Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Pratyaya प्रत्ययाः Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः
प्रकृति-प्रत्यय संस्कृत Class 10 HBSE
I. मतुप् प्रत्यय
मतुप् प्रत्यय ‘अस्य अस्ति’ (इसका है), ‘अस्मिन् अस्ति’ (इसमें है) इन दो अर्थों में प्रयोग किया जाता है। इन्हीं अर्थों में कुछ और भी प्रत्यय विशेषण बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। मतुप् प्रत्यय का वत् शेष रहता है। अकारान्त शब्दों को छोड़कर शेष शब्दों में वत् का मत् बन जाता है। मतुप् – प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में रहते हैं। इनके शब्द रूप पुंल्लिग में ‘बलवत्’ शब्द की तरह नपुंसकलिङ्ग में ‘जगत्’ शब्द की तरह तथा स्त्रीलिङ्ग में ‘नदी’ शब्द की तरह बनते हैं।
प्रत्ययाः HBSE 10th Class
II. ‘इन्’ प्रत्यय
‘णिनि’ प्रत्यय का ‘इन्’ शेष रहता है। ‘इन्’ प्रत्यय स्वार्थ (वाला अर्थ) में जोड़कर विशेषण शब्द बनाए जाते हैं। णिनि
(इन्) प्रत्यय के कुछ प्रमुख उदाहरण
इनके रूप पुँल्लिग में ‘शशिन्’ की तरह, स्त्रीलिंग में ‘नदी’ की तरह तथा नपुंसकलिंग में ‘वारि’ शब्द की तरह चलते हैं।
Sanskrit Pratyay HBSE 10th Class
III. तल, त्व प्रत्यय
ये प्रत्यय संज्ञा, विशेषण या अव्यय निर्माण करने के लिए लगाए जाते हैं। त्व प्रत्ययान्त शब्द सदैव नपुंसकलिङ्ग और भाववाचक होता है।
‘तल्’ प्रत्यय भी भाव अर्थ में लगाया जाता है। तल्’ प्रत्यय लगाने से शब्द के साथ ‘ता’ लग जाता है। तल् प्रत्ययान्त शब्द सदैव स्त्रीलिङ्ग होता है।
‘त्व’ तथा ‘तल्’ (ता) प्रत्ययान्त शब्दों के कुछ प्रमुख उदाहरण:
शब्द – प्रत्यय – प्रत्ययान्तरूप
(क) नर + त्व = नरत्वम्
(ख) पशु + त्व = पशुत्वम्
(ग) भ्रातृ + त्व = भ्रातृत्वम्
(घ) गुरु + त्व = गुरुत्वम्
(ङ) महत् + त्व = महत्त्व
(च) वीर + त्व = वीरत्त्वम्
(छ) मूर्ख + त्व = मूर्खत्वम्
(ज) ब्राह्मण + त्व = ब्राह्मणत्वम्
(झ) भीरु + त्व = भीरुत्वम्
(ब) देव + त्व = देवत्वम्
(ट) लघु + त्व = लघुत्वम्
(ठ) पटु + त्व = पटुत्वम्
(ड) कटु + त्व = कटुत्वम्
IV. इक (ठ) प्रत्यय
‘ठक’ तथा ‘ठञ्’ प्रत्यय को ‘इक’ आदेश हो जाता है। ‘इक’ प्रत्यय लगाकर ‘वाला अर्थ’ में निम्न प्रकार से कुछ विशेषण शब्द बनाए जाते हैं-
परिभाषा- याज्ञिकम् कृदन्त प्रत्यय परिभाषा-कृदन्त प्रत्यय धातुओं के अन्त में जुड़ते हैं। इन प्रत्ययों को जोड़ने से नाम और अव्यय बनते हैं।
सूचना-प्रायः सभी धातरूपों के अन्त में उन धातुओं के कृदन्त रूप भी दिए गए हैं, वहाँ देख सकते हैं।
शतृ-शानच् प्रत्ययान्तशब्द
शतृ-प्रत्ययान्त शब्द बनाने के लिए धातुओं से परे ‘अत्’, लगाया जाता है-शत > अत् । ‘शानच्’ प्रत्यय का ‘आन’ या ‘मान’ बन जाता है। परस्मैपदी धातुओं के परे ‘अत्’ लगाया जाता है। आत्मनेपदी धातुओं के परे भ्वादिगण, दिवादिगण, तुदादिगण और चुरादिगण में ‘मान’ तथा शेष गणों में आन’ लगता है।
कुछ धातुओं के शतृ-शानच्-प्रत्ययान्त रूप नीचे दिए जाते हैं
क्त तथा क्तवतु प्रत्ययों के नियम
नियम (1) क्त प्रत्यय किसी भी धातु से लगाया जा सकता है। इस प्रत्यय के (क) का लोप हो जाता है और फिर धातु के (इ), (उ) और (ऋ) गुण नहीं होता है, जैसे
जितः, भूतः, कृतः, श्रुतः, स्मृतः आदि।
नियम (2) क्तवतु प्रत्यय कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है और कर्ता में प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। क्तवतु प्रत्ययान्त शब्द में वचन तथा विभक्ति आदि कर्ता के अनुसार होंगे, जैसे
रामः ग्रामं गतवान्।
नियम (3) गत्यर्थक, अकर्मक और किसी उपसर्ग से युक्त स्था, जन्, वस्, आस्, सह् तथा जृ धातुओं से कर्ता के अर्थ में क्त प्रत्यय होता है, जैसे
(i) गगां गतः।
(ii) राममनुजातः।
नियम (4) सेट् धातुओं में क्त प्रत्यय करने पर धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘इ’ आ जाता है। जैसेईक्ष् + इ + त = ईक्षितः। पठ् + इ + त = पठितः । सेव् + इ + त = सेवितः । कुप् + इ + त = कुपितः ।
नियम (5) यज्, प्रच्छ्, सृज, इन धातुओं से त प्रत्यय परे होने पर इनके अन्तिम वर्ण को ष् तथा यज् एवं प्रच्छ को सम्प्रसारण हो जाता है, अर्थात् ‘व’ को ‘इ’ तथा ‘र’ को ‘ऋ’ हो जाता है। फिर ‘त् ‘ को ‘ट्’ होता है, जैसे
यज् + तः = इष्ट: ।
प्रच्छ + तः = पृष्टः ।
सृज् + तः = सृष्टः ।
नियम (6) शुष् धातु से परे ‘त’ को ‘क’ हो जाता है, जैसेशुष् + त = शुष्कः ।
नियम (7) पच् धातु से परे क्त = ‘त’ प्रत्यय होने पर ‘त’ का ‘व’ हो जाता है, जैसेपच् + क्त = पक्वः।
नियम (8) दा (देने) धातु को क्त प्रत्यय परे होने पर ‘दत्’ हो जाता है, जैसेदा + त = दत्तः ।
नियम (9) धातु के अन्तिम श् को ‘घ’ हो जाता है और ‘ष्’ से परे (त्) को (ट) हो जाता है, जैसेनश् + त = नष्ट: । दृश् + त = दृष्टः । स्पृश् + त = स्पृष्टः।
नियम (10) जिन अनिट् धातुओं के अन्त में ‘द’ होता है उनसे आगे आने वाले क्त प्रत्यय के ‘त्’ को ‘न्’ तथा धातु के ‘द’ को भी न हो जाता है, जैसे
छिद् = तः = छिन्नः।
खिद् + तः = खिन्नः।
भिद् + तः = भिन्नः।
तुद् + तः = तुन्नः।
नियम (11) धातु के अन्त के न् को म् तथा धातु के बीच में आने वाले अनुस्वार आदि का लोप हो जाता है, जैसे
गम् + तः = गतः ।
रम् + तः = रतः ।
हन् + तः = हतः।
तन् + तः = ततः ।
मन् + तः = मतः ।
नम् + तः = नतः।
अपवाद-जन् धातु के न्’ को ‘अ’ हो जाता ह-जन् + क्त = जातः । श्रम, भ्रम्, क्षम्, दम्, वम्, शम्, क्रम, कम् धातुओं की उपधा को दीर्घ हो जाता है, जैसे-श्रान्तः, भ्रान्तः, दान्तः, वान्तः, शान्तः, क्रान्तः इत्यादि।
नियम (12) चुरादिगण की धातुओं से आगे (इत) लगाकर क्तान्त रूप बन जाता है, जैसे
चुर् + इत = चोरितः।
कथ् + इत = कथितः।
गण + इत = गणितः।
निन्द् + इत = निन्दितः।
