HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मेण्डल के एक प्रयोग में लम्बे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्य बैंगनी रंग के थे, परन्तु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लम्बे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी –
(a) TT WW
(b) TT WW
(c) Tt WW
(d) Tt Ww.

प्रश्न 2. समजात अंगों का उदाहरण है –
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते का अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू तथा घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
विकासीय दृष्टि से हमारी किससे अधिक समानता है
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी
(d) जीवाणु।
उत्तर-
1. (c),
2. (d),
3. (a)

प्रश्न 4.
एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त परिस्थिति में नेत्रों का हल्का रंग प्रभावी लक्षण है। अत: यह लक्षण जनकों से भावी पीढ़ी की सन्तानों में स्थानान्तरित हो सकता है। प्रभावी लक्षण उसी अवस्था में अथवा कुछ परिवर्तन के साथ भावी पीढ़ी में चले जाते हैं। इनमें अप्रभावी लक्षण भी उपस्थित होते हैं। ये अप्रभावी लक्षण प्रभावी लक्षणों की अनुपस्थिति में सन्तान में प्रदर्शित हो सकते हैं।

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प्रश्न 5.
जैव विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंधित है?
उत्तर-
दो जातियों के बीच जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका सम्बन्ध भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा। उदाहरण के लिए; एक भाई एवं बहिन अति निकट सम्बन्धी हैं। उनसे पहली पीढ़ी में उनके पूर्वज समान थे अर्थात् वे एक ही माता-पिता की सन्तान हैं। लड़की के चचेरे/ममेरे भाई बहिन भी उनसे सम्बन्धित हैं लेकिन उसके अपने भाई से कम निकट का सम्बन्ध है। इसका मुख्य कारण है कि उनके पूर्वज समान हैं, अर्थात् दादा-दादी जो उनसे दो पीढ़ी पहले के हैं, न कि एक पीढ़ी पहले के। अब हम इस बात को भली प्रकार समझ सकते हैं कि जाति/जीवों का वर्गीकरण उनके विकास के सम्बन्धों का प्रतिबन्ध है।

प्रश्न 6.
समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
समजात अंग-ऐसे अंग जो उत्पत्ति एवं मूल रचना में समान होते हैं तथा जिनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण-घोड़े के अग्रपाद, चमगादड़ एवं पक्षी के पंख, मनुष्य के हाथ आदि। समरूप अंग-ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति तथा मूल रचना भिन्न-भिन्न होती हैं किन्तु कार्य समान होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं।
उदाहरण-तितली के पंख एवं चमगादड़ के पंख, आदि।

प्रश्न 7.
कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर-
माना कुत्ते की त्वचा का काला रंग (W), भूरे रंग (w) पर प्रभावी लक्षण है। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
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अत: F2 पीढ़ी में तीन कुत्ते काले एवं एक कुत्ता भूरा है। यह प्रोजेक्ट दर्शाता है कि काला रंग भूरे पर प्रभावी है।

प्रश्न 8.
विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
जीवाश्म विकास के पक्ष में प्रमाण उपलब्ध कराते हैं। ये किसी जीव के विकास काल की सापेक्ष जानकारी एवं विकास की विलुप्त कड़ियों की भी जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स नामक जीवाश्म में पक्षियों एवं सरीसृपों दोनों के गुण पाये जाते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है। अतः जीवाश्म विकास की कड़ियों को खोलने में सहायक हैं। जीवाश्मों की आयु का निर्धारण चट्टान में पाये जाने वाले रेडियोधर्मी तत्वों और इसके रेडियोधर्मिताविहीन समस्थानिक तत्वों के अनुपात से किया जाता है।

प्रश्न 9.
किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति पदार्थों से हुई है?
उत्तर-
हम जानते हैं कि अनेकों अकार्बनिक पदार्थ तथा कार्बनिक पदार्थ विशिष्ट परिस्थितियों में मिलकर जीन का निर्माण करते हैं जो आनुवंशिकता की इकाई हैं। हाल्डेन तथा मिलर एवं यूरे ने अपने प्रयोग द्वारा प्रयोगशाला में यह सिद्ध कर दिया कि प्रारम्भिक जीव की उत्पत्ति अकार्बनिक पदार्थों से हुई। अकार्बनिक अणुओं से कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेषण हुआ जिसके फलस्वरूप वे सरल कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हुये तथा अमीनों अम्ल जैसे पदार्थों का निर्माण हुआ जो जीवन का आधार होते हैं।

