HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

HBSE 9th Class Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answers

प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर-
प्रस्तुत शब्दचित्र में प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आई हैं-

(1) वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे। किसी से कोई वस्तु माँगना उनको स्वीकार नहीं था।
(2) वे यथार्थ का सामना निडरतापूर्वक करते थे।
(3) समझौतावादी विचारधारा को अपनाकर उन्होंने कभी भी जीवन का कोई सुख प्राप्त नहीं किया।
(4) दिखावे की दुनिया से वे कोसों दूर थे। अपनी कमजोरियों को छुपाकर समाज के सामने अच्छा दिखना उन्हें कभी पसंद नहीं था।
(5) संघर्ष को वे जीवन का अभिन्न एवं अनिवार्य अंग मानते थे।

प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 2.
सही कथन के सामने (N) का निशान लगाइए
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौंसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो।
उत्तर-
(क) ।, (ख)।

प्रेमचंद के फटे जूते HBSE 9th Class प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो?
उत्तर-
(क) लेखक के अनुसार आज के समाज में आदर और सम्मान की प्रतीक टोपी का मूल्य कुछ भी नहीं है अर्थात समाज में सम्माननीय लोगों का आदर घट रहा है। बुरे-से-बुरा या नीच व्यक्ति, जो जूते तुल्य है, यदि शक्ति प्राप्त कर ले तो समाज के लोग उसका आदर करने लगते हैं। यहाँ तक कि टोपी अर्थात ऊपर रहने वाले लोग भी उसका सम्मान करते हैं।
(ख) प्रस्तुत कथन में जहाँ प्रेमचंद के व्यक्तित्व के खुलेपन को उद्घाटित किया गया है वहाँ आडंबर व दिखावे में विश्वास रखने वाले लोगों पर भी करारा व्यंग्य कसा है। वे लोग अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालते रहते हैं और समाज की दृष्टि में अच्छे बने रहते हैं।
(ग) प्रेमचंद के फटे हुए जूते में से बाहर निकली हुई पैर की अंगुली की ओर देखकर लेखक ने कहा है कि वह अँगुली लेखक और समाज पर व्यंग्य कर रही है और संकेत द्वारा उनके प्रति अपनी घृणा को प्रकट कर रही है। इस घृणा का कारण संभवतः यह था कि समाज के लोग परिस्थितियों से जूझने के बदले उनसे समझौता करते रहे, जबकि प्रेमचंद ने राह में आने वाली बाधा रूपी चट्टानों से निरंतर संघर्ष किया, उन्हें लगातार ठोकर मारी और इसी प्रयास में उनके जूते भी फट गए; किंतु कभी भी झूठी मान्यताओं और आडंबरों के प्रभाव में आकर समझौता नहीं किया।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर-
प्रेमचंद के विषय में लेखक के विचार बदलने का प्रमुख कारण यह था कि पहले तो यह देखकर लेखक को खीझ आती है कि यदि प्रेमचंद को फोटो ही खिंचवाना था तो वे किसी से पोशाक माँगकर काम चला सकते थे और यदि यह इनकी फोटो खिंचवाने की पोशाक है तो पहनने की कैसे होगी, किंतु फिर अगले ही क्षण प्रेमचंद के स्वाभिमान, उनकी यथार्थ भावना का ध्यान कर लेखक सोचता है कि आडंबर रहित जीवन जीने वाले प्रेमचंद के लिए अलग-अलग पोशाकों को रखना संभव नहीं है। इसी कारण वे प्रेमचंद की महानता के प्रति अभिभूत-से हो उठे और उनके प्रति अपने मन में आई खीझ को एकाएक त्याग दिया।

प्रेमचंद के फटे जूते Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर-
पाठ पढ़कर लेखक की यह बात सबसे अधिक आकृष्ट करती है कि वे अत्यंत सरल भाषा में सहजता से समाज में पनपती बुराइयों को निशाना बनाकर एक तीव्र व्यंग्य बाण छोड़ देते हैं जो पाठक को प्रभावित ही नहीं करता, अपितु उस समस्या की ओर भी उसका ध्यान तरह आकृष्ट कर देता है। इसके साथ-साथ लेखक को विस्तारण (विस्तार) की शैली अत्यंत पसंद है। वे फटे जूते का प्रसंग आरंभ करके प्रेमचंद जी के संपूर्ण जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कर जाते हैं, जैसे बीज से लेकर फल-फूलों तक पहुँचना होता है। बात में से बात निकालने की कला में भी वे निपुण हैं।

प्रेमचंद के फटे जूते के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 6.
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर-
वस्तुतः ‘टीला’ शब्द मार्ग में आने वाली बाधा का प्रतीक है। जैसे बहती हुई नदी में खड़ा कोई टीला सारे बहाव का रुख ही बदल देता है; उसी प्रकार अनेकानेक कुरीतियाँ, बुराइयाँ और भ्रष्ट आचरण भी जीवन की सहज गति में रुकावटें उत्पन्न कर देते हैं। प्रस्तुत पाठ में ‘टीला’ शब्द समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय, शोषण, छुआछूत, जाति-पाँति, पूँजीवादी व्यवस्था आदि के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रेमचंद के फटे जूते Summary HBSE 9th Class प्रश्न 7.
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। विद्यार्थी अपनी अध्यापिका/अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

Class 9 Kshitij Chapter 6 HBSE प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर-
पहले लोग वेशभूषा के विषय में अधिक सतर्क नहीं थे। जीवन में सादगी को महत्त्व दिया जाता था। वेशभूषा को तो बाहरी आवरण समझा जाता था, वास्तविक चीज तो शुद्धाचरण माना जाता था। किंतु बदलते समय के अनुसार आज वेशभूषा व्यक्ति के आकर्षण का केंद्र बन गई है। यही कारण है कि वे अपने आचरण की ओर ध्यान न देकर अच्छी-से-अच्छी व महँगी पोशाक पहनना चाहते हैं। आज वेशभूषा ही मानव के व्यक्तित्व का प्रतीक बन गई है।

भाषा-अध्ययन

Class 9 Hindi Chapter 6 Solutions HBSE प्रश्न 9.
पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर–
पाठ में आए मुहावरे निम्नलिखित हैं-
1. हौंसले पस्त करना-जोश ठंडा करना।
तेज गेंदबाज मुकेश के सामने आते ही विपक्षी टीम के हौसले पस्त हो जाते हैं।

2. दृष्टि अटकना-आकृष्ट होना।
प्रेमचंद का चित्र देखते ही लेखक की दृष्टि अटक गई।

3. जूते घिसना-चक्कर काटना।
नौकरी पाने के लिए तो जूते घिसाने पड़ते हैं।

4. ठोकर मारना-चोट मारना।
प्रेमचंद राह में आने वाले संकटों पर आजीवन ठोकर मारते रहे।

5. टीला खड़ा होना-बाधाएँ आना।
जीवन में आने वाले टीलों से घबराना नहीं चाहिए।

Class 9 Hindi Chapter 6 HBSE प्रश्न 10.
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर-
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने इन विशेषणों का उपयोग किया है-
(1) साहित्यिक पुरखे,
(2) महान कथाकार,
(3) उपन्यास-सम्राट,
(4) युग-प्रवर्तक।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

