HBSE 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions नाटक लिखने का व्याकरण Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

प्रश्न 1.
नाटक और अन्य विधाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
साहित्य में अनेक विधाएं हैं। प्राचीन काल में इंद्रियों के आधार पर काव्य के दो भेद किए थे-दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य। दृश्य काव्य का संबंध नाटक से है और श्रव्य काव्य का संबंध कविता, कहानी, उपन्यास आदि से है। संस्कृत में तो दृश्य काव्य को श्रव्य काव्य से उत्कृष्ट माना गया है। संस्कृत में कहा भी गया है

“काव्येषु नाटकम् रम्यम्”

नाटक अपनी कुछ निजी विशेषताओं के कारण दूसरों से सर्वथा अलग है। जहाँ नाटक देखने के लिए लिखा जाता है, वहीं अन्य सभी विधाएँ पढ़ने के लिए होती हैं। नाटक को यदि हम अलग कर दें तो श्रव्य काव्य के भी पद्य और गद्य दो भेद किए जा सकते हैं।

पद्य के अंतर्गत महाकाव्य, खंडकाव्य, गीतिकाव्य, मुक्तक काव्य आदि की चर्चा की जाती है। गद्य के अंतर्गत उपन्यास, कहानी, निबंध, आलोचना, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत आदि विभिन्न विधाओं की चर्चा की जाती है। परंतु इन सभी विधाओं में नाटक को अधिक महत्त्व दिया जाता है। अन्य विधाएँ अपने लिखित रूप में एक निश्चित और अंतिम रूप को प्राप्त कर लेती हैं। नाटक अपने लिखित रूप में एक आयामी होता है। रंगमंच पर अभिनीत होने पर नाटक पूर्णता को प्राप्त करता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि साहित्य की अन्य विधाएँ पढ़ने या सुनने के लिए होती हैं। परंतु नाटक पढ़ने व सुनने के साथ-साथ मंच पर अभिनीत करने के लिए होते हैं।

HBSE 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

प्रश्न 2.
“नाटक में समय का बंधन होता है-” इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब नाटककार नाटक लिखने बैठता है तो उसे समय की सीमा का ध्यान रखना होता है। इसी को हम समय का बंधन कहते हैं। नाटक रंगमंच पर दो से ढाई घंटे की अवधि में अभिनीत किया जाना चाहिए। दर्शकों के पास इतना समय नहीं होता कि वे नाटक को लंबे समय तक देख सकें। यही कारण है कि नाटककार समय सीमा का ध्यान रखकर ही नाटक की रचना करता है। नाटककार नाटक लिखते समय भले ही भूतकाल एवं भविष्यत्काल से विषय का चयन करे परंतु उसे अपने नाटक को वर्तमान काल में ही संयोजित करना होता है।

यही कारण है कि नाटक के मंच निर्देश वर्तमान काल में ही लिखे जाते हैं। जहाँ तक उपन्यास, कहानी, कविता आदि का प्रश्न है, वे चाहे किसी ऐतिहासिक या पौराणिक घटना से संबंधित हों, वे वर्तमान में बिना किसी बाधा के पढ़े जा सकते हैं। परंतु नाटक में सभी घटनाएँ एक विशेष स्थान पर, विशेष समय तथा वर्तमान काल में घटित होना चाहिए। हम अतीत की घटनाओं को नाटक में पुनः घटित होने देखना चाहते हैं।

नाटक में समय के बंधन के बारे में एक और तथ्य का उल्लेख करना आवश्यक है। साहित्य की अन्य विधाओं-कहानी, उपन्यास, कविता को हम पढ़ते-पढ़ते अथवा सुनते हुए किसी कारणवश छोड़ सकते हैं और बाद में वहीं से आरंभ कर सकते हैं परंतु नाटक में ऐसा संभव नहीं है। यदि कोई दर्शक अभिनीत किए जाने वाले नाटक को बीच में छोड़कर चला जाता है तो वह पुनः नाटक के उस भाग को नहीं देख सकता।

नाटककार को इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि दर्शक कितने समय तक अपने सामने नाटक के कथानक को घटित होते हुए देख सकता है। नाटक में जिस चरित्र का निर्माण किया गया है उसका पूरा विकास भी होना चाहिए। इसलिए नाटक में समय का बंधन आवश्यक है। नाटक में प्रायः तीन अंक होते हैं। इसलिए नाटककार को समय का ध्यान रखते हुए अंकों का विभाजन करना होता है। भरत द्वारा रचित नाट्यशास्त्र ने प्रत्येक को यह निर्देश दिया गया है कि वह नाटक के प्रत्येक अंक की समय सीमा 48 मिनट रखे।

प्रश्न 3.
नाटक के तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
जहाँ तक नाटक के तत्त्वों का प्रश्न है, भारतीय विद्वानों में नाटक के केवल तीन तत्त्व माने हैं-वस्तु, नेता तथा रस। परंतु नाटक के अंतर्गत उन्होंने वृत्ति का विवेचन भी किया है और अभिनय को नाटक का मूल तत्त्व माना है। इस रूप में कथावस्तु पात्रों का चरित्र-चित्रण, रस तथा अभिनय, वृत्ति नाटक के पाँच तत्त्व कहे जाते हैं। परंतु पश्चिम आचार्यों ने नाटक के छः तत्त्व माने हैं। ये हैं

  1. कथावस्तु
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. संवाद (कथोपकथन)
  4. उद्देश्य
  5. भाषा-शैली
  6. देशकाल

परंतु सातवाँ तत्त्व अभिनेयता भी आवश्यक है।
(1) कथावस्तु-यह नाटक का प्रथम महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। सर्वप्रथम नाटककार को नाटक का कथ्य किसी कहानी के रूप में किसी शिल्प अथवा फोरम द्वारा प्रस्तुत करना होता है। यदि नाटककार को शिल्प या संरचना की समुचित जानकारी होगी तभी वह यह कार्य संपन्न कर पाएगा। उसे इस बात का हमेशा ध्यान रखना होता है कि नाटक मंच पर अभिनीत होना है। ऐसी स्थिति में घटनाओं स्थितियों (दृश्यों) का चुनाव करता है फिर उसे क्रमानुसार नियोजित करता है। उसे शून्य से शिखर तक की यात्रा पूरी करनी होती है। तभी वह नाटक की कथावस्तु का सही ढंग से निर्माण कर सकता है।

(2) संवाद-नाटक का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व संवाद है। अन्य विधाओं में संवाद उतना आवश्यक नहीं है जितना कि नाटक के लिए। नाटक में तनाव, उत्सुकता, रहस्य, रोमांच, उपसंहार आदि स्थितियों का होना नितांत आवश्यक है और इसके लिए परस्पर विरोधी विचारधाराओं के संवाद नाटक को चार चाँद लगा देते हैं। यही कारण है कि भारतीय और पाश्चात्य नाट्यशास्त्रियों ने नायक, की परिकल्पना की थी। यदि संवाद क्रियात्मक और दृश्यात्मक होंगे तो वे अधिक प्रभावशाली सिद्ध होंगे। जिस नाटक में इस तत्त्व की प्रधानता होती है वही नाटक अधिक सफल सिद्ध होता है। यदि संवाद असंख्य संभावनाओं को उजागर करते हैं तो वे बड़े ही सशक्त माने जाते हैं। हैमलेट और स्कन्दगुप्त के दो उदाहरण देखिए- हैमलेट-टू बी और नॉट टू बी, स्कन्दगुप्त-अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है।

(3) पात्र और चरित्र चित्रण-नाटक में जितना संवादों का महत्त्व है उतना ही पात्रों का भी है। पात्रों की उपस्थिति से ही संवादों की संभावना उत्पन्न होती है। जब भी दो चरित्र आपस में मिलते हैं तो उनमें विचारों की टकराहट अवश्य उत्पन्न होती है। यही कारण है कि रंगमंच को प्रतिरोध का सशक्त माध्यम माना गया है। पात्र यथा स्थिति को स्वीकार नहीं करता। उसमें अस्वीकार की स्थिति बनी रहती है। कोई भी जीता-जागता संवेदनशील प्राणी संतुष्ट नहीं रह सकता। यदि नाटक में असंतुष्टि, प्रतिरोध और अस्वीकार जैसे नकारात्मक तत्त्व होंगे तो वह निश्चय ही सफल नाटक सिद्ध होगा।

