HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

HBSE 9th Class Sanskrit जटायोः शौर्यम् Textbook Questions and

Sanskrit Class 9 Chapter 10 जटायोः शौर्यम् HBSE

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) जटायो पश्य मामार्य हियमाणामनाथवत्।
(ख) वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम्।
(ग) निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्।
(घ) चरणाभ्यां महातेजा बभजास्य महद्धनुः।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति आदिकवि महर्षि वाल्मीकि विरचित ‘रामायणम्’ महाकाव्य से संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। रावण के द्वारा अपहृत सीता ने विशाल वृक्ष पर स्थित जटायु को देखकर विलाप करते हुए कहा कि हे आर्य जटायु! यह राक्षसराज रावण मुझे अनाथ की भाँति अपहृत करके ले जा रहा है। वस्तुतः सीता यह बताना चाहती है कि इस पापाचारी को श्रीराम-लक्ष्मण के पराक्रम का ज्ञान नहीं है। इसीलिए इसने मेरा अपहरण किया है। इस बात की सूचना आप ज्यों-की-त्यों राम-लक्ष्मण को बता दीजिए; क्योंकि मेरे पतिदेव में इतना पराक्रम है कि वे मुझे यमराज से भी छुड़ा सकते हैं।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति आदिकवि महर्षि वाल्मीकि विरचित ‘रामायणम्’ महाकाव्य से संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। वृक्ष पर आधे सोए हुए जटायु ने सीता की करुण पुकार सुनी। सुनते ही जटायु ने तुरन्त आँख खोलकर सीता तथा रावण को देखा। पेड़ पर बैठे-बैठे उन्होंने रावण को लक्ष्य करके सुन्दर वचनों के माध्यम से उसे समझाने का प्रयास किया। गृध्रराज जटायु बड़े ही धर्मात्मा तथा नीतिज्ञ थे। वे महाराज दशरथ के मित्र भी थे। इस दृष्टि से सीता उनकी पुत्रवधू थी। कई सौ वर्षों से वे पर्वत-शिखर के महान् वृक्ष पर बैठे थे। अतः अपहृत सीता को देखकर नीति एवं धर्म के ज्ञाता होने के कारण सुन्दर वचनों के माध्यम से रावण को समझाने लगे।

(ग) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति आदिकवि महर्षि वाल्मीकि विरचित ‘रामायणम्’ महाकाव्य से संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। अपहृत सीता के करुण क्रन्दन को सुनकर पक्षिराज जटायु ने रावण को समझाते हुए कहा हे रावण! पराई स्त्री के स्पर्श से जो नीच गति प्राप्त होने वाली है, उससे अपने आप से दूर हटा लो, क्योंकि अपने धर्म में स्थिर रहने वाला कोई भी राजा भला पराई स्त्री का स्पर्श कैसे कर सकता है? महाबली रावण! राजाओं को सभी स्त्रियों की विशेष रूप से रक्षा करनी चाहिए। जिस प्रकार पराये पुरुषों के स्पर्श से अपनी स्त्री की रक्षा की जाती है; उसी प्रकार दूसरों की स्त्रियों की भी रक्षा करनी चाहिए। अतः तुम्हारा यह कार्य निन्दनीय है। ऐसा कर्म करने से निश्चय ही तुम्हारा विनाश होगा। इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सीता को छोड़ दो।

(घ) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति आदिकवि महर्षि वाल्मीकि विरचित ‘रामायणम्’ महाकाव्य से संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। पक्षिश्रेष्ठ जटायु ने रावण को राजधर्म एवं नीति की बातों से समझाने का प्रयास किया। परन्तु जब रावण नहीं माना तो उस महान् तेजस्वी जटायु ने अपने दोनों पैरों से प्रहार करके रावण के विशाल धनुष को तोड़ दिया। रावण ने जटायु को मारने की इच्छा से धनुष-बाण से प्रहार करना चाहा। तब महातेजस्वी जटायु ने अपने दोनों पंखों से ही धनुष के बाणों को उड़ा दिया और पंजों की मार से पुनः उसके धनुष के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। यहाँ जटायु के अतिशय पराक्रम एवं वीरता का परिचय मिलता है।

