Author name: Prasanna

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Exercise 1.2

प्रश्न 1.
निम्नलिखित संख्याओं को अभाज्य गुणनखंडों के गुणनफल के रूप में व्यक्त कीजिए
(i) 140 (ii) 156 (i) 3825 . (iv) 5005 (1) 7429
हल :
(i)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 1 1

140 = 2 x 2 x 5 x 7
= 22 x 5 x 7

(ii)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 1 2
156 = 2 x 2 x 3 x 13
= 22 x 3 x 13

(iii)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 1 3
3825 = 3 x 3 x 5 x 5 x 17
= 32 x 52 x 17

(iv)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 1 4
5005 = 5 x 7 x 11 x 13

(v)
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 1 5
7429 = 17 x 19 x 23

प्रश्न 2.
पूर्णांकों के निम्नलिखित युग्मों के HCF और LCM ज्ञात कीजिए तथा इसकी जाँच कीजिए कि दो संख्याओं का गुणनफल = HCF X LCM है। .
(i) 26 और 91
(ii) 510 और 92
(iii) 336 और 54
हल :
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 2
26 = 2 × 13
91 = 7× 13
∴ 26 और 91 का HCF = 13
तथा 26 और 91 का LCM = 2 × 13 × 7 = 182
जाँच-दो संख्याओं का गुणनफल = 26 × 91 = 2366
HCF(26, 91) × LCM(26, 91) = 13 × 182 = 2366
अतः दो संख्याओं का गुणनफल = HCF × LCM

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 3

∴ 510 = 2 × 3 × 5 × 17
92 = 2 × 2 × 23 = 22 × 23
∴ HCF(510, 92) = 2
तथा LCM(510, 92) = 22 × 3 × 5 × 17 × 23
= 4 × 3 × 5 × 17 × 23
= 23460
जाँच-दो संख्याओं का गुणनफल = 510 × 92 = 46920
दी गई संख्याओं के HCF और LCM का गुणनफल = 2 × 23460 = 46920
अतः दो संख्याओं का गुणनफल = HCF × LCM

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HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 4

336 = 2 × 2 × 2 × 2 × 3 × 7 = 24 × 3×7
54 = 2 × 3×3 × 3 = 2 × 33
∴ HCF(336, 54) = 2 × 3 = 6
तथा LCM(336, 54) = 24 × 33 × 7
_ = 16 × 27×7
= 3024
जाँच-दो संख्याओं का गुणनफल = 336 × 54 = 18144
दी गई संख्याओं के HCF और LCM का गुणनफल = 6 × 3024 = 18144
अतः दो संख्याओं का गुणनफल = HCF X LCM

प्रश्न 3.
अभाज्य गुणनखंडन विधि द्वारा निम्नलिखित पूर्णांकों के HCF और LCM ज्ञात कीजिए-
(i) 12, 15 और 21
(ii) 17, 23 और 29
(iii) 8,9 और 25
हल :
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 5
12 = 2 × 2 × 3 = 22 × 3
15 = 3 × 5
21 = 3 × 7
∴ HCF(12, 15, 21) = अभाज्य गुणनखंडों की उभयनिष्ठ सबसे छोटी घातों का गुणनफल = 31 = 3
LCM(12, 15, 21) = अभाज्य गुणनखंडों की सबसे बड़ी घातों का गुणनफल = 22 × 3 × 5 × 7
=4 × 3 × 5 × 7 = 420

(ii). 17 = 1 × 17
23 = 1 × 23
29 = 1 × 29
∴ HCF(17, 23, 29) = अभाज्य गुणनखंडों की उभयनिष्ठ सबसे छोटी घातों का गुणनफल = 1
LCM(17,23,29) = अभाज्य गुणनखंडों की सबसे बड़ी घातों का गुणनफल = 1 × 17 × 23 × 29 = 11339

HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 6

8 = 2 × 2 × 2 = 23
9 = 3 × 3 = 32
25 = 5 × 5 = 52
∴ HCF(8, 9,25) = अभाज्य गुणनखंडों की उभयनिष्ठ सबसे छोटी घातों का गुणनफल = 1
LCM(8, 9, 25) = अभाज्य गुणनखंडों की सबसे बड़ी घातों का गुणनफल = 23 × 32 × 52
= 8 × 9 × 25 = 1800

प्रश्न 4.
HCF(306, 657) = 9 दिया है। LCM (306, 657) ज्ञात कीजिए।
हल :
यहाँ पर, दी गई संख्याएँ = 306 व 657
HCF(306, 657) = 9
∴ LCM(306, 657) = \(\frac{306 \times 657}{\operatorname{HCF}(306,657)}\)
= \(\frac{306 \times 657}{9}\) = 34 × 657 = 22338

प्रश्न 5.
जाँच कीजिए कि क्या किसी प्राकृत संख्या n के लिए, संख्या 6 अंक 0 पर समाप्त हो सकती है।
हल :
हम जानते हैं कि कोई भी धनात्मक प्राकृत संख्या जो शून्य पर समाप्त होती है वह 5 से विभाज्य होती है, इसलिए उसके अभाज्य गुणनखंडों में अभाज्य संख्या 5 होनी चाहिए।
अब 6n = (2 × 3)n = 2n × 3n
यहाँ पर 6n के अभाज्य गुणनखंडों में केवल 2 और 3 हैं।
अतः 6n किसी भी प्राकृत संख्या n के लिए कभी भी शून्य पर समाप्त नहीं हो सकती।

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प्रश्न 6.
व्याख्या कीजिए कि 7 × 11 × 13 + 13 और 7 × 6 × 5 × 4 × 3 × 2 × 1 + 5 भाज्य संख्याएँ क्यों हैं।
हल :
यहाँ पर,
पहली संख्या = 7 × 11 × 13 + 13
= [7 × 11 × 1 + 1] × 13 जो कि 13 से भाज्य है। इसी प्रकार,
दूसरी संख्या = 7 × 6 × 5 ×.4 × 3 × 2 × 1 + 5
= [7 × 6 × 1 × 4 × 3 × 2 × 1 + 1] × 5 जो कि 5 से भाज्य है।
अतः संख्याएँ 7 × 11 × 13 + 13 और 7 × 6 × 5 × 4 × 3 × 2 × 1 + 5 भाज्य संख्याएँ हैं।

प्रश्न 7.
किसी खेल के मैदान के चारों ओर एक वृत्ताकार पथ है। इस मैदान का एक चक्कर लंगाने में सोनिया को 18 मिनट लगते हैं, जबकि इसी मैदान का एक चक्कर लगाने में रवि को 12 मिनट लगते हैं। मान लीजिए वे दोनों एक ही स्थान और एक ही समय पर चलना प्रारंभ करके एक ही दिशा में चलते हैं। कितने समय बाद वे पुनः प्रारंभिक स्थान पर मिलेंगे?
हल :
यहाँ पर हम 18 मिनट और 12 मिनट का LCM ज्ञात करेंगे, जो कि सोनिया और रवि का पुनः मिलने का समय होगा।
HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 वास्तविक संख्याएँ Ex 1.2 7
18 = 2 × 3 × 3 = 2 × 32
12 = 2 × 2 × 3 = 22 × 3
∴ LCM(18, 12) = 22 × 32 = 4 × 9 = 36
अतः सोनिया और रवि एक ही स्थान से चलने के बाद दोबारा 36 मिनट बाद प्रारंभिक स्थान पर मिलेंगे।

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HBSE 12th Class Hindi कैसे लिखें कहानी

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions कैसे लिखें कहानी Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi कैसे लिखें कहानी

प्रश्न 1.
कहानी के स्वरूप एवं परिभाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कहानी हमारे जीवन से अत्यधिक जुड़ी हुई है, बल्कि यह हमारे जीवन का अविभाज्य अंग है। जीवन में प्रत्येक व्यक्ति कहानी सुनता भी है और सुनाता भी है। हो सकता है उसके द्वारा सुनी या सुनाई गई कहानी का स्वरूप कुछ अलग हो। जब कोई व्यक्ति किसी बात को घुमा फिराकर कहता है तो सुनने वाला व्यक्ति कहता है कि मुझे कहानी मत सुनाओ। मुझे असली बात बताओ। जहाँ इस बात का उल्लेख करना आवश्यक होगा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुभवों को बाँटना चाहता है और दूसरों के अनुभवों को सुनना चाहता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि हम सब अपनी बातें अपने साथियों को सुनाना चाहते हैं और उनकी बातों को सुनना चाहते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में कहानी लिखने का भाव विद्यमान है। कुछ लोग इस भाव का विकास कर लेते हैं और कुछ नहीं कर पाते। अतः कहानी मानव मन की जिज्ञासा, उत्सुकता और कौतूहल को शांत करने में सहायक होती है।

आज भी कहानी साहित्य की लोकप्रिय विधा कही जा सकती है। कहानी की कहानी बहुत पुरानी है। विश्व की प्रत्येक भाषा में हमें कहानी साहित्य प्राप्त होता है। उदाहरण के रूप में भारत में पंचतंत्र की कहानियाँ काफी लोकप्रिय हैं। कहानी किसी एक की नहीं होती, कहानी कहने वालों और सुनने वालों की होती है। अकसर नानी, दादी से हम कहानियाँ सुनते रहते हैं परंतु कहानी क्या है? इसके बारे में विद्वानों ने अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। कहानी के बारे में कोई सर्वसम्मत परिभाषा नहीं दी जा सकती। यहाँ एक-दो परिभाषाएँ दी जा रही हैं। एडगर एलियन के अनुसार-A short story is a narrative short enough to be read in a single sitting written to make an impression on the reader excluding all that does not forward that impression complete and final in itself. अर्थात् कहानी एक संक्षिप्त तथा प्रभावशाली आख्यान है। इसमें सीमित तथा प्रभावपूर्ण कथानक होता है और यह एक सीमित समय में पढ़ा जाता है।

हिंदी कहानीकार मुंशी प्रेमचंद के अनुसार-“गल्प ऐसी रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास सब उस एक भाव को पुष्ट करता है।”

संक्षेप में, हम कह सकते हैं “किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्योरा जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विश्वास हो, चरम उत्कर्ष का बिंदु हो, उसे कहानी कहा जा सकता है।” अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं

  1. कहानी में एकतथ्यता होती है जिसका संबंध घटना से होता है।
  2. घटना का स्थान अनुभूति भी ले सकती है।
  3. कहानी मनोरंजन करती है परंतु वह भावों को जागृत भी करती है।
  4. कहानी घटना-प्रधान भी हो सकती है और चरित्र-प्रधान भी।
  5. कहानी में तीव्रता और ताज़गी होनी चाहिए।
  6. कहानी की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य होनी चाहिए।

HBSE 12th Class Hindi कैसे लिखें कहानी

प्रश्न 2.
कहानी के इतिहास का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
कहानी का इतिहास बहुत पुराना है। यह उतना ही पुराना है जितना कि मानव का इतिहास। कारण यह है कि कहानी मानव-स्वभाव और प्रकृति का अंग है। कहानी कहने की कला प्राचीनकाल से चली जा रही है। धीरे-धीरे इस कला का विकास होने लगा। प्राचीनकाल में कथावाचक कहानियाँ सुनाते थे। अकसर किसी घटना अथवा युद्ध, प्रेम या बदले की भावना के किस्से या कहानियाँ सुनाई जाती थीं। परंतु कहानी सुनाने वाला अब घटनाओं पर आधारित कहानी सुनाता था तो उसमें वह अपनी कल्पना का भी मिश्रण कर देता था। अकसर यह देखने में आया है कि मनुष्य वही कुछ सुनना चाहता है जो उसे प्रिय लगता है। उदाहरण के रूप में, हम यह मान लें कि हमारा नायक युद्ध में हार गया, परंतु हम यह सुनना चाहते हैं कि वह नायक बड़ी वीरता से लड़ा और उसने एक महान उद्देश्य के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए तो कथावाचक अपनी कल्पना का प्रयोग करते हुए नायक की वीरता का बखान करेगा।

वह तथ्यता में कल्पना का मिश्रण करेगा। ऐसा करने से श्रोता न केवल कथावाचक की प्रशंसा करेंगे, बल्कि उसे इनाम भी देंगे। मौखिक कहानी की परंपरा हमारे देश में प्राचीनकाल से चली आ रही है। यह परंपरा देश के अनेक भागों में भी विद्यमान है। विशेषकर राजस्थान में मौखिक कहानी की परंपरा लंबे काल से चली आ रही है। प्राचीनकाल में मौखिक कहानियाँ काफी लोकप्रिय होती थीं। इसका प्रमुख कारण यह था कि उस समय संचार का कोई ओर माध्यम नहीं था। यही कारण है कि धर्म प्रचारकों ने अपने सिद्धांतों तथा विचारों का प्रचार करने के लिए कहानी का आश्रय लिया। यही नहीं, शिक्षा देने के लिए भी कहानी का सहारा लिया गया। उदाहरण के रूप में पंचतंत्र में शिक्षाप्रद कहानियाँ लिखी गई हैं। अतः हम कह सकते हैं कि आदिकाल में ही कहानी के साथ उद्देश्य जुड़ गया। आगे चलकर उद्देश्य कहानी का एक अनिवार्य तत्त्व बन गया।

प्रश्न 3.
कहानी के केंद्रीय बिंदु ‘कथानक’ पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वस्तुतः कथानक कहानी का केंद्र-बिंदु कहा जा सकता है। इसे हम कथावस्तु भी कहते हैं। एक परिभाषा के अनुसार कथानक वह तत्त्व है जिसमें कहानी का वह संक्षिप्त रूप जिसमें आरंभ से अंत तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का प्रयोग किया गया हो, उसे कथानक कहते हैं। कथानक कहानी का अनिवार्य तत्त्व है। इसके बिना कहानी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कहानीकार किसी एक मौलिक भाव या समस्याओं के लिए घटनाओं की योजना करता है।

इसी को हम कथानक कहते हैं। एक विद्वान ने कथानक को कहानी का प्रारंभिक नक्शा कहा है। जिस प्रकार मकान बनाने से पहले कागज़ पर एक नक्शा बनाया जाता है उसी प्रकार कहानी लिखने से पहले लेखक अपने मन में किसी घटना की जानकारी, अनुभव आदि का नक्शा तैयार कर लेता है। कभी तो कहानीकार पूरे कथानक की जानकारी पा लेता है और कभी कथानक के केवल एक सूत्र को ही प्राप्त कर पाता है।

उदाहरण के रूप में यदि कहानीकार को एक छोटा-सा प्रसंग या पात्र भा जाता है तो वह उसी को विस्तार देने में जुड़ जाता है। इसके लिए वह अपनी मौलिक कल्पना का प्रयोग करता है। पात्र कहानी की कल्पना कोरी कल्पना नहीं होती। यह ऐसी कल्पना नहीं होती जो असंभव हो बल्कि यह संभव कल्पना होती है। कल्पना का विस्तार करने के लिए कहानीकार के पास जो सूत्र होता है उसी के द्वारा वह कथानक को आगे बढ़ाता है। परिवेश, पात्र तथा समस्या से कहानीकार को यह सूत्र मिलता है।

इन तीनों के समन्वित आधार पर लेखक संभावनाओं के बारे में विचार करता है और एक संभव काल्पनिक ढाँचा तैयार करता है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि लेखक का काल्पनिक ढाँचा उसके उद्देश्यों से मेल खाता हो। यहाँ एक मरीज का उदाहरण दिया जा सकता है जो पिछले एक सप्ताह से लगातार अस्पताल में आ रहा है परंतु डॉक्टर से मिलने के लिए उसकी बारी नहीं आती। यह सूत्र मिलने के बाद लेखक अस्पताल, वहाँ की व्यवस्था तथा पात्रों की गतिविधियों के बारे में सोचने लग जाएगा और साथ ही अपने उद्देश्य का भी निर्णय कर लेगा। यहाँ दो-तीन बातें हो सकती हैं। पहली बात यह है कि लेखक अस्पताल पर कहानी लिखना चाहता है अथवा वह मरीज की पीड़ा को आप तक पहुँचाना चाहता है अथवा वह मानवीय त्रासदी को सामाजिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों से जोड़ना चाहता है।

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प्रश्न 4.
कथानक में आरंभ, मध्य और अंत के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर:
कथानक को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-आरंभ, मध्य और अंत, इन तीनों के समन्वित रूप को हम कथानक कह सकते हैं। कथानक का आरंभ आकर्षक होना चाहिए। मध्य स्वाभाविक और कुतूहलवर्धक होना चाहिए और अंत आकस्मिक होने पर भी अप्रत्याशित नहीं होना चाहिए। एक पाश्चात्य विद्वान ने कथानक की तुलना रेस कोर्स के घोड़े के साथ की हैं जिसमें आरंभ और अंत का विशेष महत्त्व है जो कहानी को रोचक बनाता है। द्वंद्व का मतलब है-बाधा अर्थात् कहानी में परिस्थितियाँ इस प्रकार उपस्थित होती हैं कि उनके रास्ते में बाधा उत्पन्न हो जाती है जिससे द्वंद्व की उत्पत्ति उत्पन्न होती है। कथानक की पूर्णता तभी होगी जब कहानी नाटकीय ढंग से अपने उद्देश्य को पूरा करके समाप्त हो जाएगी, परंतु कहानी में अंत तक रोचकता बनी रहनी चाहिए। द्वंद्व के कारण भी रोचकता बनी रह सकती है।

प्रश्न 5.
कहानी में देशकाल, स्थान और परिवेश का क्या महत्त्व है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
कहानी की प्रत्येक घटना, पात्र और समस्या का अपना देशकाल, स्थान और परिवेश होता है। जब कहानी के कथानक का स्वरूप बनकर तैयार हो जाता है तब कहानीकार कथानक के देशकाल और स्थान को अच्छी प्रकार समझ लेता है। यहाँ इस बात का उल्लेख करना उचित होगा कि कहानी को प्रामाणिक तथा रोचक बनाने के लिए देशकाल और स्थान का विशेष महत्त्व होता है। उदाहरण के लिए, जब किसी सरकारी कार्यालय से कथानक लिया जाता है तो उस कार्यालय के पूरे परिवेश, ध्वनियों, कार्य-व्यापार, वहाँ के लोग, उनके आपसी संबंध, नित घटने वाली घटनाओं की जानकारी जरूरी होती है। लेखक जब कथानक को आधार बनाकर कहानी का विकास करने लगता है तब ये जानकारियाँ उसके लिए सहायक होती हैं। अतः प्रत्येक कहानी में देशकाल अथवा वातावरण का अपना महत्त्व है। यह कहानी का आवश्यक तत्त्व माना गया है।

प्रश्न 6.
कहानी में पात्रों के चरित्र-चित्रण का क्या महत्त्व है?
अथवा
कहानी में पात्रों की भूमिका को स्पष्ट करें।
उत्तर:
पात्रों का चरित्र-चित्रण कहानी में दूसरा तत्त्व माना गया है। कहानीकार कथावस्तु की योजना पात्र के चरित्र विकास की दृष्टि से करता है। कहानी में प्रत्येक पात्र का अपना स्वरूप, स्वभाव तथा उद्देश्य होता है। कभी तो उसके चरित्र का विकास होता है तो कभी उसका चरित्र बदलता है। पात्रों का स्वरूप स्पष्ट होना चाहिए। यदि स्वरूप स्पष्ट होगा तो पात्रों का चरित्र-चित्रण सहज हो सकेगा और संवाद लिखने में भी सुविधा होगी। यही कारण है कि कहानीकार ने पात्रों के चरित्र-चित्रण को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया है। इस तत्त्व के अंतर्गत पात्रों के आपसी संबंधों पर विचार करना जरूरी है। कहानीकार को इस बात का समुचित ज्ञान होना चाहिए कि किस स्थिति में किस पात्र की क्या प्रतिक्रिया होगी। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि कहानीकार और उसकी कहानी के पात्रों में समीपस्थ संबंध होना चाहिए।

पात्रों का चरित्र-चित्रण करने और उन्हें अधिक प्रभावशाली ढंग से लाने के अनेक तरीके हैं। चरित्र-चित्रण का सर्वाधिक सरल तरीका है कि कहानीकार स्वयं पात्रों के गुणों का वर्णन करे । जैसे-“मोहन बड़ा वीर सैनिक है, उसने युद्ध क्षेत्र में अनेक बार अपनी वीरता का परिचय दिया। वह अपनी जान की परवाह नहीं करता तथा शत्रुओं का डटकर सामना करता है।” परंतु यह तरीका प्रभावहीन होने के साथ-साथ पुराना पड़ चुका है। एक दूसरा तरीका भी है।

पात्रों का चरित्र-चित्रण उनके क्रियाकलापों, उनके संवादों तथा दूसरे लोगों द्वारा बोले गए संवादों से प्रभावशाली बन सकता है। उदाहरण देखिए-“मोहन ने युद्ध क्षेत्र में अपने एक जख्मी साथी को कँधे पर उठाकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया और उसके बाद वह पुनः शत्रुओं पर गोलियाँ बरसाने लगा। बाद में पता चला कि उसके साथी की जान बच गई थी।” इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि पात्र ने जो काम किया है, उससे उसके चरित्र का पता चलता है।

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कभी-कभी जब अन्य पात्र किसी चरित्र का वर्णन करते हुए संवादों का जो प्रयोग करते हैं उससे भी पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का पता चलता है। जैसे-मोहन के बारे में एक सैनिक ने ग्रुप कमांडर को कहा, “सर! यह तो मोहन ही था जिसने अपनी जान की परवाह न करके बुरी तरह से घायल मुरलीधर को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया और फिर पुनः युद्ध में शत्रुओं पर गोलियाँ बरसाने लगा।”

कभी-कभी पात्रों की अभिरुचियों द्वारा भी उनका चरित्र-चित्रण किया जाता है। उदाहरण के रूप में, कोई पात्र नदी में तैरने का बड़ा शौकीन है। वह उभरती नदी को एक किनारे से दूसरे किनारे तैरकर पार कर लेता है। इससे पता चलता है कि वह एक साहसी व्यक्ति है। एक अन्य पात्र है जो बात-बात पर झूठ बोलता है। मौका लगने पर चोरी भी कर लेता है। कर्ज़ वापिस नहीं करता। रिश्वत भी लेता है। इस प्रकार के पात्र का स्वरूप अलग ही प्रकार का होगा।

प्रश्न 7.
कहानी में संवादों का क्या महत्त्व है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
कहानी में पात्रों के संवादों का विशेष महत्त्व है। संवाद के बिना पात्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कहानी में संवाद दो प्रकार के कार्य करते हैं। एक तो पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालते हैं दूसरा संवाद कथानक को गति प्रदान करते हैं, उसे आगे बढ़ाते हैं। कहानीकार जिस घटना अथवा प्रतिक्रिया को स्वयं नहीं दिखा पाता, वह उसे संवादों के माध्यम से दिखाता है। इसलिए संवाद कहानी के लिए अनिवार्य हैं, परंतु संवाद पात्रों के स्वभाव तथा उनकी पृष्ठभूमि के अनुकूल होने चाहिएँ।

यही नहीं, संवाद पात्रों के विश्वासों, आदर्शों तथा स्थितियों के अनुकूल भी होने चाहिएँ। कहानी में कहानीकार कभी सामने नहीं आता। संवादों के माध्यम से वह अपनी बात कहता है। जब कोई पात्र संवाद बोलता है तो उससे पात्र का परिचय मिल जाता है। उदाहरण के लिए, जब कोई शिक्षक संवाद बोलेगा तो संवादों को सुनकर ही उसके व्यवसाय का पता चल जाएगा। संक्षेप में, संवाद संक्षिप्त, स्वाभाविक और उद्देश्य से संबंधित होने चाहिएँ। अनावश्यक लंबे-लंबे दुरूह संवाद कहानी को जटिल बना देते हैं।

प्रश्न 8.
कहानी में चरम उत्कर्ष (क्लाइमेक्स) का क्या महत्त्व है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रत्येक कहानी का एक चरम उत्कर्ष होता है, जिसे अंग्रेज़ी में Climax कहते हैं। कहानी में क्लाइमेक्स की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब कहानी में वर्णित समस्या का उद्देश्य चरम-सीमा तक पहुँच जाता है। परंतु चरम उत्कर्ष का वर्णन बड़े ध्यान से करना चाहिए। चरम उत्कर्ष भावों तथा पात्रों से जुड़ा होना चाहिए। इस संदर्भ में एक विद्वान ने लिखा है, “सर्वोत्तम यह होता है कि चरम उत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लेखकीय पक्षधर की ओर आने के लिए प्रेरित करें लेकिन पाठक को यह भी लगे कि उसे स्वतंत्रता दी गई है और उसने जो निर्णय निकाले हैं, वे उसके अपने हैं।”

प्रश्न 9.
कथानक में द्वंद्व का क्या योगदान है?
उत्तर:
कथानक में मूलभूत तत्त्वों में द्वंद्व का विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि द्वंद्व ही कथानक को गति प्रदान करता है। उदाहरण के रूप में यदि दो आदमियों के बीच किसी बात को लेकर कोई सहमति है तो उनके बीच कोई द्वंद्व नहीं होगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि उनकी बातचीत अब आगे नहीं बढ़ सकती। द्वंद्व दो विरोधी तत्त्वों के बीच टकराव या किसी की खोज में आने वाली बाधाओं, अंतर्द्वद्व आदि के कारण उत्पन्न होता है। यदि कहानीकार अपनी कहानी में द्वंद्व को स्पष्ट करेगा तो वह कहानी सफल मानी जाएगी।

अंत में कहानी लिखना भी एक कला है और इस कला को सीखने का सीधा एवं सरल उपाय है कि अच्छी कहानियाँ पढ़ी जाएँ और उनका विश्लेषण किया जाए। इससे कहानी लिखना सहज और कारगर होगा।

जब मैंने पहली कहानी लिखी:
चाहिए तो यह था कि मेरी पहली कहानी प्रेम-कहानी होती। उम्र के एतबार से भी यही मुनासिब था और अदब के एतबार से भी। पर प्रेम के लिए (और प्रेम कहानी के लिए भी) अनुकूल परिस्थितियाँ हों तब काम बने।

मैंने वही लिखा जो मेरे जैसे माहौल में पलने वाले सभी भारतीय युवक लिखते हैं-अबला नारी की कहानी। हिंदी के अधिकांश लेखकों का तो साहित्य में पदार्पण अबला नारी की कहानी से ही होता है और यह दुखांत होनी चाहिए। मैंने भी वैसा ही किया। बड़ी बेमतलब, बेतुकी कहानी थी, न सिर, न पैर और शुरू से आखिर तक मनगढ़ंत, पर चूँकि अबला नारी के बारे में थी और दुखांत थी, इसलिए वानप्रस्थी जी को भी कोई एतराज नहीं हो सकता था, और पिताजी को भी नहीं, इसलिए कहानी, कालिज पत्रिका में स्थान पा गई।

HBSE 12th Class Hindi कैसे लिखें कहानी

पर इसके कुछ ही देर बाद एक प्रेम कहानी सचमुच कलम पर आ ही गई। नख-शिख से प्रेम-कहानी ही थी, पर किसी दूसरी दुनिया की कहानी, जिससे मैं परिचित नहीं था। तब मैं कालिज छोड़ चुका था, और पिताजी के व्यापार में हाथ बँटाने लगा था। कालिज के दिन पीछे छूटते जा रहे थे, और आगे की दुनिया बड़ी ऊटपटाँग और बेतुकी-सी नज़र आ रही थी।

हर दूसरे दिन कोई-न-कोई अनूठा अनुभव होता। कभी अपने घुटने छिल जाते, कभी किसी दूसरे को तिरस्कृत होते देखता। मन उचट-उचट जाता। तभी एक दिन बाज़ार में….मुझे दो प्रेमी नज़र आए। शाम के वक्त, नमूनों का पुलिंदा बगल में दबाए मैं सदर बाज़ार से शहर की ओर लौट रहा था, जब सरकारी अस्पताल के सामने, बड़े-से नीम के पेड़ के पास मुझे भीड़ खड़ी नज़र आई। भीड़ देखकर मैं यों भी उतावला हो जाया करता था, कदम बढ़ाता पास जा पहुँचा। अंदर झाँककर देखा तो वहाँ दो प्रेमियों का तमाशा चल रहा था। टिप्पणियाँ और ठिठोली भी चल रही थी। घेरे के अंदर एक युवती खड़ी रो रही थी और कुछ दूरी पर एक युवक ज़मीन पर बैठा, दोनों हाथों में अपना सिर थामे, बार-बार लड़की से कह रहा था, “राजो, दो दिन और माँग खा। मैं दो दिन में तंदुरुस्त हो जाऊँगा। फिर मैं मजूरी करने लायक हो जाऊँगा।”
और लड़की बराबर रोए जा रही थी। उसकी नीली-नीली आँखें रो-रोकर सूज रही थीं।
“मैं कहाँ से माँगूं? मुझे अकेले में डर लगता है।”
दोनों प्रेमी, आस-पास खड़ी भीड़ को अपना साक्षी बना रहे थे।
“देखो बाबूजी, मैं बीमार हूँ। इधर अस्पताल में पड़ा हूँ। मैं कहता हूँ दो दिन और माँग खा, फिर मैं चंगा हो जाऊगा।”
लड़की लोगों को अपना साक्षी बनाकर कहती, “यहाँ आकर बीमार पड़ गया, बाबूजी मैं क्या करूँ? इधर पुल पर मजूरी करती रही हूँ, पर यहाँ मुझे डर लगता है।”
इस पर लड़का तड़पकर कहता, “देख राजो, मुझे छोड़कर नहीं जा। इसे समझाओ बाबूजी, यह मुझे छोड़कर चली जाएगी तो इसे मैं कहाँ ढूंदूंगा।”
“यहाँ मुझे डर लगता है। मैं रात को अकेली सड़क पर कैसे रहूँ?”
पता चला कि दोनों प्रेमी गाँव से भागकर शहर में आए हैं, किसी फकीर ने उनका निकाह भी करा दिया है, फटेहाल गरीबी के स्तर पर घिसटने वाले प्रेमी! शहर पहुँचकर कुछ दिन तक तो लड़के को मज़दूरी मिलती रही। पास ही में एक पुल था। वह पुल के एक छोर से सामान उठाता और दूसरे छोर तक ले जाता, जिस काम के लिए उसे इकन्नी मिलती। कभी किसी की साइकल तो कभी किसी का गट्ठर। हनीमून पूरे पाँच दिन तक चला। दोनों ने न केवल खाया-पिया, बल्कि लड़के ने अपनी कमाई में से जापानी छींट का एक जोड़ा भी लड़की को बनवा कर दिया, जो उन दिनों अढ़ाई आने गज़ में बिका करती थी।

दोनों रो रहे थे और तमाशबीन खड़े हँस रहे थे। कोई लड़की की नीली आँखों पर टिप्पणी करता, कोई उनके ऐसे-वैसे’ प्रेम पर, और सड़क की भीड़ में खड़े लोग केवल आवाजें ही नहीं कसते, वे इरादे भी रखते हैं। और एक मौलवी जी लड़की की पीठ सहलाने लगे थे और उसे आश्रय देने का आश्वासन देने लगे थे। और प्रेमी बिलख-बिलख कर प्रेमिका से अपने प्रेम के वास्ते डाल रहा था।

तभी, पटाक्षेप की भाँति अँधेरा उतरने लगा था और पीछे अस्पताल की घंटी बज उठी थी जिसमें प्रेमी युवक भरती हुआ था, और वह गिड़गिड़ाता, चिल्लाता, हाथ बाँधता, लड़की से दो दिन और माँग खाने का प्रेमालाप करता अस्पताल की ओर सरकने लगा और मौलवी जी सरकते हुए लड़की के पास आने लगे, और घबराई, किंकर्तव्यविमूढ़ लड़की, मृग-शावक की भाँति सिर से पैर तक काँप रही थी…….

नायक भी था, नायिका भी थी, खलनायक भी था, भाव भी था, विरह भी कहानी का अंत अनिश्चय के धुंधलके में खोया हुआ भी था।

मैं यह प्रेम कहानी लिखने का लोभ संवरण नहीं कर सका। लुक-छिपकर लिख ही डाली, जो कुछ मुद्दत बाद ‘नीली आँखें शीर्षक से, अमृतरायजी के संपादकत्व में ‘हंस’ में छपी, इसका मैंने आठ रुपये मुआवज़ा भी वसूल किया जो आज के आठ सौ रुपये से भी अधिक था।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
चरित्र-चित्रण के कई तरीके होते हैं ‘ईदगाह’ कहानी में किन-किन तरीकों का इस्तेमाल किया गया है? इस कहानी में आपको सबसे प्रभावशाली चरित्र किसका लगा और कहानीकार ने उसके चरित्र-चित्रण में किन तरीकों का उपयोग किया है?
उत्तर:
पात्रों का चरित्र-चित्रण कहानी का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। कथानक की आवश्यकतानुसार पात्र चरित्र-चित्रण के अनेक तरीके हैं। चरित्र-चित्रण का सबसे सरल तरीका तो यह है कि कहानीकार स्वयं किसी पात्र के गुणों का बखान करे, परंतु कहानी में यह तरीका प्रभावहीन और पुराना हो चुका है। इस पद्धति से कहानी प्रभावशाली नहीं होती। दूसरा तरीका यह है कि पात्रों का चरित्र-चित्रण उनके क्रिया-कलापों, संवादों तथा दूसरे लोगों के द्वारा बोले गए संवादों द्वारा करें। यह तरीका बड़ा प्रभावशाली व सफल माना गया है। उदाहरण के रूप में, “मुरलीधर ने एक गरीब आदमी को सरदी से ठिठुरते हुए देखा तो अपनी शाल उसे दे दी या। मुरलीधर का दोस्त स्कूल में फीस जमा कराने के लिए लाइन से बाहर निकल आया क्योंकि उसके पास पूरे पैसे नहीं थे। मुरलीधर ने दोस्त को बताए बिना फीस जमा करा दी।”

तीसरा तरीका है अन्य पात्र किसी पात्र का अपने संवादों के माध्यम से चरित्र-चित्रण करें। उदाहरण के रूप में, सदानंद अपने और मुरलीधर के मित्र कृष्ण से कहता है, “यार इतनी बड़ी प्रॉब्लम तो मुरलीधर ही ‘सॉल्व कर सकता है। चलो उसी के पास चलें।” जहाँ तक ‘ईदगाह’ कहानी का प्रश्न है वहाँ इसका चरित्र-चित्रण करते समय दूसरे और तीसरे तरीके का प्रयोग किया गया है, यद्यपि इस कहानी में अमीना, हामिद, महमूद, मोहसिन, नूरे, सम्मी आदि अनेक पात्र हैं, लेकिन इनमें हामिद का चरित्र सर्वाधिक प्रभावशाली हैं। उसका चरित्र-चित्रण करने में कहानीकार ने दूसरे और तीसरे तरीके का समन्वित प्रयोग किया है।

HBSE 12th Class Hindi कैसे लिखें कहानी

प्रश्न 2.
संवाद कहानी में कई महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है। महत्त्व के हिसाब से क्रमवार संवाद की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संवाद कहानी का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इसे कथोपकथन या वार्तालाप भी कहते हैं। कहानीकार कथानक की घटनाओं को गति प्रदान करने के लिए संवादों का प्रयोग करता है तथा वह पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं के लिए भी संवादों का प्रयोग करता है। संवादों का महत्त्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि कहानीकार स्वयं परोक्ष रहकर कहानी के पात्रों के माध्यम से अपनी बात कहता है, परंतु कहानी के संवादों में सरलता, स्वाभाविकता, प्रसंगानुकूलता तथा रोचकता होनी चाहिए। लंबे-लंबे और आलंकारिक संवाद कथा की गति और रोचकता में बाधा पहुँचाते हैं। कहानी के संवाद बोधगम्य एवं पात्रानुकूल होने चाहिएँ। यदि संवाद क्रमवार होंगे तो उनकी भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण होगी।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि संवाद सरल, स्पष्ट और सरस होने चाहिएँ। उल्लेखनीय बात यह है कि संवाद पात्रानुकूल और प्रसंगानुकूल होने चाहिएँ, तभी वे अपनी सार्थकता सिद्ध कर पाएंगे।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए चित्रों के आधार पर चार छोटी-छोटी कहानियाँ लिखें।
HBSE 12th Class Hindi कैसे लिखें कहानी 1उत्तर:
नोट-शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं लिखें।

HBSE 12th Class Hindi कैसे लिखें कहानी

प्रश्न 4.
एक कहानी में कई कहानियाँ छिपी होती हैं। किसी कहानी को किसी खास मोड़ पर रोककर नई स्थिति में कहानी को नया मोड़ दिया जा सकता है। नीचे दी गई परिस्थिति पर कहानी लिखने का प्रयास करें सिद्धेश्वरी ने देखा कि उसका बड़ा बेटा रामचंद्र धीरे-धीरे घर की तरफ आ रहा है। रामचंद्र माँ को बताता है कि उसे अच्छी नौकरी मिल गई। आगे की कहानी आप लिखिए।
उत्तर:
रामचंद्र के मुख से यह सुनकर कि उसे अच्छी नौकरी मिल गई है सिद्धेश्वरी की खुशी का ठिकाना न रहा। उसे लगा कि गरीबी के दिन अब लद गए हैं। वह घर के सभी प्राणियों को अब ठीक से खाना परोस सकेगी। दूसरा बेटा पढ़ाई को पूरा कर सकेगा और छोटे बेटे का ठीक से इलाज हो सकेगा। इस पर सिद्धेश्वरी ने अपने बेटे से पूछा, “बेटा! वेतन कितना मिलेगा।” रामचंद्र ने उत्तर दिया कि माँ मुझे पाँच सौ रुपए मासिक मिलेगा।

सिद्धेश्वरी-बेटा, यह तो बड़ी खुशी की बात है, हमारे सारे कष्ट दूर हो जाएँगे। तुम्हारे पिता मुंशी चंद्रिका प्रसाद को भरपेट भोजन मिलेगा। मोहन अपनी पढ़ाई पूरी कर सकेगा और अब मैं प्रमोद का पूरा इलाज करवाऊँगी।

यह सुनकर रामचंद्र ने अपनी माँ के हाथ में सौ रुपए रख दिए। माँ ने पूछा कि यह पैसे कहाँ से आए। रामचंद्र-माँ, यह सौ रुपए मुझे पेशगी में मिले हैं। मेरी मिल का मालिक बड़ा ही दयालु व्यक्ति है, उसने मेरी योग्यता देखकर ही मुझे नौकरी दी है। माँ ये सब आपके और पिताजी के आशीर्वाद का परिणाम है।

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HBSE 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions नाटक लिखने का व्याकरण Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

प्रश्न 1.
नाटक और अन्य विधाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
साहित्य में अनेक विधाएं हैं। प्राचीन काल में इंद्रियों के आधार पर काव्य के दो भेद किए थे-दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य। दृश्य काव्य का संबंध नाटक से है और श्रव्य काव्य का संबंध कविता, कहानी, उपन्यास आदि से है। संस्कृत में तो दृश्य काव्य को श्रव्य काव्य से उत्कृष्ट माना गया है। संस्कृत में कहा भी गया है

“काव्येषु नाटकम् रम्यम्”

नाटक अपनी कुछ निजी विशेषताओं के कारण दूसरों से सर्वथा अलग है। जहाँ नाटक देखने के लिए लिखा जाता है, वहीं अन्य सभी विधाएँ पढ़ने के लिए होती हैं। नाटक को यदि हम अलग कर दें तो श्रव्य काव्य के भी पद्य और गद्य दो भेद किए जा सकते हैं।

पद्य के अंतर्गत महाकाव्य, खंडकाव्य, गीतिकाव्य, मुक्तक काव्य आदि की चर्चा की जाती है। गद्य के अंतर्गत उपन्यास, कहानी, निबंध, आलोचना, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत आदि विभिन्न विधाओं की चर्चा की जाती है। परंतु इन सभी विधाओं में नाटक को अधिक महत्त्व दिया जाता है। अन्य विधाएँ अपने लिखित रूप में एक निश्चित और अंतिम रूप को प्राप्त कर लेती हैं। नाटक अपने लिखित रूप में एक आयामी होता है। रंगमंच पर अभिनीत होने पर नाटक पूर्णता को प्राप्त करता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि साहित्य की अन्य विधाएँ पढ़ने या सुनने के लिए होती हैं। परंतु नाटक पढ़ने व सुनने के साथ-साथ मंच पर अभिनीत करने के लिए होते हैं।

HBSE 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

प्रश्न 2.
“नाटक में समय का बंधन होता है-” इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब नाटककार नाटक लिखने बैठता है तो उसे समय की सीमा का ध्यान रखना होता है। इसी को हम समय का बंधन कहते हैं। नाटक रंगमंच पर दो से ढाई घंटे की अवधि में अभिनीत किया जाना चाहिए। दर्शकों के पास इतना समय नहीं होता कि वे नाटक को लंबे समय तक देख सकें। यही कारण है कि नाटककार समय सीमा का ध्यान रखकर ही नाटक की रचना करता है। नाटककार नाटक लिखते समय भले ही भूतकाल एवं भविष्यत्काल से विषय का चयन करे परंतु उसे अपने नाटक को वर्तमान काल में ही संयोजित करना होता है।

यही कारण है कि नाटक के मंच निर्देश वर्तमान काल में ही लिखे जाते हैं। जहाँ तक उपन्यास, कहानी, कविता आदि का प्रश्न है, वे चाहे किसी ऐतिहासिक या पौराणिक घटना से संबंधित हों, वे वर्तमान में बिना किसी बाधा के पढ़े जा सकते हैं। परंतु नाटक में सभी घटनाएँ एक विशेष स्थान पर, विशेष समय तथा वर्तमान काल में घटित होना चाहिए। हम अतीत की घटनाओं को नाटक में पुनः घटित होने देखना चाहते हैं।

नाटक में समय के बंधन के बारे में एक और तथ्य का उल्लेख करना आवश्यक है। साहित्य की अन्य विधाओं-कहानी, उपन्यास, कविता को हम पढ़ते-पढ़ते अथवा सुनते हुए किसी कारणवश छोड़ सकते हैं और बाद में वहीं से आरंभ कर सकते हैं परंतु नाटक में ऐसा संभव नहीं है। यदि कोई दर्शक अभिनीत किए जाने वाले नाटक को बीच में छोड़कर चला जाता है तो वह पुनः नाटक के उस भाग को नहीं देख सकता।

नाटककार को इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि दर्शक कितने समय तक अपने सामने नाटक के कथानक को घटित होते हुए देख सकता है। नाटक में जिस चरित्र का निर्माण किया गया है उसका पूरा विकास भी होना चाहिए। इसलिए नाटक में समय का बंधन आवश्यक है। नाटक में प्रायः तीन अंक होते हैं। इसलिए नाटककार को समय का ध्यान रखते हुए अंकों का विभाजन करना होता है। भरत द्वारा रचित नाट्यशास्त्र ने प्रत्येक को यह निर्देश दिया गया है कि वह नाटक के प्रत्येक अंक की समय सीमा 48 मिनट रखे।

प्रश्न 3.
नाटक के तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
जहाँ तक नाटक के तत्त्वों का प्रश्न है, भारतीय विद्वानों में नाटक के केवल तीन तत्त्व माने हैं-वस्तु, नेता तथा रस। परंतु नाटक के अंतर्गत उन्होंने वृत्ति का विवेचन भी किया है और अभिनय को नाटक का मूल तत्त्व माना है। इस रूप में कथावस्तु पात्रों का चरित्र-चित्रण, रस तथा अभिनय, वृत्ति नाटक के पाँच तत्त्व कहे जाते हैं। परंतु पश्चिम आचार्यों ने नाटक के छः तत्त्व माने हैं। ये हैं

  1. कथावस्तु
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. संवाद (कथोपकथन)
  4. उद्देश्य
  5. भाषा-शैली
  6. देशकाल

परंतु सातवाँ तत्त्व अभिनेयता भी आवश्यक है।
(1) कथावस्तु-यह नाटक का प्रथम महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। सर्वप्रथम नाटककार को नाटक का कथ्य किसी कहानी के रूप में किसी शिल्प अथवा फोरम द्वारा प्रस्तुत करना होता है। यदि नाटककार को शिल्प या संरचना की समुचित जानकारी होगी तभी वह यह कार्य संपन्न कर पाएगा। उसे इस बात का हमेशा ध्यान रखना होता है कि नाटक मंच पर अभिनीत होना है। ऐसी स्थिति में घटनाओं स्थितियों (दृश्यों) का चुनाव करता है फिर उसे क्रमानुसार नियोजित करता है। उसे शून्य से शिखर तक की यात्रा पूरी करनी होती है। तभी वह नाटक की कथावस्तु का सही ढंग से निर्माण कर सकता है।

(2) संवाद-नाटक का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व संवाद है। अन्य विधाओं में संवाद उतना आवश्यक नहीं है जितना कि नाटक के लिए। नाटक में तनाव, उत्सुकता, रहस्य, रोमांच, उपसंहार आदि स्थितियों का होना नितांत आवश्यक है और इसके लिए परस्पर विरोधी विचारधाराओं के संवाद नाटक को चार चाँद लगा देते हैं। यही कारण है कि भारतीय और पाश्चात्य नाट्यशास्त्रियों ने नायक, की परिकल्पना की थी। यदि संवाद क्रियात्मक और दृश्यात्मक होंगे तो वे अधिक प्रभावशाली सिद्ध होंगे। जिस नाटक में इस तत्त्व की प्रधानता होती है वही नाटक अधिक सफल सिद्ध होता है। यदि संवाद असंख्य संभावनाओं को उजागर करते हैं तो वे बड़े ही सशक्त माने जाते हैं। हैमलेट और स्कन्दगुप्त के दो उदाहरण देखिए- हैमलेट-टू बी और नॉट टू बी, स्कन्दगुप्त-अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है।

(3) पात्र और चरित्र चित्रण-नाटक में जितना संवादों का महत्त्व है उतना ही पात्रों का भी है। पात्रों की उपस्थिति से ही संवादों की संभावना उत्पन्न होती है। जब भी दो चरित्र आपस में मिलते हैं तो उनमें विचारों की टकराहट अवश्य उत्पन्न होती है। यही कारण है कि रंगमंच को प्रतिरोध का सशक्त माध्यम माना गया है। पात्र यथा स्थिति को स्वीकार नहीं करता। उसमें अस्वीकार की स्थिति बनी रहती है। कोई भी जीता-जागता संवेदनशील प्राणी संतुष्ट नहीं रह सकता। यदि नाटक में असंतुष्टि, प्रतिरोध और अस्वीकार जैसे नकारात्मक तत्त्व होंगे तो वह निश्चय ही सफल नाटक सिद्ध होगा।

जो नाटक व्यवस्था य समर्थन के लिए लिखे जाते हैं वे अधिक लोकप्रिय नहीं होते। यही कारण है कि ये हमारे नाटककार राम की अपेक्षा रावण, प्रह्लाद की अपेक्षा हिरण्यकश्यप, कृष्ण की अपेक्षा कंस आदि पात्रों की ओर अधिक आकर्षित हुए हैं। नाटकों के पात्र, सपाट, सतही और टाइप्ड नहीं होने चाहिए अर्थात् वे कठपुतली पात्र न होकर गतिशील होने चाहिए। पात्रों को स्थितियों के अनुसार अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए। नाटक के पात्र हाड़-माँस से बने हुए जीवन्त होने चाहिए। कविता, कहानी अथवा उपन्यास के शाब्दिक पात्र नहीं होने चाहिए।

(4) उद्देश्य उद्देश्य भी नाटक का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। वस्तुतः नाटककार कथानक तथा संवादों के माध्यम से नाटक के उद्देश्य को अभिव्यक्त करता है। नाटक के शिल्प और संरचनाओं द्वारा ही नाटककार अपने कथ्य को व्यंजित करता है। नाटक का उद्देश्य आज के जटिल जीवन से ही संबंधित होना चाहिए। वह जीवन की विभिन्न समस्याओं तथा कठिन परिस्थितियों से भी संबंधित होना चाहिए।

(5) शिल्प-शिल्प नाटक की वह तकनीक है जिसके द्वारा नाटककार अपना कथ्य प्रस्तुत करता है। शिल्प की दृष्टि से हमारे नाटक के सामने अनेक विकल्प विद्यमान हैं। संस्कृत नाटकों में शास्त्रीय शिल्प का विधान है। लोक नाटकों का शिल्प लिखित रूप में नहीं है। यह मौखिक रचना प्रक्रिया के माध्यम से घटित होता है पारसी नाटकों का एक अलग प्रकार का शिल्प है जिसमें शेरो-शायरी, गीत-संगीत और अतिरंजित संवादों द्वारा नाटक अभिनीत किया जाता है। इब्सन का अनुसरण करते हुए यथार्थवादी नाटकों में प्रायः गद्य का ही प्रयोग किया जाता है। इसके साथ-साथ नुक्कड़ नाटकों का एक अलग प्रकार का शिल्प है। नाटककार को इनमें से एक शिल्प का चयन करना होता है।