जो नाटक व्यवस्था य समर्थन के लिए लिखे जाते हैं वे अधिक लोकप्रिय नहीं होते। यही कारण है कि ये हमारे नाटककार राम की अपेक्षा रावण, प्रह्लाद की अपेक्षा हिरण्यकश्यप, कृष्ण की अपेक्षा कंस आदि पात्रों की ओर अधिक आकर्षित हुए हैं। नाटकों के पात्र, सपाट, सतही और टाइप्ड नहीं होने चाहिए अर्थात् वे कठपुतली पात्र न होकर गतिशील होने चाहिए। पात्रों को स्थितियों के अनुसार अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए। नाटक के पात्र हाड़-माँस से बने हुए जीवन्त होने चाहिए। कविता, कहानी अथवा उपन्यास के शाब्दिक पात्र नहीं होने चाहिए।

(4) उद्देश्य उद्देश्य भी नाटक का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। वस्तुतः नाटककार कथानक तथा संवादों के माध्यम से नाटक के उद्देश्य को अभिव्यक्त करता है। नाटक के शिल्प और संरचनाओं द्वारा ही नाटककार अपने कथ्य को व्यंजित करता है। नाटक का उद्देश्य आज के जटिल जीवन से ही संबंधित होना चाहिए। वह जीवन की विभिन्न समस्याओं तथा कठिन परिस्थितियों से भी संबंधित होना चाहिए।

(5) शिल्प-शिल्प नाटक की वह तकनीक है जिसके द्वारा नाटककार अपना कथ्य प्रस्तुत करता है। शिल्प की दृष्टि से हमारे नाटक के सामने अनेक विकल्प विद्यमान हैं। संस्कृत नाटकों में शास्त्रीय शिल्प का विधान है। लोक नाटकों का शिल्प लिखित रूप में नहीं है। यह मौखिक रचना प्रक्रिया के माध्यम से घटित होता है पारसी नाटकों का एक अलग प्रकार का शिल्प है जिसमें शेरो-शायरी, गीत-संगीत और अतिरंजित संवादों द्वारा नाटक अभिनीत किया जाता है। इब्सन का अनुसरण करते हुए यथार्थवादी नाटकों में प्रायः गद्य का ही प्रयोग किया जाता है। इसके साथ-साथ नुक्कड़ नाटकों का एक अलग प्रकार का शिल्प है। नाटककार को इनमें से एक शिल्प का चयन करना होता है।

इस प्रकार भाषा-शैली, देशकाल आदि अन्य तत्त्व इसी शिल्प में ही समाहित हो जाते हैं।

HBSE 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
“नाटक की कहानी बेशक भूतकाल या भविष्यकाल से संबद्ध हो, तब भी उसे वर्तमान काल में ही घटित होना पड़ता है”-इस धारणा के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
नाटक में कुछ ऐसे भी कथानक होते हैं जिनका संबंध भूतकाल से होता है अथवा भविष्यकाल से होता है। लेकिन नाटककार को दोनों स्थितियों में अपने नाटक को वर्तमान काल में संयोजित करना पड़ता है। यही कारण है कि नाटक में रंगमंच के संकेत हमेशा लिखे रहते हैं और इनका संबंध वर्तमानकाल से होता है। हम वर्तमानकाल में किसी विशेष समय अथवा विशेष घटना को नाटक द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं। नाटक में उसका कथानक और कथ्य दर्शकों की आँखों के सामने घटित होता जान पड़ेगा, तभी दर्शक नाटक पर विश्वास कर सकेगा। उसे देखकर आनन्द प्राप्त कर सकेगा।

प्रश्न 2.
“संवाद चाहे कितने भी तत्सम और क्लिष्ट भाषा में क्यों न लिखे गए हों, स्थिति और परिवेश की माँग के अनुसार यदि वे स्वाभाविक जान पड़ते हैं तो उनके दर्शक तक संप्रेषित होने में कोई मुश्किल नहीं है। क्या आप इससे सहमत हैं? पक्ष या विपक्ष में तर्क दें।।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत हैं कि संवाद चाहे कितने भी तत्सम और क्लिष्ट भाषा में क्यों न लिखे गए हों, स्थिति व परिवेश की माँग के अनुसार यदि वे स्वाभाविक जान पड़ते हों तो उनके दर्शक तक संप्रेषित होने में कोई मुश्किल नहीं होती। कारण यह है कि संवाद हमेशा स्थिति और परिवेश के अनुसार ही लिखे जाने चाहिए। उदाहरण के रूप में यदि किसी पौराणिक आख्यान पर नाटक लिखा गया हो तो स्थिति और परिवेश का संबंध पौराणिक काल से ही होगा।

