HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

Haryana State Board HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः

HBSE 9th Class Sanskrit भारतीवसन्तगीतिः Textbook Questions and Answers

भारतीवसन्तगीतिः प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class Sanskrit

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम्।
(ख) कलिन्दात्मजायास्सवानीस्तीरे नतां पङ्कितमालोक्य मधुमाधवीनाम्।
(ग) मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्ज स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम्।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित ‘काकली’ नामक ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ में से उद्धृत है। वसन्त ऋतु में प्रकृति का रोम-रोम खिल उठता है। वसन्त पञ्चमी के दिन सरस्वती की पूजा भी की जाती है। सम्भवतः इसी अवसर पर मधुर मञ्जरियों से पीली तथा सरस आम के वृक्षों पर बैठे हुए कोयलों की कूक से पूरा वातावरण शोभायन हो रहा है। अतः कवि माँ सरस्वती से प्रार्थना करता है कि आप अपनी सरस वीणा को बजाओ।

(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित ‘काकली’ नामक ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ में से उद्धृत है। यमुना नदी का तट बेंत की लताओं से घिरा हुआ है। नदी के जल की फुहारों से मिली हुई मन्द-मन्द बहने वाली वायु से फूलों से खिली हुई माधवी लता झुक गई है। इस कारण यमुना नदी के तट के आस-पास का दृश्य अत्यन्त रमणीय हो गया है। ऐसे मनोरम दृश्य में कवि सरस्वती माँ से वीणा बजाने की प्रार्थना कर रहा है।

(ग) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित ‘काकली’ नामक ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ में से उद्धृत है। चन्दन की सुगन्ध से सुगन्धित वायु के स्पर्श से कोमल पत्तों वाले वृक्षों से रमणीय स्थान में काले भ्रमरों के गुनगुनाने की मधुर आवाज गूंज रही है। यह आवाज अत्यन्त मनमोहक तथा आकर्षक है। इस आवाज को सुनकर कवि ने माँ सरस्वती से वीणा बजाने की प्रार्थना की है।

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भारतीवसन्तगीतिः HBSE 9th Class Sanskrit

II. अधोलिखितान् श्लोकान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित श्लोकों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
1. वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम्।
(क) सरसा रसालाः कदा लसन्ति?
(ख) वसन्ते के लसन्ति?
(ग) केषां कलापाः विलसन्ति?
उत्तराणि:
(क) सरसा रसालाः वसन्ते लसन्ति।
(ख) वसन्ते सरसाः रसालाः लसन्ति।
(ग) ललित कोकिला काकलीनां कलापाः विलसन्ति।

2. वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे, नतां पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम् ।
(क) समीरः कस्याः तीरे वहति?
(ख) केषां पंक्तिम् अवलोक्य वीणां निनादय?
(ग) मन्दं मन्दं वायुः कुत्र वहति?
उत्तराणि:
(क) समीरः कलिन्दात्मजायाः तीरे वहति।
(ख) मधुमाधवीनां नतांपङ्कितंवलोक्य वीणां निनादय।
(ग) मन्द-मन्दं वायुः कलिन्दात्मजायाः सवानीर तीरे वहति।

3. लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्
चलेदच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम् तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम् ।
(क) शान्तिशीलं केषां सुमं चलेत ?
(ख) तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य किं चलेत् ?
(ग) केषां किम् उच्छलेत्?
उत्तराणि:
(क) शान्तिशीलं लतानां सुमं चलेत्।
(ख) तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत्।
(ग) नदीनां कान्तसलिलं उच्छलेत्।

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III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) वसन्ते काकलीनां कलापाः विलसन्ति।
(ख) कविः वीणापाणिं वीणां निनादयितुम् कथयति।
(ग) वसन्ते सरसाः रसालाः लसन्ति।।
(घ) कलिन्दात्मजायाः तीरे समीरः मन्द-मन्दं वहति।
(ङ) वीणाम् आकर्ण्य समं चलेत्।
उत्तराणि:
(क) कदा काकलीनां कलापाः विलसन्ति?
(ख) कविः वीणापाणिं किं कथयति?
(ग) वसन्ते सरसाः के लसन्ति?
(घ) कस्या तीरे समीरः मन्द-मन्दं वहति?
(ङ) वीणाम् आकर्ण्य किम् चलेत् ?

