HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

सूरदास के पद HBSE 10th Class प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है? ।
उत्तर-
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहकर वास्तव में उसके दुर्भाग्य पर व्यंग्य किया गया है जो व्यक्ति प्रेम के सागर श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी प्रेम रूपी जल को प्राप्त नहीं कर सकता, वह वास्तव में दुर्भाग्यशाली ही होगा। गोपियों के कहने का अभिप्राय यह है कि उद्धव के हृदय में प्रेम जैसी पावन भावना का संचार नहीं है। इसलिए वह भाग्यवान नहीं, अपितु भाग्यहीन है।

सूरदास के पद Sanskrit HBSE 10th Class प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर-
उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते एवं तेल की गगरी से की गई है। जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहता हुआ भी उससे प्रभावित नहीं होता अर्थात् उस पर पानी की बूंदों के दाग नहीं पड़ते और तेल की गगरी भी चिकनी होती है। उस । पर पानी की बूंदें भी नहीं ठहर सकतीं। ठीक इसी प्रकार उद्धव पर भी श्रीकृष्ण के प्रेम का प्रभाव नहीं पड़ सका।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर-
गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा उद्धव को उलाहने दिए हैं-
वे कहती हैं कि हे उद्धव ! हमारी प्रेम-भावना हमारे मन में ही रह गई है। हम तो कृष्ण को अपने मन की प्रेम-भावना बताना चाहती थीं किंतु उनका यह योग का संदेश सुनकर तो हम उन्हें कुछ भी नहीं बता सकतीं। हम तो श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा में जीवित थीं। हमें उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण अवश्य ही एक-न-एक दिन लौट आएँगे, किंतु उनका यह संदेश सुनकर हमारी आशा ही नष्ट हो गई और हमारे विरह की आग और भी भड़क उठी। इससे तो अच्छा था कि तू आता ही न। गोपियों को यह भी आशा थी कि श्रीकृष्ण प्रेम की मर्यादा का पालन करेंगे। वे उनके प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देंगे। किंतु उन्होंने निर्गुणोपासना का संदेश भेजकर प्रेम की सारी मर्यादा को तोड़ डाला। इस प्रकार वह मर्यादाहीन बन गया है।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के सदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर-
श्रीकृष्ण के मथुरा गमन के पश्चात् गोपियाँ विरह की आग में जलती रहती थीं। वे श्रीकृष्ण को याद करके तड़पती रहती थीं। उन्हें आशा थी कि एक-न-एक दिन श्रीकृष्ण अवश्य लौटकर आएँगे और तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम पुनः मिल जाएगा। श्रीकृष्ण के आने पर वे अपने हृदय की पीड़ा को उनके सामने व्यक्त करेंगी। किंतु उसी समय उद्धव श्रीकृष्ण द्वारा भेजा गया योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आ पहुँचा तब गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई। उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना भी नहीं की थी। इससे उनका विश्वास टूट गया था। विरहाग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा था। योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया था। इसीलिए उन्होंने उद्धव और श्रीकृष्ण को मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर-
कवि ने इस कथन के माध्यम से स्पष्ट किया है कि प्रेम की मर्यादा यही है कि प्रेमी व प्रेमिका दोनों ही प्रेम के नियमों . का पालन करें अर्थात् प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देवें। प्रेम की सच्ची भावना को समझते हुए प्रेम की मर्यादा का पालन करें, किंतु श्रीकृष्ण ने गोपियों के प्रेम के बदले उन्हें योग-साधना अपनाने का संदेश भेज दिया जो कि उनकी एक चाल थी। श्रीकृष्ण की इसी छलपूर्वक चाल को ही मर्यादा का उल्लंघन कहा गया है।

प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा ही अपने पंजों में लकड़ी को पकड़े रहता है और उसे अपने जीवन का आधार समझता है; उसी प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम को अपने जीवन का आधार समझती हैं और सदा उसे अपने हृदय में बसाए रहती हैं। वे मन से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं। इसलिए वे दिन-रात, सोते-आगते, उठते-बैठते तथा स्वप्न में भी कान्ह-कान्ह रटती रहती हैं। इस प्रकार गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को अभिव्यक्त किया है।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार उनका मन श्रीकृष्ण के प्रेम में लगा हुआ है। वे एकनिष्ठ भाव से ही कृष्ण से प्रेम करती हैं। इसलिए उनके मन में किसी प्रकार की उलझन व दुविधा नहीं है। अतः वे कहती हैं कि उद्धव को यह शिक्षा उन लोगों को देनी चाहिए जिनके मन चकरी की भाँति घूमते हों अर्थात् जिनके मन में दुविधा हो व जिनके मन अस्थिर हों।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर-
गोपियों के लिए योग-साधना बिल्कुल निरर्थक है। उनके लिए तो यह कड़वी ककड़ी की भाँति व्यर्थ एवं अरुचिकर है। योग-साधना की शिक्षा उनके लिए कष्टप्रद है। वह उनके कानों को भी कष्ट देने वाली प्रतीत होती है। इतना ही नहीं, वे योग-साधना को अनीतिपूर्ण, शास्त्र-विरुद्ध एवं अग्रहणीय बताकर उनका विरोध करती हैं। वे यहाँ तक कह देती हैं कि इस साधना की शिक्षा तो उन लोगों को दो जिनके मन भ्रम में पड़े हो, जिनके मन अस्थिर हों।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म प्रजा की रक्षा व कल्याण करना होना चाहिए। उसे अपनी प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिए। उसे प्रजा के सुख-चैन का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार अब श्रीकृष्ण बदल गए हैं। अब वे मथुरा के राजा बन गए हैं और उन्होंने राजनीति भी पढ़ ली है। अब वे पहले से भी अधिक बुद्धिमान् व चतुर हो गए हैं। अब वे प्रजा (गोपियों) के हित की नहीं सोचते। वे केवल अपने स्वार्थ की बात सोचते हैं। उन्होंने गोपियों की विरह-वेदना को शांत करने के लिए स्वयं न आकर उद्धव के माध्यम से योग-संदेश भेजकर उन्हें भड़काने का काम किया है जो उनके प्रति अन्याय एवं अहितकर है।

प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य से उद्धव को निरुत्तर कर दिया था। गोपियों ने सर्वप्रथम उन्हें भाग्यशाली कहा कि उनके मन को प्रेम छू न सका। जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहता है किंतु पानी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार तेल की गगरी पर भी पानी की बूंद तक नहीं ठहर सकती परंतु गोपियों के अनुसार योग-साधना उन लोगों के लिए है जिनका मन अस्थिर रहता है या जिनका मन चकरी की भाँति दुविधा में रहता है। वे स्वयं को हारिल पक्षी और श्रीकृष्ण को हारिल पक्षी द्वारा पकड़ी हई लकड़ी बताती हैं जिससे उन्हें श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम का बोध होता है। इस प्रकार वे अपने वाक्चातुर्य से उद्धव को परास्त करने में सफल होती हैं।