प्रश्न 10.
अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर-
लैंगिक जनन की प्रक्रिया में संयुग्मन करने वाले युग्मक (gametes) विभिन्न जनकों से आते हैं। इनके मिलने से युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। युग्मनज से सम्पूर्ण संतति जीव विकसित होता है। युग्मकों का निर्माण डी. एन. ए. के प्रतिकृतिकरण के द्वारा सम्भव होता है और डी. एन. ए. के प्रतिकृति होने के समय इसमें अनेक विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो नये जीव में वंशानुगत होती हैं। इसीलिए लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं।

अलैंगिक जनन में उत्पन्न विभिन्नताएँ जीव के जनन द्रव्य में न होकर केवल प्लाज़्मा द्रव्य में होती हैं अतः ये स्थायी नहीं होती हैं। यदि किसी प्रकार की विभिन्नता उत्तम है तो यह जीव के विकास व उत्तरजीविता के अधिक अवसर प्रदान करेगी। यह नयी स्पीशीज के उद्भव का मुख्य कारक है।

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प्रश्न 11.
संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर-
सामान्यतया विकसित जीवधारियों की कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों के दो जोड़े होते हैं। इसे 2n से प्रदर्शित करते हैं और ऐसी कोशिकाओं को द्विगुणित कहते हैं। द्विगुणित जनन कोशिकाओं में युग्मक निर्माण के समय अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। इसके फलस्वरूप अगुणित (n) युग्मकों का निर्माण होता है।

संतति निर्माण के समय जनक युग्मक मिलकर द्विगुणित युग्मनज (Zygote) बनाते हैं। युग्मनज से सन्तान का विकास होता है। इसमें एक युग्मक माता (मादा) से तथा दूसरा युग्मक पिता (नर) से आता है। अतः स्पष्ट है कि सन्तान की उत्पत्ति में नर एवं मादा द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की हिस्सेदार होती है तथा ये युग्मक ही आनुवंशिक पदार्थ का वहन करते हैं।

प्रश्न 12.
केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं ? |
उत्तर-
हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्राकृतिक चयन द्वारा अपने अस्तित्व को बनाये रखती हैं। ये विभिन्नताएँ समय व्यतीत होने के साथ-साथ समष्टि की मुख्य विशेषता के रूप में स्थापित हो जाती हैं। जीवधारी इन विभिन्नताओं के कारण स्वयं को वातावरण से अनुकूलित किए रहते हैं। यह जीवधारी सफल होते हैं और अपनी संतति को निरन्तर सृष्टि में बनाये रखते हैं।

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास  InText Questions and Answers

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 157)

प्रश्न 1.
यदि एक ‘लक्षण-A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण-B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर-
लक्षण-B’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है। यह लक्षण-A’ प्रजनन वाली समष्टि से 50 प्रतिशत अधिक है इसलिए ‘लक्षण-B’ पहले उत्पन्न हुआ होगा।

प्रश्न 2.
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर-
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी जाति (species) की उत्तरजीविता की सम्भावना बढ़ जाती है। जाति की उत्तरजीविता का आधार वातावरण में घटने वाला प्राकृतिक चयन ही होता है। समय के साथ उनमें जो प्रगति की प्रवृत्ति दिखाई देती है उसके साथ उनके शारीरिक अधिकल्प में जटिलता की वृद्धि भी हो जाती है। विभिन्नताएँ जैव विकास का आधार हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 161)

प्रश्न 1.
मेण्डल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
उत्तर-
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के दो विपर्यासी लक्षणों को चुना, जैसे कि मटर के लम्बे पौधे जो लम्बे पौधों को उत्पन्न करते थे तथा बौने पौधे जो बौने पौधों को ही उत्पन्न करते थे। जब मेण्डल ने लम्बे पौधे तथा बौने पौधे के बीच संकरण कराया तो प्रथम संतति (F) में सभी पौधे लम्बे थे। इससे स्पष्ट हो गया कि पौधे के लम्बेपन का लक्षण बौनेपन लक्षण पर प्रभावी हो गया तथा बौनापन अप्रभावी होने के कारण छिपा रह गया।
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जब F1 पीढ़ी के पौधों में मेण्डल ने स्वपरागण होने दिया और इससे प्राप्त बीजों को उगाने पर देखा कि लम्बे और बौने पौधे 3 : 1 के अनुपात में उत्पन्न हुए। इस प्रयोग से ज्ञात हो गया कि लक्षण प्रभावी एवं अप्रभावी होते हैं। उपर्युक्त विवरण के आधार पर ही मेण्डल का प्रथम नियम, प्रभाविता का नियम स्थापित हुआ।

प्रश्न 2.
मेण्डल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
मेण्डल ने अपने प्रयोगों में दो जोड़ी विपर्यासी (contrasting) लक्षणों का चयन किया, जैसे-पीले एवं गोल तथा हरे एवं झुर्शीदार बीज वाले पौधे। जब उन्होंने पीले एवं गोल (RRYY) बीज वाले पौधे का क्रॉस हरे एवं झुर्शीदार (rryy) बीज वाले पौधे के साथ कराया तो प्रथम पुत्री पीढ़ी में सभी पौधे पीले तथा गोल बीज वाले थे। जब F, पीढ़ी के पौधों के बीच उन्होंने स्वपरागण होने दिया तो F, पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे उत्पन्न हुए-

  • पीले एवं गोल बीज वाले,
  • पीले एवं झुरींदार बीज वाले,
  • हरे एवं गोल बीज वाले,
  • हरे एवं झुर्रादार बीज वाले।

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F2 पीढ़ी में उपर्युक्त पौधों का अनुपात 9: 3:3:1 था। इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि बीजों के रंग एवं आकृति की वंशानुगत पीढ़ी एक-दूसरे से प्रभावित नहीं होती। ये लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं। इसे मेण्डल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक ‘A’ रुधिर वर्ग वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘0’ है से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग ‘0’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है? यदि आपसे कहा जाए कि कौन-सा विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग ‘A’ अथवा ‘0’ प्रभावी लक्षण है? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए। .
उत्तर-
‘A’ तथा ‘0’ रुधिर वर्ग में कौन-सा लक्षण प्रभावी है, यह बताने के लिए यह सूचना कि पुत्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है, पर्याप्त नहीं है। रुधिर वर्ग का निर्धारण रुधिर में उपस्थित प्रतिजन (Antigen) तथा प्रतिरक्षी (antibody) की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर किया जाता है। ‘A’ रुधिर वर्ग में ‘A’ प्रतिजन व ‘b’ प्रतिरक्षी पाया जाता है, जबकि ‘O’ रुधिर वर्ग में कोई प्रतिजन नहीं पाया जाता परन्तु ‘a’ एवं ‘b’ दोनों प्रतिरक्षी अवश्य पाए जाते हैं। al, a तथा a° जीन प्रतिजन के लिए उत्तरदायी होते हैं।

a bb क्रमशः a° पर प्रभावी होते हैं।’A’ रुधिर वर्ग वाले पुरुष की जीन संरचना a° a° तथा ‘0’ रुधिर वाली स्त्री की जीन संरचना a° a° होने पर पुत्री पिता से a° तथा माता से a° जीन अर्थात् दोनों सुप्त जीन प्राप्त करने के कारण ‘O’ रुधिर वर्ग वाली होती है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि ‘A’ प्रभावी होगा।

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प्रश्न 4.
मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता
उत्तर-
मानव में उपस्थित लिंग गुणसूत्रों (Sex chromosomes) द्वारा बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जाता है

  • पुरुषों में दोनों लिंग गुणसूत्रों में से एक गुणसूत्र X तथा दूसरा गुणसूत्र Y होता है।
  • स्त्री में दोनों लिंग गुणसूत्र समान अर्थात् XX होते
  • पुरुष दो प्रकार के शुक्राणु उत्पन्न करते हैं। आधे शुक्राणु X गुणसूत्रों को तथा आधे शुक्राणु Y गुणसूत्रों को धारण करते हैं।
  • स्त्री में केवल एक अण्डाणु बनता है, जिसमें X गुणसूत्र होता है।
  • जब X गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु (X) में संलयन करता है तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़की (XX) होती है।
  • जब Y गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु (X) से संलयन करता है तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़का (XY) होता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 165)

प्रश्न 1.
वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर-
किसी एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की समष्टि में संख्या निम्नलिखित तरीकों से बढ़ सकती है-
(i) यदि व्यष्टि में विशिष्ट लक्षण पर्यावरण के अनुकूल हो और इसका प्राकृतिक चयन होता रहे तब इस लक्षण वाले जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है। उदाहरणार्थ, लाल शृंग की समष्टि में हरे रंग वाले भृग का उत्पन्न होना। पक्षी हरे रंग के भंगों को पत्तियों के बीच में पहचान नहीं पाते हैं और भंग शिकार होने से बच जाते हैं, जबकि लाल भुंग आसानी से पहचाने जा सकते हैं और पक्षियों के शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार हरे रंग के ,गों की संख्या समष्टि में बढ़ जाती है।

(ii) आकस्मिक दुर्घटना के कारण जब किसी समष्टि के अत्यधिक सदस्य समाप्त हो जाते हैं तो जीन पूल (gene pool) सीमित रह जाता है। इससे समष्टि का रूप बदल जाता है। इसे जीनी अपवहन (Genetic Drift) कहते हैं। ऐसा प्रायः महामारियों, परभक्षण, प्रलय आदि के कारण होता है।

प्रश्न 2.
एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतया अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते, क्यों ?
उत्तर-
उपार्जित लक्षणों के प्रभाव केवल कायिक कोशिकाओं पर ही होते हैं अर्थात् इनका समावेशन आनुवंशिक पदार्थ (डी. एन. ए.) में नहीं होता है। आनुवंशिक पदार्थ में होने वाले परिवर्तन ही अगली पीढ़ी में वंशानुगत हो सकते हैं, अतः उपार्जित लक्षण सामान्यतया अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते हैं।

प्रश्न 3.
बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता की दृष्टि से चिन्ता का विषय क्यों है ? ..
उत्तर-
बाघों की संख्या में लगातार हो रही कमी यह दर्शाती है कि बाघ प्राकृतिक चयन में पिछड़ रहे हैं अर्थात् उनमें प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन नहीं हो रहे हैं जो कि समष्टि में इनकी संख्या बढ़ा सके। छोटी समष्टि पर दुर्घटनाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है जिससे जीवों की आवृत्ति प्रभावित हो सकती है। अतः बाघों की घटती संख्या चिन्ता का विषय है क्योंकि इनका प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन न कर सकने के कारण बाघों की प्रजाति कभी भी विलुप्त हो सकती है। बाघों के संरक्षण हेतु टाइगर प्रोजेक्ट के अन्तर्गत इन्हें सुरक्षित राष्ट्रीय उद्यानों में रखा गया है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 166)

प्रश्न 1.
वे कौन से कारक हैं, जो नई स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
नई जाति के उद्भव (speciation) में निम्नलिखित कारक सहायक हैं-

  • लैंगिक प्रजनन के फलस्वरूप उत्पन्न परिवर्तन,
  • दो उपसमष्टियों का एक-दूसरे से भौगोलिक पृथक्करण। इसके कारण समष्टियों के सदस्य परस्पर प्रजनन नहीं कर पाते हैं।
  • आनुवंशिक अपवहन।
  • प्राकृतिक चयन।

प्रश्न 2.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं ?
उत्तर-
जाति उद्भव (speciation) में भौगोलिक पृथक्करण (Geographical isolation) ही प्रमुख कारण है। विशेष रूप से अलैंगिक जनन करने वाले पादपों में एक जीवधारी भौतिक परिस्थितियों में जीवित रहता है परन्तु कुछ जीवधारी यदि निकटवर्ती भौगोलिक पर्यावरण में विस्थापित हो जाते हैं जिनमें विभिन्न भौतिक परिवर्तनीय लक्षण हों तो वे जीवित नहीं रहेंगे। यदि जीवित रह रहे जीवधारियों में अलैंगिक जनन होता है तत्पश्चात् वे अन्य पर्यावरण में विस्थापित होते हैं तो भी भिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित नहीं रह पाएँगे।

प्रश्न 3.
क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर-
नहीं, क्योंकि अलैंगिक जनन के लिए दूसरे जीव की आवश्यकता नहीं है। यह एकल जीव द्वारा ही सम्पन्न होता है। अतः भौगोलिक पृथक्करण का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 171)

प्रश्न 1.
उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय सम्बन्ध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर-
लगभग 2000 वर्ष पूर्व जंगली बन्दगोभी को खाद्य पौधे के रूप में उगाया जाने लगा था, यह एक कृत्रिम चयन था न कि प्राकृतिक चयन। इसलिए कुछ किसानों का अनुमान था कि इस गोभी में पत्तियाँ आपस में निकट होनी चाहिए। अतः उन्होंने परस्पर संकरण द्वारा उस बंदगोभी को प्राप्त किया जिसका हम आजकल प्रयोग करते हैं। कुछ किसानों ने पत्तियों को पुष्पों के निकट प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। अतः उन्होंने प्रयास करके इस प्रकार का पौधा प्राप्त किया। इस पौधे को आधुनिक फूलगोभी का नया नाम दिया गया। इस प्रकार बन्दगोभी एवं फूलगोभी दोनों निकट स्पीशीज हैं जो उद्विकास से विकसित स्पीशीज हैं।

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प्रश्न 2.
क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर-
ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न होते हैं, समजात (homologous) अंग कहलाते हैं। चूँकि तितली एवं चमगादड़ के पंखों के कार्य (उड़ना) तो समान हैं लेकिन उनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान नहीं है अतः ये समजात अंग नहीं हैं। ये समवृत्ति अंग है।

प्रश्न 3.
जीवाश्म क्या हैं? वह जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं? [CBSE 2015]
उत्तर-
प्राचीनकाल के जीवों के अवशेष, जो प्राचीन काल में पृथ्वी पर पाये जाते थे, किन्तु अब जीवित नहीं हैं, जीवाश्म कहलाते हैं। ये अवशेष प्राचीन समय में मृत जीवों के सम्पूर्ण, अपूर्ण, अंग या अन्य भाग के अवशेष या उन अंगों के ठोस मिट्टी, शैल तथा चट्टानों पर बने चिन्ह होते हैं जिन्हें पृथ्वी को खोदने से प्राप्त किया गया है।

ये चिन्ह इस बात का प्रतीक हैं कि ये जीव करोड़ों वर्ष पूर्व जीवित थे लेकिन वर्तमान में विलुप्त हो चुके हैं-

  • जीवाश्म उन जीवों के पृथ्वी पर अस्तित्व की पुष्टि करते हैं।
  • इन जीवाश्मों की तुलना वर्तमान काल में उपस्थित समतुल्य जीवों से कर सकते हैं।

इनकी तुलना से अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्तमान में उन जीवाश्मों के जीवित स्थिति के काल के सापेक्ष क्या विशेष परिवर्तन हुए हैं, जो जीवधारियों को जीवित रखने के प्रतिकूल हो गए हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 173)

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई देने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं?
उत्तर-
मानव में आकृति, आकार, रंग-रूप आदि भिन्नता का कारण भौतिक पर्यावरण के कारकों से भौतिक लक्षणों में होने वाले परिवर्तन हैं। उनकी जैविक संरचना के लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है इसीलिए उनके अंगों में कोई परिवर्तन नहीं आता। परन्तु भौगोलिक परिस्थितियों में परिवर्तनों के कारण उनके आकार, रंग तथा दिखाई देने वाली आकृति में परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं, जबकि वे एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं।

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प्रश्न 2.
विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी आदि में उद्विकास के आधार पर इनके शरीरों में जीवधारियों के वंशों की विविधता के अस्तित्व के लक्षण विद्यमान होते हैं। यद्यपि चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प अन्य की अपेक्षा अधिक विकसित है; लेकिन अन्य जीवाणु, जैसे-मकड़ी, मछली आदि के अभिकल्पों को अविकसित नहीं कहा जा सकता ये शरीर की प्रतिकूलता को अनुकूलता में परिवर्तित कर देते हैं, जैसे-गर्म झरने, गहरे समुद्रों के गर्म स्रोत तथा अन्टार्कटिका में बर्फ आदि में उपस्थित जीवधारियों के लक्षण जो उन्हें उत्तरजीविता के योग्य बनाते हैं। जैव विकास के आधार पर यह इनकी विशेषतायें हैं। अभिकल्प को उत्तम या अधम नहीं कहा जा सकता।

HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास InText Activity Questions and Answers

क्रियाकलाप 9.1 (पा. पु. पृ. सं. 157)

प्रेक्षण (Observation)-कक्षा में बहुत कम छात्र/छात्राओं की कर्ण पालि जुड़ी हुई है। इसका कारण उनके माता-पिता से प्राप्त वंशानुगत गुण हैं।

क्रियाकलाप 9.2 (पा. पु. पृ. सं. 158)

प्रेक्षण एवं निष्कर्ष (Observation and Result)-हम मेंण्डल के द्वारा किए गए प्रयोग को दोहराकर मटर में भिन्न-भिन्न प्रकार के बीजों के इस संयोजन से इस अनुपात को प्राप्त कर सकते हैं।
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