Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था
पाठयपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए, क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से यह अनुभव किया जाता है कि सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए
(i) सार्वजनिक वस्तुओं का उपभोग सामूहिक रूप से किया जाता है। सार्वजनिक वस्तुएँ अप्रतिस्पर्धी (Non-rivalrous) होती हैं अर्थात् एक व्यक्ति दूसरे की संतुष्टि में कमी किए बगैर अपनी संतुष्टि में वृद्धि कर सकता है। सार्वजनिक वस्तुएँ अवर्ण्य (Non-excludable) होती हैं अर्थात् किसी को इन वस्तुओं का लाभ उठाने से वर्जित करने का कोई संभव तरीका नहीं है। इसे ही मुफ्तखोरी की समस्या कहा जाता है।
(ii) सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग का शुल्क संग्रह करना कठिन होता है, जबकि निजी उद्यम आमतौर पर ऐसी वस्तुओं को उपलब्ध नहीं कराते हैं।
प्रश्न 2.
राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में भेद कीजिए।
उत्तर:
सरकारी बजट में राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय के बीच निम्नलिखित भेद हैं-
- राजस्व व्यय अल्पकालीन और बार-बार होने वाले व्यय हैं जबकि पूँजीगत व्यय दीर्घकालीन तथा आकस्मिक होने वाले व्यय हैं।
- राजस्व व्ययों की आवृत्ति अधिक होती है जबकि पूँजीगत व्ययों की आवृत्ति बहुत कम होती है।
- राजस्व व्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता और न ही ये व्यय दायित्वों में कमी करते हैं। पूँजीगत व्ययों से या तो परिसंपत्तियों का निर्माण होता है या दायित्वों में कमी आती है।
राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
- सुरक्षा पर व्यय
- कानून व्यवस्था पर व्यय
- स्वास्थ्य पर व्यय।
पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure) के उदाहरण निम्नलिखित हैं
- गैर-आवासीय इमारतों पर व्यय
- वैज्ञानिक अनुसंधान संगठनों पर व्यय
- सड़कों एवं पुलों पर व्यय।
प्रश्न 3.
राजकोषीय घाटा से सरकार को ऋण-ग्रहण की आवश्यकता होती है, समझाइए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) से अभिप्राय उस घाटे से है जिसमें सरकार का कुल बजट व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियों के जोड़ से अधिक होता है। अर्थात्
राजकोषीय घाटा = कुल बजट (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय + सरकार द्वारा दिए गए शुद्ध ऋण) – राजस्व प्राप्तियाँ-गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ
इस प्रकार राजकोषीय घाटे में ऋण सम्मिलित नहीं होता। राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार के पास ऋण ग्रहण के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता। सरकार के पास ऋण ग्रहण के निम्नलिखित तीन स्रोत होते हैं-
- लोगों से ऋण
- केंद्रीय बैंक से ऋण
- विदेशों से ऋण।
इस प्रकार,
राजकोषीय घाटा = सरकार का ऋणभार।
प्रश्न 4.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में संबंध बताइए।
उत्तर:
राजस्व घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का राजस्व व्यय उसकी राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थात
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय (चालू व्यय) – राजस्व प्राप्तियाँ (कर प्राप्तियाँ – गैर-कर प्राप्तियाँ)
राजकोषीय घाटा वह स्थिति है जिसमें सरकार का कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) उसकी राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियों से अधिक होता है। अर्थात्
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – राजस्व प्राप्तियाँ – गैर-ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ
राजकोषीय घाटा एक विस्तृत तथ्य है जबकि राजस्व घाटा एक संकुचित तथ्य है और यह राजकोषीय घाटा में सम्मिलित है।
प्रश्न 5.
मान लीजिए कि एक विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश 200 के बराबर है, सरकार के क्रय की मात्रा 150 है, निवल कर (अर्थात् एकमुश्त कर से अंतरण को घटाने पर) 100 है और उपभोग C = 100 + 0.75 Y दिया हुआ है, तो (a) संतुलन आय का स्तर क्या है? (b) सरकारी व्यय गुणक और कर गुणक के मानों की गणना करें। (c) यदि सरकार के व्यय में 200 की बढ़ोत्तरी होती है, तो संतुलन आय में क्या परिवर्तन होगा?
हल:
उपभोग = C = 100 + 0.75Y
यहाँ पर,
\(\overline{\mathrm{C}}\) = 100
c = 0.75
निवल कर (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R) = 100
निवेश (I) = 260
सरकार का क्रय (G) = 150
(a) संतुलन आय का स्तर (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c[Y – (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R)] + I + G
= 100 + 0.75 [Y – 100] + 200 + 150
= 100 + 0.75Y – 75 + 350
= 0.75Y + 375
Y – 0.75Y = 375
0.25Y = 375
Y = \(\frac{375 \times 100}{25}\)
संतुलन आय स्तर = 1,500 उत्तर
(b) सरकारी व्यय गुणक =\(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.75 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\) = 4
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1 – c }\)
= \(\frac { -0.75 }{ 1 – 0.75 }\)
= \(\frac { -0.75 }{ 0.25 }\)
= – 3 उत्तर
(c) संतुलन आय में परिवर्तन (∆Y) = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)∆G
= सरकारी व्यय गुणक – सरकारी व्यय में परिवर्तन
= 4 x 200 = 800
यदि सरकारी व्यय में 200 की बढ़ोत्तरी होती है तो संतुलन आय में 800 की बढ़ोत्तरी होगी। उत्तर
प्रश्न 6.
एक ऐसी अर्थव्यवस्था पर विचार कीजिए, जिसमें निम्नलिखित फलन हैं-
C = 20 + 0.80Y, I = 30, G = 50, TR = 100
(a) आय का संतुलन.स्तर और मॉडल में स्वायत्त व्यय गुणक ज्ञात कीजिए।
(b) यदि सरकार के व्यय में 30 की वृद्धि होती है, तो संतुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(c) यदि एकमुश्त कर 30 जोड़ दिया जाए, जिससे सरकार के क्रय में बढ़ोत्तरी का भुगतान किया जा सके, तो संतुलन आय में किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
हल:
उपभोग (C) = 20 + 0.80Y
यहाँ पर,
\(\overline{\mathrm{C}}\) = 20
c = 0.80
निवेश (I) = 30
सरकारी व्यय (G) = 50
अंतरण (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R) = 100
(a) आय का संतुलन स्तर (Y) = C + c[Y- (T – TR )] + I + G
Y = 20 + 0.80 [Y – (-100)] + 30 + 50
= 20 + 0.80 [Y + 100] + 80
= 20 + 0.08Y + 80 + 80
= 0.80Y + 180
Y – 0.80 = 180
0.20Y = 180
Y = 900
आय का संतुलन स्तर = 900
स्वायत्त व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.20 }\)
= 5 उत्तर
(b) संतुलन आय में वृद्धि (∆Y) = व्यय गुणक x व्यय में वृद्धि
= 5 x 30 = 150 उत्तर
(c) कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
= \(\frac { -0.80 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { -0.80 }{ 0.20 }\)
= – 4
संतुलन आय में परिवर्तन = कर गुणक x कर में वृद्धि
= – 4 x 30
= – 120
संतुलन आय में कमी = 120 उत्तर
प्रश्न 7.
उपर्युक्त प्रश्न में अंतरण में 10% की वृद्धि और एकमुश्त करों में 10% की वृद्धि का निर्गत पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करें। दोनों प्रभावों की तुलना करें।
हल:
अंतरण गुणक = \(\frac { c }{ 1-c }\)
= \(\frac { 0.80 }{ 1-0.80 }\)
= \(\frac { 0.80 }{ 0.20 }\) = 4
अंतरण में वृद्धि = 10%
निर्गत में अंतरण के कारण वृद्धि
= अंतरण गुणक x अंतरण में वृद्धि
= 4 x 10% = 40%
एकमुश्त कर में वृद्धि = 10%
निर्गत में एकमुश्त कर में वृद्धि के कारण कमी
= 4 x 10% = 40% उत्तर
अंतरण में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी और एकमुश्त कर में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में कमी होगी। चूँकि अंतरण व कर में वृद्धि की मात्रा व गुणक एक बराबर हैं, अतः दोनों का मिश्रित प्रभाव शून्य होगा।
प्रश्न 8.
हम मान लेते हैं कि C = 70 + 0.70YD, 1 = 90, G = 100, T = 0.10Y (a) संतुलन आय ज्ञात कीजिए। (b) संतुलन आय पर कर राजस्व क्या है? क्या सरकार का बजट संतुलित बजट है?
हल:
(a) C = 70 + 0.70YD
यहाँ पर, \(\overline{\mathrm{C}}\) = 70
c = 0.70
I = 90 G = 100
T = 0.10Y
संतुलन आय (Y) = \(\overline{\mathrm{C}}\) + c[Y – (T – \(\overline{\mathrm{T}}\)R)] + I + G
Y = 70+ 0.70[Y – (0.10Y)] + 90 + 100
Y = 70+ 0.70[Y – 0.10Y] + 190
Y = 260 + 0.70Y – 0.07Y
Y = 260 + 0.63Y
Y – 0.63Y = 260
0.37Y = 260
Y = 703 (लगभग)
संतुलन आय = 703 उत्तर
(b) T = 0.10Y
T = 0.10 x 703
T = 70.3
कर राजस्व = 70.3
चूँकि सरकार द्वारा अर्जित कर राजस्व 70.3 है और सरकार द्वारा किया व्यय 100 है, इसलिए सरकार का बजट संतुलित नहीं है। संतुलित बजट के लिए यह आवश्यक है कि सरकारी व्यय और कर राजस्व दोनों ही एक-दूसरे के बराबर हों।
प्रश्न 9.
मान लीजिए कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है और आनुपातिक आय कर 20 प्रतिशत है। संतुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तनों को ज्ञात करें
(a) सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि
(b) अंतरण में 20 की कमी।
हल:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75
आनुपातिक आय कर (t) = 20%
सरकारी व्यय गुणक =\(\frac{1}{(1-c)(1-t)}\)
= \(\frac{1}{(1-0.75)(1-0.20)}\)
\(\frac{1}{0.25 \times 0.80}\) = 5
अंतरण गुणक = \(\frac { 1 }{ 1-c }\)
= \(\frac { 1 }{ 1-0.75 }\)
= \(\frac { 1 }{ 0.25 }\)
= 4
(a) सरकार के क्रय में वृद्धि = 20
संतुलन आय में वृद्धि = 20 x 5 = 100 उत्तर
(b) अंतरण में कमी = 20
संतुलन आय में कमी = 20 x 4 = 80 उत्तर
अतः दोनों का मिश्रित प्रभाव = संतुलन आय में 20 की वृद्धि
प्रश्न 10.
निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह कहना सही है कि निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा होता है।
कर गुणक = \(\frac { -c }{ 1-c }\)
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac { 1 }{ 1 – c }\)
‘इसका कारण यह है कि सरकारी व्यय में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है जबकि कर गुणक राष्ट्रीय आय को प्रयोज्य आय के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
प्रश्न 11.
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में क्या संबंध है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में घनिष्ठ संबंध है। सरकारी घाटा प्रवाह अवधारणा है, लेकिन सरकारी घाटा ऋण के स्टॉक में वृद्धि करता है। यदि सरकार वर्ष प्रतिवर्ष ऋण ग्रहण करती है तो ब्याज के दायित्व में वृद्धि से बजट घाटे में भी वृद्धि करती है। इस प्रकार बजट घाटा ऋण का कारण और प्रभाव दोनों हैं।
प्रश्न 12.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण हमेशा बोझ नहीं बनता, लेकिन निम्नलिखित परिस्थितियों में सार्वजनिक ऋण बोझ बन जाता है-
- सार्वजनिक ऋण का भार भावी पीढ़ी पर पड़ता है।
- विदेशियों से लिए गए ऋण के बदले में ब्याज की अदायगी के अनुरूप वस्तुएँ विदेश भेजनी पड़ती हैं।
- देश में कुल माँग में वृद्धि होती है जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।
प्रश्न 13.
क्या राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी नहीं होता। यदि राजकोषीय घाटे के फलस्वरूप माँग में वृद्धि और निर्गत में वृद्धि होती है तो राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी नहीं होता। यदि राजकोषीय घाटे के मूल्य से कम अर्थव्यवस्था में निर्गत होता है तो राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी होता है।
प्रश्न 14.
घाटे में कटौती के विषय पर विमर्श कीजिए।
उत्तर:
घाटे में कटौती करने के बारे में दोनों प्रकार के तर्क दिए जाते हैं। घाटे में कटौती करना निम्नलिखित परिस्थितियों में उचित नहीं माना जाता
- घाटे से महामंदी और बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
- घाटे से अल्पविकसित देशों को अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होते हैं जिससे आर्थिक विकास में सहायता मिलती है।
- घाटे से सरकार सामाजिक कल्याण की गतिविधियाँ संचालित कर सकती है।
घाटे में कटौती करना निम्नलिखित परिस्थितियों में उचित माना जाता है-
- घाटे के बजट से सरकार को ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है जिससे सरकार के समक्ष ऋण के भुगतान की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
- घाटे के बजट से मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि होती है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
- घाटे का बजट सरकार को अनावश्यक व्यय करने की सुविधा देता है।
घाटे में कटौती निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-
- करों में वृद्धि
- सार्वजनिक व्यय में कमी
- विनिवेश।
सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था HBSE 12th Class Economics Notes
→ बजट-बजट एक वित्तीय वर्ष, जो 1 अप्रैल से अगले 31 मार्च तक चलता है, की अवधि में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों (आय) और अनुमानित व्यय का ब्यौरा होता है।
→ बजट के संघटक बजट के दो मुख्य संघटक हैं-
- बजट प्राप्तियाँ तथा
- बजट व्यय।
→ बजट प्राप्तियाँ बज़ट प्राप्तियों से अभिप्राय उस मौद्रिक आय से है जो कि सरकार को आने वाले वित्तीय वर्ष में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने का अनुमान है। इसमें दो प्रकार की प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं
- राजस्व प्राप्तियाँ
- पूँजीगत प्राप्तियाँ।
→ राजस्व प्राप्तियाँ-राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वह प्राप्ति अथवा आय है जिसमें सरकार की कोई देनदारियाँ नहीं होती और न ही सरकार की परिसंपत्तियों में कोई कमी होती है। इसमें दो प्रकार की प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं
- कर राजस्व प्राप्तियाँ
- गैर-कर राजस्व प्राप्तियाँ।
→ पूँजीगत प्राप्तियाँ-पूँजीगत प्राप्तियों में सरकार की वह आय आती है जो या तो देनदारियाँ पैदा करती है या सरकार की परिसंपत्तियों में कमी करती है। इनका विभाजन तीन भागों में किया गया है
- ऋणों की वसूली
- उधार तथा अन्य देयताएँ
- अन्य प्राप्तियाँ।
→ कर-कर एक ऐसा भगतान है जोकि लोगों द्वारा सरकार को किया जाता है। इसके बदले में किसी सेवा-प्राप्ति की आशा – नहीं की जा सकती।
→ कर के प्रकार कर तीन प्रकार के होते हैं
- प्रगतिशील कर तथा प्रतिगामी कर
- मूल्यवृद्धि कर तथा वजन अनुसार कर
- प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर।
→ प्रत्यक्ष कर वह कर, जिसका अंतिम भार उसी व्यक्ति को उठाना पड़ता है जो इसका भुगतान करता है। इसके उदाहरण हैं-आयकर, व्यवसाय कर, संपत्ति कर, उपहार कर आदि।
→ अप्रत्यक्ष कर वह कर जिसका प्रारंभिक भार एक व्यक्ति पर पड़ता है, परंतु उस भार को वह दूसरों पर टालने में सफल हो जाता है। इसके उदाहरण हैं-बिक्री कर, उत्पादन कर, सीमा शुल्क आदि।
→ बजट व्यय बजट व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा आने वाले वित्तीय वर्ष में विभिन्न मदों पर किए जाने वाले अनुमानित व्यय से है। इसमें दो प्रकार के व्यय शामिल किए जाते हैं-
- राजस्व व्यय
- पूँजीगत व्यय।
→ राजस्व व्यय-राजस्व व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में किए जाने वाले उस अनुमानित व्यय से है जिसके फलस्वरूप न तो सरकार की परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और न ही देनदारियों में कमी होती है।
→ पूँजीगत व्यय-पूँजीगत व्यय सरकार का वह खर्च है जो या तो सरकार के लिए परिसंपत्तियाँ पैदा करता है या सरकारी देनदारियाँ कम करता है।
→ बजट के प्रकार बजट तीन प्रकार का होता है-
- संतुलित बजट
- बचत का बजट
- घाटे का बजट।
→ संतुलित बजट-संतुलित बजट = कुल व्यय = कुल प्राप्तियाँ।
→ बचत का बजट-बचत का बजट = कुल व्यय < कुल प्राप्तियाँ। → घाटे का बजट-घाटे का बजट = कुल व्यय > कुल प्राप्तियाँ।
→ बजट घाटा-बजट घाटे का अर्थ उस स्थिति से है जिसमें सरकार का बजट व्यय सरकार की बजट प्राप्तियों से अधिक होता है। बजट घाटा तीन प्रकार का होता है-
- राजस्व घाटा
- राजकोषीय घाटा
- प्राथमिक घाटा।
→ राजस्व घाटा-राजस्व घाटा = राजस्व व्यय > राजस्व प्राप्तियाँ।
→ राजकोषीय घाटा-राजकोषीय घाटा = कुल व्यय > (राजस्व प्राप्तियाँ + गैर ऋण पूँजीगत प्राप्तियाँ)
→ प्राथमिक घाटा-प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज की अदायगी।