HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 1.
नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन का क्या अर्थ है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रायः किसी एक विचार या भाव पर निबंध लिखा जाता है। परंतु कभी-कभी लेखक नए और अप्रत्याशित विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत करता है। यदि लेखक सर्वथा नवीन और सामान्य विषयों से हटकर किसी विषय पर लेख लिखता है, तो उसे हम अप्रत्याशित विषय कह सकते हैं। अपने विचारों को व्यक्त करना बड़ा सरल है, परंतु लिखकर अभिव्यक्त करना बड़ा कठिन है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रायः लोगों को सुनियोजित ढंग से लिखने का अभ्यास नहीं होता। प्रायः विद्यार्थी दूसरों के द्वारा लिखे निबंधों को पढ़कर ज्यों-का-त्यों प्रस्तुत कर देते हैं। कभी-कभी वे मौखिक ढंग से भी अपने विचार प्रकट कर देते हैं, परंतु उन्हें लिखित रूप देना कठिन होता है।

उदाहरण के रूप में, यदि किसी व्यक्ति ने रेल यात्रा की है, तो वह अपने अनुभवों को बड़ी आसानी से सुना सकता है। कैसे उसने लाइन में लगकर टिकट ली, कैसे सामान के साथ स्टेशन पर प्रतीक्षा की और कैसे गाड़ी आने पर भीड़ में से गुजरकर ट्रेन पर सवार हुआ आदि इन सबका विवरण वह बता सकता है, परंतु अपने अनुभवों को सुनियोजित ढंग से लिखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। अतः नए और अप्रत्याशित विषयों पर लिखना कोई सहज कार्य नहीं है। फिर भी यदि कोई विद्यार्थी प्रयास करे, तो यह इतना कठिन भी नहीं है। दो-चार बार लिखने के बाद वह स्वयं इस कार्य में पारंगत हो सकता है।

प्रश्न 2.
नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आती हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखन का अर्थ है-भाषा के माध्यम से किसी विषय पर अपने विचारों को लिपिबद्ध करना। वस्तुतः भाव और भाषा को समन्वित रूप में अभिव्यक्त करना ही लेखन कहलाता है। यदि एक व्यक्ति के पास मौलिक विचार हैं, परंतु भाषा पर उसका मौलिक अधिकार नहीं है, तो वह अप्रत्याशित विषय पर लेख नहीं लिख सकता। इस प्रकार मौलिक विचार भी कुछ नया सोचने तथा चिंतन करने से बनते हैं। पिछले लंबे समय से विद्यार्थियों तथा शिक्षकों को तैयार सामग्री उपलब्ध होती आ रही है। इसलिए न तो कोई शिक्षक नया सोचता है, न ही लिखने का प्रयास करता है। शिक्षकों की यही मानसिकता विद्यार्थियों को प्रभावित करती है।

जब भी किसी विद्यार्थी को नए विषय पर लिखने के लिए कहा जाता है, तो वह लिख नहीं पाता। नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन के लिए विद्यार्थियों को कुछ नया सोचने की प्रेरणा दी जानी चाहिए, साथ ही उन्हें लिखने का अभ्यास भी करवाया जाना चाहिए। सबसे पहली शर्त है कि विद्यार्थियों को नए-नए विषयों के बारे में सोचने के लिए कहा जाए। ये नए विषय परंपरागत विषयों से अलग प्रकार के होने चाहिएँ। दूसरा विद्यार्थियों को शुद्ध भाषा लिखने का अभ्यास करवाया जाना चाहिए। यदि विद्यार्थियों की भाषा व्याकरण-सम्मत होगी, तो वे निश्चय से अपने मौलिक विचारों को सफलतापूर्वक प्रस्तुत कर पाएंगे। नया सोचना और नया लिखना ही विद्यार्थी को अभिव्यक्ति कौशल प्रदान करता है।

HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 3.
कहा जाता है कि नए और अप्रत्याशित विषयों पर लिखना कठिन है। कौन-कौन से उपाय अपनाकर इसे सरल बना सकते हैं?
अथवा
नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में कौन-कौन-सी बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है?
उत्तर:
नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन को सरल बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं
(1) किसी भी नए और अप्रत्याशित विषय पर लेख लिखने से पहले उसके बारे में सोच-विचार करना चाहिए और मन में उसकी एक रूपरेखा बना लेनी चाहिए। तत्पश्चात उसे लिखना चाहिए।

(2) जिस विषय पर भी लेख लिखा जाना है, उस विषय की लेखक को समुचित जानकारी होनी चाहिए। विषय से संबंधित सभी विचारों को सुसंबद्धता के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।

(3) नए और अप्रत्याशित विषय से जुड़ी सभी बातों को सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। ऐसा न हो कि पहले कही जाने वाली बात बाद में आ जाए और बाद में कही जाने वाली बात पहले आ जाए। यदि हम रोहतक से दिल्ली तक की रेल यात्रा का वर्णन करना चाहते हैं, तो हमें स्टेशन पहुँचने, टिकट खरीदने तथा रेल में चढ़ने की सभी बातों को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए। तभी
हमारा लिखना सार्थक होगा।

