वैभव रुक नहीं पाया। भाव यह है कि भले ही मेरा नाम महादेवी है, परंतु मैं देवी के गुणों को धारण नहीं कर सकती।

उसी नाम भले ही लक्ष्मी था, परंतु उसके पास कोई धन-संपत्ति नहीं थी। नाम के गुण प्रायः लोगों में नहीं होते। यही कारण है कि अधिकांश लोगों को अपने नाम से विपरीत परिस्थितियों में जीवन-यापन करना पड़ता है; जैसे लोग नाम रख लेते हैं करोड़ीमल, परंतु उस करोड़ीमल के पास दो वक्त का भोजन नहीं होता। लेकिन भक्तिन बड़ी समझदार थी, इसलिए वह धन-संपत्ति को सूचित करने वाला नाम किसी को नहीं बताती थी। परंतु जब वह नौकरी खोजते-खोजते मेरे पास आई थी, तब उसने बड़ी ईमानदारी से अपना परिचय दिया। अपनी संपूर्ण जीवन-गाथा का विवरण देते हुए उसने यह भी बता दिया कि उसका मूल नाम लक्ष्मी है, परंतु साथ ही उसने मुझसे यह भी निवेदन कर दिया कि मैं कभी भी उसके इस नाम का प्रयोग न करूँ।

विशेष-

  1. इस गद्यांश में लेखिका ने भक्तिन के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसकी सेवा-भक्ति की तुलना हनुमान जी की सेवा-भक्ति के साथ की है।
  2. भक्तिन का नाम भले ही लक्ष्मी था, परंतु यह नाम उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ाता था। इसलिए वह अपने इस नाम को छिपाने का प्रयास करती थी।
  3. सहज, सरल तथा संस्कृतनिष्ठ हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है तथा वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है। m गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) हनुमान जी और भक्तिन में क्या समानता थी?
(ग) लेखिका ने अपने नाम को दुर्वह क्यों कहा है?
(घ) भक्तिन अपने मूल नाम को छिपाना क्यों चाहती थी?
(ङ) ‘कपाल की कुंचित रेखाओं से क्या भाव है?
(च) अपने-अपने नाम के विरोधाभास का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम-भक्तिन लेखिका का नाम-महादेवी वर्मा।

(ख) हनुमान जी और भक्तिन दोनों ही सच्चे सेवक होने के साथ-साथ भक्त भी थे। दोनों अपने-अपने स्वामी की सच्चे मन से सेवा करते रहे। जिस तरह से हनुमान ने राम की सेवा और भक्ति की, उसी प्रकार भक्तिन भी महादेवी की सेवा करती रही।

(ग) लेखिका का नाम महादेवी है। परंतु वे स्वीकार करती हैं कि वे चाहते हुए भी महादेवी का पद प्राप्त नहीं कर पाई। इसी कारण लेखिका ने अपने नाम को दुर्वह कहा।

(घ) भक्तिन का मूल नाम लक्ष्मी था लक्ष्मी अर्थात् धन-वैभव की देवी परंतु भक्तिन बहुत गरीब थी। यह नाम उसकी गरीबी का मज़ाक उड़ा. रहा था। इसलिए वह नहीं चाहती थी कि किसी को यह पता चले कि उसका नाम लक्ष्मी है। इसलिए वह अपने नाम को छिपाती रही।

(ङ) ‘कपाल की कुंचित रेखाओं का भाव है भाग्य की रेखाओं का बहुत छोटा होना। लेखिका यह स्पष्ट करना चाहती है कि भक्तिन का भाग्य खोटा था। उसे जीवन-भर सुख-समृद्धि प्राप्त नहीं हो सकी।

(च) अपने-अपने नाम का विरोधाभास से अभिप्राय है कि नाम के विपरीत जीवन का होना। प्रायः सभी लोगों को अपने-अपने नाम के विपरीत जीना पड़ता है। उदाहरण के रूप में किसी महिला का नाम सरस्वती होता है, परंतु वह एक अक्षर भी पढ़ना नहीं जानती। जैसे किसी पुरुष का नाम लखपतराय होता है, पर उसके पास न रहने को घर होता है और न ही खाने को दो वक्त का भोजन होता है। इसका एक ही कारण है कि हमारे नाम हमारे गुणों के अनुसार नहीं होते। इसीलिए सभी के नामों में विरोधाभास होता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

[2] पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। ‘हाय लछमिन अब आई’ की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गईं। पर वहाँ न पिता का चिह्न शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था। दुख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिए उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी। सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की। [पृष्ठ-72]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ में संकलित है। इसमें लेखिका भक्तिन के पिता के देहांत तथा उसकी विमाता के दुर्व्यवहार पर प्रकाश डालती है। लेखिका कहती है

व्याख्या-पिता के प्रति भक्तिन के मन में अत्यधिक प्रेमभाव था, परंतु उसकी विमाता न केवल उससे ईर्ष्या करती थी, बल्कि अपनी संपत्ति में से उसे कुछ भी देना नहीं चाहती थी। इसलिए विमाता ने उसके पिता के प्राणांतक रोग का समाचार भक्तिन के पास नहीं भेजा। जब उसकी मौत हो गई, तब ही उसे यह समाचार भेजा गया। इधर सास ने भी उसे उसके पिता की मृत्यु की खबर नहीं दी। वह नहीं चाहती थी कि भक्तिन यहीं पर रोना-पीटना शुरू कर दे, बल्कि यह कह दिया कि वह काफी दिनों से अपने मायके नहीं गई है, इसलिए उसे वहाँ जाकर सबसे मिल कर आना चाहिए। यह कहकर भक्तिन की सास ने उसे खूब सजा-पहनाकर मायके भेजा। भक्तिन को इस कृपा की आशा नहीं थी। परंतु जब उसे बैठे-बिठाए मायके जाने की अनुमति मिल गई, तब वह तीव्र गति से अपने मायके की ओर बढ़ने लगी। परंतु गाँव में घुसते ही उसकी गति तब मंद पड़ गई, जब लोग उसे देखकर कहने लगे कि बहुत दुख हुआ लछमिन तू इतने दिनों के बाद आई।

‘हाय लछमिन अब आई’। उसे ये शब्द बार-बार सुनने पड़े और लोगों की सहानुभूति लेनी पड़ी। जैसे-तैसे वह अपने घर पहुंची। वहाँ उसके पिता का कोई नामो-निशान नहीं था अर्थात् वह मर चुका था। विमाता का व्यवहार भी उसके प्रति अच्छा नहीं था। इस दुख से थकी-माँदी तथा अपमान की आग में जलती हुई उसने अपने मायके से एक गिलास पानी तक भी नहीं पिया। वह ज्यों-की-त्यों तत्काल अपने ससुराल वापिस आ गई। घर आते ही उसने सास को खूब भला-बुरा कहा और अपनी विमाता पर आए हुए क्रोध को शांत किया। यही नहीं, उसने अपने गहने उतारकर पति पर फेंक-फेंककर मारे और पिता से जीवन भर के वियोग की असहनीय पीड़ा को व्यक्त किया। भाव यह है कि भक्तिन के साथ उसकी विमाता और सास दोनों ने भारी धोखा किया। न तो विमाता ने यह सूचना भेजी कि उसका पिता मृत्यु देने वाले रोग से ग्रस्त है और न ही सास ने उसे सूचित किया कि उसके पिता का देहांत हो गया है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन के पिता की घातक बीमारी और उनकी मृत्यु का संवेदनशील वर्णन किया है।
  2. भक्तिन को अपनी सास और विमाता दोनों से तिरस्कार और धोखा मिला।
  3. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा विषयानुकूल है तथा वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन की विमाता ने उसके पिता के मरणांतक रोग का समाचार क्यों नहीं भेजा?
(ख) भक्तिन की सास ने पहना-उढ़ाकर उसे नैहर क्यों भेजा?
(ग) सास के अनुग्रह को लेखिका ने अप्रत्याशित क्यों कहा है?
(घ) गाँव पहुंचते ही भक्तिन की आशा के पंख झड़ क्यों गए?
(ङ) भक्तिन ने किस प्रकार अपने पिता की मृत्यु के शोक को व्यक्त किया?
उत्तर:
(क) भक्तिन के पिता उसे अगाध प्रेम करते थे। इसी कारण विमाता भक्तिन से बहुत ईर्ष्या करती थी। उसके मन में यह भी डर था कि अपने पिता के प्राणांतक अर्थात् मृत्यु देने वाले रोग को देखकर कहीं वह उसके घर में धन-संपत्ति का झगड़ा न खड़ा कर दे। इसलिए उसने भक्तिन को उसके पिता की भयानक बीमारी का समाचार नहीं भेजा।

(ख) भक्तिन की सास मृत्यु के विलाप को अपशकुन मानती थी। वह नहीं चाहती थी कि भक्तिन अपने पिता की मृत्यु के समाचार को पाकर घर में रोना-धोना शुरू कर दे और आस-पड़ोस के लोग इकट्ठे हो जाएँ। इसलिए उसकी सास ने उसको यह कहकर मायके भेजा कि वह बहुत दिनों से अपने पिता के घर नहीं गई है। अतः वह जाकर उन्हें देख आए।

(ग) सास का भक्तिन को उसके मायके भेजना उसकी आशा के सर्वथा विपरीत था। भक्तिन को इस बात की आशा नहीं थी कि उसकी सास उसे माता-पिता से मिलने के लिए मायके भेज देगी। इसीलिए सास का यह आग्रह अप्रत्याशित ही कहा जाएगा।

(घ) जैसे ही भक्तिन अपने गाँव में पहुँची तो लोग उसे देखकर बड़ी सहानुभूति के साथ कहने लगे-‘हाय, लछमिन अब आई। लोगों की हाय को सुनकर भक्तिन का दिल बैठने लगा और उसके मन में आशा के जो पँख फड़फड़ाए थे, वह तत्काल झड़ गए।

(ङ) भक्तिन ने अपनी सास को खरी-खोटी बातें सुनाकर और अपने गहने उतारकर अपने पति पर फेंक-फेंककर अपने पितृ-शोक को व्यक्त किया।

[3] जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुख ही अधिक है। जब उसने गेहुँए रंग और बटिया जैसे मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था, क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चुकी थी और दोनों जिठानियाँ काक-भुशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया। [पृष्ठ-72]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने भक्तिन के गृहस्थ जीवन पर समुचित प्रकाश डाला है। लेखिका कहती है

व्याख्या-पिता की मृत्यु के बाद जहाँ उसे अपने मायके में दुख प्राप्त हुआ, वहीं अपने गृहस्थी जीवन में भी उसको सुख की बजाय दुख ही अधिक प्राप्त हुआ। उसकी पहली संतान एक लड़की थी, जो गेहुँए रंग की थी। इसके पश्चात् उसने दो और कन्याओं को जन्म दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि उसकी सास तथा जिठानियाँ उसकी उपेक्षा करने लगी। उस समय के हालात में यह सही भी था। कारण यह था कि भक्तिन की सास तीन बेटों को जन्म देकर घर की मुखिया बन चुकी थी। उसके तीनों बेटे कमाने वाले थे। दूसरी ओर, दोनों जिठानियों ने कौए जैसे काले पुत्रों को जन्म दिया और वे दोनों घर के मुखिया पद की दावेदार बन गईं। भक्तिन सबसे छोटी बहू थी। उसने अपनी सास तथा जिठानियों की परंपरा का पालन नहीं किया अर्थात् उसने बेटों को जन्म न देकर तीन बेटियों को जन्म दिया। इसलिए उसे उपेक्षा का दंड भोगना पड़ा। कहने का भाव यह है कि परिवार में भक्तिन की उपेक्षा इसलिए की जा रही थी, क्योंकि उसने बेटों की बजाय बेटियों को जन्म दिया था।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने भक्तिन के वैवाहिक जीवन पर प्रकाश डाला है और साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि उस समय के समाज में लड़के की माँ होना सम्माननीय माना जाता था।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग करते हए भक्तिन की व्यथा पर प्रकाश डाला गया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) इस गद्यांश में जीवन के दूसरे परिच्छेद से क्या अभिप्राय है?
(ख) सास और जिठानियों ने भक्तिन की उपेक्षा करनी क्यों आरंभ कर दी?
(ग) लेखिका द्वारा सास का भक्तिन की उपेक्षा करना उचित क्यों ठहराया गया है?
(घ) इस गद्यांश से नारी मनोविज्ञान का कौन-सा रहस्य प्रकट होता है?
(ङ) भारतीय परिवारों में सम्मानीय पुरखिन का पद किसे मिलता है?
उत्तर:
(क) जीवन के दूसरे परिच्छेद से अभिप्राय है-भक्तिन के वैवाहिक जीवन या गृहस्थ जीवन का आरंभ होना । लेखिका की दृष्टि में यह भक्तिन के जीवन का दूसरा अध्याय है।

(ख) भक्तिन ने एक के बाद एक तीन बेटियों को जन्म दिया, जबकि उसकी सास और जिठानियों ने बेटों को जन्म दिया था। इसीलिए सास और जिठानियाँ उसकी उपेक्षा करने लगी थीं।

(ग) वस्तुतः लेखिका का यह कथन व्यंग्यात्मक है। यहाँ लेखिका ने समाज की इस रूढ़ि पर कठोर प्रहार किया है। भारतीय समाज में लड़के की माँ होना सम्मानजनक माना जाता है और लड़की के जन्म को अशुभ कहा जाता है। भक्तिन की सास ने एक के बाद एक तीन बेटों को जन्म दिया था तो वह तीन बेटियों को जन्म देने वाली भक्तिन की उपेक्षा क्यों न करती? इसीलिए लेखिका ने उसे उचित ठहराया है।

(घ) इस गद्यांश में लेखिका ने नारी-मनोविज्ञान के इस रहस्य का उद्घाटन किया है कि नारी ही नारी की दुश्मन होती है। कुछ नारियाँ अपनी जिठानियों, देवरानियों, सासों और बहुओं के विरुद्ध ऐसे षड्यंत्र रच देती हैं कि सीधी-सादी नारी का जीना भी कठिन हो जाता है। यहाँ भक्तिन को घर की नारियों की उपेक्षा को सहन करना पड़ा। इस पाठ में लेखिका ने इस नारी-मनोविज्ञान की ओर संकेत किया है कि प्रायः नारी ही पुत्र को जन्म देकर खुश होती है और पुत्री के जन्म पर शोक मनाने लगती है। परंतु धीरे-धीरे अब यह धारणा समाप्त होती जा रही है।

(ङ) भारतीय परिवारों में सम्माननीय पुरखिन का पद केवल उसी नारी को प्राप्त होता है जो कमाऊ पुत्रों को जन्म देती है, बेटियों को नहीं।

[4] इस दंड-विधान के भीतर कोई ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों की टकसाल-जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई की परिणति, उसके पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम पीटी-कूटी जाती; पर उसके पति ने उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने अलगौझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया। काम वही करती थी, इसलिए गाय-भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़ आदि के संबंध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। [पृष्ठ-72-73]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि घर-परिवार में भले ही भक्तिन की उपेक्षा होती थी, परंतु उसक का पति उससे अत्यधिक प्यार करता था।

व्याख्या-संयुक्त परिवारों में बेटियों को जन्म देने वाली नारियों को उपेक्षा का दंड भोगना पड़ता है। लेकिन इस दंड-व्यवस्था कोई नियम नहीं था, जिसके अनुसार खोटे सिक्कों की टकसाल अर्थात कन्याओं को जन्म देने वाली पत्नी को उसके पति से अलग किया जा सके। भक्तिन की सास तथा जिठानियाँ प्रायः भक्तिन के पति के सामने उसकी चुगली करती रहती थीं। वे चाहती थीं कि उसका पति उसकी पिटाई करे। लेकिन इन चुगलियों का प्रभाव उल्टा हुआ और पति उससे और अधिक प्रेम करने लगा। दूसरी ओर, जिठानियों की छोटी-छोटी बातों पर पिटाई होती थी। जबकि भक्तिन के पति ने कभी उसे मारा नहीं था। वह इस बात को जानता था कि भक्तिन बड़े बाप की बेटी है और उसमें अच्छे संस्कार भी हैं। इसके साथ-साथ भक्तिन बड़ी मेहनती, तेजस्विनी और अपने पति के प्रति समर्पित नारी थी। अपने पति के प्रेम के बल पर ही उसने संयुक्त परिवार से अलग होकर अपनी अलग घर-गृहस्थी बसाकर अपनी जिठानियों को अँगूठा दिखा दिया। चूँकि घर का सारा काम भक्तिन ही करती थी, इसलिए गाय भैंस, खेल-खलिहान एवं आम के पेड़ों के बारे में उसका ज्ञान सबसे अधिक था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन के पति-प्रेम का यथार्थ वर्णन किया है। भक्तिन ने अपने मधुर स्वभाव, अच्छे संस्कार और कार्य-कुशलता से पति को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भक्तिन की चारित्रिक विशेषताओं का उद्घाटन किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) ‘खोटे सिक्कों की टकसाल’ से क्या अभिप्राय है?
(ख) घर-भर में उपेक्षित होकर भी भक्तिन सौभाग्यशालिनी क्यों थी?
(ग) ‘चगली-चबाई की परिणति पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी’-इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
(घ) भक्तिन के किन गुणों के कारण उसका पति उससे प्रेम करता था?
(ङ) भक्तिन ने क्या करके ईर्ष्यालु जिठानियों को अँगूठा दिखा दिया? ।
उत्तर:
(क) लेखिका ने भक्तिन के लिए ही खोटे सिक्कों की टकसाल का प्रयोग किया है, क्योंकि उसने एक के बाद एक तीन बेटियों को जन्म दिया था। परंतु लेखिका के इस कथन में समाज पर करारा व्यंग्य है जो कन्याओं को ‘खोटा सिक्का’ मानता है और कन्याओं की माताओं को अपमानित करता है।

(ख) भक्तिन के ससुराल में सास तथा जिठानियाँ हमेशा उसकी उपेक्षा करती थीं। जिठानियाँ तो काले-कलूटे बेटों को जन्म देकर घर में आराम से बैठती थीं और भक्तिन को घर का सारा काम करना पड़ता था। फिर भी वह बहुत सौभाग्यशालिनी थी, क्योंकि उसकी जिठानियाँ अपने पतियों के द्वारा धमाधम पीटी जाती थी, परंतु उसका पति उससे बहुत प्यार करता था। उसने कभी भी उस पर हाथ नहीं उठाया था।

(ग) भक्तिन की सास तथा जिठानियाँ अकसर भक्तिन के पति से उसकी चुगलियाँ करती रहती थीं। वे चाहती थीं कि जैसे वे अपने पतियों द्वारा धमाधम पीटी जाती हैं, उसी प्रकार भक्तिन की भी पिटाई होनी चाहिए। परंतु उनकी चुगलियों का प्रभाव उल्टा ही पड़ा और भक्तिन का पति उससे और अधिक प्रेम करने लगा।

(घ) भक्तिन के मधुर स्वभाव, अच्छे संस्कार, मेहनत, तेज तथा कार्य-कुशलता के कारण उसका पति उससे अत्यधिक प्रेम करता था।

(ङ) भक्तिन अपनी ईर्ष्यालु जिठानियों की उपेक्षा से तंग आ चुकी थी। अतः उसने अपने पति-प्रेम के बल पर अपने परिवार से अलग होकर अपनी घर-गृहस्थी बसा ली। उसने उनको यह दिखा दिया कि यदि वे उसकी उपेक्षा करती रहेंगी तो वह भी उन्हें अपने जीवन से अलग कर सकती है।

[5] भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युक्ती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भइयहू से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। बाहर के बहनोई का आना चचेरे भाइयों के लिए सुविधाजनक नहीं था, अतः यह प्रस्ताव जहाँ-का-तहाँ रह गया। तब वे दोनों माँ-बेटी खूब मन लगाकर अपनी संपत्ति की देख-भाल करने लगी और ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की कहावत चरितार्थ करने वाले वर के समर्थक उसे किसी-न-किसी प्रकार पति की पदवी पर अभिषिक्त करने का उपाय सोचने लगे। [पृष्ठ-73-74]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने गाँव की एक अभावग्रस्त तथा गरीब भक्तिन का यथार्थ संस्मरणात्मक रेखाचित्र अंकित किया है। लेखिका भक्तिन के दुर्भाग्य पर प्रकाश डालती हुई लिखती है कि

व्याख्या – भक्तिन का दुर्भाग्य उससे भी अधिक हठी था। वह जितना भी दुर्भाग्य से लड़ती, उतना ही दुर्भाग्य उसके पीछे पड़ता जाता। यही कारण है कि किशोरावस्था से यौवनावस्था में कदम रखते ही भक्तिन की बड़ी बेटी के पति का देहांत हो गया और वह विधवा हो गई। उसके जेठ अपनी भाभी पर तो कोई नियंत्रण नहीं पा सके थे, परंतु उसकी बेटी के विधवा होने के कारण जेठों और उनके पुत्रों में आशा की एक किरण जाग गई। परिणाम यह हुआ कि विधवा बहन के पुनर्विवाह के लिए जेठ का बड़ा लड़का अपने उस साले को गाँव में ले आया, जो तीतर लड़ाने के अतिरिक्त कोई काम नहीं करता था।

बड़े जिठौत को यह लगा कि यदि उनकी विधवा बहन उसके साले की पत्नी बन जाएगी तो सारी संपत्ति पर उनका अधिकार हो जाएगा, लेकिन भक्तिन की बेटी अपनी माँ से अधिक समझदार निकली। वह सारी बात को अच्छी प्रकार समझ गई। उसने तीतर लड़ाने वाले वर को अस्वीकार कर दिया। दूसरे चचेरे भाइयों के लिए बाहर से किसी व्यक्ति का बहनोई बनकर आना उनके लिए कोई सुखद नहीं था। उनका विधवा बहन के विवाह का प्रस्ताव ज्यों-का-त्यों रह गया अर्थात् जिठौत के साले का प्रस्ताव लगभग समाप्त हो गया। माँ-बेटी दोनों मिलकर खूब परिश्रम करके अपनी संपत्ति की अच्छी तरह से देखभाल करने लगी।

परंतु तीतर लड़ाने वाले साले का समर्थन करने वाले जेठ के पुत्र ‘मान न मान, मैं तेरा मेहमान’ कहावत को सिद्ध करना चाहते थे अर्थात् वे बलपूर्वक विधवा बहन का किसी-न-किसी तरह विवाह करना चाहते थे। इसके लिए वे नए-नए उपाय खोजने लगे। कहने का भाव है कि जिठौतों ने यह फैसला कर लिया कि वे किसी-न-किसी तरह भक्तिन की विधवा बेटी का विवाह उस तीतर लड़ाने वाले से अवश्य करेंगे, ताकि वे भक्तिन की संपत्ति पर अपना अधिकार स्थापित कर सकें।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि भक्तिन के जेठ उसकी घर-संपत्ति पर किसी-न-किसी तरह अधिकार करना चाहते थे। इसलिए वे अपनी इच्छानुसार भक्तिन की विधवा बेटी का पुनर्विवाह कराना चाहते थे।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और सटीक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन का दुर्भाग्य किससे अधिक हठी था और क्यों था?
(ख) जेठ भइयहू से पार क्यों नहीं पा रहे थे? उनका मंतव्य क्या था?
(ग) भक्तिन के जिठौतों को आशा की कौन-सी किरण दिखाई दी?
(घ) बड़ा जिठौत अपने साले के साथ भक्तिन की विधवा बेटी का पुनर्विवाह क्यों करना चाहता था?
(ङ) भक्तिन की विधवा बेटी ने क्या समझदारी दिखाई?
उत्तर:
(क) भक्तिन का दुर्भाग्य भक्तिन से भी अधिक हठी था। विधवा होने के बाद भक्तिन ने अपने सिर के बाल भी मुंडवा लिए थे। वह बड़ी दृढ़ता के साथ इस प्रतिज्ञा का पालन कर रही थी। परंतु उसका दुर्भाग्य भक्तिन की इस प्रतिज्ञा से अधिक कठोर निकला। भक्तिन के बड़े दामाद का निधन हो गया और उसकी बेटी यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही विधवा हो गई।

(ख) भक्तिन के जेठों की यह इच्छा थी कि भक्तिन की ज़मीन-जायदाद पर उनका अधिकार हो जाए। इसीलिए वे भक्तिन की बड़ी विधवा लड़की का पुनर्विवाह करना चाहते थे।

(ग) जब भक्तिन की बड़ी बेटी विधवा हो गई तो जेठ के लड़कों को लगा कि अब वे भक्तिन की ज़मीन-जायदाद पर अपना अधिकार स्थापित कर सकेंगे। इसलिए उन्होंने अपनी चचेरी बहन का पुनर्विवाह कराने का फैसला कर लिया। उनके लिए यह एक सबसे अच्छा उपाय था।

(घ) बड़ा जिठौत अपने साले के साथ भक्तिन की विधवा बेटी का पुनर्विवाह इसलिए करना चाहता था, ताकि वह भक्तिन की घर संपत्ति पर अपना अधिकार प्राप्त कर सके।

(ङ) भक्तिन की बड़ी लड़की बहुत समझदार थी। वह इस बात को अच्छी तरह जानती थी कि उसके चचेरे भाई उनकी ज़मीन-जायदाद पर अपना कब्जा जमाना चाहते हैं। यदि उसका विवाह तीतरबाज़ वर के साथ हो गया तो उसके चचेरे भाइयों को उसकी घर-संपत्ति पर कब्जा करने का मौका मिल जाएगा। इसलिए समझदारी दिखाते हुए उसने इस रिश्ते को ठुकरा दिया।

[6] तीतरबाज़ युवक कहता था, वह निमंत्रण पाकर भीतर गया और युवती उसके मुख पर अपनी पाँचों उँगलियों के उभार में इस निमंत्रण के अक्षर पढ़ने का अनुरोध करती थी। अंत में दूध-का-दूध पानी-का-पानी करने के लिए पंचायत बैठी और सबने सिर हिला-हिलाकर इस समस्या का मूल कारण कलियुग को स्वीकार किया। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनों में एक सच्चा हो चाहे दोनों झूठे पर जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। अपमानित बालिका ने ओठ काटकर लहू निकाल लिया और माँ ने आग्नेय नेत्रों से गले पड़े दामाद को देखा। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-ढोर, खेती-बारी जब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुंचने पर ज़मींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अतः दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची। [पृष्ठ-74]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ में संकलित है। इसमें लेखिका ने गाँव की एक अभावग्रस्त तथा गरीब भक्तिन के कष्टों का वर्णन किया है। इसमें लेखिका ने उस प्रसंग को उठाया है जब बड़े जिगत का तीतरबाज साला विधवा बेटी के कमरे में बलपूर्वक घुस गया था और यह मामला पंचायत के सामने रखा गया। इस संदर्भ में लेखिका पंचायत के अन्यायपूर्ण निर्णय पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि-

व्याख्या-तीतरबाज़ युवक ने पंचायत के सामने अपनी सफाई में कहा कि वह युवती का निमंत्रण पाकर ही उसकी कोठरी में गया था, परंतु युवती ने उसके इस कथन का विरोध करते हुए कहा कि तीतरबाज़ युवक के मुख पर उसकी पाँचों उँगलियों के उभरे निशान यह स्पष्ट करते हैं कि उसका दावा गलत है और वह बलपूर्वक उसकी कोठरी में घुस आया था। इसमें उसकी सहमति नहीं थी। आखिर सही न्याय करने के लिए पंचायत बिठाई गई। पंचायत के सभी सदस्यों ने सिर हिलाकर यह स्वीकार किया कि कलयुग ही इस समस्या का मूल कारण है। पंचायत ने एक ऐसा निर्णय किया, जिसमें कोई अपील नहीं हो सकती थी। पंचायत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि उन दोनों में से चाहे एक सच्चा व्यक्ति हो, चाहे दोनों झूठे व्यक्ति हों, परंतु जब वे दोनों एक ही कोठरी से बाहर निकलकर आए हैं तो ऐसी स्थिति में उन दोनों को पति-पत्नी बनकर रहना पड़ेगा।

केवल यही हल ही कलयुग के इस दोष का निराकरण कर सकता है। इसके सिवाय अब कोई उपाय नहीं है। अन्ततः जिस लड़की का गाँव भर में अपमान हुआ था, वह अपने दाँतों से होंठ काटकर रह गई और भक्तिन ने भी क्रोधित दृष्टि से बलपूर्वक बने हुए उस दामाद को देखा और अपने क्रोध को अंदर-ही-अंदर पी लिया। यह रिश्ता भी अधिक सुखद नहीं हुआ। क्योंकि भक्तिन का दामाद अब बेफिक्र होकर तीतर लड़ाने लगा। बेटी मजबूर होकर क्रोध की आग में जलती रहती थी।

भक्तिन और उसकी बेटी ने बड़ी कोशिश करके अपने घर के पशुओं तथा खेती-बाड़ी को सँभाल रखा था, परंतु अब पारिवारिक झगड़ों में सब कुछ जल कर खत्म हो गया। सुखपूर्वक रहने की तो बात ही समाप्त हो गई। यहाँ तक कि लगान अदा करना भी मुश्किल हो गया। जब भक्तिन लगान अदा नहीं कर सकी तो ज़मींदार ने भक्तिन को अपने यहाँ बुलाकर दिन-भर कड़ी धूप में खड़ा रहने का दंड दिया। भक्तिन इस अपमान को सहन नहीं कर पाई। वह एक कर्त्तव्यपरायण नारी थी और यह दंड उसके लिए कलंक के समान सिद्ध हुआ। अगले ही दिन वह धन कमाने की इच्छा लेकर नगर में आ गई। भाव यह है कि तीतरबाज के साथ भक्तिन की विधवा बेटी का विवाह हो जाने पर उसकी सारी संपत्ति बरबाद हो गई।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने जहाँ एक ओर गाँव की पंचायत के अन्याय पर प्रकाश डाला है, वहीं दूसरी ओर भक्तिन की जमीन-जायदाद की बर्बादी के कारणों का भी ब्यौरा दिया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  3. वर्णनात्मक शैली द्वारा लेखिका ने भक्तिन की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला है।
  4. वाक्य-विन्यास बहुत ही सटीक एवं विषयानुकूल है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) युवती ने पंचायत के सामने क्या तर्क दिया और पंचायत ने क्या फैसला लिया?
(ख) आपकी दृष्टि में क्या पंचायत का फैसला उचित है?
(ग) ज़बरदस्ती शादी कराने में कौन दोषी है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(घ) ज़बरदस्ती शादी कराने का क्या दुष्परिणाम हुआ?
(ङ) भक्तिन को काम करने के लिए शहर क्यों आना पड़ा?
उत्तर:
(क) युवती ने पंचायत के सामने कहा कि यह युवक उसकी कोठरी में बलपूर्वक घुस आया है। मैंने उसके मुँह पर थप्पड़ मारकर उसका विरोध किया और उसकी पिटाई भी की। यही कारण है कि मेरी पाँचों उँगलियों के निशान उसके गालों पर उभरे हुए हैं। पंचायत ने यह फैसला लिया कि भक्तिन की विधवा लड़की और जिठौत के साले के बीच जो घटना घटी है उसके लिए कलयुग ही दोषी है, क्योंकि दोनों एक ही कमरे में बंद हो चुके हैं, इसलिए अब उन्हें पति-पत्नी बनकर ही रहना पड़ेगा। इस प्रकार पंचायत के सदस्यों ने जबरदस्ती उन दोनों का विवाह करवा दिया।

(ख) पंचायत का फैसला अन्यायपूर्ण है। लेखिका ने इसके लिए ‘अपीलहीन’ शब्द का प्रयोग किया है जो यह सिद्ध करता है कि पंचायत का फैसला एक तरफा था। उन्होंने सच-झूठ का पता नहीं लगाया और लड़की के न चाहते हुए भी उस गुंडे तीतरबाज़ के साथ उसका विवाह करा दिया। किसी भी दृष्टि से यह फैसला उचित नहीं कहा जा सकता।

(ग) भक्तिन की विधवा लड़की का पुनर्विवाह कराने के लिए पंचायत ही दोषी है। भक्तिन के जिठौत तो संपत्ति को हथियाने के चक्कर में था और उसके साले ने लोभ और पागलपन में यह दुष्कर्म किया। परंतु पंचायत का काम न्याय करना होता है। उसे मामले के सभी पहलुओं पर विचार करके निर्णय करना चाहिए था। पंचायत का यह कर्त्तव्य था कि वह उस तीतरबाज़ को अपमानित करके उसे गाँव से निकाल देती, ताकि कोई व्यक्ति गाँव की बहू-बेटी के साथ दुष्कर्म न करे। इसके साथ-साथ जिठौत को भी दंड दिया जाना चाहिए था।

(घ) भक्तिन की विधवा बेटी की जबरदस्ती शादी कराने का यह दुष्परिणाम हुआ कि उसकी हरी-भरी गृहस्थी उजड़ गई। अनचाहे निकम्मे दामाद के कारण निरंतर कलह बढ़ने लगा, जिससे खेती-बाड़ी पर प्रभाव पड़ा। तीतरबाज़ दामाद ने घर की संपत्ति को उजाड़कर रख दिया। जिससे भक्तिन के पास लगान चुकाने के पैसे भी नहीं रहे। अन्ततः जमींदार से अपमानित होने के कारण भक्तिन ने कमाई के लिए शहर का रुख किया।

(ङ) भक्तिन को कमाई के लिए शहर इसलिए आना पड़ा, क्योंकि उसके दामाद तथा जिठौतों के दुष्कर्मों के कारण उसकी हरी-भरी खेती उजड़ गई थी। उसके पशु और खेत उसकी कमाई का साधन न रहकर बोझ बन गए थे।

[7] दूसरे दिन तड़के ही सिर पर कई लोटे औंधा कर उसने मेरी धुली थोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और पूर्व के अंधकार और मेरी दीवार से फूटते हुए सूर्य और पीपल का, दो लोटे जल से अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरांत जब वह कोयले की मोटी रेखा से अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, तब मैंने समझ लिया कि इस सेवक का साथ टेढ़ी खीर है। अपने भोजन के संबंध में नितांत वीतराग होने पर भी मैं पाक-विद्या के लिए परिवार में प्रख्यात हूँ और कोई भी पाक-कुशल दूसरे के काम में नुक्ताचीनी बिना किए रह नहीं सकता। पर जब छूत-पाक पर प्राण देने वाले व्यक्तियों का बात-बात पर भूखा मरना स्मरण हो आया और भक्तिन की शंकाकुल दृष्टि में छिपे हुए निषेध का अनुभव किया, तब कोयले की रेखा मेरे लिए लक्ष्मण के धनुष से खींची हुई रेखा के सामने दुर्लंघ्य हो उठी। [पृष्ठ-74-75]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने भक्तिन के जीवन के उस पड़ाव का वर्णन किया है, जब वह लेखिका के पास आकर नौकरी करना आरंभ करती है।

व्याख्या-अगले दिन सवेरा होते ही भक्तिन ने अपने सिर पर कई लोटे पानी उँडेलकर स्नान किया। तत्पश्चात् लेखिका की धुली धोती को पानी के छींटे मारकर पवित्र करके पहन लिया। पूर्व दिशा के अंधकार से सूर्योदय हो रहा था और लेखिका के घर की दीवार से पीपल का एक पेड़ फूट कर निकल आया था। भक्तिन ने दो लोटे जल चढ़ाकर सूर्य और पीपल का स्वागत किया। ने दो मिनट तक अपनी नाक को दबाकर रखा तथा जाप किया। इसके पश्चात उसने कोयले की मोटी रेखा खींचकर अपने क्षेत्र की सीमाओं को निश्चित कर दिया। इस प्रकार वह रसोई घर में प्रविष्ट हुई। यह सब देखकर लेखिका को समझने में तनिक भी देर नहीं हुई कि इस सेविका के साथ गुजारा करना बड़ा कठिन है।

लेखिका पुनः स्वीकार करती है कि भोजन के संबंध में वह पूर्णतया विरक्त है, फिर भी अपने परिवार में वह पाक-विद्या में निपुण मानी जाती है। जो व्यक्ति पाक-विद्या में निपुण होता है, वह दूसरे द्वारा बनाए गए भोजन में नुक्ताचीनी अवश्य करता है और लेखिका भी कोई अपवाद नहीं थी। परंतु जब लेखिका ने छूत-पाक पर अपनी जान देनेवाले व्यक्तियों तथा बात-बात पर भूखा मरने वालों को याद किया तो वे एकदम सावधान हो गईं। उसने भक्तिन की संदेहयुक्त नज़र में छिपी हुई मनाही को तत्काल अनुभव कर लिया। भाव यह है कि उसे इस बात का पता लग गया कि उसका रसोई-घर में जाना निषेध है। अंततः भक्तिन द्वारा खींची गई कोयले की रेखा लेखिका के लिए लक्ष्मण-रेखा के समान सिद्ध हो गई, जिसे वह पार नहीं कर सकती थी अर्थात् भक्तिन ने अपनी पूजा-अर्चना के बाद लेखिका की रसोई पर अपना पूर्ण आधिपत्य स्थापित कर लिया था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन द्वारा रसोई-घर में प्रवेश करने की प्रक्रिया पर समुचित प्रकाश डाला है।
  2. भक्तिन रसोई को लेकर छूत को मानती थी और चूल्हे-चौके की पवित्रता पर पूरा ध्यान देती थी।
  3. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा लेखिका ने भक्तिन के सुदृढ़ चरित्र पर प्रकाश डाला है।
  5. वाक्य-विन्यास बड़ा ही सटीक एवं सार्थक है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) रसोई-घर में प्रवेश करने से पहले भक्तिन कौन-सा काम करती थी?
(ख) भक्तिन से निपटना लेखिका को टेढ़ी खीर क्यों लगा?
(ग) भक्तिन रसोई-घर में कोयले की मोटी रेखा क्यों खींचती थी?
(घ) किन कारणों से लेखिका भक्तिन की छुआछूत की प्रवृत्ति को सहन कर गई?
उत्तर:
(क) प्रतिदिन रसोई-घर में प्रवेश करने से पहले भक्तिन स्नान करती थी। तत्पश्चात् वह जल के छींटे मारकर अपने कपड़ों को पवित्र करती थी। सूर्य और पीपल को जल चढ़ाने के बाद वह दो मिनट तक नाक दबाकर जाप करती थी उसके बाद वह रसोई-घर में प्रवेश करती थी।

(ख) लेखिका को तत्काल पता चल गया कि भक्तिन एक दृढ़-निश्चय नारी है। उसे रसोई-घर की पवित्रता का पूरा ध्यान था। इस प्रकार के लोग अकसर पक्के इरादों वाले होते हैं। भक्तिन के द्वारा रसोई-घर में खींची गई कोयले की रेखा से लेखिका जान गई कि इससे निपटना टेढ़ी खीर है।

(ग) भक्तिन रसोई-घर में कोयले की रेखा खींच कर यह निश्चित करती थी कि रसोई बनाते समय कोई अन्य व्यक्ति रसोई-घर में घुसकर हस्तक्षेप न करे और न ही रसोई की पवित्रता को नष्ट करे।

(घ) लेखिका उन लोगों को याद करके भक्तिन की छुआछूत की प्रवृत्ति को सहन कर गई जो रसोई पकाने के मामले में ज़रा-सी भी चूक होने पर खाना-पीना छोड़ देते हैं अथवा अपने प्राण देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

[8] भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती; पर ‘नरो वा कुंजरो वा’ कहने में भी विश्वास नहीं करती। मेरे इधर-उधर पड़े पैसे-रुपये, भंडार-घर की किसी मटकी में कैसे अंतरहित हो जाते हैं, यह रहस्य भी भक्तिन जानती है। पर, उस संबंध में किसी . के संकेत करते ही वह उसे शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे डालती है, जिसको स्वीकार कर लेना किसी तर्क-शिरोमणि के लिए संभव नहीं। यह उसका अपना घर ठहरा, पैसा-रुपया जो इधर-उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। यह क्या चोरी है! उसके जीवन का परम कर्त्तव्य मुझे प्रसन्न रखना है-जिस बात से मुझे क्रोध आ सकता है, उसे बदलकर इधर-उधर करके बताना, क्या झूठ है! इतनी चोरी और इतना झूठ तो धर्मराज महाराज में भी होगा, नहीं तो वे भगवान जी को कैसे प्रसन्न रख सकते और संसार को कैसे चला सकते! [पृष्ठ-76]

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ में संकलित है। इसमें लेखिका भक्तिन के स्वभाव के गुणों तथा अवगुणों का मूल्यांकन करती हुई उसके चरित्र पर समुचित प्रकाश डालती है। लेखिका कहती है कि

व्याख्या – यह निर्णय करना बड़ा कठिन है कि भक्तिन एक अच्छी नारी है। कारण यह है कि उसमें कई दुर्गुण भी हैं। उसकी तुलना सत्यवादी हरिश्चंद्र से नहीं की जा सकती। लेकिन वह इस बात में विश्वास नहीं करती थी कि कोई बात सत्य है या असत्य। इसके लिए लेखिका ने युधिष्ठिर द्वारा कहे गए वाक्य ‘नरो वा कुंजरो वा’ का उदाहरण दिया है। भक्तिन लेखिका के घर में इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे को उठाकर भंडार घर की किसी मटकी में छिपा कर रख देती थी। वे पैसे-रुपये कहाँ पड़े हैं, इसका पता केवल भक्तिन को होता था।

इस संबंध में लेखिका यदि कोई आपत्ति करती तो वह शास्त्रार्थ करने लग जाती थी तथा बड़े से बड़ा तर्कशील व्यक्ति भी उसके तर्कों को सहन नहीं कर सकता था। फिर भी उसका यह कहना तर्क संगत था कि यह उसका अपना घर है। यदि उसने बिखरे पड़े पैसे-रुपये को संभालकर अपने पास रख लिया है तो यह कोई चोरी नहीं है, बल्कि यह तो उसका कर्तव्य है। उसके जीवन का सर्वोच्च कर्त्तव्य तो लेखिका को हमेशा प्रसन्न करना है।

