Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Hindi Vyakaran Lokoktiyan लोकोक्तियाँ Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 10th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ
10 लोकोक्तियाँ HBSE Hindi Vyakaran
लोकोक्तियाँ
(अ, आ)
1. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत – समय चूक जाने पर रोने से कुछ नहीं होता-जगदीश! तुम साल भर तो पढ़े नहीं, अब यदि फेल हो गए हो तो रो क्यों रहे हो? भाई, अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
2. अंत भले का भला – अच्छा काम करने वाला ही अंत में सुख पाता है-कई वर्ष कठिनाइयों का सामना करने के बाद अब व्यापार में सफलता पाई है। सच कहा गया है-अंत भले का भला।
3. अंधा क्या चाहे, दो आँखें – किसी को इच्छित वस्तु मिलना-मुझे अपने बेटे के लिए अध्यापक की आवश्यकता थी, मेरे घर में एक किराएदार आया, जो मेरे बेटे को पढ़ा भी देता था। अंधा क्या चाहे, दो आँखें।
4. अधजल गगरी छलकत जाए – ओछा आदमी बढ़ा-चढ़ाकर बोलता है-रमेश ने थोड़ी सी अंग्रेज़ी क्या सीख ली है, अपने
5. अक्ल बड़ी या भैंस – शरीर बड़ा होने की अपेक्षा बुद्धि बड़ी होनी चाहिए – गिरीश के लंबे – चौड़े शरीर का क्या फायदा? परीक्षा में पास होने के लिए तो बुद्धि की ज़रूरत होती है। आपने अक्ल बड़ी या भैंस की कहावत सुनी होगी।
6. अंधे के हाथ बटेर लगना – संयोग से सफलता पाना – रवीश सारा साल तो पढ़ा नहीं, पता नहीं पास कैसे हो गया। यह तो अंधे के हाथ बटेर लगने वाली बात है।
7. अंधा बाँटे रेवड़ियाँ फिर – फिर अपनों को दे अपनों को लाभ पहुँचाना – आजकल के कुछ नेता अपने भाई – भतीजों को ही मंत्री पद देते हैं। इसी को कहते हैं, अंधा बाँटे रेवड़ियाँ फिर – फिर अपनों को दे।
8. अंधा पीसे कुत्ता खाए सीधे – सादे व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति लाभ उठाते हैं – मुनीश की सारी कमाई उसके मित्र उड़ा जाते हैं। यह तो अंधा पीसे कुत्ता खाए वाली कहावत चरितार्थ होती है।
9. अपनी – अपनी डफली, अपना – अपना राग – भिन्न – भिन्न मत होना – सभा में अध्यक्ष महोदय किसी भी बात का निर्णय नहीं ले पाए क्योंकि वहाँ तो सबकी अपनी – अपनी डफली, अपना – अपना राग था।
10 Lokoktiyan HBSE Hindi Vyakaran
10. आम के आम गुठलियों के दाम – दोहरा लाभ – दो साल के बाद मैंने अपनी गाड़ी उसी दाम में बेच दी, जिसमें खरीदी थी। इसे कहते हैं – आम के आम गुठलियों के दाम।
11. आगे कुँआ पीछे खाई – दोनों तरफ खतरा – रमेश दिल का मरीज है। ऑपरेशन करवाने से भी डरता है और नहीं करवाने से मृत्यु से डरता है। यह तो वही बात हुई कि आगे कुँआ पीछे खाई।
12. आ बैल मुझे मार – जान – बूझकर विपत्ति मोल लेना अध्यक्ष के कमरे में बार – बार जाओगे तो डाँट अवश्य पड़ेगी। तुम तो आ बैल मुझे मार वाली बात करते हो।
13. आसमान से गिरा खजूर पर अटका – एक मुसीबत से छूटकर दूसरी में फँसना – पहले विनय की नौकरी छूट गई, अब उसके घर में चोरी हो गई। उसके लिए आसमान से गिरा खजूर पर अटका वाली बात हो गई।
14. आसमान का थूका मुँह पर आता है महान व्यक्ति की निंदा करने से स्वयं को हानि होती है – गाँधी जी की आलोचना – करके तुम बुद्धिमानी की बात नहीं कर रहे हो क्योंकि आसमान का थूका मुँह पर आता है।
15. आप.भला तो जग भला – अच्छे को सभी अच्छे लगते हैं मेरे पिताजी को कभी किसी में कोई बुराई नहीं दिखाई देती – क्योंकि आप भला तो जग भला लगता है।
(ई, उ, ऊ)
16. ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया – संसार में कोई गरीब, कोई धनवान – शहरों में कुछ महलों का सुख – भोगते हैं और कुछ को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती। इसी को कहते हैं ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
17. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे दोषी निर्दोष पर दोष लगाए – एक तो सामने से मेरी गाड़ी में टक्कर मारी और इस पर मुझी पर दोष लगा रहे हो। यह तो वही बात हुई कि उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।
18. ऊँची दुकान फीका पकवान – अधिक दिखावा – आजकल बड़ी – बड़ी दुकानों में घटिया सामान बेचा जा रहा है। यह तो ऊँची दुकान फीका पकवान वाली बात है।
19. ऊँट के मुँह में जीरा आवश्यकता से कम देना – तुमने उस पहलवान के सामने केवल दो रोटी रख दी है। यह तो ऊँट के मुँह में जीरे के समान है।
(ए)
20. एक अनार सौ बीमार – एक वस्तु के अनेक ग्राहक – आजकल एक नौकरी के लिए हजारों प्रार्थना – पत्र आते हैं। यह तो एक अनार सौ बीमार वाली बात है।
21. एक हाथ से ताली नहीं बजती – झगड़े के लिए दोनों पक्ष उत्तरदायी – सास – बहू के झगड़े में दोनों का हाथ होता है क्योंकि एक हाथ से ताली नहीं बजती।
22. एक पंथ दो काज – दोहरा लाभ – मैं कंपनी की तरफ से मुंबई गया था, वहाँ मैंने समुद्र की लहरों का आनंद भी लिया। इस तरह एक पंथ दो काज हो गए।
23. एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा – एक तो पहले ही दोषी होना साथ ही एक और दोष लग जाना – सतीश तो पहले ही बिगड़ा हुआ था और अब तो गंदे लड़कों की संगति में शराब भी पीने लगा सत्य ही है एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा।
24. एक ही थैली के चट्टे – बट्टे – सब एक जैसे स्वभाव वाले – आजकल के नेताओं में से किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि सब एक ही थैली के चट्टे – बट्टे हैं।
25. एक तो चोरी, दूसरी सीना जोरी – अपराधी होकर भी रौब डालना – एक तो बिना पूछे मेरे पैसे ले लिए और अब मुझी पर दोष लगा रहे हो। यह एक तो चोरी, दूसरी सीना जोरी वाली बात हुई।
(ओ)
26. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती – आवश्यकता से कम मिलने पर तृप्ति का न होना – मैंने पिताजी से दस हज़ार रुपए माँगे पर मुझे केवल एक हज़ार रुपए मिले। भला ओस चाटे क्या प्यास बुझती है।
27. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर – चुनौती स्वीकार करने पर कष्ट से क्या घबराना – यदि अध्यक्ष का पद स्वीकार किया है तो आलोचना ज़रूर सुननी पड़ेगी। ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर।
(क)
28. काला अक्षर भैंस बराबर – बिल्कुल अनपढ़ – मैं इस पुस्तक को लेकर क्या करूँगा क्योंकि मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
29. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा – असंगत वस्तुओं का मेल – भारतीय राजनीति में अनेक पार्टियों की मिली – जुली सरकार बनती है, इसलिए इनके विचार नहीं मिलते। यह तो कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा वाली बात है।
30. का वर्षा जब कृषि सुखाने काम बिगड़ने पर सहायता मिलना बेकार – जरूरत के समय तो तुमने मदद की नहीं, अब रुपए देने से क्या फायदा? का वर्षा जब कृषि सुखाने।
31. कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली – दो चीजों अथवा व्यक्तियों में अंतर – मिल के मालिक तथा उसके चपरासी का मुकाबला कैसे हो सकता है क्योंकि कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली।
32. काठ की हांडी बार – बार नहीं चढ़ती – धोखे का व्यवहार अधिक समय तक नहीं होता – दूध देने वाला रोज़ दूध में पानी मिलाता था। एक दिन पकड़े जाने पर जुर्माना भी देना पड़ा और कैद भी हो गई। सच ही कहा है कि काठ की हांडी बार – बार नहीं चढ़ती।
33. कोयले की दलाली में मुँह काला – बुरे के साथ रहने पर बुराई ही मिलती है – शराब की दुकान में काम करने के कारण लोग तुम्हें भी शराबी समझते हैं। सच है – कोयले की दलाली में मुँह काला।
(ख, ग)
34. खग ही जाने खग की भाषा – साथ रहने वाले ही एक – दूसरे का स्वभाव जानते हैं अपने दोस्त अनिल की बातें तुम ही समझ सकते हो क्योंकि कहते हैं खग ही जाने खग की भाषा।
35. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है – संगति का प्रभाव अवश्य होता है – शराबियों की संगति में रहोगे तो शराब अवश्य पीनी शुरु कर दोगे क्योंकि तुमने सुना होगा कि खरबूजे को देखकर खरबूज़ा रंग बदलता है।
36. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे – लज्जित होने पर अनावश्यक क्रोध दिखाना – सभी कर्मचारियों के सामने कंपनी के मैनेजर द्वारा की गई चोरी की बात बताई गई तब तो वे कुछ न कर पाए, परंतु घर जाकर बच्चों व पत्नी पर गुस्सा निकाला। यह तो वही बात हुई खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
37. गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है दोषी के साथ निर्दोष को भी नुकसान उठाना पड़ता है – रिश्वत लेते हुए बैंक अफसर के पकड़े जाने पर उसके कर्मचारियों को भी सज़ा भुगतनी पड़ी। ठीक ही कहा है – गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है।
38. गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास हालात के अनुसार बदल जाना – आजकल के नेताओं की हालत तो गंगा गए गंगादास तथा जमुना गए जमुनादास वाली है।
39. घर फूंक तमाशा देखना – शान के लिए बढ़ – चढ़कर खर्च करना – लड़की वालों को वर – पक्ष तथा बारात को प्रसन्न करने के लिए घर फूंक तमाशा देखना ही पड़ता है।
40. घर की मुर्गी दाल बराबर – अपने पास की वस्तु को कम महत्त्व होना तुम्हारी पत्नी इतनी पढ़ी – लिखी है, तुम्हें तो उस पर गर्व होना चाहिए, परंतु तुम्हें वह घर की मुर्गी दाल बराबर लगती है।
41. घर का भेदी लंका ढाए – आपस की फूट नुकसान पहुंचाती है मेरे एक मित्र ने अपने मित्रों के साथ मिलकर धन के लिए अपने ही भाई की दुकान पर चोरी कर ली। यह तो वही बात हुई – घर का भेदी लंका ढाए।
(च, छ, ज)
42. चोर के पैर नहीं होते – पाप करने वाला डर जाता है – चोरी करने पर जब कालू को पुलिस ने पकड़ लिया तो उसका रंग उड़ गया। ठीक ही कहा गया है कि चोर के पैर नहीं होते।
43. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात – सुख के दिन थोड़े ही होते हैं – पिता द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर कुछ दिन मज़े कर लो, पर याद रखना चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
44. चोर की दाढ़ी में तिनका – अपराधी व्यक्ति खुद ही शंकित होता है – घर में चोरी होने पर नौकर की घबराहट देखकर मैं समझ गया कि चोर की दाढ़ी में तिनका है।
45. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए – बहुत कंजूस होना – मेरा मित्र बीमार होने पर भी डॉक्टर के पास नहीं जाता। उसका तो वही हाल है कि चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।
46. छडूंदर के सिर पर चमेली का तेल – अयोग्य व्यक्ति को मूल्यवान वस्तु मिलना – मैट्रिक पास अनिल कुमार को एम.ए. पास नौकरी करती बीवी मिली है। इसे कहते हैं – छछंदर के सिर पर चमेली का तेल।
47. जिसकी लाठी उसकी भैंस – शक्तिशाली की ही जीत होती है – आजकल तो नौकरी उसी को मिलती है, जिसके पास दौलत हो या सिफारिश हो। तभी कहा गया है जिसकी लाठी उसकी भैंस।
48. जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं अधिक बोलने वाले व्यक्ति कुछ नहीं कर पाते – रघु की लम्बी – चौड़ी बातें सुनकर ही मैं समझ गया था कि वह कुछ करेगा नहीं, क्योंकि जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं।
49. जंगल में मोर नाचा, किसने देखा – जहाँ गुणों की परख करने वाला कोई न हो, वहाँ योग्यता दिखाना व्यर्थ तुमने गाँव में शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम आयोजित किया है, वहाँ उसे सुनने कौन आएगा। तुम्हें पता है जंगल में मोर नाचा किसने देखा।
50. जल में रहकर मगर से बैर – जिसके आश्रय में रहना, उसी से वैर करना – अपनी संस्था के अध्यक्ष का विरोध करके तुम वहाँ नौकरी नहीं कर सकते। क्या तुम नहीं जानते कि जल में रहकर मगर से वैर नहीं करना चाहिए।
51. जाको राखे साइयाँ, मार सके न कोय – जिसका भगवान रक्षक हो, उसे कोई मार नहीं सकता – भवन की सातवीं मंज़िल से गिरकर भी एक नन्हा बालक साफ बच गया। ठीक ही कहा है – जाको राखे साइयाँ, मार सके न कोय।
52. जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि – कवि की कल्पना दूर तक पहुँचती है – बिहारी ने अपने दोहों में थोड़े शब्दों में इतनी गहरी तथा सूक्ष्म कल्पना की है कि कहना पड़ता है जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि।
53. जैसी करनी वैसी भरनी – किए का फल भुगतना पड़ता है – विकास ने रिश्वत लेकर अथाह धन – दौलत इकट्ठी की। अब उसके बेटे उसे गलत कार्यों में उड़ा रहे हैं। ठीक ही कहा गया है जैसी करनी वैसी भरनी।।
54. जितने मुँह उतनी बातें – भिन्न – भिन्न विचार – हमारे पड़ोसी के बेटे को कल रात पुलिस पकड़ कर ले गई। इस विषय पर जितने मुँह उतनी बातें हो रही हैं।
(ठ, ड, ढ)
55. ठंडा लोहा गर्म लोहे को काट देता है – शांत व्यक्ति क्रुद्ध व्यक्ति को हरा देता है – मेरा एक साथी हमेशा मेरी आलोचना करता रहता है, परंतु मैं शांत रहता हूँ। परिणामस्वरूप मेरी पदोन्नति हो गई, वह देखता रह गया। ठीक कहा गया है ठंडा लोहा गर्म लोहे को काटता है।
56. डूबते को तिनके का सहारा – मुसीबत के समय थोड़ी सहायता भी पर्याप्त होती है मेरी नौकरी चली गई है। इस समय तुम्हारे द्वारा की गई सहायता मेरे लिए डूबते को तिनके का सहारा बन जाएगी।
57. ढाक के तीन पात – एक ही हालत में रहना मेरे पिताजी चाहे कितना भी कमा लें पर ढाक के तीन पात वाली कहावत ही चरितार्थ होती है।
(त, थ, द)
58. तेते पाँव पसारिए, जेती लंबी सौर – सामर्थ्य के अनुसार खर्च करना – केशव! तुम अपनी बेटी के विवाह पर सोच – समझकर खर्च करना, नहीं तो कर्ज में डूब जाओगे। ठीक ही कहा है तेते पाँव पसारिए, जेती लंबी सौर।
59. तू डार – डार, मैं पात – पात – एक – दूसरे से अधिक चालाक होना – तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते क्योंकि मैंने दुनिया देखी है। तुमने सुना ही होगा कि तू डार – डार मैं पात – पात।
60. थोथा चना बाजे घना – गुण कम, अभिमान अधिक – तुम अपने आप को अंग्रेज़ी के विद्वान समझते हो, ठीक से बोल तो सकते नहीं। तुम पर तो थोथा चना बाजे घना वाली कहावत सही बैठती है।
61. दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया – धन ही सब कुछ – आज के युग में सब जगह धनवान का ही सम्मान होता है। किसी ने ठीक ही कहा है – दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया।
62. दूध का दूध पानी का पानी – निष्पक्ष न्याय – कत्ल के केस में जज ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।
63. दूर के ढोल सुहावने – दूर की वस्तुएँ अच्छी लगती हैं मुंबई की चहल – पहल के बारे में बहुत कुछ सुना था पर वहाँ जाने पर वह शोर – शराबा लगा। ठीक ही कहा गया है – दूर के ढोल सुहावने।
64. दूध का जला छाछ को फूंक – फूंक कर पीता है एक बार धोखा खाने पर व्यक्ति सावधान हो जाता है – एक बार रेलगाड़ी में ठगा जाने के कारण अब वह अपना सफर बड़ी सावधानी से करता है। सच ही है – दूध का जला छाछ को फूंक – फूंक कर पीता है।
65. देखें ऊँट किस करवट बैठता है भविष्य में क्या परिणाम निकलता है – इस बार मैंने पूरी तैयारी करके परीक्षा दी है, अब देखें ऊँट किस करवट बैठता है।
(ध, न)
66. धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का – दो तरफ टाँग फैलाने वाला व्यक्ति कहीं का नहीं रहता – मैंने बिना कोई और नौकरी तलाश किए पहली नौकरी गुस्से में आकर छोड़ी दी। अब मेरी हालत धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का’ जैसी हो गई है।
67. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी – झगड़े की जड़ को मिटा देना – यदि हमारे कुत्ते के कारण ही सारे मुहल्ले में झगड़ा है, तो हम इसे निकाल देते हैं, न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।
68. नाच न जाने आँगन टेढ़ा – गुण न होने पर बहाने बनाना – लिखना तो तुम्हें आता नहीं, दोष पैन में निकाल रहे हो। यह तो वही हालत है कि नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
69. नया नौ दिन पुराना सौ दिन – नए की अपेक्षा पुराना स्थिर होता है – तुमने अपने बचपन के साथी मनदीप को छोड़कर कल के आए करीम से दोस्ती कर ली है। तुमने अवश्य सुना होगा कि नया नौ दिन पुराना सौ दिन।
70. नेकी कर दरिया में डाल – उपकार करके भूल जाना चाहिए – तुम अनाथालय में दिए दान की बात हर एक से क्यों करते हो, क्या तुम्हें पता नहीं कि नेकी कर दरिया में डाल।
71. नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली – जीवन भर बुरे काम करके अंत में संत बनने का ढोंग करना – लाला दीनदयाल उम्रभर कम तोल – तोलकर लोगों को ठगता रहा, अब सत्यवादी बन रहा है। इसी को कहते हैं कि नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली।
(प, ब, भ, म)
72. पर उपदेश कुशल बहुतेरे दूसरों को उपदेश देना सरल है – दूसरों को ईमानदारी का उपदेश देने से पहले आज के नेता पहले खुद को सुधारें क्योंकि पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
73. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं दूसरों के अधीन रहने में सुख नहीं – लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने अपने भाषणों द्वारा बार – बार भारतवासियों को समझाया कि पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं। बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद – मूर्ख व्यक्ति गुणों की परख नहीं कर सकता – मूर्ख विनय को कत्थक नृत्य की क्या समझ क्योंकि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
75. बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख माँगने से कुछ नहीं मिलता – एक भिखारी को माँगने पर भी भीख नहीं मिलती थी, फिर वह भगवान हनुमान की मूर्ति रखकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया, लोग अपने – आप धन देने लगे क्योंकि वह जानता था कि बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख।
76. बगल में छुरी मुँह में राम – राम – ऊपर से सज्जन अंदर से दुष्ट – कैलाश सबसे विनम्रता से बात करता है, परंतु सबको नुकसान पहुँचाने से भी चूकता नहीं। उस पर तो बगल में छुरी मुँह में राम – राम वाली कहावत चरितार्थ होती है।
77. बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी – संभावित दुःख आकर ही रहता है राजू भीड़ में किसी की भी जेब काटने से हटता नहीं। वह अवश्य एक – न – एक दिन पकड़ा जाएगा, आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी।
78. भागते चोर की लंगोटी ही सही – नुकसान के बाद जो मिल जाए, वही ठीक – मैंने अपने मित्र सुभाष से पाँच सौ रुपए लेने थे, परंतु बहुत कोशिशों के बाद केवल एक सौ रुपया ही निकलवा पाया हूँ। चलो, भागते चोर की लंगोटी ही सही।
79. मान न मान मैं तेरा मेहमान – जबरदस्ती गले पड़ना हमारा दूर का रिश्तेदार कई दिन से हमारे घर टिका हुआ है, जाने का नाम नहीं लेता। यह तो वही बात हुई, मान न मान मैं तेरा मेहमान।
80. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत – मन के अनुसार फल मिलता है – एक बार असफलता मिलने पर निराश क्यों होते हो, दृढ़ निश्चय से मेहनत करो, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी। तुमने सुना नहीं मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
81. मन चंगा तो कठौती में गंगा – हृदय पवित्र हो तो घर में तीर्थयात्रा का फल मिल जाता है मेरे पिताजी धार्मिक स्थानों पर जाने की अपेक्षा मनुष्यता से प्यार करते हैं। उनका सिद्धांत है – मन चंगा तो कठौती में गंगा।
82. मुर्गा बांग न देगा तो क्या सुबह न होगी – किसी एक व्यक्ति के न रहने से काम नहीं रुकते – तुम वचन देकर भी समय पर मेरी सहायता को नहीं आए, पर मैंने सारा काम करवा लिया है। तुम क्या समझते हो कि मुर्गा बांग न देगा तो क्या सुबह न होगी।
(य, र, ल)
83. यह मुँह और मसूर की दाल – अयोग्य होने पर भी अधिक पाने की इच्छा करना – तुम सारा साल न पढ़कर प्रथम श्रेणी में पास होने की बात कर रहे हो, यह मुँह और मसूर की दाल।
84. रस्सी जल गई पर बल न गया शक्ति नष्ट होने पर भी अभिमानी बने रहना – महेश का सब कुछ लुट गया परंतु अभी भी किसी से सीधे मुँह बात नहीं करता। उस पर तो रस्सी जल गई पर बल न गया वाली कहावत चरितार्थ होती है।
85. लातों के भूत बातों से नहीं मानते दुष्ट व्यक्ति सज़ा से ही डरते हैं विकास को जब तक अध्यापक पीटते नहीं, वह काम नहीं करता। उस पर लातों के भूत बातों से नहीं मानते वाली कहावत सही बैठती है।
86. लकड़ी के बल बंदर नाचे मूर्ख डंडे के बल पर ही काम करता है मेरी कक्षा का एक लड़का राजन अध्यापकों द्वारा डाँटने – फटकारने से ही काम करता है, उस पर तो लकड़ी के बल बंदर नाचे वाली कहावत चरितार्थ होती है।
(स, ह)
87. साँप मरे, लाठी भी न टूटे – हानि भी न हो और काम भी बन जाए – चोरी का पता लगने पर हमने अपने नौकर को – सही – सलामत घर से विदा किया। हमने सोचा कि साँप मरे, लाठी भी न टूटे।
88. सावन हरे न भादों सूखे – हमेशा एक – सी दशा में रहना यद्यपि विनय एक बड़ा अफसर बन गया है, परंतु फिर भी वह पहले की तरह विनम्र तथा सादगी से रहता है। ऐसे लोगों को ही तो कहते हैं – सावन हरे न भादों सूखे।
89. सस्ता रोए बार – बार, महँगा रोए एक बार – सस्ती चीज़ खरीदकर रोज़ परेशान होना पड़ता है – अब क्यों पछता रहे हो, मैंने पहले ही कहा था कि किसी अच्छी कंपनी की मशीन खरीदो। तुम्हें पता होना चाहिए, सस्ता रोए बार – बार, महँगा रोए एक बार।
90. सेवा करे सो मेवा पावे – सेवा का फल अवश्य मिलता है जो अपने दादा – दादी की सेवा करता है, वह जीवन में अवश्य सफल होता है क्योंकि सेवा करे सो मेवा पावे।
91. सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े काम आरंभ करते ही मुसीबत आना – मैं मुंबई जाने के लिए अभी रेलवे स्टेशन पर पहुँचा ही था कि किसी ने जेब काट ली। मैंने सोचा सिर मुंडाते ही ओले पड़े।
92. समरथ को नहीं दोष गुसाईं – शक्तिशाली पर दोष नहीं लगता – कंपनी का मालिक चाहे किसी नियम का पालन न करे, पर कोई उस पर उँगली नहीं उठा सकता क्योंकि समरथ को नहीं दोष गुसाईं।
93. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता – सीधेपन से काम नहीं चलता – मैंने अपने पुत्र को प्यार से बहुत समझाया, परंतु न मानने पर मुझे कठोर बनना पड़ा। मुझे मालूम है कि सीधी उँगली से घी नहीं निकलता।
94. होनहार बिरवान के होत चीकने पात – योग्यता का बचपन में ही पता लग जाता है जब मैंने अपनी पाँच वर्ष की बेटी को कत्थक नृत्य की कठिन मुद्राएँ करते हुए देखा तो मुझे उसमें एक सफल नृत्यांगना की झलक दिखाई दी। सच ही है होनहार बिरवान के होत चीकने पात।
95. हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और – कहना कुछ और करना कुछ – ईमानदारी की बातें करने वाला वह नेता सबसे बड़ा रिश्वतखोर है। सच है हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और।
96. हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं तुम कहते हो कि लिफाफे में पड़े रुपए चार सौ हैं और मैं कहता हूँ कि पाँच सौ हैं। हाथ कंगन को आरसी क्या, गिनकर देख लेते हैं।
97. हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आए – बिना खर्च किए अच्छा परिणाम आना – इस बार दीवाली पर बाज़ार से मिठाई मँगवाने की अपेक्षा घर में ही कुछ बनाएंगे, जिससे हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आए।
98. हमारी बिल्ली हर्मी से म्याऊँ मदद करने वाले पर ही रौब जमाना – मुसीबत के समय मैंने ही तुम्हें अपने घर पर आश्रय दिया, अब तुम मुझे ही आँखें दिखाने लगे हो। हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊँ।।
99. हीरे की कद्र जौहरी जाने – गुणवान व्यक्ति ही गुणों की परख कर सकता है – कालिदास के काव्य की सूक्ष्मता तुम नहीं समझ सकते, हीरे की कद्र जौहरी ही जान सकता है।
100. हाथी निकल गया दुम रह गई – थोड़ा – सा शेष रह जाना – तुमने छः महीनों में से पाँच महीने तो दवा खा ली है, अब क्यों घबराते हो। हाथी तो निकल गया अब केवल दुम ही रह गई।