Author name: Prasanna

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

HBSE 11th Class Geography भूगोल एक विषय के रूप में Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. मानव के लिए वायुमंडल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन-सा है-
(A) जलवाष्प
(B) धूलकण
(C) नाइट्रोजन
(D) ऑक्सीजन
उत्तर:
(D) ऑक्सीजन

2. निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन-सी है जिसके द्वारा जल, द्रव से गैस में बदल जाता है-
(A) संघनन
(B) वाष्पीकरण
(C) वाष्पोत्सर्जन
(D) अवक्षेपण
उत्तर:
(B) वाष्पीकरण

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 11 वायुमंडल में जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है-
(A) सापेक्ष आर्द्रता
(B) निरपेक्ष आर्द्रता
(C) विशिष्ट आर्द्रता
(D) संतृप्त हवा
उत्तर:
(D) संतृप्त हवा

4. निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊँचा बादल कौन सा है?
(A) पक्षाभ
(B) वर्षा मेघ
(C) स्तरी
(D) कपासी
उत्तर:
(A) पक्षाभ

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. हिमपात-जब तापमान 0° सेंटीग्रेड से कम होता है, तब वर्षण हिमतूलों के रूप में होता है, जिसे हिमपात कहते हैं।
  2. सहिम वृष्टि-सहिम वृष्टि वर्षा की जमी हुई बूंदें हैं या पिघली हुई बर्फ के पानी की जमी हुई बूंदें हैं।
  3. ओला पत्थर कभी-कभी वर्षा की बूंदें बादल से मुक्त होने के बाद बर्फ के छोटे गोलाकार ठोस टुकड़ों में परिवर्तित होकर पृथ्वी पर पहुँचती हैं, जिसे ओला पत्थर (वृष्टि) कहते हैं।

प्रश्न 2.
सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी निश्चित तापमान पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा तथा उसी तापमान पर उसी वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्प की मात्रा के अनुपात को सापेक्ष (आपेक्षिक) आर्द्रता (Relative Humidity) कहते हैं।

प्रश्न 3.
ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
उत्तर:
वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा वाष्पीकरण तथा संघनन से क्रमशः घटती-बढ़ती रहती है। हवा द्वारा जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता पूरी तरह से तापमान पर निर्भर होती है। ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता जाता है, इसलिए ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटने पर जलवाष्प की मात्रा घटती जाती है।

प्रश्न 4.
बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
बादल पानी की छोटी बँदों या बर्फ के छोटे रवों की संहति होता है जो कि पर्याप्त ऊँचाई पर स्वतंत्र हवा में जलवाष्प के संघनन के कारण बनते हैं।

बादलों को चार रूपों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • पक्षाभ मेघ (बादल)
  • कपासी मेघ
  • स्तरी मेघ
  • वर्षा मेघ

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षण-

  • भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।
  • उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में व्यापारिक पवनों के चलने के कारण महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा अधिक तथा पश्चिमी भागों में वर्षा कम होती है।
  • शीतोष्ण कटिबन्ध में पछ्वा पवनों के कारण महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में वर्षा अधिक तथा पूर्वी भागों में वर्षा कम होती है।
  • महाद्वीपों के तटीय भागों की अपेक्षा आन्तरिक भागों में वर्षा कम होती है।
  • जहाँ समुद्र तटों के सहारे पर्वत श्रेणियाँ फैली होती हैं वहाँ पवनाभिमुखी ढालों तथा तटीय मैदानों में खूब वर्षा होती है, परन्तु पवनविमुखी ढालों पर वर्षा कम होती है।

विश्व में वर्षा के वितरण का निम्नलिखित ढाँचा प्रस्तुत होता है-
1. भूमध्य रेखीय प्रदेश यह संसार में सबसे अधिक वर्षा उपलब्ध क्षेत्र है। वर्षा की क्रिया संवहनिक है। वर्षा वर्ष भर नियमित रूप से होती रहती है। वर्षा का औसत लगभग 80 सें०मी० होता है। इस पेटी में अमेजन बेसिन (दक्षिण अमेरिका), कांगो बेसिन (अफ्रीका), मलाया तथा पूर्वी द्वीप मुख्य हैं।

2. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश-इन प्रदेशों का विस्तार अक्षांश तक है। इनमें सम्मिलित मुख्य देश भारत, दक्षिणी चीन, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्वी ब्राजील और पूर्वी अफ्रीका इत्यादि हैं। मध्यमान वार्षिक वर्षा 50 से 200 सें०मी० तक है। वर्षा व्यापारिक व मानसून हवाओं के द्वारा होती है।

3. शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश-इन प्रदेशों का विस्तार 65° अक्षांश तक है। इनमें पश्चिमी यूरोप, पश्चिमी कनाडा, चिली व न्यूज़ीलैण्ड इत्यादि देश सम्मिलित हैं। यहाँ वर्षा पछुवा पवनों के प्रभाव से पश्चिमी किनारों पर होती है। औसत वार्षिक वर्षा 50 से 100 सें०मी० तक होती है।

4. शीत कटिबन्धीय प्रदेश इस पेटी में ऊँच अक्षांशों वाले प्रदेश सम्मिलित हैं। यह प्रदेश अधिक ठण्डे होने के कारण हिमाच्छादित रहते हैं। इसमें टुण्ड्रा और उत्तरी साइबेरिया सम्मिलित हैं। वार्षिक औसत वर्षा 25 सें०मी० से भी कम है।

औसत वार्षिक वर्षा के आधार पर विश्व के विभिन्न भागों को निम्नलिखित पाँच वर्गों में बांटा जाता है-

  • 200 सें०मी० से अधिक वर्षा वाले प्रदेश ये भूमध्य रेखीय प्रदेश, शीतोष्ण कटिबन्ध के पश्चिमी तट पर पर्वतों के पवनाभिमुख ढाल तथा मानसूनी प्रदेशों के तटीय मैदान हैं।
  • 100 से 200 सें०मी० वर्षा वाले प्रदेश-इस वर्ग में 200 सें०मी० से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के निकटवर्ती भाग तथा उष्ण शीतोष्ण कटिबन्ध के तटीय प्रदेश सम्मिलित हैं।
  • 50 से 100 सें०मी० वर्षा वाले प्रदेश-ये उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों के भीतरी भागों में तथा शीतोष्ण क्षेत्रों के आन्तरिक भागों में स्थित हैं।
  • 20 से 50 सें०मी० वर्षा वाले प्रदेश इस वर्ग में पर्वत श्रेणियों के वृष्टि छाया प्रदेश, महाद्वीपों के अत्यधिक आन्तरिक भाग तथा उच्च अक्षांशीय प्रदेश सम्मिलित हैं।
  • 20 सें०मी० से कम वर्षा वाले प्रदेश-यह उष्ण एवं शीत मरुस्थलीय प्रदेश हैं।

प्रश्न 2.
संघनन के कौन-कौन से प्रकार हैं? ओस एवं तुषार के बनने की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संघनन के निम्नलिखित चार प्रकार हैं-

  • ओस
  • तुषार या पाला
  • कुहासा एवं कोहरा
  • बादल या मेघ।

1. ओस (Dew)-दिन के समय पृथ्वी सूर्य से गर्मी प्राप्त करती है और रात्रि के समय विकिरण द्वारा छोड़ देती है। रात को विकिरण द्वारा गर्मी निकल जाने से जब कभी धरातल का तापमान ओसांक से कम हो जाता है तो वायु में उपस्थित जलवाष्प पौधों की पत्तियों तथा अन्य तनों पर छोटी-छोटी बूंदों के रूप में जमा हो जाते हैं, इसे ओस कहते हैं।

2. तुषार या पाला (Frost) यदि ओसांक 0° सेल्सियस अर्थात् हिमांक से नीचे हो तो वायु में उपस्थित जलवाष्प बिना द्रवावस्था में आए सीधे हिमकणों के रूप में परिवर्तित होकर धरातल पर जम जाते हैं। इन हिमकणों के विस्तार को पाला (Frost) कहते हैं।

3. कुहासा एवं कोहरा (Mist and Fog)-जब धरातल से कई मीटर की ऊँचाई तक वायु की परत का तापमान ओसांक से नीचे गिर जाए अर्थात् वायु की आपेक्षित आर्द्रता 100 प्रतिशत से अधिक हो जाए तो जलवाष्प जलकणों में परिवर्तित होकर वायुमण्डल के धूल-कणों पर एकत्रित हो जाते हैं और वायु में ही लटके रहते हैं। इससे धुन्धला-सा दिखाई देने लगता है और दृश्यता (Visibility) कम हो जाती है। इसे ही कुहासा या धुन्ध कहते हैं। जब दृश्यता एक किलोमीटर से भी कम हो जाती है तो इसे कोहरा (Fog) कहते हैं। 200 मीटर से कम दूरी तक ही वस्तुएँ दिखाई देने की स्थिति को सघन कोहरा (Thick Fog) कहते हैं।

4. बादल या मेघ (Clouds)-वायुमण्डल में ऊँचाई पर जलकणों या हिमकणों के जमाव एवं संघनन को बादल कहते हैं। मेघों का निर्माण वायु के ऊपर उठने वाली वायु के ठण्डा होने से होता है। मेघ कोहरे का बड़ा रूप है जो वायुमण्डल में वायु के रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा उसका तापमान ओसांक बिन्दु से नीचे आने से बनते हैं। बादलों की आकृति उनकी निर्माण प्रक्रिया पर आधारित है, लेकिन उनकी ऊँचाई, आकृति, रंग, घनत्व तथा प्रकाश के परावर्तन के आधार पर बादलों को निम्नलिखित चार रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है

ओस के बनने की प्रक्रिया-जाड़े की रातों में जब आकाश स्वच्छ होता है तो तीव्र भौमिक विकिरण से धरातल ठण्डा हो जाता है। ठण्डे धरातल पर ठहरी वायुमण्डल की आर्द्र निचली परतें भी ठण्डी होने लगती हैं। धीरे-धीरे यह वायु ओसांक तक ठण्डी हो जाती है। इससे वायु में विद्यमान जलवाष्प संघनित हो जाता है और नन्हीं-नन्हीं बूंदों के रूप में घास व पौधों की पत्तियों पर जमा हो जाता है। वाष्प से बनी जल की इन बूंदों को ओस कहते हैं।

तुषार के बनने की प्रक्रिया-पाला (तुषार) प्रायः तब बनाता है जब वायु का तापमान तीव्रता से हिमांक से नीचे गिर जाता है। पाला पड़ने के लिए भी उन्हीं परिस्थितियों की आवश्यकता होती है जिनकी ओस के लिए होती है, परन्तु पाला पड़ने के लिए ओसांक का हिमांक से नीचे होना आवश्यक है।

वायुमंडल में जल HBSE 11th Class Geography Notes

→ जलवाष्प (Water Vapours)-जलवाष्प वायुमण्डल की एक रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन गैस है।

→ निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity)-वायु के प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प के वास्तविक भार को वायु की निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं।

→ विशिष्ट आर्द्रता (Specific Humidity)–वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं।

→ वाष्पीकरण (Evaporation)-जल की तरलावस्था अथवा ठोसावस्था का गैसीय अवस्था में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।

→ संघनन या द्रवण (Condensation)-जल की गैसीय अवस्था का तरलावस्था या ठोसावस्था में बदलने की प्रक्रिया को संघनन या द्रवण कहते हैं।

→ वृष्टि (Precipitation)-वायु में उपस्थित जलवाष्पों का संघनन द्वारा द्रवावस्था या ठोसावस्था में बदलकर पृथ्वी पर गिरने की घटना को वृष्टि कहते हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. समुद्रतल पर वायुदाब कितना होता है?
(A) 1011 मिलीबार
(B) 34 मिलीबार/300 मीटर
(C) 1013 मिलीबार
(D) 36 मिलीबार/300 मीटर
उत्तर:
(B) 34 मिलीबार/300 मीटर

2. ऊँचाई के साथ वायुदाब किस दर से घटता है?
(A) 33 मिलीबार/300 मीटर
(B) 1012 मिलीबार मीटर
(C) 35 मिलीबार/300 मीटर
(D) 1014 मिलीबार मीटर
उत्तर:
(C) 35 मिलीबार/300 मीटर

3. भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबंध भूमध्य रेखा के उत्तर में कब खिसकता है?
(A) 21 जून
(B) 22 सितंबर
(C) 25 दिसम्बर
(D) 23 मार्च
उत्तर:
(A) 21 जून

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

4. समुद्रतल पर एक वर्ग इंच क्षेत्रफल पर वायु का कितना भार होता है?
(A) 5.68 कि०ग्रा०
(B) 6.68 किग्रा०
(C) 6.75 कि०ग्रा०
(D) 6.80 कि०ग्रा०
उत्तर:
(D) 6.80 कि०ग्रा०

5. वायुदाब मापने के स्वचालित यंत्र को कहते हैं-
(A) बैरोमीटर
(B) थर्मामीटर
(C) थर्मोग्राफ
(D) बैरोग्राफ
उत्तर:
(D) बैरोग्राफ

6. समुद्रतल के अनुसार समानीत समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा कहलाती है-
(A) समदाब रेखा
(B) समताप रेखा
(C) समोच्च रेखा
(D) समवर्षा रेखा
उत्तर:
(A) समदाब रेखा

7. कौन-सा बल वायुमंडल को भू-पृष्ठ से परे धकेलता है?
(A) अपकेंद्री बल
(B) अभिकेंद्री बल
(C) उत्पलावकता बल
(D) गुरुत्वाकर्षण बल
उत्तर:
(A) अपकेंद्री बल

8. किस वायुदाब पेटी को डोलड्रम या शांतपेटी कहते हैं?
(A) उपध्रुवीय निम्न-दाब कटिबंध
(B) उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंध
(C) भूमध्य-रेखीय निम्न-दाब कटिबंध
(D) ध्रुवीय उच्च-दाब कटिबंध
उत्तर:
(C) भूमध्य-रेखीय निम्न-दाब कटिबंध

9. भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबंध तथा ध्रुवीय उच्च-दाब कटिबंध हैं-
(A) दाब प्रेरित
(B) ताप प्रेरित
(C) गति प्रेरित
(D) दिशा प्रेरित
उत्तर:
(B) ताप प्रेरित

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

10. तापमान के बढ़ने पर वायुदाब-
(A) घटता है
(B) बढ़ता है
(C) वही रहता है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) घटता है

11. लगभग ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिमान वायु को कहा जाता है-
(A) जेट प्रवाह
(B) लंबवत् पवन
(C) चक्रवात
(D) वायु धारा
उत्तर:
(B) लंबवत् पवन

12. निम्नलिखित में से कौन-सी पवनें भूमंडलीय पवनें नहीं हैं?
(A) मानसून पवनें
(B) स्थायी पवनें
(C) पछुवा पवनें
(D) ध्रुवीय पवनें
उत्तर:
(A) मानसून पवनें

13. पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनों का अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाना कहलाता है-
(A) आभासी प्रभाव
(B) फैरल का नियम
(C) कॉरिआलिस प्रभाव
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

14. पछुवा (बहादुर) पवनें बहती हैं-
(A) उत्तरी अंध महासागर में
(B) उत्तरी प्रशांत महासागर में
(C) उत्तरी गोलार्द्ध में
(D) दक्षिणी गोलार्द्ध में
उत्तर:
(D) दक्षिणी गोलार्द्ध में

15. पश्चिमी यूरोप, पश्चिमी कनाडा व दक्षिणी-पश्चिमी चिली में कौन-सी पवनें वर्ष-भर वर्षा नहीं करती?
(A) पछुवा पवनें
(B) ध्रुवीय पवनें
(C) सन्मार्गी पवनें
(D) जल-समीरें
उत्तर:
(A) पछुवा पवनें

16. अपेक्षाकृत ठडे अक्षांशों से भूमध्य रेखा की ओर जाने वाली सन्मार्गी पवनें कहाँ वर्षा नहीं करती?
(A) पर्वतों पर
(B) महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर
(C) महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर
(D) महासागरों पर
उत्तर:
(C) महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर

17. गर्म व शुष्क शिनूक पवनें किस पर्वत के पूर्वी ढलानों से उतरती हैं?
(A) हिमालय
(B) रॉकीज
(C) एंडीज
(D) आल्प्स
उत्तर:
(B) रॉकीज

18. आल्प्स पर्वत को पार करके स्विट्ज़रलैंड की घाटियों में बहने वाली शुष्क, गर्म और तूफानी पवनों को कहते हैं-
(A) मिस्ट्रल
(B) फोएन
(C) बोरा
(D) खमसिन
उत्तर:
(B) फोएन

19. फ्राँस व स्पेन के तटों पर बहने वाली प्रचंड, शुष्क व ठंडी पवन कहलाती है
(A) हरमाट्टन
(B) बोरा
(C) मिस्ट्रल
(D) सिरोको
उत्तर:
(C) मिस्ट्रल

20. निम्नलिखित में से कौन-सी ठंडी स्थानीय पवन नहीं है?
(A) मिस्ट्रल
(B) बोरा
(C) खमसिन
(D) ब्लिजार्ड
उत्तर:
(C) खमसिन

21. भूमध्यरेखीय उष्ण एवं आर्द्र जलवायु की उमस से त्रस्त गिनी प्रदेश के निवासियों को कौन-सी सुखद और स्वास्थ्यप्रद पवन राहत पहुँचाती है?
(A) हरमाट्टन
(B) हिमहरिणी
(C) ब्रिकफील्डर
(D) लेवीची
उत्तर:
(A) हरमाट्टन

22. ब्यूफोर्ट स्केल पर ब्यूफोर्ट कोड-12 अधिसूचित करता है-
(A) शांत पवन को
(B) झंझावात को
(C) हरीकेन को
(D) तूफान को
उत्तर:
(C) हरीकेन को

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23. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा सुमेलित नहीं है?
(A) हरीकेन : यू०एस०ए०
(B) टाइफून : चीन
(C) सिरोक्को : ऑस्ट्रेलिया
(D) मिस्ट्रल : स्पेन
उत्तर:
(C) सिरोक्को : ऑस्ट्रेलिया

24. सन्मार्गी पवनें किन अक्षांशों के बीच चलती हैं?
(A) 23° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच
(B) 25° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच
(C) 30° से 5° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच
(D) 40° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच
उत्तर:
(C) 30° से 5° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश के बीच

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वर्तमान में वायुमंडलीय दाब मापने के लिए किस इकाई का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
हैक्टोपास्कल इकाई का।

प्रश्न 2.
समुद्र-तल पर वायुदाब कितना होता है?
उत्तर:
1013 मिलीबार।

प्रश्न 3.
ऊँचाई के साथ वायदाब किस दर से घटता है?
अथवा
क्षोभमंडल में ऊँचाई के साथ वायुमंडलीय दबाव कम होने की क्या दर है?
उत्तर:
34 मिलीबार प्रति 300 मीटर।

प्रश्न 4.
किस बल के प्रभाव से पवन अपनी दिशा बदल देती है?
उत्तर:
कॉरिआलिस प्रभाव।

प्रश्न 5.
पवनों के विक्षेपण सम्बंधी नियम का सूत्रधार कौन था?
उत्तर:
अमेरिकी विद्वान फैरल।

प्रश्न 6.
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंध भूमध्य रेखा के उत्तर में कब खिसकता है?
उत्तर:
21 जून को।

प्रश्न 7.
शिनूक (Chinook) का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
हिमभक्षी।

प्रश्न 8.
मिस्ट्रल पवन कौन-सी घाटी में बहती है?
उत्तर:
रोन घाटी में।

प्रश्न 9.
समुद्र-तल पर एक वर्ग सें०मी० क्षेत्रफल पर वायु का कितना भार होता है?
उत्तर:
1.03 किलोग्राम।

प्रश्न 10.
समुद्र-तल पर एक वर्ग इंच क्षेत्रफल पर वायु का कितना भार होता है?
उत्तर:
6.68 किलोग्राम।

प्रश्न 11.
हमारे शरीर पर कितना वायुमंडलीय दबाव पड़ता है?
उत्तर:
लगभग एक टन।

प्रश्न 12.
वायुदाब कटिबंध कितने हैं?
उत्तर:
सात।

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प्रश्न 13.
लगभग ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिमान वायु को क्या कहते हैं?
उत्तर:
वायुधारा।

प्रश्न 14.
आल्पस से उतरकर स्विट्ज़रलैण्ड में चलने वाली हवाएँ क्या कहलाती हैं?
उत्तर:
फोएन हवाएँ।