उसका कहना था कि जिस बात पर लेखिका सकता है, उसे इधर-उधर बदलकर तथा थोडा-बहत तोड़ मरोड़ कर प्रस्तत करना कोई झठ नहीं है, बल्कि ऐसा करके वह लेखिका के क्रोध को दूर करती है। उसका तर्क यह था कि धर्मराज महाराज भी इतनी चोरी तो करते ही होंगे और इतना झूठ तो बोलते ही होंगे। यदि वे ऐसा नहीं करते तो वे भगवान को कैसे खुश कर पाते और संसार को कैसे चला पाते। भाव यह है कि भक्तिन हमेशा सच्चे-झूठे तर्क देकर इसमें सत्य सिद्ध करने में लगी रहती थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन के गुण-अवगुणों का सही मूल्यांकन किया है और उसकी तर्क देने की शक्ति पर प्रकाश डाला है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वर्णनात्मक शैली द्वारा भक्तिन के चरित्र पर समुचित प्रकाश डाला गया है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा विषयानुकूल एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है। गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) लेखिका ने भक्तिन को अच्छा क्यों नहीं कहा?
(ख) सच-झूठ के बारे में भक्तिन का मूल दृष्टिकोण क्या था?
(ग) भक्तिन घर में इधर-उधर पडे रुपये-पैसे को भंडार-घर की मटकी में क्यों डाल देती थी?
(घ) भक्तिन का मूल लक्ष्य क्या था और वह उसे कैसे पूरा करती थी?
(ङ) भक्तिन रुपये-पैसे को मटकी में डालने को चोरी क्यों नहीं कहती थी?
उत्तर:
(क) भक्तिन के स्वभाव में गुणों के साथ-साथ कुछ अवगुण भी थे। सत्य-असत्य के बारे में उसकी अपनी राय थी। वह लोक-व्यवहार की कसौटी पर खरी नहीं उतरती थी। इसलिए लेखिका ने भक्तिन को अच्छा नहीं कहा।

(ख) सच-झूठ के बारे में भक्तिन आचरण करने वाले व्यक्ति की नीयत को अधिक महत्त्व देती थी। वह महादेवी के घर में इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे को मटकी में सँभालकर रख देती थी। उसका कहना था कि रुपये-पैसे को सँभालकर रखना कोई चोरी नहीं है।

(ग) भक्तिन घर में पड़े रुपये-पैसे को सँभालकर रखने के उद्देश्य से भंडार-घर की मटकी में डाल देती थी।

(घ) भक्तिन का मूल लक्ष्य अपनी मालकिन को प्रसन्न रखना था। इसके लिए वह सच-झूठ का सहारा लेने के लिए भी तैयार रहती थी। यदि उसकी किसी बात पर मालकिन क्रोधित हो जाती थी तो वह उस बात को रफा-दफा कर देती थी।

(ङ) भक्तिन पैसों को मटकी में डालने को चोरी इसलिए नहीं कहती थी क्योंकि महादेवी के घर को सँभालना उसका काम था। इसलिए वह पैसे-रुपये को भी सँभालकर रखती थी। ऐसा करना वह चोरी नहीं समझती थी।

[9] पर वह स्वयं कोई सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी हीनता स्वीकार करना है इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कुछ काम बताने का आग्रह करती है। कभी उत्तर:पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। वह जानती है कि जब दूसरे मेरा हाथ बटाने की कल्पना तक नहीं कर सकते, तब वह सहायता की इच्छा को क्रियात्मक रूप देती है, इसी से मेरी किसी पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसे ही उद्भासित हो उठती है जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक।। [पृष्ठ-78]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि भक्तिन महादेवी की एक अनन्य सेविका थी। जब महादेवी चित्रकला और कविता लिखने में व्यस्त होती थी, तो वह सहायता करने में असमर्थ होते हुए भी अपनी निष्ठा से कोई-न-कोई काम अवश्य ढूँढ़ लेती थी।

व्याख्या-जब महादेवी चित्रकला और काव्य-रचना में व्यस्त हो जाती थी, तो उस समय भक्तिन लेखिका का किसी प्रकार का सहयोग नहीं कर सकती थी। परंतु इस स्थिति को स्वीकार करना भक्तिन को अपनी हीनता स्वीकार करना था। इसलिए वह द्वार पर बैठ जाती थी। वह बार-बार लेखिका से कोई-न-कोई काम बताने के लिए हठ करती रहती थी। कभी वह उत्तर:पुस्तिकाओं को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली को धोकर और कभी चटाई को अपने आँचल से साफ कर लेखिका का सहयोग करती थी। लेखिका की बातों से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि वह सामान्य व्यक्तियों से अधिक समझदार थी।

वह इस बात को अच्छी प्रकार से समझती थी कि जब अन्य लोग लेखिका का सहयोग करने की बात सोच भी नहीं सकते थे, तब वह सक्रिय होकर अपने सहयोग की इच्छा को क्रियान्वित करती थी। यही कारण है कि जब लेखिका की कोई पुस्तक प्रकाशित होकर आती थी, तो उसके चेहरे पर प्रसन्नता की किरणें प्रकाशमान हो उठती थीं। यह लगभग ऐसी ही स्थिति थी जैसे कि बिजली का बटन दबाने से बल्ब में छिपा प्रकाश चारों ओर फैल जाता है। भाव यह है कि जब भी महादेवी की कोई रचना पूर्ण होकर छपकर सामने आती थी, तो भक्तिन अत्यधिक प्रसन्न हो जाती थी। शायद वह यह सोचती थी कि महादेवी के लेखन में उसका भी थोड़ा बहुत सहयोग रहा है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने स्पष्ट किया है कि भक्तिन एक सच्ची सेविका के समान हमेशा उसका सहयोग करने के लिए तत्पर रहती थी।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास भावाभिव्यक्ति में सहायक है तथा ‘हाथ बँटाना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भक्तिन के चरित्र पर समूचा प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन किस बात में स्वयं को हीन मानती है?
(ख) लेखिका की दृष्टि में भक्तिन अन्य सेवकों से अधिक बुद्धिमान कैसे है?
(ग) भक्तिन चित्रकला और कविता लिखने में लेखिका की किस प्रकार सहायता करती थी?
(घ) महादेवी की किसी पुस्तक के प्रकाशन पर भक्तिन कैसा अनुभव करती थी?
उत्तर:
(क) भक्तिन कभी खाली नहीं बैठ सकती थी। जब महादेवी चित्रकला और कविता लिखने में व्यस्त हो जाती थी, तो वह लेखिका की किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकती थी। यही सोचकर वह स्वयं को हीन समझने लगी थी।

(ख) महादेवी द्वारा चित्रकला और कविता लिखने के दौरान अन्य सेवक स्वयं को असमर्थ समझते थे, परंतु भक्तिन तो महादेवी की सच्ची सेविका थी। वह अपनी निष्ठा से कोई-न-कोई काम अवश्य ढूँढ लेती थी। इसलिए वह अन्य सेवकों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमती थी।

(ग) भक्तिन चित्रकला और कविता लेखन के दौरान हमेशा महादेवी के पास ही बैठी रहती थी। वह हर प्रकार से महादेवी की सहायता करना चाहती थी। कभी तो वह अधूरे चित्र को कमरे के किसी कोने में रख देती थी, कभी चटाई को अपने आँचल से पोंछ देती थी। यही नहीं, वह दही का शरबत अथवा तुलसी की चाय देकर महादेवी की भूख को दूर करने का प्रयास करती रहती थी।

(घ) जब महादेवी की कोई रचना प्रकाशित होती थी, तो भक्तिन का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठता था। वह बार-बार पुस्तक को छूती थी और आँखों के निकट लाकर उसे देखती थी। वह यह सोचकर प्रसन्न होती थी कि इस पुस्तक के प्रकाशन में उसका भी थोड़ा-बहुत सहयोग है।

[10] मेरे भ्रमण की भी एकांत साथिन भक्तिन ही रही है। बदरी-केदार आदि के ऊँचे-नीचे और तंग पहाड़ी रास्ते में जैसे वह हठ करके मेरे आगे चलती रही है, वैसे ही गाँव की धूलभरी पगडंडी पर मेरे पीछे रहना नहीं भूलती। किसी भी समय, कहीं भी जाने के लिए प्रस्तुत होते ही मैं भक्तिन को छाया के समान साथ पाती हूँ। युद्ध को देश की सीमा में बढ़ते देख जब लोग आतंकित हो उठे, तब भक्तिन के बेटी-दामाद उसके नाती को लेकर बुलाने आ पहुँचे; पर बहुत समझाने-बुझाने पर भी वह उनके साथ नहीं जा सकी। सबको वह देख आती है; रुपया भेज देती है; पर उनके साथ रहने के लिए मेरा साथ छोड़ना आवश्यक है; जो संभवतः भक्तिन को जीवन के अंत तक स्वीकार न होगा। [पृष्ठ-78-79]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ में संकलित है। यहाँ लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि भ्रमणकाल के दौरान भक्तिन हमेशा लेखिका के साथ रहती थी। दूसरा, जब देश पर युद्ध के बादल मडराने लगे, तब उसकी बेटी और दामाद उसे लेने के लिए आए परंतु भक्तिन ने महादेवी के साथ रहना ही स्वीकार किया।

व्याख्या-लेखिका स्वीकार करती है कि भ्रमणकाल के दौरान भक्तिन हमेशा उसके साथ ही भ्रमण पर जाती थी। जब बदरी-केदार के ऊँचे-नीचे तथा तंग पहाड़ी रास्ते आ जाते तो वह हठपूर्वक महादेवी के आगे-आगे चल पड़ती, ताकि लेखिका को बिना किसी बाधा के चलने का मौका मिले। गाँव की धूल भरी पगडंडी में भक्तिन महादेवी के पीछे-पीछे चलना स्वीकार करती, ताकि महादेवी को गाँव की धूल परेशान न करे। जब भी महादेवी किसी भी समय कहीं भी जाने के लिए तैयार होती तो भक्तिन छाया के समान उनके साथ चलती। भाव यह है कि भक्तिन हमेशा महादेवी की सेविका बनकर उनके साथ ही लगी रहती थी।

एक समय देश पर युद्ध के बादल मँडराने लगे थे, जिससे देश के सभी लोग भयभीत हो उठे थे। इस अवसर पर भक्तिन की बेटी और दामाद उसके नातियों को साथ लेकर भक्तिन को बुलाने के लिए महादेवी के घर आए। वे चाहते थे कि इस कष्ट के समय भक्तिन उनके साथ रहे, क्योंकि नगर युद्ध से अधिक प्रभावित होते हैं। इस अवसर पर भक्तिन को अनेक तर्क देकर समझाने-बुझाने का प्रयास किया गया, परंतु उसने किसी की बात नहीं सुनी और वह उनके साथ नहीं गई। वह समय-समय पर अपनी बेटी और उनके बच्चों को देख आती थी। यही नहीं, वह उनके पास रुपए भी भेज देती थी। यदि वह उनके साथ गाँव में जाकर रहती तो उसे लेखिका का साथ छोड़ना पड़ता। भक्तिन को यह कदापि स्वीकार नहीं था। वह तो जीवन के अंत तक महादेवी के साथ ही रहना चाहती थी।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने भक्तिन की सच्ची सेवा-भक्ति पर प्रकाश डाला है जो हमेशा अपने सेवा-धर्म को निभाने के लिए छाया के समान उनके साथ लगी रहती थी।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है तथा ‘छाया के समान साथ रहना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) तंग पहाड़ी रास्तों पर भक्तिन महादेवी के आगे-आगे क्यों चलती थी?
(ख) गाँव की धूलभरी पगडंडी पर भक्तिन महादेवी के पीछे-पीछे क्यों चलती थी?
(ग) युद्ध के दिनों में भक्तिन ने अपने गाँव जाना स्वीकार क्यों नहीं किया?
(घ) सिद्ध कीजिए कि भक्तिन महादेवी की एक सच्ची सेविका थी।
उत्तर:
(क) तंग पहाड़ी रास्तों में भक्तिन महादेवी के आगे-आगे इसलिए चलती थी, ताकि कोई खतरा न हो अथवा फिसलन या गड्ढा हो तो वह स्वयं उसका सामना करे। महादेवी को किसी खतरे का सामना न करना पड़े।

(ख) गाँव की धूलभरी पगडंडी पर भक्तिन महादेवी के पीछे-पीछे इसलिए चलती थी, ताकि महादेवी को रास्ते की धूल परेशान न करे अथवा वह स्वयं उस धूल को अपने ऊपर झेल लेती थी।

(ग) युद्ध के दिनों में नगर के लोगों पर खतरा मँडराने लगा था। नगर के सभी लोग सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे थे। इसीलिए भक्तिन की बेटी और दामाद उसे गाँव में ले जाने के लिए आए थे। परंतु भक्तिन ने महादेवी को अकेला छोड़कर उनके साथ गाँव जाना स्वीकार नहीं किया और प्रत्येक स्थिति में महादेवी के साथ रहना पसंद किया।

(घ) निश्चय से भक्तिन महादेवी की एक सच्ची सेविका थी। वह अपने सेवा-धर्म में प्रवीण थी और छाया के समान अपनी स्वामिन के साथ रहती थी। तंग रास्तों पर वह महादेवी के आगे चलती थी, ताकि वह पहले खतरे का सामना कर सके। गाँव की धूलभरी पगडंडी पर वह महादेवी के पीछे चलती थी, ताकि महादेवी को गाँव की धूल-मिट्टी का सामना न करना पड़े। युद्ध के दिनों में भी उसने महादेवी के साथ रहना ही पसंद किया।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

[11] भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है। क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है। [पृष्ठ-79]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि उसने भक्तिन को अपनी सेविका न मानकर अपनी सहयोगी स्वीकार किया है। लेखिका लिखती है कि

व्याख्या-यह कहना लगभग असंभव है कि भक्तिन और मेरे बीच सेवक और स्वामी का संबंध रहा होगा। संसार में ऐसा कोई स्वामी नहीं है, जो चाहने पर भी अपने सेवक को सेवा-कार्य से हटा न सके अर्थात् चाहने पर भी महादेवी भक्तिन को सेवा-कार्य से मुक्त नहीं कर सकी। इसी प्रकार संसार में ऐसा कोई सेवक भी नहीं हो सकता, जिसे स्वामी ने यह आदेश दिया हो कि वह काम छोड़कर चला जाए और वह स्वामी के आदेश को न मानता हुआ केवल हँस पड़े। जब भी महादेवी भक्तिन को काम छोड़कर जाने की आज्ञा देती थी, तो वह आगे से हँस देती थी, काम छोड़कर जाना तो एक अलग बात है।

महादेवी की दृष्टि में भक्तिन को घर का नौकर कहना सर्वथा अनुचित है। जिस प्रकार घर में बारी-बारी अंधेरा और उजाला आता रहता है, गुलाब खिलता रहता है और आम फलता रहता है, परंतु हम उन्हें नौकर नहीं कह सकते, यह उनका स्वभाव है। इन सबका अपना-अपना अस्तित्व है, जिसे सार्थक बनाने के लिए वह हमें सुख और दुख देते रहते हैं। उसी प्रकार भक्तिन का अस्तित्व भी स्वतंत्र था और वह अपने विकास का परिचय देने के लिए लेखिका को चारों ओर से घेरे हुए थी। भाव यह है कि भक्तिन महादेवी के जीवन का एक अनिवार्य अंग थी, अपने सुख-दुख दोनों के साथ जीवित रहने की अधिकारिणी थी।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने भक्तिन और अपने जीवन के प्रगाढ़ संबंधों पर समुचित प्रकाश डाला है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित तथा भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली द्वारा भक्तिन के जीवन-चरित्र पर समुचित प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) महादेवी भक्तिन को अपनी सेविका क्यों नहीं मानती थी?
(ख) जब महादेवी ने भक्तिन को वहाँ से चले जाने का आदेश दिया तो भक्तिन ने कैसा व्यवहार किया?
(ग) भक्तिन और महादेवी के बीच किस प्रकार का संबंध था?
(घ) लेखिका ने अंधेरे, उजाले, गुलाब, आम द्वारा भक्तिन में क्या समानता खोजी है?
उत्तर:
(क) महादेवी भक्तिन को अपनी सेविका नहीं मानती थी, क्योंकि वह चाहकर भी उसको नौकरी से नहीं हटा सकती थी और यदि वह उसको ऐसा कहती तो भक्तिन हँसी में ही उसकी बात को टाल जाती थी। वह उसे छोड़ने की सोच भी नहीं पाती थी। इसलिए महादेवी उसको सेविका नहीं मानती थी।

(ख) जब महादेवी ने भक्तिन को नौकरी छोड़कर चले जाने का आदेश दिया तो उसने महादेवी के आदेश की अवज्ञा की और हँस दिया। वह तो स्वयं को महादेवी की संरक्षिका मानती थी। इसलिए वह उसे छोड़कर कैसे जा सकती थी।

(ग) भक्तिन और महादेवी के बीच प्रगाढ़ आत्मीयता थी। वस्तुतः भक्तिन स्वयं को महादेवी की संरक्षिका मानती थी, इसलिए वह उसे छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी। लेखिका ने स्वीकार किया है कि उसके और भक्तिन के बीच सेविका और स्वामिन का संबंध नहीं था।

(घ) लेखिका का कहना है कि जिस प्रकार घर में अँधेरे, उजाले, गुलाब तथा आम का अलग-अलग अस्तित्व होता है, उसी प्रकार से भक्तिन का भी घर में अलग स्थान था। वह लेखिका की केवल सेविका नहीं थी, बल्कि सुख-दुख में साथ देने वाली अनन्य सहयोगी भी थी।

[12] मेरे परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भी भक्तिन विशेष परिचित है; पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, मेरे प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति मेरे सदभाव से निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन की सहजबुद्धि विस्मित कर देने वाली है। वह किसी को आकार-प्रकार और वेश-भूषा से स्मरण करती है और किसी को नाम के अपभ्रंश द्वारा। कवि और कविता के संबंध में उसका ज्ञान बढ़ा है; पर आदर-भाव नहीं। किसी के लंबे बाल और अस्त-व्यस्त वेश-भूषा देखकर वह कह उठती है- ‘का ओहू कवित्त लिखे जानत हैं और तुरंत ही उसकी अवज्ञा प्रकट हो जाती है- तब ऊ कुच्छौ करिहैं-धरि, ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं। [पृष्ठ-80]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संर अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। भक्तिन महादेवी के साहित्यिक बंधुओं पर पूरी नज़र रखती थी और यह जानने का प्रयास करती थी कि उनमें से कौन महादेवी का आदर-सम्मान करते थे।

व्याख्या-महादेवी लिखती है कि भक्तिन उसके साहित्यिक बंधुओं को अच्छी तरह जानती थी। लेकिन वह उन्हीं साहित्यिक बंधुओं को सम्मान देती थी, जो महादेवी का उचित सम्मान करते थे। उनके प्रति भक्तिन की सद्भावना इस बात पर निर्भर करती थी कि वे लेखिका के प्रति किस प्रकार की सोच रखते हैं। भक्तिन की इस प्रकार की सहज बुद्धि देखकर लेखिका स्वयं आश्चर्यचकित हो जाती। वह किसी साहित्यिक बंध के आकार-प्रकार और कपड़ों से उनको याद करती थी और किसी को उसके बिगड़े नाम से याद करती थी।

कवि और कविता के बारे में उसका ज्ञान बढ़ चुका था। परंतु वह हरेक का आदर-सम्मान नहीं करती थी। किसी कवि के लंबे-लंबे बाल तथा अस्त-व्यस्त कपड़े देखकर यह कह उठती थी कि क्या यह भी कविता लिखना जानता है। इसके साथ ही वह अपनी अवज्ञा को स्पष्ट करते हुए कहती थी कि क्या यह कुछ काम-धाम करता है या गली-गली में गाता बजाता फिरता है। भाव यह है कि लंबे-लंबे बालों वाले तथा अस्त-व्यस्त कपड़ों वालों को वह पसंद नहीं करती थीं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भक्तिन की सहज बुद्धि पर प्रकाश डाला है जो साहित्यिक बंधुओं द्वारा अपनी स्वामिनी के प्रति किए गए सम्मान को देखकर ही उनका मूल्यांकन करती है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. संवादात्मक तथा वर्णनात्मक शैलियों के द्वारा भक्तिन के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन महादेवी के साहित्यिक बंधुओं का आदर-सम्मान किस प्रकार करती है?
(ख) भक्तिन साहित्यिक बंधुओं को किस नाम से याद करती है?
(ग) किन लोगों के प्रति भक्तिन अपनी अवज्ञा प्रकट करती है?
(घ) किस प्रकार के साहित्यिक मित्रों के प्रति भक्तिन सद्भाव रखती है?
उत्तर:
(क) भक्तिन महादेवी वर्मा के साहित्यिक बंधुओं का आदर-सम्मान इस आधार पर करती है कि वे लोग महादेवी का कितना सम्मान करते हैं। यदि कोई साहित्यकार महादेवी का अत्यधिक आदर-सम्मान करता है तो वह भी उसका अत्यधिक आदर-सम्मान करती है अन्यथा नहीं।

(ख) भक्तिन साहित्यिक बंधुओं को उनकी वेश-भूषा, रूप, आकार अथवा उनके नाम के बिगड़े हुए रूप से याद करती है।

(ग) जो साहित्यिक बंधु लंबे-लंबे बालों तथा अस्त-व्यस्त कपड़ों के साथ आते थे, उन्हें भक्तिन बेकार आदमी समझती थी। ऐसे व्यक्तियों के प्रति भक्तिन अपनी अवज्ञा प्रकट करती है।

(घ) जो साहित्यिक मित्र महादेवी के प्रति सद्भाव रखते थे, उन्हीं के प्रति भक्तिन भी सद्भाव रखती थी।

[13] भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से। ऊँची दीवार देखते ही, वह आँख मूंदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमज़ोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की संभावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्त्व मेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी कै धोती साबुन से साफ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े। क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं, यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित। [पृष्ठ-80]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘भक्तिन’ नामक संस्मरणात्मक रेखाचित्र से अवतरित है। यह संस्मरणात्मक रेखाचित्र हिंदी साहित्य की महान कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा की रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने भक्तिन के चरित्र की एक अन्य प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है। भले ही भक्तिन जेल जाने से बहुत डरती थी, लेकिन वह अपनी स्वामिनी के जेल जाने पर उनके साथ जेल जाने को तैयार हो जाती है।

व्याख्या-भक्तिन के मन में कुछ ऐसे संस्कार पड़ गए थे कि वह जेल को यमलोक मानकर अत्यधिक भयभीत हो जाती थी। ऊँची दीवार को देखते ही वह अपनी आँखें बंदकर बेहोश हो जाना चाहती थी। उसकी इस कमज़ोरी का सबको पता लग गया था। इसलिए प्रायः लोग उसे यह कहकर चिढ़ाते और डराते थे कि महादेवी को जेल की यात्रा करनी पड़ेगी। यह कहना तो झूठ होगा कि वह डरती नहीं थी। परंतु उसके लिए साथ रहने का महत्त्व डर से भी अधिक था। कभी-कभी वह चुपचाप लेखिका से पूछ लेती कि वह अपनी कितनी धोतियों को साफ कर ले, ताकि वहाँ जाने पर उसे शर्मिन्दा न होना पड़े।

कभी-कभी वह यह भी पूछ लेती कि जेल जाने के लिए उसे कौन-सा सामान बाँधकर तैयार कर लेना चाहिए, जिससे लेखिका को जेल जाने में कोई तकलीफ न हो। जेल-यात्रा में कोई किसी के साथ नहीं जा सकता, बल्कि उसे अकेले ही जेल जाना होता है, परंतु यह बात भक्तिन के लिए कोई महत्त्व नहीं रखती थी। महादेवी के जेल जाने की कल्पना से भक्तिन इतनी अधिक दुखी नहीं थी, जितनी कि इस बात को लेकर कि वह अपनी मालकिन के साथ जेल नहीं जा सकती। इस अपमान की संभावना से ही वह डर जाती थी, क्योंकि वह तो हमेशा अपनी मालकिन के साथ रहना चाहती थी। कहने का भाव यह है कि भक्तिन अपनी मालकिन के साथ जेल जाने को भी तैयार थी।

विशेष-

  1. इसमें लेखिका ने भक्तिन की एकनिष्ठ सेवा-भावना का संवेदनशील वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक और संवादात्मक शैलियों के प्रयोग द्वारा भक्तिन के चरित्र पर समुचित प्रकाश डाला गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भक्तिन कारागार से क्यों डरती थी?
(ख) डरते हुए भी भक्तिन कारागार जाने की तैयारी क्यों करने लगती है?
(ग) महादेवी को किन कारणों से कारागार जाना पड़ सकता था?
(घ) सिद्ध कीजिए भक्तिन एक सच्ची स्वामी-सेविका है?
उत्तर:
(क) भक्तिन ने बाल्यावस्था से ही जेल के बारे में बड़ी भयानक बातें सुन रखी थीं। इसलिए वह जेल के नाम से ही डरती थी। दूसरे शब्दों में, वह अपने संस्कारों के कारण भी जेल जाने से डरती थी।

(ख) भले ही भक्तिन जेल से बहुत डरती थी, परंतु अपनी मालकिन से अलग रहना उसके लिए अधिक कष्टकर था। इसलिए वह किसी भी स्थिति में लेखिका का साथ नहीं छोड़ सकती थी। अतः वह जेल जाने की तैयारी करने लगती है।

(ग) स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में लेखिका को कारागार जाना पड़ सकता था, क्योंकि उन दिनों देश में स्वतंत्रता आंदोलन ज़ोर-शोर से चल रहा था।

(घ) भक्तिन सही अर्थों में अपनी मालकिन की सच्ची सेविका है। वह निजी सुख-दुख अथवा कारागार के भय की परवाह न करके अपनी मालकिन की सेवा करना चाहती है। वह छाया के समान अपनी मालकिन के साथ लगी रहती है। जब उसे यह बताया जाता था कि महादेवी को जेल जाना पड़ सकता है तो वह भी जेल जाने को तैयार हो जाती थी।

भक्तिन Summary in Hindi

भक्तिन लेखिका-परिचय

प्रश्न-
महादेवी वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नगर के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर में हुई। नौ वर्ष की अल्पायु में ही उन्हें विवाह के बंधन में बाँध दिया गया था, किंतु यह बंधन स्थाई न रह सका। उन्होंने अपना सारा समय अध्ययन में लगाना प्रारंभ कर दिया और सन् 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी योग्यताओं से प्रभावित होकर उन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें छायावादी हिंदी काव्य के चार स्तंभों में से एक माना जाता है। उन्हें विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। सन् 1956 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण अलंकरण से सम्मानित किया। उन्हें 1983 में ‘यामा’ संग्रह के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का भारत भारती-पुरस्कार मिला। उन्हें विक्रम विश्वविद्यालय, कुमायूँ विश्वविद्यालय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा डी० लिट् की मानद उपाधि से विभूषित किया गया। 11 दिसंबर, 1987 को उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ महादेवी वर्मा ने कविता, रेखाचित्र, आलोचना आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में रचना की हैं। उन्होंने ‘चाँद’ और ‘आधुनिक कवि काव्यमाला’ का संपादन कार्य भी किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं
काव्य-संग्रह ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ आदि।
निबंध-संग्रह- शृंखला की कड़ियाँ’, ‘क्षणदा’, ‘संकल्पिता’, ‘भारतीय संस्कृति के स्वर’, ‘आपदा’।
संस्मरण/रेखाचित्र-संग्रह ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’, ‘मेरा परिवार’।
आलोचना-‘हिंदी का विवेचनात्मक गद्य’, ‘विभिन्न काव्य-संग्रहों की भूमिकाएँ।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

3. साहित्यिक विशेषताएँ महादेवी वर्मा कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हैं, लेकिन गद्य के विकास में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कहानी, संस्मरण, रेखाचित्र, निबंध आदि गद्य विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई। उनके अधिकांश संस्मरण एवं रेखाचित्र कहानी-कला के समीप दिखाई पड़ते हैं। उनके संस्मरणों के पात्र अत्यंत सजीव एवं यथार्थ के धरातल पर विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। उनकी गद्य रचनाओं में अनुभूति की प्रबलता के कारण पद्य जैसा आनंद आता है। उनके संस्मरणों के मानवेत्तर पात्र भी बड़े सहज एवं सजीव बन पड़े हैं। उनके गद्य साहित्य की मूल संवेदना करुणा और प्रेम है। इसीलिए उनका गद्य साहित्य काव्य से भिन्न है। काव्य में वे प्रायः अपने ही सुख-दुख, विरह-वियोग आदि की बातें करती रही हैं, किंतु उन्होंने गद्य साहित्य में समाज के सुख-दुख का अत्यंत मनोयोग से चित्रण किया है। उनके द्वारा लिखे गए रेखाचित्रों में समाज के दलित वर्ग या निम्न वर्ग के लोगों के बड़े मार्मिक चित्र मिलते हैं। इनमें उन्होंने उच्च समाज द्वारा उपेक्षित, निम्न कहे जाने वाले उन लोगों का चित्रण किया है, जिनमें उच्च वर्ग के लोगों की अपेक्षा अधिक मानवीय गुण और शक्ति है। अतः स्पष्ट है कि उनका गद्य साहित्य समाजपरक है।

उनके गद्य साहित्य में तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं और परिस्थितियों का भी यथार्थ चित्रण हुआ है। नारी समस्याओं को भी उन्होंने अपनी कई रचनाओं के माध्यम से उठाया है। वे काव्य की भाँति गद्य की भी महान साधिका रही हैं। उनके गद्य साहित्य में उनका कवयित्री-रूप भी लक्षित होता है।

4. भाषा-शैली-महादेवी जी के गद्य की भाषा-शैली अत्यंत सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। उनकी गद्य भाषा में तत्सम शब्दों की प्रचुरता है। महादेवी की गद्य-शैली वैसे तो उनकी काव्य-शैली के ही समान संस्कृतगर्भित, भाव-प्रवण, मधुर और सरस है, परंतु उसमें अस्पष्टता और दुरूहता नहीं है। इसे व्यावहारिक शैली माना जा सकता है। कहीं-कहीं विदेशी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है, परंतु बहुत ही कम। उनकी रचनाओं की भाषा-शैली की सबसे बड़ी विशेषता उसकी मर्मस्पर्शिता है। वे भावुक होकर पात्रों की दीन-हीन दशा, उनके मानसिक भावों तथा वातावरण का बड़ा मार्मिक चित्रण करती हैं। उनका काव्य व्यंग्य और हास्य से शून्य है, परंतु वे अपनी गद्य-रचनाओं में समाज, धर्म, व्यक्ति और विशेष रूप से पुरुष जाति पर बड़े गहरे व्यंग्य कसती हैं। बीच-बीच में हास्य के छींटे भी उड़ाती चलती हैं। इन विशेषताओं ने उनके गद्य को बहुत आकर्षक, मधुर और प्रभावशाली बना दिया है। वे प्रायः व्यंजना-शक्ति से काम लेती हैं। वे अपनी इस आकर्षक गद्य-शैली द्वारा हमारे हृदय पर गहरा प्रभाव डालती हैं। संक्षेप में, उनकी गद्य-शैली में कल्पना, भावुकता, सजीवता और भाषा-चमत्कार आदि के एक-साथ दर्शन होते हैं। उसमें सुकुमारता, तरलता और साथ ही हृदय को उद्वेलित कर देने की अद्भुत शक्ति भी है।

भक्तिन पाठ का सार

प्रश्न-
महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘भक्तिन’ नामक संस्मरण का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भक्तिन’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। यह उनकी प्रसिद्ध रचना ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। भक्तिन महादेवी वर्मा की एक समर्पित सेविका थी। उन्होंने इस रेखाचित्र में अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान का परिचय दिया है। प्रस्तुत पाठ का सार इस प्रकार है
1. भक्तिन का व्यक्तिगत परिचय-भक्तिन छोटे कद की तथा दुबले शरीर की नारी थी। उसके होंठ बहुत पतले और आँखें छोटी थीं, जिनसे उनका दृढ़ संकल्प और विचित्र समझदारी झलकती थी। वह गले में कंठी माला पहनती थी। अहीर कुल में जन्मी इस नारी की आयु 75 साल के लगभग थी। उसका नाम लक्ष्मी (लछमिन) था, लेकिन उसने लेखिका से यह निवेदन किया कि उसे नाम से न पुकारा जाए। उसके गले में कंठी माला को देखकर ही लेखिका ने उसे ‘भक्तिन’ कहना शुरू कर दिया। अहीर कुल में जन्मी भक्तिन सेवा धर्म में अत्यधिक निपुण थी। लेखिका ने भक्तिन की कर्मठता, उनके प्रति लगाव व सेविका धर्म के कारण उसकी तुलना अंजनी-पुत्र महावीर हनुमान जी से की है। वह विनम्र स्वभाव की नारी थी।

2. भक्तिन के गृहस्थी जीवन का आरंभ-भक्तिन का जन्म ऐतिहासिक गाँव झूसी में हुआ था। वह एक अहीर की इकलौती बेटी थी तथा उसकी विमाता ने ही उसका लालन-पालन किया था। पाँच वर्ष की अल्पायु में लक्ष्मी का विवाह हँडिया ग्राम के एक संपन्न गोपालक के छोटे पुत्र के साथ कर दिया गया और नौ वर्ष की आयु में उसका गौना कर दिया गया। इधर भक्तिन के पिता का देहांत हो गया। लेकिन विमाता ने देर से मृत्यु का समाचार भेजा। सास ने रोने-धोने के अपशकुन के डर से लक्ष्मी को कुछ नहीं बताया। कुछ दिनों के बाद सास ने लक्ष्मी को अपने मायके जाकर अपने माता-पिता से मिल आने को कहा। घर पहुँचते ही विमाता ने उसके साथ बड़ा कटु व्यवहार किया। अतः लक्ष्मी वहाँ से पानी पिए बिना ही अपने ससुराल चली आई। ससुराल में अपनी सास को खरी-खोटी सुनाकर अपनी विमाता पर आए हुए गुस्से को शांत किया और अपने पति पर अपने गहने फेंकते हुए अपने पिता की मृत्यु का समाचार सुनाया। तब लक्ष्मी अपनी ससुराल में टिक कर रहने लगी।

भक्तिन को आरंभ से ही सुख नसीब नहीं हुआ। उसकी एक के बाद एक निरंतर तीन बेटियाँ उत्पन्न हुईं। फलतः सास तथा जिठानियाँ उसकी उपेक्षा करने लगीं। सास के तीन कमाने वाले.पुत्र थे और दोनों जिठानियों के भी पुत्र थे। धीरे-धीरे भक्तिन को घर के सारे काम-काज़ में लगा दिया गया। चक्की चलाना, कूटना-पीसना, खाना बनाना आदि सभी उसे करना पड़ता था। उसकी तीनों बेटियाँ गोबर उठाती और उपले पाथती थीं। खाने-पीने में भी बेटियों के साथ भेदभाव किया जाता था। जिठानियों तथा उनके बेटों को दूध मलाई युक्त पकवान मिलता था, परंतु भक्तिन तथा उसकी लड़कियों को काले गुड़ की डली और चने-बाजरे की घुघरी खाने को मिलती थी। यह सब होने पर भी भक्तिन खुश थी। क्योंकि उसका पति बड़ा मेहनती तथा सच्चे मन से उसे प्यार करता था। यही सोचकर भक्तिन अपने संयुक्त परिवार से अलग हो गई। परिवार से अलग होते ही उसको गाय-भैंस, खेत-खलिहान और अमराई के पेड़ मिल गए थे, पति-पत्नी दोनों ही मेहनती थे, अतः घर में खुशहाली आ गई।

3. भक्तिन के पति का देहांत-पति ने अपनी बड़ी बेटी का विवाह तो बड़े धूमधाम से किया, परंतु अभी दोनों छोटी लड़कियाँ विवाह योग्य नहीं थीं। अचानक भक्तिन पर प्रकृति की गाज गिर गई। उसके पति का देहांत हो गया। उस समय भक्तिन की आयु उनतीस वर्ष थी। संपत्ति के लालच में परिवार के लोगों ने उसके सामने दूसरे विवाह का प्रस्ताव रखा। परंतु वह सहमत नहीं हुई। उसने अपने सिर के बाल कटवा दिए और गुरुमंत्र लेकर गले में कंठी धारण कर ली। वह स्वयं अपने खेतों की देख-रेख करने लगी। दोनों छोटी बेटियों का विवाह करने के बाद उसने बड़े दामाद को घरजमाई बना लिया। परंतु बदकिस्मती तो भक्तिन के साथ लगी हुई थी। शीघ्र ही उसकी बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। परिवार वालों की नज़र अब भी भक्तिन की संपत्ति पर थी। भक्तिन के जेठ का बना लड़का विधवा बहन का विवाह अपने तीतरबाज़ साले से कराना चाहता था। परंतु भक्तिन की विधवा लड़की ने अस्वीकार कर दिया। अब माँ-बेटी दोनों ही अपनी संपत्ति की देखभाल करने लगीं। एक दिन भक्तिन घर पर नहीं थी।

तीतरबाज बेटी की कोठरी में जा घुसा और उसने भीतर से द्वार बंद कर दिया। इसी बीच तीतरबाज़ के समर्थकों ने गाँव वालों को वहाँ बुला लिया। भक्तिन की बेटी ने तीतरबाज़ की अच्छी प्रकार पिटाई की और कुंडी खोल दी और उसे घर से निकाल दिया। लेकिन तीतरबाज़ ने यह तर्क दिया कि वह तो लड़की के बुलाने पर कमरे में दाखिल हुआ था। आखिर में गाँव में पंचायत बुलाई गई। भक्तिन की बेटी ने बार-बार तर्क दिया कि यह तीतरबाज़ झूठ बोल रहा है अन्यथा वह उसकी पिटाई क्यों करती। परंतु पंचों ने कलयुग को ही इस समस्या का मूल कारण माना और यह आदेश दे दिया कि वह अब दोनों पति-पत्नी के रूप में रहेंगे। भक्तिन और उसकी बेटी कुछ भी नहीं कर पाए। यह विवाह सफल नहीं हुआ। तीतरबाज़ एक आवारा किस्म का आदमी था और कोई काम-धाम नहीं करता था। अतः भक्तिन का घर गरीबी का शिकार बन गया। हालत यहाँ तक बिगड़ गई कि लगान चुकाना भी कठिन हो गया। जमींदार ने भक्तिन को भला-बुरा कहा और दिन-भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। भक्तिन इस अपमान को सहन नहीं कर पाई और वह कमाई के विचार से दूसरे ही दिन शहर चली गई।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 11 भक्तिन

4. भक्तिन के जीवन के दुख का अंतिम पड़ाव-घुटी हुई चाँद, मैली धोती तथा गले में कंठी धारण करके भक्तिन जब पहली बार लेखिका के पास नौकरी के लिए उपस्थित हुई तो उसने बताया कि वह दाल-भात राँधना, सब्जी छौंकना, रोटी बनाना आदि रसोई के सभी काम करना जानती है। लेखिका ने शीघ्र ही उसे काम पर रख लिया। अब भक्तिन एक पावन जीवन व्यतीत करने लगी। नौकरी पर लगते ही उसने सवेरे-सवेरे स्नान किया। लेखिका की धुली हुई धोती को उसने जल के छींटों से पवित्र किया और फिर पहना। तत्पश्चात् उसने सूर्योदय और पीपल को जल चढ़ाया। दो मिनट तक जाप करने के बाद चौके की सीमा निर्धारित कर खाना बनाना आरंभ किया। वह छूत-पाक को बहुत मानती थी। अतः लेखिका को भी समझौता करना पड़ा। वह नाई के उस्तरे को गंगाजल से धुलवाकर अपना मुंडन करवाती थी। अपना खाना वह अलग से ऊपर के आले में रख देती थी।

5. भक्तिन की नौकरी का श्रीगणेश-भक्तिन ने जो भोजन बनाया, वह ग्रामीण अहीर परिवार के स्तर का था। उसने कोई सब्जी नहीं बनाई, केवल दाल बनाकर मोटी-मोटी रोटियाँ सेंक दी जो कुछ-कुछ काली हो गई थीं। लेखिका ने जब इस भोजन को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा, तब भक्तिन ने लाल मिर्च और अमचूर की चटनी या गाँव से लाए हुए गुड़ का प्रस्ताव रख दिया। मजबूर होकर लेखिका ने दाल से एक रोटी खाई और विश्वविद्यालय चली गई। वस्तुतः लेखिका ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य तथा परिवार वालों की चिंता को दूर करने के लिए ही भक्तिन को अपने घर पर भोजन बनाने के लिए रखा था। परंतु उस वृद्धा भक्तिन की सरलता के कारण वह अपनी असुविधाओं को भूल गई।

6. विचित्र स्वभाव की नारी-भक्तिन का स्वभाव बड़ा ही विचित्र था। वह हमेशा दूसरों को अपने स्वभाव के अनुकूल बनाना चाहती थी और स्वयं बदलने को तैयार नहीं थी। स्वयं लेखिका भी भक्तिन की तरह ग्रामीण बन गई, किंतु भक्तिन ज्यों-की-त्यों ग्रामीण ही रही। शीघ्र ही उसने लेखिका को ग्रामीण खान-पान के अधीन बना दिया, किंतु स्वयं कभी भी रसगुल्ला नहीं खाया और न ही ‘आँय’ कहने की आदत बदलकर ‘जी’ कह सकी। भक्तिन बड़ी व्यावहारिक महिला थी। वह अकसर लेखिका के बिखरे पड़े पैसों को. मटकी में छिपाकर रख देती थी। उसके लिए यह कोई बुरा काम नहीं था।

उसका कहना था कि घर में बिखरा हुआ पैसा-टका उसने सँभालकर रख दिया है। कई बार वह लेखिका को प्रसन्न करने के लिए किसी बात को पलट भी देती थी। उसके विचारानुसार यह झूठ नहीं था। एक बार लेखिका ने उसे सिर मुंडाने से रोकने का प्रयास किया। तब उसने यह तर्क दिया “तीरथ गए मुँडाए सिद्ध।” भक्तिन पूर्णतः अनपढ़ थी। उसे हस्ताक्षर करना भी नहीं आता था। लेखिका ने जब उसे पढ़ने-लिखने को कहा, तब उसने यह तर्क दिया कि मालकिन तो हर समय पढ़ती रहती है, अगर वह भी पढ़ने लग गई तो घर का काम कौन देखेगा।

7. स्वामिनी के प्रति पूर्ण निष्ठावान-भक्तिन को अपनी मालकिन पर बड़ा गर्व था। उसकी मालकिन जैसा काम कोई भी करना नहीं जानता था, उसके कहने पर भी उत्तर:पुस्तिकाओं के परीक्षण कार्य में कोई भी मालकिन का सहयोग नहीं कर पाया। परंतु भक्तिन ने मालकिन की सहायता की। वह कभी उत्तर:पुस्तिकाओं को बाँधती, कभी अधूरे चित्रों को एक कोने में रखती, कभी रंग की प्याली धोकर साफ करती और कभी चटाई को अपने आँचल से झाड़ती थी। इसलिए वह समझती थी कि मालकिन दूसरों की अपेक्षा विशेष है। जब भी लेखिका की कोई पुस्तक प्रकाशित होती थी तो उसे अत्यधिक प्रसन्नता होती थी। वह सोचती थी कि प्रकाशित रचना में उसका भी सहयोग है।

