Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग
HBSE 12th Class Hindi बादल राग Textbook Questions and Answers
कविता के साथ
प्रश्न 1.
अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया क्रांति अथवा विनाश का प्रतीक है। सुविधा-भोगी लोगों के पास धन होते हैं। इसलिए वे क्रांति से हमेशा डरते रहते हैं। क्रांति से पूँजीपतियों को हानि होगी, गरीबों को नहीं। इसलिए कवि ने अमीर लोगों के सुखों को अस्थिर कहा है। क्रांति की संभावना ही दुख की वह छाया है जिससे वे हमेशा डरे रहते हैं। यही कारण है कि ‘दुख की छाया’ शब्दों का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 2.
‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?
उत्तर:
‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में क्रांति विरोधी अभिमानी पूँजीपतियों की ओर संकेत किया गया है जो क्रांति को दबाने का भरसक प्रयास करते हैं परंतु क्रांति के वज्र के प्रहार से घायल होकर वे क्षत-विक्षत हो जाते हैं। जिस प्रकार बादलों के द्वारा किए गए अशनि-पात से पर्वतों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ क्षत-विक्षत हो जाती हैं, उसी प्रकार क्रांति की मार-काट से बड़े-बड़े पूँजीपति, धनी तथा वीर लोग भी धरती चाटने लगते हैं।
प्रश्न 3.
‘विप्लव-व से छोटे ही हैं शोभा पाते’ पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर:
विप्लव-रव से तात्पर्य है क्रांति की गर्जना। क्रांति से समाज के सामान्यजन को ही लाभ प्राप्त होता है। उससे सर्वहारा वर्ग का विकास होता है क्योंकि क्रांति शोषकों और पूँजीपतियों के विरुद्ध होती है। संसार में जहाँ कहीं क्रांति हुई है, वहाँ पूँजीपतियों का विनाश हुआ है और गरीब तथा अभावग्रस्त लोगों की आर्थिक हालत सुधरी है। इसलिए कवि ने इस भाव के लिए ‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ शब्दों का प्रयोग किया है।
प्रश्न 4.
बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?
उत्तर:
बादलों के आगमन से प्रकृति में असंख्य परिवर्तन होते हैं। पहले तो तेज हवा चलने लगती है और बादल गरजने लगते हैं। इसके बाद मूसलाधार वर्षा होती है। ओलों की वर्षा अथवा बिजली गिरने से ऊँचे-ऊँचे पर्वतों की चोटियाँ क्षत-विक्षत हो जाती हैं, परंतु छोटे-से-छोटे पौधे वर्षा का पानी पाकर प्रसन्नता से खिल उठते हैं। इसी प्रकार कमलों से पानी की बूंदें झरने लगती हैं।
व्याख्या कीजिए
1. तिरती हैं समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
उत्तर:
यहाँ कवि कहता है कि बादल वायु के रूप में सागर पर मंडराने लगते हैं। वे इस प्रकार उमड़-घुमड़कर सागर पर छा जाते हैं जैसे क्षणिक सखों पर दुखों की छाया मँडराने लगती है। पँजीपतियों के सख क्षणिक हैं. परंत दख की छाया स्थिर और लंबी होती है। इसलिए बादल रूपी क्रांति को देखकर पूँजीपतियों के अस्थिर सुखों पर दुख की छाया फैल जाती है। ये बादल संसार के दुखों से पीड़ित हृदय पर एक विनाशकारी क्रीड़ा करने जा रहे हैं। भाव यह है कि ये बादल संसार के शोषित और दुखी लोगों के दुखों को दूर करना चाहते हैं।
2. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन
उत्तर:
यहाँ कवि कहता है कि हमारे समाज में पूँजीपतियों के जो ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, वे अट्टालिकाएँ नहीं हैं बल्कि वे तो आतंक के भवन हैं। क्रांति रूपी बादलों को देखकर उन भवनों में भय और त्रास का निवास है। अर्थात् समाज के धनिक लोग क्रांति से डरते रहते हैं। कवि पुनः कहता है कि बादलों की विनाशलीला तो हमेशा कीचड़ में ही होती है। उसमें बाढ़ और विनाश के दृश्य देखे जा सकते हैं। भाव यह है कि समाज के गरीब और शोषित लोग ही क्रांति में खुलकर भाग लेते हैं।
कला की बात
प्रश्न 1.
पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों?
उत्तर:
संपूर्ण कविता में प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है। कवि ने बादल को क्रांतिकारी वीर कहकर संबोधित किया है। मुझे बादल का वह रूप बहुत पसंद है जिसमें कवि उसे शोषित किसान की सहायता करने के लिए आह्वान करता है; जैसे
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
प्रश्न 2.
कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
- तिरती है समीर-सागर पर
- अस्थिर सुख पर दुख की छाया
- यह तेरी रण-तरी
- भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
- ऐ विप्लव के बादल
- ऐ जीवन के पारावार
प्रश्न 3.
इस कविता में बादल के लिए ऐ विप्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेष पाँच खंडों में भी कई संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे-अरे वर्ष के हर्ष!, मेरे पागल बादल!, ऐ निबंध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है? ।
उत्तर:
(i) अरे वर्ष के हर्ष-यहाँ कवि ने बादलों को साल भर की प्रसन्नता कहा है। यदि बादल अच्छी वर्षा करते हैं तो देश के लोगों को साल भर का पर्याप्त अनाज मिल जाता है और देश का व्यापार भी चलता रहता है।
(ii) मेरे पागल बादल-बादल को पागल कहने से उसकी मस्ती और उल्लास की ओर संकेत किया गया है।
(iii) ऐ निबंध-बादल किसी प्रकार के बंधन या बाधा को नहीं मानते। वे स्वच्छंदतापूर्वक आकाश में विचरण करते हैं। इसीलिए कवि ने बादल को ‘ऐ-स्वच्छंद’ तथा ‘ऐ-उद्दाम’ भी कहा है।
(iv) ऐ सम्राट कवि के अनुसार बादल एक राजा है जो सब पर राज करता है और सबको प्रभावित करता है।
(v) ऐ विप्लव के प्लावन-यहाँ कवि ने बादलों के भयंकर रूप की ओर संकेत किया है। जब बादल मूसलाधार वर्षा करते हैं तो वे अपने साथ विनाशकारी बाढ़ भी लाते हैं।
(vi) ऐ अनंत के चंचल शिशु सकुमार-यहाँ कवि ने बादल को सागर का चंचल एवं कोमल शावक कहा है क्योंकि बादलों को जन्म देने वाला सागर ही है। जब बादल उमड़ता-घुमड़ता हुआ आगे बढ़ता है तो उसमें शिशु जैसी चंचलता देखी जा सकती है।
प्रश्न 4.
कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें। यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
प्रश्न 5.
कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता है जैसे-अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर खें तथा बताएं कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ है?