नियम (13) निम्नलिखित धातुओं में सम्प्रसारण अर्थात् ‘य्’ को ‘इ’ तथा ‘र’ को ‘ऋ’ होता है, जैसे
वद् + त = उक्तः।
वस् + त = उषितम्।
वप् + त = उप्तः।
वद् + त = उदितः।
वह् + न = ऊढः।
यज् + त = इष्टः।
हवे + त = हूतः।
प्रच्छ + त = पृष्टः।
व्यध् + त = विद्धः।
ग्रह् + त = गृहीतः।
स्वप् + त = सुप्तः।
ब्रू (वच्) + क्त = उक्तः।
मुख्य-मुख्य धातुओं के क्त तथा क्तवत् प्रत्ययों के रूप
(पुंल्लिङ्ग प्रथमा विभक्ति एकवचन में)
क्त्वा-प्रत्ययान्त वाक्य में दो क्रियाओं के होने पर जो क्रिया पहले समाप्त हो जाती है उसे बताने वाली धातु से क्त्वा प्रत्यय जोड़ा जाता है |
नियम-क्त्वा प्रत्यय के परे होने पर रूपसिद्धि के लिए वही नियम लागू होते हैं, जो क्त प्रत्यय के होने पर होते हैं।
क्त्वा-प्रत्ययान्त शब्द अव्ययी होते हैं, जैसे
विशेष-यदि धातु से पूर्व उपसर्ग हो तो क्त्वा के स्थान पर ‘य’ (ल्यप्) लगता है, जैसेउपसर्ग धातु
तुमुन्-प्रत्ययान्त
जब कोई कार्य अन्य (भविष्यत्) अर्थ के लिए किया जाए तो धातु से परे ‘तुमुन्’ प्रत्यय आता है। ‘तुमुन्’ का ‘तुम्’ शेष रह जाता है। जैसे
पठ् + तुमुन् = पठितुम्-पढ़ने के लिए।
ध्यान रहे तुम् प्रत्यय के परे होने पर पूर्व इ, ई, उ, ऊ, ऋ तथा उपधा के इ, उ तथा ऋ को गुण हो जाता है, जैसे
जि + तुम् = जेतुम्,
कृ + तुम् = कर्तुम्
नी + तुम् = नेतुम् ,
वृध् + तुम् = वर्धितुम्,
पठ् + तुमुन् = पठितुम्
भुज् +तुम् = भोक्तुम्
तव्यत्, अनीयर् तथा यत्
विधिकृदन्त शब्द धातु से परे तव्यत्, अनीयर् और यत् लगाने से बनते हैं। ‘तव्यत्’ का तव्य, ‘अनीयर्’ का अनीय तथा ‘यत्’ का य शेष रहता है।
नियम (1) तव्यत् तथा अनीयर् प्रत्यय के परे होने पर धातु के अन्तिम स्वर को गुण होता है; अर्थात् इ/ई, को ‘ए’, उ/ ऊ को ‘ओ’ और ‘ऋ’ को ‘अर्’ हो जाता है ; जैसे
जि + तव्यत् = जेतव्यः।
नी + तव्यत् = नेतव्यः।
स्तु + तव्यत् = स्तोतव्यः ।
हु + तव्यत् = होतव्यः ।
नियम (2) तव्यत् तथा अनीयर् प्रत्यय सकर्मक धातुओं से कर्म में होते हैं और वाक्य में अर्थ की उपेक्षा करने पर भाव में भी हो जाते हैं। अकर्मक धातुओं से भाव में ही यह प्रत्यय होता है।
नियम (3) अनीयर (अनीय) प्रत्यय के परे होने पर ‘इ’ का आगम नहीं होता, प्रत्युत इ, उ को गुण करके क्रमशः, ‘अय्’, ‘अव्’ आदेश कर देते हैं ; जैसे
श्रि + अनीयर् = श्रे + अनीयर् = श्रयणीयः।
भू + अनीयर् = भो + अनीयर् = भवनीयः।
नियम (4) कर्म में प्रत्यय करने पर कर्ता में तृतीया और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है और क्रिया कर्म के अनुसार होती है ; जैसे
तेन ग्रामः गन्तव्यः।
नियम (5) भाव में प्रत्यय करने पर कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है और तव्य प्रत्ययान्त शब्द में नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन होता है ; जैसे
तेन गन्तव्यम्। तेन कर्तव्यम्। तेन स्मरणीयम्।
नियम (6) अजन्त धातुओं से यत् ‘य’ प्रत्यय होता है। यत् प्रत्यय होने पर अजन्त धातुओं के (ई) तथा (उ) को गुण हो जाते हैं। जैसे
चि + यत् = चेयम।
जि + यत् = जेयम्।
नी + यत् = नेयम्।
श्र + यत् = श्रव्यम्।
नियम (7) यत् प्रत्यय के परे होने पर आकारान्त धातु के ‘आ’ को ‘ए’ हो जाता है ; जैसे
पा + य = पेयम्।
स्था + य = स्थेयम्।
चि + य = चेयम्।
जि + य = जेयम्।
मुख्य-मुख्य धातुओं के तव्यत्, अनीयर् और यत् प्रत्ययान्त शब्द नीचे दिए गए हैं
स्त्रीप्रत्यय
पुँल्लिग शब्दों के स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए जो प्रत्यय जोड़े जाते हैं, उन प्रत्ययों को ‘स्त्री प्रत्यय’ कहते हैं। संस्कृत व्याकरण के अनुसार इस प्रकार के चार प्रत्यय हैं
(1) आ,
(2) ई,
(3) ऊ,
(4) ति।
नियम 1. अकारान्त पुंल्लिग शब्दों के स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए प्रायः उनके आगे ‘आ’ लगाया जाता है; जैसे
पुँल्लिड्न्ग | स्त्रीलिड्र | पुँल्लिड्ग | स्त्रीलिड्र |
अज | अजा | अश्व | अश्वा |
(2003-C,2004-A) | (2003-C,2004-A) | निपुण | निपुणा |
वत्स | वत्सा | मूषक | मूषिका |
(2003-A) | (2003-A) | अचल | अचला |
चटक | चटका | क्षत्रिय | क्षत्रिया |
वैश्य | वैश्या | प्रथम | प्रथमा |
कनिष्ठ | कनिष्ठा | आचार्य | आचार्या |
कृपण | कृपणा | मध्यम | मध्यमा |
पूर्व | पूर्वा | सुत्द | सुता |
कोकिल | कौकिला | वृद्धा |
नियम 2. जिन अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों के अन्त में ‘अक’ होता है उनके स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए अन्त में ‘इका’ जोड़ा जाता है। जैसे
पाचक | पाचिका | पाठक | पाठिका |
चालक | चालिका | नायक | नायिका |
गायक | गायिका | धारक | धारिका |
बालक | बालिका | साधक | साधिका |
बोधक | बोधिका | कारक | कारिका |
शोधक | शोधिका | याचक | याचिका |
शिक्षक | शिक्षिका | अध्यापक | अध्यापिका |
नियम 3. कई पुँल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ‘ई’ प्रत्यय लगाया जाता है और शब्द के अन्त में ‘अ’ का लोप हो जाता है; जैसे
गौर | गौरी | नर्तक | नर्तकी |
रजक | रजकी | सुन्दर | सुन्दरी |
तरुण | तरुणी | पितामह | पितामही |
मातामह | मातामही | सूर | सूरी |
गोप | गोपी | मृग | मृगी |
कुमार | कुमारी | देव | देवी |
नियम 4. ऋकारान्त, इन्नन्त तथा ईयस् एवं मत् वत् प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए उनके आगे ‘ई’ प्रत्यय जोड़ दिया जाता है; जैसे
कर्तू | कर्त्री | दातृ | दात्री |
धनवत् | धनवती | धातृ | धात्री |
बलवत | बलवती | भगवत् | भगवती |
भवत् | भवती | श्रीमत् | श्रीमती |
धीमत् | धीमती | गरीयस् | गरीयसी |
मानिन् | मानिनी | बुद्धिमत् | बुद्धिमती |
नियम 5. शतृ प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए भ्वादि, दिवादि और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिजन्त धातुओं से शतृ प्रत्यय करने पर ‘ई’ प्रत्यय लगाकर ‘त्’ से पहले ‘न्’ जोड़ दिया जाता है ; जैसे
