HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

HBSE 9th Class Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Questions and Answers

चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का भावार्थ HBSE 9th Class प्रश्न 1.
‘इस विजन में ……….. अधिक है’-पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?
उत्तर-
इन पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का आक्रोश व्यक्त हुआ है क्योंकि वहाँ के अत्यधिक व्यस्त एवं प्रतियोगितापूर्ण और भौतिकवादिता से युक्त जीवन में प्रेम जैसी कोमल और प्राकृतिक भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। दूसरी ओर, ग्रामीण अंचल के एकांत जीवन में प्रेम का संचार पूर्ण रूप से दिखाई देता है। इसलिए कवि का आक्रोश नगरीय संस्कृति व जीवन के प्रति व्यक्त हुआ है।

Chandra Gehna Se Lautti Ber HBSE 9th Class प्रश्न 2.
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा?
उत्तर-
सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि यह कहना चाहता होगा कि सरसों अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक ऊँची हो गई है। ‘सयानी’ शब्द से एक अर्थ यह भी निकलता है कि वह विवाह के योग्य हो गई है।

HBSE 9th Class Hindi Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर प्रश्न 3.
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अलसी चने के पौधे के पास उगी हुई है और उनसे दूर नहीं होती। इसलिए उसके हठीली होने के भाव को व्यक्त किया गया है। दूसरी ओर, उसने अपने आपको नीले फूलों से सजाया हुआ है और कहती है कि जो उसको स्पर्श करेगा, उसे ही वह अपना हृदय दान में दे देगी अर्थात उससे प्रेम करेगी।

प्रश्न 4.
अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर-
वस्तुतः अलसी चने के पौधों के बिल्कुल पास उगी हुई है। उसके आस-पास चारों ओर चने के पौधे हैं, फिर भी वह अपने स्थान को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए कवि ने उसके लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग किया है।

प्रश्न 5.
‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है?
उत्तर-
कवि ने तालाब के पानी में चमकते हुए सूर्य के प्रतिबिंब को देखकर पानी में ‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ की सूक्ष्म । एवं सजीव कल्पना की है।

प्रश्न 6.
कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर-
कविता में बताया गया है कि चने का पौधा केवल बालिश्त भर ऊँचा है अर्थात उसका कद छोटा है। उसने हरे पत्तों रूपी वस्त्र धारण किए हुए हैं और अपने सिर पर गुलाबी फूलों रूपी मुकुट धारण किया हुआ है। वह एक दुल्हे की भाँति सज-धज कर खड़ा हुआ है।

प्रश्न 7.
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने कई स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है। सर्वप्रथम कवि ने चने के पौधों का मानवीकरण किया है। तत्पश्चात अलसी को ‘हठीली’ और ‘हृदय का दान करने वाली’ बताकर उसका मानवीकरण किया है। सरसों का ‘सयानी’ व पीले हाथ करना’ आदि के माध्यम से मानवीकरण किया है। तालाब के किनारे रखे पत्थरों को पानी पीते हुए से दिखाकर उनका भी मानवीकरण किया है।

प्रश्न 8.
कविता में से उन पंक्तियों को ढूंढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है
और चारों तरफ सूखी और उजाड़ ज़मीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पंदित कर रहा है।
उत्तर-
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
‘और सरसों की न पूछो’-इस उक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज़ है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर-
और सरसों की न पूछो’ जैसी शैली का प्रयोग हम वहाँ करते हैं, जहाँ कोई व्यक्ति आशा से अधिक कार्य करता हो, जैसे रमेश की तो बात मत कीजिए, वह तो आजकल बहुत बड़ा अफसर बना हुआ है। बुरे अर्थ में भी इस शैली का प्रयोग किया जाता है। मोहन की क्या बात बताऊँ, उसने कुल की नाक कटवा दी।

प्रश्न 10.
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है?
उत्तर-
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया एक चालाक एवं चतुर व्यक्तित्व की प्रतीक हो सकती है, जो अवसर मिलते ही अपना वार कर देते हैं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 11.
बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं, लेकिन कविता में इन्हीं से सौंदर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आए ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर-
देह, सिर पर चढ़ाना, सयानी, पोखर, चटुल आदि।

प्रश्न 12.
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

पाठेतर सक्रियता

प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

देहात का दृश्य

अरहर कल्लों से भरी हुई फलियों से झुकती जाती है,
उस शोभासागर में कमला ही कमला बस लहराती है।
सरसों दानों की लड़ियों से दोहरी-सी होती जाती है,
भूषण का भार सँभाल नहीं सकती है कटि बलखाती है।
है चोटी उस की हिरनखुरी के फूलों से गुंथ कर सुंदर,
अन-आमंत्रित आ पोलंगा है इंगित करता हिल-हिल कर।
हैं मसें भीगती गेहूँ की तरुणाई फूटी आती है,
यौवन में माती मटरबेलि अलियों से आँख लड़ाती है।
लोने-लोने वे घने चने क्या बने-बने इठलाते हैं,
हौले-हौले होली गा-गा धुंघरू पर ताल बजाते हैं।
हैं जलाशयों के ढालू भीटों पर शोभित तृण शालाएँ,
जिन में तप करती कनक वरण हो जाग बेलि-अहिबालाएँ।
हैं कंद धरा में दाब कोष ऊपर तक्षक बन झूम रहे,
अलसी के नील गगन में मधुकर दृग-तारों से घूम रहे।
मेथी में थी जो विचर रही तितली सो सोए में सोई,
उसकी सुगंध-मादकता में सुध-बुध खो देते सब कोई।