जटायोः शौर्यम् Chapter 10 HBSE 9th Class

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II. अधोलिखितान् श्लोकान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित श्लोकों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः॥
(क) अवसुप्तः कः आसीत् ?
(ख) जटायुः किं शुश्रुवे?
(ग) सः कां ददर्श?
उत्तराणि:
(क) अवसुप्तः जटायुः आसीत्।
(ख) जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे।
(ग) सः रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं वैदेहीं ददर्श ।

2. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात् ।
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ॥
(क) परदाराभिमर्शनात कां निवर्तय?
(ग) धीरः किं न समाचरेत् ?
उत्तराणि:
(क) परदाराभिमर्शनात नीचां मतिं निवर्तये।
(ख) नीचां मतिं परदाराभिमर्शनात निवर्तय।
(ग) धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्।

3. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि ॥
(क) वृद्धः कः अस्ति?
(ख) रावणः कीदृशः अस्ति?
(ग) कथं कुशली न गमिष्यसि?
उत्तराणि:
(क) वृद्धः जटायुः अस्ति।
(ख) रावणः युवा कवची, धन्वी शरी सरथः चास्ति।
(ग) मे वैदेहीम् आदाय कुशली न गमिष्यसि।

HBSE 9th Class जटायोः शौर्यम् Chapter 10

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III. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूलपदों के आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए)
(क) ‘जटायो! पश्य’ इति सीता वदति।
(ख) पतगेश्वरः रावणस्य चापं बभञ्ज।
(ग) परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय।
(घ) अरिन्दमः दशवामबाहून व्यपाहरत्।
उत्तराणि:
(क) ‘जटायो! पश्य’ इति का वदति?
(ख) कः रावणस्य चापं बभज?
(ग) कस्मात् नीचां मतिं निवर्तय?
(घ) अरिन्दमः कान् व्यपाहरत्?

IV. अधोलिखितेषु पदेषु विशेषण-विशेष्यान् पृथक् कृत्वा लिखत
(निम्नलिखित पदों में विशेषण-विशेष्य पृथक् करके लिखिए)
वनस्पतिगतं गृध्रम्, अवसुप्तः जटायुः, पर्वतशृङ्गाभः तीक्ष्णतुण्डः, पापकर्मणा राक्षसेन्द्रेण, मुक्तामणिविभूषितं चापम्
उत्तराणि:
विशेषणपदम् – विशेष्यपदम्
वनस्पतिगतम् – गृध्रम्
अवसुप्तः – जटायुः
पर्वतशृङ्गाभः – तीक्ष्णः
पापकर्मणा – राक्षसेन्द्रेण
मुक्तामणिविभूषितम् – चापम्

v. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. अवसुप्तः जटायुः तव किं शुश्रुवे?
(i) दुःखं
(ii) शब्दं
(iii) गीतं
(iv) क्रोधं
उत्तरम्:
(ii) शब्दं

2. जटायुः रावणं निरीक्ष्यं का ददर्श?
(i) रथां
(ii) वाणं
(iii) वैदेही
(iv) शास्त्रं
उत्तरम्:
(iii) वैदेहीं

3. तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः कः अस्ति?
(i) श्येनः
(ii) जटायुः
(iii) गरुडः
(iv) सर्पराजः
उत्तरम्:
(ii) जटायुः

4. युवा धन्वी सरथः कवची शरी च कः अस्ति?
(i) जटायुः
(ii) खगोत्तमः
(iii) वैदेही
(iv) रावणः
उत्तरम्:
(iv) रावणः

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5. पतगसत्तमः कस्य गात्रे बहुधा व्रणान् चकार?
(i) वानरस्य
(i) रावणस्य
(iii) सीतायाः
(iv) सुग्रीवस्य
उत्तरम्:
(ii) रावणस्य

6. ‘माम् + आर्य’ अत्र सन्धियुक्तपदम् अस्ति
(i) मामर्य
(ii) मामाऽर्य
(iii) मामार्य
(iv) ममार्य
उत्तरम्:
(iii) मामार्य

7. ‘खगोत्तमः’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(i) खगो + तमः
(ii) खग + ओत्तमः
(iii) खगोत्त + मः
(iv) खग + उत्तमः
उत्तरम्:
(iv) खग + उत्तमः

8. ‘निरीक्ष्य’ इति पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
(i) क्त
(ii) ठक्
(iii) क्त्वा
(iv) ल्यप्
उत्तरम्:
(iv) ल्यप्