उत्तर:
दग्ध हृदय-कवि ने हृदय के साथ ‘दग्ध’ विशेषण का प्रयोग किया है। इससे शोषित व्यक्ति के मन का संताप व्यक्त होता है। इस शब्द के द्वारा शोषण के फलस्वरूप गरीबों द्वारा झेली गई यातनाएँ सामने आ जाती हैं।
निर्दय विप्लव – यहाँ विप्लव अर्थात् विनाश के साथ निर्दय विशेषण का प्रयोग किया गया है जिससे पता चलता है कि विनाश और अधिक क्रूर हो गया है।
पुप्त अंकर – यहाँ कवि ने अंकुर के साथ सुप्त विशेषण का प्रयोग किया है। जो इस बात का द्योतन करता है कि अंकुर मिट्टी में दबे हुए हैं और वर्षा के बाद फूटकर बाहर आ जाते हैं।
घोर वज्र हुंकार – यहाँ कवि ने हुंकार शब्द के साथ घोर तथा वज्र दो विशेषणों का प्रयोग किया है। इससे यह पता चलता है कि बादल रूपी क्रांति की गर्जना बड़ी भयानक और क्रूर होती है।
क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर – यहाँ कवि ने शरीर के साथ क्षत-विक्षत और हत विशेषणों का प्रयोग किया है। जिससे उनकी दुर्दशा का पता चलता है।
प्रफुल्ल जलज – कमल के साथ प्रफुल्ल विशेषण का प्रयोग करने से कमल रूपी पूँजीपति की प्रसन्नता व्यक्त होती है।
रुद्ध कोष – कोष के साथ रुद्ध विशेषण का प्रयोग करने से यह पता चलता है कि पूँजीपतियों के खजाने भरे हुए हैं और उनके पास अपार धन है।
HBSE 12th Class Hindi बादल राग Important Questions and Answers
सराहना संबंधी प्रश्न
प्रश्न-
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
1. हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
उत्तर:
- इन काव्य-पंक्तियों में कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिस प्रकार वर्षा से छोटे-छोटे पौधे लाभान्वित होकर हँसते और खिलते हैं, उसी प्रकार क्रांति होने से समाज के शोषित और सर्वहारा वर्ग को लाभ प्राप्त होता है और वे यह सोचकर प्रसन्न होते हैं कि अब उनके शोषण का अंत हो जाएगा।
- यहाँ कवि ने प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया है।
- हाथ हिलाना, बुलाना आदि में गतिशील बिंब है।
- पूरे पद में अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सुंदर एवं स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
- सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
- शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
- संपूर्ण पद में मुक्त छंद का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।
2. रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
उत्तर:
- यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि समाज के पूँजीपतियों का खजाना भरा हुआ है, लेकिन फिर भी वे सदा असंतुष्ट रहते हैं।
- बादल रूपी क्रांति के कारण पूँजीपति अपनी पत्नी से लिपटे हुए भी डर के मारे काँपते रहते हैं।
- यहाँ बादल क्रांति का प्रतीक है।
- यह पद्यांश प्रगतिवाद का सूचक है। जोकि पूँजीपतियों पर करारा व्यंग्य करते हैं।
- ‘अंगना-अंग’ तथा ‘आतंक-अंक’ में अनुप्रास तथा स्वर मैत्री की छटा दर्शनीय है।
- सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
- शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
- संपूर्ण पद में मुक्त छंद का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।
3. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
उत्तर:
- यहाँ कवि यह स्पष्ट करता है कि समाज के ऊँचे-ऊँचे भवन, जहाँ पूँजीपति रहते हैं, उनमें भय और त्रास का निवास है, क्योंकि अमीर लोग सदा क्रांति से भयभीत रहते हैं।
- ‘क्षुद्र प्रफुल्ल जलज’ शोषित वर्ग का प्रतीक है।
- प्रतीकात्मक भाषा के प्रयोग के कारण भावाभिव्यक्ति बड़ी प्रभावशाली बन पड़ी है।
- अनुप्रास तथा पद मैत्री अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है।
- ‘अट्टालिका नहीं है रे आतंक भवन’ में अपहृति अलंकार है।
- सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा है तथा शब्द-चयन सर्वथा सटीक है।
- मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।
4. घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
उत्तर:
- यहाँ कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक तथा शोषित वर्ग की आशा का केंद्र सिद्ध किया है।
- पृथ्वी के गर्भ में छिपे बीज शोषित वर्ग का प्रतीक हैं जो क्रांति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
- संपूर्ण पद्य में बादल का मानवीकरण किया गया है।
- अनुप्रास तथा रूपक अलंकारों का सफल प्रयोग है।
- ‘सिर ऊँचा करना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
- तत्सम् प्रधान संस्कृतनिष्ठ हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
- शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
- संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
5. बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
उत्तर:
- यहाँ कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक मानते हुए उसकी भयानकता का प्रभावशाली वर्णन किया है।
- मूसलाधार वर्षा का होना क्रांति की तीव्रता को व्यंजित करता है।
- ‘बार-बार’, ‘सुन-सुन’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है तथा शब्द-चयन उचित और भावानुकूल है।
- ओजगुण का समावेश किया गया है तथा मुक्त छंद है।
विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘बादल राग’ कविता का प्रतिपाद्य/मूलभाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बादल राग’ निराला जी की एक ओजस्वी कविता है, जिसमें कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक माना है। कवि शोषित वर्ग के कल्याण के लिए बादल का आह्वान करता है। क्रांति के प्रतीक बादलों को देखकर समाज का शोषक वर्ग भयभीत हो जाता है। लेकिन शोषित और सर्वहारा वर्ग उसे आशाभरी दृष्टि से देखता है। कवि स्पष्ट करता है कि क्रांति से समाज के धनिक वर्ग को हानि पहुँचती है, परंतु शोषित वर्ग को इससे लाभ होता है। समाज में शोषितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए क्रांति नितांत आवश्यक है। प्रस्तुत कविता का मुख्य उद्देश्य देश में व्याप्त सामाजिक और आर्थिक वैषम्य का चित्रण करना है। कवि का विचार है कि इस विषमता को दूर करने के लिए क्रांति ही एकमात्र उपाय है। समाज का शोषित और पीड़ित वर्ग क्रांति की कामना करता है क्योंकि वह आर्थिक स्वतंत्रता और अपनी दशा में सुधार चाहता है।
प्रश्न 2.
विप्लवी बादल की रण-तरी की क्या-क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
विप्लवी बादल की रण-तरी अर्थात् युद्ध की नौका समीर-सागर पर तैरती है। वह असंख्य आकांक्षाओं से भरी हुई है और भेरी-गर्जन से सावधान है। कवि अपनी बात को स्पष्ट करता हुआ कहता है कि क्रांतिकारी बादल की युद्ध रूपी नौका पवन सागर पर ऐसे तैरती है जैसे जीवन के क्षणिक सुखों पर दुखों की छाया मँडराती रहती है। यह युद्ध रूपी नौका नगाड़ों की गर्जना के कारण अत्यधिक सजग है और क्रांति उत्पन्न करने के लिए निरंतर आगे बढ़ रही है। जिस प्रकार युद्ध की नौका में युद्ध का सामान भरा रहता है, उसी प्रकार क्रांतिकारी बादल रूपी इस युद्ध नौका में समाज के सर्वहारा वर्ग की इच्छाएँ और आकांक्षाएँ भरी हुई हैं। क्रांतिकारी बादल की युद्ध नौका को देखकर जहाँ शोषक वर्ग भयभीत हो जाता है, वहाँ शोषित वर्ग प्रसन्न हो उठता है।
प्रश्न 3.
सुप्त अंकुर किसकी ओर ताक रहे हैं और क्यों? सुप्त अंकुरों का प्रतीकार्थ क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी के गर्भ में सोये हए अंकर लगातार बादलों की ओर ताकते रहते हैं। वे यह सोचकर आशावान बने हुए हैं कि अच्छी वर्षा होने से वे धरती में से फूटकर बाहर निकल आएँगे और उनके जीवन का विकास होगा। यहाँ सुप्त अंकुर समाज के पीड़ित और शोषित वर्ग का प्रतीक हैं जो सुख-समृद्धि और विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सका। उनके मन में यह आशा है कि क्रांति होने से उनको उन्नति प्राप्त करने का अवसर मिलेगा क्योंकि क्रांति से पूँजीवाद वर्ग का विनाश होगा और सर्वहारा वर्ग का कल्याण होगा।
प्रश्न 4.
