HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Sandhi सन्धिः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

व्याकरणम् सन्धिः HBSE 9th Class Sanskrit

आपके द्वारा पढ़ा गया है कि वर्णों के योग से शब्द बनते हैं।
यथा-व् + अ + र् + ष् + आ = वर्षा
व् + इ + द् + व् + आ + न् = विद्वान्
इसी प्रकार निम्नलिखित वर्णों को जोड़कर शब्द-निर्माण किया गया है
(i) व् + इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ = विद्यालय
(ii) ग् + र् + आ + म् + अ + म् = ग्रामम्
(iii) अ + ग् + अ + च् + छ् + अ + त् + अ = अगच्छत
(iv) ज् + इ + ज् + ञ् + आ + स् + आ = जिज्ञासा
(v) क् + ष् + अ + त् + र् + इ + य् + अ = क्षत्रिय

उपरिलिखित शब्दों में स्वर किस रूप में बदले गए हैं ? निश्चय ही मात्रा के रूप में व्यञ्जनों के साथ संयुक्त हैं। यह वर्ण संयोग होता है। इसी प्रकार निम्नलिखित पदों में वर्ण संयोग है।
यथा- ग्रामम् + अगच्छत् = ग्राममगच्छत्
(i) संस्कृतम् + अधीते = संस्कृतमधीते
(iii) विद्यालयम् + आगतः = विद्यालयमागतः
(v) धनार्थम् + अगच्छत् = धनार्थमगच्छत्
धनम् + आनयति = धनमानयति
(ii) ग्रन्थम् + अधीतवान् = ग्रन्थमधीतवान्
(iv) पठितुम् + इच्छति = पठितुमिच्छति

ये शब्द वर्ण संयोग से जोड़े गए हैं। अब निम्नलिखित दो पदों को देखें
(i) हिम + आलयः
(ii) विद्या + आलयः।
यहाँ हिम शब्द में अन्तिम वर्ण अ है।
इसी प्रकार विद्या शब्द में अन्तिम वर्ण आ है।
इसे वर्ण विश्लेषण करके देखते हैं
(i) हिम = ह् + इ + म् + अ = अन्तिमवर्ण = अ
(ii) विद्या = व् + इ + द् + य् + आ = अन्तिमवर्ण = आ

आलय शब्द में पूर्व वर्ण आ है।
आलय = आ + ल् + अ + य् + अ = पूर्ववर्ण = आ
अब दोनों पदों को जोड़ते हैं।
(i) हिम् + HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-1 + लयः = हिम् + आ + लयः = हिमालयः।
(ii) विद्य् + HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-1.1 + लयः = विठ् + आ + लयः = विद्यालयः।
अत्र अ + आ = आ, आ + आ = आ

उपरोक्त उदाहरण में अति निकट आने वाले जिन दो वर्गों के जुड़ने से जो विकार उत्पन्न हुआ है, उसे सन्धि कहते हैं। ‘सन्धि’ शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘जोड़’ या ‘मेल’ है। यह जोड़ या मेल दो वर्णों का होता है, जो क्रमशः पूर्ववर्ती व परवर्ती होते हैं । दोनों वर्ण आपस में जुड़कर एक नए वर्ण के रूप में परिवर्तित या विकृत हो जाते हैं; जैसे ‘देव + इन्द्र’ यहाँ पर देव के वकार का अकार तथा इन्द्र का इकार आपस में जुड़कर ‘ए’ के रूप में परिवर्तित हो गए हैं। इस कारण यहाँ देवेन्द्र’ शब्द बना है। संस्कृत व्याकरण में इसी प्रक्रिया को सन्धि के रूप में जाना जाता है।

HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

सन्धि की परिभाषा (लक्षण)-
“व्यवधान रहित दो वर्गों के मेल से जो विकार होता है, उसे सन्धि कहते हैं।”
सन्धि के मुख्य तीन भेद हैं
(क) स्वर सन्धि,
(ख) व्यञ्जन सन्धि तथा
(ग) विसर्ग सन्धि ।

(i) स्वर सन्धि
अत्यन्त समीपवर्ती दो स्वरों के आपस में मिलने पर जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं। इस सन्धि के पाँच भेद हैं-दीर्घ सन्धि, गुण सन्धि, वृद्धि सन्धि, यण् सन्धि, अयादि सन्धि।

(क) दीर्घ सन्धि:
जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ, आ, इ, उ आ जाएँ तो उन दोनों के मेल से वह स्वर दीर्घ (आ, ई, ऊ, ऋ) हो जाता है। इसे दीर्घ सन्धि कहते हैं।
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-2
उपर्युक्त तालिका को देखकर निम्नलिखित पदों में सन्धि करें
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-3
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-4
इसलिए जहाँ स्वरों के योग से दीर्घ स्वर होता है, वहाँ दीर्घ सन्धि होती है।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ख) गुण सन्धि:
यदि ह्रस्व या दीर्घ अ के बाद ह्रस्व या दीर्घ इ, ई, उ, ऊ, ऋ में से कोई स्वर हो तो अ + इ मिलकर ‘ए’, अ + उ मिलकर ‘ओ’ तथा अ + ऋमिलकर ‘अर्’ हो जाता है। इसे गुण सन्धि कहते हैं।
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-5
अ, ए, ओ ये गुण स्वर भी कहलाते हैं।
जहाँ सन्धि स्वर गुण होता है, वहाँ गुण सन्धि होती है।
उपर्युक्त तालिका को देखकर निम्नलिखित में सन्धि करें
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-6
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-7
मिश्रितप्रश्न
1. निम्नलिखित में सन्धि करके सन्धि का नाम लिखें
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-8
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-9

