HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

HBSE 10th Class Hindi संस्कृति Textbook Questions and Answers

Chapter 17 संस्कृति HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 1.
लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?
उत्तर-
लेखक का मत है कि रूढ़िवादी अपनी रूढ़ियों से इस प्रकार बँधे हुए हैं कि हर पल, हर क्षण बदलते इस संसार से पिछड़ जाते हैं। वे अपनी बँधी हुई सीमाओं तक ही सीमित रह जाते हैं। ऐसे लोग अपनी संकीर्ण सोच और संकुचित दृष्टिकोण के कारण सभ्यता एवं संस्कृति के लोककल्याणकारी पक्ष नहीं देख पाते तथा अपने व्यक्तिगत, जातिगत व वर्गगत हितों की रक्षा में लगे रहते हैं। वे इसे अपनी सभ्यता और संस्कृति मान बैठते हैं। यद्यपि सच्चाई यह है कि सभ्यता और संस्कृति में बिना किसी वर्गगत, जातिगत यहाँ तक कि धर्मगत भावना का कोई स्थान नहीं होता, उसमें पूरी मानवता के कल्याण की भावना रहती है। यही कारण है कि अब तक लोगों की सभ्यता और संस्कृति के प्रति सही सोच नहीं बन पाई है।

HBSE 10th Class Hindi Kshitij Chapter 17 संस्कृति प्रश्न 2.
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर-
आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज है क्योंकि वह मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता को पूरी करती है। वह भोजन पकाने में काम आती है और भोजन से मनुष्य की भूख समाप्त हो जाती है। आज भी इस खोज का महत्त्व सर्वोप्रिय है। आज भी हम हर सांस्कृतिक कार्य के आरंभ में दीप जलाते हैं। सर्दियों में तो आग का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। ठंडी रात में जहाँ आग से तपन मिलती है वहीं अँधेरा भी दूर भाग जाता है। आदिम युग में केवल पेट की भूख को दूर करने के लिए आग की खोज की भावना रही होगी। तत्पश्चात् आग के अन्य लाभ सामने आने पर इसे देवता तुल्य पूजा जाने लगा था। आज भी आग का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

संस्कृति Chapter 17 HBSE 10th Class Hindi Kshitij प्रश्न 3.
वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा जा सकता है?
उत्तर-
जो व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक से मानवता को किसी नए तथ्य के दर्शन कराता है, अर्थात् निःस्वार्थ भाव से मानव-कल्याण के लिए कार्य करता है, उसे ही वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति’ कहते हैं। ऐसा व्यक्ति आंतरिक प्रेरणा से नए-नए आविष्कार करता रहता है।

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प्रश्न 4.
न्यूटन को संस्कृत मानव कहने के पीछे कौन से तर्क दिए गए हैं? न्यूटन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों एवं ज्ञान की कई दूसरी बारीकियों को जानने वाले लोग भी न्यूटन की तरह संस्कृत नहीं कहला सकते, क्यों?
उत्तर-
न्यूटन एक महान् वैज्ञानिक थे। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया था, जो उनसे पहले किसी ने नहीं किया था, संस्कृत मानव वह कहलवाएगा जो बिना किसी भेदभाव के सबके लिए नया काम करेगा। किसी पूर्व खोजी हुई वस्तु या सिद्धांत में परिमार्जन करने वाले व्यक्ति को संस्कृत मानव नहीं कहा जाता क्योंकि वह पहले आविष्कृत काम को ही आगे बढ़ा रहा है। न्यूटन के सिद्धांत की कोई कितनी ही बारीकियाँ क्यों न जान ले परंतु संस्कृत कहलवाने का अधिकारी तो उस सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाला व्यक्ति ही रहेगा। अन्य व्यक्ति सभ्य हो सकते हैं, किंतु संस्कृत नहीं।।

प्रश्न 5.
किन महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर-
आदिम युग में मनुष्य जंगलों में नंगा घूमता था। उसे सर्दी-गर्मी के कष्टों को सहना पड़ता था। इन्हीं कष्टों से बचने के कारण ही मनुष्य ने सुई-धागे का आविष्कार किया होगा। इसके अतिरिक्त अपने शरीर को ढकने व सजाने के भाव के कारण भी उसे ऐसी वस्तु की तलाश होगी जो दो वस्तुओं को जोड़ सके। किंतु दूसरा विचार गौण प्रतीत होता है और पहला प्रथम।

प्रश्न 6.
मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है।” किन्हीं दो प्रसंगों का उल्लेख करें जब-
(क) मानव संस्कृति को विभाजित करने की चेष्टाएँ की गईं।
(ख) जब मानव संस्कृति ने अपने एक होने का प्रमाण दिया।
उत्तर-
(क) मानव संस्कृति अविभाज्य है परंतु कभी-कभी मानव ने अज्ञानतावश संस्कृति को भी धर्म व सामाजिक विश्वासों के आधार पर विभाजित करने का दुस्साहस किया है। हिंदू-मुस्लिम भावनाओं को भड़काकर लड़ाई-झगड़े करवाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना आज के नेताओं का आम कार्य हो गया है। आजकल आरक्षण के नाम पर संस्कृति को विभाजित किया जाता है।

(ख) जब-जब भी कुछ स्वार्थी लोगों ने संस्कृति को विभाजित करने का प्रयास किया तब-तब संस्कृति के वे तत्त्व उभरकर सामने आते हैं, जो उसे एक बनाए रखते हैं। यथा ‘त्याग’ संस्कृति का प्रमुख तत्त्व है। इसे सब मानते हैं। त्यागशील व्यक्ति किसी भी धर्म व संस्कृति का हो वह सबके लिए काम करता है। हिंसा के सभी विरोधी हैं। जापान पर परमाणु बम के आक्रमण का संपूर्ण विश्व ने एक स्वर में विरोध किया था। रसखान ने मुसलमान होकर कृष्ण की आराधना की। बिस्मिल्ला खाँ भी मुसलमान था किंतु बालाजी से आशीर्वाद लेकर संगीत का सम्राट बन गया। सभी हिंदू लोग गुरुद्वारों में जाकर माथा टेकते हैं। पीर-पैगंबरों के सामने जाकर मन्नतें माँगते हैं। अतः संस्कृति मानवीय गुण है। इसे विभाजित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? ,
उत्तर-
लेखक प्रश्न करता है मानव की जो योग्यता, भावना, प्रेरणा और प्रवृत्ति उससे विनाशकारी हथियारों का निर्माण करवाती है, उसे हम संस्कृति कैसे कहें? वह तो आत्म-विनाश कराती है। लेखक कहता है ऐसी भावना और योग्यता को असंस्कृति कहना चाहिए।

