Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 16 नौबतखाने में इबादत
HBSE 10th Class Hindi नौबतखाने में इबादत Textbook Questions and Answers
नौबतखाने में इबादत का सारांश HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 1.
शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर-
अमीरुद्दीन अर्थात् उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ, जो शहनाईवादन के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध हैं, का जन्म डुमराँव गाँव में हुआ था। इस कारण शहनाई की दुनिया में डुमराँव गाँव को याद किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण यह भी है कि शहनाई बजाने के लिए जिस ‘रीड’ का प्रयोग किया जाता है, वह नरकट (एक विशेष प्रकार की घास) से बनती है, जो डुमराँव गाँव के समीप सोन नदी के किनारे पाई जाती है। इन दोनों कारणों से शहनाई की दुनिया में डुमराँव गाँव को याद किया जाता है।
नौबतखाने में इबादत प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 2.
बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर-
जहाँ भी कोई संगीत का आयोजन हो या अन्य कोई मांगलिक कार्य का आयोजन हो वहाँ सर्वप्रथम उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की ध्वनि सुनाई देगी। समारोहों में शहनाई की गूंज का अभिप्राय उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ से है। उनकी शहनाई की आवाज़ लोगों के सिर चढ़कर बोलती है। गंगा के किनारे स्थित बालाजी का मंदिर हो या विश्वनाथ का मंदिर अथवा संकटमोचन मंदिर सब जगह संगीत के समारोहों में भी बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की चर्चा रहती थी। इन सब मंदिरों में प्रभाती मंगलस्वर बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के रूप में सुनाई पड़ता है। वे अपनी मधुर शहनाईवादन कला के द्वारा हर व्यक्ति के मन को प्रभावित करने में सफल रहते हैं। इसलिए उन्हें शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहते हैं।
नौबतखाने में इबादत HBSE 10th Class Kshitij प्रश्न 3.
‘सुषिर-वाद्यों’ से क्या तात्पर्य है? शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर-
‘सुषिर’ बाँस अथवा मुँह से फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों से निकलने वाली ध्वनि को कहा जाता है। इसी कारण ‘सुषिर-वाद्यों’ से अभिप्राय उन वाद्ययंत्रों से है जो फूंककर बजाए जाने पर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। फूंककर बजाए जाने वाले वाद्य जिनमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, को ‘नय’ कहा जाता है। इसी कारण शहनाई को ‘शाहेनय’ अर्थात् ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ कहते हैं। अतः स्पष्ट है कि शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई होगी।
प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) ‘फटा सुर न बख्शे। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।
उत्तर-
दिन-रात सुरों की इबादत में लगे रहने वाले बिस्मिल्ला खाँ से जब उनकी एक शिष्या ने कहा कि वे फटी लुंगी न पहना करें तो उन्होंने कहा कि लुंगी यदि आज फटी है तो कल सिल जाएगी, किंतु यदि एक बार सुर बिगड़ गया तो उसका सँवरना मुश्किल है। अतः अपने पहनावे से कहीं अधिक ध्यान उनका सुरों पर रहता था।
(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से बताया गया है कि बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्षों से शहनाई बजा रहे हैं। वे शहनाईवादन में बेजोड़ हैं। फिर भी नमाज़ पढ़ते समय वे परमात्मा से यही प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर! मुझे मधुर स्वर प्रदान कर। मेरे सुरों में ऐसा प्रभाव उत्पन्न कर दे जिसे सुनकर लोग प्रभावित हो उठे। उनकी आँखों से भावावेश में सच्चे मोतियों के समान अनायास आँसुओं की झड़ी लग जाए।
प्रश्न 5.
काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर-
काशी के पक्का महाल से मलाई-बरफ बेचने वाले जा चुके थे। न ही वहाँ अब देसी घी की कचौड़ी-जलेबी थी और न ही संगीत के लिए गायकों के मन में आदर भाव रह गया था। इस प्रकार वहाँ से संगीत, साहित्य और संस्कृति संबंधी अनेक परंपराएँ लुप्त होती जा रही थीं, जिनके कारण बिस्मिल्ला खाँ को बहुत दुःख था और वे उनके विषय में सोचकर अत्यंत व्याकुल हो उठते थे।
प्रश्न 6.
पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि-
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे। अथवा शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
उत्तर-
(क) निम्नलिखित कथनों के आधार पर कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे
1. वह एक शिया मुसलमान का बेटा था जो सुबह उठकर बाबा विश्वनाथ के मंदिर में शहनाई बजाता। फिर गंगा स्नान करता और बालाजी के सामने रियाज़ करता। फिर भी वह हिंदू नहीं हो गया था। पाँच बार नमाज़ पढ़ने वाला मुसलमान ही था जो मानता था कि उसे बालाजी ने शहनाई में सिद्धि दे दी है।
2. वे अल्लाह की इबादत भैरवी में करते थे। नाम अल्लाह का है, राग तो भैरव है। वे इन दोनों को एक मानकर ही साधते थे।
(ख) पाठ में उद्धृत निम्नलिखित प्रसंगों व कथनों के आधार पर कहा जा सकता है कि बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे. वे अपनी शहनाई बजाने की कला को सदैव ईश्वर की देन मानते थे। इतने बड़े शहनाईवादक होने पर भी वे अत्यंत सरल एवं साधारण जीवन जीते थे। उन्होंने अपनी कला को कभी बाजारू वस्तु नहीं बनाया। वे हवाईजहाज़ की यात्रा को बहुत महँगी समझते थे। इसलिए उन्होंने कभी हवाईजहाज़ से यात्रा नहीं की। कभी पाँच सितारा होटल में नहीं ठहरे। शहनाई बजाने की फीस भी उतनी ही माँगते थे जितनी उन्हें आवश्यकता होती थी। वे सदा सच्चे और खरे इंसान रहे थे। जैसा उनकी शहनाई बजाना मधुर था, वैसा ही उनका जीवन भी अत्यंत मधुर एवं सरल व सच्चा था।
प्रश्न 7.
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में अनेक ऐसे लोगों का संबंध रहा है जिन्होंने उनकी संगीत-साधना को समृद्ध किया है, यथा बालाजी के मंदिर के मार्ग में रसूलनबाई व बतूलनबाई दो बहनें थीं जो ठुमरी, टप्पे आदि का गायन किया करती थीं। बिस्मिल्ला खाँ उनका संगीत सुनने के लिए उनके घर के सामने से गुज़रा करते थे। उन्होंने बाल्यावस्था में ही उनके जीवन में संगीत के प्रेम की भावना भर दी थी।
अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) के नाना भी एक महान् शहनाईवादक थे। वह नाना के शहनाईवादन को छुप-छुपकर सुनता था और चोरी से नाना की शहनाई उठाकर उसे बजा-बजाकर देखता था। इससे उन्हें शहनाई बजाने की प्रेरणा मिली थी। इसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ के मामा अलीबख्श खाँ एक अच्छे शहनाईवादक थे। वे बिस्मिल्ला खाँ के उस्ताद भी थे। उन्होंने उसे शहनाई बजाने की कला सिखाई थी। उनका सहयोग अत्यंत सराहनीय रहा है।
रचना और अभिव्यक्ति-
प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं ने मुझे प्रभावित किया है
- बिस्मिल्ला खाँ अपनी कला के प्रति समर्पित हैं। वे सच्ची लगन से शहनाईवादन का काम करते हैं। उसके विकास हेतु नए-नए प्रयोग करते हैं। इसीलिए उन्हें पद्मभूषण व भारतरत्न जैसे महान् पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।
- सादगीपूर्ण जीवन जीना तो मानो उनका स्वभाव बन चुका है। इतने बड़े-बड़े पुरस्कार और उपाधियाँ प्राप्त करके भी उनके मन में कहीं अहंकार की भावना नहीं आई। वे पूर्ववत् सरल एवं साधारण जीवन व्यतीत करते रहे। उन्होंने इतनी शोहरत प्राप्त करके भी कभी बनाव-श्रृंगार नहीं किया।
- ईश्वर के प्रति आस्थावान बने रहना उनके व्यक्तित्व की अन्य प्रमुख विशेषता है जिसने मुझे प्रभावित किया। वे सदा प्रभु से प्रार्थना करते कि वे उन्हें सुरों की नियामत प्रदान करें। उन्होंने जो कुछ जीवन में प्राप्त किया, उसे वे प्रभु की कृपा समझते थे।
- धार्मिक उदारता उनके जीवन की अन्य विशेषता है। वे मुसलमान होते हुए भी दूसरे धर्मों का सम्मान करते थे। • बिस्मिल्ला खाँ बचपन से ही विनोद प्रिय थे। वे सदा विनोद से भरे रहते थे। वे खाने-पीने एवं संगीत सुनने के भी शौकीन थे।
प्रश्न 9.
मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ मुस्लिम धर्म में मनाए जाने वाले त्योहारों में अत्यंत उत्साहपूर्वक भाग लेते थे। मुहर्रम से तो उनका विशेष लगाव था। मुहर्रम के दस दिनों में वे किसी प्रकार का मंगल वाद्य नहीं बजाते थे तथा न ही कोई राग-रागनी गाते थे। इन दिनों में वे शहनाई भी नहीं बजाते थे। आठवें दिन दालमंडी से चलने वाले मुहर्रम के जुलूस में पूरे उत्साह के साथ आठ किलोमीटर रोते हुए नौहा बजाते हुए चलते थे।
प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ कला के उपासक थे। उन्होंने अस्सी वर्षों तक लगातार शहनाई बजाकर इस बात को सिद्ध कर दिया है। वे प्रतिदिन ईश्वर से अच्छे सुर की प्राप्ति हेतु प्रार्थना किया करते थे। उन्हें सदा ऐसा लगता था कि खुदा उन्हें कोई ऐसा सुर देगा जिसे सुनकर श्रोता भाव-विभोर हो उठेंगे और उनकी आँखों से आनंद के आँसू बह निकलेंगे। वे अपने आपको कभी पूर्ण नहीं मानते थे। वे सदा कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करते रहते थे। उन्हें कभी अपनी शहनाईवादन कला पर घमंड नहीं हुआ। वे उसमें सुधार लाने के लिए प्रयत्नरत रहते थे। इससे सिद्ध होता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।
भाषा-अध्ययन-
प्रश्न 11.
निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-
(क) यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है, जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर-
(क) 1. यह ज़रूर है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। – (संज्ञा उपवाक्य)
(ख) 1. रीड अंदर से पोली होती है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। – (विशेषण उपवाक्य)
(ग) 1. रीड नरकट से बनाई जाती है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। – (विशेषण उपवाक्य)
(घ) 1. उनको यकीन है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा। – (संज्ञा उपवाक्य)
(ङ) 1. हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. जिसकी गमक उसी में समाई है। – (विशेषण उपवाक्य)
(च) 1. खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है। – (प्रधान उपवाक्य)
2. पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।- (संज्ञा उपवाक्य)
प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर-
(क) यही वह बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी की यह प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है कि यहाँ संगीत आयोजन होते हैं।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न जो हमको मिला है, ऊ शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) यह काशी का नायाब हीरा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
पाठेतर सक्रियता
कल्पना कीजिए कि आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध संगीतकार के शहनाईवादन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की सूचना देते हुए बुलेटिन बोर्ड के लिए नोटिस बनाइए।
उत्तर-
शहनाईवादन-यह जानकर सभी विद्यार्थियों को प्रसन्नता होगी कि दिनांक 15 अप्रैल, 2008 को विद्यालय के विशाल कक्ष में सुप्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद हुसैन अली का शहनाईवादन कार्यक्रम होगा। हुसैन अली देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं। यह कार्यक्रम प्रातः 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक चलेगा। सभी विद्यार्थी एवं अध्यापक आमंत्रित हैं।
आप अपने मनपसंद संगीतकार के बारे में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
हमारे साहित्य, कला, संगीत और नृत्य को समृद्ध करने में काशी (आज के वाराणसी) के योगदान पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
काशी का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने काशी की बहुत-सी चीजें उभरने लगती हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
यह भी जानें
सम – ताल का एक अंग, संगीत में वह स्थान जहाँ लय की समाप्ति और ताल का आरंभ होता है।
श्रुति – एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाते समय का अत्यंत सूक्ष्म स्वरांश
वाद्ययंत्र – हमारे देश में वाद्य यंत्रों की मुख्य चार श्रेणियाँ मानी जाती हैं
ताल-वितत- तार वाले वाद्य-वीणा, सितार, सारंगी, सरोद
सुषिर – फूंक कर बजाए जाने वाले वाद्य-बाँसुरी, शहनाई, नागस्वरम्, बीन
घनवाद्य – आघात से बजाए जाने वाले धातु वाद्य-झाँझ, मंजीरा, घुघरू
अवनद्ध – चमड़े से मढ़े वाद्य-तबला, ढोलक, मृदंग आदि।
चैती – एक तरह का चलता गाना
चैती
चढ़ल चइत चित लागे ना रामा
बाबा के भवनवा
बीर बमनवा सगुन बिचारो
कब होइहैं पिया से मिलनवा हो रामा
चढ़ल चइत चित लागे ना रामा
ठुमरी – एक प्रकार का गीत जो केवल एक स्थायी और एक ही अंतरे में समाप्त होता है।
ठुमरी-
बाजुबंद खुल-खुल जाए
जादु की पुड़िया भर-भर मारी
हे! बाजुबंद खुल-खुल जाए
टप्पा – यह भी एक प्रकार का चलता गाना ही कहा जाता है। ध्रुपद एवं ख्याल की अपेक्षा जो गायन संक्षिप्त है, वही टप्पा है।
टप्पा –
बागाँ विच आया करो
बागाँ विच आया करो मक्खियाँ तों डर लगदा
गुड़ ज़रा कम खाया करो।
दादरा – एक प्रकार का चलता गाना। दो अर्द्धमात्राओं के ताल को भी दादरा कहा जाता है।
दादरा-
तड़प तड़प जिया जाए
साँवरिया बिना
गोकुल छाड़े मथुरा में छाए
किन संग प्रीत लगाए
तड़प तड़प जिया जाए
HBSE 10th Class Hindi नौबतखाने में इबादत Important Questions and Answers
विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
बिस्मिल्ला खाँ को संगीत की आरंभिक शिक्षा किससे और कैसे मिली?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ महान संगीत प्रेमी थे। उन्हें संगीत सीखने की प्रारंभिक प्रेरणा काशी की रसूलनबाई और बतलनबाई नाम की दो गायिका बहनों के ठुमरी, टप्पे आदि गीत सुनकर मिली थी। जब बालक अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) शहनाई का रियाज़ करने बालाजी के मंदिर जाया करते तो मार्ग में उन्हें इन दोनों बहनों के गीत सुनने को मिलते थे। वहीं से उनके मन में संगीत सीखने की प्रेरणा जागृत हुई थी।
प्रश्न 2.
‘बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक-दूसरे के पूरक हैं’-इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
भारतवर्ष के किसी भी कोने में संगीत का आयोजन होता था तो वहाँ सर्वप्रथम बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के मांगलिक स्वर अवश्य सुने जाते थे। संगीत आयोजन बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई के अभाव में अधूरे एवं फीके लगते थे। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब उनकी शहनाई, शहनाई का मतलब उनका हाथ और हाथ से आशय उनकी शहनाई से सुरों का निकलना। फिर देखते-ही-देखते संपूर्ण वातावरण सुरीला हो उठता था। अतः यह कहना उचित ही है कि बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक-दूसरे के पूरक हैं।
प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ को किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया और उनकी सबसे बड़ी देन क्या है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को उनकी शहनाईवादन कला के क्षेत्र में महान् उपलब्धियों के कारण अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा अनेक मानद उपाधियों से अलंकृत किया गया।
भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण व भारतरत्न जैसे महान् पुरस्कारों से पुरस्कृत किया। बिस्मिल्ला खाँ की सबसे बड़ी देन यही है कि अस्सी वर्षों तक उन्होंने संगीत को संपूर्णता और एकाधिकार से सीखने की इच्छा को अपने भीतर जीवित रखा।
प्रश्न 4.
बिस्मिल्ला खाँ की ऐतिहासिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आज तक किसी भी संगीतकार को वह गौरव प्राप्त करने का सौभाग्य नहीं मिला जो बिस्मिल्ला खाँ को प्राप्त हुआ। उन्हें भारत की आज़ादी की पहली सुबह 15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर शहनाई बजाने का अवसर मिला था। दूसरा अवसर उन्हें 26 जनवरी, 1950 को लोकतांत्रिक गणराज्य के मंगल प्रभात के रथ की अगुवाई पर बिस्मिल्ला खाँ को लालकिले पर शहनाई बजाने पर मिला।
प्रश्न 5.
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे बिस्मिल्ला खाँ को लगता था कि बालाजी ने उन्हें शहनाईवादन में सिद्धि दी है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ चार वर्ष की आयु में ही अपने मामा के घर बनारस में आ गए थे। उनके नाना व मामा बाबा विश्वनाथ के मंदिर के नौबतखाने में शहनाई बजाया करते थे। बालक बिस्मिल्ला खाँ भी उनके साथ बाबा विश्वनाथ को जगाने के बाद बालाजी के घाट पर गंगा में गोते लगाते थे। तत्पश्चात् बालाजी के सामने बैठकर रियाज़ करते थे। उन्हें सुरों की साधना में घंटों लग जाते थे। एक दिन सुरों की साधना की इबादत करते-करते उन्हें बालाजी ने प्रकट होकर साक्षात् रूप में दर्शन दिए। उनके सिर पर हाथ रखकर उन्हें आजीवन आनंद करने का आशीर्वाद दिया। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को लगता था कि बालाजी ने उन्हें शहनाईवादन की सिद्धि प्रदान की है।
प्रश्न 6.
‘बिस्मिल्ला खाँ ने संगीत के क्षेत्र में उन्नति के साथ-साथ जीवन को अत्यंत सरलता और सादगी से व्यतीत किया है’-पाठ से उदाहरण देकर इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही बिस्मिल्ला खाँ महान् संगीतकार थे। उन्होंने शहनाईवादन कला को जिन बुलंदियों तक पहुँचाया है, वह एक असाधारण उपलब्धि कही जा सकती है। वे चाहते तो अपने भौतिक सुख के लिए धन-दौलत बटोर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा न करके संगीत की साधना के साथ-साथ सरल ढंग से जीवन व्यतीत किया। उदाहरणार्थ एक बार अमेरिका का राकफलेर फाउंडेशन उन्हें और उनके संगतकार साथियों को परिवार सहित अमेरिका में उनकी जीवन-शैली के अनुसार रखना चाहता था। किंत बिस्मिल्ला खाँ ने अमेरिका के ऐश्वर्य की चाह न रखते हुए उनसे पूछा कि वहाँ गंगा नदी कहाँ से लाएँगे। इससे उनकी उपलब्धि अन्य से अधिक दिखाई देती है। वे चाहते तो अपने लिए सभी प्रकार के सुख और आराम एकत्रित कर सकते थे, किंतु उन्होंने अपना जीवन अपनी इच्छा और सादगी के साथ जीना ही पसंद किया।
प्रश्न 7.
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में गंगा नदी का क्या महत्त्व है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पाठ में बताया गया है कि बालक बिस्मिल्ला खाँ बचपन से ही गंगा नदी में स्नान करता और तत्पश्चात् बालाजी के मंदिर में घंटों रियाज़ करता है। उनका यह क्रम आजीवन बना रहा। गंगा का उनके जीवन में इतना सहचर्य रहा है कि परिवार के सदस्यों व संगतकारों की भाँति वह उनके जीवन का अभिन्न अंग थी। गंगा के सहचर्य को वे कभी भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। बड़े-से-बड़ा लालच भी उनके इस सहचर्य की भावना को हिला न सका। अमेरिका के राकफलेर फांउडेशन ने उन्हें और उनके संगतकारों को अमेरिका में उनके ढंग से रहने के लिए निमंत्रित किया था। किंतु उन्होंने कहा था कि वहाँ गंगा नदी कहाँ से लाएँगे। गंगा नदी उन्हें सदा सुख व आनंद देने वाली लगती थी। उनके लिए संसार के सभी सुख-ऐश्वर्य गंगा के सामने व्यर्थ थे। उन्हें जीवन का जो आनंद गंगा नदी के सहचर्य से मिलता था, वह कहीं और नहीं। इसलिए उनके जीवन में गंगा नदी का अत्यधिक महत्त्व रहा है।
प्रश्न 8.
बिस्मिल्ला खाँ साहब की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को ईश्वर ने जैसे शहनाई के क्षेत्र में अत्यधिक सफलता प्रदान की थी, वैसे ही उन्हें लंबी आयु का वरदान भी दिया था। वे नब्बे वर्ष तक जीवित रहे। दिनांक 21 अगस्त, 2006 को यह महान् संगीतकार इस नश्वर संसार को अलविदा कह गया था। उनकी मृत्यु के इस दुखद समाचार से संगीत प्रेमियों को गहरा सदमा लगा था। सबकी आँखें नम हो गई थीं। ऐसे महान् संगीतकार कभी-कभी ही धरती पर आते हैं।
विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न 9.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ का प्रमुख संदेश क्या है?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने महान् शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन पर प्रकाश डाला है। जहाँ एक ओर खाँ साहब के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों व विशेषताओं को उजागर किया गया है, वहीं कला के प्रति प्रेम, सरल एवं सादगीयुक्त जीवन जीने तथा धार्मिक उदारता की प्रेरणा भी दी गई है। इस पाठ में बताया गया है कि कला कोई भी हो, जब तक हम उसमें तल्लीनता व सच्चे मन से कार्य नहीं करेंगे, तब तक हमें सफलता नहीं मिल सकती। इसी प्रकार हमें अपने धर्म के साथ-साथ दूसरे धर्मों का सम्मान भी करना चाहिए। हमें सफलता प्राप्ति पर कभी अहंकार व घमंड नहीं करना चाहिए। हमें सदा ईश्वर के सम्मुख मन में समर्पण की भावना रखनी चाहिए।
प्रश्न 10.
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन पद्धति कैसी थी तथा उससे हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ की जीवन पद्धति अत्यंत सरल एवं सहज थी। वे इतने महान् शहनाईवादक होकर भी एक साधारण व्यक्ति की भाँति जीवन व्यतीत करते थे। वे मुसलमान होते हुए भी अन्य धर्मों का आदर करते थे। दिखावा व अहंकार तो उनके पास फटकता तक न था। उनके जीवन-जीने की इस पद्धति से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें सहज एवं स्वाभाविक जीवन जीना चाहिए। विनम्रता और अहंकार-रहित जीवन महानता का गुण है, जिसे हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमें भी दूसरों के धर्म का सम्मान करना चाहिए और अपने काम में ही अपना ध्यान लगाना चाहिए।
प्रश्न 11.
काशी का भारतीय संस्कृति में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
काशी भारतवर्ष का एक धार्मिक स्थल है। यह नगर साहित्य, संगीत आदि कलाओं का केंद्र रहा है। यहाँ बड़े-बड़े साहित्यकार एवं संगीतकार हुए हैं जिन्होंने अपनी कला के माध्यम से भारतीय साहित्य एवं संस्कृति को न केवल जीवित रखा, अपितु उसे विकास की ओर अग्रसर किया। उदाहरणार्थ शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ की शहनाईवादन कला को लिया जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन के अस्सी वर्षों तक शहनाईवादन कला में नए-नए सुरों का प्रयोग करके उसे बुलंदियों तक पहुँचा दिया। इसी प्रकार काशी शिक्षा का केंद्र रहा है। यहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते रहे हैं। वे यहाँ की संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। वे अपने जीवन में यहाँ की संस्कृति और संस्कार ग्रहण कर उनके अनुसार जीवनयापन करते। अतः स्पष्ट है कि काशी का भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
अति लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक श्री यतींद्र मिश्र हैं।
प्रश्न 2.
‘नौबतखाना’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रवेश द्वार के ऊपर मंगल ध्वनि बजाने के स्थान को नौबतखाना कहते हैं।
प्रश्न 3.
बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का क्या नाम था?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम अमीरुद्दीन था।
प्रश्न 4.
अमीरुद्दीन के परदादा का क्या नाम था?
उत्तर-
अमीरुद्दीन के परदादा का नाम सलार हुसैन खाँ था।
प्रश्न 5.
बालक अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में क्यों जाता था?
उत्तर-
बालक अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में शहनाई वादन का अभ्यास करने के लिए जाता था।
प्रश्न 6.
बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की किस चीज़ पर विश्वास है?
उत्तर-
बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की वरदान शक्ति पर विश्वास है।
प्रश्न 7.
पुराणकार का संबंध किस रचना से है?
उत्तर-
पुराणकार का संबंध भागवत से है।
प्रश्न 8.
लेखक ने काशी का नायाब हीरा किसे कहा है?
उत्तर-
लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ को काशी का नायाब हीरा कहा है।
प्रश्न 9.
शहनाई को बजाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
शहनाई को बजाने के लिए रीड का प्रयोग किया जाता है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के लेखक कौन हैं?
(A) यतींद्र मिश्र
(B) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(C) मंगलेश डबराल
(D) मन्नू भंडारी
उत्तर-
(A) यतींद्र मिश्र
प्रश्न 2.
यतींद्र मिश्र जी का जन्म कब हुआ था?
(A) सन् 1967 में
(B) सन् 1970 में
(C) सन् 1977 में
(D) सन् 1987 में
उत्तर-
(C) सन् 1977 में
प्रश्न 3.
यतींद्र मिश्र किस राज्य के रहने वाले थे?
(A) पंजाब
(B) उत्तर प्रदेश
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) मध्य प्रदेश
उत्तर-
(B) उत्तर प्रदेश
प्रश्न 4.
यतींद्र मिश्र ने किस भाषा में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी?
(A) संस्कृत में
(B) पंजाबी में
(C) अंग्रेज़ी में
(D) हिंदी में
उत्तर-
(D) हिंदी में
प्रश्न 5.
‘लाखों सजदे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। यहाँ ‘सजदे’ का अर्थ है-
(A) भक्त
(B) सिर
(C) शिष्य
(D) लोग
उत्तर-
(B) सिर
प्रश्न 6.
‘नौबतखाने में इबादत’ किस प्रकार की साहित्यिक विधा से संबंधित है?
(A) जीवनी
(B) भाव चित्र
(C) रेखा चित्र
(D) व्यक्ति चित्र
उत्तर-
(D) व्यक्ति चित्र
प्रश्न 7.
अरब देश में बजाए जाने वाले वाद्य, जिसमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, उसे क्या कहते हैं?
(A) शहनाई
(B) शृंगी
(C) नय
(D) सुषिर वाद्य
उत्तर-
(C) नय
प्रश्न 8.
पंचगंगा घाट किस शहर में है?
(A) कानपुर में
(B) इलाहाबाद में
(C) पटना में
(D) बनारस में
उत्तर-
(D) बनारस में
प्रश्न 9.
अमीरुद्दीन का जन्म किस राज्य में हुआ था?
(A) पंजाब
(B) बिहार (डुमराँव)
(C) राजस्थान
(D) महाराष्ट्र
उत्तर-
(B) बिहार (डुमराँव)
प्रश्न 10.
अमीरुद्दीन का ननिहाल कहाँ है?
(A) रामपुर
(B) डुमरखाँ
(C) काशी
(D) बीजागढ़
उत्तर-
(C) काशी
प्रश्न 11.
बिस्मिल्ला खाँ की एक रीड कितने मिनट में अंदर से गीली हो जाया करती थी?
(A) 15 से 20 मिनट में
(B) 1 से 10 मिनट में
(C) 5 से 10 मिनट में
(D) 10 से 15 मिनट में
उत्तर-
(A) 15 से 20 मिनट में
प्रश्न 12.
बिस्मिल्ला खाँ का देहांत कितने वर्ष की आयु में हुआ था?
(A) 70 वर्ष
(B) 80 वर्ष
(C) 90 वर्ष
(D) 100 वर्ष
उत्तर-
(C) 90 वर्ष
प्रश्न 13.
खाँ साहब कितने वर्ष तक खुदा के आगे सच्चे सुर की इबादत में झुकते रहे थे?
(A) 60 वर्ष
(B) 80 वर्ष
(C) 70 वर्ष
(D) 90 वर्ष
उत्तर-
(B) 80 वर्ष
प्रश्न 14.
अमीरुद्दीन के बड़े भाई का क्या नाम था?
(A) सादिक हुसैन
(B) मुहम्मद अली
(C) शम्सुद्दीन
(D) नूर मुहम्मद
उत्तर-
(C) शम्सुद्दीन
प्रश्न 15.
शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक कौन थे?
(A) तानसेन
(B) बैजू
(C) चित्ररथ
(D) बिस्मिल्ला खाँ
उत्तर-
(D) बिस्मिल्ला खाँ
प्रश्न 16.
शहनाई को बजाने के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
(A) रीड
(B) पाइप
(C) पानी
(D) बिजली
उत्तर-
(A) रीड
प्रश्न 17.
शहनाई बजाने के प्रयोग में आने वाली ‘रीड’ किससे बनाई जाती है?
(A) स्टील से
(B) नरकट से
(C) बाँस से
(D) तूंबी से
उत्तर-
(B) नरकट से
प्रश्न 18.
उस मन्दिर का नाम लिखें जिससे बिस्मिल्ला खाँ को रोज एक अठन्नी मेहनताना मिलता था-
(A) अक्षरधाम
(B) सोमनाथ
(C) विश्वनाथ
(D) बाला जी
उत्तर-
(D) बाला जी
प्रश्न 19.
संकटमोचन मंदिर काशी की किस दिशा में है?
(A) पूर्व
(B) दक्षिण
(C) पश्चिम
(D) उत्तर
उत्तर-
(B) दक्षिण
प्रश्न 20.
‘नरकट’ नामक घास डुमराँव में किस नदी के पास पाई जाती है?
(A) गंगा
(B) यमुना
(C) नर्मदा
(D) सोन
उत्तर-
(D) सोन
प्रश्न 21.
मुहर्रम के गमजदा माहौल से अलंग कभी-कभी सुकून के क्षणों में बिस्मिल्ला खाँ अपने किन दिनों को याद करते थे?
(A) बचपन
(B) बुढ़ापा
(C) यौवन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(C) यौवन
प्रश्न 22.
‘फटा सुर न बख्शें! लुंगिया का क्या है, आज फटी तो कल सी जाएगी’-मालिक से यह दुआ कौन माँगता है?
(A) बिस्मिल्ला खाँ
(B) शिष्या
(C) शम्सुद्दीन
(D) डुमराँव गाँव के लोग
उत्तर-
(A) बिस्मिल्ला खाँ
प्रश्न 23.
प्रवेश द्वार के ऊपर मंगलध्वनि बजाने का स्थान क्या कहलाता है?
(A) अटारी
(B) चौबारा
(C) नौबतखाना
(D) दरवाजा
उत्तर-
(C) नौबतखाना
नौबतखाने में इबादत गद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
(1) अमीरुद्दीन अभी सिर्फ छः साल का है और बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ साल का। अमीरुद्दीन को पता नहीं है कि राग किस चिड़िया को कहते हैं। और ये लोग हैं मामूजान वगैरह जो बात-बात पर भीमपलासी और मुलतानी कहते रहते हैं। क्या वाज़िब मतलब हो सकता है इन शब्दों का, इस लिहाज से अभी उम्र नहीं है अमीरुद्दीन की, जान सके इन भारी शब्दों का वज़न कितना होगा। गोया, इतना ज़रूर है कि अमीरुद्दीन व शम्सुद्दीन के मामाद्वय सादिक हुसैन तथा अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं। विभिन्न रियासतों के दरबार में बजाने जाते रहते हैं। रोज़नामचे में बालाजी का मंदिर सबसे ऊपर आता है। हर दिन की शुरुआत वहीं ड्योढ़ी पर होती है। मंदिर के विग्रहों को पता नहीं कितनी समझ है, जो रोज़ बदल-बदलकर मुलतानी, कल्याण, ललित और कभी भैरव रागों को सुनते रहते हैं। ये खानदानी पेशा है अलीबख्श के घर का। उनके अब्बाजान भी यहीं ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते रहते हैं। [पृष्ठ 116]
प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) अमीरुद्दीन कौन है और उसकी आयु कितनी है?
(ग) अमीरुद्दीन के बड़े भाई का क्या नाम था और उसकी उम्र क्या थी?
(घ) भीमपलासी और मुलतानी क्या हैं? अमीरुद्दीन को इनका पता क्यों नहीं था?
(ङ) अमीरुद्दीन के मामूजानों के क्या नाम थे और वे किस काम के लिए प्रसिद्ध थे?
(च) सादिक हुसैन तथा अलीबख्श प्रतिदिन प्रातः के समय कहाँ शहनाई बजाते थे?
(छ) अलीबख्श के अब्बाजान क्या काम करते थे?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।
(ख) अमीरुद्दीन उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का बचपन का नाम है। वह उस समय केवल छः वर्ष के थे।
(ग) अमीरुद्दीन के बड़े भाई का नाम शम्सुद्दीन था। उस समय उसकी आयु केवल नौ वर्ष की थी।
(घ) भीमपलासी और मुलतानी संगीत के रागों के नाम हैं। उस समय अमीरुद्दीन केवल छः वर्ष का बालक था, इसलिए उसे रागों का बोध नहीं था।
(ङ) अमीरुद्दीन के मामूजानों के नाम सादिक हुसैन तथा अलीबख्श थे। वे शहनाईवादक के रूप में प्रसिद्ध थे।
(च) सादिक हुसैन तथा अलीबख्श प्रतिदिन प्रातः के समय बालाजी के मंदिर की ड्योढ़ी में शहनाई बजाते थे। वहीं से वे अपना दैनिक कार्य आरंभ करते थे।
(छ) अलीबख्श के अब्बाजान भी शहनाईवादन का कार्य करते थे। इस क्षेत्र में उन्होंने भी खूब नाम कमाया था।
(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अमीरुद्दीन के बचपन और उनके परिवार की जानकारी दी है। अमीरुद्दीन अभी छः वर्ष का है और उसका बड़ा भाई शम्सुद्दीन नौ वर्ष का है। अमीरुद्दीन अपने मामा के घर में रहता है। उसे अभी रागों का ज्ञान नहीं है। किंतु उसके मामा आदि बात-बात में विभिन्न रागों के नाम लेकर उनका वर्णन करते रहते हैं। इन शब्दों का वास्तिक अर्थ क्या है, . यह जानने के लिए अमीरुद्दीन की आयु अभी बहुत कम है। इतना अवश्य है कि उसके मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श देश के सुप्रसिद्ध शहनाई वादक हैं। वे भिन्न-भिन्न रियासतों के दरबारों में शहनाई बजाने जाते हैं। वे प्रतिदिन प्रातः बाला जी के मंदिर की ड्योढ़ी पर भी शहनाई बजाते हैं। वे हर रोज़ विभिन्न रागों में शहनाई वादन करते हैं। शहनाई वादन उनका खानदानी पेशा है। उनके अब्बाजान भी यहीं ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते रहते थे।
(2) मसलन बिस्मिल्ला खाँ की उम्र अभी 14 साल है। वही काशी है। वही पुराना बालाजी का मंदिर जहाँ बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने रियाज़ के लिए जाना पड़ता है। मगर एक रास्ता है बालाजी मंदिर तक जाने का। यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता है। इस रास्ते न जाने कितने तरह के बोल-बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के मार्फत ड्योढ़ी तक पहुँचते रहते हैं। रसूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती है। अपने ढेरों साक्षात्कारों में बिस्मिल्ला खाँ साहब ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में संगीत के प्रति आसक्ति इन्हीं गायिका बहिनों को सुनकर मिली है। एक प्रकार से उनकी अबोध उम्र में अनुभव की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने उकेरी है। [पृष्ठ 117]
प्रश्न-
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) 14 वर्षीय बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी के मंदिर में जाने के लिए कौन-सा रास्ता अच्छा लगता था?
(ग) अमीरुद्दीन को रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से जाना क्यों अच्छा लगता था?
(घ) रसूलनबाई और बतूलनबाई कौन-कौन से रागों में गाती थीं?
(ङ) अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में क्यों जाते थे?
(च) अमीरुद्दीन अपने जीवन में संगीत का प्रथम प्रेरक किसे मानते हैं और क्यों?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र।
पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।
(ख) 14 वर्षीय बिस्मिल्ला खाँ को बालाजी के मंदिर में जाने के लिए वह रास्ता अच्छा लगता जिसमें रसूलनबाई और बतूलनबाई का घर था।
(ग) अमीरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) को रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से जाना इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वह उनकी गायकी को सुनकर बहुत प्रसन्न होता था। उसे हर प्रातः वहाँ से गुज़रते हुए तरह-तरह के मधुर रागों से युक्त उनकी ध्वनि सुनाई पड़ती थी। इसी कारण वह इस रास्ते से जाता था।
(घ) रसूलनबाई तथा बतूलनबाई ठुमरी, टप्पे व दादरा आदि रागों में गाती थीं जो मधुर ध्वनियुक्त राग हैं।
(ङ) अमीरुद्दीन बालाजी के मंदिर में शहनाईवादन का रियाज़ करने जाते थे।
(च) अमीरुद्दीन अपने जीवन में संगीत का प्रथम प्रेरक रसूलनबाई व बतूलनबाई नामक दो गायिका-बहनों को मानते हैं, क्योंकि वे प्रतिदिन बालाजी के मंदिर में जाते समय उनके संगीत को सुनते थे। उनके संगीत से आकृष्ट होकर उन्होंने संगीत में रुचि लेनी आरंभ की थी।
(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि अमीरुद्दीन ही बड़ा होकर बिस्मिल्ला खाँ के नाम से प्रसिद्ध होता है। वह अभी 14 वर्ष का है, उसे प्रतिदिन बालाजी के मंदिर में नौबतखाने में शहनाई वादन के अभ्यास के लिए जाना पड़ता है। आम रास्ते के अतिरिक्त एक दूसरा रास्ता भी है जो बालाजी के मंदिर को जाता है। अमीरुद्दीन उसी रास्ते से जाता है। वह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के आगे से होकर जाता है। ये दोनों बहनें गायिकाएँ थीं और इनके गाए गए ठुमरी, टप्पे, दादरा आदि के बोल बालक अमीरुद्दीन को बहुत अच्छे लगते थे। उसे उनका संगीत सुनकर बहुत अच्छा लगता था। बाद में बिस्मिल्ला खाँ ने स्वीकार भी किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में गीत-संगीत की प्रेरणा इन दोनों गायिका बहनों को सुनकर मिली है। उनके मन की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला इन दोनों बहनों ने ही लिखी है। कहने का भाव है कि महान् शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ के गीत-संगीत की प्रेरणा ये दोनों बहनें ही रही हैं।
(3) शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज़ इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सज़दे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते हैं-‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर उनकी ओर उछालेगा, फिर कहेगा, ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी मुराद पूरी। [पृष्ठ 117]
प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ को किसका नायक कहा गया है?
(ग) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष से क्या माँग रहे हैं?
(घ) शहनाई की ध्वनि को क्या कहा जाता है?
(ङ) ‘सच्चे सुर की नेमत’ का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
(च) नमाज़ के पश्चात् उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ सज़दे में क्या कहते हैं और क्यों?
(छ) बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की किस चीज़ पर विश्वास है?
(ज) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत ।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मांगलिक ध्वनि का नायक कहा गया है, क्योंकि उन्होंने शहनाईवादन में नए-नए सुरों को ढाला है।
(ग) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष से खुदा से सच्चे सुर का वरदान माँग रहे हैं, जो श्रोताओं के मन में आनंदानुभूति उत्पन्न कर दे।
(घ) शहनाई की ध्वनि को मंगल ध्वनि कहा जाता है, क्योंकि बिस्मिल्ला खाँ इस ध्वनि से अपनी दिनचर्या आरंभ करते थे। वे सबसे पहले बालाजी के मंदिर की ड्योढ़ी में इसे बजाते थे।
(ङ) इस वाक्य के द्वारा लेखक ने बताया है कि बिस्मिल्ला खाँ शहनाईवादन में सर्वश्रेष्ठ हैं। वे निरंतर शहनाई बजाते रहते हैं तथा अपने वादन से सबको मंत्र-मुग्ध कर देते हैं, फिर भी वे खुदा से विनती करते रहते हैं कि उनकी शहनाई से सच्चे सुर ही निकलें।
(च) नमाज़ के पश्चात् सज़दे में बिस्मिल्ला खाँ यही कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे सच्चा सुर प्रदान करो। मेरे सुरों में ऐसा प्रभाव उत्पन्न कर दो कि भावविभोर होकर मेरी आँखों से अनायास ही अश्रुधारा बह निकले। वे ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि वे सदा अच्छी से-अच्छी शहनाई बजाना चाहते हैं।
(छ) बिस्मिल्ला खाँ को खुदा की वरदान-शक्ति पर पूरा विश्वास है। उसे यह भी विश्वास है कि उसे शहनाईवादन की जो कला मिली है, वह भी ईश्वर का ही वरदान है। आगे भी उसे सुरों की जो कला प्राप्त होगी, वह भी प्रभु की ही देन होगी।
(ज) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में शहनाई वादन के महान् कलाकार बिस्मिल्ला खाँ के विनम्र एवं उदार स्वभाव तथा शहनाई वादन की कला के प्रति उनकी समर्पण की भावना को अभिव्यक्त किया गया है। शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी वर्ष से ईश्वर से सच्चे सुर के वरदान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते आ रहे हैं। वे अपनी प्रतिदिन की पाँच बार की नमाज़ (प्रार्थना) को भी सच्चे सुर के लिए खर्च करते हैं। वे लाखों बार प्रभु के सामने इसी सुर के लिए माथा टेक चुके हैं। वे हर बार यही माँगते हैं कि सुर में ऐसी विशेषता उत्पन्न कर दे कि भावविभोर होकर उसकी आँखों से अनायास ही अश्रु-धारा बह निकलें। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर उन पर एक-न-एक दिन अवश्य ही मेहरबान होकर सुर रूपी फल दे देंगे। कहने का तात्पर्य है कि बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष तक शहनाई वादन के क्षेत्र में नए-नए सुरों का अभ्यास करते रहे और परमात्मा से अच्छे से अच्छे सुर की प्रार्थना भी करते रहे।
(4) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं। वे जब उनका ज़िक्र करते हैं तब फिर उसी नैसर्गिक आनंद में आँखें चमक उठती हैं। अमीरुद्दीन तब सिर्फ चार साल का रहा होगा। छुपकर नाना को शहनाई बजाते हुए सुनता था, रियाज़ के बाद जब अपनी जगह से उठकर चले जाएँ तब जाकर ढेरों छोटी-बड़ी शहनाइयों की भीड़ से अपने नाना वाली शहनाई ढूँढता और एक-एक शहनाई को फेंक कर खारिज़ करता जाता, सोचता-‘लगता है मीठी वाली शहनाई दादा कहीं और रखते हैं।’ जब मामू अलीबख्श खाँ (जो उस्ताद भी थे) शहनाई बजाते हुए सम पर आएँ, तब धड़ से एक पत्थर ज़मीन पर मारता था। सम पर आने की तमीज़ उन्हें बचपन में ही आ गई थी, मगर बच्चे को यह नहीं मालूम था कि दाद वाह करके दी जाती है, सिर हिलाकर दी जाती है, पत्थर पटक कर नहीं। [पृष्ठ 119]
प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) इस गद्यांश में अमीरुद्दीन की किस अवस्था का वर्णन किया गया है?
(ग) चार वर्षीय बालक अमीरुद्दीन शहनाइयों में से किसकी शहनाई खोजता था और क्यों?
(घ) अमीरुद्दीन के नाना के विषय में कैसे विचार थे?
(ङ) अमीरुद्दीन के उस्ताद का क्या नाम था?
(च) अमीरुद्दीन दाद कैसे देता था?
(छ) शहनाईवादन में दाद देने का सही ढंग क्या है?
(ज) सम पर आने से क्या अभिप्राय है?
(झ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम-श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।
(ख) इस गद्यांश में अमीरुद्दीन की बाल्यावस्था का वर्णन किया गया है जिसमें उनकी बालसुलभ क्रियाएँ अत्यंत आकर्षक हैं।
(ग) चार वर्षीय अमीरुद्दीन नाना के चले जाने के बाद नौबतखाने में रखी हुई शहनाइयों में से अपने नाना की शहनाई को खोजता था। उसके नाना बहुत मीठी शहनाई बजाते थे। इसलिए वह उन्हीं की शहनाई को खोजता था।
(घ) अमीरुद्दीन का अपने नाना के प्रति अत्यंत स्नेह था। वह उन्हें अपना आदर्श मानता था। वह उन्हीं की शहनाई खोजकर बजाना चाहता था। किंतु शहनाई न मिलने पर सोचता था कि नाना ने अपनी शहनाई कहीं छुपाकर रख दी है।
(ङ) अमीरुद्दीन के उस्ताद का नाम अलीबख्श खाँ था जो उसके मामा भी थे।
(च) अमीरुद्दीन शहनाई के सम पर पत्थर को ज़मीन पर पटककर दाद देता था।
(छ) शहनाईवादन में सही दाद सिर हिलाकर दी जाती है अथवा ‘वाह’ शब्द बोलकर भी दाद दी जाती है।
(ज) शहनाईवादन क्रिया में जब लय समाप्त होती है और ताल आरंभ होती है, तो उसे सम की स्थिति कहा जाता है।
(झ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने शहनाई वादन के क्षेत्र के शहंशाह बिस्मिल्ला खाँ (अमीरुद्दीन) के बचपन की कुछ यादों का भावपूर्ण वर्णन किया है। जब बिस्मिल्ला खाँ अपने बचपन की यादों का वर्णन करते हैं तो एक सात्विक आनंद से उनकी आँखें चमक उठती हैं। वे बताते हैं कि जब वे चार वर्ष के थे तो छुपकर नाना जी को शहनाई बजाते हुए देखते थे। अभ्यास के पश्चात् जब वे उठकर चले जाते थे तो वहाँ रखी बहुत-सी शहनाइयों में से वह शहनाई ढूँढ़ते थे जिससे उनके नाना जी अभ्यास करते थे। उसके लिए वे एक-एक शहनाई को उठाकर खारिज कर देते थे और सोचते थे कि नाना जी ने मीठी वाली शहनाई कहीं और रख दी है। एक घटना को याद करते हुए वे कहते हैं कि जब उनके मामा अलीबख्श खाँ शहनाई बजाते समय सम पर आते तो वे एक पत्थर ज़मीन पर मारते थे। उनकी इस हरकत को देखकर उनके मामा ने कहा था कि दाद वाह करके या सिर हिलाकर दी जाती है, न कि ज़मीन पर पत्थर मार कर। निश्चय ही बालक अमीरुद्दीन की ये दोनों यादें बहुत ही मीठी यादें हैं।
(5) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथ जी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं, थोड़ी देर ही सही, मगर उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है और भीतर की आस्था रीड के माध्यम से बजती है। [पृष्ठ 119]
प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) काशी में कौन-सी प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा रही है?
(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित संगीत सभा का परिचय दीजिए।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ की काशी विश्वनाथ के प्रति कैसी भावनाएँ थीं?
(ङ) काशी के संकटमोचन मंदिर के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
(च) इस गद्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम श्री यतींद्र मिश्र। . पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा रही है। इस परंपरा के कारण काशी का नाम सर्वत्र आदर से लिया जाता है। ।
(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर काशी के सुप्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर में पाँच दिनों तक शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीत की श्रेष्ठ । सभा का आयोजन किया जाता है। इस सभा में उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का शहनाईवादन अवश्य होता है।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ संगीत के साथ-साथ धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति थे। वे अपने धर्म के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। वे पाँचों वक्त नमाज़ पढ़ते थे। इसके साथ वे बालाजी के मंदिर में शहनाईवादन भी करते थे। वे काशी के विश्वनाथ मंदिर में भी शहनाई बजाते थे। उनकी काशी विश्वनाथ जी के प्रति अपार श्रद्धा थी। वे सदा ही उन्हें स्मरण करते थे।
(ङ) काशी में नगर के दक्षिण में लंका पर संकटमोचन मंदिर विद्यमान है। यहाँ प्रतिवर्ष धार्मिक एवं संगीत के विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हनुमान जयंती के अवसर पर तो संगीत के विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लोग उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की मधुर शहनाई का आनंद भी उठाते हैं।
(च) इस गद्यांश के माध्यम से लेखक ने काशी नगर की सांस्कृतिक भूमि को उजागर किया है। काशी जी में संगीत सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। ऐसे अवसरों पर बिस्मिल्ला खाँ जैसे महान् संगीतकार भाग लेते थे। इसलिए काशी नगरी के सांस्कृतिक जीवन को उद्घाटित करना प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव है।
(छ) आशय/व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने काशी नगरी की शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायन वादन की श्रेष्ठ परंपरा और बिस्मिल्ला खाँ की बालाजी के प्रति अटूट श्रद्धा का वर्णन किया है। काशी में संगीत आयोजन की प्राचीन परंपरा रही है। इसी परंपरा के कारण काशी का आदर भी किया जाता है। बालाजी के मंदिर में हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर शास्त्रीय संगीत का समायोजन किया जाता है। इस सभा में बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई वादन अवश्य होता है। यद्यपि बिस्मिल्ला खाँ में अपने धर्म के प्रति अत्यधिक समर्पण की भावना है फिर भी उनकी अपार श्रद्धा काशी विश्वनाथ के प्रति भी है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब भी वे विश्वनाथ व बालाजी के मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके शहनाई वादन अवश्य करते हैं। उनकी यह हार्दिक आस्था ही उनकी शहनाई के रूप में प्रकट होती है। कहने का भाव है कि बिस्मिल्ला खाँ का धार्मिक दृष्टिकोण अत्यंत उदार है और शहनाई वादन कला के प्रति भी पूर्णतः समर्पित है।
(6) काशी आज भी संगीत के स्वर पर जगती और उसी की थापों पर सोती है। काशी में मरण भी मंगल माना गया है। काशी .. आनंदकानन है। सबसे बड़ी बात है कि काशी के पास उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ जैसा लय और सुर की तमीज़ सिखाने वाला नायाब हीरा रहा है जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा। [पृष्ठ 121]
प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) आज की काशी की स्थिति कैसी है?
(ग) काशी में मरना मंगलमय क्यों माना जाता है?
(घ) नायाब हीरा किसे और क्यों कहा गया है?
(ङ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने किन दो कौमों को कैसी प्रेरणा दी है?
(च) लेखक ने काशी को आनंदकानन क्यों कहा है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) लेखक का नाम श्री यतींद्र मिश्र। पाठ का नाम-नौबतखाने में इबादत।
(ख) आज काशी की स्थिति अत्यंत अच्छी है। यहाँ संगीत कला का आदर किया जाता है। काशी आज भी संगीत के स्वरों से जागती है और संगीत की थपकी से ही सोती है। कहने का भाव है कि काशी में प्रातः बिस्मिल्ला खाँ जैसे महान् संगीतज्ञ द्वारा शहनाईवादन किया जाता है।
(ग) काशी में मरना इसलिए मंगलमय माना जाता है, क्योंकि यह शिव की नगरी है। यहाँ मरने से मनुष्य को शिव लोक प्राप्त होता है। वह सांसारिक आवागमन से मुक्त हो जाता है।
(घ) नायाब हीरा उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ को कहा गया है, क्योंकि सुर एवं लय से वह काशी में आनंद की धारा प्रवाहित करता है। उसने सदा सबको मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा दी है।
(ङ) उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने हिंदुओं एवं मुसलमानों को मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा दी है। उनके अनुसार अपनी मेल-जोल की भावना से समाज में एकता एवं प्रेमभाव का विकास होता है।
(च) लेखक ने काशी को आनंदकानन इसलिए कहा है क्योंकि यहाँ विश्वनाथ विराजमान हैं। उनकी कृपा से यहाँ सर्वत्र मंगल वर्षा होती रहती है। उनकी दया से ही जीवात्माएँ मोक्ष को प्राप्त होती हैं। काशी जी में सदा संगीत सभाओं का आयोजन किया जाता है। इसलिए वहाँ संगीतमय वातावरण बना रहता है। अतः काशी को आनंदकानन कहना उचित है।
(छ) आशय/व्याख्या प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने काशी नगरी के संगीत-प्रेम का उल्लेख किया है। साथ ही उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र के उदात्त गुणों का उल्लेख किया है। लेखक का मत है कि काशी में सुबह-शाम संगीत के स्वर थिरकते हैं। काशी जी में मरण भी शुभ माना जाता है। काशी नगरी आनंद देने वाला उपवन है। इससे भी अच्छी बात यह है कि काशी के पास बिस्मिल्ला खाँ जैसा सुर और लय का ज्ञान देने वाला अनोखा हीरा है। वह सदा ही दो जातियों (हिंदू और मुसलमान) के लोगों को आपस के मतभेद को भूलकर भाईचारे के साथ अर्थात् मिलजुल कर रहने की प्रेरणा देता रहा है।
नौबतखाने में इबादत Summary in Hindi
नौबतखाने में इबादत लेखक-परिचय
प्रश्न-
श्री यतींद्र मिश्र का जीवन-परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय श्री यतींद्र मिश्र का जन्म सन् 1977 में राम-जन्मभूमि अयोध्या में हुआ। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से हिंदी विषय में एम.ए. की परीक्षा पास की। वे आजकल स्वतंत्र लेखन के साथ अर्द्धवार्षिक ‘सहित’ पत्रिका का संपादन कर रहे हैं। सन् 1999 से अब तक वे ‘विमला देवी फाउंडेशन’ नामक एक सांस्कृतिक न्यास का संचालन कर रहे हैं। इस न्यास का संबंध साहित्य और कलाओं के संवर्द्धन से है।
2. प्रमुख रचनाएँ-(क) काव्य-संग्रह ‘यदा-कदा’, ‘अयोध्या तथा अन्य कविताएँ’, ‘ड्योढ़ी पर आलाप’।
(ख) अन्य रचनाएँ–’गिरिजा’ (शास्त्रीय संगीत गायिका गिरिजा देवी की जीवनी), ‘कवि द्विजदेव की ग्रंथावली का सह-संपादन’, ‘थाती’ (स्पिक मैके के लिए विरासत-2001 के कार्यक्रम के लिए रूपंकर कलाओं पर केंद्रित)।
3. सम्मान-उन्हें ‘भारत भूषण अग्रवाल कविता सम्मान’, ‘हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार’, ‘ऋतुराज सम्मान’ आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
4. भाषा-शैली-श्री यतींद्र मिश्र की भाषा-शैली सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। ‘नौबतखाने में इबादत’ नामक पाठ में सुप्रसिद्ध शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के विभिन्न पक्षों का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह एक सफल व्यक्ति-चित्र है। इसमें शास्त्रीय संगीत परंपरा के विभिन्न पहलुओं को सफलतापूर्वक उजागर किया गया है। इस पाठ की भाषा में लेखक ने संगीत से संबंधित प्रचलित शब्दों का सार्थक प्रयोग किया है, यथा-सम, सर, ताल, ठुमरी, टप्पा, दादरी, रीड, कल्याण, मुलतानी, भीमपलासी आदि। उर्दू-फारसी के शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया गया है, यथा दरबार, पेशा, साहबजादे, खानदानी मुराद, गमजदा, बदस्तूर आदि। कहीं संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। वाक्य रचना सुगठित एवं व्याकरण सम्मत है। कहीं-कहीं संवादों का भी सफल प्रयोग किया गया है, जिससे विषय में रोचकता का समावेश हुआ है। भावात्मक, वर्णनात्मक एवं चित्रात्मक शैलियों का सफल प्रयोग किया गया है।
नौबतखाने में इबादत पाठ का सार
प्रश्न-
‘नौबतखाने में इबादत’ शीर्षक पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन एवं उनकी शहनाईवादन कला के विभिन्न पक्षों का सजीव उल्लेख किया है। सन् 1916 से 1922 के आस-पास का समय था, जब छः वर्ष का अमीरुद्दीन अपने बड़े भाई शम्सुद्दीन के साथ काशी में अपने मामूजान सादिक हुसैन और अलीबख्श के पास रहने के लिए आया था। इनके दोनों मामा सुप्रसिद्ध शहनाईवादक थे। वे दिन की शुरुआत पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर किया करते थे। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का बचपन का नाम अमीरुद्दीन था। इनका जन्म बिहार के डुमराँव नामक गाँव में हुआ। वैसे तो डुमराँव और शहनाई में कोई संबंध नहीं है लेकिन डुमराँव गाँव में सोन नदी के किनारे पाई जाने वाली नरकट नामक घास से शहनाई की रीड बनाई जाती है, जिससे शहनाई बजती है। इनके पिता का नाम उस्ताद पैगंबर बख्श खाँ और माता का नाम मिट्ठन था।
अमीरुद्दीन चौदह वर्ष की आयु में बालाजी के मंदिर में जाते समय रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के रास्ते से होकर जाते थे। इन दोनों बहनों द्वारा गाए हुए टप्पे, दादरा, ठुमरी आदि के बोल उन्हें बहुत अच्छे लगते थे। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्हें अपने जीवन के आरंभिक दिनों में इन्हीं गायिका बहनों से संगीत की प्रेरणा मिली है।
वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता। अरब देशों में फूंककर बजाए जाने वाले वाद्यों को ‘नय’ कहते हैं। शहनाई को ‘शाहेनय’ कहकर ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ माना जाता है। सोलहवीं शती के अंत में तानसेन द्वारा रचित राग कल्पद्रुम की बंदिश में शहनाई, मुरली, वंशी शृंगी और मुरछंग का वर्णन मिलता है। अवधी के लोकगीतों में शहनाई का भी वर्णन देखा जा सकता है। मंगल कार्य के समय ही शहनाई का वादन किया जाता है। दक्षिण भारत में शहनाई प्रभाती की मंगलध्वनि मानी जाती है।
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष की आयु में भी परमात्मा से सदा ‘सुर में तासीर’ पैदा करने की दुआ माँगते थे। वे ऐसा अनुभव करते थे कि वे अभी तक सुरों का सही प्रयोग करना नहीं सीख पाए हैं। वे अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। मुहर्रम के दिनों की आठवीं तारीख को खड़े होकर शहनाईवादन किया करते थे और उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार वालों के बलिदान की याद में भीग जाती थीं।
लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ के यौवन के दिनों के विषय में बताया है कि उन्हें कुलसुम हलवाइन की दुकान की कचौड़ियाँ खाने व गीताबाली और सुलोचना की फ़िल्में देखने का जुनून सवार रहता था। वे बचपन में माम, मौसी और नाना से पैसे लेकर घंटों लाइन में खड़े होकर टिकट हासिल कर फिल्म देखने जाते थे। जब बालाजी के मंदिर पर शहनाई बजाने के बदले उन्हें अठन्नी मिलती थी तो वे कचौड़ी खाने और फिल्म देखने अवश्य जाते थे। . लेखक ने पुनः लिखा है कि कई वर्षों से काशी में संगीत का आयोजन संकटमोचन मंदिर में होता है। हनुमान जयंती पर तो पाँच दिनों तक शास्त्रीय व उपशास्त्रीय संगीत का सम्मेलन होता है। इस अवसर पर उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ विशेष रूप में उपस्थित रहते थे। उन्हें काशी के विश्वनाथ के प्रति भी अपार श्रद्धा थी। वे जब भी काशी से बाहर होते तो विश्वनाथ एवं बालाजी के मंदिर की ओर मुख करके अवश्य ही शहनाईवादन करते। उन्हें काशी और गंगा से बहुत लगाव था। उन्हें काशी और शहनाई से बढ़कर कहीं स्वर्ग दिखाई नहीं देता था। काशी की अपनी एक संस्कृति है।
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का पर्याय शहनाई है। इनकी फंक से शहनाई में जादुई ध्वनि उत्पन्न होती थी। एक बार उनकी एक शिष्या ने उन्हें कहा कि आपको भारतरत्न मिल चुका है, आप फटी हुई तहमद न पहना करें। इस पर उन्होंने कहा कि भारतरत्न शहनाई पर मिला है, न कि तहमद पर। हम तो मालिक से यही दुआ करते हैं कि फटा हुआ सुर न दे, तहमद भले फटा रहे। उन्हें इस बात की कमी खलती थी कि पक्का महाल क्षेत्र से मलाई बरफ बेचने वाले चले गए। देसी घी की कचौड़ी-जलेबी भी पहले जैसी नहीं बनती। संगीत, साहित्य और अदब की प्राचीन परंपराएँ भी लुप्त होती जा रही हैं।
काशी में आज भी संगीत की गुंजार सुनाई पड़ती है। यहाँ मरना भी मंगलमय माना जाता है। यहाँ बिस्मिल्ला खाँ और विश्वनाथ एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। यहाँ की गंगा-जमुनी संस्कृति का विशेष महत्त्व है। भारतरत्न और अनेकानेक पुरस्कारों से सम्मानित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ सदा संगीत के अजेय नायक बने रहेंगे। नब्बे वर्ष की आयु में 21 अगस्त, 2006 को यह संगीत की दुनिया का महान् साधक संगीत प्रेमियों की दुनिया से विदा हो गया।
कठिन शब्दों के अर्थ
(पृष्ठ-116) ड्योढ़ी = दहलीज़। नौबतखाना = प्रवेशद्वार के ऊपर मंगलध्वनि बजाने का स्थान। इबादत = पूजा। घाट = नदी का किनारा। मंगलध्वनि = आनंददायक आवाज़ । मामूजान = प्रिय मामाजी। भीमपलासी, मुलतानी = संगीत के रागों के नाम। वाजिब = ठीक। लिहाज = शर्म। गोया = फिर भी। वादक = बजाने वाला। रियासत = शासन-क्षेत्र। रोज़नामचा = दैनिक जमा-खर्च का खाता। पेशा = व्यवसाय । खानदान = परिवार । ननिहाल = नाना का घर। उपयोगी = काम में आने वाला। साहबजादा = पुत्र।
(पृष्ठ-117) रियाज़ = अभ्यास। बोल-बनाव = गीत के सुरों की रचना। ठुमरी = एक चलता गीत। टप्पा = गाने की एक शैली। दादरा = गायन-शैली। साक्षात्कार = भेंट। आसक्ति = लगाव, मोह। अनुभव = तजुरबा। अबोध = अनजान। वर्णमाला = आरंभिक ज्ञान। सुषिर-वाद्य = खोखले यंत्र, जिन्हें फूंककर बजाया जाता है। नाड़ी = तने का खोखला डंठल। शास्त्रांतर्गत = शास्त्र के अंदर। उत्तरार्द्ध = अंतिम भाग। बंदिश = सुरों की रचना। श्रृंगी = सींग से बना वाद्ययंत्र। मुरछंग = वाद्ययंत्र का नाम। चैती = गीत की शैली। परिवेश = वातावरण। मांगलिक विधि-विधान = कल्याणकारी आयोजन। प्रभाती = प्रातःकाल में की जाने वाली आनंदमय ध्वनि। नेमत = वरदान। सज़दा = माथा टेकना। मुराद = इच्छा। ऊहापोह = उलझन। दुश्चिता = बुरी चिंता। तिलिस्म गढ़ना = नई योजना बनाना। महक = सुगंध।
(पृष्ठ-118) गमक = खुशबू, सुगंध। तमीज़ = तरीका, ढंग। सलीका = ढंग। वंशज = परिवार के सदस्य। अज़ादारी = शोक मनाना। शिरकत करना = सम्मिलित होना। नौहा बजाना = करबला के शहीदों पर लिखे हुए शोक-गीत की धुन में वाद्य बजाना। अदायगी = प्रस्तुति। निषेध = रोक। शहादत = कुर्बानी, बलिदान। नम = गीली। पुनर्जीवित = फिर से जीवित होना। संपन्न = पूरा होना। मानवीय रूप = मानवीय भावनाओं से युक्त रूप। गमजदा = दुख से भरपूर। माहौल = वातावरण। सुकून = चैन। जुनून = नशा, सनक। अब्बाजान = पिता जी। उस्ताद = गुरु। बदस्तूर = तरीके से। कायम = बनी हुई।
(पृष्ठ-119) बालसुलभ = बच्चों जैसी। नैसर्गिक = प्राकृतिक, स्वाभाविक। आँखें चमकना = आँखों में आनंद प्रकट होना। खारिज़ करना = छोड़ना। सम = लय की समाप्ति और ताल के आरंभ के बीच की स्थिति। दाद = प्रशंसा करना। बुखार = नशा। मेहनताना = मेहनत से पाया हुआ पैसा। कलकलाता = पूरी तरह गरम। आरोह-अवरोह = उतार-चढ़ाव । स्वादी = स्वाद लेने वाले, आनंद लेने वाले। शक = संदेह। हाथ लगना = प्राप्त होना। अद्भुत परंपरा = अनोखा रिवाज़ । शास्त्रीय = शास्त्र की परंपरा के अनुसार। गायन-वादन = गाना और बजाना। उत्कृष्ट = श्रेष्ठ। मजहब = धर्म। समर्पित = लगे हुए, अर्पित। श्रद्धा = आदर। आस्था = विश्वास।
(पृष्ठ-120) पुश्त = पीढ़ी। शहनाईवाज़ = शहनाई बजाने वाले। अदब = लोक-व्यवहार का उचित ढंग। जन्नत = स्वर्ग। आनंदकानन = आनंदमय वन। रसिक = आनंद लेने वाला। उपकृत = जिस पर उपकार किया गया हो। तहज़ीब = तौर-तरीका। गम = दुख। सेहरा बन्ना = दूल्हे की सेहराबंदी पर गाए जाने वाले गीत। सिर पर चढ़कर बोलना = जादू का-सा प्रभाव रखना। परवरदिगार = परमात्मा। नसीहत = शिक्षा। सुबहान अल्लाह = बहुत अच्छा। अलहमदुलिल्लाह = तमाम तारीफ़ ईश्वर के लिए। करतब = जादू, कला। अजान = बाँग, नमाज के समय की सूचना ऊँचे स्वर में देना। कतार = पंक्ति। सरताज होना = सबसे ऊँचा होना। दुआ लगना = शुभकामना का असर होना। लुंगिया = लुंगी। खाक = बेकार, व्यर्थ।
(पृष्ठ-121) शिद्दत = तीव्रता, प्रबलता। संगती = संगतकार, गायक के साथ वाद्य-यंत्र बजाने वाले कलाकार। अफसोस = दुख। लुप्त होना = छुप जाना। सुर साधक = सुर की साधना करने वाला। सामाजिक = समाज का उदार हृदय मनुष्य। पूरक = पूरा करने वाला। ताजिया = मुहर्रम के अवसर पर चमकीली पन्नियों से बना शव के आकार का ताबूत। अबीर = चमकीला पाउडर। गंगा-जमुनी संस्कृति = मिली-जुली संस्कृति। थाप = ताल। तमीज = सलीका, तरीका। नायाब हीरा = अनमोल रत्न। कौम = जाति। मानद उपाधि = मान के रूप में दी जाने वाली उपाधि। अजेय = जिसे जीता न जा सके। नायक = अगुआ। एकाधिकार = पूरी तरह अधिकार रखना। जिजीविषा = जीने की इच्छा।