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ग) वृद्धि सन्धि:
यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘अ’ या ‘आ’ से परे ए’ या ‘ऐ’ हो तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ हो जाते हैं। यदि अ या आ के बाद ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो दोनों मिलकर ‘औ’ हो जाते हैं। यह वृद्धि सन्धि है।
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-10
उपर्युक्त नियमानुसार निम्नलिखित में सन्धि करें
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-11
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-12

मिश्रितप्रश्न
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-13

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(घ) यणू सन्धि-
यदि ह्रस्व अथवा दीर्घ इ, उ, ऋ, लृ, से परे कोई अन्य ( विजातीय) स्वर हो तो इ, उ, ऋ, लृ के स्थान पर क्रमशः य् व् र् ल् (यण्) हो जाता है, उसे यण् सन्धि कहते हैं।
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-14
निम्नलिखित दोनों पदों का विश्लेषण करें-
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-15
यहाँ ‘इ’ वर्ण से परे ‘ए’ स्वर है।
यहाँ ‘इ’ के स्थान पर ‘य’ वर्ण हो गया।
इसी प्रकार ‘उ’ के स्थान पर ‘व’ तथा ऋ के स्थान पर ‘र’ होता है, क्योंकि यु, व्, रू वर्ण यण् कहलाते हैं। अतः यणु सन्धि है; जैसे-
सु + आगतम् + स् + व् + आगतम् = स्वागतम्
पितृ + आदेशः + पि + त् + र् + आदेशः = पित्रादेशः
इसी प्रकार निम्नलिखित पदों में सन्धि करें-
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-16.1
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-16

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ङ) अयादि सन्धि
यदि ए, ऐ, ओ, औ स्वरों से परे कोई अन्य स्वर हो तो क्रमशः ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’, ‘ऐ’ के स्थान पर ‘अव्’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ आदेश हो जाते हैं।

पूर्वपद का अन्तिम भिन्न स्वर उत्तर पद का पूर्व स्वर सन्धि स्वर
ए/अ + ए

ऐ/अ + ऐ

ओ/अ + ओ

औ/अ + औ

ए + अ = अय

ऐ + अ = आय

औ + अ = अव

औ + अ = आव

आय्

आय्

अव्

अव्

उपर्युक्त तालिका देखकर निम्नलिखित पदों में सन्धि करें-
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-17
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-18
अयु, आय्, अव्, आव् ये परिवर्तन अयादि सन्धि के कारण हैं।

मिश्रितप्रश्न
1. निम्नलिखित रेखांकित पदों तथा सन्धियुक्ति पदों में सन्धिच्छेद करें-
(i) न यस्यादिःयस्यान्तः, यः मध्ये तस्य तिष्ठति।
तवाप्यस्ति, ममाप्यस्ति, यदि जानासि, तद् वद ॥
(ii) पीतं हयनेनापि पयः शिशुन्वे, कालेन भूयः परिसृप्तमुर्व्याम्।
क्रमेण भूत्वा च युवा वपुष्मान् क्रमेण तेनैव जरामुपेतः
(iii) परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम्।
(iv) सुखं हि दु:खान्यनुभूय शोभते।
उत्तर
(i) यस्य + आदिः, यस्य + अन्तः
तव + अपि + अस्ति, मम + अपि + अस्ति
(ii) हि + अनेन + अपि
तेन + एव, जराम् + उपेतः
(iii) पर + उपदेशे
(iv) दुःखानि + अनुभूय

II. निम्नलिखित पद जहाँ संयोग से जुड़े हुए हैं, उसके समक्ष कोष्ठक में (√) चिह्न अंकित करें अन्यथा (x) यथा-
(i) एकेनापि (x) (vi) तर्तुमेव (√)
(ii) भास्करेणैव (x) (vii) सकलमवधीत् (√)
(iii) सर्वेषामपि (√) (viii) तथोच्चैः (x)
(iv) नैवास्ति (x) (ix) विपरीतमेतत् ((√))
(v) योगिनामपि (√) (x) लिम्पतीव (x)

III. शुद्ध सन्धि पद को (√) चिहन से अंकित करें
(i) पितृ + इच्छा = पित्रेच्छा / पित्रिच्छा (√)
(ii) महा + ऋषिः = महर्षिः (√) / महार्षिः
(iii) देव + इन्द्रः = देविन्द्रः / देवेन्द्रः (√)
(iv) पर + उपकारः = परोपकारः (√) / परूपकारः
(v) कवि + ईश्वरः = कवेश्वरः / कवीश्वरः ((√)
(vi) अपि + एवम् = अप्येवम् (√) / अप्यैवम्
(vii). मधु + अत्र = मधूत्र / मध्वत्र (√)
निष्कर्ष

