HBSE 9th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Pratyay प्रत्यय Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

प्रत्यय एवं उपसर्ग
(क)  प्रत्यय
जो शब्दों एवं धातुओं के आगे जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। संस्कृत भाषा में संज्ञा एवं विशेषण बनाने के लिए दो प्रकारों के प्रत्ययों का प्रयोग होता है-कृत् प्रत्यय एवं तद्धित प्रत्यय। धातुओं से जुड़ने वाले प्रत्ययों को कृत् प्रत्यय कहते हैं। प्रातिपदिक (संज्ञा शब्दों) से जुड़ने वाले प्रत्ययों को तद्धित प्रत्यय कहते हैं। इन्हीं प्रत्ययों का विवेचन प्रस्तुत है

Pratyay In Sanskrit Class 9 HBSE

1. कृत् प्रत्यय

कृत् प्रत्यय से निष्पन्न होने वाले शब्दों को ‘कृदंत’ शब्द कहते हैं। कृत् प्रत्यय में कुछ प्रत्यय भूतकालिक हैं, कुछ वर्तमानकालिक हैं तथा कुछ विधिवाचक प्रत्यय हैं

(क) भूतकालिक कृत् प्रत्यय
क्त, क्तवतु, क्त्वा, तुमुन्, ल्यप् आदि प्रत्ययों का प्रयोग भूतकालिक कृत् प्रत्ययों के रूप में होता

क्त – क्त प्रत्यय का प्रयोग कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य एवं भाववाच्य में किया जाता है। इस प्रत्यय का केवल ‘त’ शेष रहता है; जैसेसः गतः। यहाँ पर गम् धातु + क्त प्रत्यय = गम् + त (क्त) = गम् के मकार का लोप होकर ग + त = गतः बनता है।

क्तवतु क्तवतु प्रत्यय का प्रयोग केवल कर्तृवाच्य में होता है। इस प्रत्यय के लगने से क्रिया की समाप्ति का बोध होता है। क्तवतु प्रत्यय का ‘त्वत्’ शेष रहता है; जैसे-रामः पाठं पठितवान्। यहाँ पठ् धातु + क्तवतु = पठ् + त्वत् = पठितवान् बना। क्त तथा क्तवतु प्रत्ययों के रूप स्त्रीलिङ्ग, पुंल्लिङ्ग एवं नपुंसकलिङ्ग, तीनों लिङ्गों में चलते हैं एवं विशेषण के अनुसार सातों विभक्तियों में इन प्रत्ययों के रूप चलते हैं। इन दोनों प्रत्ययों के उदाहरण तीनों लिङ्गों में नीचे दिखाए जा रहे हैं

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

क्त प्रत्यय

धातुपुंल्लिड्गनपुंसकलिडून्यस्त्रीलिडूग
गम्गतःगतम्गता
पठ्पठितःपठितम्पठिता
धाव्धावितःधावितम्धाविता
हस्हसितःहसितम्हसिता
पत्पतितःपतितम्पतिता
क्रीडक्रीडितःक्रीडितम्क्रीडिता
चल्चलितःचलितम्चलिता
खाद्खादितःखादितम्खादिता
पच्पक्वःपक्वम्पक्वा
नम्नतःनतम्नता

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

क्तवतु प्रत्यय

धातुपुंल्लिड्गनपुंसकलिडून्यस्त्रीलिडूग
गम्गतवान्गतवत्गतवत्री
पठ्पठितवान्पठितवत्पठितवती
धाव्धावितवान्धावितवत्धावितवती
हस्हसितवान्हसिवत्हसितवती
पत्पतितवान्पतितवत्पतितवती
क्रीडक्रीडितवानूकीडिवत्क्रीडितवती
चल्चलितवान्चलितवत्चलितवती
खाद्खादितवान्खदितवत्खादितवती
पच्पक्ववान्पक्ववत्पक्ववती
नम्नतवान्नतवत्नतवती

Pratyay Class 9 Sanskrit HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

क्त्वा तथा तमन् प्रत्यय

क्त्वा तथा तुमुन् दोनों प्रत्ययों का प्रयोग पूर्वकालिक क्रिया के रूप में होता है तथा इनसे निर्मित शब्द अव्यय के समान प्रयुक्त होते हैं। दोनों प्रत्ययों में अंतर यह है कि जहाँ ‘क्त्वा’ का अर्थ ‘करके’ है, वहीं तुमुन् का अर्थ ‘के लिए’ है। क्त्वा में ‘त्वा’ शेष रहता है। तुमुन् में ‘तुम्’ शेष रहता है।
क्त्वा प्रत्यय