पाठेतर सक्रियता

  • महात्मा गांधी भी अपनी वेश-भूषा के प्रति एक अलग सोच रखते थे, इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे, पता लगाइए।
  • महादेवी वर्मा ने ‘राजेंद्र बाबू’ नामक संस्मरण में पूर्व राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद का कुछ इसी प्रकार चित्रण किया है, उसे पढ़िए।
  • अमृतराय लिखित प्रेमचंद की जीवनी ‘प्रेमचंद-कलम का सिपाही’ पुस्तक पढ़िए।

उत्तर-
ये प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं हैं। विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करेंगे।

यह भी जानें

कुंभनदास-ये भक्तिकाल की कृष्ण भक्ति शाखा के कवि थे तथा आचार्य वल्लभाचार्य के शिष्य और अष्टछाप के कवियों में से एक थे। एक बार बादशाह अकबर के आमंत्रण पर उनसे मिलने वे फतेहपुर सीकरी गए थे। इसी संदर्भ में कही गई पंक्तियों का उल्लेख लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।

HBSE 9th Class Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answers

Kshitij Chapter 6 HBSE 9th Class प्रश्न 1.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ में लेखक ने प्रेमचंद के जीवन की सादगी और सरलता का वर्णन किया है। यही इस पाठ का मूल उद्देश्य भी है। इसके साथ-साथ समाज में फैली दिखावे की प्रवृत्ति पर प्रकाश डालना भी प्रस्तुत पाठ का लक्ष्य है। लेखक ने प्रेमचंद की उस फोटो का वर्णन किया जिसमें उनका एक जूता आगे से फटा हुआ है और उनका पाँव का अँगूठा उसमें से बाहर झाँक रहा था। उस चित्र में वे अपने जीवन के दर्द से बाहर आकर मुस्कुराना चाहते थे किन्तु ऐसा नहीं कर सके। लेखक ने समाज के विषय में बताया है कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए जूते, कपड़े तो क्या बीवी तक माँग लेते हैं, किन्तु प्रेमचंद ने अपने स्वाभिमान के कारण कभी किसी से कुछ नहीं माँगा। वे संसार के सुखों को ठुकराकर अपनी साहित्य-साधना में लीन रहे। उन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु कभी समझौता नहीं किया। उनका वह फटा हुआ जूता बता रहा है लोग अपने फटे जूतों को ढकने के लिए खुशामद करने में जूते के तलवे घिसा देते हैं। कहने का भाव यह है कि इस पाठ का उद्देश्य प्रेमचंद के व्यक्तित्व की इन्हीं महान् विशेषताओं का उल्लेख करना और समाज के खुशामदीपन पर व्यंग्य करना है।

Hindi Class 9 Chapter 6 Kshitij HBSE प्रश्न ,2.
पठित निबंध के आधार पर प्रेमचंद की वेश-भूषा एवं रहन-सहन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रेमचंद धोती-कुरता पहनते थे और सिर पर साधारण-सी टोपी धारण करते थे। उनका जीवन किसानों की भाँति ही अत्यंत साधारण था। उनका रहन-सहन भी आडंबरहीन और सादगीयुक्त था। उनके रहन-सहन व वेश-भूषा को देखकर उनके सरल एवं सहज व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जा सकता है।

Class 9th Kshitij Chapter 6 HBSE प्रश्न 3.
‘प्रेमचंद आडंबरहीन जीवन में विश्वास रखते थे।’ इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही प्रेमचंद आडंबरहीन व दिखावे-विहीन जीवन में विश्वास रखते थे। उनके पास जो भी, जैसी भी पोशाक होती थी, उसे वे बिना किसी दिखावे के पहनते थे। उन्होंने अपनी गरीबी को भी कभी छिपाने का प्रयास नहीं किया। यही कारण है कि उन्होंने फोटो खिंचवाते समय भी दूसरे लोगों की भाँति बनावटी वेश-भूषा धारण नहीं की।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 4.
लोग फोटो खिंचवाते समय क्या-क्या करते हैं ? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
लोग फोटो खिंचवाते समय सुंदर-सुंदर पोशाक पहनते हैं, ताकि वे फोटो में सुंदर लगें। यदि अपने पास सुंदर पोशाक नहीं है तो दूसरे से उधार लेकर पोशाक व जूते पहनते हैं। कुछ लोग सुगंधित तेल तक लगा लेते हैं ताकि फोटो खुशबूदार बने।

प्रश्न 5.
‘सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक के इस कथन से अभिप्राय है कि जिस प्रकार प्रत्येक नदी शक्तिशाली नहीं होती कि वह मार्ग में आने वाले पहाड़ को तोड़कर अपना मार्ग बना ले। ऐसे ही प्रेमचंद की भाँति सारे लोग ऐसे नहीं होते कि जो बाधाओं से संघर्ष करके उन्हें अपने जीवन से हटा दें। प्रेमचंद ने अपने जीवन में आने वाली बाधाओं से समझौता करके जीवनयापन नहीं किया, अपितु उनका विरोध करके उन्हें अपने जीवन से हटा दिया था।

प्रश्न 6.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में जूते फटने का कौन-सा सांकेतिक कारण बताया है?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि प्रेमचंद ने अपने जीवन में समाज में फैली बुराइयों पर खूब ठोकरें मारी हैं। उन्होंने जीवन में आने वाली बाधाओं से बचकर निकलने का भी कभी प्रयास नहीं किया। इसी कारण उनके जूते फट गए। उन्हें जीवन में धन-वैभव नहीं मिला । वे श्रमिकों के हिमायती बने रहे। इसलिए पूँजीपतियों ने उनका समर्थन नहीं किया। यदि वे पूँजीपतियों के हक की बात लिखते तो उन्हें धन-वैभव मिलता, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसलिए उन्हें आजीवन अभावों का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 7.
चक्कर काटने से क्या होता है ? यह कुंभनदास कौन था?
उत्तर-
चक्कर काटने से जूता फटता नहीं, अपितु घिस जाता है। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने में ही घिस गया था। उसे बड़ा पश्चात्ताप हुआ था। उसने कहा था–
“आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम।”
कुंभनदास कृष्ण भक्त कवि था। वह अष्टछाप कवियों में से एक प्रमुख कवि था। वह बादशाह अकबर के बुलावे पर फतेहपुर सीकरी गया था। यहाँ उसने अपने अनुभव का वर्णन किया है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के लेखक का क्या नाम है?
(A) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(B) हरिशंकर परसाई
(C) महादेवी वर्मा
(D) चपला देवी
उत्तर-
(B) हरिशंकर परसाई

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद किसके साथ फोटो खिंचवा रहे थे?
(A) बेटे के साथ
(B) किसी मित्र के साथ
(C) पत्नी के साथ
(D) अपनी माता के साथ
उत्तर-
(C) पत्नी के साथ

प्रश्न 3.
प्रेमचंद ने फोटो खिंचवाते समय सिर पर क्या पहना हुआ था?
(A) पगड़ी
(B) मुकुट
(C) सेहरा
(D) टोपी
उत्तर-
(D) टोपी

प्रश्न 4.
प्रेमचंद का चेहरा भरा-भरा किस कारण से लग रहा था?
(A) घनी मूंछों से
(B) बढ़ी हुई दाढ़ी से
(C) चेहरे की गोलाई से
(D) चेहरे के भारीपन से
उत्तर-
(A) घनी मूंछों से