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प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
सूर के भ्रमरगीत की सबसे प्रमुख विशेषता है कि इसमें गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यञ्जना हुई है। वे अपने हृदय में हारिल पक्षी की भाँति श्रीकृष्ण के प्रेम को सदैव बसाए रखती हैं। गोपियाँ उद्धव को अपने वाक्चातुर्य से परास्त कर देती हैं जिससे सिद्ध हो जाता है कि कवि ने सगुण की निर्गुण पर विजय दिखाई है।
भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, विरह की पीड़ा, प्रार्थना, आस्था, अनास्था, गुहार आदि अनेक भावों को एक साथ व्यक्त करने का सफल प्रयास किया गया है।
भ्रमरगीत में ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। भाषा में जितना माधुर्यगुण है उतनी ही कटाक्ष व व्यंग्य करने की क्षमता भी। संपूर्ण भ्रमरगीत में कवि ने अनेक अलंकारों का प्रयोग करके भाषा को अलंकृत किया है। भ्रमरगीत में विचारधारा के पक्ष के लिए श्रीकृष्ण पर्दे के पीछे रहते हैं, किंतु गोपियाँ सामने आकर वार करती दिखाई देती हैं। . रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर-
गोपियाँ उद्धव को बता रही हैं कि हे उद्धव! यदि यह योग-साधना इतनी उत्तम वस्तु है तो इसे मथुरावासियों को क्यों नहीं सिखाते। फिर हम तो श्रीकृष्ण की एक मन से आराधना करती हैं। हमारे पास तो उनका प्रेम ही जीवन के आधार के रूप में विद्यमान है। जिस व्यक्ति ने मीठी मिसरी का स्वाद चख लिया हो वह भला कड़वी निबौरी क्यों खाएगा। हम गोपियाँ कोमलांग युवतियाँ हैं, जबकि योग-साधना बहुत ही कठिन शारीरिक साधना है। इसलिए योग-साधना की शिक्षा या उपदेश कहीं और जाकर दीजिए।

प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर-गोपियों के पास श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेम की शक्ति, उनके प्रति निष्ठा और पूर्ण समर्पण भाव की वह शक्ति थी, जो . उद्धव के समक्ष उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी।

प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के प्रति सहचर्य से उत्पन्न सच्चा प्रेम था। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के पश्चात् उनके विरह की पीड़ा से व्याकुल थीं। श्रीकृष्ण ने उनकी विरह की पीड़ा से उत्पन्न व्याकुलता को शांत करने के लिए स्वयं आने की अपेक्षा निर्गुण ईश्वर की उपासना का ज्ञान देने के लिए उद्धव को भेज दिया। श्रीकृष्ण के निर्मम और अनीतिपूर्ण व्यवहार पर व्यंग्य करते हुए गोपियाँ उन्हें राजनीतिज्ञ की संज्ञा देती हैं। गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में भी दिखाई देता है। जो मनुष्य शासन या राजनीति से जुड़ जाता है, वह शुष्क एवं नीरस व्यवहार करने लगता है। उसके मन में प्रेम, स्नेह जैसी कोमल भावनाएँ लुप्त हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त वह प्रेम के व्यवहार की मर्यादाएँ भी भूल जाता है।

HBSE 10th Class Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सूरदास किस भक्ति-भावना के पक्ष में थे? उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
सूरदास सगुण भक्ति-भावना के पक्ष में थे। उनकी गोपियाँ भगवान् विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की उपासिकाएँ थीं। वे श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम करती थीं। गोपियाँ अपने संबंध में कहती हैं कि “अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी” । वे हारिल पक्षी का उदाहरण देती हुई कहती हैं कि हम हारिल की लकड़ी के समान कृष्ण की सच्ची आराधिका हैं अर्थात् वे अपने हृदय में हर क्षण श्रीकृष्ण को बसाए रहती हैं। सूरदास ने सगुण भक्ति में प्रेम की भावना को अनिवार्य माना है तथा उसकी मर्यादा का पालन करना भी अनिवार्य बताया है। वे निर्गुणोपासना या योग-साधना की अवहेलना ‘कड़वी- ककड़ी’ कहकर करते हैं तो कभी उसे ‘व्याधि’ कहकर उसका विरोध करते हैं। इन सब तथ्यों से स्पष्ट है कि सूरदास सगुण भक्ति-भावना के उपासक हैं।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित पदों में भक्त कवि सूरदास ने बताया है कि गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम की भावना थी। वे अपना सर्वस्व श्रीकृष्ण के प्रेम में त्याग चुकी थीं। उनकी प्रेमनिष्ठता के सामने निर्गुण ईश्वर का उपासक उद्धव भी परास्त हो जाता है। उद्धव का मान-सम्मान करते हुए वे उन पर सीधा कटाक्ष न करते हुए उन्हें मधुकर कहकर संबोधित करती हैं। वे लोक-मर्यादा का पूर्ण ध्यान रखती हैं। श्रीकृष्ण द्वारा प्रेम की मर्यादा का पालन न करने पर उन्हें बहुत दुःख होता है। वे श्रीकृष्ण के वियोग में पीड़ा सहन करती हैं। वे दिन-रात, सोते-जागते यहाँ तक कि स्वप्न में भी श्रीकृष्ण के नाम की रट लगाती रहती हैं।

प्रश्न 3.
पठित पदों के मूल संदेश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सूरदास-कृत इन पदों में गोपियों एवं उद्धव के संवाद के माध्यम से निर्गुण ईश्वर की भक्ति पर सगुण ईश्वर की भक्ति की भावना की विजय दिखाई गई है। उद्धव गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम-भावना को देखकर दंग रह जाता है। वह गोपियों के द्वारा किए गए तर्कों का कोई उत्तर नहीं दे सकता। सूरदास ने गोपियों के माध्यम से सख्य-भाव की भक्ति का उद्घाटन किया है। इसीलिए वे श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करने से भी नहीं चूकतीं। अलौकिक धरातल पर यदि देखा जाए तो सूरदास ने आत्मा और परमात्मा के मिलन व सामीप्य का साक्षात्कार करवाया है। यही इन पदों का परम लक्ष्य भी है।

प्रश्न 4.
‘ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए’-काव्य-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने गोपियों के प्रति श्रीकृष्ण द्वारा अपनाई गई अनीति की ओर संकेत किया है। गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण तो सबको अन्याय से छुड़ाने वाले हैं अर्थात् वे किसी के प्रति अन्याय होता नहीं देख सकते, फिर वे प्रेम के बदले में योग-संदेश भेजकर हमारे प्रति अन्याय क्यों कर रहे हैं? कवि के कहने का भाव यह है कि गोपियों के लिए श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति ही श्रेष्ठ मार्ग है फिर भला योग संदेश भेजकर वे हमारे मार्ग में बाधा क्यों खड़ी कर रहे हैं। यह तो हमारे प्रति अन्याय है। अन्याय से छुड़वाने वाला ही अन्याय करे तो फिर कोई क्या कर सकता है।

(ख) संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

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प्रश्न 5.
“हमारे हरि हारिल की लकरी” के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि ईश्वर-प्राप्ति हेतु हमें सच्चे मन से ईश्वर को हृदय में बसाना होगा। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा ही अपने पंजों में लकड़ी पकड़े रहता है, उसे एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ता; उसी प्रकार भक्त को अत्यंत निष्ठा एवं दृढ़तापूर्वक भगवान् का नाम स्मरण करना चाहिए। जब भक्त सांसारिक मोह त्यागकर दिन-रात, सोते-जागते व स्वप्न में भी प्रभु का नाम स्मरण करता है, तभी वह प्रभु का साक्षात्कार कर सकता है। .

प्रश्न 6.
“हरि हैं राजनीति पढ़ि आए” में श्रीकृष्ण की किस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर-
इस पंक्ति में गोपियों ने श्रीकृष्ण की उस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वे प्रेम की मर्यादा को ठीक प्रकार से नहीं निभाते। कहने का भाव यह है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण से सच्चे मन से प्रेम करती हैं और उनकी विरह की पीड़ा में व्याकुल हैं। ऐसे में उन्हें स्वयं आकर गोपियों से मिलकर उनके विरह की व्याकुलता को शांत करना चाहिए था किंतु वे निर्गुण ईश्वर के उपासक उद्धव की परीक्षा लेने हेतु उसे योग का संदेश देकर गोपियों के पास भेज देते हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की इस नीति को देखते हुए उन्हें कहती हैं कि श्रीकृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। अब वे राजनीतिज्ञों की भाँति व्यवहार करते हैं।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ क्यों कहा है? सूरदास इसके माध्यम से किन लोगों पर व्यंग्य करना चाहते हैं ?
उत्तर-
गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ व्यंग्य में कहा है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं और अब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए हैं। वे उनके विरह में पीड़ित रहती हैं। उद्धव मथुरा में श्रीकृष्ण का मित्र बनकर रहता है, किंतु प्रेम के सागर श्रीकृष्ण के प्रेम से वंचित रहता है। इसलिए गोपियाँ व्यंग्य में उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं जिसका अर्थ दुर्भाग्यशाली है। अतः स्पष्ट है कि सूरदास ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जिन लोगों ने भगवान् से कभी प्रेम नहीं किया। भगवान् के प्रेम से वंचित रहने वाले लोगों का जीवन व्यर्थ है। भगवान् के प्रेम में चाहे कितने ही कष्ट हों, किंतु उससे ही जीवन की सार्थकता है।

प्रश्न 8.
गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति किस प्रकार समर्पित हैं?
उत्तर-
गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी को अपना आधार मानकर उसे पकड़े रहता है; उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति को अपने जीवन का आधार मानकर उनकी प्रेम-भक्ति में अपना सर्वस्व त्यागकर दिन-रात उन्हीं का ध्यान करती हैं। वे क्षणभर के लिए भी उनसे अपना ध्यान डिगने नहीं देतीं। वे मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं तथा उनके प्रेम के बंधन में बँधी हुई हैं।

अति लघत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास के उपास्य देव कौन थे?
उत्तर-
सूरदास के उपास्य देव श्रीकृष्ण थे।

प्रश्न 2.
‘पुरइनि पात’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘पुरइनि पात’ का अर्थ है – कमल का पत्ता।

प्रश्न 3.
‘धार बही’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
धार बही’ का अर्थ निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा है।

प्रश्न 4.
गोपियाँ सोते जागते रात-दिन किसका ध्यान करती हैं?
उत्तर-
गोपियाँ सोते जागते रात-दिन श्रीकृष्ण का ध्यान करती हैं।

प्रश्न 5.
‘सु तौ व्याधि हमकौं लै आए’ पंक्ति में ‘व्याधि’ किसे कहा गया है?
उत्तर-
इस पंक्ति में ‘ब्याधि’ योग साधना को कहा गया है।

प्रश्न 6.
‘मधुकर’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
‘मधुकर’ शब्द का प्रयोग उद्धव के लिए किया गया है।

प्रश्न 7.
जागते, सोते एवं स्वप्न में रात-दिन गोपियों को क्या रट रहती है?
उत्तर-
जागते, सोते एवं स्वप्न में रात-दिन गोपियों को श्रीकृष्ण के दर्शन की छवि की रट रहती है।

प्रश्न 8.
“हमारे हरि हारिल की लकरी’-यह किसने किसको कहा है?
उत्तर-
ये शब्द गोपियों ने उद्धव से कहे हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सूरदास की रचना कौन-सी है?
(A) रामचरितमानस
(B) सूरसागर
(C) बीजक
(D) पद्मावत
उत्तर-
(B) सूरसागर

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के मित्र का क्या नाम है, जो गोपियों को योग का संदेश देता है?
(A) बलराम
(B) नंद
(C) उद्धव
(D) अक्रूर
उत्तर-
(C) उद्धव

प्रश्न 3.
उद्धव को ‘बड़भागी’ किसने कहा है?
(A) यशोदा माता ने
(B) नंद ने
(C) कंस ने
(D) गोपियों ने
उत्तर-
(D) गोपियों ने

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प्रश्न 4.
उद्धव को बड़भागी कहने में कौन-सा भाव निहित है?
(A) पूजा का
(B) गुस्से का
(C) प्रशंसा का
(D) व्यंग्य का
उत्तर-
(D) व्यंग्य का

प्रश्न 5.
‘प्रीति-नदी’ किसके लिए प्रयोग किया गया है?
(A) उद्धव के लिए
(B) यशोदा के लिए
(C) नंद के लिए
(D) श्रीकृष्ण के लिए
उत्तर-
(D) श्रीकृष्ण के लिए

प्रश्न 6.
प्रथम पद में कौन अपने-आपको भोली और अबला समझती हैं?
(A) देवकी
(B) यशोदा
(C) गोपियाँ
(D) राधा
उत्तर-
(C) गोपियाँ

प्रश्न 7.
‘गुर चाँटी ज्यौं पागी’-यहाँ ‘गुर’ का अर्थ है
(A) गुरु
(B) बड़ा
(C) गुड़
(D) गुर सिखाना
उत्तर-
(C) गुड़

प्रश्न 8.
‘मन की मन ही माँझ रही’ का अर्थ है
(A) मन की दृढ़ता
(B) मन की बात मन में ही रहना
(C) मन का भेद
(D) मन का पाप
उत्तर-
(B) मन की बात मन में ही रहना

प्रश्न 9.
गोपियाँ कौन-सी बात किसे बताना चाहती थीं?
(A) अपने मन की बात श्रीकृष्ण को
(B) अपने मन की बात उद्धव को
(C) संसार के व्यवहार की बात अक्रूर को
(D) समाज की बात नंद को
उत्तर-
(A) अपने मन की बात श्रीकृष्ण को

प्रश्न 10.
उद्धव गोपियों को कौन-सा संदेश देता है?
(A) प्रेम का
(B) योग-साधना का
(C) मोक्ष-प्राप्ति का
(D) भक्ति का
उत्तर-
(B) योग-साधना का

प्रश्न 11.
गोपियाँ क्या नहीं सुनना चाहती थीं?
(A) योग-संदेश
(B) भक्ति योग
(C) विपश्यना
(D) कर्मयोग
उत्तर-
(A) योग-संदेश

प्रश्न 12.
गोपियों ने हरि (श्रीकृष्ण) की तुलना किससे की है?
(A) गिद्ध से
(B) बाज से
(C) हारिल से
(D) कबूतर से
उत्तर-
(C) हारिल से

प्रश्न 13.
गोपियों का मन चुराकर कौन ले गया?
(A) राम
(B) कृष्ण
(C) उद्धव
(D) गौतम
उत्तर-
(B) कृष्ण

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प्रश्न 14.
गोपियाँ ‘कड़वी ककड़ी’ किसे कहती हैं?
(A) ककड़ी को
(B) श्रीकृष्ण को
(C) यशोदा को
(D) उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को
उत्तर-
(D) उद्धव द्वारा दिए गए योग संदेश को

प्रश्न 15.
‘मन चकरी’ से क्या अभिप्राय है?
(A) मन की चालाकी
(B) मन का चक्र
(C) मन की अस्थिरता
(D) मन की स्थिरता
उत्तर-
(C) मन की अस्थिरता

प्रश्न 16.
गोपियों के अनुसार किसने राजनीति की शिक्षा प्राप्त की है?
(A) कंस ने
(B) नंद ने
(C) श्रीकृष्ण ने
(D) ऊधौ ने
उत्तर-
(C) श्रीकृष्ण ने

प्रश्न 17.
गोपियों के अनुसार पहले से ही चतुर कौन था?
(A) बलराम
(B) श्रीकृष्ण
(C) कंस
(D) उद्धव
उत्तर-
(B) श्रीकृष्ण

प्रश्न 18.
गोपियों ने योग के संदेश को किसके समान कड़वा कहा
(A) कड़वी ककड़ी के
(B) करेले के
(C) खीरे के
(D) नींबू के
उत्तर-
(A) कड़वी ककड़ी के