इस प्रकार भाषा-शैली, देशकाल आदि अन्य तत्त्व इसी शिल्प में ही समाहित हो जाते हैं।

HBSE 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
“नाटक की कहानी बेशक भूतकाल या भविष्यकाल से संबद्ध हो, तब भी उसे वर्तमान काल में ही घटित होना पड़ता है”-इस धारणा के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
नाटक में कुछ ऐसे भी कथानक होते हैं जिनका संबंध भूतकाल से होता है अथवा भविष्यकाल से होता है। लेकिन नाटककार को दोनों स्थितियों में अपने नाटक को वर्तमान काल में संयोजित करना पड़ता है। यही कारण है कि नाटक में रंगमंच के संकेत हमेशा लिखे रहते हैं और इनका संबंध वर्तमानकाल से होता है। हम वर्तमानकाल में किसी विशेष समय अथवा विशेष घटना को नाटक द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं। नाटक में उसका कथानक और कथ्य दर्शकों की आँखों के सामने घटित होता जान पड़ेगा, तभी दर्शक नाटक पर विश्वास कर सकेगा। उसे देखकर आनन्द प्राप्त कर सकेगा।

प्रश्न 2.
“संवाद चाहे कितने भी तत्सम और क्लिष्ट भाषा में क्यों न लिखे गए हों, स्थिति और परिवेश की माँग के अनुसार यदि वे स्वाभाविक जान पड़ते हैं तो उनके दर्शक तक संप्रेषित होने में कोई मुश्किल नहीं है। क्या आप इससे सहमत हैं? पक्ष या विपक्ष में तर्क दें।।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत हैं कि संवाद चाहे कितने भी तत्सम और क्लिष्ट भाषा में क्यों न लिखे गए हों, स्थिति व परिवेश की माँग के अनुसार यदि वे स्वाभाविक जान पड़ते हों तो उनके दर्शक तक संप्रेषित होने में कोई मुश्किल नहीं होती। कारण यह है कि संवाद हमेशा स्थिति और परिवेश के अनुसार ही लिखे जाने चाहिए। उदाहरण के रूप में यदि किसी पौराणिक आख्यान पर नाटक लिखा गया हो तो स्थिति और परिवेश का संबंध पौराणिक काल से ही होगा।

पात्रों की वेशभूषा उसी काल की होगी और दर्शक भी उसी स्थिति और परिवेश से जुड़ जाएगा। ऐसी स्थिति में तत्सम तथा क्लिष्ट भाषा में लिखे संवाद भी दर्शकों को समझ में आने लगेंगे। परंतु यदि आधुनिक स्थिति और परिवेश से जुड़ा नाटक अभिनीत किया जाएगा तो सहज, सरल और स्वाभाविक हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए और उसमें आवश्यकतानुसार अंग्रेज़ी तथा उर्दू के शब्दों का मिश्रण भी किया जा सकता है। नाटक तथा उसके संवाद स्थिति और परिवेश पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 3.
समाचार पत्र के किसी कहानीनुमा समाचार से नाटक की रचना करें।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

HBSE 12th Class Hindi नाटक लिखने का व्याकरण

प्रश्न 4.
(क) अध्यापक और शिक्षक के बीच गृह-कार्य को लेकर पाँच-पाँच संवाद लिखिए।
(ख) एक घरेलू महिला एवं रिक्शा चालक को ध्यान में रखते हुए पाँच-पाँच संवाद लिखिए।
उत्तर:
(क)

  • अध्यापक मोहन! तुम बसंत ऋतु पर निबंध लिखकर क्यों नहीं लाए?
  • मोहन-श्रीमान ! मुझे रात को बुखार हो गया था।
  • अध्यापक-यदि तुम्हें बुखार था तो आज स्कूल कैसे आ गए?
  • मोहन-सुबह उठते ही मेरा बुखार उतर गया था। इसलिए मैं स्कूल पढ़ने के लिए आ गया।
  • अध्यापक-तुम झूठ बोल रहे हो। ऐसा नहीं हो सकता कि कल रात तुम्हें बुखार हो गया और तुम आज स्कूल आ गए।
  • मोहन-नहीं, श्रीमान! मैं ठीक कह रहा हूँ। मुझे कल रात बुखार हो गया था।
  • अध्यापक-यदि ऐसी बात है तो अपने पिता जी को कल सुबह अपने साथ लाना। मैं उनसे बात करूँगा।
  • मोहन श्रीमान! पिता जी क्या आवश्यकता है? उन्हें दफ्तर जाना होता है।
  • अध्यापक-तुम पिछले कई दिनों से ठीक से पढ़ाई नहीं कर रहे हो। तुम कई बार कक्षा में अनुपस्थित भी रहते हो।
  • मोहन (सिर झुकाए हुए)-श्रीमान क्षमा कर दीजिए आगे से ऐसा नहीं करूँगा।
  • अध्यापक-यदि तुम कल अपने पिता जी को नहीं लाए तो स्कूल से तुम्हारा नाम काट दिया जाएगा।
  • मोहन-श्रीमान ऐसा न करना। कल मैं पिता जी को साथ लेकर आऊँगा।

(ख)

  • घरेलू महिला-अरे भई, रिक्शा वाले यहाँ से पुराने हाउसिंग बोर्ड तक कितने पैसे लोगे?
  • रिक्शा चालक-बीबी जी! बीस रुपये लगेंगे।
  • घरेलू महिला-देखो भई। ये तो बहुत ज्यादा पैसे हैं।
  • रिक्शा चालक-इतनी धूप पड़ रही है, इतनी दूर तक रिक्शा चलाना आसान नहीं है।
  • घरेलू महिला-नहीं भइया। ये तो बहुत अधिक पैसे हैं। मैं तुम्हें दस रुपए दे सकती हूँ।
  • रिक्शा चालक-नहीं बीबी जी। भगवान ने पेट हमारे साथ भी लगा रखा है और ऊपर से महँगाई ने मारा।
  • घरेलू महिला-नहीं भइया! बीस रुपये तो अधिक हैं। महँगाई तो हमारे साथ भी है।
  • रिक्शा चालक-अच्छा बीबी जी आप मुझे पंद्रह रुपए दे देना।
  • घरेलू महिला-पंद्रह रुपए भी अधिक हैं परंतु घर तो जाना ही है, चलो।
  • रिक्शा चालक-ठीक है बीबी जी पंद्रह रुपए ही दे देना।

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HBSE 12th Class Hindi कैसे बनती है कविता

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions कैसे बनती है कविता Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi कैसे बनती है कविता

प्रश्न 1.
कविता क्या है?
उत्तर:
मानव का जीवन कविता से ही शुरू होता है। माँ अपने बच्चे को जो लोरियाँ सुनाती है, वे कविता ही होती हैं। प्रत्येक बच्चे की आरंभिक शिक्षा भी नर्सरी की कविताओं से शुरू होती है। कविता में जब आस-पास की वस्तुओं जैसे-बादल, बिजली, धूप, खेत, खलिहान, वन, नदी आदि का वर्णन हो, तो ये सब हमें अनजानी सी लगती हैं। फिर भी कविता में एक ऐसा जादू होता है जो श्रोता को भावविभोर कर देता है। कविता का जन्म वाचिक परंपरा के रूप में हुआ। हमारे सभी वेद कविता में रचित हैं। प्राचीनकाल का भारतीय साहित्य कविता में ही रचित है। आज कविता का लिखित रूप भी प्राप्त है।

कविता के बारे में अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि कविता क्या है? यद्यपि इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन है, फिर भी हम कह सकते हैं कि कविता हमारे हृदय को आनन्द प्रदान करती है, हमें संवेदनशील बनाती है और हमारे मन को छू लेती है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं, “कविता संवेदनशील तथा रागात्मक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है।” कविवर पंत ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा भी है-“कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है। अपने उत्कृष्ट क्षणों में हमारा जीवन छंद ही में बहने लगता है।”

प्रश्न 2.
कविता कैसे बनती है?
उत्तर:
“कविता कैसे बनती है?” इस प्रश्न का उत्तर दे पाना भी अत्यंत कठिन है। कवि एक प्रतिभा-संपन्न व्यक्ति होता है। अतः जिस बात को कवि कहता है, हम उस तरह नहीं कह सकते। अतः यह कहना गलत न होगा कि कविता लिखने की प्रणाली की शिक्षा नहीं दी जा सकती। फिर भी कुछ पाश्चात्य विश्वविद्यालयों तथा भारतीय विश्वविद्यालयों में कविता लिखने के लिए प्रशिक्षण दिया जाने लगता है। सम्भवतः कविता लिखने की शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति सफल कवि भले ही न बन सके, लेकिन एक सहृदय एवं संवेदनशील पाठक अवश्य बन जाएगा। वस्तुतः एक अच्छी कविता को बार-बार पढ़ने को मन करता है। उसके भाव हमारे मन में स्थायी रूप में स्थान ग्रहण कर लेते हैं और वह कविता हमें बार-बार सोचने के लिए मजबूर कर देती है।

जिस प्रकार चित्रकला में रंग, कुची कैनवास की आवश्यकता होती है और संगीत में स्वर, ताल, लय आदि की उसी प्रकार कविता रचने के लिए बाह्य उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन इतना निश्चित है कि कविता की रचना करने के लिए भाषागत उपकरणों की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। भाषा तो सबके पास होती है और यही भाषा अन्य विषयों को पढ़ने का माध्यम होती है। लेकिन कवि अपनी इच्छानुसार शब्दों का प्रयोग करता है और उनके माध्यम से लय उत्पन्न करता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि कविता की रचना करने के लिए भाषा पर समुचित अधिकार होना नितान्त आवश्यक है। एक सफल कवि अपनी आवश्यकतानुसार भाषा का प्रयोग करके अपने भावों को अभिव्यक्त करता है और कविता की रचना करता है।

HBSE 12th Class Hindi कैसे बनती है कविता

प्रश्न 3.
कविता में शब्द-चयन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कविता का प्रथम उपकरण शब्द ही है। आचार्य भामह ने शब्द और अर्थ के सहित भाव को ही कविता कहा है। इसका अर्थ है कि सार्थक शब्दों के प्रयोग से कविता बनती है। अंग्रेजी कवि डब्ल्यू०एच० आर्डेन ने उचित ही कहा है-Play with the words अर्थात् कविता लिखने के लिए आरंभ में शब्दों से खेलना आवश्यक है। जो व्यक्ति कविता की रचना करना सीखना चाहता है, उसे शब्दों से मेल-जोल बढ़ाना चाहिए और शब्दों के भीतर छिपे हुए अर्थों को खोजना चाहिए। शब्दों से जुड़कर ही हम कविता के संसार में प्रवेश कर सकते हैं। अक्सर बच्चे भी गीतों की रचना कर लेते हैं। इसका कारण यह है कि कविता की रचना करने की प्रतिभा थोड़ी-बहुत सबमें होती है। केवल बच्चों द्वारा रचित गीतों को तराशने की आवश्यकता होती है यथा
बारिश आई छम-छम-छम
लेकर छाता निकले हम
बादल गरजा डम-डम-डम
पैर फिसल गया गिर गए हम
नीचे छाता ऊपर हम।
अथवा
वाह जी वाह
हमको बुद्धू ही निरा समझा है।
हम समझते ही नहीं जैसे कि
आपको बीमारी है-
आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं,
और बढ़ते हैं तो बस यानी कि
बढ़ते ही चले जाते हैं-
दम नहीं लेते हैं जब तक बिलकुल ही
गोल न हो जाएँ
बिल्कुल गोल।
यह मरज़ आपका अच्छा ही नहीं होने में
-शमशेर बहादुर सिंह
ऊपर दिए गए पद्यांशों में कवि ने शब्दों तथा यह उनकी ध्वनियों का सोच समझकर चयन किया है। वस्तुतः शब्दों से खेलने का प्रयास है। धीरे-धीरे कवि तुकबंदी के बाद लय और व्यवस्था की ओर ध्यान देने लगता है। यही प्रवृत्ति आगे चलकर कवि को अच्छी कविताओं की रचना करने की प्रेरणा देने लगती है।

प्रश्न 4.
कविता में बिंब और छंद का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
‘बिंब’ का शाब्दिक अर्थ है प्रतिमूर्ति या छाया तथा छंद का अर्थ है-वर्ण, मात्रा आदि की गणना के आधार पर होने वाली वाक्य रचना अर्थात् पद्य। इसे आंतरिक लय भी कह सकते हैं। हम संसार को अपनी इंद्रियों के माध्यम से जान सकते हैं। हम बाहरी दुनिया में जो कुछ देखते हैं उसमें कुछ ऐसी संवेदना होती है जो हमारे मन में बिंब के रूप में परिवर्तित हो जाती है। कविता में कुछ ऐसे शब्द होते हैं। जिन्हें सुनने मात्र से ही हमारे मन में चित्र उत्पन्न हो जाते हैं। ये स्मृति चित्र ही शब्दों के माध्यम से बिंबों का निर्माण करते हैं। उदाहरण के रूप में अज्ञेय की निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए
“उड़ गई चिड़िया
कॉपी, फिर
थिर
हो गई पत्ती।”
इन पंक्तियों में ‘उड़ गई चिड़िया’ पढ़ते ही हमारी स्मृति में चिड़िया के उड़ने का आकार, उसकी तत्परता, पंख फड़फड़ाने आदि चित्र हमारे मन में अंकित हो जाएगा। नए पत्ते का कांपना तथा स्थिर होने के चित्र के साथ हमारी एकाकारिता हो जाएगी। अज्ञेय की कविता अपने बिंबों के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने अपने बिंबों द्वारा अपनी अभिव्यक्ति को न केवल मनोहारी बनाया है, बल्कि अपने कथनों को अत्यधिक रोचक व मनोरंजक भी बनाया है। उनका संपूर्ण काव्य बिंब-विधान की दृष्टि से समृद्ध कहा जा सकता है।

कविता की रचना करते समय आरंभ में दृश्य और श्रव्य बिंबों के निर्माण का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ये बिंब सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह कहना गलत न होगा कि कवि स्पर्श, स्वाद, दृश्य, घ्राण तथा श्रव्य रूपी पाँच अंगुलियों द्वारा कविता को पकड़ने का प्रयास करते हैं। इसी आधार पर साहित्य में पाँच बिंब-स्पर्श बिंब, गंध बिंब, ध्वनि बिंब, आस्वाद्य बिंब तथा दृश्य बिंब प्रसिद्ध हैं।

यह कहना अनुचित न होगा कि छंद भी कविता के लिए अनिवार्य है। छंद को आंतरिक लय भी कहा जा सकता है। मुक्त छंद के लिए भी अर्थ की लय आवश्यक है। एक सफल कवि को भाषा के संगीत का ज्ञान होना चाहिए। जिन कवियों ने मुक्त छंद में कविता की रचना की है उनमें भले ही कोई विशेष छंद का प्रयोग न हो परंतु उसमें संगीतात्मकता तथा लयबद्धता तो होती ही है। यथा धूमिल द्वारा रचित कविता मोचीराम का उदाहरण देखिए-
“बाबू जी! सच कहूँ मेरी निगाह में
न कोई छोटा है
न कोई बड़ा है
मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने
मरम्मत के लिए खड़ा है।”
अथवा
अज्ञेय द्वारा रचित निम्नलिखित पद्य पंक्तियाँ देखिए-
“तुम्हारी देह
मुझको कनक-चम्पे की कली है
दूर ही से
स्मरण में भी गंध देती है।
(रूप स्पर्शातीत वह जिसकी लुनाई कुहासे-सी चेतना को मोह ले।)”

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प्रश्न 5.
कविता की संरचना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
कविता की संरचना के लिए सर्वप्रथम कविता संबंधी बुनियादी जानकारी होना आवश्यक है। सर्वप्रथम, कविता की रचना करने के लिए कवि के पास विभिन्न वस्तुओं को देखने और पहचानने की नवीन दृष्टि होनी चाहिए। विषय वस्तु को प्रस्तुत करने की कला का ज्ञान भी अवश्य होना चाहिए। इसी को हम प्रतिभा भी कहते हैं। प्रतिभा प्रकृति की देन है। यह प्रत्येक आदमी के पास किसी-न-किसी रूप में अवश्य होती है। किसी नियम या सिद्धांत का अनुसरण करते हुए प्रतिभा उत्पन्न नहीं की जा सकती। फिर भी निरंतर अभ्यास और शास्त्र ज्ञान द्वारा इसे हम विकसित अवश्य कर सकते हैं। कविता की संरचना करते समय शब्द चयन का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि शब्द चयन भावात्मक होने के साथ-साथ लयात्मक होना चाहिए। शब्द ज्ञान से ही भाषा पर हमारी पकड़ मजबूत होती है। इन विशेषताओं द्वारा भले ही हम कविता की रचना न कर सकें परंतु कविता की रचना करने का प्रयास अवश्य कर सकते हैं। यही नहीं, ऐसा करने से हम कविता का रसास्वादन कर सकते हैं और उसकी सराहना भी कर सकते हैं। शब्दों के संसार में प्रवेश करने से विद्यार्थियों की रचनात्मक शक्ति बाहर आती है। अतः कविता की संरचना के लिए कवि को शब्दों का समुचित ज्ञान होना चाहिए।

प्रश्न 6.
कविता के प्रमुख घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
कविता के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं

  • कविता भाषा में ही रची जाती है इसलिए कविता की रचना के लिए कवि को भाषा का सम्यक् ज्ञान होना चाहिए।
  • शब्दों के समुचित संयोजन से भाषा बनती है। शब्दों का सही विन्यास ही वाक्य का निर्माण करता है। कवि को सहज, सरल तथा प्रचलित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। परंतु कविता की संरचना इस प्रकार करनी चाहिए कि पाठक को कुछ नया सा लगे।
  • कविता में संकेतों का विशेष महत्त्व होता है। इसलिए कविता की पंक्तियों में लगने वाले चिह्नों (, – ! – 1) का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। वाक्य विन्यास की विशेष प्रणालियाँ ही शैली का निर्माण करती हैं।
  • कविता चाहे छंद में रचित हो या मुक्त छंद में, कवि को छंदों का समुचित ज्ञान अवश्य होना चाहिए अन्यथा कविता वांछित प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाएगी।
  • कविता समसामयिक प्रवृत्तियों से संबंधित होनी चाहिए।
  • कविता लिखते समय कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात करना एक उल्लेखनीय प्रवृत्ति होती है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि उपयुक्त शब्द चयन लय, तुक, वाक्य संरचना, बिंब विधान, छंद विधान तथा कम-से-कम शब्दों का प्रयोग ही कविता के प्रमुख घटक हैं।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
आपने अनेक कविताएँ पढ़ी होंगी। उनमें से आपको कौन-सी कविता सबसे अच्छी लगी? लिखिए। यह भी बताइए कि आपको वह कविता क्यों अच्छी लगी।
उत्तर:
यूं तो मैंने अनेक कविताएँ पढ़ी हैं परंतु मुझे कविवर ‘निराला’ द्वारा रचित ‘भिक्षुक’ नामक कविता बहुत अच्छी लगी है। इस कविता का एक अंश देखिए
“वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों हैं मिलकर एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।”
यह ‘भिक्षुक’ कविता का प्रथम काव्यांश है जिसमें कवि ने एक भिक्षुक की दीन-हीन स्थिति का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। इसमें कवि की गहन मानवीय संवेदना देखी जा सकती है। बिंब तथा छंद की दृष्टि से यह विशेष महत्त्व रखती है। एक दीन-हीन भिक्षुक का बिंब हमारे स्मृति पटल पर अंकित हो जाता है। भले ही यह कविता मुक्त छंद में रचित है परंतु इसमें आंतरिक लय विद्यमान है। शब्द चयन बड़ा ही सार्थक एवं सटीक है। अनुप्रास अलंकार के प्रयोग के कारण भाषा में लय का समावेश हो गया है। यह पद्यांश चित्रात्मक भाषा का सुंदर उदाहरण कहा जा सकता है। इसमें प्रसाद गुण है तथा करुण रस का परिपाक हुआ है। अंत में हम कह सकते हैं कि प्रस्तुत काव्यांश में सहज, सरल एवं भावानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है।

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प्रश्न 2.
आपके जीवन में अनेक ऐसी घटनाएँ घटी होंगी जिन्होंने आपके मन को छुआ होगा। उस अनुभूति को कविता के रूप में लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
मैं प्रातःकाल उठकर भ्रमण के लिए नगर के टाऊन पार्क में जाता हूँ। आजकल बसन्त ऋतु है और पार्क में रंग-बिरंगे फूल खिले हैं। एक दिन सवेरे-सवेरे आकाश में हल्के-हल्के बादल छा गए और हल्की-हल्की वर्षा होने लगी। मैं पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गया और उन हँसते-मुस्कराते फूलों को देखने लगा। इस अवसर पर मैंने एक छोटी-सी कविता रची जो कि इस प्रकार है
सुंदर फूल
देखो कितने प्यारे फूल।
सबसे न्यारे दिखते फूल।
काँटों से ये घिरे हुए हैं,
फिर भी लगते सुंदर फूल ॥
सर्दी-गर्मी को ये झेलें।
भ्रमर सदा इनसे खेलें।
मुरझाए या खिले हुए हों,
सबसे आँख-मिचौली खेलें ॥
बसंत-ऋतु में खूब ये खिलते।
घर-आँगन में सुंदर लगते।
झाड़ी हो या काटेदार पेड़,
फूल सदा हँसते रहते ॥

प्रश्न 3.
शब्दों का खेल, परिवेश के अनुसार शब्द-चयन, लय, तुक, वाक्य संरचना, यति-गति, बिंब, संक्षिप्तता के साथ-साथ विभिन्न अर्थ स्तर आदि से कविता बनती है। दी गई कविता में इनकी पहचान कर अपने शब्दों में लिखें-
एक-जनता का
दुख एक।
हवा में उड़ती पताकाएँ
अनेक।
दैन्य दानव। क्रूर स्थिति।
कंगाल बुद्धि; मजूर घर भर
एक जनता का अमरवर;
एकता का स्वर।
-अन्यथा स्वातंत्र्य इति।
-शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(1) एक-जनता का, दुख एक। इस पंक्ति में शब्दों का सुंदर खेल देखा जा सकता है। परंतु कवि ने परिवेश के अनुसार ही शब्दों का चयन किया है।

(2) कवि यह कहना चाहता है कि वर्तमान भारत में सारी जनता महंगाई, बेरोजगारी आदि के कारण अत्यधिक दुखी है। परंतु देश में अनेक राजनीतिक दल अपनी-अपनी पताकाएँ फहराते हुए गरीबी दूर करने का दावा करते हैं। ये सभी दल अपने-अपने घर भरने में लगे रहते हैं।

(3) संपूर्ण कविता भले ही मुक्त छंद में रचित है परंतु इसमें लय और तुक का सुंदर निर्वाह हुआ है।

(4) ‘एक-जनता का दुख एक’ तथा ‘हवा में उड़ती पताकाएँ अनेक’ वाक्य संरचना के सुंदर उदाहरण हैं जिनमें यति, गति तथा बिंब-विधान भी देखा जा सकता है। हवा में उड़ती पताकाओं का बिंब हमारे मन में अंकित हो जाता है।

(5) संपूर्ण कविता में कवि ने संक्षिप्तता का निर्वाह करते हुए समसामयिक अर्थ की सुंदर अभिव्यक्ति की है।

(6) यह कविता वर्तमान लोकतंत्रात्मक व्यवस्था पर करारा व्यंग्य भी करती है।

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HBSE 12th Class Hindi विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार

प्रश्न 1.
विशेष लेखन किसे कहते हैं? समाचारपत्रों में विशेष लेखन की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
आधुनिक युग में पाठकों की रुचियाँ बहुत व्यापक हो चुकी हैं। वे साहित्य से लेकर विज्ञान तक तथा व्यवसाय से लेकर खेल तक सभी विषयों की ताजा जानकारी चाहते हैं। कुछ ऐसे भी पाठक हैं जो विज्ञान, खेल अथवा सिनेमा में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। अतः वे अपने मन-पसंद विषय को विस्तार से पढ़ना चाहते हैं। फलस्वरूप समाचारपत्रों तथा अन्य जनसंचार माध्यमों को सामान्य समाचारों के साथ-साथ कुछ विशेष विषयों के बारे में भी जानकारी देनी पड़ती है, इसी को हम विशेष लेखन कहते हैं।

एक परिभाषा के अनुसार-“सामान्य लेखन से हटकर किसी खास विषय पर लिखा गया लेख विशेष लेखन कहलाता है।” अधिकांश समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के अतिरिक्त टी०वी० तथा रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए एक अलग डेस्क रहता है, जहाँ विशेष लेखन से संबंधित पत्रकारों का समूह बैठता है। यही नहीं, विभिन्न जनसंचार के माध्यम के कार्यालयों में अलग-अलग डेस्क बने रहते हैं, जहाँ अलग-अलग विभागों के उपसंपादक तथा संवाददाता बैठकर काम करते हैं।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि समाचार अनेक प्रकार के होते हैं। ये राजनीतिक, आर्थिक, अपराध, खेल जगत, फिल्म जगत, न या किसी और विषयों से संबंधित होते हैं। संवाददाताओं के मध्य उनकी रुचि और ज्ञान को देखते हए कार्य का बंटवारा किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे बीट कहते हैं। उदाहरण के रूप में एक संवाददाता की बीट खेल जगत है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने शहर तथा क्षेत्र में होने वाले खेलों तथा उनसे संबंधित घटनाओं की रिपोर्टिंग करेगा। अखबार की ओर से वही खेल रिपोर्टिंग के लिए जिम्मेवार होगा और जवाबदेही होगा।

इसी प्रकार यदि कोई संवाददाता आर्थिक या कारोबार से जुड़ी खबरों की जानकारी रखता है तो उसे आर्थिक रिपोर्टिंग का काम सौंपा जाएगा। यदि किसी की रुचि कृषि में है और वह पूरी जानकारी रखता है, तो वह कृषि जगत से संबंधित रिपोर्टिंग का काम करेगा। इसके लिए आवश्यक यह है कि विशेष लेखन से संबंधित संवाददाता को अपने विषय के बारे में समुचित जानकारी होनी चाहिए और उसे अपनी भाषा-शैली पर समुचित अधिकार होना चाहिए। समाचारपत्र का संपादक ही अपने संवाददाताओं की रुचियों और जानकारियों के हिसाब से बीट का वितरण करता है, जिससे सही व्यक्ति सही विषय के बारे में सही-सही जानकारी देने में समर्थ होता है।

प्रश्न 2.
बीट रिपोर्टिंग और विशेषीकृत रिपोर्टिंग में क्या अन्तर है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
संवाददाताओं के मध्य उनकी रुचि और ज्ञान को देखते हुए उनके कार्य का बंटवारा किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे ही बीट कहा जाता है। विशेष लेखन या रिपोर्टिंग बीट रिपोर्टिंग से व्यापक होता है। इन दोनों में निम्नलिखित अन्तर हैं-

बीट रिपोर्टिंगविशेषीकृत रिपोर्टिंग
1. संवाददाता की रुचि के क्षेत्र विशेष की रिपोर्टिंग को बीट रिपोर्टिंग कहा जाता है।1. किसी घटना या समस्या के विश्लेषण अथवा छानबीन से संबंधित रिपोर्टिंग को विशेषीकृत रिपोर्टिंग कहा जाता है।
2. संवाददाता अपनी रुचि के विषयों से सम्बन्धित सूचना ही देता है।2. इसमें संवाददाता को विशेष विषयों के सम्बन्ध में विशेष समाचार विस्तारपूर्वक लिखने पड़ते हैं।
3. बीट रिपोर्टिंग में संवाददाता को अपने क्षेत्र से सम्बन्धित सामान्य समाचार ही लिखने होते हैं।3. इसमें संवाददाता को विशेष विषय को चुनकर उनसे संबंधित समाचार लिखने होते हैं।
4. बीट रिपोर्टिंग देने वाले रिर्पोटर को संवाददाता कहते है।4. विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाले को विशेष संवाददाता कहते हैं।
5. बीट रिपोर्टिंग में भाषा के प्रयोग के लिए संवाददाता स्वतंत्र रहता है।5. विशेषीकृत रिपोर्टिंग लेखन में विशेष संवाददाता को विषय से संबंधित शब्दावली का ही प्रयोग करना पड़ता है।

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प्रश्न 3.
विशेष लेखन की भाषा और शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामान्य लेखन के समान विशेष लेखन की भी अपनी भाषा-शैली होती है। विशेष लेखक को प्रायः सहज, सरल तथा पाठकों को समझ में आने वाली भाषा का प्रयोग करना चाहिए, परंतु विशेष लेखन का संबंध जिस किसी विषय या क्षेत्र से होता है उसी से संबंधित तकनीकी शब्दों का अधिकतर प्रयोग किया जाता है जो कि सामान्य पाठकों के लिए समझना कठिन होता है। इसलिए विशेष लेखन की भाषा और शैली सर्वथा सामान्य लेखन से अलग प्रकार की होती है।

उल्लेखनीय बात यह है कि जिस विषय पर विशेष लेखन किया जाता है, उसी विषय से संबंधित विशेष तकनीकी शब्दावली का प्रयोग करना उचित होता है। अतः विशेष लेखन करने वाले पत्रकार को उस विषय की विशेष तकनीकी शब्दावली का उचित ज्ञान होना चाहिए अन्यथा वह विषय के साथ न्याय नहीं कर पाएगा। उदाहरण के रूप में, व्यापार तथा वाणिज्य पर विशेष लेखन करने वाले पत्रकार को उस शब्दावली का समुचित ज्ञान होना चाहिए, जिसका प्रयोग इसमें किया जाता है। कारोबार तथा व्यापार में इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग होता है

तेजड़िए, मंदड़िए, ब्याज दर, व्यापार घाटा, मुद्रास्फीति, बिकवाली, राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा, वार्षिक योजना, विदेशी संस्थागत निवेशक, आवक, निवेश, एफ०डी०आई०, आयात-निर्यात आदि शब्द। इसी प्रकार से सोने में भारी उछाल, चाँदी लुढ़की या आवक बढ़ने से लाल मिर्च की कड़वाहट घटी, शेयर बाज़ार ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े, सेंसेक्स आसमान पर आदि शब्दावली का प्रयोग कारोबार और व्यापार से जुड़े हुए विशेष लेखन में प्रयुक्त होता रहता है। इसी प्रकार पर्यावरण के तकनीकी शब्द अन्य प्रकार के, विज्ञान के अन्य प्रकार के, राजनीति के अन्य प्रकार के और कृषि जगत के अन्य प्रकार के हैं।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि विशेष लेखन की भाषा विषयानुसार ही होनी चाहिए, क्योंकि विशेष लेखन के पाठक भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं। जहाँ तक शैली का प्रश्न है, विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती, यदि बीट से जुड़ा कोई विशेष समाचार लिखा जा रहा होता है, तो उसके लिए उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग किया जाता है। फीचर के लिए कथात्मक-शैली का प्रयोग किया जाता है। लेख अथवा टिप्पणी के लिए फीचर की शैली का प्रयोग किया जा सकता है।

वस्तुतः शैली कोई भी अपनाई जाए, परंतु किसी विशेष विषय पर लिखा गया लेख अलग प्रकार से होना चाहिए। कारण यह है कि विशेष लेख को प्रत्येक पाठक नहीं पढ़ता। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि विशेष लेखन का पाठक वर्ग अलग प्रकार का होता है। उदाहरण के रूप में, कारोबार तथा व्यापार का पृष्ठ वही लोग पढ़ते हैं जो कोई कारोबार या व्यापार करते हैं अथवा शेयर मार्किट में रुचि रखते हैं। इसलिए इस प्रकार के विशेष लेख की भाषा-शैली अन्य सभी प्रकार के लेखों, समाचारों अथवा विशेष प्रकार की ही होगी।

प्रश्न 4.
विशेष लेखन के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
विशेष लेखन के अनेक क्षेत्र हैं। प्रायः सामान्य रिपोर्टिंग अथवा बीट के अतिरिक्त सभी क्षेत्र विशेष लेखन से संबंधित हैं और इनमें विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। किसी विषय का विशेषज्ञ ही उस विषय पर विशेष लेखन लिख सकता है। विशेष लेखन के अनेक क्षेत्र हैं-

  1. अर्थ-व्यापार
  2. खेल
  3. विज्ञान-प्रौद्योगिकी
  4. कृषि
  5. विदेश
  6. रक्षा
  7. पर्यावरण
  8. शिक्षा
  9. स्वास्थ्य
  10. फ़िल्म-मनोरंजन
  11. अपराध
  12. सामाजिक मुद्दे
  13. कानून
  14. धर्म और समाज
  15. फैशन

आज के समाचार पत्रों में खेल, कारोबार, सिनेमा, मनोरंजन, फैशन, स्वास्थ्य, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, जीवन-शैली और रहन-सहन आदि विषयों पर काफी विशेष लेखन हो रहा है। इसके साथ-साथ विदेशनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और विधि आदि क्षेत्रों पर विशेषीकृत रिपोर्टिंग को प्राथमिकता दी जा रही है। कारण यह है कि इन सभी विषयों से लोगों का सरोकार है। फिर भी यह कहना अनुचित न होगा कि पिछड़े भू-भागों और उनकी समस्याओं पर विशेष लेखन हो रहा है जो कि उचित नहीं है। .

प्रश्न 5.
विशेष लेखन के लिए विशेषज्ञता कैसे हासिल की जा सकती है?
उत्तर:
विशेष लेखन कोई सहज कार्य नहीं है। वस्तुतः आज की पत्रकारिता में ऐसे बहुत-से पत्रकार हैं, जिन्हें हम कह सकते हैं ‘जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स, बट मास्टर ऑफ नन’ अर्थात् जो सभी विषयों के जानकार तो हैं, परंतु किसी एक विषय के विशेषज्ञ नहीं हैं, परंतु यह माँग उठती जा रही है कि विषय का विशेषज्ञ होना नितांत आवश्यक है। अतः प्रश्न यह उठता है कि विषय में विशेषज्ञता कैसे हासिल की जा सकती है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं-
(1) पहली बात तो यह है कि व्यक्ति जिस किसी विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहता है, उसकी उसमें पर्याप्त रुचि होनी चाहिए।

(2) उच्चतर, माध्यमिक तथा स्नातक स्तर पर उसी विषय की पढ़ाई करनी चाहिए।

(3) विषय में पत्रकारीय विशेषज्ञता हासिल करने के लिए उस विषय से संबंधित पुस्तकों का गंभीर अध्ययन करना चाहिए।

(4) विशेष लेखन के क्षेत्र में जो लोग सक्रिय हैं, उन्हें स्वयं को अपडेट अर्थात् उनके पास विषय की आधुनिकतम जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए विषय से जुड़ी खबरों और रिपोर्टों की फाइल बनाई जा सकती है तथा विषय के प्रोफेशनल विद्यार्थियों, विशेषज्ञों के लेखों एवं विश्लेषणों की कटिंग संभालकर रखी जानी चाहिए।

(5) उस विषय से संबंधित शब्दकोश तथा इनसाइक्लोपीडिया भी विद्यार्थियों के पास होनी चाहिए।

(6) विषय में विशेषज्ञता हासिल करने वाले उस विषय से संबंधित सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों और संस्थाओं की सूची, उनकी वेब साइट, उनके टेलीफोन नंबर तथा विशेषज्ञों के फोन नंबर और पते भी उसके पास होने चाहिएँ।

(7) यदि कोई व्यक्ति आर्थिक विषयों में विशेषज्ञता हासिल करना चाहता है, तो उसके पास वित्त मंत्रालय तथा वहाँ के अधिकारियों, प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों और बाज़ार विशेषज्ञों के नाम और उनके फोन नंबर और उनके पते भी उसके पास होने चाहिए।

(8) कोई भी व्यक्ति अपनी रुचि अनुसार अध्ययन आदि के माध्यम से विशेषज्ञता हासिल कर सकता है।

(9) विशेषज्ञता प्राप्त करने में काफी समय लग सकता है। इसके लिए लंबे अनुभव की आवश्यकता होती है। यदि किसी व्यक्ति की किसी विषय में निरंतर सक्रियता बनी रहती है, तो वह उस विषय का निश्चय से विशेषज्ञ बन सकता है।

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प्रश्न 6.
कारोबार और व्यापार के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जो लोग प्रतिदिन समाचारपत्र पढ़ते हैं, उन्हें इस बात का पूरा ध्यान होगा कि समाचारपत्र में कारोबार तथा व्यापार से संबंधित एक पृष्ठ होता है। कुछ समाचारपत्रों में इसके लिए दो पृष्ठ निर्धारित किए जाते हैं, एक में शेयर मार्किट से संबंधित खबरें दी जाती हैं, दूसरे में विभिन्न कंपनियों के कारोबार की खबरें प्रकाशित की जाती हैं। इसी प्रकार खेल के लिए भी एक अलग पृष्ठ निर्धारित किया जाता है। इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कारोबार तथा खेल संबंधी समाचारों के बिना समाचार पत्र अधूरा है।

हम सभी इसी तथ्य से अवगत हैं कि धन के बिना मानव-जीवन अधरा है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में धन का विशेष महत्त्व होता है। हमें बाज़ार से कुछ खरीदने के लिए पैसा चाहिए। जो कुछ हम कमाते हैं, उसमें से कुछ पैसे बैंक में जमा कराते हैं, बचत करते हैं। अथवा किसी नए व्यवसाय को आरंभ करने की योजना बनाते हैं। इसके लिए हमें बैंक से ऋण लेना पड़ सकता है और हम अपनी बचत के पैसे भी उसमें लगा सकते हैं। इस प्रकार आर्थिक लाभ-हानि की बातें होती रहती हैं। इन सबका संबंध कारोबार व्यापार तथा अर्थ जगत से है। अतः इन विषयों से जुड़ी खबरों में पाठकों की काफी रुचि होती है।

सेंसेक्स का बढ़ना, सोने-चाँदी के भाव, विदेशी मुद्रा (जैसे-डॉलर, पौंड, आदि) की कीमत जरूरी उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत या कृषि से जुड़ी वस्तुओं जैसे-अनाज, दालें आदि की कीमत आदि के कारण कारोबार और व्यापार में कीमतें गिरती भी रहती हैं और बढ़ती भी रहती हैं। इसलिए पाठकों को कारोबारी सूचनाओं को प्राप्त करना पड़ता है, परंतु कारोबार तथा व्यापार का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें कृषि जगत, उद्योग जगत, व्यापार जगत, शेयर बाज़ार और देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े सभी पहलू सम्मिलित हैं। इन सभी क्षेत्रों में एक साथ विशेषता होना काफी कठिन कार्य है। अतः इसमें बैंकिंग विशेषज्ञ अलग होता है, शेयर बाज़ार का विशेषज्ञ अलग होता है तथा निवेश का विशेषज्ञ अलग होता है।

पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक पत्रकारिता काफी लोकप्रिय होती जा रही है। इसका कारण है कि देश की राजनीति, देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई है। हमारे देश में आर्थिक उदारीकरण तथा खुली अर्थव्यवस्था लागू हो चुकी है, जिससे राजनीति भी निरंतर प्रभावित हो रही है। इसलिए कारोबार तथा व्यापार से संबंधित आर्थिक पत्रकार को राजनीति का समुचित ज्ञान होना चाहिए, परंतु यहाँ इस बात का उल्लेख करना अनिवार्य होगा कि आर्थिक पत्रकारिता सामान्य पत्रकारिता से काफी जटिल होती है।

आर्थिक पत्रकारिता की अपनी शब्दावली है जो आम व्यक्ति की समझ में नहीं आती। आर्थिक पत्रकार को चाहिए कि वह अपने क्षेत्र की तकनीकी शब्दावली को आम व्यक्ति की समझ में आने वाली शब्दावली बनाए, तभी आर्थिक समाचार अधिक लोकप्रिय हो सके। दूसरी ओर, आर्थिक समाचारों के कुछ ऐसे पाठक होते हैं जो इसी क्षेत्र से जुड़े होते हैं। अतः आर्थिक पत्रकार को दोनों वर्गों के पाठकों में तारतम्य स्थापित करना चाहिए।

कारोबार तथा आर्थिक बाज़ार से जुड़ी हुई खबरें उलटा पिरामिड-शैली में ही लिखी जाती हैं। यही नहीं, कारोबार तथा व्यापार से फीचर भी लिखे जा सकते हैं। ऐसे फीचर अकसर समाचारपत्रों में प्रकाशित किए जाते हैं।

कारोबार तथा व्यापार के लेखन का एक उदाहरण देखिए-
निर्यात घटने से चीन चिंतित:
चीन से निर्यात होने वाली सभी वस्तुओं पर डंपिग विरोधी शुल्क लगा दिया गया है जिससे चीन का निर्यात घटने लगा है। इससे चीन की औद्योगिक इकाइयाँ अत्यधिक चिंतित हैं। इससे पहले चीन का निर्यात तीव्र गति से बढ़ रहा था। दूसरी ओर अमेरिका तथा यूरोपीय संघ के देशों में बेरोज़गारी दर बढ़ती जा रही थी। फलस्वरूप इस साल चीनी निर्यातकों को संरक्षणवाद का सामना करना पड़ रहा है। विश्व व्यापार संगठन में चीन के राजदूत सन झेन्यु ने अपनी इसी चिंता को व्यक्त किया। के उच्चकोटि के राजनीतिक सलाहकार समूह के सदस्य हैं तथा चीन के आयात-निर्यात के भी ज्ञाता हैं।

चीन-व्यापार वार्ताओं को आगे बढ़ाना चाहता है, परंतु हालात चीन के अनुकूल नहीं हैं। ऐसी बहुत कम संभावना है कि वैश्विक व्यापार की ये वाताएँ इस वर्ष पूरी हो सकेंगी। चीन पिछले कुछ सालों से वस्तुएँ विश्व के बाजार में सस्ते मूल्य पर झोंक रहा है। इससे उसके व्यापार में काफी वृद्धि हुई थी। परंतु पिछले कुछ सालों से भारत के अतिरिक्त कुछ अन्य देशों ने चीनी वस्तुओं के विरुद्ध 118 मामले शुरू कर दिए, जिससे 13 अरब डॉलर का चीनी निर्यात अत्यधिक प्रभावित हुआ है। इन देशों में अमेरिका का रुख बड़ा ही आक्रामक था। उसने चीन के विरुद्ध 23 मामले शुरू किए। फलस्वरूप चीन का 7.6 अरब डॉलर का व्यापार प्रभावित हुआ।

सन झेन्यु ने यह चिंता जताई कि अधिकतर मामलों में चीन को ही बलि का बकरा बनाया गया है। कारण यह है कि कुछ देश व्यापार घाटे की अपनी आर्थिक समस्या के लिए सीधे-सीधे चीन को ही दोषी मानते हैं। यद्यपि यह ठीक नहीं है। अमेरिका ने पिछले महीने ही तेल के कुएँ खोदने के लिए चीन से ड्रिल पाइप का आयात किया था, साथ ही उस पर डंपिग विरोधी तथा सबसिडिटी का मामला शुरू कर दिया, जिससे चीन के निर्यात को गहरा धक्का लगा। इस प्रकार यूरोपीय समुदाय के कुछ देशों ने कोटिड फाइन पेपर तथा कुछ अन्य उत्पादों के विरुद्ध डंपिग विरोधी मामला तय कर दिया। इस प्रकार के कदम चीनी अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का पहुँचा रहे हैं। विश्व के देशों को चीन की समस्याओं को समझना होगा और इस प्रकार के कदम उठाना बंद करना होगा।

प्रश्न 7.
समाचारपत्रों में खेलों का क्या महत्त्व है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
खेल जगत आज का सर्वाधिक लोकप्रिय क्षेत्र है। खेल हमारे जीवन में एक नई ऊर्जा संचरित करता है। बचपन से प्रत्येक बच्चे की खेलों में रुचि होती है। हमारे में से अधिकतर के अंदर एक खिलाड़ी अवश्य होता है, परंतु जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, तो जीवन की भागदौड़ तथा ज़िम्मेदारियों के कारण उसके अंदर का खिलाड़ी मर जाता है। फिर भी खेलों में हमारी रुचि बनी रहती है। जो लोग नियमित समाचारपत्र पढ़ते हैं, वे अकसर क्रिकेट, हॉकी, टेनिस अथवा फुटबॉल ओलंपिक या एशियाई खेलों के समाचारों को बड़े ध्यान से पढ़ते हैं। यद्यपि हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है, परंतु क्रिकेट ने तो देश में क्रांति उत्पन्न कर दी है। यही नहीं, आज समाचारपत्रों तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खेल समाचारों को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। समाचारपत्र तथा पत्रिकाएँ न केवल खेलों पर विशेष लेखन प्रकाशित करते हैं, बल्कि खेल विशेषांक और खेल परिशिष्ट भी प्रकाशित करते हैं। इसी प्रकार रेडियो और टेलीविज़न पर भी इसके कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।

खेल पत्रकार के लिए यह आवश्यक है कि उसे खेल के नियमों, खेल की तकनीक तथा उसकी बारीकियों का समुचित ज्ञान हो। खेल पत्रकार के लिए खेल समाचार अथवा विशेष लेखन लिखना कोई सहज कार्य नहीं है। क्रिकेट का जानकार केवल क्रिकेट के बारे में ही सही समाचार लिख सकता है। इसी प्रकार हॉकी की बारीकियों को समझने वाला व्यक्ति अलग होता है और फुटबॉल का विशेषज्ञ भी अलग होता है और वॉलीबाल का अलग होता है।

अतः यदि कोई व्यक्ति खेल में विशेषज्ञता हासिल करना चाहता है तो उसे उस विषय की समुचित जानकारी होनी चाहिए। उस खेल में कौन-कौन से कीर्तिमान स्थापित हो चुके हैं, उसका भी पता होना चाहिए। अब तो इस कार्य के लिए इंटरनेट की भी सुविधा ली जा सकती है, परंतु खेल पत्रकार को खेल संबंधी जानकारियाँ रोचक ढंग से प्रस्तुत करनी चाहिए। खेल संबंधी विशेष प्रदर्शन, खेल तकनीक आदि सभी का विश्लेषण करना लेखन को रोमांचक बनाता है। खेलों की रिपोर्टिंग तथा लेखन की भाषा-शैली भी अलग प्रकार की होती है। यह पाठक में ऊर्जा, उत्साह तथा रोमांच

उत्पन्न करती है। खेल संबंधी समाचार या रिपोर्ट आरंभ में उलटा पिरामिड-शैली में शुरू होती है। इसके बाद वह कथात्मक-शैली का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 8.
सूचनाओं के विभिन्न स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
सूचनाओं के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं-

  1. मंत्रालय के सूत्र
  2. प्रेस कॉन्फ्रेंस और विज्ञप्तियाँ
  3. साक्षात्कार
  4. सर्वे
  5. जाँच समितियों की रिपोर्ट
  6. क्षेत्र विशेष में सक्रिय संस्थाएँ और व्यक्ति
  7. इंटरनेट और दूसरे संचार माध्यम
  8. संबंधित विभागों और संगठनों से जुड़े व्यक्ति
  9. स्थायी अध्ययन प्रक्रिया

HBSE 12th Class Hindi विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही भारत की पाँच संस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. भौतिक अनुसंधानशाला, अहमदाबाद
  2. गणित एवं विज्ञान संस्थान, चेन्नई
  3. साहा नाभिकीय भौतिक संस्थान, कोलकाता
  4. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्
  5. नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन
  6. रक्षा अनुसंधान एवं विज्ञान संगठन

प्रश्न 2.
पर्यावरण पर छपने वाली किन्हीं तीन पत्रिकाओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. डाऊन टू अर्थ
  2. पर्यावरण बचाओ
  3. हमारा पर्यावरण

प्रश्न 3.
व्यावसायिक शिक्षा के दस विभिन्न पाठ्यक्रमों के नाम लिखें और इनका ब्योरा एकत्र करें।
उत्तर:

  1. बैंकिंग पाठ्यक्रम
  2. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
  3. भारतीय विज्ञान संस्थान
  4. भारतीय प्रबंधन संस्थान
  5. मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन
  6. चार्टर्ड अकाऊन्टैंसी
  7. मास्टर ऑफ़ कंप्यूटर एपलीकेशन
  8. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान
  9. इन्स्टीच्यूट ऑफ़ फूड टेक्नोलॉजी
  10. भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अपने शब्दों में आलेख लिखें-
(क) सानिया मिर्जा के खेल के तकनीकी पहलू
(ख) शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाए जाने के परिणाम
(ग) सर्राफे में आई तेजी
(घ) फिल्मों में हिंसा
(ङ) पल्स पोलियो अभियान सफलता या असफलता
(च) कटते जंगल
(छ) ग्रहों पर जीवन की खोज
उत्तर:
(च) कटते जंगल
वह भी समय था, जब पृथ्वी पर घने जंगल थे। उस समय वर्षा समय पर होती थी और स्वच्छ नदियाँ धरती को सींचती हुई सागर की गोद में समा जाती थीं। जंगली जानवरों को भरपेट भोजन मिलता था और अनेक प्रकार के पक्षी चहचहाते थे। मानव को भी जंगलों में पर्याप्त भोजन और आश्रय प्राप्त होता था। धीरे-धीरे विकास की चाह ने मानव को सभ्य बनाया। वह जंगल काटकर नगा। अनेक गाँव बस गए और नगरों का विकास होने लगा। फिर आया वैज्ञानिक युग। धीरे-धीरे जंगल तेजी के साथ काटे जाने लगे और पृथ्वी का हरा-भरा भू-भाग नंगा तथा बूचड़ हो गया, रेगिस्तानी क्षेत्र का विस्तार हुआ। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार संसार का सबसे बड़ा सहारा रेगिस्तान कभी हरा-भरा जंगल था। लेकिन आज वहाँ के लोगों का जीवन नरक-तुल्य बना हुआ है।

मध्य प्रदेश में कुछ ही वर्ष पहले घने जंगल होते थे। यहाँ के आदिवासी इन हरे-भरे जंगलों पर आश्रित थे। उन्हें जड़ी-बूटियाँ आसानी से मिल जाती थीं, जिन्हें बेचकर वे कुछ रुपये कमा लेते थे। कुछ शिकार पर आश्रित थे और कुछ खेती पर। वे सुखद जीवन-यापन कर रहे थे। फिर तेजी के साथ जंगलों का सफाया होने लगा। नए-नए औद्योगिक प्लांट लगे और मीलों तक पाइप लाइनें बिछीं। सड़कों के जाल के कारण गाँव भी उजड़ने लगे। रोज़गार की तलाश में ग्रामीणों ने शहरों की ओर मुँह किया। कोई चंबल की घाटियों में डाकुओं के गिरोह में शामिल होकर पुलिस की गोली का शिकार बन गया। नगरों में आकर ये ग्रामीण युवक अपना स्वास्थ्य खो बैठे। कोई रिक्शा चलाता है, कोई पत्थर ढोता है और कोई छोटी-मोटी मजदूरी करके अपनी आजीविका चलाता है। अब संपूर्ण मध्य प्रदेश में वर्षा बहुत कम होती है, नदियाँ गर्मी आने से पहले ही सूख जाती हैं और नगर के लोग सरकार पर दोष मड़ते रहते हैं। कोई नहीं सोचता कि जंगलों को काटने के दुष्परिणाम तो उन्हें भोगने ही पड़ेंगे।

यह स्थिति केवल मध्य प्रदेश की ही नहीं, पूरे भारत तथा एशिया के अधिकांश देशों की है। पहले हरियाणा तथा पंजाब पूरे भारत को अनाज देने में सक्षम थे। लेकिन यहाँ पर भी अब पानी की किल्लत महसूस की जा रही है। अनाज और दूध का उत्पादन घट गया है। जंगलों की कटाई यहाँ पर भी अधिक मात्रा में हुई है। जनसंख्या वृद्धि की ओर कोई सरकार ध्यान नहीं देना चाहती। राजनीतिक पार्टियाँ केवल वोट बैंक पर नज़र गड़ाये रहती हैं। अब तो जंगलों के साथ-साथ कृषि उपयोगी भूमि का भी सफाया होने लगा है। समाज के सुविधाभोगी लोग नगर से बाहर भव्य कालोनियों का विकास करने में लगे हुए हैं। कोई नहीं सोचता कि जंगलों की यह अंधाधुंध कटाई पूरी मानव जाति को निगल जाएगी।

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जंगलों की कटाई संपूर्ण मानव जाति के लिए हानिकारक है। जंगलों के स्थान पर जो उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं, उससे कार्बन-डाइआक्साइड जैसी विषैली गैस वातावरण को दूषित कर रही है। उद्योगों से निकलने वाला गंदा पानी जल तथा भूमि प्रदूषण को बढ़ावा दे रहा है। ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है। इसी प्रकार पृथ्वी के चारों ओर ओज़ोन की परत में भी छेद हो चुके हैं, परंतु हम यह भूल चुके हैं कि ऑक्सीजन ही हमारे लिए प्राण वायु है और यह घने जंगलों से ही उत्पन्न होती है। जंगलों के वृक्ष जहरीली गैसों को सोख लेते हैं और उन्हें ऑक्सीजन में परिवर्तित कर देते हैं। घने जंगलों के कारण ही भरपूर वर्षा होती है और नदियों का पानी कभी नहीं सूखता। जंगलों के कुछ अदृश्य लाभ भी हैं। यही विभिन्न प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न करते हैं, जंगली जानवरों को भोजन देते हैं और पृथ्वी को शोभायमान बनाते हैं। आज जिस पेट्रोल, रसोई गैस, कोयले को हम प्राप्त कर रहे हैं वे सब जंगलों की ही देन है।

जंगलों की कटाई प्राणियों के अस्तित्व के लिए खतरा है। यदि और जंगल कटने लगे तो हमारा संपूर्ण पर्यावरण अस्त-व्यस्त हो जाएगा। वायु का तापमान बढ़ जाएगा और ग्लेशियर पिघल जाएँगे। फलस्वरूप नदियों में बाढ़ आ जाएगी और सागर का जल स्तर बढ़ जाएगा, जिससे पृथ्वी का एक बहुत बड़ा भू-भाग पानी की गोद में समा जाएगा। समय रहते हमें अधिकाधिक जंगल लगाने चाहिए और अपनी तथा भावी पीढ़ी की रक्षा करनी चाहिए। हम इस बात का ध्यान रखें कि जंगल ही मानव जाति को सुखद जीवन दे सकते हैं।

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HBSE 12th Class Hindi पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

प्रश्न 1.
पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार तथा संवाददाता समाचारपत्रों, रेडियो, टी०वी० आदि माध्यमों के द्वारा अपने पाठकों, दर्शकों तथा श्रोताओं को जो सूचनाएँ पहुँचाते हैं, उन्हें लिखने के लिए वे अलग-अलग प्रकार के तरीके अपनाते हैं। इसे ही हम पत्रकारीय लेखन कहते हैं। जनसंचार माध्यमों में लिखने की शैलियाँ अलग-अलग होती हैं। उन्हें जानना आवश्यक है। इनमें समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट, टिप्पणियाँ आदि प्रकाशित होती रहती हैं। इन सभी का संबंध पत्रकारीय लेखन से है। पत्रकारीय लेखन के कई रूप होते हैं।

पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-

  • पूर्णकालिक पत्रकार
  • अंशकालिक पत्रकार
  • फ्रीलांसर

(1) पूर्णकालिक पत्रकार पत्रकार किसी-न-किसी समाचार संगठन का नियमित कर्मचारी होता है और वेतन आदि सभी सुविधाओं को प्राप्त करता है।

(2) अंशकालिक पत्रकार-किसी भी समाचार संगठन द्वारा निश्चित किए गए मानदेय पर काम करता है।

(3) फ्रीलांसर-पत्रकार का किसी विशेष समाचार संगठन से संबंध नहीं होता। वह अलग-अलग समाचार पत्रों के लिए लिखता है और बदले में कुछ पारिश्रमिक प्राप्त करता है।

पत्रकारीय लेखन का संबंध देश तथा समाज में घटने वाली समस्याओं से होता है। पत्रकार तत्कालीन घटनाओं का वर्णन लिखकर समाचार संगठन को भेजता है। उसे पाठकों की रुचियों का भी ध्यान रखना होता है। वह हमेशा इस बात का ध्यान रखता है कि उसका लेखन विशाल जनसमूह के लिए है न कि किसी वर्ग-विशेष के लिए। उससे यह आशा की जाती है कि वह सहज, सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करे, उसे लंबे-लंबे वाक्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए और न ही अनावश्यक विशेषणों और उपमाओं का प्रयोग करना चाहिए।

HBSE 12th Class Hindi पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

प्रश्न 2.
समाचार कैसे लिखा जाता है?
उत्तर:
पत्रकारीय लेखन का सर्वाधिक जाना-पहचाना रूप समाचार लेखन है। प्रायः पूर्णकालिक तथा अंशकालिक पत्रकारों द्वारा अधिकांश समाचार लिखे जाते हैं। जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहा जाता है। इनके द्वारा अखबारों में प्रकाशित अधिकांश की शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी घटना, समस्या, विचार से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य, सूचना, या जानकारी को प्रथम प्रघटक (पैराग्राफ) में लिखा जाता है।
HBSE 12th Class Hindi पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया 1उसके बाद उस पैराग्राफ में कम महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ दी जाती हैं और यह प्रक्रिया समाचार समाप्त होने तक जारी रहती हैं। इसे समाचार लेखन की उलटा पिरामिड-शैली कहते हैं। यह समाचार लिखने की उपयोगी एवं लोकप्रिय शैली मानी गई है। इस शैली का प्रयोग 19वीं सदी के मध्य में शुरू हो चुका था, परंतु इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेशों के द्वारा भेजनी पड़ती थीं। इसलिए उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग अधिक होने लगा। आज लेखन तथा संपादन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए यह शैली समाचार लेखन की मानक शैली बन गई है। परंतु कथात्मक लेखन में सीधा पिरामिड-शैली का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
समाचार लेखन के छह ककार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
समाचार लेखन के मुख्यतः छह ककार हैं। समाचार लिखते समय इन छह ककारों का उत्तर देने की कोशिश की जाती है।

  1. क्या हुआ?
  2. किसके साथ हुआ?
  3. कहाँ हुआ?
  4. कब हुआ?
  5. कैसे हुआ?
  6. क्यों हुआ?

समाचार के मुखड़े (इंट्रो) अर्थात् पहले पैराग्राफ़ या प्रघटक में तीन या चार ककारों के आधार पर कुछ पंक्तियों में खबरें लिखी जाती हैं। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ?
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इसके बाद समाचार की बॉडी में तथा समापन से पहले अन्य दो ककारों जैसे; कैसे और क्यों का उत्तर लिखा जाता है और समाचार तैयार हो जाता है। पहले चार ककारों में सूचना तथा तथ्य दिए जाते हैं, शेष दो ककारों में विवरण, व्याख्या तथा विश्लेषण आदि पहलुओं पर बल दिया जाता है। एक उदाहरण द्वारा हम इसे स्पष्ट कर सकते हैं

समाचार का शीर्षक-पुणे में बम विस्फोट से 9 लोग मरे, 60 घायल समाचार का इंट्रो-पुणे में 13 फरवरी के ओशो आश्रम के पास स्थित एक बेकरी में सायं 7.30 बजे बम विस्फोट में नौ ग्राहकों की मृत्यु हो गई और लगभग 60 लोग घायल हो गए। घायलों को निकटवर्ती अस्पतालों में भर्ती करा दिया गया है।

समाचार की बॉडी-आतंकवादियों की इस दिल दहला देने वाली घटना से पूरा नगर हिल गया। मरने वालों में विदेशी नागरिक भी थे। अभी तक किसी आतंकवादी संगठन ने इस विस्फोट की ज़िम्मेदारी नहीं ली। पुलिस दस्तों को इसके पीछे पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष हाथ नज़र आ रहा है।

महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री ने कहा कि यह घटना बड़ी दुखद है। पुलिस कमिश्नर ने कहा कि सरकार ने इस घटना की जाँच के लिए खोजी दस्ता लगा दिया है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पुलिस दल एक घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंचा।

यहाँ पर यह स्पष्ट किया गया है कि इंट्रों में चार ककारों-क्या, कौन, कब और कहाँ से संबंधित आवश्यक जानकारी दी गई है। तत्पश्चात् अन्य दो ककारोंकैसे तथा क्यों द्वारा दुर्घटना के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। अंत में राज्य के गृहमंत्री, पुलिस कमिश्नर तथा प्रत्यक्षदर्शियों के विचार भी दिए गए हैं।

प्रश्न 4.
फ़ीचर किसे कहते हैं?
उत्तर:
समाचारपत्रों में समाचारों के अतिरिक्त कुछ अन्य पत्रकारीय लेखन भी छपते रहते हैं। इनमें फ़ीचर, रिपोर्ट, विचार पर लेखन, टिप्पणियाँ, संपादकीय आदि कुछ उल्लेखनीय लेखन हैं। फ़ीचर इन सबमें प्रमुख माना गया है। एक परिभाषा के अनुसार “फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक तथा आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने तथा मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है।”

फ़ीचर समाचार की तरह पाठकों को तत्काल घटित घटनाओं से परिचित नहीं कराता। फीचर लेखन की शैली समाचार लेखन की शैली से अलग प्रकार की होती है। समाचार लिखते समय संवाददाता वस्तुनिष्ठ एवं शुद्ध तथ्यों का प्रयोग करता है। समाचार में वह अपने विचार प्रकट नहीं कर सकता। परंतु फीचर लेखक अपनी भावनाओं, दृष्टिकोणों तथा विचारों को व्यक्त करता है। फीचर-लेखन में उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग न करके सीधी पिरामिड-शैली अर्थात् कथात्मक-शैली का प्रयोग किया जाता है। दूसरा फीचर लेखन की भाषा समाचारों की भाषा की तरह सामान्य बोलचाल की नहीं होती, बल्कि यह सरल, रूपात्मक, साहित्यिक, आकर्षक और मन को छूने वाली होती है।

फीचर में समाचारों के समान शब्दों की संख्या सीमित नहीं होती। प्रायः समाचारपत्र तथा पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फीचर छपते हैं। एक सफल तथा रोचक फ़ीचर के साथ फोटो, रेखांकन तथा ग्राफिक्स का प्रयोग किया जाता है। यह हलके-फुलके विषयों से लेकर किसी गंभीर या महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर लिखा जा सकता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि फ़ीचर एक ऐसा ट्रीटमेंट है जो प्रायः विषय तथा समस्या के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है। यह पाठकों की रुचि तथा समाज की आवश्यकताओं को देखकर लिखा जाता है।

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प्रश्न 5.
फीचर की विशेषताएँ बताते हुए स्पष्ट करें कि फीचर कैसे लिखा जाना चाहिए?
उत्तर:

  1. फीचर किसी सच्ची घटना पर लिखा जाता है और यह पाठक के समक्ष उस घटना का चित्र अंकित कर देता है।
  2. फीचर सारगर्भित होता है, परंतु यह बोझिल नहीं होता।
  3. फीचर लेखन का विषय अतीत, वर्तमान तथा भविष्य से संबंधित हो सकता है।
  4. फ़ीचर जिज्ञासा, सहानुभूति, संवेदनशीलता, आलोचनात्मक तथा विवेचनात्मक भावों को उद्दीप्त करता है।
  5. फीचर किसी महत्त्वपूर्ण खोज तथा उपलब्धि पर लिखा जा सकता है।

फ़ीचर लिखते समय कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना जरूरी माना गया है। फीचर को सजीव बनाने के लिए विषय-वस्तु से जुड़े हुए लोगों का होना आवश्यक है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि फ़ीचर में कुछ पात्र भी होने चाहिएँ, उन्हीं के द्वारा विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए। फीचर में विषय-वस्तु का वर्णन इस प्रकार होना चाहिए कि पाठक को यह लगे कि वह स्वयं देख रहा है और सुन भी रहा है। एक दूसरी विशेषता यह है कि फ़ीचर मनोरंजक होने के साथ-साथ सूचनात्मक भी होना चाहिए। फ़ीचर में नीरसता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

यह आकर्षक और रोचक होना चाहिए। फ़ीचर पढ़ते समय पाठक को ऐसा न लगे कि वह किसी बैठक अथवा सभा की कार्यवाही का विवरण पढ़ रहा है। यही कारण है कि फीचर लिखते समय लेखक तथ्यों, सूचनाओं तथा विचारों को आधार बनाता है, परंतु वह कथात्मक विवरण द्वारा विषय का विश्लेषण करता हुआ आगे बढ़ता है। फीचर में कोई-न-कोई विषय अर्थात् थीम अवश्य होता है, उसी के चारों ओर सभी सूचनाएँ, तथ्य और विचार गुँथे जाते हैं। उल्लेखनीय बात तो यह है कि फीचर पाठक के मन को भाना चाहिए।

प्रश्न 6.
फ़ीचर से क्या अभिप्राय है? फीचर और समाचार में क्या अन्तर है?
उत्तर:
फीचर एक सुव्यवस्थित तथा आत्मनिष्ठ लेखन है, जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने तथा उनका मनोरंजन करना है। फीचर और समाचार में निम्नलिखित अन्तर हैं

फ़ीचरसमाचार
1. समाचार का उद्देश्य पाठकों को सूचना देना शिक्षित करने तथा उनका मनोरंजन करना है।1. फीचर का प्रमुख उद्देश्य पाठकों को सूचना देने,
2. फीचर को कथात्मक शैली में लिखा जाता है।2. समाचार उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है।
3. फीचर पाठक को तात्कालिक घटनाओं से अवगत नहीं करवाता अपितु एक दृष्टिकोण विशेष की जानकारी देता है।3. समाचार केवल तात्कालिक घटनाओं का ब्योरा देता है।
4. फीचर आकर्षक, रूपात्मक व मनमोहक भाषा में रचित होता है।4. समाचार अत्यन्त सरल भाषा में लिखा जाता है।
5. फ़ीचर कम-से-कम शब्दों में लिखा जाता है।5. समाचार अधिक विस्तार में लिखा जाता है।
6. फ़ीचर में लेखक कल्पना की उड़ान भी भर सकता है।6. समाचार पूर्णतः तथ्यों पर आधारित होता है। जारी…
7. फीचर में लेखक के दृष्टिकोण व भावनाओं की अभिव्यक्ति रहती है।7. समाचार लेखन में पत्रकार अपने दृष्टिकोण व भावनाओं को व्यक्त नहीं कर सकता।
8. फीचर किसी महत्त्वपूर्ण खोज व उपलब्धि को विषय बनाकर भी लिखा जा सकता है।8. समाचार तात्कालिक घटनाओं के लेखन तक ही सीमित रह जाता है।
9. फीचर लेखन का विषय अतीत, वर्तमान व भविष्य से सम्बन्धित हो सकता है।9. समाचार में केवल वर्तमान का ही उल्लेख किया जाता है।

प्रश्न 7.
फीचर के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
फीचर के अनेक प्रकार होते हैं; जैसे-

  1. समाचार बैकग्राउंडर फीचर
  2. खोजपरक फ़ीचर
  3. साक्षात्कार फीचर
  4. जीवनशैली फीचर
  5. रूपात्मक फीचर
  6. व्यक्तिचित्र फ़ीचर
  7. यात्रा फ़ीचर
  8. विशेष रुचि के फ़ीचर

यों तो फीचर लिखने का कोई निश्चित फार्मूला नहीं होता है। इसे कहीं से भी शुरू किया जा सकता है। फिर भी प्रत्येक फीचर में प्रारंभ, मध्य और अंत अवश्य होता है।

प्रारंभ-फीचर का प्रारंभ आकर्षक तथा जिज्ञासावर्धक होना चाहिए। यदि हम किसी लोकप्रिय कवि पर व्यक्तिचित्र फीचर लिखने जा रहे हैं, तो हम उसकी शुरुआत किसी ऐसी घटना के वाक्य से कर सकते हैं जिसने उनके जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हो।

मध्य-फीचर के मध्य भाग में उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएँ, उसकी उपलब्धियों और विशेषज्ञों के रोचक, आकर्षक एवं खास वक्तव्यों पर प्रकाश डाला जा सकता है। यही नहीं, हम उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाल सकते हैं।

अंत-फीचर के अंतिम भाग में उस लोकप्रिय व्यक्ति की भावी योजनाओं पर ध्यान आकर्षित किया जाना चाहिए। ताकि उस लोकप्रिय व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व पाठकों के समक्ष उभरकर आ सके। फ़ीचर लेखन में इस प्रकार के विषय का चयन करना चाहिए जो समसामयिक होने के साथ-साथ लोकरुचि के अनुकूल हो। फीचर की सामग्री विभिन्न स्थलों पर जाकर एकत्रित की जा सकती है। फीचर लिखते समय लेखक को अपनी तर्कशील तथा सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

फ़ीचर के कुछ उदाहरण

मसूरी का कैंप्टीफॉल:
मई-जून के महीनों में उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र गर्मी के कारण झुलसने लगते हैं। प्रायः महानगरों के सुविधाभोगी लोग पर्वतीय क्षेत्रों की ओर पलायन करने लगते हैं। उत्तराखंड का मसूरी एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। प्रायः हम सोचते हैं कि मसूरी में ठंड नहीं होगी, परंतु जैसे ही हम पहाड़ी पर पहुंचते हैं, ठंडी हवा का अहसास होने लगता है। मसूरी से थोड़ी दूर ही कैंप्टीफॉल है। यहाँ बड़ी ऊँचाई से एक झरना नीचे आकर गिरता है। यात्री इसे देखकर हक्के-बक्के रह जाते हैं। कैंप्टीफॉल का झरना हरे-भरे पहाड़ों की गोद में नहीं है, बल्कि ऊबड़-खाबड़ और झाड़-झंखाड़ वाले पहाड़ों की गोद में स्थित है। झरने तक पहुँचने के लिए सर्पाकार सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। इन सीढ़ियों के एक तरफ कुछ दुकानें हैं। लगभग दो सौ सीढ़ियाँ उतरने के बाद कैंप्टीफॉल आता है। यहाँ शीतल जल का एक छोटा-सा सरोवर बना है। यात्री उस पानी में नहाते हैं और तालाब के इर्द-गिर्द बैठकर फोटो खिंचवाते हैं। यह झरना दो सौ फुट की ऊँचाई से गिरता है। यहाँ थोड़ी धूप और गर्मी होती है। परंतु नीचे शीतल जल के कारण ठंडक होती है। जल का स्तर चार से पाँच फुट ही है। जल के निरंतर प्रवाह के कारण तालाब का पानी हमेशा स्वच्छ रहता है, जिससे यात्रियों के मन में ताज़गी उत्पन्न होती है। स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़कियाँ, नवविवाहित जोड़े यहाँ पानी में क्रीड़ाएँ करते आनंद लेते हैं।

ठंडे पानी में घुसते ही शरीर में झुरझुरी-सी आ जाती है। ऐसा लगता है कि मानों गंगा की धारा व्यक्ति के सिर पर गिर रही हो। छोटे बच्चे जल की इस धारा को सहन नहीं कर सकते। इसलिए माता-पिता अपने छोटे पुत्र या पुत्री को कंधे पर बिठाकर झरने के नीचे ले जाते हैं। कुछ देर स्नान करने के बाद यात्री बाहर निकल आते हैं और आने वाले यात्री उस जल में प्रवेश करते हैं। सरोवर के चारों ओर बड़ा ही सुखद वातावरण होता है। जो भी व्यक्ति मसूरी जाता है, वह कैंप्टीफॉल में अवश्य स्नान करता है। इस दृश्य को देखे बिना मसूरी की यात्रा व्यर्थ है।

HBSE 12th Class Hindi पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

महानगर की ओर पलायन करने की समस्या:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने ग्रामीण अंचल के विकास की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये महानगरों के विकास पर खर्च होते रहे। जब लोगों को गाँव में रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं हुए, तो वे महानगरों की ओर पलायन करने लगे। इसके लिए टी०वी०, मीडिया कम दोषी नहीं है। उनके समाचारों का अस्सी प्रतिशत भाग महानगरों से संबंधित होता है। इसलिए गाँव का आम आदमी महानगरों की चकाचौंध से भ्रमित हो जाता है। उसे लगता है कि वहाँ तो सब तरह की सुख-सुविधाएँ हैं। वे महानगरों की समस्याओं से अनजान होते हैं। इसलिए महानगर में आकर ग्रामीण व्यक्ति के सारे सपने चूर-चूर हो जाते हैं।

यहाँ उसे या तो रिक्शा चलानी पड़ती है या छोटी-मोटी मजदूरी करनी पड़ती है। रहने के लिए झुग्गी-झोंपड़ियों की ओर रुख करता है, न तो वह गाँव की ओर लौट पाता है, न ही महानगर में सुखपूर्वक रह पाता है। कुछ लोग तो भयंकर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं कुछ अपराधियों के चंगुल में फँस जाते हैं। इस समस्या का हल तत्काल खोजना होगा। सरकार को अतिशीघ्र गाँव के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। यदि गाँव में बिजली, पानी, रोजगार की सुविधाएँ प्राप्त हो जाएँ, तो कोई भी गाँव का निवासी महानगरों की ओर मुँह नहीं करेगा। अतः गाँव में ही कुटीर उद्योगों का जाल फैलाया जाना चाहिए और कृषि उद्योग के विकास की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।

विशेष रिपोर्ट

प्रश्न 8.
विशेष रिपोर्ट लिखने की प्रक्रिया क्या है? इसके प्रकार और लिखने की शैली क्या है?
उत्तर:
अकसर समाचारपत्र तथा पत्रिकाओं में साधारण समाचार के अतिरिक्त कुछ विशेष रिपोर्ट भी प्रकाशित होती रहती हैं, जिनका आधार गहरी छानबीन, विश्लेषण तथा व्याख्या होती है। विशेष रिपोर्टों को तैयार करने के लिए किसी घटना या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है और उससे संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित कर लिया जाता है। फिर उसकी संश्लेषणात्मक पद्धति द्वारा उसके परिणामों तथा कारणों को स्पष्ट किया जाता है।

विशेष रिपोर्ट के अनेक प्रकार होते हैं-

  1. खोजी रिपोर्ट
  2. इन-डेप्थ रिपोर्ट
  3. विश्लेषणात्मक रिपोर्ट
  4. विवरणात्मक रिपोर्ट

(1) खोजी रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में संवाददाता मौलिक शोध तथा छानबीन करता हुआ सूचनाओं तथा तथ्यों को उजागर करता है। क्योंकि पहले ये सूचनाएँ तथा तथ्य सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं होते। प्रायः भ्रष्टाचार, अनियमितता तथा गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए खोजी रिपोर्ट लिखी जाती है, परंतु इस कार्य में खतरा भी होता है, क्योंकि भ्रष्ट तथा अपराधी प्रवृत्ति के लोग उसे शारीरिक तथा मानसिक हानि भी पहुँचा सकते हैं।

(2) इन-डेप्थ रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं तथा आँकड़ों की गहराई से छानबीन की जाती है। तत्पश्चात् किसी घटना, समस्या या मुद्दे के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है।

(3) विश्लेषणात्मक रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या से संबंधित तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है तथा फिर व्याख्या करने के बाद उसका कोई निष्कर्ष निकाला जाता है।

(4) विवरणात्मक रिपोर्ट-इस रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या का विस्तृत और सूक्ष्म विवरण दिया जाता है और उसको रोचक बनाया जाता है।

विशेष रिपोर्ट लिखने की शैली-प्रायः विशेष रिपोर्टों में समाचार लेखन की उलटा पिरामिड-शैली का ही प्रयोग किया जाता है। लेकिन कुछ रिपोर्ट फीचर शैली में भी लिखी जाती हैं, कारण यह है कि रिपोर्ट सामान्य समाचारों की अपेक्षा आकार में बड़ी और विस्तृत होती हैं, इसलिए पाठकों में रुचि जाग्रत करने के लिए उलटा पिरामिड-शैली और फीचर शैली का मिश्रित प्रयोग किया जाता है। यदि रिपोर्ट बहत विस्तृत और बड़ी हो, तो उसे शृंखलाबद्ध करके किस्तों में भी छापा जा सकता है। वि समय निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए-

  1. रिपोर्ट का आकार सरल और संक्षिप्त होना चाहिए, क्योंकि आज के पाठकों के पास अधिक समय नहीं होता।
  2. रिपोर्ट हमेशा सत्य पर आधारित होनी चाहिए, तभी वह विश्वसनीय होगी।
  3. रिपोर्टर को निष्पक्ष होकर रिपोर्ट लिखनी चाहिए, अन्यथा इसका प्रभाव अनुकूल नहीं होगा।
  4. रिपोर्ट संकलित होनी चाहिए, इसमें किसी एक पक्ष की बात न कहकर सभी पक्षों का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  5. रिपोर्ट अपने-आप में पूर्ण होनी चाहिए। पाठक अधूरी रिपोर्ट पढ़ना नहीं चाहता।
  6. रिपोर्ट की भाषा सहज, सरल तथा सामान्य बोलचाल की होनी चाहिए, जिसमें उर्दू तथा अंग्रेजी शब्दों का मिश्रण भी होना चाहिए।

विशेष रिपोर्ट के कुछ उदाहरण

गाँव में मनाए गए वृक्षारोपण समारोह की रिपोर्ट
आज दिनांक …………… सुबरी गाँव में वृक्षारोपण समारोह का आयोजन किया गया। हमारे विद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के विद्यार्थियों ने पंचायत की ज़मीन में लगभग एक हजार पौधे लगाए। इस समारोह का उद्घाटन जिला उपायुक्त के कर-कमलों द्वारा हुआ। इस अवसर पर लगभग एक हज़ार लोग उपस्थित थे। स्कूल के विद्यार्थियों ने यह प्रतिज्ञा ली कि वे इन रोपित वृक्षों की लगातार रक्षा करते रहेंगे तथा समय-समय पर सिंचाई करते रहेंगे। स्कूल के बच्चों ने इस अवसर पर एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया। उपायुक्त ने इस अवसर पर कहा कि वृक्षारोपण ही हमारे देश को सूखे से बचा सकता है। उन्होंने स्कूल को ग्यारह हज़ार की ग्रांट देने की घोषणा की।

सचिन सिर्फ सचिन ही हैं और सचिन ही रहेंगे
पिछले 20 वर्षों से कोई व्यक्ति अलग-अलग परिस्थितियों का सामना करते हुए पूरी एकाग्रता से बिना थके अपना काम करता चला आ रहा हो और हमेशा पहले से बेहतर ही करता हो, उसे क्या कहेंगे? उसका एक ही नाम है सचिन रमेश तेंदुलकर। बुधवार को ग्वालियर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच में तेंदुलकर ने जो धुंआधार पारी खेली, उसका वर्णन करना शब्दों के बाहर की बात है। जो काम उन्होंने बल्ले से किया, उसका सम्मान करने में कलम की ताकत आज कुछ कम लग रही है। सचिन के लिए दोहरा शतक बनाना खास मायने नहीं रखता, पर ग्वालियर में उन्होंने जो यादगार पारी (200 नाबाद) खेली, उससे खुद क्रिकेट का सम्मान बढ़ा है। 1989 में पाकिस्तान के गुजरांवाला में उन्होंने जीवन का पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला, तभी से उनके बल्ले को विशाल स्कोर बनाने की आदत सी हो गई है जो आज भी टूटती नहीं दिखती। बल्ले बदलते गए, गेंदबाज बदलते गए और मैदान भी बदलते रहे, पर पाँच फुट पाँच इंच की इस वामनमूर्ति ने गेंद को हमेशा अपने से दूर और अधिक दूर रखने की ऐसी आदत बना ली, जिसने उन्हें विश्व का अति विशिष्ट खिलाड़ी बना दिया। तेंदुलकर की तुलना अब किसी से भी करना उनके साथ अन्याय होगा।

‘रन मशीन’ तो अब बहुत ही छोटा विशेषण लगता है सचिन की महिमा का बखान करने के लिए। (मशीनें भी कई बार खराब हो जाती हैं, टूट-फूट जाती हैं और दगा दे सकती हैं।) 36 वर्ष की उम्र में भी तेंदुलकर जब क्रिकेट मैदान पर उतरते हैं तब ऐसा लगता है कि वे कोई-न-कोई नया कीर्तिमान बनाने के लिए ही उतरते हों। ग्वालियर में उन्होंने वन डे में सर्वाधिक रनों का जो रिकॉर्ड बनाया है वह इसलिए खास है क्योंकि उन्हें क्रिकेट की और भी ऊँची पायदान पर स्थापित कर देता है। इससे पहले हैदराबाद में न्यूजीलैंड के खिलाफ 186 रन की पारी या पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 175 रनों की पारी या फिर क्राइस्टचर्च में न्यूजीलैंड के खिलाफ 163 रन की पारी हो, वन डे में दोहरा शतक हमेशा उनके साथ आँख-मिचौनी खेलता रहा, जिसे इस बार उन्होंने जादुई कलात्मकता के साथ अपने नाम लिख लिया है। ऐसा करने वाले वे विश्व के पहले बल्लेबाज हो गए हैं। ग्वालियर में उन्होंने फिर भारत और क्रिकेट की शान बढ़ाई और दिखा दिया कि एकाग्रता, नम्रता और कड़ी मेहनत से भला कौन-सी कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती।

HBSE 12th Class Hindi पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

प्रश्न 9.
विचारपरक लेखन की श्रेणी में किन-किन सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
समाचारपत्रों में समाचार तथा फीचर के अतिरिक्त कुछ विचारपरक लेख भी छपते रहते हैं। कुछ अखबारों की पहचान तो उनके वैचारिक लेखों से ही स्पष्ट होती है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि समाचारपत्रों में प्रकाशित होने वाले विचारपरक लेखों से ही उस समाचारपत्र की छवि का निर्माण होता है। समाचारपत्र के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले अग्रलेख, लेख तथा टिप्पणियाँ आदि विचारपरक पत्रकारीयलेखन में समाहित किए जा सकते हैं। इसके साथ-साथ विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों तथा वरिष्ठ पत्रकारों के स्तंभ भी विचारपरक लेखन में जोड़े जा सकते हैं। प्रायः समाचारपत्र के संपादकीय पृष्ठ के सामने ही विचारपरक लेख अथवा कोई टिप्पणी या स्तंभ प्रकाशित किया जाता है।

विचारपरक लेख में किसी विषय का विशेषज्ञ अथवा वरिष्ठ पत्रकार किसी महत्त्वपूर्ण विषय अथवा समस्या पर विस्तारपूर्वक चर्चा करता है। इस प्रकार के लेख में लेखक के विचार मौलिक होते हैं, परंतु वे पूर्णतया तथ्यों या सूचनाओं पर आधारित होते हैं। लेखक विषय का विश्लेषण करते हुए तर्क सम्मत शैली के द्वारा अपने विचार प्रस्तुत करता है और अपना दृष्टिकोण प्रकट करता है। इस प्रकार का लेख लिखने से पहले लेखक को काफी तैयारी करनी पड़ती है। वह विषय से संबंधित समुचित जानकारी एकत्रित कर लेता है और विचारपरक लेख लिखने से पहले अन्य तथा वरिष्ठ पत्रकारों के विचारों को अच्छी प्रकार से जान लेता है।

विचारपरक लेख में लेखक की अपनी मौलिक शैली होती है। इस लेख में प्रारंभ, मध्य और अंत रहता है। प्रायः लेख का आरंभ किसी ताजा प्रसंग या घटनाक्रम के विवरण से किया जाता है और धीरे-धीरे लेखक विषय के बारे में अपने विचार व्यक्त करता है। अंग्रेज़ी में खुशवंत सिंह अपने विचारपरक लेखों के लिए प्रसिद्ध थे। उनके ऐसे लेख हिंदी समाचारपत्रों में भी प्रकाशित होते रहते हैं। एक उदाहरण देखिए

दया भाव:
अंतःमन की कोमलतम संवेदनाओं का दूसरा नाम है-दया। किसी भी व्यक्ति के अंतःकरण में इसकी उत्पत्ति कल्याण भाव से ही होती है। दया भाव से प्रेरित व्यक्ति दुखियों की मदद के लिए आगे बढ़ता है। उनके दुखों में भागीदार हो जाता है।

दया भाव से प्रेरित व्यक्ति को न तो किसी हित लाभ की अपेक्षा होती है और न ही अपनी प्रशंसा की ललक। उसे किसी दुखी व्यक्ति के होंठों पर हल्की सी मुस्कराहट देखने मात्र से जिस नैसर्गिक और स्वर्गिक आनंद की अनुभूति होती है, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। दया सर्वव्यापी भाव है। विचारक एवं कवि श्रीमन्नारायण के शब्दों में, ‘दया निर्दयी के मन में भी वास करती है। जिस तरह से मरुस्थल में मीठे खजर उगते हैं, उसी प्रकार निर्दयी दिल में भी दया के भरपुर अंकर होते हैं। संभवतः निर्दयी व्यक्ति की दया का एहसास समाज को देर से हो पाता है, क्योंकि दया भाव की अपेक्षा उसके मन में निर्दयी भाव अधिक सघन होते हैं। इसके अतिरिक्त जैसा कि जयशंकर प्रसाद कहते हैं, ‘दूसरों की दया सब खोजते हैं और स्वयं करनी पड़े तो कान पर हाथ रख लेते हैं,

संभवतः निर्दयी, अपने निर्दयी होने के पीछे अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बखान करके दूसरों की दया का पात्र बनना चाहता है। लेकिन जब उससे दया की अपेक्षा की जाती है, तो वह या तो मुँह मोड़ लेता है या कानों पर हाथ रर भाव के पीछे आत्मप्रशंसा की झलक मिलती है, उसका स्वार्थ पूरा होता दिखाई देता है, तो क्षण भर के लिए दया के मार्ग को चुन लेता है। प्रेमचंद के अनुसार दयालुता दो प्रकार की होती है। एक में नम्रता है, दूसरी में आत्मप्रशंसा। नम्रता भाव से की गई दया निःस्वार्थ होती है।

ऐसे व्यक्ति दया के बदले कुछ भी नहीं चाहते। लेकिन आत्मप्रशंसा अथवा स्वार्थ भाव से प्रेरित दया में, कल्याण भाव नहीं होता। दया करते समय उनकी कल्याण भावना उनके स्वार्थ-पिंजर में कैद हो जाती है। उनकी दया तभी अवतरित होती है, जब यह सुनिश्चित हो जाता है कि उनके दया भाव से उनका हित संवर्धन भी होगा, लेकिन दया में इस प्रकार का शर्त भाव रखना उन्हें ईश्वरीय साधना से विरत रखता है। निस्पृह एवं कल्याण भाव से दया का उत्सर्जन ईश्वर की सच्ची प्राप्ति की दिशा है।

टिप्पणियाँ समाचारपत्रों में विचारपरक लेखन के अंतर्गत अलग-अलग विषयों पर टिप्पणियाँ भी लिखी जाती हैं। इनकी भाषा पूर्णतया सहज एवं सरल होती है। टिप्पणी में विषय के बारे में संक्षिप्त सूचना देते हुए लेखक निजी राय भी व्यक्त करता है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि टिप्पणी उन पाठकों के लिए होती है, जिनके पास संपूर्ण आलेख, रिपोर्ट अथवा फीचर पढ़ने का समय नहीं होता। यहाँ सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी, कमन्टेटर एवं विशिष्ट खेल लेखक सुनील गवास्कर द्वारा लिखित ईडन गार्डन पर हुए भारत-दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट मैच की टिप्पणी दी जा रही है।

हाशिम अमला चाहते तो मैच ड्रा हो जाता-
सुनील गवास्कर की विशेष टिप्पणी

टैस्ट मैच शुरू होने के कुछ दिन पहले तक ईडन गार्डन की पिच के बारे में काफ़ी कयास लगाए जा रहे थे। भारत को छोड़कर दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जहाँ पिच को लेकर इतनी अस्पष्टता हो। न ही भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश के लोगों में किसी मैच की पिच को लेकर इतनी उत्सुकता है। बावजूद इसके 22 गज की पिच पर भारत में खेला गया क्रिकेट इस खेल के रोमांच को और ज्यादा बढ़ाने का काम करता है।

ईडन गार्डन की पिच ने बिल्कुल वैसा ही चरित्र दिखाया, जिसके लिए वो जानी जाती है। पिच पर सात शतक लगे और इसके बाद ही मैच का परिणाम निकला। पिच पाँचों दिन खेलने के लिए बेहतरीन रही। यहाँ तक कि पाँचवें दिन युवा इशांत शर्मा की गेंदों को अच्छी गति व उछाल मिल रहा था। इसमें बहुत ज्यादा तो नहीं ठीक-ठाक टर्न मौजूद था। खराब फार्म के कारण आलोचना है हरभजन सिंह ने शानदार गेंदबाजी कर पाँच विकेट लेकर करारा जवाब दिया। उन्हें दूसरे छोर से अमित मिश्रा और इशांत ने भी बराबर का साथ दिया। यही वजह रही कि जहीर खान की गैर मौजूदगी के बावजूद मेजबान टीम दक्षिण अफ्रीका को समेटने में सफल रही।

अकेले अपने दम पर मैच बचाने की कोशिश में अंत तक जुटे रहे हाशिम अमला की जितनी भी तारीफ की जाए, वह कम है। उनका रक्षण बेहद मजबूत था। मेरे लिए इस बात पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है कि अमला ने अंतिम सत्र में कई रन लेने से मना कर दिया। अगर वे ऐसा नहीं करते और दक्षिण अफ्रीका मेजबान टीम को दूसरी पारी खेलने पर मजबूर कर देता तो मैच ड्रा रहने की संभावना प्रबल होती। अमला को हालांकि शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों से बिल्कुल भी मदद नहीं मिली। अगर शीर्ष क्रम निचले क्रम से कुछ सीख लेता, तो हालात दूसरे हो सकते थे। मगर यह भारतीय खिलाड़ियों का मिला-जुला प्रयास था, जिसने उनकी बादशाहत बरकरार रखने में मदद की। शाबाश भारत।
-दैनिक जागरण से साभार

संपादकीय लेखन

प्रश्न-
संपादकीय लेखन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संपादकीय समाचारपत्र का महत्त्वपूर्ण स्तंभ माना गया है। यह अखबार की अपनी आवाज़ कही जा सकती है। संपादकीय द्वारा संपादक किसी घटना, समस्या या महत्त्वपूर्ण मुद्दे के बारे में अपने निजी विचार व्यक्त करता है। वस्तुतः संपादकीय पिछले एक-दो दिनों में घटी हुई किसी प्रमुख राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के बारे में वैचारिक टिप्पणी होती है। संपादक उस घटना के मर्म का विश्लेषण करता है तथा उससे उत्पन्न होने वाले प्रभावों का विवेचन भी करता है। संपादकीय लिखने का दायित्व समाचारपत्र के संपादक तथा उसके सहयोगियों पर होता है। प्रायः अखबार का सहायक संपादक ही संपादकीय लिखता है, कोई बाहर का लेखक या पत्रकार, संपादकीय नहीं लिख सकता। संपादकीय से ही किसी समाचारपत्र की रीति-नीति का पता चलता है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि संपादकीय द्वारा समाचारपत्र किसी महत्त्वपूर्ण घटना या समस्या के बारे में अपनी राय जाहिर करता है।

संपादकीय की विशेषताएँ

  1. संपादक अथवा सह-संपादक द्वारा किसी समस्या पर की गई टिप्पणी को संपादकीय कहा जाता है।
  2. अखबार के मध्य का पूरा पृष्ठ या आधा पृष्ठ संपादकीय के लिए निर्धारित होता है।
  3. संपादकीय में संपादक की निजी टिप्पणियाँ होती हैं।
  4. संपादकीय में संपादक अथवा सह-संपादक को अपने विचार प्रकट करने की पूरी छूट होती है।
  5. समाचारपत्र के संपादकीय को पढ़कर ही पाठक उसके बारे में अपनी राय बनाते हैं।
  6. संपादकीय से समाचारपत्र की विचारधारा का पता चल जाता है।
  7. संपादकीय एक ज्ञानवर्धक लेख है। इसको निरंतर पढ़ते रहने से विशेष विषयों की समुचित जानकारी मिलती रहती है।
  8. समाचारपत्र में दो या तीन संपादकीय नियमित रूप से प्रकाशित किए जाते हैं।

महंगाई का सवाल और राजनीतिक खींचतान:
संसद में सरकार भले ही महंगाई पर काम रोको प्रस्ताव के जरिए होने वाली भर्त्सना को रोक ले, किंतु जनता की भर्त्सना तो उसने आमंत्रित कर ही ली है। संसद का बजट सत्र महंगाई के सवाल पर सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध के साथ शुरू हुआ और दोनों सदनों का पहला दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि सरकार महंगाई सहित किसी भी विषय पर बातचीत के लिए तैयार है। फिर गतिरोध कहां है? विपक्ष कह रहा है कि वह महंगाई जैसे ज्वलंत विषय पर काम रोको प्रस्ताव के माध्यम से बहस चाहता है, जिसके बाद मत विभाजन करवाना अनिवार्य होता है। सरकार काम रोको प्रस्ताव नहीं चाहती, क्योंकि तब उसे संसद में शक्ति परीक्षण से गुजरना पड़ेगा। उधर जब तक काम रोको प्रस्ताव नहीं मान लिया जाता, हंगामे और नारेबाजी पर अडा विपक्ष संसद नहीं चलने देगा। यही बजट सत्र के पहले दिन हुआ और आगे कब तक जारी रहेगा, कोई नहीं जानता।

करके और सामान्य कामकाज में बाधा डालकर देश की सबसे बड़ी पंचायत के कीमती समय की बर्बादी जितनी निंदनीय है, उतनी ही रोजमर्रा की बात हो गई है। इसके लिए अक्सर विपक्ष को दोषी ठहराया जाता है, लेकिन कम-से-कम इस बार विपक्ष अपनी जगह सही है। जरूरी वस्तुओं की बेलगाम बढ़ती कीमतों के कारण आम आदमी त्राहिमाम कर रहा है। अगर इस मुद्दे को विपक्ष पूरी ताकत से संसद में नहीं उठाता और सरकार को कटघरे में खड़ा नहीं करता, तो वह अपने कर्तव्य में कोताही कर रहा होता।

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विपक्ष की यह दलील भी जायज है कि चूंकि संसद में महंगाई पर पहले भी मत विभाजन के बगैर बहस हो चुकी है और फिर भी सरकार कुछ नहीं कर सकी, इसलिए अब काम रोको प्रस्ताव ही उचित तरीका है। सरकार की मुश्किल यह है कि महंगाई जैसे जनमहत्त्व के सवाल पर न सिर्फ विपक्ष एकजुट है, बल्कि खुद उनकी कुछ सहयोगी पार्टियां सरकार की विफलता के साथ खड़ा होना नहीं चाहेंगी। ऐसे में काम रोको प्रस्ताव का पारित होना सरकार की भर्त्सना के बराबर होगा।

संसद में भले ही सरकार तिकड़मों से इस भर्त्सना को रोक ले, लेकिन महंगाई से त्रस्त जनता की भर्त्सना तो उसने आमंत्रित कर ही ली है। दूसरी ओर, सरकार को कटघरे में खड़ा करके विपक्ष को राजनीतिक संतोष भले मिल जाए, जनता को तो महंगाई से राहत नहीं मिलेगी। देश के आम आदमी के लिए सरकार और विपक्ष की इस पैंतरेबाजी का मूकदर्शक होने की विवशता शायद महंगाई से कम त्रासद नहीं है।
-दैनिक जागरण से साभार

स्तंभ लेखन

प्रश्न-
स्तम्भ लेखन किसे कहते हैं? समाचारपत्रों से स्तंभ लेखन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
स्तंभ लेखन भी विचारपरक लेखन का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। किसी वरिष्ठ पत्रकार अथवा लोकप्रिय लेखक को समाचारपत्र का नियमित स्तंभ लिखने का दायित्व सौंप देता है। लेखक अपनी इच्छानुसार किसी विषय का चयन करके उस पर अपने मौलिक विचार लिखता है। स्तंभ में हमेशा लेखक के अपने विचार व्यक्त होते हैं तथा साथ ही उसका नाम भी दिया जाता है। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि लेखकों के नाम जाने-पहचाने बन जाते हैं और उस समाचारपत्र के साथ जुड़ जाते हैं। प्रायः अनुभवी लेखकों को ही स्तंभ लिखने का अवसर प्रदान किया जाता है। परंतु स्तंभ लेखनकार का जागरूक होना नितांत आवश्यक है। वह जिस किसी विषय पर स्तंभ लेख लिखता है, उसे उसकी समुचित जानकारी होनी चाहिए।