रचना और अभिव्यक्ति-

प्रश्न 8.
लेखक ने अपने दृष्टिकोण से सभ्यता और संस्कृति की एक परिभाषा दी है। आप सभ्यता और संस्कृति के बारे में क्या सोचते हैं? लिखिए।
उत्तर-
मेरे विचार से संस्कृति वह है जो मानवता के हित के लिए किया गया कार्य हो। कर्म हमारे विचारों के अनुसार ही घटित होते हैं। जो ज्ञान या विचार हमारे कर्मों को श्रेष्ठ व महान् बनाएँ वे ही संस्कृति की संज्ञा प्राप्त कर सकते हैं। संस्कृति के सामने संपूर्ण मानवता एक है। उसमें किसी धर्म व जातिगत भेदभाव नहीं होते। संस्कृति ही हमारी सभ्यता को श्रेष्ठ बनाती है। कहा भी गया है कि सभ्यता संस्कृति का परिणाम होता है। जो समाज जितना सुसंस्कृत होगा वह उतना ही सुसभ्य भी होगा।

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भाषा-अध्ययन-

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का भेद भी लिखिए-
गलत-सलत
आत्म-विनाश
महामानव
पददलित
हिंदू- मुसलिम
यथोचित
सुलोचना
उत्तर-
HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति 1

पाठेतर सक्रियता

“स्थूल भौतिक कारण ही आविष्कारों का आधार नहीं है।” इस विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उन खोजों और आविष्कारों की सूची तैयार कीजिए जो आपकी नज़र में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। इन्हें विद्यार्थी स्वयं करें।

HBSE 10th Class Hindi संस्कृति Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखक ने किस वस्तु को रक्षणीय और वांछित नहीं कहा है?
उत्तर-
लेखक ने कहा है कि संस्कृति के नाम से जिस कूड़े-करकट के ढेर का बोध होता है, वह न संस्कृति है और न रक्षणीय वस्तु है। ऐसी वस्तुएँ वांछनीय भी नहीं हैं। ऐसी वस्तु की रक्षा के लिए किसी प्रकार की दलबंदी करने की आवश्यकता भी नहीं है।

प्रश्न 2.
संस्कृत व्यक्ति के वंशज संस्कृत होंगे या सभ्य? सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
लेखक के अनुसार संस्कृत व्यक्ति के वंशज सभ्य तो होंगे, किंतु संस्कृत नहीं। संस्कृत होने के लिए नई-नई वस्तुओं की खोज करने की योग्यता, प्रेरणा और प्रवृत्ति का होना आवश्यक है। लेखक का यह विचार संकीर्ण एवं एकपक्षीय है।

प्रश्न 3.
संस्कृति अविभाज्य कैसे है? सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
संस्कृति एक विचार है, उसे जातिगत व धर्मगत आधारों पर नहीं बाँटा जा सकता। जिस व्यक्ति ने आग या सुई-धागे का आविष्कार किया, वह किसी एक जाति या धर्म का न होकर मानव मात्र के लिए है। इसलिए संस्कृति को बाँटा नहीं जा सकता। वह अविभाज्य है।

प्रश्न 4.
सभ्यता या संस्कृति के विनाश का खतरा कब और कैसे होता है?
उत्तर-
सभ्यता या संस्कृति खतरे में तब पड़ जाती है जब किसी जाति अथवा देश पर अन्य लोगों की ओर से विनाशकारी आक्रमण होते हैं। हिटलर के आक्रमण से मानव संस्कृति खतरे में पड़ गई थी। धर्म, जाति, संप्रदाय व वर्ग भावना से प्रेरित होकर किए जाने वाले दंगों से भी सभ्यता एवं संस्कृति के खतरे बढ़ जाते हैं।

प्रश्न 5.
पेट की भूख शांत होने और तन ढकने के पश्चात् मानव की क्या स्थिति होती है?
उत्तर-
जब मानव का पेट भर जाता है और उसका तन भी ढका होता है, तो वह खुले आकाश के नीचे लेटा हुआ आकाश में जगमगाते हुए तारों को देखकर यह जानने के लिए बेचैन हो उठता है कि यह तारों से भरा हुआ औंधा थाल कैसे लटका हुआ है। इसका मूल कारण क्या है। मानव कभी भी निट्ठला नहीं बैठ सकता। मानव मन की आंतरिक प्रेरणा ही उसे कुछ नया करने या वर्तमान वस्तुओं के रहस्य या सत्य को जानने के लिए प्रेरित करती रहती है। आंतरिक प्रेरणा ही वह प्रेरणा है जो मानव को जन-कल्याण के कार्य करने के लिए व्याकुल बना देती है।

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विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘संस्कृति’ नामक निबंध के संदेश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने संस्कृति और असंस्कृति के अंतर को स्पष्ट करते हुए बताया है कि महान् कार्य करना, जिनसे मानवता मात्र का कल्याण संभव है, वह संस्कृति है। इसके विपरीत लूट-पाट, भ्रष्टाचार, रिश्वत, धोखा-धड़ी, हर प्रकार की अहिंसा, अविश्वास आदि सभी कार्य संस्कृति नहीं हो सकते, वे असंस्कृति के कार्य हैं। इससे स्पष्ट है कि लेखक ने बताया है कि हमें सदा संस्कृत बनने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रकार सभ्यता और असभ्यता के अंतर को स्पष्ट करते हुए हमें सदा सभ्य बनने की प्रेरणा दी है। लेखक का मत है कि हम जितने अधिक सुसंस्कृत होंगे, उतने ही सभ्य होंगे। इससे पता चलता है कि इस पाठ में सुसंस्कृत एवं सुसभ्य बनने पर बल दिया गया है।

प्रश्न 7.
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने किस-किस विचारधारा का पक्ष लिया है और किसका विरोध किया है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने लेनिन व कार्लमार्क्स की साम्यवादी विचारधारा का पक्ष लिया है। कहा गया है कि लेनिन ने दूसरों की भूख को दूर करने के लिए डबलरोटी के सूखे टुकड़े बचाकर रखे और कार्लमार्क्स ने मजदूरों को सुखी देखने के लिए सारा जीवन दुखों में बिताया। इसी प्रकार संसार के दुखों से मनुष्य को निजात दिलाने के लिए सिद्धार्थ ने संसार को त्यागकर तपस्या की। इसके साथ-साथ उन्होंने हिंदी-संस्कृति या विचारधारा को परंपरावादी या पुरानी रूढ़ियाँ कहकर उसका विरोध किया है।