प्रश्न
(1) इस कविता के मुख्य भाव को अपने शब्दों में लिखिए।
(2) इन पंक्तियों में कवि ने किस-किसका मानवीकरण किया है ?
(3) इस कविता को पढ़कर आपको किस मौसम का स्मरण हो आता है ?
(4) मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध कहाँ और क्यों खो बैठे ?
उत्तर-
(1) प्रस्तुत कविता का मुख्य भाव बसंतकालीन खेत-खलिहानों की प्रकृति का चित्रण करना है। कवि ने अरहर और सरसों की फलियों का सुंदर चित्रण किया है। गेहूँ में फूटती हुई बालियों की तुलना फूटती तरुणाई से की है। मटर की बेलों और हरे-हरे चने का मानवीकरण करके उनके सौंदर्य का मनोहारी वर्णन किया है। तालाब के ऊँचे-ऊँचे किनारों पर उगी हुई घास और सोने के समान चमकने वाली लताओं का वर्णन भी मनमोहक बन पड़ा है। कवि ने अलसी और मेथी के फूल का वर्णन भी किया है, जिनकी सुगंध के कारण तितली और भौंरें मदमस्त हो जाते हैं।

(2) इन पंक्तियों में कवि ने अरहर, सरसों, पोलंगा, गेहूँ, मटर बेली, चने आदि का मानवीकरण किया है।

(3) इस कविता को पढ़कर हमें बसंत के मौसम का स्मरण हो आता है।

(4) मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध अलसी और मेथी के फूल की सुगंध में खो बैठते हैं।

HBSE 9th Class Hindi चंद्र गहना से लौटती बेर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट करें।
अथवा
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता एक सोद्देश्य रचना है। इस कविता में ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का उल्लेख करना ही प्रमुख लक्ष्य है। कविता संपूर्ण रूप से ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुषमा पर केंद्रित है। कवि चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा था। लौटते समय कवि का मन गाँव के खेत में खड़ी फसल में रम जाता है। कवि की पैनी दृष्टि वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को पहचानने में देर नहीं लगाती। कवि बताता है कि उसने चने के खेत देखे। उसमें बलिश्त भर का चने का पौधा गुलाबी फूलों से लदा हुआ था। उसके बीच-बीच में अलसी के पौधे उगे हुए थे। उस पर नीले रंग के फूल खिले हुए थे। गुलाबी, नीले और हरे रंग के एक साथ होने से दृश्य अत्यन्त मनोरम बना हुआ था। इन अनुपम दृश्य को उजागर करना ही कवि का लक्ष्य रहा है। गेहूँ के खेत में सरसों उगी हुई थी और उस पर पीले फूल लगे हुए थे। उसे देखकर कवि के जहन में विवाह मंडप की कल्पना उभर आती है।

उसे लगा कि सरसों मानो अपने हाथ पीले करके मंडप में आ गई हो। इसी प्रकार कवि ने फागुन के महीने में प्रकृति पर यौवन के आने की ओर संकेत किया है। गाँव के तालाब के आस-पास के एकांत एवं शांत वातावरण को शब्दों में सजीवतापूर्वक अंकित करना भी कविता का लक्ष्य है। विभिन्न पक्षियों की ध्वनियों को ध्वन्यात्मक शब्दों में ढालकर एक मधुर वातावरण का निर्माण किया गया है। गाँव से थोड़ी दूरी पर रेत के बड़े-बड़े टीले थे, वहाँ का वातावरण पूर्णतः शून्यता से परिपूर्ण था। उन टीलों के बीच से रेल की पटरी गुजर रही थी। जब रेल वहाँ से गुजरती होगी तो वातावरण की एकांतता को तोड़कर एक अनोखी हलचल मचा देती होगी। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कविता का मूल भाव प्रकृति की छटा का वर्णन करना है। कवि अपने इस लक्ष्य में पूर्णतः सफल रहा है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

प्रश्न 2.
निम्नांकित काव्य-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
व्याह-मंडप में पधारी ।
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
उत्तर-
प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने सरसों के विकास और उस पर फूल लग जाने के कारण उसमें उत्पन्न प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण किया है। कवि उसका मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि वह ‘सयानी’ अर्थात युवती बन गई है और वह अपना शृंगार करके मानों विवाह के मंडप पर आ गई है। कवि ने फागुन मास को फाग गीत गाने वाला बताकर फागुन मास के आने की सूचना भी दी है। कहने का भाव है कि प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में फागुन मास के आने पर सरसों के फूलने का सुंदर वर्णन किया है।

प्रश्न 3.
पठित कविता के आधार पर केदारनाथ अग्रवाल की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
केदारनाथ अग्रवाल की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। उनकी छोटी-छोटी कविताएँ बिंबों की ताजगी के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी काव्य-भाषा शुद्ध, साहित्यिक एवं व्याकरण-सम्मत है। अनेक कविताओं में उनकी भाषा गद्यमय बन गई है, किंतु उसमें लय एवं प्रवाह सर्वत्र बना हुआ है। उन्होंने तत्सम शब्दों के साथ-साथ पोखर, मुरैठा, ठिगना, चटुल आदि लोकभाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। लोक-प्रचलित मुहावरों का प्रयोग करके भाषा को सारगर्भित भी बनाया है। उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है कि वह जीवन से उपजी हुई भाषा है और जीवन की रागात्मकता से जुड़ी रहती है। अनेक स्थलों में श्री केदारनाथ अग्रवाल ने अंग्रेज़ी व उर्दू-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि केदारनाथ अग्रवाल की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा है, जिसमें भावों को अभिव्यक्त करने की सहज क्षमता है। गंभीर-से-गंभीर भाव को सरल भाषा में व्यक्त करने की कला में अग्रवाल जी निपुण हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
(A) सुमित्रानंदन पंत
(B) केदारनाथ अग्रवाल
(C) राजेश जोशी
(D) चंद्रकांत देवताले
उत्तर-
(B) केदारनाथ अग्रवाल

प्रश्न 2.
कवि कहाँ से लौट रहा था?
(A) दिल्ली से
(B) नैनीताल से
(C) चंद्र गहना से
(D) बनारस से
उत्तर-
(C) चंद्र गहना से

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

प्रश्न 3.
कवि कहाँ अकेला बैठकर प्राकृतिक दृश्य देख रहा था?
(A) रेल की पटरी पर .
(B) सड़क पर
(C) सागर तट पर
(D) खेत की मेड़ पर
उत्तर-
(D) खेत की मेड़ पर

प्रश्न 4.
कवि ने ‘ठिगना’ किसे कहा है?
(A) चने के पौधे को ।
(B) गेहूँ के पौधे को
(C) आम के पेड़ को
(D) सरसों के पौधे को
उत्तर-
(A) चने के पौधे को

प्रश्न 5.
चने के पौधे ने किस रंग का मुरैठा सिर पर बाँधा हुआ था?
(A) लाल
(B) गुलाबी
(C) काला
(D) पीला
उत्तर-
(B) गुलाबी

प्रश्न 6.
खेत में चने के साथ मिलकर कौन-सा पौधा उगा हुआ था?
(A) गेहूँ का
(B) अलसी का
(C) मेथी का
(D) जौ का
उत्तर-
(B), अलसी का

प्रश्न 7.
अलसी के पौधे पर किस रंग के फूल खिले हुए थे?
(A) लाल
(B) पीले
(C) सफेद
(D) नीले
उत्तर-
(D) नीले

प्रश्न 8.
कवि ने सरसों की किस विशेषता को देखकर उसे सयानी कहा है?
(A) रंग को देखकर
(B) हिलने-डुलने को देखकर
(C) लंबाई को देखकर
(D) उसकी मजबूती को देखकर
उत्तर-
(C) लंबाई को देखकर

प्रश्न 9.
‘पोखर’ का अर्थ है-
(A) नदी
(B) सागर
(C) बादल
(D) तालाब
उत्तर-
(D) तालाब

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प्रश्न 10.
कवि ने चाँदी के समान चमकता हुआ गोल खंभा किसे कहा है?
(A) तालाब में खड़े खंभे को
(B) तालाब में उगी घास को
(C) तालाब में सूर्य के प्रतिबिंब को
(D) चाँद के प्रतिबिंब को
उत्तर-
(C) तालाब में सूर्य के प्रतिबिंब को

प्रश्न 11.
तालाब में चुपचाप कौन-सा पक्षी खड़ा हुआ है?
(A) कौआ
(B) चिड़िया
(C) कबूतर
(D) बगुला
उत्तर-
(D) बगुला

प्रश्न 12.
बगुला पानी में से क्या पकड़कर खाता है?
(A) मेंढक
(B) मछली
(C) जोंक
(D) साँप
उत्तर-
(B) मछली

प्रश्न 13.
कौन-सी चिड़िया पानी में डुबकी लगाकर मछली पकड़कर खाती है?
(A) काले माथे वाली
(B) लाल पंखों वाली
(C) लंबी पूँछ वाली
(D) छोटे शरीर वाली
उत्तर-
(A) काले माथे वाली

प्रश्न 14.
कवि ने चित्रकूट की पहाड़ियों के आकार के विषय में क्या कहा है?
(A) चौड़ी और कम ऊँची
(B) बहुत ऊँची
(C) बर्फीली
(D) हरी-भरी
उत्तर-
(A) चौड़ी और कम ऊँची

प्रश्न 15.
चित्रकूट की पहाड़ियों पर कौन-सा वृक्ष उगा हुआ था?
(A) शीशम
(B) नीम
(C) रीबा
(D) आम
उत्तर-
(C) रीबा

प्रश्न 16.
कवि को किस पक्षी का मीठा स्वर सुनाई पड़ रहा था?
(A) सुग्गे का
(B) कोयल का
(C) मोर का
(D) कबूतर का
उत्तर-
(A) सुग्गें का

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प्रश्न 17.
किस पक्षी का स्वर वनस्थली का हृदय चीरता हुआ प्रतीत होता था?
(A) जंगली मुर्गे का
(B) मोर का
(C) सारस का
(D) कोयल का
उत्तर-
(C) सारस का

प्रश्न 18.
कवि का मन क्या करना चाहता है?
(A) सारस के संग उड़ना
(B) गीत गाना
(C) तालाब में नहाना
(D) जंगल में घूमना
उत्तर-
(A) सारस के संग उड़ना

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा

चंद्र गहना से लौटती बेर अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. देख आया चंद्र गहना।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सज कर खड़ा है।
पास ही मिल कर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
कह रही है, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको। [पृष्ठ 119-120]

शब्दार्थ-दृश्य = नजारा। मेड़ = किनारा। बीते के बराबर = एक बालिश्त के बराबर। ठिगना = छोटे कद वाला। मुरैठा = साफा, पगड़ी। हठीली = जिद्दी। देह = शरीर।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत कवितांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पद्यांश में किन-किन फसलों का वर्णन किया गया है?
(6) चने के पौधे के रूप-सौंदर्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने किसान के खेतों में खड़ी फसल की साधारण सुंदरता में असाधारण सौंदर्य की सृजनात्मक कल्पना की है। कवि कहता है कि वह चंद्र गहना को देख आया है। अब वह खेत की मेड़ (किनारे) पर अकेला बैठा हुआ है और खेत को अत्यंत तन्मयता से देख रहा है। उसने खेत में एक बालिश्त के बराबर खड़े चने के एक छोटे-से हरे पौधे को देखा जिस पर छोटे-छोटे गुलाबी फूल खिले हुए हैं। ऐसा लगता है कि वह छोटा-सा चने का पौधा अपने सिर पर गुलाबी रंग के फूलों का साफा बाँधे हुए है और पूर्णतः सज-धजकर खड़ा है। वहाँ चने के खेत में पास ही अलसी के पौधे भी उगे हुए हैं। उन्हें देखकर कवि ने कहा है कि चने के बीच में जिद्दी अलसी भी खड़ी हुई थी। उसका शरीर पतला और कमर लचकदार है। उस पर अनेक नीले रंग के फूल खिले हुए हैं। वह नीले फूलों को अपने सिर पर चढ़ाकर कहती है कि जो मुझे स्पर्श करेगा, मैं उसे अपने हृदय का दान दूंगी।

भावार्थ-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा का अनुपम चित्रण किया है।

(3) (क) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में प्रकृति के सुंदर दृश्यों को सजीवता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
(ख) चने और अलसी के पौधों का मानवीकरण करके कवि ने अत्यंत सजीव एवं सार्थक कल्पना की है।
(ग) भाषा अत्यंत सरल एवं स्वाभाविक है।
(घ) ‘अलसी’ को हठीली कहकर ऐसे लोगों की प्रवृत्ति को उजागर किया गया है।
(ङ) मानवीकरण अलंकार है।
(च) ‘बीते के बराबर’, ‘फूले फूल’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(छ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

(4) प्रस्तुत कविता में कवि ने खेतों में खड़ी फसल के सौंदर्य का भावपूर्ण चित्रण किया है। कवि के मन में इस औद्योगिक एवं प्रगति के युग में भी प्रकृति के नैसर्गिक रूप-सौंदर्य के प्रति लगाव शेष है। उसी कारण वह मार्ग में रुककर चने के पौधे और अलसी के फूलों एवं उनके परिवेश के सौंदर्य का आत्मीयतापूर्ण चित्रण करता है। उसने चने के पौधे का एक सजे हुए व्यक्ति के रूप में चित्रण किया है। उसी प्रकार अलसी को हठीली कहकर उसके स्वभाव को अंकित किया है। उसको पतली एवं उसकी कमर को लचीली कहकर उसके बाह्य सौंदर्य की अभिव्यक्ति की है। अतः स्पष्ट है कि प्रकृति का यह संपूर्ण चित्रण अत्यंत सजीव एवं आकर्षक है।

(5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने चने एवं अलसी की फसलों का वर्णन किया है।

(6) कवि ने चने के पौधे का रूप चित्रण करने हेतु एक सजे हुए राजकुमार या युवक की कल्पना की है। चने ने हरे पत्तों रूपी वस्त्र धारण किए हुए हैं और गुलाबी फूलों रूपी साफा बाँधा हुआ है। उसके वस्त्र एवं साफे के रंगों की सुंदरता देखने वालों के मन को आकृष्ट कर लेती है।

2. और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह-मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है। [पृष्ठ 120]

शब्दार्थ-पधारी = पहुँची। अनुराग-अंचल = प्रेममय वस्त्र। विजन = एकांत।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(5) कवि के अनुसार सरसों ने हाथ पीले क्यों किए हैं?
(6) कवि ने प्रेम की प्रिय भूमि किसे कहा है और क्यों ?

उत्तर-
(1) कवि श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हए लिखा है कि खेतों में उगी सरसों की बात मत पूछिए। वह सबसे सयानी हो गई है अर्थात अन्य फसलों की अपेक्षा उसकी ऊँचाई सबसे अधिक है। वह देखने में दूसरों से बड़ी लगती है। इतना ही नहीं, उसने अपने हाथ पीले कर लिए हैं अर्थात उस पर पीले रंग के फूल खिल गए हैं। ऐसा लगता है कि मानों वह ब्याह के मंडप पर पधार गई है तथा फागुन मास भी वहाँ फाग के गीत गाता हुआ पधार गया है। कहने का भाव है कि फागुन मास में सरसों के पीले फूल खिल जाते हैं और लोग फाग के गीत गाने लगते हैं। कवि पुनः कहता है कि मुझे यह प्राकृतिक दृश्य देखकर लगता है कि मानों यहाँ किसी स्वयंवर की रचना की गई हो। यहाँ एकांत वातावरण है और प्रकृति का प्रेममय आँचल हिल रहा है अर्थात चारों ओर प्राकृतिक प्रेम का वातावरण छाया हुआ है। व्यापारिक केंद्रों अर्थात बड़े-बड़े नगरों से दूर ग्रामीण अंचल की प्रेम की प्रिय भूमि अधिक उपजाऊ है अर्थात नगरों की अपेक्षा गाँवों के लोगों के हृदयों में प्रेम की भावना अधिक है।

भावार्थ – इन पंक्तियों मे कवि ने ग्रामीण अंचल की प्रकृति का मनोरम वर्णन किया है। सरसों के मानवीकरण के कारण वर्ण्य-विषय अत्यन्त रोचक बन पड़ा है।

(3) (क) संपूर्ण काव्यांश में प्रकृति की अनुपम छटा का भावपूर्ण चित्रण किया गया है।
(ख) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ग) सरसों पर मानवीय गतिविधियों के आरोप के कारण मानवीकरण अलंकार है।
(घ) ‘प्रकृति ……….. रहा है’ में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।
(ङ) भाषा प्रसाद गुण संपन्न है।
(च) अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग के कारण वर्ण्य-विषय सरल एवं सहज रूप में वर्णित है।
(छ) ‘अनुराग-अंचल’, ‘प्रेम की प्रिय’ में अनुप्रास अलंकार है।

(4) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने भावपूर्ण शैली में ग्रामीण अंचल में फैली प्राकृतिक छटा का वर्णन किया है। कवि ने सरसों का मानवीकरण करते हुए उसके अनुपम सौंदर्य का सजीव वर्णन किया है। कवि द्वारा सरसों के पौधे की ऊँचाई देखकर उसको सयानी कहना उचित है। उस पर लदे हुए पीले फूलों को देखकर हाथ पीले करना कहना भी सार्थक है। सरसों के पौधों के आसपास अन्य फसलों के पौधे भी उगे हुए हैं। इसलिए कवि ने उस दृश्य की ब्याह के मंडप से तुलना की है। फागुन मास में गाए जाने वाले गीतों की ध्वनि को सुनकर कवि को फाग गाता हुआ-सा प्रतीत हुआ है। कवि ने प्रकृति के इस दृश्य को स्वयंवर कहा है, जो उचित है। कवि को वहाँ की प्रकृति का पूर्ण अंचल अनुरागमय लगता है। कवि का मत है कि व्यापारिक केंद्रों अर्थात बड़े-बड़े नगरों से दूर एकांत में अर्थात ग्रामीण अंचल की प्रेम की प्रिय यह भूमि अधिक उपजाऊ है। कहने का भाव है कि नगरों की अपेक्षा गाँवों के लोगों के मन में प्रेम की भावना अधिक होती है।

(5) कवि के अनुसार हाथ पीले कर लिए से तात्पर्य है कि सरसों की फसल काफी ऊँची हो गई है और उस पर पीले फूल लद गए हैं। इसलिए वह ऐसी लगती है कि मानो उसने अपने हाथ पीले कर लिए हों।

(6) कवि ने ग्रामीण अंचल की भूमि को प्रेम की प्रिय इसलिए कहा है, क्योंकि वहाँ के लोगों के मन में आपसी प्रेम की भावना अधिक होती है। नगरों के लोगों की भाँति उनमें होड़ व प्रतियोगिता से उत्पन्न घृणा व द्वेष भाव नहीं हैं।

3. और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी।
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले के डालता है!
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में! [पृष्ठ 120-121]

शब्दार्थ-पोखर = छोटा तालाब। नील तल = नीली सतह। आँख को चकमकाता = आँख में चमक लगना। मीन = मछली। ध्यान-निद्रा = ध्यान-मग्न। श्वेत = सफेद। टूट पड़ना = आक्रमण करना। चटुल = चंचल।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में वर्णित विषय के संदर्भ को स्पष्ट कीजिए।
(4) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(5) प्रस्तुत पंद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(6) प्रस्तुत पद्यांश में वर्णित तालाब की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।।

(2) व्याख्या-कवि ने गाँव के छोटे तालाब का वर्णन करते हुए कहा है कि गाँव के अत्यंत समीप ही एक छोटा-सा तालाब है। उसमें छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। पानी की सतह पर भूरे रंग की घास उगी हुई है। वह भी पानी की लहरों के साथ-साथ हिल रही है। पानी में सूर्य का पड़ता हुआ प्रतिबिंब चाँदी के बड़े-से गोल खंभे के समान लग रहा था। उसे देखकर आँखें धुंधिया रही हैं। उस तालाब के किनारे पर कई पत्थर रखे हुए हैं। ऐसा लगता है कि मानों वे चुपचाप पानी पी रहे हों। न जाने उनकी प्यास कब बुझेगी? उस तालाब में एक बगुला पानी में अपनी टाँग डुबोए हुए चुपचाप खड़ा हुआ है। किंतु किसी चंचल मछली को पानी में तैरते देखकर वह अपनी ध्यान निद्रा का एकाएक त्याग कर देता है और तुरंत मछली को पकड़कर खा जाता है।

वहाँ पर एक काले माथे वाली चतुर एवं चालाक चिड़िया भी उड़ रही है। वह अपने सफेद पंखों की सहायता से झपटा मारकर तुरंत जल की गहराई में डुबकी लगाकर एक सफेद रंग की चंचल व तेज तैरने वाली मछली को अपनी पीली चोंच में दबाकर दूर आकाश में उड़ जाती है।

भावार्थ-इस पद्यांश में कवि ने गाँव के तालाब और उसके आस-पास की प्राकृतिक छटा एवं एकांत वातावरण का सजीव चित्रण किया है।

(3) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल की सुप्रसिद्ध कविता ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ से उद्धत हैं। कवि चंद्र गहना से लौट रहा था। मार्ग में उसने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक छटा को देखा। उसके प्रति कवि का मन सहज ही आकृष्ट हो उठा। उसी आकर्षण के भाव में उसने वहाँ के प्राकृतिक जीवन, खेत-खलिहान व आस-पास की अन्य वस्तुओं का वर्णन किया। इन पंक्तियों में गाँव के छोटे-से तालाब के दृश्य का अत्यंत मनोरम चित्र अंकित किया गया है।

(4) (क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने ग्रामीण क्षेत्र की प्रकृति व वहाँ के वातावरण का सजीव चित्रण किया है।
(ख) सरल, सहज एवं स्वाभाविक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ग) कवि ने पोखर, बगुला और चतुर चिड़िया ये तीन अलग-अलग दृश्य-चित्रों के माध्यम से वहाँ के प्राकृतिक वातावरण का सजीव चित्रण किया है।
(घ) पत्थरों का मानवीकरण किया गया है।
(ङ) ‘नील तल’, ‘चतुर चिड़िया’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।
(च) ‘एक चाँदी ……….. खंभा’ में रूपक अलंकार है।
(छ) ‘झपाटे मारना’, ‘टूट पड़ना’ आदि मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
(ज) तत्सम शब्दों के साथ उर्दू भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

(5) प्रस्तुत कविता में कवि ने ग्रामीण अंचल के प्राकृतिक सौंदर्य को अत्यंत भावपूर्ण शैली में चित्रित किया है। कवि ने तालाब में उठती छोटी-छोटी लहरों तथा उसमें उगे घास का सुंदर चित्रण किया है। पानी पर पड़ती सूर्य की किरणों की चमक के दृश्य को भी कवि ने अत्यंत मनोरम रूप में अभिव्यक्त किया है। कवि ने तालाब के किनारे पड़े पत्थरों का मानवीकरण करके वहाँ के दृश्य को और भी सजीव बना दिया है। तालाब के पानी में खड़े बगुले द्वारा पानी में तैरती हुई मछली को देखकर अपनी दिखावटी ध्यान-मग्नता को त्याग कर मछली पकड़कर निगल जाने का दृश्य भी अत्यंत मनोरम बन पड़ा है। इसी प्रकार चतुर चिड़िया के द्वारा पानी में डुबकी लगाकर चंचल मछली को मुख में दबाकर आकाश में उड़ने का वर्णन भी अत्यंत मनोरम बन पड़ा है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत काव्यांश में प्राकृतिक सौंदर्य के विभिन्न रूपों को अत्यंत सजीवता से चित्रित किया गया है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

(6) प्रस्तुत कवितांश में चित्रित तालाब एक छोटा-सा तालाब है। उसका तल कच्चा है। उसमें घास उगी हुई है। उसके जल में छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। सूर्य की किरणों के पड़ने के कारण उसका जल चाँदी की भाँति चमक रहा है। वहाँ तरह-तरह के पक्षी अपनी स्वाभाविक क्रियाएँ कर रहे हैं।

4. औ’ यहीं से
भूमि ऊँची है जहाँ से-
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ,
जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं। [पृष्ठ 121]

शब्दार्थ-ट्रेन = गाड़ी। टाइम = समय। स्वच्छंद = स्वतंत्र। अनगढ़ = टेढ़ी-मेढ़ी। रीवा = एक पेड़ का नाम । कुरूप = बुरे या भद्दे रूप वाले।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत काव्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य शिल्प-सौंदर्य अपने शब्दों में लिखिए।
(4) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(5) ‘मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ’ वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
(6) चित्रकूट के आस-पास फैली हुई भूमि के विषय में कवि ने क्या बताया है?
उत्तर-

(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या कवि का कथन है कि जहाँ वह खड़ा है, वहाँ की भूमि ऊँची है और वहीं पर रेल की पटरी बिछी हुई है। इस समय किसी भी रेलगाड़ी के आने का समय नहीं है। कवि को कहीं नहीं जाना है। इसलिए कवि अपने-आपको स्वतंत्र अनुभव करता है। कवि जहाँ खड़ा है, वहाँ से उसे चित्रकूट की टेढ़ी-मेढ़ी, चौड़ी-चौड़ी और कम ऊँचाई तक फैली हुई पहाड़ियाँ दिखाई दे रही हैं। इन पहाड़ियों के आस-पास की भूमि बंजर है। उस भूमि पर इधर-उधर कुछ रीवा के काँटेदार और कुरूप पेड़ खड़े हैं।

भावार्थ-इन पंक्तियों में ग्रामीण क्षेत्र के शांत एवं एकांत वातावरण का सजीव चित्रण किया गया है।

(3) (क) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।
(ख) भाषा गद्यमय होती हुई भी लययुक्त है।
(ग) ट्रेन एवं टाइम अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया गया है।
(घ) ‘काँटेदार कुरूप’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) ‘ऊँची-ऊँची’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(च) भाषा प्रसादगुण संपन्न है।

(4) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने चित्रकूट के आस-पास की पहाड़ियों व ऊबड़-खाबड़ और बंजर भूमि का वर्णन किया है। कवि ने वहाँ से जाने वाली रेल की पटरी का वर्णन किया है। पर रेल के जाने का अभी समय नहीं हुआ है। इसलिए कवि कुछ समय के लिए अपने-आपको हर प्रकार की चिंताओं से मुक्त पाता है। कवि ने चित्रकूट की समीपवर्ती पहाड़ियों और उनके आस-पास की बंजर भूमि का भी उल्लेख किया है। कवि ने इस दृश्य के वर्णन के माध्यम से जहाँ एक ओर वहाँ की प्रकृति का वर्णन किया है तो वहीं दूसरी ओर वहाँ के लोगों के जीवन की भी अप्रत्यक्ष रूप से झलक प्रस्तुत की है।।

(5) ‘मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ’ प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने बताया है कि गाड़ी के आने का समय नहीं है अर्थात वहाँ बड़े-बड़े नगरों की भाँति गाड़ियों का अत्यधिक आना-जाना नहीं है। इसलिए कवि को कहीं नहीं जाना है और वह अपने-आपको स्वच्छंद अनुभव करता है।

(6) चित्रकूट के आस-पास फैली हुई भूमि पर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं, जिन पर वृक्ष या अन्य पौधे नहीं हैं। वहाँ केवल रीवा . के काँटेदार और कुरूप वृक्ष ही इधर-उधर खड़े हैं।

5. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
मन होता है
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे। [पृष्ठ 121-122]

शब्दार्थ-रस टपकाता = आनंद प्रदान करता। सुग्गा = तोता। वनस्थली = जंगल। जुगल = दो जोड़ी।

प्रश्न
(1) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(2) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या एवं भावार्थ लिखिए।
(3) प्रस्तुत पद्यांश में निहित काव्य-सौंदर्य/शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(4) प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
(5) इस पद्यांश में कवि ने किन दो प्रकार के पक्षियों का वर्णन किया है ?
(6) कवि का मन कहाँ और क्यों उड़ जाना चाहता है ?
उत्तर-
(1) कवि-श्री केदारनाथ अग्रवाल। कविता-चंद्र गहना से लौटती बेर।

(2) व्याख्या-प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने चंद्र गहना से लौटते समय मार्ग में आने वाले प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया है। इन पंक्तियों में कवि ने जंगल में बोलते हुए सुग्गे की मधुर ध्वनि का वर्णन किया है। कवि को सुग्गे की ध्वनि में मीठा-मीठा रस अनुभव होता है। साथ ही उसे सुग्गे की ध्वनि जंगल के हृदय को चीरती हुई-सी प्रतीत हुई अर्थात जंगल में व्याप्त एकांत सुग्गे की ध्वनि से भंग हो रहा था। कवि सारस की ‘टिरटों टिरटों’ ध्वनि को सुनकर भी अत्यधिक प्रभावित हो उठता है। इसलिए कवि कहता है कि मेरा मन होता है कि मैं भी पंख फैलाकर उड़ते हुए सारस युगल के साथ ही वहाँ चला जाऊँ जहाँ हरे खेत में सारस की जोड़ी रहती है। वहाँ उनके सच्चे प्रेम की कहानी को चुपके-चुपके सुन लूँ।
भावार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पक्षियों की ध्वनियों का वर्णन करते हुए ध्वन्यात्मकता का सुंदर उल्लेख किया है।

HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर

(3) (क) संपूर्ण पद में सरल, सहज एवं गद्यात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
(ग) 2 2 2 टें तथा टिरटों, टिरटों प्रयोगों में ध्वन्यात्मकता द्रष्टव्य है।
(घ) ‘मीठा-मीठा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ङ) ‘सारस का स्वर’, ‘सारस के संग’ ‘जहाँ जुगुल जोड़ी’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।
(च) भाषा गद्यात्मक होते हुए भी लययुक्त है।

(4) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अत्यंत भावात्मक शैली में जंगल के एकांतमय वातावरण एवं सुग्गे व सारस आदि पक्षियों की मधुर ध्वनियों का उल्लेख किया है। सुग्गे की टें 2 की ध्वनि को सुनकर जहाँ सुख व आनंद की अनुभूति होती है, वहीं वे ध्वनियाँ जंगल के एकांत वातावरण को भंग करती हुई लगती हैं। कवि ने सारस के मधुर स्वर के साथ-साथ सारस की जोड़ी की प्रेम कहानी का वर्णन लोक-प्रचलित विश्वास के अनुकूल किया है अर्थात लोक-जीवन में सारस के प्रेम को सच्चा-प्रेम स्वीकार किया गया है।

(5) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में सुग्गा व सारस दो प्रकार के पक्षियों का वर्णन किया गया है।

(6) कवि का मन सारस के साथ उड़कर वहाँ जाने को करता है, जहाँ सारस रहते हैं ताकि वह चुपके-चुपके उनकी प्रेम-कहानी को सुन सके। ।

चंद्र गहना से लौटती बेर Summary in Hindi

चंद्र गहना से लौटती बेर कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर केदारनाथ अग्रवाल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कविवर केदारनाथ अग्रवाल का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-श्री केदारनाथ अग्रवाल का प्रगतिवादी कवियों में प्रमुख स्थान है। उनका जन्म सन 1911 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के कमासिन गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। उच्च शिक्षा के लिए ये इलाहाबाद चले गए और वहाँ से बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात आगरा विश्वविद्यालय में एल०एल०बी० की उपाधि प्राप्त कर ये बाँदा में वकालत करने लगे। वकालत करने के साथ-साथ श्री केदारनाथ अग्रवाल राजनीतिक और सामाजिक जीवन से भी जुड़े रहे। इसके साथ ही ये हिंदी के प्रगतिशील आंदोलन से भी घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे। प्रगतिवादी कवियों में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। श्री अग्रवाल जी आजीवन साहित्य रचना करते रहे। उन्होंने अनेक ग्रंथ लिखकर माँ भारती के आँचल को समृद्ध किया है। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अग्रवाल जी का निधन सन 2000 में हुआ।

2. प्रमुख रचनाएँ-‘नींद के बादल’, ‘युग की गंगा’, ‘लोक तथा आलोक’, ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’, ‘पंख और पतवार’, ‘हे मेरी तुम’, ‘मार प्यार की थापें’, ‘कहे केदार खरी-खरी’ आदि उनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-अग्रवाल जी को अपने शिक्षकों से लिखने की प्रेरणा मिली। आरंभ में उन्होंने खड़ी बोली में कवित्त और सवैये लिखने शुरू किए। ‘नींद के बादल’ उनका प्रारंभिक काव्य-संग्रह था। उनके काव्य में जहाँ एक ओर ग्रामीण प्रकृति तथा प्रेम की सुंदर भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है, वहीं दूसरी ओर प्रगतिवादी दृष्टिकोण को भी स्वर मिला है। ये प्रकृति के सुंदर, कोमल और स्वाभाविक चित्र अंकित करने में सिद्धहस्त हैं। ‘लोक तथा आलोक’ पूर्णतया प्रगतिवादी रचना है। समाज के पूँजीपतियों, ज़मींदारों तथा शोषकों के अत्याचारों के परिप्रेक्ष्य में कवि ने शोषितों एवं उपेक्षितों की व्यथा का वर्णन किया है। कुछ स्थलों पर उनकी वाणी आक्रोश का रूप धारण कर लेती है और वे शोषक वर्ग को भला-बुरा भी कहना शुरू कर देते हैं। उन्होंने समाज के गरीबों की गरीबी पर खुलकर आँसू बहाए हैं। उनका समूचा काव्य यथार्थ की भूमि पर खड़ा है, लेकिन यथार्थवाद अन्य प्रगतिवादी कवियों की तरह शुष्क नहीं है। उसमें कुछ स्थलों पर राग भी हैं, जो पाठक के मन को छू लेते हैं।

4. भाषा-शैली-केदारनाथ अग्रवाल के काव्य का कला-पक्ष भाव-पक्ष की तरह सशक्त एवं प्रभावशाली है। उनकी छोटी-छोटी कविताएँ बिंबों की ताज़गी के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी काव्य-भाषा में खड़ी बोली का परिमार्जित रूप देखा जा सकता है। शब्द-चयन और अभिव्यक्ति अग्रवाल जी की अपनी कला है। उनके काव्य की विशेषता जीवन और उससे उपजी हुई रागात्मकता से साक्षात्कार करना है। उन्होंने अनेक स्थलों पर जनभाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने आवश्यकतानुसार आंचलिक शब्दों का भी प्रयोग किया है।

चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का सार काव्य-परिचय

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता का सार/काव्य-परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ शीर्षक कविता में कविवर केदारनाथ अग्रवाल ने ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है। प्रस्तुत कविता में कवि का प्रकृति के प्रति प्रेम स्वाभाविक एवं नैसर्गिक रूप में अभिव्यक्त हुआ है। वस्तुतः कवि चंद्र गहना नामक स्थान से लौट रहा है। लौटते समय कवि के मन को खेत-खलिहान और उनका प्राकृतिक परिवेश अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। कवि ने मार्ग में जो कुछ देखा है, उसका वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि मैं चंद्र गहना देख आया हूँ, किंतु अब खेत के किनारे पर बैठा हुआ देख रहा हूँ कि एक बालिश्त के बराबर हरा ठिगना-सा चने का पौधा है जिस पर छोटे गुलाबी फूल खिले हुए हैं। साथ ही अलसी का पौधा भी खड़ा है, जिस पर नीले रंग के फूल खिले हुए हैं। इसी प्रकार चने के खेत के बीच-बीच में सरसों खड़ी थी। उस पर पीले रंग के फूल खिले हुए थे। उसे देखकर ऐसा लगता है कि मानों उसने अपने हाथ पीले कर लिए हैं और वह विवाह के मण्डप में पधार रही है। फागुन का महीना है। चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छाया हुआ है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने स्वयंवर रचा हो। यहाँ नगरों से दूर ग्रामीण अंचल में प्रिय की भूमि उपजाऊ अधिक है। वहाँ साथ ही एक छोटा-सा तालाब है। उसके किनारे पर कई पत्थर पड़े हुए हैं।

एक बगुला भी एक टाँग उठाए जल में खड़ा है, जो मछली के सामने आते ही अपनी चोंच में पकड़कर उसे खा जाता है। इसी प्रकार वहाँ काले माथे वाली और सफेद पंखों वाली चतुर चिड़िया भी उड़ रही है। वह जल में मछली देखकर उस पर झपट पड़ती है और उसे मुख में पकड़कर दूर आकाश में उड़ जाती है। वहाँ से कुछ दूरी पर रेल की पटरी बिछी हुई है। ट्रेन आने का अभी कोई समय नहीं है। वहाँ चित्रकूट की कम ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ भी दिखाई देती हैं। साथ ही बंजर भूमि पर दूर तक फैले हुए काँटेदार रीवा के पेड़ भी दिखाई दे रहे हैं। उस सुनसान वातावरण में सुग्गे का स्वर मीठा-मीठा रस टपकाता हुआ लगता है। वह उस एकांत का हृदय चीरता हुआ-सा प्रतीत होता है। सारस के जोड़े की टिरटों-टिरटों की ध्वनि भी अच्छी लगती है। कवि का हृदय भी उस सारस जोड़ी के साथ खेतों में उड़ने को लालायित हो उठता है ताकि वह चुपके से उनकी प्रेम-कहानी को सुन सके।

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