Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 15 बहुलक

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 15 बहुलक Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 15 बहुलक

प्रश्न 15.1.
बहुलक और एकलक पदों की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:

  1. बहुलक उच्च आण्विक द्रव्यमान वाले बृहदाणु होते हैं। जिनमें बहुत अधिक संख्या में, एकलक अणुओं से बनी पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाइयाँ उपस्थित होती हैं।
  2. एकलक सरल तथा क्रियाशील अणु होते हैं जो बहुलकीकृत होने में सक्षम होते हैं तथा इनसे पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाई बनती है।

प्रश्न 15.2.
प्राकृतिक और संश्लिष्ट बहुलक क्या हैं? प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए ।
उत्तर:

  1. प्राकृतिक बहुलक उच्च आण्विक द्रव्यमान वाले बृहदाणु होते हैं जो प्रकृति (पादपों और जंतुओं) में पाए जाते हैं। प्रोटीन तथा न्यूक्लीक अम्ल इनके उदाहरण हैं।
  2. संश्लिष्ट बहुलक मानव निर्मित उच्च आण्विक द्रव्यमान वाले बृहदाणु होते हैं। संश्लिष्ट प्लास्टिक तथा रबर इनके उदाहरण हैं।

प्रश्न 15.3.
समबहुलक और सहबहुलक पदों (शब्दों) में विभेद कर प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
समबहुलक – समान प्रकार की एकलक स्पीशीज़ के बहुलकीकरण से बने बहुलकों को समबहुलक कहते हैं। उदाहरण- पॉलिथीन ।
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सहबहुलक – दो भिन्न प्रकार की एकलक स्पीशीज के बहुलकीकरण से बने बहुलकों को सहबहुलक कहा जाता है। उदाहरण- ब्यूना – S
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प्रश्न 15.4.
एकलक की प्रकार्यात्मकता को आप किस प्रकार समझाएंगे ?
उत्तर:
एकलक में स्थित आबंधी स्थितियों की संख्या को एकलक की प्रकार्यात्मकता कहते हैं।
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प्रश्न 15.5.
बहुलकन पद (शब्द) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बहुलकन (Polymerisation ) – एक अथवा अधिक (समान या भिन्न) छोटे तथा सरल अणु (एकलक) आपस में क्रिया करके उच्च आण्विक द्रव्यमान वाले वृहद अणु बनाते हैं इन्हें बहुलक कहते हैं तथा बहुलक बनने की इस क्रिया को बहुलकन कहते हैं।

प्रश्न 15.6.
(NH-CHR – CO) एक समबहुलक है या सहबहुलक?
उत्तर:
(NH-CHR-CO) इकाई एक ही प्रकार के एकलक अणु से बनी है अतः यह एक समबहुलक है।

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प्रश्न 15.7.
प्रत्यास्थ बहुलकों में प्रत्यास्थ गुण किस कारण से होता है?
उत्तर:
प्रत्यास्थ बहुलकों में विभिन्न श्रृंखलाएं एक-दूसरे के साथ दुर्बल वान्डरवाल्स अन्योन्य क्रियाओं द्वारा जुड़ी होती हैं तथा कुंडलित संरचना बना लेती हैं इसलिए इन्हें स्प्रिंग की तरह खींचा जा सकता है अतः इन दुर्बल अन्तरा आण्विक बलों के कारण ही इनमें प्रत्यास्थ गुण होता है।

प्रश्न 15.8.
संकलन (योगात्मक) और संघनन बहुलकन के मध्य आप किस प्रकार विभेद करेंगे?
उत्तर:
संकलन या योगात्मक बहुलकन (बहुलकीकरण) में समान अथवा भिन्न अंसतृप्त एकलक अणु मिल कर बृहत् बहुलक अणु बनाते हैं जबकि संघनन बहुलकन में दो अथवा अधिक प्रकार के द्विक्रियात्मक एकलक अणु संघनन अभिक्रिया द्वारा बहुलक बनाते हैं, इस प्रक्रिया में छोटे अणु जैसे जल, ऐल्कोहॉल इत्यादि का विलोपन होता है। उदाहरण-प्रोपीन (CH3CH = CH2) से पॉलिप्रोपीन HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 15 बहुलक 3 का बनना संकलन बहुलकन है जबकि हैक्सा मेथिलीन डाइऐमीन (NH2-(CH2)6NH2) तथा ऐडिपिक अम्ल (HOOC- (CH2)4COOH) के बहुलकन से नाइलॉन 6,6 का बनना संघनन बहुलकन है। इसमें H2O का विलोपन होता है।
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प्रश्न 15.9.
सहबहुलकन शब्द (पद) की व्याख्या कीजिए और दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सहबहुलकन या सहबहुलकीकरण – सहबहुलकीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें बहुलक के निर्माण में एक से अधिक प्रकार की एकलक स्पीशीज़ प्रयुक्त होती है। सहबहुलक में प्रत्येक एकलक की अनेक इकाइयाँ होती हैं। 1, 3 – ब्यूटाडाईन तथा स्टाइरीन और 1, 3 – ब्यूटाडाईन एवं ऐक्रिलोनाइट्राइल के सहबहुलक इसके उदाहरण हैं।
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प्रश्न 15.10.
एथीन के बहुलकन के लिए मुक्त मूलक क्रियाविधि दीजिए ।
उत्तर:
एथीन के बहुलकन की मुक्तमूलक क्रियाविधि में निम्नलिखित तीन पद होते हैं-
(1) श्रृंखला प्रारंभक पद-
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(2) श्रृंखला संचरण पद-
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(3) शृंखला समापन पद-दीर्घ श्रृंखला के समापन के लिए मुक्त- मूलक विभिन्न प्रकार से जुड़कर पॉलिथीन बनाते हैं।
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प्रश्न 15.11.
तापसुघट्य और तापदृढ़ बहुलकों को प्रत्येक के दो उदाहरण के साथ परिभाषित कीजिए ।
उत्तर:
आण्विक बलों पर आधारित वर्गीकरण (Classifcation based on Molecular Forces):
सभी प्रकार के अणुओं में अन्तराअणुक बल पाए जाते हैं लेकिन बहुलकों में ये बल आपस में मिलकर अधिक प्रभावी होते हैं जिससे इनमें विशिष्ट गुण उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे- तनन सामर्थ्य प्रत्यास्था तथा चर्मलता। इन बलों द्वारा बहुलक श्रृंखलाएँ आपस में जुड़ी होती हैं। बहुलकों के यांत्रिक गुणों के आधार पर ही इन्हें दैनिक जीवन में विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग में लिया जाता है।

बहुलकों को उनमें उपस्थित अंतराआण्विक बलों के परिमाण के आधार पर इन्हें निम्नलिखित चार उपसमूहों में वर्गीकृत किया गया है-
(a) प्रत्यास्थ बहुलक (Elastomers ) – प्रत्यास्थ बहुलकों में बहुलक श्रृंखलाएँ आपस में दुर्बल अंतराआण्विक बलों द्वारा जुड़ी होती हैं। ये दुर्बल बल बहुलक को तनित होने देते हैं। श्रृंखलाओं के बीच कुछ ‘तिर्यकबंध’ भी होते हैं अतः ये बहुलक खींचने पर लम्बे हो जाते हैं तथा छोड़ देने पर पुनः अपनी पूर्व अवस्था में आ जाते हैं अर्थात् इनमें प्रत्यास्थता का गुण पाया जाता है। ये रबर के समान ठोस होते हैं। जैसे वल्कनीकृत रबर । ब्यूना – N, ब्यूना S तथा निओप्रीन भी प्रत्यास्थ बहुलकों के उदाहरण हैं।

(b) रेशे या रेशेदार बहुलक (Fibres or Fibrous Poly- mers ) – रेशेदार बहुलकों में तनन सामर्थ्य उच्च होता है क्योंकि इनमें बहुलक श्रृंखलाओं के मध्य असंख्य प्रबल अन्तराअणुक हाइड्रोजन बन्ध पाए जाते हैं। इसी कारण ये क्रिस्टलीय ठोस होते हैं तथा इनका गलनांक तीक्ष्ण होता है। ये बहुलक धागे बनाने में प्रयुक्त होते हैं।

उदाहरण-पॉलिएस्टर (टैरीलीन) तथा पॉलिऐमाइड (नाइलॉन- 6,6 ) इत्यादि ।

(c) तापसुघट्य बहुलक या ताप सुनम्य बहुलक (Thermo plastic Polymers) – ये बहुलक रेखीय अथवा अल्प शाखित लंबी श्रृंखला युक्त होते हैं, जिन्हें बार-बार गरम करने से मृदुल और ठंडा करने से कठोर हो जाते हैं अतः इन्हें साँचों में ढाला जा सकता है। इन बहुलकों में अंतराआण्विक आकर्षण बल प्रत्यास्थ बहुलकों से अधिक तथा रेशों से कम होता है। उदाहरण- पॉलिथीन, पॉलिस्टाइरीन, पॉलिवाइनिल क्लोराइड, पॉलिप्रोपिलीन इत्यादि ।

(d) तापदुढ़ बहुलक या थर्मोसेटिंग बहुलक (Thermoset- ting Polymers)-ये बहुलक तिर्यक बद्ध अथवा अत्यधिक शाखित होते हैं। इन्हें गर्म करने पर तिर्यक बन्धन बढ़ जाते हैं तथा इनकी संरचना त्रिविमीय जालक के समान हो जाती है अतः ये दुर्गलनीय ( Infusible ) हो जाते हैं। इसलिए इनका पुनः उपयोग नहीं किया जा सकता। ताप दृढ़ बहुलकों को सामान्यतः निम्न अणु भार वाले अर्ध तरल बहुलकों को गरम करके बनाया जाता है। उदाहरण-बैकेलाइट, यूरिया – फार्मेल्डिहाइड रेजिन इत्यादि ।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 15 बहुलक

प्रश्न 15.12.
निम्न बहुलकों को प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त एकलक लिखिए-
(i) पॉलिवाइनिल क्लोराइड
(ii) टेफ्लॉन
(iii) बैकेलाइट।
उत्तर:
उपर्युक्त बहुलकों को प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त एकलक निम्न प्रकार हैं-

  • पॉलिवाइनिल क्लोराइड का एकलक CH2=CH-CI (वाइनिल क्लोराइड) है।
  • टेफ्लॉन का एकलक CF2 = CF2 (टेट्राफ्लुओरोएथिलीन) है।
  • बैकेलाइट के बनने में प्रयुक्त होने वाले एकलक HCHO (फार्मेल्डिहाइड) और C6H5OH (फ़ीनॉल) हैं।

प्रश्न 15.13.
मुक्तमूलक योगज बहुलकन में प्रयुक्त एक सामान्य प्रारंभक का नाम और संरचना लिखिए।
उत्तर:
मुक्तमूलक योगज बहुलकन में सामान्यतः बेन्जॉयल परॉक्साइड को प्रारंभक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है जिसकी संरचना निम्न प्रकार होती है-
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प्रश्न 15.14.
रबर अणुओं में द्विबंधों की उपस्थिति किस प्रकार उनकी संरचना और क्रियाशीलता को प्रभावित करती है?
उत्तर:
संरचनात्मक रूप से प्राकृतिक रबर एक रेखीय सिस – 1, 4 – पॉलि आइसोप्रीन है। इसमें द्विआबंध, आइसोप्रीन इकाइयों के C, और C के मध्य स्थित होते हैं तथा द्विआबंध का सिस अभिविन्यास होता है अतः इसकी श्रृंखलाओं के मध्य दुर्बल अंतराआण्विक आकर्षण होने के कारण ये समीप नहीं आ पाती हैं। इस कारण प्राकृतिक रबर की कुंडलित संरचना होती है तथा यह प्रत्यास्थता का गुण प्रदर्शित करता है ।

प्रश्न 15.15.
रबर के वल्कनीकरण के मुख्य उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक रबर उच्च ताप (> 335K ) पर नरम तथा निम्न ताप पर (< 283K) भंगुर हो जाता है तथा इसमें जल को अवशोषित करने की क्षमता होती है। यह अध्रुवीय विलायकों में विलेय होता है तथा ऑक्सीकारकों के प्रति प्रतिरोधी नहीं होता है।

रबर के इन भौतिक गुणों में सुधार करने के लिए रबर का वल्कनीकरण किया जाता है। वल्कनीकरण से, द्विबंधों की क्रियाशील स्थितियों पर सल्फर तिर्यक बन्ध बन जाते हैं। इससे रबर की कठोरता तथा प्रत्यास्थता बढ़ जाती है।

प्रश्न 15.16.
नाइलॉन – 6 और नाइलॉन – 6,6 में पुनरावृत्त एकलक इकाइयाँ क्या हैं?
उत्तर:
नाइलॉन 6 की पुनरावृत्त एकलक इकाई [-NH(CH2)5-CO-] है तथा नाइलॉन – 6,6 बहुलक की पुनरावृत्त एकलक इकाई दो एकलकों हैक्सामेथिलीनडाइऐमीन और ऐडिपिक अम्ल से बनती है जो कि निम्न प्रकार है-
[-NH-(CH2)6-NH-CO-CH2)4-CO-]

प्रश्न 15.17.
निम्नलिखित बहुलकों के एकलकों का नाम और संरचना लिखिए-
(i) ब्यूना – S
(ii) ब्यूना – N
(iii) डेक्रॉन
(iv) निओप्रीन ।
उत्तर:
उपर्युक्त बहुलकों के बनने में प्रयुक्त एकलकों के नाम तथा संरचना निम्न प्रकार है-
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प्रश्न 15.18.
निम्नलिखित बहुलक संरचनाओं के एकलक की पहचान कीजिए-
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उत्तर:
उपर्युक्त बहुलकों में प्रयुक्त एकलक निम्नलिखित हैं-
(i) डेकेन – 1, 10 – डाइओइक अम्ल (HOOC(CH2)8 COOH) और हैक्सामेथिलीन डाइऐमीन H2N(CH2)6NH2

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प्रश्न 15.19.
एथिलीन ग्लाइकॉल और टेरेपथैलिक अम्ल से डेक्रॉन किस प्रकार प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:
एथिलीन ग्लाइकॉल तथा टेरेपथैलिक अम्ल की क्रिया से टेरिलीन अथवा डेक्रॉन बनाने का समीकरण निम्न है। यह संघनन बहुलकन का उदाहरण है क्योंकि इसमें जल का अणु निकलता है-
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प्रश्न 15.20
जैवनिम्ननीय बहुलक क्या है? एक जैवनिम्ननीय ऐलिफैटिक पॉलिएस्टर का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बहुत से बहुलक पर्यावरण निम्नीकरण प्रक्रियाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं तथा ये लम्बे समय तक अनिम्नीकृत रूप में ही पड़े रहते हैं। ये बहुलक ठोस अपशिष्ट द्रव्य के रूप में एकत्रित हो जाते हैं जिनसे पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं इसी कारण जैव निम्ननीय बहुलकों का विकास हुआ।

जैवनिम्ननीय बहुलक वे बहुलक होते हैं जो एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं द्वारा विघटित हो जाते हैं। ये एन्जाइम, जीवाणुओं (Micro organisms) द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं। जैवनिम्ननीय बहुलकों में, जैव बहुलकों के समान क्रियात्मक समूह उपस्थित होते हैं। जैवनिम्ननीय बहुलकों से पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न नहीं होतीं। जैवनिम्ननीय बहुलकों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(1) पॉलि β-हाइड्रॉक्सीब्यूटिरेट-को-β-हाइड्रॉक्सी वैलेरेट (PHB V)-यह एक ऐलिफैटिक पॉलिएस्टर है। यह 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनॉइक अम्ल तथा 3-हाइड्रॉक्सीपेन्टेनॉइक अम्ल के सहबहुलकीकरण से बनता है।
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PHB V का उपयोग विशिष्ट पैकेजिंग, अस्थियों में प्रयुक्त युक्तियों (Devices) तथा औषधों के नियंत्रित मोचन (release) में होता है। पर्यावरण में PHBV का जीवाण्विक निम्नीकरण (Bacterial degradation) हो जाता है।

(2) नाइलॉन-2-नाइलॉन-6-यह ग्लाइसिन (NH2-CH2-COOH) तथा ऐमीनो कैप्रोइक अम्ल (NH2(CH2)5COOH) का एकान्तर पॉलिऐमाइड है। यह सहबहुलकीकरण का एक उदाहरण है जिसको निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-
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HBSE 12th Class Chemistry बहुलक Intext Questions

प्रश्न 15.1.
बहुलक क्या होते हैं?
उत्तर:
बहुलक उच्च आण्विक द्रव्यमान वाले पदार्थ होते हैं जिनमें बहुत अधिक संख्या में पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाइयाँ पाई जाती हैं। जोकि कुछ सरल तथा क्रियाशील अणुओं से प्राप्त होती हैं जिन्हें एकलक कहते हैं। ये इकाइयाँ सहसंयोजक बंधों द्वारा आपस में जुड़ी होती हैं। बहुलकों को बृहदाणु भी कहते हैं। उदाहरणपॉलिथीन तथा बैकेलाइट, रबर तथा नाइलॉन-6,6.

प्रश्न 15.2.
निम्नलिखित बहुलकों को बनाने वाले एकलकों के नाम लिखिए-
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उत्तर:
उपर्युक्त बहुलकों को बनाने वाले एकलकों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • हैक्सामेथिलीनडाइऐमीन तथा ऐडिपिक अम्ल
  • कैप्रोलैक्टम
  • टेट्राफ्लुओरोएथीन।

प्रश्न 15.3
निम्न को योगज (योगात्मक) (Addition) और संघनन बहुलकों में वर्गीकृत कीजिए-टेरिलीन, बैकेलाइट, पॉलिथीन, टेफ्लॉन।
उत्तर:

  1. योगज बहुलक-पॉलिथीन, टैफ्लॉन।
  2. संघनन बहुलक-टेरिलीन, बैकेलाइट।

प्रश्न 15.4.
ब्यूना-N और ब्यूना-S के मध्य अंतर समझाइए।
उत्तर:
ब्यूना-N, 1,3-ब्यूटाडाईन (CH2 = CH – CH = CH2) तथा ऐक्रिलो नाइट्राइल HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 15 बहुलक 17 का सहबहुलक है जबकि ब्यूना-S, 1,3-ब्यूटाडाईन तथा स्टाइरीन HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 15 बहुलक 18का सहबहुलक है।

प्रश्न 15.5.
निम्न बहुलकों को उनके अंतराआण्विक बलों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
नाइलॉन-6,6, ब्यूना-S, पॉलिथीन
उत्तर:
उपरोक्त बहुलकों में अंतराआण्विक बलों का बढ़ता क्रम निम्न प्रकार होता है-
ब्यूना-S < पॉलिथीन < नाइलॉन-6,6

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. जल की परासरणी गति के कारण पादप कोशिका भित्ति पर उत्पन्न दाब कहलाता है –
(A) परासरणी दाब
(B) भित्ति दाब
(C) स्फीति दाब
(D) परासरण विभव
उत्तर:
(C) स्फीति दाब

2. जब कोशिका पूर्णतया आशून हो तब निम्न में से कौन शून्य होगा ?
(A) आशून दाब
(B) भित्ति दाब
(C) चूषण दाब
(D) परासरण दाब
उत्तर:
(C) चूषण दाब

3. जल अवशोषण की क्रिया सबसे अधिक होती है-
(A) मूलरोमों द्वारा
(B) पत्तियों द्वारा
(C) परिपक्व जड़ द्वारा
(D) मूल गोप द्वारा
उत्तर:
(A) मूलरोमों द्वारा

4. पौधे मृदा से किस प्रकार के जल को अवशोषित करते हैं ?
(A) गुरुत्वीय जल
(B) रसायनिकबद्ध जल
(C) केशिकीय जल
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) केशिकीय जल

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

5. डिक्सन तथा जॉली का रसारोहण सिद्धान्त आधारित है-
(A) जल का संसंजन बल
(B) जल स्तम्भ की निरन्तरता
(C) वाष्पोत्सर्जन अपकर्ष
(D) ये सभी
उत्तर:
(A) जल का संसंजन बल

6. पोटोमीटर का प्रयोग मापने में किया जाता है-
(A) श्वसन
(B) हवा का वेग
(C) प्रकाश संश्लेषण
(D) वाष्पोत्सर्जन
उत्तर:
(D) वाष्पोत्सर्जन

7. शुद्ध जल का विभव तथा परासरण विभव होता है –
(A) 0 तथा 0
(C) 100 तथा 100
(B) 100 तथा 0
(D) 0 तथा 100
उत्तर:
(A) 0 तथा 0

8. जिस विलयन में कोशिका स्फीति होती है, वह है –
(A) अल्पपरासारी
(B) समपरासारी
(C) अतिपरासारी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अल्पपरासारी

9. रसारोहण का सिद्धान्त दिया था –
(A) मैक क्लंग ने
(B) जे. सी. बोस ने
(C) फ्लेमिंग ने
(D) लीडर वर्ग ने
उत्तर:
(B) जे. सी. बोस ने

10. वातरन्त्रों का कार्य है –
(A) बिन्दु स्राव
(B) वाष्पोत्सर्जन
(C) रक्त स्राव
(D) गैसों का विनिमय
उत्तर:
(D) गैसों का विनिमय

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

11. एक विलयन का जल विभव निरूपित किया जाता है –
(A) 4’r से
(B) 4°W से
(C) से
(D) App से
उत्तर:
(B) 4°W से

12. K+ आयन परिकल्पना किसने प्रस्तुत की ?
(A) जे. सी. बोस ने
(B) ए. फ्लेमिंग ने
(C) लैविट ने
(D) मुंच ने
उत्तर:
(C) लैविट ने

13. मूलदाय सिद्धान्त प्रस्तुत किया-
(A) मुंच ने
(B) डिक्सन तथा जॉली ने
(C) लैविट ने
(D) प्रीस्टले ने
उत्तर:
(D) प्रीस्टले ने

14. किसका जल विभव उच्चतम होगा ?
(A) 2% ग्लूकोज
(B) शुद्ध जल
(C) 10% ग्लूकोज
(D) 10% NaCl
उत्तर:
(B) शुद्ध जल

15. जल प्रवेश होने से कोशाओं के फूलने का कारण है-
(A) DPD
(B) स्फीति दाब
(C) अन्तःशोषण
(D) OP
उत्तर:
(B) स्फीति दाब

16. वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जल पादप कोशिकाओं में प्रवेश करता है-
(A) विसरण
(B) परासरण
(C) अन्तःचूषण
(D) परासरण और अन्तःचूषण
उत्तर:
(C) अन्तःचूषण

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

17. वेलामेन एवं स्पंजी ऊतक पाये जाते हैं-
(A) श्वसनमूल में
(B) परजीवी मूल में
(C) कन्दमूल में
(D) उपरिरोही मूल में
उत्तर:
(D) उपरिरोही मूल में

18. जब कोई जीवद्रव्य कुंचित कोशिका अल्प परासारी विलयन में रखी जाती है तो निम्न में से किस बल के कारण जल कोशिका के अन्दर प्रवेश
करता है-
(A) DPD
(B) OP
(C) WP
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) OP

19. परासरण में गति होती है-
(A) केवल विलेय की
(B) केवल विलायक की
(C) दोनों (अ) तथा (ब)
(D) न विलेय न विलायक की
उत्तर:
(B) केवल विलायक की

20. स्टोमेटा कह सकते हैं-
(A) स्टोमेट्स को
(B) लेन्टिसेल को
(C) हाइडेथोड को
(D) वार्म को
उत्तर:
(A) स्टोमेट्स को

21. भूमि में पौधों के लिए आवश्यक जल होता है-
(A) केशिका जल
(B) रासायनिक बन्धित जल
(C) गुरुत्वीय जल
(D) आर्द्रताग्राही जल
उत्तर:
(A) केशिका जल

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

22. निम्नलिखित में से कोशिका विभाजन का क्षेत्र है-
(A) मूलगोप
(B) विभज्योतक क्षेत्र
(C) मूलरोम प्रदेश
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विभज्योतक क्षेत्र

23. निम्न में से कौन-सा पदार्थ वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करता है-
(A) फिनाइल मरक्यूरिक एसीटेट
(B) ऐब्सीसिक अम्ल
(C) (A) तथा (B)
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B)

24. CAM पौधों के रन्ध्र –
(A) रात में खुलते हैं और दिन में बन्द हो जाते हैं
(B) कभी नहीं खुलते
(C) हमेशा खुले रहते हैं
(D) दिन में खुलते हैं तथा रात में बन्द हो जाते हैं।
उत्तर:
(A) रात में खुलते हैं और दिन में बन्द हो जाते हैं

25. यदि पुष्पों को काटकर तनु NaCl विलयन में डुबोया जाए तो-
(A) वाष्पोत्सर्जन कम होगा।
(B) अन्तः परासरण होगा।
(C) जीवाण्विक वृद्धि नहीं होगी।
(D) विलेय का पुष्प कोशिकाओं के अन्दर अवशोषण होगा।
उत्तर:
(B) अन्तः परासरण होगा।

26. एक कोशिका फूल जायेगी, यदि इसे रखा जाए-
(A) अल्प परासारी विलयन में
(B) अति परासारी विलयन में
(C) सम परासारी विलयन में
(D) इन सभी में।
उत्तर:
(A) अल्प परासारी विलयन में

27. पादपों में जल आपूर्ति होती है –
(A) परासरण के कारण
(B) अन्तःशोषण के कारण
(C) बिन्दुस्राव के कारण
(D) आसंजन बल के कारण
उत्तर:
(D) आसंजन बल के कारण

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

28. रसारोहण के लिए सर्वमान्य परिकल्पना है-
(A) केशिका परिकल्पना
(B) मूल दाबवाद
(C) स्पन्दनवाद
(D) वाष्पोत्सर्जनाकर्षण
उत्तर:
(D) वाष्पोत्सर्जनाकर्षण

29. पथ कोशिकाएँ पतली भित्तियों वाली कोशिकाएँ होती हैं जो-
(A) जड़ों की अन्तस्त्वचा में पायी जाती हैं और ये कार्टेक्स से परिरंभ में जल के परिवहन को सुगम बना देती है।
(B) पोषवाह तत्वों में होती हैं जो पदार्थों के प्रवेश बिन्दु का कार्य करते हैं जहाँ से वे पदार्थ अन्य पादप भागों तक पहुँचा दिए जाते हैं।
(C) बीजों के बीज चोलों में होती हैं ताकि बीजांकुरण के दौरान वृद्धिशील भ्रूण अक्ष उनमें से होकर बाहर आ सकें।
(D) वर्तिका के केन्द्रीय भाग में पायी जाती हैं जिसमें से होकर पराग नलिका अण्डाशय की ओर बढ़ती जाती है।
उत्तर:
(A) जड़ों की अन्तस्त्वचा में पायी जाती हैं और ये कार्टेक्स से परिरंभ में जल के परिवहन को सुगम बना देती है।

30. रसारोहण के दौरान वाहिकाओं / ट्रैकीडों में जल स्तम्भ का टूटना एवं प्रभाजन सामान्यतः किसके कारण नहीं होता-
(A) लिग्नीकृत मोटी भित्तियाँ
(B) संसंजन तथा आसंजन
(C) मंद गुरुत्वाकर्ष अभिकर्ष
(D) वाष्पोत्सर्जन अभिकर्ष
उत्तर:
(B) संसंजन तथा आसंजन

31. द्वार कोशिकाएँ (Guard cells) सहायक होती हैं-
(A) चारण से सुरक्षा प्रदान करने में
(B) वाष्पोत्सर्जन में
(C) बिन्दुस्रावण में
(D) संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने में
उत्तर:
(B) वाष्पोत्सर्जन में

32. वलयकरण प्रयोग (girdling experiment) में निम्नलिखित में से किसे हटा दिया जाता है ?
(A) केवल छाल को
(B) फ्लोएम सहित छाल को
(C) केवल फ्लोएम को
(D) सम्पूर्ण संवहन ऊतक को
उत्तर:
(B) फ्लोएम सहित छाल को

33. स्थलीय पादपों में द्वारा कोशिकाएँ निम्नलिखित में भिन्न होती हैं –
(A) माइटोकॉण्ड्रिया
(B) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका
(C) हरित लवक
(D) कोशिका पंजर
उत्तर:
(C) हरित लवक

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34. वाष्पोत्सर्जन निम्नलिखित में से किसकी अभिव्यक्ति है ?
(A) स्फीति दाब
(B) भित्तिदाब
(C) मूल दाब
(D) उपरोक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(A) स्फीति दाब

35. पूर्णतया स्फीति (fully turgid) कोशिका में होता है-
(A) TPO = 0
(B) WP = 0
(C) DPD = 0
(D) OP = 0
उत्तर:
(C) DPD = 0

36. खनिज तत्वों हेतु मुख्य सिंक (sink) है-
(A) जीर्ण पत्तियाँ
(B) पके फल
(C) पार्श्व विभज्योतक
(D) छाल
उत्तर:
(A) जीर्ण पत्तियाँ

37. रन्धों के खुलने एवं बन्द होने की क्रिया में K+ आयनों का आगम होता है तो निम्नलिखित का निर्गमन होता है-
(A) Na+
(B) K+
(C) Cl+
(D) H+
उत्तर:
(D) H+

38. वातरन्ध्र क्या करते हैं ?
(A) वाष्पोत्सर्जन
(B) गैसीय विनिमय
(C) खाद्य अभिगमन
(D) प्रकाश संश्लेषण।
उत्तर:
(B) गैसीय विनिमय

39. जल में रखी एक कोशिका का परासरणी फैलाव मुख्यतः किसके द्वारा नियन्त्रित होता है ?
(A) रसधानी
(B) लवक
(C) राइबोसोम
(D) सूत्रकणिका।
उत्तर:
(A) रसधानी

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(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शुद्ध जल का विभव कितना होता है ?
उत्तर:
शून्य बार (bars)

प्रश्न 2.
जल अणुओं का जाइलम वाहिकाओं की भित्ति के प्रति आकर्षण बल क्या कहलाता है ?
उत्तर:
आसंजन (adhesion)

प्रश्न 3.
मूल दाब को किस यन्त्र द्वारा नापा जाता है ?
उत्तर:
मैनोमीटर (manometer) द्वारा।

प्रश्न 4.
उस आयन का नाम बताइए जो रन्धों के खुलने एवं बन्द होने में भाग लेता है।
उत्तर:
पोटैशियम आयन (K+ ions )।

प्रश्न 5.
डोनन साम्यावस्था (Donnan’s equilibrium) के अनुसार यदि कोशिका में स्थिर आयन + ve हैं तो आने वाले आयन कौनसे होंगे ?
उत्तर:
-ve आयन अधिक संख्या में होंगे।

प्रश्न 6.
कार्बनिक भोज्य पदार्थ का स्थानान्तरण किस ऊतक द्वारा होता है ?
उत्तर:
फ्लोएम (phloem) द्वारा।

प्रश्न 7.
द्रव्य प्रवाह परिकल्पना किसने प्रस्तुत की ?
उत्तर:
मुंच (Munch) ने।

प्रश्न 8.
किन पौधों में रन्ध्र दिन में बन्द व रात में खुलते हैं ?
उत्तर:
माँसल पौधों में- जैसे-नागफनी (Opuntia)।

प्रश्न 9.
नमक के घोल में अंगूर क्यों सिकुड़ जाते हैं ?
उत्तर:
बहि परासरण (exosmosis) के कारण।

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प्रश्न 10.
रसारोहण का स्पन्दनवाद किसने प्रस्तुत किया था ?
उत्तर:
जे. सी. बोस (J. C. Bose) ने।

प्रश्न 11.
जल अणुओं के मध्य परस्पर आकर्षण को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
संसंजन बल (cohesion force)

प्रश्न 12.
जल अवशोषण के दो पथों के नाम लिखिए।
उत्तर:
एपोप्लास्ट पथ तथा सिमप्लास्ट पथ (apolast path and symplast path)

प्रश्न 13.
रन्धों के खुलते समय रक्षक कोशिकाओं का pH कितना होता है ?
उत्तर:
pH 7-8 होता है।

प्रश्न 14.
रसारोहण क्रिया किस ऊतक द्वारा होती है ?
उत्तर:
जाइलम (xylem) द्वारा।

प्रश्न 15.
माइकोराइजा क्या है ?
उत्तर:
उच्च पादप की जड़ों तथा कवक का सहजीवी सम्बन्ध (Symbiotic association ) ।

प्रश्न 16.
जल रन्ध्र कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
शाकीय पौधों जैसे- टमाटर, घास आदि की पत्तियों के किनारों

प्रश्न 17.
कोशिका को आसुत जल में रखने पर क्या होगा ?
उत्तर:
यह जल अवशोषण करके फट जायेगी।

प्रश्न 18.
कौन-सा जल पौधों के लिए सर्वाधिक उपयोगी होता है ?
उत्तर:
केशिका जल (capillary water)

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प्रश्न 19.
मूलदाब उत्पन्न होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता क्यों होती
उत्तर:
मूल दाब जल के सक्रिय अवशोषण से उत्पन्न होता है। अतः इसके लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 20.
बिन्दु श्रावण किससे होता है ?
उत्तर:
जलरन्ध्रों (hydrathodas) से ।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न -I ( Short answer type questions-I)

प्रश्न 1.
पौधों में जल एवं खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण किस ऊतक द्वारा होता है ? पदार्थों का दो दिशीय प्रवाह किस ऊतक में होता है ?
उत्तर:
जाइलम द्वारा जल एवं खनिज लवणों का जड़ों से ऊपर पत्तियों की ओर स्थानान्तरण होता है। पत्तियों में निर्मित खाद्य पदार्थ फ्लोएम द्वारा पहले संचयी क्षेत्रों में तथा फिर यहाँ से धीरे-धीरे उपभोग क्षेत्रों की ओर स्थानान्तरण होता है। पदार्थों का द्विदिशीय प्रवाह फ्लोयम द्वारा होता है।

प्रश्न 2.
जल विभव क्या है ?
उत्तर:
जल विभव (Water Potential ) – शुद्ध जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा तथा किसी अन्य तन्त्र (जैसे- विलयन में जल या पादप कोशिका या ऊतक में जल) में जल के अणुओं की मुक्त ऊर्जा में अन्तर को जल विभव ( water potential ) कहते हैं। इसे प्रीक अक्षर साई ( ) से प्रदर्शित करते हैं। जल विभव को दाब के मात्रकों में भी व्यक्त किया जाता है।
1 bar = 14.5lbf / in2 = 750mm Hg = 0.987 atm

प्रश्न 3.
अन्तःशोषण को कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
अन्तःशोषण को निम्न कारक प्रभावित करते हैं-
1. तापमान के साथ अन्तःशोषण बढ़ जाता है।
2. pH की अधिकता अन्तःशोषण को प्रभावित करती है।
3. विलेय की सान्द्रता अधिक होने पर अन्तःशोषण दर कम हो जाती है।

प्रश्न 4.
प्रतिवाष्पोत्सर्जक क्या हैं ? चार प्रतिवाष्पोत्सर्जकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐसे पदार्थ जो वाष्पोत्सर्जन को कम करते हैं, प्रतिवाष्पोत्सर्जक कहलाते हैं।
(i) CO2
(ii) ऐब्सीसिक अम्ल
(iii) फिनाइल मर्क्यूरिक एसीटेट
(iv) ऑक्सीएथीन ।

प्रश्न 5.
पारगम्यता एवं जीवद्रव्य कुंचन में भेद कीजिए।
उत्तर:
पारगम्यता एवं जीवद्रव्य कुंचन (Permeability and Plasmolysis) – कोशिका कला का वह गुण जिसके द्वारा वह अपने से होकर गुजरने वाले अणुओं का नियन्त्रण रखती है, पारगम्यता ( permeabilily ) कहलाती है। जब रिक्तिका में से रिक्तिका रस कोशिका के बाहर निकल जाता है तथा जीवद्रव्य सिकुड़ जाता है तो इसे जीवद्रव्य कुंचन (plamolysis) कहते हैं ।

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प्रश्न 6.
परासरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
परासरण (Osmosis) परासरण वह क्रिया है जिसमें अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक् किये गये विभिन्न सान्द्रता वाले घोलों में विलायक के अणुओं का विसरण कम सान्द्रता वाले घोल से अधिक सान्द्रता वाले घोल की ओर होता है।

प्रश्न 7.
भित्ति दाब से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जल के प्रासरण के कारण कोशिका की अन्तर्वस्तुएँ कोशिका भित्ति पर दाब डालती हैं जिसे स्फीति दाब कहते हैं। स्फीति दाब के समान कोशिका भित्ति भी एक दाब डालती है जो कि स्फीति दाब के बराबर एवं विपरीत होता है। इसे भित्ति दाव (wall pressure) कहते हैं।

प्रश्न 8.
बिन्दुस्राव के लिए उत्तरदायी दो परिस्थितियाँ लिखिए।
उत्तर:
(i) मूल दाब (root pressure)
(ii) अधिक जल अवशोषण किन्तु कम वाष्पोत्सर्जन ।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न- II ( Short Answer Type Questions-II)

प्रश्न 1.
पारगम्यता क्या है ? पारगम्यता के आधार पर झिल्लियाँ कितने प्रकार की होती हैं। पारगम्यता को प्रभावित करने वाले कारक लिखिए।
उत्तर:
पारगम्यता (Permeability) झिल्लियों का वह गुण जिसके कारण झिल्ली से होकर कोई विलेय अथवा विलायक गुजरता है, झिल्ली की पारगम्यता (permeability) कहलाता है। इसके आधार पर झिल्लियाँ चार प्रकार की होती हैं –
(i) अपारगम्य ( Impermeable ) – ये झिल्लियाँ विलेय या विलायक किसी को भी आर-पार नहीं होने देती, जैसे- कार्क कोशिकाओं की सुबेरिनयुक्त कोशाभित्ति ।
(ii) अर्द्ध- पारगम्य (Semi-permeable ) – यह केवल विलायक के अणुओं को अपने से पार जाने देती है; जैसे- रिक्तिका झिल्ली ।
(iii) वरणात्मक पारगम्य (Selectively permeable ) – यह आवश्यकतानुसार कुछ विलेय अणुओं को आर-पार जाने देती है जैसे—कोशिका झिल्ली (cell membrane) |
(iv) पारगम्य (Permeable ) – यह विलेय तथा विलायक दोनों को आर-पार जाने देती है। जैसे—कोशिका भित्ति ।

पारगम्यता को प्रभावित करने वाले कारक
(i) ताप, pH में अन्तर दाब आदि।
(ii) O2 की कमी, CO2 की अधिकता।
(iii) जीर्णावस्था।

प्रश्न 2.
परासरण तथा अन्तःशोषण में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
परासरण तथा अन्तः शोषण में अन्तर

परासरण ( osmosis):अन्तःशोषण (Imbibition):
(i) यह द्रव पदार्थों द्वारा जल का अवशोषण है।(i) यह ठोस पदार्थों द्वारा जल का अवशोषण है।
(ii) यह क्रिया केवल जीवित कोशिका में होती है।(ii) जीवित कोशिका में होना आवश्यक नहीं है।
(iii) इसमें अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली (semi-permeable membrane) की आवश्यकता होती है।(iii) इसमें अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली (semi-permeable membrane) की आवश्यकता नहीं होती है।
(iv) विलयन की सान्द्रता के अनुसार ही पररासरण की दिशा निर्धारित होती है।(iv) इसमें सान्द्रता का महत्व नहीं है।

प्रश्न 3.
परासरण का पौधों में महत्व लिखिए।
उत्तर:
परासरण का महत्व (Importance of Osmosis) – पौधों में परासरण के निम्नलिखित महत्व हैं-
(i) इसके फलस्वरूप मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण होता है।
(ii) एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जल का स्थानान्तरण होता है।
(iii) कोशिका की स्फीति (turgidity) बनी रहती है।
(iv) रन्ध्रों के खुलने एवं बन्द होने की क्रिया होती है।
(v) वाष्पोत्सर्जन में सहायक होता है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित के कारण लिखिए-
(क) बाढ़ के पानी में अधिक दिनों तक डूबे रहने के कारण पौधे नष्ट हो जाते हैं।
(ख) समुद्री जन्तु या पौधे को अलवणीय जल में रखने पर वह जीवित नहीं रहता, जबकि उचित मात्रा में जल यहाँ भी उपलब्ध है।
(ग) रन्ध्रीय एवं उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन की तुलना के लिए केवल पृष्ठाधारी पत्ती ही क्यों प्रयोग की जाती है ?
(घ) पौधघर से पौधों का बगीचे में स्थानान्तरण सायंकाल में करना क्यों लाभदायक है ?
उत्तर:
(क) बाढ़ के पानी में डूबे रहने से पौधों की अनेक क्रियाएँ प्रभावित होती हैं। इनमें प्रकाश संश्लेषण, वाष्पोत्सर्जन एवं श्वसन क्रियाएँ बन्द हो जाती हैं। जड़ों में श्वसन न हो पाने के कारण सक्रिय अवशोषण बन्द हो जाता है। रन्नों के बन्द हो जाने से गैसों का विनिमय (exchange of gases) नहीं हो पाता । अन्ततः पौधे की क्रियाएँ शिथिल होकर वह मर जाता।
(ख) समुद्र जलीय पौधे को अलवणीय जल में रखने पर इनमें अन्त: परासरण (endosmosis) होने लगता है जिससे इनकी कोशिकाएँ फटने लगती हैं।
(ग) पृष्ठाधारी पत्तियों (dorsiventral leaves) के एक ओर अधिक तथा दूसरी ओर कम प्रकाश पड़ता है। इसकी पृष्ठ सतह पर मोटी उपचर्म (cuticle) होती है और रन्ध्रों (stomata) की संख्या भी कम होती है। अतः इन पत्तियों की पृष्ठ सतह से वाष्पोत्सर्जन कम तथा अधर सतह से अधिक होता है।
(घ) सायं के समय पत्तियों में निर्मित खाद्य पदार्थ विलेय अवस्था में आकर निचले भागों में अधिक पहुँचता है। इसी कारण शीर्षो पर वृद्धि की दर भी सायंकाल में बढ़ जाती है। अतः पौधे को जमने में अधिक समय नहीं लगता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए – (क) परासरण दाब, (ख) प्लानि या मुर्झाना।
उत्तर:
(क) परासरण दाब (Osmotic Pressure):
परासरण दाब दो भिन्न-भिन्न सान्द्रता वाले विलयनों के बीच रखी गई अर्द्धपारगम्य झिल्ली के दोनों ओर वाले उच्चतम विसरण दाब ( diffusion pressure) को कहते हैं। परासरण दाब के कारण ही अर्द्धपारगम्य झिल्ली के दोनों ओर परासरण की क्रिया होती है। परासरण दाब को वायुमण्डलीय दाब ( atm) में मापा जाता है। यह विलेय अणुओं के अनुक्रमानुपाती होता है। विलेय की मात्रा बढ़ाने पर यह बढ़ता है। दूसरे शब्दों में, “किसी विलयन का परासरण दाब (OP) वह दाब है जो उस विलयन को अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक से पृथक् करने पर अधिक सान्द्रता वाले विलयन में विलायक के परासरण (Osmosis) के कारण उत्पन्न होता है।”

(ख) ग्लानि या मुर्झाना (wilting):
अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन या जड़ों द्वारा कम जल अवशोषण के कारण पौधे में जल की कमी हो जाती है जिससे कोशिकाओं का स्फीति दाब (turgor pressure) कम हो जाता है। इसके कारण पत्तियाँ नीचे की ओर लटक जाती हैं। ऐसी स्थिति को ग्लानि या मुर्झाना (wilting) कहते हैं। जब पत्तियाँ दोपहर के समय मुर्झाती हैं तथा सायंकाल फिर सीधी हो जाती हैं तो इसे अस्थाई म्लानि कहते हैं। यदि मृदा में जल की कमी हो जाय तो यह स्थाई म्लानि में बदल सकती है। इस स्थिति में पौधा मर जाता है।

प्रश्न 6.
रन्ध्र तथा जलरन्ध्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रन्ध्र तथा जलरन्ध्र में अन्तर –

रन्य (Stomata)जलरन्य (Hydrathodes)
रन्ध्र (stomata) पौधों के वायवीय अंगों (पत्ती, कोमल तने) आदि पर मिलते हैं।जलरन्ध्र (hydrathodes) केवल कुछ पत्तियों पर मिलते हैं।
ये पत्ती, दल आदि की ऊपरी तथा निचली बाह्य त्वचा (upper or lower epidermis) पर मिलते हैं।ये केवल पत्ती के किनारे (margin) पर मिलते हैं।
इनमें रक्षक कोशिकाएँ (guard cells) पायी जाती हैं।इनमें नहीं मिलती हैं।
रक्षक कोशिकाओं क्लोरोप्लास्ट मिलता है।जलरन्ध्र (hydrathodes) को घेरने वाली कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट नहीं मिलता है।
रन्ध्र स्फीति तथा श्लथ (flaccid) दशा में खुलते तथा बन्द होते हैं।जलरन्ध्र्र हमेशा खुले रहते हैं।
केवल, शुद्ध जल बाहर वाष्प (vapour) बनकर निकलता है।जल द्रव के रूप में निकलता है तथा उसमें शर्करा, खनिज आदि मिले होते हैं।
रन्ध्र के नीचे रन्ध्रीय गुहा (stomatal cavity) पायी जाती है।जलरन्द्र के नीचे की ओर एपीथेम कोशिकाएँ मिलती हैं।
रन्ध्र का शिरा से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।यह शिरा के अन्त में बनते हैं।

प्रश्न 7.
वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दुख्तावण में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दुस्रावण में अन्तर

वाघ्मोत्सर्जन (Transpiration):बिन्दुसावण (Guttation):
यह क्रिया दिन में होती है।यह क्रिया रात में होती है।
पानी वाष्प बनकर उड़ता है। यह क्रिया रन्ध्रों (stomata) द्वारा होती है।पानी द्रव के रूप में निकलता है।
वाष्पोत्सर्जित (transpirated) जल शुद्ध होता है।यह जलरन्ड्रों (hydrathodes) द्वारा होती है जो शिराओं के अन्त में स्थित होते हैं।
यह क्रिया रन्ध्रों (stomata) से नियन्त्रित हैं।बिन्दु श्रावित जल अशुद्ध होता है परन्तु इसमें खनिज तथा शर्करा आदि पाए जाते हैं।
यदि सतह का तापमान घटा दिया जाय तो वाष्पोत्सर्जन (transpiration) की क्रिया धीमी पड़ जाती है।यह क्रिया अनियन्त्रित है।

प्रश्न 8.
निक्किय व सक्रिय खनिज अवशोषण में अन्तर लिखिए। उत्तरि्क्रिय व सक्रिय खनिज अवशोषण में अन्तर
उत्तर:

निक्क्रिय खनिज अवशोषण (Passive Mineral Absorption)सक्रिय खनिज अवशोषण (Active Mineral Absorption)
इसमें ऊर्जा की आवशयकता नहीं होती है।इसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
यह कोशिका कला से अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर होता है ।यह कोशिका कला द्वारा सान्द्रण प्रवणता (concentration gradient) के विरुद्ध कम रासायनिक विभव से अधिक की ओर होता है।
यह कोशिका भित्ति व रिक्तिका (vacuole) के मध्य उपस्थित कोशिकाद्रव्य से होता है।यह कोशिका कला तथा रिक्तिका कला (tonoplast) द्वारा होता है।
इसे सामान्यतः पम्प नहीं कहते हैं।इसे सामान्यतः पम्प कहते हैं।
यह क्रिया अचानक होती है तथा सन्तलन होने तक चलती है।इस क्रिया में किसी प्रकार का सन्तुलन स्थापित नहीं होता है।

प्रश्न 9.
निष्क्रिय अवशोषण तथा सक्रिय जल अवशोषण में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
निक्क्रिय व सक्रिय जल अवशोषण में अन्तर

निक्किय जल अवशोषण (Passive water Absorption):सक्रिय जल अवशोवण (Active Water Absorption):
क्रियात्मक विभव पौधे के वायवीय भागों में उत्पन्न होता है।इसके लिए क्रियात्मक विभव मूल की कोशिकाओं में उत्पन्न होता है।
तेजी से वाष्पोत्सर्जन (transpiration) के कारण जाइलम वाहिनियों में वाष्पोत्सर्जन खिंबचाव उत्पन्न होता है।जड़ें धीमी गति से जल को भमि से परासरित करती रहती हैं और दारु वाहिनियों में भेजती रहती हैं।
वह खिंचाव मूलीय जाइलम (xylem) में पहुँचा दिया जाता है।अतः मूलदाब (root pressure) उत्पन्न होता है।
जड़ें निक्रिय अवशोषण तल का कार्य करती हैं।यह क्रिया धीमी गति से वाष्पोत्सर्जन करते हुए पादप के जाइलम (xylem) पर पर्याप्त दाब बनाती है।
अवशोषण मूल के माध्यम से होता है।अवशोषण मूल के द्वारा होता है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए –
(क) बिन्दुस्राव
(ख) रसस्राव।
उत्तर:
बिन्दुस्राव (Guttation ) – पत्तियों के किनारों (Margins) जल की छोटी-छोटी बूंदों का स्रावण (Secretion) बिन्दुस्राव कहलाता है। छिद्र कोशिका से अरबी (Colocasia ), टमाटर, आलू, घास आदि शाकीय पौधों की पत्तियों में यह क्रिया प्रातः काल के समय स्पष्ट देखी जा सकती है। इनमें पत्तियों के किनारों पर सूक्ष्म छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें जलरन्ध्र (hydrathodes) कहते एपीथेम वाहिका हैं। इन जलरन्ध्रों में एपीथेम (epithem) कोशिकाएँ पायी जाती हैं जो जाइलम से जल ग्रहण करके जलरन्ध्रों से होकर इसे बूंदों के रूप में बाहर निकालती हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन - 1
रसस्राव (Latex secretion) – पौधे के किसी क्षतिग्रस्त या कटे हुए भाग से जल सदृश रस या लैटेक्स (latex) का बाहर निकलना रसस्राव कहलाता है। पाम (palm) के पौधे में यह फ्लोएम से होता है। कनेर (Nerium), आम आदि में यह स्राव लैटेक्स (latex) के रूप में होता है।

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(E) निबन्धात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions )

प्रश्न 1.
परासरण किसे कहते हैं ? किसी एक प्रयोग द्वारा परासरण क्रिया प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
परासरण (Osmosis):
faeft अर्द्धपारगम्य (semi- permeable) कला से होकर एक विलयन से दूसरे विलयन की ओर जल के अणुओं के विसरण को परासरण ( osmosis) कहते हैं। जल के अणुओं का यह विसरण कम सान्द्रता वाले घोल से अधिक सान्द्रता वाले घोल की ओर होता है। परासरण की क्रिया दो प्रकार की होती है –
1. बहि: परासरण (Exosmosis) – कोशिका को किसी सान्द्र विलयन ( अतिपरासारी) में रखने पर कोशिका के अन्दर से जल बाह्य विलयन में जाने लगता है, इसे बहि: परासरण (exomosis) कहते हैं। जैसे- अंगूर को शर्करा या नमक के गाढ़े घोल में रखने पर यह सिकुड़ जाता है।

2. अन्तःपरासरण (Endosmosis) – कोशिका को आसुत या शुद्ध जल (अल्पपरासारी) में रखने पर जल के अणु कोशिका में प्रवेश करते हैं, इसे अन्त:परासरण (endosmosis) कहते हैं। जैसे- किशमिश (dry grapes) को जल में रखने पर ये जल अवशोषित कर फूल जाते हैं।

परासरण का प्रदर्शन (Demonstration of Osmosis)
अण्डे का ऑस्मोमीटर (Egg Osmometer ) – मुर्गी का साबुत अण्डा (egg) लेकर इसमें छोटा-सा एक गोल छेद करके इसका अन्तःपदार्थ निकाल देते हैं। अब अण्डे के खोल को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) में कुछ देर रखते हैं। जिससे इसका कैल्शियम कार्बोनेट का बना कड़ा घोल घुल जाता है और जीवद्रव्य कला बचती है। जीवद्रव्य कला को कांच की एक नली को कला में उपस्थित छिद्र में डालकर बाँध देते हैं। अब इस कला में चीनी का गाढ़ा घोल भरकर इसे जल से भरे बीकर में चित्रानुसार रखकर स्टैण्ड से कस देते हैं। कुछ समय बाद हम देखते हैं कि काँच की नली में जल का तल काफी ऊपर चढ़ गया है। इससे स्पष्ट है कि जीवद्रव्य कला से होकर जल के अणु अन्तःपरासरण (endosmosis) द्वारा अण्डे की झिल्ली के अन्दर घोल में प्रवेश करते हैं।
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए –
(क) आयन विनिमय
(ख) डोनन साम्यावस्था
(ग) वाहक संकल्पना
(घ) बेनेट क्लार्क का प्रोटीन लेसीथिन सिद्धान्त
(ङ) खनिज स्थानान्तरण।
उत्तर:
1. आयन विनिमय (Ion Exchange) – मृदा में खनिजों का अवशोषण आयनों (ions) के रूप में होता है। ये आयन मूलरोम (root hairs) की सतह पर अधिशोषित होते हैं तथा उनका विनिमय अपने ही प्रकार के आयनों से हो जाता है। यह क्रिया निम्न दो प्रकार से होती है-
(a) सम्पर्क आयन विनिमय (Contact Ion Exchange) – मृदा के कणों पर उपस्थित आयन जड़ की सतह पर उपस्थित आयनों के सम्पर्क में आकर बदल जाते हैं।
(b) काबोंनिक अम्ल विनिमय (Carbonic Acid Exchange)- जड़ों द्वारा श्वसन प्रक्रिया में छोड़ी गयी CO2मृदा जल से क्रिया करके कार्बोनिक अम्ल H2CO3 बनाती हैं। कारोनिक अम्ल H+तथा HCO3आयनों में टूट जाता है। H+ मृदा में उपस्थित दूसरे विद्युत धनात्मक तत्वों से मिलकर पौधों द्वारा अवशोषित होते
2. डोनन-साम्यावस्था (Donnan’s Equilibrium)-ऐसे आयन जो कोशिका कला से बाहर नहीं आ सकते, स्थिर आयन (fixed ions) कहलाते हैं। कोशिका कला धनात्मक +ve तथा ऋणात्मक -ve दोनों प्रकार के आयनों को भीतर आने दे सकती है। सामान्यतः कोशिका में कला से होकर जितने आयन प्रवेश करते हैं उतने ही
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दूसरे प्रकार के आयन बाहर निकल आते हैं। इस प्रकार आयनों की स्थिति सन्तुलित बनी रहती है, जो – ve आयन कोशिका से बाहर नहीं जा सकते उनके लिए +ve आयन बाहर से आते हैं। इस प्रकार अन्दर प्रवेश करने वाले + ve आयन की संख्या – ve आयनों से अधिक होती है। यदि स्थिर आयन + ve हैं तो अन्दर प्रवेश करने वाले – ve आयन्स की संख्या अधिक होगी। इसे डोनन साम्यावस्था कहते हैं।
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3. वाहक संकल्पना (Carrier Concept) कोशिका कला में मुक्त आयनों के विनिमय के लिए वाहक मिलते हैं, जो आयनों से मिलकर वाहक आयन समिश्र (Carrier Ion Complex) बनाते हैं। ये वाहक (Carriers) उन आयनों को कोशाकला से पार ले जाते हैं। ये वाहक (Carriers) सक्रिय अवशोषण (Active absorption) करते हैं। आयन्स का अवशोषण केवल संतृप्त दशा तक होता है।