पूर्ववर्ण पेरवर्ण विकार उदाहरण सन्धिनाम
सन्धिच्छेद सन्धि
अ / आ

अ / आ

अ / आ

अ / आ

अ / आ

अ / आ

अ / आ

अ / आ

इ / ई

इ / ई

उ / ऊ

उ / ऊ

अ / आ

इ / ई

उ / ऊ

ॠ / ॠ

इ/ई

भिन्नस्वरः

उ/ऊ

भिन्नस्वरः

भिन्नस्वरः

दोनों के स्थान में ‘आ’

दोनों के स्थान में ‘ए’

दोनों के स्थान में ‘ओ’

दोनों के स्थान में ‘अर्’

दोनों के स्थान में ‘ऐ’

दोनों के स्थान में ‘ऐ’

दोनों के स्थान में ‘औ’

दोनों के स्थान में ‘औ’

दोनों के स्थान में ‘ई’

‘इ’ के स्थान में ‘य्’

दोनों के स्थान में ‘ऊ’

उकारस्थान में ‘व्’

दोनों के स्थान में ‘ऋ’

ऋ स्थान में ‘र्’

जल + आगमः

गज + इन्द्र:

चन्द्र + उदयः

महा + ऋषिः

जन + एकता

महा + ऐश्वर्यम्

तव + ओदनम्

महा + औदार्यम्

कवि + इन्द्र:

यदि + अपि

भानु + उदयः

लघु + इदम्

मातृ + ऋणम्

मातृ + आदेशः

जलागमः

गजेन्द्र:

चन्द्रोदयः

महर्षि:

जनैकता

महैश्वर्यम्

तवौदनम्

महौदार्यम्

कवीन्द्रः

यद्यपि

भानूदयः

लघ्विदम्

मातृणम्

मात्रादेशः

दीर्घः

गुणः

गुणः

गुणः

वृद्धिः

वृद्धिः

वृद्धिः

वृद्धिः

दीर्घः

यण्

दीर्घः

यण्

दीर्घः

यण्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ii) व्यञ्जन सन्धि:
पूर्व पद के अन्त में यदि व्यञ्जन हो तथा उत्तर पद का प्रथम वर्ण स्वर या व्यञ्जन होता है, तब उन दोनों के मेल से जो विकार होता है, वह व्यञ्जन सन्धि होती है।

(क) ‘म्’ व्यञ्जन निश्चय ही व्यञ्जन से पूर्व हो तो अनुस्वार में बदल जाता है और यदि स्वर से पूर्व हो तो अनुस्वार में नहीं बदलता।
1. निम्नलिखित पदों में सन्धियुक्त पदों को रेखांकित किया गया है
(i) परोक्षे कार्यहन्तारं, प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्
(ii) सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः
(iii) आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव

2. उदाहरण देखकर निम्नलिखित अनुच्छेद में अपेक्षित सन्धि करके पुनः लिखोएकदा सिंहदम्पती भोजनम् न प्राप्तवन्तौ। तौ एकम् शृगालशिशुम् अपश्यताम् । सिंहः तम् मारयितुम् ऐच्छत्, परन्तु सिंही अवदत् मा मैवम् । एतम् न मारय। अयम् मम तृतीयः पुत्रः भविष्यति।
उत्तर:
एकदा सिंहदम्पती भोजनं न प्राप्तवन्तौ। तौ एकं शृगालशिशुम् अपश्यताम् । सिंहः तं मारयितुम् ऐच्छत्, परन्तु सिंही अवदत् मा मैवम् । एतम् न मारय। अयं मम तृतीयः पुत्रः भविष्यति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ख) णत्वविधानम् (ऋ/ऋ/र्/ष्……न् → ण)
निम्नलिखित वाक्यों को पढ़ो
(i) देशरक्षा नराणां प्रथमं कर्त्तव्यम्।
(ii) वाटिकायां लतानां शोभा दर्शनीया।
उपर्युक्त वाक्यों में रेखांकित पदों में क्या विभक्ति है और कौन-सा वचन है ?
नराणाम् , विभक्ति-षष्ठी , वचन-बहुवचन
लतानाम् , विभक्ति-षष्ठी , वचन-बहुवचन
हम देखते हैं कि दोनों ही पदों में षष्ठी विभक्ति तथा बहुवचन है, तो उनमें क्या अन्तर है ? नराणाम् पद में ‘णाम्’ जुड़ा हुआ है तथा लतानाम् पद में ‘नाम्’ जुड़ा हुआ है। यह अन्तर किसलिए है ?
इसे पद विश्लेषण करके देखते हैं
नराणाम् = न् + अ + र् + आ + ण् + आ + म्।
लतानाम् = ल् + अ + त् + आ + न् + आ + म्।
इन दोनों पदों में किस पद में ‘नाम्’ प्रत्यय से पूर्व ‘र’ वर्ण है ? नराणाम् अथवा लतानाम् के बीच में ? निश्चय ही ‘नराणाम्’ के बीच में। इसलिए हम देखते हैं कि ‘र’ वर्ण से परे यदि समान पद में ‘न’ वर्ण है, तो उसके स्थान पर ‘ण’ होता है। इसी प्रकार ऋ/र्/ष् वर्गों से परे भी ‘न्’ वर्ण ‘ण’ वर्ण में बदल जाता है।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ख-1) निम्नलिखित पदों में ऋ/र्/ष् के बीच में किस कारण से न के स्थान पर ण हुआ है कोष्ठक में लिखो
उत्तर:
यथा

