Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन Questions and Answers, Notes.
Haryana Board 12th Class Hindi विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन
प्रश्न 1.
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और खामियाँ बताइए।
उत्तर:
जनसंचार माध्यमों का हमारे जीवन से गहरा संबंध होता है, परंतु प्रत्येक व्यक्ति की रुचि अलग होती है। किसी को समाचारपत्र पढ़ना अच्छा लगता है, किसी को दूरदर्शन देखना अथवा किसी को रेडियो सुनना अच्छा लगता है। कुछ लोग इंटरनेट से चैटिंग करना पसंद करते हैं। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक जनसंचार माध्यम की कुछ खूबियाँ हैं। जो व्यक्ति समाचारपत्र पढ़कर संतुष्ट होता है, उसे रेडियो या दूरदर्शन में कुछ कमियाँ नज़र आएँगी। इसी प्रकार जो व्यक्ति दूरदर्शन देखने का आदी है, उसे समाचारपत्र व्यर्थ प्रतीत होगा। इतना निश्चित है कि हमें समाचारपत्र को पढ़कर एक अलग प्रकार की संतुष्टि प्राप्त होती है। समाचारपत्र के समाचार हमें सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। इसका प्रभाव स्थायी होता है। परंतु रेडियो तथा दूरदर्शन के समाचारों का प्रभाव अस्थायी होता है। दूसरा दूरदर्शन में विज्ञापन इतना अधिक होता है कि दर्शक तंग आकर चैनल बदल लेता है। तीसरा दूरदर्शन या रेडियो पर समाचारों का व्यापक भंडार नहीं होता। इसके विपरीत इंटरनेट पर सूचनाओं तथा समाचारों का विशाल भंडार होता है। एक बटन दबाने मात्र से सूचनाओं का विशाल भंडार हमारे सामने प्रस्तुत हो जाता है। अतः यह कहना उचित होगा कि प्रत्येक जनसंचार माध्यमं की यदि अपनी कुछ विशेषताएँ हैं, तो कुछ त्रुटियाँ भी हैं।
प्रश्न 2.
जनसंचार माध्यमों में प्रिंट माध्यम पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रिंट माध्यम को हिंदी में छपाई वाले माध्यम अर्थात् मुद्रित माध्यम कहा जाता है। यह जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सर्वाधिक प्राचीन है। वस्तुतः आधुनिक युग में ही मुद्रण का आविष्कार हुआ। यूँ तो मुद्रण का प्राचीनतम इतिहास चीन से संबंधित है, परंतु आधुनिक युग में जर्मनी के जोनिस गुटेनबर्ग ने इसका आविष्कार किया। छापाखाना अर्थात् प्रेस के आविष्कार से जनसंचार के माध्यमों को विशेष लाभ प्राप्त हुआ। यूरोप में जब पुनर्जागरण काल के रेनेसाँ का आरंभ हुआ, तो उस समय छापेखाने ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में स्थापित हुआ। वस्तुतः तत्कालीन मिशनरियों ने धर्म-प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए इसकी स्थापना की थी। धीरे-धीरे मद्रण की इस प्रक्रिया में काफी बदलाव आया। आगे चलकर तथा लेजर प्रिंटिंग ने तकनीक में गुणात्मक परिवर्तन कर दिया, जिससे मुद्रित माध्यमों का व्यापक विस्तार हु मुद्रित माध्यमों के अंतर्गत समाचारपत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि समाहित की जाती हैं।
हमारे जीवन में इनका विशेष महत्त्व है। मुद्रित माध्यम की प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें छपे शब्द स्थायी होते हैं, जिन्हें हम आराम से पढ़ सकते हैं। यदि कोई बात हमारी समझ में नहीं आती तो उसे हम दोबारा भी पढ़ सकते हैं। समाचारपत्र अथवा पत्रिका पढ़ते समय हम उसके किसी भी पृष्ठ को पढ़ सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि समाचारपत्र के पहले पृष्ठ को ही पहले पढ़ा जाए। पुनः मुद्रित माध्यमों में समाचारपत्र अथवा पुस्तक को लंबे समय तक सुरक्षित भी रख सकते हैं। इन माध्यमों में लिखित भाषा का विस्तार होता है और ये लिखित सामग्री लोगों तक अधिकाधिक पहुँचाई जा सकती हैं। चिंतन, विचार-विमर्श तथा विश्लेषण के लिए मुद्रित माध्यम सर्वाधिक उपयोगी है।।
पढ़े-लिखे लोगों के लिए मुद्रित माध्यम अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं, परंतु अनपढ़ लोगों के लिए इनका कोई उपयोग नहीं है। मुद्रित माध्यम के लेखकों के भाषा ज्ञान तथा उनकी शैक्षिक योग्यता को ध्यान में रखकर ही सामग्री लिखनी पड़ती है। परंतु ये माध्यम दूरदर्शन, तथा इंटरनेट, रेडियो आदि की तरह तत्काल घटी घटनाओं को दोबारा प्रस्तुत नहीं कर सकते। समाचारपत्र चौबीस घंटे के बाद पाठकों के पास पहुँचता है। इसी प्रकार साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार छपती है और मासिक पत्रिका महीने में एक बार छपती है। यदि हम समाचारपत्र के समाचारों की तुलना रेडियो अथवा दूरदर्शन के समाचारों के साथ करें, तो ये समाचार बासी कहे जाएंगे। इसलिए मुद्रित माध्यमों के लेखकों तथा पत्रकारों को प्रकाशन की सीमा को ध्यान में रखकर ही सामग्री तैयार करनी पड़ती है।
मुद्रित माध्यम में जो भी सामग्री छापी जाती है, उसमें सभी प्रकार की गलतियों तथा अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक होता है। जो भी आलेख, समाचारपत्र में छापा जाता है, वह व्याकरण तथा वर्तनी की दृष्टि से पूर्णतया शुद्ध होना चाहिए। इस बात की कोशिश की जाती है कि समाचारपत्र अथवा पत्रिका में कोई भाषागत अशुद्धियाँ न हों।
प्रश्न 3.
प्रिंट माध्यमों (मुद्रित माध्यमों) में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
प्रिंट माध्यमों में ध्यान रखने योग्य बातें निम्नलिखित हैं-
- प्रिंट माध्यम लेखन की भाषा-शैली की ओर पूरा ध्यान रखना चाहिए। भाषा के व्याकरण, वर्तनी का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
- पाठकों के अनुसार ही ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिसे पाठक आसानी से समझ सकें।
- प्रिंट माध्यमों के लेखन और प्रकाशन के मध्य गलतियों एवं अशुद्धियों का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
- लेखन में समय-सीमा का भी ध्यान रखना चाहिए।
- लेखन में सहज प्रवाहमयता के लिए तारतम्यता बनाए रखना आवश्यक है।
प्रश्न 4.
मुद्रित माध्यम में रेडियो समाचार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें ध्वनि, स्वर तथा शब्दों के मेल से श्रोताओं तक समाचार पहुँचाया जाता है। रेडियो-पत्रकारों का कर्त्तव्य बनता है कि वे अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखें। कारण यह है कि समाचारपत्र के पाठक अपनी पसंद और इच्छा से कहीं से भी समाचार पढ़ सकते हैं, परंतु रेडियो के श्रोताओं के पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। वे समाचारपत्र के समान रेडियो समाचार बुलेटिन को कहीं से भी नहीं सुन सकते। इसलिए उन्हें तो हमेशा बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करना पड़ता है। यही नहीं, उन्हें आरंभ से अंत तक एक के बाद एक समाचार सुनना होता है। इस काल में न तो वे कहीं आ-जा सकते हैं और न ही किसी कठिन शब्द का अर्थ समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग कर सकते हैं। यदि वे कठिन शब्द का अर्थ जानने के लिए शब्दकोश का प्रयोग करने लगें तो बुलेटिन आगे चला जाएगा।
इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि रेडियो में समाचारपत्र की तरह पीछे लौटकर बुलेटिन सुनने की व्यवस्था नहीं है। यदि श्रोताओं को रेडियो के बुलेटिन में कुछ अरुचिकर या भ्रामक लगेगा, तो वे रेडियो के उस चैनल को तत्काल बंद कर देंगे। रेडियो एक यम है। अतः रेडियो समाचार बुलेटिन पत्र का ढाँचा एवं शैली इसी के अनुसार तैयार किया जाता है। रेडियो के समान टेलीविज़न भी एक एकरेखीय माध्यम है, परंतु उसमें शब्दों तथा ध्वनि की तुलना में दृश्यों या तस्वीरों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। जहाँ रेडियो में शब्द और आवाज़ का विशेष महत्त्व होता है, वहाँ दूरदर्शन में शब्द दृश्यों के साथ सहयोगी बनकर चलते हैं।
प्रश्न 5.
रेडियो समाचार की संरचना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रेडियो के लिए समाचार लिखना एक विशेष प्रकार की कला है। यह समाचार पत्रों के समाचार लिखने की विधि से सर्वथा अलग है। इसका कारण है कि दोनों माध्यमों की प्रकृति अलग-अलग है। अतः रेडियो के लिए समाचार लिखते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रेडियो का प्रयोग शिक्षित अथवा अशिक्षित सभी प्रकार के लोग करते हैं। दूसरा रेडियो केवल श्रव्यता पर आधारित है और समाज के सभी वर्गों के लोग इसका अधिकाधिक प्रयोग करते हैं। समाचार लेखन में उल्टा पिरामिड-शैली का प्रयोग किया जाता है। नब्बे प्रतिशत खबरें या कहानियाँ इसी शैली में लिखी जाती हैं।
उलटा पिरामिड-शैली में समाचार को तीन भागों में बाँटा जाता है-इंट्रो, बॉडी तथा समापन। इंट्रो को लीड भी कहते हैं। हिंदी में इसे मुखड़ा कहा जाता है। इसमें खबर के मूल तत्त्व को एक-दो पक्तियों में बता दिया जाता है। यह समाचार का महत्त्वपूर्ण भाग माना गया है। इसके बाद बॉडी में समाचार का विस्तृत ब्यौरा क्रमानुसार दिया जाता है। यद्यपि इस शैली में समापन जैसा कोई तत्त्व नहीं होता तथापि इसमें प्रासंगिक तथ्य तथा सूचनाएँ भी दी जाती हैं। उलटा पिरामिड-शैली में समापन होता ही नहीं। यदि समय और स्थान की कमी हो जाए, तो अंतिम पैराग्राफ या पंक्तियों को काटकर समाचार छोटा कर दिया जाता है। इस प्रकार समाचार समाप्त कर दिया जाता है।
रेडियो समाचार के इंट्रो का एक उदाहरण देखिए-
- लोकसभा के बाहर विरोधी पार्टियों द्वारा महँगाई के लिए प्रदर्शन। एक दिन के लिए संसद का सत्र स्थगित।
- प्रधानमंत्री ने बुधवार को अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की। पाकिस्तान द्वारा चलाए जा रहे उग्रवाद के प्रति प्रधानमंत्री ने चिंता जताई।
- वित्तमंत्री द्वारा डीज़ल तथा पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि की घोषणा। लोगों में मूल्य वृद्धि के विरुद्ध असंतोष।
- हरियाणा के हिसार जिले में एक बस और ट्रक के बीच हुई दुर्घटना में आठ लोगों की मौत हो गईं। मृतकों में तीन महिलाएँ, तीन बच्चे तथा दो पुरुष शामिल हैं।
प्रश्न 6.
रेडियो के लिए समाचार लेखन की बुनियादी बातें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
रेडियो के लिए समाचार लिखते समय कुछ बातों की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। रेडियो एक ऐसा जनसंचार माध्यम है जो केवल श्रव्यता पर आधारित है। दूसरा यह माध्यम समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए उपयोगी है। पढ़े-लिखे और अनपढ़ दोनों रेडियो के समाचार सुन सकते हैं।
(क) साफ-सुथरी और टाइप्ड-कॉपी-रेडियो समाचार को वाचक एवं वाचिका दोनों ही पढ़ते हैं। उनके लिए समाचार की ऐसी कॉपी तैयार करनी चाहिए, ताकि उन्हें पढ़ने में कोई कठिनाई न हो। यदि समाचार कॉपी साफ-सुथरी टाइप्ड नहीं होगी, तो वाचक एवं वाचिका पढ़ते समय कुछ गलतियाँ कर सकते हैं। इससे या तो श्रोताओं का ध्यान भ्रमित हो जाएगा या उनका ध्यान बँट जाएगा। इसके लिए निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक है
(i) प्रसारण के लिए तैयार की जाने वाली समाचार कॉपी को ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।
(ii) कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोडा जाना चाहिए। एक पंक्ति में अधिक-से-अधिक 12 या 13 शब्द होने चाहिएँ। पंक्ति के अंत में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए। पृष्ठ के अंत में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए। समाचार की कॉपी में कठिन शब्दों तथा संक्षिप्त अक्षरों और अंकों से बचना चाहिए। एक से दस तक के अंक शब्दों में लिखे जाएँ और ग्यारह से नौ सौ निन्यानवे तक के अंक अंकों में लिखे जाएँ, परंतु इनसे बड़ी संख्या शब्दों में ही लिखी जानी चाहिए; जैसे तीन लाख अठारह हजार आठ सौ बीस (318820)।
(iii) समाचार लिखने वाले व्यक्ति को % या $ जैसे संकेतों का प्रयोग न करके प्रतिशत या डॉलर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
(iv) दशमलव को उसके नज़दीकी पूर्णांक में लिखना चाहिए।
(v) खेलों का स्कोर तथा मुद्रास्फीति संबंधी आंकड़े सही लिखे जाने चाहिएँ।
(vi) यथासंभव रेडियो समाचारों में आंकड़ों तथा संख्याओं का प्रयोग कम-से-कम होना चाहिए।
(vii) रेडियो समाचार कभी भी संख्या से आरंभ नहीं होना चाहिए।
समाचारपत्र अथवा पत्रिका के प्रकाशन के लिए संपादक के लिए एक संपादकीय विभाग होता है। ये सभी इस बात का ध्यान रखते हैं कि प्रकाशन के लिए जो भी सामग्री भेजी जा रही है, उसमें गलतियाँ या अशुद्धियाँ न हों। एक निर्दोष पत्र अथवा पत्रिका ही पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। “इस साल चावल का उत्पादन पिछले वर्ष के 60 लाख टन से घटकर 50 लाख टन हो गया है।” इस वाक्य के स्थान पर हमें यह वाक्य लिखना चाहिए। “इस साल चावल का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में सोलह फीसदी घटकर पचास लाख टन रह गया है।”
(ख) डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग-रेडियो में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं होती, बल्कि वह समाचार में ही गुंथी होती है। रेडियो समाचार में समय-संदर्भ का विशेष ध्यान रखा जाता है। समाचार पत्र दिन में एक बार प्रकाशित होकर लोगों के पास पहुँचता है, परंतु रेडियो पर समाचार चौबीस घंटे चलते रहते हैं। इसलिए श्रोता के लिए समय का फ्रेम हमेशा आज होता है। इसलिए रेडियो समाचार में आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार …… बैठक कल होगी या कल हुई बैठक में …………. शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
रेडियो समाचारों में संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए। अच्छा तो यही होगा कि संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग न ही किया जाए। केवल लोकप्रिय संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग ही किया जाए तो अच्छा है; जैसे यूएनओ, यूनिसेफ, सार्क, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, डब्ल्यूटीओ आदि शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है।
प्रश्न 7.
जनसंचार माध्यम में टेलीविज़न के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में रेडियो के अतिरिक्त टेलीविज़न भी हमारे जीवन का अंग बन चुका है। यह देखने और सुनने का मा यम है। इसके लिए समाचार या स्क्रिप्ट लिखते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि लिखित सामग्री परदे पर दिखाई जाने वाली सामग्री के सर्वथा अनुकूल हो। टेलीविज़न की स्क्रिप्ट प्रिंट माध्यम तथा रेडियो माध्यम से अलग प्रकार की होती है। टेलीविज़न की स्क्रिप्ट में कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करते हुए अधिक-से-अधिक खबर दिखानी होती है।
अतः टेलीविज़न के लिए खबरें लिखने की मूलभूत शर्त यह है कि लेखन दृश्य के साथ मेल खाए। कैमरे द्वारा लिए गए शॉट्स (दृश्य) को आधार बनाकर ही खबर लिखी जाती है। उदाहरण के रूप में, यदि शॉट्स वन प्रदेश के हैं, तो हम वन प्रदेश की ही खबर देंगे, गाँव या नगर की नहीं। इसी प्रकार यदि किसी फैक्ट्री में आग लगी हुई है, तो उससे संबंधित समाचार लिखेंगे, पानी की बाढ़ का नहीं। अखबार के लिए इस खबर का इंट्रो इस प्रकार होगा
“दिल्ली के ओखला इंडस्ट्रियल क्षेत्र की एक फैक्ट्री में आज सवेरे आग लगने से चार मजदूर घायल हो गए और लाखों की संपत्ति जल कर राख हो गई। आग के कारणों का पता लगाया जा रहा है।”
परंतु दूरदर्शन पर इस खबर का आरंभ कुछ अलग प्रकार का होगा। टेलीविज़न पर खबर दो तरह से प्रस्तुत की जाती है। इसका प्रारंभिक हिस्सा मुख्य समाचार होता है। दृश्य के बिना इसे न्यूज़ रीडर या एंकर पढ़ता है। दूसरे हिस्से में एंकर के स्थान पर से संबंधित दृश्य भी दिखाए जाते हैं। इस प्रकार टेलीविजन की खबर दो भागों में विभक्त होती है। टेलीविजन दिल्ली की एक फैक्ट्री में लगी आग की प्रारंभिक खबर को एंकर इस प्रकार से पढ़ सकता है।
आग की लपटें सवेरे सात बजे दिखाई दी। शीघ्र ही आग सारी फैक्ट्री में फैल गई….।
वस्तुतः दूरदर्शन के लिए खबरें लिखने के अनेक तरीके हो सकते हैं। यही कारण है कि टेलीविज़न पर खबरें पेश करने के तरीकों में निरंतर बदलाव होता रहता है। इस बात को हम टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाली खबरों को देख और सुनकर समझ सकते हैं, लेकिन इतना निश्चित है कि दूरदर्शन की खबरों का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 8.
टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
दूरदर्शन चैनल पर समाचार देने का मूल आधार वही है जो प्रिंट मीडिया अथवा रेडियो में होता है। यह आधार है सबसे पहले सूचना देना। परंतु दूरदर्शन पर ये सूचनाएँ अनेक चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये हैं
- फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
- ड्राई-एंकर
- फ़ोन-इन
- एंकर-विजुअल
- एंकर-बाइट
- लाइव
- एंकर-पैकेज
(1) फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़-फ्लैश अथवा ब्रेकिंग न्यूज़ वह बड़ी खबर होती है जो दर्शकों तक तत्काल पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महत्त्वपूर्ण खबर दी जाती है।
(2) ड्राई-एंकर-इसमें एंकर समाचारों के बारे में दर्शकों को यह बताता है कि कहाँ, कब, कैसे और क्या हुआ। जब तक समाचार के दृश्य स्टूडियों में नहीं पहँचते, तब तक एंकर संवाददाता से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।
(3) फोन-इन-ड्राई-एंकर के बाद फोन-इन द्वारा विस्तृत समाचार दर्शकों तक पहुँचाए जाते हैं। इसमें एंकर संवाददाता फोन के माध्यम से सूचनाएँ एकत्रित करता है और दर्शकों तक पहुँचाता है। संवाददाता घटना वाले स्थान पर विद्यमान रहता है और वहीं से एंकर को सूचनाएँ मिलती रहती हैं।
(4) एंकर-विजुअल-जब घटना से संबंधित दृश्य प्राप्त हो जाते हैं, तब उन दृश्यों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है एंकर उसे पढ़कर दर्शकों को सुनाता है। इस खबर का आरंभ पहले सूचना से होता है और बाद में घटनाओं से संबंधित दृश्य भी दिखाए जाते हैं।
(5) एंकर-बाइट-बाइट का अर्थ है-कथन। टेलीविज़न मीडिया में बाइट का विशेष महत्त्व होता है। टी०वी० की किसी खबर को पुष्ट करने के लिए घटना के दृश्य दिखाए जाते हैं और प्रत्यक्षदर्शियों अथवा संबंधित व्यक्तियों के कथन दिखाए व सुनाए जाते हैं। इससे खबर की प्रामाणिकता सिद्ध हो जाती है।
(6) लाइव-लाइव का अर्थ है-किसी समाचार या घटना का घटनास्थल से सीधा प्रसारण करना। लगभग सभी टी०वी० चैनलों की यह कोशिश होती है कि घटनास्थल से घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक पहुँचाए जाएँ। इसके लिए घटनास्थल पर संवाददाता तथा कैमरामैन ओ०बी० वैन का प्रयोग करके घटना को सीधे दर्शकों को दिखाते व बताते हैं। उदाहरण के रूप में, क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी के मैच लाइव ही दिखाए जाते हैं।
(7) एंकर-पैकेज-एंकर-पैकेज द्वारा समाचार को संपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, उनसे जुड़े लोगों के कथन तथा ग्राफिक द्वारा सूचनाएँ दी जाती हैं।
उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर टेलीविज़न लेखन तैयार किया जाता है और आवश्यकतानुसार वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। इसमें इस प्रकार के दृश्यों का प्रयोग किया जाता है जो एक दृश्य को दूसरे दृश्य से जोड़ सके, ताकि निहित अर्थ दर्शकों तक पहुँच सके।
टी०वी० पर खबर लिखने की प्रायः एक प्राचीनतम शैली है। इसमें प्रथम वाक्य दृश्य के वर्णन से आरंभ होता है। जैसे पार्लियामैंट स्टेट में महंगाई के विरुद्ध विशाल जनसमूह का जमावड़ा अथवा दिल्ली की सड़कों पर लंबे-लंबे जाम इस प्रकार के समाचार दृश्य के अनुसार होते हैं, परंतु इनमें शब्दों की भूमिका व्यर्थ सी लगती है, क्योंकि दर्शक जिसे अपनी आँखों से देख रहा है, इसलिए उसे भाषा के द्वारा दोहराना नहीं चाहिए। एक कल्पनाशील संवाददाता उन दृश्यों को सार्थकता प्रदान कर सकता है; जैसे दिल्ली के पार्लियामैंट स्टेट में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हो गए हैं। चुनाव रैलियों के समान इनको लाया नहीं गया, बल्कि ये महँगाई से तंग आकर अपना विरोध प्रदर्शित कर रहे हैं। टी०वी० में दृश्य और श्रव्य दोनों का एक साथ प्रयोग किया जाता है। प्रायः कथन अथवा बाइट का प्रयोग खबर को सफल बनाने के लिए किया जाता है। इसलिए खबर लिखते समय दो प्रकार की आवाज़ों को ध्यान में रखना आवश्यक है-एक तो बाइट अथवा कथन की आवाज़ और दूसरी दृश्य की आवाज़ । प्रायः टी०वी० की खबर बाइटस के आसपास ही तैयार की जाती है। परंतु यह कार्य बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए।
प्रश्न 9.
रेडियो और टेलीविज़न के समाचारों की भाषा और शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रेडियो और टेलीविज़न का संबंध देश के प्रत्येक वर्ग से है। इनके श्रोता और दर्शक सुशिक्षित अर्ध-शिक्षित और अनपढ़ लोग भी होते हैं। यदि महानगरों के उच्च वर्ग तथा मध्यम वर्ग के लोग इनको देखते और सुनते हैं तो किसान लोग और मज़दूर भी रेडियो और टी०वी० सुनते और देखते हैं। इसलिए रेडियो और टेलीविज़न की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सबको आसानी से समझ आ जाए, परंतु साथ ही भाषा के स्तर तथा गरिमा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रायः यह कोशिश करनी चाहिए कि सामान्य बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया जाए, ताकि वह श्रोताओं को समझ में आ सके। रेडियो, टेलीविज़न में प्रयुक्त होने वाली भाषा तथा शैली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(i) भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए।
(ii) वाक्य छोटे-छोटे, सीधे तथा स्पष्ट लिखे जाने चाहिए।
(iii) भाषा में प्रवाहमयता एवं लयात्मकता भी होनी चाहिए।
(iv) तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। इनके स्थान पर और, लेकिन, या, आदि शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(v) इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग न किया जाए जो संदेहयुक्त हों।
(vi) समाचारपत्रों में जिन शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग किया जाता है, रेडियो, टी०वी० में उनका प्रयोग नहीं किया जाता। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित तथा क्रमांक इत्यादि शब्द।
(vii) गैर जरूरी विशेषणों, सामासिक, तत्सम शब्दों तथा अतिरंजित उपमाओं का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे भाषा बोझिल हो जाती है।
(viii) मुहावरों का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए, परंतु इनका प्रयोग आवश्यकतानुसार तथा स्वाभाविक होना चाहिए।
(ix) एक वाक्य में एक ही बात कहीं जानी चाहिए।
(x) शिथिल वाक्यों से बचना चाहिए।
(xi) भाषा में प्रयुक्त वाक्यों से यह न लगे कि कुछ छूटता या टूटता हुआ है।
(xii) प्रायः प्रचलित एवं सहज शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(xiii) उदाहरण के रूप में क्रय-विक्रय के स्थान पर खरीद-बिक्री, स्थानांतरण की जगह तबादला तथा पंक्ति की जगह कतार आदि शब्दों का प्रयोग होना चाहिए।
प्रश्न 10.
जनसंचार माध्यमों में इंटरनेट की भूमिका और महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता तथा साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता भी कहा जाता है। नई पीढ़ी में यह पत्रकारिता काफी लोकप्रिय हो चुकी है। जो लोग इंटरनेट का प्रयोग करने के आदी हो चुके हैं, उन्हें अब कागज़ पर छपे समाचार बासी लगते हैं। वे घंटे-घंटे बाद स्वयं को अपडेट करते रहते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत में कंप्यूटर साक्षरता की दर बड़ी तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष 50 से 55 प्रतिशत इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ जाती है। क्योंकि यह एक ऐसा जनसंचार माध्यम है, जिसमें हम विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक की खबरें पढ़ सकते हैं। यही नहीं, हम संपूर्ण संसार की चर्चाओं तथा परिचर्चाओं में भाग ले सकते हैं और समाचारपत्रों की फाइलों की जाँच-पड़ताल कर सकते हैं।
परंतु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इंटरनेट केवल एक औज़ार है, जिसके द्वारा हम सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं, अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं, मनोरंजन प्राप्त करने के साथ-साथ व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों का आदान-प्रदान भी कर सकते हैं। परंतु यह अश्लीलता, दुष्प्रचार तथा गंदगी फैलाने का भी माध्यम है।
इंटरनेट पर पत्रकारिता के दो रूप देखे जा सकते हैं। एक तो इंटरनेट को औज़ार के रूप में प्रयोग करके खबरों का संप्रेषण करना और दूसरा संवाददाता अपनी खबर को दूसरे स्थान तक ई-मेल द्वारा भेज सकता है तथा समाचारों का संकलन भी कर सकता है। वह इंटरनेट का प्रयोग खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण के लिए भी कर सकता है। शोध कार्य के लिए इंटरनेट अत्यधिक उपयोगी है। पहले किसी समाचार की बैकग्राउंडर तैयार करने के लिए अखबारों की फाइलों को खोजना पड़ता था, परंतु अब चंद मिनटों में ही इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल में से समाचार की पृष्ठभूमि आसानी से खोजी जा सकती है। एक समय था जब टेलीप्रिंटर पर एक मिनट में 80 शब्द एक स्थान-से-दूसरे स्थान पर भेजे जाते थे, परंतु आज एक सेकेंड में 56 किलोबाइट अर्थात् 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।
प्रश्न 11.
इंटरनेट पत्रकारिता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इसके इतिहास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इंटरनेट पर समाचारपत्र को प्रकाशित करना तथा समाचारों का आदान-प्रदान करना ही इंटरनेट पत्रकारिता कहलाती है। हम इंटरनेट पर किसी भी रूप में समाचारों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचरों, झलकियों तथा डायरियों द्वारा विभिन्न समस्याओं को जान सकते हैं तथा अपना मत व्यक्त कर सकते हैं। इसे ही हम इंटरनेट पत्रकारिता कहते हैं। आज लगभग सभी प्रमुख समाचारपत्र इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कुछ प्रकाशन संस्थानों तथा निजी कंपनियों ने स्वयं को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ा हुआ है। इंटरनेट एक जनसंचार माध्यम है। अतः इसकी पत्रकारिता की विधि थोड़ी अलग प्रकार की है।
इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास अधिक लंबा नहीं है। आज विश्वस्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। प्रथम दौर 1982 से 1992 तक चला। दूसरा दौर 1993 से 2001 तक चला। इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर सन् 2002 से आरंभ होकर अब तक सक्रिय है। प्रथम चरण में यह स्वयं प्रयोग के धरातल पर काम कर रहा था। अतः बड़े-बड़े प्रकाशन समूह यह प्रतीक्षा कर रहे थे कि किस प्रकार अखबारों की उपस्थिति को ‘सुपर इंफॉर्मेशन’ हाइवे’ पर दर्ज करवाया जा सके। उस समय अमेरिका ऑनलाइन जैसी बहुचर्चित कंपनियाँ आगे आईं। परंतु इंटरनेट पत्रकारिता का आरंभ तो सन् 1983 से 2002 तक के मध्यकाल में ही हुआ। इस काल में तकनीक की दृष्टि से इंटरनेट में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ।
नई वेब भाषा एचटीएमएल (हाइपर टेक्स्ट मार्डअप लैंग्वेज) सामने आई। इंटरनेट ई-मेल का प्रयोग होने लगा। इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेट स्केप नाम के ब्राउजर ने न केवल इंटरनेट को सुविधाजनक बनाया, बल्कि इसकी गति को भी तीव्र कर दिया। शीघ्र ही न्यूज़ मीडिया के नाम पर डॉटकॉम कंपनियाँ अस्तित्व में आ गईं। इंटरनेट और डॉटकॉम की बहुत चर्चा होने लगी। लोगों को लगने लगा कि वे रातों-रात अमीर बन जाएँगे। फलतः तीव्र गति से कंपनियाँ अस्तित्व में आईं और तीव्र गति से ही बंद हो गईं। सन् 1996 से 2002 के मध्यकाल में अमेरिका के पाँच लाख लोग डॉटकॉम नौकरियों से हाथ धो बैठें। वस्तुतः डॉटकॉम कंपनियों के बंद होने का कारण था, पर्याप्त आर्थिक आधार की कमी तथा विषय-सामग्री का अभाव। परंतु बड़े-बड़े प्रकाशन समूह मैदान में डटे रहे। जनसंचार के क्षेत्र में परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों या अनुकूल सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में इंटरनेट की भूमिका हमेशा बनी रहेगी। लगता है कि आज पत्रकारिता का तीसरा चरण काफ़ी सुदृढ़ है।
प्रश्न 12.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता विषय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में दूसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता सक्रिय है। हमारे देश में इंटरनेट पत्रकारिता का प्रथम दौर सन् 1993 से शुरू हुआ और दूसरा दौर सन् 2003 से। इंटरनेट पत्रकारिता के प्रथम दौर में जहाँ विश्व में अनेक प्रयोग हुए, वहीं हमारे यहाँ भी अनेक प्रयोग हुए। डॉटकॉम तूफान के समान आया, लेकिन बुलबुले के समान फूट गया। केवल वही टिक पाए जो मीडिया उद्योग से पहले अस्तित्व में थे। आज इंटरनेट पत्रकारिता में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, हिंदू’ ‘ट्रिब्यून’ ‘पॉयनियर’, ‘स्टेट्समैन’, ‘एनडीटी०वी०’, ‘आईबीएन’, ‘ज़ी न्यूज़’, ‘आजतक’, ‘आउटलुक’ आदि साइटें ही सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। परंतु ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’ ‘इंडियाइंफोलाइन’ तथा ‘सीफी’ जैसी कुछ साइटें सही अर्थों में काम कर रही हैं। रीडिफ भारत की प्रथम साइट है जो गंभीरतापूर्वक इंटरनेट पत्रकारिता का काम करने में संलग्न है। ‘तहलका डॉटकॉम’ ने ही वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता का काम करने का श्रेय प्राप्त किया है।
प्रश्न 13.
हिंदी नेट संसार पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ से आरंभ हुई। इंदौर के ‘नयी दुनिया समूह’ ने हिंदी का संपूर्ण पोर्टल आरंभ किया। इसके बाद हिंदी के कुछ समाचारपत्रों ने अपने-अपने पोर्टल शुरू किए। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नयी दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’, ‘राजस्थान पत्रिका’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ आदि के वेब संस्करण आरंभ हो चुके हैं। ‘प्रभासाक्षी’ नाम का अखबार केवल इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। पत्रकारिता की दृष्टि से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट केवल ‘बीबीसी’ की है, क्योंकि यह साइट इंटरनेट के मानदंडों के अनुसार काम कर रही है। शुरू-शुरू में वेब साइट बड़े उत्साह के साथ आरंभ हुई थी, लेकिन अब स्टाफ तथा अपडेटिंग में कटौती के फलस्वरूप इंटरनेट पत्रकारिता में वह ताज़गी नहीं रही।
हिंदी वेबजगत में ‘अनुभूति’, ‘अभिव्यक्ति’, ‘हिंदी नेस्ट’ तथा ‘सराय’ आदि साहित्यिक पत्रिकाएँ सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। इसके साथ-साथ भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय, विभाग, सार्वजनिक उपक्रम तथा बैंकों ने भी अपने-अपने हिंदी अनुभाग आरंभ कर दिए हैं। आशा है कि भविष्य में इनके द्वारा तैयार किया गया डाटाबेस ऑनलाइन पत्रकारिता को बढ़ावा देगा परंतु इतना निश्चित है कि हिंदी की वेब पत्रकारिता का पूर्णतया विकास नहीं हो पाया है। हिंदी के फौंट की समस्याएँ सबसे बड़ी बाधा है। दूसरा हमारे पास कोई एक ‘की-बोर्ड’, नहीं है। डायनमिक फौंट प्राप्त न होने के कारण हिंदी की अधिकांश साइटें खुल ही नहीं पातीं, काम करना तो दूर की बात है। जब तक हिंदी के बेलगाम फौंट पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया जाता और ‘की-बोर्ड’ का मानवीकरण नहीं होता, तब तक यह समस्या ज्यों-की-त्यों बनी रहेगी।
पाठ से संवाद
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर (√) का निशान लगाइए
(क) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि
(i) इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है। ( )
(ii) इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं। ( )
(iii) इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है। ( )
(iv) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। ( )
उत्तर:
(iv) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। ( )
(ख) टी०वी० पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्त्वपूर्ण है
(i) विजुअल
(ii) नेट
(iii) बाइट
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी
(ग) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो
(i) जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो
(ii) जो समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके
(iii) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो
(iv) जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो
उत्तर:
(iii) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो
प्रश्न 2.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों-प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट से जुड़ी पाँच-पाँच खूबियों और खामियों को लिखते हए एक तालिका तैयार करें।
उत्तर:
जनसंचार प्रिंट
खूबियाँ | खामियाँ |
(1) छपे हुए शब्द स्थाई होते हैं। | (1) ये शब्द अनपढ़ लोगों के लिए बेकार हैं। केवल पढ़े-लिखे लोगों के काम आते हैं। |
(2) इन्हें हम धीरे-धीरे आराम से पढ़ सकते हैं। | (2) समाचारों की समय सीमा होती है। |
(3) पढ़ते-पढ़ते हम चिंतन, विचार तथा विश्लेषण भी कर सकते हैं। | (3) स्पेस का ध्यान रखना पड़ता है। |
(4) बार-बार पढ़कर समझ सकते हैं। | (4) अशुद्धियों को ठीक करना पड़ता है। |
(5) इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। | (5) तत्काल घटित घटनाओं को प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। |
रेडियो
(1) यह केवल श्रव्य माध्यम है। | (1) पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं होती। |
(2) अनपढ़ भी सुन सकते हैं। | (2) कठिन शब्द समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता। |
(3) यह उल्टा पिरामिड-शैली में होता है। | (3) प्रसारण समय के लिए इंतज़ार करना पड़ता है। |
(4) भ्रामक और अरुचिकर कार्यक्रम बंद किएजा सकते हैं। | (4) यह एक रेखीय माध्यम है। |
(5) शब्दों के साथ-साथ संगीत का प्रयोग किया जा सकता है। | (5) टी०वी० की तुलना में कम आकर्षक है। |
टी०वी०
(1) यह दृश्य के साथ श्रव्य साधन भी है। अधिक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। | (1) कई बार छोटी-सी बात को उछालकर प्रस्तुत किया जाता है। |
(2) अधिक सटीक तथा प्रामाणिक समाचार दिखाए जा सकते हैं। | (2) व्यावसायिकता के परिवेश के कारण निष्पक्षता का अभाव होता है। |
(3) ब्रेकिंग न्यूज़ तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जा सकती है। | (3) किसी की भी छवि बिगाड़ी जा सकती है। |
(4) कम शब्दों का प्रयोग करके अधिक दृश्य दिखाए जा सकते हैं। | (4) कठिन शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता। |
(5) लाइव दिखाने और सुनाने की व्यवस्था भी है। | (5) अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है। |
इंटरनेट
(1) इससे मनोरंजन तथा ज्ञान की वृद्धि होती है। | (1) अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है। |
(2) चौबीसों घंटे समाचार तथा सूचनाएँ प्राप्त होती रहती हैं। | (2) दुष्प्रचार का माध्यम है। |
(3) सर्वाधिक तीव्र माध्यम है। | (3) महंगा माध्यम है। |
(4) पूरे-का-पूरा अखबार इंटरनेट पर उपलब्ध कराया जा सकता है। | (4) छोटे बच्चों को खेल-कूद से दूर करने वाला माध्यम। |
(5) कोई भी पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है। | (5) आम लोगों के लिए दुष्प्राप्य माध्यम। |
(6) रिपोर्ट का सत्यापन और पुष्टिकरण उपलब्ध है। | (6) आम आदमी इसका प्रयोग नहीं कर सकता। निरक्षर लोगों के लिए यह अप्राप्य है। |
प्रश्न 3.
इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंटरनेट शिक्षित वर्ग में काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसका प्रमुख कारण यही है कि इंटरनेट पत्रकारिता से तत्काल सूचनाएँ उपलब्ध हो जाती हैं। लेकिन इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं।
- यह कच्ची बुद्धि के युवक-युवतियों में अश्लीलता, नग्नता तथा अनैतिकता फैला रहा है।
- युवा वर्ग के संस्कार विकृत हो रहे हैं।
- अपराध तथा उग्रवादी इसकी सहायता से संसार भर में आतंक फैला रहे हैं। विशेषकर, भारत में होने वाली आतंकवादी घटना के पीछे इंटरनेट का बहुत बड़ा हाथ है।
- इंटरनेट के द्वारा काले धन का लेन-देन आसान हो गया है। पुस्तकीय ज्ञान की चोरी सहज हो गई है।
प्रश्न 4.
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन-सा है? पक्ष-विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से टी०वी० अधिक सशक्त माध्यम है। इसके पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित बातें कही जा सकती हैं
टी०वी०
पक्ष | विपक्ष |
1. यह दृश्य के साथ श्रव्य साधन भी है। | 1. कई बार छोटी-सी बात को उछालकर प्रस्तुत किया जाता है। |
2. अधिक सटीक तथा प्रामाणिक समाचार दिखाए जा सकते हैं। | 2. व्यावसायिकता के परिवेश के कारण निष्पक्षता का अभाव होता है। |
3. ब्रेकिंग न्यूज़ तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जा सकती है। | 3. किसी की भी छवि बिगाड़ी जा सकती है। |
4. कम शब्दों का प्रयोग करके अधिक दृश्य दिखाए जा सकते हैं। | 4. कठिन शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग नहीं किया जा सकता। |
5. लाइव दिखाने और सुनाने की व्यवस्था भी है। | 5. अश्लीलता और नग्नता को बढ़ावा दिया जाता है। |
6. छोटे बच्चों के लिए हानिकारक है। |
प्रश्न 5.
नीचे दिए गए चित्रों को ध्यान से देखें और इनके आधार पर टी०वी० के लिए तीन अर्थपूर्ण संक्षिप्त स्क्रिप्ट लिखें।
उत्तर:
1. पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण-दूर पर्वतों की चोटियाँ बर्फ से ढकी हुई हैं। तलहटी में एक विशाल झील है, जहाँ प्रतिवर्ष असंख्य सैलानी नौका-विहार के लिए आते हैं। वे इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाते हैं, परंतु ऐसा लगता है कि उन्हें पर्यावरण की कोई चिंता नहीं है। झील की स्वच्छता की ओर वे तनिक भी ध्यान नहीं देते। यही कारण है कि झील के पानी में कागज़ के टुकड़े, पॉलीथीन तथा खाने के टुकड़े तैरते हुए नज़र आ रहे हैं। हम लोग यह भी नहीं सोचते कि हमें पर्यटन स्थलों को स्वच्छ तथा साफ-सुथरा रखना चाहिए। यदि पर्वतीय क्षेत्रों का पर्यावरण स्वच्छ रहेगा तो पुनः नौका विहार का आनंद प्राप्त कर सकेंगे।
2. जल का अपव्यय-हमें इस सच्चाई को समझना चाहिए कि जल ही जीवन है। परंतु जल की कमी चारों ओर महसूस की जा रही है। महानगर हो चाहे गाँव, सर्वत्र पानी की कमी अनुभव की जा रही है। भले ही सरकार इस समस्या की ओर ध्यान दे रही है, लेकिन नागरिकों का भी कर्त्तव्य बनता है कि पानी की बर्बादी को रोका जाए। अकसर देखने में आता है कि घंटों तक नलों से पानी निकलता रहता है और हम नल को बंद नहीं करते। पानी के इस अपव्यय को रोकना नितान्त आवश्यक है। प्रत्येक भारतीय को पानी के अपव्यय की ओर ध्यान देना चाहिए।
3. छोटे बच्चे भारी बस्ते-ये छोटे-छोटे बच्चे बस्तों के भारी बोझ तले दबे जा रहे हैं। जब भी हमारी नजर स्कूल की ओर जाती है तो इस प्रकार के दृश्य दिखाई देते हैं। क्या कभी हमने सोचा है कि यह आयु तो हँसने-खेलने तथा खाने-पीने की है, परंतु ये बेचारे अपने शरीर के वज़न से अधिक पुस्तकों से भरे बैग को पीठ पर लादे हुए स्कूल में प्रवेश करते हैं। संसार के विकसित देशों के बच्चों की पढ़ाई खिलौनों, गाने, नाचने तथा खेलने कूदने से आरंभ होती है। लेकिन हमारे देश में शुरू में ही बच्चों को पुस्तकों तथा कॉपियों का बोझ उठाना पड़ता है। इससे उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। शिक्षाशास्त्रियों तथा अभिभावकों को मिलकर इन भारी बस्तों को हल्का करने में सहयोग देना चाहिए। सरकार का शिक्षा विभाग भी इसे अनदेखा नहीं कर सकता।