अनेक बार लेखिका भक्तिन के बार-बार कहने पर भी भोजन नहीं करती थी। ऐसी स्थिति में भक्तिन अपनी मालकिन को कभी दही का शरबत पिलाती, कभी तुलसी की चाय। भक्तिन में सेवा-भावना कूट-कूट कर स्थिति में भक्तिन अपनी मालकिन को कभी दही का शरबत पिलाती, कभी तुलसी की चाय। भक्तिन में सेवा-भावना कूट-कूट कर भरी थी। छात्रावास की रोशनी बुझ जाने के बाद लेखिका के परिवारिक सदस्य सोना हिरनी, बसंत कुत्ता, गोधूलि बिल्ली आदि आराम करने लग जाते थे। परंतु भक्तिन मालकिन के साथ जागती रहती थी। वह आवश्यकता पड़ने पर मालकिन को पुस्तक पकड़ाती या स्याही लाकर देती या फाइल । यद्यपि भक्तिन देर रात को सोती थी, परंतु प्रातः मालकिन के जागने से पहले उठ जाती थी और वह सभी पशुओं को बाड़े से बाहर निकालती थी।

8. भक्तिन की मालकिन के प्रति भक्ति-भावना-भ्रमण के समय भी भक्तिन लेखिका के साथ रहती थी। बदरी-केदार के ऊँचे-नीचे तंग पहाड़ी रास्तों पर वह हमेशा अपनी मालकिन के आगे-आगे चलती थी। परंतु यदि गाँव की धूलभरी पगडंडी आ जाती तो वह लेखिका के पीछे चलने लगती। इस प्रकार वह हमेशा लेखिका के साथ अंग रक्षक के रूप में रहती थी। जब लोग युद्ध के कारण आतंकित थे तब भी वह अपनी बेटी और दामाद के बार-बार कहने पर लेखिका को नहीं छोड़ती थी।

जब उसे पता चला कि युद्ध में भारतीय सैनिक हार रहे हैं, तो उसने लेखिका को अपने गाँव चलने के लिए कहा और कहा कि उसे गाँव में हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध होगी। भक्तिन स्वयं को लेखिका का अनिवार्य अंग मानती थी। उसका कहना था कि मालकिन और उसका संबं ध स्वामी-सेविका का संबंध नहीं है। वह कहती थी कि मालकिन उसे काम से हटा नहीं सकती। जब मालकिन उसे चले जाने की आज्ञा देती तो वह हँसकर टाल देती थी। इस प्रकार वह हमेशा छाया के समान लेखिका के साथ जुड़ी हुई थी। वह लेखिका के लिए अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार रहती थी।

9. छात्रावास की बालिकाओं की सेवा भक्तिन छात्रावास की बालिकाओं को चाय बनाकर पिलाती थी। कभी-कभी वह उन्हें लेखिका के नाश्ते का स्वाद भी चखाती थी। जो परिचित लेखिका का सम्मान करते थे, उन्हीं के साथ वह अच्छा व्यवहार करती थी। लेखिका के परिचितों को वह नाम से या आकार-प्रकार, वेशभूषा से जानती थी। कवियों के प्रति उसके मन में कोई आदर-भाव नहीं था। परंत दूसरों के दख से वह अत्यधिक दुखी हो जाती थी। जब कभी उसे किसी विद्यार्थी के जेल जाने की खबर मिली तो वह अत्यंत दुखित हो उठी। उसे जेल से बहुत डर लगता था, किंतु लेखिका को जेल जाना पड़ा तो वह भी उनके साथ जाने को तैयार थी। उसका कहना था कि ऐसा करने के लिए उसे बड़े लाट से लड़ना पड़ा तो वह लड़ने से पीछे नहीं हटेगी। इस प्रकार लेखिका के साथ भक्तिन का प्रगाढ़ संबंध स्थापित हो चुका था। भक्तिन की कहानी को लेखिका ने अधूरा ही रखा है।

कठिन शब्दों के अर्थ

संकल्प = मज़बूत इरादा, पक्का निश्चय। जिज्ञासु = जानने का इच्छुक। चिंतन = सोच-विचार। मुद्रा = भाव-स्थिति। कंठ = गला। पचै = पचास । बरिस = वर्ष । संभवतः = शायद। स्पर्धा = मुकाबला। अंजना = हनुमान की माता। गोपालिका = अहीर की पत्नी अहीरन। दुर्वह = धारण करने में कठिन। समृद्धि = संपन्नता। कपाल = मस्तक। कुंचित = सिकुड़ी हुई। शेष इतिवृत्त = बाकी कथा। पूर्णतः = पूरी तरह से। अंशतः = थोड़ा-सा। विमाता = सौतेली माँ। किंवदंती = लोक प्रचलित कथन। ममता = स्नेह। वय = आयु। संपन्न = अमीर, धनवान। ख्याति = प्रसिद्धि। गौना = पति के घर दूसरी बार जाने की परिपाटी। अगाध = अत्यधिक गहरा। ईर्ष्यालु = ईर्ष्या करने वाली। सतर्क = सावधान। मरणांतक = मृत्यु देने वाला। नैहर = मायका। अप्रत्याशित = जिसकी आशा न हो। अनुग्रह = कृपा। अपशकुनी = बदशकुनी। पुनरावृत्तियाँ = बार-बार कही गई बातें। ठेल ले जाना = पहुँचाना। लेश = तनिक। शिष्टाचार = सभ्य व्यवहार। शिथिल = थकी हुई। विछोह = वियोग। मर्मव्यथा = हृदय को कष्ट देने वाली वेदना। विधात्री = जन्म देने वाली माँ। मचिया = छोटी चारपाई। पुरखिन = बड़ी-बूढ़ी। अभिषिक्त = विराजमान। काक-भुशंडी = कौआ।

सृष्टि = उत्पन्न करना। लीक = परंपरा। क्रमबद्ध = क्रमानुसार। विरक्त = विरागी। परिणति = परिणाम। धमाधम = ज़ोर-ज़ोर से। चुगली-चबाई = निंदा-बुराई। परिश्रमी = मेहनती। तेजस्विनी = तेजवान। अलगौझा = अलग होना। पुलकित = प्रसन्न। दंपति = पति-पत्नी। खलिहान = पकी हुई फसल को काटकर रखने का स्थान। कुकरी = कुतिया। बिलारी = बिल्ली। जिगतों = जेठ का पुत्र । घरौंदा = घर। बुढ़ऊ = बूढ़ा। होरहा = हरे अनाज का आग पर भूना रूप। अजिया ससुर = पति का बाबा। उपार्जित = कमाई। काकी = चाची। दुर्भाग्य = बदकिस्मती। भइयहू = छोटी भाभी। परास्त = हराना। गठबंधन = विवाह। निमंत्रण = बुलावा। परिमार्जन = शुद्ध करना। कर्मठता = कर्मशीलता। आहट = हल्की-सी आवाज । दीक्षित होना = स्वीकार करना। सम्मिश्रण = मिला-जुला रूप। अभिनंदन = स्वागत। उपरांत = बाद में। प्रतिष्ठित = स्थापित। टेढ़ी खीर = कठिन कार्य । वीतराग = विरक्त। पाक-विद्या = भोजन बनाने की विद्या। शंकाकुल दृष्टि = संदेह की नज़र। दुर्लध्य = पार न की जा सकने वाली। निरुपाय = उपायहीन। निर्दिष्ट = निश्चित। पितिया ससुर = पति के चाचा। आप्लावित = फैली हुई। आरोह (भाग 2) [भक्तिना सारगर्भित लेक्चर = संक्षिप्त भाषण। अरुचि = रुचि न रखना।

यूनिवर्सिटी = विश्वविद्यालय। चिंता-निवारण = चिंता दूर करना। उपचार = इलाज। असुविधाएँ = कठिनाइयाँ । प्रबंध = व्यवस्था। जाग्रत = सचेत । दुर्गुण = अवगुण। क्रियात्मक = क्रियाशील । दंतकथाएँ = परंपरा से चली आ रही किस्से-कहानियाँ। कंठस्थ करना = याद करना। नरो वा कुंजरों वा = हाथी या मनुष्य। मटकी = मिट्टी का बरतन। तर्क शिरोमणि = तर्क देने में सर्वश्रेष्ठ। सिर घुटाना = जड़ से बाल कटवाना। अकुंठित भाव से = संकोच के बिना। चूडाकर्म = सिर के बाल कटवाना। नापित = नाई। निष्पन्न = पूर्ण । वयोवृद्धता = बूढी उमर। अपमान = निरादर। मंथरता = धीमी गति। पटु = चतुर। पिंड छुड़ाना = पीछा छुड़वाना। अतिशयोक्तियाँ = बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातें। अमरबेल = एक ऐसी लता जो बिना जड़ के होती है और वृक्षों से रस चूसकर फैलती है। प्रमाणित = प्रमाण से सिद्ध। आभा = प्रकाश, रोशनी। उद्भासित = प्रकाशित। पागुर = जुगाली। निस्तब्धता = शांति, चुप्पी। प्रशांत = पूरी तरह शांत। आतंकित = डरा हुआ। नाती = बेटी का पुत्र। अनुरोध = आग्रह। मचान = टाँड। विस्मित = हैरान । अमरौती खाकर आना = अमरता लेकर आना। विषमताएँ = कठिनाइयाँ, बाधाएँ। सम्मान = आदर। अपभ्रंश = भाषा का बिगड़ा हुआ रूप । अवज्ञा = आज्ञा न मानना। कारागार = जेल। आश्वासन = भरोसा। माई = माँ। विषम = विपरीत। बड़े लाट = गवर्नर जनरल । प्रतिद्धन्द्धियों = एक दूसरे के विपरीत लोग। दुर्लभ = कठिन।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class Hindi नमक Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
सफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया?
उत्तर:
सफ़िया पाकिस्तान से सिख बीबी को भेंट के रूप में नमक की पुड़िया देने के लिए हिंदुस्तान में ले जाना चाहती थी। लेकिन सफ़िया का भाई स्वयं पुलिस अधिकारी था। उसने नमक की पुड़िया साथ ले जाने से अपनी बहन को मना कर दिया। वह इस बात को जानता था कि पाकिस्तान से हिंदुस्तान में नमक ले जाना गैर-कानूनी था। यदि सफ़िया नमक की पुड़िया ले जाती तो भारत-पाक सीमा पार करते समय कस्टम अधिकारी उसे पकड़ लेते। ऐसा होने पर सफिया और उसके परिवार का अपमान होता। यही कारण है कि सफ़िया के भाई ने उसे नमक की पुड़िया ले जाने से मना कर दिया।

‘प्रश्न 2.
नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में सफिया के मन में क्या द्वंद्व था?
उत्तर:
भाई द्वारा यह कहने पर कि पाकिस्तान से हिंदुस्तान में नमक ले जाना गैर-कानूनी है। सफ़िया के मन में द्वंद्व छिड़ गया, परंतु वह सिख बीबी को निराश नहीं करना चाहती थी। वह सोचने लगी कि किस तरह नमक को सीमा पार ले जाए परंतु यह काम आसान नहीं था। नमक के पकड़े जाने पर वह भी पकड़ी जा सकती थी। पहले तो उसने नमक की पुड़िया को कीनू की टोकरी में छिपाया। नमक ले जाने के अन्य तरीकों के बारे में भी वह सोचने लगी। परंतु अंत में इस द्वंद्व को समाप्त करते हुए उसने यह निर्णय लिया कि वह कस्टम अधिकारी को नमक दिखाकर ले जाएगी, चोरी से नहीं ले जाएगी।

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प्रश्न 3.
जब सफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?
उत्तर:
जब सफ़िया अमृतसर के पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम अधिकारी निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए खड़े थे। सिख बीबी का प्रसंग आने पर उस अफसर को अपने वतन ढाका की याद आने लगी। वह सफ़िया और सिख बीबी की भावनाओं के कारण संवेदनशील हो चुका था। उन्हें लगा कि भारत-पाकिस्तान की यह सीमा बनावटी है जबकि लोगों के दिल आपस में जुड़े हुए हैं। जो लाहौर में पैदा हुए थे वे लाहौर के लिए तरसते हैं, जो दिल्ली में पैदा हुए थे वे दिल्ली के लिए तरसते हैं तथा जो ढाका में पैदा हुआ था वह ढाका के लिए तरस रहा था। कस्टम अधिकारी मन-ही-मन सोच रहा था कि उसे उसके वतन से अलग क्यों कर दिया गया है।

प्रश्न 4.
लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढाका है जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं?
उत्तर:
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी का यह कथन है कि लाहौर अभी तक सिख बीबी का वतन है, दिल्ली मेरा वतन है लेकिन सुनील दासगुप्त ने कहा मेरा वतन ढाका है। ये उद्गार इस सामाजिक यथार्थ का उद्घाटन करते हैं कि देशों की सीमाएँ लोगों के मनों को विभक्त नहीं कर सकतीं। मानव तो क्या पक्षी भी अपनी जन्मभूमि से प्रेम करते हैं। स्वदेश प्रेम कोई ऐसा पौधा नहीं है जिसे मनमर्जी से गमले में उगाया जा सके। जिस देश में जिस व्यक्ति का जन्म होता है वह उससे हमेशा प्रेम करता है। यदि मानचित्र पर लकीरें खींचकर भारत-पाक विभाजन कर दिया गया तो ये लकीरें लोगों को अलग-अलग नहीं कर सकती। प्रत्येक मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपनी जन्मभूमि से प्रेम करता है। यही कारण है कि जिन लोगों का जन्म पाकिस्तान में हुआ है आज भी यदाकदा उसे याद कर उठते हैं। जिन पाकिस्तानियों का जन्म भारत में हुआ है वे भारत को याद करते रहते हैं। इसलिए भारत-पाक विभाजन कृत्रिम है। यह लोगों के दिलों को विभक्त नहीं कर सकता।

प्रश्न 5.
नमक ले जाने के बारे में सफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नमक ले जाने के बारे में सफ़िया के मन में जो द्वंद्व उत्पन्न होता है उसके आधार पर सफिया के चरित्र की निम्नलिखित उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं
(1) सफ़िया एक साहित्यकार है इसलिए बातचीत करते समय वह किसी प्रकार का संकोच नहीं करती। वह एक स्पष्ट वक्ता है। भाई से बहस हो जाने पर भी वह किसी प्रकार का संकोच न करके नमक ले जाने के लिए अड़ जाती है। अंततः उसका भाई हारकर चुप हो जाता है।

(2) यही नहीं सफ़िया एक निडर स्त्री भी है। उसका भाई उसे समझाता है कि कस्टमवाले किसी की नहीं सुनते। पाकिस्तान से भारत में नमक ले जाना गैर-कानूनी है। यदि तुम्हारा भेद खुल गया तो तुम मुसीबत में फँस जाओगी। लेकिन वह भाई की बातों से डरती नहीं। कस्टम अधिकारियों के समक्ष निडर होकर कहती है ‘देखिए मेरे पास नमक है थोड़ा-सा’ मैं अपनी मुँह बोली माँ के लिए ले जा रही हूँ।

(3) सफ़िया में दृढ़-निश्चय है उसने बहुत पहले यह निश्चय कर लिया था कि वह सिख बीबी के लिए नमक ले जाएगी। अपना वचन निभाते हुए वह सरहद के पार नमक लेकर आई। भले ही यह काम गैर-कानूनी था।

(4) यही नहीं सफ़िया एक ईमानदार स्त्री है। उसके भाई ने कहा था कि जब वह नमक लेकर सरहद से गुजरेगी तो कस्टमवाले उसे पकड़ लेंगे। तब उसने अपनी ईमानदारी का परिचय देते हुए कहा था-“मैं क्या चोरी से ले जाऊँगी? छिपाके ले जाऊँगी? मैं तो दिखा के, जता के ले जाऊँगी।

(5) सफ़िया में मानवता के गुण भी हैं। वह सोचती है कि भले ही भारत पाकिस्तान दो देश बन गए हों, परंतु यहाँ एक जैसी जमीन है, एक जुबान है, एक-सी सूरतें और लिबास हैं। फिर ये दो देश कैसे बन गए हैं। अपने भाई को टोकती हुई कहती है कि तुम बार-बार कानून की बात करते हो क्या सब कानून हुकूमत के होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते? आखिर कस्टमवाले भी इंसान होते हैं कोई मशीन तो नहीं होते।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक

प्रश्न 6.
मानचित्र पर एक लकीर खींच देने भर से ज़मीन और जनता बँट नहीं जाती है उचित तर्कों व उदाहरणों के जरिए इसकी पुष्टि करें।
उत्तर:
मानचित्र पर लकीर खींच देने से न तो ज़मीन बँट जाती है न ही जनता। यह कथन कुछ सीमा तक सत्य है। नमक कहानी के द्वारा हमें लेखिका यह संदेश देना चाहती है कि सिख बीबी लाहौर को अपना वतन मानती है। पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी दिल्ली को अपना वतन मानता है और हिंदुस्तानी कस्टम अधिकारी ढाका को अपना वतन मानता है। परंतु सच्चाई यह है कि जो लोग पाकिस्तान भारत और बांग्ला देश में रहते हैं, उनकी एक-सी जमीन है, एक जुबान है, एक-सी सूरतें और लिबास हैं।

हैरानी की बात यह है कि भारत-पाक विभाजन हुए लंबा समय बीत चुका है, लेकिन सिख बीबी आज भी लाहौर को अपना वतन कहती है। उसे अपने वतन से बड़ा लगाव है इसलिए वह लाहौर का नमक चाहती है। भारतीय कस्टम अधिकारी ढाका के नारियल के पानी को लाजवाब मानता है। पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों को अपना सलाम भेजता है। वह कहता भी है-“जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा। उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।”

प्रश्न 7.
नमक कहानी में भारत व पाक की जनता के आरोपित भेदभावों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ है, कैसे?
उत्तर:
यह सत्य है कि सत्ता के भूखे कुछ लोगों ने भारत-पाक का विभाजन कर दिया। परंतु वे लोग इन दोनों देशों के नागरिकों के स्नेह और प्रेम का विभाजन नहीं कर सके। ये भेदभाव मात्र आरोपित है। सफिया के भाई के व्यवहार में भारत-पाक का भेदभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। इस आरोपित भेदभाव के बावजूद सिख बीबी और सफिया और पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी तथा सुनील दासगुप्त तथा सफ़िया के व्यवहार में जो स्नेह और प्रेम दिखाई देता है, उससे दोनों देशों की जनता के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ है। यह स्वाद इस पूरी कहानी में विद्यमान है। भारत और पाकिस्तान के लोगों के दिल आज भी जुड़े हुए हैं। आज भी जन्मभूमि की याद उन्हें व्याकुल कर देती है। सिख बीबी हो या पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी या भारतीय कस्टम अधिकारी सभी के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ है।

क्यों कहा गया

प्रश्न 1.
क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत और इंसानियत के नहीं होते?
उत्तर:
सभी कानून हमेशा हुकूमत के ही होते हैं। जो लोग सत्ता प्राप्त करते हैं वही कानून बनाते हैं और उन कानूनों को लागू करते हैं। जो लोग उन कानूनों का पालन नहीं करते उन्हें सत्ता द्वारा दण्डित किया जाता है। यह कानून हुकूमत की सुविधा के लिए बनाए जाते हैं और उसमें प्रेम, मुहब्बत इंसानियत, आदमियत की कोई कीमत नहीं होती। यही कारण है कि आज सत्ता द्वारा बनाए गए कानून हुकूमत के गुलाम बनकर रह गए हैं।

प्रश्न 2.
भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी।
उत्तर:
भावना मानव के हृदय से संबंधित है और बुद्धि मस्तिष्क से। जब किसी मनुष्य में भावना उत्पन्न होती है तो उसकी बुद्धि काम करना बंद कर देती है। सफिया इन्हीं भावनाओं के आवेश के कारण ही नमक की पुड़िया को सरहद पार ले जाना चाहती है। क्योंकि वह भावनाओं से काम कर रही थी और उसकी बुद्धि ठीक से नहीं सोच रही थी। इन्हीं भावनाओं में आने के कारण उसने अपने भाई की बात भी नहीं मानी। परंतु गुस्सा उतरने पर कस्टम का ध्यान आते ही उसकी बुद्धि भावनाओं पर हावी हो रही थी और वह नमक की पुड़िया को भारत लाने के लिए अन्य उपाय सोचने लगी।

प्रश्न 3.
मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।
उत्तर:
अकसर देखने में आया है कि कानून को लागू करने वाले अधिकारी भावनाहीन होते हैं परंतु वे भी मानव ही होते हैं। अनेक बार उनकी भावनाएँ उनकी बुद्धि पर हावी हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में कस्टम के कठोर नियम भी टूट कर बिखर जाते हैं। यही कारण है कि कस्टम अधिकारी ने सफिया से यह कहा कि मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है। कस्टम के दोनों अधिकारियों ने गैर-कानूनी नमक को सीमा के पार जाने दिया। मानवीय भावनाओं के प्रवाह के कारण नमक मानो उनके हाथों से फिसलकर भारत चला गया।

प्रश्न 4.
हमारी ज़मीन हमारे पानी का मज़ा ही कुछ और है!
उत्तर:
यह कथन भारतीय कस्टम अधिकारी सुनील दासगुप्त का है जो ढाका को अपना वतन मानता है। यह अपने देश, अपनी जन्मभूमि की ज़मीन तथा उसके पानी की प्रशंसा करता है। इसका प्रमुख कारण यही है कि सभी प्राणियों को अपनी जन्मभूमि प्रिय लगती है। लंका छोड़ते समय राम ने भी अपने भाई लक्ष्मण से कहा था-
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

समझाइए तो ज़रा

प्रश्न 1.
फिर पलकों से कुछ सितारे टूटकर दूधिया आँचल में समा जाते हैं।
उत्तर:
सिख बीबी लाहौर का नाम सुनकर सफ़िया के पास आकर बैठ गई। उसे लाहौर याद आने लगा, क्योंकि उसका वतन लाहौर है। लाहौर की याद में वह भावुक हो उठी और उसकी आँखों से आँसू रूपी सितारे टूटकर उसके सफेद मलमल के दुपट्टे में समा गए।

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प्रश्न 2.
किसका वतन कहाँ है वह जो कस्टम के इस तरफ है या उस तरफ।
उत्तर:
भारत लौटने पर सफ़िया अमृतसर स्टेशन के पुल पर चली जा रही थी। वह मन में सोचने लगी कि पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी का वतन देहली है। सुनील दासगुप्त का वतन ढाका है। सिख बीबी का वतन लाहौर है। राजनीतिक दृष्टि से इनके वतन पाकिस्तान और भारत हैं। उनके शरीर कहीं हैं और दिल कहीं हैं। अतः यह निर्णय करना कठिन है कि किसका वतन कहाँ है? सच्चाई तो यह है कि सत्ता के भूखे लोगों ने ये सरहदें बना दी हैं परंतु लोगों की भावनाएँ इन सरहदों को नहीं मानतीं।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
‘नमक’ कहानी में हिंदुस्तान-पाकिस्तान में रहने वाले लोगों की भावनाओं, संवेदनाओं को उभारा गया है। वर्तमान संदर्भ में इन संवेदनाओं की स्थिति को तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में सिख बीबी, भारतीय कस्टम अधिकारी, पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी तथा सफ़िया के द्वारा दोनों देशों में रहने वाले लोगों की भावनाओं और संवेदनाओं को उभारा गया है परंतु भारत और पाकिस्तान में कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जिनके कारण हमेशा तनाव बना रहता है। भारत-पाक के बीच तीन बार युद्ध हो चुका है, दोनों ओर से हजारों सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं, परंतु सियाचिन और कश्मीर विवाद आज तक नहीं सुलझ पाए। दोनों देशों के राजनेता भड़काऊ बयान देकर लोगों की भावनाओं से खेलते रहते हैं परंतु यदि भारत और पाकिस्तान के लोग सभ्य मन से चाहें तो दोनों देशों के संबंधों में सुधार हो सकता है। पाकिस्तान के लोगों को अपने राजनेताओं को शान्तिमय वातावरण बनाने के लिए मजबूर करना चाहिए। इसी प्रकार भारत के लोगों को भी अपनी सरकार पर दबाव डालना चाहिए। यदि दोनों देशों की समस्याओं का हल निकल आता है तो लोगों को व्यर्थ के तनाव, भय और आशंका से मक्ति मिल सकेगी। इसके साथ-साथ उग्रवाद भारत का हो या पाकिस्तान का उसकी नकेल कसनी भी जरूरी है।

प्रश्न 2.
सफिया की मनःस्थिति को कहानी में एक विशिष्ट संदर्भ में अलग तरह से स्पष्ट किया गया है। अगर आप सफिया की जगह होते/होती तो क्या आपकी मनःस्थिति भी वैसी ही होती? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सफ़िया के मन में धर्म को लेकर किसी प्रकार की साम्प्रदायिकता नहीं थी। वह अपने पड़ोसी के घर कीर्तन में भाग लेती है और प्रसाद लेकर घर लौटती है। यही नहीं सिख बीबी को अपनी माँ की हमशक्ल देखकर उन्हें अपनी माँ के समान मान लेती है। वह उससे नमक लाने का वादा भी करती है और उसे अच्छी तरह निभाती है। अगर मैं उसकी जगह होती तो मैं उसे स्पष्ट कह देती कि वह मेरी माँ हैं और मैं उसकी बेटी। यही नहीं मैं भी लाहौर से सिख बीबी के लिए नमक लेकर आती। भले ही मैं वह उपाय न अपनाती जिसे सफिया ने अपनाया था। मैं समझती हूँ कि सफिया और मेरी मनःस्थिति में कोई विशेष अंतर न होता। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति सफ़िया के समान ही आचरण करता।

प्रश्न 3.
भारत-पाकिस्तान के आपसी संबंधों को सुधारने के लिए दोनों सरकारें प्रयासरत हैं। व्यक्तिगत तौर पर आप इसमें क्या योगदान दे सकते/सकती हैं?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों को सुधारने के लिए व्यक्तिगत तौर पर अनेक प्रकार के उपाय अपनाए जा सकते हैं। सर्वप्रथम हमें अपने मन से पाकिस्तान के प्रति शत्रु भाव को त्यागना होगा। यदि कोई पाकिस्तानी नागरिक किसी प्रसंग में भारत आता है तो हमें उसे उचित स्नेह और सम्मान देना चाहिए ताकि वह भारत के प्रति मन में सकारात्मक धारणा लेकर जाए। पाकिस्तान से आने वाले कलाकारों का हमें व्यक्तिगत तौर पर स्वागत और सत्कार करना चाहिए। विशेषकर वहाँ से आने वाले खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाना चाहिए। यदि हमें पाकिस्तान जाने का मौका मिले तो हमें वहाँ के लोगों को प्रेम और भाईचारे का पैगाम देना चाहिए। इसी प्रकार इंटरनेट के प्रयोग द्वारा पाकिस्तान में अपने मित्र बनाएँ और उन्हें भारत-पाक मैत्री का संदेश दें। इसी प्रकार हम एक दूसरे के देश के बारे में राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक जानकारियों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। अंततः पिछली कड़वी बातों को भुलाकर हमें पाकिस्तानियों के प्रति भाईचारे का व्यवहार करना चाहिए। हम चाहें तो दोनों देशों के बीच गीत-संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन भी कर सकते हैं।

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प्रश्न 4.
लेखिका ने विभाजन से उपजी विस्थापन की समस्या का चित्रण करते हुए सफिया व सिख बीबी के माध्यम से यह भी परोक्ष रूप से संकेत किया है कि इसमें भी विवाह की रीति के कारण स्त्री सबसे अधिक विस्थापित है। क्या आप इससे सहमत हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी से यह स्पष्ट नहीं होता कि सिख बीबी विवाह की रीति के कारण ही विस्थापित होकर भारत में आई है तथा न ही सफिया विवाह के बाद विस्थापित होकर भारत आई है। परंतु इतना निश्चित है कि विवाह के बाद स्त्री को विस्थापित होना पड़ता है। अपने देश में स्त्री विवाह के बाद ससुराल के नगर में जाकर बसती है। कभी-कभी उसे विदेश में भी जाकर रहना पड़ता है लेकिन इन दोनों प्रकार की विस्थापनाओं में बहुत बड़ा अंतर है। विवाह के बाद का विस्थापन इतना अधिक पीड़ादायक नहीं होता परंतु देश विभाजन के कारण विस्थापन प्रत्येक व्यक्ति को पीड़ा पहुँचाता है भले ही वह नारी हो अथवा पुरुष हो।

प्रश्न 5.
विभाजन के अनेक स्वरूपों में बँटी जनता को मिलाने की अनेक भूमियाँ हो सकती हैं-रक्त संबंध, विज्ञान, साहित्य व कला। इनमें से कौन सबसे ताकर पर है और क्यों?
उत्तर:
निश्चय से विभाजन के अनेक स्वरूपों में बँटी जनता को मिलाने की अनेक भूमियाँ हो सकती हैं। ये भूमियाँ रक्त संबंध, विज्ञान, साहित्य तथा कला से जुड़ी हो सकती हैं, परंतु इनमें सबसे ताकतवर रक्त संबंध है। साहित्य तथा कला भले ही एक दूसरे को जोड़ते हैं परंतु सभी लोग न तो साहित्य प्रेमी होते हैं, न ही कला प्रेमी। इस प्रकार विज्ञान के अनेक उपकरण दूरदर्शन, रेडियो, इंटरनेट आदि लोगों को एक-दूसरे के नजदीक ला सकते हैं। लेकिन बुरे इरादे वाले लोग इनका दुरुपयोग भी कर सकते हैं। साहित्य भी पड़ोसी देशों को आपस में जोड़ने का काम कर सकता है परंतु ये सभी साधन रक्त संबंध की बराबरी नहीं कर सकते। जिस व्यक्ति के अपने सगे-संबंधी पाकिस्तान में रहते हैं, वह मन से कभी भी पाकिस्तान का अहित नहीं सोच सकता। इसी प्रकार जिस पाकिस्तानी का भाई, बहन अथवा मामा दिल्ली तथा हैदराबाद में रहते हैं वह यह कभी नहीं चाहेगा कि इन नगरों का अहित हो।

आपकी राय

प्रश्न-
मान लीजिए आप अपने मित्र के पास विदेश जा रहे हैं/रही हैं। आप सौगात के तौर पर भारत की कौन-सी चीज ले जाना पसंद करेंगे/करेंगी और क्यों?
उत्तर:
हम भारत से निम्नलिखित वस्तुएँ सौगात के तौर पर अपने विदेशी मित्र के लिए ले जा सकते हैं-

  • ताज महल की प्रतिकृति
  • रुद्राक्ष की माला
  • कलाकृतियाँ
  • नटराज की मूर्ति
  • खादी के वस्त्र

भाषा की बात

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए वाक्यों को ध्यान से पढ़िए
(क) हमारा वतन तो जी लाहौर ही है।
(ख) क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं?
सामान्यतः ‘ही’ निपात का प्रयोग किसी बात पर बल देने के लिए किया जाता है। ऊपर दिए गए दोनों वाक्यों में ‘ही’ के प्रयोग से अर्थ में क्या परिवर्तन आया है? स्पष्ट कीजिए। ‘ही’ का प्रयोग करते हुए दोनों तरह के अर्थ वाले पाँच-पाँच वाक्य बनाइए।
उत्तर:
प्रथम (क) वाक्य में ‘ही’ के प्रयोग से यह परिवर्तन हुआ है कि हमारा वतन तो केवल लाहौर है और कोई नहीं। भले ही हम भारत में अपना व्यापार चला रहे हैं और अपना घर बनाकर रह रहे हैं परंतु वतन तो लाहौर को ही कहेंगे।

  • यह घर तो मेरा ही है।
  • मेरा जन्मस्थान लाहौर ही है।
  • हमारा भोजन तो दाल-चावल ही है।
  • उनका मकान लाल रंग का ही है।
  • यह पुस्तक गीता की ही है।

(ख) वाक्य में ‘ही’ के प्रयोग से यह पता चलता है कि सारे कानून हुकूमत के नहीं होते। उनसे परे भी कुछ नियम होते हैं जिन पर हुकूमत का कानून भी प्रभावी नहीं हो सकता।

  • क्या सब नियम सरकार के ही हैं।
  • क्या सब लड़के आपके कहे अनुसार ही चलेंगे।
  • क्या तुम मुझे अपने ही घर में भोजन नहीं खिलाओगे।
  • क्या क्रिकेट की टीम में सारे खिलाड़ी हरियाणवी ही होंगे।
  • क्या तुम यहाँ अंग्रेज़ी पढ़ने ही आते हो।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए शब्दों के हिंदी रूप लिखिए मुरौवत, आदमियत, अदीब, साडा, मायने, सरहद, अक्स, लबोलहजा, नफीस।
उत्तर:

  • मुरौवत = संकोच
  • आदमियत = मानवता
  • अदीब = साहित्यकार
  • साडा = हमारा
  • मायने = अर्थ
  • सरहद = सीमा
  • अक्स = बिम्ब, प्रतिछाया
  • लबोलहजा = बोलचाल का ढंग
  • नफीस = सुरुचिपूर्ण।

प्रश्न 3.
‘पंद्रह दिन यों गुज़रे कि पता ही नहीं चला’-वाक्य को ध्यान से पढ़िए और इसी प्रकार के (यों, कि, ही से युक्त पाँच वाक्य बनाइए।)
उत्तर:

  1. शिमला में दो महीने यों बीत गए कि पता ही नहीं चला।
  2. यों तो हम दिल्ली जाने ही वाले थे कि अचानक मामा जी परिवार सहित आ गए।
  3. आपने यों ही कह दिया कि पन्द्रह तारीख के लिए टिकट बुक करा दो।
  4. हम मेहमान का स्वागत यों करेंगे कि वे आजीवन याद ही करते रहेंगे।
  5. पिता जी ने यों ही कह दिया कि कल हम घूमने जाएँगे।

सजन के क्षण

प्रश्न-
‘नमक’ कहानी को लेखक ने अपने नज़रिये से अन्य पुरुष शैली में लिखा है। आप सफिया की नज़र से/उत्तम पुरुष शैली में इस कहानी को अपने शब्दों में कहें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

इन्हें भी जानें
1. महर्रम-इस्लाम धर्म के अनसार साल का पहला महीना, जिसकी दसवीं तारीख को इमाम हसैन शहीद हुए।

2. सैयद-मुसलमानों के चौथे खलीफा अली के वंशजों को सैयद कहा जाता है।

3. इकबाल-सारे जहाँ से अच्छा के गीतकार

4. नज़रुल इस्लाम-बांग्ला देश के क्रांतिकारी कवि

5. शमसुल इस्लाम-बांग्ला देश के प्रसिद्ध कवि

6. इस कहानी को पढ़ते हुए कई फिल्म, कई रचनाएँ, कई गाने आपके जेहन में आए होंगे। उनकी सूची बनाइए किन्हीं दो (फिल्म और रचना) की विशेषता को लिखिए। आपकी सुविधा के लिए कुछ नाम दिए जा रहे हैं।

  • फिल्में – रचनाएँ
  • 1947 अर्थ – तमस (उपन्यास – भीष्म साहनी)
  • मम्मो – टोबाटेक सिंह (कहानी – मंटो)
  • ट्रेन टु पाकिस्तान – जिंदगीनामा (उपन्यास – कृष्णा सोबती)
  • गदर – पिंजर (उपन्यास – अमृता प्रीतम)
  • खामोश पानी – झूठा सच (उपन्यास – यशपाल)
  • हिना – मलबे का मालिक (कहानी – मोहन राकेश)
  • वीर ज़ारा – पेशावर एक्सप्रेस (कहानी – कृश्न चंदर)

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7. सरहद और मज़हब के संदर्भ में इसे देखें-
तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा,
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा।
मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया,
हमने उसे हिंदू या मुसलमान बनाया।
कुदरत ने तो बख्शी थी हमें एक ही धरती,
हमने कहीं भारत कहीं, ईरान बनाया ॥
जो तोड़ दे हर बंद वो तूफान बनेगा।
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।
-फिल्म : धूल का फूल, गीतकार : साहिर लुधियानवी

HBSE 12th Class Hindi नमक Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
सफिया का लाहौर में कैसा सम्मान हुआ और उसके सामने क्या समस्या उपस्थित हुई?
उत्तर:
सफ़िया लाहौर में केवल पंद्रह दिन के लिए ही ठहरी। उसके ये पंद्रह दिन किस प्रकार गुजर गए उसे पता ही नहीं चला। जिमखाना की शामें, दोस्तों की मुहब्बत, भाइयों की खातिरदारियाँ उसे आनंद प्रदान कर रही थीं। दोस्तों और भाइयों का बस चलता तो विदेश में रहने वाली बहन के लिए वे कुछ भी कर देते। उसके दोस्त और रिश्तेदारों की यह हालत थी कि वे तरह-तरह के तोहफे ला रहे थे। उसके लिए यह समस्या उत्पन्न हो गई कि वह उन तोहफों को किस प्रकार पैक करे और किस प्रकार उन्हें भारत ले जाए। परंतु सफ़िया के लिए सबसे बड़ी समस्या बादामी कागज़ की पुड़िया थी जिसमें एक सेर के लगभग लाहौरी नमक था। जिसे वह अपनी मुँहबोली माँ सिख बीबी के लिए भारत ले जाना चाहती थी।

प्रश्न 2.
सफिया ने अपनी माँ किसे कहा है और क्यों?
उत्तर:
सफिया ने सिख बीबी को अपनी माँ कहा है क्योंकि उसने जब पहली बार सिख बीबी को कीर्तन में देखा तो वह हैरान रह गई। वह उसकी माँ से बिलकुल मिलती-जुलती थी। उनका भी भारी-भरकम जिस्म तथा छोटी-छोटी चमकदार आँखें थीं जिनमें नेकी, मुहब्बत और रहमदिली की रोशनी जगमगा रही थी। उसका चेहरा भी सफ़िया की माँ के समान खुली किताब जैसा था। उसने वैसा ही सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा ओढ़ रखा था जैसा उसकी अम्मा मुहर्रम में ओढ़ा करती थी। सफ़िया ने मुहब्बत से उस सिख बीबी की ओर देखा।

प्रश्न 3.
सफिया ने नमक की पुड़िया कहाँ और किस प्रकार छिपाई? उस समय वह क्या सोच रही थी?
उत्तर:
सफ़िया ने टोकरी के कीनू कालीन पर उलट दिए तथा टोकरी को खाली करके नमक की पुड़िया उसकी तह में रख दी। उसने एक बार झाँक कर पुड़िया की ओर देखा उसे ऐसा अनुभव हुआ कि वह किसी प्रियजन को कब्र की गहराई में उतार रही है। कुछ देर तक उकई बैठकर वह नमक की पुड़िया को देखती रही। उसने उन कहानियों को भी याद किया जो उसने बचपन में अपनी अम्मा से सुनी थीं। कैसे एक शहजादे ने अपनी रान को चीरकर उसमें हीरा छुपा लिया था वह देवों, भूतों तथा राक्षसों के सामने से होता हुआ सीमाओं से पार गुजर गया था। वह सोचने लगी कि क्या इस जमाने में कोई ऐसा तरीका नहीं हो सकता वरना वह भी अपना दिल चीरकर उसमें नमक छिपाकर ले जाती।

प्रश्न 4.
सफिया और उसके भाई के विचारों में क्या अंतर था ? नमक पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
सफ़िया और उसके भाई के विचारों में बहुत अंतर था। साहित्यकार होने के कारण सफिया हृदय प्रधान नारी थी परंतु पुलिस अधिकारी होने के कारण उसका भाई बुद्धि प्रधान व्यक्ति था। सफिया मनुष्य को ही अधिक महत्त्व देती थी। परंतु उसका भाई सरकारी कानून और अपनी जिम्मेदारी को ही सब कुछ समझता था। इसी प्रकार सफ़िया कानून से बढ़कर मानवता पर विश्वास करती थी परंतु उसका भाई कस्टम अधिकारियों के कर्तव्यों पर विश्वास रखता था। सफिया का भाई जानता था कि पाकिस्तान से भारत में नमक ले जाना गैर-कानूनी है। इसलिए वह अपनी बहन को यह सलाह देता है कि वह लाहौरी नमक भारत में न ले जाए। अन्यथा कस्टम अधिकारियों के सामने उसका अपमान होगा। परंतु सफिया वादा निभाने को अधिक महत्त्व प्रदान करती थी और उसने अपने ढंग से वादा निभाया।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक

प्रश्न 5.
सिख बीबी ने सफिया को अपने बारे में क्या बताया?
उत्तर:
कीर्तन के समय सफ़िया ने सिख बीबी से पूछा कि माता जी आपको यहाँ आए बहुत साल हो गए होंगे। तब उत्तर में सिख. बीबी ने कहा कि जब ‘हिंदुस्तान बना था तब हम यहाँ आ गए थे। यहाँ हमारी कोठी बन गई है। व्यापार भी है। और सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है पर हमें लाहौर बहुत याद आता है। हमारा वतन तो लाहौर ही है। जब सिख बीबी यह बता रही थी तो उसकी आँखों से आँसू निकलकर उसके दूधिया आँचल में समा गए और भी बातें हुईं पर सिख बीबी घूमकर उसी बात पर आ जाती थी कि ‘साडा लाहौर’ अर्थात् उसने कहा कि हमारा वतन तो लाहौर ही है।

प्रश्न 6.
इस कहानी में किन बातों को उभारा गया है?
अथवा
नमक कहानी का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में लेखिका ने भारत तथा पाकिस्तान में रहने वाले लोगों की संवेदनाओं तथा भावनाओं की अभिव्यक्ति की है। संवेदनाएँ हमेशा मानवीय रिश्ते से जुड़ी हुई होती हैं। राजनीति से इनका कोई संबंध नहीं होता। जिन लोगों का जन्म पाकिस्तान में हुआ था और विभाजन के बाद वे भारत में आ गए आज भी वे बार-बार अपनी जन्मभूमि को याद कर उठते हैं। यही स्थिति पाकिस्तान में रहने वाले उन लोगों की है जिनका जन्म भारत में हुआ था। पाकिस्तान से कई लोग इलाज के लिए भारत आते हैं। पाकिस्तान के लोग भारत की लड़कियों से विवाह करते हैं तथा भारत के लोग पाकिस्तान की लड़कियों से विवाह करते हैं। इन दोनों देशों के कलाकार और खिलाड़ी एक दूसरे के देश में जाते रहते हैं। ये बातें यह सिद्ध करती हैं कि दोनों देशों के लोगों की संवेदनाओं में बहुत बड़ी समानता है और संवेदनाओं की समानता ही उन्हें आपस में जोड़ती है।

प्रश्न 7.
सफिया ने रात के वातावरण का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर:
जब सफ़िया टोकरी की तह में नमक की पुड़िया रखकर उस पर कीनू सजा कर लेट गई उस समय रात के तकरीबन डेढ बजे थे। मार्च की सहानी हवा खिडकी की जाली से आ रही थी। बाहर चाँदनी साफ और ठण्डी थी। खिडकी के करीब चम्पा का एक घना वृक्ष लगा हुआ था। सामने की दीवार पर उस पेड़ की पत्तियों की प्रतिछाया पड़ रही थी। कभी किसी तरफ से किसी की दबी हुई खाँसी की आहट आ रही थी और दूर से किसी कुत्ते के भौंकने तथा रोने की आवाज सुनाई दे रही थी। चौंकीदार की सीटी बजती थी और फिर सन्नाटा छा जाता था। परंतु यह पाकिस्तान था।

प्रश्न 8.
सफिया ने भाई से क्या पूछा और उसने क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
सफ़िया अपने भाई से नमक ले जाने के बारे में पूछती है। उसका भाई आश्चर्यचकित होकर कहता है कि ‘नमक’। पाकिस्तान से भारत नमक ले जाना तो गैर-कानूनी है परंतु आप नमक का क्या करेंगी ? आप लोगों के हिस्से में तो हमसे ज्यादा नमक आया है। सफिया ने झुंझलाते हुए कहा कि आया होगा हमारे हिस्से में नमक, मेरी माँ ने तो यही लाहौरी नमक मँगवाया है। सफ़िया का भाई कुछ समझ नहीं पा रहा था। वह सोचने लगा कि माँ तो बटवारे से पहले ही मर चुकी थीं। सफ़िया का भाई उसे कहता है कि देखो आपको कस्टम पार करके जाना है और अगर उन्हें नमक के बारे में पता चल गया तो आपका सामान मिट्टी में मिला देंगे।

प्रश्न 9.
सफिया के भाई ने अदीबों (साहित्यकारों) पर क्या व्यंग्य किया और सफिया ने क्या जवाब दिया?
उत्तर:
सफ़िया का भाई साहित्यकारों पर व्यंग्य करते हुए कहने लगा कि आप से कोई बहस नहीं कर सकता। आप अदीब ठहरी और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा तो जरूर ही घूमा हुआ होता है। वैसे मैं आपको बताए देता हूँ कि आप नमक ले नहीं जा पाएँगी और बदनामी मुफ्त में हम सबकी भी होगी। आखिर आप कस्टम वालों को कितना जानती हैं?