प्रश्न 19.
‘अपरस रहत सनेह तगा तें-यहाँ ‘अपरस’ का अर्थ है
(A) अलिप्त
(B) सरस
(C) मीठा
(D) कमल
उत्तर-
(A) अलिप्त

प्रश्न 20.
‘अपरस रहत सनेह तगा तें’ यहाँ ‘तगा’ का अर्थ है-
(A) सगा
(B) संबंधी
(C) धागा
(D) टूटना
उत्तर-
(C) धागा

सूरदास के पद पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोत्यौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी ॥
[पृष्ठ 5]

शब्दार्थ-बड़भागी = भाग्यशाली। अपरस = अछूता, दूर, अलिप्त। सनेह = प्रेम। तगा = धागा, बंधन। पुरइनि = कमल। पात = पत्ता। रस = जल। देह = शरीर। न दागी = दाग नहीं लगता। माह = में, भीतर। गागरि = मटकी। ताकौं = उसको। परागी = मुग्ध होना। अबला = नारी। भोरी = भोली। गुर = गुड़। चाँटी = चींटियाँ। पागी = लिपटना।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद के प्रसंग पर प्रकाश डालिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘अति बड़भागी’ में निहित व्यंग्य-भाव को स्पष्ट कीजिए।
(ङ) गोपियों ने किसके प्रति अपना प्रेमभाव व्यक्त किया?
(च) “सनेह तगा तैं अपरस रहना’-सौभाग्य है या दुर्भाग्य? स्पष्ट कीजिए।
(छ) ‘नाहिन मन अनुरांगी’ के माध्यम से किस पर और क्यों व्यंग्य किया गया है?
(ज) इस पद में किस ‘प्रीति-नदी’ की ओर संकेत किया गया है?
(झ) कौन स्वयं को भोरी और अबला समझती हैं और क्यों?
(ञ) ‘गुर चाँटी ज्यौं पागी’ के माध्यम से गोपियों की किस भावना को दर्शाया गया है?
(ट) इस पद में प्रयुक्त अलंकारों के नाम लिखिए।
(छ) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस पद के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ढ) इस पद में विद्यमान् गेय तत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
(ण) प्रस्तुत पद के भाषा वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।

(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में से लिया गया है। ‘सूरदास’ द्वारा रचित इस पद में उस समय का उल्लेख किया गया है जब श्रीकृष्ण मथुरा जाकर वहाँ के राजा बन जाते हैं। वे गोपियों को योग-मार्ग की शिक्षा देने के लिए अपने मित्र ऊधौ को वृंदावन भेजते हैं। श्रीकृष्ण का योग-मार्ग अपनाने का संदेश सुनकर गोपियाँ बेचैन हो उठती हैं। उनका प्रेम आहत हो उठता है। वे ऊधौ की बात सुनकर उस पर व्यंग्य करती हुई ये शब्द कहती हैं।

(ग) गोपियाँ श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे गए संदेश को सुनकर ऊधौ पर व्यंग्य करती हुई कहती हैं हे ऊधौ! तुम बहुत ही सौभाग्यशाली हो। तुम सदा ही प्रेम के बंधन से दूर रहे हो। तुमने कभी प्रेम की भावना को समझा ही नहीं। तुम्हारा मन किसी के प्रेम में डूबा ही नहीं। तुम श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम के बंधन में नहीं बँधे। जिस प्रकार कमल का पत्ता सदा पानी में रहता है, परंतु फिर भी उस पर पानी का दाग तक नहीं लगता; उस पर जल की बूंद नहीं ठहरती। इसी प्रकार तेल की मटकी को पानी में रख दिया जाए तो उस पर भी जल की एक बूंद नहीं ठहरती अर्थात् कमल के पत्ते और तेल की मटकी पर जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसी प्रकार श्रीकृष्ण की संगति में रहते हुए भी उनके प्रेम का प्रभाव ऊधौ पर नहीं पड़ता। तुमने तो आज तक प्रेम की नदी में अपना पैर तक नहीं डुबोया। तुम्हारी दृष्टि किसी के रूप को देखकर भी उसमें नहीं उलझी। किंतु हम तो भोली अबलाएँ हैं जो श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य को देखकर उसमें उलझ गईं। हम श्रीकृष्ण के प्रेम में इस प्रकार लिप्त हैं जिस प्रकार चींटियाँ गुड़ पर चिपट जाती हैं और फिर उससे कभी नहीं छूट सकतीं। वहीं अपने प्राण त्याग देती हैं।

(घ) गोपियों के द्वारा प्रयुक्त ‘अति बड़भागी’ अपने भीतर व्यंग्य भाव समेटे हुए है। वे मजाक भाव में ऊधौ को भाग्यशाली मानती हैं क्योंकि वह श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम के बंधन में नहीं बँध सका और न ही कभी उनके प्रेम में व्याकुल हुआ।

(ङ) गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपना प्रेम व्यक्त किया है। उनके प्रेम की अनन्यता श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य के प्रति है।

(च) स्नेह के धागे से दूर रहना अर्थात् किसी का प्रेम न पा सकना सौभाग्य नहीं, दुर्भाग्य है। जीवन का वास्तविक सुख तो प्रेम की अनुभूति में है, न कि सांसारिक विषय-वासनाओं के भोग में।

(छ) ‘नाहिन मन अनुरागी’ के माध्यम से गोपियों ने ऊधौ पर करारा व्यंग्य किया है क्योंकि वे श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम भाव को न समझ सके।

(ज) यहाँ कवि ने प्रीति-नदी के माध्यम से श्रीकृष्ण की प्रेम-भावना की ओर संकेत किया है। ऊधौ उस प्रेम नदी में कभी डुबकी नहीं लगा सका।

(झ) गोपियाँ स्वयं को भोली-भाली अबलाएँ समझती हैं क्योंकि वे श्रीकृष्ण के प्रेम में अपने-आपको छला हुआ समझती हैं। उन्होंने सच्चे हृदय से श्रीकृष्ण से प्रेम किया, किंतु श्रीकृष्ण उन्हें बिना बताए मथुरा चले गए थे और वहाँ से उन्होंने योग-साधना करने का संदेश भेजा था। इसलिए गोपियाँ अपने-आपको भोली-भाली अबलाएँ समझती हैं।

(ञ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और त्याग भावना को दर्शाया है।

(ट) इस पद में निम्नलिखित अलंकारों का प्रयोग किया गया हैरूपक-प्रीति-नदी मैं पाऊँ न बोरयौ। उपमा-गुर चाँटी ज्यौं पागी। उदाहरण-ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी। अनुप्रास-नाहिन मन अनुरागी। वक्रोक्ति-ऊधौ तुम हौ अति बड़भागी।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ठ)

  • इस पद में गेय तत्त्व विद्यमान है।
  • रूपक, उपमा, उदाहरण, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
  • कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है।

(ड) इस पद में कवि ने गोपियों के माध्यम से कृष्ण की भक्ति-भावना को अभिव्यंजित किया है। ज्ञानमार्गी अथवा योगमार्गी ऊधौ पर करारा व्यंग्य किया है। उसे प्रेम भावना से मुक्त व अनासक्त कहा है। दूसरी ओर, गोपियों को श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबी हुई दिखाया गया है। वे श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य पर आसक्त हैं और उनके मथुरा चले जाने पर अत्यंत व्याकुल हैं। वे किसी भी दशा में श्रीकृष्ण के प्रेमभाव को दूर नहीं कर सकतीं।

(ढ) महाकवि सूरदास द्वारा रचित यह पद ‘राग-मलार’ पर आधारित है। इसमें स्वर मैत्री का सुंदर प्रयोग किया गया है। ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है जो गेयता के अनुकूल है।