प्रश्न 5.
प्रेमचंद ने चित्र में कैसे जूते पहने हुए थे?
(A) चमड़े के
(B) रबड़ के
(C) केनवस के
(D) जूट के
उत्तर-
(C) केनवस के

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प्रश्न 6.
प्रेमचंद का फोटो देखकर लेखक की दृष्टि कहाँ पर अटक गई थी?
(A) टोपी पर
(B) कुर्ते पर
(C) बालों पर
(D) फटे हुए जूते पर
उत्तर-
(D) फटे हुए जूते पर।

प्रश्न 7.
लेखक की दृष्टि में प्रेमचंद में कौन-सा गुण नहीं रहा होगा?
(A) पोशाक बदलने का
(B) दिखावा करने का
(C) फोटो खिंचवाने का
(D) सजने संवरने का
उत्तर-
(A) पोशाक बदलने का

प्रश्न 8.
लेखक को प्रेमचंद की अधूरी मुस्कान में क्या अनुभव हुआ था?
(A) व्यंग्य
(B) दया
(C) सहानुभूति
(D) शांति का भाव
उत्तर-
(A) व्यंग्य

प्रश्न 9.
“दर्द के गहरे कुएँ के तल में पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही ‘क्लिक’ करके फोटोग्राफर ने बैंकय कहा होगा” लेखक ने इस कथन से प्रेमचंद के जीवन की किस विशेषता को उजागर किया है?
(A) लापरवाही
(B) निराशा
(C) उदारता
(D) प्रसन्नचित्त
उत्तर-
(B) निराशा

प्रश्न 10.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद ने फोटो किसके आग्रह पर खिंचवाई होगी? ।
(A) लेखक के
(B) बेटे के
(C) मित्र के
उत्तर-
(D) पत्नी के

प्रश्न 11.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद के जीवन संबंधी कौन-सी ‘ट्रेजडी’ है?
(A) उसे फोटो खिंचवाने का चाव नहीं
(B) उसके पास फोटो खिंचवाने के लिए जूता नहीं था
(C) उसे फोटो खिंचवाना नहीं आता था
(D) उन्हें फोटो के प्रति लगाव नहीं था
उत्तर-
(B) उसके पास फोटो खिंचवाने के लिए जूता नहीं था

प्रश्न 12.
फोटो खिंचवाने के लिए वस्तुएँ मांगने के प्रसंग के माध्यम से लेखक ने समाज की किस विशेषता पर व्यंग्य किया है?
(A) दिखावे की
(B) यथार्थवादी होने की
(C) ईमानदारी की
(D) उदारता की
उत्तर-
(A) दिखावे की

प्रश्न 13.
लेखक के अनुसार किसका किससे अधिक मूल्य रहा है?
(A) आदमी का फोटो से
(B) जूते का टोपी से
(C) पुरुष का स्त्री से
(D) इंसानियत का इंसान से
उत्तर-
(B) जूते का टोपी से

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प्रश्न 14.
लेखक के अनुसार टोपी किसका प्रतीक है?
(A) लालची व्यक्ति का
(B) उदार व्यक्ति का
(C) सम्माननीय व्यक्ति का
(D) धनी व्यक्ति का
उत्तर-
(C) सम्माननीय व्यक्ति का

(D) पत्नी के

प्रश्न 15.
जूता किसका प्रतीक है?
(A) कम सम्मान वाले व्यक्ति का
(B) लालची व्यक्ति का
(C) अत्याचारी का
(D) कठोर हृदय व्यक्ति का
उत्तर-
(A) कम सम्मान वाले व्यक्ति का

प्रश्न 16.
लेखक को प्रेमचंद की मुस्कान के पीछे क्या छुपा हुआ अनुभव हुआ था?
(A) उनका लालचीपन
(B) समाज में गरीबों के दुःख की पीड़ा
(C) दिखावे की छलना
(D) उदारता का भाव
उत्तर-
(B) समाज में गरीबों के दुःख की पीड़ा

प्रश्न 17.
किस कहानी में नीलगाय हल्कू किसान का खेत चर गई थी?
(A) दो बैलों की कथा
(B) पंच परमेश्वर
(C) कफन
(D) पूस की रात
उत्तर-
(D) पूस की रात

प्रश्न 18.
होरी प्रेमचंद के किस उपन्यास का पात्र है?
(A) निर्मला
(B) गोदान
(C) कर्मभूमि
(D) रंगभूमि
उत्तर-
(B) गोदान

प्रश्न 19.
‘जूता घिसना’ मुहावरे का अर्थ है-
(A) जूता फटना
(B) जूता टूटना
(C) बहुत प्रयत्न करना
(D) व्यर्थ में चक्कर काटना
उत्तर-
(C) बहुत प्रयत्न करना

प्रश्न 20.
लेखक की दृष्टि में प्रेमचंद की क्या कमजोरी थी?
(A) वे नेम धर्म में विश्वास नहीं रखते थे
(B) वे नेम धर्म के पक्के थे
(C) वे नेम धर्म को जीवन के लिए अनावश्यक मानते थे
(D) वे दोस्तों के साथ रहते थे
उत्तर-
(B) वे नेम धर्म के पक्के थे

प्रश्न 21.
‘जंजीर’ का क्या तात्पर्य है?
(A) जंजीर की तरह पक्का
(B) जंजीर की तरह लंबा
(C) बंधन
(D) मुक्ति
उत्तर-
(C) बंधन

प्रश्न 22.
प्रेमचंद के जूते फटने का कौन-सा सांकेतिक कारण बताया है?
(A) समाज की बुराइयों को ठोकर मारना
(B) जीवन में तेज-तेज चलना
(C) जूते के लिए पैसे न होना
(D) जूते गंठवाने के लिए समय का अभाव
उत्तर-
(A) समाज की बुराइयों को ठोकर मारना

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प्रश्न 23.
‘पन्हैया’ से क्या अभिप्राय है?
(A) वस्त्र
(B) पहनने योग्य
(C) जूतियाँ
(D) आभूषण
उत्तर-
(C) जूतियाँ

प्रेमचंद के फटे जूते प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण

1. प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूंछे चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं। पाँवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। [पृष्ठ 61]

शब्दार्थ चित्र = फोटो। कनपटी = कान के साथ वाला भाग। केनवस = मोटा कपड़ा। बेतरतीब = बेढंगे। लापरवाही = उपेक्षापूर्ण। परेशानी = दुःख।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इसमें उन्होंने लेखकों की दुर्दशा और दिखावा करने वाले लोगों पर एक साथ व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद की वेशभूषा एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने कहा है कि प्रेमचंद का एक चित्र उनके सामने है। उस चित्र में वे पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। उन्होंने अपने सिर पर मोटे कपड़े की टोपी पहन रखी है। कुरता और धोती पहनी हुई है। कानों के साथ का भाग चिपटा हुआ है। गालों की हड्डियाँ कुछ उभरी हुई हैं। किंतु उनकी मूंछे घनी हैं, जिससे उनका चेहरा कुछ भरा-भरा सा लगता है।