‘बादल राग’ कविता में अट्टालिका को आतंक-भवन क्यों कहा गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में अट्टालिका को आतंक का भवन इसलिए कहा गया है क्योंकि उसमें समाज का पूँजीपति वर्ग रहता है। समाज के शोषक और अमीर लोग हमेशा ऊँचे-ऊँचे भवनों और महलों में रहते हैं और जीवन की सुख-सुविधाओं को भोगते हैं परंतु इस पूँजीपति वर्ग को क्रांति का भय लगा रहता है। यदि अट्टालिकाएँ हमेशा सुरक्षित बनी रहें तो शोषक वर्ग हमेशा सुख-सुविधाओं को भोगता रहेगा और प्रसन्न रहेगा, परंतु अमीर और गरीब में जब बहुत बड़ी खाई बन जाती है तो गरीब क्रांति का आह्वान करता है। यही कारण है कि अपनी सुरक्षित अट्टालिकाओं में रहने वाला पूँजीपति क्रांति के परिणामों के फलस्वरूप हमेशा भयभीत रहता है। वह जानता है कि उसने शोषण और बेईमानी से सर्वहारा वर्ग का खून चूसा है। अतः यदि शोषित वर्ग क्रांति का मार्ग अपनाता है तो सर्वप्रथम पूँजीपतियों की धन-संपत्ति बलपूर्वक लूट ली जाएगी और उनके ऊँचे-ऊँचे भवन नष्ट-भ्रष्ट कर दिए जाएंगे। इसलिए कवि ने ऊँचे-ऊँचे भवनों को अट्टालिका न कहकर आतंक भवन की संज्ञा दी है।
प्रश्न 5.
‘बादल राग’ में निहित क्रांति की भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कविवर ‘निराला’ की ‘बादल राग’ कविता में उनकी समाज में हो रहे कृषक-शोषण के विरुद्ध क्रांति की भावना अभिव्यक्त हुई है। कृषक शोषण से पीड़ित होने के कारण अधीर होकर विप्लव (क्रांति) के बादल को बुला रहा है। जिस प्रकार बादल जल-प्लावन लाकर पृथ्वी के गर्भ में छिपे हुए बीजों को अंकुरित कर देते हैं उसी प्रकार क्रांति भी समाज में गरीबों तथा कृषकों का शोषण करने वाली व्यवस्था का विनाश कर देती है। जैसे बादल वर्षा द्वारा पौधों में पुनः जीवन का विकास कर देता है; वैसे ही क्रांति से शोषक वर्ग का विनाश हो जाता है और गरीब व कृषक वर्ग को फलने-फूलने का अवसर मिलता है। इसलिए निराला जी ने अपनी इस कविता द्वारा क्रांति का आह्वान किया है।
प्रश्न 6.
विप्लव के बादल की घोर-गर्जना का धनी वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
विप्लव के बादल की घोर गर्जना को सुनकर समाज का अमीर और शोषक वर्ग आतंक से काँपने लगता है। वह त्रस्त होकर अपना मुँह ढक लेता है और आँखें बंद कर लेता है। वह भली प्रकार से जानता है कि उसने अपना शोषण चक्र चलाकर गरीबों और मजदूरों का खून चूस कर धन का संग्रह किया है। अतः यह क्रांति उसके लिए विनाशकारी हो सकती है, परंतु वह सोचता है कि क्रांति की अनदेखी करने से वह इसके दुष्प्रभाव से बच जाएगा। विप्लव के बादलों की घोर गर्जना और वज्रपात से पर्वतों की चोटियाँ तक गिर जाती हैं। इसी प्रकार क्रांति का बिगुल बजने से पूँजीपति वर्ग भी त्रस्त और भयभीत हो जाता है और वह इससे बचने का भरसक प्रयास करता है।
प्रश्न 7.
‘बादल राग’ कविता के आधार पर निराला की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाषा-शैली की दृष्टि से ‘बादल राग’ निराला जी की एक प्रतिनिधि कविता कही जा सकती है। इसमें कवि ने तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया है। आदि से अंत तक इस कविता की भाषा में ओज गुण का समावेश किया गया है। समस्त पदों, संयुक्त व्यंजनों तथा कठोर वर्गों के कारण ओज गुण का सुंदर निर्वाह देखा जा सकता है। कवि द्वारा किया गया शब्द-चयन भावाभिव्यक्ति में पूर्णतया सफल हुआ है। एक उदाहरण देखिए-
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर
शब्दों की ध्वनि तथा उनका नाद सौंदर्य भी अभिव्यंजना में काफी सहायक सिद्ध हुआ है। शब्द अपनी ध्वनि से शब्द-चित्र प्रस्तुत कर देते हैं। उदाहरण के रूप में हिल-हिल, खिल-खिल शब्दों के जोड़े अपनी ध्वनि द्वारा लहलहाती हुई फसल का बिंब प्रस्तुत करते हैं।
संपूर्ण कविता अपने बिंबों, चित्रों तथा प्रतीकों के लिए प्रसिद्ध है। वर्षा का बिंब, वज्र से आहत क्षत-विक्षत पर्वत का बिंब तथा हँसते हुए सुकुमार पौधों का बिंब सभी इस कविता की काव्य भाषा को आकर्षक बनाते हैं। यहाँ बादल यदि क्रांति का प्रतीक है तो पंक शोषित वर्ग का और जलज पूँजीपति वर्ग का प्रतीक है। इसी प्रकार मुहावरों के प्रयोग से इस कविता की भाषा में अर्थ गम्भीर्य बढ़ गया है। भले ही इस कविता में मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है, परंतु सर्वत्र लयात्मकता भी देखी जा सकती है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. ‘निराला’ का जन्म बंगाल की किस रियासत में हुआ?
(A) महिषादल
(B) सुंदरवन
(C) कोलकाता
(D) पटना
उत्तर:
(A) महिषादल
2. ‘निराला’ का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1888 ई० में
(B) सन् 1890 ई० में
(C) सन् 1899 ई० में
(D) सन् 1886 ई० में
उत्तर:
(C) सन् 1899 ई०
3. ‘निराला’ के पिता का क्या नाम था?
(A) रामदास त्रिपाठी
(B) राम सहाय त्रिपाठी
(C) राम लाल त्रिपाठी
(D) राम किशोर त्रिपाठी
उत्तर:
(B) राम सहाय त्रिपाठी
4. ‘निराला’ का विवाह किस आयु में हुआ?
(A) 15 वर्ष की आयु में
(B) 16 वर्ष की आयु में
(C) 17 वर्ष की आयु में
(D) 13 वर्ष की आयु में
उत्तर:
(D) 13 वर्ष की आयु में
5. ‘निराला’ की पत्नी का क्या नाम था?
(A) सुंदरी देवी
(B) गीता देवी
(C) मनोहर देवी
(D) लक्ष्मी देवी
उत्तर:
(C) मनोहर देवी
6. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने निराला की किस कविता को लौटा दिया था?
(A) परिमल
(B) जूही की कली
(C) बादल राग
(D) ध्वनि
उत्तर:
(B) जूही की कली
7. ‘निराला’ का निधन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1961 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1963 में
(D) सन् 1964 में
उत्तर:
(A) सन् 1961 में
8. ‘निराला’ ने सन् 1933 में किस पत्रिका का संपादन किया?
(A) नवनीत
(B) मतवाला
(C) निराला
(D) बाला
उत्तर:
(B) मतवाला
9. ‘निराला’ की बेटी का क्या नाम था?
(A) सरला
(B) नीलम
(C) मनोज
(D) सरोज
उत्तर:
(D) सरोज
10. ‘बादल राग’ कविता के रचयिता का नाम क्या है?
(A) तुलसीदास
(B) जयशंकर प्रसाद
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
11. सरोज के निधन के बाद निराला ने बेटी के शोक में कौन-सा गीत लिखा?
(A) सरोज स्मृति
(B) आराधना
(C) अर्चना
(D) अणिमा
उत्तर:
(A) सरोज स्मृति
12. ‘राम की शक्ति पूजा’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) महादेवी वर्मा
(D) राम कुमार वर्मा
उत्तर:
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
13. ‘निराला’ ने किस छंद में रचनाएँ लिखीं?
(A) दोहा छंद
(B) चौपाई छंद
(C) मुक्त छंद
(D) सोरठा छंद
उत्तर:
(C) मुक्त छंद
14. ‘तुलसीदास’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) तुलसीदास
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) सूरदास
(D) कबीरदास
उत्तर:
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
15. ‘बादल राग’ में बादल किसका प्रतीक है?
(A) शांति का
(B) क्रांति का
(C) प्रेम का
(D) सुख का
उत्तर:
(B) क्रांति का
16. ‘रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष’-यहाँ रुद्ध का अर्थ है-
(A) क्रोधित
(B) रुका हुआ
(C) भरा हुआ
(D) खाली
उत्तर:
(B) रुका हुआ
17. ‘बादल राग’ कविता में बादल क्रांति के क्या हैं?
(A) वाहन
(B) दूत
(C) पोषक
(D) शोषक
उत्तर:
(B) दूत
18. प्रस्तुत कविता में ‘रण-तरी’ किससे भरी हुई है?
(A) धन
(B) आकांक्षाओं से
(C) नवजीवन
(D) गर्जन
उत्तर:
(B) आकांक्षाओं से
19. शैशव का सुकुमार शरीर किसमें हँसता है?
(A) वर्षा
(B) घायलावस्था
(C) रोग-शोक
(D) गर्मी
उत्तर:
(C) रोग-शोक
20. ‘बादल राग’ कविता में क्रांति संसार में किसकी सृष्टि करती है?
(A) दुख और अशांति की
(B) सुख और शांति की
(C) सुख और अशांति की
(D) दुख और शांति की
उत्तर:
(B) सुख और शांति की
21. ‘रोग-शोक’ में भी किसका सकुमार शरीर हँसता है?
(A) यौवन
(B) शैशव
(C) धनी
(D) कृषक
उत्तर:
(B) शैशव
22. किसान का सार किसने चूस लिया है?
(A) सरकार ने
(B) नेता ने
(C) पत्नी और बच्चों ने
(D) पूँजीपति ने
उत्तर:
(D) पूँजीपति ने
23. ‘बादल राग’ कविता के अनुसार जल-विप्लव-प्लावन हमेशा किस पर होता है?
(A) वायु पर
(B) नभ पर
(C) जमीन पर
(D) कीचड़ पर
उत्तर:
(D) कीचड़ पर
24. ‘शीर्ण शरीर’ किसे कहा गया है?
(A) बालक को
(B) महिला को
(C) सैनिक को
(D) किसान को
उत्तर:
(D) किसान को
25. क्रांति का सबसे अधिक लाभ किस वर्ग को मिलता है?
(A) निम्न वर्ग
(B) धनी वर्ग
(C) पूँजीपति वर्ग
(D) सत्ताधारी वर्ग
उत्तर:
(A) निम्न वर्ग
26. ‘गगन स्पर्शी’, ‘स्पर्द्धा धीर’ किसे कहा गया है?
(A) वृक्षों को
(B) पर्वतों को
(C) बादलों को
(D) बिजली को
उत्तर:
(C) बादलों को
27. ‘बादल राग’ कविता में कवि ने सुखों को कैसा बताया है?
(A) चेतन
(B) जड़
(C) स्थिर
(D) अस्थिर
उत्तर:
(D) अस्थिर
28. ‘निराला’ ने अट्टालिकाओं को क्या कहा है?
(A) अजायबघर
(B) चिकित्सालय
(C) आतंक-भवन
(D) योग-भवन
उत्तर:
(C) आतंक-भवन
29. निराला ने ‘जीर्ण बाहु’ किसे कहा है?
(A) रोगी को
(B) वृद्ध को
(C) कृषक को
(D) बालक को
उत्तर:
(C) कृषक को
30. ‘विप्लव’ शब्द का अर्थ क्या है?
(A) क्षान्ति
(B) शान्ति
(C) भ्रान्ति
(D) क्रान्ति
उत्तर:
(D) क्रान्ति
31. क्रांति के बादलों की गर्जना सुनकर कौन-सा वर्ग भयभीत होता है?
(A) कृषक वर्ग
(B) श्रमिक वर्ग
(C) निम्न वर्ग
(D) पूँजीपति वर्ग
उत्तर:
(D) पूँजीपति वर्ग
बादल राग पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
[1] तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर [पृष्ठ-41]
शब्दार्थ-सागर = समद्र। अस्थिर = अस्थायी। जग = संसार। दग्ध = दखी। निर्दय = क्रर। प्लावित = पानी से भरा हुआ। माया = खेल, क्रीड़ा। रण-तरी = युद्ध की नौका। आकांक्षा = इच्छा, कामना। भेरी-गर्जन = युद्ध में बजने वाले नगाड़ों की आवाज़। अंकुर = बीज। उर = हृदय, मन। नवजीवन = नया उत्साह । ताकना = अपेक्षा से निरंतर देखना।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। यहाँ कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा के रूप में चित्रित किया है।
व्याख्या कवि कहता है कि बादल वायु के रूप में समुद्र पर मंडरा रहे हैं। वे इस प्रकार उमड़-घुमड़कर सागर पर छाए हुए हैं जैसे क्षणिक सुखों पर दुखों की छाया मंडराती रहती है। ये बादल संसार के दुखों से पीड़ित हृदय पर एक क्रूर विनाशकारी क्रीड़ा करने जा रहे हैं। भाव यह है कि ये संसार के प्राणी शोषण तथा अभाव के कारण अत्यधिक दुखी हैं। बादल क्रांति का दूत बनकर उन दुःखों को नष्ट करना चाहते हैं।
कवि बादल को संबोधित करता हुआ कहता है हे विनाशकारी बादल! तुम्हारी यह युद्ध रूपी नौका असंख्य संभावनाओं से भरी हुई है। तुम अपनी गर्जना तर्जना के द्वारा क्रांति उत्पन्न कर सकते हो और विनाश भी कर सकते हो परंतु तुम्हारी गर्जना के नगाड़े सुनकर पृथ्वी के गर्भ में छिपे हुए अंकुर नवजीवन की आशा लिए हुए सिर उठाकर तुम्हारी ओर बार-बार देख रहे हैं। कवि कहता है कि हे विनाश के बादल! तुम्हारी क्रांतिकारी वर्षा ही पृथ्वी में दबे हुए अंकुरों को नया जीवन दे सकती है अतः तुम बार-बार गर्जना करके वर्षा करो। इस पद्य से यह अर्थ भी निकलता है कि क्रांति से ही समाज के शोषितों, पीड़ितों तथा दलितों का उद्धार हो सकता है और पूँजीपतियों का विनाश हो सकता है। अतः सामाजिक और आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए क्रांति अनिवार्य है।
विशेष-
- यहाँ कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा के रूप में चित्रित किया है।
- कविता का मूल स्वर प्रगतिवादी है।
- छायावादी कविता होने के कारण इस कविता में लाक्षणिक पदावली का अत्यधिक प्रयोग हुआ है।
- ‘समीर-सागर’, ‘रण-तरी’, ‘विप्लव के बादल’ तथा ‘दुःख की छाया’ में रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
- अन्यत्र अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का भी सफल प्रयोग हुआ है।
- संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
- शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
- अंकुरों द्वारा सिर ऊँचा करके बादलों की ओर ताकने में दृश्य-बिंब की सुंदर योजना देखी जा सकती है।
- मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है।
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) अस्थिर सुख पर दुःख की छाया से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) ‘जग के दग्ध हृदय’ का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
(घ) बादल निर्दय विप्लव की रचना क्यों कर रहे हैं?