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(घ) बैनेट-क्लार्क का प्रोटीन लेसीथिन सिद्धान्त (Protein Lecithin Theory of Bennet Clark) – बेनेट तथा क्लार्क (1956) ने कोशिका कला में प्रोटीन तथा फॉस्फोलिपिड की उपस्थिति को बताया। जहाँ प्रोटीन लैसीथिन (फॉस्फोटाइड) से बन्धित होते हैं। इनमें उपस्थित फाँस्फेट समूह + ve आयनो का बाँधता है जो कला के अन्दर की ओर लैसीथिनेज़ (lacithinase) विकर की क्रिया से मुक्त होते हैं। लेसीथिन का संश्लेषण पुनः कोलीन एसीटाइलेज (cholineacetylase) विकर की उपस्थिति में फॉस्फेटिडिक अम्ल (phosphatidic acid) एवं कोलीन (choline) से होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन - 18

खनिज आयनों का स्थानान्तरण (Translocation of Mineral Ions) – जब आयन सक्रिय या निक्क्रिय उद्र्रहण से या फिर दोनों की सम्मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से जाइलम में पहुँच जाते हैं, तब उनका परिवहन पादप तने एवं सभी भागों तक वाष्पोत्सर्जन प्रवाह के माध्यम से होता है। खनिज तत्वों के लिए मुख्य कुंड पौधे की वृद्धि का क्षेत्र होता है जैसे कि शिखाग एवं पार्श्व विभज्योतक (meristems), तरुण पत्तियाँ, विकासशील फूल, फल एवं बीज तथा भंडारण अंग। खनिज आयनों का विसर्जन महीन शिराओं के अन्तिम छोर पर कोशिकाओं के द्वारा विसरण एवं सक्रिय उद्ग्रण से होता है। खनिज आयनों को जल्दी ही पुनः संघटित विशेष रूप से पुराने जरावस्था (senescing) वाले भाग से किया जाता है। पुरानी तथा मरती हुई पत्तियाँ अपने भीतर के खनिजों को नई पत्तियों में निर्यातित (export) कर देती है।
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ठीक इसी प्रकार से पत्तियाँ पर्णपाती वृक्ष (deciduous tree) से झड़ने से पहले अपने खनिज तत्त्वों को अन्य भागों को दे देती हैं। जो पदार्थ प्रायः त्वरित संचारित या संघटित होते हैं, वे हैं फॉस्फोरस, सल्फर, नाइट्रोजन तथा पौटेशियम। कुछ तत्व जो कि संरचनात्मक कारक होते हैं, जैसे कि कैल्सियम इन्हें पुनः संघटित नहीं किया जाता है। जाइलम स्राव का विश्लेषण यह दर्शाता है कि कुछ नाइट्रोजन अकार्बनिक आयनों के रूप में ढोए (carried) जाते हैं। इसी तरह फॉस्फोरस एवं सल्फर भी कार्बनिक यौगिकों के रूप में पहुँचाए जाते हैं। इसके अलावा जाइलम एवं फ्लोएम के बीच भी पदार्थों का आदान-्रदान होता है। अतः हम स्पष्ट रूप से अन्तर नहीं कर पाते कि जाइलम केवल अकार्बनिक पोषकों का परिवहन करता है तथा फ्लोएम कार्बनिक पदार्थों का, जैसा कि पहले विश्वास किया जाता है।

प्रश्न 3.
विसरण दाब न्यूनता से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
पौधों की कोशिका में विसरण दाब न्यूनता, परासरण दाब, स्फीति दाब एवं भित्ति दाव में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
1. परासरण दाब (Osmotic Pressure or OP)-परासरण दाब (O P) वह दाब है जो किसी विलयन पर बाहर से अनुप्रयुक्त करने पर विलायक के उस परासरण को रोकती है जो उस विलयन (solution) को उसके विलायक (solvent) से अर्द्धपारगम्य कला द्वारा पृथक् करने पर विलयन की ओर होता है। दूसरे शब्दों में, किसी भी विलयन को उसके विलायक (जल) से अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक् करने पर विलयन में उत्पन्न होने वाले अधिकतम दाब को परासरण दाब (OP) कहते है। किसी विलयन का परासरण दाब (OP) विलायक में उपस्थित विलेय पदार्थ के अणुओं की संख्या के समानुपाती होती है। किसी कोशिका में परासरण दाब (OP) तथा स्फीति दाब (TP) दोनों परासरण क्रिया के कारण उत्पन्न होते हैं। कुछ पदार्थों में जल का परासरण दाब (OP) सदैव शून्य होता है। जल का प्रवाह सदैव कम परासरी सान्द्रता से अधिक परासरी सान्द्रता की ओर होता है। परासरण दाब मापने के लिए ओस्मोमीटर (osmometer) नामक यन्त्र का प्रयोग किया जाता है।
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2. आशून या स्पीति दाब (Turgor Pressure TP) – किसी भी कोशिका में कोशिकाद्रव्य तथा कोशिकांग कोशिकाकला (plasmalemma) द्वारा घिरे रहते हैं। कोशिका झिल्ली के बाहर कोशिकाभित्ति (cell wall) होती है जो सेल्युलोज की बनी होती है जब किसी पादप कोशिका को जल में रखा जाता है तो जल कोशिका की रिक्तिका में रस का परासरण दाब (OP) अधिक होने लगता है, क्योंकि बाहर से जल के अणु कोशिका में विसरित होने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप जीवद्रव्य कला या प्लाज्मालेमा कोशिकाभित्ति पर दबाव डालने लगती है जिसे आशून या स्पीति दाब्ब (TP) कहते हैं।

3. भित्ति दाब (Wall Pressure ; WP) – कोशिकाभित्ति मजबूत होती है जिसके फलस्वरूप स्फीति दाब के समान किन्तु विपरीत दिशा में जीवद्रव्य पर कोशिका भित्ति एक दाब उत्पन्न करती है अर्थात् स्फीति दाब (TP) का विरोध करती है, इसे भित्ति दाब (WP) कहते हैं। भित्ति दाब (WP) तथा स्फीति दाब (TP) के कारण ही कोशिकाएँ आशून (turgid) रहती हैं और आशून दाब (TP) के कम होने पर ही पत्तियाँ मुरझाती हैं।

विसरण दाब न्यूनता (Diffusion Pressure Deficit):
जीवित कोशिकाएँ प्रायः परासरण मापी (osmometer) के रूप में कार्य करती हैं। पादप कोशाभित्ति पूर्णत: पारगम्य (permeable) होती है। अतः ये शरीर क्रियात्मक दृष्टि से अधिक उपयोगी नहीं हैं, परन्तु यह कोशिका को एक निश्चित आकार प्रदान करती हैं। कोशाभित्ति के अन्दर की ओर अर्द्धपारगम्य कला (semipermeable membrane) होती है। पादप कोशिकाओं (plant cells) में एक बड़ी रसधानी (vacuole) होती है जिसमें कोशिका रस (cell Sap) भरा होता है। कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) को रसधानी से अलग करने वाली झिल्ली टोनोप्लास्ट (tonoplast) कहलाती है। यह भी प्लाज्माकला (plasma membrane) के समान होती है। कोशिका के परासरण (osmosis) के लिए आवश्यक दशाएँ होती हैं।
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जब कोशिका को जल में रखा जाता है तो इसके द्वारा जल अवशोषण (absorption) के कारण स्फीति दाब (TP) बढ़ता है और साथ ही भित्ति दाब (WP) भी बढ़ता जाता है। साम्यावस्था स्थापित होने पर स्फीति दाब (TP) परासरण दाब के बराबर होता है।
परासरण दाब = स्फीति दाब
OP = TP
OP – TP = 0
साम्यावस्था स्थापित होने से पूर्व परासरणी दाब (OP) एवं स्पीति दाब (TP) के कारण जल के अणु कोशिका में प्रवेश करते हैं। अतः जल का कोशिका के अन्दर प्रवेश करना अथवा न करना इन दोनों दाबों के अन्तर पर ही निर्भर करता है। अतः वह शक्ति जो कोशिका में जल (अथवा विलायक) के अणुओं के आने-जाने को नियत्रित करती है, उसे विसरण दाव्ब न्यूनता (Diffusion Pressure Deficit : DPD) कहते हैं। इसे कोशिका का चूष्ण दाब (Suction Pressure; SP) भी कहते हैं।
विसरण दाब न्यूनता = परासरण दाब – स्फीति दाब
DPD (SP) = OP – TP
चूँकि साम्यावस्था में OP = TP
इसलिए इस स्थिति में विसरण दाब न्यूनता
DPD = 0
श्लथ (Flaccid) कोशिका का स्फीति दाब (TP) शून्य होता है तथा ऐसी
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स्थिति में कोशिका रस का परासरण दाब (OP) विसरण दाब न्यूनता (DPD) के बराबर होता है।
यदि TP = 0 हो, तो
DPD = OP
जब कोशिका को अल्पपरासरी विलयन (hypotonic solution) में रखा जाता है तो स्फीति दाब (TP) धीरे-धीरे बढ़ने लगता है साथ ही परासरण दाब (OP) कम होने लगता है। स्फीति दाब के बढ़ने तथा परासरण दाब के कम होने से DPD भी कम होता रहता है। जब कोशिका पूर्ण रूप से स्सीति (turgid) होती है तब OP, TP के बराबर हो जाता है। उस समय DPD का मान शून्य होता है।

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प्रश्न 5.
मूलदाब किसे कहते हैं ? चित्र द्वारा मूल दाब का प्रदर्शन के लिए एक प्रयोग लिखिए।
उत्तर:
मूल दाब्ब सिद्धात (Root Pressure Theory) – सर्वप्रथम स्टीफन हेल्स (1727) ने मूल दाब (Root Pressure) शब्द का प्रयोग किया था। मूलरोम मृदा से जल अवशोषित करते हैं। वल्कुट कोशिकाएँ (cortical cells) मूलरोमों (root hairs) से जल प्रहण करके जाइलम वाहिनियों (xylem vessels) में अत्यधिक दबाव के साथ पहुँचाती हैं, इस दाब को मूलदाब (root pressure) कहते हैं।

मूल दाब का प्रदर्शन निम्न प्रयोग द्वारा किया जा सकता है –
मूलदाब का एक प्रयोग द्वारा प्रदर्शन (Demonstration of Root Pressure by an Experiment) – गमले में लगा एक छोटा पौधा लेकर इसे जल से भरी एक नाद में रख देते हैं। जल के अन्दर ही पौधे को मिट्टी से 7.8 cm ऊपर से तेज चाकू से काटकर ऊपरी भाग अलग कर देते हैं। तने के कटे हुए सिरे पर रबर की सहायता से काँच की एक नली लगा देते हैं। उपकरण को चित्रानुसार स्टैण्ड में कस देते हैं। काँच की नली के स्थान पर मैनोमीटर (manometer) भी लगाया जा सकता है।

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मैनोमीटर की U नली में पारा Hg भरा होता है। रबर की नली के अन्दर तथा मैनोमीटर के शेष भाग में जल भर लेते हैं। उपकरण को चित्रानुसार स्टैण्ड में कस देते हैं। मैनोमीटर के स्केल पर जल या पारे का तल प्रयोग प्रारम्भ करने से पहले तथा प्रयोग समाप्त होने के बाद पढ़ लेते हैं। मैनोमीटर की खड़ी भजा में पारे का तल में वृद्धि दाब को प्रदर्शित करता है। कटे हुए तने की जाइलम वाहिनियों से मूलदाब (root pressure) के कारण जल रबर की नली में उपस्थित जल में आता है, जिससे मैनोमीटर में पारे का तल ऊपर की ओर बढ़ जाता है।

2. जैव शक्तिवाद (Vital Force Theory) – रसारोहण की क्रियाविधि को समझाने के लिए भारतीय वनस्पति विज्ञानी सर जे. सी. बोस (Sir J. C. Bose) ने 1923 में जैविक शक्तिवाद प्रस्तुत किया। इसे बोस का स्पद्दन सिद्धान्त (Bose’s Pulsation Theory) भी कहते हैं। इन्होंने रसारोहण की क्रिया को स्वनिर्मित क्रिस्कोग्राफ उपकरण द्वारा प्रदर्शित किया। ड्वाक्टर बोस ने अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि तने की सबसे भीतरी कारेंक्स की कोशिकाओं में स्पन्दन गति (pulsation movement) होती है, जिसके कारण रसारोहण होता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।

3. भौतिक बल सिद्धांत (Physical Force Theory):
इस वाद के अनुसार रसारोहण की क्रिया निर्जीव कोशिकाओं में ही होती है, अनेक वैज्ञानिकों ने इसका समर्थन किया है। इसके अन्तर्गत महत्वपूर्ण सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं –
(i) कोशिका बल सिद्धातत (Capillary Force Theory) – वोहम (1809) के मतानुसार जाइलम की वाहिकाएँ केशिका नली की भांति कार्य करती हैं जिनमें जल केशिका बल (capillary force) के कारण ऊपर चढ़ता है, किन्तु इस मत को मान्यता प्राप्त नहीं हो सकी क्योंकि वाहिकाओं का व्यास इतना कम नहीं होता और न ही इस के अनुसार जल पौधों की इतनी ऊँचाई तक पहुँच सकता है।
(ii) अन्त:शोषणवाद (Imbibition Theory) – सेक्स (1878) के अनुसार जाइलम वाहिनियों में जल अन्तःशोषण के कारण चढ़ता है परन्तु यह मत भी मान्य नहीं है।
(iii) वाद्योत्सर्जन खिंचाव एवं डिक्सन का ससंजनवाद (Transpiration Pull and Dixon’s Theory of Cohesion)
इस मत के अनुसार पौधों में लगातार वाष्पोत्सर्जन (transpiration) के कारण जल ऊपर चढ़ता रहता है तथा खड़ी दिशा में पानी का स्तथ (water column) टूटता नहीं है। इस मत को डिक्सन तथा जौली (1894) ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया।
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इस सिद्धान्त को निम्न तीन भागों में समझा जा सकता है –
(i) वाप्योत्सर्जन कर्षण (Transpiration Pull) – पौधों में वाष्पोत्सर्जन (transpiration) की क्रिया द्वारा जल की कमी होने से पर्णमध्योत्तक कोशिकाओं (mesophyll cells) में भी जल की कमी हो जाती है। यह कमी जाइलम द्वारा जल की आपूर्ति से पूर्ण की जाती है। जाइलम में जल की कमी या विसरणदाब न्यूनता (DPD) से एक खिंचाव या तनाव उत्पन्न होता है जिसे वायोत्सर्जन कर्षण (transpiration pull) कहते हैं। यह कर्षण पत्ती के जाइलम से जड़ों के जाइलम तक उत्पन्न होता जाता है। यह कर्षण ॠणात्मक खिंचचाव कहलाता है, क्योंकि यह वायवीय भाग.से भूमिगत भाग की ओर उत्पन्न होता है तथा वाष्पोत्सर्जन के कारण उत्पन्न होता है।

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(ii) जल का संसंजक बल (Cohesive Force of Water)-जल के अणुओं के बीज एक प्रबल बल कार्य करता है जिसे संसंजक बल (cohesive force) कहते हैं। इस बल के कारण जल के अण अधिक मजबती से ज़ड़े रहते हैं तथा जल के अणुओं को पृथक् करना कठिन होता है। जल के अणुओं तथा कोशिका भित्ति (cell wall) के बीच उत्पन्न बल को आसंजक बल (adhesive Force) कहते हैं। ये दोनों बल जाइलम कोशिका में एक साथ कार्य करते हैं जिससे जल स्तंभ की निरन्तरता बनी रहती है।

(iii) जल स्तम्भ की निरन्तरता (Continuity of Water Column) – जल का स्तम्भ जाइलम कोशिका की गुहा (lumen) में लगातार बनता है, जो आसानी से नहीं टूटता है।
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डिक्सन तथा जौली ने निष्कर्ष निकाला कि –
(a) पौधों में पत्तियों द्वारा निरन्तर वाष्पोत्सर्जन (transpiration) होता रहता है जिससे वाष्पोत्सर्जन खिंचाव (transpiration pull) उत्पन्न होता है।
(b) पानी में अणुओं को अत्यन्त बल के साथ जकड़े रहने का गुण होता है जिसे संसजन शक्ति कहते हैं। इसी गुण के कारण पानी यूकेलिप्टस जैसे ऊँचे वृक्षों में 120 फीट तक चढ़ सकता है।

प्रश्न 6.
वाष्पोत्सर्जन से आप क्या समझते हैं ? वाष्पोत्सर्जन के प्रदर्शन के लिए बेलजार प्रयोग को समझाइए। वाष्पोत्सर्जन को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
वाष्योत्सर्जन (Transpiration) – पौधों के वायवीय भागों से जल का वाष्प के रूप में उड़ना वाष्योत्सर्जन (Transpiration) कहलाता है। पोधे जितना जल मृदा (soil) से प्रहण करते हैं, उसका केवल 1% भाग ही पौधे की उपापचयी क्रियाओं में प्रयक्त होता है। शेष जल वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में उड़ जाता है। वाष्पोत्सर्जन (transpiration) पौधों का आवश्यक दुर्गुण (necessary evil) है।

वाष्पोत्सर्जन तीन प्रकार का होता है-
(i) रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Stomatal Transpiration)-यह रन्ध्रों द्वारा एवं कुल वाष्पोत्सर्जन का लगभग $98 \%$ होता है।
(ii) उपत्वचीय वाष्पोत्रर्जन (cuticular Trans- piration)-यह पौधे की वायवीय उपत्वचा (cuticle) द्वारा होता है। यह केवल 1.8% होता है।
(iii) लेन्टीकुलर वाष्पोत्सर्जन (Lenticular Trans- piration)-यह लेन्ओसेल्स (lenticells) द्वारा होता है। यह केवल 0.2% होता है।

प्रयोग : बेलजार प्रयोग द्वारा वाप्योत्सर्जन क्रिया का प्रदर्शन –
गमले में लगे एक स्वस्थ पौधे को लेकर इसमें पर्याप्त मात्रा में जल डालते हैं। अब गमले को मिट्टी की सतह के ऊपर पॉलीधिन से इस प्रकार बाँधते हैं कि पौधे का प्ररोह बाहर रहे जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। अब गमले को काँच की प्लेट पर रखकर इसके ऊपर काँच का
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वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Transpiration)
(अ) बाह्य कारक (External factors):
1. वायुमण्डलीय आपेक्षिक आर्द्रता (Relative humidity of atmosphere)वायुमण्डल में आर्द्रता कम होने पर वाष्पोत्सर्जन (transpiration) अधिक होता है। नम वातावरण होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर घट जाती है।
2. प्रकाश (Light)-प्रकाश की उपस्थिति में रन्ध्र (stomata) खुलते हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन (transpiration) अंधिक होता है। रन्ध्र बन्द होने की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
3. वायु (Wind) – तीव्र वायु वेंग की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन (transpiration) बढ़ जाता है ।
4. तापक्रम (Temperature) – ताप बढ़ने से आपेक्षिक आर्द्रता कम हो जाती है तथा वायुमण्डल अधिक नमी ग्रहण कर सकता है। इससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
5. मृदा जल (Soil water) – मृदा में जल की कमी होने पर वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कम हो जाता है।

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(ब) आन्तरिक कारक (Internal factors) – पत्तियों की संरचना, रन्ध्रों की संरचना एवं प्रकार, रन्ध्रों (Stomata) की संख्या, जाइलम एवं मूलरोम की संरचना आन्तरिक कारक हैं। ये वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करते हैं।

वाप्योत्सर्जन की उपयोगिता (Importance of Transpiration):
1. जल एवं खनिजों के अवशोषण के लिए वाष्पोत्सर्जन एक खिंचाव (pull) उत्पन्न करता है
2. इससे मृदा जल विभिन्न पादप अंगों में खनिजों का वितरण करता है।
3. इसके द्वारा पत्तियों का ताप अपेक्षाकृत कम रहता है।
4. अतिरिक्त जल पौधों से बाहर निकलता है।
5 कोशिकाओं की स्फीति बनी रहती है।

प्रश्न 7.
रन्धों के खुलने तथा बन्द होने की मण्ड शर्करा परिकल्पना को समझाइए।
उत्तर:
रन्ध्रों के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि (Mechanism of Stomatal Opening and Closing):
द्वार कोशिकाओं की स्फीति अवस्था (turgidity) तथा श्लथ अवस्था (flaccidity) पर रन्द्रों का खुलना एवं बन्द होना निर्भर करता है। द्वार कोशिकाओं (guard cells) की परासरण सान्द्रता अधिक होने पर इनमें पानी प्रवेश करता है और कोशिका में स्फीति दाब (TP) बढ़ जाता है जिससे बाहर की भित्ति पर दबाव पड़ने से रन्ध्र खुल जाते हैं। इसके विपरीत जब द्वार कोशिका से पानी निकल जाता है तो कोशिकाएँ श्लथ (flaccid) हो जाती हैं और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। रन्ध्र के बंद होने तथा खुलने की क्रिया पर प्रकाश तथा अन्धकार का बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त पानी की उपस्थिति, कोशिका रस की सान्द्रता, CO2 सान्द्रता, आदि भी इस क्रिया को प्रभावित करते हैं।

वॉन मोल (Von Mohl) ने 1856 में देखा कि यदि द्वार कोशिका (guard cells) की बाब्य त्वचा को जल के सम्पर्क में रखा जाता है तो रन्धु (stomata) खुल जाते हैं और यदि इसे शर्करा के घोल के सम्पर्क में रखा जाए तो रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। हीथ (Heath) ने 1958 में बताया कि एक ओर की द्वारक कोशिका में एक बारीक छिद्र कर दिया जाए तो रन्ध्र एक तरफ से बन्द हो जाता है। अत: इससे सिद्ध होता है कि रन्ध्र केवल स्फीति दिशा में ही खुलते हैं। CO2 की सान्द्रता बढ़ने से रन्ध्र बन्द हो जाते हैं तथा कम होने पर एवं पानी की मात्रा बढ़ने पर रन्ध्र खुलते हैं। लगभग 30 C तापमान पर रन्ध्र खुलते हैं।

मण्ड शर्करा ⇔ अन्तरा परिवर्तन संकल्पना
(Starch ⇔ Sugar Interconversion Hypothesis)

यह संकल्पना जे. डी. सायरे (1923) ने प्रस्तुत की थी तथा इसे स्टीवार्ड ने 1964 में रूपान्तरित किया था। इस संकल्पना के प्रमुख बिन्दु निम्नवत् हैंप्रकाश में (In Light)
(i) दिन (प्रकाश) में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया होती है, जिसमें अन्तराकोशिकीय स्थानों में उपलब्ध श्वसनीय CO2 का उपभोग होता है।
(ii) इसके परिणामस्वरूप कोशिका रस में H+ सान्द्रता कम हो जाता है तथा रक्षक कोशिकाओं में pH मान बढ़ जाता है।
(iii) उच्च pH (7 cdot 0) फॉस्फोरिलेस एन्जाइम की क्रियाशीलता बढ़ाता है जो कि स्टॉर्च को ग्लूकोस-1-फॉस्फेट में बदलता है।
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(iv) ग्लूकेस-1-फॉस्फेट, फॉस्फोग्लूकोम्यूटेस एन्जाइम की उपिस्थिति में ग्लूकोस-6-फॉस्फेट में बदल जाता है।
ग्लूकोस-6-फॉस्फेट → ग्लूकोस + फॉस्फेट
(v) ग्लूकोस-6-फॉस्फेट फॉस्फेटेस एन्जाइम की सहायता से ग्लूकोस तथा फॉस्फेट में बदल जाता है।
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(vi) ग्लूकोस तथा फॉस्फेट माध्यम में घुलकर कोशिका रस की सान्द्रता बढ़ा देते हैं।
(vii) सान्द्रता बढ़ने से रक्षक कोशिकाओं का OP बढ़ जाता है तथा जल विभव कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाओं में परिवेश की कोशिकाओं से जल आ जाता है तथा रक्षक कोशिकाएँ स्फीति दशा में आकर फल जाती है एवं रन्ध खल जाते हैं।

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अन्धकार में (In dark):
(i) अन्धकार में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। उपरन्द्रीय गुहा (substomatal cavity) में श्वसनीय CO2 का स्तर बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाओं में pH मान घट जाता है।
(ii) निम्न pH पर ग्लूकोस अणु हेक्सोकाइनेस एन्जाइम की उपस्थिति में ATP का प्रयोग करके ग्लूकोस-1-फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाते हैं।
ग्लूकोस + ATP हेक्सोकाइनेस ग्लूकोस-1-फॉस्फेट + ADP
(iii) ग्लूकोस-1-फॉस्फेट अणु फॉस्फोरिलेज एन्जाइम की उपस्थिति में स्टॉर्च में बदल जाता है।
ग्लूकोस-1-फॉस्फेट → स्टॉर्च
(iv) स्टॉर्च के संश्लेषण से कोशिका रस तनु हो जाता है क्योंकि घुलित ग्लूकोस अणुओं की खपत हो जाती है। इसके फलस्वरूप कोशिका रस का OP घट जाता है तथां जल विभव बढ़ जाता है। रक्षक कोशिकाएँ समीपस्थ कोशिकाओं को जल देकर स्लथ (flaccid) हो जाती हैं एवं स्टोमेटा रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

सीमाएँ (Limitations) –
(i) शर्करा, स्टॉर्च अन्तरा परिवर्तन एक मन्द प्रक्रम है जो तीव्र स्टोमेटा गति को नहीं समझाता।
(ii) स्टॉर्च या अन्य बहुलीकृत पॉलीसैकेराइड प्याज के पौधों में नहीं पाए जाते हैं जबकि इनमें स्टोमेटा खुलते तथा बन्द होते हैं।
(iii) जब स्टोमेटा खुलते हैं तब रक्षक कोशिकाओं में ग्लूकोस की पहचान नहीं होती है।
(iv) स्टोमेटा के खुलते समय नीले प्रकाश की अत्यधिक प्रभाविता (extra effectiveness) को यह सिद्धान्त नहीं समझाता है।

2. प्रोटॉन स्थानान्तरण अवधारणा (स्टोमेटा की गति में K+की भूमिका) (Proton Transport Concept (Role of K+ in Stomatal Movement) इस सिद्धान्त को लेविट (1974) ने प्रस्तावित किया था तथा रॉसके (1975) तथा बाउलिल (1976) ने परिमार्जित किया था।

इस सिद्धान्त का विवरण निम्नवत् है –
प्रकाश में (In Light):

(i) प्रकाश में स्टॉर्च लुप्त हो जाता है। सर्वप्रथम समस्त स्टॉर्च विशेषतः फॉस्फोईनोल पाइरूबिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है। फॉस्फोईनोल पाइरूबिक अम्ल CO2 से संयुक्त होकर ऑक्सेलोऐसीटिक अम्ल तत्पश्चात् मैलिक अम्ल बनाता है।
(ii) रक्षक कोशिकाओं में कार्बनिक अम्ल यथा मैलिक अम्ल मैलेट आयन तथा H+ में वियोजित हो जाते हैं।
(iii) H+ एपीडर्मल कोशिकाओं तथा समीपस्थ कोशिकाओं में स्थानान्तरित हो जाते हैं तथा इनके विनिमय के फलस्वरूप H + आयन रक्षक कोशिकाओं में आ जाते हैं। इस प्रक्रम को आयन विनिमय (ion-exchange) कहते हैं।
(iv) K+ आयन मैलेट ऋणायनों से सन्तुलित होते हैं। K+ आयनों के लघु सान्द्रण को उदासीन करने के लिए कुछ Cl आयन भी म्रहण किए जाते हैं ।
(v) H+ -K +विनिमय एक सक्रिय प्रक्रम है, जिसके लिए ऊर्जा (ATP) की आवश्यकता होती है तथा ATP की आपूर्ति श्वसन या फोटोफॉस्फोरिलेशन से होती है।
(vi) रक्षक कोशिकाओं की रिक्तिका में K+ तथा मैलेट आयनों का बढ़ा सान्द्रण पर्याप्त परासरण दाब उत्पन्न करता है जिससे परिवेश की कोशिकाओं से जल अवशोषित हो सके।
(vii) जल के प्रवेश करने से रक्षक कोशिकाओं का स्फीति दाब बढ़ता है तथा रन्ध्र खुल जाते हैं।

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अन्धकार में (In dark)
(i) अन्धकार में उपरन्ध्रीय गुहा में CO2 सान्द्रण बढ़ जाता है क्योंकि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रुक जाती है तथा श्वसन लगातार होता रहता है।
(ii) उपरन्ध्रीय गुहा में CO2 के उच्च सान्द्रण से रक्षक कोशिकाओं की जीवद्रव्य कला के आधार प्रोटॉन प्रवणता (proton gradient) का रक्षण होता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाओं में K+का सक्रिय स्थानान्तरण रुक जाता है।
(iii) रन्द्रों के बन्द होने की क्रिया में निरोधक हॉमोंन ऐब्सीसिक हॉमोंन भाग लेता है जो निम्न pH पर कार्य करता है। जैसे ही रक्षक कोशिकाओं का pH घटता है वैसे ही ऐब्सीसिक हॉमोंन रक्षक कोशिकाओं के विसरण तथा पारणम्यता को परिवर्तित करके K+प्रहण करने को रोकता है।
(iv) रक्षक कोशिकाओं में उपस्थित मैलेट आयन H+ से संयोग करके मैलिक अम्ल बनाते हैं। मैलिक अम्ल का आधिक्य PEP-कार्बोक्सिलेस की क्रियाशीलता घटाकर स्वयं के और अधिक संश्लेषण को रोकता है।
(v) इन परिवर्तनों के कारण आयनों की गति व्युक्कमित (reversed) हो जाती है, अतः रक्षक कोशिकाओं से K+आयन समीपस्थ कोशिकाओं में स्थानान्तरित हो जाते हैं।
(vi) रक्षक कोशिकाओं का परासरण दाब (OP) घट जाता है एवं जल रक्षक कोशिकाओं से परिवेश की कोशिकाओं में चला जाता है।
(vii) रक्षक कोशिकाएँ श्लथ (flaccid) हो जाती हैं तथा रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
जल अवशोषण की क्रियाविधि को समझाइए।
अथवा
जड़ों द्वारा अवशोषण का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल अवशोषण (Water Absorption):
प्राय: पादपों में जल अवशोषण मूल पर उपस्थित मूलरोमों (root hairs) द्वारा होता है किन्तु कुछ पौधों में जल का अवशोषण पत्तियों तथा तनों द्वारा भी होता है। जलोद्भिदों (hydrophytes) में जल अवशोषण प्राय: सामान्य सतह द्वारा होता है। वुड (Wood; 1925) के अनुसार कुछ पौधे, जैसे-कोचिया, रेगोडिया आदि में जल का अवशोषण वायुमण्डल से होता है।
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पौधौं में जल अवशोषण ज़ड़ की सम्पूर्ण सतह से नहीं होता, अपितु मूल के सिरे (root tips) के समीप मूलरोमों द्वारा होता है। मूल के सिरों को चार प्रदेशों में बाँटा जा सकता है-
1. मूल गोप प्रदेश (Root Cap Zone) – यह मूल के सिरे पर एक आवरण के रूप में उपस्थित होता है। यह मूल के विभज्योतकी क्षेत्र (Meristematic zone) की मृदा की रगड़ से रक्षा करता है।
2. प्रविभाजी प्रदेश (Meristematic Zone)-यह मूल गोप के ठीक पीछे स्थित होता है, इसकी कोशिकाओं में विभाजन के कारण ही मूल की वृद्धि होती है।
3. दीर्घन प्रद्देश (Zone of Elongation)-इस प्रदेश की कोशिकाएँ लम्बाई में वृद्धि करती हैं।
4. मूलरोम प्रदेश (Root hair zone) – यह दीर्घन प्रदेश के ठीक पीछे का क्षेत्र होता है। इस पर अनेक एककोशिकीय मूलरोम (unicellular root hairs) पाये जाते हैं। इसी प्रदेश में मूल रोमों का सबसे अधिक जल का अवशोषण होता है। इस प्रदेश के पीछे परिपक्वन (maturation zone) प्रदेश होता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन

पादपों में जल का पथ (Pathway of water in Plants) – मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल को जड़ में आन्तरिक संवहनी उतक तक पहुँचाने के लिए पौधों में निम्नलिखित दो पथ पाये जाते हैं –
1. एपोप्लास्ट पथ (Apoplast pathway) – जल मृदा से मूलरोम कोशिकाओं की कोशिका भित्तियों, वल्कुटी कोशिकाओं, (cortical cells) अन्तः़्वचा (endodermis), परिरम्भ, (pericycle) जाइलम मुदतक (xylem parenchyma) तथा जाइलम मार्गों तक पहुँचता है। चूँकि जाइलम मारों में जल पर अत्यांजक ऋणात्मक दाब होता है। अतः यह एपोप्लास्ट के मध्य से गुजरता हुआ मृदा से जल प्राप्त कर लेता है, यद्यपि अन्त:स्वचा (endodermis) की भुत्ति पूर्णतया पारगम्य नहीं होती है, क्योंकि इन पर अपारगम्य स्थूलन होता है जिन्हें कैस्पेरियन पट्टियाँ (casparian strips) कहते हैं। ये पट्टियाँ मोम सदूश सुबेरिन तथा लिग्निन युक्त होती हैं। अतः एपोप्लास्ट अन्तस्त्वचा (endodermis) तक ही क्रियाकारी होता है। अन्तस्वचा से होकर गुजरने के लिए जल को कोशिकाओं के एक किनारे से प्रविष्ट होकर दूसरे किनारे से निकलना होता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन - 15

2. सिम्लास्ट पथ (Symplast Pathway) – युवा मूल रोम प्रदेश में जाइलम वाहनियाँ पूर्णkूपेण खाली नहीं होती हैं वरन् इनमें जीवित कोशिकाद्रव्य की एक पतली परत पायी जाती है। यह परत एक केन्द्रीय गुहा के चारों ओर होती है जिसमें जल भरा होता है। कोशिकाद्रव्य की यह स्तरित परत जाइलम मृदूतक, परिम्भ, अन्तस्वचा, बल्कुट तथा मूलरोम कोशिकाओं से जीवद्रव्य तन्तुओं द्वारा जुड़ी रहती है। वाष्पोत्सर्जन (transpiration) के कारण जाइलम में उत्पन्न तनाव से जल निक्रिय रूप से इन कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य की ओर गति करता है। कोशिकार्रव्यी प्रवाह (cytoplasmic flow) जल की गति को बढ़ाने में सहायक होता है ताकि यह प्रत्येक कोशिका से होता हुआ सुगमतापूर्वक गुजर सके। मृदा जल सिम्लास्ट में मूल रोम कोशाओं या अन्नस्वचा द्वारा प्रविष्ट होता है।

प्रश्न 9.
एक ऐसे प्रयोग का वर्णन कीजिए जिससे यह स्पष्ट किया जा सके कि वाष्पोत्सर्जन की क्रिया वातावरणीय कारकों द्वारा प्रभावित होती है. –
उत्तर:
वातावरणीय कारकों का अध्ययन (Study of environmental factors)
(i) यदि उपकरण को छायादार एवं नम स्थान पर रखा जाय तो वहाँ नमी की अधिकता के कारण वाष्तोर्सर्जन (transpiration) कम होगा और बुलबुला कम दूरी खिसकेगा।
(ii) यदि उपकरण को धूप में रखा जाय तो यहाँ वाष्पोत्सर्जन (transpiration) अधिक होता है।
(iii) यदि उपकरण को तीव वायु एवं धूप में रखा जाता है तो वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) बहुत तीव्र होता है और बुलबुला तेजी से गति करता है।
(iv) यदि उपकरण को अन्दें स्थान पर रखते हैं तो बुलबुला बिल्कुल गति नहीं करता है। रन्ध्र की संरचना (Structure of Stomata)

रन्ध्र (Stomata) पत्ती की सतह पर पाये जाने वाले छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। ये पत्ती के अतिरिक्त, फलों, कोमल तनों आदि वायवीय भागों पर भी पाये जाते हैं। प्रत्येक रन््ध दो वृक्काकार (kidney shaped) द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरा हुआ छिद्र है। यह अत्यन्त सूक्ष्म संरचना है तथा छिद्र अण्डाकार होता है। द्वारकोशिका (guard cells) बाह्म त्वचा की अन्य कोशिकाओं से भिन्न होती हैं। इसकी बाह्य सतह पतली परन्तु भीतरी सतह मोटी होती है। कभी-कभी द्वार कोशिकाओं के बाहर सहायक कोशिकाएँ (subsidiary cells) भी मिलती हैं। जब द्वार कोशिकाएँ स्फीत (turgid) होती हैं तो छिद्र खुला होता है तथा इनकी श्लथ (flaccid) अवस्था में ये बन्द होते हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 11 पौधों में परिवहन - 11

द्वार कोशिकाओं में केन्द्रक तथा क्लोरोप्लास्ट (chloroplast) पाए जाते हैं। द्वार कोशिकाओं में केन्द्रक तथा क्लोरोप्लास्ट मीसोफिल के क्लोरोप्लास्ट से भिन्न होता है। इसमें दोनों प्रकाशीय तंत्र PSI तथा PSII तन्त मिलते हैं। अतः फोटोफास्पोरिलेशन (photophosphorylation) की क्रिया प्रकाश में पूर्ण होती है परन्तु रिबुलोज डाइफास्फेट कार्बोंक्सिलेज एन्जाइम (ribulose biphosphate carboxylase enzyme) के न मिलने से भोजन नहीं बनता है। आसपास की कोशिकाओं से मिलने वाली शर्करा मण्ड (starch) में बदलती है। रात के समय मण्ड (starch) की मात्रा अधिक होने से रन्ध्र (stomata) बन्द हो जाते हैं तथा दिन में मण्ड के शर्करा में बदलने से ये खुल जाते हैं।

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु

प्रश्न 14.1.
मोनोसैकैराइड क्या होते हैं?
उत्तर:
वे कार्बोहाइड्रेट जिनको पॉलिहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड अथवा टोन के और अधिक सरल यौगिकों में जल अपघटित नहीं कर सकते, उन्हें मोनोसैकैराइड कहते हैं। लगभग 20 मोनोसैकैराइड प्रकृति में ज्ञात हैं। जैसे- ग्लूकोस, फ्रक्टोस, राइबोस आदि ।

प्रश्न 14.2.
अपचायी शर्करा क्या होती है?
उत्तर:
वे कार्बोहाइड्रेट जो टॉलेन अभिकर्मक या फेलिंग विलयन को अपचयित करते हैं उन्हें अपचायी शर्करा कहते हैं। इनमें स्वतंत्र ऐल्डिहाइड या समूह होता है। जैसे-ग्लूकोस, फ्रक्टोस, माल्टोस तथा लैक्टोस ।

प्रश्न 14.3.
पौधों में कार्बोहाइड्रेटों के दो, मुख्य कार्यों को कीटोन लिखिए।
उत्तर:

  • कार्बोहाइड्रेट, वनस्पतियों में स्टार्च के रूप में पाए जाते हैं।
  • पौधों की कोशिका भित्ति सेलुलोस से बनी होती है जो कि एक कार्बोहाइड्रेट है।

प्रश्न 14.4.
निम्नलिखित को मोनोसैकैराइड तथा डाइसैकैराइड में वर्गीकृत कीजिए – राइबोस, 2 – डीऑक्सीराइबोस, माल्टोस, गैलैक्टोस, फ्रक्टोस तथा लैक्टोस ।
उत्तर:
मोनोसैकैराइड – राइबोस, 2 – डीऑक्सीराइबोस, गैलैक्टोस तथा फ्रक्टोस ।
डाइसैकैराइड – माल्टोस तथा लैक्टोस।

प्रश्न 14.5.
ग्लाइकोसाइडी बंध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ओलिगोसैकैराइडों तथा पॉलिसैकैराइडों में दो मोनोसैकैराइड इकाई ऑक्साइड या ईथर बंध द्वारा जुड़ी होती हैं जो कि जल के एक अणु के निष्कासन से बनता है, इसे ग्लाइकोसाइडी बंध कहते हैं। इस प्रकार दो मोनोसैकैराइडों के मध्य ऑक्सीजन परमाणु से बने बन्ध को ग्लाइकोसाइडी बंध कहते हैं।

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प्रश्न 14.6.
ग्लाइकोजन क्या होता है तथा यह स्टार्च से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
प्राणियों के शरीर में कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित रहता है। इसकी संरचना ऐमिलोपेक्टिन के समान होती है, अतः इसे प्राणी स्टार्च भी कहते हैं लेकिन यह ऐमिलोपेक्टिन से अधिक शाखित होता है। यह यकृत, मांसपेशियों तथा मस्तिष्क में उपस्थित होता है। जब शरीर को ग्लूकोस की आवश्यकता होती है, एन्जाइम, ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में तोड़ देते हैं। ग्लाइकोजन यीस्ट तथा कवक में भी मिलता है।

स्टार्च के दो घटक होते हैं – एमिलोस तथा ऐमिलोपेक्टिन । एमिलोस, α-D- ग्लूकोस का रेखीय बहुलक है जबकि ऐमिलोपेक्टिन α-D-ग्लूकोस का शाखित बहुलक है।

प्रश्न 14.7.
(अ) सूक्रोस तथा (ब) लैक्टोस के जल अपघटन से कौनसे उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
(अ) सूक्रोस के जल अपघटन से α-D- ग्लूकोस तथा ß-D- फ्रक्टोस बनते हैं।
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(ब) लैक्टोस के जल अपघटन से ß-D-ग्लूकोस तथा ß-D-गैलैक्टोस प्राप्त होते हैं।
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प्रश्न 14.8.
स्टार्च तथा सेलुलोस में मुख्य संरचनात्मक अंतर क्या है?
उत्तर:
स्टार्च -ग्लूकोस का बहुलक है तथा इसमें दो घटक ऐमिलोस तथा ऐमिलोपेक्टिन होते हैं । ऐमिलोस 200-1000 α-D (+) – ग्लूकोस इकाइयों की अशाखित श्रृंखला होती है जो कि C1 – C4 ग्लाइकोसाइडी बंध द्वारा जुड़ी होती हैं।

ऐलोपेक्टिन में α-D-ग्लूकोस इकाइयों से बनी शाखित श्रृंखला होती है, जिसमें C1-C4 ग्लाइकोसाइडी बंध होते हैं तथा शाखन C1 – C6 ग्लाइकोसाइडी बंध द्वारा होता है जबकि सेलुलोस, ß-D-ग्लूकोस से बना रेखीय शृंखलायुक्त पॉलिसैकैराइड है जिसमें एक ग्लूकोस इकाई के C1 तथा दूसरी ग्लूकोस इकाई के C4 के मध्य ग्लाइकोसाइडी बंध बनता है।

प्रश्न 14.9.
क्या होता है जब D – ग्लूकोस की अभिक्रिया निम्नलिखित अभिकर्मकों से करते हैं?
(i) HI
(ii) ब्रोमीन जल
(iii) HNO3
उत्तर:
(i) HI से अभिक्रिया – ग्लूकोस को HI के साथ लंबे समय तक गरम करने पर यह अपचयित होकर n – हैक्सेन देता है। इससे सिद्ध होता है कि इसमें सभी छः कार्बन परमाणु एक सीधी श्रृंखला में होते हैं।
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(ii) ब्रोमीन जल से अभिक्रिया – ग्लूकोस ब्रोमीन जल द्वारा ऑक्सीकृत होकर ग्लूकोनिक अम्ल बनाता है। इससे सिद्ध होता है कि ग्लूकोस का कार्बोनिल समूह ऐल्डिहाइड समूह के रूप में होता है ।
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(iii) HNO3 से अभिक्रिया – ग्लूकोस का नाइट्रिक अम्ल द्वारा ऑक्सीकरण कराने पर एक डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल, सैकैरिक अम्ल बनता है। इससे ग्लूकोस में प्राथमिक ऐल्कोहॉलिक समूह की उपस्थिति की पुष्टि होती है ।
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प्रश्न 14.10.
ग्लूकोस की उन अभिक्रियाओं का वर्णन कीजिए जो इसकी विवृत श्रृंखला ( खुली श्रृंखला) संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकतीं।
उत्तर:
ग्लूकोस की निम्नलिखित अभिक्रियाएँ इसकी विवृत श्रृंखला संरचना द्वारा नहीं समझाई जा सकती-

  • ऐल्डिहाइड समूह उपस्थित होते हुए भी ग्लूकोस 2,4-DNP परीक्षण तथा शिफ परीक्षण नहीं देता। यह NaHSO के साथ भी क्रिया नहीं करता।
  • ग्लूकोस पेन्टाऐसीटेट, हाइड्रॉक्सिलऐमीन के साथ अभिक्रिया नहीं करता जो मुक्त -CHO समूह की अनुपस्थिति को दर्शाता है।
  • ग्लूकोस दो भिन्न क्रिस्टलीय रूपों में पाया जाता है जिन्हें o तथा B ग्लूकोस कहते हैं।

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प्रश्न 14.11.
आवश्यक तथा अनावश्यक ऐमीनो अम्ल क्या होते हैं? प्रत्येक प्रकार के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे ऐमीनो अम्ल जो हमारे शरीर में संश्लेषित हो जाते हैं, उन्हें अनावश्यक ऐमीनो अम्ल कहते हैं; जैसे-ग्लाइसीन तथा ऐलानिन एवं वे ऐमीनो अम्ल जो हमारे शरीर में संश्लेषित नहीं होते तथा जिनको भोजन में लेना आवश्यक होता है, उन्हें आवश्यक ऐमीनो अम्ल कहते हैं; जैसे-वैलीन तथा ल्यूसीन आवश्यक ऐमीनो अम्लों की संख्या दस होती है।

प्रश्न 14.12.
प्रोटीन के संदर्भ में निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए-
(i) पेप्टाइड बंध
(ii) प्राथमिक संरचना
(iii) विकृतीकरण
उत्तर:
(i) पेप्टाइड बंध- वह बन्ध जिसके द्वारा विभिन्न – ऐमीनो अम्ल आपस में जुड़कर प्रोटीन बनाते हैं, उसे पेप्टाइड बंध कहते हैं। पेप्टाइड बंध को – CONH से दर्शाते हैं जो कि – ऐमीनो अम्ल के एक अणु के – COOH समूह तथा दूसरे अणु के – NH2 समूह से जल के निकलने से बनता है।

(ii) प्रोटीन की प्राथमिक संरचना- प्रोटीनों में एक या अधिक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं उपस्थित होती हैं किसी प्रोटीन के प्रत्येक पॉलिपेप्टाइड में ऐमीनो अम्ल एक विशिष्ट तथा निश्चित क्रम में जुड़े होते हैं। ऐमीनो अम्लों के इस विशिष्ट क्रम को ही प्रोटीनों की प्राथमिक संरचना कहते हैं। प्राथमिक संरचना में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होने पर अर्थात् ऐमीनो अम्लों के क्रम में परिवर्तन से भिन्न प्रोटीन बनते हैं।

(iii) प्रोटीन का विकृतीकरण – जैविक तंत्र में पायी जाने वाली विशिष्ट त्रिविम संरचना तथा जैविक सक्रियता वाले प्रोटीन, प्राकृतिक प्रोटीन कहलाते हैं। जब प्राकृतिक प्रोटीन के ताप तथा pH में परिवर्तन (भौतिक या रासायनिक परिवर्तन) किया जाता है तो हाइड्रोजन बन्धों की व्यवस्था बिगड़ जाती है जिसके कारण प्रोटीन की गोलिका (ग्लोब्यूल) खुल जाती है तथा हैलिक्स अकुंडलित हो जाती है इससे प्रोटीन अपनी जैविक सक्रियता को खो देता है, इसे प्रोटीन का विकृतीकरण कहते हैं उबालने पर अंडे की सफेदी का स्कंदन विकृतीकरण का एक उदाहरण है तथा दूध का जमकर दही बनना भी विकृतीकरण है जो कि दूध में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा लैक्टिक अम्ल उत्पन्न होने के कारण होता है।

प्रश्न 14.13.
प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या हैं?
उत्तर:
प्रोटीन की द्वितीयक संरचना इनकी आकृति से सम्बन्धित होती है जिसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं उपस्थित होती हैं ये दो प्रकार की संरचनाओं में पायी जाती है-
(i) α-हैलिक्स तथा

(ii) प्रोटिन α-ऐमीनो अम्लों के बहुलक होते हैं जो आपस में पेप्यइड बंध द्वारा जुड़े ह्रेते हैं। ऐमीनो अम्लों के एक अणु के -COOH तथा दूसरे अणु के NH2 समूह के मध्य अभिक्रिया होकर जल के अणु से निकलने से बने बन्ध को पेप्टाइड बन्ध कहते हैं जिसे -CONH- द्वार दर्शाया जाता है।
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प्रोटीनों में α-ऐमीनो अम्ल समान तथा भिन्न भी हो सकते हैं। जब बनने वाला उत्पाद दो ऐमीनो अम्लों से बनता है तो इसे डाइपेप्टाइड कहते हैं। उदाहरण, ग्लाइसीन का कार्बोक्सिल समूह, ऐलानीन के ऐमीनो समूह के साथ क्रिया करता है तो एक डाइपेप्टाइड, ग्लाइसिलऐलानिन बनता है। अतः डाइपेप्टइड में एक पेप्यइड बन्ध होता है।

जब तीसरा ऐमीनो अम्ल, डाइपेप्टाइड के साथ क्रिया करता है तो बने उत्पाद को ट्राइपेप्टाइड कहते हैं। अतः एक ट्राइपेप्टाइड में तीन ऐमीनो अम्ल दो पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़े होते हैं। इसी प्रकार चार, पाँच तथा छः ऐमीनो अम्लों के आपस में जुड़ने से बने उत्पादों को टेट्रापेप्टाइड पेन्टापेप्टाइड तथा हेक्सापेप्टाइड कहते हैं। बहुत से ऐमीनो अम्लों ( 10 से अधिक) के आपस में संघनन द्वारा बने पेप्टाइडों को पॉलिपेप्टाइड कहते हैं।

वे पॉलिपेप्टाइड जिनमें असंख्य ( 100 से अधिक) भिन्न-भिन्न ऐमीनो अम्ल होते हैं तथा जिनका आण्विक द्रव्यमान 10,000 µ से अधिक होता है, उन्हें प्रोटीन कहते हैं। यद्यपि पॉलिपेप्टाइड तथा प्रोटीन में विभेद अधिक स्पष्ट नहीं है। 100 से कम ऐमीनो अम्लों वाले पॉलिपेप्यइडों को भी प्रोटीन कहा जाता है यदि उनमें प्रोटीन जैसा स्पष्ट संरूपण (conformation) हो। उदाहरण-इन्सुलिन 51 ऐमीनो अम्लों से मिलकर बना होता है।

प्रोटीनों के सामान्य गुण:

  • प्रोटीन रंगहीन तथा अक्रिस्टलीय होते हैं लेकिन इन्सुलिन क्रिस्टलीय होती है।
  • प्रोटीन के गंलनांक तथा क्वथनांक अनिश्चित होते हैं।
  • प्रोटीन सामान्यतः जल, ऐल्कोहॉल तथा ईथर इत्यादि में अविलेय होते हैं।
  • प्रोटीन, बहुलक होते हैं जिनका आण्विक द्रव्यमान अधिक होता है, अतः ये जल में कोलाइडों के रूप में पाए जाते हैं।
  • प्रोटीन उभयधर्मी होते हैं जिनके समविभव बिन्दु निश्चित होते हैं।

प्रश्न 14.14.
प्रोटीन की α-हैलिक्स संरचना के स्थायीकरण में कौनसे आबंध सहायक होते हैं?
उत्तर:
प्रोटीन की α-हैलिक्स संरचना में प्रत्येक ऐमीनो अम्ल का – NH समूह, कुंडली के अगले मोड़ पर स्थितHBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु 6 समूह के साथ हाइड्रोजन बंध बनाता है जो इनके स्थायीकरण में सहायक होता है।

प्रश्न 14.15.
रेशेदार तथा गोलिकाकार (Globular) प्रोटीन को विभेदित कीजिए।
उत्तर:

  • रेशेदार प्रोटीन में पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं समानांतर होती हैं तथा हाइड्रोजन एवं डाइसल्फाइड बंधों द्वारा जुड़कर रेशों जैसी संरचना बनाती हैं जबकि गोलिकाकार प्रोटीन में पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं कुंडली बनाकर गोलाकार आकृति बना लेती हैं।
  • रेशेदार प्रोटीन जल में अविलेय होते हैं जबकि गोलिकाकार प्रोटीन जल में विलेय होते हैं।
  • रेशेदार प्रोटीन के उदाहरण किरेटिन (बाल, ऊन तथा रेशम में उपस्थित) तथा मायोसिन (मांसपेशियों में उपस्थित) हैं तथा गोलिकाकार प्रोटीन के उदाहरण इन्सुलिन व ऐल्यूमिन हैं।