भ्रातृणाम् वृषेण
पुरुषेण (ऋ)
भीषणः (ष्)
वर्णनम् (ष्)
किरणा: (र्)
स्वस्णाम् (र्)
आकर्षणम् (ऋ)
श्रवणम् (ष्)
रामेण (र्)
शूर्पणखा (र्)
कर्ण: (र्)
पोषणम् (र्)
परिणामः (ष्)
वारिणि (र्)
अरिणा (र्)
कृष्णः (र्)
ऋणम् (ष्)

हमने जाना कि ऋ/र्/ष् वर्णों के कारण ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ होता है, अब निम्नलिखित वाक्य पढ़िएरामान्, पितृन्, त्रीन, वृषान्, हरीन, ऋषीन्
इन पदों में ‘न’ वर्ण पद के किस स्थान पर प्रयुक्त हुआ है ? आदि/मध्य/अन्त में
यथा-
रामान् = र् + आ + म् + आ + न् . (अन्ते)
पितॄन् = प् + इ + त् + ऋ + न् (अन्ते)
त्रीन् = त् + र + ई + न् (अन्ते)
वृषान् = व् + ऋ + ष् + आ + न् (अन्ते)
हरीन् = ह् + अ + र् + ई + न (अन्ते)
ऋषीन् = ऋ + ष् + ई + न् (अन्ते)
हम देखते हैं कि यहाँ ‘न’ वर्ण सभी जगहों पर पद के अन्त में प्रयुक्त हुआ है।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ख-2) पदान्त में ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ नहीं होता
(रिक्त स्थानों की पूर्ति न् या ण वर्ण से करें)
यथा-
परि णा मः
(i) भाष ………………. म्
(ii) रामचन्द्रे ……………….
(iii) पितृ ……………….
(iv) कारका ……………….
(v) महारा ………………..
(vi) सन्तोषे ………………..
(vii) विश्वस ………………..ीयम्
(viii) समुद्रे ………………..
(ix) गृहाई ………………..
(x) द्रव्या ……………….. एम्
उत्तराणि:
(i)भाष ण म्
(ii) रामचन्द्रे ण
(iii) पितृ न्
(iv) कारका न्
(v) महाराणा
(vi) सन्तोषे ण रामचन्द्रे ण
(vii) विश्वसनीयम्
(viii) समुद्रे ण
(ix) गृहाणि
(x) द्रव्याणम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ख-3) जहाँ ऋ, ऋ, र्, ष, तु है, परन्तु पदान्त के कारण ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ नहीं हुआ उसे कोष्ठक में (√) चिह्न से
अंकित करें।
देवान् (x)
(i) हरीन् (√)
(ii) गच्छन् (x)
(iii) रक्षन् (√)
(iv) साधून् (x)
(v) वर्धमानः (√)
दातॄन् (√)
(vi) स्पृशन् (√)
(vii) आरोहन् (√)
(viii) आरूढान् (√)
(ix) पालयन् (x)
(x) महर्षीन् (√)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ख-4) ब्यवधानम्
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-19
निम्नलिखित स्तम्भों के पदों में क्या अन्तर है ?

‘क’ स्तम्भः ‘ख’ स्तम्भः रचना
रचना रामायणम्
रत्नेन रूप्यकाणि
प्रवासेन रोगेण
प्रपख्चेन क्रमेण
रटन्तम् प्रयाणम्

हम देखते हैं कि ‘क’ स्तम्भ के पदों में न के स्थान पर ण नहीं हुआ है, जबकि वहाँ पर ‘र’ वर्ण है, परन्तु ‘ख’ स्तम्भ के सभी पदों में ‘न्’ के स्थान पर ‘ण’ हुआ है। वहाँ क्या कारण है ? सम्भवतः कुछ वर्ण ऐसे होते हैं, जिस कारण न वर्ण ण् वर्ण में नहीं बदलता।
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-20
निम्नलिखित पदों में र् तथा न के बीच में आए हुए वर्गों को कोष्ठकों में करें
पदम् – व्यवधानम्
यथा
रचना – र् + (अ + च् + अ) + न् + आ
रत्नेन – र् + (अ + त् + न् + ए) + न् + अ
प्रवासेन – प् + र् + (अ + व् + आ + स् + ए) + न् + अ
प्रपञ्चेन – प् + र् + (अ + प् + अ + ञ् + च् + ए) + न् + अ
रटन्तम् – र् + (अ + टू + अ) + न् + त् + अ + म्
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-21
र् तथा न् के बीच में आए हुए वर्णों को कोष्ठकों में करें
यथा-
रामायणम् – र् + (आ + म् + आ + य् + अ) + न् + अ + म्
रूप्यकाणि – र् + (ऊ + प् + य् + अ + क् + आ) + न् + इ
रोगेण – र् (ओ + ग् + ए) + न् + अ
क्रमेण – क् + र् + (अ + म् + ए) + न् + अ
प्रयाणम् – प् + र् + (आ + य् + अ) + न + त् + अ + म्
क्या निम्नलिखित वर्ण ‘क’ स्तम्भ के पदों में र् तथा न के बीच में हैं।
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-22
इस तालिका से हम देखते हैं कि निम्नलिखित वर्ण न् → ण बदलने में बाधक हैं
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-23

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ख-5) निम्नलिखित पदों में बाधक वर्गों को कोष्ठक में लिखोपद