(ङ) घन भेरी की गर्जना सुनकर सोये हुए अंकुरों पर क्या प्रतिक्रिया हुई है?
(च) पृथ्वी के गर्भ में सोये हुए अंकुर ऊँचा सिर करके क्यों ताक रहे हैं?
उत्तर:
(क) कवि-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता-बादल राग
(ख) वायु अस्थिर है और बादल घने हैं। इसी प्रकार सुख भी अस्थिर होते हैं परंतु दुःख स्थायी होते हैं। इसलिए कवि यह कहना चाहता है कि अस्थायी सुखों पर अनंत दुःखों की काली छाया मंडराती रहती है।
(ग) कवि का यह कहना है कि संसार के शोषित और गरीब लोग अभाव तथा शोषण के कारण दुखी और पीड़ित हैं। वे करुणा का जल चाहते हैं। इसलिए कवि ने बादल रूपी क्रांति से वर्षा करने की प्रार्थना की है।
(घ) बादल क्रांति का प्रतीक हैं। वह लोगों के निर्मम शोषण को देखकर ही विप्लव की रचना कर रहा है।
(ङ) बादलों की घनी गर्जना सुनकर पृथ्वी के गर्भ में अंकुर नवजीवन की आशा से जाग उठे हैं। वे पानी की आकांक्षा के कारण सिर ऊँचा करके बादलों को देख रहे हैं।
(च) पृथ्वी के गर्भ में सोये हुए अंकुर ऊँचा सिर करके इसलिए ताक रहे हैं क्योंकि उन्हें यह आशा है कि बादलों रूपी क्रांति के कारण उन्हें सुखद तथा नवीन जीवन की प्राप्ति होगी तथा उनके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
[2] बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। [पृष्ठ-41]
शब्दार्थ-गर्जन = गरजना। मूसलधार = मोटी-मोटी बारिश। हृदय थामना = डर जाना। घोर = घना, भयंकर। वज्र-हुंकार = वज्रपात के समान भीषण आवाज़। अशनि-पात = बिजली का गिरना। उन्नत = बड़ा, विशाल। शत-शत = सैकड़ों। क्षत-विक्षत = घायल। हत = मरा हुआ। अचल = पर्वत। गगन-स्पर्शी = आकाश को छूने वाला। स्पर्द्धा धीर = आगे बढ़ने की होड़ करने के लिए बेचैन। लघुभार = हल्के। शस्य = हरियाली। अपार = बहुत अधिक। विप्लव = क्रांति, विनाश। रख = शोर।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों के माध्यम से क्रांति का आह्वान किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि हे बादल! तुम्हारे बार-बार गर्जने तथा मूसलाधार वर्षा करने से सारा संसार डर के कारण अपना कलेजा थाम लेता है क्योंकि तुम्हारी भयंकर गर्जन और वज्र जैसी घनघोर आवाज़ को सुनकर लोग काँप उठते हैं। सभी को तुम्हारी विनाश-लीला का डर लगा रहता है। भाव यह है कि क्रांति का स्वर सुनकर लोग आतंकित हो उठते हैं। कवि पुनः कहता है कि बादलों के भयंकर वज्रपात से उन्नति की चोटी पर पहुँचे हुए सैकड़ों योद्धा अर्थात् पूँजीपति भी पराजित होकर धूलि चाटने लगते हैं। आकाश को छूने की होड़ लगाने वाले ऊँचे-ऊँचे स्थिर पर्वत भी बादलों के भयंकर वज्रपात से घायल होकर खंड-खंड हो जाते हैं। अर्थात् जो पर्वत अपनी ऊँचाई के द्वारा आकाश से स्पर्धा करते हैं वे भी बादलों की बिजली गिरने से खंड-खंड होकर नष्ट हो जाते हैं। जो लोग जितने ऊँचे होते हैं उतने ही वे विनाश के शिकार बनते हैं। परंतु बादलों की इस विनाश-लीला में छोटे-छोटे पौधे हँसते हैं और मुस्कराते हैं, क्योंकि विनाश से उन्हें जीवन मिलता है। वे हरे-भरे होकर लहलहाने लगते हैं। वे छोटे-छोटे पौधे खिलखिलाते हुए और अपने हाथ हिलाते हुए तुम्हें निमंत्रण देते हैं। तुम्हारे आने से उन्हें एक नया जीवन मिलता है। हे बादल! क्रांति के विनाश से हमेशा छोटे तथा गरीब लोगों को ही लाभ होता है।
विशेष-
- यहाँ कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक सिद्ध किया है और उन्हें ‘विप्लव के वीर’ की संज्ञा दी है।
- कवि ने प्रतीकात्मक शब्दावली अपनाते हुए क्रांति की भीषणता की ओर संकेत किया है। ‘गर्जन’, ‘वज्र-हुंकार’, ‘छोटे-पौधे’ ‘अचल’ आदि सभी प्रतीक हैं।
- संपूर्ण पद में मानवीकरण अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- ‘हाथ हिलाते तुझे बुलाते’ गतिशील बिंब है।
- यहाँ कवि ने संस्कृतनिष्ठ शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
- शब्द-चयन उचित और भावानुकूल है।
- ओज गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) क्या आप बादल को क्रांति का प्रतीक मानते हैं?
(ख) बादलों की मूसलाधार वर्षा से सृष्टि पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(ग) बादलों के अशनि-पात से किसे हानि होती है और क्यों?
(घ) छोटे पौधे किसके प्रतीक हैं और वे क्यों हँसते हैं?
(ङ) कवि ने गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर किसे कहा है और क्यों?
उत्तर:
(क) निश्चित ही बादल क्रांति के प्रतीक हैं। कवि ने बादलों के क्रांतिकारी रूप को स्पष्ट करने के लिए उन्हें ‘विप्लव के वीर’ कहा है। जिस प्रकार क्रांति होने पर चारों ओर गर्जन-तर्जन और विनाश होता है उसी प्रकार विप्लवकारी बादल भी मूसलाधार वर्षा तथा अशनिपात से विनाश की लीला रचते हैं।
(ख) बादलों की मूसलाधार वर्षा से संसार के लोग घबरा जाते हैं और डर के मारे अपना हृदय थाम लेते हैं। बादलों की घोर वज्र हुंकार लोगों में भय उत्पन्न करती है।
(ग) बादलों के अशनि-पात अर्थात् बिजली गिरने से विशाल आकार के ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को हानि होती है। निरंतर वर्षा होने से और ओले पड़ने से ये पर्वत क्षत-विक्षत हो जाते हैं।
(घ) छोटे पौधे शोषित तथा अभावग्रस्त लोगों के प्रतीक हैं। बादल रूपी क्रांति से शोषितों को ही लाभ पहुँचता है। पुनः वर्षा का जल पाकर गरीब किसान और मजदूर प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि इससे उन्हें एक नया जीवन मिलता है।
(ङ) कवि ने गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर शब्दों का प्रयोग पूँजीपतियों के लिए किया है। क्योंकि वे अपने धन-वैभव के कारण समाज में ऊँचा स्थान पा चुके हैं। उनके ऊँचे-ऊँचे भवन आकाश को स्पर्श करने में होड़ लगा रहे हैं। धन-वैभव को लेकर उनमें होड़ मची हुई है।
[3] अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं। [पृष्ठ-42-43]
शब्दार्थ-अट्टालिका = महल। आतंक-भवन = भय का निवास। पंक = कीचड़। प्लावन = बढ़ा। क्षुद्र = तुच्छ। रुद्ध = रुका हुआ। कोष = खजाना। अंगना = पत्नी। अंक = गोद। वज्र-गर्जन = वज्र के समान गर्जना। त्रस्त = डरा हुआ। नयन = नेत्र, आँख।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। यहाँ कवि ने अट्टालिकाओं को आतंक भवन कहा है क्योंकि उनमें रहने वाले अमीर लोग गरीबों का खून चूसकर धन पर कुंडली मारे बैठे हैं। ऐसे लोग ही क्रांति के स्वर से डरते हैं।
व्याख्या कवि कहता है कि हमारे समाज में जो ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, ये अट्टालिकाएँ नहीं हैं, बल्कि इनमें तो भय और त्रास का निवास है। इनमें रहने वाले अमीर लोग हमेशा क्रांति से आतंकित रहते हैं। बादलों की विनाश लीला तो हमेशा कीचड़ में ही होती है। उसी में बाढ़ और विनाश के दृश्य देखे जा सकते हैं। कवि के कहने का भाव है कि समाज के गरीब और शोषित लोग ही क्रांति करते हैं। अमीर लोग तो हमेशा भय के कारण डरे रहते हैं। गरीब लोगों को क्रांति से कोई फर्क नहीं पड़ता। कवि कहता है कि पानी में खिले हुए छोटे-छोटे कमलों से हमेशा पानी रूपी आँसू टपकते रहते हैं। यहाँ कमल पूँजीपतियों के प्रतीक हैं जो विप्लव से हमेशा डरते रहते हैं, परंतु समाज का गरीब वर्ग सुकुमार बच्चों के समान है जो रोग और शोक में भी हमेशा हँसता और मुस्कुराता रहता है। अतः क्रांति होने से उन्हें आनंद की प्राप्ति होती है।
परंतु पूँजीपति लोगों ने अपने खजाने को धन से परिपूर्ण करके उसे सुरक्षित रखा हुआ है। जिससे गरीब लोगों का संतोष उबलने को तैयार है। यही कारण है कि अमीर लोग हमेशा आतंकित रहते हैं और वे क्रांति रूपी बादल की गर्जना को सुनकर अपनी सुंदर स्त्रियों के अंगों से लिपटे हुए हैं लेकिन आतंक की गोद में वे काँप रहे हैं। बादलों की भयंकर गर्जना को सुनकर वे अपनी आँखें बंद किए हुए हैं और मुँह को छिपाए हुए हैं। भाव यह है कि क्रांति से पूँजीपति लोग ही डरते हैं, गरीब लोग नहीं डरते।
विशेष-
- इस पद में कवि ने समाज के शोषकों के प्रति अपनी घृणा को व्यक्त किया है और शोषितों के प्रति सहानुभूति दिखाई है।
- यहाँ कवि क्रांति के प्रभाव को दिखाने में सफल रहा है।
- संपूर्ण पद में प्रतीकात्मक शब्दावली का खुलकर प्रयोग किया गया है; जैसे ‘पंक’ निम्न वर्ग का प्रतीक है और ‘जलज’ धनी वर्ग का प्रतीक है।
- अनुप्रास, स्वर मैत्री तथा अपहति अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
- तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
- शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
- ओज गुण है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) ‘अट्टालिका नहीं है रे आतंक-भवन’ का आशय क्या है?
(ख) पंक और अट्टालिका किसके प्रतीक हैं?
(ग) रोग-शोक में कौन हँसता रहता है और क्यों?
(घ) ‘क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से सदा छलकता नीर’ का भावार्थ स्पष्ट करें।
(ङ) कौन लोग आतंक अंक पर काँप रहे हैं और डर कर अपने नयन-मुख ढाँप रहे हैं?
उत्तर:
(क) यहाँ कवि यह स्पष्ट करता है कि बड़े-बड़े पूंजीपतियों के भवन अट्टालिकाएँ नहीं हैं, बल्कि वे तो आतंक के भवन हैं अर्थात् क्रांति का नाम सुनते ही वे डर के मारे काँपने लगते हैं। महलों में रहते हुए भी वे घबराए रहते हैं।
(ख) पंक समाज के शोषित व्यक्ति का प्रतीक है और अट्टालिका शोषक पूँजीपतियों का प्रतीक है।
(ग) समाज का निम्न वर्ग रूपी सुकुमार शिशु ही रोग और शोक में हमेशा हँसता रहता है क्योंकि वह संघर्षशील और जुझारू होता है। क्रांति होने से ही उसे लाभ पहुंचने की संभावना है।
(घ) जब वर्षा रूपी क्रांति होती है तो जल में उत्पन्न कमल रोते हैं और आँसू बहाते हैं। भाव यह है कि क्रांति के फलस्वरूप सुविधाभोगी लोग घबराकर आँसू बहाने लगते हैं। उन्हें इस बात का डर होता है कि उनसे उनकी पूँजी छीन ली जाएगी।
(ङ) पूँजीपति लोग अपने महलों में अपनी पत्नियों से लिपटे हुए भी काँप रहे हैं। उनके मन में क्रांति का डर है। उन्हें इस बात का भय लगा हुआ है कि क्रांति के कारण उनकी सुख-सुविधाएँ छिन जाएँगी। इसलिए वे भयभीत होकर अपने नेत्रों और मुख को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं।
[4] जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार! [पृष्ठ-43]
शब्दार्थ-जीर्ण = जर्जर। शीर्ण = कमज़ोर। कृषक = किसान। अधीर = बेचैन। विप्लव = विनाश। सार = प्राण। पारावार = सागर।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। यहाँ कवि ने किसानों की दुर्दशा का यथार्थ वर्णन किया है। कवि बादलों का आह्वान करता हुआ कहता है कि वह मूसलाधार वर्षा करके गरीब तथा शोषित किसानों की सहायता करें।
व्याख्या कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है, हे जीवन के सागर! देखो, यह जर्जर भुजाओं तथा दुर्बल शरीर वाला किसान बेचैन होकर तुम्हें अपनी ओर बुला रहा है। हे विनाश करने में निपुण बादल! तुम वर्षा करके देश के गरीब तथा शोषित किसान की सहायता करो। उसकी भुजाएँ जर्जर हो चुकी हैं तथा शरीर कमज़ोर हो गया है। उसकी भुजाओं के बल को तथा उसके जीवन के रस को पूँजीपतियों ने चूस लिया है। भाव यह है कि देश के धनिक वर्ग ने ही किसान का शोषण करके उसकी बुरी हालत कर दी है। अब उस किसान में केवल हड्डियों का पिंजर शेष रह गया है। आज की पूँजीवादी शोषक अर्थव्यवस्था ने उसके खून और माँस को चूस लिया है। हे बादल! तुम तो जीवन के दाता हो, विशाल सागर के समान हो। तुम वर्षा करके एक ऐसी क्रांति पैदा कर दो जिससे कि वह किसान शोषण से मुक्त हो सके और सुखद जीवनयापन कर सके।
विशेष-
- यहाँ कवि ने भारतीय किसानों की दुर्दशा के लिए आज की शोषण-व्यवस्था को उत्तरदायी माना है। देश के पूँजीपतियों और महाजनों ने किसानों का भरपूर शोषण किया है।
- पस्तुत पद्यांश से प्रगतिवादी स्वर मुखरित हुआ है। कवि ने बादल को एक क्रांतिकारी योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया है।
- संपूर्ण पद्य में बादल का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
- तत्सम् प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है। शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
- प्रसाद गुण होने के कारण करुण रस का परिपाक हुआ है और मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर, शब्दों का प्रयोग किसके लिए किया गया है और क्यों?