प्रश्न 14.16.
ऐमीनो अम्लों की उभयधर्मी प्रकृति को आप कैसे समझाएंगे ?
उत्तर:
ऐमीनो अम्ल लवण के समान व्यवहार करते हैं क्योंकि इनके एक ही अणु में अम्लीय (कार्बोक्सिल समूह) तथा क्षारकीय ( ऐमीनो समूह ) समूह होते हैं। जलीय विलयन में कार्बोक्सिल समूह एक प्रोटॉन दान कर सकता है जबकि ऐमीनो समूह एक प्रोटॉन ग्रहण कर सकता है जिसके कारण एक द्विध्रुवीय आयन बनता है जिसे ज्विटर आयन अथवा उभयाविष्ट आयन या आन्तरिक लवण कहते हैं। यह उदासीन होता है लेकिन इसमें धनावेश तथा ऋणावेश दोनों ही उपस्थित होते हैं।
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उभयाविष्ट आयन के रूप में ऐमीनो अम्ल उभयधर्मी प्रकृति दर्शाते हैं क्योंकि ये अम्लों तथा धारकों दोनों के साथ अभिक्रिया करते हैं।
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प्रश्न 14.17.
एन्जाइम क्या होते हैं?
उत्तर:
सजीवों में होने वाली जैव रासायनिक अभिक्रियाओं में प्रयुक्त होने वाले जैव उत्प्रेरकों को एन्जाइम कहते हैं। एन्जाइम प्रोटीनयुक्त पदार्थ होते हैं।

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प्रश्न 14.18.
प्रोटीन की संरचना पर विकृतीकरण का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
प्रोटीन के विकृतीकरण से इसकी प्राथमिक संरचना प्रभावित नहीं होती लेकिन द्वितीयक तथा तृतीयक संरचनाएँ नष्ट हो जाती हैं, विकृत प्रोटीन की जैविक सक्रियता नष्ट हो जाती है। जैसे अण्डे को उबालने पर विलेय गोलिकाकार प्रोटीन का स्कंदन होकर वह अविलेय रेशेदार प्रोटीन में परिवर्तित हो जाती है।

प्रश्न 14.19.
विटामिनों को किस प्रकार वर्गीकृत किया गया है? रक्त के थक्के जमने के लिए जिम्मेदार विटामिन का नाम दीजिए।
उत्तर:
विटामिनों का वर्गीकरण- जल तथा वसा में विलेयता के आधार पर विटामिनों को दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है-

  • वसा विलेय विटामिन
  • जल में विलेय विटामिन

(i) वसा विलेय विटामिन- ये विटामिन वसा तथा तेल में विलेय होते हैं लेकिन जल में अविलेय होते हैं। ये विटामिन A, D, E तथा K हैं। ये यकृत तथा ऐडिपोस (वसा को संग्रहित करने वाला) ऊतक में संग्रहित रहते हैं।

(ii) जल में विलेय विटामिन B वर्ग के विटामिन तथा विटामिन C जल में विलेय होते हैं। जल में विलेय विटामिनों की पूर्ति हमारे आहार में नियमित रूप से तथा पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए क्योंकि ये मूत्र के साथ आसानी से उत्सर्जित हो जाते हैं। इस कारण ये हमारे शरीर में (विटामिन B12 के अतिरिक्त) संचित नहीं हो पाते हैं।

रक्त का थक्का जमने के लिए विटामिन K जिम्मेदार होता है।

प्रश्न 14.20.
विटामिन A व C हमारे लिए आवश्यक क्यों हैं? उनके महत्वपूर्ण स्त्रोत दीजिए।
उत्तर:
विटामिन A की कमी से रतौंधी (रात्रि अंधता) तथा ज़िॲपिथेमिया (आँख के कॉर्निया का कठोर होना) नामक रोग हो जाते हैं। तथा विटामिन C की कमी से स्कर्वी (मसूड़ों से रक्तस्राव) तथा दंत क्षय रोग हो जाता है अतः विटामिन A व C हमारे लिए आवश्यक हैं।

विटामिन A के स्रोत – गाजर, पालक, पपीता, मक्खन, दूध, मछली के यकृत का तेल तथा अंडे की जर्दी।

विटामिन C के स्रोत सिट्रस फल ( नींबू, संतरा, मौसमी), आँवला, हरे पत्तेदार सब्जियाँ, अमरूद, टमाटर तथा बेर।

प्रश्न 14.21.
न्यूक्लिक अम्ल क्या होते हैं? इनके दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लिक अम्ल, न्यूक्लिओटाइडों की लम्बी श्रृंखलायुक्त बहुलक होते हैं जो एक धारक, एक पेन्टोस शर्करा तथा फॉस्फेट से मिलकर बनते हैं। ये वे जैव अणु हैं जो प्रोटीन के साथ मिलकर क्रोमोसोम बनाते हैं। न्यूक्लिक अम्ल, जनक से संतति में गुणों के स्थानान्तरण के लिए जिम्मेदार होते हैं। न्यूक्लिक अम्ल के कार्य न्यूक्लिक अम्ल के दो महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं-

  • स्वप्रतिकृति तथा
  • प्रोटीन संश्लेषण पर नियंत्रण।

प्रश्न 14.22.
न्यूक्लिओसाइड तथा न्यूक्लिओटाइड में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
किसी क्षारक (प्यूरीन या पिरीमिडीन) के पेन्टोस शर्करा की 1′ स्थिति से जुड़ने पर बनी इकाई को न्यूक्लिओसाइड कहते हैं तथा न्यूक्लिओसाइड जब शर्करा की 5′ स्थिति पर फॉस्फोरिक अम्ल से जुड़ता है तो न्यूक्लिओटाइड बनता है। अतः न्यूक्लिओसाइड में केवल पेन्टोस शर्करा तथा क्षारक होता है जबकि न्यूक्लिओटाइड में इनके अतिरिक्त फॉस्फेट समूह भी होता है।

प्रश्न 14.23.
DNA के दो रज्जुक (Strands) समान नहीं होते, अपितु एक-दूसरे के पूरक (Complimentary) होते हैं। समझाइए |
उत्तर:
DNA की द्विकुंडलनी संरचना होती है। इसमें न्यूक्लिक अम्ल की दो श्रृंखलाएं आपस में कुंडलित होती हैं तथा क्षारक युग्मों के मध्य हाइड्रोजन बंध द्वारा आपस में जुड़ी रहती हैं। दोनों रज्जुक श्रृंखलाएं एक-दूसरे की पूरक होती हैं क्योंकि धारकों के विशिष्ट युग्मों के मध्य ही हाइड्रोजन बंध बनते हैं जैसे- ऐडेनीन, थायमीन के साथ तथा साइटोसीन, ग्वानीन के साथ हाइड्रोजन बंध बनाता है। अतः DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते बल्कि एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

प्रश्न 14.24.
DNA तथा RNA में महत्वपूर्ण संरचनात्मक एवं क्रियात्मक अंतर लिखिए।
उत्तर:
DNA तथा RNA में संरचनात्मक अंतर निम्नलिखित हैं-

  • DNA कोशिका के नाभिक में स्थित क्रोमोसोम में पाया जाता है जबकि RNA मुख्यतः कोशिका द्रव्य में पाया जाता है।
  • DNA में B-D-डीऑक्सीराइबोस शर्करा होती है जबकि RNA में B-D राइबोस शर्करा होती है।
  • पिरीमिडीन क्षारक, थायमीन केवल DNA में होता है जबकि यूरेसिल केवल RNA में होता है।
  • DNA की द्विकुंडलनी संरचना होती है जबकि RNA की एकल कुंडलनी संरचना होती है।

DNA तथा RNA में क्रियात्मक अन्तर – DNA में स्वप्रतिकरण का गुण होता है तथा यह आनुवांशिक गुणों के स्थानान्तरण को नियंत्रित करता है, जबकि RNA प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करता है।

प्रश्न 14.25.
कोशिका में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के RNA कौनसे हैं ?
उत्तर:
कोशिका में पाए जाने वाले RNA तीन प्रकार के होते हैं जिनके कार्य भिन्न-भिन्न हैं। संदेशवाहक RNA (m-RNA), राइबोसोमल RNA (r-RNA) तथा अंतरण या स्थानान्तरण RNA (t-RNA) हैं।

HBSE 12th Class Chemistry जैव-अणु Intext Questions

प्रश्न 14.1.
ग्लूकोस तथा सूक्रोस जल में विलेय हैं जबकि साइक्लोहैक्सेन अथवा बेन्जीन (सामान्य छः सदस्यीय वलय युक्त यौगिक) जल में अविलेय होते हैं। समझाइए।
उत्तर:
ग्लूकोस तथा सूक्रोस के अणुओं में -OH समूह उपस्थित होने के कारण ये जल के साथ अन्तराअणुक हाइड्रोजन बन्ध बना लेते हैं अतः ये जल में विलेय हैं जबकि साइक्लोहैक्सेन तथा बेन्जीन हाइड्रोकार्बन हैं तथा ये अध्रुवीय यौगिक हैं अतः ये जल के साथ हाइड्रोजन बन्ध नहीं बना सकते इसलिये ये जल में अविलेय होते हैं।

प्रश्न 14.2.
लैक्टोस के जल अपघटन से किन उत्पादों के बनने की अपेक्षा करते हैं?
उत्तर:
लैक्टोस के जल अपघटन से D-(+) गेलेक्टेस तथा D-(+) ग्लूकोस बनते हैं। यह जल अपघटन तनु HCl या एन्जाइम की उपस्थिति में किया जात्म है।
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प्रश्न 14.3.
D-ग्लूकोस के पेन्टाऐसीटेट में आप ऐल्डिहाइड समूह की अनुपस्थिति को कैसे समझाएँगे?
उत्तर:
D-ग्लूकोस के पेन्ट्राऐसीटेट में ऐल्डिहाइड समूह स्वतंत्र न होकर हेमीऐसिटैल के रूप में होता है। इसी कारण ग्लूकोस पेन्टाऐसीटेट हाइड्रोंक्सिल ऐमीन के साथ क्रिया नहीं करता।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु

प्रश्न 14.4.
ऐमीनो अम्लों के गलनांक एवं जल में विलेयता सामान्यतः संगत हैलो अम्लों की तुलना में अधिक होती है। समझाइए।
उत्तर:
ऐमीनो अम्लों में एक ही अणु में अम्लीय तथा क्षारीय दोनों समूह उपस्थित होने के कारण ये ज्विटर आयन (NH3CHRCOO)के रूप में पाए जाते हैं अतः ये क्रिस्टलीय ठोस के समान व्यवहार करते हैं, इसलिए इनका गलनांक उच्च होता है तथा इनकी ध्रुवीय प्रकृति के कारण ये जल के साथ अंतराअणुक हाइड्रोजन बन्ध बना लेते हैं अतः ये जल में अत्यधिक विलेय भी होते हैं जबकि हैलो अम्लों में ज्विटर आयन नहीं बनते इसलिए इनके गलनांक तथा जल में विलेयता ऐमीनो अम्लों से कम होती है।

प्रश्न 14.5.
अंडे को उबालने पर उसमें उपस्थित जल कहाँ चला जाता है?
उत्तर:
अंडे को उबालने पर उसमें उपस्थित गोलाकार प्रोटीन विकृत हो जाती है। इस प्रक्रिया में जल का अवशोषण होता है अतः इसमें उपस्थित जल गायब हो जाता है।

प्रश्न 14.6.
हमारे शरीर में विटामिन C संचित क्यों नहीं होता?
उत्तर:
विटामिन C जल में विलेय होता है। अतः यह जलीय विलयन के रूप में हमारे शरीर से बाहर निकल जाता है। इस कारण यह हमारे शरीर में संचित नहीं होता।

प्रश्न 14.7.
यदि DNA के थायमीन युक्त न्यूक्लिओटाइड का जल अपघटन किया जाए तो कौन-कौनसे उत्पाद बनेंगे?
उत्तर:
DNA के थायमीनयुक्त न्यूक्लिओटाइड का जल अपघटन करने पर पेन्टोस शर्करा (β-D-2 डिऑक्सीराइबोस) फॉस्फोरिक अम्ल तथा थायमीन क्षारक ( नाइट्रोजनयुक्त विषमचक्रीय यौगिक ) प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 14.8.
जब RNA का जल अपघटन किया जाता है तो प्राप्त क्षारकों की मात्राओं के मध्य कोई संबंध नहीं होता। यह तथ्य RNA की संरचना के विषय में क्या संकेत देता है?
उत्तर:
RNA की संरचना में विभिन्न क्षारक युग्मों के मध्य निश्चित हाइड्रोजन बन्ध नहीं होता है तथा RNA की संरचना में कुण्डलनी केवल एक स्ट्रेण्ड से ही बनी होती है। अतः इसके जल अपघटन से प्राप्त क्षारकों की मात्राओं के मध्य कोई संबंध नहीं होता।

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन Textbook Exercise Questions and Answers.

प्रश्न 13.1.
निम्नलिखित यौगिकों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐमीनों में वर्गीकृत कीजिए तथा इनके आईयूपीएसी नाम लिखिए-
(i) (CH3),CHNH2
(ii) CH3(CH2)2NH2
(iii) CH3NHCH(CH3)2
(iv) (CH3)3CNH2
(v) C6H5NHCH3
(vi) (CH3CH2)2NCH3
(vii) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 1
उत्तर:
(i) प्रोपेन 2-ऐमीन (1°)
(ii) प्रोपेन- 1- ऐमीन (1°)
(iii) N मेथिल प्रोपेन-2-ऐमीन (2°)
(iv) 2- मेथिल प्रोपेन 2- ऐमीन (1°)
(v) N-मेथिलबेन्जीनेमीन या N – मेथिलऐनिलीन (2°)
(vi) N. एथिल – N मेथिलएथेनेमीन (3°)
(vii) 3 ब्रोमोऐनिलीन या 3 – ब्रोमोबेन्जीनेमीन (1°)

प्रश्न 13.2.
निम्नलिखित युगलों के यौगिकों में विभेद के लिए एक रासायनिक परीक्षण दीजिए-
(i) मेथिलऐमीन एवं डाइमेथिलऐमीन
(ii) द्वितीयक एवं तृतीयक ऐमीन
(iii) ऐथिलऐमीन एवं ऐनिलीन
(iv) ऐनिलीन एवं बेन्जिलऐमीन
(v) ऐनिलीन एवं N मेथिलऐनिलीन ।
उत्तर:
(i) मेथिलऐमीन CH3-NH2 (1°) हिन्सबर्ग अभिकर्मक (C6H5 SO2Cl) से क्रिया करता है तथा बना उत्पाद क्षार में विलेय होता है। जबकि डाइमेथिलऐमीन CH3-NH-CH3(2°) की हिन्सबर्ग अभिकर्मक (बेन्जीन सल्फोनिल क्लोराइड) से क्रिया द्वारा बना उत्पाद धार में अविलेय होता है।

(ii) द्वितीयक ऐमीन (R2NH) हिन्सवर्ग अभिकर्मक से क्रिया करते हैं तथा बना उत्पाद धार में अविलेय होता है जबकि तृतीयक ऐमीन हिन्सबर्ग अभिकर्मक से क्रिया नहीं करते।

(iii) ऐथिलऐमीन बेन्जीन डाइएजोनियम क्लोराइड से क्रिया करके ऐजो रंजक (Azo dye) नहीं बनाता जबकि ऐनिलीन, बेन्जीन डाइएजोनियम क्लोराइड से क्रिया करके एजोरंजक (पीला) बनाती है।

(iv) ऐनिलीन, बेन्जीन डाइएजोनियम क्लोराइड (C6H5N2Cl) से क्रिया करके एजोरंजक बनाती है लेकिन बेन्जिलऐमीन ऐसा नहीं करती।

(v) ऐनिलीन (1°), CHCl3 तथा क्षार के साथ कार्बिलऐमीन परीक्षण देता है जबकि N मेथिल ऐनिलीन (2°) कार्बिल ऐमीन परीक्षण नहीं देती।

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प्रश्न 13.3.
निम्नलिखित के कारण बताइए-
(i) ऐनिलीन का pKb मेथिलऐमीन की तुलना में अधिक होता
(ii) ऐथिलऐमीन जल में विलेय है जबकि ऐनिलीन नहीं।
(iii) मेथिलऐमीन फेरिक क्लोराइड के साथ जल में अभिक्रिया करने पर जलयोजित फेरिक ऑक्साइड का अवक्षेप देता है।
(iv) यद्यपि ऐमीनों समूह इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में आर्थों एवं पैरा निर्देशक होता है फिर भी ऐनिलीन नाइट्रोकरण द्वारा यथेष्ट मात्रा में मेटानाइट्रोऐनीलीन देती है।
(v) ऐनिलीन फ्रिडेल क्राफ्ट्स अभिक्रिया प्रदर्शित नहीं करती।
(vi) ऐरोमैटिक ऐमीनों के डाइऐजोनियम लवण ऐलीफैटिक ऐमीनों से प्राप्त लवण से अधिक स्थायी होते हैं।
(vii) प्राथमिक ऐमीन के संश्लेषण में गैब्रिएल थैलिमाइड संश्लेषण को प्राथमिकता दी जाती है।
उत्तर:
(i) मेथिल ऐमीन (CH3-NH2) में मैथिल समूह के +I प्रभाव (इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षी प्रभाव ) के कारण नाइट्रोजन परमाणु पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है अतः इसकी इलेक्ट्रॉन देने की प्रवृत्ति अधिक होती है।

इसलिए इसका क्षारीय गुण अधिक होता है जबकि ऐनिलीन HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 2 में नाइट्रोजन का एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म बेन्जीन वलय के साथ अनुनाद (+M प्रभाव) करता है जिससे इसके नाइट्रोजन पर इलेक्ट्रॉन घनत्व कम हो जाता है अतः इसकी इलेक्ट्रॉन देने की प्रवृत्ति कम हो जाती है इसलिए इसका क्षारीय गुण कम होता है। इसी कारण ऐनिलीन का pKb मेथिलऐमीन की तुलना में अधिक होता है क्योंकि क्षारीय गुण ∝ \(\frac{1}{\mathrm{pK}_{\mathrm{b}}} \propto \mathrm{K}_{\mathrm{b}}\) (क्षार वियोजन स्थिरांक)

(ii) ऐथिलऐमीन (C2H5NH2) जल के साथ हाइड्रोजन बन्ध बनाती है जबकि ऐनिलीन के C.H, समूह (अध्रुवीय) के बड़े आकार के कारण इसमें जल के साथ हाइड्रोजन बन्ध बनाने की प्रवृत्ति नहीं होती अतः ऐथिलऐमीन जल में विलेय है जबकि ऐनिलीन नहीं।

(iii) मैथिलऐमीन जलीय विलयन में OH आयन देता है जो FeCl3 (जलीय) के साथ क्रिया करके पहले हाइड्रॉक्साइड तथा वह फिर जलयोजित ऑक्साइड का अवक्षेप देता है। अभिक्रियाएँ निम्न प्रकार होती हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 3

(iv) ऐमीनों समूह इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन के लिए ऑर्थो तथा पैरा निर्देशी होता है लेकिन ऐनिलीन के नाइट्रीकरण में यथेष्ट मात्रा में मेटानाइट्रोऐनिलीन बनती है क्योंकि प्रबल अम्लीय माध्यम में ऐनिलीन प्रोटॉन ग्रहण करके ऐनिलीनियम आयन बनाती है जो कि मेटा निर्देशक है (-I प्रभाव के कारण)।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 4
इस अभिक्रिया में पैरा 51% तथा आर्थो उत्पाद (2%) भी बनते हैं।

(v) ऐनिलीन फ्रिडेल क्राफ्ट्स अभिक्रिया प्रदर्शित नहीं करती क्योंकि इस अभिक्रिया में प्रयुक्त उत्प्रेरक AlCl3 (ऐलुमिनियम क्लोराइड) लुइस अम्ल है अतः यह ऐनिलीन (लुईस क्षार) के साथ लवण बना लेता है। लवण बनने के कारण ऐनिलीन का नाइट्रोजन, धन आवेश प्राप्त कर लेता है जो कि प्रबल विसक्रियणकारी समूह है अतः इसकी क्रियाशीलता कम हो जाती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 5a

(vi) ऐरोमैटिक ऐमीनों के डाइएजोनियम लवण, ऐलीफैटिक ऐमीनों से प्राप्त लवण से अधिक स्थायी होते हैं क्योंकि इनमें अनुनाद के कारण स्थायित्व आ जाता है। C6H5N2+ की अनुनादी संरचनाएँ निम्न प्रकार होती हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 5
ऐरीन डाइएजोनियम लवण विलयन में निम्न ताप पर (273-278K) कुछ समय के लिए ही स्थायी होते हैं।

(vii) गैब्रिएल थैलिमाइड संश्लेषण में R X से R-NH2 बनता है जिसमें शुद्ध प्राथमिक ऐमीन बनती है तथा अन्य कोई सहउत्पाद प्राप्त नहीं होते क्योंकि अभिक्रिया से प्राप्त थैलिक अम्ल पुनः प्रयुक्त हो जाता है जबकि अन्य अभिक्रियाओं में उत्पादों का मिश्रण बनता है। अतः प्राथमिक ऐमीन के संश्लेषण में गैब्रिएल थैलिमाइड अभिक्रिया को प्राथमिकता दी जाती है।

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प्रश्न 13.4.
निम्नलिखित को क्रम में लिखिए-
(i) pK, मान के घटते क्रम में-
C2H5NH2, C6H5NHCH3, (C2H5)2NH एवं C6H5NH2
(ii) क्षारकीय प्राबल्य के घटते क्रम में-
C6H5NH2, C6H5N(CH3)2, (C2H5)2NH एवं CH3NH2
(iii) क्षारकीय प्राबल्य के बढ़ते क्रम में-
(क) ऐनिलीन, पैरा-नाइट्रोऐनिलीन एवं पैरा-टॉलूडीन
(ख) C6H5NH2, C6H5NHCH3, C6H5CH2NH2
(iv) गैस अवस्था में घटते हुए क्षारकीय प्राबल्य के क्रम में-
C2H5NH2, (C2H5)2NH, (C2H5)3N एवं NH3
(v) क्वथनांक के बढ़ते क्रम में-
C2H5OH, (CH3)2NH, C2H5NH2
(vi) जल में विलेयता के बढ़ते क्रम में-
C6H5NH2, (C2H5)2NH, C2H5NH2
उत्तर:
(i) C6H5NH2 > (C6H5NHCH3 > C2H5NH2 > (C2H5)2NH (pKb मान का घटता क्रम अर्थात् क्षारीय प्रबलता का बढ़ता क्रम)

(ii) (C2H5)2NH > CH3-NH2 > C6H5N (CH3)2 > CH, NH (क्षारीय प्रबलता (प्राबल्य) का घटता क्रम )

(iii) (क) p-नाइट्रोऐनिलीन < ऐनिलीन < p-टॉलूडीन (क्षारीय प्रबाल्य का बढ़ता क्रम )
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 6a

(ख) C6H5NH2 < C6H5NHCH3 < C6H5CH2NH2

(iv) (C2H5)3N > (C2H5)2NH > C2H5NH2 > NH3
(गैसीय अवस्था में शारकीय प्राबल्य का घटता क्रम )

(v) (CH3)2NH < C2H5NH<sub2 < C2H5OH ( क्वथनांक का बढ़ता क्रम )

(vi) C6H5NH2 < (C2H5)2NH < C2H5NH2 (जल में विलेयता का बढ़ता क्रम)

प्रश्न 13.5.
इन्हें आप कैसे परिवर्तित करेंगे-
(i) एथेनॉइक अम्ल को मेथेनेमीन में
(ii) हैक्सेननाइट्राइल को 1- ऐमीनापेन्टेन में
(iii) मेथेनॉल को एथेनॉइक अम्ल में
(iv) एथेनेमीन को मेथेनेमीन में
(v) एथेनॉइक अम्ल को प्रोपेनॉइक अम्ल में
(vi) मेथेनेमीन को एथेनेमीन में
(vii) नाइट्रोमेथेन को डाइमेथिलऐमीन में
(viii) प्रोपेनॉइक अम्ल को एथेनॉइक अम्ल में ?
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 6

प्रश्न 13.6.
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐमीनों की पहचान की विधि का वर्णन कीजिए। इन अभिक्रियाओं के रासायनिक समीकरण भी लिखिए।
उत्तर:
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐमीनों की पहचान निम्नलिखित विधियों से की जाती है-
कार्बिलऐमीन अभिक्रिया – ऐलिटिक तथा ऐरोमैटिक प्राथमिक ऐमीनों को क्लोरोफ़ार्म तथा एथेनॉलिक पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के साथ गर्म करने पर तीक्ष्ण दुर्गंधयुक्त पदार्थ आइसोसायनाइड अथवा कर्बिलऐमीन बनता है। द्वितीयक एवं तृतीयक ऐमीन में यह अभिक्रिया नहीं होती ।
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प्रश्न 13.7.
निम्न पर लघु टिप्पणी लिखिए-
(i) कार्बिलऐमीन अभिक्रिया
(ii) डाइऐजोकरण (डाइऐजोटीकरण).
(iii) हॉफमान ब्रोमाइड अभिक्रिया
(iv) युग्मन अभिक्रिया
(v) अमीनो अपघटन
(vi) ऐसीटिलन
(vii) गैब्रिएल थैलिमाइड संश्लेषण।
उत्तर:
(i) कार्बिलऐमीन अभिक्रिया – ऐलिटिक तथा ऐरोमैटिक प्राथमिक ऐमीनों को क्लोरोफ़ार्म तथा एथेनॉलिक पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के साथ गर्म करने पर तीक्ष्ण दुर्गंधयुक्त पदार्थ आइसोसायनाइड अथवा कर्बिलऐमीन बनता है। द्वितीयक एवं तृतीयक ऐमीन में यह अभिक्रिया नहीं होती ।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 7

(ii) डाइऐजोकरण या डाइऐजोटीकरण (Diazotisation ) – 273-278 K (निम्न ताप) ताप पर प्राथमिक ऐरोमैटिक ऐमीन की NaNO, तथा HCI से अभिक्रिया कराने पर एरीन डाइएजोनियम लवण बनते हैं। इस अभिक्रिया को डाइऐजोटीकरण कहते हैं।
ऐनीलीन की अभिक्रिया से बेन्जीन डाइऐजोनियम क्लोराइड बनता है। यह अस्थायी होता है अतः इसका प्रयोग तुरन्त कर लिया जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 8
(iii) हॉफमान ब्रोमेमाइड अभिक्रिया (Hoffmann Bromamide Rcaction ) इस अधिक्रिया में किसी ऐमाइड की NaOH या KOH के जलीय अथवा ऐथेनॉलिक विलयन में ग्रोमीन से अभिक्रिया करते हैं तो प्राथमिक ऐमीन प्राप्त होती है।
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(iv) युग्मन अभिक्रिया ( Coupling Reaction ) – बेन्जीन डाइरजोनियम क्लोराइड, फ़ीनॉल से अभिक्रिया करके इसकी पैरा स्थिति पर युग्मित होकर पैरा हाइड्रॉक्सीऐजोबेन्जीन देता है। इस अभिक्रिया को युग्मन अभिक्रिया कहते हैं। इसी प्रकार डऐजोनियम लवण की ऐनोलीन से अभिक्रिया द्वारा पैशाऐमीनोऐजोबेन्जीन बनती है। यह एक इलेक्ट्रॉननेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया है। प्राप्त यौगिक रंगीन होते हैं तथा ये ऐजो रंजक होते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 10

(v) अमोनी अपघटन (Ammonolysis ) – 373 K ताप पर एक बन्द नली में ऐल्किल अथवा बेन्जिल हैलाइडों की क्रिया एथ्रेनॉलिक अमोनिया के साथ करवाने पर हैलोजन परमाणु का प्रतिस्थापन ऐमीनों समूह द्वारा हो जाता है तथा प्राथमिक ऐमीन प्राप्त होता है। यह एक नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया है। अमोनिया द्वारा ऐल्किल हैलाइड के कार्बन हैलोजन बन्ध के विखण्डन की इस प्रक्रिया को अमोनी अपघटन कहा जाता है। इस अभिक्रिया में प्राप्त प्राथमिक ऐमीन पुनः ऐल्किल हैलाइड से क्रिया करके 2° तथा 3° ऐमीन एवं अन्त में चतुष्क अमोनियम लवण बना देती है अतः यहाँ यौगिकों का मिश्रण बनता है। इस अभिक्रिया के लिए ऐल्किल हैलाइडों की क्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार होता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 10a
अभिक्रिया द्वारा प्राप्त ऐमीन, HX के साथ क्रिया करके लवण बना देती है जिसकी क्रिया प्रबल क्षार के साथ करवाने पर पुनः ऐमीन प्राप्त हो जाती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 10b
(i) इस अभिक्रिया द्वारा मुख्य उत्पाद के रूप में प्राथमिक ऐमीन प्राप्त करने के लिए अमोनिया को आधिक्य में लिया जाना चाहिए।

(ii) इस अभिक्रिया द्वारा ऐनिलीन बनाना मुश्किल होता है क्योंकि क्लोरो बेन्जीन में +M प्रभाव के कारण कार्बन क्लोरीन बन्ध में द्विबन्ध के गुण आ जाते हैं अतः इसकी क्रियाशीलता कम हो जाती है। इस कारण ऐनिलीन बनाने के लिए निम्नलिखित विशिष्ट विधियों का प्रयोग किया जाता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 10c
(vi) ऐसिलीकरण – ऐलीफैटिक तथा ऐरोमैटिक प्राथमिक एवं ऐसिलीकरण-द्वितीयक ऐमीन, ऐसिड क्लोराइड तथा एसिड एनहाइड्राइड के साथ नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया करते हैं तो इसे ऐसिलीकरण अभिक्रिया कहते हैं। इस अभिक्रिया में -NH2 अथवा > NH समूह में उपस्थित हाइड्रोजन परमाणु का ऐसिल समूह द्वारा प्रतिस्थापन होता है। इस अभिक्रिया में CH3COCl लेने पर इसे ऐसिटिलीकरण (Acetylation) कहते हैं तथा यह अभिक्रिया पिरौडीन की उपस्थिति में की जाती है जिससे प्राप्त HCI का अवशोषण होकर साम्य अग्र दिशा में विस्थापित हो जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 10d
जब ऐमीनों की अभिक्रिया बेन्जॉयल क्लोराइड से करवाते हैं तो इस अभिक्रिया को बेन्जॉयलीकरण ( Benzoylation) कहते हैं तथा वैज्ञानिक के नाम के आधार पर इसे शॉटन बॉमन अभिक्रिया कहा जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 10e
ऐमीन कमरे के ताप पर कार्बोक्सिलिक अम्लों के साथ क्रिया करके लवण बनाती हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 10f

(vii) गैब्रिल थैलिमाइड संश्लेषण द्वारा (By Gabriel Pthallimide Synthesis) – ऐलिफैटक ऐमीन बनाने की यह एक उत्तम विधि है। इस विधि में थैलिमाइड की क्रिया एथेनॉलिक KOH से करवाते हैं तो इसका पोटैशियम लवण बनता है जिसे ऐल्किल हैलाइड के साथ गरम करके क्षारीय जल अपघटन कराने पर प्राथमिक ऐमीन बनते हैं। इस अभिक्रिया द्वारा ऐरोमैटिक प्राथमिक ऐमीन, जैसे ऐनिलीन, सुगमता से नहीं बनती, क्योंकि ऐरिल हैलाइडों की क्रियाशीलता ऐल्किल हैलाइडों से कम होती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 11a

प्रश्न 13.8.
निम्न परिवर्तन निष्पादित कीजिए-
(i) नाइट्रो बेन्जीन से बेन्ज़ोइक अम्ल
(ii) बेन्जीन से m ब्रोमोफ़ीनॉल
(iii) बेन्जोइक अम्ल से ऐनिलीन
(iv) ऐनिलीन से 2,4, 6- ट्राइब्रोमोफ्लुओरोबेन्जीन
(v) बेन्जिल क्लोराइड से 2 फ्रेनिलएथेनेमीन
(vi) क्लोरोबेन्ज़ीन से p-क्लोरोऐनिलीन
(vii) ऐनिलीन से p-ब्रोमोऐनिलीन
(viii) बेन्ज़एमाइड से टॉलुईन
(ix) ऐनीलीन से बेन्ज़ाइल ऐल्कोहॉल।
उत्तर:
(i) नाइट्रोबेन्जीन से बेन्जोइक अम्ल-
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(ii) बेन्जीन से m ब्रोमोफ़ीनॉल
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 12
(iii) बेन्जोइक अम्ल से ऐनिलीन
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 13
(iv) ऐनिलीन से 2,4, 6- ट्राइब्रोमोफ्लुओरोबेन्जीन
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 14
(v) बेन्जिल क्लोराइड से 2 फ्रेनिलएथेनेमीन
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 15
(vi) क्लोरोबेन्ज़ीन से p-क्लोरोऐनिलीन
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 16
(vii) ऐनिलीन से p-ब्रोमोऐनिलीन
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 17
(viii) बेन्ज़एमाइड से टॉलुईन
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 18
(ix) ऐनीलीन से बेन्ज़ाइल ऐल्कोहॉल।
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प्रश्न 13.9.
निम्न अभिक्रियाओं में A, B तथा C की संरचना दीजिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 20
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 21

प्रश्न 13.10.
एक ऐरोमैटिक यौगिक ‘A’ जलीय अमोनिया के साथ गरम करने पर यौगिक ‘B’ बनाता है जो Br, एवं KOH के साथ गरम करने पर अणु सूत्र C. H, N वाला यौगिक ‘C’ बनाता है। A, B एवं C यौगिकों की संरचना एवं इनके आईयूपीएसी नाम लिखिए।
उत्तर:
अभिक्रिया तथा A, B, C व उनके नाम अग्र प्रकार हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 22

प्रश्न 13.11.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं को पूर्ण कीजिए-
(i) C6H5NH2 + CHCl3 + ( ऐल्कोहॉली) KOH →
(ii) C6H5N2Cl + H3PO2 + H2O →
(iii) C6H5NH2 + H2SO4 सांद्र
(iv) C6H5N2Cl + C2H5OH →
(v) C6H5NH2 + Br2 (aq) →
(vi) C6H5NH2 + (CH3CO)2 O
(vii) C6H5N2Cl HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 23
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 24

प्रश्न 13.12.
एैरोमैटिक प्राथमिक ऐमीन को गैब्रिएल थैलिमाइड संश्लेषण से क्यों नहीं बनाया जा सकता?
उत्तर:
ऐरोमैटिक प्राथमिक ऐमीन को गैब्रिएल थैलिमाइड संश्लेषण से नहीं बना सकते क्योंकि ऐरिल हैलाइड में अनुनाद (+M प्रभाव) के कारण कार्बन हैलोजन आंबन्ध में द्विआबन्ध के गुण आ जाते हैं अतः वह प्रबल हो जाता है। इस कारण ऐरिल हैलाइड थैलिमाइड से प्राप्त ऋणायन के साथ नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 13.13.
ऐलिफैटिक एवं ऐरोमैटिक ऐमीनों की नाइट्रस अम्ल से अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
ऐलिफैटिक प्राथमिक ऐमीन नाइट्रस अम्ल के साथ अभिक्रिया’ द्वारा मुख्यतः ऐल्कोहॉल देते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 25
ऐरोमैटिक अम्ल नाइट्रस अम्ल (NaNO2 + HCl) से क्रिया करके डाइएजोनियम लवण बनाते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 26

प्रश्न 13.14.
निम्नलिखित में प्रत्येक का संभावित कारण बताइए-
(i) समतुल्य अणु द्रव्यमान वाले ऐमीनों की अम्लता ऐल्कोहॉलों से कम होती है।
(ii) प्राथमिक ऐमीनों का क्वथनांक तृतीयक ऐमीनों से अधिक होता है।
(iii) ऐरोमैटिक ऐमीनों की तुलना में ऐलीफैटिक ऐमीन प्रबल क्षारक होते हैं।
उत्तर:
(i) समतुल्य अणु द्रव्यमान वाले ऐमीनों की अम्लता ऐल्कोहॉलों से कम होती है क्योंकि ऐमीनों में – NH बन्ध की ध्रुवता ऐल्कोहॉलों के – O-H बन्ध की ध्रुवता से कम होती है क्योंकि ऑक्सीजन की विद्युतऋणता, नाइट्रोजन से अधिक है अतः ऐमीनों में ऐल्कोहॉलों की तुलना में H देने की प्रवृत्ति कम होती है।

(ii) प्राथमिक ऐमीनों में नाइट्रोजन पर दो हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित हैं जिनके कारण इनमें प्रबल अन्तराआण्विक हाइड्रोजन बन्ध होता है जिससे
आण्विक सगुणन (Molecular association) अधिक होता है जबकि तृतीयक ऐमीन में नाइट्रोजन पर हाइड्रोजन परमाणु नहीं होने के कारण हाइड्रोजन बन्ध नहीं बनता अतः प्राथमिक ऐमीनों का क्वथनांक तृतीयक ऐमीनों से अधिक होता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 27

(iii) ऐलिफैटिक ऐमीन में ऐल्किल समूह के + I प्रभाव (इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षी प्रभाव) के कारण नाइट्रोजन पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है अतः – NH2 समूह की इलेक्ट्रॉन युग्म देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है अतः ये अधिक क्षारीय होते हैं जबकि ऐरोमैटिक ऐमीन में – NH2 के नाइट्रोजन परमाणु का एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म बेन्जीन वलय के साथ अनुनाद करता है (+M प्रभाव) जिससे इस पर इलेक्ट्रॉन घनत्व कम हो जाता है तथा इसकी इलेक्ट्रॉन युग्म देने की प्रवृत्ति कम हो जाती है अतः ये कम क्षारीय होते हैं।

HBSE 12th Class Chemistry ऐमीन Intext Questions

प्रश्न 12.1.
निम्न यौगिकों की संरचना लिखिए-
(i) α-मेथॉक्सीप्रोप्रिऑनऐल्डिहाइड
(ii) 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनैल
(iii) 2-हाइड्रॉक्सीसाइक्लोपेन्टेन कार्बैल्डिहाइड
(iv) 4-ऑक्सोपेन्टेनैल
(v) डाइ-द्वितीयकब्यूटिल कीटोन
(vi) 4-क्लोरोऐसीटोफीनॉन
उत्तर:
उपरोक्त यौगिकों की संरचना निम्नलिखित है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 28

प्रश्न 12.2
निम्न अभिक्रियाओं के उत्पादों की संरचना लिखिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 29
उत्तर:
उपरोक्त अभिक्रियाओं के उत्पादों की संरचना अग्र प्रकार है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 30

प्रश्न 12.3.
निम्नलिखित यौगिकों को उनके क्वथनांकों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
CH3CHO, CH3CH2OH, CH3OCH3, CH3CH2CH3
उत्तर:
CH3-CH3-CH3 < CH3-O-CH3 < CH3-CHO< CH3-CH2-OH
क्वथनांकों का बढ़ता क्रम

प्रश्न 12.4.
निम्नलिखित यौगिकों को नाभिकरागी योगात्मक (Addition) अभिक्रियाओं में उनकी बढ़ती हुई अभिक्रियाशीलता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
(क) एथेनैल, प्रोपेनैल, प्रोपेनोन, ब्यूटेनोन
(ख) बेन्जैल्डिहाइ ड, p-टॉलू ऐल्डिहाइ ड, p-नाइट्रोबेन्जैल्डिहाइड, ऐसीटोफीनोन।
संकेत-त्रिविम प्रभाव व इलेक्ट्रॉनिक प्रभाव को ध्यान में रखें।
उत्तर:
उपर्युक्त यौगिकों की नाभिकरागी योगात्मक अभिक्रियाओं में बढ़ती हुई क्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार है-
(क) ब्यूटेनोन < प्रोपेनोन < प्रोपेनैल < एथेनैल
(ख) ऐसीटोफ़ीनोन <p-टॉलूऐल्डिहाइड < बेन्जैल्डिहाइड <p-नाइट्रोबेन्जैल्डिहाइड।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन

प्रश्न 12.5.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के उत्पादों को पहचानिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 31
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 32

प्रश्न 12.6.
निम्नलिखित यौगिकों के आईयूपीएसी नाम दीजिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 33
उत्तर:
उपरोक्त यौगिकों के आईयूपीएसी नाम निम्न प्रकार हैं-
(i) 3-फेनिलप्रोपेनॉइक अम्ल
(ii) 3-मेथिलब्यूट-2-इनोइक अम्ल
(iii) 2-मेथिलसाइक्लोपेन्टेनकार्बोक्सिलिक अम्ल
(iv) 2,4,6-ट्राईनाइट्रोबेन्जोइक अम्ल

प्रश्न 12.7.
निम्नलिखित यौगिकों को बेन्जोइक अम्ल में कैसे परिवर्तित किया जा सकता है?
(i) एथिलबेन्जीन
(ii) ऐसीटोफीनोन
(iii) ब्रोमोबेन्जीन
(iv) फेनिलएथीन (स्टाइरीन)।
उत्तर:
उपर्युक्त यौगिकों को बेन्जोइक अम्ल में निम्न प्रकार परिवर्तित किया जा सकता है-
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प्रश्न 12.8.
नीचे प्रदर्शित अम्लों के प्रत्येक युग्म में कौनसा अम्ल अधिक प्रबल है ?
(i) CH3CO2H अथवा CH2FCO2H
(ii) CH2FCO2H अथवा CH2ClCO2H
(iii) CH2FCH2CH2CO2H अथवा CH2CHFCH2CO2H
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 13 ऐमीन 35
उत्तर:
उपर्युक्त युग्मों में से अधिक प्रबल अम्ल निम्नलिखित हैं-
(i) CH2FCOOH
(ii) CH2FCOOH
(iii) CH2CHFCH2COOH
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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल

प्रश्न 12.1.
निम्नलिखित पदों (शब्दों) से आप क्या समझते हैं? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए-
(i) सायनोहाइड्रिन
(ii) ऐसीटेल
(iii) सेमीकार्बेजोन
(iv) ऐल्डोल
(v) हेमीऐसीटेल
(vi) ऑक्सिम
(vii) कीटेल
(viii) इमीन
(ix) 2,4-DNP व्युत्पन्न
(x) शिफ क्षारक।
उत्तर:
(i) सायनोहाइड्रिन- कार्बोनिल यौगिकों पर HCN के योग से बने यौगिक सायनोहाइड्रिन कहलाते हैं। इनमें OH तथा -CN समूह उपस्थित होते हैं। जैसे-
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(ii) ऐसीटेल ऐल्डिहाइड की दो मोल मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल से क्रिया कराने पर प्राप्त यौगिकों को ऐसीटेल कहते हैं।
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(iii) सेमीकार्बेजोन कार्बोनिल यौगिकों की सेमीकार्बेजाइड से अभिक्रिया कराने पर बने यौगिकों को सेमीकार्बेजोन कहते हैं। जैसे-
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(iv) ऐल्डोल – a-H युक्त ऐल्डिहाइडों का तनु क्षार की उपस्थिति में संघनन करने से बना उत्पाद ऐल्डोल कहलाता है।
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(v) हेमीऐसीटेल – शुष्क HCl की उपस्थिति में ऐल्डिहाइड की मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल के एक मोल के साथ अभिक्रिया कराने पर ऐल्कॉक्सी ऐल्कोहॉल बनते हैं, इन्हें हेमीऐसीटेल कहते हैं।
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(vi) ऑक्सिम – कार्बोनिल यौगिकों की हाइड्रॉक्सिल एमीन से क्रिया कराने से बने उत्पाद ऑक्सिम कहलाते हैं।
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(vii) कीटैल – शुष्क HCl की उपस्थिति में कीटोन, एथिलीन ग्लाइकॉल के साथ अभिक्रिया करके चक्रीय उत्पाद बनाते हैं जिसे एथिलीन ग्लाइकॉल कीटैल कहते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 7

(viii) इमीन – कार्बोनिल यौगिक NH3 के साथ अभिक्रिया करके इमीन बनाते हैं।
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(ix) 2,4-DNP व्युत्पन्न – ऐल्डिहाइड तथा कीटोन 2,4-डाई नाइट्रो फेनिल हाइड्रेजीन (2,4-DNP) से क्रिया करके 2,4-डाईनाइट्रोफेनिल हाइड्रेजोन बनाते हैं, इन्हें 2,4-DNP व्युत्पन्न कहते हैं।
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(x) शिफ – क्षारक – कार्बोनिल यौगिकों की प्राथमिक ऐमीन से क्रिया द्वारा बने उत्पाद प्रतिस्थापित इमीन होते हैं, इन्हें शिफ क्षारक कहते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 10

प्रश्न 12.2.
निम्नलिखित यौगिकों के आईयूपीएसी (IUPAC ) नामपद्धति में नाम लिखिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 11
उत्तर:
इन यौगिकों के IUPAC नाम निम्नलिखित हैं-
(i) 4- मेथिलपेन्टेनैल
(ii) 6- क्लोरो-4 एथिलहेक्सेन 3 ओन
(iii) ब्यूट-2 ईन -1- ऐल
(iv) पेन्टेन-2, 4-डाइओन
(v) 3,3,5 ट्राइमेथिलहेक्सेन-2-ओन
(vi) 3, 3 – डाइमेथिलब्यूटेनॉइक अम्ल
(vii) बेन्जीन-1, 4-डाइकार्बेल्डिहाइड

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प्रश्न 12.3.
निम्नलिखित यौगिकों की संरचना बनाइए-
(i) 3- मेथिल ब्यूटेनैल
(ii) p- नाइट्रोप्रोपिओफीनोन
(iii) p-मेथिलबेन्जेल्डिहाइड
(iv) 4- मेथिलपेन्ट- 3 – ईन- 2- ओन
(v) 4-क्लोरोपेन्टेन- 2- ऑन
(vi) 3- ब्रोमो-4- फेनिल पेन्टेनॉइक अम्ल
(vii) P,p’-डाइहाइड्रॉक्सीबेन्ज़ोफीनोन
(viii) हेक्स-2 ईन- 4 आइनोइक अम्ल।
उत्तर:
इन यौगिकों की संरचना निम्न प्रकार है-
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प्रश्न 12.4.
निम्नलिखित ऐल्डिहाइडों एवं कीटोनों के आईयूपीएसी (IUPAC ) नाम लिखिए और जहाँ संभव हो सके साधारण नाम भी दीजिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 13
(vi) PhCOPh
उत्तर:
इन यौगिकों के IUPAC नाम निम्न प्रकार हैं-
(i) हेप्टेन -2- ओन
(ii) 4- ब्रोमो-2- मेथिलहेक्सेनैल
(iii) हेप्टेनैल
(iv) 3- फ़ेनिलप्रोपीनैल
(v) साइक्लोपेन्टेनकार्बेल्डिहाइड
(vi) डाइफ़ेनिलमेथेनोन
इनके सामान्य (साधारण) नाम निम्न प्रकार होंगे-
(i) मेथिल पेन्टिल कीटोन
(ii) नहीं है
(iii) नहीं है
(iv) सिन्नेमैल्डिहाइड
(v) नहीं है
(vi) बेन्जोफीनॉन

प्रश्न 12.5.
निम्नलिखित व्युत्पन्नों की संरचना बनाइए-
(i) बेन्जेल्डिहाइड का 2, 4- डाइनाइट्रोफेनिलहाइड्रेजोन
(ii) साइक्लोप्रोपेनोन ऑक्सिम
(iii) ऐसीटैल्डिहाइडडाइमेथिलऐसीटैल
(iv) साइक्लोब्यूटेनोन का सेमीकार्बेजोन
(v) हेक्सेन – 3 – ओन का एथिलीन कीटेल
(vi) फॉर्मेल्डिहाइड का मेथिल हेमीऐसीटेल।
उत्तर:
इन व्युत्पन्नों (Derivatives) की संरचना निम्न प्रकार होगी-
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प्रश्न 12.6.
साइक्लोहेक्सेनकार्बेल्डिहाइड की निम्नलिखित अभिकर्मकों के साथ अभिक्रिया से बनने वाले उत्पादों को पहचानिए-
(i) PhMgBr एवं तत्पश्चात् H3O+
(ii) टॉलेन अभिकर्मक
(iii) सेमीकार्बेजाइड एवं दुर्बल अम्ल
(iv) एथेनॉल का आधिक्य तथा अम्ल
(v) जिंक अमलगम एवं तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल।
उत्तर:
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प्रश्न 12.7.
निम्नलिखित में से कौनसे यौगिकों में ऐल्डोल संघनन होगा, किनमें कैनिज़ारो अभिक्रिया होगी और किनमें उपरोक्त में से कोई क्रिया नहीं होगी? ऐल्डोल संघनन तथा कैनिज़ारो अभिक्रिया में संभावित उत्पादों की संरचना लिखिए।
(i) मेथेनैल
(ii) 2- मेथिलपेन्टेनैल
(iii) बेन्ज़ैल्डिहाइड
(iv) बेन्ज़ोफ़ीनॉन
(v) साइक्लोहेक्सेनोन
(vi) 1 – फेनिलप्रोपेनोन
(vii) फेनिलऐसीटैल्डिहाइड
(viii) ब्यूटेन – 1- ऑल
(ix) 2,2 – डाइमेथिलब्यूटेनैल।
उत्तर:
उपर्युक्त में से निम्नलिखित यौगिक ऐल्डोल संघनन देते हैं- (ii), (v), (vi), (vii); निम्नलिखित यौगिक कैनिज़ारो अभिक्रिया दर्शाते हैं- (i), (iii), (ix) तथा निम्नलिखित यौगिक दोनों ही अभिक्रिया नहीं दर्शाते- (iv), (viii).
संभावित उत्पादों की संरचना निम्न प्रकार होगी-
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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल

प्रश्न 12.8.
ऐथेनैल को निम्नलिखित यौगिकों में कैसे परिवर्तित करेंगे?
(i) ब्यूटेन-1, 3-डाई ऑल
(ii) ब्यूट-2-ईनैल
(iii) ब्यूट-2-इनॉइक अम्ल।
उत्तर:
(i) एथेनैल से ब्यूटेन-1, 3-डाईऑल-
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(ii) एथेनैल से ब्यूट-2-ईनैल
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(iii) एथेनैल से ब्यूट-2-इनॉइक अम्ल-
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प्रश्न 12.9.
प्रोपेनैल एवं ब्यूटेनैल के एल्डोल संघनन से बनने वाले चार संभावित उत्पादों के नाम एवं संरचना सूत्र लिखिए | प्रत्येक में बताइए कि कौन-सा ऐल्डिहाइड नाभिकरागी और कौन – सा इलेक्ट्रॉनरागी होगा ?
उत्तर:
प्रोपेनैल एवं ब्यूटेनैल के ऐल्डोल संघनन से बनने वाले चार उत्पाद निम्नलिखित हैं-
(i) प्रोपेनैल से बना उत्पाद-
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(ii) ब्यूटेनैल से बना उत्पाद-
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(iii) प्रोपेनैल नाभिकरागी तथा ब्यूटेनैल इलेक्ट्रॉनरागी होने पर बना उत्पाद-
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(iv) ब्यूटेनैल नाभिकरागी तथा प्रोपेनैल इलेक्ट्रॉनरागी होने पर बना उत्पाद –
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प्रश्न 12.10.
एक कार्बनिक यौगिक जिसका अणुसूत्र C9H10O है 2,4 DNP व्युत्पन्न बनाता है, टॉलेन अभिकर्मक को अपचित करता है तथा कैनिज़ारो अभिक्रिया देता है। प्रबल ऑक्सीकरण पर वह 1, 2 – बेन्ज़ीनडाईकार्बोक्सिलिक अम्ल बनाता है। यौगिक को पहचानिए।
उत्तर:
यह कार्बनिक यौगिक 2,4-DNP व्युत्पन्न बनाता है। अतः यह कार्बोनिल यौगिक ( ऐल्डिहाइड या कीटोन) होगा लेकिन यह टॉलेन अभिकर्मक को अपचित ( reduced ) कर रहा है। अतः यह ऐल्डिहाइड है तथा यह कैनिज़ारो अभिक्रिया दे रहा है। अतः इसमें a-H अनुपस्थित है। इसके आक्सीकरण से 1, 2 – बेन्जीनडाईकार्बोक्सिलिक अम्ल बनता है ।
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ऑक्सीकरण के बाद बने उत्पाद से यह सिद्ध होता है कि इसमें एक बेन्जीन वलय है, एक – COOH समूह -CHO समूह के ऑक्सीकरण से तथा दूसरा – COOH समूह ऐल्किल समूह के ऑक्सीकरण से प्राप्त होगा। अतः अणुसूत्र के अनुसार इसका संरचना सूत्र निम्न प्रकार होगा-
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प्रश्न 12.11.
एक कार्बनिक यौगिक ‘क’ (आण्विक सूत्र, C8H16O2) को तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ जल अपघ करने के उपरांत एक कार्बोक्सिलिक अम्ल ‘ख’ एवं एक ऐल्कोहॉल ‘ग’ प्राप्त हुई। ‘ग’ को क्रोमिक अम्ल के साथ ऑक्सीकृत करने पर ‘ख’ उत्पन्न होता है। ‘ग’ निर्जलीकरण पर ब्यूट- 1 – ईन देता है। अभिक्रियाओं में प्रयुक्त होने वाली सभी रासायनिक समीकरणों को लिखिए।
उत्तर:
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(ग) के निर्जलीकरण से ब्यूट- 1 -ईन बनता है। इसमें चार कार्बन परमाणु हैं अतः अन्य उत्पाद (ख) में भी चार कार्बन होंगे तथा इसमें अन्तस्थ – COOH होगा। अतः यौगिक- क, ख तथा ग निम्नलिखित है-
(क) CH3 – CH2 – CH2 – COO CH2 – CH2-CH2-CH3 ब्यूटिल ब्यूटेनॉएट (एस्टर)
(ख) CH3-CH2-CH2 – COOH (ब्यूटेनॉइक अम्ल)
(ग) CH3-CH2-CH2 – CH2 – OH ( ब्यूटेन – 1-ऑल )