(4) नए और अप्रत्याशित विषयों के लिए आत्मपरक (मैं) शैली का प्रयोग किया जाना चाहिए। निबंधों के लिए यह शैली वर्जित है, लेकिन नए विषयों के लिए यह शैली अत्यधिक उपयोगी मानी गई है।

(5) नए और अप्रत्याशित लेखों की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिएँ। इसके वाक्य अधिक लंबे नहीं होने चाहिएँ। शब्द-प्रयोग तथा वाक्य-विन्यास सर्वथा भावानुकूल तथा विषयानुकूल होना चाहिए।

प्रश्न 4.
“अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत” पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
अकसर देखने में आया है कि लोग कोई दुर्घटना अथवा हानि होने के पश्चात पश्चात्ताप करने लगते हैं। यह तो वही हुआ कि “साँप निकल गया, अब बैठकर लकीर को पीटो।” जो हो चुका है, उसके बारे में सोचना अथवा पश्चात्ताप करना सबसे बड़ी मूर्खता है। कहा भी गया है कि मूर्ख लोग बीती बातों के बारे में अधिक सोचते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि हम बीती हुई बातों पर व्यर्थ में ही सोच-सोचकर अपने समय को नष्ट करते हैं और अपने मन में अशांति उत्पन्न करते हैं कि “यदि मैं ऐसा न करता तो मेरे साथ ऐसा न होता।” इस प्रकार की सोच हमें नुकसान ही पहुँचाती है। हमें बीती बातों को भूलकर आगे के लिए सोचना चाहिए। यदि हम एक बार परीक्षा में असफल हो जाते हैं, तो उसके लिए रोना-धोना तथा पश्चात्ताप करना व्यर्थ है। बल्कि हमें फिर से एक नई योजना बनाकर अपनी पढ़ाई को आरंभ करना चाहिए। जो गलतियाँ हमने पिछली बार की थीं, उन्हें पुनः नहीं दोहराना चाहिए।

कहा भी तो गया है-“बीती ताहि बिसार के आगे की सुध ले।” – हमारे जीवन में सुख-दुख, सफलता-असफलता आदि का भी महत्त्व है। पुरानी गलतियों से हम बहुत कुछ सीखते हैं, परंतु पुरानी गलतियों को फिर से करना सबसे बड़ी मूर्खता है। जीवन की प्रक्रिया तो निरंतर चलती रहती है। हमें कदम-कदम पर अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हमारा कर्तव्य है कि उन बाधाओं को दूर करना और निरंतर आगे बढ़ना। जो हो चुका है, उसे भूल जाओ और आगे बढ़ो, संघर्ष करो। निश्चय से आपको सफलता मिलेगी। इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है-“अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।”

HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 5.
क्या नए और अप्रत्याशित विषयों का लेखन अभिव्यक्ति कौशल में सहायक है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
निबंध गद्य लेखन की एक महत्त्वपूर्ण विधा है। निबंधकार इस विधा द्वारा अपने विचारों को व्यक्त करता है। निबंध लिखने की यह विधा बहुत पुरानी है। प्रायः कुछ परंपरागत विषयों पर निबंध लिखे जाते हैं। पुराने विषयों पर तैयार सामग्री हमें पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि न हम कुछ नया सोच पाते हैं, न ही किसी नए विषय पर लिख पाते हैं। हमारे अंदर अभिव्यक्ति की क्षमता अवरुद्ध हो जाती है। न निबंधकार की सोच आगे बढ़ पाती है, न ही विद्यार्थियों की।

उदाहरण के रूप में, मेरा प्रिय साहित्यकार, दीवाली, ग्रीष्म ऋतु, बेरोज़गारी की समस्या, आतंकवाद आदि विषयों पर लिखे-लिखाए निबंध मिल जाते हैं। न ही हम परंपरागत और बासी विषयों को छोड़ पाते हैं, न ही नए विषयों के बारे में सोच पाते हैं। इसके फलस्वरूप हम मौलिक अभिव्यक्ति से वंचित हो जाते हैं। सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है। यदि नए विषयों के लेखन में इस अधिकार का प्रयोग किया जाए, तो निश्चय से विद्यार्थियों के अभिव्यक्ति कौशल में आशातीत उन्नति होगी। इससे विद्यार्थी न केवल नए विषयों के बारे में चिंतन करेगा, बल्कि अपनी भाषा को भी समृद्ध कर सकेगा।

प्रश्न 6.
रटंत का क्या अर्थ है? क्या यह बुरी लत है? स्पष्ट करो।
उत्तर:
रटंत का अर्थ है किसी के द्वारा लिखी गई पठनीय सामग्री को रटा लगाकर ज्यों-का-त्यों प्रस्तुत करना। इसको बुरी लत भी कहा गया है। हमारे आज के अधिकांश विद्यार्थियों में तोता-रटंत प्रवृत्ति है। शिक्षक कक्षा में उन्हें जो कुछ पढ़ाता है, वे रटा लगाकर याद कर लेते हैं और ज्यों-का-त्यों परीक्षा में लिख आते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि वे हमेशा दूसरों के लिखे पर ही निर्भर रहते हैं। उनमें कुछ मौलिक सोचने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती। यही प्रवृत्ति आगे चलकर घातक सिद्ध होती है। लिखना एक कला है। इस कला का विकास तभी हो सकता है, जब वे रटंत प्रवृत्ति पर निर्भर न रहें, वह स्वयं सोचकर लिखें। इसके लिए अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है। अतः जो विद्यार्थी बार-बार सोचकर लिखने का प्रयास करेंगे, उनमें निश्चित ही मौलिक प्रतिभा का विकास होगा। किसी प्रसिद्ध व्यक्ति ने कहा है

“करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान रसरी आवतु जात ते सिल पर पड़त निशान”
इसलिए विद्यार्थियों तथा लेखकों को रटंत प्रवृत्ति को छोड़कर मौलिक लेखन की ओर ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से ही वे नए और अप्रत्याशित विषयों के लेखन में पारंगत हो सकेंगे।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
अधूरे वाक्यों को अपने शब्दों में पूरा करें–

  1. हम नया सोचने-लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि ………
  2. लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि ………..
  3. हमें विचार-प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि ….
  4. लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि .
  5. लेख में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि ……….

अभिव्यक्ति और माध्यम (नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन)
उत्तर:

  1. हम नया सोचने-लिखने का प्रयास नहीं करते क्योंकि हमें स्वयं लिखने और अपने भावों को अभिव्यक्त करने का अभ्यास नहीं होता। हम किसी दूसरे द्वारा लिखित पठनीय सामग्री को ज्यों-का-त्यों प्रस्तुत कर देते हैं।
  2. लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास नहीं होता क्योंकि हम कुछ नया सोचने या लिखने की कोशिश नहीं करते, बल्कि हम पहले से ही किसी विषय पर लिखी हुई सामग्री का प्रयोग करते हैं।
  3. हमें विचार-प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है क्योंकि यदि हम अपने विचारों को नियंत्रित करके किसी एक विषय पर लिखने का प्रयास करेंगे, तो हम उस विषय का सही विवेचन कर सकेंगे।
  4. लेखन के लिए पहले उसकी रूपरेखा स्पष्ट होनी चाहिए क्योंकि जब तक हमें यह स्पष्ट नहीं होगा कि हमें क्या और कैसे लिखना है, तब तक हम उस विषय को सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे।
  5. लेख में ‘मैं’ शैली का प्रयोग होता है क्योंकि लेख में लेखक अपने ही विचार प्रस्तुत करता है और लेखन में उसका व्यक्तित्व झलकता है, इसलिए लिखते समय वह कहता है-‘मेरे विचारानुसार’ अथवा ‘मैं ये कह रहा था।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित विषयों पर दो से तीन सौ शब्दों में लेख लिखिए
→ बाढ़ का प्रकोप
→ सावन की पहली झड़ी
→ अच्छे दिन
→ दीया और तूफान
→ इम्तहान के दिन
→ मेरा प्रिय टाइमपास
→ मेरे मुहल्ले का चौराहा
→ एक कामकाज़ी औरत की शाम [
उत्तर:
1. बाढ़ का प्रकोप–सूर्य देवता की प्रचण्ड किरणों के ताप से सभी जीव-जन्तु व्याकुल थे। इन्द्र देवता की कृपा-दृष्टि से आकाश में काले बादल छा गए। ठण्डी हवा के साथ ही मूसलाधार वर्षा होने लगी। चारों ओर उल्लास छा गया। लेकिन जब तीन दिन तक वर्षा नहीं रुकी तो लोग घबराने लगे। शीघ्र ही आशंका और भय का वातावरण छा गया। पर्वतीय क्षेत्रों में भारी वर्षा के कारण नदी में बाढ़ आ गई। बाढ़ का पानी अनेक गाँवों को तहस-नहस करता हुआ शहर की ओर बढ़ने लगा। दूर-दूर तक एक विशाल सागर-सा दिखाई दे रहा था। घर, मकान, झोंपड़ियाँ और फसलें सभी कुछ जल-मग्न हो गया। शीघ्र ही पानी ने नगर को चारों ओर से घेर लिया। नगर के चारों ओर बाँध बनाया जाने लगा। रेलवे लाइन पानी में डूब गयी। नौकाओं द्वारा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जाने लगा। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में विद्यार्थी, सामाजिक कार्यकर्ता और सरकारी कर्मचारी राहत कार्य के लिए जाने लगे। केन्द्रीय सरकार ने हैलीकॉप्टरों द्वारा खाने की वस्तुएँ और दवाइयाँ पहुचाने का कार्य आरम्भ कर दिया। प्रत्येक मकान में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया। लोग छतों पर बैठे पानी के उतरने की प्रतीक्षा करने लगे। असंख्य लोग तथा पशु इस विनाशकारी बाढ़ के शिकार बन गए। लोगों के घर और खेत बर्बाद हो गए।