प्रेमचंद जी ने पाँवों में केनवस के जूते पहन रखे हैं, जिनके बंद (फीते) गलत ढंग से बाँधे हुए हैं। उनकी लापरवाही के कारण बंदों के सिरे पर लोहे की पतरी निकल गई है। इसलिए उन्हें बंदों को जूतों के सुराखों में डालने में कठिनाई होती है। इसलिए वे बंदों को जैसे-तैसे कस ही लेते हैं। उनके दाहिने पाँव का जूता ठीक है, किंतु बाएँ पाँव का जूता फटा हुआ है। उसमें आगे की ओर एक बहुत बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि इतने बड़े साहित्यकार का व्यक्तित्व उनकी दयनीय दशा को दर्शा रहा है।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद के फटे जूतों की ओर संकेत करके उनके आर्थिक अभावों को व्यक्त किया है।
  2. भाषा सहज, सरल एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के सामने किसकी फोटो है ?
(2) फोटो के आधार पर प्रेमचंद की वेशभूषा पर प्रकाश डालिए।
(3) प्रेमचंद के जूतों का उल्लेख कीजिए।
(4) प्रेमचंद को बंद बाँधने में परेशानी क्यों होती है ?
उत्तर-
(1) लेखक के सामने प्रेमचंद की फोटो है।
(2) फोटो के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रेमचंद ने मोटे कपड़े की बनी टोपी, धोती तथा कुरता पहना हुआ है। उनके गालों की हड्डियाँ उभरी हुई हैं। उनकी मूंछे घनी हैं। उनके जूते फटे हुए हैं।
(3) प्रेमचंद ने पैरों में केनवस के जूते पहने हुए हैं। उनके फीते ठीक ढंग से नहीं बँधे हुए। फीतों के सिरों पर लगी लोहे की पतरी निकल गई है।
(4) प्रेमचंद जूतों के फीतों को बाँधने में लापरवाही करते हैं। इसलिए उनके सिरों पर लगी लोहे की पतरी निकल गई है। अब फीतों को छेदों में डालने में परेशानी होती है। इसलिए प्रेमचंद के जूतों के फीते ठीक से नहीं बँध पाते।

2. फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते, या न खिंचाते। फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होगे। मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’ है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है। [पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-आग्रह = जोर देकर कहा गया कथन। ट्रेजडी = हादसा (दुःख की बात)। क्लेश = दुःख। महसूस = अनुभव। दर्द = पीड़ा। व्यंग्य = ताना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस पाठ में उन्होंने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद के सहज स्वभाव का उल्लेख किया है। .

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने जब प्रेमचंद की फोटो को ध्यान से देखा तो उन्हें पता चला कि उनका जूता फटा हुआ था और उसमें से उसकी एक अँगुली बाहर निकली हुई थी। जो बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। इस पर लेखक को थोड़ा-सा क्रोध . आया और उसने कहा फोटो ही खिंचवाना था, तो ठीक जूते पहन लेते या न खिंचवाते। फोटो न खिंचवाने से क्या बिगड़ जाता। लेखक के कहने का भाव यह है कि बुरी फोटो खिंचवाने से न खिंचवाना ही ठीक रहता। किंतु लेखक पुनः सोचता है कि शायद फोटो खिंचवाने का आग्रह पत्नी का रहा हो और प्रेमचंद जी पत्नी की बात भला कैसे टाल सकते थे। इसलिए यह कहते हुए ‘अच्छा चल भई’ कहकर फोटो खिंचवाने बैठ गए होंगे। किंतु यह कितने दुःख की बात है कि आदमी के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी कोई अच्छा जूता न हो। शायद प्रेमचंद के पास भी दूसरा जूता न हो। इसीलिए वे फटा हुआ जूता पहनकर फोटो खिंचवाने बैठ गए हों। लेखक प्रेमचंद की विवशता पर विचार व्यक्त करता हुआ कहता है कि मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते तुम्हारे दुःख को अपने में अनुभव करके रो देना चाहता हूँ अर्थात लेखक को प्रेमचंद की फटा हुआ जूता पहनने की मजबूरी के प्रति पूर्ण सहानुभूति है, किंतु प्रेमचंद की आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य उसे एकदम रोने से रोक देता है।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी की ओर संकेत किया है।
  2. फोटो खिंचवाते समय प्रेमचंद के पास पहनने के लिए कोई अच्छा जूता न होने से उनके जीवन के अभावों को व्यक्त किया गया है।
  3. लेखक की साहित्यकार के अभाव भरे जीवन के प्रति पूर्ण सहानुभूति व्यक्त हुई है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक ने प्रेमचंद को क्या सलाह दी है?
(2) लेखक को फोटो खिंचाने का क्या कारण प्रतीत हो रहा है?
(3) प्रस्तुत गद्यांश में किसकी ट्रेजडी की बात कही गई है?
(4) लेखक का रोना एकाएक कैसे रुक जाता है?
उत्तर-
(1) लेखक ने प्रेमचंद को सलाह दी है कि या तो वे फोटो खिंचवाते ही नहीं। यदि फोटो खिंचवाना ही था तो जूते तो ठीक ढंग के पहन लेते।
(2) लेखक को लगता है कि प्रेमचंद की फोटो खिंचवाने की इच्छा नहीं थी। संभवतः उनकी पत्नी ने फोटो खिंचवाने के लिए आग्रह किया हो और वे ‘न’ नहीं कह सके हों। इस प्रकार फोटो खिंचवाना प्रेमचंद की मजबूरी प्रतीत होती है।
(3) प्रस्तुत गद्यांश में प्रेमचंद के जीवन की ट्रेजडी की बात कही गई है कि इतने बड़े साहित्यकार के पास फोटो खिंचवाने के लिए ठीक ढंग के जूते भी नहीं थे। यह निश्चय ही एक ट्रेजडी थी।
(4) लेखक प्रेमचंद के मन के दुःख को अपने हृदय में अनुभव करके रो देना चाहता था, किंतु प्रेमचंद की आँखों में दिखाई देने वाला तीखा दर्द उसे रोने से एकदम रोक देता है।

3. तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। गंदे-से-गदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है![पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-वर = दूल्हा। इत्र चुपड़ना = खुशबूदार तेल लगाना।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से लिया गया है। इस निबंध में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी व गरीबी का वर्णन किया है। साथ ही दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लोगों की माँगकर पहनी हुई वस्तुओं से अच्छा दिखने की प्रवृत्ति पर तीखा प्रहार किया गया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने फोटो में प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर कहा है कि तुम फोटो के महत्त्व को नहीं समझते, क्योंकि लोग फोटो देखकर ही व्यक्ति के महत्त्व का आकलन करते हैं। यदि तुम फोटो के महत्त्व को समझते तो फोटो खिंचवाने के लिए किसी से अच्छे से जूते माँग लेते। लेखक ने दूसरों से वस्तुएँ माँगकर फोटो खिंचवाने वालों पर कटाक्ष करते हुए पुनः कहा है कि लोग तो माँगा हुआ कोट पहनकर दूल्हा बन जाते हैं। लोग तो माँगी हुई कार से बारात भी निकालते हैं जिससे लोगों की नजरों में उनकी शान-शौकत बढ़े। यहाँ तक कि लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए दूसरों की बीवी भी माँग लेते हैं अर्थात दूसरों की बीवी के साथ फोटो खिंचा लेते हैं। दूसरी ओर तुम हो कि तुमसे जूते भी माँगते न बना। निश्चय ही तुम फोटो के महत्त्व को नहीं समझते। लोग तो खुशबूदार तेल लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में से भी खुशबू आए। गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है अर्थात गंदे-से-गंदे आदमी भी बन-सँवरकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि वे फोटो में सुंदर लगें।

विशेष-

  1. प्रेमचंद की सादगी पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि वे गरीब भले ही थे, किंतु दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे।
  2. लेखक ने दिखावे की प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, किंतु व्यंग्यात्मक है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर ।

(1) कौन फोटो का महत्त्व नहीं समझता? लेखक ने ऐसा क्यों कहा? ।
(2) लोग फोटो के लिए क्या-क्या माँग लेते हैं ?
(3) “गदे-से-गदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है” वाक्य में छुपे व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
(4) यदि प्रेमचंद फोटो के महत्त्व को समझते तो क्या कर लेते ?
उत्तर-
(1) प्रेमचंद फोटो का महत्त्व नहीं समझते थे। वे फोटो खिंचवाना सामान्य-सी बात समझते थे। तभी तो वे फटे हुए जूते पहनकर ही फोटो खिंचवाने बैठ गए।
(2) लोग फोटो में सुंदर दिखने के लिए अपने आपको सुंदर बनाकर कैमरे के सामने प्रस्तुत करते हैं। वे उधार के जूते, वस्त्र यहाँ तक कि उधार की बीवी भी माँग लेते हैं। कई लोग फोटो खिंचवाने के लिए सुगंधित तेल तक लगाते हैं।
(3) इस कथन में यह व्यंग्य निहित है कि बुरे लोग अपनी छवि सुंदर बनाकर पेश करते हैं। वे हर प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग करके अपनी छवि सुधारने का प्रयास करते हैं। गंदे आदमी अपने गंदे कामों को छिपाकर हर प्रकार से अच्छे दिखने का प्रयास किया करते हैं।
(4) यदि प्रेमचंद जी फोटो का महत्त्व समझते तो किसी के जूते माँग लेते जिससे उनकी फोटो सुंदर दिखाई देती।

4. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। वह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। [पृष्ठ 62]

शब्दार्थ-जमाने = समय। कीमती = महँगा। न्योछावर = कुर्बान। आनुपातिक = अनुपात। विडंबना = दुर्भाग्य। तीव्रता = तेज़ी। युग-प्रवर्तक = युग बदलने वाले।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में इतने बड़े साहित्यकार कहलवाने वाले प्रेमचंद की आर्थिक दुर्दशा पर व्यंग्य किया गया है। इतने बड़े साहित्यकार होने पर उनका सम्मान सबसे अधिक होना चाहिए था और उनके पास पर्याप्त सुख-सुविधाएँ भी होनी चाहिए थीं जो कभी नहीं हुईं। उन्हें आजीवन गरीबी में ही जीना व मरना पड़ा।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने टोपी व जूते की कीमत को लेकर समाज में उनके प्रति दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए कहा है कि टोपी आठ आने की मिल जाती है और जूते उस समय में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि टोपी उस समय जूतों से बहुत सस्ती थी। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है और अब तो जूते की कीमत और भी बढ़ गई है। एक जूते के बदले पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं अर्थात एक जूते की कीमत में पच्चीस टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं। जबकि जूतों की अपेक्षा टोपी का स्थान अधिक सम्माननीय है। इसलिए टोपी की कीमत अधिक होनी चाहिए थी। लेखक ने प्रेमचंद जी को संबोधित करते हुए कहा है कि तुम जूते और टोपी के मूल्य के अनुपात अधिक होने के कारण जूता नहीं खरीद सके, टोपी खरीद ली और जूता फटा हुआ ही पहन लिया क्योंकि जूता अधिक महँगा था और तुम्हारे पास जूता खरीदने के लिए धन नहीं था। प्रेमचंद का प्रसंग सामने आने से पूर्व लेखक को इस विडंबना की तीव्रता कभी अनुभव नहीं हुई थी जितनी आज हो रही है, वह भी उस समय जब प्रेमचंद का फटा हुआ जूता देख रहा था। कहने का भाव है कि जो वस्तु अधिक सम्मानजनक है, वह सस्ती है और जो वस्तु सम्मानजनक नहीं है, वह महँगी है। वास्तव में यह एक विडंबना ही है। इसके अतिरिक्त प्रेमचंद कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। वे महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट और युग को बदलने वाले थे और भी न जाने क्या-क्या कहलाते थे। किंतु फोटो में जूता फटा हुआ है अर्थात इतना बड़ा साहित्यकार होने पर भी उनकी आर्थिक दशा इतनी कमज़ोर है कि वे एक अच्छा जूता भी नहीं खरीद सकते।

विशेष-

  1. लेखक ने टोपी और जूते की कीमत के अंतर पर प्रकाश डाला है।
  2. लेखक ने समाज के उस दृष्टिकोण पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वह टोपी जैसे सम्माननीय लोगों का सम्मान नहीं करते और जो जूते की भाँति अधिक सम्माननीय नहीं हैं उन्हें अधिक सम्मान दिया जाता है। उनके सामने कितनी टोपियाँ झुकती हैं।
  3. प्रेमचंद की आर्थिक दशा पर प्रकाश डाला गया है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
  5. व्यंग्यात्मक शैली है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के अनुसार किसका मूल्य ज्यादा रहा और क्यों?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में कौन-सा व्यंग्य छुपा हुआ है?
(3) कौन-सी विडंबना लेखक को चुभ रही थी?
(4) लेखक ने प्रेमचंद जी के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
(1) लेखक के अनुसार जूते की कीमत टोपी से अधिक रही है। टोपी केवल आठ आने में मिलती थी और जूता पाँच रुपये में।
(2) प्रस्तुत गद्यांश में यह व्यंग्य छुपा हुआ है कि ताकतवर हमेशा समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं और लोग भी उन्हीं का आदर करते हैं। वे साधारण लोगों को दबाते रहते हैं। जूते की ताकत के सामने लोग सिर झुकाते देखे गए हैं।
(3) लेखक को यह विडंबना चुभ रही थी कि प्रेमचंद इतना बड़ा साहित्यकार था और उसकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि वह फोटो खिंचाने के लिए एक अच्छा जूता नहीं खरीद सकता था। प्रेमचंद की यह विडंबनापूर्ण स्थिति लेखक के लिए असहनीय हो रही थी।
(4) लेखक ने प्रेमचंद के लिए महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक आदि विशेषणों का प्रयोग किया है।

5. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अंगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं!
तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिंचाऊँ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे। [पृष्ठ 62-63]

शब्दार्थ-तला = नीचे का भाग। जमीन = धरती। कुर्बान = न्योछावर । ठाठ से = बिना झिझक के।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक निबंध से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस निबंध में प्रेमचंद के जीवन की सादगी और आर्थिक अभाव को दर्शाते हुए दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य कसा गया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि लेखक की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है किंतु उसने उस पर पर्दा डाला हुआ है। प्रेमचंद अपनी स्थिति के प्रति चिंता नहीं करते थे। वे फटे जूते को भी मजे में पहने फिरते थे।

व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक कहता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है अर्थात मेरी आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है। दिखने में मेरा जूता ऊपर से अच्छा लगता है किंतु जैसा दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं अर्थात मेरी आर्थिक दशा देखने भर के लिए अच्छी लगती है क्योंकि मैंने अपनी हीन आर्थिक दशा पर पर्दा डाला हुआ है। जैसे मेरा जूता ऊपर से ठीक लगता है परंतु उसका नीचे का भाग टूट चुका है। अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी या सख्त मिट्टी पर तो कभी रगड़ खाने पर खून भी बहने लगता है। इस प्रकार एक दिन पूरा तला गिर जाएगा और पूरा पँजा जख्मी हो जाएगा, किंतु अँगुली बाहर नहीं दिखाई देगी। कहने का भाव है कि लेखक अपनी आर्थिक दुर्दशा को छिपाए रखना चाहता है। किंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति को छिपाते। उनके फटे जूते में से उनकी अंगुली दिखती रही किंतु उन्होंने इसकी कभी चिंता नहीं की। वे फटे जूते को भी बिना किसी झिझक के पहनते रहे। परंतु उनका पाँव सुरक्षित रहा। वे फटे-हाल में रहकर भी मौज-मस्ती और बेपरवाही से जीवित रहे। प्रेमचंद परदे के महत्त्व को नहीं जानते थे। जबकि लेखक परदे पर जीवन छिड़कते थे अर्थात दिखावा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेखक पुनः कहता है कि तुम फटा जूता बड़ी शान और बेपरवाही से पहनते रहे, किंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं फटे जूते में फोटो तो कभी नहीं खिंचवाऊँगा चाहे कोई मेरी जीवनी बिना फोटो के ही क्यों न छाप दे।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की दयनीय आर्थिक दशा के साथ-साथ उनके सरल एवं मौज-मस्ती वाले स्वभाव को भी उद्घाटित किया है।
  2. लेखक ने अपनी और अपने जैसे दूसरे लेखकों की दिखावे की प्रवृत्ति या आर्थिक दुर्दशा पर पर्दा डालने की प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक के अनुसार किसका मूल्य ज्यादा रहा और क्यों?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में कौन-सा व्यंग्य छुपा हुआ है?
(3) कौन-सी विडंबना लेखक को चुभ रही थी?
(4) लेखक ने प्रेमचंद जी के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
(1) लेखक के अनुसार जूते की कीमत टोपी से अधिक रही है। टोपी केवल आठ आने में मिलती थी और जूता पाँच रुपये में।
(2) प्रस्तुत गद्यांश में यह व्यंग्य छुपा हुआ है कि ताकतवर हमेशा समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं और लोग भी उन्हीं का आदर करते हैं। वे साधारण लोगों को दबाते रहते हैं। जूते की ताकत के सामने लोग सिर झुकाते देखे गए हैं।
(3) लेखक को यह विडंबना चुभ रही थी कि प्रेमचंद इतना बड़ा साहित्यकार था और उसकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि वह फोटो खिंचाने के लिए एक अच्छा जूता नहीं खरीद सकता था। प्रेमचंद की यह विडंबनापूर्ण स्थिति लेखक के लिए असहनीय हो रही थी।
(4) लेखक ने प्रेमचंद के लिए महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक आदि विशेषणों का प्रयोग किया है।

6. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अंगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं!
तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिंचाऊँ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे।
[पृष्ठ 62-63]

शब्दार्थ-तला = नीचे का भाग। जमीन = धरती। कुर्बान = न्योछावर। ठाठ से = बिना झिझक के।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक निबंध से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिशंकर परसाई हैं। इस निबंध में प्रेमचंद के जीवन की सादगी और आर्थिक अभाव को दर्शाते हुए दिखावा करने वाले लोगों पर करारा व्यंग्य कसा गया है। इन पंक्तियों में बताया गया है कि लेखक की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है किंतु उसने उस पर पर्दा डाला हुआ है। प्रेमचंद अपनी स्थिति के प्रति चिंता नहीं करते थे। वे फटे जूते को भी मजे में पहने फिरते थे।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक कहता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है अर्थात मेरी आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है। दिखने में मेरा जूता ऊपर से अच्छा लगता है किंतु जैसा दिखाई देता है वास्तव में वैसा है नहीं अर्थात मेरी आर्थिक दशा देखने भर के लिए अच्छी लगती है क्योंकि मैंने अपनी हीन आर्थिक दशा पर पर्दा डाला हुआ है। जैसे मेरा जूता ऊपर से ठीक लगता है परंतु उसका नीचे का भाग टूट चुका है। अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी या सख्त मिट्टी पर तो कभी रगड़ खाने पर खून भी बहने लगता है। इस प्रकार एक दिन पूरा तला गिर जाएगा और पूरा पँजा जख्मी हो जाएगा, किंतु अँगुली बाहर नहीं दिखाई देगी। कहने का भाव है कि लेखक अपनी आर्थिक दुर्दशा को छिपाए रखना चाहता है। किंतु प्रेमचंद ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी आर्थिक दयनीय स्थिति को छिपाते। उनके फटे जूते में से उनकी अँगुली दिखती रही किंतु उन्होंने इसकी कभी चिंता नहीं की। वे फटे जूते को भी बिना किसी झिझक के पहनते रहे। परंतु उनका पाँव सुरक्षित रहा। वे फटे-हाल में रहकर भी मौज-मस्ती और बेपरवाही से जीवित रहे। प्रेमचंद परदे के महत्त्व को नहीं जानते थे। जबकि लेखक परदे पर जीवन छिड़कते थे अर्थात दिखावा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेखक पुनः कहता है कि तुम फटा जूता बड़ी शान और बेपरवाही से पहनते रहे, किंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं फटे जूते में फोटो तो कभी नहीं खिंचवाऊँगा चाहे कोई मेरी जीवनी बिना फोटो के ही क्यों न छाप दे।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की दयनीय आर्थिक दशा के साथ-साथ उनके सरल एवं मौज-मस्ती वाले स्वभाव को भी उद्घाटित किया है।
  2. लेखक ने अपनी और अपने जैसे दूसरे लेखकों की दिखावे की प्रवृत्ति या आर्थिक दुर्दशा पर पर्दा डालने की प्रवृत्ति का उल्लेख करते हुए व्यंग्य किया है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) लेखक का अपना जूता कैसा है?
(2) प्रस्तुत गद्यांश में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
(3) लेखक अपने बारे में क्या बताता है?
(4) परदे के प्रसंग पर लेखक तथा प्रेमचंद में क्या अंतर है?
उत्तर-
(1) लेखक का अपना जूता भी अच्छी स्थिति में नहीं था। यद्यपि वह ऊपर से अच्छा दिखाई देता था, परंतु उसका तला (नीचे का भाग) टूट चुका था जिससे उसका अँगूठा रगड़ खाता था, किंतु अँगुली बाहर दिखाई नहीं देती थी।

(2) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अपने जैसे उन लोगों पर व्यंग्य किया है जिनकी आर्थिक स्थिति वास्तव में अच्छी नहीं होती, किंतु वे उन पर परदा डालकर अच्छी आर्थिक स्थिति वाले दिखाई देना चाहते हैं। ऐसे लोग अपनी दयनीय स्थिति को प्रकट नहीं होने देना चाहते किंतु दूसरी ओर प्रेमचंद जैसे लोग भी हैं जो अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति पर परदा नहीं डालते। दिखावा करने वाले लोग कभी मौज-मस्ती में नहीं जी सकते। वे सदा चिंतामुक्त जीवन जीने के लिए विवश रहते हैं।

(3) लेखक ने अपने बारे में बताया है कि वह परदे में विश्वास रखता है। वह फटा जूता नहीं पहन सकता और इस स्थिति में फोटो तो कतई नहीं खिंचवा सकता। प्रेमचंद के जीवन की दयनीय स्थिति के विषय में बेपरवाही से वह सहमत नहीं है।

(4) परदे के प्रश्न को लेकर लेखक और प्रेमचंद दोनों के विचार विपरीत हैं। लेखक परदे को अनिवार्य मानता है, जबकि प्रेमचंद परदे के बिल्कुल पक्ष में नहीं हैं। उनका जीवन तो खुली पुस्तक की भाँति रहा है, जबकि लेखक जीवन की कमियों को छुपाकर जीने में विश्वास रखते हैं। प्रेमचंद अपनी छवि को बनाने के फेर में नहीं पड़े।

6. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमज़ोरी? ‘नेम-थरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुसकरा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी!
तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती-सी लगती है, जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो?
[पृष्ठ 64]

शब्दार्थ-कमजोरी = कमी। नेम-धरम = कर्त्तव्य पालन करना । जंजीर = बंधन। घृणित = घृणा करने योग्य। इशारा = संकेत।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 1 में संकलित, श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित सुप्रसिद्ध निबंध ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से अवतरित है। इस निबंध में लेखक ने प्रेमचंद जी के सादगी युक्त एवं अंदर-बाहर से एक दिखाई देने वाले जीवन का उल्लेख किया है। साथ ही जीवन में दिखावा करने वाले लोगों के जीवन पर व्यंग्य किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेमचंद के जीवन की कर्त्तव्यनिष्ठता की ओर संकेत किया है।

व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने बताया है कि प्रेमचंद जीवन भर परिस्थितियों से समझौता नहीं कर सके। यह उनके जीवन में बहुत बड़ी कमी थी, क्योंकि समझौता करने वाले लोग सुखी जीवन व्यतीत करते हैं और जो समझौता नहीं कर सकते, उन्हें जीवन में कष्ट उठाने पड़ते हैं इसलिए लेखक ने समझौता न कर सकने को जीवन की कमजोरी बताया है। यही कमजोरी प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास ‘गोदान’ के नायक होरी की भी रही है। वह समझौता नहीं कर सका तथा ‘नेम-धरम’ की पालना उसके जीवन की कमजोरी बनी रही। ‘नेम-धरम’ उसके लिए बहुत बड़ा बंधन सिद्ध हुआ, किंतु फोटो में प्रेमचंद जिस अंदाज से मुस्करा रहे थे, उससे लगता है कि उनके लिए, शायद यह ‘नेम-धरम’, बंधन नहीं अपितु मुक्ति थी। … लेखक ने फोटो में उनके फटे जूते से बाहर निकली हुई अँगुली को देखकर कहा है कि तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती हुई-सी लगती है कि जिस वस्तु या विचार से तुम घृणा करते हो उसकी तरफ तुम हाथ से नहीं पाँव की इस अंगुली से संकेत करते हो।

विशेष-

  1. लेखक ने प्रेमचंद की नैतिकता की ओर संकेत किया है। उन्हें नैतिकता का पालन करने में अपनी विवशता का नहीं, अपितु आनंद का अनुभव होता था।
  2. लेखक ने उनके फटे जूते में से दिखाई देने वाली अँगुली को लेकर घृणित वस्तु के लिए संकेत करती हुई-सी की सुंदर कल्पना की है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।

उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1) प्रेमचंद की कमजोरी क्या थी?
(2) प्रस्तुत गद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(3) ‘नेम-धरम’ प्रेमचंद के लिए बंधन न होकर मुक्ति थी-कैसे?
(4) जंजीर होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
(1) प्रेमचंद की यह कमजोरी थी कि वे गलत बातों से कभी भी समझौता नहीं करते थे। वे अपने ‘नेम-धरम’ के पक्के थे।

(2) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख भाव प्रेमचंद के सादगी युक्त जीवन पर प्रकाश डालना है। प्रेमचंद ने जीवन में गलत बातों के लिए या जीवन में सुख पाने के लिए कभी भी समझौता नहीं किया था। उनके जीवन की यही सबसे बड़ी कमजोरी भी थी। उनके उपन्यास ‘गोदान’ के नायक होरी की भी यही कमजोरी थी। वह भी ‘नेम-धरम’ को आजीवन नहीं छोड़ सका। वह नैतिकता शायद होरी के लिए बंधन थी। उसे वह मानसिक रूप से अपना चुका था। किंतु प्रेमचंद फोटो में जिस प्रकार मुस्करा रहे थे उससे लगता है कि उनके लिए ‘नेम-धरम’ बंधन नहीं, अपितु मुक्ति का कारण था क्योंकि वे ‘नेम-धरम’ का पालन करना अपना कर्त्तव्य समझते थे। यह उनकी मजबूरी नहीं थी। उन्होंने इसका पालन करके आनंद का अनुभव किया था, न कि उसे बोझ या बंधन समझा था।

(3) वे ‘नेम-धरम’ का पालन किसी दबाव में आकर नहीं अपितु अपनी इच्छा से अपने आनंद या सुख-चैन के लिए करते थे। ‘नेम-धरम’ या नैतिकता का पालन करने में उन्हें मुक्ति का सुख अनुभव होता है। इसलिए ‘नेम-धरम’ उनके लिए बंधन नहीं मुक्ति थी।

(4) जंजीर होने का अभिप्राय है-बंधन या बाधा होना। वस्तुतः होरी ‘नेम-धरम’ का पालन इसलिए करता है ताकि कोई उसको अनैतिक न कहे। इसलिए ‘नेम-धरम’ उसके लिए जंजीर के समान था।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindi

प्रेमचंद के फटे जूते लेखक-परिचय

प्रश्न-
श्री हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी का जन्म 22 अगस्त, 1922 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। उन्होंने बाद में नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० हिंदी की परीक्षा उत्तीर्ण की। आरंभ में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने अध्यापन-कार्य किया, किंतु सन् 1947 में अध्यापन कार्य को त्यागकर लेखन कार्य को ही जीवन-यापन का साधन बना लिया। उन्हीं दिनों श्री परसाई जी ने वसुधा नामक पत्रिका का संपादन आरंभ किया था, किंतु घाटे के कारण उसे बंद करना पड़ा। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं। इनकी सुप्रसिद्ध रचना ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ पर साहित्य अकादमी द्वारा इन्हें पुरस्कृत भी किया गया। आजीवन साहित्य रचना करते हुए श्री परसाई सन 1995 में इस नश्वर संसार को त्यागकर स्वर्गलोक में जा पहुंचे।

2. प्रमुख रचनाएँ श्री हरिशंकर परसाई जी ने बीस से अधिक रचनाएँ लिखीं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-
(i) कहानी-संग्रह ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’।
(ii) उपन्यास-‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ ।
(iii) निबंध-संग्रह–’तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘सदाचार का तावीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘बेईमानी की परत’ आदि।।
(iv) व्यंग्य-संग्रह ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘तिरछी रेखाएँ’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ आदि।

3. साहित्यिक विशेषताएँ श्री परसाई जी व्यंग्य लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में व्यंग्य केवल व्यंग्य के लिए नहीं होते, अपितु व्यंग्य के माध्यम से वे समाज में फैली हुई बुराइयों, भ्रष्टाचार व अन्य समस्याओं पर करारी चोट करते हैं। इसी प्रकार वे अपनी व्यंग्य रचनाओं में केवल मनोरंजन ही नहीं करते, अपितु सामाजिक जीवन के विविध पक्षों पर गंभीर चिंतन भी प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की कमजोरियों और विसंगतियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उनका व्यंग्य साहित्य हिंदी में बेजोड़ है। उनका शिष्ट एवं सधा हुआ व्यंग्य आलोचनात्मक एवं कटु सत्य से भरपूर होने के कारण पाठकों के लिए ग्राह्य होता है। परसाई जी ने उच्च स्तर के व्यंग्य लिखकर व्यंग्य को हिंदी में एक प्रमुख विधा के रूप में स्थापित किया है। इनकी व्यंग्य रचनाओं की अन्य प्रमुख विशेषता है कि वे पाठक के मन में कटुता या कड़वाहट उत्पन्न न करके समाज की समस्याओं पर चिंतन-मनन करने व उनके समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती हैं।

4. भाषा-शैली निश्चय ही श्री परसाई जी ने व्यंग्य विधा के अनुकूल सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। वे व्यंग्य-भाषा के प्रयोग में अत्यंत कुशल हैं। वे शब्द-प्रयोग के भी महान मर्मज्ञ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में भाषा का भाव एवं प्रसंग के अनुकूल प्रयोग किया है। उनकी भाषा में लोकप्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया गया है। उन्होंने तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग भी किया है। तत्सम, तद्भव शब्दों के साथ-साथ अरबी-फारसी व अंग्रेजी शब्दावली का सार्थक एवं सटीक प्रयोग भी देखने को मिलता है। .

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ-सार/गद्य-परिचय

प्रश्न-
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने एक ओर प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी और दूसरी ओर आज के समाज में फैली दिखावे. की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है.। लेखक ने बताया है कि सिर पर मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हुए प्रेमचंद ने अपनी पत्नी के साथ फोटो खिंचवाई, किंतु पाँव में जो बेतरतीबी से बँधे हुए जूते थे, उनमें से एक जूता आगे से फटा हुआ था। फोटोग्राफर ने तो क्लिक करके अपना काम पूरा कर दिया होगा किंतु प्रेमचंद जी अपने दर्द की गहराई से निकालकर जिस मुस्कान को होंठों तक लाना चाहते थे, वह बीच में ही रह गई होगी।

प्रेमचंद के फटे जूतों वाली फोटो को देखकर लेखक चिंता में पड़ गया। यदि फोटो खिंचवाते समय पोशाक का यह हाल है तो वास्तविक जीवन में क्या रहा होगा। किंतु फिर ख्याल आया कि प्रेमचंद जी बाहर-भीतर की पोशाक रखने वाले आदमी नहीं थे। लेखक सोच में डूब गया कि प्रेमचंद तो हमारे साहित्यिक पुरखे हैं, फिर भी उन्हें अपने फटे जूतों का जरा भी अहसास नहीं है। उनके चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास है। किंतु आश्चर्य की बात तो यह है कि उस समय प्रेमचंद के चेहरे पर व्यंग्य भरी हँसी थी। लेखक सोचता है कि प्रेमचंद ने फोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं कर दिया। फिर लगा कि पत्नी का आग्रह होगा। लेखक प्रेमचंद के दुःख को देखकर बहुत दुःखी हुआ। वह रोना चाहता है किंतु उसे प्रेमचंद की आँखों का दर्द भरा व्यंग्य रोक देता है।

लेखक सोचता है कि लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए कपड़े, जूते तो क्या बीवी तक माँग लेते हैं। फिर प्रेमचंद ने ऐसा क्यों नहीं किया। आजकल तो लोग इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में से सुगंध आए। गंदे व्यक्तियों की फोटो खुशबूदार होती है। लेखक को प्रेमचंद का फटा जूता देखकर बड़ी ग्लानि होती है।

लेखक अपने जूते के विषय में सोचता है कि उसका जूता भी कोई अच्छी दशा में नहीं था। उसके जूते का तला घिसा हुआ था। वह ऊपरी पर्दे का ध्यान अवश्य रखता है। इसलिए अँगुली बाहर नहीं निकलने देता। वह फटा जूता पहनकर फोटो तो कभी न खिंचवाएगा।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

लेखक का ध्यान फिर प्रेमचंद की व्यंग्य भरी हँसी की ओर चला जाता है। वह सोचता है कि उनकी इस रहस्यमयी हँसी का भला क्या रहस्य हो सकता है? क्या कोई हादसा हो गया या फिर कोई होरी मर गया अथवा हल्कू का खेत नीलगाय चर गई या फिर घीसू का बेटा माधो अपनी पत्नी का कफन बेचकर शराब पी गया। लेखक को फिर याद आ गया कि कुंभनदास का जूता भी तो फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिस गया था।

लेखक को फिर बोध हुआ कि शायद प्रेमचंद जीवन-भर किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। वे रास्ते में खड़े टीले से बचने की अपेक्षा उस पर जूते की ठोकर मारते रहे होंगे। वे समझौता नहीं कर सकते थे। जैसे गोदान का होरी ‘नेम-धरम’ नहीं छोड़ सका; वैसे ही प्रेमचंद भी आजीवन नेम-धर्म नहीं छोड़ सके। यह उनके लिए मुक्ति का साधन था। प्रेमचंद की जूते से बाहर निकली अंगुली उसी वस्तु की ओर संकेत कर रही है जिस पर ठोकर मारकर उन्होंने अपने जूते फाड़ लिए थे। वे अब भी उन लोगों पर हँस रहे हैं जो अपनी अँगुली को ढकने की चिंता में तलवे घिसाए जा रहे हैं। लेखक ने कम-से-कम अपना पाँव तो बचा लिया। परंतु लोग तो दिखावे के कारण अपने तलवे का नाश कर रहे हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ –

[पृष्ठ-61] : कनपटी = कानों के पास का भाग। केनवस = एक प्रकार का मोटा कपड़ा। बेतरतीब = बेढंगे। दृष्टि = नज़र । लज्जा = शर्म। क्लिक = फोटो खींचने की आवाज। विचित्र = अनोखा। उपहास = मजाक। व्यंग्य = तीखी बातों की चोट।

[पृष्ठ-62] : आग्रह = जोरदार शब्दों में कहना। क्लेश = दुःख। वर = दुल्हा। आनुपातिक मूल्य = अनुपात के हिसाब से मूल्य तय करना। तीव्रता = तेजी। युग-प्रवर्तक = युग को आरंभ करने वाला। कुर्बान = न्योछावर।

[पृष्ठ-63] : ठाठ = शान-शौकत। तगादा = जल्दी लौटाने के लिए संदेश भेजना। पन्हैया = जूती। बिसर गयो = भूल गया। हरि नाम = भगवान का नाम।

[पृष्ठ-64] : नेम-धरम = कर्त्तव्य। जंजीर = बंधन। मुक्ति = स्वतंत्रता। घृणित = घृणा करने योग्य। बरकाकर = बचाकर।

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