HBSE 10th Class Science Notes Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Notes Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय Notes.

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

→ नियन्त्रण (Control)-पर्यावरण की अनुक्रिया के प्रति उत्पन्न गति को विशिष्टीकृत तंत्रिका तंत्र द्वारा नियन्त्रित करने की प्रक्रिया नियन्त्रण कहलाती है।

→ समन्वयन (Co-ordination)-उद्दीपक के प्रति उचित प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए किसी जीव के विभिन्न अंगों का परस्पर सुसंगठित ढंग से कार्य करना, समन्वयन कहलाता है।

→ उद्दीपक (Stimulent)-वातावरण में परिवर्तन जिनके प्रति जीव प्रतिक्रिया दिखाते हैं और सक्रिय रहते हैं, उद्दीपक कहलाते हैं। उद्दीपक के प्रति जीवों की अनुक्रिया (Response) प्रायः उनके शरीर-अंग की किसी गति के रूप में होती है।

→ तंत्रिका तंत्र (Nervous System)-जन्तुओं के शरीर में तंत्रिकाओं का एक सघन जाल बिछा रहता है जो उद्दीपकों । को ग्रहण करने तथा उनके प्रति अनुक्रिया करने की क्रियाओं का संचालन करता है, यह तंत्रिका तंत्र कहलाता है।

→ तंत्रिका कोशिका (Neuron) तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई (unit) को तंत्रिका कोशिका अथवा न्यूरॉन कहते हैं।

→ तंत्रिका कोशिका के तीन भाग होते हैं-कोशिका काय (Cell body), दुमिकाएँ (Dendrites) तथा एक्सॉन (Axon) |

→ कशेरुकी (मानव सहित) जैसे उच्चतर प्राणियों में नियन्त्रण तथा समन्वयन तंत्रिका तंत्र के साथ-साथ अन्तःस्रावी तंत्र नामक हॉर्मोनी तंत्र के द्वारा होता है।

→ हमारे शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं-आँख, कान, नाक, जीभ तथा त्वचा। इनके द्वारा हम अपने चारों ओर के वातावरण से विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त करते हैं।

→ संवेदनग्राही (Effectors) शरीर का एक अंग होता है जो तंत्रिका तंत्र से भेजी गयी सूचनाओं के अनुसार उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया दर्शाता है। संवेदनग्राही मुख्यतः हमारे शरीर की पेशियाँ और ग्रन्थियाँ होती हैं

→ शरीर के किसी भाग से सूचना एक तंत्रिका कोशिका के द्रुमाकृतिक (dendroite) सिरे द्वारा उपार्जित की जाती है।

HBSE 10th Class Science Notes Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

→ तंत्रिका कोशिकाएँ निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं।

  • संवेदी तंत्रि कोशिकाएँ (Sensory Neurons)-ये आवेगों को संवेदी कोशिकाओं से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की ओर प्रेषित करती हैं।
  • प्रेरक तंत्रि कोशिकाएँ (Motor Neurons)-ये आवेगों को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से पेशी कोशिकाओं की ओर प्रेषित करती हैं।
  • प्रसारण तंत्रि कोशिकाएँ (Relay Neurons)-ये केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में पायी जाती हैं और दूसरी तंत्रि कोशिकाओं के बीच कड़ी का कार्य करती हैं।

→ तंत्रिका आवेग (Nerve Impulse)-तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा रासायनिक या विद्युत् संकेतों का प्रसारण तंत्रिका आवेग कहलाता है।

→ युग्मानुबन्धन (Synaps)-वह सम्पर्क बिन्दु जो एक न्यूरॉन के एक्सॉन की अन्य शाखाओं एवं दूसरे न्यूरॉन के डेंड्राइटों के बीच बनता है, युग्मानुबन्धन कहलाता है।

→ प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action)-तंत्रिका तंत्र में अनुक्रिया या प्रतिक्रिया का सबसे सरल रूप प्रतिवर्ती क्रिया है, और यह वह क्रिया है जिसे हम यन्त्रवत् करते हैं। गर्म प्लेट छू जाने पर हमारे हाथ का दूर हटना प्रतिवर्ती क्रिया का एक उदाहरण है।

→ तंत्रिका तंत्र के मुख्यतः दो भाग होते हैं। केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तथा परिधीय तंत्रिका तंत्र।

  • केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System)-मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु से बना तंत्रिका तंत्र केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र कहलाता है।
  • परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System)-मस्तिष्क से निकलने वाली कपाल तंत्रिकाओं न तथा मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तंत्रिकाओं से बना तंत्रिका तंत्र परिधीय तंत्रिका तंत्र कहलाता है।

→ परिधीय तंत्रिका तंत्र को पुनः दो भागों में बाँटा जा सकता है-स्वायत्त तंत्रिका तंत्र तथा ऐच्छिक तंत्रिका तंत्र।

  • स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomic Nervous System)-स्वतः संचालित होने वाले तंत्रिका तंत्र को स्वायत्त तंत्रिका तंत्र कहते हैं।
  • ऐच्छिक तंत्रिका तंत्र (Voluntary Nervous System)- ऐच्छिक क्रियाएँ जो मस्तिष्क के सचेतन द्वारा नियन्त्रण में होती हैं, के संचालन को ऐच्छिक तंत्रिका तंत्र कहते हैं।

→  मस्तिष्क (Brain)-शरीर में मस्तिष्क सर्वश्रेष्ठ समन्वयकारी केन्द्र है। मस्तिष्क कपाल गुहा (Cranial cavity) में बन्द होता है। मस्तिष्क तीन झिल्लियों से घिरा होता है जिन्हें मस्तिष्कावरण (Meninges) कहते हैं।

→ मस्तिष्क मुख्यतः तीन भागों में विभाजित होता है-

  • अग्र मस्तिष्क (Fore brain)- यह प्रमस्तिष्क (Cerebrum) का बना होता है।
  • मध्य मस्तिष्क (Mid brain)-इसमें कोई विभाजन नहीं होता है।
  • पश्च मस्तिष्क (Hind brain)-यह पॉन्स (Pons), अनुमस्तिष्क (Cerebellum) तथा मेड्यूला (Medulla) नामक तीन केन्द्रों का बना होता है

→ शरीर की सभी ऐच्छिक क्रियाएँ प्रमस्तिष्क द्वारा सम्पादित की जाती हैं।

→ मध्य मस्तिष्क दृष्टि एवं श्रवण उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं।

→ पॉन्स (Pons) श्वसन को नियन्त्रित करते हैं।

→ अनुमस्तिष्क (Cerebellum) शरीर के आसन को स्थिर बनाये रखता है।

→ मेड्यूला (Medulla) विभिन्न अनैच्छिक क्रियाओं का नियन्त्रण करता है।

→ पादप गति (Plant Movement)-पौधे या इसके किसी भाग में किसी उद्दीपन के प्रति होने वाली गति पादप गति कहलाती है।

→ अनुवर्तन (Tropism)-किसी बाहरी उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया में पौधे के किसी भाग की गति जिसमें उद्दीपन की दिशा अनुक्रिया की दिशा को निर्धारित करती है, अनुवर्तन कहलाता है।

→ गुरुत्वानुवर्तन (Geotropism)-पृथ्वी के गुरुत्व बल के कारण पौधों की जड़ों का पृथ्वी की ओर बढ़ना गुरुत्वानुवर्तन कहलाता है।

→ प्रकाशानुवर्तन (Phototropism)-पौधों की प्रकाश की दिशा में गति को प्रकाशानुवर्तन कहते हैं।

→ अनुकुंचन (Nastics)-किसी बाहरी उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया में पौधे के अंग की गति जिसमें उद्दीपक की दिशा द्वारा अनुक्रिया की दिशा निर्धारित नहीं होती, अनुकुंचनी गति कहलाती है और इस घटना को अनुकुंचन कहते ।

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→ स्पर्शानुकुंचन (Thigmonasty)-किसी वस्तु के स्पर्श के प्रति अनुक्रिया में पौधे के भाग की गति स्पर्शानुकुंचन कहलाती है।

→ प्रकाशानुकुंचन (Photonasty)-प्रकाश की अनुक्रिया में पौधे के अंग की अदिशात्मक गति प्रकाशानुकुंचन कहलाती है।

→ पौधे हॉर्मोन्स के द्वारा वातावरण के परिवर्तनों के प्रति अपने व्यवहार को समन्वित करते हैं।

→ पादप हॉर्मोन (Plant Hormones)-ये विशेष प्रकार के कार्बनिक पदार्थ हैं, जो पौधों के विभिन्न भागों से स्रावित होकर उनकी विभिन्न क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।

पादप हॉर्मोन प्रमुखतः पाँच प्रकार के होते हैं-

  • ऑक्सिन्स (Auxins)-यह पौधों में कोशिका विवर्धन तथा कोशिका विभेदन को प्रोत्साहित करते हैं।
  • जिबरेलिन्स (Gibberellins)-यह ऑक्सिन की उपस्थिति में कोशिका विवर्धन और कोशिका विभेदन को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ बीजों तथा नलिकाओं में प्रसुप्ति विच्छेद में सहायता करता है।
  • सायटोकायनिन्स (Cytokinins)-यह कोशिका विभाजन को उत्प्रेरित तथा काल प्रभावन को रोकता है।
  • एब्सिसिक अम्ल (Abscisic Acid)- यह बीजों तथा कलियों में प्रसुप्ति बढ़ाता है। यह रन्ध्रों को बन्द करने में भी सहायक होता है।

→ इथाइलीन (Ethyline)-यह फलों के पकाने में सहायक गैसीय हॉर्मोन है।

→ फाइटोक्रोम (Phytochrome)-पादपों के वे विशेष वर्णक जो दीप्तिकाल उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते हैं, उन्हें फाइटोक्रोम कहते हैं।

→ बसन्तीकरण (Venelization)-पौधों के पुष्पन पर शीत के प्रभाव का अध्ययन बसन्तीकरण कहलाता है।

→ दीप्तिकालिता (Photoperiodism)-प्रतिदिन पौधे पर पड़ने वाले प्रकाश की अवधि के प्रति उसकी वृद्धि तथा पुष्पन में होने वाले प्रभावों को दीप्तिकालिता कहते हैं।

→ जन्तु हार्मोन (Animal hormones)-ये रासायनिक कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से स्रावित होकर – शरीर की विभिन्न क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं।

→ अन्तःस्रावी तंत्र (Endocrine System)-अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का एक समूह जो विभिन्न हॉर्मोनों को उत्पन्न करता है, अन्तःस्रावी तंत्र कहलाता है।

→  मानव शरीर में उपस्थित विभिन्न अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ निम्न प्रकार हैं –

  • पीयूष ग्रन्थि,
  • थायरॉइड ग्रन्थि,
  • थाइमस ग्रन्थि,
  • पैराथायरॉइड ग्रन्थि,
  • अग्न्याशय,
  • अण्डाशय,
  • वृषण तथा
  • एड्रीनल ग्रन्थिा

→ पीयूष ग्रन्थि (Pituitary gland) को मास्टर ग्रन्थि कहत हैं। इससे स्रावित हॉर्मोन विभिन्न ग्रन्थियों को अन्य हॉर्मोन्स के स्रावण की प्रेरणा देते हैं।

→  एड्रीनल ग्रन्थि से स्रावित हॉर्मोन को आपातकालीन हॉर्मोन कहते हैं। यह हॉर्मोन एड्रीनल है जो संकट, क्रोध, आवेश इत्यादि आपातकालीन परिस्थितियों के दौरान हमें अत्यधिक कार्यकुशलता से कार्य करने के लिए तैयार करता है।

→ थायरॉक्सिन हॉर्मोन की कमी से फेंघा (goitre) नामक रोग उत्पन्न होता है। थायरॉइड ग्रन्थि से थायरॉक्सिन के स्त्राव को बनाये रखने के लिए भोजन में आयोडीन की आवश्यकता होती है।

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→ विभिन्न ग्रन्थियों द्वारा निर्मुक्त हॉर्मोनों के सम” और मात्रा को पुनर्निवेशन प्रक्रिया (Feedback mechanism) द्वारा नियन्त्रित किया जाता है जो हमारे शरीर में अन्त:रचित होती हैं।

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