इसी प्रकार संस्कृति या संस्कृत व्यक्ति तथा सभ्य व्यक्ति का पक्ष लिया है तथा असंस्कृत और असभ्य व्यक्ति का विरोध किया है। लेखक ने विरोध के कारण नहीं बताए।

प्रश्न 8.
पठित पाठ के आधार पर सभ्यता और संस्कृति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
किसी जाति अथवा राष्ट्र की वे सब बातें जो उसके शिक्षित सहभावनायुक्त एवं उन्नत होने के सूचक ही उसकी सभ्यता कहलाती है अर्थात् मानव-जीवन के बाहरी चाल-चलन व्यवहार को सभ्यता का नाम दिया गया है। किन्तु संस्कृति का सम्बन्ध किसी जाति व राष्ट्र की उन सब बातों से होता है जो उसकी मन, रुचि, आचार-विचार, कला-कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास होता है। सभ्यता का विकास संस्कृति पर ही निर्भर करता है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘संस्कृति’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर-
‘संस्कृति’ पाठ के लेखक भदंत आनंद कौसल्यायन हैं।

प्रश्न 2.
भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म सन् 1905 में हुआ था।

प्रश्न 3.
भदंत आनंद कौसल्यायन ने किस धर्म को अपनाया था?
उत्तर-
भदंत आनंद कौसल्यायन ने बौद्ध धर्म को अपनाया था।

प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार कौन संस्कृत व्यक्ति कहलाता है?
उत्तर-
लेखक के अनुसार आविष्कार करने वाला व्यक्ति संस्कृत व्यक्ति कहलाता है।

प्रश्न 5.
‘शीतोष्ण’ से बचने के लिए मानव ने किसकी खोज की थी?
उत्तर-
शीतोष्ण’ से बचने के लिए मानव ने सुई-धागे की खोज की थी।

प्रश्न 6.
संस्कृत व्यक्ति के कार्यों के पीछे कौन-सी भावना रहती है?
उत्तर-
संस्कृत व्यक्ति के कार्यों के पीछे जन-कल्याण की भावना रहती है।

प्रश्न 7.
लेखक ने मनीषी किसे कहा है?
उत्तर-
जो मन की जिज्ञासा की तृप्ति के लिए प्राकृतिक रहस्यों को जानना चाहते हों, लेखक ने उसे मनीषी कहा है।

प्रश्न 8.
सिद्धार्थ ने बड़े होकर किस धर्म की स्थापना की थी?
उत्तर-
सिद्धार्थ ने बड़े होकर बौद्ध धर्म की स्थापना की थी।

प्रश्न 9.
लेखक ने असंस्कृत व्यक्ति किसे कहा है?
उत्तर-
मानव-कल्याण की भावना से हीन व्यक्ति को असंस्कृत व्यक्ति कहा है।

प्रश्न 10.
मानव संस्कृति कैसी वस्तु है?
उत्तर-
मानव संस्कृति अविभाज्य वस्तु है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भदंत आनंद कौसल्यायन किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) हरियाणा
(B) उत्तर प्रदेश
(C) मध्य प्रदेश
(D) राजस्थान
उत्तर-
(A) हरियाणा

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प्रश्न 2.
भदंत आनंद कौसल्यायन ने कहाँ से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) बनारस से
(B) लखनऊ से
(C) लाहौर से
(D) चंडीगढ़ से
उत्तर-
(C) लाहौर से

प्रश्न 3.
श्री भदंत आनंद कौसल्यायन जी का निधन कब हुआ?
(A) सन् 1980 में
(B) सन् 1985 में
(C) सन् 1988 में
(D) सन् 1990 में
उत्तर-
(C) सन् 1988 में

प्रश्न 4.
श्री भदंत आनंद कौसल्यायन का बचपन का क्या नाम था?
(A) हरिराम
(B) हरनाम दास
(C) हरदेव सिंह
(D) हरिप्रसाद
उत्तर-
(B) हरनाम दास

प्रश्न 5.
भदंत आनंद कौसल्यायन किस महान कांग्रेसी नेता से प्रभावित थे और उन्होंने अपने जीवन का लंबा समय उनके साथ बिताया?
(A) जवाहर लाल नेहरू
(B) लाल बहादुर शास्त्री
(C) सरदार वल्लभ भाई पटेल
(D) महात्मा गांधी
उत्तर-
(D) महात्मा गांधी

प्रश्न 6.
अपने पूर्वजों की खोज की गई वस्तु को अनायास प्राप्त करने वाला व्यक्ति क्या कहलाता है?
(A) बुद्धिमान
(B) ज्ञानवान
(C) सभ्य
(D) संस्कृत
उत्तर-
(C) सभ्य

प्रश्न 7.
संसार के मज़दूरों को सुखी देखने का सपना किसने देखा था?
(A) लेनिन ने
(B) रूसो ने
(C) कार्ल मार्क्स ने
(D) गाँधी ने
उत्तर-
(C) कार्ल मार्क्स ने

प्रश्न 8.
तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता को सुख से रखने के लिए घर का त्याग किसने किया?
(A) सिद्धार्थ ने
(B) अशोक ने
(C) लेनिन ने
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(A) सिद्धार्थ ने

प्रश्न 9.
रूस का भाग्य-विधाता माना गया है
(A) लेनिन
(B) मार्क्स
(C) सिद्धार्थ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(A) लेनिन

प्रश्न 10.
जो योग्यता किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है वह क्या कहलाती है?
(A) विश्वास
(B) सभ्यता
(C) धर्म
(D) संस्कृति
उत्तर-
(D) संस्कृति

प्रश्न 11.
नई चीज़ की खोज कौन करता है?
(A) सभ्य व्यक्ति
(B) संस्कृत व्यक्ति
(C) जंगली व्यक्ति
(D) प्रवीण व्यक्ति
उत्तर-
(A) सभ्य व्यक्ति

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प्रश्न 12.
‘मोती भरा थाल’ किसे कहा गया है?
(A) मोतियों से भरी थाली को
(B) चाँद-तारों को
(C) तारों से भरे आकाश को
(D) घास पर चमकती हुई ओस की बूंदों को
उत्तर-
(C) तारों से भरे आकाश को

प्रश्न 13.
लेखक के अनुसार मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
(A) चिन्तनशील
(B) आलसी
(C) लालची
(D) निठल्ला
उत्तर-
(A) चिन्तनशील

प्रश्न 14.
संस्कृति का संबंध मानव के किस जीवन से होता है?
(A) भौतिक जीवन से
(B) बाहरी जीवन से
(C) सामाजिक जीवन से
(D) आंतरिक जीवन से
उत्तर-
(D) आंतरिक जीवन से

