HBSE 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Alankar अलंकार Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Vyakaran अलंकार

अलंकार

प्रश्न 1.
अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलंकार शब्द का अर्थ है-आभूषण या गहना। जिस प्रकार स्त्री के सौंदर्य-वृद्धि में आभूषण सहायक होते हैं, उसी प्रकार काव्य में प्रयुक्त होने वाले अलंकार शब्दों एवं अर्थों में चमत्कार उत्पन्न करके काव्य-सौंदर्य में वृद्धि करते हैं; जैसे-
“खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा।
किसलय का आँचल डोल रहा।”
साहित्य में अलंकारों का विशेष महत्त्व है। अलंकार प्रयोग से कविता सज-धजकर सुंदर लगती है। अलंकारों का प्रयोग गद्य और पद्य दोनों में होता है। अलंकारों का प्रयोग सहज एवं स्वाभाविक रूप में होना चाहिए। अलंकारों को जान-बूझकर लादना नहीं चाहिए।

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प्रश्न 2.
अलंकार के कितने भेद होते हैं ? सबका एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
साहित्य में शब्द और अर्थ दोनों का महत्त्व होता है। कहीं शब्द-प्रयोग से तो कहीं अर्थ-प्रयोग के चमत्कार से और कहीं-कहीं दोनों के एक साथ प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस आधार पर अलंकार के तीन भेद माने जाते हैं-
1. शब्दालंकार,
2. अर्थालंकार,
3. उभयालंकार।

1. शब्दालंकार-जहाँ शब्दों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि होती है, वहाँ शब्दालंकार होता है; जैसे.
“चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रही हैं जल-थल में।”

2. अर्थालंकार-जहाँ शब्दों के अर्थों के कारण काव्य में चमत्कार एवं सौंदर्य उत्पन्न हो, वहाँ अर्थालंकार होता है; जैसे
“चरण-कमल बंदौं हरि राई।”

3. उभयालंकार-जिन अलंकारों का चमत्कार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित होता है, उन्हें उभयालंकार कहते हैं; जैसे
“नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोइ।
जेतौ नीचौ है चले, तेतौ ऊँचौ होइ ॥”

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प्रमुख अलंकार-

1. अनुप्रास

प्रश्न 3.
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है; यथा-
(क) मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
यहाँ ‘मुदित’, ‘महीपति’ तथा ‘मंदिर’ शब्दों में ‘म’ व्यंजन की और ‘सेवक’, ‘सचिव’ तथा ‘सुमंत’ शब्दों में ‘स’ व्यंजन की आवृत्ति है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

(ख) भगवान भक्तों की भूरि भीति भगाइए।

यहाँ ‘भगवान’, ‘भक्तों’, ‘भूरि’, ‘भीति’ तथा ‘भगाइए’ में ‘भ’ व्यंजन की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है।
(ग) कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बिराजति है।

(घ) जौं खग हौं तो बसेरो करौं मिलि-
कालिंदी कूल कदंब की डारनि।

यहाँ दोनों उदाहरणों में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) “कंकन किंकन नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि ॥”
यहाँ ‘क’ तथा ‘न’ वर्गों की आवृत्ति के कारण शब्द-सौंदर्य में वृद्धि हुई है, अतः अनुप्रास अलंकार है।

(च) तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
इसमें ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

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2. यमक

प्रश्न 4.
यमक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
जहाँ किसी शब्द या शब्दांश का एक से अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है; जैसे
(क) कनक कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाइ।
उहिं खायें बौरातु है, इहिं पाएँ बौराई ॥
इस दोहे में ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। एक ‘कनक’ का अर्थ है-सोना और दूसरे ‘कनक’ का अर्थ है-धतूरा। एक ही शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग होने के कारण यहाँ यमक अलंकार है।

(ख) माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ॥
इस दोहे में ‘फेर’ और ‘मनका’ शब्दों का भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है। ‘फेर’ का पहला अर्थ है-माला फेरना और दूसरा अर्थ है-भ्रम। इसी प्रकार से ‘मनका’ का अर्थ है-हृदय और माला का दाना। अतः यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

(ग) काली घटा का घमंड घटा।
यहाँ ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है।
घटा = वर्षा काल में आकाश में उमड़ने वाली मेघमाला
घटा = कम हआ।

(घ) कहैं कवि बेनी बेनी व्याल की चुराई लीनी।
इस पंक्ति में ‘बेनी’ शब्द का भिन्न-भिन्न अर्थों में आवृत्तिपूर्वक प्रयोग हुआ है। प्रथम ‘बेनी’ शब्द कवि का नाम है और दूसरा ‘बेनी’ (बेणी) चोटी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

(ङ) गुनी गुनी सब कहे, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यो कहुँ तरु अरक तें, अरक समानु उदोतु ॥
‘अरक’ शब्द यहाँ भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। एक बार अरक के पौधे के रूप में तथा दूसरी बार सूर्य के अर्थ के रूप में प्रयुक्त हुआ है, अतः यहाँ यमक अलंकार सिद्ध होता है।

(च) ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती है।
यहाँ ‘मंदर’ शब्द के दो अर्थ हैं। पहला अर्थ है-भवन तथा दूसरा अर्थ है-पर्वत, इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।

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3. श्लेष

प्रश्न 5.
श्लेष अलंकार का लक्षण लिखकर उसके उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ एक शब्द के एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ निकलें, उसे श्लेष अलंकार कहते हैं; जैसे-
1. नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोय।
जेते नीचो है चले, तेतो ऊँचो होय ॥
मनुष्य और नल के पानी की समान ही स्थिति है, जितने नीचे होकर चलेंगे, उतने ही ऊँचे होंगे। अंतिम पंक्ति में बताया गया सिद्धांत नर और नल-नीर दोनों पर समान रूप से लागू होता है, अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।

2. मधुवन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियाँ।
यहाँ ‘कलियाँ’ शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है किंतु इसमें अर्थ की भिन्नता है।
(क) खिलने से पूर्व फूल की दशा।
(ख) यौवन पूर्व की अवस्था।

3. रहिमन जो गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय ॥
इस दोहे में ‘बारे’ और ‘बढ़े’ शब्दों में श्लेष अलंकार है।

4. उपमा

प्रश्न 6.
उपमा अलंकार की परिभाषा देते हुए उसके दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
जहाँ किसी वस्तु, पदार्थ या व्यक्ति के गुण, रूप, दशा आदि का उत्कर्ष बताने के लिए किसी लोक-प्रचलित या लोक-प्रसिद्ध व्यक्ति से तुलना की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
1. ‘उसका हृदय नवनीत सा कोमल है।’
इस वाक्य में ‘हृदय’ उपमेय ‘नवनीत’ उपमान, ‘कोमल’ साधारण धर्म तथा ‘सा’ उपमावाचक शब्द है।

2. लघु तरण हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर ॥
यहाँ छोटी नौका की तुलना हंसिनी के साथ की गई है। अतः ‘तरण’ उपमेय, ‘हंसिनी’ उपमान, ‘सुंदर’ गुण और ‘सी’ उपमावाचक शब्द चारों अंग हैं।

3. हाय फूल-सी कोमल बच्ची।
हुई राख की थी ढेरी ॥
यहाँ ‘फूल’ उपमान, ‘बच्ची’ उपमेय और ‘कोमल’ साधारण धर्म है। ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।

4. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे।
इस पंक्ति में ‘अरविंद से शिशुवृंद’ में साधारण धर्म नहीं है, इसलिए यहाँ लुप्तोपमा अलंकार है।

5. नदियाँ जिनकी यशधारा-सी
बहती हैं अब भी निशि-वासर ॥
यहाँ ‘नदियाँ’ उपमेय, ‘यशधारा’ उपमान, ‘बहना’ साधारण धर्म और ‘सी’ उपमावाचक शब्द है, अतः यहाँ उपमा अलंकार है।

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5. रूपक

प्रश्न 7.
रूपक अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ अत्यंत समानता दिखाने के लिए उपमेय और उपमान में अभेद बताया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है; जैसे-
1. चरण कमल बंदौं हरि राई।
उपर्युक्त पंक्ति में ‘चरण’ और ‘कमल’ में अभेद बताया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग है।

2. मैया मैं तो चंद-खिलौना लैहों।
यहाँ भी ‘चंद’ और ‘खिलौना’ में अभेद की स्थापना की गई है।

3. बीती विभावरी जाग री।
अंबर पनघट में डुबो रही।
तारा-घट ऊषा नागरी।
इन पंक्तियों में नागरी में ऊषा का, अंबर में पनघट का और तारों में घट का आरोप हुआ है, अतः रूपक अलंकार है।

4. मेखलाकार पर्वत अपार,
अपने सहस्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रहा था बार-बार,
नीचे जल में निज महाकार।
यहाँ दृग (आँखों) उपमेय पर फूल उपमान का आरोप है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

प्रश्न 8.
उपमा और रूपक अलंकार का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपमा अलंकार में उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है जबकि ‘रूपक’ में उपमेय में उपमान का आरोप करके दोनों में अभेद स्थापित किया जाता है।
उदाहरण-
पीपर पात सरिस मनं डोला (उपमा)
यहाँ ‘मन’ उपमेय तथा ‘पीपर पात’ उपमान में समानता बताई गई है। अतः उपमा अलंकार है।

उदाहरण-
चरण कमल बंदौं हरि राई।” (रूपक)
यहाँ उपमेय ‘चरण’ में उपमान ‘कमल’ का आरोप है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

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6. उत्प्रेक्षा

प्रश्न 9.
उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ समानता के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाती है; जैसे-
1. सोहत ओ पीतु पटु, स्याम सलौनै गात।
मनौ नीलमणि सैल पर, आतपु पर्यो प्रभात ॥
यहाँ श्रीकृष्ण के साँवले रूप तथा उनके पीले वस्त्रों में प्रातःकालीन सूर्य की धूप से सुशोभित नीलमणि पर्वत की संभावना होने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

2. उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा ॥
यहाँ क्रोध से काँपता हुआ अर्जुन का शरीर उपमेय है तथा इसमें सोए हुए सागर को जगाने की संभावना की गई है।

3. लंबा होता ताड़ का वृक्ष जाता।
मानो नभ छूना चाहता वह तुरंत ही ॥
यहाँ आँसुओं से पूर्ण उत्तरा के नेत्र उपमेय है जिनमें कमल की पंखुड़ियों पर पड़े हुए ओस के कणों की कल्पना की गई है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

7. मानवीकरण

प्रश्न 10.
मानवीकरण अलंकार की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है; जैसे-
“लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।”
यहाँ लतिका में मानवीय क्रियाओं का आरोप है, अतः लतिका में मानवीय अलंकार सिद्ध है। मानवीकरण अलंकार के कुछ। अन्य उदाहरण हैं

(i) दिवावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे,

(ii) “मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।”

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8. अतिशयोक्ति

प्रश्न 11.
अतिशयोक्ति अलंकार किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ किसी वस्तु का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है; जैसे-
1. हनुमान की पूँछ में, लग न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग ॥
हनुमान की पूँछ में अभी आग लगी भी नहीं थी कि सारी लंका जल गई और सारे राक्षस वहाँ से भाग गए। यहाँ हनुमान की वीरता का वर्णन लोक-सीमा से भी अधिक बढ़कर है, अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है।

2. आगे नदिया बड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार ॥
यहाँ सोचने की क्रिया की पूर्ति होने से पहले ही घोड़े का नदी के पार पहुँचना लोक-सीमा का अतिक्रमण है, अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।

3. देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन को जा रही ॥
यहाँ कवि ने साकेत नगरी की सुख-सुविधाओं का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है, अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

4. वह शर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।
यहाँ कारण और कार्य के बीच के अंतर को मिटा देने के कारण अतिशयोक्ति अलंकार है। अर्जुन के धनुष से बाण छूटते ही जयद्रथ का सिर धड़ से अलग हो गया। ऐसा होना असंभव है।

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9. अन्योक्ति

प्रश्न 12.
अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिए।
उत्तर:
जहाँ उपमान (अप्रस्तुत) के वर्णन के माध्यम से उपमेय (प्रस्तुत) का वर्णन किया जाए, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
1. जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति बहार।
अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार ॥
यहाँ अलि के माध्यम से एक ऐसे गुणी की ओर संकेत किया गया है, जिसका आश्रयदाता पत्रहीन शाखा (धनहीन) गुलाब जैसा रह गया हो।

2. नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं विकासु इहिं काल।
अली कली ही सौं बंध्यौ, आनें कौन हवाल ॥
प्रस्तुत दोहे में अप्रस्तुत अर्थ कली और भ्रमर के वर्णन से प्रस्तुत अर्थ राजा जयसिंह और उनकी नवोढ़ा रानी की प्रतीति कराई गई है, अतः यह अन्योक्ति अलंकार का सुंदर उदाहरण है।

10. पुनरुक्ति प्रकाश

प्रश्न 13.
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिए।
उत्तर:
जब कवि एक शब्द की आवृत्ति काव्य में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए करता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है।

पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के उदाहरण-
1. “किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत।”
2. “कवि-करि प्रतिपद प्रतिमनि वसुधा कमल बैठकी साजती।”
3. झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर!
राग अमर! अंबर में भर निज रोर!
4. ‘हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से’।

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अभ्यासार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण-

1. शब्द के अंकुर फूटे।
उत्तर:
रूपक

2. मृदु मंद-मंद मंथर मंथर, लघु तरणि हंस-सी सुंदर।
प्रतिघट-कटक कटीले कोते कोटि-कोटि।
उत्तर:
अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश

3. हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार।
उत्तर:
मानवीकरण

4. नृत्य करने लगी डालियाँ।
उत्तर:
मानवीकरण

5. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरें, मोती मानुस चून ॥
उत्तर:
श्लेष

6. तारों की सी छाँह साँवली।
उत्तर:
रूपक

7. वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी,
वह दीप शिखा-सी शांत भाव में लीन
वह टूटे तरन की छूटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
उत्तर:
उपमा

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8. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमणि शैल पर आतप पर्यो प्रभात ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

9. राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत बारिद बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास ॥
उत्तर:
अनुप्रास

10. पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
उत्तर:
अनुप्रास और यमक

11. बढ़त-बढ़त संपति-सलिल, मन सरोज बढ़ जाई।
घटत-घटत सु न फिरि घटे, बरु समूल कुम्हिलाई ॥
उत्तर:
रूपक

12. चारु कपोल लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए।
लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन, मादक मधुहिं पिए ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा, अनुप्रास एवं रूपक

13. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिल काल बस निज कुल घालकु।
भानु बंस-राकेस-कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू ॥
उत्तर:
अनुप्रास

14. यों तो ताशों के महलों सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या?
भू काँप उठे तो ढह जाए, बाढ़ आ जाए, बह जाए ॥
उत्तर:
उपमा

15. या अनुराग चित की, गति समुझै नहिं कोइ।
ज्यौं-ज्यौं बूडै स्याम रंग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होइ ॥
उत्तर:
श्लेष

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16. मेरे अंतर में आते हो देव, निरंतर,
कर जाते हो व्यथा भार लघु,
बार-बार कर कंज बढ़ाकर।
उत्तर:
रूपक एवं यमक

17. भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उत्तर:
अनुप्रास
यमक

18. पी तुम्हारी मुख बात तरंग
आज बौरे भौंरे सहकार।
उत्तर:
यमक

19. माला फेरत युग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
उत्तर:
यमक

20. मुदित महीपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत बुलाए ।
उत्तर:
अनुप्रास

21. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा

22. ऊँचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल।
उत्तर:
अनुप्रास

23. थर-थर काँपहिं नर-नारी।
उत्तर:
पुनरुक्ति प्रकाश

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24. सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार ॥
उत्तर:
यमक

25. रघुपति राघव राजा राम।
उत्तर:
अनुप्रास

26. तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।
उत्तर:
अनुप्रास

27. मैया मैं तो चंद-खिलौना लैहों।
उत्तर:
रूपक

28. यह तेरी रण-तरी।
उत्तर:
रूपक

29. भव-सागर तरने को नाव बनाए।
उत्तर:
रूपक

30. संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो।
उत्तर:
अनुप्रास

31. जेहि विधि तबहिं ताहि लइ आवा।
उत्तर:
अनुप्रास

32. बार-बार गर्जन,
वर्षण है मूसलाधार।
उत्तर:
पुनरुक्ति प्रकाश

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33. भजन कह्यो तातें, भज्यों ने एकहुँ बार।
दूर भजन जाते कयो, सो तू भज्यो गँवार ॥
उत्तर:
यमक

34. महा महा जोधा संघारे।
उत्तर:
पुनरुक्ति प्रकाश

35. ऐ जीवन के पारावार।
उत्तर:
उपमा।

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