2. अच्छे दिन-‘अच्छे दिन’ का अर्थ है जीवन में खुशहाली का आना। सभी प्रकार की उन्नति के साधनों का उपलब्ध होना ही अच्छे दिनों का आना है। किन्तु क्या कभी ऐसा होना सम्भव है? जीवन में यदि एक आवश्यकता पूरी होती है तो तत्काल दूसरी कामना का जन्म हो जाता है। उसके पूरा न होने पर अच्छे दिन होने की कल्पना गायब हो जाती है। आज के समय में ‘अच्छे दिन’ का अर्थ कुछ बदला हुआ रूप लेकर हमारे सामने आया है। इसका अर्थ है कि गरीबी न हो, महँगाई पर पूरा नियन्त्रण हो, दैनिक जीवन के प्रयोग की सभी वस्तुएँ सही कीमत पर उपलब्ध हों आदि। प्रश्न उठता है कि क्या यह सब सम्भव है। यदि सम्भव नहीं है तो अच्छे दिनों का यह नारा व्यर्थ सिद्ध होता है। अच्छे दिन किसी सरकार द्वारा नहीं लाए जा सकते। इन्हें लाने के लिए तो हम सबको मिलकर सहयोग करना पड़ेगा। इसके लिए चोर बाजारी, भ्रष्टाचार आदि को दूर करना होगा। अपनी आवश्यकताओं पर नियन्त्रण रखना होगा। जमाखोरी की भावना को त्यागना होगा। हर कार्य को ईमानदारी से करना होगा। तभी अच्छे दिन आने की सम्भावना बन सकती है।

3. सावन की पहली झड़ी-जेठ और आषाढ़ की भयंकर गर्मी से पूरा संसार तप रहा है। भयंकर लू के कारण पल-भर भी चैन नहीं मिलता। बिजली हर समय नदारद रहती है। जब हवा का चलना बंद हो जाता है, तो घुटन-सी होने लगती है। पसीने से सारा शरीर तर-बतर हो जाता है। न रात को चैन है, न दिन को। घर के सभी प्राणी बिस्तर पर करवटें लेते-लेते कब सो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। सभी लोग भगवान से वर्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। अब तो सावन का महीना भी लग गया है, लेकिन वर्षा का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं है, केवल गर्मी-ही-गर्मी है। लेकिन आज सुबह जब आँखें खुलीं, तो ऐसा महसूस हुआ कि ठंडी-ठंडी हवा चल रही हो। मैं शीघ्र ही बिस्तर से उठकर बाहर गया। देखा तो आकाश में घने काले बदल छाए हुए थे। सूर्य देवता कहीं नज़र नहीं आ रहा था। ठंडी-ठंडी बयार चल रही थी और नीले-काले बादलों से गड़-गड़ की आवाज़ आ रही थी। थोड़ी देर में हल्की-हल्की बूंदा-बाँदी होने लगी। मेरा मन खुशी से झूम उठा। अचानक हवा चलनी बंद हो गई। मस्त हाथियों जैसे काले-काले बादल ज़ोर-ज़ोर से गरजने लगे। वर्षा की मोटी-मोटी बूंदें टपकने लगीं। इससे पहले कि घर के बाहर बिखरा हुआ सामान भीतर रख पाते, मूसलाधार बारिश शुरू हो गई।

HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

महीनों से प्यासी धरती की प्यास बुझने लगी। पेड़-पौधों के पत्ते धुल रहे थे और उनकी हरी-भरी कांति फिर से दिखाई देने लगी। पक्षी चहचहाने लगे और पानी में नहाने लगे। बच्चे घरों से बाहर आ गए और बारिश के पानी में उछलते-कूदते नहाने लगे। यह सावन की पहली झड़ी थी। थोड़ी देर में, सड़कों तथा गलियों में पानी की नदी-सी बहने लगी। इस बार की सावन की पहली झड़ी बड़ी खुशनुमा लग रही थी। मूसलाधार वर्षा सात-आठ घंटे से लगातार हो रही थी। कुछ लोग तो घबरा गए थे कि पता नहीं ये बरसात क्या करेगी? परंतु कुछ देर के लिए बरसात रुक गई। लोग घरों से बाहर आकर बिखरा सामान समेटने लगे। लगभग एक घंटे बाद फिर से रिमझिम बारिश शुरू हो गई। छत्तों के परनालों से पानी बहना फिर से शुरू हो गया था। अब यह बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। मेरे पिता जी ने कहा कि यह शनिवार की झड़ी है अब तो एक सप्ताह बाद ही रुकेगी। मैं मन-ही-मन कामना करने लगा कि भगवान करे ऐसा ही हो। यदि सावन की पहली झड़ी लंबी होगी, तो सूखे खेत फिर से लहलहाने लगेंगे और भरपूर फसल से किसान खुशहाल हो जाएँगे।

4. इम्तहान के दिन इम्तहान के दिन भी क्या दिन हैं। बड़े-बड़े लोग इम्तहान का नाम सुनते ही काँप पड़ते हैं। हर एक के मन में यह डर लगा रहता है कि वह इम्तहान में पास होगा कि फेल होगा? मेरी बारहवीं की परीक्षा के दिन नज़दीक आ चुके हैं। स्कूल में पढ़ते समय बार-बार परीक्षा का डर दिखाया जाता है। घर के लोग भी बार-बार यही याद दिलाते हैं कि भई इम्तहान सिर पर आ चुका है। अब तो मन लगाकर पढ़ लो। यदि पास न हुए तो साल भर का परिश्रम बर्बाद हो जाएगा। भले ही मैंने सारा साल अच्छी तरह से पढ़ाई की हो और टेस्ट भी दिए हो, परंतु इम्तहान का भूत तो हमेशा डराता ही रहता था। पिता जी ने मेरी घबराहट देखकर टयूशन भी लगवा दी, परंतु इम्तहान का डर मन से निकलता नहीं था। आखिर इम्तहान का दिन नज़दीक आ गया। अगले दिन मेरा गणित का पेपर था, मैं रात-भर सो नहीं पाया। सुबह तीन बजे मैंने भगवान से प्रार्थना की कि मेरा बेड़ा पार लगा दो।

