HBSE 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

→ आनुवंशिकी (Genetics)-जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवधा यों के आनुवंशिक लक्षणों एवं विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं, आनुवंशिकी कहलाती है।

→ आनुवंशिकता (Heredity)-जीवों में जनकों (parents) के लक्षणों का सन्तान (offsprings) में वंशानुगत स्थानांतरण होना, आनुवंशिकता कहलाता है।

→ लक्षण (Traits)-जीवधारियों में जो भिन्न-भिन्न गुण विद्यमान होते हैं, लक्षण कहलाते हैं। ये लक्षण दो प्रकार के होते हैं

  • प्रभावी लक्षण-ऐसे लक्षण जो प्रथम पुत्री पीढ़ी में दिखाई देते हैं या प्रकट होते हैं, प्रभावी लक्षण कहलाते हैं, जैसे-लम्बापन मटर के पौधे का प्रभावी लक्षण है।
  • अप्रभावी लक्षण-ऐसे लक्षण जो प्रथम पीढ़ी में छिपे रहते हैं अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं, जैसे-बौनापन मटर के पौधे का अप्रभावी लक्षण है।

→ विविधता (Diversity)-संसार में लगभग 10 लाख प्रकार के प्राणी तथा लगभग 3,43,000 पादप प्रजातियाँ पायी जाती हैं। ये सभी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक रूप से एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। इसे जैव विविधता (Bio – diversity) कहते हैं। जीवधारियों में यह विभिन्नताएँ उनकी आनुवंशिक संरचना के कारण होती हैं।

→ वंशागति के नियम (Laws of Heredity)-आस्ट्रिया के निवासी ग्रेगर जॉन मेण्डल (G. J. Mendel) ने वंशागति के तीन नियम प्रस्तुत किये-
I . प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)-इसके अनुसार जब एक जोड़ी के विपरीत लक्षणों को ध्यान में रखकर क्रॉस कराया जाता है तो पहली पीढ़ी में उत्पन्न होने वाला लक्षण प्रभावी (dominant) होता है तथा दूसरे लक्षण जो छिपे रहते हैं अप्रभावी होते हैं।

II युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation)इस नियम के अनुसार संकर F1 पीढ़ी के पौधों में दोनों विपरीत लक्षण जोड़े में विद्यमान रहते हैं। ये लक्षण F2 पीढ़ी में पृथक् हो जाते हैं अतः इसे पृथक्करण का नियम भी कहते हैं।

III. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)-इसके अनुसार दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले दो पौधों के बीच संकरण कराने पर इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतन्त्र रूप से होता है तथा एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति को प्रभावित नहीं करती है। जीन (Gene) मेण्डल के अनुसार आनुवंशिक कारकों को जीन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, आनुवंशिक लक्षणों का नियन्त्रण करने वाली इकाई को जीन कहते हैं।

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→ गुणसूत्र (Chromosomes)-जीवधारियों में पायी जाने वाली विशेष संरचनाएँ जो जीन्स का वहन करती हैं, गुणसूत्र न कहलाती हैं।

→ जीनोम (Genome)-किसी जीवधारी के गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चय (haploid set) को जीनोम कहते हैं।

→ प्लाज्मोन (Plasmone)- केन्द्रक के बाहर कोशिका द्रव्य में पाये जाने वाले आनुवंशिक पदार्थ को प्लाज्मोन (plasmone) या प्लाज्मोजीन (Plasmogene) कहते हैं|

→ एलील (Allele)-जीन्स का वह जोड़ा जिसमें एक लक्षण के दो रूप होते हैं एलील कहलाता है।

→ उत्परिवर्तन (Mutation)-जीवों में अकस्मात् विकसित लक्षणों का परिवर्तित होना उत्परिवर्तन कहलाता है।

→ समयुग्मजी (Homozygous) कारकों के सजातीय जोड़े में दोनों कारकों में जब समान गुण पाए जाते हैं तो यह जोड़ा समयुग्मजी कहलाता है, (जैसे-TT)।

→ विषमयुग्मजी (Heterozygous)-यदि जीन्स के किसी जोड़े में दो विपर्यासी (अलग-अलग) लक्षणों वाले। । कारक होते हैं तो वह विषमयुग्मजी कहलाता है, (जैसे Tt)।

→ दर्शरूप (Phenotype)-वे लक्षण जो दिखाई देते हैं, फीनोटाइप कहलाते हैं।

→ लक्षण रूप (Genotype)-जीव का आनुवंशिक संगठन लक्षण रूप जीनोटाइप कहलाता है।

→ सहलग्नता (Linkage)-जब दो या दो से अधिक जीन्स एक ही गुणसूत्र पर तथा एक-दूसरे के पास स्थित होते हैं, तब यह स्वतन्त्र अपव्यूहन नहीं दिखाते, बल्कि यह साथ-साथ वंशानुगत होते हैं, इस लक्षण को सहलग्नता कहते |

→ दैहिक गुणसूत्र (Autosomes)-दैहिक लक्षणों का जीन्स को धारण करने वाले गुणसूत्र दैहिक गुणसूत्र कहलाते हैं।

→ लिंग गुणसूत्र (Sex chromosomes)-नर या मादा लक्षणों का निर्धारण करने वाले जीन्स को धारण करने वाले गुणसूत्रों को लिंग गुणसूत्र कहते हैं।

→ समलिंगी गुणसूत्र (Homologous chromosomes)-गुणसूत्रों का वह जोड़ा जिसमें माता-पिता से एक-एक गुणसूत्र प्राप्त होता है तथा दोनों में समान गुण होते हैं, समलिंगी गुणसूत्र कहलाते हैं।

→ विषमलिंगी गुणसूत्र (Heterosomes)-गुणसूत्रों का वह जोड़ा जिसमें से एक गुणसूत्र में नर लक्षण तथा दूसरे में , मादा लक्षण होते हैं, विषमलिंगी गुणसूत्र कहलाते हैं।

→ लिंग निर्धारण (Sex determination)-वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति का लिंग निर्धारित किया जाता है, लिंग , निर्धारण कहलाता है। पुरुष के लिंग गुणसूत्रों में एक X तथा दूसरा Y होता है। स्त्री के दोनों लिंग गुणसूत्र X X होते हैं। जब पुरुष का X गुणसूत्र (शुक्राणु) मादा के अण्डाणु से निषेचन करता है तो होने वाली भावी सन्तान लड़की होती है। यदि पुरुष का Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु मादा के अण्डाणु से निषेचन करता है तो भावी सन्तान लड़का होता है। इसी प्रक्रिया को लिंग निर्धारण कहते हैं।

→ विकास (Evolution)-पृथ्वी पर करोड़ों वर्ष पहले उपस्थित सरलतम जीवों से आधुनिक विशालतम जीवों के निर्माण की प्रक्रिया जैव विकास कहलाती है। जैव विकास के सम्बन्ध में समय-समय पर अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं-

  • जीवाश्मों से प्रमाण,
  • भूण विज्ञान से प्रमाण,
  • संयोजक कड़ियों से प्रमाण,
  • अवशेषी अंगों से प्रमाण। |

→ जीवाश्म (Fossils)-जीवधारियों के परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स , एक जीवाश्म है। जीवाश्म के अध्ययन से उनकी संरचना और विकास का ज्ञान होता है।

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→  भ्रूण विज्ञान (Embryology)-अनेक जीवधारियों में भ्रूण अपने पूर्वजों के लक्षण दर्शाते हैं। इससे इनके पूर्वजों के । बारे में ज्ञान होता है।

→ संयोजन कड़ी (Connecting link)-अनेक ऐसे जीवधारी हैं जिनमें दो वर्गों के लक्षण उपस्थित होते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स में सरीसृप तथा पक्षी दोनों के लक्षण होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है।

→ समजात अंग (Homologous organs)-वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न होते हैं। समजात अंग कहलाते हैं।

→ समवृत्ति अंग (Analogous organs)-वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना भिन्न होती है, लेकिन कार्य समान होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं।

→ अवशेषी अंग (Vestigial organs)–ऐसे अंग जो किसी जीवधारी के पूर्वजों में क्रियाशील थे किन्तु अब उनकी सन्तानों में केवल अवशेष के रूप में शेष बचे हैं अवशेषी अंग कहलाते हैं। अवशेषी अंगों से विकास की पुष्टि होती।

→ डार्विनवाद (Darwinism) डार्विन के अनुसार –

  • किसी भी जनसमुदाय के बीच प्राकृतिक विविधता होती है। कुछ व्यक्तियों में दूसरे की अपेक्षा अधिक अनुकूल विविधताएँ होती हैं।
  • जीवधारियों में सन्तान उत्पत्ति की अत्यधिक क्षमता होती है, किन्तु फिर भी इनकी संख्या नियन्त्रित रहती है।
  • एक ही जाति के सदस्यों के बीच तथा भिन्न-भिन्न जातियों के बीच आवास, भोजन एवं प्रजनन के लिए संघर्ष होते हैं, जिन्हें जीवन संघर्ष कहते हैं।
  • जनसंख्याओं के अन्तर्गत जीवित रहने के लिए संघर्ष में जो व्यष्टि सफल होती है वही जीवित रहती है। इसे प्राकृतिक वरण (Natural selection) या योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the fittest) कहते हैं।

→ लैमार्कवाद (Lamarckism)-लैमार्क के अनुसार-

  • जीवधारियों में लगातार बढ़ने की प्रवृत्ति होती है।
  • जीवों पर वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • अंगों के उपयोग तथा अनुप्रयोग से अंग क्रमशः विकसित या विलुप्त हो जाते हैं।
  • अपने जीवन काल में जीव जिन लक्षणों को उपार्जित करता है। यह उनकी वंशागति होती है।

→ आनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material)-DNA जीवधारियों का आनुवंशिक पदार्थ होता है। प्रत्येक डी. एन. ए. अणु का निर्माण अनेक इकाइयों द्वारा होता है जिन्हें न्यूक्लिओटाइड कहते हैं। प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड तीन विभिन्न अणुओं का बना होता है।

ये निम्न प्रकार है –

  • डी-ऑक्सी राइबोज शर्करा का एक अणु
  • फास्फोरिक अम्ल का एक अणु, तथा
  • एक नाइट्रोजनी क्षारक।

ये निम्न प्रकार के होते हैं-
(a) प्यूरीन – एडेनीन तथा ग्वानीन।
(b) पिरिमिडीन-साइटोसीन, थाइमीन तथा यूरेसिल।
HBSE 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास 1
डी. एन. ए. के अणु में दो पॉली न्यूक्लिओटाइड शृंखलाएँ होती हैं।

→ लिंग प्रभावित लक्षण (Sex influenced characters)- प्रत्येक लक्षण के लिए जीन्स उत्तरदायी होते हैं, जैसे- मनुष्य में गंजापन एक आनुवंशिक लक्षण है। इसकी आनुवंशिकी अलिंगी गुणसूत्र पर स्थित जीन्स की एक जोड़ी द्वारा नियन्त्रित होती है। जीन की होमोजाइगस प्रभावी (BB) में गंजापन स्त्री एवं पुरुष दोनों में विकसित होता है। जीन की हेटरोजाइगस अवस्था (Bb) में गंजापन केवल पुरुषों में प्रदर्शित होता है। इस अवस्था में यह नर हार्मोन से प्रभावित होता है। जीन की होमोजाइगस सुप्त (bb) अवस्था में गंजापन प्रदर्शित नहीं होता है।

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