Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Sandhi-Prakaran संधि-प्रकरण Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Hindi Vyakaran संधि-प्रकरण
सन्धि-प्रकरण
संधि का सामान्य अर्थ है जोड़ या मिलाप। हिंदी भाषा में जब दो ध्वनियाँ आपस में मिलती हैं और मिलने से जो एक नया रूप धारण कर लेती हैं, उसे संधि कहते हैं। संधि की परिभाषा इस प्रकार से दी जा सकती है
परिभाषा:
दो वर्गों के परस्पर समीप आने से या उनमें मेल होने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते हैं; जैसे-
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
जगत् + ईश = जगदीश
परि + ईक्षा = परीक्षा।
प्रथम उदाहरण में (आ + अ) के समीप आने पर दोनों का ‘आ’ रूप में विकार हुआ है। दूसरे उदाहरण में ‘त् + ई’ के परस्पर समीप आने से त् का द् हो गया है। तीसरे उदाहरण में ‘इ + ई’ के परस्पर समीप आने से ‘ई’ रूप में विकार उत्पन्न हुआ है।
संधि के भेद
प्रश्न 1.
संधि के कितने भेद होते हैं ? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
संधि के तीन भेद होते हैं
1. स्वर संधि
विद्या + आलय = विद्यालय
सदा + एव = सदैव
2. व्यंजन संधि
सत् + आचार = सदाचार
अभि + सेक = अभिषेक
3. विसर्ग संधि
यशः + दा = यशोदा
निः + चित = निश्चित
1. स्वर संधि
प्रश्न 2.
स्वर संधि की परिभाषा लिखते हुए उसके भेदों का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दो स्वरों के परस्पर समीप आने से उनमें जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं; जैसे-
रवि + इंद्र = (इ + इ = ई) रवींद्र
रमा + ईश = (आ + ई = ए) रमेश
स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं-
(i) दीर्घ संधि
(ii) गुण संधि
(iii) वृद्धि संधि
(iv) यण संधि
(v) अयादि संधि।
प्रश्न 3.
दीर्घ संधि की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
यदि दो सवर्ण स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ) पास-पास आ जाएँ तो दोनों को मिलाकर एक ही दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ) हो जाता है। अर्थात अ, आ के सामने आ जाए अथवा आ, अ के सामने आ जाए तो दोनों को मिलाकर एक दीर्घ ‘आ’ बन जाएगा। इसी प्रकार इ, ई और ई, इ को मिलाकर दीर्घ ‘ई’ हो जाएगी तथा उ, ऊ और ऊ, उ को मिलाने पर दीर्घ ‘ऊ’ बनेगा; जैसे- . कारा + आवास = (आ + आ) = कारावास
रजनी + ईश = (ई + ई) = रजनीश
विद्या + अर्थी = (आ + अ) = विद्यार्थी
परि + ईक्षा = (इ + ई) = परीक्षा
मुख्य + अध्यापक = (अ + अ) = मुख्याध्यापक
गुरु + उपदेश = (उ + उ) = गुरूपदेश
कवि + इंद्र = (इ + इ) = कवींद्र
वधू + उत्सव = (ऊ + उ) = वधूत्सव
प्रश्न 4.
गुण संधि की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जब ‘अ’ एवं ‘आ’ के सामने ‘इ’ अथवा ‘ई’ आ जाए तो दोनों से मिलकर ‘ए’ हो जाता है। इसी प्रकार ‘अ’ एवं ‘आ’ के सामने ‘उ’ अथवा ‘ऊ’ आ जाने पर दोनों से मिलकर ‘ओ’ हो जाता है। ‘अ’ या ‘आ’ के सामने ‘ऋ’ आ जाने पर ‘अर्’ बन जाता है; जैसे-
धर्म + इंद्र = (अ + इ) = धर्मेंद्र
सूर्य + उदय = (अ + उ) = सूर्योदय
गण + ईश = (अ + ई) = गणेश
महा + उत्सव = (आ + उ) = महोत्सव
भारत + इन्दु = (अ + इ) = भारतेंदु
महा + ऋषि = (आ + ऋ) = महर्षि
महा + ईश्वर = (आ + ई) = महेश्वर
सप्त + ऋषि = (अ + ऋ) = सप्तर्षि
प्रश्न + उत्तर = (अ + उ) = प्रश्नोत्तर
प्रश्न 5.
वृद्धि संधि की परिभाषा एवं उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
‘अ’, ‘आ’ के आगे ‘ए’ हो तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ बन जाते हैं। इसी प्रकार ‘अ’, ‘आ’ के आगे यदि ‘ओ’ अथवा ‘औ’ हो तो दोनों मिलकर ‘औ’ रूप बन जाते हैं; जैसे-
सदा + एव = (आ + ए) = सदैव
मत + ऐक्य = (अ + ऐ) = मतैक्य
तथा + एव = (आ + ए) = तथैव
वन + औषधि = (अ + औ) = वनौषधि
लठ + ऐत = (अ + ऐ) = लठैत
महा + औषध = (आ + औ) = महौषध
प्रश्न 6.
यण संधि किसे कहते हैं ? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर:
इ, ई, उ, ऊ तथा ऋ के आगे भिन्न जाति का कोई (असवण) स्वर आ जाए तो इ, ई के स्थान पर ‘य’ विकार हो जाता है। उ, ऊ के स्थान पर ‘व्’ तथा ऋ के स्थान पर ‘र’ विकार हो जाता है; जैसे-
अति + अंत = (इ + अ) = अत्यंत
प्रति + उत्तर = (इ + उ) = प्रत्युत्तर
अति + आवश्यक = (इ + आ) = अत्यावश्यक
सु + अल्प = (उ + अ) = स्वल्प
यदि + अपि = (इ + अ) = यद्यपि
अनु + एषण = (उ + ए) = अन्वेषण
इति + आदि = (इ + आ) = इत्यादि
मातृ + आज्ञा = (ऋ + आ) = मात्राज्ञा
प्रति + एक + (इ + ए) = प्रत्येक
अति + आचार = (इ + आ) = अत्याचार
सु + आगत = (उ + आ) = स्वागत
नि + ऊन = (इ + ऊ) = न्यून
प्रश्न 7.
अयादि संधि की सोदाहरण परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जब ए, ऐ, ओ, औ के आगे उनसे भिन्न जाति का कोई स्वर आ जाता है तो ए के स्थान पर ‘अय्’, ऐ के स्थान ‘आय’, ओ के स्थान ‘अव्’ और औ के स्थान पर ‘आव्’ हो जाता है; जैसे-
नै + अन = (ऐ + अ) = नयन
नै + अक = (ऐ + अ) = नायक
गै + अक = (ऐ + अ) = गायक
पो + अन = (ओ + अ) = पवन
नौ + इक = (औ + इ) = नाविक
भो + अन = (ओ + अ) = भवन
भौ + उक = (औ + उ) = भावुक
2. व्यंजन संधि
प्रश्न 8.
व्यंजन संधि किसे कहते हैं ? व्यंजन संधि के नियमों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यंजन के आगे स्वर या व्यंजन के आ जाने पर उसमें जो विकार या परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं; जैसे-
जगत् + ईश = जगदीश।
सम् + चय = संचय।
व्यंजन संधि के निम्नलिखित नियम हैं-
(1) यदि वर्ण के प्रथम अक्षर (क्, च्, ट्, त्, प) के आगे वर्ग का तीसरा, चौथा वर्ण य, र, ल, व तथा कोई स्वर आ जाए तो उस प्रथम अक्षर के स्थान पर उसी अक्षर के वर्ग का तीसरा अक्षर हो जाएगा; जैसे-
सत् + आचार = (त् + आ) = सदाचार
उत् + योग = (तु + य) = उद्योग
दिक् + गज = (क् + ग) = दिग्गज
जगत् + ईश = (त् + ई) = जगदीश
उत् + ज्वल = (त् + ज्) = उज्ज्व ल
षट् + आनन = (ट् + आ) = षडानन
(2) यदि वर्ग के प्रथम अक्षर के सामने वर्ग का पाँचवाँ अक्षर अर्थात अनुनासिक वर्ण आ जाए तो उस प्रथम अक्षर के स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है।
यथासत् + मति = (त् + म) = सन्मति
तत् + मय = (त् + म) = तन्मय
उत् + मूलन = (त् + म) = उन्मूलन
सत् + मार्ग = (त् + म) = सन्मार्ग
(3) ‘त्’ एवं ‘द्’ के सामने यदि च, ज, द, ड और ल आ जाएँ तो ‘त्’ एवं ‘द्’ सामने वाले अक्षरों में बदल जाते हैं। यथा-
शरत् + चंद्र = (त् + च) = शरच्चंद्र
उत् + चारण = (त् + च) = उच्चारण
जगत् + जननी = (तु + ज) = जगज्जननी
उत् + लास = (त् + ल) = उल्लास
(4) ‘त्’ अक्षर के सामने ‘श’ आने पर ‘श’ का ‘छ’ और ‘त्’ का ‘च’ हो जाता है। यथा-
उत् + शृंखल = (त् + श) = उच्छृखल
उत् + श्वास = (त् + श्) = उच्छ्वास
उत् + शिष्ट = (त् + श) = उच्छिष्ट
सत् + शास्त्र = (त् + श) = सच्छास्त्र
(5) त् अक्षर के सामने ‘ह’ आने पर ‘ह’ का ‘ध’ और ‘त्’ का ‘द्’ हो जाता है। यथा-
उत् + हार = उद्धार
तत् + हित = तद्धित
(6) ‘छ’ अक्षर के सामने ‘स्व’ हृस्व आ जाने पर उसका रूप ‘च्छ’ बन जाता है। यथा-
स्व् + छन्द = स्वच्छन्द
वि + छेद = विच्छेद
(7) म् अक्षर के सामने स्पर्श अक्षर (पाँच वर्गों के सभी वर्ग) होने पर ‘म्’ के स्थान पर ‘अनुस्वार’ (‘) या उसी वर्ग का अंतिम अक्षर (ङ्, ञ, ण, न, म्) हो जाता है; जैसे-
सम् + कल्प = (म् + क) = सङ्कल्प या संकल्प
सम् + गम् = (म् + ग) = संगम या सङ्गम
सम् + चय = (म् + च) = संचय या सञ्चय
सम् + पूर्ण = (म् + प) = संपूर्ण या संपूर्ण
सम् + तोष = (म् + त) = संतोष या संतोष
सम् + देह = (म् + द) = संदेह या संदेह
(8) म् अक्षर के सामने या उक्त पाँचों से भिन्न कोई अक्षर, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, आ जाए तो म् का केवल अनुस्वार () ही होता है; जैसे-
सम् + यम = (म् + य) = संयम
सम् + हार = (म् + ह) = संहार
सम् + वाद = (म् + व) = संवाद
सम् + लग्न = (म + ल) = संलग्न
सम् + शय = (म् + श) = संशय
सम् + सार = (म् + स) = संसार
सम् + रक्षक = (म् + र) = संरक्षक
अपवाद:
सम् उपसर्ग के आगे यदि कृत, कृति, कार, करण आ जाए तो म् का ‘स्’ हो जाता है; जैसे-
सम् + कृति = संस्कृति
सम् + करण = संस्करण
सम् + कार = संस्कार
(9) यदि ‘र’ के बाद ‘र’ आ जाए तो पूर्व ‘र’ का लोप होकर उसमें पहले स्वर को दीर्घ कर दिया जाता है; जैसे-
निर् + रोग = नीरोग
निर् + रस = नीरस
निर् + रव = नीरव
निर् + रज = नीरज
(10) यदि ऋ, र, ष अक्षरों के बाद ‘न’ आ जाए तो उसका ‘ण’ कर दिया जाता है; जैसे-
अर्प. + न = अर्पण
ऋ + न = ऋण
भूष + न = भूषण
(11) स से पूर्व अ, आ को छोड़ कोई अन्य स्वर आ जाए तो ‘स’ का ‘ष’ हो जाता है; जैसे-
नि + सेध = निषेध
वि + सय = विषय
अभि + सेक = अभिषेक
वि+सम = विषम
अपवाद: निम्नलिखित शब्दों में ‘स्’ का ‘ष’ नहीं होता-विस्मरण, विस्मृति, विस्मय, विसर्ग आदि।
3.विसर्ग संधि
प्रश्न 9.
विसर्ग संधि किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए तथा उसके नियमों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन के आने से उसमें जो परिवर्तन या विकार उत्पन्न होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं; जैसे-
मनः + स्थिति = मनोस्थिति
निः + मल = निर्मल
विसर्ग संधि के निम्नलिखित प्रमुख नियम हैं
(1) विसर्ग से पूर्व यदि ‘अ’ हो और विसर्ग के बाद ‘ऊ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है यथा-
अतः + एव = अतएव
ततः + एव = ततएव
(2) यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और विसर्ग के बाद वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण एवं य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है-
यथामनः + रथ = मनोरथ
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
यशः + दा = यशोदा
मनः + रंजन = मनोरंजन
पुराः + हित = पुरोहित
(3) यदि विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो तथा विसर्ग के बाद वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ अक्षर या य, र, ल, व, ह आ जाए तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है।
यथानिः + धन = निर्धन
निः + आकार = निराकार
निः + झर = निर्झर
निः + दयी = निर्दयी
(4) यदि विसर्ग से पूर्व इ या उ हो और उसके आगे क, प, फ, आ जाए तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है। यथा-
निः + कपट = निष्कपट
निः + पाप = निष्पाप
निः + फल = निष्फल
(5) विसर्ग से पूर्व यदि हृस्व अ हो और बाद में ‘क’ या ‘प’ हो तो विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है। यथा-
नमः + कार = नमस्कार
वाचः + पति = वाचस्पति
तिरः + कार = तिरस्कार
(6) विसर्ग के सामने श, ष, स् आ जाने से विसर्ग का विकल्प से विसर्ग या क्रमशः श, ष, स् हो जाता है। यथा-
निः + संदेह = निस्संदेह
निः + शस्त्र = निस्शस्त्र
निः + शंक = निस्शंक
(7) विसर्ग के सामने यदि च, छ आ जाएँ तो विसर्ग का ‘श्’ हो जाता है। ‘ट’, ‘ठ’ आ जाए तो ‘ए’ और यदि त्, थ, आ जाए तो ‘स्’ हो जाता है।
यथा-
निः + चित = निश्चित
निः + ठा = निष्ठा
निः + तेज = निस्तेज
निः + छल = निश्छल
दुः + ट = दुष्ट
अभ्यासार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण