HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Practical Work in Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी Textbook Exercise  Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए-
(i) स्थानिक आंकड़ों के लक्षण निम्नांकित स्वरूप में दिखाई देते हैं-
(क) अवस्थितिक
(ग) क्षेत्रीय
(ख) रैखिक
(घ) उपर्युक्त सभी स्वरूपों में
उत्तर:
(ग) क्षेत्रीय।

(ii) विश्लेषक मॉड्यूल सॉफ्टवेयर के लिए कौन-सा एक
प्रचालन आवश्यक है?
(क) आंकड़ा संग्रहण
(ग) आंकड़ा निष्कर्षण
(ख) आंकड़ा प्रदर्शन
(घ) बफरिंग।
उत्तर:
(ख) आंकड़ा प्रदर्शन।

(iii) चित्ररेखापुंज ( रैस्टर) आंकड़ा फॉरमेट का एक अवगुण क्या है?
(क) सरल आंकड़ा संरचना
(ख) सहज एवं कुशल उपरिशायी
(ग) सुदूर संवेदन प्रतिबिंब के लिए सक्षम
(घ) कठिन परिपथ चाल विश्लेषण।
उत्तर:
(घ) कठिन परिपथ चाल विश्लेषण।

(iv) संदिश ( वेक्टर) आंकड़ा फॉरमेट का एक गुण क्या है?
(क) समिश्र आंकड़ा संरचना
(ख) कठिन उपरिशायी प्रचालन
(ग) सुदूर संवेदन आंकड़ों के साथ कठिन सुसंगतता
(घ) सघन आंकड़ा संरचना |
उत्तर:
(क) समिश्र आंकड़ा संरचना।

(v) भौगोलिक सूचना तंत्र कीट में उपयोग कर नगरीय परिवर्तन की पहचान कुशलतापूर्वक की जाती है-
(क) उपरिशायी प्रचालन
(ख) सामीप्य विश्लेषण
(ग) परिपथ जाल विश्लेषण
(घ) बफरिंग।
उत्तर:
(घ) बफरिंग।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) चित्ररेखापुंज एवं सदिश ( वेक्टर) आंकड़ा मॉडल के मध्य अंतर-
उत्तर:
चित्ररेखापुंज आंकड़ा मॉडल: चित्ररेखापुंज आंकड़े वर्गों के जाल के प्रारूप में आंकड़ों का ग्राफी प्रदर्शन करते हैं। एक चित्र लेखापुंज फाइल एक प्रतिबिंब का प्रदर्शन कागज की उपविभाजित कर छोटी आयतों के आथूह जिन्हें सेल कहते हैं के रूप में करेगी, एक ग्राफ पेपर की शीट की तरह आंकड़ा फाइल में प्रत्येक सेल के स्थान के रूप में बिल्कुल एक ग्राफ पेपर की सीट की तरह आंकड़ा फाइल में हर एक सेल का एक स्थान दिया जाता है।

सदिश आंकड़ा मॉडल: सदिश आंकड़े वस्तु का प्रदर्शन विशिष्ट बिंदुओं के बीच खींची गई रेखाओं के समुच्चय के रूप में करते हैं। हर एक बिंदु की अभिव्यक्ति दो तथा तीन संख्याओं के रूप में होती है। एक सदिश आंकड़ा मॉडल अपने यथार्थ निर्देशांकों द्वारा भंडारित बिंदुओं का प्रयोग करता है।

(ii) उपरिशायी विश्लेषण क्या है?
उत्तर:
उपरिशायी विश्लेषण GIS का हॉलमार्क है। इसका प्रयोग करके मानचित्रों के बहुगुणी स्तरों का समन्वय एक महत्त्वपूर्ण विश्लेषण क्रिया है। अन्य शब्दों में भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) उसी क्षेत्र के मानचित्रों के दो तथा अधिक विषयक स्तरों का अधिचित्रण करके नया मानचित्र स्तर प्राप्त करने को संभव बनाता है। इसके द्वारा प्रकाशीय पेज पर मानचित्रों के अनुरेखाणों का अधिचित्रण किया जाता है।

(iii) भौगोलिक सूचना तंत्र में हस्तचलित विधि के गुण क्या हैं?
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र में हस्तचलित विधि के गुण इस प्रकार हैं-

  1. भौगोलिक सूचना तंत्र की सहायता से संचित भौगोलिक आँकड़ों, आवश्यकता के अनुरूप बने मानचित्रों एवं चयनित आँकड़ा आधार प्राप्त करने की सुविधा मिल जाती है।
  2. मानचित्रीय सूचना एक विशेष ढंग से प्रक्रमित और प्रदर्शित की गई होती है।
  3. एक मानचित्र एक तथा एक से अधिक पूर्व निर्धारित विषय वस्तुओं को दर्शाता है।
  4. स्थानिक प्रचालकों का समन्वित सूचनाधार पर अनुप्रयोग करके सूचनाओं के नए समुच्चय उत्पन्न किए जा सकते हैं।
  5. विशेष आंकड़ों के विभिन्न आइटम एक-दूसरे के साथ अंश अवस्थिति कोड की सहायता से जोड़े जा सकते हैं।

(iv) भौगोलिक सूचना तंत्र के महत्त्वपूर्ण घटक क्या हैं? उत्तर-भौगोलिक सूचना तंत्र के महत्त्वपूर्ण घटक हैं-

  1. हार्डवेयर,
  2. सॉफ्टवेयर
  3. आंकड़े,
  4. लोग,
  5. प्रक्रिया।

(v) भौगोलिक सूचना तंत्र के कोर में स्थानिक सूचना बनाने की विधि क्या है?
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र के कोर में स्थानिक सूचना तंत्र बनाने की विधि इस प्रकार हैं-

  1. स्थानिक आंकड़ा निवेश
  2. गुण न्यास की प्रविष्टि
  3. आंकड़ों का सत्यापन और संपादन
  4. स्थानिक और गुण न्यास आंकड़ों की सहलग्नता
  5. स्थानिक विश्लेषण।

(vi) स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
उत्तर:
स्थानिक शब्द अंतरिक्ष से उत्पन्न हुआ है। इसका अर्थ भौगोलिक रूप से परिभाषित क्षेत्र जिसके भौतिक रूप से नाप योग्य आयास हैं पर लक्षणों और परिघटनाओं के वितरण से है। अधिकांश आँकड़े जिनका आज हम उपयोग करते हैं, वह स्थानिक घटक होते हैं, जैसे कि किसी नगरपालिका का पता तथा कृषि जोत की सीमाएँ इत्यादि। इस प्रकार स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी का संबंध स्थानिक सूचना के संग्रहण, भंडारण, प्रदर्शन, हेरफेर, प्रबंधन और विश्लेषण में प्रौद्योगिक निवेश के प्रयोग से होता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए-
(i) चित्ररेखापुंज ( रैस्टर) एवं सदिश ( वेक्टर) आंकड़ा फॉरमेट को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
चित्ररेखापुंज (रैस्टर) आंकड़े वर्गों के जाल के रूप में आंकड़ों का ग्राफी प्रदर्शन करते हैं जबकि सदिश ( वेक्टर) आंकड़े वस्तु का प्रदर्शन विशिष्ट बिंदुओं के बीच खींची गई रेखाओं के समुच्चय के रूप में किया जाता है। कागज के एक पुर्जे पर तिरछी खींची हुई एक रेखा पर ध्यान दीजिए।

एक चित्रलेखापुंज फाइल इस प्रतिबिंब का प्रदर्शन कागज की उपविभाजित करकर छोटी आयतों के आधूह जिन्हें सेल कहते हैं के स्वरूप में करेगी, जैसे ही एक ग्राफ पेपर की सीट की तरह आंकड़ा फाइल में हर एक सेल को एक स्थान दिया जाएगा। इसी प्रकार एक ग्राफ पेपर की शीट की तरह आंकड़ा फाइल में हर एक सेल का एक स्थान होता है तो उस स्थान के गुणों के आधार पर मूल्य पाती हैं इसकी पंक्तियों तथा स्तंभों के निर्देशांक किसी भी व्यक्तिगत पिक्सेल की पहचान करते हैं।
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सदिश आंकड़ा फॉमेटः तिरछी रेख का सदिश प्रदर्शन सिर्फ निर्देशकों के आरंभिक एवं अंतिम बिंदुओं की दर्ज कर रेखा की स्थिति की दर्ज करके होगा। हर एक बिंदु की अभिव्यक्ति दो तथा तीन संख्याओं के रूप में होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्रदर्शन 2D तथा 3D, जिसे X, Y तथा X, YZ निर्देशांकों द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
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(ii) भौगोलिक सूचना तंत्र से संबंधित कार्यों को क्रमबद्ध रूप में किस प्रकार किया जाता है एक व्याख्यात्मक लेख प्रस्तुत
कीजिए।
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र से संबंधित कार्यों को इस प्रकार क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करते हैं-
(1) स्थानिक आंकड़ा निवेश-
इन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में संक्षेपित किया जा सकता है-
(a) आंकड़ा आपूर्तिदाता से आंकिक आंकड़ा समुच्चय का प्रगहण वर्तमान में आंकड़ा आपूर्तिदाता आंकिक आंकड़ों को तैयार रूप में उपलब्ध कराते हैं, जो लघु-मापनी मानचित्रों से लेकर बृहत् मापनी प्लान करती है।

(b) क्रियात्मक स्तर पर यह निश्चित करने के लिए कि आंकड़े अपने अनुप्रयोग के साथ संगत हैं, प्रयोक्ता की उनकी निम्नलिखित विशेषताओं का ध्यान रखिए।

  • आंकड़ों की मापनी
  • प्रयोग में लाई गई भौगोलिक संदर्भ प्रणाली
  • प्रयोग में लाई गई आंकड़े संग्रहण की तकनीकें और निर्देशन सामरिकी
  • आंकड़ा निवेश की हस्तेन विधियाँ इस बात पर निर्भर करती हैं। कि क्या सूचनाधार की संस्थिति सदिश हैं।

(2) गुणन्यास की प्रविष्टि यह मूल न्यास स्थानिक सत्ता की विशेषताओं जिनका निपटान भौगोलिक सूचना का वर्णन करता है। प्रकाशित रिकार्डों, सरकारी जनगणनाओं इत्यादि से उपर्जित गुणन्यास को GIS सूचनाधार में या तो हस्तेन अथवा मानक स्थानांतरण फॉर्मेट का प्रयोग करते हुए आंकड़ों का आयात करके निवेश किया जाता है।

(3) आंकड़ों का सत्यापन तथा संपादन आंकड़ों की शुद्धता को सुनिश्चित करने हेतु त्रुटियों की पहचान और संशोधन के लिए भौगोलिक सूचना तंत्र में प्रग्रहित आंकड़ों की सत्यापन की आवश्यकता होती है।

(4) स्थानिक विश्लेषण भौगोलिक सूचना तंत्र की प्रबलता उसकी विश्लेषणात्मक सामर्थ्य में निहित हैं जो चीज भौगोलिक सूचना तंत्र को अन्य सूचना तंत्रों से अलग करती है वह हैं उसकी स्थानिक विश्लेषण की क्रियाएँ।

अतिरिक्त प्रश्न (Other Questions)

प्रश्न 1.
संगणक से क्या अभिप्राय है? इसकी क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
आधुनिक युग संगणक (Computer) का युग है। Computer शब्द अंग्रेज़ी भाषा के शब्द Compute से लिया गया है। जिसका अर्थ गणना है। अतः संगणक एक वैद्युत् यंत्रीय युक्ति (Electronic Device) है जो सूचनाओं की बड़ी तीव्रता एवं शुद्धता के साथ गणना करता है। संगणक द्वारा अरबों गणनाएं संपन्न की जा सकती हैं। यह अंकगणितीय संक्रियाएं (जैसे-जोड़ना, घटाना, गुणा तथा भाग करना) करने की क्षमता रखता है। एक संगणक सूचनाओं को वहन करने के लिए विद्युत् का उपयोग करता है।

संगणक की विशेषताएं-

  1. गति (Speed)-कंप्यूटर तीव्र गति से कार्य करने की क्षमता रखता है।
  2. संग्रहण क्षमता (Storage Capacity ) कंप्यूटर की संग्रहण क्षमता बहुत अधिक है। डिस्क तथा टेप के प्रयोग से बड़ी मात्रा में आँकड़ों का भंडारण किया जा सकता है।
  3. शुद्धता (Accuracy)- कंप्यूटर अपनी शुद्धता के कारण बहुत महत्त्वपूर्ण है। कोई अशुद्धि आने पर भी कंप्यूटर ग़लती को सुधारने का कार्य करेगा।
  4. कार्यों की विविधता (Variety of Jobs)-कंप्यूटर कई प्रकार के कार्य करने में सक्षम है, जैसे आँकड़ों का संग्रहण, पुनः प्राप्ति, विभिन्न डिज़ाइन बनाना, खेल आदि कार्य किए जा सकते हैं।
  5. स्वचालन (Automation )-कंप्यूटर अधिकतर कार्य स्वचालित रूप से करता है। कंप्यूटर विभिन्न कार्य विस्तारपूर्वक कर सकता है।

प्रश्न 2.
संगणक के दो आधारभूत अंग बताओ। यंत्र सामग्री की विभिन्न इकाइयों का वर्णन करो।
उत्तर:
संगणक प्रणाली के भाग (Parts of Computer System)
एक संगणक प्रणाली के दो आधारभूत अंग होते हैं-
1. यंत्र सामग्री (हार्डवेयर) (Hardware)
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2. प्रक्रिया सामग्री ( सॉफ्टवेयर) (Software)
1. यंत्र सामग्री (हार्डवेयर) (Hardware)-
यह संगणक प्रणाली का भौतिक भाग है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक, चुंबकीय तथा यांत्रिक उपकरण लगे होते हैं। एक संगणक प्रणाली में निम्नलिखित मुख्य हार्डवेयर इकाइयां होती हैं-
(1) केंद्रीय प्रक्रम इकाई (सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट-सी० पी० यू० ) ( Central Processing Unit-CPU) यह किसी डिजिटल (आंकिक ) कंप्यूटर प्रणाली (Digital System) का तंत्रिका केंद्र (Nerve Centre) होता है। यह सभी अन्य इकाइयों की क्रियाओं का समन्वय एवं नियंत्रण करता है तथा प्रयोग किये जाने वाले आँकड़ों के लिए सभी अंकगणितीय एवं तार्किक प्रक्रमों को संपादित करता है। सी०पी०यू० में तीन पृथक् हार्डवेयर खंड होते हैं-

  • आंतरिक स्मृति (मेमोरी) (Internal Memory),
  • अंकगणितीय इकाई (Arithmetic Unit),
  • एक नियंत्रक खंड ( चिप ) ( Chip) (A Control Section)

एक पतली सिल्किन की पत्ती, जो समन्वित वैद्युत् परिपथ के वृहत् जाल को धारण करती है) संगणक को निर्मित करने वाला ब्लाक होता है तथा विभिन्न कार्यों का संपादन करता है, जैसे- गणितीय संक्रिया करना, संगणक की स्मृति (मेमोरी) के रूप में सहयोग करना या दूसरे चिपों पर नियंत्रण करना।

(2) दृश्य-प्रदर्शक इकाई (विजुअल डिसप्ले यूनिट वी० डी० यू० या टर्मिनल) (Visual Display Unit (VDU) or Terminal)-टेलीविजन की भाँति दृश्य इकाई में एक केथोड-
रे ट्यूब (छोटा पर्दा) लगा होता है जिस पर आँकड़ों को प्रदर्शित करने वाले रेखाचित्रों या विशेषताओं को संगणक की मुख्य स्मृति से पढ़कर प्रदर्शित किया जाता है।

3. निवेश एवं निर्गत उपकरण (Input and Output Devices)- निवेश उपकरण, जैसे ‘की बोर्ड’ (कुंजी-पटल) (Key Board) का प्रयोग आँकड़ों तथा कार्यक्रमों (प्रोग्रामों) को संगणक- स्मृति (मेमोरी) में भरने के लिए किया जाता है। इसी प्रकार चूंकि एक कंप्यूटर के भीतर सभी आँकड़ों कार्यक्रमों को कोड ( कूट) स्वरूप में वैद्युत्-धारा के रूप में संचित किया जाता है, निर्गत- उपकरणों जैसे प्रिंटर, प्लाटर आदि का प्रयोग इन आँकड़ों को सूचनाओं के रूप में (जैसे–विशेषताएं, ड्राइंग या ग्राफिक) बदलने के लिए किया जाता है जिनका मानव द्वारा उपयोग किया जा सके।

4. संग्रहक उपकरण (Storage Device )-एक कंप्यूटर में कई संग्राहक इकाइयाँ जैसे हार्डडिस्क, फ्लापी, टेप, मैगनेटों, आप्टिकल डिस्क, कांपेक्ट डिस्क (सीडी), कार्टिज आदि लगे होते हैं जिनका प्रयोग आँकड़ों तथा कार्यक्रम निर्देशों को संचित करने के लिए होता है। इन युक्तियों की आँकड़ा संग्रहण करने की क्षमता मेगाबाइट (MB) से जीगावाइट (GB) तक होती है।

प्रश्न 3.
संगणक के उपयोग के प्रमुख लाभ क्या हैं?
उत्तर:

  1. संगणक एक वैदयुत् यंत्रीय युक्ति है, जो सूचनाओं की बड़ी तीव्रता एवं शुद्धता के साथ गणना करता है।
  2. अत्यधिक शक्तिशाली संगणकों द्वारा कुछ पलों में, अरबों | गणनाएँ अथवा अंकगणितीय संक्रियाएँ संपन्न की जा सकती हैं।
  3. यह उपकरण समस्याओं के समाधान अथवा आँकड़ों की गणना प्रत्यक्ष प्राप्त कर अंकगणितीय संक्रियाएँ करके (गणितीय निर्देशों का प्रयोग करके जैसे जोड़ना, घटाना, गुणा तथा भाग करना) इन संक्रियाओं के परिणामों की आपूर्ति करने की क्षमता रखता है।
  4. सामान्यतः संगणक विभिन्न संख्याओं, शब्दों, स्थिर बों चलचित्रों एवं ध्वनियों (आवाज़ों) की प्रक्रियायें संपन्न कर सकता है।
  5. एक संगणक सूचनाओं को वहन करने के लिए विदमुत् का उपयोग करता है।
  6. अंक विहीन सूचनाओं जैसे शब्दों, चित्रों या ध्वनियों को एक संगणक में प्रयोग के योग्य बनाने के लिए सूचनाओं का आंकिक परिवर्तन आवश्यक है।

प्रश्न 4.
संगणक के उपयोग की क्या सीमाएं हैं?
उत्तर:
हमारे लिए यहाँ यह समझना आवश्यक है कि संगणक क्या नहीं कर सकता?

  1. एक संगणक हमारे लिए सोचने का कार्य नहीं कर सकता।
  2. संगणक मात्र हमारे द्वारा भरी गई सूचना पर आधारित निश्चित तार्किक चरणों का ही अनुसरण करता है।
  3. एक संगणक सिर्फ वही कार्य करता है जो उससे या तो निर्देशों के एक समूह (प्रोग्राम) द्वारा अथवा एक मानव संचालक द्वारा करवाया जाता है।

प्रश्न 5.
संगणक के मुख्य अंग बताओ।
उत्तर:
एक संगणक प्रणाली के दो आधारभूत अंग होते हैं-

  1. यंत्र सामग्री (हार्डवेयर)
  2. प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर)

यंत्र सामग्री (हार्डवेयर)-
यह संगणक प्रणाली का भौतिक भाग है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक, चुंबकीय तथा यांत्रिक उपकरण लगे होते हैं। एक संगणक प्रभाव में निम्नलिखित मुख्य हार्डवेयर इकाइयाँ होती हैं-

  1. केंद्रीय प्रक्रम इकाई (CPU)
  2. दृश्य प्रदर्शक इकाई (VDU)
  3. निवेश एवम् निर्गत उपकरण
  4. संग्रहक उपकरण।

प्रश्न 6.
केंद्रीय प्रक्रम इकाई (CPU) पर नोट लिखो।
[T.B.Q. 1 (3)]
उत्तर:
केंद्रीय प्रक्रम इकाई (सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट-सी० पी० यू० )-यह किसी आंकिक (डिजिटल) संगणक प्रणाली का तंत्रिका केंद्र होता है। यह सभी अन्य इकाइयों की क्रियाओं का समन्वय एवं नियंत्रण करता है तथा प्रयोग किये जाने वाले आँकड़ों के लिए सभी अंकगणितीय एवं तार्किक प्रक्रमों को संपादित करता है। सी०पी०यू० में तीन पृथक हार्डवेयर खंड होते हैं-

  1. अतिरिक स्मृति (मेमोरी),
  2. अंकगणितीय इकाई एवं
  3. एक नियंत्रक खंड (चिप एक पतली सिल्किन की पत्ती, जो समन्वित वैद्युत परिपथ के वृहत् जाल को धारण करती है।)

संगणक को निर्मित करने वाला ब्लॉक होता है तथा विभिन्न कार्यों का संपादन करता है, जैसे- गणितीय संक्रिया करना, संगणक की स्मृति (मेमोरी) के रूप में सहयोग करना या दूसरे चियों पर नियंत्रण करना।

प्रश्न 7.
संगणक में कौन-कौन सी संग्रह युक्तियां होती हैं?
उत्तर:
संग्रहक उपकरण-एक संगणक में कई संग्राहक इकाइयाँ जैसे हार्ड डिस्क, फ्लापी, टेप, मैगनेटोआप्टिकल डिस्क, कांपेक्ट डिस्क (सीडी), कार्टिज आदि लगे होते हैं जिनका प्रयोग आँकड़ों तथा कार्यक्रम निर्देशों को संचित करने के लिए होता है। इन युक्तियों की आँकड़ा संग्रहण करने की क्षमता मेगाबाइट (MB) से गीगाबाइट (GB) तक होती है।

प्रश्न 8.
अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री (Application Software) पर नोट लिखो।
उत्तर:
अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री (एप्लीकेशन
सॉफ्टवेयर)-

अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री के भी दो प्रकार होते हैं-
(1) प्रथम प्रकार का अनुप्रयोग सॉफ्टवेटर आँकड़ा आधार या आँकड़ा संचय (डेटाबेस) प्रबंधन, लेखाचित्रों (ग्राफिक्स) तथा शब्दों के प्रक्रम से संबद्ध होता है जिसमें अधिकांश व्यावसायिक संस्थानों तथा व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त कार्यों का बृहत् समूहन होता है।

(2) द्वितीय प्रकार का अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री विशिष्ट, पेशेवर अथवा तकनीकी अनुप्रयोगों द्वारा विशिष्ट कार्यों हेतु प्रयोग करने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया प्रक्रिया सामग्री होती है। उदाहरण के लिए, चिकित्सकों, दंत रोग विशेषज्ञों, वास्तु शिल्पियों तथा अभियंताओं द्वारा विशिष्ट कार्यों हेतु प्रयोग करने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर)। विस्तृत परिसर वाली अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री श्रेणी में व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक प्रयोग के लिए निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है-

  1. लेखा संबंधी सामान्य बही, वेतन बही, बीजक, रसीदें आदि।
  2. संचार संबंधी केंद्रीय कार्यालय के मुख्य संगणक से इलेक्ट्रॉनिक -डाक का वाणिज्यिक डेटा बैंकों तथा सूचना-सुविधाओं द्वारा प्रदत्त सेवाओं से अंतसंबधन।
  3. आँकड़ा संजय प्रबंधन ( डेटाबेस )-केंद्रीय पहुँच के लिए.. इसमें डेटा फाइलों की छटाई तथा नवीनीकरण, सांख्यिकी का संचय गणना, प्लाट-दिशा एवं बाजार विश्लेषणों हेतु प्रबंधन किया जाता है।
  4. शैक्षिक कार्यक्रम (प्रोग्राम )-खेलों, ट्यूटोरियल्स, अनुकरणों (सिमूलेशन्स) आदि द्वारा सीखने से संबंधित
  5. लेखाचित्रों (ग्राफिक्स)-रंगीन लेखाचित्रों तथा चार्टों के प्रदर्शन, रंगीन स्लाइड एवं अन्य दृश्य सहायक उपकरणों का निर्माण।
  6. कार्यक्रम निर्माण (प्रोग्रामिंग ) किसी एक समस्या (निर्मेय) को उसके भौतिक पर्यावरण से कंप्यूटर के समझने तथा आदेश पालन करने वाली भाषा में अनुवादित करना।

प्रश्न 9.
तंत्रात्मक प्रक्रिया सामग्री क्या है?
उत्तर:
तंत्रात्मक प्रक्रिया सामग्री ( सिस्टम सॉफ्टवेयर) यह उन प्रोग्रामों में महत्त्वपूर्ण है जो संगणक प्रणाली को चलाते हैं तथा प्रयोगकर्ता (प्रोग्रामर) को अपने कार्य को संपन्न करने में सहायता प्रदान करती हैं। तंत्रात्मक प्रक्रिया प्रणाली में निम्नलिखित समाहित होते हैं- क्रियात्मक प्रणाली (आपरेटिंग सिस्टम )-वह प्रक्रिया सामग्री जो संगणक प्रोग्राम के कार्य को नियंत्रित करती है और अनुसूचीकरण, डीबगिंग, निवेश तथा निर्गत के नियंत्रण, संचयीकरण, आँकड़ा प्रबंधन तथा उससे संबंधित सेवाएँ प्रदान करती है। प्रचलित प्रकार की ऑपरेटिंग प्रणाली में डॉस (डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम), यूनिक्स तथा इसके विभिन्न प्रकार, वी० एम० एस० (वर्चुअल मेमोरी सिस्टम) माइक्रोसाफ्ट विण्डोस आदि सम्मिलित हैं।

प्रश्न 10.
रैम (RAM) तथा रोम (ROM) पर नोट लिखो।
उत्तर:
यादृच्छिक अभिगम स्मृति- रैम (रैंडम एक्सेस मेमोरी )-वह स्मृति (मेमोरी) जिसमें आँकड़ों को लिखा तथा पढ़ा जा सके। केवल पठन स्मृति-रोम ( रीड ओनली मेमोरी )-सूचना धारण करने वाली स्मृति जो विद्यमान तथा स्थायी रूप से उपलब्ध है और जिसे लिखा नहीं जा सकता है, किंतु प्रोग्राम के माध्यम से मात्र पढ़ा जा सकता है।

प्रश्न 11.
रैस्टर के भू-संदर्भपरक तथा भू-कूट पर नोट लिखो।-रेखापुंजों (रैस्टर) चित्रों के भू-संदर्भपरक भू-कूट (जियोकोडिंग) बनाना
उत्तर:
क्रमवीक्षण (स्कैन किये गए रेखापुंज (रैस्टर) चित्रों तथा उपग्रह- चित्रों को एक चित्र में पड़ने वाले भू-नियंत्रक बिंदु (जी० सी० पी० ) से मिलाकर, उनकी विकृतियों में सुधार किया जाता है। भूनियंत्रक बिंदु ज्ञात धरातलीय अवस्थितियों के स्वरूप हैं जिन्हें हवाई-चित्रों अथवा उपग्रह चित्रों पर सही-सही अवस्थित किया जा सकता है। भूनियंत्रक बिंदु निर्देशांक विकृत चित्रों पर दोनों ही रूपों चित्र के रूप (कालम तथा पंक्ति संख्या)

में तथा उनके धरातलीय निर्देशांकों के रूप में अवस्थित होता है (मानचित्रों से मापित अथवा किसी निश्चित प्रक्षेप प्रणाली, जैसे बहु-शंकु प्रक्षेप पर अक्षांश-देशांतर के संदर्भ में धरातल पर निर्धारित) एक न्यून वर्ग प्रतिक्रमण विश्लेषण की सहायता से ज्यामितीय संशोधित (मानचित्र) निर्देशांकों एवं विकृत चित्र निर्देशांकों को अंतर्संबंधित किया जाता है। उसके बाद चित्र का सही ज्यामितीय संबंध प्राप्त करने के लिए संगत धरातलीय स्थिति के संदर्भ में इसका परिवेष्ठन किया जाता है।

प्रश्न 12.
आंकिक मानचित्रण क्या है?
उत्तर:
आंकिक स्पष्ट (फेयर) मानचित्रण भू-कूट वाले रेखापुंज चित्रों का प्रयोग, बिंदु, भू-स्वरूप रेखीय स्वरूपों एवं हवाई भू-दृश्यों की पृष्ठभूमि के रूप में आरेखित तथा समुचित चिह्नों एवं पठन सामग्री से सुसज्जित करने के लिए किया जाता है। विकल्प के रूप में, इन ऊपरी भूदृश्यों तथा रेखापुंज चित्रों को चिह्नों का प्रयोग किये बिना ही मानचित्रात्मक बनाने के लिए सीधे आंकिक किया जा सकता है। आंकिक मानचित्र स्वतः ही स्वचालित मानचित्रीय प्रक्रियाओं, जैसे सामान्यीकरण, वर्गीकरण आदि के अनुरूप हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
मानचित्र विज्ञान के आधारभूत तत्व क्या हैं?
उत्तर:
संगणक और दूरसंचार के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास द्वारा मूल रूप से संचालित मानचित्र कला में तीव्रगामी परिवर्तन हुए हैं।
आधुनिक मानचित्र विज्ञान को एक त्रिभुज द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इस त्रिभुज की तीनों भुजाएँ तीन प्राथमिक तत्वों के महत्त्व को दर्शाती हैं-

  1. नियमन
  2. ज्ञान एवं विश्लेषण
  3. संचार

नियमन त्रिभुज का आधार है। यह मानचित्र उत्पादन के पक्ष को प्रदर्शित करता है। ज्ञान तथा विश्लेषण व संचार अन्य दो भुजाएं हैं। आजकल संगणक, बहुमाध्यम (मल्टीमीडिया) और दूरसंचार के क्षेत्र में तीव्र अभिनव विकास से मानचित्रकला को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानिक आँकड़ों के प्रक्रमण के लिए मानचित्रकार को अब संगणक और बहुमाध्यम का उपयोग करने के अधिक अवसर उपलब्ध हैं।
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प्रतिवर्ष बहुत सी नई प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर) विकसित की जा रही है। भौगोलिक सूचना तंत्र तथा मानचित्रण के कुछ मुख्य सॉफ्टवेयर हैं- एप्पल, ऑर्क इन्फो, ऑटोकैड मैपइन्फो, ग्राम आदि।

प्रश्न 14.
मानचित्र विज्ञान में संगणक का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
मानचित्र विज्ञान में संगणक का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से सहायता करता है-

  1. मानचित्रों का निर्माण शीघ्र होता है।
  2. उपयोग की आवश्यकता अनुसार मानचित्रों का निर्माण संभव।
  3. दक्ष मानचित्रकार के उपलब्ध न होने पर भी मानचित्र निर्माण सम्भव है।
  4. मानचित्रों के निर्माण में कम खर्च आता है।
  5. मानचित्रों को अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है।
  6. मानचित्रों की अनेक प्रतियां तुरंत बनाई जा सकती हैं।
  7. यदि आँकड़े आंकिक (डिजिटल) स्वरूप में उपलब्ध हैं तो मानचित्र में संशोधन किये जा सकते हैं।

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का प्रभाव-
मानचित्र में कई प्रकार से परिवर्तन किए हैं। सॉफ्टकापी चित्रों ने अनेक प्रयोगों के लिए प्रकाशित मानचित्रों का स्थान ले लिया है। उत्पादन समय में अत्यधिक कमी आई है। सैन्य गुप्तचरी तथा विज्ञान के लिए सूक्ष्म नियोजन की आवश्यकता होने पर उच्च विभेदन वाले उपग्रह चित्र तुरन्त प्राप्त किए जा सकते हैं।

इसके लिए निकटवर्ती उपग्रह को प्रस्तावित स्थल के ऊपर नई कक्षा में लाना पड़ता है। मानचित्र में दिखाई जा सकने वाली सूचनाओं की गुणवत्ता और विविधता में स्वचालन से भी परिवर्तन आ रहा है। यही नहीं, भौगोलिक सूचना तंत्र स्थानिक मानचित्रण और निर्णय लेने में विश्लेषण की भूमिका का विस्तार कर रहा है।

प्रश्न 15.
स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी पर नोट लिखो।
उत्तर:
स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी किसी प्रदेश का संसाधन प्रबंधन या तो।

  1. हाथ से बने मानचित्रों को अध्यारोपित करके अथवा
  2. संगणक प्रौद्योगिकी द्वारा किया जा सकता है।

इस संगणक प्रौद्योगिकी में संख्यात्मक स्थानिक आँकड़ों के समूह या भू-आधारित फाइलों का उपयोग किया जाता है। पारदर्शी मानचित्रों को हाथ से अध्यारोपित करके बनाए गए बहुकालिक मानचित्रों की अपनी कुछ कमियाँ होती हैं। केवल कुछ ही मानचित्रों को एक साथ अध्यारोपित कर दृश्य विश्लेषण हो सकता है। संगणक सहायक विधि में सूचनाएँ आंकिक स्वरूप में प्राप्त होनी आवश्यक होती हैं। इस पद्धति में संसाधन स्वरूपों का ( गुण या कारक) अंतसंबंध संख्यात्मक रूपांतरण द्वारा संपन्न होता है।

आधुनिक आँकड़ा संग्रह तकनीकों तथा संगणक सहायक मानचित्रकला ने स्थानिक आँकड़ों के संग्रह एवं विनिमय को प्रोत्साहन दिया है। इसके साथ ही भौगोलिक सूचना तंत्र तथा आंकिक चित्र प्रक्रमण (डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग DIP) के सम्मिलित प्रयोग से भौगोलिक जाँच एवं पूर्वानुमान विस्तृत क्षेत्र पर सीमित समय में बेहतर तरीके से करते हैं। आगे आने वाले वर्षों में प्रभावकारी सार्वजनिक नीतियों के लिए पूर्वकथन मॉडल निर्धारण की क्षमता को विकसित करना सरल होगा।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी 5

प्रश्न 20.
भूमि उपयुक्तता विश्लेषण में भौगोलिक सूचना तंत्र के अनुप्रयोग पर नोट लिखो।
उत्तर-भौगोलिक सूचना तंत्र का अनुप्रयोग भूमि तथा वनाच्छादित क्षेत्रों में परिवर्तन, जल तथा वायु की गुणवत्ता का मूल्यांकन, मृदा अपरदन के खतरों का विश्लेषण, प्राकृतिक विपदाओं पर नजर रखना, वनीकरण योग्य क्षेत्रों का चुनाव, भूमि क्षमता एवं उपयुक्तता विश्लेषण एवं आँकड़ा विवरणिका अध्ययन जैसी समस्याओं के समाधान में भौगोलिक सूचना तंत्र का उपयोग करते हैं। विश्वस्तरीय अनुभवों से यह प्रदर्शित होता है कि सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना तंत्र संसाधन प्रबंधन के लिए अत्यंत ही प्रभावकारी युक्तियाँ हैं।

भौगोलिक सूचना तंत्र का एक निर्णय देने वाली प्रणाली के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। इसके द्वारा प्राकृतिक आपदाओं की पहचान, समन्वय, निगरानी और भविष्यवाणी करना संभव है। प्राकृतिक आपदाएं, भारत में अनुभव किए जाने वाले प्रमुख पर्यावरणीय खतरे हैं। समन्वित जल संभर प्रबंधन योजनाएं, हमें आशंकित करने वाले संकटों के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती हैं।

1. भूमि उपयोग परिवर्तन की निगरानी (Land use change Monitoring ) किसी प्रदेश के ग्रामीण तथा नगरीय संसाधनों की भौगोलिक निगरानी में भू-उपयोग एक महत्त्वपूर्ण निवेश होता है। सामान्य भू-आच्छादन, वर्गीकरण का निर्धारण, भूतकाल में भूमि उपयोग में हुए परिवर्तन द्वारा सामान्य रूप में तथा वनाच्छादन के रूप में विशेष रूप से किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, हिमाचल क्षेत्र में निर्वनीकरण एक गंभीर पारिस्थितिक समस्या है। दो समयों के वन वितरण मानचित्रों द्वारा वनाच्छादन में परिवर्तन की सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं। उपग्रही सुदूर संवेदन का भूमि उपयोग मानचित्रण और देश के भीतर वन ह्रास की प्रक्रिया की निगरानी के लिए प्रभावशाली ढंग से उपयोग किया जा सकता है। अत्यधिक तीव्रगति से परिवर्तन के कारण, परंपरागत विधियों से एकत्रित सूचनाएं शीघ्र ही पुरानी हो जाती हैं।

2. सामाजिक-आर्थिक नियोजन हेतु भूमि उपयुक्तता विश्लेषण (Land Suitability Analaysis) भूमि उपयोग उपयुक्तता विश्लेषण से भूमि विकास से संबंधित विभिन्न निर्णय लेने में सहायता मिलती है। भौगोलिक सूचना तंत्र विश्लेषण निम्नलिखित तीन प्रकार के मानचित्रों के निर्माण के लिए विभिन्न प्राकृतिक, मानवकृत एवं अंतर्क्रियात्मक कारकों को समन्वित करता है-
(i) पर्यावरणीय पर्यावरणीय प्रक्रियाओं में कम से कम परिवर्तन करने वाले भूमि उपयोग को दिखाने वाला मानचित्र।

(ii) किसी प्रस्तावित विकास की योजना के पर्यावरणीय प्रभावों के गुणात्मक- पूर्वानुमान को प्रदर्शित करने वाला मानचित्र-यह चलाई जाने वाली कुछ निश्चित परियोजनाओं तथा नियंत्रण हेतु विशेष पर्यावरणीय कार्ययोजना भी प्रदान करता है; और

(iii) इन कार्य योजनाओं के लिए सर्वोत्तम तथा सबसे कम उपयुक्त अवस्थिति को प्रदर्शित करने वाला मानचित्र-सीमांत प्रदेशों, जैसे हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मरुस्थल में भूमि उपयोग नियोजन हेतु ऐसे मानचित्रों की आवश्यकता पड़ती है। कृषि हेतु, उच्चभूमि के क्षेत्रों में कृषि के लिए भूमि उपयुक्ता विश्लेषण में मृदा- अपरदन, ढाल, ऊँचाई, जल उपलब्धता तथा पोषक तत्वों की उपलब्धता आदि से संबंधित सूचना तथा मानचित्रों का निर्माण।

अनेक देशों तथा राज्य सरकारों द्वारा नगरपालिका के कार्यों के लिए भूमि तथा अन्य भौगोलिक सूचनाओं के संगणकीकरण का प्रयास किया गया है। विभिन्न विभागों द्वारा उपखंडीय मानचित्रों के स्वचालन का प्रयास किया है। पर्यावरणीय नियोजकों द्वारा भूमि उपयुक्तता क्षमता हेतु पर्यावरणीय कारकों के अध्यारोपण का प्रयास किया गया है।

ऐसी सूचनाओं में आधार मानचित्र पर्यावरणीय अभियांत्रिकी, मानचित्र (प्लान) पारिवका, अपवाह, फसलें, मार्ग या गली का पता संबंधी सारणीय आँकड़े, क्षेत्र सारणी आँकड़े, सड़क, मार्गतंत्र तथा सीमा क्षेत्र आदि सम्मिलित हैं। भौगोलिक सूचना तंत्र प्रक्रिया सामग्री उपकरण विभिन्न आँकड़ा समूहों को मानचित्र या सारणी रूप में प्रस्तुत कर, सुधार करने, अंतसंबंधित करने एवं अनेक प्रकार से वर्णन करने के योग्य बनाता है।

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