पद बधिक वर्ण
प्रधान ध् (तवर्गीयः)
(i) ईदृशेन श् (ऊष्म)
(ii) रक्तेन त् (तवर्गीय)
(iii) प्रलापेन ल् (अन्तः:स्थ)
(iv) मारीचेन च् (चवर्गीय)
(v) दर्शनानि श् (ऊष्म)
(vi) परिवर्तनम् त् (तवर्गीय)
(vii) मूर्तीनाम् त् (तवर्गीय)
(viii) गृहस्थेन स्, थ् (ऊष्म, तवर्गीय)
(ix) प्रतिमानाम् त् (तवर्गीय)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ग) हस्वस्वरः + र् + र् = दीर्घस्वरः + र्
निम्नलिखित सन्धिविच्छेद को देखो
नीरोगः = निर् + रोगः
= नीरुजः
नीरुजः = निर् + रुजः
= नीरुजः
पुनारमते = पुनरू + रमते
= पुनारमते
इनमें पूर्व ह्रस्व स्वर दीर्घ हो गया तथा प्रथम ‘रकार’ लुप्त हो गया।

(ग-1) सन्धि करेंय
था अन्तर् + राष्ट्रियः = अन्तराराष्ट्रियः
(i) नीरवः + गुरुर् = रक्षकः
(ii) गुरूर + रक्षकः = अन्तर्
(iii) अन्तरा + राज्यम् = अन्तराराज्यम्
(iv) निर् + रसः = नीरसः
(v) निर् + रजः = नीरजः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(घ) वर्ग के प्रथम अक्षरों का तृतीय अक्षर में परिवर्तन
वर्गों के पाँच वर्ग लिखिए
उत्तर-

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
पद अन्तिमवर्ण पूर्ववर्ण पद
(i) वाक् (कू) (अ) अर्थः
(ii) जगत् (त्) (ई) ईशः
(iii) अच् (चू) (अ) अन्तः
(iv) षट् (ट) (आ) आननः
(v) सुप् (प) (अ) अन्तः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(घ-1) ‘क’ स्तम्भ के पदों की ‘ख’ स्तम्भ के पदों के साथ सन्धि करें
(क) – (ख)
यथा-
(i) वाक् + अर्थः = वागर्थः (स्वर से पूर्व क्-ग)
(ii) जगत् + ईश = जगदीश (स्वर से पूर्व त्-द्)
(iii) अच् + अन्तः = अजन्तः (स्वर से पूर्व च्–ज्)
(iv) षट् + आननः = षडाननः (स्वर से पूर्व ट्-ड्)
(v) सुप् + अन्तः . = सुबन्तः (स्वर से पूर्व प्–ब्)
अतः स्वर से पूर्व वर्गों के प्रथम वर्ण तृतीय वर्गों में परिवर्तित होते हैं।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(घ-2) ‘क’ स्तम्भ में निम्नलिखित पदों के अन्तिम वर्ण और ‘ख’ स्तम्भ में पदों के पूर्व वर्ण लिखिए
उत्तर:
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-24
‘क’ स्तम्भ में जो अन्तिम वर्ण हैं, वे वर्ग के कौन-से वर्ण हैं ?
उत्तर:
यथा-

क् कवर्गस्य प्रथमः
त् तवर्गस्य प्रथमः
प् पवर्गस्य प्रथमः
ट् टवर्गस्य प्रथमः

‘ख’ स्तम्भ में परपद के प्रथम वर्ण वर्ग के कौन-से वर्ण हैं ? ।
उत्तर:

द् तृतीयः
ग् तृतीय:
ब् तृतीय:
ज् तृतीयः
ध् चतुर्थः
द् तृतीयः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

‘ग’ स्तम्भ में सन्धि युक्त पदों में प्रथम वर्ग किस वर्ण में बदले हैं ?
उत्तर:
यथा-
(i) वाक् + दानम् = वाग्दानम् क – ग् (तृतीय वर्ण से पूर्व)
(ii) दिक् + गजः = दिग्गजः क – ग (तृतीय वर्ण से पूर्व)
(iii) जगत् + बन्धुः = . जगबन्धुः त् – द् (तृतीय वर्ण से पूर्व)
(iv) अप् + जः = अब्जः प् – ब् (तृतीय वर्ण से पूर्व)
(v) तत् + धनम् = तद्धनम् त् – द् (चतुर्थ वर्ण से पूर्व)
(vi) सत् + धर्मः = सद्धर्मः त् – द् (चतुर्थ वर्ण से पूर्व)
(vii) षट् + दर्शनम् = षड्दर्शनम् ट् – ड् (तृतीय वर्ण से पूर्व)