कर्तू | कर्त्री | दातृ | दात्री |
धनवत् | धनवती | धातृ | धात्री |
बलवत | बलवती | भगवत् | भगवती |
भवत् | भवती | श्रीमत् | श्रीमती |
धीमत् | धीमती | गरीयस् | गरीयसी |
मानिन् | मानिनी | बुद्धिमत् | बुद्धिमती |
नियम 6. यदि तुदादिगण तथा अदादिगण की धातुओं से शतृप्रत्यय करने पर स्त्रीलिङ्ग बनाना हो तो ‘ई’ प्रत्यय करके ‘त्’ से पहले विकल्प से ‘न्’ लगाया जाता है ; जैसे
पुँल्लिड्ग | स्त्रीलिड्ग | पुँल्लिड्ग | स्त्रीलिड्रा |
तुदत् | तुदती / तुदन्ती | इच्छत् | इच्छती / इच्छन्ती |
यात् | याती / यान्ती | स्नात् | स्नाती / स्नान्ती |
नियम 7. जातिवाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ‘ई’ प्रत्यय जोड़ा जाता है; जैसे
हंस | हंसी | काक | काकी |
हरिण | हरिणी | मृग | मृगी |
विडाल | विडाली | तापस | तापसी |
वायस | वायसी | सिंह | सिंही |
सारस | सारसी | काक | काकी |
नियम 8. गुणवाचक उकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए उनके अन्त में ‘ई’ प्रत्यय लगाया जाता है; जैसे
गुरु : | गुर्वी | साधु | साध्वी |
मृदु | मृद्वी | पटु | पट्वी |
नियम 9. इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, रुद्र, हिम, अरण्य, मृड, यव, यवन, मातुल, आचार्य-इन शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए इनके अन्त में आनी’ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे
इन्द्र | इन्द्राणी | वरुण | वरुणानी |
शिव | शिवानी | भव | भवानी |
शर्व | शर्वाणी | रुद्र | रुद्राणी |
हिम | हिमानी | अरणय | अरण्यानी |
मृड | मृडानी | यव | यवानी |
आंचार्य | आचार्याणी | मातुल | मातुलानी |
सूचना-(क) हिम तथा अरण्य शब्दों से महत्त्व अर्थ में भी ‘आनी’ प्रत्यय जोड़ा जाता है।
(ख) मातुल और उपाध्याय-इन शब्दों से ‘ई’ प्रत्यय करने पर विकल्प से आन् आगम हो जाता है। अत: इन शब्दों के दो-दो रूप बनते हैं। जैसे–मातुल = मातुलानी, मातुली। उपाध्याय = उपाध्यायानी, उपाध्यायी।
नियम 10. ‘युवन्’ शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए ‘ति’ प्रत्यय लगाया जाता है ; जैसे
युवन्
युवतिः
नियम 11. उकारान्त मनुष्यवाचक शब्दों में ऊ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे
कुरुः | कुरू: | पड्गु: | पड्गू: |
श्वश्रुः | श्वश्रूः | ब्रह्मबन्धुः | ब्रह्मबन्धूः |
1. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकनिर्दिष्टानां प्रकृतिप्रत्ययानां योगेन निर्मितैः उचितपदैः रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तरम्
1. बालिकाभिः राष्ट्रगीतं …………..। (गै + तव्यम्) गातव्यम्
2. …………. बालकः पठति। (लिख् + शत) लिखन्
3. छात्रैः उपदेशाः ………… (पाल + अनीयर्) पालनीयाः
4. ………… बालिका हसति। (धाव + शतृ) धावन्ती
5. सर्वैः …………. रक्षणीयम्। (भ्रातृ + त्व) भ्रातृत्वम्
6. मुनिभिः तपः …………! (कृ + अनीयर) करणीयम्
7. कष्टानि ………….. वीराः यशः लभन्ते। (सह् + शानच्) सहमानाः
8. स्त्री स्वभावतः …………. भवति। (तपस्विन् + डीप्) तपस्विनी
9. …………. नेता एव लोकप्रियः भवति। (नीति + मतुप्)
10. न्यायाधीशेन न्यायः ………… । (कृ + अनीयर) करणीयः
11. दीनान् ………… छात्रः मोदते। (सेव् + शानच्)
12. …………. सर्वत्र पूज्यते। (सदाचार + इन्) सदाचारी
13. भवत्या पाठः ………….। (लिख् + अनीयर्) लेखनीयः
14. ताः …………. बालिका गायन्ति। (मुद् + शानच्) मोदमानाः
15. विद्वद्भिः कविताः ………… । (रच् + अनीयर्) रचनीयाः
16. अस्माभिः देशरक्षायै सर्वस्वं …………..। (त्यज् + तव्यत्) त्यक्तव्यम्
17. …………… वीरः वीरगतिं प्राप्तवान्। (युध् + शानच्) युध्यमानः
18. अस्माभिः लताः ………….. । (आ + रोप् + अनीयर्) आरोपणीयाः
19. पुस्तकालये बहूनि ………… पुस्तकानि सन्ति। (पठ् + अनीयर्) पठनीयानि
20. पत्रवाहकेन पत्राणि …………..। (आ + नी + तव्यत्) आनेतव्यानि
21. ………….. सुखं क्षणिकं भवति । (भूत + ठक्) भौतिकम्
22. राज्ञा प्रजाः…….। (पाल् + अनीयर) पालनीयाः
23. पुरस्कारं ………….. छात्रः प्रसन्नः भवति। (लभ् + शानच्) लभमानः
24. रजनी सम्प्रति ………….. अस्ति। (स्वस्थ + टाप्) स्वस्था
25. पित्रा पुत्राः पुत्र्यः च ………… (पठ् + णिच् + अनीयर) पाठनीयाः
26. …………. राष्ट्रपति-महोदयः अद्य आगमिष्यति। (श्री + मतुप्)
27. दीपावली-उत्सवे …………. लक्ष्मी पूज्यते। (भगवत् + डीप्) भगवती
28. कृषकैः पशवः स्नेहेन …………..। (रक्ष् + अनीयर्) रक्षणीयाः
29. एषः …………. शिविरः आसीत्। (बुद्धि + ठक्) बौद्धिकः
30. ईश्वरं ………… जनाः सुखिनः तिष्ठान्ति। (भज् + शत) भजन्तः
31. ………….. जनः सर्वं रक्षति। (शक्ति + मतुप्) शक्तिमान्
32. ………….. पुरुषः समदर्शी भवति। (ज्ञान + इन्) ज्ञानी
33. ………………… श्रेष्ठः गुणः। (उदार + तल्) उदारता
34. ……………………. नरः विचारशीलः भवति। (बुद्धि + मतुप्) बुद्धिमान्
35. नमन्ति ………….. वृक्षाः। (फल + इन्) फलिनः
36. मनुष्यः ………….. प्राणी अस्ति। (समाज + ठक्) सामाजिकः
37. …………… नारी यश: प्राप्नोति। (गुण + मतुप्) गुणवती
38. कर्मशील: ………….. कथ्यते। (योग + इन्) योगी
39. ‘पर्यावरणरक्षणम्’-अस्माकं …………. कर्तव्यम् । (नीति + ठक्) नैतिकः
40. ………….. नरः दानेन शोभते। (धन + मतुप्) धनवान्
41. ………….. छात्राः विद्यां लभन्ते। (परिश्रम + इन्) परिश्रमिण:
42. …….. छात्रः लभते ज्ञानम्। (श्रद्धा + मतुप्) श्रद्धावान्
43. ………………….. जनाः सदाचारिणः भवन्ति स्म। (वेद + ठक्) वैदिकाः
44. ……………………. राजा सफलः भवति। (नीति + मतुप्) नीतिमान्
45. ……………………………. विकासः पर्याप्तः अभवत्। (उद्योग + ठक्) औद्योगिकः
46. ……………………… जनाः सर्वत्र पूज्यन्ते। (गुण + इन्) गुणिनः
47. अद्य ………… संस्कृतं प्रयुज्यते। (लोक + ठक्) लौकिकम्
48. ……………………… नराः विद्वांसः कथ्यन्ते। (विद्या + मतुप्) विद्यावन्तः