(ण) इस पद में ब्रजभाषा का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा माधुर्यगुण संपन्न है। लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है। कवि ने शब्द-योजना पूर्णतः भावानुकूल की है।

[2] मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाही परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गृहारि जितहिं तैं, उत तें धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही ॥[पृष्ठ 6]

शब्दार्थ-माँझ = में। अधार = आधार; सहारा। आवन = आगमन; आने की। बिथा = व्यथा। बिरहिनि = वियोग में जीने वाली। बिरह दही = विरह की आग में जल रही। हुती = थी। गुहारि = रक्षा के लिए पुकारना। जितहिं तें = जहाँ से। उत = उधर; वहाँ । धार = योग की प्रबल धार। मरजादा = मर्यादा; प्रतिष्ठा। लही = नहीं रही; नहीं रखी।

प्रश्न–
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों की कौन-सी बात मन में रह गई?
(ङ) ऊधौ के संदेश को सुनकर गोपियों की व्यथा घटने की अपेक्षा बढ़ गई, ऐसा क्यों हुआ?
(च) गोपियों को कृष्ण को गुहार लगाना अब व्यर्थ क्यों लगने लगा?
(छ) गोपियों ने किस मर्यादा की बात कही है?
(ज) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(झ) ‘धार बही’ का क्या अर्थ है?
(ञ) गोपियों के लिए क्या प्रिय है और क्या अप्रिय?
(ट) गोपियाँ अधीर क्यों हो रही हैं?
(ठ) इस पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास।
कविता का नाम-पद।

(ख) गोपियाँ श्रीकृष्ण से अत्यधिक प्रेम करती हैं, किंतु वे मथुरा में जाकर वहाँ के राजा बन जाते हैं। वे गोपियों को अपना कोई प्रेम संदेश भेजने की अपेक्षा ऊधौ के द्वारा योग-मार्ग अपनाने का संदेश भेजते हैं। यह संदेश उन्हें कटे पर नमक के समान लगता है। वे इस संदेश को सुनकर आहत हो जाती हैं तथा ऊधौ और श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करती हैं।

(ग) विरह की पीड़ा से व्याकुल गोपियाँ श्रीकृष्ण के मित्र ऊधौ को उपालंभ देती हुई कहती हैं हे ऊधौ! हमारे मन की बात मन में ही रह गई है अर्थात् हमें श्रीकृष्ण के लौटने की पूरी आशा थी। हम अपने मन की बात उन्हें बता देना चाहती थीं, किंतु अब उनका यह संदेश मिलने पर कि वे नहीं आ रहे हमारे मन की बात मन में ही रह गई। हे ऊधौ! अब तुम ही बताओ कि अपने मन की बात को भला हम किसे जाकर कहें। प्रेम की बात हर किसी के सामने कही भी तो नहीं जा सकती। हम अब तक श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा को अपने प्राणों का आधार बनाए हुए थीं। इसी उम्मीद पर तो हम तन-मन से विरह की व्यथा को सहन कर रही थीं, किंतु तुम्हारे इस योग-साधना के संदेश को सुनकर हमारी विरह-व्यथा और भी भड़क उठी है। हम विरह की आग में जली जा रही हैं। यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि जिधर से हम अपनी रक्षा के लिए सहारा चाह रही थीं, उधर से ही योग-साधना की धारा बह निकली है। कहने का तात्पर्य यह है कि गोपियाँ चाहती थीं कि श्रीकृष्ण आकर उनकी व्यथा को दूर करें किंतु उन्होंने ही योग-साधना का मार्ग अपनाने का संदेश भेज दिया है। इससे उनकी वियोग की ज्वाला और भी भड़क उठी है। सूरदास ने बताया है कि गोपियाँ कह रही हैं कि अब तो श्रीकृष्ण ने सभी लोक-मर्यादाएँ त्याग दी हैं। उन्होंने हमारे प्रेम का निर्वाह करने की अपेक्षा हमें धोखा दिया है। भला ऐसे में हम धैर्य कैसे रखें?

(घ) गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के पुनः लौट आने की बात थी जो उनके संदेश के आने के पश्चात् उनके मन में रह गई। वे अब अपनी प्रेम भावना को श्रीकृष्ण के सामने प्रकट नहीं कर सकेंगी।

(ङ) गोपियाँ श्रीकृष्ण को अत्यधिक प्रेम करती थीं। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर उनके वियोग की पीड़ा में जली जा रही थीं। ऊधौ ने उन्हें योग-संदेश सुनाया और कहा कि तुम श्रीकृष्ण को भूल जाओ और निर्गुण ईश्वर की उपासना करो। इस संदेश को सुनकर उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण ने उनके साथ दगा किया है। इससे उनके विरह की व्यथा घटने की अपेक्षा और भी बढ़ गई थी।

(च) गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपना सब कुछ अर्पित कर दिया था। वे श्रीकृष्ण के बिना उनके विरह में व्याकुल थीं, किंतु जब ऊधौ ने गोपियों को श्रीकृष्ण को भूलकर योग-साधना करने का उपदेश दिया तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। जिसको वे गुहार कर सकती थीं जब वही योग का संदेश भेज रहे हैं तो फिर उनके सामने गुहार करने का कोई लाभ नहीं हो सकता था।

(छ) गोपियाँ श्रीकृष्ण द्वारा वादा न निभाने की बात कह रही थीं। अब उनके लिए धैर्य धरना कठिन हो गया है। श्रीकृष्ण को गोपियों के प्रेम की मर्यादा का ख्याल ही नहीं है।

(ज) इस पद में कवि ने गोपियों के विरह भाव का मार्मिक चित्रण किया है। योग-साधना व निर्गुण ईश्वर की उपासना में मन लगाने के श्रीकृष्ण के संदेश को सुनकर गोपियों की विरह-वेदना और भी बढ़ जाती है। उनके मन में श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा का आधार भी अब नष्ट हो गया है। इसलिए वे अपने-आपको अत्यंत असहाय समझने लगी थीं। अब वे शिकायत करें भी तो किससे करें क्योंकि उनकी इस दशा के लिए श्रीकृष्ण ही जिम्मेदार हैं।

(झ) ‘धार बही’ का यहाँ लाक्षणिक प्रयोग किया गया है। गोपियों को लगा था कि निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा श्रीकृष्ण की ओर से बहकर उन तक पहुंची थी। उन्होंने ही ऊधौ को निर्गुण ईश्वर की भक्ति की धारा देकर भेजा था।

(ञ) गोपियों के लिए श्रीकृष्ण का प्रेम प्रिय है और ऊधौ की निर्गुण ईश्वर की उपासना अप्रिय है। ” (ट) गोपियाँ इसलिए अधीर हो रही हैं क्योंकि उनके प्रियतम श्रीकृष्ण ने प्रेम की मर्यादा का उल्लंघन किया है। उन्होंने प्रेम निभाने की अपेक्षा प्रेम का मजाक उड़ाया और गोपियों को अपने से दूर रखने की युक्तियाँ सुझाई हैं।

(ठ)

  • इस पद में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
  • वियोग शृंगार का सुंदर चित्रण है।
  • संदेसनि, सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह, धीर-धरहिं में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘सुनि-सुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।
  • मध्य के लिए ‘माँझ’, आधार के लिए ‘अधार’, पड़त के लिए ‘परत’ आदि कोमल शब्दों का प्रयोग देखते ही बनता है।
  • संपूर्ण पद्य में गेय तत्त्व विद्यमान है।

(ड) इस पद में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है। स्वर-मैत्री के प्रयोग के कारण भाषा में लय विद्यमान है। तद्भव शब्दों का विषयानुकूल प्रयोग किया गया है। भाषा में गेय तत्त्व भी है।

[3] हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह द्रढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सुतौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सनी न करी।
यह तो ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी ॥ [पृष्ठ 6 ]

शब्दार्थ-हरि = भगवान् श्रीकृष्ण। हारिल = एक पक्षी जो सदा अपने पंजों में एक लकड़ी थामे रहता है। लकरी = लकड़ी। क्रम = कर्म। नंद-नंदन = नंद का बेटा। उर = हृदय। दृढ़ करि = निश्चयपूर्वक। पकरी = पकड़ी हुई। दिवस = दिन। निसि = रात। कान्ह-कान्ह = कृष्ण-कृष्ण। जकरी = रटती रहती हैं। जोग = योग। करुई-ककरी = कड़वी ककड़ी। व्याधि = रोग। तिनहिं = उन्हें। मन चकरी = मन में चक्कर; मन में दुविधा।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

प्रश्न-
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों ने अपने हरि की तुलना किससे और क्यों की है?
(ङ) ‘मन क्रम बचन …………… पकरी’ का वर्णन किसके लिए आया है? स्पष्ट कीजिए।
(च) गोपियाँ सोते-जागते, रात-दिन किसका ध्यान करती हैं और क्यों?
(छ) कवि ने इस पद में ‘करुई ककरी’ किसे कहा है?
(ज) ‘जिनके मन चकरी’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(झ) गोपियाँ योग का संदेश किसे देने को कहती हैं और क्यों?
(ञ) गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है और क्यों?
(ट) इस पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस पद का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त किन्हीं दो अलंकारों के नाम लिखिए।
(ढ) उपर्युक्त काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।
(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित सूरदास के पदों में से लिया गया है। इस पद में बताया गया है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में व्यथित हैं। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर भी उन्हें सच्चे मन से प्रेम करती हैं। इस प्रेमावेग में उन्हें ऊधौ द्वारा दिया गया योग-साधना व निर्गुण ईश्वर की भक्ति का संदेश जरा भी पसंद नहीं है। गोपियाँ अपने अनन्य प्रेम और योग-साधना के प्रति अपने मन के विचारों को व्यक्त करती हुई ये शब्द कहती हैं।

(ग) गोपियाँ ऊधौ को बताती हैं कि उनकी दृष्टि में निर्गुण उपासना का कोई महत्त्व नहीं है। वे सगुणोपासना को ही महत्त्व देती हैं। इसलिए वे कहती हैं कि कृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं जिसे वह सदैव अपने पंजों में पकड़े रहता है। हमने भी श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार मानकर उन्हें अपने हृदय में बसा रखा है। हम एक क्षण के लिए भी अपने उस जीवन के आधार श्रीकृष्ण को नहीं भूलतीं। हमने उसे मन, वचन और कर्म से दृढ़तापूर्वक पकड़ा हुआ है। कहने का भाव है कि गोपियाँ मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण की उपासिकाएँ हैं। उन्हें हर स्थिति में सोते-जागते या स्वप्न में भी श्रीकृष्ण की ही रट लगी रहती है। उनका मन क्षण भर के लिए भी श्रीकृष्ण से अलग नहीं होता। हे भ्रमर! तुम्हारा यह योग का संदेश सुनने में हमारे कानों को कड़वी ककड़ी के समान कड़वा व अरुचिकर लगता है। तुम तो हमारे लिए ऐसी बीमारी ले आए हो, जो हमने पहले न तो कभी देखी और न सुनी तथा न कभी इसका व्यवहार करके देखा। गोपियाँ ऊधौ को पुनः संबोधित करती हुई कहती हैं कि तुम यह योग साधना उन लोगों को दो, जिनके मन में दुविधा हो अर्थात् भटकन हो और जिनकी कहीं कोई आस्था न हो। हम पूर्णतः श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं तथा हमारी उनमें पूर्ण आस्था है। इसलिए आपके इस योग-संदेश की हमें आवश्यकता नहीं है।

(घ) गोपियों ने अपने हरि (श्रीकृष्ण) की तुलना हारिल पक्षी की लकड़ी से की है क्योंकि वह समझता है कि जिस लकड़ी को वह अपने पंजों में सदा पकड़े रहता है। वही उसके उड़ने का आधार है। इसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार समझती हैं और हर समय उसे अपने हृदय में बसाए रखना चाहती हैं।

(ङ) गोपियों ने इस पंक्ति के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम का वर्णन किया है। वे मन, वचन और कर्म से नंद के बेटे श्रीकृष्ण को अपने हृदय में धारण किए हुए हैं।

(च) गोपियाँ सोते-जागते तथा स्वप्न में भी नंद के बेटे श्रीकृष्ण का ही ध्यान करती हैं। वे सच्चे मन से श्रीकृष्ण को प्रेम करती हैं।

(छ) इस पद में कवि ने ‘करुई ककरी’ ऊधौ द्वारा दिए गए योग के संदेश को कहा है, क्योंकि उसका यह संदेश गोपियों को कड़वी ककड़ी के स्वाद की तरह अरुचिकर लगा था।

(ज) इस पंक्ति का आशय है वे लोग जिनके मन स्थिर नहीं हैं, जो श्रीकृष्ण के प्रेम को नहीं समझते हैं। जो किसी के प्रति भी आस्थावान न रहकर व्यर्थ में इधर-उधर भटकते फिरते हैं।

(झ) गोपियाँ योग का संदेश ऐसे व्यक्तियों को देने के लिए कहती हैं जिनका मन चकरी की भाँति चंचल हो। ऐसे व्यक्तियों का मन कई-कई कामों या विचारों में उलझा रहता है। ऐसे व्यक्ति दुविधाग्रस्त भी होते हैं, किंतु वे तो पूर्ण रूप से एकनिष्ठ होकर श्रीकृष्ण की उपासना करती हैं इसलिए उन्हें इस संदेश की आवश्यकता नहीं है।

(ञ) गोपियों ने अपनी तुलना हारिल पक्षी से की है क्योंकि हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में एक लकड़ी पकड़े रहता है जिसे वह क्षण भर के लिए भी नहीं छोड़ता। इसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को अपने हृदय में हर क्षण धारण किए रहती हैं। वे एक क्षण के लिए भी अपने प्राणों के आधार श्रीकृष्ण को हृदय से दूर नहीं करतीं।

(ट) प्रस्तुत पद में कवि ने जहाँ गोपियों की मनोदशा का चित्रण किया है, वहीं गोपियों के माध्यम से निर्गुण भक्ति-भावना की अवहेलना और सगुण भक्ति की स्थापना की है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में इतनी लीन हो गई हैं कि उनको श्रीकृष्ण से एक क्षण के लिए दूर रहना कठिन लगता है तथा उसके स्थान पर किसी अन्य देवी-देवता की उपासना नहीं करना चाहतीं। वे साकार श्रीकृष्ण की दीवानी हैं। वे श्रीकृष्ण को अपना मन दे चुकी हैं।

(ठ)

इस पद में गोपियों के एकनिष्ठ प्रेम का सजीव चित्रण किया गया है तथा निर्गुण ईश्वर की उपासना या योग-साधना को ‘व्याधि’ कहकर उसकी अवहेलना की गई है।

  • श्रृंगार रस के वियोग भाव का उल्लेख किया गया है।
  • अनुप्रास, उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का विषयानुरूप प्रयोग देखते ही बनता है।
  • भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है।
  • माधुर्य गुण विद्यमान है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है।
  • लक्षणा शब्द-शक्ति के प्रयोग से वर्ण्य-विषय गंभीर बन पड़ा है।

