Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Hindi Apathit Bodh Apathit Gadyansh अपठित गद्यांश Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Hindi अपठित बोध अपठित गद्यांश
अपठित गद्यांश
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
[1] हमारी संस्कृति में नारी की बड़ी महत्ता रही है। हमारी संस्कृति मातृसत्ता की रही है। हमारे यहाँ ज्ञान और विवेक की अधिष्ठात्री सरस्वती, शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री लक्ष्मी मानी गई हैं। स्त्री को इन तीनों रूप में रखकर भारतीय मनीषियों ने पूरी संस्कृति को बाँध दिया है।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(iii) भारतीय संस्कृति में नारी की क्या स्थिति रही है ?
(iv) भारतीय चिंतकों ने नारी को किन-किन रूपों में माना है ?
उत्तर:
(i) भारतीय संस्कृति में नारी का बहुत महत्त्व है। सरस्वती को ज्ञान और विवेक की दुर्गा को शक्ति की और लक्ष्मी को ऐश्वर्य की देवी माना गया है। भारतीय विद्वानों ने संपूर्ण संस्कृति को इन तीनों रूपों में संगठित कर दिया है।
(ii) शीर्षक-नारी का महत्त्व।
(iii) भारतीय संस्कृति में नारी को अत्यंत आदर की दृष्टि से देखा जाता है। उसकी माता और देवी के रूप में पूजा की जाती है।
(iv) भारतीय चिंतकों ने नारी को सरस्वती, दुर्गा और लक्ष्मी के रूप में माना है।
[2] भारत एक विशाल देश है। यहाँ पर धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर चलकर ही एकता बनाए रखी जा सकती है। यदि प्रशासन अपने नागरिकों को समभाव से नहीं देखता, उनमें भेदभाव करता है, तो साम्प्रदायिक द्वेष बढ़ेगा ही। तुष्टिकरण की नीति राष्ट्र के लिए घातक है। साम्प्रदायिकता बहुसंख्यक वर्ग की हो अथवा अल्पसंख्यक वर्ग की, दोनों से कठोरतापूर्वक निपटा जाना चाहिए। कुछ लोग बहुसंख्यक समाज की साम्प्रदायिकता को तो कुचलने की बात करते हैं परंतु अल्पसंख्यकों की साम्प्रदायिकता को साम्प्रदायिकता ही नहीं मानते। इस प्रकार का दृष्टिकोण राष्ट्र-निर्माण में सहायक नहीं हो सकता। धर्मनिरपेक्षता को सुदृढ़ करने की दृष्टि से यह आवश्यक है कि धर्म और राजनीति को अलग किया जाए। भारत का अधिकतर मतदाता अशिक्षित है जो धार्मिक अपील में बहकर ही प्रायः मतदान करता है। यह स्वस्थ राजनीति का लक्षण नहीं है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ii) भारत में किस प्रकार के सिद्धांत पर चलकर एकता बनाए रखी जा सकती है ?
(iii) साम्प्रदायिकता से क्यों कठोरतापूर्वक निपटा जाना चाहिए ?
(iv) धर्मनिरपेक्षता को सुदृढ़ करने के लिए क्या करना होगा ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-धर्म और राजनीति।
(ii) भारतवर्ष में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर चलकर ही एकता बनाए रखी जा सकती है।
(iii) साम्प्रदायिकता की भावना से देश कमज़ोर होता है, इसलिए इससे कठोरता से निपटा जाना चाहिए।
(iv) धर्मनिरपेक्षता को सुदृढ़ करने के लिए धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए।
[3] लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे उसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर सम्प्रदाय के जाल में फंस रहे हैं। सम्प्रदाय बाह्य कृत्यों पर जोर देते हैं। वे चिह्नों को अपनाकर धर्म के सार तत्त्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बनाता है। उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है। सम्प्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं, जाति-पाँति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेदभावों से ऊपर नहीं उठने देते।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) लोगों ने धर्म को क्या बना रखा है ?
(iii) धर्म किसके किवाड़ों को खोलता है ?
(iv) सम्प्रदाय क्या सिखाता है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-धर्म और सम्प्रदाय।
(ii) लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है क्योंकि उसकी आड़ में वे अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
(iii) धर्म हृदय के किवाड़ों को खोलता है।
(iv) सम्प्रदाय ऊँच-नीच, जाति-पाँति का भेदभाव सिखाता है।
[4] जो शिव की सेवा करना चाहता है, उसे पहले उसकी संतानों की और इस संसार के सारे जीवों की सेवा करनी चाहिए। शास्त्रों ने कहा है कि जो भगवान के सेवकों की सहायता करते हैं, वे भगवान के सबसे बड़े सेवक हैं। निःस्वार्थता ही धर्म की कसौटी है जिसमें निःस्वार्थता की मात्रा अधिक है, वह अधिक आध्यात्मिकता-संपन्न है और शिव के अधिक निकट है। यदि कोई स्वार्थी है तो उसने फिर चाहे सारे मंदिरों के ही दर्शन क्यों न किए हों, सारे तीर्थों में ही क्यों न घूमा हो, अपने को चीते के समान क्यों न रंग डाला हो, फिर भी वह शिव से बहुत दूर है। जो शिव को दीन-हीन में, दुर्बल में और रोगी में देखता है, वही वास्तव में शिव की उपासना करता है और जो शिव को केवल मूर्ति में देखता है, उसकी उपासना तो केवल प्रारंभिक है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) शिव को मूर्ति में देखने वाले कैसे उपासक होते हैं ?