स्तंभ लेखन के कुछ उदाहरण-
बुढ़ापा सुंदर होगा जब जीवन का शिखर बने:
अगर तुमने सही ढंग से और सचमुच जीवन जी लिया है, तो मृत्यु से नहीं डरोगे। जीवन जी लिया है, तो मौत आराम, गहरी नींद बन जाएगी। डर मृत्यु का नहीं होता, बिना जिए जीवन का होता है। अगर मृत्यु का डर नहीं है, तो बुढ़ापे का डर भी नहीं होगा। तब बुढ़ापा खूबसूरत बन जाएगा। वह तुम्हारे होने, तुम्हारी परिपक्वता, तुम्हारे विकास का शिखर हो जाएगा। अगर तुम जिंदगी के हर पल को भरपूर जीते हो, हर चुनौती को पूरा करते हो, हर अवसर का प्रयोग करते हो और अज्ञात के हर उस रोमांच को स्वीकार करते हो जिसके लिए जिंदगी तम्हें पकारती है, तब बढापा परिपक्व हो जाता है जो लोग सीधे-सादे ढंग से बडे होते हैं, वे बगैर परिपक्वता के बूढ़े हो जाते हैं। तब बुढ़ापा बोझ बन जाता है। तब शरीर की उम्र तो बढ़ जाती है, पर चेतना बचकानी बनी रहती है। शरीर तो बूढ़ा हो गया, लेकिन आंतरिक जीवन में परिपक्वता नहीं आई। आंतरिक रोशनी गायब है। जो लोग जिंदगी को भरपूर जीते हैं, वे बुढ़ापे को उत्साह से स्वीकार करते हैं, क्योंकि बुढ़ापा कहता है कि अब तुम प्रस्फुटित हो रहे हो, अब तुम खिल रहे हो, अब तुम दूसरों के साथ वह सब बांट सकते हो जो तुमने हासिल किया है।

बुढ़ापा बेहद खूबसूरत है, क्योंकि सारा जीवन इसके इर्द-गिर्द घूमता है। यह शिखर होना चाहिए। शिखर न शुरुआत में हो सकता है और न जीवन के मध्य में। ऐसा होगा तो जीवन तकलीफों से भर जाएगा, क्योंकि शिखर जल्दी प्राप्त कर लिया, तो अब सिर्फ उतार ही हो सकता है। अगर तुम सोचते हो कि युवावस्था शिखर है, तो पैंतीस की उम्र के बाद तुम उदास हो जाओगे। अवसाद तुम्हें घेर लेगा। फिर तुम खुश कैसे हो सकते हो? इसलिए पहले हम कभी नहीं सोचते कि बचपन या जवानी शिखर है। शिखर अंत की प्रतीक्षा करता है। अगर जीवन का प्रवाह सही तरीके से होता है, तो तुम एक शिखर से और भी ऊँचे शिखर तक पहुँचते हो। मृत्यु जीवन का अंतिम शिखर है, उत्कर्ष है।

जब तुम छोटे बच्चे थे, तभी से समझौते करते आ रहे हो। छोटी और तुच्छ चीजों के लिए तुमने अपनी आत्मा गंवा दी। तुमने अपने-आप की बजाय कोई और होना गवारा कर लिया। यहीं से तुम अपना रास्ता भटक गए। माँ तुम्हें कुछ बनाना चाहती थीं, पिता तुम्हें कुछ बनाना चाहते थे, समाज तुम्हें कुछ बनाना चाहता था। तुम वह सब बनने को तैयार हो गए। फिर तुम नहीं रहे और तभी से तुम ‘कोई और’ होने का ढोग कर रहे हो। तुम इसलिए परिपक्व नहीं हो सकते, क्योंकि वह ‘कोई और’ परिपक्व नहीं हो सकता। वह मिथ्या है। अगर मैं मुखौटा पहन लूं, तो वह मुखौटा परिपक्व नहीं हो सकता। वह निष्प्राण है। मेरा चेहरा परिपक्व हो सकता है, मुखौटा नहीं हो सकता। तुम सिर्फ तभी परिपक्व हो सकते हो, जब तुम अपने आप को स्वीकार करो। अपना जीवन अपने हाथ में लो। तब अचानक तुम अपने भीतर ऊर्जा का विस्फोट देखोगे। जिस क्षण तुम यह फैसला करते हो कि चाहे जो कीमत हो, अब मैं कोई और नहीं, जो मैं हूं, वही होऊँगा, उसी क्षण तुम्हें बड़ा बदलाव दिखेगा।
-दैनिक जागरण से साभार

संपादक के नाम पत्र

प्रश्न-
संपादक के नाम पत्र किस प्रकार लिखे जाते हैं?
उत्तर:
समाचारपत्रों में संपादकीय पृष्ठ के साथ-साथ संपादक के नाम पाठकों के पत्रों का एक कॉलम होता है। जिसका हैडिंग हो सकता है आपके पत्र, आपकी चिट्ठियाँ अथवा आपके विचार। अन्य शब्दों में यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है। इसके द्वारा पाठक समाचारपत्रों से उठाए गए विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करते हैं। वस्तुतः यह स्तंभ जनमत का प्रतिनिधित्व करता है। प्रायः समाचारपत्र के संपादक या सह-संपादक इन पत्रों की भाषा में थोड़ा-बहुत सुधार भी कर सकते हैं। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए अत्यधिक उपयोगी है, क्योंकि उन्हें कुछ लिखने का अवसर मिल जाता है, परंतु उन पत्रों के विचार पाठकों के होते हैं, न कि संपादक या सह-संपादक के। इसके कुछ उदाहरण हैं

गैस की कालाबाजारी बंद हो-मैं इस पत्र के माध्यम से संबंधित अधिकारियों को इस ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं कि मेरे असंध क्षेत्र में एक ही गैस एजेंसी है। इस गैस एजेंसी वाले अपनी मनमानी करते हैं। पर्याप्त सिलेंडर रहने के बावजूद भी नियत अवधि के बाद भी गैस नहीं मिलता। काफी दिन तो चक्कर काटने पड़ते हैं। एक सिलेंडर के बाद दूसरे सिलेंडर लेने में करीब 40 दिन से भी ज्यादा का समय लग जाता है।

जबकि दूसरे सिलेंडर के लिए 22 दिन का समय निर्धारित किया गया है, वैसे तो अब पेट्रोलियम मंत्रालय के आदेशानुसार आप एक सिलेंडर लेने के बाद यदि आपको दूसरे दिन ही सिलेंडर की आवश्यकता पड़ती है, तो गैस एजेंसी के मालिक को गैस देना पड़ेगा, वह सिलेंडर के लिए मनाही नहीं कर सकता। इस प्रावधान के बावजूद भी इस क्षेत्र में सिलेंडर के लिए काफ़ी मारामारी बनी रहती है। गैस एजेंसी मालिक खुलकर गैस की कालाबाजारी करता है। अतः अधिकारियों से निवेदन है कि इस ओर विशेष ध्यान दिया जाए, जिससे इस क्षेत्र के लोगों की समस्या का समाधान हो सके।

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इतिहास पुरुष से सीख लें पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री कामरेड ज्योति बसु का निधन आज के इस घोर स्वार्थी युग में एक सिद्धांतवादी पुरुष की रिक्ती है, जिसे भरा जाना संभव नहीं है। ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल में लगातार 23 वर्ष तक कुशल शासन किया जो आज तक कायम है और रिकार्ड भी। उन्होंने सच्चे दिल से भूमि सुधार नियम लागू किया। कभी भी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया तथा स्वेच्छा से पद को छोड़ा। उन्होंने प्रधानमंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण पद का मोह नहीं किया तथा अपनी पाटी के सिद्धांत को सर्वोपरि माना। धोती, कुर्ता व पैरों में चप्पल उसकी सादगी के प्रतीक थे। ऐसे महान इतिहास पुरुष को क्यों न नमन करें जिन्होंने अपना शरीर मेडीकल के विद्यार्थियों के रिसर्च के लिए दान कर दिया हो और अपनी आँखें भी दान कर दी हों। ज्योति दा आप सदा हमारे दिलों में रहेंगे। आपकी सोच, सिद्धांत, कुशल शासन जो परिवारवाद, जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और आम जनमानस का हितैषी होने का नाटक कर रहे हैं। आप जैसे महान पुरुष से इन लोगों को सीख लेनी चाहिए।

मोबाइल का दुरुपयोग न करें मोबाइल फोन ने आज के युग में नवयुवकों में संचार क्रांति ला दी है। आज यह सभी वर्ग के लोगों की जरूरत में शामिल हो गया है। हालांकि इसके काफी फायदे हैं आप किसी भी समय कहीं भी किसी प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी लोग इसका दुरुपयोग करने से घबराते नहीं हैं। मेरा मानना है कि इसका सदुपयोग करें, दुरुपयोग कभी न करें। सार्वजनिक स्थानों पर धीमी आवाज़ में बात करें, साथ ही संक्षिप्त व जरूरी बातचीत करें। कॉन्फ्रेंस हाल, पूजा स्थल बैठक व प्रोग्राम में अपने सेट का स्विच ऑफ रखें, ताकि कार्यक्रम में बाधा न पड़े। ड्राइविंग करते समय मोबाइल पर कदापि बात न करें। यह जिंदगी से जुड़ी बात है और गैर कानूनी भी है। मोबाइल गुम होने की स्थिति में एफ.आइ.आर. दर्ज जरूर कराएँ ताकि कोई आपके मोबाइल का दुरुपयोग न करे। मोबाइल को दिल के पास पॉकेट में न रखें। बार-बार अपना नंबर न बदलें। इन सारी बातों पर अमल जरूर करें।

सरकारी स्कूलों में शिक्षा-हरियाणा सरकार जितना शिक्षा के प्रति अब जागरूक है, शायद ही कभी रही होगी। सरकार की ओर से पैसे की कमी नहीं है। गरीब बच्चों को स्कालरशिप, मिड-डे-मील जैसी सुविधाएँ मिल रही हैं। केवल रुपया-पैसा ही सरकारी स्कूलों में संख्या नहीं बढ़ा पाएगा। सभी अध्यापक व अधिकारी जब तक अपने-अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा से नहीं निभायेंगे, तब तक गुणवत्ता नहीं बढ़ सकती। सभी नैतिक जिम्मेवारी समझते हुए पढ़ाने का पुनीत कार्य व गरीब बच्चों का भविष्य निर्माण कर सकते है। गांव के गरीब बच्चे न तो प्राइवेट ट्यूशन रखने की आर्थिक स्थिति में होते हैं, न ही उतने जागरूक होते हैं। इनको जागरूक करना ब शहरी बच्चों के स्तर तक लाना हमारा कर्तव्य है। गांव के बच्चों में अपार क्षमताएँ हैं। इनमें गुण भरे हुए हैं। ये वे हीरे हैं जो पत्थर बने, मिट्टी से सने पड़े हैं। इनको चमकाना व तराशना एक कुशल अध्यापक के हाथ में है।
-दैनिक जागरण से साभार

लेख

प्रश्न-
समाचारपत्र में छपने वाले लेख पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
समाचारपत्र के संपादकीय पृष्ठ पर ही समसामयिक विषयों पर वरिष्ठ पत्रकारों अथवा किसी विषय के विशेषज्ञों के लेख प्रकाशित होते हैं। अंग्रेज़ी में लेख को Article कहते हैं। इसमें किसी विषय या समस्या पर विस्तारपूर्वक चर्चा की जाती है। परंतु लेख किसी विशेष रिपोर्ट और फ़ीचर से अलग विधा है। इसमें लेखक के विचारों को ही प्रमुखता दी जाती है। लेख में लेखक तथ्यों या सूचनाओं को आधार बनाकर उनका विश्लेषण करता हुआ तर्कपूर्ण राय देता है।

लेख लिखने से पहले लेखक को काफ़ी तैयारी करनी पड़ती है। इसके लिए वह आवश्यक सामग्री जुटाता है। उस विषय पर अन्य लेखकों या पत्रकारों के विचारों को अच्छी प्रकार से जान लेता है। फिर वह अपनी राय व्यक्त करता हुआ विषय पर लेख लिखता है। लेख का विषय कृषि, विज्ञान, शिक्षा, राजनीति आदि कुछ भी हो सकता है। परंतु लेखक को उस विषय की समुचित जानकारी होनी चाहिए, तभी वह उस विषय के साथ न्याय कर पाएगा। लेख का भी अन्य विधाओं की भांति एक आरंभ, मध्य एवं अंत होता है। लेख का आरंभ बड़ा आकर्षक होना चाहिए। मध्य भाग में विषय के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाना चाहिए और उनका विश्लेषण किया जाना चाहिए। इसके बाद लेखक अपना निष्कर्ष प्रस्तुत कर सकता है। लेख में लेखक की शैली अपनी होती है।

साक्षात्कार अथवा इंटरव्यू

प्रश्न-
साक्षात्कार अथवा इंटरव्यू पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
साक्षात्कार एक अलग प्रकार की विधा है। परंतु समाचारपत्र में इसका विशेष महत्त्व माना गया है। साक्षात्कार के द्वारा ही पत्रकार समाचार-फीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल एकत्रित कर लेता है। इसमें पत्रकार किसी विशेष व्यक्ति, राजनीतिज्ञ अथवा नेता से सामान्य बातचीत करता है तथा उससे संबंधित प्रश्न पूछकर उसकी राय को जानने का प्रयास करता है। एक सफल साक्षात्कारकर्ता के पास न केवल समुचित ज्ञान होना चाहिए, बल्कि उसमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए। पत्रकार जिस किसी विषय के बारे में साक्षात्कार करता है।

उस विषय की उसे समुचित जानकारी होनी चाहिए। उसे इस बात का पता होना चाहिए कि वह क्या जानना चाहता है। साक्षात्कार करने वाले को वही प्रश्न पूछने चाहिए, जो पाठकों के लिए लाभकारी हों। अच्छा तो यही होगा कि साक्षात्कार को रिकॉर्ड कर लिया जाए। यदि ऐसा न हो तो साक्षात्कार करते समय नोट्स लेते रहना चाहिए। साक्षात्कार लिखते समय आप दो में से कोई भी एक तरीका अपना सकते हैं। पहले आप सवाल लिख सकते हैं, बाद में उसका उत्तर लिख सकते हैं। परंतु साक्षात्कार लिखते समय साक्षात्कारकर्ता को बड़ी ईमानदारी के साथ अपना काम करना चाहिए। क्योंकि साक्षात्कार छप जाने के बाद अकसर साक्षात्कारकर्ता और नेता में विवाद छिड़ जाता है।
(एक सामाजिक कार्यकर्ता से साक्षात्कार)
प्रश्न 1.
आपके विचारानुसार आज हमारे राष्ट्र के सामने कौन-सी दो समस्याएँ हैं?
उत्तर:
उनका उत्तर था कि देश के सामने समस्याएँ तो अनेक हैं, परंतु मेरे विचारानुसार उग्रवाद तथा भ्रष्टाचार दो प्रमुख मुद्दे हैं, जिनके बारे में तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
उग्रवाद से देश को कौन-कौन सी हानियाँ हो रही हैं?
उत्तर:
उग्रवाद की सबसे बड़ी हानि यह है कि नागरिकों में असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो चुकी है। इससे हमारा आर्थिक विकास भी प्रभावित हो रहा है। उग्रवाद हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की देन है, जहाँ केवल मुस्लिम प्रशासन है। परंतु हमारा देश धर्म निरपेक्ष है। इस कारण देश की सांप्रदायिक शांति भंग हो रही है।

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प्रश्न 3.
आपके विचारानुसार उग्रवाद से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
उत्तर:
मैं समझता हूँ कि वर्तमान सरकार को उग्रवादियों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। जब तक उग्रवादियों को कठोर दंड नहीं दिया जाएगा, तब तक बार-बार उग्रवाद की घटनाएँ होती रहेंगी।

प्रश्न 4.
क्या पाकिस्तान सरकार के साथ वार्तालाप किया जाना चाहिए?
उत्तर:
हाँ, वार्तालाप किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके द्वारा हम पाकिस्तानी सरकार को अपनी चिंता से अवगत करा सकते हैं, परंतु हमें अपने पड़ोसी देश के सामने झुकना नहीं चाहिए। इसके साथ-साथ हमें अपनी सैन्य शक्ति को सुदृढ़ तथा मुस्तैद करना चाहिए। यदि हमारे देश की सीमाएँ सुरक्षित हैं, तो उग्रवाद की घुसपैठ नहीं हो सकेगी।

प्रश्न 5.
देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए इच्छा शक्ति की आवश्यकता है। यदि सरकार इसे समाप्त करना चाहती है, तो यह कोई कठिन कार्य नहीं है। सर्वप्रथम सरकार को भ्रष्ट मंत्रियों तथा संसद सदस्यों, विधायकों के प्रति सख्त कदम उठाना चाहिए।

प्रश्न 6.
देश में सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी तो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उनके प्रति क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर:
भ्रष्टाचार पूरे देश में व्याप्त है। सरकारी कर्मचारी, व्यापारी तथा अन्य सभी प्रकार के लोग भ्रष्टाचार को जीवन प्रक्रिया का अंग मान चुके हैं, परंतु भ्रष्टाचार के रहते हमारा देश विकास नहीं कर सकता। सरकार को भ्रष्टाचारियों की नकेल तो कसनी ही होगी, यह एक ऐसी दीमक है जो राष्ट्र को अंदर-ही-अंदर खोखला कर रही है। अब बयानबाजी से काम नहीं चल सकता, अब सरकार को कुछ करके दिखाना चाहिए।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
किसे क्या कहते हैं-
(क) सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना को सबसे ऊपर रखना और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में सूचनाएँ देना ………..।
(ख) समाचार के अंतर्गत किसी घटना का नवीनतम और महत्त्वपूर्ण पहलू……………
(ग) किसी समाचार के अंतर्गत उसका विस्तार, पृष्ठभूमि, विवरण आदि देना…………………..
(घ) ऐसा सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन; जिसके माध्यम से सूचनाओं के साथ-साथ मनोरंजन पर भी ध्यान दिया जाता है……………
(ङ) किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहन छानबीन और विश्लेषण…………..
(च) वह लेख, जिसमें किसी मुद्दे के प्रति समाचारपत्र की अपनी राय प्रकट होती है……………..
उत्तर:
(क) उलटा पिरामिड।
(ख) चरम सीमा।
(ग) विशेष रिपोर्ट।
(घ) फ़ीचर।
(ङ) आलेख अथवा स्तंभ।
(च) संपादकीय।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए समाचार के अंश को ध्यानपूर्वक पढ़िए-
शांति का संदेश लेकर आए फजलुर्रहमान
पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फजलुर्रहमान ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा कि वह शांति व भाईचारे का संदेश लेकर आए हैं। यहाँ दारूलउलूम पहुँचने पर पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गत सप्ताह नई दिल्ली में हुई वार्ता के संदर्भ में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा के पाकिस्तानी सरकार ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 9 प्रस्ताव दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन पर विचार करने का आश्वासन दिया है। कश्मीर समस्या के संबंध में मौलाना साहब ने आशावादी रवैया अपनाते हुए कहा है कि 50 वर्षों की इतनी बड़ी जटिल समस्या का एक-दो वार्ता में हल होना संभव नहीं है। लेकिन इस समस्या का समाधान अवश्य निकलेगा। प्रधानमंत्री के प्रस्तावित पाकिस्तान दौरे की बाबत उनका कहना था कि निकट भविष्य में यह संभव है और हम लोग उनका ऐतिहासिक स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा है कि दोनों देशों के रिश्ते बहुत मज़बूत हुए हैं और प्रथम बार सीमाएँ खुली हैं, व्यापार बढ़ा है तथा बसों का आवागमन आरंभ हुआ है।
(हिंदुस्तान से साभार)

(क) दिए गए समाचार में से ककार ढूँढकर लिखिए।
क्या-शांति और भ्रातृभाव का संदेश।
कौन-पाकिस्तान में विपक्ष के नेता।
कहाँ-दारूलउलूम पहुँचने पर पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए।
कब-भारत यात्रा के दौरान।
क्यों दोनों देशों के संबंधों में सुधार के लिए।
कैसे-दोनों देशों में वार्तालाप द्वारा।

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(ख) उपर्युक्त उदाहरण के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट कीजिए-

  • इंट्रो-पाकिस्तान में विपक्ष के नेता मौलाना फजलुर्रहमान ने भारत यात्रा के दौरान शांति और भाईचारे का संदेश दिया।
  • बॉडी दारूलउलूम पहुँचने पर उन्होंने पत्रकार सम्मेलन में जो कुछ कहा वह सब बॉडी में सम्मिलित होगा।
  • समापन-भारत-पाक संबंधों में मज़बूती, सीमाओं का खुलना, व्यापार बढ़ना तथा बसों द्वारा यात्रियों का आवागमन।

(ग) उपर्युक्त उदाहरण का गौर से अवलोकन कीजिए और बताइए कि ये कौन-सी पिरामिड-शैली में है, और क्यों?
उत्तर:
समाचार होने के कारण यह उल्टा पिरामिड-शैली में लिखित है। इसमें सर्वप्रथम इंट्रो है, मध्य में बॉडी है और अंत में समापन है। अतः यह पिरामिड-शैली का उचित उदाहरण है।

प्रश्न 3.
एक दिन के किन्हीं तीन समाचारपत्रों को पढ़िए और दिए गए बिंदुओं के संदर्भ में उनका तुलनात्मक अध्ययन कीजिए
(क) सूचनाओं का केंद्र/मुख्य आकर्षण
(ख) समाचार का पृष्ठ एवं स्थान
(ग) समाचार की प्रस्तुति
(घ) समाचार की भाषा-शैली
उत्तर:

दैनिक जागरणदैनिक भास्करनवभारत टाइम्स
(क) राजनीति, विदेश की घटनाएँ, खेलकूद, हरियाणा के समाचार आकर्षक ढंग से दिए गए हैं।राजनीति, खेलकूद, ग्रामीण क्षेत्रों के समाचार, मनोरंजक तथा फ़िल्मी समाचारों को प्रमुखता दी गई है।राजनीति, मुख्य खेल समाचार, विदेश से संबंधित समाचार, सैंसेक्स का उछाल या गिरावट।
(ख) समाचार-प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा सातवें पृष्ठों पर।समाचार-प्रथम, तृतीय, चतुर्थ तथा छठे पृष्ठों पर।पहले पाँच पृष्ठों पर समाचार।
(ग) समाचार प्रस्तुति का ढंग साधारण परंतु रोचक। सरल, प्रवाहमय और बोधगम्य भाषा-शैलीसमाचार प्रस्तुति का ढंग निम्न स्तर का तथा प्रभावहीन। सहज, सरल तथा सामान्य बोलचाल की भाषा-शैलीसमाचार प्रस्तुति उच्च स्तरीय, प्रभावशाली एवं रोचक। सहज, सरल तथा साहित्यिक भाषा-शैली।

प्रश्न 4.
अपने विद्यालय और मुहल्ले के आसपास की समस्याओं पर नज़र डालें। जैसे-पानी की कमी, बिजली की कटौती, खराब सड़कें, सफाई की दुर्व्यवस्था। इनमें से किन्हीं दो विषयों पर रिपोर्ट तैयार करें और अपने शहर के अखबार में भेजें।
उत्तर:
(क) बिजली की कटौती:
जून का महीना शुरू हो चुका है। भीषण गर्मी पड़ रही है। दिनभर लू चलती रहती है। रात को मच्छरों की भिनभिनाहट चैन से सोने नहीं देती। इस पर बिजली की अघोषित कटौती ने लोगों का जीना दूभर कर रखा है। दिन में पाँच घंटे के लिए नियमित रूप से बिजली जाती है, परंतु बीच-बीच में एक-एक घंटे का कट लगता रहता है। बिजली के कार्यालय में शिकायत करो तो कोई सुनने वाला नहीं। समाचारपत्रों में भी समय-समय पर बिजली कटौती के समाचार छपते रहते हैं, परंतु सरकार के कानों पर तक नहीं रेंगती। इस पर राज्य के मुख्यमंत्री बार-बार यहीं बयान देते रहते हैं कि शीघ्र ही बिजली की कमी दूर हो जाएगी। गाँव में भी बिजली की कटौती के कारण त्राहि-त्राहि मची हुई है नहरों में पानी नहीं है, और ट्यूबवैल चलाने के लिए बिजली नहीं है जिससे किसानों की फसलें सूख रही हैं। आखिर लोग किससे फरियाद करें और किसके सामने गुहार लगाएँ। पता नहीं यह स्थिति कब तक चलती रहेगी।

(ख) खराब सड़कें:
हमारे नेता अकसर घोषणा करते रहते हैं कि हरियाणा नंबर वन है। हमारा नगर जी०टी० रोड पर स्थित है। कहने के लिए यह राज्य का सर्वश्रेष्ठ नगर कहा जाता है, परंतु इस नगर की लगभग साठ प्रतिशत सड़कें टूटी-फूटी हैं। हर वक्त जाम लगा रहता है। सड़कों पर जगह-जगह गहरे गड्ढे बने हुए हैं। ट्रक, ट्रैक्टर और बसें उछलते हुए चलते हैं। स्कूटर तथा मोटरसाइकिल वालों की दुर्गति होती है। न जाने कितने लोग सड़क पर गिरकर अपनी टाँगें तुड़वा चुके हैं। हड्डियों के डॉक्टरों की चाँदी बनी हुई है। थोड़ी-सी बरसात हो जाती है, तो गड्ढों में पानी भर जाता है। स्कूटर तथा मोटरसाइकिल चालक को पता ही नहीं चल पाता कि कहाँ पर गड्ढा है। मुख्यमंत्री से शिकायत करें, तो उसका जवाब होता है कि सड़कों की देखभाल करना कमेटी का दायित्व है। कमेटी वाले मुख्यमंत्री को दोषी बताते हैं। न तो स्थानीय विधायक इस ओर ध्यान देता है, न ही उपायुक्त। लगता है जनता को खराब सड़कों का निरंतर सामना करना पड़ेगा।

(ग) पानी की कमी:
यूँ तो हमारे नगर में पूरा वर्ष पानी की कमी बनी रहती है परंतु मई तथा जून के महीनों में पानी की कमी लोगों के लिए मुसीबत बन जाती है। आकाश से अंगारे बरसते हैं और पूरा दिन लू चलती रहती है। पानी की यह हालत है कि सवेरे एक घंटे के लिए पानी आता है फिर शाम को दो घंटे के लिए। कभी-कभी तो दिनभर नलों से पानी नहीं टपकता। जब आता भी है तो इतना कम आता है कि लोग अपनी आवश्यकता के लिए पानी इकट्ठा नहीं कर पाते। इस पर समाज के सुविधाभोगी लोगों ने अपने घरों में बिजली की मोटरें लगवा रखी हैं। जैसे पानी आता है तो यह मोटरें सारा पानी खींच लेती हैं। गरीब लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता। यद्यपि कमेटी ने टैंकरों द्वारा पानी भेजने का प्रबंध कर रखा है पर वे भी कभी-कभार दर्शन देते हैं। पानी की कमी के कारण घरों में लगे पौधे सूख गए हैं तथा सप्ताह में एक-दो बार ही नहाना हो सकता है। पीने को पानी मिल जाए तो गनीमत है। पता नहीं यह पानी की कमी कब समाप्त होगी। गरीब लोगों के पास पीने के लिए पानी नहीं है, परंतु बड़ी-बड़ी कोठियों में दिन भर फव्वारे चलते रहते हैं और उनके घरों के प्रांगण हरे-भरे दिखाई देते हैं पर इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।

प्रश्न 5.
किसी क्षेत्र विशेष से जुड़े व्यक्ति से साक्षात्कार करने के लिए प्रश्न-सूची तैयार कीजिए, जैसे
→ संगीत/नृत्य
→ चित्रकला
→ शिक्षा
→ अभिनय
→ साहित्य
→ खेल
उत्तर:
क्रिकेट के खिलाड़ी से पूछे गए प्रश्नों की सूची-

  1. आपने क्रिकेट खेलना कब आरंभ किया?
  2. रणजी ट्रॉफी में आपको खेलने का मौका कब मिला?
  3. जिला स्तर पर आपने सर्वाधिक कितने रन बनाए?
  4. रणजी ट्रॉफी में आपका सर्वाधिक स्कोर कितना रहा?
  5. क्या इस बार भी आपको आई.पी.एल. में खेलने का मौका मिल रहा है?
  6. क्या आपने कभी बॉलिंग भी की है?
  7. अब तक आप रणजी ट्रॉफी के मैचों में कितनी विकटें चटका चुके हैं?
  8. क्या आपको कभी राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट खेलने का मौका मिला है?
  9. क्या आप अपने वर्तमान खेल से संतुष्ट हैं?
  10. हरियाणा सरकार की ओर से आपको कोई सुविधा प्राप्त हुई है?
  11. क्रिकेट खेलने के अतिरिक्त आप किस संस्थान में नौकरी कर रहे हैं?
  12. आप विवाह कब करने जा रहे हैं?

प्रश्न 6.
आप अखबार के मुख पृष्ठ पर कौन-से छह समाचार शीर्षक सुर्खियाँ (हेडलाइन) देखना चाहेंगे। उन्हें लिखिए।
उत्तर:
हम अखबार के मुख्य पृष्ठ पर निम्नलिखित समाचार शीर्षक देखना चाहेंगे-

  1. भारत-पाक में स्थायी शांति का दौर।
  2. उद्योगपतियों ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का दायित्व संभाला।
  3. कश्मीर के आतंकवादी समाज कल्याण में जुटे।
  4. भारत हॉकी विश्व कप के फाइनल में।
  5. विश्वभर के परमाणु बमों को नष्ट करने का फैसला।
  6. भारत की आर्थिक अर्थव्यवस्था सुदृढ़।

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HBSE 12th Class Hindi कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण Questions and Answers, Notes.

Haryana Board 12th Class Hindi कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

प्रश्न 1.
कहानी और नाटक में क्या अंतर हैं?
उत्तर:
कहानी और नाटक दो अलग-अलग विधाएँ हैं। इनमें यदि कुछ समानताएँ हैं तो कुछ भिन्नताएँ भी हैं। कहानी की परिभाषा देते हुए हिंदी साहित्यकोश लिखता है-“कहानी गद्य-साहित्य का एक छोटा, अत्यंत सुसंगठित और अपने-आप में पूर्ण कथारूप है।” परंतु नाटक जीवन की अनुकृति है। नाटक को सजीव पात्रों द्वारा एक चलते-फिरते सप्राण रूप में अंकित किया जाता है। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि कहानी का संबंध केवल लेखक तथा पाठक से होता है, परंतु नाटक का संबंध लेखक के अतिरिक्त निर्देशकों, पात्रों, दर्शकों तथा श्रोताओं से होता है।

दृश्य होने के कारण नाटक अधिक प्रभावशाली विधा है। नाटक को मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। उसमें मंच सज्जा, संगीत, प्रकाश व्यवस्था इत्यादि को भी स्थान दिया जाता है, परंतु कहानी केवल कही जाती है या पढ़ी जाती है। कहानी को पढ़ते समय हम उसे बीच में भी छोड़ सकते हैं और बाद में समय मिलने पर कभी भी पढ़ सकते हैं, परंतु नाटक को एक ही समय तथा स्थान पर दर्शकों के सामने अभिनीत किया जाता है। संक्षेप में, हम कहते हैं कि कहानी पढ़ने या सुनने की विधा है, नाटक रंगमंच पर अभिनीत करने की विधा है।

HBSE 12th Class Hindi कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

प्रश्न 2.
कहानी को नाटक में किस प्रकार रूपांतरित किया जा सकता है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
कहानी को नाटक में रूपांतरित करना कोई सहज कार्य नहीं है, ऐसा करते समय कहानी को अनेक सोपानों से गुज़रना पड़ता है। सर्वप्रथम कहानी के विस्तृत कथानक को समय और स्थान के आधार पर विभाजित किया जाता है। तत्पश्चात् हम कहानी की विभिन्न घटनाओं को आधार बनाकर दृश्य बनाते हैं। उदाहरण के रूप में, यदि कहानी की कोई एक घटना, एक स्थान और एक समय पर घटती है, तो वह एक दृश्य में रूपांतरित की जा सकती है। पुनः इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि बनाए गए दृश्य नाटक को गतिशील बनाने में समर्थ हों। एक दृश्य से दूसरे दृश्य की भूमिका भी अवश्य तैयार होनी चाहिए। लेकिन ऐसे दृश्य नहीं बनाने चाहिएँ जो अनावश्यक हों और नाटक की गति में बाधा उत्पन्न करें।

दृश्य लिखने के बाद कथावस्तु के अनुसार ही संवाद लिखे जाने चाहिएँ। परंतु ये संवाद संक्षिप्त, पात्रानुकूल, प्रसंगानुकूल और सामान्य बोलचाल की भाषा में ही लिखे जाने चाहिएँ। इसके लिए हम मूल कहानी के संवादों को थोड़ा छोटा कर सकते हैं और आवश्यकतानुसार नया संवाद भी बना सकते हैं।

कहानी में चरित्र-चित्रण अलग प्रकार से होता है और नाटक में अलग प्रकार से। कहानी का नाटकीय रूपांतरण करते समय उसके पात्रों की दृश्यात्मकता का प्रयोग नाटक में किया जाना चाहिए। उदाहरण के रूप में, ‘ईदगाह’ कहानी में हामिद के कपड़ों की ओर कोई संकेत नहीं दिया गया, परंतु हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उसके पैरों में जूते नहीं होंगे और उसके कुरते में पैबंद लगे होंगे। यह परिवर्तन करने से कहानी के पात्र नाटक में सजीव तथा प्रभावशाली बन जाएंगे। इसी प्रकार कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय ध्वनि और प्रकाश योजना भी नितांत आवश्यक है। लेखक तो इसके बारे में केवल सुझाव ही दे सकता है परंतु निर्णय तो निर्देशक को ही लेना पड़ेगा। इसके साथ-साथ कहानी के वातावरण को नाटक में थोड़ी-सी स्वाभाविकता भी प्रदान की जानी चाहिए। ये सब कदम उठाने के बाद ही कहानी का नाट्य रूपांतरण संतोषजनक ढंग से किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय किस मुख्य समस्या का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय अनेक प्रकार की समस्याएँ सामने आती हैं। प्रमुख समस्या तो पात्रों के मनोभावों को प्रस्तुत करने में आती है। कहानीकार तो कहानी के पात्रों के मनोभावों का विवरण प्रस्तुत करता है, परंतु नाटक के पात्रों में मानसिक द्वंद्व के दृश्यों की नाटकीय प्रस्तुति करने में समस्याएँ आ जाती हैं। उदाहरण के रूप में, जब हम ईदगाह’ कहानी का नाट्य रूपांतरण करने लगेंगे तो हामिद के द्वंद्व को प्रस्तुत करना कठिन हो जाएगा। मेले में पहुंचकर हामिद के मन में यह संघर्ष चल रहा है कि दो पैसे दे या क्या न खरीदे? कहानीकार तो विवरण के द्वारा यह लिख सकता है कि हामिद की दादी का रोटी बनाते समय हाथ जल जाता हैं।

इसलिए उसके लिए चिमटा खरीदना चाहिए, परंतु नाट्य रूपांतरण में ऐसा संभव नहीं है। नाट्य रूपांतरण में पात्र . मंच के एक कोने में जाकर संवाद द्वारा काम चला सकता है, परंतु आजकल ‘वायस ओवर’ एक आधुनिकतम तकनीक खोज ली गई है, जिससे इस समस्या का हल निकाल लिया गया है। ‘वायरस ओवर’ एक ऐसी आवाज़ है जिसे मंच पर पात्र नहीं बोलता, परंतु फिर भी वह दर्शकों को सुनाई देती है, वे पात्र की मन स्थिति को जान लेते हैं। इस प्रकार कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय अनेक समस्याएँ सामने आती हैं, परंतु आजकल नवीन तकनीकों की खोज हो चुकी है, जिससे इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्य विभाजन कैसे किया जाता है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
पहले बताया जा चुका है कि कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय उसके कथानक को समय और स्थान के आधार पर विभिन्न दृश्यों में विभाजित किया जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि रूपांतरित नाटक का प्रत्येक दृश्य कहानी के कथानक के अनुसार ही हो। नाटक में ऐसे दृश्य नहीं रखे जाएँ जो अनावश्यक हों, बाधा उत्पन्न करते हों और नाटक को उबाऊ बनाते हों। रूपांतरित नाटक का प्रत्येक दृश्य एक बिंदु से शुरू होता है। कथानक के अनुसार वह अपनी आवश्यकता को सिद्ध करता है और उसका अंतिम भाग अगले दृश्य से जुड़ जाता है।

अगली घटना को स्थान और समय के अनुसार दृश्यों में विभाजित किया जाएगा। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कहानी के कथाक्रम और नाट्य रूपांतरण में कोई भी अंतर न आए। कहानी को दृश्यों में विभाजित करते समय उन दृश्यों का भी पूरा खाका बना लेना चाहिए, जिनका लेखक ने कहानी में केवल विवरण दिया हो और उसमें कोई संवाद न हो। पुनः दृश्य विभाजन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि कहानी का कथानक अवरुद्ध न हो। एक दृश्य दूसरे दृश्य से, दूसरा तीसरे से, तीसरा चौथे से जुड़ते चला जाना चाहिए।

HBSE 12th Class Hindi कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

प्रश्न 5.
कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है?
उत्तर:
कथानक कहानी का केंद्र बिंदु है। इसी पर कहानी का सारा ढाँचा खड़ा किया जाता है। सर्वप्रथम कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय उसके कथानक के अनुसार दृश्यों का औचित्य किया जाना चाहिए। अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि नाटक का प्रत्येक दृश्य कथानक का ही भाग होना चाहिए। यदि कथानक के किसी अनावश्यक हिस्से को बाहर निकाल भी दिया जाता है, तो उससे नाटक के विकास पर कोई अंतर नहीं आना चाहिए।

विशेषकर जो दृश्य कथानक से मेल न खाते हों, उन्हें नाटक में स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। नाटक में अनावश्यक दृश्यों के लिए कोई स्थान नहीं होता, क्योंकि नाटक को रंगमंच पर अभिनीत किया जाता है। अतः नाटक का प्रत्येक दृश्य कथानक के अनुसार ही विकसित किया जाना चाहिए। कहानी के कथानक में आरंभ, मध्य और अंत तीन अवस्थाएँ होती हैं। नाट्य रूपांतरण में भी ये तीनों अवस्थाएँ अवश्य होनी चाहिएँ।

नाटक के दृश्य बनाते समय पहले उनका खाका तैयार कर लेना चाहिए। जो भी दृश्य बनाए गए हों, उन्हें मूल कथानक के साथ मिला लेना चाहिए। इसी प्रकार संवादों के निर्माण की ओर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। अन्यत्र यह बताया जा चुका है कि कहानी के संवादों को संक्षिप्त रूप देकर रूपांतरित नाटक में जोड़ा जा सकता है। परंत आवश्यकता प बनाए जा सकते हैं। जो संवाद कहानी के कथानक से मेल न खाते हों, उन्हें रूपांतरित नाटक में स्थान नहीं दिया जाना चाहिए। संवाद संक्षिप्त, पात्रानुकूल तथा प्रसंगानुकूल, सामान्य बोलचाल के होने चाहिएँ। लंबे तथा उबाऊ संवादों के लिए नाटक में कोई स्थान नहीं होता। इसी प्रकार नाटक की भाषा कहानी की भाषा के समान ही सामान्य बोलचाल की भाषा होनी चाहिए।

प्रश्न 6.
कहानी के पात्र नाट्य रूपांतरण में किस प्रकार परिवर्तित किए जा सकते हैं? विस्तारपूर्वक स्पष्ट करें।
उत्तर:
जिस प्रकार कहानी और नाटक में अंतर है, उसी प्रकार दोनों विधाओं में काफी अंतर है। कहानी के पात्रों को नाटक के पात्रों के अनुसार परिवर्तित किया जाना चाहिए। प्रायः कहानियों में पात्रों की वेश-भूषा की कोई सूचना नहीं दी जाती, परंतु नाटक में यह नितांत आवश्यक है। उदाहरण के रूप में, ‘ईदगाह’ कहानी का मुख्य पात्र हामिद को लिया जा सकता है। कहानी के कथानक को पढ़ने से हम उसकी आर्थिक स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं। अतः नाट्य रूपांतरण करते समय हामिद की भूमिका निभाने वाले पात्र के पैरों में जूती नहीं होगी। उसके कुर्ते में पैबंद लगे होंगे। वह दुबला-पतला लड़का होगा।

इसी प्रकार रूपांतरित नाटकों के संवाद तभी प्रभावशाली बनेंगे जब पात्रों का अभिनय भी उच्च कोटि का होगा। लेखक तो थोड़ा-बहुत संकेत कर सकता है, परंतु निर्देशक ही अभिनेताओं में अभिनय की क्षमता को उत्पन्न कर सकता है। नाट्य रूपांतरण में पात्रों की भावभंगिमाओं और उसके तौर-तरीकों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है। कहानी के संवादों को नाटकीय बनाने के लिए उन्हें काटकर छोटा करना आवश्यक है। पात्रों का नाट्य रूपांतरण करते समय ध्वनि और प्रकाश का समुचित प्रयोग किया जाना चाहिए। इससे पात्रों का अभिनय बड़ा ही प्रभावशाली तथा संवेदनशील बन जाता
है।

कहानी में पात्रों के संवाद ही उनकी भावनाओं को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त कर सकते हैं, परंतु इसके लिए निर्देशक की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण होती है। ‘ईदगाह’ कहानी में हामिद का मेले में मिठाई न खरीदना, न ही कोई खिलौना खरीदना, बल्कि बूढ़ी दादी के लिए चिमटा खरीदना पाठकों को संवेदनशील बना देता है, परंतु यही दृश्य यदि नाटक में किसी अच्छे कलाकार द्वारा अभिनीत किया जाए, तो यह न केवल दर्शकों को संवेदनशील बनाएगा, बल्कि उन पर गहरा प्रभाव भी छोड़ जाएगा।

पाठ से संवाद

प्रश्न 1.
कहानी और नाटक में क्या-क्या समानताएँ होती हैं?
उत्तर:
कहानी और नाटक में निम्नांकित समानताएँ हैं

कहानीनाटक
1. कहानी का मूलाधार कथानक होता है।1. नाटक भी कथानक पर ही आधारित होता है।
2. कहानी में घटनाएँ क्रमबद्ध रहती हैं।2. नाटक में भी घटनाओं का वर्णन क्रमबद्ध रूप में होता है।
3. कहानी में पात्रों की मुख्य भूमिका होती है।3. नाटक की रचना में भी पात्रों का मुख्य स्थान होता है।
4. कहानी में संवादों के माध्यम से घटनाक्रम आगे बढ़ता है।4. नाटक में संवादों के द्वारा ही घटनाक्रम का विकास होता है।
5. कहानी में एक परिवेश रहता है।5. नाटक में भी परिवेश होता है।
6. कहानी में पात्रों के मध्य दुवंद्व होता है।6. नाटक के पात्रों के मध्य भी वंद्व दिखाया जाता है।
7. कहानी उद्देश्य विशेष को लेकर चलती है।7. नाटक भी उद्देश्य विशेष को लेकर ही लिखा जाता है।
8. कहानी का चर्मोत्कर्ष होता है।8. नाटक का भी चर्मोत्कर्ष होता है।

प्रश्न 2.
स्थान और समय को ध्यान में रखते हुए दोपहर का भोजन कहानी को विभिन्न दृश्यों में विभाजित करें। किसी एक दृश्य का संवाद भी लिखें।
उत्तर:
दोपहर का भोजन एक संवेदनशील कहानी है। कुछ दृश्यों में विभाजित करके इस कहानी का नाट्य रूपांतरण किया जा सकता है।
1. प्रथम दृश्य-सिद्धेश्वरी के घर की दयनीय दशा; अस्त-व्यस्त पुराने वस्त्र; टूटी हुई चारपाई पर उसका सबसे छोटा बीमार पुत्र; उसके मुख पर मक्खियों का भिनभिनाना।

2. दूसरा दृश्य-सिद्धेश्वरी द्वारा बार-बार दरवाजे की ओर नज़रें टिकाए गली में आते-जाते लोगों को देखना।

3. तीसरा दृश्य-थके हारे रामचंद्र का घर में प्रवेश करना; उसका हताश होकर बैठना; सिद्धेश्वरी द्वारा खाना परोसना और दोनों में आपस में बातचीत होना।

4. चौथा दृश्य-खाना खाकर रामचंद्र का बाहर जाना; मोहन का घर में प्रवेश करना; खाना खाते समय मोहन का माँ से बातें करना और फिर बाहर चले जाना।

5. पाँचवाँ दृश्य-चंद्रिका प्रसाद का परेशान मुद्रा में आना; भोजन करना और पति-पत्नी का वार्तालाप होना; उसके द्वारा खाना खाकर उठना।

6. छठा दृश्य-इस दृश्य में सिद्धेश्वरी का खाना-खाने बैठना; सोए हुए पुत्र को देखकर आधी रोटी उसके लिए रख देना; रोते हुए अधिकांश भोजन करना; सारे घर में मक्खियों का भिनभिनाना और चंद्रिका प्रसाद का निश्चित होकर सोना।

  • सिद्धेश्वरी-भोजन कर लो बेटा!
  • (रामचंद्र बिना उत्तर दिए भोजन करता है। माँ उस पर पंखा झलती रहती है।)
  • सिद्धेश्वरी-क्या दफ्तर में कोई खास बात हुई है?
  • रामचंद्र-नहीं, हर रोज़ जैसा था।
  • सिद्धेश्वरी-फिर चुप-चुप क्यों हो?
  • रामचंद्र-लाला दिन-भर काम तो लेता है, लेकिन पैसे देते हुए उसकी जान निकलती है। सिद्धेश्वरी-यह सब तो सहना पड़ेगा।
  • रामचंद्र-परंतु …..
  • सिद्धेश्वरी-(बीच में टोकती हुई) बेटे! जब तक कोई दूसरा काम नहीं मिल जाता, तब तक तो सहन करना ही पड़ेगा।
  • रामचंद्र-सो तो है ही।
    (सिद्धेश्वरी उसे रोटी लेने के लिए कहती है लेकिन वह सिर हिलाकर मना कर देता है और हाथ धोकर बाहर चला जाता है।)

HBSE 12th Class Hindi कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

प्रश्न 3.
कहानी के नाट्य रूपांतरण में संवादों का विशेष महत्त्व होता है। नीचे ईदगाह कहानी से संबंधित कुछ चित्र दिए जा रहे हैं। इन्हें देखकर लिखें।
HBSE 12th Class Hindi कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण 1
उत्तर:

  1. ईदगाह कहानी का नाट्य रूपांतरण
  2. महमूद-(जेब से निकालकर पैसे गिनता है)-अरे, मोहसिन! मेरे पास बारह पैसे हैं।
  3. मोहसिन मेरे पास तो पंद्रह पैसे हैं। इतने सारे पैसों से खूब मिठाइयाँ खाएँगे और खिलौने लेंगे।
  4. हामिद तेरे पास कितने पैसे हैं? हामिद-अभी दादी जान से लेकर आता हूँ। अभी तो जेब खाली है।
  5. महमूद-हाँ; भाग कर जा। ईदगाह जाना है। बहुत दूर है यहाँ से।
  6. हामिद-(कोठरी का दरवाजा खोलकर) दादी जान, मैं भी मेले में जाऊँगा। सब जा रहे हैं ईदगाह। मुझे पैसे दो।
  7. अमीना-तू इतनी दूर कैसे जाएगा?
  8. हामिद-(उत्साहित होकर) महमूद, मोहसिन, नूरा के साथ जाऊँगा। दादी जान सब जा रहे हैं।
  9. अमीना-(बटुआ खोलते हुए) लो बेटे, यही तीन पैसे हैं। सबके साथ रहना। जल्दी घर लौट आना।
  10. हामिद–हाँ, दादीजान जल्दी घर आ जाऊँगा।
  11. मोहसिन-अरे, तेज-तेज चलो। ईदगाह जल्दी पहँचना है।
  12. महमूद-देख यार! कितने मोटे-मोटे आम लगे हैं।
  13. हामिद-लीचियाँ भी तो लगी हैं।
  14. नूरा-थोड़े से आम तोड़ लें।
  15. हामिद-नहीं-नहीं, माली मारेगा।
  16. महमूद-देखो! कितनी बड़ी-बड़ी इमारतें हैं।
  17. मोहसिन-देख, यह कॉलेज है। इसमें बड़ी-बड़ी मूछों वाले बड़े-बड़े लड़के पढ़ते हैं। सामने क्लब घर है।
  18. हामिद-ये बड़े लड़के भी रोज़ मार खाते होंगे। हमारे मदरसे में भी दो-तीन बड़े लड़के रोज़ मार खाते हैं।
  19. महमूद-यहाँ बड़ी भीड़ है। लोगों ने कितने सुंदर कपड़े पहन रखे हैं और यहाँ मोटरें भी हैं।
  20. हामिद-देख, यह पुलिस लाइन है। यहीं पर सिपाही कवायद करते हैं। रात को ये लोग घूम-घूमकर पहरा देते हैं।
  21. महमूद-अज़ी हजरत! यही तो चोरी करते हैं। शहर के सारे चोर-डाकू इनसे मिले होते हैं।
  22. मोहसिन-(चिल्लाते हुए) अरे! वह रही ईदगाह। अरे! यह तो बहुत बड़ी है।
  23. हामिद-देखो! सब लोग कतार में खड़े हैं। यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की नज़र में सब बराबर हैं।
  24. महमूद-आओ! गले मिलेंगे। सब सिजदे में झुक रहे हैं। एक-दूसरे के गले मिल रहे हैं।
  25. मोहसिन-आओ! हामिद तुम भी गले मिलो। नमाज़ के बाद सब गले मिलते हैं।
  26. महमूद-आओ! अब खिलौने खरीदेंगे।
  27. मोहसिन-यहाँ तरह-तरह के खिलौने हैं-सिपाही, गुजरिया, राजा और वकील। देखो! यह किश्ती, साधू और धोबिन। हामिद-वाह! कितने सुंदर खिलौने हैं।
  28. महमूद-मैं तो सिपाही लूँगा। देखो, इसके हाथ में बंदूक है। सिर पर लाल पगड़ी है। अरे नूरे! तू क्या लेगा?
  29. नूरा-मैं तो वकील लूँगा। देखो, इसने काला चोगा पहना हुआ है। हामिद! तुम क्या लोगे?
  30. हामिद-मैं ये खिलौने नहीं लूँगा। ये सभी मिट्टी के बने हैं। गिर गए तो चकनाचूर हो जाएँगे।
  31. मोहसिन-यह तो अपने पैसे बचाना चाहता है।
  32. सम्मी-हाँ, बेचारा क्या करे? इसके पास तो कुल तीन पैसे हैं। आओ! हम मिठाई लेंगे।
  33. हामिद-(हाथ में चिमटा लेकर) देखो, मैंने यह खरीदा है।
  34. महमूद-(हँसते हुए) अरे! चिमटा किस काम का है। इससे क्या खेला जा सकता है।
  35. हामिद-देखो, यह कितना मजबूत है। लोहे का है।
  36. महमूद-पर, यह खिलौना तो नहीं है।
  37. हामिद क्यों नहीं? कँधे पर रखो तो बंदूक हो गई। हाथ में लिया तो फकीरों का चिमटा बन गया। चिमटे के एक वार से सब खिलौने चकनाचूर हो जाएँगे। अरे! मेरा चिमटा बहादुर शेर है।
  38. सम्मी-मेरी बँजरी से बदलेगा?
  39. हामिद-चिमटा तुम्हारी बँजरी का पेट फाड़ देगा। सिपाही भी मिट्टी की बंदूक फैंककर भाग खड़ा होगा।
  40. मोहसिन-हाँ भाई ठीक है इसका चिमटा सचमुच रुस्तम-ए-हिंद है।
  41. महमूद-यार हामिद! तू अपना चिमटा देकर मेरा खिलौना ले लो।
  42. हामिद-न भाई! मैं यह अपनी दादी के लिए लाया हूँ। रोटियाँ सेकते हुए अब उसकी उँगलियाँ नहीं जलेंगी।
  43. मोहसिन-यार! तू तो सचमुच बड़ा समझदार है।
  44. हामिद-(दादी को चिमटा देते हुए) दादी यह चिमटा तुम्हारे लिए लाया हूँ। अब आराम से रोटियाँ सेंकना।
  45. दादी-(रोते हुए) मेले में जाकर भी तुम मेरी ही चिंता करते रहे।

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HBSE 10th Class Maths Solutions Haryana Board

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HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Bhag 1 Haryana Board

Haryana Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions शेमुषी भाग 1

HBSE 9th Class Sanskrit अनुप्रयुक्त व्याकरणम्

HBSE 9th Class Sanskrit रचनात्मक कार्यम्

HBSE 9th Class Sanskrit अपठित अवबोधनम्

HBSE 9th Class Sanskrit Question Paper Design

Class: 9th
Subject: Sanskrit
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 80
Time: 3 Hrs

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKUETotal
Percentage of Marks404020100
Marks32321680

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions375116
Marks Allotted2024201680
Estimated Time50704020180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
खण्ड क
1. अपठित अवबोधनम् प्रश्नोत्तर पाँच10
खण्ड ख
2. प्रार्थना पत्र आधारित रिक्त स्थान पूर्ति5
3. चित्र आधारित रिक्त स्थान पूर्ति5
खण्ड ग – पाठ्यपुस्तक
4. गद्यांश अर्थ (4)12
5. पद्यांश अर्थ (4)
6. भावार्थ (4)
7. गद्यांश प्रश्नोत्तर (3)8
8. पद्यांश प्रश्नोत्तर (2)
9. प्रश्न निर्माण (3)
10. कण्ठस्थ श्लोक4
खण्ड घ – अनुप्रयुक्त व्याकरण
11. कारक, सन्धि, समास की सोदाहरण परिभाषाएँ हिन्दी में (2 + 2 + 2)6
12. शब्द तथा धातु रूप, उपपद तथा अव्यय (4 + 4 + 3 + 3)14
खण्ड ङ – बहुविकल्पीय प्रश्न
13. संधि/संधिच्छेद, समास/विग्रह, प्रत्यय संयोग वियोग, पर्यायवाची, विलोम, संख्यावाची, विशेषण-विशेष्य, उपसर्ग। (2 + 2 + 2 + 2 + 2 + 2 + 2 + 2)16
Total80

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long answer Question i.e. Essay Type in Two Questions

6. Difficulty Level:
Difficult: 10% marks
Average: 50% marks
Easy: 40% marks

Abbreviations: K (Knowledge), U (Understanding), A (Application), S (Skill), E(Essay Type), SA (Short Answer Type), VSA (Very Short Answer Type), O (Objective Type)

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

HBSE 12th Class Hindi काले मेघा पानी दे Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
लोगों ने लड़कों की टोली को मेढक-मंडली नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आपको इंदर सेना कहकर क्यों बुलाती थी?
उत्तर:
गाँव के लोग लड़कों को नंग-धडंग और कीचड़ में लथपथ देखकर बुरा मानते थे। उनका कहना था कि यह पिछड़ापन ढोंग और अंधविश्वास है। ऐसा करने से वर्षा नहीं होती। इसलिए वे उन्हें गालियाँ देते थे और उनसे घृणा करते थे। लोग इस इंदर सेना को मेढक-मंडली कहते थे।

परंतु गाँव के किशोरों की टोली इंद्र देवता से वर्षा की गुहार लगाती थी। बच्चों का कहना था कि भगवान इंद्र वर्षा करने के लिए लोगों से पानी का अर्घ्य माँग रहे हैं। वे तो उनका दूत बनकर लोगों को जल का दान करने की प्रेरणा दे रहे हैं। ऐसा करने से इंद्र देवता वर्षा का दान करेंगे और खूब वर्षा होगी।

प्रश्न 2.
जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर:
जीजी का कहना था कि देवता से कुछ पाने के लिए हमें कुछ दान और त्याग करना पड़ता है। किसान भी तीस-चालीस मन अनाज पाने के लिए पहले पाँच-छः सेर गेहूँ की बुवाई करता है। तब कहीं उसका खेत हरा-भरा होकर लहराता है। इंदर सेना लोगों को यह प्रेरणा देती है कि वे इंद्र देवता को अर्घ्य चढ़ाएँ। यदि लोग भगवान इंद्र को पानी का दान करेंगे तो वे भी झमाझम वर्षा करेंगे। अतः इंदर सेना एक प्रकार से वर्षा की बुवाई कर रही है। हमें इस परंपरा का पालन करना चाहिए।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

प्रश्न 3.
पानी दे, गुड़धानी दे मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग क्यों की जा रही है?
उत्तर:
गुड़धानी का अर्थ है-गुड़ और धान अर्थात् गुड़ और अनाज मिलाकर बनाए गए लड्डु। इंदर सेना के किशोर इंद्र देवता से पानी के साथ गुड़धानी भी माँग रहे हैं। बच्चों को पीने के लिए पानी और खाने के लिए गुड़धानी चाहिए। यह सब बादलों पर निर्भर करता है। यदि बादल बरसेंगे तो खेतों में गन्ना और अनाज खूब पैदा होंगे। इस प्रकार इंद्र देवता ही हमें गुड़धानी देने वाला देवता है। इसलिए बच्चे पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग करते हैं।

प्रश्न 4.
गगरी फूटी बैल पियासा इंदर सेना के इस खेलगीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित हुई है?
उत्तर:
बैल भारतीय कृषि व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहे जाते हैं। वे हमारे खेतों को जोतते हैं और अन्न पैदा करते हैं। किसान उन्हीं पर निर्भर हैं। यदि वे प्यासे रहेंगे तो हमारी फसलें नष्ट हो सकती हैं। सांकेतिक रूप में लेखक यही कहना चाहता है कि वर्षा न होने से हमारे खेत सूख रहे हैं और खेती के आधार कहे जाने वाले बैल प्यास से मर रहे हैं। वर्षा होने से हमारे खेत भी बच जाएँगे और बैल भी भूखे-प्यासे नहीं रहेंगे।

प्रश्न 5.
इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय इसलिए बोलती है क्योंकि गंगा भारत की पवित्र नदी है। यह भारत के अधिकांश भाग को जल और अन्न प्रदान करती है। लोग इसकी मां के समान पूजा करते हैं। भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक परिवेश में इसका विशेष महत्त्व है। यमुना, गोदावरी, कृष्णा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ भी हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश से जुड़ी हुई हैं। प्राचीनकाल से भारत के बड़े-बड़े नगर इन्हीं नदियों के किनारे बसे हुए थे। इन्हीं नदियों के कारण हमारे समाज और सामाजिकता का विकास हुआ। अब भी लोग नदियों को प्रणाम करते हैं और अनेक पर्यों पर नदियों में स्नान करते हैं। हमारे अनेक पावन नगर; जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी आदि गंगा नदी के किनारे बसे हुए हैं। जब भी हम अपनी संस्कृति का गान करते हैं तब गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों के नाम अवश्य लेते हैं।

प्रश्न 6.
रिश्तों में हमारी भावना-शक्ति का बँट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति को कमजोर करती है। पाठ में जीजी के प्रति लेखक की भावना के संदर्भ में इस कथन के औचित्य की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
भावना की शक्ति मानव के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इससे मनुष्य को स्नेह की जो खुराक मिलती है, वह जीवन के लिए अत्यधिक उपयोगी है जो बच्चा भावनात्मक रूप से सुरक्षित रहता है, वह हमेशा प्रसन्न रहता है और विकास की ओर अग्रसर होता है। यही नहीं, इससे मानव का बौद्धिक और शारीरिक विकास भी होता है। बौद्धिक विकास के कारण ही लेखक कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री बना। लेकिन इस स्थिति में पहुँचकर अनुचित तथा उचित के विवेक का सहारा लेता है, लेकिन जीजी ने तर्कनिष्ठ लेखक को यह अहसास कराने का प्रयास किया कि तर्क और परिणाम ही सब कुछ नहीं होता। भावनात्मक सत्य का अपना महत्त्व होता है। भावनाएँ सूक्ष्म होती हैं और उनके परिणाम भी सूक्ष्म होते हैं। जीजी की आस्था और भावुकता ने लेखक को एक नए तथ्य की जानकारी दी। लेखक के सारे तर्क हार गए और उसे यह अनुभव हुआ कि भावनाओं और तर्कों में समन्वय आवश्यक है। यह तभी होगा जब मनुष्य तर्क शक्ति के साथ-साथ भावनाओं का भी ध्यान रखेगा।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
क्या इंदर सेना आज के युवा वर्ग का प्रेरणास्रोत हो सकती है? क्या आपके स्मृति-कोश में ऐसा कोई अनुभव है जब युवाओं ने संगठित होकर समाजोपयोगी रचनात्मक कार्य किया हो, उल्लेख करें।
उत्तर:
इंदर सेना आज के युवा वर्ग के लिए प्रेरणा-स्रोत का काम कर सकती है। इंदर सेना के प्रयास को हमें अंधविश्वास नहीं मानना चाहिए, बल्कि यह रचनात्मक कार्य के लिए किया गया सामूहिक प्रयास है। सामूहिक प्रयास ही जन-शक्ति का प्रतीक है। इसी के कारण हमारे देश में बड़े-बड़े आंदोलन चले। जो युवक बादलों को वर्षा करने के लिए मजबूर कर सकते हैं, वे समाज की असंख्य समस्याओं का भी समाधान कर सकते हैं। यदि युवा शक्ति को किसी रचनात्मक आंदोलन से जोड़ दिया जाए तो देश की तस्वीर बदल सकती है। सन् 1975 में कांग्रेस ने देश में आपातकालीन की घोषणा की थी तब जयप्रकाश ने युवकों को संगठित करके जन आंदोलन चलाया था। इसी प्रकार महात्मा गाँधी ने भी युवकों का सहयोग लेकर सत्य का आंदोलन चलाया तत्पश्चात् हमारा देश आज़ाद हुआ।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

प्रश्न 2.
तकनीकी विकास के दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। कृषि-समाज में चैत्र, वैशाख सभी माह बहुत महत्त्वपूर्ण हैं पर आषाढ़ का चढ़ना उनमें उल्लास क्यों भर देता है?
उत्तर:
इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है। आषाढ़ से पहले जेठ मास में भयंकर गर्मी पड़ती है। पशु-पक्षी मानव आदि सभी प्राणी गर्मी के कारण व्याकुल हो उठते हैं। आषाढ़ मास लगते ही पहली बरसात होती है। लोग इस बरसात की बेचैनी से प्रतीक्षा करते हैं। आषाढ़ की वर्षा लोगों को राहत दिलाती है, लेकिन किसानों के लिए यह वर्षा एक वरदान समझी जाती है। वे अपने हल और बैल लेकर खेतों की ओर चल देते हैं। वे फसल उत्पन्न करने की तैयारी करते हैं। सावनी फसल हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है और कृषक समाज में उत्साह भर देती है।

प्रश्न 3.
पाठ के संदर्भ में इसी पुस्तक में दी गई निराला की कविता बादल-राग पर विचार कीजिए और बताइए कि आपके जीवन में बादलों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
“बादल राग” निराला जी की एक उल्लेखनीय कविता है। इसमें कवि ने बादल को क्रांति का रूप माना है। कवि बादल का आह्वान करते हुए कहता है कि वह वर्षा करे और गरीब किसानों को शोषण से मुक्त करे। यही नहीं, इस कविता के द्वारा कवि पुरानी जड़ परंपराओं को त्यागकर नव-निर्माण की ओर बढ़ने का संदेश देता है।

मेरे जीवन में बादलों की विशेष भूमिका रही है, क्योंकि मैं ग्रामीण जन-जीवन से जुड़ा हुआ हूँ। वर्षा हमारे जीवन को आनन्द प्रदान करती है और नीरस जीवन में रस भर देती है। मन करता है कि मैं नगर को छोड़कर फिर से खेतों में चला जाऊँ और हरे-भरे खेत देखकर आनन्द प्राप्त करूँ।

प्रश्न 4.
त्याग तो वह होता…. उसी का फल मिलता है। अपने जीवन के किसी प्रसंग से इस सूक्ति की सार्थकता समझाइए।
उत्तर:
यह सूक्ति हमारे जीवन से संबंधित है। हम विद्या प्राप्त करने के लिए खूब मेहनत करते हैं। अपनी नींद, भूख, इच्छा को त्याग कर खूब पढ़ते हैं। अन्ततः हम अपने इस त्याग का फल प्राप्त करते हैं। मेरे अपने जीवन का एक महत्त्वपूर्ण प्रसंग है। मैंने थोड़े-थोड़े पैसे जोड़कर एक कंबल खरीदा था। प्रातः की सैर करते समय मैं उस कम्बल को ओढ़ लेता था। एक दिन मैं पार्क में सैर कर रहा था। वहाँ एक गरीब आदमी ठंड से सिकुड़ कर लेटा हुआ था। उसके तन पर पूरे कपड़े भी नहीं थे। अचानक मैंने अपना कम्बल उतारकर उस गरीब व्यक्ति पर डाल दिया। उसने मेरी ओर हैरानी से देखा। मुझे लगा कि वह मुझे आशीर्वाद दे रहा है। घर लौटने पर पिता जी द्वारा पूछने पर मैंने सारी बात उन्हें बता दी। मेरे पिता जी बड़े प्रसन्न हुए और उसी दिन मेरे लिए एक नया गर्म शाल ले आए।

प्रश्न 5.
पानी का संकट वर्तमान स्थिति में भी बहुत गहराया हुआ है। इसी तरह के पर्यावरण से संबद्ध अन्य संकटों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
पानी के संकट के साथ-साथ बिजली का संकट भी बढ़ता जा रहा है। खनिज तेलों और पेट्रोलियम पदार्थों की कमी हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से जंगल घटते जा रहे हैं और जनसंख्या वृद्धि से गाँव और नगरों का विस्तार होता जा रहा है। इससे ऑक्सीजन की मात्रा घट गई है। उद्योगों की जहरीली गैसों के कारण वायुमंडल की ओजोन परत में जगह-जगह छेद हो गए हैं। यही नहीं कारखाने और फैक्टरियाँ भी गंदे पानी से नदियों को प्रदूषित कर रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा सारे विश्व में मँडरा रहा है।

प्रश्न 6.
आपकी दादी-नानी किस तरह के विश्वासों की बात करती हैं? ऐसी स्थिति में उनके प्रति आपका रवैया क्या होता है? लिखिए।
उत्तर:
मेरी दादी-नानी दोनों का विश्वास है कि गंगा में स्नान करने से मोक्ष मिल जाता है। इसी प्रकार वे पूजा की राख और जली हुई बत्तियों को नदी में बहाने की आज्ञा देती रहती हैं। यही नहीं, वे पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर वहाँ खाद्य पदार्थ भी रख आती हैं। मैंने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया कि ऐसा करने से नदी का जल प्रदूषित हो जाता है और पीपल के आस-पास गंदगी फैलती है, परंतु वे मेरी सलाह को नकार देती हैं। लेकिन ईश्वर में उनके विश्वास का मैं भी समर्थन करता हूँ। विद्यालय जाने से पहले भगवान का थोड़ा भजन कर लेता हूँ।

चर्चा करें

प्रश्न 1.
बादलों से संबंधित अपने-अपने क्षेत्र में प्रचलित गीतों का संकलन करें तथा कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर:
अपने विद्यालय के पुस्तकालय से लोक-गीतों की पुस्तक को पढ़ें अथवा अपनी माँ, दादी, नानी या बुआ से पूछकर लोक गीतों का संग्रह कीजिए और कक्षा में अपने सहपाठियों के साथ इन गीतों पर चर्चा कीजिए।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

प्रश्न 2.
पिछले 15-20 सालों में पर्यावरण से छेड़-छाड़ के कारण भी प्रकृति-चक्र में बदलाव आया है, जिसका परिणाम मौसम का असंतुलन है। वर्तमान बाड़मेर (राजस्थान) में आई बाढ़, मुंबई की बाढ़ तथा महाराष्ट्र का भूकंप या फिर सुनामी भी इसी का नतीजा है। इस प्रकार की घटनाओं से जुड़ी सूचनाओं, चित्रों का संकलन कीजिए और एक प्रदर्शनी का आयोजन कीजिए, जिसमें बाज़ार दर्शन पाठ में बनाए गए विज्ञापनों को भी शामिल कर सकते हैं। और हाँ ऐसी स्थितियों से बचाव के उपाय पर पर्यावरण विशेषज्ञों की राय को प्रदर्शनी में मुख्य स्थान देना न भूलें।
उत्तर:
शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।

विज्ञापन की दुनिया

प्रश्न 1.
‘पानी बचाओ’ से जुड़े विज्ञापनों को एकत्र कीजिए। इस संकट के प्रति चेतावनी बरतने के लिए आप किस प्रकार का विज्ञापन बनाना चाहेंगे?
उत्तर:
शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी चित्र की रचना करें।
HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे 1

HBSE 12th Class Hindi काले मेघा पानी दे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
“काले मेघा पानी दे” नामक निबंध का उद्देश्य अथवा प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
“काले मेघा पानी दे” पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
मानव-जीवन में तर्क और आस्था का अपना-अपना महत्त्व है। तर्क हमेशा वैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार करता है, परंतु आस्था हमारी भावनाओं से जुड़ी होती है। तर्क विनाशकारी होता है। जिसे वह सत्य नहीं समझता, उसे वह नष्ट करना चाहता है। दूसरी ओर आस्था और विश्वास हमारे जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है और हम आशावादी होकर कर्म करते हैं। इस निबंध में एक संदेश यह भी दिया गया है कि हमें जीवन में पाने से पहले कुछ खोना भी पड़ता है। जो लोग दान और त्याग में विश्वास नहीं करते, वे भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं। ऐसे लोग ही सामाजिक और आर्थिक विषमता को अंजाम देते हैं व समाज में अव्यवस्था फैलाते हैं।

प्रश्न 2.
वर्षा न होने पर हमारी कृषि किस प्रकार प्रभावित होती है?
उत्तर:
वर्षा न होने पर खेतों की मिट्टी सूख जाती है और उसमें पपड़ियाँ जम जाती हैं। बाद में धरती में दरारें पड़ जाती हैं। पशु-पक्षी व मानव सभी व्याकुल हो जाते हैं। किसान के बैल भी प्यास के मारे मरने लगते हैं। वर्षा न होने पर कृषि पर संकट के बादल छा जाते हैं और देश की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाती है।

प्रश्न 3.
वर्षा न होने पर गाँव के लोग क्या-क्या उपाय करते हैं?
उत्तर:
वर्षा न होने पर गाँव के लोग ईश्वर की भक्ति करते हैं। स्थान-स्थान पर पूजा-पाठ व कथा-कीर्तन होता है। कुछ लोग मीठे चावल बनाकर लोगों को खिलाते हैं। जब इन उपायों से भी वर्षा नहीं होती तो गाँव की युवा मंडली गाँव वालों से जल दान कराती है। उनका विश्वास है कि ऐसा करने से इंद्र देवता प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे।

प्रश्न 4.
गाँव की इंद्र सभा के कार्यकलाप का वर्णन करें।
उत्तर:
जब सभी उपाय अपनाने पर भी वर्षा नहीं होती तब गाँव की युवा मंडली घर-घर जाकर पानी का दान मांगती है। इस मंडली में 12 से 18 वर्ष तक के नंग-धडंग युवा होते हैं जिन्होंने केवल एक लंगोटी धारण की होती है। ये युवा गंगा मैया की जय-जयकार करते हुए गाँव की गलियों में जाते हैं और दुमंजिले गाँव के मकानों पर खड़ी स्त्रियाँ पानी के घड़े व बाल्टियाँ उड़ेल देती हैं। युवा उस पानी से स्नान करते हैं, और मिट्टी व कीचड़ में लोट-पोट हो जाते हैं। इस अवसर पर वे इस लोकगीत का गान करते हैं-
काले मेघा पानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा
पानी दे, गुड़धानी दे
काले मेघा पानी दे।

प्रश्न 5.
मेंढक-मंडली का शब्दचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मेंढक मंडली’ का एक और नाम भी है-इंदर सेना। इस मंडली में दस-बारह वर्ष से सोलह वर्ष तक की आयु के बच्चे होते हैं। जो लोग उनके नग्नरूप शरीर, उनकी उछल-कूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण होने वाली कीचड़ काँदों से चिढ़ते थे, वे उन्हें मेंढक-मंडली कहते थे। उनकी अगवानी गलियों में होती थी। उनमें से अधिकतर एक जांगिए या लंगोटी में होते थे। वे एक स्थान पर एकत्रित होकर पहला जयकारा लगाते थे-“बोल गंगा मैया की जय” । जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ घरों की छतों व खिड़कियों से झाँकने लगती थीं। वह विचित्र नंग-धडंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थी। यह टोली इन्द्र देवता को खुश करने के लिए ऐसा करती थी।

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प्रश्न 6.
ऋषि मुनियों के बारे में लेखक के क्या विचार हैं? दोनों के दृष्टिकोण को स्पष्ट करें।
उत्तर:
जीजी का विचार है, कि सब ऋषि मुनि यह कह गए हैं कि पहले तुम खुद त्याग करो तब देवता तुम्हें चार गुणा और आठ गुणा लौटाएँगे, परंतु लेखक ऋषि मुनियों के वचनों को आर्य समाज के संदर्भ में देखता है। वह स्वयं आर्यसमाजी है। उसे इस बात का दुख है कि अंधविश्वासों के साथ ऋषि मुनियों का नाम जोड़ा गया है। वह अपनी जीजी से कहता है “ऋषि मुनियों को काहे बदनाम करती हो जीजी, क्या उन्होंने कहा था कि जब मानव पानी की बूंद ६ को तरसे तब पानी कीचड़ में बहाओ।”

प्रश्न 7.
आपकी दृष्टि में जीजी की आस्था उचित है या लेखक का तर्क?
उत्तर:
इस निबंध को पढ़ने से जीजी की आस्था हमें अधिक प्रभावित करती है। कारण यह है कि जीजी की व्याख्या पूर्णतः तर्क संगत है और वह हमारी परंपराओं पर आधारित है। भले ही वह अनपढ़ है, लेकिन वह दान और त्याग के महत्त्व को भली प्रकार जानती है। यह एक कटु सत्य है कि जब तक हम त्याग और दान नहीं करेंगे तब तक समाज के लोग किस प्रकार जीवन-यापन कर सकेंगे। त्याग और दान भी समाजवाद की स्थापना करने का एक छोटा-सा प्रयास है।

प्रश्न 8.
पानी की बुआई से क्या तात्पर्य है? ‘काले मेघा पानी दे’ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:
किसान भरपूर फसल पाने के लिए अपने खेतों में बीज की बुआई करता है। अधिक फसल पाने के लिए उसे कुछ बीजों का त्याग भी करना पड़ता है। इसी प्रकार बादलों से बरसात पाने के लिए गाँव के लोग अपने द्वारा संचित जल में से कुछ जल दान को जल की बआई कहते हैं। भले ही वैज्ञानिक दृष्टि से यह सत्य नहीं है, पर बनी हुई है। अनेक बार ऐसा करने से वर्षा हुई भी है।

प्रश्न 9.
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर त्याग और दान की महिमा का वर्णन करें।
उत्तर:
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में लेखक ने त्याग और दान की महिमा पर प्रकाश डाला है। लेखक के अनुसार त्यागपूर्वक किया गया दान ही सच्चा दान है। यदि किसी व्यक्ति के पास लाखों-करोड़ों रुपये हैं और उसमें से वह सौ-पचास रुपये दान कर देता है तो इसे हम त्यागपूर्वक दान नहीं कह सकते। यदि आपको किसी वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता है और आप उसी वस्तु का दान करते हैं तो वही त्यागपूर्वक दान कहा जाएगा। वस्तुतः स्वयं दुख उठाकर किया गया दान ही सच्चा दान कहा जाता है।

प्रश्न 10.
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में भ्रष्टाचार पर किस प्रकार से व्यंग्य किया गया है?
उत्तर:
यद्यपि ‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में पानी माँगने व कीचड़ में नहाने की प्रथा व सूखे में पीने के पानी को बरबाद करना आदि पर भी व्यंग्य किया गया है। किन्तु लेखक ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी अत्यन्त तीक्ष्ण व्यंग्य किया है। लेखक कहता है कि आज हम हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी मांगें तो रखते हैं, किंतु देश के लिए त्याग का कहीं नामो-निशान नहीं है। हम सबका अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर एक-दूसरे के भ्रष्टाचार की बातें करते हैं। क्या कभी हमने अपने भीतर भी झांककर देखा है कि कहीं हम भी उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? आज समाज में विकास तो है किन्तु गरीब, गरीब ही रह गए हैं। यह सब भ्रष्टाचार के कारण ही है। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से भ्रष्टाचार पर करारा व्यंग्य किया है।

प्रश्न 11.
धर्मवीर भारती की जीजी के संस्कारों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
लेखक की जीजी एक वृद्धा थी। वह आस्थाशील नारी थी। इसलिए वह समाज की परम्पराओं के मर्म को समझती थी। उसका परम्पराओं में पूर्ण विश्वास था। लेखक के प्रति भी उसकी ममता थी। वह पूजा अनुष्ठानों का फल भी लेखक को देना चाहती थी। उसने लेखक के जीवन में भी शुभ संस्कारों को उत्पन्न करने का प्रयास किया है।

प्रश्न 12.
जीजी लेखक से पूजा अनुष्ठान के कार्य क्यों करवाती थी?
उत्तर:
जीजी को लेखक से अपने पुत्रों से भी अधिक स्नेह था। इसलिए वह लेखक से ही पूजा अनुष्ठान के कार्य करवाती थी। इन कार्यों का पुण्य लेखक को प्राप्त हो। वह लेखक का कल्याण चाहती थी।

प्रश्न 13.
‘काले मेघा पानी दे पाठ के आधार पर जीजी के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीजी वृद्धा की नारी थी। वह लेखक से अत्यधिक प्रेम करती थी। एक आस्थाशील नारी होने के कारण वह समाज की परंपराओं के मर्म को भली प्रकार से जानती थी। इन परंपराओं में उसका पूर्ण विश्वास था। लेखक के प्रति उसकी ममता थी। वह पूजा-अनुष्ठान के कार्यों का फल भी लेखक को देना चाहती थी। उसने भरसक प्रयास किया कि वह लेखक में शुभ संस्कारों को उत्पन्न कर सके।

प्रश्न 14.
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर लेखक के चरित्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लेखक एक सुशिक्षित और जागरूक युवक था। उसमें आर्य समाज के संस्कार थे। वह अंधविश्वासों का कट्टर विरोधी मार सभा का मंत्री था और उसमें नेतत्व शक्ति भी थी। वह प्रत्येक बात के बारे में वैज्ञानिक दृष्टि से सोचता था। इसलिए उसने इंदर सेना द्वारा बड़ी कठिनाई से संचित किए हुए पानी के दान में माँगने को अनुचित ठहराया और इस परंपरा का विरोध किया, परंतु अन्ततः वह जीजी के स्नेह और आस्था के आगे झुक गया। इस प्रकार उसने तर्क और आस्था में समन्वय स्थापित कर लिया।

प्रश्न 15.
इंदर सेना जेठ के अंतिम तथा आषाढ़ के प्रथम सप्ताह में ही पानी माँगने क्यों आती थी?
उत्तर:
जेठ के अंतिम तथा आषाढ़ के प्रथम सप्ताह में गर्मी अपनी चरम सीमा पर होती है। गर्म लू से पृथ्वी तप जाती है। आषाढ़ मास में ही वर्षा का आगमन होता है, लेकिन कभी-कभी इस मास में वर्षा नहीं होती। इसके फलस्वरूप जीव-जंतु पानी के बिना मरने लगते हैं। ज़मीन सूखकर पत्थर बन जाती है, और जगह-जगह से फट जाती है। इंदर सेना इंद्र देवता से ही वर्षा की याचना के लिए लोगों से पानी का दान माँगती है।

प्रश्न 16.
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण की क्या विशेषता है?
उत्तर:
प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने लोक प्रचलित आस्था तथा विज्ञान के तर्क के संघर्ष का वर्णन किया है। विज्ञान हमेशा सत्य को महत्त्व देता है और यह तर्क आश्रित है। परंतु लोक प्रचलित विश्वास आस्था से जुड़ा हुआ है। इसमें कौन सही और गलत है, यह निर्णय कर पाना कठिन है। विज्ञान तो ग्लोबल वार्मिंग को अनावृष्टि का कारण मानता है, लेकिन लोक परंपरा इस तर्क को स्वीकार नहीं करती। वे लोक परंपराओं का अंधानुकरण करके जीवन-यापन कर रहे हैं।

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प्रश्न 17.
दिनों-दिन गहराते पानी के संकट से निपटने के लिए क्या आज का युवा वर्ग ‘काले मेघा पानी दे’ की इंद्र सेना की तर्ज़ पर कोई सामूहिक कार्य प्रारंभ कर सकता है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
पानी का गहराता संकट हमारे देश के लिए एक भयंकर समस्या बन चुका है। इस संकट को टालने के लिए ग्रामीण व शहरी युवक-युवतियाँ अत्यधिक सहयोग दे सकते हैं। युवा वर्ग देश के गाँवों में तालाब खुदवा सकता है, जहाँ पानी का भंडारण किया जा सकता है। इस पानी से जहाँ एक ओर खेतों की सिंचाई की जा सकती है, वहाँ दूसरी ओर भूमिगत जल के स्तर में भी सुधार लाया जा सकता है। युवक प्रत्येक घर में जाकर पानी को व्यर्थ बरबाद न करने का संदेश भी लोगों को दे सकते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के लेखक का नाम है
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) महादेवी वर्मा
(C) रघुवीर सहाय
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(D) धर्मवीर भारती

2. धर्मवीर भारती का जन्म कब हुआ?
(A) 2 दिसंबर, 1926
(B) 11 दिसंबर, 1936
(C) 2 जनवरी, 1927
(D) 3 मार्च, 1928
उत्तर:
(A) 2 दिसंबर, 1926

3. धर्मवीर भारती के पिता का क्या नाम था?
(A) राम जी लाल
(B) चरंजीवी लाल
(C) मोहन लाल
(D) कृष्ण लाल
उत्तर:
(B) चरंजीवी लाल

4. धर्मवीर भारती की माता का क्या नाम था?
(A) सीता देवी
(B) राधा देवी
(C) चंदी देवी
(D) चंडी देवी
उत्तर:
(C) चंदी देवी

5. धर्मवीर भारती ने इंटर की परीक्षा कब उत्तीर्ण की?
(A) सन् 1940 में
(B) सन् 1939 में
(C) सन् 1941 में
(D) सन् 1942 में
उत्तर:
(D) सन् 1942 में

6. धर्मवीर भारती ने किस पाठशाला से इंटर की परीक्षा पास की?
(A) ब्राह्मण पाठशाला
(B) कायस्थ पाठशाला
(C) सनातन धर्म पाठशाला
(D) डी०ए०वी० पाठशाला
उत्तर:
(B) कायस्थ पाठशाला

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7. धर्मवीर भारती ने किस विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षा पास की?
(A) प्रयाग विश्वविद्यालय
(B) लखनऊ विश्वविद्यालय
(C) आगरा विश्वविद्यालय
(D) मेरठ विश्वविद्यालय
उत्तर:
(A) प्रयाग विश्वविद्यालय

8. सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर धर्मवीर भारती को कौन-सा पदक मिला?
(A) चिंतामणि पदक
(B) चिंतामणि घोष मंडल पदक
(C) प्रेमचंद पदक
(D) जयशंकर प्रसाद पदक
उत्तर:
(B) चिंतामणि घोष मंडल पदक

9. धर्मवीर भारती ने हिंदी में किस वर्ष एम०ए० की परीक्षा पास की?
(A) सन् 1946 में
(B) सन् 1948 में
(C) सन् 1947 में
(D) सन् 1949 में
उत्तर:
(C) सन् 1947 में

10. धर्मवीर भारती ने किस वर्ष पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की?
(A) सन् 1950 में
(B) सन् 1951 में
(C) सन् 1952 में
(D) सन् 1954 में
उत्तर:
(D) सन् 1954 में

11. धर्मवीर भारती ने किस विषय में पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की?
(A) सिद्ध साहित्य
(B) जैन साहित्य
(C) नाथ साहित्य
(D) संत साहित्य
उत्तर:
(A) सिद्ध साहित्य

12. धर्मवीर भारती किस पत्रिका के संपादक बने?
(A) नवजीवन
(B) धर्मयुग
(C) साप्ताहिक हिंदुस्तान
(D) दिनमान
उत्तर:
(B) धर्मयुग

13. धर्मवीर भारती ने इंग्लैंड की यात्रा कब की?
(A) सन् 1958 में
(B) सन् 1960 में
(C) सन् 1961 में
(D) सन् 1962 में
उत्तर:
(C) सन् 1961 में

14. धर्मवीर भारती ने इंडोनेशिया तथा थाईलैंड की यात्रा कब की?
(A) सन् 1962 में
(B) सन् 1963 में
(C) सन् 1964 में
(D) सन् 1966 में
उत्तर:
(D) सन् 1966 में

15. धर्मवीर भारती की ‘दूसरा सप्तक’ की कविताएँ कब प्रकाशित हुईं?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1952 में
(C) सन् 1943 में
(D) सन् 1950 में
उत्तर:
(A) सन् 1951 में

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16. ‘ठंडा लोहा’ का प्रकाशन कब हुआ?
(A) सन् 1951 में
(B) सन् 1952 में
(C) सन् 1953 में
(D) सन् 1949 में
उत्तर:
(B) सन् 1952 में

17. ‘कनुप्रिया’ के रचयिता हैं
(A) रघुवीर सहाय
(B) फणीश्वरनाथ रेणु
(C) धर्मवीर भारती
(D) जैनेंद्र कुमार
उत्तर:
(C) धर्मवीर भारती

18. ‘गुनाहों का देवता’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी
(B) काव्य
(C) एकांकी
(D) उपन्यास
उत्तर:
(D) उपन्यास

19. ‘गुनाहों का देवता’ का रचयिता कौन हैं?
(A) अज्ञेय
(B) धर्मवीर भारती
(C) रघुवीर सहाय
(D) नरेश मेहता
उत्तर:
(B) धर्मवीर भारती

20. ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) कहानी
(C) निबंध
(D) रेखाचित्र
उत्तर:
(A) उपन्यास

21. ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ किसकी रचना है?
(A) ,महादेवी वर्मा
(B) फणीश्वर नाथ रेणु
(C) हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
(D) धर्मवीर भारती
उत्तर:
(D) धर्मवीर भारती

22. ‘ठेले पर हिमालय’ किस विधा की रचना है?
(A) निबंध
(B) कहानी
(C) रेखाचित्र
(D) संस्मरण
उत्तर:
(A) निबंध

23. ‘कहनी-अनकहनी’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) मुक्तिबोध
(B) जैनेंद्र कुमार
(C) धर्मवीर भारती
(D) फणीश्वर नाथ रेणु
उत्तर:
(C) धर्मवीर भारती

24. ‘मानव मूल्य और साहित्य, किस विधा की रचना है?
(A) एकांकी
(B) उपन्यास
(C) निबंध
(D) नाटक
उत्तर:
(C) निबंध

25. धर्मवीर भारती का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1995 को
(B) सन् 1994 को
(C) सन् 1997 को
(D) सन् 1998 को
उत्तर:
(C) सन् 1997 को

26. ‘नदी प्यासी थी’ किस विधा की रचना है?
(A) काव्य
(B) एकांकी
(C) निबंध
(D) कहानी
उत्तर:
(B) एकांकी

27. धर्मवीर भारती को किस राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया?
(A) पदम् विभूषण
(B) पद्मश्री
(C) पदम् रत्न
(D) खेल रत्न
उत्तर:
(B) पद्मश्री

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28. ‘पदम्श्री’ के अतिरिक्त धर्मवीर भारती को कौन-सा पुरस्कार मिला?
(A) व्यास सम्मान
(B) प्रेमचंद सम्मान
(C) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(D) कबीर सम्मान
उत्तर:
(A) व्यास सम्मान

29. ‘अंधा युग’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) महादेवी वर्मा
(B) धर्मवीर भारती
(C) फणीश्वर नाथ रेणु
(D) कुँवर नारायण
उत्तर:
(B) धर्मवीर भारती

30. ‘अंधा युग’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) कहानी
(C) एकांकी
(D) गीति नाट्य
उत्तर:
(D) गीति नाट्य

31. धर्मवीर भारती की किस रचना पर हिंदी में फिल्म बनी?
(A) सूरज का सातवाँ घोड़ा
(B) गुनाहों का देवता
(C) अंधायुग
(D) पश्यंती
उत्तर:
(A) सूरज का सातवाँ घोड़ा

32. ‘आषाढ़’ से सम्बद्ध ऋतु है:
(A) बसंत
(B) वर्षा
(C) शीत
(D) ग्रीष्म
उत्तर:
(B) वर्षा

33. ‘काले मेघा पानी दे’ किस विधा की रचना है?
(A) कहानी
(B) संस्मरण
(C) रेखाचित्र
(D) निबंध
उत्तर:
(B) संस्मरण

34. ‘इंदर सेना’ को लेखक ने क्या नाम दिया है?
(A) वानर सेना
(B) राम सेना
(C) मेढक-मंडली
(D) कछुआ मंडली
उत्तर:
(C) मेढक-मंडली

35. इंदर सेना द्वारा जल का दान माँगने को लेखक क्या कहता है?
(A) अंधविश्वास
(B) लोक विश्वास
(C) धार्मिक विश्वास
(D) लोक परंपरा
उत्तर:
(A) अंधविश्वास

36. वर्षा का देवता कौन माना गया है?
(A) इन्द्र
(B) वरुण
(C) सूर्य
(D) पवन
उत्तर:
(A) इन्द्र

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37. लोगों ने लड़कों की टोली को मेढक-मंडली नाम क्यों दिया?
(A) नंग-धडंग शरीर के साथ कीचड़-कांदों में लोटने के कारण
(B) अनावृष्टि में जल माँगने के कारण
(C) शोर-शराबे द्वारा गाँव की शांति भंग करने के कारण
(D) तालाब में मेंढकों के समान उछलने के कारण
उत्तर:
(A) नंग-धडंग शरीर के साथ कीचड़-कांदों में लोटने के कारण

38. किशोर अपने-आप को इंदर सेना क्यों कहते हैं?
(A) वर्षा के लिए इंद्र को प्रसन्न करने के लिए
(B) लोगों से जल माँगने के लिए
(C) इंद्र देवता से प्यार करने के लिए
(D) इंद्र के समान आचरण करने के लिए
उत्तर:
(A) वर्षा के लिए इंद्र को प्रसन्न करने के लिए

39. ‘गुड़धानी’ से क्या अभिप्राय है?
(A) अनाज
(B) पानी
(C) गुड़ और चने से बना लड्ड
(D) धन-संपत्ति
उत्तर:
(C) गुड़ और चने से बना लड्डू

40. लंगोटधारी युवक किसकी जय बोलते हैं?
(A) इंद्र देवता की
(B) गंगा मैया की
(C) भगवान की
(D) बादलों की
उत्तर:
(B) गंगा मैया की

41. जीजी की दृष्टि में किसके बिना दान नहीं होता?
(A) समृद्धि
(B) इच्छा
(C) आस्था
(D) त्याग
उत्तर:
(D) त्याग

42. बच्चों की टोली ‘पानी दे मैया’ कहकर किस सेना के आने की बात कहती है?
(A) वानर सेना
(B) बान सेना
(C) इंद्र सेना
(D) राम सेना
उत्तर:
(C) इंद्र सेना

43. जीजी लेखक के हाथों पूजा-अनुष्ठान क्यों कराती थी?
(A) अपने कल्याण के लिए
(B) लेखक के कल्याण के लिए
(C) समाज-कल्याण के लिए
(D) परिवार के कल्याण के लिए
उत्तर:
(B) लेखक के कल्याण के लिए

44. जन्माष्टमी पर बचपन में लेखक आठ दिनों तक झाँकी सजाकर क्या बाँटता था?
(A) पंजीरी
(B) लड्डू
(C) बतासे
(D) फल
उत्तर:
(A) पंजीरी

45. किन लोगों ने त्याग और दान की महिमा का गुणगान किया है?
(A) ऋषि-मुनियों ने
(B) देवताओं ने
(C) राजनीतिज्ञों ने
(D) शिक्षकों ने
उत्तर:
(A) ऋषि-मुनियों ने

46. हर छठ पर लेखक छोटी रंगीन कुल्हियों में क्या भरता था?
(A) भूजा
(B) मिठाई
(C) बूंदी
(D) पंजीरी
उत्तर:
(A) भूजा

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47. ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में किस लोक प्रचलित द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया गया है?
(A) आस्था और अनास्था
(B) विश्वास और विज्ञान
(C) पाप और पुण्य
(D) आधुनिकता और पौराणिकता
उत्तर:
(B) विश्वास और विज्ञान

48. अंधविश्वास से क्या होता है?
(A) नुकसान
(B) लाभ
(C) प्रकाश
(D) ईश दर्शन
उत्तर:
(A) नुकसान

49. प्रस्तुत पाठ में ‘बोल गंगा मैया की जय’ का पहला नारा कौन लगाता था?
(A) मेढक मंडली
(B) ऋषि समूह
(C) गंगा स्नान करने वाले
(D) हरिद्वार जाने वाले
उत्तर:
(C) मेढक मंडली

50. प्रस्तुत पाठ में लेखक को कुमार-सुधार सभा का कौन-सा पद दिया गया?
(A) मंत्री
(B) महामंत्री
(C) उपमंत्री
(D) सहमंत्री
उत्तर:
(C) उपमंत्री

51. जीजी के लड़के ने पुलिस की लाठी किस आंदोलन में खाई थी?
(A) राष्ट्रीय आंदोलन
(B) भूदान आंदोलन
(C) विदेशी वस्त्र आंदोलन
(D) नमक आंदोलन
उत्तर:
(A) राष्ट्रीय आंदोलन

काले मेघा पानी दे प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] उछलते-कूदते, एक-दूसरे को धकियाते ये लोग गली में किसी दुमहले मकान के सामने रुक जाते, “पानी दे मैया, इंदर सेना आई है।” और जिन घरों में आखीर जेठ या शुरू आषाढ़ के उन सूखे दिनों में पानी की कमी भी होती थी, जिन घरों के कुएँ भी सूखे होते थे, उन घरों से भी सहेज कर रखे हुए पानी में से बाल्टी या घड़े भर-भर कर इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते थे, पानी फेंकने से पैदा हुए कीचड़ में लथपथ हो जाते थे। हाथ, पाँव, बदन, मुँह, पेट सब पर गंदा कीचड़ मल कर फिर हाँक लगाते “बोल गंगा मैया की जय” और फिर मंडली बाँध कर उछलते-कूदते अगले घर की ओर चल पड़ते बादलों को टेरते, “काले मेघा पानी दे।” [पृष्ठ-100]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। लेखक अपने गाँव के एक प्रसंग का वर्णन करता है। गाँव में अनावृष्टि के कारण किशोर युवकों की इंदर सेना उछलती-कूदती हुई गलियों में सिर्फ एक लंगोटी पहने लोगों से दान में पानी माँगती थी। इसी प्रसंग की चर्चा करते हुए लेखक कहता है

व्याख्या-गाँव के कुछ नंग-धडंग किशोर एक लंगोटी बाँधे हुए गाँव की गलियों में लोगों से पानी की याचना करते थे। ये युवक उछलते-कूदते हुए एक-दूसरे को धक्का देते हुए आगे बढ़ते थे। ये किसी दुमंजिले मकान के सामने रुककर गुहार लगाते थे- हे माँ! तुम्हारे द्वार पर इंदर सेना आई है, इसे पानी दो मैया। प्रायः सभी घरों में जेठ माह के अंत में अथवा आषाढ़ के आरंभ में अनावृष्टि के कारण सूखा पड़ा रहता था और घरों में पानी की बड़ी कमी होती थी। जिन लोगों के घरों में प्रायः कुएँ थे, वे भी सूख जाते थे। सभी घर-परिवार पानी सँभाल कर रखते थे, क्योंकि पानी की बहुत कमी होती थी। तो भी लोग बचाकर रखे पानी से एक बाल्टी या घड़ा भरकर इंदर सेना पर उड़ेल देते थे जिससे वे सिर से पैर तक भीग जाते थे। भीगे शरीर से ये लोग मिट्टी में लोट जाते थे। पानी फैंकने से जो कीचड़ बन जाता था। उससे यह सेना लथपथ हो जाती थी। सभी के हाथों-पैरों, शरीर, मुख, पेट आदि पर गंदा कीचड़ लग जाता था, परंतु किसी को इसकी परवाह नहीं होती थी। सभी युवक जोर से नारा लगाते ‘बोल गंगा मैया की जय’ । तत्पश्चात् वे पुनः मंडली बनाकर उछलते-कूदते हुए अगले घर की तरफ चल देते थे। इसके साथ-साथ वे बादलों से पुनः पुकार लगाकर पानी माँगते और कहते-काले मेघा पानी दे। इस प्रकार यह इंदर सेना पूरे गाँव की गलियों में चक्कर लगाती हुई घूमती थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने अनावृष्टि के अवसर पर लड़कों द्वारा गठित इंदर सेना का यथार्थ वर्णन किया है, जो लोगों से दान में पानी माँगती थी।
  2. सहज, सरल तथा जन-भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संबोधनात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) किन दिनों पानी की कमी हो जाती थी?
(ग) उछलते-कूदते किशोर दुमहले मकान के सामने रुककर क्या कहते थे?
(घ) पानी की कमी के बावजूद इन बच्चों पर पानी क्यों डाला जाता था?
(ङ) इंदर सेना के किशोर बादलों को क्या टेर लगाते थे?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम काले मेघा पानी दे
लेखक का नाम-धर्मवीर भारती

(ख) जेठ महीने के अंतिम काल अथवा आषाढ़ महीने के आरंभ के दिनों में पानी की कमी हो जाती थी और घरों के कुएँ भी सूख जाते थे।

(ग) उछलते-कूदते हुए किशोर दुमहले मकान के सामने रुककर कहते थे-“पानी दे मैया, इंदर सेना आई है”।

(घ) लोगों का विश्वास था यदि इंदर सेना के किशोरों पर पानी उड़ेला जाएगा तो इंद्र देवता प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे।

(ङ) इंदर सेना के किशोर बादलों को टेर लगाते थे-काले मेघा पानी दे।

[2] वे सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे, होते, जेठ के दसतपा बीत कर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़ कर ज़मीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खा कर गिर पड़े। ढोर-ढंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्वामी, हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँध कर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए। [पृष्ठ-100-101]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। लेखक अपने गाँव के उस प्रसंग का वर्णन करता है, जब गाँव में अनावृष्टि के कारण किशोर युवकों की इंदर सेना उछलती-कूदती हुई गलियों में सिर्फ एक लंगोटी पहने लोगों से दान में पानी माँगती थी। यहाँ लेखक भीषण गर्मी से उत्पन्न स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है

व्याख्या-सच्चाई तो यह है कि ग्रीष्म ऋतु के वे दिन इस प्रकार के होते थे जब नगर-मोहल्ले, गाँव-नगर सभी स्थानों पर भयंकर गर्मी पड़ती थी तथा गर्मी में भुनते हुए लोग भगवान से यही प्रार्थना करते थे कि हमारी रक्षा करो। जेठ के महीने के दस दिनों का ताप व्यतीत हो चुका था और आषाढ़ का पहला पक्ष गुजर गया था, परंतु आकाश में कहीं पर भी बादलों का नामो-निशान नहीं था। प्रायः इस मौसम में कुएँ भी सूख जाते थे और नलकों में भी बहुत थोड़ा पानी आता था। आता भी था तो आधी रात को तथा उबलता हुआ। नगरों के मुकाबले गाँव में हालत और भी खराब हो जाती थी। भाव यह है कि पानी का अभाव नगरों में कम होता था, परंतु गाँव में बहुत अधिक होता था। जिन दिनों खेतों में जुताई की जाती थी, वहाँ मिट्टी सूखकर पत्थर बन जाती थी।

स्थान-स्थान पर पपड़ियाँ पड़ने से मिट्टी फट जाती थी। झुलसा देने वाली लू चलती थी जिसके फलस्वरूप रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति आधे रास्ते चलने के बाद लू लगने से गिर पड़ता था। पानी की इतनी भारी कमी हो जाती थी कि प्यास के कारण पशु तक मरने लग जाते थे, परंतु दूर-दूर तक कहीं भी बरसात का नामो-निशान तक नहीं मिलता था। लोग ईश्वर की पूजा तथा कथाओं का वर्णन करके भी थक जाते थे और वर्षा बिल्कुल नहीं होती थी। आखिरी उपाय के रूप में यह इंदर सेना गाँव में निकल पड़ती थी। इंद्र को बादलों का स्वामी माना गया है। युवकों की यह टोली उसी की सेना मान ली जाती थी। इंदर सेना के किशोर कीचड़ से लथपथ होकर मेघों को पुकार लगाते थे और प्यासे लोगों तथा सूखे खेतों के लिए इंद्र देवता से पानी की याचना करते थे। कहने का भाव यह है कि अनावृष्टि के समय इंदर सेना के गठन का आयोजन अंतिम उपाय के रूप में अपनाया जाता था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. लेखक यह भी बताता है कि लोग बारिश के लिए पूजा-पाठ तथा कथा-विधान करते थे, परंतु अंतिम उपाय के रूप में इंदर सेना निकलती थी।
  3. सहज, सरल, तथा जनभाषा का सफल प्रयोग है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) इस गद्यांश में किस ऋतु का वर्णन किया गया है?
(ख) लोग किस कारण से परेशान हो जाते थे?
(ग) गाँव में गर्मियों का क्या प्रभाव होता था?
(घ) गाँव के लोग वर्षा के लिए कौन-कौन से उपाय करते थे?
(ङ) ‘इंदर सेना’ किसे कहा गया है और वह क्या करती थी?
उत्तर:
(क) इस गद्यांश में ग्रीष्म ऋतु का वर्णन किया गया है।

(ख) आषाढ़ के महीने में लोग गर्मी तथा अनावृष्टि के कारण अत्यधिक परेशान हो जाते थे। कुएँ सूख जाते थे और नलों में पानी भी नहीं आता था। यदि आता भी था तो रात को उबलता हुआ पानी आता था। गर्मी के कारण पशु-पक्षी तथा लोग बेहाल हो जाते थे।

(ग) गाँव की हालत शहरों से भी बदतर होती थी। जुताई के खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर बन जाती थी। धीरे-धीरे उसमें पपड़ी पड़ने लगती थी और ज़मीन फट जाती थी। गर्म लू के कारण आदमी बेहोश होकर गिर पड़ता था और प्यास से पशु मरने लगते थे।

(घ) गाँव के लोग वर्षा के लिए इंदर भगवान से प्रार्थना करते थे। कहीं पूजा-पाठ होता था, तो कहीं कथा-विधान, जब ये सभी उपाय असफल हो जाते थे, तब कीचड़ तथा पानी से लथपथ होकर किशोरों की इंदर सेना गलियों में निकल पड़ती थी और इंद्र देवता से बरसात की गुहार लगाती थी।

(ङ) ‘इंदर सेना’ गाँव के उन युवकों को कहा गया है जो एक लंगोटी पहने नंग-धडंग भगवान इंद्र से वर्षा माँगने के लिए घूमते थे। गाँव के लोग मकानों के छज्जों से उन पर एक-आध घड़ा पानी डाल देते थे और वे उछलते-कूदते हुए बादलों को पुकार कर कहते थे काले मेघा पानी दे।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

[3] पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं, नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेज़ों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए। [पृष्ठ-101-102]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उधृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। लेखक अपने गाँव के उस प्रसंग का वर्णन करता है जब गाँव में अनावृष्टि के कारण किशोर युवकों की इंदर सेना उछलती-कूदती हुई गलियों में सिर्फ एक लंगोटी पहने लोगों से दान में पानी माँगती थी। यहाँ लेखक इंदर सेना के गठन तथा गाँववालों द्वारा उन पर पानी फैंकने की परंपरा को अंधविश्वास घोषित करता है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि ऐसा लगता था कि मानों पानी की आशा पर ही सबका जीवन आकर टिक गया हो, परंतु लेखक अपनी जिज्ञासा को प्रकट करते हुए कहता है कि यह बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी कि सब तरफ पानी की इतनी भारी कमी है, फिर भी लोग बड़ी कठिनाई से इकट्ठे किए गए पानी को इंदर सेना के किशोरों पर बाल्टी भर-भर कर डाल देते थे। यह तो निश्चय से पानी की बरबादी है। ऐसा करना सर्वथा अनुचित है। यह एक प्रकार का अंधविश्वास है जिसमें पूरे देश की हानि होती है। पता नहीं लोग इसे इंदर सेना क्यों कहते हैं। यदि लोग इंद्र देवता से पानी दिलवा सकते हैं तो उन्हें स्वयं उससे पानी माँग लेना चाहिए। लोगों के कठिनाई से इकट्ठे किए गए पानी को बरबाद नहीं करना चाहिए। ये लोग मुहल्ले भर का पानी बरबाद करते हुए गलियों में घूमते हैं और शोर-शराबा करते हैं, यह न केवल पाखंड है, अंधविश्वास भी है। इसी अंधविश्वास के कारण हमारा देश पिछड़ गया है। हम भारतवासी इन्हीं अंधविश्वासों के कारण अन्य देशों से पिछड़ गए और अंग्रेज़ शासकों के गुलाम बन गए। अतः इस प्रकार के अंधविश्वासों को छोड़कर हमें पानी के लिए और कोई उपाय अपनाने चाहिएँ।

विशेष-

  1. इसमें लेखक ने इंदर सेना के उपाय को अंधविश्वास का नाम दिया है।
  2. सहज, सरल तथा जनभाषा का सफल प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विवेचनात्मक शैली का सफल प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) कौन-सी बात लेखक को समझ नहीं आती थी?
(ख) लेखक के अनुसार पानी की निर्मम बरबादी क्या है?
(ग) इंदर-सेना के विरोध में लेखक ने क्या तर्क दिया था?
(घ) लेखक की दृष्टि में पाखंड तथा अंधविश्वास क्या है?
(ङ) लेखक ने भारत की.गुलामी तथा अवनति का मूल कारण किसे माना है?
उत्तर:
(क) लेखक को यह बात समझ नहीं आती थी कि जब लोगों के घरों में पानी की इतनी कमी है तथा वे प्यास और अनावृष्टि के कारण व्याकुल हो रहे हैं, तब वे इंद्र सेना पर पानी का घड़ा उड़ेलकर उसे बरबाद क्यों कर रहे हैं।

(ख) लेखक के अनुसार नंग-धडंग किशोरों पर पानी डालना पानी की बरबादी है। जब पानी की इतनी कमी है तब लोगों को बूंद-बूंद पानी भी बचाना चाहिए।

(ग) इंदर-सेना के विरोध में लेखक यह तर्क देता है कि जब इंदर-सेना के युवक इंद्र भगवान से पानी दिलवा सकते हैं तो ये अपने लिए उनसे पानी क्यों नहीं माँग लेते। सेना लोगों का पानी क्यों बरबाद करती है?

(घ) लेखक की दृष्टि में इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए इंद्र सेना के किशोरों पर घड़ा भर-भर पानी डालना गाँव वालों की नासमझी है। निश्चय से यह लोगों का अंधविश्वास है, ऐसा करने से वर्षा नहीं होती।

(ङ) लेखक ने पाखंडों तथा अंधविश्वासों को भारत की गुलामी तथा अवनति का मूल कारण माना है।

[4] मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे थीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़ कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमार-सुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था। [पृष्ठ-102]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। यहाँ लेखक जीजी के साथ अपने प्रगाढ़ संबंधों पर प्रकाश डालता है। लेखक अपनी जीजी का बड़ा आदर मान करता है। वह कहता है कि-

व्याख्या कठिनाई यह थी कि लेखक को बाल्यावस्था से ही सर्वाधिक प्यार अपनी जीजी से ही मिला था। उसके साथ लेखक का कोई गहरा रिश्ता नहीं था। वह लेखक की माँ से भी बड़ी थी, परंतु वह अपने लड़के तथा पुत्रवधू की अपेक्षा लेखक से अत्यधिक प्यार करती थी। वे समाज के सभी रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-पाठ तथा कर्मकाण्डों में पूरा विश्वास रखती थीं, परंतु लेखक आर्य समाज द्वारा स्थापित कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था और वह इंद्र सेना के इस कार्य को अंधविश्वास मानता था और वह चाहता था कि वह उसे जड़ से उखाड़ दे, लेकिन सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि लेखक के बिना जीजी का कोई भी पूजा-विधान, त्योहार-कार्य पूरा नहीं होता था। कहने का भाव यह है कि जीजी अपने प्रत्येक पूजा-विधान में लेखक का सहयोग लेती थी।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि जीजी के प्रति उसके मन में बड़ी आदर-भावना थी।
  2. सहज, सरल तथा जनभाषा का सफल प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सार्थक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विश्लेषणात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) लेखक के लिए मुश्किल की बात क्या थी?
(ख) लेखक किन्हें अंधविश्वास कहता था?
(ग) जीजी किन कार्यों में लेखक का सहयोग लेती थी?
उत्तर:
(क) लेखक के लिए मुश्किल बात यह थी कि बाल्यावस्था से ही उसे सर्वाधिक प्यार उसकी जीजी से प्राप्त हुआ था। वह रीति-रिवाज़ों तथा पूजा-अनुष्ठानों में पूरा विश्वास रखती थीं।

(ख) लेखक सभी रीति-रिवाज़ों, तीज-त्योहारों तथा पूजा-अनुष्ठानों को अंधविश्वास कहता था।

(ग) जीजी सभी प्रकार के पूजा-विधान, त्योहारों-अनुष्ठानों आदि में लेखक का पूरा सहयोग लेती थीं।

[5] लेकिन इस बार मैंने साफ इनकार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भर कर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भर कर पानी ले गईं उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्डू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर ‘बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आ कर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोली, “देख भइया रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?” मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं। “तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं, जो चीज़ मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।” [पृष्ठ-102]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। इस बार लेखक ने जीजी को साफ मना कर दिया कि वह इस गंदी मेढक-मंडली पर पानी नहीं डालेगा।

व्याख्या-लेखक कहता है कि जीजी ने उसे बहुत समझाया कि वह इंदर सेना पर पानी डाले. परंत लेखक ने स्पष्ट कह दिया कि वह इन गंदे युवकों की मंडली पर बाल्टी भर-भर कर पानी नहीं डालेगा। परंतु जीजी बाल्टी भरकर पानी ले आई। उस समय उसके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे और हाथ काँप रहे थे, परंतु लेखक ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वह जीजी से नाराज़ होकर एक तरफ खड़ा रहा। शाम को जीजी ने लेखक को खाने के लिए लड्ड और मठरी दी, परंतु लेखक ने अपने हाथ से खाने के सामान को दूर कर दिया और वह जीजी की ओर से मुँह फेर कर बैठ गया। यहाँ तक कि वह जीजी से बोला भी नहीं। लेखक की यह हरकत देखकर जीजी को पहले गुस्सा आया, परंतु यह गुस्सा क्षण भर का था।

जल्दी ही जीजी का गुस्सा दूर हो गया। उसने लेखक के सिर को अपनी गोद में लेते हुए कहा- देखो मैया, मुझसे इस तरह नाराज़ मत हो और मेरी बात को जरा ध्यान से सुनो। इंदर सेना पर पानी की बाल्टी भर कर डालना कोई अंधविश्वास नहीं है। यदि हम इंद्र भगवान को पानी दान नहीं करेंगे तो बदले में वे हमें पानी नहीं देंगे। यह सुनकर भी लेखक ने कोई उत्तर नहीं दिया। जीजी फिर कहने लगी कि जिसे तू पानी की बरबादी समझ रहा है, वह कोई बरबादी नहीं है। वह तो इंद्र देवता को जल चढ़ाना और पूजा करना है। मनुष्य अपने जीवन में जो वस्तु पाना चाहता है उसके बदले उसे पहले कुछ देना पड़ता है। यदि वह कुछ देगा नहीं तो पाएगा कैसे। यही कारण है कि हमारे देश में ऋषियों ने दान को जीवन में सर्वोत्तम स्थान दिया है। भाव यह है कि यदि हम कुछ दान करेंगे तो बदले में कुछ प्राप्त कर पाएँगे। अतः इंद्र देवता को जल चढ़ाना किसी भी दृष्टि से जल की बरबादी नहीं है। इंद्र देवता ही तो बाद में हमें वर्षा के रूप में बहुत-सा पानी देते हैं।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने दान के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए कहा है कि जीवन में त्याग से ही सख की प्राप्ति होती है।
  2. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक व भावानुकूल है।
  4. संवादात्मक शैली का सफल प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) लेखक ने किस बात से साफ इंकार कर दिया?
(ख) जब जीजी बाल्टी भरकर पानी ले आई तो उनके शरीर की हालत कैसी थी?
(ग) लेखक ने लड्ड-मठरी को अलग से क्यों खिसका दिया?
(घ) जीजी ने क्या तर्क देकर सिद्ध किया कि इंद्र देवता को पानी देना पानी की बरबादी नहीं है?
उत्तर:
(क) लेखक ने इस बात से साफ इंकार कर दिया कि वह मेढक-मंडली पर बाल्टी भर-भर कर पानी नहीं डालेगा। क्योंकि वह इसे पानी की बरबादी मानता है।

(ख) जब जीजी बाल्टी भर कर पानी लाई तब उनके बूढ़े पैर डगमगा रहे थे और उनके हाथ काँप रहे थे।

(ग) लेखक जीजी से नाराज़ था। उसने स्पष्ट कह दिया था कि वह गंदी मेंढक-मंडली पर पानी नहीं फैंकेगा। इसलिए जब जीजी ने उसे खाने के लिए लड्ड, मठरी दिए तो लेखक ने उन्हें दूर खिसका दिया।

(घ) जीजी ने यह तर्क दिया कि यह पानी हम इंद्र देवता को अर्घ्य के रूप में चढ़ाते हैं। मनुष्य अपने जीवन में जो कुछ पाना चाहता है तो बदले में उसे पहले कुछ देना पड़ता है अन्यथा उसे कुछ नहीं मिलता, इसी को दान कहते हैं। ऋषि-मुनियों ने भी दान को जीवन में सर्वोत्तम स्थान दिया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

[6] “देख बिना त्याग के दान नहीं होता। अगर तेरे पास लाखों-करोड़ों रुपये हैं और उसमें से तू दो-चार रुपये किसी को दे दे तो यह क्या त्याग हुआ। त्याग तो वह होता है कि जो चीज़ तेरे पास भी कम है, जिसकी तुझको भी ज़रूरत है तो अपनी ज़रूरत पीछे रख कर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे तो त्याग तो वह होता – है, दान तो वह होता है, उसी का फल मिलता है।” [पृष्ठ-103]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। यह कथन जीजी का है। वे लेखक को त्याग के महत्त्व के बारे में बताती हुई कहती है कि-

व्याख्या-त्याग के बिना दान नहीं हो सकता। यदि तुम्हारे पास लाखों-करोड़ों रुपयों की धन-राशि है और तुमने उसमें से दो-चार रुपये दान में दे भी दिए तो यह त्याग नहीं कहलाता। त्याग उस वस्तु का होता है जो पहले ही तुम्हारे पास कम मात्रा में है और तुम्हें उसकी नितांत आवश्यकता भी है। परंतु यदि तुम अपनी आवश्यकता की परवाह न करते हुए दूसरे व्यक्ति के भले के लिए उसे त्याग देते हो तो वही सच्चा दान कहलाता है। इस प्रकार के दान का ही हमें फल मिलता है। कहने का भाव यह है कि सच्चा दान उसी वस्तु का होता है, जो तुम्हारे पास बहुत कम है और तुम्हें भी उसकी ज़रूरत होती है लेकिन तुम अपनी ज़रूरत की चिंता न करते हुए दूसरे व्यक्ति के कल्याणार्थ उसे दे देते हो तो वही सच्चा दान कहा जाएगा।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने जीजी के माध्यम से त्याग व दान के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  2. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. संवादात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न-
(क) यह कथन किसने किसको कहा है? और क्यों कहा है?
(ख) लाखों-करोड़ों रुपये में से दो-चार रुपये का दान करने का क्या महत्त्व है?
(ग) सच्चा त्याग किसे कहा गया है?
(घ) किस प्रकार के दान का फल मिलता है?
उत्तर:
(क) यह कथन जीजी ने लेखक से कहा है। इस कथन द्वारा वह उसे सच्चे त्याग और दान से अवगत कराना चाहती है।

(ख) लाखों-करोड़ों रुपयों में से दो-चार रुपयों का किया गया दान कोई महत्त्व नहीं रखता। यह तो मात्र दान देने का ढकोसला है।

(ग) सच्चा त्याग वह होता है कि यदि किसी वस्तु की हमारे पास कमी हो और उसकी हमें ज़रूरत भी हो और परंतु फिर भी हम अपनी ज़रूरत को पीछे रखकर दूसरों के कल्याणार्थ उसे दान में दे देते हैं, वही सच्चा त्याग कहलाता है।

(घ) त्याग और कल्याण की भावना से किए गए दान का फल अवश्य मिलता है।

[7] फिर जीजी बोली, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर ज़मीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानीवाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यही तो गाँधी जी महाराज कहते हैं।” [पृष्ठ-103]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। यहाँ जीजी दान का महत्त्व समझाने के लिए एक और उदाहरण देती है। वह लेखक से कहती है कि

व्याख्या-तुम तो पढ़-लिखकर विद्वान बन गए हो, परंतु जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं गाँव के स्कूल में आज तक नहीं गई। मुझे तो यह भी पता नहीं कि स्कूल कैसा होता है। लेकिन मैं एक बात जानती हूँ कि यदि किसान को अपने खेत में तीस-चालीस मन अनाज उगाना हो तो पहले वह अपने खेत में क्यारियाँ बनाकर पाँच-सेर गेहूँ उसमें बीज के रूप में डालता है। इसी को हम बुआई कहते हैं। इस समय यहाँ सूखा पड़ा हुआ है। हम जो अपने घर का पानी इंद्र सेना पर डालते हैं, वह एक प्रकार से बुआई है। हम अपनी गली में पानी बोएँगे जिससे सारे नगर-कस्बे, शहर में बादल वर्षा करेंगे। यह वर्षा ही हमारी फसल है।

हम बीज के रूप में पानी का दान करते हैं, बाद में काले बादल से पानी माँगते हैं। हमारे देश के ऋषि-मुनि भी यही कह गए हैं कि पहले तुम स्वयं दान करो, देवता तुम्हें चार गुणा और आठ गुणा करके वह दान वापिस करेंगे। यह आचरण प्रत्येक व्यक्ति का है। अन्य शब्दों में यह सबका आचरण बन जाता है। केवल यह सत्य नहीं है यथा राजा तथा प्रजा, बल्कि यह भी सत्य है कि यथा प्रजा तथा राजा। गाँधी जी ने भी इस बात का समर्थन किया था। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि लोग जैसा आचरण करते हैं, राजा को वैसा आचरण करना पड़ता है। हमारे देवता भी तो राजा हैं। जब लोग उनकी पूजा-अर्चना करेंगे, कुछ दान देंगे तो बदले में हमें भी बहुत

विशेष-

  1. यहाँ जीजी ने किसान के उदाहरण द्वारा दान की महिमा का प्रतिपादन किया है।
  2. जीजी ने तर्कसंगत भाषा में अपने विचारों को व्यक्त किया है।
  3. सहज, सरल भाषा का प्रयोग हुआ है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. संवादात्मक शैली का प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जीजी ने लोगों द्वारा पानी दान करने की परंपरा को उचित क्यों ठहराया है?
(ख) जीजी द्वारा पानी दान करने की समानता किससे की गई है?
(ग) ‘यथा राजा तथा प्रजा’ और ‘यथा प्रजा तथा राजा’ में क्या अंतर है?
(घ) गाँधी जी ने प्रजा और राजा के आचरण में किसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना है?
(ङ) ऋषि-मुनि क्या कह गए हैं?
उत्तर:
(क) जीजी ने यह तर्क दिया है कि बादलों को पानी दान करने से बादलों से वर्षा का जल प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए वे इंदर सेना के लिए पानी दान करने की परंपरा को उचित ठहराती हैं।

(ख) जीजी द्वारा पानी दान करने की समानता किसानों से की गई है। जिस प्रकार किसान खेत में तीस-चालीस मन गेहूँ उगाने के लिए पाँच-छः सेर अच्छा गेहूँ बुआई के रूप में डालते हैं। किसान की यह बुआई ही एक प्रकार का दान है। इसी प्रकार काले मेघा से वर्षा पाने के लिए पानी की कुछ बाल्टियाँ दान करना मानों पानी की बुआई है।

(ग) ‘यथा राजा तथा प्रजा’ का अर्थ है-राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा भी उसे देखकर वैसा ही आचरण करती है। ‘यथा प्रजा तथा राजा’ का अर्थ है जिस देश की प्रजा जैसा आचरण करती है। वहाँ का राजा भी वैसा ही आचरण करता है। अन्य शब्दों में जनता का आचरण राजा को अवश्य प्रभावित करता है।

(घ) गाँधी जी ने प्रजा के आचरण को अधिक महत्त्वपूर्ण माना है। उनका कहना था कि प्रजा के आचरण को देखकर राजा को अपना आचरण बदलना पड़ता है। गाँधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन द्वारा इस उक्ति को चरितार्थ कर दिखाया था।

(ङ) ऋषि-मुनियों का कहना है कि मनुष्य को पहले स्वयं त्यागपूर्वक दान करना चाहिए तभी देवता उसे अनेक गुणा देते हैं।

[8] इन बातों को आज पचास से ज़्यादा बरस होने को आए पर ज्यों की त्यों मन पर दर्ज हैं। कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भो में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे है? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति? [पृष्ठ-103]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ० धर्मवीर भारती हैं। यह लेखक का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। यहाँ लेखक ने जीजी के द्वारा दिए गए संदेश को स्वीकार करते हुए देश की वर्तमान दशा पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या लेखक कहता है कि इन बातों को गुजरे हुए पचास वर्ष हो चुके हैं। लेकिन जीजी की बातें आज भी मन पर अंकित हैं। ऐसे अनेक संदर्भ आते हैं जब ये बातें मन पर चोट पहुँचाती हैं। हम देश की वर्तमान हालत देखकर व्याकुल हो उठते हैं। लेखक कहता है कि हमने अपने देश के लिए कुछ भी नहीं किया। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हम देश के सामने अनेक माँगें प्रस्तुत करते हैं, परंतु हमारे अंदर त्याग तनिक भी नहीं है। हम सब स्वार्थी बन गए हैं और स्वार्थ पूरा करना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम लोगों में व्याप्त भ्रष्टाचार की खूब चर्चा करते हैं। उनकी निंदा करके हमें बहुत आनंद आता है।

लेकिन हमने यह नहीं सोचा कि निजी स्तर पर हम अपने क्षेत्र में उसी भ्रष्टाचार का हिस्सा तो नहीं बन गए हैं। भाव यह है कि हम स्वयं तो भ्रष्टाचार से लिप्त हैं। भ्रष्ट उपाय अपनाकर हम अपना काम निकालते हैं। काले मेघा के समूह आज भी उमड़-घुमड़कर आते हैं। खूब पानी बरसता है। पर गगरी फूटी-की-फूटी रह जाती है और हमारे बैल प्यासे मरने लगते हैं। भाव यह है कि हमारे देश में धन और संसाधनों की कोई कमी नहीं है, फिर भी लोग अभावग्रस्त और गरीब हैं। भ्रष्टाचार के कारण ये संसाधन आम लोगों तक नहीं पहुंच पाते। लेखक अंत में सोचता है कि इस स्थिति में कब परिवर्तन होगा और हमारे देश में कब समाजवाद का उदय होगा?

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और उससे उत्पन्न स्थिति पर समुचित प्रकाश डाला है।
  2. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा सटीक व भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. विवेचनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कौन-सी बात लेखक के मन में ज्यों-की-त्यों दर्ज है?
(ख) कौन-सी बात लेखक के मन को कचोट रही है?
(ग) भ्रष्टाचार के बारे में लोगों का आचरण कैसा है?
(घ) पानी बरसने पर भी गगरी क्यों फूटी रहती है? बैल क्यों प्यासे रह जाते हैं?-इन पंक्तियों में निहित अर्थ क्या है?
उत्तर:
(क) बचपन में जीजी ने लेखक को बताया था कि देवता से आशीर्वाद पाने के लिए हमें पहले स्वयं कुछ दान करना पड़ता है। इसीलिए तो बादलों से वर्षा पाने के लिए पानी का दान किया जाता है। इस बात ने लेखक के मन को अत्यधिक प्रभावित किया था। इसलिए यह बात आज भी लेखक के मन में अंकित है।

(ख) लेखक के मन को यह बात कचोटती है कि आज लोग सरकार के सामने बड़ी-बड़ी माँगें रखते हैं और अपने स्वार्थों को पूरा करने में संलग्न हैं किंतु न तो कोई देश के लिए त्याग करना चाहता है और न ही अपने कर्तव्य का पालन करना चाहता है।

(ग) भ्रष्टाचार को लेकर लोग चटखारे लेकर बातें करते हैं और भ्रष्ट लोगों की निंदा भी करते हैं किंतु वे स्वयं इस भ्रष्टाचार के अंग बन चुके हैं। आज हर आदमी किसी-न-किसी प्रकार से भ्रष्टाचार की दलदल में फंसा हुआ है।

(घ) इस कथन का आशय है कि हमारे देश में धन और संसाधनों की कोई कमी नहीं है, परंतु भ्रष्टाचार के कारण ये संसाधन लोगों तक नहीं पहुंच पाते जिसके फलस्वरूप लोग गरीब व अभावग्रस्त हैं।

काले मेघा पानी दे Summary in Hindi

काले मेघा पानी दे लेखिका-परिचय

प्रश्न-
धर्मवीर भारती का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय धर्मवीर भारती का जन्म 2 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद के अतरसुईया मोहल्ले में हुआ। उनके पिता का नाम चरंजीवी लाल तथा माता का नाम चंदी देवी था। बचपन में ही उनके पिता का असामयिक निधन हो गया। फलस्वरूप बालक धर्मवीर को अनेक कष्ट झेलने पड़े। सन् 1942 में उन्होंने कायस्थ पाठशाला के इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, जिसके कारण उनकी पढ़ाई एक वर्ष के लिए रुक गई। सन् 1945 में उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण इन्हें ‘चिंतामणिघोष मंडल’ पदक मिला। सन 1947 में उन्होंने हिंदी में एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1954 में उन्होंने ‘सिद्ध साहित्य’ पर पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की और प्रयाग विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक नियुक्त हुए, परंतु शीघ्र ही वे “धर्मयुग” के संपादक उन्होंने “कॉमन वेल्थ रिलेशंस कमेटी” के निमंत्रण पर इंग्लैंड की यात्रा की। उन्हें पश्चिमी जर्मनी जाने का भी मौका मिला। सन् 1966 में भारतीय दूतावास के अतिथि बनकर इंडोनेशिया व थाईलैंड की यात्रा की। आगे चलकर उन्होंने भारत-पाक युद्ध के काल में बंगला देश की गुप्त यात्रा की और ‘धर्मयुग’ में युद्ध के रोमांच का वर्णन किया। साहित्यिक सेवाओं के कारण सन् 1972 में भारत सरकार ने उन्हें “पद्मश्री” से सम्मानित किया। 5 सितबर, 1997 को उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-धर्मवीर भारती की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य रचनाएँ-‘दूसरा सप्तक की कविताएँ (1951), ‘ठंडा लोहा’ (1952) ‘सात-गीत वर्ष’, ‘कनुप्रिया’ (1959)।
उपन्यास-‘गुनाहों का देवता’, ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’।
गीति नाट्य-अंधा युग’।
कहानी-संग्रह-‘मुर्दो का गाँव’, ‘चाँद और टूटे हुए लोग’, ‘बंद गली का आखिरी मकान’।
निबंध-संग्रह-‘ठेले पर हिमालय’, ‘कहनी-अनकहनी’, ‘पश्यंती’, ‘मानव मूल्य और साहित्य’।
आलोचना-‘प्रगतिवाद’, ‘एक समीक्षा’।
एकांकी-संग्रह ‘नदी प्यासी थी’।

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3. साहित्यिक विशेषताएँ-धर्मवीर भारती स्वतंत्रता के बाद के साहित्यकारों में विशेष स्थान रखते हैं। उन्होंने हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के लिए अलग-अलग रचनाएँ लिखी हैं। उनके साहित्य में व्यक्ति स्वातंत्र्य, मानवीय संकट तथा रोमानी चेतना आदि प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं, परंतु वे सामाजिकता और उत्तरदायित्व को अधिक महत्त्व देते हैं। इनके आरंभिक काव्य में हमें रोमानी भाव-बोध देखने को मिलता है। “गुनाहों का देवता” इनका सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास है। इसमें एक सरस और भावप्रवण प्रेम कथा है। ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ भी भारती जी का एक लोकप्रिय उपन्यास है, जिस पर एक हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। ‘अंधा युग’ में कवि ने आज़ादी के बाद गिरते हुए जीवन मूल्यों, अनास्था, मोहभंग, विश्वयुद्धों से उत्पन्न भय आदि का वर्णन किया है।

‘काले मेघा पानी दे’ भारती जी का एक प्रसिद्ध संस्मरण है जिसमें उन्होंने लोक प्रचलित विश्वास तथा विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया है। प्रस्तुत संस्मरण किशोर जीवन से संबंधित है। इसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार गाँवों के बच्चों की इंदर सेना अनावृष्टि को दूर करने के लिए द्वार-द्वार पर पानी माँगती चलती है।

4. भाषा-शैली-भारती जी आरंभ से ही सरल भाषा के पक्षपाती रहे हैं। उन्होंने प्रायः जन-सामान्य की बोल-चाल की भाषा का ही प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, देशज तथा विदेशी शब्दावली का उपयुक्त प्रयोग किया है। अपनी रचनाओं में वे उर्दू, फारसी तथा अंग्रेज़ी शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दों का भी खुलकर मिश्रण करते हैं। विशेषकर, निबंधों में उनकी भाषा पूर्णतया साहित्यिक हिंदी भाषा कही जा सकती है। ‘काले मेघा पानी दे’ वस्तुतः भारती जी का एक उल्लेखनीय संस्मरण है जिसमें सहजता के साथ-साथ आत्मीयता भी है। बड़ी-से-बड़ी बात को वे वार्तालाप शैली में कहते हैं और पाठकों के हृदय को छू लेते हैं। अपने निबन्ध तथा रिपोर्ताज में उन्होंने सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। एक उदाहरण देखिए-

“मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमार-सुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था-सो समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था।”

काले मेघा पानी दे पाठ का सार

प्रश्न-
धर्मवीर भारती द्वारा रचित संस्मरण ‘काले मेघा पानी दे’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘काले मेघा पानी दे’ धर्मवीर भारती का एक प्रसिद्ध संस्मरण है, जिसे निबंध भी कहा जा सकता है। इसमें लोक-प्रचलित विश्वास तथा विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया गया है। विज्ञान तर्क के सहारे चलता है और लोक-जीवन विश्वास के सहारे। दोनों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। लेखक ने इन दोनों पक्षों को प्रस्तुत किया है और यह निर्णय पाठकों पर छोड़ दिया है कि वे किसे ग्रहण करना चाहते हैं और किसे छोड़ना चाहते हैं।
1. अनावृष्टि और इंदर सेना का गठन-जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते न केवल धरती, बल्कि लोगों के मन भी सूख जाते थे। तब इस अवसर पर गाँव के नंग-धडंग लड़के लंगोटीधारी युवकों की टोली का गठन करते हैं। ये किशोर ‘गंगा मैया की जय’ बोलते हुए गलियों में निकल पड़ते थे। वे प्रत्येक घर के बाहर जाकर आवाज़ लगाते थे “पानी दे मैया, इंदर सेना आई है”। घर की औरतें दुमंजिले के बारजे पर चढ़ जाती थी और वहाँ से उन पर घड़े का पानी उड़ेल देती थीं। वे बच्चे उस पानी से भीग कर नहाते थे और गीली मिट्टी में लोटते हुए कहते थे
“काले मेघा पानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा
पानी दे, गुड़धानी दे
काले मेघा पानी दे।”
इस काल में सभी लोग गर्मी के मारे जल रहे होते थे। कुएँ तक सूख जाते थे और खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर बन जाती थी। पशु-पक्षी भी प्यास के मारे तड़पने लगते थे। परंतु आकाश में कहीं कोई बादल नज़र नहीं आता था। हार कर लोग पूजा-पाठ और कथा विधान भी बंद कर देते थे। इस अवसर पर इंदर सेना कीचड़ से लथपथ होकर काले बादलों को पुकारते हुए गलियों में हुड़दंग मचाती हुई निकलती थी।

2. लेखक द्वारा विरोध-लेखक भी इन किशोरों की आयु का ही था। वह बचपन से ही आर्यसमाज से प्रभावित था। वह कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री भी था। इसलिए वह इसे अंधविश्वास मानता था और किशोरों की इस इंदर सेना को मेढक-मंडली का नाम देता था। उसका यह तर्क था कि जब पहले ही पानी की इतनी भारी कमी है तो फिर लोग कठिनाई से लाए हुए पानी को व्यर्थ में क्यों बरबाद कर रहे हैं। अगर यह किशोर सेना इंदर की है तो ये लोग सीधे-सीधे इंद्र देवता से गुहार क्यों नहीं लगाते। लेखक का विचार है कि इस प्रकार के अंधविश्वासों के कारण ही हमारा देश पिछड़ गया और गुलाम हो गया।

3. जीजी के प्रति लेखक का विश्वास-लेखक के मन में अपनी जीजी के प्रति बहुत विश्वास था। वह इंद्र सेना और अन्य विश्वासों को बहुत मानती थी। वह प्रत्येक प्रकार की पूजा और अनुष्ठान लेखक के हाथों करवाती थी, ताकि उसका फल लेखक को प्राप्त हो। जीजी चाहती थी कि लेखक भी इंदर सेना पर पानी फैंके, परंतु लेखक ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। जीजी काफी वृद्ध हो चुकी थी, फिर भी उसने कांपते हाथों से बच्चों पर पानी की बाल्टी फेंकी। लेखक न तो जीजी से बोला और न ही उसके हाथों से लड्डू-मठरी खाई।

4. जीजी और लेखक के बीच विवाद-जीजी का कहना था कि यदि हम इंद्र भगवान को पानी नहीं देंगे, तो वह हमें कैसे पानी देंगे। परंतु लेखक का कहना था कि यह एक कोरा अंधविश्वास है। इसके विपरीत जीजी ने तर्क देते हुए कहा कि यह पानी की बरबादी नहीं है, बल्कि इंद्र देवता को चढ़ाया गया अर्घ्य है। यदि मानव अपने हाथों से कुछ दान करेगा तो ही वह कुछ पाएगा। हमारे यहाँ ऋषि-मुनियों ने भी त्याग और दान की महिमा का गान किया है। त्याग वह नहीं है जो करोड़ों रुपयों में से कुछ रुपये दान किए जाएँ, परंतु जो चीज़ तुम्हारे पास कम है उसमें से दान या त्याग करना महत्त्वपूर्ण है।

यदि वह दान लोक-कल्याण के लिए किया जाएगा, उसका फल अवश्य मिलेगा। लेखक इस तर्क से हार गया। फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। तब जीजी ने एक और तर्क दिया कि किसान तीस-चालीस मन गेहूँ पैदा करने के लिए पाँच-छः सेर गेहूँ अपनी ओर से बोता है। इसी प्रकार सूखे में पानी फैंकना, पानी बोने के समान है। जब हम इस पानी को बोएँगे तो आकाश में बादलों की फसलें लहराने लगेंगी। पहले हम चार गना वापिस लौटाएँगे। यह कहना सच नहीं है कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’ किंत हमें यह कहना चाहिए कि “यथा प्रजा तथा राजा” गांधी जी ने भी इसी दृष्टिकोण का समर्थन किया था।

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5. लेखक का निष्कर्ष यह घटना लगभग पचास वर्ष पहले की है, लेकिन इसका प्रभाव लेखक के मन पर अब भी है। वह मन-ही-मन सोचता है कि हम देश के लिए क्या कर रहे हैं। हम सरकार के सामने बड़ी-बड़ी मांगें रखते हैं, लेकिन हमारे अंदर त्याग की कोई भावना नहीं है। भले ही हम लोग भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परंतु हम सभी भ्रष्टाचार से लिप्त हैं। यदि हम स्वयं को सुधार लें तो देश और समाज स्वयं सुधर जाएगा, परंतु इस दृष्टिकोण से कोई नहीं सोचता। काले मेघ अब भी पानी बरसाते हैं, लेकिन गगरी फूटी-की-फूटी रह जाती है। बैल प्यासे रह जाते हैं। पता नहीं यह हालत कब सुधरेगी?

कठिन शब्दों के अर्थ

मेघा = बादल। इंदर सेना = इंद्र के सिपाही। मेढक-मंडली = कीचड़ से लिपटे हुए मेढकों जैसे किशोर। नग्नस्वरूप = बिल्कुल नंगे। काँदो = कीचड़। अगवानी = स्वागत। सावधान = सचेत, जागरूक। छज्जा = मुंडेर। बारजा = मुंडेर के साथ वाला स्थान। समवेत = इकट्ठा, सामूहिक। गगरी = घड़ा। गुड़धानी = गुड़ और चने से बना एक प्रकार का लड्डू। धकियाना = धक्का देना। दुमहले = दो मंजिलों वाला। सहेज = सँभालना। तर करना = भिगोना। बदन = शरीर। हाँक = जोर की आवाज़। टेरते = पुकारते। त्राहिमाम = मुझे बचाओ। दसतपा = तपते हुए दस दिन। पखवारा = पंद्रह दिन का समय, पाक्षिक। क्षितिज = वह स्थान जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैं। खौलता हुआ = बहुत गर्म । जुताई = खेतों में हल चलाना। ढोर-ढंगर = पशु। कथा-विधान = धार्मिक कथाएँ कहना। निर्मम = कठोर। क्षति = हानि। पाखंड = ढोंग। संस्कार = आदतें। तरकस में तीर रखना = विनाश करने के लिए तैयार रहना। प्राण बसना = प्रिय होना। तमाम = सभी। पूजा-अनुष्ठान = पूजा का काम। खान = भंडार। जड़ से उखाड़ना = पूरी तरह नष्ट करना। सतिया = स्वास्तिक का चिह्न। पंजीरी = गेहूँ के आटे और गुड़ से बनी हुई मिठाई। छठ = एक पर्व का नाम। कुलही = मिट्टी का छोटा बर्तन। अरवा चावल = ऐसा चावल जो धान को बिना उबाले निकाला गया हो। मुँह फुलाना = नाराज़ होना। तमतमाना = क्रोधित होना। अर्घ्य = जल चढ़ाना। ढकोसला = दिखावा। किला पस्त होना = हारना। मदरसा = स्कूल । बुवाई = बीज होना। दर्ज होना = लिखना। कचोटना = बुरा लगना। चटखारे लेना = रस लेना, मजा लेना। दायरा = सीमा। अंग बनना = हिस्सा बनना। झमाझम = भरपूर।

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HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

HBSE 12th Class Hindi चार्ली चैप्लिन यानी हम सब Textbook Questions and Answers

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?
उत्तर:
चार्ली चैप्लिन अपने समय के एक महान् कलाकार थे। उनकी फिल्में समाज और राष्ट्र के लिए अनेक संदेश देती हैं। छले 75 वर्षों से चार्ली के बारे में बहुत कुछ कहा गया है, परंतु अभी भी अगले पचास वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा। इसका पहला कारण तो यह है कि चार्ली के बारे में अभी कुछ ऐसी रीलें मिली हैं जिनके बारे में कोई कुछ नहीं जानता था। अतः रीलों को देखकर उनका मूल्यांकन किया जाएगा और उन पर काफी चर्चा होगी। इसके साथ-साथ चार्ली ने भारतीय जन-जीवन पर जो अपनी अमिट छाप छोड़ी है, अभी उसका मूल्यांकन होना बाकी है। निश्चय से चार्ली एक लोकप्रिय कलाकार थे। उनकी फिल्मों ने प्रत्येक समाज तथा राष्ट्र को अत्यधिक प्रभावित किया है। अतः आने वाले पचास वर्षों तक उनके बारे में काफी कुछ कहा जाएगा और उनके योगदान पर चर्चा होती रहेगी।

प्रश्न 2.
चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया, बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
उत्तर:
फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाने का अर्थ है, उसे लोगों के लिए उपयोगी बनाना और फिल्मों के माध्यम से आम आदमी की अनुभूति को प्रकट करना। चार्ली से पहले की फिल्में एक विशेष वर्ग के लिए तैयार की जाती थीं। इन फिल्मों की कथावस्तु भी वर्ग विशेष से संबंधित होती थी, परंतु चार्ली ने निम्न वर्ग को अपनी फिल्मों में स्थान दिया और फिल्म-कला को जन-साधारण से जोड़ा। अतः यह कहना उचित होगा कि चार्ली ने फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया।

वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ने का अभिप्राय यह है कि फिल्में किसी विशेष वर्ग तथा जाति के लिए नहीं बनतीं। फिल्मों को सभी वर्गों के लोग देख सकते हैं। प्रायः चार्ली से पूर्व फिल्में कुछ विशेष वर्ग तथा जातियों के लिए तैयार की जाती थीं। उदाहरण के रूप में समाज के सुशिक्षित लोगों के लिए कला तैयार की जाती थी। इसी प्रकार कलाकार किसी विचारधारा का समर्थन करने के लिए फिल्में बनाते थे, परंतु चार्ली ने वर्ग-विशेष या वर्ण-व्यवस्था की जकड़न को भंग कर दिया और आम लोगों के लिए फिल्में बनाईं। यही नहीं, उन्होंने आम लोगों की समस्याओं को भी अपनी फिल्मों में प्रदर्शित किया। परिणाम यह हुआ कि उनकी फिल्में पूरे विश्व में लोकप्रिय बन गईं।

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प्रश्न 3.
लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?
उत्तर:
लेखक ने राजकूपर द्वारा बनाई गई ‘आवारा’ नामक फिल्म को चार्ली का भारतीयकरण कहा है। ‘आवारा’ फिल्म केवल ‘दी ट्रैम्प’ का शब्दानुवाद नहीं है, बल्कि चार्ली का भारतीयकरण है। जब आलोचकों ने राजकपूर पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने चार्ली की नकल की है, तो उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। राजकपूर की ‘श्री 420’ भी इसी प्रकार की फिल्म है। ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ के बाद तो भारतीय फिल्मों में यह परंपरा चल पड़ी। यही कारण है कि दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, अभिताभ बच्चन तथा श्रीदेवी ने चार्ली का अनुकरण करते हुए स्वयं पर हँसने की परंपरा को बनाए रखा। गांधी जी भी कभी-कभी चार्ली के समान स्वयं पर हँसते थे। लेखक स्वीकार करता है कि महात्मा गांधी में चार्ली चैप्लिन का खासा पुट था। नेहरू और गांधी भी चार्ली के साथ रहना पसंद करते थे क्योंकि वे दोनों स्वयं पर हँसने की इस कला में निपुण थे।

प्रश्न 4.
लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हो?
उत्तर:
लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में रस को श्रेयस्कर माना है, परंतु उनका कहना है कि कलाकृति में कुछ रसों को पाया-जाना अधिक श्रेयस्कर है। मानव-जीवन में हर्ष और विषाद दोनों की स्थितियाँ रहती हैं। करुण रस का हास्य रस में बदल जाना एक नवीन रस की माँग को उत्पन्न करता है, परंतु यह भारतीय कला में नहीं है। ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जहाँ कई रस एक साथ आ जाते हैं। उदाहरण के रूप में उद्यान में नायक-नायिका प्रेम क्रीड़ाएँ कर रहे होते हैं। इस स्थिति में श्रृंगार रस है, परंतु यदि वहाँ पर अचानक साँप निकल आए तो शृंगार रस भय में परिवर्तित होकर भयानक रस को जन्म देता है। इसी प्रकार ‘रामचरितमानस’ में लक्ष्मण मूर्छा के प्रसंग में राम विलाप कर रहे होते हैं जिससे करुण रस का जन्म होता है, परंतु वहीं पर संजीवनी बूटी लेकर हनुमान का आना वीर रस को जन्म देता है। संस्कृत तथा हिंदी साहित्य में इस प्रकार के अनेक उदाहरण खोजे जा सकते हैं।

प्रश्न 5.
जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया?
उत्तर:
चार्ली को जीवन में निरंतर संघर्ष का सामना करना पड़ा। उसकी माँ एक परित्यकता नारी थी। यही नहीं, वह दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री भी थी। घर में भयावह गरीबी थी। फिर उसकी माँ पागल भी हो गई। तत्कालीन पूँजीपति वर्ग एवं सामंतशाही वर्ग ने चार्ली को दुत्कारा और लताड़ा। नानी की ओर से वे खानाबदोशों से संबंधित थे, परंतु उसके पिता यहूदी वंशी थे। वे इन जटिल परिस्थितियों में संघर्ष करते रहे, परंतु उनका चरित्र घुमंतू बन गया। इस संघर्ष के कारण उन्हें जो जीवन-मूल्य मिले, वे उनके करोड़पति बन जाने पर भी ज्यों-के-त्यों बने रहे। इस लंबे संघर्ष ने उनके व्यक्तित्व में त्रासदी और हास्य को उत्पन्न करने वाले तत्त्वों का मिश्रण कर दिया। अतः चार्ली का व्यक्तित्व ऐसा बना जो स्वयं पर हँसता था। इसका एक कारण यह भी था कि चार्ली ने बड़े-बड़े अमीरों शासकों तथा सामंतों की सच्चाई को समीप से देखा था। उन्होंने अपनी फिल्मों में भी उनकी गरिमामयी दशा को दिखाया और फिर उन पर लात मारकर सबको हँसाया।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

प्रश्न 6.
चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?
उत्तर:
चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में त्रासदी/करुणा/हास्य का अनोखा सामंजस्य देखा जा सकता है। इस प्रकार का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में नहीं आता। इसका कारण यह है कि भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में कहीं पर भी करुण का हास्य में बदल जाना नहीं मिलता। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ में हास्य के जो उदाहरण मिलते हैं वह हास्य दूसरों पर है अर्थात् पात्र दूसरे पात्रों पर हँसते हैं, अपने-आप पर नहीं। इसी प्रकार इनमें दिखाई गई करुणा दुष्टों से भी संबंधित है। संस्कृत नाटकों का विदूषक जो थोड़ी-बहुत बदतमीजी करते दिखाया गया है, उसमें भी करुण और हास्य का मिश्रण नहीं है।

प्रश्न 7.
चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है?
उत्तर:
चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त, आत्मविश्वास से लबरेज़, सभ्यता, सफलता तथा संस्कृति की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ रूप से दिखाता है। इस स्थिति में समझ लेना चाहिए कि अब कुछ ऐसा होने जा रहा है कि चार्ली की सभी गरिमा और गर्व सूई-चुभे गुब्बारे के समान फुस्स हो जाने वाली है। ऐसी स्थिति में वह स्वयं पर हँसता है।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
आपके विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर:
हमारे विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से मूक फिल्मों में ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। कारण यह है कि मूक फिल्मों में सभी भावों को शारीरिक चेष्टाओं द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है, जिसके लिए बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है जबकि सवाक् फिल्मों में यह कार्य वाणी द्वारा आसानी से किया जाता है। कोई मंजा हुआ कलाकार ही मूक फिल्मों में सभी भावों को शारीरिक चेष्टाओं द्वारा व्यक्त कर सकता है। सवाक् फिल्मों में वाणी द्वारा स्नेह, करुणा, घृणा और क्रोध आदि भावों को आसानी से व्यक्त किया जा सकता है, परंतु यदि मूक फिल्मों में अभिनय की दक्षता नहीं होगी तो दर्शक भाव को समझ नहीं पाएंगे।

प्रश्न 2.
सामान्यतः व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं? कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब (क) आप अपने ऊपर हँसे हों; (ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।।
उत्तर:
(क) एक बार मैं वर्षा में प्रसन्नचित होकर भागने लगा। अचानक मेरा पैर फिसला और मैं गिर गया। मैंने अपने चारों ओर देखा कि कहीं कोई मुझे देख तो नहीं रहा, परंतु सामने एक गधा खड़ा था। फलतः मैं अपनी बेवकूफी पर हँसने लगा।

(ख) एक बार रामकुमार जैसे अड़ियल लड़के को दंड देने के लिए मास्टर ने इतना पीटा कि उसका पेशाब ही निकल गया। कक्षा के सभी लड़के उसे देखकर हँसने लगे जिससे रामकुमार घबरा गया और वह बेहोश होकर गिर पड़ा। अब सभी लोग बड़े दुखी थे। उसे होश में लाने के लिए प्रयत्न करने लगे। मास्टर जी भी बड़े घबराए हुए दिखाई दे रहे थे। इस प्रकार हास्य की घटना करुणा में बदल गई।

प्रश्न 3.
चार्ली हमारी वास्तविकता है, जबकि सुपरमैन स्वप्न आप इन दोनों में खुद को कहाँ पाते हैं?
उत्तर:
चार्ली की फिल्मों में हमारे जीवन का यथार्थ रूप देखने को मिलता है। यही कारण है कि हम अपने को उसके रूप में देखने लगते हैं। अतः चार्ली हमारी ही वास्तविकता है, परंतु सुपरमैन मात्र कल्पना है। उसकी स्थिति सपने जैसी है। उसके कार्य इस प्रकार के होते हैं जिनके बारे में हम सपने में भी नहीं सोच सकते। सुपरमैन को हम स्वयं में कहीं नहीं देख सकते हैं। अतः मूलतः हम सभी चार्ली हैं। हम सुपरमैन नहीं बन सकते। इन दोनों में हम स्वयं को चार्ली के निकट पाते हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली की छवि का किन-किन रूपों में उपयोग किया है? कुछ फिल्में (जैसे आवारा, श्री 420, मेरा नाम जोकर, मिस्टर इंडिया और विज्ञापनों (जैसे चैरी ब्लॉसम) को गौर से देखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
शिक्षक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें। यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

प्रश्न 5.
आजकल विवाह आदि उत्सव, समारोहों एवं रेस्तराँ में आज भी चार्ली चैप्लिन का रूप धरे किसी व्यक्ति से आप अवश्य टकराए होंगे। सोचकर बताइए कि बाज़ार ने चार्ली चैप्लिन का कैसा उपयोग किया है?
उत्तर:
आजकल विवाह आदि उत्सव, समारोहों एवं रेस्तराँ में मेहमानों का अभिनंदन करने अथवा हास्य की स्थिति उत्पन्न करने के लिए चार्ली चैप्लिन का प्रयोग किया जाता है। विशेषकर बच्चे उससे हँस-हँस कर बात करते हैं तथा खूब आनंद उठाते हैं। बाजार में चार्ली चैप्लिन का प्रयोग अधिकाधिक सामान बेचने के लिए किया जा सकता है। विशेषकर का रूप धारण करके ग्राहकों का अभिनंदन करें तथा उनसे हँसी-मजाक करें तो मॉल में उत्पादन की बिक्री बढ़ सकती है।

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भाषा की बात

प्रश्न 1.
तो चेहरा चार्ली चार्ली हो जाता है। वाक्य में चार्ली शब्द की पुनरुक्ति से किस प्रकार की अर्थ-छटा प्रकट होती है? इसी प्रकार के पुनरुक्त शब्दों का प्रयोग करते हुए कोई तीन वाक्य बनाइए। यह भी बताइए कि संज्ञा किन स्थितियों में विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगती है?
उत्तर:
तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है। इस वाक्य में चार्ली शब्द की पुनरुक्ति वास्तविकता के अर्थ को दर्शाती है अर्थात् चेहरे पर अपनी वास्तविकता का बोध होना अथवा सामान्य मनुष्य होने का भाव उजागर हो जाना।

तीन वाक्य-

  • तू डाल-डाल मैं पात-पात
  • पानी-पानी-जब मोहन की चोरी पकड़ी गई तो वह पानी-पानी हो गया।
  • गुलाब-गुलाब-प्रेमिका प्रेमी को एकटक देख रही थी, उसी समय उसके माता-पिता वहाँ आ गए। लज्जा के कारण उसका चेहरा गुलाब-गुलाब हो गया।

प्रश्न 2.
नीचे दिए वाक्यांशों में हुए भाषा के विशिष्ट प्रयोगों को पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
(क) सीमाओं से खिलवाड़ करना
(ख) समाज से दुरदुराया जाना
(ग) सुदूर रूमानी संभावना
(घ) सारी गरिमा सुई-चुभे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।
(ङ) जिसमें रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं।
उत्तर:
(क) सीमाओं से खिलवाड़ करना का अर्थ है-सीमाओं का अतिक्रमण करना। चार्ली की फिल्मों ने पिछले 75 वर्षों में अपनी कला से सभी राष्ट्रों के लोगों को मुग्ध किया है। उनकी फिल्मों का प्रभाव समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं को कर गया है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि चार्ली की फिल्मों का प्रभाव सर्वव्यापी और सार्वदेशक है।

(ख) चार्ली की पृष्ठभूमि निर्धनता पर आधारित थी। इसलिए वे समाज के पूँजीपति वर्ग तथा सामंती वर्ग से तिरस्कृत होते रहे।

(ग) चार्ली की नानी का संबंध खानाबदोशों से था। यही कारण है कि लेखक यह सुदूर रुमानी संभावना करता है कि चार्ली में कुछ-न-कुछ भारतीयता का अंश भी होगा। कारण यह है कि यूरोप के जिप्सी भारत से ही गए थे। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में स्वयं को श्रेष्ठतम दिखलाने का प्रयास करता है, परंतु अचानक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि उसकी सारी गरिमा और गर्व सुई-चुभे गुब्बारे के समान फुस्स हो जाती है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि चार्ली अपने श्रेष्ठ रूप को भी हास्य में परिवर्तित कर लेता है।

(ङ) चार्ली ने अपने महानतम क्षणों में अपमान, श्रेष्ठतम शूरवीर क्षणों में क्लैब्य, पलायन तथा लाचारी में विजय के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। यही कारण है कि उनका रोमांस प्रायः हास्य में परिवर्तित हो जाता है।

गौर करें

प्रश्न 1.
(क) दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
(ख) कला में बेहतर क्या है बुद्धि को प्रेरित करने वाली भावना या भावना को उकसाने वाली बुद्धि?
(ग) दरअसल मनुष्य स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक, क्लाउन, जोकर या साइड किक है।
(घ) सत्ता, शक्ति, बुद्धिमता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्ष में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली चार्ली हो जाता है।
(ङ) मॉडर्न टाइम्स द ग्रेट डिक्टेटर आदि फिल्में कक्षा में दिखाई जाएँ और फिल्मों में चार्ली की भूमिका पर चर्चा की जाए।
उत्तर:
(क) यह सच्चाई है कि कला के सिद्धांत बाद में बनाए जाते हैं। कला भावों का सहज उच्च छलन है। उसे सिद्धांतों में बाँधकर नहीं रखा जा सकता।

(ख) भावना को उकसाने वाली बुद्धि।

(ग) मनुष्य ईश्वर का विदूषक है।

(घ) सही है।

(ङ) आचार्य तथा शिक्षक की सहायता लेकर कक्षा में फिल्म दिखाना।

HBSE 12th Class Hindi चार्ली चैप्लिन यानी हम सब Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
विश्व सिनेमा के विकास में चार्ली चैप्लिन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वे एक महान अभिनेता थे। इस पाठ को पढ़कर हम उस महान अभिनेता के भीतर के मानव को जान जाते हैं। चार्ली निर्धन पृष्ठभूमि से संबंधित था, परंतु अपनी अभिनय कला के द्वारा उसने फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया तथा दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को भंग किया। वे साधारण होकर भी असाधारण थे। प्रस्तुत पाठ हास्य फिल्मों के महान् अभिनेता तथा निर्देशक चार्ली चैप्लिन के कला-धर्म की कुछ मूलभूत विशेषताओं को उजागर करता है। चार्ली की प्रमुख विशेषता करुणा तथा हास्य का सामंजस्य है। चार्ली की लोकप्रियता समय और स्थान की सीमाओं को लाँघकर सार्वदेशक और सार्वकालिक बन गई। चार्ली की लोकप्रियता से पता चलता है कि कला स्वतंत्र है। उन्हें सिद्धांतों में बाँधकर नहीं रखा जा सकता। लेखक ने पूरे पाठ में चार्ली चैप्लिन के जादू का सारगर्भित विवेचन किया है।

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प्रश्न 2.
चार्ली में कौन-सी विशेषताएँ हैं जिन्हें अन्य कॉमेडियन छू तक नहीं पाए?
उत्तर:
चार्ली की फिल्मों की प्रमुख विशेषता यह है कि उनमें भाषा का प्रयोग नहीं हुआ अथवा बहुत कम हुआ है। फलस्वरूप अभिनेता को अधिकाधिक मानवीय होना पड़ा। सवाक् फिल्मों में बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं, लेकिन उनको वह लोकप्रियता नहीं मिली जो चार्ली को मिली है। इसका प्रमुख कारण यह है कि चार्ली का प्रभाव सार्वभौमिक रहा है। चार्ली का चिर-युवा दिखाई देना अथवा बच्चों जैसा दिखाई देना एक उल्लेखनीय विशेषता हो सकती है, परंतु उनकी सर्वाधिक प्रमुख विशेषता यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। चार्ली के आस-पास जो वस्तुएँ, अड़गे, खलनायक, दुष्ट औरतें आदि होते हैं वे विदेश का निर्माण कर देते हैं। हम सभी चार्ली बन जाते हैं। चार्ली के सभी संगठनों में हमें यही लगता है कि यह मैं ही हो सकता हूँ अथवा हम यह कह सकते हैं कि उनकी फिल्मों को देखकर हम सब चार्ली बन जाते हैं।

प्रश्न 3.
चार्ली के बारे में लेखक की क्या धारणा है? ।
अथवा
लेखक ने चार्ली की किन विशेषताओं पर प्रकाश डाला है?
उत्तर:
सर्वप्रथम चार्ली ने पिछले 75 वर्षों से संसार को अपनी फिल्मों द्वारा मंत्र-मुग्ध किया है। उन्होंने पाँच पीढ़ियों तक लोगों को हँसाया जो अपने बुढ़ापे तक चार्ली को निश्चय से याद रखेंगी। यही नहीं, आगामी 50 वर्षों तक भी चार्ली पर बहुत कुछ कहा जाएगा और लिखा जाएगा। चार्ली ने भारतीय फिल्मी जगत को अत्यधिक प्रभावित किया है। विशेषकर राजकपूर ने चार्ली की फिल्म-कला से प्रभावित होकर ‘आवारा’, ‘श्री 420’ जैसी फिल्में बनाईं। चार्ली ने फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया और दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को भंग किया। करोड़पति बनने पर भी चार्ली अपनी भूमि से जुड़े रहे। उन्होंने अपने जीवन-मूल्यों में कोई परिवर्तन नहीं किया। यही नहीं, उन्होंने हास्य और करुण रस का अद्भुत सामंजस्य किया तथा लोगों को अपने ऊपर हँसना सिखाया।

प्रश्न 4.
चार्ली के जीवन को प्रभावित करने वाली दूसरी घटना कौन-सी है? इसके बारे में चार्ली ने आत्मकथा में क्या लिखा है?
उत्तर:
चार्ली के जीवन को प्रभावित करने वाली दूसरी घटना बहुत महत्त्वपूर्ण है। बचपन में चार्ली एक ऐसे घर में रहता था जो कसाईखाने के समीप था। वह प्रतिदिन सैकड़ों जानवरों को कसाईखाने में कटते हुए देखता था। एक दिन एक भेड़ किसी तरह कर भाग निकली। उसे पकड़ने वाले जो लोग पीछा कर रहे थे, वे रास्ते में फिसले और गिर पड़े। लोग यह दृश्य देखकर ठहाके लगाकर हँसने लगे। आखिरकार वह निर्दोष जानवर पकड़ लिया गया। तब बालक चार्ली को यह एहसास हुआ कि बेचारी उस भेड़ के साथ क्या हुआ होगा। वह रोता हुआ माँ के पास दौड़ कर आया और चिल्लाने लगा-‘उसे मार डालेंगे, उसे मार डालेंगे’। आगे चलकर चैप्लिन ने अपनी आत्मकथा में इस घटना का उल्लेख किया। “बसंत की वह बेलौस दोपहर और वह मजाकिया दौड़ कई दिनों तक मेरे साथ रही और मैं कई बार सोचता हूँ कि उस घटना ही ने तो कहीं मेरी भावी फिल्मों की भूमिका तय नहीं कर दी थी-त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों के सामंजस्य की।” ।

प्रश्न 5.
चार्ली चैप्लिन ने किस प्रकार भारतवासियों को प्रभावित किया?
उत्तर:
चार्ली चैप्लिन ने अपनी फिल्मों में हैरतअंगेज कारनामे किए, जिन्हें देखकर लाखों बच्चे हँसते हैं। आज भी बच्चे उनके कारनामों को देखते हैं। यह हँसी सदियों तक भारतवासियों को आनंद प्रदान करती रहेगी। यही नहीं, चार्ली ने भारतीय फिल्मों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। विशेषकर राजकपूर ने चार्ली चैप्लिन का अनुकरण करते हुए ‘आवारा’ तथा ‘श्री 420’ जैसी लोकप्रिय फिल्में बनाईं। आगे चलकर हिंदी फिल्म जगत के प्रसिद्ध कलाकार दिलीप कुमार, देवानंद, अमिताभ बच्चन, श्रीदेवी आदि नायक-नायिकाओं ने भी चार्ली से प्रभावित होकर स्वयं को हँसी का पात्र बनाया। इन कलाकारों की चार्ली की नकल पर बनाई गई फिल्में दर्शकों में काफी लोकप्रिय हुईं। इस प्रकार चार्ली चैप्लिन ने न केवल भारतीयों को हँसाया, बल्कि उनका भरपूर मनोरंजन भी किया।

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प्रश्न 6.
चार्ली के मन पर करुणा और हास्य के संस्कार कैसे पड़े? ।
उत्तर:
बचपन में एक बार चार्ली बहुत अधिक बीमार पड़ गया। तब उसकी माँ ने उसे बाइबिल पढ़कर सुनाई। जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने का प्रसंग आया तो चार्ली अपनी माँ के साथ-साथ अत्यधिक द्रवित हो उठा और दोनों रोने लगे। इस प्रसंग से चार्ली ने करुणा को समीप से जाना। एक अन्य घटना भी है, जिसके कारण चार्ली के मन पर हास्य और करुणा के संस्कार पड़े। चार्ली के घर के पास एक कसाईखाना था। वहाँ हर रोज कटने के लिए जानवर लाए जाते थे। एक दिन एक भेड़ किसी प्रकार अपनी जान बचाकर भाग निकली। भेड़ को पकड़ने के लिए जो आदमी उसके पीछे दौड़ रहा था, वह रास्ते में अनेक बार फिसला और गिरा जिससे सब लोग उसे देखकर ठहाके लगाकर हँसने लगे। यह दृश्य देखकर चार्ली को भी हँसी आ गई, परंतु जब भेड़ पकड़ी गई तो चार्ली दुखी हो गया। वह यह सोचकर रोने लगा कि अब इस भेड़ को मार दिया जाएगा। इस प्रसंग के कारण भी उसके हृदय में करुणा के संस्कार उत्पन्न हुए।

प्रश्न 7.
राजकपूर ने किस बात से प्रेरित होकर फिल्मों में क्या प्रयोग किए?
उत्तर:
राजकपूर जानते थे कि चार्ली का सौंदर्यशास्त्र भारतीय है। वे इस सौंदर्यशास्त्र का प्रयोग भारतीय फिल्मों में करना चाहते थे, परंतु उन्हें इस बात की चिंता थी कि भारतीय लोग इसे स्वीकार करेंगे अथवा नहीं। फिर भी उन्होंने इसे प्रयोग करते हुए ‘आवारा’ फिल्म बनाई, जो कि चार्ली की ‘दि ट्रैम्प’ का भारतीयकरण था। राजकपूर ने इस बात की परवाह नहीं की कि वे चार्ली की नकल करके यह फिल्म बना रहे हैं और अभिनय कर रहे हैं। इसके बाद राजकपूर ने ‘श्री 420’ फिल्म बनाई। ये दोनों फिल्में काफी लोकप्रिय हुईं। इनमें नायकों पर हँसने तथा स्वयं नायकों की अपने ऊपर हँसने की नवीन परंपरा देखी जा सकती थी। 1953-57 के मध्य चार्ली अपनी गैर-ट्रैम्पनुमा अंतिम फिल्में बनाने लगे। तब तक भारतीय रंगमंच पर राजकपूर चैप्लिन का युवा अवतार बन चुके थे।

प्रश्न 8.
भारतीय जनता ने चार्ली के ‘फिनोमेनन’ को स्वीकार किया- उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय जनता ने चार्ली के इस ‘फिनोमेनन’ को स्वीकार किया कि स्वयं पर हँसना और दूसरों को स्वयं पर हँसने का मौका देना भी हास्य रस को उत्पन्न करता है। भारतीयों ने इस नवीन परंपरा को ऐसे स्वीकार कर लिया जैसे बत्तख पानी को स्वीकार कर लेती है। उदाहरण के रूप में राजकपूर, दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, जॉनीलीवर आदि कलाकारों ने चार्ली के इस फिनोमेनन को स्वीकार करते हुए अनेक फिल्मों में भूमिकाएं निभाईं। लेखक के अनुसार राजकपूर चार्ली का भारतीयकरण था। उनकी फिल्म ‘आवारा’ मात्र ‘दि ट्रैम्प’ का शब्दानुवाद नहीं थी, बल्कि चार्ली का भारतीयकरण थी। राजकपूर ने इस आरोप की परवाह नहीं की कि वह चार्ली की नकल कर रहा है। महात्मा गांधी में भी चार्ली का खासा पुट था। एक समय था जब गांधी और नेहरू दोनों ने चार्ली की समीपता प्राप्त करनी चाही। इन दोनों राष्ट्र नेताओं को चार्ली इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वह उन्हें हँसाता था।

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर चार्ली का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
भले ही चार्ली दुनिया का महान हास्य अभिनेता और निर्देशक था, परंतु उसका बचपन गरीबी में बीता था। उसकी माँ एक परित्यक्ता और दूसरे दर्जे की स्टेज़ अभिनेत्री थी। शीघ्र ही वह पागलपन का शिकार हो गई। तब उसे जीवन में अत्यधिक संघर्ष करना पड़ा। गरीबी के कारण उसे दो समय का भोजन भी नहीं मिल पाता था। साम्राज्यवादी पूँजीवाद और सामंतशाही से ग्रस्त समाज ने चार्ली को अपमानित किया और उसे कदम-कदम पर दुत्कारा, लेकिन फिर भी चार्ली ने जीवन में हार नहीं मानी और वह निरंतर संघर्ष करता रहा। चार्ली के जीवन की प्रमुख विशेषता यह थी कि वह चिर-युवा दिखाई देता था। उसकी एक अन्य विशेषता यह थी कि वह बच्चों जैसे दिखता था। उनके जीवन की प्रमुख विशेषता यह है कि उसने किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं माना और फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया। यही नहीं, चार्ली ने वर्ग-व्यवस्था और वर्ण-व्यवस्था को भी तोड़ डाला। चार्ली ने असंख्य फिल्में बनाईं और चमत्कारी अभिनय किया।

प्रश्न 10.
भारतीय हास्य परंपरा और चार्ली की हास्य परंपरा में क्या अंतर है?
उत्तर:
भारतीय हास्य परंपरा में हास्य केवल दूसरों पर ही अवलंबित होता है। भारतीय नाटकों में दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वालों की हँसी उड़ाई जाती है। विशेषकर संस्कृत नाटकों में जो राज्याधिकारी बदतमीजियाँ करते हैं, वे हास्य के विषय बन जाते हैं, परंतु भारतीय हास्य परंपरा में करुणा का मिश्रण न के बराबर है, परंतु चार्ली का हास्य भारतीय परंपरा से पूर्णतया भिन्न है। पहली बात तो यह है कि चार्ली के पात्र अपनी कमजोरियों और बेवकूफियों पर हँसते भी हैं और हँसाते भी हैं। दूसरी बात यह है कि वे करुणा का दृश्य दिखाते-दिखाते हास्य का स्थल उत्पन्न कर देते हैं अथवा हास्य का दृश्य उत्पन्न करके करुणा का दृश्य ले आते हैं। चार्ली हँसाते-हँसाते लोगों को रुला देते हैं। इसलिए चार्ली के हास्य में करुणा का मेल देखा जा सकता है।

प्रश्न 11.
भारतीय सौंदर्यशास्त्र चार्ली की रचनाओं से क्या शिक्षा ग्रहण कर सकता है?
उत्तर:
यह सर्वविदित है कि भारतीय सौंदर्यशास्त्र में हास्य रस और करुणा रस का मेल न के बराबर है, बल्कि इन दोनों में विरोध माना गया है। जहाँ हास्य है वहाँ करुणा नहीं है। जहाँ करुणा के दृश्य हैं, वहाँ हँसी नहीं उत्पन्न हो सकती, परंतु चार्ली ने अपनी फिल्मों में इन दोनों का अद्भुत मेल किया है। जो कि सौंदर्यशास्त्र की विशेष उपलब्धि कही जा सकती है। भारतीय सौंदर्यशास्त्र चार्ली की फिल्मों को देखकर कुछ नए प्रयोग कर सकता है। भारत के पौराणिक आख्यानों में ऐसे अनेक स्थल खोजे जा सकते हैं जहाँ हास्य के साथ करुणा भी विद्यमान है। भारतीय फिल्मों में इस नवीन प्रवृत्ति का समुचित विकास हुआ है और आगे चलकर यह प्रवृत्ति और अधिक विकसित होगी।

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प्रश्न 12.
भारतीय सौंदर्यशास्त्र ने चार्ली की कला को पानी में तैरती बत्तख की तरह स्वीकार कर लिया-व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय सौंदर्यशास्त्र चार्ली के सौंदर्यशास्त्र से सर्वथा भिन्न है। भारतीय नाटकों में करुणा और हास्य में विरोध देखा गया है, लेकिन चार्ली ने अपनी फिल्मों में बड़ी सफलता के साथ करुणा और हास्य का मिश्रण दिखाया है। यह सब होते हुए भी भारतीय सौंदर्यशास्त्र ने चार्ली की कला का सम्मान किया। विशेषकर हिंदी फिल्मों में राजकपूर, दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, देवानंद, अमिताभ बच्चन आदि फिल्मी कलाकारों ने चार्ली की कला का सम्मान करते हुए कुछ फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें करुणा और हास्य का मेल देखा जा सकता है। सैद्धांतिक रूप में विरोधी होते हुए भी भारतीय सौंदर्यशास्त्र ने चार्ली के कला सिद्धांत को इस प्रकार स्वीकार किया जैसे बत्तख पानी में तैरती है परंतु भीगती नहीं है, बल्कि उस पानी से अलग रहती है।

प्रश्न 13.
चार्ली चैप्लिन की लोकप्रियता का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
चार्ली चैप्लिन एक महान कलाकार थे। उनकी लोकप्रियता का मुख्य कारण उनकी स्वच्छन्द एवं सहज कला ही है। चार्ली चैप्लिन स्वयं का मज़ाक करके दूसरों को हँसाते हैं। चार्ली चैप्लिन ने फिल्मों को भी एक नई दिशा दी है। चार्ली चैप्लिन की लोकप्रियता का अन्य प्रमुख कारण है कि उन्होंने अपनी भाषाहीन फिल्मों को भी अधिक मानवीय, सजीव, क्रियात्मक और सम्प्रेषणीय बनाया। उन्होंने मानव का सर्वजन सुलभ स्वभाव दिखाया है।

प्रश्न 14.
अपने जीवन के अधिकांश हिस्से में हम चार्ली के टिली ही होते हैं। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
लेखक यह कहना चाहता है कि जब हम किसी बात पर अधिक प्रसन्न होते हैं तो अचानक कोई घटना हमारे रोमांस को पंक्चर कर देती है। हम जब स्वयं को महानतम् क्षणों में महसूस करते हैं तो कोई भी हमें चिढ़ा कर अथवा हमारा अपमान करके वहाँ से भाग जाता है। जब हम अपने-आपको बड़ा शूरवीर समझ रहे होते हैं तब हम कायरता और पलायन का शिकार हो जाते हैं। कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आती है जब हम लाचार होते हैं फिर भी हम विजय पा लेते हैं। अतः हम सब चार्ली हैं, सुपरमैन नहीं हैं। अतः यह कहना सर्वथा उचित है कि हम जीवन के अधिकांश भागों में चार्ली के टिली ही होते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ के लेखक का क्या नाम है?
(A) विष्णु खरे
(B) हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
(C) विष्णु प्रभाकर
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर:
(A) विष्णु खरे

2. विष्णु खरे का जन्म कब हुआ?
(A) 4 जनवरी, 1941 को
(B) 9 फरवरी, 1940 को
(C) 10 फरवरी, 1942 को
(D) 5 फरवरी, 1940 को
उत्तर:
(B) 9 फरवरी, 1940 को

3. विष्णु खरे का जन्म कहाँ पर हुआ?
(A) राजस्थान के जयपुर में
(B) उत्तर प्रदेश के मेरठ में
(C) हरियाणा के रोहतक में
(D) मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में
उत्तर:
(D) मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में

4. विष्णु खरे ने किस विषय में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की?
(A) हिंदी
(B) अंग्रेज़ी
(C) फ्रैंच
(D) बांग्ला
उत्तर:
(B) अंग्रेज़ी

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

5. विष्णु खरे ने किस कॉलेज से सन् 1963 में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की?
(A) क्रिश्चियन कॉलेज
(B) डी० ए० वी० कॉलेज
(C) हिंदू कॉलेज
(D) एस० डी० कॉलेज उ
त्तर:
(A) क्रिश्चियन कॉलेज

6. आरंभ में विष्णु खरे किस समाचार-पत्र में उप-संपादक रहे?
(A) दिनमान
(B) नवनीत
(C) दैनिक इंदौर
(D) नवभारत
उत्तर:
(C) दैनिक इंदौर

7. मध्य प्रदेश के अतिरिक्त विष्णु खरे ने और कहाँ पर प्राध्यापक के रूप में काम किया?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) राजस्थान
(C) हरियाणा
(D) दिल्ली
उत्तर:
(D) दिल्ली

8. केंद्रीय साहित्य अकादमी में विष्णु खरे ने किस पद पर काम किया?
(A) सचिव
(B) उप-सचिव
(C) अध्यक्ष
(D) सलाहकार
उत्तर:
(B) उप-सचिव

9. विष्णु खरे ने किस समाचार-पत्र में प्रभारी कार्यकारी संपादक के रूप में काम किया?
(A) दैनिक हिंदुस्तान
(B) नवभारत टाइम्स
(C) दैनिक जागरण
(D) दैनिक भास्कर
उत्तर:
(B) नवभारत टाइम्स

10. किस समाचार-पत्र में विष्णु खरे ने वरिष्ठ सहायक संपादक के रूप में काम किया?
(A) टाइम्स ऑफ इंडिया
(B) दि ट्रिब्यून
(C) हिंदुस्तान टाइम्स
(D) इंडियन एक्सप्रेस
उत्तर:
(A) टाइम्स ऑफ इंडिया

11. विष्णु खरे को सर्वप्रथम कौन-सा पुरस्कार मिला?
(A) कबीर सम्मान
(B) निराला सम्मान
(C) तुलसी सम्मान
(D) रघुवीर सहाय सम्मान
उत्तर:
(D) रघुवीर सहाय सम्मान

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12. दिल्ली से उन्हें कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) दिल्ली. पुरस्कार
(B) हिंदी साहित्य अकादमी
(C) जैनेंद्र पुरस्कार
(D) दिल्ली ललित कला अकादमी
उत्तर:
(B) हिंदी साहित्य अकादमी

13. ‘रघुवीर सहाय सम्मान’, तथा ‘हिंदी अकादमी सम्मान’ के अतिरिक्त विष्णु खरे अन्य कौन-से सम्मानों से पुरस्कृत हुए?
(A) शिखर सम्मान तथा मैथिलीशरण गुप्त सम्मान
(B) कबीर सम्मान और तुलसी सम्मान
(C) पंत सम्मान
(D) प्रेमचंद सम्मान
उत्तर:
(A) शिखर सम्मान तथा मैथिलीशरण गुप्त सम्मान

14. विष्णु खरे को फिनलैंड का कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(A) फिनलैंड पुरस्कार
(B) फिनलैंड नेशनल अवार्ड
(C) फिनलैंड साहित्यिक पुरस्कार
(D) नाइट ऑफ दि ऑर्डर ऑफ दि व्हाइट रोज़
उत्तर:
(D) नाइट ऑफ दि ऑर्डर ऑफ दि व्हाइट रोज़

15. ‘एक गैर रूमानी समय में के रचयिता का क्या नाम है?
(A) जैनेंद्र कुमार
(B) हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
(C) विष्णु खरे
(D) विष्णु प्रभाकर
उत्तर:
(C) विष्णु खरे

16. ‘सिनेमा पढ़ने के तरीके’ किस विधा की रचना है?
(A) उपन्यास
(B) आलोचना
(C) नाटक
(D) कहानी
उत्तर:
(B) आलोचना

17. ‘खुद अपनी आँख से’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) विष्णु खरे
(B) विष्णु प्रभाकर
(C) हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
(D) फणीश्वर नाथरेणु
उत्तर:
(A) विष्णु खरे

18. ‘पिछला बाकी’ कविता-संग्रह के रचयिता का नाम लिखिए।
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत निराला
(C) विष्णु खरे
(D) राम खरे
उत्तर:
(C) विष्णु खरे

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19. सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा कैसा हो जाता है?
(A) आश्चर्यचकित
(B) कीटन-कीटन
(C) गौरवान्वित
(D) चार्ली-चार्ली
उत्तर:
(D) चार्ली-चार्ली

20. ‘सबकी आवाज पर्दे में’ के रचयिता का नाम क्या है?
(A) हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
(B) विष्णु खरे
(C) विष्णु प्रभाकर
(D) विष्णु करन
उत्तर:
(B) विष्णु खरे

21. किन दो समाचार पत्रों में विष्णु खरे के सिनेमा विषयक लेख प्रकाशित हुए हैं?
(A) ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘दि हिंदुस्तान’
(B) ‘दिनमान’ और ‘पंजाब केसरी’
(C) ‘नवनीत’ और ‘दैनिक भास्कर’ ।
(D) ‘दैनिक भास्कर’ और ‘दैनिक जागरण’
उत्तर:
(A) ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘दि हिंदुस्तान’

22. ‘मेकिंग ए लिविंग’ चैप्लिन की कौन-सी फिल्म है?
(A) तीसरी
(B) पहली
(C) चौथी
(D) दूसरी
उत्तर:
(B) पहली

23. ‘मेकिंग ए लिविंग’ फिल्म को बने हुए कितने साल हो चुके हैं?
(A) 50 साल
(B) 60 साल
(C) 75 साल
(D) 80 साल
उत्तर:
(C) 75 साल

24. चार्ली ने अपनी फिल्मों में किन दो रसों का मिश्रण किया है?
(A) वीर रस और रौद्र
(B) शृंगार रस और वीर रस
(C) हास्य रस और वीभत्स रस
(D) करुणा रस और हास्य रस
उत्तर:
(D) करुणा रस और हास्य रस

25. लेखक के विचारानुसार आने वाले कितने वर्षों तक चार्ली के नाम का मूल्यांकन होता रहेगा?
(A) पचास वर्षों तक
(B) पच्चीस वर्षों तक
(C) साठ वर्षों तक
(D) चालीस वर्षों तक
उत्तर:
(A) पचास वर्षों तक

26. चार्ली चैप्लिन किस नेता से मिले?
(A) चाउनलाई
(B) महात्मा गाँधी
(C) ब्रेझनेव
(D) हिटलर
उत्तर:
(B) महात्मा गाँधी

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27. चार्ली की जो फिल्में हमें अलग प्रकार की भावनाओं का एहसास कराती हैं, उनमें से दो के नाम लिखिए।
(A) रेल ऑफ सिटी और छिविटेड
(B) मेट्रोपोलिस और द रोवंथ सील
(C) वीक एण्ड तथा सन्डे
(D) पोटिक्स और कोमेक्स
उत्तर:
(B) मेट्रोपोलिस और द रोवंथ सील

28. चार्ली की माँ किस प्रकार की नारी थी?
(A) परित्यक्ता
(B) विदूषी
(C) लोकप्रिय अभिनेत्री
(D) नौकरी पेशा
उत्तर:
(A) परित्यक्ता

29. चार्ली चैप्लिन का बड़ा गुण माना जाता है
(A) हास्य-प्रतिभा
(B) शृंगार-प्रतिभा
(C) ओज-प्रतिभा
(D) भक्ति-प्रतिभा
उत्तर:
(A) हास्य-प्रतिभा

30. चार्ली को एक ‘बाहरी’, ‘घुमंतू’ चरित्र किसने बना दिया था?
(A) जटिल परिस्थितियों ने
(B) अमीरी ने
(C) गरीबी ने
(D) उच्च जीवन-मूल्यों ने
उत्तर:
(A) जटिल परिस्थितियों ने

31. विष्णु खरे के अनुसार संस्कृत नाटकों में जो विदूषक है, वह किनसे बदतमीजियाँ करता है?
(A) मूखों से
(B) सेवकों से
(C) छोटे व्यक्तियों से
(D) राजव्यक्तियों से
उत्तर:
(D) राजव्यक्तियों से

32. आरंभ में चार्ली की किन लोगों ने भर्त्सना की?
(A) पूँजीपतियों ने
(B) राजनीतिज्ञों ने
(C) शिक्षकों ने
(D) गरीबों ने
उत्तर:
(A) पूँजीपतियों ने

33. किसकी तरफ से चार्ली खानाबदोशों से जुड़े हुए थे?
(A) दादी
(B) सास
(C) माँ
(D) नानी
उत्तर:
(D) नानी

34. चार्ली चैप्लिन की एक पहचान का नाम है :
(A) यहूदीवंशी
(B) नागवंशी
(C) अग्निवंशी
(D) भृगुवंशी
उत्तर:
(A) यहूदीवंशी

35. ‘यूरोप के जिप्सी किस देश से गए थे?
(A) चीन
(B) लंका
(C) भारत
(D) रूस
उत्तर:
(C) भारत

36. जब चार्ली बीमार थे तो उनकी माँ ने उन्हें किनका चरित्र पढ़कर सुनाया था?
(A) तुलसीदास
(B) हिटलर
(C) मदर टेरेसा
(D) ईसा मसीह
उत्तर:
(D) ईसा मसीह

37. किस प्रसंग को सुनकर चार्ली और उसकी माँ रोने लगे?
(A) भेड़ के भागने का प्रसंग
(B) ईसा के सूली चढ़ने का प्रसंग
(C) कसाईखाने का प्रसंग
(D) भेड़ के पकड़े जाने का प्रसंग
उत्तर:
(B) ईसा के सूली चढ़ने का प्रसंग

38. चार्ली की अधिकाँश फिल्में किसका इस्तेमाल नहीं करती?
(A) भाषा
(B) हास्य
(C) परम्परा
(D) संवाद
उत्तर:
(A) भाषा

 

39. भेड़ के पकड़े जाने पर चार्ली के हृदय में करुणा का भाव उत्पन्न क्यों हो गया?
(A) भेड़ के भाग जाने से
(B) भेड़ के मरने के डर से
(C) भेड़ के गिरने से
(D) भेड़ के बच जाने से
उत्तर:
(B) भेड़ के मरने के डर से

40. भारतीय सौंदर्यशास्त्र में हास्य का पात्र कौन होता है?
(A) मायक
(B) खलनायक
(C) विदूषक
(D) सहनायक
उत्तर:
(C) विदूषक

41. चार्ली से प्रभावित होकर राजकपूर ने कौन-सी दो फिल्में बनाईं?
(A) मेरा नाम जोंकर और संगम
(B) जिस देश में गंगा बहती है और अनाड़ी
(C) बरसात और तीसरी कसम
(D) आवारा और श्री 420
उत्तर:
(D) आवारा और श्री 420

42. किस भारतीय कलाकार ने चार्ली चैप्लिन की तरह अभिनय किया है?
(A) दिलीप कुमार
(B) मनोज कुमार
(C) राजकुमार
(D) अमिताभ बच्चन
उत्तर:
(A) दिलीप कुमार

43. देवानंद ने चार्ली का अनुकरण करते हुए किन फिल्मों में अभिनय किया?
(A) गाइड और हरे रामा हरे कृष्णा
(B) नौ दो ग्यारह और तीन देवियाँ
(C) ज्यूल थीफ और जुआरी
(D) गैम्बलर और जॉनी मेरा नाम
उत्तर:
(B) नौ दो ग्यारह और तीन देवियाँ

44. जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा कैसा चरित्र बना दिया?
(A) मध्यवर्गीय
(B) घुमंतू
(C) बुर्जुवा
(D) उच्चवर्गीय
उत्तर:
(B) घुमंतू

45. चार्ली चैप्लिन ने फिल्म कला को क्या बनाया?
(A) साम्राज्यवादी
(B) लोकतांत्रिक
(C) गणतांत्रिक
(D) निरंकुशवादी
उत्तर:
(B) लोकतांत्रिक

46. चार्ली किस भारतीय साहित्यकार के अधिक नज़दीक हैं?
(A) यशपाल
(B) जयशंकर प्रसाद
(C) प्रेमचन्द
(D) अमृतलाल नागर
उत्तर:
(C) प्रेमचन्द

47. चार्ली चैप्लिन की कला ने कितनी पीढ़ियों को मुग्ध किया है?
(A) तीन
(B) पाँच
(C) दो
(D) चार
उत्तर:
(B) पाँच

48. किस भारतीय अभिनेत्री ने चार्ली चैप्लिन की तरह अभिनय किया है?
(A) श्री देवी
(B) ऐश्वर्या राय
(C) राखी गुलजार
(D) निरूपा राय
उत्तर:
(A) श्री देवी

49. चार्ली चैप्लिन की फिल्मों का आधार क्या है?
(A) धर्म
(B) युद्ध
(C) प्रेम
(D) भावनाएँ
उत्तर:
(D) भावनाएँ

50. बालक चार्ली का मकान किसके पास था?
(A) सिनेमा घर के
(B) दवाखाने के
(C) कसाईखाने के
(D) मन्दिर के
उत्तर:
(C) कसाईखाने के

चार्ली चैप्लिन यानी हम सब प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

[1] समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं से खिलवाड़ करता हुआ चार्ली आज भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है जो उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे। पश्चिम में तो बार-बार चार्ली का पुनर्जीवन होता ही है, विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविज़न और वीडियो का प्रसार हो रहा है, एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चार्ली को घड़ी ‘सुधारते’ या जूते ‘खाने’ की कोशिश करते हुए देख रहा है। चैप्लिन की ऐसी कुछ फिल्में या इस्तेमाल न की गई रीलें भी मिली हैं जिनके बारे में कोई जानता न था। अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा। [पृष्ठ-120]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ में से अवतरित है। इसके लेखक विष्णु खरे हैं। इस पाठ में लेखक ने चार्ली के कला-कर्म की कुछ मूलभूत विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। लेखक की दृष्टि से चार्ली की प्रमुख विशेषता करुणा और हास्य के तत्त्वों का सामंजस्य है। यहाँ लेखक चार्ली के योगदान पर प्रकाश डालता हुआ कहता है कि

व्याख्या-चार्ली ने समय, भूगोल तथा संसार की विभिन्न संस्कृतियों की सीमाओं के साथ खिलवाड़ किया अर्थात वह इन सीमाओं.को पार करके अपनी कला का प्रदर्शन करता रहा। आज भी वह भारतवर्ष के लाखों बच्चों को हँसाने में संलग्न है। भारत के ये बच्चे वृद्धावस्था तक चार्ली को याद करते रहेंगे। जहाँ तक पश्चिमी देशों का प्रश्न है, वहाँ तो चार्ली का बार-बार जन्म होता रहता है। आज की विकासशील दुनिया में टेलीविज़न तथा वीडियो का प्रसारण निरंतर बढ़ता जा रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि पश्चिमी देशों के अधिकांश दर्शक एक नवीन दृष्टिकोण से चार्ली को घड़ी ठीक करते हुए अथवा जूते को खाने का प्रयास करते हुए देखने लगे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि चार्ली चैप्लिन की कुछ ऐसी फिल्में अथवा रीलें मिली हैं जिनके बारे में लोग और जो लोगों को कभी नहीं दिखाई गई। आने वाले पचास वर्षों तक चाली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ लिखा और सुना जाएगा। कारण यह है कि वह अपने समय का एक महान कलाकार था।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने चार्ली चैप्लिन की कला को याद करते हुए उसके योगदान पर समुचित प्रकाश डाला है।
  2. लेखक का यह भी कथन है कि चार्ली ने समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं को पार करके भारत के लाखों बच्चों को हँसाया है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसमें अंग्रेज़ी के शब्दों का सुंदर प्रयोग देखा जा सकता है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) भारत के प्रति चार्ली का क्या योगदान है?
(ग) पश्चिम में चार्ली के बार-बार पुनर्जीवित होने का क्या परिणाम हुआ है?
(घ) चार्ली चैप्लिन की कुछ फिल्में अथवा रीलें किस प्रकार की हैं?
उत्तर:
(क) पाठ का नाम चार्ली चैप्लिन यानी हम सब, लेखक-विष्णु खरे।

(ख) चार्ली आज भी भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है। ये बच्चे अपनी वृद्धावस्था तक चार्ली को याद रखेंगे।

(ग) पश्चिम में टेलीविजन तथा वीडियो के प्रसार के कारण एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चार्ली को घड़ी सुधारते या जूते खाने की कोशिश करते हुए देख रहा है।

(घ) चार्ली की कुछ फिल्में अथवा रीलें ऐसी प्राप्त हुई हैं जिनके बारे में कोई कुछ भी नहीं जानता था।

[2] उनकी फिल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्धि पर नहीं। ‘मेट्रोपोलिस’, ‘दी कैबिनेट ऑफ डॉक्टर कैलिगारी’, ‘द रोवंथ सील’, ‘लास्ट इयर इन मारिएनबाड’, ‘द सैक्रिफाइस’ जैसी फिल्में दर्शक से एक उच्चतर अहसास की माँग करती हैं। चैप्लिन का चमत्कार यही है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइन्स्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति तक कहीं एक स्तर पर और कहीं सूक्ष्मतम रास्वादन के साथ देख सकते हैं। चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया, बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति, समूह या तंत्र गैर-बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फिल्मों पर भी हमला करता है। चैप्लिन भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़ हँस देती है। कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता। [पृष्ठ-121]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ में से अवतरित है। इसके लेखक विष्णु खरे हैं। यहाँ लेखक स्पष्ट करता है कि चार्ली ने अपनी कला के द्वारा फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया तथा दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ डाला।

व्याख्या-लेखक चार्ली की कलागत विशेषताओं का उद्घाटन करते हुए कहता है कि उनकी अधिकांश फिल्मों में भावनाओं की प्रधानता है, बुद्धि की नहीं। इस संदर्भ में हम ‘मेट्रोपोलिस’, ‘दी कैबिनेट ऑफ डॉक्टर कैलिगारी’, ‘द रोवंथ सील’, ‘लास्ट इयर इन मारिएनबाड’, ‘द सैक्रिफाइस’ ऐसी फिल्मों का उदाहरण दे सकते हैं, जिन्हें केवल उच्च स्तरीय दर्शक ही देखकर समझ सकते हैं, सामान्य दर्शक नहीं। चैप्लिन की फिल्मों का सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि उनकी फिल्में जहाँ एक ओर पागलखाने के मरीजों और अस्त-व्यस्त मस्तिष्क वाले लोगों पर फिल्माई गई हैं, वहाँ दूसरी ओर आइन्स्टाइन जैसे महान प्रतिभाशाली व्यक्ति भी इन्हें एक ही स्तर पर सूक्ष्मतम रसास्वादन करते हुए देख सकते हैं और असीम आनंद प्राप्त कर सकते हैं। चैप्लिन का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने फिल्मकला को लोकतांत्रिक रूप प्रदान किया और साथ ही दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को भी तोड़ डाला।

भाव यह है कि उनकी फिल्मों को सभी प्रकार के लोग देखते हैं, परंतु यहाँ इसका उल्लेख करना आवश्यक होगा कि जो व्यक्ति अथवा लोगों का समूह समाज में व्याप्त असमानता को दूर नहीं करना चाहता वह जिस प्रकार असमानता को दूर करने वाली संस्थाओं का विरोध करता है उसी प्रकार चार्ली चैप्लिन की फिल्मों का भी विरोध करता है। इसका प्रमुख कारण यही है चार्ली ने अपनी फिल्मों द्वारा समाज में वर्ग और वर्ण भेद को हटाकर समानता की स्थापना की है। चैप्लिन सामान्य भीड़ का वह व्यक्ति है जो संकेत के द्वारा यह स्पष्ट कर देता है कि राजा और उसमें कोई अंतर नहीं है। इसलिए वह बड़े-बड़े शासकों को भी नंगा करता है और उनकी कमजोरियों से लोगों को अवगत कराता है। यह सब देखकर दर्शकों की भीड़ हँसने लगती है। कारण यह है कि कोई भी राजा अथवा शासनतंत्र यह नहीं चाहता कि वह अपने ऊपर हँसे अर्थात् अपना मजाक उड़ाए।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि चार्ली चैप्लिन की फिल्मों ने वर्ग और वर्ण व्यवस्था को तोड़कर फिल्मकला को लोकतांत्रिक बनाया।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है जिसमें अंग्रेजी के शब्दों का भी सफल प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया गया है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) चार्ली की फिल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्धि पर नहीं। इसका क्या तात्पर्य है?
(ख) चार्ली चैप्लिन की फिल्मों के दर्शक कौन थे?
(ग) चार्ली ने फिल्मकला को लोकतांत्रिक कैसे बनाया?
(घ) कौन लोग चार्ली की फिल्म पर हमला बोलते हैं और क्यों?
(ङ) शासक चार्ली की फिल्मों को पसंद क्यों नहीं करते?
उत्तर:
(क) चार्ली ने अपनी फिल्मों में प्रायः मानवीय भावनओं का ही चित्रण किया है। उनके पात्र बुद्धि का सहारा नहीं लेते, केवल मन की भावनाओं के अनुसार व्यवहार करते हैं।

(ख) चार्ली चैप्लिन की फिल्मों को सभी लोग पसंद करते थे, चाहे पागलखाने के मरीज़ हों या सिर फिरे पागल या आइन्स्टाइन जैसे महान् वैज्ञानिक। सभी चैप्लिन की फिल्मों को अत्यधिक पसंद करते थे।

(ग) चार्ली ने समाज की वर्ग और वर्ण-व्यवस्था को तोड़कर फिल्मकला को लोकतांत्रिक बनाया। उनकी फिल्में किसी एक वर्ग के लिए नहीं थीं, बल्कि सभी लोगों के लिए थीं। सभी देशों के लोगों ने उनकी फिल्मों को पसंद किया।

(घ) जो लोग समाज में समानता को नहीं देखना चाहते और वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था का समर्थन करते हैं वही लोग चार्ली की फिल्मकला पर हमला बोलते हैं।

(ङ) चार्ली ने अपनी फिल्मों के द्वारा आम नागरिकों तथा उनके साथ-साथ बड़े-बड़े शासकों की कमजोरियों को नंगा किया। इसलिए शासक वर्ग उनकी फिल्मों को पसंद नहीं करता है, क्योंकि शासक यह नहीं चाहते थे कि इन लोगों को उनकी कमजोरियों का पता चले।

[3] एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना-इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो करोड़पति हो जाने के बावजूद अंत तक उनमें रहे। अपनी नानी की तरफ से चैप्लिन खानाबदोशों से जुड़े हुए थे और यह एक सुदूर रूमानी संभावना बनी हुई है कि शायद उस खानाबदोश औरत में भारतीयता रही हो क्योंकि यूरोप के जिप्सी भारत से ही गए थे और अपने पिता की तरफ से वे यहूदीवंशी थे। इन जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा एक ‘बाहरी’, ‘घुमंतू’ चरित्र बना दिया। वे कभी मध्यवर्गी, बुर्जुआ या उच्चवर्गी जीवन-मूल्य न अपना सके। यदि उन्होंने अपनी फिल्मों में अपनी प्रिय छवि ‘ट्रैम्प’ (बहू, खानाबदोश, आवारागद) की प्रस्तुत की है तो उसके कारण उनके अवचेतन तक पहुँचते हैं। [पृष्ठ-121]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब में से अवतरित है। इसके लेखक विष्णु खरे हैं। यहाँ लेखक ने चार्ली के पारिवारिक जीवन का यथार्थ वर्णन किया है।

व्याख्या-चार्ली की माँ को उसके पति ने त्याग दिया था। दूसरा, वह दूसरे दर्जे की स्टेज़ की अभिनेत्री थी। आगे चलकर चार्ली और उसकी माँ को भयानक गरीबी का सामना करना पड़ा। उसकी माँ भी पागलपन से संघर्ष करती रही। यही नहीं, तत्कालीन साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवादी अर्थव्यवस्था तथा सामंतशाही से प्रभावित अभिमानी समाज ने चार्ली को दुत्कारा और उसका अपमान किया। इस लंबे संघर्ष तथा अपमान से चार्ली को ऐसे जीवन-मूल्य मिले जो उसके करोड़पति बन जाने के बाद भी उसमें अंत तक विद्यमान रहे। भाव यह है कि अपनी माँ का अपमान, गरीबी, पागलपन तथा तत्कालीन समाज द्वारा किए गए अपमान के कारण चैप्लिन को जीवन की जो सोच मिली उसे वह आखिर तक नहीं भूल पाया। भले ही आगे चलकर वह करोड़पति बन गया लेकिन वह विगत जीवन तथा उसके मूल्यों को भूल नहीं पाया।

चार्ली की नानी खानाबदोश परिवार की थी। लेखक सोचता है कि यह एक दूर की संभावना की जा सकती है कि चार्ली की नानी में कुछ भारतीयता रही हो, क्योंकि भारत से ही जिप्सी यूरोप में गए थे। यही कारण है कि चार्ली ने भी लगभग घुमंतुओं जैसा जीवन व्यतीत किया। चार्ली के पिता यहूदी थे। इससे पता चलता है कि चार्ली के जीवन की परिस्थितियाँ कितनी कठिन और विपरीत थीं, परंतु इन परिस्थितियों ने चार्ली को बाहरी तथा घुमंतू व्यक्ति बना दिया। वह हमेशा यहाँ से वहाँ भटकने वाला व्यक्ति बना रहा। उसने कभी भी मध्यम वर्गीय तथा उच्च वर्गीय जीवन-मूल्य नहीं अपनाए। उन्होंने अपनी फिल्मों में ‘ट्रैम्प’ की छवि प्रस्तुत की है। यह छवि कहती है कि वह एक बडु, खानाबदोश और आवारागर्द किस्म का चरित्र है। उसके इसी चरित्र के फलस्वरूप उसके अवचेतन को अच्छी प्रकार जान सकते हैं। लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि जटिल और विपरीत परिस्थितियों ने ही चार्ली को खानाबदोश और आवारागर्द व्यक्ति बना दिया था। अपनी फिल्मों में उसने अपनी इसी प्रिय छवि को प्रस्तुत किया है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने चार्ली की आरंभिक जीवन की जटिल परिस्थितियों तथा उसके पारिवारिक जीवन का यथार्थ वर्णन किया है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है जिसमें अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) चार्ली के माता-पिता का परिचय क्या है?
(ख) चार्ली का बचपन कैसे बीता?
(ग) बचपन में चार्ली को क्या भोगना पड़ा?
(घ) चार्ली चैप्लिन के जीवन में भारतीय संस्कारों की संभावना कैसे की जा सकती है?
(ङ) चार्ली आजीवन खानाबदोश क्यों बना रहा?
उत्तर:
(क) चार्ली की माँ दूसरे दर्जे की मंचीय अभिनेत्री थी, जिसे उसके पति ने तलाक दे दिया था। भयानक गरीबी के कारण वह लगभग पागल हो गई थी। चार्ली का पिता यहूदी वंश से संबंधित था।

(ख) बचपन में चार्ली को घोर कष्टों का सामना करना पड़ा। उसकी माँ एक परित्यक्ता नारी थी। अत्यधिक गरीबी के कारण वह पागल हो गई थी। चार्ली को इस संघर्ष का सामना करना पड़ा। यही नहीं, चार्ली को तत्कालीन पूँजीपतियों, सामंतों तथा राजकीय अधिकारियों की घोर उपेक्षा भी सहन करनी पड़ी।

(ग) बचपन में चार्ली को भयंकर गरीबी, माँ का पागलपन, प्रितहीन जीवन तथा पूँजीपतियों और सामंतों की उपेक्षा के कडुवे अनुभवों को भोगना पड़ा।

(घ) चार्ली की नानी खानाबदोश जाति से संबंधित थी। ये खानाबदोश भारत से यूरोप जाकर जिप्सी कहलाने लगे। इससे लेखक यह संभावना करता है कि चार्ली का अप्रत्यक्ष रूप से संबंध भारत से था।

(ङ) चार्ली के अवचेतन मन में उसकी नानी के खानाबदोशी संस्कार थे। उसे न तो माँ का प्यार मिला और न ही पिता का दुलार, बल्कि गरीबी के साथ-साथ उसे माँ का पागलपन भी झेलना पड़ा। यही नहीं, पूँजीपतियों और सामंतों में चार्ली को दुत्कारा और अपमानित किया जाता था। इसलिए वह न तो उच्च-वर्ग को अपना सका और न ही मध्य वर्ग को, बल्कि खानाबदोशों के समान जीवन बिताता रहा।

[4] चार्ली पर कई फिल्म समीक्षकों ने नहीं, फिल्म कला के उस्तादों और मानविकी के विद्वानों से सिर धुने हैं और उन्हें नेति-नेति कहते हुए भी यह मानना पड़ता है कि चार्ली पर कुछ नया लिखना कठिन होता जा रहा है। दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है। जो करोड़ों लोग चार्ली को देखकर अपने पेट दुखा लेते हैं उन्हें मैल ओटिंगर या जेम्स एजी की बेहद सारगर्भित समीक्षाओं से क्या लेना-देना? वे चार्ली को समय और भूगोल से काट कर देखते हैं और जो देखते हैं उसकी ताकत अब तक ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। यह कहना कि वे चार्ली में खुद को देखते हैं दूर की कौड़ी लाना है लेकिन बेशक जैसा चार्ली वे देखते हैं वह उन्हें जाना-पहचाना लगता है, जिस मुसीबत से वह अपने को हर दसवें सेकेंड में डाल देता है वह सुपरिचित लगती है। अपने को नहीं लेकिन वे अपने किसी परिचित या देखे हुए को चार्ली मानने लगते हैं। [पृष्ठ-121-122]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ में से अवतरित है। इसके लेखक विष्णु खरे हैं। यहाँ लेखक ने स्पष्ट किया है कि चार्ली पर कुछ भी नया लिखना बड़ा कठिन होता जा रहा है क्योंकि फिल्म समीक्षकों ने उनकी फिल्मों पर प्रत्येक दृष्टिकोण से लिखा है।

व्याख्या-चार्ली पर असंख्य फिल्म आलोचकों ने बहुत कुछ लिखा है और प्रत्येक दृष्टिकोण से अपनी फिल्म-कला का मूल्याँकन किया है। यही नहीं, फिल्मकला के विद्वानों तथा मानव-विज्ञान के विद्वानों ने भी उनकी फिल्मों के बारे में काफी माथा-पच्ची की है। उन सबने अंततः यह स्वीकार कर लिया है कि चार्ली पर कुछ भी नया लिखना असंभव होता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सिद्धांतों से कला जन्म नहीं लेती, बल्कि कला अपने साथ सिद्धांत लेकर आती है अथवा कला से ही सिद्धांतों का निर्माण होता है। तात्पर्य यह है कि चार्ली ने सिद्धांतों के आधार पर फिल्मकला का निर्माण नहीं किया। उनकी कला में सिद्धांत स्वतः समाहित थे।

अतः आलोचना के बाद भी उन्होंने कला का अनुशीलन करके सिद्धांतों का निर्माण किया। जो लोग चार्ली को फिल्मों में देखकर हँस-हँस कर लोट-पोट हो जाते हैं तथा उनके पेट दुखने लगते हैं, ऐसे लोगों को मैल ओटिंगर या जेम्स एजी की अत्यधि क गंभीर आलोचनाओं से कुछ लेना-देना नहीं है। उन्होंने न इन समीक्षाओं को पढ़ा है और न ही पढ़ने का प्रयास किया है। आलोचक चार्ली को समय और भूगोल से अलग करके देखते हैं परंतु जो लोग चार्ली को देखते हैं और देखकर रसास्वादन प्राप्त करते हैं, उनकी शक्ति ज्यों-की-त्यों है, वह घटी नहीं है। यह कहना कि दर्शक चार्ली में स्वयं को देखते हैं। की सोच है परंतु यह निश्चित है कि दर्शक जिस प्रकार चार्ली को देखते हैं उन्हें लगता है कि वे चार्ली को अच्छी तरह से जानते और पहचानते हैं। भाव यह है कि चार्ली ने अपनी फिल्मकला के द्वारा स्वयं को सभी लोगों के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। दर्शकों को चार्ली की हरकतों में अपने आस-पास की जिंदगी दिखाई देती है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि चार्ली चैप्लिन की कला पर पर्याप्त समीक्षा हो चुकी है। अतः उसके बारे में कुछ नया कहना अथवा लिखना बड़ा कठिन हो गया है।
  2. चार्ली के कारनामों को देखकर दर्शकों को लगता है कि वे अपने आस-पास की जिंदगी को देख रहे हैं।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हआ है जिसमें अंग्रेजी के शब्दों का संदर मिश्रण है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) चार्ली पर कुछ नया लिखना कठिन क्यों होता जा रहा है?
(ख) सिद्धांत कला को जन्म देते हैं या कला सिद्धांतों को जन्म देती है? स्पष्ट कीजिए।
(ग) चार्ली को देखकर करोड़ों लोगों के पेट क्यों दुखने लगते हैं?
(घ) कला को समय और भूगोल से काटकर देखने का क्या अर्थ है?
(ङ) चार्ली के कारनामों को देखकर लोग क्या अनुभव करते हैं?
उत्तर:
(क) कला समीक्षकों ने चार्ली चैप्लिन की कला पर इतना अधिक लिख दिया है कि अब उनके बारे में और अधिक को ने चाली की कला के प्रत्येक पहलू पर बहुत कुछ लिखा है। इसलिए उस पर कुछ नया लिखना कठिन होता जा रहा है।

(ख) सिद्धांतों से कला पैदा नहीं होती, बल्कि कला से सिद्धांत उत्पन्न होते हैं। सर्वश्रेष्ठ कला को देखकर ही कला समीक्षक सिद्धांत गढ़ लेते हैं। पहले से चले आ रहे कला संबंधी सिद्धांत श्रेष्ठ कला पर लागू नहीं होते, बल्कि श्रेष्ठ कला ही सिद्धांतों को जन्म देती है।

(ग) चार्ली का अभिनय तथा उसके कारनामे बड़े ही रोचक, चुटीले और हँसी उत्पन्न करने वाले होते हैं। उन्हें देखकर करोड़ों लोग हँस-हँसकर दोहरे हो जाते हैं जिससे उनके पेट दुखने लगते हैं। चार्ली की कला में हास्य रस का परिपाक देखा जा सकता है।

(घ) कला को समय और भूगोल से काटकर देखने का अभिप्राय है कि कलाकृति अथवा फिल्म किसी विशेष देश अथवा समय से जोड़कर नहीं देखी जा सकती। श्रेष्ठ कलाकृति अपने देश और उसकी सीमाओं को लांघकर सार्वजनिक अथवा सार्वभौमिक बन जाती है। उसका प्रभाव सभी देशों के सब दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ जाता है।

(ङ) चार्ली के कारनामे देखकर लोग समझते हैं कि वह उनसे किसी-न-किसी रूप में परिचित है। चार्ली की हरकतों में उन्हें अपने आस-पास की जिंदगी दिखाई देती है।

[5] भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र को कई रसों का पता है, उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर भी माना गया है, जीवन में हर्ष और विषाद आते रहते हैं यह संसार की सारी सांस्कृतिक परंपराओं को मालूम है, लेकिन करुणा का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस-सिद्धांत की माँग करता है जो भारतीय परंपराओं में नहीं मिलता। ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह ‘दूसरों’ पर है और अधिकांशतः वह परसंताप से प्रेरित है। जो करुणा है वह अकसर सद्व्यक्तियों के लिए और कभी-कभार दुष्टों के लिए है। संस्कृत नाटकों में जो विदूषक है वह राजव्यक्तियों से कुछ बदतमीजियाँ अवश्य करता है, किंतु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमें भी नहीं है। अपने ऊपर हँसने और दूसरों में भी वैसा ही माद्दा पैदा करने की शक्ति भारतीय विदूषक में कुछ कम ही नज़र आती है। [पृष्ठ-122-123]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब में से लिया गया है। इसके लेखक विष्णु खरे हैं। यहाँ लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि करुणा का हास्य रस में बदल जाना भारतीय परंपरा में नहीं मिलता।

व्याख्या भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में अनेक रसों की चर्चा की गई है। उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में एक साथ होना एक विशेष उपलब्धि मानी जा सकती है। भाव यह है कि श्रेष्ठ कलाकार अपनी कलाकृति में अनेक रसों का परिपाक करता आया है। यह भी सत्य है कि जीवन में सुख-दुख एवं आशा तथा निराशा अकसर आते रहते हैं। संसार की सभी सांस्कृतिक परंपराएँ इस तथ्य से परिचित हैं परंतु करुणा का अचानक हास्य में परिवर्तित हो जाना एक ऐसे रस सिद्धांत का निर्माण करता है जो भारतीय साहित्यशास्त्र में प्राप्त नहीं होता। यह स्थिति किसी भी भारतीय रचना में दिखाई नहीं देती।

‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ में जो हास्य रस का परिपाक हुआ है, वह अन्य पात्रों से संबंधित है। प्रायः हास्य दूसरे की पीड़ा से उत्पन्न दिखाया गया है परंतु भारतीय परंपरा में करुणा आदर्श पात्रों से संबंधित है। कभी-कभार दुष्ट या खलनायक पात्र भी करुणा को उत्पन्न करते हुए दिखाए गए हैं। जहाँ तक संस्कृत के नाटकों का प्रश्न है तो उनमें विदूषक राजाओं अथवा राज्य अधिकारियों से कुछ बदतमीजियाँ करते दिखाया गया है, जिससे हास्य रस उत्पन्न होता है, परंतु उसके हास्य में करुणा का मिश्रण बिल्कुल नहीं होता। भारतीय विदूषक में अपने ऊपर हँसने तथा दूसरे में ऐसी स्थिति उत्पन्न करने की स्थिति कहीं पर दिखाई नहीं देती।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने भारतीय साहित्यशास्त्र तथा साहित्यिक रचनाओं में रस सिद्धांत की चर्चा की है।’
  2. लेखक स्वीकार करता है कि भारतीय विदूषक में करुणा और हास्य का सामंजस्य बिल्कुल नहीं है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में रस की क्या स्थिति है?
(ख) करुणा का हास्य में बदल जाना किस प्रकार से रस सिद्धांत की माँग करता है? क्या यह भारतीय परंपरा में प्राप्त होता है?
(ग) संस्कृत नाटकों में विदूषक क्या करता है?
उत्तर:
(क) भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में रसों की व्यापक चर्चा मिलती है। उनमें यह भी स्वीकार किया गया है कि श्रेष्ठ कलाकृति में अनेक रसों का पाया जाना श्रेयस्कर होता है।।

(ख) करुणा का हास्य रस में बदल जाना सर्वथा एक नवीन रस सिद्धांत की माँग करता है। यह भारतीय परंपराओं में प्राप्त नहीं होता।

(ग) संस्कृत नाटकों में विदूषक राजाओं अथवा राज्याधिकारियों से बदतमीजियाँ करके, हास्य रस उत्पन्न करता है। वह अपने ऊपर हँसकर दूसरों में वैसी स्थिति उत्पन्न करने की बहुत कम कोशिश करता है।

[6] चार्ली की अधिकांश फिल्में भाषा का इस्तेमाल नहीं करती इसलिए उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा मानवीय होना पड़ा। सवाक् चित्रपट पर कई बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं, लेकिन वे चैप्लिन की सार्वभौमिकता तक क्यों नहीं पहुँच सकी पड़ताल अभी होने को है। चार्ली का चिर-यवा होना या बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता तो है ही, सबसे बड़ी विशेषता शायद यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। यानी उनके आसपास जो भी चीजें, अड़ेंगे, खलनायक, दुष्ट औरतें आदि रहते हैं वे एक सतत ‘विदेश’ या ‘परदेश’ बन जाते हैं और चैप्लिन ‘हम’ बन जाते हैं। चार्ली के सारे संकटों में हमें यह भी लगता है कि यह ‘मैं’ भी हो सकता हूँ, लेकिन ‘मैं’ से ज्यादा चार्ली हमें ‘हम’ लगते हैं। यह संभव है कि कुछ अर्थों में ‘बस्टर कीटन’ चार्ली चैप्लिन से बड़ी हास्य-प्रतिभा हो लेकिन कीटन हास्य का काफ्का है जबकि चैप्लिन प्रेमचंद के ज्यादा नज़दीक हैं। [पृष्ठ-124]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश भाग हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ में से उद्धृत है। इसके लेखक विष्णु खरे हैं। यहाँ लेखक यह स्पष्ट करता है कि चार्ली की कला सार्वभौमिक है। वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते।

व्याख्या-चार्ली की अधिकतर फिल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं किया गया अथवा उनकी फिल्मों में भाषा का बहुत कम प्रयोग किया गया है। यही कारण है कि उनकी फिल्में सर्वाधिक मानवीय हैं। यूँ तो बोलने वाली फिल्मों में बड़े-से-बड़े विदूषक हुए हैं। परंतु जौ सार्वभौमिकता चार्ली को प्राप्त हुई है, वह उनको प्राप्त नहीं हुई। इसका क्या कारण हो सकता है, इस बात की अभी जाँच-पड़ताल की जानी है। इस संबंध में शोध करने की आवश्यकता है। चार्ली की एक प्रमुख विशेषता यह है कि वे एक चिर-युवा अथवा बच्चों जैसे दिखाई देते हैं, परंतु उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे संसार की किसी भी संस्कृति के लिए विदेशी नहीं हैं अर्थात् प्रत्येक देश के दर्शक समझते हैं कि चार्ली उनकी अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं।

कहने का भाव यह है कि फिल्म में चार्ली के आस-पास जो वस्तुएँ दिखाई जाती हैं अथवा बाधाएँ उत्पन्न की जाती हैं, जो खलनायक और बुरी औरतें दिखाई जाती हैं वे निरंतर विदेश का चित्र प्रस्तुत करते हैं। हम सभी स्वयं को चार्ली समझने लगते हैं। चार्ली पर हम जो भी मुसीबतें देखते हैं, उन्हें देखकर हमें यह महसूस होता है कि ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है। यहाँ हमें ‘मैं’ की बात न करके ‘हम’ की बात करनी चाहिए अर्थात् हम सभी चार्ली बन जाते हैं। यह भी हो सकता है कि कुछ सीमा में ‘बस्टर कीटन’ में चार्ली से अधिक हास्य प्रतिभा हो सकती है, परंतु कीटन का हास्य काफ्का के समीप का हास्य है, परंतु चैप्लिन हमें प्रेमचंद के अधिक समीप दिखाई देता है। चार्ली का अभिनय प्रेमचंद के पाठों से मिलता-जुलता है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि चार्ली हमें मानव की सहज एवं स्वाभाविक क्रियाएँ दिखाता है। इसलिए इनकी फिल्में भाषा-विहीन होती हैं।
  2. चार्ली की कला सार्वभौमिक है।
  3. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है, जिसमें अंग्रेजी के शब्दों का सुंदर मिश्रण है।
  4. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भाषा का प्रयोग न करने के फलस्वरूप चार्ली को क्या करना पड़ा?
(ख) चार्ली चैप्लिन की सार्वभौमिकता का क्या कारण है?
(ग) चार्ली की कला किसी भी संस्कृति को विदेशी क्यों नहीं लगती?
(घ) चार्ली के कारनामे ‘मैं’ न होकर ‘हम’ क्यों हैं?
(ङ) लेखक ने चार्ली को किस भारतीय साहित्यकार के समीप देखने का प्रयास किया है?
उत्तर:
(क) यह सत्य है कि चार्ली ने अपनी फिल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं किया। अतः इसके लिए उनको सर्वाधिक मानवीय बनना पड़ा। तात्पर्य यह है कि चार्ली ने मानव की उन सहज तथा स्वाभाविक क्रियाओं को दर्शाया है जिन्हें दर्शक तत्काल समझ जाता है।

(ख) चार्ली की कला की सार्वभौमिकता होने का कारण यह है कि उनकी फिल्मों में मानव की सहज और स्वाभाविक क्रियाओं का मिश्रण किया गया है। भाषाविहीन होने के कारण उनकी फिल्मों में मानवीय क्रियाएँ अधिक हैं। यही नहीं, उनकी फिल्में प्रत्येक दर्शक को अपने आस-पास के जीवन का परिचय देती हैं।

(ग) चार्ली की फिल्मों के कलाकार दर्शकों को विदेशी पात्र जैसे नहीं लगते, बल्कि उन्हें अपने जैसे या अपने आस-पास के लोगों जैसे लगते हैं। भाव यह है कि चार्ली अपनी फिल्मों में मानवीय, सहज एवं स्वाभाविक क्रियाओं का वर्णन करता है, जिससे वह हमें आत्मीय लगता है।

(घ) चार्ली के कारनामे विविध प्रकार के हैं। वे किसी एक पात्र की कहानी नहीं लगते। उनके माध्यम से हमें अपने आस-पास के जीवन की झाँकी दिखाई देती है।

(ङ) लेखक ने चार्ली को मुंशी प्रेमचंद के अधिक समीप देखा है।

[7] एक होली का त्योहार छोड़ दें तो भारतीय परंपरा में व्यक्ति के अपने पर हँसने, स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। गाँवों और लोक-संस्कृति में तब भी वह शायद हो, नागर-सभ्यता में तो वह थी नहीं। चैप्लिन का भारत में महत्त्व यह है कि वह ‘अंग्रेज़ों जैसे’ व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देते हैं। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त, आत्म-विश्वास से लबरेज़, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मूदुनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखलाता है। तब यह समझिए कि कुछ ऐसा हुआ ही चाहता है कि यह सारी गरिमा सुई-चुभे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी। [पृष्ठ-124]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ में से अवतरित है। इसके लेखक विष्णु खरे हैं। यहाँ लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि भारतीय परंपरा में होली का त्योहार ऐसा है जिसमें व्यक्ति अपने पर हँसता है और दूसरों को भी जान-बूझकर हँसाता है।

व्याख्या-भारत में होली का त्योहार ही एकमात्र ऐसी भारतीय परंपरा है जिसमें व्यक्ति अपने पर हँसता है तथा स्वयं को जानबूझकर हास्यास्पद बना डालता है। जिसके फलस्वरूप उसे देखकर अन्य लोग भी हँसते हैं। इस त्योहार को हम छोड़ दें तो भारतीय परंपरा में और कोई ऐसा त्योहार नहीं है जिसमें व्यक्ति स्वयं पर हँसता है और स्वयं को हास्यास्पद बनाता है। ग्रामीण क्षेत्रों तथा लोक संस्कृति में यह सब शायद होता हो, परंतु महानगरीय सभ्यता में यह न के बराबर है। चैप्लिन का भारत में विशेष महत्त्व है। कारण यह है कि वे हमें अंग्रेजों जैसे लोगों पर हँसने का मौका देते हैं।

चार्ली स्वयं पर सर्वाधिक उस समय हँसता है जब वह गर्व से उन्मत्त और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है, स्वयं को सफल, सभ्यता, संस्कृति और वैभव की प्रतिमूर्ति मानता है या अपने-आप को दूसरों से अधिक ताकतवर और श्रेष्ठ समझता है या वह स्वयं को वज्र से अधिक कठोर और फूलों से अधि समझता है। वस्तुतः वह एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर लेना चाहता है जिससे उसका सारा गौरव और गर्व सुई-चुभे गुब्बारे के समान फुस्स होकर रह जाए। जिस प्रकार हम गुब्बारे को फुलाकर उसमें सूई-चुभो कर उसे फुस्स कर देते हैं, उसी प्रकार चार्ली स्वयं को ताकतवर और श्रेष्ठ दिखाने का प्रयास करता है, परंतु उसका सारा गर्व और अभिमान उस समय चूर-चूर हो जाता है जब उसके सामने विपरीत परिस्थितियाँ आ जाती हैं। यही स्थिति हास्य के साथ करुणा का मिश्रण करती है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने भारत में होली के त्योहार और चार्ली के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) भारत में होली का त्योहार विशेष महत्त्व क्यों रखता है?
(ख) भारत में हँसी की किस परंपरा की कमी है?
(ग) भारत में अपने पर हँसने की परंपरा थोड़ी बहुत कहाँ पाई जाती है?
(घ) चार्ली स्वयं को कब हास्यास्पद बनाता है और क्यों?
(ङ) चार्ली गर्व और गरिमा के गुब्बारे को फुलाकर उसे फुस्स क्यों कर देता है?
उत्तर:
(क) भारत में होली के त्योहार का विशेष महत्त्व इसीलिए है क्योंकि इसमें भारतीय स्वयं पर हँसते हैं और जान-बूझकर अपने-आपको हास्यास्पद बना लेते हैं।।

(ख) भारत में उस हँसी का अभाव है जो अपने पर या अपने स्वभाव पर या अपनी कमियों के कारण उत्पन्न होती है। कहने का भाव यह है कि भारतीय स्वयं पर हँसना नहीं जानते।

(ग) भारत में स्वयं पर हँसने की परंपरा न के बराबर है। केवल होली के त्योहार पर भारतवासी स्वयं पर थोड़ा हँस लेते हैं अथवा गाँव के लोग लोक संस्कृति के बहाने से स्वयं पर हँस लेते हैं।

(घ) चार्ली स्वयं को हास्यास्पद उस अवसर पर बनाता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत, आत्म-विश्वास से लबरेज़ तथा सर्वाधिक शक्तिशाली समझने लगता है। इन क्षणों में हँसी उत्पन्न करके वह यह दिखाना चाहता है कि मनुष्य की गरिमा, शक्ति अथवा गर्व मात्र दिखावे के और कुछ नहीं हैं।

(ङ) चार्ली गुब्बारा फुलाकर इसलिए फुस्स कर देता है ताकि वह समाज के आडंबरों तथा व्यर्थ की गरिमा की पोल खोल सके। वह मनुष्य को यह समझाना चाहता है कि उसे व्यर्थ का गर्व नहीं करना चाहिए और न ही शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए।

[8] अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली ही होते हैं जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम क्लैब्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलतः हम सब चार्ली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है। [पृष्ठ-124-125]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ में से अवतरित है। इसके लेखक विष्णु खरे हैं। यहाँ लेखक स्पष्ट करता है कि हम जीवन के अधिकांश क्षणों में चार्ली के कारनामों के प्रतिरूप बन जाते हैं।

व्याख्या-यहाँ लेखक यह कहना चाहता है कि हमारे जीवन का अधिकांश हिस्सा चार्ली के कारनामों का प्रतिरूप है। जिस प्रकार चार्ली के कारनामें और रोमांस अंत में असफल हो जाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य का रोमांस भी फुस्स हुए गुब्बारे जैसा हो जाता है। जब हमारा जीवन श्रेष्ठतम स्थिति पर पहुँच जाता है तो उस समय कोई व्यक्ति चिढ़ाकर या हमारा अपमान करके भाग जाता है। हमारे जीवन में अकसर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। जब हम सफलता की ऊँचाई पर पहुँच जाते हैं अचानक असफल हो जाते हैं।

शूरवीरता के क्षणों में या हम हीरा बन जाते हैं या भगोड़े बन जाते हैं। अनेक बार ऐसी परिस्थितियाँ भी उत्पन्न हो जाती हैं जब हम मजबूर होते हुए भी विजयी हो जाते हैं। वस्तुतः अपने मूल रूप में हम सब चार्ली हैं। कोई भी सुपरमैन नहीं है। सत्ता प्राप्त करने, शक्तिशाली होने, बुद्धिमान कहलाने अथवा रोमांस और धन की चरम स्थिति में भी जब हम अपने यथार्थ को देखते हैं तब हम स्वयं को चार्ली के रूप में अपनाकर तुच्छ पाते हैं। भाव यह है कि मनुष्य अपने जीवन में चाहे जितनी भी अधिक उन्नति प्राप्त कर ले परंतु उसका मूल रूप तो चार्ली के समान ही है जो उत्कर्ष में भी उदास दिखाई देता है।

विशेष-

  1. यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि मानव चाहे जितना अधिक विकास कर ले मूलतः वह चार्ली के समान कमजोर और तुच्छ प्राणी है।
  2. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है, जिसमें अंग्रेज़ी शब्दों का मिश्रण है।
  3. वाक्य-विन्यास सर्वथा उचित एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) चार्ली के टिली होने का क्या अर्थ है?
(ख) चार्ली किस प्रकार का प्रतीक कहा जा सकता है?
(ग) चार्ली का चरित्र प्रायः किस प्रकार का है?
(घ) चेहरा चार्ली चार्ली हो जाता है? इसका अर्थ स्पष्ट करें।
(ङ) अपने चरित्रों के माध्यम से चार्ली क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
(क) चार्ली के टिली होने का अर्थ है-चार्ली के कारनामों और उसकी उपलब्धियों का प्रतिरूप बनाना। जिस प्रकार चार्ली के कारनामे और रोमांस अंत में असफल हो जाते हैं, उसी प्रकार सामान्य व्यक्ति की सफलता भी असफलता में बदल जाती है।

(ख) चार्ली एक ऐसे असफल व्यक्ति का प्रतीक है जो सफलता पाने के लिए खूब प्रयत्न करता है। कभी उसे सफलता मिलती है तो कभी नहीं मिलती। अंत में वह लालची और तुच्छ बनकर रह जाता है।

(ग) चार्ली का चरित्र प्रायः सफलता के शिखर पर पहुँचकर असफल हो जाता है। शूरवीर के रूप में स्थापित होने के बाद भी वह कायर और भगोड़ा बन जाता है। महानता प्राप्त करने के बाद भी वह तुच्छ बन जाता है और कभी-कभी लाचार होते हुए भी विजय प्राप्त कर लेता है।

(घ) चेहरा चार्ली हो जाने का अर्थ है कि हम सफलता की ऊँचाई पर पहुँचकर भी सामान्य, अदने और छोटे बन जाते हैं। हमारा सारा बड़प्पन, सारी शक्ति टॉय-टॉय फिस्स हो जाती है और हमारी कलई सबके सामने खुल जाती है।

(ङ) चार्ली अपने चरित्रों के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि हमारा बड़प्पन, हमारी शक्ति, हमारी गरिमा आदि मात्र दिखावा हैं। हमारा बाह्य रूप फूले हुए गुब्बारे के समान है जो सुई लगने से फुस्स होकर रह जाता है। हमारा मूल रूप अदना, सामान्य

चार्ली चैप्लिन यानी हम सबSummary in Hindi

चार्ली चैप्लिन यानी हम सब लेखिका-परिचय

प्रश्न-
विष्णु खरे का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा विष्णु खरे का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-विष्णु खरे एक कवि, आलोचक, अनुवादक तथा पत्रकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 9 फरवरी, 1940 को हुआ। युवावस्था में वे महाविद्यालय की पढ़ाई करने इंदौर आ गए। वहाँ से 1963 में क्रिश्चियन कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री ली। कुछ समय के लिए वे इंदौर से प्रकाशित ‘दैनिक इंदौर’ में उप-संपादक भी रहे, फिर बाद में उन्होंने मध्य प्रदेश तथा दिल्ली के महाविद्यालयों में प्राध्यापक के रूप में अध्यापन भी किया। विष्णु खरे ने दुनिया के महत्त्वपूर्ण कवियों की कविताओं के चयन और अनुवाद का विशिष्ट कार्य किया है जिसके जरिए अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में प्रतिष्ठित विशिष्ट कवियों की रचनाओं का स्वर और मर्म भारतीय पाठक समूह तक सुलभ हुआ।

विष्णु खरे नई दिल्ली में केंद्रीय साहित्य अकादमी में उप-सचिव के रूप में काम करते रहे। इसी बीच वे ‘नवभारत टाइम्स’ से भी जुड़े। पहले वे ‘नवभारत टाइम्स’ में प्रभारी कार्यकारी संपादक के रूप में कार्य करते रहे, परंतु बाद में लखनऊ तथा जयपुर से प्रकाशित होने वाले संस्करणों के संपादक रहे। यही नहीं, वे ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में भी वरिष्ठ सहायक संपादक रहे। जवाहरलाल नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय में भी वे दो वर्ष तक वरिष्ठ अध्यक्ष के रूप में काम करते रहे।

2. प्रमुख रचनाएँ ‘एक गैर रूमानी समय’, ‘खुद अपनी आँख’, ‘सबकी आवाज के पर्दे में’, ‘पिछला बाकी’ (कविता-संग्रह); ‘आलोचना की पहली किताब’ (आलोचना); ‘सिनेमा पढ़ने के तरीके’ (सिने आलोचना); ‘मरु प्रदेश और अन्य कविताएँ व (टी. एस. इलियट)’, ‘यह चाकू समय’ (ॲतिला योझेफ), ‘कालेवाला’ (फिनलैंड का राष्ट्रकाव्य) (अनुवाद)।

3. प्रमुख पुरस्कार-विष्णु खरे को हिंदी साहित्य की सेवा के कारण अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए। सर्वप्रथम उन्हें रघुवीर सहाय सम्मान मिला। बाद में वे हिंदी अकादमी का सम्मान, शिखर सम्मान तथा मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से भी सुशोभित हुए। उन्हें फिनलैंड का राष्ट्रीय सम्मान-‘नाइट ऑफ दि ऑर्डर ऑफ दि व्हाइट रोज़’ भी प्राप्त हुआ।

4. साहित्यिक विशेषताएँ यद्यपि विष्णु खरे एक समीक्षक तथा पत्रकार के रूप में अधिक प्रसिद्ध हुए हैं, लेकिन उन्होंने कवि के रूप में सफलता अर्जित की। गद्य-लेखन में वे आधुनिक युग के एक सफल साहित्यकार कहे जा सकते हैं। एक फिल्म समीक्षक के रूप में उन्हें विशेष ख्याति प्राप्त हुई। यही कारण है कि ‘दिनमान’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘दि पायोनियर’, ‘दि हिंदुस्तान’, ‘जनसत्ता’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘हंस’, ‘कथादेश’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में उनके सिनेमा विषयक अनेक लेख प्रकाशित होते रहे हैं। वे उन विशेषज्ञों में से हैं जिन्होंने फिल्म को समाज, समय और विचारधारा के आलोक में देखा और इतिहास, संगीत, अभिनय, निर्देशन की बारीकियों के सिलसिले में उसका विश्लेषण किया। अपने लेखन द्वारा उन्होंने हिंदी के उस अभाव को पूरा करने में सफलता प्राप्त की है जिसके बारे में वे अपनी एक किताब की भूमिका में लिखते हैं-“यह ठीक है कि अब भारत में भी सिनेमा के महत्त्व और शास्त्रीयता को पहचान लिया गया है और उसके सिद्धांतकार भी उभर आए हैं लेकिन दुर्भाग्यवश जितना गंभीर काम हमारे सिनेमा पर यूरोप और अमेरिका में हो रहा है शायद उसका शतांश भी हमारे यहाँ नहीं है। हिंदी में सिनेमा के सिद्धांतों पर शायद ही कोई अच्छी मूल पुस्तक हो। हमारा लगभग पूरा समाज अभी भी सिनेमा जाने या देखने को एक हलके अपराध की तरह देखता है।” अपनी आलोचनाओं तथा लेखों में भी लेखक ने बेबाक अपने मौलिक विचार व्यक्त किए हैं।

चार्ली चैप्लिन यानी हम सब पाठ का सार

प्रश्न-
विष्णु खरे द्वारा रचित पाठ “चार्ली चैप्लिन यानी हम सब” का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ सुप्रसिद्ध हास्य फिल्मों के महान अभिनेता और निर्देशक चार्ली चैप्लिन से संबंधित है। प्रायः यह कहा जाता है कि करुणा और हास्य में विरोध होता है। करुणा में हँसी नहीं आती, परंतु चार्ली की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे करुणा में भी हास्य का मिश्रण कर देते थे। यह पाठ उनकी इसी कला का वर्णन करता है।

लेखक लिखता है कि चार्ली की जन्मशती मनाई गई। उनकी पहली फिल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ को बने हुए पचहत्तर साल पूरे हो चुके हैं। विकासशील राष्ट्रों के लोग टेलीविजन तथा वीडियो द्वारा उनकी फिल्मों को देखते हैं। उनकी फिल्मों की कुछ ऐस भी मिली हैं, जिनका कभी कोई प्रयोग नहीं किया गया था। अतः लेखक का यह विचार है कि आने वाले पचास वर्षों तक उनके काम का मूल्यांकन होता रहेगा। चार्ली की लगभग सभी फिल्में भावनाओं पर आधारित हैं न कि बुद्धि पर। दर्शकों की चार्ली की फिल्में भावनाओं को एक अलग प्रकार का अहसास कराती हैं। ‘मेट्रोपोलिस’, ‘दी कैबिनट ऑफ डॉक्टर कैलिगारी’, ‘द रोवंथ सील’, ‘लास्ट इयर इन मारिएनबाड’, ‘द सैक्रिफाइस’ आदि कुछ इसी प्रकार की फिल्में हैं। चार्ली की फिल्मों का जादू पागलखाने के मरीज़ों, विकल मस्तिष्क वाले लोगों तथा आइन्स्टाइन जैसे महान प्रतिभाशाली लोगों पर भी देखा जा सकता है। वस्तुतः चार्ली ने फिल्म कला के सिद्धांतों को तोड़ते हुए वर्ग-व्यवस्था और वर्ण-व्यवस्था को नष्ट किया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि कमियाँ सभी के जीवन में होती हैं।

चार्ली की माँ एक परित्यकता नारी थी। वह एक सामान्य अभिनेत्री थी, परंतु बाद में वह पागल हो गई। घर में गरीबी होने के कारण आरंभ में चार्ली को अमीरों, सामंतों तथा उद्योगपतियों से अपमानित होना पड़ा। बाद में करोड़पति बन जाने पर भी चार्ली ने अपने जीवन-मूल्य में कोई बदलाव नहीं किया। उसकी नानी खानाबदोश थी और पिता एक यहूदी थे। इन विपरीत परिस्थितियों ने चार्ली को एक ‘बाहरी’ व ‘घुमंतू’ चरित्र का बना दिया। इसलिए चार्ली ने अपनी फिल्मों में बद्द, खानाबदोश तथा अवारागर्द की छवि प्रस्तुत की। वह कभी भी न तो मध्यवर्गी व्यक्ति के जीवन-मूल्य को अपना सका और न ही बुर्जुआ या उच्चवर्गी व्यक्ति के जीवन मूल्यों को। फिल्म समीक्षक आज भी यह समझते हैं कि चार्ली का आकलन करना कोई सहज कार्य नहीं है। क्योंकि उनकी कला सिद्धांतों पर टिकी हुई नहीं है, बल्कि उनकी कला सिद्धांतों का निर्माण करती है। जब चार्ली देश-काल की सीमाओं को पार कर जाता है तब वह सभी को अपने जैसा समझने लगता है। दर्शकों को लगता है, कि उसका किरदार उन जैसा ही है।

चार्ली ने बुद्धि की अपेक्षा भावनाओं को अधिक महत्त्व दिया। एक बार चार्ली बहुत बीमार पड़ गया। इस अवसर पर उसकी माँ ने बाइबिल से ईसा मसीह का जीवन पढ़कर सुनाया। ईसा के सूली चढ़ने के प्रसंग पर माँ-बेटा दोनों ही रोने लगे, परंतु इस प्रसंग से चार्ली ने स्नेह, करुणा तथा मानवता को समझा। एक अन्य घटना ने भी चार्ली पर प्रभाव डाला। उसके घर के पास ही एक कसाईखाना था, जिसमें वध के लिए सैकड़ों पशु हर रोज़ लाए जाते थे। एक बार वहाँ से एक भेड़ किसी प्रकार से अपनी जान बचाकर भाग निकली। मालिक उसके पीछे भागा, परंतु सड़क पर फिसलकर गिर पड़ा। दर्शक उसे देखकर हँसने लगे। अंततः वह भेड़ पकड़ी गई। चार्ली को पता था कि भेड़ के साथ क्या होगा। इससे उसके हृदय में करुणा का भाव उत्पन्न हो गया। यहीं से चार्ली ने “हास्य के बाद करुणा” इस मनोभाव को अपनी आने वाली फिल्मों का आधार बनाया।

भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र भी रस से संबंधित हैं, परंतु हमारे यहाँ करुणा, हास्य में नहीं बदलती। जीवन में जब भी हर्ष और विषाद के अवसर आते हैं तो हास्य और करुणा के भाव आते-जाते रहते हैं, परंतु दोनों में कोई समीपता नहीं होती। हास्य की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब हम दूसरों को देखकर हँसते हैं, इसलिए हास्य आलंबन हम स्वयं न होकर दूसरा होता है। यद्यपि संस्कृत नाटकों में विदूषक अपने कारण दूसरों को हँसाता रहता है, परंतु करुणा और हास्य का मिलन वहाँ भी नहीं होता।

दर्शक को यह पता ही नहीं चल पाता कि चार्ली कब करुणा का रूप धारण कर लेगा, कब करुणा-हास्य का। भारतीय साहित्यशास्त्र ने भी चार्ली के इस प्रयोग को स्वीकार कर लिया है, जिससे कला की सार्वजनिकता सिद्ध हो जाती है। चार्ली के इसी सौंदर्यशास्त्र से प्रभावित होकर राजकपूर ने ‘आवारा’ फिल्म का निर्माण किया। यह न केवल चार्ली का भारतीयकरण था, बल्कि ‘दि ट्रैम्प’ का शब्दानुवाद भी था। इस फिल्म के बनने के बाद उस परंपरा ने जन्म लिया जिस पर नायक स्वयं पर हँसते हैं। इसके बाद तो दिलीप कुमार ने ‘बाबुल’, ‘शबनम’, ‘कोहिनूर’, ‘लीडर’ तथा ‘गोपी’ जैसी फिल्में भारतीय फिल्म जगत को दी। देवानंद ने ‘नौ दो ग्यारह’, ‘फंटूश’, ‘तीन देवियाँ’ फिल्मों में भाग लिया। इसी प्रकार शम्मी कपूर, अभिताभ बच्चन तथा श्रीदेवी जैसे कलाकार चार्ली चैप्लिन जैसी भूमिकाएँ करते देखे गए हैं। आज भी जब हमें कभी किसी नायक का फिल्मों में किसी झाड़ से पीटने का दृश्य देखने को मिलता है तो हम चार्ली को याद कर उठते हैं।

चार्ली की फिल्मों की अनेक विशेषताएँ हैं। पहली बात वे अपनी फिल्मों में भाषा का बहुत कम प्रयोग करते हैं। उनकी फिल्मों में मानवीय रूप अधिक उभरकर आता है। उनमें ऐसी सार्वभौमिकता है जिसके कारण उनकी फिल्मों को सभी देशों के लोग पसंद करते हैं। वे अपनी फिल्मों में चिर-युवा दिखाई देते हैं। किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति के लिए चार्ली विदेशी नहीं हैं। चार्ली में सब कुछ बनने की अद्भुत क्षमता है। चार्ली में सब लोग अपना-अपना रूप देखते हैं।

एक होली के पर्व की हम चर्चा न करें तो हमारे देश में स्वयं पर हँसने की परंपरा नहीं है और न ही कोई स्वयं को हास्यास्पद बनाता है। नगर के लोग तो अपने-आप पर हँसने की बात सोच भी नहीं सकते परंतु चार्ली सर्वाधिक स्वयं पर हँसता है। यही कारण है कि भारत में चार्ली का अत्यधिक महत्त्व है। वह बड़े-से-बड़े व्यक्ति पर हमें हँसने का मौका देता है। ऊँचे स्तर पर जाकर भी वह हास्य का पात्र बनने की क्षमता रखता है। उसका रोमांस अकसर असफल हो जाता है। महानतम क्षणों में भी वह अपमानित होने का अभिनय कर सकता है। शूरवीर क्षणों में वह कलैब्य और पलायन की स्थिति उत्पन्न कर देता है। उसके जो पात्र लाचार होते हैं वही अकसर विजय प्राप्त कर लेते हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के कारण भारत में चार्ली का विशेष महत्त्व है। लोग उसे खूब पसंद करते हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ 

जन्मशती = जन्म की शताब्दी व जन्म का सौवाँ साल। मुग्ध = प्रसन्न। दुनिया = विश्व। इस्तेमाल = प्रयोग। अहसास = अनुभूति। विकल = बिगड़ा हुआ। रसास्वादन = आनंद लेना, रस लेना। परित्यक्ता = जिसे छोड़ दिया गया हो। मगरूर = अहंकारी। दुरदराया जाना = तिरस्कृत करना, दुत्कारा जाना। खानाबदोश = घुमक्कड़, घुमंतू। सुदूर = बहुत दूर। नेति-नेति = ना, ना। समीक्षा = कथन। सुपरिचित= जाना-पहचाना। बेहतर = अच्छा। उकसाना = प्रेरित करना। कसाईखाना = जहाँ जानवरों को काटा जाता है। ठहाका लगाना = जोर-जोर से हँसना। अहसास = अनुभव। त्रासदी = मार्मिक। सामंजस्य = तालमेल। श्रेयस्कर = सर्वश्रेष्ठ। विषाद = दुख। अधिकांशतः = अधिकतर। परसंताप = दूसरों का दुख। सद्व्यक्ति = अच्छा व्यक्ति। विदूषक = हँसी मजाक करने वाला। पारंपरिक = प्राचीन। स्वीकारोक्ति = स्वीकार करने वाली उक्ति। क्लाउन = प्रतिरूप। सान्निध्य = समीपता नितांत = आवश्यक। आरोप = दोष। परंपरा = रिवाज़। कॉमेडियन = हँसाने वाला। अंडगा = व्यवधान। सतत = लगातार। हास्य-प्रतिभा = हँसाने का गुण। हास्यास्पद = हँसी से भरी। अवसर = मौका। गर्वोन्मत्त = गर्व से भरा हुआ। लबरेज़ = लिपटा हुआ। समृद्धि = खुशहाली। गरिमा = महानता। सवाक् = बोलने वाली। क्षण = पल । लाचार = मजबूर। चार्ली-चार्ली = वास्तविकता का प्रकट होना।

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