49. विवाहस्य अवसरे ………….. गानं भवति। (मङ्गल + ठक्) माङ्गलिकम्
50. तव ………….. वेतनं कति अस्ति ? (मास + ठक्) मासिकम्
अभ्यास-पुस्तकम् के प्रत्यय-विषयक अभ्यास प्रश्न
1. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकनिर्दिष्टैः उचितपदैः रिक्तस्थानानि पूर्यन्ताम्
(अधोलिखित वाक्यों में कोष्ठक में निर्दिष्ट उचितपदों से रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(1) बालिकाभि: राष्ट्रगीतं ……………….. (गै + तव्यत्)
(2) छात्रै: ……………….. (उपदेश) पालनीया:।
(3) …………. (युष्मद्) शुद्धं जलं पातव्यम्।
(4) मुनिभि: ……….. (तपस्) करणीयम्।
(5) न्यायाधीशेन न्याय: ………… (कृ + अनीयर) ।
(6) ……………….. (भवती) पाठ: लेखनीय:।
(7) विद्वद्भि: कविता: ………… (रच् + अनीयर्)।
(8) अस्माभि: ………… (लता) आरोपयितव्या: ।
(9) पत्रवाहकेन पत्राणि (आ $+$ नी $+$ तव्यत्)।
(10) ……….(राजन्) प्रजा: पालनीया:।
(11) ……… (पितृ) पुत्रा:, पुत्र्य: च पाठनीया:।
(12) कृषकै: ………. (पशु) स्नेहेन रक्षणीयाः।
उत्तराणि
(1) बालिकाभि: राष्ट्रगीतं गातव्यम्।
(2) छात्रै: उपदेशा: पालनीया:।
(3) युष्माभि: शुद्धं जलं पातव्यम्।
(4) मुनिभि: तपः करणीयम्।
(5) न्यायाधीशेन न्यायः करणीय: ।
(6) भवत्या पाठ: लेखनीय:।
(7) विद्वद्भि: कविता: रचनीया:।
(8) अस्माभि: लता: आरोपयितव्या:।
(9) पत्रवाहकेन पत्राणि आनेतव्यानि ।
(10) राज्ञा प्रजा: पालनीया:।
(11) पित्रा पुत्रा:, पुत्र्य: च पाठनीया:।
(12) कृषकै: पशव: स्नेहेन रक्षणीया:।
2. उदाहरणम् अनुसृत्य शतृप्रत्ययान्तपदैः वाक्यद्वयं योजयत।
(उदाहरण के अनुसार शतृप्रत्यय वाले पदों से दो वाक्यों को जोड़कर एक बनाइए)
यथा:
(i) बालकः पठति। बालक: लिखति।
उत्तरम्:
पठन् बालकः लिखति।।
(ii) बालिका पठति। बालिका लिखति।
उत्तरम्:
पठन्ती बालिका लिखति।
(iii) शिक्षकः शिक्षयति। शिक्षक: फलं दर्शयति ।
उत्तरम्:
शिक्षयन् शिक्षक: फलं दर्शयति।
(iv) शिक्षिका शिक्षयति। शिक्षिका फलं दर्शयति।
उत्तरम्:
शिक्षयन्ती शिक्षिका फलं दर्शयति।
(v) बालक: धावति। बालकः हसति।
उत्तरम्:
धावन् बालकः हसति।
(vi) बालिका धावति। बालिका हसति ।
उत्तरम्:
धावन्ती बालिका हसति।
(vii) गौरवः गच्छति। गौरवः आचार्यं नमति।
उत्तरम्:
गच्छन् गौरवः आचार्यं नमति।
(viii) राधिका गच्छति। राधिका आचार्यं नमति।
उत्तरम्:
गच्छन्ती राधिका आचार्यं नमति।
3. अधोलिखितधातूनाम् उदाहरणम् अनुसृत्य त्रिषु लिङ्गेषु “शानच्” प्रत्ययान्तरूपाणि लिखत
(अधोलिखित धातुओं के उदाहरण के अनुसार तीनों लिंगों में “शानच्” प्रत्यय वाले रूप लिखिए-)
4. कोष्ठके दत्तानां धातूनां शानच्-प्रत्ययान्तरूपेण रिक्तस्थानानि पूरयत
(कोष्ठक में दी गई धातुओं के शानच्-प्रत्यय वाले रूप से रिक्तस्थान भरिए-)
यथा-वन्दमानः स आशिषं लभते (वन्द्)
(i) शनैः ………… सा वैभवं प्राप्नोति। (वृध्/वर्ध)
(ii) ……….. नक्षत्रैः आकाश: दीव्यति। (प्र + काश्)
(iii) कष्टानि ……….. वीराः कीर्तिं लभन्ते। (सह्) ।
(iv) ……… वृक्षेभ्यः पुष्पाणि पतन्ति। (कम्प्)
(v) ………. जनाः साफल्यम् आप्नुवन्ति। (प्र + यत्)
उत्तराणि
वर्धमाना
प्रकाशमानैः
सहमानाः
कम्पमानेभ्यः
प्रयतमानाः
5. उदाहरणम् अनुसृत्य शानच्प्रयोगेन वाक्यद्वयस्य स्थाने वाक्यम् एकं रचयत
(उदाहरण के अनुसार शानच् प्रत्यय वाले पदों से दो वाक्यों को जोड़कर एक बनाइए)
यथा-छात्रः दीनान् सेवते। छात्र: मोदते।
उत्तरम्:
दीनान् ………… छात्रः मोदते।
(i) लताः कम्पन्ते। लताभ्यः पुष्पाणि पतन्ति।
………… लताभ्यः पुष्पाणि पतन्ति।
(ii) कमलानि जले जायन्ते। कमलेभ्यः परागः पतति ।
जले …………. कमलेभ्यः परागः पतति।
(iii) ते मोदन्ते। ते गायन्ति।
…………. ते गायन्ति।
(iv) सैनिकाः युध्यन्ते। सैनिकाः देशं रक्षन्ति।
………….. सैनिकाः देशं रक्षन्ति।
(v) दिलीपः गां सेवते। दिलीपः सिंहं पश्यति।
…………… गाम् ………… दिलीप: सिंहं पश्यति।
(vi) बालिका चित्रम् ईक्षते। सा प्रसन्ना भवति।
चित्रं ………… बालिका प्रसन्ना भवति।
(vii) छात्रः पुरस्कारं लभते। छात्रः प्रसन्नः भवति।
पुरस्कारं …………. छात्रः प्रसन्नः भवति ।
(viii) पुत्रः मातापितरौ सेवते। सः स्वकर्तव्यं निर्वहति।
पुत्रः मातापितरौ …………. स्वकर्तव्यं निर्वहति ।
उत्तरम्:
(i) कम्पमानाभ्यः लताभ्यः पुष्पाणि पतन्ति।
(ii) जले जायमानेभ्य: कमलेभ्यः परागः पतति।
(iii) मोदमाना: ते गायन्ति।
(iv) युध्यमानाः सैनिकाः देशं रक्षन्ति।
(v) गाम् सेवमानः दिलीप: सिंहं पश्यति।
(vi) चित्रं ईक्षमाणाः बालिका प्रसन्ना भवति।
(vii) पुरस्कारं लभमानः छात्रः प्रसन्नः भवति।
(viii) पुत्रः मातापितरौ सेवमानः स्वकर्तव्यं निर्वहति ।
6. अधोलिखितं संवादं पठित्वा मतुप-प्रत्ययान्त-विशेषणैः रिक्तस्थानानि पूरयत
(अधोलिखित संवाद को पढ़ कर मतुप्-प्रत्यय वाले विशेषणों से रिक्तस्थान भरिए-)
अध्यापकः ………….. (बुद्धि + मतुप्) छात्राः । संसारेऽस्मिन् कः श्रेष्ठः ? ।
सुजयः आचार्य ! यः ………… (धन + मतुप्) ……….. (रूप + मतुप्) नरः भवति जनाः, तम् एव श्रेष्ठ मन्यन्ते।
श्रुतिः आचार्य ! अहं वदानि, यः ……… (सदाचार + मतुप्) विवेकी, ……… (नीति + मतुप्), …………. (शक्ति + मतुप्) च भवति सः श्रेष्ठः।
प्रिया आचार्य ! अहं चिन्तयामि, ………… (विद्या + मतुप्), ………… (चरित्र + मतुप्) च जनः एवं सर्वोत्तमः भवति।
श्रेष्ठा आचार्य ! मम पक्षम् अपि शृणोतु। यः सत्यवादी …………. (निष्ठा + मतुप्), ……………. (विनय + मतुप्), …. …… (कीर्ति + मतुप्) देशभक्तः च अस्ति स एव श्रेष्ठः।
अध्यापकः सत्यमेतत्, यः …………. (सदाचार + मतुप्), विपत्सु च ………..(धृति + मतुप्), (यशस् .. मतुप्) च भवति सः देशभक्तः एव समाजे ………… (गुण + मतुप्) श्रेष्ठः च मन्यते। वीराः अभ्युदये …………. (क्षमा + मतुप्) भवन्ति युधि च ……….. (धैर्य + मतुप्) भवन्ति ।
उत्तरम्:
अध्यापकः बुद्धिमन्तः (बुद्धि + मतुप्) छत्राः । संसारेऽस्मिन् कः श्रेष्ठः ?