तथा अभिक्रियाओं के समीकरण निम्न प्रकार होंगे-
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प्रश्न 12.12.
निम्नलिखित यौगिकों को उनसे सम्बन्धित (कोष्ठकों में दिए गये) गुणधर्मों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए- (i) ऐसीटैल्डिहाइड, ऐसीटोन, डाइ-तृतीयक ब्यूटिलकीटोन, मेथिलतृतीयक ब्यूटिलकीटोन (HCN के प्रति अभिक्रियाशीलता) ।
(ii) CH3CH2CH(Br) COOH, CH3CH(Br)CH2COOH (CH3)2CHCOOH, CH3CH2CH2 COOH (अम्लता के क्रम में ) ।
(iii) बेन्जोइक अम्ल; 4- नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल; 3,4- डाईनाइट्रोबेन्जोइक अम्ल 4- मेथॉक्सी बेन्जोइक अम्ल (अम्लता की सामर्थ्य के क्रम में) ।
उत्तर:
(i) ऐल्डिहाइड तथा कीटोन की नाभिकरागी संकलन के लिए क्रियाशीलता + I प्रभाव तथा त्रिविम विन्यासी बाधा पर निर्भर करती है। अतः इनकी HCN के प्रति अभिक्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार होगा-
डाइ तृतीयक ब्यूटिल कीटोन < मेथिल तृतीयक ब्यूटिल कोटोन < ऐसीटोन < ऐसिटैल्डिहाइड

(ii) कार्बोक्सिलिक अम्लों का अम्लीय गुण, प्रेरणिक प्रभाव (+I तथा-I) तथा विभिन्न समूहों की स्थिति पर निर्भर करता है। अतः इनके अम्लीय गुण का क्रम निम्न प्रकार होगा-
(CH3), CHCOOH < CH3CH2CH2COOH < CH3 CH(Br)CH2COOH – CH3CH2CH( Br)COOH

(iii) 4- मेथॉक्सीबेन्जोइक अम्ल बेन्जोइक अम्ल <4- नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल < 3, 4 डाइनाइट्रोबेन्जोइक अम्ल
(अम्लता की सामर्थ्य का बढ़ता क्रम )
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प्रश्न 12.13.
निम्नलिखित यौगिक युगलों में विभेद करने के लिए सरल रासायनिक परीक्षणों को दीजिए-
(i) प्रोपेनैल एवं प्रोपेनोन
(ii) ऐसीटोफ़ीनॉन एवं बेन्जोफ़ीनॉन
(iii) फ़ीनॉल एवं बेन्जोइक अम्ल
(iv) बेन्जोइक अम्ल एवं एथिलबेन्जोएट
(v) पेन्टेन 2 ऑन एवं पेन्टेन 3-ऑन
(vi) बेन्जेल्डिहाइड एवं एसीटोफ़ीनॉन
(vii) एथेनैल एवं प्रोपेनैल।
उत्तर:
(i) प्रोपेनैल एवं प्रोपेनोन में विभेद – प्रोपेनैल (CH3CH2CHO) एक ऐल्डिहाइड है जबकि (CH3COCH3) एक मेथिल कीटोन है। इनमें निम्न परीक्षणों द्वारा विभेद किया सकता है-
(1) आयोडोफॉर्म परीक्षण जलीय NaOH तथा I के साथ गर्म करने पर प्रोपेनैल में कोई क्रिया नहीं होती जबकि प्रोपेनोन द्वारा आयोडोफॉर्म बनने के कारण पीला अवक्षेप आता है।
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(2) टॉलेन अभिकर्मक (अमोनिकल सिल्वर नाइट्रेट) के साथ गर्म करने पर प्रोपेनैल रजत दर्पण देता है (रजत दर्पण परीक्षण) जबकि प्रोपेनोन में कोई क्रिया नहीं होती।

(3) फेलिंग विलयन के साथ गर्म करने पर प्रोपेनैल से लाल अवक्षेप बनता है जबकि प्रोपेनोन से कोई अभिक्रिया नहीं होती।

(ii) ऐसीटोफ़ीनॉन एवं बेन्जोफ़ीनॉन में विभेद – ऐसीटोफ़ीनॉन (CH3COC6H5) एक सेथिल कीटोन है अतः यह आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है जबकि बेन्ज़ोफ़ीनॉन HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 30 यह परीक्षण नहीं देता।

(iii) फ़ीनॉल एवं बेन्जोइक अम्ल में विभेद-
(1) फ़ीनॉल NaHCO3 विलयन के साथ कोई क्रिया नहीं करता जबकि बेन्जोइक अम्ल NaHCO3 विलयन के साथ क्रिया करके CO2 गैस देता है।
C6H5COOH + NaHCO3 → C6H5COONa + CO2↑+ H2O

(2) उदासीन FeCl3 विलयन के साथ फ़ीनॉल बैंगनी (Violet) रंग देता है जबकि बेन्जोइक अम्ल के साथ इसकी कोई क्रिया नहीं होती।

(iv) बेन्जोइक अम्ल एवं एथिलबेन्जोएट में विभेद-
(1) बेन्जोइक अम्ल (C6H5COOH) अम्लीय है। अतः यह नीले लिटमस को लाल करता है जबकि एथिल बेन्जोएट (C6H5COOC2H5) ‘एस्टर है अतः यह नीले लिटमस से कोई क्रिया नहीं करता।

(2) बेन्जोइक अम्ल NaHCO3 विलयन के साथ क्रिया करके CO2 गैस की बुदबुदाहट देता है जबकि एथिल बेन्जोएट की NaHCO विलयन के साथ कोई क्रिया नहीं होती।

(v) पेन्टेन 2 ऑन एवं पेन्टेन 3-ऑन में विभेद – पेन्टेन- 2-ऑन HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 31 एक मैथिल कीटोन है अतः यह आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है जबकि पेन्टेन 3 ऑन HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 32में यह परीक्षण नहीं होता।

(vi) बेन्जेल्डिहाइड एवं ऐसीटोफ़ीनॉन में विभेद-
(1) बेन्जेल्डिहाइड (C6H5CHO) एक ऐल्डिहाइड है जबकि ऐसीटोफ़ीनॉन HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 33एक मैथिल कीटोन है अतः ऐसीटोफ़ीनॉन, आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है जबकि बेन्जेल्डिहाइड यह परीक्षण नहीं देता है।

(2) बेन्जेल्डिहाइड टॉलेन अभिकर्मक ऑक्सीकृत हो जाता है, जबकि ऐसीटोफ़ीनॉन इससे क्रिया नहीं करता।

(vii) ऐथेनैल एवं प्रोपेनैल में विभेद – एथेनैल आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है जबकि प्रोपेनैल (CH3CH2 – CHO) यह परीक्षण नहीं देता।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 34

प्रश्न 12.14.
बेन्जीन से निम्नलिखित यौगिकों का विरचन आप किस प्रकार करेंगे? आप कोई भी अकार्बनिक अभिकर्मक एवं कोई भी कार्बनिक अभिकर्मक, जिसमें एक से अधिक कार्बन न हो, का उपयोग कर सकते हैं।
(i) मेथिल बेन्जोएट
(ii) m- नाइट्रोबेन्ज़ोइक अम्ल
(iii) p- नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल
(iv) फ़ेनिल ऐसीटिक अम्ल
(v) p-नाइट्रोबेन्ज़ैल्डिहाइड।
उत्तर:
(i) बेन्जीन से मेथिल बेन्ज़ोएट-
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(ii) बेन्जीन से m-नाइट्रोबेन्ज़ोइक अम्ल-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 35a
(iii) बेन्जीन से p-नाइट्रोबेन्ज़ोइक अम्ल-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 35b
(iv) बेन्जीन से फ़ेनिल ऐसीटिक अम्ल-
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(v) बेन्जीन से p-नाइट्रोबेन्ज़ैल्डिहाइड-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 35d

प्रश्न 12.15.
आप निम्नलिखित रूपांतरणों को अधिकतम दो चरणों में किस प्रकार से सम्पन्न करेंगे ?
(i) प्रोपेनोन से प्रोपीन
(ii) बेन्जोइक अम्ल से बेन्ज़ैल्डिहाइड
(iii) ऐथेनॉल से 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनैल
(iv) बेन्ज़ीन से m – नाइट्रोऐसीटोफ़ीनॉन
(v) बेन्ज़ैल्डिहाइड से बेन्ज़ोफ़ीनॉन
(vi) ब्रोमोबेन्जीन से 1 – फेनिलएथेनॉल
(vii) बेन्ज़ैल्डिहाइड से 3- फेनिलप्रोपेन- 1 – ऑल
(viii) बेन्ज़ैल्डिहाइड से – हाइड्रॉक्सीफ़ेनिलऐसीटिक अम्ल
(ix) बेन्जोइक अम्ल से m- नाइट्रोबेन्जिल ऐल्कोहॉल।
उत्तर:
(i) प्रोपेनोन से प्रोपीन
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(ii) बेन्जोइक अम्ल से बेन्ज़ैल्डिहाइड
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(iii) ऐथेनॉल से 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनैल
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(iv) बेन्ज़ीन से m – नाइट्रोऐसीटोफ़ीनॉन
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 39

(v) बेन्ज़ैल्डिहाइड से बेन्ज़ोफ़ीनॉन
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 40

(vi) ब्रोमोबेन्जीन से 1 – फेनिलएथेनॉल
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 41

(vii) बेन्ज़ैल्डिहाइड से 3- फेनिलप्रोपेन- 1 – ऑल
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 42

(viii) बेन्ज़ैल्डिहाइड से – हाइड्रॉक्सीफ़ेनिलऐसीटिक अम्ल
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 43

(ix) बेन्जोइक अम्ल से m- नाइट्रोबेन्जिल ऐल्कोहॉल।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 44

प्रश्न 12.16.
निम्नलिखित पदों (शब्दों) का वर्णन करो-
(i) ऐसीटिलन ( ऐसीटिलीकरण)
(ii) कैनिज़ारो अभिक्रिया
(iii) क्रॉस ऐल्डोल संघनन
(iv) विकार्बोक्सिलन (विकार्बोक्सिलीकरण) ।
उत्तर:
(i) ऐसीटिलन या ऐसीटिलीकरण – निर्जल ऐलुमिनियम क्लोराइड (AlCl3) की उपस्थिति में बेन्जीन अथवा प्रतिस्थापित बेन्जीन, अम्ल क्लोराइड के साथ अभिक्रिया कर संगत कीटोन देते हैं। इसे फ्रीडेल- क्राफ्ट्स ऐसीटिलन अभिक्रिया कहते हैं ।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 45a
लेकिन सक्रिय H युक्त यौगिक जैसे ऐल्कोहॉल (ROH) फ़ीनॉल (C6H5OH) तथा ऐमीन्स (R – NH2) की क्रिया बिना उत्प्रेरक के CH3COCl से कराने पर H+ के स्थान परHBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 45 आ जाता है। इसे ऐसीटिलन अभिक्रिया कहते हैं।

(ii) कैनिज़ारो अभिक्रिया – वे ऐल्डिहाइड, जिनमें – हाइड्रोजन परमाणु नहीं होते, सांद्र क्षार (NaOH या KOH) की उपस्थिति में स्वऑक्सीकरण तथा अपचयन (असमानुपातन) दर्शाते हैं। इस अभिक्रिया में ऐल्डिहाइड का एक अणु ऐल्कोहॉल में अपचयित होता है जबकि दूसरा अणु कार्बोक्सिलिक अम्ल के लवण में ऑक्सीकृत हो जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 46

(iii) क्रॉस ऐल्डोल संघनन – जब दो भिन्न ऐल्डिहाइड या कीटोन के मध्य ऐल्डोल संघनन होता है तो उसे क्रॉस ऐल्डोल संघनन कहते हैं। यदि दोनों यौगिकों में α-हाइड्रोजन हो तो चार उत्पादों का मिश्रण प्राप्त होता है। जैसे एथेनैल व प्रोपेनैल के मिश्रण की ऐल्डोल संघनन अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 47
क्रॉस ऐल्डोल संघनन में कीटोन भी प्रयुक्त हो सकते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 48

(iv) विकार्बोक्सिलन – कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम लवणों को सोडालाइम (NaOH तथा CaO, ( 3:1) का मिश्रण ) के साथ गरम करने पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है एवं हाइड्रोकार्बन प्राप्त होते हैं। यह अभिक्रिया विकार्बोक्सिलन या विकार्बोक्सिलीकरण कहलाती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 49

प्रश्न 12.17.
निम्नलिखित प्रत्येक संश्लेषण में छूटे हुए प्रारम्भिक पदार्थ, अभिकर्मक अथवा उत्पादों को लिखकर पूर्ण कीजिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 50
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 51

प्रश्न 12.18.
निम्नलिखित के सम्भावित कारण दीजिए-
(i) साइक्लोहेक्सेनोन अच्छी लब्धि में सायनोहाइड्रिन बनाता है। परन्तु 2, 2, 6- ट्राइमेथिलसाइक्लोहेक्सेनोन ऐसा नहीं करता ।
(ii) सेमीकार्बेज़ाइड में दो – NH2 समूह होते हैं, परन्तु केवल एक – NH2 समूह ही सेमीकार्बेजोन विरचन में प्रयुक्त होता है।
(iii) कार्बोक्सिलिक अम्ल एवं ऐल्कोहॉल से, अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में एस्टर के विरचन के समय जल अथवा एस्टर जैसे ही निर्मित होता है उसको निकाल दिया जाना चाहिए।
उत्तर:
(i) साइक्लोहेक्सेनोन का कार्बोनिल समूह ध्रुवीय होता है। अतः इस पर HCN का नाभिकस्नेही संकलन आसानी से होकर अच्छी लब्धि में सायनोहाइड्रिन बन जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 52
लेकिन 2,2,6-ट्राइमेथिलसाइक्लोहेक्सेनोन में उपस्थित तीन मेथिल समूहों के +I प्रभाव (इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षी प्रभाव) के कारण कार्बोनिल समूह की ध्रुवता कम हो जाती है तथा इन तीन मेथिल समूहों की त्रिविम विन्यासी बाधा के कारण नाभिकस्नेही (CN) का आक्रमण मुश्किल होता है। अतः इस पर HCN के योग से प्राप्त सायनोहाइड्रिन की लब्धि बहुत कम होती
है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल

(ii) सेमीकार्बोजाइड में उपस्थित दो – NH2 समूह में से केवल एक -NH2 समूह ही सेमीकार्बेजोन बनाने में प्रयुक्त होता है, क्योंकि >C = 0 समूह के पास वाले -NH2 समूह के – N-H बन्ध अनुनाद के कारण प्रबल होते हैं जबकि -NH- के पास वाले – NH2 समूह के -N-H बन्ध दुर्बल होते हैं क्योंकि इनमें अनुनाद नहीं होता अतः ये अभिक्रिया में भाग लेते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 53
कार्बोक्सिलिक अम्ल की ऐल्कोहॉल से क्रिया द्वारा एस्टर बनने की अभिक्रिया उत्क्रमणीय होती है अतः एस्टर बनते ही वह वापस जल से क्रिया करके अम्ल तथा ऐल्कोहॉल बना देता है। अतः अभिकारकों एवं उत्पादों के मध्य साम्य स्थापित हो जाता है इसलिए जल या एस्टर को बनते ही अभिक्रिया मिश्रण से निकाल देने पर साम्य अग्र दिशा में विस्थापित हो जाता है जिससे एस्टर अधिक मात्रा में बनता है।

प्रश्न 12.19.
एक कार्बनिक यौगिक में 69.77% कार्बन, 11.63% हाइड्रोजन तथा शेष ऑक्सीजन है। यौगिक का आण्विक द्रव्यमान 86 है। यह टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित नहीं करता परन्तु सोडियम हाइड्रोजन सल्फाइट के साथ योगज यौगिक देता है तथा आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है। प्रबल ऑक्सीकरण पर एथेनॉइक तथा प्रोपेनॉइक अम्ल देता है। यौगिक की संभावित संरचना लिखिए।
उत्तर:
यौगिक में उपस्थित कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन की % मात्रा के आधार पर यौगिक का अणुसूत्र निम्न प्रकार ज्ञात किया जाता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 54
अतः यौगिक का अणुसूत्र C5H10O होगा क्योंकि इसका अणुभार 86 है।

प्रश्नानुसार यौगिक टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित नहीं करता। अतः यह ऐल्डिहाइड नहीं है, लेकिन सोडियम हाइड्रोजन सल्फाइट (NaHSO3) के साथ योगज यौगिक बनाता है तथा आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है अतः यह मेथिल कीटोन है इसलिए इसका संरचना सूत्र HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 55होगा ।

रासायनिक अभिक्रियाएँ निम्न प्रकार होंगी-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 56

आयोडोफॉर्म परीक्षण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 57

ऑक्सीकरण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल 58

प्रश्न 12.20
यद्यपि फ़ीनॉक्साइड आयन की अनुनादी संरचनाएँ कार्बोक्सिलेट आयन की तुलना में अधिक हैं परन्तु कार्बोक्सिलिक अम्ल फ़ीनॉल की अपेक्षा प्रबल अम्ल है। क्यों?
उत्तर:
फ़ीनॉक्साइड आयन में ऋणात्मक आवेश केवल एक ऑक्सीजन परमाणु तथा कम विद्युतऋणी कार्बन पर वितरित होता है, जबकि कार्बोक्सिलेट आयन में ऋणात्मक आवेश दो ऑक्सीजन परमाणुओं पर वितरित होता है, अतः इसमें ऋणात्मक आवेश का विस्थानीकरण, फ़ीनॉक्साइड आयन में अधिक होता है इसलिए इसका अनुनाद स्थायीकरण अधिक होता है। इसलिए कार्बोक्सिलिक अम्ल, फ़ीनॉल की अपेक्षा प्रबल अम्ल है।

HBSE 12th Class Chemistry ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल Intext Questions

प्रश्न 12.1.
निम्न यौगिकों की संरचना लिखिए-
(i) α-मेथॉक्सीप्रोप्रिऑनऐल्डिहाइड
(ii) 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनैल
(iii) 2-हाइड्रॉक्सीसाइक्लोपेन्टेन कार्बैल्डिहाइड
(iv) 4-ऑक्सोपेन्टेनैल
(v) डाइ-द्वितीयकब्यूटिल कीटोन
(vi) 4-क्लोरोऐसीटोफीनॉन
उत्तर:
उपरोक्त यौगिकों की संरचना निम्नलिखित है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 1

प्रश्न 12.2.
निम्न अभिक्रियाओं के उत्पादों की संरचना लिखिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 2
उत्तर:
उपरोक्त अभिक्रियाओं के उत्पादों की संरचना अग्र प्रकार है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 3

प्रश्न 12.3.
निम्नलिखित यौगिकों को उनके क्वथनांकों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
CH<3CHO, CH3CH2OH, CH3OCH3, CH3CH2CH3
उत्तर:
CH<3-CH<2-CH<3 < CH<3-O-CH<3 < CH<3-CHO < CH<3-CH<2-OH
क्वथनांकों का बढ़ता क्रम

प्रश्न 12.4.
निम्नलिखित योगिका को नाभकरागा योगात्मक (Addition) अभिक्रियाओं में उनकी बढ़ती हुई अभिक्रियाशीलता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
(क) एथेनैल, प्रोपेनैल, प्रोपेनोन, ब्यूटेनोन
(ख) बेन्जैल्डिहाइ ड, p-टॉॅलू ऐल्डिहाइड, p-नाइट्रोबेन्जैल्डिहाइड, ऐसीटोफीनोन।
संकेत-त्रिविम प्रभाव व इलेक्ट्रॉनिक प्रभाव को ध्यान में रखें।
उत्तर:
उपर्युक्त यौगिकों की नाभिकरागी योगात्मक अभिक्रियाओं में बढ़ती हुई क्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार है-
(क) ब्यूटेनोन < प्रोपेनोन < प्रोपेनैल < एथेनैल
(ख) ऐसीटोफ़ीनोन <p-टॉलूऐल्डिहाइड < बेन्जैल्डिहाइड

प्रश्न 12.5.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के उत्पादों को पहचानिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 4

प्रश्न 12.6.
निम्नलिखित यौगिकों के आईयूपीएसी नाम दीजिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 5
उत्तर:
उपरोक्त यौगिकों के आईयूपीएसी नाम निम्न प्रकार हैं-
(i) 3-फेनिलप्रोपेनॉइक अम्ल
(ii) 3-मेथिलब्यूट-2-इनोइक अम्ल
(iii) 2-मेथिलसाइक्लोपेन्टेनकार्बोक्सिलिक अम्ल
(iv) 2,4,6-ट्राईनाइट्रोबेन्जोइक अम्ल

प्रश्न 12.7.
निम्नलिखित यौगिकों को बेन्जोइक अम्ल में कैसे परिवर्तित किया जा सकता है?
(i) एथिलबेन्जीन
(ii) ऐसीटोफीनोन
(iii) ब्रोमोबेन्जीन
(iv) फेनिलएथीन (स्टाइरीन)।
उत्तर:
उपर्युक्त यौगिकों को बेन्जोइक अम्ल में निम्न प्रकार परिवर्तित किया जा सकता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 6

प्रश्न 12.8.
नीचे प्रदर्शित अम्लों के प्रत्येक युग्म में कौनस अम्ल अधिक प्रबल है?
(i) CH3CO2H अथवा CH2FCO2H
(ii) CH2FCO2H अथवा CH2CICO2H
(iii) CH2FCH2CH2CO2H
अथवा CH3CHFCH2CO2H
(iv) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 7
उत्तर:
उपर्युक्त युग्मों में से अधिक प्रबल अम्ल निम्नलिखित हैं-
(i) CH2FCOOH
(ii) CH2FCOOH
(iii) CH3CHFCH2COOH
(iv) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 8

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर

प्रश्न 11.1.
निम्नलिखित यौगिकों के आई यूपीएसी (IUPAC) नाम लिखिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 1
उत्तर:
(i) 2,2,4-ट्राइमेथिल पेन्टेन-3-ऑल
(ii) 5-एथिल हेप्टेन-2, 4-डाइऑल
(iii) ब्यूटेन-2, 3-डाइऑल
(iv) प्रोपेन-1, 2, 3-ट्राइऑल
(v) 2-मेथिल फीनॉल
(vi) 4-मेथिल फीनॉल
(vii) 2, 5-डाइमेथिल फीनॉल
(viii) 2, 6-डाइमेथिल फीनॉल
(ix) 1-मेथॉक्सी-2-मेथिल प्रोपेन
(x) एथॉक्सी बेन्जीन
(xi) 1-फीनॉक्सी हेप्टेन
(xii) 2-एथॉक्सी ब्यूटेन

प्रश्न 11.2.
निम्नलिखित आईयूपीएसी (IUPAC) नाम वाले यौगिकों की संरचनाएँ लिखिए-
(i) 2-मेथिल ब्यूटेन-2-ऑल
(ii) 1-फेनिल प्रोपेन-2-ऑल
(iii) 3,5-डाइमेथिल हैक्सेन-1,3,5-ट्राइऑल
(iv) 2,3-डाइएथिलफ़ीनॉल
(v) 1-एथॉक्सीप्रोपेन
(vi) 2-एथॉक्सी-3-मेथिलपेन्टेन
(vii) साइक्लोहैक्सिलमेथेनॉल
(viii) 3-साइक्लोहैक्सिलपेन्टेन-3-ऑल
(ix) साइक्लोपेन्टेन-3-ईन-1-ऑल
(x) 4-क्लोरो-3-एथिलब्यूटेन-1-ऑल
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 2

प्रश्न 11.3.
(i) C5H12O आण्विक सूत्र वाले ऐल्कोहॉलों के सभी समावयवों की संरचना लिखिए एवं उनके आईयूपीएसी (IUPAC) नाम दीजिए।
(ii) C5H12O के समावयवी ऐल्कोहॉलों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्कोहॉलों में वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 3

प्रश्न 11.4.
समझाइए कि प्रोपेनॉल का क्वथनांक, हाइड्रोकार्बन ब्यूटेन से अधिक क्यों होता है?
उत्तर:
प्रोपेनॉल का क्वथनांक, हाइड्रोकार्बन ब्यूटेन से अधिक होता है क्योंकि प्रोपेनॉल में प्रबल अंतरा – आण्विक हाइड्रोजन बन्ध पाया जाता है जिसे तोड़ने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जबकि ब्यूटेन में अणुओं के मध्य दुर्बल वान्डरवाल बल पाया जाता है जिसे तोड़ने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर

प्रश्न 11.5.
समतुल्य आण्विक द्रव्यमान वाले हाइड्रोकार्बनों की अपेक्षा ऐल्कोहॉल जल में अधिक विलेय होते हैं? इस तथ्य को समझाइए।
उत्तर:
ऐल्कोहॉलों में ध्रुवीय – OH समूह उपस्थित होने के कारण ये जल के साथ आसानी से हाइड्रोजन बन्ध बना लेते हैं जबकि हाइड्रोकार्बन, जल के साथ हाइड्रोजन बन्ध नहीं बना सकते। अतः समतुल्य आण्विक द्रव्यमान वाले हाइड्रोकार्बनों की अपेक्षा ऐल्कोहॉल जल में अधिक विलेय होते हैं।

प्रश्न 11.6.
हाइड्रोबोरॉनन – ऑक्सीकरण अभिक्रिया से आप क्या समझते हैं? इसे उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
हाइड्रोबोरॉनन-ऑक्सीकरण (Hydroboronation- Oxidation)-डाइबोरेन (B2H6), ऐल्कीनों से अभिक्रिया करके एक
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 4
योगोत्पाद (Addition Product ) ट्राइऐल्किन बोरेन बनाता है जो जलीय NaOH की उपस्थिति में H2O2 द्वारा ऑक्सीकृत होकर ऐल्कोहॉल देता है। इसे हाइड्रोबोरॉनन-ऑक्सीकरण अभिक्रिया कहते हैं।

इस अभिक्रिया में ऐल्कोहॉलों की लब्धि अधिक होती है तथा इसमें अप्रत्यक्ष विधि से एल्कीन का जलयोजन (मार्कोनीकॉफ के नियम के विपरीत) होता है।

प्रश्न 11.7.
आण्विक सूत्र C7H8O वाले मोनोहाइड्रिक फीनॉलों की संरचनाएँ तथा IUPAC (आईयूपीएसी) नाम लिखिए।
उत्तर:
आण्विक सूत्र C7H8O से तीन मोनोहाइड्रिक फीनॉल संभव हैं जो निम्न प्रकार हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 5

प्रश्न 11.8.
ऑर्थो तथा पैरा- नाइट्रोफीनॉलों के मिश्रण को भाप – आसवन द्वारा पृथक् करने में भाप – वाष्पशील समावयवी का नाम बताइए। इसका कारण दीजिए।
उत्तर:
o – नाइट्रो फ़ीनॉल अंतः अणुक हाइड्रोजन बन्ध (Intramolecular H – bond) के कारण भाप में वाष्पशील है क्योंकि इसमें अन्तराअणुक बल, p- समावयवी की तुलना में दुर्बल होता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 6

प्रश्न 11.9.
क्यूमीन से फीनॉल बनाने की अभिक्रिया का समीकरण दीजिए ।
उत्तर:
क्यूमीन (आइसोप्रोपिल बेन्जीन) को पहले वायु (O2) के द्वारा हाइड्रोपरॉक्साइड में ऑक्सीकृत करते हैं फिर इसकी तनु अम्ल (H2SO4) के साथ क्रिया करवाने पर यह फीनॉल तथा ऐसीटोन में विघटित हो जाता है।
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प्रश्न 11.10.
क्लोरोबेन्जीन से फीनॉल बनाने की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
क्लोरोबेन्जीन को 623 K ताप एवं लगभग 300 वायुमण्डलीय दाब पर NaOH के साथ संगलित करने पर सोडियम फीनॉक्साइड बनता है जिसकी तनु अम्ल के साथ क्रिया कराने पर फीनॉल बनता है।
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प्रश्न 11.
11 एथीन के जलयोजन (Hydration) से एथेनॉल प्राप्त करने की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर:
एथीन का जलयोजन – तनु अम्ल (HCl, H2SO4) उपस्थिति में एल्कीन की जल के साथ अभिक्रिया से ऐल्कोहॉल बनता है तथा असममित ऐल्कीनों में योगात्मक अभिक्रिया मार्कोनीकॉफ के नियम के अनुसार होती है।

एथीन का जलयोजन निम्न प्रकार होता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 9
क्रियाविधि – इस अभिक्रिया की क्रियाविधि में निम्नलिखित तीन पद होते हैं-
पद 1-H3O+ के इलेक्ट्रॉनस्नेही के आक्रमण के द्वारा ऐल्कीन के प्रोटोनीकरण (Protonation) से कार्बोकैटायन बनता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 10
पद 2-कार्बोकैटायन पर जल का नाभिकस्नेही (Nucleophyllic) आक्रमण
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 11
पद 3-विप्रोटोनीकरण (deprotonation) जिससे ऐल्कोहॉल बनता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 12

प्रश्न 11.12.
आपको बेन्जीन, सान्द्र H2SO4 और NaOH दिए गए हैं। इन अभिकर्मकों के उपयोग द्वारा फीनॉल के विरचन की समीकरण लिखिए।
उत्तर:
पहले बेन्जीन का ओलियम ( सधूम H2SO4) द्वारा सल्फोनीकरण किया जाता है तथा इससे प्राप्त बेन्जीन सल्फोनिक अम्ल को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ संगलित करने से सोडियम फीनॉक्साइड प्राप्त होता है। प्राप्त सोडियम फीनॉक्साइड की तनु अम्ल से क्रिया कराने पर फीनॉल प्राप्त हो जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 13

प्रश्न 11.13.
आप निम्नलिखित को कैसे संश्लेषित करेंगे ? दर्शाइए।
(i) एक उपयुक्त ऐल्कीन 1- फेनिलएथेनॉल
(ii) SN2 अभिक्रिया द्वारा ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल
(iii) एक उपयुक्त ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से पेन्टेन -1- ऑल।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 14

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर

प्रश्न 11.14.
ऐसी दो अभिक्रियाएँ दीजिए जिनसे फीनॉल की अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित होती हो। फीनॉल की अम्लता की तुलना एथेनॉल से कीजिए |
उत्तर:
निम्नलिखित अभिक्रियाओं से फीनॉल की अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित होती है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 15

प्रश्न 11.15.
समझाइए कि ऑर्थो नाइट्रोफीनॉल, ऑर्थो- मेथॉक्सी फीनॉल से अधिक अम्लीय क्यों होती है ?
उत्तर:
ऑर्थो – नाइट्रोफीनॉल, ऑर्थो मेथॉक्सी फ़ीनॉल से अधिक अम्लीय होती है क्योंकि -NO2 समूह का इलेक्ट्रॉन- आकर्षी अनुनाद प्रभाव (-I तथा -M) फीनॉक्साइड आयन का स्थायित्व बढ़ाता है जबकि -OCH3 (मेथॉक्सी) समूह का इलेक्ट्रॉन-प्रतिकर्षी प्रभाव फीनॉक्साइड आयन के स्थायित्व को कम करता है। फीनॉक्साइड आयन का स्थायित्व बढ़ने से फीनॉल का वियोजन अधिक होता है अतः अम्लीय प्रबलता बढ़ती है।

प्रश्न 11.16.
समझाइए कि बेन्जीन वलय से जुड़ा – OH समूह उसे इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन के प्रति कैसे सक्रियित करता है?
उत्तर:
ऐरोमैटिक इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन – फीनॉलों में ऐरोमैटिक वलय पर होने वाली अभिक्रियाएँ इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ होती हैं। बेन्ज़ीन वलय से जुड़ा – OH समूह इसे इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया के लिए सक्रियित करता है और आने वाले इलेक्ट्रॉनस्नेही को ऑर्थो एवं पैरा स्थिति पर निर्देशित करता है। क्योंकि – OH समूह के इलेक्ट्रॉन -प्रतिकर्षी (+ M प्रभाव) अनुनाद प्रभाव के कारण o तथा p- स्थितियाँ इलेक्ट्रॉन-धनी हो जाती हैं अतः इलेक्ट्रॉनरागी इन स्थितियों पर आसानी से आक्रमण करता है तथा बेन्जीन वलय में इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है जिससे आने वाले इलेक्ट्रॉनस्नेही का आक्रमण सुगमता से होता है। फीनॉल की अनुनादी संरचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 16

प्रश्न 11.17.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के लिए समीकरण दीजिए-
(i) प्रोपेन- 1 ऑल का क्षारीय KMnO के साथ ऑक्सीकरण
(ii) ब्रोमीन की CS2 में फीनॉल के साथ अभिक्रिया
(iii) तनु HNO3 की फीनॉल से अभिक्रिया
(iv) फीनॉल की जलीय NaOH की उपस्थिति में क्लोरोफार्म के साथ अभिक्रिया।
उत्तर:
(i) प्रोपेन – 1- ऑल का क्षारीय KMnO4 ऑक्सीकरण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 17

(ii) ब्रोमीन की CS2 में फीनॉल के साथ अभिक्रिया-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 18

(iii) तनु HNO3 की फीनॉल से अभिक्रिया-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 19

(iv) फीनॉल की जलीय NaOH की उपस्थिति में क्लोरोफॉर्म के साथ अभिक्रिया-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 20
इसे राइमर -टीमान अभिक्रिया कहते हैं।

प्रश्न 11.18.
निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए –
(i) कोल्बे अभिक्रिया
(ii) राइमर – टीमान अभिक्रिया
(iii) विलियम्सन ईथर संश्लेषण
(iv) असममित ईथर।
उत्तर:
(i) कोल्बे अभिक्रिया (Kolbe Reaction) – या कोल्बे शिमट अभिक्रिया-सोडियम फीनॉक्साइड को 130° ताप तथा उच्च दाब (4-7 वायु-दाब) पर CO2 के साथ गर्म करने पर पहले सोडियम फेनिल कार्बोनेट मध्यवर्ती बनता है जिसके पुनर्विन्यास से सोडियम सैलिसिलेट प्राप्त होता है। सोडियम सैलिसिलेट के अम्लीकरण से सैलिसिलिक अम्ल बनता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 21
इस अभिक्रिया में CO2 दुर्बल इलेक्ट्रॉनस्नेही होते हुए भी अभिक्रिया सुगमता से सम्मन्न हो जाती है जिसका कारण फीनॉक्साइड आयन का, फीनॉल की तुलना में अधिक क्रियाशील होना है।

(ii) राइमर – टीमान अभिक्रिया – फीनॉल की सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) की उपस्थिति में क्लोरोफार्म के साथ अभिक्रिया से ऑर्थो स्थिति पर – CHO समूह आ जाता है। इस अभिक्रिया को राइमर-टीमन अभिक्रिया कहते हैं। इस अभिक्रिया में पहले प्रतिस्थापित बेन्जल क्लोराइड (मध्यवर्ती) बनता है जो क्षार की उपस्थिति में अपघटित होकर सैलिसैल्डिहाइड बनाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 22

(iii) विलियम्सन ईथर संश्लेषण (Williamson’s Ether Synthesis) – ऐल्किल हैलाइड की सोडियम ऐल्कॉक्साइड के साथ अभिक्रिया कराने से ईथर प्राप्त होते हैं, इसे विलियम्सन ईथर संश्लेषण कहते हैं।
\(\mathrm{RX}+\mathrm{R}^{\prime}-\overline{\mathrm{O}}-\stackrel{+}{\mathrm{Na}} \longrightarrow \mathrm{R}-\mathrm{O}-\mathrm{R}^{\prime}+\mathrm{NaX}\)
\(\mathrm{C}_2 \mathrm{H}_5 \mathrm{Br}+\mathrm{C}_2 \mathrm{H}_5 \stackrel{-}{\mathrm{O}} \stackrel{+}{\mathrm{Na}} \longrightarrow \mathrm{C}_2 \mathrm{H}_5 \mathrm{O} \mathrm{C}_2 \mathrm{H}_5+\mathrm{NaBr}\)
यह सममित तथा असममित ईथर बनाने की महत्त्वपूर्ण प्रयोगशाला विधि है।
इस विधि से द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्किल समूह युक्त ईथर भी बनाए जा सकते हैं तथा इसमें प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड पर ऐल्कॉक्साइड आयन आक्रमण करता है, अतः इस अभिक्रिया की क्रियाविधि SN² होती है।
उदाहरण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 23
द्वितीयक ऐल्किल हैलाइड लेने पर ईथर तथा एल्कीन ( विलोपन अभिक्रिया) दोनों बनती हैं तथा तृतीयक ऐल्किल हैलाइड का प्रयोग करने पर एल्कीन ही बनती है क्योंकि RO (ऐल्कॉक्साइड) आयन प्रबल क्षार होता है, अतः विलोपन अभिक्रिया होती है।

उदाहरण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 24a

इस विधि द्वारा फीनॉल से भी ईथर बनाया जा सकता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 24

लेकिन C6H5Br की R\(\overline{\mathrm{O}} \stackrel{+}{Na}\) से अभिक्रिया द्वारा ईथर नहीं बनता क्योंकि ऐरिल हैलाइड नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं के प्रति बहुत कम क्रियाशील होते हैं।
C6H5Br + CH3–\(\overline{\mathrm{O}} \stackrel{+}{Na}\) → कोई अभिक्रिया नहीं

(iv) असममित ईथर – वे ईथर जिनमें दोनों हाइड्रोकार्बन समूह भिन्न-भिन्न होते हैं, उन्हें असममित ईथर कहते हैं। जैसे CH3-O-C2 H5 एथिल मेथिल ईथर।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर

प्रश्न 11.19.
एथेनॉल के अम्लीय निर्जलन या निर्जलीकरण (Dehydration) से एथीन प्राप्त करने की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर:
एथेनॉल को 443 K ताप पर सान्द्र H2SO4 के साथ करने पर इसका निर्जलीकरण होकर एथीन बनती है।
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एथेनॉल के निर्जलीकरण (Dehydration) की क्रियाविधि में निम्नलिखित पद होते हैं-
क्रियाविधि-
I. प्रोटॉनित ऐल्कोहॉल का बनना-
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II. कार्बोकैटायन का बनना (Formation of Carbocation) – यह सबसे धीमा पद है अतः यह वेग निर्धारक पद है-
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III. विप्रोटोनीकरण-
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पद 1 में प्रयुक्त अम्ल, पद 3 में स्वतंत्र हो जाता है। इस अभिक्रिया में साम्य को दाईं ओर विस्थापित करने के लिए, एथीन को बनते ही निकाल लिया जाता है।

प्रश्न 11.20.
निम्नलिखित परिवर्तनों को किस प्रकार किया जा सकता है?
(i) प्रोपीन → प्रोपेन-2-ऑल
(ii) बेन्जिल क्लोराइड → बेन्जिल ऐल्कोहॉल
(iii) एथिल मैग्नीशियम क्लोराइड → प्रोपेन-1-ऑल
(iv) मेथिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड → 2-मेथिलप्रोपेन-2ऑल।
उत्तर:
(i) प्रोपीन → प्रोपेन-2-ऑल (प्रोपीन के जलयोजन से)
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(ii) बेन्जिल क्लोराइड → बेन्जिल ऐल्कोहॉल
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 30
(iii) एथिल मैग्नीशियम क्लोराइड → प्रोपेन-1-ऑल
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 31
(iv) मेथिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड → 2-मेथिलप्रोपेन-2ऑल।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 32

प्रश्न 11.21.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं में प्रयुक्त अभिकर्मकों के नाम बताइए –
(i) प्राथमिक ऐल्कोहॉल का कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकरण
(ii) प्राथमिक ऐल्कोहॉल का ऐल्डिहाइड में ऑक्सीकरण
(iii) फीनॉल का 2, 4, 6 – ट्राइब्रोमोफीनॉल में ब्रोमीनन
(iv) बेन्जिल ऐल्कोहॉल से बेन्जोइक अम्ल
(v) प्रोपेन – 2 – ऑल का प्रोपीन में निर्जलन (vi) ब्यूटेन – 2 – ऑन से ब्यूटेन – 2 – ऑल |
उत्तर:
(i) KMnO4 का अम्लीय विलयन (या अम्लीय K2Cr2O7)
(ii) गर्म अपचयित कॉपर या पिरीडिनियम क्लोरो क्रोमेट (PCC)
(iii) ब्रोमीन का जलीय विलयन
(iv) KMnO4 का अम्लीय विलयन
(v) गर्म तथा सान्द्र H2SO4
(vi) लीथियम ऐलुमिनियम हाइड्राइड (LiAlH4) या सोडियम बोरोहाइड्राइड (NaBH4)

प्रश्न 11.22.
कारण बताइए कि मेथॉक्सीमेथेन की तुलना में एथेनॉल का क्वथनांक उच्च क्यों होता है?
उत्तर:
एथेनॉल में अन्तराअणुक हाइड्रोजन बन्ध पाया जाता है जबकि मेथॉक्सी मेथेन में द्विध्रुव-द्विध्रुव आकर्षण (वान्डरवाल बल) पाया जाता है। अन्तरा अणुक हाइड्रोजन बन्ध की प्रबलता, द्विध्रुव- द्विध्रुव आकर्षण से अधिक होती है। अतः एथेनॉल का क्वथनांक, मेथॉक्सी मेथेन की तुलना में उच्च होता है।

प्रश्न 11.23.
निम्नलिखित ईथरों के आईयूपीएसी ( IUPAC ) नाम दीजिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 33
उत्तर:
(i) 1-एथॉक्सी-2 – मेथिलप्रोपेन
(ii) 2 – क्लोरो-1 – मेथॉक्सीएथेन
(iii) 4 – नाइट्रोऐनिसॉल
(iv) 1- मेथॉक्सीप्रोपेन
(v) 1- एथॉक्सी-4, 4- डाइमेथिलसाइक्लोहेक्सेन
(vi) एथॉक्सीबेन्जीन

प्रश्न 11.24.
निम्नलिखित ईथरों को विलियम्सन संश्लेषण द्वारा बनाने के लिए अभिकर्मकों के नाम एवं समीकरण लिखिए-(i) 1- प्रोपॉक्सीप्रोपेन (ii) एथॉक्सीबेन्जीन (iii) 2-मेथॉक्सी-2 – मेथिलप्रोपेन (iv) 1 – मेथॉक्सीएथेन।
उत्तर:
उपर्युक्त ईथरों को विलियम्सन संश्लेषण द्वारा निम्न प्रकार बनाया जाता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 34

प्रश्न 11.25.
कुछ विशेष प्रकार के ईथरों को विलियम्सन संश्लेषण द्वारा बनाने की सीमाओं को उदाहरणों से समझाइए।
उत्तर:
विलियम्सन ईथर संश्लेषण (Williamson’s Ether Synthesis) – ऐल्किल हैलाइड की सोडियम ऐल्कॉक्साइड के साथ अभिक्रिया कराने से ईथर प्राप्त होते हैं, इसे विलियम्सन ईथर संश्लेषण कहते हैं।
\(\mathrm{RX}+\mathrm{R}^{\prime}-\overline{\mathrm{O}}-\stackrel{+}{\mathrm{Na}} \longrightarrow \mathrm{R}-\mathrm{O}-\mathrm{R}^{\prime}+\mathrm{NaX}\)
\(\mathrm{C}_2 \mathrm{H}_5 \mathrm{Br}+\mathrm{C}_2 \mathrm{H}_5 \stackrel{-}{\mathrm{O}} \stackrel{+}{\mathrm{Na}} \longrightarrow \mathrm{C}_2 \mathrm{H}_5 \mathrm{O} \mathrm{C}_2 \mathrm{H}_5+\mathrm{NaBr}\)
यह सममित तथा असममित ईथर बनाने की महत्त्वपूर्ण प्रयोगशाला विधि है।
इस विधि से द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्किल समूह युक्त ईथर भी बनाए जा सकते हैं तथा इसमें प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड पर ऐल्कॉक्साइड आयन आक्रमण करता है, अतः इस अभिक्रिया की क्रियाविधि SN² होती है।
उदाहरण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 23
द्वितीयक ऐल्किल हैलाइड लेने पर ईथर तथा एल्कीन ( विलोपन अभिक्रिया) दोनों बनती हैं तथा तृतीयक ऐल्किल हैलाइड का प्रयोग करने पर एल्कीन ही बनती है क्योंकि RO (ऐल्कॉक्साइड) आयन प्रबल क्षार होता है, अतः विलोपन अभिक्रिया होती है।

उदाहरण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 24a

इस विधि द्वारा फीनॉल से भी ईथर बनाया जा सकता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 24

लेकिन C6H5Br की R\(\overline{\mathrm{O}} \stackrel{+}{Na}\) से अभिक्रिया द्वारा ईथर नहीं बनता क्योंकि ऐरिल हैलाइड नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं के प्रति बहुत कम क्रियाशील होते हैं।
C6H5Br + CH3–\(\overline{\mathrm{O}} \stackrel{+}{Na}\) → कोई अभिक्रिया नहीं

प्रश्न 11.26.
प्रोपेन- 1 ऑल से 1 प्रोपॉक्सी प्रोपेन को किस प्रकार बनाया जाता है ? इस अभिक्रिया की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर:
प्रोटिक अम्लों (H2SO4, H3PO4) की उपस्थिति में ऐल्कोहॉल के आधिक्य को लगभग 413 K ताप पर गर्म करने पर ईथर मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है।
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ईथर बनाने की यह विधि द्विअणुक नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया (SN2) है जिसमें ऐल्कोहॉल का अणु एक प्रोटोनित ऐल्कोहॉल अणु पर आक्रमण करता है।
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प्रश्न 11.27.
द्वितीयक अथवा तृतीयक ऐल्कोहॉलों के अम्लीय निर्जलन (निर्जलीकरण) द्वारा ईथरों को बनाने की विधि उपयुक्त नहीं है। कारण बताइए।
उत्तर:
द्वितीयक अथवा तृतीयक ऐल्कोहॉलों के अम्लीय निर्जलन द्वारा ईथर बनाना मुश्किल होता है क्योंकि प्रतिस्थापन तथा विलोपन अभिक्रियाओं के मध्य प्रतिस्पर्धा में विलोपन अभिक्रिया अधिक होने से मुख्य उत्पाद ऐल्कीन बनती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 37

प्रश्न 11.28.
हाइड्रोजन आयोडाइड की निम्नलिखित के साथ अभिक्रिया के लिए समीकरण लिखिए-
(i) 1 – प्रोपॉक्सीप्रोपेन
(ii) मेथॉक्सीबेन्जीन तथा
(iii) बेन्जिल एथिल ईथर ।
उत्तर:
(i) जब HI कम मात्रा में लिया जाता है तो 1- आयोडोप्रोपेन तथा प्रोपेन- 1 – ऑल बनता है जबकि HI आधिक्य में लेने पर 1-आयोडोप्रोपेन के दो मोल बनते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 38

प्रश्न 11.29.
ऐरिल ऐल्किल ईथरों में निम्न तथ्यों की व्याख्या कीजिए-
(i) ऐल्कॉक्सी समूह बेन्जीन वलय को इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन के प्रति सक्रियित करता है, तथा
(ii) यह प्रवेश करने वाले प्रतिस्थापियों को बेन्जीन वलय की ऑर्थो एवं पैरा स्थितियों की ओर निर्दिष्ट करता है।
उत्तर:
(i) ऐरिल ऐल्किल ईथरों में ऐल्कॉक्सी समूह बेन्जीन वलय को इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन के प्रति सक्रियित करता है क्योंकि फीनॉल के समान ईथर के ऑक्सीजन का एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म भी बेन्जीन वलय के साथ अनुनाद ( + M प्रभाव) करता है जिससे बेन्जीन वलय में इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है अतः इलेक्ट्रॉनस्नेही का आक्रमण आसान हो जाता है।

(ii) अनुनाद के कारण ( + M प्रभाव) ऑर्थो तथा पैरा स्थिति पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है (ऋणावेश) अतः आने वाला इलेक्ट्रॉनरागी ऑर्थो तथा पैरा स्थिति पर आक्रमण करता है। इसे निम्न अनुनादी संरचनाओं द्वारा समझा सकते हैं-
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प्रश्न 11.30.
मेथॉक्सी मेथेन की HI के साथ अभिक्रिया की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर:
मेथॉक्सी मेथेन की HI के साथ अभिक्रिया SN² क्रियाविधि द्वारा होती है।
पद I.
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पद II.
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जब HI आधिक्य में होता है तो CH3OH, पुनः HI से क्रिया करके CH3I बना देता है।
पद III.
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प्रश्न 11.31.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के लिए समीकरण लिखिए –
(i) फ्रीडेल क्राफ्ट अभिक्रिया – ऐनिसोल का ऐल्किलन (ऐल्किलीकरण)
(ii) ऐनिसोल का नाइट्रीकरण
(iii) एथेनॉइक अम्ल माध्यम में ऐनिसोल का ब्रोमीनन (ब्रोमीनीकरण)
(iv) ऐनिसोल का फ्रीडेल क्राफ्ट ऐसीटिलन (ऐसीटिलीकरण)
उत्तर:
(i) फ्रीडेल- क्राफ्ट अभिक्रिया – ऐनिसोल का ऐल्किलन (Alkylation) –
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 44
यहाँ AICI3 लुइस अम्ल की भाँति कार्य करता है।

(ii) ऐनिसोल का नाइट्रीकरण (Nitration ) – सान्द्र H2SO4 तथा सान्द्र HNO3 के मिश्रण (नाइट्रीकारक मिश्रण) से ऐनिसोल का नाइट्रीकरण कराने पर ऑर्थो तथा पैरानाइट्रो ऐनिसोल का मिश्रण बनता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 45

(iii) एथेनॉइक अम्ल माध्यम में ऐनिसोल का ब्रोमीनन (ब्रोमीनीकरण) (Bromination)-
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(iv) ऐनिसोल का फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐसीटिलन (ऐसीटिलीकरण) (Acetylation) –
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 47

प्रश्न 11.32.
उपयुक्त ऐल्कीनों से आप निम्नलिखित ऐल्कोहॉलों का संश्लेषण कैसे करेंगे?
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उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 49

प्रश्न 11.33.
3 – मेथिलब्यूटेन – 2 – ऑल को HBr से अभिकृत कराने पर निम्नलिखित अभिक्रिया होती है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 50
इस अभिक्रिया की क्रियाविधि दीजिए।
संकेत – चरण II में प्राप्त द्वितीयक कार्बोकैटायन हाइड्राइड आयन विचलन कारण पुनर्विन्यासित होकर स्थायी तृतीयक कार्बोकैटायन बनाते हैं।
उत्तर:
इस अभिक्रिया की क्रियाविधि निम्न है-
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HBSE 12th Class Chemistry ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर Intext Questions

प्रश्न 11.1.
निम्नलिखित को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्कोहॉल में वर्गीकृत कीजिए-
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उत्तर:
प्राथमिक ऐल्कोहॉल
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द्वितीयक ऐल्कोहॉल (iv) तथा (v)
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तृतीयक ऐल्कोहॉल
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प्रश्न 11.2.
उपरोक्त उदाहरणों में से ऐलिलिक ऐल्कोहॉलों को पहचानिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 56

प्रश्न 11.3.
निम्नलिखित यौगिकों के आई यूपीएसी (IUPAC) नामपद्धति से नाम दीजिए-
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उत्तर:
(i) 3-क्लोरोमेथिल-2-आइसोप्रोपिलपेन्टेंन-1-ऑल
(ii) 2, 5-डाइमेथिलहेक्सेन-1, 3-डाइऑल
(iii) 3-ब्रोमोसाइक्लोहेक्सेन-1-ऑल
(iv) हेक्स-1-ईन-3-ऑल
(v) 2-ब्रोमो-3-मथथिलब्यूट-2-ईन-1-ऑल।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर

प्रश्न 11.4.
दर्शाइए कि मेथेनैल पर उपयुक्त ग्रीन्यार अभिकर्मक से अभिक्रिया द्वारा निम्नलिखित ऐल्कोहॉल कैसे विरचित किए जाते हैं?
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उत्तर:
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प्रश्न 11.5.
निम्नलिखित अभिक्रिया के उत्पादों की संरचना लिखिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 60
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 61

प्रश्न 11.6.
यदि निम्नलिखित ऐल्कोहॉल क्रमशः (क) HCl-ZnCl2 (ख) HBr (ग) SOCl2 से अभिक्रिया करें तो आप अपेक्षित उत्पादों की संरचनाएँ दीजिए।
(i) ब्यूटेन -1- ऑल
(ii) 2-मेथिलब्यूटेन-2-ऑल
उत्तर:
(i) ब्यूटेन – 1 – ऑल
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 62

प्रश्न 11.7.
(i) 1- मेथिलसाइक्लोहेक्सेनॉल और
(ii) ब्यूटेन – 1- ऑल के अम्ल उत्प्रेरित निर्जलन (Dehydration) के मुख्य उत्पादों की प्रागुक्ति कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 63
ब्यूट – 1 – ईन तथा ब्यूट – 2 – ईन का मिश्रण बनता है जिसमें उत्पाद ब्यूट-2-ईन मुख्य उत्पाद होती है क्योंकि पुनर्विन्यास द्वारा अधिक स्थायी 2° – कार्बोनियम आयन (सेकेंड्री कार्बोकैटायन) बनता है।

प्रश्न 11.8.
ऑर्थो तथा पैरा नाइट्रोफीनॉल, फीनॉल से अधिक अम्लीय होती हैं। उनके संगत फीनॉक्साइड आयनों की अनुनादी संरचनाएँ बनाइए।
उत्तर:
फीनॉल में ऑर्थो तथा पैरा स्थिति पर नाइट्रो समूह आने पर अम्लीय गुण बढ़ जाता है जिसे निम्न अनुनादी संरचनाओं से समझा सकते हैं-
(i) आर्थो नाइट्रो फीनॉल के ऋणायन की अनुनादी संरचनाएँ-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 64
(ii) पैरानाइट्रो फीनॉल के ऋणायन की अनुनादी संरचनाएँ
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 65
प्रतिस्थापित फीनॉलों में -NO2 समूह जैसे इलेक्ट्रॉन आकर्षी समूह फीनॉल की अम्लीय प्रबलता को बढ़ा देते हैं तथा ये समूह o तथा p- स्थिति पर होने पर यह प्रभाव अधिक होता है क्योंकि इससे फीनॉक्साइड आयन के ऋणावेश का प्रभावी विस्थापन या विस्थानीकरण होता है जिससे इनका स्थायित्व बढ़ जाता है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर

प्रश्न 11.9.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं में सम्मिलित समीकरण लिखिए-
(i) राइमर – टीमन अभिक्रिया
(ii) कोल्बे अभिक्रिया।
उत्तर:
(i) राइमर – टीमन अभिक्रिया – फीनॉल की सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) की उपस्थिति में क्लोरोफार्म के साथ अभिक्रिया से ऑर्थो स्थिति पर – CHO समूह आ जाता है। इस अभिक्रिया को राइमर टीमन अभिक्रिया कहते हैं। इस अभिक्रिया में पहले प्रतिस्थापित बेन्जल क्लोराइड (मध्यवर्ती) बनता है जो क्षार की उपस्थिति में अपघटित होकर सैलिसैल्डिहाइड बनाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 66

(ii) कोल्बे अभिक्रिया – या कोल्बे शिमिट अभिक्रिया-सोडियम फीनॉक्साइड को 130° ताप तथा उच्च दाब (4-7 वायु-दाब) पर CO2 के साथ गर्म करने पर पहले सोडियम फेनिल कार्बोनेट मध्यवर्ती बनता है जिसके पुनर्विन्यास से सोडियम सैलिसिलेट प्राप्त होता है। सोडियम सैलिसिलेट के अम्लीकरण से सैलिसिलिक अम्ल बनता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 67
इस अभिक्रिया में CO2 दुर्बल इलेक्ट्रॉनस्नेही होते हुए भी अभिक्रिया सुगमता से सम्पन्न हो जाती है जिसका कारण फीनॉक्साइड आयन का, फीनॉल की तुलना में अधिक क्रियाशील होना है।

प्रश्न 11.10.
एथेनॉल एवं 3-मेथिलपेन्टेन-2-ऑल से प्रारम्भ कर 2-एथॉक्सी-3-मेथिलपेन्टेन के विलियम्सन संश्लेषण की अभिक्रिया लिखिए।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 68
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 69

प्रश्न 11.11.
1-मेथॉक्सी-4-नाइट्रोबेन्जीन के विरचन के लिए निम्नलिखित अभिकारकों में से कौन-सा युग्म उपयुक्त है और क्यों?
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 70
उत्तर:
1-मेथॉक्सी-4-नाइट्रोबेन्जीन के विरचन के लिए युग्म (ii) उपयुक्त है क्योंकि युग्म (i) में बेन्जीन वलय से जुड़े ब्रोमीन पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होने के कारण C-Br बन्ध में द्विबन्ध के गुण आ जाते हैं अतः बन्ध प्रबल हो जाता है तथा इसकी क्रियाशीलता कम हो जाती है।
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प्रश्न 11.12.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं से प्राप्त उत्पादों का अनुमान लगाइए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 72
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 11 ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर 73

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन

प्रश्न 10.1
निम्नलिखित हैलाइडों के नाम आईयूपीएसी ( IUPAC ) पद्धति से लिखिए तथा उनका वर्गीकरण ऐल्किल, ऐलिलिक, बेन्ज़िलिक (प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक) वाइनिल अथवा ऐरिल हैलाइड के रूप में कीजिए –
(i) (CH3)2CHCH(Cl)CH3
(ii) CH3CH2CH(CH3)CH(C2H5)Cl
(iii) CH3CH2C(CH3)2CH2I
(iv) (CH3)3CCH2CH(Br)C6H5
(v) CH3CH(CH3)CH(Br)CH3
(vi) CH3C(C2H5)CH2Br
(vii) CH3C(Cl)(C2H5)CH2CH3
(viii) CH3CH = C(Cl)CH2CH(CH3)2
(ix) CH3CH = CHC(Br)(CH3)2
(x) p-ClCH6CH4CH(CH3)2
(xi) m-ClCH2C6H4CH2C(CH3)3
(xii) o-Br-C6H4CH(CH3)CH2CH3
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 1

प्रश्न 10.2
निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम दीजिए –
(i) CH3CH(Cl) CH(Br)CH3
(ii) CHF2CBrClF
(iii) ClCH2C≡CCH2Br
(iv) (CCl3)3CCl
(v) CH3C(p-ClC6H4)2CH(Br)CH3
(vi) (CH3)3CCH=CClC6H4I-P
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 2

प्रश्न 10.3
निम्नलिखित कार्बनिक हैलोजन यौगिकों की संरचना दीजिए-
(i) 2 – क्लोरो – 3 – मेथिलपेन्टेन
(ii) p-ब्रोमोक्लोरो बेन्जीन
(iii) 1 – क्लोरो-4 – एथिलसाइक्लोहेक्सेन
(iv) 2 – ( 2 – क्लोरोफेनिल) – 1 – आयोडोऑक्टेन
(v) 2 – ब्रोमोब्यूटेन
(vi) 4 – तृतीयक – ब्यूटिल – 3 – आयोडोहेप्टेन
(vii) 1- ब्रोमो – 4 – द्वितीयक ब्यूटिल – 2- मेथिल बेन्जीन
(viii) 1, 4-डाइब्रोमोब्यूट – 2 – ईन।
उत्तर:
उपरोक्त यौगिकों की संरचना निम्न प्रकार है-
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प्रश्न 10.4
निम्नलिखित में से किसका द्विध्रुव आघूर्ण सर्वाधिक
(i) CH2Cl2
(ii) CHCl3
(iii) CCl4
उत्तर:
CH2Cl2, CHCl3 तथा CCl4 में से CH2Cl2 का द्विध्रुव आघूर्ण सर्वाधिक होगा क्योंकि CCl4 की चतुष्फलकीय ज्यामिति होने के कारण इसका द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है तथा CHCl3, का द्विध्रुव आघूर्ण CH2Cl2 से कम है क्योंकि इसमें तीसरे C-Cl बन्ध का बन्ध आघूर्ण, शेष दो C-Cl बन्धों के परिणामी बन्ध आघूर्ण के विपरीत होता है। अतः उसे कुछ मात्रा में निरस्त कर देता है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन

प्रश्न 10.5
एक हाइड्रोकार्बन C5H10 अंधेरे में क्लोरीन के साथ अभिक्रिया नहीं करता परन्तु सूर्य के तीव्र प्रकाश में केवल एक मोनोक्लोरो यौगिक C,H,CI देता है। हाइड्रोकार्बन की संरचना क्या है?
उत्तर:
यह हाइड्रोकार्बन केवल एक मोनो क्लोरो यौगिक C5H9Cl बनाता है। अतः इसके सभी हाइड्रोजन परमाणु समान हैं। इसलिए यह हाइड्रोकार्बन साइक्लोपेन्टेन है।
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प्रश्न 10.6
C4H9Br सूत्र वाले यौगिक के सभी समावयवी लिखिए।
उत्तर:
C4H9Br, ब्यूटेन का मोनोब्रोमो व्युत्पन्न है। अतः इसके चार समावयवी होंगे क्योंकि ब्यूटेन के एक संयोजी मूलकों की संख्या चार होती
है। ये समावयवी निम्नलिखित हैं-
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प्रश्न 10.7
निम्नलिखित से 1- आयोडोब्यूटेन प्राप्त करने के लिए समीकरण दीजिए-
(i) 1- ब्यूटेनॉल
(ii) 1 – क्लोरोब्यूटेन
(iii) ब्यूट – 1- ईन
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 5

प्रश्न 10.8
उभयदंती नाभिकरागी ( नाभिकस्नेही ) क्या होते हैं? एक उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
सायनाइड (:\(\overline{C}\)≡N) तथा नाइट्राइट (NO2) जैसे आयनों में दो नाभिकस्नेही केन्द्र होते हैं अतः इन्हें उभयदंती नाभिकस्नेही कहा जाता है | सायनाइड समूह दो अनुनादी संरचनाओं का संकर होता है। अतः यह दो भिन्न प्रकार के नाभिकरागी के रूप में कार्य करता है। HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 6अर्थात् कार्बन परमाणु से जुड़ने पर यह ऐल्किल सायनाइड तथा नाइट्रोजन परमाणु से जुड़ने पर आइसोसायनाइड देता है। इसी प्रकार नाइट्राइट आयन भी उभयदंती नाभिकरागी HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 7होता है। ऑक्सीजन के द्वारा जुड़ने पर यह ऐल्किल नाइट्राइट तथा नाइट्रोजन के द्वारा जुड़ने से नाइट्रोऐल्केन देता है।

इस प्रकार -CN तथा – NO2 उभयदंती नाभिकस्नेही होते हैं।
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प्रश्न 10.9
निम्नलिखित प्रत्येक युगलों (युग्मों) में से कौनसा यौगिक OH- के साथ SN2 अभिक्रिया में अधिक तीव्रता से अभिक्रिया करेगा?
(i) CH3Br अथवा CH3I
(ii) (CH3)3CCI अथवा CH3Cl
उत्तर:
(i) CH3I, CH3Br की तुलना में OH के साथ SN2 अभिक्रिया अधिक तीव्रता से करेगा क्योंकि C – I बन्ध में I के बड़े आकार के कारण C – Br बन्ध की तुलना में यह जल्दी टूट जाता है।

(ii) (CH3)3C-Cl की तुलना में CH3-Cl में OH के साथ SN2 अभिक्रिया अधिक तीव्रता से होगी क्योंकि इसमें हैलोजन से जुड़े कार्बन परमाणु पर त्रिविम विन्यासी बाधा नहीं है।

प्रश्न 10.10
निम्नलिखित हैलाइडों के एथेनॉल में सोडियम हाइड्रॉक्साइड द्वारा विहाइड्रोहैलोजनन (विहाइड्रोहैलोजेनीकरण) के फलस्वरूप बनने वाली सभी ऐल्कीनों की संरचना लिखिए। इसमें से मुख्य ऐल्कीन कौनसी होगी ?
(i) 1- ब्रोमो -1 – मेथिलसाइक्लोहेक्सेन
(ii) 2 – क्लोरो-2 – मेथिलब्यूटेन
(iii) 2,2,3 – ट्राइमेथिल – 3 – ब्रोमोपेन्टेन।
उत्तर:
(i) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 9
इनमें मुख्य उत्पाद (b) है क्योंकि 1°H की तुलना में 2°H का निकलना आसान है इसका कारण हाइड्रोजन की क्रियाशीलता है जिसका क्रम निम्न प्रकार होता है – 1° < 2° < 3°
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प्रश्न 10.11
निम्नलिखित परिवर्तन आप कैसे करेंगे?
(i) एथेनॉल से ब्यूट- 1 – आइन
(ii) एथीन से ब्रोमोएथेन
(iii) प्रोपीन से 1- नाइट्रोप्रोपेन
(iv) टॉलूईन से बेन्जिल ऐल्कोहॉल
(v) प्रोपीन से प्रोपाइन
(vi) एथेनॉल से एथिल फ्लुओराइड
(vii) ब्रोमोमेथेन से प्रोपेनोन
(viii) ब्यूट-1-ईन से ब्यूट – 2 – ईन
(ix) 1- क्लोरोब्यूटेन से n – ऑक्टेन
(x) बेन्जीन से बाइफेनिल
उत्तर:
(i) एथेनॉल से ब्यूट- 1 – आइन
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(ii) एथीन से ब्रोमोएथेन
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(iii) प्रोपीन से 1- नाइट्रोप्रोपेन
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(iv) टॉलूईन से बेन्जिल ऐल्कोहॉल
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(v) प्रोपीन से प्रोपाइन
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(vi) एथेनॉल से एथिल फ्लुओराइड
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(vii) ब्रोमोमेथेन से प्रोपेनोन
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(viii) ब्यूट-1-ईन से ब्यूट – 2 – ईन
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(ix) 1- क्लोरोब्यूटेन से n – ऑक्टेन
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(x) बेन्जीन से बाइफेनिल
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प्रश्न 10.12
समझाइए क्यों –
(i) क्लोरोबेन्जीन का द्विध्रुव आघूर्ण साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड तुलना में कम होता है?
(ii) ऐल्किल हैलाइड ध्रुवीय होते हुए भी जल में अमिश्रणीय हैं?
(iii) ग्रीन्यार अभिकर्मक का विरचन निर्जलीय अवस्थाओं में करना चाहिए ?
उत्तर:
(i) क्लोरोबेन्जीन में क्लोरीन का – I प्रभाव (इलेक्ट्रॉन आकर्षी प्रभाव) बेन्जीन वलय की तरफ अनुनाद (+ M प्रभाव) (इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षी प्रभाव) के द्वारा कुछ मात्रा में संतुलित हो जाता है। जबकि साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड में केवल – I प्रभाव है अतः क्लोरोबेन्जीन का C-CI बन्ध साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड के – C-CI बन्ध की तुलना में कम ध्रुवीय है। इसी कारण क्लोरोबेन्जीन का द्विध्रुव आघूर्ण, साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड की तुलना में कम होता है।

(ii) ऐल्किल हैलाइड (हैलोऐल्केन) ध्रुवीय होते हुए भी जल में अमिश्रणीय (लगभग अविलेय) होते हैं, क्योंकि हैलोऐल्केन को जल में घोलने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिससे कि हैलोऐल्केन के अणुओं के मध्य आकर्षण बल को तथा जल के अणुओं के मध्य हाइड्रोजन आबंध को तोड़ा जा सके। लेकिन हैलोऐल्केन तथा जल के अणुओं के मध्य नए आकर्षण बल के कारण उत्सर्जित ऊर्जा कम होती है, क्योंकि ये आकर्षण बल जल के उपस्थित हाइड्रोजन आबंधों की तुलना में दुर्बल होते हैं अतः हैलोऐल्केन की जल में विलेयता नगण्य होती है अर्थात् ये जल में अमिश्रणीय हैं।

(iii) ग्रीन्यार अभिकर्मक जल से क्रिया करके विघटित हो जाता है तथा हाइड्रोकार्बन बनाता है अतः ग्रीन्यार अभिकर्मक का निर्माण निर्जलीय अवस्था में ही करना चाहिए।
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प्रश्न 10.13
फ्रेओन – 12, DDT, कार्बनटेट्राक्लोराइड तथा आयोडोफॉर्म के उपयोग दीजिए।
उत्तर:
फ्रेऑन (Freons) या CFC (क्लोरोफ्लुओरोकार्बन) (Chlorofluorocarbon) – फ्रेऑन ऐल्केन के क्लोरोफ्लुओरो व्युत्पन्न होते हैं।

विरचन-SbCl5 की उपस्थिति में CCl4 तथा C2Cl6 की क्रिया HF से कराने पर विभिन्न प्रकार के फ्रेऑन प्राप्त होते हैं।
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गुण- फ्रेऑन अत्यधिक स्थायी, निष्क्रिय तथा निर्विष (नॉन-टॉक्सिक) असंक्षारक (नॉन-कोरोसिव) गैस होते हैं तथा ये आसानी से द्रवित हो जाते हैं। ये रंगहीन व गंधहीन होते हैं तथा इनका क्वथनांक बहुत कम होता है।

उपयोग – फ्रेऑन ऐरोसोल प्रणोदक, प्रशीतक तथा वायु के शीतलन में प्रयुक्त किए जाते हैं। फ्रेऑन वायुमण्डल से होते हुए क्षोभमण्डल में विसरित हो जाते हैं, जहाँ पर ये मूलक श्रृंखला अभिक्रिया प्रारम्भ करके प्राकृतिक ओजोन संतुलन को अनियन्त्रित कर देते हैं।

फ्रेऑन अक्रिय विलायक के रूप में उपयोग में लिए जाते हैं। फ्रेऑन- 12(CF2Cl2) उद्योगों में सबसे अधिक मात्रा में प्रयुक्त किया जाता है।

p, p1-डाइक्लोरो डाइफेनिल ट्राइक्लोरोएथेन (p, p1-Dichloro Diphenyl Trichloroethane) (DDT)- विरचन – क्लोरोबेन्जीन तथा क्लोरैल के मिश्रण को सान्द्र H2SO4 की अल्प मात्रा के साथ गर्म करने पर DDT प्राप्त होता है।
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उपयोग – DDT एक प्रथम क्लोरीनीकृत कार्बनिक कीटनाशी है अतः इसे मुख्यतः मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों तथा टाइफस वाहक जुओं को समाप्त करने में प्रयुक्त किया जाता था। लेकिन DDT के अत्यधिक स्थायित्व, वसा में विलेयता तथा शीघ्र उपापचयन नहीं होने के कारण यह वसीय ऊतकों में एकत्रित तथा संग्रहित हो जाती है। कीटों की अनेक प्रजातियों में DDT के प्रति-प्रतिरोधकता विकसित हो गयी है तथा यह मछलियों के लिए अत्यधिक विषैली है । अतः इसके उपयोग को आजकल प्रतिबन्धित कर दिया गया है । लेकिन विश्व में अनेक स्थानों पर आज भी इसका उपयोग हो रहा है।

कार्बन टेट्राक्लोराइड (टेट्राक्लोरोमेथेन) (Carbon tetrachloride (Tetrachloromethane) (CCl4) –
(i) कार्बन टेट्राक्लोराइड को मुख्यतः प्रोपेन के क्लोरीनी अपघटन से बनाया जाता है।
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(ii) CCl4 एक रंगहीन, रुचिकर गंधयुक्त, अज्वलनशील तथा भारी द्रव है। यह जल में अविलेय तथा कार्बनिक विलायकों में विलेय होता है।

(iii) CCl4 के भापीय जल अपघटन से फॉस्जीन बनती है।
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(iv) जलीय KOH से जल अपघटन कराने पर यह पोटेशियम कार्बोनेट देता है।
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(v) राइमर टीमान कार्बोक्सिलीकरण – CCl4 की क्रिया फीनॉल तथा क्षार के साथ करवाने पर सैलिसिलिक अम्ल प्राप्त होता है।
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(vi) उपयोग – कार्बन टेट्राक्लोराइड को प्रशीतक तथा ऐरोसॉल प्रणोदक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। यह एक अच्छा विलायक है अतः यह उद्योगों में ग्रीस को साफ करने तथा घरों में दाग-धब्बे हटाने में भी प्रयुक्त होता है। यह औषधि तथा फ्रेऑन के निर्माण में भी काम में आता है। CCl4 एक अग्निशामक भी होता है।

(vii) CCl4 के दुष्प्रभाव – CCl4 के सम्पर्क से तंत्रिका तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसके कारण चक्कर आना, उल्टी आना आदि प्रभाव होते हैं। इसकी अधिक मात्रा के कारण मनुष्य बेहोश हो जाता है, तथा मृत्यु हो सकती है। CCl4 के उद्भासन से हृदयगति अनियमित हो सकती है अथवा रुक जाती है। इसकी वाष्प के सम्पर्क के कारण आँखों में जलन उत्पन्न होती है। CCl4, यकृत का कैंसर भी उत्पन्न करता है।

कार्बनटेट्राक्लोराइड वायु में जाने पर ऊपरी वायुमण्डल में पहुँच कर ओजोन परत को विरल बना देती है। ओजोन परत के विरलीकरण से मनुष्यों का पराबैंगनी किरणों से उद्भासन बढ़ जाता है जिससे त्वचा का कैंसर, आँखों की बीमारियाँ तथा विकार उत्पन्न होते हैं। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली भी कमजोर हो जाती है।

आयोडोफॉर्म (ट्राइआयोडो मेथेन) Iodoform (Trilodo-methane) CHl3

आयोडोफॉर्म का विरचन – एथेनॉल या एसीटोन की क्रिया आयोडीन तथा क्षार से करवाने पर पीले रंग का आयोडोफॉर्म प्राप्त होता है। इसे आयोडोफार्म परीक्षण कहते हैं।
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गुण- यह एक विशिष्ट गन्धयुक्त पीला क्रिस्टलीय ठोस है। यह जल अविलेय तथा कार्बनिक विलायकों में विलेय होता है। अन्य हैलोफॉर्म (CHCl3, CHBr3) से कम स्थायी होता है। इसका कारण आयोडीन का बड़ा आकार है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 29
इसी कारण आयोडोफॉर्म, AgNO3 विलयन के साथ, AgI का पीला अवक्षेप देता है जबकि शुद्ध अवस्था में CHCl3 की AgNO3 विलयन के साथ कोई क्रिया नहीं होती ।

उपयोग – CHI3 का उपयोग पूतिरोधी (एन्टीसेप्टिक) के रूप में किया जाता है। इसका यह गुण वास्तव में इसके विघटन से मुक्त आयोडीन के कारण ही होता है। आयोडोफॉर्म की अरुचिकर गंध के कारण अब इसके स्थान पर आयोडीन युक्त अन्य दवाओं का उपयोग किया जाने लगा है।

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प्रश्न 10.14
निम्नलिखित प्रत्येक अभिक्रिया में बनने वाले मुख्य कार्बनिक उत्पाद की संरचना लिखिए-
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उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 31

प्रश्न 10.15
निम्नलिखित अभिक्रिया की क्रियाविधि लिखिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 32
उत्तर:
यह एक नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया है। n-BuBr-(n-ब्यूटिल ब्रोमाइड) प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड है अतः यह अभिक्रिया SN² क्रियाविधि से होगी तथा यह एक पद में ही सम्पन्न होती है एवं इसमें काल्पनिक संक्रमण अवस्था मानी जाती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 33

प्रश्न 10.16.
SN² प्रतिस्थापन के प्रति अभिक्रियाशीलता के आधार पर इन यौगिकों के समूहों को क्रमबद्ध कीजिए-
(i) 2 – ब्रोमो – 2 – मेथिलब्यूटेन, 1- ब्रोमोपेन्टेन, 2 – ब्रोमोपेन्टेन
(ii) 1-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूटेन, 2 – ब्रोमो – 2 – मेथिलब्यूटेन, 2- ब्रोमो – 3 – मेथिलब्यूटेन
(iii) 1- ब्रोमोब्यूटेन, 1- ब्रोमो-2, 2 – डाइमेथिलप्रोपेन, 1- ब्रोमो- 2- मेथिलब्यूटेन, 1- ब्रोमो – 3 – मेथिलब्यूटेन
उत्तर:
विभिन्न ऐल्किल हैलाइडों में SN² अभिक्रिया के लिए क्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार होता है- \(\stackrel{\circ}{1}>\stackrel{\circ}{2}>\stackrel{\circ}{3}\) तथा जब ऐल्किल हैलाइड समान प्रकार के होते हैं तो वह ऐल्किल हैलाइड जिसमें हैलोजनयुक्त कार्बन पर बड़ा समूह जुड़ा होता है तो वह त्रिविम विन्यासी बाधा उत्पन्न करता है जिससे उसकी क्रियाशीलता कम हो जाती है। क्योंकि स्थूल (बड़ा) समूह आक्रमणकारी नाभिकरागी के लिए अवरोध उत्पन्न करता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 34

प्रश्न 10.17.
C6H5CH2Cl तथा IMG में से कौनसा यौगिक जलीय KOH से शीघ्रता से जल अपघटित होगा?
उत्तर:
C6H5CH2Cl तथा HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 35 में से HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 36 का जलीय KOH से शीघ्रता से जल अपघटन होगा क्योंकि इसके जल अपघटन में बनने वाला मध्यवर्ती कार्बधनायन अधिक स्थायी होता है, क्योंकि इसमें दो बेन्जीन वलय के कारण अनुनाद अधिक होगा जबकि C6H5CH2Cl से बने कार्बधनायन में केवल एक बेन्जीनवलय ही अनुनाद में भाग लेती है।
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प्रश्न 10.18.
o- तथा m- समावयवियों की तुलना में p – डाइक्लोरोबेन्जीन का गलनांक उच्च होता है। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
p- डाइक्लोरोबेन्जीन की सममित संरचना के कारण इसके क्रिस्टल जालक में अणुओं का संकुलन सघन होता है अर्थात् इसमें अन्तराअणुक आकर्षण प्रबल होता है। अतः p-डाइक्लोरोबेन्जीन का गलनांक o- तथा m- समावयवियों की तुलना में उच्च होता है।
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प्रश्न 10.19.
निम्नलिखित परिवर्तन कैसे सम्पन्न किए जा सकते हैं?
(1) प्रोपीन से प्रोपेन- 1- ऑल
(2) एथेनॉल से ब्यूट- 1 – आइन
(3) 1- ब्रोमोप्रोपेन से 2 – ब्रोमोप्रोपेन
(4) टॉलूईन से बेन्जिल ऐल्कोहॉल
(5) बेन्जीन से 4 – ब्रोमोनाइट्रोबेन्जीन
(6) बेन्जिल ऐल्कोहॉल से 2 – फेनिल एथेनॉइक अम्ल
(7) एथेनॉल से प्रोपेन नाइट्राइल
(8) ऐनिलीन से क्लोरोबेन्जीन
(9) 2 – क्लोरोब्यूटेन से 3, 4 – डाइमेथिलहेक्सेन
(10) 2 – मेथिल – 1- प्रोपीन से 2- क्लोरो-2 – मेथिलप्रोपेन
(11) एथिल क्लोराइड से प्रोपेनॉइक अम्ल
(12) ब्यूट – 1 – ईन से n – ब्यूटिल आयोडाइड
(13) 2 – क्लोरोप्रोपेन से 1- प्रोपेनॉल
(14) आइसोप्रोपिल ऐल्कोहॉल से आयोडोफार्म
(15) क्लोरोबेन्जीन से p- नाइट्रोफीनॉल
(16) 2 – ब्रोमोप्रोपेन से 1- ब्रोमोप्रोपेन
(17) क्लोरोएथेन से ब्यूटेन
(18) बेन्जीन से डाइफेनिल
(19) तृतीयक – ब्यूटिल ब्रोमाइड से आइसो- ब्यूटिल ब्रोमाइड
(20) ऐनिलीन से फेनिल आइसोसायनाइड।
उत्तर:
उपर्युक्त परिवर्तन निम्न प्रकार सम्पन्न किए जाते हैं-
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प्रश्न 10.20
ऐल्किल क्लोराइड की जलीय KOH से अभिक्रिया द्वारा ऐल्कोहॉल बनती है लेकिन ऐल्कोहॉलिक KOH की उपस्थिति में ऐल्कीन मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। समझाइए |
उत्तर:
जब किसी ऐल्किल हैलाइड की क्रिया किसी नाभिकस्नेही या क्षार से करवाते हैं तो प्रतिस्थापन तथा विलोपन अभिक्रिया में प्रतिस्पर्धा होती है। इसमें कम ध्रुवीय विलायक जैसे ऐल्कोहॉल की उपस्थिति में विलोपन अभिक्रिया होकर मुख्य उत्पाद ऐल्कीन प्राप्त होती है क्योंकि ऐल्कोहॉल की कम ध्रुवता के कारण नाभिकस्नेही की सान्द्रता कम होगी। अतः ऐल्किल क्लोराइड से प्रोटोन (H+) तथा हैलोजन का विलोपन होकर ऐल्कीन बनती है जबकि अधिक ध्रुवीय विलायक जैसे जल में नाभिकस्नेही (\(\overline{O}\)H) की सान्द्रता अधिक होगी। अतः मुख्यतः प्रतिस्थापन होकर मुख्य उत्पाद ऐल्कोहॉल बनता है।

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विलोपन अभिक्रिया-
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प्रतिस्थापन अभिक्रिया-
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प्रश्न 10.21.
प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड C4H9Br (क), ऐल्कोहॉलिक KOH में अभिक्रिया द्वारा यौगिक (ख) देता है। यौगिक ‘ख’ HBr के साथ अभिक्रिया से यौगिक ‘ग’ देता है जो कि यौगिक ‘क’ का समावयवी है। जब यौगिक ‘क’ की अभिक्रिया सोडियम धातु से होती है तो यौगिक ‘घ’ C8H18 बनता है, जो n – ब्यूटिल ब्रोमाइड की सोडियम से अभिक्रिया द्वारा बने उत्पाद से भिन्न है । यौगिक ‘क’ का संरचना सूत्र दीजिए तथा सभी अभिक्रियाओं के समीकरण दीजिए।.
उत्तर:
अणुसूत्र C4H9Br से दो प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड संभव हैं।
CH3-CH2-CH2-CH2 – Br (n – ब्यूटिल ब्रोमाइड) तथा HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 42 (आइसोब्यूटिल ब्रोमाइड)। प्रश्नानुसार, यौगिक ‘क’ n – ब्यूटिल ब्रोमाइड नहीं है अतः यह आइसोब्यूटिल ब्रोमाइड होगा।
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अभिक्रियाओं के समीकरण-
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प्रश्न 10.22.
तब क्या होता है जब-
(i) n – ब्यूटिल क्लोराइड को ऐल्कोहॉलिक KOH के साथ अभिकृत किया जाता है?
(ii) शुष्क ईथर की उपस्थिति में ब्रोमोबेन्जीन की अभिक्रिया मैग्नीशियम से होती है ?
(iii) क्लोरोबेन्जीन का जलअपघटन किया जाता है ?
(iv) एथिल क्लोराइड की अभिक्रिया जलीय KOH से होती है ?
(v) शुष्क ईथर की उपस्थिति में मेथिल ब्रोमाइड की अभिक्रिया सोडियम से होती है?
(vi) मेथिल क्लोराइड की अभिक्रिया KCN से होती है ?
उत्तर:
(i) n – ब्यूटिल क्लोराइड को ऐल्कोहॉलिक KOH के साथ अभिकृत कराने पर ß – विलोपन द्वारा ब्यूट- 1 – ईन बनती है।
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(ii) शुष्क ईथर की उपस्थिति में ब्रोमोबेन्जीन की अभिक्रिया मैग्नीशियम से कराने पर फेनिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड (ग्रीन्यार अभिकर्मक) बनता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 46

(iii) क्लोरोबेन्जीन के जलअपघटन से फीनॉल बनता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 47

(iv) एथिल क्लोराइड की अभिक्रिया जलीय KOH से होने पर नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया द्वारा एथिलऐल्कोहॉल बनता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 48

(v) शुष्क ईथर की उपस्थिति में मेथिल ब्रोमाइड की क्रिया सोडियम से होने पर एथेन बनती है ( वुर्ज अभिक्रिया)।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 49

(vi) मेथिल क्लोराइड की KCN से अभिक्रिया होने पर मेथिल सायनाइड बनाता है (नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन ) ।
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HBSE 12th Class Chemistry हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन Intext Questions

प्रश्न 10.1.
निम्नलिखित यौगिकों की संरचनाएँ लिखिए-
(i) 2-क्लोरो-3-मेथिलपेन्टेन
(ii) 1-क्लोरो-4-एथिलसाइक्लोहेक्सेन
(iii) 4-तृतीयक-ब्यूटिल-3-आयोडोहेप्टेन
(iv) 1, 4-डाइब्रोमोब्यूट-2-ईन
(v) 1-ब्रोमो-4-द्वितीयक-ब्यूटिल-2-मेथिलबेन्जीन।
उत्तर:
उपर्युक्त वौगिकों की संरचनाएँ अग्रलिखित हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 50

प्रश्न 10.2.
ऐल्कोहॉल तथा KI की अभिक्रिया में सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग क्यों नहीं करते?
उत्तर:
ऐल्कोहॉल के ऐल्किल आयोडाइड में परिवर्तन के लिए ऐल्कोहॉल तथा KI की अभिक्रिया में H2SO4 का प्रयोग नहीं किया जा सकता, क्योंक पहले यह KI से क्रिया करके उसे HI में परिवर्तित कर देता है, इसके बाद HI को I2 में आक्सीकृत कर देता है क्योंकि यह आक्सीकारक होता है।

प्रश्न 10.3.
प्रोपेन के विभिन्न डाइहैलोजन व्युत्पन्नों की संरचना लिखिए।
उत्तर:
प्रोपेन के डाइहैलोजन व्युत्पन्न चार होते हैं जिनकी संरचना निम्न प्रकार होती है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 51

प्रश्न 10.4.
C5H12 अणुसूत्र वाले समावयवी ऐल्केनों में से उसको पहचानिए जो प्रकाश रासायनिक क्लोरीनन (क्लोरीनीकरण) पर देता है-
(i) केवल एक मोनो क्लोराइड
(ii) तीन समावयवी मोनो क्लोराइड
(iii) चार समावयवी मोनो क्लोराइड।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 52
क्योंकि इसमें सभी हाइड्रोजन परमाणु समान हैं, अतः इसके क्लोरीनीकरण से केवल एक मोनोक्लोराइड बनेगा।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 53
इसमें तीन प्रकार के  हाइड्रोजन परमाणु है जिन्हें a, b, c से दर्शाया गया है। अतः इन हाइड्रोजन परमाणुओं के प्रतिस्थापन से तीन समावयवी मोनोक्लोराइड बनेंगे।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 54
इसमें चार प्रकार के हाइड्रोज़न परमाणु हैं जिन्हें a, b, c तथा d से दर्शाया गया है, अतः इसके क्लोरीनीकरण से चार समावयवी मोनोक्लोराइड बनते हैं।

प्रश्न 10.5.
निम्नलिखित प्रत्येक अभिक्रिया के मुख्य मोनोहैलो उत्पाद की संरचना बनाइए।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 55
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 56

प्रश्न 10.6.
निम्नलिखित यौगिकों को क्वथनांकों के बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
(i) ब्रोमोमेथेन, ब्रोमोफॉर्म, क्लोरोमेथेन, डाइब्रोमोमेथेन
(ii) 1-क्लोरोप्रोपेन, आइसोप्रोपिल क्लोराइ ड, 1-क्लोरोक्यूटन।
उत्तर:
उपर्युक्त यौगिकों के क्वथनांक का बढ़ता क्रम निम्न प्रकार है-
(i) क्लोरोमेथेन < ब्रोमोमेथेन < डाइब्रोमोमेथेन < ब्रोमोफार्म
क्योंकि अणुभार बढ़ने पर क्वथनांक बढ़ता है।
(ii) आइसोप्रोपिल क्लोराइड < 1-क्लोरोप्रोपेन < 1-क्लोरोब्यूटेन शाखित होने के कारण आइसोप्रोपिल क्लोराइड का क्वथनांक 1-क्लोरेप्रोपेन से कम होता है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन

प्रश्न 10.7.
निम्नलिखित युगलों (युग्मों) में से आप कोनसे ऐल्किल हैलाइड द्वारा SN2 क्रियाविधि से अधिक तीव्रता से अभिक्रिया करने की अपेक्षा करते हैं? अपने उत्तर को समझाइए।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 57
उत्तर:
(i) CH3CH2CH2CH2Br, यह प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड होने के कारण इसमें त्रिविम बाधा नहीं होती।
(ii) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 58
क्योंक द्वितीयक ऐल्किल हैलाइड, तृतीयक ऐल्किल हैलाइड की तुलना में अधिक तीव्रता से SN2 अभिक्रिया करता है।
(iii) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 59
इसमें प्रतिस्थापी मेथिल समूह के हैलाइड से दूर होने के कारण त्रिविम बाधा कम होगी अतः SN2 अभिक्रिया का वेग अधिक होगा।

प्रश्न 10.8.
हैलोजन यौगिकों के निम्नलिखित युगलों में से कौनसा यौगिक तीव्रता से SN1 अभिक्रिया करेगा?
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 60
उत्तर:
(i) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 61 क्योंक तृतीयक कार्बोकैटायन का स्थायित्व अधिक होने के कारण तृतीयक ऐल्किल हैलाइड की अभिक्रियाशीलता SN1 अभिक्रिया के लिए द्वितीयक ऐल्किल हैलाइड से अधिक होती है।
(ii) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 62 क्योंकि प्राथमिक कार्बोकैटायन की तुलना में द्वितीयक कार्बोकैटायन का स्थायित्व अधिक होने के कारण इसमें SN1 अभिक्रिया अधिक तीव्रता से होगी।

प्रश्न 10.9.
निम्नलिखित में A, B, C, D, E, R तथा R1 को पहचानिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 63
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन 64

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

प्रश्न 9.1.
वर्नर की अभिधारणाओं के आधार पर उपसहसंयोजन यौगिकों में आबंधन (bonding) को समझाइए।
उत्तर:
सर्वप्रथम वर्नर नामक वैज्ञानिक ने उपसहसंयोजन यौगिकों की संरचना की व्याख्या की। उन्होंने बहुत से उपसहसंयोजन यौगिक बनाकर प्रयोगों द्वारा उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन किया तथा इन यौगिकों की विशेषताओं को बताया। वर्नर के अनुसार धातु आयन की दो प्रकार की संयोजकता

एँ होती हैं प्राथमिक संयोजकता तथा द्वितीयक संयोजकता साधारण यौगिक जैसे PdCl2 तथा CrCl3 में Pd तथा Cr की प्राथमिक संयोजकता क्रमशः 2 तथा 3 है।

वर्नर ने CoCl3 तथा NH3 की क्रिया से विभिन्न यौगिक बनाकर उनका अध्ययन किया तथा यह देखा कि सामान्य ताप पर इनके जलीय विलयन के आधिक्य में AgNO3 विलयन डालने पर कुछ क्लोराइड आयन ही AgCl के रूप में अवक्षेपित होते हैं तथा कुछ क्लोराइड आयन विलयन में ही रहते हैं। सभी यौगिकों के एक-एक मोल लेने पर CoCl3.6NH3(पीला) से 3 मोल AgCl, CoCl3.5NH3 [नीललोहित (बैंगनी)) से 2 मोल AgCl, CoCl3. 4NH3 (हरा) से 1 मोल AgCl तथा CoCl3.4NH3 (बैंगनी ) से 1 मोल AgCl बनता है।

इन प्रेक्षणों से ज्ञात होता है कि ये यौगिक संकुल के रूप में पाए जाते हैं जिनके सूत्र निम्नलिखित प्रकार से लिखे जाते हैं जो कि विलयनों में चालकता मापन के परिणामों से सिद्ध हो जाते हैं। इन संकुलों में बड़े कोष्ठक में उपस्थित परमाणु एकल सत्ता (single entity) के रूप में रहते हैं जिनका वियोजन नहीं होता तथा इनमें कोबाल्ट की द्वितीयक संयोजकता 6 है जो NH3 या Cl या दोनों द्वारा संतुष्ट होती है।

क्र.सं.रंगसूत्रविलयन चालकता संबंध
1.पीला[Co(NH3)6]3+3Cl1: 3 विद्युत अपघट्य
2.बैंगनी[CoCl(NH3)5]2+2Cl1: 2 विद्युत अपघट्य
3.हरा[CoCl2(NH3)4]+Cl1: 1 विद्युत अपघट्य
4.बैंगनी[CoCl2(NH3)4]+Cl1: 1 विद्युत अपघट्य

उपर्युक्त सारणी में यौगिक 3 तथा 4 के मूलानुपाती सूत्र समान होते. हुए भी इनके गुणों में भिन्नता होती है अतः इन्हें एक-दूसरे के समावयवी (Isomers) कहते हैं।

इन प्रेक्षणों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर वर्नर (1898) ने उपसहसंयोजन यौगिकों का सिद्धान्त दिया जिसकी मुख्य अभिधारणाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) उपसहसंयोन यौगिकों में धातुएँ दो प्रकार की संयोजकताएं दर्शाती हैं – प्राथमिक तथा द्वितीयक । प्राथमिक संयोजकता धातु के ऑक्सीकरण अंक के बराबर होती है। इसे मुख्य या आयनिक संयोजकता भी कहते हैं।

(ii) प्राथमिक संयोजकताएँ सामान्यतः आयननीय (lonisable) होती हैं तथा ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती हैं।

(iii) द्वितीयक संयोजकताएँ अन आयननीय (Non-ionisable) होती हैं। ये उदासीन अणुओं या ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती हैं। द्वितीयक संयोजकता धातु की उपसहसंयोजन संख्या (Coordination number) के बराबर होती है। इसे कक्षीय संयोजकता (orbital valance) भी कहते हैं तथा इसका मान किसी धातु के लिए सामान्यतः निश्चित होता है।

(iv) धातु के साथ द्वितीयक संयोजकता से बंधित आयन या समूह विभिन्न उपसहसंयोजन संख्या के अनुसार अन्तराल में (space) विशिष्ट रूप से व्यवस्थित होते हैं।

(v) उपसहसंयोजन यौगिकों में आयनों या समूहों की अन्तराल (त्रिविम) में व्यवस्था को समन्वय बहुफलक (Coordination Polyhedra) कहते हैं।

(vi) बड़े कोष्ठक में लिखी स्पीशीज को संकुल तथा बाहर लिखे आयन को प्रति आयन ( Counter lons) कहते हैं।

(vii) संक्रमण तत्वों के उपसहसंयोजन यौगिकों (Coordination Compounds) में सामान्यतः अष्टफलकीय, चतुष्फलकीय तथा वर्ग समतलीय ज्यामितियाँ पाई जाती हैं। उदाहरण [Co(NH3)6]3+, [CoCI(NH3)5]2+ तथा (CoCl2(NH3)4]+ की ज्यामिति अष्टफलकीय हैं, जबकि [Ni(CO)4] तथा [PtCl4]2- की ज्यामिति क्रमशः चतुष्फलकीय तथा वर्ग समतली होती हैं।

वर्नर के सिद्धान्त की कमियाँ-वर्नर सिद्धान्त की सहायता से संकुल यौगिकों के कण संख्यक गुण तथा चालकता की व्याख्या कर सकते हैं लेकिन वर्नर का सिद्धान्त निम्नलिखित तथ्यों को नहीं समझा सका-

  • कुछ ही तत्वों में उपसहसंयोजन यौगिक बनाने का विशिष्ट गुण क्यों होता है?
  • उपसहसंयोजन यौगिकों में उपस्थित बंधों में दिशात्मक गुण क्यों पाए जाते हैं?
  • उपसहसंयोजन यौगिकों में विशिष्ट चुंबकीय तथा ध्रुवण घूर्ण गुण क्यों पाए जाते हैं?
  • इन यौगिकों की ज्यामिति की व्याख्या नहीं की जा सकती है।

प्रश्न 9.2.
FeSO4 विलयन तथा (NH4)2SO4 विलयन का 1: 1 मोलर अनुपात में मिश्रण Fe2+ आयन का परीक्षण देता है परन्तु CuSO4 व जलीय अमोनिया का 1 : 4 मोलर अनुपात में मिश्रण Cu2+ आयनों का परीक्षण नहीं देता। समझाइए क्यों?
उत्तर:
FeSO4 तथा (NH4)2SO4 विलयन के 11 मोलर अनुपात में मिश्रण से द्विक लवण FeSO4(NH4)2SO4.6H2O (मोर लवण) बनता है जो विलयन आयनित होकर Fe2+ आयन देता है अतः यह Fe2+ आयन का परीक्षण देता है लेकिन CuSO4 व जलीय NH3 का 1 : 4 मोलर अनुपात में मिश्रण संकुल लवण [Cu(NH3)4]SO4 बनाता है। इसमें स्थित संकुल आयन [Cu(NH3)4]2+ का आयनन नहीं होता अतः इसमें स्वतंत्र Cu2+ आयन नहीं होते इस कारण यह Cu2+ आयन का परीक्षण नहीं देता।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

प्रश्न 9.3.
प्रत्येक के दो उदाहरण देते हुए निम्नलिखित को समझाइए – उपसहसंयोजन सत्ता ( समन्वय सत्ता ), लिगन्ड, उपसहसंयोजन संख्या, उपसहसंयोजन बहुफलक, होमोलेप्टिक तथा हेट्रोलेप्टिक संकुल ।
उत्तर:
(i) उपसहसंयोजन सत्ता या समन्वय सत्ता (Coordination Entity ) – वह स्पीशीज जिसमें केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन से एक निश्चित संख्या में आयन अथवा अणु उपसहसंयोजी बन्ध बनाकर जुड़े होते हैं उसे उपसहसंयोजन सत्ता कहते हैं। जैसे [CoCl3(NH3)3] में कोबाल्ट आयन तीन NH3 अणुओं तथा तीन क्लोराइड आयनों से घिरा है। अन्य उदाहरण – [Ni(CO)4) तथा [Co(NH3)6]3+

(ii) लिगन्ड (Ligand)- उपसहसंयोजन सत्ता (संकुल स्पीशीज) में केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन से जुड़े अणुओं या आयनों को लिगेन्ड कहते हैं। ये धातु को इलेक्ट्रॉन युग्म का दान करके उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। उदाहरण – Cl, H2O तथा NH3

(iii) उपसहसंयोजन संख्या (Coordination Number) (CN)- किसी संकुल स्पीशीज में धातु से बंधित लिगेन्डों के उन दाता परमाणुओं की संख्या को जो सीधे उससे जुड़े होते हैं, उसे धातु की उपसहसंयोजन संख्या या समन्वयी संख्या कहते हैं। उदाहरण-संकुल आयन [PtCl6]2- में Pt की उपसहसंयोजन संख्या 6 है तथा [Ni(NH3)4]2+ में Ni की उपसहसंयोजन संख्या 4 है।

(iv) उपसहसंयोजन बहुफलक या समन्वयी बहुफलक (Coordination Polyhedra) – किसी संकुल स्पीशीज में केन्द्रीय धातु परमाणु से सीधे जुड़े लिगेन्डों की अन्तराल (space) में विशिष्ट व्यवस्था को उपसहसंयोजन बहुफलक कहते हैं। उदाहरण – [Co(NH3)6]3+ अष्टफलकीय तथा [Ni(CO)4] चतुष्फलकीय है।

(v) होमोलेप्टिक तथा हेट्रोलेप्टिक संकुल संकुल जिनमें धातु परमाणु केवल एक ही प्रकार के दाता समूहों से जुड़ा होता है उन्हें होमोलेप्टिक संकुल कहते हैं। जैसे- [Co(NH3)6]3+ तथा वे संकुल जिनमें धातु परमाणु एक से अधिक प्रकार के दाता समूहों से जुड़ा होता है उन्हें हेट्रोलेप्टिक संकुल कहते हैं। उदाहरण- [Co(NH3)4Cl2]+

प्रश्न 9.4.
एकदंतुर (Unidentate), द्विदंतुर तथा उभयदंतुर लिगेन्ड से क्या तात्पर्य है? प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
एकदंतुर लिगेन्ड (Unidentate Ligand)-वह लिगेन्ड जो धातु आयन से एक दाता परमाणु द्वारा जुड़ा होता है उसे एकदंतुर लिगन्ड कहते हैं। जैसे-Cl H2O तथा NH3

द्विदंतुर लिन्ड (Didentate Ligand) – वह लिगेन्ड जो धातु आयन से दो दाता परमाणुओं द्वारा जुड़ा होता है उसे द्विदंतुर लिगेन्ड कहते हैं। जैसे- C2O2-4 (ऑक्सेलेट) तथा H2N – CH2 – CH2 – NH2 (एथेन-1,2-डाइऐमीन)

उभयदंतुर लिगेन्ड (Ambidentate Ligand) – वह लिगेन्ड जो दो भिन्न-भिन्न परमाणुओं द्वारा धातु से जुड़ सकता है उसे उभयदंतुर लिगेन्ड कहते हैं।

उदाहरण – NO2 तथा SCN आयन। NO2 आयन केन्द्रीय धातु परमाणु से नाइट्रोजन अथवा ऑक्सीजन द्वारा जुड़ सकता है। इसी प्रकार, SCN आयन सल्फर अथवा नाइट्रोजन परमाणु द्वारा जुड़ सकता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 1

प्रश्न 9.5.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में धातुओं के ऑक्सीकरण संख्या का उल्लेख कीजिए-
(i) (Co(H2O)(CN)(en)2]2+
(ii) [CoBr2(en)2]+
(iii) [PtCl4]2-
(iv) K3[Fe(CN)6]
(v) [Cr(NH3)3Cl3]
उत्तर:
(i) [Co(H2O)(CN)(en)2]2+
x + 0 + (- 1) + 0 = + 2
x = + 3 अतः Co की ऑक्सीकरण संख्या = + 3

(ii) [CoBr2(en)2]+
x – 2 + 0 = + 1
x = + 3 अतः Co की ऑक्सीकरण संख्या +3

(iii) [PtCl4]2-
x – 4 = – 2
x = + 2 अतः Pt की ऑक्सीकरण संख्या = + 2

(iv) K3[Fe(CN)6]
+ 3 + x – 6 = 0
x = + 3 अतः Fe की ऑक्सीकरण संख्या +3

(v) [Cr(NH3)3Cl3]
x + 0 – 3 = 0
x = + 3 अतः Cr की ऑक्सीकरण संख्या +3

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

प्रश्न 9.6.
IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के लिये सूत्र लिखिए-
(i) टेट्राहॉइड्राक्सोजिंकेट (II) आयन
(ii) पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II)
(iii) डाइऐम्मीनडाइक्लोरिडोप्लेटिनम (II)
(iv) पोटैशियम टेट्रासायनोनिकैलेट (II)
(v) पेन्टाऐम्मीननाइट्रिटो -O- कोबाल्ट (III) आयन
(vi) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) सल्फेट
(vii) पोटैशियम ट्राइ (आक्सेलेटो) क्रोमेट (III)
(viii) हेक्साऐम्मीन प्लैटिनम (IV) आयन
(ix) टेट्राब्रोमिडोक्यूपेट (II) आयन
(x) पेन्टाऐम्मीननाइट्रिटो – N – कोबाल्ट (III) आयन
उत्तर:
(i) [Zn(OH)4]2-
(ii) K2[PdCl4]
(iii) [Pt(NH3)2Cl2]
(iv) K2[Ni(CN)4]
(v) [Co(NH3)5(ONO)]2+
(vi) [Co(NH3)6](SO4)3]
(vii) K3[Cr(C2O4)3]
(viii) [Pt(NH3)6]4+
(ix) [CuBr4]2-
(x) [Co(NH3)5(NO2)2+

प्रश्न 9.7.
IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के सुव्यवस्थित नाम लिखिए-
(i) [Co(NH3)6]Cl3
(ii) [Pt(NH3)2CI(NH2CH3)]Cl
(iii) [Ti(H2O)6]3+
(iv) [Co(NH3)4Cl(NO2)]Cl
(v) [Mn(H2O)6]2+
(vi) [NiCl4]2-
(vii) [Ni(NH3)6]Cl2
(viii) [Co(en)3]3+
(ix) [Ni(CO)4]
उत्तर:
(i) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) डाइऐम्मीनक्लोरिडो (मेथेन एमीन) प्लेटिनम (II) क्लोराइड
(iii) हेक्साएक्वाटाइटेनियम (III) आयन
(iv) टेट्राऐम्मीनक्लोरिडोनाइट्रिटो-N-कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(v) हेक्साऐक्वामैंगनीज (II) आयन
(vi) टेट्राक्लोरिडोनिकैलेट (II) आयन
(vii) हेक्साऐम्मीननिकैल (II) क्लोराइड
(viii) ट्रिस (एथेन 1, 2 डाइएमीन) कोबाल्ट (III) आयन
(ix) टेट्राकार्बोनिल निकल (O)।

प्रश्न 9.8.
उपसहसंयोजन यौगिकों के लिए संभावित विभिन्न प्रकार की समावयवताओं को सूचीबद्ध कीजिए तथा प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
समावयवता (Isomerism)-ऐसे दो या दो से अधिक यौगिक जिनके रासायनिक सूत्र (अणु सूत्र) समान होते हैं परन्तु उनमें परमाणुओं की व्यवस्था भिन्न होती है, उन्हें एक-दूसरे के समावयवी कहते हैं तथा इस गुण को समावयवता कहते हैं। परमाणुओं की भिन्न व्यवस्थाओं के कारण इनके एक या अधिक भौतिक या रासायनिक गुणों में भिन्नता पाई जाती है। उपसहसंयोजन यौगिकों में दो प्रमुख प्रकार की समावयवताएँ होती हैं जिनको पुनः कई भागों में वर्गीकृत किया जाता है-

  • संरचनात्मक समावयवता
  • त्रिविम समावयवता

(a) संरचनात्मक समावयवता (Structural Isomerism)संरचनात्मक समावयवता में यौगिकों में स्थित बन्धों में भिन्नता पाई जाती है अर्थात् इनके संरचनात्मक सूत्र भिन्न होते हैं। संरचनात्मक समावयवता को पुनः सात प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • बंधनी समावयवता
  • उपसहसंयोजन या समन्वयी समावयवता
  • आयनन समावयवता
  • विलायकयोजन समावयवता या हाइड्रेट समावयवता
  • लिगेन्ड समावयवता
  • बहुलकीकरण समावयवता
  • उपसहसंयोजन स्थिति समावयवता।

प्रश्न 9.9.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में कितने ज्यामितीय समावयव संभव हैं?
(क) [Cr(C2O4)3]3-
(ख) [Co(NH3)3Cl3]
उत्तर:
(क) [Cr(C2O4)3]3- में ज्यामितीय समावयवता संभव नहीं है क्योंकि इसकी केवल एक ही प्रकार की व्यवस्था संभव है।

(ख) (Co(NH3)3Cl3] के दो विशेष प्रकार के ज्यामितीय समावयवी संभव हैं- (1) फलकीय (Facial) (Fac) तथा (ii) रेखांशिक (Meridional) (Mer)।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 2

प्रश्न 9.10.
निम्न के प्रकाशिक समावयवों की संरचनाएँ बनाइए-
(i) [Cr(C2O4)3]3-
(ii) [PtCl2(en)2]2+
(iii) [Cr (NH3)2Cl2(en)] +
उत्तर:
(i) [Cr(C2O4)3]3- में C2O2-4 ( ऑक्सेलेट) आयन है जिसका संकेत ox प्रयुक्त किया जाता है। इस संकुल आयन के दो प्रकाशिक समावयवियों की संरचना निम्न प्रकार है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 3