(ii) शिव की सेवा करने वाले को क्या करना चाहिए ?
(iv) भगवान का सबसे बड़ा सेवक कौन है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-शिव का सच्चा सेवक।
(ii) शिव को मूर्ति में देखने वाले केवल आरंभिक शिव-उपासक होते हैं।
(iii) शिव की सेवा करने वाले को पहले शिव की संतानों की सेवा करनी चाहिए।
(iv) भगवान के सेवकों की सहायता करने वाला भगवान का सबसे बड़ा सेवक होता है।
[5] आतंकवाद मस्तिष्क का फितूर है जिसकी चपेट में कोई भी विवेकहीन व्यक्ति आ सकता है। इसको दूर करना एक माह या एक साल का काम नहीं है। निरंतर कोशिशों से ही इसे मिटाया जा सकता है। इसके लिए सबसे बड़ी आवश्यकता राष्ट्रीय एकता की है। समस्त व्यक्तिगत, जातिगत, धर्मगत, नीतिगत स्वार्थों को त्यागकर राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को सुदृढ़ बनाने में प्रत्येक व्यक्ति को रचनात्मक सहयोग देना होगा।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(iii) आतंकवाद का शिकार आसानी से कौन हो जाता है?
(iv) आतंकवाद को समाप्त कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:
(i) आतंकवाद मानव-मस्तिष्क का जुनून है। कोई भी विवेकहीन व्यक्ति इसकी पकड़ में आ जाता है। आतंकवाद को मिटाने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे। सभी व्यक्तियों को अपनी जातिगत, धार्मिक एवं नीतिगत स्वार्थों को छोड़कर राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने में सहयोग देना होगा।
(ii) आतंकवाद और राष्ट्रीय एकता।
(iii) कोई भी विवेकहीन व्यक्ति आसानी से इसका शिकार हो जाता है।
(iv) आतंकवाद को समाप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जातिगत, धर्मगत और नीतिगत स्वार्थों का त्याग करना होगा और राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को सुदृढ़ बनाने में अपना सहयोग देना होगा।
[6] स्वतंत्र भारत का संपूर्ण दायित्व आज विद्यार्थियों के ही ऊपर है क्योंकि आज जो विद्यार्थी हैं, वे ही कल स्वतंत्र भारत के नागरिक होंगे। भारत की उन्नति और उसका उत्थान उन्हीं की उन्नति और उत्थान पर निर्भर करता है। अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सतर्कता और सावधानी के साथ करें। उन्हें प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने समाज, अपने धर्म, अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए ताकि उनके जीवन से राष्ट्र को कुछ बल प्राप्त हो सके। जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भारस्वरूप हैं।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) कैसे विद्यार्थी राष्ट्र और समाज के लिए भारस्वरूप हैं ?
(iii) स्वतंत्र भारत का दायित्व किस पर है ?
(iv) विद्यार्थियों को भारत की उन्नति के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-राष्ट्र-निर्माण में विद्यार्थियों की भूमिका।
(ii) जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भारस्वरूप हैं।
(iii) स्वतंत्र भारत का दायित्व विद्यार्थियों पर है।
(iv) विद्यार्थियों को भारत की उन्नति के लिए अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सावधानी एवं सतर्कता से करना चाहिए।
[7] राष्ट्र के पुनर्निर्माण का कार्य युवकों द्वारा ही संभव है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता को चुनौती देने वाली शक्तियों का सामना करने के लिए युवकों का पहला कर्तव्य है कि शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक दृष्टि से मज़बूत बनें। स्वामी विवेकानंद सौ-दो सौ कर्तव्यनिष्ठ युवकों के सहारे पूरे विश्व को बदलने का स्वप्न देखते रहे। युवक नशों के शिकार न हों, वे संयम और सदाचार को अपनाएँ तथा स्वास्थ्य का ध्यान रखें तो देश के काम आ सकते हैं। मानसिक रूप से यदि वे तेज़ हैं, समस्याओं को समझते हैं, उन पर विचार करते हैं तो वे अवसरवादी नेताओं, राष्ट्र विरोधी तत्त्वों की चालों को समझ सकेंगे। स्वस्थ लोकमत का निर्माण कर पाएँगे। भावात्मक अथवा आत्मिक दृष्टि से यदि वे उदार हैं, सर्वधर्म समभाव के आदर्श से प्रेरित हैं, मानव मात्र की एकता के समर्थक हैं और भारतमाता से प्यार करते हैं तो वे राष्ट्र की एकता और अखंडता में साधक हो सकते हैं। पश्चिम की भौतिकवादी-भोगवादी सभ्यता का विरोध युवकों को करना चाहिए।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) राष्ट्र का पुनर्निर्माण किनके द्वारा संभव है ?