सफ़िया ने गुस्से में जवाब दिया, “कस्टमवालों को जानें या न जाने पर हम इंसानों को थोड़ा-सा जरूर जानते हैं और रही दिमाग की बात सो अगर सभी लोगों का दिमाग हम अदीबों की तरह घूमा हुआ होता तो यह दुनिया कुछ बेहतर ही जगह हो जाती, भैया।”

प्रश्न 10.
अमृतसर में सफिया को जो कस्टम ऑफिसर मिला वह कहाँ का रहने वाला था तथा उसने किताब दिखाकर क्या बताया?
उत्तर:
अमृतसर में सफिया को जो कस्टम अधिकारी मिला था वह ढाका का रहने वाला था। उसका नाम सुनील दास गुप्त था। सन् 1946 में उसके मित्र शमसुलइसलाम ने बड़े प्यार से उसे किताब भेंट की थी। सुनील दास गुप्त ने लेखिका को किताब दिखाकर यह बताया कि जब भारत-पाक विभाजन हुआ तब मैं भारत आ गया था, परंतु मेरा वतन ढाका है। मैं उस समय 12-13 साल का था परंतु नज़रुल और टैगोर को हम लोग बचपन में पढ़ा करते थे। जिस रात हम यहाँ आ रहे थे उसके ठीक एक साल पहले मेरे सबसे पुराने, सर्वाधिक प्रिय बचपन के मित्र ने मुझे यह किताब दी थी। उस दिन मेरी सालगिरह थी फिर हम कलकत्ता में रहे, पढ़े और फिर मुझे नौकरी भी मिल गई। परंतु हम अपने वतन आते-जाते रहते थे।

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प्रश्न 11.
राजनीतिक सीमा तथा राजनीतिज्ञों के कारण भले ही भारत और पाकिस्तान के लोग धार्मिक दुराग्रह के शिकार बने हुए हैं लेकिन फिर भी हिंदुस्तान-पाकिस्तान के दिल मिलने के लिए आतुर रहते हैं। प्रस्तुत पाठ के आधार पर इस कथन का विवेचन कीजिए।
अथवा
‘नमक’ पाठ के आधार पर वतन की स्मृति का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
आम लोगों के हृदयों में कोई दुश्मनी नहीं है। सामान्य जनता धर्म या क्षेत्र के आधार पर संघर्ष नहीं करना चाहती। बल्कि दोनों देशों के लोग अच्छे पड़ोसियों के समान रहना चाहते हैं। प्रस्तुत कहानी से पता चलता है कि सिख बीबी लाहौर को अपना वतन मानती है और वहाँ के नमक की सौगात चाहती है। पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी दिल्ली को अपना वतन मानता है। यही नहीं वह जामा मस्जिद की सीढ़ियों को अपना सलाम भेजता है। वह सिख बीबी को यह संदेशा भी भेजता है कि लाहौर अभी तक उसका वतन है और दिल्ली मेरा वतन है। बाकी सब धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा। इसी प्रकार भारतीय कस्टम अधिकारी सुनील दास गुप्त ढाका को अपना वतन मानता है। वहाँ के नारियल को कोलकाता के नारियल से श्रेष्ठ मानता है। वह ढाका के बारे में कहता है कि हमारी जमीन और हमारे पानी का मजा ही कुछ ओर है। कहानी के इन प्रसंगों से पता चलता है कि भारतवासियों और पाकिस्तानियों के दिलों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है।

प्रश्न 12.
इस कहानी के आधार पर सफिया के भाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
सफ़िया का भाई एक पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी है। अतः उसके व्यवहार में अफसरों जैसा रोबदाब है। उसका स्वभाव भी बड़ा कठोर है। वह भारत पाकिस्तान के भेदभाव का समर्थक प्रतीत होता है। वह पारिवारिक संबंधों में भी भारत-पाक के भेदभाव को प्रमुखता देता है। वस्तुतः वह एक कट्टर तथा कठोर मुसलमान अफसर है। जब उसकी बहन सफ़िया भारत में लाहौरी नमक ले जाना चाहती है तो वह कहता है, “यह गैर-कानूनी है, नमक तो आपके हिस्से में बहुत ज्यादा है।” ऐसे लोगों के कारण ही भारत-पाक दूरियाँ बढ़ रही हैं। स्वभाव का कठोर होने के कारण वह संवेदनशून्य व्यक्ति है। वह सभी कस्टम अधिकारियों को अपने जैसा ही समझता है। इसलिए वह अपनी बहन को यह सलाह देता है कि वह लाहौरी नमक भारत न ले जाए यदि वह पकड़ी गई तो उसकी बड़ी बदनामी होगी।

प्रश्न 13.
सफिया ने किस प्रकार अपनी व्यवहार कुशलता द्वारा कस्टम अधिकारियों को प्रभावित कर लिया ?
उत्तर:
सफ़िया एक साहित्यकार होने के कारण एक व्यवहारकुशल नारी है। वह मानवीय रिश्तों के मर्म को अच्छी प्रकार समझती है। वह इस मनौवैज्ञानिक तथ्य से भली प्रकार परिचित है कि यदि किसी व्यक्ति के साथ भावनात्मक संबंध जोड़ लिए जाएँ या उसके समक्ष विनम्रतापूर्वक निवेदन किया जाए तो वह निश्चय से उसकी बात को मान जाएगा। उसने सर्वप्रथम पाकिस्तान के कस्टम अधिकारी से उसके वतन के बारे में पूछा और उससे व्यक्तिगत संबंध जोड़ लिया और फिर उसने दिल्ली को अपना वतन बताकर उससे गहरा संबंध जोड़ लिया। इस प्रकार वह मुहब्बत का तोहफा लाहौरी नमक पाकिस्तानी अधिकारी से साफ निकलवाकर ले गई। इसी प्रकार उसने भारतीय कस्टम अधिकारी सुनील दास गुप्त के मर्म को छुआ और वह सिख बीबी के लिए लाहौरी नमक ले जाने में कामयाब हो गई।

प्रश्न 14.
प्रस्तुत कहानी ‘नमक’ में भारत-पाक संबंधों में किस प्रकार एकता देखी जा सकती है?
उत्तर:
विभाजन से पहले भारत पाकिस्तान दोनों एक ही देश के दो भाग थे। विभाजन के बाद एक का नाम पाकिस्तान कहलाया और दूसरे का भारत। परंतु दोनों देशों के लोगों की भाषा, बोली, वेशभूषा आदि एक जैसी ही है। यही नहीं, दोनों देशों का खान-पान भी एक जैसा है। दोनों देशों में ऐसे अनेक नागरिक रहते हैं जिनकी जड़ें दूसरे देश में हैं। जो हिंदू पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत में आए वे पाकिस्तान को भी अपनी जन्मभूमि मानते हैं। यही स्थिति उन भारतीयों की है जो भारत से विस्थापित होकर पाकिस्तान चले गए। यदि दोनों देशों में सांप्रदायिकता को समाप्त कर दिया जाए तं सकते हैं लेकिन हमारे राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए दोनों देशों की एकता को पनपने नहीं देते।

बहविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. रजिया सज्जाद जहीर का जन्म कब हुआ?
(A) 15 फरवरी, 1917 को
(B) 15 फरवरी, 1918 को
(C) 15 फरवरी, 1919 को
(D) 15 फरवरी, 1920 को
उत्तर:
(A) 15 फरवरी, 1917 को

2. रजिया सज्जाद जहीर का जन्म कहाँ हुआ?
(A) जयपुर
(B) अजमेर
(C) जोधपुर
(D) बीकानेर
उत्तर:
(B) अजमेर

3. रजिया सज्जाद जहीर ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा पास की ?
(A) हिंदी में
(B) अंग्रेजी में
(C) उर्दू में
(D) पंजाबी में
उत्तर:
(C) उर्दू में

4. सन् 1947 में रज़िया सज्जाद ज़हीर अजमेर छोड़कर कहाँ चली गई?
(A) आगरा
(B) मेरठ
(C) कानपुर
(D) लखनऊ
उत्तर:
(D) लखनऊ

5. रजिया सज्जाद जहीर ने किस व्यवसाय को अपनाया?
(A) व्यापार
(B) अध्यापन
(C) नौकरी
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अध्यापन

6. रज़िया सज्जाद ज़हीर का देहांत कब हुआ?
(A) 18 दिसंबर, 1980 को
(B) 19 दिसंबर, 1978 को
(C) 18 दिसंबर, 1979 को
(D) 18 दिसंबर, 1982 को
उत्तर:
(C) 18 दिसंबर, 1979 को

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक

7. रज़िया सज्जाद ज़हीर को निम्नलिखित में से कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) प्रेमचंद पुरस्कार
(B) सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार
(C) कबीर पुरस्कार
(D) साहित्य अकादमी
उत्तर:
(B) सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार

8. उत्तरप्रदेश की किस अकादेमी ने रज़िया सज्जाद ज़हीर को पुरस्कार देकर सम्मानित किया?
(A) उर्दू अकादेमी
(B) हिंदी अकादेमी
(C) ललित कला अकादेमी
(D) चित्रकला अकादेमी
उत्तर:
(A) उर्दू अकादेमी

9. रज़िया सज्जाद ज़हीर को ‘सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार’ तथा ‘उर्दू अकादेमी पुरस्कार’ के अतिरिक्त और कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड
(B) उत्तरप्रदेश लेखिका संघ अवार्ड
(C) दिल्ली लेखिका संघ अवार्ड
(D) उत्तर भारतीय लेखिका संघ अवार्ड
उत्तर:
(A) अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड

10. सन् 1965 में रज़िया सज्जाद जहीर की नियुक्ति कहाँ पर हुई?
(A) आकाशवाणी में
(B) साहित्य अकादेमी में
(C) उर्दू अकादेमी में
(D) सोवियत सूचना विभाग में
उत्तर:
(D) सोवियत सूचना विभाग में

11. रजिया सज्जाद जहीर के एकमात्र कहानी संग्रह का नाम क्या है?
(A) ज़र्द गुलाब
(B) पीला गुलाब
(C) नीला गुलाब
(D) काला गुलाब
उत्तर:
(A) ज़र्द गुलाब

12. रजिया सज्जाद जहीर मूलतः किस भाषा की लेखिका हैं?
(A) हिंदी
(B) उर्दू
(C) अरबी
(D) फारसी
उत्तर:
(B) उर्दू

13. ‘नमक’ कहानी की लेखिका का नाम क्या है?
(A) महादेवी वर्मा
(B) सुभद्राकुमारी चौहान
(C) रज़िया सज्जाद जहीर
(D) फणीश्वर नाथ रेणु
उत्तर:
(C) रज़िया सज्जाद जहीर

14. नमक कहानी का संबंध किससे है?
(A) हिंदुओं तथा मुसलमानों से
(B) भारतवासियों से
(C) पाकिस्तानियों से
(D) भारत-पाक विभाजन से
उत्तर:
(D) भारत-पाक विभाजन से

15. सफिया पाकिस्तान के किस नगर में गई थी?
(A) मुलतान में
(B) लाहौर में
(C) सयालकोट में
(D) इस्लामाबाद में
उत्तर:
(B) लाहौर में

16. सफिया लाहौर जाने से पहले किस कार्यक्रम में गई थी?
(A) कीर्तन में
(B) जगराते में
(C) मंदिर में
(D) मस्जिद में
उत्तर:
(A) कीर्तन में

17. सिख बीबी ने किसे अपना वतन कहा?
(A) अमृतसर को
(B) लाहौर को
(C) दिल्ली को
(D) मुलतान को
उत्तर:
(B) लाहौर को

18. कीर्तन कितने बजे समाप्त हुआ?
(A) 9 बजे
(B) 10 बजे
(C) 11 बजे
(D) 12 बजे
उत्तर:
(C) 11 बजे

19. सिख बीबी ने सफिया से क्या तोहफा लाने के लिए कहा?
(A) लाहौरी शाल
(B) लाहौरी नमक
(C) लाहौरी कीनू
(D) लाहौरी मेवा
उत्तर:
(B) लाहौरी नमक

20. सफ़िया लाहौर में किसके पास गई थी?
(A) माता-पिता के पास
(B) दोस्तों के पास
(C) पड़ोसियों के पास
(D) भाइयों के पास
उत्तर:
(D) भाइयों के पास

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21. सफिया का भाई क्या था?
(A) पुलिस अफसर
(B) कस्टम अधिकारी
(C) व्यापारी
(D) सरकारी नौकर
उत्तर:
(A) पुलिस अफसर

22. सफिया ने बादामी कागज की पुड़िया में क्या बंद कर रखा था?
(A) सिंदूरी नमक
(B) सोडियम नमक
(C) सिंधी नमक
(D) लाहौरी नमक
उत्तर:
(D) लाहौरी नमक

23. कस्टमवालों के लिए क्या आवश्यक है?
(A) दिव्य ज्ञान
(B) ज्योतिष ज्ञान
(C) कर्त्तव्यपालन
(D) सहज समाधि
उत्तर:
(C) कर्त्तव्यपालन

24. ‘आखिर कस्टमवाले भी इंसान होते हैं, कोई मशीन तो नहीं होते’, यह कथन किसका है?
(A) ‘सफिया के भाई का
(B) सफ़िया का
(C) लेखिका का
(D) सुनील दास गुप्त का
उत्तर:
(B) सफ़िया का

25. आप अदीब ठहरी और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा तो ज़रूर ही घूमा हुआ होता है। यहाँ अदीब शब्द किसके लिए प्रयोग हुआ है?
(A) सिरफिरे व्यक्ति के लिए
(B) पागल के लिए
(C) साहित्यकार के लिए
(D) सरकारी अधिकारी के लिए
उत्तर:
(C) साहित्यकार के लिए

26. सफिया के कितने सगे भाई पाकिस्तान में थे?
(A) दो
(B) पाँच
(C) चार
(D) तीन
उत्तर:
(D) तीन

27. पहले सफिया ने नमक की पुड़िया को कहाँ रखा?
(A) अपने पर्स में
(B) फलों की टोकरी की तह में
(C) फलों के ऊपर
(D) सूटकेस में
उत्तर:
(B) फलों की टोकरी की तह में

28. सुनीलदास गुप्ता को सालगिरह पर उसके मित्र ने पुस्तक कब भेंट की?
(A) 1944
(B) 1942
(C) 1946
(D) 1940
उत्तर:
(C) 1946

29. कस्टम अधिकारी सुनीलदास गुप्ता को उसके बचपन के दोस्त ने किस अवसर पर पुस्तक भेंट की थी?
(A) सालगिरह
(B) नववर्ष
(C) दीपावली
(D) जन्मदिन
उत्तर:
(A) सालगिरह

30. संतरे और माल्टे को मिलाकर कौन-सा फल तैयार किया जाता है?
(A) नींबू
(B) मौसमी
(C) कीनू
(D) चकोतरा
उत्तर:
(C) कीनू

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31. सफिया के दोस्त ने कीनू देते हुए क्या कहा था?
(A) यह हमारी दोस्ती का सबूत है
(B) यह हमारे प्रेम का सबूत है
(C) यह हिंदस्तान-पाकिस्तान की एकता का मेवा है
(D) यह रसीला और ठण्डा फल है
उत्तर:
(C) यह हिंदुस्तान-पाकिस्तान की एकता का मेवा है।

32. किस रंग के कागज़ की पुड़िया में सेर भर सफेद लाहौरी नमक था?
(A) लाल
(B) सफेद
(C) बैंगनी
(D) बादामी
उत्तर:
(D) बादामी

33. “मुझे तो लाहौर का नमक चाहिए, मेरी माँ ने यही मँगवाया है।” वाक्य में सफिया ने अपनी माँ किसे कहा है?
(A) सिख बीबी
(B) सगी माँ
(C) मित्र की माँ
(D) पति की माँ
उत्तर:
(A) सिख बीबी

34. “मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।” यह कथन किसका है?
(A) पाकिस्तान कस्टम अधिकारी का
(B) सफ़िया का
(C) सफ़िया के भाई का
(D) सुनील दास गुप्त का
उत्तर:
(A) पाकिस्तान कस्टम अधिकारी का

35. ‘नमक’ कहानी में सबसे अच्छा डाभ कहाँ का बताया गया है?
(A) कलकत्ता का
(B) राँची का
(C) मथुरा का
(D) ढाका का
उत्तर:
(D) ढाका का

36. सफिया अपने को क्या कहती थी?
(A) मुगल
(B) पठान
(C) शेख
(D) सैयद
उत्तर:
(D) सैयद

37. सुनील दास किसे अपना वतन मानता है?
(A) भारत को
(B) पाकिस्तान को
(C) दिल्ली को
(D) ढाका को
उत्तर:
(D) ढाका को

38. सफ़िया कहाँ की रहने वाली है?
(A) कराची
(B) बंगाल
(C) जालन्धर
(D) लाहौर
उत्तर:
(D) लाहौर

39. सुनीलदास गुप्त अपने दोस्त के साथ बचपन में किन साहित्यकारों को पढ़ते थे?
(A) नजरुल और निराला
(B) नजरुल और शरतचंद्र
(C) टैगोर और शरतचंद्र
(D) नज़रुल और टैगोर
उत्तर:
(D) नज़रुल और टैगोर

40. अमृतसर में सफिया के सामान की जाँच करने वाले नौजवान कस्टम अधिकारी बातचीत और सूरत से कैसे लगते थे?
(A) गुजराती
(B) पंजाबी
(C) पाकिस्तानी
(D) बंगाली
उत्तर:
(D) बंगाली

41. ‘नमक’ पाठ के अनुसार क्या चीज़ हिंदुस्तान-पाकिस्तान की एकता का मेवा है?
(A) कीनू
(B) काजू
(C) बादाम
(D) पिस्ता
उत्तर:
(A) कीनू

42. सफिया की अम्मा सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा कब ओढ़ा करती थी?
(A) मुहर्रम पर
(B) रमजान पर
(C) रक्षाबंधन पर
(D) ईद पर
उत्तर:
(A) मुहर्रम पर

43. “हमारा वतन तो जी लाहौर ही है” यह कथन किसका है?
(A) सिख बीबी
(B) सुनील दास गुप्त
(C) सफ़िया
(D) सफ़िया का भाई
उत्तर:
(A) सिख बीबी

44. सफिया अपने भाइयों से मिलने कहाँ जा रही थी?
(A) ढाका
(B) लाहौर
(C) कराची
(D) अमृतसर
उत्तर:
(B) लाहौर

नमक प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] उन सिख बीबी को देखकर सफिया हैरान रह गई थी, किस कदर वह उसकी माँ से मिलती थी। वही भारी भरकम जिस्म, छोटी-छोटी चमकदार आँखें, जिनमें नेकी, मुहब्बत और रहमदिली की रोशनी जगमगाया करती थी। चेहरा जैसे कोई खुली हुई किताब। वैसा ही सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा जैसा उसकी अम्मा मुहर्रम में ओढ़ा करती थी। जब सफिया ने कई बार उनकी तरफ मुहब्बत से देखा तो उन्होंने भी उसके बारे में घर की बहू से पूछा। उन्हें बताया गया कि ये मुसलमान हैं। कल ही सुबह लाहौर जा रही हैं अपने भाइयों से मिलने, जिन्हें इन्होंने कई साल से नहीं देखा। लाहौर का नाम सुनकर वे उठकर सफिया के पास आ बैठी और उसे बताने लगी कि उनका लाहौर कितना प्यारा शहर है। वहाँ के लोग कैसे खूबसूरत होते हैं, उम्दा खाने और नफीस कपड़ों के शौकीन, सैर-सपाटे के रसिया, जिंदादिली की तसवीर। [पृष्ठ-130]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘नमक’ में से लिया गया है। इसकी लेखिका रजिया सज्जाद ज़हीर हैं। ‘नमक’ उनकी एक उल्लेखनीय कहानी है, जिसमें लेखिका ने भारत-पाक विभाजन के बाद दोनों देशों के विस्थापित तथा पुनर्वासित लोगों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया है। विस्थापित होकर भारत में रहने वाली सिख बीबी लाहौर को अपना वतन समझती है और वहाँ से नमक मँगवाना चाहती है, परंतु पाकिस्तान से नमक लाना गैरकानूनी है। सफ़िया जब कीर्तन में उन सिख बीबी को देखती है तो उनमें उसे अपनी माँ की झलक दिखती है। वह सिख बीबी सफिया से लाहौर और वहाँ के लोगों की अच्छाइयाँ बताती है। इसी संदर्भ में लेखिका कहती है

व्याख्या-उस सिख बीबी को देखकर सफिया हैरान हो गई कि किस प्रकार वह उसकी माँ से मिलती थी। उसका परिचय देते हुए सफ़िया कहती है कि उस सिख बीबी का शरीर भारी था, परंतु उसकी आँखें छोटी-छोटी तथा चमकदार थीं। उसकी आँखों से नेकी, प्रेम और दयालुता का प्रकाश जगमगाता था। उसका चेहरा क्या था, मानों कोई खुली हुई पुस्तक हो। उसके सिर पर श्वेत रंग का बहुत ही पतला मलमल का दुपट्टा था। इसी प्रकार का दुपट्टा उसकी माँ मुहर्रम के अवसर पर ओढ़ती थी। सफ़िया ने अनेक बार उसकी ओर प्यार से देखा। फलस्वरूप सिख बीबी ने लेखिका के बारे में घर की बहू से पूछ ही लिया।

तब उसकी बहू ने बताया कि ये महिला मुसलमान है। कल सवेरे यह अपने भाइयों से मिलने लाहौर जा रही है। इसने अपने भाइयों को कई सालों से नहीं देखा है। जब सिख बीबी ने लाहौर का नाम सुना तो वह लेखिका के पास आकर बैठ गई और कहने लगी कि उसका लाहौर बहुत प्यारा शहर है। लाहौर के निवासी बड़े सुंदर और अच्छा खाना खाने वाले होते हैं और यही नहीं सुरुचिपूर्ण कपड़े पहनने के शौकीन होते हैं। उन्हें घूमने-फिरने से भी लगाव है। लाहौर और वहाँ के निवासी उत्साह और जोश की मूर्ति दिखाई देते हैं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने सिख बीबी के माध्यम से लाहौर शहर की सुंदरता और वहाँ के लोगों की सुंदरता तथा उनकी जिंदादली का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल तथा हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. नेकी, मोहब्बत, रहमदिली, रोशनी, उम्दा, नफीस, शौकीन आदि उर्दू के शब्दों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  5. वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैलियों का प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
(ख) सिख बीबी को देखकर सफिया हैरान क्यों रह गई?
(ग) घर की बहू ने सफिया के बारे में सिख बीबी को क्या बताया?
(घ) सिख बीबी ने लाहौर के बारे में सफिया से क्या कहा?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम-‘नमक’, लेखिका-रज़िया सज्जाद ज़हीर।।

(ख) सिख बीबी को देखकर सफ़िया इसलिए हैरान रह गई क्योंकि उसकी शक्ल उसकी माँ से मिलती थी। सफ़िया की माँ की तरह उसका शरीर भारी-भरकम, छोटी चमकदार आँखें, जिनसे दयालुता का प्रकाश विकीर्ण हो रहा था। सिख बीबी का मुख उसकी माँ जैसा था और उसने उसकी माँ की तरह मलमल का दुपट्टा ओढ़ रखा था, जो उसकी माँ मुहर्रम पर ओढ़ा करती थी।

(ग) घर की बहू ने सिख बीबी को सफिया के बारे में यह बताया कि वह एक मुसलमान है और उसके भाई लाहौर में रहते हैं। वह पिछले कई सालों से अपने भाइयों से नहीं मिली। इसलिए वह उनसे मिलने लाहौर जा रही है।

(घ) सिख बीबी ने सफ़िया को कहा कि लाहौर बहुत ही प्यारा शहर है। वहाँ के लोग न केवल सुंदर होते हैं, बल्कि सुरुचिपूर्ण कपड़े पहनते हैं। वे घूमने-फिरने के भी शौकीन हैं। उनमें उत्साह व जोश भी बहुत है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक

[2] “अरे बाबा, तो मैं कब कह रही हूँ कि वह ड्यूटी न करें। एक तोहफा है, वह भी चंद पैसों का, शौक से देख लें, कोई सोना-चाँदी नहीं, स्मगल की हुई चीज़ नहीं, ब्लैक मार्केट का माल नहीं।”
“अब आपसे कौन बहस करे। आप अदीब ठहरी और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा तो ज़रूर ही घूमा हुआ होता है। वैसे मैं आपको बताए देता हूँ कि आप ले नहीं जा पाएँगी और बदनामी मुफ्त में हम सबकी
भी होगी। आखिर आप कस्टमवालों को कितना जानती हैं?”
उसने गुस्से से जवाब दिया, “कस्टमवालों को जानें या न जानें, पर हम इंसानों को थोड़ा-सा जरूर जानते हैं।
और रही दिमाग की बात सो अगर सभी लोगों का दिमाग हम अदीबों की तरह घूमा हुआ होता तो यह दुनिया कुछ बेहतर ही जगह हो जाती, भैया।” [पृष्ठ-131]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘नमक’ में से लिया गया है। इसकी लेखिका रज़िया सज्जाद जहीर हैं। ‘नमक’ उनकी एक उल्लेखनीय कहानी है, जिसमें लेखिका ने भारत-पाक विभाजन के बाद दोनों देशों के विस्थापित तथा पुनर्वासित लोगों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया है। विस्थापित होकर भारत में रहने वाली सिख बीबी लाहौर को अपना वतन मानती है और वहाँ से नमक मँगवाना चाहती है, परंतु पाकिस्तान से नमक मँगवाना गैर-कानूनी है। यहाँ लेखिका ने अपने और अपने भाई के वार्तालाप को प्रस्तुत किया है।

व्याख्या-लेखिका अपने पुलिस अधिकारी भाई से कहती है कि मैं यह कब कहती हूँ कि कस्टमवाले अपने कर्तव्य का पालन न करें। मैं तो मात्र एक छोटी-सी भेंट लेकर जा रही हूँ, जो थोड़े पैसों में खरीदी जा सकती है और वे इसकी अच्छी प्रकार जाँच कर सकते हैं। यह थोड़ा-सा नमक है, न सोना है, न चाँदी है। यह स्मगल की गई कोई वस्तु नहीं है, और न ही कोई काला-बाज़ारी का माल है।

लेखिका की बातों का उत्तर देते हुए उसके भाई ने कहा कि अब आपसे कौन बहस कर सकता है, क्योंकि आप एक साहित्यकार हैं और साहित्यकारों का दिमाग थोड़ा सा घूमा हुआ होता ही है। लेकिन मैं आपको यह बता दूँ कि आप यह भेंट भारत नहीं ले जा सकेंगी। इससे हम सबको अपयश अवश्य ही मिलेगा। आप कस्टम अधिकारियों के बारे में कितना जानती हैं। वह प्रत्येक वस्तु की अच्छी तरह जाँच-पड़ताल करते हैं। तब सफ़िया ने क्रोधित होकर अपने भाई से कहा कि कस्टम वालों को चाहे कोई न जाने परंतु मैं मनुष्यों को थोड़ा बहुत अच्छी तरह जानती हूँ। जहाँ तक बुद्धि का सवाल है तो हम जैसे साहित्यकारों के समान लोगों का भी दिमाग थोड़ा घूमा हुआ होता तो यह संसार बहुत उत्तम होता। लेकिन दुख इस बात का है कि लोगों के पास हम जैसा दिमाग नहीं है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने इंसानियत में अपना गहरा विश्वास व्यक्त किया है।
  2. लेखिका यह स्पष्ट करती है कि लोगों का दिमाग साहित्यकारों जैसा हो जाए तो संसार में सुख और शांति की स्थापना हो जाए।
  3. सहज, सरल, बोधगम्य भाषा का प्रयोग है जिसमें उर्दू तथा अंग्रेज़ी अक्षरों का मिश्रण हुआ है।
  4. ड्यूटी, स्मगल, ब्लैक मार्केट, कस्टम आदि अंग्रेज़ी के शब्द हैं तथा तोहफा शौक, चीज़, अदीब, दिमाग, मुफ्त, दुनिया, इंसान आदि उर्दू के शब्द हैं।
  5. वाक्य-विन्यास बड़ा ही सटीक बन पड़ा है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) सफिया क्या तर्क देकर पाकिस्तान से भारत में नमक ले जाना चाहती है?
(ख) सफिया का भाई अपनी बहन को अदीब कहकर साहित्यकारों पर क्या टिप्पणी करता है?
(ग) सिद्ध कीजिए कि सफ़िया मानवता पर विश्वास करती है?
(घ) सफिया के अनुसार किस स्थिति में दुनिया कुछ बेहतर हो सकती है?
(ङ) सफिया तथा उसके भाई में स्वभावगत अंतर क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) सफ़िया का तर्क यह है कि नमक केवल एक भेंट है जो थोड़े-से पैसों से खरीदी जा सकती है। यह भेंट न सोना है, न चाँदी है और न ही चोरी की वस्तु है। यह तो काला बाज़ार की वस्तु भी नहीं है।

(ख) सफिया का भाई अपनी बहन को साहित्यकार कहता है तथा यह भी कहता है कि सभी साहित्यकारों का दिमाग थोड़ा-सा हिला हुआ होता है। इस पागलपन में उसकी बहन नमक तो नहीं ले जा सकेगी, पर उसकी बदनामी अवश्य होगी।

(ग) सफ़िया का मानवता पर पूर्ण विश्वास है। वह सोचती है कि सीमा शुल्क अधिकारी भी इंसान होते हैं और वे इस बात को समझेंगे कि यह नमक केवल प्रेम की भेंट है, जिसे वह सिख बीबी के लिए लेकर जा रही है।

(घ) सफ़िया का विचार है कि सभी लोगों का दिमाग अगर साहित्यकारों जैसा हो, तथा उनकी सोच भी साहित्यकारों जैसी हो तो यह संसार आज और अच्छा होता।

(ङ) सफ़िया का भाई कानून को मानने वाला इंसान है। इसलिए वह कहता है कि कस्टम अधिकारी नमक को भारत नहीं ले जाने देंगे परंतु सफिया कानून के साथ-साथ प्रेम, मुहब्बत तथा मनुष्यता को भी महत्त्व देती है। इसलिए उसका विश्वास है कि कस्टम अधिकारी भेंट के रूप में ले जाए रहे नमक को नहीं रोकेंगे।

[3] अब तक सफिया का गुस्सा उतर चुका था। भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी। नमक की पुड़िया ले तो जानी है, पर कैसे? अच्छा, अगर इसे हाथ में ले लें और कस्टमवालों के सामने सबसे पहले इसी को रख दें? लेकिन अगर कस्टमवालों ने न जाने दिया! तो मज़बूरी है, छोड़ देंगे। लेकिन फिर उस वायदे का क्या होगा जो हमने अपनी माँ से किया था? हम अपने को सैयद कहते हैं। फिर वायदा करके झुठलाने के क्या मायने? जान देकर भी वायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे? अच्छा, अगर इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रख लिया जाए तो इतने कीनुओं के ढेर में भला कौन इसे देखेगा? और अगर देख लिया? नहीं जी, फलों की टोकरियाँ तो आते वक्त भी किसी की नहीं देखी जा रही थीं। उधर से केले, इधर के कीनू सब ही ला रहे थे, ले जा रहे थे। यही ठीक है, फिर देखा जाएगा। [पृष्ठ-133]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘नमक’ में से लिया गया है। इसकी लेखिका रज़िया सज्जाद ज़हीर हैं। ‘नमक’ लेखिका की एक उल्लेखनीय कहानी है, जिसमें लेखिका ने भारत-पाक विभाजन के बाद दोनों देशों के विस्थापित तथा पुनर्वासित लोगों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया है। विस्थापित होकर भारत में रहने वाली सिख बीबी लाहौर से नमक मँगवाना चाहती है, परंतु पाकिस्तान से नमक मँगवाना गैर-कानूनी है। यहाँ लेखिका ने सफ़िया की मनःस्थिति का परिचय दिया है। भावना के स्थान पर बुद्धि हावी हो चुकी थी। इसलिए वह यह सोचने पर मजबूर हो जाती है कि वह नमक को भारत कैसे ले जाए।

व्याख्या-धीरे-धीरे सफ़िया का क्रोध दूर होने लगा। भावनाओं का उबाल मंद पड़ चुका था। भावनाओं के स्थान पर बुद्धि उसे सोचने पर मजबूर कर रही थी। वह सोचने लगी कि उसे नमक तो ले जाना है, पर वह नमक को किस प्रकार ले जाए। यह एक विचारणीय प्रश्न है। वह सोचती है कि यदि वह नमक को अपने हाथ में ले ले और कस्टम अधिकारियों के समक्ष इसी को प्रस्तुत कर दे, तो इसका परिणाम क्या होगा। हो सकता है कि वह उसे नमक न ले जाने दें। ऐसी स्थिति में मजबूर होकर उसे नमक वहीं छोड़ना पड़ेगा। अगले क्षण वह सोचने लगी कि उसके वचन का क्या होगा, जो उसने अपनी माँ जैसी औरत को दिया था। सफ़िया सोचती है कि हम लोग सैयद माने जाते हैं और सैयद हमेशा वादा निभाते हैं। यदि मैंने अपना वचन न निभाया तो क्या होगा। मुझे अपने प्राण देकर भी यह वचन पूरा करना चाहिए। पर यह कैसे हो, यह सोचने की बात है।

अगले ही क्षण सफ़िया सोचने लगी कि मैं कीनुओं की टोकरी के नीचे इस नमक की पोटली को रख दूँ। ऊपर कीनुओं का ढेर होगा। इन कीनुओं के नीचे कोई नमक को नहीं देख पाएगा। यदि किसी ने देख लिया तो क्या होगा? पर सफिया सोचने लगी कि ऐसा नहीं होगा। आते समय फलों की टोकरियों की जाँच नहीं हो रही थी। उधर से लोग केले ला रहे थे, इधर से कीनू ले जा रहे थे। इसलिए यही अच्छा है कि मैं नमक को कीनुओं के नीचे ही रख दूँ। जो होगा देखा जाएगा।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने सफिया के अंतर्द्वद्व का सफल उद्घाटन किया है।
  2. वह अपना वचन निभाने के लिए जैसे-तैसे अपनी माँ जैसी सिख बीबी तक पहुँचाना चाहती है।
  3. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग है, जिसमें उर्दू तथा अंग्रेज़ी के शब्दों का मिश्रण हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. आत्मचिन्तन प्रधान नई शैली का प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भावना के स्थान पर बुद्धि हावी होने का क्या अर्थ है?
(ख) सफिया के मन में चल रहे अंतर्द्वद्ध का उद्घाटन कीजिए।
(ग) सैयदों के बारे में सफिया ने क्या दृष्टिकोण व्यक्त किया है?
(घ) अंत में सफिया ने क्या फैसला किया?
उत्तर:
(क) भाक्ना के आवेग में सफ़िया अपने पुलिस अधिकारी भाई से तर्क-वितर्क करने लगी थी। भावनाओं के कारण वह पाकिस्तान से सिख बीबी के लिए नमक ले जाना चाहती थी। परंतु जब उसके भाई ने उसके नमक ले जाने का समर्थन नहीं दिया तो वह बुद्धि द्वारा कोई उपाय खोजने लगी, ताकि वह नमक की पुड़िया ले जा सके।

(ख) सफ़िया के मन में यह द्वंद्व चल रहा था कि वह नमक हाथ में रखकर सीमा शुल्क अधिकारियों के समक्ष रख देगी। परंतु उसे विचार आया कि यदि अधिकारी न माने तो उसे नमक वहीं पर छोड़ना पड़ेगा, परंतु उसे फिर ध्यान आया कि जो वचन वह देकर आई थी, उस वचन का क्या होगा।

(ग) सफ़िया सैयद मुसलमान थी और सैयद लोग हमेशा अपने वादे को निभाते हैं तथा सच्चा सैयद वही होता है जो अपनी जान देकर भी अपना वादा पूरा करता है। सफ़िया भी यही करना चाहती थी।

(घ) अंत में सफ़िया ने यह फैसला लिया कि वह नमक की पुड़िया को कीनुओं की टोकरी की तह में रखकर ले जाएगी। जब वह भारत से आई थी तब उसने देखा कि अधिकारी फलों की जाँच नहीं कर रहे थे। भारत से लोग केले ला रहे थे, पाकिस्तान से लोग कीनू ले जा रहे थे।

[4] उसने कीनू कालीन पर उलट दिए। टोकरी खाली की और नमक की पुड़िया उठाकर टोकरी की तह में रख दी। एक बार झाँककर उसने पुड़िया को देखा और उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसने अपनी किसी प्यारे को कब्र की गहराई में उतार दिया हो! कुछ देर उकईं बैठी वह पुड़िया को तकती रही और उन कहानियों को याद करती रही जिन्हें वह अपने बचपन में अम्मा से सुना करती थी, जिनमें शहजादा अपनी रान चीरकर हीरा छिपा लेता था और देवों, खौफनाक भूतों तथा राक्षसों के सामने से होता हुआ सरहदों से गुज़र जाता था। इस ज़माने में ऐसी कोई तरकीब नहीं हो सकती थी वरना वह अपना दिल चीरकर उसमें यह नमक छिपा लेती। उसने एक आह भरी। [पृष्ठ-133]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘नमक’ में से लिया गया है। इसकी लेखिका रजिया सज्जाद ज़हीर हैं। ‘नमक’ लेखिका की एक उल्लेखनीय कहानी है, जिसमें लेखिका ने भारत-पाक विभाजन के बाद दोनों देशों के विस्थापित तथा पुनर्वासित लोगों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया है। विस्थापित होकर भारत में रहने वाली सिख बीबी लाहौर से नमक मँगवाना चाहती है, परंतु पाकिस्तान से नमक मँगवाना गैर-कानूनी है। यहाँ लेखिका ने सफिया के द्वंद्व का उद्घाटन किया है। सफिया सोच नहीं पा रही थी कि वह किस प्रकार नमक को छिपाकर भारत ले जाए। अंत में उसने निर्णय किया कि वह
कीनुओं से भरी,टोकरी में नमक छिपाकर ले जाएगी।

व्याख्या-सफ़िया ने सारे कीनू कालीन पर पलट डाले और टोकरी को खाली कर दिया। अब उसने पुड़िया को उठाया तथा टोकरी की तह में रख दिया। उसने एक बार पुड़िया को देखा, तब उसे ऐसा अनुभव हुआ कि मानो अपने किसी प्रियजन को कब्र की गहराई में उतार दिया है। कुछ देर सफ़िया उकईं बैठी रही और पुड़िया को देखती रही। वह उन कहानियों को याद करने लगी, जिन्हें उसने अपनी माँ से सुना था कि एक राजकुमार ने अपनी जंघा को चीरकर उसमें एक हीरा छिपा लिया था। वह देवताओं, भयानक भूतों तथा राक्षसों के बीच होता हुआ सीमा पार चला गया था। वह सोचने लगी कि आधुनिक संसार में ऐसा कोई तरीका नहीं है जिसे अपनाकर नमक की पुड़िया को ले जाया जा सके। वह सोचती है कि काश वह अपना दिल चीरकर उसमें नमक की पुड़िया ले जाती पर वह एक निराशा की आह भरकर रह गई।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने सफ़िया की मनः स्थिति पर समुचित प्रकाश डाला है जो जैसे-तैसे नमक को भारत ले जाना चाहती है।
  2. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग है, जिसमें उर्दू मिश्रित शब्दों का प्रयोग हुआ है।
  3. शब्द-चयन सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) सफिया ने नमक को कहाँ छिपाया और क्यों?
(ख) कीनुओं के नीचे दबी नमक की पुड़िया सफिया को कैसे लगी?
(ग) सफिया बचपन में सुनी राजकुमारों की कहानियों को क्यों याद करने लगी?
(घ) सफिया द्वारा खौफनाक भूतों तथा राक्षसों के साथ देवों का प्रयोग करना क्या उचित है?
(ङ) सफ़िया ने राजकुमार के कारनामों को सुनकर आह क्यों भरी?
उत्तर:
(क) सफ़िया ने नमक की पुड़िया को कीनू की टोकरी की तह में छिपाया। वह सीमा शुल्क अधिकारियों की नज़र से नमक की पुड़िया को बचाना चाहती थी। उसके भाई ने बताया था कि कस्टम वाले उसे नमक नहीं ले जाने देंगे।

(ख) सफ़िया को लगा कि कीनू की टोकरी में नमक को दबाना मानो किसी प्रिय जन को कब्र की गहराई में उतारना है।