(ख) कृषक को अधीर क्यों कहा गया है?
(ग) कवि ने ‘विप्लव के वीर’ किसे कहा है और क्यों?
(घ) जीवन के पारावर किसे कहा गया है और क्यों?
(ङ) ‘चूस लिया है उसका सार’ का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर:
(क) यहाँ कवि ने जीर्ण बाहु और शीर्ण शरीर शब्दों का प्रयोग किसान के लिए किया है। शोषण तथा अभाव के कारण उसकी भुजाएँ जीर्ण हो चुकी हैं और शरीर दुर्बल और हीन हो चुका है। इसलिए कवि ने किसान के लिए जीर्ण बाहु और शीर्ण शरीर शब्दों का प्रयोग किया है।
(ख) शोषण तथा अभावों के कारण भारत का किसान दरिद्र और लाचार है। पूँजीपतियों ने उसका सब कुछ छीन लिया है। उसे आशा है कि क्रांति के फलस्वरूप परिवर्तन होगा और पूँजीवाद का विनाश होगा, इसलिए वह क्रांति के बादलों की ओर बड़ी बेचैनी से देख रहा है।
(ग) कवि ने बादलों को विप्लव के वीर कहा है क्योंकि कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक माना है। जिस प्रकार बादल मूसलाधार वर्षा से समाज की व्यवस्था को भंग कर देते हैं, उसी प्रकार क्रांति भी पूँजीपतियों का विनाश कर देती है।
(घ) क्रांति रूपी बादल को ही जीवन का पारावार अर्थात् सागर कहा गया है। जिस प्रकार बादल वर्षा करके फसल को नया जीवन देते हैं, उसी प्रकार क्रांति भी पूँजीपतियों का विनाश करके गरीब लोगों को सहारा देती है और उनका विकास करती है।
(ङ) यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि धनिक वर्ग ने किसान वर्ग का शोषण करके उसके शरीर के सारे रस को मानों चूस लिया है अर्थात् शोषण के कारण किसान की दशा बुरी हो चुकी है। अब तो किसान हड्डियों का पिंजर मात्र बनकर रह गया है।
बादल राग Summary in Hindi
बादल राग कवि-परिचय
प्रश्न-
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-महाकवि ‘निराला’ छायावाद के चार प्रमुख कवियों में से एक थे। आधुनिक हिंदी साहित्य के विकास में उनका महान योगदान है। उनका जन्म सन् 1899 में बंगाल के महिषादल नामक रियासत में बसंत पंचमी के दिन हुआ था। इनके पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी उन्नाव जिले के रहने वाले थे, किंतु जीविकोपार्जन के लिए महिषादल नामक रियासत में आकर बस गए थे। बचपन में ही निराला जी की माता का स्वर्गवास हो गया था। उनके पिता अनुशासनप्रिय थे। इसलिए उनके इस स्वभाव के कारण बालक सूर्यकांत को अनेक बार मार खानी पड़ी। 13 वर्ष की आयु में ही निराला जी का विवाह मनोहर देवी नामक कन्या से कर दिया गया था, किंतु वह एक पुत्र और पुत्री को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई। निराला जी को साहित्य जगत् में भी आरंभ में अनेक विरोधों का सामना करना पड़ा। उनकी अनेक रचनाएँ व लेख अप्रकाशित ही लौटा दिए जाते थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उनकी ‘जूही की कली’ कविता लौटा दी थी, किंतु बाद में उनसे मिलने पर द्विवेदी जी भी उनकी प्रतिभा से प्रभावित हुए बिना रह न सके। सन् 1933 में निराला जी ने ‘मतवाला’ नामक पत्रिका का संपादन किया। इसके पश्चात् उन्होंने रामकृष्ण मिशन के दार्शनिक पत्र ‘समन्वय’ का भी संपादन किया। पुत्री सरोज के निधन ने निराला जी को बुरी तरह तोड़ दिया। जीवन के अंतिम दिनों में तो वे विक्षिप्त से हो गए थे। जीवन में संघर्ष करते हुए और माँ भारती का आँचल अपनी रचनाओं से भरते हुए निराला जी सन् 1961 में इस संसार से चल बसे।
2. प्रमुख रचनाएँ निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने साहित्य की विविध विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है और अनेक रचनाओं का निर्माण किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
(i) काव्य-संग्रह-‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’, ‘अनामिका’, कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘बेला’, ‘नए पत्ते’, ‘अपरा’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’ आदि।
(ii) कहानी-संग्रह ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीबी’, ‘चतुरी चमार’ आदि।
(iii) उपन्यास-‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’, ‘चोटी की पकड़’, ‘काले कारनामे’, ‘चमेली’ आदि।
‘कुल्ली भाट’ तथा ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ उनके रेखाचित्र (आँचलिक उपन्यास) हैं। उन्होंने रेखाचित्र, आलोचना साहित्य, निबंध तथा जीवनी साहित्य की भी रचना की और अनुवाद कार्य भी किया।
3. काव्यगत विशेषताएँ-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की काव्य यात्रा बहुत लंबी रही है। उन्होंने एक छायावादी, प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी कवि के रूप में हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(i) वैयक्तिकता की भावना-‘निराला’ जी के काव्य में वैयक्तिकता की भावना की प्रधानता है। ‘अपरा’ की अनेक कविताओं में कवि ने अपनी आंतरिक अनुभूतियों को व्यक्त किया है। यह प्रकृति उनकी ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘जूही की कली’ आदि कविताओं में देखी जा सकती है। ‘सरोज स्मृति’ में कवि ने निजी दुख का वर्णन किया है
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।
(ii) विद्रोह का स्वर-छायावादी कवियों में ‘निराला’ एक ऐसे कवि हैं जिनके काव्य में विद्रोह का स्वर है। एक स्वच्छंदतावादी कवि होने के कारण उन्होंने पुरातन रूढ़ियों तथा जड़ परंपराओं को तोड़ने का प्रयास किया। काव्य जगत में उन्होंने सबसे पहले मुक्त छंद का प्रयोग किया। भले ही इसके लिए उनको तत्कालीन साहित्यकारों तथा संपादकों के विरोध को सहन करना पड़ा। ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता में वे अपनी बेटी सरोज के वर से कहते हैं
तुम करो ब्याह, तोड़ता नियम
मैं सामाजिक योग के प्रथम
लग्न के पदँगा स्वयं मंत्र
यदि पंडित जी होंगे स्वतंत्र।
(iii) राष्ट्रीय चेतना-महाकवि ‘निराला’ के काव्य में देश-प्रेम की भावना देखी जा सकती है। वे सही अर्थों में राष्ट्रवादी कवि थे। ‘भारतीय वंदना’. ‘जागो फिर एक बार’, ‘तलसीदास’, ‘छत्रपति शिवाजी का पत्र’ आदि कविताओं में कवि ने देश-प्रेम की भावना को व्यक्त किया है। उनकी कुछ कविताएँ भारत की स्वतंत्रता का संदेश भी देती हैं। ‘खून की होली जो खेली’ उन युवकों के सम्मान में लिखी गई है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। इसी प्रकार ‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि भारतवासियों को यह संदेश देता है कि वे गुलामी के बंधन तोड़कर देश को आजाद कराएँ। ‘जागो फिर एक बार’ से एक उदाहरण देखिए
समर अमर कर प्राण
गान गाए महासिंधु-से
सिंधु-नद-तीर वासी!
