Class 12

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

प्रश्न 1.
रदरफोर्ड ने स्वर्ण-पत्र से α-कणों के प्रकीर्णन के द्वारा परमाणु में नाभिक के अस्तित्व को सिद्ध किया। नाभिक पर था:
(अ) धनात्मक आवेश
(ब) ऋणात्मक आवेश
(स) कोई आवेश नहीं
(द) धन व ऋण दोनों प्रकार के आवेश
उत्तर:
(अ) धनात्मक आवेश

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 2.
नाभिक की त्रिज्या, परमाणु की त्रिज्या की तुलना में छोटी होती है, लगभग:
(अ) 106 भाग
(ब) 104 भाग
(स) 108 भाग
(द) 1010 भाग
उत्तर:
(ब) 104 भाग

प्रश्न 3.
किसी परमाणु के नाभिक के मूल कण होते हैं:
(अ) न्यूट्रॉन व प्रोटॉन
(ब) प्रोटॉन य इलेक्ट्रॉन
(स) न्यूट्रॉन व इलेक्ट्रॉन
(द) न्यूट्रॉन, प्रोटॉन व इलेक्ट्रॉन
उत्तर:
(अ) न्यूट्रॉन व प्रोटॉन

प्रश्न 4.
न्यूट्रॉन की माध्य आयु होती है:
(अ) लगभग 100 सेकण्ड
(ब) लगभग 1000 सेकण्ड
(स) लगभग 10 सेकण्ड
(द) लगभग 1 सेकण्ड
उत्तर:
(ब) लगभग 1000 सेकण्ड

प्रश्न 5.
प्रभावी नाभिकीय बलों की प्रकृति होती है:
(अ) प्रबल वैद्युत प्रतिकर्षण
(ब) प्रबल वैद्युत आकर्षण
(स) प्रबल आकर्षण बल
(द) वाण्डर वाल बलों जैसी
उत्तर:
(स) प्रबल आकर्षण बल

प्रश्न 6.
किसी परमाणु के नाभिक की त्रिज्या (R) व परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) में सम्बन्ध होता है:
(अ) R = Ro A2/3
(ब) R = R0 A1/3
(स) R = R0 A1/2
(द) R = R0 A
उत्तर:
(ब) R = R0 A1/3

प्रश्न 7.
एक रेडियोधर्मी सैम्पल का क्षय नियतांक λ है। इस सैम्पल की अर्द्ध आयु है:
(अ) \(\frac{1}{\lambda}\) loge2
(ब) \(\frac{1}{\lambda}\)
(स) λloge2
(द) \(\frac{\lambda}{\log _{\mathrm{e}} 2}\)
उत्तर:
(अ) \(\frac{1}{\lambda}\) loge2

प्रश्न 8.
निम्न रेडियोएक्टिव क्षय 82X23487Y222 में उत्सर्जित α तथा β कणों की संख्या होगी:
(अ) 3, 3
(ब) 3, 1
(स) 5,3
(द) 3,5
उत्तर:
(ब) 3, 1

प्रश्न 9.
निम्न अभिक्रिया पूरी करो:
92U235 + 0n138Sr90
(अ) 57Xe142
(ब) 54Xe145
(स) 54Xe143 + 3n1
(द) 54Xe142 + 0n1
उत्तर:
(स) 54Xe143 + 3n1

प्रश्न 10.
एक परमाणु द्रव्यमान मात्रक (amu) बराबर होगा:
(अ) कार्बन परमाणु के द्रव्यमान का 12 वां भाग
(ब) ऑक्सीजन परमाणु के द्रव्यमान का 12 वां भाग
(स) हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान का 16 वां भाग
(द) हीलियम परमाणु के द्रव्यमान का 16 वां भाग
उत्तर:
(अ) कार्बन परमाणु के द्रव्यमान का 12 वां भाग

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प्रश्न 11.
किसी नाभिक की बन्धन ऊर्जा तुल्य होती है:
(अ) नाभिक के द्रव्यमान के
(ब) प्रोटॉन के द्रव्यमान के
(स) नाभिक की द्रव्यमान क्षति के
(द) न्यूट्रॉन के द्रव्यमान के
उत्तर:
(स) नाभिक की द्रव्यमान क्षति के

प्रश्न 12.
किसी नाभिक में प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा दर्शाती है:
(अ) उसके स्थायित्व को
(ब) उसके आकार को
(स) उसके द्रव्यमान को
(द) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(अ) उसके स्थायित्व को

प्रश्न 13.
हीलियम की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा होती है:
(अ) 8 Mev
(ब) 7.0 Mev
(स) 11 Mev
(द) 4.0 Mev
उत्तर:
(ब) 7.0 Mev

प्रश्न 14.
द्रव्यमान संख्या 40 से 120 तक नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा होती है:
(अ) 1.2 Mev
(ब) 2.4 Mev
(स) 6.8 Mev
(द) 8.5 MeV
उत्तर:
(द) 8.5 MeV

प्रश्न 15.
किस नाभिक के लिये प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा का मान सर्वाधिक होगा:
(अ) 26Fe56
(ब) 8O16
(स) 2He4
(द) 92U238
उत्तर:
(अ) 26Fe56

प्रश्न 16.
नाभिकीय विखण्डन में न्यूट्रॉनों को काम में लाया जाता है, क्योंकि:
(अ) नाभिक के द्वारा न्यूट्रॉन आकर्षित होते हैं
(ब) न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान प्रोटॉनों से अधिक होता है
(स) न्यूट्रॉन अनावेशित होते हैं जिससे नाभिकों से उनका प्रतिकर्षण नहीं होता है
(द) न्यूट्रॉनों को त्वरित कर अधिक ऊर्जा दी जा सकती है।
उत्तर:
(स) न्यूट्रॉन अनावेशित होते हैं जिससे नाभिकों से उनका प्रतिकर्षण नहीं होता है

प्रश्न 17.
रेडियोएक्टिव तत्व की माध्य आयु 2309 वर्ष है, उसकी अर्द्ध आयु होगी:
(अ) 1600 वर्ष
(ब) 1800 वर्ष
(स) 900 वर्ष
(द) 400 वर्ष
उत्तर:
(अ) 1600 वर्ष

प्रश्न 18.
किसी रेडियोएक्टिव तत्व से उत्सर्जित β-कण होते हैं:
(अ) विद्युत चुम्बकीय विकिरण
(ब) नाभिक के प्रति परिक्रमा करते हुये इलेक्ट्रॉन
(स) नाभिक से उत्सर्जित आवेशित कण
(द) अनावेशित कण
उत्तर:
(स) नाभिक से उत्सर्जित आवेशित कण

प्रश्न 19.
रेडियोएक्टिव क्षय में cx कणों का ऊर्जा स्पेक्ट्रम होता है:
(अ) अनिश्चित
(ब) संतत
(स) संतत एवं रेखिल
(द) विविक्त एवं रेखिल
उत्तर:
(द) विविक्त एवं रेखिल

प्रश्न 20.
β- विघटन में कोणीय संवेग व ऊर्जा संरक्षण की व्याख्या के लिये β-कणों के साथ उत्सर्जित होने वाला अन्य कण होगा:
(अ) न्यूट्रॉन
(ब) न्यूट्रिनो
(स) प्रोटॉन
(द) a-कण
उत्तर:
(ब) न्यूट्रिनो

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प्रश्न 21.
नाभिक का आकार लगभग होता है:
(अ) 10-10 मीटर
(ब) 10-15 मीटर
(स) 10-15 मीटर
(द) 10-18 मीटर
उत्तर:
(ब) 10-15 मीटर

प्रश्न 22.
न्यूट्रॉन की खोज किस वैज्ञानिक ने की:
(अ) रदरफोर्ड
(ब) फर्मी
(स) चैडविक
(द) पॉली
उत्तर:
(स) चैडविक

प्रश्न 23.
नाभिक का आकार:
(अ) परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) के समानुपाती होता है।
(ब) परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) के वर्गमूल के समानुपाती होता है।
(स) परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) के घनमूल के समानुपाती होता है।
(द) परमाणु के परमाणु क्रमांक (Z) के समानुपाती होता है।
उत्तर:
(स) परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) के घनमूल के समानुपाती होता है।

प्रश्न 24.
संलयन प्रक्रिया उच्च ताप पर होती है क्योंकि उच्च ताप पर:
(अ) परमाणु आयनीकृत हो जाते हैं।
(ब) अणु विघटित हो जाते हैं।
(स) नाभिक विघटित हो जाते हैं।
(द) नामिकों को इतनी अधिक ऊर्जा मिल जाती है, जो नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल को अतिक्रमित कर सके।
उत्तर:
(द) नामिकों को इतनी अधिक ऊर्जा मिल जाती है, जो नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल को अतिक्रमित कर सके।

प्रश्न 25.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध आयु 20 मिनट है। समय t2 जब वह अपनी मात्रा का \(\frac{2}{3}\) क्षय हो गया हो तथा समय t1 जब वह अपनी मात्रा का \(\frac{1}{3}\)क्षय हो गया हो, तो उनके बीच का लगभग समय अन्तराल (t2 – t1) होगा:
(अ) 20 मिनट
(ब) 28 मिनट
(स) 7 मिनट
(द) 14 मिनट
उत्तर:
(अ) 20 मिनट

प्रश्न 26.
जनक नाभिक के लिए प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा E1 है और क्षयजात नामिकों के लिए E2 है तब:
(अ) E1 = 2E2
(ब) E1 > E2
(स) E2 > E1
(द) E2 = 2E1
उत्तर:
(स) E2 > E1

प्रश्न 27.
यदि t1/2 पदार्थ की अर्द्ध-आयु है तब t3/4 वह समय है जिसमें पदार्थ का
(अ) \(\frac{3}{4}\) भाग विघटित होता है।
(ब) \(\frac{3}{4}\) भाग अविघटित होता है।
(स) \(\frac{1}{2}\) भाग विघटित होता है।
(द) \(\frac{1}{2}\) भाग अविघटित होता है।
उत्तर:
(अ) \(\frac{3}{4}\) भाग विघटित होता है।

प्रश्न 28.
नाभिकीय अभिक्रिया
ZXAZ+1 XAZ-1 RA-4Z-1 RA-4
में उत्सर्जित कण (या विकिरण) होंगे:
(अ) α, β, γ
(स) γ, α, β
(ब) β, γ α
(द) β, α, γ
उत्तर:
(द) β, α, γ

प्रश्न 29.
एक रेडियोएक्टिव नाभिक एक α-कण व एक गामा किरण उत्सर्जित करता है तो उसकी
(अ) द्रव्यमान संख्या 4 कम हो जायेगी।
(ब) द्रव्यमान संख्या 1 कम हो जायेगी।
(स) परमाणु संख्या 2 बढ़ जायेगी।
(द) ऊर्जा कम हो जाती है।
उत्तर:
(अ) द्रव्यमान संख्या 4 कम हो जायेगी।

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प्रश्न 30.
रेडियोएक्टिव विघटन में-
(अ) α, β व γ-कण एक साथ उत्सर्जित होते हैं।
(ब) α व β कण साथ उत्सर्जित होते हैं।
(स) पहले α, फिर β व अन्त में γ-कण उत्सर्जित होते हैं।
(द) पहले α, तत्पश्चात् γ या पहले β तत्पश्चात् γ उत्सर्जित होते हैं।
उत्तर:
(द) पहले α, तत्पश्चात् γ या पहले β तत्पश्चात् γ उत्सर्जित होते हैं।

प्रश्न 31.
न्यूट्रिनो की परिकल्पना से बीटा विघटन के लिये निम्न संरक्षण का नियम समझाया जा सकता है:
(अ) ऊर्जा संरक्षण
(स) ऊर्जा व संवेग
(ब) कोणीय संवेग
(द) ऊर्जा व कोणीय संवेग
उत्तर:
(द) ऊर्जा व कोणीय संवेग

प्रश्न 32.
यदि 27Al की नाभिकीय त्रिज्या 3.6 फर्मी है तो 64Cu की नाभिकीय त्रिज्या फर्मी में लगभग होगी-
(अ) 2.4
(ब) 1.2
(स) 4.8
(द) 3.6
उत्तर:
(स) 4.8

प्रश्न 33.
किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ की प्रारम्भिक सान्द्रता No है। इसका अर्द्ध- आयुकाल t1/2 = 5 वर्ष है तो 15 वर्षों बाद शेष पदार्थ होगा:
(अ) \(\frac{\text { No }}{8}\)
(ब) \(\frac{\text { No }}{16}\)
(स) \(\frac{\text { No }}{2}\)
(द) \(\frac{\text { No }}{4}\)
उत्तर:
(अ) \(\frac{\text { No }}{8}\)

प्रश्न 34.
यदि किसी रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श की अर्द्धआयु 4 दिन है तो 2 दिन के पश्चात् इसका कितना भाग अविघटित रहेगा?
(अ) √2
(ब) \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)
(स) \(\frac{\sqrt{2}-1}{\sqrt{2}}\)
(द) \(\frac{1}{2}\)
उत्तर:
(ब) \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)

प्रश्न 35.
नाभिकीय रिएक्टर में मंदक का कार्य है:
(अ) न्यूट्रॉनों की गति मन्द करना
(ब) न्यूट्रॉनों की गति तीव्र करना
(स) इलेक्ट्रॉनों की गति कम करना
(द) इलेक्ट्रॉनों की गति तीव्र करना
उत्तर:
(अ) न्यूट्रॉनों की गति मन्द करना

प्रश्न 36.
द्रव्यमान संख्या A व परमाणु क्रमांक Z वाला एक नाभिक X, एक कण व एक B-कण का उत्सर्जन करता है। परिणामी नाभिक R की द्रव्यमान संख्या व परमाणु क्रमांक होंगे:
(अ) (A – Z) व (Z – 1)
(ब) (A – Z) व (Z – 2)
(स) (A – 4) व (A – Z)
(द) (A – 4) व (Z – 1)
उत्तर:
(द) (A – 4) व (Z – 1)

प्रश्न 37.
नाभिकीय अभिक्रियाओं की विशिष्टताओं में से एक यह है कि उनके विघटित या संलयित भाग में:
(अ) कुल आवेश संख्या स्थिर रहती है।
(ब) कुल आवेश संख्या बदलती है।
(स) कुल द्रव्यमान संख्या बदलती है।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) कुल आवेश संख्या बदलती है।

प्रश्न 38.
आयनीकरण का गुण होता है:
(अ) α-कणों में सर्वाधिक
(स) β-किरणों में सर्वाधिक
(ब) γ- कणों में सर्वाधिक
(द) तीनों में बराबर।
उत्तर:
(अ) α-कणों में सर्वाधिक

प्रश्न 39
संलयन प्रक्रिया उच्च ताप पर होती है, क्योंकि उच्च ताप पर
(अ) परमाणु आयनीकृत हो जाते हैं।
(ब) अणु विघटित हो जाते हैं।
(स) नाभिक विघटित हो जाते हैं।
(द) नाभिकों को इतनी ऊर्जा मिल जाती है जो नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल को अतिक्रमित कर सकें।
उत्तर:
(द) नाभिकों को इतनी ऊर्जा मिल जाती है जो नाभिकों के बीच प्रतिकर्षण बल को अतिक्रमित कर सकें।

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प्रश्न 40.
सूर्य अपनी विकिरण ऊर्जा प्राप्त करता है:
(अ) विखण्डन प्रक्रम से
(ब) विघटन प्रक्रम से
(स) प्रकाश-विद्युत् प्रभाव से
(द) संलयन प्रक्रम से।
उत्तर:
(द) संलयन प्रक्रम से।

प्रश्न 41.
नाभिकीय रियेक्टर में या भारी पानी का उपयोग करते ग्रेफाइट हैं:
(अ) अनावश्यक न्यूट्रॉनों के अवशोषण के लिये
(ब) न्यूट्रॉन के त्वरण के लिये
(स) तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का वेग कम करने के लिये.
(द) ऊर्जा विनिमय के लिये।
उत्तर:
(अ) अनावश्यक न्यूट्रॉनों के अवशोषण के लिये

प्रश्न 42.
नाभिकीय संलयन में उत्पन्न ऊर्जा कहलाती है:
(अ) यांत्रिकी ऊर्जा
(ब) परमाणु ऊर्जा
(स) ताप नाभिकीय ऊर्जा
(द) विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा।
उत्तर:
(स) ताप नाभिकीय ऊर्जा

प्रश्न 43.
ऋणात्मक B क्षय में:
(अ) परमाणु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होता है।
(ब) नाभिक में पूर्व से ही उपस्थित इलेक्ट्रॉन नाभिक से उत्सर्जित होता है।
(स) नाभिक में स्थित न्यूट्रॉन के क्षय से प्राप्त इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होता है।
(द) नाभिक की बन्धन ऊर्जा का कुछ भाग इलेक्ट्रॉन में परिवर्तित हो जाता है।
उत्तर:
(स) नाभिक में स्थित न्यूट्रॉन के क्षय से प्राप्त इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होता है।

प्रश्न 44.
एक रेडियोएक्टिव तत्व की अर्ध आयु 1600 वर्ष है। इसकी माध्य आयु होगी:
(अ) 2309 वर्ष
(ब) 1109 वर्ष
(स) 2400 वर्ष
(द) 3200 वर्ष
उत्तर:
(अ) 2309 वर्ष

प्रश्न 45.
1. a. mu. के तुल्य ऊर्जा है:
(अ) 1 eV
(ब) 14.2 MeV
(स) 931 Mev
(द) 0.693 Mev
उत्तर:
(स) 931 Mev

प्रश्न 46.
किरणें नाभिक के स्थायित्व के लिए-
(अ) प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा अधिक होनी चाहिए।
(ब) प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कम होनी चाहिए।
(स) इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होनी चाहिए।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा अधिक होनी चाहिए।

प्रश्न 47.
निम्न पदार्थ विखण्डन को नियंत्रित करता है:
(अ) भारी पानी
(ब) ग्रेफाइट
(स) केडमियम
(द) बेरलियम ऑक्साइड
उत्तर:
(स) केडमियम

प्रश्न 48.
नाभिकीय रिएक्टर क्रान्तिक होता है, यदि गुणात्मक कारण K का मान है:
(अ) 1
(ब) 1.5
(स) 2.1
(द) 2.5
उत्तर:
(अ) 1

प्रश्न 49.
एक नाभिक से गामा किरण उत्सर्जन में-
(अ) केवल न्यूट्रॉन संख्या परिवर्तित होती है।
(ब) केवल प्रोटॉन संख्या परिवर्तित होती है।
(स) दोनों न्यूट्रॉन संख्या और प्रोटॉन संख्या परिवर्तित होती हैं।
(द) प्रोटॉन संख्या और न्यूट्रॉन संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उत्तर:
(द) प्रोटॉन संख्या और न्यूट्रॉन संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 50.
बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन सम्बन्ध, द्रव्यमान संख्या के सापेक्ष-
(अ) पहले घटता है, फिर बढ़ता है।
(ब) पहले बढ़ता है, फिर घटता है।
(स) बढ़ता है।
(द) घटता है।
उत्तर:
(ब) पहले बढ़ता है, फिर घटता है।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
कोई तत्व A निम्न दो चरण प्रक्रियाओं द्वारा तत्व C में विघटित होता है-
A → 2He + B
B → 2(1e0) + C
तत्वों A, B व C में से समस्थानिक युग्म छाँटिए।
उत्तर:
A व C।

प्रश्न 2.
किसी दिये गये रेडियोएक्टिव पदार्थ की सक्रियता (एक्टिवता) को परिभाषित कीजिए। इसका SI मात्रक लिखिए।’
उत्तर:
रेडियोएक्टिव पदार्थ के विघटन की दर अर्थात् प्रति सेकण्ड विघटित परमाणुओं की संख्या उसकी सक्रियता कहलाती है।
सक्रियता A = -dN/dt इसका SI मात्रक बैकरेल (Bq) है।
1 Bq = 1 विघटन प्रति सेकण्ड

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प्रश्न 3.
न्यूक्लियर रिएक्टर में प्रयुक्त दो मंदकों के नाम दीजिए।
उत्तर:
प्रायः प्रयुक्त होने वाले अवमंदक जल, भारी जल (D2O) तथा ग्रेफाइट है।

प्रश्न 4.
नाभिकीय बल के दो विशिष्ट अभिलक्षण बताइए।
उत्तर:
विशिष्ट अभिलक्षण:
(i) नाभिकीय बल हमेशा अनाश्रित होते हैं।
(ii) नाभिकीय बल प्रकृति का सबसे प्रबल बल होता है।

प्रश्न 5.
दो नाभिकों के द्रव्यमान संख्याओं का अनुपात 1 : 3 है उनकी नाभिकीय घनत्व का अनुपात क्या है?
उत्तर:
चूँकि नाभिकीय घनत्व सभी नाभिकों के लिए समान होता है, अतः P1 : P2 : : 1 : 1 होगा।

प्रश्न 6.
किसी नाभिक की त्रिज्या उसके द्रव्यमान संख्या से कैसे सम्बन्धित होती है?
अथवा
किसी नाभिक की त्रिज्या R एवं द्रव्यमान संख्या A में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
नाभिक को सन्निकटतः
गोलाकार मानने पर उसकी
त्रिज्या R तथा द्रव्यमान संख्या A में निम्न सम्बन्ध होता है-
R = R2 A1/3
जहाँ Ro एक नियतांक है।

प्रश्न 7.
दो नाभिकों के द्रव्यमान संख्याओं का अनुपात 1 : 8 है उनके नाभिकीय त्रिज्यायों का अनुपात क्या है?
उत्तर:
प्रश्नानुसार
या
A1 : A2 = 1 : 8
∵R = R0A1/3
∴ \(\frac{\mathrm{R}_1}{\mathrm{R}_2}\) = \(\frac{A_1^{1 / 3}}{A_2^{1 / 3}}\) = \(\left(\frac{A_1}{A_2}\right)^{1 / 3}\)
\(\frac{\mathrm{R}_1}{\mathrm{R}_2}\) = \(\left(\frac{1}{8}\right)^{1 / 3}\) = \(\frac{1}{2}\)

प्रश्न 8.
किसी परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या क्या होगी, यदि परमाणु की द्रव्यमान संख्या A व परमाणु क्रमांक Z हो ?
उत्तर:
(A – Z)

प्रश्न 9.
किसी नाभिक की द्रव्यमान क्षति ∆M व उसकी बन्धन ऊर्जा (E) में क्या सम्बन्ध होगा?
उत्तर:
E = ∆M C2

प्रश्न 10.
नाभिक का स्थायित्व कौनसी भौतिक राशि पर निर्भर करता है?
उत्तर:
प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा।

प्रश्न 11.
प्रति न्यूक्लिऑन औसत बन्धन ऊर्जा का मान क्या होता है?
उत्तर:
8.5 Mev

प्रश्न 12.
नाभिक में प्रभावी बलों की क्या प्रकृति होती है?
उत्तर:
प्रबल आकर्षण बल।

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प्रश्न 13.
किसी नाभिक की त्रिज्या R व परमाणु की द्रव्यमान संख्या (A) में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
R = RoA1/3

प्रश्न 14.
एक द्रव्यमान मात्रक क्या होता है?
उत्तर:
कार्बन परमाणु के द्रव्यमान का 12 वां भाग।

प्रश्न 15.
यूरेनियम नाभिक के विखण्डन से औसतन प्रति नाभिक प्राप्त होने वाले न्यूट्रॉनों की संख्या कितनी होती है?
उत्तर:
लगभग 2.5

प्रश्न 16.
नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रियाओं के नाम लिखिये।
उत्तर:
नियंत्रित व अनियंत्रित।

प्रश्न 17.
विखण्डन की कौनसी श्रृंखला अभिक्रिया पर परमाणु भट्टी आधारित है?
उत्तर:
नियंत्रित।

प्रश्न 18.
परमाणु भट्टी में मंदक के रूप में काम आने वाले किसी एक पदार्थ का नाम लिखिये।
उत्तर:
ग्रेफाइट।

प्रश्न 19.
परमाणु भट्टी में नियंत्रक छड़ें किस पदार्थ की बनी होती हैं तथा ये कौनसे कणों का अवशोषण करने में उपयोग होती हैं?
उत्तर:
केंडमियम, न्यूट्रॉन का।

प्रश्न 20.
अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया पर आधारित कौनसी युक्ति होती है?
उत्तर:
परमाणु बम।

प्रश्न 21.
सूर्य से ऊर्जा उत्पादन के लिये कौनसी नाभिकीय अभिक्रिया उत्तरदायी होती है?
उत्तर:
संलयन अभिक्रिया।

प्रश्न 22.
किसी तत्व के स्वतः विघटन की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर:
रेडियोएक्टिवता।

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प्रश्न 23.
एक रेडियोएक्टिव तत्व जिसकी द्रव्यमान संख्या 226 है व परमाणु क्रमांक 88 है α कण उत्सर्जित करता है। नये तत्व की द्रव्यमान संख्या व परमाणु क्रमांक क्या होंगे?
उत्तर:
222, 86 चूँकि α कण उत्सर्जित होने पर परमाणु क्रमांक में 2 की कमी तथा परमाणु भार द्रव्यमान संख्या में 4 की कमी हो जाती है।
अतः नये तत्व की द्रव्यमान संख्या = 226 – 4 = 222 तथा परमाणु क्रमांक = 88 – 2 = 86

प्रश्न 24.
एक रेडियोएक्टिव तत्व जिसकी द्रव्यमान संख्या 218 व परमाणु क्रमांक 84 है, β-कण उत्सर्जित करता है विघटन के पश्चात् तत्व की द्रव्यमान संख्या व परमाणु क्रमांक क्या होंगे?
उत्तर:
218, 85 चूंकि β-कण के उत्सर्जन के बाद तत्व की द्रव्यमान संख्या में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है। लेकिन उसके परमाणु क्रमांक में 1 की वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 25.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की दो अर्द्ध-आयुओं के बराबर समय में उसमें उपस्थित परमाणुओं की संख्या कितनी रह जावेगी?
उत्तर:
प्रारम्भिक संख्या की एक-चौथाई।

प्रश्न 26.
किसी रेडियो न्यूक्लिाइड की सक्रियता को परिभाषित कीजिए। इसकी S. I इकाई लिखिए।
उत्तर:
किसी रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श में इकाई समय में क्षयित होने वाले नाभिकों की संख्या को उसकी सक्रियता कहते हैं। इसकी SI इकाई बैकरेल होती है।

प्रश्न 27.
किसी नाभिक के दो अभिलक्षणों द्रव्यमान संख्या (A) तथा परमाणु संख्या Z में से किसका B-क्षय में परिवर्तन नहीं होता है?
उत्तर:
β = -1ve, अतः β-क्षय में द्रव्यमान A का परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 28.
किसी रेडियोएक्टिव तत्व की अर्द्ध-आयु व उसके क्षयांक में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
अर्द्ध आयु क्षयांक के व्युत्क्रमानुपाती होती है। T = 0.693/λ

प्रश्न 29.
किसी रेडियोएक्टिव तत्व की माध्य-आयु के समान समय में परमाणुओं की कितने प्रतिशत संख्या अविघटित रह जाती है?
उत्तर:
लगभग 37 प्रतिशत।

प्रश्न 30.
β-क्षय में उत्सर्जित न्यूट्रिन का द्रव्यमान व आवेश क्या होंगे?
उत्तर:
शून्य शून्य।

प्रश्न 31.
परमाणु के नाभिक में कौन-कौनसे कण होते हैं?
उत्तर:
प्रोटॉन व न्यूट्रॉन।

प्रश्न 32.
नाभिकीय बल विद्युत चुम्बकीय बलों से कितना गुना अधिक होता है?
उत्तर:
100 गुना।

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प्रश्न 33.
परमाणु भट्टी में भारी पानी, ग्रेफाइट इत्यादि पदार्थ किस काम में आते हैं?
उत्तर:
मंदक के रूप में।

प्रश्न 34.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध- आयु में उसमें उपस्थित परमाणुओं की संख्या कितनी रह जावेगी?
उत्तर:
आधी।

प्रश्न 35.
रेडियोएक्टिव तत्त्व की अर्द्ध आयु उसके क्षयांक पर किस प्रकार निर्भर करती है?
उत्तर:
क्षयांक के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
यदि माध्य आयु Ta हो तो Ta = 1/λ, जहाँ λ क्षयांक है।

प्रश्न 36.
रेडियोएक्टिव विघटन में Q कणों का ऊर्जा स्पेक्ट्रम किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
विविक्त एवं रेखिल।

प्रश्न 37.
परमाणु क्रमांक Z = 11 तथा द्रव्यमान क्रमांक A = 24 के नाभिक में कितने इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन होंगे?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन-प्रोटॉन = 11, न्यूट्रॉन = 13

प्रश्न 38.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की आयु किस पर निर्भर करती है?
उत्तर:
निश्चित रहती है।

प्रश्न 39.
उस अभिक्रिया का नाम बताइए जो कम ऊर्जा के न्यूट्रॉन किरण के नाभिक 92U235 से टकराने पर होती है उत्पन्न नाभिकीय अभिक्रिया को लिखिए।
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन है।
नाभिकीय अभिक्रिया होती है-
<sub>92</sub>U<sup>235</sup> → <sub>0</sub>n<sup>1</sup> → <sub>56</sub>Ba<sup>141</sup> + <sub>36</sub>Kr<sup>92</sup> + <sub>0</sub>n<sup>1</sup>  + ऊर्जा

प्रश्न 40.
नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रिया कितने प्रकार की होती है? प्रत्येक का नाम लिखिये।
उत्तर:
दो प्रकार की होती है- (1) नियंत्रित (2) अनियंत्रित

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प्रश्न 41.
नाभिकीय बन्धन ऊर्जा का क्या महत्त्व होता है?
उत्तर:
नाभिक के न्यूक्लिऑनों को एक-दूसरे से अलग करने के लिये नाभिकीय बन्धन ऊर्जा के बराबर ऊर्जा बाह्य रूप से देनी पड़ती है।

प्रश्न 42.
सूर्य से ऊर्जा हमें कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर:
सूर्य से ऊर्जा हमें नाभिकीय संलयन अभिक्रिया के द्वारा प्राप्त होती है।

प्रश्न 43.
कौनसा पदार्थ न्यूट्रॉन का सबसे अच्छा मंदक होता है?
उत्तर:
भारी जल D2O

प्रश्न 44.
नाभिकीय संलयन अभिक्रिया, नाभिकीय विखण्डन के सापेक्ष अधिक कठिन होती है क्यों?
उत्तर:
नाभिकीय संलयन के लिये 107 K की कोटि का उच्च ताप होना आवश्यक होता है जिसको प्राप्त करना कठिन होता है।

प्रश्न 45.
नाभिकीय ऊर्जा का शान्तिपूर्ण उपयोग कहाँ किया जाता है?
उत्तर:
परमाणु भट्टी में।

प्रश्न 46.
द्रव्यमान संख्या A वाले नाभिक के लिए द्रव्यमान क्षति Am है। इसकी बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन कितनी होगी?
उत्तर:
नाभिक की बन्धन ऊर्जा
ΔΕ = Δmc2
इसलिए बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन
Eb = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\)
या
Ep = \(\frac{\Delta \mathrm{m} \cdot \mathrm{c}^2}{\mathrm{~A}}\)

प्रश्न 47.
परमाणु द्रव्यमान मात्रक (amu) की परिभाषा कीजिए और इसके तुल्य ऊर्जा लिखिए।
उत्तर:
6C12 के एक परमाणु के द्रव्यमान के बारहवें भाग को
परमाणु द्रव्यमान मात्रक कहते हैं
अर्थात्
1 amu = \(\frac{1}{12}\) x (6C12 के एक परमाणु का द्रव्यमान )
1 amu = 1.66 × 10-27 Kg
1 amu के तुल्य ऊर्जा = 931 Mev

प्रश्न 48.
यदि A127 के नाभिक की त्रिज्या 3.6 फर्मी है तो Fe125 नाभिक की त्रिज्या क्या होगी?
उत्तर:
A α (A) 1/3
∴ \(\frac{\mathrm{R}_{\mathrm{Fe}}}{\mathrm{R}_{\mathrm{Al}}}\) = \(\left(\frac{\mathrm{A}_{\mathrm{Fe}}}{\mathrm{A}_{\mathrm{Al}}}\right)^{1 / 3}\) = \(\left(\frac{125}{27}\right)^{1 / 3}\) = \(\frac{5}{3}\)
RFe = \(\frac{5}{3}\) × RAl = \(\frac{5}{3}\) × 3.6 फर्मी
RFe = 6.0 फर्मी

प्रश्न 49.
एक तत्त्व के रेडियोधर्मी समस्थानिक और स्थायी समस्थानिक के रासायनिक गुणों में क्या अन्तर होगा?
उत्तर:
कोई अन्तर नहीं, क्योंकि रासायनिक गुण परमाणु के इलेक्ट्रॉनों पर निर्भर है, जबकि समस्थानिकों में नाभिक के न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न होती है।

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प्रश्न 50
(i) अर्द्धआयु T (ii) माध्य आयु Ta को क्षयांक A के पदों में व्यक्त कीजिये।
उत्तर:
(i) T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
(ii) To = \(\frac{1}{\lambda}\)

प्रश्न 51.
नाभिकीय अभिक्रिया किसे कहते हैं?
उत्तर:
नाभिकीय अभिक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें नाभिकीय कणों की टक्कर से किसी बड़े नाभिक की संरचनाओं में अन्तर लाया जाता है।

प्रश्न 52.
नाभिकीय संलयन किसे कहते हैं?
उत्तर:
उच्च ताप व दाब पर हल्के नाभिक संयोजित होकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हुये ऊर्जा मुक्त करते हैं, उसे नाभिकीय संलयन कहते हैं।

प्रश्न 53.
प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कितनी होती है?
उत्तर:
यदि किसी A द्रव्यमान संख्या वाले नाभिक की बन्धन ऊर्जा Eb हो तो प्रतिन्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा
\(\frac{E_b}{F}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{m} \times \mathrm{c}^2}{\mathrm{~A}}\)

प्रश्न 54.
नाभिकीय रिएक्टर के कौन-कौनसे भाग हैं?
उत्तर:
(i) ईंधन
(ii) मंदक
(iii) नियन्त्रण छड़ें
(iv) शीतलक
(v) परिरक्षक।

प्रश्न 55.
प्राकृतिक एवं कृत्रिम रेडियोएक्टिवता में किन-किन भौतिक राशियों का संरक्षण होता है ?
उत्तर:
(1) इनका आवेश संरक्षित रहता है।
(2) द्रव्यमान, ऊर्जा का योग संरक्षित रहता है।
(3) कोणीय संवेग एवं रेखीय संवेग संरक्षित रहता है।

प्रश्न 56.
दो नाभिकों की त्रिज्याओं का अनुपात 1 : 2 है। इनकी द्रव्यमान संख्याओं का अनुपात लिखिए।
उत्तर:
नामिक की त्रिज्या
R = R0A1/3
या
A = \(\left(\frac{\mathrm{R}}{\mathrm{R}_0}\right)^3\)
यहाँ पर A = द्रव्यमान संख्या,
R0 = नियतांक
∴ \(\frac{\mathrm{A}_1}{\mathrm{~A}_2}\) = \(\frac{\mathrm{R}_1^3}{\mathrm{R}_2^3}\) = \(\frac{1^3}{2^3}\) =\(\frac{1}{8}\)
A1 : A2 = 1 : 8

प्रश्न 57.
एक रेडियोएक्टिव तत्व का क्षय स्थिरांक 0.693 प्रति मिनट है इसकी अर्द्ध-आयु तथा औसत आयु क्या होगी?
उत्तर:
दिया है क्षय स्थिरांक A = 0.693 प्रति मिनट
= 0.693 (मिनट)1
इसलिये अर्द्ध-आयु T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
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T = 1 मिनट = 60 सेकण्ड
औसत आयु = \(\frac{1}{\lambda}\) = \(\frac{1}{0.693}\)
= \(\frac{1000}{693}\) मिनट
= 1.443 मिनट
= 1.443 × 60
= 8.658 सेकण्ड

लघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
समीकरण R = R0A1/3 के आधार पर दर्शाइये कि नाभिकीय द्रव्य का घनत्व लगभग अचर रहता है (यहाँ R एक नियतांक तथा A द्रव्यमान संख्या है।)
उत्तर:
नाभिकीय घनत्व – यदि एक न्यूक्लिऑन का औसत द्रव्यमान m तथा नाभिक की द्रव्यमान संख्या A हो तो इसमें न्यूक्लिऑनों की संख्या = A, अतः नाभिक का द्रव्यमान M = mA
नाभिक का आयतन V = 4/3πR3
= \(\frac{4}{3}\) π\(\left(R_o A^{\frac{1}{3}}\right)^3\)
R = R0A1/3
इसलिये नाभिक का आयतन V = \(\frac{4}{3}\) πR3A
इसलिये नाभिक का घनत्व p = IMM = \(\frac{M}{V}\)
= \(\frac{\mathrm{mA}}{\frac{4}{3} \pi \mathrm{R}_{\mathrm{o}}^3 \mathrm{~A}}\) = \(\frac{3 \mathrm{~m}}{4 \pi \mathrm{R}_{\mathrm{o}}^3}\)
अतः यहाँ यह स्पष्ट होता है कि घनत्व, A पर निर्भर नहीं करता है। इसका तात्पर्य यह है कि सभी परमाणुओं के नाभिकों के घनत्व लगभग समान होते हैं।

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प्रश्न 2.
रेडियोएक्टिव क्षमता का नियम लिखिए। किसी रेडियोएक्टिव तत्व का क्षयांक 103 प्रतिवर्ष है। इसकी अर्ध- आयु का मान वर्ष में ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
रेडियोएक्टिव क्षमता नियम (Law of Radioactive Decay ) – “किसी क्षण रेडियोएक्टिव पदार्थ के परमाणुओं के क्षय होने की दर उस क्षण पदार्थ में विद्यमान परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है। यदि किसी क्षण पर उपस्थित परमाणुओं की संख्या N है तथा (t + dt) पर यह संख्या घटकर (N – dN) रह जाती है तो परमाणुओं के क्षय होने की दर -dN/dt होगी।
रदरफोर्ड व सोडी के नियम के अनुसार
\(\frac{-\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}\) α N अथवा \(\frac{4}{3}\) = -λN
यहाँ λ एक नियतांक है जिसे क्षय नियतांक (decay constant) कहते हैं किसी एक तत्व के लिए क्षय नियतांक λ का मान नियत होता है, परन्तु भिन्न-भिन्न तत्वों के लिए इसका मान भिन्न-भिन्न होता
है।
अर्द्ध-आयु तथा क्षय नियतांक में सम्बन्ध
T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
लेकिन
λ = 10-3प्रतिवर्ष ( दिया है)
T = \(\frac{0.693}{10^{-3}}\)
= 0.693 × 103
= 693 वर्ष

प्रश्न 3.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्धआयु से आप क्या समझते हैं? रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्धआयु एवं क्षय नियतांक में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
वह समय जिसमें किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के अवघटित नाभिकों की संख्या घटकर आधी रह जाती है, उस तत्व की अर्द्ध आयु कहलाती है। इसे हम T से व्यक्त करते हैं। रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध आयु T और क्षय नियतांक A में निम्न सम्बन्ध होता है
T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)

प्रश्न 4.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ ‘A’ का क्षय निम्नानुसार होता है:
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As के द्रव्यमान संख्या एवं परमाणु संख्या के मान क्या होंगे ?
उत्तर:
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 3
A4 की द्रव्यमान संख्या → 172
A4 की द्रव्यमान संख्या → 69

प्रश्न 5.
रदरफोर्ड सॉडी का रेडियोएक्टिव विघटन नियम लिखिए तथा क्षय समीकरण प्राप्त कीजिए । अर्ध आयु एवं माध्य आयु में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
रदरफोर्ड और सॉडी ने निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किया। इस नियम के अनुसार:
(i) रेडियो एक्टिव परमाणुओं का स्वतः विघटन अनियमित (Random ) होता है अर्थात् यह निश्चित नहीं होता है कि कौनसा परमाणु कब विघटित होगा। परन्तु एक निश्चित अवधि (time) में विघटित होने वाले परमाणुओं की संख्या निश्चित होती है।
(ii) किसी समय परमाणुओं के विघटन की दर अर्थात् प्रति सेकण्ड विघटित होने वाले परमाणुओं की संख्या उस समय पर उपस्थित कुल सक्रिय परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात्
\(\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}}\) α dt
इसे चर घातांकी क्षय नियम भी कहते हैं।
अथवा
\( = λN
जहाँ λ रेडियोएक्टिव क्षय स्थिरांक अथवा विघटन- स्थिरांक है।
∆t समय में दिए गए नमूने में नाभिकों की संख्या में हुआ परिवर्तन है। dN = -∆N अतः [जब ∆t → 10] तो N में परिवर्तन की दर है
[latex]\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}}\) = -λN
अथवा
\(\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{N}}}\)= – λ dt
दोनों तरफ का समाकलन करने पर
\(\int_{N_0}^N \frac{d N}{N}\) = \(-\lambda \int_{t_0}^t d t\)
या
\(\{\log N\}_{N_0}^N\) = \(-\lambda(\mathrm{t})_{t_0}^t\)
अथवा
log N – log No = – λ(t – to)
to = शून्य रखने पर
log N – log No = – λt
loge \(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = – λt
∴\(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = e-λt
या
N (t) = No e-λt
उपर्युक्त समीकरण क्षय समीकरण है।
अर्द्ध आयु एवं माध्य आयु में सम्बन्ध:
अर्द्ध आयु T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
माध्य आयु T = \(\frac{1}{\lambda}\)
अतः अर्द्ध आयु = 0.693 × माध्य आयु
या T = 0.693 To

प्रश्न 6.
परमाणु द्रव्यमान मात्रक को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
परमाणु द्रव्यमान मात्रक नाभिकीय कण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन का द्रव्यमान इतना कम होता है कि किलोग्राम मात्रक में व्यक्त करने पर वे 10-27 किग्रा की कोटि के होते हैं इतनी छोटी राशियों को उपयोग में लाना बहुत सुविधाजनक नहीं होता है। अतएव नाभिक के द्रव्यमानों को एक छोटे मात्रक में व्यक्त किया जाता है। इसे परमाणु द्रव्यमान मात्रक (a.m.u.) कहते हैं। 6C12 के द्रव्यमान को मानक मानकर इसके 12वें भाग को 1 amu. मानते हैं।
अर्थात् 1 amu = HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 4
= 1.660565 × 10-27 किलोग्राम

प्रश्न 7.
नाभिकीय द्रव्यमान क्षति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
नाभिकीय द्रव्यमान क्षति नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों के कुल द्रव्यमान व नाभिक के वास्तविक द्रव्यमान के अन्तर को द्रव्यमान क्षति कहते हैं।
द्रव्यमान क्षति = गणना द्वारा प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान
नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान
∆m = Mc – ma
यहाँ पर calculated mass को संक्षेप में m से और actual mass को ma से दिखाया गया है।
∆m = [ प्रोटॉनों का द्रव्यमान + न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान] नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान
या
∆m = [Z.my + (A – Z) ma] – m
जहाँ Z परमाणु का परमाणु क्रमांक, A द्रव्यमान संख्या, mp प्रोटॉन का द्रव्यमान mn न्यूट्रॉन का द्रव्यमान तथा m नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान है।

प्रश्न 8.
नाभिकीय बन्धन ऊर्जा किसे कहते हैं?
उत्तर:
नाभिकीय बन्धन ऊर्जा- जब नाभिकीय कण, नाभिकीय बलों के अन्तर्गत अन्योन्य क्रिया करते हैं तो प्रबल नाभिकीय अन्योन्य क्रिया के माध्यम से निकाय द्वारा कार्य किया जाता है तथा निकाय एक बद्ध अवस्था प्राप्त कर लेता है। इस बद्ध अवस्था को प्राप्त करने के लिये जो ऊर्जा इस प्रक्रम में मुक्त होती है वह द्रव्यमान क्षति के द्वारा प्राप्त होती है यही नाभिकीय बन्धन ऊर्जा है। किसी भी नाभिक की कुल बंधन ऊर्जा उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या पर निर्भर करती है तथा प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का मान \(\left(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\right)\) नाभिक के स्थायित्व ( stability) को प्रदर्शित करता है।
∴ प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 5
यदि द्रव्यमान को am. u. में लें तब बन्धन ऊर्जा
= (∆m) × 931 Mev
प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा
= \(\frac{(\Delta \mathrm{m}) \times 931}{\mathrm{~A}}\) MeV / न्यूक्लिऑन

प्रश्न 9.
उस नाभिक का नाम बताइये जिसके लिये प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा सर्वाधिक होती है।
उत्तर:
किसी भी नाभिक की कुल बंधन ऊर्जा उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या पर निर्भर करती है तथा प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का मान \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) नाभिक के स्थायित्व (stability) को प्रदर्शित करता आयरन (Fe) के लिये प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{B}}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{492.8}{56}\) = 8.8MeV
जो कि सबसे अधिक है। अतः यह नाभिक सबसे अधिक स्थायी है।

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प्रश्न 10.
नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
किसी भारी नाभिक का हल्के-हल्के नाभिक में टूटने की प्रक्रिया को नाभिकीय विखण्डन कहते हैं। यह क्रिया स्वतः चालित होती है। इसमें विशाल मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 6
परमाणु बम एवं नाभिकीय रियेक्टर का आधार नाभिकीय विखण्डन ही है।

प्रश्न 11.
यदि रेडियोएक्टिवता नाभिकीय प्रक्रिया है तो β-कण (इलेक्ट्रॉन) कहाँ से निकलते हैं, क्योंकि नाभिक में तो इलेक्ट्रॉन होते ही नहीं?
उत्तर:
रेडियोएक्टिव नाभिक में उपस्थित न्यूट्रॉन अस्थायी होता है। इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन में यह न्यूट्रॉन निम्नलिखित समीकरण के अनुसार विघटित होकर प्रोटॉन में बदल जाता है और साथ ही एक- एक इलेक्ट्रॉन व ऐण्टी- न्यूट्रिनो को उत्पन्न करता है। ये इलेक्ट्रॉन नाभिक से β-कण के रूप में निकलते हैं।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 7
इस प्रकार β-कण नाभिक के अन्दर से निकलते हैं, नाभिक के बाहर की इलेक्ट्रॉन कक्षाओं से नहीं।

प्रश्न 12.
यदि एक नाभिक X एक कण तथा एक α-कण उत्सर्जित करता है तो उत्पाद नाभिक की द्रव्यमान संख्या तथा परमाणु क्रमांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
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इसलिए उत्पाद की द्रव्यमान संख्या = m – 4 तथा परमाणु क्रमांक = n – 1

प्रश्न 13.
प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का क्या अर्थ है? न्यूट्रॉन (1H2 ) तथा α-कण ( 2He4 ) की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा क्रमशः 1.25 तथा 7.2 Mev प्रतिन्यूक्लिऑन है। कौनसा नाभिक अधिक स्थायी है?
उत्तर:
किसी नाभिक से एक न्यूक्लिऑन को अलग करने के लिए आवश्यक औसत ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा कहलाती है। α-कण की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा ड्यूट्रॉन की तुलना में अधिक है। अतः α-कण अधिक स्थायी है।

प्रश्न 14.
नाभिकीय अभिक्रियाओं में किन-किन नियमों की पालना होती है?
उत्तर:
नाभिकीय अभिक्रियाओं में निम्नलिखित नियमों का पालन होता है:
(i) आवेश संरक्षित रहता है।
(ii) रेखीय एवं कोणीय संवेग संरक्षित रहते हैं।
(iii) द्रव्यमान एवं ऊर्जा का योग संरक्षित रहता है।
(iv) न्यूक्लिऑन का संरक्षण होता है।

प्रश्न 15.
नियंत्रित व अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रियाओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया – यदि विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया इस प्रकार नियंत्रित की जा सके कि उसमें न तो वृद्धि हो और न ही कमी अर्थात् अभिक्रिया का एक ऐसा स्तर बना रहे जिससे प्रति सेकण्ड – मुक्त होने वाली ऊर्जा सदैव विस्फोट की सीमा से कम रहे तो इसे नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं। इस प्रकार की अभिक्रिया का विद्युत ऊर्जा उत्पादन में प्रयोग किया जाता है नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया ही ‘परमाणु भट्टी’ का मूल आधार है। अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया – इस अभिक्रिया में प्रत्येक विखण्डन औसत एक से अधिक न्यूट्रॉन विखण्डन की क्रिया में भाग लेते हैं यहाँ K 1 होता है। इससे नाभिकों के विखण्डन की दर तेजी से बढ़ती है तथा कुछ ही क्षणों में अत्यधिक अपार ऊर्जा मिलती है तथा प्रचण्ड विस्फोट का कार्य करती है। परमाणु बम में यही अभिक्रिया होती है।

प्रश्न 16.
नाभिकीय संलयन से क्या तात्पर्य है? इस अभिक्रिया में क्या होता है?
उत्तर:
नाभिकीय संलयन- जब दो हल्के नाभिक परस्पर मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं संलयन क्रिया से प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान संलयन करने वाले मूल नाभिकों के द्रव्यमानों के योग से कम होता है। यह द्रव्यमान में क्षति आइन्सटाइन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण के अनुसार अत्यधिक ऊष्मा के रूप में प्राप्त होती है। नाभिकीय संलयन होने के लिए निम्न क्रिया होना आवश्यक होता है:
(i) अति उच्च ताप (107 – 108 K) होना चाहिये।
(ii) जहाँ नाभिकीय संलयन प्रक्रिया हो, वहाँ क्रिया करने वाले नाभिकों की बाहुल्यता होनी चाहिये।
नाभिकीय संलयन की क्रिया सूर्य एवं सूर्य की तरह अन्य तारों में ऊर्जा का स्रोत होती है। वैज्ञानिक ब्रीथे ने यह प्रस्तावित किया कि सौर ऊर्जा नाभिकीय संलयन के द्वारा उत्पन्न होती है जिसमें प्रोटॉन निरंतर संलयन से He नाभिकों में रूपान्तरित होते रहते हैं।

प्रश्न 17.
रेडियोएक्टिवता को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
रेडियोएक्टिवता – परमाणुओं के स्वतः विघटन की परिघटना को रेडियोएक्टिवता कहते हैं। सन् 1896 ई. में फ्रांसीसी वैज्ञानिक बेकुरल ने पाया कि यूरेनियम तथा इसके लवणों से कुछ अदृश्य किरणें स्वतः ही निकलती रहती हैं जो अपारदर्शी पदार्थों में प्रवेश करने की क्षमता रखती हैं तथा फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रभाव डालती हैं। इन किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहते हैं किसी पदार्थ से स्वतः ही किरणें उत्सर्जित होते रहने की घटना को ‘रेडियोएक्टिवता’ कहते हैं तथा ऐसे पदार्थ को ‘रेडियोएक्टिव पदार्थ’ कहते हैं यूरेनियम में रेडियोएक्टिवता के गुण की खोज के पश्चात् यह ज्ञात हुआ कि यूरेनियम ही नहीं वरन् थोरियम, पोलोडियम, ऐक्टिनियम आदि अन्य तत्व भी रेडियोएक्टिव हैं।

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प्रश्न 18.
निम्नलिखित में
(i) समन्यूट्रॉनिक
(ii) समस्थानिक
(iii) समभारिक छाँटिए
6C2, 2He3, 80Hg198, 1H3, 79Au197, 6C14
उत्तर:
(i) समन्यूटॉनिक ( A-Z) समान : 80Hg198, 79Au197
(ii) समस्थानिक [Z समान तथा A भिन्न] : 6C2, 6C14
(iii) समभारिक [A समान तथा Z भिन्न] : 2He3 1H3

प्रश्न 19
α कणों की अपेक्षा β कणों की आयनीकरण क्षमता कम किन्तु भेदन क्षमता अधिक क्यों होती है?
उत्तर:
β- कणों की गतिज ऊर्जा α-कणों की अपेक्षा काफी अधिक होती है अतः वे किसी परमाणु के पास बहुत कम समय तक रुक पाते हैं और इसी कारण इनकी आयनीकरण क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है। दूसरे, इससे इनकी ऊर्जा का हास बहुत धीरे-धीरे होता है। इसलिए वे माध्यम को पर्याप्त दूरी तक भेद सकते हैं। अर्थात् उनकी भेदन क्षमता अधिक होती है।

प्रश्न 20.
4Be9 नाभिक की बन्धन ऊर्जा 58.0 Mev तथा 2He4 की 28.3 Mev होती है। इनमें कौन अधिक स्थायी होता है और क्यों?
उत्तर:
4Be9 की कुल बन्धन ऊर्जा = Eb = 58.0 Mev
तथा इसके लिए A = 9
∴ इसकी प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा Eb = Eb/9
= \(\frac{58.0 \mathrm{MeV}}{9}\)
= 6.44MeV
2He4 की कुल बंधन ऊर्जा Eb/4 = 28.3 Mev तथा
इसके लिए A = 4
∴ इसकी प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा Eb = Eb/4
= \(\frac{28.3 \mathrm{MeV}}{4}\)
= 7.07Mev
12He4 के लिए Eb‘ का मान 4Be9 के लिए Eb के मान से अधिक है।
अतः 2He4 अधिक स्थायी है।

प्रश्न 21.
रदरफोर्ड व सॉडी नियम का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
रदरफोर्ड और सॉडी ने निम्नलिखित नियम प्रतिपादित किया। इस नियम के अनुसार
(i) रेडियो एक्टिव परमाणुओं का स्वतः विघटन अनियमित (Random ) होता है अर्थात् यह निश्चित नहीं होता है कि कौनसा परमाणु कब विघटित होगा। परन्तु एक निश्चित अवधि (time) में विघटित होने वाले परमाणुओं की संख्या निश्चित होती है।
(ii) किसी समय परमाणुओं के विघटन की दर अर्थात् प्रति सेकण्ड विघटित होने वाले परमाणुओं की संख्या उस समय पर उपस्थित कुल सक्रिय परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है।
अर्थात्
\(\frac{-\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}\) α N
इसे चर घातांकी क्षय नियम भी कहते हैं।

प्रश्न 22.
रेडियोएक्टिव तत्व की अर्द्ध आयु व माध्य आयु की परिभाषा दीजिये व उनमें सम्बन्ध लिखिये।
उत्तर:
अर्द्ध आयु (T) – जितने समय में किसी रेडियोएक्टिव तत्व के परमाणुओं की संख्या अपनी प्रारंभिक संख्या से आधी रह जाती है, उस समय को उस तत्व की अर्द्ध आयु T कहते हैं।
यदि प्रारम्भ में रेडियोएक्टिव तत्व के No परमाणु हों तो अर्द्ध आयु T सेकण्ड बाद उस तत्व के बचे हुये परमाणुओं की संख्या
N= No/2 होगी।
माध्य आयु (औसत आयु ) किसी रेडियोएक्टिव तत्व की माध्य आयु उसके सभी परमाणुओं की आयु का योग और परमाणुओं की कुल संख्या का अनुपात होती है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 9
अर्द्ध आयु व माध्य आयु में सम्बन्ध:
अर्द्ध आयु T = \(\frac{0.693}{\lambda}\) …………(1)
माध्य आयु T = \(\frac{1}{\lambda}\) ………..(2)
अतः
अर्द्ध आयु = 0.693 x माध्य आयु
या T = 0.693T,

प्रश्न 23.
α-क्षय किसे कहते हैं? α-कणों की ऊर्जा का स्पेक्ट्रम किस प्रकार का होता है?
अथवा
α-विघटन किसे कहते हैं? α-कणों की ऊर्जा का स्पेक्ट्रम किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
α-क्षय- जब भी किसी तत्व का α कणों के उत्सर्जन विघटन होता है तो इसे क्षय कहते हैं। α- विघटन से तत्व का परमाणु क्रमांक मूल तत्व के परमाणु क्रमांक के सापेक्ष दो कम हो जाता है तथा परमाणु भार मूल तत्व के परमाणु भार से चार परमाणु- द्रव्यमान मात्रक (amu) कम हो जाता है।
उदाहरण के लिये:
(i) जब 20U238 के नामिक से एक α-कण निकलता हो तो 900Th234 का नाभिक बनता है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 10
α-कणों के ऊर्जा स्पेक्ट्रम में सूक्ष्म संरचना (Fine structure) होती है। अर्थात् कण अनेक विविक्त परन्तु समीपवर्ती ऊर्जाओं से उत्सर्जित होते हैं।

प्रश्न 24.
β- किरण स्पेक्ट्रम एक संतत ऊर्जा स्पेक्ट्रम होता है, से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
p-विघटन प्रक्रिया जब भी किसी तत्व का β-कणों के उत्सर्जन से विघटन होता है तो एक नवीन रासायनिक तत्व की उत्पत्ति होती है। β विघटन से तत्व के परमाणु भार में अन्तर नहीं होता परन्तु परमाणु क्रमांक एक से बढ़ या घट जाता है। चूँकि β-कण का आवेश, धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है इसलिये धनात्मक आवेश के β- कण β+ के उत्सर्जन से नये तत्व के परमाणु क्रमांक का मान एक से कम तथा ऋणात्मक आवेश के कण (β) के उत्सर्जन से नये तत्व के परमाणु क्रमांक का मान एक से बढ़ जाता है। उदाहरणार्थ-
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 12
अतः β-क्षय प्रक्रिया में समभारिक नाभिकों (परमाणुओं) की उत्पत्ति होती है।
β- स्पेक्ट्रम संतत (continuous) होता है, अर्थात् एक अधिकतम मान तक सभी ऊर्जाओं के β-कण प्राप्त होते हैं।
एक विशिष्ट नाभिक के एक विशिष्ट ऊर्जा के मान के लिये उत्सर्जित β- कणों की संख्या अधिकतम होती है। इस प्रकार β स्पेक्ट्रम, विविक्त α स्पेक्ट्रम से पूर्णतः भिन्न होता है।

प्रश्न 25.
न्यूट्रिनो परिकल्पना, β-क्षय की प्रक्रिया में किन नियमों की व्याख्या के लिये सहायक होती है?
उत्तर:
न्यूट्रिनो परिकल्पना-न्यूट्रिनो परिकल्पना के अनुसार नाभिक से β-कण के उत्सर्जन के साथ-साथ एक अन्य कण भी उत्सर्जित होता है, जिसे न्यूट्रिनो कहते हैं। न्यूट्रिनो का आवेश व द्रव्यमान शून्य होता है तथा चक्रणी कोणीय संवेग का मान (+1/2) होता है। यह प्रकाश के वेग से गतिमान होता है तथा β कणों के उत्सर्जन की प्रक्रिया में ऊर्जा संरक्षण तथा संवेग संरक्षण की व्याख्या करने के लिये उत्तरदायी है।

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प्रश्न 26.
गामा किरणों का उत्सर्जन किस प्रकार होता है तथा ये किरणें द्रव्य से अन्योन्य क्रिया करके कौन-कौनसे प्रभाव उत्पन्न करती हैं?
उत्तर:
γ किरणों की उत्पत्ति के लिये यह कल्पना की जाती है कि ये नाभिक के एक ऊर्जा अवस्था से दूसरी ऊर्जा अवस्था में संक्रमण से उत्पन्न होती हैं। जब भी कोई नाभिक α तथा β- कणों के उत्सर्जन के द्वारा विघटित होता है तो विघटित नाभिक उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा यहाँ से मूल अवस्था में आने के लिये γ-कणों या γ- किरणों का उत्सर्जन करता है। क्रिस्टलों से विवर्तन के द्वारा ज्ञात होता है कि ये किरणें विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं तथा इनका स्पेक्ट्रम विविक्त रेखिल स्पेक्ट्रम होता है।
γ-किरणें जब द्रव्य
अन्योन्य क्रिया करती हैं तो भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में निम्न तीन मुख्य प्रभाव उत्पन्न होते हैं-
(i) प्रकाश विद्युत प्रभाव
(ii) क्रॉम्पटन प्रभाव
(iii) युग्म उत्पादन।

प्रश्न 27.
रेडियोएक्टिव संतुलन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रेडियोएक्टिव संतुलन किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ की सक्रियता यदि विघटन प्रक्रिया में समय के साथ परिवर्तित नहीं होती है तो यह अवस्था रेडियोएक्टिव संतुलन कहलाती है। इस अवस्था में रेडियोएक्टिव प्रक्रिया के प्रथम व अंत्य तत्व के अतिरिक्त शेष सभी तत्वों के विघटन की नेट दर किसी समय शून्य हो जाती है अर्थात् λANA = λBNB = λcNcनियतांक इस नियतांक को रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श की सक्रियता भी कहते है।

प्रश्न 28.
सिद्ध कीजिये कि ड्यूटेरियम नाभिक की तुलना में हीलियम व ऑक्सीजन नाभिकों की संरचना अधिक स्थायी है।
उत्तर:
किसी भी नाभिक की कुल बंधन ऊर्जा उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या पर निर्भर करती है तथा प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का मान \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) नाभिक के स्थायित्व (Stability) को प्रदर्शित करता है। ऑक्सीजन के लिये प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{B}}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{127}{16}\) = 7.93 = 8 MeV
हीलियम की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{B}}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{27.9}{4}\) = 7.0 Mev
ड्यूटेरियम के लिये प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\overline{\mathrm{B}}\) = \(\frac{\Delta \mathrm{E}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{2.23}{2}\) = 11Mev
इससे सिद्ध होता है कि ड्यूटेरियम नाभिक की तुलना में हीलियम व ऑक्सीजन नाभिकों की संरचना अधिक स्थायी है।

प्रश्न 29.
नाभिक की त्रिज्या (R) परमाणु द्रव्यमान संख्या (A) पर किस प्रकार निर्भर करती है?
उत्तर:
अधिकांश नाभिकों के लिये नाभिक की त्रिज्या R द्रव्यमान संख्या A के (1/3) घात के समानुपाती होती है, अर्थात्
या
R α A\(\frac{1}{3}\)
R = Ro A\(\frac{1}{3}\)
जहाँ A परमाणु की द्रव्यमान संख्या है तथा Ro नियतांक है। परमाणु त्रिज्या की कोटि 10-10 मीटर की होती है। अतः परमाणु की त्रिज्या नामिक की त्रिज्या से 10-5 गुना अधिक होती है।

प्रश्न 30.
रेडियोएक्टिव सक्रियता क्या होती है?
उत्तर:
रेडियोएक्टिव पदार्थ की सक्रियता- किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के क्षय होने की दर उस पदार्थ की सक्रियता (R) कहलाती है रदरफोर्ड तथा सोडी के अनुसार किसी क्षण पदार्थ के क्षय होने की दर उस क्षण पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है। अतः पदार्थ की सक्रियता भी पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है। इस प्रकार यदि किसी क्षण रेडियोएक्टिव पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या N हो तो उस क्षण पदार्थ की सक्रियता होती है।
R α N
रेडियोएक्टिव पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या अर्थात् पदार्थ की रेडियोएक्टिव सक्रियता समय के साथ-साथ लगातार घटती जाती है। पदार्थ में बचे परमाणुओं की संख्या (अथवा सक्रियता ) तथा समय के बीच ग्राफ को दिखाया गया है, इस ग्राफ से पदार्थ की अर्द्ध-आयु T का मान पढ़ा जा सकता है।
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सक्रियता का मात्रक क्यूरी (curie) है। यदि किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ में 3.7 x 1010 विघटन प्रति सेकण्ड होते हैं तो उस पदार्थ की सक्रियता 1 क्यूरी कहलाती है। सक्रियता का एक अन्य मात्रक रदरफोर्ड भी है।

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प्रश्न 31.
भारी नाभिकों में विखण्डन की प्रवृत्ति होगी जबकि हल्के नाभिकों में संलयन की इस कथन की कारण सहित व उदाहरण देकर पुष्टि कीजिये।
उत्तर:
भारी नाभिकों की बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन हल्के नाभिकों से कम होती है और नाभिकीय बल व विद्युत चुम्बकीय प्रतिकर्षण बल नाजुक स्तम्भ अवस्था में होते हैं। जब न्यूट्रॉन इनकी नाभि में प्रवेश कर उनमें ठहर जाता है तब विद्युत चुम्बकीय प्रतिकर्षण बल नाभिकीय बल से अधिक हो जाता है। जिसके कारण भारी नामिक विभक्त होकर कई स्थायी नाभिकों में टूट जाता है जिनका कुल द्रव्यमान विभक्त होने वाले नाभि के द्रव्यमान से कम होता है और भारी नाभिक के विखण्डन पर जो द्रव्यमान में कमी हो जाती है वह ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। इसी कारण से भारी नाभिक में विखण्डन होता है।
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भारी नाभिकों में नाभिकीय बल और विद्युत चुम्बकीय प्रतिकर्षण बल नाजुक साम्य अवस्था में होते हैं भारी नाभिकों का यदि संलयन हो, तब जो नाभिक बनेगा उसका नाभिकीय बल विद्युत चुम्बकीय बल से कम होगा जिसके कारण भारी नाभिकों में संलयन की क्रिया सम्भव नहीं होती है।
हल्के नाभिकों में नाभिकीय बल/न्यूक्लिऑन कम होता है जिसके कारण उनमें स्थायित्व कम होता है। इसलिये उनमें संलयन कर ज्यादा स्थाई नाभि में परिवर्तन होने की प्रवृत्ति पायी जाती है। हाइड्रोजन बम तथा सूर्य की ऊर्जा इसी नाभिकीय संलयन सिद्धान्त पर आधारित है।

प्रश्न 32.
रियेक्टर का उपयोग किन कार्यों में किया जाता है? परमाणु भट्टी से विद्युत उत्पादन का एक सरल चित्र बनाइये।
उत्तर:
रियेक्टर का उपयोग शोध कार्य के लिये, न्यूट्रॉन पुंज प्राप्त करने तथा अनेक रेडियो समस्थानिकों को उत्पन्न करने के लिये भी किया जाता है।
भारत में मुम्बई के पास चार शोध रियेक्टर कार्यरत हैं। महाराष्ट्र के तारापुर में, राजस्थान के रावतभाटा में और चेन्नई में कल्पाक्कम में शक्ति रियेक्टर कार्यरत हैं।
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प्रश्न 33.
प्राकृतिक एवं प्रेरित रेडियोएक्टिवता को उदाहरण देकर समझाइये।
उत्तर:
प्राकृतिक रेडियोएक्टिवता प्रकृति में कुछ पदार्थ ऐसे भी पाये जाते हैं जिनके नाभिक धीरे-धीरे विघटित होते रहते हैं। Z = 82 से अधिक परमाणु संख्या वाले नामिकों में रेडियोएक्टिवता का गुण पाया जाता है। रेडियोएक्टिव पदार्थ के नाभिकों में सभी नाभिक सक्रिय होते हैं, लेकिन विघटन एक साथ नहीं होता है।
उदाहरणार्थ: यूरेनियम विघटित होकर थोरियम बनता है तथा α कण उत्सर्जित होते हैं।
92U23590Th234 + 2He4
90Th23491Pa232 + -1e0
प्रेरित रेडियोएक्टिवता कृत्रिम रेडियोएक्टिवता नाभिकीय अभिक्रिया के बाद उत्पाद नाभिक में पायी जाती है।
AI पर जब α कणों की बौछार की जाती है तो न्यूट्रॉन कणों के साथ-साथ पॉजिट्रॉन कण भी निकलते हुये पाये जाते हैं। पॉजिट्रॉन कण इलेक्ट्रॉन जैसे हैं, किन्तु ये धन आवेश वाले कण होते हैं, परन्तु α स्रोत हटा लेने के बाद न्यूट्रॉन कणों का निकलना तो बन्द हो जाता है, लेकिन पॉजिट्रॉन का उत्सर्जन होता रहता है। यह उत्सर्जन, समय बीतने के साथ घटता जाता है अर्थात् कणों के संघात के α कारण कोई ऐसा नाभिक बनता है जो रेडियोएक्टिव होता है एवं जिससे पॉजिट्रॉन का उत्सर्जन होता है। इस प्रकार से स्थायी नाभिक के अन्दर रेडियोएक्टिवता प्रेरित की जा सकती है। उपर्युक्त नाभिकीय प्रक्रिया को निम्नलिखित समीकरण द्वारा दर्शाया गया है
13Al27 + 2He415P30 + 0n1
प्रेरित रेडियोएक्टिवता की अभिक्रिया में भी आवेश रेखीय संवेग, कोणीय संवेग एवं द्रव्यमान ऊर्जा के योग का संरक्षण होता है।

प्रश्न 34.
प्रोटॉन-प्रोटॉन चक्र से आप क्या समझते हैं? कार्बन- नाइट्रोजन चक्र से यह किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
प्रोटॉन-प्रोटॉन चक्र इस चक्र में कई अभिक्रियाओं के द्वारा हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम नाभिक का निर्माण करते हैं।
1H1 + 1H11H2 + 1e0 (B+) + v + ऊर्ज …..(1)
1H2 + 1H12He3 + ऊर्जा …..(2)
2He3 + 1H12He4 + +1e0+ + ऊर्जा …..(3)
तीनों समीकरणों का योग करने पर
4H12He4 + 2 +1e0 + 2v + ऊर्जा
इस चक्र में लगभग 26 Mev ऊर्जा प्राप्त होती है प्रोटॉन- प्रोटॉन चक्र कम ताप पर सम्पन्न होता है जबकि अधिक उच्च तापों पर कार्बन – नाइट्रोजन चक्र सम्पन्न होता है।

प्रश्न 35.
नाभिकीय बल की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) ये प्रकृति में पाये जाने वाले बलों में सबसे अधिक प्रबल होते हैं।
(2) नाभिकीय बलों की परास अति लघु होती है। इनकी परास नाभिक की त्रिज्या (10-15 मीटर) की कोटि की होती है। अर्थात् यह बल 10-15 मीटर की दूरी तक ही प्रभावी होते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो यह बल परमाणुओं से अणुओं की रचना में विद्युत चुम्बकीय अन्योन्य क्रिया के सापेक्ष अधिक प्रभावी होते हैं।

प्रश्न 36.
किसी रेडियोऐक्टिव तत्व की अर्द्ध-आयु को परिभाषित कीजिए तथा अर्द्ध-आयु का निम्न के साथ संबंध लिखिए: (a) रेडियोऐक्टिव क्षय स्थिरांक (विघटन स्थिरांक) (b) रेडियोऐक्टिव तत्व की औसत आयु।
अथवा
किसी नाभिक की द्रव्यमान क्षति को समझाइए 8016 की बंधन ऊर्जा 127.5 Mev है तो इसकी ‘बंधन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन’ का मान लिखिए। 1eV का मान जूल में लिखिए।
उत्तर:
वह समय जिसमें किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ के अवघटित नाभिकों की संख्या घटकर आधी रह जाती है, उस तत्व की अर्द्ध-आयु कहलाती है।” हम इसे T व्यक्त करते हैं।
(a) अर्द्ध आयु (T) का रेडियोऐक्टिव क्षय स्थिरांक (विघटन स्थिरांक) में सम्बन्ध
T = \(\frac{0.693}{\lambda}\)
जहाँ λ रेडियोऐक्टिव क्षय स्थिरांक अथवा विघटन स्थिरांक है।
(b) रेडियोऐक्टिव तत्व की अर्द्ध-आयु T व औसत आयु T में सम्बन्ध
T = 0.693T,
जहाँ पर औसत आयु Ta = \(\frac{1}{\lambda}\)
अथवा
द्रव्यमान क्षति (Mass Defect )
परमाणु की नाभिक का द्रव्यमान उसमें उपस्थित न्यूक्लिआनों (प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन) के द्रव्यमान के योग से कुछ कम होता है। यदि किसी नाभिक में Z प्रोटॉन व N न्यूट्रॉन है तथा प्रोटॉन, न्यूट्रॉन व से प्रदर्शित करें तो
नाभिक के द्रव्यमान क्रमश: mp mn mmc
Zmp + Nmn > muc
इस प्रकार से प्रत्येक नाभिक का द्रव्यमान उसमें उपस्थित न्यूक्लिआनों के द्रव्यमान के योग से कुछ कम होता है। द्रव्यमान के इस अन्तर को द्रव्यमान क्षति (Mass Defect ) कहते हैं।
किसी भी नाभिक की कुल बंधन ऊर्जा उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या पर निर्भर करती है तथा प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का मान
नाभिक के स्थायित्व (Stability) को प्रदर्शित करता है।
ऑक्सीजन के लिये प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा
\(\bar{B}\) = \(\frac{E_{\mathrm{b}}}{\mathrm{A}}\) = \(\frac{127.5}{16}\) = 7.97 mEV
अर्थात
\(\bar{B}\) = 8 Mev
1 eV का मान 1.6 x 10-19 जूल के बराबर होता है।

प्रश्न 37.
(a) चित्र में द्रव्यमान संख्या A के फलन के रूप में बन्धन ऊर्जा (BE) प्रति न्यूक्लिऑन का वक्र दर्शाया गया है। इस वक्र पर अक्षर A, B, C, D और E प्ररूपी नाभिकों की स्थितियों को निरूपित करते हैं। कारण सहित दो प्रक्रियाओं को (A, B, C, D और E के पदों में) निर्दिष्ट कीजिए, एक तो वह जो नाभिकीय विखण्डन के कारण होती है और दूसरी जो नाभिकीय संलयन के द्वारा होती है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 16
(b) नीचे दिए गए क्षय प्रक्रम में प्रत्येक चरण में उत्सर्जित रेडियोएक्टिव विकिरणों की प्रकृति पहचानिए ।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 17
उत्तर:
(a) न्यूट्रॉनों की बमबारी से यूरेनियम का नाभिक दो लगभग बराबर खण्डों में टूट जाता है।
E → C + D
A + B → C
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आंकिक प्रश्न:

प्रश्न 1.
यूरेनियम की विखण्डन अभिक्रिया में प्रति विखण्डन लगभग 200 x 106 इलेक्ट्रॉन वोल्ट ऊर्जा मुक्त होती है। यदि कोई रियेक्टर 6 मेगावाट शक्ति प्रदान करता है तो शक्ति के इस स्तर के लिए कितने विघटन प्रति सेकण्ड आवश्यक होंगे?
उत्तर:
यदि प्रति सेकण्ड N विखण्डन सम्पन्न होते हैं तो उत्पादित शक्ति
P = N × 200 × 106 इलेक्ट्रॉन वोल्ट / सेकण्ड
= N × 200 × 1.6 × 10-13 जूल / सेकण्ड
= N × 3.2 × 10-17 मेगावाट
प्रश्न के अनुसार इसका मान 6 मेगावाट होना चाहिए।
N × 3.2 × 10-17 = 6
या
N = \(\frac{6}{3.2 \times 10^{-17}}\) = \(\frac{6 \times 10^{18}}{32}\)
= 1.875 × 1017
= 1.875 x 107 विखण्डन / सेकण्ड

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प्रश्न 2.
यदि विखण्डन 200 x 106 यूरेनियम की विखण्डन अभिक्रिया में प्रति इलेक्ट्रॉन वोल्ट ऊर्जा मुक्त होती है तो एक मिलीग्राम U235 के विखण्डन से कितने कैलोरी ऊष्मा प्राप्त होगी?
उत्तर:
U235 ग्राम U235 में परमाणुओं की संख्या = आवोगाद्रो संख्या
= 6.02 × 1023
1 मिलीग्राम यूरेनियम में परमाणुओं की संख्या होगी
= \(\frac{6.02 \times 10^{23} \times 10^{-3}}{235}\) = \(\frac{6.02 \times 10^{20}}{235}\)
प्रति विखण्डन मुक्त ऊर्जा = 200 x 106 इलेक्ट्रॉन वोल्ट = 200 × 1.6 x 10-13 जूल
= \(\frac{200 \times 1.6 \times 10^{-13}}{4.2}\) कैलोरी
∴ 1 मिली. ग्राम यूरेनियम के विखण्डन से प्राप्त ऊष्मा का मान होगा
= \(\frac{200 \times 1.6 \times 10^{-13}}{4.2}\) × \(\frac{6.02 \times 10^{20}}{235}\)
= \(\frac{1926.4}{987}\) × 107
= 1.952 x 107 कैलोरी

प्रश्न 3.
कोई रेडियोएक्टिव तत्व विघटन के कारण 24 वर्ष में अपने प्रारम्भिक मान का 25% रह जाता है। तत्व की अर्द्ध आयु ज्ञात कीजिये।
उत्तर:
रेडियोएक्टिव तत्व का द्रव्यमान उसके प्रारम्भिक द्रव्यमान का 25% रह जाता है।
∴ शेष बचा भाग = 25% प्रारम्भिक मान का
= \(\frac{25}{100}\) प्रारम्भिक मान का
= \(\frac{1}{4}\) प्रारम्भिक मान का
माना कि इस विघटन में n अर्द्ध आयु काल लगेंगे तब
\(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{4}\)
\(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{2}\)
∴ n = 2 अर्द्ध आयुकाल
∵ 2 अर्द्ध आयुकाल = 24 वर्ष
∴ 1 अर्द्ध आयुकाल = 24/2 = 12 वर्ष

प्रश्न 4.
थोरियम की अर्द्ध आयु 1.4 x 1010 वर्ष है। इसके एक नमूने के 10 प्रतिशत को विघटित होने में लगे समय की गणना कीजिये।
उत्तर:
थोरियम की अर्द्धआयु = 1.4 × 1010 वर्ष
∴ थोरियम का क्षयांक λ = \(\frac{0.693}{T}\)
λ = \(\frac{0.693}{1.4 \times 10^{10}}\) वर्ष …..(1)
यदि किसी समय रेडियोएक्टिव तत्व का द्रव्यमान No हो और उसके t समय बाद उसका द्रव्यमान N रह जाये और तत्व का क्षयांक
λ हो, तब
N = No e-λt
या
\(\frac{N}{N_0}\) = e-λt …………(2)
माना कि वर्ष t में तत्व 10 प्रतिशत विघटित हो जाता है। t तब अविघटित रहे तत्व का द्रव्यमान
= 90% प्रारम्भिक द्रव्यमान का
∴ \(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = \(\frac{90}{100}\) = \(\frac{9}{10}\) …………(3)
समीकरण (2) से
\(\frac{9}{10}\) = e-λt
या
\(\frac{10}{9}\) = e-λt
दोनों तरफ लघुगणक लेने पर
loge e-λt = loge(10/9)
⇒ λt loge e = loge 10 – loge 9
λt = 2.303 [log1010 – 10109] (∵ logee = 1 )
= 2.303 [1 – 0.9542]
= 2.303 x 0.0458
∴ t = \(\frac{2.303 \times 0.0458}{\lambda}\)
समीकरण (1) से का मान रखने पर
= \(\frac{2.303 \times 0.0458 \times 1.4 \times 10^{10}}{0.693}\)
= 2.13 x 109 वर्ष

प्रश्न 5.
रेडियम की अर्द्ध आयु 1600 वर्ष है। कितने समय बाद रेडियम के किसी टुकड़े का यह भाग रेडियोएक्टिव क्षय से विघटित हो जायेगा?
उत्तर:
रेडियम के टुकड़े में रेडियम का अविघटित भाग
= 1 – \(\frac{15}{16}\) = \(\frac{1}{16}\)
माना कि यह विघटन n अर्द्ध-आयु कालों में हुआ है।
\(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = \(\left(\frac{1}{2}\right)^n\)
चूँकि दिया है
\(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_0}\) = \(\frac{1}{16}\)
चूँकि रेडियम का अर्द्ध-आयु काल = 1600
∴ वर्ष विघटन में लगा समय = 4 x T
= 4 x 1600
= 6400 वर्ष

प्रश्न 6.
यदि एक रेडियोधर्मी पदार्थ में 0.1 मिलीग्राम Th234 हो तो यह 120 दिनों बाद कितना अविघटित रह जायेगा? Th234 की अर्द्ध-आयु 24 दिन है।
उत्तर:
विघटन के 120 दिन = \(\frac{120}{24}\) अर्द्ध-आयु काल 24
= 5 अर्द्ध-आयु काल
120 दिन में अविघटित भाग = \(\left(\frac{1}{2}\right)^5\) = \(\frac{1}{32}\)
चूँकि विघटन से पहले Th234 का द्रव्यमान = 0.1 मिलीग्राम है।
∴ अविघटित Th234 का द्रव्यमान
= \(\frac{0.1 \times 1}{32}\) = \(\frac{1}{320}\)
मिलीग्राम
= 0.003125
= 3.125 × 10-3 मिलीग्राम

प्रश्न 7.
निम्न संलयन अभिक्रिया में मुक्त ऊर्जा का परिकलन
41H1 → 2He4 + 21e0
उत्तर:
4 प्रोटॉनों का द्रव्यमान
= 4 × 1.0078
= 4.0312 amu.
हीलियम परमाणु का द्रव्यमान
= 4.0026 amu.
द्रव्यमान के अन्तर AM 0.0286 amu.
मुक्त ऊर्जा = 0.0286 × 931
= 26.62 MeV

प्रश्न 8.
निम्न संलयन अभिक्रिया में मुक्त ऊर्जा के मान की गणना कीजिए:
1H2 + 1H32He4 + 0n1 + E
1H2 का द्रव्यमान = 2.0141 amu
1H3 का द्रव्यमान = 3.0160 amu
2He4 का द्रव्यमान = 4.0026amu
0n1 का द्रव्यमान 1.0087 amu
उत्तर:
अभिक्रिया के पूर्व कणों का कुल द्रव्यमान
2.0141 + 3.0160
= 5.0301 amu
अभिक्रिया के पश्चात् कणों का द्रव्यमान
= 4.0026 + 1.0087
= 5.0113 amu
अभिक्रिया में द्रव्यमान क्षति
= 5.0301 – 5.0113
= 0.0188 amu
मुक्त ऊर्जा:
= 0.0188 x 931
= 17.50 Mev

प्रश्न 9.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्धआयु T है सिद्ध कीजिये कि n अर्द्ध आयुकाल में पदार्थ का (1/2)n भाग शेष रह जायेगा।
उत्तर:
अर्द्धआयु की परिभाषा के अनुसार:
t = 0 पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = No = No
t = T पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = \(\frac{N_0}{2}\) = \(\mathbf{N}_0\left(\frac{1}{2}\right)^1\)
t = 2T पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = \(\frac{N_0}{4}\) = \(\mathbf{N}_0\left(\frac{1}{2}\right)^2\)
t = 3T पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = No/8 = N0
इसी प्रकार n अर्द्ध- आयुकाल बाद सक्रिय परमाणुओं की संख्या
t = nT पर सक्रिय परमाणुओं की संख्या N = No \(\frac{1}{2}\)
या
N/No =\(\frac{1}{2}\)
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 19

प्रश्न 10.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ के नमूने में 106 रेडियोएक्टिव नाभिक हैं इसकी अर्द्ध आयु 20 सेकण्ड है 10 सेकण्ड के पश्चात् कितने नाभिक रह जायेंगे?
उत्तर:
यदि किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के नमूने में प्रारम्भ No नाभिक हैं, तब n अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् बचे नाभिकों की संख्या
N = No (1/2)n
रेडियोएक्टिव पदार्थ की अर्द्ध आयु 20 सेकण्ड है, अतः 10
सेकण्ड में अर्द्ध- आयुओं की संख्या
N = N0(1/2)n
यहाँ प्रारम्भ में नाभिकों की संख्या No = 106 अतः \(\frac{1}{2}\)
(आधी) अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् बचे नाभिकों की संख्या
N = 106 \(\left(\frac{1}{2}\right)^{\frac{1}{2}}\) = 106 × \(\sqrt{\frac{1}{2}}\)
= \(\frac{10^6}{\sqrt{2}}\) = \(\frac{10^6}{1.41}\) = \(\frac{10}{1.41}\) × 105
= 7.1 x 105 (लगभग)

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक

प्रश्न 11.
रेडॉन की अर्द्धआयु 4 दिन है। कितने दिन बाद में रेडॉन के किसी नमूने का केवल \(\frac{1}{16}\) वां भाग शेष रह जाता है?
उत्तर:
हम जानते हैं-
N = N0e-λt
\(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = e-λt
\(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = e-λt
चूँकि
loge \(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = λt loge e = λt
loge e = 1
loge \(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = \(\frac{0.693}{T}\)
2.30310g10 \(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = \(\frac{0.693}{T}\)
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 13 नाभिक 20
t = 16 दिन अर्थात् 16 दिन बाद।

प्रश्न 12.
एक रेडियोएक्टिव पदार्थ की मात्रा 10 वर्ष में घटकर 25% रह जाती है उसकी अर्द्ध-आयु एवं क्षयांक की गणना कीजिये।
उत्तर:
यदि रेडियोएक्टिव पदार्थ का प्रारम्भिक द्रव्यमान 12 हो, तब 10 वर्ष में उसका रहा परिणाम = \(\frac{25m}{100}\) = \(\frac{m}{4}\)
माना कि 10 वर्ष = n अर्द्ध- आयुकाल
तब
\(\mathrm{m}\left(\frac{1}{2}\right)^{\mathrm{n}}\) = \(\frac{m}{4}\)
\(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{2}\)
∴ n = 2 अर्द्ध- आयुकाल:
पुनः 2 अर्द्ध-आयुकाल = 10 वर्ष
∴ 1 अर्द्ध-आयुकाल = 5 वर्ष
λ (क्षयांक) = \(\frac{0.693}{5}\)
λ (क्षयांक) = 0.1386 प्रतिवर्ष

प्रश्न 13.
(i) रेडियोएक्टिव विघटन द्वारा 90Th232 का 82Pb208 में रूपान्तरण होता है तो उत्सर्जित α व β कणों की संख्या लिखिए।
(ii) किसी रेडियोएक्टिव तत्व की सक्रियता 10-3 विघटन / वर्ष है। इसकी अर्द्ध आयु व औसत आयु का अनुपात ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
(i) 90Th23282Pb208 + a2He4 + be01
232 = 208 + 4a + bx0
24 = 4a
∴ a = 6
90 = 82 + 2a + b (-1)
8 = 2 × 6 – b
b = 12 – 8 = 4:
∴ a उत्सर्जित कणों की संख्या = 6
और β उत्सर्जित कणों की संख्या = 4

(ii)
अर्द्ध आयु T = \(\frac{0.693}{\lambda}\) …..(1)
औसत आयु T = \(\frac{1}{\lambda}\) …..(2)
समीकरण (1) में समीकरण (2) का भाग देने पर एक स्थिरांक \(\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}\) प्राप्त होता है। अर्द्ध आयु और औसत आयु पर निर्भर नहीं करते हैं अतः दोनों का अनुपात एक स्थिरांक प्राप्त होगा।

प्रश्न 14.
एक रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श की अर्द्ध आयु 1386 वर्ष है। अपनी प्रारंभिक मात्रा का 90% विघटित होने में यह कितना समय लेगा?
उत्तर:
दिया गया है:
अर्द्ध आयु = 1386 वर्ष
रेडियोएक्टिव प्रतिदर्श का 90% विघटित होने पर अविघटित
भाग रहा = 10%
= \(\frac{10}{100}\) = \(\frac{1}{10}\) भाग
माना कि यह विघटित n अर्द्ध आयु काल में हुआ है।
∴ \(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = \(\left(\frac{1}{2}\right)^{\mathrm{n}}\)
चूंकि दिया हुआ है:
\(\frac{\mathbf{N}}{\mathbf{N}_0}\) = \(\frac{1}{10}\)
\(\left(\frac{1}{2}\right)^n\) = \(\frac{1}{10}\)
2n = 10
दोनों तरफ लघुगणक लेने पर
log10 2n = 10g10 10
n log10 2 = log1010
n x 0.3010 = 1
n = \(\frac{1}{0.310}\) = \(\frac{10000}{3010}\)
∵ 1 अर्द्ध आयुकाल = 1386 वर्ष
∴ विघटन में लगा समय = n x T
= \(\frac{10000}{3010}\) × 1386
= 4604.7 वर्ष

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. मानव के आर्थिक क्रियाकलापों को कितने प्रमुख वर्गों में बांटा गया है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(C) 4

2. मानव की नितांत आवश्यकताएँ हैं
(A) भोजन, आवास, वस्त्र
(B) भोजन, लकड़ी, आग
(C) जल, वस्त्र, आग
(D) वायु, आवास, भोजन
उत्तर:
(A) भोजन, आवास, वस्त्र

3. संसार के विकसित राष्ट्रों में कितने प्रतिशत लोग प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न हैं?
(A) 2 प्रतिशत
(B) 3 प्रतिशत
(C) 5 प्रतिशत
(D) 7 प्रतिशत
उत्तर:
(C) 5 प्रतिशत

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

4. कालाहारी के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
(A) पिग्मी
(B) इनुइट
(C) सान
(D) पिंटुपी
उत्तर:
(C) सान

5. अफ्रीका के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
(A) सान
(B) इनुइट
(C) पिंटुपी
(D) पिग्मी
उत्तर:
(D) पिग्मी

6. दक्षिण भारत के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
(A) सेमांग
(B) पालियान
(C) ऐनु
(D) टोबा
उत्तर:
(B) पालियान

7. ‘पिंटुपी’ आखेटक तथा संग्राहक निम्नलिखित में किस क्षेत्र से संबंधित है?
(A) ऑस्ट्रेलिया
(B) अफ्रीका
(C) दक्षिण अमेरिका
(D) कालाहारी
उत्तर:
(A) ऑस्ट्रेलिया

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

8. लैब्रेडोर के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
(A) इन्नू
(B) इनुइट
(C) खेकी
(D) ऐनु
उत्तर:
(A) इन्नू

9. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राथमिक व्यवसाय नहीं है?
(A) आखेट
(B) संग्रहण
(C) मत्स्य पकड़ना
(D) सूती वस्त्र बनाना
उत्तर:
(D) सूती वस्त्र बनाना

10. निम्नलिखित में से कौन-से देश में चलवासी पशुचारण पाया जाता है?
(A) सऊदी अरब
(B) उत्तरी अमेरिका
(C) दक्षिणी अफ्रीका
(D) न्यूजीलैंड
उत्तर:
(A) सऊदी अरब

11. ऑस्ट्रेलिया में विश्व की कितने प्रतिशत भेड़ें पाली जाती हैं?
(A) 20 प्रतिशत
(B) 35 प्रतिशत
(C) 50 प्रतिशत
(D) 65 प्रतिशत
उत्तर:
(C) 50 प्रतिशत

12. ‘डियर’ कहाँ पाला जाता है?
(A) विकसित चरागाहों में
(B) कम घास वाले क्षेत्रों में
(C) शीत तथा टुंड्रा प्रदेशों में
(D) शुष्क प्रदेशों में
उत्तर:
(C) शीत तथा टुंड्रा प्रदेशों में

13. खनिज तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन-सा है?
(A) इराक
(B) सऊदी अरब
(C) ईरान
(D) कुवैत
उत्तर:
(B) सऊदी अरब

14. गुज्जर तथा बकरवाल किस प्रदेश के निवासी हैं?
(A) पठारी प्रदेश
(B) पर्वतीय प्रदेश
(C) तटीय प्रदेश
(D) मैदानी प्रदेश
उत्तर:
(B) पर्वतीय प्रदेश

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

15. निम्नलिखित में हिमालय के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला प्रमुख जानवर कौन-सा है?
(A) लामा
(B) यॉक
(C) घोड़ा
(D) रेडियर
उत्तर:
(B) यॉक

16. उत्तर:पूर्वी भारत में स्थानांतरी कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
(A) रोका
(B) चेनगिन
(C) झूमिंग
(D) मसोले
उत्तर:
(C) झूमिंग

17. मलेशिया में स्थानांतरी कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
(A) रोका
(B) झूमिंग
(C) लदांग
(D) मसोले
उत्तर:
(C) लदांग

18. कौन-सी स्थानांतरित कृषि नहीं है?
(A) झूमिंग
(B) चेनगिन
(C) रोका
(D) रेशम-कृषि
उत्तर:
(D) रेशम-कृषि

19. फलों व सब्जियों की कृषि को कहा जाता है-
(A) डेयरी कृषि
(B) ट्रक कृषि
(C) रोपण कृषि
(D) स्थानांतरी कृषि
उत्तर:
(B) ट्रक कृषि

20. पृथ्वी के सबसे अधिक क्षेत्र पर पैदा की जाने वाली फसल कौन-सी है?
(A) गेहूं
(B) चावल
(C) मक्का
(D) गन्ना
उत्तर:
(A) गेहूं

21. निम्नलिखित में कौन-सी खाद्य फसल नहीं है?
(A) गेहूं
(B) आलू
(C) चावल
(D) कपास
उत्तर:
(D) कपास

22. निम्नलिखित में से किस खाद्य फसल की उपज सर्वाधिक है?
(A) गेहूं
(B) चावल
(C) मक्का
(D) आलू
उत्तर:
(D) आलू

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

23. निम्नलिखित में से किस फसल को तैयार होते समय बादल रहित आकाश की आवश्यकता होती है?
(A) कहवा
(B) कपास
(C) चाय
(D) गन्ना
उत्तर:
(B) कपास

24. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल श्रम प्रधान है?
(A) गेहूं
(B) चावल
(C) मक्का
(D) गन्ना
उत्तर:
(B) चावल

25. मक्का का सर्वाधिक उत्पादन किस देश में होता है?
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका
(B) चीन
(C) भारत
(D) ब्राजील
उत्तर:
(A) संयुक्त राज्य अमेरिका

26. सस्ते और कुशल श्रम की उपलब्धता किस फसल के लिए महत्त्वपूर्ण है?
(A) कहवा
(B) गेहूं
(C) चाय
(D) गन्ना
उत्तर:
(C) चाय

27. पहाड़ी ढलानों पर उगाई जाने वाली फसल कौन-सी है?
(A) चाय
(B) कहवा
(C) तंबाकू
(D) मक्का
उत्तर:
(A) चाय

28. जब एक ही खेत में एक ही वर्ष में दो या दो से अधिक फसलें उत्पन्न की जाएँ तो ऐसी कृषि को क्या कहा जाता है?
(A) उद्यान कृषि
(B) बहुफसली कृषि
(C) जीविकोपार्जी कृषि
(D) वाणिज्यिक कृषि
उत्तर:
(B) बहुफसली कृषि

29. ‘पाला’ किस फसल के लिए हानिकारक है?
(A) चाय
(B) तंबाकू
(C) कहवा
(D) गन्ना
उत्तर:
(C) कहवा

30. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है?
(A) गेहूं
(B) चुकंदर
(C) गन्ना
(D) आलू
उत्तर:
(C) गन्ना

31. गेहूँ मुख्य रूप से फसल है-
(A) उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र की
(B) टुण्ड्रा क्षेत्र की
(C) मरुस्थल की
(D) शीतोष्ण कटिबन्ध की
उत्तर:
(D) शीतोष्ण कटिबन्ध की

32. कौन-सी फसल रेशेदार है?
(A) रबड़
(B) तंबाकू
(C) कसावा
(D) कपास
उत्तर:
(D)

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली कोई एक फसल का नाम बताएँ।
उत्तर:
गन्ना।

प्रश्न 2.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि संसार के किन क्षेत्रों में की जाती है?
उत्तर:
मध्य अक्षांशों के आंतरिक अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में।

प्रश्न 3.
किस प्रकार की कृषि में खट्टे रसदार फलों की कृषि की जाती है?
उत्तर:
भूमध्य-सागरीय कृषि।

प्रश्न 4.
किस देश में सहकारी कृषि का सफल परीक्षण किया गया है?
उत्तर:
डेनमार्क में।

प्रश्न 5.
फूलों की कृषि क्या कहलाती है?
उत्तर:
पुष्पोत्पादन।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 6.
संसार के विकसित राष्ट्रों में कितने प्रतिशत लोग प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न हैं?
उत्तर:
5 प्रतिशत लोग।

प्रश्न 7.
मलेशिया में स्थानांतरी कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
लदांग।

प्रश्न 8.
प्राथमिक व्यवसाय में लगे हुए श्रमिक किस रंग वाले श्रमिक कहलाते हैं?
उत्तर:
लाल।

प्रश्न 9.
सहारा व एशिया के मरुस्थलों में कौन-से पशु पाले जाते हैं?
उत्तर:
भेड़, बकरी, ऊँट।

प्रश्न 10.
आदिमकालीन मानव का जीवन-निर्वाह किन दो कार्यों पर निर्भर था?
उत्तर:
आखेट, संग्रहण।

प्रश्न 11.
उष्ण कटिबन्धीय अफ्रीका में कौन-से पशु पाले. जाते हैं?
उत्तर:
गाय, बैल।

प्रश्न 12.
आर्कटिक व उत्तरी उप-ध्रुवीय क्षेत्रों में कौन-सा पशु पाला जाता है?
उत्तर:
रेडियर।

प्रश्न 13.
सोवियत संघ में सामूहिक कृषि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
कालेखहोज।

प्रश्न 14.
दक्षिणी-पूर्वी एशिया, मध्य अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका की प्रमुख खाद्यान्न फसल कौन-सी है?
उत्तर:
कसावा।

प्रश्न 15.
सब्जियों की कृषि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
ट्रक कृषि।

प्रश्न 16.
मक्का का सर्वाधिक उत्पादन किस देश में होता है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 17.
रोपण कृषि विश्व के किन क्षेत्रों में की जाती है?
उत्तर:
यूरोपीय देशों के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 18.
विश्व की प्राचीनतम आर्थिक क्रिया कौन-सी है?
उत्तर:
आखेट व संग्रहण।

प्रश्न 19.
किस प्रदेश में विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि नहीं की जाती?
उत्तर:
अमेजन बेसिन में।

प्रश्न 20.
भारत व श्रीलंका में चाय बागानों का विकास सर्वप्रथम किस देश ने किया?
उत्तर:
ब्रिटेन ने।

प्रश्न 21.
आदिमकालीन मानव के दो क्रियाकलाप बताइए।
उत्तर:
आखेट व संग्रहण।

प्रश्न 22.
कालाहारी के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
सान।

प्रश्न 23.
अफ्रीका के आखेटक-संग्राहक को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पिग्मी।

प्रश्न 24.
ऑस्ट्रेलिया में विश्व की कितने प्रतिशत भेड़ें पाली जाती हैं?
उत्तर:
50 प्रतिशत।

प्रश्न 25.
भूमध्यसागरीय कृषि की मुख्य फसल क्या है?
उत्तर:
अंगूर की फसल।

प्रश्न 26.
उत्तर-पूर्वी भारत में स्थानांतरी कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
झूमिंग।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक आर्थिक क्रियाकलाप क्या होता है?
अथवा
प्राथमिक क्रियाएँ क्या हैं?
उत्तर:
प्राथमिक आर्थिक क्रियाकलाप वे क्रियाएँ होती हैं जो प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होती हैं क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों; जैसे-भूमि, जल, वनस्पति, भवन-निर्माण सामग्री एवं खनिजों के उपयोग के विषय में बताती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं के अंतर्गत आखेट, भोजन संग्रह, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि एवं खनन कार्य आदि शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
कृषि पद्धति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी खास उद्देश्य को लेकर की जाने वाली खेती के लिए जिन तौर-तरीकों व विधियों को अपनाया जाता है, उन्हें कृषि पद्धति कहा जाता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 3.
स्थानांतरी कृषि को विभिन्न क्षेत्रों में किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थानांतरी कृषि को झूम, मलेशिया में लदांग, इंडोनेशिया में हुआ, मध्य अमेरिका व मैक्सिको में मिल्पा, ब्राजील में रोका, जायरे व मध्य अमेरिका में मसोले तथा फिलीपींस में चेनगिन कहा जाता है।

प्रश्न 4.
स्थानबद्ध कृषि क्या होती है?
उत्तर:
स्थानबद्ध कृषि खेती की वह पद्धति होती है जिसमें किसान अथवा किसान समूह अपने परिवारों के साथ एक निश्चित स्थान पर स्थाई रूप से रहकर कृषि का व्यवसाय करते हैं।

प्रश्न 5.
विशिष्टीकरण वाणिज्यिक कृषि की प्रमख विशेषता क्यों होती है?
उत्तर:
इस कृषि में फ़सलों को बेचने के लिए पैदा किया जाता है। कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए आवश्यक है कि फसलों का विशिष्टीकरण हो।

प्रश्न 6.
लोहे को उन्नति का बैरोमीटर क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि लोहे से ही विकास के लिए जरूरी अवसंरचना का निर्माण होता है; जैसे-औज़ार, मशीनें, कारखाने, परिवहन के साधन, जहाज इत्यादि।

प्रश्न 7.
आर्थिक क्रियाओं या क्रियाकलापों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसी क्रियाएँ जिनमें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण एवं उपभोग का संबंध हो और जिनसे आर्थिक वृद्धि होती हो, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 8.
मानव क्रियाकलापों के प्रमुख वर्गों के नाम लिखिए। अथवा
आर्थिक
क्रियाकलाप कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. प्राथमिक क्रियाकलाप
  2. द्वितीयक क्रियाकलाप
  3. तृतीयक क्रियाकलाप
  4. चतुर्थक क्रियाकलाप
  5. पंचम क्रियाकलाप।

प्रश्न 9.
प्राथमिक व्यवसायों के प्रमुख क्षेत्र बताएँ।
उत्तर:
आखेट, एकत्रीकरण, पशुपालन, मत्स्य पालन, वानिकी, खनन तथा कृषि इत्यादि प्राथमिक व्यवसायों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 10.
आखेट (Hunting) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वनों से जंगली जानवरों का शिकार करना तथा जल से मछली आदि जंतुओं को पकड़ना आखेट कहलाता है।

प्रश्न 11.
मनुष्य के विभिन्न व्यवसायों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. कृषि व्यवसाय
  2. खनन व्यवसाय
  3. मत्स्यन व्यवसाय
  4. पशु-पालन व्यवसाय आदि।

प्रश्न 12.
चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. मध्य एशिया
  2. दक्षिण-पश्चिमी एशिया
  3. टुंड्रा प्रदेश।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 13.
संग्रहण (Gathering) किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
संग्रहण का अभिप्राय एकत्रीकरण करना है। वनों में रहने वाली आदिम जातियों द्वारा अपने निर्वाह के लिए वनों से विभिन्न वस्तुओं को इकट्ठा करने के व्यवसाय को संग्रहण कहते हैं।

संग्रहण के प्रकार-यह तीन प्रकार का है-

  1. साधारण पैमाने पर जीविकोपार्जन संग्रहण
  2. वाणिज्यिक संग्रहण
  3. संगठित पैमाने पर संग्रहण।

प्रश्न 14.
विश्व की कोई चार खाद्य फसलों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. चावल
  2. गेहूँ
  3. मक्का
  4. आलू।

प्रश्न 15.
चावल की फसल बोने की प्रमुख विधियाँ बताएँ।
उत्तर:

  1. छिड़ककर या छिड़काव विधि
  2. हल चलाने वाली विधि
  3. प्रतिरोपण विधि।

प्रश्न 16.
वाणिज्य फसलों के कोई तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. रबड़
  2. कपास
  3. गन्ना।

प्रश्न 17.
रोपण फसलों के कोई तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. चाय
  2. केला
  3. कहवा।

प्रश्न 18.
चावल को खुरपे की कृषि क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
चावल की खेती में मशीनों का प्रयोग नगण्य है। भूमि की जुताई, बुआई, पौधों का प्रतिरोपण, फसल की कटाई, धान का छिलका हटाना तथा इसे कूटने आदि का सारा काम हाथों से किया जाता है। समय की अधिकता के कारण चावल की खेती को खुरपे की कृषि (Hoe Agriculture) कहा जाता है।

प्रश्न 19.
गहन कृषि संसार के किन देशों में की जाती है?
उत्तर:
जापान, बांग्लादेश, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम व भारत इत्यादि मानसून एशिया के देशों में गहन कृषि की जाती है।

प्रश्न 20.
गन्ने की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
गन्ने की खेती के लिए चूना तथा फॉस्फोरस युक्त गहरी, सुप्रवाहित तथा उपजाऊ दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 21.
चलवासी पशुचारण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चलवासी पशुचारण एक जीवन निर्वाह पद्धति है। इस पद्धति में चारा प्राकृतिक रूप से विकसित होता है। इस पद्धति में पशुओं को चराने वाले चारे व पानी की तलाश में इधर-उधर घूमते रहते हैं। ये स्थायी निवास नहीं कर पाते, इसी कारण इन्हें चलवासी कहा जाता है।

प्रश्न 22.
डेयरी कृषि के लिए अनुकूल कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डेयरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है क्योंकि ये क्षेत्र दूध एवं अन्य डेयरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं। पशुओं के उन्नत पालन-पोषण के लिए पूँजी की भी अधिक आवश्यकता होती है। वाणिज्य डेयरी के मुख्य क्षेत्र उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, कनाडा, दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 23.
कहवा का पौधा बड़े वृक्षों की छाया में लगाया जाता है, क्यों?
उत्तर:
कहवा भी चाय की तरह ही एक पेय पदार्थ है। यह एक झाड़ीनुमा पेड़ के फलों से प्राप्त बीज का चूर्ण बनाकर तैयार किया जाता है। अधिक धूप एवं पाला कहवे के लिए हानिकारक है। इसलिए कहवे के वृक्षों को धूप तथा पाले से बचाने के लिए बड़े-बड़े छायादार वृक्ष उगाए जाते हैं।

प्रश्न 24.
शीतकालीन गेहूँ क्या है?
उत्तर:
शीतकालीन गेहूँ शीत ऋतु के आगमन पर बोया जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में काट दिया जाता है। यह उन क्षेत्रों में बोया जाता है जहाँ साधारण शीत ऋतु होती है। विश्व का अधिकांश गेहूँ (लगभग 80%) इसी मौसम में बोया जाता है।

प्रश्न 25.
सहकारी कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य संपन्न करे, उसे सहकारी कृषि कहते हैं। सहकारी संस्था कृषकों को सभी प्रकार से सहायता उपलब्ध कराती है। इस प्रकार की कृषि का उपयोग डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली जैसे देशों में सफलतापूर्वक किया जाता है।

प्रश्न 26.
कृषि क्या है?
उत्तर:
मिट्टी को जोतने, गोड़ने, उसमें विभिन्न फसलें एवं फल-फूल उगाने तथा पशुपालन से जुड़ी कला या विज्ञान को कृषि कहा जाता है।

प्रश्न 27.
प्रेयरी तथा स्टेपीज प्रदेश में गेहूँ की पैदावार अधिक क्यों होती है?
उत्तर:
जिस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा अधिक होती है, उसमें गेहूँ की पैदावार अच्छी एवं अधिक होती है। प्रेयरी तथा स्टेपीज प्रदेश की मिट्टी में पर्याप्त ह्यूमस उपलब्ध है। ये ही कारण है कि यहाँ गेहूँ की पैदावार अधिक या अच्छी होती है।

प्रश्न 28.
गेहूँ की उपज के लिए कितने तापमान व वर्षा की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
गेहूँ के लिए उगते समय 10° सेल्सियस तथा पकते समय 20° सेल्सियस तापमान तथा 50 से०मी० से 75 से०मी० तक वर्षा अनुकूल होती है।

प्रश्न 29.
शीतकालीन गेहूँ एवं बसंतकालीन गेहूँ में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:

  1. शीतकालीन गेहूँ शीत ऋतु के आगमन पर बोई जाती है, जबकि बसंतकालीन गेहूँ बसंत ऋतु में बोई जाती है।
  2. शीतकालीन गेहँ ग्रीष्म ऋत के आरंभ में काटी जाती है, जबकि बसंतकालीन गेहँ शीत ऋत के आगमन पर काटी जाती है।

प्रश्न 30.
भूमध्यसागरीय कृषि के क्षेत्र व प्रमुख फसलें कौन-सी हैं?
उत्तर:
भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्र जो दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में टयूनीशिया से एटलांटिक तट तक फैला है। दक्षिणी कैलीफोर्निया, मध्यवर्ती चिली, दक्षिणी अफ्रीका का दक्षिणी-पूर्वी भाग एवं ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-जैसे-अंगूर की कृषि यहाँ की विशेषता है। अंजीर, जैतून भी यहाँ उत्पन्न होता है।

प्रश्न 31.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि के प्रमुख मैदानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मध्य अक्षांशों के आंतरिक अर्धशुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इस प्रकार की कृषि के मैदान हैं यूरेशिया के स्टेपीज, उत्तरी अमेरिका के प्रेयरीज, अर्जेन्टाइना के पंपाज, दक्षिणी अफ्रीका के वैल्डस, ऑस टरबरी के मैदान। इसकी मुख्य फसल गेहँ है। अन्य फसलें जैसे-मक्का, जई, जौ, राई भी बोई जाती है। इस कषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है एवं खेत जोतने से फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं।

प्रश्न 32.
संसार के पाँच प्रमुख कपास उत्पादक देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कपास एक महत्त्वपूर्ण अखाद्य फसल है व एक विश्वव्यापी रेशा है। वनस्पति के औद्योगिक रेशेदार उत्पादों में कपास सबसे महत्त्वपूर्ण है। भारत और मिस्र इसके प्राचीन उत्पादक देश हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका व प्यूरटोरिको में लम्बे रेशे वाली कपास पाई जाती है। मिस्र की नील नदी की घाटी, मध्य एशिया, ब्राजील में कपास का उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 33.
कपास की फसल पकते समय बादल रहित आकाश क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
कपास की फसल के पकते समय शुष्क मौसम आवश्यक है। कपास में डोडी आने के पश्चात स्वच्छ आकाश आवश्यक है तथा तेज धूप लाभदायक है, जिससे तेज धूप में डोडी के फूल आसानी से खिल सकें तथा कपास की चुनाई आसानी से हो सके। इसलिए कपास की फसल के पकते समय वर्षा नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 34.
व्यापारिक पशुपालन क्या है?
उत्तर:
जब बड़े पैमाने पर आय प्राप्त करने के उद्देश्य से तथा व्यापारिक दृष्टिकोण से पशुपालन किया जाए, उसे व्यापारिक पशुपालन कहा जाता है। उत्तरी अमेरिका के विस्तृत घास के मैदानों में यह व्यवसाय बड़ी तेजी से विकसित हुआ। इसमें पशुओं को . बड़े-बड़े बाड़ों (Ranches) में रखा जाता है।

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प्रश्न 35.
चावल की बहत बड़ी मात्रा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए उपलब्ध नहीं है, क्यों?
उत्तर:
चावल उत्पादक देशों की जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है। इसलिए चावल की उपज का अधिकतर भाग उत्पादक देशों में ही खप जाता है। इसलिए चावल के विश्व के कुल उत्पादन का केवल पांच प्रतिशत भाग ही व्यापार के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध है। इसलिए चावल की बहुत बड़ी मात्रा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए उपलब्ध नहीं है।

प्रश्न 36.
विस्तृत कृषि अधिकांशतः मशीनों की सहायता से की जाती है, क्यों?
उत्तर:
विस्तृत कृषि में खेतों का आकार बड़ा होता है। इसमें कृषि योग्य भूमि तथा मनुष्य का अनुपात अधिक होता है। इस प्रकार की कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में होती है। इसलिए यहाँ श्रम आसानी से उपलब्ध नहीं होता। इसलिए विस्तृत कृषि अधिकांशतः मशीनों की सहायता से की जाती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि क्रांति और औद्योगिक क्रांति में क्या अंतर है?
उत्तर:
कृषि क्रांति और औद्योगिक क्रांति में निम्नलिखित अंतर हैं-

कृषि क्रांति औद्योगिक क्रांति
1. यह प्रकृति में उपलब्ध जैविक उत्पादों के अधिक संगठित तरीके से उपयोग करने से शुरू हुई। 1. यह प्रकृति में कोयला एवं पैट्रोल के रूप में संचित ऊर्जा शक्ति के प्रयोग पर निर्भर थी।
2. कृषि कार्य शारीरिक दृष्टि से बहुत कष्टपूर्ण थे। 2. औद्योगिक क्रांति ने लोगों को श्रम की पीड़ा से मुक्ति दिलाई।

प्रश्न 2.
धान की गहन जीविकोपार्जी कृषि के क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक क्यों है?
उत्तर:
छोटे खेतों पर अधिक पूँजी तथा श्रम का प्रयोग करके अधिक उपज प्राप्त करने वाली कृषि गहन कृषि कहलाती है। इसमें बोई जाने वाली प्रमुख फसल धान अर्थात् चावल है। धान की कृषि मुख्य रूप से मानसूनी प्रदेशों में की जाती है। धान की कृषि में मुख्य रूप से सभी कार्य मनुष्य अपने हाथों से करता है। इसलिए इस कार्य के लिए सस्ते तथा अधिक मज़दूरों की आवश्यकता होती है। श्रम की अधिक माँग होने के कारण यहाँ रोजगार मिल जाता है। इसलिए धान की गहन जीविकोपार्जी कृषि के क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

प्रश्न 3.
रोपण कृषि का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
रोपण कृषि एक लाभ देने वाली उत्पादन प्रणाली है। इस कृषि की प्रमुख विशेषता यह है कि इस कृषि में क्षेत्र का आकार बहुत बड़ा होता है। इसमें अधिक पूँजी, उन्नत तकनीक व वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। यह एक फसली कृषि है। इसके लिए अधिक श्रम की व विकसित यातायात के साधनों की आवश्यकता होती है। यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले व अनानास आदि फसलों का उपयोग करके रोपण कृषि का विस्तार किया है।

प्रश्न 4.
मिश्रित कृषि की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मिश्रित कृषि जिसमें फसलों को उगाने के साथ-साथ पशुओं को पालने का कार्य भी किया जाता है, उसे मिश्रित कृषि कहा जाता है। इस कृषि में खाद्यान्न फसलों के साथ-साथ चारे और नकदी फसलों को भी उसी पैमाने पर उगाया जाता है। मिश्रित कृषि का अधिक प्रचलन पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेन्टाइना, पश्चिमी यूरोप, दक्षिणी अफ्रीका, न्यूजीलैंड व दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में है। संयुक्त राज्य अमेरिका में मिश्रित कृषि मक्के की पेटी (Maize Belt) में की जाती है। इसके अतिरिक्त मिश्रित कृषि में राई, गेहूँ व घास भी पैदा की जाती है। रूस में मिश्रित खेती में गेहूँ, आलू, चुकंदर, सूरजमुखी जैसी फसलों के साथ-साथ पशु-पालन किया जाता है।

प्रश्न 5.
गहन निर्वाह कृषि का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
गहन निर्वाह कृषि मानसून एशिया के घनी बसी आबादी वाले देशों में की जाती है। यह कृषि दो प्रकार की है-
1. चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि-इस प्रकार की कृषि की मुख्य फसल चावल होती है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों के कारण इसमें जोतों का आकार छोटा होता है और किसान का पूरा परिवार इस काम में लगा होता है। मानवीय श्रम, गोबर की खाद व हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस कृषि में प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।

2. चावल रहित गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया में अनेक भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण धान की फसल हर जगह उगाना संभव नहीं है। इस प्रकार की कृषि में सिंचाई की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 6.
खनन के प्रकारों/विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अयस्कों की प्रकृति के आधार पर खनन के दो प्रकार हैं-

  • धरातलीय खनन
  • भूमिगत खनन।

1. धरातलीय खनन-इसे विवृत खनन भी कहा जाता है। यह खनन का सबसे सस्ता तरीका है क्योंकि इस विधि में सुरक्षा, कम खर्च व उत्पादन शीघ्र और अधिक होता है।

2. भूमिगत खनन-जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत खनन का प्रयोग किया जाता है। यह खनन जोखिम भरा होता है क्योंकि जहरीली गैस, आग और बाढ़ के कार टिना का भय
बना रहता है। खदानों में काम करने वाले श्रमिकों को विशेष प्रकार की लिफ्ट बेधक, वायु संचार प्रणाली और माल ढोने की गाड़ियों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 7.
चलवासी पशुचारण क्षेत्रों के प्रमुख उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चलवासी पशुचारण के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

  1. इसका प्रमुख क्षेत्र उत्तरी अफ्रीका के अटलांटिक तट से सहारा मरुस्थल, अफ्रीका के पूर्वी तटीय भाग, अरब प्रायद्वीप, इराक, ईरान, अफगानिस्तान होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक फैला हुआ है।
  2. दूसरा क्षेत्र यूरेशिया में टुंड्रा के दक्षिणी सीमांत पर स्थित है जो पश्चिम में नार्वे व स्वीडन से होता हुआ रूस के पूर्वी भाग में स्थित कमचटका प्रायद्वीप तक फैला है।
  3. तीसरा क्षेत्र अपेक्षाकृत टा है जो दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका तथा मेडागास्कर के पश्चिमी भाग में फैला हुआ है।

प्रश्न 8.
व्यापारिक पशुचारण क्षेत्रों के प्रमुख उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
व्यापारिक पशुपालन के प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. उत्तरी अमेरिका का प्रेयरी क्षेत्र
  2. दक्षिणी अमेरिका में वेनेजुएला का लानोस क्षेत्र
  3. ब्राज़ील के पठारी भाग से अर्जेंटीना की दक्षिणी सीमा तक का क्षेत्र
  4. दक्षिणी अफ्रीका का वेल्ड क्षेत्र
  5. ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैंड की शीतोष्ण घास भूमि
  6. कैस्पियन सागर के पूर्व में स्थित क्षेत्र
  7. अरब सागर के उत्तर में स्थित क्षेत्र आदि।

प्रश्न 9.
मिश्रित कृषि एवं डेयरी कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मिश्रित कृषि एवं डेयरी कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

मिश्रित कृषि डेयरी कृषि
1. मिश्रित कृषि में फसलों का उत्पादन तथा पशुपालन साथ-साथ किया जाता है। 1. डेयरी कृषि में मुख्य रूप से दुधारु पशुओं को पाला जाता है।
2. इसमें खाद्यान्न के खपत क्षेत्र उत्पादन क्षेत्र से दूर होते हैं। 2. यह व्यवसाय बड़े नगरों तथा औद्योगिक केंद्रों के निकट स्थापित होते हैं।
3. यहाँ पशुओं के लिए चारा कृषि योग्य भूमि के कुछ भाग पर बोया जाता है। 3. यहाँ पशुओं के लिए चारे के लिए कृषि फार्मों तथा चारे की मिलों की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 10.
आदिम जीविकोपार्जी कृषि एवं गहन जीविकोपार्जी कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आदिम जीविकोपार्जी कृषि एवं गहन जीविकोपार्जी कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

आदिम जीविकोपार्जी कृषि गहन जीविकोपार्जी कृषि
1. इस प्रकार की कृषि में उत्पादन बहुत कम होता है। 1. इस प्रकार की कृषि में उत्पादन अधिक होता है।
2. यह कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है। 2. यह कृषि बढ़ती हुई जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है।
3. इसमें फसलों का और खेतों का हेर-फेर नहीं होता। 3. इसमें फसलों का हेर-फेर किया जाता है।
4. इस कृषि में खादों का प्रयोग नहीं किया जाता। 4. इसमें उत्तम बीज, रासायनिक उर्वरकों तथा सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया जाता है।
5. इसमें मुख्य रूप से खाद्य फसलें बोई जाती हैं। 5. इसमें आय की वृद्धि के लिए अधिक मूल्य वाली फसलों को उगाने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

प्रश्न 11.
रोपण कृषि एवं उद्यान कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रोपण कृषि एवं उद्यान कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

रोपण कृषि उद्यान कृषि
1. यह कृषि बड़े-बड़े फार्मों पर की जाती है। 1. इस कृषि में फार्मों का आकार छोटा होता है।
2. इस प्रकार की कृषि की उपजों का अधिकतर भाग निर्यात किया जाता है। 2. इसमें मुख्य रूप से उत्पादित वस्तुएँ स्थानीय बाज़ारों में बिक जाती हैं।
3. रोपण कृषि की मुख्य फसलें रबड़, चाय, कहवा, गन्ना, नारियल, केला हैं। 3. उद्यान कृषि में मुख्य रूप से सब्जियाँ, फल तथा फूल बोए जाते हैं।
4. यह कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है। 4. यह कृषि सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है।
5. इस कृषि में वैज्ञानिक विधियों, मशीनों, उर्वरकों तथा अधिक पूँजी का प्रयोग होता है। 5. इस कृषि में केवल पशुओं की नस्ल सुधार तथा दुग्ध दोहने के यंत्रों का प्रयोग होता है।

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प्रश्न 12.
जीविकोपार्जी कृषि एवं वाणिज्यिक कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीविकोपार्जी कृषि एवं वाणिज्यिक कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

जीविकोपार्जी कृषि वाणिज्यिक कृषि
1. इस कृषि का मुख्य उद्देश्य अपने परिवार का भरण-पोषण करना है। 1. इस कृषि में व्यापार के उद्देश्य से फसलों का उत्पादन किया जाता है।
2. इस कृषि में कृषि फार्म या खेत का आकार छोटा होता है। 2. इसमें खेतों का आकार बड़ा होता है।
3. इस कृषि में मशीनों, कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता। 3. इस कृषि में उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक तथा मशीनों का अधिक प्रयोग किया जाता है।
4. यह कृषि अधिकतर अल्पविकसित और विकासशील देशों में की जाती है। 4. यह कृषि मुख्यतः विकसित देशों में की जाती है।

प्रश्न 13.
व्यापारिक पशुपालन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यापारिक पशुपालन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. चरवाहे स्थाई रूप से पशुपालन करते हैं तथा बड़ी संख्या में पशुओं को रखते हैं।
  2. व्यापारिक पशुपालन का उद्देश्य दूध, घी, मक्खन, पनीर, मांस तथा ऊन का अधिक-से-अधिक उत्पादन करके उसे बाजार में बेचकर अधिक लाभ कमाना है।
  3. कृषक पशुओं के लिए चारा उगाते हैं तथा उन्हें चारे की तलाश में इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता।
  4. पशुओं के लिए पशुशालाएँ तथा स्थायी निवास बनाए जाते हैं।
  5. पशुओं के पीने के लिए स्वच्छ जल की व्यवस्था की जाती है।
  6. व्यापारिक पशुपालन में पशुओं के प्रजनन, नस्ल-सुधार तथा बीमारियों के उपचार की उचित व्यवस्था की जाती है।
  7. पश पदार्थों के विशिष्टीकरण पर बल दिया जाता है।
  8. पशुओं से प्राप्त पदार्थों का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार किया जाता है।

प्रश्न 14.
ऋतु प्रवास (Transhumance) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
ऋतु प्रवास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चलवासी पशुचारण का व्यवसाय चलवासी चरवाहों (Nomadic Pastoral Population) द्वारा किया जाता है। इन लोगों का प्राकृतिक चरागाहों तथा पशुओं दोनों से घनिष्ठ संबंध है। पशुचारण उन क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ पर्याप्त मात्रा में चरागाह (घास के मैदान) तथा पानी की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। जहाँ चरागाहों का अच्छा विकास हुआ है, वहाँ गाय, बैल पाले जाते हैं, जबकि कम घास वाले क्षेत्रों में भेड़, बकरियां पाली जाती हैं। शुष्क तथा अर्द्धशुष्क प्रदेशों में घोड़े, गधे और ऊँट पाले जाते हैं तथा शीत तथा टुंड्रा प्रदेशों में रेडियर मुख्य पशु है। पर्वतीय क्षेत्रों में चलवासी चरागाहों द्वारा यह पशुचारण किया जाता है। शीत ऋतु में ये लोग अपने पशुओं को लेकर घाटियों में आ जाते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ बर्फ पिघल जाती है, अपने पशओं को लेकर चले जाते हैं। कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में इस प्रकार का मौसमी स्थानांतरण होता है। कश्मीर के गज्जर इस प्रकार का पशुपालन करते हैं। इस प्रकार के चलवासी पशुचारण को ऋतु-प्रवास (Transhumance) कहते हैं।

प्रश्न 15.
गहन निर्वाह कृषि से क्या अभिप्राय है? इसके दो मुख्य प्रकारों व विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
गहन निर्वाह कृषि-यह कृषि की वह पद्धति है जिसमें अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रति इकाई भूमि पर पूँजी और श्रम का अधिक मात्रा में निवेश किया जाता है। छोटी-छोटी जोतों और मशीनों के अभाव के कारण यद्यपि प्रति व्यक्ति उपज कम होती है। इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है।
प्रकार-गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं-
1. चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया के उन देशों में जहाँ गर्मी अधिक और वर्षायुक्त लंबा वर्धनकाल पाया जाता है, वहाँ चावल एक महत्त्वपूर्ण फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है और कृषि कार्य में कृषक का पूरा परिवार लगा रहता है। यहाँ के भारत, चीन, जापान, म्याँमार, कोरिया, फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों में चावल की माँग अधिक है। इस कृषि में अधिक वर्षा के कारण सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती।

2. चावल रहित गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच जलवायु, मृदा तथा भौगोलिक दशाएँ चावल की खेती के लिए अनुकूल नहीं हैं । ऐसे ठंडे और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में चावल की फसल उगाना संभव नहीं है। यहाँ चावल की अपेक्षा गेहूँ, सोयाबीन, जौ एवं सोरघम बोया जाता है। इसमें सिंचाई द्वारा कृषि की जाती है।

गहन निर्वाह कृषि की विशेषताएँ-

  • जनसंख्या के अधिक घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है।
  • कृषि की गहनता इतनी अधिक है कि एक वर्ष में तीन या चार फसलें उगाई जाती हैं।
  • अंतर्फसली कृषि यहाँ कृषि की गहनता का एक अन्य उदाहरण प्रस्तुत करती है।
  • इस प्रकार की कृषि में खेत व पशु समूह आत्म-निर्भर होते हैं।

निष्कर्ष-गहन कृषि के क्षेत्रों में रासायनिक खादों, फफूंदी नाशक एवं कीटनाशक दवाओं तथा सिंचाई सुविधाओं का प्रयोग होने से परंपरागत जीविका कृषि से वाणिज्यिक कृषि की कुछ विशेषताएँ विकसित हो गई हैं।

प्रश्न 16.
गेहूँ सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्र में उगाया जाने वाला खाद्यान्न क्यों है?
उत्तर:
गेहूँ एक शीतोष्ण कटिबंधीय तथा संसार की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। गेहूँ की कृषि 25 सें०मी० से 100 सें०मी० वार्षिक वर्षा वाले प्रदेशों में सफलतापूर्वक हो जाती है। विश्व के आधे भू-भाग पर 25 सें०मी० से 100 सें०मी० वर्षा होती है। इसलिए गेहूँ सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्र में उगाया जाता है। दूसरे गेहूँ की अत्यधिक किस्में होने के कारण इसे संसार के किसी न किसी भाग पर बोया या काटा जा रहा होता है।

प्रश्न 17.
वाणिज्यिक कृषि में फसलों का विशिष्टीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वाणिज्यिक कृषि का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादों को बाजार में बेचने के लिए उत्पन्न करना है। इसमें मुख्य रूप से व्यापारिक दृष्टिकोण होता है। इस प्रकार की कृषि में खाद्यान्नों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है। इस प्रकार की कृषि में एक प्रकार की फसल पर अधिक बल दिया जाता है जिससे उत्पाद का निर्यात किया जा सके। इसमें अधिकतर कार्य मशीनों से किए जाते हैं तथा कृषि में आधुनिक तकनीकों को अपनाकर फसलों का विशिष्टीकरण करना आवश्यक होता है जिससे अधिक-से-अधिक उपज उत्पन्न करके अधिक-से-अधिक लाभ कमाया जा सके।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव क्रियाकलापों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव समाज अपने विकास के लंबे दौर में अपनी आवश्यकताओं और अस्तित्व के लिए भौतिक पर्यावरण पर निर्भर रहा है। हिमयुगों के प्रतिकूल वातावरण में आदिमानव गुफाओं में रहने को विवश था। धीरे-धीरे पत्थरों की रगड़ से आदि मानव ने आग का आविष्कार किया। तत्पश्चात जलवायु में परिवर्तन हुए और पाषाण युग में मनुष्य पूर्णतया प्रकृति पर निर्भर रहा। मानव की आवश्यकताएँ सीमित थीं परंतु फिर भी जीवन बड़ा कठिन था। मानव समाज अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए तथा पेट भरने के लिए जंगलों में आखेट करता था। इस युग में मानव ने पत्थरों के हथियार व सामान्य औजार बनाने सीख लिए थे।

बाद में कृषि आधारित समाज का विकास हुआ जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। नदी-घाटियों की उपजाऊ मिट्टी में मानव ने कृषि प्रारंभ की। हल के आविष्कार से घास के मैदानों का खेती के लिए प्रयोग शुरु हुआ। कृषि से उत्पादित पदार्थों पर पशुपालन को प्रोत्साहन मिला। इस प्रकार मानव ने पशुओं से दूध और दुग्ध पदार्थ प्राप्त किए। धीरे-धीरे पशुओं की खाल से वस्त्र तथा जूते आदि बनाने आरंभ किए। इस प्रकार आखेटी मानव अब कृषक बन गया। कृषि की नींव डालने में निम्नलिखित चार घटक महत्त्वपूर्ण थे

  • भोजन बनाने तथा उसे पकाने के लिए आग का आविष्कार
  • फसलों की खेती के लिए हल का आविष्कार
  • पशुपालन अर्थात् पशुओं को घरेलू बनाना
  • स्थायी जीवन के परिणामस्वरूप गाँवों का बसाव।

कृषि क्रांति के साथ सामाजिक परिवर्तन हुए। कृषि ने मानव को सुरक्षा, स्थायित्व और व्यवस्थित जीवन दिया। खेती से काफी मात्रा में खाद्य सामग्री उपलब्ध होने से लोगों को शिल्प विकसित करने के लिए पर्याप्त समय और सुविधा मिली। मानव को सौंदर्यात्मक बोध होने लगा। शिल्पियों ने अपनी बनाई वस्तुओं का भोजन तथा अन्य वस्तुएँ प्राप्त करने के लिए व्यापार किया। व्यापार से नए मार्ग खुले, जनसंख्या बढ़ी। परिणाम यह हुआ कि लोग छोटे-मोटे शिल्प कार्यों तथा विभिन्न वस्तुओं के छोटे स्तर के उत्पादन कार्यों में लग गए। जीवन-यापन की दशा सुधरी और गाँवों का आकार बढ़ने लगा तथा उपजाऊ मैदानों व नदियों के तट पर अनेक बड़े व सुव्यवस्थित नगरों का उदय हुआ।

औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) ईसा से लगभग 10,000 वर्ष पूर्व धातु युग का आरंभ हुआ। इस युग में मानव ने धातुओं का प्रगलन, शोधन तथा उनके यंत्र बनाने की कला सीख ली थी। हाथ से काम करके छोटे पैमाने पर वस्तुओं के उत्पादन के तरीके की समाप्ति और मशीनों के जरिए बड़े पैमाने पर उत्पादन की शुरुआत ही औद्योगिक क्रांति है। 1763 में जेम्स वाट द्वारा भाप के इंजन के आविष्कार ने औद्योगिक क्रांति की आधारशिला रखी। औद्योगिक समाज में उत्पादन और उपभोग में भारी वृद्धि हुई। ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय संसाधनों के इस्तेमाल में भारी बढ़ोतरी हुई। साथ ही प्रदूषण, संसाधनों का लगातार कम होना, जनसंख्या का बढ़ना तथा अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण जैसी समस्याएँ बढ़ती चली गईं। परिणामस्वरूप औद्योगिक ढांचे से लोगों की आस्था डगमगाने लगी।

20वीं शताब्दी के अंत में ज्ञान का प्रचार और प्रसार एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय बनने लगा। फलस्वरूप विश्व में सूचना क्रांति का आगमन हआ। सचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोग ने लोगों को रोजगार और आर्थिक विकास के नए अवसर प्रदान किए।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 2.
कृषि विकास की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण दिशाओं तथा परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृषि विकास की प्रक्रिया में आदिकाल से आधुनिक काल तक अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए। प्राचीन एवं आदिमकालीन कृषि में स्थानांतरी कृषि की जाती थी जो अब भी संसार के कुछ भागों में प्रचलित है। इस प्रकार की कृषि में जंगलों में आग लगाकर उसकी राख को मिट्टी के साथ मिलाकर फसलें बोई जाती हैं। सामान्यतः तीन चार साल तक फसलों का उत्पादन करने के बाद जब इन खेतों की मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है, तब इन खेतों को खाली छोड़ दिया जाता है। स्थानांतरी कृषि ने लोगों को एक स्थान पर अधिक समय के लिए स्थाई रूप से रहने को प्रेरित किया। तत्पश्चात् अनुकूल जलवायु एवं उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्रों में स्थाई कृषि प्रणाली का प्रारंभ हुआ। इसमें किसान एक निश्चित स्थान पर स्थाई रूप से रह कर निश्चित भूमि में कृषि करने लगा।

अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में जन्मी औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप कृषि के मशीनीकरण में वृद्धि हुई। कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। अनेक देशों में फसलं प्रतिरूप बदल गए। कृषि का विशिष्टीकरण किया गया। प्रमुख फसलें; जैसे कपास, गन्ना, चावल, चाय तथा रबड़ इत्यादि को यूरोपीय कारखानों में संशोधित किया गया। तब यूरोप में इन फसलों की मांग तेजी से बढ़ने लगी। इनमें से कुछ फसलों की बड़े पैमाने पर व्यापारिक कृषि प्रारंभ की गई जिसे रोपण कृषि कहते हैं। रोपण कृषि में एक फसल के उत्पादन के लिए बड़े-बड़े बागान बनाए गए जिनका वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन किया गया। इनका मुख्य उद्देश्य व्यापार द्वारा धन अर्जित करना था।

उत्तरी अमेरिका में यंत्रीकरण के प्रभाव से कृषकों को उन वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ाने तथा विशिष्टीकरण के योग्य बनाने पर जोर दिया गया, जिन्हें अधिकतम लाभ के साथ बेचा जा सके। इस प्रकार विशिष्ट व्यापारिक कृषि प्रणाली का उदय हुआ जिससे अनेक फसल प्रदेशों का सीमांकन हुआ; जैसे गेहूं पेटी, कपास पेटी, मक्का पेटी तथा डेयरी कृषि इत्यादि । इसके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं तथा उत्तम बीजों के प्रयोग से फसलों के प्रति एकड़ उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई।

प्रश्न 3.
संसार में फसलों के वितरण प्रतिरूप को भौतिक पर्यावरण कैसे प्रभावित करता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक पर्यावरण फसलों के वितरण प्रतिरूप के लिए कुछ विस्तृत सीमाएँ निर्धारित करता है, जिनके भीतर किसी खास फसल को अच्छे ढंग से उगाया जा सकता है। भौतिक पर्यावरण के वे तत्त्व, जो फसलों के वितरण प्रतिरूप को प्रभावित करते हैं, निम्नलिखित हैं
1. जलवायु (Climate) – किसी निश्चित फसल के क्षेत्र को सीमांकित करने में जलवायु के दो महत्त्वपूर्ण कारक तापमान और वर्षा हैं।
(i) तापमान (Temperature) – यह फसलों के वितरण को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है। उपयुक्त तापमान बीजों को अंकुरण से लेकर फसलों के पकने तक आवश्यक है। तापमान की आवश्यकता के आधार पर फसलों को दो वर्गों में बांटा गया है
(क) उष्ण कटिबंधीय अर्थात् ऊंचे तापमान में उगने वाली फसलें; जैसे चावल, चाय, कहवा, गन्ना इत्यादि। (ख) शीतोष्ण कटिबंधीय अर्थात् निम्न तापमान की दशाओं में उगने वाली फसलें; जैसे गेहूं, जौं, राई इत्यादि।

(ii) वर्षा (Rainfall) – मिट्टी में नमी की मात्रा फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक है। यह नमी वर्षा से प्राप्त होती है। विभिन्न . फसलों के लिए जल की आवश्यकता में अंतर पाया जाता है; जैसे गेहूं की खेती के लिए 75 सें०मी० वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। जबकि चावल की खेती के लिए 125 से 200 सें०मी० वार्षिक वर्षा आवश्यक है। अतः फसलों के लिए जल की एक आदर्श मात्रा की आवश्यकता होती है। जल की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा भी पूरा किया जा सकता है।

गेहूं को 25 सें०मी० वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है क्योंकि सिंचाई द्वारा आवश्यक जलापूर्ति फसल के लिए संभव हो सकती है। . 2. मृदा (Soil)-मिट्टी भूपर्पटी की ऊपरी सतह का आवरण है। चट्टानों के अपक्षय तथा जीव-जंतुओं के अवशेषों से मिट्टी का निर्माण होता है। मिट्टी एक धरातलीय पदार्थ है जिसमें परतें पाई जाती हैं। मिट्टी जैविक तथा अजैविक दोनों पदार्थों के मिश्रण से बनती है।

एच० रॉबिंसन के अनुसार, “मिट्टी से आशय चट्टानों पर बिछी धरातल की सबसे ऊपरी परत से है जो असंगठित या ढीले पदार्थों से निर्मित होती है तथा जिन पर पौधों की वृद्धि हो सकती है।” मिट्टी में बारीक कण, ह्यूमस तथा विभिन्न खनिज पदार्थ मिले होते हैं।

मिट्टी एक प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति पर कृषि तथा विभिन्न फसलों की उत्पादकता आधारित है। मिट्टी की परत के नष्ट होने से इसकी उत्पादकता शक्ति कम हो जाती है जिससे फसलों का उत्पादन कम हो जाता है।

मिट्टी में फसलों के लिए आवश्यक प्रमुख पोषक तत्त्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा सल्फर आदि होते हैं। इसके अतिरिक्त मिट्टी में कुछ गौण पोषक तत्त्व; जैसे जिंक और बोरोन आदि भी पाए जाते हैं। मिट्टी का उपजाऊपन मूल चट्टानों की सरंचना तथा जलवायुवीय तत्त्वों द्वारा निर्धारित होता है। उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में भारी वर्षा के कारण मिट्टी के पोषक तत्त्व बह जाते हैं जबकि शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में मिट्टी के पोषक तत्त्व अधिक पाए जाते हैं। अधिक उपजाऊ और गहरी मिट्टी में उत्पादन अधिक होता है। फलस्वरूप इन क्षेत्रों में सघन जनसंख्या निवास करती है। इसके विपरीत अनुपजाऊ और कम गहरी मिट्टी में कृषि उत्पादन कम होता है तथा जनसंख्या घनत्व और लोगों का जीवन स्तर दोनों निम्न होते हैं।

3. उच्चावच (Relief) – उच्चावच के तीन प्रमुख तत्त्व होते हैं जो कृषि क्रियाओं के प्रतिरूप को प्रभावित करते हैं। ये हैं-

  • ऊंचाई तथा कृषि
  • ढाल और
  • धरातल।

(i) ऊंचाई तथा कृषि (Height and Agriculture) – ऊंचाई बढ़ने पर वायुदाब घटता है तथा तापमान भी कम होता जाता है। ऊंचाई के साथ मिट्टी की परत पतली हो जाती है तथा वह कम उपजाऊ होती है। इसलिए यहाँ कृषि क्रियाएँ सीमित हो जाती हैं।

(ii) ढाल (Slope) – ढाल की दिशा कृषि को अत्यधिक प्रभावित करती है। उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणवर्ती ढाल उत्तरवर्ती ढाल की अपेक्षा अधिक समय तक तेज धूप प्राप्त करते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन का जोखिम बना रहता है।

(ii) धरातल (Surface) – सामान्यतः कृषि क्रियाओं के लिए समतल भूमि को आदर्श माना जाता है। ऊबड़-खाबड़ धरातल पर कृषि क्रियाएँ असुविधाजनक होती हैं। सामान्य ढाल वाला धरातल जल निकासी के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 4.
चावल की फसल के लिए भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। विश्व में इसके वितरण प्रतिरूप का वर्णन करें।
अथवा
विश्व में चावल की फसल के स्थानिक वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चावल विश्व की लगभग आधी जनसंख्या का भोज्य पदार्थ है। यह एशिया महाद्वीप की एक प्रमुख फसल है। एशिया महाद्वीप में चावल प्रमुख खाद्यान्न है। एशिया के बड़े देशों; जैसे चीन, भारत, जापान, म्यांमार, थाइलैंड आदि में चावल एक प्रमुख खाद्यान्न है। इतिहासकार चावल की कृषि का शुभारंभ चीन से मानते हैं। चीन से ही यह भारत तथा अन्य दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों में विकसित हुआ। 15वीं शताब्दी से यूरोपीय देशों में तथा 17वीं शताब्दी से संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका उत्पादन प्रारंभ हुआ। धीरे-धीरे विश्व के अनेक देशों में भी इसका विस्तार हुआ।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) – चावल उष्ण कटिबन्धीय पौधा है जिसके लिए उच्च तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। चावल की फसल के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल होती हैं
1. तापमान (Temperature) – चावल की कृषि के सफल उत्पादन के लिए 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस के मध्य तापमान की आवश्यकता होती है। चावल की फसल के पकते समय तापमान अपेक्षाकृत अधिक होना चाहिए और बोते समय 21° सेल्सियस तापमान पर्याप्त रहता है।

2. वर्षा (Rainfall) – वर्षा चावल के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। चावल की कृषि के लिए 125 सें०मी० से 200 सें०मी० तक वर्षा की आवश्यकता होती है। चावल के पौधे का जब क्यारियों में रोपण करते हैं तो प्रारंभ के एक महीने तक खेत में लगभग 15 सें०मी० पानी भरा होना चाहिए। फसल के पकने से पूर्व खेत को पानी से मुक्त रखा जाना चाहिए। पकते समय तेज धूप तथा स्वच्छ आकाश आवश्यक है। जिन क्षेत्रों में वर्षा की कमी रहती है, वहाँ जल की कमी को सिंचाई द्वारा पूरा किया जाता है।

3. मिट्टी (Soil) – विश्व के अनेक भागों में चावल विभिन्न प्रकार की मिट्टी में पैदा होता है लेकिन इसके लिए जलोढ़ मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। नदियों के डेल्टाओं तथा बाढ़ के मैदानों में इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी में पानी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। लंबे समय तक मिट्टी में नमी रहती है जो चावल की पैदावार के लिए आवश्यक है।

4. श्रम (Labour) – चावल की कृषि में अधिकांश कार्य हाथ से किया जाता है। इसलिए पर्याप्त श्रम की आवश्यकता होती है। चावल को खुरपे की कृषि (Hoe Agriculture) भी कहते हैं। इसमें बीज बोना, उनका प्रतिरोपण करना, निराई-गुड़ाई आदि सभी कार्य हाथ से किए जाते हैं। विगत वर्षों में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने धान के पौधों के प्रतिरोपण के लिए मशीन का आविष्कार किया है लेकिन अभी यह प्रचलन में नहीं है।

चावल बोने की विधियाँ (Methods of Sowing Rice)-विश्व में चावल निम्नलिखित तीन विधियों से बोया जाता है-
1. छिड़ककर या छिड़काव विधि (Broadcasting Method) – यह विधि उन क्षेत्रों में प्रयोग में लाई जाती है, जहाँ सिंचाई के साधनों का अभाव हो। चावल की कृषि वर्षा पर ही निर्भर है। इस विधि में खेत में हाथ से बीज छिड़ककर फिर हल चलाते हैं। इस विधि में पैदावार कम होती है।

2. हल चलाकर (Drilling Method) – इस विधि में एक व्यक्ति हल चलाता है तथा दूसरा व्यक्ति उसके पीछे नाली में बीज डालता जाता है। यह विधि शुष्क प्रदेशों में प्रयुक्त की जाती है। इसमें भी पैदावार अपेक्षाकृत कम होती है।

3. प्रतिरोपण विधि (Transplantation Method) – इस विधि में पहले नर्सरी में पौध तैयार की जाती है। पौध 30 से 40 दिन में तैयार हो जाती है। उसके बाद खेत में पानी डालकर हल चलाया जाता है तथा पौध का रोपण तैयार किए गए खेत में किया जाता है। यह विधि प्रायः अधिक वर्षा या सिंचाई के साधनों की सुलभता वाले प्रदेशों में अपनाई जाती है। दक्षिणी-पूर्वी एशिया में अधिकांशतः यही विधि अपनाई जाती है। इस विधि में प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होती है। पौधों के प्रतिरोपण के बाद लगभग . 20-30 दिन तक खेत में पर्याप्त पानी रहना चाहिए।

चावल का विश्व वितरण (World Distribution of Rice)-विश्व का लगभग 92% चावल दक्षिणी पूर्वी एशिया में उत्पन्न किया जाता है। पिछले कछ वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ब्राजील में भी चावल के उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है। दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों में चीन, भारत, इंडोनेशिया और बांग्लादेश विश्व का लगभग 70% चावल उत्पन्न करते हैं। इन चा थाइलैंड, जापान, वियतनाम, फिलीपींस, कोरिया आदि प्रमुख चावल उत्पादक देश हैं।

1. चीन (China) – चीन चावल का प्रमुख उत्पादक देश है जो विश्व का लगभग 36% चावल उत्पन्न करता है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 17 करोड़ मीट्रिक टन चावल पैदा किया जाता है। चीन में चावल उत्पादन के प्रमुख चार क्षेत्र निम्नलिखित हैं

  • जेच्चान बेसिन
  • ह्यांग-हो घाटी का निचला मैदान
  • सिक्यांग तथा यांग्त्सी बेसिन प्रांत
  • दक्षिणी-पूर्वी तटीय प्रांत।

चीन में नदियों की घाटियों तथा डेल्टाई भागों में चावल की कृषि अधिक विकसित अवस्था में है। दक्षिणी तटीय मैदान में वर्ष में चावल की तीन फसलें पैदा की जाती हैं। इसी कारण दक्षिणी चीन को चावल का कटोरा (Rice Bowl) भी कहते हैं। पिछले कुछ दशकों में चीन में चावल के क्षेत्र में वृद्धि के साथ-साथ प्रति हेक्टेयर उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। चीन में भारत की अपेक्षा चावल के अंतर्गत कम क्षेत्रफल होने के बावजूद भी चावल का उत्पादन भारत से अधिक है।

2. भारत (India) – चीन के बाद भारत दूसरा प्रमुख चावल उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 17% चावल उत्पन्न किया जाता है। भारत में कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 24% भाग पर चावल की खेती की जाती है। भारत में जहाँ वर्षा 150 सें०मी० से अधिक होती है, उन क्षेत्रों में चावल उगाया जाता है। भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादन चीन, जापान तथा अन्य कई देशों से कम है। भारत में चावल के उत्पादन क्षेत्रों को चार वर्गों में रखा जा सकता है

  • पूर्वांचल में असम, मेघालय व मणिपुर राज्य।
  • मध्य गंगा तथा निचला मैदान (पूर्व उत्तर प्रदेश, बिहार तथा बंगाल)।
  • पूर्वी तट (ओडिशा, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटीय मैदान)।
  • पश्चिमी तट (केरल, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के तटीय मैदान)।

3. इंडोनेशिया (Indonesia) – चावल इंडोनेशिया की प्रमुख फसल है। यहाँ देश की कल कृषि योग्य भूमि के 45% भाग पर चावल की कृषि की जाती है। इंडोनेशिया विश्व का लगभग 8% चावल उत्पन्न करने वाला विश्व का तीसरा प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त सुमात्रा, कालिमंटन और सुलावेसी द्वीपों पर भी चावल की कृषि की जाती है। चावल अधिकांशतः तटीय तथा दलदली भू-भागों में पैदा किया जाता है। जावा द्वीप की लावा युक्त मिट्टी तथा संवहनीय वर्षा चावल की पैदावार के लिए विशेषतया अनुकूल है। चावल यहाँ के निवासियों का मुख्य भोजन होने के कारण यह देश अपनी आवश्यकता का पूरा चावल उत्पन्न नहीं कर पाता, इसलिए यह विदेशों से भी चावल आयात करता है।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ 1

4. बांग्लादेश (Bangladesh) – बांग्लादेश विश्व का चौथा प्रमुख चावल उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 5% चावल उत्पन्न होता है। यहाँ लगभग सभी जिलों में चावल की खेती की जाती है लेकिन गंगा ब्रह्मपुत्र का डेल्टाई भाग चावल के उत्पादन में विशेष स्थान रखता है। इस क्षेत्र में चावल तथा जूट दो ही प्रमुख फसलें हैं। गंगा ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई भाग में लगभग 60% भाग पर चावल की कृषि की जाती है। डेल्टाई भाग में वर्ष में चावल की तीन फसलें उगाई जाती हैं।

5. थाइलैंड (Thailand) – थाइलैंड में विश्व का लगभग 4% चावल उत्पन्न किया जाता है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 90% क्षेत्र में चावल की कृषि की जाती है। इस देश में मीकांग नदी की घाटी तथा डेल्टा की घाटी चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। थाइलैंड विश्व के प्रमुख चावल निर्यातक देशों में से एक है। बैंकॉक बंदरगाह द्वारा देश का लगभग 33% चावल निर्यात किया जाता है। इस देश के चावल के प्रमुख ग्राहक बांग्लादेश, इंडोनेशिया, जापान तथा मलेशिया हैं। थाइलैंड में सिंचाई की सुविधाओं का अभाव है। इस कारण अधिकांश चावल की कृषि वर्षा पर आधारित है। इसलिए जहाँ सिंचाई की सुविधा नहीं है, वहाँ प्रति हेक्टेयर पैदावार कम है।

6. जापान (Japan) – चावल जापान की प्रमुख कृषि फसल है। यहाँ के लोगों का मुख्य भोजन चावल ही है। इस देश में विश्व का लगभग 3% चावल उत्पन्न होता है। चावल की कृषि समुद्री तटीय भागों तथा नदियों की घाटियों में की जाती है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 60% क्षेत्र में चावल उत्पन्न होता है लेकिन फिर भी यह अपनी आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाता और इसे चावल विदेशों से आयात करना पड़ता है। जापान में चावल उत्पन्न करने की विधि सर्वोत्तम है। इसलिए विश्व के अन्य चावल उत्पादक देश इस विधि को अपनाते हैं। जापान के अधिकांश चावल उत्पादक क्षेत्र होंशू द्वीप का दक्षिणी भाग, क्यूशू तथा शिकोक द्वीप हैं। जापान में वर्ष में चावल की दो फसलें उगाई जाती हैं।

उपर्युक्त प्रमुख चावल उत्पादक देशों के अतिरिक्त म्याँमार, वियतनाम, कोरिया, ब्राज़ील, फिलीपींस, द्वीप समूह तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी चावल की खेती होती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 5.
गेहूँ के उत्पादन की भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। विश्व में गेहूँ उत्पादन व वितरण की व्याख्या करें।
अथवा
विश्व में गेहूँ की फसल के स्थानिक (Spatial) वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खाद्यान्नों में गेहूँ एक महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी खाद्यान्न है जिसकी कृषि प्राचीनकाल से होती आ रही है। प्रस्तर युग में भी स्विट्जरलैंड की झीलों के आसपास के क्षेत्रों में गेहूँ उगाया जाता था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खोजों से प्रमाणित हो चुका है कि आज से 4000 वर्ष पूर्व भी सिंधु घाटी में गेहूँ उगाया जाता था। गेहूँ एक पौष्टिक खाद्यान्न है जिसमें प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) – गेहूँ उत्तरी गोलार्ध में 30° से 55° उत्तरी अक्षांशों तथा दक्षिणी गोलार्ध में 30° से 40° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उगाया जाता है। गेहूँ शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों की उपज है जो मध्य अक्षांशों में उत्पन्न होती है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल होती हैं-
1. तापमान (Temperature) – गेहूँ को बोते समय 10° सेल्सियस तथा पकते समय 20° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। औसत रूप से गेहूँ के लिए 15° से 20° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। गेहूँ के पकते समय आकाश स्वच्छ (बादलों रहित) होना चाहिए।

2. वर्षा (Rainfall) – गेहूँ शुष्क प्रदेशों की उपज है। इसकी पैदावार के लिए 50 सें०मी० से 75 सें०मी० वर्षा अनुकूल रहती है। 100 सें०मी० से अधिक वर्षा गेहूँ की फसल के लिए हानिकारक होती है।

3. मिट्टी (Soil) – गेहूँ अनेक प्रकार की मिट्टियों में पैदा किया जाता है लेकिन हल्की चिकनी मिट्टी तथा भारी दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी गेहूँ के लिए अधिक उपयोगी रहती हैं। जिस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा अधिक हो, उसमें गेहूँ की पैदावार अच्छी होती है।

4. भूमि तथा श्रम (Land and Labour) – गेहूँ के लिए लगभग समतल भूमि की आवश्यकता है। मशीनी कृषि के लिए समतल तथा बड़े-बड़े फार्मों का होना आवश्यक है। गेहूँ के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि अधिकांश कृषि मशीनों से की जाती है। इसकी कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक की जाती है।

गेहूँ की किस्में (Kinds of Wheat)-विश्व में गेहूँ विभिन्न जलवायु प्रदेशों में बोया जाता है। साइबेरिया से लेकर उष्ण कटिबंधीय जलवायु प्रदेशों तक गेहूँ की कृषि की जाती है। इसलिए गेहूँ को मुख्य रूप से दो वर्गों में रखा जा सकता है
1. शीतकालीन गेहूँ यह गेहूँ शीत ऋतु के आगमन पर बोया जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में काट दिया जाता है। यह उन क्षेत्रों में बोया जाता है जहाँ साधारण शीत ऋतु होती है। विश्व का अधिकांश गेहूँ (लगभग 80%) इसी मौसम में बोया जाता है।

2. बसंतकालीन गेहूँ यह गेहूँ बसंत ऋतु में बोया जाता है तथा शीत ऋतु के आगमन पर काट लिया जाता है। जहाँ कठोर शीत ऋतु होती है, वहाँ इस प्रकार का गेहूँ बोया जाता है। ऊंचे अक्षांशों में जहाँ शीत ऋतु में बर्फ पड़ती है, वहाँ बसंत ऋतु में गेहूँ बोया जाता है।

गेहूँ का विश्व वितरण (World Distribution of Wheat)-गेहूँ की खेती का विस्तार धरातल के बहुत बड़े क्षेत्र पर है। गेहूँ उत्पादक देशों में मुख्य रूप से चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, रूस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि हैं।
1. चीन (China) – चीन विश्व का प्रथम बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है। यह देश विश्व का लगभग 19.6% गेहूँ पैदा करता है। चीन में शीतकालीन तथा बसंतकालीन दोनों प्रकार का गेहूँ पैदा किया जाता है। बसंतकालीन गेहूँ मंचूरिया तथा आंतरिक मंगोलिया में पैदा किया जाता है, जबकि शीतकालीन गेहूँ ह्यांग-हो तथा यांगटीसिक्यांग घाटी में पैदा किया जाता है।

2. भारत (India) – वर्ष 1965 तक भारत का गेहूँ के उत्पादन में विश्व में छठा स्थान था, लेकिन वर्तमान समय में भारत विश्व का दूसरा उत्पादक राष्ट्र है। विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 12% गेहूँ भारत उत्पन्न करता है। भारत में गेहूँ की पैदावार 100 सें०मी० वर्षा तक के क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है। जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सें०मी० से कम है, वहाँ सिंचाई के साधनों के विकास से गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। देश के कुल उत्पादन का लगभग 50% गेहूँ पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में पैदा किया जाता है। उत्तर प्रदेश भारत का गेहूँ उत्पन्न करने वाला सबसे प्रमुख राज्य है जो देश का लगभग एक-तिहाई गेहूँ पैदा करता है।

3. संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) – संयुक्त राज्य अमेरिका में विश्व का लगभग 10.7% गेहूँ उत्पन्न होता है। अमेरिका में दोनों प्रकार का गेहूँ (बसंतकालीन तथा शीतकालीन) बोया जाता है। बसंतकालीन गेहूँ का क्षेत्र उत्तरी डेकोटा से मोंटाना तक है। यहाँ शीत ऋतु में तापमान कम हो जाने के कारण बर्फ पड़ जाती है। इसलिए इस क्षेत्र में शीतकालीन गेहूँ बोना सम्भव नहीं है। दक्षिणी भाग में शीतकालीन गेहूँ की पेटी है जिसका विस्तार कंसास से पूर्वी कोलोरैडो तथा ओक्लाहोमा तक है।

4. कनाडा (Canada) – कनाडा विश्व का प्रमुख गेहूँ उत्पादक देश है। इस देश में अधिकांश बसंतकालीन गेहूँ उगाया जाता है। गेहूँ मुख्य रूप से प्रेयरी प्रदेश में उत्पन्न किया जाता है। देश का वितरण लगभग 75% गेहूँ इसी क्षेत्र में पैदा किया जाता है। बसंतकालीन गेहूँ का क्षेत्र सास्केच्चान, मैनीटोबा तथा अलबर्टा प्रांत में है। इस क्षेत्र में विनिपेग नगर विश्व की सबसे बड़ी गेहूँ की मंडी है। शीतकालीन गेहूँ के क्षेत्र ओंटारियो तथा क्यूबेक राज्यों के दक्षिणी पूर्वी भाग में स्थित हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ 2

5. रूस (Russia) – रूस में गेहूँ की खेती सहकारी पद्धति से की जाती है। यहाँ शीतकालीन तथा बसंतकालीन दोनों प्रकार का गेहूँ दक्षिणी भाग में अधिक उत्पन्न किया जाता है। गेहूँ की पेटी वोल्गा नदी बेसिन से यूराल क्षेत्र तथा साइबेरिया में बेकॉल झील तक फैली हुई है। साइबेरिया में बसंतकालीन गेहूँ पैदा किया जाता है।

रूस के अतिरिक्त गेहूँ पैदा करने वाले यूरोपीय देशों में यूक्रेन, स्पेन, इटली, हंगरी, रोमानिया, यूगोस्लाविया, फ्रांस, डेनमार्क, नीदरलैंड तथा ग्रेट ब्रिटेन आदि हैं। यूक्रेन तथा फ्रांस यूरोपीय देशों में महत्त्वपूर्ण निर्यातक देश हैं। प्रमुख गेहूँ आयातक देशों में इटली, जर्मनी, ब्रिटेन तथा नीदरलैंड आदि हैं।

6. ऑस्ट्रेलिया (Australia)-दक्षिणी गोलार्द्ध में ऑस्ट्रेलिया गेहूँ का महत्त्वपूर्ण उत्पादक देश है। ऑस्ट्रेलिया विश्व का लगभग 3.6% गेहूँ पैदा करता है। गेहूँ ऑस्ट्रेलिया का प्रमुख खाद्यान्न है तथा यह निर्यातक देश भी है। यहाँ गेहूँ का उत्पादन दो क्षेत्रों में होता है-

  • दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में मुर्रे-डार्लिंग का बेसिन
  • दक्षिणी-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया।

प्रश्न 6.
कपास के उत्पादन की भौगोलिक दशाएँ तथा विश्व वितरण का वर्णन करें। अथवा कपास की फसल की भौगोलिक दशा और प्रकार का वर्णन करते हुए विश्व वितरण पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
वस्त्र मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। वस्त्रों के निर्माण में रेशेदार पदार्थों का विशिष्ट योगदान है। रेशेदार पदार्थ विभिन्न प्रकार की वनस्पति तथा जीवों से प्राप्त होते हैं। वनस्पति या कृषिगत फसलों में कपास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सूती कपड़े का निर्माण कपास से ही होता है। सूती कपड़े का प्रचलन विश्व में सबसे अधिक है। कपास एक रेशेदार फूल होता है जो एक झाड़ीनुमा वनस्पति पर लगता है। उस फूल से सूत काता जाता है तथा कपड़े तैयार किए जाते हैं। फूल के अंदर बीज होता है, जिसे बिनौला कहते हैं। यह पशुओं की खली (चारे) के काम आता है तथा दूध में वसा की मात्रा को बढ़ाता है। कपास के पौधे की सूखी लकड़ी ईंधन के रूप में प्रयोग की जाती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) कपास शुष्क मानसूनी जलवायु की उपज है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनकल होती हैं-
1. तापमान (Temperature) – कपास के लिए अधिक तापमान वाले क्षेत्र अनुकूल रहते हैं। यह ग्रीष्म ऋतु में बोया जाता है तथा शीत ऋतु के आगमन पर इसका फूल तैयार हो जाता है। कपास का वर्धनकाल लगभग 6 महीने का होता है। कपास के लिए 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।

2. वर्षा (Rainfall) – 50 सें०मी० से 100 सें०मी० वर्षा वाले क्षेत्र कपास के लिए उपयुक्त रहते हैं। इससे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई से कपास की खेती की जाती है। अंतिम दिनों में मेघ-रहित तथा वर्षा-रहित मौसम आवश्यक है।

3. मिट्टी (Soil) कपास के लिए लावा – युक्त मिट्टी, जिसमें चूने का अंश अधिक मात्रा में हो, अनुकूल रहती है। चीका प्रधान दोमट मिट्टी कपास के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। भारत में लावा-युक्त मिट्टी का क्षेत्र मालवा के पठार में है जिसे कपास की मिट्टी कहते हैं, वहाँ पर्याप्त मात्रा में कपास उत्पन्न होती है। जहाँ मिट्टी में चूने की मात्रा कम हो, वहाँ उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।

कपास की किस्में (Kinds of Cotton) कपास की प्रायः चार किस्में होती हैं जिन्हें लंबाई के अनुसार बाँटा गया है-
1. अधिक लंबे रेशे वाली कपास (Very Long Staple Cotton)-इसके रेशे की लंबाई 5 सें०मी० से अधिक होती है। ऐसी कपास संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी पूर्वी तट, प्यूरिटोरिको तथा पश्चिमी द्वीप समूह के अन्य द्वीपों में बोई जाती है। इसे ‘समुद्र-द्वीपीय कपास’ भी कहते हैं।

2. लंबे रेशे वाली कपास (Long Staple Cotton)-इस प्रकार की कपास का रेशा 3.75 सें०मी० से 5 सें०मी० तक लंबा होता है। इससे उत्तम किस्म का कपड़ा तैयार किया जाता है। ऐसी कपास संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, पेरू तथा चीन में उगाई जाती है।

3. मध्यम रेशे वाली कपास (Medium Staple Cotton)-इस प्रकार की कपास का रेशा 2.5 सें०मी० से 3.75 सें०मी० तक लंबाई वाला होता है। इस प्रकार की कपास मुख्यतः मिस्र में नील घाटी, ब्राज़ील तथा चीन में उगाई जाती है।

4. छोटे रेशे वाली कपास (Small Staple Cotton)-इस प्रकार की कपास का रेशा 2.5 सें०मी० से छोटा होता है। इस प्रकार की कपास मुख्य रूप से भारत, ब्राजील तथा चीन में उगाई जाती है।

कपास का विश्व वितरण (World Distribution of Cotton) – संसार में कपास के क्षेत्र साधारणतया 40° उत्तरी और दक्षिणी अक्षाशों के मध्य फैले हैं। विश्व में कपास के उत्पादन में 19वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के बाद वृद्धि हुई। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, मिस्र, चीन तथा भारत प्रमुख कपास उत्पादक देश हैं।

1. चीन (China) – चीन विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है जो लगभग 21% कपास उत्पन्न करता है। इस देश में कपास की खेती प्राचीनकाल से ही हो रही है लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसके उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। चीन के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र यांग्टीसिक्यांग की निचली घाटी, हांग-हो और उसकी सहायक नदियों की घाटी तथा सिक्यांग का सिंचित क्षेत्र है। चीन की अधिकांश कपास देश में ही खप जाती है क्योंकि यहाँ सूती वस्त्रों की माँग अधिक है।

2. संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) – संयुक्त राज्य अमेरिका में कपास की पेटी का विस्तार 37° उत्तरी अक्षांश लंबाई में 100° पश्चिमी देशांतर तक फैली है जिसको संयुक्त राज्य अमेरिका की कपास की मेखला के नाम से जाना जाता है। इस पेटी के अंतर्गत कैरोलीना, मिसीसीपी, जोर्जिया, अलाबामा, लुसियाना, अर्कनासौस, टैक्सास तथा ओक्लाहामा राज्य सम्मिलित हैं। टैक्सास संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।

3. भारत (India) भारत में लंबे रेशे की कपास का उत्पादन कम होता है। भारत में अधिकांशतः छोटे रेशे की कपास ही उत्पन्न होती है। भारत में विश्व के कुल कपास क्षेत्र का लगभग 20% भाग है लेकिन उत्पादन लगभग 11% है। भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में
भी कपास उत्पन्न की जाती है।

4. ब्राज़ील (Brazil) ब्राज़ील में साओ – पालो मुख्य कपास उत्पादक राज्य है। ब्राज़ील कुछ कपास का निर्यात भी करता है।

5. मिस्र (Egypt) – मिस्र की कपास अपने गुण तथा लंबे रेशे के लिए विश्व-भर में प्रसिद्ध है। यहाँ आसवान बाँध के निर्माण के बाद सिंचाई की सुविधाओं के कारण कपास की खेती का निरंतर विस्तार हुआ है और उत्पादन में वृद्धि हुई है। कपास की खेती का विस्तार दक्षिणी मिस्र में अधिक हुआ है। मिस्र की अर्थव्यवस्था में कपास का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इन प्रमुख उत्पादक देशों के अतिरिक्त पाकिस्तान, टर्की तथा सूडान कपास के उत्पादक देश हैं।
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प्रश्न 7.
गन्ने के उत्पादन की भौगोलिक दशाओं तथा विश्व में इसके वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
गन्ना दक्षिणी एशिया में उगने वाला सेकेरम ऑफिसिनरस (Saccharum Officinarus) नामक वनस्पति का वंशज है। इसका पौधा लगभग 2 मीटर तक लंबा होता है जो बांस के पौधे से मिलता-जुलता है। इस पौधे का मूल स्थान भारत बताया जाता है। इस पौधे की घास जंगली अवस्था में बंगाल की खाड़ी के तट पर उगी हुई मिली। यहीं से यह घास सतलुज गंगा के मैदान तथा दक्षिणी एशिया के देशों में ले जाई गई। पृथ्वी पर पाई जाने वाली कई वनस्पतियों में चीनी का अंश है जिनमें चुकंदर, ताड़, खजूर, नारियल, अंगूर तथा आड़ प्रमुख हैं, लेकिन गन्ना चीनी का सबसे बड़ा स्रोत है जो विश्व की लगभग 65% चीनी तैयार करता है। प्राचीनकाल में गन्ने से गुड़ तथा शक्कर घरों में कोल्हू से रस निकालकर बनाई जाती थी लेकिन अब वैज्ञानिक तरीके से मिलों में चीनी तैयार की जाती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions ofYield) गन्ना उष्णार्द्ध जलवायु का पौधा है, जिसके लिए ऊंचा तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। धरातल पर गन्ने की खेती उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में भूमध्य रेखा से 30° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के मध्य होती है। गन्ने की कृषि के लिए निम्नलिखित दशाएँ अनुकूल होती हैं
1. तापमान (Temperature) – गन्ने की उपज के लिए 20° सेल्सियस से 30° सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में तापमान कम होता है, वहाँ वर्धनकाल अपेक्षाकृत बड़ा होता है। 15° सेल्सियस से कम तापमान वाले प्रदेशों में इसकी वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है।

2. वर्षा (Rainfall) – गन्ने की कृषि के लिए पर्याप्त मात्रा में वर्षा की आवश्यकता होती है। गन्ने के विकास के समय जितनी अधिक वर्षा होगी, गन्ने में उतना ही रस का संचार होगा। गन्ने की कृषि के लिए 75 सें०मी० से 150 सें०मी० वर्षा की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में वर्षा का औसत कम है, वहाँ सिंचाई द्वारा गन्ने की कृषि की जाती है।

3. भूमि तथा मिट्टी (Land and Soil) – गन्ने की कृषि के लिए समतल मैदानी भाग अनुकूल रहते हैं। दोमट मिट्टी, जिसमें चूने का अंश अधिक हो गन्ने के विकास के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी में नाइट्रोजन तथा पर्याप्त नमी धारण करने की क्षमता होनी चाहिए।

4. श्रम एवं यातायात (Labour and Transport) – गन्ने की खेती में अधिकांश कार्य हाथ से किया जाता है। गन्ने की रोपाई करने, निराई-गुड़ाई करने, उसे काटने तथा मिलों तक पहुँचाने का कार्य मानव श्रम द्वारा ही किया जाता है। इसलिए गन्ने की कृषि में सस्ता श्रम आवश्यक है। गन्ना एक भारी वस्तु है जिसकी परिवहन लागत अधिक आती है क्योंकि खेतों से चीनी मिलों तक गन्ना पहुँचाने के लिए सस्ते तथा सुलभ यातायात के साधनों का होना आवश्यक है। गन्ने को काटने के बाद जल्दी-से-जल्दी मिलों में भेजना पड़ता है वरना इसका रस सूख जाता है तथा चीनी की मात्रा कम निकलती है। गन्ने की खेती को अधिकांशतः बहुत-सी बीमारियाँ लग जाती हैं। अतः कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा कीड़ा लगे पौधों को खेतों से बाहर जला देना चाहिए।

गन्ने का विश्व वितरण (World Distribution of Sugarcane) विश्व में गन्ने का अधिकांश उत्पादन तीन देशों-ब्राजील, भारत तथा क्यूबा में होता है। इंडोनेशिया, चीन, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया तथा संयुक्त राज्य अमेरिका भी गन्ने के उत्पादक देश हैं।
1. ब्राज़ील (Brazil) ब्राज़ील विश्व का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। यह देश लगभग एक-चौथाई गन्ना उत्पन्न करता है। गन्ने की कृषि को सरकार द्वारा काफी प्रोत्साहन मिला है। ब्राज़ील में गन्ना उत्पादन निम्नलिखित क्षेत्रों में होता है

  • उत्तरी-पूर्वी तटीय क्षेत्र
  • दक्षिणी मिनास की उच्च भूमि
  • रियो-डी-जेनेरियो का उत्तर-पूर्वी तथा उत्तरी तटीय मैदान
  • साओ-पोलो क्षेत्र।

2. भारत (India) – भारत में संपूर्ण विश्व की अपेक्षा सबसे अधिक क्षेत्रफल पर गन्ना बोया जाता है, लेकिन उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन भारत में बहुत कम है। भारत में गन्ने का उत्पादन दो क्षेत्रों में होता है-(i) उत्तरी क्षेत्र इसमें गन्ने के उत्पादन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है, (ii) दक्षिणी क्षेत्र उत्पादन के दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में तमिलनाडु सबसे प्रमुख राज्य है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक अन्य उत्पादक राज्य हैं।

3. क्यूबा (Cuba) – क्यूबा में गन्ने के बड़े-बड़े फार्म हैं। यह देश विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। क्यूबा की अर्थव्यवस्था में चीनी का बहुत बड़ा योगदान है। क्यूबा में चीनी की लगभग 160 मिलें हैं। क्यूबा वर्ष 1959 से पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका को अधिकांश चीनी का निर्यात करता था, लेकिन अब अधिकांश निर्यात पश्चिमी यूरोपीय देशों; जैसे रूस तथा चीन को किया जाता है। क्यूबा में गन्ने की खेती सभी द्वीपों में की जाती है। क्यूबा में गन्ने की खेती वैज्ञानिक स्तर पर मशीनों द्वारा की जाती है। क्यूबा चीनी का बहुत बड़ा निर्यातक देश है। इसका अधिकांश निर्यात रूस को किया जाता है।
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4. चीन (China) – चीन में विश्व का लगभग 7% गन्ना पैदा किया जाता है। चीन का तटीय क्षेत्र तथा सिक्यांग बेसिन गन्ने के प्रमुख उत्पादक प्रदेश हैं। देश के उत्तरी भागों में अधिक सर्दी के कारण गन्ना नहीं उगाया जाता।

5. संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) – संयुक्त राज्य अमेरिका में गन्ने का उत्पादन मिसीसिपी नदी के डेल्टाई भाग, लुसियाना राज्य तथा हवाई द्वीपों में किया जाता है। यहाँ की कृषि मशीनी कृषि है। यहाँ चुकंदर से भी चीनी तैयार की जाती है।

6. ऑस्ट्रेलिया (Australia) – ऑस्ट्रेलिया में गन्ने का उत्पादन न्यू साउथ वेल्स के तटीय मैदानों में किया जाता है।

7. पाकिस्तान (Pakistan) – पाकिस्तान में गन्ने की अधिकांश कृषि नहरी सिंचाई द्वारा की जाती है। लाहौर, मुल्तान, लायलपुर, सियालकोट, क्वेटा और रावलपिंडी गन्ने के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

प्रश्न 8.
चाय के लिए भौगोलिक दशाएँ तथा विश्व वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
चाय विश्व का प्रमुख पेय पदार्थ है जिसको करोड़ों लोग प्रतिदिन पीते हैं। चाय का प्रयोग बहुत समय से हो रहा है लेकिन पहले इसे औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता था। चाय का प्रयोग सर्वप्रथम चीन में ईसा से छठी शताब्दी में प्रचलित के निवासियों को इसका पता बहुत बाद में लगा। प्राचीनकाल में चीन के व्यापारी यात्रा के दौरान अपनी थकान मिटाने के लिए चाय का प्रयोग करते थे। यूरोप में 17वीं शताब्दी तक चाय एक विलासिता की वस्तु मानी जाती थी क्योंकि इसका मूल्य बहुत अधिक था। सन् 1664 में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों ने चाय के पैकेट भारत से ले जाकर सम्राट चार्ल्स को उपहार के रूप में प्रस्तुत किए। धीरे-धीरे इसकी रोपण कृषि आरंभ हुई और उत्पादन में वृद्धि होने से यह सर्वसुलभ वस्तु बन गई।

चाय में थीन (Thein) नामक तत्त्व है जो हल्का नशा तथा स्फूर्ति देता है। यह एक सदापर्णी झाड़ी है जिसकी पत्तियों को सुखाकर, पीसकर चाय तैयार की जाती है। चाय की कृषि बागानी कृषि है। पहले इसकी पौध तैयार की जाती है। जब पौध 20 सें०मी० ऊंची हो जाती है, तब इसे प्रतिरोपण करके दूर-दूर लगा दिया जाता है। जब पौधा बड़ा हो जाता है तो उसकी कटाई-छंटाई की जाती है। इसको 40-50 सें०मी० से अधिक नहीं बढ़ने दिया जाता है। जितनी अधिक छंटाई की जाएगी, उतनी अधिक चाय की पत्तियाँ आती हैं। चाय की पत्तियों को छाया में या मशीनों द्वारा गर्म हवा देकर सुखाया जाता है। कई देशों में हरी पत्तियों की चाय भी प्रयोग की जाती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) चाय एक उपोष्ण जलवायु का पौधा है जो मानसून प्रदेश में पैदा होता है। इस पौधे के लिए अधिक तापमान तथा वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके लिए. निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल होती हैं
1. तापमान (Temperature)-चाय की कृषि के लिए सामान्यतया 25° से 30° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। चाय की कृषि के लिए वर्षा की अधिकता के साथ-साथ अधिक तापमान अनुकूल रहता है।

2. वर्षा (Rainfall)-चाय के पौधों के लिए 200 सें०मी० से 250 सें०मी० औसत वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। अगर वर्षा बार-बार बौछारों के रूप में होती रहे तो अधिक अनुकूल रहती है। वर्षा का वितरण साल भर समान रूप से होता रहना चाहिए, जिससे चाय की पत्तियाँ निरंतर विकसित होती रहें। चाय के लिए ओस तथा धुंध वाला मौसम अच्छा रहता है। आर्द्रता वाला मौसम चाय की पत्तियों की प्रचुरता के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

3. धरातल (Relief)-चाय के लिए ढलावदार भूमि का होना आवश्यक है क्योंकि चाय आर्द्र जलवायु वाले प्रदेशों में उगती है और यदि पानी खड़ा रहा तो इसके पौधे की जड़ें गल जाती हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है। इसलिए हल्के ढलान वाले पहाड़ी क्षेत्र चाय के लिए उपयुक्त रहते हैं।

4. मिट्टी (Soil) चाय की कृषि के लिए बलवी दोमट मिट्टी, जिसमें ह्यूमस की मात्रा अधिक हो, उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी में पोटाश, फास्फोरस, लोहा आदि तत्त्वों का पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है। नाइट्रोजन तथा पोटैशियम युक्त उर्वरकों के प्रयोग से चाय का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

5. श्रम एवं पूँजी (Labour and Money)-चाय की कृषि में श्रम का महत्त्वपूर्ण योगदान है क्योंकि चाय के पौधों का प्रतिरोपण, उसकी कटाई-छंटाई, निराई तथा पत्तियों को चुनने के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रमिकों की आवश्यकता होती है। स्त्रियों तथा बच्चों द्वारा चाय की पत्तियों को चुनने में अत्यधिक मदद मिलती है। पत्तियों को चुनने के बाद मशीनों से पत्तियों को सुखाया तथा पीसा जाता है। चाय की कृषि के लिए अधिक पूँजी तथा परिवहन की उचित व्यवस्था आवश्यक है।

चाय का विश्व वितरण (World Distribution of Tea)-जलवायु की अनुकूलता की दृष्टि से चाय सामान्यतया उत्तरी गोलार्द्ध में 45° अक्षांश तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 30° अक्षांशों के मध्य उगाई जाती है। चाय आज भी दक्षिणी पूर्वी एशिया की महत्त्वपूर्ण उपज है जबकि ब्रिटेन इसका सबसे बड़ा उपभोक्ता है। चाय के प्रमुख उत्पादक देशों में भारत, चीन, श्रीलंका, जापान, रूस तथा इंडोनेशिया हैं। इनके अतिरिक्त केन्या तथा टर्की में भी चाय उत्पन्न की जाती है।
1. भारत (India)-विश्व में चाय के उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है। भारत देश में लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि पर चाय की कृषि की जाती है। संसार की लगभग 26% चाय अकेला भारत उत्पन्न करता है। भारत में चाय के बागान उत्तर:पूर्व में हिमालय के पर्वतीय ढलानों तथा दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों में पाए जाते हैं। भारत का उत्तर:पूर्वी क्षेत्र, जिसमें असम राज्य अग्रणी है, चाय का प्रमुख उत्पादक राज्य है। असम के ब्रह्मपुत्र तथा सुरमा नदियों की घाटी चाय के उत्पादन के लिए विश्वविख्यात है। असम के अतिरिक्त पश्चिमी बंगाल में दार्जिलिंग तथा जलपाईगुडी चाय के विशिष्ट उत्पादक क्षेत्र हैं। दार्जिलिंग की चाय अपने रंग तथा स्वाद के लिए विश्वविख्यात है। उत्तर:पश्चिम में हिमाचल प्रदेश तथा देहरादून और दक्षिणी भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों में भी चाय के बागान हैं।

2. चीन (China) – चीन चाय का दूसरा महत्त्वपूर्ण उत्पादक देश है। यहाँ विश्व की लगभग 25% चाय उत्पन्न की जाती है। यहाँ चाय के प्रमुख तीन क्षेत्र हैं-(i) पूर्वी तटीय क्षेत्र, (ii) यांग्टीसिक्यांग की घाटी, (iii) जेच्वान बेसिन। यहाँ चाय का उत्पादन निजी ‘क्षेत्र तथा छोटे-छोटे बागानों में किया जाता है। चीन में अधिकांश उत्पादन घरेलू कार्यों के लिए ही होता है।

3. श्रीलंका (Sri Lanka) – श्रीलंका विश्व की लगभग 10% चाय उत्पन्न करता है। श्रीलंका के मध्यवर्ती पर्वतीय ढलानों पर केंडी के दक्षिण की ओर चाय के बागान हैं। श्रीलंका चाय का प्रमुख निर्यातक देश है। पिछले कुछ वर्षों से तमिल समस्या और आतंकवाद के कारण चाय के उत्पादन में कुछ कमी आई है।

इन प्रमुख देशों के अतिरिक्त इंडोनेशिया, जापान, रूस, टर्की, केन्या, युगांडा तथा मोजांबिक में भी चाय की कृषि की जाती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 9.
रबड़ की फसल के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं व विश्व वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रबड़ भूमध्य-रेखीय वनों में उगने वाला पेड़ है, जिसका दूध या रस चिपचिपा होता है, जिसे लैटेक्स (Latex) कहते हैं। सबसे पहले रबड़ का प्रयोग पेन्सिल के निशान को मिटाने (Rub) के लिए किया गया था। इसलिए इसका ना का वृक्ष सर्वप्रथम दक्षिणी अमेरिका के अमेजन बेसिन में खोजा गया। रबड़ का वृक्ष बहुत लम्बा होता है है। जब यह वृक्ष छह-सात साल का हो जाता है तब इसके तनों पर चाकू से V आकार का खाँचा लगाकर नीचे गमला लटकाकर दूध या रस प्राप्त किया जाता है।

बीसवीं शताब्दी में रबड़ की माँग बढ़ने से इसके बागानों का विस्तार हुआ। रबड़ में लोच, जल-प्रतिरोधी तथा विद्युत का कुचालक जैसे विशेष गुण होने से इसका प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वाहनों के टायरों (साइकिल से लेकर वायुयान तक), विद्युत के सामान में तथा अन्य अनेक वस्तुओं के निर्माण में इसका प्रयोग किया जाता है। वर्तमान समय में कृत्रिम रबड़ का प्रयोग भी अत्यधिक बढ़ रहा है क्योंकि प्राकृतिक रबड़ से आवश्यकताओं की पूर्ति सम्भव नहीं रही। इस समय विश्व में लगभग 60% रबड़ की पूर्ति कृत्रिम रबड़ से होती है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (GeographicalConditions of Yield) रबड़ ऊष्णार्द्ध प्रदेशों का पौधा है, जिसके लिए साल भर ऊँचा तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसलिए इसकी खेती भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्रों में, जहाँ सारा साल सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं तथा प्रत्येक दिन वर्षा होती है, वहाँ सफलतापूर्वक की जाती है।
1. तापमान (Temperature) रबड़ की कृषि के लिए 21° से 30° सेल्सियस औसत तापमान की आवश्यकता होती है। किसी भी माह का तापमान 18° सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए।

2. वर्षा (Rainfall) रबड़ की कृषि के लिए 200 सें०मी० से 250 सें०मी० औसत वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा वर्ष-भर निश्चित अन्तराल पर होनी आवश्यक है। भूमध्य रेखीय प्रदेशों में पर्याप्त वर्षा के कारण रबड़ एक सदाबहारी वनस्पति है, जो वर्ष-भर हरा-भरा रहता है। रबड़ के विकास के लिए भूमि में जल के निकास की पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए। सामान्य ढाल वाले मैदानी भाग इसके लिए उपयुक्त रहते हैं।

3. मिट्टी (Soil)-जलोढ़ मिट्टी रबड़ की कृषि के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। लावा-निर्मित काली मिट्टी भी इसकी कृषि के लिए उपयुक्त रहती है।

4. श्रम (Labour)-रबड़ के बागान लगाने, उनकी देखभाल करने, दूध एकत्रित करने तथा उसे कारखानों तक पहुँचाने के लिए पर्याप्त एवं सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
रबड़ का विश्व वितरण (World Distribution of Rubber)-संसार में उत्पन्न होने वाले प्राकृतिक रबड़ का लगभग 90% दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों, जिनमें मलेशिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड, भारत तथा श्रीलंका सम्मिलित हैं, में मिलता है।
1. मलेशिया (Malasia) मलाया प्रायद्वीप का दक्षिण पश्चिमी तथा दक्षिणी भाग रबड़ के बागानों के लिए प्रसिद्ध है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि के दो-तिहाई भाग पर रबड़ के बागान लगे हैं। इस देश में विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 50% रबड़ उत्पन्न होता है। यहाँ के रबड़ के बागानों में मलय, चीनी तथा तमिल लोग कार्य करते हैं।

2. इंडोनेशिया (Indonesia)-इंडोनेशिया विश्व का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है, जो विश्व का लगभग एक-चौथाई (24%) रबड़ उत्पन्न करता है। यहाँ पर रबड़ के तीन क्षेत्र हैं

जावा द्वीप का दक्षिणी तथा पश्चिमी तट
सुमात्रा का मध्य भाग,
बोर्नियो तथा सेलीबीज आदि द्वीपों के विषुवत् रेखा पर स्थित होने के कारण वर्षभर ऊँचा तापमान तथा अधिक वर्षा के कारण रबड़ की कृषि सफलतापूर्वक होती है।

3. थाइलैंड (Thailand)-थाइलैंड विश्व का तीसरा उत्पादक देश है तथा कुल उत्पादन में थाइलैंड की भागीदारी लगभग 15% है। रबड़ के उत्पादन में अधिकतर भाग देश के प्रायद्वीपीय भाग में है, जहाँ पर मुख्य रूप से चीनी वंश के छोटे कृषक रबड़ का उत्पादन करते हैं।

4. भारत (India) भारत विश्व का लगभग 4% रबड़ उत्पन्न करता है। भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में रबड़ की कृषि की जाती है।

5. श्रीलंका (Sri Lanka)-श्रीलंका में दक्षिणी-पश्चिमी तटों तथा मध्यवर्ती उच्च भूमि के वर्षानुमुखी ढाल रबड़ की कृषि के लिए अनुकूल हैं तथा श्रीलंका का अधिकांश रबड़ इसी भाग में उत्पन्न होता है।
अन्य रबड़ उत्पादक देशों में नाइजीरिया, वियतनाम, साइबेरिया तथा ब्राज़ील आदि हैं।

प्रश्न 10.
कहवा के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं तथा विश्व वितरण का विवरण दीजिए।
उत्तर:
कहवा भी चाय की तरह एक पेय पदार्थ है। यह एक झाड़ीनुमा पेड़ के फलों से प्राप्त बीज का चूर्ण बनाकर तैयार किया जाता है। इसमें ‘बैफिन’ नामक नशीला पदार्थ होता है जिसके पीने से थकान दूर होती है तथा स्फूर्ति आती है। अरब के मोचा क्षेत्र से यह 11वीं शताब्दी में दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में लाया गया। कहवे का पौधा तीन वर्ष बाद फल देता है तथा 25-30 वर्षों तक फल देता रहता है।

कहवा दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका में इथोपिया के पठारी प्रदेश में जंगली अवस्था में उगा पाया गया। वहाँ इसका नाम ‘काफा’ था। अरब सौदागरों द्वारा 11वीं शताब्दी में इसे यहाँ लाया गया तथा दक्षिणी अमेरिका तथा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में उगाया गया। यह एक सदाबहारी वृक्ष है जो 3-4 मीटर तक ऊँचा होता है।

उपज की भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions of Yield) कहवे की उपज के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल होती हैं-
1. तापमान (Temperature)-कहवा उष्ण कटिबन्धीय पौधा है जिसके लिए ऊँचा तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। कहवे की उपज के लिए 20° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तक तापमान उपयुक्त होता है तथा पाला हानिकारक होता है। अधिक धूप एवं पाले से बचाने के लिए कहवे का पौधा बड़े-बड़े वृक्षों के नीचे लगाया जाता है जिससे उसे छाया मिलती रहे। सबसे ठंडे माह का तापमान 11° सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए।

2. वर्षा (Rainfall) कहवे के पौधे के लिए 100 सें०मी० से 200 सें०मी० वर्षा की आवश्यकता पड़ती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई करके इसकी कृषि की जाती है। शुष्क मौसम तथा अति-वृष्टि दोनों ही कहवे की खेती के लिए हानिकारक हैं। वृक्षों पर फल आते समय कम वर्षा की आवश्यकता होती है, क्योंकि अधिक वर्षा से फल गिर जाता है।

3. भूमि एवं मिट्टी (Land and Soil)-कहवे की कृषि के लिए चाय की तरह ढलवां भूमि की आवश्यकता होती है क्योंकि पानी इसकी जड़ों में रुकने से नुकसान पहुंचाता है। इसलिए कहवा पहाड़ी ढलानों या पठारी भागों में लगाया जाता है। कहवे की खेती के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी में लोहे का अंश तथा चूने की मात्रा अधिक होनी चाहिए। मिट्टी की गहराई पर्याप्त होनी चाहिए जिससे इसकी जड़ें गहराई तक प्रवेश कर सकें।

4. अधिक श्रम (More Labour)-चाय की भाँति कहवे की कृषि के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होती है क्योंकि कहवे की पौध लगाने व बीज एकत्रित करने तथा उन्हें सुखाने के लिए निपुण श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

कहवा का विश्व वितरण (World Distribution of Coffee) विश्व में कहवा उत्पन्न करने वाले देशों में ब्राज़ील, कोलंबिया, इक्वेडोर, वेनेजुएला, गुयाना, ग्वाटेमाला, एल्व-सल्वाडोर, मैक्सिको, क्यूबा हैरी, जमैका, अंगोला, आइवरी कोस्ट, युगांडा, इथोपिया, कैमरून, मालागैसी, भारत, इंडोनेशिया तथा श्रीलंका हैं।

1. ब्राज़ील (Brazil) ब्राज़ील विश्व का सबसे बड़ा कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 20% कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ कहवे की कृषि के लिए सभी भौगोलिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। ब्राज़ील में रियो-डि-जनेरो के पृष्ठ-प्रदेश में इसे पैदा करने की आदर्श दशाएँ मिलती हैं। यहाँ बड़े-बड़े बागानों को फैजेंडा कहते हैं। कहवा उत्पादक राज्यों में साओ-पालो तथा मिनास गेरास प्रमुख हैं। यहाँ के ढलावदार पठारी भागों में बड़े-बड़े बागान लगाए गए हैं। यहाँ कहवा के लिए रस्सी मार्ग द्वारा परिवहन की व्यवस्था की गई है।

2. कोलंबिया (Columbia) यह देश विश्व का लगभग 10% कहवा उत्पन्न करता है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 7 लाख टन कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ का उत्पादक क्षेत्र कोलंबिया की राजधानी बोगोटा के पश्चिम में फैला हुआ है। दूसरा उत्पादक क्षेत्र एंटीकुआ है। कोलंबिया के कहवा का रंग तथा स्वाद में अच्छा होने के कारण विश्व बाजार में इसकी माँग अधिक है।

3. मैक्सिको (Maxico) मैक्सिको विश्व का तीसरा कहवा उत्पादक देश है। यहाँ लगभग 5% कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ का कहवा उत्पादक क्षेत्र प्रशांत महासागर के तटवर्ती भाग की ढालनों से मध्यवर्ती उच्च भूमि तक फैला हुआ है।

4. मध्य अमेरिकी तथा कैरेबियन द्वीप (Mid-American and Caribean Continent) इस क्षेत्र के उत्पादक देश ग्वाटेमाला एल-सल्वाडोर, हैरी, जमैका, क्यूबा, पोर्टोरीको तथा त्रिनिदाद हैं।

5. अफ्रीका के मुख्य उत्पादक देश (Major Productive Countries of Africa)-इस क्षेत्र के उत्पादक देश आइबरी कोस्ट, युगांडा, अंगोला, केन्या, केमरुन तथा तंजानिया हैं।

6. दक्षिण-पूर्वी एशिया (South-East Asia) इस क्षेत्र के उत्पादक देश श्रीलंका, जावा, सुमात्रा, भारत में कर्नाटक एवं तमिलनाडु हैं।

प्रश्न 11.
कृषि को परिभाषित कीजिए। विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की कृषि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृषि का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Agriculture) कृषि (Agriculture) शब्द अंग्रेजी के Ager + Culture, दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘Ager’ का अर्थ है-मिट्टी या खेत और ‘Culture’ का अर्थ है-देखभाल या जोतना अर्थात् मिट्टी को जोतना तथा उसमें फसलें उगाना कृषि है, लेकिन यह इसका संकुचित अर्थ है। विस्तृत अर्थ में कृषि के अंतर्गत फसलें उगाना, पशुपालन, फलों की खेती करना आदि सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं। दूसरे शब्दों में, कृषि वह कला तथा विज्ञान है, जिसमें मनुष्य भूमि से भोज्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए उसका उपयोग करता है। प्रो० जिम्मरमैन के अनुसार, “कृषि में वे मानवीय प्रयास सम्मिलित हैं, जिनके द्वारा मानव भूमि पर निवास करता है तथा यदि सम्भव हुआ तो पौधों तथा पशुओं की प्राकृतिक रूप से हो रही वृद्धि को नियन्त्रित करता है, जिससे इन उत्पादों और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।”

विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की कृषि (Different Types of Agriculture Found in World) विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाएँ कृषि कार्य को प्रभावित करती हैं एवं इसी प्रभाव के कारण विभिन्न प्रकार की कृषि देखी जाती हैं। विश्व में निम्नलिखित प्रकार की कृषि पाई जाती हैं
1. निर्वाह कृषि (Subsistence Agriculture) इस प्रकार की कृषि में कृषि क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय उत्पादों का संपूर्ण अथवा लगभग का उपयोग करते हैं। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है
(1) आदिकालीन निर्वाह कृषि (Primitive Subsistence Agriculture)-आदिकालीन निर्वाह कृषि उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में की जाती है जहाँ आदिम जाति के लोग कृषि करते हैं। इसका क्षेत्र अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्ण कटिबन्धीय भाग एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया है। इन क्षेत्रों की वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इस प्रकार यह कृषि कर्तन एवं दहन कृषि भी कहलाती है। कुछ समय पश्चात् जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है तो वे नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करते हैं।

(2) गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistence Agriculture) इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है। यह भी दो प्रकार की है
(i) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistence Agriculture with Rice)-इसमें चावल प्रमुख फसल है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है और कृषि कार्य में कृषक का पूरा परिवार लगा रहता है। इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम है।

(ii) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistence Agriculture without Rice)-मानसून एशिया के अनेक भागों में भौगोलिक दशाओं में भिन्नता के कारण धान की फसल उगाना प्रायः संभव नहीं है। इसमें सिंचाई द्वारा कृषि की जाती है।

2. रोपण कृषि (Plantation Agriculture) रोपण कृषि में कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है। इसमें अधिक पूँजी निवेश, उच्च प्रबंध एवं तकनीकी और वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। यह एक फसली कृषि है। यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अनानास आदि फसलों का उपयोग करके रोपण कृषि का विस्तार किया है।

3. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि (Extensive Commercial Grain Cultivation) मध्य अक्षांशों के आंतरिक अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इसकी मुख्य फसल गेहूँ है। इसके अलावा मक्का, जौ, राई, जई भी बोई जाती है। इस कृषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है और सभी कार्य यंत्रों द्वारा संपन्न किए जाते हैं। इसमें प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है और प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है।

4. मिश्रित कृषि (Mixed Farming)-इस प्रकार की कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है। उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग, यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण अक्षांश वाले भागों में इसका विस्तार है। इसमें फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को समान महत्त्व दिया जाता है।

5. डेयरी कृषि (Dairy Farming)-डेयरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है क्योंकि ये क्षेत्र दूध एवं अन्य डेयरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं। पशुओं के उन्नत पालन-पोषण के लिए पूँजी की भी अधिक आवश्यकता होती है। वाणिज्य डेयरी के मुख्य क्षेत्र उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, कनाडा, दक्षिणी-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड हैं।

6. भूमध्य-सागरीय कृषि (Meditterranean Agriculture)- यह अति-विशिष्ट प्रकार की कृषि है। इसका विस्तार भूमध्य-सागर के समीपवर्ती क्षेत्रों में है। अंगूर की कृषि भूमध्य-सागरीय क्षेत्र की विशेषता है। खट्टे फलों की आपूर्ति करने में यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।

7. सहकारी कृषि (Co-operative Farming)-जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य संपन्न करे, उसे सहकारी कृषि कहते हैं। सहकारी संस्था कृषकों को सभी प्रकार से सहायता उपलब्ध कराती है। इस प्रकार की कृषि का उपयोग डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली जैसे देशों में सफलतापूर्वक किया जाता है।

8. सामूहिक कृषि (Collective Farming) इस प्रकार की कृषि में उत्पादन के साधनों का स्वामित्व संपूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारंभ हुआ था। इस प्रकार की सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में कालेखहोज का नाम दिया गया। सभी कृषक अपने संसाधन; जैसे भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं। सरकार उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती है और उत्पादन को सरकार ही निर्धारित मूल्य पर खरीदती है।

9. ट्रक कृषि (Truck Farming)-जिन प्रदेशों में कृषक केवल सब्जियाँ पैदा करता है। वहाँ इसे ट्रक कृषि का नाम दिया जाता है। ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य की दूरी, जो एक ट्रक रात-भर में तय करता है उसी आधार पर इसे ट्रक कृषि कहा जाता है।

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HBSE 12th Class Geography Important Questions: Fundamentals of Human Geography

  • Chapter 1 Human Geography : Nature and Scope Important Questions
  • Chapter 2 The World Population : Distribution, Density and Growth Important Questions
  • Chapter 3 Population Composition Important Questions
  • Chapter 4 Human Development Important Questions
  • Chapter 5 Primary Activities Important Questions
  • Chapter 6 Secondary Activities Important Questions
  • Chapter 7 Tertiary and Quaternary Activities Important Questions
  • Chapter 8 Transport and Communication Important Questions
  • Chapter 9 International Trade Important Questions
  • Chapter 10 Human Settlements Important Questions

HBSE 12th Class Geography Important Questions: India : People and Economy

  • Chapter 1 Population : Distribution, Density, Growth and Composition Important Questions
  • Chapter 2 Migration : Types, Causes and Consequences Important Questions
  • Chapter 3 Human Development Important Questions
  • Chapter 4 Human Settlements Important Questions
  • Chapter 5 Land Resources and Agriculture Important Questions
  • Chapter 6 Water Resources Important Questions
  • Chapter 7 Mineral and Energy Resources Important Questions
  • Chapter 8 Manufacturing Industries Important Questions
  • Chapter 9 Planning and Sustainable Development in Indian Context Important Questions
  • Chapter 10 Transport and Communication Important Questions
  • Chapter 11 International Trade Important Questions
  • Chapter 12 Geographical Perspective on Selected Issues and Problems Important Questions
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HBSE 12th Class Geography Part 2 India: People and Economy (भारत : लोग और अर्थव्यवस्था भाग-2)

HBSE 12th Class Geography Part 3 Practical Work in Geography (भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य भाग-3)

HBSE 12th Class Geography Solutions in English Medium

HBSE 12th Class Geography Part 1 Fundamentals of Human Geography

  • Chapter 1 Human Geography : Nature and Scope
  • Chapter 2 The World Population : Distribution, Density and Growth
  • Chapter 3 Population Composition
  • Chapter 4 Human Development
  • Chapter 5 Primary Activities
  • Chapter 6 Secondary Activities
  • Chapter 7 Tertiary and Quaternary Activities
  • Chapter 8 Transport and Communication
  • Chapter 9 International Trade
  • Chapter 10 Human Settlements

HBSE 12th Class Geography Part 2 India : People and Economy

  • Chapter 1 Population : Distribution, Density, Growth and Composition
  • Chapter 2 Migration : Types, Causes and Consequences
  • Chapter 3 Human Development
  • Chapter 4 Human Settlements
  • Chapter 5 Land Resources and Agriculture
  • Chapter 6 Water Resources
  • Chapter 7 Mineral and Energy Resources
  • Chapter 8 Manufacturing Industries
  • Chapter 9 Planning and Sustainable Development in Indian Context
  • Chapter 10 Transport and Communication
  • Chapter 11 International Trade
  • Chapter 12 Geographical Perspective on Selected Issues and Problems

HBSE 12th Class Geography Part 3 Practical Work in Geography

  • Chapter 1 Data – Its Source and Compilation
  • Chapter 2 Data Processing
  • Chapter 3 Graphical Representation of Data
  • Chapter 4 Use of Computer in Data Processing and Mapping
  • Chapter 5 Field Surveys
  • Chapter 6 Spatial Information Technology

HBSE 12th Class Economics Solutions Haryana Board

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HBSE 12th Class Economics Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Economics Part 1 Microeconomics (व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय (भाग-1))

HBSE 12th Class Economics Part 2 Macroeconomics (समष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय (भाग-2))

HBSE 12th Class Economics Solutions in English Medium

HBSE 12th Class Economics Part 1 Microeconomics

  • Chapter 1 Micro Economics: An Introduction
  • Chapter 2 Theory of Consumer Behaviour
  • Chapter 3 Production and Costs
  • Chapter 4 Theory of the Firm Under Perfect Competition
  • Chapter 5 Market Equilibrium
  • Chapter 6 Non-Competitive Markets

HBSE 12th Class Economics Part 2 Macroeconomics

  • Chapter 1 Macro Economics: An Introduction
  • Chapter 2 National Income Accounting
  • Chapter 3 Money and Banking
  • Chapter 4 Determination of Income and Employment
  • Chapter 5 Government Budget and The Economy
  • Chapter 6 Open Economy: Macro Economics

HBSE 12th Class Economics Question Paper Design

Class: 12th
Subject: Economics
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 80
Time: 3 Hours

1. Weightage to Objectives:

Objective K U A S Total
Percentage of Marks 50 40 5 5 100
Marks 40 32 4 4 80

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of Questions E SA VSA O/Map Total
No. of Questions 3 8 7 1 19
Marks Allotted 18 32 14 16 80
Estimated Time 47 70 39 24 180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-Units Marks
1. विषय प्रवेश (व्यष्टि अर्थशास्त्र भाग-1) 4
2. उपभोक्ता का व्यवहार और मांगें 10
3. उत्पादक का व्यवहार और आपूर्ति 6
4. बाजार संरचना के विभिन्न प्रतिमान और कीमत निर्धारण 10
5. प्रतिस्पर्धा रहित बाजार 10
6. विषय प्रवेश (समष्टि अर्थशास्त्र भाग-2) 4
7. राष्ट्रीय आय और संबंधित समुच्चय 10
8. आय और रोजगार का निर्धारण 5
9. मुद्रा और बैंक व्यवस्था 8
10. सरकारी बजट और अर्थव्यवस्था 7
11. भुगतान शेष 6
Total 80

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long Answer Question i.e. Essay Type in two questions.

6. Difficulty Level:
Difficult: 10% Marks
Average: 50% Marks
Easy: 40% Marks

Abbreviations: K (Knowledge), U (Understanding), A (Application), S (Skill), E (Essay Type), SA (Short Answer Type), VSA (Very Short Answer Type), O (Objective Type)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. एकाधिकार में-
(A) वस्तु के कई निकट स्थानापन्न होते हैं
(B) वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता
(C) वस्तु विभेद पाया जाता है
(D) कीमत विभेद नहीं होता
उत्तर:
(B) वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता

2. एकाधिकारी फर्म को अल्पकाल संतुलन में-
(A) न्यूनतम हानि हो सकती है
(B) असामान्य लाभ हो सकते हैं
(C) सामान्य लाभ हो सकते हैं ।
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

3. दीर्घकाल में एकाधिकार फर्म को-
(A) हानि होती है
(B) असामान्य लाभ मिलते हैं
(C) सामान्य लाभ मिलते हैं
(D) पूर्ण प्रतिस्पर्धा की तुलना में कम हानि होती है
उत्तर:
(B) असामान्य लाभ मिलते हैं

4. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की अवस्था में फर्म को अल्पकाल में संतुलन की स्थिति में-
(A) अधिकतम लाभ प्राप्त होते हैं
(B) न्यूनतम हानि होती है
(C) सामान्य लाभ प्राप्त होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल में फर्म को संतुलन की अवस्था में केवल-
(A) सामान्य लाभ प्राप्त होते हैं
(B) असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं
(C) न्यूनतम हानि प्राप्त होती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) सामान्य लाभ प्राप्त होते हैं

6. एकाधिकार में कीमत-
(A) सीमांत लागत से अधिक होती है
(B) सीमांत लागत के बराबर होती है
(C) सीमांत लागत से कम होती है
(D) सीमांत लागत से कम या अधिक होती रहती है
उत्तर:
(A) सीमांत लागत से अधिक होती है

7. एकाधिकार में किस समय अवधि में फर्म को केवल असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं?
(A) अति अल्पकाल में
(B) अल्पकाल में
(C) दीर्घकाल में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दीर्घकाल में

8. एकाधिकार के अंतर्गत फर्म के माँग वक्र का स्वरूप क्या है?
(A) पूर्ण लोचदार
(B) पूर्ण बेलोचदार
(C) कम लोचदार
(D) अधिक लोचदार
उत्तर:
(C) कम लोचदार

9. एकाधिकारी प्रतियोगिता में किस समय-अवधि में फर्म को केवल असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं?
(A) अल्पकाल में
(B) अति-अल्पकाल में
(C) दीर्घकाल में
(D) अति-दीर्घकाल में
उत्तर:
(A) अल्पकाल में

10. निम्नलिखित में से एकाधिकारी बाज़ार की विशेषता नहीं है
(A) फर्मों के प्रवेश व निकासी की स्वतंत्रता
(B) निकटतम स्थानापन्न का अभाव
(C) एक विक्रेता
(D) कीमत विभेद की संभावना
उत्तर:
(A) फर्मों के प्रवेश व निकासी की स्वतंत्रता

11. वस्तु विभेद किस बाज़ार की प्रमुख विशेषता है?
(A) एकाधिकार की
(B) पूर्ण प्रतिस्पर्धा की
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

12. गैर-कीमत प्रतियोगिता सर्वाधिक पाई जाती है
(A) एकाधिकार में
(B) पूर्ण प्रतिस्पर्धा में
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में ..
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में

13. अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में बाज़ार की कौन-सी अवस्था हो सकती है?
(A) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा
(B) अल्पाधिकार
(C) द्वि-अधिकार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

14. किस बाज़ार के लिए फर्म के लिए कीमत रेखा क्षैतिज सरल रेखा होती है?
(A) एकाधिकारी
(B) पूर्ण प्रतिस्पर्धा
(C) एकाधिकारी प्रतियोगिता
(D) अल्पाधिकार
उत्तर:
(B) पूर्ण प्रतिस्पर्धा

15. किस बाज़ार में विक्रय लागतों का बहुत अधिक महत्त्व होता है?
(A) पूर्ण प्रतियोगी बाज़ार में
(B) अल्पाधिकार बाज़ार में
(C) अपूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अपूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में

16. एकाधिकार में सीमांत संप्राप्ति वक्र का आकार कैसा होता है?
(A) धनात्मक ढलान वाला
(B) OX-अक्ष के समानांतर
(C) OY-अक्ष के समानांतर
(D) ऋणात्मक ढलान वाला
उत्तर:
(D) ऋणात्मक ढलान वाला

17. अल्पकाल में एकाधिकार के संतुलन की अवस्था में निम्नलिखित में से कौन-सी अवस्था हो सकती है?
(A) असामान्य लाभ
(B) सामान्य लाभ
(C) न्यूनतम हानि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

18. एकाधिकार होता है
(A) कीमत-निर्धारक
(B) कीमत स्वीकार करने वाला
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) कीमत-निर्धारक

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुएँ ……………… होती हैं। (भिन्न, समरूप)
उत्तर:
समरूप

2. एकाधिकारी बाज़ार में एकाधिकारी कीमत …………… होता है। (निर्धारक, स्वीकारक)
उत्तर:
निर्धारक

3. विज्ञापन लागते ……………. में अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं। (एकाधिकार, एकाधिकारी प्रतियोगिता)
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगिता

4. ……………… एकाधिकार बाज़ार की मुख्य विशेषता होती है। (वस्तु विभेद, कीमत विभेद)
उत्तर:
कीमत विभेद

5. ‘अल्पाधिकार’ में ………………… विक्रेता पाए जाते हैं। (बहुत अधिक, कुछ)
उत्तर:
कुछ

6. ‘एकाधिकार’ की तुलना में ‘एकाधिकारी प्रतियोगिता’ में AR तथा MR वक्र सापेक्षिक ……………… लोचदार होते हैं। (कम, अधिक)
उत्तर:
अधिक

7. एकाधिकारी प्रतियोगिता (प्रतिस्पर्धा) में AR तथा MR वक्र एक-दूसरे के ……………….. होते हैं। (बराबर, भिन्न)
उत्तर:
भिन्न

8. द्वयाधिकार बाज़ार में वस्तु के ……………. विक्रेता पाए जाते हैं। (एक, दो)
उत्तर:
दो

9. विक्रय लागते ……………. बाज़ार में अधिक उपयोगी होती हैं। (एकाधिकार, एकाधिकारी प्रतियोगिता)
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगिता

10. गैर-कीमत प्रतियोगिता सर्वाधिक ………………. में पाई जाती है। (पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकारी प्रतियोगिता)
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगिता

11. एकाधिकारी प्रतियोगिता में एक फर्म दीर्घकाल में …………. लाभ प्राप्त करती है। (सामान्य, असामान्य)
उत्तर:
सामान्य

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत-

  1. सर्वाधिक गैर कीमत प्रतियोगिता एकाधिकारी प्रतियोगिता में पाई जाती है।
  2. एकाधिकारी कीमत सदैव ऊँची होती है।
  3. एकाधिकार के अंतर्गत कीमत 10 रु० होगी यदि सीमांत लागत 10 रु० है।
  4. एकाधिकारी प्रतियोगिता में फर्मों के आने व छोड़कर जाने की स्वतंत्रता नहीं होती।
  5. एकाधिकार में कीमत, सीमान्त लागत के समान होती है।
  6. एक एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म को दीर्घकाल में असामान्य लाभ प्राप्त होंगे।
  7. एकाधिकारी दीर्घकाल में असामान्य लाभ प्राप्त नहीं कर सकता।
  8. एकाधिकार में औसत आगम (AR) वक्र तथा सीमांत आगम (MR) वक्र एक-समान होते हैं।
  9. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आगम (AR) वक्र तथा सीमांत आगम (MR) वक्र एक-दूसरे के बराबर नहीं होते।
  10. एकाधिकारी बाजार में एकाधिकारी कीमत निर्धारक होता है।
  11. एकाधिकार में कीमत विभेद संभव होता है।
  12. एकाधिकारी प्रतियोगिता में AR तथा MR वक्र एक-दूसरे के भिन्न होते हैं।
  13. अल्पाधिकार में दो विक्रेता पाए जाते हैं।
  14. द्वयाधिकार बाज़ार में वस्तु के दो विक्रेता पाए जाते हैं।
  15. विज्ञापन लागतें एकाधिकारी प्रतियोगिता में अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं।

उत्तर:

  1. सही
  2. गलत
  3. गलत
  4. गलत
  5. गलत
  6. गलत
  7. गलत
  8. गलत
  9. गलत
  10. सही
  11. गलत
  12. सही
  13. गलत
  14. सही
  15. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाज़ार किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाज़ार का अर्थ किसी विशेष स्थान से नहीं है बल्कि किसी वस्तु की मात्रा के क्रय-विक्रय से है।

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प्रश्न 2.
बाज़ार के मुख्य रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  • पूर्ण प्रतियोगिता
  • एकाधिकार
  • एकाधिकारी प्रतियोगिता
  • अल्पाधिकार।

प्रश्न 3.
एकाधिकार (Monopoly) क्या है?
उत्तर:
एकाधिकार बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु का एक ही विक्रेता होता है और उस वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।

प्रश्न 4.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा (Monopolistic Competition) क्या है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु के बहुत-से विक्रेता लगभग एक-जैसी विभेदीकृत वस्तुओं (Differentiated Goods) के रूप में बेचने की प्रतिस्पर्धा करते हैं।

प्रश्न 5.
गठबंधन प्रतियोगिता और गैर-गठबंधन प्रतियोगिता में अंतर बताहए।
अथवा
गठबंधन अल्पाधिकार तथा गैर-गठबंधन अल्पाधिकार से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गठबंधन प्रतियोगिता या अल्पाधिकार-गठबंधन प्रतियोगिता अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें सभी फर्मे एक-दूसरे के सहयोग से अपनी वस्तुओं की कीमतों को निर्धारित करती हैं। ये एक-दूसरे से किसी भी प्रकार की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं करतीं। गैर-गठबंधन प्रतियोगिता या अल्पाधिकार-गैर-गठबंधन प्रतियोगिता अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें सभी फर्मे स्वतंत्र रूप से अपनी वस्तुओं की कीमतों को निर्धारित करती हैं और इनमें प्रतिस्पर्धा होती है।

प्रश्न 6.
अल्पाधिकार की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
अल्पाधिकार बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु के कुछ उत्पादक होते हैं। वाटसन के अनुसार, “अल्पाधिकार वह बाजार अवस्था है जिसमें समरूप अथवा विभेदीकृत वस्तुएँ बेचने वाली थोड़ी-सी फर्मे होती हैं।”

प्रश्न 7.
कीमत विभेद किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक ही वस्तु को विभिन्न क्रेताओं को भिन्न-भिन्न कीमतों पर बेचना कीमत विभेद कहलाता है।

प्रश्न 8.
विभेदीकृत उत्पादों (Differentiated Products) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभेदीकृत उत्पादों से अभिप्राय उन उत्पादों से है जिनकी प्रकृति एक-समान होती है, परंतु जिन्हें ब्रांड नाम, आकार, रंग, डिज़ाइन, गुण, सेवा आदि के आधार पर अन्य वस्तुओं से विभेदित किया जाता है।

प्रश्न 9.
वस्तु विभेद (Product Differentiation) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वस्तु विभेद से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके अंतर्गत एक-समान स्वभाव वाली वस्तुओं को विज्ञापन, पैकिंग, ब्रांड आदि के आधार पर अन्य वस्तुओं से भिन्न बनाया जाता है।

प्रश्न 10.
विक्रय लागते (Selling Costs) क्या होती हैं?
उत्तर:
विक्रय लागतों से अभिप्राय उन लागतों से है जिन्हें फर्म की बिक्री बढ़ाने के लिए व्यय किया जाता है।

प्रश्न 11.
विज्ञापन लागतें क्या होती हैं?
उत्तर:
विज्ञापन लागतें वे लागतें होती हैं जो एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा फर्मे अपनी-अपनी वस्तुओं के प्रचार पर बिक्री बढ़ाने के उद्देश्य से व्यय करती हैं।

प्रश्न 12.
पेटेंट अधिकार क्या होते हैं?
उत्तर:
पेटेंट अधिकार वे अधिकार हैं जिनमें धारक को ही एक विशेष उत्पादन विधि या नए उत्पाद का प्रयोग करने का अधिकार होता है और अन्य किसी भी उत्पादक को धारक से लाइसेंस पाए बिना इसके उत्पादन या प्रयोग करने का अधिकार नहीं होता।

प्रश्न 13.
संगुट विरोधी (Anti Trust) कानून क्या होते हैं?
उत्तर:
संगुट विरोधी कानून ऐसे कानून हैं जो उन सभी प्रकार के विलय (Merger), अधिग्रहण (Acquisition) और व्यावसायिक गतिविधियों को सीमित करते हैं जिनके कारण दक्षता में नाममात्र की वृद्धि परंतु बाज़ार पर नियंत्रण की संभावना अधिक होती है।

प्रश्न 14.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल में फर्म असामान्य लाभ अर्जित क्यों नहीं कर पाती?
उत्तर:
क्योंकि दीर्घकाल में अन्य फळं बाजार में प्रवेश करके असामान्य लाभ को सामान्य लाभ में बदल देती हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एकाधिकार बाज़ार की कोई चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
एकाधिकार बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. एक विक्रेता-एकाधिकार बाज़ार में वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है। अतः इस बाज़ार में फर्म तथा उद्योग का अंतर समाप्त हो जाता है।
  2. निकट स्थानापन्न का न होना-एकाधिकार बाजार जिस वस्तु का उत्पादन या विक्रय करता है, उसका कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।
  3. प्रवेश पर प्रतिबंध-एकाधिकार बाजार में नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है। इसलिए एकाधिकारी का कोई प्रतियोगी नहीं होता।
  4. पूर्ति पर प्रभावी नियंत्रण वस्तु की पूर्ति पर एकाधिकारी बाज़ार का पूर्ण नियंत्रण होता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 2.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की कोई चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. फर्मों की अधिक संख्या एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों की संख्या अधिक होती है। इस प्रकार विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धा पाई जाती है।

2. वस्तु विभेद-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अनेक फर्मे मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। उन वस्तुओं में रंग, रूप, आकार, डिज़ाइन, पैकिंग, ब्रांड, ट्रेडमार्क, सुगंध आदि के आधार पर वस्तु विभेद (Product Variation) किया जाता है; जैसे पेप्सोडेंट, कोलगेट, फोरहन्स, क्लोज़अप आदि टूथपेस्ट। इन पदार्थों में एकरूपता तो नहीं होती, लेकिन वे एक-दूसरे के निकट स्थानापन्न (Close Substitutes) होते हैं।

3. फर्मों के निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में नई फर्मों के बाज़ार में प्रवेश करने और पुरानी फर्मों को बाजार छोडने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

4. विक्रय लागतें-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में प्रत्येक फर्म को अपनी वस्तु का प्रचार करने के लिए विज्ञापनों पर बहुत व्यय करना पड़ता है। अतः एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों में अपनी-अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए कीमत प्रतियोगिता तो नहीं पाई जाती, बल्कि गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा (Non-Price Competition) पाई जाती है।

प्रश्न 3.
उन कारकों की व्याख्या करें जिनके कारण एकाधिकार बाज़ार अस्तित्व में आया।
उत्तर:
एकाधिकार बाज़ार के अस्तित्व में आने के कारण निम्नलिखित हैं
1. सरकारी प्रतिबंध कई बार किसी क्षेत्र विशेष में अन्य किसी फर्म के प्रवेश करने पर सरकार प्रतिबंध लगा देती है। उदाहरण के लिए, रेल परिवहन के क्षेत्र में भारत सरकार ने अन्य किसी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। अतः रेलवे परिवहन पर सरकार का एकाधिकार है।

2. लाइसेंस-सरकार द्वारा केवल एक कंपनी को किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन का लाइसेंस देना किसी क्षेत्र या उद्योग में एकाधिकार फर्म को जन्म दे सकता है।

3. पेटेंट अधिकार-पेटेंट अधिकार के कारण भी एकाधिकार स्थापित हो सकता है। जब किसी एक फर्म अथवा उत्पादक को यह सरकारी मान्यता मिल जाती है कि उसके अलावा अन्य कोई भी फर्म उस वस्तु का उत्पादन अथवा उस तकनीक का प्रयोग नहीं कर सकती, जिसका विकास अथवा आविष्कार इस फर्म ने किया है तो इसे पेटेंट अधिकार कहते हैं। यह फर्मों को अन्वेषण एवं विकास के कार्य करते रहने हेतु प्रोत्साहित करने और जोखिम की पूर्ति के लिए दिया जाता है।

4. व्यापार गुट (कार्टेल) कभी-कभी किसी एक विशेष वस्तु के उत्पादक अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखते हुए अधिकतम लाभ कमाने के लिए एकत्रित होकर एक संगठन बना लेते हैं, इसे व्यापार गुट (कार्टेल) कहा जाता है। वे इस संस्था के माध्यम से एकाधिकारी की तरह ही अपनी उत्पादन एवं कीमत नीति को लागू करते हैं।

प्रश्न 4.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी फर्म का माँग वक्र अधिक लोचदार क्यों रहता है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की कई निकट प्रतिस्थापक वस्तुएँ बाज़ार में उपलब्ध होती हैं। जिस वस्तु की जितनी अधिक प्रतिस्थापक वस्तुएँ उपलब्ध होंगी उस वस्तु की माँग उतनी ही अधिक लोचदार होगी। इसलिए एक एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी फर्म का माँग वक्र अधिक लोचदार रहता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 1

प्रश्न 5.
एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में से किस बाज़ार में फर्म का माँग वक्र अधिक लोचशील होता है और क्यों?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा और एकाधिकार दोनों ही अवस्थाओं में फर्मों का माँग वक्र अथवा औसत आगम वक्र दाईं ओर नीचे को झुका हुआ होता है। इसका अर्थ यह है कि दोनों प्रकार की फर्मों को अधिक मात्रा में वस्तु बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। लेकिन एक एकाधिकारी फर्म का माँग वक्र कम लोचशील होता है क्योंकि इस अवस्था में वस्तु की कोई निकट स्थानापन्न वस्तु नहीं होती। इसके विपरीत, एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का माँग वक्र अधिक लोचशील होता है क्योंकि उस वस्तु की कई निकट स्थानापन्न वस्तुएँ बाज़ार में उपलब्ध होती हैं। एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म के माँग वक्र को निम्नांकित रेखाचित्रों द्वारा दिखाया जाता है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 2

प्रश्न 6.
बताइए कि एकाधिकारी फर्म का सीमांत आगम औसत आगम से कम क्यों रहता है?
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म पूरे बाज़ार में एकमात्र वस्तु का अकेला विक्रेता होता है। एकाधिकारी फर्म का वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण होता है। लेकिन उसका वस्तु की माँग पर कोई नियंत्रण नहीं होता। अतः एकाधिकारी फर्म अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तु को अधिकतम मूल्य पर बेचने का प्रयास करेगी। विक्रेता को वस्तु की अधिकाधिक इकाइयाँ बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। इसलिए फर्म का सीमांत आगम औसत आगम से कम रहता है। सीमांत आगम और औसत आगम दोनों वक्रों का ढाल ऊपर से नीचे की ओर होता है लेकिन सीमांत आगम औसत आगम से सदैव कम होता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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प्रश्न 7.
माँग की कीमत लोच और सीमांत आगम के बीच संबंध को एक | रेखाचित्र से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच (eD) और सीमांत संप्राप्ति (आगम) (MR) के बीच निकट संबंध रहता है। जैसे कि
(i) जब MR धनात्मक है तो कीमत लोच 1 से अधिक होती है।

(ii) जब MR शून्य होती है तो कीमत लोच 1 के बराबर होती है।

(iii) जब MR ऋणात्मक होता है तो कीमत लोच 1 से कम होती है। यह संबंध संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 4

प्रश्न 8.
द्वि-अधिकार बाज़ार की कोई चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
द्वि-अधिकार बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें केवल दो ही उत्पादक होते हैं।
  2. दोनों लगभग समान वस्तु का विक्रय करते हैं।
  3. दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतंत्र होते हैं तथा दोनों ही वस्तुएँ एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती हैं।
  4. प्रत्येक प्रतिस्पर्धी को स्वयं अपनी नीति का निर्धारण करने में दूसरे प्रतिस्पर्धी की नीति को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

प्रश्न 9.
शून्य उत्पादन लागत वाली एकाधिकार फर्म के संतुलन को रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
कभी-कभी एक एकाधिकारी फर्म की लागत शून्य होती है, क्योंकि उसे उत्पाद के लिए कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती। ऐसी स्थिति में फर्म का संतुलन उस बिंदु पर होगा जहाँ MC =MR है। एक फर्म की संतुलन स्थिति को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
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संलग्न रेखाचित्र में, X-अक्ष ही औसत व सीमांत लागत वक्र है, क्योंकि लागत शून्य है। E बिंदु पर MR=MC है इसलिए यह संतुलन बिंदु है, जहाँ फर्म को OPAE लाभ प्राप्त हो रहा है जो अधिकतम लाभ है। चूँकि हम जानते हैं कि जब MR = 0 होता है, तो TR अधिकतम होता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 10.
एकाधिकार फर्म के लिए माँग वक्र ही संरोध (Con-straint) कैसे बन जाता है?
उत्तर:
एकाधिकार फर्म पूरे बाज़ार में एकमात्र वस्तु का विक्रेता होता है। एकाधिकार फर्म का बाज़ार में वस्तु की पूर्ति पर पूरा नियंत्रण होता है। लेकिन कीमत प्रक्रिया के दूसरे पहलू माँग पर फर्म का कोई नियंत्रण नहीं होता क्योंकि माँग उपभोक्ताओं द्वारा की जाती है। एक फर्म अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तु को अधिकतम कीमत पर बेचने का प्रयास करती है परंतु अधिकतम कीमत पर माँग कम होगी। अतः वस्तु की अधिक मात्रा बेचने के लिए फर्म को कीमत कम करनी पड़ती है। इस प्रकार फर्म के लिए माँग वक्र ही संरोध बन जाता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 6
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि OP कीमत पर वस्तु की माँग केवल OQ है। OQ1 मात्रा बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत OP से कम करके OP1 करनी पड़ेगी।

प्रश्न 11.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा क्या होती है? क्या ऐसे बाज़ार में एक विक्रेता कीमत को प्रभावित कर सकता है? समझाइए।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें एक बड़ी संख्या में फर्मे लगभग एक जैसी किंतु विभेदीकृत वस्तुओं को बेचने की प्रतिस्पर्धा करती हैं।

एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में यहाँ एक ओर फर्मों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है वहीं दूसरी ओर फर्मों को वस्तु विभेद के कारण कुछ सीमा तक एकाधिकारी शक्ति भी प्राप्त होती है। इसलिए एक विक्रेता कीमत को प्रभावित कर सकता है। यहाँ एक विक्रेता कीमत निर्धारक होता है, कीमत स्वीकारक नहीं।

प्रश्न 12.
एकाधिकार व एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में औसत संप्राप्ति (AR) तथा सीमांत संप्राप्ति (MR) वक्र बनाइए।
उत्तर:
एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की अवस्थाओं में फर्म अपनी स्वतंत्र कीमत नीति अपना सकती है। फर्म कीमत को कम करके अधिक माल बेच सकती है तथा कीमत में वृद्धि करने पर फर्म का कम माल बिकेगा। अतः इन दोनों स्थितियों में औसत संप्राप्ति वक्र तथा सीमांत संप्राप्ति (आगम) वक्र गिरते हुए होते हैं और जब औसत संप्राप्ति गिर रही होती है तो सीमांत संप्राप्ति औसत संप्राप्ति से कम रहती है अर्थात् इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि एकाधिकार में आगम वक्र कम लोचदार (Less Elastic) और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अधिक लोचदार (More Elastic) होते हैं।
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इसका अभिप्राय यह है कि यदि एकाधिकारी फर्म कीमत बढ़ा देती है, तो फर्म की कुल माँग पर कम प्रभाव पड़ता है क्योंकि एकाधिकार में वस्तु के स्थानापन्न (Substitutes) उपलब्ध नहीं होते जबकि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा वाली फर्म यदि वस्तु की कीमत बढ़ा देती है तो उसकी माँग पर अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु के स्थानापन्न उपलब्ध होते हैं।

प्रश्न 13.
एक प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार में सीमांत संप्राप्ति (आगम) तथा कुल संप्राप्ति (आगम) का संबंध तालिका व रेखाचित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
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एक प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार के कुल संप्राप्ति और सीमांत संप्राप्ति के संबंध को निम्न तालिका व रेखाचित्र से दिखा सकते हैं-

बेची गई इकाइयाँ प्रति इकाई कीसत कुल आगम सीमांत आगम
1 10 10 10
2 9 18 8
3 8 24 6
4 7 28 4
5 6 30 2
6 5 30 0
7 4 28 -2
8 3 24 -4

तालिका तथा रेखाचित्रों से यह स्पष्ट होता है कि कुल आगम उस समय तक बढ़ता है जब तक कि सीमांत आगम धनात्मक अर्थात् शून्य से ऊपर है। कुल आगम वहाँ अधिकतम है जहाँ सीमांत आगम शून्य है। कुल आगम उस समय घटने लगता है जब सीमांत आगम ऋणात्मक अर्थात् शून्य से कम होता है। उपर्युक्त तालिका से यह स्पष्ट है कि सीमांत आगम पाँचवीं इकाई तक धनात्मक है।

अतः कुल आगम बढ़ रहा है। छठी इकाई पर कुल आगम अधिकतम है क्योंकि सीमांत आगम शून्य है। छठी इकाई के पश्चात् सीमांत आगम ऋणात्मक होने लगता है और कुल आगम घटने वाले होते हैं।

प्रश्न 14.
कुल संप्राप्ति (आगम) (TR) तथा सीमांत संप्राप्ति (MR) में संबंध तालिका एवं रेखाचित्र की सहायता से बताइए।
उत्तर:
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बेची गई इकाइयाँ TR MR
1 10
2 18 8
3 24 6
4 28 4
5 30 2
6 30 0
7 28 – 2

(i) जब MR धनात्मक होता है तो TR बढ़ता है।
(ii) जब MR शून्य होता है, तो TR अधिकतम होता है।
(iii) जब MR ऋणात्मक होता है, तो TR गिरना शुरू कर देता है।
(iv) TR बढ़ती दर से बढ़ता है, जब तक MR बढ़ता है तथा TR घटती दर से बढ़ता है, जब तक MR गिरता है।

प्रश्न 15.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा के अंतर्गत कुल संप्राप्ति, औसत संप्राप्ति और सीमांत संप्राप्ति के बीच संबंध बताइए। रेखाचित्र का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 10
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म कीमत निर्धारक होती है। एक फर्म अपनी वस्तु की बिक्री को तभी बढ़ा सकती है जब वह वस्तु की कीमत में कमी करे। इसलिए फर्म के AR और MR वक्र गिरते हुए सीधी रेखा के रूप में होते हैं। कुल संप्राप्ति वक्र का आकार उल्टे ‘U’ आकार का होता है, क्योंकि कुल संप्राप्ति पहले बढ़ती है, बाद में कम होती है। यह वस्तु की मात्रा संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
द्वि-अधिकार (Duopoly) की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
द्वि-अधिकार का अर्थ-द्वि-अधिकार से अभिप्राय बाजार की उस स्थिति से है जिसमें किसी एक ही सर्वथा समान अथवा लगभग समान वस्तु के दो उत्पादक होते हैं। दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतंत्र होते हैं एवं दोनों की वस्तुएँ एक-दूसरे से पर्धा करती हैं। यदि एक विक्रेता अपनी उपज तथा कीमत संबंधी नीति में परिवर्तन करता है तो दूसरे की ओर से इसकी बलशाली प्रतिक्रिया होती है। इस प्रकार दोनों विक्रेताओं में से कोई भी बिना दूसरे की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखे उत्पादन की मात्रा अथवा कीमत को निश्चित नहीं कर सकता।

द्वि-अधिकार बाजार की विशेषताएँ-द्वि-अधिकार बाजार की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें केवल दो ही उत्पादक होते हैं।
  • दोनों सर्वथा समान अथवा लगभग समान वस्तु का विक्रय करते हैं।
  • दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतंत्र होते हैं तथा दोनों ही वस्तुएँ एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती हैं।
  • अतः प्रत्येक प्रतिस्पर्धी को स्वयं अपनी नीति का निर्धारण करने में दूसरे प्रतिस्पर्धी की नीति को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

द्वि-अधिकार आवश्यक रूप से अपूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति नहीं होती, क्योंकि यदि दोनों विक्रेता परस्पर मिलकर उत्पादन करने लगे, तब द्वि-अधिकार की स्थिति समाप्त हो जाएगी। इसके विपरीत, यह भी संभव है कि कंठ-छेदी प्रतिस्पर्धा (Cut-throat competition) के कारण पूर्ण प्रतिस्पर्धा की सी दशाएँ उत्पन्न हो जाएँ।

प्रश्न 2.
कुल संप्राप्ति (TR) और कुल लागत (TC) वक्रों की सहायता से एक एकाधिकारी फर्म (Monopoly Firm) के संतुलन को समझाइए।
उत्तर:
कुल संप्राप्ति (आगम) तथा कुल लागत विधि द्वारा एकाधिकारी फर्म का संतुलन-एकाधिकार वस्तु की उस मात्रा को बेचकर अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकता है जिस पर कुल संप्राप्ति (आगम) (Total Revenue) तथा कुल लागत (Total Cost) का अंतर अधिकतम होता है। एकाधिकार वस्तु की विभिन्न कीमतें निर्धारित करके अथवा वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन लाकर यह जानने का प्रयास करता है कि उत्पादन के किस स्तर पर कुल संप्राप्ति (TR) तथा कुल लागत (TC) का अंतर अधिकतम है। उत्पादन की उस मात्रा पर जिसके उत्पादन से एकाधिकार को अधिकतम लाभ प्राप्त होंगे, एकाधिकार संतुलन की स्थिति में होगा। इसे संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

रेखाचित्र में TC कुल लागत वक्र है, जो उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ लागत में स्थिर दर से होने वाली वृद्धि को दर्शाता है। TR कुल संप्राप्ति वक्र है जो आरंभ में ऊपर की ओर बढ़ता है, बाद में चपटा (Flat) होता है और अंत में नीचे की ओर गिरता है जो एक निश्चित बिंदु के पश्चात कुल प्राप्तियों में गिरावट का प्रतीक है। TP कुल लाभ की रेखा है। यह Rबिंद से आरंभ होती है जो यह दर्शाती है कि प्रारंभिक स्थिति में फर्म को ऋणात्मक लाभ (Negative Profits) मिलते हैं। रेखाचित्र से यह स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे फर्म उत्पादन बढ़ाती है वैसे-वैसे कुल संप्राप्ति TR बढ़ती जाती है। आरंभ में TR < TC है। परिणामस्वरूप TR वक्र का RC भाग यह दिखाता है कि फर्म को हानि हो रही है। K बिंदु पर TR = TC है जो यह स्पष्ट करती है कि फर्म को न लाभ है और न ही हानि। जैसाकि TP के C बिंदु से स्पष्ट हो रहा है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 11

K बिंदु ‘समविच्छेद बिंदु’ (Break Even Point) कहलाता है। जब फर्म K बिंदु से अधिक उत्पादन करती है तो TR > TC है। C बिंदु के बाद TP वक्र भी दाएँ ऊपर की ओर बढ़ता है। यह इस बात का प्रतीक है कि फर्म लाभ प्राप्त कर रही है। जब TP वक्र अपने उच्चतम बिंदु E पर पहुँचता है तब फर्म अधिकतम लाभ कमा रही होती है। इसलिए OQ उत्पादन की मात्रा संतुलन मात्रा कहलाती है। यदि फर्म संतुलन मात्रा से अधिक उत्पादन करती है तो TR और TC वक्रों का अंतर कम होता जाता है जो कि दोबारा K1 बिंदु पर एक-दूसरे को काटते हैं। पुनः TR = TC हो जाते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि फर्म के लाभ घटते जाते हैं और D बिंदु पर फर्म को न लाभ न हानि होती है। इस प्रकार बिंदु K1 भी ‘समविच्छेद बिंदु’ (Break Even Point) कहलाता है। यदि फर्म इससे भी अधिक मात्रा का उत्पादन करती है तो TR < TC हो जाता है और फर्म को हानि होने लगती है।

सारांश में फर्म E बिंदु पर अधिकतम लाभ प्राप्त करेगी। अधिकतम लाभ का अनुमान लगाने के लिए TR और TC वक्रों पर दो स्पर्श रेखाएँ (Tangents) खींची गई हैं। जिन बिंदुओं पर स्पर्श रेखाएँ समानांतर (Parallel) हैं, वहीं TR और TC का अंतर अधिकतम होता, है। जैसाकि रेखाचित्र में A और B बिंदुर चूँकि स्पर्श रेखाएँ परस्पर समानांतर हैं, इसलिए यहाँ TR और TC का अंतर अधिकतम है। इसी स्थिति में फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है जो TP वक्र के E बिंदु से स्पष्ट है और E बिंदु ही फर्म का संतुलन बिंदु है।

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प्रश्न 3.
सीमांत संप्राप्ति (MR) और सीमांत लागत (MC) विधि द्वारा एक एकाधिकारी फर्म की संतुलन स्थिति को समझाइए।
अथवा
एक एकाधिकारी किस प्रकार अपनी कीमत और मात्रा निर्धारित करता है? रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
सीमांत संप्राप्ति (आगम) तथा सीमांत लागत विधि द्वारा एकाधिकारी फर्म की संतुलन स्थिति-एकाधिकार की स्थिति उत्पादन तथा संतुलन स्थिति का निर्धारण सीमांत आगम और सीमांत लागत विधि द्वारा भी कर सकती है। इस विधि के अनुसार एकाधिकारी उस समय संतुलन स्थिति में होता है जहाँ निम्नलिखित दो शर्ते पूरी होंगी

  • सीमांत संप्राप्ति (आगम) (MR) = सीमांत लागत (MC) हो
  • सीमांत लागत (MC) वक्र सीमांत संप्राप्ति (MR) वक्र को नीचे से काटता हो।

एकाधिकार में कीमत, उत्पादन तथा संतुलन निर्धारण दिए गए रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है रेखाचित्र में औसत लागत, तथा सीमांत लागत वक्र को माँग (औसत संप्राप्ति) वक्र तथा सीमांत संप्राप्ति वक्र के साथ दर्शाया गया है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि q0 के नीचे उत्पादन स्तर पर सीमांत संप्राप्ति स्तर सीमांत लागत स्तर से ऊँचा है। तात्पर्य यह है कि वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के विक्रय से प्राप्त कुल संप्राप्ति में वृद्धि उस अतिरिक्त इकाई की उत्पादन लागत में वृद्धि से अधिक होती है। इसका अर्थ यह है कि उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई से अतिरिक्त लाभ का सृजन होगा। चूँकि लाभ में परिवर्तन = कुल संप्राप्ति में परिवर्तन – कुल लागत में परिवर्तन। अतः यदि फर्म q0 से कम स्तर पर वस्तु का उत्पादन कर रही है, तो वह अपने उत्पादन में वृद्धि लाना चाहेगी, क्योंकि इससे उसके लाभ में बढ़ोतरी होगी। जब तक सीमांत संप्राप्ति (MR) वक्र सीमांत लागत (MC) वक्र के ऊपर स्थित है, तब तक उपर्युक्त D = AR तर्क का अनुप्रयोग होगा। अतः फर्म अपने उत्पादन में वृद्धि करेगी। इस प्रक्रम में तब रुकावट आएगी, जब उत्पादन का स्तर q0 पर प. प. पहुँचेगा, क्योंकि इस स्तर पर सीमांत संप्राप्ति (MR) और सीमांत उत्पादन (निर्गत) MR लागत (MC) दोनों समान होंगे और उत्पादन में वृद्धि से लाभ में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होगी।
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दूसरी ओर, यदि फर्म q0 से अधिक मात्रा में वस्तु का उत्पादन करती है तो सीमांत लागत (MC) सीमांत संप्राप्ति से अधिक होती है। अभिप्राय यह है कि उत्पादन की एक इकाई कम करने से कुल लागत में जो कमी होती है, वह इस कमी के कारण कल संप्राप्ति में हुई हानि से अधिक होती है। अतः फर्म के लिए यह उपयुक्त है कि वह उत्पादन में कमी लाए। यह तर्क तब तक ठीक साबित होगा जब तक सीमांत लागत (MC) वक्र सीमांत संप्राप्ति वक्र के ऊपर स्थित होगा और फर्म अपने उत्पादन में कमी को जारी रखेगी। एक बार उत्पादन स्तर के q0 पर पहुँचने पर सीमांत लागत (MC) और सीमांत संप्राप्ति (MR) के मूल्य समान हो जाएँगे और फर्म अपने उत्पादन में कमी को रोक देगी।

वार्य रूप से उत्पादन स्तर पर पहुँचती है, इसलिए इस स्तर को उत्पादन का संतुलन स्तर कहते हैं। चूंकि उत्पादन के उस संतुलन स्तर पर सीमांत संप्राप्ति (MR) सीमांत लागत के बराबर होती है तथा सीमांत लागत (MC) वक्र सीमांत संप्राप्ति वक्र को नीचे से काट रही है और इस बिंदु पर एकाधिकार फर्म की संतुलन की शर्ते पूरी हो रही हैं।

q0 उत्पादन के स्तर पर औसत लागत dq0 है। चूंकि कुल लागत, औसत लागत और उत्पादित मात्रा q0 के गुणनफल के बराबर होती है, इसलिए इसे आयंत Oq0dc के द्वारा दर्शाया गया है।

रेखाचित्र में कीमत बिंदु a द्वारा दर्शायी गई है जहाँ q0 से शुरू होकर उदग्र रेखा बाजार माँग वक्र D से मिलती है।। इससे aq0 की ऊँचाई द्वारा दर्शाई गई कीमत प्राप्त होती है। चूंकि फर्म द्वारा प्राप्त कीमत उत्पादन की प्रति इकाई संप्राप्ति होती है, अतः यह फर्म के लिए औसत संप्राप्ति है। कुल संप्राप्ति, औसत संप्राप्ति और उत्पादन q0 के स्तर का गुणनफल होती है, इसलिए इसे आयत Oq0ab के क्षेत्रफल के रूप में दर्शाया गया है। आरेख से स्पष्ट है कि आयत Oq0ab का क्षेत्रफल आयत Oq0dc के क्षेत्रफल से बड़ा है अर्थात् कुल संप्राप्ति कुल लागत से अधिक है। आयत cdab का क्षेत्रफल इनके बीच का अंतर है अतः लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत को cdab के क्षेत्रफल से प्रदर्शित किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
शून्य लागत की स्थिति में एक एकाधिकारी फर्म के संतुलन स्थिति को रेखाचित्र की सहायता से सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शून्य लागत की स्थिति में एकाधिकार फर्म का संतुलन कभी-कभी एक एकाधिकार फर्म की वस्तु की उत्पादन लागत शून्य होती है, क्योंकि उसे अपने उत्पाद के लिए कोई कीमत चुकानी नहीं पड़ती। ऐसी स्थिति में भी एक फर्म का संतुलन उस बिंदु पर होगा, जहाँ MC = MR है और चूँकि हमने माना है कि MC = 0 है तो संतुलन की शर्त होगी (MR = MC = 0)। हम यह भी जान चुके हैं कि जब MR = 0 होता है तो TR अधिकतम होता है। एक फर्म की संतुलन स्थिति को हम निम्नलिखित उदाहरण व संलग्न रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं

उदाहरण (Example) मान लीजिए कि कोई गाँव अन्य गाँवों से काफी दूरी पर स्थित है। इस गाँव में एक ही कुआँ है जिसमें पानी उपलब्ध होता है। सभी निवासी जल की आवश्यकता के लिए पूर्ण रूप से इसी कुएँ पर निर्भर हैं। कुएँ का स्वामी एक ऐसा व्यक्ति है जो अन्य लोगों को कुएँ से जल निकालने के लिए रोकने में समर्थ है सिवाय इसके कि कोई जल का क्रय करे। इस कुएँ से जल का क्रय करने वाले स्वयं ही जल निकालते हैं। हम इस एकाधिकार की स्थिति का विश्लेषण बिक्री जहाँ लागत शून्य है इस जल की मात्रा और उसकी कीमत जिस पर बेची जाती है, का निर्धारण करने के लिए करेंगे।

रेखाचित्र में कुल संप्राप्ति (TR), औसत संप्राप्ति (AR) और सीमांत संप्राप्ति (MR) वक्रों को दर्शाया गया है। फर्म का लाभ कुल संप्राप्ति – कुल लागत के बराबर होता है अर्थात
π = TR – TC.

रेखाचित्र से स्पष्ट है कि जब कुल उत्पादन OQ है, तो कुल लागत शून्य है। चूंकि इस स्थिति में कुल लागत शून्य है, जब कुल संप्राप्ति सर्वाधिक है। लाभ सर्वाधिक है तो जैसा कि हमने पहले देखा है कि यह स्थिति तब होती है, जब उत्पादन मात्रा OQ इकाइयाँ हों। यह स्तर तब प्राप्त होता है जब MR शून्य के बराबर होती है। लाभ का परिणाम ‘a’ से समस्तरीय अक्ष तक के उदग्र रेखा की लंबाई के द्वारा स्पष्ट है।

जिस कीमत पर उत्पाद की इस मात्रा का विक्रय होगा जिसे उपभोक्ता समग्र रूप से भुगतान करने को तैयार होंगे। इसे बाजार माँग वक्र D द्वारा दिया गया है। OQ इकाई के उत्पादन के स्तर पर कीमत P रु० है। चूँकि एकाधिकार फर्म के लिए बाजार माँग वक्र ही औसत संप्राप्ति (AR) वक्र है, इसलिए फर्म के द्वारा प्राप्त औसत संप्राप्ति P है। उत्पादन (निर्गत) Q MR कुल संप्राप्ति को औसत संप्राप्ति और बिक्री मात्रा के गुणनफल अर्थात् Px OQ इकाइयाँ = OQRP के द्वारा दिखाया गया है। यह छायांकित आयत के द्वारा चित्रित किया गया है।

पूर्ण प्रतिस्पर्धा से तुलना-उपरोक्त स्थिति में एकाधिकारी फर्म को अधिसामान्य लाभ प्राप्त होंगे। अब यदि हम यह मान लें कि बाजार में पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति है और गाँव में जल के अनगिनत कुएँ हैं, जिनके स्वामी भी अलग-अलग हैं, तब उनमें परस्पर प्रतिस्पर्धा होगी। दूसरे स्वामी कीमत को कम करेंगे और कीमत असीमित रूप से नीचे की ओर गिरेगी और तब तक गिरेगी जब तक शन्य न हो जाए और लाभ भी शून्य न हो जाए। अतः इस प्रकार पूर्ण प्रतिस्पर्धा लाभ के कारण कम कीमत पर अधिक मात्रा की बिक्री होती है तथा लाभ AR सामान्य (शून्य) होते हैं।
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प्रश्न 5.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म के अल्पकालीन संतुलन की स्थिति समझाइए। MC, MR विधि का प्रयोग करें।
उत्तर:
अल्पकालीन संतुलन (Short Run Equilibrium) अल्पकाल समय की वह अवधि है, जिसमें माँग के बढ़ने पर उत्पादन उत्पादन (निर्गत) को केवल वर्तमान क्षमता (Existing Capacity) तक ही बढ़ाया जा सकता है। उत्पादन के स्थिर साधनों; जैसे मशीनरी, प्लांट आदि में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इस समय अवधि में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा फर्म का संतुलन तो उसी बिंदु पर निर्धारित होता है, जिस पर MC = MR हो तथा MC, MR को नीचे से काटे, परंतु संतुलन की अवस्था में फर्म को उत्पादन करने में (i) असामान्य लाभ, (ii) सामान्य लाभ या (iii) हानि उठानी पड़ सकती है। इनका विवरण दिए गए रेखाचित्रों की सहायता से किया जा सकता है।

1. असामान्य लाभ-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म को असामान्य लाभ (Supermormal Profit) उस समय होते हैं, जब फर्म की औसत संप्राप्ति (आगम) (AR) औसत लागत से अधिक होती है (AR > AC)। संलग्न रेखाचित्र में संतुलन बिंदु E है, जिस पर MC = MR है तथा MC वक्र, MR वक्र को नीचे से काट रहा है। इस स्थिति में संतुलन उत्पादन OQ है तथा संतुलन कीमत QP = OP1 है। OQ उत्पादन की प्रति इकाई कीमत (QP) औसत लागत (OC) से अधिक है। इसलिए फर्म को PP1C1C छाया वाले भाग के बराबर असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं।
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2. सामान्य लाभ-अल्पकाल में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म को सामान्य लाभ उस समय प्राप्त होते हैं, जब औसत संप्राप्ति (आगम) (AR) तथा औसत लागत (AC) एक-दूसरे के बराबर होती है। (AR = AC)। संलग्न रेखाचित्र में संतुलन बिंदु .E है, जिस पर MC = MR है तथा MC वक्र, MR वक्र को नीचे से काट रहा है। अतः संतुलन उत्पादन OQ है तथा संतुलन कीमत qP = OP1 निर्धारित होती है। OQ संतुलन उत्पादन की औसत संप्राप्ति (AR) तथा औसत लागत (AC) बराबर है (OP = QP1)। अतः फर्म को केवल सामान्य लाभ (Normal Profit) प्राप्त हो रहे हैं।
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3. न्यूनतम हानि-अल्पकाल में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में उत्पादन (निर्गत) काम कर रही फर्म को हानि भी हो सकती है। हानि उस समय होती है जब फर्म की औसत संप्राप्ति (AR) औसत (AC) से कम होती है अर्थात् जब AR1 निर्धारित होती है। औसत लागत QC है, जो कि कीमत अथवा औसत संप्राप्ति से अधिक है। इसलिए फर्म को PC प्रति इकाई हानि हो रही है, परंतु संतुलन उत्पादन की कीमत औसत परिवर्ती लागत (AVC) के बराबर है, क्योंकि बिंदु P पर AR वक्र AVC वक्र को छू रहा है। इस स्थिति में उत्पादन (निर्गत) x फर्म को कुल हानि CC1P1P के बराबर हो रही है, जो कि बँधी लागत के बराबर है, इसलिए P बिंदु उत्पादन बंद बिंदु (Shut-down Point) है।

प्रश्न 6.
अल्पाधिकार क्या है? अल्पाधिकार में कीमत निर्धारण की समस्या की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अल्पाधिकार (Oligopoly) से अभिप्राय बाजार की उस स्थिति से है, जब उद्योग में समरूप वस्तु का उत्पादन करने वाली अथवा निकट स्थानापन्न वस्तुओं का उत्पादन करने वाली फर्मों की संख्या अल्प (3, 4, 5……) परंतु बहुत अधिक नहीं होती।
अल्पाधिकार में कीमत निर्धारण की समस्याएँ (Problems of Price Determination Under Oligopoly)-अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन निर्धारण की समस्या वास्तव में एक गंभीर समस्या है। इस समस्या का समाधान सरल व निश्चित नहीं है।
अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन निर्धारण की समस्या से सम्बन्धित निम्नलिखित पहलू महत्त्वपूर्ण हैं-
1. एक सामान्य सिद्धांत की रचना कठिन-अल्पाधिकार विभिन्न प्रकार की बाजार स्थितियाँ हो सकती हैं। अल्पाधिकार की गैर-लचीली अवस्था (Tight Oligopoly) भी हो सकती है, जिसमें दो या तीन फर्मे सारे बाजार को नियंत्रित करती हैं। लचीली अवस्था (Loose Oligopoly) भी हो सकती है, जिसमें छह या सात फर्मे बाजार के अधिक भाग को नियंत्रित करती हैं। इसके अंतर्गत वस्तु-विभेदीकरण (Product Differentiation) अथवा समरूप उत्पाद (Homogeneous Product) भी पाए जा सकते हैं। इसमें फर्मों का गठबंधन. (Collusion) अथवा गैर-गठबंधन (Non-Collusion) भी हो सकता है। इसलिए अर्थशास्त्र में ऐसा कोई सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है, जो सभी प्रकार की अल्पाधिकार स्थितियों में कीमत तथा उत्पादन निर्धारण की व्याख्या कर सके।

2. अल्पाधिकार में माँग वक्र का अनिश्चित होना अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन के अनिर्धारण का एक अन्य कारण माँग का अनिर्धारित होना है। अल्पाधिकार में एक फर्म के निर्णय दूसरी फर्मों के निर्णयों पर निर्भर करते हैं। इसलिए अल्पाधिकारी फर्म की माँग वक्र का निर्धारण संभव नहीं होता, क्योंकि प्रतिद्वन्द्वियों की क्रियाओं के फलस्वरूप उसका खिसकाव होता रहता है। अतः प्रतिद्वन्द्रियों की क्रियाएँ तथा प्रतिक्रियाएँ अल्पाधिकारी माँग वक्र को अनिर्धारित बना देती हैं।

3. अल्पाधिकारी फर्म का उद्देश्य केवल अधिकतम लाभ प्राप्त करना ही नहीं होता-अल्पाधिकारी का उद्देश्य केवल लाभों को अधिकतम करना नहीं होता। चूंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धा तथा एकाधिकार की स्थिति में फर्मों का उद्देश्य लाभ को अधिकतमं करना होता है। फलस्वरूप, ऐसे बाजारों में उत्पादन की कीमतें तथा मात्रा निर्धारित करना संभव हो जाता है, परंतु अल्पाधिकार में फर्मों के कई अन्य उद्देश्य जैसे बिक्री को अधिकतम करना अथवा दीर्घकाल तक उचित मात्रा में स्थायी लाभों को प्राप्त करना आदि हो सकते हैं। इन विभिन्न उद्देश्यों के कारण भी अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन मात्रा अनिर्धारित रह जाती है।

4. व्यवहार में भिन्नता अल्पाधिकार में परस्पर निर्भरता के फलस्वरूप फर्मों के व्यवहार में भिन्नता पाई जाती है। जैसे कि-
(i) एक तो यह कि फर्मे आपस में मिल-जुलकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का निर्णय कर सकती हैं अथवा दूसरी सीमा यह है कि वे जीवन-पर्यंत एक-दूसरे से लड़ते रहें। यदि वे आपस में समझौते भी करते हैं तो ये कुछ शीघ्र ही टूट जाते हैं।
(ii) दूसरा, फर्मे अपने में से एक को नेता चुनकर कीमत तथा उत्पादन निर्धारण कर सकती हैं, परंतु इस अवस्था में भी कोई ऐसा सरल समाधान नहीं है कि जिससे यह पता चले कि फर्म अपनी कीमत व उत्पादन का निर्धारण किस प्रकार से करेगी। अतः स्पष्ट है कि अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन-निर्धारण संबंधी समस्या का कोई निश्चित समाधान नहीं है। इसका कारण प्रतिस्पर्धी फर्मों की प्रतिक्रिया में अनिश्चितता है।

अतः अल्पाधिकार में, परस्पर निर्भरता के फलस्वरूप फर्मों के व्यवहार में विभिन्नता संभव होती है। प्रतिद्वन्द्वी फर्मे परस्पर सहयोग भी कर सकती हैं अथवा स्वतन्त्र रहकर प्रतिस्पर्धा भी कर सकती हैं। वे समझौते कर सकती हैं या समझौते तोड़ सकती हैं। अतएव अल्पाधिकार में फर्मों के व्यवहार संबंधी इतनी अनिश्चितताएँ होती हैं जिस कारण से उनके बारे में कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया जा सकता। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अल्पाधिकारियों में प्रतिस्पर्धा की तुलना ‘ताश के खेल’ (Playing Cards) से की जा सकती है। जिस प्रकार ताश के खेल का परिणाम अनिश्चित होता है, उसी प्रकार अल्पाधिकार में उत्पादन की कीमत तथा मात्रा निर्धारण का कोई समाधान नहीं होता, इसलिए उन्हें अनिर्धारित कहा जाता है।

यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि यद्यपि अल्पाधिकार में, कीमत तथा उत्पादन निर्धारण की समस्या महत्त्वपूर्ण है। इन बाधाओं के होते हुए भी अल्पाधिकार की स्थिति में कीमत निर्धारण की दो मुख्य विशेषताएँ हैं-
1. अल्पाधिकार में कीमतें दृढ़ होती हैं इस स्थिति में बाजार की अन्य अवस्थाओं; जैसे पूर्ण प्रतिस्पर्धा, एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की तुलना में कीमतों में बहुत कम परिवर्तन होता है।
2. यदि अल्पाधिकार की स्थिति में, कीमतों में परिवर्तन होता है तो सभी फर्मों की कीमतों में परिवर्तन होगा, जिससे एक प्रकार का कीमत युद्ध (Price War) सा छिड़ जाता है। यह विशेषता भी अन्य बाजारों में नहीं पाई जाती।

इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अल्पाधिकार में कीमत तथा उत्पादन-निर्धारण का कोई निश्चित समाधान नहीं है।

प्रश्न 7.
द्वि-अधिकार क्या है? द्वि-अधिकार में फर्म की कीमत तथा उत्पादन मात्रा निर्धारण संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
द्वि-अधिकार का अर्थ-जब बाज़ार में किसी वस्तु का उत्पादन या विक्रय करने वाली केवल दो फर्मे होती हैं, तो उसे द्वि-अधिकार कहते हैं।
द्वि-अधिकार के अंतर्गत कीमत तथा उत्पादन-मात्रा निर्धारण (Price and Output Determination under Duopoply) यद्यपि द्वि-अधिकार के अंतर्गत कीमत तथा उत्पादन मात्रा के निर्धारण की समस्या अत्यंत जटिल होती है तथापि द्वि-अधिकार में कीमत निर्धारण की संभावित दशाओं का विश्लेषण निम्नलिखित प्रकार किया जा सकता है-
(1) समझौता हो जाने पर यदि दोनों विक्रेता आपस में समझौता करके बाज़ारों का बँटवारा कर लेते हैं तो दोनों विक्रेता अपने-अपने बाज़ारों में एकाधिकारी के समान कीमत निश्चित करने की स्थिति में हो जाते हैं। बाज़ारों का बँटवारा हो जाने के पश्चात् दोनों विक्रेता स्वतंत्र रूप से अपने-अपने क्षेत्रों में लागत-स्थितियों तथा माँग के अनुसार समायोजन करके कीमत निश्चित कर लेते हैं। यदि दोनों एकाधिकारियों की लागत-स्थितियाँ समान हों तथा दोनों की वस्तुओं की माँग की लोच समान हो तो दोनों बाज़ारों में कीमत भी समान होगी अन्यथा उनमें अंतर होने की संभावना बनी रहेगी।

(2) प्रतिस्पर्धा की स्थिति में यदि दोनों फर्मों के बीच कोई समझौता नहीं है तो उनमें प्रतिस्पर्धा रहेगी और कीमत युद्ध (Price War) छिड़ने की संभावना रहेगी। प्रत्येक विक्रेता अपने उत्पाद की कीमत घटाकर दूसरे विक्रेता के ग्राहकों को अपनी ओर खींचने का प्रयत्न करेगा तथा यह कीमत घटाने का क्रम तब तक चलेगा जब तक कि दोनों विक्रेताओं की कीमत उनकी सीमांत लागत के बराबर नहीं हो जाती है। यदि दोनों विक्रेताओं की वस्तुएँ समरूप नहीं हैं तो दोनों की कीमत में अंतर बना रह सकता है। व्यवहार में द्वि-अधिकारी फर्मे कीमत-युद्ध से बचने के लिए मूल्य नेतृत्व और आपसी समझौते का सहारा लेती हैं। इसलिए कहा जाता है कि द्वि-अधिकार का अंतिम हल कीमत नेतृत्व एवं गुटबंदी में निहित होता है।

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प्रश्न 8.
बाजार संरचना (Market Structure) का अर्थ बताते हए इसको निर्धारित करने वाले कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
बाज़ार संरचना का अर्थ बाज़ार संरचना से अभिप्राय उद्योग में काम कर रही फर्मों की संख्या, फर्मों के बीच प्रतियोगिता का स्वरूप और वस्तु की अपनी प्रकृति से है।
बाज़ार संरचना को निर्धारित करने वाले कारक-बाज़ार संरचना को निर्धारित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु के क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या-क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या होने का अर्थ यह है कि कोई भी क्रेता या विक्रेता अपने स्वतंत्र व्यवहार से बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की यह पहली शर्त य है जिसमें प्रत्येक विक्रेता और क्रेता कुल उत्पादन का एक सूक्ष्म भाग बेचता या खरीदता है। बाज़ार में केवल एक विक्रेता होने को एकाधिकार बाज़ार कहते हैं जबकि अधिक विक्रेता होने को एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार कहते हैं, क्योंकि वे अपनी वस्तु के ट्रेडमार्क व ब्रांड आदि से कीमत को प्रभावित करते हैं।

2. वस्तु की प्रकृति यदि बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तु समरूप व मानकीकृत है अर्थात् उसमें भेद नहीं किया जा सकता तो वस्तु की कीमत एक (या समान) रहेगी। कोई भी विक्रेता ऐसी वस्तु को अधिक कीमत पर नहीं बेच सकता। यह पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार की दूसरी शर्त या विशेषता है। यदि वस्तु; जैसे टूथपेस्ट में नाम, ब्रांड, आकृति, गुण आदि के आधार पर भेद किया जा सकता है तो फर्म अपने ब्रांड की वस्तु की कीमत अधिक वसूल कर सकती है। ऐसी स्थिति एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में पाई जाती है।

3. फर्मों का निर्बाध प्रवेश व बहिर्गमन-इससे अभिप्राय है कि फर्म को उद्योग में आने या इससे बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता है या नहीं। यदि किसी उद्योग में अधिक लाभ के आकर्षण के कारण नई फर्मों को प्रवेश करने की स्वतंत्रता है तो उस उद्योग में असामान्य लाभ समाप्त हो जाएंगे। इसी प्रकार यदि उद्योग में घाटा उठाने वाली फर्मों को उद्योग छोड़ने की पूरी छूट है तो घाटा (Loss) भी समाप्त हो जाएगा। संक्षेप में फर्मों के निर्बाध प्रवेश व बहिर्गमन से पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति बन जाएगी। यह भी देखना होगा कि वस्तुओं और साधनों (जैसे श्रम, पूँजी उद्यम आदि) की गतिशीलता है या नहीं अर्थात् वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने या साधनों को एक धंधे से दूसरे धंधे में जाने की पूरी स्वतंत्रता है या नहीं।

उपर्युक्त कारकों के आधार पर बाज़ार को प्रायः चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है-(i) पूर्ण प्रतिस्पर्धा, (ii) एकाधिकार, (iii) एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा और (iv) अल्पाधिकार। अंतिम तीन श्रेणियाँ अपूर्ण प्रतिस्पर्धा के रूप हैं।

प्रश्न 9.
एकाधिकार की परिभाषा दीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

एकाधिकार बाज़ार का अर्थ-एकाधिकार बाज़ार (Monopoly Market) बाज़ार की वह अवस्था है जिसमें वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है तथा उसका वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण होता है। एकाधिकार उस वस्तु का उत्पादन करता है, जिसका कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।
एकाधिकार बाज़ार की विशेषताएँ एकाधिकार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. एक विक्रेता-एकाधिकार बाज़ार में वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है। अतः इस बाज़ार में फर्म तथा उद्योग का अंतर समाप्त हो जाता है।

2. निकट स्थानापन्न का न होना-एकाधिकार बाज़ार जिस वस्तु का उत्पादन या विक्रय करता है, उसका कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता।

3. प्रवेश पर प्रतिबंध एकाधिकार बाज़ार में नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है। इसलिए एकाधिकारी का कोई प्रतियोगी नहीं होता।

4. पूर्ति पर प्रभावी नियंत्रण-वस्तु की पूर्ति पर एकाधिकारी बाज़ार का पूर्ण नियंत्रण होता है।

5. स्वतंत्र कीमत नीति-एकाधिकार बाज़ार का वस्तु की कीमत पर पूर्ण नियंत्रण होता है। वह स्वतंत्र कीमत नीति अपना सकता है। वह अपनी इच्छानुसार वस्तु की कीमत में वृद्धि या कमी कर सकता है। वह कीमत निर्धारण करने वाला होता है, न कि कीमत स्वीकार करने वाला। अतः क्रेताओं को वह कीमत देनी पड़ती है, जो एकाधिकारी तय करता है और चूँकि एकाधिकारी को वस्तु का मूल्य निर्धारण करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है, इसलिए उसे असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं।

6. कीमत विभेद-एकाधिकारी अपनी वस्त की विभिन्न क्रेताओं से तथा विभिन्न बाज़ारों में विभिन्न कीमतें ले सकता है।

7. विभिन्न औसत एवं सीमांत आगम वक्र-एकाधिकार में औसत और सीमांत आगम वक्र अलग-अलग होते हैं; जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाए गए हैं। एकाधिकार उत्पादन (निर्गत) फर्म का औसत आगम (AR) वक्र अथवा माँग-वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर झुकते हैं जो यह बताते हैं कि कम कीमत पर अधिक और अधिक कीमत पर कम वस्तु बेची जा सकती है। सीमांत आगम (MR) वक्र भी औसत आगम (AR) की तरह नीचे को ढालू होता है और औसत आगम (AR) वक्र के नीचे रहती है।
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प्रश्न 10.
अल्पाधिकार में कीमत अनम्यता क्या है? इसके कारण पर प्रकाश डालें। रेखाचित्र का प्रयोग करें।
उत्तर:
अल्पाधिकार में कीमत अनम्यता अथवा कीमत-दृढ़ता का अर्थ-जैसाकि पहले भी स्पष्ट किया जा चुका है, अल्पाधिकार में चूँकि सभी विक्रेताओं को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है तथा उनके समक्ष सदैव कीमत की अनिश्चितता की स्थिति बनी रहती है, इसलिए प्रायः सभी विक्रेता कीमत के ऐसे संतोषजनक स्तर को स्वीकार कर लेते हैं जो सभी के लिए लाभदायक हो। इस कीमत-स्तर को स्वीकार करके प्रायः सभी फर्मे इस कीमत-स्तर को बनाए रखने का प्रयास करती हैं जिससे इस बाज़ार-स्थिति में कीमत में स्थिरता पाई जाती है। इसका एक कारण और भी होता है कि यदि कोई फर्म अपनी कीमत कम करती है तो सभी फर्मे अपनी कीमतें कम करती हैं, लेकिन यदि कोई फर्म कीमत में वृद्धि करती है तो अन्य फर्मों द्वारा कीमत में वृद्धि आवश्यक नहीं है। परिणामस्वरूप कीमत में दृढ़ता अथवा स्थिरता दिखाई पड़ती है तथा एक फर्म की माँग रेखा विकुंचित (Kinked) हो जाती है अर्थात् अल्पाधिकार के अंतर्गत वस्तु के माँग वक्र में एक कोना होता है जो वर्तमान मूल्य से संबंधित होता है। उसी बिंदु पर कीमतें स्थिर रहती हैं, न घटती हैं, न बढ़ती हैं। अतः अल्पाधिकार के अंतर्गत कीमतों में स्थिरता होती है।

कीमत अनम्यता/कीमत-दृढ़ता के कारण-कीमत अनम्यता के कारण निम्नलिखित हैं-
अल्पाधिकारी, चूँकि वर्तमान स्तर से कीमत घटाकर माँग में अधिक वृद्धि नहीं कर सकता और वर्तमान स्तर से कीमत बढ़ाने पर उसकी बिक्री बहुत कम हो जाने पर वह वर्तमान कीमत में परिवर्तन लाने का इच्छुक नहीं होगा। अन्य शब्दों में, चूँकि वर्तमान कीमत को बदलने में कोई लाभ नहीं है, इसलिए अल्पाधिकारी वर्तमान कीमत पर ही अपनी वस्तु को बेचता रहेगा। इस प्रकार दृढ़ कीमतों की विकुंचित माँग वक्र सिद्धांत की सहायता से व्याख्या की जा सकती है। रेखाचित्र में वर्तमान कीमत MP है जिस पर माँग वक्र DD विकुंचित है। बाज़ार में MP कीमत स्थिर या दृढ़ रहेगी, क्योंकि अल्पाधिकारी स्थिति में कोई भी उत्पादक कीमत को कम अथवा अधिक करने से लाभान्वित नहीं होगा। इस पर ध्यान देना चाहिए कि यदि वर्तमान कीमत MP कीमत अन्मयता MP औसत लागत से अधिक होगी तो उत्पादकों को जो लाभ प्राप्त होंगे, वे सामान्य लाभ से अधिक होंगे। इस स्थिति में कीमत में-
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  • प्रतियोगी विक्रेताओं की प्रतिक्रियाओं की अनिश्चितताओं के कारण कोई भी फर्म कीमत को कम करने को तैयार नहीं होती है।
  • फर्मे यह निष्कर्ष निकाल चुकी होती हैं कि कीमत-युद्ध से कोई उत्पादन लाभ नहीं है।
  • फर्मे गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा को अधिक पसंद करने लगती हैं।
  • यदि फर्मों को ऐसा आभास हो कि कीमत कम करने से पारस्परिक समझौते भंग हो जाएँगे और फर्म को कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।

इन कारणों से कीमत में स्थिरता तथा दृढ़ता पाई जाती है तथा एक फर्म का माँग वक्र मोड़दार हो जाता है। इस प्रकार कोमेदार माँग कीमत-स्थिरता के कारणों पर प्रकाश डालती है परंतु यह स्थिर-कीमत किस प्रकार निश्चित की जाती है, इसके संबंध में कोनेदार माँग प्रकाश नहीं डालती। साथ-ही-साथ इसके द्वारा इस बात पर भी प्रकाश नहीं पड़ता कि नई कीमत पर नया कोना कैसे बनता है?

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प्रश्न 11.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की परिभाषा दीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा का अर्थ एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा (Monopolistic Competition) बाज़ार की उस अवस्था को कहते हैं जिसमें बहुत-सी फर्मे मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन व विक्रय कर रही होती हैं। ये वस्तुएँ बिल्कुल एक जैसी (Exactly Identical) तो नहीं होतीं, किंतु मिलती-जुलती (Similar) अवश्य होती हैं अर्थात् इनका प्रयोग एक-जैसा होता है तथा ये एक-दूसरे के निकट स्थानापन्न (Close Substitutes) होती हैं और इनमें ब्रांड, ट्रेडमार्क, गुण, रंग, रूप, सुगन्ध आदि के अंतर के कारण वस्तु विभेद (Product Differentiation) पाया जाता है; जैसे लक्स, हमाम, रेक्सोना, लिरिल आदि नहाने के साबुनों (Toilet Soaps) का उत्पादन करने वाली अनेक फळं एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की उदाहरण हैं।

संक्षेप में, एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार की वह अवस्था होती है जहाँ छोटे-छोटे अनेक विक्रेता पाए जाते हैं जो विभेदीकृत परंतु निकट प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ बेचते हैं।

एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की विशेषताएँ-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. फर्मों की अधिक संख्या-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों की संख्या अधिक होती है। इस प्रकार विक्रेताओं में प्रतिस्पर्धा पाई जाती है।

2. वस्तु विभेद-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अनेक फर्मे मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। उन वस्तुओं में रंग, रूप, आकार, डिज़ाइन, पैकिंग, ब्रांड, ट्रेडमार्क, सुगंध आदि के आधार पर वस्तु विभेद (Product Variation) किया जाता है; जैसे पेप्सोडेंट, कोलगेट, फोरहन्स, क्लोज़अप आदि टूथपेस्ट। इन पदार्थों में एकरूपता तो नहीं होती, लेकिन वे एक-दूसरे के निकट स्थानापन्न (Close Substitutes) होते हैं।

3. फर्मों के निर्बाध प्रवेश और बहिर्गमन-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में नई फर्मों के बाज़ार में प्रवेश करने और पुरानी फर्मों को बाज़ार छोड़ने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।

4. विक्रय लागतें-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा बाज़ार में प्रत्येक फर्म को अपनी वस्तु का प्रचार करने के लिए विज्ञापनों पर बहुत व्यय करना पड़ता है। अतः एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों में अपनी-अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए कीमत प्रतियोगिता तो नहीं पाई जाती, बल्कि गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा (Non-Price Competition) पाई जाती है।

5. प्रत्येक फर्म अपनी वस्तु के लिए एकाधिकारी है प्रत्येक फर्म का अपनी वस्तु पर एकाधिकार होता है अर्थात् उस नाम की वस्तु कोई अन्य फर्म नहीं बना सकती; जैसे लक्स (Lux) साबुन के उत्पादन पर हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड का एकाधिकार है। इस बाज़ार में उपभोक्ता भी कुछ विशेष वस्तुओं के लिए अपनी-अपनी पसंद रखते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग ब्रुक ब्राड चाय अधिक पसंद करते हैं, जबकि कुछ ताज चाय। ऐसे क्रेताओं के लिए उत्पादक एकाधिकारी ही होता है।

6. उद्योग व ग्रुप में अंतर-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अनेक फर्मे एक समान वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती, अपितु मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। ऐसी विभिन्न फर्मों के समूह को उद्योग न कहकर ग्रुप (Group) कहा जाता है।

7. आगम (संप्राप्ति) वक्र या माँग वक्र-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में हर फर्म की अपनी कीमत नीति होती है। इसमें फर्म के औसत तथा सीमांत संप्राप्ति वक्र एकाधिकारी बाज़ार की तरह दाईं ओर नीचे को झुके हुए होते हैं, जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक फर्म को अधिक वस्तु बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। फर्म का औसत संप्राप्ति (AR) वक्र ही फर्म का माँग वक्र होता है। ध्यान रहे कि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में माँग वक्र पूर्ण प्रतिस्पर्धा की भाँति समस्तरीय (पूर्ण लोचदार) भी नहीं होता क्योंकि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी विशेष फर्म के उत्पाद के प्रति निष्ठावान होते हुए भी यदि मिलती-जुलती वस्तुओं की कीमत में अंतर अधिक हो जाए तो उपभोक्ता सस्ते ब्रांड की ओर शिफ्ट होंगे क्योंकि इस बाज़ार में वस्तुएँ निकट स्थानापन्न होती हैं। इसलिए माँग उत्पादन (निर्गत) अथवा औसत आगम वक्र एकाधिकार की तुलना में, अधिक लोचदार होता है।
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प्रश्न 12.
अल्पाधिकार (Oligopoly) परिभाषित कीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
अल्पाधिकार का अर्थ-अपूर्ण प्रतिस्पर्धा का यह एक महत्त्वपूर्ण रूप है जहाँ चंद (कुछ) फर्मों में प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) होती बाजार में अल्प अर्थात कछ ही फर्मों का अधिकार होता है। इस प्रकार यह एकाधिकार (जिसमें केवल एक विक्रेता होता है) और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा (जिसमें अधिक फमें होती हैं) के बीच की स्थिति प्रकट करती है।
अल्पाधिकार की विशेषताएँ-अल्पाधिकार बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. कुछ बड़ी फर्मे फर्मों का अल्प या कम होना इसकी प्रमुख विशेषता है। अल्प होने का अर्थ यह है कि फर्म कीमत और उत्पादन की मात्रा का निर्णय लेते समय प्रतियोगी फर्मों की प्रतिक्रिया (Reaction) को ध्यान में रखती हैं। इस दृष्टि से फर्मे अंतर्निभर (Interdependent) होती हैं, क्योंकि प्रत्येक फर्म द्वारा कुल उत्पादन का एक बड़ा भाग पैदा किया व बेचा जाता है जिससे वस्तु की कीमत निश्चित रूप से प्रभावित होती है। प्रत्येक फर्म अपनी क्रिया से दूसरी फर्म को प्रभावित करती है।

2. समरूप व विभेदीकृत पदार्थ-अल्पाधिकार बाज़ार में बिकने वाले पदार्थ समरूप भी हो सकते हैं; जैसे इस्पात, उर्वरक आदि और विभेदीकृत पदार्थ भी हो सकते हैं जिन्हें ब्रांड, आकार, गुण, रंग, पैकिंग आदि के आधार पर विभेदीकृत भी किया जा सकता है; जैसे कारें, टी०वी० सेट, मोटर साइकिल, स्कूटी आदि।

3. नई फर्मों का प्रवेश कठिन-एक ही वस्तु का निर्माण करने व बेचने वाली फर्मे कुछ (जैसे पाँच या सात) ही होती हैं जो आपसी मेल-जोल व सामूहिक व्यवहार से नई फर्म का प्रवेश रोकने का भरसक प्रयास करती हैं। इसके अतिरिक्त फर्मों में परस्पर निर्भरता पाई जाती है।

4. बिक्री लागते-चाहे फर्मों की संख्या सीमित होती हो फिर भी वे अपनी वस्तु लोकप्रिय बनाने व बिक्री बढ़ाने के लिए समाचार पत्रों व रेडियो, टी.वी. आदि पर विज्ञापन, मुफ्त नमूने बाँटने व सेल्समैन आदि रखने पर व्यय करती हैं जिन्हें बिक्री लागते कहते हैं।

5. माँग वक्र की अनिश्चितता-यहाँ कीमत अधिकतर अपरिवर्तित रहती है, क्योंकि कोई भी फर्म ग्राहकों से वंचित होने के डर से कीमत नहीं बढ़ाती और न ही कीमत कम करती है कि कहीं दूसरी फर्मे कीमत ज्यादा गिराकर ग्राहक आकर्षित न कर लें। इसलिए किसी भी फर्म को यह अनुमान नहीं होता कि कीमत बढ़ाने या घटाने से माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा। फलस्वरूप माँग वक्र का स्वरूप अनिश्चित होता है।

प्रश्न 13.
पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार में अंतर बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधार पूर्ण प्रतियोगिता एकाधिकार
1. फर्मों की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों की संख्या बहुत अधिक होती है। एकाधिकार में केवल एक ही फर्म बाज़ार में होती है।
2. वस्तु की प्रकृति पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु समरूप होती है। एकाधिकार में वस्तुएँ समरूप अथवा विभेदीकृत हो सकती हैं।
3. माँग वक्र पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है। माँग वक्र X-अक्ष के समानांतर सीधी रेखा होती है। एकाधिकार में फर्म का माँग वक्र लोचदार होता है। माँग वक्र ऊपर से नीचे गिरता हुआ अर्थात् ऋणात्मक ढाल वाला होता है।
4. कीमत पूर्ण प्रतियोगिता में पूरे बाज़ार में वस्तु की एक ही कीमत पाई जाती है। एकाधिकारी फर्म विभिन्न क्रेताओं से एक-समान कीमत अथवा विभिन्न कीमतें वसूल कर सकती है।
5. स्वतंत्रता पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। एकाधिकार में नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता हैं।
6. विक्रय लागतें पूर्ण प्रतियोगिता में विक्रय लागतें नहीं होती। एकाधिकार में मामूली-सी विक्रय लागतें हो सकती है।

प्रश्न 14.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अंतर बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधार पूर्ण प्रतिस्पर्धा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा
1. फर्मों की संख्या पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्मों की संख्या बहुत अधिक होती है। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों की संख्या सीमित होती है।
2. कीमत पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में एक ही कीमत पाई जाती है। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु की विभिन्न कीमतें पाई जाती हैं।
3. वस्तु की प्रकृति पूर्ण प्रतिस्पर्धा में वस्तुएँ समरूप होती हैं। अर्थात् विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं में कोई अंतर नहीं होता। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं में वस्तु विभेद पाया जाता है।
4. बाज़ार का ज्ञान पूर्ण प्रतिस्पर्धा में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार की स्थिति का ज्ञान होता है। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार की स्थिति का पर्याप्त ज्ञान नहीं होता।
5. मूल्य सापेक्षता पूर्ण प्रतिस्पर्धा में माँग की पूर्ण मूल्य सापेक्षता पाई जाती है। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में माँग की मूल्य सापेक्षता कम होती है
6. विक्रय लागते पूर्ण प्रतिस्पर्धा में विक्रय लागतों का अभाव पाया जाता है। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों की विक्रय लागते अधिक होती हैं।

प्रश्न 15.
एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अंतर बताइए।
उत्तर:
एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में निम्नलिखित अंतर हैं-

अंतर का आधार एकाधिकार एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा
1. विक्रेताओं की संख्या एकाधिकार में वस्तु का केवल एक विक्रेता होता है। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तुओं की संख्या अधिक होती है।
2. वस्तु की किस्म एकाधिकार में एक ही किस्म की वस्तु का विक्रय किया जाता है और उस वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु विभेद के कारण वस्तु की अनेक किस्में पाई जाती हैं।
3. फर्म का माँग वक्र एकाधिकार में फर्म का माँग वक्र सामान्यतया बेलोचदार या कम लोचदार होता है। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का माँग वक्र अधिक लोचदार होता है।
4. कीमत एकाधिकार में एक विक्रेता होता है जिसके कारण वस्तु की कीमत सामान्यतया ऊँची होती है। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अनेक विक्रेता होते हैं और उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण वस्तु की कीमत सामान्यतया कम होती है।
5. लाभ एकाधिकार में एक फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में केवल अल्पकाल में ही फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होते हैं।
6. फर्मों का प्रवेश एकाधिकार में नई फर्मों के प्रवेश पर अनेक रुकावटें पाई जाती हैं। एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में नई फर्मों को बाज़ार में प्रवेश की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दी गई जानकारी के आधार पर संतुलन वाले उत्पादन स्तर का निर्धारण कीजिए। सीमांत लागत (MC), सीमांत आगम (MR) विधि का प्रयोग करें। सकारण उत्तर दीजिए।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 20
हल:
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार 21
उत्पादन की संतुलन स्थिति उत्पादन की छठी इकाई में प्राप्त होती है क्योंकि उत्पादन के इस स्तर पर उत्पादन की संतुलन दशा को संतुष्ट करने वाली निम्नलिखित दो शर्ते पूरी हो जाती हैं
(i) सीमांत लागत (7 रुपए) सीमांत आगम (7 रुपए) के बराबर है।
(ii) इस स्तर पर उत्पादन के बाद MC >MR हैं अर्थात् सीमांत आगम संप्राप्ति से अधिक आती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 2.
दी गई सारणी में एक एकाधिकारी प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत एवं कुल आगम सारणी दी गई है। संतुलन उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिए-

इकाइयाँ कुल लागत (रु०) कुल संप्राप्ति (रु०)
1 8 10
2 15 19
3 21 27
4 28 34
5 36 40
6 45 45
7 55 49

हल:

इकाइयाँ कुल लागत (रु०) कुल संप्राप्ति (रु०) कुल लाभ (रु०)
1 8 10 10 – 8 = 2
2 15 19 19 – 15 = 4
3 21 27 27 – 21 = 6
4 28 34 34 – 28 = 6
5 36 40 40 – 36 = 4
6 45 45 45 – 45 = 0
7 55 49 49 – 55 = -6

उपर्युक्त तालिका के अनुसार एकाधिकारी फर्म का कुल लाभ = 6 प्रतिस्पर्धा फर्म के संतुलन उत्पादन की मात्रा 4 इकाइयाँ हैं चूंकि इस स्थिति में फर्म का कुल लाभ = 6 सर्वाधिक है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ता के बजट सेट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उपभोक्ता का बजट सेट उन वस्तुओं के सभी बंडलों का संग्रह है, जिन्हें उपभोक्ता प्रचलित बाजार कीमत पर अपनी आय से खरीद सकता है।

प्रश्न 2.
बजट रेखा क्या है?
उत्तर:
बजट रेखा वह रेखा है जो दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न बंडलों को दिखाती है, जिन्हें उपभोक्ता दी हुई कीमतों और दी। हुई आय पर खरीद सकता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 3.
बजट रेखा की प्रवणता नीचे की ओर क्यों होती है? समझाइए।
उत्तर:
बजट रेखा दो वस्तुओं की अधिकतम इकाइयाँ दर्शाती है जिन्हें एक उपभोक्ता अपनी दी हुई आय से दोनों वस्तुओं को दी गई कीमतों पर खरीद सकता है। मान लीजिए कि एक उपभोक्ता की आय 1000 रुपए है और दो वस्तुओं x तथा y की कीमतें क्रमशः 2 रुपए और 5 रुपए प्रति इकाई है। इस प्रकार वह अपनी आय से x की अधिकतम 500 इकाइयाँ तथा y की शून्य इकाई खरीद सकेगा अथवा y की 200 इकाइयाँ और x की शून्य इकाई खरीद सकेगा। इस प्रकार x की 500 और y की 200 इकाइयों के अंदर ही एक उपभोक्ता x और की इकाइयाँ खरीदेगा। मान लीजिए, वह x की 200 और y की 120 इकाइयाँ खरीदता है। अगर । वह ) की अधिक इकाइयाँ खरीदना चाहता है, तो उसे x वस्तु की कुछ इकाइयों का त्याग करना पड़ेगा। इस प्रकार दोनों वस्तुओं की इकाइयों में ऋणात्मक (विपरीत) संबंध होता है। इसी संबंध के कारण बजट रेखा की प्रवणता नीचे की ओर होती है

प्रश्न 4.
एक उपभोक्ता दो वस्तुओं का उपभोग करने के लिए इच्छुक है। दोनों वस्तुओं की कीमत क्रमशः 4 रुपए तथा 5 रुपए है। उपभोक्ता की आय 20 रुपए है
(i) बजट रेखा के समीकरण को लिखिए।
(ii) उपभोक्ता यदि अपनी संपूर्ण आय वस्तु 1 पर व्यय कर दे, तो वह उसकी कितनी मात्रा का उपभोग कर सकता है?
(iii) यदि वह अपनी संपूर्ण आय वस्तु 2 पर व्यय कर दे, तो वह उसकी कितनी मात्रा का उपभोग कर सकता है?
(iv) बजट रेखा की प्रवणता क्या है?
उत्तर:
(i) बजट रेखा का समीकरण निम्नलिखित होगा
p1x1 + p2x2 = M
4x1 + 5x2 = 20

(ii) बजट रेखा समीकरण
4x1 + 5x2 = 20
चूँकि x2 = 0
इसलिए 4x1 + 5 x 0 = 20
4x1 = 20
x1 = \(\frac { 20 }{ 4 }\) = 5
अतः यदि उपभोक्ता अपनी संपूर्ण आय वस्तु 1 पर व्यय कर दे, तो वह उसकी 5 इकाइयों का उपभोग कर सकता है।

(iii) बजट रेखा समीकरण-
4x1 + 5x2 = 20
चूँकि x1 = 0
इसलिए 4 x 0 + 5x2 = 20
5x2 = 20
x2 = \(\frac { 20 }{ 5 }\) = 4
अतः यदि उपभोक्ता अपनी संपूर्ण आय वस्तु 2 पर व्यय कर दे, तो वह उसकी 4 इकाइयों का उपभोग कर सकता है।

(iv) बजट रेखा की प्रवणता = \(\frac{p_{1}}{p_{2}}\)
= \(\frac { 4 }{ 5 }\) = 0.8
नोट-प्रश्न 5, 6 तथा 7 प्रश्न 4 से संबंधित हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 5.
यदि उपभोक्ता की आय बढ़कर 40 रुपए हो जाती है, परंतु कीमत अपरिवर्तित रहती है तो बजट रेखा में क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर:
उपभोक्ता की आय बढ़ने पर बजट रेखा का समीकरण निम्नलिखित प्रकार से बदल जाएगा
4x1 + 5x2 = 40
इस समीकरण के अनुसार-
4x1 + 5 x 0 = 40
4x1 = 40
x1 = \(\frac { 40 }{ 4 }\) = 10
4 x 0 + 5x2 = 40
5x2 = 40
x2 = \(\frac { 40 }{ 5 }\) = 8
इस प्रकार, उपभोक्ता अपनी आय से वस्तु 1 की अधिकतम 10 और वस्तु 2 की 8 इकाइयाँ खरीद सकेगा। बजट रेखा में निम्नलिखित परिवर्तन होगा-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 1
रेखाचित्र में AB प्रारंभिक बजट रेखा है। जब उपभोक्ता की आय 20 रुपए से बढ़कर 40 रुपए हो जाती है, तो बजट रेखा AB से बढ़कर A,B, हो जाएगी।

प्रश्न 6.
यदि वस्तु 2 की कीमत में एक रुपए की गिरावट आ जाए परंतु वस्तु 1 की कीमत में तथा उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन न हो, तो बजट रेखा में क्या परिवर्तन आएगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 2
पुरानी P2 = 5
नई P2 = 5 – 1 = 4 रुपए
इसलिए नई x2 = 20 = 5 इकाइयाँ
p2 में परिवर्तन से बजट रेखा में निम्नलिखित परिवर्तन आएगा-
रेखाचित्र में AB प्रारंभिक बजट रेखा है, जबकि A1B नई बजट रेखा है।

प्रश्न 7.
अगर कीमतें और उपभोक्ता की आय दोनों दुगुनी हो जाए, तो बजट सेंट कैसा होगा?
उत्तर:
पुरानी M = 20
नई M = 20 x 2 = 40 रुपए
पुरानी P1 = 4
नई P1 = 4 x 2 = 8 रुपए
नई x1 = \(\frac { 40 }{ 8 }\) = 5 इकाइयाँ
पुरानी p2 = 5
नई p2 = 5 x 2 = 10 रुपए
नई x2 = \(\frac { 40 }{ 10 }\) = 4
इकाइयाँ चूँकि बजट रेखा के सभी तत्त्व (x1 और x2) पूर्ववत हैं इसलिए बजट रेखा में कोई भी परिवर्तन नहीं होगा।

प्रश्न 8.
मान लीजिए कि कोई उपभोक्ता अपनी पूरी आय का व्यय करके वस्तु 1 की 6 इकाइयाँ तथा वस्तु 2 की 8 इकाइयाँ खरीद सकता है। दोनों वस्तुओं की कीमतें क्रमशः 6 रुपए तथा 8 रुपए हैं। उपभोक्ता की आय कितनी है?
उत्तर:
वस्तु 1 की इकाइयाँ (x1) = 6
वस्तु 1 की कीमत (p1) = 6
वस्तु 2 की इकाइयाँ (x2) = 8
वस्तु 2 की कीमत (p2) = 8
बजट रेखा समीकरण के अनुसार
M = p1x1 + p2x2
= 6 x 6 + 8 x 8
= 36 + 64
= 100
रुपए इस प्रकार उपभोक्ता की आय 100 रुपए है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 9.
मान लीजिए, उपभोक्ता दो ऐसी वस्तुओं का उपभोग करना चाहता है जो केवल पूर्णांक इकाइयों में उपलब्ध हैं। दोनों वस्तुओं की कीमत 10 रुपए के बराबर ही है तथा उपभोक्ता की आय 40 रुपए है।
(i) वे सभी बंडल लिखिए, जो उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं।
(ii) जो बंडल उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं, उनमें से वे बंडल कौन-से हैं जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रुपए व्यय हो जाएँगे?
उत्तर:
(i)
M = 40
p = 10
x1 = \(\frac { 40 }{ 10 }\) = 4 इकाइयाँ
p2 = 10
x2 = \(\frac { 40 }{ 10 }\) = 4 इकाइयाँ
उपभोक्ता के लिए उपलब्ध बंडल निम्नलिखित होंगे
(0,0) (0, 1) (0, 2) (0, 3) (0, 4)
(1,0) (1, 1) (1, 2) (1, 3)
(2, 0) (2, 1) (2, 2)
(3,0) (3, 1)
(4,0)

(ii) वे बंडल जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 रुपए व्यय हो जाएँगे, निम्नलिखित हैं
(0,4) (1,3) (2, 2) (3, 1) (4,0)

प्रश्न 10.
‘एकदिष्ट अधिमान’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एकदिष्ट अधिमान’ का अर्थ यह है कि एक उपभोक्ता दो वस्तुओं के विभिन्न बंडलों में से उस बंडल को अधिमान देता है, जिसमें इन वस्तुओं में से कम-से-कम एक वस्तु की अधिक मात्रा हो और दूसरे बंडल की तुलना में दूसरी वस्तु की मात्रा भी कम न हो।

प्रश्न 11.
यदि एक उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं, तो क्या वह बंडल (10, 8) और बंडल (8, 6) के बीच तटस्थ हो सकता है?
उत्तर:
यदि उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं, तो वह बंडल (10, 8) और बंडल (8, 6) के बीच तटस्थ नहीं हो सकता। वह बंडल (10, 8) का चुनाव करेगा, क्योंकि इस बंडल में दोनों वस्तुओं की इकाइयाँ दूसरे बंडल की दोनों वस्तुओं की इकाइयों से अधिक हैं।

प्रश्न 12.
मान लीजिए कि उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं। बंडल (10, 10), (10, 9) तथा (9,9) पर उसके अधिमान श्रेणीकरण के विषय में आप क्या बता सकते हैं?
उत्तर:
यदि उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं, तो हम विभिन्न बंडलों को निम्नलिखित प्राथमिकता देंगे-

बंडल प्राथमिकता
(10, 10) I
(10, 9) II
(9, 9) III

प्रश्न 13.
मान लीजिए कि आपका मित्र, बंडल (5, 6) तथा (6, 6) के बीच तटस्थ है। क्या आपके मित्र के अधिमान एकदिष्ट हैं?
उत्तर:
यदि हमारा मित्र बंडल (5, 6) और (6, 6) के बीच तटस्थ है तो उसके अधिमान एकदिष्ट नहीं हैं, क्योंकि बंडल (6,6) से उसे बंडल (5, 6) की तुलना में अधिक संतुष्टि प्राप्त होगी। अधिमान एकदिष्ट के रूप में उसे बंडल (5, 6) की तुलना में बंडल (6,6) को प्राथमिकता देनी चाहिए।

प्रश्न 14.
मान लीजिए कि बाज़ार में एक ही वस्तु के लिए दो उपभोक्ता हैं तथा उनके माँग फलन इस प्रकार हैं-
d1 (p) = 20 – p किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से कम या बराबर हो तथा
d2 (p) = 0 किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से अधिक हो।
d2 (p) = 30 – 2p किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से कम या बराबर हो और
d2 (p) = 0 किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से अधिक हो।
बाज़ार माँग फलन को ज्ञात कीजिए। उत्तर
d1 (p) = 20 – p …..(i)
d2 (p) = 30 – 2p ….(ii)
बाज़ार माँग (d1 + d2) = 50 – 3p इस प्रकार बाज़ार माँग 15 रुपए से कम या बराबर वाली कीमत पर 50-3p होगी और 15 रुपए से अधिक कीमत पर शून्य (0) होगी।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 15.
मान लीजिए, किसी वस्तु के लिए 20 उपभोक्ता हैं तथा उनके माँग फलन एक-जैसे हैं
d (p) = 10 – 3p किसी ऐसी कीमत के लिए जो \(\frac { 10 }{ 3 }\) से कम हो अथवा बराबर हो तथा
d1(p) = 0 किसी ऐसी कीमत पर जो \(\frac { 10 }{ 3 }\) से अधिक है।
बाज़ार माँग फलन क्या है?
उत्तर
उपभोक्ताओं की संख्या = 20
एक उपभोक्ता का माँग फलन = d(p) = 10 – 3p क्योंकि p ≤ \(\frac { 10 }{ 3 }\)
चूँकि सभी 20 उपभोक्ताओं के माँग फलन एक-जैसे हैं, अतः बाज़ार माँग फलन व्यक्तिगत माँग फलन का 20 गुना होगा।
बाज़ार माँग फलन = 20(10 – 3p) क्योंकि p ≤ \(\frac { 10 }{ 3 }\)
= 200 – 60p क्योंकि p ≤ \(\frac { 10 }{ 3 }\)

प्रश्न 16.
एक ऐसे बाज़ार को लीजिए, जहाँ केवल दो उपभोक्ता हैं तथा मान लीजिए, किसी वस्तु के लिए उनकी माँगें इस प्रकार हैं-

p d1 d2
1 9 24
2 8 20
3 7 18
4 6 16
5 5 14
6 4 12

वस्तु के लिए बाज़ार माँग की गणना कीजिए।
उत्तर:
वस्तु के लिए बाज़ार माँग तालिका

कीमत रुपए (p) उपभोक्ता (1) द्वारा माँगी गई मात्रा (d1) उपभोक्ता (2) द्वारा  माँगी गई मात्रा (d2) बाज़ार माँग (d1 + d2)
1 9 24 33
2 8 20 28
3 7 18 25
4 6 16 22
5 5 14 19
6 4 12 16

प्रश्न 17.
सामान्य वस्तु से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामान्य वस्तुएँ वे होती हैं जिनकी माँगी गई मात्रा में वृद्धि होती है। जब उपभोक्ता की आय बढ़ती है तथा वस्तु की मात्रा में कमी आती है, तब उपभोक्ता की आय कम होती है; जैसे गेहूँ, मलाईयुक्त दूध, फल आदि।

प्रश्न 18.
निम्नस्तरीय वस्तुओं को परिभाषित कीजिए तथा कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
निम्नस्तरीय वस्तुएँ ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनके लिए माँग उपभोक्ता की आय के विपरीत दिशा में जाती है। उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इनकी माँग घटती है और आय घटने पर इनकी माँग बढ़ती है। उदाहरण के लिए, मोटे अनाज, मोटा कपड़ा, घटिया मार्क वाली वस्तुएँ, टोंड दूध आदि।

प्रश्न 19.
स्थानापन्न को परिभाषित कीजिए। ऐसी दो वस्तुओं के उदाहरण दीजिए जो एक-दूसरे के स्थानापन्न हैं।
उत्तर:
स्थानापन्न वस्तुएँ वे होती हैं जो एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग होती हैं; जैसे चाय-कॉफी, चीनी-गुड़।

प्रश्न 20.
पूरकों को परिभाषित कीजिए। ऐसी दो वस्तुओं के उदाहरण दीजिए जो एक-दूसरे के पूरक हैं।
उत्तर:
जिन वस्तुओं का साथ-साथ उपयोग किया जाता है उन्हें पूरक वस्तुएँ कहा जाता है; जैसे चाय-चीनी, जूते तथा जुराबे, टॉर्च तथा सैल।

प्रश्न 21.
माँग की कीमत लोच को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
माँग की कीमत लोच से हमारा अभिप्राय उस दर से है जिसके अनुसार वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से वस्तु की माँग में परिवर्तन होता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत 3

प्रश्न 22.
एक वस्तु की माँग पर विचार करें। 4 रुपए की कीमत पर इस वस्तु की 25 इकाइयों की माँग है। मान लीजिए वस्त की कीमत बढ़कर 5 रुपए हो जाती है तथा परिणामस्वरूप वस्तु की माँग घटकर 20 इकाइयाँ हो जाती है। कीमत लोच की गणना कीजिए।
उत्तर:
p0 = 4
q0 = 25
p1 = 5
q0 = 20
कीमत की लोच = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
= \(\frac{25-20}{5-4} \times \frac{4}{25}=\frac{5}{1} \times \frac{4}{25}\)
= \(\frac { 20 }{ 25 }\) = 0.8
इस उदाहरण में माँग की लोच 0.8 या इकाई से कम (eD < 1) या कम लोचदार है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

प्रश्न 23.
माँग वक्र D (p) = 10 – 3p को लीजिए। कीमत \(\frac { 5 }{ 3 }\) पर लोच क्या है?
उत्तर:
रैखिक माँग वक्र की दिशा में लोच- (eD) = -b\(\frac { p }{ q }\)
= –\(\frac { bp }{ a-bp }\)
दी हुई माँग वक्र D (p) = 10 – 3p
यहाँ a= 10 और b = – 3
कीमत \(\frac { 5 }{ 3 }\) पर q = 10 – 3(\(\frac { 5 }{ 3 }\)) = 5
माँग की लोच = -b\(\frac { p }{ q }\)
= -3\(\frac{\frac{5}{3}}{5}\)
= – 1
अर्थात् माँग की लोच इकाई के बराबर है।

प्रश्न 24.
मान लीजिए, किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच -0.2 है। यदि वस्तु की कीमत में 5% की वृद्धि होती है, तो वस्तु के लिए माँग में कितनी प्रतिशत कमी आएगी?
उत्तर:
eD = – 0.2
% ∆p = 5
eD = \(\frac{\% \Delta q}{\% \Delta p}\)
-0.2 = \(\frac{\% \Delta q}{5}\)
∴ % ∆q = -0.2 x 5 = – 1
इस प्रकार वस्तु की माँग में 1 प्रतिशत की कमी आ जाएगी।

प्रश्न 25.
मान लीजिए, किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच -0.2 है। यदि वस्तु की कीमत में 10% वृद्धि होती है, तो उस पर होने वाला व्यय किस प्रकार प्रभावित होगा?
उत्तर:
eD = – 0.2
% ∆p = 10
eD = \(\frac{\% \Delta q}{\% \Delta p}\)
– 0.2 = \(\frac{\% \Delta q}{10}\)
∴ % ∆q = -0.2 x 10
= – 2

प्रश्न 26.
मान लीजिए कि किसी वस्तु की कीमत में 4% की गिरावट होने के परिणामस्वरूप उस पर होने वाले व्यय में 2% की वृद्धि हो गई। आप माँग की लोच के बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर:
कीमत में % कमी = 4
कुल व्यय में % वृद्धि = 2
चूँकि कीमत में 4% कमी वस्तु पर होने वाले व्यय में 2% वृद्धि से अधिक है, अतः माँग की लोच इकाई से कम या बेलोचदार है।

उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत HBSE 12th Class Economics Notes

→ उपयोगिता-किसी वस्तु की वह क्षमता जो आवश्यकता को संतुष्ट करती है, उपयोगिता कहलाती है।

→ कुल उपयोगिता-किसी वस्तु की सभी इकाइयों से प्राप्त संतुष्टि के कुल जोड़ को कुल उपयोगिता कहते हैं।

→ सीमांत उपयोगिता-सीमांत उपयोगिता (MU) से अभिप्राय वस्तु की एक अधिक इकाई के प्रयोग करने से प्राप्त होने
वाली अतिरिक्त उपयोगिता से है। उदाहरण-
कुल उपयोगिता (TU) जब 10 इकाइयों का उपयोग किया जाता है = 100 यूटिल
कुल उपयोगिता जब 11 इकाइयों का उपयोग किया जाता है = 110 यूटिल
MU11th = TU11 – TU10 = 110 – 100 = 10 यूटिल

→ सीमांत उपयोगिता (MU) और कुल उपयोगिता (TU) में संबंध-सभी इकाइयों की सीमांत उपयोगिता (MU) को जोड़ने पर कुल उपयोगिता (TU) प्राप्त हो जाती है, अतएव TU = ∑MU
सीमांत उपयोगिता (MU) ह्रासमान होती है (ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम के अनुसार)। यह शून्य या ऋणात्मक हो जाती है। स्पष्ट है कि जब MU = 0 तब TU में कोई वृद्धि नहीं होती। इसलिए जब MU = 0 (शून्य) होती है, तब TU अधिकतम होती है। जब MU ऋणात्मक हो जाती है तब TU घटना शुरू हो जाती है।

→ ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम बतलाता है कि अन्य बातें समान रहने पर जब किसी वस्तु (जैसे चाय का एक प्याला) की अधिक इकाइयों का निरंतर उपभोग किया जाता है तब प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली अतिरिक्त उपयोगिता (MU) अवश्य ह्रासमान होती है और शून्य या ऋणात्मक भी हो सकती है।

→ उपभोक्ता संतुलन-उपभोक्ता संतुलन एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक उपभोक्ता अपनी सीमित आय को व्यय करके अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है तथा वह अपनी आय को खर्च करने के वर्तमान ढंग में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करना पसंद नहीं करता।

→ उपभोक्ता संतुलन का निर्धारण-एक ही वस्तु के लिए उपभोक्ता संतुलन (अधिकतम संतुष्टि) की स्थिति तब प्राप्त करता है जब वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता कीमत के रूप में दी जाने वाली मुद्रा की सीमांत उपयोगिता (MUM ) के बराबर हो जाती है।

→ बजट सेट-बजट सेट उन वस्तुओं के सभी बंडलों का संग्रह है, जिन्हें उपभोक्ता प्रचलित बाज़ार कीमत पर अपनी आय से खरीद सकता है।

→ बजट रेखा बजट रेखा उन सभी बंडलों का प्रतिनिधित्व करती है जिन पर उपभोक्ता की संपूर्ण आय व्यय हो जाती है। बजट रेखा की प्रवणता ऋणात्मक होती है। यदि कीमतों या आय दोनों में से किसी एक में परिवर्तन आता है, तो बजट सेट में परिवर्तन आ जाता है।

→ सुस्पष्ट अधिमान-सभी संभावित बंडलों के संग्रह के विषय में उपभोक्ता के सुस्पष्ट अधिमान हैं। वह उन पर अपनी अधिमानता के अनुसार उनका श्रेणीकरण कर सकता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

→ अनधिमान वक्र-अनधिमान वक्र सभी बिंदुओं का बिंदुपथ है जो उन बंडलों को प्रदर्शित करते हैं, जिनके बीच उपभोक्ता तटस्थ है।

→ अनधिमान वक्र की प्रवणता-अधिमान की एकदिष्टता से अभिप्राय है कि अनधिमान वक्र की प्रवणता नीचे की ओर है।

→ अनधिमान मानचित्र-उपभोक्ता का अधिमान सामान्यतया अनधिमान मानचित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है। उपभोक्ता का अधिमान सामान्यतया उपयोगिता फलन द्वारा भी दर्शाया जा सकता है।

→ उपभोक्ता का चयन-एक विवेकशील उपभोक्ता सदा बजट सेट में से अपने सर्वाधिक अधिमानता बंडल का चयन करता

→ उपभोक्ता का इष्टतम बंडल उपभोक्ता का इष्टतम बंडल बजट रेखा तथा अनधिमान वक्र के बीच स्पर्शिता बिंदु पर स्थित होता है।

→ उपभोक्ता का माँग वक्र-उपभोक्ता का माँग वक्र वस्तु की मात्रा को प्रदर्शित करता है, जिसका चयन उपभोक्ता कीमत के विभिन्न स्तरों पर ऐसी स्थिति में करता है, जब अन्य वस्तुओं की कीमत, उपभोक्ता की आय तथा उनकी रुचियाँ और अधिमान अपरिवर्तित रहते हैं।

→ सामान्य वस्तुओं की माँग-किसी सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि (गिरावट) उपभोक्ता की आय में वृद्धि (गिरावट) के साथ होती है।

→ निम्नस्तरीय वस्तु की माँग-उपभोक्ता की आय में वृद्धि (गिरावट) होने के साथ-साथ निम्नस्तरीय वस्तु की माँग में गिरावट (वृद्धि) होती है।

→ बाज़ार माँग वक्र बाज़ार माँग वक्र बाज़ार में सभी उपभोक्ताओं की माँग को वस्तु की कीमत में विभिन्न स्तरों पर समग्र दृष्टि से देखकर माँग को प्रदर्शित करता है।

→ माँग की कीमत लोच-किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच, किसी वस्तु की माँग के प्रतिशत में परिवर्तन को इसकी कीमत के प्रतिशत-परिवर्तन से भाग देकर प्राप्त किया जाता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 13 उत्पादन तथा लागत

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादन फलन की संकल्पना को समझाइए।
उत्तर:
उत्पादन फलन से अभिप्राय भौतिक आगतों और अधिकतम संभावित निर्गत के तकनीकी संबंध से है। अर्थात् उत्पादन फलन (q) = f (L, K)
यहाँ f = फलन
L = श्रम की भौतिक इकाइयाँ
K = पूँजी की भौतिक इकाइयाँ
उत्पादन फलन दो प्रकार के हो सकते हैं-

  • आगतों का स्थिर अनुपात उत्पादन फलन
  • आगतों का परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 2.
एक आगत का कुल उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
एक आगत (Input) का कुल उत्पाद उस आगत की सभी इकाइयों से प्राप्त कुल निर्गत (Output) है यदि अन्य आगतों को स्थिर रखा जाता है। अन्य शब्दों में, उत्पादन प्रक्रिया में प्रयोग हुई परिवर्ती कारक की प्रत्येक इकाई के उत्पादन का योग कुल उत्पाद है। अर्थात्
TP = \(\sum_{i=1}^{n} \mathrm{MP}\)
एक परिवर्ती कारक की सभी इकाइयों के सीमांत उत्पाद (MP) को जोड़कर हम कुल उत्पाद (TP) प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
एक आगत का औसत उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
एक आगत का औसत उत्पाद उस आगत के कुल उत्पाद को परिवर्ती आगत की इकाइयों से विभाजित करने से प्राप्त उत्पाद है। इस प्रकार,
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 1

प्रश्न 4.
एक आगत का सीमांत उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
एक आगत का सीमांत उत्पाद उस आगत की अतिरिक्त इकाई में परिवर्तन करने से कुल उत्पाद में होने वाला परिवर्तन है। इस प्रकार,
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 2

प्रश्न 5.
एक आगत के सीमांत उत्पाद तथा कुल उत्पाद के बीच संबंध समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपातों के नियम के अनुसार सीमांत उत्पाद और कुल उत्पाद में महरा संबंध है और सीमांत उत्पाद के कारण ही कुल उत्पाद में परिवर्तन होता है। सीमांत उत्पाद और कुल उत्पाद तीन अवस्थाओं से गुजरता है-

  • प्रथम अवस्था में, जब सीमांत उत्पाद बढ़ता है तो कुल उत्पाद अधिक दर से बढ़ता है।
  • द्वितीय अवस्था में, जब सीमांत उत्पाद घटता है तो कुल उत्पाद घटती हुई दर से बढ़ता है।
  • तृतीय अवस्था में, जब सीमांत उत्पाद ऋणात्मक होता है तो कुल उत्पाद भी घटता है।

इस संबंध को हम निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

श्रमिकों की संख्या सीमांत उत्पाद कुल उत्पाद
1 100 100
2 120 220
3 130 350
4 100 450
5 60 510
6 20 530
7 00 530
8 -10 520

प्रश्न 6.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल की संकल्पनाओं को समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल समय की वह अवधि है जिसमें उत्पादन के कुछ कारक स्थिर और कुछ परिवर्ती होते हैं, जिनके फलस्वरूप उत्पादन में परिवर्तन एक सीमा में ही किया जा सकता है। दीर्घकाल समय की वह अवधि है जिसमें उत्पादन के सभी कारक परिवर्ती होते हैं, जिसके फलस्वरूप उत्पादन में परिवर्तन वांछित मात्रा में किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
हासमान सीमांत उत्पाद का नियम क्या है?
उत्तर:
हासमान सीमांत उत्पाद का नियम यह बताता है कि जब स्थिर कारकों (Constant Factors) के साथ परिवर्ती कारक (Variable Factors) की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो एक सीमा के पश्चात् कुल उत्पाद घटती दर से प्राप्त होते हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 8.
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह बताता है कि जब स्थिर आगतों के साथ परिवर्ती आगत की मात्रा में वृद्धि की जाती है, तो पहले औसत तथा सीमांत उत्पाद एक सीमा तक बढ़ेंगे और उसके पश्चात् घटने लगेंगे।

प्रश्न 9.
एक उत्पादन फलन स्थिर पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
एक उत्पादन फलन स्थिर पैमाने के प्रतिफल को उस समय संतुष्ट करता है, जब सभी आगतों की इकाइयों में निश्चित अनुपात में वृद्धि करने से कुल उत्पाद में भी उसी अनुपात में वृद्धि हो।

प्रश्न 10.
एक उत्पादन फलन वर्धमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
एक उत्पादन फलन वर्धमान पैमाने के प्रतिफल को उस समय संतुष्ट करता है, जब कुल उत्पाद में उस अनुपात से अधिक वृद्धि होती है जिस अनुपात में आगतों को बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 11.
एक उत्पादन फलन ह्रासमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
एक उत्पादन फलन ह्रासमान पैमाने के प्रतिफल को उस समय संतुष्ट करता है, जब कुल उत्पाद में उस अनुपात से कम वृद्धि होती है जिस अनुपात में आगतों को बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 12.
लागत फलन की संकल्पनाओं को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
लागत फलन एक निर्गत स्तर और उसकी न्यूनतम लागत के संबंध को दर्शाता है। लागत फलन को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है
C = f(Q, P, T, K………) यहाँ C = कुल लागत, f= फलन, Q = निर्गत, P = आगतों की कीमतें, T = उत्पादन तकनीक, K = मशीनरी।

प्रश्न 13.
एक फर्म की कुल स्थिर लागत, कुल परिवर्ती लागत तथा कुल लागत क्या हैं? वे किस प्रकार संबंधित हैं?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो विभिन्न उत्पादन स्तरों पर एक-समान रहती हैं। कुल परिवर्ती लागत से हमारा अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन में परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होती हैं। कुल लागत से हमारा अभिप्राय उन सभी लागतों से है जिसका संबंध एक वस्तु के उत्पादन से है। कुल लागत, कुल स्थिर लागत और कुल परिवर्ती लागत का जोड़ है। इस प्रकार,
कुल लागत = कुल स्थिर लागत + कुल. परिवर्ती लागत

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प्रश्न 14.
एक फर्म की औसत स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा औसत लागत क्या है, वे किस प्रकार संबंधित हैं?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत से अभिप्राय प्रति इकाई स्थिर लागत से है। कुल स्थिर लागत को उत्पादन की मात्रा (इकाइयों) से भाग देने पर औसत स्थिर लागत प्राप्त होती है। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 3
औसत परिवर्ती लागत से अभिप्राय प्रति इकाई परिवर्ती लागत से है। कुल परिवर्ती लागत को उत्पादन की मात्रा (इकाइयों) से भाग देने पर औसत परिवर्ती लागत प्राप्त होती है। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 4
औसत लागत से अभिप्राय प्रति इकाई उत्पादन लागत से है। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा (इकाइयों) से भाग देने पर औसत लागत प्राप्त होती है। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 5
इस प्रकार औसत लागत, औसत स्थिर लागत और औसत परिवर्ती लागत का योग है।

प्रश्न 15.
क्या दीर्घकाल में कुछ स्थिर लागत हो सकती है? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
दीर्घकाल में कोई भी लागत स्थिर नहीं हो सकती, क्योंकि दीर्घकाल वह अवधि है जिसमें सभी आगत परिवर्ती हो जाते हैं।

प्रश्न 16.
औसत स्थिर लागत वक्र कैसा दिखता है? यह ऐसा क्यों दिखता है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत वक्र एक आयताकार अतिपरवलय (Rectangular Hyperbola) होता है। यदि हम निर्गत (उत्पादन) के किसी भी मूल्य को उससे संबंधित औसत स्थिर लागत से गुणा करते हैं, तब हम कुल स्थिर लागत प्राप्त करते हैं। औसत स्थिर लागत वक्र को संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। औसत स्थिर लागत वक्र का आकार आयताकार अतिपरवलय होता है क्योंकि इस वक्र के विभिन्न बिंदुओं पर वक्र के नीचे कुल क्षेत्रफल समान रहता है।
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प्रश्न 17.
अल्पकालीन सीमांत लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत वक्र कैसे दिखाई देते हैं?
उत्तर:
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, औसत परिवर्ती लागत वक्र और अल्पकालीन औसत लागत वक्र-ये तीनों वक्र U आकार के होते हैं, परंतु इनका यह आकार एक-समान नहीं होता। ऐसा परिवर्ती अनुपातों के नियम के लागू होने के कारण होता है। इन लागत वक्रों को संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। संलग्न रेखाचित्र से यह स्पष्ट है कि एक सीमा तक ये तीनों वक्र नीचे गिरते हैं और फिर ऊपर उठने लगते हैं। अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र तेजी से नीचे गिरता है और तेजी से ऊपर उठता है। ऊपर उठते हुए यह वक्र औसत परिवर्ती लागत वक्र और अल्पकालीन औसत लागत वक्र को उनके न्यूनतम बिंदुओं पर काटता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 7
औसत परिवर्ती लागत और अल्पकालीन औसत परिवर्ती लागत वक्र धीरे-धीरे गिरते हैं और फिर धीरे-धीरे ऊपर उठते हैं। प्रारंभिक अवस्था में तीनों वक्रों में अधिक अंतर होता है लेकिन बाद में यह अंतर कम होता जाता है परंतु ये वक्र कभी-भी एक-दूसरे को स्पर्श नहीं करते।

प्रश्न 18.
क्यों अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र औसत परिवर्ती लागत वक्र को काटता है, औसत परिवर्ती लागत वक्र के न्यूनतम बिंदु पर?
उत्तर:
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र और औसत परिवर्ती लागत वक्र दोनों ही ‘U’ आकार के होते हैं क्योंकि परिवर्ती अनुपातों का नियम लागू होता है। प्रारंभिक अवस्था में दोनों वक्र नीचे गिरते हुए होते हैं और एक सीमा के बाद दोनों ऊपर उठते हुए होते हैं। लेकिन सीमांत लागत के बढ़ने और घटने की दर औसत परिवर्ती लागत के बढ़ने और घटने की दर से अधिक होती है। इसलिए सीमांत लागत वक्र प्रारंभ में औसत परिवर्ती लागत वक्र से नीचे होता है और कुछ सीमा के बाद उठते हुए औसत लागत वक्र को न्यूनतम स्तर पर काटते हुए ऊपर उठता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
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प्रश्न 19.
किस बिंदु पर अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र को काटता है? अपने उत्तर के समर्थन में कारण बताइए।
उत्तर:
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। रेखाचित्र से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक अवस्था में अल्पकालीन औसत लागत वक्र और अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र दोनों ही नीचे गिरते हुए होते हैं, लेकिन अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र की तुलना में तेजी से गिरता है। अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत वक्र की तुलना में अधिक ऊपर उठता है। ऊपर उठते हुए अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, अल्पकालीन औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिंदु पर काटता है। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता जाता है, दोनों ही वक्र ऊपर उठते हैं परंतु अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र तेजी से ऊपर उठता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 9

प्रश्न 20.
अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र ‘U’ आकार का क्यों होता
उत्तर:
अल्पकालीन सीमांत लागत (MC) वक्र ‘U’ आकार का इसलिए होता है क्योंकि अल्पकाल में परिवर्ती अनुपातों का नियम लागू होता है। परिवर्ती अनुपातों के नियम के कारण सीमांत उत्पाद प्रारंभ में तेजी से बढ़ता है और एक सीमा के बाद सीमांत उत्पाद गिरने लगता है। सीमांत उत्पाद वक्र उल्टे ‘U’ आकार का होता है। जबकि अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का आकार ‘U’ की तरह होता है जो यह दर्शाता है कि प्रारंभिक अवस्था में सीमांत लागत गिरती है और बाद में उठती है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 10

प्रश्न 21.
दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा औसत लागत वक्र कैसे दिखते हैं?
उत्तर:
दीर्घकाल में एक फर्म के सीमांत लागत वक्र और औसत लागत वक्र पैमाने के प्रतिफल पर निर्भर करते हैं। पैमाने के प्रतिफल की तीन अवस्थाएँ होती हैं-वर्धमान प्रतिफल, स्थिर प्रतिफल और ह्रासमान प्रतिफल। इन अवस्थाओं के कारण दीर्घकाल में औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र ‘U’ आकार का होता है, लेकिन अल्पकालीन औसत लागत वक्र और सीमांत लागत वक्र की तुलना में दीर्घकालीन औसत लागत व सीमांत लागत वक्र कम गहरे अर्थात् अधिक चपटे होते हैं। दीर्घकालीन औसत लागत वक्र तश्तरी (Dish) का आकार भी ग्रहण कर सकता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 11

प्रश्न 22.
निम्नलिखित तालिका श्रम का कुल उत्पादन अनुसूची देती है। तदनुरूप श्रम का औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची निकालिए।

L 0 1 2 3 4 5
कुल उत्पाद 0 15 35 50 40 48

हल
औसत उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची

श्रम की इकाइयाँ (L) कुल उत्पाद औसत उत्पाद सीमांत उत्पाद
0 0 0 0
1 15 15 15
2 35 17.5 20
3 50 16.67 15
4 40 10 10
5 48 9.6 8

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 12

प्रश्न 23.
नीचे दी हुई तालिका श्रम का औसत उत्पाद अनुसूची बताती है। कुल उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची निकालिए, जबकि श्रम प्रयोगता के शून्य स्तर पर यह दिया गया है कि कुल उत्पाद शून्य है।

L 1 2 3 4 5 6
कुल उत्पाद 2 3 4 4.25 4 3.5

हल
कुल उत्पाद तथा सीमांत उत्पाद अनुसूची

श्रम की इकाइयाँ (L) औसत उत्पाद कुल उत्पाद सीमांत उत्पाद
0 0 0 0
1 2 2 2
2 3 6 4
3 4 12 6
4 4.25 17 5
5 4 20 3
6 3.5 21 1

सूत्रों का प्रयोग : (i) कुल उत्पाद = औसत उत्पाद x श्रम की इकाइयाँ
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 13

प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका श्रम का सीमांत उत्पादं अनुसूची देती है। यह भी दिया गया है कि श्रम का कुल उत्पाद शून्य है। प्रयोग के शून्य स्तर पर श्रम के कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची की गणना कीजिए।

L 1 2 3 4 5 6
सीमांत उत्पाद 3 5 7 5 3 1

हल
कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची

श्रम की इकाइयाँ (L) सीमांत उत्पाद कुल उत्पाद औसत उत्पाद
0 0 0 0
1 3 3 3
2 5 8 4
3 7 15 5
4 5 20 5
5 3 23 4.6
6 0 24 4

सूत्रों का प्रयोग:
(i) कुल उत्पाद = सीमांत उत्पाद1 + सीमांत उत्पाद2 + ………+ सीमांत उत्पादn
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 14

प्रश्न 25.
नीचे दी गई तालिका एक फर्म की कुल लागत अनुसूची दर्शाती है। इस फर्म का कुल स्थिर लागत क्या है? फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत, अल्पकालीन औसत लागत तथा अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची की गणना कीजिए।

Q 0 1 2 3 4 5 6
कुल उत्पाद 10 30 45 55 70 90 120

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 15
सूत्रों का प्रयोग-
(i) कुल स्थिर लागत = शून्य उत्पादन पर कुल लागत

(ii) कुल परिवर्ती लागत = कुल लागत कुल स्थिर लागत
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प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका एक फर्म के लिए कुल लागत अनुसूची देती है। यह भी दिया गया है कि औसत स्थिर लागत निर्गत की 4 इकाइयों पर 5 रुपए है। कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत, औसत स्थिर लागत, अल्पकालीन औसत लागत, अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची फर्म के निर्गत के तदनुरूप मूल्यों के लिए निकालिए।

Q कुल लागत
1 50
2 65
3 75
4 95
5 130
6 185

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 17
सूत्रों का प्रयोग
(i) कुल स्थिर लागत = शून्य उत्पादन पर कुल लागत

(ii) कुल परिवर्ती लागत = कुल लागत-कुल स्थिर लागत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 18

प्रश्न 27.
एक फर्म की अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची निम्नलिखित तालिका में दी गई है। फर्म की स्थिर लागत 100 रुपए है। फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत अनुसूची निकालिए।

Q अल्पकालीन सीमांत लागत
0
1 500
2 300
3 200
4 300
5 500
6 800

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 19
सूत्रों का प्रयोग
(i) कुल परिवर्ती लागत = अल्पकालीन सीमांत लागत1 + अल्पकालीन सीमांत लागत2 +…….. + अल्पकालीन सीमांत लागतn

(ii) कुल लागत = कुल परिवर्ती लागत + कुल स्थिर लागत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत 20

प्रश्न 28.
मान लीजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है, q = \(5 \mathrm{~L}^{\frac{1}{2}} \mathrm{~K}^{\frac{1}{2}}\) 100 इकाइयाँ L तथा 100 इकाइयाँ K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत निकालिए, जिसका उत्पादन फर्म कर सकती है।
हल:
उत्पादन फलन
q = \(5 \mathrm{~L}^{\frac{1}{2}} \mathrm{~K}^{\frac{1}{2}}\) = 100
यहाँ,
L = 100
K = 100
इस प्रकार,
q = \(5 \times 100^{\frac{1}{2}} \times 100^{\frac{1}{2}}\)
q = 5 x 10 x 10
= 500
अधिकतम संभावित निर्गत = 500 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 29.
मान लीजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है, q = 2L²K² 5 इकाइयाँ L तथा 2 इकाइयाँ K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत ज्ञात कीजिए, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है। शून्य इकाई L तथा 10 इकाई K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत क्या है, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है?
हल:
उत्पादन फलन-
q = 2L²K²
यहाँ,
L = 5
K = 2
इस प्रकार,
q = 2 x 5² x 2²
= 2 x 5 x 5 x 2 x 2
अधिकतम संभावित निर्गत = 200
यदि,
L = 0
K = 10
इस प्रकार,
q = 2L²K²
= 2 x 0 x 10²
= 2 x 0 x 0 x 10 x 10
= शून्य
अधिकतम संभावित निर्गत = शून्य उत्तर

प्रश्न 30.
एक फर्म के लिए शून्य इकाई L तथा 10 इकाइयाँ K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत निकालिए, जब इसका उत्पादन फलन है-q = 5L x 2K
हल:
उत्पादन फलन
q = 5L x 2K
यहाँ,
L = 0
K = 10
इस प्रकार,
q = 5 x 0 x 2 x 10
= शून्य
अधिकतम संभावित निर्गत = शून्य उत्तर

उत्पादन तथा लागत HBSE 12th Class Economics Notes

→ उत्पादन फलन-एक फर्म का उत्पादन फलन उपयोग में लाए गए आगतों तथा फर्म द्वारा उत्पादित निर्गतों के मध्य का संबंध है। उपयोग में लाए गए आगतों की विभिन्न मात्राओं के लिए यह निर्गत की अधिकतम मात्रा प्रदान कर सकता है, जिसका उत्पादन किया जा सकता है। उत्पादन फलन को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है
q = f(x1 + x2)
यह बताता है कि हम कारक 1 की x1 मात्रा तथा कारक 2 की x2 मात्रा का प्रयोग कर वस्तु की अधिकतम मात्रा q का उत्पादन कर सकते हैं।

→ कुल उत्पाद-किसी विशेष अवधि में कारकों की किसी विशेष मात्रा में फर्म द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की कुल .. मात्रा को कुल उत्पाद (TP) कहा जाता है।

→ औसत उत्पाद औसत उत्पाद निर्गत की प्रति इकाई परिवर्ती आगत के रूप में परिभाषित किया जाता है।

→ सीमांत उत्पाद-निर्गत के एक स्थिर कारक पर परिवर्ती कारक की एक अतिरिक्त इकाई लगाने से कुल उत्पाद में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत उत्पाद कहा जाता है।

→ परिवर्ती अनुपातों का नियम-परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है कि जैसे-जैसे स्थिर कारक के साथ एक परिवर्ती कारक की अधिक-से-अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो एक स्थिति ऐसी अवश्य आ जाती है जब परिवर्ती कारक का अतिरिक्त योगदान अर्थात् परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पादन कम होने लगता है।

→ कारक के प्रतिफल-यदि उत्पादक उत्पादन में परिवर्तन अन्य कारकों को स्थिर रखकर उत्पादन के केवल एक ही कारक में वृद्धि अथवा कमी के द्वारा करता है तथा इसके फलस्वरूप उत्पादन के कारकों के मिश्रण का अनुपात बदलता है तो उत्पादन और उत्पादन के कारकों के इस संबंध को कारक के प्रतिफल या परिवर्ती अनुपात का नियम कहते हैं।

→ उत्पादन की तीन अवस्थाएँ होती हैं-

प्रथम अवस्था बढ़ते (वर्धमान) प्रतिफल की है जब परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ रहा होता है।
दूसरी अवस्था घटते (हासमान) प्रतिफल की है जब परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद (MP) घट रहा (किंतु धनात्मक) होता है।
तीसरी अवस्था ऋणात्मक प्रतिफल की है जब परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद (MP) ऋणात्मक होता है। उत्पादक केवल दूसरी अवस्था में ही उत्पादन करेगा, प्रथम और तीसरी अवस्थाओं में नहीं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

→ कारक के प्रतिफल या परिवर्ती अनुपात के नियम की अवस्थाएँ-

  • कारक के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल
  • कारक के समान प्रतिफल
  • कारक के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल।

→ पैमाने के प्रतिफल पैमाने के प्रतिफल का संबंध सभी कारकों के समान अनुपात में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप कुल उत्पाद में होने वाले परिवर्तन से है।

→ पैमाने के प्रतिफल की तीन अवस्थाएँ-

  • पैमाने के वर्धमान (बढ़ते) प्रतिफल
  • पैमाने के ह्रासमान (घटते) प्रतिफल
  • पैमाने के स्थिर (समान) प्रतिफल।

→ औसत लागत-औसत लागत से अभिप्राय प्रति इकाई लागत से है।
या

→ औसत लागत औसत परिवर्ती लागत तथा औसत स्थिर लागत का जोड़ है। अर्थात्
AC = AVC + AFC
ध्यान रहे कि, AFC वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाली होती है, जबकि AVC वक्र ‘U’ आकार की होती है।

→ सीमांत लागत-सीमांत लागत से अभिप्राय है एक इकाई का अधिक या कम उत्पादन करने से कुल लागत में होने वाला परिवर्तन।
MC = \(\)

→ अल्पकालीन सीमांत लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत वक्र ‘U’ आकार के होते हैं।

→ अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, औसत परिवर्ती लागत वक्र को नीचे से औसत परिवर्ती लागत के न्यूनतम बिंदु पर काटता है।

→ अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र, अल्पकालीन औसत लागत वक्र को नीचे से अल्पकालीन औसत लागत के न्यूपर काटता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

HBSE 12th Class Hindi उषा Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?
उत्तर:
कविता में वर्णित राख से लीपा हुआ चौका, काली सिल, स्लेट पर लाल खड़िया चाक आदि उपमानों से यह पता चलता है कि कवि ने गाँव के परिवेश को आधार बनाकर उषाकालीन प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है। महानगरों में कहीं भी न तो लीपा हुआ चौका देखा जा सकता है, न ही स्लेट और न ही खड़िया चाक। ये सभी शब्द-चित्र गाँव से संबंधित हैं। गाँव के प्रत्येक घर में प्रातःकाल होने के बाद पहले चौका लीपा जाता है। तत्पश्चात् सिल का प्रयोग होता है फिर कुछ देर बाद बालक को स्लेट पट्टी दी जाती है। अतः यहाँ कवि ने ग्रामीण जन-जीवन के गतिशील चित्र अंकित किए हैं। इससे पता चलता है कि ये तीनों शब्दचित्र स्थिर न होकर गतिशील हैं क्योंकि एक क्रिया के समाप्त होने के बाद दूसरी क्रिया का आरंभ होता है।

प्रश्न 2.
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
उत्तर:
नई कविता अपने प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ कवि ने भाषा शिल्प के स्तर पर नए प्रयोग करके अर्थ की अभिव्यक्ति की है। सर्वप्रथम कवि ने कोष्ठक में ‘अभी गीला पड़ा है’ पंक्ति का प्रयोग किया है जो कि अतिरिक्त ज्ञान की सूचक है। यह पंक्ति आकाश रूपी चौके की ताज़गी और नमी को सूचित करती है। यह जानकारी पहले भी दी जा चुकी है। राख से लीपा हुआ चौका अपने आप में गीलेपन को सूचित करता है परंतु अतिरिक्त जानकारी के लिए कवि ने कोष्ठक का प्रयोग किया है जोकि गीलेपन को पूर्णतः स्पष्ट करता है।

अपनी रचना

अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
उत्तर:
प्रातःकालीन सूर्योदय हो रहा है जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों वह नीले सरोवर में स्नान करके बाहर निकला है। सूर्य लाल रंग का पक्षी है जो नीले आकाश के तारों को चुगकर खा जाता है और ओस कणों से अपनी प्यास बुझाता है। धीरे-धीरे यह सूर्य आकाश के मध्य विराजमान हो जाता है तथा अपने प्रकाश द्वारा संपूर्ण संसार को प्रकाशमान कर देता है। परंतु धीरे-धीरे यह सूर्य पर्वतों के शिखरों, वृक्षों, भवनों को पार करता हुआ पश्चिम दिशा की ओर अग्रसर होता है। लगता है कि सूर्य एक थका हुआ मुसाफिर है जो दिन भर यात्रा करने के बाद थक गया है तथा थकान के कारण उसका चेहरा लाल रंग का हो गया है। विश्राम करने के लिए वह पश्चिम दिशा रूपी गुफा में प्रवेश करने लगता है। उसकी गति मंद हो जाती है। अन्ततः वह अपनी थकान को दूर करने के लिए विश्राम करने लगता है तथा दूसरी ओर सूर्यास्त के बाद अँधेरा संसार को अपनी आगोश में ले लेता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

आपसदारी

सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों ?
→ उपमान
→ शब्दचयन
→ परिवेश
बीती विभावरी जाग री!
अंबर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सोई है आली आँखों में भरे विहाग री। -जयशंकर प्रसाद
उत्तर:
उपमान-“अंबर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।”
यहाँ कवि ने आकाश को ‘पनघट’, तारों को ‘घट’ (घड़ा) तथा ऊषा को ‘नागरी’ कहा है।

शब्दचयन-यहाँ कवि ने शृंगारिक शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है। प्रस्तुत गीत की शब्दावली पाठक के मन में प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों को उभारती है। शब्दचयन बड़ा ही सटीक तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है। कविता को एक बार पढ़कर पुनः पढ़ने का मन करता है।

परिवेश-कविता पढ़कर ऐसा लगता है कि मानो किसी सुंदर उपवन में बैठकर कवि गीत लिख रहा है, वहीं पर सुंदर युवती सोई हुई है जिसे जगाने के लिए कवि प्रकृति को आधार बनाता है।
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल
उड़ते जहाज़,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्चि रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलानेवाली कल की उदंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी। -सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
उत्तर:
उपमान बावरा अहेरी, चिड़ियाँ जाल, मंझोले परेवे, उड़ते जहाज़, उदंड चिमनियाँ आदि सर्वथा नवीन उपमान हैं।

शब्दचयन-यहाँ कवि ने सटीक तथा भावानुकूल शब्दों का चयन किया है जिससे कविता बड़ी सजीव बन पड़ी है। कविता का प्रत्येक शब्द बड़ा ही गतिशील एवं सक्रिय दिखाई देता है।

परिवेश-यह कविता नगरीय परिवेश का चित्रण करती है और सूर्य की किरणों द्वारा नगर पर फैलने का यथार्थ वर्णन करती है। दोनों कविताओं में से मुझे “बीती विभावरी जाग री” कविता अच्छी लगी है क्योंकि यह कविता महानगरों से दूर किसी ग्रामीण आँचल का सुंदर वर्णन करती है। इस कविता का प्रकृति वर्णन बहुत ही स्वाभाविक बन पड़ा है परंतु ‘बावरा अहेरी’ कविता शहरी जन-जीवन के धूल और धुएँ से ढकी हुई है। इसलिए यह कविता मुझे अच्छी नहीं लगती।

HBSE 12th Class Hindi उषा Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
“प्रात नभ या बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)”
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने प्रातःकालीन प्रकृति का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है जिसमें सुंदर तथा नवीन उपमानों का प्रयोग किया है।
  2. ‘शंख जैसे’, ‘राख ………………. पड़ा है। दोनों में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. इस पद्यांश में मौलिक कल्पना के साथ-साथ नवीन उपमानों का प्रयोग किया गया है।
  4. (अभी गीला पड़ा है) पंक्ति कोष्ठक में रखी गई है जो कि आकाश रूपी चौके की नमी तथा ताज़गी को सूचित करती है।
  5. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

2. “नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।”
उत्तर:

  1. इस पद्यांश में कवि ने सूर्योदय की बेला में क्षण-क्षण परिवर्तित प्रकृति का सूक्ष्म चित्रण किया है।
  2. ‘नीला जल’ नीले आकाश को सांकेतिक करता है और ‘गौर झिलमिल देह’ उगते हुए सूर्य के प्रकाश की ओर संकेत करती है।
  3. ‘नील जल’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘नील जल ……………. हिल रही हो’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  5. यहाँ नीले जल में झिलमिलाती गोरी देह उगते हुए सूर्य की द्योतक है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

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3. “बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने”
उत्तर:

  1. इसमें कवि ने नीले नभ से उदित होते हुए सूर्य के सौंदर्य का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है।
  2. ‘बहुत काली सिल ……………. गई हो’ तथा ‘स्लेट पर …………… किसी ने’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘काली सिल’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. लाल केसर से धुली काली सिल, भोर कालीन गीले वातावरण में सूर्योदय की लालिमा का द्योतन करती है।
  5. ‘स्लेट पर लाल खड़िया चाक’ प्रातःकालीन गीले वातावरण में उगते हुए सूर्य के लिए प्रयुक्त किया गया है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा अनुकूल व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संपूर्ण पद्यांश में चित्रात्मक व बिंबात्मक शैलियों का प्रयोग हुआ है।
  9. मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भोर के नभ को राख से लीपा चौका क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भोरकालीन आकाश गीली राख के रंग के समान गहरा स्लेटी रंग का होता है। उस समय के वातावरण में नमी के साथ-साथ पवित्रता भी होती है। अतः स्लेटी रंग को नमी तथा पवित्रता के कारण ही भोर के नभ की राख से लीपा गया गीला चौका कहा गया है। कवि सूर्योदयकालीन वातावरण की तुलना रसोई की पावनता के साथ करता है।

प्रश्न 2.
नील जल में हिलती झिलमिलाती देह के द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है?
उत्तर:
कवि ने नील जल शब्द का प्रयोग नीले आकाश के लिए किया है। जिस प्रकार नीले जल में कोई गौरवर्णी नारी धीरे-धीरे बाहर निकलकर आती है, उसी प्रकार नीले आकाश से सूर्य की श्वेत किरणें विकीर्ण होकर प्रकाश फैलाने लगती हैं।

प्रश्न 3.
स्लेट पर लाल खड़िया चाक मलने से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
यदि काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक को लीप दिया जाए तो वह गीली होने के साथ-साथ थोड़ी-सी लालिमा लिए हुए रहती है। उसका रंग भोरकालीन गहरे आकाश में सूर्य की लालिमा जैसा हो जाता है। यहाँ कवि का अभिप्राय उस नीले आकाश से है जिसमें सूर्य की लालिमा धीरे-धीरे व्याप्त होने लगती है।

प्रश्न 4.
सिल और स्लेट शब्दों का प्रयोग कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
सिल तथा स्लेट शब्दों का प्रयोग कवि ने भोरकालीन आकाश के गहरे नीले रंग के लिए किया है जिसमें सूर्योदय की थोड़ी-सी लालिमा भी मिली हुई होती है।

प्रश्न 5.
‘उषा’ कविता में निहित प्रकृति-सौंदर्य की विवेचना कीजिए। [H.B.S.E. March, 2019 (Set-B, C)]
उत्तर:
रात्रि के समय आकाश में कालिमा और नीली आभा फैली हुई होती है जिसमें झिलमिलाते हुए तारे अपना सौंदर्य बिखेरते हैं। सूर्योदय से पूर्व के काल में हल्का-हल्का प्रकाश चमकने लगता है और तारे लुप्त होने लगते हैं। इस अवसर पर आकाश में थोड़ी-सी नमी होती है तथा पौ फटने पर केसरिया रंग छिटक जाता है। फलस्वरूप पक्षी जाग जाते हैं और प्रकृति अंगड़ाई लेकर मुखरित होने लगती है। धीरे-धीरे लालिमा पूरे संसार पर छा जाती है। सूर्योदय के पश्चात् सारा संसार प्रकाश से जगमगाने लगता है और संसार के सभी प्राणी अपने-अपने क्रिया-कलाप आरंभ कर देते हैं।

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प्रश्न 6.
सूर्योदय से उषा का कौन-सा जादू टूट जाता है?
उत्तर:
सर्योदय के कारण उषा का अलौकिक रंग-रूप टने लगता है। सर्योदय से पहले प्रातःकालीन प्रकति क्षण-क्षण में परिवर्तित होती हुई दिखाई देती है। रात्रिकालीन कालिमा लुप्त हो जाती है और हल्की-हल्की लालिमा पूर्व दिशा में फैलने लगती है। इस प्रकार उषा का अद्वितीय रूप-सौंदर्य लुप्त हो जाता है और आकाश में सूर्य का प्रकाश फैलने लगता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म कब हुआ?
(A) 13 जनवरी, 1921
(B) 13 जनवरी, 1911
(C) 15 जनवरी, 1912
(D) 26 जनवरी, 1913
उत्तर:
(B) 13 जनवरी, 1911

2. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) उत्तराखंड में
(B) मध्य प्रदेश में
(C) पंजाब में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(A) उत्तराखंड में

3. शमशेर बहादुर सिंह का जन्म किस जनपद में हुआ?
(A) हरिद्वार में
(B) ऋषिकेश में
(C) देहरादून में
(D) मसूरी में
उत्तर:
(C) देहरादून में

4. शमशेर बहादुर सिंह का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1992 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1990 में
(D) सन् 1993 में
उत्तर:
(D) सन् 1993 में

5. ‘कुछ कविताएँ’ के रचयिता हैं-
(A) शमशेर बहादुर सिंह
(B) आलोक धन्वा
(C) हरिवंश राय बच्चन
(D) रघुवीर सहाय
उत्तर:
(A) शमशेर बहादुर सिंह

6. ‘बात बोलेगी’ के रचयिता हैं-
(A) कुंवर नारायण
(B) विष्णु खरे
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) हरिवंश राय बच्चन
उत्तर:
(C) शमशेर बहादुर सिंह

7. शमशेर बहादुर सिंह को ‘दो मोती के दो चंद्रमा होते’ रचना पर कौन-सा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) ज्ञानपीठ
(B) साहित्य अकादेमी
(C) शिखर सम्मान
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) साहित्य अकादेमी

8. ‘उर्दू-हिंदी कोश’ के संपादक कौन थे?
(A) आलोक धन्वा
(B) हरिवंश राय बच्चन
(C) रघुवीर सहाय
(D) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(D) शमशेर बहादुर सिंह

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9. ‘उषा’ कविता में किस काल की परिवर्तित प्रकृति का वर्णन किया गया है?
(A) सूर्योदय पूर्व काल की
(B) सूर्योदय के बाद की
(C) रात्रिकाल की
(D) सूर्योदय काल की
उत्तर:
(A) सूर्योदय पूर्व काल की

10. ‘उषा’ कविता के रचयिता हैं-
(A) कुँवर नारायण
(B) आलोक धन्वा
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) रघुवीर सहाय
उत्तर:
(C) शमशेर बहादुर सिंह

11. ‘प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा अलंकार
(B) रूपक अलंकार
(C) अनुप्रास अलंकार
(D) मानवीकरण अलंकार
उत्तर:
(A) उपमा अलंकार

12. ‘उषा’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) दोहा छंद
(B) मुक्त छंद
(C) सवैया छंद
(D) कवित्त छंद
उत्तर:
(B) मुक्त छंद

13. ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ के अतिरिक्त शमशेर बहादुर सिंह को अन्य कौन-सा सम्मान प्राप्त हुआ?
(A) शिखर सम्मान
(B) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(C) कबीर सम्मान
(D) तुलसी सम्मान
उत्तर:
(C) कबीर सम्मान

14. शमशेर बहादुर सिंह कहाँ पर पेंटिंग सीखने लगे?
(A) उकील बंधुओं के कला विद्यालय में
(B) साहित्य अकादमी में
(C) कला केंद्र में
(D) दिल्ली विश्वविद्यालय में
उत्तर:
(A) उकील बंधुओं के कला विद्यालय में

15. ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1970 में
(B) सन् 1972 में
(C) सन् 1971 में
(D) सन् 1975 में
उत्तर:
(D) सन् 1975 में

16. ‘कुछ कविताएँ’ काव्य-संग्रह का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1960 में
(B) सन् 1959 में
(C) सन् 1958 में
(D) सन् 1957 में
उत्तर:
(B) सन् 1959 में

17. ‘शमशेर’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1970 में
(B) सन् 1969 में
(C) सन् 1971 में
(D) सन् 1972 में
उत्तर:
(C) सन् 1971 में

18. ‘इतने पास अपने’ के रचयिता हैं-
(A) कुँवर नारायण
(B) हरिवंश राय बच्चन
(C) आलोक धन्वा
(D) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(D) शमशेर बहादुर सिंह

19. ‘इतने पास अपने का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1980 में
(B) सन् 1979 में
(C) सन् 1975 में
(D) सन् 1977 में
उत्तर:
(A) सन् 1980 में

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20. ‘उषा’ कविता में किस रंग की खड़िया चाक मलने की बात कही गई है?
(A) लाल
(B) पीली
(C) सफेद
(D) नीली
उत्तर:
(A) लाल

21. ‘उषा’ दिन का कौन-सा समय होता है?
(A) प्रभात
(B) मध्याह्न
(C) संध्या
(D) रात्रि
उत्तर:
(A) प्रभात

22. कविता में चौका किससे लीपा हुआ होने की बात कही गई है?
(A) गोबर
(B) राख
(C) मिट्टी
(D) लाल खड़िया
उत्तर:
(B) राख

23. ‘उषा’ का जादू टूटने का समय क्या है?
(A) सूर्यास्त
(B) प्रदोश
(C) सूर्योदय
(D) प्रहर
उत्तर:
(C) सूर्योदय

24. कविता में राख से लीपा हुआ क्या बताया है?
(A) आकाश
(B) चन्द्र
(C) काली सिल
(D) चौका
उत्तर:
(D) चौका

25. ‘राख से लीपा हुआ चौका’ आकाश की किस स्थिति की व्यंजना करता है?
(A) पवित्रता की
(B) ताज़गी की
(C) विशालता की
(D) गंभीरता की
उत्तर:
(A) पवित्रता की

26. राख से लीपा हुआ चौका गीला पड़ा होने से क्या अभिप्राय है?
(A) वर्षा
(B) पानी
(C) वातावरण की नमी
(D) रात शेष रहना
उत्तर:
(C) वातावरण की नमी

27. ‘बहुत काली सिल’ से क्या अभिप्राय है?
(A) रसोई की काली सिल
(B) रात की कालिमा
(C) प्रातःकाल की कालिमा
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) रात की कालिमा

28. ‘लाल खड़िया चाक’ क्या व्यंजित करती है?
(A) सूर्योदय से पूर्व की लालिमा
(B) खड़िया चाक का लाल रंग
(C) सूर्यास्त के बाद की लालिमा
(D) दोपहर की लालिमा
उत्तर:
(A) सूर्योदय से पूर्व की लालिमा

29. ‘नील जल में …………… हिल रही हो’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास अलंकार
(B) रूपक अलंकार
(C) उपमा अलंकार
(D) उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्तर:
(D) उत्प्रेक्षा अलंकार

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30. शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित ‘उषा’ कविता में किस शैली का प्रयोग हुआ है?
(A) विवरणात्मक शैली का
(B) चित्रात्मक शैली का
(C) संबोधन शैली का
(D) वर्णनात्मक शैली का
उत्तर:
(B) चित्रात्मक शैली का

31. प्रातःकालीन आकाश का रंग कैसा था?
(A) लाल
(B) सुनहरा
(C) नीला
(D) काला
उत्तर:
(C) नीला

32. ‘लाल केसर से धुली काली सिल’ किसे कहा गया है?
(A) आकाश
(B) तारे
(C) सूर्य
(D) चंद्रमा
उत्तर:
(A) आकाश

33. नीले आकाश में उदय होता हुआ सूर्य किसके समान दिखाई देता है?
(A) गौरवर्णीय सुंदरी के समान
(B) शंख के समान
(C) झील के समान
(D) सिंदूर के समान
उत्तर:
(A) गौरवर्णीय सुंदरी के समान

34. ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन नीला आकाश किसके जैसा बताया गया है?
(A) केसर
(B) शंख
(C) सिंदूर
(D) झील
उत्तर:
(B) शंख

35. ‘लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने स्लेट पर’ पंक्ति में स्लेट क्या है?
(A) तारे
(B) सूर्य
(C) धरती
(D) आकाश
उत्तर:
(D) आकाश

36. ‘उषा’ कविता में बहुत काली सिल की किससे धुलने की बात कही गई है?
(A) खड़िया
(B) पानी
(C) लाल केसर
(D) वर्षा
उत्तर:
(C) लाल केसर

37. सूर्योदय से पहले किसका जादू होता है?
(A) उषा का
(B) निशा का
(C) निशिचर का
(D) भूत का
उत्तर:
(A) उषा का

उषा पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है) [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-भोर = सवेरा, सवेरा होने से पहले का झुटपुटा वातावरण। नभ = आकाश। चौका = रसोई बनाने का स्थान।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या-प्रातःकालीन सूर्योदय का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि पौ फटने से पहले आकाश का रंग गहरा नीला था। यह शंख के समान गहरा नीला दिखाई दे रहा था। जैसे शंख की कांति स्वच्छ व नीली होती है वैसे ही आकाश भी स्वच्छ और नीली आभा लिए हुए था। उसके बाद भोर हुई तथा आकाश का गहरा नीला रंग थोड़ा मंद पड़ गया और वातावरण में नमी आ गई। उस समय आकाश ऐसा लग रहा था कि मानों राख से लीपा हुआ कोई गीला चौका हो अर्थात् नमी के कारण उसमें थोड़ा गीलापन आ गया था, लेकिन अभी भी उसमें थोड़ा नीलापन और थोड़ा मटमैलापन था।

विशेष-

  1. इस पद्यांश में कवि ने भोर के वातावरण का बहुत ही सूक्ष्म तथा मनोहारी वर्णन किया है।
  2. ‘शंख जैसे’ और ‘राख से लीपा हुआ चौका’ में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सहज प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-प्रयोग सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. प्रस्तुत पद्यांश नवीन उपमानों तथा मौलिक कल्पना के लिए प्रसिद्ध है।
  6. चित्रात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने प्रातःकालीन नभ की तुलना नीले शंख से क्यों की है?
(ग) भोर के नभ को राख से लीपा चौका क्यों कहा है?
(घ) चौके के गीले होने का प्रतीकार्थ क्या है?
(ङ) इस पद्यांश के आधार पर प्रातःकालीन प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(क) कविता – उषा कवि – शमशेर बहादुर सिंह

(ख) भोरकालीन वातावरण न अधिक काला होता है और न ही उजला। इसलिए कवि ने उसकी तुलना नीले शंख के साथ की है जिसका रंग बुझा-बुझा-सा होता है।

(ग) भोरकालीन वातावरण सुरमयी रंग का होता है और राख से लीपे जाने पर भी आँगन का रंग गहरा सुरमयी हो जाता है। इसलिए कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका कहा है।

(घ) प्रातःकालीन वातावरण में ओस की नमी होती है तथा इसका रंग गहरा परमयी होता है। इसलिए कवि ने इसकी तुलना चौके के साथ की है जोकि बड़ा ही पवित्र माना गया है। अतः चौके के गीले होने का प्रतीकार्थ है-प्रातःकालीन वातावरण में पवित्रता का होना।

(ङ) प्रातःकालीन वातावरण बड़ा ही शांत तथा ओस की नमी के कारण कुछ-कुछ गीला होता है। उस समय आकाश की पूर्व दिशा में हल्की लालिमा होती है जिसमें पेड़-पौधे, खेत-खलिहान बड़े ही मनोहारी प्रतीत होते हैं। धीरे-धीरे सूर्य की लाल-लाल किरणें संपूर्ण प्रकृति पर फैल जाती हैं और कुछ देर बाद यह लालिमा उजाले में परिवर्तित हो जाती है।

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[2] बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-सिल = मसाला, चटनी आदि पीसने वाला पत्थर जो रसोई में रखा जाता है। लाल केसर = फूल का सुगंधित पदार्थ, पराग = केसर के फूल का मध्य भाग जो औषधि में डाला जाता है।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है। यहाँ कवि उषा की लालिमा का वर्णन करते हुए कहता है कि

व्याख्या-भोर के अस्पष्ट अँधेरे में उगते हुए सूर्य की लाली का धीरे-धीरे मिश्रण होने लगता है। उस समय आकाश ऐसा लगता है कि मानों बहुत गहरी काली सिल लाल केसर से धुल गई हो अर्थात् संपूर्ण आकाश में सूर्य की लालिमा फैलकर उसको हल्के लाल रंग का बना देती है। उस समय यह वातावरण ऐसा दिखाई देता है कि मानों स्लेट पर लाल खड़िया चाक मिट्टी लगा दी गई है। यहाँ कवि ने नीले-काले आकाश की तुलना काली स्लेट के साथ की है और सूर्य की लालिमा की तुलना लाल खड़िया चाक के साथ की है।

विशेष-

  1. इस पद्यांश में कवि ने प्रातःकालीन प्रकृति के क्षण-क्षण बदलते हुए वातावरण का मनोहारी वर्णन किया है।
  2. रात की कालिमा, ओस का गीलापन तथा सूर्य की लालिमा तीनों का मिश्रण करके एक सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है।
  3. ‘बहुत काली सिल …………….. गई हो’ तथा ‘स्लेट पर ……………. किसी ने दोनों में उत्प्रेक्षा अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  4. ‘काली सिल’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है।
  5. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है तथा बिंब-योजना आकर्षक बन पड़ी है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश में कवि ने किस प्रकार के दृश्य का चित्रण किया है?
(ग) ‘काली सिल’, ‘स्लेट’ किस दृश्य को अंकित करती हैं?
(घ) ‘लाल केसर’ तथा ‘लाल खड़िया चाक’ से किस चित्र को अंकित किया गया है?
उत्तर:
(क) कवि – शमशेर बहादुर सिंह कविता – उषा

(ख) इस पद्यांश में कवि ने भोर के अँधेरे वातावरण में सूर्योदय की हल्की लालिमा के मिश्रण का दृश्य अंकित किया है जोकि बड़ा ही मनोहारी बन पड़ा है।

(ग) भोर के समय आकाश का रंग सुरमयी काला होता है। इस समय का अंधकार काली सिल या काली स्लेट जैसा होता है। इसलिए कवि ने काली सिल अथवा काली स्लेट द्वारा भोरकालीन सुरमयी अँधेरे का सुंदर चित्रण किया है।

(घ) ‘लाल केसर’ तथा ‘लाल खड़िया चाक’ सूर्योदय की लालिमा को चित्रित करने में समर्थ हैं। ये दोनों उपमान सर्वथा मौलिक तथा जनरुचि के अनुकूल हैं।

[3] नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और….
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है। [पृष्ठ-36]

शब्दार्थ-नील जल = नीले रंग का पानी। गौर = गोरे रंग की। झिलमिल देह = चमकता हुआ शरीर। सूर्योदय = सूर्य का उदित होना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस लघु कविता में कवि ने सूर्योदय से पूर्व की प्रकृति का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है। यहाँ कवि सूर्योदय का वर्णन करते हुए कहता है कि-

व्याख्या-प्रातःकाल में पहले तो आकाश में गहरा नीला रंग होता है फिर सूर्य की श्वेत आभा दिखाई देने लगती है। उस समय का प्राकृतिक सौंदर्य ऐसा दिखाई देता है मानों किसी सुंदर युवती की गोरी देह नीले रंग के पानी में झिलमिला रही हो परंतु कुछ समय बाद आकाश में सूर्य उदित हो जाता है। पता भी नहीं लग पाता कि उषा का क्षण-क्षण में बदलता हुआ सौंदर्य लुप्त हो जाता है अर्थात् क्षण भर में ही आकाश में सूर्योदय हो जाता है और प्रकृति का सौंदर्य भी नष्ट हो जाता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने सूर्योदयकालीन प्राकृतिक शोभा का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है।
  2. ‘नील जल ……………….. हिल रही हो’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘नीला जल’, ‘हो रहा है’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. संपूर्ण पद्यांश चित्रात्मक भाषा के लिए प्रसिद्ध है।
  7. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) नीले जल में गौर देह के झिलमिलाने में कौन सा दृश्य चित्रित किया है?
(ख) नीले जल द्वारा कवि प्रातःकाल के किस दृश्य का अंकन करना चाहता है?
(ग) गोरी देह की झिलमिलाने की समानता किस दृश्य से की गई है?
(घ) उषा का जादू टूटने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) नीले जल में गौर देह के झिलमिलाने के माध्यम से कवि नीले आकाश में सूर्य की कांति के झिलमिलाने का दृश्य अंकित करता है। प्रातःकाल के समय आकाश नीला होता है तथा सूर्य की पहली किरणें झिलमिलाकर उसको अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।

(ख) नीले जल के उपमान द्वारा कवि प्रातःकालीन नीले आकाश की निर्मलता और स्वच्छता को अंकित करता है।

(ग) प्रातःकाल में सूर्य की लालिमा धीरे-धीरे श्वेत होने लगती है। उस समय के वातावरण में कुछ नमी तथा कुछ चमक होती है। इसके लिए कवि ने नीले जल में स्नान करने वाली गोरी देह का वर्णन किया है जोकि सर्वथा उचित एवं प्रभावशाली बन पड़ा है।

(घ) उषा के जादू टूटने से अभिप्राय है प्रातःकालीन प्रकृति के अद्वितीय सौंदर्य का कम होना। उस समय प्रकृति क्षण-क्षण में परिवर्तित होती रहती है। भोर के समय आकाश नीला तथा काला होता है फिर पूर्व दिशा में हल्की लालिमा छा जाती है जिससे प्रकृति में नीलिमा व लालिमा का मिश्रण हो जाता है और अन्ततः दय के संपूर्ण आकाश में श्वेत लालिमा फैल जाती है।

उषा Summary in Hindi

उषा कवि-परिचय

प्रश्न-
शमशेर बहादुर सिंह का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा शमशेर बहादुर सिंह का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-नई कविता में शमशेर बहादुर सिंह का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनका काव्य तथा व्यक्तित्व बहुमुखी तथा विविधतापूर्ण है। उनका जन्म 13 जनवरी, 1911 ई० को देहरादून में एक जाट परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम बाबू सिंह था जोकि बडे ही निष्ठावान सरकारी नौकर थे। उनकी माता का नाम प्रभुदई था। वे बड़ी ही धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। माता के देहांत के बाद पूरा परिवार बिखर गया और पिता ने दूसरी शादी कर ली। शमशेर का विवाह धर्मवती से हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई। उन्होंने 1928 ई० में हाई स्कूल तथा 1933 ई० में प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। उन्होंने अंग्रेजी विषय में एम०ए० करनी चाही, परंतु सफल नहीं हो पाए। बाद में दिल्ली के उकील बंधुओं के ‘कला विद्यालय’ में पेंटिंग सीखने लगे, लेकिन शीघ्र ही वापिस देहरादून लौट गए और अपने ससुर की कैमिस्ट की दुकान में कंपाउडर का काम करने लगे। उनका संपूर्ण जीवन प्रायः अस्थिर ही रहा। 1993 ई० में अहमदाबाद में उनका देहांत हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-शमशेर ने गद्य तथा पद्य दोनों में कुशलतापूर्वक लिखा है। ‘कुछ कविताएँ’ (1959), ‘शमशेर’ (1971), ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ (1975), ‘इतने पास अपने’ (1980), ‘उदिता’ (1980), ‘बात बोलेगी’ (1981) आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। उन्होंने सन् 1932-33 में लिखना आरंभ किया था तथा उनकी आरंभिक रचनाएँ ‘सरस्वती’ तथा ‘रूपाभ’ में प्रकाशित हुईं। सन् 1951 में प्रकाशित दूसरे तार सप्तक में उनकी रचनाएँ भी सम्मिलित की गईं। सन् 1977 में उन्हें ‘दो मोती के दो चंद्रमा होते’ रचना पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया।

3. काव्यगत विशेषताएँ-उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(क) राष्ट्रीय चेतना-शमशेर जी की आरंभिक कविताओं में देश-प्रेम की भावना देखी जा सकती है। कवि ने स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेज़ी शासकों के अत्याचारों को समीप से देखा था। उन्होंने अपनी कविताओं में अंग्रेज़ी राज्य की क्रूरता तथा हिंसा का यथार्थ वर्णन किया है। सन् 1944 में अंग्रेज़ी सरकार ने मजदूरों पर गोलियाँ चलवाई थीं। इस संदर्भ में कवि लिखता है
“ये शाम है
कि आसमान खेत है पके हुए अनाज का
लपक उठी लहू से भरी दरातियाँ
कि आग है धुआँ-धुआँ
सुलग रहा
ग्वालियर के मजूर का हृदय।”

(ख) मार्क्सवादी चेतना-शमशेर जी सन् 1938 में मार्क्सवाद की ओर आकृष्ट हुए थे और 1945 में कम्युनिस्ट पार्टी के कम्यून में रहे। वहीं पर रहते हुए उन्होंने ‘नया साहित्य’ का संपादन भी किया। वे मानवता के उज्ज्वल भविष्य के लिए मार्क्सवाद को आवश्यक मानते थे। इसीलिए एक स्थल पर वे लिखते हैं-
“वाम-वाम-वाम दिशा
समय साम्यवादी”

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 6 उषा

(ग) सामाजिक चेतना-शमशेर जी के काव्य में सामाजिक चेतना भी देखी जा सकती है। उनका कहना था कि व्यक्ति अपने आप में समाज का ही एक अंश है। अतः कवि को अपनी भावनाएँ समाज के सत्य के संदर्भ में व्यक्त करनी चाहिएँ। इसीलिए वे समाज के कटुतम अनुभवों को अपनी कविताओं में प्रस्तुत करते हुए दिखाई देते हैं
“मैं समाज तो नहीं, न मैं कुल
जीवन,
कण-समूह में हूँ मैं केवल एक कण”।

(घ) वैयक्तिक अनुभूति-शमशेर जी ने अपनी कविताओं में अपनी निजी संवेदना को भी व्यक्त किया है। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भोगा और जो कुछ पाया, उन्हीं अनुभूतियों को वे यत्र-तत्र अनुभव करते रहे। उन्होंने अपने प्रणय संबंधों को स्वीकार किया और प्रेमी तथा प्रेमिका के एकत्व की स्थापना पर बल दिया। वे एक स्थल पर लिखते हैं
“मैं तो साये में बँधा सा
दामन में तुम्हारे ही कहीं ग्रह सा
साथ तुम्हारे।”

(ङ) प्रेम और सौंदर्य मूलतः शमशेर जी प्रेम और सौंदर्य के कवि माने जाते हैं। उनकी कविता में प्रेम का रंग बड़ा ही गहरा है। वे प्रेम और सौंदर्य का परस्पर संबंध स्थापित करते नज़र आते हैं। वे प्रेयसी को जीवन का सर्वस्व मानते हैं तथा वादा करके मुकर भी जाते हैं।
“वो कल आयेंगे वादे पर
मगर कल देखिए कब हो?
गलत फिर हज़रते-दिल
आपका तख्मीना होना है।”

(च) मानवतावाद-शमशेर जी का काव्य देश और काल की सीमा में बँधा नहीं है। वे मानवीय चेतना में अधिक विश्वास रखते थे और विश्व-बंधुत्व की भावना को अधिक महत्त्व देते थे। कवि ने नवीन तथा प्राचीन और पूर्व-पश्चिम में कोई भेद स्वीकार नहीं किया। कारण यह था कि वे अपनी कविता में मानव को ही अधिक महत्त्व देते हैं। एक स्थल पर वे लिखते हैं
“बहुत हौले-हौले नाच रहा हूँ
सब संस्कृतियाँ मेरे सरगम में विभोर हैं
क्योंकि मैं हृदय की सच्ची सुख-शांति का राग हूँ
बहुत आदिम, बहुत अभिनव।”
इसी प्रकार कवि ने अपनी कविताओं में जहाँ एक ओर प्रकृति-चित्रण किया है वहीं दूसरी ओर बाह्य आडंबरों तथा रूढ़ियों का भी विरोध किया है। वे जीवन में मृत्यु की हस्ती को भी स्वीकार करते हैं और मृत्यु को अपनी प्रेमिका मानते हैं।

4. कला-पक्ष-शमशेर बहादुर सिंह ने अपने साहित्य में सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं वे उर्दू भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग करने लगते हैं। उन्होंने भाषा तथा छंद की दृष्टि से अनेक प्रयोग किए हैं। उनकी भाषा में चित्रात्मकता, ध्वन्यात्मकता, लयात्मकता, नाद-सौंदर्य आदि गुण देखे जा सकते हैं। मूलतः उनका काव्य प्रतीकों तथा बिंबों के लिए प्रसिद्ध है। उनके बारे में रंजना अरगड़े लिखती हैं-“शमशेर को कवियों का कवि इसी अर्थ में कहते हैं कि उनकी कविता में हिंदी भाषा की अभिव्यक्ति-क्षमता खिलती-खुलती नज़र आती है। ऐसी बात नहीं है कि उन्होंने हिंदी भाषा को अभिव्यक्ति के उच्चतम शिखर तक पहुँचा दिया है पर आने वाले कवियों के समक्ष उन्होंने अनेक संभावनाएँ खोल दी हैं।”

उषा कविता का सार

प्रश्न-
शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘उषा’ कविता कविवर शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित एक लघु कविता है जिसमें कवि ने सूर्योदय से पूर्व पल-पल परिवर्तित प्रकृति का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है : भोर होने से पहले आकाश का रंग गहरा नीला होता है। इसकी तुलना कवि शंख के साथ करता है परंतु कुछ ही क्षणों के बाद उसमें नमी आ जाती है जिसमें वह राख से लीपे हुए चौके के समान दिखने लगता है। अगले क्षणों में उसमें सूर्य की लालिमा मिल जाती है जिसके फलस्वरूप ऐसा लगता है कि मानों लाल केसर से धुली काली सिल हो अथवा ऐसे लगता है कि मानों काली सिल पर किसी ने लाल खड़िया चाक लगा दी है। थोड़ी ही देर में सूर्य का प्रकाश प्रकट होने लगता है। इस स्थिति में ऐसा प्रतीत होता है कि मानों नीले जल में किसी की गोरी देह झिलमिला रही हो। इस प्रकार उषा का जादू समाप्त हो जाता है और सूर्योदय होने पर सारा आकाश प्रकाश से जगमगाने लगता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि उषा का सौंदर्य प्रति क्षण बदलता रहता है। यहाँ कवि ने उषा के सौंदर्य को देखने का प्रयास नहीं किया, बल्कि उसे पृथ्वी के परिवेश से जोड़कर प्रस्तुत किया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class Hindi सहर्ष स्वीकारा है Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
टिप्पणी कीजिए; गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।
उत्तर:
(क) गरबीली गरीबी कवि को अपने गरीब होने का कोई दुख नहीं है, बल्कि वह अपनी गरीबी पर भी गर्व करता है। उसे गरीबी के कारण न तो हीनता की अनुभूति होती है और न ही कोई ग्लानि। कवि स्वाभिमान के साथ जी रहा है।

(ख) भीतर की सरिता-इसका अभिप्राय यह है कि कवि के हृदय में असंख्य कोमल भावनाएँ हैं। नदी के पानी के समान ये कोमल भावनाएँ उसके हृदय में प्रवाहित होती रहती हैं।

(ग) बहलाती सहलाती आत्मीयता कवि के हृदय में प्रियतम की आत्मीयता है। इस आत्मीयता के दो विशेषण हैं बहलाती एवं सहलाती। यह आत्मीयता कवि को न केवल बहलाने का काम करती है, बल्कि उसके दुख-दर्द और
पीड़ा को सहलाती भी है और उसकी सहनशक्ति को बढ़ाती है।

(घ) ममता के बादल-जैसे ग्रीष्म ऋतु में बादल बरसकर हमें आनंदित करते हैं उसी प्रकार प्रेम की कोमल भावनाएँ कवि को आनंदानुभूति प्रदान करती हैं।

प्रश्न 2.
इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
(क) दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या-जिस प्रकार दक्षिणी ध्रुव में अमावस्या जैसा धना काला अंधकार छाया रहता है, उसी प्रकार कवि अपने प्रियतम के वियोग रूपी घनघोर अंधकार में डूबना चाहता है। कवि की इच्छा है कि वियोग की गहरी अमावस उसके चेहरे, शरीर और हृदय में व्याप्त हो जाए।

(ख) विचार वैभव-यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि धन का वैभव तो स्थायी नहीं होता, लेकिन विचारों की संपत्ति स्थायी होने के साथ-साथ मानवता का कल्याण करती है। कबीर, तुलसी, सूरदास आदि अपनी विचार संपदा के ही कारण महान कवि कहलाते हैं।

(ग) रमणीय उजेला-उजाला हमेशा प्रिय लगता है। कवि भी अपने प्रियतम के स्नेह उजाले से आच्छादित है। परंतु कवि के लिए यह मनोरम उजाला भी अब असहनीय हो गया है। कवि उससे मुक्त होना चाहता है।

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प्रश्न 3.
व्याख्या कीजिए-
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार-अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है?
उत्तर:
कवि उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि मुझे यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे और मेरे बीच स्नेह का न जाने ऐसा कौन-सा रिश्ता और संबंध है कि मैं जितना भी अपने हृदय के स्नेह को व्यक्त करता हूँ अथवा लोगों में उसे बाँटता हूँ, उतना ही वह बार-बार भर जाता है। ऐसा लगता है कि मानों मेरे हृदय में कोई मधुर झरना है जिससे लगातार स्नेह की वर्षा होती रहती है अथवा मेरे भीतर प्रेम की कोई नदी (झरना) है जो हमेशा स्नेह रूपी जल से छलकती रहती है। मेरे हृदय में तो तुम्हारा ही प्रेम विद्यमान है। मेरे हृदय में तुम्हारा यह प्रसन्न चेहरा इस प्रकार विद्यमान रहता है, जैसे पृथ्वी पर रात के समय चंद्रमा मुस्कुराता रहता है अर्थात् जैसे चाँद रात को रोशनी देता है, उसी प्रकार हे मेरे ईश्वर! तुम मेरे हृदय को प्रेम से प्रकाशित करते रहते हो।

प्रश्न 4.
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
(क) यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है? (ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है?

(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।

(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको कविता संबोधित है कविता का ‘तुम’) को पूरी तरह भूल जाना चाहता है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।
उत्तर:
(क) कवि ने ‘अंधकार-अमावस्या के लिए दक्षिण ध्रुवी विशेषण का प्रयोग किया है। इस विशेषण के प्रयोग से विशेष्य अंधकार की सघनता का पता चलता है अर्थात् अंधकार घना और काला है। कवि अपने प्रियतम को भूलकर इसी घने अंधकार में लीन हो जाना चाहता है।

(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में अपने प्रियतम की वियोग-जन्य वेदना एवं निराशा की स्थिति को अमावस्या की संज्ञा दी है। अतः इस स्थिति के लिए ‘अमावस्या’ शब्द का प्रयोग सर्वथा उचित एवं सटीक है।

(ग) वर्तमान स्थिति है-दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या की। यह स्थिति कवि वियोगावस्था से उत्पन्न पीड़ा की परिचायक है। इसकी विपरीत स्थिति है-‘तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित रहने का रमणीय उजेला’ जो कि कवि के संयोग प्रेम को व्यंजित करता है। एक ओर कवि ने वियोग-जन्य निराशा को गहरी अमावस्या के माध्यम से व्यक्त किया है। प्रथम स्थिति निराशा को व्यक्त करती है। इसीलिए कवि ने अमावस के अंधकार की बात की है। द्वितीय स्थिति आशा को व्यक्त करती है जो कि प्रेम की संयोगावस्था से संबंधित है। इसलिए कवि ने ‘रमणीय उजेला’ की बात की है।

(घ) कवि अपने संबोध्य को पूरी तरह भूल जाना चाहता है। इस स्थिति की तुलना कवि ने अमावस्या के साथ की है जहाँ चंद्रमा नहीं होता बल्कि घना काला अंधकार होता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि कवि अपने प्रियतम रूपी चाँद से सर्वथा अलग-थलग एकाकी जीवन व्यतीत करना चाहता है। कवि अपने प्रियतम के बिना अंधकार में डूब जाना चाहता है। वह अब वियोग से उत्पन्न पीड़ा को झेलना चाहता है। इस स्थिति के लिए कवि ने ‘शरीर पर चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं झेलू मैं/ उसी में नहा लूँ मैं’ आदि शब्दों का प्रयोग किया है अर्थात् कवि विरह को अपने शरीर तथा हृदय में झेलना चाहता है, उसमें नहा लेना चाहता है। कवि अपने प्रियतम के वियोग की पीड़ा के अंधकार में नहा लेना चाहता है।

प्रश्न 5.
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है-और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने दो विपरीत स्थितियों की चर्चा की है। कवि अपने उस प्रियतम की प्रत्येक वस्तु अथवा दृष्टिकोण को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। प्रथम स्थिति वह है जब कवि प्रेम के संयोग पक्ष को भोग रहा है। लेकिन अब कवि के लिए यह स्थिति असहनीय बन गई है। कवि प्रियतम की आत्मीयता को त्यागना चाहता है और उससे दूर रहकर वियोग आरोह (भाग 2) [गजानन माधव मुक्तिबोध] के अंधकार में डूब जाना चाहता है। अतः बहलाती सहलाती आत्मीयता से कवि दूर जाना चाहता है। यहाँ स्वीकार और अस्वीकार का भाव होने के कारण अंतर्विरोध है।

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कविता के आसपास

प्रश्न 1.
अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक ज़रूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और ज़रूरी कष्टों की सूची बनाएँ।
उत्तर:
अतिशय मोह निश्चय से दुखदायक होता है। सांसारिक मोह-माया के कारण ही मनुष्य अनेक गलत काम कर बैठता है। संतान-मोह के कारण लोग भ्रष्ट तरीकों से धन कमाते हैं और प्रिया के कारण माँ-बाप को भी त्याग देते हैं।

बच्चा माँ का दूध छोड़ना नहीं चाहता है। लेकिन बच्चे को माँ का दूध छोड़ना पड़ता है। धीरे-धीरे बच्चा इस कष्ट को भूल जाता है। कुछ विद्यार्थी घर-परिवार त्यागकर दूर देश में शिक्षा-प्राप्ति के लिए जाते हैं। घर का मोह छोड़ना उन्हें पीड़ादायक लगता है, लेकिन भावी जीवन का निर्माण करने के लिए उन्हें यह कष्ट सहना पड़ता है। लोग रोजगार पाने के लिए विदेशों में जाते हैं। घर का मोह उन्हें भी कुछ समय के लिए कष्ट पहुंचाता है। इसी प्रकार सैनिक युद्ध में भाग लेने के लिए उत्साहित रहता है। परंतु घर त्यागते समय उसे भी कष्ट की अनुभूति होती है। लेकिन वह इस कष्ट की परवाह न करके युद्ध लड़ने के लिए जाता है और देश के लिए कभी अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है।

प्रश्न 2.
‘प्रेरणा’ शब्द पर सोचिए और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष/महानारी आपके अँधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए।
उत्तर:
प्रेरणा का अर्थ है-आगे बढ़ने अथवा उन्नति करने की भावना उत्पन्न करना। संसार का प्रत्येक महापुरुष किसी-न-किसी महान् व्यक्ति, शिक्षक अथवा माता-पिता से प्रेरणा प्राप्त करके महान् काम करने में सफल हुआ। वीर शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई से प्रेरणा प्राप्त करके औरंगजेब के अत्याचारों से देश के एक भाग को मुक्त कराया और मराठा राज्य की स्थापना की। हम सब किसी-न-किसी से प्रेरणा प्राप्त करके कोई अच्छा काम कर जाते हैं। श्रीराम का आदर्श आज भी हमारे लिए प्रेरणा-स्रोत है। मैंने अपने बड़े भाई से प्रेरणा प्राप्त करके ही पढ़ना शुरू किया। पहले मैं दिन-भर खेल-कूद में लगा रहता था। मेरी बड़ी बहन पिता जी से प्रेरणा प्राप्त करके डॉक्टर बन सकी। हम सभी किसी-न-किसी से प्रेरणा प्राप्त करके ही आगे बढ़ते हैं।

प्रश्न 3.
‘भय’ शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीजों का भय बैठा है? उससे निबटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।
उत्तर:
भय का अर्थ है-डर। भय के अनेक प्रकार हैं। आज के भौतिकवादी युग में भय कदम-कदम पर हमारे साथ लगा रहता है। भय का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक एवं विस्तृत है। विद्यार्थियों को परीक्षा में फेल होने का भय लगा रहता है अथवा अच्छे अंक प्राप्त न करने का भी भय लगा रहता है। किसी विशेष विद्यालय अथवा महाविद्यालय में प्रवेश न मिलने का भय अथवा शिक्षा-प्राप्ति के पश्चात् उचित रोजगार न मिलने का भय हमारे पीछे लगा रहता है। लेकिन यदि हम जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण लेकर काम करते हैं तो भय से छुटकारा पाया जा सकता है। भय तो कदम-कदम पर हमारे सामने खड़ा है, लेकिन इसका डट कर सामना करना चाहिए। यदि हम सोच-समझकर योजनाबद्ध तरीके से काम करेंगे तो ही भय से बचा जा सकेगा। फिर भी हमें जीवन की प्रत्येक स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस मनःस्थिति के साथ हम बुरे-से-बुरे परिणाम का भी सामना कर सकते हैं।

कवि की मनःस्थिति से हमारी मनःस्थिति सर्वथा अलग है। हमें आज के जीवन में कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन हम विद्यार्थी बुरी-से-बुरी स्थिति के लिए तैयार हैं। हमें तो आगे बढ़ना है, परिश्रम करना है और आने वाले काल में अपने देश के गौरव को ऊँचा उठाना है।

HBSE 12th Class Hindi सहर्ष स्वीकारा है Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है

विशेष-

  1. यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि जीवन के सुख-दुख, गरीबी, गंभीरता, वैचारिक मौलिकता आदि से कवि को इसलिए प्यार है क्योंकि उसका प्रिय भी इनसे प्यार करता है।
  2. कवि का प्रिय अज्ञात है।
  3. ‘गरबीली गरीबी’ का प्रयोग कवि के स्वाभिमान को व्यंजित करता है।
  4. ‘भीतर की सरिता’ एक सफल लाक्षणिक प्रयोग है जो कि कवि की गहन आंतरिक अनुभूतियों को व्यंजित करता है। ‘अभिनव’ विशेषण अनुभूतियों की मौलिकता की ओर संकेत करता है।
  5. सहज, सरल एवं साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. संपूर्ण पद्य में अनुप्रास अलंकार (सहर्ष स्वीकारा, गरबीली गरीबी, विचार-वैभव) की छटा दर्शनीय है।
  8. ‘भीतर की सरिता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  9. संबोधनात्मक शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने अज्ञात प्रिय के प्रति अपनी प्रेमानुभूति व्यक्त की है।
  2. संपूर्ण पद्य में प्रश्न तथा संदेह अलंकारों के प्रयोग के कारण रहस्यात्मकता का समावेश हो गया है।
  3. ‘भर-भर फिर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  4. ‘झरना’ तथा ‘मीठे पानी का सोता’ दोनों में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।
  5. ‘मुसकाता चाँद ……………….चेहरा है’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  7. शब्द-चयन सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।
  9. माधुर्य गुण है तथा श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्वीकार किया है कि उसके प्रिय की ममता उसके हृदय को पीड़ा पहुँचाने लगी है। अतः प्रिय का स्नेह उसके लिए असहय हो गया है।
  2. ‘ममता के बादल’ में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘आत्मीयता’ तथा ‘कोमलता’ दोनों भावनाओं का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  4. ‘छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार है तथा संपूर्ण पद्यांश में स्वर मैत्री है।
  5. ‘मँडराती कोमलता भीतर पिराती’ में भी अनुप्रास अलंकार है।।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-योजना सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. प्रसाद गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने प्रिय के प्रति पूर्णतया समर्पित होने का वर्णन किया है। उसके प्रेम में अनन्य गहराई है। लेकिन वह प्रेम के संयोग पक्ष को छोड़कर वियोग पक्ष को भोगना चाहता है।
  2. ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘पाताली अँधेरे की गुहाओं …………………बादलों में’ में लाक्षणिकता है।
  4. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सरल प्रयोग हुआ है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. संबोधन शैली है तथा कवि की आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति हुई है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ शीर्षक कविता का प्रतिपाद्य (उद्देश्य) मूलभाव संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की एक महत्त्वपूर्ण कविता है। इसमें कवि ने जीवन के सुख-दुख तथा कोमल-कठोर स्थितियों को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करने का वर्णन किया है। कवि कहता है कि वह स्वयं को हमेशा अपने प्रिय से जुड़ा हुआ अनुभव करता है। कारण यह है कि यह सब उसके प्रिय की ही देन है। उसका पूरा जीवन अपने प्रिय की संवेदनाओं से संबद्ध है। कवि के मन में प्रेम का जो झरना प्रवाहित हो रहा है, वह उसके प्रिय की ही देन है। परंतु कवि स्वयं को प्रिय के प्रेम को निभाने में असमर्थ अनुभव करता है, जिसके लिए वह दंड भोगना चाहता है। वह कहता है कि उसे अंधेरी गुफाओं का निर्वासन मिल जाए, जहाँ वह प्रिय से अलग होकर उसकी यादों के सहारे अपने जीवन को व्यतीत कर सकेगा। ऐसी स्थिति में भी वह अपने प्रिय से जुड़ सकेगा।

प्रश्न 2.
कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा है?
उत्तर:
कवि ने अपने जीवन के सुख-दुख, गरबीली गरीबी, जीवन के गहरे अनुभवों आदि सब को सहर्ष स्वीकार किया है। कवि ने अपने भीतर प्रवाहित होने वाली नूतन भावनाओं के प्रवाह और प्रिय के संयोग तथा वियोग दोनों को सहर्ष स्वीकार किया है।

प्रश्न 3.
कवि के पास जो अच्छा-बुरा है, उसमें कौन-सी विशिष्टता तथा मौलिकता है?
उत्तर:
कवि के पास अच्छा-बुरा बहुत कुछ है। उसके पास गरबीली गरीबी है। गहरे अनुभव तथा प्रौढ़ विचार भी हैं। इसके साथ-साथ उसके पास कुछ नूतन भावनाएँ भी हैं। कवि की ये सब उपलब्धियाँ मौलिक तथा विशिष्ट हैं। कारण यह है कि कवि ने इन्हें अपने प्रिय के प्रेम के कारण प्राप्त किया है। ये इसलिए भी मौलिक हैं कि कवि ने इनको अपने जीवन में खूब भोगा है।

प्रश्न 4.
मुसकाता चाँद किसका प्रतीक है?
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में चाँद कवि के प्रिय के आलोक अथवा उसके खिले हुए चेहरे का प्रतीक है। इसलिए कवि कहता है कि जिस प्रकार चाँद रात भर धरती पर अपना प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार प्रिय का चेहरा कवि को आनंद प्रदान करता है।

प्रश्न 5.
कवि पाताली अँधेरे की गुफाओं के विवरों में लापता होने का दंड क्यों भोगना चाहता है?
उत्तर:
कवि अब प्रिय के अत्यधिक प्रेम को सहन नहीं करना चाहता। वह सोचता है कि प्रिय के प्यार के बिना विरह-वेदना सहकर उसका व्यक्तित्व अत्यधिक सुदृढ़ हो जाएगा। प्रिय के प्रेम के संयोग पक्ष को भोगकर उसकी आत्मा तथा उसकी संकल्प-शक्ति दोनों ही कमजोर हो गए हैं। इसलिए वह विरह के पाताली अँधेरे की गुहाओं में लापता हो जाना चाहता है।

प्रश्न 6.
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
इन पद्य पंक्तियों का भावार्थ क्या है?
उत्तर:
कवि यह कहना चाहता है कि उसने स्नेह को खुलकर लोगों में बाँटा है। लेकिन जितना वह इसे बाँटता है, उतना ही और बढ़ता जाता है। लगता है कि कवि के हृदय में प्रेम का एक झरना प्रवाहित हो रहा है। यह झरना मानों मीठे पानी का सोता है, जो भी नहीं सूखता। कवि अन्य लोगों में इस स्नेह को जितना अधिक बाँटता है, उतना ही वह झरना और भरता चला जाता है।

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प्रश्न 7.
कवि के लिए प्रेम का सुखद पक्ष असह्य क्यों बन गया है?
उत्तर:
कवि सोचता है कि प्रेम के सुखद पक्ष के कारण उसके मन में प्रिय की ममता बादलों के समान मँडराती रहती है जिससे उसकी आत्मा कमजोर और असमर्थ हो गई है। प्रिय के प्रेम के कारण उसका अपना व्यक्तित्व भी कमज़ोर होता जा रहा है। इसलि कवि प्रिय के वियोग का दंड भोगना चाहता है। वह यह भी सोचता है कि प्रिय की प्रेममयी यादें अकेलेपन में भी उसे प्रसन्न रखेंगी।

प्रश्न 8.
कवि ने अपने जीवन में सब कुछ सहर्ष क्यों स्वीकार किया है?
उत्तर:
कवि ने अपने जीवन में जो कुछ भी भोगा है अर्थात् सुख-दुख जो कुछ भी पाया है चाहे वह गरीबी हो या विचार वैभव; वह सब उसके प्रिय को भी प्यारा है। कवि की इन उपलब्धियों के पीछे उसके प्रिय की प्रेरणा काम करती रही है। इसलिए उसने अपने जीवन में सब कुछ सहर्ष स्वीकार किया है।

प्रश्न 9.
कवि पाताली अँधेरे की गुहाओं में और विवरों में तथा धुएँ के बादलों में लापता क्यों होना चाहता है?
उत्तर:
कवि अपने प्रिय के स्नेह के संयोग पक्ष से अब छुटकारा चाहता है। वह सोचता है कि उसके प्रेम में ग्लानि छिपी हुई है। अतः वह प्रिय के प्रेम के संयोग पक्ष के उजाले को सहन नहीं कर पाता। इसलिए वह पाताली अंधेरे की गुफाओं अर्थात् वियोग के धुएँ के बादलों में लापता हो जाना चाहता है।

प्रश्न 10.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए कि कवि एक स्वाभिमानी व्यक्ति है।
उत्तर:
कवि ने अपनी गरीबी को गरबीली कहा है। वह अपनी गरीबी के कारण स्वयं को लाचार अनुभव नहीं करता और न ही किसी की सहानुभूति चाहता है, बल्कि कवि ने गरीबी की बजाय अपनी मौलिक वैचारिकता को अधिक महत्त्व दिया है।

प्रश्न 11.
‘जाने क्या रिश्ता है?’ का गूढ़ अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि और उसके प्रिय के बीच एक विचित्र प्रकार का संबंध है। जितना वह अपने प्रेम को व्यक्त करता है, उतना ही वह भर-भर आता है। भाव यह है कि कवि का प्रेम अनंत और गहरा है। कवि पूर्णतया अपने प्रिय के प्रति समर्पित है। उसका प्रेम प्रगाढ़ है।

प्रश्न 12.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता के आधार पर कविवर मुक्तिबोध के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस कविता के पढ़ने से पता चलता है कि मुक्तिबोध का व्यक्तित्व गंभीर, विचारशील, सुदृढ़ होने के साथ-साथ मौलिक चिंतन की छाप लिए हुए है। भले ही कवि गरीब है, लेकिन उसे अपनी गरीबी पर भी गर्व है। कवि ने धन का संग्रह करने के लिए अनुचित साधनों का कभी भी प्रयोग नहीं किया। वे विचार-वैभव की तुलना में धन-वैभव को तुच्छ मानते थे। उनके पास एक गहरी सोच और समृद्ध विचार सपंदा थी। कवि की अभिव्यक्ति पूर्णतया मौलिक थी।

प्रश्न 13.
क्या प्रेम के संयोग पक्ष के साथ-साथ वियोग पक्ष भी आवश्यक है? कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में मुक्तिबोध ने प्रेम के संयोग पक्ष के साथ-साथ वियोग पक्ष को भी आवश्यक माना है। इसीलिए तो वह कहता है कि “जो कुछ भी मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है।” आगे चलकर कवि अपने विभिन्न रिश्ते की बात करता है। वह प्रिय के प्रसन्न चेहरे की तुलना मुसकाते चाँद के साथ करता है। परंतु अगली पंक्तियों में वह प्रिय को भूलने का दंड भोगना चाहता है। वह प्रिय के रमणीय उजाले को सहन नहीं कर पाता और उसके वियोग को पाना चाहता है, क्योंकि कवि को लगता है कि इस स्थिति में उसे प्रिय का सहारा प्राप्त होगा। कवि के विचारानुसार प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों में ही प्रेम की संपूर्णता है।

प्रश्न 14.
ममता सदा हितकर क्यों नहीं होती?
उत्तर:
ममता मनुष्य को पंगु कर देती है। ममता देने वाला व्यक्ति अपने प्रिय को प्रेम के उजाले से आच्छादित कर देता है जिससे प्रिय-पात्र का आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ जाता है। वह प्रिय की कृपा पर ही निर्भर हो जाता है। उसका आत्मबल नष्ट हो जाता है। अतः ममता के सहारे अधिक समय तक निर्भर न रहकर मनुष्य को अपने व्यक्तित्व को दृढ़ करना चाहिए।

प्रश्न 15.
कवि दंड किसे और क्यों कहता है?
उत्तर:
अपने प्रिय से वंचित होने के अनुभव को ही कवि ने दंड कहा है। इसीलिए कवि ने अपने प्रिय से विमुक्त होने की कामना की है। प्रथम स्थिति में कवि को प्रिय की आत्मीयता बहलाती और सहलाती है। उसे लगता है कि वह प्रिय के बिना जी नहीं पाएगा। अतः दूसरी स्थिति में वियोग का दंड भोगना चाहता है ताकि वह अपने व्यक्तित्व को सुदृढ़ कर सके।

प्रश्न 16.
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है-इस पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि को प्रिय के संयोग जनित प्रकाश अर्थात् सुखानुभूति से भविष्य की आशंकाएँ डराने लगी हैं। यह सोचकर कवि की छाती अर्थात् हृदय छटपटाने लगता है कि यदि भविष्य में उसे प्रिय का प्रेम नहीं मिलेगा तो वह कैसे जी सकेगा? प्रिय के बिना उसका क्या होगा?

प्रश्न 17.
कवि अपने प्रिय को क्यों नहीं भूल पाता?
उत्तर:
कवि अपने प्रिय को इसलिए नहीं भूल पाता, क्योंकि उसका जीवन प्रिय से अत्यधिक प्रभावित रहा है। प्रिय ने उसके जीवन की सभी कमजोरियों तथा उपलब्धियों को स्वीकार किया है और गरीबी में भी उसका साथ दिया है। कवि के प्रत्येक संवेदन को जागृत करने में उसके प्रिय का सहयोग रहा है। उसके बिना तो वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता।

प्रश्न 18.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता किसको व क्यों स्वीकारने की प्रेरणा देती है?
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता हमें जीवन के सुख-दुख, क्षमता अक्षमता तथा गरीबी-अमीरी आदि सभी उपलब्धियों को स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। हमारा प्रेरणा-स्रोत अर्थात् प्रिय इन सब स्थितियों को स्वीकार कर लेता है। इसलिए हमारे प्रेरणा-स्रोत अर्थात् प्रिय हमारे लिए वरदान के समान हैं। अतः कवि के अनुसार गरबीली गरीबी, मौलिक विचार तथा गहरे अनुभव सभी स्वीकार करने योग्य हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. मुक्तिबोध का जन्म कब हुआ?
(A) 13 नवंबर, 1918
(B) 13 नवंबर, 1917
(C) 13 दिसंबर, 1920
(D) 10 नवंबर, 1922
उत्तर:
(B) 13 नवंबर, 1917

2. मुक्तिबोध का पूरा नाम क्या है?
(A) गजानन माधव मुक्तिबोध
(B) गजाधर मुक्तिबोध
(C) राम माधव मुक्तिबोध
(D) दयानंद माधव मुक्तिबोध
उत्तर:
(A) गजानन माधव मुक्तिबोध

3. मुक्तिबोध का जन्म किस प्रदेश में हुआ?
(A) उत्तरप्रदेश में
(B) दिल्ली में
(C) मध्यप्रदेश में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(C) मध्यप्रदेश में

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4. मुक्तिबोध का जन्म कहाँ हुआ?
(A) मुरैना जनपद के शिवपुर कस्बे में
(B) मुरैना जनपद के रामपुर कस्बे में
(C) ग्वालियर जनपद के श्योपुर में
(D) भिंड जनपद के कृष्णापुरा में
उत्तर:
(C) ग्वालियर जनपद के श्योपुर में

5. मुक्तिबोध के पिता का नाम क्या था?
(A) कृष्णकुमार मुक्तिबोध
(B) रामकुमार मुक्तिबोध
(C) कृष्णमाधव मुक्तिबोध
(D) माधव मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) माधव मुक्तिबोध

6. मुक्तिबोध के पिता किस पद पर नियुक्त थे?
(A) आयकर इंस्पैक्टर
(B) पुलिस इंस्पैक्टर
(C) सिविल सप्लाई इंस्पैक्टर
(D) स्वास्थ्य इंस्पैक्टर
उत्तर:
(B) पुलिस इंस्पैक्टर

7. मुक्तिबोध ने किस विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) मुंबई विश्वविद्यालय
(B) इलाहाबाद विश्वविद्यालय
(C) नागपुर विश्वविद्यालय
(D) लखनऊ विश्वविद्यालय
उत्तर:
(C) नागपुर विश्वविद्यालय

8. मुक्तिबोध ने किस वर्ष एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) सन् 1953 में
(B) सन् 1954 में
(C) सन् 1951 में
(D) सन् 1952 में
उत्तर:
(A) सन् 1953 में

9. मुक्तिबोध ने किस विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) अंग्रेज़ी
(B) भाषा विज्ञान
(C) इतिहास
(D) हिंदी
उत्तर:
(D) हिंदी

10. मुक्तिबोध का निधन कब हुआ?
(A) 12 सितंबर, 1963
(B) 11 सितंबर, 1964
(C) 18 जनवरी, 1960
(D) 11 सितंबर, 1965
उत्तर:
(B) 11 सितंबर, 1964

11. मुक्तिबोध का निधन किस रोग से हुआ?
(A) मलेरिया
(B) क्षय रोग
(C) मधुमेह
(D) मैनिनजाइटिस
उत्तर:
(D) मैनिनजाइटिस

12. मुक्तिबोध का निधन कहाँ हुआ?
(A) नयी दिल्ली
(B) नागपुर
(C) ग्वालियर
(D) मुरैना
उत्तर:
(A) नयी दिल्ली

13. मुक्तिबोध की आरंभिक रचनाएँ किस पत्रिका में प्रकाशित हुईं?
(A) नवजीवन
(B) दिनमान
(C) सरिता
(D) कर्मवीर
उत्तर:
(D) कर्मवीर

14. मुक्तिबोध ने कहाँ पर ‘मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना की?
(A) नागपुर
(B) उज्जैन
(C) ग्वालियर
(D) मुरैना
उत्तर:
(B) उज्जैन

15. हँस पत्रिका’ के संपादकीय विभाग में मुक्तिबोध ने कब स्थान प्राप्त किया?
(A) सन् 1943 में
(B) सन् 1942 में
(C) सन् 1945 में
(D) सन् 1946 में
उत्तर:
(C) सन् 1945 में

16. मुक्तिबोध ने किस कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया?
(A) दिग्विजय कॉलेज
(B) एस०डी० कॉलेज
(C) डी०ए०वी० कॉलेज
(D) नागपुर कॉलेज
उत्तर:
(A) दिग्विजय कॉलेज

17. ‘तार सप्तक’ में मुक्तिबोध की कितनी कविताएँ प्रकाशित हुईं?
(A) बारह कविताएँ
(B) सत्रह कविताएँ
(C) अट्ठाईस कविताएँ
(D) पंद्रह कविताएँ
उत्तर:
(B) सत्रह कविताएँ

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18. ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ में कुल कितनी कविताएँ सम्मिलित हैं?
(A) 18
(B) 16
(C) 28
(D) 27
उत्तर:
(C) 28

19. ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ के रचयिता हैं
(A) धर्मवीर भारती
(B) रघुवीर सहाय
(C) शमशेर बहादुर सिंह
(D) मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) मुक्तिबोध

20. ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ किस विधा की रचना है?
(A) कविता संग्रह
(B) प्रबंध काव्य
(C) नाटक
(D) निबंध
उत्तर:
(A) कविता संग्रह

21. ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ के कवि का नाम है
(A) हरिवंश राय बच्चन
(B) मुक्तिबोध
(C) रघुवीर सहाय
(D) निराला
उत्तर:
(B) मुक्तिबोध

22. ‘काठ का सपना’ के रचयिता हैं
(A) अज्ञेय
(B) नागार्जुन
(C) मुक्तिबोध
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(C) मुक्तिबोध

23. ‘सतह से उठता आदमी किस विधा की रचना है?
(A) नाटक
(B) काव्य संग्रह
(C) निबंध संग्रह
(D) कथा साहित्य
उत्तर:
(D) कथा साहित्य

24. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की किस काव्य रचना में संकलित है?
(A) भूरी-भूरी खाक धूल
(B) चाँद का मुँह टेढ़ा है
(C) काठ का सपना
(D) विपात्र
उत्तर:
(A) भूरी-भूरी खाक धूल

25. ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’ के रचयिता हैं
(A) हरिवंशराय बच्चन
(B) रघुवीर सहाय
(C) आलोक धन्वा
(D) मुक्तिबोध
उत्तर:
(D) मुक्तिबोध

26. ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) कथा साहित्य
(C) आलोचना
(D) काव्य संग्रह
उत्तर:
(C) आलोचना

27. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता किसे संबोधित है?
(A) कवि के प्रिय को
(B) पाठकों को
(C) साहित्यकारों को
(D) ईश्वर को
उत्तर:
(A) कवि के प्रिय को

28. ‘भीतर की सरिता’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) रूपक
(C) अनुप्रास
(D) रूपकातिशयोक्ति
उत्तर:
(D) रूपकातिशयोक्ति

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29. ‘गरबीली गरीबी’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) उपमा
(B) अनुप्रास
(C) श्लेष
(D) रूपक
उत्तर:
(B) अनुप्रास

30. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) चौपाई
(B) सवैया
(C) मुक्त
(D) दोहा
उत्तर:
(C) मुक्त

31. ‘मीठे पानी का सोता’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) रूपकातिशयोक्ति
(C) रूपक
(D) उपमा
उत्तर:
(B) रूपकातिशयोक्ति

32. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने मुख्यतः किस शैली का प्रयोग किया है?
(A) वर्णनात्मक शैली
(B) संबोधन शैली
(C) आलोचनात्मक शैली
(D) गीति शैली
उत्तर:
(B) संबोधन शैली

33. ‘मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) अनुप्रास
(B) रूपक
(C) उपमा
(D) उत्प्रेक्षा
उत्तर:
(D) उत्प्रेक्षा

34. ‘ममता के बादल’ में कौन-सा अलंकार है?
(A) रूपक
(B) उपमा
(C) रूपकातिशयोक्ति
(D) मानवीकरण
उत्तर:
(A) रूपक

35. ममता के बादल की मँडराती कोमलता कहाँ पिराती है?
(A) बाहर
(B) सर्वत्र
(C) भीतर
(D) बीच में
उत्तर:
(C) भीतर

36. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि ने गरीबी को कैसा बताया है?
(A) शर्मीली
(B) सुखदायक
(C) दुखभरी
(D) गरबीली
उत्तर:
(D) गरबीली

37. प्रस्तुत कविता में बहलाती सहलाती आत्मीयता क्या नहीं होती?
(A) बरदाश्त
(B) फालतू
(C) कम
(D) जहरीली
उत्तर:
(A) बरदाश्त

38. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता में कवि की आत्मा कैसी हो गई है?
(A) कमज़ोर
(B) दृढ़
(C) संवेदनशील
(D) सक्षम
उत्तर:
(A) कमज़ोर

39. ‘काठ का सपना’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य संग्रह
(B) कथा साहित्य
(C) नाटक
(D) निबंध संग्रह
उत्तर:
(B) कथा साहित्य

40. ‘सहर्ष स्वीकारा है। कविता में कवि कहाँ लापता होना चाहता है?
(A) वायु में
(B) आकाश में
(C) बादलों में
(D) धुएँ के बादलों में
उत्तर:
(D) धुएँ के बादलों में

41. ‘पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में यहाँ ‘विवरों का क्या अर्थ है?
(A) बादल
(B) बिल
(C) गुफा
(D) शिविर
उत्तर:
(B) बिल

42. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ शीर्षक कविता में किस भाव की प्रधानता है?
(A) क्रूरता
(B) रुक्षता
(C) कठोरता
(D) विनय
उत्तर:
(D) विनय

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43. ‘परिवेष्टित’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) पगड़ी
(B) परिजन
(C) चारों ओर से घिरा हुआ
(D) परिक्रमा
उत्तर:
(C) चारों ओर से घिरा हुआ

44. भवितव्यता किसे डराती है?
(A) संपाती को
(B) छाती को
(C) बिलखाती को
(D) पराती को
उत्तर:
(B) छाती को

सहर्ष स्वीकारा है पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर |

[1] ज़िंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है
संवेदन तुम्हारा है!! [पृष्ठ-30]

शब्दार्थ-जिंदगी = जीवन। सहर्ष = प्रसन्नता के साथ। स्वीकारा = मन से माना। गरबीली = अभिमान से भरी हुई। गंभीर = गहरा। विचार-वैभव = विचारों की संपत्ति। दृढ़ता = मजबूती। सरिता = नदी (भावनाओं का प्रवाह)। अभिनव = नया। मौलिक = नया। पल = क्षण। जाग्रत = जागा हुआ जीवित। अपलक = बिना पलकें झपकाए हुए। संवेदन = अनुभूति।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इस कविता में कवि यह बताना चाहता है कि जीवन में उसे जो कुछ प्राप्त हुआ है, उसने उसे बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वीकार कर लिया है। कवि को किसी प्रकार की शिकायत नहीं है। यहाँ कवि ईश्वर को संबोधित करता हुआ कहता है कि

व्याख्या-मुझे जीवन में जो कुछ मिला है अथवा पाया है, उसे मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया है। मुझे जीवन की उपलब्धियों पर बहुत गर्व है। इसलिए जीवन में मेरा जो कुछ अपना है, वह सब उस अनंत सत्ता को भी प्रिय है। कवि पुनः स्पष्ट करता है कि यह मेरी गर्व भरी गरीबी, मेरे जीवन के गहरे अनुभव, मेरी यह विचार संपदा, मेरे मन की यह मजबूती और मेरे हृदय में जो भावनाओं का एक नया प्रवाह है, वह सब कुछ नया है और मौलिक है। भाव यह है कि उस ईश्वर के कारण ही मैं प्रत्येक स्थिति में खुशी-खशी जी रहा हूँ। तुमने ही मुझे अपनी गरीबी पर गर्व करना सिखाया है। मैंने जीवन के गंभीर अनुभवों तथा विचारों की संपन्नता तुमसे ही प्राप्त की है। मैं अपने इन मौलिक विचारों के साथ दृढ़तापूर्वक जी रहा हूँ। मेरे मन में नवीन विचारों की एक नदी हमेशा प्रवाहित होती रहती है। अतः प्रत्येक क्षण में जो कुछ मेरे अंदर जागता रहता है और लगातार मेरे जीवन को गतिशील बनाता है, उसके पीछे तुम्हारी प्रेरणा ही काम कर रही है। भाव यह है कि मैंने अपने जीवन में उस असीम सत्ता से प्रेरणा प्राप्त करके ही अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने असीम सत्ता को संबोधित किया है। साथ ही जीवन में मिलने वाली उपलब्धियों तथा कमियों को सहर्ष स्वीकार किया है।
  2. रहस्यवादी भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
  3. ‘भीतर की सरिता’ कवि की आंतरिक गहन अनुभूतियों का प्रतीक है।
  4. ‘भीतर की सरिता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है तथा ‘पल-पल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. इस पद्य में कवि ने साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है जिसमें संस्कृत के तत्सम् शब्दों के अतिरिक्त उर्दू के शब्दों का मिश्रण किया गया है।
  6. संबोधनात्मक शैली है तथा संपूर्ण कविता में लाक्षणिक पदावली का भी प्रयोग है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कविता में कवि ने किसे संबोधित किया है?
(ग) कवि अपने जीवन को सहर्ष स्वीकार क्यों करता है?
(घ) कवि अपनी उपलब्धियों के लिए किसे श्रेय देता है और क्यों?
(ङ) कवि अपनी किस उपलब्धि पर गर्व करता है?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का नाम-सहर्ष स्वीकारा है।

(ख) इस कविता के द्वारा कवि असीम सत्ता को संबोधित करता है।

(ग) कवि अपनी प्रत्येक उपलब्धि को इसलिए प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है, क्योंकि असीम सत्ता की प्रेरणा से ही उसे यह सब प्राप्त हुआ है। दूसरा, उसकी प्रत्येक उपलब्धि उस असीम सत्ता को भी प्रिय लगती है।

(घ) कवि अपनी उपलब्धियों के लिए उस असीम सत्ता प्रियतम अर्थात् परमात्मा को श्रेय देता है। कारण यह है कि उसी से प्रेरणा पाकर ही कवि अपनी कविताओं में मौलिक अनुभव, विचार तथा अनुभूतियाँ प्राप्त कर पाया है। इसलिए कवि अपनी गरीबी के साथ इन सब पर गर्व करता है।

(ङ) कवि अपनी गरीबी, जीवन के गहरे अनुभव, गंभीर चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता तथा मन में प्रवाहित होने वाली भावनाओं की नदी पर गर्व करता है।

[2] जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! [पृष्ठ-30]

शब्दार्थ-रिश्ता = संबंध। उँडेलना = खाली करना, देना। सोता = झरना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि स्वीकार करता है कि वह रहस्यात्मक शक्ति ही उसकी प्रेरणा का स्रोत है।

व्याख्या कवि उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि मुझे यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे और मेरे बीच स्नेह का न जाने ऐसा कौन-सा रिश्ता और संबंध है कि मैं जितना भी अपने हृदय के स्नेह को व्यक्त करता हूँ अथवा लोगों में उसे बाँटता हूँ, उतना ही वह बार-बार भर जाता है। ऐसा लगता है कि मानों मेरे हृदय में कोई मधुर झरना है जिससे लगातार स्नेह की वर्षा होती रहती है अथवा मेरे भीतर प्रेम की कोई नदी (झरना) है जो हमेशा स्नेह रूपी जल से छलकती रहती है। मेरे हृदय में तो तुम्हारा ही प्रेम विद्यमान है। मेरे रा यह प्रसन्न चेहरा इस प्रकार विद्यमान रहता है, जैसे पृथ्वी पर रात के समय चंद्रमा मुस्कुराता रहता है अर्थात् जैसे चाँद रात को रोशनी देता है, उसी प्रकार हे मेरे ईश्वर! तुम मेरे हृदय को प्रेम से प्रकाशित करते रहते हो।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने परमात्मा को संबोधित किया है, क्योंकि वही कवि के लिए प्रेरणा का काम करता है।
  2. संपूर्ण पद्य में प्रश्न तथा संदेह अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है जिसके कारण रहस्यात्मकता उत्पन्न हो गई है।
  3. ‘झरना’ तथा ‘मीठे पानी का सोता’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. ‘मुसकाता चाँद’ ………………. चेहरा है’ में उत्प्रेक्षा अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. ‘भर-भर फिर’ में अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सफल प्रयोग है। इसी प्रकार ‘धरती पर रात-भर’ में अनुप्रास अलंकार है।
  6. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है तथा साथ ही भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. संबोधन शैली का प्रयोग हुआ है तथा मुक्त छंद है।
  8. माधुर्य गुण होने के कारण शृंगार रस का परिपाक हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कवि ने अपने प्रिय अर्थात परमात्मा के प्रति अपने रिश्ते को किस प्रकार व्यक्त किया है?
(ग) ‘जितना भी उँडेलता हूँ, उतना ही भर-भर आता है’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(घ) कवि ने अपने दिल के झरने को ‘मीठे पानी का सोता’ क्यों कहा है?
(ङ) कवि ने कौन-से अटूट रिश्ते को प्रकट किया है?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-गजानन माधव मुक्तिबोध कविता का नाम-सहर्ष स्वीकारा है।

(ख) कवि और परमात्मा के मध्य एक कथनीय प्रेम है। कवि ने उस अनंत सत्ता के प्रेम की तुलना एक झरने के साथ की है जो उसे बार-बार भिगोकर आनंद प्रदान करता रहता है। भाव यह है कि कवि का प्रेम रूपी झरना कभी सूखने वाला नहीं है।

(ग) यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि वह अपने हृदय के स्नेह को जितना बाँटता है, वह उतना अधिक बढ़ता जाता है, वह कभी भी कम नहीं होता। इसलिए कवि ने स्वीकार किया है कि उसके हृदय में प्रेम का झरना प्रवाहित हो रहा है।

(घ) ‘मीठे पानी का सोता’ कहने का अभिप्राय यह है कि कवि को अपने मालिक (ईश्वर) के प्रति प्रगाढ़ प्रेम है जो कि कभी समाप्त नहीं हो सकता। यह प्रेम मधुर भी है।

(ङ) इन पंक्तियों में कवि ने आत्मा और परमात्मा के अटूट रिश्ते को प्रकट किया है।

[3] सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता-
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!! [पृष्ठ 30-31]

शब्दार्थ-दक्षिण ध्रवी अंधकार = दक्षिण ध्रुव पर गहरा अंधकार। अमावस्या = काली रात। अंतर = हृदय। परिवेष्टित = चारों ओर से घिरा हुआ। आच्छादित = ढका हुआ, छाया हुआ। रमणीय = सुंदर, मनोहर। उजेला = रोशनी, प्रकाश। ममता = मोह-प्रेम । मँडराती = फैली हुई। पिराती = पीड़ा पहुँचाती हुई। अक्षम = कमजोर। भवितव्यता = भविष्य की आशंका। बहलाती मन को प्रसन्न करती हुई। सहलाती = पीड़ा को कम करती हुई। आत्मीयता = अपनापन। बरदाश्त = सहन करना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इस पद्यांश द्वारा कवि ने अपने परमात्मा से वियोग के दंड का वर्णन किया है। इसके साथ ही अपने आशीर्वाद रूपी प्रकाश को स्वयं से हटाने की बात की है।

व्याख्या-कवि अपने परमात्मा को संबोधित करता हुआ कहता है कि वह अपने जीवन में अहंकार के भाव में आकर उसे भूल गया था। अब वह उससे इस भूल की सजा पाना चाहता है। कवि स्वयं के लिए दक्षिणी ध्रुव पर अमावस की रात्रि के समान फैलने वाले अंधकार जैसी सजा पाना चाहता है। वह उस गहरे अंधकार को अपने शरीर, चेहरे और अन्तर्मन में झेलना चाहता है और इसी में नहाना चाहता है।

कवि सोचता है कि उसका वर्तमान जीवन उस ईश्वर के प्रेम से पूर्णतया घिरा हुआ है। उसके प्रेम का यह उजाला बड़ा ही मनोहर एवं आकर्षक है। परन्तु यह उजाला कवि के लिए असहनीय बन गया है। वह उसे सहन नहीं कर सकता। उस अनंत सत्ता की ममता कवि के मन में बादल के समान छाई हुई है जो उसके हृदय को पीड़ित करती है। इसलिए अब कवि की आत्मा दुर्बल और असमर्थ हो गई है। भविष्य की आशंका उसे डरा रही है और उसकी छाती छटपटा रही है। उस प्रियतम की ममता कवि के हृदय को बहलाती, सहलाती और अपनापन दिखाती है, वह कवि से अब सहन नहीं हो पा रही है। भाव यह है कि कवि अपने अहंकार की सजा पकार अपने पापों से मुक्त होना चाहता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने स्वीकार किया है कि वह अपने ही गर्व के बहाव में बहकर उस परमात्मा को भूल गया है जिसकी वह उस परमात्मा से सजा पाना चाहता है।
  2. ममता के बादल, तुमसे ही …………………. उजेला तथा दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या आदि में रूपक अलंकार का सफल प्रयोग है।
  3. आत्मीयता तथा कोमल भावनाओं का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  4. ‘शरीर पर, चेहरे पर’, ‘मँडराती कोमलता-भीतर पिराती’ और ‘छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. ‘ई’ स्वर के कारण स्वर मैत्री का प्रयोग है।
  6. यहाँ कवि ने संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है, साथ ही कुछ नवीन शब्दों का भी प्रयोग किया है।
  7. संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।
  8. शांत रस का प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि अपने प्रियतम (परमात्मा) से कौन-सा दंड पाना चाहता है और क्यों?
(ख) कवि किस रमणीय उजाले की बात कर रहा है जो उसके लिए असहनीय है?
(ग) कौन-सी भावना कवि को पीड़ा पहुँचाती है?
(घ) कवि अपने भविष्य के प्रति आशंकित क्यों है?
(ङ) कवि ने अपने प्रियतम को भूलने के दुख की तुलना किससे की है? .
उत्तर:
(क) कवि अपने प्रियतम (परमात्मा) से वियोग का दंड पाना चाहता है। कवि को लगता है कि उस प्रियतम के प्रेम और कोमलता ने उसकी आत्मा को कमजोर बना दिया है। अतः अब वह उसकी ममता को सहन करने में असमर्थ हो गया है। त्ता का प्रेम ही कवि के लिए रमणीय उजाला है जिसे कवि अब सहन नहीं कर पा रहा है। इसलिए कवि अब वियोग का दंड भोगना चाहता है।

(ग) उस अनंत सत्ता की ममता उसके मन में बादल के समान छाई हुई है। यही भावना अब कवि को पीड़ा पहुँचाती है जिससे वह अब मुक्त होना चाहता है।

(घ) कवि अपने भविष्य के प्रति इसलिए आशंकित है, क्योंकि अपराधी होने के कारण उसकी आत्मा छटपटाती रहती है।

(ङ) कवि ने अपने प्रियतम को भूलने के दुख की तुलना दक्षिणी ध्रुवी अमावस्या के साथ की है, जहाँ हमेशा घना काला और गहरा अंधकार छाया रहता है।

[4] सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है। [पृष्ठ-32]

शब्दार्थ-पाताली अँधेरा = धरती के नीचे पाताल में पाया जाने वाला अंधकार। गुहा = गुफा। विवर = बिल। लापता होना = गायब हो जाना। कारण = मूल प्रेरणा। घेरा = फैलाव। वैभव = संपदा, समृद्धि।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से अवतरित है। इसके कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इसमें कवि कहता है कि उसने अपने प्रियतम भाव परमात्मा की प्रेरणा से आज तक जो प्राप्त किया है उसे उसने प्रसन्नतापर्वक स्वीकार कर लिया है। प्रस्तत पद्यांश द्वारा कवि स्वयं को उस ईश्वर देता है।

व्याख्या-कवि अपनी उस अनंत सत्ता को संबोधित करता हुआ कहता है कि तुम मुझे अपने वियोग का ऐसा दंड दो कि मैं पाताल लोक की अंधेरी गुफाओं की सूनी सुरंगों में और दम घोंटने वाले धुएँ के बादलों में बिल्कुल खो जाऊँ अर्थात् उनमें विलीन हो जाऊँ। मेरा जीवन उस घुटन से भले ही समाप्त हो जाए, पर मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है। मैं इस खो जाने वाले अकेलेपन में भी खुश रहूँगा, क्योंकि वहाँ भी मुझे तुम्हारा आश्रय मिलता रहेगा। तुम्हारी यादें हमेशा मेरे साथ रहेंगी। अतः मैंने अपने जीवन में जो कुछ प्राप्त किया है अर्थात् मेरी जो उपलब्धियाँ हैं अथवा स्थितियाँ हैं या जो संभव हो सकती हैं अर्थात् मेरे जीवन के विकास तथा ह्रास की जो संभावनाएँ हैं वे मुझे तुम्हारी ही प्रेरणास्वरूप प्राप्त हुई हैं। तुम्हारे प्रेम से प्रेरणा पाकर मैंने जो काम किए हैं या मेरे कामों का जो परिणाम है, मेरा जो कुछ बना है अथवा बिगड़ा है वह सब कुछ तुम्हारी ही देन है। मैं इन सभी स्थितियों को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता हूँ कि मेरे जीवन के सुखों तथा दुखों से तुम्हें अत्यधिक प्यार है। अतः मैं खुशी-खुशी इनको स्वीकार
करता हूँ।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने अपने प्रियतम (परमात्मा) पर अत्यधिक विश्वास व्यक्त किया है तथा उसके प्रेम की अनन्यता को उजागर किया है।
  2. संपूर्ण पद्य में लाक्षणिक पदावली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा संबोधन शैली है।
  6. संपूर्ण पद्य में वियोग शृंगार का सुंदर परिपाक हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि अपने प्रियतम से दंड क्यों पाना चाहता है?
(ख) कवि ने अपने जीवन में उस अनंत सत्ता को क्या स्थान दिया है?
(ग) कवि पाताली अंधेरों की गुफाओं में क्यों लापता होना चाहता है?
(घ) कवि अपने जीवन के प्रत्येक सुख-दुख को प्रसन्नता से क्यों स्वीकार करना चाहता है?
उत्तर:
(क) कवि अपने प्रियतम से इसलिए दंड पाना चाहता है कि वह अपने उस मालिक के वियोग को सहन कर सके और उसके बिना भी जीना सीख सके।

(ख) कवि के जीवन में उस अनंत सत्ता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वह सोचता है कि वियोगावस्था में भी वह उस परमात्मा की यादों के सहारे सुखद जीवन जी सकेगा और उसे वियोगजन्य पीड़ा दुख नहीं देगी।

(ग) कवि पाताल की अभेद्य अंधेरी गुफाओं में इसलिए विलीन होना चाहता है कि ताकि वह अपने प्रियतम के बिना अकेला रह सके और उसके वियोग को सह सके।

(घ) कवि अपने जीवन के प्रत्येक सुख-दुख को प्रसन्नता से स्वीकार करना चाहता है कि उसका सुख-दुख भी उस प्रियतम की देन है तथा वह भी उसके सुख-दुख से प्यार करता है। कवि भी उस प्रियतम की यादों के सहारे जीना चाहता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi

सहर्ष स्वीकारा है कवि-परिचय

प्रश्न-
गजानन माधव मुक्तिबोध का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
गजानन माधव मुक्तिबोध का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म मध्यप्रदेश के मुरैना जनपद के श्योपुर नामक कस्बे में 13 नवंबर, 1917 को हुआ। उनके किसी पूर्वज को मुक्तिबोध की उपाधि प्राप्त हुई थी। इसलिए कुलकर्णी के स्थान पर मुक्तिबोध कहलाने लगे। उनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था, जो कि पुलिस इंस्पैक्टर थे। वे एक न्यायप्रिय अधिकारी होने के साथ-साथ धर्म तथा दर्शन में अत्यधिक रुचि रखते थे। गजानन माधव का पालन-पोषण बड़े लाड़-प्यार से हुआ। वे एक योग्य विद्यार्थी नहीं थे। 1930 में वे मिडिल की परीक्षा में असफल रहे तथा 1937 में प्रथम प्रयास में बी०ए० की परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर सके। उन्होंने सन् 1953 में नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। विद्यार्थी जीवन से ही वे काव्य रचना करने लगे थे। उनकी आरंभिक रचनाएँ माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘कर्मवीर’ में प्रकाशित हुई थीं। आरंभ में उन्होंने ‘बड़नगर’ के मिडिल स्कूल में चार महीने तक अध्यापन का कार्य किया। तत्पश्चात् शुजालपुर में नगरपालिका के विद्यालय में एक सत्र तक पढ़ाते रहे। 1942 में उज्जैन चले गए और वहाँ रहते हुए उन्होंने ‘मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना की। सन् 1945 में ‘हंस’ पत्रिका के संपादकीय विभाग में स्थान पाया। सन् 1946-47 में वे जबलपुर में रहे और 1948 में नागपुर चले गए। 1958 में मुक्तिबोध राजनांदगाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। 11 सितंबर, 1964 को इस प्रगतिशील कवि का निधन ‘मैनिनजाइटिस’ रोग के कारण दिल्ली में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ मुक्तिबोध मुख्यतः कवि-रूप में प्रसिद्ध हुए लेकिन उन्होंने आलोचना, कहानी एवं डायरी लेखन में भी सफलता प्राप्त की। उनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है-‘तार सप्तक’ में संकलित सत्रह कविताएँ (1943)–’चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ (कविता संग्रह), ‘काठ का सपना’, ‘विपात्र’, ‘सतह से उठता आदमी’ (कथा साहित्य); ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’, ‘नयी कविता का आत्मसंघर्ष’, ‘नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र’, ‘समीक्षा की समस्याएँ’, ‘एक साहित्यिक की डायरी’ (आलोचना); तथा ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ आदि उनकी मुख्य अन्य रचनाएँ हैं। परंतु इनकी कीर्ति का आधार-स्तंभ ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ है, जिसमें कुल 28 कविताएँ संकलित हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) वैयक्तिकता तथा सामाजिकता का उद्घाटन मुक्तिबोध की अधिकांश कविताएँ छायावादी शिल्प लिए हुए हैं। लेकिन वे वैयक्तिकता से सामाजिकता की ओर प्रस्थान करते दिखाई देते हैं। इसलिए उनका कथ्य प्रगतिशील है। कवि की वैयक्तिकता सामाजिकता से जुड़ती प्रतीत होती है। परंतु कुछ कविताओं में कवि की निराशा तथा कुंठा अभिव्यक्त हुई है। ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ में कवि लिखता है-
“याद रखो
कभी अकेले में मुक्ति नहीं मिलती
यदि वह है तो सबके साथ ही।”
मुक्तिबोध ने स्वयं को विश्व-मानव के सुख-दुख के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। कवि यत्र-तत्र आम आदमी की निराशा, कुंठा, अवसाद तथा वेदना का वर्णन करता हुआ दिखाई देता है। कवि स्वीकार करता है कि आज की व्यवस्था के नीचे दबा मानव नितांत निराश तथा हताश है। कवि कहता है-
“दुख तुम्हें भी है,
दुख मुझे भी है,
हम एक ढहे हुए मकान के नीचे
दबे हैं
चीख निकालना भी मुश्किल है।”

(ii) पूँजीवादी व्यवस्था का विरोध-आरंभ से ही मुक्तिबोध का झुकाव मार्क्सवाद की तरफ रहा है। कवि शोषण व्यवस्था से जुड़े व्यक्तियों से घृणा करता है। कवि का विचार है कि उसका जीवन पूँजीवादी व्यवस्था की देन है। जहाँ के लोग झूठी चमक-दमक तथा झूठी शान से निर्मित दोगली जिंदगी जी रहे हैं। कवि इस पूँजीवादी व्यवस्था को शीघ्र-से-शीघ्र नष्ट करना चाहता है तथा उसके स्थान पर समाजवाद लाना चाहता है।

(iii) शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति-मुक्तिबोध ने स्वयं अभावग्रस्त जीवन व्यतीत किया और गरीबों के जीवन को निकट से देखा। इसलिए कवि अपनी कविताओं में जहाँ एक ओर शोषित वर्ग के प्रति सहानभति व्यक्त करता है, वहीं दूसरी ओर शोषितों को आर्थिक तथा सामाजिक शोषण से मुक्त भी करना चाहता है। कवि ने अपनी कविताओं में शोषित समाज के अनेक चित्र अंकित किए हैं तथा जनहित के दृष्टिकोण को अपनाया है।

(iv) व्यंग्यात्मकता-मुक्तिबोध के काव्य में तीखा तथा चुभने वाला व्यंग्य देखा जा सकता है। कवि सामाजिक रूढ़ियों पर करारा व्यंग्य करता है और यथार्थ चित्रण में विश्वास रखता है। कवि का यह चित्रण अपना ही भोगा यथार्थ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है

(v) वर्गहीन समाज की स्थापना पर बल-मुक्तिबोध एक ऐसा वर्गहीन समाज स्थापित करना चाहते थे जिसमें समाज तथा संस्कृति के लिए स्वस्थ मूल्यों का पोषण हो सके। वे स्वार्थपरता, संकीर्णता तथा भाई-भतीजावाद को समाप्त करना चाहते थे। में साम्यवाद की स्थापना अवश्य होगी और भारतवासी शोषण के चक्र से मुक्त हो सकेंगे। इसलिए कवि कहता है-
“कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ,
वर्तमान समाज चल नहीं सकता,
पूँजी से जुड़ा हृदय बदल नहीं सकता,
स्वातंत्र्य व्यक्ति का वादी
छल नहीं सकता मुक्ति के मन को,
जन को”

4. भाषा-शैली-मुक्तिबोध के काव्य का कलापक्ष भी काफी समृद्ध है। परंतु बिंबात्मकता का अधिक सहारा लेने के कारण उनकी कविता कुछ स्थलों पर जटिल-सी हो गई है। वे अनेक प्रकार के कल्पना-चित्रों तथा फैटसियों का निर्माण करते हुए चलते हैं।

वस्तुतः मुक्तिबोध ने साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। यदि इसमें संस्कृत के तत्सम् प्रधान शब्द हैं तो अंग्रेज़ी, उर्दू, फारसी के शब्द भी हैं। उनकी कविता प्रतीकों के लिए प्रसिद्ध है। उनके प्रतीक पारंपरिक भी हैं और नवीन भी। मुक्तिबोध ने अपनी काव्य भाषा में उपमा, मानवीकरण, रूपक, उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास आदि अलंकारों का स्वाभाविक रूप से वर्णन किया है। कवि शमशेर सिंह बहादुर ने उनकी काव्य कला के बारे में सही ही लिखा है-“अद्भुत संकेतों भरी, जिज्ञासाओं से अस्थिर, कभी दूर से शोर मचाती, कभी कानों में चुपचाप राज़ की बातें कहती चलती है। हमारी बातें हमको सुनाती हैं। हम अपने को एकदम चकित होकर देखते हैं और पहले से अधिक पहचानने लगते हैं।”

सहर्ष स्वीकारा है कविता का सार

प्रश्न-
गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता कविवर मुक्तिबोध की एक उल्लेखनीय कविता है। यह उनकी काव्य-रचना ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ में संकलित है। यहाँ कवि ने असीम सत्ता को अपनी प्रेरणा का स्रोत माना है। कवि स्वीकार करता हुआ कहता है कि उसे प्रकृति से जो सुख-दुःख, राग-विराग आदि प्राप्त हुए हैं, उन्हें उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया है। कवि की गरबीली गरीबी, गंभीर अनुभूतियाँ, विचार, चिंतन तथा भावनाओं की नदी-सब कुछ मौलिक हैं। कवि अपने ईश्वर से पूर्णतयाः संबद्ध है। वह कहता है कि वह उस अनंत सत्ता के स्नेह को अपने भीतर से जितना उड़ेलता है, उतना ही वह फिर से भर जाता है। कवि को लगता है कि उसके भीतर कोई मधुर स्नेह रूपी झरना है। उसे ऐसा अनुभव होता है कि परमात्मा चाँद की तरह उसके हृदय को प्रकाशित करता रहता है।

कवि अपनी उस अनंत सत्ता से उसको भूलने की कठोर सजा पाना चाहता है। कवि के लिए उजाला असहनीय है। उसकी आत्मा कमजोर होने के कारण छटपटाती रहती है। वह धएँ के बादलों में लापता हो जाना चाहता है। कवि को आभास है कि उसके लापता होने पर ही उसे उस असीम सत्ता का सहारा प्राप्त होगा। अंत में कवि कहता है कि उसके पास जो कुछ भी है वह उस अनंत सत्ता को बहुत प्रिय है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

HBSE 12th Class Hindi कैमरे में बंद अपाहिज Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है?
उत्तर:
कोष्ठकों में रखी गई पंक्तियाँ अलग-अलग लोगों को संबोधित की गई हैं जैसे
(क) कैमरामैन का कथन –
(1) कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा

(2) कैमरा

  • बस करो
  • नहीं हुआ
  • रहने दो
  • परदे पर वक्त की कीमत है।

(ख) दर्शकों को कही गई पंक्तियाँ-

  • हम खुद इशारे से बताएंगे कि क्या ऐसा?
  • यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा।

(ग) स्वयं से कथन –

  • यह अवसर खो देंगे?
  • बस थोड़ी कसर रह गई।

ये पंक्तियाँ अलग-अलग लोगों को संबोधित की गई हैं जिससे यह कविता रोचक बन गई है तथा इसमें नाटकीयता उत्पन्न हो गई है।

प्रश्न 2.
कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है-विचार कीजिए।
उत्तर:
कैमरे में बंद अपाहिज’ कार्यक्रम में जिस करुणा को दिखाने का प्रयास किया गया है, वह कृत्रिम है। इसका उद्देश्य चैनल के लिए एक लोकप्रिय तथा बिकाऊ कार्यक्रम तैयार करना है। कार्यक्रम-संचालक अपाहिज से बड़े बेहूदे तथा अस्वाभाविक प्रश्न पूछता है जिसमें करुणा लेशमात्र है, परंतु क्रूरता-ही-क्रूरता है। उदाहरण के रूप में अपाहिज से यह बार-बार कहना कि वह अपने दुख के बारे में जल्दी-जल्दी बताए, नहीं तो वह इस अवसर को खो देगा। नीचे कुछ पंक्तियाँ इसी बात को प्रमाणित करती हैं-

  1. तो आप क्या अपाहिज हैं?
  2. क्यों अपाहिज हैं?
  3. अपाहिजपन तो दुख देता होगा?
  4. दुख क्या है?
  5. अपाहिज होकर कैसा लगता है?

प्रश्न 3.
हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएँगे पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
‘हम समर्थ शक्तिवान’ के माध्यम से कवि ने यह व्यंग्य किया है कि दूरदर्शनकर्मी स्वयं को शक्तिशाली और समर्थ समझते हैं। वे सोचते हैं कि वे चाहें तो किसी को भी ऊपर उठा सकते हैं और किसी को भी नीचे गिरा सकते हैं। वस्तुतः आज के समाचार चैनलों पर काम करने वाले व्यक्तियों की यही मानसिकता देखी जा सकती है। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि जो व्यक्ति अपंग नहीं हैं, वह अपाहिजों की तुलना में अधिक समर्थ व शक्तिशाली होता है।

‘हम दुर्बल को लाएँगे’ के माध्यम से यह व्यंग्य किया है कि दूरदर्शनकर्मी किसी अपंग व्यक्ति को दूरदर्शन के पर्दे पर दिखाकर उसकी मजबूरी का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी तो लगता है कि वे दर्शकों के सामने अपाहिज व्यक्ति का मज़ाक उड़ा रहे हैं और उसकी व्यथा को द्विगुणित कर रहे हैं। उनके मन में न तो अपाहिज के प्रति सहानुभूति है और न ही वह उसकी सहायता करना चाहते हैं। वे तो केवल एक असहाय व्यक्ति को पर्दे पर दिखाकर धन कमाना चाहते हैं।

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प्रश्न 4.
यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक, दोनों एक साथ रोने लगेंगे, तो उससे प्रश्नकर्ता का कौन-सा उद्देश्य पूरा होगा?
उत्तर:
यदि कोई अपाहिज और दर्शक एक साथ रोने लगेंगे तो प्रश्नकर्ता को यह लगने लगेगा कि उसका कार्यक्रम सफल रहा। क्योंकि उसने अपने कार्यक्रम में करुणा की स्थिति को उत्पन्न कर दिया है। वह यह चाहता है कि अपंग व्यक्ति का दुख-दर्द छलक कर दर्शकों के सामने आए और दर्शकों की आँखें भी नम हो जाएँ। ऐसा करने से उसका कार्यक्रम लोकप्रिय होगा। उसे खूब वाह-वाही मिलेगी और मीडिया को अधिक-से-अधिक विज्ञापन मिलेंगे जिससे उसकी अच्छी कमाई हो सकेगी।

प्रश्न 5.
परदे पर वक्त की कीमत है कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नज़रिया किस रूप में रखा है?
उत्तर:
‘परदे पर वक्त की कीमत है’ इस कथन से कार्यक्रम-संचालक की सच्चाई का पता चल जाता है। उसके लिए कार्यक्रम दिखाने के बदले में मिलने वाले पैसे का अधिक महत्त्व है। दूरदर्शन पर एक-एक मिनट से भारी आय होती है। दूरदर्शनकर्मी धन कमाने के लिए ही दुखियों तथा अपंगों के दुख को दिखाने का प्रयास करते हैं। कवि यहाँ पर यह व्यंग्य करना चाहता है कि दूरदर्शनकर्मी व्यवसायी लोग हैं। उनके मन में दुखी लोगों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है। पर्दे पर दिखाई जा रही करुणा तथा वेदना से उन्हें कोई सरोकार नहीं है। उनका एकमात्र लक्ष्य अधिक धन कमाना और अपने व्यवसाय को चमकाना है।

कविता के आसपास

प्रश्न 1.
यदि आपको शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे किसी मित्र का परिचय लोगों से करवाना हो तो किन शब्दों में करवाएँगे?
उत्तर:
मैं शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे अपने मित्र का परिचय लोगों को इस प्रकार दूँगा ये मेरे घनिष्ठ मित्र मोहनलाल शर्मा हैं। ये एक प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थी है और हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते हैं। एक सड़क-दुर्घटना के कारण इनका बायां हाथ कट गया था। इसके बावजूद भी ये हमेशा बड़े परिश्रम से काम करते हैं तथा अन्य विद्यार्थी इनका सहयोग प्राप्त करते हैं। ये हम सब को निःशुल्क पढ़ाते भी हैं और हर प्रकार से हमारी सहायता करते हैं। इन्हें अपने बाएं हाथ की कमी कभी नहीं खलती।

प्रश्न 2.
सामाजिक उद्देश्य से युक्त ऐसे कार्यक्रम को देखकर आपको कैसा लगेगा? अपने विचार संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम दिखाने का बहाना करके जो दूरदर्शनकर्मी लोगों की वाह-वाही लूटना चाहते हैं और धन कमाना चाहते हैं, मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता है। मेरा विचार है कि लोगों को इस प्रकार की मानसिकता का विरोध करना चाहिए और सच्चे हृदय से अपाहिजों की सहायता करनी चाहिए। इस प्रकार के कार्यक्रम दिखाने वाले चैनल को मैं देखना नहीं चाहूँगा।

प्रश्न 3.
यदि आप इस कार्यक्रम के दर्शक हैं तो टी०वी० पर ऐसे सामाजिक कार्यक्रम को देखकर एक पत्र में अपनी प्रतिक्रिया दूरदर्शन निदेशक को भेजें।
उत्तर:
सेवा में
निदेशक,
दूरदर्शन, प्रसार समिति
नई दिल्ली।
महोदय,
मैंने कल दूरदर्शन पर प्रसारित ‘पीड़ा’ नामक सामाजिक कार्यक्रम देखा। मुझे यह सब देखकर बड़ी निराशा हुई। कार्यक्रम-संचालक ने इस कार्यक्रम द्वारा अपंगों, अपाहिजों की करुणा को उभारने के लिए उनसे बड़े ही बेहूदे, बेतुके प्रश्न पूछे। ऐसा लगा कि मानों वह अपाहिजों तथा लूले-लंगड़ों का मज़ाक उड़ा रहा था। मैं समझती हूँ कि इस प्रकार के कार्यक्रम दिखाने से हमारे मन में अपाहिजों के प्रति करुणा की भावना उत्पन्न नहीं होती अपितु दूरदर्शनकर्मी के प्रति घृणा की भावना उत्पन्न होती है। कृपया अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति का सही ढंग अपनाएँ। यदि किसी अपाहिज को पर्दे पर प्रस्तुत भी किया जाता है तो उसके दुख-दर्द के साथ उसकी उपलब्धियों की चर्चा भी की जानी चाहिए। यदि अपाहिजों की समस्या को सचमुच प्रस्तुत करना चाहते हैं तो किसी मनोवैज्ञानिक की सहायता लें। आशा है कि आप अपने कार्यक्रम के प्रस्तुतीकरण में आवश्यक सुधार करेंगे।
भवदीय
एकता खन्ना

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प्रश्न 4.
नीचे दिए गए खबर के अंश को पढ़िए और बिहार के इस बुधिया से एक काल्पनिक साक्षात्कार कीजिए
उम्र पाँच साल, संपूर्ण रूप से विकलांग और दौड़ गया पाँच किलोमीटर। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन यह कारनामा कर दिखाया है पवन ने। बिहारी बुधिया के नाम से प्रसिद्ध पवन जन्म से ही विकलांग है। इसके दोनों हाथों का पुलवा नहीं है, जबकि पैर में सिर्फ एड़ी ही है।
पवन ने रविवार को पटना के कारगिल चौक से सुबह 8.40 पर दौड़ना शुरू किया। डाकबंगला रोड, तारामंडल और आर ब्लाक होते हुए पवन का सफ़र एक घंटे बाद शहीद स्मारक पर जाकर खत्म हुआ। पवन द्वारा तय की गई इस दूरी के दौरान ‘उम्मीद स्कूल’ के तकरीबन तीन सौ बच्चे साथ दौड़ कर उसका हौसला बढ़ा रहे थे। सड़क किनारे खड़े दर्शक यह देखकर हतप्रभ थे कि किस तरह एक विकलांग बच्चा जोश एवं उत्साह के साथ दौड़ता चला जा रहा है। जहानाबाद जिले का रहने वाला पवन नवरसना एकेडमी, बेउर में कक्षा एक का छात्र है। असल में पवन का सपना उड़ीसा के बुधिया जैसा करतब दिखाने का है। कुछ माह पूर्व बुधिया 65 किलोमीटर दौड़ चुका है। लेकिन बुधिया पूरी तरह से स्वस्थ है जबकि पवन पूरी तरह से विकलांग। पवन का सपना कश्मीर से कन्याकुमारी तक की दूरी पैदल तय करने का है। -9 अक्तूबर, 2006 हिंदुस्तान से साभार
उत्तर:
काल्पनिक साक्षात्कार में बुधिया से निम्नलिखित प्रश्न पूछे जा सकते हैं-

  1. आपका नाम क्या है?
  2. आप कहाँ के निवासी हैं?
  3. र्वप्रथम आपने दौड़ना कब शुरू किया?
  4. क्या आप जन्म से विकलांग हैं?
  5. आज आपने किस स्थान से दौड़ना आरंभ किया?
  6. आपकी यह दौड़ कितने घंटे बाद समाप्त हुई?
  7. आप किस कक्षा में पढ़ते हैं?
  8. आपको दौड़ने की प्रेरणा किससे मिली?
  9. पकी दौड़ कहाँ जाकर समाप्त हुई?
  10. आप बिहार के किस जनपद के रहने वाले हैं?
  11. आपके साथ लगभग तीन सौ बच्चे क्यों भाग रहे थे?
  12. भविष्य में आपका क्या सपना है?

HBSE 12th Class Hindi कैमरे में बंद अपाहिज Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
उत्तर:

  1. इसमें कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि दूरदर्शनकर्मी समर्थ और शक्तिवान होते हैं। वे किसी असहाय और दुर्बल व्यक्ति की पीड़ा दिखाकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं और धन कमाना चाहते हैं।
  2. कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की हृदयहीनता पर प्रकाश डाला है।
  3. ‘तो आप क्यों अपाहिज हैं?’ में प्रश्नालंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल तथा बोधगम्य हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा संबोधनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं?
(यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा)
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की कार्यप्रणाली पर करारा व्यंग्य किया है।
  2. कोष्ठकों में अंकित वाक्यों का प्रयोग एक अभिनव प्रयोग है।
  3. ‘पूछ-पूछकर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल एवं सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है तथा संबोधनात्मक शैली है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए-
फिर हम परदे पर दिखलाएँगे।
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी।
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने स्पष्ट किया है कि दूरदर्शनकर्मी पर्दे पर अपाहिज की फूली आँख की बहुत बड़ी तसवीर दिखाकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं तथा धन कमाना चाहते हैं।
  2. कवि ने कार्यक्रम-संचालकों की व्यवसायी प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है।
  3. ‘बहुत बड़ी तसवीर’ में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग है।
  4. सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  5. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में कवि रघुवीर सहाय ने दूरदर्शनकर्मियों की व्यवसायी प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है। दूरदर्शनकर्मी दूरदर्शन के कार्यक्रमों द्वारा अपाहिजों के दुख-दर्द को बेचते हैं। उनके मन में न तो अपाहिजों के प्रति सहानुभूति है और न ही संवेदना। वे अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए अपाहिजों से बेतुके प्रश्न पूछते हैं। कवि दूरदर्शनकर्मियों की इस मानसिकता का विरोध करता है।

प्रश्न 2.
दूरदर्शनकर्मी कैमरे के सामने अपाहिज व्यक्ति को क्यों लाते हैं?
उत्तर:
दूरदर्शनकर्मी इस कथ्य से भली प्रकार परिचित हैं कि प्रायः लोग किसी दुखी व्यक्ति को देखकर स्वयं भी दुखी हो जाते हैं। आम आदमी अधिक संवेदनशील होता है। दूरदर्शन वाले आम लोगों की संवेदना के माध्यम से धन कमाना चाहते हैं।

प्रश्न 3.
आपकी दृष्टि में अपाहिज से पूछे जाने वाले प्रश्न बेहूदे कैसे हैं?
उत्तर:
दूरदर्शनकर्मी द्वारा अपाहिज से ये प्रश्न पूछना कि क्या आप अपाहिज हैं? अथवा आप क्यों अपाहिज हैं? इससे आपको दुःख तो होता होगा? ये प्रश्न बेहूदे हैं। इनका कोई उत्तर नहीं है। दर्शक भी देख रहे हैं कि वह व्यक्ति अपाहिज है और किसी-न-किसी दुर्घटना के कारण वह अपाहिज हुआ होगा। इस प्रकार के बेहूदे तथा बेतुके प्रश्न पूछकर अपाहिज व्यक्ति का अपमान करना है। उससे यह पूछना कि वह अपाहिज क्यों है? सचमुच उसके प्रति किया गया क्रूर मज़ाक है और यह पूछना कि आपका अपाहिजपन आपको दुख तो देता होगा, सचमुच उसके जले पर नमक छिड़कने जैसा है। इस प्रकार के प्रश्न अपाहिज से नहीं पूछे जाने चाहिएँ, बल्कि उससे यह पूछा जाना चाहिए कि वह अपने दुख-दर्द का किस प्रकार सामना कर रहा है।

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प्रश्न 4.
अपाहिज व्यक्ति अपने दुख को छिपाना चाहता है अथवा दिखाना चाहता है। सोचकर बताएँ।
उत्तर:
कोई भी अपाहिज व्यक्ति अपनी अपंगता को दिखाना नहीं चाहता और न ही उसकी चर्चा करना चाहता है। यदि हम अंधे व्यक्ति को अंधा कहते हैं तो वह हमारी बातों का बुरा मान जाता है। कुबड़े को कुबड़ा कहना या गंजे को गंजा कहना सर्वथा अनुचित है, अपाहिज व्यक्ति यही चाहता है कि लोग उसके साथ बराबरी का व्यवहार करें और समाज उसे ऐसा रोजगार दे जिससे वह अपने व अपने परिवार का लालन-पालन कर सके।

प्रश्न 5.
टेलीविजन कैमरे में बंद अपाहिज के माध्यम से कार्यक्रम को कैसे रोचक बनाया गया?
उत्तर:
टेलीविजन वाले लोग अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं। इसलिए वे जरूरी समझते हैं कि हम अपाहिज की पीड़ा को अच्छी तरह से समझें और लोगों को खुलकर बताएँ। मीडिया के कर्मचारियों को विकलांग व्यक्ति की पीड़ा और कष्ट मात्र एक कार्यक्रम नज़र आता है। इसलिए वे उससे इतने प्रश्न पूछते हैं कि वह रोने लगता है। इस प्रकार दूरदर्शन के लोग विकलांग के रो पड़ने की प्रतीक्षा करते हैं। दर्शक भी उसकी पीड़ा को ही देखना चाहते हैं।

प्रश्न 6.
कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में समर्थ तथा शक्तिवान विशेषण किसके लिए प्रयुक्त किए गए हैं और क्यों?
उत्तर:
यहाँ कवि ने समर्थ तथा शक्तिवान विशेषण दूरदर्शनकर्मियों के लिए प्रयुक्त किए हैं। आज हमारा मीडिया अत्यधिक शक्तिशाली हो चुका है। बड़े-से-बड़े राजनीतिज्ञ भी इससे डरते हैं। दूरदर्शनकर्मी अपने चैनल द्वारा किसी भी व्यक्ति पर कीचड़ उछाल सकते हैं। ये लोग दुर्बल व्यक्ति को भी बलवान बना सकते हैं। यही नहीं, कभी-कभी तो ये लोग न्यायालय की भूमिका निभाने लगते हैं और मनमाने ढंग से किसी बेकसूर को भी अपराधी सिद्ध कर देते हैं।

प्रश्न 7.
अपाहिज के होंठों की कसमसाहट को दिखाने का लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
सर्वप्रथम कार्यक्रम-संचालक अपाहिज से तरह-तरह के बेतुके प्रश्न पूछता है। तत्पश्चात् उसके होंठों की पीड़ा को दिखा कर दर्शक को यह बताने की कोशिश करता है कि वह अपनी अपंगता के कारण दुखी एवं निराश है। कार्यक्रम-संचालक ऐसा करके अपाहिज के लिए दर्शकों की सहानुभूति प्राप्त करना चाहता है तथा अपने लिए वाह-वाही तथा धन अर्जित करना चाहता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. रघुवीर सहाय का जन्म कहाँ हुआ?
(A) सहारनपुर
(B) लखनऊ
(C) कानपुर
(D) इलाहाबाद
उत्तर:
(B) लखनऊ

2. रघुवीर सहाय का जन्म कब हुआ?
(A) 4 जनवरी, 1938
(B) 2 मार्च, 1937
(C) 9 दिसंबर, 1929
(D) 6 दिसम्बर, 1928
उत्तर:
(C) 9 दिसंबर, 1929

3. रघुवीर सहाय के पिता का नाम क्या था?
(A) राम सहाय
(B) कृष्ण सहाय
(C) मोहनदेव सहाय
(D) हरदेव सहाय
उत्तर:
(D) हरदेव सहाय

4. रघुवीर सहाय ने किस विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) आगरा विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
(D) दिल्ली विश्वविद्यालय
उत्तर:
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय

5. रघुवीर सहाय ने किस वर्ष अंग्रेज़ी में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1957 में
(C) सन् 1954 में
(D) सन् 1953 में
उत्तर:
(A) सन् 1951 में

6. दिल्ली आकर रघुवीर सहाय किस पत्रिका के सहायक संपादक बन गए?
(A) दिनमान
(B) प्रतीक
(C) धर्मयुग
(D) आलोचना
उत्तर:
(B) प्रतीक

7. सन् 1949 में रघुवीर सहाय किस दैनिक समाचार-पत्र को अपनी सेवाएँ देने लगे?
(A) नवभारत
(B) दैनिक हिंदुस्तान
(C) नवयुग
(D) दैनिक नवजीवन
उत्तर:
(D) दैनिक नवजीवन

8. पहली बार रघुवीर सहाय ने आकाशवाणी को कब-से-कब तक सेवाएँ दी?
(A) 1953 से 1957 तक
(B) 1951 से 1953 तक
(C) 1954 से 1958 तक
(D) 1949 से 1953 तक
उत्तर:
(A) 1953 से 1957 तक

9. रघुवीर सहाय किस पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य बने?
(A) प्रतीक
(B) कल्पना
(C) नवजीवन
(D) धर्मयुग
उत्तर:
(B) कल्पना

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10. रघुवीर सहाय पुनः आकाशवाणी से कब जुड़े?
(A) सन् 1960 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1961 में
(D) सन् 1963 में
उत्तर:
(C) सन् 1961 में

11. सन् 1967 में रघुवीर सहाय किस प्रमुख पत्रिका को अपनी सेवाएँ देने लगे?
(A) धर्मयुग
(B) दैनिक हिंदुस्तान
(C) नवजीवन
(D) दिनमान
उत्तर:
(D) दिनमान

12. रघुवीर सहाय का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1991 में
(B) सन् 1989 में
(C) सन् 1990 में
(D) सन् 1992 में
उत्तर:
(C) सन् 1990 में

13. रघुवीर सहाय ने किस काव्य-संग्रह के प्रकाशन द्वारा साहित्य में प्रवेश किया?
(A) प्रथम तार सप्तक द्वारा
(B) दूसरा सप्तक द्वारा
(C) दिनमान द्वारा
(D) नवजीवन द्वारा
उत्तर:
(B) दूसरा सप्तक द्वारा

14. ‘दूसरा सप्तक’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1949 में
(C) सन् 1953 में
(D) सन् 1950 में
उत्तर:
(A) सन् 1951 में

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15. ‘सीढ़ियों पर धूप में काव्य-संग्रह के रचयिता हैं
(A) भारत भूषण अग्रवाल
(B) केदारनाथ अग्रवाल
(C) रघुवीर सहाय
(D) आलोक धन्वा
उत्तर:
(C) रघुवीर सहाय

16. ‘सीढ़ियों पर धूप में’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1960 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1959 में
(D) सन् 1963 में
उत्तर:
(A) सन् 1960 में

17. ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ काव्य-संग्रह का प्रकाशन वर्ष कौन-सा है?
(A) सन् 1962
(B) सन् 1965
(C) सन् 1966
(D) सन् 1967
उत्तर:
(D) सन् 1967

18. ‘हँसो-हँसो जल्दी हँसो’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1971 में
(B) सन् 1973 में
(C) सन् 1975 में
(D) सन् 1974 में
उत्तर:
(C) सन् 1975 में

19. ‘लोग भूल गए हैं’ के रचयिता हैं
(A) मुक्ति बोध
(B) रघुवीर सहाय
(C) केदारनाथ अग्रवाल
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(B) रघुवीर सहाय

20. ‘लोग भूल गए हैं’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1982 में
(B) सन् 1981 में
(C) सन् 1979 में
(D) सन् 1980 में
उत्तर:
(A) सन् 1982 में

21. ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1992 में
(B) सन् 1994 में
(C) सन् 1993 में
(D) सन् 1995 में
उत्तर:
(B) सन् 1994 में

22. रघुवीर सहाय का संपूर्ण साहित्य किस शीर्षक से प्रकाशित हुआ है?
(A) रघुवीर साहित्य
(B) रघुवीर काव्य
(C) रघुवीर का नया साहित्य
(D) रघुवीर सहाय रचनावली
उत्तर:
(D) रघुवीर सहाय रचनावली

23. ‘कुछ पते, कुछ चिट्ठियाँ’ के रचयिता हैं-
(A) निराला
(B) कुँवर नारायण
(C) रघुवीर सहाय
(D) हरिवंश राय बच्चन
उत्तर:
(C) रघुवीर सहाय

24. कार्यक्रम कैसा होना चाहिए?
(A) अद्भुत
(B) दिव्य
(C) रोचक
(D) अलौकिक
उत्तर:
(C) रोचक

25. कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(A) व्यवस्था पर
(B) दूरदर्शन वालों पर
(C) दर्शक पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) दूरदर्शन वालों पर

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26. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में किस शैली का प्रयोग हुआ है?
(A) नाटकीय शैली
(B) वर्णनात्मक शैली
(C) विवेचना शैली
(D) प्रतीकात्मक शैली
उत्तर:
(A) नाटकीय शैली

27. दूरदर्शन वाले बंद कमरे में किसे लाए थे?
(A) सबल को
(B) दुर्बल को
(C) बीमार को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) दुर्बल को

28. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में दूरदर्शनकर्मियों की किस प्रवृत्ति का उद्घाटन किया गया है?
(A) संवेदनशीलता का
(B) दयालुता का
(C) दुर्बलता का
(D) संवेदनहीनता तथा क्रूरता का
उत्तर:
(D) संवेदनहीनता तथा क्रूरता का

29. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ करुणा के मुखौटे में छिपी किसकी कविता है?
(A) दया की
(B) परोपकार की
(C) क्रूरता की
(D) वात्सल्य की
उत्तर:
(C) क्रूरता की

30. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ है?
(A) संस्कृतनिष्ठ भाषा का
(B) सहज, सरल या सामान्य भाषा का
(C) साहित्यिक ब्रज भाषा का
(D) साहित्यिक अवधी भाषा का
उत्तर:
(B) सहज, सरल या सामान्य भाषा का

31. अपाहिज के होंठों पर कैसे भाव दिखाई देते हैं?
(A) आशा के
(B) पीड़ा के
(C) कसमसाहट के
(D) उत्साह के
उत्तर:
(C) कसमसाहट के

32. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में कैमरा एक-साथ क्या दिखाना चाहता है?
(A) नए और पुराने कार्यक्रम
(B) दर्शक और अपाहिज रोते हुए
(C) सामान्य व्यक्ति की दुर्दशा और खशी
(D) समाचार और खेल
उत्तर:
(B) दर्शक और अपाहिज रोते हुए।

33. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में ‘समर्थ शक्तिवान’ किसे कहा गया है?
(A) अपाहिज को
(B) कैमरामैन को
(C) दूरदर्शन वालों को
(D) निर्देशक को
उत्तर:
(C) दूरदर्शन वालों को

34. रघुवीर सहाय ने अपनी कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ में किसे रेखांकित करने का तरीका अपनाया है?
(A) क्रूरता
(B) संवेदनहीनता
(C) प्रताड़ना
(D) हताशा
उत्तर:
(A) क्रूरता

कैमरे में बंद अपाहिज पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है
जल्दी बताइए वह दुख बताइए
बता नहीं पाएगा [पृष्ठ-23]

शब्दार्थ-समर्थ = शक्तिशाली। शक्तिवान = ताकतवर। दर्बल = कमजोर। अपाहिज = विकलांग।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ में से ली गई है। इस कविता में कवि ने दूरदर्शन कर्मियों की संवेदनहीनता तथा क्रूरता पर प्रकाश डाला है। इस पद्यांश में कवि दूरदर्शन के संचालक की क्रूरता का वर्णन करते हुए कहता है

व्याख्या-दूरदर्शनकर्मी स्वयं को समर्थ और शक्तिशाली समझते हैं, क्योंकि वे अपनी बात को सब लोगों तक पहुँचाने में समर्थ हैं। दूरदर्शन का संचालक अपने साथियों से कहता है कि हम स्टूडियो के बंद कमरे में एक कमजोर तथा मजबूर व्यक्ति को लेकर आएँगे। वह व्यक्ति एक विकलांग होगा जो अपनी आजीविका नहीं चला सकता। बंद कमरे में हम उससे पूछेगे कि क्या आप विकलांग हो? इससे पहले कि वह हमारे प्रश्न का उत्तर दे, इस पर हम एक और प्रश्न दाग देंगे कि आप विकलांग क्यों हुए? हमारा यह प्रश्न बेतुका होगा और वह अपाहिज कुछ समय तक चुप रहेगा। फिर से हम उसे कुरेदकर पूछेगे कि आपका विकलांग होना आपको दुख तो देता होगा। वह बेचारा इस पर भी चुप रहेगा। हम पुनः वही प्रश्न पूछेगे कि आपको अपाहिज होना क्या सचमुच दुख देता है? बताइए, क्या सचमुच आप विकलांग होने से दुखी हैं?

इस प्रश्न के साथ ही दूरदर्शन संचालक अपने साथी से कहेगा कि वह अपाहिज के दुखी चेहरे को और बड़ा करके दिखाए ताकि लोग उसके दुखी चेहरे को आसानी से व ध्यान से देख सकें। विकलांग को पुनः उत्तेजित करके पूछा जाएगा कि हाँ, उसे बताओ कि आपका दुख क्या है? समय बीता जा रहा है, हमें जल्दी से अपने दुख के बारे में बताओ। अन्ततः संचालक को लगेगा कि यह अपाहिज अपने दुख के बारे में कुछ नहीं बता सकता।

विशेष-

  1. प्रस्तुत पद्यांश में दूरदर्शनकर्मियों की संवेदनहीनता तथा हृदयहीन कार्य-शैली का यथार्थ वर्णन किया गया है।
  2. दूरदर्शन के चैनलों की बढ़ती स्पर्धा का वर्णन किया गया है जो अपाहिज की वेदना को कुरेदकर अपने कार्यक्रम को अधिक रोचक बनाना चाहते हैं।
  3. सहज, सरल तथा सामान्य भाषा का प्रयोग किया गया है।
  4. शब्द-चयन सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. संपूर्ण पद्य में प्रश्नालंकारों की छटा दर्शनीय है।
  6. नाटकीय शैली का सफल प्रयोग हुआ है।।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस कविता के माध्यम से किस पर व्यंग्य किया गया है?
(ग) अपाहिज से पूछे गए प्रश्न क्या सिद्ध करते हैं?
(घ) समर्थ शक्तिवान लोग कौन हैं? और वे दूरदर्शन पर निर्बल को क्यों लाते हैं?
उत्तर:
(क) कवि का नाम-रघुवीर सहाय – कविता का नाम कैमरे में बंद अपाहिज।

(ख) इस कविता के माध्यम से दूरदर्शन कर्मियों की संवेदनहीनता और क्रूरता पर करारा व्यंग्य किया गया है। ये लोग अपने कार्यक्रम को आकर्षक और प्रभावशाली बनाने के लिए विकलांगों की पीड़ा से खिलवाड़ करते हैं तथा उनसे बेतुके सवाल पूछकर उनकी भावनाओं से खेलते हैं।

(ग) अपाहिज से पूछे गए प्रश्न यह सिद्ध करते हैं कि उनसे पूछे गए प्रश्न बेकार और व्यर्थ हैं तथा जो अपाहिजों को संवेदना प्राप्त करने के स्थान पर उनको पीड़ा पहुंचाते हैं।

(घ) समर्थ शक्तिवान लोग दूरदर्शन के संचालक हैं। वे विकलांगों तथा दुर्बलों की पीड़ाओं को दर्शक के सामने रखकर अपने कार्यक्रम को इसलिए रोमांचित बनाते हैं ताकि वे अधिक-से-अधिक पैसा कमा सकें।

[2]
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा?)
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे?)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे।
इंतज़ार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं?
(यह प्रश्न नहीं पूछा जाएगा) [पृष्ठ 23-24]

शब्दार्थ-अपाहिज = विकलांग। यानी = अर्थात् । अवसर = मौका। रोचक = दिलचस्प। इंतज़ार = प्रतीक्षा।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं। में से ली गई है। इस पद्य में कवि उस स्थिति का वर्णन करता है जब कार्यक्रम संचालक अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए अपाहिज से बेतुके सवाल पूछता है।

व्याख्या-कार्यक्रम-संचालक अपाहिज से पूछता है कि आप अच्छी प्रकार सोचकर हमें बताइए कि आपको विकलांग होना कैसा लगता है? अर्थात् क्या आपको विकलांग होने का दुख है, यदि है तो यह कैसा दुख है? आप सोचकर दर्शकों को बताइए कि आपको कितना दुख है और यह कितना बुरा लगता है। इस पर विकलांग व्यक्ति चुप रह जाता है। वह कुछ बोल नहीं पाता। वह मन-ही-मन बड़ा दुखी है। तब कार्यक्रम संचालक बेहूदे इशारे करके पूछता है कि आपका दुख कैसा है? फिर वह कहता है कि आप तनिक अच्छी तरह सोचिए, सोचने की कोशिश कीजिए तथा सोचकर हमें बताइए कि आपका दुख कैसा है? यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो यह मौका आपके हाथ से निकल जाएगा।

कार्यक्रम-संचालक पुनः कहता है कि हमें तो अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपाहिज की पीड़ा को अच्छी तरह समझें और लोगों को खुलकर बताएँ। इसलिए हम उससे इतने प्रश्न पूछेगे कि वह रोने लगेगा। इस प्रकार दूरदर्शन के व्यक्ति विकलांग व्यक्ति के रो पड़ने की प्रतीक्षा करते हैं। वे उस क्षण का इंतज़ार करते हैं जब अपाहिज अपनी पीड़ा बताते-बताते रो पड़े, क्योंकि दर्शक भी यही सब देखना चाहते हैं।

विशेष-

  1. इस पद्य में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की हृदयहीनता तथा क्रूरता का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. दूरदर्शन के चैनलों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा का वर्णन किया है जो विकलांगों से बेतुके प्रश्न पूछकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं।
  3. सहज, सरल तथा सामान्य भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  4. शब्द-योजना सटीक तथा भावानुकूल है।
  5. संपूर्ण पद्य में प्रश्नालंकारों का सफल प्रयोग किया गया है।
  6. मुक्त छंद का प्रयोग है तथा प्रसाद गुण है।
  7. कोष्ठकों में वाक्यों का प्रयोग करना एक अभिनव प्रयोग है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) यह कविता कवि के किस काव्य-संग्रह में संकलित है?
(ख) कार्यक्रम संचालक अपाहिजों के दुख को बार-बार प्रश्न पूछकर गंभीर क्यों बनाना चाहता है?
(ग) कार्यक्रम संचालक श्रोताओं को क्या विश्वास दिलाता है।
(घ) अपाहिजों के कार्यक्रम में दर्शक किस बात की प्रतीक्षा करते हैं?
(ङ) इस पद्यांश में कवि ने दूरदर्शन के संचालकों पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
(क) प्रस्तुत कविता रघुवीर सहाय के लोग भूल गए हैं’ काव्य-संग्रह से संकलित है।

(ख) कार्यक्रम संचालक अपाहिज के दुखों के बारे में प्रश्न पूछकर उनके दुख को इसलिए गंभीर बनाना चाहता है ताकि वह अपने कार्यक्रमों को अधिक रोचक बना सके और कार्यक्रम द्वारा अधिकाधिक धन कमा सके।

(ग) कार्यक्रम का संचालक श्रोताओं को यह विश्वास दिलाता है कि विकलांग से इस प्रकार के प्रश्न पूछेगा कि वह अपनी पीड़ा को याद करके रोने लगेगा।

(ङ) इस पद्यांश के द्वारा कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की कार्य-शैली पर करारा व्यंग्य किया है। उनके मन में अपाहिजों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं है। वे तो अपाहिजों से तरह-तरह के बेतुके प्रश्न पूछकर अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहते हैं ताकि वे अधिकाधिक धन प्राप्त कर सकें और लोकप्रियता अर्जित कर सकें।

[3] फिर हम परदे पर दिखलाएँगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएँगे हम आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम (बस थोड़ी ही कसर रह गई) धन्यवाद। [पृष्ठ 24-25]

शब्दार्थ-कसमसाहट = पीड़ा, छटपटाहट। अपंगता = अपाहिज होना। धीरज = धैर्य। संग = साथ। वक्त = समय। सामाजिक उद्देश्य = समाज को बेहतर बनाने का लक्ष्य । युक्त = जुड़ा हुआ। कसर = कमी।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से अवतरित है। इसके कवि रघुवीर सहाय हैं। यह कविता उनके काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ में से ली गई है। इस पद्यांश में कार्यक्रम-संचालक अपाहिज की पीड़ा और व्यथा को उभारकर दर्शकों को दिखाने का प्रयास करता है। इस संदर्भ में कवि कहता है

व्याख्या-पहले तो कार्यक्रम-संचालक अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के प्रश्न पूछकर उसकी पीड़ा से दर्शकों को अवगत कराना चाहते हैं। बाद में वे दूरदर्शन के पर्दे पर अपाहिज की सूजी हुई आँख की बहुत बड़ी तस्वीर दिखाने का प्रयास करते हैं। वे वस्तुतः अपाहिज की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना चाहते हैं और वे उसके होंठों पर विद्यमान मजबूरी और छटपटाहट को भी उभारकर दिखाना चाहते हैं। उनका लक्ष्य होता है कि दर्शक अपंग व्यक्ति की पीड़ा को समझें। इसके बाद संचालक कहते हैं कि हम एक और कोशिश करके देखते हैं। वे दर्शकों से धैर्य रखने की अपील करते हैं।

कार्यक्रम-संचालक कहते हैं कि हमें अपाहिज के दर्द को इस प्रकार दिखाना है कि एक साथ अपाहिज और दर्शक रो पड़ें। परंतु ऐसा हो नहीं पाता। कार्यक्रम-संचालक अपने लक्ष्य में असफल रह जाते हैं। इसलिए वे कैमरामैन को आदेश देते हैं कि वह कैमरे को बंद कर दे। यदि अपाहिज रो नहीं सका तो न सही, क्योंकि पर्दे पर समय का अत्यधिक महत्त्व है। यहाँ तो एक-एक क्षण मूल्यवान होता है। समय के साथ-साथ धन का भी व्यय हो जाता है। इसलिए वे अपाहिज को दूरदर्शन के पर्दे पर दिखाना बंद कर देते हैं और दर्शकों से कहते हैं कि अब हम मुस्कुराएंगे और दर्शकों से कहेंगे कि आप इस समय सामाजिक पीड़ा को दिखाने वाला कार्यक्रम देख रहे थे। इसका लक्ष्य था कि हम और आप दोनों अपाहिजों की पीड़ा को समझें और अनुभव करें। लेकिन वे कार्यक्रम संचालक मन-ही-मन सोचते होंगे कि उसका कार्यक्रम पूर्णतया सफल नहीं हो सका क्योंकि वे अपाहिज और दर्शकों को संग-संग रुला नहीं सके।

यदि दोनों एक-साथ रो पड़ते तो निश्चय से उसका कार्यक्रम सफल हो जाता। अंत में कार्यक्रम-संचालक दर्शकों को धन्यवाद करके कार्यक्रम समाप्त कर देते हैं। इसके पीछे भी कवि का करारा व्यंग्य है। वह कार्यक्रम-संचालक की हृदयहीनता को स्पष्ट करना चाहता है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज

विशेष-

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की हृदयहीनता पर करारा व्यंग्य किया है और दूरदर्शन के सामाजिक कार्यक्रमों का पर्दाफाश किया है।
  2. दूरदर्शनकर्मी किसी सामाजिक समस्या को उभारने के चक्कर में निर्मम और कठोर हो जाते हैं और अपंग व्यक्ति की पीड़ा को समझ नहीं पाते।
  3. ‘बहुत बड़ी तसवीर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  4. सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  5. शब्द-योजना सर्वथा सटीक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  6. प्रस्तुत पद्यांश में नाटकीय, संबोधनात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया गया है।
  7. प्रसाद गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) प्रस्तुत पद्यांश में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(ख) कार्यक्रम संचालक पर्दे पर अपाहिज व्यक्ति की फूली हुई आँख की तसवीर क्यों दिखाता है?
(ग) कार्यक्रम-संचालक एक साथ किसे और क्यों रुलाना चाहता है?
(घ) क्या कार्यक्रम संचालक अपने लक्ष्य में सफल रहा? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
(क) इस पद्यांश में दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की हृदयहीनता पर करारा व्यंग्य किया गया है। वे अपंगों तथा दीन-दुखियों की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना चाहते हैं ताकि उनका कार्यक्रम रोचक तथा लोकप्रिय बन सके धन कमा सकें।

(ख) कार्यक्रम-संचालक पर्दे पर अपाहिज व्यक्ति की फूली हुई आँख को बड़ा करके इसलिए दिखाता है ताकि वह लोगों के सामने अपाहिजों के दुख-दर्द को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा सके और अपने कार्यक्रम को प्रभावशाली बना सके।

(ग) कार्यक्रम-संचालक अपाहिज तथा दर्शकों को एक साथ रुलाना चाहता है ताकि वह अपने कार्यक्रम को लोकप्रिय बना सके और लोगों में अपाहिजों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न कर सके।

(घ) कार्यक्रम संचालक अपनी अनेक कोशिशों के बावजूद भी पर्दे पर अपाहिज को रोते हुए न दिखा सका। न उसकी आँखों में आँसू आए, न ही वह ज़ोर-ज़ोर से रोया। कारण यह था कि अपाहिज व्यक्ति भली प्रकार जानता था कि दूरदर्शनकर्मियों का उसके दुख-दर्द से कोई लेना-देना नहीं है, न ही उनके मन में अपाहिजों के प्रति सच्ची सहानुभूति की भावना है।

कैमरे में बंद अपाहिज Summary in Hindi

कैमरे में बंद अपाहिज कवि-परिचय

प्रश्न-
रघुवीर सहाय का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा रघुवीर सहाय का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-रघुवीर सहाय दूसरा सप्तक तथा बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनका जन्म 9 दिसंबर, 1929 को लखनऊ में हुआ। उनके पिता हरदेव सहाय साहित्य के अध्यापक थे। सन् 1951 में कवि ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की। परंतु उनका रचना कार्य सन् 1946 से ही आरंभ हो चुका था। वे आरंभ से ही पत्रकारिता से जुड़ गए। 1949 में उन्होंने ‘दैनिक नवजीवन’ को अपनी सेवाएँ देनी आरंभ कर दीं। सन् 1951 तक वे इस दैनिक समाचार पत्र के संपादक तथा सांस्कृतिक संवाददाता के रूप में कार्य करते रहे। परंतु इसी वर्ष वे दिल्ली चले गए तथा ‘प्रतीक’ पत्रिका के सहायक संपादक बन गए। 1953 से 1957 तक वे आकाशवाणी में काम करते रहे। बाद में वे ‘कल्पना’ पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य बन गए। परंतु सन् 1961 में वे पुनः आकाशवाणी को अपनी सेवाएँ देने लगे। बाद में 1967 में वे ‘दिनमान’ साप्ताहिक पत्रिका से जुड़ गए। 1982 तक वे इसके प्रधान संपादक रहे, परंतु बाद में वे स्वतंत्र लेखन करने लगे। 30 दिसंबर, 1990 को उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ वस्तुतः रघुवीर सहाय सन् 1951 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक’ के कारण प्रकाश में आए। ‘सीढ़ियों पर धूप में इनका पहला काव्य-संग्रह है। उनकी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं-
‘दूसरा सप्तक’ 1951 में संकलित कविताएँ-‘सीढ़ियों पर धूप में’ (1960), ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ (1967), ‘हँसो-हँसो जल्दी हँसो’ (1975), ‘लोग भूल गए हैं’ (1982), ‘कुछ पते, कुछ चिट्ठियाँ’ (1989), ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ (1994)। रघुवीर सहाय का संपूर्ण साहित्य ‘रघुवीर सहाय रचनावली’ के नाम से प्रकाशित है।।

3. काव्यगत विशेषताएँ-पहले बताया जा चुका है कि रघुवीर सहाय आजीवन पत्रकारिता से जुड़े रहे। इसलिए उनकी काव्य रचनाओं में राजनीतिक चेतना के अतिरिक्त आधुनिक युग की विभिन्न समस्याओं पर समुचित प्रकाश डाला गया है। उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(i) राजनीतिक चेतना पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण रघुवीर सहाय की कविताओं में राजनीतिक चेतना सहज रूप में व्यक्त हुई है। कवि ने राजनीति की क्रूरताओं तथा गतिविधियों का सहज वर्णन किया है। कवि स्वीकार करता है कि राजनीति ने देश को अवसरवादिता, जातिवाद, हिंसा तथा भ्रष्टाचार जैसी बुराइयाँ प्रदान की हैं। इस संदर्भ में कवि के काव्य में मंत्री मुसद्दी लाल लोकतंत्र के भ्रष्टाचार का प्रतीक है। इसलिए डॉक्टर बच्चन सिंह ने रघुवीर सहाय को पोलिटिकल कवि कहा है। देश की दयनीय दशा देखकर कवि बड़े-से-बड़े राजनेता का नाम लेने में संकोच नहीं करता
“गया वाजपेयी जी से पूछ आया देश का हाल,
पर उढ़ा नहीं सका एक नंगी औरत को
कम्बल रेलगाड़ी में बीस अजनबियों के सामने।”

(ii) सामाजिक चेतना पत्रकार तथा संपादक होने के कारण रघुवीर सहाय के काव्य में सामाजिक चेतना भी देखी जा सकती है। कहीं-कहीं कवि जनसाधारण का पक्षधर दिखाई देता है। कवि ने अपनी अधिकांश कविताओं में सामाजिक विरोधों तथा अंतर्विरोधों एवं विसंगतियों का उद्घाटन किया है। कवि मध्यवर्गीय जीवन के दबाव और लोकतांत्रिक जीवन की विडंबना का यथार्थ वर्णन करता है। यही नहीं, वह आम आदमी के साथ खड़ा दिखाई देता है। इसलिए वह कहता है
“मैं तुम्हें रोटी नहीं दे सकता।।
न उसके साथ खाने के लिए गम्।
न मैं मिटा सकता हूँ ईश्वर के विषय में सब भ्रम।”

(iii) मानवीय संबंधों का वर्णन कवि ने अपनी कुछ कविताओं में मानवीय संबंधों का वर्णन करते हुए मानवीय व्यथा के विविध आयामों पर प्रकाश डाला है। कवि ने स्त्री जीवन की पीड़ा को अधिक मुखरित किया है। ‘बैंक में लड़कियाँ’ शीर्षक कविता में कवि स्त्री तथा पुरुष के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालता है। इसी प्रकार ‘चेहरा’ कविता में गरीब लड़की का जो वर्णन किया है, वह बड़ा ही सजीव बन पड़ा है। कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में कवि ने एक अपाहिज की पीड़ा के प्रति संवेदना व्यक्त की है।

(iv) आक्रोश और व्यंग्य का उद्घाटन-रघुवीर सहाय सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए दिखाई देते हैं। कहीं-कहीं उनके व्यंग्य की धार बड़ी तीखी तथा चुभने वाली लगती है। आज की अवसरवादिता, समझौतापरस्ती, जातिवाद, मध्यवर्गीय आडंबर को देखकर कवि की वाणी में आक्रोश भर जाता है। कवि लोकतंत्र पर भी व्यंग्य करने से नहीं चूकता। इस संदर्भ में ‘रामदास’ नामक कविता विशेष महत्त्व रखती है जो कि समाज के ताकतवरों की बढ़ती हुई हैसियत का एहसास कराती है। लोकतंत्र पर व्यंग्य करता हुआ कवि कहता है-..
“अपराधी से आते हैं राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधायक
बख्शे हुए से जाते हैं।”

4. भाषा-शैली-अखबारों से जुड़े रहने के कारण रघुवीर सहाय की कविता में सहज, सरल तथा बोलचाल की भाषा का प्रयोग देखा जा सकता है। उनकी भाषा की अपनी शैली है। उसमें कहीं पर भी विद्वत्ता का मुलम्मा नहीं चढ़ा। परंतु इनकी बोलचाल की भाषा परिनिष्ठित हिंदी भाषा से जुड़ी हुई है। कुछ स्थलों पर कवि संस्कृतनिष्ठ शब्दों के साथ-साथ उर्दू के शब्दों का मिश्रण करते हुए चलते हैं। उदाहरण देखिए
“कितने सही हैं ये गुलाब कुछ कसे हुए और कुछ झरने-झरने को
और हल्की-सी हवा में और भी, जोखम से
निखर गया है उसका रूप जो झरने को है।”
कवि की आरंभिक कविताओं में प्रकृति के बिंब देखे जा सकते हैं, परंतु परवर्ती कविताओं में वे जनसाधारण के जीवन के चित्र उकेरते हैं। उनकी कविताओं में नेहरू, वाजपेयी, मोरारजी देसाई के नाम प्रतीक रूप में प्रयुक्त हुए हैं। आरंभ में उन्होंने छंद का निर्वाह करते हुए कविताएँ लिखीं। परंतु आगे चलकर वे छंद मुक्त कविता करने लगे।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से रघुवीर सहाय का काव्य नई कविता से लेकर समकालीन कविता की प्रवृत्तियाँ लिए हुए हैं। उनकी कविताएँ प्रेम, प्रकृति, परिवार, समाज तथा राजनीति का यथार्थ वर्णन करने में सक्षम रही हैं।

कैमरे में बंद अपाहिज कविता का सार

प्रश्न-
रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता कैमरे में बंद अपाहिज’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता रघुवीर सहाय द्वारा रचित ‘लोग भूल गए हैं। काव्य-संग्रह में संकलित है। इस कविता में कवि ने साधारण भाषा-शैली में अपाहिज व्यक्ति की विडंबना को पकड़ने का प्रयास किया है। विकलांगता निश्चय से मनुष्य को कमजोर तथा दुखी कर देती है। परंतु हमारा आज का मीडिया दुखदायी विकलांगता को अपनी लोकप्रियता का माध्यम बनाना चाहता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि मीडिया में लोकप्रियता प्राप्त करने की स्पर्धा लगी हुई है। वे विकलांग व्यक्ति को मीडिया के समक्ष रखकर उससे इस प्रकार के प्रश्न पूछते हैं कि जवाब देना भी कठिन हो जाता है। संवेदनहीन कार्यक्रम संचालक विकलांग क बढ़ा देता है। जब विकलांग की वेदना फूट पड़ती है तो दर्शक भी उसे देखकर रोने लगते हैं। ऐसी स्थिति में कार्यक्रम संचालक यह देखकर प्रसन्न हो जाता है कि उसका कार्यक्रम सफल रहा। मीडिया के कर्मचारियों को विकलांग व्यक्ति की पीड़ा और कष्ट मात्र एक कार्यक्रम ही नज़र आता है।

यह कविता दूरदर्शन तथा स्टूडियो की भीतरी दुनिया को रेखांकित करती है। कवि यह संदेश देना चाहता है कि पर्दे के पीछे तथा पर्दे के बाहर पीड़ा का व्यापार नहीं होना चाहिए। हमें उस स्थिति से बचना चाहिए जो दूसरों के मर्म को आहत करती है। विकलांग व्यक्ति के प्रति संवेदना तथा सहानुभूति रखनी चाहिए ताकि उसके आहत हृदय में आत्मविश्वास उत्पन्न हो सके।