9. ‘वैदेहीं’ इति पदस्य किं पर्यायपदम्?
(i) विदेहं
(ii) जानकी
(iii) विदेहीं
(iv) जानकं
उत्तरम्:
(ii) जानकी

10. “तदा अरिन्दमः दशवामबाहून व्यपाहरत्” इति वाक्ये अव्ययपदम् अस्ति
(i) तदा
(ii) अरिन्दमः
(iii) बाहून
(iv) दश
उत्तरम्:
(i) तदा

11. “महाबलः जटायुः” अत्र विशेष्यपदं किम्?
(i) महा
(ii) बलः
(iii) जटायुः
(iv) महाबलः
उत्तरम्:
(iii) जटायुः

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योग्यताविस्तारः
यह पाठ्यांश आदिकवि वाल्मीकि-प्रणीत रामायणम् के अरण्यकाण्ड से उद्धृत किया गया है जिसमें जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पंचवटी कानन में सीता का करुण विलाप सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। वे महाबली जटायु अपने तीखे नखों तथा पञ्जों से रावण के शरीर में अनेक घाव कर देते हैं, जिसके कारण रावण विरथ होकर पृथ्वी पर गिर पड़ता है। कुछ ही क्षणों बाद क्रोधांध रावण जटायु पर प्राणघातक प्रहार करता है परंतु पक्षिश्रेष्ठ जटायु उससे अपना बचाव कर उस पर चञ्चु-प्रहार करते हैं, उसके बायें भाग की दशों भुजाओं को क्षत-विक्षत कर देते हैं।

(क) कवि परिचय-महर्षि वाल्मीकि आदिकाव्य रामायण के रचयिता हैं। कहा जाता है कि वाल्मीकि का हृदय, एक व्याध द्वारा क्रीडारत क्रौञ्चयुगल (पक्षियों के जोड़े) में से एक के मार दिए जाने पर उसकी सहचरी के विलाप को सुनकर द्रवित हो गया तथा उनके मुख से शाप के रूप में जो वाणी निकली वह श्लोक के रूप में थी। वही श्लोक लौकिक संस्कृत का आदिश्लोक माना जाता है
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥

(ख) भाव विस्तार-जटायु–सूर्य के सारथी अरुण के दो पुत्र थे-सम्पाती और जटायु । जटायु पञ्चवटी वन के पक्षियों का राजा था जहाँ अपने पराक्रम एवं बुद्धिकौशल से शासन करता था। पञ्चवटी में रावण द्वारा अपहरण की गई सीता के विलाप को सुनकर जटायु ने सीता की रक्षा के लिए रावण के साथ युद्ध किया और वीरगति पाई। इस प्रकार राज-धर्म की रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले जटायु को भारतीय संस्कृति का महान नायक माना जाता है।

(ग) सीता विषयक सूचना देते हुए जटायु ने राम से जो वचन कहे वे इस प्रकार हैं
यामोषधीमिवायुष्मन्नन्वेषसि महावने। सा च देवी मम प्राणाः रावणेनोभयं हृतम् ॥

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भाषिकविस्तारः

(क) वाक्य प्रयोग
गिरम्-छात्रः मधुरां गिरम् उवाच ।
पतगेश्वरः-पक्षिराजः जटायुः पतगेश्वरः अपि कथ्यते।
शरी-शरी रावणः निःशस्त्रेण जटायुना आक्रान्तः।
विधूय-वीरः शत्रुप्रहारान् विधूय अग्रे अगच्छत्।
व्रणान्-चिकित्सकः औषधेन व्रणान् विरोपितान् अकरोत् ।
व्यपाहरत्-जटायुः रावणस्य बाहून् व्यपाहरत्।
आशु-स्वकार्यम् आशु सम्पादय।

(ख) स्त्रीप्रत्यय
टाप् प्रत्यय-करुणा, दुःखिता, शुभा, निम्ना, रक्षणीया
ङीप् प्रत्यय-विलपन्ती, यशस्विनी, वैदेही, कमलपत्राक्षी
ति प्रत्यय युवतिः
पुंल्लिङ्गः शब्दों से स्त्रीलिङ्गः पद निर्माण में टाप्-डीप्-ति प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। टाप् प्रत्यय का ‘आ’ तथा
ङीप् प्रत्यय का ‘ई’ शेष रहता है।
यथा
मूषक + टाप् = मूषिका
बालक + टाप् = बालिका
वत्स + टाप् = वत्सा
हसन् + डीप = हसन्ती
मानिन् + डीप = मानिनी
विद्वस् + डीप = विदुषी
श्रीमत् + ङीप् = श्रीमती
युवन् + ति = युवतिः

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HBSE 9th Class Sanskrit जटायोः शौर्यम् Important Questions and Answers

जटायोः शौर्यम् श्लोकों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ

1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुःखिता।
वनस्पतिगतं गृभं ददर्शायतलोचना ॥1॥

अन्वय-तदा सुदुःखिता करुणा वाचः विलपन्ती आयतलोचना सा वनस्पतिगतं गृधं ददर्श।

शब्दार्थ-वाचः = वाणी। विलपन्ती = विलाप करती हुई। सुदुःखिता = अत्यन्त दुःखी। वनस्पतिगतं = वृक्ष पर बैठे हुए। गृ = जटायु को। ददर्श = देखा। आयतलोचना = विशाल नेत्रों वाली।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में बताया गया है कि रावण द्वारा अपहृत सीता ने गृध्रराज जटायु को देखा।
सरलार्थ-उस समय अत्यन्त दुःखी हो, करुणाजनक बातें कहकर विलाप करती हुई विशाल नेत्रों वाली उसने (सीता) एक वृक्ष पर बैठे हुए गृध्रराज जटायु को देखा। ‘

भावार्थ-रावण सीता का अपहरण करके उन्हें आकाश मार्ग से लंका की ओर ले जा रहा था। विलाप करती हुई सीता ने एक वृक्ष पर पक्षिराज जटायु को बैठे देखा।

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2. जटायो पश्य मामार्य हियमाणामनाथवत्।
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ॥2॥

अन्चय-आर्य जटायो! अनेन पापकर्मणा राक्षसेन्द्रेण अनाथवत् ह्रियमाणाम् करुणं माम् पश्य।

शब्दार्थ-जटायो = हे जटायु । ह्रियमाणाम् = हरकर ले जाई जाती हुई। अनाथवत् = अनाथ की भाँति । राक्षसेन्द्रेण = राक्षसों के राजा द्वारा। पापकर्मणा = नीच कर्म करने वाले। माम् पश्य = मुझे देखो।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में बताया गया है कि जटायु को देखकर सीता करुण क्रन्दन करते हुए कहती हैं कि
सरलार्थ-हे जटायु! देखो, यह नीच कर्म करने वाला राक्षसराज रावण, अनाथ की भाँति दुःखी मुझे निर्दयतापूर्वक हरकर लिए जा रहा है।

भावार्थ भाव यह है कि रावण अनाथ की भाँति सीता का अपहरण करके ले जा रहा है। वे जटायु को बताना चाहती हैं कि इसकी सूचना आप मेरे स्वामी को दे देना। क्योंकि रावण बहुत ही बलवान् है। इससे युद्ध करना आपके सामर्थ्य से बाहर है।

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3. तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः ॥3॥

अन्वय-अथ.तु अवसुप्तः जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे। सः च रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं वैदेहीं ददर्श।

शब्दार्थ-अथ = इसके बाद । अवसुप्तः = आधे सोए हुए। शुश्रुवे = सुना। निरीक्ष्य = देखकर। क्षिप्रम् = जल्दी, शीघ्र ही। वैदेहीं = सीता को। ददर्श = देखा।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। .. इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में बताया गया है कि विलाप करती हुई सीता के रोने की आवाज सुनकर सोया हुआ जटायु जाग गया।

सरलार्थ-इसके बाद आधे सोए हुए पक्षिराज जटायु ने उस शब्द को सुना और रावण को अच्छी प्रकार से देखकर उन्होंने शीघ्र ही सीता को देखा।

” भावार्थ-सीता का करुण विलाप सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु ने देखा कि लंकापति रावण सीता को लेकर जा रहा है। शीघ्र ही उन्होंने सीता की तरफ देखा तथा उनकी सहायता के लिए दौड़ पड़े।

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4. ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः।
वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम् ॥4॥

अन्वय-ततः पर्वतशृङ्गाभः तीक्ष्णतुण्डः वनस्पतिगतः श्रीमान् खगोत्तमः शुभां गिरम् व्याजहार |