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IV. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर को चुनकर लिखिए)
1. वसन्ते सरसाः के लसन्ति?
(i) विशालाः
(ii) करालाः
(iii) रसालाः
(iv) मसालाः

2. कस्याः तीरे समीरः मन्द-मन्दं वहति?
(i) यमुनायाः
(ii) गङ्गायाः
(iii) सरस्वत्याः
(iv) नर्मदायाः
उत्तरम्:
(i) यमुनायाः

3. सरस्वती ललित-नीति-लीनां किं मूद्र गाय?
(i) नीतिम्
(ii) गीतिम्
(iii) ततिम्
(iv) पंक्तिम्
उत्तरम्:
(ii) गीतिम्

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4. केषां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य वीणां निनादय?
(i) सखीनाम्
(ii) कलीनाम्
(iii) पतीनाम्
(iv) अलीनाम्
उत्तरम्:
(iv) अलीनाम्

5. वीणाम् आकर्ण्य शान्तिशीलं किं चलेत?
(i) सुमं
(ii) फलं
(iii) वनं
(iv) जनं
उत्तरम्:
(i) सुमं

6. ‘तवाकर्ण्य’ पदे कः सन्धिविच्छेदः?
(i) तवा + कर्ण्य
(ii) त + वाकर्ण्य
(iii) तव + आकर्ण्य
(iv) तवा + वाकर्ण्य
उत्तरम्:
(iii) तव + आकर्ण्य

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7. ‘मलिनामलीनाम्’ इति पदे कः समासः?
(i) तत्पुरुषः
(ii) कर्मधारयः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः
उत्तरम्:
(ii) कर्मधारयः

8. ‘सरस्वती’ अस्य पर्यायपदं चिनुत
(i) वाणी
(ii) वाणि
(iii) वाणीपाणी
(iv) वणी
उत्तरम्:
(i) वाणी

9. ‘आलोक्य’ इति पदे कः प्रत्ययः?
(i) क्त् + ल्यप्
(ii) क्त्वा + ल्यप्
(iii)शत् + ल्यप्
(iv) त्व + ल्यप्
उत्तरम्:
(i) क्त्वा + ल्यप्

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10. ‘वसन्त’ इति पदस्य सप्तमी एकवचने किं रूपं स्यात?
(i) वसन्ताम्
(ii) वसन्ति
(iii) वसन्ते
(iv) वासन्ते
उत्तरम्:
(iii) वसन्ते

परियोजनाकार्यम् (परियोजना कार्य)

पाठेऽस्मिन वीणायाः चर्चा अस्ति। अन्येषां पञ्चवाद्ययन्त्राणां चित्रं रचयित्वा संकलय्य वा तेषां नामानि लिखत।
उत्तराणि-वीणा के अतिरिक्त पाँच वाद्ययन्त्रों के नाम
(1) ढोल = पटहः, ढक्का।
(2) ढोलकी = लघुपटहः ।
(3) हारमोनियम = मधुरध्वनिष्कम्।
(4) तबला = तबलः।
(5) मंजीरा = मञ्जूरम्।

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योग्यताविस्तारः

अन्वय और हिन्दी भावार्थ
अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। ललितनीतिलीनां गीतिं मृदुं गाय।

अन्वय-अये वाणि! नवीनाम् वीणाम् निनादय, ललित-नीति-लीनाम् गीतिं मृदु गाय।

भावार्थ-हिन्दू संस्कृति के अनुसार वसन्त पञ्चमी का विशेष महत्त्व है। इस दिन माँ सरस्वती की आराधना एवं पूजा की जाती है। कवि ने माँ सरस्वती से यह कामना की है कि आपकी वीणा की ध्वनि से जनमानस के लिए सुन्दर नीतियों का निर्माण हो।

इह वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सरसाः रसालाः लसन्ति। ललित-कोकिलाकाकलीनां कलापाः (विलसन्ति)। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय ।

अन्वयइह वसन्ते मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत सरसाः रसालाः मालाः, ललित-काकलीनाम्-कोकिला कलापाः लसन्ति। निनादय! निनादय।
भावार्थ-इस वसन्त ऋतु में आम के वृक्षों की माला शोभा दे रही है। आम की मञ्जरियों एवं कोयलों की कूक से प्राकृतिक वातावरण आकर्षक एवं मनोरम बन जाए।

कलिन्दात्मजायाः सवानीरतीरे सनीरे समीरे मन्दमन्दं वहति (सति) माधुमाधवीनां नतांपङ्क्तिम् अवलोक्य। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।

अन्वय कलिन्दात्मजायाः सवानीर तीरे सनीरे समीरे मन्द-मन्दं वहति नतां मधुमाधवीनाम् पंक्तिम् आलोक्य निनादय।।

भावार्थ कल-कल की ध्वनि करती हुई बहने वाली यमुना नदी के तट पर फूलों से खिली माधवी लता का दृश्य कवि के मन को मोह रहा है। ऐसे सुन्दर प्राकृतिक दृश्य में कवि वीणा बजाने की प्रार्थना कर रहा है।

ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुजे मञ्जुकुजे मलय-मारुतोच्चुम्बिते स्वनन्तीम् अलीनां मलिनां ततिं प्रेक्ष्य अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।

अन्वय-मलयमारुतोच्चुम्बिते ललित-पल्लवे पादपे, पुष्पपुजे मञ्जुकुजे मलिनाम् अलीनाम् स्वनन्तीं ततिं प्रेक्ष्य। निनादय।

भावार्थ-चन्दन की सुगन्ध से सुगन्धित वायु के स्पर्श वाले वृक्षों तथा फूलों के समूह पर बैठे भ्रमरों की पंक्ति को देखकर सरस्वती से वीणा बजाने की बात कही गई है।

तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य लतानां नितान्तं शान्तिशीलं सुमं चलेत् नदीनां कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय।

अन्वय-तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य नितान्तं शान्तिशीलम् लतानां सुमं चलेत्, नदीनां कान्त सलिलं सलीलम् उच्छलेत्। निनादय।

भावार्थ माँ सरस्वती की वीणा की ध्वनि से न खिलने वाले फूल भी खिल उठे तथा नदियों में स्वच्छ जल प्रवाहित होने लगे, ऐसी कामना कवि द्वारा की गई है।

प्रस्तुत गीत के समानान्तर
गीतवीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतन्त्र व अमृत मन्त्र नव,
भारत में भर दे। वीणावादिनि वर दे

हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पं० सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के गीत की कुछ पंक्तियाँ यहाँ दी गई हैं, जिनमें सरस्वती से भारत के उत्कर्ष के लिये प्रार्थना की गई है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त की रचना “भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती” भी ऐसे ही भावों से ओतप्रोत है।

पं० जानकी वल्लभ शास्त्री:

पं० जानकी वल्लभ शास्त्री हिन्दी के छायावादी युग के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये संस्कृत के रचनाकार एवं उत्कृष्ट अध्येता रहे। शास्त्री जी की बाल्यकाल में ही काव्य रचना में प्रवृत्ति बन गई थी। अपनी किशोरावस्था में ही इन्हें संस्कृत कवि के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। उन्नीस वर्ष की आयु में इनकी संस्कृत कविताओं का संग्रह ‘काकली’ का प्रकाशन हुआ।

शास्त्री जी ने संस्कृत साहित्य में आधुनिक विधा की रचनाओं का प्रारंभ किया। इनके द्वारा गीत, गजल, श्लोक आदि विधाओं में लिखी गई संस्कृत कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुईं। इनकी संस्कृत कविताओं में संगीतात्मकता और लय की विशेषता ने लोगों पर अप्रतिम प्रभाव डाला।

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HBSE 9th Class Sanskrit भारतीवसन्तगीतिः Important Questions and Answers

1. निनादय नवीनामये वाणि!
वीणाम् मृदं गाय गीति ललित-नीति-लीनाम्।
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-मालाः
वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम् ॥1॥

अन्वय-अये वाणि! नवीनाम् वीणाम् निनादय, ललित-नीति-लीनाम् गीतिं मृदुं गाय। इह वसन्ते मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत सरसाः रसालाः मालाः, ललित-काकलीनाम्-कोकिला कलापाः लसन्ति। निनादय।

शब्दार्थ-निनादय = बजाओ। अये वाणि = हे वाणी की देवी सरस्वती। ललित = मनोहर, सुन्दर। नीति-लीनाम् = नीतियों से पूर्ण । मूद्रं = कोमल । गाय = गान करो। मञ्जरी = आम्र मञ्जरी। पिञ्जरी-भूत-मालाः = पीले वर्ण से युक्त पंक्तियाँ । लसन्तीह (लसन्ति + इह) = सुशोभित हो रही हैं, यहाँ । सरसाः = मधुर। रसालाः = आम के वृक्ष । काकली = कोयल की कूक। कोकिल = कोयल । कलापाः = समूह।।

प्रसंग-प्रस्तुत गीत/श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ से उद्धृत है। यह आधुनिक संस्कृत-साहित्य के प्रसिद्ध कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित गीतिकाव्य ‘काकली’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस गीत में माँ सरस्वती से वीणा बजाने की प्रार्थना की गई है, जिसकी ध्वनि से प्रकृति का रोम-रोम खिल उठे।

सरलार्थ-हे माँ सरस्वती! नवीन वीणा को बजाओ और सुन्दर नीतियों से पूर्ण गीत का मधुर गान करो। इस वसन्त ऋतु में मधुर मञ्जरियों से पीली तथा सरस आम के वृक्षों की पंक्तियाँ एवं आकर्षक कूक वाली कोयलों के समूह सुशोभित हो रहे हैं।

भावार्थ-हिन्दू संस्कृति के अनुसार वसन्त पञ्चमी का विशेष महत्त्व है। इस दिन माँ सरस्वती की आराधना एवं पूजा की जाती है। कवि ने माँ सरस्वती से यह कामना की है कि आपकी वीणा की ध्वनि से जनमानस के लिए सुन्दर नीतियों का निर्माण हो। इस वसन्त ऋतु में आम की मञ्जरियों एवं कोयलों की कूक से प्राकृतिक वातावरण आकर्षक एवं मनोरम बन जाए।

2. वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे,
नतां पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम् ॥2॥

अन्वय-कलिन्दात्मजायाः सवानीर तीरे सनीरे समीरे मन्द-मन्दं वहति नतां मधुमाधवीनाम् पंक्तिम् आलोक्य निनादय।

शब्दार्थ-कलिन्दात्मजायाः = कलिन्दी की पुत्री यमुना के। सवानीरतीरे = बेंत की लताओं से युक्त तट पर। सनीरे = जल की बिन्दुओं से युक्त। समीरे = वायु के। वहति = बहती है। नतां = झुकी। आलोक्य = देखकर। मधुमाधवीनाम् = मधुर माधवी लताओं पर।

प्रसंग-प्रस्तुत गीत/श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ से उद्धृत है। यह आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित गीतिकाव्य ‘काकली’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश इस श्लोक में बेंत की लताओं से घिरे यमुना नदी के तट पर वीणा बजाने की प्रार्थना की गई है।

सरलार्थ-यमुना नदी के बेंत की लताओं से घिरे हुए तट पर जल की बिन्दुओं से युक्त वायु के मन्द-मन्द बहने पर फूलों से झुकी हुई मधु-माधवी लता को देखकर हे सरस्वती! नवीन वीणा का वादन करो।

भावार्थ-कल-कल की ध्वनि करती हुई बहने वाली यमुना नदी के तट पर फूलों से खिली माधवी लता का दृश्य कवि के मन को मोह रहा है। ऐसे सुन्दर प्राकृतिक दृश्य में कवि वीणा बजाने की प्रार्थना कर रहा है।

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3. ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुजे
मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुजे,
स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम् ॥3॥

अन्वय-मलयमारुतोच्चुम्बिते ललित-पल्लवे पादपे, पुष्पपुजे मञ्जुकुजे मलिनाम् अलीनाम् स्वनन्तीं ततिं प्रेक्ष्य। निनादय।

शब्दार्थ पादपे = पौधों पर। पुष्पपुजे = फूलों के समूह पर। मलय = चन्दन। मारुतोच्चुम्बिते = वायु से स्पर्श किए हुए। मञ्जुकुजे = सुन्दर लताओं से आच्छादित स्थान। स्वनन्ती = ध्वनि करती हुई। ततिं = पंक्ति, समूह को। प्रेक्ष्य = देखकर । मलिनाम् = काले रंग के। अलीनाम् = भ्रमरों की।

प्रसंग-प्रस्तुत गीत/श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ से उद्धृत है। यह आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित गीतिकाव्य ‘काकली’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-फूलों पर बैठे हुए भ्रमरों की पंक्ति को देखकर माँ सरस्वती से वीणा बजाने के लिए कहा गया है।

सरलार्थ-चन्दन वृक्ष की सुगन्धित वायु के स्पर्श से मन को आकर्षित करने वाले पत्तों वाले वृक्षों पर, पुष्पों के समूह पर तथा सुन्दर लताओं से आच्छरदित स्थान पर काले वर्ण वाले भ्रमरों की गुजार को देखकर हे सरस्वती! नवीन वीणा का वादन करो।

भावार्थ-चन्दन की सुगन्ध से सुगन्धित वायु के स्पर्श वाले वृक्षों तथा फूलों के समूह पर बैठे भ्रमरों की पंक्ति को देखकर सरस्वती से वीणा बजाने की बात कही गई है।

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4. लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्
चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्,
तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम् ॥4॥

अन्वय-तव अदीनां वीणाम् आकर्ण्य नितान्तं शान्तिशीलम् लतानां सुमं चलेत्, नदीनां कान्त सलिलं सलीलम् उच्छलेत्। निनादय।

शब्दार्थ-लतानाम् = लताओं के। नितान्तम् = अत्यधिक। सुमं = पुष्प । शान्तिशीलम् = शान्ति से युक्त। कान्तसलिलं = स्वच्छ जल । उच्छलेत् = उछल पड़े। अदीनाम् = ओजस्विनी। आकर्ण्य = सुनकर। सलीलम् = क्रीड़ा करता हुआ, लीलापूर्वक।

प्रसंग-प्रस्तुत गीत/श्लोक संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘भारतीवसन्तगीतिः’ से उद्धृत है। यह आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री द्वारा रचित गीतिकाव्य ‘काकली’ से संकलित है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस श्लोक में सरस्वती की वीणा को सुनकर फूलों के खिलने तथा नदियों के जल के बहने के विषय में बताया गया है

सरलार्थ हे सरस्वती! तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर लताओं के अत्यधिक शान्ति से युक्त फूल खिल उठे और नदियों का स्वच्छ जल क्रीड़ा करता हुआ उछल पड़े। हे सरस्वती! नवीन वीणा का वादन करो।

भावार्थ-माँ सरस्वती की वीणा की ध्वनि से न खिलने वाले फूल भी खिल उठे तथा नदियों में स्वच्छ जल प्रवाहित होने लगे, ऐसी कामना कवि द्वारा की गई है।

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अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) कविः कां सम्बोधयति?
(ख) कविः वाणी कां वादयितुं प्रार्थयति?
(ग) कीदृशीं वीणां निनादयितुं प्रार्थयति।
(घ) गीति कथं गातुं कथयति?
(ङ) सरसाः रसालाः कदा लसन्ति?
उत्तराणि:
(क) वाणी,
(ख) वीणां,
(ग) नवीनामये,
(घ) मृदुं,
(ङ) वसन्ते।

2. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत
(पूर्णवाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) कविः वीणां किं कथयति?
(ख) वसन्ते किं भवति?
(ग) सलिलं तव वीणामाकर्ण्य कथम् उच्छलेत?
(घ) कविः भगवती भारती कस्याः तीरे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम् अवलोक्य वीणां वादयितुं कथयति?
उत्तराणि:
(क) कविः वाणी नवीनां वीणां निनादयितुं कथयति।
(ख) वसन्ते सरसाः रसालाः लसन्ति काकलीनां कलापाः च विलसन्ति।
(ग) तव वीणाम् आकर्ण्य कान्तसलिलं उच्छलेत्।
(घ) कविः भगवतीं भारती यमुनायाः तीरे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम् अवलोक्य वीणां वादयितुं कथयति।

3. ‘क’ स्तम्भे पदानि, ‘ख’ स्तम्भे तेषां पर्यायपदानि दत्तानि। तानि चित्वा पदानां समक्षे लिखत
(‘क’ स्तम्भ में शब्द व ‘ख’ स्तम्भ में उनके पर्यायवाची शब्द दिए गए हैं। उन्हें चुनकर शब्दों के सामने लिखिए)
‘क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
(क) सरस्वती – तीरे
(ख) आम्रम् – अलीनाम्
(ग) पवनः – समीरः
(घ) तटे – वाणी
(ङ) भ्रमराणाम् – रसालः
उत्तराणि:
‘क’ स्तम्भः – ‘ख’ स्तम्भः
(क) सरस्वती – वाणी
(ख) आम्रम् – रसालः
(ग) पवनः – समीरः
(घ) तटे – तीरः
(ङ) भ्रमराणाम् – अलीनाम्

4. अधोलिखितानि पदानि प्रयुज्य संस्कृतभाषया वाक्यरचनां कुरुत
(निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग करके संस्कृत भाषा में वाक्य रचना कीजिए)
(क) निनादय
(ख) मन्दमन्दम्
(ग) मारुतः
(घ) सलिलम्
(ङ) सुमनः
उत्तराणि:
(क) निनादय हे भारती! नवीनां वीणां निनादय।
(ख) मन्दमन्दम् अद्य पवनः मन्द-मन्दं वहति।
(ग) मारुतः-अद्य मारुतः मन्द-मन्दं वहति।
(घ) सलिलम्-ग्रीष्मे नद्याः सलिलं शान्तं भवति।
(ङ) सुमनः-सुमनः सुगन्धितं भवति।

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5. प्रथमश्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत
(प्रथम श्लोक का भावार्थ हिन्दी भाषा अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखिए)
उत्तराणि-भावार्थ-वसन्त ऋतु में मधुर मञ्जरियों से पीले आम के वृक्षों की पंक्तियाँ सुशोभित हो रही हैं। उन वृक्षों पर आकर्षक कूक वाले कोयलों के समूह रमणीय प्रतीत हो रहे हैं। उल्लास से परिपूर्ण इस दृश्य में कवि ने सरस्वती माँ से वीणा बजाने की प्रार्थना की है।

6. अधोलिखितपदानां विलोमपदानि लिखत
(निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए)
(क) कठोरम्
(ख) कटु
(ग) शीघ्रम्
(घ) प्राचीनम्
(ङ) नीरसः
उत्तराणि:
शब्द – विलोम शब्द
(क) कठोरम् = मृदुम्
(ख) कटु = मधुरं
(ग) शीघ्रम् = मन्दमन्दम्
(घ) प्राचीनम् = सरसः

भारतीवसन्तगीतिः (वाणी (सरस्वती) का वसन्त गीत) Summary in Hindi

भारतीवसन्तगीतिः पाठ-परिचय

प्रस्तुत गीत आधुनिक संस्कृत साहित्य के प्रख्यात कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री की रचना ‘काकली’ नामक गीत संग्रह से संकलित है। शास्त्री जी ने संस्कृत साहित्य में आधुनिक विधा की रचनाओं को प्रारंभ किया। इनके द्वारा गीत, गज़ल, श्लोक आदि विधाओं में लिखी गई संस्कृत कविताएँ बहुत लोकप्रिय हुईं। उन्नीस वर्ष की आयु में इनकी संस्कृत कविताओं का संग्रह ‘काकली’ का प्रकाशन हुआ था।

प्रस्तुत गीत में वाणी की देवी माँ सरस्वती की वन्दना करते हुए यह कामना की गई है कि हे माँ सरस्वती! ऐसी वीणा बजाओ, जिसकी ध्वनि से मधुर मञ्जरियों से पीले पंक्ति वाले आम के वृक्ष, कोयल का कूजन, वायु का धीरे-धीरे बहना, अमराइयों में काले भ्रमरों का गुजार और नदियों का कल-कल की ध्वनि करता हुआ जल, वसन्त ऋतु में मनमोहक हो उठे। स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखी गई यह गीतिका जनमानस के लिए नवीन चेतना का आह्वान करती है। इसके साथ ही ऐसे वीणा स्वर की परिकल्पना करती हैं जो स्वाधीनता प्राप्ति के लिए जन-समुदाय को प्रेरित करे।

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