(घ-3) निम्नलिखित में सन्धि करें और कोष्ठक में कारण लिखेंउत्तर-यथा-
(i) सत् + आचारः . = सदाचारः (त् – द् स्वर से पूर्व) .
(ii) वाक् + देवता = वाग्देवता (क् – ग् तृतीय वर्ण से पूर्व)
(iii) अप् + धिः = अब्धिः (प् – ब् तृतीय वर्ण से पूर्व)
(iv) स्वर्गात् + अपि = स्वर्गादपि (त् – द् स्वर से पूर्व)
(v) जगत् + गुरुः = जगद्गुरुः (त् – द् तृतीय वर्ण से पूर्व)
(vi) षट् + अंगानि = षडंगानि (ट् – ड् तृतीय वर्ण से पूर्व)
(vii) अस्मत् + वचनम् = अस्मद्वचनम् (त् – द् तृतीय वर्ण से पूर्व)
(viii) जगत् + ईशः = जगदीशः (त् – द् स्वर से पूर्व)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ङ) च वर्ण से पूर्व त् वर्ण च वर्ण में बदल जाता है।
निम्नलिखित सन्धि पदों में ‘त्’ वर्ण किस वर्ण में बदला है ?
उत्तर:
सत् + चित् = सच्चित् (त् – च)
तत् + चित्रम् = तच्चित्रम् (त् – च)
एतत् + चन्द्रम् = एतच्चन्द्रम् (त् – च)
इसी प्रकार सन्धि करें
अन्यत् + च = अन्यच्च (त् – च)
तत् + चिन्तयित्वा = तच्चिन्तयित्वा (त् – च)
एतत् + च = एतच्च (त् – च)
तत् + चक्राम = तच्चक्राम (त् – च)
शरत् + चन्द्रः = शरच्चन्द्रः (त् – च)
सत् + चरित्रम् = सच्चरित्रम् (त् – च)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-25
उत् + लेखः = उल्लेखः|
(‘ल’ वर्ण से पूर्व त् वर्ण ल् वर्ण में बदल जाता है।)

इसी प्रकार निम्नलिखित पदों में सन्धि कीजिए
1. उत् + लिखितम् = उल्लिखितम्
2. उत् + लासः = उल्लासः
3. उत् + लचनम् = उल्लङ्घनम्
4. तत् + लाङ्गुलम् = तल्लाङ्गुलम्
5. तत् + लीनम् = तल्लीनम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

मिश्रितप्रश्न
1. निम्नलिखित कथा में स्थूल पदों में सन्धि करके पुनः लिखिए
अथ एकदा गुरुकुले सायङ्काले कृष्णः यज्ञ अर्थम् काष्ठानि आनेतुम् वनम् गतवान्। सहसा एव वृष्टिः आगता। मेघाः गर्जनम् कृतवन्तः। विद्युत् अपि अदीव्यत्। सर्वत्र अन्धकारः जातः । सर्वाम् रात्रिम् स तत्र एव वृक्षस्य अधः अतिष्ठत्। प्रातः काले तस्य गुरुः महा ऋषिः संदीपनिः तम् अन्विष्यन् तत्र आगतः। गुरुम् दृष्ट्वा कृष्णः उत् लसितः जातः । गुरुः अपि हृदये पुनः पुनः रमते।
उत्तर:
अथ एकदा गुरुकुले सायङ्काले कृष्णः यज्ञार्थम् काष्ठान्यानेतुंवनंगतवान् । सहसैव वृष्टिः आगता। मेघाः गर्जनम् कृतवन्तः। विद्युदप्यदीव्यत्। सर्वत्रान्धकारः जातः । सर्वाम् रात्रिम् स तत्रैव वृक्षस्याधः अतिष्ठत्। प्रातःकाले तस्य गुरुः महर्षिः संदीपनिः तम् अन्विष्यन् तत्रागतः। गुरुं दृष्ट्वा कृष्णः उल्लसितः जातः। गुरुः अपि हृदये पुनः पुनारमते।

2. निम्नलिखित पदों में वर्तनी संशोधन करके लिखिए
महर्षिना, पराजिताणाम्, प्रपनः वृक्षेन, पराण।
उत्तर:
महर्षिणा, पराजितानाम्, प्रपर्णः, वृक्षेण, परान्।

3. निम्नलिखित संवाद में प्रयुक्त रेखांकित पदों में सन्धिविच्छेद कीजिए
गुरु-सुधे! कथं त्वं विलम्बादागता। अद्य तु परीक्षादिवसः
सुधा-गुरुवर! रात्रौ अहं बहुचिरम् अपठम्। अतः प्रातर्जागरणे विलम्बः जातः ।
गुरु-त्वं तु एतज्जानासि यत् परीक्षासु रात्रौ अधिकं न पठनीयम् । पश्य वागीशः सत्यजिच्च प्रश्नानां समाधाने तल्लीनाः सन्ति। त्वमपि कमलया साकं संस्कृतवाङ्मयस्य प्रश्नानाम् उत्तराणि अथवा सदाचार-वसन्तर्तु, – कालिदासादिविषये कमपि एकम् निबंध लिखत।
उत्तर:
विलम्बात् + आगता। परि + ईक्षादिवसः ।
अहम् + बहुचिरम्। प्रातः + जागरणे।
एतत् + जानासि। अधिकम् + न।
वाक् + ईशः। सत्यजित् + च।
तत् + लीनाः। साकम् + संस्कृत
सत् + आचार। वसन्त + ऋतु।
कालिदास + आदि। कम् + अपि।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(iii) विसर्ग सन्धि:
HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः img-26
उपर्युक्त उदाहरणों में पूर्वपद में विसर्ग के बाद उत्तरपद में व्यञ्जन के आने से विसर्ग क्रमशः ओ, स्, ष् तथा ओऽ में परिवर्तित हो गया है। यह परिवर्तन विसर्ग सन्धि के कारण हुआ है। अतः हम कह सकते हैं कि दो वर्गों के समीप होने पर किसी वर्ण का विसर्ग हो जाना अथवा विसर्ग का कोई अन्य वर्ण हो जाना विसर्ग सन्धि है। इसके निम्नलिखित भेद हैं
(क) सत्व सन्धि
(i) विसर्ग (:) के बाद यदि च् या छ् हो तो विसर्ग का श्, ट् या ठ् हो तो ष्, त् या थ् होने पर स् हो जाता है; जैसे
मनः + तापः = मनस्तापः नमः + तुभ्यम् = नमस्तुभ्यम्
इतः + ततः = इतस्ततः विष्णुः + त्राता = विष्णुस्त्राता

(ख) शत्व तथा षत्व:
(ii) विसर्ग के बाद यदि श्, ए, स् आए तो विसर्ग (:) का क्रमशः श्, ष् और स् हो जाता है; जैसे
हरिः + शेते = हरिश्शेते निः + सारः = निस्सारः
निः + सन्देहः = निस्सन्देहः रामः + षष्ठः = रामष्षष्ठः

(iii) विसर्ग से पहले यदि इ या उ हो और बाद में क्, खु या पु, फ् में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग (:) के स्थान पर ष् हो जाता है; जैसे
निः + फलः = निष्फलः – निः + कपटः = निष्कपटः
दुः + कर्मः = दुष्कर्मः दुः + फलः = दुष्फलः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(ग) विसर्ग को उत्व
(ओ) होना यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और बाद में भी ह्रस्व ‘अ’ हो तो विसर्ग को ‘उ’ हो जाता है . तथा विसर्ग पूर्व ‘अ’ के साथ मिलकर ‘ओ’ हो जाता है। परवर्ती ‘अ’ का पूर्वरूप हो जाता है और उसके स्थान पर ऽ चिह्न रख दिया जाता है; जैसे
पुरुषः + अस्ति = पुरुषोऽस्ति रामः + अत्र = रामोऽत्र
एष + अब्रवीत् = एषोऽब्रवीत शिवः + अर्ध्यः = शिवोऽर्च्यः

(घ) विसर्ग को ‘ओ’ होना
यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो किन्तु विसर्ग के बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ग हो अथवा य, र, ल, व्, ह् में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग सहित ‘अ’ को ओ हो जाता है; जैसे
रामः + गच्छति = रामो गच्छति रामः + घोषति = रामो घोषति
रामः + जयति = रामो जयति रामः + ददाति = रामो ददाति

(ङ) विसर्ग का रुत्व होना
यदि विसर्ग से पहले अ ‘आ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो और बाद में कोई घोष वर्ग (वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह) हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘र’ हो जाता है; जैसे
हरिः + उवाच = हरिरुवाच गौः + याति = गौर्याति
मुनिः + गच्छति = मुनिर्गच्छति हरेः + इच्छा = हरेरिच्छा

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(च) विसर्ग का लोप
निम्नलिखित दशाओं में विसर्ग का लोप हो जाता है
(i) यदि विसर्ग से पूर्व ह्रस्व ‘अ’ हो और उसके बाद ह्रस्व ‘अ’ से भिन्न कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
देवः + आयाति = देव आयाति अर्जुनः + उवाच = अर्जुन उवाच
कः + एति = क एति कः + एषः = क एषः ।

(ii) यदि विसर्ग के बाद ‘अ’ को छोड़कर कोई भी वर्ण हो तो. ‘सः’ और ‘एषः’ शब्दों के विसर्ग का लोप हो जाता है।
सः + इच्छति = स इच्छति
सः + भाषते = स भाषते
एषः + कथयति = एष कथयति
एषः + पठति = एष पठति

(iii) यदि विसर्ग से पहले ‘आ’ हो और बाद में कोई स्वर या घोष वर्ण (वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह) हों तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
देवाः + आयान्ति = देवा आयान्ति
बालाः + हसन्ति = बाला हसन्ति

(iv) सः और एषः के पश्चात् कोई व्यंजन हो तो इनके विसर्गों का लोप हो जाता है; जैसे
सः पठति = स पठति
एषः विष्णुः = एष विष्णुः ।

(v) यदि सः और एषः के पश्चात् ह्रस्व अ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो उसका भी लोप हो जाता है; जैसे
सः एति = स एति
एषः एति = एष एति
किन्तु यदि सः, एषः के परे ह्रस्व अ हो तो विसर्ग सहित अ को ओ हो जाता है; जैसे
सः + अस्ति = सोऽस्ति
एषः + अपि = एषोऽपि

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(vi) भोः, भगोः के विसर्गों का भी लोप हो जाता है यदि विसर्ग से परे कोई स्वर अथवा वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ तथा य, र, ल, व्, ह में से कोई वर्ण हो; जैसे
भोः + लक्ष्मी = भो लक्ष्मी
भगोः + नमस्ते = भगो नमस्ते

(vii) नमः, पुरः, तिरः शब्दों के विसर्ग को क् या के परे होने पर स् हो जाता है।
नमः + कारः = नमस्कारः
पुरः + कारः = पुरस्कारः
तिरः + कारः = तिरस्कारः
अयः + कारः = अयस्कारः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

णत्व तथा षत्व विधान:

1. णत्व विधान-एक पद में र, ष् के बाद न आए तो ण् हो जाता है; जैसे चतुर्णाम्, पुष्णाति, जीर्णः इत्यादि। यदि ऋ के बाद भी न आए तो उसके स्थान पर भी ण् हो जाता है; जैसे नृणाम्, पितृणाम्, चतसृणाम् आदि। ऋ, र, ष् तथा न् के बीच में कोई स्वर अथवा कवर्ग, पवर्ग तथा ह्, य, व, र या अनुस्वार हो तो भी न के स्थान पर ण हो जाता है; जैसे
रामेण, मूर्खेण, गुरुणा, रामाणाम्, मूर्खाणाम् तथा हरिणा आदि; किन्तु दृढेन, रसेन, अर्थेन, रसानाम् में ण नहीं होता, क्योंकि यहाँ यहाँ र, ऋ तथा न के बीच उपर्युक्त अक्षरों के अतिरिक्त अक्षर आते हैं।
पदान्त के न् का ण नहीं होता। जैसे
देवान, रामान्, हरीन्, गुरून् आदि।

2. षत्व विधान-अ, आ को छोड़कर शेष स्वर तथा ह्, य, व्, र, ल् एवं कवर्ग के बाद में आने वाले अपदान्त प्रत्यय और आदेश के स के स्थान पर ष हो जाता है; जैसे
रामेषु, हरिषु, सर्वेषाम्, मातृषु, वधूषु, चतुर्षु इत्यादि।
यदि उपर्युक्त वर्णों तथा स् के मध्य में अनुस्वार, विसर्ग और श, ष, स् का व्यवधान भी हो तो भी स् के स्थान पर ष् हो . जाता है। जैसे
धनूंषि, आयूंषि, आशीःषु, चक्षुःषु, हवींषि।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

अभ्यासार्थ प्रश्नाः

I. सन्धि विच्छेदं कुरुत
(क) अतैव ……………………. + …………………….
(ख) प्रोक्तम् ……………………. + …………………….
(ग) ततैव ……………………. + …………………….
(घ) खल्वेष ……………………. + …………………….
(ङ) यथेच्छयाः ……………………. + …………………….
(च) स्नानार्थम् ……………………. + …………………….
(छ) चादाय ……………………. + …………………….
(ज) कोऽपि ……………………. + …………………….
(झ) सज्जोऽस्मि ……………………. + …………………….
(ञ) हताश्वः ……………………. + …………………….

II. सन्धि कुरुत
(क) नि + अवसत् = ………………..
(ख) सूर्य + उदयः = ………………..
(ग) इति + उक्त्वा = ………………..
(घ) यथा + इच्छुम् = ………………..
(ङ) न + अस्ति = ………………..
(च) मया + एतत् = ………………..
(छ) यातु + इति = ………………..
(ज) द्वौ + अपि = ………………..
(झ) श्रेष्ठी + आह = ………………..
(ञ) बालः + अपि = ………………..

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

III. शुद्ध उत्तरं चित्वा लिखत
(i) ‘यन्न’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(क) यन् + न्
(ख) यत + न्
(ग) यन् + न
(घ) यत् + न
उत्तरम्:
(घ) यत् + न

(ii) ‘सेवयैव’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(क) सेवया + एव
(ख) सेवा + यैव
(ग) सेवा + एव
(घ) सेवाया + एव
उत्तरम्:
(क) सेवया + एव

(iii) ‘प्रत्येव’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(क) प्रत् + एव
(ख) प्रति + एव
(ग) प्रत् + येव
(घ) प्रत्य + एव
उत्तरम्:
(ख) प्रति + एव

(iv) ‘कश्चन’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(क) कश + चन
(ख) कश + चन
(ग) कः + श्चन्
(घ) कः + चन
उत्तरम्:
(घ) कः + चन

(v) ‘स्नानार्थम्’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(क) स्ना + थम्
(ख) स्ना + अर्थम
(ग) स्नान + अर्थम्
(घ) स्ना + नार्थम्
उत्तरम्:
(ग) स्नान + अर्थम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

IV.
(i) ‘तस्य + उपचारे’ अत्र सन्धिपदम् अस्ति
(क) तस्योपचारे
(ख) तस्यौपचारे
(ग) तस्यओपचारे
(घ) तस्याऔपचारे
उत्तरम्:
(क) तस्योपचारे

(ii) ‘इति + उक्त्वा’ अत्र सन्धिपदम् अस्ति
(क) इत्यक्त्वा
(ख) इतीयूक्त्वा
(ग) इतीउक्त्वा
(घ) इत्युक्त्वा
उत्तरम्:
(घ) इत्युक्त्वा

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् सन्धिः

(iii) ‘अद्य + अपि’ अत्र सन्धिपदम् अस्ति
(क) अद्यपि
(ख) अद्यापि
(ग) अद्यऽपि
(घ) अद्यअपि
उत्तरम्:
(ख) अद्यापि

(iv) ‘वृत्तिः + भव’ अत्र सन्धिपदम् अस्ति
(क) वृत्तिः भव
(ख) वृत्तिराभव
(ग) वृतिर्भव
(घ) वृत्तिरोभव
उत्तरम्:
(ग) वृतिर्भव

(v) ‘कः + इयम्’ अत्र सन्धिपदम् अस्ति
(क) केयम्
(ख) कीयम
(ग) कयम्
(घ) कियम्
उत्तरम्:
(क) केयम्

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *