Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 साँवले सपनों की याद
HBSE 9th Class Hindi साँवले सपनों की याद Textbook Questions and Answers
साँवले सपनों की याद HBSE 9th Class प्रश्न 1.
किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया ?
उत्तर-
सालिम अली के बचपन के दिनों में उनकी एयरगन से एक नीले कंठ वाली गोरैया घायल होकर नीचे गिर पड़ी थी। इस घटना से बालक सालिम अली का मन अत्यंत व्याकुल हो उठा था। इस घटना के कारण ही वे आजीवन प्रकृति के विविध रूपों को खोजते रहे। वे प्रकृति के महान् प्रेमी बन गए थे। उनकी इस महान् प्रवृत्ति के पीछे गोरैया के घायल होने की घटना ही काम करती रही।
Sawle Sapno Ki Yaad Summary HBSE 9th Class प्रश्न 2.
सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई थी ?
उत्तर-
श्री सालिम अली केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवाओं के झोंकों से बचाने का अनुरोध लेकर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मिले थे। उन्होंने बताया होगा कि रेगिस्तानी हवाओं के कारण केरल की हरी-भरी एकांत घाटी नष्ट हो जाएगी। वहाँ का वातावरण शुष्क हो जाएगा। रेगिस्तानी हवाएँ अपने साथ रेत के कण लेकर आएँगी और वहाँ शुद्ध पर्यावरण को दूषित कर देंगी, जिसका प्रभाव वहाँ की वनस्पति व जंगली पशु-पक्षियों पर भी अवश्य पड़ेगा वहाँ की धरती बंजर होने का खतरा बढ़ जाएगा। इन सब संभावित खतरों को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह की आँखें नम हो गई थीं।
Chapter 4 Sawle Sapno Ki Yaad HBSE 9th Class प्रश्न 3.
लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि “मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है”?
उत्तर-
लॉरेंस एक महान् प्रकृति-प्रेमी थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अनुरोध किया कि वह अपने पति के विषय में कुछ लिखे। वह चाहती तो अपने पति के बारे में बहुत कुछ लिख सकती थी, किन्तु उसने कहा “मेरे लिए लॉरेंस के बारे में कुछ लिखना असंभव-सा है। हाँ, मेरी छत पर बैठने वाली गोरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है। मुझसे भी ज्यादा जानती है।” उसने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि श्री लॉरेंस प्रतिदिन बहुत-सा समय गोरैया के साथ बिताते होंगे या गोरैया उन्हें काम करते देखती रहती होगी। कहने का भाव है कि श्री लारेंस पक्षियों की संगति में रहते होंगे।
Class 9 Hindi Jabir Hussain Question Answer HBSE प्रश्न 4.
आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा!
(ग) सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। [H.B.S.E. 2017]
उत्तर-
(क) इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने श्री सालिम अली के सहज एवं स्वाभाविक जीवन पर प्रकाश डालने का सफल प्रयास किया है। श्री लॉरेंस एक अंग्रेज विद्वान थे जो प्रकृति के साहचर्य में रहते हुए अपना स्वाभाविक जीवन व्यतीत करते थे। श्री सालिम अली भी प्रकृति के समीप रहते हुए अपना स्वाभाविक जीवन जीने वाले महान् व्यक्ति थे।
(ख) लेखक ने यह पंक्ति श्री सालिम अली की मृत्यु के विषय में लिखी है। उसका कहना है कि एक बार यदि कोई व्यक्ति मर जाए तो उसका पुनः जीवित होना असंभव है। भले ही कोई अपने शरीर की गरमी तथा अपने दिल की धड़कन देकर भी उसे करना चाहे, वह कभी पुनर्जीवित नहीं हो सकता। जैसे कि मरा हुआ पक्षी सभी प्रयास करने पर भी अपने सपनों के गीत पुनः नहीं गा सकता। वैसे ही सालिम अली साहब भी मृत्यु के पश्चात् हमारे लाख प्रयासों के बावजूद भी इस दुनिया में पुनः नहीं लौट सकते।
(ग) इस पंक्ति में लेखक ने श्री सालिम अली के प्रकृति संबंधी विशाल एवं अथाह ज्ञान पर प्रकाश डाला है। उनका प्रकृति संबंधी ज्ञान किसी टापू की भाँति छोटा या थोड़ा नहीं था, अपितु यह सागर की तरह अथाह विशाल था। इसलिए लेखक का यह कहना अत्यंत सार्थक प्रतीत होता है कि “सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।”
साँवले सपनों की याद प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 5.
इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
श्री जाबिर हुसैन भाषा के मर्मज्ञ थे। हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी की तीनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। प्रस्तुत पाठ के आधार पर उनकी भाषा-शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) भाषा सरल, सहज एवं व्यावहारिक है।
(2) तत्सम, तद्भव, उर्दू व अंग्रेजी शब्दों के सफल एवं सार्थक प्रयोग के कारण भाषा व्यावहारिक एवं रोचक बन पड़ी है।
(3) श्री जाबिर हुसैन की भाषा-शैली चित्रात्मक है। वे शब्दों के माध्यम से सजीव व्यक्ति-चित्र अंकित करने की कला में बेजोड़ हैं।
(4) भाषा में भावात्मकता एवं हृदय को स्पष्ट करने की पूर्ण क्षमता है।
प्रश्न 6.
इस पाठ में लेखक ने सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि सालिम अली का जीवन अत्यंत सरल, सहज एवं स्वाभाविक था। वे प्रकृति और उसके विभिन्न अवयवों को उनकी मूल प्रकृति के रूप में देखते थे। उपयोगितावाद के वे बिल्कुल पक्ष में नहीं थे। वे सदा पक्षियों की मधुर ध्वनि सुनकर प्रसन्नता का अनुभव करते थे। उनका जीवन अत्यंत संघर्षों में से गुजरा था। उनका शरीर अत्यंत दुबला-पतला एवं कमजोर हो गया था और अंत में वे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का शिकार हो गए थे। वे अपने जीवन की अंतिम सांसों तक पक्षियों की नई-नई जातियों की खोज और उनकी देखभाल के कर्तव्य को निभाते रहे। प्रकृति उनके लिए एक हँसती-खेलती, फैली हुई रहस्यमय दुनिया है।
सालिम अली अनुभवशील व्यक्ति थे। उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर केरल की एकांत घाटी को रेगिस्तानी हवाओं के दुष्परिणाम से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के सामने एक प्रस्ताव रखा था, जिसे सुनकर वे बहुत ही प्रभावित हुए थे। उनका जीवन लॉरेंस की भाँति ही प्राकृतिक एवं नैसर्गिक था। उनको प्रकृति की दुनिया के विषय में अथाह ज्ञान था। वे घुमक्कड़ स्वभाव के इंसान थे।
प्रश्न 7.