प्रश्न 15.
दिन के समय समुद्र से तट की ओर चलने वाली आर्द्र व ठण्डी पवनों को क्या कहते हैं?
उत्तर:
जल-समीर।

प्रश्न 16.
रात के समय समुद्र से तट की ओर चलने वाली शुष्क पवन को क्या कहते हैं?
उत्तर:
स्थल समीर।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शान्त कटिबंध या डोलड्रम्स किसे कहा जाता है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबंध को।

प्रश्न 2.
कॉरिआलिस प्रभाव कौन-से नियम द्वारा जाना जाता है?
उत्तर:
बाइज़ बैलेट अथवा फैरल का नियम।

प्रश्न 3.
कॉरिआलिस प्रभाव के अधीन विक्षेप बल कहाँ अधिकतम व कहाँ न्यूनतम होता है?
उत्तर:
ध्रुवों पर अधिकतम व भूमध्य रेखा पर न्यूनतम।

प्रश्न 4.
तीन प्रकार की स्थायी पंवनों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. सन्मार्गी
  2. पछुवा
  3. ध्रुवीय।

प्रश्न 5.
सन्मार्गी पवनें किन अक्षांशों के बीच चलती हैं?
उत्तर:
30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 6.
पछुवा पवनें किन अक्षांशों के बीच चलती हैं?
उत्तर:
30°-40° से 50°-60° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 7.
पवनें क्यों चलती हैं?
उत्तर:
वायुदाब में अन्तर आ जाने से।

प्रश्न 8.
‘डॉक्टर’ नामक पवन कहाँ चलती है? उसका असली नाम क्या है?
उत्तर:
‘डॉक्टर’ नामक पवन अफ्रीका के गिनी तट पर चलती है। इसका असली नाम हरमट्टन है।

प्रश्न 9.
गरजता चालीसा व प्रचण्ड पचासा कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:
40° और 50° दक्षिणी अक्षांशों पर।

प्रश्न 10.
वायु में भार कैसे पैदा होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण।

प्रश्न 11.
वायुदाब और तापमान में क्या सम्बंध है?
उत्तर:
तापमान बढ़ने पर वायुदाब घटता है।

प्रश्न 12.
किसी स्थान का वायुदाब किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. समुद्र-तल से ऊँचाई
  3. जलवाष्प
  4. दैनिक गति।

प्रश्न 13.
वायुमंडल के दबाव को मापने वाले यन्त्र का नाम बताएँ।
उत्तर:
बैरोमीटर तथा बैरोग्राफ़।

प्रश्न 14.
वायुमंडलीय दाब को मापने की कौन-सी तीन इकाइयाँ हैं?
उत्तर:

  1. इंच
  2. सेंटीमीटर
  3. मिलीबार।

प्रश्न 15.
समुद्र-तल पर सामान्य वायुदाब को तीन इकाइयों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:

  1. 29.92 इंच
  2. 76 सेंटीमीटर या 760 मिलीमीटर
  3. 1013.2 मिलीबार।

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प्रश्न 16.
मिलीबार क्या होता है?
उत्तर:
1000 डाइन प्रति वर्ग से०मी० के बराबर शक्ति।

प्रश्न 17.
उच्च वायुदाब की दशा में आकाश स्वच्छ कैसे रहता है?
उत्तर:
उच्च वायुदाब में वायु नीचे बैठती है जिससे वाष्पों का संघनन नहीं हो पाता।

प्रश्न 18.
तेजी से गिरता हुआ वायुदाब किस मौसम की सूचना देता है?
उत्तर:
चक्रवात, वर्षा तथा आँधी का पूर्वानुमान बताता है।

प्रश्न 19.
ताप-प्रेरित वायुदाब कटिबंध कौन-से हैं?
उत्तर:
भूमध्य रेखा पर निम्न दाब कटिबंध और ध्रवों पर उच्च दाब कटिबंध।

प्रश्न 20.
गति-प्रेरित वायुदाब कटिबंध कौन-से हैं?
उत्तर:
दोनों गोलार्डों में उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंध तथा उप-ध्रुवीय निम्न-वायुदाब कटिबंध।

प्रश्न 21.
वायुदाब के सात कटिबंधों का निर्माण क्यों हुआ है?
उत्तर:
विभिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप के अन्तर और पृथ्वी की दैनिक गति के प्रभाव के कारण।

प्रश्न 22.
भूमध्य रेखीय कटिबंध को शान्तमंडल या डोलड्रम क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि इस पेटी में वायु का क्षैतिज संचलन न होने के कारण पवनें नहीं चलतीं।

प्रश्न 23.
भूमध्य रेखीय निम्न-दाब कटिबंध का विस्तार लिखिए।
उत्तर:
भूमध्य रेखा से 10° उत्तरी व 10° दक्षिणी अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 24.
उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंध का विस्तार बताएँ।
उत्तर:
उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्डों में कर्क और मकर रेखाओं से 35° अक्षांश के बीच।

प्रश्न 25.
उप-ध्रुवीय निम्न-दाब कटिबंध का विस्तार बताइए।
उत्तर:
45° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के आर्कटिक व अंटार्कटिक (66/2° उ० व द० वृत्तों) के बीच।

प्रश्न 26.
दो अलग-अलग ‘शान्त’ वायुदाब पेटियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. भूमध्य रेखीय निम्न-दाब कटिबंध शान्तमंडल अथवा डोलड्रम कहलाता है।
  2. उपोष्ण उच्च-दाब कटिबंध शान्त कटिबंध (Belt of Calm) या अश्व अक्षांश कहलाता है।

प्रश्न 27.
स्थायी पवनें किन्हें कहा जाता है?
उत्तर:
वे पवनें जो सारा वर्ष एक ही दिशा में चलती हैं, स्थायी पवनें कहलाती हैं।

प्रश्न 28.
पूर्वी पवनें कौन-सी होती हैं?
उत्तर:
सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें।

प्रश्न 29.
सन्मार्गी पवनों को उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में क्या कहते हैं?
उत्तर:
क्रमशः उत्तर-पूर्वी सन्मार्गी पवनें तथा दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी पवनें।

प्रश्न 30.
व्यापारिक (सन्मार्गी) पवनों के क्षेत्र में शुष्क प्रदेश अथवा मरुस्थल कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
महाद्वीपों के पश्चिमी भागों पर।

प्रश्न 31.
उत्तरी गोलार्द्ध में पछुवा पवनों की क्या दिशा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व।

प्रश्न 32.
पछुवा पवनें कहाँ वर्षा करती हैं?
उत्तर:
शीतोष्ण कटिबंधों में स्थित महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में।

प्रश्न 33.
शीतोष्ण चक्रवात किन पवनों के साथ चलते हैं?
उत्तर:
पछुवा पवनों के साथ।

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प्रश्न 34.
ध्रुवीय पवनें शुष्क क्यों होती हैं?
उत्तर:
क्योंकि इन ठण्डी पवनों में जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती।

प्रश्न 35.
आवर्ती पवनों की क्या विशेषता होती है?
उत्तर:
समय के एक निश्चित अन्तराल के बाद इन पवनों की प्रवाह-दिशा उलट जाती है।

प्रश्न 36.
मानसून पवनें क्या होती हैं?
उत्तर:
वे पवनें जिनकी मौसम के अनुसार प्रवाह दिशा बदल जाती है।

प्रश्न 37.
चक्रवाती परिसंचरण क्या है?
उत्तर:
निम्न दाब क्षेत्र के चारों ओर पवनों का परिक्रमण चक्रवाती परिसंचरण कहलाता है।

प्रश्न 38.
‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति कहाँ से हुई है?
उत्तर:
‘मानसन’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द ‘मौसिम’ से हुई है।

प्रश्न 39.
चार ठण्डी स्थानीय पवनों के नाम बताएँ।
उत्तर:
यूरोप में मिस्ट्रल व बोरा, साइबोरिया में बुरान तथा अर्जेन्टाइना में पम्पेरो।

प्रश्न 40.
घाटी समीर क्या होती है?
उत्तर:
दिन के समय घाटी की गर्म वायु का पर्वतीय ढाल के साथ ऊपर उठना।

प्रश्न 41.
पर्वत समीर किसे कहते हैं?
उत्तर:
रात के समय पर्वतीय ढाल से घाटी की ओर बैठती वायु।

प्रश्न 42.
वातान किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं।

प्रश्न 43.
वाताग्र-जनन क्या है?
उत्तर:
वाताग्र-जनन (Frontogenesis) वातारों के बनने की प्रक्रिया को कहते हैं।

प्रश्न 44.
वाताग्र कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
वाताग्र चार प्रकार के होते हैं-

  1. उष्ण वाताग्र
  2. अचर वाताग्र
  3. शीत वाताग्र
  4. अधिविष्ट वाताग्र।

प्रश्न 45.
समदाब रेखाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
समदाब रेखाएँ संमदाब रेखाओं को अंग्रेजी में ‘Isobar’ कहते हैं। “Iso’ का अभिप्राय समान तथा ‘bars’ का अभिप्राय दाब होता है अर्थात् समान दाब वाली रेखाएँ।

प्रश्न 46.
समुद्र-तल पर सामान्य औसत वायुदाब कितने मिलीबार होता है?
उत्तर:
समुद्र-तल पर वायु का दबाव 1.03 किग्रा० प्रति वर्ग सें०मी० होता है। वायुमंडल का सामान्य दाब 45° अक्षांश पर तथा समुद्र-तल पर 29.92 इंच अथवा 76 सें०मी० होता है। यह 1,013.25 मिलीबार के बराबर होता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुमंडलीय दाब किसे कहते हैं?
उत्तर:
भू-पृष्ठ के ऊपर कई किलोमीटर की ऊँचाई में वायुमंडल पृथ्वी तल पर दबाव उत्पन्न करता है। वायुमंडल गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी पर टिका हुआ है। वायुदाब साधारण रूप से कई गैसों का मिश्रण है जो भार-युक्त है। अन्य वस्तुओं की भाँति वायु का भी भार अथवा दबाव होता है। वायु का जब पृथ्वी के ऊपर भार पड़ता है तो उसे वायुमंडलीय दाब कहते हैं। भूमि के ऊपर लगभग एक किलोग्राम वायुदाब होता है। समुद्र-तल पर सामान्य दशाओं में 76 सें०मी० वायुमंडलीय भार 1,013.25 मिलीबार के बराबर होता है।

प्रश्न 2.
दाब प्रवणता किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानचित्र पर वायुदाब समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। समदाब रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं जो समुद्र-तल से समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हैं। समदाब रेखाओं के बीच की दूरी वायुदाब के परिवर्तन की स्थिति दिखाती है। वायुदाब में परिवर्तन की दर को दाब प्रवणता कहते हैं। यदि समदाब रेखाएँ पास-पास हैं तो इसका तात्पर्य है कि धरातल पर थोड़ी दूर जाने पर दबाव अधिक बढ़ रहा है। इसलिए पास-पास वाली रेखाएँ तीव्र दाब को प्रदर्शित करती हैं, जबकि दूर वाली दाब रेखाएँ मन्द-दाब प्रवणता को दर्शाती हैं। तीव्र-दाब प्रवणता में पवनें तेज गति से चलती हैं तथा मन्द-दाब प्रवणता में पवनें धीमी गति से चलती हैं।

प्रश्न 3.
एक मिलीबार किसे कहते हैं? वायुदाब की माप इकाइयों में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक मिलीबार-एक वर्ग सें०मी० पर एक ग्राम के बल अथवा एक हजार डाइन प्रति वर्ग सें०मी० के वायुभार को एक मिलीबार कहते हैं।
विभिन्न माप इकाइयों में संबंध-
30 इंच वायुदाब = 76 सें०मी० = 1,013.25 मिलीबार
1 इंच वायुदाब = 34 मिलीबार।
1 सें०मी० वायुदाब = 13.3 मिलीबार।

प्रश्न 4.
वायुराशियाँ (Air Masses) क्या है?
उत्तर:
वायुमंडल में एक विस्तृत भाग पर तापक्रम, आर्द्रता आदि भौतिक गुणों की समानता रखने वाली पवनों को वायुराशियाँ कहते हैं। वायुराशियों की मुख्य रूप से दो विशेषताएँ होती हैं, जिनमें तापमान का लम्बवत् वितरण और आर्द्रता की उपस्थिति शामिल हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण तापमान के लम्बवत् वितरण पर ही उनकी ऊष्मा तथा शीतलता निर्भर करती है। जो वायुराशियाँ स्थिर होती हैं, वे प्रायः ठण्डी तथा शुष्क होती हैं। ये वर्षा नहीं करतीं, परन्तु गतिशील तथा गर्म वायुराशियाँ वर्षा करती हैं। वायुराशि वायु से भिन्न है। वायुराशि में वायु-धाराएँ ऊपर उठती हैं तथा एक विस्तृत क्षेत्र में तापमान तथा आर्द्रता में समानता होती है, परन्तु वायु भूतल के समानान्तर चलती है तथा इसकी विभिन्न परतों में तापमान तथा आर्द्रता में भिन्नता पाई जाती है।

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प्रश्न 5.
कॉरिआलिस बल की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि पृथ्वी स्थिर होती और उसका धरातल एक-समान होता तो पवनें सीधी उच्च वायुदाब की ओर चलतीं। किन्तु न ही उसका धरातल एक-समान है, इसलिए वायु सीधी न चलकर वक्राकार मार्ग पर चलती है। वायु की दिशा में परिवर्तन लाने में पृथ्वी की दैनिक गति का सबसे बड़ा हाथ है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण एक प्रभाव उत्पन्न होता है जिसे ‘कॉरिआलिस बल’ अथवा कॉरिआलिस प्रभाव (Coriolis Force or Coriolis Effect) कहते हैं। इसके कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इस तथ्य को सबसे पहले 1844 ई० में फैरल महोदय ने बताया था इसलिए इसे फैरल का नियम कहते हैं। फैरल के नियम (Ferrel’s Law) के अनुसार, भूमध्य रेखा पर कोई विक्षेप नहीं होता। 30° अक्षांशों पर 50%, 60° अक्षांशों पर 86.7% तथा ध्रुवों पर 100% विक्षेप हो जाता है।

प्रश्न 6.
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

  1. भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है जो पवनों की गति को प्रभावित करता है।
  2. पृथ्वी के घूर्णन से भी पवनों का वेग प्रभावित होता है।
  3. कॉरिआलिस बल के कारण भी पवनों की दिशा प्रभावित होती है।

प्रश्न 7.
अश्व अक्षांश क्या हैं?
उत्तर:
231/2° से 35° के मध्य अक्षांशों को ‘अश्व अक्षांश’ कहते हैं, क्योंकि मध्य युग में पश्चिमी द्वीप समूहों से यूरोप को पालदार जलयानों के द्वारा घोड़े भेजे जाते थे। इन अक्षांशों पर आने पर अधिक वायुदाब के कारण ये जहाज आगे नहीं बढ़ पाते थे। इन जहाजों का भार कम करने के लिए कुछ घोड़े समुद्र में फेंक दिए जाते थे। कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट का यह क्षेत्र शान्तमंडल कहलाता है। यहाँ पवनें भू-तल के समानान्तर नहीं चलतीं। यहाँ पवनें ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर की ओर चलती हैं। यहाँ वायुमंडल शान्त रहता है तथा मौसम साफ होता है। निरन्तर नीचे उतरती हुई वायु के कारण यहाँ अधिक वायुदाब होता है तथा इन अक्षांशों से पवनें ध्रुवों की ओर पछुवा पवनों के रूप में तथा विषुवत् रेखा की ओर व्यापारिक पवनों के रूप में चलती हैं।

प्रश्न 8.
बहिरूपण कटिबंधीय चक्रवात और उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में क्या अन्तर है?
उत्तर:
बहिरूपण कटिबंधीय चक्रवात और उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में निम्नलिखित अन्तर हैं-

बहिरूपण कंटिबंधीय चक्रवातउष्ण कटिबंधीय चक्रवात
1. बहिरूपण चक्रवात स्थल व सागर दोनों प्रदेशों पर ही उत्पन्न व विकसित होते हैं।1. उष्ण चक्रवात प्रायः महासागरों पर ही उत्पन्न व विकसित होते हैं और स्थल-खण्ड में प्रवेश करते ही इनका लोप होने लगता है।
2. ये प्रायः शीत ऋतु में उत्पन्न होते हैं।2. ये ग्रीष्म ऋतु में अधिक उत्पन्न होते हैं।
3. इनकी समदाब रेखाएँ प्रायः दीर्धवृत्ताकार होती हैं।3. इनकी समदाब रेखाएँ प्रायः वृत्ताकार होती हैं।
4. ये चक्रवात हजारों वर्ग किलोमीटर में फैले हुए होते हैं। इनका व्यास प्राय: 800 से 1600 किलोमीटर तक होता है।4. इन चक्रवातों का विस्तार बहुत कम होता है। इनका व्यास प्रायः 300 से 1000 किलोमीटर तक होता है।
5. अधिक विस्तार होने के कारण इन चक्रवातों में वायुदाब प्रवणता मन्द होती है।5. कम विस्तार होने के कारण इनमें वायुदाब प्रवणता तीव्र होती है।

प्रश्न 9.
डोलड्रम किसे कहते हैं?
उत्तर:
डोलड्रम एक शान्त क्षेत्र है जो भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5°N तथा 5°S के मध्य स्थित है। यह भूमध्य रेखा शान्त-खण्ड भी कहलाता है। यहाँ भू-तल पर चलने वाली पवनें नहीं होतीं। यहाँ धीमी तथा शान्त वायु बहती है। इसका प्रमुख कारण सूर्य का यहाँ लगभग लम्बवत् रूप से चमकना है। यहाँ तापमान अधिक होता है। वायु गर्म तथा हल्की होकर संवाहिक धाराओं के रूप में ऊपर उठती है जिससे इस क्षेत्र में वायुदाब कम हो जाता है।

प्रश्न 10.
पर्वत-समीर तथा घाटी-समीर क्या होती हैं?
उत्तर:
ये समीरें मुख्य रूप से दैनिक पवनें हैं जो दैनिक तापान्तर के प्रभाव से वायुदाब की भिन्नता के कारण चलती हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में रात्रि के समय पर्वत शिखर से घाटी की ओर ठण्डी तथा भारी चलने वाली वायु को पर्वत-समीर कहते हैं। इन पवनों के कारण घाटियाँ ठण्डी वायु से भर जाती हैं जिससे घाटी के निचले क्षेत्र में पाला पड़ता है। दिन के समय घाटी की गर्म वायु पर्वतीय ढाल के साथ-साथ पर्वतीय शिखर की ओर चलती है जिसे घाटी-समीर कहते हैं। ज्यों-ज्यों ये पवनें ऊपर की ओर जाती हैं, त्यों-त्यों ये ठण्डी होकर भारी वर्षा करती हैं।

प्रश्न 11.
व्यापारिक या सन्मार्गी पवनें क्या हैं?
उत्तर:
व्यापारिक पवनें स्थायी पवनें हैं। ये पवनें उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से (लगभग 30° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांश) विषुवतीय निम्न-वायुदाब कटिबंध की ओर दोनों गोलार्डों में चलती हैं। ये पवनें महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा करती हैं। पश्चिमी क्षेत्रों में पहुँचते-पहुँचते ये पवनें शुष्क हो जाती हैं, इसलिए महाद्वीपों के पश्चिम में मरुस्थल पाए जाते हैं। जब व्यापारिक पवनें दोनों गोलार्डों से विषुवत रेखा के निकट आपस में टकराती हैं तो ऊपर उठकर घनघोर वर्षा करती हैं। हिन्द महासागर में ये पवनें मानसून पवनों का रूप धारण करके दक्षिण-पूर्वी एशिया में मानसूनी वर्षा करती हैं।

प्रश्न 12.
फैरल का नियम क्या है?
उत्तर:
भू-तल पर पवनें कभी सीधे रूप से उत्तर से दक्षिण या दक्षिण से उत्तर की ओर नहीं चलतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाईं ओर तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फैरल का नियम कहते हैं। वायु की दिशा में यह परिवर्तन पृथ्वी की दैनिक गति के कारण होता है। जब पवनें कम गति वाले क्षेत्रों से अधिक गति वाले क्षेत्रों की तरफ आती हैं तो पीछे रह जाती हैं। इस विक्षेप शक्ति को कॉरिआलिस बल कहते हैं।

प्रश्न 13.
“मानसूनी पवन सामान्य भूमंडलीय पवन तन्त्र का ही रूपान्तरण है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
मानूसन पवनें मौसम में परिवर्तन के अनुसार अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती हैं। वैज्ञानिक इन्हें बड़े पैमाने की मानते हैं, क्योंकि मानसन पवनों की उत्पत्ति का प्रमुख कारण जल तथा स्थल में तापक्रम की भिन्नता है। मानसून की उत्पत्ति के विषय में उपलब्ध वर्तमान सिद्धान्तों में फ्लोन का सिद्धान्त सर्वमान्य है। इस सिद्धान्त के अनुसार, मानसूनी तन्त्र भू-मंडलीय पवन तन्त्र का ही रूपान्तरित रूप है। ग्रीष्मकाल में जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में चमकता है तो उपोष्ण उच्च वायुदाब तथा तापीय भूमध्य रेखा उत्तर की ओर खिसक जाते हैं।

एशिया में भू-खण्ड के प्रभाव के कारण यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर होती है जिससे उष्ण कटिबंधीय व्यापारिक पवन और विषुवतीय पछुवा पवन भी उत्तर की ओर खिसक जाती है। पवनें महासागर से महाद्वीपों की ओर चलने लगती हैं जिन्हें दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें कहते हैं। शीत ऋतु में उपोष्ण उच्च-वायुदाब कटिबंध तथा तापीय भूमध्य रेखा दक्षिण की ओर वापस अपनी पुरानी स्थिति पर लौट आते हैं जिससे सामान्य व्यापारिक चक्र स्थापित हो जाता है जिसे उत्तरी-पूर्वी मानसून पवन कहते हैं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि भू-मंडलीय पवन तन्त्र में चलने वाली व्यापारिक पवनों के स्थान पर मानूसन पवनें चलने लगती हैं।

प्रश्न 14.
पृथ्वी के धरातल पर कुछ वायुदाब कटिबंध तापीय कारणों से नहीं, बल्कि गतिक कारणों से उत्पन्न हुए हैं। ये कटिबंध कौन से हैं? इनकी उत्पत्ति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर विषुवत् रेखा तथा ध्रुवों के मध्य उपोष्ण उच्च-वायुदाब तथा उप-ध्रुवीय निम्न-वायुदाब की उत्पत्ति गतिक-कारणों से होती है। विषुवत् रेखा से सूर्य की गर्मी के कारण वायु गर्म होकर ऊपर उठती है तथा ठण्डी तथा भारी होकर 30° अक्षांशों के निकट नीचे उतरती है तथा पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ध्रुवों से आने वाली वायु भी इन्हीं अक्षांशों में नीचे उतरती है जिसके कारण इन अक्षांशों पर उच्च-वायुदाब की पेटी बन जाती है। उपध्रुवीय निम्न-वायुदाब की उत्पत्ति का मुख्य कारण भी यही है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही 60° अक्षांशों के निकट की वायु के विषुवत् रेखा तथा ध्रुवों की ओर खिसकने के कारण ही यहाँ निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है।

प्रश्न 15.
“मानसून पवनें एक बड़े पैमाने पर जल-समीर तथा स्थल-समीर हैं।” व्याख्या करें।
उत्तर:
‘मानूसन’ शब्द अरबी भाषा के शब्द ‘मौसिम’ से बना है, जिसका अर्थ है-मौसम। अतः मानसूनी पवनें वे पवनें हैं जो मौसमानुसार दिशा में चलती हैं। ये पवनें 6 मास तक ग्रीष्मकाल में दक्षिण दिशा से तथा 6 मास तक शीतकाल में उत्तर दिशा से चलती हैं। ग्रीष्मकाल में ये पवनें सागरों से स्थल की ओर तथा शीतकाल में स्थल से सागरों की ओर चलती हैं। इनकी उत्पत्ति जल तथा स्थल के गर्म तथा ठण्डा होने में पाई जाने वाली भिन्नता है। स्थलीय भाग जल की अपेक्षा शीघ्र गर्म होता है तथा शीघ्र ही ठण्डा होता है।

इसलिए दिन के समय सागर के निकट स्थल भाग पर कम वायुदाब होता है तथा सागर में कम तापमान के कारण वायुदाब अधिक होता है जिसके कारण सागर से स्थल की ओर जल-समीर चलने लगती है, परन्तु रात्रि के समय वह स्थिति विपरीत हो जाती है, जिससे स्थल से सागर की ओर स्थल-समीर चलने लगती है। इस प्रकार प्रतिदिन वायु की दिशा में परिवर्तन आता रहता है, परन्तु मानूसन पवनों की दिशा में परिवर्तन, मौसम में परिवर्तन के कारण होता है तथा पवनें सागरीय तट के निकट चलने के स्थान पर पूरे महाद्वीप पर चलती हैं। इसलिए मानूसन पवनों को विस्तृत स्तर पर जल-समीर तथा स्थल-समीर का रूप मानते हैं।

प्रश्न 16.
पवन की परिभाषा देते हुए स्पष्ट कीजिए कि पवनों की उत्पत्ति किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
पवन (Wind) भू-पृष्ठ के सहारे क्षैतिज बहती हुई हवा (Air) को पवन (Wind) कहते हैं। पवनें पृथ्वी पर वायुदाब में क्षैतिज अन्तर के कारण चलती हैं। जिस प्रकार जल अपना तल बराबर रखने के लिए ऊँचे स्थानों से निचले स्थानों की ओर बहता है उसी प्रकार वायु भी अपने दबाव में सन्तुलन बनाए रखने के लिए उच्च-वायुदाब वाले क्षेत्रों से निम्न-वायुदाब वाले क्षेत्रों की ओर चलती है। यह प्रकृति का नियम है। पवनों के नाम उस दिशा के अनुसार रखे जाते हैं जिनसे वे बहकर आती हैं।

लगभग ऊर्ध्वाधर (Vertical) दिशा में गतिमान वायु को वायुधारा (Air Current) कहा जाता है। पवनें और वायुधाराएँ दोनों मिलकर वायुमंडल में एक संचार तन्त्र (Circulation System) स्थापित करती हैं। पवनों की उत्पत्ति (Origin of Winds)-पवन की उत्पत्ति अत्यन्त जटिल होती है। पवन की उत्पत्ति का प्रत्यक्ष कारण वायुदाब का अन्तर होता है लेकिन पवन का मूल प्रेरक बल सौर विकिरण होता है।

यदि पृथ्वी की दैनिक गति न होती अर्थात् पृथ्वी स्थिर होती और उसका धरातल भी एकदम समतल होता तब पवन उच्च-वायुदाब क्षेत्र से निम्न-वायुदाब क्षेत्र की ओर समदाब रेखाओं पर समकोण बनाते हुए बहती। इसका तात्पर्य यह है कि पवन या तो उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है या दक्षिण से उत्तर की ओर। वायुदाब समान होते ही पवनें भी चलना बन्द कर देतीं। परन्तु वास्तविकता यह है कि पृथ्वी न तो स्थिर है और न ही समतल। इस कारण पवन की गति और दिशा को अनेक कारक सम्मिलित रूप से प्रभावित करते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्या है? उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उष्ण-कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर उत्पन्न व विकसित होने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। इनका विस्तृत वर्णन निम्नलिखित प्रकार से हैं-
1. उत्पत्ति (Origin)-ये चक्रवात उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्डों में लगभग 5° से 25° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। भूमध्य रेखा के निकट दोनों गोलार्डों की व्यापारिक पवनें आकर मिलती हैं। जिस तल पर ये पवनें आकर मिलती हैं उसे अन्तरा-उष्ण कटिबंधीय वाताग्र अथवा अन्तरा-उष्ण कटिबंधीय मिलन तल (Inter-tropical Front or Inter-tropical Convergence Zone) कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु के उत्तरार्द्ध में अन्तरा-उष्ण कटिबंधीय वाताग्र भूमध्य रेखा से काफी दूर चला जाता है।

इस वाताग्र के किसी भाग में जलवायु काफी गरम होकर बड़े पैमाने पर ऊपर को उठती है तो कॉरिआलिस बल के कारण इस निम्न-वायुदाब क्षेत्र की ओर सभी दिशाओं में पवनें चलने लगती हैं और एक चक्रवात का जन्म होता है। इसके चारों ओर वायु-भार अधिक तथा बीच में वायु-भार कम होता है। कम वायु-भार वाले इस केन्द्र को चक्रवात की आँख (Eye of the Cyclone) कहते हैं। चक्रवात में पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के अनुकूल चलती हैं।

2. आकार तथा विस्तार (Shape and Size)-उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की समभार रेखाएँ लगभग वृत्ताकार अथवा दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) होती हैं। भीतरी न्यून तथा बाहरी अधिक वायु-भार में लगभग 55-60 मिलीबार का अन्तर होता है। इनका विस्तार शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के विस्तार में बहुत ही कम होता है, इनका व्यास साधारणतया 150 से 750 किलोमीटर तक होता है, परन्तु कुछ छोटे चक्रवातों का व्यास 40 से 50 किलोमीटर तक ही होता है।

3. मौसम (Weather)-शीतोष्ण चक्रवातों की भाँति उष्ण चक्रवातों के आने पर सबसे पहले आकाश में पक्षाभ-स्तरीय मेघ दृष्टिगोचर होते हैं और सूर्य तथा चन्द्रमा के चारों ओर प्रभा-मंडल का विकास होता है। वायु उमस वाली हो जाती है और शान्त वातावरण उत्पन्न हो जाता है। वायुदाब एकदम से बढ़ जाता है। इसके पश्चात् मन्द समीर चलने लगती है, मेघ नीचे होने लगते हैं और वायुदाब धीरे-धीरे कम होने लगता है।

तत्पश्चात् वर्षादायनी मेघों (Nimbus Clouds) का विकास होता है जो सबसे पहले क्षैतिज पर दिखाई देते हैं और फिर धीरे-धीरे समस्त आकाश पर छा जाते हैं। वायुदाब तापमान की तीव्रता से कम होने लगता है और पवन का वेग बहुत बढ़ जाता है। दाहिने अग्र चतुर्थांश (Right Front Quadrant) में प्रायः तेज बौछारों के साथ वर्षा होती है। यदि गतियुक्त चक्रवात कुछ समय के लिए स्थिर हो जाएँ तो दाएँ पृष्ठ चतुर्थांश में भी काफी वर्षा होती है। चक्रवात के अन्तिम भाग में फिर से पक्षाभ तथा पक्षाभ-स्तरीय मेघ दृष्टिगोचर होते हैं, पवन का वेग मन्द पड़ जाता है और वायुदाब सामान्य हो जाता है।

4. मार्ग तथा प्रभाव क्षेत्र (Path and Affected Areas)-उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की दिशा विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न होती है। भूमध्य रेखा से 15° तक ये सन्मार्गी (व्यापारिक) पवनों से प्रभावित होकर पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं। 15° से 30° अक्षांशों के बीच इनकी दिशा अनिश्चित रहती है, परन्त 30° को पार करने के बाद ये पछ्वा पवनों के प्रभावाधीन पश्चिम से पूर्व दिशा में मुड़ जाते हैं। स्थल पर पहुँचकर ये समाप्त हो जाते हैं क्योंकि वहाँ पर जलवाष्प की कमी तथा भू-घर्षण में वृद्धि हो जाती है। इनके प्रभाव-क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
(i) कैरीबियन सागर (Caribbean Sea) यहाँ इन्हें हरीकेन (Hurricane) कहते हैं। ये मुख्यतः जून से अक्तूबर तक कैरीबियन सागर से उठते हैं और पश्चिमी द्वीप समूह, फ्लोरिडा तथा दक्षिणी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्य भागों को प्रभावित करते हैं।

(ii) चीन सागर (China Sea)-यहाँ इन्हें टाइफून (Typhoon) कहते हैं। यहाँ ये जुलाई से अक्तूबर तक चलते हैं और फिलीपींस, चीन तथा जापान को प्रभावित करते हैं।

(iii) हिन्द महासागर (Indian Ocean)-यहाँ इन्हें चक्रवात के नाम से पुकारा जाता है। ये भारत, बांग्लादेश, बर्मा, मेडागास्कर तथा ऑस्ट्रेलिया से उत्तरी तट के अतिरिक्त बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर को भी प्रभावित करते हैं। उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के तट पर इन्हें विली-विलीज (Willy Wilies) कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा मैक्सिको में इन्हें टोरनेडो (Tormado) कहते हैं।

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प्रश्न 2.
‘वायुराशियाँ’ क्या हैं? ‘वातान’ कैसे बनते हैं?
उत्तर:
वायुराशियाँ-वायुमंडल में एक विस्तृत भाग पर तापक्रम, आर्द्रता आदि भौतिक गुणों की समानता रखने वाली पवनों को वायुराशियाँ कहते हैं। वायुराशियों की मुख्य रूप से दो विशेषताएँ होती हैं, जिनमें तापमान का लम्बवत वितरण और आर्द्रता की उपस्थिति शामिल हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण तापमान के लम्बवत् वितरण पर ही उनकी ऊष्मा तथा शीतलता निर्भर करती है। जो वायुराशियाँ स्थिर होती हैं, वे प्रायः ठण्डी तथा शुष्क होती हैं। ये वर्षा नहीं करतीं, परन्तु गतिशील तथा गर्म वायराशियाँ वर्षा करती हैं। वायराशि वाय से भिन्न है।वायराशि में वाय-धाराएँ ऊपर उठती हैं तथा मान तथा आर्द्रता में समानता होती है, परन्तु वायु भूतल के समानान्तर चलती है तथा इसकी विभिन्न परतों में तापमान तथा आर्द्रता में भिन्नता पाई जाती है।

‘वातान’ कैसे बनते हैं-दो विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियों के मिलन-स्थल को वाताग्र (Front) कहते हैं। यह न तो धरातलीय सतह के समानान्तर होता है और न ही उस पर लम्बवत् होता है बल्कि कुछ कोण पर झुका हुआ होता है।

टी० पीटरसन के अनुसार, “वाताग्री सतह एवं धरातलीय सतह को अलग करने वाली रेखा को वाताग्र कहते हैं तथा जिस प्रक्रिया द्वारा वाताग्र बनता है, उसे वाताग्र उत्पत्ति (Frontogenesis) कहते हैं”।

वातानों की उत्पत्ति निम्नलिखित दो बातों पर आधारित है-
1. भौगोलिक कारक-जब दो विभिन्न प्रकार की वायुराशियाँ एक-दूसरे के समीप आती हैं तो वाताग्र की उत्पत्ति होती है अर्थात् वाताग्र की उत्पत्ति के लिए दो विभिन्न वायुराशियों का तापमान तथा उनकी आर्द्रता का भिन्न होना अनिवार्य है।

2. गतिज कारक-वाताग्र की उत्पत्ति के लिए वायुराशियों में प्रवाह अर्थात् गति होना अत्यन्त आवश्यक है। पीटरसन तथा बर्गरॉन ने यह सिद्ध किया है कि वायुराशियों की गति वातारों को तीव्रता प्रदान करती है।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तथा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में अंतर बताइए।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तथा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में अंतर निम्नलिखित हैं-

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
1. ये चक्रवात उष्ण कटिबंध में 5° से 30° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्द्धों में चलते हैं।1. ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबंध में 35° से 65° अंक्षाशों के मध्य दोनों गोलार्द्धों में चलते हैं।
2. इन चक्रवातों का आकार छोटा होने के कारण दाब प्रवणता अधिक होती है।2. इन चक्रवातों का आकार बड़ा होने के क्रारण दाब प्रवणता कम होती है।
3. इन चक्रवातों का व्यास सामान्यतः 100 से 700 कि०मी० तक होता है। कुछ चक्रवात छोटे भी होते हैं।3. इन चक्रवातों का व्यास सामान्यतः 500 से 700 कि०मी० तक होता है। कुछ चक्रवात कई हजार कि०मी० व्यास के भी होते हैं।
4. इनमें अधिक दाब-प्रवणता के कारण पवनें तेजी से चलती हैं।4. इनमें कम दाब-प्रवणता के कारण पवनें मन्द गति से चलती हैं।
5. इनका जन्म संवहनीय धाराओं के कारण अंतर-उष्ण कटिबंधीय अभिसरण (ITCZ) तल पर होता है।5. इनका जन्म शीतल तथा उण्ण वायु-राशियों के मिलने पर होता है।
6. ये चक्रवात प्रायः उष्ण समुद्री भागों में उत्पन्न व विकसित होते हैं।6. ये चक्रवात समुद्री तथा स्थलीय दोनों ही भागों में समान रूप सं विकसित उ उत्पन्न होते हैं।
7. ये चक्रवात ग्रीष्मकाल में उत्पन्न होते हैं।7. ये चक्रवात शीतकाल में उत्पन्न होते हैं।
8. इन चक्रवातों में वाताग्र नहीं होते ।8. इन चक्रवातों में वाताग्र होते हैं।
9. इन चक्रवातों में समदाब रेखाएँ पास-पास होती हैं।9. इन चक्रवातों में समदाब रेखाएँ दूर-दूर होती हैं।
10. पवनें चक्राकार मार्ग में चलती हैं।10. पवनों की गति व दिशा वाताग्रों पर निर्भर करती है।
11. इनमें वर्षा तेजी से होती है।11. इनमें वर्षा धीरे-धीरे होती है।
12. इनमें वर्षा के साथ ओले नहीं गिरते।12. इनमें वर्षा के साथ ओले गिरते हैं।

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HBSE 10th Class Science Notes Haryana Board

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HBSE 10th Class Science Important Questions Haryana Board

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 11th Class Geography पृथ्वी पर जीवन Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन जैवमंडल में सम्मिलित हैं।
(A) केवल पौधे
(B) केवल प्राणी
(C) सभी जैव व अजैव जीव
(D) सभी जीवित जीव
उत्तर:
(C) सभी जैव व अजैव जीव

2. उष्णकटिबंधीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते हैं?
(A) प्रेयरी
(B) स्टैपी
(C) सवाना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सवाना

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3. चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर निम्नलिखित में से क्या बनाती है?
(A) आयरन सल्फेट
(B) आयरन कार्बोनेट
(C) आयरन ऑक्साइड
(D) आयरन नाइट्राइट
उत्तर:
(C) आयरन ऑक्साइड

4. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है?
(A) प्रोटीन
(B) कार्बोहाइड्रेट्स
(C) एमिनोएसिड
(D) विटामिन
उत्तर:
(B) कार्बोहाइड्रेट्स

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पारिस्थितिकी का सीधा सम्बन्ध जैविक तथा अजैविक तत्त्वों के पारस्परिक सम्बन्धों से है। जैव समूहों तथा जीवों और वातावरण के बीच जो सम्बन्ध होते हैं, उनका अध्ययन पारिस्थितिकी कहलाता है अर्थात् वातावरण तथा जीवों के मध्य पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी कहते हैं।

प्रश्न 2.
पारितत्र (Ecological system) क्या है? संसार के प्रमुख पारितंत्र प्रकारों को बताएं।
उत्तर:
पारितन्त्र का अर्थ-पारितन्त्र पर्यावरण के सभी जैव तथा अजैव घटकों के एकीकरण का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, जीव तथा उसके पर्यावरण के बीच की स्वतन्त्र इकाई को पारितन्त्र (Ecosystem) कहा जाता है।
पारितन्त्र के प्रकार-पारितन्त्र दो प्रकार के होते हैं-

  • जलीय पारितन्त्र (Terrestrial Ecosystem)
  • स्थलीय पारितन्त्र (Aquatic Ecosystem)

संसार के कुछ प्रमुख पारितंत्र निम्नलिखित हैं- वन, घास-क्षेत्र, मरुस्थल, झील, नदी, समुद्र इत्यादि।

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प्रश्न 3.
खाद्य श्रृंखला क्या है? चराई खाद्य शृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला का अर्थ-भोजन अथवा ऊर्जा के एक पोषण तल से अन्य पोषण तलों तक पहुँचने की प्रक्रिया को खाद्य श्रृंखला (Food Chain) कहा जाता है।

एक पारितन्त्र में अनेक खाद्य शृंखलाएँ बनती हैं जिनमें चराई खाद्य शृंखला भी एक प्रमुख श्रृंखला है। यह शृंखला हरे पौधों (उत्पादक) से आरम्भ होकर माँसाहारी तक जाती है। इस श्रृंखला के विभिन्न स्तर निम्नलिखित हैं
घास → हरा टिड्डा → मेंढ़क → साँप → बाज

प्रश्न 4.
खाद्य जाल (Food web) से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताएं।
उत्तर:
खाद्य जाल का अर्थ-पारितन्त्र में खाद्य शृंखलाएँ स्वतन्त्र इकाइयों के रूप में नहीं चलती हैं। ये आपस में अन्य खाद्य श्रृंखलाओं से अलग स्तर पर जुड़ी रहती हैं और एक जाल-सा बनाती हैं, जिसे खाद्य जाल (Food Web) कहा जाता है।

उदाहरण-किसी चरागाह पारितन्त्र में हिरण, खरगोश, चरने वाले पशु-चूहे और सुनसुनिया आदि घास को अपना भोजन बनाते हैं। चूहों को साँप या शिकारी पक्षी खा सकते हैं तथा शिकारी पक्षी साँपों को भी खा सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं जिस कारण पारितन्त्र में सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 5.
बायोम (Biome) क्या है?
उत्तर:
बायोम-विशेष परिस्थितियों में पादप व जन्तुओं के अन्तर्सम्बन्धों के कुल योग को बायोम (Biome) कहते हैं। यह पौधों और प्राणियों का एक समुदाय है जो बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। संसार के प्रमुख बायोम हैं

  • वन बायोम
  • मरुस्थलीय बायोम
  • घास-भूमि बायोम
  • जलीय बायोम
  • उच्च प्रदेशीय बायोम।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
संसार के विभिन्न वन बायोम (Forest Biomes) की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
वन बायोम को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन 1
1. उष्ण कटिबन्धीय वन-ये दो प्रकार के होते हैं-

  • भूमध्य रेखीय वन
  • उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन।

भूमध्य रेखीय वन-

  • भूमध्य रेखीय वन भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण अक्षांश के बीच स्थित होते हैं।
  • इन वनों में तापमान 20° से 25°C के बीच रहता है।
  • इन क्षेत्रों की मिट्टी अम्लीय होती है जिसमें पोषक तत्त्वों की कमी होती है।
  • इन वनों में असंख्य वृक्षों के झुण्ड लम्बे व घने वृक्ष मिलते हैं।

उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन-

  • उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन 10° से 25° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं।
  • इन वनों का तापमान 25° से 30°C के बीच रहता है।
  • इन वनों में वार्षिक औसत वर्षा 1000 मि०मी० होती है।
  • इन वनों में कम घने तथा मध्यम ऊँचाई के वृक्ष मिलते हैं।
  • इन वनों में कीट, पतंगे, चमगादड़, पक्षी व स्तनधारी जीव पाए जाते हैं।

2. शीतोष्ण कटिबन्धीय वन-

  • इन वनों का तापमान 20° से 30° के बीच पाया जाता है।
  • इन वनों में वर्षा समान रूप से वितरित होती है तथा 750-1500 मि०मी० के बीच होती है।
  • इन वनों में पौधों की प्रजातियों में कम विविधता पाई जाती है। यहाँ ओक, बीच आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
  • प्राणियों में गिलहरी, खरगोश, पक्षी तथा काले भालू आदि जन्तु पाए जाते हैं।

3. बोरियल वन-

  • इन वनों में छोटी आई ऋतु व मध्यम रूप से गर्म ग्रीष्म ऋतु तथा लम्बी शीत ऋतु पाई जाती है।
  • इन वनों में वर्षा मुख्यतः हिमपात के रूप में होती है जो 400-1000 मि०मी० होती है।
  • वनस्पति में पाइन, स्यूस आदि कोणधारी वृक्ष मिलते हैं।
  • प्राणियों में कठफोड़ा, चील, भालू, हिरण, खरगोश, भेड़िया व चमगादड़ आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 2.
जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) क्या है? वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण (Fixation) कैसे होता है? वर्णन करें।
उत्तर:
जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) पृथ्वी पर जीवन विविध प्रकार से जीवित जीवों के रूप में पाया जाता है। ये जीवधारी विविध प्रकार के पारिस्थितिक अन्तर्सम्बन्धों में जीवित हैं। जीवधारी बहुलता व विविधता में ही जीवित रह सकते हैं। जीवित रहने की प्रक्रिया में विविध प्रवाह; जैसे ऊर्जा, जल व पोषक तत्त्वों की उपस्थिति सम्मिलित है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 वर्षों में वायुमण्डल व जलमण्डल की संरचना में रासायनिक घटकों का सन्तुलन लगभग एक समान रहा है। रासायनिक तत्त्वों का यह सन्तुलन पौधों व प्राणी ऊत्तकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। जैवमण्डल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच में रासायनिक तत्त्वों के चक्रीय प्रवाह को जैव भू-रासायनिक चक्र कहा जाता है।

वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण-(Fixation)वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को जीव-जन्तु प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं परन्तु कुछ फलीदार पौधों की जड़ों में उपस्थित जीवाणु तथा नीली-हरी शैवाल (Blue green Algae) वायुमण्डल की नाइट्रोजन को सीधे ही ग्रहण कर सकते हैं और उसे नाइट्रोजन के यौगिकों में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन यौगिकीकरण कहते हैं। शाकाहारी जन्तुओं द्वारा इन पौधों के खाने पर इसका कुछ भाग उनमें चला जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

प्रश्न 3.
पारिस्थितिक संतुलन (Ecological balance) क्या है? इसके असंतुलन को रोकने के महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक सन्तुलन का अर्थ-किसी पारितन्त्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक सन्तुलन है। यह तभी सम्भव है जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। अतः पारितन्त्र में हर प्रजाति की संख्या में एक स्थायी सन्तुलन को भी पारिस्थितिक सन्तुलन (Ecological Balance) कहा जाता है।

पारिस्थितिक असन्तुलन को रोकने के उपाय-

  • जीव-जन्तुओं के आवास स्थानों को नष्ट नहीं करना चाहिए।
  • वन्य जीवों के शिकार पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
  • पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।
  • वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
  • पर्यावरणीय कारकों का सही एवं उचित प्रयोग करना चाहिए।
  • जनसंख्या दबाव से भी पारिस्थितिकी बहुत प्रभावित हुई है अतः जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगानी चाहिए।
  • मानव के अधिक हस्तक्षेप से असंतुलन बढ़ता है, जिससे बाढ़ और कई जलवायु संबंधी परिवर्तन देखने को मिलते है। अतः मानव का पर्यावरण से छेड़छाड़ कम करना भी एक उपाय हो सकता है।

पृथ्वी पर जीवन HBSE 11th Class Geography Notes

→ जैवमण्डल (Biosphere)-जैवमण्डल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी पौधों, जन्तुओं, प्राणियों और इनके चारों ओर के पर्यावरण के पारस्परिक अन्तर्संबंध से बनता है।

→ पारिस्थितिकी (Ecology)-भौतिक पर्यावरण और जीवों के बीच घटित होने वाली पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।

→ पारितंत्र (Ecosystem)-पारितंत्र पर्यावरण के सभी जैव तथा अजैव घटकों के समाकलन का परिणाम है।

→ स्वपोषित (Autotroph)- ऐसे पौधे जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं अकार्बनिक पदार्थों से तैयार करते हैं, स्वपोषित कहलाते हैं।

→ खाद्य शृंखला (Food Chain)-पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह क्रमबद्ध स्तरों की एक श्रृंखला होती है, जिसे खाद्य श्रृंखला कहते हैं।

→ जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle)-पारितंत्र में अजैव तत्त्वों का जैव तत्त्वों में बदलना तथा पुनः जैव तत्त्वों का अजैव तत्त्वों में बदल जाना, जैव भू-रासायनिक चक्र कहलाता है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. महासागरों की सतह पर एक-साथ भिन्न-भिन्न लंबाई व दिशाओं वाली तरंगों के समूह को कहते हैं-
(A) स्वेल
(B) ‘सी’
(C) सर्फ
(D) बैकवाश
उत्तर:
(B) ‘सी’

2. किस महासागर में पवनों की दिशा बदलते ही धाराओं की दिशा बदल जाती है?
(A) हिंद महासागर में
(B) अंध महासागर में
(C) प्रशांत महासागर में
(D) आर्कटिक महासागर में
उत्तर:
(D) आर्कटिक महासागर में

3. तटीय भागों में टूटती हुई तरंगें कहलाती हैं-
(A) स्वेल
(B) ‘सी’
(C) सर्फ
(D) बैकवाश
उत्तर:
(C) सर्फ

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

4. क्यूरोशियो धारा उत्पन्न होती है-
(A) अटलांटिक महासागर में
(B) प्रशांत महासागर में
(C) हिंद महासागर में
(D) आर्कटिक महासागर में
उत्तर:
(B) प्रशांत महासागर में

5. सारगैसो सागर स्थित है-
(A) प्रशांत महासागर में
(B) दक्षिणी ध्रुव के पास
(C) भूमध्य सागर के पास
(D) अटलांटिक महासागर के मध्य में
उत्तर:
(D) अटलांटिक महासागर के मध्य में

6. निम्नलिखित में से कौन-सी धारा अटलांटिक महासागर में नहीं बहती?
(A) गल्फ स्ट्रीम
(B) लैब्रेडोर की धारा
(C) हंबोल्ट धारा
(D) फाकलैंड की धारा
उत्तर:
(C) हंबोल्ट धारा

7. निम्नलिखित में से कौन-सी गर्म धारा है?
(A) लैब्रेडोर की धारा
(B) फाकलैंड की धारा
(C) क्यूराइल की धारा
(D) फ्लोरिडा की धारा
उत्तर:
(D) फ्लोरिडा की धारा

8. दो लगातार शिखरों या गर्तों के बीच की दूरी कहलाती है-
(A) तरंग काल
(B) तरंग गति
(C) तरंग दैर्ध्य
(D) तरंग आवृत्ति
उत्तर:
(C) तरंग दैर्ध्य

9. निम्नलिखित में से कौन-सी समुद्री धारा ‘यूरोप का कंबल’ के उपनाम से जानी जाती है?
(A) कनारी
(B) बेंगुएला
(C) इरमिंजर
(D) गल्फ स्ट्रीम
उत्तर:
(D) गल्फ स्ट्रीम

10. कालाहारी मरुस्थल के पश्चिम में कौन-सी धारा बहती है? ।
(A) कनारी
(B) बेंगुएला
(C) इरमिंजर
(D) गल्फ स्ट्रीम
उत्तर:
(B) बेंगुएला

11. जापान व ताइवान के पूर्व में कौन-सी गर्म धारा बहती है?
(A) लैब्रेडोर की धारा
(B) क्यूरोशियो की धारा
(C) गल्फ स्ट्रीम
(D) फ्लोरिडा की धारा
उत्तर:
(B) क्यूरोशियो की धारा

12. ‘प्रणामी तरंग सिद्धांत’ निम्नलिखित में से किसकी उत्पत्ति की व्याख्या करता है?
(A) महासागरीय तरंग
(B) चक्रवात
(C) ज्वार-भाटा
(D) उपसागरीय भूकंप
उत्तर:
(C) ज्वार-भाटा

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

13. गर्म समुद्री धाराएँ
(A) ध्रुवों की ओर जाती हैं
(B) भूमध्य रेखा की ओर जाती हैं
(C) उष्ण कटिबंध की ओर जाती हैं
(D) कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच चलती हैं
उत्तर:
(A) ध्रुवों की ओर जाती हैं

14. अर्द्ध दैनिक ज्वार-भाटा प्रायः कितने समय बाद आता है?
(A) 24 घंटे बाद
(B) 12 घंटे 26 मिनट बाद
(C) 36 घंटे बाद
(D) 48 घंटे बाद
उत्तर:
(B) 12 घंटे 26 मिनट बाद

15. निम्नलिखित में से कौन-सी तीन गर्म समुद्री धाराएँ हैं?
(A) गल्फ स्ट्रीम – क्यूराइल – क्यूरोशियो
(B) क्यूरेशियो – क्यूराइल – कैलिफोर्निया
(C) क्यूरोशियो – गल्फ स्ट्रीम – मोजांबिक
(D) गल्फ स्ट्रीम – मोजांबिक – ब्राजील
उत्तर:
(D) गल्फ स्ट्रीम – मोजांबिक – ब्राजील

16. जिस द्वीप के द्वारा अगुलहास धारा दो भागों में विभक्त होती है, वह है
(A) जावा
(B) आइसलैंड
(C) क्यूबा
(D) मैडागास्कर
उत्तर:
(D) मैडागास्कर

17. गल्फ स्ट्रीम की धारा उत्पन्न होती है-
(A) बिस्के की खाड़ी में
(B) मैक्सिको की खाड़ी में
(C) हडसन की खाड़ी में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) मैक्सिको की खाड़ी में

18. निम्नलिखित में से कौन समुद्री धाराओं के प्रवाहित होने का वास्तविक कारण नहीं है?
(A) पानी की लवणता में परिवर्तन
(B) पानी के ताप में परिवर्तन
(C) पानी की गहराई में परिवर्तन
(D) पानी के घनत्व में परिवर्तन
उत्तर:
(C) पानी की गहराई में परिवर्तन

19. सुनामी की उत्पत्ति किस कारणवश होती है?
(A) भूकम्प
(B) ज्वालामुखी
(C) समुद्र गर्भ में भूस्खलन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

20. समुद्री धाराओं के बहने का कारण है
(A) वायुदाब और पवनें
(B) पृथ्वी का परिभ्रमण और गुरुत्वाकर्षण
(C) भूमध्यरेखीय व ध्रुवीय प्रदेशों के असमान तापमान के कारण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
तरंग की गति किस सूत्र से ज्ञात की जाती है?
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन 1

प्रश्न 2.
सुनामी की उत्पत्ति किन कारणों से होती है?
उत्तर:
भूकम्प, ज्वालामुखी, समुद्र के गर्भ में भूस्खलन आदि से।

प्रश्न 3.
समुद्री धाराएँ कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
समुद्री धाराएँ दो प्रकार की होती हैं-

  1. गर्म धारा तथा
  2. ठण्डी धारा।

प्रश्न 4.
किस महासागर में पवनों की दिशा बदलते ही धाराओं की दिशा बदल जाती है?
उत्तर:
हिन्द महासागर में।

प्रश्न 5.
‘सी’ क्या होती है?
उत्तर:
अव्यवस्थित व अनियमित समुद्री तरंगों को ‘सी’ कहा जाता है।

प्रश्न 6.
जापान व ताइवान के पूर्व में कौन-सी गर्म धारा बहती है?
उत्तर:
क्यूरोशियो धारा।

प्रश्न 7.
अन्ध महासागर की सबसे महत्त्वपूर्ण गर्म धारा कौन-सी है?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम धारा।

प्रश्न 8.
न्यू-फाऊंडलैण्ड के निकट कोहरा क्यों उत्पन्न हो जाता है?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम गर्म धारा तथा लैब्रेडोर ठण्डी धारा के मिलने के कारण।

प्रश्न 9.
कालाहारी मरुस्थल के पश्चिम में कौन-सी धारा बहती है?
उत्तर:
बेंगुएला धारा।

प्रश्न 10.
दो ज्वारों के बीच में कितना समय रहता है?
उत्तर:
12 घण्टे, 26 मिनट।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 11.
उष्ण धाराएँ कहाँ-से-कहाँ चलती हैं?
उत्तर:
उष्ण क्षेत्रों से ठण्डे क्षेत्रों की ओर।

प्रश्न 12.
ठण्डी धाराएँ कहाँ-से-कहाँ चलती हैं?
उत्तर:
ठण्डे क्षेत्रों से उष्ण क्षेत्रों की ओर।

प्रश्न 13.
सागर की प्रमुख समुद्री धाराएँ किन पवनों का अनुगमन करती हैं?
उत्तर:
सनातनी अथवा प्रचलित पवनों का।

आल-लघलरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महासागरीय जल के परिसंचरण के मुख्य रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. तरंगें
  2. धाराएँ और
  3. ज्वार-भाटा।

प्रश्न 2.
पवन द्वारा उत्पन्न तरंगें कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:

  1. सी
  2. स्वेल तथा
  3. सर्फ।

प्रश्न 3.
बृहत् ज्वार कब आता है?
उत्तर:
अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन जब पृथ्वी, चन्द्रमा तथा सूर्य एक सीध में आ जाते हैं।

प्रश्न 4.
लघु ज्वार कब आता है?
उत्तर:
शुक्ल व कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन जब सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी के केन्द्र पर समकोण बनाते हैं।

प्रश्न 5.
जल तरंग के दो प्रमुख घटक अथवा भाग कौन-से होते हैं?
उत्तर:

  1. तरंग शीर्ष
  2. तरंग गर्त या द्रोणी।

प्रश्न 6.
‘सी’ क्या होती है?
उत्तर:
अव्यवस्थित व अनियमित समुद्री तरंगों को ‘सी’ कहा जाता है।

प्रश्न 7.
सर्फ किसे कहते हैं?
उत्तर:
तटीय भागों में टूटती हुई तरंगों को सर्फ कहते हैं।

प्रश्न 8.
तरंगों द्वारा कौन-कौन सी स्थलाकृतियों की रचना होती है?
उत्तर:
भृगु, वेदी, खाड़ियाँ, कन्दराएँ, पुलिन तथा लैगून इत्यादि।

प्रश्न 9.
गल्फ स्ट्रीम धारा तथा क्यूरोशियो धारा किन पवनों के प्रभाव से किस दिशा में बहती हैं?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम धारा तथा क्यूरोशियो धारा पछुआ पवनों के प्रभाव से पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं।

प्रश्न 10.
न्यू-फाऊंडलैण्ड के निकट कोहरा क्यों उत्पन्न हो जाता है?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम गर्म धारा तथा लैब्रेडोर ठण्डी धारा के मिलने के कारण।

प्रश्न 11.
हम्बोल्ट धारा कहाँ बहती है?
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर दक्षिण से उत्तर की ओर। इसे पीरुवियन ठण्डी धारा भी कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 12.
प्रशान्त महासागर की दो ठण्डी धाराएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. पूरू की धारा
  2. कैलीफोर्निया की धारा।

प्रश्न 13.
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का कारण क्या है?
उत्तर:
चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति।

प्रश्न 14.
एक पिण्ड से दूसरे पिण्ड पर गुरुत्व बल की तीव्रता किन दो बातों पर निर्भर करती है?
उत्तर:

  1. उस पिण्ड का भार तथा
  2. दोनों पिण्डों के बीच की दूरी।

प्रश्न 15.
तरंगों के आकार और बल को कौन-से कारक नियन्त्रित करते हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
समुद्री तरंगें जल की सतह पर पवनों के दबाव या घर्षण से उत्पन्न होती हैं। तरंगों का आकार और बल तीन कारकों पर निर्भर करता है

  1. पवन की गति
  2. पवन के बहने की अवधि और
  3. पवन के निर्विघ्न बहने की दूरी अर्थात् समुद्र का विस्तार।

प्रश्न 16.
सागरीय तरंगों के भौगोलिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अनाच्छादन के अन्य साधनों की भाँति समुद्री तरंगें भी अपरदन और निक्षेपण कार्यों द्वारा नाना प्रकार की स्थलाकृतियाँ बनाती हैं। तरंगों द्वारा निर्मित मुख्य स्थलाकृतियाँ भृगु (Cliff), वेदी (Platform), खाड़ियाँ (Bays), कन्दराएँ (Caves), पुलिन (Beaches) तथा लैगून (Lagoons) हैं।

प्रश्न 17.
महासागरीय धाराएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर निश्चित दिशा में बहुत दूरी तक जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं। धारा के दोनों किनारों पर तथा नीचे समुद्री जल स्थिर रहता है। वास्तव में समुद्री धाराएँ स्थल पर बहने वाली नदियों जैसी होती हैं लेकिन ये स्थलीय नदियों की अपेक्षा स्थिर और विशाल होती हैं।

प्रश्न 18.
किन-किन कारकों के सम्मिलित प्रयास से महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति होती है?
उत्तर:
महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति में निम्नलिखित कारक सम्मिलित होते हैं-

  1. प्रचलित पवनें
  2. तापमान में भिन्नता
  3. लवणता में अन्तर
  4. वाष्पीकरण
  5. भू-घूर्णन
  6. तटों की आकृति।

प्रश्न 19.
ज्वार-भाटा दिन में दो बार क्यों आता है?
उत्तर:
एक समय में पृथ्वी के दो स्थानों पर ज्वार व दो स्थानों पर भाटा उत्पन्न होते हैं। पृथ्वी अपने अक्ष पर लगभग 24 घण्टों में घूमकर एक चक्कर (Rotation) पूरा करती है। इससे पृथ्वी के प्रत्येक स्थान को दिन में दो बार ज्वार वाली स्थिति से व दो बार भाटा वाली स्थिति से गुज़रना पड़ता है। अतः पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर एक दिन में दो बार ज्वार व दो बार भाटा अवश्य आते हैं।

प्रश्न 20.
उदावन (Swash) क्या होता है?
उत्तर:
समुद्री तरंग के टूटने पर तट की ढाल के विरुद्ध ऊपर की ओर चढ़ता हुआ विक्षुब्ध (Turbulent) जल जो बड़े आकार की तटीय अपरदन से उत्पन्न सामग्री को बहा ले जा सकता है उदावन कहलाता हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
तरंगें क्या हैं? तरंगों की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तरंगें तरंगे महासागरीय जल की दोलायमान गति है जिसमें जल स्थिर रहता है और अपने स्थान पर ही ऊपर-नीचे और आगे-पीछे होता रहता है। तरंग एक ऊर्जा है।

तरंग की विशेषताएँ-

  1. तरंग शिखर एवं गर्त तरंग के उच्चतम और निम्नतम बिन्दुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहा जाता है।
  2. तरंग की ऊँचाई-यह एक तरंग के गर्त के अधःस्थल से शिखर के ऊपरी भाग तक की उर्ध्वाधर दूरी है।
  3. तरंग आयाम-यह तरंग की ऊँचाई का आधा होता है।
  4. तरंग काल-तरंग काल एक निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो लगातार तरंग शिखरों या गर्मों के बीच समयान्तराल है।
  5. तरंगदैर्ध्य यह दो लगातार शिखरों या गर्तों के बीच की दूरी है।
  6. तरंग गति जल के माध्यम से तरंग के गति करने की दर को तरंग गति कहते हैं।
  7. तरंग आवृत्ति-यह एक सैकिण्ड के समयान्तराल में दिए गए बिन्दु से गुजरने वाली तरंगों की संख्या है।

प्रश्न 2.
समुद्री तरंगें क्या हैं? समुद्री तरंग के प्रमुख घटकों (Components) की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समुद्री तरंगें महासागरों की सतह पर पवनों के घर्षण के प्रभाव से जल अपने ही स्थान पर एकान्तर क्रम से ऊपर-नीचे और आगे-पीछे होने लगता है, इसे समुद्री तरंगें कहते हैं।

समुद्री तरंग के प्रमुख घटक-पवन के प्रभाव से जब तरंग या लहर का जन्म होता है तो इसका कुछ भाग ऊपर उठा हुआ और कुछ भाग नीचे धंसा हुआ होता है। तरंग का ऊपर उठा हुआ भाग तरंग-श्रृंग (Crest of the wave) कहलाता है, जबकि दूसरा नीचे धंसा हुआ भाग तरंग-गर्त या द्रोणी (Trough of the wave) कहलाता है।

तरंग के एक शृंग से दूसरे शृंग तक या एक द्रोणी से दूसरी द्रोणी तक की दूरी को तरंग की लम्बाई (Wavelength) कहा जाता है। द्रोणी से शृंग तक की ऊँचाई को तरंग की ऊँचाई कहा जाता है। किसी भी निश्चित स्थान पर दो लगातार तरंगों के गुज़रने की अवधि को तरंग का आवर्त काल (Wave Period) कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
लहरों (तरंगों) तथा धाराओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
लहरों (तरंगों) तथा धाराओं में निम्नलिखित अन्तर हैं-

लहरेंधाराएँ
1. इनका आकार जल की गहराई पर निर्भर करता है।1. ये जल की विशाल राशियाँ होती हैं।
2. ये अस्थायी होती हैं तथा बनती-बिगड़ती रहती हैं।2. ये स्थायी होती हैं तथा निरन्तर दिशा में चलती हैं।
3. लहरें महासागरीय जल की दोलायमान गति हैं जिसमें जल ऊपर-नीचे का स्थान छोड़कर आगे नहीं बढ़ता।3. धाराओं का जल नदी के समान है जिसमें जल अपना स्थान छोड़कर आगे बढ़ता है।
4. ये जल की ऊपरी सतह क्षेत्र तक ही सीमित हों।4. इनका प्रभाव काफी गहराई तक होता है।
5. लहरें पवनों के वेग पर निर्भर करती हैं।5. धाराएँ स्थायी पवनों के प्रभाव से निश्चित दिशा में चलती हैं।

प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटा का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार से है-
1. जब ज्वार-भाटा आता है तो उससे जल-विद्युत उत्पन्न की जा सकती है। कनाडा, फ्रांस, रूस तथा चीन में ज्वार का इस्तेमाल विद्युत शक्ति उत्पन्न करने में किया जा रहा है। एक 3 मैगावाट का विद्युत शक्ति संयंत्र
पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन के दुर्गादुवानी में लगाया जा रहा है।

2. ज्वार-भाटा के समय समुद्रों से बहुत-सी बहुमूल्य वस्तुएँ; जैसे सीपियाँ, कोड़ियाँ आदि बाहर आ जाते हैं।

3. ज्वार-भाटा के समय लहरें बन्दरगाहों के तटीय भागों का कूड़ा-कर्कट बहाकर समुद्र में ले जाती हैं, जिससे नगर के समीपवर्ती भाग स्वच्छ हो जाते हैं।

4. ज्वार-भाटा के द्वारा नदियों के मुहाने का कीचड़ तथा तलछट साफ हो जाता है या बहाकर ले जाया जाता है, जिससे जहाज नदियों के मुहाने तक आसानी से आ और जा सकते हैं तथा व्यापार में सुविधा रहती है। माल को तट तक पहुँचाया जा सकता है तथा निर्यातक माल को आसानी से जहाजों में बाहर भेज सकते हैं।

5. समुद्रों के जल में ज्वार-भाटा की गति के कारण सागरीय जल, शुद्ध तथा स्वच्छ रहता है।

6. जब समुद्रों में ज्वार-भाटा आता है तो मछली पकड़ने वाले मछुआरे खुले सागर में मछली पकड़ने जाते हैं और ज्वार के समय आसानी से तट तक लौट आते हैं।

7. ज्वार-भाटा के कारण बन्दरगाह जम नहीं पाते तथा व्यापार के लिए खुले रहते हैं।

प्रश्न 5.
वृहत् ज्वार तथा निम्न ज्वार में क्या अन्तर है?
उत्तर:
वृहत् ज्वार तथा निम्न ज्वार में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वृहत्त ज्वारनिम्न ज्यार
1. पूर्णमासी (Full Moon) तथा अमावस्या (New Moon) के दिन सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी के एक सीध में होने के कारण संयुक्त गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण समुद्र का जल अधिक ऊँचाई तक पहुँच जाता है, जिसे उच्च ज्वार या वृहत् ज्यार कहते हैं।1. कृष्ग तथा शुक्ल पक्ष की सप्तमी अथवा अष्टमी के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी के साथ समकोण पर स्थित होने के कारण महासागरों में ज्वार की ऊँचाई कम रह जाती है, जिसे निम्न ज्वार कहते हैं।
2. उच्च ज्वार प्रायः साधारण ज्यार की तुलना में 20% अधिक ऊँचा होता है।2. निम्न ज्वार प्रायः साधारण ज्वार की तुलना में 20% कम ऊँचा होता है।

प्रश्न 6.
महासागरीय धाराओं के जलवायु पर प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं का मुख्य रूप से आसपास के क्षेत्रों की जलवायु पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, जो निम्नलिखित है-
जलवायु पर प्रभाव – किसी भी क्षेत्र में बहने वाली धाराओं का उसके समीपवर्ती भागों पर अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है। यदि गर्म जल धारा प्रवाहित होती है तो तापक्रम को बढ़ा देती है, जबकि ठण्डी धारा जिस क्षेत्र से गुजरती है वहाँ का तापमान गिर जाता है। उदाहरणार्थ, ब्रिटिश द्वीप समूह का अक्षांश न्यू-फाउण्डलैण्ड के अक्षांश से अधिक है, लेकिन गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीप समूहों की जलवायु सुहावनी रहती है और यह कड़ाके की ठण्ड से बचा रहता है, जबकि न्यू-फाउण्डलैण्ड के आसपास लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के प्रभाव के कारण तापक्रम काफी गिर जाता है और यहाँ लगभग 9 माह तक बर्फ जमी रहती है।

वर्षा की मात्रा भी जल धाराओं से प्रभावित होती है। गर्म जल धाराओं के ऊपर बहने वाली हवाएँ गर्म होती है तथा अधिक जलवाष्प ग्रहण करती हैं, जबकि इसके विपरीत ठण्डी जल धाराओं के ऊपर की वायु शुष्क तथा शीतल होने से वर्षा नहीं करती। उदाहरणार्थ, पश्चिमी यूरोप के तटवर्ती भागों में गल्फ स्ट्रीम के प्रभाव से अधिक वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी आस्ट्रेलिया के तटों के साथ ठण्डी धाराओं के प्रभाव के कारण वर्षा भी कम होती है।

प्रश्न 7.
पवनों द्वारा उत्पन्न तीन प्रकार की समुद्री तरंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सागरीय जल की सतह पर पवनों की रगड़ द्वारा तरंगों का निर्माण होता है। पवनें तरंगों की गति में भी संचार करती हैं। तरंगों का आकार भी पवनों की गति तथा अवधि पर निर्भर करता है। पवनों द्वारा निर्मित तरंगें तीन प्रकार की हैं-
1. सी (Sea) लहरों के अनियमित तथा अव्यस्थित रूप को ‘सी’ कहते हैं। इनका निर्माण पवनों के महासागरों पर अनियमित रूप से चलने के कारण होता है।

2. स्वेल या महातरंग (Swell) जब समुद्रों में पवन के वेग के कारण तरंगें बनती हैं और तरंगें पवनों के प्रभाव-क्षेत्र से काफी दूर चली जाती हैं तो तरंगें समान ऊँचाई तथा अवधि से आगे बढ़ती हैं, जिसे स्वेल कहते हैं।

3. सर्फ (Surf)-जब तरंगें महासागरीय भागों से समुद्र के तटवर्ती भागों की ओर आती हैं और तटीय भाग पर खड़ी चट्टानों से टकराती हैं तो ऊँचाई की ओर बढ़ती हैं और फिर टकराकर उनका श्रृंग आगे की ओर झुककर और फिर टूटकर सागर में गिर जाता है तो उसे सर्फ या फेनिल तरंग कहते हैं।

प्रश्न 8.
पवनों के अतिरिक्त अन्य कारकों द्वारा उत्पन्न समुद्री तरंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पवनों के अतिरिक्त अन्य कारकों द्वारा उत्पन्न समुद्री तरंगों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
1. प्रलयकारी तरंगें (Catastrophic Waves)-इन तरंगों की उत्पत्ति ज्वालामुखी, भूकम्प या महासागरों में हुए भूस्खलन के कारण होती है, इन्हें सुनामी (Tsunami) भी कहते हैं। सुनामी जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “agreat harbour wave”।

2. तूफानी तरंगें (Stormy Waves) इनकी ऊँचाई भी अधिक होती है और ये तटीय क्षेत्रों पर भारी विनाशलीला करती हैं।

3. अन्तःतरंगें (Internal Waves) अन्तःतरंगें दो भिन्न घनत्व वाली समुद्री परतों के सीमा तल पर उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 9.
तापमान के आधार पर महासागरीय धाराओं के दो मोटे वर्ग कौन-से हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तापमान के आधार पर महासागरीय धाराओं को दो मोटे वर्गों में रखा जाता है-
1. गर्म धाराएँ (Warm Currents) ये धाराएँ उष्ण क्षेत्रों से ठण्डे क्षेत्रों की ओर चलती हैं। ऐसी धाराएँ जो भूमध्य रेखा के निकट से ध्रुवों की ओर चलती हैं, गर्म धाराएँ कहलाती हैं।

2. ठण्डी धाराएँ (Cold Currents) ये धाराएँ ठण्डे क्षेत्रों से उष्ण क्षेत्रों की ओर चलती हैं। ऐसी धाराएँ जो उच्च अक्षांशों व ध्रुवों के निकट से भूमध्य रेखा की ओर चलती हैं, ठण्डी धाराएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 10.
महासागरीय जलधाराओं की सामान्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
महासागरीय जलधाराओं की सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • जलधाराएँ हमेशा एक निश्चित दिशा में बहती हैं।
  • उच्च अक्षांशों में गर्म जल की धाराएँ महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर तथा ठण्डे जल की धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती हैं।
  • निम्न अक्षांशों में गर्म जल की धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर तथा ठण्डे जल की धाराएँ महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर बहती हैं।
  • निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराएँ गर्म जल की धाराएँ कहलाती हैं।
  • उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराएँ ठण्डे जल की धाराएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 11.
यदि महासागरीय धाराएँ न होतीं तो विश्व का क्या हुआ होता?
उत्तर:
यदि महासागरीय धाराएँ न होतीं तो विश्व की निम्नलिखित स्थिति होती-

  • तटीय प्रदेशों की वर्षा, तापमान व आर्द्रता पर किसी तरह का प्रभाव न पड़ता।
  • ऊँचे अक्षांशों में बन्दरगाहें जमीं रहतीं और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बाधा पहुँचती।
  • ठण्डी धाराओं के अभाव में नाशवान वस्तुओं (Perishable Goods) का समुद्री परिवहन सम्भव नहीं हो पाता।
  • विश्व-प्रसिद्ध मत्स्य ग्रहण क्षेत्र विकसित न हो पाते।
  • धाराओं के अभाव में जलयान उनका अनुसरण न कर पाते। परिणामस्वरूप समय व ईंधन की बचत न हो पाती।
  • यूरोप की जलवायु सुहावनी न होती तथा शीतोष्ण कटिबन्ध में वर्षा कम होती।
  • महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे मरुस्थलीय न होते।

प्रश्न 12.
समुद्री धाराओं के नकारात्मक प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए। अथवा धाराओं से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समुद्री धाराओं के नकारात्मक प्रभाव या हानियाँ निम्नलिखित हैं-
1. धाराओं के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। भिन्न तापमान वाली धाराओं के मिलन-स्थल पर घना कुहासा उत्पन्न हो जाता है जो जलयानों के आवागमन को बाधित करता है।

2. ध्रवीय क्षेत्रों से आने वाली धाराएँ अपने साथ बड़ी-बड़ी हिमशैलें (Icebergs) बहा लाती हैं जिनके टकराने से बड़े-बड़े जलयान चकनाचूर हो जाते हैं। सन् 1912 में टाईटैनिक (Titanic) नामक विश्व प्रसिद्ध व उस समय का आधुनिक और सबसे बड़ा जहाज, न्यूफाऊंडलैण्ड के निकट एक हिमशैल से टकराकर 1517 सवारियों के साथ उत्तरी अन्ध महासागर की तली में जा टिका।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 13.
ज्वार-भाटा कैसे उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
ज्वार-भाटा सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी के पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण के कारण उत्पन्न होते हैं। सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा से आकार में कई गुणा बड़ा है, परन्तु सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का पृथ्वी पर अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि चन्द्रमा पृथ्वी के निकट है। परिभ्रमण करती हुई पृथ्वी का जो धरातलीय भाग चन्द्रमा के सामने आ जाता है, उसकी दूरी सबसे कम तथा उसके विपरीत वाला धरातलीय भाग सबसे दूर होता है। सबसे नजदीक वाले भाग का ज्वारीय उभार ऊपर होगा, इसे उच्च ज्वार कहते हैं। जिस स्थान पर जल-राशि कम रह जाती है, वहाँ जल अपने तल से नीचे चला जाता है, उसे निम्न ज्वार कहते हैं। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण प्रत्येक स्थान पर 24 घण्टे में दो बार ज्वार-भाटा आता है।

प्रश्न 14.
ज्वार-भाटा कितने प्रकार का होता है? व्याख्या कीजिए।
अथवा
बृहत् ज्वार-भाटा और लघु ज्वार-भाटा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ज्वार की ऊँचाई पृथ्वी के सन्दर्भ में सूर्य और चन्द्रमा की सापेक्षिक स्थितियों के बदलने से घटती-बढ़ती रहती है। इस आधार पर ज्वार-भाटा दो प्रकार के होते हैं-
1. बहत ज्वार-भाटा (Spring Tide)-पूर्णमासी (Full Moon) और अमावस्या (New Moon) को सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं जिससे पृथ्वी पर चन्द्रमा तथा सूर्य के संयुक्त गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप इन दोनों दिनों में साधारण दिनों की अपेक्षा जल का उतार-चढ़ाव अधिकतम होता है। इसे उच्च या बृहत् ज्वार-भाटा कहते हैं।

2. लघु ज्वार-भाटा (Neap Tide) शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी के दिन सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के केन्द्र ओं में आ जाते हैं। ऐसी स्थितियों में सर्य और चन्द्रमा के गरुत्व बल पथ्वी पर एक-दूसरे के विरुद्ध काम करते हैं। परिणामस्वरूप इन दोनों दिनों में महासागरों में जल का उतार-चढ़ाव साधारण दिनों के उतार-चढ़ाव की अपेक्षा कम होता है। इसे लघु ज्वार-भाटा कहते हैं।

प्रश्न 15.
ज्वारीय धारा (Tidal Current) क्या होती है?
उत्तर:
जब कोई खाड़ी खुले सागरों और महासागरों के साथ एक संकीर्ण मार्ग के साथ जुड़ी हुई होती है तब ज्वार के समय महासागर का जल-तल खाड़ी के जल-तल से ऊँचा हो जाता है। परिणामस्वरूप खाड़ी के संकीर्ण प्रवेश मार्ग के द्वारा एक द्रव-प्रेरित धारा (Hydraulic Current) खाड़ी में प्रवेश करती है। जब भाटा के समय समुद्र तल नीचा हो जाता है तो खाड़ी का जल-तल महासागर के जल-तल से ऊँचा बना रहता है। ऐसी दशा में एक तीव्र द्रव-प्रेरित धारा खाड़ी से समुद्र की ओर बहने लग जाती है। खाड़ी के अन्दर तथा बाहर की ओर जल के इस प्रवाह को ज्वारीय धारा कहते हैं।

प्रश्न 16.
ज्वारीय भित्ति (Tidal Bore) किसे कहते हैं? इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब कोई ज्वारीय धारा किसी नदी के छिछले और सँकरे नदमुख (Estuary) में प्रवेश करती है तो वह नदी के विपरीत दिशा में प्रवाह से टकराती है। नदी तल के घर्षण तथा दो विपरीत प्रवाहों के टकराने से जल एक तीव्र चोंच वाली ऊँची दीवार के रूप में नदी में प्रवेश करता है। इसे ज्वारीय भित्ति कहते हैं। भारत में हुगली नदी के मुहाने पर ज्वारीय भित्तियों की उत्पत्ति एक आम बात है। ज्वारीय भित्ति प्रायः दीर्घ ज्वार के समय आती है। इन भित्तियों की ऊँचाई 4 से 50 फुट तक आंकी गई है। ज्वारीय भित्तियों से छमेरी नावों को हानि उठानी पड़ती है।

प्रश्न 17.
प्रवाह (Drift), धारा (Current) तथा विशाल धारा (Stream) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रवाह-जब पवन से प्रेरित होकर सागर की सतह का जल आगे की ओर बढ़ता है तो उसे प्रवाह (Drift) कहते हैं। इसकी गति और सीमा तय नहीं होती। प्रवाह की गति मन्द होती है और इसमें केवल ऊपरी सतह का जल ही गतिशील होता है; जैसे दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह।

धारा-महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर निश्चित दिशा में बहुत दूरी तक जल के निरन्तर प्रवाह को धारा (Current) कहते हैं। यह प्रवाह से तेज़ गति की होती है; जैसे लैब्रेडोर धारा।

विशाल धारा-जब महासागर का अत्यधिक जल स्थलीय नदियों की भाँति एक निश्चित दिशा में गतिशील होता है तो उसे विशाल धारा (Stream) कहते हैं। इसकी गति प्रवाह और धारा दोनों से अधिक होती है; जैसे गल्फ स्ट्रीम।

प्रश्न 18.
ज्वार-भाटा से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटे से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं-

  1. ज्वार-भाटा या ज्वारीय भित्ति के कारण कई बार छोटे जहाज़ों को हानि पहुँचती है और छोटी नावें तो डूब ही जाती हैं।
  2. ज्वार से बन्दरगाहों के समीप रेत जमना (Siltation) शुरू हो जाता है जिससे जहाजों की आवाजाई में रुकावट पैदा होती है।
  3. ज्वार-भाटा डेल्टा के निर्माण में बाधा उत्पन्न करता है।
  4. ज्वार के समय मछली पकड़ने का काम बाधित होता है।
  5. ज्वार का पानी तटीय प्रदेशों में दलदल जैसी हालत पैदा कर देता है।

प्रश्न 19.
उत्तरी हिन्द महासागर में शीत एवं ग्रीष्म ऋतुओं में समुद्री जलधाराएँ अपनी दिशा क्यों बदलती हैं?
उत्तर:
उत्तरी हिन्द महासागर में शीत एवं ग्रीष्म ऋतुओं में समुद्री जलधाराएँ मानसून पवनों के कारण अपनी दिशा में परिवर्तन करती हैं। शीत ऋतु में उत्तर:पूर्व मानसून पवनों के प्रभाव के कारण उत्तरी हिन्द महासागर की मानसूनी धारा उत्तर पूर्व से भूमध्य रेखा की ओर बहने लगती है जिसे उत्तर-पूर्वी मानसून प्रवाह कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु में मानसून की दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है जिससे भूमध्य रेखीय धारा का कुछ जल उत्तरी हिन्द महासागर में उत्तर:पूर्वी अफ्रीका तट के सहारे सोमाली की धारा के रूप में बहने लगता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जल धाराओं की उत्पत्ति के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल धाराओं की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं-

  • पृथ्वी की परिभ्रमण अथवा घूर्णन गति से सम्बन्धित कारक
  • अन्तः सागरीय या महासागरों से सम्बन्धित कारक
  • बाह्य सागरों से सम्बन्धित कारक

1. पृथ्वी की परिभ्रमण अथवा घूर्णन गति से सम्बन्धित कारक-पृथ्वी के घूर्णन या गुरुत्वाकर्षण बल की धाराओं की उत्पत्ति पर प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूम रही है। सम्पूर्ण पृथ्वी जल तथा स्थल दो मण्डलों में विभक्त होने के कारण परिभ्रमण में जलीय भाग स्थल का साथ नहीं दे पाते। अतः जल तरल होने के कारण विपरीत दिशा में पूर्व से पश्चिम की ओर गति करना आरम्भ कर देता है और उत्तरी गोलार्द्ध में धाराएँ भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर तथा ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर चलने लगती हैं, अर्थात विक्षेपक बल के कारण धाराएँ दाईं ओर मुड़ जाती हैं। उदाहरणार्थ गल्फ स्ट्रीम और क्यूरोसियो की गरम जल धाराएँ भूमध्य रेखा के उत्तर में दाईं ओर (उत्तर:पूर्व) होती हैं।

2. महासागरों से सम्बन्धित कारक-अन्तः सागरीय कारकों से तात्पर्य है कि सागर से सम्बन्धित कारकों का धाराओं की उत्पत्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है। इनमें तापक्रम की विभिन्नता, सागरीय लवणता तथा घनत्व की विभिन्नता सम्मिलित है।

(क) तापक्रम की विभिन्नता-सूर्य की किरणें पृथ्वी पर अलग-अलग अक्षांशों पर भिन्न-भिन्न कोण बनाती हैं। भूमध्य रेखा तथा कर्क और मकर रेखाओं के मध्य सूर्य की किरणें वर्ष-भर लगभग लम्बवत् चमकती हैं जिससे तापक्रम की मात्रा अधिक होती है। भूमध्य रेखा के निकटवर्ती समुद्र अधिक ताप ग्रहण करते हैं, जिससे समुद्री जल हल्का होकर ध्रुवों की ओर अधिक घनत्व वाले स्थानों की ओर अग्रसर हो जाता है। उसकी आपूर्ति के लिए ध्रुवीय क्षेत्रों से अधिक घनत्व वाला जल आ जाता है। इस प्रकार जल राशि का प्रवाह धाराओं के रूप में होने लगता है।

(ख) महासागरीय लवणता सभी समुद्रों में लवणता पाई जाती है, लेकिन लवणता की मात्रा सर्वत्र समान नहीं है। जो सागरीय भाग अधिक लवणता वाले होते हैं, उनके पानी का घनत्व भी कम होता है इसलिए अधिक खारा पानी अधिक घनत्व के कारण नीचे तथा कम खारा पानी सागर की ओर प्रवाहित होकर धाराओं को जन्म देता है। उदाहरणार्थ उत्तरी अटलांटिक महासागर का जल भूम य रेखीय समुद्रों के जल से कम खारा होता है जिसके फलस्वरूप उत्तरी अटलांटिक का जल जिब्राल्टर से होकर अधिक लवणता वाले भूमध्य सागर की ओर प्रवाहित होता है और भूमध्य सागर का जल खारा होने से नीचे बैठता है और अन्तःप्रवाह द्वारा अटलांटिक महासागर में प्रवेश करता है।

3. बाह्य सागरों से सम्बन्धित कारक महासागरों में वायुमण्डलीय बाह्य कारकों का धाराओं की उत्पत्ति पर प्रभाव पड़ता है। वायुमण्डलीय दाब, पवनें, वर्षा, वाष्पीकरण आदि का धाराओं के विकास पर प्रभाव दिखाई देता है।

(क) प्रचलित पवनें हवाओं की दिशा तथा उनके चलने से महासागरीय जल की सतह पर घर्षण (friction) से पवनें अपनी दिशा में जल का प्रवाह करती हैं अर्थात् पवनें जिस दिशा में चलती हैं समुद्री जल को उसी दिशा में धकेलती हैं। स्थायी पवनें (प्रचलित पवनें) सदैव एक ही दिशा में चलती हैं; जैसे कर्क और मकर रेखाओं के बीच व्यापारिक पवनों की दिशा पूर्व से पश्चिम होती है। इसलिए धाराएँ भी पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं और शीतोष्ण कटिबन्ध में इनकी दिशा पश्चिम से पूर्व (पछुवा पवनों के अनुरूप) भी होती हैं।

(ख) वाष्पीकरण और वर्षा (Evaporation and Rainfall) वाष्पीकरण और वर्षा का धाराओं पर काफी प्रभाव पड़ता है। जिन समुद्री भागों में वाष्पीकरण अधिक होता है वहाँ वर्षा भी अधिक होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में वर्षा अधिक तथा वाष्पीकरण कम होता है। ऐसे महासागरों में लवणता बहुत कम पाई जाती है। ऐसे क्षेत्रों में जल का तल ऊँचा होता है और जहाँ वाष्पीकरण अधिक तथा वर्षा कम होती है, वहाँ जल का घनत्व अधिक तथा पानी का तल निम्न होता है। जल का तल ऊँचा-नीचा होने के फलस्वरूप ऊँचे तल से धाराओं का प्रवाह निम्न तल की ओर होता है। धाराएँ भूमध्य रेखीय उच्च तल से मध्य अक्षांशीय निम्न तल की ओर चलती हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 2.
जल धाराओं का जलवायु तथा व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं का मुख्य रूप से आसपास के क्षेत्रों की जलवायु तथा व्यापार पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जिसका वर्णन निम्नलिखित है-
1. जलवायु पर प्रभाव (Effect on Climate) किसी भी क्षेत्र में बहने वाली धाराओं का उसके समीपवर्ती भागों पर अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है। यदि गर्म जल धारा प्रवाहित होती है तो तापक्रम को बढ़ा देती है, जबकि ठण्डी धारा जिस क्षेत्र से गुजरती है वहाँ का तापमान गिर जाता है। उदाहरणार्थ, ब्रिटिश द्वीप समूह का अक्षांश न्यू-फाउण्डलैण्ड के अक्षांश से अधिक है, लेकिन गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीप समूहों की जलवायु सुहावनी रहती है और यह कड़ाके की ठण्ड से बचा रहता है, जबकि न्यू-फाउण्डलैण्ड के आसपास लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के प्रभाव के कारण तापक्रम काफी गिर जाता है और यहाँ लगभग 9 माह तक बर्फ जमी रहती है।

वर्षा की मात्रा भी जल धाराओं से प्रभावित होती है। गर्म जल धाराओं के ऊपर बहने वाली हवाएँ गर्म होती हैं तथा अधिक जलवाष्प ग्रहण करती हैं, जबकि इसके विपरीत ठण्डी जल धाराओं के ऊपर की वायु शुष्क तथा शीतल होने से वर्षा नहीं करती। उदाहरणार्थ, पश्चिम यूरोप के तटवर्ती भागों में गल्फ स्ट्रीम के प्रभाव से अधिक वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तटों के साथ ठण्डी धाराओं के प्रभाव के कारण वर्षा भी कम होती है।

2. व्यापार पर प्रभाव (Effect on Trade) गर्म धाराओं के प्रभाव-क्षेत्र में आने वाले बन्दरगाह शीत ऋतु में भी जमने नहीं पाते तथा साल भर व्यापार के लिए खुले रहते हैं। जैसे पश्चिमी यूरोप के बन्दरगाहों पर गल्फ स्ट्रीम का प्रभाव रहता है, जबकि लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के प्रभाव के कारण बन्दरगाह जम जाते हैं तथा व्यापार नहीं हो पाता। – ठण्डी तथा गर्म धाराओं के मिलने से कोहरा उत्पन्न हो जाता है, जिससे व्यापार में कठिनाइयाँ आती हैं। साथ ही इन धाराओं के आपस में मिलने से चक्रवातों की भी उत्पत्ति होती है; जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर हरीकेन (Hurricane), जापान के समीप टाइफून तथा प्रशान्त महासागर में टारनैडो (Tarnado) तूफानी चक्रवातों के कारण ही जन्म लेते हैं।

प्रश्न 3.
जल धाराओं के प्रभावों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं के प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित है-
(1) समुद्री धाराएँ निकटवर्ती समुद्रतटीय प्रदेशों के तापमान, आर्द्रता और वर्षा की मात्रा को प्रभावित करके वहाँ की जलवायु का स्वरूप निर्धारित करती हैं।

(2) उच्च अक्षांशों में गर्म धाराएँ सारा साल बन्दरगाहों को जमने से बचाकर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सहायक सिद्ध होती हैं। इसी प्रकार ठण्डी धाराएँ नाशवान वस्तुओं (Perishable goods) के समुद्री परिवहन को प्रोत्साहित करती हैं।

(3) ठण्डी धाराएँ ध्रुवीय तथा उपध्रुवीय क्षेत्रों में अपने साथ प्लवक (Plankton) नामक सूक्ष्म जीवों को बहाकर लाती है जो मछलियों का उत्तम आहार सिद्ध होता है। इसी कारण ठण्डी धाराओं के मार्ग में मछलियाँ खूब फलती-फूलती हैं।

(4) ठण्डी और गर्म धाराओं के मिलन स्थल विश्व प्रसिद्ध मत्स्य ग्रहण क्षेत्रों के रूप में विकसित हुए हैं।

(5) महासागरों के व्यावसायिक समुद्री जलमार्ग यथासम्भव समुद्री धाराओं का अनुसरण करते हैं। इससे जलयानों की गति में तीव्रता आती है और ईंधन व समय की बचत होती है।

(6) धाराओं के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। भिन्न तापमान वाली धाराओं के मिलन-स्थल पर घना कुहासा उत्पन्न हो जाता है जो जलयानों के आवागमन को बाधित करता है। ध्रुवीय क्षेत्रों से आने वाली धाराएँ अपने साथ बड़ी-बड़ी हिमशैलें (Icebergs) बहा लाती हैं जिनके टकराने से बड़े-बड़े जलयान चकनाचूर हो जाते हैं। सन् 1912 में टाईटेनिक (Titanic) नामक विश्व प्रसिद्ध व उस समय का आधुनिक और सबसे बड़ा जहाज़, न्यू-फाऊंडलैण्ड के निकट एक हिमशैल से टकराकर 1517 सवारियों के साथ उत्तरी अन्ध महासागर की तली में जा टिका।

प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा क्या है? इसकी उत्पत्ति के कारण व प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटा-“सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति समुद्री जल को प्रतिदिन क्रमशः ऊपर-नीचे करती रहती है, ज्वार-भाटा कहलाती है।” ज्वार-भाटा के कारण समुद्रों का जल एक दिन में दो बार ऊपर चढ़ता है तथा उतरता है। ज्वार-भाटा के समय नदियों के जल-तल में परिवर्तन हो जाते हैं। जब समुद्रों में ज्वार आता है, तो नदियों के जल-तल ऊँचे हो जाते हैं तथा इसके विपरीत भाटे के समय नीचे हो जाते हैं।

ज्वार-भाटा की उत्पत्ति-ज्वार-भाटा सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी के पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण के कारण उत्पन्न होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी का भाग उनकी ओर खिंचता है और स्थलीय भाग की अपेक्षा जलीय भाग पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अधिक होता है। सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा से आकार में कई गुना अधिक बड़ा है, लेकिन सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का पृथ्वी पर अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि चन्द्रमा पृथ्वी के निकट है।

परिभ्रमण करती हुई पृथ्वी का जो धरातलीय भाग चन्द्रमा के सामने आ जाता है, उसकी दूरी सबसे कम तथा उसके विपरीत वाला धरातलीय भाग सबसे दूर होता है। सबसे नजदीक वाले भाग का ज्वारीय उभार ऊपर होगा, जबकि पीछे वाला भाग सबसे कम गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में होता है, लेकिन इस पीछे वाले भाग में भी उच्च ज्वार की स्थिति होती है। इस प्रकार पृथ्वी का चन्द्रमा के सामने तथा पीछे (विपरीत दिशा) वाला भाग जलीय (तरल पदाथ) होने के कारण पृथ्वी के साथ गति नहीं कर पाता। यह भाग पृथ्वी की गति से पीछे रह जाता है। आगे तथा पीछे के जलीय भाग उभरी हुई या खिंची हुई अवस्था में होते हैं। यह स्थिति एक दिन में दो बार ज्वार की तथा दो बार भाटे की होती है।

ज्वार-भाटा के प्रकार-विश्व के अनेक महासागरों तथा सागरों में जो ज्वार-भाटा आते हैं, उनकी आवृत्ति तथा ऊँचाई में अन्तर देखने को मिलता है। भूमध्य रेखीय भागों के आसपास दिन में दो बार उच्च ज्वार तथा दो बार निम्न ज्वार देखने को मिलते हैं, जबकि ध्रुवीय प्रदेशों में एक ही बार उच्च तथा निम्न ज्वार देखने को मिलते हैं, इंग्लैण्ड के दक्षिणी तट पर स्थित साऊथैप्टन (Southampton) में ज्वार प्रतिदिन चार बार आता है। इसके कारण यह है कि ज्वार दो बार तो इंग्लिश चैनल से होकर और दो बार उत्तरी सागर से होकर विभिन्न अन्तरालों पर वहाँ पहुँचते हैं। यह पृथ्वी तथा चन्द्रमा की गतियों के परिणामस्वरूप है। इस प्रकार ज्वार-भाटा दो प्रकार के होते हैं

1. उच्च या वृहत् ज्वार-भाटा जब सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी तीनों एक ही सीध में होते हैं तो उस समय उच्च या वृहत् ज्वार-भाटा आता है। ऐसी स्थिति पूर्णमासी (Full Moon) तथा अमावस्या (New Moon) के दिन होती है। इन दिनों दिन में पृथ्वी पर सूर्य तथा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अधिक होता है। जब सूर्य और पृथ्वी एक ही दिशा में स्थित होते हैं, तो बीच में चन्द्रमा के आ जाने से सूर्य ग्रहण होता है और जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है, तो चन्द्रग्रहण होता है।

2. लघु ज्वार-भाटा-कृष्ण तथा शुक्ल पक्ष की सप्तमी अथवा अष्टमी के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी के साथ समकोण पर स्थित होते हैं। इस समकोण स्थिति के कारण चन्द्रमा तथा सूर्य पृथ्वी को विभिन्न दिशाओं से आकर्षित करते हैं, जिसके कारण गुरुत्वाकर्षण बल अन्य तिथियों की अपेक्षा कम रहता है और महानगरों में ज्वार की ऊँचाई भी कम रहती है जिसे लघु ज्वार कहते हैं।

प्रश्न 5.
हिन्द महासागर की धाराओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिन्द महासागर की धाराएँ-हिन्द महासागर में मानसूनी पवनें चला करती हैं जो छः महीने बाद अपनी दिशा बदल देती हैं। फलस्वरूप हिन्द महासागर में चलने वाली धाराएँ भी मानसून के साथ अपनी दिशा बदल देती हैं। हिन्द महासागर की धाराओं को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-
(क) स्थायी धाराएँ-हिन्द महासागर में विषुवत् रेखा के दक्षिण में चलने वाली धाराएँ वर्ष भर एक ही क्रम में चलती हैं, अतः इन्हें ‘स्थायी धाराएँ’ कहते हैं। इन धाराओं में दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा, मोजम्बिक धारा, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की जलधारा और अगुलहास धारा मुख्य हैं।

(ख) परिवर्तनशील धाराएँ-विषुवत् रेखा के उत्तर की ओर हिन्द महासागर की समस्त धाराएँ मौसम के अनुसार अपनी दिशा और क्रम बदल देती हैं। इसलिए ये परिवर्तनशील धाराएँ कहलाती हैं। इन धाराओं की दिशा व क्रम मानसून हवाओं से प्रभावित होते हैं। अतः इन्हें मानसून प्रवाह भी कहा जाता है।
1. दक्षिणी विषुवरेखीय जलधारा-यह धारा दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है। मलागसी तट के समीप यह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है।

2. मोजम्बिक जलधारा-यह एक गरम जल की धारा है जो अफ्रीका के पूर्वी तट और मलागसी के बीच बहती है। यह उत्तर से आकर दक्षिणी विषुवत् रेखीय धारा की दक्षिणी शाखा से मिल जाती है।

3. अगुलहास जलधारा-अफ्रीका से दक्षिण में अगुलहास अन्तरीप में पछुआ पवनों के प्रभाव द्वारा पूर्व की ओर एक धारा चलने लगती है। इसी धारा को अगुलहास की गर्म धारा कहते हैं।

4. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की धारा-अण्टार्कटिक प्रवाह की एक शाखा ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पश्चिमी भाग से मुड़कर उत्तर की ओर पूर्व को ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के साथ-साथ बहने लगती है। यही पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की ठण्डी जलधारा कहलाती है।

5. ग्रीष्मकालीन मानसून प्रवाह-ग्रीष्म ऋतु में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों के प्रवाह से एशिया महाद्वीप के पश्चिमी तटों से एक उष्ण प्रवाहपूर्व की तरफ चलने लगता है। उत्तरी विषुवत् रेखीय धारा भी मानसून के प्रभाव से पूर्व की ओर बहकर मानसून प्रवाह के साथ ग्रीष्मकाल की समुद्री धाराओं का क्रम बनाती है।

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HBSE 10th Class Science Solutions Haryana Board

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

HBSE 10th Class Science मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मानव नेत्र अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को समायोजित करके विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को फोकसित कर सकता है। ऐसा हो पाने का कारण है
(a) जरा-दूरदृष्टिता
(b) समंजन
(c) निकट-दृष्टि
(d) दीर्घ-दृष्टि।
उत्तर-
(b) समंजन।

प्रश्न. 2.
मानव नेत्र जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनाते हैं, वह है-
(a) कॉर्निया
(b) परितारिका
(c) पुतली
(d) दृष्टि पटल।
उत्तर-
(d) दृष्टि पटल।

प्रश्न 3.
सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी होती है, लगभग –
(a) 25 m
(b)2.5 cm
(c)25 cm
(d)2.5 m.
उत्तर-
(c)25 cm.

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प्रश्न 4.
अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन किया जाता है
(a) पुतली द्वारा
(b) दृष्टि पटल द्वारा
(c) पक्ष्माभी द्वारा
(d) पारितारिका द्वारा।
उत्तर-
(c) पक्ष्माभी द्वारा।

प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति को अपनी दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए -5.5 डाइऑप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। अपनी निकट की दृष्टि को संशोधित करने के लिए उसे +1.5 डाइऑप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी क्या होगी-(i) दूर की दृष्टि के लिए, (ii) निकट की दृष्टि के लिए।
हल :
(i) दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देखने के लिए आवश्यक लेंस की क्षमता
∴ सूत्र P = \(\frac{1}{f \text { (मी० में })} \text { से }\)
f = \(\frac{1}{p}\)m
f = \(\frac{1}{-5.5}=-\frac{100}{5.5} \mathrm{~cm}=\frac{200}{11}\) cm

(ii) दिया है-निकट की वस्तुओं को स्पष्ट देखने के लिए अवश्यक लेंस की क्षमता P = +1.5 D
∴ f = \(\frac{100}{\mathrm{P}} \mathrm{cm} \text { में }=\frac{100}{1.5}=\frac{200}{3} \mathrm{~cm}\)

प्रश्न 6.
किसी निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिन्दु नेत्र के सामने 80 cm दूरी पर है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा क्षमता क्या होगी?
हल: व्यक्ति को ऐसे लेंस की आवश्यकता है जो कि अनन्त पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब आँख के सामने 80 cm दूरी पर बना सके।
अतः u= – 20, v=-80 cm,f = ?
सूत्र \(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\) \(\text { से } \frac{1}{-80}-\frac{1}{-\infty}=\frac{1}{f} \)
अतः f=80 cm = -0.8m
∴ लेंस की क्षमता P = \(\frac{1}{f}=\frac{1}{-0.8} \mathrm{D}\) =-1.25 D
अतः आवश्यक लेंस की प्रकृति अपसारी तथा क्षमता -1.25 D है।

प्रश्न 7.
चित्र बनाकर दर्शाइए कि दीर्घ-दृष्टि दोष कैसे संशोधित किया जाता है? एक दीर्घ-दृष्टि दोष युक्त नेत्र का निकट बिन्दु 1 m है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की क्षमता क्या होगी? यह मान लीजिए कि सामान्य नेत्र का निकट बिन्दु 25cm है।
उत्तर-
दूर दृष्टि दोष में व्यक्ति का निकट बिन्दु दूर खिसक जाता है तथा मनुष्य समीप की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है। इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है। चित्र आरेख इस प्रकार है-
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार 1
मनुष्य के नेत्र का निकट बिन्दु 25 cm से दूर खिसक कर 100 cm दूर पहुँच गया है।
अतः u=-25 cm,v=-100 cm
∴ लेंस के सूत्र से, \(\frac{1}{f}=\frac{1}{v}-\frac{1}{u}\)
= \(\frac{1}{-100}-\frac{1}{-25}=\frac{1}{25}-\frac{1}{100}\)
= \(\frac{1}{f}=\frac{4-1}{100}=\frac{3}{100}\)
∴ f= \(\frac{100}{3} \mathrm{~cm} \text { या } \frac{1}{3} \mathrm{~m} \)
∴ आवश्यक लेंस की क्षमता P = \(\frac{1}{f(\mathrm{~m} \text { में })}=\frac{1}{1 / 3} \)
P= + 3D.

प्रश्न 8.
सामान्य नेत्र 25 cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाते ?
उत्तर-
25 cm की दूरी पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब बनाने के लिए नेत्र द्वारा अपनी सम्पूर्ण समंजन क्षमता का प्रयोग कर लिया जाता है तथा वस्तु स्पष्ट दिखायी पड़ने लगती है। यदि वस्तु को 25 cm से कम दूरी पर रख दिया जाए तो नेत्र लेंस वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर नहीं बना पाता तथा वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है।

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प्रश्न 9.
जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिम्ब दूरी का क्या होता है?
उत्तर-
नेत्र से वस्तु की दूरी बढ़ा देने पर नेत्र के समंजन गुण के कारण रेटिना पर ही प्रतिबिम्ब बनता है अतः नेत्र में बने प्रतिबिम्ब की दूरी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

प्रश्न 10.
तारे क्यों टिमटिमाते हैं?
उत्तर-
तारों से आने वाला प्रकाश हमारी आँख तक पहुँचने से पहले वायुमण्डल से होकर गुजरता है, वायुमण्डल की विभिन्न परतों का घनत्व अनियमित रूप से परिवर्तित होता रहता है, इस कारण से उनका अपवर्तनांक भी परिवर्तित होता रहता है। अपवर्तनांक परिवर्तन के कारण तारे से आने वाली किरणें लगातार अपना मार्ग बदलती रहती हैं तथा हमारी आँख तक पहुँचने वाले प्रकाश की मात्रा भी बदलती रहती है। इस कारण से तारे टिमटिमाते दिखाई पड़ते हैं।

प्रश्न 11.
व्याख्या कीजिए कि ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते?
उत्तर-
तारों की अपेक्षा ग्रह हमारी पृथ्वी के बहुत निकट हैं, उन्हें विस्तृत स्रोत की भाँति माना जा सकता है। यदि ग्रह को बिन्दु आकार के अनेक प्रकाश स्रोतों का संग्रह मान लें तो उन सभी से हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाली प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य होगा, यही कारण है कि वे टिमटिमाते प्रतीत नहीं होते।

प्रश्न 12.
सूर्योदय के समय सूर्य रक्ताभ क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर-
दिन के समय प्रात:काल सूर्य क्षितिज के निकट होता है, सूर्य की किरणों को हम तक पहुँचने के लिए वातावरणीय मोटी परतों से गुजर कर पहुँचना पड़ता है। नीले
और कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का अधिकांश भाग वहाँ उपस्थित कणों के द्वारा प्रकीर्णित कर दिया जाता है। हमारी आँखों तक पहुँचने वाला प्रकाश अधिक तरंगदैर्ध्य का होता है। इसलिए सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ प्रतीत होता है।

प्रश्न 13.
किसी अंतरिक्ष यात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला क्यों प्रतीत होता है ?
उत्तर-
अंतरिक्ष यात्री आकाश में उस ऊँचाई पर होते हैं जहाँ वह वायुमण्डल से बाहर हो जाते हैं तथा वहाँ प्रकाश का प्रकीर्णन होकर प्रकाश नहीं पहुँच पाता है। प्रकीर्णन की क्रिया न होने के कारण अंतरिक्ष यात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला प्रतीत होता है।

HBSE 10th Class Science मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 211)

प्रश्न 1.
नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नेत्र के लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है, समंजन क्षमता कहलाती है।

प्रश्न 2.
निकट दृष्टि दोष का कोई व्यक्ति 1.2 m से अधिक दूरी पर रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता। इस दोष को दूर करने के लिए प्रयुक्त लेंस किस प्रकार का होना चाहिए ?
उत्तर-
अवतल लेंस।

प्रश्न 3.
मानव नेत्र की सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिन्दु तथा निकट बिन्दु नेत्र से कितनी दूरी पर होते हैं ?
उत्तर-
सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिन्दु अनन्त पर तथा निकट बिन्दु नेत्र से 25 cm की दूरी पर होता है।

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प्रश्न 4.
अन्तिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपट पढ़ने में कठिनाई होती है। यह विद्यार्थी किस दृष्टि दोष से पीड़ित है ? इसे किस प्रकार संशोधित किया जा सकता है?
उत्तर-
छात्र श्यामपट को दूर से नही पढ़ पाता है, परन्तु निकट से पढ़ लेता है, अतः छात्र की आँखों में निकट दृष्टि दोष है। इस दोष को दूर करने के लिए अपसारी लेन्स का प्रयोग करना पड़ेगा।

HBSE 10th Class Science मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 11.1 (पा. पु. पृ. सं. 213)

प्रश्न 1.
आपतित किरण, अपवर्तित किरण, निर्गत किरण तथा विचलन कोण को दर्शाने के लिए एक चित्र बनाइए।
उत्तर-
PE-आपतित किरण
Li- आपतन कोण
EF-अपवर्तित किरण
Lr- अपवर्तन कोण
FS-निर्गत किरण
Le – निर्गत कोण
LA-प्रिज्म कोण.
LD- विचलन कोण
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार 2

प्रश्न 2.
एक प्रकाश की किरण कितनी बार अपवर्तित होती है और प्रत्येक बार अपवर्तित किरण की दिशा क्या होगी?
उत्तर-
जब प्रकाश की किरण प्रिज्म से गुजरती हैं तो यह दो बार अपवर्तित होती हैं। एक बार तब, जब यह हवा से काँच में प्रवेश करती है तथा दूसरी बार तब, जब यह काँच से हवा में प्रवेश करती है। प्रत्येक बार यह प्रिज्म के आधार की तरफ मुड़ती है।

प्रश्न 3.
विचलन कोण क्या है?
उत्तर-
आपतित किरण की दिशा तथा निर्गत किरण की दिशा के बीच बनने वाले कोण को विचलन कोण कहते हैं।

क्रियाकलाप 11.2 (पा. पु. पृ. सं. 214)

प्रश्न-आप क्या देखते हैं? आप वर्णों की एक आकर्षक पट्टी देखेंगे। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर-
ऐसा प्रकाश के विक्षेपण के कारण होता है। काँच में प्रकाश के अलग-अलग अवयवी वर्गों की चाल अलग-अलग होने से ये अलग-अलग कोणों पर विक्षेपित हो जाते हैं।

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क्रियाकलाप 11.3 (पा. पु. पृ. सं. 218)

प्रश्न-टैंक में लगभग 2 L स्वच्छ जल लेकर 200 g सोडियम थायोसल्फेट (हाइपो) घोलिए। जल में लगभग 1 से 2 mL सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल डालिए। आप क्या देखते हैं?
उत्तर-
2-3 मिनट के बाद सल्फर के कण बनते हैं तथा काँच के टैंक के तीनों पाश्वॉ (side) से नीला प्रकाश दिखाई देता है। इसका कारण सल्फर के सूक्ष्म कणों द्वारा कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का प्रकीर्णन होना है। काँच के टैंक के चौथे पार्श्व से, वृत्ताकार छिद्र की ओर से पारगत प्रकाश का रंग पहले नारंगी लाल तथा बाद में किरमिजी लाल दिखाई देता है।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

HBSE 11th Class Geography विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. कोपेन के A प्रकार की जलवायु के लिए निम्न में से कौन-सी दशा अर्हक हैं?
(A) सभी महीनों में उच्च वर्षा
(B) सबसे ठंडे महीने का औसत मासिक तापमान हिमांक बिंदु से अधिक
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक
(D) सभी महीनों का औसत तापमान 10° सेल्सियस के नीचे
उत्तर:
(C) सभी महीनों का औसत मासिक तापमान 18° सेल्सियस से अधिक

2. जलवायु के वर्गीकरण से संबंधित कोपेन की पद्धति को व्यक्त किया जा सकता है
(A) अनुप्रयुक्त
(B) व्यवस्थित
(C) जननिक
(D) आनुभविक
उत्तर:
(D) आनुभविक

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3. भारतीय प्रायद्वीप के अधिकतर भागों को कोपेन की पद्धति के अनुसार वर्गीकृत किया जायेगा-
(A) “Af”
(B) “BSh”
(C) “Cfb”
(D) “Am”
उत्तर:
(D) “Am”

4. निम्नलिखित में से कौन सा साल विश्व का सबसे गर्म साल माना गया है?
(A) 1990
(B) 1998
(C) 1885
(D) 1950
उत्तर:
(B) 1998

5. नीचे लिखे गए चार जलवायु समूहों में से कौन आर्द्र दशाओं को प्रदर्शित करता हैं?
(A) A-B-C-E
(B) A-C-D-E
(C) B-C-D-E
(D) A-C-D-F
उत्तर:
(D) A-C-D-F

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जलवायु के वर्गीकरण के लिए कोपेन के द्वारा किन दो जलवायविक चरों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
कोपेन ने जलवायु के वर्गीकरण के लिए निम्नलिखित जलवायविक चरों का प्रयोग किया है-

  • तापमान
  • वर्षण
  • तापमान और वर्षण का वनस्पति के वितरण से सम्बन्ध।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण की जननिक प्रणाली आनुभविक प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
जननिक प्रणाली में जलवायु को उनके कारणों के आधार पर संगठित करने का प्रयास किया जाता है, जबकि आनुभविक प्रणाली में जलवायु तापमान और वर्षण से सम्बन्धित आंकड़ों पर आधारित है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 3.
किस प्रकार की जलवायुओं में तापांतर बहुत कम होता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु में तापांतर बहुत कम होता है। यह जलवायु विषुवत् रेखा के निकट पाई जाती है। इन प्रदेशों में तापमान सामान्य रूप से ऊँचा और वार्षिक तापांतर नगण्य होता है। किसी भी दिन अधिकतम तापमान लगभग 30° से० और न्यूनतम तापमान लगभग 20° से होता है। लेकिन वार्षिक ताप में अंतर बहुत कम है।

प्रश्न 4.
सौर कलंकों में वृद्धि होने पर किस प्रकार की जलवायविक दशाएँ प्रचलित होंगी?
उत्तर:
सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं, जो एक चक्रीय ढंग से घटते-बढ़ते रहते हैं। मौसम वैज्ञानियों के अनुसार सौर कलंकों की संख्या के बढ़ने से मौसम ठंडा और आर्द्र हो जाता है तथा तूफानों की संख्या बढ़ जाती है। सौर कलंकों के कम होने से उष्ण एवं शुष्क दशाएँ उत्पन्न होती हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
A एवं B प्रकार की जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना करें।
उत्तर:
A एवं B प्रकार की जलवायुओं की जलवायविक दशाओं की तुलना निम्नलिखित प्रकार से है-

‘A’ प्रकार की जलवायु‘B’ प्रकार की जलवायु.
(1) ये उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु वाले प्रदेश हैं।(1) ये शुष्क जलवायु वाले प्रदेश हैं।
(2) इस प्रकार की जलवायु में वर्षा अधिक होती है।(2) इस प्रकार की जलवायु में वर्षा बहुत कम होती है।
(3) इस प्रकार की जलवायु में वार्षिक तापान्तर कम होता है।(3) इस प्रकार की जलवायु में वार्षिक तापान्तर अधिक होता है।
(4) यह जलवायु 0° अक्षांश के आसपास के क्षेत्रों तथा कर्क रेखा और मकर रेखा के मध्य पाई जाती है।(4) यह जलवायु 15° से 60° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के मध्य विस्तृत है तथा 15° से 30° के निम्न अंक्षाशों में यह उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में पाई जाती है।
(5) इस प्रकार की जलवायु में जैव-विविधता वाले उष्ण कटिबंधीय सदाहरित वन पाए जाते हैं।(5) इस प्रकार की जलवायु में कंटीले बन पाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
C तथा A प्रकार के जलवायु में आप किस प्रकार की वनस्पति पाएँगे?
उत्तर:
‘A’ उष्ण कटिबंधीय जलवायु को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन 1
(1) AF-उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु विषुवत् वृत्त के निकट पाई जाती है। इस जलवायु में सघन वितान तथा व्यापक जैव विविधता वाले सदाबहार वन पाए जाते हैं।

(2) Am-उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिण अमेरिका के उत्तर:पूर्वी तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया में पाई जाती है। इस जलवायु में पर्णपाती वन पाए जाते हैं जिसमें पेड़ अपनी पत्तियाँ वर्ष में एक बार गिरा देता है।

(3) Aw-उष्ण कटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु AF प्रकार के जलवायु प्रदेशों के उत्तर एवं दक्षिण में पाई जाती है। इस जलवायु में पर्णपाती वन और पेड़ों से ढकी घासभूमियाँ पाई जाती हैं।
‘B’ कोष्ण शीतोष्ण जलवायु को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
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  • Cwa-आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में पतझड़ वन पाए जाते हैं।
  • Cs-भूमध्य-सागरीय प्रदेशों में फलों के वृक्ष पाए जाते हैं।
  • Cfa-आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय (Cfa) में पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इस क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों में घासभूमियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 3.
ग्रीनहाऊस गैसों से आप क्या समझते हैं? ग्रीन हाऊस गैसों की एक सूची तैयार करें।
उत्तर:
ग्रीनहाऊस गैसें ऐसी गैसें जो धरती पर एक आवरण बनाकर कम्बल की भाँति काम करती हैं और धरती की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकती हैं, ग्रीनहाऊस गैसें कहलाती हैं। ये पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में सहायक हैं।

ग्रीनहाऊस गैसें वर्तमान में प्रमुख ग्रीनहाऊस गैसें कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2), क्लोरो-फ्लोरोकार्बन्स (CFCs), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और ओज़ोन (O3) हैं। नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) और कार्बन मोनोक्साइड (CO) कुछ ऐसी अन्य गैसें हैं जो ग्रीनहाऊस गैसों से आसानी से प्रतिक्रिया करती हैं और वायुमण्डल में उनके सान्द्रण को प्रभावित करती हैं।

1. कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) वायुमण्डल में उपस्थित ग्रीनहाऊस गैसों में सबसे अधिक सान्द्रण CO2 का है। वैसे तो कार्बन-चक्र हजारों वर्षों की अवधि में वायुमण्डल में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा सन्तुलित बनाए रखता है, लेकिन लघु-अवधि में यह सन्तुलन कई बार बिगड़ जाता है। विगत कुछ वर्षों में कोयला, पेट्रोल, डीजल तथा प्राकृतिक गैस; जैसे जीवश्मी ईंधनों के जलने से प्रतिवर्ष 6 अरब टन कार्बन-डाइऑक्साइड वायुमण्डल में मिल रही है। वन तथा महासागर CO2 के कुण्ड माने जाते हैं। वन अपनी वृद्धि के लिए CO2 का उपयोग करते हैं। अतः भूमि उपयोग में परिवर्तनों के कारण की गई जंगलों की कटाई भी CO2 की मात्रा बढ़ाती है।

CO2 लगभग 0.5 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रही है। सन् 1750 के बाद वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 30 प्रतिशत बढ़ी है, जिसने ग्रीनहाऊस प्रभाव में 65 प्रतिशत का योगदान दिया है। एक अन्य अनुमान के अनुसार 21वीं शताब्दी के मध्य तक वायुमण्डल में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा औद्योगिक क्रांति से पूर्व की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो जाए तो वायुमण्डल का तापमान 3° सेल्सियस बढ़ सकता है। 21वीं सदी के अन्त तक वायुमण्डल का तापमान 1.4° से 5.8° सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

2. क्लोरो फ्लोरो कार्बन (CFCs)-यह गैस मनुष्य का अनुसंधान है, प्रकृति में यह नहीं मिलती। यह वास्तव में संश्लेषित (Synthetic) यौगिकों का समूह है जिसका प्रत्येक अणु कार्बन-डाइऑक्साइड की तुलना में 20 हजार गुना ताप प्रग्रहित करता है। ये यौगिक वातानुकूलन व प्रशीतन की मशीनों, आग बुझाने के उपकरणों में तथा छिड़काव यन्त्रों में प्रणोदक (Propelent) के रूप में प्रयोग होते हैं। वर्तमान में इसकी मात्रा 4 प्रतिशत की दर से वायुमण्डल में बढ़ रही है। CFCs वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर समताप मण्डल में क्लोरीन को मुक्त करती है जो ओज़ोन को तोड़ती है। ओज़ोन परत पैराबैंगनी किरणों (Ultraviolet rays) से पृथ्वी की रक्षा करती है। समताप मण्डल में ओज़ोन के सान्द्रण का ह्रास ओज़ोन छिद्र कहलाता है। यह छिद्र हानिकारक पराबैंगनी किरणों को क्षोभमण्डल से गुजरने देता है। ओज़ोन का सबसे अधिक हास अंटार्कटिका के ऊपर हुआ है।

3. नाइट्रस ऑक्साइड-इसका महत्त्वपूर्ण स्रोत उष्ण कटिबन्धीय मिट्टी है, जहाँ पर जीवाणु नाइट्रोजन के प्राकृतिक यौगिकों से क्रिया करके नाइट्रस ऑक्साइड पैदा करते हैं। कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों के प्रयोग, पेड़-पौधों को जलाने, नाइट्रोजन वाले ईंधन को जलाने तथा नाइलोन उद्योग द्वारा छोड़े जाने के कारण वायुमण्डल में इसकी मात्रा में वृद्धि हुई है। इस समय वायुमण्डल में इसकी मात्रा 0.31 भाग प्रति दस लाख भाग (PPM) है। नाइट्रस ऑक्साइड का प्रत्येक अणु कार्बन-डाइऑक्साइड की तुलना में 250 गुना अधिक ताप प्रग्रहित (Trap) करता है।

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4. मीथेन गैस-तापमान बढ़ाने में मीथेन गैस का प्रत्येक अणु कार्बन-डाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना अधिक प्रभावी है। मीथेन अपघटकों (Decomposers) की देन है। इसके अधिकांश स्रोत जैविक हैं। मीथेन गैस धान के खेतों, नम भूमि तथा दलदल से निकलती है, इसलिए इसे मार्श गैस (Marsh Gas) भी कहते हैं। यह सागरों, ताज़े जल, खनन कार्य, गैस ड्रिलिंग तथा जैविक पदार्थों के सड़ने से उत्पन्न होती है। पशु और लकड़ी खाने वाले कीड़े; जैसे दीमक को मीथेन छोड़ने का जिम्मेदार पाया गया है।

5. जलवाष्प-अन्य ग्रीनहाऊस गैसों के कारण तापमान बढ़ने से जल की वाष्पन दर भी बढ़ जाती है। वायुमण्डल में जमा हुए ज्यादा जलवाष्प तापमान को और ज्यादा बढ़ाते हैं, क्योंकि जलवाष्प स्वयं एक प्राकृतिक ग्रीनहाऊस गैस है।

6. ओज़ोन-यद्यपि निचले वायुमण्डल में यह गैस कम पाई जाती है पर फिर भी इसका जमाव गर्मी बढ़ाने का काम करता है। ग्रीनहाऊस गैसों के प्रभाव को नियन्त्रित करने वाले कारक-

  • गैस के सान्द्रण में वृद्धि के परिणाम।
  • वायुमण्डल में इसके जीवनकाल अर्थात् ग्रीनहाऊस गैसों के अणु जितने लंबे समय तक बने रहते हैं, इनके द्वारा लाए गए परिवर्तनों से वायुमण्डलीय तंत्र को उबरने में उतना अधिक समय लगता है।
  • इसके द्वारा अवशोषित विकिरण की तरंग लंबाई।

विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन HBSE 11th Class Geography Notes

→ समताप रेखाएँ (Isotherms)-ये काल्पनिक रेखाएँ समुद्र तल के अनुसार समान ताप वाले स्थानों को मिलाती हैं।

→ जलवायु प्रदेश (Climatic Region)-पृथ्वी के धरातल पर पाए जाने वाले ऐसे भू-भाग, चाहे वे पास-पास हों या दूर-दूर। जहाँ लगभग एक समान जलवायु पाई जाती है, जलवायु प्रदेश कहलाते हैं।

→ ध्रुवीय ज्योति (Aurora) आयनमण्डल में विद्युत चुम्बकीय घटना का एक प्रकाशमय प्रभाव, जो उच्च अक्षांशों में लाल, हरे तथा सफेद चापों के रूप में दिखाई देता है। रात को आकाश में भू-पृष्ठ से 100 कि०मी० की ऊँचाई पर ध्रुवीय ज्योति किरणों तथा चादरों की तरह दिखाई पड़ती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में यह ज्योति दक्षिणी ध्रुवीय ज्योति (Aurora Australis) तथा उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी ध्रुवीय ज्योति (Aurora Borealis) कहलाती है।

→ स्टैपी (Steppe) महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में स्थित शीतोष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों को विभिन्न महाद्वीपों में अलग-अलग नामों से जानते हैं; जैसे-यूरेशिया में स्टैपी, उत्तरी अमेरिका में प्रेयरी, दक्षिणी अमेरिका में पंपास, अफ्रीका में वेल्ड्स तथा ऑस्ट्रेलिया में डाउन्स आदि।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

HBSE 11th Class Geography वायुमंडल का संघटन तथा संरचना Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सी गैस वायुमंडल में सबसे अधिक मात्रा में मौजूद है?
(A) ऑक्सीजन
(B) आर्गन
(C) नाइट्रोजन
(D) कार्बन डाइऑक्साइड
उत्तर:
(C) नाइट्रोजन

2. वह वायुमंडलीय परत जो मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है-
(A) समतापमंडल
(B) क्षोभमंडल
(C) मध्यमंडल
(D) आयनमंडल
उत्तर:
(B) क्षोभमंडल

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

3. समुद्री नमक, पराग, राख, धुएँ की कालिमा, महीन मिट्टी किससे संबंधित हैं?
(A) गैस
(B) जलवाष्प
(C) धूलकण
(D) उल्कापात
उत्तर:
(C) धूलकण

4. निम्नलिखित में से कितनी ऊँचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है?
(A) 90 कि०मी०
(B) 100 कि०मी०
(C) 120 कि०मी०
(D) 150 कि०मी०
उत्तर:
(C) 120 कि०मी०

5. निम्नलिखित में से कौन-सी गैस सौर विकिरण के लिए पारदर्शी है तथा पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी?
(A) ऑक्सीजन
(B) नाइट्रोजन
(C) हीलियम
(D) कार्बन डाइऑक्साइड
उत्तर:
(D) कार्बन डाइऑक्साइड

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
वायुमंडल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के चारों तरफ कई सौ किलोमीटर की मोटाई में व्याप्त वायु के आवरण को वायुमंडल कहा जाता है। वायुमंडल पृथ्वी की गुरुत्व शक्ति के कारण ही इसके साथ टिका हुआ है। मोंकहाउस के शब्दों में, “वायुमंडल गैस की एक पतली परत है जो गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी के साथ सटी हुई है।” क्रिचफील्ड के अनुसार, “वायुमंडल गैसों का गहरा आवरण है जो पृथ्वी को पूर्णतः घेरे हुए है।”

प्रश्न 2.
मौसम एवं जलवायु के तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वे तत्त्व जिनसे किसी विशिष्ट प्रकार के मौसम या जलवायु की रचना होती है, उन्हें मौसम अथवा जलवायु के तत्त्व कहा जाता है। तापमान, वायुदाब, आर्द्रता, वर्षा, वायु की दिशा एवं गति तथा जलवायु परिवर्तन आदि जलवायु के मुख्य तत्त्व हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

प्रश्न 3.
वायुमंडल की संरचना के बारे में लिखें।
उत्तर:
वायुमंडल अलग-अलग घनत्व तथा तापमान वाली विभिन्न परतों का बना होता है। पृथ्वी की सतह के पास घनत्व अधिक होता है, जबकि ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ यह घटता जाता है। वायुमंडल को पाँच संस्तरों में बाँटा गया है-

  • क्षोभमंडल
  • समतापमंडल
  • मध्यमंडल
  • आयनमंडल
  • बाह्य वायुमंडल या बहिर्मंडल।

प्रश्न 4.
वायुमंडल के सभी संस्तरों में क्षोभमंडल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों हैं?
उत्तर:
क्षोभमंडल वायुमंडल का सबसे नीचे का संस्तर है इसकी ऊँचाई लगभग 13 कि०मी० है। इस संस्तर में धूलकण तथा जलवाष्प मौजूद होते हैं। मौसम में परिवर्तन इसी संस्तर में होता है। इस संस्तर में प्रत्येक 165 मी० की ऊँचाई पर तापमान 1°C घटता जाता है। जैविक क्रिया के लिए यह सबसे महत्त्वपूर्ण संस्तर है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
वायुमंडल के संघटन की व्याख्या करें।
उत्तर:
वायुमंडल का संघटन वायुमंडल के संघटन का अर्थ है कि वायुमंडल किन-किन पदार्थों से मिलकर बना हुआ है। वायुमंडल अनेक गैसों का यांत्रिक मिश्रण है। गैसों के अतिरिक्त वायुमंडल में जलवाष्प और कुछ सूक्ष्म ठोस कण भी पाए जाते हैं जिनमें धूलकण सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं।
1. गैसें (Gases)-आयतन के अनुसार शुद्ध शुष्क वायु में लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन तथा लगभग 21 प्रतिशत ऑक्सीजन पाई जाती है। इस प्रकार नाइट्रोजन व ऑक्सीजन वायुमंडल की दो प्रमुख गैसें हैं जो समूचे वायुमंडल के आयतन का 99 प्रतिशत भाग घेरे हुए हैं। शेष 1 प्रतिशत में अन्य अनेक गैसें आती हैं।

वायु में विभिन्न गैसों की प्रतिशत मात्रा (आयतन)
नाइट्रोजन78 %
ऑक्सीजन21 %
आर्गन0.93 %
कार्बन-डाइऑक्साइड0.03 %
अन्य0.04 %

कुछ महत्त्वपूर्ण गैसों की उपयोगिता
(1) ऑक्सीजन मनुष्य और जानवर साँस के रूप में ऑक्सीजन को ही ग्रहण करते हैं। ऑक्सीजन दहन (Combustion) के लिए आवश्यक है। इसके बिना आग नहीं जलाई जा सकती। ऑक्सीजन की उत्पत्ति प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से होती है व इसका ह्रास वनों के विनाश से होता है। शैलों के रासायनिक अपक्षय में सहयोग देकर ऑक्सीजन अनेक भू-आकारों की उत्पत्ति का कारण बनती है।

(2) नाइट्रोजन नाइट्रोजन वायु में उपस्थित ऑक्सीजन के प्रभाव को कम करती है। यदि वायुमंडल में नाइट्रोजन न होती तो वस्तुएँ इतनी तेजी से जलतीं कि उस पर नियन्त्रण करना कठिन होता। इतना ही नहीं, नाइट्रोजन के अभाव में मनुष्य व जीव-जन्तुओं के शरीर के ऊतक भी जलकर नष्ट हो जाते। मिट्टी में नाइट्रोजन की उपस्थिति प्रोटीनों का निर्माण करती है जो पौधों और वनस्पति का भोजन बनते हैं।

(3) कार्बन-डाइऑक्साइड-पौधे जीवित रहने के लिए कार्बन-डाइऑक्साइड पर निर्भर करते हैं। हरे पौधे वायुमंडल की कार्बन-डाइऑक्साइड से मिलकर स्टार्च व शर्कराओं का निर्माण करते हैं। यह गैस प्रवेशी सौर विकिरण को तो पृथ्वी तल तक आने देती है किन्तु पृथ्वी से विकिरित होने वाली लम्बी तरंगों को बाहर जाने से रोकती है। इससे पृथ्वी के निकट वायुमंडल का निचला भाग गर्म रहता है। इस प्रकार कार्बन-डाइऑक्साइड ‘काँच घर’ का प्रभाव उत्पन्न करती है।

(4) ओषोण या ओज़ोन यह गैस ऑक्सीजन का ही एक विशिष्ट रूप है जो वायुमंडल में अधिक ऊँचाइयों पर ही न्यून मात्रा में मिलती है। ओजोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultra-Violet Rays) के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है जिससे स्थलमण्डल एक उपयुक्त सीमा से अधिक गर्म नहीं हो पाता। ओज़ोन मुख्यतः धरातल से 10 से 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक स्थित है।

2. जलवाष्प (Water Vapour)-वाष्प वायुमंडल की सबसे अधिक परिवर्तनशील और असमान वितरण वाली गैस है। वायुमंडल में वाष्प के मुख्य स्रोत जलमण्डल से वाष्पीकरण तथा पेड़-पौधों व मिट्टी से वाष्पोत्सर्जन है। अति ठण्डे तथा अति शुष्क क्षेत्रों में यह हवा के आयतन के एक प्रतिशत से भी कम होती है जबकि भूमध्य रेखा के पास उष्ण और आर्द्र क्षेत्रों में आयतन के हिसाब से यह 4 प्रतिशत तक हो सकती है। वायु में उपस्थित कुल जलवाष्प का लगभग आधा भाग 2,000 मीटर की ऊँचाई से नीचे व्याप्त है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर वायु में जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है। इसी प्रकार ऊँचाई के साथ भी जलवाष्प की मात्रा घटती जाती है।

3. ठोस कण व आकस्मिक रचक (Solid Particles and Accidental Component)-गैस तथा वाष्प के अतिरिक्त वायु में कुछ सूक्ष्म ठोस कण भी पाए जाते हैं जिनमें धूलकण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये कण सौर विकिरण का कुछ अंश अवशोषित कर लेते हैं साथ ही सूर्य की किरणों का परावर्तन और प्रकीर्णन भी करते हैं। इसी के परिणामस्वरूप हमें आकाश नीला दिखाई पड़ता है। किरणों के प्रकीर्णन के कारण ही सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आकाश में लाल और नारंगी रंग की छटाएँ बनती हैं। इन्हीं धूल कणों के कारण ही धुंध व धूम कोहरा बनता है।

वायुमंडल में कुछ आकस्मिक रचक और अपद्रव्य भी शामिल होते हैं। इनमें धुएँ की कालिख, ज्वालामुखी राख, उल्कापात के कण, समुद्री झाग के बुलबुलों के टूटने से मुक्त हुए ठोस लवण, जीवाणु, बीजाणु तथा पशुशालाओं के पास की वायु में अमोनिया . के अंश इत्यादि पदार्थ आते हैं।

प्रश्न 2.
वायुमंडल की संरचना का चित्र खींचे और व्याख्या करें।
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना 1
पृथ्वी के चारों तरफ पाया जाने वाला वायु का सारा आवरण केवल एक परत नहीं है बल्कि इसमें हवा की अनेक संकेन्द्रीय परतें हैं जो घनत्व और तापमान की दृष्टि से एक-दूसरे से भिन्न हैं। भूमण्डल से परे हटने के क्रम में वायुमंडल की निम्नलिखित परते हैं-
1. क्षोभमण्डल (Troposphere)-भू-तल के सम्पर्क में यह वायुमंडल की सबसे निचली परत है जिसका घनत्व सर्वाधिक है। ध्रुवों पर इस परत की ऊँचाई 8 किलोमीटर और भूमध्य रेखा पर 18 किलोमीटर है। भूमध्य रेखा पर क्षोभमण्डल की अधिक ऊँचाई का कारण यह है कि वहाँ पर चलने वाली तेज़ संवहन धाराएँ ऊष्मा को धरातल से अधिक ऊँचाई पर ले जाती हैं।

यही कारण है कि जाड़े की अपेक्षा गर्मी में क्षोभमण्डल की ऊँचाई बढ़ जाती है। संवहन धाराओं की अधिक सक्रियता के कारण इस परत को प्रायः संवहन क्षेत्र भी कहते हैं। इस मण्डल में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सेल्सियस तापमान गिर जाता है। ऊँचाई बढ़ने पर तापमान गिरने की इस दर को सामान्य ह्रास दर कहा जाता है। मानव व अन्य धरातलीय जीवों के लिए यह परत सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। ऋतु व मौसम सम्बन्धी लगभग सभी घटनाएँ; जैसे बादल, वर्षा, भूकम्प आदि जो मानव-जीवन को प्रभावित करती हैं, इसी परत में घटित होती हैं। क्षोभमण्डल में ही भारी गैसों, जलवाष्प, धूलकणों, अशुद्धियों व आकस्मिक रचकों की अधिकतम मात्रा पाई जाती है।

क्षोभमण्डल की ऊपरी सीमा को क्षोभ सीमा (Tropopause) कहते हैं। यह क्षोभमण्डल व समतापमण्डल को अलग करती है। लगभग 11/2 से 2 किलोमीटर मोटी इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान गिरना बन्द हो जाता है। इस भाग में हवाएँ व संवहनी धाराएँ भी चलना बन्द हो जाती हैं।

2. समतापमण्डल (Stratosphere)-क्षोभ सीमा से परे यह एक संवहन-रहित परत है जिसमें आँधी, बादलों की गरज, तड़ित-झंझा, धूलकण और जलवाष्प इत्यादि नहीं पाए जाते। इसमें केवल क्षीण क्षैतिज हवाएँ चलती हैं। यह परत 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत है। इसकी मोटाई भूमध्य रेखा की अपेक्षा ध्रुवों पर अधिक होती है। कभी-कभी यह परत भूमध्य रेखा पर लुप्तप्राय हो जाती है। इस परत के निचले भागों में अर्थात् 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक तापमान एक-जैसा रहता है।

इससे ऊपर 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक तापमान धीरे-धीरे बढ़ता है। इसका कारण यह है कि 20 से 50 किलोमीटर की ऊँचाई में वायुमंडल में ओज़ोन गैस पाई जाती है जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर पृथ्वी को ऊर्जा के तीव्र तथा हानिकारक तत्त्वों से बचाती है। समतापमण्डल की ऊपरी सीमा समताप सीमा (Stratopause) कहलाती है जिसमें ओज़ोन की मात्रा अधिक होती है।

3. मध्यमण्डल (Mesosphere)-समतापमण्डल के ऊपर स्थित वायुमंडल की यह तीसरी परत मध्यमण्डल कहलाती है। इसका विस्तार 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक होता है। इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान घटने लगता है और 80 किलोमीटर की ऊँचाई पर तापमान -100° सेल्सियस तक नीचे गिर जाता है। मध्यमण्डल की ऊपरी सीमा मध्य सीमा (Mesopause) कहलाती है।

4. आयनमण्डल (Ionosphere)-मध्यमण्डल सीमा से परे स्थित यह परत 80 से 400 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत है। इस परत में विद्यमान गैस के कण विद्युत् आवेशित होते हैं। इन विद्युत् आवेशित कणों को आयन कहा जाता है। ये आयन विस्मयकारी विद्युतीय और चुम्बकीय घटनाओं का कारण बनते हैं। इसी परत में ब्रह्माण्ड किरणों का परिलक्षण होता है। आयनमण्डल पृथ्वी की ओर से भेजी गई रेडियो-तरंगों को परावर्तित करके पुनः पृथ्वी पर भेज देता है। इसी मण्डल से उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश तथा दक्षिणी ध्रुवीय प्रकाश के दर्शन होते हैं।

5. बाह्यमण्डल (Exosphere) वायुमंडल की यह सबसे ऊपरी परत है। इसे बहिर्मंडल भी कहा जाता है। इसकी वायु अत्यन्त विरल है जो धीरे-धीरे अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है। यह सबसे ऊँचा संस्तरन है तथा इसके बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है।

वायुमंडल का संघटन तथा संरचना HBSE 11th Class Geography Notes

→ ब्रह्मांड किरणें (Cosmic Rays)-बाह्य अंतरिक्ष से पृथ्वी पर पहुंचने वाला रहस्यमयी विकिरण।

→ इंद्रधनुष (Rainbow)-बहुरंजित प्रकाश की एक चाप, जो वर्षा की बूंदों द्वारा सूर्य की किरणों के आंतरिक अपवर्तन तथा परावर्तन द्वारा निर्मित होती है।

→ प्रभामंडल (Halo)-सूर्य अथवा चंद्रमा के चारों ओर एक प्रकाश-वलय जो उस समय बनता है जब आकाश में पक्षाभ-स्तरी मेघ की एक महीन परत छायी रहती है। जब सौर प्रभामंडल बन जाता है, तब वह सूर्य की चमक के कारण दिखाई नहीं देता, परंतु गहरे रंग के शीशे से आसानी से देखा जा सकता है।

→ धूम कोहरा (Smog)-अत्यधिक धुएं से भरा कोहरा, जो सामान्य रूप से औद्यौगिक तथा घने बसे नगरीय क्षेत्रों में पाया जाता है। अंग्रेज़ी भाषा के इस शब्द की रचना दो शब्दों स्मोक व फॉग को मिलाकर की गई है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 8 वायुमंडल का संघटन तथा संरचना

→ प्रकीर्णन (Scattering)-लघु तरंगी सौर विकिरण का वायुमंडल के धूलकण व जलवाष्पों से टकराकर टूटना।

→ इंटरनेट (Internet) एक ऐसी विद्युतीय व्यवस्था जिसमें सूचना के महामार्ग (Information Superhighway) पर बैठे लाखों, करोड़ों लोगों द्वारा आपस में जुड़े हुए कंप्यूटरों द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।

→ वायुमंडल (Atmosphere)-पृथ्वी के चारों तरफ कई सौ कि०मी० की मोटाई में व्याप्त वायु के आवरण को वायुमंडल कहा जाता है।

→ क्षोभमंडल (Troposphere)-भूतल के सम्पर्क में यह वायुमंडल की सबसे निचली परत है जिसका घनत्व सर्वाधिक है।

→ वायु दीप्ति (Air Glow)-आयनमंडल में वायु में एक अजीब चमक होती है जिसे वायु दीप्ति कहा जाता है।

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HBSE 11th Class History Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 11th Class History Solutions

HBSE 11th Class History Solutions in Hindi Medium

  • Chapter 1 समय की शुरुआत से
  • Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन
  • Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य
  • Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०
  • Chapter 5 यायावर साम्राज्य
  • Chapter 6 तीन वर्ग
  • Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ
  • Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव
  • Chapter 9 औद्योगिक क्रांति
  • Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन
  • Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

HBSE 11th Class History Solutions in English Medium

  • Chapter 1 From the Beginning of Time
  • Chapter 2 Writing and City Life
  • Chapter 3 An Empire Across Three Continents
  • Chapter 4 Rise and Spread of Islam: About 570-1200 C.E.
  • Chapter 5 Nomadic Empires
  • Chapter 6 Three Orders
  • Chapter 7 Changing Cultural Traditions
  • Chapter 8 Confrontation of Cultures
  • Chapter 9 The Industrial Revolution
  • Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples
  • Chapter 11 Paths to Modernization

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