प्रश्न 15.
कौन डबल रोटी के सूखे टुकड़े स्वयं न खाकर दूसरों को खिला देता था?
(A) कार्ल मार्क्स
(B) महात्मा गांधी
(C) लेनिन
(D) सिद्धार्थ
उत्तर-
(C) लेनिन

प्रश्न 16.
संसार के मजदूरों को सुखी देखने का स्वप्न देखते हुए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन किसमें बिता दिया?
(A) दुख
(B) सुख
(C) गरीबी
(D) कल्पना
उत्तर-
(A) दुख

प्रश्न 17.
प्रस्तुत पाठ के अनुसार सिद्धार्थ ने कितने वर्ष पूर्व घर का त्याग किया?
(A) 4500
(B) 3500
(C) 1500
(D) 2500
उत्तर-
(D) 2500

प्रश्न 18.
लेखक ने सभ्यता को किसका परिणाम बताया है?
(A) राजनीति का
(B) धर्म का
(C) संस्कृति का
(D) शिक्षा का
उत्तर-
(C) संस्कृति का

प्रश्न 19.
लेखक ने मानव सभ्यता किसे कहा है?
(A) मानव के बाह्य व्यवहार को
(B) मानव की जन-कल्याण की भावना को
(C) मानव की हिंसात्मक प्रवृत्ति को
(D) मानव की नई खोज को
उत्तर-
(A) मानव के बाह्य व्यवहार को

प्रश्न 20.
लेखक ने असभ्यता की जननी किसे कहा है?
(A) सभ्यता को
(B) संस्कृति को
(C) असंस्कृति को
(D) लालची प्रवृत्ति को
उत्तर-
(C) असंस्कृति को

प्रश्न 21.
मानव संस्कृति कैसी वस्तु है?
(A) अविभाज्य
(B) विभाज्य
(C) स्थूल
(D) अस्थायी
उत्तर-
(A) अविभाज्य

प्रश्न 22.
यह संसार परिवर्तित होता है
(A) शताब्दियों में
(B) प्रतिवर्ष
(C) क्षण-क्षण
(D) कभी-कभी
उत्तर-
(C) क्षण-क्षण

प्रश्न 23.
आग के आविष्कार की पृष्ठभूमि में मूल तत्त्व का नाम है
(A) बारूद
(B) पेट की ज्वाला
(C) सौर ऊर्जा
(D) बड़वानल
उत्तर-
(B) पेट की ज्वाला

प्रश्न 24.
सिद्धार्थ के गृह-त्याग का सर्वोच्च लक्ष्य था-
(A) निर्वाण
(B) मानव-सुख
(C) निर्जरा
(D) विपश्यना
उत्तर-
(B) मानव-सुख

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प्रश्न 25.
संस्कृति के दायरे में न्यूटन थे-
(A) राजनीतिज्ञ
(B) संगीतज्ञ
(C) योगाचार्य
(D) संस्कृत
उत्तर-
(D) संस्कृत

संस्कृति गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) एक संस्कृत व्यक्ति किसी नयी चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है और उसकी संतान जिसे अपने पूर्वज से वह वस्तु अनायास ही प्राप्त हो गई है, वह अपने पूर्वज की भाँति सभ्य भले ही बन जाए, संस्कृत नहीं कहला सकता। एक आधुनिक उदाहरण लें। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। आज के युग का भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण से तो परिचित है ही, लेकिन उसके साथ उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है, जिनसे शायद न्यूटन अपरिचित ही रहा। ऐसा होने पर भी हम आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी को न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य भले ही कह सके; पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कह सकते। [पृष्ठ 129]

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प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ‘संस्कृत व्यक्ति’ किसे कहा गया है?
(ग) संस्कृत व्यक्ति की संतान के संस्कृत न होने का क्या कारण बताया गया है?
(घ) संस्कृत व्यक्ति की संतान लेखक की दृष्टि में क्या और क्यों है?
(ङ) लेखक ने संस्कृत व्यक्ति के कौन-से गुण बताए हैं?
(च) न्यूटन कौन था? उसने क्या आविष्कार किया था?
(छ) सभ्य विद्यार्थी किसे कहा जा सकता है?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) संस्कृत व्यक्ति उसे कहा गया है, जो अपनी प्रवृत्ति, योग्यता और प्रेरणा के आधार पर कोई नई खोज कर सकता है। उदाहरणार्थ न्यूटन एक संस्कृत व्यक्ति था। उसने अपनी प्रवृत्ति एवं योग्यता के बल पर गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज की थी।

(ग) संस्कृत व्यक्ति की संतान को संस्कृत व्यक्ति इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि संस्कृत व्यक्ति जिस नई वस्तु का आविष्कार करता है, उसकी संतान को वह वस्तु बिना प्रयास के ही उत्तराधिकार में मिल जाती है। उसे उस वस्तु की खोज के लिए अथवा प्राप्त करने के लिए कोई पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता। इसलिए वह संस्कृत व्यक्ति नहीं हो सकता।

(घ) लेखक की दृष्टि में संस्कृत व्यक्ति की संतान सभ्य है, क्योंकि उसने न तो किसी सभ्य के दर्शन किए और न ही अपनी बुद्धि व विवेक के बल पर किसी नई वस्तु की खोज की है। उसने तो पूर्वजों द्वारा की गई आविष्कृत वस्तु को उत्तराधिकारी के रूप में प्राप्त करके उसका प्रयोग या उपयोग किया है।

(ङ) लेखक ने संस्कृत व्यक्ति होने के लिए बताया है कि वह प्रखर बुद्धि वाला हो, विचारवान हो, परिश्रमी, त्यागशील और मानवतावादी हो। उसमें कुछ नया करने की इच्छा शक्ति का होना भी नितांत आवश्यक है। उसके सभी कार्यों के पीछे जनकल्याण की भावना निहित रहती है। वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने की अपेक्षा दूसरों की सहायता करने में अधिक विश्वास रखता है।

(च) न्यूटन एक वैज्ञानिक था। उसने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज की थी। उसके सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण के बल पर अपने परिवेश की सारी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है।

(छ) सभ्य विद्यार्थी कहलवाने के लिए आवश्यक है कि वह संस्कृत लोगों द्वारा दिए गए ज्ञान का प्रयोग करने वाला हो। संस्कृत लोगों के द्वारा की गई खोजों का सदुपयोगकर्ता होना चाहिए। जो विद्यार्थी इतना भी नहीं करते, वे न तो सभ्य कहलवाएँगे और न संस्कृत।