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
“साँवले सपनों की याद’ शीर्षक उचित प्रतीत होता है क्योंकि लेखक ने यह संस्मरण सालिम अली साहब की मृत्यु के तुरंत बाद लिखा था। लेखक ने उनकी मृत्यु से उत्पन्न दुःख व अवसाद को साँवले सपनों की याद के रूप में अभिव्यक्त किया है। दुःख कभी सुनहरा नहीं हो सकता, इसलिए उसे ‘साँवला सपना’ कहना ही उचित है। संपूर्ण पाठ में लेखक ने सालिम अली साहब की मृत्यु से उत्पन्न दुःख में उनके विभिन्न कार्यों व उनके जीवन की विभिन्न विशेषताओं को याद किया है। इसलिए कहा जा सकता है कि इस पाठ का शीर्षक ‘साँवले सपनों की याद’ सार्थक है। लेखक पाठ के मूल लक्षित भाव को अभिव्यक्त करने में सफल रहा है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8.
प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं ?
उत्तर-
निश्चय ही प्रस्तुत पाठ में श्री सालिम अली साहब की पर्यावरण के प्रति चिंता व्यक्त हुई है। वे चाहते थे कि पर्यावरण की सुरक्षा हर हाल में होनी चाहिए। हम भी अपने आस-पास वृक्ष उगाकर या उगे हुए वृक्षों की देखभाल करके पर्यावरण की सुरक्षा में अपना योगदान दे सकते हैं। अपने छोटे-छोटे कामों के लिए मोटरसाइकिल या स्कूटर का प्रयोग न करके साइकिल का प्रयोग करके हम पर्यावरण को बचा सकते हैं। अपने घर के आसपास सफाई रखकर भी पर्यावरण को बचाने में हम सहयोग दे सकते हैं। इसी प्रकार अपने साथ-साथ दूसरे लोगों को भी पर्यावरण को बचाने के लिए प्रेरित करके हम इस शुभ कार्य में अपना योगदान दे सकते हैं।
पाठेतर सक्रियता
• अपने घर या विद्यालय के नज़दीक आपको अकसर किसी पक्षी को देखने का मौका मिलता होगा। उस पक्षी का नाम, भोजन, खाने का तरीका, रहने की जगह और अन्य पक्षियों से संबंध आदि के आधार पर एक चित्रात्मक विवरण तैयार करें।
आपकी और आपके सहपाठियों की मातृभाषा में पक्षियों से संबंधित बहुत से लोकगीत होंगे। उन भाषाओं के लोकगीतों का एक संकलन तैयार करें। आपकी मदद के लिए एक लोकगीत दिया जा रहा है
अरे अरे श्यामा चिरइया झरोखवै मति बोलहु।
मोरी चिरई! अरी मोरी चिरई! सिरकी भितर बनिजरवा।
जगाई लइ आवउ, मनाइ लइ आवउ॥1॥
कबने बरन उनकी सिरकी कवने रँग बरदी।
बहिनी! कवने बरन बनिजरवा जगाइ लै आई मनाइ लै आई॥2॥
जरद बरन उनकी सिरकी उजले रंग बरदी।
सँवर बरन बनिजरवा जगाइ लै आवउ मनाइ लै आवउ ॥3॥
विभिन्न भाषाओं में प्राप्त पक्षियों से संबंधित लोकगीतों का चयन करके एक संगीतात्मक प्रस्तुति दें।
• टीवी के विभिन्न चैनलों जैसे-एनिमल किंगडम, डिस्कवरी चैनल, एनिमल प्लेनेट आदि पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों को देखकर किसी एक कार्यक्रम के बारे में अपनी प्रतिक्रिया लिखित रूप में व्यक्त करें।
• एन०सी०ई०आर०टी० का श्रव्य कार्यक्रम सुनें-‘डॉ० सालिम अली’ ।
नोट-पाठेतर सक्रियता के अंतर्गत दिए गए सुझाव परीक्षोपयोगी नहीं हैं। इसलिए विद्यार्थी इन्हें स्वयं अथवा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करेंगे।
HBSE 9th Class Hindi साँवले सपनों की याद Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
“साँवले सपनों की याद’ पाठ का उद्देश्य क्या है ? अथवा ‘साँवले सपनों की याद’ नामक पाठ के माध्यम से क्या संदेश दिया गया है ?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ एक संस्मरण है। इसमें लेखक का उद्देश्य सालिम अली साहब के जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करके उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालना है। सालिम अली अनन्य प्रकृति प्रेमी थे। उन्हें पक्षियों से भी विशेष लगाव था। पक्षियों की खोज और सुरक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन लगा दिया था। सालिम अली के जीवन के उल्लेख के माध्यम से आम व्यक्ति को प्रकृति के प्रति प्रेम तथा पक्षियों के प्रति सहानुभूति रखने की प्रेरणा देना भी लेखक का उद्देश्य है। आज पक्षियों की विभिन्न किस्में समाप्त होती जा रही हैं। आने वाली पीढ़ियों के लोग इन सुंदर-सुंदर पक्षियों के चित्र ही देख पाएंगे। वे शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण में सांस लेने के लिए तरस जाएंगे।
प्रश्न 2.
सालिम अली को पक्षियों की खोज की प्रेरणा कहाँ से और कैसे मिली थी ?
उत्तर-
बचपन में गलती से सालिम अली के हाथों एक गोरैया घायल हो गई थी। उस घायल गोरैया को देखकर उनका मन बेचैन हो उठा था। उसी दिन से वे पक्षियों की खोज में रुचि लेने लगे थे। वे पक्षियों की खोज में जंगल में जाते। वहाँ वे प्रकृति के अन्य रहस्यों को जानने व समझने लगे। इस प्रकार वे पक्षियों और प्रकृति के रहस्यों के विषय में जानने के लिए एक-से-एक ऊँचाइयाँ छूते चले गए। मानो वे प्रकृति के प्रतिरूप ही बन गए।
प्रश्न 3.
वृंदावन में यमुना का साँवला पानी यात्री को किन घटनाक्रमों की याद दिलाता है ?
उत्तर-
वृंदावन में यमुना का साँवला पानी हर यात्री को श्रीकृष्ण की नटखट क्रीड़ाओं की याद दिलाता है। जब वह यमुना का पानी देखता है तो उसे याद आ जाता है कि कभी श्रीकृष्ण ने इसके किनारे शरारतें करके लोगों का मन मोह लिया था। श्रीकृष्ण ने यहाँ अल्हड़ गोपियों के साथ रासलीलाएँ की थीं। ग्वालों के साथ मिलकर माखनचोरी की थी। यमुना के किनारे खड़े कदंब के वृक्षों के नीचे विश्राम किया था और बाँसुरी बजाई थी।
प्रश्न 4.
सालिम अली ने पर्यावरण-संरक्षण के लिए किस रूप में भूमिका अदा की है ? .
उत्तर-
सालिम अली ने जहाँ एक ओर पक्षियों की खोज का लंबा सफर तय किया है, वहीं उन्होंने पक्षियों की सुरक्षा के बारे में भी अध्ययन किया है। उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से केरल की साइलेंट-वैली के पर्यावरण को उजड़ने से रोकने की प्रार्थना की। सालिम अली ने हिमालय और लद्दाख की बर्फीली जमीनों पर रहने वाले पक्षियों के कल्याण के लिए कार्य किया। उन्होंने पक्षियों के लिए शांत वातावरण बनाए रखने के लिए जंगलों की सुरक्षा की भी सिफारिश की है।
प्रश्न 5.