(ड) रूपक-हमारै हरि हारिल की लकरी।
उपमा-ज्यौं करुई ककरी।

(ढ) प्रस्तुत काव्यांश में साहित्यिक ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। सम्पूर्ण काव्यांश में भाषा की प्रवाहमयता एवं गेयता की विशेषताएँ बनी रहती हैं। ‘मन चकरी होना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग किया गया है। अलंकृत भाषा के प्रयोग के कारण विषय में रोचकता का समावेश हुआ है। इसी प्रकार ‘हारिल की लकड़ी’ का प्रयोग भी गोपियों की कृष्ण के प्रति श्रद्धा-भक्ति को अभिव्यक्त करने में सफल सिद्ध हुआ है।

[4] हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलै ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तो यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए ॥ [पृष्ठ 6]

शब्दार्थ-हरि = श्रीकृष्ण। पढ़ि आए = सीख आए। मधुकर = भ्रमर, भँवरा, यहाँ ऊधौ। हुते = थे। पठाए = भेजे। आगे के = पहले के। पर हित = दूसरों की भलाई। डोलत धाए = दौड़ते फिरते थे। फेर पाइहैं = फिर से पा लेंगी। अनीति = अन्याय। आपुन = स्वयं, अपने आप। जे = जो। जाहिं सताए = सताई जाए।

प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) गोपियों ने ऐसा क्यों समझ लिया कि श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली थी?
(ङ) ‘बढ़ी बुद्धि जानी जो’ के माध्यम से कवि ने क्या स्पष्ट किया है?
(च) पुराने जमाने के लोगों को भला क्यों कहा गया है?
(छ) गोपियाँ क्या प्राप्त करना चाहती थीं?
(ज) गोपियों ने ऊधौ पर क्या कहकर व्यंग्य किया है?
(झ) गोपियाँ योग की शिक्षा लेने में क्या कहकर अपनी असमर्थता व्यक्त करती हैं?
(अ) सच्चा राजधर्म किसे माना गया है?
(ट) इस पद का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इस काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषागत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-सूरदास। कविता का नाम-पद।

(ख) प्रस्तुत पद हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित सूरदास के पदों में से लिया गया है। इसमें कवि ने सगुणोपासना का पक्ष लेते हुए निर्गुणोपासना की अवहेलना की है। गोपियाँ ऊधौ द्वारा दिए गए योग-साधना व निर्गुणोपासना के संदेश को सुनकर बहुत दुःखी होती हैं। वे श्रीकृष्ण के इस व्यवहार को कुटिल राजनीति, अन्याय व धोखा कहती हैं।

(ग) गोपियाँ ऊधौ के माध्यम से भेजे गए श्रीकृष्ण के योग-साधना के संदेश को उनके प्रति अन्याय, धोखा और अत्याचार बताती हैं। वे आपस में एक-दूसरी से कहती हैं कि हे सखि! अब श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा ग्रहण कर ली है। वे अब पूर्णरूप से राजनीतिज्ञ हो गए हैं। यह मधुकर (ऊधौ) हमें जो समाचार दे रहा है क्या तुम उसे समझती हो? एक तो श्रीकृष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे तथा अब गुरु ने उन्हें राजनीति के ग्रंथ भी पढ़ा दिए हैं। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इसका अनुमान तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे हमारे लिए योग का संदेश भेज रहे हैं। कहने का भाव है कि उनके इस कार्य से सिद्ध हो गया है कि वे केवल बुद्धिमान् ही नहीं, अपितु बहुत चालाक व अन्यायी भी हैं क्योंकि युवतियों के लिए योग-साधना का संदेश भेजना उचित नहीं है।

हे ऊधौ! पुराने समय में सज्जन दूसरों का भला करने के लिए प्रयास करते थे, परंतु आजकल के सज्जन तो दूसरों को दुःख देने के लिए ही यहाँ तक दौड़ते हुए चले आए हैं। हे ऊधौ! हम तो केवल इतना ही चाहती हैं कि हमें हमारा मन मिल जाए जिसे श्रीकृष्ण यहाँ से जाते समय अपने साथ चुराकर ले गए थे, किंतु उनसे ऐसे न्यायपूर्ण काम करने की उम्मीद कम ही की जा सकती है। वे दूसरों द्वारा अपनाई जाने वाली रीतियों को ही छुड़ाने का काम करते रहते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य है कि गोपियाँ तो प्रेम की रीति का पालन करना चाहती हैं, किंतु श्रीकृष्ण ने योग-साधना का संदेश भेजकर उनकी प्रेम की रीति निभाने की भावना को ठेस पहुंचाई है। वास्तव में यह गोपियों के प्रति अन्याय है। सच्चा राजधर्म तो उसी को माना जाता है जिसमें प्रजा को कोई कष्ट न पहुँचाया जाए अर्थात् उन्हें सताया न जाए। कहने का तात्पर्य है कि श्रीकृष्ण राजा होकर गोपियों के सारे सुख-चैन छीनकर उन्हें और भी दुःखी कर रहे हैं। यह अच्छा राजधर्म नहीं है।

(घ) श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है, गोपियों ने यह इसलिए समझा क्योंकि वह राजनीति के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली कुटिलता और छलपूर्ण चालें चलने लगे हैं। उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए गोपियों का सुख-चैन छीन लिया है और उन्हें दुःख पहुँचाने का प्रयास किया है। ऊधौ को योग का संदेश देकर भेजना भी उनकी ऐसी ही छलपूर्ण नीति थी।

(ङ) कवि ने इस पंक्ति के माध्यम से श्रीकृष्ण की कूटनीति पर करारा व्यंग्य किया है। श्रीकृष्ण इस तथ्य को भली-भाँति समझते हैं कि गोपियाँ उनके प्रेम के बिना नहीं रह सकतीं। फिर भी उन्होंने ऊधौ को गोपियों के लिए योग-साधना का संदेश देकर भेज दिया। गोपियों को श्रीकृष्ण के इस व्यवहार में नासमझी ही प्रतीत होती है, क्योंकि वे अपने मित्र ऊधौ के निर्गुण भक्ति के उपासक होने के अहंकार को चूर करना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने बेचारी गोपियों को मोहरा बनाया।

(च) पुराने जमाने के लोग दूसरों के भले के लिए प्रयास किया करते थे इसीलिए उन्हें भले लोग कहा गया है।

(छ) गोपियाँ तो केवल अपने मन को पुनः प्राप्त करना चाहती थीं जिसे श्रीकृष्ण मथुरा जाते समय चुराकर ले गए थे।

(ज) गोपियों ने ऊधौ से कहा कि पहले जमाने के लोग बहुत भले थे, क्योंकि वे परहित के लिए इधर-उधर भागते थे अर्थात् प्रयास करते थे किंतु आजकल के लोग हमारे जैसे लोगों को दुःख पहुँचाने के लिए मथुरा से वृंदावन तक मारे-मारे फिरते हैं।

(झ) गोपियों का कहना है कि हमारा मन तो हमारे पास नहीं है। उसे तो श्रीकृष्ण अपने साथ चुराकर मथुरा ले गए हैं। भला हम योग-साधना कैसे करें। पहले हम अपना मन तो वापिस ले लें, फिर आपके योग-संदेश पर विचार करेंगी।

(अ) सच्चा राजधर्म उसे कहा गया है जिसमें प्रजा को सुख पहुँचाने का प्रयास किया जाता है। राजधर्म प्रजा के हित की चिंता करता है।

