Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना
HBSE 10th Class Hindi छाया मत छूना Textbook Questions and Answers
छाया मत छूना व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर-
यथार्थ का पूजन करके अर्थात यथार्थ को स्वीकार करके ही मानव जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। मनुष्य को वास्तविकता का सामना करना ही पड़ता है। हर मनुष्य अपनी परिस्थितियों में जीता है और उनके अनुसार जीवन को ढालता है। भूली-बिसरी यादों के सहारे जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। इसलिए कवि ने कठिन यथार्थ की पूजा करने के लिए कहा है।
छाया मत छूना प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट करेंप्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-
मनुष्य प्रभुता एवं सुख-सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए जीवन-भर दौड़ता रहता है, परंतु उसकी यह दौड़ निरर्थक सिद्ध . होती है क्योंकि सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं। सुख के बाद दुःख आता ही है।
छाया मत छूना कविता की व्याख्या HBSE 10th Class प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर-
कविता में ‘छाया’ शब्द अतीत की यादों के लिए प्रयुक्त हुआ है जो अब वास्तविकता से दूर हो गई हैं। इसलिए अतीत की स्मृतियों रूपी छायाएँ अनुभव करने में भले ही मधुर प्रतीत होती हों, किंतु वर्तमान की वास्तविकता नहीं हो सकती। पुरानी यादों या छाया से चिपके रहने वाला मनुष्य अपने वर्तमान को सुधार नहीं सकता और न ही भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है। इसलिए कवि ने छाया को छूने से मना किया है।
Class 10 Kshitij Chapter 7 Question Answer HBSE प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ।
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर छायावादी काव्य से प्रभावित हैं, इसलिए उन्होंने प्रस्तुत कविता में विविध विशेषण शब्दों का प्रयोग करके विषय-वर्णन में रोचकता उत्पन्न की है। आलोच्य कविता में अनेक विशेषण शब्द प्रयुक्त हुए हैं, उनमें से प्रमुख विशेषण निम्नांकित हैं
(क) दूना दुख-दूना शब्द दुःख की गहराई को व्यक्त करता है।
(ख) सुरंग सुधियाँ यादों की विविधता और मोहक सुंदरता की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ग) छवियों की चित्र-गंध-सुंदर रूपों में मादक गंध की विशिष्टता को व्यक्त किया गया है।
(घ) तन-सुगंध-सुगंध के साकार रूप की विशिष्टता है।
(ङ) शरण-बिंब-जीवन में आधार बनने की विशेषता को व्यक्त किया गया है।
(च) यथार्थ कठिन-जीवन की कठोर वास्तविकता की विशिष्टता दिखाई गई है।
(छ) दुविधा-हत साहस-साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहने की विशिष्टता दिखलाई गई है।
(ज) शरद्-रात-रात में शरद् ऋतु की ठंडक की विशिष्टता।
(झ) रस-वसंत-वसंत ऋतु में मधुर रस के अहसास की विशिष्टता।
छाया मत छूना HBSE 10th Class प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर-
‘मृगतृष्णा’ शब्द का साधारण अर्थ है-भ्रम या धोखा। गर्मी के मौसम में रेगिस्तान के रेत पर पड़ती हुई सूर्य की किरणों की चमक में जल का भ्रम या धोखा हो जाता है और प्यासा मृग धोखे के कारण इसे जल समझ लेता है और इसे प्राप्त करने के लिए इसके पीछे दौड़ता है, किंतु कविता में इसका प्रयोग सुख-सुविधाओं के लिए हुआ है। व्यक्ति प्रभुता एवं सुखसुविधाओं की प्राप्ति हेतु दिन-रात उनके पीछे भागता है, किंतु उसकी यह दौड़ अंतहीन है और एक दिन वह थककर गिर जाता है। इसलिए कविता में संदेश दिया गया है कि मनुष्य को मृगतृष्णा की भावना से बचकर रहना चाहिए।
Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7 HBSE प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर-
उपरोक्त भाव निम्नलिखित पंक्ति में झलकता है’जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण’।
छाया मत छूना के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस कविता में दुःख का कारण अतीत की सुखद यादों को बताया गया है। मनुष्य के जीवन में जब थोड़ा-सा भी दुःख आता है तो वह अपने वर्तमान जीवन की तुलना अतीत से करने लगता है। अतीत की मधुर स्मृतियाँ उसके मानस-पटल पर अंकित हो जाती हैं। इससे उसकी कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ऐसा करके वह अपने दुःखों पर विजय नहीं पाता, बल्कि उसका साहस भी मंद पड़ जाता है और दुःख बढ़ जाते हैं जो उसके आगे बढ़ने के रास्ते में बाधा बन जाते हैं।
रचना और अभिव्यक्ति
छाया मत छूना का भावार्थ HBSE 10th Class प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन । की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है। छात्र इसे स्वयं करें।
प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर? कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर-
निश्चय ही उचित समय पर प्राप्त उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं, जैसे गर्मी बीत जाने पर ए.सी. किस काम का? फसलें सूख जाने पर वर्षा किस काम की? इसी प्रकार रोगी के दम तोड़ देने के पश्चात् डॉक्टर का पहुँचना व्यर्थ होता है। ये सब उदाहरण देखकर लगता है कि समय बीत जाने के बाद यदि उपलब्धियाँ प्राप्त हुईं तो किस काम की। अतः हम समय पर प्राप्त उपलब्धियों के महत्त्व के पक्ष में हैं।
पाठेतर सक्रियता
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफर करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर-
छात्र स्वयं अपने अनुभव लिखें।
कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
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प्रसिद्ध गीत ‘We shall overcome का हिंदी अनुवाद ‘होंगे कामयाब’ शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।
HBSE 10th Class Hindi छाया मत छूना Important Questions and Answers
विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘छाया मत छूना’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
बीते हुए सुखी जीवन की स्मृति को कवि ने छाया कहा है। इसलिए कवि का कथन है कि बीते हुए सुखी जीवन की घड़ियों को स्मरण करने से कुछ प्राप्त नहीं होगा, बल्कि वर्तमान जीवन और दुःखी होगा तथा भविष्य भी भ्रम में पड़ जाएगा। यही कारण है कि कवि ने छाया अर्थात् अतीत के सुखी जीवन की यादों को भूलना ही हितकर बताया है।
प्रश्न 2.
कविता में कवि किसकी और क्यों पूजा करने पर बल देता है?
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने बताया है कि अतीत के सुखी जीवन की यादों से चिपटे रहकर तथा भविष्य की आकांक्षाओं में खोए रहने से मानव-जीवन कभी सुखी नहीं हो सकता। बीते दिनों की सुखद यादें हमें कुछ देर के लिए तो मधुर लग सकती हैं, किंतु अंत में उनसे कुछ लाभ नहीं हो सकता। उनमें डूबे रहने से वर्तमान जीवन दुःखी बन जाता है। भविष्य की आकांक्षाओं से मनुष्य दुविधा में फँस जाता है। वह निर्णय नहीं ले सकता कि उसे क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए। इसलिए कवि ने वर्तमान के कठोर यथार्थ को पूजने का आग्रह किया है।
प्रश्न 3.
‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।’ जीवन से उदाहरण देकर इस तथ्य की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयत्न किया है कि सुख-दुःख जीवन में बराबर आते रहते हैं। जिस प्रकार दिन के बाद रात का आना निश्चित होता है, उसी प्रकार मानव-जीवन में आए सुख का अंत होना भी निश्चित है। मानव-जीवन सुख-दुःख का एक अनोखा क्रम है। मानव-जीवन में प्रायः देखा जाता है कि आज हम उत्सव मनाने में मग्न हैं तो कल शोकाकुल हैं। आज विवाह है तो कल मांग का सिंदूर मिट जाता है। आज कोई व्यक्ति सफलता की खुशियाँ मना रहा है तो कल वही व्यक्ति असफलता पर भी रोता दिखाई देता है। अतः कवि ने ठीक ही कहा है कि हर चांदनी रात में एक अंधेरी रात छिपी रहती है अर्थात् सुख और दुःख जीवन में निरंतर आते रहते हैं।
प्रश्न 4.
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि ने मानव-जीवन के दुःखों का क्या कारण बताया है?
उत्तर-
कवि कहता है कि व्यक्ति का अतीत की बातों की याद में दिन-रात खोए रहने से तथा प्रेम की असफलताओं पर पश्चात्ताप करते रहने से वर्तमान जीवन दुःखद बन जाता है। अतीत की यादों से चिपके रहने वाला व्यक्ति सदा दुःखी रहता है। वर्तमान की वास्तविकताओं को भुलाकर भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहना भी व्यक्ति के जीवन को दुःखी बना देता है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्ति की व्याख्या कीजिएप्रभुता की शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है।
उत्तर-
प्रभुत्व की प्राप्ति की शरण का बिंब एक मृगतृष्णा के समान धोखा है, मिथ्या है। जिस प्रकार रेगिस्तान में चमकती रेत को देखकर मृग को पानी होने का भ्रम हो जाता है तथा उसे प्राप्त करने के लिए भागता है किंतु अंत में कुछ भी हाथ न लगने के कारण निराश हो जाता है, उसी प्रकार प्रभुत्व प्राप्ति की शरण भी मृगतृष्णा के समान एक धोखा है।
संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. 2017 (Set-B), Sample Paper,.2019]
उत्तर-
‘छाया मत छूना’ कविता में कवि का उद्देश्य यह उजागर करना है कि अतीत की सुखद यादों में निरंतर खोए रहना उचित नहीं है क्योंकि इससे वर्तमान जीवन दुखद और भविष्य अनिश्चित बन जाता है। जीवन की कठोर वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर जीने में ही मानव की भलाई है। कवि ने यह भी बताया है कि भविष्य की आकांक्षाओं में जीने से भी मानव-जीवन दुःखी बनता है। अतः कवि का स्पष्ट मत है कि वर्तमान जीवन के आधार पर जीना ही उचित है।
प्रश्न 7.
‘छाया मत छूना’ में कवि की आशावादी और यथार्थवादी भावनाओं की एक साथ अभिव्यक्ति हुई है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही कविवर गिरिजाकुमार माथुर की इस कविता में आशावादी चेतना के दर्शन होते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने अतीत के दुःखों व असफलताओं को याद करने की अपेक्षा अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करना चाहिए
“जो न मिला भूल उसे, कर तू भविष्य वरण।”
इसी प्रकार कविवर माथुर अतीत की सुखद यादों व कल्पनाओं को तथा अवास्तविकताओं को त्यागकर जीवन में यथार्थ को स्वीकार करते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
“जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन”।
प्रश्न 8.
‘दुविधा-हत साहस है दिखाता पंथ नहीं’ पंक्ति कवि की किस विचारधारा की ओर संकेत करती है?
उत्तर-
इस पंक्ति में कवि की जीवन के प्रति यथार्थ एवं स्पष्ट विचारधारा व्यक्त हुई है। कवि ने बताया है कि जब मनुष्य का मन दुविधाओं से ग्रस्त रहता है, तब उसे आगे बढ़ने का कोई उचित मार्ग नहीं सूझता। उसका साहस भी नष्ट होने लगता है। जीवन में वह किसी एक निर्णय पर नहीं पहुँच सकता। इसलिए कवि ने स्पष्ट किया है कि हमें अपने मन में किसी भी प्रकार की दुविधा को स्थान नहीं देना चाहिए। हमारी जीवन-शैली दुविधा रहित होनी चाहिए।
अति लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म कब हुआ था?
उत्तर-
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में हुआ था।
प्रश्न 2.
गिरिजाकुमार माथुर का निधन कब हुआ था?
गिरिजाकुमार माथुर का निधन सन् 1994 में हुआ था?
प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
‘छाया’ शब्द का प्रयोग मधुर स्मृतियों के लिए किया गया है।
प्रश्न 4.
चाँदनी रात को देखकर कवि को क्या याद आता है?
उत्तर-
चाँदनी रात को देखकर कवि को प्रियतमा के केशों में गूंथे हुए फूलों की याद आती है।
प्रश्न 5.
किसके तन की सुगंध की यादें शेष रह गई हैं?
उत्तर-
कवि की पत्नी के तन की सुगंध की यादें शेष रह गई हैं।
प्रश्न 6.
‘छाया मत छूना’ कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
श्री गिरिजाकुमार माथुर।
प्रश्न 7.
‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने किस ओर संकेत किया है?
उत्तर-
‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने दुख रूपी रात की ओर संकेत किया है।
प्रश्न 8.
कवि को पंथ दिखाई क्यों नहीं देता?
उत्तर-
कवि को दुविधाग्रस्त होने के कारण पंथ दिखाई नहीं देता।
प्रश्न 9.
‘छाया मत छूना’ कविता में जो न मिला उसे भूलकर किसका वरण करने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने जो नहीं मिला उसे भूलकर भविष्य को वरण करने को कहा है।
प्रश्न 10.
‘रस-बसंत’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
रस-बसंत’ का अभिप्राय सुखमय जीवन है।
प्रश्न 11.
कवि के अनुसार छाया को छूने से क्या होता है?
उत्तर-
कवि के अनुसार छाया को छूने से दुख की प्राप्ति होती है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
गिरिजाकुमार माथुर किस प्रदेश के रहने वाले थे?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) हरियाणा
(C) मध्य प्रदेश
(D) पंजाब
उत्तर-
(C) मध्य प्रदेश
प्रश्न 2.
गिरिजाकुमार माथुर कृत कविता का नाम है
(A) छाया मत छूना
(B) फसल
(C) संगतकार .
(D) कन्यादान
उत्तर-
(A) छाया मत छूना
प्रश्न 3.
कवि ने किसे छुने से मना किया है?
(A) छाया को
(B) बादल को
(C) आग को
(D) पानी को
उत्तर-
(A) छाया को
प्रश्न 4.
कवि के अनुसार छाया को छूने से क्या होता है?
(A) सुख की प्राप्ति
(B) दुख की प्राप्ति
(C) धन की प्राप्ति
(D) भोजन की प्राप्ति
उत्तर-
(B) दुख की प्राप्ति
प्रश्न 5.
‘यामिनी’ का क्या अर्थ है?
(A) सर्पनी
(B) अंधेरी रात
(C) प्रातःकाल
(D) चाँदनी रात
उत्तर-
(D) चाँदनी रात
प्रश्न 6.
‘यश है या न वैभव है मान है न सरमाया’, यहाँ ‘सरमाया’ का अर्थ है
(A) शर्म आना
(B) शर्म न करना
(C) परिश्रम
(D) पूँजी
उत्तर-
(D) पूँजी
प्रश्न 7.
दुविधा की अधिकता के कारण कवि को क्या दिखाई नहीं देता?
(A) लक्ष्य
(B) सहायक
(C) पंथ
(D) साथी
उत्तर-
(C) पंथ
प्रश्न 8.
‘भरमाया’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) भटका हुआ
(B) भ्रमित होना
(C) सुधरा हुआ
(D) दौड़ता हुआ
उत्तर-
(A) भटका हुआ
प्रश्न 9.
पूज्य कठिन यथार्थ क्या है?
(A) पलायन
(B) कल्पना
(C) उपदेश
(D) चुनौती स्वीकारना
उत्तर-
(D) चुनौती स्वीकारना
प्रश्न 10.
‘मृगतृष्णा’ का अर्थ है
(A) मृग की प्यास
(B) मृग की दौड़
(C) छलावा
(D) दिखावा
उत्तर-
(C) छलावा
प्रश्न 11.
‘चन्द्रिका’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ के लिए किया गया है?
(A) सुख के दिनों के लिए
(B) दुख के दिनों के लिए
(C) आलस्य के अर्थ में
(D) मस्ती के दिनों के लिए
उत्तर-
(A) सुख के दिनों के लिए
प्रश्न 12.
कवि ने मानव को किसका ‘पूजन’ करने के लिए कहा है?
(A) भगवान का
(B) धन का
(C) यथार्थ का
(D) भविष्य का
उत्तर-
(C) यथार्थ का
प्रश्न 13.
क्या होते हुए भी दुविधा से ग्रस्त रहते हैं?
(A) धन
(B) साहस
(C) पराक्रम
(D). यौवन
उत्तर-
(B) साहस
प्रश्न 14.
प्रस्तुत कविता में हर चंद्रिका में क्या छिपी होने की बात कही है?
(A) चाँदनी
(B) ज्योत्स्ना
(C) काली रात
(D) खुशी
उत्तर-
(C) काली रात
प्रश्न 15.
जीवन में सुहावनी चीजें क्या हैं?
(A) वैभव
(B) सुरंग सुधियाँ
(C) कर्म
(D) अमीरी
उत्तर-
(B) सुरंग सुधियाँ
प्रश्न 16.
‘कुंतल’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) रेशमी वस्त्र
(B) फूल
(C) लम्बे केश .
(D) कंचुकी
उत्तर-
(C) लम्बे केश
प्रश्न 17.
‘छवियों की चित्र गंध’ किस प्रकार की है?
(A) आकर्षक
(B) आनंददायक
(C) मनभावनी
(D) सुहावनी
उत्तर-
(C) मनभावनी
प्रश्न 18.
प्रस्तुत कविता में किसका वरण करने की बात की गई है?
(A) जो न मिला हो
(B) भविष्य का
(C) ईश्वर का
(D) खुशियों का
उत्तर-
(B) भविष्य का
प्रश्न 19.
पथ न दिखने पर साहस कैसा होता है?
(A) अपार
(B) आनन्दमय
(C) दुविधा-हत
(D) अकथनीय
उत्तर-
(C) दुविधा-हत
छाया मत छूना पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
[1] छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [पृष्ठ 46]
शब्दार्थ-छाया मत छूना = अतीत को याद न करना। सुरंग = रंग-बिरंगी। सुधियाँ = यादें, स्मृतियाँ। छवियों की चित्र-गंध = सौंदर्य की स्मृति, चित्र की स्मृति के साथ उसके आसपास की गंध का अनुभव होना। यामिनी = चाँदनी रात। कुंतल = केश। छुअन = स्पर्श। छाया = भ्रम।
प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) जीवन में सुधियाँ कैसी हैं?
(ङ) कवि छाया को छूने से मना क्यों कर रहा है?
(च) छाया को छूने का क्या परिणाम होगा और कैसे?
(छ) ‘छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ज) चाँदनी रात को देखकर कवि को किसकी स्मृति आती है और क्यों?
(झ) ‘बीत गई यामिनी’ में कवि का कौन-सा भाव मुखरित हुआ है?
(अ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) प्रस्तुत काव्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित एवं गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘छाया मत छूना’ से उद्धृत है। प्रस्तुत कविता में कवि ने बीते हुए सुखी जीवन की स्मृतियों को त्यागकर वर्तमान जीवन को सुखी बनाने की प्रेरणा दी है। इन पंक्तियों में कवि ने अतीत के प्रेम और सुख की यादें सुखद होने पर भी वर्तमान को दुखद बनाने वाली बताया है।
(ग) कवि अपने मन को संबोधित करते हुए कहता है कि हे मन! अतीत की यादों को मत छूना क्योंकि उन्हें स्मरण करके वर्तमान जीवन दुःखी होता है तथा भविष्य भ्रामक कल्पनाओं में उलझ जाता है। अतीत के प्रेम और प्रिय की रंग-बिरंगी सुहावनी अनेक स्मृतियाँ होती हैं। इन यादों में बीते हुए क्षणों के चित्र उभरकर एक सुहावनी सुगंध की मादकता मन में भर देते हैं। अतः प्रिय के तन की सुगंध की स्मृतियों में ही सारी रात बीत जाती है। प्रिय के केशों में लगे फूलों की याद चाँदनी के समान मन रूपी आसमान पर छाई रहती है। प्रिय के तन का स्पर्श, जो भुलाया नहीं जा सकता, वह पुनः बीते क्षणों को जीवंत कर देता है। अतः हे मन! अतीत की यादों को मत छूना वरन् वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बन जाएँगे।
(घ) जीवन में सुधियाँ रंग-बिरंगी, सुहावनी तथा मन को भाने वाली हैं।
(ङ) कवि के अनुसार छाया को छूने अर्थात् अतीत की यादों में जीने का परिणाम अच्छा नहीं होता अथवा अतीत की यादों में जीने का परिणाम दुखद होता है। हम पुराने दिनों के बीत जाने पर उन्हें याद करके दुःखी होते हैं। इसका हमारे वर्तमान जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए कवि छाया को छूने से मना करता है।
(च) छाया को छूने का अर्थात् अतीत की मधुर स्मृतियों को मन में संजोये रखने का परिणाम अच्छा नहीं होता। यदि हम अपने अतीत में ही जीते रहेंगे तो हमारा वर्तमान और भविष्य दोनों अच्छे नहीं बन सकेंगे। इसलिए छाया को छूते रहने से जीवन अभावग्रस्त एवं दुःखी होता है।
(छ) इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने बताया है कि जब हम पुरानी यादों में जीते हैं अर्थात् बीते हुए समय को याद करते हैं तो हमारे सामने न केवल बीती हुई मीठी यादों के दृश्य ही आते हैं अपितु उन क्षणों की सुगंध भी तरोताजा हो जाती है। वे हमें सजीव-सी प्रतीत होती हैं।
(ज) चाँदनी रात को देखकर कवि को अपनी प्रियतमा के केशों में गूंथे हुए फूलों की स्मृति आती है क्योंकि उन्हें चाँदनी को देखकर अपने बीते हुए प्रेम के सुहावने दिनों की याद आती है।
(झ) ‘बीत गई यामिनी’ में पुरानी यादों में रात बीतने की पीड़ा व्यक्त हुई है। कवि के कहने का तात्पर्य है कि पुरानी यादों की स्मृतियों में पूरा जीवन ही समाप्त हो जाता है, किंतु यादें फिर भी बनी रहती हैं। किंतु उनसे वर्तमान जीवन के लिए कुछ ठोस प्राप्त नहीं हो सकता।
(ञ) इस कवितांश में कवि ने मानव मन की उस स्थिति का मनोरम वर्णन किया है जो उसे अतीत से जोड़े रखती है। कवि ने पुरानी यादों से उत्पन्न निराशा को गहरा करने की मनोभावना का उल्लेख किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि पुरानी यादों से मधुरता कम और निराशा अधिक उत्पन्न होती है तथा निराशा का हमारे वर्तमान पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(ट)
- कवि ने मानव मन की गहराइयों को अत्यंत सशक्त एवं समर्थ भाषा में उजागर किया है।
- संपूर्ण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।
- संस्कृत के शब्दों की अधिकता है।
- तुकांतता के कारण विषय प्रभावशाली बन पड़ा है।
- कोमलकांत शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(ठ) गिरिजाकुमार माथुर भाषा के मर्मज्ञ विद्वान थे। उन्होंने अपनी कविताओं में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। प्रयुक्त काव्यांश में सरल एवं सामान्य बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है। तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग विषयानुकूल है। सम्पूर्ण पद में प्रसाद गुण संयुक्त भाषा का प्रयोग हुआ है।
[2] यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना। [पृष्ठ 46]
शब्दार्थ-यश = सम्मान। वैभव = सुख-साधन, धन-दौलत। सरमाया = पूँजी, धन। भरमाया = भटका। प्रभुता का शरण-बिंब = बड़प्पन का अहसास। मृगतृष्णा = छलावा, धोखा। रात कृष्णा = काली रात, दुखद समय। यथार्थ = सत्य। पूजन = पूजा करना, अर्चना करना।
प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट करें।
(ग) इस काव्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) दुःख क्यों दुगुना होने लगता है?
(ङ) ‘भरमाया’ में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए।
(च) ‘मृगतृष्णा’ क्या है और इसका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(छ) ‘चंद्रिका’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
(ज) ‘कृष्णा’ शब्द के माध्यम से कवि ने किसकी ओर संकेत किया है?
(झ) यथार्थ को कठिन क्यों कहा गया है?
(ञ) इस काव्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ट) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।
(ख) ये पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखित कविता ‘छाया मत छूना’ में से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने अतीत के साथ चिपके रहने का विरोध किया है। उन्होंने बताया है कि अतीत की यादें चाहे कितनी भी मधुर क्यों न हों, किंतु दुःख की घड़ी में ये और भी अधिक दुखद. बन जाती हैं।
(ग) कवि का कथन है कि बीती सुखद एवं प्रेम की घड़ियों की स्मृतियों के पीछे दौड़ने से मान, यश, ऐश्वर्य आदि कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। अतीत की सुखद स्मृतियों के पीछे भागने से कुछ मिलने की अपेक्षा और भ्रम में पड़ सकते हैं। किसी प्रकार की प्रभुता की छाया अर्थात् अधिकार पाने का विचार भी एक धोखा ही है। यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि हर चाँदनी रात में एक काली रात भी छिपी रहती है अर्थात् हर सुख के साथ दुःख तथा मिलन के साथ जुदाई जुड़ी रहती है। अतीत को भूलकर वर्तमान जीवन का जो कटु सत्य है उसी को स्वीकार करना चाहिए अर्थात् उसी की पूजा करनी चाहिए। बीते समय की यादों के पीछे भागना तो दुख को बुलावा देने जैसा है।
(घ) मनुष्य जब दुःख के समय में बीते हुए जीवन के सुखों को याद करने लगता है तो वर्तमान जीवन के दुःख दुगुने लगने लगते हैं।
(ङ) ‘भरमाया’ का शाब्दिक अर्थ है-भटका हुआ। कवि ने इस शब्द के माध्यम से बताया है कि सुख-संपत्ति के साधनों या सुखों को प्राप्त करने के लिए मनुष्य जितनी अधिक भाग-दौड़ करता है, वह उतना ही अधिक भ्रम में पड़ता है। उसकी परेशानियाँ या कठिनाइयाँ कम होने की अपेक्षा बढ़ती ही जाती हैं। . (च) ‘मृगतृष्णा’ एक धोखा है। जो न होकर भी होने का आभास देता है, वही मृगतृष्णा है। जीवन में प्रभुता पाने को कवि ने धोखा बताया है। इसी धोखे को या प्रभुता की चमक-दमक को कवि ने मृगतृष्णा की संज्ञा दी है। इसका जीवन पर विपरीत प्रभाव पाता है जिससे वह इधर-उधर रहता है।
(छ) ‘चंद्रिका’ शब्द का साधारण अर्थ है-चाँदनी। किंतु कवि ने यहाँ उसका प्रयोग सुखों को व्यक्त करने के लिए किया है। हर मनुष्य अपने जीवन में सुखों रूपी चाँदनी को प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है।
(ज) ‘कृष्णा’ का प्रयोग सायास किया गया है। कृष्णा शब्द दुःख रूपी अमावस्या का बोध कराने हेतु प्रयुक्त किया गया है। कवि ने बताया है कि हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है। जीवन में दुःखों का आना-जाना तो लगा ही रहता है। इसलिए उनके विषय में सोचकर मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए।
(झ) यथार्थ जीवन का कटु सत्य होता है, जिसे हर व्यक्ति को सहन करना पड़ता है। इससे मुख मोड़कर जीवन नहीं जिया जा सकता। कठोर परिश्रम करना और जीवन को सुखी बनाने का प्रयास इससे संबंधित है।
(ञ) कवि ने स्पष्ट किया है कि दुःख की घड़ियों में बीते हुए समय के सुखों को याद करने से दुःख घटने की अपेक्षा बढ़ता है। इसी प्रकार कवि ने बताया है कि मनुष्य धन-दौलत व सुखों की प्राप्ति के लिए जितना इनके पीछे भागता है, वह उतना ही भ्रमित होता जाता है। यह एक मृगतृष्णा है। हर सुख के पीछे दुःख छिपा रहता है जिसे मनुष्य को भूलना नहीं चाहिए। मनुष्य को जीवन के यथार्थ को ही मन में रखना चाहिए।
(ट)
- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जीवन से संबंधित सुख-दुःख की भावना को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यक्त किया है।
- खड़ी बोली के साहित्यिक रूप का सफल प्रयोग किया गया है।
- सुप्रसिद्ध तत्सम शब्दों का सार्थकता पूर्ण प्रयोग देखते ही बनता है।
- अनुप्रास, रूपक आदि अलंकारों के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
- तुकांत छंद है।
- भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
(ठ) दिए गए काव्यांश में कविवर माथुर ने सरल, सहज एवं सामान्य बोलचाल की भाषा का सफल प्रयोग किया है। कवि ने सरमाया, पूजन, भरमाया, दूना आदि तद्भव शब्दों के साथ-साथ शरण-बिम्ब, मृगतृष्णा, चंद्रिका, वैभव आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग भी विषयानुकूल किया है। कवि ने ग्रामीण अंचल के शब्दों का सफल प्रयोग करके भाषा को अधिक व्यावहारिक बनाया है।
[3] दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।[पृष्ठ 46]
शब्दार्थ-दुविधा-हत साहस = साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना। पंथ = रास्ता। देह = शरीर । अंत नहीं = सीमा नहीं। शरद-रात = सर्दी की रात। भविष्य वरण = आने वाले समय को धारण करना।।
प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस काव्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ से क्या अभिप्राय है?
(ङ) “पंथ’ में निहित भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(च) हर प्रकार के सुख-सुविधाओं की प्राप्ति पर भी मनुष्य को किसके अंत का पता नहीं चलता?
(छ) रस बसंत से क्या तात्पर्य है?
(ज) कवि ने इन पंक्तियों में क्या संदेश दिया है?
(झ) ‘न चाँद खिला’ का क्या अभिप्राय है?
(ञ) इस पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-गिरिजाकुमार माथुर। कविता का नाम-छाया मत छूना।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘छाया मत छूना’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री गिरिजाकुमार माथुर हैं। इस कवितांश में कवि ने मनुष्य को सचेत करते हुए कहा है कि अतीत के सुखों की बातों में डूबा रहना उचित नहीं है। इससे जीवन में दुःखों की छाया बढ़ती है। मनुष्य को वर्तमान में रहते हुए परिश्रम करके अपने भविष्य को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।
(ग) कवि कहता है कि तुम्हारा साहस मन की दुविधाओं के कारण नष्ट होता जा रहा है। कल क्या होगा, क्या नहीं, सफलता मिलेगी या नहीं, आदि दुविधाओं के कारण तुम्हारा साहस नष्ट हो रहा है। तुम्हें आगे बढ़ने के लिए दुविधा के कारण ही कोई निश्चित मार्ग दिखाई नहीं देता। शरीर सुखी होने पर भी मन में असीम दुःख हैं। हर प्रकार की सुख-सुविधा होने पर भी तुम मन से प्रसन्न नहीं हो। तुम्हें इस बात का भी दुःख है कि शरद् की रात आने पर भी आकाश में चाँद नहीं खिला। कहने का अभिप्राय है कि हर प्रकार के सुख की प्राप्ति के पश्चात् भी तुम्हारा मन प्रसन्न नहीं हुआ। यदि बसंत ऋतु के समाप्त होने पर फूल खिलें तो उनका क्या लाभ? यह ठीक है कि तुम्हें समय पर सफलता नहीं मिली। फिर तुम्हें इन असफलताओं को भूलकर अपने भविष्य को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को अतीत व कल्पनाओं में जीने की अपेक्षा वर्तमान में जीने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए यह तुम्हारे लिए हितकर सिद्ध होगा।
(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ से अभिप्राय है-सफलता-असफलता, शुभ-अशुभ तथा गलत-ठीक के भ्रम में पड़ने पर मन में साहस का न जग पाना।
(ङ) ‘पंथ’ से तात्पर्य जीवन के उन उद्देश्यों से है जिन्हें हम दुविधाग्रस्त होने के कारण प्राप्त नहीं कर सके।
(च) मनुष्य को हर प्रकार की सुख-सुविधाओं के प्राप्त होने पर भी मन में व्याप्त दुःखों के अंत का पता नहीं अर्थात् मनुष्य के जीवन में दुःख तो आते ही रहते हैं।
(छ) रस बसंत से कवि का तात्पर्य सुखमय जीवन से है। दूसरे शब्दों में, रस बसंत जीवन के यौवन व उचित अवसर का प्रतीक है।
(ज) कवि ने इन पंक्तियों में संदेश दिया है कि जीवन में हमें जो कुछ नहीं मिला, उसे भूल जाओ। वर्तमान के यथार्थ को स्वीकार करो और भविष्य को सुधारने का प्रयास करो। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमें जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो सकेगी।
(झ) ‘न चाँद खिला’ का अभिप्राय सुखों का प्राप्त न होना है। कवि ने यहाँ चाँद का प्रतीकात्मक प्रयोग किया है जिसका अर्थ सुख है। समय पर सुखों की प्राप्ति न होने पर मन प्रसन्न नहीं होता।
(ञ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने बताया है कि जब मन में दुविधाएँ बनी हुई हों तो मनुष्य साहसी होते हुए भी साहसपूर्ण कार्य नहीं कर सकता। मन की दुविधाओं से केवल साहस ही नष्ट नहीं होता, अपितु मनुष्य अपने भले-बुरे, लाभ-हानि को भी नहीं पहचान सकता। इसलिए कवि ने मन में दुविधा को न रखने की प्रेरणा दी है।
(ट)
- कवि ने इन पंक्तियों में सहज भाषा का प्रयोग करते हुए गंभीर भावों को अभिव्यंजित किया है।
- सुप्रसिद्ध तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
- भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
- स्वरमैत्री के प्रयोग के कारण काव्यांश में लय एवं संगीतात्मकता का समावेश हुआ है।
- अनुप्रास, प्रश्न एवं रूपक अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश में कविवर माथुर ने अत्यन्त सरल, सामान्य एवं सहज भाषा का भावानुकूल प्रयोग किया है। कवि ने दो अलग-अलग विरोधी भावों को एक-साथ चित्रित किया है जिससे विषय की रोचकता के साथ-साथ भाषा में भी सौंदर्य का समावेश हुआ है। वर्णनात्मक शैली का सफल प्रयोग किया है। भाषा प्रसाद गुण सम्पन्न है।
सूरदास के पद Summary in Hindi
छाया मत छूना कवि-परिचय
प्रश्न-
कविवर गिरिजाकुमार माथुर का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं और भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 में मध्य प्रदेश के गुना नामक स्थान पर हुआ। प्रारंभिक शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने एम०ए० अंग्रेज़ी व एल०एल०बी० की उपाधि लखनऊ से प्राप्त की।
आरंभ में इन्होंने कुछ समय तक वकालत की। तत्पश्चात् आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत हुए। नौकरी के साथ-साथ गिरिजाकुमार माथुर जी निरंतर साहित्य-साधना भी करते रहे। इन्होंने अनेक रचनाओं का निर्माण करके माँ भारती के आँचल को भर दिया। उनका निधन सन् 1994 में हुआ।
2. प्रमुख रचनाएँ-उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’ (काव्य-संग्रह); ‘जन्म कैद’ (नाटक); ‘नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ’ (आलोचना)।
3. काव्यगत विशेषताएँ-गिरिजाकुमार माथुर रुमानी भाव-बोध के कवि हैं। इस क्षेत्र में उनको खूब सफलता मिली थी। यद्यपि उनकी आरंभिक रचनाओं में छायावादी प्रवृत्तियाँ दिखलाई पड़ती हैं, किंतु बाद में माथुर जी प्रगतिवाद से जुड़कर लिखने लगे थे। माथुर जी मानव मन की गहराइयों को छूने की अद्भुत क्षमता रखते थे। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण सदा यथार्थवादी रहा है। वे जीवन की निराशाओं से हार मानकर बैठने वाले नहीं थे, अपितु वे उन्हें नए-नए रूपों में ढालने के पक्ष में थे।
गिरिजाकुमार माथुर विषय की मौलिकता के पक्षधर थे, साथ ही शिल्प की विलक्षणता को अनदेखा नहीं करना चाहते थे। वे विषय को अधिक स्पष्ट एवं सजीव रूप में प्रस्तुत करने के लिए वातावरण के रंग भी भरने के पक्ष में थे। .
4. भाषा-शैली-गिरिजाकुमार माथुर मुक्त छंद में ध्वनि साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता संभव कर सके। इनकी रुमानी कविताओं की भाषा सहज, सरल, सरस तथा सामान्य बोलचाल की हिंदुस्तानी भाषा है। परंतु क्लासिकल कविताओं में इन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। लेकिन स्थानीय बोली और ग्रामीण आँचल के शब्दों के प्रति इनका विशेष मोह है। ऐसे स्थलों पर वे वातावरण निर्माण के लिए स्थानीय शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार से उन्होंने बिंबों और प्रतीकों का खुलकर प्रयोग किया है। विशेषकर रंग, दृश्य, प्राण तथा प्रकृति बिंबों की प्रमुखता है। इसके अतिरिक्त माथुर साहब ने अभिधात्मक, क्लासिकल और वर्णनात्मक सभी प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया है। मुक्त छंद के प्रति इनका विशेष आग्रह है।
छाया मत छूना कविता का सार
प्रश्न-
‘छाया मत छूना’ नामक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने मन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे मन! तू कभी भी बीते हुए सुख के समय की यादों के पीछे मत दौड़ना। ऐसा करने से दुःख कम होने की अपेक्षा दुगुना ही होगा। सुख स्मृतियों के पीछे भागना मन को भटकन में डालना है। मानव धन-दौलत, आदर-मान जितना प्राप्त करना चाहता है, उतना ही वह दुविधा में जकड़ा जाता है। कवि का कहना है कि प्रत्येक चाँदनी से युक्त रात के पीछे अंधकारपूर्ण रात छिपी रहती है। अतः जीवन के यथार्थ को समक्ष रखकर जीवन-यापन करना चाहिए। कवि का मत है कि दुविधा युक्त मानव कभी भी जीवन का सही मार्ग नहीं चुन सकता। भौतिक पदार्थों के पर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर लेने पर भी यदि मानव की इच्छाएँ फलीभूत होती हैं तो भले ही उसे शारीरिक सुख अनुभव हो, किंतु मानसिक पीड़ा फिर भी बनी रहेगी। कवि पुनः कहता है कि हे मानव! जिस वस्तु को तू प्राप्त नहीं कर सकता, उसे भूलकर अपने भविष्य का मार्ग निर्धारित कर। अतीत की घटनाओं को याद करके उन पर पश्चात्ताप करने से कोई लाभ नहीं होता। भाव यह है कि अतीत से जुड़े रहना केवल मूर्खता है। इससे वर्तमान और भविष्य दोनों दुखद बनते हैं।