(iii) युवकों का पहला कर्तव्य क्या होना चाहिए ?
(iv) युवकों में किन-किन गुणों का समावेश होना चाहिए ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-राष्ट्र का पुनर्निर्माण एवं युवक।
(ii) राष्ट्र के पुनर्निर्माण का कार्य युवकों द्वारा ही संभव है।
(iii) युवकों का पहला कर्तव्य है कि वे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक दृष्टि से अपने आपको मज़बूत बनाएँ।
(iv) युवकों में नशे की आदत नहीं होनी चाहिए। वे संयमशील, उदार, विचारवान तथा देशप्रेमी होने चाहिएँ।
[8] एक पत्रकार के लिए निष्पक्ष होना बहुत जरूरी है। उसकी निष्पक्षता से ही उसके समाचार संगठन की साख बनती है। यह साख तभी बनती है जब समाचार संगठन बिना किसी का पक्ष लिए सच्चाई सामने लाते हैं। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसकी राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अहम भूमिका है। लेकिन निष्पक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है। इसलिए पत्रकारिता सही
और गलत, अन्याय और न्याय जैसे मसलों के बीच तटस्थ नहीं हो सकती, बल्कि यह निष्पक्ष होते हुए भी सही और न्याय के साथ होती है।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(iii) निष्पक्षता से क्या तात्पर्य है?
(iv) पत्रकारिता की उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) एक पत्रकार को सदैव निष्पक्ष रहकर सच्चाई को सामने लाना चाहिए तभी उसके समाचार संगठन की साख बनती है। पत्रकारिता राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अहम भूमिका निभाती है। एक पत्रकार को तटस्थता छोड़कर सही और न्याय का साथ देना चाहिए।
(ii) पत्रकार की निष्पक्षता।
(iii) निष्पक्षता से तात्पर्य है कि बिना किसी का पक्ष लिए सच्चाई को सामने लाना।
(iv) पत्रकारिता का लोकतंत्र से सीधा संबंध है। यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में यह सदैव सही और न्याय के साथ होती है।
[9] देशभक्त अपनी मातृभूमि को सच्चे हृदय से प्रेम करता है। यदि एक ओर उसे अपने अतीत के गौरव का गर्व है, तो दूसरी ओर वह अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहता है। वह सदैव समाज में क्रांति चाहता है किंतु वह क्रांति न विशृंखला कही जा सकती है और न नागरिकता के प्रतिकूल। समाज में प्रचलित रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों तथा उन परंपराओं एवं परिपाटियों के विरुद्ध वह क्रांति करता है, जो देश की उन्नति के पथ की बाधाएँ हैं। लोगों में एकता, प्रेम और सहानुभूति उत्पन्न करना, उनमें राष्ट्रीय, सामाजिक एवं नैतिक चेतना जागृत करना, उन्हें कर्तव्यपरायणता और अध्यवसायी बने रहने के लिए प्रोत्साहित करना ही देशभक्ति है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) सच्चा देशभक्त कौन है ?
(iii) देश की उन्नति के लिए क्या बाधक है ?
(iv) सच्ची देशभक्ति क्या है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-सच्चा देशभक्त।
(ii) जो व्यक्ति अपनी मातृभूमि को सच्चे हृदय से प्रेम करता है वही सच्चा देशभक्त होता है।
(iii) अंध-विश्वास, रूढ़िगत परंपराएँ एवं परिपाटियाँ देश की उन्नति में बाधक हैं।
(iv) लोगों में एकता, प्रेम, जागृति, सहानुभूति उत्पन्न करना तथा लोगों को उनके कर्तव्य के प्रति प्रोत्साहित करना सच्ची देशभक्ति है।
[10] मनुष्य की मानसिक शक्ति उसकी इच्छाशक्ति पर निर्भर होती है। जिस मनुष्य की इच्छाशक्ति जितनी बलवती होगी, उसका मन उतना ही दृढ़ और संकल्पवान होगा। इसी इच्छाशक्ति के द्वारा मनुष्य वह दैवी शक्ति प्राप्त कर लेता है, जिसके आगे करोड़ों व्यक्ति नतमस्तक होते हैं। प्रबल इच्छाशक्ति के द्वारा मानव एक बार मृत्यु के क्षणों को भी टाल सकता है। विघ्न-बाधाएँ, मार्ग की रुकावटें सभी के मार्ग में व्यवधान बनकर आती हैं, चाहे वह साधारण व्यक्ति हो या महान। अंतर केवल इतना है कि साधारण मनुष्य का मन विपत्तियों को देखकर जल्दी हार मान लेता है जबकि महान एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने मानसिक बल के आधार पर उन पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। विषम परिस्थितियाँ और उन पर दृढ़तापूर्वक विजय-प्राप्ति ही मनुष्य को महान बनाती हैं।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) मनुष्य दैवी शक्ति कैसे प्राप्त कर सकता है ?