यदि मेरा पेपर आज ठीक हो जाए, तो मैं मंदिर में प्रसाद चढ़ाने आऊँगा। यही सोचते-सोचते मेरी आँख लग गई और मुझे नींद आ गई। लगभग सात बजे पिता जी ने आकर उठाया और कहा कि अरे, तुम्हारा तो आज गणित का पेपर है, तुम घोड़े बेचकर सो रहे हो। मैं घबराकर जाग गया। गहरी नींद आने से अब मेरा मन शांत था। ऐसा लगा कि मन की चिंता अब दूर हो गई है। मैंने नहा-धोकर प्रभु का नाम लिया और हल्का-सा भोजन करके इम्तहान देने चला गया। परीक्षा में बैठते ही मैं गणित के प्रश्नों का हल निकालने लगा। पता ही नहीं चला कि कब तीन घंटे बीत गए। मेरा सारा पेपर बड़े संतोषपूर्वक ढंग से हुआ था। कमरे से बाहर आया, तो मन प्रसन्न था। दोस्तों से बातचीत करते हुए मैं घर पहुंचा। अगला पेपर हिंदी का था। उसकी मुझे कोई चिंता नहीं थी। धीरे-धीरे एक के बाद एक सभी पेपर खत्म हो गए। मुझे आशा थी कि मैं अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हो जाऊँगा। परंतु इन पंद्रह दिनों में यह अनुभव हुआ कि इम्तहान के दिन बड़े तनाव के दिन होते हैं। इन दिनों न ठीक से भूख लगती है, न खेलने को मन करता है। हर वक्त इम्तहान की चिंता लगी रहती है।

5. दीया और तूफान-मिट्टी से बना छोटा-सा दीपक जल रहा है। हवा का झोंका उसे बुझाना चाहता है, परंतु वह अधंकार को दूर भगाने के लिए संघर्ष कर रहा है। उसके द्वारा उत्पन्न किया गया हल्का-सा उजाला आस-पास के वातावरण में आशा की किरण जगाता है। इस घने-काले अंधकार में वह अपने मंद-मंद प्रकाश से लोगों को रास्ता दिखाता है। जैसे ही कोई हवा का झोंका आता है, तो दीये की लौ काँप उठती है। ऐसा लगता है कि यह लौ अंधकार में लीन हो जाएगी। फिर वह दीया टिमटिमाता हुआ पुनः प्रकाश की किरणें बिखेरने लग जाता है। सामने से आता हआ तूफान भी दीपक की लौ को बुझा नहीं पाता।

लगभग यही स्थिति मानव की है। उसके जीवन में अनेक बाधाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। दीये के समान वह भी उन बाधाओं का सामना करता हुआ निरंतर आगे बढ़ता रहता है। जो लोग बाधाओं से घबराकर संघर्ष करना छोड़ देते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। परंतु जो निरंतर संघर्ष करते रहते हैं, वे निश्चय से ही अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं। उनकी स्थिति तूफान में दिये के समान होती है। मानव को जीवन की कठिनाइयों से कभी घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए। यदि एक नन्हा-सा दीपक तूफान का सामना कर सकता है, तो फिर मनुष्य क्यों नहीं कठिनाइयों का सामना कर सकता। जो लोग बाधाओं का सामना करके सफलता प्राप्त करते हैं, वे आग में तपे हुए सोने के समान शुद्ध होते हैं। वही समाज के लिए उपयोगी होते हैं। ऐसे लोग न केवल अपना निर्वाण करते हैं, बल्कि समाज के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

6. मेरे मुहल्ले का चौराहा मेरे घर के पास ही चौराहा है। कॉलोनी की चार मुख्य सड़कें इसके आर-पार से गुजरती हैं। कोने पर एक छोटा-सा पार्क है। मुहल्ले के चौराहे पर पीपल का एक विशाल पेड़ है जिसके नीचे मुहल्ले के लोगों ने एक छोटा-सा मंदिर बना रखा है। इस चौराहे पर हर समय हलचल बनी रहती है। पुल से आने वाली कार या रिक्शा इसी चौराहे से गुज प्रकार उत्तर दिशा के वाहन भी इस चौराहे से होकर दक्षिण दिशा में जाते हैं। लोगों के घरों में काम करने वाली औरतें प्रायः इसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठी रहती हैं। कुछ मनचले युवक भी यहाँ खड़े दिखाई देते हैं। चौराहे पर खड़ा होकर कोई भी व्यक्ति चारों ओर का नज़ारा देख सकता है। सब्जी और फलों की रेहड़ी वाले यहीं से होकर गुज़रते हैं तथा सांयकाल को यहाँ अपनी रेहड़ियाँ लगा लेते हैं। कॉलोनी की औरतें प्रायः उन्हीं से ही फल और सब्जियाँ खरीदती हैं। सुबह-सवेरे बच्चों की बसें और रिक्शा भी यहीं से निकलती हैं।