(ii) [PtCl2(en)2]2+ संकुल आयन के प्रकाशिक समावयवी निम्नलिखित हैं-
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(iii) [Cr(NH3)2Cl2(en)]+ के समपक्ष तथा विपक्ष दोनों समावयवी प्रकाशिक समावयवता दर्शाते हैं।
(a) समपक्ष रूप के प्रकाशिक समावयवियों को निम्न प्रकार दर्शाते हैं-
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(b) विपक्ष रूप के प्रकाशिक समावयवियों को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-
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प्रश्न 9.11.
निम्नलिखित के सभी समावयवियों (ज्यामितीय व ध्रुवण) की संरचनाएँ बनाइए-
(i) [CoCl2(en)2]+
(ii) [Co(NH3)Cl(en)2]2+
(iii) [Co(NH3)2Cl2(en)]+
उत्तर:
(i) [CoCl2(en)2]+ यह संकुल आयन ज्यामितीय समावयवता दर्शाता है अतः इसके समपक्ष तथा विपक्ष रूप होते हैं। इनमें से समपक्ष रूप असममित है अतः यह प्रकाशिक समावयवता दर्शाता है।
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(ii) [Co(NH3)Cl(en)2]2+ – इस संकुल आयन में ज्यामितीय समावयवता होती है जिसके समपक्ष तथा विपक्ष रूप निम्न प्रकार होते हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 8
इसका समपक्ष रूप प्रकाशिक समावयवता भी दर्शाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 9

(iii) [Co(NH3)2Cl2(en)]+ – इस संकुल आयन में ज्यामितीय समावयवता होती है जिसके समपक्ष तथा विपक्ष समावयवी निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 10
इसके समपक्ष तथा विपक्ष दोनों ही समावयवी प्रकाशिक समावयवता दर्शाते हैं जिनकी संरचनाएँ (i) तथा (ii) की तरह ही बना सकते हैं।

प्रश्न 9.12.
[Pt(NH3)(Br)(Cl)(Py)] के सभी ज्यामितीय समावयवी लिखिए। इनमें से कितने ध्रुवण समावयवता दर्शाएंगे?
उत्तर:
संकुल [PI(NH3)(Br)(CI) (Py)] के तीन ज्यामितीय समावयवी संभव हैं जिनमें से दो समपश्च तथा एक विपक्ष समावयवी माना जाता है। इनकी संरचनाएँ निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 11
इस संकुल की वर्गाकार समतलीय ज्यामिति होती है अतः इसमें प्रकाशिक समावयवता (ध्रुवण समावयवता) नहीं होती।

प्रश्न 9.13.
जलीय कॉपर सल्फेट विलयन (नीले रंग का), निम्नलिखित प्रेक्षण दर्शाता है-
(i) जलीय पोटैशियम फ्लुओराइड (KF) के साथ हरा रंग
(ii) जलीय पोटैशियम क्लोराइड (KCI) के साथ चमकीला हरा रंग
उपर्युक्त प्रायोगिक परिणामों को समझाइए।
उत्तर:
जलीय विलयन में CuSO4,[Cu(H2O)4]SO4 के रूप में पाया जाता है, जिसका नीला रंग (Cu(H2O)4]2+ आयनों के कारण होता है।
(i) इसमें जलीय KF मिलाने पर दुर्बल लिगन्ड H2O F द्वारा प्रतिस्थापित हो जाते हैं तथा [CuF4]2+ आयन बनता है जो हरा अवक्षेप देता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 12

(ii) [Cu(H2O)4]2+ में जलीय KCI मिलाया जाता है, तो Cl लिगेन्ड H2O (दुर्बल लिगन्ड) को प्रतिस्थापित कर [CuCl4]2- आयन बनाता है जिसका रंग चमकीला हरा होता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 13

प्रश्न 9.14.
कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन में जलीय KCN को आधिक्य में मिलाने पर बनने वाली उपसहसंयोजन सत्ता क्या होगी ? इस विलयन में जब HS गैस प्रवाहित की जाती है तो कॉपर सल्फाइड का अवक्षेप क्यों नहीं प्राप्त होता ?
उत्तर:
कॉपर सल्फेट का जलीय विलयन [Cu(H2O)4]2+ के रूप में पाया जाता है तथा इसमें जलीय KCN का आधिक्य मिलाने पर निम्नलिखित संकुल आयन बनता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 14
चूँकि CN एक प्रबल लिगन्ड है, अतः यह Cu2+ आयन के साथ स्थायी संकुल बनाता है। इसमें Cu2+ आयन स्वतंत्र नहीं है। अतः इसमें H2S गैस प्रवाहित करने पर Cus का अवक्षेप नहीं बनता।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

प्रश्न 9.15
संयोजकता आबंध सिद्धान्त के आधार पर निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में आबंध की प्रकृति की विवेचना कीजिए-
(क) [Fe(CN)6]4-
(ख) [FeF6]3-
(ग) [Co(C2O43]3-
(घ) [CoF6]3-
उत्तर:
(क) [Fe(CN)6]4- : [Fe(CN)6]4- में Fe की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d6
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CN प्रबल लिगन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में 3d में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है।
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इस प्रकार दो d कक्षक रिक्त हो जाने के कारण इसमें d²sp³ संकरण होता है। इन d²sp³ संकरित कक्षकों में 6CN इलेक्ट्रॉन युग्मों का दान करके 6 उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं।

इस संकुल की ज्यामिति अष्टफलकीय है तथा सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होने के कारण यह प्रतिचुम्बकीय है। इसे आंतरिक कक्षक संकुल या निम्न चक्रण (Low spin) संकुल या चक्रण युग्मित (Spin paired ) संकुल कहते हैं।
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(ख) [FeF6]3- : [FeF6]3- में Fe की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Fe+3 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d5
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F दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता।
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अतः इसमें sp³d² संकरण होता है। इन sp³d² संकरित कक्षकों में 6F, इलेक्ट्रॉन युग्मों का दान करके 6 उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। यह अष्टफलकीय संकुल है तथा अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण यह अनुचुंबकीय है। इसे बाह्य कथक संकुल या उच्च चक्रण (High spin) या चक्रण मुक्त (Spin free) संकुल कहते हैं।
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(ग) [Co(C2O4)3]3- – [Co(C2O4)3]3- में Co की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d6
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C2O2-4] – (ऑक्सेलेट) प्रबल लिगन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में 3d कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है।
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दो d कक्षक रिक्त हो जाने के कारण इसमें d²sp³ संकरण होता है। इन संकरित कक्षकों में 3C2O-24इलेक्ट्रॉन युग्मों का दान करके 6 उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। इस अष्टफलकीय संकुल में सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होने के कारण यह प्रतिचुंबकीय होता है। इसे आंतरिक कक्षक संकुल कहते हैं।
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(घ) [CoF6]3- : [CoF6]3- में Co की ऑक्सीकरण संख्या +3 तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d6
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F दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता।
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अतः इसमें sp³d² संकरण होता है। इन संकरित कक्षकों में 6F इलेक्ट्रॉन युग्मों का दान करके 6 उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। यह अष्टफलकीय संकुल अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण अनुचुंबकीय होता है तथा इसे बाह्य कक्षक संकुल कहते हैं।

प्रश्न 9.16.
अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d कक्षकों के विपाटन को दर्शाने के लिए चित्र बनाइए।
उत्तर:
अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d कक्षकों ‘विपाटन को निम्न प्रकार दर्शाया जाता है-
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प्रश्न 9.17.
स्पेक्ट्रम रासायनिक श्रेणी क्या है? दुर्बल क्षेत्र लिगेन्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत के अनुसार अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन, ∆0 लिंगन्ड तथा धातु आयन पर स्थित आवेश से उत्पन्न क्षेत्र पर निर्भर करता है। कुछ लिगेन्ड प्रबल क्षेत्र उत्पन्न करते हैं तथा इस स्थिति में विपाटन अधिक होता है, इन्हें प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड कहते हैं। अन्य लिगड दुर्बल क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जिसके कारण कक्षकों का विपाटन कम होता है, इन्हें दुर्बल क्षेत्र लिगन्ड कहते हैं। लिगेन्डों को उनके बढ़ती हुई क्षेत्र प्रबलता के क्रम में एक श्रेणी में निम्नानुसार व्यवस्थित किया जाता है-
I < Br < SCN < Cl <S2- <F < OH <C2O2-4 < H2O < NCS < edta4- < NH3 < en < CN < CO
इस श्रेणी को स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी (spectrochemical series) कहते हैं तथा यह विभिन्न लिगन्डों के साथ बने संकुलों द्वारा प्रकाश के अवशोषण के प्रायोगिक मापन से प्राप्त तथ्यों के आधार पर प्राप्त की जाती है

प्रश्न 9.18.
क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा क्या है? उपसहसंयोजन सत्ता में d कक्षकों का वास्तविक विन्यास ∆0 के मान के आधार पर कैसे निर्धारित किया जाता है?
उत्तर:
अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन- एक अष्टफलकीय संकुल में धातु परमाणु छः लिगेन्डों द्वारा घिरा होता है। इसमें ad कक्षकों के इलेक्ट्रॉनों तथा लिगेन्डों के इलेक्ट्रॉनों के मध्य प्रतिकर्षण होता है। जब धातु होते हैं तो प्रतिकर्षण अधिक होता है। dx² – y² तथा d² कक्षक लिगेन्ड की ओर सीधे निर्दिष्ट (directed) की दिशा वाले अक्षों पर होते हैं, अतः इन पर प्रतिकर्षण अधिक होता है जिससे इनकी ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है जबकि dxy, dyz और dxz कक्षक, अक्षों के बीच में स्थित होते हैं, अतः इनकी ऊर्जा गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र की औसत ऊर्जा की तुलना में कम हो जाती है।

इस प्रकार अष्टफलकीय संकुल में लिगन्ड इलेक्ट्रॉन – धातु इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण के कारण d कक्षकों की समभ्रंशता समाप्त हो जाती है तथा ये तीन निम्न ऊर्जा वाले, t2g कक्षकों तथा दो उच्च ऊर्जा वाले, eg कक्षकों में विभाजित हो जाते हैं। इस प्रकार समान ऊर्जा वाले कक्षकों का, लिगेन्डों की निश्चित ज्यामिति में उपस्थिति से दो भागों में विपाटन क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहलाता है तथा इस ऊर्जा अंतर को ∆0 [यहाँ O = अष्टफलकीय (octahedral)] से दर्शाते हैं। eg कक्षकों की ऊर्जा में (3/5) ∆0 के बराबर वृद्धि होती है तथा t2g कक्षकों की ऊर्जा में (2/5) ∆0 के बराबर कमी होती है। प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड की उपस्थिति में ∆0 का मान अधिक होता है जबकि दुर्बल क्षेत्र लिगेन्ड की उपस्थिति में यह मान कम होता है।
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∆ को प्रभावित करने वाले कारक – क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (∆) निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-

  • धातु की प्रकृति
  • धातु आयन पर आवेश
  • लिगेन्ड की प्रकृति
  • संकुल की ज्यामिति
  • d- इलेक्ट्रॉनों की संख्या

कारक संकुल आयन के रंग को भी प्रभावित करते हैं। धातु आयन पर आवेश बढ़ने से तथा प्रबल क्षेत्र लिगेन्डों की उपस्थिति में विपाटन अधिक होता है।

स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी (Spectrochemical Series) – जब विभिन्न लिगेन्डों को उनकी बढ़ती हुई क्षेत्र प्रबलता के क्रम में रखा जाता है तो प्राप्त श्रेणी को स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी कहते हैं। यह श्रेणी विभिन्न लिडों के साथ बने संकुल यौगिकों द्वारा प्रकाश के अवशोषण के प्रायोगिक मापन से प्राप्त तथ्यों के आधार पर प्राप्त की जाती है। प्रमुख लिगेन्डों के लिए यह श्रेणी निम्नलिखित है-
I < Br < SCN < Cl < S2- < F < OH < C2O42- < H2O < NCS < EDTA4- + < NH3 < en < NO2 < CN < CO
इस श्रेणी में H2O तक के लिगेन्ड दुर्बल क्षेत्र लिगेन्ड (WFL) तथा इससे आगे के लिगेन्ड प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड (SFL) होते हैं।

प्रश्न 9.19.
[Cr(NH3)6)]3+ अनुचुंबकीय है जबकि [Ni(CN)4]2- प्रतिचुंबकीय, समझाइए क्यों?
उत्तर:
[Cr(NH3)6)]3+ में Cr, + 3 ऑक्सीकरण अवस्था में है जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d³ है, जिसमें तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं।
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संकरण (d²sp) के पश्चात् भी ये अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित रहते हैं क्योंकि रिक्त d कक्षक ही संकरण में प्रयुक्त होते हैं अतः [Cr(NH3)6]3+ अनुचुंबकीय है लेकिन (Ni(CN)4]2- में Ni, Ni2+ अवस्था में है जिसका विन्यास 3d<sup<>8 है। प्रबल लिगेन्ड (\(\overline{C}\)N) के कारण इसके अयुग्मित इलेक्ट्रॉन संकरण के समय युग्मित हो जाते हैं अतः यह प्रतिचुंबकीय है।

प्रश्न 9.20
[Ni(H2O)6]2+ का विलयन हरा है परन्तु [NI(CN)4]2- का विलयन रंगहीन है। समझाइए।
उत्तर:
[Ni(H2O)6]2+ में उपस्थित Ni2+ के 3d8 विन्यास में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित हैं। H2O दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसके कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता तथा इसमें sp³d² संकरण है।

अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण इस संकुल में dd संक्रमण आसानी से हो जाता है जिसके कारण यह रंगीन (हरा) है परन्तु [Ni (CN)4]2- में CN प्रबल लिगेन्ड है जिसके कारण Ni2+ के 3d8 विन्यास में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो है अतः इस संकुल में dsp² संकरण के कारण कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है इसलि d – d संक्रमण संभव नहीं है। इस कारण यह रंगहीन है।

प्रश्न 9.21.
[Fe(CN)6]4- तथा [Fe(H2O)6]2+ के तनु विलयनों के रंग भिन्न होते हैं। क्यों?
उत्तर:
Fe (CN)6]4- में CN प्रबल लिगन्ड है तथा इसमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित हैं (d²sp³ संकरण) अतः इसमें d – d संक्रमण नहीं होता है, इस कारण यह संकुल रंगहीन होता है जबकि [Fe(H2O)6]2+ में H2O दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसमें sp³d² संकरण के पश्चात् भी चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन रहते हैं, जिनके कारण d – d संक्रमण आसानी से हो जाता है। इस कारण यह संकुल रंगीन होता है।

भिन्न-भिन्न लिगेन्ड के कारण क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा भी भिन्न- भिन्न होती है जिसके कारण समान धातु आयन होते हुए भी रंगों में भिन्नता होती है।

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प्रश्न 9.22.
धातु कार्बोनिलों में आबंध की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
धातु कार्बोनिलों में बंध की प्रकृति को निम्न प्रकार समझा सकते हैं-होमोलेप्टिक कार्बोनिल यौगिक (जिनमें केवल कार्बोनिल लिगेन्ड हों) सामान्यतः संक्रमण धातुओं द्वारा बनाए जाते हैं। इन धातु कार्बोनिलों की संरचनाएँ सरल होती हैं। टेट्राकार्बोनिलनिकल (0), [Ni(CO)4] चतुष्फलकीय (sp³ संकरण), पेन्टाकार्बोनिल आयरन (O), (Fe(CO)5] त्रिकोणीय द्विपिरैमिडी (sp³d संकरण) तथा हेक्साकार्बोनिलक्रोमियम (0), [Cr(CO)6] अष्टफलकीय (d²sp³ संकरण ) होता है।

कार्बोनिलडाइ मैंगनीज (0), [Mn2(CO)10] में दो वर्ग पिरैमिडी Mn(CO)5 इकाइयां Mn – Mn बंध द्वारा जुड़ी होती हैं। ऑक्टाकार्बोनिलडाइकोबाल्ट (0), [Co2(CO)8] में Co – Co बन्ध के मध्य दो CO समूह सेतु के रूप में पाए जाते हैं।

इनकी संरचनाएँ निम्न प्रकार दर्शाई जा सकती हैं-
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धातु कार्बोनिलों में पश्च बन्धन या सहक्रियाशीलता बन्ध (Back Bonding or Synergic Bond in Metal Carbonyls) – धातु कार्बोनिलों के धातु- कार्बन बंध में s तथा p दोनों गुण होते हैं। M-C σ बंध कार्बोनिल (CO) समूह के कार्बन पर उपस्थित एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म धातु के रिक्त कक्षक में दान करने से बनता है तथा M-C π बंध धातु के पूर्ण भरे असंकरित कक्षकों में से एक इलेक्ट्रॉन युग्म को CO के रिक्त विपरीत बन्धी अणुकक्षक (Antibonding M.O) (π*) में दान करने से बनता है।

धातु से लिगेन्ड का बंध एक सहक्रियाशीलता प्रभाव (Synergic effect) उत्पन्न करता है जिसे पश्च बन्धन कहते हैं। इसके कारण धातु पर उपस्थित इलेक्ट्रॉन घनत्व कम हो जाता है, जो धातु तथा CO के मध्य उपस्थित बन्ध की प्रबलता को बढ़ाता है, जिससे धातु कार्बोनिल का स्थायित्व बढ़ जाता है। यहाँ C= O (कार्बोनिल) को π एसिड लिगेन्ड कहते हैं क्योंकि इसके π या π* अणुकक्षक में धातु से इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है।
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प्रश्न 9.23.
निम्न संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था, d कक्षकों का अधिग्रहण (Occupation) एवं उपसहसंयोजन संख्या बतलाइए-
(i) K3[Co(C2O4)3]
(ii) cis – [Cr(en)2Cl2]Cl
(iii) (NH4)2[C0F4]
(iv) [Mn(H2O)6]SO4
उत्तर:
(i) K3[Co(C2O4)3] में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है क्योंकि C2O42- (ऑक्सेलेट) द्विदन्तुर (didentate) प्रबल लिगेन्ड है अतः Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t2g6 e0g होगा (Co+3 = 3d6)

(ii) cis – [Cr(en)2Cl2]Cl में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है। इसमें धातु आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 12 है। (Cr+3 = 3d³)

(iii) (NH4)2[CoF] में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 4 है। इसमें धातु आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t³2gg है। (Co+2 = 3d7)

(iv) [ Mn (H2O)6]SO4 में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है। इसमें धातु आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t³2gg होगा। (Mn3+ = 3d5)

प्रश्न 9.24.
निम्न संकुलों के IUPAC नाम लिखिए तथा ऑक्सीकरण अवस्था, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और उपसहसंयोजन संख्या दर्शाइए। संकुल का त्रिविम रसायन तथा चुंबकीय आघूर्ण भी बतलाइए-
(i) K [Cr(H2O)2 (C2O4)2].3H2O
(ii) [CrCl3(py)3]
(iii) [Co(NH3)5Cl]Cl2
(iv) Cs[FeCl4]
(v) K4[Mn(CN)6]
उत्तर:
(i) K [Cr(H2O)2 (C2O4)2].3H2O : संकुल का IUPAC नाम पोटेशियमडाएएक्वाडाइ – ऑक्सेलेटो क्रोमेट (III) ट्राइहाइड्रेट
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था + 3(3d³)
Cr3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t³2g e0g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 6
संकुल की ज्यामिति = अष्टफलकीय इस संकुल में ज्यामितीय तथा प्रकाशिक समावयवता होती है।
चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) B.M.
Cr3+ = 3d³, अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 3
H = \(\sqrt{3(3+2)}\) = \(\sqrt{15}\) B.M. 3.87B.M.

(ii) [CrCl3(py)3]
ट्राइक्लोरिडोट्रिसपिरी डीनक्रोमियम (III)
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था + 3(3d³)
Cr3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t³2g e0g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 6
संकुल की ज्यामिति = अष्टफलकीय इस संकुल में ज्यामितीय तथा प्रकाशिक समावयवता होती है।
चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = \(\sqrt{3(3+2)}\) = \(\sqrt{15}\) B.M. 3.87 B.M. (n = 3)

(iii) [Co(NH3)5Cl]Cl2 : संकुल का IUPAC नाम- पेन्टाऐम्मीनक्लोरिडोकोबाल्ट (III) क्लोराइड
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था = + 3(3d6)
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = t62g e0g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 6
संकुल की ज्यामिति = अष्टफलकीय
चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = शून्य, क्योंकि इसमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित हैं।

(iv) Cs[FeCl4] : संकुल का IUPAC नाम- सिजियमटेट्राक्लोरिडोफेरेट (III)
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था = +3 (3d5)
Fe3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = e²g t32g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 4
संकुल की ज्यामिति चतुष्फलकीय
चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = \(\sqrt{5(5+2)}\)
= \(\sqrt{35}\) = 5.91B.M. (n = 5)

(v) K4 [Mn (CN)6] : संकुल का IUPAC नाम- पोटैशियमहेक्सासायनोमैंगनेट (II)
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था = +2 (3d5)
Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = t52g e0g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 6
संकुल की ज्यामिति = अष्टफलकीय
चुंबकीय आघूर्ण (i) (μ) = \(\sqrt{1(1+2)}\)
= \(\sqrt{3}\) = 1.73 BM (n = 1)

प्रश्न 9.25
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के आधार पर संकुल [Ti(H2O)6]3+ के बैंगनी रंग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
[Ti(H2O)6]3+ एक अष्टफलकीय संकुल है जिसमें धातु के d कक्षक का इलेक्ट्रॉन संकुल की निम्नतम ऊर्जा अवस्था में t2g कक्षक में है। इस इलेक्ट्रॉन के लिए उपलब्ध इससे अगली उच्च अवस्था eg कक्षक रिक्त संगत प्रकाश का अवशोषण करता
है। यह संकुल पीले हरे क्षेत्र की है जिससे इलेक्ट्रॉन t2g स्तर से eg स्तर में उत्तेजित हो जाता है (t2g1 eg0 → t2g0 eg1) जिसके कारण संकुल बैंगनी रंग का दिखाई देता है। क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के अनुसार यह इलेक्ट्रॉन का ded संक्रमण है। लिगेन्ड की अनुपस्थिति में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन नहीं होता है अतः [Ti(H2O)6]3+ को गरम करने पर इसमें से जल निकल जाने के कारण यह रंगहीन हो जाता है।
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प्रश्न 9.26.
कीलेट प्रभाव से क्या तात्पर्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कीलेट प्रभाव – किसी संकुल में जब एक द्विदंतुर अथवा बहुदंतुर लिगेन्ड अपने दो या दो से अधिक दाता परमाणुओं द्वारा एक ही धातु आयन से बन्ध बनाता है, तो इसे कीलेट (chelate) लिगेन्ड कहते हैं तथा बन्ध बनाने वाले परमाणुओं की संख्या को लिगेन्ड की दंतुरता या डेन्टिसिटी (denticity) कहते हैं। बन्ध बनाने की इस प्रक्रिया को कीलेटन कहते हैं तथा ऐसे संकुल, कीलेट संकुल (chelate complexes) कहलाते हैं, ऐसे संकुलों का स्थायित्व अपेक्षाकृत अधिक होता है। कोलेटन (chelaton) द्वारा किसी संकुल ( उपसहसंयोजन यौगिक) के स्थायीकरण को कीलेट प्रभाव कहते हैं। कीलेट संकुल बनते समय एक वलय बनती है, इसे कीलेट वलय कहते हैं तथा इस वलय के बनने के कारण ही संकुल का स्थायित्व बढ़ता है।

उदाहरण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 32

प्रश्न 9.27.
प्रत्येक का एक उदाहरण देते हुए निम्नलिखित में उपसहसंयोजन यौगिकों की भूमिका की संक्षिप्त विवेचना कीजिए-
(i) जैव प्रणालियाँ
(ii) औषध रसायन
(iii) विश्लेषणात्मक रसायन
(iv) धातुओं का निष्कर्षण / धातु कर्म ।
उत्तर:
(i) जैव प्रणालियाँ-उपसहसंयोजन यौगिक जैव तंत्र में भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक हरा वर्णक क्लोरोफिल, मैग्नीशियम का उपसहसंयोजन यौगिक है, रक्त का लाल वर्णक (pigment) हीमोग्लोबिन, आयरन का एक उपसहसंयोजन यौगिक है, जो कि ऑक्सीजन वाहक होता है। विटामिन B12 (सायनाकोबालेमीन), कोबाल्ट का एक उपसहसंयोजन यौगिक है, जो कि एनिमिया के उपचार में प्रयुक्त होता है। जैविक महत्व के अन्य धातु आयन युक्त उपसहसंयोजन यौगिक कार्बोक्सीपेप्टिडेज-A, कार्बोनिक एनहाइड्रेज एन्जाइम (जैव उत्प्रेरक) तथा साइटोक्रोम-C (Fe2+ का संकुल) है।

(ii) औषध रसायन-में-औषध रसायन में कीलेट चिकित्सा का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। उदाहरण-पौधे/जीव-जंतुओं में विषैले अनुपात में उपस्थित धातुओं के द्वारा उत्पन्न समस्याओं का उपचार। इस प्रकार कॉपर तथा आयरन की अधिकता को D-पेनिसिलऐमीन तथा डेसफेरीऑक्सिम B लिगन्डों के साथ उपसहसंयोजन यौगिक बनाकर दूर किया जाता है। EDTA को लेड की विषाक्तता के उपचार हेतु प्रयुक्त किया जाता है। प्लैटिनम के कुछ उपसहसंयोजक यौगिक ट्यूमर की वृद्धि को रोकते हैं। उदाहरण-समपक्ष-प्लेटिन (cis-platin), cis [Pt(NH3)2Cl2] कैंसररोधी (Anticancer) होता है।

(iii) विश्लेषणात्मक रसायन-
(a) गुणात्मक ( qualitative) तथा मात्रात्मक (quantitative) रासायनिक विश्लेषणों में उपसहसंयोजन यौगिक बहुत उपयोगी होते हैं। अनेक रंगीन अभिक्रियाएँ जिनमें धातु आयनों की विभिन्न लिगेन्डों के साथ क्रिया से (विशेषतः कीलेट लिगन्ड) उपसहसंयोजन यौगिक बनते हैं जिनके कारण रंग उत्पन्न होता है। विभिन्न विधियों से धातु आयनों की पहचान व उनका मात्रात्मक आकलन इसी आधार पर किया जाता है। ये अभिकर्मक EDTA, DMG (डाइमेथिल ग्लाई ऑक्सिम ), α – नाइट्रोसो – ß – नेफ्थॉल, क्यूपफेरॉन आदि हैं।

(b) क्षारीय मूलकों का परीक्षण – प्रथम समूह में Ag+ तथा Hg2+2 का पृथक्करण-लवण के मूल विलयन में जब HCI डालते हैं तो पहले AgCl तथा Hg2Cl2 का अवक्षेप बनता है जिसकी NH4OH के साथ क्रिया कराने पर AgCl, विलेय संकुल बनता है जबकि Hg2Cl2 से Hg(NH2)Cl का काला अवक्षेप बनता है।
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द्वितीय समूह में IIA तथा IIB का पृथक्करण-IIB समूह के धातु सल्फाइड पीले अमोनियम सल्फाइड से क्रिया करके विलेय संकुल बनाते हैं जबकि IIA समूह के सल्फाइड अविलेय रहते हैं।
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Cu2+ का परीक्षण – Cu+2 का परीक्षण NH3 विलयन तथा पोटैशियम फेरोसायनाइड से क्रिया द्वारा किया जाता है-
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III समूह में Fe3+ का परीक्षण-III समूह में Fe3+ का परीक्षण पोटैशियम फेरोसायनाइड तथा पोटैशियम थायोसायनेट विलयन द्वारा किया जाता है।
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IV समूह में Ni2+ का परीक्षण-यह परीक्षण डाइमेथिल ग्लाइऑक्सिम (DMG) द्वारा किया जाता है-
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प्राच्छादक के रूप में (Masking agent)- Cu2+ की उपस्थिति में Cd2+ का आकलन करने के लिए \(\overline{C}\)N आयन मिलाकर Cu2+ का संकुल बना लेते हैं जो कि स्थायी होता है लेकिन Cd2+ का संकुल अस्थायी होता है अतः वियोजित होकर Cd2+ दे देता है जिसकी H2 के साथ क्रिया से Cds का पीला अवक्षेप प्राप्त होता है।

(iv) धातुओं का निष्कर्षण / धातु कर्म – धातुओं का निष्कर्षण-धातुओं की कुछ प्रमुख निष्कर्षण विधियों में जैसे सिल्वर तथा गोल्ड के निष्कर्षण में संकुल के विरचन का उपयोग किया जाता है। उदाहरण-ऑक्सीजन तथा जल की उपस्थिति में Au3+, सायनाइड आयन से संयोजित होकर उपसहसंयोजन आयन, [Au(Ch2)] बनाता है। इस विलयन में जिंक मिलाकर गोल्ड को पृथक् कर लिया जाता है (एकक 6)।

प्रश्न 9.28.
संकुल [Co(NH3)6]Cl2 से विलयन में कितने आयन उत्पन्न होंगे-
(i) 6
(ii) 4
(iii) 3
(ii) 4
(iv) 2
उत्तर:
(iii) इस संकुल का आयनन निम्न प्रकार होता है अतः इसके विलयन में तीन आयन उत्पन्न होंगे।
[Co(NH3)6]Cl2 → [Co(NH3)6]2+ + 2Cl

प्रश्न 9.29.
निम्नलिखित आयनों में से किसके चुंबकीय आघूर्ण का मान सर्वाधिक होगा?
(i) [Cr(H2O)6]3+
(ii) [Fe(H2O)6]2+
(iii) [Zn(H2O)6]2+
उत्तर:
(ii) इन संकुल आयनों में Zn2+, Cr3+ तथा Fe2+ में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या क्रमशः 0 3 एवं 4 है अतः संकुल आयन [Fe (H2O)6]2+ का चुम्बकीय आघूर्ण सर्वाधिक होगा।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

प्रश्न 9.30.
K[Co(CO)4] में कोबाल्ट की ऑक्सीकरण संख्या है-
(i) +1
(iii) -1
(ii) +3
(iv) -3
उत्तर:
(iii) K [Co(CO)4]
+ 1 + x + = 0
x = – 1

प्रश्न 9.31.
निम्न में सर्वाधिक स्थायी संकुल है-
(i) [Fe(H2O)6]3+
(ii) [Fe(NH3)6]3+
(iii) Fe(C2O4)3]3-
(iv) [FeCl6]3-
उत्तर:
(iii) क्योंकि इसमें C2O2-3 ( ऑक्सेलेट) लिगेन्ड कीटकारी है, जिससे स्थायित्व बढ़ता है।

प्रश्न 9.32.
निम्नलिखित के लिए दृश्य प्रकाश में अवशोषण की तरंगदैर्घ्य का सही क्रम क्या होगा?
[Ni(NO2)6]4-, [Ni(NH3)6]2+, [Ni(H2O)6]2+
उत्तर:
दिए गए संकुलों में प्रयुक्त लिगेन्डों के लिए स्पेक्ट्रमी- रासायनिक श्रेणी में प्रबलता का क्रम निम्न प्रकार होता है-
H2O < NH3 < NO2
अतः उत्तेजन हेतु अवशोषित प्रकाश (ऊर्जा) का क्रम निम्न होगा-
[Ni(H2O)6]2+ <[Ni(NH3)6]2+ <[Ni (NO2)6]4+
इसलिए अवशोषित तरंगदैर्घ्य का क्रम इसके विपरीत होगा क्योंकि (E = hc/λ)
[Ni(NO2)6]4- < [Ni(NH3)6]2+ < [Ni(H2O)6]2+

HBSE 12th Class Chemistry उपसहसंयोजन यौगिक Intext Questions

प्रश्न 9.1.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन यौगिकों के सूत्र लिखिए-
(i) टेट्राऐम्मीनडाइएक्वाकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) पोटैशियम टेट्रासायनोनिकैलेद (II)
(iii) ट्रिस (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) क्रोमियम (III) क्लोराइड
(iv) ऐम्मीनब्रोमिडोक्लोरिडोनाइट्रिटो-N-प्लैटिनेट (II)
आयन
(v) डाइक्लोरोबिस (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) प्लैटिनम (IV) नाइट्रेट
(vi) आयरन (III) हेक्सासायनोफेरेट (II)।
उत्तर:
(i) [Co(NH3)4(H2O)2]Cl3
(ii) K2[Ni(CN)4]
(iii) [Cr(en3]Cl3
(iv) [Pt(NH3)BrCl}\left(NO2)]
(v) [PtCl2(en)2] (NO3)2
(vi) Fe4[Fe(CN)6]3

प्रश्न 9.2.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए-
(i) [Co(NH3)6]Cl3
(ii) [Co(NH3)5Cl]Cl2
(iii) K3[Fe}(CN)6]
(iv) K3[Fe(C2O4)3]
(v) K2[PdCl4]
(vi) [Pt(NH3)2Cl(NH2CH3)]Cl
उत्तर:
(i) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) पेन्टाऐम्मीनक्लोरिडोकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(iii) पोटैशियम हेक्सासायनोफेरेट (III)
(iv) पोटैशियम ट्राइआक्सैलेटोफेरेट (III)
(v) पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II)
(vi) डाइऐम्मीनक्लोरिडो ( मेथेनेमीन ) प्लैटिनम (II) क्लोराइड।

प्रश्न 9.3.
निम्नलिखित संकुलों द्वारा प्रदर्शित समावयवता का प्रकार बतलाइए तथा इन समावयवों की संरचनाएं बनाइए-
(i) K[Cr(H2O)2(C2O4)2]
(ii) [Co(en)3]Cl3
(iii) [Co(NH3)5(NO2)](NO3)2
(iv) [Pt(NH3)(H2O)Cl2]
उत्तर:
(i) संकुल K[Cr(H2O)2(C2O4)2] ज्यामितीय समावयवता दर्शाता है अतः इसके दो रूप होते हैं-समपक्ष तथा विपक्ष। समपक्ष समावयवी, प्रकाशिक समावयवता भी दर्शाता है अतः इसके दो ध्रुवण समावयवी ( d तथा l रूप) होंगे। यहाँ C2O4 (ऑक्सेलेट) का संकेत ox दिया गया है। इस संकुल के समपक्ष, विपक्ष तथा प्रकाशिक समावयवियों की संरचना निम्न प्रकार होती है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 38
(ii) संकुल [Co(en)3]Cl3 प्रकाशिक समावयवता दर्शाता है। अतः इसके दो रूप (d तथा l) होते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 39
(iii) संकुल [Co(NH3)5(NO2)](NO3)2 के कुल संभावित समावयवी दस होंगे तथा यह संकुल निम्न प्रकार की समावयवता दर्शाता है-ज्यामितीय, आयनन तथा बंधनी समावयवता।

आयनन समावयवी-
[Co(NH3)5(NO)2] (NO3)2 तथा [Co(NH3)5(NO3)] (NO2) (NO3)

बन्धनी समावयवी-
[Co(NH3)5(NO2)](NO3)2 तथा [Co(NH3)5(ONO)](NO3)2

(iv) संकुल [Pt(NH3)(H2O)Cl2] ज्यामितीय समावयवता दर्शाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 40

प्रश्न 9.4.
इसका प्रमाण दीजिए कि [Co(NH3)5Cl] SO4 तथा [Co(NH3)5SO4]Cl आयनन समावयवी हैं।
उत्तर:
आयनन समावयवी जल में विलेय होकर भिन्न-भिन्न आयन देते हैं अतः इनकी विभिन्न अभिकर्मकों से अभिक्रिया का प्रकार भिन्न-भिन्न होगा-
[Co(NH3)5Cl]SO4 +BaCl2 विलयन → BaSO4(s) श्वेत अवक्षेप
[Co(NH3)5SO4]Cl + BaCl2 विलयन → कोई अभिक्रिया नहीं
[Co(NH3)5Cl]SO4 + AgNO3 विलयन → कोई अभिक्रिया नहीं
[Co(NH3)5SO4]Cl + AgNO3 विलयन → AgCl श्वेत अवक्षेप

प्रश्न 9.5.
संयोजकता आबंध सिद्धान्त के आधार पर समझाइए कि वर्ग समतलीय संरचना वाला [Ni(CN)4]2- आयन प्रतिचुंबकीय है तथा चतुष्फलकीय ज्यामिति वाला [NiCl4]2- आयन अनुचुंबकीय है।
उत्तर:
वर्ग समतलीय आयन [Ni(CN)4]2- में Ni पर dsp2 संकरण पाया जाता है। इसमें Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है। इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 41
प्रत्येक संकरित कक्षक एक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म प्राप्त करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉन अनुपस्थित होने के कारण यह संकुल प्रतिचुंबकीय है। [NiCl4]2- आयन में Ni पर sp3 संकरण पाया जाता है तथा इसकी ज्यामिति चतुष्फलकीय होती है।

इसमें एक s तथा तीन p कक्षकों के संकरण से चार समान sp3 संकर कक्षक बनते हैं। यहाँ निकल +2 ऑक्सीकरण अवस्था में है तथा इस आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है अतः इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक 42
संकरण के पश्चात् भी 3d कक्षकों में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं जिनके कारण यह संकुल आयन अनुचुंबकीय होता है।

प्रश्न 9.6.
[NiCl4]2- अनुचुंबकीय है जबकि [Ni(CO)4] प्रतिचुंबकीय है यद्यपि दोनों चतुष्फलकीय हैं। क्यों?
उत्तर:
[Ni(CO)4] में, Ni की ऑक्सीकरण अवस्था शून्य है जबकि [NiCl4]2- में Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है। CO की उपस्थिति में, Ni के 3d तथा 4s कक्षकों के इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं क्योंकि CO प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड है परन्तु Cl एक दुर्बल क्षेत्र लिगन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं हो पाता है। इसलिए [NiCl4]2- अनुचुंबकीय है जबकि [Ni(CO)4] प्रतिचुंबकीय है यद्यपि दोनों चतुष्फलकीय हैं तथा दोमों में sp3 संकरण है।

प्रश्न 9.7.
[Fe(H2O)6]3+ प्रबल अनुचुंबकीय है जबकि [Fe(CN)6]3- दुर्बल अनुचुंबकीय। समझाइए।
उत्तर:
[Fe(CN)6]3- में CN (प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड) की उपस्थिति में, 3d इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं तथा केवल एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन बचता है। इसमें d2sp3 संकरण होता है तथा यह आंतरिक कक्षक संकुल बनाता है अतः यह दुर्बल अनुचुंबकीय है जबकि [Fe(H2O)6]3+ में H2O (दुर्बल लिगेन्ड) की उपस्थिति में, 3d इलेक्ट्रॉन युग्मित नहीं होते अतः इसमें sp3d2 संकरण है तथा यह बाह्यकक्षक संकुल बनाता है जिसमें पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं अतः यह प्रबल अनुचुंबकीय है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक

प्रश्न 9.8.
समझाइए कि [Co(NH3)6]3+ एक आंतरिक कक्षक संकुल है जबकि [Ni(NH3)6]2+ एक बाह्य कक्षक संकुल है।
उत्तर:
कुल Co(NH3)6]3+ में NH3 प्रबल लिगेन्ड है जिससे इसमें d2sp संकरण होता है। Co+3 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d6 होता है तथा NH3 की उपस्थिति में ये इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं एवं शेष बचे दो रिक्त d कक्षक d2sp3 संकरण द्वारा आंतरिक कक्षक संकुल बनाते हैं जबकि [Ni(NH3)6]2+ में Ni+2 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 होने के कारण NH3 जैसे प्रबल लिगेन्ड की उपस्थिति में भी इलेक्ट्रॉनों के युग्मन से दो आन्तरिक d कक्षक रिक्त नहीं हो सकते। अतः इसमें sp3d2 संकरण होता है तथा यह बाह्य कक्षक संकुल बनाता है।

प्रश्न 9.9.
वर्ग समतली [Pt(CN)4]2- आयन में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बताइए।
उत्तर:
[Pt(CN)4]2- की वर्ग समतली आकृति के कारण इसमें dsp2 संकरण होता है तथा इस संकुल आयन में Pt,+2 अवस्था में है जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 5d8 है तथा प्रबल लिगेन्ड (CN) की उपस्थिति में इन 5d इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है तथा शेष बचा एक रिक्त d कक्षक संकरण में भाग लेता है। (dsp2 संकरण ) अतः इसमें एक भी अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है।

प्रश्न 9.10.
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त को प्रयुक्त करते हुए समझाइए कि कैसे हेक्साएक्वा मैंगनीज (II) आयन में पांच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं जबकि हेक्सासायनो मैंगनीज (II) आयन में केवल एक ही अयुगलित (अयुग्मित) इलेक्ट्रॉन है।
उत्तर:
हेक्साएक्वा मैंगनीज (II) आयन, [Mn(H2O6]2+ में Mn+2 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d5 है तथा इसमें H2O दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा का मान कम होता है। इसलिए इलेक्ट्रॉनिक विन्यास \(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}^3 \mathrm{e}_{\mathrm{g}}^2\) होगा तथा sp3d2 संकरण होने के कारण इसमें पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता। जबकि हेक्सासायनो मैंगनीज (II) आयन, [Mn(CN)6]-4 में CN प्रबल लिगेन्ड है जिसकी उपस्थित में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा का मान अधिक होने के कारण Mn2+ का इलेक्ट्रॉंनिक विन्यास \(t_{2 \mathrm{~g}}^5 \mathrm{e}_{\mathrm{g}}^0\) (दो रिक्त d कक्षक) होगा जिसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है तथा इसमें sp3d2 संकरण होगा।

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 7.1.
वर्ग 15 के तत्वों के सामान्य गुणधर्मों की उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास, ऑक्सीकरण अवस्था, परमाण्विक आकार, यथैी तथा विद्युत्ऋणात्मकता के संदर्भ में विवेचना कीजिए ।
उत्तर:
वर्ग 15 के तत्वों के सामान्य गुणधर्म निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 1
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – वर्ग 15 के तत्वों का संयोजकता कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास, ns2np3 होता है। इन तत्वों के s कक्षक पूर्णतया भरे होते हैं तथा p कक्षक अर्धपूरित (Half filled) होते हैं, जिससे इनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास अधिक स्थायी होता है।

(ii) ऑक्सीकरण अवस्था – वर्ग 15 के तत्वों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ – 3 +3 तथा +5 हैं। परमाणु आकार तथा धातु गुणों में वृद्धि के कारण वर्ग में नीचे जाने पर 3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाने की प्रवृत्ति कम होती है । वर्ग में नीचे जाने पर +5 ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व घटता है।

बिस्मथ [V] का एक ही यौगिक BiF5 ज्ञात है । वर्ग में नीचे की ओर +5 ऑक्सीकरण अवस्था के स्थायित्व में कमी के साथ-साथ ऑक्सीकरण अवस्था ( अक्रिय युग्म प्रभाव के कारण) के स्थायित्व में होती है। ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया से बने यौगिकों में नाइट्रोजन +1, +2, +4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी दर्शाती है। फॉस्फोरस भी कुछ ऑक्सो अम्लों में, +1 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाता है।

नाइट्रोजन की अधिकतम सहसंयोजकता 4 हो सकती है; क्योंकि केवल 4 कक्षक (एक s तथा तीन p) ही बंधन के लिए उपलब्ध हैं। भारी तत्वों के बाह्यतम कोश में रिक्त d कक्षक पाए जाते हैं, जो बंध बनाने के लिए प्रयुक्त किए जा सकते हैं, अतः उनकी सहसंयोजकता बढ़ जाती है। जैसे PF6 में फॉस्फोरस की संयोजकता 6 है।

(iii) परमाण्विक आकार – वर्ग 15 में नीचे जाने पर परमाणु आकार (सहसंयोजी त्रिज्या) में वृद्धि होती है। N से P तक त्रिज्या में पर्याप्त वृद्धि होती है जबकि As से Bi तक त्रिज्या में वृद्धि अपेक्षाकृत कम होती है। इसका कारण भारी तत्वों में पूर्ण भरे d और / या f कक्षकों की उपस्थिति है।

(iv) आयनन एन्थैल्पी – वर्ग 15 के तत्वों की आयनन एन्थैल्पी, वर्ग 14 तथा वर्ग 16 के संगत तत्वों की आयनन एन्थैल्पी से अधिक होती है क्योंकि इन तत्वों में अर्धपूरित स्थायी विन्यास (np3) होता है। सामान्यतः आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर आयनन एन्थैल्पी बढ़ती है क्योंकि परमाणु आकार कम होता है तथा प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है।

अतः बाह्यतम इलेक्ट्रॉन अधिक आकर्षण बल से बंधे होते हैं जिन्हें पृथक् करने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। वर्ग में नीचे की ओर जाने पर आयनन एन्थैल्पी का मान कम होता है क्योंकि परमाणु आकार में वृद्धि होती है। इन तत्वों के लिए विभिन्न आयनन एल्पियों का क्रम निम्न प्रकार होता है-
iH1 < △iH2 < △iH3
अर्थात् एक इलेक्ट्रॉन निकालने के बाद द्वितीय तथा तृतीय इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

(v) विद्युतऋणात्मकता – सामान्यतः वर्ग में नीचे जाने पर परमाणु आकार में वृद्धि के कारण विद्युतॠणात्मकता का मान घटता है, लेकिन भारी तत्वों में यह अंतर बहुत कम होता है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 7.2.
नाइट्रोजन की क्रियाशीलता फॉस्फोरस से भिन्न क्यों है?
उत्तर:
नाइट्रोजन की क्रियाशीलता फॉस्फोरस से भिन्न होती है। इसके निम्नलिखित कारण हैं-
(i) नाइट्रोजन का आकार बहुत छोटा होता है तथा इसकी विद्युतॠणता एवं आयनन एन्थैल्पी, फॉस्फोरस की तुलना में बहुत अधिक है।
(ii) नाइट्रोजन के संयोजी कोश में रिक्त d कक्षक उपलब्ध नहीं हैं जबकि फॉस्फोरस के संयोजी कोश में रिक्त d कक्षक होते हैं।
(iii) नाइट्रोजन में pπ -pπ अतिव्यापन द्वारा त्रिआबन्ध बनाने की प्रवृत्ति होती है अतः इसकी बन्ध एन्थैल्पी बहुत अधिक होती है जिसके कारण यह बहुत कम क्रियाशील होती है जबकि फॉस्फोरस में pπ – pπ अतिव्यापन नहीं होता।

प्रश्न 7.3.
वर्ग 15 के तत्वों की रासायनिक क्रियाशीलता की प्रवृत्ति की विवेचना कीजिए ।
उत्तर:
वर्ग 15 के तत्वों की रासायनिक क्रियाशीलता में बहुत अन्तर होता है। नाइट्रोजन की बन्ध एन्थैल्पी का मान बहुत उच्च होने के कारण यह लगभग अक्रिय होती है। फॉस्फोरस का एक अपररूप, श्वेत फॉस्फोरस बहुत अधिक क्रियाशील होता है जिसका कारण P4 की संरचना में कोणीय तनाव ( angular strain) है। यह वायु में तेजी से आग पकड़कर P4O10 बनाता है जिसके श्वेत धूम बनते हैं। लाल फॉस्फोरस कमरे के ताप पर वायु में स्थायी होता है लेकिन गर्म करने पर क्रिया करता है।

As, Sb तथा Bi (भारी तत्व) कम क्रियाशील होते हैं। आर्सेनिक शुष्क वायु में स्थायी होता है लेकिन इसे वायु में गर्म करने पर यह 615°C पर ऊर्ध्वपातित होकर As4O6 बनाता है । एन्टिमनी वायु तथा जल के प्रति स्थायी होता है लेकिन वायु में गर्म करने पर यह Sb4O6, Sb4O8 या Sb4O10 बनाता है। Bi को वायु में गर्म करने पर यह Bi2O3 बनाता है।

प्रश्न 7.4.
NH3 हाइड्रोजन बंध बनाती है परन्तु PH3 नहीं बनाती। क्यों ?
उत्तर:
नाइट्रोजन के छोटे आकार तथा उच्च विद्युतॠणता के कारण N-H बन्ध, अधिक ध्रुवीय होता है अतः NH3 हाइड्रोजन बंध बनाती है जबकि फॉस्फोरस का आकार बड़ा होता है तथा इसकी विद्युतॠणता भी कम होती है अतः P-H बन्ध लगभग अध्रुवीय होता है इसलिए PH3 में हाइड्रोजन बन्ध नहीं बनता ।

प्रश्न 7.5.
प्रयोगशाला में नाइट्रोजन कैसे बनाते हैं? सम्पन्न होने वाली अभिक्रिया के रासायनिक समीकरणों को लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रयोगशाला में नाइट्रोजन बनाने के लिए अमोनियम क्लोराइड के जलीय विलयन की सोडियम नाइट्राइड के साथ अभिक्रिया कराई जाती है-
NH4Cl(aq) + NaNO2(aq) → N2(g) + 2H2O(l) + NaCl(aq)
इस अभिक्रिया में थोड़ी मात्रा में NO तथा HNO3 भी बनते हैं; इन अशुद्धियों को दूर करने के लिए गैस को पोटैशियम डाइक्रोमेट युक्त सल्फ्यूरिक अम्ल के जलीय विलयन में से प्रवाहित किया जाता है।

(ii) अमोनियम डाइक्रोमेट के ताप अपघटन से भी नाइट्रोजन गैस प्राप्त होती है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 2

(iii) बेरियम ऐजाइड के ताप अपघटन से अति शुद्ध नाइट्रोजन प्राप्त होती है-
Ba(N3)2 → Ba + 3N2

प्रश्न 7.6.
अमोनिया का औद्योगिक उत्पादन कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
अमोनिया का औद्योगिक निर्माण हाबर प्रक्रम द्वारा किया जाता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 3
अमोनिया के अधिक निर्माण के लिए आवश्यक शर्तें – अमोनिया के निर्माण की अभिक्रिया उत्क्रमणीय तथा ऊष्माक्षेपी होती है। इसके साथ ही अभिक्रिया के कारण आयतन में कमी होती है अतः ले शातैलिए के सिद्धान्त के आधार पर उच्च दाब अमोनिया के अधिक निर्माण में सहायक होगा। अतः अमोनिया के निर्माण के लिए अनुकूलतम शर्तें निम्नलिखित हैं-
(i) लगभग 200 वायुमंडलीय दाब ( 200 × 105 Pa )
(ii) लगभग 700K ताप
(iii) K2O तथा Al2O3 युक्त आयरन ऑक्साइड उत्प्रेरक
(iv) शुद्ध N2 तथा H2 का प्रयोग |
अमोनिया में उपस्थित नमी को CaO द्वारा दूर कर लिया जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 20

प्रश्न 7.7.
उदाहरण देकर समझाइए कि कॉपर धातु HNO3 के साथ अभिक्रिया करके किस प्रकार भिन्न उत्पाद दे सकती है?
उत्तर:
कॉपर धातु की HNO3 के साथ अभिक्रिया ताप तथा सांद्रता पर निर्भर करती है तथा इन अभिक्रियाओं में कॉपर का ऑक्सीकरण होता है-
(i) कॉपर की तनु तथा ठंडे HNO3 से क्रिया कराने पर कॉपर नाइट्रेट तथा नाइट्रिक ऑक्साइड बनते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 4

(ii) कॉपर की सान्द्र तथा गर्म HNO3 से क्रिया कराने पर कॉपर नाइट्रेट तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्राप्त होते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 5

प्रश्न 7.8.
NO2 तथा N2O5 की अनुनादी संरचनाओं को लिखिए।
उत्तर:
NO2 तथा N2O5 की अनुनादी संरचनाएँ अग्र हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 6

प्रश्न 7.9.
HNH कोण का मान, HPH, HASH तथा HSH कोणों की अपेक्षा अधिक क्यों है ?
उत्तर:
NH3 में HNH कोण का मान वर्ग के अन्य हाइड्राइडों की तुलना में अधिक होता है क्योंकि NH3 में N पर sp3 संकरण तथा एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म होने के कारण बन्ध कोण लगभग 107.8° होता है जबकि वर्ग नीचे जाने पर परमाणु आकार बढ़ने तथा विद्युतॠणता कम होने के कारण sp3 संकरण का प्रभाव कम होता जाता है अर्थात् M-H बन्ध बनाने में M के शुद्ध p कक्षक हाइड्रोजन के s कक्षक के साथ अतिव्यापन करते हैं, अतः बन्ध कोण कम होता जाता है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 7.10.
R3P = O पाया जाता है जबकि R3N = O नहीं | क्यों ? (R = ऐल्किल समूह)
उत्तर:
नाइट्रोजन के संयोजकता कोश में रिक्त d कक्षक नहीं होता अतः इसकी अधिकतम संयोजकता 4 होती है तथा यह dπ – pπ बन्ध नहीं बना सकता अतः R3N = O नहीं पाया जाता जबकि फॉस्फोरस के संयोजकता कोश में रिक्त d कक्षक होने के कारण यह dπ – pπ अतिव्यापन द्वारा R3P = O बना लेता है जिसमें फॉस्फोरस की संयोजकता 5 है। (अष्टक का प्रसार)

प्रश्न 7.11.
समझाइए कि क्यों NH3 क्षारकीय है जबकि BiH3 केवल दुर्बल क्षारक है।
उत्तर:
वर्ग 15 के तत्वों के हाइड्राइडों में केन्द्रीय परमाणु पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होने के कारण ये लुइस क्षार होते हैं क्योंकि इनमें इलेक्ट्रॉन युग्म दान करने की प्रवृत्ति होती है। NH3 में नाइट्रोजन के छोटे आकार के कारण इलेक्ट्रॉन घनत्व अधिक होता है अतः इसकी इलेक्ट्रॉन युग्म देने की प्रवृत्ति अधिक होती है इसलिए यह अधिक क्षारीय है जबकि BiH3 में Bi के बड़े आकार के कारण इलेक्ट्रॉन घनत्व कम हो जाता है अतः इसकी इलेक्ट्रॉन युग्म देने की प्रवृत्ति कम होती है इसलिए यह बहुत ही दुर्बल क्षारक है।