(iii) मन की दृढ़ता तथा संकल्पशक्ति किस पर निर्भर करती है ?
(iv) जीवन में आने वाली बाधाओं पर कौन और कैसे विजय प्राप्त कर लेते हैं ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-दृढ़ इच्छाशक्ति।
(ii) बलवान इच्छाशक्ति से मानव दैवी शक्ति प्राप्त कर सकता है।
(iii) मन की दृढ़ता तथा संकल्पशक्ति उसकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है।
(iv) जीवन में आने वाली बाधाओं पर प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने मानसिक बल के द्वारा विजय प्राप्त कर सकता है।
[11] लोकतंत्र की सफलता का एक मापदंड यह भी है कि हर नागरिक को न्याय मिले और उसके साथ समता का व्यवहार हो। जिस व्यवस्था में मनुष्य की गरिमा खंडित होती हो, मानवीय अधिकारों का हनन होता हो, उसे लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता।
लोकतंत्र वही सफल है, जहाँ सबको न्याय पाने का अधिकार है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। जहाँ मनुष्य के साथ उसकी जाति, लिंग, रंग अथवा आर्थिक दशा के आधार पर भेदभाव किया जाता हो, वहाँ लोकतंत्र असफल है। जहाँ मनुष्य को मनुष्य के नाते विकास के साधन प्राप्त न हों, वहाँ लोकतंत्र असफल है। शिक्षित व्यक्ति ही ऐसे अधिकारों के प्रति जागरूक होता है और उनकी माँग कर सकता है। शिक्षित व्यक्ति न्याय पाने के लिए संघर्ष करने में अधिक सक्षम होता है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) लोकतंत्र की सफलता का एक मापदंड बताइए।
(iii) असफल लोकतंत्र की क्या पहचान है ?
(iv) व्यक्ति का शिक्षित होना क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक लोकतंत्र।
(ii) लोकतंत्र की सफलता का मापदंड यह है कि वहाँ प्रत्येक नागरिक को न्याय मिले व सबके साथ समानता का व्यवहार हो।
(iii) जहाँ व्यक्ति के अधिकारों का हनन हो, उसके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाए, मनुष्य को विकास के साधन उपलब्ध न हों, वही असफल लोकतंत्र की मुख्य पहचान है।
(iv) व्यक्ति का शिक्षित होना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि शिक्षित व्यक्ति ही न्याय पाने के लिए संघर्ष करने में अधिक सक्षम हो सकता है।
[12] भाषणकर्ता के गुणों में तीन गुण श्रेष्ठ माने जाते हैं सादगी, असलियत और जोश। यदि भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है, तो श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं। इस प्रकार के भाषणकर्ता का प्रभाव समाप्त होने में देर नहीं लगती। यदि वक्ता में उत्साह की कमी हो तो भी उसका भाषण निष्प्राण हो जाता है। उत्साह से ही किसी भी भाषण में प्राणों का संचार होता है। भाषण को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए उसमें उतार-चढ़ाव, तथ्य और आँकड़ों का समावेश आवश्यक है। अतः उपर्युक्त तीनों गुणों का समावेश एक अच्छे भाषणकर्ता के लक्षण हैं तथा इनके बिना कोई भी भाषणकर्ता श्रोताओं पर अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकता।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) भाषणकर्ता के प्रमुख गुण कौन-से हैं ?
(iii) श्रोता किसे तत्काल ताड़ जाते हैं ?
(iv) कैसे भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-भाषणकर्ता के गुण।
(ii) सादगी, असलियत और जोश भाषणकर्ता के तीन श्रेष्ठ गुण हैं।
(iii) भाषणकर्ता की बनावटी भाषा में बनावटी बातों को श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं।
(iv) बनावटी भाषा में असत्य पर आधारित भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता।
[13] सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है। व्यक्ति के जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासन के बिना मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता। अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए भी मनुष्य का अनुशासनबद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला होती है। अतः विद्यार्थियों के लिए अनुशासन में रहकर जीवन-यापन करना आवश्यक है।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) अनुशासन किसे कहा जाता है ?
(ii) मनुष्य किसके बिना अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता ?