(ग) सफ़िया बचपन में सुनी राजकुमारों की कहानियों को इसलिए याद करने लगी क्योंकि वह किसी भी तरह इस भेंट को भारत ले जाना चाहती थी।

(घ) वस्तुतः सफिया को देवता शब्द का समुचित ज्ञान नहीं है। वह नहीं जानती कि देवी-देवता हिंदुओं के लिए पूजनीय होते हैं। अपनी ना-समझी के कारण खौफनाक भूतों तथा राक्षसों के साथ देवताओं का प्रयोग कर देती है जोकि अनुचित है।

(ङ) सफिया ने राजकुमार के कारनामों को सुनकर आह इसलिए भरी क्योंकि वह राजकुमारों जैसे कारनामे नहीं कर सकती थी। सफ़िया द्वारा आह भरना उसकी निराशा तथा मजबूरी का प्रतीक है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक

[5] रात को तकरीबन डेढ़ बजे थे। मार्च की सुहानी हवा खिड़की की जाली से आ रही थी। बाहर चाँदनी साफ और ठंडी थी। खिड़की के करीब लगा चंपा का एक घना दरख्त सामने की दीवार पर पत्तियों के अक्स लहका रहा था। कभी किसी तरफ से किसी की दबी हुई खाँसी की आहट, दूर से किसी कुत्ते के भौंकने या रोने की आवाज, चौकीदार की सीटी और फिर सन्नाटा! यह पाकिस्तान था। यहाँ उसके तीन सगे भाई थे, बेशमार चाहनेवाले दोस्त थे, बाप की कब्र थी, नन्हे-नन्हे भतीजे-भतीजियाँ थीं जो उससे बड़ी मासूमियत से पूछते, ‘फूफीजान, आप हिंदुस्तान में क्यों रहती हैं, जहाँ हम लोग नहीं आ सकते।’ उन सबके और सफिया के बीच में एक सरहद थी और बहुत ही नोकदार लोहे की छड़ों का जंगला, जो कस्टम कहलाता था। [पृष्ठ-133-134]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘नमक’ में से लिया गया है। इसकी लेखिका रज़िया सज्जाद ज़हीर हैं। ‘नमक’ उनकी एक उल्लेखनीय कहानी है, जिसमें लेखिका ने भारत-पाक विभाजन के बाद दोनों देशों के विस्थापित तथा पुनर्वासित लोगों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया है। विस्थापित होकर भारत में रहने वाली सिख बीबी लाहौर को अपना वतन मानती है और वहाँ से नमक मँगवाना चाहती है, परंतु पाकिस्तान से नमक मँगवाना गैर-कानूनी है। यहाँ लेखिका ने प्रकृति का वर्णन करते हुए भारत-पाक विभाजन की स्थिति पर समुचित प्रकाश डाला है।

व्याख्या-रात के लगभग डेढ़ बज चुके थे। मार्च का महीना था और खिड़की की जाली में से बड़ी सुंदर और ठंडी-ठंडी हवा अंदर आ रही थी। बाहर चाँदनी स्वच्छ और ठंडी लग रही थी। खिड़की के पास चम्पा का सघन पेड़ था। सामने की दीवार पर उस पेड़ के पत्तों का प्रतिबिम्ब पड़ रहा था। चारों ओर मौन छाया था। फिर भी किसी तरफ से दबी हुई खाँसी की आवाज़ आ जाती थी। दूर से किसी कुत्ते का भौंकना या रोना सुनाई दे रहा था। बीच-बीच में चौकीदार की सीटी बजती रहती थी, फिर चारों ओर मौन का वातावरण छा जाता था। सफ़िया पुनः कहती है कि यह पाकिस्तान था जहाँ उसके तीन सगे भाई रहते थे। असंख्य प्रेम करने वाले मित्र और संबंधी थे। उसके पिता की कब्र भी यहीं थी। उसके छोटे-छोटे भतीजे और भतीजियाँ भी थीं। जो बड़े भोलेपन से पूछते थे कि आप हिंदुस्तान में क्यों रह रही हैं। जहाँ हम आ नहीं सकते अर्थात हमारा हिंदुस्तान में आना वर्जित है। सफ़िया और उनके मध्य एक सीमा बनी हुई थी जहाँ नोकदार छड़ों का जंगला बना था, जिसको सीमा शुल्क (कस्टम) विभाग कहा जाता है। यही सीमा भारत और पाकिस्तान को अलग-अलग करती है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने सफिया के माध्यम से मार्च महीने की रात्रि का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।
  2. सफिया के भतीजे-भतीजियों के माध्यम से भारत-पाक सीमाओं पर करारा व्यंग्य किया गया है।
  3. सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें उर्दू शब्दों की बहुलता है। सुहानी, दरखत, चौकीदार, बेशुमार, कब्र, मासूमियत, फूफीजान, सरहद आदि उर्दू के शब्दों का सहज प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) मार्च के महीने की रात्रिकालीन प्रकृति का वर्णन किस प्रकार किया गया है?
(ख) रात का सन्नाटा किसके कारण भंग हो रहा था?
(ग) सफिया के कौन से सगे-संबंधी पाकिस्तान में रहते थे?
(घ) सफिया के भतीजे-भतीजियों ने उससे भोलेपन में क्या पूछा?
(ङ) सफिया ने कस्टम के बारे में क्या कहा है?
उत्तर:
(क) मार्च के महीने में रात्रिकालीन प्रकृति का वर्णन करते हुए लेखिका ने कहा है कि खिड़की की जाली से सुहानी हवा आ रही थी। बाहर स्वच्छ चाँदनी थी। खिड़की के बाहर चम्पा का एक सघन वृक्ष था, जिसके पत्तों का प्रतिबिम्ब सामने की दीवार पर पड़ रहा था।

(ख) कभी किसी तरफ से दबी खाँसी की आवाज़, दूर से कुत्ते का भौंकना एवं रोना और चौकीदार की सीटी की आवाज़ रात के सन्नाटे को भंग कर रही थी।

(ग) पाकिस्तान में सफिया के तीन सगे भाई थे। असंख्य प्रिय मित्र थे, उसके पिता की कब्र थी और छोटे-छोटे भतीजे-भतीजियाँ थीं।

(घ) भतीजे-भतीजियों ने भोलेपन से सफ़िया से पूछा कि फूफीजान आप हिंदुस्तान में क्यों रहती हैं, जहाँ हम लोग नहीं आ सकते।

(ङ) सफ़िया का कहना है कि उसके सगे-संबंधियों तथा उसके बीच एक सीमा बनी थी। जहाँ नोकदार लोहे की छड़ों का जंगला लगा था, इसी को कस्टम कहा जाता था।

[6] जब उसका सामान कस्टम पर जाँच के लिए बाहर निकाला जाने लगा तो उसे एक झिरझिरी-सी आई और एकदम से उसने फैसला किया कि मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं जाएगा, नमक कस्टमवालों को दिखाएगी वह। उसने जल्दी से पुड़िया निकाली और हैंडबैग में रख ली, जिसमें उसका पैसों का पर्स और पासपोर्ट आदि थे। जब सामान कस्टम से होकर रेल की तरफ चला तो वह एक कस्टम अफसर की तरफ बढ़ी। ज्यादातर मेजें खाली हो चुकी थीं। एक-दो पर इक्का-दुक्का सामान रखा था। वहीं एक साहब खड़े थे लंबा कद, दुबला-पतला जिस्म, खिचड़ी बाल, आँखों पर ऐनक। वे कस्टम अफसर की वर्दी पहने तो थे मगर उन पर वह कुछ अँच नहीं रही थी। सफिया कुछ हिचकिचाकर बोली, “मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ।” [पृष्ठ-135]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित पाठ ‘नमक’ में से लिया गया है। इसकी लेखिका रज़िया सज्जाद ज़हीर हैं। ‘नमक’ लेखिका की उल्लेखनीय कहानी है, जिसमें लेखिका ने भारत-पाक विभाजन के बाद दोनों देशों के विस्थापित तथा पुनर्वासित लोगों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया है। विस्थापित होकर भारत में रहने वाली सिख बीबी लाहौर को अपना वतन मानती है और वहाँ से नमक मँगवाना चाहती है, परंतु पाकिस्तान से नमक लाना गैर-कानूनी है। यहाँ सफ़िया ने उस स्थिति का वर्णन किया, जब उसका सामान कस्टम पर जाँच के लिए बाहर निकाला जा रहा था।

व्याख्या-सफ़िया कहती है कि आखिर वह समय भी आ गया जब उसका सामान कस्टम पर जाँच के लिए बाहर निकाला जा रहा था। उस समय उसके शरीर में एक कम्पन-सा उत्पन्न हो गया। अचानक उसने निर्णय लिया कि प्रेम की इस भेंट को वह चोरी से नहीं ले जाएगी बल्कि वह कस्टम अधिकारियों को यह नमक दिखाकर ले जाएँगी। शीघ्रता से उसने नमक की पुड़िया को कीनुओं की टोकरी से निकाल लिया और हैंडबैग में रख लिया। हैंडबैग में सफिया के पैसों का बटुआ और पासपोर्ट भी था। उसका सामान कस्टम से भारत जाने वाली रेल पर चढ़ाया जाने लगा। तो वह एक सीमा शुल्क अधिकारी की ओर बढ़ने लगी। अधिकतर

मेजें अब खाली हो चुकी थीं। केवल एक-दो मेजों पर थोड़ा-बहुत सामान रखा था। वहीं एक सीमा शुल्क अधिकारी खड़ा था, जिसका कद लंबा था, परंतु शरीर दुबला-पतला था। उसके बाल आधे काले और आधे सफेद थे। उसने आँखों पर ऐनक पहन रखी थी। यद्यपि उसने शरीर पर सीमा शुल्क अधिकारी की वर्दी पहन रखी थी, परंतु वह वर्दी उसके शरीर के अनुकूल नहीं थी। सफ़िया ने थोड़ा सा साहस करके हिचकिचाते हुए कहा कि मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने सफ़िया की मनःस्थिति का प्रभावशाली वर्णन किया है, जो यह निर्णय लेती है कि वह इस प्रेम रूपी भेंट को चोरी से नहीं ले जाएगी बल्कि कस्टमवालों को दिखाकर ले जाएगी।
  2. सहज, सरल, सामान्य हिंदुस्तानी भाषा का प्रयोग है जिसमें उर्दू तथा अंग्रेज़ी शब्दों का मिश्रण किया गया है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जब सफिया का सामान कस्टम पर जाँच के लिए बाहर निकाला गया तो उसने क्या निर्णय लिया?
(ख) जब सफिया का सामान कस्टम से होकर रेल की तरफ जा रहा था तो सफिया ने क्या किया?
(ग) सफिया ने कस्टम अधिकारी का वर्णन किस प्रकार किया है?
(घ) सफिया कस्टम अधिकारी के आगे हिचकिचाकर क्यों बोली?
उत्तर:
(क) सफ़िया ने यह निर्णय लिया कि वह प्रेम की भेंट नमक को चोरी से बाहर नहीं ले जाएगी, बल्कि वह कस्टमवालों को नमक दिखाएगी। इसलिए उसने नमक की पुड़िया निकालकर अपने हैंडबैग में रख ली।

(ख) जब सफ़िया का सामान कस्टम से रेल की तरफ जा रहा था तो वह एक कस्टम अधिकारी की ओर बढ़ी।

(ग) सफ़िया ने लिखा है कि कस्टम अधिकारी का कद लंबा था, परंतु उसका शरीर दुबला-पतला था। सिर के बाल खिचड़ी थे और आँखों पर ऐनक लगा रखी थी। भले ही उसने कस्टम अधिकारी की वर्दी पहन रखी थी पर वह उस पर जच नहीं रही थी।

(घ) क्योंकि सफिया को यह डर था कि उसके पास नमक की पुड़िया है जिसे पाकिस्तान से भारत ले जाने की आज्ञा नहीं थी। इसलिए उसने हिचकिचाकर कस्टम अधिकारी से बात की।

[7] सफ़िया ने हैंडबैग मेज़ पर रख दिया और नमक की पुड़िया निकालकर उनके सामने रख दी और फिर आहिस्ता-आहिस्ता रुक-रुक कर उनको सब कुछ बता दिया। उन्होंने पुड़िया को धीरे से अपनी तरफ सरकाना शुरू किया। जब सफिया की बात खत्म हो गई तब उन्होंने पुड़िया को दोनों हाथों में उठाया, अच्छी तरह लपेटा और खुद सफिया के बैग में रख दिया। बैग सफिया को देते हुए बोले, “मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।” वह चलने लगी तो वे भी खड़े हो गए और कहने लगे, “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।” [पृष्ठ-135]

प्रसंग -प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘नमक’ में से लिया गया है। इसकी लेखिका रज़िया सज्जाद ज़हीर हैं। ‘नमक’ लेखिका की एक उल्लेखनीय कहानी है, जिसमें लेखिका ने भारत-पाक विभाजन के बाद दोनों देशों के विस्थापित तथा पुनर्वासित लोगों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया है। विस्थापित होकर भारत में रहने वाली सिख बीबी लाहौर को अपना वतन मानती है और वहाँ से नमक मँगवाना चाहती है, परंतु पाकिस्तान से नमक मँगवाना गैर-कानूनी है। यहाँ लेखिका ने सफ़िया और कस्टम अधिकारी के बीच की बात का वर्णन किया है, कि प्रेम का तोहफा कभी सीमाओं की परवाह नहीं करता।।

व्याख्या-सफ़िया ने हैंडबैग कस्टम अधिकारी की मेज़ पर रख दिया और उसमें से नमक की पुड़िया निकालकर अफसर के सामने रख दी। तत्पश्चात् उसने डरते-डरते सब-कुछ बता दिया। कस्टम अधिकारी ने पुड़िया को धीरे से अपनी तरफ सरकाना आरंभ कर दिया। जब सफ़िया सारी बात कह चुकी तब कस्टम अधिकारी ने नमक की पुड़िया को अपने हाथों में ले लिया और ठीक से कागज में लपेट लिया। उसने स्वयं नमक की पुड़िया सफिया के बैग में रख दी और कहा कि प्यार सीमा शुल्क से इस प्रकार गुज़र जाता है कि कानून को पता भी नहीं चलता और कानून आश्चर्यचकित हो जाता है।

जब सफ़िया वहाँ से चलने लगी तो सीमा शुल्क अधिकारी भी खड़ा हो गया और कहता है कि दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहना और जब उस सिख बीबी को नमक देने लगो तो मेरी तरफ से कहना कि लाहौर अभी भी उनका वतन है और दिल्ली मेरा वतन है। आज जो स्थिति बनी हुई है वह भी धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी। एक बार पुनः पाकिस्तान और भारत के संबंध सुधर जाएँगे।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने यह स्पष्ट किया है कि प्रेम-मुहब्बत की भेंट सीमाओं की परवाह नहीं करती।
  2. लेखिका ने कस्टम अधिकारी के माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है, यदि भारत-पाकिस्तान के लोगों में स्नेह-प्रेम रहेगा तो भारत-पाक संबंधों में सुधार आएगा।
  3. सहज, सरल बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग है। कई जगह उर्दू व अंग्रेज़ी शब्दों का मिश्रण है।
  4. वाक्य-विन्यास बड़ा ही सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) सफिया ने नमक की पुड़िया कस्टम अधिकारी के सामने क्यों रखी?
(ख) कस्टम अधिकारी किस देश का था और उसने नमक की पुड़िया सफिया को क्यों लौटा दी?
(ग) ‘मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कस्टम देखता रह जाता है’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) कस्टम अधिकारी ने सफिया को क्या संदेशा दिया?
(ङ) कस्टम अधिकारी किस आशा पर सब कुछ ठीक होने की बात कहता है?
उत्तर:
(क) सफ़िया प्रेम की भेंट नमक की पुड़िया को चोरी से भारत नहीं ले जाना चाहती थी, बल्कि वह कस्टम अधिकारी को दिखाकर ले जाना चाहती थी, इसलिए उसने वह पुड़िया कस्टम अधिकारी के सामने रख दी।

(ख) कस्टम अधिकारी पाकिस्तान का निवासी था, परंतु मूलतः वह दिल्ली का था। उसने नमक की पुड़िया सफिया को इसलिए लौटा दी, क्योंकि वह प्यार की भेंट थी। वह अधिकारी प्रेम-प्यार को फलते-फूलते देखना चाहता था।

(ग) कस्टम अधिकारी के कहने का भाव यह है कि प्रेम-प्यार की भेंट पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं चलती और न ही अधिकारी उसकी जाँच करते हैं बल्कि वे प्रेम की भेंट को प्रेमपूर्वक भिजवा देते हैं। यही कारण है कि कानून को इसका पता नहीं चलता।

(घ) कस्टम अधिकारी ने सफिया से कहा कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहना और सिख बीबी को नमक की पुड़िया देते समय कहना कि लाहौर अब भी उनका वतन है और मेरा वतन दिल्ली है। यदि इस प्रकार की मानसिकता भारत वासियों तथा पाकिस्तान में बनी रहेगी तो भारत-पाक संबंध एक दिन सुधर जाएंगे।

(ङ) कस्टम अधिकारी का विचार है कि चाहे भारतवासी हों या पाकिस्तानी हों, दोनों आपस में स्नेह और प्रेम से रहना चाहते हैं। जब लोगों की ऐसी भावना है तो निश्चय ही भारत-पाक सीमाएँ समाप्त हो जाएंगी।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक

[8] प्लेटफार्म पर उसके बहुत से दोस्त, भाई रिश्तेदार थे, हसरत भरी नज़रों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिचे हुए होठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बढ़ी। अटारी में पाकिस्तानी पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक ज़मीन थी, एक ज़बान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबोलहजा और अंदाज़ थे, गालियाँ भी एक ही-सी थीं, जिनसे दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज़ रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं। [पृष्ठ-135-136]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित पाठ ‘नमक’ में से लिया गया है। इसकी लेखिका रज़िया सज्जाद जहीर हैं। ‘नमक’ लेखिका की एक उल्लेखनीय कहानी है, जिसमें उन्होंने भारत-पाक विभाजन के बाद दोनों देशों के विस्थापित तथा पुनर्वासित लोगों की भावनाओं का मार्मिक चित्रण किया है। इसमें विस्थापित होकर भारत में आई सिख बीबी लाहौर को अपना वतन मानती है और वहाँ से नमक मँगवाना चाहती है, परंतु पाकिस्तान से नमक मँगवाना गैर-कानूनी है। यहाँ लेखिका ने रेलवे स्टेशन के उस प्लेटफार्म का वर्णन किया है जो पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है।

व्याख्या-लेखिका कहती है कि सफ़िया के बहुत से दोस्त, भाई तथा सगे-संबंधी प्रेमपूर्वक दृष्टि से उसे देख रहे थे। कुछ लोग आँसू बहा रहे थे, कुछ ठंडी आँहें भरकर उसे विदाई दे रहे थे। कुछ लोग अपने होठों को भींचकर आँसुओं को रोकने का प्रयास कर रहे थे। रेलगाड़ी इन सब लोगों के बीच से गुजरकर भारत-पाक सीमा की तरफ बढ़ने लगी। अटारी स्टेशन आते ही पाकिस्तान पुलिस व उनके अधिकारी रेलगाड़ी से उतर गए और हिंदुस्तानी अधिकारी उस गाड़ी में चढ़ गए।

उस समय यह पता ही नहीं चल रहा था कि किस स्थान पर लाहौर खत्म हुआ और किस स्थान से अमृतसर शुरू हुआ। कहने का भाव यह है कि भारत-पाकिस्तान की ज़मीन वहाँ की प्रकृति और वातावरण सब कुछ एक जैसा था। लेखिका कहती भी है-एक ज़मीन थी और पाकिस्तानियों तथा भारतवासियों की एक ही जुबान थी। एक जैसी शक्लें थीं, एक ही जैसी वेशभूषा थी। यही नहीं उनकी बातचीत करने का ढंग एक जैसा था। हैरानी की बात तो यह है कि गालियाँ भी एक जैसी थीं जो दोनों एक-दूसरे को बड़े प्यार से निकाल रहे थे। कठिनाई केवल इस बात की थी कि दोनों तरफ के अधिकारियों के हाथों में बंदूकें थीं, जो लोगों में भय उत्पन्न करती थीं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखिका ने भारत और पाकिस्तान की सीमा का बड़ा ही भावनापूर्ण दृश्य प्रस्तुत किया है।
  2. लेखिका ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारतवासियों और पाकिस्तानियों की शक्लें, वेशभूषा, बातचीत करने का ढंग भी एक जैसा है।
  3. सहज, सरल, बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग है। कहीं-कहीं पर उर्दू व अंग्रेजी शब्दों का मिश्रण भी मिलता है।
  4. वाक्य-विन्यास सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) सरहद की ओर बढ़ते समय प्लेटफार्म का दृश्य लिखिए। (ख) अटारी क्या है? वहाँ पर पुलिस में परिवर्तन क्यों हुआ? (ग) लाहौर और अमृतसर में अंतर क्यों प्रतीत नहीं हुआ? (घ) भारत और पाकिस्तान के निवासियों के बीच मुश्किल क्या है?
उत्तर:
(क) जब सफ़िया भारत-पाक सीमा की ओर बढ़ रही थी, तो वहाँ उसके अनेक मित्र और सगे-संबंधी थे। कोई उसे हसरत भरी नज़रों से देख रहा था, कोई रो रहा था और कोई आँखों के आँसुओं को रोकने के लिए अपने होंठ भींच रहा था। सम्पूर्ण वातावरण भावनापूर्ण था। सफ़िया की विदाई के कारण सभी के दिल भर आए थे।

(ख) अटारी एक स्टेशन का नाम है जहाँ से भारत की सीमा आरंभ होती है। यहाँ पर पाकिस्तानी पुलिस उतर जाती है और भारतीय पुलिस सवार हो जाती है। इसी प्रकार पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन से भारतीय पुलिस उतर जाती है और पाकिस्तानी पुलिस सवार हो जाती है।

(ग) सफ़िया को लाहौर और अमृतसर में कोई अंतर प्रतीत नहीं हुआ। कारण यह था कि दोनों नगरों के लोगों की भाषा, ज़मीन, वेश-भूषा, बोलचाल, हावभाव तथा गालियाँ देने का ढंग लगभग एक जैसा था। दोनों में लोग एक-दूसरे से मिलकर बात-चीत कर रहे थे।

(घ) भारत और पाकिस्तान के निवासियों के बीच सबसे बड़ी मुश्किल है-दोनों देशों का विभाजन। जिसे लोग नहीं चाहते थे। राजनीतिक कारणों से अब दोनों अलग होकर एक-दूसरे के दुश्मन बन गए हैं। दोनों ओर की सेनाएँ हमेशा बंदूकें ताने रहती हैं।

नमक Summary in Hindi

नमक लेखिका-परिचय

प्रश्न-
रज़िया सज्जाद ज़हीर का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
रज़िया सज्जाद ज़हीर का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचयरज़िया सज्जाद जहीर का जन्म 15 फरवरी, 1917 को राजस्थान के अजमेर नगर में हुआ। उन्होंने बी०ए० तक की शिक्षा घर पर रहते हुए प्राप्त की। विवाह के बाद उन्होंने उर्दू में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1947 में वे अजमेर छोड़कर लखनऊ चली आईं और वहाँ के करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज की प्राध्यापिका के रूप में पढ़ाने लगी। सन् 1965 में उनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई। 18 दिसम्बर, 1979 में उनका देहांत हो गया। रज़िया सज्जाद ज़हीर को सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार से नवाज़ा गया। बाद में उन्हें उर्दू अकादेमी ‘उत्तर प्रदेश’ से भी सम्मानित किया गया। यही नहीं, उन्हें अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड भी प्राप्त हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-उनकी एकमात्र रचना का नाम है ‘ज़र्द गुलाब’। यह एक उर्दू कहानी-संग्रह है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ मूलतः रज़िया सज्जाद ज़हीर उर्दू की प्रसिद्ध लेखिका हैं। उन्हें महिला कहानीकार कहना ही उचित होगा, क्योंकि उन्होंने केवल कहानियाँ ही लिखी हैं। उनके पास एक प्राध्यापिका का कोमल हृदय है। अतः उनकी कहानियाँ जीवन के कोमलपक्ष का उद्घाटन करती हैं। कथावस्तु, पात्र चरित्र-चित्रण, देशकाल, संवाद, भाषा-शैली तथा उद्देश्य की दृष्टि से उनकी कहानियाँ सफल कही जा सकती हैं। संवेदनशीलता उनकी कहानियों की प्रमुख विशेषता है। उन्हें हम मानवतावादी लेखिका भी कह सकते हैं।

रज़िया सज्जाद ज़हीर की कहानियों में जहाँ एक ओर सामाजिक सद्भाव और धार्मिक सहिष्णुता है, वहाँ दूसरी ओर आधुनिक संदर्भो में बदलते हुए पारिवारिक मूल्यों का वर्णन भी है। उनकी कहानियों में सामाजिक यथार्थ और मानवीय गुणों का सहज समन्वय अपनी कहानियों में मानवीय संवेदनाओं पर करारा व्यंग्य किया है। कहीं-कहीं वे मानवीय पीडाओं का सजीव चित्र प्रस्तुत करती हैं।

4. भाषा शैली-रज़िया सज्जाद ज़हीर ने मूलतः उर्दू भाषा में ही कहानियाँ लिखी हैं, परंतु उनकी उर्दू भाषा भी सहज, सरल और बोधगम्य है, जिसमें अरबी तथा फारसी शब्दों का खड़ी बोली हिंदी के साथ मिश्रण किया गया है। फिर भी उन्होंने अपनी भाषा में उर्दू शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है। उनकी कुछ कहानियाँ देवनागरी लिपि में लिखी जा चुकी हैं और कुछ कहानियों का हिंदी में अनुवाद भी हुआ है। फिर भी उनकी भाषा सहज, सरल, तथा प्रवाहमयी कही जा सकती है। कहीं-कहीं उन्होंने मुहावरों तथा लोकोक्तियों का भी खुलकर प्रयोग किया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 16 नमक

नमक पाठ का सार

प्रश्न-
रज़िया सज्जाद जहीर द्वारा रचित कहानी “नमक” का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी भारत-पाक विभाजन से उत्पन्न दुष्परिणामों की कहानी है। इस विभाजन के कारण दोनों देशों के लोग विस्थापित हुए तथा पुनर्वासित भी हुए। उनकी धार्मिक भावनाओं का यहाँ वर्णन किया गया है। पाकिस्तान से विस्थापित होने वाली एक सिख बीबी लाहौर को अब भी अपना वतन मानती है। भेंट के रूप में वह लाहौर का नमक पाना चाहती हैं। इसी प्रकार एक पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी देहली को अपना वतन कहता है, लेकिन भारतीय कस्टम अधिकारी सुनीलदास गुप्त ढाका को अपना वतन मानता हैं। अपने वतनों से विस्थापित होकर ये लोग अपने मूल जन्म स्थान को भुला नहीं पाते। रज़िया सज्जाद जहीर का कहना है कि एक ऐसा समय भी आएगा जब इन राजनीतिक सीमाओं का कोई महत्त्व नहीं रहेगा। लेखिका की आशा का पूरा होना भारत-पाकिस्तान तथा बांग्लादेश तीनों देशों के लिए कल्याणकारी है। एक बार सफिया अपने पड़ोसी सिख परिवार के घर कीर्तन में भाग लेने के लिए गई थी। वहाँ एक सिख बीबी को देखकर वह अपनी माँ को याद करने लगी, क्योंकि उनकी शक्ल-सूरत सफ़िया की माँ से मिलती थी।

सिख बीबी ने सफिया के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करनी चाही। तब घर की बहू ने बताया कि सफिया मुसलमान है और वह कल अपने भाई से मिलने लाहौर जा रही है। इस पर सिख बीबी ने कहा कि लाहौर तो उसका वतन है। आज भी उसे वहाँ के लोग, खाना-पीना, उनकी जिंदादिली याद है। यह कहते-कहते सिख बीबी की आँखों में आँसू आ गए। सफिया ने उसे सांत्वना दी और कहा कि क्या वह लाहौर से कोई सौगात मँगवाना चाहती है। तब सिख बीबी ने धीरे से लाहौरी नमक की इच्छा व्यक्त की। सफिया लाहौर में पन्द्रह दिनों तक रही। उसके रिशतेदारों ने उसकी खूब खातिरदारी की और उसे पता भी नहीं चला कि पन्द्रह दिन कैसे बीत गए हैं। चलते समय मित्रों और संबंधियों ने सफ़िया को अनेक उपहार दिए। उसने सिख बीबी के लिए एक सेर लाहौरी नमक लिया और सामान की पैकिंग करने लगी, परंतु पाकिस्तान से भारत में नमक ले जाना कानून के विरुद्ध था। अतः सफ़िया ने अपने भाई जो पुलिस अफसर था से सलाह की। भाई ने कहा कि नमक ले जाना कानून के विरुद्ध है। कस्टम वाले तुम्हारे सारे सामान की तालाशी लेंगे और नमक पकड़ा जाएगा, परंतु सफ़िया ने कहा कि वह उस सिख बीबी के लिए सौगात ले जाना चाहती है, जिसकी शक्ल उसकी माँ से मिलती-जुलती है। परंतु सफिया ने अपने भाई से कहा कि वह छिपा कर नहीं बल्कि दिखाकर नमक ले जाएगी। भाई ने पुनः कहा कि नमक ले जाना संभव नहीं है, इससे आपकी बदनामी अवश्य होगी। यह सुनकर सफ़िया रोने लगी।

रात होने पर सफिया सामान की पैकिंग करने लगी। सारा सामान सूटकेस तथा बिस्तरबंद में आ गया था। शेष बचे कीनुओं को उसने टोकरी में डाल दिया तथा उसके नीचे नमक की पुड़िया छुपा दी। लाहौर आते समय उसने देखा था कि भारत से आने वाले केले ला रहे थे और पाकिस्तान से जाने वाले कीनू ले जा रहे थे। कस्टमवाले इन फलों की जाँच नहीं कर रहे थे। यह सब काम करके सफ़िया सो गई। सपने में वह लाहौर के घर की सुंदरता, वहाँ के परिवेश, भाई तथा मित्रों को देखने लगी। उसे अपनी भतीजियों की भोली-भोली बातें याद आ रही थीं। सपने में उसने सिख बीबी के आँसू, इकबाल का मकबरा तथा लाहौर का किला भी देखा, परंतु अचानक उसकी आँख खुल गई, क्योंकि उसका हाथ कीनू की टोकरी पर लग गया था। उसे देते समय उसके मित्र ने कहा था कि यह पाकिस्तान और भारत की एकता का मेवा है। स्टेशन पर फर्स्ट क्लास के वेटिंग रूम में बैठी सफ़िया सोचने लगी कि मेरे आसपास कई लोग हैं, परंतु मुझे पता है कि कीनुओं की टोकरी में नीचे नमक की पुड़िया है। उसका सामान अब कस्टमवालों के पास जाँच के लिए जाने लगा। वह थोड़ी घबरा गई उसे थोड़ा-सा कम्पन हआ। तब उसने निर्णय लिया कि प्रेम की सौगात नमक को वह चोरी से नहीं ले जाएगी।

उसने नमक की पुड़िया निकालकर अपने हैंडबैग में रख ली। जब सामान जाँच के बाद रेल की ओर भेजा जाने लगा तो उसने एक कस्टम अधिकारी से इस बारे में चर्चा की। उसने अधिकारी से पूछ लिया था कि वह कहाँ का निवासी है। उसने कहा कि उसका वतन दिल्ली है। आखिर सफ़िया ने नमक की पुड़िया बैग से निकालकर अफसर की मेज पर रख दी और सारी बात बता दी। कस्टम अधिकरी ने स्वयं नमक की पुड़िया को सफ़िया के बैग में रख दिया और कहा “मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।” अंत में उस अधिकारी ने कहा “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।” अंततः गाड़ी भारत की ओर चल पड़ी। अटारी स्टेशन पर पाकिस्तानी पुलिस नीचे उतर गई और हिंदुस्तानी पुलिस चढ़ गई। सफिया सोचने लगी कि कितनी विचित्र बात है कि “एक-सी जुबान, एक-सा लबोलहजा तथा एक-सा अंदाज फिर भी दोनों के हाथों में भरी हुई बंदूकें।” ।

अमृतसर पहुँचने पर भारतीय कस्टम अधिकारी फर्स्ट क्लास वालों की जाँच उनके डिब्बे के सामने ही करने लगे। सफ़िया की जाँच हो चुकी थी, परंतु सफिया ने अपना हैंडबैग खोलकर कहा कि मेरे पास थोड़ा लाहौरी नमक है तथा सिख बीबी की सारी कहानी सुना दी। अधिकारी ने सफिया की बात को ध्यान से सुना। फिर उसे एक तरफ आने के लिए कहा। उसने सफिया के सामान का ध्यान रखने के लिए एक कर्मचारी को आदेश दिया। वह सफ़िया को प्लेटफार्म के एक कमरे में ले गया। उसे आदर-पूर्वक बिठाया और चाय पिलाई। फिर एक पुस्तक उसे दिखाई, जिस पर लिखा था-“शमसुलइसलाम की तरफ से सुनील दास गुप्त को प्यार के साथ, ढाका 1946″। उसने यह भी बताया कि उसका वतन ढाका है। बचपन में वह अपने मित्र के साथ नज़रुल और टैगोर दोनों को पढ़ते थे। इस प्रकार सुनील दास ढाका की यादों में खो गया-“वैसे तो डाभ कलकत्ता में भी होता है जैसे नमक पर हमारे यहाँ के डाभ की क्या बात है! हमारी जमीन, हमारे पानी का मज़ा ही कुछ और है!” उसने पुड़िया सफ़िया के बैग में डाल दी और आगे-आगे चलने लगा। सफिया सोचने लगी-“किसका वतन कहाँ है वह जो कस्टम के इस तरफ है या उस तरफ!

कठिन शब्दों के अर्थ

कदर = प्रकार। ज़िस्म = शरीर। नेकी = भलाई। मुहब्बत = प्यार। रहमदिली = दयालुता। मुहर्रम = मुसलमानों का त्योहार। उम्दा = अच्छा। नफीस = सुरुचिपूर्ण। शौकीन = रसिया। जिन्दादिली = उत्साह और जोश। तस्वीर = मूर्ति। वतन = देश। साडा = हमारा । सलाम = नमस्कार । दुआ = प्रार्थना, शुभकामना। रुखसत = विदा। सौगात = भेंट। आहिस्ता = धीरे। जिमखाना = व्यायामशाला। खातिरदारी = मेहमान नवाजी। परदेसी = विदेशी। अज़ीज़ = प्रिय। सेर = एक किलो से थोड़ा कम। गैरकानूनी = कानून के विरुद्ध। बखरा = बंटवारा। ज़िक्र = चर्चा। अंदाज़ = तरीका। बाजी = बहन जी, दीदी। कस्टम = सीमा शुल्क। चिंदी-चिंदी बिखेरना = बुरी तरह से वस्तुओं को उलटना-पलटना। हुकूमत = सरकार। मुरौवत = मानवता। शायर = कवि। तोहफा = भेंट। चंद = थोड़ा। स्मगल = चोरी । ब्लैक मार्केट = काला बाज़ारी । बहस = वाद-विवाद । अदीब= साहित्यकार। बदनामी = अपयश। बेहतर = अच्छा। रवाना होना = विदा होना। व्यस्त = काम में लगा होना। पैकिंग = सामान बाँधना। सिमट = सहेज। नाजुक = कोमल । हावी होना = भारी पड़ना। मायने = मतलब। वक्त = समय। तह = नीचे की सतह । कब्र = मुर्दा दफनाने का स्थान। शहजादा = राजकुमार। रान = जाँघ । खौफनाक = भयानक। सरहद = सीमा। तरकीब = युक्ति। आश्वस्त = भरोसा होना। दोहर = चादर। दरख्त = वृक्ष। अक्स = प्रतिमूर्ति । लहकना = लहराना । आहट = हल्की-सी आवाज़। बेशुमार = अत्यधिक। मासूमियत = भोलापन। नारंगी = संतरिया रंग। दूब = घास। लबालब = ऊपर तक। वेटिंग रूम = प्रतीक्षा कक्ष। निगाह = नज़र। झिरझरी = सिहरन, कंपन। पासपोर्ट = विदेश जाने का पहचान-पत्र। खिचड़ी बाल = आधे सफेद आधे काले बाल। गौर = ध्यान। फरमाइए = कहिए। खातून = कुलीन नारी। रफ्ता-रफ्ता = धीरे-धीरे। हसरत = कामना। जुबान = भाषा। सूरत = शक्ल । लिबास = पहनावा । लबोलहजा = बोलचाल का तरीका। अंदाज = ढंग। नवाजना = सम्मानित करना। पैर तले की ज़मीन खिसकना = घबरा जाना। सफा = पृष्ठ। टाइटल = शीर्षक। डिवीजन = विभाजन। सालगिरह = वर्षगाँठ। डाभ = कच्चा नारिथल। फन = गर्व।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

HBSE 12th Class Hindi रुबाइयाँ, गज़ल Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?
उत्तर:
राखी एक पवित्र धागा है। इसे बहन अपने भाई की कलाई पर बाँधती है। भले ही यह कच्चा धागा है, परंतु इसका बंधन बहुत ही पक्का है। इसकी पावनता मन की प्रत्येक छटा को चीरकर चमकने लगती है। इसका आकर्षण बिजली जैसा है। जिस प्रकार आकाश में चमकने वाली बिजली की हम उपेक्षा नहीं कर सकते, उसी प्रकार राखी के धागे की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भले ही भाई-बहन एक-दूसरे से दूर रहते हों। परंतु राखी की पावन याद एक-दूसरे की याद दिलाती रहती है। राखी का यह पर्व वर्षा की ऋतु (सावन) में आता है। इसलिए कवि ने इस ऋतु को प्रभावशाली बनाने के लिए राखी को उपादान बनाया है। फलतः कवि की भाव-व्यंजना अधिक मनोरम और प्रभावशाली बन पड़ी है।

प्रश्न 2.
खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?
उत्तर:
‘खुद का परदा’ खोलना मुहावरे का प्रयोग कवि ने उन लोगों के लिए किया है जो दूसरों की निंदा करते हैं अथवा बुराई करते हैं। सच्चाई तो यह है कि ऐसे लोग अपने घटियापन का उद्घाटन करते हैं। इससे हमें यह पता चल जाता है कि निंदा करने वाले लोग कैसे हैं और कितने पानी में हैं। बिना बताए ये लोग अपने चरित्र के बारे में हमें बता देते हैं। कवि यह कहना चाहता है कि निंदा करना बुरी बात है। फिर भी कबीरदास ने कहा है
निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय ।
बिन साबुन पानी बिना निर्मल होत सुभाय।

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प्रश्न 3.
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तना-तनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
किस्मत और मानव का गहरा संबंध है। सर्वप्रथम हम इस बात पर चर्चा करते हैं कि किस्मत हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। हम और किस्मत एक-दूसरे के पूरक हैं। विधाता ने जो कुछ हमारे भाग्य में लिखा है, वही प्राप्त होगा। अतः किस्मत पर रोना व उसे कोसना व्यर्थ है। हमारा कर्तव्य है कि हम किस्मत की अधिक चिंता न करके अपना कर्म और परिश्रम करें। परिश्रम करने से हमें जीवन में सफलता अवश्य मिलती है।

चर्चा का एक-दूसरा रूप यह भी हो सकता है कि कुछ लोग अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं। उनका यह कहना है कि मेहनत करने पर भी उन्हें पूरा फल नहीं मिलता। इसी कारण शायर कहता है कि हम किस्मत को रो लेते हैं और किस्मत हमें रुलाती है। कवि घोर निराशा से भरा हुआ है। इसलिए वह अपनी किस्मत को कोस रहा है।

टिप्पणी करें

(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।
(ख) सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व।
उत्तर:
(क) गोदी का चाँद शिशु के लिए प्रयुक्त हुआ है। प्रत्येक माँ के लिए उसकी संतान ही अनमोल है। वह अपने पुत्र को देखकर प्रसन्न होती है और उसी के सहारे जिंदा रहती है। जिस प्रकार आकाश में चाँद सुंदर लगता है, उसी प्रकार माँ को अपना शिशु सुंदर लगता है। इसीलिए शिशु को गोदी का चाँद कहा गया है। नन्हा अबोध शिशु जब आकाश में चाँद को देखता है तो वह अत्यधिक प्रसन्न होकर उसे पाना चाहता है। सूरदास के कृष्ण और तुलसीदास के राम चाँद के लिए हठ करते हुए वर्णित किए गए हैं। सूर का कृष्ण अपनी माता यशोदा से कहता है
मैया मैं तो चंद खिलौना लैहों।
लोरी में भी चाँद का जिक्र किया गया है “चंदा मामा दूर के” गीत द्वारा कवि ने अबोध बच्चों को चाँद की ओर आकर्षित किया है। लोक गीतों.तथा कविताओं में चाँद की बार-बार चर्चा की गई है। इसलिए गोदी के चाँद और गगन के चाँद का गहरा रिश्ता है।

(ख) रक्षाबंधन का पर्व सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सावन मास में अकसर घने काले बादल आकाश को ढक लेते हैं, बिजली बार-बार चमकती है और मूसलाधार वर्षा होती है। अतः कवि ने सावन की घटाओं से रक्षाबंधन को जोड़कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। सावन के महीने में विवाहित युवतियाँ अपने-अपने मायके चली जाती हैं। वे अपनी सखी-सहेलियों से मिलकर झूला झूलती हैं और गीत गाती हैं। पूर्णिमा के दिन अपने भाइयों को राखी बाँधती हैं। इसी ऋतु में तीज का त्योहार भी आता है। इसलिए कवि ने रक्षाबंधन के पर्व को सावन की घटाओं के साथ जोड़कर एक सुंदर और खुशनुमा वातावरण का निर्माण किया है।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोगों को छाँटिए।
उत्तर:
फ़िराक गोरखपुरी ने अपनी कविताओं में हिंदी, उर्दू तथा देशज शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है-
हिंदी के प्रयोग-
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी
उर्दू के प्रयोग-
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
देख आईने में चाँद उतर आया है।
लोक भाषा के प्रयोग-
रह रह के हवा में जो लोका देती है
इसी प्रकार कवि ने आँगन, गोद, गूंज, दीवाली, निर्मल, रूपवती, नर्म आदि हिंदी के शब्दों का प्रयोग किया है। जिदयाया, आईना, शाम, सुबह, होशो-हवास, सौदा, कीमत, अदा, दीवाना आदि उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार पे, घुटनियों, हई, दे के आदि देशज शब्दों का प्रयोग किया है।

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प्रश्न 2.
फिराक ने सुनो हो, रक्खो हो आदि शब्द मीर की शायरी के तर्ज पर इस्तेमाल किए हैं। ऐसी ही मीर की कुछ गज़लें ढूँढ़ कर लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें। यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