(ट) इस पद में गोपियों ने राजनीति की बात कहकर श्रीकृष्ण की अज्ञानता पर करारा व्यंग्य किया है। वह अपने-आपको बहुत बड़े बुद्धिमान् समझते हैं, किंतु योग का संदेश भेजकर भोली-भाली गोपियों पर अन्याय एवं अत्याचार करते हैं। उन्होंने युवतियों को योग-साधना की शिक्षा देने को अनीति और शास्त्र-विरुद्ध कहा है। साथ ही सच्चे राजधर्म की विशेषता पर भी प्रकाश डाला गया है।

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

(ठ)

  • ब्रजभाषा का सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • तद्भव एवं तत्सम शब्दों का भावानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है। ,
  • ‘राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए’ जैसी सुंदर सूक्तियों का प्रयोग किया गया है।
  • संपूर्ण पद में वक्रोक्ति अलंकार की छटा है।
  • गेय तत्त्व निरंतर बना हुआ है।
  • ‘हरि हैं’, ‘बात कहत’, ‘गुरु ग्रंथ पढ़ाए’ आदि में अनुप्रास अलंकार का सुंदर एवं सहज प्रयोग द्रष्टव्य है।

(ड) इस पद में कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। तत्सम एवं तद्भव शब्दावली के प्रयोग से भाषा को व्यावहारिक एवं आकर्षक बनाया गया है। व्यंग्यार्थ के प्रयोग से भाषा मूलभाव की अभिव्यञ्जना में पूर्णतः सफल हुई है। योग के स्थान पर ‘जोग’, संदेश के स्थान पर ‘सँदेस’, धर्म के स्थान पर ‘धरम’ जैसे प्रयोग से भाषा में कोमलता का समावेश हुआ है।

सूरदास के पद Summary in Hindi

सूरदास के पद कवि-परिचय

प्रश्न-
महाकवि सूरदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-महाकवि सूरदास का संपूर्ण भक्ति-काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सूरदास सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के कवि थे। उनकी जन्म-तिथि एवं जन्म-स्थान के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं। उनका जन्म सन् 1478 से 1483 के लगभग स्वीकार किया गया है। कुछ विद्वानों का विचार है कि उनका जन्म रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था जबकि कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। ऐसा अनुमान है कि महाकवि सूरदास जन्मांध थे, किंतु सूर के बाल-लीला वर्णन, प्रकृति-चित्रण एवं रंग-विश्लेषण के वर्णन को पढ़कर विश्वास नहीं हो पाता कि वे जन्म से अंधे थे। सूर के गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्य माने जाते हैं। गुरु जी से भेंट से पहले सूरदास प्रभु का गुणगान विनय के पदों में किया करते थे। अपने गुरु के आग्रह पर उन्होंने शेष जीवन में, अपने पदों द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की बाल-लीला, मुरली वादन, गोपी विरह (भ्रमरगीत) आदि का चित्रण किया। सूरदास की मृत्यु सन् 1583 में पारसौली में हुई।

2. प्रमुख रचनाएँ-सूरदास द्वारा रचित तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं(1) ‘सूरसागर’, (2) ‘सूरसारावली’ तथा (3) ‘साहित्य लहरी’ ।
सूरसागर ‘श्रीमद्भागवत’ पर आधारित वृहत ग्रंथ है। इसके द्वादश स्कंध में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है। 3. काव्यगत विशेषताएँ-सूरदास के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) विनय भाव-गुरु से भेंट से पूर्व सूरदास ने विनय के पदों की रचना की है। इनमें कवि ने स्वयं को दीन-हीन, तुच्छ, खल, कामी आदि तथा प्रभु को सर्वगुणसंपन्न कहा है; यथा
‘मो सम कौन कुटिल खल कामी।’
(ii) बाल-लीला वर्णन-सूरदास ने वात्सल्य वर्णन के अंतर्गत अपने उपास्य देव श्रीकृष्ण की बाल-छवि, बाल-क्रीड़ाओं, मुरलीवादन, माखन-चोरी आदि का मनोहारी चित्रांकन किया है। माखन-चोरी का एक उदाहरण देखिए
– “मैया मैं नहीं माखन खायो। .
ग्वाल बाल सब ख्याल परें हैं बरबस मुख लपटायौ।”

(iii) श्रृंगार-वर्णन-सूरदास ने श्रीकृष्ण की रास-लीला के माध्यम से श्रृंगार रस का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। ‘भ्रमरगीत’ में गोपियों की विरह दशा का हृदयस्पर्शी चित्रण किया गया है। एक उदाहरण देखिए
“ऊधौ, मन नाहिं दस बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग, कौन आराधे ईस।”

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 सूरदास के पद

सूर काव्य की रचना ब्रज प्रदेश में हुई है। अतः कवि ने ब्रज प्रदेश की प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन किया है। उन्होंने प्रकृति के उद्दीपक रूप का अधिक वर्णन किया है, लेकिन कवि को प्रकृति के कोमल रूप से अधिक प्रेम है। ‘सूरसागर’ में प्रकृति-वर्णन के अनेक स्थल हैं; यथा
‘पिय बिनु नागिन काली रात।’ ।

4. भाषा-शैली-सूरदास के काव्य की भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सुंदर एवं सार्थक मिश्रण किया गया है। कवि ने यथास्थान मुहावरों और लोकोक्तियों का भी सुंदर प्रयोग किया है जिससे भाषा में अधिक सार्थकता आ गई है। सूरदास का संपूर्ण काव्य पद अथवा गेय शैली में रचित है। सूरदास के काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।

सूरदास के पद पदों का सार

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘सूरदास’ द्वारा रचित ‘पदों’ का सार लिखिए।
उत्तर-
सूरदास द्वारा रचित इन पदों में गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम व्यक्त हुआ है। श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ अत्यंत व्याकुल हो उठती हैं। वे श्रीकृष्ण के मित्र ऊधौ को कभी उलाहना देती हैं तो कभी उस पर ताना कसती हैं। वे ऊधौ से कहती हैं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो कि तुम किसी से प्रेम आदि के चक्कर में नहीं पड़े हो। तुमने श्रीकृष्ण के साथ रहते हुए भी उनसे प्रेम नहीं किया। हम ही ऐसी मूर्ख हैं कि श्रीकृष्ण के प्रेम में ऐसी चिपटी हुई हैं जैसी चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं।

दूसरे पद में गोपियाँ ऊधौ को उलाहना देती हुई कहती हैं कि अब हमारे मन की आशा मन में रह गई है। जिस कृष्ण के लौट आने की आशा हमारे मन में बनी हुई थी, वह तुम्हारी योग-साधना के संदेश को सुनकर समाप्त हो गई है। अब हम श्रीकृष्ण के वियोग में किसी भी प्रकार का धैर्य नहीं रख सकती क्योंकि अब धैर्य का कोई आधार ही नहीं रह गया है।

तीसरे पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार बताती हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने मुख में पकड़े हुए तिनके को अपने जीवन का आधार मानता है; उसी प्रकार वे दिन-रात श्रीकृष्ण के नाम को रटती रहती हैं। योग का नाम तो उन्हें कड़वी ककड़ी के समान कड़वा लगता है। योग-साधना तो उनके लिए है जो प्रभु श्रीकृष्ण से प्रेम नहीं करते।

चतुर्थ पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण पर करारा व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि वह उनके साथ राजनीति खेल रहा है। वह जन्म से ही चालाक था और अब तो राजनीति के दाँव-पेच भी जान गया है। पहले राजनीतिज्ञ जनता की भलाई के लिए आगे-आगे फिरते थे, किंतु अब वे प्रजा के प्रति अन्याय करते हैं। ऐसे ही श्रीकृष्ण हमें योग-साधना करने के लिए कहकर हमारे प्रति अन्याय ही तो कर रहे हैं। श्रीकृष्ण का यह व्यवहार किसी भी प्रकार उचित नहीं है।

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