(iv) विद्यार्थी जीवन किसकी आधारशिला है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक अनुशासन।
(ii) सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है।
(iii) अनुशासन के बिना मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता।
(iv) विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला है।
[14] मैंने देखा कि बेडौल अक्षर होना अधूरी शिक्षा की निशानी है। अतः मैंने पीछे से अपना खत सुधारने की कोशिश भी की परंतु पक्के घड़े पर कहीं मिट्टी चढ़ सकती है ? जवानी में जिस बात की अवहेलना मैंने की, उसे मैं फिर आज तक न सुधार सका। अतः हरेक नवयुवक मेरे इस उदाहरण को देखकर चेते और समझे कि सुलेख शिक्षा का एक आवश्यक अंग है। सुलेख के लिए चित्रकला आवश्यक है। मेरी तो यह राय बनी है कि बालकों को आलेखन कला पहले सिखानी चाहिए। जिस प्रकार पक्षियों और वस्तुओं आदि को देखकर बालक याद रखता है और उन्हें आसानी से पहचान लेता है, उसी प्रकार अक्षरों को भी पहचानने लगता है और जब आलेखन या चित्रकला सीखकर चित्र इत्यादि निकालना सीख जाता है, तब यदि अक्षर लिखना सीखे तो उसके अक्षर छापे की तरह हो जाएँ।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) गांधी जी की दृष्टि में सुलेख के लिए क्या आवश्यक है ?
(iii) बेडौल अक्षर किसकी निशानी हैं ?
(iv) ‘पक्के घड़े पर मिट्टी न चढ़ने’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) शीर्षक-सुलेख और शिक्षा।
(ii) गांधी जी की दृष्टि में सुलेख के लिए चित्रकला आवश्यक है।
(iii) बेडौल अक्षर अधूरी शिक्षा की निशानी हैं।
(iv) ‘पक्के घड़े पर मिट्टी न चढ़ने’ का भाव यह है कि परिपक्व होने पर व्यक्ति की आदतों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।
[15] वर्तमान शिक्षा-प्रणाली ने भारतवासियों को कहीं का न छोड़ा। पिता अपने पुत्र को विद्यालय इसलिए भेजता है कि वह शिक्षित होकर सभ्य बने किंतु वह बनता है-पढ़ा-लिखा बेकार। इतना ही नहीं, वह भ्रष्ट होकर समय खराब करता है। किसान का पुत्र शिक्षित होकर कृषि से नाता तोड़ लेता है। बढ़ई का पुत्र स्कूल में पढ़कर बढ़ईगिरि को भूल जाता है। कर्मकांडी पंडित का पुत्र विश्वविद्यालयी शिक्षा प्राप्त करके अपने पिता को ही पाखंडी की उपाधि देने लगता है। देश में शिक्षित बेरोज़गारों की संख्या सुरसा के मुँह की भाँति फैल रही है। नैतिक भावना से विहीन शिक्षा विद्यार्थियों में श्रद्धा और आस्था के भाव उत्पन्न नहीं कर पाती। वर्तमान युग में छात्रों की उच्छंखलता और अराजकता की स्थिति नैतिकता रूपी बीज से उत्पन्न वृक्ष के कटु और शुष्क फल हैं।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) पिता पुत्र को विद्यालय किस उद्देश्य से भेजता है ?
(ii) किसान का बेटा शिक्षित होकर क्या करता है ?
(iv) वर्तमान युग में छात्रों की कैसी स्थिति है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-वर्तमान दूषित शिक्षा-प्रणाली।
(ii) पिता पुत्र को विद्यालय में पढ़-लिखकर सभ्य बनने के लिए भेजता है।
(iii) किसान का बेटा शिक्षित होकर कृषि से नाता तोड़ लेता है।
(iv) वर्तमान युग में छात्र नैतिक शिक्षा के अभाव में उच्छृखलता की स्थिति में पहुंच गए हैं।
[16] विश्व के किसी कोने में घटित घटना का प्रभाव तत्काल अन्य देशों पर पड़ता है, आज सभी देश एक-दूसरे के सहयोग पर निर्भर हैं। यदि विकसित राष्ट्रों के पास ज्ञान, विज्ञान और तकनीक है तो विकासशील और अविकसित राष्ट्रों के पास कच्चा माल और सस्ता श्रम। आज सभी विकासात्मक कार्यों और समस्याओं की व्याख्या विश्व स्तर पर होती है, इसलिए विश्व-बन्धुत्व की भावना को बढ़ावा मिल रहा है।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(ii) विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों में क्या अंतर है?
(iv) संसार में भाईचारे की भावना क्यों बढ़ रही है?
उत्तर:
(i) सभी राष्ट्र परस्पर सहयोगी हैं क्योंकि किसी के पास ज्ञान, विज्ञान और तकनीक है तो किसी के पास कच्चा माल और सस्ता श्रम है। सभी राष्ट्रों की समस्याओं और विकासात्मक कार्यों का विश्व स्तर पर प्रभाव पड़ता है।
(ii) विश्व-बन्धुत्व।
(iii) विकसित राष्ट्रों के पास ज्ञान, विज्ञान और तकनीक है और विकासशील राष्ट्रों के पास कच्चा माल और सस्ता श्रम है।
(iv) आजकल सभी विकासात्मक कार्यों और समस्याओं की व्याख्या विश्व स्तर पर होती है इसलिए भाईचारे की भावना बढ़ रही है।
[17] आज के प्रगतिशील संसार में मनुष्य, समाज और राष्ट्र के अस्तित्व का विकास करने वाली जो वस्तुएँ-सुविधाएँ उपलब्ध हैं वे सभी विज्ञान की ही देन हैं। यह विज्ञान की ही देन है कि आज सारा संसार सिमट आया है। कोई देश, समाज अब एक-दूसरे से बहुत दूर नहीं रह गया है। रेल, मोटर तथा वायुयान जैसे अनेक साधन उपलब्ध हैं जिनसे हम कम समय में बहुत दूर की यात्रा सुविधापूर्वक कर सकते हैं।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(iii) संसार के सिमटने से क्या तात्पर्य है?
(iv) यातायात के साधनों से क्या लाभ हुआ है?
उत्तर:
(i) आधुनिक युग में उपलब्ध सभी सुख-सुविधाएँ विज्ञान की देन हैं। सारा संसार छोटा हो गया है। यातायात के विकसित साधनों द्वारा कम समय में बहुत दूर की यात्रा की जा सकती है।
(ii) विज्ञान का सुख।
(iii) आज घर बैठे ही सारे संसार की खबरों का मिनटों में पता लगाया जा सकता है। विज्ञान की उन्नति से सारा संसार सिमट गया है।
(iv) यातायात के साधनों से कम समय में बहुत दूर की यात्रा आसानी से की जा सकती है।
[18] जल जीवन का आधार है। मनुष्य बिना भोजन के कुछ दिन, बिना जल के कुछ घंटे तथा बिना वायु के कुछ मिनटों तक ही जीवित रह सकता है। मनुष्य के जीवन में जल का विशेष महत्त्व है। जल की उपयोगिता अनेक हैं-घरेलू कामों, सिंचाई और औद्योगिक कामों में इसकी विशेष भूमिका रहती है। जल प्रदूषित न हो-इसके प्रति हम सभी को कठोरता से सचेत और जागरूक रहना चाहिए।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का सार लिखिए।
(ii) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक लिखिए।
(iii) जीवन में जल का क्या महत्त्व है?
(iv) जल के प्रति हमें सचेत रहना क्यों जरूरी है?
उत्तर:
(i) मानव-जीवन में जल का बहुत महत्त्व है। जल के बिना मनुष्य का जीवन असम्भव है। जल का प्रयोग घरेलू कामों के अतिरिक्त सिंचाई और औद्योगिक कार्यों में भी किया जाता है। अतः हमें जल को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।
(ii) शीर्षक-जल ही जीवन है।
(iii) जल हमारे घरेलू कार्यों के अलावा कृषि, उद्योग-धंधों एवं जैविक क्रियाओं में भी महत्त्वपूर्ण सहयोग देता है। अतः जीवन में जल का अत्यंत महत्त्व है।
(iv) जल के प्रति हमें सचेत रहना इसलिए अनिवार्य है क्योंकि जल का प्रयोग हमारे दैनिक कार्यों के अतिरिक्त सिंचाई और औद्योगिक कार्यों में भी किया जाता है।
[19] विद्यार्थियों में अनेक बुराइयाँ कुसंगति के प्रभाव से ही उत्पन्न होती हैं। विद्यार्थी पहले पढ़ाई में खूब रुचि लेता था किंतु अब वह सिनेमा देखने में मस्त रहता है, निश्चित ही यह कुसंगति का प्रभाव है। शुरू में उसे कोई विद्यार्थी सिनेमा दिखाना प्रारंभ करता है, बाद में उसे सिनेमा देखने की आदत पड़ जाती है। यही हालत धूम्रपान करने वालों की होती है। जब उन्हें धूम्रपान करने की आदत पड़ जाती है तो छूटने का नाम तक नहीं लेती। प्रारंभ में कुछ लोग शौकिया तौर पर बीड़ी-सिगरेट पीना आरंभ कर देते हैं। अंत में उसके आदी बन जाते हैं और लाख यत्न करने पर भी उससे पीछा नहीं छुड़ा पाते। इसलिए तो पं० रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। वह न केवल मान-मर्यादा का विनाश करता है बल्कि सात्विक चित्तवृत्ति को भी नष्ट कर देता है। जो भी कभी कुसंग के चक्र में फँसा है, नष्ट हुए बिना नहीं रहा। कुमार्गगामी दूसरे को अपने जैसा बना लेता है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) विद्यार्थी जीवन में बुराइयाँ उत्पन्न होने का प्रमुख कारण क्या हो सकता है ?
(iii) कुसंग के ज्वर से क्या-क्या नष्ट हो जाता है ?
(iv) “कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है।” ये शब्द किसके द्वारा कहे गए हैं ?
उत्तर:
(i) शीर्षक कुसंगति का प्रभाव।
(ii) कुसंगति के कारण विद्यार्थियों में अनेक बुराइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(iii) कुसंग का ज्वर मान-मर्यादा एवं सात्विक चित्तवृत्ति को नष्ट कर देता है।
(iv) ये शब्द पं० रामचंद्र शुक्ल ने कहे हैं।
[20] संसार में धर्म की दुहाई सभी देते हैं। पर कितने लोग ऐसे हैं, जो धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं। धर्म कोई बुरी चीज नहीं है। धर्म एक ऐसी विशेषता है, जो मनुष्य को पशुओं से भिन्न करती है। अन्यथा मनुष्य और पशु में अन्तर ही क्या है। धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझने की आवश्यकता है। त्याग और कर्तव्यपरायणता में ही धर्म का वास्तविक रूप निहित है। त्याग एक से लेकर प्राणि-मात्र के लिए भी हो सकता है। इसी से भेद की सारी दीवारें चकनाचूर हो जाती हैं।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) धर्म की क्या विशेषता है?
(iii) धर्म का वास्तविक स्वरूप किसमें निहित है ?
(iv) भेद की सारी दीवारें कब ध्वस्त हो जाती हैं ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-धर्म का महत्त्व।
(ii) धर्म ही मनुष्य को पशुओं से अलग करता है।
(iii) त्याग और कर्तव्यपरायणता में धर्म का वास्तविक स्वरूप निहित है।
(iv) त्याग से भेद की सारी दीवारें ध्वस्त हो जाती हैं।
[21] नारी नर की शक्ति है। वह माता, बहन, पत्नी और पुत्री आदि रूपों में पुरुष में कर्त्तव्य की भावना सदा जगाती रहती है। वह ममतामयी है। अतः पुष्प के समान कोमल है किन्तु चोट खाकर जब वह अत्याचार के लिए सन्नद्ध हो जाती है, तो वज्र से भी ज्यादा कठोर हो जाती है। तब वह न माता रहती है, न प्रिया, उसका एक ही रूप होता है और वह है दुर्गा का। वास्तव में नारी सृष्टि का ही रूप है, जिसमें सभी शक्तियाँ समाहित हैं।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) नारी को फूल-सी कोमल क्यों कहा गया है?
(iii) नारी दुर्गा का रूप कब बन जाती है?
(iv) नारी किन-किन रूपों में कर्तव्य की भावना जगाती है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-नारी की शक्ति।
(ii) नारी ममता की भावना से भरी हुई है, इसलिए उसे फूल-सी कोमल कहा गया है।
(iii) जब नारी के आत्म-सम्मान पर आघात होता है या उस पर अत्याचार होता है तो वह दुर्गा का रूप धारण कर लेती है।
(iv) नारी माता, बहिन, पत्नी आदि रूपों में कर्तव्य की भावना जगाती है।
[22] मनोरंजन का मानव जीवन में विशेष महत्त्व है। दिन भर की दिनचर्या से थका-मांदा मनुष्य रात को आराम का साधन खोजता है। यह साधन है-मनोरंजन। मनोरंजन मानव-जीवन में संजीवनी-बूटी का काम करता है। यही आज के मानव के थके हारे शरीर को आराम सुविधा प्रदान करता है। यदि आज के मानव के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन नीरस बनकर रह जाता। यह नीरसता मानव जीवन को चक्की की तरह पीस डालती और मानव संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य भी नहीं रहता।
प्रश्न-
(i) प्रस्तुत अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) मनोरंजन क्या है?
(iii) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन कैसा होता?
(iv) नीरस मानव जीवन की सबसे बड़ी हानि क्या होती है?
उत्तर:
(i) शीर्षक-मनोरंजन।
(ii) काम करने के पश्चात् जब मनुष्य दिनभर थका-मांदा रात को आराम के साधन खोजता है, उसे मनोरंजन कहते हैं।
(ii) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन नहीं होते तो उसका जीवन नीरस बनकर रह जाता।
(iv) नीरसता मानव-जीवन को चक्की की भाँति पीस डालती है और वह संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य नहीं रहता।
[23] आधुनिक मानव-समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरंतर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव-मूल्यों का ह्रास होने की समस्या उत्तरोतर गूढ़ होती जा रही है। अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य विवेक और ईमानदारी को त्यागकर भौतिक स्तर से ऊँचा उठने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिंता नहीं करता। उसे तो बस साध्य के पाने की प्रबल इच्छा रहती है। ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नए-नए रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध-वृद्धि पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। सदाचार, कर्तव्यपरायणता, त्याग आदि नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना करना स्वप्न मात्र है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) आज के मानव की प्रबल इच्छा क्या है ?
(iii) आधुनिक समाज में कौन-सी समस्या बढ़ रही है ?
(iv) आज के मानव की समस्याओं का क्या कारण है ?
उत्तर:
(i) शीर्षक-आधुनिक सभ्यता।
(ii) आज के मानव की प्रबल इच्छा साध्य प्राप्त करने की है।
(iii) आधुनिक समाज में मानव-मूल्यों का हास होने की समस्या निरंतर बढ़ रही है।
(iv) विवेक और ईमानदारी को त्यागकर भौतिक स्तर को ऊँचा उठाने की कामना ही मानव की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं का कारण है।
[24] विज्ञान ने मनुष्य को अधिक बुद्धिमान बना दिया है। अब वह अपने समय का हर क्षण पूरी तरह भोग लेना चाहता है। विज्ञान ने मनुष्य को बतलाया कि असली सुख तो सुविधाओं को जुटाने में है और सुविधाएँ पैसे से इकट्ठी की जा सकती हैं। पैसा कमाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। आज का मनुष्य आत्मकेंद्रित, सुखलिप्सू, सुविधाभोगी और आलसी हो गया है। विज्ञान ने उसे निकम्मा बना दिया। अब गृहिणी के पास करने के लिए कोई काम नहीं बचा। जब विज्ञान ने अपेक्षाकृत कम प्रगति की थी, तब लोग प्रायः सरल जीवन व्यतीत करते थे। वे अधिक भावनासंपन्न थे। लोग परोपकार, सेवा, संयम, त्याग आदि गुणों का सम्मान करते थे परंतु अब तो ऐसा प्रतीत होता है कि जीवन-संगीत विज्ञान की आँच में सूख गया है।
प्रश्न-
(i) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ii) आज का मनुष्य कैसा बन गया है ?
(iii) विज्ञान ने मनुष्य को किस प्रकार बुद्धिमान बनाया है ?
(iv) विज्ञान की आँच में जीवन-संगीत क्यों सूख गया है ?
उत्तर-
(i) शीर्षक-विज्ञान और मानव-जीवन।
(ii) आज का मनुष्य आलसी, आत्मकेंद्रित और सुविधाभोगी बन गया है।
(iii) विज्ञान ने मनुष्य को बताया है कि असली सुख तो सुविधाओं को जुटाने में है और सुविधाएँ पैसे से प्राप्त की जा सकती हैं।
(iv) वैज्ञानिक उन्नति के कारण मानव-जीवन में से सेवा, त्याग, परोपकार आदि की भावना समाप्त हो गई है। इसलिए ऐसा लगता है कि विज्ञान की आँच में जीवन-संगीत सूख गया है।
[25] श्रीराम, श्रीकृष्ण, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोबिन्द सिंह आदि जितने भी महापुरुष हुए हैं उनको सुयोग्य तथा वीर बनाने का श्रेय किनको है ? उनकी माताओं को। अमर रहने वाली संतान माताओं के शुभ संस्कारों द्वारा ही बनती हैं। आज सब यह चाहते हैं कि दोनों स्त्री-पुरुष कमाएँ। घर में नौकर-चाकर हों। बच्चों के लिए आया हो, परंतु इससे संतान को श्रेष्ठ बनाने के लिए जितना समय माँ को देना चाहिए, वह नहीं दे सकेगी। स्त्री का सर्वोत्तम कार्य-क्षेत्र तो घर ही है। भारत का कल्याण तभी हो सकता है जबकि नर-नारी निज कर्त्तव्य का पालन करते हुए अपनी भारतीय सभ्यता, मान, मर्यादा तथा संस्कृति की रक्षा के लिए अग्रसर हों। स्त्री ऊँची से ऊँची शिक्षा प्राप्त करे। इसमें कोई बुराई नहीं, पर अपने असली उद्देश्य से विचलित न हो।
प्रश्न-
(i) महापुरुषों को सुयोग्य तथा वीर बनाने का श्रेय किनको है ?
(ii) स्त्री का सर्वोत्तम कार्य-क्षेत्र कौन-सा है ?
(iii) भारत का कल्याण कैसे हो सकता है ?
(iv) नारी का असली उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
(i) महापुरुषों को सुयोग्य तथा वीर बनाने का श्रेय उनकी माताओं को है।
(ii) स्त्री का सर्वोत्तम कार्य-क्षेत्र उनका घर ही है।
(iii) भारत का कल्याण तभी हो सकता है जबकि नर-नारी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपनी भारतीय सभ्यता, मान, मर्यादा तथा संस्कृति की रक्षा के लिए अग्रसर हों।
(iv) नारी का असली उद्देश्य यह है कि वह ऊँची-से-ऊँची शिक्षा प्राप्त करके अपने कर्त्तव्य का पालन करें।