आपसदारी
कविता में एक भाव, एक विचार होते हुए भी उसका अंदाजे बयाँ या भाषा के साथ उसका बर्ताव अलग-अलग रूप में अभिव्यक्ति पाता है। इस बात को ध्यान रखते हुए नीचे दी गई कविताओं को पढ़िए और दी गई फिराक की गजल/रुबाई में से समानार्थी पंक्तियाँ ढूँदिए।
(क) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों। -सूरदास
(ख) वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर आँखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान -सुमित्रानंदन पंत
(ग) सीस उतारे भुईं धरे तब मिलिहैं करतार -कबीर
उत्तर:
(क) आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।

(ख) ये कीमत भी अदा करे हैं
हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले
दीवाना भी हो ले हैं।

(ग) तेरे गम का पासे-अदब है
कुछ दुनिया का ख्याल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे
चुपके-चुपके रो ले हैं

HBSE 12th Class Hindi रुबाइयाँ, गज़ल Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न-
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
1. आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
उत्तर:

  1. इस पद्यांश में कवि ने माँ द्वारा अपने बच्चे को झूला झुलाने और उछाल-उछालकर खिलाने का सुंदर वर्णन किया है।
  2. बच्चे को ‘चाँद का टुकड़ा’ कहना माँ के प्यार को व्यंजित करता है।
  3. रह-रह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है तथा रूपक अलंकार की भी योजना हुई है।
  4. ‘लोका देना’ में ग्रामीण संस्कृति का सुंदर प्रयोग है।
  5. संपूर्ण पद में दृश्य-बिंब की सुंदर योजना हुई है।
  6. सहज, सरल तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  7. शब्द-चयन उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. वात्सल्य रस का परिपाक है तथा प्रसाद गुण है।

2. बालक तो हई चाँद पै ललचाया है।
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने एक बालक की प्रवृत्ति का सहज और स्वाभाविक वर्णन किया है।
  2. आईने में चाँद उतर आना ग्रामीण संस्कृति का द्योतक है।
  3. प्रसाद गुण तथा वात्सल्य रस का परिपाक हुआ है।
  4. हिंदी एवं उर्दू मिश्रित भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।

3. दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने दीवाली की जगमग, साज-सज्जा तथा रंग-रोगन आदि का प्रभावशाली वर्णन किया है।
  2. संपूर्ण पद में दृश्य-बिंब की योजना दर्शनीय है।
  3. यहाँ माँ की ममता तथा कोमलता का सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया गया है।
  4. सहज एवं सरल हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें लोक-प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  5. शब्द-चयन उचित तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

4. नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं
या उड जाने को रंगो-ब गलशन में पर तोले हैं।
उत्तर:

  1. इस शेर में कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है।
  2. संदेह अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. रस और सुगंध में मानवीय भावना का आरोप है, अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है।
  4. संपूर्ण शेर में उर्दू, फारसी तथा हिंदी का सुंदर मिश्रण देखा जा सकता है।
  5. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

5. जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं
उत्तर:

  1. प्रस्तुत शेर में कवि ने निंदकों को आड़े हाथों लिया है।
  2. कवि का विचार है कि निंदा करने वाले ईर्ष्यालु होने के साथ-साथ बुरे लोग होते हैं।
  3. इस शेर की भाषा अत्यंत सरल और सहज है।
  4. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. भाव प्रधान वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

6. सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन गज़लों के परदों में तो ‘मीर’ की गज़लें बोले हैं
उत्तर:

  1. इस शेर में कवि अपनी शायरी पर मुग्ध दिखाई देता है। अतः वह अपनी कविता को मीर जैसी कविता बताता है।
  2. ‘के कैसे’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. उर्दू, फारसी और हिंदी तीनों भाषाओं का मिश्रित प्रयोग है।
  4. भाव प्रधान वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. उर्दू और फारसी के शेर छंद का सफल प्रयोग है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
फ़िराक गोरखपुरी ने वात्सल्य का मनोरम और स्वाभाविक वर्णन किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वात्सल्य भाव संसार के सभी प्राणियों में विद्यमान है। यह निर्मल, निश्चल और निःवार्थ प्रेम है। प्रथम रुबाई में कवि ने माँ के पुत्र को चाँद का टुकड़ा कहा है, जिसे लेकर माँ अपने घर के आँगन में खड़ी है। वह बार-बार उसे झुलाती है और हवा में उछालती है और तत्काल उसे पकड़कर अपने गले से लगा लेती है। इस प्रेम-क्रीड़ा में माँ और पुत्र दोनों को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। एक अन्य रुबाई में कवि कहता है कि माँ अपने नन्हें शिशु को नहलाती है। फिर दुलार कर उसके बालों में कंघी करती है। ऐसा करते समय वह अपने पुत्र का मुख निहारती है। वह अपने घुटनों में दबाकर उसे कपड़े पहनाती है। नन्हा शिशु भी माँ के स्नेह को अच्छी प्रकार समझता है और वह प्यार से माँ के मुख को देखता है।

प्रश्न 2.
कवि ने दीवाली के किन पारंपरिक रिवाजों का वर्णन किया है?
उत्तर:
दीवाली हिंदुओं का एक पावन त्योहार है। यह प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इससे पहले लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं। वे घरों को सुंदर बनाने के लिए घरों की लिपाई-पुताई करते हैं और उन्हें सजाते हैं। इस अवसर पर लोग मिठाइयाँ बाँटते हैं और खाते हैं। सायंकाल को दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन सभी लोग सजते-सँवरते हैं। घर में सभी जगह पर दीपक जलाए जाते हैं। माँ अपने शिशु के घरौंदे में भी दीपक जलाती है। कवि ने एक ही रुबाई में दीवाली की सभी परंपराओं का वर्णन करके गागर में सागर भर दिया है।

प्रश्न 3.
रुबाई के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि वात्सल्य और बाल-हठ का गहरा संबंध है।
उत्तर:
माता-पिता का संतान के प्रति गहरा स्नेह होता है। वे बालक की प्रत्येक इच्छा को पूरा करने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी बालक इस स्नेह का अनुचित लाभ उठाने का प्रयास करता है और वह अनुचित वस्तु के लिए हठ कर बैठता है। प्रेम के वशीभूत होकर माता-पिता उसकी इच्छा पूरी करने का प्रयास करते हैं। मान लो बालक गुब्बारा, आइसक्रीम, खिलौना आदि की जिद करता है तो उसकी इच्छा पूरी कर दी जाती है। परंतु यदि बालक चाँद की माँग करे तो उसे कैसे पूरा किया जा सकता है। फिर भी माता-पिता बालक को खुश करने के लिए कोई-न-कोई उपाय निकाल लेते हैं। जैसे किसी थाली में पानी भरकर या कोई दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब दिखाकर उसकी जिद को पूरा करने का प्रयास करते हैं। बच्चा केवल माता-पिता के वात्सल्य के कारण ही इस प्रकार की जिद करता है। वह किसी अन्य से जिद करके कुछ नहीं माँगता। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वात्सल्य और बालहठ का गहरा संबंध है।

प्रश्न 4.
सिद्ध कीजिए कि फ़िराक की गज़ल वियोग श्रृंगार से संबंधित है।
उत्तर:
प्रस्तुत गज़ल में फ़िराक ने अपने वियोग श्रृंगार का सुंदर वर्णन किया है। कवि स्वयं की किस्मत को खराब मानता है क्योंकि उसे प्रिया का प्रेम नहीं मिल सका। प्रेम के कारण ही विवेकशील कवि को भी दीवाना बनना पड़ता है। वह प्रिया की याद में रोता है और आँखों से आँसू बहाता है। इस गज़ल में कवि की विरह-वेदना व्यक्त हुई है। कवि शराब की महफिल में बैठकर भी अपनी प्रेमिका को याद करता है। एक स्थल पर कवि कहता भी है
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं

प्रश्न 5.
कवि की गज़ल में प्रेम की दीवानगी व्यक्त हुई है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
फ़िराक की प्रस्तुत गज़ल में प्रेम की मस्ती और दीवानगी देखी जा सकती है। कवि प्रेम में इतना दीवाना हो चुका है कि वह सूनी रात में भी अपनी प्रिया को याद करता है।
तारे आँखें झपकावें हैं ज़र्रा-ज़र्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं
दीवानगी के कारण कवि को रात का सन्नाटा बोलता हुआ-सा लगता है। कवि स्वीकार करता है कि उसने सोच-समझकर प्रेम की दीवानगी को अपनाया है।
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं।
आरोह (भाग 2) फिराख गोरखपुरी

प्रश्न 6.
फ़िराक की गज़ल में प्रेम और मस्ती का वर्णन हुआ है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
फ़िराक की गज़ल प्रेम और मस्ती की गज़ल है। उनका प्रेम दीवानगी तक पहुँच जाता है। कवि सूनी रातों में अपनी प्रिया को याद करके समय व्यतीत करता है। कवि को लगता है कि रात में प्रकृति का कण-कण सो रहा है। तारे भी आँखें झपका रहे हैं, परंतु कवि कहता है कि सन्नाटा कुछ-कुछ बोलता हुआ लगता है। कवि दीवानगी के कारण ही यह समझता है कि सन्नाटा बोल रहा है, परंतु कवि स्वीकार करता है कि उसने सोच-समझकर ही प्रेम की दीवानगी को स्वीकार किया है।

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प्रश्न 7.
‘गजल’ में निहित कवि की पीड़ा का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
फिराक की गज़ल में प्रेम के वियोग की पीड़ा की अनुभूति सहज ही अनुभव की जा सकती है। वियोग की पीड़ा में कवि अपनी प्रेमिका की याद में रोता है और व्याकल हो उठता है अर्थात तडपता है। उसकी आँखों से आँस छलकते रहते हैं। इस गजल में कवि की यही पीड़ा व्यक्त हुई है। उदाहरणार्थ यह शेर देखिए तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का ख्याल भी है। सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो लेते हैं।

प्रश्न 8.
‘गजल’ की मूल चेतना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित गज़ल की मूल चेतना कवि के हृदय की पीड़ा को शब्दों में ढालना है। प्रस्तुत गज़ल में कवि स्वयं की किस्मत को खराब बताता है क्योंकि उसे प्रेम के बदले प्रेम नहीं मिला। इसीलिए वह हर समय प्रिया की याद में चुपके-चुपके आँसू बहाता है-“सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।” गज़ल में बताया गया है कि कवि प्रेम में इतना दीवाना हो चुका है कि रात के सन्नाटे में भी उसे प्रिया के ही शब्द सुनाई पड़ते हैं। अतः स्पष्ट है कि गज़ल की मूल चेतना कवि के प्रेम व विरह चेतना को उजागर करना है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘रुबाइयाँ’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) उमाशंकर जोशी
(B) फ़िराक गोरखपुरी
(C) हरिवंशराय बच्चन
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(B) फ़िराक गोरखपुरी

2. फिराक गोरखपुरी का मूल नाम क्या है?
(A) रघुपति सहाय
(B) रघुपति लाल
(C) रघुपति गुप्ता
(D) रघुपति राम
उत्तर:
(A) रघुपति सहाय

3. फिराक गोरखपुरी का जन्म कब हुआ?
(A) 28 अगस्त, 1896 में
(B) 28 अगस्त, 1897 में
(C) 28 अगस्त, 1898 में
(D) 28 अगस्त, 1899 में
उत्तर:
(A) 28 अगस्त, 1896 में

4. फिराक गोरखपुरी किस पद के लिए चुने गए थे?
(A) तहसीलदार
(B) पुलिस अधीक्षक
(C) डिप्टी कलेक्टर
(D) मुख्य सचिव
उत्तर:
(C) डिप्टी कलेक्टर

5. फिराक गोरखपुरी किस वर्ष डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए चुने गए थे?
(A) सन् 1916 में
(B) सन् 1917 में
(C) सन् 1915 में
(D) सन् 1921 में
उत्तर:
(B) सन् 1917 में

6. फ़िराक गोरखपुरी ने डिप्टी कलेक्टर के पद से त्याग-पत्र क्यों दे दिया?
(A) बीमार होने के कारण
(B) पारिवारिक समस्या के कारण
(C) स्वराज आंदोलन के लिए
(D) शिक्षक बनने के लिए
उत्तर:
(C) स्वराज आंदोलन के लिए

7. फिराक गोरखपुरी ने किस वर्ष डिप्टी कलेक्टर के पद से त्याग-पत्र दिया?
(A) सन् 1918 में
(B) सन् 1917 में
(C) सन् 1919 में
(D) सन् 1920 में
उत्तर:
(A) सन् 1918 में

8. फिराक गोरखपुरी को जेल क्यों जाना पड़ा?
(A) चोरी करने के कारण
(B) लड़ाई करने के कारण
(C) स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण
(D) सरकार की आज्ञा न मानने के कारण
उत्तर:
(C) स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण

9. फिराक गोरखपुरी को कितने साल की जेल हुई?
(A) 1 वर्ष की
(B) 2 वर्ष की
(C) 1 वर्ष की
(D) 3 वर्ष की
उत्तर:
(C) 19 वर्ष की

10. फ़िराक गोरखपुरी को जेल कब जाना पड़ा?
(A) सन् 1920 में
(B) सन् 1921 में
(C) सन् 1922 में
(D) सन् 1923 में
उत्तर:
(A) सन् 1920 में

11. फिराक गोरखपुरी किस विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापक नियुक्त हुए?
(A) मुंबई विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) मेरठ विश्वविद्यालय
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
उत्तर:
(D) इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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12. फिराक गोरखपुरी का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1983 में
(B) सन् 1982 में
(C) सन् 1981 में
(D) सन् 1984 में
उत्तर:
(A) सन् 1983 में

13. फिराक गोरखपुरी को किस रचना के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला?
(A) गुले-नग्मा के लिए
(B) बज्मे जिंदगी के लिए
(C) रंगे-शायरी के लिए
(D) उर्दू गज़लगोई के लिए
उत्तर:
(A) गुले-नग्मा के लिए

14. साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड के अतिरिक्त फ़िराक गोरखपुरी को कौन-सा पुरस्कार मिला?
(A) शिखर सम्मान
(B) कबीर पुरस्कार
(C) प्रेमचंद पुरस्कार
(D) ज्ञानपीठ पुरस्कार
उत्तर:
(D) ज्ञानपीठ पुरस्कार

15. ‘बज्मे जिंदगी’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) उमा शंकर जोशी
(B) विष्णु खरे
(C) फ़िराक गोरखपुरी
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(C) फ़िराक गोरखपुरी

16. ‘रंगे-शायरी’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) फ़िराक गोरखपुरी
(B) रजिया सज्जाद जहीर
(C) उमा शंकर जोशी
(D) विष्णु खरे
उत्तर:
(A) फ़िराक गोरखपुरी

17. फिराक गोरखपुरी ने किस भाषा में काव्य रचना की है?
(A) हिंदी भाषा में
(B) उर्दू भाषा में
(C) गुजराती भाषा में
(D) बांग्ला भाषा में
उत्तर:
(B) उर्दू भाषा में

18. पाठ्यपुस्तक में संकलित फिराक की रुबाइयों में मुख्य भाव कौन-सा है?
(A) वात्सल्य भाव
(B) भक्ति भाव
(C) सख्य भाव
(D) माधुर्य भाव
उत्तर:
(A) वात्सल्य भाव

19. रुबाइयों में फिराक ने किस भाषा का प्रयोग किया है?
(A) फारसी भाषा का
(B) हिंदी भाषा का
(C) उर्दू भाषा का
(D) हिंदी-उर्दू भाषा का
उत्तर:
(C) उर्दू भाषा का

20. प्रस्तुत गज़ल में रात में कौन बोल रहे हैं?
(A) पक्षी।
(B) सन्नाटे
(C) उल्लू
(D) भूत
उत्तर:
(B) सन्नाटे

21. रुबाइयों में फिराक ने किस शैली का प्रयोग किया है?
(A) विचारात्मक शैली
(B) वर्णनात्मक शैली
(C) संबोधनात्मक शैली
(D) नाटकीय शैली
उत्तर:
(B) वर्णनात्मक शैली

22. राखी के लच्छे किस तरह चमक रहे हैं?
(A) सूरज
(B) चाँद
(C) बिजली
(D) दर्पण
उत्तर:
(C) बिजली

23. रात के सन्नाटे क्या कर रहे हैं?
(A) खामोश हैं
(B) जाग रहे हैं
(C) पसरे हैं
(D) कुछ बोल रहे हैं
उत्तर:
(D) कुछ बोल रहे हैं

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24. प्रस्तुत गज़ल के अनुसार आँखें कौन झपका रहे हैं?
(A) बच्चे
(B) पक्षी
(C) सूर्य-चन्द्रमा
(D) तारे
उत्तर:
(D) तारे

25. ‘गजल’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) उमाशंकर जोशी
(B) रज़िया सज्जाद फरीद
(C) फ़िराक गोरखपुरी
(D) विष्णु खरे
उत्तर:
(C) फ़िराक गोरखपुरी

26. ‘गोदी का चाँद’ से क्या अभिप्राय है?
(A) आकाश का चाँद
(B) सुंदर लड़का
(C) संतान
(D) सुंदर लड़की
उत्तर:
(C) संतान

27. ‘गजल’ कविता में कवि अपनी गज़लों को किनके प्रति समर्पित करता है?
(A) गुलाम अली
(B) मजरूह सुल्तानपुरी
(C) भीर
(D) मिर्जा गालिब
उत्तर:
(C) मीर

28. फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित रुबाइयों में किस रस का परिपाक हुआ है?
(A) श्रृंगार रस
(B) वीर रस
(C) हास्य रस
(D) वात्सल्य रस
उत्तर:
(D) वात्सल्य रस

29. ‘फितरत का कायम है तवाजुन’-यहाँ ‘तवाजुन’ का अर्थ है-
(A) तराजू
(B) राज्य
(C) संतुलन
(D) स्थिरता
उत्तर:
(C) संतुलन

30. ‘गजल’ किस साहित्य में अधिक प्रसिद्ध है?
(A) उर्दू में
(B) लैटिन में
(B) ग्रीक में
(D) संस्कृत में
उत्तर:
(A) उर्दू में

31. ‘रात गए गर्दू पै फरिश्ते’ यहाँ ‘गर्दू’ का अर्थ है
(A) धरती
(B) आकाश
(C) इन्द्र
(D) भगवान
उत्तर:
(B) आकाश

32. कवि किस प्रकार अपना दुख कम करता है?
(A) अकेले में हँसकर
(B) अपने-आप में बात करके
(C) अकेले में रोकर
(D) कविता रचकर
उत्तर:
(C) अकेले में रोकर

33. फिराक गोरखपुरी की गज़लों में किसकी गज़लें बोलती जान पड़ती हैं?
(A) राही मासूमरज़ा की
(B) नजीर अकबराबादी की
(C) मीर की
(D) इल्तान हुसैन हाली की
उत्तर:
(C) मीर की

34. ‘फितरत’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) आकर्षण
(B) विकर्षण
(C) आदत
(D) सलामत
उत्तर:
(C) आदत

35. ‘तारे आँखें झपकावें हैं ज़र्रा-जर्रा सोये है’ यहाँ ‘जर्रा-जर्रा’ का अर्थ है-
(A) ज़रा-ज़रा
(B) ज़रा-सा
(C) क्षण-क्षण
(D) कण-कण
उत्तर:
(D) कण-कण

36. ‘सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़’-पंक्ति में भाषा कौन-सी है?
(A) उर्दू-फ़ारसी
(B) ब्रजभाषा
(C) तत्सम प्रधान
(D) तद्भव प्रधान
उत्तर:
(A) उर्दू-फारसी

रुबाइयाँ पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूंज
उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-चाँद का टुकड़ा = बहुत प्रिय बेटा। गोद-भरी = गोद में लेकर। लोका देती = उछाल-उछाल कर बच्चे के प्रति अपना स्नेह प्रकट करती।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से अवतरित है। इसके शायर फ़िराक गोरखपुरी हैं। प्रस्तुत रुबाई में कवि ने एक माँ द्वारा अपने बच्चे को झुलाने तथा उसे ऊपर हवा में उछालने का सजीव वर्णन किया है।

व्याख्या-शायर कहता है कि एक माँ अपने प्रिय बेटे को गोद में लिए हुए घर के आँगन में खड़ी है। कभी वह उसे गोद में लेती है और कभी उसे अपने हाथों पर सुलाती है। वह बार-बार हवा में अपने शिशु को उछाल कर बड़ी प्रसन्न होती है। शिशु भी माँ के हाथों से झूले खाकर खिलखिलाता हुआ हँसने लगता है। भाव यह है कि शिशु अपनी माँ का प्यार पाकर प्रसन्न हो उठता है।

विशेष-

  1. प्रस्तुत पद्यांश में शायर ने एक माँ के पुत्र-प्रेम का स्वाभाविक वर्णन किया है जो उसे अपने हाथों से झुलाती है और पुनः हवा में उछालती है।
  2. पुनरुक्ति प्रकाश तथा स्वभावोक्ति अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  3. सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित और सटीक है।
  5. ‘चाँद का टुकड़ा’ मुहावरे का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. संपूर्ण पद्य में दृश्य तथा श्रव्य बिंबों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  7. प्रसाद गुण है तथा वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) ‘चाँद के टुकड़े’ का प्रयोग किसके लिए और क्यों किया गया है?
(ग) इस पद में माँ द्वारा शिशु को खिलाने का दृश्य अंकित किया गया है। स्पष्ट करें।
(घ) बच्चा क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करता है?
(ङ) इस काव्यांश में किस रस का परिपाक हुआ है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) कवि-फ़िराक गोरखपुरी कविता-रुबाइयाँ

(ख) यहाँ नन्हें शिशु के लिए ‘चाँद के टुकड़े मुहावरे का मनोरम प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ है-प्यारा पुत्र। पुत्र माँ के लिए प्राणों से भी अधिक प्रिय है। इसीलिए अकसर माँ अपने पुत्र को चाँद का टुकड़ा कहती है।

(ग) माँ अपने शिशु को कभी तो गोद में लेकर झुलाती है तो कभी वह उसे हवा में बार-बार उछालती है। इस प्रकार माँ अपने नन्हें पुत्र के प्रति अपने वात्सल्य भाव को व्यक्त करती है।

(घ) बच्चा अपनी माँ की गोद में झूले लेकर प्रसन्न हो जाता है। वह झूले खाकर इतना खुश होता है कि खिलखिलाकर हँसने लगता है। उसके मुख से हँसी अपने आप फूट पड़ती है।

(ङ) इस पद में वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है। माँ पुत्र को अपनी गोद में खिलाती है। उसे हवा में झुलाती है और नन्हा बेटा भी प्रसन्न होकर किलकारियाँ भरने लगता है। इन दृश्यों का संबंध वात्सल्य रस से है। अतः हम कह सकते हैं कि इस पद्यांश में कवि ने वात्सल्य रस का सही चित्रण किया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

[2] नहला के छलके छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-छलके = ढुलक कर गिरना। निर्मल = स्वच्छ तथा पावन। गेसु = बाल। घुटनियाँ = घुटने। पिन्हाती = पहनाती।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से अवतरित है। इसके शायर फिराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि ने माँ और शिशु का सहज त

व्याख्या-सर्वप्रथम माँ ने अपने नन्हें पुत्र को स्वच्छ जल से छलका-छलका कर नहलाया। फिर उसने उसके उलझे हुए बालों में कंघी की। जब वह अपने घुटनों में अपने बच्चे को थाम कर उसे कपड़े पहनाती है तो वह शिशु बड़े प्यार से माँ के मुँह को देखता है। भाव यह है कि माँ अपने नन्हें पुत्र को स्वच्छ जल में नहलाकर उसे कंघी करती है। जब वह उसे कपड़े पहनाती है तो शिशु प्यार से माँ के मुँह को निहारता है।

विशेष-

  1. इस रुबाई में कवि ने माँ तथा उसके नन्हें बेटे की क्रियाओं का सहज तथा स्वाभाविक वर्णन किया है।
  2. अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश तथा स्वभावोक्ति अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. संपूर्ण पद में दृश्य बिंबों का सफल प्रयोग किया गया है।
  4. प्रसाद गुण तथा वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है।
  5. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग है, जिसमें ‘गेसु’ जैसे उर्दू शब्द का भी मिश्रण है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक हैं।
  7. रुबाई छंद का सफल प्रयोग किया गया है।
  8. ‘घुटनियों’ तथा ‘पिन्हाती’ जैसे कोमल शब्दों के प्रयोग के कारण भाषा-सौंदर्य में निखार आ गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बच्चे को नहलाने का दृश्य अपने शब्दों में लिखिए।
(ख) माँ बच्चे के बालों में किस प्रकार कंघी करती है?
(ग) बच्चा माँ को प्यार से क्यों देखता है?
(घ) माँ बेटे को किस प्रकार कपड़े पहनाती है?
उत्तर:
(क) माँ अपने बेटे को स्वच्छ जल में नहलाती है। पानी के छलकने के कारण उसका बेटा अत्यधिक प्रसन्न और उमंगित हो उठता है।
(ख) नहाने से शिशु के बाल उलझ जाते हैं। अतः माँ उसके उलझे हुए बालों में कंघी करती है।
(ग) माँ अपने नन्हें बेटे को अपने घुटनों में थामकर उसे कपड़े पहनाती है। उस समय शिशु के मन में माँ के प्रति प्यार उमड़ आता है और वह माँ को बड़े प्यार से निहारने लगता है।
(घ) माँ बेटे को कपड़े पहनाने से पहले उसे अपनी घुटनियों में थाम लेती है ताकि वह जमीन पर न गिरे। तत्पश्चात् वह उसे कपड़े पहनाती है।

[3] दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-पुते = रंगे हुए। रूपवती = सुंदर। दमक = चमक। घरौंदा = बच्चों के द्वारा रेत पर बनाया गया घर। दिए = दीपक।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से उद्धृत है। इसके शायर फ़िराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि दीवाली के दृश्यों का सजीव वर्णन करता है।

व्याख्या दीपावली का सायंकाल है। सारा घर रंग-रोगन से पुता हुआ और सजा हुआ है। माँ अपने शिशु को प्रसन्न करने के लिए चीनी-मिट्टी के जगमगाते हुए सुंदर खिलौने लेकर आती है। माँ के सुंदर मुख पर एक कोमल चमक है। वह अत्यधिक प्रसन्न दिखाई देती है। बच्चों द्वारा रेत के बनाए हुए घर में वह एक दीपक जला देती है ताकि बच्चा प्रसन्न हो उठे।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने दीवाली के अवसर पर माँ के द्वारा की गई क्रियाओं का मनोरम वर्णन किया है।
  2. माँ की ममता और कोमलता का स्वाभाविक चित्रण है।
  3. प्रस्तुत पद्यांश में दृश्य बिंब की सुंदर योजना की गई है।
  4. पूरी रुबाई में ‘ए’ की मात्रा की आवृत्ति होने से सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
  5. सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  6. शब्द-चयन उचित और सटीक है।
  7. प्रसाद गुण है तथा वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है।
  8. रुबाई छंद का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) दीवाली के दिन घर को कैसे सजाया गया है? (ख) दीवाली के दिन माँ अपने शिशु के लिए क्या लेकर आई?
(ग) बच्चों के लिए दिए जलाते समय माँ का चेहरा कैसा दिखाई देता है? (घ) माँ बच्चे के घरौंदे में दीपक क्यों जलाती है?
उत्तर:
(क) दीवाली के दिन सारे घर को साफ-सुथरा करके उसमें रंग-रोगन किया गया है और उसे अच्छे ढंग से सजाया गया है ताकि सारा घर सुंदर और आकर्षक लगे।

(ख) दीवाली के दिन माँ अपने बच्चे के लिए चीनी-मिट्टी के खिलौने लेकर आती है। वे खिलौने बड़े सुंदर और जगमगाते हैं और बच्चे के मन को आकर्षित करते हैं।

(ग) बच्चों के घरौंदे में दिए जलाते समय माँ के चेहरे पर कोमलता और चमक आ जाती है। इस चमक का कारण माँ के हृदय का वात्सल्य भाव है।

(घ) माँ अपने नन्हें पुत्र को प्रसन्न करने के लिए एक घरौंदा बनाती है जिसमें खिलौने सजे हुए हैं। दीवाली की शाम को वह उस घरौंदे में दिए जलाती हैं ताकि उसका नन्हा बेटा अपने घरौंदे को देखकर प्रसन्न हो जाए।

[4] आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है। [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-ठुनक = ठुनकना, मचलना, झूठ-मूठ का रोना। जिदयाया = जिद के कारण मचलता हआ। हई = है ही। दर्पण = शीशा। आईना = शीशा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से उद्धृत है। इसके शायर फ़िराक गोरखपुरी हैं। इस पद में कवि ने शिशु के मचलने तथा उसकी जिद का बड़ा स्वाभाविक वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि देखो यह शिशु आँगन में झूठ-मूठ में रो रहा है और मचल रहा है। वह जिद्द किए बैठा है क्योंकि वह बालक ही तो है। वह माँ से चाँद लेने की जिद्द कर रहा है अर्थात् वह चाहता है कि आकाश में चमकता हुआ चाँद वह अपने हाथों में ले ले। माँ अपने नन्हें बेटे के हाथ में दर्पण देकर उसे कहती है कि देखो चाँद इस शीशे में उतर कर आ गया है। तुम इस दर्पण को अपने हाथों में ले लो। अब तुम इससे खेल सकते हो। क्योंकि यह चाँद तुम्हारा हो गया है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने बच्चे की जिद तथा उसके मचलने का स्वाभाविक वर्णन किया है।
  2. संपूर्ण पद में स्वभावोक्ति अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  3. इस पद का वर्णन गतिशील होने के साथ-साथ चित्रात्मक भी है।
  4. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें उर्दू के शब्दों का सुंदर मिश्रण किया गया है।
  5. रुबाई में कोमलता लाने के लिए ‘ज़िदयाया’, ‘हई’ शब्दों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  6. प्रसाद गुण है तथा वात्सल्य रस का परिपाक हुआ है।
  7. रुबाई छंद का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) बालक के ठुनकने तथा जिद करने का वर्णन कीजिए।
(ख) कवि ने बाल मनोविज्ञान का किस प्रकार उद्घाटन किया है?
(ग) माँ चाँद को कैसे दर्पण में उतारकर अपने नन्हें बेटे को दिखाती है?
उत्तर:
(क) बच्चा आकाश में चमकते हुए सुंदर चाँद को देखकर प्रसन्न हो जाता है। वह माँ के सामने जिद्द कर बैठता है कि उसे खेलने के लिए यही चाँद चाहिए। जब उसकी इच्छा पूरी नहीं होती तो वह मचल उठता है और जिद्द करने लगता है।

(ख) बाल मनोविज्ञान का उद्घाटन करने के लिए कवि ने ‘बालक तो हई’ शब्दों का प्रयोग किया है। जिसका अर्थ है कि बालक स्वभाव से जिद्दी तथा चंचल होते हैं। वे जिस पर रीझ जाते हैं, उसे पाने की जिद्द करते हैं। चाँद को देखकर बच्चा उस पर रीझ गया और उसे पाने की जिद्द करने लगा।

(ग) माँ अपने हाथ में एक दर्पण ले लेती है और उसमें चाँद का प्रतिबिंब उतार लेती है। तब वह उसे अपने बेटे को दिखाकर उसे प्रसन्न करती है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

[5] रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी [पृष्ठ-58]

शब्दार्थ-रस की पुतली = मीठी-मीठी बातें करने वाली बेटी। घटा = जल से भरे हुए काले बादलों का समूह। गगन = आकाश। लच्छे = तारों से बना हुआ गहना जो हाथों या पैरों में पहना जाता है।
आरोह (भाग 2) फिराख गोरखपुरी]

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘रुबाइयाँ’ में से उद्धृत है। इसके शायर फिराक गोरखपुरी हैं। इस पद्य में कवि ने रक्षाबंधन त्योहार की गतिविधियों का स्वाभाविक वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि आज रक्षाबंधन का त्योहार है। आकाश में काले-काले बादलों की हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। मीठी-मीठी बातें करने वाली नन्हीं बालिका उमंग और खुशी से भरपूर है। उसके हाथों में राखी रूपी लच्छे बिजली के समान चमक रहे हैं। वह प्रसन्न होकर अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और प्रसन्न होती है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने राखियों के रेशमी लच्छों की तुलना बिजली से की है।
  2. पुनरुक्ति प्रकाश तथा उपमा अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  3. नन्हीं बालिका के लिए ‘रस की पुतली’ अत्यधिक सार्थक शब्द है।
  4. संपूर्ण पद में दृश्य-बिंब की सुंदर योजना हुई है।
  5. सहज, सरल तथा प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. रुबाई छंद का प्रयोग किया गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) ‘रस की पुतली’ किसे और क्यों कहा गया है?
(ख) राखी के दिन मौसम किस प्रकार का है?
(ग) ‘बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे का क्या आशय है?
(घ) राखी बाँधते समय नन्हीं बालिका की दशा कैसी है?
उत्तर:
(क) राखी बाँधने वाली बहन अर्थात् नन्हीं बालिका को ‘रस की पुतली’ कहा गया है। कारण यह है कि वह मीठी-मीठी बातें करती है और उसके मन में भाई के लिए अपार स्नेह है।
(ख) राखी का दिन है और आकाश में हल्के-हल्के बादलों की घटाएँ छाई हुई हैं। ऐसा लगता है कि हल्की-हल्की वर्षा होगी।
(ग) इसका आशय यह है कि बहन बिजली की तरह चमकते हुए लच्छों वाली राखी अपने भाई की कलाई पर बाँधती है।
(घ) राखी बाँधते समय बहन अत्यधिक प्रसन्न है। उसकी प्रसन्नता उसके द्वारा लाई गई चमकीली राखी से झलक रही है।

गज़ल पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं। [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-नौरस = नया रस। गुंचे = कली। नाजुक = कोमल। गिरहें = गांठें। रंगो-बू = रंग और गंध । गुलशन = बाग। पर तोलना = पंख फैलाकर उड़ना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित ‘गजल’ में से उद्धृत है। इसके कवि फ़िराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का आकर्षक वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि नवीन रस से भरी हुई कलियों की कोमल पंखुड़ियाँ अपनी गाँठों को खोल रही हैं अर्थात् कलियाँ खिलकर फूल बन रही हैं। उनमें से जो सुगंध उत्पन्न हो रही है, उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों रंग और सुगंध दोनों आकाश में उड़ जाने के लिए अपने पंख फैला रहे हैं। भाव यह है कि कलियाँ खिलकर फूल बन रही हैं और चारों ओर उनकी मनोरम सुगंध फैल रही है।

विशेष-

  1. इस शेर में कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का सजीव वर्णन किया है। यह शेर संयोग शृंगार की भूमिका के लिए लिखा गया है।
  2. इस शेर में संदेह अलंकार का प्रयोग तथा रस और सुगंध का मानवीकरण किया गया है।
  3. संपूर्ण शेर में उर्दू भाषा का सफल प्रयोग देखा जा सकता है। गुंचे, गिरहें, रंगों-बू, गुलशन आदि उर्दू के शब्द हैं।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) ‘नौरस’ विशेषण का क्या अभिप्राय है?
(ग) पंखुड़ियों की नाजुक गिरह खोलने का आशय क्या है?
(घ) इस शेर का मूल आशय क्या है?
उत्तर:
(क) कवि-फ़िराक गोरखपुरी कविता-गज़ल

(ख) ‘नौरस’ शब्द का प्रयोग नव रस के लिए किया गया है। इसका अर्थ है कि कलियों में नया रस भर आया है।

(ग) पंखुड़ियों की नाजुक गिरह खोलने का अर्थ है कि नन्हीं-नन्हीं कलियाँ धीरे-धीरे अपनी पंखुड़ियों को खोल रही हैं और उनमें से नव रस उत्पन्न होकर चारों ओर फैल रहा है।

(घ) इस शेर का आशय यह है कि कलियों की नन्हीं-नन्हीं पंखुड़ियाँ खिलने लगी हैं। उनमें से रंग और सुगंध निकलकर चारों ओर फैल रहे हैं जिससे आस-पास का वातावरण बड़ा मनोरम और आकर्षक बन गया है।

[2] तारे आँखें झपकावें हैं ज़र्रा-ज़र्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-झपकावें = झपकना। ज़र्रा-ज़र्रा = कण-कण। शब = रात। सन्नाटा = मौन।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गज़ल’ में से उद्धृत है। इसके कवि फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में कवि ने प्रकृति के उद्दीपन रूप का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि रात ढल रही है। तारे भी आँखें झपकाकर मानों सोना चाहते हैं। प्रकृति का कण-कण सोया हुआ है। ऐसा लगता है कि मानों रात सो रही है। यह चुप्पी मुझे मेरे प्रिय की याद दिलाती है। हे मेरे मित्रो! तुम भी तनिक सुनो। रात का यह सन्नाटा मेरे साथ कुछ बोल रहा है। भाव यह है कि रात का मौन केवल उसी के साथ वार्तालाप करता है जिसके दिल में प्रेम की पीड़ा होती है।

विशेष-

  1. इस शेर में कवि ने प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण करते हुए अपनी प्रेम-भावना को व्यक्त किया है।
  2. संपूर्ण शेर में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
  3. सन्नाटा कुछ बोलता हुआ-सा प्रतीत होता है, अतः सन्नाटे का भी मानवीकरण किया गया है।
  4. ‘ज़र्रा-ज़र्रा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
  5. इस शेर का भाव और भाषा दोनों उर्दू भाषा से प्रभावित हैं।
  6. शब्द-चयन उचित और सटीक है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) ‘तारे आँखें झपकावें हैं’ का आशय स्पष्ट करें।
(ख) शब में सन्नाटा कैसे बोलता है?
(ग) कवि किस दृश्य का वर्णन करना चाहता है?
उत्तर:
(क) ‘तारे आँखें झपकावें हैं’ का आशय है-तारों का टिमटिमाना। अब रात ढलने जा रही है। लगता है कि तारे आँखें झपकाकर सोना चाहते हों। वे धीरे-धीरे बुझते जा रहे हैं।

(ख) रात के समय चारों ओर मौन और चुप्पी छाई हुई है। ऐसे में कवि को लगता है कि मानों सन्नाटा बोल रहा है। कवि को चुप्पी और मौन में से भी हल्की-हल्की आवाज़ सुनाई देती है। क्योंकि उस समय सन्नाटे के अतिरिक्त और कोई आवाज़ नहीं होती।

(ग) इस शेर में कवि रात्रिकालीन चुप्पी और मौन के दृश्य का चित्रण करना चाहता है और इस संबंध में कवि को पूर्ण सफलता भी मिली है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

[3] हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं। [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-किस्मत = भाग्य। इक = एक। लेवे = लेती है। बदनाम = निंदा फैलाना। परदा = राज।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठयपस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गजल’ में से उदधत है। इसके कवि फिराक गोरखपुरी हैं। पहले शेर में कवि ने अपनी हृदयगत वेदना का वर्णन किया है और दूसरे शेर में कवि निंदकों को अपनी सीमा में रहने का संदेश देता है।

व्याख्या – कवि अपने भाग्य को और स्वयं को कोसता है। वह स्वीकार करता है कि वह स्वयं तथा उसका भाग्य अलग नहीं हैं, बल्कि एक जैसे हैं। दोनों एक ही काम करते हैं। कवि का मन अत्यधिक दुखी है। इसलिए वह कहता है कि भाग्य मुझ पर रोता है और मैं अपने भाग्य पर रोता हूँ। भाव यह है कि कवि घोर निराशा का शिकार बना हुआ है और वह स्वयं को कोसता है।

अगले शेर में कवि उन लोगों से अत्यधिक दुखी है जो उसे बदनाम करने का षड्यंत्र रचते रहते हैं। कवि कहता है कि काश वे निंदक ये सोच पाते कि वे मेरा पर्दाफाश कर रहे हैं, राज खोल रहे हैं या अपना राज खोल रहे हैं। भाव यह है कि निंदकों को इस बात का एहसास नहीं होता कि वे दूसरों की निंदा करके अपनी कमज़ोरी को प्रकट करते हैं। वे इस सच्चाई को नहीं जानते कि निंदा करने वालों को संसार बुरा ही कहता है। जिसकी वे निंदा करते हैं उसे लोग अच्छी प्रकार से जानते हैं। यदि हम किसी की निंदा करते हैं तो हमारी अपनी बुराई प्रकट हो जाती है।

विशेष-

  1. पहले शेर में कवि अपने भाग्य को कोसता हुआ प्रतीत होता है और दूसरे शेर में कवि निंदकों पर ज़ोरदार प्रहार करता है।
  2. पहले शेर में किस्मत का मानवीकरण किया गया है।
  3. इन शेरों में कवि ने उर्दू भाषा का सफल प्रयोग किया है। किस्मत, बदनाम, परदा आदि उर्दू के शब्द हैं।
  4. अभिव्यक्ति की दृष्टि से सभी शेर सरल और हृदयग्राही हैं।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि और उसकी किस्मत में क्या समानता है?
(ख) कवि को कौन बदनाम करते होंगे?
(ग) ‘मेरा परदा खोले है’ का आशय क्या है?
(घ) निंदा करने वाले क्या नहीं सोच पाते?
उत्तर:
(क) कवि और उसकी किस्मत में यह समानता है कि दोनों निराशा के शिकार हैं। यही कारण है कि किस्मत कवि को रोती है और कवि किस्मत को रोता है।

(ख) कवि के वे मित्र तथा संबंधी उसे बदनाम करते हैं जो उससे ईर्ष्या रखते हैं।

(ग) ‘मेरा परदा खोले है’ का आशय है कि कवि के विरोधी उसकी बदनामी करते हैं। वे कवि के दोषों का पर्दाफाश करना चाहते हैं। इस प्रकार के लोग निंदक हैं और वे कवि की निंदा करके उसे अपयश देना चाहते हैं।

(घ) निंदा करने वाले यह नहीं सोच पाते कि कवि के दोष निकालकर उसकी बदनामी करके वे अपनी बुराई को लोगों के सामने ला रहे हैं। ऐसा करने से कवि को कोई हानि नहीं होती, क्योंकि लोग निंदकों को अच्छी प्रकार से जानते हैं।

[4] ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-कीमत = मूल्य। अदा करे = चुकाना। बदुरुस्ती = भली प्रकार। होशो-हवास = सचेत । सौदा = व्यापार। दीवाना = पागल। गम = दुख। अदब = मर्यादा। खयाल = विचार। दर्द = पीड़ा।।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गजल’ में से अवतरित है। इसके कवि फिराक गोरखपुरी हैं। पहले शेर में कवि ने प्रेममय संपूर्ण समर्पण की बात कही है और दूसरे शेर में प्रेम और समाज के द्वंद्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या-कवि कहता है कि प्रिया मैं अपने होश-हवास में तुम्हारे प्रेम का मूल्य चुका रहा हूँ। जो व्यक्ति प्रेम में डूब जाता है और प्रेम का सौदा करता है वह पागल-सा हो जाता है। भाव यह है कि कवि भले ही प्रिया के प्रेम में दीवाना है, परंतु अभी तक उसने अपना विवेक नहीं खोया है।

कवि अपनी प्रिया से पुनः कहता है कि प्रिय! मेरे मन में तुम्हारे दुखों का पूरा ध्यान है। मैं हमेशा तुम्हारी चिंता करता हूँ। मुझे तुम्हारी फिक्र लगी रहती है, परंतु इसके साथ-साथ मुझे दुनियादारी की भी चिंता है। संसार यह नहीं चाहता है कि मैं तुम्हारे प्रेम में मग्न रहूँ। इसीलिए मैं सब लोगों से अपने दर्द को छिपा लेता हूँ और तुम्हारे प्रेम में मैं चुपचाप रोता रहता हूँ।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने प्रेम की दीवानगी का संवेदनशील वर्णन किया है। दूसरे शेर में कवि प्रेम और समाज के संघर्ष पर प्रकाश डालता है।
  2. ‘चुपके-चुपके’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  3. संपूर्ण पद में उर्दू भाषा का सहज और सरल प्रयोग किया गया है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावानुकूल है।
  5. वियोग शृंगार का परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि क्या कीमत चुकाता है?
(ख) कवि की मनोदशा पर प्रकाश डालिए।
(ग) कवि किस संघर्ष में उलझा हुआ है?
(घ) कवि छिपकर चुपके-चुपके क्यों रोता है?
उत्तर:
(क) कवि स्वयं को प्रिया के प्रेम पर न्योछावर कर देता है और वह दीवाना होकर प्रेम की कीमत चुकाता है।

(ख) कवि अपनी प्रिया के प्रेम में दीवाना है और उसने स्वयं को अपनी प्रिया पर पूर्णतया न्योछावर कर दिया है, परंतु वह पूरे होशो-हवास में रहते हुए अपने प्रेम की कीमत को चुका रहा है।

(ग) कवि संसार तथा प्रेम के संघर्ष में उलझा हुआ है। एक ओर कवि को सांसारिक दायित्व निभाने पड़ रहे हैं तो दूसरी ओर उसके मन में प्रेम की चाहत है। वह इन दोनों स्थितियों के बीच में झूल रहा है।

(घ) कवि संसार के सामने अपने प्रेम को प्रकट नहीं करना चाहता। यदि वह अपने प्रेम को प्रकट करेगा तो उसके अपने लोगों को ठेस लगेगी। इसलिए वह अपने मन में चुपके-चुपके रो लेता है और अपने-आप से अपना प्रेम प्रकट कर लेता है।

[5] फ़ितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं
आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-फ़ितरत = स्वभाव। कायम = बना हुआ। तवाजुन = संतुलन। आलमे हुस्नो-इश्क = प्रेम और सौंदर्य का संसार। आबो-ताब अश्आर = चमक-दमक के साथ। आँख रखना = देखने में समर्थ होना। बैत = शेर। दमक = चमक। मोती रोले = आँसू छलकना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गजल’ में से अवतरित है। इसके कवि फ़िराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि प्रेम और सौंदर्य की चर्चा करता है तथा अपनी शायरी के सौंदर्य पर प्रकाश डालता है।

व्याख्या-प्रथम शेर में कवि कहता है कि सौंदर्य और प्रेम में मनुष्य की प्रवृत्ति अधिक महत्त्व रखती है। इस क्षेत्र में लेन-देन का संतुलन हमेशा बना रहता है। जो प्रेमी प्रेम में स्वयं को जितना अधिक समर्पित कर देता है, वह उतना ही अधिक प्रेम प्राप्त करता है। भाव यह है कि समर्पण से ही प्रेम की प्राप्ति होती है।

दूसरे शेर में कवि कहता है कि तुम मेरी शायरी की चमक-दमक और कलाकारी पर आसक्त न हो जाओ। मेरी कविता का सौंदर्य न तो बनावटी है और न ही सजावटी है। जो लोग मेरे शेरों को अच्छी प्रकार से जानते हैं उन्हें इस बात का पता है कि मेरे शेरों में जो सुंदरता है वह मेरी आँखों के आँसुओं से मिलती है। भाव यह है कि मैंने अपनी प्रिया के वियोग में जो आँसू बहाए हैं, उन्हीं के कारण मेरी कविता में चमक उत्पन्न हुई है।

विशेष –

  1. यहाँ कवि ने प्रेम तथा सौंदर्य के साथ-साथ अपने काव्य-सौंदर्य पर भी प्रकाश डाला है।
  2. कवि ने अपनी अनुभूति से प्रेरित होकर अपनी विरह-वेदना को व्यक्त किया है।
  3. यहाँ वियोग श्रृंगार की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।
  4. ‘मोती रोले’, ‘आँख रखना’ आदि मुहावरों का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. पहले शेर में दुरूह भाषा का प्रयोग हुआ है परंतु दूसरे शेर की भाषा कुछ-कुछ सरल है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि किस फ़ितरत की बात करता है?
(ख) प्रेम को प्राप्त करने के कौन-से उपाय हैं?
(ग) ‘जगमग बैतों की दमक’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(घ) ‘या हम मोती रोले हैं’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
(क) यहाँ कवि मानव प्रकृति की बात करता है। साथ ही वह प्रकृति के मूल स्वभाव पर भी प्रकाश डालता है। प्रकृति का यह नियम है कि हमें कोई वस्तु प्राप्त करने के लिए उस वस्तु के बराबर की कीमत चुकानी पड़ती है।

(ख) प्रेम को पाने का केवल एक ही उपाय है। जो मनुष्य स्वयं को प्रेम में समर्पित कर देता है वही व्यक्ति प्रेम पा सकता है।

(ग) ‘जगमग बैतों की दमक’ का अर्थ है-कविता का आलंकारिक सौंदर्य अथवा कविता कहने का कलात्मक ढंग जिसके कारण कविता चमक उठती है और वह पाठक और श्रोता को मंत्र मुग्ध कर देती है।

(घ) “या हम मोती रोले हैं का आशय है कि मैंने अपनी कविता में विरह-वेदना के आँसू बहाए हैं। मेरी यह कविता मेरी अनुभूति पर आधारित है। अतः मैंने अपनी सच्ची विरह-वेदना प्रकट की है।

[6] ऐसे में तू याद आए है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गए गर्दू पै फ़रिश्ते बाबेगुनह जग खोले हैं
सदके फिराक एजाजे-सखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज
इन गज़लों के परदों में तो ‘मीर’ की गज़लें बोले हैं [पृष्ठ-59]

शब्दार्थ-अंजुमने-मय = शराब की महफिल। रिंद = शराबी। गर्दू = आकाश। फ़रिश्ते = देवदूत। बाबे-गुनह = पाप का अध्याय। सदके = कुर्बान। एजाजे-सुखन = काव्य का सौंदर्य । परदों = शब्दों।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गज़ल’ में से उद्धृत है। इसके कवि फ़िराक गोरखपुरी हैं। यहाँ कवि ने अपनी प्रेमिका की चर्चा करते हुए अपनी शायरी पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या-कवि कहता है कि जब रात को आकाश में देवता संसार के पापों का लेखा-जोखा कर रहे होते हैं और यह देखने का प्रयास करते हैं कि किस व्यक्ति ने कितने अधिक पाप किए हैं, उस समय हम शराब की महफिल में अपने गम को दूर करते हुए तुम्हें याद करते हैं। भाव यह है कि प्रेमी को अंधेरी रात में अपनी प्रिया की बहुत याद आती है। कभी-कभी वह अपनी विरह-वेदना को दूर करने के लिए शराब पीने लगता है।

दूसरे शेर में कवि कहता है कि अकसर लोग मेरी कविता पर आसक्त होकर मुझे कहते हैं कि हम तुम्हारी शायरी पर न्योछावर होते हैं। पता नहीं तुमने इतनी सुंदर और श्रेष्ठ शायरी कहाँ से सीख ली। तुम्हारी गजलों के शेरों में तो मीर की गज़लों की आवाज़ सुनाई देती है। भाव यह है कि तुम्हारी कविता मीर की कविता के समान सुघड़ और आकर्षक है।

विशेष-

  1. रात के समय प्रिय को अपनी प्रेमिका की अत्यधिक याद आती है।
  2. यहाँ कवि ने स्वयं अपनी शायरी की प्रशंसा की है। इस प्रकार की प्रवृत्ति संस्कृत तथा हिंदी के कवियों में दिखाई नहीं देती।
  3. प्रथम शेर में श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।
  4. संपर्ण पद में उर्द भाषा का सहज, स्पष्ट और प्रभावशाली प्रयोग हआ है।
  5. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) प्रथम शेर में कवि ने किस प्रकार के वातावरण का प्रयोग किया है?
(ख) ‘तू’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
(ग) लोग फिराक की प्रशंसा किस प्रकार किया करते थे?
(घ) कवि ने स्वयं अपनी प्रशंसा किस प्रकार की है?
(ङ) ‘एजाजे-सुखन’ का क्या आशय है?
उत्तर:
(क) यहाँ कवि ने रात के सन्नाटे में शराबखाने का चित्रण किया है। प्रेमी शराब खाने में अपनी प्रेम-वेदना को दूर करने के लिए शराब पीता रहता है और अपनी प्रेमिका को याद करता रहता है।

(ख) यहाँ ‘तू’ शब्द का प्रयोग प्रेमिका के लिए किया गया है।

(ग) लोग फ़िराक की प्रशंसा करते हुए अकसर कहते थे कि उसकी शायरी उर्दू के प्रसिद्ध शायर मीर की मधुरता से घुल-मिल गई है।

(घ) कवि ने लोगों का हवाला देकर स्वयं के शेर में अपनी कविता की प्रशंसा की है। इसे हम आत्म-प्रशंसा का शेर कह सकते हैं। यह एक प्रकार से अपने मुँह मियाँ मिट्ठ बनने की बात है।

(ङ) “एजाज़े-सुखन’ का आशय है-काव्य का सौंदर्य अर्थात् कविता के भाव-पक्ष और कला-पक्ष का सौंदर्य । कविता की भाषा, छंद, अलंकार आदि ही उसके सौंदर्य का निर्माण करते हैं।

रुबाइयाँ, गज़ल Summary in Hindi

रुबाइयाँ, गज़ल कवि-परिचय

प्रश्न-
फिराक गोरखपुरी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा फिराक गोरखपुरी का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-फिराक गोरखपुरी का मूल नाम रघुपति सहाय ‘फ़िराक’ है। उनका जन्म 28 अगस्त, सन् 1896 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। वे एक अमीर परिवार से संबंधित थे। उर्दू कविता के प्रति उनके मन में छोटी आयु में ही रुझान था। बाल्यावस्था में ही उन्होंने उर्दू में कविता लिखनी आरंभ कर दी। वे साहिर, इकबाल, फैज़ तथा कैफी आज़मी से अत्यधिक प्रभावित हुए।

रामकृष्ण की कहानियों से आरंभ करने के बाद उन्होंने अरबी, फारसी और अंग्रेज़ी में शिक्षा ग्रहण की। पढ़ाई में वे बड़े ही योग्य विद्यार्थी थे। 1917 ई० में वे डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए चुने गए, परंतु स्वराज्य आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने 1918 में इस पद से त्यागपत्र दे दिया। 1920 ई० में स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण उनको डेढ़ वर्ष की जेल की यात्रा सहन करनी पड़ी। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक भी रहे। ‘गुले-नग्मा’ के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। बाद में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड भी प्राप्त हुए। सन् 1983 में उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ–’गुले-नग्मा’, ‘बज़्मे ज़िंदगी’, ‘रंगे-शायरी’, ‘उर्दू गज़लगोई’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-फिराक गोरखपुरी उर्दू के कवि के रूप में विख्यात हैं। प्रायः उर्दू साहित्य में रुमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता देखी जा सकती है। उर्दू कवियों ने लोक जीवन तथा प्रकृति पर बहुत कम लिखा है परंतु नज़ीर अकबराबादी, इल्ताफ़ हुसैन, हाली जैसे कुछ कवियों ने इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया। उनमें फ़िराक गोरखपुरी भी एक ऐसे शायर हैं। वे आजीवन धर्म-निरपेक्षता के पक्षधर रहे हैं। उनका कहना था कि उर्दू केवल मुसलमानों की ही भाषा नहीं है, बल्कि यह आम भारतवासियों की भाषा है। पं० जवाहरलाल नेहरू उनकी इस सोच से अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने फिराक को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। लगभग पचास वर्ष तक वे सांप्रदायिक सद्भाव के लिए काम करते रहे।

फ़िराक की कविता में कुछ स्थानों पर रुमानियत देखी जा सकती है। उन्होंने वियोग श्रृंगार के सुंदर चित्र अंकित किए हैं, परंतु उनका वियोग वर्णन व्यक्तिगत अनुभूति पर आधारित है। एक उदाहरण देखिए
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।
भारतीय परंपरा और संस्कृति को भी उन्होंने अपनी शायरी में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भोगा, उसे अपने काव्य में लिखा। अपनी कुछ रुबाइयों में फ़िराक साहब ने वात्सल्य का जो वर्णन किया है, वह बेमिसाल बन पड़ा है। लगता है कि कवि सूरदास और तुलसी से प्रभावित हुआ है। एक उदाहरण देखिए
आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया
है बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
कहीं-कहीं कवि ने रक्षाबंधन, दीवाली जैसे, त्योहारों को भी अपनी कविता में स्थान दिया है। अन्यत्र कवि मजदूरों तथा शोषितों का भी पक्ष लेता हुआ दिखाई देता है। फिराक ने परंपरागत भाव-बोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उन्होंने सामाजिक दुख-दर्द, व्यक्तिगत अनुभूति को शायरी में ढाला है। इंसान के हाथों इंसान पर जो गुज़रती है उसकी तल्ख सच्चाई और आने वाले कल के प्रति एक उम्मीद, दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फ़िराक ने अपनी शायरी का अनूठा महल खड़ा किया।

4. भाषा-शैली-उर्दू शायरी अपने लाक्षणिक प्रयोगों तथा चुस्त मुहावरेदारी के लिए प्रसिद्ध है। फ़िराक भी कोई अपवाद नहीं है। उन्होंने भी यत्र-तत्र न केवल मुहावरों का प्रयोग किया है, बल्कि लाक्षणिक प्रयोग भी किए हैं। उन्होंने साधारण-जन से अपनी बात कही है। यही कारण है कि उनकी शैली में प्रकृति, मौसम और भौतिक जगत के सौंदर्य का यथार्थ वर्णन हुआ है। जहाँ तक उर्दू भाषा का प्रश्न है, उन्होंने उर्दू के साथ-साथ फ़ारसी के शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है। कही-कहीं वे हिंदी के साथ-साथ देशज भाषा का भी मिश्रण करते हैं। उनका शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावानुकूल है। फ़िराक ने हिंदी में भी रुबाइयाँ लिखी हैं और इन रुबाइयों में सहज एवं सरल प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया है। एक उदाहरण देखिए

दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए

रुबाइयाँ कविता का सार

प्रश्न-
फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत रुबाइयों में कवि ने नन्हें शिशु की अठखेलियों और माँ के वात्सल्य भाव का सुंदर वर्णन किया है। माँ अपने शिशु को लेकर अपने आँगन में खड़ी है। वह कभी उसे झुलाती है और कभी हवा में उछालती है। इससे बालक खिलखिलाकर हँसने लगता है। पुनः माँ अपने नन्हें बालक को पानी में नहलाती है और उसके उलझे बालों को कंघी से सुलझाती है। शिशु माँ के घुटनों में से माँ के मुख को देखता है। दीवाली की सायंकाल को सारा घर सजाया जाता है। चीनी के खिलौने घर में जगमगाते हैं। सुंदर माँ अपने दमकते मुख से बच्चे के घरौंदे में दीपक जलाती है। एक अन्य दृश्य में कवि कहता है कि बच्चा चाँद लेने की जिद करता है। माँ उसे दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब दिखाती है और कहती है कि देखो चाँद शीशे में उतर आया है। रक्षाबंधन के पर्व के अवसर पर आकाश में हल्की-हल्की घटाएँ छा जाती हैं। एक छोटी-सी लड़की बिजली के समान चमकते लच्छों वाली राखी अपने भाई की कलाई पर बांधती है। इन रुबाइयों में कवि ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का बड़ा मनोरम वर्णन किया है।

गज़ल कविता का सार

प्रश्न-
फिराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गज़ल’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘गज़ल’ में फ़िराक गोरखपुरी ने निजी प्रेम का वर्णन किया है। भले ही गज़ल का प्रत्येक शेर स्वतंत्र अस्तित्व रखता हो, परंतु इस गज़ल में एक संगति दिखाई देती है। कवि प्रकृति के उद्दीपन रूप का वर्णन करते हुए कहता है कि कलियों से नवरस छलकने लगा है और चारों ओर सुगंध फैल रही है। रात्रि के सन्नाटे में तारे आँखें झपका रहे हैं जिससे कवि को लगता है कि सन्नाटा कुछ बोल रहा है।
अगले शेर में कवि अपनी किस्मत को कोसता हुआ दिखाई देता है, क्योंकि उसे अपनी प्रिया का प्रेम प्राप्त नहीं हो सका। कवि के प्रेम को लेकर लोग उसकी निंदा और आलोचना करते हैं। लेकिन कवि का विचार है कि ऐसे निंदक लोग स्वयं बदनाम होते हैं। इससे कवि बदनाम नहीं होता।

कवि स्वीकार करता है कि प्रेम के कारण भले ही वह दीवानगी तक पहुंच गया है, फिर भी वह विवेकशील बना हुआ है। विरह की पीड़ा कवि को अत्यधिक व्यथित कर रही है, परंतु कवि को दुनियादारी का ध्यान है। इसलिए वह चुपचाप रोकर अपने दर्द को प्रकट करता है। पुनः कवि का कथन है कि प्रेम में प्रेमी की प्रकृति का विशेष महत्त्व होता है। जो प्रेमी जितना अधिक स्वयं को खो देता है, वह उतना ही गहरे प्रेम को प्राप्त करता है। कवि स्वीकार करता है कि विरह के कारण उसका प्रत्येक शेर आँसुओं में डूबा हुआ है। कवि कहता है कि रात्रि के समय देवता लोगों के पापों का लेखा-जोखा करते हैं। लेकिन कवि शराबखाने में बैठा हुआ अपनी प्रेयसी को याद करता है। अंत में कवि अपनी प्रशंसा करते हुए कहता है कि उसकी गज़लों पर मीर की गज़लों का प्रभाव है।

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HBSE 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Bhag 2 Haryana Board

Haryana Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions शेमुषी भाग 2

HBSE 10th Class Sanskrit Grammar Book Solutions

खण्डः ‘क’-अपठित-अवबोधनम्

खण्डः ‘ख’-रचनात्मक कार्यम्

खण्डः ‘ग’-अनुप्रयुक्त-व्याकरणम्

खण्डः ‘घ’ पठित-अवबोधनम्

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh गद्य-खण्ड

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HBSE 12th Class Hindi अभिव्यक्ति और माध्यम

HBSE 12th Class Hindi व्याकरण

HBSE 12th Class Hindi अपठित बोध

HBSE 12th Class Hindi Anivarya (Compulsory) Question Paper Design

Class: 12th
Subject: Hindi
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 80
Time: 3 Hours

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKUASTotal
Percentage of Marks354520100
Marks28361680

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions44106 (4sub part)24
Marks Allotted2016202480
Estimated Time60564024180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
1. आरोह भाग-2 (पद्य भाग)25
2. आरोह भाग-2 (गद्य भाग)20
3. वितान पूरक पुस्तक10
4. अभिव्यक्ति और माध्यम15
5. पाठ आधारित व्याकरण : संधि, समास, वाक्य शोधन, अलंकार (उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास यमक, मानवीकरण, श्लेष, पुनरूक्ति प्रकाश)10
Total80

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long Answer Question i.e. Essay Type in Two Questions

6. Difficulty Level:
Difficult: 10% Marks
Average: 50% Marks
Easy: 40% Marks

Abbreviations: K (Knowledge), U (Understanding), A (Application), E (Essay Type), SA (Short Answer Type), VSA (Very Short Answer Type), O (Objective Type)

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

HBSE 12th Class Hindi पतंग Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
‘सबसे तेज़ बौछारें गयीं, भादो गया’ के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
भादो महीने के काले बादल अब छंट गए हैं और सारा आकाश साफ हो गया है। मूसलाधार वर्षा अब समाप्त हो गई है। इसके बाद खरगोश की लाल-भूरी आँखों जैसा शरदकालीन सवेरा उदय हो गया है। संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण उज्ज्वल तथा धुला-धुला सा लग रहा है। चारों तरफ धूप चमक रही है और प्रकृति में उज्ज्वल निखार आ गया है। धीमी-धीमी हवा चल रही है और आकाश भी कोमल लगने लगा है। बच्चे समझ गए हैं कि पतंगबाजी की ऋतु आ गई है।

प्रश्न 2.
सोचकर बताएँ कि पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर:
यहाँ कवि पाठकों के सामने पतंग के रूप-रंग और उसके हलकेपन का वर्णन करना चाहता है। कवि पतंग की विशेषता बताते हुए लिखता है कि वह सबसे हलकी, सबसे रंगीन और सबसे पतली है। पतंग में सबसे पतले कागज़ और बाँस की सबसे पतली कमानी का प्रयोग किया गया है। पतंग की ये विशेषताएँ बच्चों को बलपूर्वक अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं और उनके मन में पतंग के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करती हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

प्रश्न 3.
बिंब स्पष्ट करें –
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके।
उत्तर:

  1. आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए – स्पर्श बिंब
  2. सवेरा हुआ – दृश्य (स्थिर) बिंब
  3. पतंग ऊपर उठ सके – दृश्य (स्थिर) बिंब
  4. घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से – श्रव्य बिंब
  5. तेज़ बौछारें – दृश्य (गतिशील) बिंब
  6. पुलों को पार करते हुए। – दृश्य (गतिशील) बिंब
  7. चमकीले इशारों से बुलाते हुए – दृश्य (गतिशील) बिंब
  8. खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा – दृश्य (स्थिर) बिंब
  9. अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए – दृश्य (गतिशील) बिंब

प्रश्न 4.
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास-कपास के बारे में सोचें कि कपास से बच्चों का क्या संबंध बन सकता है?
उत्तर:
कपास बड़ी कोमल, गद्देदार और हलकी होती है। वह चोट को आसानी से सहन कर लेती है। बच्चों में कपास के गुण देखे जा सकते हैं। वे हलके-फुलके शरीर वाले होते हैं। उनका कोमल तथा छरहरा शरीर आसानी से चोट को सहन कर लेता है। उनके पाँवों की तलियाँ कपास जैसी कोमल होती हैं। ऊँचाई से कूदने पर भी उन्हें चोट नहीं लगती, बल्कि उन्हें कठोर छत भी कोमल लगने लगती है।

प्रश्न 5.
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं बच्चों का उड़ान से कैसा संबंध बनता है?
उत्तर:
जिस प्रकार पतंग आकाश में उड़ती हुई ऊँचाइयों का स्पर्श कर लेती है, उसी प्रकार बच्चे भी छतों पर उड़ते हुए दिखाई देते हैं। पतंग को उड़ता देखकर बच्चों में उत्साह तथा उमंग भर जाती है। ऐसी स्थिति में बच्चे खतरनाक ऊँचाइयों की भी परवाह नहीं करते। उन्हें दीवारों से गिरने का भी डर नहीं होता। वे अपने शरीर के तरंगित संगीत की लय पर पतंग के समान उड़ते हुए दिखाई देते हैं। छत पर वे यहाँ से वहाँ भागते दिखाई देते हैं। इसलिए कवि को लगता है कि बच्चे पतंगों के साथ उड़ रहे हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए
(क) छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए

(ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं।
→ दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?
→ जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है?
→ खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं?
उत्तर:
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का तात्पर्य है कि जब बच्चे पतंग उड़ाते समय ऊँची दीवारों से छतों पर कूदते हैं तो उनके पैरों से एक मनोरम संगीत उत्पन्न होता है। ऐसा लगता है कि आस-पास मृदंग बज रहा है और उसकी मधुर ध्वनि सभी ओर गूंज रही है।
→ पतंग उड़ाते समय बच्चों का ध्यान केवल पतंग उड़ाने में लगा रहता है। उनका उत्साह, उमंग तथा निराशा पतंग के साथ जुड़ी होती है। अन्य बातों का बच्चों से कोई मतलब नहीं होता। जब वे कठोर छतों पर कूदते हैं तो उन्हें छतों की कठोरता अनुभव नहीं होती। ऐसा लगता है कि मानों वे पतंग के साथ उड़ रहे हैं।

→ जब मनुष्य एक बार खतरनाक परिस्थितियों का सामना कर लेता है तब उसमें निर्भीकता उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में मनुष्य सुनहले सूर्य के समान चमकने लगता है। उसका आत्मविश्वास कई गुणा बढ़ जाता है तथा वह कठिन-से-कठिन परिस्थिति का सामना करने में समर्थ हो जाता है।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर आपके मन में कैसे ख्याल आते हैं? लिखिए।
उत्तर:
आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को उड़ता देखकर मेरे मन में विचार आता है कि मैं भी पतंग की तरह पक्षी के समान उन्मत्त होकर उड़ता रहूँ। पतंग के उड़ने में कुछ सीमाएँ हैं, क्योंकि उसकी डोर किसी के हाथ में होती है। वह आकाश में अपनी इच्छा से नहीं उड़ सकती। परंतु पक्षी तो अपनी इच्छानुसार आकाश में उड़ सकता है तथा खुली हवाओं का आनंद लेता है। मैं भी पक्षी बनकर हवा में उड़ना चाहता हूँ। ऐसी स्थिति में मुझे न स्कूल की चिंता होगी, न ही किताबों की।

प्रश्न 2.
‘रोमांचित शरीर का संगीत’ का जीवन के लय से क्या संबंध है?
उत्तर:
रोमांचित शरीर का संगीत’ जीवन की लय से उत्पन्न होता है। जब बच्चे पतंग उड़ाने में लीन हो जाते हैं तो उनके शरीर में एक लय आ जाती है। वे एकाग्र मन से पतंग उड़ाते हैं और उनका शरीर भी रोमांचित हो उठता है। उस समय उनके मन में उत्पन्न होने वाले संगीत में लय होती है और एक गति होती है जिसका वे पूरा आनंद उठाते हैं।

प्रश्न 3.
‘महज एक धागे के सहारे, पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ’ उन्हें (बच्चों को) कैसे थाम लेती हैं? चर्चा करें।
उत्तर:
पतंग उड़ाते समय बच्चों का ध्यान पतंग की ऊँचाइयों पर केंद्रित होता है, परंतु पतंग की डोर उनके हाथ में होती है जिससे वे पतंग पर पूरा नियंत्रण रखते हैं। उनका मन पतंग पर टिक जाता है। बच्चों का शरीर यंत्र के समान निरंतर पतंग के साथ-साथ चलता है। पतंग का धागा न केवल पतंग को नियंत्रित करता है, बल्कि पतंग उड़ाने वाले बच्चों को भी नियंत्रित करता है।

आपकी कविता

प्रश्न 1.
हिंदी साहित्य के विभिन्न कालों में तुलसी, जायसी, मतिराम, द्विजदेव, मैथिलीशरण गुप्त आदि कवियों ने भी शरद ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। आप उन्हें तलाश कर कक्षा में सुनाएँ और चर्चा करें कि पतंग कविता में शरद ऋतु वर्णन उनसे किस प्रकार भिन्न है?

प्रश्न 2.
आपके जीवन में शरद ऋतु क्या मायने रखती है?
उत्तर:
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी इन्हें अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

HBSE 12th Class Hindi पतंग Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए –
कि पतंग ऊपर उठ सके –
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके –
दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके –
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके –
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया
उत्तर:
(i) कवि की कल्पनाशीलता सराहनीय है। पतंग के ऊपर उठने की मनोरम कल्पना की गई है।
(ii) ‘उड़ सके’ की आवृत्ति से कविता में गतिशीलता उत्पन्न हो गई है।
(iii) सीटियों, किलकारियों, तितलियों आदि बहुवचनात्मक शब्दों के प्रयोग के कारण भाषा शिल्प में सौंदर्य उत्पन्न हो गया है।
(iv) संपूर्ण पद्य में बिंबात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।
‘पतंग ऊपर उठ सके’ में दृश्य बिंब है।
‘दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके’ में भी दृश्य बिंब है।
‘तितलियों की इतनी नाज़क दुनिया’ में श्रव्य बिंब है।
(v) पतली कमानी, सीटियों, किलकारियों तथा तितलियों में स्वर मैत्री है।
(vi) सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग है।
(vii) शब्द-योजना सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
(viii) मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है तथा प्रसाद गुण है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए –
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
उत्तर:
(i) यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि बच्चों में जन्म से ही चोट, खरोंच आदि सहन करने की क्षमता विकसित हो जाती है। उनके शरीर की हड्डियाँ लचीली होती हैं। अतः कपास के समान किसी चीज़ से टकराने पर भी उन्हें चोट नहीं लगती और वे ज़मीन पर यहाँ-वहाँ अबाध गति से बेसुध होकर भागते हैं।

(ii) ‘पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास’, तथा ‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए’ में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(iii) संपूर्ण पद्यांश में ‘बेचैन पैर’, ‘पेंग भरते हुए’, ‘डाल की तरह लचीले वेग’ आदि का सार्थक एवं प्रभावशाली प्रयोग हुआ है।

(iv) इन तीनों में उपमा अलंकार का भी सुंदर प्रयोग हुआ है।

(v) सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है जिसमें तत्सम, तद्भव तथा उर्दू के शब्दों का सुंदर मिश्रण देखा जा सकता है।
तत्सम पृथ्वी, दिशा, मृदंग, वेग आदि
तद्भव-अपने, साथ, कपास, घूमती आदि
उर्दू-नरम, बेचैन, बेसुध

(vi) शब्द-योजना सर्वथा सटीक एवं सार्थक है।

(vii) बिंबात्मकता के कारण भाव खिल उठे हैं
(क) ‘पृथ्वी घूमती हुई आती है, जब वे दौड़ते हैं बेसुध’ में दृश्य बिंब का प्रयोग हुआ है।
(ख) ‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए’ में श्रव्य बिंब है।

(viii) मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है तथा प्रसाद गुण है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास।
उत्तर:
(i) इस पद्य में कवि ने पतंग उड़ाते हुए बच्चों की उमंग तथा मस्ती का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है।
(ii) संपूर्ण पद्य में लाक्षणिक पदावली का प्रयोग है। उदाहरण के लिए बच्चों का पतंग के साथ-साथ उड़ना लाक्षणिक प्रयोग कहा जा सकता है। ‘सूरज के सामने आने पर’ का लक्ष्यार्थ है-उमंग तथा उल्लास के साथ आगे बढ़ना।
(iii) ‘पृथ्वी का तेज़ घूमते हुए बच्चों के पास आना’ में मानवीकरण अलंकार है।
(iv) ‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार और ‘सुनहले सूरज’ में अनुप्रास अलंकार की छटा देखने योग्य है।
(v) सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें संस्कृत तथा उर्दू शब्दों का सुंदर मिश्रण देखा जा सकता है।
(vi) पृथ्वी और भी तेज़ घूमती आती है तथा उनके बेचैन पैरों के पास आदि में दृश्य बिंब की सुंदर योजना हुई है।
(vii) मुक्त छंद का प्रयोग है तथा प्रसाद गुण है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पतंग’ कविता का प्रतिपाद्य/मूलभाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘पतंग’ कविता के माध्यम से कवि ने वर्षा ऋतु के पश्चात् शरद ऋतु के आगमन के अवसर पर पतंग उड़ाने वाले बच्चों के उत्साह का सजीव वर्णन किया है। शरद ऋतु एक खिलखिलाती हुई सुंदर ऋतु होती है। इस ऋतु में आकाश निर्मल और स्वच्छ हो जाता है। चमकीली धूप मानों उत्साही बच्चों को अपनी नई साइकिल को तेज़ चलाते हुए चमकीले इशारे करती है। आकाश में हल्की रंगीन, पतली कमानी वाली पतंगें उड़ने लगती हैं। चारों ओर बच्चों के झुंड किलकारियाँ तथा सीटियाँ बजाते नज़र आते हैं। ऐसा लगता है मानों आकाश में रंगीन तितलियों के समूह उड़ रहे हैं। छतों तथा दीवारों पर कूदते तथा फाँदते बच्चे कपास के समान कोमल लगते हैं। उनके कदमों से छतें भी नरम हो जाती हैं तथा दिशाएँ मृदंग के समान मधुर ध्वनि उत्पन्न करने लगती हैं। बच्चों के शरीर पेंग भरते हुए तीव्र गति से यहाँ-वहाँ कूदते रहते हैं। रोमांचित शरीर के फलस्वरूप वे खतरनाक किनारों से भी बच जाते हैं। लगता है कि वे पतंग के साथ उड़े जा रहे हैं। यदि कभी-कभार वे छत से गिर भी जाते हैं तो वे निर्भीक होकर उठ खड़े होते हैं। उनके पैर सारी धरती पर घूमने के लिए बेचैन नज़र आते हैं।

प्रश्न 2.
पठित कविता के आधार पर भादो और शरद ऋतु में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भादो के महीने में आकाश काले बादलों से घिरा रहता है और अकसर मूसलाधार वर्षा होती रहती है। काले बादलों के कारण दिन में भी अंधकार होता है। परंतु शरद ऋतु आते ही आकाश स्वच्छ और निर्मल हो जाता है। शरद ऋतु का सवेरा खरगोश की आँखों की तरह लाल होता है। आकाश में सूर्य की तेज धूप चमकती है तथा आकाश स्वच्छ तथा निर्मल होता है।

प्रश्न 3.
पतंगबाजों की मानसिकता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘पतंग’ आलोक धन्वा की सुप्रसिद्ध काव्य रचना है। इसके माध्यम से कवि ने पतंग उड़ाने वाले बच्चों की मानसिकता को उजागर किया है। पतंग उड़ाते समय बच्चों की बाल सुलभ इच्छाओं और उमंगों को कल्पनाओं के पंख लग जाते हैं। पतंग की उड़ान के साथ-साथ वे भी आकाश में उड़ान को अनुभव करते हैं। पतंग उड़ाने वाले बच्चे अपेक्षाकृत अधिक उत्साही और निडर होते हैं। वे छतों के खतरनाक किनारों पर खड़े होकर भी अपनी पतंग उड़ाते हैं। पतंग उड़ाते समय खुरदरी छतें भी उन्हें कोमल लगती हैं। इस प्रकार पतंगबाज बच्चों की मानसिकता उत्साह, उमंग और निडरता से परिपूर्ण रहती है।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता में कवि ने किस प्रकार के प्रतीकों का प्रयोग किया है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में तीन प्रकार के बिंबों का सफल प्रयोग देखा जा सकता है। तेज़ बौंछारें, सवेरा हुआ, खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा, पुलों को पार करते हुए, अपनी नई तेज़ साइकिल चलाते हुए आदि गतिशील बिंबों की योजना है। इसी प्रकार घंटी बजाते हुए, ज़ोर-ज़ोर से, शुरू हो सके, शोर मचाते हुए, सीटियाँ बजाते हुए में श्रव्य बिंबों की योजना हुई है। आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए, छतों को भी नरम बनाते हुए आदि में स्पर्श बिंबों की योजना है।

प्रश्न 5.
पतंग उड़ाते हुए बच्चे बेसुध कैसे हो जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बच्चों को पतंग उड़ाने का बड़ा शौक होता है। पतंग उड़ाते समय वे मानों आकाश में पतंग के साथ उड़ने लगते हैं। इस अवसर पर न उन्हें दीन-दुनिया की खबर होती है, न उन्हें धूप, गरमी लगती है और न ही भूख-प्यास। वे खतरनाक दीवारों पर निडर होकर उछलते-कूदते चलते हैं। यदि वे कभी खतरनाक छतों से गिर भी जाते हैं तो और भी निर्भीक हो जाते हैं और फिर से पतंग उड़ाने लगते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

प्रश्न 6.
छत से गिरने पर उन्हें कौन बचाता है?
उत्तर:
पतंगबाज़ी करते समय बच्चों का छत से गिरने का भय बना रहता है। वे इस कदर बेसुध होकर दौड़ते हैं कि छत के किनारों पर खतरा भी उन्हें विचलित नहीं कर पाता। बच्चे लचीली डाल के समान छत के किनारे पर आकर झुक जाते हैं। इस अवसर पर भीतर का रोमांच ही उन्हें बचा लेता है। पतंग की नाजुक डोर मानों बच्चों को थाम लेती है और वे गिरने से बच जाते हैं।

प्रश्न 7.
“किशोर और युवा वर्ग समाज का मार्गदर्शक हैं”-‘पतंग’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किशोर और युवा वर्ग में खतरा उठाने की शक्ति होती है। वे अपने लक्ष्य को पाने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। वे अपनी धुन में मस्त होकर काम करते हैं। उनके मन में गगन की ऊँचाइयों को पा लेने की क्षमता होती है। उनमें उत्साह, उमंग तथा आत्मविश्वास होता है। बच्चे हमारे समाज के लिए प्रेरणा का काम करते हैं। इस संदर्भ में पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम ने स्वीकार किया है-“बच्चों की आँखों में महाशक्ति भारत की नींव है।” निश्चय से बच्चे हमारे देश का उज्ज्वल भविष्य हैं।

प्रश्न 8.
पृथ्वी का घूमते हुए बच्चों के पैरों के पास आने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह एक सच्चाई है कि पृथ्वी निरंतर घूमती रहती है। बच्चे भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए पतंग के पीछे भागते रहते हैं। ऐसा लगता है कि मानों बच्चे दौड़कर सारी पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं। पतंगबाज़ी करते हुए बच्चे इतने रोमांचकारी हो उठते हैं कि वे अपनी उमंग तथा उल्लास में सारी पृथ्वी को नापकर आनंद प्राप्त करना चाहते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. आलोक धन्वा का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1947 में
(B) सन् 1948 में
(C) सन् 1946 में
(D) सन् 1950 में
उत्तर:
(B) सन् 1948 में

2. आलोक धन्वा का जन्म किस राज्य में हुआ?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) दिल्ली
(C) बिहार
(D) मध्य प्रदेश
उत्तर:
(C) बिहार

3. ‘पतंग’ कविता के रचयिता का नाम बताइए।
(A) रघुवीर सहाय
(B) हरिवंशराय बच्चन
(C) कुँवर नारायण
(D) आलोक धन्वा
उत्तर:
(D) आलोक धन्वा

4. आलोक धन्वा का जन्म बिहार के किस जनपद में हुआ?
(A) मुंगेर
(B) सारसा
(C) पटना
(D) मुज़फ्फरनगर
उत्तर:
(A) मुंगेर

5. आलोक धन्वा की प्रथम कविता का नाम क्या है?
(A) पतंग
(B) ब्रूनो की बेटियाँ
(C) जनता का आदमी
(D) नदी दौड़ती है
उत्तर:
(C) जनता का आदमी

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6. ‘जनता का आदमी’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) 1973 में
(B) 1972 में
(C) 1975 में
(D) 1971 में
उत्तर:
(B) 1972 में

7. आलोक धन्वा के एकमात्र काव्य संग्रह का नाम क्या है?
(A) दुनिया रोज़ बनती है
(B) भागी हुई लड़कियाँ
(C) ब्रूनो की बेटियाँ
(D) आत्महत्या के विरुद्ध
उत्तर:
(A) दुनिया रोज़ बनती है

8. ‘भागी हुई लड़कियाँ के कवि का नाम है
(A) मुक्तिबोध
(B) रघुवीर सहाय
(C) कुँवर नारायण
(D) आलोक धन्वा
उत्तर:
(D) आलोक धन्वा

9. बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् ने आलोक धन्वा को किस पुरस्कार से सम्मानित किया?
(A) पहल सम्मान
(B) राहुल सम्मान
(C) साहित्य सम्मान
(D) भोजपुरी सम्मान
उत्तर:
(C) साहित्य सम्मान

10. किस कवि को ‘पहल सम्मान’ प्राप्त हुआ?
(A) कुँवर नारायण
(B) हरिवंश राय बच्चन
(C) आलोक धन्वा
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(C) आलोक धन्वा

11. ‘ब्रूनो की बेटियाँ’ काव्य रचना किस कवि द्वारा रचित है?
(A) रघुवीर सहाय
(B) हरिवंशराय बच्चन
(C) आलोक धन्वा
(D) मुक्तिबोध
उत्तर:
(C) आलोक धन्वा

12. किस कवि की रुचि काव्य रचना की अपेक्षा सामाजिक कार्यक्रमों में अधिक है?
(A) रघुवीर सहाय
(B) आलोक धन्वा
(C) कुँवर नारायण
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(B) आलोक धन्वा

13. ‘पतंग’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) मुक्त छंद
(B) सवैया छंद
(C) दोहा छंद
(D) कवित्त छंद
उत्तर:
(A) मुक्त छंद

14. ‘पतंग’ कविता किसके लिए प्रसिद्ध है?
(A) प्रतीकों के लिए
(B) व्यंग्यार्थ के लिए
(C) चित्र-विधान के लिए।
(D) बिंब-विधान के लिए
उत्तर:
(D) बिंब-विधान के लिए

15. ‘भादो’ महीना किस ऋतु में आता है?
(A) शरद
(B) ग्रीष्म
(C) हेमंत
(D) वर्षा
उत्तर:
(D) वर्षा

16. पतंग उड़ाते हुए बच्चे किसके सहारे स्वयं भी उड़ते से हैं?
(A) फेफड़ों के
(B) रंध्रों के
(C) साहस के
(D) शक्ति के
उत्तर:
(B) रंध्रों के

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

17. उड़ाई जाने वाली सबसे हलकी और रंगीन चीज क्या है?
(A) पतंग
(B) तितली
(C) वायुयान
(D) राकेट
उत्तर:
(A) पतंग

18. पतंगों की ऊँचाइयाँ कैसी कही गई हैं?
(A) फड़कती
(B) कड़कती
(C) धड़कती
(D) सरकती
उत्तर:
(C) धड़कती

19. ‘खरगोश की आँखों जैसा लाल’ किसे कहा गया है?
(A) लाल सवेरा
(B) बौछार
(C) पतंग
(D) पतला कागज
उत्तर:
(A) लाल सवेरा

20. ‘पतंग’ कविता में तितलियों की इतनी नाज़क दुनिया से कवि का अभिप्राय क्या है?
(A) आकाश में रंगीन तितलियाँ उड़ रही हैं।
(B) तितलियाँ आकाश में उड़कर इसे कोमल बनाती हैं
(C) तितलियों का शरीर कोमल होता है ।
(D) रंगीन पतंगों का कोमलमय संसार
उत्तर:
(D) रंगीन पतंगों का कोमलमय संसार

21. ‘पतंग’ नामक कविता में ‘चमकीले’ विशेषण किसके लिए प्रयुक्त किया गया है?
(A) पतंगों के लिए
(B) शरद के लिए
(C) दिशाओं के लिए
(D) इशारों के लिए
उत्तर:
(B) शरद के लिए

22. ‘सुनहले सूरज’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) यमक
(C) वक्रोक्ति
(D) उपमा
उत्तर:
(A) अनुप्रास

23. छत से गिरने और बचने के बाद बच्चे क्या बन जाते हैं?
(A) निडर
(B) डरपोक
(C) ईर्ष्यालु
(D) सहनशील
उत्तर:
(A) निडर

24. ‘जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास’ में ‘कपास’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
(A) रूई
(B) कोमलता
(C) चंचलता
(D) हलकापन
उत्तर:
(B) कोमलता

25. पतंग उड़ाने वाले बच्चे दिशाओं को किसके समान बजाते हैं?
(A) ढोलक के समान
(B) वीणा के समान
(C) बाँसुरी के समान
(D) मृदंग के समान
उत्तर:
(D) मृदंग के समान

26. पतंगबाजों के पैर कैसे कहे गए हैं?
(A) साफ
(B) बेचैन
(C) सुन्दर
(D) सपाट
उत्तर:
(B) बेचैन

पतंग पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके-
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके-
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाज़क दुनिया [पृष्ठ-11]

शब्दार्थ-भादो = एक महीना जिसमें मूसलाधार वर्षा होती है। शरद = सर्दी का प्रथम माह। झुंड = समूह । मुलायम = कोमल। किलकारी = खुशी से चिल्लाना। नाजुक = कोमल।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘पतंग’ से अवतरित है। इसके कवि आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु के पश्चात् बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने के उत्साह का सजीव वर्णन किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि भादो का महीना अब बीत गया है। उसके साथ-साथ मूसलाधार वर्षा भी अब बंद हो गई है। अब अंधेरे के बाद एक नवीन सवेरा हो गया है अर्थात् अब आकाश साफ है। खरगोश की आँखों के समान शरदकालीन लाल-भूरा सवेरा हो गया है। शरद ऋतु आरंभ हो चुकी है। चारों ओर उमंग तथा उत्साह का वातावरण फैल गया है। पुलों को पार करते हुए नई चमकीली साइकिलों पर सवार होकर बच्चे ज़ोर-ज़ोर से घंटियाँ बजाते हुए बड़ी तीव्र गति से चले आ रहे हैं। वे बड़े ही आकर्षक इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों को निमंत्रण देते हुए आकाश को अत्यधिक कोमल बना रहे हैं। भाव यह है कि बच्चे साइकिलों पर सवार होकर एक-दूसरे को पतंगबाज़ी के लिए बुला रहे हैं। बच्चों में अद्भुत उत्साह और उमंग है। धूप चमक रही है। बच्चे बड़े खुश नज़र आ रहे हैं और एक-दूसरे को पतंग उड़ाने के लिए बुला रहे हैं।

शरद ऋतु रूपी बालक ने आकाश को अत्यधिक कोमल और उज्ज्वल बना दिया है, ताकि आकाश की ऊँचाइयों को पतंग स्पर्श कर सकें। आकाश भी चाहता है कि पतंग ऊपर उठकर हवा के साथ तैरने लगे। पतंग संसार की सर्वाधिक हलकी और रंगीन वस्तु है जो कि बहुत ही पतले कागज़ से बनाई जाती है। आकाश रूपी बालक चाहता है कि वह उड़कर ऊपर उठे और उसके साथ बाँस की पतली कमानी भी उड़ने लगे। जब आकाश में पतंग उड़ने लगी तो बच्चे खुशी के मारे सीटियाँ बजाएँगे और किलकारियाँ मारने लगेंगे। सारा आकाश पतंगों से भर जाएगा। तब ऐसा लगेगा मानों रंग-बिरंगी कोमल तितलियों का संसार आकाश में उड़ रहा है। तात्पर्य यह है कि सारा आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाएगा और बच्चे सीटियाँ बजाकर तथा किलकारियाँ मारकर एक-दूसरे का उत्साह बढ़ाएँगे।

विशेष-
(1) कवि ने शरद ऋतु में बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने के दृश्य का मनोरम वर्णन किया है।
(2) ‘खरगोश की आँखों जैसा लाल’ में उपमा अलंकार का प्रयोग है।
(3) प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
(4) संपूर्ण पद्य में दृश्य, श्रव्य तथा स्पर्श बिंबों की सुंदर योजना हुई है।
(5) ‘ज़ोर-ज़ोर से’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
(6) सहज, सरल तथा आडम्बरहीन सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
(7) शब्द-प्रयोग सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
(8) संपूर्ण पद्य में मुक्त छंद की सुंदर योजना है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम बताइए।
(ख) कवि ने शरद ऋतु के आगमन को किस प्रकार प्रस्तुत किया है?
(ग) कवि ने पतंग की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
(घ) शरद ऋतु के आने पर बच्चे किस प्रकार की क्रियाएँ करते हैं?
(ङ) तितलियों की नाज़क दुनिया से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-आलोक धन्वा। कविता का नाम ‘पतंग’।
(ख) शरद ऋतु का आगमन बच्चों में एक नवीन उत्साह व उमंग भर देता है। इस ऋतु में चारों ओर चहल-पहल बढ़ जाती है। बच्चे साइकिलों पर सवार होकर घंटियाँ बजाते हुए एक-दूसरे को पतंग उड़ाने के लिए इशारे करते हैं।
(ग) पतंग रंग-बिरंगे तथा पतले कागज़ से बनी होती है, उनमें बांस की सबसे पतली कमानी लगी रहती है और वे सुंदर तितलियों के समान आकाश में उड़ती हैं।
(घ) शरद ऋतु के आते ही चारों ओर बच्चों की चहल-पहल मच जाती है। वे खेल-कूद करते हैं और नई-नई साइकिलों पर सवार होकर घंटियाँ बजाते हैं। पतंग उड़ाते समय किलकारियाँ मारते हैं तथा सीटियाँ बजाते हैं। इस ऋतु में बच्चों को आकाश बड़ा ही कोमल और सुंदर लगता है।
(ङ) तितलियों की नाज़क दुनिया से कवि का अभिप्राय है-रंगीन पतंगों का आकर्षक संसार। रंगीन पतंगें कोमल आकाश में तितलियों की तरह मँडराती हैं और हवा में लहराती हैं।

[2] जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे [पृष्ठ 11-12]

शब्दार्थ-कपास = कोमल तथा गद्देदार अनभतियाँ। बेसध = मस्त और लापरवाह। नरम = कोमल। मृदंग = एक वाद्य यंत्र जिसकी ध्वनि बड़ी मधुर होती है। पेंग भरना = झूले झूलना। लचीले वेग = लचीली चाल। रोमांचित= प्रसन्न। संगीत = मस्त गति। थाम लेना = पकड़ लेना। महज = केवल। रंध्र = छिद्र।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘पतंग’ से अवतरित है। इसके कवि आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने लाक्षणिक भाषा का प्रयोग करते हुए बच्चों की क्रियाओं पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या कवि कहता है कि बच्चे जन्म से ही अपने साथ कपास जैसी कोमलता लेकर आते हैं। भाव यह है कि उनके शरीर में हर प्रकार की चोट और खरोंच सहन करने की शक्ति होती है। उनके पैरों में एक बेचैनी होती है जिसके कारण वे संपूर्ण पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं। जब बच्चे बेपरवाह होकर दौड़ने लगते हैं तो वे छतों को भी कोमल समझने लगते हैं। उनकी गति के कारण दिशाएँ मृदंग के समान मधुर ध्वनि उत्पन्न करने लगती हैं। जब वे तीव्र गति के साथ झूला झूलते हुए चलते हैं, तो वे पेड़ की शाखा के समान ढीले पड़ जाते हैं। उस समय उनकी गति में एक प्रखर वेग होता है, उन्हें किसी प्रकार का डर नहीं होता। छतों के

खतरनाक किनारों पर भी वे कदम रखते हुए आगे बढ़ते हैं। उस समय उनका प्रसन्न शरीर ही उन्हें गिरने से बचाता है। पतंग उड़ाते समय उनका संपूर्ण शरीर रोमांचित हो उठता है। पतंग की ऊपर जाती धड़कनें उन्हें गिरने से रोक लेती हैं। उस समय ऐसा प्रतीत होता है मानों पतंग का केवल एक धागा बच्चों को संभाल लेता है और वे नीचे गिरने से बच जाते हैं। यहाँ कवि पतंग उड़ाने वाले बच्चों का वर्णन करता हुआ कहता है कि कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि बच्चे भी पतंगों के साथ उड़ने लगे हैं। वे अपने शरीर के रोम-कूपों से निकलने वाले संगीत का सहारा लेकर उड़ने लगते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

विशेष:
(1) इस पद्यांश में कवि ने पतंग उड़ाते हए बच्चों की बेसुध मस्ती का सजीव वर्णन किया है।
(2) बच्चों की तीव्र गति, झूलता हुआ शरीर, उनके रोमांचित अंग तथा लचीला वेग, उनके उत्साह और उमंग को व्यक्त करता है।
(3) ‘कपास’ शब्द का विशेष प्रयोग हुआ है। इस शब्द द्वारा कवि बच्चों के शरीर की लोच, नरमी तथा सहनशीलता की ओर संकेत करता है।
(4) संपूर्ण पद्य में मानवीकरण अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है; यथा-
‘पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं।
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए।
(5) संपूर्ण पद्य में दृश्य, स्पर्श तथा श्रव्य बिंबों की सुंदर योजना हुई है। कवि ने सहज, सरल अथवा सामान्य प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। इसमें तत्सम, तद्भव तथा उर्दू के शब्दों का सुंदर मिश्रण देखा जा सकता है।
तत्सम-पृथ्वी, मृदंग, दिशा, रोमांचित, संगीत।
उर्दू-नरम, खतरनाक, अकसर, सिर्फ, महज़।
(6) शब्द-योजना सटीक और भावानुकूल है।
(7) मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) ‘जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास’ इस पंक्ति का बच्चों के साथ क्या संबंध है?
(ख) बच्चे बेसुध होकर क्यों दौड़ते हैं?
(ग) छतों के खतरनाक किनारों से बच्चे कैसे बच जाते हैं?
(घ) पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें कैसे थाम लेती हैं?
उत्तर:
(क) बच्चों का शरीर बड़ा ही कोमल होता है। उनका शरीर कोमलता के साथ-साथ सहनशील भी होता है। वे चोट और खरोंच लगने के आदी हो जाते हैं। उनके शरीर में लचीलापन होता है। किसी चीज से टकराने पर उन्हें बहुत कम चोट लगती है। इसलिए कवि ने बच्चों की तुलना कपास से की है।

(ख) बच्चों के मन में पतंग उड़ाने की बेचैनी होती है। पतंगबाजी करते समय बच्चों को धूप, गर्मी, कठोर छत आदि का ध्यान नहीं रहता। वे उछलते-कूदते और पतंग की डोर को थामे हुए पतंग उड़ाने में मस्त हो जाते हैं। इसलिए वे बेसुध होकर दौड़ते हैं।

(ग) प्रायः सभी को दीवार से गिरने का डर लगा रहता है, परंतु बच्चे बेसुध होकर अपने शरीर को लहराते हुए छतों के किनारों पर झुक जाते हैं, इस अवसर पर उनके अन्दर का उत्साह और उमंग उनकी रक्षा करता है और वे गिरने से बच जाते हैं।

(घ) पतंग की ऊपर उड़ती हुई धड़कनें बच्चों को गिरने से रोक लेती हैं। उस समय पतंग की डोर बच्चों के लिए सहारे का काम करती है और वे स्वयं को सँभाल लेते हैं।

[3] अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है। उनके बेचैन पैरों के पास। [पृष्ठ-12]

शब्दार्थ-खतरनाक = भयानक। निडर = निर्भय। बेचैन = व्याकुल।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘पतंग’ से अवतरित है। इसके कवि आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र काव्यसंग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ में संकलित है। इसमें कवि ने बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने का बहुत ही सजीव व मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या-बच्चे प्रायः पतंग उड़ाते समय कभी नहीं गिरते, परंतु दुर्भाग्य से कभी वे छतों के खतरनाक किनारों से गिर भी जाते हैं तो वे बच जाते हैं और वे अधिक निर्भय हो जाते हैं। अत्यधिक उत्साह के साथ वे सुनहले सूर्य के समान प्रकाशमान हो उठते हैं। ऐसा लगता है कि वे अपने बेचैन पैरों के साथ सारी पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं, वे दुगुने उत्साह के साथ घूमते-फिरते हैं और भाग-भागकर पतंग उड़ाते हैं।

विशेष-

  1. कवि ने पतंग उड़ाते हुए बच्चों की उमंग तथा मस्ती का बड़ा प्रभावशाली वर्णन किया है।
  2. संपूर्ण पद्य में लाक्षणिक भाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  3. उदाहरण के रूप में ‘सुनहले सूरज के सामने’ आदि में लाक्षणिकता विद्यमान है।
  4. ‘पृथ्वी का तेज़ घूमते हुए बच्चों के पास आना’ में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. ‘सुनहले सूरज’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का सुंदर वर्णन हुआ है।
  6. सहज, सरल एवं प्रवाहमयी हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-योजना सटीक एवं भावानुकूल है।।
  8. संपूर्ण पद्य में दृश्य बिंब की सफल योजना हुई है।
  9. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम बताइए।
(ख) छतों के खतरनाक किनारों से बच जाने पर बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(ग) सुनहले सूरज के सामने आने का क्या अर्थ है?
(घ) पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास घूमती हुई आती है, इसका आशय क्या है?
उत्तर:
(क) कवि-आलोक धन्वा कविता-‘पतंग’।
(ख) जब बच्चे छतों के खतरनाक किनारों से बच जाते हैं तो वे और अधिक निडर हो जाते हैं। उनमें किसी भी विपत्ति और कष्ट को सहन करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। तब वे खुले आसमान में तपते हुए सुनहले सूर्य के समान दिखाई देने लगते हैं।
(ग) सुनहले सूर्य के सामने आने का अर्थ है सूर्य के समान तेज़ से युक्त होकर सक्रिय हो जाना। जिस प्रकार सूर्य अपना तीव्र प्रकाश पृथ्वी के कोने-कोने पर फैलाता है उसी प्रकार बच्चे भी पतंग उड़ाते हुए मौज-मस्ती में चारों ओर फैल जाना चाहते हैं। उनके मन का भय समाप्त हो जाता है।
(घ) ‘पृथ्वी तेज़ घूमती हुई बच्चों के बेचैन पैरों के पास आती है’ का तात्पर्य है बच्चों के पैरों में गतिशीलता पैदा होना। बच्चे पतंग उड़ाते समय मानों सारी पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं।

पतंग Summary in Hindi

पतंग कवि-परिचय

प्रश्न-
आलोक धन्वा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
आलोक धन्वा का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय आलोक धन्वा सातवें-आठवें दशक के कवि हैं। इनका नाम नई कविता से जुड़ा हुआ है। इनका जन्म सन् 1948 में बिहार के मुंगेर जनपद के एक साधारण परिवार में हुआ। बहुत छोटी अवस्था में अपनी कुछ गिनी-चुनी कविताओं के फलस्वरूप इन्होंने अपार लोकप्रियता अर्जित की। 1972-73 में इनकी जो आरम्भिक कविताएँ प्रकाशित हुईं, उन्होंने काव्य-प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया। कुछ आलोचकों का तो यह भी दावा है कि इन कविताओं का अभी तक सही मूल्यांकन ही नहीं हुआ। इसका प्रमुख कारण यह है कि आलोक धन्वा ने लीक से हटकर एक नवीन शिल्प द्वारा भावाभिव्यक्ति की है। भले ही उनको अल्पकाल ही में ख्याति प्राप्त हो गई है, लेकिन उन्होंने अधिक काव्य रचना नहीं की।

पिछले दो दशकों से वे देश के विभिन्न भागों में सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहे हैं। काव्य रचना की अपेक्षा उनकी रुचि सामाजिक कार्यक्रमों में अधिक रही है। जमशेदपुर में उन्होंने अध्ययन मंडलियों का संचालन किया। यही नहीं, उन्होंने अनेक राष्ट्रीय संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता की भूमिका भी निभाई है।

2. प्रमुख रचनाएँ-आलोक धन्वा की प्रथम कविता सन् 1972 में ‘जनता का आदमी’ शीर्षक से प्रकाशित हुई। तत्पश्चात् ‘भागी हुई लड़कियाँ’ तथा ‘ब्रूनो की बेटियाँ’ काव्य-रचनाओं से इनको विशेष प्रसिद्धि मिली। ‘गोली दागो पोस्टर’ इनकी प्रसिद्ध कविता है। इनका एकमात्र संग्रह है-‘दुनिया रोज़ बनती है।

आलोक धन्वा को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान तथा पहल सम्मान आदि से इस कवि को सम्मानित किया गया है। आलोक धन्वा सहज, सरल तथा सामान्य भाषा द्वारा आकर्षक तथा मनोहारी बिंबों की रचना करने में सिद्धहस्त हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-आलोक धन्वा समकालीन कविता के एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनके काव्य में लगभग वे सभी प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं जो समकालीन कवियों की काव्य रचनाओं में हैं। आलोक धन्वा की काव्य रचनाओं में सामाजिक चेतना के प्रति सरोकार है। आरंभ में तो वे समाज के शोषितों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए दिखाई देते हैं। इनकी कविताएँ वर्तमान समाज के ढाँचे की विडम्बनाओं को उद्घाटित करती हैं और मानवीय संबंधों पर भी प्रकाश डालती हैं। कुछ स्थलों पर वे आज की राजनीति पर करारा व्यंग्य भी करती हैं और बुनियादी मानसिकताओं पर चोट भी करती हैं। उनकी काव्य रचनाओं में बार-बार आम आदमी का स्वरूप भी उभरकर आता है। इसके साथ-साथ कवि ने युगीन रुचियों, आवेगों तथा वर्ग-संघर्ष का भी वर्णन किया है। ईश्वर के प्रति उनकी कविता में कोई खास स्थिरता नहीं है। मार्क्सवाद के प्रति आस्था होने के कारण ईश्वर के प्रति उनका विश्वास उठ गया है। हाँ, मानव के प्रति वे निरन्तर अपना सरोकार दिखाते हैं।

आज दिन-प्रतिदिन की निराशा, खटास, दुःख, पीड़ा आदि के फलस्वरूप मानव-जीवन अलगावबोध का शिकार बनता जा रहा है। आलोक धन्वा सच्चाई से पूर्णतया अवगत रहे हैं। वे मानव-जीवन की इस त्रासदी को उकेरने में भी सफल रहे हैं। ‘जनता का आदमी’ में वे कहते हैं

क्यों पूछा था एक सवाल मेरे पुराने पड़ोसी ने
मैं एक भूमिहीन किसान हूँ
क्या मैं कविता को छू सकता हूँ?
इसके अतिरिक्त उनकी काव्य रचनाओं में आधुनिक युग की विसंगतियों का वर्णन भी देखा जा सकता है। कहीं-कहीं वे महानगरीय बोध से जुड़ी हुई भावनाएँ व्यक्त करते हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि आलोक धन्वा ने आम आदमी के जीवन से जुड़ी समस्याओं का अधिक वर्णन किया है। ‘पतंग’ नामक लम्बी कविता में उन्होंने पतंग जैसी साधारण वस्तु को काव्य का विषय बनाया है और उसके माध्यम से बच्चों में उमंग और उल्लास का मनोहारी वर्णन किया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग

4. अभिव्यंजना शिल्प-आलोक धन्वा एक जनवादी कवि हैं। अतः उन्होंने सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग किया है जो आधुनिक परिस्थितियों को व्यक्त करने में समर्थ है। उन्होंने देशी-विदेशी शब्दों से कोई
परहेज़ नहीं किया। मानवीय संवेदना को उकेरने के लिए उन्होंने मुहावरों में भी नयापन लाने की कोशिश की है। उनकी भाषा नवीन बिंबों तथा नवीन चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। भले ही कवि ने अलंकारों के प्रयोग पर अधिक बल नहीं दिया, लेकिन उन्होंने अलंकार प्रयोग से परहेज़ भी नहीं किया और यत्र-तत्र स्वाभाविक रूप से अलंकारों का प्रयोग किया है। भले ही उनकी कविता मुक्त छंद में लिखी गई हो, लेकिन उसमें लयात्मकता भी है। उनकी लंबी कविता ‘पतंग’ से एक उदाहरण देखिए –
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि आलोक धन्वा ने जो थोड़ा-बहुत काव्य लिखा है। वह पाठक को संवेदनशील बना देता हैं। उनके काव्य में वर्ग-संघर्ष, मानवतावाद, राजनीतिक दोगलापन, आधुनिक व्यवस्था की टूटन, युगीन चेतना आदि पर समुचित प्रकाश डाला गया है। लेकिन यह एक कटु सत्य है कि इस समकालीन कवि के काव्य का अभी तक समुचित मूल्यांकन नहीं हो पाया।

पतंग कविता का सार

प्रश्न-
आलोक धन्वा द्वारा रचित कविता ‘पतंग’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता आलोक धन्वा कवि के एकमात्र काव्य संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ में से संकलित है। यह पूरी कविता न होकर ‘पतंग’ नामक कविता का एक अंश मात्र है। इसमें कवि ने पतंग के माध्यम से बच्चों की उमंग, उल्लास तथा खुशियों का मनोहारी वर्णन किया है। यह कविता दृश्य एवं श्रव्य बिंबों के लिए प्रसिद्ध है। कवि लिखता है कि भादो के महीने के बीत जाने के बाद शरद ऋतु का सवेरा होता है। आकाश से काले बादल छंट जाते हैं। शरद ऋतु मानों नई चमकीली साइकिल चलाकर बच्चों को पतंग उड़ाने का निमंत्रण देती है। बच्चों के पास ऊर्जा है और पतंग उनके सपनों का प्रतीक है। पतंग के समान बच्चों के सपने बड़े हलके होते हैं। शीघ्र ही पतंग उड़ाने वाले बच्चों का एक समूह साकार हो उठता है। पतंग उड़ाने वाले बच्चे जन्म से ही कोमल तथा हलके शरीर वाले होते हैं। पृथ्वी उनके पैरों के पास घूमती हुई आती है तथा वे अपनी मस्ती में छतों तथा दीवारों पर पतंग उड़ाते हुए नज़र आते हैं। छतों की कठोरता उनके लिए नरम हो जाती है। बच्चों को गिरने का भय नहीं होता। यदि वे कहीं गिर भी जाते हैं तो उनमें क्षमता और अधिक मजबूत हो जाती है। ऐसा लगता है मानों वे अपनी पतंग की डोर के सहारे पतंगों के साथ उड़ते नज़र आते हैं। वे उन्मत्त होकर आगे बढ़ते हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए उड़ान भरते रहते हैं। पतंग उड़ाने से बच्चों का आत्मविश्वास और अधिक बढ़ जाता है।

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HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Haryana State Board HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

HBSE 8th Class Science Sound Textbook Questions and Answers

Question 1.
Choose the correct answer: Sound can travel through:
(a) gases only
(b) solids only
(c) liquids only
(d) solids, liquids and gases.
Answer:
(d) solids, liquids and gases.

Question 2.
Voice of which of the following is likely to have minimum frequency?
(a) Baby girl
(b) Baby boy
(c) A man
(d) A woman
Answer:
(a) Baby girl.

Question 3.
In the following statements, tick ‘T’ against those which are true and ‘F’ against those which are false :
(a) Sound cannot travel in vacuum. (T / F)
(b) The number of oscillations per second of a vibrating object is called its time period. (T / F)
(c) If the amplitude of vibration is large, sound is feeble. (T / F)
(d) For human ears, the audible range is 20 Hz to 20,000 Hz. (T / F)
(e) The lower the frequency of vibration, the higher is the pitch. (T / F)
(f) Unwanted or unpleasant sound is termed as music. (T / F)
(g) Noise pollution may cause partial hearing impairment. (T / F)
Answer:
(a) True
(b) False
(c) False
(d) True
(e) False
(f) True
(g) True.

HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Question 4.
Fill in the blanks with suitable words :
(a) Time taken by an object to complete one oscillation is called ________.
(b) Loudness is determined by the ________ of vibration.
(c) The unit of frequency is ________.
(d) Unwanted sound is called ________.
(e) Shrillness of a sound is determined by the ________ of vibration.
Answer:
(a) time period
(b) amplitude
(c) hertz
(d) noise
(e) frequency.

Question 5.
A pendulum oscillates 40 times in 4 seconds. Find its time period and frequency.
Answer:
Time taken by pendulum to complete 40 oscillations = 4 seconds
Time taken by pendulum
to complete 1 oscillation = \(\frac { 4 }{ 40 }\)
= \(\frac { 1 }{ 10 }\)
= 0.1 sec.
Time period of pendulum = 0.1 sec.
Frequency of pendulum
= \(\frac { 40 }{ 4 }\) \(\frac { oscillation }{ time }\)
= 10 Hz.

Question 6.
The sound from a mosquito is produced when it vibrates its wings at an average rate of 500 vibrations per second. What is the time period of the vibration?
Answer:
Time taken to complete
500 vibrations = 1 second
Time taken to complete
1 vibration = \(\frac { 1 }{ 500 }\) = 0.002
Time period of vibration = 0.002 second.

Question 7.
Identify the part which vibrates to produce sound in the following instruments:
(a) Dholak
(b) Sitar
(c) Flute.
Answer:
(a) Stretched membrane
(b) Strings
(c) air column.

Question 8.
What is the difference between noise and music? Can music become noise sometimes?
Answer:
Noise is the sound which is unpleasant for our ears. Excessive or unwanted sounds are called noise. Music is the sound which is pleasant for our ears and has soothing effect. Music sometimes can become noise when it crosses the bearable range of sound for our ears.

Question 9.
List sources of noise pollution in your surroundings.
Answer:
There are various sources which cause sound pollution in our surroundings like : Honking of horns, loud sounds of machines in factories, loud musics in parties and marriages, loud sound of T. V. or radio, loud sounds of domestic electronic appliances like mixer grinder etc. are some sources of noise in our environment.

HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Question 10.
Explain in what way noise pollution is harmful to humans?
Answer:

  • Noise pollution can cause temporary or permanent deafening.
  • It can cause many health related problems like high blood pressure
  • It can cause mental illness due to lack of sleep.

Question 11.
Your parents are going to buy a house. They have been offered one on the roadside and another three lanes away from the roadside. Which house would you suggest your parents should buy? Explain your answer.
Answer:
I would suggest my parents to buy house three lanes away from the roadside because area away from the roadside have less traffic and thus less noise pollution. This would safe guard our health and peace of mind.

Question 12.
Sketch larynx and explain its function in your own words.
Answer:
Larynx is also called the voice box. As the name suggests, it causes (sound) voice in humans. It has vocal cords, which have air column vibrating in them, which cause sound in humans.
HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound 1

Question 13.
Lightening and thunder take place in the sky at the same time and at the same distance from us. Lightening is seen earlier and thunder is heard later. Can you explain?
Answer:
Lightening and thundering take place simultaneously but we see light earlier than thunder because light travels faster than sound, so it reaches us before the sound does.

Extended Learning – Activities and Projects

Question 1.
Visit the music room of your school. You may also visit musicians in your locality. Make a list of musical instruments. Note down the parts of these instruments that vibrate to produce sound.
Answer:
For self attempt.

Question 2.
If you play a musical instrument, bring it to the class and demostrate how you play it.
Answer:
For self attempt.

Question 3.
Prepare a list of famous Indian musicians and the instruments they play.
Answer:
For self attempt.

Question 4.
Take a long thread. Place your hands over your ears and get some one to place this thread round your head and hands. Ask her to make the thread taut and hold its ends in the hand. Now ask her to draw her finger and thumb tightly along the thread (in figure). Can you hear a rolling sound like that of a thunder ? Now repeat the activity while another friend stands near both of you. Can he hear any sound.
HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound 3
Answer:
For self attempt.

Question 5.
Make two toy telephones. Use them as shown in Fig. Make sure that the two srtings are taut and touch each other. Let one of you speak. Can the remaining three persons hear? See how many more friends you can engage in this way. Explain your observations.
HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound 2
Answer:
For self attempt.

Question 6.
Identify the sources of noise pollution in your locality. Discuss with your parents, Mends wad neighbours. Suggest how to control noise pollution. Prepare a brief report and present it in the class.
You can read more on the related topics on the following websites:
→ www.physicsclassroom .com/Class/sound/soundtoc.html
→ health.howstuffworks.com/hearing.htm
→ www.jaltarang.com for jaltarang
→ www.tempro/com/articles/hearing.html
→ www.cartage.org.lb/en/themes/sciences/ physics/mainpage.htm
Answer:
For self attempt

HBSE 7th Class Science Sound Important Questions and Answers

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
What produces sound?
Answer:
Vibrations in body produce sound.

Question 2.
Can sound be produced from a body which does not vibrate?
Answer:
No.

Question 3.
Why can’t we see the vibrations in most of the cases when sound is produced?
Answer:
Their amplitude is very small.

Question 4.
Name any wind musical instrument.
Answer:
Flute.

Question 5.
What is the sound producing organ in humans called?
Answer:
Larynx.

HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Question 6.
What is another name for larynx?
Answer:
Voice box.

Question 7.
What are the two cords stretched across the voice box called?
Answer:
Vocal cords.

Question 8.
What vibrates in larynx to produce sound?
Answer:
Vocal cords.

Question 9.
What decides the type of voice in human?
Answer:
Tightness of vocal cords.

Question 10.
How much long the vocal cords are in men?
Answer:
20 mm.

Question 11.
What is the length of vocal cords in women?
Answer:
15 mm.

Question 12.
Through which medium can sound travel?
Answer:
Solids, liquid and gaseous medium.

Question 13.
Can sound travel through vacuum?
Answer:
No.

Question 14.
Which organs in human receive sound waves? .
Answer:
Ears.

Question 15.
What is the outer stretched part of the ear called?
Answer:
Ear drum.

Question 16.
What vibrates the ear drum?
Answer:
Sound vibrations.

Question 17.
What is the to and fro motion of objects called?
Answer:
Oscillatory motion.

HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Question 18.
What is the frequency of oscillation?
Answer:
Number of oscillations per second is called frequency of oscillation.

Question 19.
What is the unit of frequency?
Answer:
Hertz (Hz).

Question 20.
What does a frequency of 1 Hz means?
Answer:
One oscillation in one second.

Question 21.
What are the two important properties of a sound?
Answer:
Amplitude and frequency.

Question 22.
What is the maximum distance travelled by a vibrating body on either side of its mean position called?
Answer:
Amplitude.

Question 23.
What is the time taken to complete one oscillation called?
Answer:
Time period.

Question 24.
How does amplitude effect the loudness of vibration?
Answer:
Higher the amplitude, louder is the voice.

Question 25.
Why the sound of a baby is feeble?
Answer:
Because its amplitude is small

Question 26.
What controls the shrillness of a sound?
Answer:
Frequency.

Question 27.
What is the range of audible sound for human ear?
Answer:
From 20 to 20,000 Hz.

Question 28.
What are the sounds above 20,000 ‘ Hz called?
Answer:
Ultrasound.

Question 29.
Name any use of ultrasound?
Answer:
Ultrasound is used to detect many medical problems in human.

Question 30.
What is the unpleasant and unwanted sound called?
Answer:
Noise.

Question 31.
What are the pleasant and soothing sounds called?
Answer:
Music.

Question 32.
What is the unit of loudness?
Answer:
Decibel (dB).

HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Question 33.
What is the loudness of a normal conversation?
Answer:
60 dB.

Question 34.
Name any ill effect of noise pollution.
Answer:
It can cause temporary deafness.

Question 35.
Write any one measure to control noise pollution.
Answer:
Planting trees along roadsides.

Short Answer Type Questions

Question 1.
How is sound produced?
Answer:
Sound is produced by the vibrating bodies. When a body vibrates it produces sound.

Question 2.
What is the importance of sound in our life?
Answer:
Our life depends on sound for every action. Sound enables us to communicate with each other. Without sound nobody would know what other communicate or wants to express.

Question 3.
What are the musical instruments?
Answer:
Musical instruments are the devices which produce various sounds which are pleasant for our ears and produce soothing effects. The sound produced by these instruments is called music.

Question 4.
How do the musical instruments produce sound?
Answer:
Musical instruments have strings the stretched membranes attached or fixed on them . Some instruments have slits to let air pass through them, the strings are plucked and membranes are struck to produce sound. On plucking or striking they start vibrating, and the whole instrument starts vibrating with them, which produces the music.

Question 5.
Describe the organ in human that produces sound.
Answer:
In humans the sound producing organ is the voice box. It is also called the larynx. In larynx there are two vocal cords stretched across, leaving a slit for the air to pass through them.

Question 6.
How does the larynx produce sound?
Answer:
Larynx has two vocal cords stretched across it. They are stretched in a way that they leave a slit for passage of air. When air is pumped in slit by the lungs, the vocal cords start vibrating, thus producing the sound.

Question 7.
What distinguishes the sounds produced by different human beings from each other?
Answer:
Vocal cords in humans are the sound producing parts. When they are vibrated they produce sound. They are held by the muscles and the tightness with which they are held determines the quality of sound. The length of the vocal cords also determines the quality of voice.

HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Question 8.
How is the sound propagated?
Answer:
The sound reaches from one source to another through various mediums. It always needs a medium to travel, it cannot propagate through vacuum. Sound travels through air, solid and liquid.

Question 9.
How is it possible for whales and dolphins to communicate in water?
Answer:
Whales and dolphins live under water. They produce sound to communicate with each other. As sound can travels through air, solid and liquid-all the mediums, it is travelled from one source to another in water too, so dolphins and whales can communicate.

Question 10.
How do human hear the sounds?
Answer:
Humans hear various sounds through ears. Ears have a stretched structure called eardrum. When ears receive sound, it enters down the earcanal and reach eardrum. Vibrations of sound vibrates the eardrum and it sends vibrations to inner ear from which vibrations are sent to brain for interpretation of sound.

Question 11.
Why is it advised, not to put a sharp or pointed thing in our ear?
Answer:
It is advised not to put sharp or pointed things in the ear because it can damage the eardrum. Eardrum is a stretched membrane which is delicate. If the sharp or pointed thing would touch the eardrum, it would damage the eardrum and cause deafness.

Question 12.
What is oscillatory motion?
Answer:
The to and fro motion of the object is called vibration. This motion is the movement in both direction from its mean position- This motion in either side of the object from its mean position is called the oscillatory motion.
HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound 4

Question 13.
What is frequency of a motion?
Answer:
The number of to and for movement or number of oscillations per second is called the frequency of a motion. Frequency is expressed in Hertz. It is symbolized as Hz.

Question 14.
How does frequency effect the quality of sound?
Answer:
The frequency determines the shrillness of the sound. Shrillness is also called the pitch of sound. The pitch of the sound is higher if it has high frequency and the pitch is low if the frequency is less.

Question 15.
What controls the quality of voice in humans?
Answer:
Amplitude and frequency of vibrations control voice in human beings. If amplitude is high the loudness of sound will also be high, if frequency is high the shrillness or pitch will be high in voice.

Question 16.
Describe the properties of voice in men.
Answer:
Men have high amplitude of vibrations so their voice is loud and they have low frequency so-they have less shrillness in their voice.

HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Question 17.
Describe the properties of voice in women.
Answer:
Women have high frequency of sound waves, so they have high pitched voice it means they have high shrillness in their voice. On the other hand they have low amplitude so they have less loudness in their voice.

Question 18.
Describe the audible range of fequencies for human beings.
Answer:
Human beings cannot hear sounds below 20 Hz that means sounds with less than 20 vibrations per second cannot be heard by human beings. On the other hand sounds with frequency more than 20 KHZ also cannot be heard by human beings. 20 KHz means 20,000 vibrations per second. Therefore, roughly the audible range of sounds for human beings vary between 20 Hz to 20 KHz.

Question 19.
What are ultrasounds? How are they useful to us?
Answer:
Sounds with frequency of above than 20 KHz are called ultrasound. Ultrasounds cannot be heard by human beings, but they are very useful for human beings. Ultrasounds are used in field of medicine to detect the disorders inside the body of human beings. They are also useful in industries. They are used to detect the flaws and cracks in metallic structures.

Question 20.
What is noise?
Answer:
Noise is the unwanted and unpleasant sounds reaching our ears. They cause disturbance and are harmful. Noise is the sound which crosses the limit of audible loudness for us. Normally sounds at 80 dB of loudness becomes painful to bear and is called noise.

Question 21.
Give any five sources of noise in your surroundings.
Answer:
Five sources of noise in our environment are :

  • Noise made by traffic.
  • Noise created by electrical appliances used at home like coolers, mixer grinder etc.
  • Loud sounds of T.V., Radio etc.
  • Noise created by loud music in marriages and religious functions.
  • Noise created by construction works in neighbourhood.

Question 22.
What do you mean by hearing impairment? How is it caused?
Answer:
Hearing impairment means disability to hear. It is caused by diseases of ear, injury of ear or due to degeneration of hearing mechanism with growing age. Hearing impairment can be overcome by using hearing aids if impairment is not permanent.

Question 23.
How can hearing impairment be overcome or avoided?
Answer:
Hearing impairment can be avoided by avoiding noise or avoiding the usage of sharp of pointed objects inside ear, We should avoid any ear injury. In case of hearing impairment which is temporary hearing aids help in overcoming it or using other aids like sign language etc.

Question 24.
What is noise pollution?
Answer:
Presence of excessive or unwanted sounds in the environment, which cause discomfort for us is called noise pollution. Excessive sounds are produced by honking of horns, loud speakers, crackers, machines etc.

Question 25.
How can noise pollution be controlled?
Answer:
Noise pollution can be controlled by controlling their sources. Blowing of horns should be avoided in residential areas, near schools or hospitals. Using loudspeakers etc. should also be avoided in these areas. T.V., radio etc should be played at low volume. Trees should be planted along the roadside to create a buffer zone to absorb excessive sounds on roads.

Long Answer Type Questions

Question 1.
How is sound produced? How does it travel from one place to another?
Answer:
Sound is produced by the vibrations of the body. Only vibrating bodies produce sound. Those bodies which produce vibrations produce sound but when they stop vibrating they also stop producing sound.
HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound 5Sound reaches from one source to another. It travels from one point to another through some medium. Sound waves can travel through air, liquid and even through solids. What we hear one another, that sound travels through air medium. But we can bear some body talking in next room too, that means sound waves have crossed wall to reach us. Dolphins and whales communicate in water.

HBSE 8th Class Science Solutions Chapter 13 Sound

Question 2.
Explain hew many types of musical instruments are there? Hew die they make sound?
Answer:
Musical instruments are differentiated on the basis of their vibrating parts, Some musical instruments have sretched membranes Which produce vibrations to make sound. Second type of musical instruments have stretched strings, which vibrate to produce sound. In third v type of instruments the wind column is used to ’ produce sound.

Instruments like hands, drums, mridangam etc, have stretched leather membrane which is struck with hands or stick to produce sounds. In instruments like guitar, sitar, veena, violin etc,, strings are struck with fingers or rubber with other instruments produce musical sounds. Instruments like mouth-organ, sehnai, flute etc, use air column to produce sounds.

Question 3.
What is nuisa? Haw is noise pollution created?
Answer:
Noise is the unwanted and unpleasant sounds around us in our environment. When these noises become huge, it creates noise pollution. Different, loud and shrill sounds discharged in environment cause noise pollution. Honking horns of vehicles on road, loud music of T-Vs and Radios, loud music in marriages and parties, noise of machines in factories, domestic electrical appliances like mixer grinder, construction work in neighbourhood, etc. are the ‘ various sources of noise polluiton in our environment.

Question 4.
What are the ill-effects of noise pollution? How can we control noise pollution?
Answer:
Noise pollution has many bad effects on our body and health. Our health and mental peace are adversely affected by noise pollution. Noise pollution becomes the root cause of many mental disorders like anxiety, depression etc. Besides mental disorders, physical disorders like hypertension, skin diseases, lack of sleep etc. are also caused by noise pollution. It is more harmfid for students and sick people.

For controlling noise pollution, honking of horns from vehicles should he banned near residential areas, schools and hospitals. T.Vs. and Radios should be played at low volume. Loudspeakers should not be allowed during sleeping hours. Trees and plants should be extensively planted along the road sides to create a buffer zone. Trees absorb noise and help in controlling noise pollution.

Sound Class 8 HBSE Notes

1. We hear different sounds in our daily life.

2. Sound is produced by the vibrating bodies. Only vibration can produce sound. Vibrations are to and fro movements of any object and this to and fro movements produce different sounds we have.

3. When the vibrations start, we hear sound, but when vibrations stop, the sound is not heard anymore.

4. Different musical instruments produce sound only due to the vibrations made by them, when they are beaten or plucked by us.

5. It is not only the vibrations of the strings or the stretched membranes of the musical instruments that produce sound, but it is the vibration of the whole instruments that produce sound.

6. In human beings it is the vibrations of the voice box or the larynx that causes the sound. Air passing through the vocal cords attached to larynx cause vibrations of the vocal cords, which enables us to produce sound.

7. It is the tightness of the vocal cords that make sounds different from each other in different human beings. The length of the vocal cords are different in men, women and children, so their voice is also different from each other.

8. Sound cannot pass from one source to another in vacuum. Sound needs medium to travel. Air, liquid, solid are the medium through which sound can travel from one source to another.

9. In human beings sound is produced by voice box, and received by hearing organs-ears. Receiving sound is called hearing. Our ear is so designed that it receives the vibrations and interpret it as sound.

10. The maximum distance a vibrating body travels from its means position is called amplitude of vibration.

11. The time taken to complete one oscillation (to and fro movement) is called the time period.

12. The number of oscillation per second is called the frequency of vibration. Frequency is expressed in Hertz (Hz).

13. Higher the frequency of vibration, higher is the pitch or shrilners of the sound.

14. High amplitude of vibration produces loud sound.

15. Unpleasant or unwanted sounds are called noises.

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