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
पठ्पठित्वाकथूकथयित्वा
चल्चलित्वागण्गणयित्वा
हस्हसित्वाचुरचोरयित्वा
रक्षरक्षित्वापापीत्वा
रच्रचयित्वाज्ञाज्ञात्वा
भक्ष्भक्षयित्वाछिद्छित्वा
दादत्वायजइष्ट्वा
जिजित्वाप्रच्छ्प्रष्ट्वा
नीनीत्वाट्टश्दृष्ट्वा
भीभीत्वानश्नष्ट्वा
शीशयित्वास्पृश्स्पृष्ट्वा
भूभूत्वा

तुमुन् प्रत्यय

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
अर्च्अर्चयितुम्नशनष्टुम्
कुजकूजयितुम्भ्रम्भ्रमितुम्
भूभवितुम्तुष्तोष्टुम्
पठ्पठितुम्चुर्चोरयितुम्
स्थास्थातुम्कथ्कथयितुम्
गम्गन्तुम्भक्ष्भक्षयितुम्
ब्रूवक्तुम्क्षाल्क्षालयितुम्
नीनेतुम्चल्चलितुम्

Class 9 Sanskrit Pratyay HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

ल्यप् प्रत्यय
किसी धातु के आरंभ में उपसर्ग (प्र, परा, अप, सम आदि) लगा हो तो क्त्वा के स्थान पर ल्यप् हो जाता है। ल्यप् प्रत्यय का केवल ‘य’ शेष रहता है।

उपसर्गधातुप्रत्ययान्त शब्द उत्
उत्+स्थाउत्थाय
उत्+प्लुउत्प्लुत्य
प्र+हृप्रहत्य
सम्+हृसहत्य
परि+हृपरिहत्य
वि+ज्ञाविज्ञाय
+दाआदाय
प्र+नश्प्रणश्य
वि+स्मृविस्मृत्य
+वृत्आवृत्य
वि+कृविकीर्य
अव+तृअवतीर्य
अनु+भूअनुभूय

Pratyay Sanskrit Class 9 HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

(ख) वर्तमानकालिक कृत् प्रत्यय
वर्तमानकालिक कृत् प्रत्यय के अन्तर्गत शतृ तथा शानच् प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। परस्मैपदी धातुओं से शतृ प्रत्यय तथा आत्मनेपदी धातुओं से शानच् जोड़ा जाता है। ‘करता हुआ’ अर्थ को बताने के लिए इन दोनों प्रत्ययों का प्रयोग होता है।
शतृ प्रत्यय
‘शतृ’ प्रत्यय का ‘अत्’ शेष बचता है।

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
भूभवत्स्थातिष्ठत्
पापिबत्पठ्पठत्
घ्राजिघ्रत्इशपश्यत्
गैगायत्गम्गच्छत्
तुष्तुष्यत्हस्हसत्
दायच्छत्क्रीड्क्रीडत्
खाद्खादत्वद्वदत्
सद्सीदत्स्मृस्मरत्
नम्नमत्त्यज्त्यजत्
रक्षरक्षत्नृत्नृत्यत्
पत्पतत्पच्पचत्
चल्चलत्श्रुश्रुण्वत्
चुर्चोरयत्इष्इच्छत्

शानच् प्रत्यय
शानच् प्रत्यय में ‘आन’ तथा ‘मान’ शेष बचता है। इनमें भ्वादिगण, दिवादिगण, तुदादिगण तथा चुरादिगण की धातुओं के साथ शानच् प्रत्यय के स्थान पर ‘मान’ जुड़ता है। शेष गणों में धातु के साथ ‘आन’ जुड़ता है।
1. भ्वादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
सेव्सेवमानःभाष्भाषमाण:
लभूलभमानःवृत्वर्तमानः
ईक्ष्ईक्षमाण:वृध्वर्धमानः

Sanskrit Pratyay Class 9 HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

2. दिवादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
मन्मन्यमानःखिद्द्खिद्यमानः
जनूजायमानःयुध्युध्यमानः
विद्विद्यमानःयुजूयुज्यमानः

3. तुदादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
मुच्मुल्चमानःमृम्रियमाणः
विद्विन्दमानःसिच्सिज्चमानः
तुद्तुदमानः

4. चुरादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
चुर्चोरयमाण:कथ्कथयमानः
भक्षभक्षयमाण:रच्रचयमाणः
दण्ड्दण्डयमानःतुल्तोलयमान:

5. तनादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
कृकुर्वाणःतन्तन्वानः
मन्मन्वातः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

6. अदादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
दुह्दुहान:शीशयानः
असआसीनः

7. जुहोत्यादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
धादधानःदाददानः

8. रुधादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
रुध्रुन्धानःभुज्भुज्जानः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

9. क्रयादिगण

धातुप्रत्ययान्त शब्दधातुप्रत्ययान्त शब्द
क्रीक्रीणानःज्ञाज्ञानान:
गृह्गृह्णानः

विधि कृदन्त प्रत्यय

चाहिए एवं योग्य अर्थ को प्रकट करने के लिए विधि कृदन्त प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। इनमें दो प्रत्यय मुख्य हैं-तव्यत् प्रत्यय व अनीयर प्रत्यय। क्रिया-रूप में इनका प्रयोग कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में होता है। तव्यत् में ‘तव्य’ एवं अनीयर में ‘अनीय’ शेष बचता है।

धातुतव्यत् प्रत्ययान्त रूपअनीयर् प्रत्ययान्त रूप
अर्चअर्चितव्यःअर्चनीयः
कूजूकूजितव्य:कूजनीय:
भूभवितव्यःभवनीयः
पठ्पठितव्य:पठनीय:
स्थास्थातव्यःस्थानीयः
पापातव्य:पानीयः
गम्गन्तव्यःगमनीयः
ब्रू (वच्)वक्तव्यःवचनीय:
नीनेतव्य:नयनीयः
टृश्द्रष्टव्य:दर्शनीयः
समृस्मर्तव्य:स्मरणीयः
दादातव्य:दानीयः
सह्सोढव्यःसहनीयः
इष्एष्ट्व्यःएषणीयः
स्पृश्स्प्रष्टव्यःस्पर्शनीयः
पृच्छ्प्रष्टव्यःप्रश्नीय:
दिव्देवितव्यःदेवनीय:
नृत्नर्तितव्यःनर्तनीय:
कृकर्तव्यकरणीयः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

2. तद्धित प्रत्यय

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण तथा अव्यय में प्रत्यय लगाकर जो नए शब्द बनते हैं, वे तद्धित प्रत्ययान्त शब्द कहलाते हैं तथा उन प्रत्ययों को तद्धित प्रत्यय कहते हैं। तद्धित प्रत्यय लगने पर नए शब्दों के अर्थ भी मूल शब्दों से भिन्न हो जाते हैं। इनमें त्व, तल्, मतुप तथा ठक् प्रत्यय प्रमुख हैं।

त्व प्रत्यय

शब्द के अन्त में ‘त्व’ जुड़ जाने पर वह शब्द नपुंसकलिंग में प्रयुक्त होता है। भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए त्व प्रत्यय लगाया जाता है।

शब्दप्रत्ययान्त शब्दशब्दप्रत्ययान्त शब्द
पशुपशुत्वम्महत्महत्चम्
नारीनारीत्वम्लघुलघुत्वम्
गुरुगुरुत्वम्जनजनत्वम्
मृदुमुदुत्वम्बन्धुबन्धुत्वम्
मित्रमित्रत्वम्मानवमानवत्वम्
सज्जनसज्जनत्वम्सुरसुरत्वम्

तल प्रत्यय

स्त्रीलिंग में भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए ‘तल्’ प्रत्यय भी लगाया जाता है। तल के स्थान पर ‘ता’ हो जाता है। प्रत्ययान्त शब्द शब्द

शब्दप्रत्ययान्त शब्दशब्दप्रत्ययान्त शब्द
शत्रुशत्तुताप्रियप्रियता
मधुरमधुरताहास्यहास्यता
बन्धुबन्धुताखिन्रखिन्नता
मुग्धमुग्धताशूद्रशूद्रता
गुरुगुरुतापृथुपृथुता

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

मतुप् प्रत्यय
इस प्रत्यय का प्रयोग ‘वाला’ अर्थ प्रकट करने के लिए किया जाता है। प्रत्यय का केवल ‘मत्’ ही शेष रह जाता है। यह अधिकतर इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारान्त और ओकारान्त आदि शब्दों में जुड़ता है।

इकारान्त शब्द

शब्दप्रत्ययान्त शब्दशब्दप्रत्ययान्त शब्द
अगिनअग्निमत्गतिगतिमत्
शक्तिशक्तिमत्बुद्धिबुद्धिमत्

ईकारान्त शब्द

शब्दप्रत्ययान्त शब्दशब्दप्रत्ययान्त शब्द
धीधीमत्श्रीश्रीमत्
हृीह्रीमत्

उकारान्त शब्द

शब्दप्रत्ययान्त शब्दशब्दप्रत्ययान्त शब्द
भनीभानुमत्अंशुअंशुमत्
मधुमधुमत्

ऊकारान्त शब्द
शब्द – प्रत्ययान्त शब्द
वधू – वधूमत्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

ओकारान्त शब्द
शब्द – प्रत्ययान्त शब्द
गो – गोमत्

हलन्त शब्द

शब्दप्रत्ययान्त शब्दशब्दप्रत्ययान्त शब्द
धनुष्धनुष्मत्गुरुत्गुरुत्मत्
ककुद्ककुमत्

ठक् प्रत्यय

शब्द में ठक् के स्थान पर ‘अक्’ जुड़ जाता है। ठक् प्रत्यय का प्रयोग भाववाचक संज्ञा के अर्थ के रूप में होता है।

शब्दप्रत्ययान्त शब्दशब्दप्रत्ययान्त शब्द
धर्मधार्मिक:अस्तिआस्तिकः
समाजसामाजिक:पक्षिपाक्षिक:
अधर्मअधार्मिकःवर्षवार्षिक:
न्यायनैयायिक:सप्ताहसाप्ताहिक:
वेदवैदिक:हरिणहारिणिकः
इतिहासऐतिहासिकःमयूरमायूरिकः
भूतभौतिक:मासमासिक:

स्त्री प्रत्यय

संस्कृत में कुछ शब्द तो मौलिक रूप से ही पुंल्लिङ्ग या स्त्रीलिङ्ग होते हैं और कुछ शब्द प्रत्यय जोड़कर पुंल्लिङ्ग से स्त्रीलिङ्ग बनाए जाते हैं; जैसे

मूलतः स्त्रीलिङ्ग शब्द-लता, प्रजा, मति, बुद्धिः, गति, नदी, स्त्री, धेनू, वधु, नौ इत्यादि। जिन प्रत्ययों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बना है, उन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं। टाप् तथा ङीप् मुख्य स्त्री प्रत्यय हैं।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

टाप् प्रत्यय

शब्दप्रत्ययान्त शब्दशब्दप्रत्ययान्त शब्द
सुतसुताअजअजा
अश्वअश्वाचटकचटका
क्षत्रियक्षत्रियाकृपणकृपण
सरलसरलाप्रथमपृथपण
चतुरचतुरादक्षदक्ष
अनुकूलअनुकूलामध्यममध्यम

ङीप प्रत्यय

ऋकारान्त और नकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय जोड़ देते हैं। ङीप् प्रत्यय का ‘ई’ शेष रह जाता है ‘ङ’ और ‘प्’ का लोप हो जाता है।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्तनकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्त
धातृधात्रीदण्डिन्दण्डिनी
हन्तृहन्त्रीपयस्विन्पयस्विनी
नेतृनेत्रीयामिन्यामिनी
अभिनेत्रीअभिनेत्रीदामिन्दामिनी
कवयितृकवयित्रीभामिन्भामिनी
धातृधात्रीदण्डिन्दण्डिनी

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

मतुप, वतुप, ईयसुन, वस, क्तवतु प्रत्ययान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय जोड़ देते हैं।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्तनकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्त
श्रीमत्श्रीमतीविद्वस्विदुषी
भवत्भवतीभगवत्भगवती
रूपवत्रूपवतीगतवत्गतवती
प्रेयस्प्रेयसीगरीयस्गरीयसी

डीप से पूर्व ‘आनुक’ का भी आगम होता है। ‘आनुक’ के ‘आन’ में ‘ई’ प्रत्यय जोड़ देते हैं।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्तनकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्त
शिवशिवानीइन्द्रइन्द्रानी
मातुलमातुलानीहिमहिमानी
आचार्यआचार्याणीअरण्यअरण्यानी

कुछ शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए अन्त में ‘ऊ’ प्रत्यय भी जोड़ते हैं।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्तनकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्त
श्वसुरश्वश्रूकुरूकुरु
पंगूपंगूब्रह्मबन्धुब्रह्मबन्धू

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

अकारान्त शब्दों के पीछे ‘ई’ प्रत्यय जोड़कर ‘स्त्रीलिङ्ग’ शब्द बनते हैं।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्तनकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्त
काककाकीसिंहसिंही
मृगमृगीहयहयी
शूकरशूकरीव्याघ्रव्याघ्री
सूरीशुकशुकीशुकी

प्रथम (आयु) के वाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग में डीप् (ई) प्रत्यय का प्रयोग होता है।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्तनकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्त
कुमारकुमारीतरुणतरुणी
किशोरकिशोरीवधूटवधूटी

विशेषणवाचक उकारान्त शब्दों के ‘उ’ का ‘व’ हो जाता है तथा बाद में ‘ई’ प्रत्यय लगता है।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्तनकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्त
लघुलघ्वीगुरुगुर्वी
पट्पट्वीमधुमधवी

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

शतृ प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए भ्वादिगण, दिवादिगण और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिजन्त धातुओं से ‘शतृ’ प्रत्यय करने पर ‘ई’ प्रत्यय लगाकर ‘त’ में ‘न’ जोड़ दिया जाता है।

ऋकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्तनकारान्त पुंल्लिङ्गस्त्री प्रत्ययान्त
भवत्भवन्तीपश्यत्पश्यन्ती
गच्छत्गच्छन्तीसीदत्सीदन्ती
कथयत्कथयन्तीहसत्हसन्ती
पतिपत्नीश्वन्शुनी
नटनटीसूर्यसूया
गौरगौरीसुन्दरसुन्दरी

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

3. अन्य प्रत्यय
(क) णिनि प्रत्यय
तुल्य वृद्धि या गुण के अर्थ में, अच्छा करने के अर्थ में तथा अपने को समझने के अर्थ में णिनि प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इस प्रत्यय का ‘इन्’ शेष बचता है; जैसे
नि + वस् + णिनि = निवासी
गुण + णिनि = गुणिन्
प्र + वस् + णिनि = प्रवासी
दान + णिनि = दानिन्
उप + कृ + णिनि = उपकारी
कवच + णिनि = कवचिन्
अधि + कृ + णिनि = अधिकारी
कुशल + णिनि = कुशलिन्
पण्डित + मन् + णिनि = पण्डितमानी
धन + णिनि = धनिन्
ग्रह् + णिनि = ग्राही
दण्ड + णिनि = दण्डिन्
स्था + णिनि = स्थायी
मन्त्र + णिनि = मन्त्री

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

(ख) तरप एवं तमप्
दो की तुलना में विशेषण शब्द से तरप् (तर) और ईयसुन् (ईयस्) प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार ज्यादा में से एक की विशेषता बताने के अर्थ में तमप् (तम) और इष्ठन् (इष्ठ) प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। उदाहरणार्थ
पटु + तरप् = पटुतरः
पटु + ईयसुन् = पटीयान्
पटु + तमप् = पटुतमः
पटु + इष्ठन् = पटिष्ठः
श्रेष्ठ + ईयसुन् = श्रेयान्
श्रेष्ठ + इष्ठन् = श्रेष्ठः
गुरु + ईयसुन् = गरीयान्
गुरू + इष्ठन् = गरिष्ठः

(ग) तसिल् प्रत्यय
संज्ञा आदि शब्दों से पञ्चमी विभक्ति के अर्थ को प्रकट करने के लिए ‘तसिल्’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है; जैसे
ग्राम + तसिल = ग्रामतः (गाँव से)
आदि + तसिल् = आदितः (प्रारम्भ से)
विद्यालय + तसिल = विद्यालयतः (विद्यालय से)
गृह + तसिल् = गृहतः (घर से)
तन्त्र + तसिल = तन्त्रतः (तन्त्र से)
प्रथम + तसिल = प्रथमतः (प्रारम्भ से)
आरम्भ + तसित् = आरम्भतः (आरम्भ से)

(घ) च्चि प्रत्यय
च्चि प्रत्यय का प्रयोग केवल भू तथा कृ धातुओं के साथ होता है। जो वस्तु पहले न हो, उसके हो जाने में ‘च्चि’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है; जैसे
अङ्ग + च्चि + कृतम् = अङ्गीकृतम्
कृष्णः + च्चि + क्रियते = कृष्णीक्रियते
ब्रह्मः + च्वि + भवति = ब्रह्मी भवति
द्रवः + च्चि + क्रियते = द्रवीक्रियते

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्यय

(ङ) मयट् प्रत्यय
प्राचुर्य अथवा आधिक्य के अर्थ को प्रकट करने के लिए शब्दों में मयट् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है; जैसे
पुल्लिङ्ग – स्त्रीलिङ्ग
शान्ति + मयट् = शान्तिमयः – शान्तिमयी
आनन्द + मयट् = आनन्दमयः – आनन्दमयी
सुख + मयट् = सुखमयः – सुखमयी
तेजः + मयट् = तेजोमयः – तेजोमयी

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