सुजयः आचार्य ! यः धनवान् (धन + मतुप्) रूपवान् (रूप + मतुप्) नरः भवति जनाः, तम् एव श्रेष्ठ मन्यन्ते।
श्रुतिः आचार्य ! अहं वदानि, यः सदाचारवान् (सदाचार + मतुप्) विवेकी, नीतिमान् (नीति + मतुप्), शक्तिमान् (शक्ति + मतुप्) च भवति संः श्रेष्ठः।
प्रिया आचार्य ! अहं चिन्तयामि, विद्यावान् (विद्या + मतुप), चरित्रवान् (चरित्र + मतुप) च जनः एवं सर्वोत्तमः भवति।
श्रेष्ठा आचार्य ! मम पक्षम् अपि शृणोतु। यः सत्यवादी निष्ठावान् (निष्ठा + मतुप्), विनयवान् (विनय + मतुप्), कीर्तिमान् (कीर्ति + मतुप्) देशभक्तः च अस्ति स एव श्रेष्ठः।
अध्यापकः सत्यमेतत्, यः सदाचारवान् (सदाचार + मतुप्), विपत्सु च धृतिमान् (धृति + मतुप्), यशस्वान् (यशम् + पनुप) च भवति सः देशभक्तः एव समाजे गुणवान् (गुण + मतुप्) श्रेष्ठ: च मन्यते। , वीराः अभ्युः . सावन्तः (क्षमा + मतुप्) भवन्ति युधि च धैर्यवन्तः (धैर्य + मतुप्) भवन्ति।
7. अधः प्रदत्तशब्दैः सह उदाहरणम् अनुसृत्य ‘इन्’ प्रत्ययं योजयित्वा लिखत
(नीचे दिए गए शब्दों के साथ उदाहरण के अनुसार ‘इन्’ प्रत्यय जोड़कर लिखिए-)
8. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितां तालिकां पुरयत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित तालिका को पूरा कीजिए-)
9. कोष्ठकात् उचितपदम् आदाय रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम्
(कोष्ठक से उचित पद लेकर रिक्तस्थानपर्ति कीजिए–)
यथा-अभिमानी मानं न लभते। (अभिमानी/अभिमानिनः) ।
उत्तरम्
(क) …………. सदा सम्मान्याः भवन्ति (विज्ञानी/विज्ञानिनः)
(ख) ………… शान्तिम् न प्राप्नोति। (लोभिनः/लोभी)
(ग) ………… धन्याः लोके। (दानी/दानिनः)
(घ) ………. विवेक: नश्यति। (क्रोधी/क्रोधिनः)
(ङ) किं कुलेन विशालेन विद्याहीनस्य ………..। (देही/देहिनः)
(च) ……….. जनः सर्वप्रियः भवति। (विनोदिनः/विनोदी)
(छ) सर्वे भवन्तु ……….. । (सुखी/सुखिन:)
(ज) ……….. इयम् बाला। (व्यवसायी/व्यवसायिनी)
उत्तरम्:
विज्ञानिनः
लोभी
दानिनः
क्रोधिनः
देहिनः
विनोदी
सुखिनः
व्यवसायिनी
10. अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थूलाक्षरपदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत
(अधोलिखित वाक्यों के स्थूलाक्षर पदों में प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन कीजिए-)
11. स्थूलाक्षरपदेषु प्रकृति-प्रत्ययविभागं कुरुत
(स्थूलाक्षर पदों में प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन कीजिए-)
1. मनुष्यः सामाजिकः प्राणी अस्ति।
2. ‘पर्यावरणरक्षणम्’ अस्माकं नैतिकम् कर्तव्यम् अस्ति।
3. अद्यत्वे औद्योगिकः विकासः सर्वत्र दृश्यते।
4. विद्यया लौकिकी अलौकिकी च उन्नतिः भवति।
5. मम गृहे माङ्गलिकः कार्यक्रमः सम्पत्स्यते।
उत्तरम् –
पदानि | प्रकृति: | प्रत्यय: |
1. सामाजिक: (पुँ०) | समाज | ठक् (इक) |
2. नैतिकम् (नपुँ०) | नीति | ठक् (इक) |
3. औद्योगिक: (पुँ०) | उद्योग | ठक् (इक) |
4. लौकिकी (स्त्री०) | लोक | ठक् (इक) |
5. माड्गलिक: (पुँ०) | मड्गल | ठक् (इक) |
12. उदाहरणम् अनुसृत्य ‘इक’ (ठक्/ठब्) पत्ययान्त-पदानि रचयत
(उदाहरण के अनुसार ‘इक’ (ठक्/ठञ्) प्रत्यय जोड़कर पद रचना कीजिए-)
13. निम्नलिखितवाक्येषु कोष्ठ के प्रदत्तशब्देन सह ठक् /ठञ् (इक) प्रत्ययं प्रयोज्य अस्य उचितरूपेण (पदेन) रिक्तस्थानं पूरयत
(निम्नलिखित वाक्यों में कोष्ठक में दिए गए शब्द के साथ ठक्/ठञ् (इक) प्रत्यय जोड़कर इसका उचितरूप रिक्तस्थान में भरिए-)
यथा-अहम् भारतस्य नागरिकः (नगर + ठक्) अस्मि।
उत्तराणि:
(i) अत्र (धर्म + ठक्) ………. उत्सवः भवति।
(ii) अयम् (वेद + ठक्) ………… विद्वान् अस्ति।
(iii) स (पुराण + ठक्) ………… मङ्गलाचरणं करोति ।
(iv) दिल्लायाम् अनेकानि (इतिहास + ठक्) ………… स्थानानि सन्ति।
(v) भारतस्य (भूगोल + ठक्) ………… स्थितिः विचित्रा अस्ति।
(vi) सम्प्रति देशस्य (अर्थ + ठक्) ………… स्थितिः सन्तोषप्रदा।
(vii) (सप्ताह + ठक्) …………. अवकाश: रविवारे भवति।
(viii) अयम् (कल्पना + ठक्) ………… उपन्यासः केन लिखितः ?
(ix) मम पुस्तकालये अनेकाः (साहित्य + ठक्) ………… पत्रिका: आयान्ति।
(x) (उद्योग + ठक्) ………… विकासेन पर्यावरणं प्रदूष्यते।
(xi) (वर्ष + ठञ्) ………… परीक्षायाम् मया ‘पर्यावरणम्’ विषयम् अवलम्ब्य निबन्धः लिखितः।
(xii) (दिन + ठञ् ) ……….. कार्यम् मया सम्पन्नम्।
उत्तरम्:
धार्मिकः
वैदिकः
पौराणिकं
ऐतिहासिकानि
भौगोलिकी
आर्थिकी
साप्ताहिकः
काल्पनिकः
साहित्यिक्यः
औद्योगिकेन
वार्षिक्यां
दैनिक
14. अधोलिखितशब्दैः सह ‘त्व’-प्रत्ययं योजयत
(अधोलिखित शब्दों के साथ ‘त्व’-प्रत्यय जोडिए-)
15. ‘त्व’ – ‘तल्’ – प्रत्ययान्तानि पदानि मञ्जूषायाः चित्वा यथोचितं रिक्तस्थानानि पूरयत।
(‘त्व’ – ‘तल्’ – प्रत्यय वाले पद मञ्जूषा से चुनकर यथोचित रिक्तस्थान पूर्ति कीजिए)
यथा-पवनस्य शीतलताम् अनुभूय मनः प्रसीदति।
(i) विद्यायाः …………. को न जानाति?
(ii) कृष्णसुदाम्नोः …………. जगति आदर्श स्थापयति।
(iii) दुष्प्रयुक्ता वाणी मनुष्यस्य …………. प्रकटयति।
(iv) मनसः ………… वशीकरणीयम्।
(v) लवस्य …………. अद्भुता आसीत्।
चञ्चलत्वम्, मित्रता, वीरता, महत्त्वम्, पशुत्वम् ।
उत्तरम्
महत्त्वम्
मित्रता
पशुत्वम्
चञ्चलत्वम्
वीरता
16. अधोलिखिताः सूक्ती: पठित्वा तल्-त्व-प्रत्ययान्तानि पदानि रेखाङ्कितानि कुरुत
(अधोलिखित सूक्तियों को पढ़कर तल्/त्व प्रत्यय वाले पदों को रेखांकित कीजिए-)
यथा-(i) ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता।
(ii) न कालस्य अस्ति बन्धुत्वम्।
(iii) अविवेकिता तु अनर्थाय एव भवति।
(iv) अहो ! बालकस्य ईदृशी निपुणता।
(v) न अस्ति अमरत्वम् हि कस्यचित् प्राणिनः भुवि।
(vi) क्षणे क्षणे यत् नवताम् उपैति तदेवरूपं रमणीयतायाः।
(vii) विद्वत्त्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन।
उत्तरम्:
(i) सुजनता – सुजन + तल्-प्रत्ययः
(ii) बन्धुत्वम् – बन्धु + त्व-प्रत्ययः
(iii) अविवेकिता- अविवेकिन् + तल्-प्रत्ययः
(iv) निपुणता – निपुण + तल्-प्रत्ययः
(v) अमरत्वम् – अमर + त्व-प्रत्ययः
(vi) नवताम् – नव + तल्-प्रत्ययः
(vii) रमणीयतायाः- रमणीय + तल्-प्रत्ययः
(viii) विद्वत्त्वम्- विद्वस् + त्व-प्रत्ययः
(xi) नृपत्वम् – नृप + त्व-प्रत्ययः
17. उदाहरणम् अनुसृत्य स्त्रीलिङ्गशब्दान् रचयत
(उदाहरण के अनुसार स्त्रीलिङ्ग शब्दों की रचना कीजिए-)
शब्दा: | प्रत्यय: | निर्मितस्त्रीलि ड्ग्गश्दाः |
अज + | टाप् | अजा |
(i) एडक + | टाप् | एडका |
(ii) अश्व + | टाप् | अश्वा |
(iii) कोकिल + | टाप् | कोकिला |
(iv) चटक + | टाप् | चटका |
(v) छात्र + | टाप् | छात्रा |
(vi) प्रिय + | टाप् | प्रिया |
(vii) बालक + | टाप् | बालिका |
(viii) स्षेवक + | टाप् | सेविका |
(ix) नायक + | टाप् | नायिका |
(x) मूषक + | टाप् | मूषिका |
18. अधोलिखितेषु वाक्येषु निर्दिष्टशब्दैः सह टाप्-प्रत्ययं योजयित्वा वाक्यानि पूरयत
(अधोलिखित वाक्यों निर्दिष्ट शब्दों के साथ टाप्-प्रत्यय जोड़कर वाक्य पूरा कीजिए-)
यथा-प्रभा पठने प्रवीणा (प्रवीण + टाप्) अस्ति।
प्रश्न:-(i) अस्याः ………….. (अनुज + टाप्) दीपिका अस्ति।
(ii) दीपिका क्रीडायां ………….. (कुशल + टाप्) अस्ति।
(iii) प्रभादीपिकयोः माता ………….. (चिकित्सक + टाप्) अस्ति।
(iv) सा समाजस्य ………….. (सेवक + टाप्) अपि अस्ति।
(v) सा तु स्वभावेन अतीव ………….. (सरल + टाप्) अस्ति।
उत्तरम्:
अनुजा
कुशला
चिकित्सिका
सेविका
सरला
19. अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थूलाक्षरपदानां मूलशब्दं प्रत्ययं च पृथक्कृत्य लिखत
(अधोलिखित वाक्यों में स्थूलाक्षरपदों के मूलशब्द तथा प्रत्यय अलग-अलग करके लिखिए-)
यथा-आगता पर्वसु प्रिया दीपावलिः।
(i) विपणीनां शोभा अनुपमा भविष्यति।
(ii) रात्रिः दीपानां प्रकाशेन उज्वला भविष्यति।
(iii) पूजनेन प्रसन्ना लक्ष्मी: कृपां करिष्यति।
(iv) ‘भवतु शुभदा दीपावलिः’ इति परस्परम् कामयन्ते जनाः ।
(v) धन्या इयं दीपावलिः प्रकाशपुञ्जा।
उत्तरम्:
मूलशब्दः + प्रत्ययः
प्रिय + टाप्
अनुपम + टाप
उज्ज्वल + टाप
प्रसन्न + टाप
शुभद + टाप्
धन्य + टाप
20. अधोलिखितेषु वाक्येषु ‘टाप्’ प्रत्ययान्तानि पदानि चित्वा समक्षं मञ्जूषायाम् लिखत
वाक्यानि
(i) अमृतजला इयं गङ्गा पवित्रा। .
(ii) कथं नु एतस्याः शोभा विचित्रा!
(iii) सवेगं वहन्ती खलु शोभमाना। ।
(iv) वन्द्या सदा सा भुवि राजमाना।
(v) भक्तैः सदा तु चिरं सेवमाना।
(vi) भागीरथी भवतु मे पूर्णकामा।
मञ्जूषा (उत्तराणि)
(i) अमृतजला
(ii) पवित्रा
(iii) विचित्रा
(iv) शोभमाना
(v) वन्द्या
(vi) राजमाना
(vii) सेवमाना
(viii) पूर्णकामा
21. उदाहरणम् अनुसृत्य ईकारान्तस्त्रीलिङ्गशब्दान् रचयत
(उदाहरण के अनुसार ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्दों की रचना कीजिए-)
शब्दाः + प्रत्यया – निर्मितस्त्रीलिङ्गशब्दाः
यथा- देव + डीप् – देव
उत्तरम्-
(i) तरुण + डीप् – तरुणी
(ii) कुमार + डीप् – कुमारी
(iii) त्रिलोक + डीप – त्रिलोकी
(iv) किशोर + डीप – किशोरी
(v) कर्तृ + ङीप् – की
(vi) जनयितृ + डीप् – जनयित्री
(vii) मनोहारिन् + डीप् – मनोहारिणी
(viii) मालिन् + डीप् – मालिनी
(ix) तपस्विन् + ङीप् – तपस्विनी
(x) भवत् + डीप – भवती
(xi) श्रीमत् + डीप – श्रीमती
(xii) गच्छत् (गम् + शतृ) + डीप् – गच्छन्ती
(xiii) पचत् (पच् + शतृ) + डीप – पचन्ती
(xiv) नृत्यत् (नृत् + शतृ) + डीप् – नृत्यन्ती
(xv) पश्यत् (दृश् +शतृ) + डीप – पश्यन्ती
(xvi) वदत् (वद् + शतृ) + डीप् – वदन्ती
(vii) पृच्छत् (प्रच्छ् + शतृ) + ङीप् – पृच्छन्ती/ पृच्छती
(xviii) स्पृशत् (स्पृश् + शतृ) + डीप् – स्पृशन्ती/स्पृशती
22. अधोलिखितेषु वाक्येषु निर्दिष्टशब्दैः सह ‘डीप’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यानि पुरयत
((निम्नलिखित वाक्यों में निर्दिष्ट शब्दों के साथ ङीप् प्रत्यय जोड़कर वाक्य पूरा कीजिए-)
यथा-श्रीमती (श्रीमत् + डीप) रमा नाट्योत्सवे दीप प्रज्वालयति।
उत्तरम्:
(i) (कुमार + ङीप्) ………… वन्दना पुष्पगुच्छै: तस्याः स्वागतं करोति।
(ii) एका (किशोर + डीप) ……….. भरतनाट्यम् प्रस्तौति।
(iii) तया सह (नृत्यत् + डीप्) ………. देविका अस्ति।
(iv) मञ्चे (गायत् + डीप्) ………… सुधा अस्ति।
(v) (मनोहारिन् + डीप्) …………. एषा नाट्यप्रस्तुतिः।
उत्तरम्
कुमारी
किशोरी
नृत्यन्ती
गायन्ती
मनोहारिणी
23. अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थलाक्षरपदेषु मूलशब्दं स्त्रीप्रत्ययं च पृथक्कृत्य लिखत
(अधोलिखित वाक्यों में स्थलाक्षरपदों में मूलशब्द और स्त्रीप्रत्यय को अलग-अलग करके लिखिए-)
यथा-हसन्ती विभा स्वसखीम् अमिलत्। हसत् + डीप
(i) तदैव एका तरुणी विभाम् अपृच्छत्।
(ii) किम् इयम् तव सखी कुमारी भावना अस्ति?
(iii) अहो ! एतादृशीं सखीं प्राप्य त्वं धन्या असि।
(iv) तया बसयानात् पतन्ती बाला रक्षिता।
उत्तरम्:
तरुण + डीप
कुमार + डीप
एतादृश + डीप
पतत् + डीप्
24. अधोलिखितेषु वाक्येषु स्त्रीप्रत्ययान्तं (टाप् -ङीप्च) पदं चित्वा मञ्जूषायां पृथक् पृथक् लिखत
(अधोलिखित वाक्यों में स्त्रीप्रत्यय (टाप/ङीप् )वाले पद को चुनकर मञ्जूषा में अलग-अलग करके लिखिए-)
(i) मधुरा वाणी प्रीणयति मनः।
(ii) सताम् बुद्धिः हितकारिणी भवति।
(iii) सत्सङ्गतिः सर्वत्र दुर्लभा।
(iv) उपकारकी प्रकृतिः धन्या।
(v) कुलाङ्गना सदा सम्मानस्य अधिकारिणी।
(vi) नैतिकी शिक्षा आवश्यकी।
मञ्जूषा
( उत्तराणि)
टाप
(i) मधुरा
(ii) दुर्लभा
(iii) धन्या
(iv) कुलाङ्गना
(v) शिक्षा
ङीप्
(i) हितकारिणी
(ii) वाणी
(iii) उपकारिणी
(iv) अधिकारिणी
(v) नैतिकी
(vi) आवश्यकी
25. स्थूलपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ विभज्य कोष्ठकेषु लिखत
(स्थूलपदों के प्रकृति-प्रत्यय अलग-अलग करके कोष्ठक में लिखिए-)
उत्तरसहितम्
(i) ग्रीष्मे सूर्यस्य प्रचण्डत्वम् (प्रचण्ड + त्व) असह्यं वर्तते।
(ii) परिश्रमस्य महत्त्वं (महत् + त्व) सर्वे जानन्ति ।
(iii) गुरोः गुरुत्वम् (गुरु + त्व) वर्णयितुं न शक्यते।
(iv) अस्य पिण्डस्य घनत्वं (घन + त्व) मापय।
(v) आचार्यशङ्करस्य विद्वत्त्वं (विद्वस् + त्व) आश्चर्यजनकम् आसीत्।
(vi) वानरस्य चपलत्वं (चपल + त्व) बालकेभ्यः रोचते।
(vii) काव्यस्य मधुरत्वम् (मधुर + त्व) सहृदयाः जानन्ति ।
(viii) सागरस्य गहनत्वं (गहन + त्व) मापनीयं न अस्ति।
मिश्रितः अभ्यासः
I. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) …………. (कृ + शानच्) वृक्षाः केषां न
(ii) …………. (वन्द् + अनीयर्)
(iii) ……….. (छाया + मतुप्) वृक्षाः मार्गे श्रान्तपथिकेभ्यः आश्रयं यच्छन्ति।
(iv) ………… (कोकिल + टाप्) च आम्रवृक्षे मधुरस्वरेण गायन्ति । यथा
(v) ………. (फल + इन्) वृक्षाः नमन्ति तथैव गुणिनः जनाः अपि नमेयुः ।
उत्तराणि:
(i) कुर्वाणाः,
(ii) वन्दनीयाः,
(iii) छायावन्तः,
(iv) कोकिला:,
(v) फलिनः
II. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) आदर्श: नगर + ठक् ) ………… सदा देशस्य विषये चिन्तयति।
(ii) मम देशः (शक्ति + मतुप्) ………….. भवेत्।
(iii) जगति (विश्वबन्धु + तल्)…………… भवेत् ।
(iv) दीनजनान् (सेव् + शानच्) ………. जनाः पुण्यं लभन्ते।
(v) अस्माभिः परस्परं स्नेहेन (वस् + तव्यम्) ………….. ।
उत्तराणि:
(i) नागरिकः,
(ii) शक्तिमान्,
(ii) विश्वबन्धुता,
(iv) सेवमानाः,
(v) वस्तव्यम्।
III. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) मया केवलं (पठ + अनीयर्) ……………. पुस्तकम् एव
(ii) (पठ् + तव्यत्) ………………. । वस्तुतः अनेन मार्गेण एव
(iii) अहं (गुरु + त्व) ……………. प्राप्स्यामि। गुणिनः जना एव धन्याः ।
(iv) अतः अहम् अपि (गुण + इन्) ……………. भविष्यामि।
(v) गुणी एव मूलतः (धन + मतुप्) ……………. जनः मन्यते।
उत्तराणि:
(i) पठनीयम्
(ii) पठितव्यम्
(iii) गुरुत्वम्
(iv) गुणी
(v) धनवान्।
IV. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) कंसस्य (क्रूर + तल्) ………………. निन्दनीया अस्ति।
(ii) तस्य अत्याचारैः प्रजा (दुःख + इन्) ………………. आसीत्।
(iii) कंसः (बुद्धि + मतुप्) ………………. सन् अपि दर्पात् अनश्यत्।
(iv) अतः अस्माभिः दर्पः (त्यज् + तव्यत्) ……………
(v) प्रभुभक्त्यै (प्र + यत् + शानच्) ………………. जनाः सुखिनः भवन्ति।
उत्तराणि:
(i) क्रूरता
(ii) दुःखिनी
(iii) बुद्धिमान्
(iv) त्यक्तव्यः
(v) प्रयतमानाः
IV. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) पुस्तकानाम् अध्ययनं करणीयम्।
(ii) मन्त्रिणः सदसि भाषन्ते।
(iii) वर्तमाना शिक्षापद्धतिः सुकरा।
(iv) त्वं स्व-अज्ञानतां मा दर्शय।
(v) नर्तकी शोभनं नृत्यति।
उत्तराणि:
(i) Vकृ + अनीयर्
(ii) मन्त्र + इन्
(iii) Vवृत् + शानच्
(iv) अज्ञान + तल्
(v) नर्तक + डीप्।
V. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययं विभज्य/योजयित्वा पुनः लिखत।
(अधोलिखित वाक्यों में कोष्ठक में दिए गए पदों के प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन/संयोजन करके लिखिए-)
(i) सः नाटकं (वीक्षमाणः) प्रसन्नः भवति।
(ii) केरलप्रदेशे अनेकानि (इतिहास + ठक्) स्थानानि सन्ति।
(iii) नृपः (वृद्धोपसेवी) आसीत्।
(iv) वाक्पटुः (मन्त्र + इन्) परैः न परिभूयते।
(iv) (रमणीया) हि एषा प्रकृतिः ।
उत्तराणि
(i) सः नाटकं (वि + ईक्ष + शानच् ) प्रसन्नः भवति।
(ii) केरलप्रदेशे अनेकानि (ऐतिहासिकानि) स्थानानि सन्ति।
(iii) नृपः (वृद्धोपसेव + इन्) आसीत्।
(iv) वाक्पटुः (मन्त्री) परैः न परिभूयते।
(v) ( रमणीय + टाप्) हि एषा प्रकृतिः ।
VI. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययं विभज्य/योजयित्वा पुनः लिखत।
(अधोलिखित वाक्यों में कोष्ठक में दिए गए पदों के प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन/संयोजन करके लिखिए-)
(i) सेतुनिर्माणम् (सामाजिकं) कार्यम् अस्ति।
(ii) (क्रोध + इन्) विवेकः नश्यति।
(iii) विद्वांसः एव (चक्षुष्मन्तः) प्रकीर्तिताः।
(iv) कृषकैः पशवः स्नेहेन (रक्ष् + अनीयर्)।
(v) अहो! (दृश् + तव्यत् + टाप्) नगरी एषा।
उत्तराणि
(i) सेतुनिर्माणं (समाज + ठक् ) कार्यम् अस्ति।
(ii) (क्रोधिनः) विवेकः नश्यति।
(iii) विद्वांसः एव (चक्षुष् + मतुप्) प्रकीर्तिताः।
(iv) कृषकैः पशवः स्नेहेन (रक्षणीयाः)।
(v) अहो (द्रष्टव्या) नगरी एषा।
VII. कोष्ठके प्रदत्तौ प्रकृतिप्रत्ययौ योजयित्वा लिखत
(कोष्ठक में दिए गए प्रकृति-प्रत्यय का संयोजन करके लिखिए-)
(i) मम …………………….. (कीदृश + डीप्) इयं क्लेशपरम्परा।
(ii) मारयितुम् ……………….. (इष् + शतृ) स कलशं गृहाभ्यन्तरे क्षिप्तवान्।
(iii) छलेन अधिगृह्य …………………. (क्रूर + तल्) भक्षयसि।
(iv) अधुना …………………. (रमणीय + टाप्) हि सृष्टिरेषा।
(v) अनेकानि अन्यानि …………… (दृश् + अनीयर्) स्थलानि अपि सन्ति।
उत्तरम्
(i) मम कीदृशी इयं क्लेशपरम्परा।।
(ii) मारयितुम् इच्छन् स कलशं गृहाभ्यन्तरे क्षिप्तवान्।
(iii) छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयसि।
(iv) अधुना रमणीया हि सृष्टिरेषा।
(v) अनेकानि अन्यानि दर्शनीयानि स्थलानि अपि सन्ति।
VIII. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययं विभज्य/योजयित्वा पुनः लिखत।
(अधोलिखित वाक्यों में कोष्ठक में दिए गए पदों के प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन/संयोजन करके लिखिए-)
अथ (i) …………………. (व्रज् + शतृ) तौ बालकान् प्रेक्ष्य अवदताम्। मीनान् छलेन अधिगृह्य (ii) …………… (क्रूर + तल्) भक्षयसि। अस्मिन् संसारे त्वया सदृशः (iii) …………………… (पराक्रम + इन्) नास्ति । अत्र अनेकानि (iv) ……………. …… (दृश् + अनीयर्) स्थलानि अपि सन्ति। का सुखदा साधुजन (v)……… (मैत्र + डीप्)।
उत्तरम्:
अथ (i) व्रजन्तौ (व्रज् + शतृ) तौ बालकान् प्रेक्ष्य अवदताम्। मीनान् छलेन अधिगृह्य (ii) क्रूरतया (क्रूर + तल्) भक्षयसि। अस्मिन् संसारे त्वया सदृशः (iii) पराक्रमी (पराक्रम + इन्) नास्ति । अत्र अनेकानि (iv) दर्शनीयानि (दृश् + अनीयर्) स्थलानि अपि सन्ति। का सुखदा साधुजन (v) मैत्री (मैत्र + डीप्)।
IX. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं लिखत
(कोष्ठक में दिए गए प्रकृति-प्रत्यय का संयोजन करके अनुच्छेद लिखिए-)
जीवने शिक्षायाः सर्वाधिकं (i) ………… (महत् + त्व) वर्तते। बालः भवेत् (ii) …………. (बालक + टाप्) वा भवेत्, ज्ञान प्राप्तुं सर्वेः एव प्रयत्नः (iii)………….. (कृ+ तव्यत्) । शिक्षिताः (iv)………….. (प्राण + इन्) परोपकारं (v) ……….(कृ + शानच्) देशस्य सर्वदा हितम् एव चिन्तयन्ति।
उत्तरम्:
(i) महत्त्वम्
(ii) बालिका
(iii) कर्तव्यः
(iv) प्राणिनः
(v) कुर्वाणाः।
x. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं लिखत
(कोष्ठक में दिए गए प्रकृति-प्रत्यय का संयोजन करके अनुच्छेद लिखिए-)
तस्य क्षितौ (i) ………… (प्रलुट् + शतृ) वह्नि-ज्वालाः समुत्थिताः। एतदर्थम् अस्माभिः प्रयत्नः (ii) ………….. (कृ + अनीयर्) तत्र (iii) ………….. (अर्थ + इन्) । समूहः सन्तुष्टः अभवत्। शनैः शनैः प्रभूतं धनं (iv)………………… (अर्ज + क्तवतु) । आभया (v)………..(भास् + शानच्) निजगृहम् अपश्यताम् ।
उत्तरम्:
(i) प्रलुठतः
(ii) करणीयः
(iii) अर्थिनाम्
(iv) अर्जितवान्
(v) भासमानम्।
स्वयं कुरुत (स्वयं कीजिए)
I. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत
(i) अस्माभिः गुरवः सदा पूजनीयाः।
(ii) गच्छन् बालकः गुरुं नमति।
(iii) सः पौराणिकं मङ्गलाचरणं करोति।
(iv) सर्वे भवन्तु सुखिनः।
(v) युष्मासु ज्येष्ठा का अस्ति।
II. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ पृथक्-पृथक् कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लेखनीयौ
(i) बालिकाभिः राष्ट्रगीतं गातव्यम्।
(ii) चित्रं ईक्षमाणा बालिका प्रसन्ना इव भवति।
(iii) मनसः चञ्चलता वानरस्य इव भवति ।
(iv) दुष्प्रयुक्ता वाणी नरस्य पशत्वम् प्रकटयति।
(v) जीवनदात्री प्रकृतिः रक्षणीया सदा।
III. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ पृथक् -पृथक् कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लेखनीयौ
(i) त्वया कुमार्गः त्यजनीयः ।
(ii) पठन्ती बालिका लिखति।
(iii) श्रद्धावान् छात्रः लभते ज्ञानम्।
(iv) काव्यस्य मधुरत्वम् सहृदयाः जानन्ति।
(v) सा समाजस्य सेविका अस्ति।
IV. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ पृथक्-पृथक् कृत्वा वाक्यानि पुनः लिखत
(i) पत्रवाहकेन पत्राणि नेतव्यानि।
(ii) प्रकाशमानैः नक्षत्रैः आकाशः शोभते ।
(iii) विज्ञानिनः सदा सम्मान्याः भवन्ति।
(iv) प्रकृतेः रमणीयता मनोरमा अस्ति।
(v) तस्य भार्या विदुषी अस्ति।
v. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति – प्रत्ययौ पृथक्-पृथक् कृत्वा वाक्यानि पुनः लिखत
(i) बालकैः जन्तुशाला द्रष्टव्या।
(ii) हसन् सः पुरस्कार प्राप्नोति।
(iii) धनवान् नरः दानेन शोभते।
(iv) अहम् भारतस्य नागरिकः अस्मि।
(v) देवि, यशस्विनी भव।
परीक्षा में प्रष्टव्य प्रत्यय-विषयक प्रश्न
I. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) …………… विवेक: नश्यति। (क्रोध + इन्)
(ii) …………. मालां करोति। (मालिन् + डीप्)
(iii) एषा …………… घटना अस्ति । (इतिहास + ठक्)
(iv) छात्रैः उपदेशाः ……………। (पाल् + अनीयर)
(v) कर्मशीलः …………… कथ्यते। (योग + इनि)
उत्तरम्:
(i) क्रोधिनः विवेकः नश्यति।
(ii) मालिनी मालां करोति।
(iii) एषा ऐतिहासिकी घटना अस्ति।
(iv) छात्रैः उपदेशाः पालनीयाः ।
(v) कर्मशील: योगी कथ्यते।
II. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) …………… बालक: पठति। (लिख + शत)
(ii) एतत् ………… वृत्तम् अस्ति। (इतिहास + ठक्)
(iii) …………. मालाः करोति। (मालिन् + ङीप्)
(vi) …………… राष्ट्र रक्षन्ति। (सेना + ठक्)
(v) क्षत्रियस्य भूषणम् ……………। (वीर + तल्)
उत्तरम्:
(i) लिखन् बालकः पठति।
(ii) एतत् ऐतिहासिकं वृत्तम् अस्ति।
(iii) मालिनी मालाः करोति ।
(iv) सैनिकाः राष्ट्रं रक्षन्ति।
(v) क्षत्रियस्य भूषणम् वीरता।
III. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) अयं …………….. विद्वान् अस्ति । (वेद + ठक्)
(ii) …………….. बालिका लिखति। (पठ् + शतृ)
(iii) राज्ञा प्रजाः ……….. | (पाल् + अनीयर)
(iv) …………… जनः सर्वोत्तमः भवति। (विद्या + मतुप्)
(v) व्यवहारे …………….. भवेत। (सज्जन + तल्)
उत्तरम्
(i) अयं वैदिक: विद्वान् अस्ति।
(ii) पठन्ती बालिका लिखति।
(iii) राज्ञा प्रजाः पालनीयाः।
(iv) विद्यावान् जनः सर्वोत्तमः भवति।
(v) व्यवहारे सज्जनता भवेत्।
IV. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) कोलाहलः न …………….। (√कृ + तव्यत्)
(ii) त्वया धर्मग्रन्थाः …………। (√श्रु + अनीयर)
(iii) ………… बालकः लिखति। (√पठ + शतृ)
(iv) ……….. वृक्षाः नमन्ति । (फल + इनि)
(v) मनुष्यः ………… प्राणी अस्ति। (समाज + ठक्)
उत्तरम्
(i) कोलाहल: न कर्तव्यः ।
(ii) त्वया धर्मग्रन्थाः श्रवणीयाः।
(iii) पठन् बालकः लिखति।
(iv) फलिनः वृक्षाः नमन्ति।
(v) मनुष्य: सामाजिकः प्राणी अस्ति।
V. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) त्वया असत्यं न ………….। (√वद् + तव्यत्)
(ii) तेन अत्र प्रवेशः …………। (√कृ + अनीयर)
(iii) ………… जनः यशः प्राप्नोति। (गुण + मतुप्)
(iv) कर्मशीलः ……….. योगी कथ्यते। (योग + इनि)
(v) स ………… मंगलाचरणं करोति। (पुराण + ठक्)
उत्तरम्
(i) त्वया असत्यं न वदितव्यम्।
(ii) तेन अत्र प्रवेश: करणीयः।
(iii) गुणवान् जनः यशः प्राप्नोति।
(iv) कर्मशीलः योगी कथ्यते।
(v) स ,पौराणिकं मंगलाचरणं करोति ।
VI. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) प्रातः उत्थाय छात्रैः ईशः ……………. | (√स्मृ + अनीयर्)
(ii) ………… बालिका लिखति। (√पठ् + शतृ)
(iii) मेवाड़राज्ये ………….. नृपः प्रतापः आसीत्। (शक्ति + मतुप्)
(iv) अयम् ……………. विद्वान् अस्ति। (वेद + ठक्)
(v) ………….. तु सदैव निन्दनीया एव भवति। (क्रूर + तल्)
उत्तरम्
(i) प्रात: उत्थाय छात्रैः ईशः स्मरणीयः।
(ii) पठन्ती बालिका लिखति।
(iii) मेवाड़राज्ये शक्तिमान् नृपः प्रतापः आसीत्।
(iv) अयम् वैदिकः विद्वान् अस्ति।
(v) क्रूरता तु सदैव निन्दनीया एव भवति।
अभ्यासार्थ प्रत्यय-विषयक बहुविकल्पीय प्रश्न
1. अधोलिखित-प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धं विकल्पं विचित्य लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प चुनकर लिखिए-)
(क) विभक्ता’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त
(iv) क्ता।
उत्तरम्:
(iii) क्त
(ख) भूत्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल
(iii) क्त्वा
(iv) क्त।
उत्तरम्:
(iii) क्त्वा
(ग) द्रष्टुम्’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल
(iii) तुमुन्
(iv) क्त।
उत्तरम्:
(iii) तुमुन्
(घ) पूरयित्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त्वा
(iv) क्त।
उत्तरम्:
(iii) क्त्वा
(ङ) उक्तवान्’ इति पदे क: प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त्वा
(iv) क्तवतु।
उत्तरम्:
(iv) क्तवतु।
(च) क्षिप्त्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त्वा
(iv) क्तवतु।
उत्तरम्:
(iii) क्त्वा ।