शब्दार्थ-पर्वतशृङ्गाभः = पर्वत के शिखर की शोभा वाले। श्रीमान् = शोभायुक्त। खगोत्तमः = श्रेष्ठ पक्षी। वनस्पतिगतः = वृक्ष पर स्थित। व्याजहार = बोले। गिरम् = वाणी।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि
रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में बताया गया है कि सीता के विलाप को सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु ने क्या किया।

सरलार्थ-पर्वत के शिखर की शोभा वाले, तीक्ष्ण चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित, शोभायुक्त उस श्रेष्ठ पक्षी जटायु ने सुन्दर वाणी में इस प्रकार कहा।
भावार्थ पक्षियों में श्रेष्ठ श्रीमान् जटायु का शरीर पर्वत-शिखर के समान ऊँचा था और उनकी चोंच बड़ी ही तीखी थी। वे पेड़ पर बैठे-बैठे ही रावण को लक्ष्य करके यह वचन बोले।

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5. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात् ।
न तत्समाचरेधीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ॥5॥

अन्वय-परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय, धीरः न तत्समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्।

शब्दार्थ-निवर्तय = हटा लो। मतिं = बुद्धि को। नीचां = नीच, अनुचित। परदाराभिमर्शनात् = पराई स्त्री के स्पर्श से। समाचरेत् = आचरण करना चाहिए। धीरः = धैर्यवान्, बुद्धिमान। परः = अन्य लोग। विगर्हयेत् = निन्दा करें।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में बताया गया है कि पक्षिश्रेष्ठ जटायु ने रावण को समझाते हुए कहा सरलार्थ हे रावण! पराई स्त्री के स्पर्श के दोष से अपनी अनुचित बुद्धि को हटा लो। बुद्धिमान् को ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए, जिससे अन्य लोग उसकी निन्दा करें।

भावार्थ हे रावण! पराई स्त्री के स्पर्श से जो नीच गति प्राप्त होने वाली है, उससे तुम अपने-आपको दूर हटा लो क्योंकि बुद्धिमान् मनुष्य को वैसा कर्म नहीं करना चाहिए जिससे अन्य लोग उसकी निन्दा करें।

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6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्ची सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेही मे गमिष्यसि ॥6॥

अन्वय-अहं वृद्धः, त्वं धन्ची, शरी कवची, सरथः युवा, च अपि मे वैदेही आदाय कुशली न गमिष्यसि।

शब्दार्थ युवा = युवक। धन्ची = धनुर्धारी। सरथः = रथयुक्त। कवची = कवचधारी। शरी = बाणधारी । आदाय = लेकर। वैदेहीं = सीता को। मे = मेरे (पास से)। कुशली = कुशलतापूर्वक । गमिष्यसि = तुम जाओगे।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में बताया गया है कि जटायु रावण को सावधान करते हुए कहते हैं कि

सरलार्थ मैं तो वृद्ध हूँ, किन्तु तुम धनुष-बाण धारण करने वाले, कवचधारी और रथ पर सवार युवक हो, फिर भी तुम सीता को लेकर यहाँ से (मेरे पास से) कुशलतापूर्वक नहीं जा सकते।

भावार्थ-जटायु रावण से कहते हैं कि मैं वृद्ध हो चुका हूँ जबकि तुम अस्त्र-शस्त्र सम्पन्न युवक हो, फिर भी तुम सीता को आसानी से नहीं ले जा सकते। तुम मेरे सामने विदेह नन्दिनी सीता का बलपूर्वक अपहरण नहीं कर सकते।

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7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।
चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः ॥7॥

अन्वय-पतगसत्तमः महाबलः तु तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्याम् तस्य गात्रे बहुधा व्रणान् चकार।

शब्दार्थ-तीक्ष्णनखाभ्याम् = तेज नाखूनों से। चरणाभ्याम् = दोनों पैरों से। महाबलः = अत्यन्त बलशाली। चकार = कर दिए। तस्य गात्रे = उसके (रावण के) शरीर पर। व्रणान् = घाव। पतगसत्तमः = पक्षियों में श्रेष्ठ।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्” में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में बताया गया है कि जटायु ने रावण पर किस प्रकार से प्रहार किया।
सरलार्थ-पक्षियों में श्रेष्ठ अत्यन्त शक्तिशाली पक्षी (जटायु) ने अपने तेज नाखूनों तथा दोनों पैरों से उसके (रावण) शरीर पर प्रहारों से अनेक प्रकार के घाव कर दिए।

भावार्थ भाव यह है कि पक्षिश्रेष्ठ जटायु ने अपने पंखों एवं नाखूनों से प्रहार करके अत्यन्त बलशाली रावण को घायल कर दिया।

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8. तोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्।
चरणाभ्यां महातेजा बभजास्य महद्धनुः ॥8॥

अन्वय-ततः महातेजा मुक्तामणिविभूषितम् अस्य सशरं चापं महद्धनुः चरणाभ्यां बभञ्ज।

शब्दार्थ-सशरं चापं = बाण सहित धनुष। मुक्तामणिविभूषितम् = मोतियों की मणियों से विभूषित। महातेजा = महान तेजस्वी। चरणाभ्यां = दोनों पैरों से। बभज = तोड़ दिया। महद्धनः = विशाल धनुष को।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में जटायु की वीरता का वर्णन किया गया है।

सरलार्थ महान् तेजस्वी पक्षिराज जटायु ने मोतियों की मणियों से विभूषित बाण सहित रावण के विशाल धनुष को दोनों पैरों से प्रहारकर तोड़ दिया।
भावार्थ मोती की मणियों से सुशोभित रावण के विशाल धनुष को जटायु ने अपने पैरों के प्रहार से ही तोड़ दिया। इससे जटायु के अतिशय पराक्रम का पता चलता है।

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

9. स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
तलेनाभिजघानाशु जटायु क्रोधमूर्छितः ॥७॥

अन्वय-क्रोधमूर्छितः हतसारथिः विरथः हताश्वः भग्नधन्वा स जटायुं तलेन आशु अभिजघान।

शब्दार्थ-भग्नधन्वा = टूटे हुए धनुष वाला। विरथः = रथ-विहीन। हताश्वः = मारे गए घोड़ों वाला। हतसारथिः = मारे जा चुके सारथी वाला। तलेन = तलवार की मूठ से। अभिजधान = प्रहार किया। आशु = शीघ्र। क्रोधमूर्छितः = क्रोध से पागल।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में बताया गया है कि क्रोध में अंधा रावण जटायु पर प्रहार करता है।

सरलार्थ-टूटे हुए धनुष वाला, रथविहीन, मारे गए अश्वों एवं सारथी वाले रावण ने तलवार की मूठ से शीघ्र ही जटायु पर खतरनाक प्रहार किया।

भावार्थ-जटायु ने रावण पर प्रहार करके उसके धनुष एवं रथ को तोड़ दिया। अश्वों तथा सारथी को भी मौत के घाट उतार दिया। जटायु के प्रहार से घबराए हुए रावण ने अपने बचाव के लिए जटायु पर उलट वार किया। उसने अपने तलवार की मूठ से ही उस (जटायु) पर प्रहार किया।

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10. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः।
वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ॥10॥

अन्वय-तदा अरिन्दमः खगाधिपः तम् अतिक्रम्य तुण्डेन अस्य दशवामबाहून व्यपाहरत्।

शब्दार्थ-अतिक्रम्य = अतिक्रमण करके उस प्रहार से बचकर। तुण्डेन = चोंच से। दशवामबाहून = दसों बाईं भुजाओं को। व्यापहरत् = नष्ट कर दिया। अरिन्दमः = शत्रुविनाशक।।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘जटायोः शौर्यम्’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित ‘रामायणम्’ के अरण्यकाण्ड से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में बताया गया है कि रावण के प्रहार से बचकर जटायु ने रावण की दसों भुजाओं को खण्डित कर दिया।

सरलार्थ-इसके बाद उस प्रहार से बचकर शत्रु विनाशक पक्षिराज जटायु ने अपनी चोंच से उसकी (रावण की) बाईं ओर की दसों भुजाओं को नष्ट कर दिया।

भावार्थ-क्रोध में अंधा बना हुआ रावण जब अपनी तलवार की मूठ से जटायु पर प्रहार करता है, उस समय जटायु अपना बचाव कर लेते हैं। वे पुनः अपनी चोंच से मार-मारकर रावण की बाईं ओर की दसों भुजाओं को छिन्न-भिन्न कर देते हैं।

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अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) आयतलोचना का अस्ति?
(ख) सा कं ददर्श?
(ग) खगोत्तमः कीदृशीं गिरं व्याजहार?
(घ) जटायुः काभ्यां रावणस्य गात्रे व्रणं चकार?
(ङ) अरिन्दमः खगाधिपः कति बाहून् व्यपाहरत्?
उत्तराणि:
(क) वैदेही सीता,
(ख) गृधं,
(ग) शुभां,
(घ) तीक्ष्णनखाभ्यां,
(ङ) वामदशबाहून्।

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2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) “जटायो! पश्य” इति का वदति?
(ख) जटायुः रावणं किं कथयति?
(ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यतः अभवत् ?
(घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभज?
(ङ) जटायुः केन वामबाहुं दंशति?
उत्तराणि:
(क) “जटायो! पश्य” इति सीता वदति।
(ख) जटायुः रावणं अकथयत्-‘परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय। धीरः न तत् समाचरेत् यत् परः – अस्य विगर्हयेत्।
(ग) क्रोधवशात् रावणः जटायुं हन्तुम् उद्यतः अभवत्।
(घ) पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं बभञ्ज।
(ङ) जटायुः तुण्डेन वामबाहुं दंशति।

3. उदाहरणमनुसत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत
(उदाहरण के अनुसार णिनि प्रत्यय का प्रयोग करके शब्द बनाइए)
गुण + णिनि – गुणिन् (गुणी)
दान + णिनि – दानिन् (दानी)
(क) कवच + णिनि – …………………….
(ख) शर + णिनि – …………………….
(ग) कुशल + णिनि – …………………….
(घ) धन + णिनि – …………………….
(ङ) दण्ड + णिनि – …………………….
उत्तराणि:
(क) कवच + णिनि – कवचिन् (कवची)
(ख) शर + णिनि शरिन् (शरी)
(ग) कुशल + कुशलिन् (कुशली)
(घ) धन + णिनि – धनिन् (धनी)
(ङ) दण्ड + णिनि – दण्डिन् (दण्डी)

(अ) रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत
(रावण और जटायु के विशेषण शब्द सम्मिलित रूप में दिए गए हैं। उन्हें अलग-अलग करके लिखिए)
युवा, सशरः, वृद्धः, हताश्वः, महाबलः, पतगसत्तमः, भग्नधन्वा, महागृध्रः, खगाधिपः, क्रोधमूर्छितः, पतगेश्वरः, सरथः, कवची, शरी
यथा
रावणः – जटायुः
युवा – वृद्धः
………………., ……………………….
………………., ……………………….
………………., ……………………….
………………., ……………………….
उत्तराणि

रावणः जटायु:
सशरः महाबल:
हताश्वः पतगसत्तमः
भग्नधन्वा महागृध्र:
क्रोधमूर्च्छितः खगाधिप:
सरथः पतगेश्वर:
कवची
शरी

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4. ‘क’ स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः ‘ख’ स्तम्भे लिखिताः। तान् यथासमक्षं योजयत
(स्तम्भ ‘क’ में लिखे गए शब्दों के पर्यायवाची शब्द स्तम्भ ‘ख’ में लिखे गए हैं। उन्हें ठीक एक-दूसरे के सामने जोड़िए)

(क) कवची अपतत्
(ख) आशु पक्षिश्रेष्ठ:
(ग) विरथः पृथिव्याम्
(घ) पपात कवचधारी
(ङ) भुवि शीप्रम्
(च) पतगसत्तमः रथविहीनः

उत्तराणि

(क) कवची (1) कवचधारी
(ख) आशु (2) शीघ्रम
(ग) विरथः (3) रथविहीन:
(घ) पपात (4) अपतत्
(ङ) भुवि (5) पृथिव्याम्
(च) पतगसत्तमः (6) पक्षिश्रेष्ठ:

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5. अधोलिखितानां पदानां/विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत
(निम्नलिखित शब्दों विलोम शब्दों के ठीक सामने मञ्जूषा में दिए गए शब्दों में से चुनकर लिखिए)
मन्दम् पुण्यकर्मणा हसन्ती अनार्य अनतिक्रम्य देवेन्द्रेण प्रशंसेत् दक्षिणेन युवा
पदानि – विलोमशब्दाः
(क) विलपन्ती …………………….
(ख) आर्य …………………….
(ग) राक्षसेन्द्रेण …………………….
(घ) पापकर्मणा …………………….
(ङ) क्षिप्रम् …………………….
(च) विगर्हयेत् …………………….
(छ) वृद्धः …………………….
(ज) वामेन …………………….
(झ) अतिक्रम्य …………………….
उत्तराणि:
पदानि – विलोमशब्दाः
(क) विलपन्ती – हसन्ती
(ख) आर्य – अनार्य
(ग) राक्षसेन्द्रेण – देवेन्द्रेण
(घ) पापकर्मणा – पुण्यकर्मणा
(ङ) क्षिप्रम् – मन्दम्
(च) विगर्हयेत् – प्रशंसेत्
(छ) वृद्धः – युवा
(ज) वामेन – दक्षिणेन
(झ) अतिक्रम्य – अनतिक्रम्य

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6. (अ) अधोलिखितानि विशेषणपदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि रचयत
(निम्नलिखित विशेषण शब्दों का प्रयोग करके संस्कृत में वाक्य बनाइए)
(क) शुभाम्
(ख) खगाधिपः
(ग) हतसारथिः
(घ) वामेन
(ङ) कवची
उत्तराणि:
(क) शुभाम् (सुन्दर)-जटायुः रावणं शुभां गिरं व्याजहार।
(ख) खगाधिपः (पक्षिराज)-जटायुः खगाधिपः आसीत्।।
(ग) हतसारथिः (मारे गए सारथी वाला)-हतसारथिः रावणः भुवि अपतत्।
(घ) वामेन (बायीं)-नीतिः वामेन हस्तेन लिखति।
(ङ) कवची (कवचधारी)-रावणः कवची आसीत्।

(आ) उदाहरणमनुसृत्य समस्तं पदं रचयत
(उदाहरण के अनुसार समस्तपद बनाइए)
यथा त्रयाणां लोकानां समाहारः – त्रिलोकी
(क) पञ्चानां वटानां समाहारः – ………………………..
(ख) सप्तानां पदानां समाहारः – ………………………..
(ग) अष्टानां भुजानां समाहारः – ………………………..
(घ) चतुर्णां मुखानां समाहारः – ………………………..
उत्तराणि:
(क) पञ्चानां वटानां समाहारः – पञ्चवटी
(ख) सप्तानां पदानां समाहारः – सप्तपदी
(ग) अष्टानां भुजानां समाहारः – अष्टभुजी
(घ) चतुर्णा मुखानां समाहारः – चतुर्मुखी

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जटायोः शौर्यम् (जटायु की वीरता) Summary in Hindi

जटायोः शौर्यम् पाठ-परिचय

प्रस्तुत पाठ संस्कृत-साहित्य के आदिकवि महर्षि वाल्मीकि-प्रणीत ‘रामायणम्’ के ‘अरण्यकाण्ड’ से उद्धृत है। ऐसा माना जाता है कि वाल्मीकि का हृदय एक व्याध द्वारा क्रीडारत क्रौञ्चयुगल में से एक के मार दिए जाने पर उसकी सहचरी के विलाप को सुनकर द्रवित हो गया था। आर्तहृदय वाले उनके मुख से शाप के रूप में जो वाणी निकली थी, वही वाणी रूपी श्लोक लौकिक संस्कृत-साहित्य का आदिश्लोक माना जाता है। इसी कारण वाल्मीकि को आदिकवि तथा उनके द्वारा रचित ‘रामायणम्’ को आदिकाव्य माना जाता है।

दशम श्लोकों वाले प्रस्तुत पाठ में जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पंचवटी वन में सीता के करुण विलाप को सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। वे रावण को दूसरे की स्त्री के स्पर्श से दोषयुक्त, निन्द्य एवं दुष्कर्म से विरत होने के लिए कहते हैं। रावण की अपरिवर्तित मनोवृत्ति को देखकर वे उस पर भयावह आक्रमण करते हैं। महाबली जटायु अपने तीखे नाखूनों एवं पंजों से रावण के शरीर में अनेक घाव कर देते हैं। यहाँ तक कि पंजों के प्रहार से उसके विशाल धनुष को भी खंडित कर देते हैं। टूटे धनुष, मारे गए सारथी एवं अश्वों वाला क्रोध से अंधा बना रावण जटायु पर प्राण घातक प्रहार करता है, परन्तु पक्षिश्रेष्ठ जटायु अपना बचाव कर उस पर चोंचों से प्रहार करते हैं और उसके बाएँ भाग की दसों भुजाओं को क्षत-विक्षत कर देते हैं।

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