(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बताया है कि वही व्यक्ति संस्कृत व्यक्ति है जो समाज के हित के लिए कुछ नया करता है। उसकी यह उपलब्धि उसकी संतान को अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के विवेक में किसी भी नए तथ्य की खोज हो, वही संस्कृत व्यक्ति कहलाता है। उसकी इस खोज को उसकी संतान अनायास ही प्राप्त कर लेती है। वे अपने पूर्वजों की भाँति सभ्य भले ही हो, किंतु संस्कृत नहीं कहला सकती। इस विषय में गुरुत्वाकर्षण की खोज का उदाहरण लिया जा सकता है। न्यूटन ने इस सिद्धांत की खोज की थी। इसके अतिरिक्त भी उन्हें और भी बातों का ज्ञान था, जिनसे केवल वही परिचित थे। आज के विद्यार्थी भले ही सभ्य हों, किंतु न्यूटन जितने संस्कृत नहीं कहला सकते। कहने का भाव है कि जो समाज के लिए कुछ नया करते हैं, वे संस्कृत हैं तथा जो उसे प्राप्त कर समाज-हित में उसका प्रयोग करते हैं, वे सभ्य हैं।

(2) आग के आविष्कार में कदाचित पेट की ज्वाला की प्रेरणा एक कारण रही। सुई-धागे के आविष्कार में शायद शीतोष्ण से बचने तथा शरीर को सजाने की प्रवृत्ति का विशेष हाथ रहा। अब कल्पना कीजिए उस आदमी की जिसका पेट भरा है, जिसका तन ढंका है, लेकिन जब वह खुले आकाश के नीचे सोया हुआ रात के जगमगाते तारों को देखता है, तो उसको केवल इसलिए नींद नहीं आती क्योंकि वह यह जानने के लिए परेशान है कि आखिर यह मोती भरा थाल क्या है? पेट भरने और तन ढंकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं है। पेट भरा और तन ढंका होने पर भी ऐसा मानव जो वास्तव में संस्कृत है, निठल्ला नहीं बैठ सकता। हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है जिन्होंने तथ्य-विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं, बल्कि उनके अपने अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात के तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था। [पृष्ठ 129]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक की दृष्टि में मनुष्य ने आग का आविष्कार क्यों किया होगा?
(ग) सुई-धागे के आविष्कार के पीछे मनुष्य की कौन-सी भावना काम कर रही होगी?
(घ) ‘मोती भरे थाल’ से क्या तात्पर्य है और उसके रहस्य को जानने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को क्या कहा गया है?
(ङ) मनुष्य किस प्रकार का प्राणी है?
(च) हमारी सभ्यता का अधिकांश भाग किन संस्कृत आदमियों ने निर्मित किया है?
(छ) मनीषी किसे कहा गया है? वे किस प्रेरणा के बल पर ज्ञान की प्राप्ति करते हैं?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) आदि मानव जंगलों में रहता हुआ कंद-मूल, फल आदि खाकर अपना पेट भरता था। किंतु इससे उसकी भूख शांत नहीं होती थी। पेट की भूख को शांत करने के लिए उसने आग का आविष्कार किया होगा।

(ग) सर्दी-गर्मी के कष्ट से बचने के लिए मनुष्य ने अपने को ढंकना चाहा होगा। उसने अपनी इसी इच्छापूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार किया होगा।

(घ) ‘मोती भरे थाल’ से तात्पर्य’ आकाश में खिले तारों से है। जो लोग पेट भरा और तन ढका होने पर भी जागकर तारों के रहस्य को जानने की इच्छा रखते हैं, उन्हें लेखक ने मनीषी कहा है। उन्हें वास्तविक संस्कृत मनुष्य की संज्ञा दी गई है।

(ङ) मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। उसके मन में सदा कुछ-न-कुछ जानने की इच्छा बनी रहती है। वह अपनी इसी इच्छा की पूर्ति हेतु कुछ-न-कुछ नया करता रहता है। वह कभी विचारहीन होकर नहीं बैठ सकता। वह सदा नए-नए कार्य करता रहता है।

(च) आज हम जिस सभ्यता में जी रहे हैं, उसके अधिकांश भाग का निर्माण ऐसे संस्कृत व्यक्तियों ने किया है, जो इस भौतिक संसार को सुखी और सुविधापूर्ण बनाना चाहते थे। उन्होंने ही आग, सुई-धागा, परिवहन के साधन, बिजली व बिजली से चलित मशीनों का आविष्कार किया है।

(छ) मनीषी ऐसे संस्कृत व्यक्तियों को कहा गया है, जो भौतिक आवश्यकता की अपेक्षा मन की जिज्ञासा की तप्ति हेतु प्रकृति के रहस्यों को जानना चाहते हैं। सूक्ष्म और अज्ञात तथ्यों को जानना उनका स्वाभाविक गुण होता है। वे अपने मन की सहज सांस्कृतिक प्रेरणा के बल पर ज्ञान की खोज करते हैं। वे भौतिक उपकरणों को बनाने में अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं करते।

(ज) आशय/व्याख्या-इस गद्यांश में लेखक ने उन कारणों पर प्रकाश डाला है जिनकी वजह से व्यक्ति ने नए-नए आविष्कार किए हैं। लेखक का मानना है कि पेट की भूख को शांत करने के लिए ही आग का आविष्कार किया गया होगा। इसी प्रकार शरीर को गर्मी-सर्दी से बचाने हेतु ही सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा। किंतु सभी नई खोजों पर यह बात लागू नहीं होती। एक व्यक्ति का पेट भरा हुआ है, वस्त्र भी उसने पहने हुए हैं और वह रात को लेट कर आसमान में जगमगाते हुए तारों को देखता है तो केवल इसलिए नहीं कि उसे नींद नहीं आती, अपितु वह यह सोचता है कि वास्तव में यह तारों से भरा हुआ आकाश है क्या चीज? पेट भरने और शरीर को ढंकने की इच्छा को संस्कृति नहीं कह सकते। हमें हमारी सभ्यता का बड़ा भाग ऐसे ही लोगों से प्राप्त हुआ है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रमुख रहा है। किंतु समाज में कुछ ऐसे मनीषी भी रहे हैं जिन्होंने तथ्य विशेष की खोज भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति से प्रेरित होकर नहीं की, अपितु उनको अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात को तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान को प्रस्तुत करता है। कहने का भाव है कि मनीषी भौतिक आवश्यकताओं की अपेक्षा मन की जिज्ञासा की तृप्ति हेतु प्रकृति के रहस्यों को जानना चाहते हैं। प्रकृति के अज्ञात तथ्यों को जानना चाहते हैं। प्रकृति के अज्ञात तथ्यों को जानना उनका स्वाभाविक गुण होता है। वे अपने इसी गुण के कारण नई-नई खोज करते हैं, तभी लेखक ने उन्हें संस्कृत व्यक्ति कहा है।