प्रश्न 7.12.
नाइट्रोजन द्विपरमाणुक अणु के रूप में पाया जाता है तथा फॉस्फोरस P4 के रूप में। क्यों ?
उत्तर:
नाइट्रोजन द्विपरमाणुक अणु के रूप में पाया जाता है क्योंकि नाइट्रोजन परमाणु के छोटे आकार तथा d कक्षकों की अनुपस्थिति के कारण इसमें बहुल आबन्ध बनाने की प्रवृति होती है जबकि फॉस्फोरस P4 के रूप में पाया जाता है क्योंकि बड़े आकार के कारण इसमें बहुल आबन्ध बनाने की प्रवृत्ति नहीं होती तथा आन्तरिक अबन्धित इलेक्ट्रॉनों के बीच प्रतिकर्षण होता है। इसमें P-P-P बन्ध कोण 60° होता है अतः pπ – pπ बन्ध संभव नहीं है।

प्रश्न 7.13.
श्वेत फॉस्फोरस तथा लाल फॉस्फोरस के गुणों की मुख्य भिन्नताओं को लिखिए।
उत्तर:
श्वेत फॉस्फोरस तथा लाल फॉस्फोरस के गुणों में मुख्य भिन्नताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) श्वेत फॉस्फोरस एक पारभासी मोम जैसा श्वेत ठोस होता है जबकि लाल फॉस्फोरस लोहे जैसी धूसर (grey) चमक वाला होता है।
(ii) श्वेत फॉस्फोरस विषैला होता है जबकि लाल फॉस्फोरस गन्धहीन तथा अविषैला होता है।
(iii) श्वेत फॉस्फोरस जल में अविलेय लेकिन कार्बन-डाइ- सल्फाइड में विलेय होता है लेकिन लाल फॉस्फोरस जल तथा कार्बन-डाइ- सल्फाइड दोनों में अविलेय होता है ।
(iv) रासायनिक रूप से लाल फॉस्फोरस श्वेत फॉस्फोरस की तुलना बहुत कम क्रियाशील होता है।
(v) श्वेत फॉस्फोरस अंधेरे में दीप्त होता है, लाल फॉस्फोरस दीप्त नहीं होता !
(vi) श्वेत फॉस्फोरस विविक्त चतुष्फलकीय P4 अणुओं से बना होता है जबकि लाल फॉस्फोरस बहुलकी होता है जिसमें P4 चतुष्फलक श्रृंखला के रूप में एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं ।

प्रश्न 7.14.
फॉस्फोरस की तुलना में नाइट्रोजन श्रृंखलन गुणों को कम प्रदर्शित करता है, क्यों?
उत्तर:
नाइट्रोजन परमाणु के छोटे आकार के कारण एक N-N. बन्ध, एक P-P बन्ध की तुलना में दुर्बल होता है क्योंकि N-N बन्ध में अबन्धी इलेक्ट्रॉनों (एकाकी इलेक्ट्रॉनयुग्मों) के मध्य प्रतिकर्षण अधिक होता है। अतः फॉस्फोरस की तुलना में नाइट्रोजन में श्रृंखलन की प्रवृत्ति कम होती है।

प्रश्न 7.15.
H3PO3 की असमानुपातन अभिक्रिया दीजिए।
उत्तर:
H3PO3 को 473K ताप पर गर्म करने पर इसका असमानुपातन होकर फॉस्फोरिक अम्ल (आर्थोफॉस्फोरिक अम्ल) तथा फॉस्फीन बनती है।
4H3PO3 → 3H3PO4 + PH3

प्रश्न 7.16.
क्या PCl5 ऑक्सीकारक और अपचायक दोनों कार्य कर सकता है ? तर्क दीजिए ।
उत्तर:
PCl5 में P की ऑक्सीकरण अवस्था +5 है जो कि उच्चतम है, अतः यह अपनी ऑक्सीकरण अवस्था कम करके ऑक्सीकारक का कार्य कर सकता है लेकिन अपचायक का नहीं।
उदाहरण – PCl5 + 2Ag → 2AgCl + PCl3

प्रश्न 7.17.
O, S, Se, Te तथा Po को इलेक्ट्रॉनिक विन्यास, ऑक्सीकरण अवस्था तथा हाइड्राइड निर्माण के संदर्भ में आवर्त सारणी के एक ही वर्ग में रखने का तर्क दीजिए ।
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – O, S, Se, Te तथा Po 16वें वर्ग के तत्व हैं। इन सभी का बाह्यतम इलेक्ट्रानिक विन्यास समान है जो कि ns2np4 है अर्थात् इनके बाह्यतम कोश में 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं। अतः इन्हें एक ही वर्ग में रखा जाता है।
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(ii) ऑक्सीकरण अवस्था- ये सभी तत्व – 2 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। (Po के अलावा) तथा ऑक्सीजन के अलावा सभी तत्व +2, +4, +6 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करते हैं, ऑक्सीजन केवल +2 अवस्था दर्शाती है। अतः इन्हें एक ही वर्ग में रखा गया है।

(iii) हाइड्राइड निर्माण- सभी तत्व H2E (E= O, S, Se, Te Po) प्रकार के हाइड्राइड बनाते हैं। अतः इन तत्वों को समान वर्ग में रखने का एक कारण यह भी है।

प्रश्न 7.18.
क्यों डाइऑक्सीजन एक गैस है जबकि सल्फर ठोस है?
उत्तर:
ऑक्सीजन परमाणु के छोटे आकार तथा संयोजी कोश में d कश्चकों की अनुपस्थिति के कारण इसमें Pπ – Pπ बन्ध बनाने की प्रबल प्रवृत्ति होती है अतः यह O = O बनाकर अपना अष्टक पूर्ण कर लेता है तथा यह स्वतंत्र अस्तित्व वाले ऑक्सीजन अणुओं (O2) के रूप में गैस अवस्था में पाई जाती है। लेकिन सल्फर के बड़े आकार के कारण S = S बन्ध एन्थैल्पी कम होती है अतः यह S2 न बनाकर Sg के रूप में पाया जाता है जिससे अणुभार बढ़ जाने के कारण अणुओं के मध्य आकर्षण बल बढ़ जाता है। इसी कारण सल्फर ठोस अवस्था में पाया जाता है।

प्रश्न 7.19.
यदि O→O तथा O→O2- के इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी मान पता हो, जो क्रमशः -141 तथा 702 kJ mol-1 हैं, तो आप कैसे स्पष्ट कर सकते हैं कि O2- स्पीशीज वाले ऑक्साइड अधिक बनते हैं न कि O वाले?
उत्तर:
प्रश्नानुसार O से O बनने पर ऊर्जा उत्सर्जित होती है। जबकि O से O-2 बनने पर बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है लेकिन O2- स्पीशीज वाले ऑक्साइड अधिक बनते हैं क्योंकि ऑक्साइड बनने पर उत्सर्जित उच्च जालक एन्थैल्पी ( अधिक ऋणावेश के कारण ) द्वितीय उच्च धनात्मक इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी की पूर्ति कर देती है।
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प्रश्न 7.20.
कौनसे ऐरोसोल्स ओजोन का क्षय करते हैं?
उत्तर:
ओजोन परत का क्षय करने वाले ऐरोसोल्स निम्नलिखित हैं-
(i) सुपर सोनिक जेट विमानों से उत्सर्जित नाइट्रिक ऑक्साइड (NO), ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन परत की सांद्रता को कम करते हैं-
NO(g) + O3(g) → NO2(g) + O2(g)

(ii) ऐरोसोल स्प्रे तथा प्रशीतकों के रूप में प्रयुक्त फ्रेऑन भी ओजोन का क्षय करते हैं-
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प्रश्न 7.21.
संस्पर्श प्रक्रम ( Contact Process ) द्वारा H2SO4 के उत्पादन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सम्पर्क विधि (Contact Process ) – इस विधि में तीन पद होते हैं-
(i) सल्फर अथवा सल्फाइड अयस्कों को वायु में जलाकर सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) बनाना ।
(ii) V2O5 उत्प्रेरक की उपस्थिति में SO2 की ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया कराकर SO3 में परिवर्तित करना ।
(iii) SO3 को सल्फ्यूरिक अम्ल में अवशोषित करके ओलियम (H2S2O7) प्राप्त करना तथा इसके तनुकरण से H2SO4 प्राप्त करना ।

(i) SO2 बनाना – सल्फर या FeS2 को वायु के साथ गर्म करके SO2 का निर्माण किया जाता है।
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प्राप्त SO2 को धूल के कणों तथा आर्सेनिक यौगिकों की अशुद्धियों से मुक्त कर लिया जाता है। इसके लिए जिलेटिनी FerOH3 प्रयुक्त करते हैं।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 7.22.
SO2 किस प्रकार से एक वायु प्रदूषक है?
उत्तर:
SO2 ऍक हानिकारक गैसीय प्रदूषक है। वायुमण्डल में उपस्थित SO2, प्रकाश की उपस्थिति में आक्सीकृत होकर SO3 बनाती है जो कि नमी की उपस्थिति में H2SO4 बनाती है जो कि अम्ल वर्षा के रूप में नीचे आती है।
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SO2 पेड़ों की पत्तियों को नुकसान पहुंचाती है तथा मनुष्य की आँखों तथा श्वसन तंत्र के लिए भी हानिकारक है।

प्रश्न 7.23.
हैलोजन प्रबल ऑक्सीकारक क्यों होते हैं?
उत्तर:
हैलोजनों की उच्च विद्युतॠणता तथा अधिक इलेक्ट्रॉन बन्धुता (उच्च ऋणात्मक इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी) के कारण इनमें इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति अधिक होती है तथा इनके मानक इलैक्ट्रोड – विभव (अपचयन विभव) के मान भी अधिक होते हैं। अतः ये प्रबल ऑक्सीकारक होते हैं।

प्रश्न 7.24.
स्पष्ट कीजिए कि फ्लुओरीन केवल एक ही ऑक्सो अम्ल, HOF क्यों बनाता है?
उत्तर:
फ्लुओरीन के छोटे आकार तथा उच्च विद्युतॠणता के कारण यह एकमात्र ऑक्सो अम्ल, HOF बनाती है जो कि फ्लुओरिक (I) अम्ल या हाइपोफ्लुओरस अम्ल कहलाता है। फ्लुओरीन उच्चतर ऑक्सो अम्लों में केन्द्रीय परमाणु के रूप में उपयोग में नहीं आ सकता, अतः यह उच्च ऑक्सो अम्ल नहीं बनाता।

प्रश्न 7.25.
व्याख्या कीजिए कि क्यों लगभग एक समान विद्युत्ऋणात्मकता होने के पश्चात् भी नाइट्रोजन हाइड्रोजन आबंध निर्मित करता है, जबकि क्लोरीन नहीं।
उत्तर:
नाइट्रोजन तथा क्लोरीन की विद्युतॠणता लगभग समान होती है फिर भी नाइट्रोजन, हाइड्रोजन बन्ध बनाता है जबकि क्लोरीन नहीं, क्योंकि नाइट्रोजन परमाणु का आकार क्लोरीन परमाणु से छोटा होता है जो कि हाइड्रोजन बन्ध बनाने में सहायक होता है।

प्रश्न 7.26.
ClO2 के दो उपयोग लिखिए।
उत्तर:
ClO2 (क्लोरीन डाइऑक्साइड) को आक्सीकारक तथा विरंजक (Bleaching agent) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 7.27.
हैलोजन रंगीन क्यों होते हैं?
उत्तर:
सभी हैलोजन रंगीन होते हैं, इसका कारण यह है कि इनमें दृश्य क्षेत्र में विकिरणों का अवशोषण होता है जिससे बाह्यतम कोश के इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर उच्च ऊर्जा स्तर में चले जाते हैं क्योंकि संयोजकता कोश व उच्च ऊर्जा स्तर में ऊर्जा अन्तराल कम होता है। विकिरण के भिन्न- भिन्न क्वान्टम अवशोषित करने के कारण ये अलग-अलग रंग प्रदर्शित करते हैं; जैसे- फ्लुओरीन पीला, क्लोरीन हरापन लिए हुए पीला, ब्रोमीन लाल तथा आयोडीन बैंगनी रंग का होता है।

प्रश्न 7.28.
जल के साथ F2 तथा – Cl2 की अभिक्रियाएँ लिखिए।
उत्तर:
फ्लुओरीन (F2) जल को आक्सीकृत करके ऑक्सीजन देती है-
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सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरीन, जल के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोक्लोरिक तथा हाइपोक्लोरस अम्ल बनाती है-
Cl2(g) + H2O(l) HCl(aq) + HOCl(aq)

प्रश्न 7.29.
आप HCI से Cl2 तथा Cl2 से HCl को कैसे प्राप्त करेंगे? केवल अभिक्रियाएँ लिखिए।
उत्तर:
(i) HCl से Cl2 प्राप्त करना
सांद्र HCI को मैंगनीज डाइऑक्साइड या KMnO4 जैसे ऑक्सीकारक के साथ गर्म करने से Cl2 प्राप्त होती है।
MnO2 + 4HCl → MnCl2 + Cl2 + 2H2O
2KMnO4 + 16HCl → 2KCl + 2MnCl2 + 8H2O + 5Cl2

(ii) Cl2 से HCl प्राप्त करना
Cl2 की H2 के साथ क्रिया से HCl प्राप्त होती है-
H2 + Cl2 → 2HCl

प्रश्न 7.30.
एन- बार्टलेट Xe तथा PtF6 के बीच अभिक्रिया कराने के लिए कैसे प्रेरित हुए?
उत्तर:
लाल रंग के यौगिक \(\stackrel{+}{\mathrm{O}}_2 \mathrm{PtF}_6^{-}\) के संश्लेषण ने एन- बार्टलेट को Xe तथा PtF6 के बीच अभिक्रिया कराने को प्रेरित किया तथा उन्होंने लाल रंग का ही यौगिक Xe PtF6 बनाया क्योंकि Xe व O2 की प्रथम आयनन एन्थैल्पी लगभग बराबर होती है।
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प्रश्न 7.31.
निम्नलिखित में फॉस्फोरस की ऑक्सीकरण अवस्थाएँ क्या हैं?
(i) H3PO3
(ii) PCl3
(iii) Ca3P2
(iv) Na3PO4
(v) POF3
उत्तर:
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प्रश्न 7.32.
निम्नलिखित के लिए संतुलित समीकरण दीजिए।
उत्तर:
(i) जब NaCl को MnO2 की उपस्थिति में सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गरम करते हैं तो क्लोरीन गैस निकलती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 14
(ii) जब क्लोरीन गैस को Nal के जलीय विलयन में प्रवाहित किया जाता है तो आयोडीन बनती है।
2Nal + Cl2 → 2NaCl + I2

प्रश्न 7.33.
जीनॉन फ्लुओराइड, XeF2, XeF4 तथा XeF6 कैसे बनाए जाते हैं?
उत्तर:
अनुकूल परिस्थितियों में तत्वों की प्रत्यक्ष क्रिया द्वारा जीनॉन तीन प्रकार के द्विअंगी फ्लुओराइड, XeF2, XeF4 तथा XeF6 बनाती है।
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143K ताप पर XeF4 तथा O2F2 की क्रिया से भी XeF6 बनता है।
XeF4 + O2F2 → XeF6 + O2

प्रश्न 7.34.
किस उदासीन अणु के साथ ClO समइलेक्ट्रॉनी है ? क्या यह अणु लुइस क्षारक है ?
उत्तर:
ClF (क्लोरीन फ्लुओराइड) ClO का समइलेक्ट्रॉनी है क्योंकि दोनों में 26 इलेक्ट्रॉन हैं तथा ClF लुइस क्षारक है क्योंकि इसमें एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित है।

प्रश्न 7.35.
निम्नलिखित प्रत्येक समुच्चय को सामने लिखे गुणों के अनुसार सही क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
(क) F2, Cl2, Br2, I2 – आबंध वियोजन एन्थैल्पी के बढ़ते क्रम में
(ख) HF, HCI, HBr, HI -अम्ल सामर्थ्य के बढ़ते क्रम में
(ग) NH3, PH3, AsH3, SbH3, BiH3 – क्षारक सामर्थ्य के बढ़ते क्रम में ।
उत्तर:
(क) I—I < F−F < Br-Br < Cl-Cl
(ख) HF < HCl < HBr < HI
(ग) BiH3 ≤ SbH3 < AsH3 < PH3 < NH3

प्रश्न 7.36.
निम्नलिखित में से कौनसा एक अस्तित्व में नहीं है?
(a) XeOF4
(b) NeF2
(c) XeF2
(d) XeF6
उत्तर:
(b) NeF2

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 7.37.
उस उत्कृष्ट गैस स्पीशीज का सूत्र देकर संरचना की व्याख्या कीजिए जो कि इनके साथ समसंरचनीय है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 16
उत्तर:
(a) \(\mathrm{ICl}_4^{-}\) का समसंरचनीय XeF4 है।

XeF4 की संरचना वर्ग समतलीय होती है क्योंकि इसमें Xe पर 4 बन्धित इलेक्ट्रॉन युग्म तथा 2 एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित हैं एवं Xe पर sp3d2 संकरण है।
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(b) \(\mathrm{IBr}_2^{-}\) का समसंरचनीय XeF2 होता है इसकी संरचना रेखीय है तथा Xe पर sp d संकरण है ( 31.p + 2 b. p ) |
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(c) \(\mathrm{BrO}_3\) का समसंरचनीय XeO3 है। इसकी संरचना पिरॅमिडी है तथा Xe पर sp3 संकरण है (3 b.p +1 1.p)।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 19

प्रश्न 7.38.
उत्कृष्ट ‘गैसों के परमाण्विक आकार तुलनात्मक रूप से बड़े क्यों होते हैं?
उत्तर:
उत्कृष्ट गैसों की परमाणु त्रिज्या (आकार) वान्डरवाल त्रिज्या के रूप में ली जाती है जबकि अन्य तत्वों के लिए सहसंयोजी त्रिज्या ली जाती है। उत्कृष्ट गैसों के लिए सहसंयोजी त्रिज्या ज्ञात नहीं की जा सकती क्योंकि ये अणु नहीं बनातीं । चूँकि वान्डरवाल त्रिज्या का मान सहसंयोजी त्रिज्या से अधिक होता है अतः उत्कृष्ट गैसों के परमाण्विक आकार तुलनात्मक रूप से बड़े होते हैं।

प्रश्न 7.39,
निऑन तथा ऑर्गन गैसों के उपयोग सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
निऑन तथा ऑर्गन गैसों के उपयोग निम्नलिखित
(a) (i) निऑन का उपयोग विसर्जन ट्यूब (Discharge tube) तथा प्रदीप्त बल्बों (Fluorescent bulbs ) में विज्ञापन प्रदर्शन हेतु किया जाता है।
(ii) निऑन बल्बों का उपयोग वनस्पति उद्यान तथा ग्रीनहाउस में किया जाता है।

(b) (i) ऑर्गन का उपयोग उच्चताप धातु कर्मीय प्रक्रमों में अक्रिय वातावरण उत्पन्न करने के लिए किया जाता है (धातुओं तथा उपधातुओं के आर्क वेल्डिंग में)
(ii) इसका उपयोग विद्युत बल्ब को भरने में किया जाता है।
(iii) प्रयोगशाला में इसका उपयोग वायु सुग्राही (Sensitive) पदार्थों के प्रबन्धन (Handling) में भी किया जाता है।

HBSE 12th Class Chemistry p-ब्लॉक के तत्व Intext Questions

प्रश्न 7.1.
P, As, Sb तथा Bi के द्राइहैलाइडों से पेन्टाहैलाइड अधिक सहसंयोजी क्यों होते हैं?
उत्तर:
किसी यौगिक में केन्द्रीय परमाणु की जितनी उच्च धनात्मक ऑक्सीकरण अवस्था होती है उतनी ही अधिक उसकी ध्रुवण क्षमता होती है जिसके कारण केन्द्रीय परमाणु और दूसरे परमाणु के बीच बने आबंध में सहसंयोजक लक्षण बढ़ते जाते हैं। चूंकि P, As, Sb तथा Bi के पेन्टाहैलाइडों में केन्द्रीय परमाणु की ऑक्सीकरण अवस्था (+5), इनके ट्राइहलाइडों में केन्द्रीय परमाणु की ऑक्सीकरण अवस्था (+3) से अधिक है अतः P, As, Sb तथा Bi के ट्राइहैलाइडों से पेन्यहैलाइड अधिक सहसंयोजी होते हैं।

प्रश्न 7.2.
वर्ग 15 के तत्वों के हाइड्राइडों में BiH3 सबसे प्रबल अपचायक क्यों है?
उत्तर:
वर्ग 15 में NH3 से BiH3 तक हाइड्राइडों का स्थायित्व घटता है क्योंक केन्द्रीय परमाणु का आकार बढ़ने से बन्ध ऊर्जा कम होती है, जिससे इनकी हाइड्रोजन देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है अतः अपचायक गुण बढ़ता है, इसी कारण BiH3 सबसे प्रबल अपचायक है तथा यह सबसे कम स्थायी होता है।

प्रश्न 7.3.
N2 कमरे के ताप पर कम क्रियाशील क्यों है?
उत्तर:
नाइट्रोजन परमाणु के छोटे आकार के कारण N2 में दो नाइट्रोजन परमाणुओं के मध्य त्रिआबन्ध (N ≡ N) होता है जिसमें प्रबल pπ – pπ अतिव्यापन होता है अतः इसकी बन्ध एन्थल्पो अधिक हाता है, इसलिए बन्ध का टूटना मुश्किल होता है। इसी कारण यह कमरे के ताप पर कम क्रियाशील है।

प्रश्न 7.4.
अमोनिया की लब्धि को बढ़ाने के लिए आवश्यक स्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अमोनिया का औद्योगिक उत्पादन हाबर विधि द्वारा किया जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 22
ले-शातैलिए के सिद्धान्त के अनुसार उच्च दाब अमोनिया बनाने के लिए अनुकूल होता है। अतः अमोनिया के उत्पादन के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ 200 × 105 Pa (लगभग 200 वायुमंडलीय दाब, ~700K ताप तथा थोड़ी मात्रा में K2O एवं Al2O3 युक्त आयरन ऑक्साइड जैसे उत्प्रेरक का उपयोग किया जाता है, ताकि साम्य अवस्था प्राप्त करने की दर बढ़ाई जा सके।

प्रश्न 7.5.
Cu2+ विलयन के साथ अमोनिया कैसे क्रिया करती है?
उत्तर-:
Cu2+ विलयन के साथ अमोनिया (NH3) की क्रिया उपसहसंयोजक बन्ध बनकर संकुल आयन [Cu(NH3)4]2+ बनता है जिसमें NH3 के नाइट्रोजन का एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म धातु आयनों के साथ बन्ध बनाता है क्योंकि NH3 लुइस क्षारक है अतः यह इलेक्ट्रॉन युग्मदाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 23

प्रश्न 7.6.
N2O5 में नाइट्रोजन की सहसंयोजकता क्या है?
उत्तर:
N2O5 में नाइट्रोजन की सहसंयोजकता 4 होती है जिसकी पुष्टि निम्नलिखित संरचना से होती है। इसमें नाइट्रोजन परमाणु चार बन्ध बना रहा है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 24

प्रश्न 7.7.
(a) PH3 से \(\stackrel{+}{\mathrm{P}} \mathrm{H}_4\) का आबंध कोण अधिक है। क्यों?
(b) जब PH3 अम्ल से अभिक्रिया करता है तो क्या बनता है?
उत्तर:
(a) PH3 तथा \(\stackrel{+}{\mathrm{P}} \mathrm{H}_4\) दोनों में ही फॉस्फोरस sp3 संकरित हैं। \(\mathrm{PH}_4^{+}\) में बन्ध कोण 109°28′ तथा इसमें चारों ही बन्धित इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं जबकि PH3 में P पर एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म होता है जो कि एकाकी युग्म-आबंध युग्म प्रतिकर्षण के लिए उत्तरदायी है जिससे PH3 में आबंध कोण 109°28′ से कम हो जाता है। अतः PH3 से PH4 का आबंध कोण अधिक है।

(b) जब PH3 अम्ल से अभिक्रिया करता है तो फॉस्फोनियम यौगिक बनते हैं जैसे PH3 + HBr → PH4Br फॉस्फोनियम ब्रोमाइड।

प्रश्न 7.8.
क्या होता है जब श्वेत फॉस्फोरस को CO2 के अक्रिय वातावरण में सांद्र कॉस्टिक सोडा विलयन के साथ गर्म करते हैं?
उत्तर:
श्वेत फास्फोरस को CO2 के अक्रिय वातावरण में सांद्र कॉस्टिक सोडा विलयन के साथ गर्म करने पर PH3 (फॉस्फीन) तथा सोडियम हाइपो फॉस्फाइट (NaH2PO2) बनते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 25

प्रश्न 7.9.
क्या होता है जब PCl5 को गर्म करते हैं?
उत्तर:
PCl5 में तीन निरक्षीय या विषुवतरेखीय (equatorial bonds) बन्ध हैं तथा दो अक्षीय बन्ध (axial bonds) हैं जो निरक्षीय बन्धों से बड़े हैं अतः ये निरक्षीय बन्धों से दुर्बल होते हैं, इसी कारण PCl5 को गर्म करने पर यह PCl3 तथा Cl2 में वियोजित हो जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 26

प्रश्न 7.10.
PCl5 की जल से अभिक्रिया का संतुलित समीकरण लिखिए।
उत्तर:
PCl5 जल से अभिक्रिया करके (जल-अपघटन) फॉस्फोरस ऑक्सीक्लोराइड (POCl3) देता है जो कि अन्त में फास्फोरिक अम्ल (H3PO4) में परिवर्तित हो जाता है तथा इसके साथ ही HCl भी बनता है।

PCl5 + H2O → POCl3 + 2HCl
POCl3 + 3H2O → H3PO4 + 3HCl

प्रश्न 7.11.
H3PO4 की क्षारकता क्या है?
उत्तर:
H3PO4 में तीन P-OH बन्ध उपस्थित हैं अतः इसकी क्षारकता 3 होती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 27

प्रश्न 7.12.
क्या होता है जब H3PO3 को गरम करते हैं?
उत्तर:
ऑर्थोफॉस्फोरस अम्ल (फॉस्फोरस अम्ल ) (H3PO3) को गर्म करने पर असमानुपातन होकर ऑर्थोफॉस्फोरिक अम्ल (फॉस्फोरिक अम्ल ) (H3PO4) तथा फॉस्फीन देता है। इसमें फॉस्फोरस +3 से +5 तथा -3 ऑक्सीकरण अवस्था में परिवर्तित होता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 28

प्रश्न 7.13.
सल्फर के महत्वपूर्ण स्रोतों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
सल्फर के महत्त्वपूर्ण स्रोत निम्नलिखित हैं-

  • भूपर्पटी में सल्फर की मात्रा केवल 0.03 से 0.1% ही होती है।
  • संयुक्त अवस्था में सल्फर मुख्यतया सल्फेटों के रूप में, जैसे-जिप्सम (CaSO4.2H2O), एपसम लवण (MgSO4.7H2O), बेराइट (BaSO4) तथा सल्फाइडों के रूप में, जैसे-गेलेना (PbS), यशद ब्लैंड (जिंक ब्लैंड) (ZnS), कॉपर पाइरॉइट (CuFeS2) में पाई जाती है।
  • सल्फर की सूक्ष्म मात्रा ज्वालामुखी में हाइड्रोजन सल्फाइड के रूप में भी पाई जाती है।
  • कार्बनिक पदार्थों; जैसे-अंडे, प्रोटीन, लहसुन, प्याज, सरसों, बाल तथा ऊन में भी सल्फर होती है।

प्रश्न 7.14.
वर्ग 16 के तत्वों के हाइड्राइडों के तापीय स्थायित्व के क्रम को लिखिए।
उत्तर:
वर्ग में नीचे जाने पर परमाणु आकार बढ़ने के कारण बन्ध वियोजन एन्थैल्पी कम होती जाती है अतः हाइड्राइडों का तापीय स्थायित्व कम होगा।
H2O > H2S > H2Se > H2Te > H2Po
हाइड्राइडों का तापीय स्थायित्व

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 7.15.
H2O एक द्रव तथा H2S गैस क्यों है?
उत्तर:
ऑक्सीजन के छोटे आकार और उच्च विद्युत्त्त्टणात्मकता (3.0) के कारण O-H बन्ध अधिक ध्रुवीय होने से जल के अणु अन्तराअणुक हाइड्रोजन आबंध के द्वारा अधिक संगुणित होकर पास-पास आ जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप यह द्रव अवस्था में रहता है, जबकि H2S के अणु दुर्बल वान्डरवाल बल द्वारा आकर्षित होते हैं अतः अणु दूरदूर होने के कारण यह गैस होती है।

प्रश्न 7.16.
निम्नलिखित में से कौनसा तत्व ऑक्सीजन के साथ सीधे अभिक्रिया नहीं करता?
Zn, Ti, Pt, Fe
उत्तर:
इन तत्वों में से Pt, ऑक्सीजन के साथ सीधे अभिक्रिया नहीं करता क्योंकि इसकी क्रियाशीलता बहुत कम होती है अतः यह उत्कृष्ट धातु (Noble metal) है।

प्रश्न 7.17.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं को पूर्ण कीजिए-
(i) C2H4 + O2
(ii) 4Al + 3O2
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 29

प्रश्न 7.18.
O3, एक प्रबल ऑक्सीकारक की तरह क्यों क्रिया करती है?
उत्तर:
O3 (ओजोन ) आसानी से वियोजित होकर नवजात ऑक्सीजन [O] देती है अतः यह प्रबल ऑक्सीकारक की भाँति कार्य करती है।
O3 → O2 + O ( नवजात ऑक्सीजन )

प्रश्न 7.19.
O3 का मात्रात्मक आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
जब ओजोन, बोरेट बफर (उभय प्रतिरोधी) (pH 9.2) युक्त उभय प्रतिरोधित पोटैशियम आयोडाइड (KI) विलयन के आधिक्य से अभिक्रिया करती है तो आयोडीन (I2) मुक्त होती है जिसका मानक सोडियम थायोसल्फेट (Na2S2O3) विलयन के साथ अनुमापन करके O3 गैस का मात्रात्मक आकलन किया जाता है।

प्रश्न 7.20.
तब क्या होता है जब सल्फर डाइऑक्साइड को Fe(III) लवण के जलीय विलयन में से प्रवाहित करते हैं?
उत्तर:
जब सल्फर डाइऑक्साइ्ड को Fe(III) लवण के जलीय विलयन में प्रवाहित करते हैं तो SO2 इसे Fe(II) में अपचयित कर देती है क्योंकि नम सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) अपचायक की तरह व्यवहार करती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 30

प्रश्न 7.21.
दो S-O आबंधों की प्रकृति पर टिप्पणी कीजिए जो SO2 अणु बनाते हैं। क्या SO2 अणु के ये दोनों S-O आबंध समतुल्य (समान) हैं?
उत्तर:
SO2 अणु कोणीय होता है तथा यह दो अनुनादी संरचनाओं (विहित रूपों) का अनुनाद संकर है अतः ये दोनों S-O बन्ध समान हैं तथा सहसंयोजी हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 31

प्रश्न 7.22.
SO2 की उपस्थिति का पता कैसे लगाया जाता है?
उत्तर:
SO2 तीखी गंधयुक्त रंगहीन गैस है। SO2 गैस की उपस्थिति का पता निम्नलिखित परीक्षण से लगाया जाता है। यह अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट (VII) (KMnO4) के गुलाबी विलयन को रंगहीन कर देती है क्योंकि इससे KMnO4 का अपचयन हो जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 Img 32

प्रश्न 7.23.
उन तीन क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए जिनमें H2SO4 महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उत्तर:
H2SO4 निम्नलिखित क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है-

  • पेट्रोलियम के शोधन में,
  • अपमार्जक उद्योग में तथा
  • उर्वरकों (अमोनियम सल्फेट, सुपर फास्फेट) के उत्पादन में।

प्रश्न 7.24.
संस्पर्श प्रक्रम (सम्पर्क विधि) द्वारा H2SO4 की मात्रा में वृद्धि करने के लिए आवश्यक परिस्थितियों को लिखिए।
उत्तर:
संस्पर्श प्रक्रम द्वारा H2SO4 के निर्माण की मुख्य अभिक्रिया SO2 गैस का V2O5 उत्प्रेरक की उपस्थिति में O2 द्वारा ऑक्सीकरण है।
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यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी तथा उत्क्रमणीय है एवं इसमें आयतन में कमी होती है। अतः कम ताप और उच्च दाब SO3 की उच्च लब्धि (yield) के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ हैं। परन्तु ताप बहुत कम नहीं होना चाहिए अन्यथा अभिक्रिया की गति धीमी हो जाएगी। अतः सल्फ्यूरिक अम्ल के उत्पादन में प्रयुक्त संयंत्र का दाबं 2 तथा ताप 720K रखा जाता है।

प्रश्न 7.25.
जल में H2SO4 के लिए \(K_{a_2} \ll K_{a_1}\) क्यों है?
उत्तर:
जलीय विलयन में H2SO4 का आयनन दो पदों में होता है-
(i) \(\mathrm{H}_2 \mathrm{SO}_4(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l) \rightarrow \mathrm{H}_3 \mathrm{O}^{+}(\mathrm{aq})+\mathrm{HSO}_4^{-}(\mathrm{aq}) \text {; }\)

K1 = बहुत अधिक (\(K_{a_1}\) > 10)

(ii) \(\mathrm{HSO}_4^{-}(\mathrm{aq})+\mathrm{H}_2 \mathrm{O}(l) \rightarrow \mathrm{H}_3 \mathrm{O}^{+}(\mathrm{aq})+\mathrm{SO}_4^{2-}(\mathrm{aq})\)

K2 = 1.2 × 10-2

\(K_{a_1}\) का अधिक मान यह दर्शाता है कि H2SO4 अधिकतर H+ तथा \(\mathrm{HSO}_4^{-}\) में वियोजित हो जाता है।

\(\mathrm{K}_{\mathrm{a}_2}\) का मान \(\mathrm{K}_{\mathrm{a}_1}\) से बहुत कम होता है क्योंकि H2SO4 (उदासीन अणु) का प्रथम वियोजन आसानी से होता है जबकि \(\mathrm{HSO}_4^{-}\) का वियोजन (द्वितीय वियोजन) बहुत कम होता है क्योंक ऋणात्मक आयन में से प्रोटोन का निकलना मुश्किल होता है।

प्रश्न 7.26.
आबंध वियोजन एन्थैल्पी, इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी तथा जलयोजन एन्थैल्पी जैसे प्राचलों (Parameters) को महत्व देते हुए F2 तथा Cl2 की ऑक्सीकारक क्षमता की तुलना कीजिए।
उत्तर:
वर्ग में नीचे जाने पर हैलोजनों के जलीय विलयन में उनकी ऑक्सीकारक क्षमता कम होती है जिसकी पुष्टि मानक इलेक्ट्रॉड विभव मानों से होती है जो कि आबंध वियोजन एन्थैल्पी, इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी तथा जलयोजन एन्थैल्पी पर निर्भर करते हैं।
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F2 के लिए बन्ध वियोजन एन्थैल्पी का मान Cl2 की तुलना में कम है तथा F के छोटे आकार के कारण इसकी जलयोजन एन्थैल्पी भी Cl से बहुत अधिक है अतः F का मानक इलेक्ट्रोड विभव (अपचयन विभव) Cl के मानक इलेक्ट्रोड विभव से अधिक है। इसी कारण F2 का ऑक्सीकारक गुण Cl2 से अधिक है।

प्रश्न 7.27.
दो उदाहरणों द्वारा फ्लुओरीन के असामान्य व्यवहार को दर्शाइए।
उत्तर:
फ्लुओरीन के असामान्य व्यवहार का कारण उसका छोटे आकार, उच्च विद्युतत्रणता, निम्न F-F बन्ध वियोजन एन्थैल्पी तथा संयोजकता कोश में d कक्षकों की अनुपस्थिति है।
फ्लुओरीन के असामान्य व्यवहार के उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • फ्लुओरीन केवल एक ऑक्सो अम्ल बनाती है जबकि दूसर हैलोजन कई ऑक्सो अम्ल बनाते हैं।
  • F2 की आबंध वियोजन एन्थैल्पी तथा इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी के मान अपेक्षित मानों से बहुत कम होते हैं।

प्रश्न 7.28.
समुद्र कुछ हैलोजन का मुख्य स्तोत है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
समुद्र कुछ हैलोजनों का मुख्य स्रोत है क्योंकि समुद्री पानी में सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम तथा कैल्शियम के क्लोराइड, ब्रोमाइड तथा आयोडाइड होते हैं लेकिन मुख्यतः यह सोडियम क्लोराइड का विलयन (द्रव्यमान 2.5%) है। शुष्क हुए समुद्री निक्षेपों में सोडियम क्लोराइड तथा कारनेलाइट (KCl.MgCl2.6H2O) जैसे यौगिक उपस्थित होते हैं। कुछ समुद्री जीवों के तंत्र में आयोडीन होती है; बहुत से समुद्री पादपों में 0.5% आयोडीन तथा चिली साल्टपीटर में 0.2% तक सोडियम आयोडेट पाया जाता है।

प्रश्न 7.29.
Cl2 की विरंजक क्रिया का कारण बताइए।
उत्तर:
Cl2 एक प्रबल विरंजक है। विरंजन क्रिया नमी की उपस्थिति में ऑक्सीकरण के कारण होती है। नमी की उपस्थिति में Cl2 नवजात ऑक्सीजन [O] देती है जो रंगीन पदार्थ का ऑक्सीकरण करके उसे रंगहीन कर देती है। यह विरंजन स्थायी होता है।
Cl2 + H2O → 2HCl + [O]
रंगीन पदार्थ + [O] → रंगहीन पदार्थ

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 7.30.
उन दो विषैली गैसों के नाम बताइए जो क्लोरीन गैस से बनाई जाती हैं।
उत्तर:
क्लोरीन गैस से बनाई जाने वाली विषैली गैसें फास्जीन (COCl2), अश्रु गैस (CCl3NO2) तथा मस्टर्ड गैस (Cl-CH2-CH2-S-CH2-CH2-Cl) हैं।

प्रश्न 7.31.
I2 से ICI अधिक क्रियाशील क्यों है?
उत्तर:
सामान्यतः अंतराहैलोजन यौगिक हैलोजन की अपेक्षा अधिक क्रियाशील होते हैं क्योंकि X-X आबंध की अपेक्षा X-X’ आबंध दुर्बल होता है। l-Cl बन्ध ध्रुवीय तथा l-l बन्ध अध्रुवीय है। अतः lCl, l2 से अधिक क्रियाशील है।

प्रश्न 7.32.
हीलियम को गोताखोरी के उपकरणों में उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
आधुनिक गोताखोरी के उपकरणों में हीलियम, ऑक्सीजन के तनुकारी (Diluent) के रूप में प्रयुक्त की जाती है क्योंक रक्त में इसकी विलेयता बहुत कम होती है।

प्रश्न 7.33.
निम्नलिखित समीकरण को संतुलित कीजिए –
XeF6 + 2H2O → XeO2F2 + 4HF
जीनॉन डाइऑक्सीडाइफ्लुओराइड

प्रश्न 7.34.
रेडॉन के रसायन का अध्ययन करना कठिन क्यों था?
उत्तर:
रेडॉन (Rn) रेडियोसक्रिय तत्व है तथा इसकी अर्धायु बहुत कम (3.82 दिन) होती है अतः इसका विघटन हो जाता है। इसलिए रेडॉन के रसायन का अध्ययन कठिन हो जाता है।

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 8.1.
निम्नलिखित के इलेक्ट्रानिक विन्यास लिखिए –
(i) Cr3+
(ii) Pm3+
(iii) Cu+
(iv) Ce4+
(v) Co2+
(vi) Lu2+
(vii) Mn2+
(viii) Th4+
उत्तर:
इन आयनों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित हैं-
परमाणु क्रमाक Cr= 24, Pm = = 61, Cu 29, Ce = 58, Co 27, Lu = 71, Mn = 25, Th = 90
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प्रश्न 8.2.
+3 ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत होने के संदर्भ में Mn2+ के यौगिक Fe2+ के यौगिकों की तुलना में अधिक स्थायी क्यों हैं ?
उत्तर:
Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d5 होता है जो कि अर्धपूरित उपकोश के कारण अधिक स्थायी होता है अतः Mn+2 आसानी से इलेक्ट्रॉन नहीं देता, अर्थात् इसकी ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति कम होती है। लेकिन Fe+2 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d6 होता है अतः यह एक इलेक्ट्रॉन देकर 3d5 स्थायी विन्यास बनाता है इसलिए यह आसानी से ऑक्सीकृत हो जाता है।
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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 8.3.
संक्षेप में स्पष्ट कीजिए कि प्रथम संक्रमण श्रेणी के प्रथम अर्धभाग में बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के साथ +2 ऑक्सीकरण अवस्था कैसे अधिक स्थायी होती जाती है ?
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी की (Sc के अलावा) सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था +2 है जो कि 4s में से दो इलेक्ट्रॉन निकलने के कारण बनती है। प्रथम संक्रमण श्रेणी के प्रथम अर्धभाग में परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ +2 ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थायी होती जाती है क्योंकि 3d कक्षकों में प्रत्येक में एक इलेक्ट्रॉन होता है अतः प्रत्येक कक्षक अर्धपूरित है जिनमें अन्तर इलेक्ट्रॉनिक प्रतिकर्षण न्यूनतम होता है तथा नाभिकीय आवेश बढ़ता है। लेकिन श्रेणी के द्वितीय अर्धभाग में 3d कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन प्रारम्भ हो जाता है।

प्रश्न 8.4.
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास किस सीमा तक ऑक्सीकरण अवस्थाओं को निर्धारित करते हैं ? उत्तर को उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व काफी सीमा तक इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर निर्भर करता है। वे ऑक्सीकरण अवस्थाएँ जिनमें उत्कृष्ट गैस विन्यास होता है या अर्धपूरित (d5) तथा पूर्ण पूरित स्थायी विन्यास (d10) होता है वे अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होती हैं।
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प्रश्न 8.5.
संक्रमण तत्वों की मूल अवस्था में नीचे दिए गए d इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में कौन-सी ऑक्सीकरण अवस्था स्थायी होगी ?
3d3, 3d5, 3d8 तथा 3d4
उत्तर:
संक्रमण तत्वों की मूल अवस्था में इन d इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों के लिए स्थायी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ निम्न प्रकार होंगी-
3d3 (वैनेडियम) (+ 2), + 3, + 4, + 5, ( + 5 सर्वाधिक स्थायी )
3d5 (क्रोमियम) + 3, 4, + 6, (+3 सर्वाधिक स्थायी )
3d5 (मैंगनीज़) +2, +4, +6, +7, ( + 2 सर्वाधिक स्थायी )
3d8 ( कोबाल्ट ) + 2 + 3 (संकुलों में )
3d4 मूल अवस्था में कोई d4 विन्यास नहीं होता।

प्रश्न 8.6.
प्रथम संक्रमण श्रेणी के ऑक्सो-धातुऋणायनों का नाम लिखिए; जिसमें धातु संक्रमण श्रेणी की वर्ग संख्या के बराबर ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करती है।
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी के ऑक्सो धातुऋणायन निम्नलिखित हैं जिनमें धातु संक्रमण श्रेणी की वर्ग संख्या के बराबर ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करती है।
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प्रश्न 8.7.
लैन्थेनॉयड आकुंचन ( संकुचन ) क्या है ? लैन्थेनॉयड आकुंचन के परिणाम क्या हैं?
उत्तर:
लैन्थेनॉयड संकुचन – लैन्थेनॉयडों में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर La से Lu (लैन्थेनम से ल्यूटीशियम) तक परमाणु तथा आयनिक त्रिज्याओं में समग्र (over all) कमी होती है, इसे लैन्थेनॉयड संकुचन कहते हैं। परमाणु त्रिज्याओं के मानों में यह कमी नियमित नहीं होती है जैसा कि M+3 आयनों में नियमित रूप से कमी होती है। यह संकुचन भी सामान्य संक्रमण श्रेणियों के समान ही है तथा इसका कारण भी समान है अर्थात् एक ही उपकोश में एक इलेक्ट्रॉन का दूसरे इलेक्ट्रॉन द्वारा परिरक्षण प्रभाव अपूर्ण. होता है।

फिर भी श्रेणी में नाभिकीय आवेश बढ़ने पर एक d- इलेक्ट्रॉन पर दूसरे d- इलेक्ट्रॉन के परिरक्षण प्रभाव की तुलना में, एक 4f इलेक्ट्रॉन का दूसरे 41 इलेक्ट्रॉन पर परिरक्षण प्रभाव कम होता है तथा 1-कक्षकों की आकृति भी इसके लिए अनुकूल नहीं है। अतः श्रेणी में बढ़ते हुए नाभिकीय आवेश के कारण परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ परमाणु आकार में एक नियमित कमी पायी जाती है, लेकिन Eu की परमाणु त्रिज्या अधिक होती है।
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लैन्थेनॉयड संकुचन के प्रभाव-

(i) द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों के परमाणु आकार में समानता ( Similarities in the Atomic Size of Second and Third Transition Series Elements) – लैन्धेनॉयड संकुचन का तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके कारण तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों के परमाणु आकार दूसरी संक्रमण श्रेणी के संगत तत्वों के परमाणु आकार के लगभग समान होते हैं। Zr (160 pm) तथा Hf ( 159 pm ) के परमाणु आकार का लगभग समान मान लैन्धेनॉयड संकुचन का ही परिणाम है, लेकिन वर्ग 3 में ऐसा नहीं होता।

(ii) लैन्थेनॉयडों का पृथक्करण (Separation of Lanthanoids) – लैन्थेनॉयडों की आयनिक त्रिज्या में अन्तर बहुत कम होता है इसलिए इनके रासायनिक गुणों में काफी समानता होती है, अतः इन तत्वों का पृथक्करण मुश्किल से होता है। लेकिन इनके आकार में कुछ अन्तर होता है जिसके कारण इनकी विलेयता तथा संकुल बनाने की प्रवृत्ति में भिन्नता आ जाती है अतः इनका पृथक्करण आयन विनिमय विधि द्वारा सम्भव हो पाता है।

(iii) हाइड्रॉक्साइडों की क्षरीय प्रबलता (Basic Strength of Hydroxides) – 12 से 1.1 तक इनके हाइड्रॉक्साइडों की क्षारीय प्रबलता कम होती है क्योंकि इनकी आयनिक त्रिज्याओं में कमी होती है। इसलिए La(OH)2 का क्षारीय गुण अधिकतम तथा Lu (OH)2 का क्षारीय गुण न्यूनतम होता है।

प्रश्न 8.8.
संक्रमण धातुओं के अभिलक्षण क्या हैं? ये संक्रमण धातु क्यों कहलाती हैं ? d-ब्लॉक के तत्वों में कौनसे तत्व संक्रमण श्रेणी के तत्व नहीं कहे जा सकते ?
उत्तर:
संक्रमण धातुओं के सामान्य अभिलक्षण निम्नलिखित हैं-
संक्रमण तत्व प्रारूपिक धात्विक गुण, जैसे- उच्च तनन सामर्थ्य, तन्यता, आघातवर्धनीयता, उच्च तापीय तथा विद्युत् चालकता व धात्विक चमक दर्शाते हैं। Zn, Cd, Hg तथा Mn जैसे अपवादों को छोड़कर सामान्य ताप पर इनकी एक या अधिक प्रारूपिक धात्विक संरचनाएँ होती हैं।

संक्रमण तत्व वे d-ब्लॉक के तत्व होते हैं जिनकी परमाणु या किसी ऑक्सीकरण अवस्था में अपूर्ण d कक्षक होते हैं। वर्ग 12 के तत्व जिंक, कैडमियम तथा मर्क्युरी (Zn, Cd तथा Hg ) में उनकी मूल अवस्था तथा सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था में पूर्ण पूरित (d10) विन्यास है अतः इन्हें संक्रमण तत्व नहीं माना जाता।

प्रश्न 8.9.
संक्रमण धातुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास किस प्रकार असंक्रमण तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से भिन्न हैं?
उत्तर:
संक्रमण तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में उपान्त्य कोश में आंशिक भरे d उपकोश होते हैं जबकि असंक्रमण तत्वों में आंशिक भरे d उपकोश नहीं होते, लेकिन इनके आन्तरिक विन्यास में पूर्ण भरे d उपकोश होते हैं। संक्रमण तत्वों में अन्तिम इलेक्ट्रॉन उपान्त्य कोश के d उपकोश में भरा जाता है जबकि असंक्रमण तत्वों में अन्तिम इलेक्ट्रॉन s या p उपकोश में भरा जाता है।

प्रश्न 8.10.
लैन्थेनॉयडों द्वारा कौन-कौनसी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित की जाती हैं ?
उत्तर:
लैन्थेनॉयडों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था +3 है लेकिन कुछ लैन्थेनॉयड +2 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी प्रदर्शित करते हैं। जैसे – Eu2+ तथा Ce+4

प्रश्न 8.11.
कारण देते हुए स्पष्ट कीजिए-
(i) संक्रमण धातुएँ तथा उनके अधिकांश यौगिक अनुचुंबकीय हैं।
(ii) संक्रमण धातुओं की कणन एन्थैल्पी (Enthalpy of atomisation) के मान उच्च होते हैं।
(iii) संक्रमण धातुएँ सामान्यतः रंगीन यौगिक बनाती हैं।
(iv) संक्रमण धातुएँ तथा इनके अनेक यौगिक उत्तम उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।
उत्तर:
(i) संक्रमण धातुएँ तथा उनके अधिकांश यौगिक अनुचुंबकीय होते हैं, क्योंकि इनमें धातु के पास अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं तथा वे तत्व या यौगिक अनुचुम्बकीय होते हैं जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। जैसे Sc = [Ar] 3d1 4s2, इसके पास एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है अतः यह अनुचुम्बकीय है, इसी प्रकार FeSO4 में Fe+2 के पास चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होने के कारण यह भी अनुचुम्बकीय है।

(ii) इस प्रश्न के उत्तर के लिए पाठ्यपुस्तक का उदाहरण 8.2 देखें ।

(iii) संक्रमण धातुओं के यौगिक सामान्यतः रंगीन होते हैं क्योंकि इनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं जिससे दृश्य प्रकाश द्वारा d-d संक्रमण (t2g से eg) आसानी से हो जाता है। लिगन्ड (जल इत्यादि) की उपस्थिति में d कक्षक दो भागों में विभाजित हो जाते हैं. – t2g तथा eg | इसी कारण इनका रंग जलीय विलयन या जलयोजित अवस्था में ही प्रेक्षित होता है।

(iv) संक्रमण धातुएँ तथा इनके अनेक यौगिक अच्छे उत्प्रेरक होते हैं क्योंकि इनमें परिवर्तनशील संयोजकता ( ऑक्सीकरण अंक) तथा संकुल यौगिक बनाने का गुण पाया जाता है जिसमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन प्रयुक्त होते हैं।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 8.12.
अंतराकाशी यौगिक क्या हैं? इस प्रकार के यौगिक संक्रमण धातुओं के लिए भली प्रकार से ज्ञात क्यों हैं ?
उत्तर:
संक्रमण धातुओं के क्रिस्टल जालक में परमाणुओं के मध्य बचे रिक्त स्थान (अन्तराकाश) में छोटे आकार वाले परमाणु जैसे H, N, B या C व्यवस्थित हो जाते हैं तो बने यौगिकों को अन्तराकाशी यौगिक कहते हैं। उदाहरण-TiC, Mn4N, Fe3H, VH0.56 तथा TiH1.7 इत्यादि। इन यौगिकों में धातुओं की कोई सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था नहीं होती । संक्रमण तत्वों में रिक्त d कक्षक होते हैं अतः ये अंतराकाशी यौगिक आसानी से बनाते हैं।

प्रश्न 8.13.
संक्रमण धातुओं की ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तनशीलता असंक्रमण धातुओं में ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तनशीलता से किस प्रकार भिन्न है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरसंक्रमण तत्वों में ऑक्सीकरण अवस्थाओं में एक का अंतर होता है। जैसे- मैंगनीज, +2, +3, 4, +5, +6, +7 अवस्था दर्शाता है जबकि असंक्रमण तत्वों जैसे p-ब्लॉक के तत्वों में सदैव दो का अंतर होता है, जैसे +2, +4 या +3, +5 या +4, +6 आदि ।

प्रश्न 8.14.
आयरनक्रोमाइट अयस्क से पोटैशियम डाइक्रोमेट बनाने की विधि का वर्णन कीजिए । पोटैशियम डाइक्रोमेट विलयन पर pH बढ़ाने से क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
आयरन क्रोमाइट अयस्क से पोटैशियम डाइक्रोमेट बनाना – आयरन क्रोमाइट [ क्रोमाइट अयस्क (FeCr2O4)] को जब वायु की उपस्थिति में सोडियम कार्बोनेट के साथ संगलित किया जाता है तो सोडियम क्रोमेट प्राप्त होता है। क्रोमाइट की सोडियम कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है-
4FeCr2O4 + 8Na2CO3 + 7O2 → 8Na2CrO4 + 2Fe2O3 + 8CO2
सोडियम क्रोमेट के विलयन को छानकर इसे सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा अम्लीय बना लेते हैं जिसमें से नारंगी सोडियम डाइक्रोमेट, (Na2Cr2O72H2O) को क्रिस्टलित कर लिया जाता है।
2Na2CrO2 + 2H+ → Na2Cr2O7 + 2Na+ + H2O

सोडियम डाइक्रोमेट की विलेयता, पोटैशियम डाइक्रोमेट से अधिक होती है। अतः सोडियम डाइक्रोमेट के विलयन में पोटैशियम क्लोराइड डालने पर पोटैशियम डाइक्रोमेट प्राप्त होता है।
Na2Cr2O7 + 2KCl → K2Cr2O7 + 2NaCl

विलयन से नारंगी रंग के क्रिस्टल, क्रिस्टलीकृत हो जाते हैं। पोटैशियम डाइक्रोमेट विलयन का pH बढ़ाने पर अर्थात् क्षारीय माध्यम करने पर यह क्रोमेट में बदल जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 Img 5

प्रश्न 8.15.
पोटैशियम डाइक्रोमेट की ऑक्सीकरण क्रिया का उल्लेख कीजिए तथा निम्नलिखित के साथ आयनिक समीकरण लिखिए-
(i) आयोडाइड आयन
(ii) आयरन (II) विलयन
(iii) H2S
उत्तर:
पोटैशियम डाइक्रोमेट प्रबल ऑक्सीकारक होता है। अम्लीय माध्यम में डाइक्रोमेट आयन की ऑक्सीकरण क्रिया को निम्न प्रकार दर्शाया जाता है, इसमें Cr+6, Cr+3 में बदलता है।
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(i) आयोडाइड आयन – K2Cr2O7, आयोडाइड आयन को आयोडीन में ऑक्सीकृत करता है।
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(ii) आयरन (II) विलयन – K2Cr2O7, Fe2+ को Fe+3 में ऑक्सीकृत कर देता है।
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(iii) H2S – डाइक्रोमेट, H2S को सल्फर में ऑक्सीकृत करता है।
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प्रश्न 8.16.
पोटैशियम परमैंगनेट को बनाने की विधि का वर्णन कीजिए । अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट किस प्रकार – (i) आयरन (II) आयन (ii) SO2 तथा (iii) ऑक्सैलिक अम्ल से अभिक्रिया करता है? अभिक्रियाओं के लिए आयनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर:
पोटैशियम परमैंगनेट बनाने के लिए MnO2 को KOH या KNO3 जैसे ऑक्सीकारक के साथ संगलित किया जाता है, इससे गाढ़े हरे रंग का पोटैशियम मैंगनेट (K2MnO4) बनता है जो उदासीन या अम्लीय माध्यम में असमानुपातित होकर पोटैशियम परमैंगनेट बनाता है।
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प्रयोगशाला में Mn (II) आयन के लवणों को परऑक्सोडाइसल्फेट द्वारा ऑक्सीकृत कराने पर भी परमैंगनेट बनता है।
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अम्लीय माध्यम में KMnO, की अभिक्रियाएँ —
(i) आयरन (II) आयन से यह आयरन (II) को आयरन (III) में ऑक्सीकृत कर देता है।
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(ii) SO2 से – यह जलीय SO2 को H2SO4 में ऑक्सीकृत करता है।
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(iii) ऑक्सैलिक अम्ल से – KMnO4 , के साथ अभिक्रिया से ऑक्सैलिक अम्ल, CO2 में ऑक्सीकृत हो जाता है।
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प्रश्न 8.17.
M2+ / M तथा M3+ / M2+ निकाय के संदर्भ में कुछ धातुओं के E° के मान नीचे दिए गए हैं-
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उपर्युक्त आँकड़ों के आधार पर निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए-
(i) अम्लीय माध्यम में Cr3+ या Mn3+ की तुलना Fe3+ का स्थायित्व |
(ii) समान प्रक्रिया के लिए क्रोमियम अथवा मैंगनीज धातुओं की तुलना में आयरन के ऑक्सीकरण में सुगमता ।
उत्तर:
(i) जब किसी स्पीशीज का अपचयन विभव (इलेक्ट्रोड विभव) अधिक होता है तो इसके अपचयित होने की प्रवृत्ति अधिक होती है। Mn+3 का अपचयन विभव अधिकतम है इसलिए यह आसानी से Mn2+ में अपचयित हो जाता है अतः Mn+3, Fe+3 से कम स्थायी होता है। लेकिन Cr+3, Fe+3 की तुलना में अधिक स्थायी है क्योंकि Cr+3 का अपचयन विभव, Fe+3 के अपचयन विभव से बहुत कम है।

(ii) जब किसी धातु आयन के इलेक्ट्रोड विभव (अपचयन विभव) का मान कम होता है तो उस धातु परमाणु की ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति अधिक होगी, अतः Mn की Mn+2 में ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति सर्वाधिक होगी तथा Fe की Fe+2 मैं ऑक्सीकरण की प्रवृत्ति न्यूनतम होगी। इसलिए इनके ऑक्सीकृत होने का क्रम निम्न प्रकार होगा -Mn > Cr > Fe

प्रश्न 8.18.
निम्नलिखित में कौनसे आयन जलीय विलयन में रंगीन होंगे ?
Ti3+, V3+,Cu+,Sc3+, Mn2+, Fe3+ तथा Co2+ प्रत्येक के लिए कारण बताइए ।
उत्तर:
Sc3+ के अतिरिक्त सभी आयन जलीय विलयन में रंगीन होते हैं क्योंकि इनमें d कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं अतः इनमें d-d संक्रमण आसानी से हो जाता है जो इनके रंग के लिए जिम्मेदार होता है।

प्रश्न 8.19.
प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुओं की +2 ऑक्सीकरण अवस्थाओं के स्थायित्व की तुलना कीजिए ।
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुओं में बाएँ से दाएँ जाने पर +2 ऑक्सीकरण अवस्थाओं का स्थायित्व बढ़ता है तथा बीच में अधिकतम होने के बाद कम होता जाता है क्योंकि प्रारम्भ में d कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं जिससे अन्तर इलेक्ट्रॉनिक प्रतिकर्षण न्यूनतम होता है। उसके पश्चात् d कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन प्रारम्भ हो जाता है। Zn+2 अपवाद है क्योंकि इसमें पूर्णपूरित (3d10) स्थायी विन्यास होता है।

प्रश्न 8.20.
निम्नलिखित के संदर्भ में, लैन्थेनॉयड एवं ऐक्टिनॉयड के रसायन की तुलना कीजिए-
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
(ii) परमाण्वीय एवं आयनिक आकार
(iii) ऑक्सीकरण अवस्था
(iv) रासायनिक अभिक्रियाशीलता ।
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – लैन्थेनॉयडों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में सभी तत्वों में 6s2 होता है तथा 4f में इलेक्ट्रॉन भरता जाता है अर्थात् यह परिवर्तनशील है, लेकिन Ln3+ में 4f1 से 4f14 तक विन्यास पाया जाता है। सभी ऐक्टिनॉयडों में 7s2 विन्यास होता है तथा 5f एवं 6d उपकोशों में परिवर्तनशील विन्यास होता है। 5f उपकोश में 14 इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं। Th तक 5f नहीं होता । Pa से प्रारम्भ होकर Lr तक 5f पूर्णरूप से भर जाता है। लैन्थेनॉयडों के समान ऐक्टिनॉयडों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में अनियमितताएँ, 5f उपकोश में उपस्थित f0, f7 तथा f14 स्थायी विन्यासों के कारण होती हैं।

(ii) परमाण्वीय एवं आयनिक आकार – लैन्थेनॉयडों में La से Lu तक तत्वों की परमाणु एवं आयनिक त्रिज्या में कमी होती है लेकिन परमाणु त्रिज्या में कमी नियमित नहीं होती। ऐक्टिनॉयडों में भी लैन्थेनॉयडों के समान परमाणु या M3+ आयनों के आकार में क्रमिक कमी होती है, इसे ऐक्टिनॉयड संकुचन कहते हैं। लेकिन आकार में यह कमी एक तत्व से दूसरे तत्व में उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है जो कि 51 इलेक्ट्रॉनों के दुर्बल परिरक्षण प्रभाव के कारण है।

(iii) ऑक्सीकरण अवस्था – लैन्थेनॉयडों में मुख्य रूप से +3 ऑक्सीकरण अवस्था पायी जाती है लेकिन कुछ तत्व +2 तथा +4 अवस्था भी दर्शाते हैं।
लैन्थेनॉयडों के समान ऐक्टिनॉयड भी +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं, लेकिन इनमें अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (+3 से +7 ) भी पायी जाती हैं।
लैन्थेनॉयड तथा ऐक्टिनॉयड दोनों में ही +4 की अपेक्षा +3 अवस्था में अधिक यौगिक बनते हैं तथा + 3 एवं +4 अवस्था वाले आयनों की जल अपघटित होने की प्रवृत्ति होती है।

(iv) रासायनिक अभिक्रियाशीलता (Chemical reactivity)-लैन्थेनॉयडों तथा ऐक्टिनॉयडों में कुछ समानता लेकिन कुछ भिन्नता भी होती है।

  • लैन्थेनॉयडों में लैन्थेनॉयड संकुचन होता है उसी प्रकार ऐक्टिनॉयडों में ऐक्टिनॉयड संकुचन पाया जाता है।
  • लैन्थेनॉयडों के कुछ आयन रंगहीन होते हैं जबकि ऐक्टिनॉयडों के आयन रंगीन होते हैं।
  • लैन्थेनॉयड आसानी से संकुल नहीं बनाते लेकिन ऐक्टिनॉयडों में संकुल बनाने की प्रवृत्ति अधिक होती है।
  • लैन्थेनॉयड ऑक्सो धनायन नहीं बनाते जबकि ऐक्टिनॉयड \(\mathrm{UO}_2^{2+}, \mathrm{PuO}_2^{2+}\) तथा UO+ जैसे ऑक्सो धनायन बनाते हैं।
  • लैन्थेनॉयडों में केवल Pm रेडियोधर्मी है जबकि सभी ऐक्टिनॉयड रेडियोधर्मी होते हैं।
  • लैन्थेनॉयडों के चुंबकीय गुणों की व्याख्या आसान है जबकि ऐक्टिनॉयडों के चुंबकीय गुण इनकी तुलना में जटिल होते हैं।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 8.21.
आप निम्नलिखित को किस प्रकार से स्पष्ट करेंगे-
(i) d4 स्पीशीज में से Cr2+ प्रबल अपचायक है जबकि मैंगनीज (III) प्रबल ऑक्सीकारक है।
(ii) जलीय विलयन में कोबाल्ट (II) स्थायी है परन्तु संकुलनकारी अभिकर्मकों की उपस्थिति में यह सरलतापूर्वक ऑक्सीकृत हो जाता है।
(iii) आयनों का d1 विन्यास अत्यंत अस्थायी है।
उत्तर:
(i) Cr2+ प्रबल अपचायक है क्योंकि इसमें से एक इलेक्ट्रॉन निकलने पर d4 से d3 में परिवर्तन होता है तथा d3 विन्यास (\(t_{2 g}^3\)) अधिक स्थायी होता है क्योंकि यह अर्धपूरित है। Mn(III) द्वारा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके Mn (II) में परिवर्तित होने पर 3d4 से 3d5 हो जाता है तथा 3d5 एक अर्धपूरित स्थायी विन्यास है । अतः मैंगनीज (III) प्रबल ऑक्सीकारक है।

(ii) संकुलनकारी अभिकर्मक (लिगण्ड) की उपस्थिति में Co(II) आसानी से ऑक्सीकृत होकर Co(III) बनाता है जिसमें 3d6 विन्यास है। इसका कारण यह है कि संकुल बनने पर प्राप्त क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, (CFSE) Co+3 बनने के लिए आवश्यक तृतीय आयनन ऊर्जा की पूर्ति कर देती है तथा +3 अवस्था में स्थायी अष्टफलकीय संकुल बन जाते हैं जो कि सामान्यतः प्रतिचुम्बकीय होते हैं।

(iii) d1 विन्यास के आयन अत्यंत अस्थायी होते हैं क्योंकि d1 विन्यास से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए आवश्यक आयनीकरण ऊर्जा की पूर्ति जलयोजन ऊर्जा या जालक ऊर्जा द्वारा आसानी से हो जाती है तथा d1 विन्यास से इलेक्ट्रॉन निकलने पर प्राप्त विन्यास (d0) स्थायी होता है। कुछ उदाहरणों में असमानुपातन भी होता है।
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प्रश्न 8.22.
असमानुपातन से आप क्या समझते हैं ? जलीय विलयन में असमानुपातन अभिक्रियाओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
असमानुपातन (Disproportionation) – किसी स्पीशीज में किसी तत्व के लिए जब एक ऑक्सीकरण अवस्था अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं (कम तथा अधिक) से कम स्थायी होती है तो इस स्पीशीज के एक परमाणु का ऑक्सीकरण तथा दूसरे परमाणु का अपचयन हो जाता है। इस क्रिया को असमानुपातन कहते हैं।
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प्रश्न 8.23.
प्रथम संक्रमण श्रेणी में कौनसी धातु बहुधा (frequently) तथा क्यों +1 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाती है?
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी में Cu बहुधा (+1) स्थायी ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है, क्योंकि इसके फलस्वरूप 3d10 स्थायी विन्यास प्राप्त होता है। Cu+1 = [Ar] 3d10

प्रश्न 8.24.
निम्नलिखित गैसीय आयनों में अ (अयुग्मित) इलेक्ट्रॉनों की गणना कीजिए ।
Mn3+, Cr3+, V3+ तथा Ti3+ इनमें से कौनसा जलीय विलयन में अतिस्थायी है ?
उत्तर:
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इन आयनों में से जलीय विलयन में Cr3+ सबसे अधिक स्थायी होता है। क्योंकि इसमें अर्धपूरित विन्यास (\(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}^3\)) होता है, जो कि स्थायी होता है।

प्रश्न 8.25.
उदाहरण देते हुए संक्रमण धातुओं के रसायन के निम्नलिखित अभिलक्षणों का कारण बताइए –
(i) संक्रमण धातु का निम्नतम ऑक्साइड क्षारकीय है, जबकि उच्चतम ऑक्साइड उभयधर्मी या अम्लीय है।
(ii) संक्रमण धातु की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ऑक्साइडों तथा फ्लुओराइडों में प्रदर्शित होती है।
(iii) धातु के ऑक्सोऋणायनों में उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित होती है।
उत्तर:
(i) संक्रमण धातुओं के ऑक्साइड निम्नतम ऑक्सीकरण अवस्था में क्षारकीय तथा उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था में उभयधर्मी या अम्लीय होते हैं क्योंकि निम्न ऑक्सीकरण अवस्था में बन्ध बनाने में थोड़े से इलेक्ट्रॉन ही प्रयुक्त होते हैं अतः प्रभावी नाभिकीय आवेश कम होता है इस कारण ये आसानी से इलेक्ट्रॉन दे सकते हैं इसलिए ये क्षारीय होते हैं लेकिन उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में प्रभावी नाभिकीय आवेश अधिक होने के कारण इनमें इलेक्ट्रॉन लेने की प्रवृत्ति अधिक होती है अतः ये मुख्यतः अम्लीय तथा कभी-कभी उभयधर्मी होते हैं। उदाहरण-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 Img 19

(ii) ऑक्सीजन तथा फ्लुओरीन की उच्च विद्युतॠणता तथा छोटे आकार के कारण ये धातुओं को उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था तक ऑक्सीकृत कर देते हैं अतः संक्रमण धातुओं की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ऑक्साइडों तथा फ्लुओराइडों में ही प्रदर्शित होती है।

(iii) संक्रमण धातुओं के ऑक्सोऋणायन इनके उच्च ऑक्सीकरण अवस्था युक्त ऑक्साइडों की अम्ल तथा क्षार से क्रिया करवाने पर ही बनते हैं। अतः ऑक्सोऋणायनों में भी धातु की ऑक्सीकरण अवस्था उच्च होगी तथा इन ऑक्सोऋणायनों में धातु के साथ उच्च विद्युतऋणी ऑक्सीजन जुड़ी होती है।

प्रश्न 8.26.
निम्नलिखित को बनाने के लिए विभिन्न पदों का उल्लेख कीजिए-
(i) क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7
(ii) पाइरोलुसाइट से KMnO4
उत्तर:
(i) क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7 बनाना-
क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7 बनाने में निम्नलिखित तीन पद होते हैं-(a) क्रोमाइट अयस्क को वायु की उपस्थिति में सोडियम कार्बोनेट के साथ संगलित करना-

4FeCr2O4 + 8Na2CO3 + 7O2 → 8Na2 CrO4 + 2Fe2O3 + 8CO2

(b) Na2CrO4 के विलयन को छानकर सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा अम्लीकृत करना तथा सोडियम डाइक्रोमेट के क्रिस्टल प्राप्त करना-
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(ii) पाइरोलुसाइट से KMnO4 बनाना – पाइरोलु साइट (MnO2) से KMnO4 बनाने के लिए पाइरोलुसाइट को KOH के साथ संगलित करके वायु या KNO3 द्वारा ऑक्सीकृत करते हैं, तथा प्राप्त \(\mathrm{MnO}_4^{2-}\) आयन का क्षारीय माध्यम में वैद्युत अपघटनी ऑक्सीकरण किया जाता है।
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प्रश्न 8.27.
मिश्र धातुएँ क्या हैं? लैन्थेनॉयड धातुओं से युक्त एक प्रमुख मिश्र धातु का उल्लेख कीजिए। इसके उपयोग भी बताइए |
उत्तर:
मिश्र धातु – दो या दो से अधिक धातुओं या धातु तथा अधातु का समांगी मिश्रण मिश्र धातु कहलाता है।
लैन्थेनॉयड धातुओं से युक्त एक प्रमुख मिश्रधातु, मिश धातु है जिसमें ~ 95% एक लैन्थेनॉयड धातु, ~ 5% आयरन तथा थोड़ा-सा S, C, Ca तथा Al होता है। मिश धातु की अत्यधिक मात्रा, मैग्नीशियम आधारित मिश्र धातुओं में प्रयुक्त होती है जिसका उपयोग बंदूक की गोली, कवच या खोल तथा हल्के फ्लिंट के उत्पादन में किया जाता है।

प्रश्न 8.28.
आंतरिक संक्रमण तत्व क्या हैं? बताइए कि निम्नलिखित में कौनसे परमाणु क्रमांक आंतरिक संक्रमण तत्वों के हैं–
29, 59, 74, 95, 102, 104
उत्तर:
आन्तरिक संक्रमण तत्व ( Inner Transition Elements) वे तत्व होते हैं जिनमें परमाणु या किसी ऑक्सीकरण अवस्था में बाह्यतम तीन कोश अपूर्ण होते हैं तथा इनके fकक्षक अपूर्ण होते हैं। ये । खण्ड के तत्व होते हैं। इनकी दो श्रृंखलाएं होती हैं- (i) लैन्थेनॉयड (Z= 58 से 71) तथा (ii) ऐक्टिनॉयड (Z = 90 से 103)। उपर्युक्त में से परमाणु क्रमांक 59, 95 तथा 102 आंतरिक संक्रमण तत्वों के हैं।

प्रश्न 8.29.
ऐक्टिनॉयड तत्वों का रसायन उतना नियमित नहीं है जितना कि लैन्थेनॉयड तत्वों का रसायन । इन तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं के आधार पर इस कथन का आधार प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर:
ऐक्टिनॉयड तत्वों के रसायन में लैन्थेनॉयडों के रसायन की तुलना में कम नियमितता होती है क्योंकि ऐक्टिनॉयड श्रेणी में ऑक्सीकरण अवस्थाओं की परास अधिक है। इसका कारण 5f, 6d तथा 7s स्तरों की लगभग समान ऊर्जा है।
ऐक्टिनॉयड सामान्यतः +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। श्रेणी के प्रारंभिक अर्ध-भाग वाले तत्व सामान्यतः उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं। जैसे Th में +4, Pa, U तथा Np में क्रमश: +5, +6 तथा +7 ऑक्सीकरण अवस्था होती है परन्तु बाद के तत्वों में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ कम होती जाती हैं अतः प्रारम्भ एवं बाद वाले ऐक्टिनॉयडों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं में अधिक अनियमितता होती है।

प्रश्न 8.30.
ऐक्टिनॉयड श्रेणी का अंतिम तत्व कौन-सा है ? इस तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। इस तत्व की संभावित ऑक्सीकरण अवस्थाओं पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर:
ऐक्टिनॉयड श्रेणी का अंतिम तत्व लारेंशियम है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित है-
103Lr = [Rn]5f146d17s2
Lr की संभावित ऑक्सीकरण अवस्था +3 है क्योंकि इसमें पूर्ण पूरित स्थायी विन्यास (4f14) पाया जाता है।
Lr3+ = [Rn]4f14

प्रश्न 8.31.
हुंड – नियम के आधार पर Ce3+ आयन के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को व्युत्पन्न कीजिए तथा ‘प्रचक्रण मात्र सूत्र’ (spin only formula) के आधार पर इसके चुंबकीय आघूर्ण की गणना कीजिए ।
उत्तर:
Ce का परमाणु क्रमांक 58 है तथा इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ! 54Ce = [Xe]4f1 5d1 6s2 होता है अतः Ce3+ आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Xe] 4f1 होगा जिसमें केवल एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित है अतः इसका चुम्बकीय आघूर्ण (µ)
µ = \(\sqrt{n(n+2)}\) B.M.
n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 1
µ = \(\sqrt{1(1+2)}\) = √3 = 1.732 B.M.
अतः Ce3+ का चुम्बकीय आघूर्ण = 1.732 B.M. होगा।

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प्रश्न 8.32.
लैन्थेनॉयड श्रेणी के उन सभी तत्वों का उल्लेख कीजिए जो +4 तथा जो +2 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाते हैं। इस प्रकार के व्यवहार तथा उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के बीच संबंध स्थापित कीजिए |
उत्तर:
लैन्थेनॉयड श्रेणी में +4 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाने वाले तत्व निम्नलिखित हैं-
सीरियम (58Ce), प्रैजियोडिमियम (59Pr), नियोडिमियम (60Nd), टर्बियम (65Tb) तथा डिसप्रोसियम (66Dy ) । इसी प्रकार +2 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाने वाले मुख्य लैन्थेनॉयड निम्न हैं- यूरोपियम (63Eu) तथा इटर्बियस (70Yb)।

लैन्थेनॉयडों में +4 तथा +2 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ रिक्त, अर्धपूरित तथा पूर्णपूरितf उपकोशों के अधिक स्थायित्व के कारण होती हैं। जैसे Ce+4 में उत्कृष्ट गैस विन्यास 4f0 है, इसी प्रकार Tb4+ तथा Eu2+ में 4f7 (अर्धपूरित) तथा Yb+2 में 4f14 (पूर्ण पूरित) विन्यास होता है।

प्रश्न 8.33. निम्नलिखित के संदर्भ में ऐक्टिनॉयड श्रेणी के तत्वों तथा लैन्थेनॉयड श्रेणी के तत्वों के रसायन की तुलना कीजिए । (i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (iii) रासायनिक अभिक्रियाशीलता ।
उत्तर:
इसके लिए पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रश्न संख्या 8.20 का उत्तर देखें।

प्रश्न 8.34.
61, 91, 101 तथा 109 परमाणु क्रमांक वाले तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 Img 22

प्रश्न 8.35.
प्रथम श्रेणी के संक्रमण तत्वों के अभिलक्षणों की द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के वर्गों के संगत तत्वों से ऊर्ध्वाधर वर्गों में तुलना कीजिए । निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष महत्व दीजिए-
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
(ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ
(iii) आयनन एन्थैल्पी तथा
(iv) परमाण्वीय आकार ।
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – प्रथम संक्रमण श्रेणी में इलेक्ट्रॉन 3d कक्षकों में भरे जाते हैं जबकि द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी में इलेक्ट्रॉन क्रमशः 4d तथा 5d कक्षकों में भरे जाते हैं तथा सामान्यतः किसी वर्ग के सभी तत्वों का विन्यास समान होता है लेकिन इसके अपवाद भी होते हैं. जो कि संक्रमण तत्वों में भी हैं।

(ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ — संक्रमण तत्वों के किसी वर्ग के सभी तत्वों द्वारा सामान्यतः समान ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाई जाती हैं। ये श्रेणी के मध्य में अधिकतम तथा अन्त में न्यूनतम होती हैं।

(iii) आयनन एन्थैल्पी – प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों की तुलना में द्वितीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों की आयनन एन्थैल्पी का मान कम होता है लेकिन तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों की आयनन एन्थैल्पी का मान द्वितीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों से अधिक होता है।

(iv) परमाण्वीय आकार — द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों के परमाणु आकार प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों से अधिक होते हैं। लेकिन लैन्थेनॉयड संकुचन के कारण द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों के आकार लगभग समान होते हैं।

प्रश्न 8.36.
निम्नलिखित आयनों में प्रत्येक के लिए 3d इलेक्ट्रॉनों की संख्या लिखिए-
Ti2+, V2+, Cr3+, Mn2+, Fe2+, Fe3+, Co2+, Ni2+, Cu2+
आप इन जलयोजित आयनों (अष्टफलकीय) में पाँच 3d कक्षकों को किस प्रकार अधिग्रहीत ( occupied ) करेंगे? दर्शाइए |
उत्तर:
जलयोजित आयनों में जल (H2O) लिगेण्ड का कार्य करता है जिसके कारण समान ऊर्जा के पाँच 3d कक्षक दो भागों में विभाजित हो जाते हैं- t2g तथा egl t2g कक्षकों की ऊर्जा eg कक्षकों से कम होती है। t2g तथा eg | t2g कक्षकों के मध्य ऊर्जा अन्तर कम होता है क्योंकि H2O एक दुर्बल लिगेण्ड है। विभिन्न आयनों के इलेक्ट्रॉन इन कक्षकों में निम्न प्रकार भरे जाते हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 Img 23

प्रश्न 8.37.
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्व भारी संक्रमण तत्वों के अनेक गुणों से भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों तथा भारी संक्रमण तत्वों के गुणों में निम्नलिखित भिन्नता होती है-
(i) प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्व सामान्यतया +2 तथा +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं जबकि भारी संक्रमण तत्वों में उच्च ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थायी होती है।
(ii) प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों में धातु- धातु (M-M) बन्ध नहीं होता जो कि भारी संक्रमण तत्वों में सामान्यतः पाया जाता है। इसी कारण भारी संक्रमण तत्वों के गलनांक प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों के गलनांक से अधिक होते हैं।
(iii) प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों में उच्च समन्वयी संख्या वाले संकुल नहीं बनते, जैसे 7 या 8 जबकि भारी संक्रमण तत्व 7 या 8 समन्वयी संख्या वाले संकुल भी बनाते हैं।
(iv) प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों में लिगण्ड की प्रकृति (प्रबलता ) आधार पर निम्न चक्रण संकुल तथा उच्च चक्रण संकुल बनते हैं जबकि भारी संक्रमण तत्व हमेशा निम्न चक्रण संकुल ही बनाते हैं।

प्रश्न 8.38.
निम्नलिखित संकुल स्पीशीज के चुंबकीय आघूर्णी के मान से आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे ?
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 Img 24
उत्तर:
(i) K4[Mn(CN)6] का चुम्बकीय आघूर्ण = 2.2 B.M. दिया गया है। सैद्धान्तिक आधार पर सूत्र, µ = \(\sqrt{n(n+2)}\) BM
के अनुसार n = 1 होने पर µ का मान 1.732 BM आता है जो कि 2.2 के लगभग समान है।

अतः इस संकुल में Mn पर d2 sp3 संकरण होगा क्योंकि \(\overline{\mathrm{C}} \mathrm{N}\) प्रबल लिगण्ड है जिसके कारण Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (t2g)5 होगा, जिसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है। अतः यह संकुल अनुचुम्बकीय है।

(ii) [Fe (H2O)6]2+ के लिए µ = 5.3BM दिया गया है।

अतः सूत्रानुसार n = 4 लेने पर µ = 4.89BM आता है जो कि 5.3 के लगभग समान है। अतः इस संकुल में Fe पर sp3d2 संकरण होगा क्योंकि H2O दुर्बल लिगण्ड है जिससे Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (t2g)4 (eg)2 होगा, जिसमें चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं। अतः यह संकुल भी अनुचुम्बकीय है।

(iii) K2[MnCl4] के लिए µ = 5.9BM दिया है।

अतः सूत्रानुसार n = 5 लेने पर µ = 5.91BM आता है जो कि 5.9 के लगभग समान है। अतः इस संकुल में Mn पर sp3 संकरण होगा तथा Cl दुर्बल लिगण्ड है। जिसकी उपस्थिति में Mn+2 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (eg)2 (t2g)3 होगा, जिसमें 5 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं। अतः यह संकुल भी अनुचुम्बकीय है।

HBSE 12th Class Chemistry d- एवं f-ब्लॉक के तत्व Intext Questions

प्रश्न 8.1.
सिल्वर परमाणु की मूल अवस्था में पूर्ण भरित d कक्षक (4d10) हैं। आप कैसे कह सकते हैं कि यह एक संक्रमण तत्व है?
उत्तर:
सिल्वर (Z=47),+1 के अलावा + 2 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करता है, जिसमें इसके 4d कक्षक अपूर्ण हैं अतः यह संक्रमण तत्व है क्योंकि संक्रमण तत्व वे होते हैं जिनमें परमाणु अवस्था या किसी भी ऑक्सीकृत अवस्था में d- कक्षक अपूर्ण होता है।

प्रश्न 8.2.
श्रेणी Sc(Z=21) से Zn(Z=30) में, जिंक की कणन एन्थैल्पी (Enthalpy of atomisation) का मान सबसे कम होता है, अर्थात् 126 kJ mol-1; क्यों?
उत्तर:
जिंक में 3d कक्षकों के इलेक्ट्रॉन धात्विक बन्ध बनाने में प्रयुक्त नहीं होते हैं क्योंकि इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d104s2 होता है जबकि 3d श्रेणी के अन्य सभी धातुओं के d कक्षक अपूर्ण भरे होने के कारण ये इलेक्ट्रॉन धात्विक बनाने में प्रयुक्त होते हैं। अतः Zn में धात्विक बन्ध दुर्बल होता है इसलिए इसकी कणन एन्थैल्पी (परमाणुकरण की एन्थैल्पी) सबसे कम होती है।

प्रश्न 8.3.
संक्रमण तत्वों की 3d श्रेणी का कौन-सा तत्व बड़ी संख्या में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाता है एवं क्यों?
उत्तर:
संक्रमण तत्वों की 3d श्रेणी में Mn सबसे अधिक संख्या में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (+2 से +7) दर्शाता है क्योंकि इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d54s2 होने के कारण इसमें सर्वाधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं।

प्रश्न 8.4.
कॉपर के लिए E°(M2+/M) का मान धनात्मक (+0.34 V) है। इसके संभावित कारण क्या हैं?
उत्तर:
किसी धातु के लिए E° (M2+/M) (इलेक्ट्रोड विभव) का मान परमाणुकरण की एन्थैल्पी (△aH°), आयनन एन्थैल्पी (△iH) तथा

जलयोजन एन्थैल्पी △hydH° पर निर्भर करता है। Cu(s) से \(\mathrm{Cu}_{(\mathrm{g})}^{+2}\) बनने के लिए आवश्यक उच्च आयनन एन्थैल्पी तथा परमाणुकरण एन्थैल्पी Cu2+ की निम्न जलयोजन एन्थैल्पी द्वारा संतुलित नहीं हो पाती है, अतः Cu2+ के लिए अपचयन विभव का मान धनात्मक होता है।

प्रश्न 8.5.
संक्रमण तत्वों की प्रथम श्रेणी में आयनन एन्थैल्पी (प्रथम और द्वितीय) में अनियमित परिवर्तन को आप कैसे समझायेंगे?
उत्तर:
संक्रमण तत्वों की प्रथम श्रेणी में प्रथम और द्वितीय आयनन एन्थैल्पी में अनियमित परिवर्तन विभिन्न 3d विन्यासों के स्थायित्व की क्षमता में भिन्नता के कारण है। उदाहरण d0, d5, d10 विन्यास असामान्य रूप से स्थायी होते हैं। अतः इनकी आयनन एन्थैल्पी उच्च होती है।

प्रश्न 8.6.
कोई धातु अपनी उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था केवल ऑक्साइड अथवा फ्लुओराइड में ही क्यों प्रदर्शित करती है?
उत्तर:
किसी धातु की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ऑक्साइड अथवा फ्लुओराइड में ही होती है क्योंकि छोटे आकार, उच्च विद्युतऋणता तथा उच्च धनात्मक अपचयन विभव के कारण ऑक्सीजन अथवा फ्लुओरीन, धातु को उसकी उच्च ऑक्सीकरण अवस्था तक ऑक्सीकृत कर देती है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व

प्रश्न 8.7.
Cr2+ और Fe2+ में से कौन प्रबल अपचायक है और क्यों?
उत्तर:
Fe2+ की तुलना में Cr2+ एक प्रबल अपचायक पदार्थ है, क्योंकि Cr2+ से Cr3+ बनने में d4 का d3 में परिवर्तन होता है किन्तु Fe2+ Fe3+बनने में d6 का d5 में परिवर्तन होता है तथा जल जैसे माध्यम में d5 की तुलना में d3 अधिक स्थायी है। इसका कारण \(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}^3}\) विन्यास का अधिक स्थायी होना है तथा इनके E° मानों से भी यह स्पष्ट हो जाता है।

प्रश्न 8.8.
M2+(aq) आयन (Z=27) के लिए ‘प्रचक्रणमात्र’ (spin only) चुंबकीय आघूर्ण की गणना कीजिए।
उत्तर:
परमाणु क्रमांक Z = 27 के तत्व (M) के लिए इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar]3d74s2
अतः M2+ के लिए इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar]3d7
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 Img 26
इसमें तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन (n) हैं-
अतः चुम्बकीय आघूर्ण (µ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) B.M.
µ = \(\sqrt{3(3+2)}\) = √15 = 3.87 B.M.

प्रश्न 8.9.
स्पष्ट कीजिए कि Cu2+ आयन जलीय विलयन में स्थायी नहीं है, क्यों? समझाइए।
उत्तर:
\(\mathrm{Cu}_{\text {(aq) }}^{+}\) की तुलना में \(\mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{+2}\) अधिक स्थायी होता है। Cu के लिए द्वितीय आयनन एन्थैल्पी का मान उच्च होता है लेकिन Cu2+ की \(\Delta_{\text {hyd }} \mathrm{H}^{\ominus}\) का मान Cu+ की तुलना में उच्च ऋणात्मक होने के कारण यह द्वितीय आयनन एन्थैल्पी को संतुलित कर देता है अतः जलीय विलयन में Cu+ अस्थायीं होता है अतः यह असमानुपातित होकर Cu2+ बना देता है। इसके लिए \(\mathrm{E}^{\ominus}\) मान भी अनुकूल है।
\(2 \mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{+} \rightarrow \mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{2+}+\mathrm{Cu}(\mathrm{s})\)

प्रश्न 8.10.
लैन्थेनॉयड आकुंचन (संकुचन contraction) की तुलना में एक तत्व से दूसरे तत्व के बीच ऐक्टिनॉयड आकुंचन अधिक होता है। क्यों?
उत्तर:
लैन्थेनॉयड संकुचन की तुलना में एक तत्व से दूसरे तत्व के बीच ऐक्टिनॉयड संकुचन अधिक होता है, क्योंकि 5f इलेक्ट्रॉन नाभिकीय आवेश से प्रभावी रूप से आकर्षित रहते हैं। अर्थात् श्रेणी में एक तत्व से दूसरे तत्व की ओर जाने पर 5f इलेक्ट्रॉनों का परिरक्षण प्रभाव दुर्बल होता है।

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम

प्रश्न 6.1.
कॉपर का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा किया जाता है, परन्तु जिंक का नहीं । व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
कॉपर का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा किया जा सकता है। क्योंकि कॉपर कम क्रियाशील धातु (विद्युत रासायनिक श्रेणी में नीचे ) है, जबकि Zn ( जिंक) अत्यधिक क्रियाशील (विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर) धातु है अतः इसको ZnSO4 विलयन से आसानी से प्रतिस्थापित करना संभव नहीं है इसलिए जिंक का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6.2.
फेन प्लवन विधि में अवनमक की क्या भूमिका है?
उत्तर:
फेन प्लवन विधि में अवनमक एक घटक (अशुद्धि) के साथ संकुल बना लेता है एवं इसे झाग में आने से रोकता है। उदाहरण- NaCN, ZnS के लिए अवनमक का कार्य करता है। PbS के लिए नहीं। अतः किसी अयस्क में PbS तथा ZnS दोनों उपस्थित हैं केवल PbS ही फेन बनाता है अतः इस विधि से PbS को ZnS से पृथक् किया जा सकता है।

प्रश्न 6.3.
अपचयन द्वारा ऑक्साइड अयस्कों की अपेक्षा पाइराइट से ताँबे का निष्कर्षण अधिक कठिन क्यों है?
उत्तर:
कार्बन, सल्फाइड अयस्कों के लिए अच्छा अपचायक नहीं है। जबकि यह ऑक्साइड अयस्कों के लिए अच्छा अपचायक है। अतः अपचयन द्वारा ऑक्साइड अयस्कों की अपेक्षा पाइराइट (सल्फाइड अयस्क) से ताँबे का निष्कर्षण अधिक मुश्किल है तथा अधिकांश सल्फाइडों के विरचन की गिब्ज़ ऊर्जा CS2 के विरचन की गिब्ज ऊर्जा से अधिक होती है। वास्तव में CS2 एक ऊष्माशोषी यौगिक है अतः अपचयन से पहले सल्फाइड अयस्कों का संगत ऑक्साइडों में भर्जन करना उचित रहता है।

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प्रश्न 6.4.
व्याख्या कीजिए-
(1) मंडल परिष्करण
(2) स्तंभ वर्णलेखिकी।
उत्तर:
1. मंडल परिष्करण या जोन परिष्करण – मंडल परिष्करण द्वारा अतिशुद्ध धातु प्राप्त होती है। यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि अशुद्धियों की विलेयता धातु की ठोस अवस्था की अपेक्षा गलित अवस्था में अधिक होती है। इस विधि में अशुद्ध धातु की छड़ के एक किनारे पर एक वृत्ताकार गतिशील हीटर (तापक) लगा होता है। जो छड़ को हर तरफ से घेरे रहता है। हीटर जैसे ही आगे बढ़ता है, गलित मण्डल भी आगे बढ़ता जाता है और गलित से शुद्ध धातु क्रिस्टलित हो जाती है तथा अशुद्धियाँ पास वाले गलित जोन में चली जाती हैं।

इस प्रक्रिया को कई बार दोहराते हैं तथा हीटर को एक ही दिशा में बार-बार चलाते जाते हैं। अशुद्धियाँ छड़ के एक किनारे पर एकत्रित हो जाती हैं, जिसे काटकर अलग कर लेते हैं। इस विधि से अति शुद्ध अर्धचालकों तथा अन्य शुद्ध धातुओं; जैसे – जर्मेनियम, सिलिकॉन, बोरॉन, गैलियम तथा इंडियम को प्राप्त किया जाता है।
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2. वर्णलेखिकी या क्रोमेटोग्रैफी विधि – वर्णलेखिकी (क्रोमेटोग्रफी) किसी मिश्रण के विभिन्न घटकों को पृथक् करने की विधि होती है । वर्णलेखिकी पद ग्रीक भाषा के शब्द क्रोमा अर्थात् रंग से लिया गया है क्योंकि प्रारम्भ में इसे रंगीन पदार्थों को पृथक् करने में प्रयुक्त किया गया था। वर्णलेखिकी, अधिशोषण तथा विभेदी अभिगमन के सिद्धान्त पर आधारित होती है, अर्थात् अधिशोषक पर मिश्रण के विभिन्न घटकों का अधिशोषण भिन्न-भिन्न होता है। मिश्रण को द्रव या गैसीय माध्यम में रखा जाता है जो कि अधिशोषक में से गुजरता है।

स्तम्भ में विभिन्न घटक भिन्न- भिन्न स्तरों पर अधिशोषित हो जाते हैं। इसके पश्चात् अधिशोषित घटक उपयुक्त विलायक (निक्षालक) द्वारा निक्षालित किए जाते हैं। गतिशील माध्यम की भौतिक अवस्था, अधिशोष्य पदार्थ की प्रकृति तथा गतिशील माध्यम के गमन की प्रक्रिया पर निर्भर करती है। वर्णलेखिकी कई प्रकार की होती है- पेपर वर्णलेखिकी, स्तम्भ वर्णलेखिकी, पतली परत वर्णलेखिकी तथा गैस वर्णलेखिकी। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण वर्णलेखिकी स्तम्भ वर्णलेखिकी है।

प्रश्न 6.5.
673K ताप पर C तथा CO में से कौनसा अच्छा अपचायक है ?
उत्तर:
कम ताप जैसे 673K पर △G°( CO, CO2) रेखा, △G°(C, CO2) रेखा के नीचे है, अतः 673K पर C तथा CO में से CO अच्छा अपचायक है।

प्रश्न 6.6.
कॉपर के वैद्युत अपघटनी शोधन में ऐनोड पंक में उपस्थित सामान्य तत्वों के नाम दीजिए। ये वहाँ कैसे उपस्थित होते हैं?
उत्तर:
कॉपर के वैद्युत अपघटनी शोधन में ऐनोड पंक में एन्टीमनी सेलेनियम, टेल्यूरियम, चाँदी, सोना तथा प्लेटिनम इत्यादि धातुएँ उपस्थित होती हैं क्योंकि ये कॉपर की तुलना में कम विद्युत धनी (कम क्रियाशील ) होती हैं अतः इनका ऐनोड पर ऑक्सीकरण नहीं होता तथा ये ऐनोड के नीचे ऐनोड पंक के रूप में जमा हो जाती हैं।

प्रश्न 6.7.
आयरन (लोहे) के निष्कर्षण के दौरान वात्या भट्टी के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली अभिक्रियाओं को लिखिए।
उत्तर:
(i) वात्या भट्टी के ऊपरी भाग में जहाँ ताप परिसर 500- 800K होता है, निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं-
3Fe2O3 + CO → 2Fe3O4 + CO2
Fe3O4 + 4CO → 3FeO + CO2
Fe2O3 + CO → 2FeO + CO2

(ii) वात्या भट्टी के मध्य भाग में जहाँ ताप परिसर 900-1500K होता है, निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं-
C + CO2 → 2CO
FeO + CO → Fe + CO2
CaCO3 → CaO + CO2
CaO + SiO2 → CaSiO3

(iii) वात्या भट्टी के नीचे के भाग में जहाँ उच्च ताप होता है, कोक जलकर CO2 बनाता है जो कोक से अपचयित होकर CO बनाता है।
C + O2 → CO2
CO2 + C → 2CO
FeO + C → Fe + CO

प्रश्न 6.8.
जिंक ब्लेंड से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं को लिखिए।
उत्तर:
जिंक ब्लेंड (ZnS) से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
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प्रश्न 6.9.
कॉपर के धातुकर्म में सिलिका की भूमिका समझाइए ।
उत्तर:
कॉपर के धातुकर्म में सिलिका (SiO2), गालक (Flux ) की तरह कार्य करता है जो कि कॉपर के साथ उपस्थित FeO की अशुद्धि से क्रिया करके उसे स्लेग (कीट) के रूप में पृथक् कर देता है।
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प्रश्न 6.10.
यदि तत्व सूक्ष्म मात्रा में प्राप्त हुआ हो तो शोधन की कौन-सी तकनीक अधिक उपयोगी होगी?
उत्तर:
जब कोई तत्व सूक्ष्म मात्रा में प्राप्त हुआ है तो शोधन की स्तम्भ वर्णलेखिकी विधि अधिक उपयोगी होगी।

प्रश्न 6.11.
यदि किसी तत्व में उपस्थित अशुद्धियों के गुण तत्व से मिलते जुलते हों तो आय शोधन के लिए किस विधि का सुझाव देंगे ?
उत्तर:
जब किसी तत्व में उपस्थित अशुद्धियों के गुण तत्व से मिलते हों तो शोधन के लिए स्तम्भ वर्ण लेखिकी (कॉलम क्रोमेटोग्राफी) विधि का ही प्रयोग करेंगे।

प्रश्न 6.12.
निकल के शोधन की विधि समझाइए |
उत्तर:
निकल (Ni) का शोधन मॉन्ड की विधि द्वारा किया जाता है। इस विधि में निकल को कार्बन मोनोक्साइड के साथ गरम करने से वाष्पशील निकल टेट्राकार्बोनिल संकुल बन जाता है-
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इस संकुल को और अधिक ताप पर गरम करते हैं, तो यह विघटित होकर शुद्ध Ni दे देता है तथा CO पृथक् हो जाती है।
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प्रश्न 6.13.
उदाहरण देते हुए भर्जन व निस्तापन में अंतर बताइए ।
उत्तर:
निस्तापन प्रक्रम में अयस्क ( जलयोजित ऑक्साइड, कार्बोनेट, हाइड्रॉक्साइड आदि) को धातु के गलनांक से नीचे के ताप पर धीरे- धीरे गर्म करते हैं, जिससे वाष्पशील पदार्थ (CO2, H2O) निकल जाते हैं तथा धातु ऑक्साइड बच जाता है। परन्तु भर्जन में सल्फाइड अयस्कों को वायु (O2) की उपस्थिति में धातु के गलनांक से नीचे के ताप पर परावर्तनी भट्टी में तेजी से गर्म करते हैं जिससे सल्फाइड अयस्क ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाते हैं तथा SO2 गैस निकल जाता है।
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प्रश्न 6.14.
ढलवाँ लोहा ( Cast Iron) कच्चे लोहे (Pig Iron) से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर:
ढलवाँ लोहे में लगभग 3% कार्बन होता है जबकि कच्चे लोहे में लगभग 4% कार्बन होता है। कच्चे लोहे के साथ रद्दी लोहा तथा कोक को गलाकर ढलवाँ लोहा बनाया जाता है।

प्रश्न 6.15.
अयस्कों तथा खनिजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
अयस्क ( Ores) – वे खनिज जिनसे धातु का निष्कर्षण आसानी से हो सके तथा आर्थिक रूप से लाभदायक हों उन्हें अयस्क कहते हैं। जैसे कॉपर ग्लांस (Cu2S), क्युपराइट (Cu2O) तथा कॉपर पाइराइटीज (CuFeS2) कॉपर के अयस्क हैं, लेकिन इनमें से कॉपर पाइराइटीज ही कॉपर का अयस्क है।
खनिज (Minerals) – भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक पदार्थ ( यौगिक ) जिन्हें खनन द्वारा प्राप्त किया जाता है उन्हें खनिज कहते हैं।

प्रश्न 6.16.
कॉपर मेट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तक में क्यों रखा जाता है?
उत्तर:
कॉपर मेट में Cu2S तथा FeS उपस्थित होते हैं। परिवर्तक में FeS, FeO में बदल जाता है। इसे दूर करने में सिलिका सहायक होता है क्योंकि FeO सिलिका से क्रिया द्वारा आयरन सिलिकेट (कीट) बनकर पृथक् हो जाता है, अतः परिवर्तक पर सिलिका की परत चढ़ाते हैं।
2FeS + 3O2 → 2FeO + 2SO2
FeO + SiO2 → FeSiO3 आयरन सिलिकेट (कीट)

प्रश्न 6.17.
ऐलुमिनियम के धातु कर्म में क्रायोलाइट की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के धातु कर्म में क्रायोलाइट इसलिए मिलाया जाता है क्योंकि इससे मिश्रण का गलनांक कम हो जाता है तथा विलयन की चालकता बढ़ जाती है।

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प्रश्न 6.18.
निम्न कोटि के कॉपर अयस्कों के लिए निक्षालन क्रिया को कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
कॉपर का निक्षालन अम्ल या बैक्टिरिया ( जीवाणु) द्वारा किया जाता है। विलयन में उपस्थित Cu+2 को आयरन या H2 गैस से क्रिया करवाकर पृथक् किया जाता है।
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प्रश्न 6.19.
CO का उपयोग करते हुए अपचयन द्वारा जिंक ऑक्साइड से जिंक का निष्कर्षण क्यों नहीं किया जाता ?
उत्तर:
Zn के अपचयन के लिए आवश्यक ताप ( 1673K) पर एलिंघम आलेख में \(\Delta_r G^{\ominus}\)(CO, CO2) रेखा, \(\Delta_r G^{\ominus}\)(Zn, ZnO) की रेखा से ऊपर है। अतः इस अभिक्रिया के लिए \(\Delta_r G^{\ominus}\) का मान धनात्मक होगा।
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इसलिए 1673K ताप पर ZnO के लिए CO को अपचायक के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसके लिए अत्यधिक उच्च ताप की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 6.20.
Cr2O3 के विरचन के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान – 540 kJmol-1 है तथा Al2O3 के लिए – 827kJ mol-1 है। क्या Cr2 O3 का अपचयन Al से संभव है?
उत्तर:
Al द्वारा Cr2O3 के अपचयन के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होता है अतः Cr2O3 का अपचयन Al द्वारा संभव है।
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समीकरण ( 2 ) में से समीकरण (1) को घटाने पर,
\(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = 827 – (-540)
= – 287 kJ mol-1

प्रश्न 6.21.
C व CO में से ZnO के लिए कौन-स अपचायक अच्छा है?
उत्तर:
ZnO के अपचयन के लिए C व CO में से C (कार्बन) अच्छा अपचायक है, क्योंकि एलिंघम आलेख में \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) ( C. CO) रेखा, \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\)(Zn, ZnO) की रेखा से नीचे है अतः इस अभिक्रिया के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होगा।
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प्रश्न 6.22.
किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? अपने मत के समर्थन में दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है, यह कथन सत्य है। किसी अपचायक तथा धातु ऑक्साइड के मध्य अभिक्रिया होने के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होना चाहिए। अतः जिस अपचायक से होने वाली अपचयन अभिक्रिया का \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) ऋणात्मक होगा वह अपचायक उस अभिक्रिया के लिए उपयुक्त होगा।
उदाहरण- (i) 1000K पर Al, Cr2O3 का अपचयन कर सकता है लेकिन MgO का नहीं।
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अतः यह अभिक्रिया संभव है।
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अतः यह अभिक्रिया संभव नहीं है।

(ii) 1500K ताप पर कोक (C), ZnO का अपचयन कर सकता है लेकिन CO नहीं ।
ZnO + C → Zn + CO; \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = -Ve
ZnO + CO → Zn + CO2; \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = +Ve

प्रश्न 6.23.
उस विधि का नाम लिखिए जिसमें क्लोरीन सहउत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। क्या होगा यदि NaCl के जलीय विलयन का वैद्युत अपघटन किया जाए?
उत्तर:
निम्नलिखित विधियों में क्लोरीन सहउत्पाद के रूप में प्राप्त होती है-
(i) गलित NaCl का वैद्युत अपघटन (डॉऊ की विधि)
(ii) जलीय NaCl का वैद्युत अपघटन (कॉसनर केलनर विधि)
NaCl के जलीय विलयन का वैद्युत अपघटन करने पर कैथोड पर H2 गैस तथा ऐनोड पर Cl2 गैस प्राप्त होती है तथा विलयन में NaOH (सोडियम हाइड्रॉक्साइड) बनता है।
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प्रश्न 6.24.
ऐलुमिनियम के वैद्युत धातु कर्म में ग्रैफाइट छड़ की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के वैद्युत धातु कर्म में ग्रेफाइट की छड़ ऐनोड की भांति कार्य करती है तथा यह Al2O3 के अपचयन से Al बनाने में सहायक होती है। ग्रेफाइट में उपस्थित कार्बन ऐनोड पर उत्सर्जित O2 से क्रिया द्वारा CO तथा CO2 बनाता है।

प्रश्न 6.25.
उन परिस्थितियों का अनुमान लगाइए जिनमें Al, MgO को अपचयित कर सकता है।
उत्तर:
1350°C (1623K ) से अधिक ताप पर Al, MgO को अपचयित कर सकता है। यह अनुमान \(\Delta \mathrm{rG}^{\Theta}\) तथा T के मध्य आरेख से लगाया जाता है। (पाठ्यनिहित प्रश्न 6.4 का उत्तर भी देखिए )

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प्रश्न 6.1.
सारणी 6.1 में दर्शाए गए अयस्कों में से कौन-से चुंबकीय पृथक्करण विधि द्वारा सांद्रित किए जा सकते हैं।
उत्तर:
वे अयस्क जिनमें एक घटक चुंबकीय (अशुद्धि या अयस्क) होता है, उन्हें इस विधि से सांद्रित किया जा सकता है। जैसे लोहयुक्त अयस्क हेमेटाइट (Fe2O3), मैग्नेटाइट (Fe2O3), सिडेराइट (FeCO3) तथा आयरन पाइराइट (FeS2) |

प्रश्न 6.2.
ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन (leaching) का क्या महत्व है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन द्वारा बॉक्साइट अयस्क में उपस्थित SiO2, Fe2O3 आदि की अशुद्धियों को निष्कासित किया जाता है।

प्रश्न 6.3.
अभिक्रिया
Cr2O3 + 2 Al → Al2 O3 + 2 Cr (△G° = – 421 kJ)
के गिब्ज़ ऊर्जा मान से लगता है कि अभिक्रिया ऊष्मागतिकी के अनुसार संभव है, पर यह कक्ष ताप पर संपन्न क्यों नहीं होती?
उत्तर:
अभिक्रिया Cr2O3 + 2 Al → Al2 O3 + 2 Cr के लिए मानक गिब्ज़ मुक्त ऊर्जा परिवर्तन ऋणात्मक है अतः यह लगता है कि यह अभिक्रिया ऊष्मागतिकी के अनुसार संभव है लेकिन कमरे के ताप पर यह अभिक्रिया नहीं होती क्योंकि इसमें सभी अभिकारक ठोस हैं। अतः इस अभिक्रिया को सम्पन्न होने के लिए निश्चित मात्रा में सक्रियण ऊर्जा की आवश्यकता होती है इसलिए गर्म करना आवश्यक है जिससे अभिकारक पिघल जाते हैं।

प्रश्न 6.4.
क्या यह सत्य है कि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में मैग्नीशियम, Al2 O3 को अपचित कर सकता है और Al, MgO को भी। वे परिस्थितियाँ कौनसी हैं?
उत्तर:
हाँ यह सत्य है कि विशिष्ट परिस्थितियों में मैग्नीशियम Al2 O3 को अपचित कर सकता है और Al, MgO को भी। △G° के T के मध्य आलेख (एलिंघम आलेख) से ज्ञात होता है कि 1623K से कम ताप पर Mg, Al2 O3 को अपचित कर सकता है तथा 1623K से अधिक ताप पर Al, MgO का अपचयन कर सकता है क्योंकि Al तथा Mg के वक्र 1623K पर एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित कर रहे हैं।

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