HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार एक परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
माँग वक्र का आकार क्या होगा ताकि कुल संप्राप्ति वक्र (a) a मूल बिंदु से होकर गुजरती हुई धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो। (b) a समस्तरीय रेखा हो।
उत्तर:
(a) माँग वक्र एक सीधी, सरल, समस्तरीय व x-अक्ष के समानांतर रेखा होगा जब कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र मूल बिंदु से गुजरता हुआ धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (i) द्वारा दिखा सकते हैं।

(b) माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाला वक्र होगा जब कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र समस्तरीय रेखा हो। इसे हम निम्नांकित रेखाचित्र (ii) द्वारा दिखा सकते हैं।
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प्रश्न 2.
नीचे दी गई सारणी से कुल संप्राप्ति माँग वक्र और माँग की कीमत-लोच की गणना कीजिए

मात्रा12345678910
सीमांत संप्राप्ति (आगम)1062222000-5

हल:

मात्रासीमांत संप्राप्ति (आगम)कुल संप्राप्ति
(रुपए)
औसत संप्राप्ति (रुपए)माँग की कीमत-ल्लोच
1101010
261684
321861.5
422051.67
52224.41.83
60223.671
70223.141
80222.751
9-5171.890.27

प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) कुल संप्राप्ति = सीमांत संप्राप्ति, + सीमांत संप्राप्ति, +…… + सीमांत संप्राप्तिn
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प्रश्न 3.
जब माँग वक्र लोचदार हो तो सीमांत संप्राप्ति का मूल्य क्या होगा?
उत्तर:
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जब माँग वक्र लोचदार हो तो इस वक्र के प्रत्येक बिंदु पर सीमांत संप्राप्ति (आगम) धनात्मक होगी, लेकिन औसत संप्राप्ति से कम (\(\frac { e-1 }{ e }\))
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

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प्रश्न 4.
एक एकाधिकारी फर्म की कुल स्थिर लागत 100 रुपए और निम्नलिखित माँग सारणी है

मात्रा12345678910
कीमत100907060504030302010

अल्पकाल में संतुलन मात्रा, कीमत और कुल लाभ प्राप्त कीजिए। दीर्घकाल में संतुलन क्या होगा? जब कुल लागत 1000 रु० हो, तो अल्पकाल और दीर्घकाल में संतुलन का वर्णन करें।

मात्राकीमतकुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिकुल लागतलाभ
11001001000
2901808010080
38024060100140
47028040100180
56030020100200
6503000100200
740280– 20100180
830240– 40100140
920180– 6010080
1010100– 801000

उपर्युक्त तालिका के अनुसार एक एकाधिकारी फर्म का संतुलन 6 मात्रा पर होगा क्योंकि यहाँ पर TR और TC का अंतर अधिकतम है।
यहाँ संतुलन कीमत = 50 रु०
लाभ = 300 – 100 = 200 रु०

प्रश्न 5.
यदि अभ्यास प्रश्न 4 की एकाधिकारी फर्म सार्वजनिक क्षेत्र की फर्म हो, तो सरकार इसके प्रबंधक के लिए दी हुई सरकारी स्थिर कीमत (अर्थात् वह कीमत स्वीकारकर्ता है और इसलिए पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाज़ार के फर्म जैसा व्यवहार करता है) स्वीकार करने के लिए नियम बनाएगी और सरकार यह निर्धारित करेगी कि ऐसी कीमत निर्धारित हो, जिससे बाज़ार में माँग
और पूर्ति समान हो। उस स्थिति में संतुलन कीमत, मात्रा और लाभ क्या होंगे?
उत्तर:
यदि सरकार सरकारी स्थिर कीमत स्वीकार करने के लिए नियम बनाती है और ऐसी कीमत निर्धारित करती है जिससे बाज़ार में माँग और पूर्ति समान हो तो उस स्थिति में निम्नलिखित तथ्य होंगे
संतुलन कीमत = 10 रु०
संतुलन मात्रा = 10
लाभ = शून्य;
क्योंकि कुल संप्राप्ति = कुल लागत।

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प्रश्न 6.
उस स्थिति में सीमांत संप्राप्ति वक्र के आकार पर टिप्पणी कीजिए, जिसमें कुल संप्राप्ति वक्र (i) धनात्मक प्रवणता (ढलान) वाली सरल रेखा हो, (ii) समस्तरीय सरल रेखा हो।
उत्तर:
(i) जब कुल संप्राप्ति वक्र धनात्मक प्रवणता (ढाल) वाली सरल रेखा है तो सीमांत संप्राप्ति वक्र एक समस्तरीय सरल रेखा होगी। जैसाकि रेखाचित्र (i) में दर्शाया गया है।

(ii) जब कुल संप्राप्ति वक्र समस्तरीय सरल रेखा है तो सीमांत संप्राप्ति वक्र ऋणात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा होगी। जैसाकि रेखाचित्र (ii) में दर्शाया गया है।
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प्रश्न 7.
नीचे दी गई सारणी में वस्तु की बाज़ार माँग वक्र और वस्तु उत्पादक एकाधिकारी फर्म के लिए कुल लागत दी हुई है। इनका उपयोग करके निम्नलिखित की गणना करें-

मात्राकीमतमात्राकुल लागत
052010
144160
237290
3313100
4264102
5225105
6196109
7167115
8138125

(a) सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत सारणी।
(b) वह मात्रा जिस पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर है।
(c) निर्गत (उत्पादन) की संतुलन मात्रा और वस्तु की संतुलन कीमत।
(d) संतुलन में कुल संप्राप्ति, कुल लागत और कुल लाभ।
हल-
(a) लागत और संप्राप्ति सारणी

मात्राकीमत
(रुपए)
कुल संप्राप्ति (रुपए)सीमांत संप्राप्ति (रुपए)कुल लागत (रुपए)सीमात लागत (रुपए)लाभ
052001000
14444446050-16
23774309040-16
331931910010-7
4261041110282
522110610535
619114410945
716112-21156-3
813104-812510-21

(b) 6 इकाइयों पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर होगी।
(c) उत्पादन वस्तु की संतुलन मात्रा 6 इकाइयाँ हैं और वस्तु की संतुलन कीमत 19 रु० है।
(d) संतुलन में कुल संप्राप्ति (आगम) = 114 रुपए
संतुलन में कुल लागत = 109 रु०
संतुलन में कुल लाभ = 114-109 = 5 रुपए

प्रयोग किए गए सूत्र-
(a) कुल संप्राप्ति = मात्रा कीमत
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(d) लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत

प्रश्न 8.
निर्गत के उत्तम अल्पकाल में यदि घाटा हो रहा हो तो क्या अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म उत्पादन जारी रखेगी?
उत्तर:
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अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म (Monopoly Firm) को उस समय हानि उठानी पड़ती है जब उसकी औसत संप्राप्ति (आगम) (AR) उसकी औसत लागत (AC) से कम होती है। एकाधिकारी फमैं उस समय तक उत्पादन करती रहेगी जब तक, कि उसकी औसत परिवर्ती (AVC) लागत पूरी हो रही है। यदि उसकी औसत परिवर्ती लागत पूरी नहीं होती है तो वह उत्पादन बंद कर देगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

रेखाचित्र में एकाधिकारी फर्म का संतुलन बिंदु E है जहाँ MC = MR है तथा MC वक्र MR को नीचे से काट रही है। E बिंदु पर संतुलन कीमत OP है जो औसत लागत OT से कम है जिसके कारण फर्म को PTCR की हानि उठानी पड़ती हैं। यदि एकाधिकारी फर्म उत्पादन बंद कर देती है तो उसे प्रति इकाई CV हानि उठानी पड़ेगी। इस प्रकार फर्म उत्पादन करके RV प्रति इकाई हानि को बचा रही है।

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प्रश्न 9.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में एक फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक होती है क्योंकि प्रत्येक फर्म को अधिक वस्तु बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। माँग वक्र की ऋणात्मक प्रवणता कीमत और माँग के विपरीत संबंध को ही दर्शाती है।

प्रश्न 10.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने का क्या कारण है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होगा अर्थात् सामान्य लाभ पर होगा। इसका कारण यह है कि एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्मों को बाजार में प्रवेश करने तथा बाजार से बहिर्गमन करने की स्वतंत्रता होती है। यदि अल्पकाल में फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त हो रहा है तो दीर्घकाल में नई फर्मे बाज़ार में प्रवेश कर जाएँगी, जिससे वर्तमान फर्मों का असामान्य लाभ समाप्त हो जाएगा और उन्हें केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा। यदि अल्पकाल में फर्मों को हानि हो रही है तो दीर्घकाल में कुछ वर्तमान फर्मे बाज़ार से बहिर्गमन कर जाएँगी, जिससे उत्पादन कम होगा, कीमत बढ़ेगी और हानि समाप्त हो जाएगी अर्थात् फर्मों को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा।

प्रश्न 11.
तीन विभिन्न विधियों की सची बनाइए, जिसमें अल्पाधिकारी फर्म व्यवहार कर सकती है।
उत्तर:
एक अल्पाधिकारी फर्म निम्नलिखित विधियों में व्यवहार कर सकती है-
(i) अल्पाधिकारी फर्मे आपस में साठ-गाँठ कर यह निर्णय ले सकती हैं कि वे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगी। इस प्रकार वे फर्मे बाज़ार का उचित बँटवारा कर लेंगी और प्रत्येक फर्म अपने-अपने बाज़ार में एकाधिकारी फर्म की तरह व्यवहार करेंगी।

(ii) अल्पाधिकारी फर्मे यह निर्णय ले सकती हैं कि लाभ को अधिकतम करने के लिए वे उस वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन करें। इस प्रकार उनकी वस्तु की मात्रा की पूर्ति को अन्य फर्मे प्रभावित नहीं करेंगी।

(iii) अल्पाधिकारी फर्मे वस्तु अनम्य कीमत/कीमत स्थिरता (Price-Rigidity) की नीति अपना सकती हैं। इस नीति के अंतर्गत माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप कीमत में परिवर्तन नहीं होगा।

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प्रश्न 12.
यदि द्वि-अधिकारी का व्यवहार कुर्नोट के द्वारा वर्णित व्यवहार के जैसा हो, तो बाज़ार माँग वक्र को समीकरण q=200-4p द्वारा दर्शाया जाता है तथा दोनों फर्मों की लागत शून्य होती है। प्रत्येक फर्म के द्वारा संतुलन कीमत और संतुलन बाज़ार कीमत में उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
हल:
बाज़ार माँग वक्र समीकरण
q = 200 – 4p
200 – 4p = 0
4p = 200
संतुलन कीमत (p) = \(\frac { 200 }{ 4 }\) = 50 रु०
संतुलन मात्रा (q) = \(\frac { 200 }{ 4 }\) = 4
फर्मों की संख्या = 2
प्रत्येक फर्म द्वारा पूर्ति की मात्रा = \(\frac { 4 }{ 2 }\) = 2 उत्तर

प्रश्न 13.
आय अनम्य कीमत का क्या अभिप्राय है? अल्पाधिकार के व्यवहार से इस प्रकार का निष्कर्ष कैसे निकल सकता है?
उत्तर:
आय अनम्य कीमत का अभिप्राय यह है कि अल्पाधिकार बाज़ार में फर्मे वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं करेंगी। अनम्य कीमत नीति के अंतर्गत अल्पाधिकारी फर्मों का माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप बाज़ार कीमत में निर्बाध संचलन नहीं होता। इसका कारण यह है कि किसी भी फर्म द्वारा प्रारंभ की गई कीमत में परिवर्तन के प्रति अल्पाधिकारी फर्म प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। यदि एक फर्म अपने लाभ में वृद्धि करने के लिए वस्तु की कीमत में वृद्धि करती है और अन्य फर्मे ऐसा नहीं करती तो उस फर्म की बिक्री कम हो जाएगी और अंततः उसका लाभ भी कम हो जाएगा। इसलिए किसी फर्म के लिए कीमत में वृद्धि करना उचित नहीं होगा। दूसरी ओर, यदि एक फर्म वस्तु की कम कीमत पर बिक्री में वृद्धि करती है तो अन्य फर्मे भी अपनी कीमत कम कर देंगी। इससे सभी फर्मों की कीमतें कम हो जाएँगी और कीमत में कमी का लाभ सभी फर्मों को मिलेगा। अतः कीमत में कमी करना किसी के हित में नहीं है। इसलिए अल्पाधिकारी फर्मों का हित अनभ्य कीमत में होता है।

प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार HBSE 12th Class Economics Notes

→ बाज़ार-अर्थशास्त्र में बाज़ार से अभिप्राय किसी विशेष स्थान से नहीं बल्कि एक वस्तु के बाज़ार से होता है; जैसे कपड़े का बाज़ार, चाय का बाज़ार, चीनी का बाज़ार आदि।

→ बाजार के मख्य रूप-

  • पर्ण प्रतिस्पर्धा
  • एकाधिकार
  • एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा

→ एकाधिकार-जिस बाज़ार संरचना में किसी वस्तु का केवल एक ही विक्रेता हो, वस्तु का कोई स्थानापन्न नहीं हो तथा उद्योग में अन्य फर्मों का प्रवेश वर्जित हो तो उस वस्तु बाज़ार की संरचना एकाधिकार कहलाता है।

→ एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा यह वह बाज़ार संरचना है, जिसमें विक्रेताओं की संख्या तो बहुत होती है लेकिन उनके द्वारा बेचे जाने वाली वस्तु सजातीय नहीं होता।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

→ औसत संप्राप्ति (आगम) वक्र वस्तु की बाज़ार कीमत एकाधिकार फर्म की पूर्ति की मात्रा पर निर्भर करती है। एकाधिकार फर्म के लिए बाज़ार माँग वक्र ही औसत संप्राप्ति वक्र कहलाती है।

→ कुल संप्राप्ति (आगम) वक्र कुल संप्राप्ति वक्र का आकार औसत आगम वक्र के आकार पर निर्भर करता है। ऋणात्मक प्रवणता वाली सरल रेखीय माँग वक्र की स्थिति में कुल संप्राप्ति वक्र प्रतिलोमित उर्ध्वाधर परवलय के रूप में होता है।

→ किसी भी मात्रा स्तर के लिए औसत संप्राप्ति की माप कुल संप्राप्ति वक्र पर उद्गम से संबद्ध बिंदु की ओर जाती हुई – रेखा की प्रवणता से की जाती है।

→ किसी भी मात्रा स्तर के लिए सीमांत संप्राप्ति की माप कुल संप्राप्ति वक्र पर स्थित संबद्ध बिंदु की स्पर्शज्या (Tangent) की प्रवणता से की जाती है।

→ ऋणात्मक प्रवणता वाला माँग वक्र अति प्रवण होता है और यह सीमांत आगम वक्र के नीचे होता है। माँग वक्र तब लोचदार होता है, जब सीमांत आगम का मूल्य धनात्मक होता है और यह तब लोचहीन होता है जब सीमांत आगम का मूल्य ऋणात्मक होता है।

→ यदि एकाधिकारी फर्म की लागत शून्य हो अथवा केवल स्थिर लागत हो तो संतुलन से पूर्ति की मात्रा को उस बिंदु द्वार दर्शाया जाता है, जिस पर सीमांत आगम शून्य होती है। इसके विपरीत पूर्ण प्रतिस्पर्धा में संतुलन की मात्रा उस बिंदु द्वारा दर्शाया जाता है, जिस पर औसत आगम शून्य होता है।

→ एकाधिकार के संतुलन को उस बिंदु से परिभाषित किया जाता है जिस पर सीमांत संप्राप्ति (आगम) = सीमांत लागत और सीमांत लागत वृद्धि की स्थिति में होती है। यह बिंदु उत्पादन की संतुलन मात्रा को बताती है। दी हुई संतुलन मात्रा से माँग वक्र के द्वारा संतुलन कीमत को दर्शाया जाता है।

→ वस्तु बाज़ार में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा असजातीय वस्तु के कारण उत्पन्न होती है।

→ एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा की अवस्था में AR वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है। यह इसलिए क्योंकि एकाधिकार या एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में वस्तु की अधिक मात्रा केवल कीमत को कम करके ही बेची जा सकती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि वस्तु की कीमत तथा फर्म के उत्पादन के लिए माँग के बीच विपरीत संबंध है। इसीलिए फर्म के माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है।

→ एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में AR के कम होने की प्रवृत्ति होती है। जब AR गिरता है तो MR उससे अधिक तेजी से गिरता है अर्थात् AR > MR। गिरते हुए MR से अभिप्राय है कि TR घटती दर पर बढ़ता है।

→ एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अल्पकालीन संतुलन के परिणामस्वरूप पूर्ण प्रतिस्पर्धा की तुलना में उत्पादन की मात्रा कम होती है और कीमत अधिक होती है। यह स्थिति दीर्घकाल में भी यथावत रहती है, लेकिन दीर्घकाल में लाभ शून्य होता है।

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