HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Shabd Roop Prakaran शब्दरूप प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् HBSE Sanskrit 10th Class

संस्कृतभाषा में शब्द चार प्रकार के होते हैं
1. नाम (संज्ञा) शब्द
2. सर्वनाम शब्द,
3. संख्यावाचक शब्द,
4. विशेषण शब्द
सज्ञाशब्द संज्ञाशब्द दो प्रकार के होते हैं
1. अजन्त (स्वर से अन्त होने वाले) और
2. हलन्त (व्यंजन से अन्त होने वाले)

1. अजन्त-जिन शब्दों के अंत में स्वर होता है, वे अजन्त कहलाते हैं। उन्हें स्वरान्त भी कहा जाता है। जैसे-बालकः, हरिः, गुरुः, वधूः आदि।
2. हलन्त-जिन शब्दों के अंत में व्यंजन हो तो वे हलन्त कहलाते हैं। उन्हें व्यंजनान्त भी कहते हैं। जैसे- राजन्, नामन्, मरुत्, आत्मन् इत्यादि।
स्मरणीय-अजन्त एवं हलन्त शब्द भी तीनों लिंगों में विभाजित होते हैं।
अजन्तशब्द
(क) अजन्तपुंल्लिंग-बालक, हरि, गुरु, पितृ आदि शब्द अजन्त (स्वरान्त) पुंल्लिंग के अन्तर्गत आते हैं।
(ख) अजन्तस्त्रीलिंग-लता, गौरी, मति, वधू, मातृ आदि शब्द अजन्त (स्वरान्त) स्त्रीलिंग शब्दों के अन्तर्गत आते हैं।
(ग) अजन्तनपुंसकलिंग-फल, पुस्तक, वारि, दधि आदि शब्द अजन्त (स्वरान्त) नपुंसकलिंग के अन्तर्गत आते हैं।
हलन्तशब्द
(क) हलन्त पुंल्लिंग-राजन्, आत्मन्, विद्वस् आदि शब्द हलन्त पुंल्लिंग के अन्तर्गत आते हैं।
(ख) हलन्त स्त्रीलिंग-वाच, गिर्, सरित् आदि शब्द हलन्त स्त्रीलिंग के अन्तर्गत आते हैं।
(ग) हलन्त नपुंसकलिंग-जगत्, चक्षुष, नभस् आदि शब्द हलन्त नपुंसकलिंग के अन्तर्गत आते हैं।

ध्यातव्य
जिस शब्द में र, ष, क्ष अथवा ऋ में से कोई भी अक्षर हो तो तृतीया ‘एकवचन’ में न के स्थान पर ण होगा जैसे-(नृपेण नृपाणाम्) बालकेन-नृपेण, कविना-हरिणा तथा षष्ठी बहुवचन में ‘नाम्’ के स्थान पर ‘णाम्’ होगा। जैसे-बालकानाम्नृपाणाम्, कवीनाम्-हरीणाम्।
सर्वनाम शब्द-संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द ‘सर्वनाम’ कहलाते हैं। सर्वनाम शब्दों का प्रयोग सभी व्यक्ति, वस्तु या स्थान के लिए किया जा सकता है। जैसे-अहम् (मैं, त्वम् (तुम), युवाम् (तुम दोनों), यूयम् (तुम सब), सः (वह), तौ (वे दोनों), ते (वे सब), इदम् (यह), भवत् (आप) आदि। सर्वनाम शब्दों का सम्बोधन रूप कभी नहीं होता।

संख्यावाचक शब्द-एक, दो आदि संख्याओं का बोध कराने के लिए संख्यावाची शब्दों का प्रयोग होता है। संख्यावाचक शब्दों का प्रयोग प्रायः विशेषण के रूप में होता है।
संस्कृतभाषा में सर्वनाम शब्दों की संख्या 35 है। यहाँ पाठ्यक्रमानुसार संज्ञा, तथा संख्यावाचक शब्दों के रूप दिए जा रहे है|

व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 10th Class HBSE Sanskrit

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(क) अजन्त पुंल्लिंग
अति आवश्यक एवं पाठ्यक्रम में निर्धारित शब्दरूप
(1) अकारान्त पुंल्लिंग शब्द – ‘बालक’

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा बालकः बालकौ बालकाः
द्वितीया बालकम् बालकौ बालकान्
तृतीया बालकेन बालकाभ्याम् बालकै:
चतुर्थी बालकाय बालकाभ्याम् बालकेभ्य:
पज्चमी बालकात् बालकभ्याम् बालकेभ्य:
षष्ठी बालकस्य बालकयो: बालकानाम्
सप्तमी बालके बालकयो: बालकेषु
सम्बोधन हे बालक ! हे बालकौ ! हे बालका: !