(3) भौतिक प्रेरणा, ज्ञानेप्सा-क्या ये दो ही मानव संस्कृति के माता-पिता हैं? दूसरे के मुँह में कौर डालने के लिए जो अपने मुँह का कौर छोड़ देता है, उसको यह बात क्यों और कैसे सूझती है? रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लिए जो माता बैठी रहती है, वह आखिर ऐसा क्यों करती है? सुनते हैं कि रूस का भाग्यविधाता लेनिन अपनी डैस्क में रखे हुए डबल रोटी के सूखे टुकड़े स्वयं न खाकर दूसरों को खिला दिया करता था। वह आखिर ऐसा क्यों करता था? संसार के मजदूरों को सूखी देखने का स्वप्न देखते हुए कार्ल मार्क्स ने अपना सारा जीवन दुख में बिता दिया। और इन सबसे बढ़कर आज नहीं, आज से ढाई हज़ार वर्ष पूर्व सिद्धार्थ ने अपना घर केवल इसलिए त्याग दिया कि किसी तरह तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता सुख से रह सके। [पृष्ठ 129-130]

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मानव संस्कृति का जन्म किन-किन भावों के कारण होता है?
(ग) दूसरों के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले व्यक्तियों में लेखक ने किन-किन महापुरुषों का नामोल्लेख किया है?
(घ) संस्कृति के कौन-से तीन रूप गिनाए गए हैं?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(च) सिद्धार्थ का प्रमुख गुण क्या था?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति।
लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) मानव संस्कृति का जन्म भौतिक प्रेरणा, आग व सुई-धागे के आविष्कार, ज्ञानेप्सा-तारों आदि के रहस्य जानने की इच्छा, अन्य लोगों के लिए त्याग की भावना आदि कारणों से हुआ है। इनके अतिरिक्त मानव की बौद्धिक इच्छा एवं शक्ति भी मानव संस्कृति को जन्म देने में सहयोगी सिद्ध हुई है।

(ग) सर्वस्व त्यागने वालों में कवि ने निम्नलिखित महानुभावों के नामों का उल्लेख किया है-

  • लेनिन-जो अपने डेस्क में रखे डबल रोटी के सूखे टुकड़े भी दूसरों को खिला देता था।
  • कार्ल मार्क्स-जिसने मजदूरों के हक के लिए सारा जीवन दुःख में बिता दिया।
  • सिद्धार्थ-जिसने तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता के सुख के लिए अपना घर-बार त्याग दिया।

(घ) संस्कृति के निम्नलिखित तीन रूप गिनाए गए हैं-

  • भौतिक प्रेरणा (पेट की भूख व तन को ढकने अर्थात् आग व सुई-धागा) के आविष्कार वाली संस्कृति।
  • ज्ञानेप्सा–तारों के संसार को जानने की इच्छा से उत्पन्न संस्कृति।
  • सर्वस्व त्याग कराने वाली संस्कृति।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में मानव संस्कृति की उपलब्धि के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डाला गया है।
लेखक ने संस्कृति निर्माण में सक्रिय प्रमुख तत्त्वों का भी उद्घाटन किया है। संस्कृति के प्रकार पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने उन महान् पुरुषों का उल्लेख किया, जिन्होंने संस्कृति निर्माण में महान् योगदान दिया है। लेखक का मूल उद्देश्य मानव को संस्कृत मानव बनने की प्रेरणा देना है।

(च) सिद्धार्थ एक राजकुमार था। वह चाहता तो अपना सारा जीवन ऐशो-आराम में व्यतीत कर सकता था, किंतु उसने इस संसार के दुःखी लोगों के लिए अपना आराम का जीवन त्यागकर घोर तपस्या की और उसके फलस्वरूप चिंतन-मनन को उपदेश के रूप में संसार के लोगों तक पहुँचाया जिससे उनका जीवन सुखी बन सके।

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने मानव संस्कृति के जन्म के कारणों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि मानव संस्कृति का जन्म भौतिक प्रेरणा, आग या सूई-धागे के आविष्कार अथवा ज्ञानेप्सा तारों आदि के रहस्य जानने की इच्छा तथा अन्य लोगों के लिए त्याग भावना आदि कारणों से होता है। इनके अतिरिक्त मानव की बौद्धिक इच्छा-शक्ति की भावना संस्कृति को जन्म देने में सहायक सिद्ध हुई है। लेखक ने संस्कृति के निर्माण में सक्रिय प्रमुख तत्त्वों का भी उद्घाटन किया है। संस्कृति के प्रकार पर अपना मत व्यक्त करते हुए उन्होंने उन महापुरुषों का उदाहरण दिया है, जिन्होंने मानव-संस्कृति के निर्माण के लिए अपना सर्वस्व त्याग करके महान् सहयोग दिया है। उनमें लेनिन, कार्ल मार्क्स, सिद्धार्थ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। लेखक का मूल उद्देश्य मानव-संस्कृति द्वारा मानव बनाने की प्रेरणा देना है। दूसरों के दुख को समझना और उसे दूर करने के लिए किए गए त्याग की भावना ही मानव संस्कृति की सच्ची रचयिता है। भले ही वह माँ का त्याग हो या फिर सिद्धार्थ का।

(4) और सभ्यता? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम । हमारे खाने-पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने पहनने के तरीके, हमारे गमनागमन के साधन, हमारे परस्पर कट मरने के तरीके; सब हमारी सभ्यता हैं। मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उन्हें हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा?[पृष्ठ 130]

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक के अनुसार सभ्यता क्या है?
(ग) सभ्यता और संस्कृति में क्या अंतर है?
(घ) लेखक ने असंस्कृति किसे कहा है?
(ङ) असभ्यता क्या है?
(च) संस्कृति में कौन-सी भावना प्रधान रहती है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-संस्कृति। लेखक का नाम-भदंत आनंद कौसल्यायन।

(ख) लेखक ने बताया है कि सभ्यता हमारी संस्कृति का ही परिणाम होता है। हमारे जीवनयापन के तौर-तरीके, रहन-सहन, खान-पान, हमारे ओढ़ने-पहनने के तरीके हमारे गमना-गमन के साधन, परस्पर मेल-जोल, लड़ाई-झगड़े सबके-सब हमारी सभ्यता को दर्शाते हैं। हमारे कार्य जितने सुसंस्कृत ढंग से होंगे हमारी सभ्यता भी वैसी ही अच्छी होगी।

(ग) कहा गया है कि सभ्यता संस्कृति की ही उपज है। यदि कोई व्यक्ति अपनी प्रेरणा और योग्यता के बल पर सर्वकल्याण हेतु कोई आविष्कार करता है तो वह हमारी संस्कृति कहलाती है। तत्पश्चात् जब उस आविष्कारित वस्तु का प्रयोग किया जाता है तो उसे सभ्यता कहते हैं। संस्कृति का संबंध विचार से है और सभ्यता बाहरी जीवन से संबंध रखती है। एक यदि विचार है या सूक्ष्म है तो दूसरा विचार के अपनाने का ढंग है और स्थूल है।

(घ) लेखक ने मनुष्य के उन कार्यों को असंस्कृति का जनक कहा है, जिनके कारण वह ऐसे उपकरणों का उत्पादन करता है, जिनसे मानवता का विनाश होता है। मानव-कल्याण की भावना-विहीन व्यक्ति असंस्कृत व्यक्ति होता है। इसी प्रकार लूट-मार, हिंसा, चोरी आदि सभी कार्य असंस्कृति की पहचान हैं।

(ङ) जैसे संस्कृति सभ्यता की जननी होती है, वैसे ही असंस्कृति असभ्यता की जननी है। जैसे संस्कृत व्यक्ति सभ्यता को जन्म देता है वैसे ही असंस्कृत व्यक्ति अपने बुरे कर्मों से असभ्यता का निर्माण करता है। मानवता और मानव कल्याण के विरुद्ध किए गए सभी कार्य असभ्यता के अंतर्गत आते हैं। चोरी-डकैती, भ्रष्टाचार, झूठ, युद्ध आदि सब कार्य असभ्यता के सूचक हैं।

(च) संस्कृति में सदैव कल्याण की भावना ही प्रधान रहती है। इसी भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति मानवता के उत्थान या कल्याण के कार्य करता है। ऐसी प्रेरणा मनुष्य की आंतरिक प्रेरणा होती है। जन-कल्याण की भावना किसी बाहरी या भौतिक आकर्षण का कारण नहीं हुआ करती। अतः संस्कृति सदैव मानव कल्याण की भावना से ही विकसित होती है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 17 संस्कृति

(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने संस्कृति-असंस्कृति तथा सभ्यता और असभ्यता का अंतर स्पष्ट किया है। लेखक का मत है कि सभ्यता संस्कृति का परिणाम होती है। हमारे जीवन-यापन के सभी साधन-खान-पान, रहन-सहन, गमनागमन के साधन, आपस में मेल-जोल यहाँ तक कि लड़ने का ढंग भी हमारी सभ्यता को दर्शाता है। हमारे ये कार्य जितने सुसंस्कृत ढंग से होंगे, हमारी सभ्यता भी उतनी ही श्रेष्ठ होगी। संस्कृति का संबंध हमारे विचारों से है तथा सभ्यता हमारे बाहरी जीवन से संबंध रखती है। विचार सूक्ष्म होता है और उसे कार्यान्वित करने का ढंग सभ्यता है जो स्थूल है। मानवता का विनाश करने वाले सभी कार्य असंस्कृति होते हैं। असंस्कृत व्यक्ति अपने बुरे कार्यों से असभ्यता का निर्माण करता है। चोरी, डकैती, हिंसा, झूठ, रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि सभी असभ्यता के अंतर्गत आते हैं। संस्कृति सदैव कल्याण की भावना को प्रेरित करती है। वह बाहरी नहीं, अपितु आंतरिक तत्त्व होता है।

संस्कृति Summary in Hindi

संस्कृति लेखक-परिचय

प्रश्न-
भदंत आनंद कौसल्यायन का जीवन-परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-भदंत आनंद कौसल्यायन एक सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु एवं हिंदी के महान् प्रचारक-प्रसारक थे। उनका जन्म सन् 1905 में अंबाला जिले के सोहाना नामक गाँव में हुआ था। बौद्ध भिक्षु होने के कारण उन्होंने देश-विदेश का बहुत भ्रमण किया है। वे गाँधी जी के साथ भी एक लंबे समय तक रहे। उनकी रचनाओं में गाँधी जी के जीवन-दर्शन का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। बौद्ध धर्म के कार्यों के साथ-साथ उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य की निरंतर सेवा की है। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से संबद्ध रहे तथा बाद में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सचिव पद पर रहकर हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार का कार्य करते रहे। सन् 1988 में उनका निधन हो गया।

2. प्रमुख रचनाएँ-भदंत आनंद कौसल्यायन की 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें ‘भिक्षु के पत्र’, ‘जो भूल ना सका’, ‘आह! ऐसी दरिद्रता’, ‘बहानेबाजी’, ‘यदि बाबा ना होते’, ‘रेल का टिकट’, ‘कहाँ क्या देखा’ आदि प्रमुख हैं। बौद्धधर्म-दर्शन से संबंधित उनके मौलिक और अनूदित अनेक ग्रंथ हैं जिनमें जातक कथाओं का अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है।

3. साहित्यिक विशेषताएँ भदंत कौसल्यायन की पर्यटन में रुचि होने के कारण वे देश-विदेश की यात्राएँ करते रहे। उनको जीवन का महान् अनुभव था, जो उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से झलकता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में तत्कालीन अनेकानेक विषयों का अत्यंत सहज एवं सरल रूप में वर्णन किया है। उनका संपूर्ण जीवनदर्शन गाँधी जी के आदर्शों से प्रभावित है। उनके साहित्य में मानवीय आचार-व्यवहार, यात्रा- संस्मरण, गाँधी जी के महत्त्वपूर्ण संस्मरण रहे हैं। उनके साहित्य में विषय-वर्णन की ताज़गी देखते ही बनती है। उनके संपूर्ण साहित्य में मानवतावाद का स्वर मुखरित हुआ है।

4. भाषा-शैली-कौसल्यायन जी के साहित्य की भाषा सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। उन्होंने अपनी रचनाओं में खड़ी-बोली हिंदी का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया है। भाषा की आडंबरहीनता उनके साहित्य की सबसे बड़ी कलात्मक विशेषता है। उनकी भाषा को जन-भाषा कहना भी उचित होगा। उनके प्रस्तुत निबंध में कहीं-कहीं भाषा की शिथिलता खटकती है।

संस्कृति पाठ का सार

प्रश्न-
‘संस्कृति’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने संस्कृति और सभ्यता से जुड़े अनेक प्रश्नों पर प्रकाश डाला है। लेखक ने अनेक उदाहरण देकर सभ्यता और संस्कृति के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उनके अंतर पर भी प्रकाश डाला है। लेखक ने बताया है कि सभ्यता और संस्कृति दो अलग-अलग वस्तुएँ हैं। सभ्यता संस्कृति का परिणाम है किंतु संस्कृति अविभाज्य वस्तु है। वे संस्कृति का विभाजन नहीं करना चाहते। लेखक की दृष्टि में जो मानव के लिए कल्याणकारी नहीं है, वह संस्कृति या सभ्यता हो ही नहीं सकती। पाठ का सार इस प्रकार है

लेखक ने सभ्यता और संस्कृति के स्वरूप को समझने के लिए उदाहरण देते हुए कहा है कि आग का आविष्कार और सुई-धागे का आविष्कार मनुष्य की खोजने की शक्ति या प्रवृत्ति का परिणाम है। इसे ही लेखक ने संस्कृति बताया है। इस आविष्कार के परिणामस्वरूप आग और सुई-धागे को सभ्यता कहते हैं। दूसरे शब्दों में प्रवृत्ति या प्रेरणा को संस्कृति और आविष्कृत वस्तु को सभ्यता कहते हैं। जिस मनुष्य में प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी वह उतना ही अच्छा आविष्कारक होगा और उतना ही अधिक संस्कृत भी।

लेखक ने अपनी अवधारणा को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है कि एक आविष्कारक व्यक्ति सुसंस्कृत होता है, किंतु उसकी संतान जिसने यह आविष्कृत वस्तु-एकाएक या अनायास ही प्राप्त कर ली है वह सभ्य हो सकता है, सुसंस्कृत नहीं। इस दृष्टि से न्यूटन एक संस्कृत था किंतु आज उसके सिद्धांत व अन्य ज्ञान रखने वाले संस्कृत नहीं अपितु सभ्य कहलाएँगे।

जब भी कोई आविष्कार भौतिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए होगा तो उसमें संस्कृति कम और सभ्यता अधिक कही जा सकती है। किंतु जब पेट भरा होने पर भी कुछ लोग रात को जगमगाते तारों का रहस्य जानने का प्रयास करते हैं, वे संस्कृति के जनक हैं। पेट भरने और तन ढकने के भौतिक कारणों की प्रेरणा वाला व्यक्ति संस्कृति का जनक नहीं है। भौतिक कारणों की अपेक्षा अंदर की भावना से प्रभावित होकर जो ज्ञान पैदा करता है, वह सच्चा संस्कृति का आविष्कारक कहलाएगा।

भौतिक प्रेरणा और ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा-ये दोनों ही मानव संस्कृति के जनक हैं। दूसरों के मुख में रोटी का टुकड़ा डालने के लिए जो अपने मुँह का कौर छोड़ देता है या फिर रोगी बच्चे को सारी रात गोद में लिए जो माँ बैठी रहती है, वह ऐसा क्यों करती है। इसी प्रकार कार्लमार्क्स मज़दूरों का जीवन सुखी देखने के लिए अपना सारा जीवन दुःखों में गला देता है। इसी प्रकार सिद्धार्थ ने अपना घर-बार इसलिए त्याग दिया था, ताकि तृष्णा के वशीभूत लड़ती-कटती मानवता सुख से रह सके। अतः हम समझ सकते हैं कि संस्कृति ही आग और सुई-धागे का आविष्कार कराती है, तो वह तारों की दुनिया के रहस्य का ज्ञान कराती है और वह योग्यता जो किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है, भी संस्कृति ही है।

सभ्यता क्या है? वह संस्कृतियों का परिणाम है। खान-पान, रहन-सहन, ओढ़ने-पहनने और कटने-मरने के तरीके भी सभ्यता के अंतर्गत आते हैं। मानव की जो योग्यता मानव-विनाश का कारण बनती है, वही असंस्कृति है। उससे पैदा हुए हथियार आदि भी असभ्यता के सूचक हैं।

संस्कृति के नाम पर जिस कूड़े-करकट के ढेर का ज्ञान होता है, वह संस्कृति नहीं हो सकता। हर क्षण बदलने वाली इस दुनिया की किसी भी चीज़ को पकड़कर नहीं बैठा जा सकता। लेखक का मत है कि मानव संस्कृति या नए तथ्यों की रक्षा के लिए दलबंदियों की आवश्यकता नहीं है। मानव संस्कृति अविभाज्य है। उसमें कल्याणकारी अंश श्रेष्ठ ही नहीं, स्थायी भी है।

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ-128) सभ्यता = रहन-सहन के ढंग। संस्कृति = विचार-चिंतन की विधि। भौतिक = ठोस संसार संबंधी वस्तु। आध्यात्मिक = आत्मा-परमात्मा संबंधी। साक्षात् = सम्मुख मिलन। आविष्कार = खोज। आविष्कर्ता = खोज करने वाला। प्रवृत्ति = स्वभाव, रुझान। प्रेरणा = गतिशील बनाने की शक्ति या भावना।

(पृष्ठ-129) संस्कृत व्यक्ति = अच्छे संस्कार या गुणों वाला व्यक्ति। पूर्वज = बाप-दादा आदि। अनायास = अचानक। परिष्कृत = शुद्ध । तथ्य = सत्य, सार। सिद्धांत = नियम। अपरिचित = अनजान। ज्वाला = आग। शीतोष्ण = ठंड तथा गर्मी। हाथ होना = सहयोग होना। मोती भरा थाल = आकाश । जननी = पैदा करने वाली, माँ। चेतना = बुद्धि। निठल्ला = बेकार। पुरस्कर्ता = बढ़ाने वाला। ज्ञानेप्सा = ज्ञान पाने की इच्छा। कौर = रोटी का टुकड़ा।

(पृष्ठ-130) भाग्यविधाता = भाग्य का निर्माण करने वाला। तृष्णा = इच्छा। सिद्धार्थ = महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम । सर्वस्व = सब कुछ। मानवता = मनुष्य जाति। गमनागमन = आना-जाना, यातायात। असंस्कृति = जो संस्कृति न हो। प्रज्ञा = बुद्धि। कल्याण = मंगल। नाता = संबंध। अविभाज्य = जो विभाजित न हो। अंश = भाग। अकल्याणकर = जो कल्याणकारी न हो। स्थायी = टिकाऊ।

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