वृंदावन में श्रीकृष्ण की मुरली का जादू सदा क्यों बना रहता है ?
उत्तर-
वृंदावन में श्रीकृष्ण की मुरली का प्रभाव सदा से लोगों के दिलों में बसा हुआ है। कृष्ण-भक्त जब भी वृंदावन आते हैं तो उनकी कल्पना में श्रीकृष्ण की मुरली का प्रभाव साकार हो उठता है। उनके कानों में मुरली की मधुर ध्वनि बजती-सी अनुभव होती है। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि कहीं से ‘वो’ आ जाएँगे और वहाँ का वातावरण बाँसुरी के संगीत से गूंज उठेगा।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक पाठ के लेखक कौन हैं ?
(A) प्रेमचंद
(B) जाबिर हुसैन
(C) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(D) चपला देवी
उत्तर-
(B) जाबिर हुसैन
प्रश्न 2.
जाबिर हुसैन का जन्म कब हुआ था ?
(A) सन् 1945 में
(B) सन् 1955 में
(C) सन् 1965 में
(D) सन् 1975 में
उत्तर-
(A) सन् 1945 में
प्रश्न 3.
श्री जाबिर हुसैन का जन्म किस जिले में हुआ था ?
(A) मुंगेर
(B) आजमगढ़
(C) नालंदा
(D) पूर्णिया
उत्तर-
(C) नालंदा
प्रश्न 4.
जाबिर हुसैन किस जिले से विधानसभा के सदस्य चुने गए थे ?
(A) मुंगेर
(B) पूर्णिया
(C) पटना
(D) नालंदा
उत्तर-
(A) मुंगेर
प्रश्न 5.
श्री जाबिर हुसैन कब बिहार विधान परिषद के सभापति चुने गए थे ?
(A) सन् 1963 में
(B) सन् 1975 में
(C) सन् 1985 में
(D) सन् 1995 में
उत्तर-
(D) सन् 1995 में
प्रश्न 6.
श्री हुसैन की कौन-सी रचनाएँ सबसे चर्चित हुई हैं ?
(A) निबंध .
(B) डायरियाँ
(C) कहानियाँ
(D) संस्मरण
उत्तर-
(B) डायरियाँ
प्रश्न 7.
साँवले सपनों की याद है, एक-
(A) निबंध
(B) संस्मरण
(C) रेखाचित्र
(D) जीवनी
उत्तर-
(B) संस्मरण
प्रश्न 8.
सालिम अली कौन थे ?
(A) प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक
(B) राजनीतिज्ञ
(C) पक्षी-विज्ञानी
(D) पशु चिकित्सक
उत्तर-
(C) पक्षी-विज्ञानी
प्रश्न 9.
लेखक ने सालिम अली के इस सफर को तमाम सफरों से भिन्न क्यों बताया है ?
(A) क्योंकि यह तनावहीन था
(B) क्योंकि यह तीव्र गति वाला था
(C) क्योंकि यह एक रंगीन सफर
(D) क्योंकि यह बहुत सरल सफर था वाला था
उत्तर-
(A) क्योंकि यह तनावहीन था
प्रश्न 10.
श्रीकृष्ण ने रासलीला कहाँ रचाई थी ?
(A) अयोध्या में
(B) मथुरा में
(C) कुरुक्षेत्र में
(D) वृंदावन में
उत्तर-
(D) वृंदावन में
प्रश्न 11.
श्रीकृष्ण ने अपनी शरारतों का निशाना किसे बनाया था ?
(A) राधिका को
(B) कुब्जा को
(C) गोपियों को
(D) सुदामा को
उत्तर-
(C) गोपियों को
प्रश्न 12.
श्रीकृष्ण ने किस अंदाज में बाँसुरी बजाई थी ?
(A) दिल की धड़कनों को तेज करने वाले
(B) सुला देने वाले
(C) अपनी ओर आकृष्ट करने वाले
(D) दूसरों को तंग करने वाले
उत्तर-
(A) दिल की धड़कनों को तेज करने वाले
प्रश्न 13.
आज वृंदावन की कौन-सी वस्तु श्रीकृष्ण से संबंधित घटनाओं का स्मरण दिला देती है ?
(A) नदी का साँवला पानी
(B) वृंदावन के वृक्ष
(C) वृंदावन के पक्षी
(D) वृंदावन के लोग
उत्तर-
(A) नदी का साँवला पानी ।
प्रश्न 14.
लेखक ने सालिम अली के शरीर की कमजोरी का क्या कारण बताया है ?
(A) उनकी लंबी-लंबी यात्राएँ
(B) जानलेवा बीमारी
(C) अधिक देर तक काम करना
(D) पक्षियों की देखभाल करना
उत्तर-
(A) उनकी लंबी-लंबी यात्राएँ
प्रश्न 15.
लेखक ने सालिम अली की मौत का कारण किस बीमारी को बताया है ?
(A) हैजा
(B) मलेरिया
(C) तपेदिक
(D) कैंसर
उत्तर-
(D) कैंसर
प्रश्न 16.
मौत अंतिम समय तक सालिम अली की क्या चीज छीनने में सफल नहीं हो सकी थी ?
(A) आँखों की रोशनी
(B) कैमरा
(C) जुबान
(D) पक्षियों के प्रति प्रेम
उत्तर-
(A) आँखों की रोशनी
प्रश्न 17.
सालिम अली का जीवन किसके प्रति समर्पित था ? ।
(A) मनुष्यों के प्रति
(B) देवी-देवताओं के प्रति
(C) पक्षियों की हिफाजत के प्रति
(D) धन-दौलत के प्रति
उत्तर-
(C) पक्षियों की हिफाजत के प्रति
प्रश्न 18.
लेखक ने सालिम अली को क्या कहा है ?
(A) चित्रकार
(B) बर्ड वाचर
(C) कलाकार
(D) वैज्ञानिक
उत्तर-
(B) बर्ड वाचर
प्रश्न 19.
लेखक के अनुसार सालिम अली किन लोगों में से थे ?
(A) प्रकृति को अपने प्रभाव से प्रभावित करने वाले
(B) प्रकृति के प्रभाव में अपने-आपको खो देने वाले
(C) प्रकृति के चित्र अंकित करने में लीन रहने वाले
(D) प्रकृति की दुनिया में रमे रहने वाले
उत्तर-
(A) प्रकृति को अपने प्रभाव से प्रभावित करने वाले
प्रश्न 20.
सालिम अली के लिए प्रकृति क्या थी ?
(A) एक नटखट युवती
(B) रहस्यभरी दुनिया
(C) आय का साधन
(D) जी का जंजाल
उत्तर-
(B) रहस्यभरी दुनिया
प्रश्न 21.
‘साँवले सपनों की याद’ पाठ में लेखक ने किसके व्यक्तित्व का चित्र अंकित किया है ?
(A) प्रेमचंद
(B) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
(C) महात्मा गाँधी
(D) पक्षी विज्ञानी सालिम अली
उत्तर-
(D) पक्षी विज्ञानी सालिम अली
प्रश्न 22.
सालिम अली साहब की जीवन-साथी कौन थी ?
(A) तहमीना
(B) सकीना
(C) हुसना
(D) मीना
उत्तर-
(A) तहमीना
प्रश्न 23.
मिट्टी पर पड़ने वाली पहली बूंद का असर जानने वाले नेता कौन थे ?
(A) महात्मा गाँधी
(B) जवाहरलाल नेहरू
(C) चौधरी चरण सिंह .
(D) लालबहादुर शास्त्री
उत्तर-
(C) चौधरी चरण सिंह
प्रश्न 24.
सालिम अली की आत्मकथा का क्या नाम है ?
(A) फॉल ऑफ ए स्पैरो
(B) मेरे जीवन की झाँकी
(C) मेरी यात्राएँ .
(D) मैं और पक्षी जगत
उत्तर-
(A) फॉल ऑफ ए स्पैरो
प्रश्न 25.
डी० एच० लॉरेंस की पत्नी का क्या नाम था ?
(A) टीना लॉरेंस
(B) फ्रीडा लॉरेंस
(C) लिंडा लॉरेंस
(D) लवली लॉरेंस
उत्तर-
(B) फ्रीडा लॉरेंस
प्रश्न 26.
सालिम अली ने बचपन में गौरैया को किससे घायल किया था?
(A) एयरगन से
(B) तलवार से
(C) गुलेल से
(D) पत्थर से
उत्तर-
(A) एयरगन से
साँवले सपनों की याद प्रमुख गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या/भाव ग्रहण
1. इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफर का बोझ उठाए। लेकिन यह सफर पिछले तमाम सफरों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। [पृष्ठ 43]
शब्दार्थ-हुजूम = समूह। सैलानियों = यात्रियों। अंतहीन = जिसका कोई अंत न हो। सफर = यात्रा। माहौल = वातावरण। पलायन = चले जाना, कूच करना। क्लिीन होना = लुप्त होना, मिल जाना।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पाठ के लेखक श्री जाबिर हुसैन हैं। इस पाठ में महान् पक्षी-वैज्ञानिक सालिम अली के जीवन से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया गया है। यहाँ सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न दुःख और निराशा को व्यक्त किया गया है।
व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने सालिम अली की मृत्यु के विषय में लिखा है कि उनकी अंतिम यात्रा (मृत्यु) के समय उनके जनाजे के साथ एक बहुत बड़ा समूह चला जा रहा था और समूह में सबसे आगे सालिम अली केशव को ले जाया जा रहा था। ऐसा लगता है यात्रियों की ही भाँति वे स्वयं अपनी शवयात्रा का बोझ उठाए हुए हों। कहने का तात्पर्य है कि श्री सालिम अली ने एक लंबा जीवन जिया था। उनके अनेकानेक अनुभव मानो उनके साथ हैं। किन्तु जिस यात्रा पर वे आज जा रहे हैं, . यह यात्रा उनके द्वारा की गई अन्य यात्राओं से भिन्न है। ऐसी यात्रा जिससे कोई लौटकर नहीं आता। यह यात्रा नहीं, अपितु इस भीड़ भरी जिंदगी और तनावपूर्ण वातावरण से सालिम अली का अंतिम बार भाग खड़े होना है। अब वे वन के उस पक्षी की भाँति प्रकृति में मिल रहे हैं, जो अपने जीवन का अंतिम गीत गाने के पश्चात् मृत्यु की गोद में जा बसा हो। कहने का तात्पर्य है कि सालिम अली का शरीर भी मृत्यु के पश्चात् प्रकृति में विलीन हो गया था। जहाँ से फिर वह कभी लौटकर नहीं आ सकेगा।
विशेष-
- लेखक ने सालिम अली की मृत्यु पर गहरा शोक प्रकट किया है।
- लेखक की सालिम अली के प्रति श्रद्धा-भावना का बोध होता है।
- भाषा अत्यंत सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
- ‘अंतिम गीत गाकर प्रकृति की गोद में बस जाना’ अत्यंत सुंदर प्रयोग है।
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(1) श्री सालिम अली का यह सफर अन्य सफरों से भिन्न कैसे है ?
(2) सालिम अली की वन-पक्षी से तुलना क्यों की गई है ?
(3) सालिम अली अपने कंधों पर किसका बोझ उठाए हुए हैं ?
(4) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर सालिम अली के जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(1) श्री सालिम अली के जिस सफर की बात की जा रही है यह उनका अंतिम सफर था। वे अपनी पहली यात्राओं के बाद अपने घर लौट आते थे। किन्तु इस यात्रा के बाद अर्थात् मौत के बाद इस संसार से पलायन कर गए थे और फिर कभी नहीं लौटे थे।
(2) श्री सालिम अली की तुलना वन के पक्षी से इसलिए की गई है क्योंकि वे भी अपना जीवन गीत गाने वाले वन-पक्षी की भाँति प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत करके मौत की गोद में समा रहे हैं। वन-पक्षी भी अपना गीत गाने के पश्चात् प्रकृति की गोद में समा जाते हैं। लेखक द्वारा उनकी तुलना वन-पक्षी से करना उचित प्रतीत होती है।
(3) सालिम अली अपने कंधों पर सैलानियों की भाँति अपने अंतहीन सफर का बोझ उठाए हुए हैं।
(4) प्रस्तुत गद्यांश से पता चलता है कि सालिम अली महान् घुमक्कड़ थे। उनके कंधों पर सैलानियों की भाँति सफर का सामान लदा रहता था। उनकी आँखों पर दूरबीन चढ़ी रहती थी। जैसे वन का पक्षी अपना गीत गाकर प्रकृति की गोद में समा जाता है वे भी अपने जीवन को प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत करके और अपने लक्ष्य को प्राप्त करके मौत की गोद में जाकर सो गए थे।
2. लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नजर से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज़ का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है? [पृष्ठ 43]
शब्दार्थ-आदमी की नज़र = स्वार्थ की भावना, उपयोगितावादी दृष्टिकोण। आवशार = झरनों। उत्सुक = इच्छुक। अपने भीतर = अपने हृदय में। रोमांच = प्रसन्नता। सोता = झरना।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्य-पंक्तियाँ हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक नामक पाठ से ली गई हैं। इस पाठ में लेखक जाबिर हुसैन ने महान् पक्षी-विज्ञानी श्री सालिम अली के जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया है। यह पाठ लेखक ने सालिम अली की मृत्यु के पश्चात् दुःखद संस्मरण के रूप में लिखा है। इन पंक्तियों में लेखक ने पक्षियों व प्रकृति के प्रति अपनाए जा रहे आज के मानव के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने बताया है कि सालिम अली का मत है कि लोग पक्षियों को मनुष्य के दृष्टिकोण से देखना चाहते हैं अर्थात् पक्षियों को अपने लाभ की दृष्टि से देखते हैं उनके सहज-स्वाभाविक रूप में नहीं देखते। उसी प्रकार; जैसे जंगलों, पहाड़ों, झरनों, पानी के प्रवाह को वे प्रकृति की दृष्टि नहीं, अपितु मानव की दृष्टि से देखने के लिए इच्छुक रहते हैं। कहने का भाव है कि मनुष्य जिस प्रकार प्रकृति को उपयोगिता की दृष्टि से देखता है कि प्रकृति के विभिन्न अवयव उसके लिए किस प्रकार उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं; ठीक इसी प्रकार वह पक्षियों को भी अपने उपयोग की दृष्टि से देखता है। लेखक की दृष्टि में मानव का यह दृष्टिकोण उचित नहीं है। लेखक ने पुनः कहा है कि भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की मधुर आवाज रूपी संगीत सुनकर अपने हृदय में प्रसन्नता का फुहारा फूटता हुआ अनुभव कर सकता है ? लेखक के कहने का तात्पर्य है कि सालिम अली ही ऐसे व्यक्ति थे जो पक्षियों की मधुर ध्वनि रूपी संगीत को सुनकर प्रसन्नता अनुभव करते थे।
विशेष-
- लेखक ने आज के मानव के उपयोगितावादी दृष्टिकोण पर व्यंग्य किया है।
- प्रकृति के विभिन्न अवयवों को हमें उनके सहज, स्वाभाविक रूप में देखना चाहिए, तभी वे हमें अधिक सुंदर लगेंगे।
- भाषा सरल, सहज एवं विषयानुकूल है।
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(1) सालिम अली पक्षियों को किस नज़र से देखने के पक्ष में थे ?
(2) ‘लोग पक्षियों को आदमी की नजर से देखना चाहते हैं’-इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(3) लोग प्रकृति के विभिन्न उपादानों को किस दृष्टि से देखना चाहते हैं और क्यों ?
(4) मनुष्य पक्षियों की आवाज सुनकर अपने भीतर रोमांच क्यों नहीं अनुभव करता है ?
उत्तर-
(1) सालिम अली एक महान् पक्षी वैज्ञानिक थे। वे पक्षियों को प्रकृति के स्वाभाविक अंग के रूप में देखना चाहते थे। वे उन्हें अपने या समाज के आनंद के लिए नहीं, अपितु उनके आनंद की दृष्टि से देखना चाहते थे। कहने का भाव है कि वे पक्षियों को मानव की दृष्टि से नहीं अपितु पक्षियों की दृष्टि से देखना चाहते थे।
(2) लोग पक्षियों को आदमी की दृष्टि से देखना चाहते हैं। इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने बताया है कि लोग पक्षियों को अपने आनंद व खुशी की दृष्टि से देखना चाहते हैं। वे पक्षियों को देखकर अपना मनोरंजन करना चाहते हैं। वे कभी भी पक्षियों की प्रसन्नता या खुशी की ओर ध्यान नहीं देते। यह लोगों का स्वार्थपरक एवं संकीर्ण दृष्टिकोण है।
(3) लोग प्रकृति के विभिन्न उपादानों-नदियों, पहाड़ों, झरनों, जंगलों, पक्षियों आदि को अपनी नजर से अर्थात् अपने लाभ-हानि की दृष्टि से देखते हैं। वे इनके होने में अपना लाभ या हानि अथवा सुख-दुःख देखते हैं।
(4) मनुष्य पक्षियों की भाषा समझ नहीं सकता। वे जिस मधुर ध्वनि में अपनी प्रतिक्रियाएँ या अनुभूति व्यक्त करते हैं, मनुष्य उसे समझने में अक्षम है। इसके अतिरिक्त मनुष्य का दृष्टिकोण स्वार्थमय है। वे पक्षियों की ध्वनियों को व्यर्थ समझकर उसकी ओर ध्यान नहीं देता। इसलिए मनुष्य पक्षियों की मधुर ध्वनि सुनकर अपने भीतर रोमांच अनुभव नहीं करता।
3. हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। वृंदावन कभी कृष्णा की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है क्या! [पृष्ठ 44]
शब्दार्थ-वाटिका = बगीचा। सैलानी = घूमने आए व्यक्ति पर्यटक। हिदायत = निर्देश। आ टपकना = अचानक आना। माहौल = वातावरण| बाँसुरी का जादू = बाँसुरी का प्रभाव।
प्रसंग-यह गद्यावतरण हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘साँवले सपनों की याद’ से अवतरित है। इसके रचयिता श्री जाबिर हुसैन हैं। इस पाठ में उन्होंने सालिम अली के जीवन की घटनाओं का संस्मरणात्मक शैली में अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण की बाँसुरी के अद्भुत प्रभाव के माध्यम से सालिम अली के जीवन अथवा उनके अस्तित्व को अनुभव करने का सफल प्रयास किया गया है।
व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक ने वृंदावन की पावन भूमि में आज भी श्रीकृष्ण की लीलाओं व उनकी बाँसुरी की मधुर तान की अनुभूति का वर्णन किया है। हर शाम को सूरज छिपने से पहले वाटिका का माली वहाँ घूमने आए हुए व्यक्ति को निर्देश देगा तो ऐसा लगता है कि कुछ ही क्षणों में वह (श्रीकृष्ण) कहीं से अचानक आ जाएगा तथा उसकी बाँसुरी के मधुर संगीत का प्रभाव आस-पास के संपूर्ण वातावरण में छा जाएगा। लेखक प्रश्न करता है कि भला वृंदावन भी कभी श्रीकृष्ण की बाँसुरी के प्रभाव से खाली हुआ है अर्थात् वृंदावन में सदैव श्रीकृष्ण की बाँसुरी का प्रभाव बना रहता है। ठीक उसी प्रकार यह जानते हुए भी कि श्री सालिम अली इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन फिर भी उनके अचानक कहीं से आ जाने में भ्रम-सा बना हुआ है। इसके साथ ही उनके सद्कार्यों का प्रभाव आज भी आस-पास के वातावरण में निरंतर बना हुआ है।
विशेष-
- लेखक ने श्री सालिम अली के जीवन एवं उनके महान कार्यों के प्रभाव को उद्घाटित किया है।
- भाषा-शैली सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
- उर्दू शब्दावली का भावानुकूल प्रयोग द्रष्टव्य है।
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(1) वृंदावन में संध्या के समय क्या अनुभूति होती है और क्यों ?
(2) वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी के जादू से रिक्त क्यों नहीं होता ?
(3) इस गद्यांश में लेखक ने क्या संदेश दिया है ?
(4) वृंदावन कहाँ स्थित है और क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
(1) वृंदावन में संध्या के समय ऐसी अनुभूति है कि यहाँ इसी समय कहीं से श्रीकृष्ण आ जाएंगे तथा अपनी मुरली की मधुर तान से सभी को सम्मोहित कर लेंगे। ऐसी अनुभूति इसलिए होती है, क्योंकि सभी भारतीय जानते हैं कि श्रीकृष्ण संध्या के समय गाएँ चराकर लौटते थे और फिर अपनी बाँसुरी की तान से सबको सम्मोहित कर देते थे।
(2) वृंदावन वह तीर्थस्थल है जहाँ वर्ष भर कृष्णभक्त आते रहते हैं। वे यहाँ आकर श्रीकृष्ण की भक्ति भावना में लीन हो जाते हैं। अतः सुबह-शाम उन्हें अपने मन में श्रीकृष्ण की बाँसुरी के स्वर की अनुभूति होती है। यह क्रम सदियों से चला आ रहा है और चलता रहेगा। इसलिए वृंदावन कभी भी श्रीकृष्ण की बाँसुरी के स्वर के जादू से खाली नहीं होगा।
(3) इस गद्यांश में लेखक ने संदेश दिया है जिस प्रकार श्रीकृष्ण की बाँसुरी का जादू वृंदावन से कभी समाप्त नहीं हो सकता। उसका प्रभाव लोगों के मनों पर सदियों से छाया हुआ है। उसी प्रकार जो लोग सालिम अली साहब को निकटता से जानते थे, उनके मनों से भी उनकी याद कभी नहीं जा सकती। उनकी यादों का जादू उन्हें सदा घेरे रहेगा।
(4) वृंदावन उत्तर-प्रदेश में स्थित है। यह वह स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं को रचा था। उनका बचपन इसी क्षेत्र में बीता है। श्रीकृष्ण के जीवन के साथ जुड़ा होने के कारण ही वृंदावन प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।
4. लेकिन अंतिम समय तक मौत उनकी आँखों से वह रोशनी छीनने में सफल नहीं हुई जो पक्षियों की तलाश और उनकी हिफाजत के प्रति समर्पित थी। सालिम अली की आँखों पर चढ़ी दूरबीन उनकी मौत के बाद ही तो उतरी थी। [पृष्ठ 44]
शब्दार्थ-तलाश = खोज। हिफाजत = देख-रेख। समर्पित = पूर्ण रूप से अपने-आपको किसी काम में लगा देना।
प्रसंग-ये गद्य-पंक्तियाँ हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित एवं श्री जाबिर हुसैन द्वारा रचित संस्मरण ‘साँवले सपनों की याद’ से उद्धत हैं। इस पाठ में उन्होंने श्री सालिम अली की मृत्यु के पश्चात् उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं
और विशेषताओं को संस्मरण के रूप में व्यक्त किया है। इन पंक्तियों में लेखक ने सालिम अली की पक्षियों की खोज और उनकी देखभाल करने की भावना को उजागर किया है।
व्याख्या/भाव ग्रहण-लेखक का कथन है कि श्री सालिम अली ने लंबी आयु पाई थी। इस लंबी आयु में उन्होंने लंबी-लंबी यात्राएँ की, जिनके फलस्वरूप उनका शरीर कमजोर पड़ गया था। उन्होंने आजीवन तरह-तरह के पक्षियों को देखने और उनके जीवन के विषय में जानने का प्रयास किया। अंतिम समय तक मृत्यु भी उनकी आँखों की वह रोशनी छीनने में सफल नहीं हुई जो पक्षियों की खोज और उनकी देखभाल के लिए पूर्णतः समर्पित थी। कहने का तात्पर्य है कि श्री सालिम अली अपनी अंतिम सांस तक पक्षियों की खोज और देखभाल के कर्त्तव्य को भली-भाँति निभाते रहे। उनकी आँखों पर चढ़ी हुई दूरबीन उनकी मौत के बाद ही उतारी गई थी। कहने का भाव है कि सालिम अली ने जीवन भर पक्षियों के प्रति अपने कर्तव्य का पालन किया है।
विशेष-
- सालिम अली की कर्त्तव्यनिष्ठता पर प्रकाश डाला गया है।
- किसी भी कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना ही सफलता का रहस्य है।
- भाषा-शैली सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
उपर्युक्त गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(1) अंतिम समय तक मौत सालिम अली की क्या चीज छीनने में असफल रही ?
(2) श्री सालिम अली का जीवन किसके प्रति समर्पित रहा ?
(3) सालिम अली की दूरबीन उनकी आँखों से कब उतरी थी ?
(4) प्रस्तुत पंक्तियों में सालिम के जीवन की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर-
(1) अंतिम समय तक मौत सालिम अली की आँखों से उनकी रोशनी छीनने में असफल रही अर्थात् सालिम अली की दृष्टि अंतिम समय तक कमजोर नहीं हुई।
(2) श्री सालिम अली महान् पक्षी वैज्ञानिक थे। उनका सारा जीवन पक्षियों की खोज और उनकी देखभाल के शुभ कार्य के प्रति समर्पित रहा।
(3) सालिम अली की दूरबीन उनकी आँखों से उनकी मौत के बाद ही उतरी थी। कहने का भाव है कि वे पक्षियों की तलाश में अंतिम दम तक भी अपनी दूरबीन का प्रयोग करते रहे।
(4) प्रस्तुत पंक्तियों से पता चलता है कि श्री सालिम अली की दृष्टि अंतिम समय तक सही रही। वे पक्षियों के महान संरक्षक थे। वे सदा उनकी खोज में रहते और उनकी देखभाल करते। वे सदा अपने साथ दूरबीन रखते थे जिसकी सहायता से दूर बैठे हुए पक्षियों को देख सकें।
5. सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनके भ्रमणशील स्वभाव और उनकी यायावरी से परिचित हैं, उन्हें महसूस होता है कि वो आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं, और बस अभी गले में लंबी दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे। [पृष्ठ 46]
शब्दार्थ-टापू = समुद्र के बीच धरती का टुकड़ा। अथाह = जिसकी गहराई का कोई अनुमान न हो। भ्रमणशील = घूमने वाला। यायावरी = घुमक्कड़पन। परिचित = जानकार। सुराग = खोज। नतीजा = परिणाम।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग-1 में संकलित ‘साँवले सपनों की याद’ नामक संस्मरण से उद्धृत है। इसके रचयिता श्री जाबिर हुसैन हैं। इस पाठ में लेखक ने सुप्रसिद्ध पक्षी-विज्ञानी श्री सालिम अली के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। इन पंक्तियों में प्रकृति के प्रति सालिम अली के महान् प्रेम को उजागर किया गया है।
व्याख्या/भाव ग्रहण लेखक ने बताया है कि श्री सालिम अली प्रकृति की दुनिया में टापू के समान छोटे व्यक्तित्व के रूप में नहीं, अपितु अथाह सागर के रूप में उभरे थे। कहने का भाव है कि प्रकृति के क्षेत्र में उनका ज्ञान अत्यंत विशाल था। जो लोग श्री सालिम अली साहब की घुमक्कड़ी प्रवृत्ति या भ्रमणशील स्वभाव को जानते हैं, वे उनके मरने के पश्चात् भी यह अनुभव करते हैं या उन्हें ऐसा लगता है कि वे आज भी नए-नए पक्षियों की खोज में निकले हुए हैं और बस अभी गले में लंबी-सी दूरबीन लटकाए हुए पक्षियों से संबंधित नए-नए खोजपूर्ण परिणाम के साथ लौट आएँगे। किन्तु अब ऐसा कभी नहीं होगा क्योंकि वे अब इस दुनिया में ही नहीं रहे।
विशेष-
- लेखक ने सालिम अली के प्राकृतिक ज्ञान का सुंदर उल्लेख किया है।
- लेखक ने गहन अनुभूति को भावात्मक स्तर पर उद्घाटित किया है।
- लेखक का सालिम अली के प्रति गहन लगन का बोध होता है।
- भाषा में मर्म को छूने की अपूर्व क्षमता है।
उपर्युक्त गद्यांशं पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(1) श्री सालिम अली की तुलना सागर से क्यों की गई है ?
(2) ‘टापू’ से क्या तात्पर्य है ?
(3) लोगों को सालिम अली के विषय में क्या महसूस होता है ?
(4) सालिम अली आजीवन किस महान कार्य में लगे रहे ?
उत्तर-
(1) सालिम अली का ज्ञान किसी विशेष पक्षी के विषय तक सीमित नहीं था। उनका ज्ञान अनेकानेक पक्षियों के संबंध में सागर की भांति अथाह और विस्तृत था। इसलिए उन्हें सागर होने की संज्ञा दी गई है।
(2) ‘टापू’ का अर्थ है-सीमा बाँधना। सालिम. के संबंध में इसका अर्थ है कि उनका ज्ञान सीमित नहीं था।
(3) लोगों को सालिम अली साहब की मृत्यु के पश्चात् भी ऐसा अनुभव होता है कि वे पक्षियों की तलाश में गए हैं और वे अपनी खोज के नए नतीजों के साथ लौट आएंगे।
(4) सालिम अली साहब आजीवन पक्षियों के विषय में नई-नई खोज करने और उनकी सुरक्षा के उपाय जैसे महान कार्य में लगे रहे।
साँवले सपनों की याद Summary in Hindi
साँवले सपनों की याद लेखक-परिचय
प्रश्न-
श्री जाबिर हुसैन का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्री जाबिर हसैन का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-श्री जाबिर हुसैन हिंदी के प्रमुख गद्यकारों में गिने जाते हैं। हिंदी के अतिरिक्त उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं पर भी उनका पूर्ण अधिकार है। उनका जन्म बिहार राज्य के जिला नालंदा के नौनहीं राजगीर नामक गाँव में सन् 1945 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। जाबिर हुसैन मेधावी छात्र थे। उन्होंने एम०ए० अंग्रेजी विषय में की। तत्पश्चात् ये अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक रहे। इनकी रुचि अध्यापन कार्य के साथ-साथ साहित्य एवं राजनीति में भी रही। यही कारण है कि एक ओर ये लेखनी के धनी बने रहे और दूसरी ओर राजनीति में भी ख्याति प्राप्त की। सन 1977 में मुंगेर से बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए तथा मंत्री बने। सन् 1995 में बिहार विधान परिषद् के सभापति बने।
2. प्रमुख रचनाएँ-श्री जाबिर हुसैन राजनीति के कार्य करते हुए निरंतर साहित्य रचना करते रहते हैं। उन्होंने हिंदी में अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाएँ लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपना योगदान दिया है। जाबिर हुसैन की प्रमुख रचनाएँ निम्नाकित हैं_ ‘जो आगे हैं’, ‘डोला बीबी का मजार’, ‘अतीत का चेहरा’, ‘लोगां’, ‘एक नदी रेत भरी’।
3. साहित्यिक विशेषताएँ-जाबिर हुसैन जी ने अपने युग के समाज का गहन अध्ययन किया है। उन्हें समाज के जीवन में जो विषमताएँ दिखाई दीं, उनका ही वर्णन नहीं किया, अपितु जो कुछ अच्छा लगा उसका भावात्मकता के स्तर पर चित्रण किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन के अनुभवों को सजीव रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाओं में समाज के आम आदमी के जीवन के संघर्षों का उल्लेख भी हुआ है। संघर्षरत आम आदमी और विशिष्ट व्यक्तियों पर लिखी गई उनकी डायरियाँ बहुत चर्चित एवं प्रशंसित हुई हैं। आम आदमी के संघर्षों के प्रति उनकी सहानुभूतिपूर्ण भावनाएँ द्रष्टव्य हैं।
हुसैन जी की रचनाओं से पता चलता है कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने विविध साहित्यिक विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है, किन्तु उन्होंने डायरी विधा में अनेक नवीन प्रयोग किए हैं जो वे प्रस्तुति, शैली और शिल्प की दृष्टि से नवीन हैं।
4. भाषा-शैली-श्री जाबिर हुसैन का तीन भाषाओं (हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी) पर समान अधिकार है। उनकी हिंदी भाषा में तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग भी प्रसंगानुकूल हुआ है। उन्होंने अपने संस्मरणों में अत्यंत सरल, सहज एवं व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है। व्यक्ति-चित्र को सजीव रूप में प्रस्तुत करना इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। भाषा का प्रवाह और अभिव्यक्ति की शैली हृदयस्पर्शी है। प्रवाहमयी भाषा का उदाहरण देखिए :
“मुझे नहीं लगता, कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा। वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नज़र से देखने को उत्सुक रहते हैं।”
साँवले सपनों की याद पाठ-सार/गद्य-परिचय
प्रश्न-
‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक पाठ का सार/गद्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ जून 1987 में प्रसिद्ध पक्षी-विज्ञानी सालिम अली की मृत्यु के तुरंत पश्चात् डायरी शैली में लिखा गया एक संस्मरण है। लेखक को सालिम अली की मृत्यु के समाचार से बहुत दुःख हुआ था। अपनी उसी मनोस्थिति में ही उन्होंने यह संस्मरण लिखा था, जिसमें सालिम अली के महान् व्यक्तित्व के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है।
लेखक का कथन है कि सालिम अली एक महान पक्षी-विज्ञानी थे। मौत एक निश्चित एवं कटु सत्य है। यह सुंदर दिखाई देने वाला संसार साँवले सपने का एक समूह लिए हुए सदैव मृत्यु की मौन वादी की ओर बढ़ता रहता है। उसको कोई रोक-टोक सके, यह असंभव है अर्थात् सांसारिक जीवन नश्वर है। यह एक कटु सत्य है। सालिम अली इस समूह में सबसे आगे थे। वे सैलानियों की भाँति अपने लंबे जीवन सफ़र के अनेकानेक अनुभवों का बोझ उठाए हुए थे। उनकी यह अंतिम यात्रा अन्य यात्राओं से अनोखी थी, क्योंकि वे इस यात्रा से कभी वापस नहीं लौटे। वे वन-पक्षी की भाँति अपना अंतिम गीत गाकर मानो प्रकृति की गोद में जा बसे हों। उन्हें कोई अपने दिल की धड़कन देकर भी वापस नहीं बुला सकता था।
लेखक का कथन है कि सोए हुए पक्षी अर्थात् मृतक व्यक्ति को कोई पुनः जीवित नहीं करना चाहता। स्वयं सालिम अली ने वर्षों पूर्व लेखक को बताया था कि सभी लोग पक्षियों को आदमी की दृष्टि से देखते हैं, यह उनकी भूल है। हमें पक्षियों को उनकी दृष्टि से ही देखना चाहिए। इतना ही नहीं, आदमी तो सदा प्रकृति को भी अपनी ही दृष्टि (उपयोगितावादी) से देखना चाहता है। किन्तु सालिम अली ऐसा नहीं सोचते थे। वे अपने कानों से पक्षियों की मधुर ध्वनि रूपी संगीत सुनकर हृदय में एक रोमांच अनुभव करते थे। वस्तुतः ऐसे ही व्यक्ति का नाम सालिम अली है।
लेखक श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी लीलाओं को स्मरण करता है कि न जाने कब श्रीकृष्ण ने वृंदावन में अपनी शरारतों से वहाँ के लोगों का मन मोह लिया था। माखन चुराकर तथा अपनी बाँसुरी की मधुर ध्वनि से सबके मन को बाँध लिया था। कब वे पेड़ों की गहन छाँह में विश्राम करते थे। कब संपूर्ण वृंदावन उनकी बाँसुरी की ध्वनि से संगीतमय हो गया था। आज भी वृंदावन में यमुना का साँवला पानी उन सब घटनाओं की याद दिला देता है। ऐसा लगता है कि कोई मधुर ध्वनि कानों में सुनाई देगी और कदम एकाएक रुक जाएँगे। वाटिका का माली जब सूरज ढलने पर सैलानियों को निर्देश देता है तो लगता है कि कहीं से ‘वो’ आ जाएगा और वाटिका का संपूर्ण वातावरण बाँसुरी के संगीत से गूंज उठेगा।
लेखक पुनः बताता है कि सालिम अली एक दबले-पतले व्यक्ति थे। उनकी आय सौ वर्ष होने में थोड़ी-सी कम रह गई थी। संभव है कि लंबी-लंबी यात्राओं ने ही उनके शरीर को दुर्बल बना दिया हो तथा कैंसर जैसी जान लेवा बीमारी उनकी मृत्यु का कारण बनी हो। किन्तु मृत्यु भी अंतिम समय तक उनकी आँखों की रोशनी नहीं छीन सकी, जो सदा पक्षियों की सेवा में समर्पित रहती थी। उनके समान पक्षियों को देखने वाला संसार-भर में दूसरा कोई नहीं हुआ। एकांत के क्षणों में वे बिना दूरबीन के ही पक्षियों को निहारा करते थे। क्षितिज को भी छूने वाली उनकी तीव्र दृष्टि में प्रकृति को भी अपने घेरे में बाँध लेने का जादू था। वे प्रकृति से प्रभावित होने की अपेक्षा प्रकृति को ही प्रभावित करने वाले प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। उनके लिए प्रकृति एक रहस्यमयी, दूर तक फैली हुई दुनिया थी। उन्होंने बड़े प्रयास से यह दुनिया अपने लिए बनाई थी। इस दुनिया के निर्माण में उनकी पत्नी तहमीना का बहुत बड़ा सहयोग था।
सालिम अली ने अपने अनुभवों के आधार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सामने केरल की ‘साइलेंट वैली’ के पर्यावरण को बचाने का सुझाव रखा था। उसे सुनकर प्रधानमंत्री की आँखें भी नम हो गई थीं। सालिम अली की मृत्यु के पश्चात् ऐसा कोई नहीं है जो सोंधी माटी पर फसलों की रक्षा कर एक नए भारत का निर्माण करे और हिमालय व लद्दाख जैसी बर्फीली जमीन में रहने वाले पक्षियों की सुरक्षा की वकालत करे।
सालिम ने अपनी आत्मकथा का नाम भी ‘फॉल ऑफ ए स्पैरो’ रखा है। उन्होंने डी० एच० लॉरेंस के जीवन का उदाहरण देते हुए बताया है कि आदमी को आदमी की अपेक्षा प्राकृतिक उपादान पक्षी, पशु आदि भली-भाँति पहचान लेते हैं। लारेंस की पत्नी ने कहा कि मेरे पति को मुझसे कहीं अधिक हमारी छत पर बैठने वाली गोरैया जानती है। सालिम ने पक्षियों के प्रति प्रेम रखने और पक्षी-वैज्ञानिक बनने के रहस्य को खोलते हुए बताया है कि बचपन में उनकी एयरगन से नीलकंठ की गोरैया की मृत्यु ही इसका कारण है। वह गोरैया ही उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की ओर ले जाती रही है। वे जीवन की ऊँचाइयों को सदा ही छूने का प्रयत्न करते रहे। उन्होंने सदा ही साधारण और निष्पक्ष भाव से जीवन जिया है। सालिम अली प्रकृति की दुनिया में सागर के समान विशाल और अथाह व्यक्तित्व वाले इंसान थे। जो उन्हें भली-भाँति जानता और समझता है, वह उनके मरने पर भी यही अनुभव करेगा कि वे अपनी दूरबीन को लटकाए और पक्षियों की नई खोज के साथ बस आते ही होंगे। किन्तु मरा हुआ व्यक्ति कभी नहीं लौटता।
कठिन शब्दों के अर्थ –
(पृष्ठ-43) : परिंदों = पक्षियों। खूबसूरत = सुंदर। हुजूम = भीड़, जनसमूह। खामोश = मौन, एकांत। वादी = घाटी। अग्रसर = बढ़ना। सैलानी = यात्री। अंतहीन = जिसका कोई अंत न हो। सफर = यात्रा। तमाम = सभी। माहौल = वातावरण। पलायन करना = चले जाना, कूच करना। जिस्म = शरीर। हरारत = उष्णता, गर्मी। आबशार = झरना। उत्सुक = इच्छुक। रोमांच = प्रसन्नता। सोता = झरना, प्रवाह। महसूस = अनुभव। एहसास = अनुभव। मिथक = पुराकथाओं का तत्त्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ वहन करता है। भाँडे = बर्तन। शोख = चंचल।
(पृष्ठ-44) : वाटिका = बाग। विश्राम = आराम। अंदाज = ढंग। संगीतमय = संगीत से परिपूर्ण। उत्साह = साहस। कदम थमना = रुक जाना। हिदायत = निर्देश। तलाश = खोज। उम्र = आयु। शती = सौ वर्ष । हिफाजत = देख-रेख । समर्पित = अर्पित । बर्ड वाचर = पक्षी-वैज्ञानिक । क्षितिज = जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैं। कायल = प्रभावित। रहस्यभरी = भेदयुक्त, गोपनीय। पसरी = फैली।
(पृष्ठ-45) : साइलेंट वैली = एकांत घाटी। असर = प्रभाव। खतरा = डर । संकल्प = निश्चय। सोंधी = सुगंधित, मिट्टी पर वर्षा का पहल पानी पड़ने से उठने वाली गंध । वकालत करना = पक्ष लेना। असंभव = जो संभव न हो।
(पृष्ठ-46) : सादा-दिल = साधारण हृदय वाला। मुमकिन = संभव। शब्दों का जामा पहनाना = शब्द रूपी वस्त्र पहनाना। जटिल = उलझे हुए विचारों वाले। विश्वास = भरोसा। नैसर्गिक = साधारण। अथाह = अंतहीन गहराई। भ्रमणशील = घूमने वाले। यायावरी = घूमते रहने की प्रवृत्ति। सुराग = खोज। नतीजा = परिणाम।