हे बालंकाः ! सूचना-राम, शिष्य, कुठार, दिवाकर, छात्र, नर, देव, कृष्ण, अध्यापक, गज, खग, भ्रमर, अश्व, तुरंग, भुजंग आदि अकारान्त पुँल्लिग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

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(2) मुनि (ऋषि) इकारान्त पुंल्लिंग (M.I.)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा मुनि: मुनी मुनयः
द्वितीया मुनिम् मुनी मुनीन्
तृतीया मुनिना मुनिभ्याम् मुनिभि:
चतुर्थी मुनये मुनिभ्याम् मुनिभ्य:
पज्चमी मुने: मुनिभ्याम् मुनिभ्य:
षष्ठी मुने: मुन्यो: मुनीनाम्
सप्तमी मुनौ मुन्यो: मुनिषु
सम्बोधन हे मुने! हे मुनी ! हे मुनय: !

सूचना-अरि, विधि, हरि, गिरि (पहाड़), रवि (सूर्य), अलि, कवि, विधि, यति, कपि आदि इकारान्त पुंल्लिंग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

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(3) उकारान्त पुंल्लिंग-साधु (सज्जन)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा साधु: साधू साधव:
द्वितीया साधुम् साधू साधून्
तृतीया साधुना साधुभ्याम् साधुभि:
चतुर्थी साधवे साधुभ्याम् साधुभ्य:
पज्चमी साधो: साधुभ्याम् साधुभ्य:
षष्ठी साधो: साध्वो: साधूनाम्
सप्तमी साधौ साध्वो: साधुषु
सम्बोधन हे साधो ! हे साधू ! हे साधवः !

सूचना-रिपु, बिन्दु (बूंद), हेतु (कारण), शत्रु, सेतु, प्रभु, पशु, गुरु, भानु (सूर्य), वायु, बन्धु, शम्भु, शिशु, विधु, तरु आदि उकारान्त पुंल्लिंग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

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(4) ऋकारान्त ‘पितृ’ (पिता)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा पिता पितरौ पितर:
द्वितीया पितरम् पितरौ पित्ध्
तृतीया पित्रा पितृभ्याम् पितृभि:
चतुर्थी पित्रे पितृभ्याम् पितृभ्य:
पज्चमी पितु: पितृभ्याम् पितृभ्य:
षष्ठी पितु: पित्रो: पित्धणाम्
सप्तमी पितरि पित्रो: पितृषु
सम्बोधन हे पितः ! हे पितरौ ! हे पितर: !

सूचना- भ्रातृ (भाई), जामातृ (दामाद) देव (देवर) आदि शब्दों के रूप भी ‘पितृ’ शब्दों के समान ही होंगे।

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(5) ऋकारान्त पुंल्लिग-‘भ्रातृ’ (भाई)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा भ्राता ‘ भ्रातरौ भ्रातर:
द्वितीया भ्रातरम् भ्रातरौ भ्रातः
तृतीया भ्रात्रा भ्रातृभ्याम् भ्रातृभि:
चतुर्थी भ्रात्रे भ्रातृभ्याम् भ्रातृभ्य:
पज्चमी भ्रातु: भ्रातृभ्याम् भ्रातृभ्य:
षष्ठी भ्रातु: भ्रात्रो: भ्रातुणाम्
सप्तमी भ्रातरि भ्रात्रो: भ्रातृषु
सम्बोधन हे भ्रातः ! हे भ्रातरौ ! हे भ्रातर: !

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(ख) अजन्त स्त्रीलिंग
(6) आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द-‘लता’

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा लता लते लता:
द्वितीया लताम् लते लता:
तृतीया लतया लताभ्याम् लताभि:
चतुर्थी लतायै लताभ्याम् लताभ्य:
पज्चमी लताया: लताभ्याम् लताभ्य:
षष्ठी लताया: लतयो: लतानाम्
सप्तमी लतायाम् लतयो: लतासु
सम्बोधन हे लते ! हे लते ! हे लता: !

इसी प्रकार से अन्य आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों जैसे-रमा, आशा, छात्रा, बाला, शिक्षिका, पाठशाला, कक्षा, गीता, विशाखा, शोभा, नौका, शाखा, गङ्गा, रमा, माला, ग्रीवा, नासिका,कलिका इत्यादि के रूप बनाए जा सकते हैं।

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(7) इकारान्त स्त्रीलिंग-‘मति’ (बुद्धि)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा मति: मती मतयः
द्वितीया मतिम् मती मती:
तृतीया मत्या मतिभ्याम् मतिभि:
चतुर्थी मत्यै, (मतये) मतिभ्याम् मतिभ्य:
पज्चमी मत्या:, (मते:) मतिभ्याम् मतिभ्य:
षष्ठी मत्या:, (मते:) मत्यो: मतीनाम्
सप्तमी मत्याम्, (मतौ) मत्यो: मतिषु
सम्बोधन है मते ! हे मती ! हे मतय: !

सूचना-युक्ति, सृष्टि, वृष्टि, मुक्ति, सिद्धि, सम्पत्ति, विपत्ति, स्तुति, भक्ति, श्रुति, नीति, गति, बुद्धि, ऊर्मि आदि इकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

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(8) ईकारान्त स्त्रीलिंग (नदी)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा नदी नद्यौ नद्य::
द्वितीया नदीम् नद्यौ नदी:
तृतीया नद्या नदीभ्याम् नदीभि:
चतुर्थी नहै नदीभ्याम् नदीभ्य:
पज्चमी नद्या: नदीभ्याम् नदीभ्य:
षष्ठी नद्या: नद्यो: नदीनाम्
सप्तमी नद्याम् नद्यो: नदीषु
सम्बोधन हे नदि ! हे नद्यौ ! हे नह्य: !

समान शब्द-गौरी, पार्वती, देवी, नारी, सुन्दरी इत्यादि शब्दरूप इसी प्रकार बनेंगे।

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(9) उकारान्त स्त्रीलिंग धेनु (गाय)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा धेनु: धेनू धेनवः
द्वितीया धेनुम् धेनू धेनू:
तृतीया धेन्वा धेनुभ्याम् धेनुभि:
चतुर्थी धेन्वै, (धेनवे) धेनुभ्याम् धेनुभ्य:
पज्चमी धेन्वा:, (धेनो: ) धेनुभ्याम् धेनुभ्य:
षष्ठी धेन्वा:, (धेनोः) धेन्वो: धेनुषु
सप्तमी धेन्वाम् (धेनौ) धेन्वो: धेनुषु
सम्बोधन हे धेनो ! हे धेनू ! हे धेनवः !

समान शब्द-रेणु, रज्जु, इत्यादि के शब्द रूप इसी प्रकार बनेंगे।

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(10) ऋकारान्त स्त्रीलिंग मातृ (माता)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा माता मातरौ मातर:
द्वितीया मातरम् मातरौ मातृ:
तृतीया मात्रा मातृभ्याम् मातृभि:
चतुर्थी मात्रे मातृभ्याम् मातृभ्य:
पज्चमी मातु: मातृभ्याम् मातृभ्य:
षष्ठी मातु: मात्रो: मात्रणाम्
सप्तमी मातरि मात्रो: मातृषु
सम्बोधन हे मात: हे मातरौ ! हे मातर:

सूचना-दुहितृ (पुत्री), ननान्दृ (ननद) शब्द के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

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(ग) अजन्त नपुंसकलिंग
(11) अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द-‘फल’ विभक्ति एकवचन द्विवचन

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा फलम् फले फलानि
द्वितीया फलम् फले फलानि
तृतीया फलेन फलाभ्याम् फलै:
चतुर्थी फलाय फलाभ्याम् फलेभ्य:
पज्चमी फलात् फलाभ्याम् फलेभ्य:
षष्ठी फलस्य फलयो: फलानाम्
सप्तमी फले फलयो: फलेषु
सम्बोधन हे फल ! हे फले! हे फलानि !

स्मरणीय-1. इसी प्रकार से वन, नगर, उद्यान, पत्र, पुष्प, मित्र, जल, गृह, उपवन, नयन, धन आदि अकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप ‘फल’ और ‘पुस्तक’ की तरह चलते हैं। 2. अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द की प्रथमा व द्वितीया विभक्ति को छोड़कर तृतीया से सप्तमी विभक्ति तक के रूप अकारान्त पुंल्लिंग की तरह ही चलेंगे।

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( 12 ) इकारान्त नपुंसकलिंग–’वारि’ (पानी)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा वारि वारिणी वारीणि
द्वितीया वारि वारिणी वारीणि
तृतीया वारिणा वारिभ्याम् वारिभि:
चतुर्थी वारिणे वारिभ्याम् वारिभ्य:
पज्चमी वारिण: वारिभ्याम् वारिभ्य:
षष्ठी वारिण: वारिणो: वारीणाम्
सप्तमी वारिणि वारिणो: वारिष
सम्बोधन हे वारि ! हे वारिणी ! हे वारीणि !

सूचना-इसी प्रकार दधि, अक्षि (आँख), सक्थि (जंघा), अस्थि (हड्डी) आदि इकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप चलते

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(13) उकारान्त नपुंसकलिंग–’मधु’ (शहद)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा मधु मधुनी मधूनि
द्वितीया मधु मधुनी मधूनि
तृतीया मधुना मधुभ्याम् मधुभि:
चतुर्थी मधुने मधुभ्याम् मधुभ्य:
पज्चमी मधुनः मधुभ्याम् मधुभ्य:
षष्ठी मधुनः मधुनो: मधूनाम्
सप्तमी मधुनि मधुनो: मधुषु
सम्बोधन हे मधु हे मधुनी हे मधूनि

सूचना-इसी प्रकार वस्तु, सानु (पर्वत का शिखर), जानु (घुटना), तालु, दारु (लकड़ी) आदि उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप चलते हैं।

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(घ) सर्वनाम शब्द
(14) सर्व-(सब) पुंल्लिङ्ग

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुप्चन
प्रथमा सर्व: सर्वौ सर्वे
द्वितीया सर्वम् सर्वौ सर्वान्
तृतीया सर्वेण सर्वाभ्याम् सर्व:
चतुर्थी सर्वस्मै सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः
पज्चमी सर्वस्मात् सर्वाभ्याम् सर्वेभ्य:
षष्ठी सर्वस्य सर्वयो: सर्वेषाम्
सप्तमी सर्वस्मिन् सर्वयो: सर्वेषु

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सर्व- (सब) स्त्रीलिङ्ग

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा सर्वा सर्वे सर्वाः
द्वितीया सर्वाम् सर्वे सर्वाः
तृतीया सर्वया सर्वाभ्याम् सर्वाभि:
चतुर्थी सर्वस्यै सर्वाभ्याम् सर्वाभ्य:
पज्चमी सर्वस्या: सर्वाभ्याम् सर्वाभ्य:
षष्ठी सर्वस्या: सर्वयो: सर्वासाम्
सप्तमी सर्वस्याम् सर्वयो: सर्वासु

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सर्व- (सब) नपुंसकलिङ्ग

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा सर्वम् सर्वे सर्वाणि
द्वितीया सर्वम् सर्वे सर्वाणि
तृतीया सर्वेण सर्वाभ्याम् सर्वै:
चतुर्थी सर्वस्मै सर्वाभ्याम् सर्वेभ्य:
पज्चमी सर्वस्मात् सर्वाभ्याम् सर्वेभ्य:
षष्ठी सर्वस्य सर्वयो: सर्वेषाम्
सप्तमी सर्वस्मिन् सर्वयो: सर्वेषु

सूचना-‘सर्व’ शब्द की भाँति ही विश्व, अन्य, इतर, पूर्व, पर, अपर, अधर, शब्दों के तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।

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(15) यद् जो (पुंल्लिग)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवच्च
प्रथमा य: यौ ये
द्वितीया यम् यौ यान्
तृतीया येन याभ्याम्. यै:
चतुर्थी यस्मै याभ्याम् येभ्य:
पज्चमी यस्मात् याभ्याम् येभ्य:
षष्ठी यस्य ययो: येषाम्
सप्तमी यस्मिन् ययो: येषु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

यद् = जो (स्त्रीलिंग)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा या ये या:
द्वितीया याम् ये या:
तृतीया यया याभ्याम् याभि:
चतुर्थी यस्ये याभ्याम् याभ्य:
पज्चमी यस्या: याभ्याम् याभ्य:
षष्ठी यस्या: ययो: यासाम् .
सप्तमी यस्याम् ययो: यासु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

यद् = जो (नपुंसकलिंग)

विभक्ति एकवचन द्विवचन ये बहुवचन
प्रथमा यत् ये यानि
द्वितीया यत् ये यानि
तृतीया येन याभ्याम् यै:
चतुर्थी यस्मै याभ्याम् येभ्यः
पज्चमी यस्मात् याभ्याम् येभ्य:
षष्ठी यस्य ययो: येषाम्
सप्तमी यस्मिन् ययो: येषु

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सूचना-इसी प्रकार

‘तद्’ (वह ) स: तौ ते पुँल्लिंग)
सा ते ता: (स्त्रीलिंग)
तद् ते तानि (नपुंसकलिंग)
एतद् ‘ (यह) एष्: एतौ एते (पुँलिलिंग)
एषा एते एता: (स्त्रीलिंग)
एतद् एते एतानि (नपुंसकलिंग)
किम् ( कौन )- क: कौ के (पुँलिलंग)
का के का: (स्त्रलिंग)
किम् के कानि (नपुंसकलिंग)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(16) अदस् = (पुंल्लिग)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा असौ अमू अमी
द्वितीया अमुम् अमू अमून्
तृतीया अमुना अमूभ्याम् अमीभिः
चतुर्थी अमुष्मै अमूभ्याम् अमीभ्य:
पज्चमी अमुष्मात् अमूभ्याम् अमीभ्य:
षष्ठी अमुष्य अमुयो: अमीषाम्
सप्तमी अमुष्मिन् अमुयो: अमीषु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

अदस् = वह (स्त्रीलिंग)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा असौ अमू अमू:
द्वितीया अमुम् अमू अमू:
तृतीया अमुया अमूभ्याम् अमूभि:
चतुर्थी अमुष्यै अमू भ्याम् अमूभ्य:
पज्चमी अमुष्या: अमू भ्याम् अमूभ्यः
षष्ठी अमुष्या: अमुयो: अमूषाम्
सप्तमी अमुष्याम् अमुयो: अमूषु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

अदस् = वह (नपुंसकलिंग)

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा अद: अमू अमूनि
द्वितीया अदः अमू अमूनि
तृतीया अमुना अमूभ्याम् अमीभ्य:
चतुर्थी अमुने अमूभ्याम् अमीभ्य:
पज्चमी अमुष्मात् अमूभ्याम् अमीभ्य:
षष्ठी अमुष्य अमुयो: अमीषाम्
सप्तमी अमुष्मिन् अमुयो: अमीषु

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(ङ) संख्यावाचक एवं क्रमवाचक शब्दों के रूप

विशेषण-शब्द-ऐसे शब्द जो संज्ञा और सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं, विशेषण शब्द कहलाते हैं। यहाँ संख्यावाचक और क्रमवाचक विशेषण शब्द दिए जा रहे हैं
संख्यावाचकशब्द-ऐसे शब्द जो वस्तुओं की संख्या का ज्ञान कराते हैं, वे संख्यावाची शब्द कहलाते हैं, जैसे-एक: (एक), द्वौ (दो), त्रयः (तीन), चत्वारः (चार) इत्यादि।
स्मरणीय:
1. एक शब्द के रूप तीनों लिंगों में और एकवचन में चलते हैं।
2. द्वि (दो) शब्द के रूप तीनों लिंगों में तथा द्विवचन में चलते हैं।
3. त्रि (तीन) एवं चतुर (चार) के रूप तीनों लिंगों में और बहुवचन में चलते हैं।
4. पञ्चन् (पाँच) से अष्टादशन् (अठारह) तक के संख्यावाची शब्दों के रूप तीनों लिंगों में समान होते हैं और बहुवचन में होते हैं।
5. एकोनविंशतिः (उन्नीस) से लेकर नवनवतिः (निन्यानवे) तक सभी संख्यावाची शब्दों के रूप स्त्रीलिंग एकवचन में होते हैं।

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(17) एक (एक) शब्द के रूप
‘एक’ शब्द सदा एकवचन में रहता है। इसके द्विवचन और बहुवचन में रूप नहीं होते हैं। इसके रूप तीनों लिंगों में भिन्न होते हैं।

विभक्ति पुँल्लिंग स्त्रीलिंग नपुंसकलिंग
प्रथमा एक: एका एकम्
द्वितीया एकम् एकाम् एकम्
तृतीया एकेन एकया एकेन
चतुर्थी एकस्मै एक्स्यै एकस्मै
पज्चमी एकस्मात् एक्स्या: एकस्मात्
षष्ठी एकस्य एकस्या: एकस्य
सप्तमी एकस्मिन् एकस्याम् एकस्मिन्

विशेष-‘एक’ शब्द के रूप एकवचन में ही चलते हैं।

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(18) द्वि (दो) शब्द के रूप

विभक्ति पुँल्लिंग स्त्रीलिंग द्वे नपुंसकलिंग
प्रथमा द्वौ द्वे द्वे
द्वितीया द्वौ द्वे द्वे
तृतीया द्वाभ्याम् द्वाभ्याम् द्वाभ्याम्
चतुर्थी द्वाभ्याम् द्वाभ्याम् द्वाभ्याम्
पज्चमी द्वाभ्याम् द्वाभ्याम् द्वाभ्याम्
षष्ठी द्वयो: द्वयो: द्वयो:
सप्तमी द्वयो: द्वयो: द्वयो:

विशेष-(1) ‘द्वि’ शब्द के रूप द्विवचन में ही चलते हैं।
(2) ‘द्वि’ शब्द के रूप स्त्रीलिंग व नपुंसकलिंग में एक समान होते हैं।

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(19) त्रि (तीन शब्द के रूप

विभक्ति पुँल्लिंग स्त्रीलिंग तिस्र: तिस्न: नपुंसकलिंग
प्रथमा त्रय: तिसृभि: त्रीणि
द्वितीया त्रीन् तिसृभ्य: त्रीणि
तृतीया त्रिभि: तिसृभ्य: त्रिभि:
चतुर्थी त्रिभ्य: तिसृणाम् त्रिभ्य:
पज्चमी त्रिभ्य: तिसृषु त्रिभ्य:
षष्ठी त्रयाणाम् स्त्रीलिंग तिस्र: तिस्न: त्रयाणाम्
सप्तमी त्रिषु तिसृभि: त्रिषु

विशेष-‘त्रि’ शब्द के रूप बहुवचन में ही चलते हैं।

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(20) चतुर् (चार) शब्द के रूप

विभक्ति पुँल्लिंग स्त्रीलिंग नपुंसकलिंग
प्रथमा चत्वार: चतस्ब: चत्वारि
द्वितीया चतुर: चतस्र: चत्वारि
तृतीया चतुर्भि: चतसृभि: चतुर्भि:
चतुर्थी चतुर्भ्य: चतसृभि: चतुर्भ्य:
पज्चमी चतुभ्य्य: चतसृभ्य: चतुर्भ्य:
षष्ठी चतुर्णाम् चतसृणाम् चतुर्णाम्
सप्तमी चतुर्षु चतसुष् चतुर्षु

विशेष-त्रि एवं चतुर् शब्द से लेकर अष्टादशन् (अठारह) तक की संख्याओं के रूप केवल बहुवचन में ही चलते हैं।

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(21) पञ्चन् (पाँच), ( 22 ) षष् (छः) (23) सप्तन् (सात) शब्दों के रूप
(तीनों लिंगों में एक समान)

विभक्ति पउ्वन् षष् सप्तन्
प्रथमा पज्च षट्, षड् सप्त
द्वितीया पज्च षट्, षड् सप्त
तृतीया पअ्चभि: षड्भि: सप्तभि:
चतुर्थी पर्चभ्य: षड्भ्य: सप्तभ्य:
पज्चमी पख्वभ्य: षड्भ्य: सप्तभ्य:
षष्ठी पख्चानाम् षण्णाम् सप्तानाम्
सप्तमी पञ्चसु षट्सु सप्तसु

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(24) अष्टन् (आठ), (25) नवन् (नौ), (26) दशन् (दस) शब्दों के रूप (तीनों लिंगों में एक समान)

विभक्ति अष्टन् नवन् दशन्
प्रथमा अष्टौ (अष्ट) नव दश
द्वितीया अष्टौ (अष्ट) नव दश
तृतीया अष्टाभि: (अष्टभि:) नवभि: दशभि:
चतुर्थी अष्टाभ्यः (अष्टभ्यः) नवभ्य: दशभ्य:
पज्चमी अष्टाभ्यः (अष्टभ्यः) नवभ्य: दशभ्य:
षष्ठी अष्टानाम् (अष्टानाम्) नवानाम् दशानाम्
सप्तमी अष्टासु (अष्टसु) नवसु दशसु

विशेष-इसी प्रकार एकादशन्, द्वादशन्, त्रयोदशन्, चतुर्दशन्,पञ्चदशन्, षोडशन्, सप्तदशन् और अष्टादशन् शब्दों के रूप में चलते हैं।

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क्रमवाचक/पूरण संख्यावाचक शब्द

पुंल्लिंग स्त्रीलिंग प्रथमा नपुंसकलिंग
प्रथम: द्वितीया प्रथमम्
द्वितीय: तृतीया द्वितीयम्
तृतीय: चतुर्थी तृतीयम्
चतुर्थ: पर्चमी चतुर्थम्
पर्चम: षष्ठी पर्चमम्
पष्ठ: सप्तमी षष्ठम्
अष्टम: अष्टमी सप्तमम्
नवम: नवमी अष्टमम्
दशम: दशमी दशमस्
एकादशः एकादशी एकादशम्
द्वादशः द्वादशी द्वादशम्
त्रयोदशः त्रयोदशी त्रयोदशम्
चतुर्दशः चतुर्दशी चतुर्दशम्
पर्चदशः पर्चदशी पर्चदशम्
षोडश: षोडशी षोडशम्
सप्तदशः सप्तदशी सप्तदशम्
अष्टादशः अष्टादशी अष्टादशम्
एकोन-विंशातितमः एकोन-विंशतितमा एकोन-विंशतितमम्
विंशतितम: विंशतितमा विंशतितमम्

क्रमवाचक/पूरण संख्यावाचक शब्दों का प्रयोग |

(1) प्रथमः पाठः (पहला अध्याय)
(2) द्वितीया कथा (दूसरी कथा)
(3) द्वितीयम् नेत्रम् (दूसरी आँख)
(4) तृतीयः दिवसः (तीसरा दिन)
(5) पञ्चमी तिथि: (पाँचवीं तिथि)
(6) षष्ठमः बालक: (छठवाँ बालक)
(7) सप्तमम् पुष्पम् (सातवाँ फूल)
(8) अष्टमः नृपः (आठवाँ राजा)
(9) नवमी बालिका (नौवीं लड़की)
(10) दशमम् फलम् (दसवाँ फल)

शब्दरूपाणि अधिकृत्य वाक्येषु शब्दप्रयोगः

I. कोष्ठके प्रदत्ते शब्दे समुचित-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
1. हिमालयः ………………. पर्वतेषु उच्चतमः अस्ति। (सर्व)
2. ………………… बालिकाभ्यः पुस्तकानि यच्छत। (सर्व)
3. एतानि …………………. पुष्पाणि मनोहराणि सन्ति। (सर्व)
4. अस्माकं …… ……………… पुरुषाः महान्तः आसन्। (पूर्व)
5. अस्मात् ………………….. चित्रं शोभनम् आसीत्। (पूर्व)
6. सूर्यः ………………. दिशः उदयति। (पूर्व)
7. इयं कन्या कक्षायां ………………….. अतिष्ठत् । (प्रथम)
8. एतत् कन्दुकं प्रथमः छात्रः द्वितीयाय द्वितीयः …………… च यच्छतु। (प्रथम)
9. …………….. के आगमिष्यन्ति ? (प्रथम)
10. दशरथस्य …….. पुत्रेण भरतेन राज्यं न स्वीकृतम्। (द्वितीय)
11. ‘राम’-शब्दस्य ………………….. विभक्त्यां बहुवचने ‘रामाणाम्’ इति रूपं भवति। (द्वितीय)
12. मम प्रथमं मित्रं दिनेश: ………………. मित्रं च कृष्णः अस्ति। (द्वितीय)
13. कृष्णः सुदामा च द्वौ ………………….. आस्ताम्। (सखि)
14. शकुन्तलायाः प्रियंवदा-अनसूयानाम्नी द्वे ………………… आस्ताम। (सखि )
15. पत्नी ……………….. कष्टानि सहते। (पति)
16. धनानां ………………….. धनदः कथ्यते। (दातृ)
17. सुखानां ………………….. भगवत्यै नमो नमः । (दातृ)
18. वनानि एव काष्ठादीनां ………………….. भवन्ति। (दातृ)
19. ………………….. पतिः नृपतिः उच्यते। (नृ)
20. गोपाल ………………….. पयः दोग्धि। (गो)
21. मम तिस्रः ………………….. सन्ति। (स्वसृ)
22. सः ………………….. काणः अस्ति । (अक्षि)
23. स्वस्ति ते ………………….. सन्तु। (पथिन्)
24. ………………….. लता: कम्पन्ते। (मरुत्, बहुवचने)
25. यादृक् सङ्गतिः यस्य ………………….. मतिः भवति। (तादृश)
26. ………………….. फलानि न क्रेतव्यानि। (तादृश्)
27. यादृक्षु ………………….. जनेषु विश्वासः न करणीयः। (तादृश्)
28. ………………….. जनः मां न शृणोति। (अदस्)
29. एतत् पुस्तकम् …… ….. कन्यायाः अस्ति। (अदस्)
30. ……………… पुष्पाणि पश्यत। (अदस्)
31. परोपकारिणां यशः सर्वासु ………………. भवति। (दिश्)
32. विदुषां ……………… माधुर्यं सेवेत। (वाच्)
33. सज्जनाः मनसा …………………. कर्मणा च शुभम् एव कुर्वन्ति। (वाच्)
34. दुर्जनानां …………………. न विश्वसेत्। (गिर)
35. मधुरा . ………………… कस्मै न रोचते। (गिर्)
36. सर्वे ………………….. कृपणाः न भवन्ति। (धनिन्)
37. ……………….. मोचयिता मेघः पयोदः इति उच्यते। (पयस्)
38. इयं कन्या ………………….. वृक्षान् सिञ्चति। (पयस्)
39. ………………….. तन्त्राणां समाहारः पञ्चतन्त्रम् उच्यते। (पञ्चन्)
40. अद्य एका छात्रा ………………….. छात्राः च कक्षायाम् न आगच्छन्। (षष्)
41. ………………….. सगतराणां रसम् आनय। (सप्तन्)
42. अष्टाध्यायी ………………….. अध्यायानां समाहारः अस्ति। (अष्टन्)
43. ………………….. छात्रैः रक्तदानं कृतम्। (नवन्)
44. …………….. दिक्षु तव यशः प्रसरतु। (दश)
45. अस्यां पशुशालायाम् ……………. (अष्टन्)
अश्वाः ………………….. (दशन्) गावः ……………………. (पञ्चन्)
अजाः, ………………….. (सप्तन्) वृषभाः, ……….. (षष्) महीष्यः…………. (नवन्)
गर्दभाः च सन्ति।
उत्तरमाला
(1) सर्वेषु
(2) सर्वाभ्यः
(3) सर्वाणि
(4) पूर्वे
(5) पूर्वम्
(6) पूर्वस्मात्
(7) प्रथमा
(8) प्रथमाय
(9) प्रथमम्
(10) द्वितीयेन
(11) द्वितीयायाम्
(12) द्वितीयम्
(13) सखायौ
(14) सख्यौ
(15) पत्ये
(16) दाता
(17) दात्र्यै
(18) दातृणि
(19) नृणाम्
(20) गाम्
(21) स्वसारः
(22) अक्ष्णा
(23) पन्थानः
(24) मरुद्भिः
(25) तादृक्
(26) तादंशि
(27) तादृक्षु
(28) असौ
(29) अमुष्याः
(30) अमूनि
(31) दिक्षु
(32) वाचः
(33) वचसा
(34) गीर्षु
(35) गी:
(36) धनिनः
(37) पयसाम्
(38) पयसा
(39) पञ्चानाम्
(40) षट्
(41) सप्तानाम्
(42) अष्टानाम्
(43) नवभिः
(44) दशसु
(45) अष्ट, दश, पञ्च, सप्त, षट्, नव।

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