सैंधव तुरंगों पर
चतुरंग चमुसंग
सवा सवा लाख पर
एक को चढ़ाऊँगा,
गोबिंद सिंह निज
नाम जब कहलाऊँगा।
(iv) प्रकृति वर्णन छायावादी कवि होने के कारण ‘निराला’ जी ने प्रकृति के अनेक चित्र अंकित किए हैं। उन्होंने प्रकृति के आलम्बन, उद्दीपन, मानवीकरण आदि विभिन्न रूपों का सुंदर चित्रण किया है। बादलों से ‘निराला’ जी को विशेष लगाव था, अतः ‘बादल राग’ संबंधी उनकी छह कविताएँ उपलब्ध होती हैं। ‘बादल राग’ की पहली कविता में कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का वर्णन करते हुए लिखा है
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
इसी प्रकार ‘देवी सरस्वती’ नामक कविता में कवि ने सर्वथा नवीन शैली अपनाते हुए शरद् ऋतु का वर्णन किया है।
(v) प्रगतिवादी भावना–’निराला’ जी एक सच्चे प्रगतिवादी कवि थे। उन्होंने जहाँ एक ओर पूँजीपतियों के प्रति अपना तीव्र आक्रोश व्यक्त किया है वहाँ दूसरी ओर शोषितों के प्रति सहानुभूति की भावना भी दिखाई है। ‘कुकुरमुत्ता’, ‘तोड़ती पत्थर’, ‘भिक्षुक’, ‘विधवा’ आदि कविताओं में कवि ने प्रगतिवादी दृष्टिकोण को व्यक्त किया है। ‘भिक्षुक’ से एक उदाहरण देखिए
वह आता दो ट्रक कलेजे के करता, पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को-भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता
(vi) प्रेम और सौंदर्य का वर्णन-‘निराला’ जी ने अपने आरंभिक काव्य में प्रेम और सौंदर्य का खुलकर वर्णन किया है। ‘जूही की कली’ में कवि ने स्थूल श्रृंगार का वर्णन किया है, परन्तु अन्य कविताओं में उन्होंने बड़े उदात्त और पावन श्रृंगार का वर्णन किया है। कुछ स्थलों पर कवि का प्रेम-वर्णन लौकिक होने के साथ-साथ अलौकिक प्रतीत होने लगता है जिसके फलस्वरूप ‘निराला’ जी एक रहस्यवादी कवि प्रतीत होने लगते हैं। ‘तुम और मैं’, ‘यमुना के प्रति’ आदि कविताओं में कवि की रहस्यवादी भावना देखी जा सकती है।
4. कला-पक्ष-एक सफल छायावादी कवि होने के कारण ‘निराला’ जी ने तत्सम् प्रधान शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। ‘निराला’ जी का भाषा के बारे में दृष्टिकोण बहुत उदार रहा है। यदि कुछ स्थलों पर वे समास बहुल संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करते हैं तो अन्य स्थलों पर वे सामान्य बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग करते हैं। उदाहरण के रूप में ‘राम की शक्ति पूजा’ की भाषा संस्कृतनिष्ठ है लेकिन ‘तोड़ती पत्थर’ की भाषा सहज, सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा है। ‘कुकुरमुत्ता’ में कवि ने उर्दू तथा अंग्रेज़ी के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है। अन्यत्र कवि ने लाक्षणिक तथा प्रतीकात्मक पदावली का भी प्रयोग किया है। इसके साथ-साथ कवि ने अपनी भाषा में शब्दालंकारों के साथ-साथ अर्थालंकारों का भी प्रयोग किया है। अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, विभावना आदि अलंकारों का प्रयोग उनके काव्य में देखा जा सकता है। पुनः निराला जी ने संपूर्ण काव्य मुक्त छंद में ही लिखा है। यही कारण है कि वे मुक्त छंद के प्रवर्तक माने गए हैं।
बादल राग कविता का सार
प्रश्न-
‘बादल राग’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘बादल राग’ नामक कविता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की एक उल्लेखनीय कविता है। इसमें बादल क्रांति का प्रतीक है। कवि कहता है कि वायु रूपी सागर पर क्रांतिकारी बादलों की सेना इस प्रकार छाई हुई है जैसे क्षणिक सुखों पर दुखों के बादल मंडराते रहते हैं। संसार के दुखी लोगों के लिए अनेक संभावनाएँ उत्पन्न होने लगी हैं। लगता है कि एक क्रूर क्रांति होने जा रही है। बादल युद्ध की नौका के संमान गर्जना-तर्जना करते हुए, नगाड़े बजाते हुए उमड़ रहे हैं। दूसरी ओर पृथ्वी की कोख में दबे हुए आशा रूपी नए अंकुर इन बादलों को देख रहे हैं। उन सोये हुए अंकुरों के मन में नवजीवन की आशा है। अतः वे अपना सिर ऊपर उठाकर बार-बार क्रांति के बादलों की ओर देख रहे हैं।
ऐ बादल तुम्हारी घनघोर गर्जन, मूसलाधार वर्षा तथा बिजली की ‘कड़कन’ को सुनकर बड़े-बड़े शूरवीर योद्धा भी धराशायी हो जाते हैं। उनके शरीर क्षत-विक्षत हो जाते हैं और चट्टानें खिसकने लगती हैं। जबकि बादल आपस में होड़ लगाकर निरंतर आगे बढ़ते हैं, परंतु छोटे-छोटे पौधे बादलों को देखकर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। वे बार-बार अपना हाथ हिलाकर बादलों को अपने पास बुलाते हैं। कवि कहता है कि क्रांति की गर्जना से छोटे अथवा गरीब लोगों को लाभ प्राप्त होता है। परंतु ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ आतंक-भवन के समान हैं। उनमें रहने वाले अमीर लोग समाज का सारा पैसा इकट्ठा करके उस पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। वे डर के मारे काँप रहे हैं, क्योंकि क्रांति की गर्जना सुनकर वे डर जाते हैं और अपनी पत्नी के अंगों से चिपटकर काँपने लगते हैं। परंतु दूसरी ओर कीचड़ में तो उत्सव मनाया जा रहा है। कीचड़ से पैदा होने वाले कमल से पानी छलकता रहता है क्योंकि वह कमल शोषित और गरीब का प्रतीक है। गरीबों के बच्चे रोग, शोक और इस विप्लव में हँसते रहते हैं। अब कवि भारतीय किसानों की चर्चा करता हुआ कहता है कि किसान की भुजाएँ दुबली-पतली हैं और शरीर कमज़ोर हो चुका है और वह बेचैन होकर बादल को अपने पास बुलाता है। पूँजीपति ने उसके जीवन के रस को छीन लिया है। अब तो उसके शरीर में मात्र हड्डियाँ बची हैं। अतः कवि बादलों को क्रांति का दूत मानकर किसानों की सहायता करने के लिए कहता है।