पात्रों की वेशभूषा उसी काल की होगी और दर्शक भी उसी स्थिति और परिवेश से जुड़ जाएगा। ऐसी स्थिति में तत्सम तथा क्लिष्ट भाषा में लिखे संवाद भी दर्शकों को समझ में आने लगेंगे। परंतु यदि आधुनिक स्थिति और परिवेश से जुड़ा नाटक अभिनीत किया जाएगा तो सहज, सरल और स्वाभाविक हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए और उसमें आवश्यकतानुसार अंग्रेज़ी तथा उर्दू के शब्दों का मिश्रण भी किया जा सकता है। नाटक तथा उसके संवाद स्थिति और परिवेश पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 3.
समाचार पत्र के किसी कहानीनुमा समाचार से नाटक की रचना करें।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

HBSE 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

प्रश्न 4.
(क) अध्यापक और शिक्षक के बीच गृह-कार्य को लेकर पाँच-पाँच संवाद लिखिए।
(ख) एक घरेलू महिला एवं रिक्शा चालक को ध्यान में रखते हुए पाँच-पाँच संवाद लिखिए।
उत्तर:
(क)

  • अध्यापक मोहन! तुम बसंत ऋतु पर निबंध लिखकर क्यों नहीं लाए?
  • मोहन-श्रीमान ! मुझे रात को बुखार हो गया था।
  • अध्यापक-यदि तुम्हें बुखार था तो आज स्कूल कैसे आ गए?
  • मोहन-सुबह उठते ही मेरा बुखार उतर गया था। इसलिए मैं स्कूल पढ़ने के लिए आ गया।
  • अध्यापक-तुम झूठ बोल रहे हो। ऐसा नहीं हो सकता कि कल रात तुम्हें बुखार हो गया और तुम आज स्कूल आ गए।
  • मोहन-नहीं, श्रीमान! मैं ठीक कह रहा हूँ। मुझे कल रात बुखार हो गया था।
  • अध्यापक-यदि ऐसी बात है तो अपने पिता जी को कल सुबह अपने साथ लाना। मैं उनसे बात करूँगा।
  • मोहन श्रीमान! पिता जी क्या आवश्यकता है? उन्हें दफ्तर जाना होता है।
  • अध्यापक-तुम पिछले कई दिनों से ठीक से पढ़ाई नहीं कर रहे हो। तुम कई बार कक्षा में अनुपस्थित भी रहते हो।
  • मोहन (सिर झुकाए हुए)-श्रीमान क्षमा कर दीजिए आगे से ऐसा नहीं करूँगा।
  • अध्यापक-यदि तुम कल अपने पिता जी को नहीं लाए तो स्कूल से तुम्हारा नाम काट दिया जाएगा।
  • मोहन-श्रीमान ऐसा न करना। कल मैं पिता जी को साथ लेकर आऊँगा।

(ख)

  • घरेलू महिला-अरे भई, रिक्शा वाले यहाँ से पुराने हाउसिंग बोर्ड तक कितने पैसे लोगे?
  • रिक्शा चालक-बीबी जी! बीस रुपये लगेंगे।
  • घरेलू महिला-देखो भई। ये तो बहुत ज्यादा पैसे हैं।
  • रिक्शा चालक-इतनी धूप पड़ रही है, इतनी दूर तक रिक्शा चलाना आसान नहीं है।
  • घरेलू महिला-नहीं भइया। ये तो बहुत अधिक पैसे हैं। मैं तुम्हें दस रुपए दे सकती हूँ।
  • रिक्शा चालक-नहीं बीबी जी। भगवान ने पेट हमारे साथ भी लगा रखा है और ऊपर से महँगाई ने मारा।
  • घरेलू महिला-नहीं भइया! बीस रुपये तो अधिक हैं। महँगाई तो हमारे साथ भी है।
  • रिक्शा चालक-अच्छा बीबी जी आप मुझे पंद्रह रुपए दे देना।
  • घरेलू महिला-पंद्रह रुपए भी अधिक हैं परंतु घर तो जाना ही है, चलो।
  • रिक्शा चालक-ठीक है बीबी जी पंद्रह रुपए ही दे देना।

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