कभी-कभी रिक्शा में बैठे छोटे-छोटे बच्चे रोते हुए यहाँ से गुजरते हैं। उनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। क्योंकि वे स्कूल नहीं जाना चाहते। हमारे मुहल्ले का चौराहा बहुत व्यस्त रहता है। कभी-कभी यहाँ आवारा युवक भी खड़े हो जाते हैं तथा आने-जाने वाली लड़कियों तथा युवतियों पर तानाकशी करते हैं। कई बार कॉलोनी के लोगों ने उन्हें समझाया भी पर वे बाज नहीं आए। आखिर एक दिन हमारे मुहल्ले के सूरी साहब ने कुछ पुलिस वालों को वहाँ बुला लिया। चार-पाँच युवक पुलिस की पकड़ में आ गए। उनकी जमकर पिटाई हुई। उसके बाद वे आवारा लड़के चौराहे पर नज़र नहीं आए। फिर भी हमारे मुहल्ले का चौराहा सारी कॉलोनी में प्रसिद्ध है। यहाँ का वातावरण आपेक्षक शांत है। पार्क में अनेक पेड़ लगे हुए हैं। पीपल के पेड़ की छाया तो बड़ी सुखद लगती है। मैं कभी-कभी सांयकाल को इस पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाता हूँ।

7. मेरा प्रिय टाइमपास-आज के भौतिकवादी युग में लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त हैं। किसी के पास भी इतना समय नहीं है कि वह अपने सगे-संबंधियों के सुख-दुख में भाग ले सके अथवा उनकी सहायता कर सके। कभी-कभी वे अपने दायित्व को पूरा नहीं कर पाते। महानगरों के लोगों की निरंतर भाग-दौड़ लगी रहती है। मैं हरियाणा के नगर में रहता हूँ। प्रातः उठकर मैं नहा-धोकर कलेवा करने के बाद अपने दफ्तर जाता हूँ। दफ्तर में दिन-भर काम का बड़ा बोझ रहता है। कभी-कभी दोपहर का भोजन भी नहीं कर पाता। शाम को लौटकर घर के छोटे-मोटे काम करने पड़ते हैं। फिर भी मैं सात बजे के बाद कुछ समय के लिए खाली हो जाता हूँ। लगभग दो घंटे का समय काटे नहीं कटता। न मुझे टी०वी० देखना अच्छा लगता है, न ही सिनेमा, इसलिए मैंने अपने घर के एक छोटे-से कमरे में पुस्तकालय बना रखा है, जिसमें अंग्रेज़ी, हिंदी, पंजाबी की कुछ पुस्तकें हैं। मैं समय-समय पर नई पुस्तकें भी खरीदता रहता हूँ। टाइमपास करने का मेरा यह तरीका है साहित्यिक पुस्तकें पढ़ना। कभी-कभी तो पढ़ते-पढ़ते मैं इतना मग्न हो जाता हूँ कि मुझे ध्यान ही नहीं रहता कि मैंने रात का भोजन भी करना है। अन्ततः मेरी माँ मुझे आकर डाँटती है और भोजन करने के लिए कहती है।

के टाइमपास करने का सबसे बढ़िया तरीका पस्तकें पढना है, क्योंकि पस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं। दिन-प्रतिदिन नई-नई पुस्तकें पढ़ने से जहाँ ज्ञान की वृद्धि होती है, वहाँ जीवन जीने के ढंग भी सीखने को मिलते हैं। मुंशी प्रेमचंद मेरा प्रिय साहित्यकार है। मैंने उनके उपन्यासों और कहानियों को अनेक बार पढ़ा है। ‘गोदान’ जैसे उपन्यास को तो बार-बार पढ़ने का मन करता है। शनिवार और रविवार को हमारा कार्यालय बंद होता है। इन दो दिनों में मैं खूब पुस्तकें पढ़ता हूँ। यद्यपि लोग टी०वी० देखकर अपना टाइमपास करते हैं, या इंटरनेट, कंप्यूटर पर बैठे हुए अपना समय व्यतीत करते हैं परंतु मैं समझता हूँ कि पुस्तकें पढ़ने से टाइमपास करने का ओर कोई बढ़िया तरीका नहीं हो सकता। इससे हमारे मन तथा मस्तिष्क की थकान खत्म होती है, परिश्रम करने की प्रेरणा मिलती है और समाज को समझने और जाँचने का संदेश मिलता है। टाइमपास करने का ऐसा ढंग होना चाहिए कि जिससे हमारा टाइम बर्बाद न हो क्योंकि समय सर्वाधिक मूल्यवान होता है। इसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए, बल्कि समय को किसी सार्थक काम में काम लगाना चाहिए। पुस्तकें हमारे जीवन की साथी होती हैं। इन्हें पढ़ने से जहाँ ज्ञान की प्राप्ति होती है, वहाँ हमें जीवन के लिए संदेश भी मिलता है।

8. एक कामकाजी औरत की शाम-हमारे देश के मध्यवर्गीय परिवारों में पति-पत्नी दोनों को ही धन कमाने के लिए काम करना पड़ता है। एक ज़माना था, जब एक कमाता था, दस लोग खाते थे। परंतु आज वह ज़माना नहीं रहा। महँगाई के कारण सुख से जीना बड़ा कठिन हो गया है। इसलिए पति के साथ-साथ पत्नी भी कोई-न-कोई काम कर रही है। परंतु कामकाजी औरतों का जीवन पुरुषों की अपेक्षा बड़ा कठिन है। वह घर के साथ-साथ बाहर के कामों को भी सँभालती है। दफ़्तर से छुट्टी मिलने के बाद ही उसकी शाम शुरू हो जाती है। हमारे पड़ोस में राधेश्याम की पत्नी सरकारी दफ्तर में नौकरी करती है। छुट्टी मिलते ही वह रास्ते से फल और सब्जियाँ लेकर घर लौटती है। कभी-कभी उसे करियाने का सामान भी खरीदना होता है। उसके आने से पहले पति और बच्चे घर आ जाते हैं। वह भी दिन-भर की थकी-हारी होती है और कुछ आराम करना चाहती है, परंतु उसके भाग्य में आराम कहाँ? वह पति और अपने लिए चाय बनाती है और बच्चों के लिए कुछ पकाती है।

चाय पीते समय ही वह पति और बच्चों का हाल-चाल पूछती है। पति महोदय तो चाय पीकर घूमने के लिए बाहर निकल जाते हैं लेकिन वह बेचारी घर के काम-काज में व्यस्त हो जाती है। काम करते-करते शाम के सात बज जाते हैं। इसके बाद वह एक घंटे के लिए बच्चों की होमवर्क करने में सहायता करती है। इसी बीच उसे आस-पड़ोस के घरों में आना-जाना पड़ता है। इसके बाद वह रात का खाना तैयार करती है। उसका भी मन करता है कि वह टी०वी० के सीरियल देखे और अपना मनोरंजन करे, लेकिन कामकाजी औरत होने के कारण उसके पास खाली समय नहीं है। कभी वह पति की फरमाइश को पूरा करती है, कभी बच्चों की फरमाइश को। लगता है कामकाजी औरत की शाम दिन से अधिक कठिन है। उसका जीवन घड़ी की सुई के समान निरंतर गतिशील रहता है। मैं सोचता हूँ कि विधाता ने कामकाजी औरत के जीवन में सुख लिखा ही नहीं।

HBSE 12th Class Hindi नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 3.
घर से स्कूल तक के सफर में आज आपने क्या-क्या देखा और अनुभव किया? लिखें और अपने लेख को एक अच्छा-सा शीर्षक भी दें।
उत्तर:
घर से स्कूल तक सफर
मेरा विद्यालय मेरे घर से लगभग 4 किलोमीटर दूर है। मैं प्रातःकाल साइकिल पर सवार होकर घर से स्कूल के लिए चल पड़ता हूँ, क्योंकि मेरे गाँव में केवल एक ही प्राइमरी स्कूल है। बड़ी कक्षाओं के लिए पास के गाँव में जाना पड़ता है जहाँ पर एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय है। गाँव की सड़क बड़ी ही ऊबड़-खाबड़ है। लगभग 4 वर्ष पहले इस सड़क का निर्माण हुआ था। इस पर अब ट्रैक्टर, ट्रालियाँ, बसें, कारें, ट्रक भी चलते रहते हैं। हमारे गाँव की सड़क मुख्य सड़क से जुड़ी है। सड़क पर जगह-जगह गड्ढे हैं। गाँव से बाहर निकलते ही मेरा सामना सामने हरे-भरे खेतों से होता है। सड़क के दोनों ओर वृक्ष लगे हैं। खेतों में स्त्री-पुरुष काम करते दिखाई देते हैं। कुछ किसान खेतों में ट्रैक्टर द्वारा हल चलाते देखे जा सकते हैं। प्रायः ग्रामीण स्त्रियाँ पशुओं के लिए चारा काटती हैं। यहाँ-वहाँ ट्यूबवैल भी लगे हैं। हम अपनी प्यास बुझाने के लिए यहीं का पानी पीते हैं। रास्ते में आते-जाते वाहन मिलते रहते हैं। मैं सावधान होकर साइकिल चलाता हूँ क्योंकि पिछले दिनों मेरा साथी मोटरसाइकिल से टकरा गया था जिससे उसको चोटें लगी थीं। कभी-कभी रास्ते में बस भी मिल जाती है जिसमें यात्री खचाखच भरे होते हैं। कुछ यात्री तो बस क ते हैं। इस सड़क पर थ्री-विलर और जीपें भी चलती हैं। ये वाहन लोगों को नगर तक पहँचाते हैं। जिन दिनों फसल पक कर तैयार हो जाती है, तब किसान उस फसल को ट्रालियों में भरकर बाहर की मंडी में ले जाते हैं। सड़क पर मैं तेज साइकिल नहीं चला सकता क्योंकि सड़क पर अनके गड्ढे हैं और हमेशा गिरने का भय लगा रहता है।

गाँव की पंचायत अनेक बार सरकार को पत्र लिख चुकी है कि वह इस सड़क की मरम्मत करा दे। परंतु अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगती। चुनाव के दिनों में यहाँ-वहाँ मरम्मत कर दी जाती है। चुनाव खत्म होते ही सड़कों का हुलिया फिर से बिगड़ जाता है। किंतु मुझे यह सड़क बहुत अच्छी लगती है। क्योंकि यहाँ खुली हवा है और प्रदूषण न के बराबर है। जिस बड़े गाँव में मेरा स्कूल है, वहाँ काफी भीड़ रहती है। आसपास कई दुकानें हैं, परंतु मैं इन सबसे बचते-बचाते स्कल पहँच जाता हूँ। मैं कई बार कि क्या ऐसी सरकार भी आएगी जो गाँवों की बिगड़ी हालत को सुधारने का काम करेगी।

प्रश्न 4.
आपने आसपास की किसी ऐसी चीज पर एक लेख लिखें, जो आपको किसी वजह से वर्णनीय प्रतीत होती हो। वह कोई चाय की दुकान हो सकती है, कोई सैलून हो सकता है, कोई खोमचेवाला हो सकता है या किसी खास दिन पर लगनेवाला हाट-बाज़ार हो सकता है। विषय का सही अंदाज़ा देनेवाला शीर्षक अवश्य दें।
उत्तर:
संडे बाजार अथवा ‘रविवारीय हाट-बाज़ार’
हमारे नगर में सार्वजनिक पार्क के पास एक बहुत बड़ा मैदान खाली पड़ा है। जिले के उपायुक्त ने हर रविवार को वहाँ मंडी आरंभ करने का निर्णय किया था। इस मंडी में प्रत्येक रविवार को गाँव के किसान अपने खेतों की ताजी सब्जियाँ सस्ते दामों पर बेचने आते थे। साँयकाल 4 बजे किसान लोग ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर सब्जी यहाँ लाते थे और स्वयं उसे बेचते थे। था-बिचौलियों की मुनाफाखोरी को समाप्त करना। वस्तुतः उपायुक्त महोदय की अच्छी सोच थी जो कि नगर के लोगों को काफी पसंद आई, लेकिन धीरे-धीरे यह मंडी संडे बाज़ार का रूप धारण करने लगी। अब यहाँ मुख्य सड़क के दोनों ओर व्यापारी रेडिमेड गारमेन्टस और प्रतिदिन के प्रयोग की वस्तुएँ बेचने के लिए प्रातःकाल ही अपनी दुकानें सजा लेते हैं। वस्तुतः ये दुकानदार बड़ी दुकानों के एजेंट होते हैं और वे बाज़ार की वस्तुएँ यहाँ पर बेचते हैं।

संडे बाज़ार से आप सस्ते कपड़े, जूते, चाय, चीनी, मोजे, बर्तन आदि सब कुछ खरीद सकते हैं। संडे बाज़ार में काफी चहल-पहल होती है। यहाँ-वहाँ खोमचे वाले खड़े होते हैं। चाय की भी दुकानें हैं और हलवाई की दुकानें भी हैं। सस्ते मोबाइल, रेडियो आदि इलैक्ट्रॉनिक चीजें भी यहाँ उपलब्ध हो जाती हैं। यहाँ दिन भर काफी भीड़ लगी रहती है। नगर भर के लोग यहाँ सस्ता सामान खरीदने आते हैं। अनजान व्यक्ति तो यहाँ धोखा खा जाता है। इस मंडी में अनेक बार लोगों की जेबें भी कट जाती हैं पुलिस का कोई बंदोबस्त नहीं है। दुकानदार ऊँची आवाज़ में ग्राहक को आवाजें देते हैं। जो समझदार ग्राहक होते हैं वही उचित मूल्य पर वस्तुएँ खरीद सकते हैं। साथ ही दुकानदार कह देते हैं कि बिका हुआ माल वापिस नहीं होगा।

पास में सब्जी और फलों की दुकानें भी हैं। इसी को लोग अपनी मंडी कहते हैं, परंतु यहाँ मुख्य मंडी के दुकानदार ही सब्जी बेचने आते हैं। वे मनमाने दामों पर सब्जियाँ बेचते हैं। लगभग चार बजे गाँव के कुछ किसान भी सब्जियाँ लेकर यहाँ पहुँच जाते हैं। गोभी, पालक, बैंगन, मूली, गाजर, टमाटर आदि हरी सब्जियाँ यहाँ उपलब्ध हो जाती हैं। उनके दाम भी सही होते हैं। जो ग्राहक संडे बाजार को अच्छी तरह समझते हैं, वे इन्हीं किसानों से सब्जी खरीदते हैं। यह बाज़ार सुबह 10 बजे खुलता है तथा रात 9 बजे तक खुला रहता है। यहाँ सरकार द्वारा बिजली का प्रबंध तो है, परंतु कोई शैड नहीं बना। इसलिए दुकानदार स्वयं ही कोई तरपाल या शामियाना लगाकर सामान बेचते रहते हैं। मैं समझता हूँ कि यह संडे बाज़ार गरीब ग्राहकों का अच्छा सहारा है क्योंकि यहाँ पर मुख्य बाज़ार की अपेक्षा सस्ती वस्तुएँ मिल जाती हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *