Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम् Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 12 वाडमनःप्राणस्वरूपम्
HBSE 9th Class Sanskrit वाडमनःप्राणस्वरूपम् Textbook Questions and
Class 9 Sanskrit Chapter 12 HBSE
I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दीभाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) मनः अन्नमयं, प्राणः आपोमयः वाक् च तेजोमयी भवति।
(ख) “भवता घृतोत्पत्तिरहस्यम् व्याख्यातम्।”
(ग) “यादृशमन्नादिकं गृहाति मानवस्तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवति।”
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्’ में से उद्धृत है। मन, प्राण एवं वाणी उपनिषद् के गूढ़ तत्त्व हैं। इन तीनों तत्त्वों के विषय में कहा गया है कि मन अन्नमय है, प्राण जलमय है तथा वाणी तेजोमयी है। जो खाया जाता है, वह अन्न है। अन्न ही निश्चित रूप से मन है। न्याय और सत्य से अर्जित किया हुआ अन्न सात्विक होता है। उसे खाने से मन भी सात्विक होता है। दूषित भावना एवं अन्याय से अर्जित अन्न तामस होता है। इस संसार में जल ही जीवन है और प्राण जलमय होता है। तैल, घृत आदि के भक्षण से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है, इससे वाणी विशद् होती है और भाषणादि कार्यों में सामर्थ्य की वृद्धि होती है। अतः वाणी को तेजोमयी माना गया है।
(ख) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्’ में से उद्धृत है। आरुणि श्वेतकेतु को मन, प्राण एवं वाणी को स्पष्ट करने के प्रसंग में बताते हैं कि जैसे मथे जाते हुए दही की अणिमा (मलाई) ऊपर तैरने लगती है। उसी अणिमा (मलाई) से घृत का निर्माण होता है। उसी प्रकार खाया जाता हुआ अन्न भी मल, मांस एवं मन तीनों भागों में बँट जाता है। ‘मन’ अन्न का सबसे सूक्ष्म रूप (अणिमा) है। इसी प्रकार पिया जाता हुआ जल भी मूत्र, रक्त एवं प्राण तीन भागों में विभक्त हो जाता है। इसमें प्राण जल का सबसे सूक्ष्म रूप है। इसी प्रकार शरीर द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा का सबसे सूक्ष्म रूप वाणी है। इस प्रकार मन, प्राण एवं वाणी शरीर द्वारा ग्रहण किए गए अन्न, जल एवं ऊर्जा के सूक्ष्मतम रूप हैं।
(ग) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्’ में से उद्धृत है। मनुष्य के द्वारा जो खाया जाता है, वह अन्न है। ‘अन्न’ ही निश्चित रूप से मन है। कहा भी गया है कि ‘जैसा खाओ अन्न, वैसा रहे मन’ । न्याय और सत्य से अर्जित किया हुआ अन्न सात्विक होता है। उसे खाने से मन भी सात्विक होता है। दूषित भावना और अन्याय से अर्जित अन्न तामसिक होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि सात्विक भोजन से मन सात्विक होता है, राजसी भोजन से राजस होता है और तामसी भोजन से मन की प्रवृत्ति भी तामसी हो जाती है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य जैसा अन्न ग्रहण करता है, उसका चित्त वैसा ही बन जाता है।
वाडमनःप्राणस्वरूपम् In Sanskrit HBSE 9th Class
II. अधोलिखितान संवादान/गद्यांशान पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित संवादों/गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) श्वेतकेतुः – भगवन् ! भवता घृतोत्पत्तिरहस्यम् व्याख्यातम्। भूयोऽपि श्रोतुमिच्छामि।
आरुणिः – एवमेव सौम्य! अश्यमानस्य अन्नस्य योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति। तन्मनो भवति। अवगतं न वा?
श्वेतकेतुः – सम्यगवगतं भगवन् !
आरुणिः – वत्स! पीयमानानाम् अपां योऽणिमा स ऊर्ध्वः समुदीषति स एव प्राणो भवति।
श्वेतकेतुः – भगवन्! वाचमपि विज्ञापयतु।
(क) मनः कीदृशं भवति?
(ख) आरुणिः किं व्याख्यातम् ?
(ग) अत्र ‘पुत्र’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम्?
(घ) ‘भगवन् ! वाचमपि विज्ञापयतु’ इति कः कथयति?
(ङ) प्राणः कीदृशं भवति?
उत्तराणि:
(क) अश्यमानस्य अन्नस्य योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति तत् मनः भवति।
(ख) आरुणिः घृतोत्पत्तिरहस्यम् व्याख्यातम्।
(ग) अत्र ‘पुत्र’ इति पदस्य पर्यायपदं ‘वत्स’ अस्ति।
(घ) ‘भगवन! वाचमपि विज्ञापयतु’ इति श्वेतकेतुः कथयति।
(ङ) पीयमानानाम् अपां योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति स एव प्राणः भवति।
(2) आरुणिः – सौम्य! अश्यमानस्य तेजसो योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति। सा खलु वाग्भवति। वत्स! उपदेशान्ते भूयोऽपि त्वां विज्ञापयितुमिच्छामि यत्, अन्नमयं भवति मनः, आपोमयो भवति प्राणाः तेजोमयी च भवति वागिति। किञ्च यादृशमन्नादिकं गृह्णाति मानवस्तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवतीति मदुपदेशसारः। वत्स! एतत्सर्वं हृदयेन अवधारय।
(क) का खलु वाग्भवति?
(ख) उपदेशान्ते आरुणिः श्वेतकेतुं किं विज्ञापितुम् इच्छति?
(ग) अत्र ‘पुनरपि’ इति पदस्य किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
(घ) वत्स! एतत्सर्वं केन अवधारय?
(ङ) आरुणेः उपदेश सारः किम् अस्ति?
उत्तराणि:
(क) अश्यमान तेजसो योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति सा खलु वाग्भवति।
(ख) उपदेशान्ते आरुणिः श्वेतकेतुं विज्ञापितुम् इच्छति यत् अन्नमयं भवति मनः आपोमयो भवति प्राणः तेजोमयी च वागिति।
(ग) अत्र ‘पुनरपि’ इति पदस्य पर्यायपदं ‘भूयोऽपि’ प्रयुक्तम्।
(घ) वत्स! एतत्सर्वं हृदयेन अवधारय।
(ङ) आरुणेः उपदेश सारः अस्ति यत् यादृशमन्नादिकं गृह्णाति मानवस्तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवति।
Sanskrit Class 9 Chapter 12 HBSE
III. स्थूल पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) सौम्य! मनः अन्नमयः भवति।।
(ख) पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः स प्राणः भवति।
(ग) एतत् सर्वं हृदयेन अवधारय।
(घ) भगवन्! वाचम् अपि विज्ञापय।
(ङ) अशितस्य अन्नस्य योऽणिष्ठः तन्मनः।
उत्तराणि:
(क) सौम्य! कः अन्नमयः भवति?
(ख) पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः स कः भवति?
(ग) एतत् सर्वं केन अवधारय?
(घ) भगवन् ! कम् अपि विज्ञापय?
(ङ) अशितस्य तस्य योऽणिष्ठः तन्मनः?
वाडमनःप्राणस्वरूपम् HBSE 9th Class Sanskrit
IV. अव्ययपदैः रिक्तस्थानानां पूर्तिः कुरुत
(निम्नलिखित अव्ययों की सहायता से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए)
अपि, एव, इति, खलु, अध
(क) वत्स! किम् …………. त्वया प्रष्टव्यमस्ति?
(ख) भगवन्! भूयः ……………. मां विज्ञापयतु।।
(ग) भवता घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातं। भूयः …………. श्रोतुमिच्छामि।
(घ) स ऊर्ध्वः समुदीषति सा …………….. वाग्भवति।
(ङ) तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवति ……………. मद् उपदेशसारः।
उत्तराणि:
(क) अद्य,
(ख) एव,
(ग) अपि,
(घ) खलु,
(ङ) इति।
V. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. श्वेतकेतुः सर्वप्रथमं कस्य स्वरूपस्य विषये पृच्छति?
(i) मानवस्य
(ii) जीवनस्य
(iii) मनसः
(iv) प्राणस्य
उत्तरम्:
(iii) मनसः
2. पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः सः कः अस्ति?
(i) मनः
(ii) वायुः
(iii) जीवः
(iv) प्राणः
उत्तरम्:
(iv) प्राणः
3. अन्नमयं कः अस्ति?
(i) प्राणः
(ii) मनः
(iii) वायुः
(iv) तेजः
उत्तरम्:
(i) मनः
4. आरुणेः मतानुसारं वाक् कीदृशी भवति?
(i) प्राणमयी
(ii) तेजोमयी
(iii) अन्नमयी
(iv) आपोमयी
उत्तरम्:
(ii) तेजोमयी
5. मानवः यादृशम् अन्नादिकं गृहाति तादृकं एव तस्य किं भवति?
(i) मनादिकं
(ii) प्राणादिकं
(ii) चित्तादिकं
(iv) तेजादिकं
उत्तरम्:
(iii) चित्तादिकं
6. ‘कः + च’ अत्र सन्धियुक्तपदम् अस्ति
(i) कश्च
(ii) कःच
(iii) कस्य
(iv) कञ्च
उत्तरम्:
(i) कश्च
7. ‘तन्मनो’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(i) तन् + मनो
(ii) तत् + मनो
(iii) तत + मनो
(iv) तन्न + मनो
उत्तरम्:
(ii) तत् + मनो
8. ‘श्रोतुम्’ इति पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
(i) तुम्
(ii) ठक्
(iii) तुमुन्
(iv) मतुप्
उत्तरम्:
(iii) तुमुन्
9. ‘घृतः’ इति पदस्य किं पर्यायपदम्?
(i) दनः
(ii) अशिष्ठः
(iii) अणिमाः
(iv) सर्पिः
उत्तरम्:
(iv) सर्पिः
10. ‘वत्स! किं अद्य त्वया प्रष्टव्यम् अस्ति।’ इति वाक्ये अव्ययपदम् अस्ति
(i) त्वया
(ii) अद्य
(iii) अस्ति
(iv) किम्
उत्तरम्:
(ii) अद्य
योग्यताविस्तारः
यह पाठ छान्दोग्योपनिषद् के छठे अध्याय के पञ्चम खण्ड पर आधारित है। इसमें मन, प्राण तथा वाक् (वाणी) के संदर्भ में रोचक विवरण प्रस्तुत किया गया है। उपनिषद् के गूढ़ प्रसंग को बोधगम्य बनाने के उद्देश्य से इसे आरुणि एवं श्वेतकेतु के संवादरूप में प्रस्तुत किया गया है। आर्ष-परंपरा में ज्ञान-प्राप्ति के तीन उपाय बताए गए हैं जिनमें परिप्रश्न भी एक है। यहाँ गुरुसेवापरायण शिष्य वाणी, मन तथा प्राण के विषय में प्रश्न पूछता है और आचार्य उन प्रश्नों के उत्तर देते हैं।
ग्रन्थ परिचय छान्दोग्योपनिषद् उपनिषत्साहित्य का प्राचीन एवं प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह सामवेद के उपनिषद् ब्राह्मण का मुख्य भाग है। इसकी वर्णन पद्धति अत्यधिक वैज्ञानिक और युक्तिसंगत है। इसमें आत्मज्ञान के साथ-साथ उपयोगी कार्यों और उपासनाओं का सम्यक् वर्णन हुआ है। छान्दोग्योपनिषद् आठ अध्यायों में विभक्त है। इसके छठे अध्याय में ‘तत्त्वमसि’ का विस्तार से विवेचन प्राप्त होता है।
भावविस्तारः
आरुणि अपने पुत्र श्वेतकेतु को उपदेश देते हैं कि खाया हुआ अन्न तीन प्रकार का होता है। उसका स्थिरतम भाग मल होता है, मध्यम मांस होता है और सबसे लघुतम मन होता है। पिया हुआ जल भी तीन प्रकार का होता है उसका स्थविष्ठ भाग मूत्र होता है, मध्यभाग लोहित (रक्त) होता है और अणिष्ठ भाग प्राण होता है। भोजन से प्राप्त तेज भी तीन तरह का होता है उसका स्थविष्ठ भाग अस्थि होता है, मध्यम भाग मज्जा (चर्बी) होती है और जो लघुतम भाग है वह वाणी होती है।
जो खाया जाता है वह अन्न है। अन्न ही निश्चित रूप से मन है। न्याय और सत्य से अर्जित किया हुआ अन्न सात्विक होता है। उसे खाने से मन भी सात्विक होता है। दूषित भावना और अन्याय से अर्जित अन्न तामस होता है। कथ्य का सारांश यह है कि सात्विक भोजन से मन सात्विक होता है। राजसी भोजन से मन राजस होता है और तामस भोजन से मन की प्रवृत्ति भी तामसी हो जाती है।
इस संसार में जल ही जीवन है और प्राण जलमय होता है। तैल (तेल), घृत आदि के भक्षण से वाणी विशद् होती है और भाषणादि कार्यों में सामर्थ्य की वृद्धि करती है। इसलिए वाणी को तेजोमयी कहा जाता है। छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार मन अन्नमय है, प्राण जलमय है और वाणी तेजोमयी है।
भाषिकविस्तारः
1. मयट् प्रत्यय प्राचुर्य के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
2. मयट् प्रत्यय का प्रयोग विकार अर्थ में भी किया जाता है।
3. जल को जीवन कहा गया है। ‘जीवयति लोकान् जलम्’ यह पञ्चभूतों के अन्तर्गत भूतविशेष है। इसके पर्यायवाची शब्द हैं
वारिपानीयम्, उदकम्, उदम्, सलिलम्, तोयम्, नीरम्, अम्बु, अम्भस्, पयस् आदि। जल की उपयोगिता के विषय में निम्नलिखित श्लोक द्रष्टव्य है
पानीयं प्राणिनां प्राणस्तदायत्वं हि जीवनम्।
तोयाभावे पिपासातः क्षणात् प्राणैः विमुच्यते ॥
श्लोक का अर्थ-अर्थात् पानी प्राणियों के जीवन का आधार है। वह जीवन धारण करने वाला है। जल के अभाव में प्यास से व्याकुल मनुष्य क्षण में ही प्राण त्याग देता है।
HBSE 9th Class Sanskrit 11 वामनःप्राणस्वरूपम् Important Questions and Answers
वामनःप्राणस्वरूपम् नाट्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ
1. श्वेतकेतुः – भगवन् ! श्वेतकेतुरहं वन्दे।
आरुणिः – वत्स! चिरञ्जीव।
श्वेतकेतुः – भगवन् ! किञ्चित्प्रष्टुमिच्छामि।
आरुणिः – वत्स! किमद्य त्वया प्रष्टव्यमस्ति?
श्वेतकेतुः – भगवन् ! ज्ञातुम् इच्छामि यत् किमिदं मनः?
आरुणिः – वत्स! अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठः तन्मनः?
श्वेतकेतुः – कश्च प्राणः?
आरुणिः – पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः स प्राणः।
श्वेतकेतुः भगवन्! का इयं वाक्?
आरुणिः – वत्स! अशितस्य तेजसा योऽणिष्ठः सा वाक् । सौम्य! मनः अन्नमयं, प्राणः आपोमयः वाक् च तेजोमयी भवति इत्यप्यवधार्यम्।
श्वेतकेतुः – भगवन् ! भूय एव मां विज्ञापयतु।
आरुणिः – सौम्य! सावधानं शृणु। मथ्यमानस्य दध्नः योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति, अर्धविरामः। तत्सर्पिः भवति।
श्वेतकेतुः – भगवन् ! भवता घृतोत्पत्तिरहस्यम् व्याख्यातम्। भूयोऽपि श्रोतुमिच्छामि।
शब्दार्थ-वन्दे = प्रणाम करता हूँ। चिरञ्जीव = तुम दीर्घायु हो। प्रष्टव्यमस्ति = पूछने योग्य। प्रष्टुम् = पूछने के लिए। अशितस्य = खाए हुए का। अन्नस्य = भोजन के। योऽणिष्ठः = अत्यन्त लघु। पीतानाम् = पिए हुए के। अपां = जलों का। वाक् = वाणी। अन्नमयं = अन्न से निर्मित। आपोमयः = जल में परिणत। तेजोमयी = तेजस्वी, प्रभावशाली। अवधार्यम् = समझने योग्य। भूय = पुनः। विज्ञापयतु = समझाइए। दध्नः = दही के। समुदीषति = ऊपर उठता है। तत्सर्पिः (तत् + सर्पिः) = वह घी।
प्रसंग प्रस्तुत संवाद संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन ‘छान्दोग्योपनिषद्’ के छठे अध्याय से किया गया है।
सन्दर्भ-निर्देश इस संवाद में आरुणि अपने शिष्य श्वेतकेतु को मन, वाणी एवं प्राण के विषय बताते हुए कहते हैं कि
सरलार्थ
श्वेतकेतु – हे भगवन् ! मैं श्वेतकेतु प्रणाम करता हूँ।
आरुाण – हे पुत्र! दीर्घायु हो।
श्वेतकेतु – भगवन् ! कुछ पूछना चाहता हूँ।
आरुणि – हे पुत्र! तुम्हें आज क्या पूछना है?
श्वेतकेतु – हे भगवन्! मैं पूछना चाहता हूँ कि यह मन क्या है?
आरुणि – हे पुत्र! पूर्णतः खाए हुए अन्न का सबसे छोटा भाग मन होता है।
श्वेतकेतु – और प्राण क्या है?
आरुणि – पिए गए तरल द्रव्यों का सबसे छोटा भाग प्राण कहलाता है।
श्वेतकेतु – हे भगवन् ! वाणी क्या है?
आरुणि – हे पुत्र! ग्रहण की गई ऊर्जा का जो सबसे छोटा भाग है, वह वाणी है। हे सौम्य! मन अन्नमय, प्राण जलमय तथा वाणी तेजोमय है यह भी समझ लेना चाहिए।
श्वेतकेतु – हे भगवन् ! आप मुझे पुनः समझाइए।
आरुणि – हे सौम्य! ध्यानपूर्वक सुनो! मथे जाते हुए दही की अणिमा (मलाई) ऊपर तैरने लगती है। उसका घी बन जाता है।
श्वेतकेतु – हे भगवन्! आपने तो घी की उत्पत्ति का रहस्य समझा दिया, मैं और भी सुनना चाहता हूँ।
भावार्थ खाए हुए अन्न का सबसे छोटा भाग मन है, पिए गए तरल पदार्थों का सबसे छोटा भाग प्राण है तथा ग्रहण की गई ऊर्जा का सबसे छोटा भाग वाणी है।
2. आरुणिः – एवमेव सौम्य! अश्यमानस्य अन्नस्य योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति। तन्मनो भवति। अवगतं न वा?
श्वेतकेतुः – सम्यगवगतं भगवन्! आरुणिः वत्स! पीयमानानाम् अपां योऽणिमा स ऊर्ध्वः समुदीषति स एव प्राणो भवति।
श्वेतकेतुः – भगवन् ! वाचमपि विज्ञापयतु।
आरुणिः – सौम्य! अश्यमानस्य तेजसो योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति। सा खलु वाग्भवति। वत्स! उपदेशान्ते भूयोऽपि त्वां विज्ञापयितुमिच्छामि यत्, अन्नमयं भवति मनः, आपोमयो भवति प्राणाः तेजोमयी च भवति वागिति। किञ्च यादृशमन्नादिकं गृह्णाति मानवस्तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवतीति मदुपदेशसारः। वत्स! एतत्सर्वं हृदयेन अवधारय।
श्वेतकेतुः – यदाज्ञापयति भगवन् । एष प्रणमामि।
आरुणिः – वत्स! चिरञ्जीव । तेजस्वि नौ अधीतम् अस्तु।
(आवयोः अधीतम् तेजस्वि अस्तु)।
शब्दार्थ-अश्यमानस्य = खाए जाते हुए। अवगतं = समझ गए। सम्यक् = अच्छी प्रकार से। पीयमानानाम् = पिए जाते हुए। किञ्च = इसके अतिरिक्त। चित्तादिकं = मन, बुद्धि और अहंकार आदि। मदुपदेशसारः = मेरे उपदेश का सार। हृदयेन = हृदय
में, चेतना में। अवधारय = धारण कर लो। यदाज्ञापयति = आज्ञा देते हैं। तेजस्वि = तेजस्विता से युक्त । अधीतम् = पढ़ा हुआ। अस्तु = हो।
प्रसंग-प्रस्तुत संवाद संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन ‘छान्दोग्योपनिषद्’ के छठे अध्याय से किया गया है।
सन्दर्भ निर्देश-प्रस्तुत संवाद में बताया गया है कि खाए, पिए एवं शरीर में एकत्रित किए गए ऊर्जा का सूक्ष्म भाग ही क्रमशः मन, प्राण एवं वाणी हैं।
सरलार्थ
आरुणि – हे सौम्य! खाए जाते हुए अन्न की अणिमा मन बन जाती है। समझ गए या नहीं?
श्वेतकेतु – हे भगवन्! भली-भाँति समझ गया हूँ!
आरुणि – हे पुत्र! पिए जाते हुए जल की अणिमा प्राण बन जाती है।
श्वेतकेतु – हे भगवन् ! वाणी के विषय में भी समझाइए।
आरुणि – हे सौम्य! शरीर द्वारा ग्रहण किए गए तेज (ऊर्जा) की अणिमा वाणी बन जाती है। हे पुत्र! उपदेश के अन्त में मैं तुम्हें फिर से वही समझाना चाहता हूँ कि अन्न का सार तत्त्व मन, जल का प्राण तथा तेज का वाणी है। इसके अतिरिक्त मेरे उपदेश का सार यही है कि मनुष्य जैसा अन्न ग्रहण करता है, उसका मन, बुद्धि और चित्त (अहंकार) वैसा ही बन जाता है। हे पुत्र! इसको हृदय से धारण कर लो।
श्वेतकेतु – जैसी आपकी आज्ञा भगवन्! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आरुणि – हे पुत्र! दीर्घायु हो, तुम्हारा अध्ययन (पढ़ाई) तेजस्विता से युक्त हो।
भावार्थ-मनुष्य जिस प्रकार का अन्न खाता है, उसका मन, बुद्धि एवं विचार वैसा ही बनता है। यदि वह सात्विक अन्न खाता है तो उसका मन, बुद्धि एवं विचार सात्विक होगा। यदि वह तामसिक अन्न खाता है तो उसका मन, बुद्धि एवं विचार तामसिक होगा।
अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) अन्नस्य कीदृशः भागः मनः?
(ख) मथ्यमानय दध्नः अणिष्ठः भागः किं भवति?
(ग) मनः कीदृशं भवति?
(घ) तेजोमयी का भवति?
(ङ) पाठेऽस्मिन् आरुणिः कम् उपदिशति?
(च) “वत्स! चिरञ्जीव” इति कः वदति?
(छ) अयं पाठः कस्मात् उपनिषदः संगृहीतः?
उत्तराणि:
(क) अशितस्यान्नस्य,
(ख) योऽणिष्ठः,
(ग) सर्पिः,
(घ) अन्नमयः,
(ङ) वाणी इति,
(च) आरुणिः,
(छ) छान्दोग्योपनिषद्।
2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं कस्य स्वरूपस्य विषये पृच्छति?
(ख) आरुणिः प्राणस्वरूपं कथं निरूपयति?
(ग) मानवानां चेतांसि कीदृशानि भवन्ति?
(घ) सर्पिः किं भवति?
(ङ) आरुणेः मतानुसारं मनः कीदृशं भवति?
उत्तराणि:
(क) श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं मनसः स्वरूपस्य विषये पृच्छति।
(ख) आरुणिः प्राणस्वरूपविषये कथयति ‘पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः स प्राणः’ इति।
(ग) यादृशमन्नादिकं गृह्णाति मानवस्तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवतीति।
(घ) मथ्यमानस्य दध्नः योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति, तत्सर्पिः भवति।
(ङ) आरुणेः मतानुसारं मनः अन्नमयं भवति।
3. (क) ‘अ’ स्तम्भस्य पदानि ‘ब’ स्तम्भेन दत्तैः पदैः सह यथायोग्यं योजयत
(स्तम्भ ‘अ’ के शब्दों का ‘ब’ स्तम्भ में दिए गए शब्दों के साथ मिलान कीजिए)
‘अ’ – ‘ब’
मनः – अन्नमयम्
प्राणः – तेजोमयी
वाक् – आपोमयः
उत्तराणि:
(क) मनः (1) अन्नमयम्
(ख) प्राणः (3) आपोमयः
(ग) वाक् (2) तेजोमयी
(ख) अधोलिखितानां पदानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत
(निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द पाठ से चुनकर लिखिए)
(i) गरिष्ठः
(ii) अधः
(ii) एकवारम्
(iv) अनवधीतम्
(v) किञ्चित्
उत्तराणि:
(i) गरिष्ठः – अणिष्ठः
(ii) अधः – ऊर्ध्वम्
(iii) एकवारम् – भूयः
(iv) अनवधीतम् – अवधीतम्
(v) किञ्चित् – सर्वम्
4. उदाहरणमनुसृत्य निम्नलिखितेषु क्रियापदेषु ‘तुमुन्’ प्रत्ययं योजयित्वा पदनिर्माणं कुरुत
(उदाहरण अनुसार निम्नलिखित क्रिया शब्दों में ‘तुमुन्’ प्रत्यय जोड़कर शब्द निर्माण कीजिए)
प्रच्छ + तुमुन् = प्रष्टुम्
(क) श्रु + तुमुन् = …………………….
(ख) वन्द् + तुमुन् = …………………….
(ग) पठ् + तुमुन् = …………………….
(घ) कृ + तुमुन् = …………………….
(ङ) वि + ज्ञा + तुमुन् = …………………….
(च) वि + आ + ख्या + तुमुन् = …………………….
उत्तराणि:
(क) श्रु +तुमुन् = श्रोतुम्।
(ख) वन्द् +तुमुन् = वन्दितुम्
(ग) पठ् + तुमुन् = पठितुम्।
(घ) कृ + तुमुन् = कर्तुम्।
(ङ) वि + ज्ञा + तुमुन् = विज्ञातुम्।
(च) वि + आ + ख्या + तुमुन् = व्याख्यातुम् ।
5. निर्देशानुसार रिक्तस्थानानि पूरयत
(निर्देश के अनुसार रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए)
(क) अहं किञ्चित् प्रष्टुम् ……………. । (इच्छ् – लट्लकारे)
(ख) मनः अन्नमयं ……………। (भू – लट्लकारे) ।
(ग) सावधानं ………………। (श्रु – लोट्लकारे)
(घ) तेजस्वि नौ अधीतम् …………….। (अस् – लोट्लकारे)
(ङ) श्वेतकेतुः आरुणेः शिष्यः …………………। (अस् – लङ्लकारे)
उत्तराणि:
(क) अहं किञ्चित् प्रष्टुम् इच्छामि।
(ख) मनः अन्नमयं भवति।
(ग) सावधानं श्रृणु।
(घ) तेजस्वि नौ अधीतम् अस्तु।
(ङ) श्वेतकेतुः आरुणेः शिष्यः आसीत्।
(अ) उदाहरणमनुसृत्य वाक्यानि रचयत
(उदाहरण के अनुसार वाक्य की रचना कीजिए)
यथा-अहं स्वदेशं सेवितुम् इच्छामि।।
(क) …………………. उपदिशामि।
(ख) …………………. प्रणमामि।
(ग) …………………. आज्ञापयामि।
(घ) …………………. पृच्छामि।
(ङ) …………………. अवगच्छामि।
उत्तराणि:
(क) अहं शिष्यं उपदिशामि।
(ख) अहं जनकं प्रणमामि।
(ग) अहं सेवकं फलम् आनेतुम् आज्ञापयामि।।
(घ) अहं गुरुं प्रश्नं पृच्छामि।
(ङ) अहं भवतः अभिप्रायम् अवगच्छामि।
6. (क) सन्धिं कुरुत
(सन्धि कीजिए)
(क) अशितस्य + अन्नस्य = …………………
(ख) इति + अपि + अवधार्यम् = …………………
(ग) का + इयम् = …………………
(घ) नौ + अधीतम् = …………………
(ङ) भवति + इति = …………………
उत्तराणि:
(क) अशितस्य + अन्नस्य = अशितस्यान्नस्य
(ख) इति + अपि + अवधार्यम् = इत्यप्यवधार्यम्
(ग) का + इयम् = केयम्
(घ) नौ + अधीतम् = नावधीतम्
(ङ) भवति + इति = भवतीति
(ख) स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(i) मध्यमानस्य दध्नः अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति।
(ii) भवता घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्।
(iii) आरुणिम् उपगम्य श्वेतकेतुः अभिवादयति।
(iv) श्वेतकेतुः वाग्विषये पृच्छति।
उत्तराणि:
(i) कस्य दध्नः अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति?
(ii) केन घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्?
(iii) आरुणिम् उपगम्य कः अभिवादयति?
(iv) श्वेतकेतुः कस्यविषये पृच्छति?
7. पाठस्य सारांशं पञ्चवाक्यैः लिखत।
(पाठ के सारांश को पाँच वाक्यों में लिखिए)
उत्तराणि:
(1) मनः अन्नमयं, प्राणः आपोमयः वाक् च तेजोमयी भवति।
(2) जलम् एव जीवनं भवति।
(3) अश्यमानस्य तेजसः यः अणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति।
(4) सा खलु वाग्भवति।
(5) यादृशमन्नादिकं मानवः गृह्णाति तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवति।
वामनःप्राणस्वरूपम् (वाणी, मन तथा प्राण का स्वरूप) Summary in Hindi
वामनःप्राणस्वरूपम् पाठ-परिचय
प्रस्तुत पाठ छान्दोग्योपनिषद के छठे अध्याय के पञ्चम खण्ड पर आधारित है। उपनिषत्साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों में छान्दोग्य उपनिषद् का प्रमुख स्थान है। यह उपनिषद् सामवेद पर आधारित है। इसकी वर्णन-शैली अत्यधिक वैज्ञानिक और युक्तिसंगत है। इसमें आत्मज्ञान के साथ-साथ उपयोगी कार्यों और उपासनाओं का सम्यक् वर्णन हुआ है। यह उपनिषद् आठ अध्यायों में विभक्त है। उपनिषदों का महावाक्य ‘तत्त्वमसि’ इसी उपनिषद् के षष्ठ अध्याय पर आधारित है।
प्रस्तुत पाठ में वाणी, मन तथा प्राण के सन्दर्भ में रोचक विवरण प्रस्तुत किया गया है। वस्तुतः ये तीनों उपनिषद् के गूढ़ तत्त्व हैं। इन तत्त्वों को बोधगम्य बनाने के उद्देश्य से इसे आरुणि एवं श्वेतकेतु के संवाद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। आर्ष परम्परा में ज्ञान-प्राप्ति के तीन उपाय बताए गए हैं, जिनमें परिप्रश्न भी एक है। यहाँ गुरु-सेवा-परायण शिष्य वाणी, मन तथा प्राण के विषय में प्रश्न पूछता है और आचार्य उन प्रश्नों के उत्तर देते हैं।
आरुणि श्वेतकेतु को बताते हैं कि खाया हुआ अन्न तीन रूपों में बँट जाता है। उसका स्थिरतम भाग मल, मध्यम भाग माँस और सबसे लघुतम मन होता है। पिया हुआ जल भी तीन रूपों में विभक्त होता है-मूत्र, रक्त और प्राण। इसी प्रकार भोजन से प्राप्त तेज भी अस्थि, मज्जा (चर्बी) और वाणी तीन प्रकार का होता है। अन्त में बताया गया है कि सात्विक भोजन से मन सात्विक होता है। इस संसार में जल ही जीवन है और प्राण जलमय होता है। इस पाठ का सारांश -यह है कि वाणी तेजोमयी है, मन अन्नमय है और प्राण जलमय है।