HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Practical Work in Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण Textbook Exercise  Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए-
(i) जनसंख्या वितरण दर्शाया जाता है-
(क) वर्णमात्री मानचित्रों द्वारा
(ख) सममान रेखा मानचित्रों द्वारा
(ग) बिंदुकित मानचित्रों द्वारा
(घ) ऊपर में से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) बिंदुकित मानचित्रों द्वारा।

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(ii) जनसंख्या की दशकीय वृद्धि को सबसे अच्छा प्रदर्शित
करने का तरीका है-
(क) रेखा ग्राफ
(ग) वृत्त आरेख
(ख) दंड आरेख
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं।
उत्तर:
(क) रेखा ग्राफ।

(iii) बहुरेखाचित्र की रचना प्रदर्शित करती है-
(क) केवल एक बार
(ख) दो चरों से अधिक
(ग) केवल दो चर
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं।
उत्तर:
(ख) दो चरों से अधिक।

(iv) कौन-सा मानचित्र “गतिदर्शी मानचित्र” जाना जाता है-
(क) बिंदुकित मानचित्र
(ख) सममान रेखा मानचित्र
(ग) वर्णमात्री मानचित्र
(घ) प्रवाह संचित्र।
उत्तर:
(घ) प्रवाह संचित्र।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) थिमैटिक मानचित्र क्या हैं?
उत्तर:
थिमैटिक मानचित्र मानचित्रों की विविधता। प्रादेशिक वितरणों के प्रतिरूपों अथवा स्थानों पर विविधताओं की विशेषताओं को समझने के लिए विविध मानचित्रों को बनाया जाता हैं। यह मानचित्र अलग-अलग विशेषताओं को पेश करने वाले आंकड़ों में आंतरिक विभिन्नताओं के मध्य की तुलना दिखाने के लिए भी उपयोगी प्रयोजन प्रदान करते हैं।

(ii) आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आंकड़े उन तथ्यों की विशेषताओं को हमारे सामने लाते हैं जो प्रदर्शित किए जाते हैं। आंकड़ो के प्रस्तुतीकरण की आलेखी विधि हमारी समझ के क्षेत्र को बढ़ाती हैं अथवा तुलनाओं को आसान बना देती हैं। इसके अतिरिक्त इस प्रकार की विधियाँ एक लंबे समय के लिए मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ देती हैं।

(iii) बहुदंड आरेख और यौगिक दंड आरेख में अंतर बताइए।
उत्तर:
दंड आरेख-आँकड़े दिखाने के लिए यह सबसे सरल विधि है। इसमें आँकड़ों को समान चौड़ाई वाले दंडी या स्तंभों द्वारा दिखाया जाता हैं। इन दंडों की लंबाई वस्तुओं की मात्रा के अनुपात के अनुसार छोटी-बड़ी होती है। बहुदंड आरेख-यदि एक दंड को अनेक भागों में बांटकर उसके द्वारा कई वस्तुओं को एक साथ दिखाया जाए तो बहुदंड आरेख का निर्माण होता है। इस विधि के द्वारा आंकड़ों के कुल योग तथा उसके विभिन्न भागों को दिखाया जाता है।

(iv) एक बिंदुकित मानचित्र की रचना के लिए क्या आवश्यकताएँ हैं?
उत्तर:
बिंदु विधि द्वारा मानचित्र की रचना के लिए आवश्यकता होती है-

  1. जिस वस्तु का वितरण प्रकट करना हो उसके सही-सही आँकड़े उपलब्ध होने चाहिए। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर होने चाहिए।
  2. उस प्रदेश का एक सीमा चित्र हो जिसमें जिले या राज्य आदि शासकीय भाग दिखाए हों।
  3. उस प्रदेश का धरातलीय मानचित्र हो जिसमें contours, marshes इत्यादि धरातल की आकृतियां दिखाई गई हों।
  4. उस प्रदेश का जलवायु मानचित्र हो जिसमें वर्षा तथा तापमान का ज्ञान हो सके।
  5. विभिन्न कृषि पदार्थों की उपज वाले मानचित्रों में भूमि के मानचित्र जरूरी हैं।

(v) सममान रेखा मानचित्र क्या हैं? एक क्षेपक का किस प्रकार कार्यान्वित किया जाता है?
उत्तर:
सममान रेखा शब्द Isopleth दो शब्दों के जोड़ से बना है ISO + Pleth अर्थ है समान रेखाएँ। इस प्रकार सममान रेखाएं वे रेखाएं हैं जिनका मूल्य, तीव्रता तथा घनत्व समान हो। ये रेखाएं उन स्थानों को आपस में जोड़ती हैं जिनका मान समान हो।
क्षेत्रक की कार्यान्वित करने का तरीका-

  1. सबसे पहले मानचित्र पर दिए गए न्यूनतम तथा अधिकतम मान को निश्चित करना चाहिए।
  2. उसके बाद परास की गणना की जानी चाहिए।
  3. उसके बाद श्रेणी के आधार पर, एक पूर्ण संख्या जैसे 5, 10, 15 इत्यादि में अंतराल निश्चित करनी चाहिए।
  4. सममान रेखा के चित्रण के बिल्कुल सही बिंदु को निम्नलिखित सूत्र द्वारा निश्चित किया जाता है-

सममान रेखा का बिंदु =
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(vi) एक वर्णमात्री मानचित्र को तैयार करने के लिए अनुसरण करने वाले महत्त्वपूर्ण चरणों की सचित्र व्याख्या की कीजिए।
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र को तैयार करने के लिए अनुसरण करने वाले महत्त्वपूर्ण चरणों को सचित्र इस प्रकार हैं-

  1. आंकड़ों को चढ़ते अथवा उतरते हुए क्रम में व्यवस्थित किया जाता है।
  2. अति उच्च, उच्च, मध्यम, निम्न तथा अति निम्न केंद्रीकरण को दर्शाने के लिए आंकड़े को 5 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।
  3. श्रेणियों के मध्य अंतराल की, निम्नलिखित सूत्र परास / 5 तथा अधिकतम मान-न्यूनतम मान, द्वारा पहचाना जा सकता है।
  4. प्रतिरूपी, छापाओं और रंगों का उपयोग चुनी हुई श्रेणियों को चढ़ते और उतरते क्रम में दर्शाने के लिए किया जाता है।

(vii) आंकड़े की वृत आरेख की सहायता से प्रदर्शित करने के लिए महत्त्वपूर्ण चरणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आंकड़े की वृत आरेख की सहायता से प्रदर्शित करने के लिए महत्त्वपूर्ण चरणों की विवेचना इस प्रकार है-

  1. आंकड़ों को चढ़ते क्रम में व्यवस्थित करो।
  2. मानों को दिखाने के लिए कोणों के अंशों की गणना करो। खींचे जाने वाले वृत्त के लिए एक उपयुक्त त्रिज्या को चुनना चाहिए।
  3. वृत्त के बीच से चाप एक त्रिज्या की तरह रेखा खींचनी चाहिए।
  4. वृत्त को विभागों की आवश्यक संख्या में विभाजन द्वारा आंकड़े को प्रदर्शित करते हैं।
  5. एक रेखा लगाओ केन्द्रीय धुरे से लेकर वृत्त तक।
  6. इसके बाद वृत्त तक के कोण को मापा जाए और हर एक वर्ग के वाहनों को चढ़ते क्रम में लिखा जाए। वाहनों की प्रत्येक श्रेणी के लिए चढ़ते हुए क्रम में, दक्षिणावर्त, छोटे कोण से शुरू करके वृत्त के चाप से कोणों को नापते हैं। उसके बाद शीर्षक उपशीर्षक और सूचिका द्वारा आरेख को पूर्ण किया जाता है।

क्रिया-कलाप
1. निम्न आंकड़ों को अनुकूल / उपयुक्त आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए:
भारत : नगरीकरण की प्रवृत्ति 1901-2001

वर्ष दशवार्षिक वृर्धि (%)
1911 0.35
1921 8.27
1931 19.12
1941 31.97
1951 41.42
1961 26.41
1971 38.23
1981 46.14
1991 36.47
2001 31.13

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रेखाग्राफ़ की रचना –

  • रेखाग्राफ़ में सबसे पहले आंकड़ों को पूर्णांक में बदला जाता है। ताकि इसे सरल बनाया जा सके। जैसे कि ऊपर दी गई तालिका में 1961 और 1981 के लिए दर्शाई गई नगरीकरण की प्रवृत्ति दर को क्रमश: 26.4 और 46.1 पूर्णांक में बदला जा सकता है।
  • इसके बाद x और y अक्ष खींचो। समय क्रम चरों को x अक्ष पर तथा आंकड़ों के मात्रा को अक्ष पर अंकित करें।
  • एक योग्य मापनी को चुनकर y अक्ष पर अंकित कर दो। यदि आंकड़ा एक ऋणात्मक मूल्य में हैं तो चुनी हुई मापनी को इसे भी दर्शाना चाहिए।
  • y अक्ष पर चुनी हुई मापनी के अनुसार वर्ष बार दर्शाने के लिए आंकड़े अंकित कीजिए तथा बिंदु द्वारा अंकित मूल्यों की स्थिति चिह्नित करें तथा हाथ से रेखा खींचकर मिला दो।

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2. निम्नलिखित आंकड़े को उपयुक्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए:
भारत: प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में साक्षरता और नामांकन अनुपात।

अतिरिक्त प्रश्न (Other Questions)

प्रश्न 1.
सांख्यिकीय आरेख से क्या अभिप्राय है? इनके लाभ तथा सीमाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
सांख्यिकीय आरेख (Statistical Diagram) –
आवश्यकता (Necessity)-आर्थिक भूगोल के अध्ययन में आँकड़ों का विशेष महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के आँकड़े किसी वस्तु की मात्रा, गुण, घनत्व, वितरण आदि को स्पष्ट करते हैं। ये आँकड़े अनेक तथ्यों की पुष्टि करते हैं। किसी क्षेत्र की जलवायु के अध्ययन में तापमान, वर्षा आदि के आँकड़ों का भी अध्ययन किया जाता है। इन आँकड़ों का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं, परंतु इस विश्लेषण के लिए अनुभव, समय तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है।

बड़ी- बड़ी तालिकाओं को याद करना बहुत कठिन तथा नीरस होता है। लंबी-लंबी सारणियां कई बार भ्रम उत्पन्न कर देती हैं। इन्हें सरल और स्पष्ट बनाने के लिये ये आँकड़े रेखाचित्रों द्वारा प्रकट किए जाते हैं। इन सांख्यिकीय आँकड़ों पर आधारित रेखाचित्रों तथा आरेखों को सांख्यिकीय आरेख कहा जाता है। “सांख्यिकीय आँकड़ों को चित्रात्मक ढंग से प्रदर्शित करने वाले रेखाचित्रों को सांख्यिकीय आरेख कहते हैं।” इन विधियों में विभिन्न प्रकार की ज्यामितीय आकृतियां रेखाएं, वक्र रेखाएं, रचनात्मक ढंग से प्रयोग की जाती हैं। ये आँकड़ों को एक दर्शनीय रूप (visual impression) देकर मस्तिष्क पर गहरी छाप डालते हैं।

सांख्यिकीय आरेखों के लाभ
(Advantages of Statistical Diagrams)

  1. आँकड़ों का सजीव रूप प्राय: किसी विषय संबंधी आँकड़े नीरस व प्रेरणा रहित होते हैं। रेखाचित्र इन विषयों को एक सजीव तथा रोचक रूप देते हैं। एक ही दृष्टि में रेखाचित्र तथ्यों का मुख्य उद्देश्य व्यक्त करने में सहायक होते हैं।
  2. सरल रचना-रेखाचित्रों की रचना सरल होने के कारण अनेक विषयों में इनका प्रयोग किया जाता है।
  3. तुलनात्मक अध्ययन-रेखाचित्रों द्वारा विभिन्न आँकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है
  4. अधिक समय तक स्मरणीय-रेखाचित्रों का दर्शनीय रूप मस्तिष्क पर एक लंबे समय के लिए गहरी छाप छोड़ जाता है। यह आरेख दृष्टि सहायता (Visual Aid ) का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
  5. विश्लेषण में उपयोगी शोध कार्य में किसी तथ्य के विश्लेषण में रेखाचित्र सहायक होते हैं।
  6. साधारण व्यक्ति के लिए उपयोगी – साधारण व्यक्ति आँकड़ों को चित्र द्वारा आसानी से समझ सकता है।
  7. समय की बचत-रेखाचित्रों द्वारा तथ्यों को शीघ्र ही समझा जा सकता है, जिससे समय की बचत होती है।

आरेख चित्रों की सीमाएं
(Limitations of Statistical Diagrams)

  1. आँकड़ों का शुद्ध रूप से निरूपण का संभव न होना- रेखाचित्र आँकड़ों को कई बार शुद्ध रूप में प्रदर्शित नहीं करते। इनमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया जाता  है।
  2. आरेख आँकड़ों के प्रतिस्थापन नहीं हैं- मापक के अनुसार रेखाचित्रों का आकार बदल जाता है तथा कई भ्रम उत्पन्न हो जाते हैं।
  3. बहुमुखी आँकड़ों का निरूपण संभव नहीं है- एक ही रेखाचित्र पर एक से अधिक प्रकार के आँकड़े नहीं दिखाए जा सकते हैं। इसके द्वारा एक ही इकाई में मापे जाने वाले समान गुणों वाले आँकड़ों को ही दिखाया जा सकता है।
  4. उच्चतम तथा न्यूनतम मूल्य में अधिक अंतर- जब उच्चतम तथा न्यूनतम मूल्य में बहुत अधिक अंतर हो तो रेखाचित्र नहीं बनाए जा सकते।
  5. भ्रमात्मक परिणाम उपयुक्त आरेख का प्रयोग न करने से गलत तथा भ्रमात्मक परिणाम निकलने की संभावना होती है।

प्रश्न 2.
आँकड़ों को प्रदर्शित करने की कौन-कौन सी विधियां हैं?
उत्तर:
आँकड़े रेखाचित्रों तथा वितरण मानचित्रों द्वारा प्रकट किए जाते हैं।
आँकड़ों के विस्तार तथा प्रकृति के अनुसार ये रेखाचित्र निम्नलिखित प्रकार से हैं-

  1. रेखा आरेख चित्र (Line graph )
  2. दंड आरेख चित्र ( Bar diagram)
  3. चलाकृति चित्र (Wheel diagram)
  4. तारक चित्र (Star diagram)
  5. क्लाइमोग्राफ (Climograph)
  6. हीधरग्राफ (Hythergrahp)
  7. चित्रीय आरेख (Prictorial diagram)
  8. आयत चित्र (Rectangular diagram)
  9. मुद्रिक चित्र ( Ring diagram)
  10. मेखला चित्र (Circular diagram)

प्रश्न 3.
दंड आरेख (Bar diagrams ) क्या होते हैं? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर:
दंड आरेख (Bar Diagrams) आँकड़े दिखाने की यह सबसे सरल विधि है। इसमें आँकड़ों को समान चौड़ाई वाले दंडों (Bar या स्तंभों (Columns) द्वारा दिखाया जाता है। इन दंडों की लंबाई वस्तुओं की मात्रा के अनुपात के अनुसार छोटी-बड़ी होती है। प्रत्येक दंड किसी एक वस्तु की कुल मात्रा को प्रदर्शित करता है। इन आरेखों के प्रयोग से संख्याओं का तुलनात्मक अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।

दंड आरेखों की रचना (Drawing of Bar Diagrams)
दंडचित्र बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है-
1. मापक (Scale) वस्तु को मात्रा के अनुसार मापक निश्चित करना चाहिए। भाषक तीन बातों पर निर्भर करता है-
(क) कागत का विस्तार।
(ख) अधिकतम संख्या।
(ग) न्यूनतम संख्या।
मापक अधिक बड़ी या अधिक छोटी नहीं होनी चाहिए।
2. दंडों की लंबाई (Length of Bars) दंडों की चौड़ाई समान रहती है, परंतु लंबाई मात्रा के अनुसार घटती-बढ़ती है।
3. शेड करना (Shading) दंड रेखा खींचने के पश्चात् उसे काला कर दिया जाता है या छायांकन का प्रयोग किया जाता है।
4. मध्यांतर (Interval) दंड रेखाओं के मध्य अंतर रखा जाता है।
5. आँकड़ों को निश्चित करना ( Determination of Datas) सर्वप्रथम आँकड़ों को संख्या के अनुसार क्रमवार तथा पूर्णांक बना लेना चाहिए।

गुण-दोष (Merits and Demerits)-

  1. यह आँकड़े दिखाने की सबसे सरल विधि है।
  2. इनके द्वारा तुलना करना आसान है।
  3. दंडचित्र बनाने कठिन हैं जब समय अवधि बहुत अधिक हो।
  4. जब अधिकतम तथा न्यूनतम संख्या में बहुत अधिक अंतर | हो, तो दंडचित्र नहीं बनाए जा सकते हैं।

दंड आरेखों के प्रकार (Types of Bar Diagrams ) दंड आरेख मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
1. क्षैतिज दंड आरेख (Horizontal Bars) ये सरल दंड आरेख हैं। इन दंडों से किसी वस्तु का कुछ वर्षों का वार्षिक उत्पादन, जनसंख्या आदि दिखाए जाते हैं ये समान चौड़ाई के होते हैं। ये आसानी से पढ़े जा सकते हैं। सरल दंड आरेख किसी वस्तु के मूल्यों के केवल एक ही गुण को प्रदर्शित करते हैं। इन मूल्यों को आरोही (Ascending) क्रम में व्यवस्थित कर लेना चाहिए। इससे आरेख दंडों की ऊंचाई लगातार बढ़ती जाती है या घटती जाती है। इस विधि से मूल्यों की तुलना करना आसान हो जाता है। क्षैतिज दंड आरेख लंबवत् दंड ओरेखों की अपेक्षा में अच्छे माने जाते हैं क्योंकि इन पर मापक लिखने तथा पढ़ने में सुविधा रहती है।

2. लंबवत् दंड आरेख (Vertical Bars) ये आरेख किसी आधार रेखा के ऊपर खड़े देशों के रूप में बनाए जाते हैं। इन्हें स्तम्भी आरेख (Columnar diagrams) भी कहते हैं। आधार रेखा को शून्य माना जाता है और दंडों की ऊंचाई पैमाने के अनुसार मापी जाती है। इन दंडों से वर्षा का वितरण भी दिखाया जाता है जब उच्चतम तथा निम्नतम संख्याओं में अंतर बहुत अधिक हो तो दंड आरेख प्रयोग नहीं किए जाते दंड की लंबाई कागज के विस्तार से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि दंडों की संख्या बहुत अधिक हो तो भी ये आरेख प्रयोग नहीं किए जाते।

3. संश्लिष्ट दंड आरेख (Compound Bar )-यदि एक दंड को अनेक भागों में बांट कर उसके द्वारा कई वस्तुओं को एक साथ दिखाया जाए तो संश्लिष्ट दंड का निर्माण होता है। इन्हें मिश्रित या संयुक्त दंड आरेख भी कहा जाता है। इनसे आँकड़ों के कुल योग तथा उसके विभिन्न भागों को प्रदर्शित किया जाता है। विभिन्न भागों में अलग-अलग Shade कर दिए जाते हैं ताकि विभिन्न वस्तुएं स्पष्टतया अलग दृष्टिगोचर हों। इस विधि से जल सिंचाई के विभिन्न साधन और शक्ति के विभिन्न साधन आदि दिखाए जाते हैं।

4. प्रतिशत दंड आरेख (Percentage Bar ) किसी वस्तु के विभिन्न भागों को उस वस्तु के कुल मूल्य के प्रतिशत अंश के रूप में दिखाना हो तो प्रतिशत दंड बनाए जाते हैं। दंड की कुल लंबाई 100% को प्रकट करती है।

प्रश्न 4.
रेखाग्राफ की रचना तथा महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
सांख्यिकीय चित्रों में रेखाग्राफ का महत्व बहुत अधिक है। इसमें प्रत्येक वस्तु को दो निर्देशकों की सहायता से दिखाया जाता है यह ग्राफ किसी निश्चित समय में किसी वस्तु के शून्य में परिवर्तन को प्रकट करता है। आधार रेखा पर समय को प्रदर्शित किया जाता है जिसे ‘X’ अक्ष कहते हैं ‘Y’ अक्ष या खड़ी रेखा या किसी वस्तु मूल्य को प्रदर्शित किया जाता है। दोनों निर्देशकों के प्रतिच्छेदन के स्थान पर बिंदु लगाया जाता है। इस प्रकार विभिन्न बिंदुओं को मिलाने से एक वक्र रेखा प्राप्त होती है ये रेखाग्राफ दो प्रकार के होते है।

  1. जब किसी निरंतर परिवर्तनशील वस्तु (तापमान, नमी, वायु, भार आदि) को दिखाना हो तो उसे वक्र रेखा (Smooth Curve) से दिखाया जाता है।
  2. जब किसी रुक-रुक कर बदलने वाली वस्तु का प्रदर्शन करना हो तो विभिन्न बिंदुओं को सरल रेखा द्वारा मिलाया जाता है। जैसे वर्षा, कृषि उत्पादन, जनसंख्या।

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महत्त्व (Importance)-
रेखाग्राफ से तापमान, जनसंख्या वृद्धि, जन्म-दर, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन दिखाया जाता है। यह आसानी से बनाए जा सकते हैं। रेखाग्राफ समय तथा उत्पादन में एक स्पष्ट संबंध प्रदर्शित करते हैं। इसलिए मापक चुना जाता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से हिसार तथा अंबाला नगर के उच्चतम मासिक तापमान तथा औसत मासिक तापमान को रेखाग्राफ से दिखाओ-
तापमान-1990

नगर ज० फ० म० अ० म० जू० जु० अ० सि० अ० न० दि०
हिसार उच्चतम तापमान °C  24.1 26.8 35.2 43.1 45.0 45.6 40.1 40.3 39.0 35.2 34.3 27.5
अंबाला औसत तामयान °C 14.8 15.7 19.2 26.5 30.8 33.0 29.0 28.5 24.1 34.0 15.0 14.6

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उत्तर:
तापमान के आँकड़ों को दिखाने के लिए रेखाग्राफ का प्रयोग किया जाता है। ग्राफ पेपर पर एक आधार रेखा लो। इस रेखा पर समय दिखाने के लिए एक पैमाना निश्चित करो। पांच-पांच छोटे खानों के अंतर पर 12 मास दिखाओ। इसे क्षैतिज पैमाना कहते हैं। लंबात्मक पैमाने पर तापमान दिखाने के लिए एक खाना1°C का पैमाना निश्चित करो। प्रत्येक मास के लिए तापमान के लिए बिंदु लगाओ। इन 12 बिंदुओं को मिलाने से एक रेखाग्राफ बन जाएगा।
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प्रश्न 6.
वृत्त चक्र किसे कहते हैं? इनकी रचना और गुण-दोष बताओ।
उत्तर:
चक्र चित्र (Pie-Diagram )-यह वृत्त चित्र (Circular Diagrams) का ही एक रूप है। इसमें विभिन्न राशियों के जोड़ को एक वृत्त द्वारा दिखाया जाता है। फिर इस वृत्त को विभिन्न भागों (Sectors) में बांटकर विभिन्न राशियों का आनुपातिक प्रदर्शन अंशों में किया जाता है। इस चित्र को चक्र चित्र (Pic Diagram). पहिया चित्र (Wheel diagram) या सिक्का चित्र (Coin diagram) भी कहते हैं।

रचना- इस चित्र में वृत्त का अर्धव्यास मानचित्र के आकार के अनुसार अपनी मर्जी से लिया जाता है। इसका सिद्धांत यह है कि कुल राशि वृत्त ‘के क्षेत्रफल के बराबर होती है। एक वृत्त के केंद्र पर 360° का कोण बनता है। प्रत्येक राशि के लिए वृत्तांश ज्ञात किए जाते हैं। इसलिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
किसी राशि के लिए कोण =
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कई बार वृत्त के विभिन्न भागों को प्रभावशाली रूप से दिखाने के लिए इनमें भिन्न-भिन्न शेड (छायांकन) कर दिए जाते हैं। गुण-दोष (Merits-Demerits)

  1. चक्र चित्र विभिन्न वस्तुओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी है।
  2. ये कम स्थान घेरते हैं। इन्हें वितरण मानचित्रों पर भी दिखावा जाता है।
  3. इसका चित्रीय प्रभाव (Pictorial Effect) भी अधिक है।
  4. इसमें पूरे आँकड़ों का ज्ञान नहीं होता तथा गणना करनी कठिन होती है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों को लंबवत् (Vertical) दंड आरेख द्वारा प्रस्तुत कीजिए।
POPULATION OF INDIA FROM 1901 TO 2001

Census year Population Census year Population
1901 23,83,96,327 1961 43,92.34.77
1911 25,20,93,390 1971 54,81 i9,652
1921 25,13,21,213 1981 68,38,10051
1931 27,89,77,238 1991 34,39,30,861
1941 31,86,60,580 2001 1,02,70,15,247
1951 36,10,88,090 2011 1,21,01.93,42

उत्तर:
रचना-

  1. आधार रेखा (X-Axis) पर समय का पैमाना निश्चित करके जनगणना वर्ष दिखाओ।
  2. आधार रेखा के सिरों पर लंब रेखाएं (v- Axis) खींचो।
  3. बाई ओर लंब रेखा पर जनसंख्या दिखाने के लिए मापक निश्चित करो जैसे।” = 10 करोड़
  4. मापक के अनुसार प्रत्येक वर्ष के लिए जनसंख्या के लिए दंड की ऊँचाई ज्ञात करो आधार रेखा पर समान चौड़ाई वाली दंड रेखाएं खींचो तथा इन्हें काली छाया से सजाओ।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से कोलकाता की माध्य मासिक वर्षा का आरेख बनाओ।

वर्षा (सेमी.)
J 1
F 3
M 3
A 5
M 14
J 25
J 30
A 30
S 25
O 13
N 3
D 1

उत्तर:
रचना- आधार रेखा पर पांच-पांच छोटे खानों के अंतर पर 12 मास दिखाओ आधार रेखा के बाएँ सिरे पर एक लंब रेखा खींचो। इस रेखा पर एक छोटा खाना 1 सेंटीमीटर वर्षा का मापक बना कर प्रत्येक मास के लिए लंबवत् दंड रेखा खींचो। इन्हें काले रंग से छायांकन (Shade) करो।
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों को क्षैतिज दंड रेखाचित्र से प्रकट करो।
भारत में पक्की सडकों का वितरण

राज्य पककी सड़कों की लंबाई (कि० मी०)
1. कर्नाटक 49,753
2. मध्य प्रदेश 45,756
3. उत्तर प्रदेश 45,361
4. आध्र प्रदेश 35,714
5. तमिलनाडु 35,138
6. पंजाब 31,862

उत्तर:
रचना-सबसे पहले एक आधार रेखा खींचो। इस रेखा पर मापक बनाओ। सुविधा अनुसार मापक एक सेंटीमीटर = 10000 कि० मी० है तो मापक के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए दंड रेखा की लंबाई ज्ञात करो। समान चौड़ाई वाले क्षैतिज दंड खींचो। विभिन्न राज्यों के लिए दंड रेखाओं की लंबाई इस प्रकार होगी- कर्नाटक = 4.9 सेंटीमीटर, मध्य प्रदेश = 4.5 सेंटीमीटर, उत्तर प्रदेश = 4.5 सेंटीमीटर, आंध्र प्रदेश = 3.5 सेंटीमीटर, तमिलनाडु =3.5 सेंटीमीटर, पंजाब =3.1 सेंटीमीटर।
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प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों को मिश्रित दंड आरेख से स्पष्ट करो।
भारत का विदेशी व्यापार (₹ करोड़ में )

बहै आयात निर्यात कुल
1979-80 9,142 6,458 15,700
1980-81 12,560 6,710 19,270
1981-82 13,671 7,802 21,473
1982-83 14,047 8,637 22,684

उत्तर:
रचना (Construction )-आधार रेखा को शून्य मान कर समय दिखाओ। पांच छोटे खाने एक वर्ष के बराबर मान कर समय दिखाएं | आधार पर रेखा की बाईं ओर एक लंब रेखा लो। इस पर एक पैमाना बनाओ जिसमें एक सेंटीमीटर = ₹ 5000 करोड़ का मापक लो। विभिन्न वर्षों के लिए कुल मूल्य के अनुसार खड़े दंड रेखाओं की ऊंचाई ज्ञात करो। प्रत्येक दंड रेखा को दो उप-भागों में बांटकर आयात तथा निर्यात प्रकट करो।
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प्रश्न 11.
निम्नलिखित आँकड़ों को प्रतिशत दंड आरेख तथा वृत्तारेख से दिखाओ।
भारत में प्रमुख धर्म

धर्म पतिशत जनसंखा (सम 1991)
1. हिंदू (Hindus) 82.41
2. मुसलमान (Muslims) 11.67
3. ईसाई (Christians) 2.32
4. सिक्ख (Sikhs) 1.99
5. अन्य (Others) 1.61
कुल =100.00

उत्तर:
रचना-10 सें० मी० लंबी रेखा प्रतिशत दंड बनाओ। इस पर 1 सेंटीमीटर = 10 प्रतिशत का लो। मापक के अनुसार विभिन्न धर्मों के लिए लंब ज्ञात करो और प्रत्येक भाग को दिखाकर अंकित करो।
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वृत्तारेख (Piegraph) द्वारा-यह एक द्विमित्तीय आरेख है। इसे पाई अथवा वृत्त अथवा चक्र रेखाचित्र भी कहा जाता है। इस चित्र में विभिन्न उप-भागों को वृत्तांश के कोणों द्वारा दिखाया जाता है।

वृत्त में कुल कोण 360° होते हैं जो कि वस्तु की कुल संख्या को दिखाते हैं। प्रत्येक संख्या के लिए कोण ज्ञात कर लिए जाते हैं।
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अर्थात् दी गई संख्या के प्रतिशत को 3.6 से गुणा करो। हिंदू धर्म के लिए कोण = 296.7°, मुसलमान धर्म के लिए कोण 42°, ईसाई धर्म के लिए कोण 8.4°, सिख धर्म के लिए कोण 7.1° है तथा अन्य के लिए 5.8° है।

भारत में धार्मिक आधार पर जनसंख्या 1991
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प्रश्न 12.
निम्नलिखित आँकड़ों को रेखाग्राफ़ द्वारा प्रकट करो।
भारत की जनसंख्या वृद्धि (मिलियन में)

वर्ष जनसंख्या वर्ष जनसेख्य
1901 238 1961 439
1911 252 1971 548
1921 251 1981 683
1931 279 1991 844
1941 319 2001 1027
1951 361

उत्तर:
रचना-आधार रेखा को शून्य मानकर इस रेखा पर समय दिखाओ। पांच खाने एक वर्ष के बराबर रखकर विभिन्न वर्ष दिखाओ | आधार रेखा पर बाईं ओर लंब रेखा खींचकर मापक बनाओ। सुविधा के अनुसार मापक 1 सें० मी० = 100 मिलियन हो। प्रत्येक वर्ष की जनसंख्या के लिए खड़े अक्ष पर बिंदु निर्धारित करो। विभिन्न बिंदुओं को सरल रेखा से मिला कर रेखाग्राफ बनाओ।
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प्रश्न 13.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बंबई (मुंबई ) नगर का तापमान तथा वर्षा का रेखाग्राफ बनाओ।

जि० फ० मा० अ० म० जू० जु० अ० सि० अ० न० दि०
तापमान °C 22.5 22. 27 30 29 28 28 28 28 27 26 25
वर्षा (सें० मी०) 2 2 × × 4 50 60 36 26 6 4 ×

उत्तर:
तापमान तथा वर्षा को जब इकट्ठा प्रदर्शित किया जाए तो इसे संयुक्त रेखा तथा दंड ग्राफ कहते हैं। वर्षा को खड़े दंडों द्वारा दिखाया जाता है तथा तापमान को रेखाग्राफ द्वारा दिखाया जाता है। रचना-ग्राफ पेपर पर एक आधार रेखा लो। इस पर समय दिखाने के लिए एक पैमाना निश्चित करो। पांच-पांच छोटे खानों के अंतर पर 12 मास दिखाओ। इसे क्षैतिज पैमाना (Horizontal Scale) कहते हैं। आधार रेखा के सिरों पर लंब खींचो। एक लंब पर तापमान के लिए मापक बनाओ। दूसरे लंब पर वर्षा दिखाने के लिए मापक बनाओ। इसे लंबवत् मापक (Vertical Scale) कहते हैं। मापक के अनुसार वर्षा को खड़ी दंड रेखाओं द्वारा दिखाओ। प्रत्येक भाग के तापमान के लिए बिंदु लगाओ। इन 12 बिंदुओं को मिलाने से एक रेखाग्राफ बन जाएगा।
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प्रश्न 14.
प्रवाह आरेखों पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
प्रवाह आरेख ( Flow Diagrams)-इन आरेखों से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की गतिशीलता एवं गति सघनता को दिखाया जाता है। इस प्रकार यह मानचित्र दो तथ्यों पर आधारित है-

  •  प्रवाह की दिशा
  • प्रवाह की मात्रा

ऐसे मानचित्रों को प्रवाह मानचित्र (Flow maps ) भी कहते हैं।

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उदाहरण-

  • जल, रेल, राजमार्गों पर वाहनों की संख्या।
  • ढोया गया माल जैसे गेहूँ, इस्पात आदि।
  • आयात-निर्यात व्यापार।

रचना-

  • क्षेत्र का रेखा-मानचित्र दो जिसमें सभी नगर तथा परिवहन मार्ग निश्चित हों।
  • प्रदर्शित किए जाने वाले तत्व के आँकड़े उपलब्ध हों।
  • एक मापक के अनुसार प्रत्येक मार्ग की मोटाई वाहनों की संख्या के अनुपात में मापी जाए।

गुण-दोष (Merits-Demerits)-

  • इन मानचित्रों द्वारा सभी मार्गों पर प्रवाह की मात्रा का महत्त्व एक साथ प्राप्त हो जाता है।
  • विभिन्न दिशाओं से मार्गों के मिलने के कारण संगम नगरों का महत्त्व बढ़ जाता है।
  • विभिन्न नगरों के प्रभाव क्षेत्र का ज्ञान होता है।
  • विभिन्न केंद्रों के अंतर्संबंधों का पता चलता है।

उदाहरण-निम्नलिखित बस सेवा संबंधी आँकड़ों को प्रवाह मानचित्र द्वारा दिखाइए।

पानीपत से प्रमुख स्थानों की बस सेवा

नूहार बर सेवा संख्या
करनाल 70
दिल्ली 50
रोहतक 20
अंबाला 90
जींद 25
  1. रेखा-मानचित्रों पर इन नगरों की स्थिति दिखाओ।
  2. इन नगरों के मध्य सड़क मार्ग बनाओ।
  3. प्रत्येक सड़क मार्ग पर रेखा की मोटाई बसों की संख्या ( मापक के अनुसार) अंकित करें।
  4. प्रत्येक मार्ग पर बसों की संख्या तथा दिशा के लिए तीर बनाओ।
  5. मानचित्र पर बसों की संख्या का मापक बनाओ।

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प्रश्न 15.
वितरण मानचित्रों से क्या अभिप्राय है? इनकी क्या आवश्यकता है? इसका महत्त्व बताओ।
उत्तर:
वितरण मानचित्र (Distribution Maps )-वितरण मानचित्र वे मानचित्र हैं जो पृथ्वी के किसी भाग में किसी तत्व के वितरण को या मूल्य या घनत्व को प्रकट करते हैं। इन मानचित्रों पर विभिन्न भौगोलिक तत्व तथा वस्तुओं के उत्पादन को अंकित किया जाता है। जैसे- जनसंख्या, पशुधन, फसलें, खनिज आदि। इन मानचित्रों को बनाने के लिए कई विधियों का प्रयोग किया जाता है।

वितरण मानचित्रों की आवश्यकता (Necessity of distribution Maps)-
प्रारंभ में किसी वस्तु के वितरण को प्रकट करने के लिए नामांकन विधि (Writing the name of commodity) का प्रयोग किया था। जिस क्षेत्र में जो वस्तु उत्पन्न हो वहां पर उस वस्तु का नाम लिख दिया जाता था। जैसे- भारत में चावल का उत्पादन प्रकट करने के लिए गंगा के डेल्टा में Rice लिखा जाता था। परंतु इस विधि से न तो वस्तु का कुल उत्पादन और न ही उत्पादन क्षेत्र का ठीक ज्ञान होता था। इसलिए वितरण मानचित्र बनाए गए, जिनमें वैज्ञानिक ढंग पर शुद्धता हो।

भूगोल में विभिन्न तथ्यों की पुष्टि के लिए कई प्रकार के आँकड़ों (Data) का प्रयोग किया जाता है। ये आँकड़े तालिकाओं के रूप (Tables) में लिखे जाते हैं। इन आँकड़ों का अध्ययन बड़ा नीरस, कठिन होता है तथा बहुत समय नष्ट हो जाता है। आँकड़ों को इकट्ठा देखकर किसी परिणाम पर पहुंचना कठिन है। इसलिए इन आँकड़ों को वितरण मानचित्रों द्वारा प्रकट करके मस्तिष्क में एक वास्तविक चित्र की कल्पना की जा सकती है। इसलिए भौगोलिक तत्त्वों को चित्रों की भाषा में प्रकट किया जाता है।

गुण (Advantages) –
(1) यह आर्थिक भूगोल के अध्ययन में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। पृथ्वी पर विभिन्न साधन तथा मानव का वितरण इन मानचित्रों द्वारा स्पष्ट रूप से प्रकट किया जा सकता है।

(2) इन मानचित्रों से कारण तथा प्रभाव का नियम स्पष्ट हो जाता है। (They help the geographer to study the cause and effect of any distribution.) वस्तु विशेष के वितरण पर प्रभाव डालने वाले भौगोलिक तत्व समझ आ जाते हैं।

(3) आँकड़ों की लंबी-लंबी तालिकाओं को याद करना कठिन हो जाता है। परंतु वितरण मानचित्र एक तथ्य की स्थायी छाप मस्तिष्क पर छोड़ जाते हैं। (They give a visual impression.)

(4) इनका उपयोग शिक्षा संबंधी कार्य (Educational purposes) के लिए अधिक होता है।

(5) इन मानचित्रों द्वारा एक दृष्टि में ही किसी वस्तु के वितरण का तुलनात्मक ज्ञान हो जाता है। (They represent the pattern of distribution of any element.) यह स्पष्ट हो जाता है कि अमुक वस्तु किस क्षेत्र में अधिक और किस क्षेत्र में कम मिलती है।

(6) इन मानचित्रों द्वारा क्षेत्रफल और उत्पादन की मात्रा का तुलनात्मक अध्ययन होता है। (The contrast and comparison become clear at a glance.) वितरण मानचित्र वास्तविक आँकड़ों का स्थान नहीं ले सकते हैं। वास्तव में मानचित्रों के द्वारा एक भूगोलवेत्ता, केवल तथ्य प्रस्तुत कर सकता है। (Such maps supplement the data, but these do not replace the tables.)

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बिंदु मानचित्र (Dot Maps)

प्रश्न 16.
बिंदु मानचित्र से क्या अभिप्राय है? इसकी रचना के लिए क्या आवश्यकताएं हैं? इनकी रचना संबंधी समस्याओं का वर्णन करो तथा गुण-दोष बताओ।
उत्तर:
बिंदु मानचित्र ( Dot Maps )-इस विधि के अंतर्गत किसी वस्तु के उत्पादन तथा वितरण के आँकड़ों को बिंदुओं द्वारा प्रकट किया जाता है। ये बिंदु समान आकार के होते हैं। प्रत्येक बिंदु द्वारा एक निश्चित संख्या (Specific Value) प्रकट की जाती है, किसी वस्तु की निश्चित संख्या तथा मात्रा (Absolute Figures) उपलब्ध हों। वितरण मानचित्र बनाने की यह सबसे अधिक प्रचलित जब सर्वोत्तम विधि है। (This is the most common method used for showing the distribution of population, livestock, crops, minerals etc.) बिंदु मानचित्र बनाने के लिए आवश्यकताएं (Requirements for drawing Dot Maps )-बिंदु विधि द्वारा मानचित्र बनाने के लिए कुछ चीज़ों की आवश्यकता होती है।
1. निश्चित आँकड़े (Definite and Detailed Data )-जिस वस्तु का वितरण प्रकट करना हो उसके सही-सही आँकड़े उपलब्ध होने चाहिए। ये आँकड़े प्रशासकीय इकाइयों (Administrative Units) के आधार पर होने चाहिएं। जैसे जनसंख्या तहसील या जिले के अनुसार होनी चाहिए।

2. रूप-रेखा मानचित्र ( Outline Map)-उस प्रदेश का एक सीमा चित्र हो जिसमें ज़िले या राज्य आदि शासकीय भाग दिखाए हों। यह सीमा-चित्र समक्षेत्र प्रक्षेप (Equal Area Projection) पर बना हो।

3. धरातलीय मानचित्र (Relief Map)-उस प्रदेश का धरातलीय मानचित्र हो जिसमें Contours, Hills, Marshes आदि धरातल की आकृतियां दिखाई गई हों।

4. जलवायु मानचित्र (Climatic Map)-उस प्रदेश का जलवायु मानचित्र हो जिसमें वर्षा तथा तापमान का ज्ञान हो सके।

5. मृदा मानचित्र (Soil Map )-विभिन्न कृषि पदार्थों की उपज वाले मानचित्रों में भूमि के मानचित्र आवश्यक हैं क्योंकि हर प्रकार की मिट्टी का उपजाऊपन विभिन्न होता है।
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6. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Map )-जनसंख्या के वितरण के लिए भूपत्रक मानचित्रों की आवश्यकता होती है जिनमें शहरी (Urban) तथा ग्रामीण ( Rural Settlements) नगर आवागमन के साधन और नहरें आदि प्रकट की जाती हैं।

रचना-विधि (Procedure )

  1. वितरण मानचित्र की सभी आवश्यक सामग्री को इकट्ठा कर लेना चाहिए।
  2. मानचित्र पर प्रशासकीय इकाइयों (Administrative Units) को दिखाओ।
  3.  राजनीतिक या प्रशासकीय इकाइयों के विस्तार को देखकर तथा आँकड़ों के कम-से-कम और अधिक से अधिक मूल्य को देखकर एक बिंदु का मूल्य ज्ञात करो।
  4. प्रत्येक इकाई के लिए बिंदुओं की संख्या गिनकर पूर्ण अंक बनाओ।
  5. प्रत्येक इकाई में बिंदुओं की संख्या हल्के हाथ से पेंसिल से लिख दो।
  6. धरातल, जलवायु और मिट्टी के मानचित्रों की सहायता से उस क्षेत्र में नकारात्मक प्रदेश (Negative areas) को ज्ञात करो और मानचित्र में पेंसिल से अंकित करो ताकि इन स्थानों को रिक्त छोड़ा जा सके।
  7. बिंदुओं के आकार को समान कर लो।
  8. घनत्व के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में बिंदु प्रकट करके मानचित्र बनाओ।

बिंदु मानचित्र की समस्याएं (Problems of Dot Map)

1. बिंदुओं का मान (Value of a dot)
बिंदुओं को अंकित करने से पहले एक बिंदु का मूल्य निश्चित कर लेना चाहिए। (The success of the map depends upon the choice of the value of a dot.) मानचित्र को प्रभावशाली बनाने के लिए बिंदु का मूल्य ध्यानपूर्वक निश्चित करना चाहिए। कई बार गलत मूल्य के कारण बिंदुओं की संख्या बहुत अधिक हो जाती है या बहुत थोड़ी रह जाती है। मापक या मूल्य ऐसा निश्चित करना चाहिए जिसमें क्षेत्र में बिंदुओं की संख्या इतनी अधिक न हो कि उन्हें गिनना कठिन हो जाए। बिंदुओं की संख्या इतनी कम भी न हो कि कुछ प्रदेश खाली रह जाएं। मूल्य का चुनाव निश्चित करना तीन बातों पर निर्भर करता है-

  • मानचित्र का मापक (Scale of the map)
  • अधिकतम तथा न्यूनतम आंकड़े (Maximum and Minimum Figures)
  • प्रदर्शित तत्व के प्रकार (Types of the Element).

2. मानचित्र का मापक (Scale of the Map)
यदि मानचित्र लघु मापक (Small Scale) पर बना हुआ है तो बिंदुओं की संख्या बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए। एक बिंदु का मूल्य अधिक होना चाहिए ताकि बिंदुओं की संख्या इतनी हो जो उस छोटे मानचित्र में अंकित की जा सके नहीं तो अधिक बिंदुओं के कारण मानचित्र का प्रभाव स्पष्ट नहीं होगा। (The areas having low density will also appear dark and give a misleading idea.) यदि मानचित्र दीर्घ मापक पर हो तो एक बिंदु का मूल्य बहुत अधिक नहीं होना चाहिए। एक बिंदु के अधिक मूल्य के कारण कई क्षेत्रों में बिंदुओं की संख्या बहुत कम होगी (With very few dots the map will look blank.)

3. बिंदुओं को लगाना (Placing of dots)
बिंदु मानचित्र बनाते समय ऋणात्मक क्षेत्र (Negative areas) में बिंदु नहीं लगाने चाहिए। ऐसे क्षेत्र प्रायः दलदली भागों में, मरुस्थलों में, पर्वतों पर या बंजर भूमि में मिलते हैं ये क्षेत्र धरातलीय मानचित्र, मृदा मानचित्र तथा जलवायु मानचित्र की सहायता से मानचित्र पर लगाए जा सकते हैं। इन स्थानों को रिक्त छोड़ दिया जाता है क्योंकि यहां उत्पादन असंभव होता है। दीर्घ मापक मानचित्र पर क्षेत्र आसानी से दिखाए जा सकते हैं परंतु लघु मापक मानचित्रों पर इन्हें दिखाना कठिन होता है।

  • बिंदुओं की अधिक संख्या के कारण बिंदु एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। (Dots should not merge together.) इसमें मानचित्र पर संख्या गिनना असंभव हो जाता है।
  • बिंदु बिखरे हुए रूप में लगाना चाहिए अन्यथा नियमित बिंदुओं के कारण समान वितरण दिखाई देगा। (Straight rows of dots should be avoided.) जैसे कि शेडिंग मानचित्र (Shading Maps ) में दिखाई देता है। यह भौगोलिक नियम में विपरीत भी है क्योंकि उत्पादन में विभिन्नता होती है।
  • गुरुत्वीय केंद्र (Centre of Gravity) बिंदु अंकित करते समय प्रत्येक बिंदु अपने चित्र के आकर्षण केंद्र को प्रकट करे; जैसे- जनसंख्या मानचित्र में बिंदुओं के केंद्र नगरों के स्थान पर लगाने चाहिए।
  • अधिक उत्पादन के क्षेत्रों में बिंदु इकट्ठे होने चाहिए।

4. बिंदुओं का आकार (Size of the dots)
बिंदु मानचित्र की शुद्धता और सुंदरता इस बात पर निर्भर करती है कि प्रत्येक बिंदु समान आकार का हो। इनका आकार दो बातों पर निर्भर करता है-

  • मानचित्र मापक (Scale of the Map)
  • बिंदुओं की संख्या (Number of Dots)

यदि मानचित्र दीर्घ मापक पर बना हुआ है तो बिंदु कुछ बड़े हो सकते हैं परंतु लघु मापक मानचित्रों पर बिंदुओं का आकार अपेक्षाकृत छोटा होगा। इसी प्रकार यदि बिंदुओं की संख्या अधिक है तो भी बिंदु का आकार छोटा होगा। बिंदुओं को समान आकार करने के लिए विशेष प्रकार की निब प्रयोग की जाती है जैसे Le Roy Nib तथा Pazent Nib आदि।

गुण (Merits)
(1) यह मानचित्र किसी वस्तु के क्षेत्रफल के साथ-साथ उसका मूल्य या मात्रा भी प्रकट करते हैं। (This method is both quantitative and qualitative.)

(2) मानचित्र में नकारात्मक क्षेत्रों को खाली छोड़ा जा सकता है। (Waste land can be avoided.).

(3) यह मानचित्र मस्तिष्क पर एक छाप छोड़ जाते हैं कि कहां उत्पादन अधिक है और कहां कम है। (It gives visual impression.)

(4) इन मानचित्रों में रंग का गहरापन उत्पादन की मात्रा के अनुसार होता है। इसलिए यह मानचित्र वितरण के स्वरूप (Pattern of Distribution) को ठीक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। इस विधि द्वारा बिंदुओं को सरलतापूर्वक गिना जा सकता है और बिंदुओं को पुनः आँकड़ों में बदला जा सकता है। इस प्रकार किसी वस्तु की मात्रा का भी सही ज्ञान हो जाता है।

(5) इन मानचित्रों को शेडिंग मानचित्र (Shading Map) में बदला जा सकता है। अधिक बिंदुओं वाले क्षेत्र को शेड (Shade) में पूरा दिखाया जा सकता है। एक ही मानचित्र कई अन्य क्षेत्रों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-Markets, Fairs, Coal Fields Villages आदि दिखाने के लिए यह एक शुद्ध विधि है जिनमें वितरण तथा तीव्रता ठीक प्रकार से दिखाई जा सकती है।

दोष (Demerits)

  1. एक ही मानचित्र पर एक-से-अधिक वस्तुओं का वितरण नहीं दिखाया जा सकता।
  2. इनके बनाने में काफ़ी समय लगता है और यह कठिन कार्य
  3. इनका प्रयोग शिक्षा संबंधी कार्यों में किया जाता है परंतु वैज्ञानिक कार्यों के लिए सम मान रेखा-विधि ( Isopleth) का प्रयोग किया जाता है।
  4. यह मानचित्र अनुपात, प्रतिशत तथा औसत आँकड़ों के लिए प्रयोग नहीं किए जा सकते। (This method cannot be used for ratios and percentages and average figures.)
  5. बिंदु अधिक स्थान घेरते हैं।

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वर्णमात्री मानचित्र
(Shading Map)

प्रश्न 17.
वर्णमात्री मानचित्र किसे कहते हैं? इसका सिद्धान्त क्या है? इसकी रचना-विधि तथा गुण-दोष का वर्णन करो।
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र (Shading Map)- इस विधि को Choropleth Method भी कहते हैं। इस विधि में किसी एक वस्तु के वितरण को मानचित्र पर विभिन्न आभाओं या रंगों द्वारा प्रकट किया जाता है। (In this method distribution of an element is shown by different shades.) किसी रंग की अपेक्षा Black and white shading का प्रयोग करना उचित समझा जाता है।

सिद्धांत (Principle of Shading)
जैसे-जैसे किसी वस्तु में वितरण का घनत्व बढ़ता जाता है उसी प्रकार आभा (Shade ) भी अधिक गहरी होती जाती है (The lighter shades show lower densities and deeper shades show higher densities.) आभा को अधिक सघन करने के कई तरीके हैं-

  1. बिंदुओं का आकार बड़ा करके (By enlarging the dots)
  2. रेखाओं को मोटा करके (By thickening the lines)
  3. बिंदु रेखाओं को निकट करके (By bringing the lines closed together)
  4. रेखा जाल बनाकर (By crossing the lines)
  5. रंगों को गहरा करके (By increasing the depth of the colours)

प्रत्येक मानचित्र के नीचे Scheme of shades का एक सूचक (Index) दिया जाता है।

रचना-विधि (Procedure)

  1. किसी वस्तु के निश्चित आँकड़े प्राप्त करो। यह आँकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर हों।
  2. ये आँकड़े औसत के रूप में हों या प्रतिशत या अनुपात के रूप में, जैसे- जनसंख्या का घनत्व।
  3. घनत्व को प्रकट करने के लिए उचित अंतराल (Interval) चुन लेना चाहिए।
  4. अंतराल के अनुसार Shading का सूचक मानचित्र के कोने में बनाना चाहिए।
  5. यह आभा घनत्व के अनुसार गहरी होती चली जाए।
  6. प्रत्येक प्रशासकीय इकाई में घनत्व के अनुसार शेडिंग करके मानचित्र तैयार किया जा सकता है।

समस्याएं (Problems)-
1. प्रशासकीय इकाई का चुनाव (Choice Administrative Unit)-
प्राय: आँकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर एकत्रित किए जाते हैं, जिसे जिले या तहसील के अनुसार मानचित्र बनाने के लिए सबसे पहले प्रशासकीय इकाई का चुनाव करना होता है। प्रशासकीय इकाई न बहुत बड़ी होनी चाहिए और न ही बहुत छोटी। यदि काफ़ी बड़ी इकाई को चुन लिया जाए तो मानचित्र से भ्रम उत्पन्न हो सकता है कि इतने बड़े क्षेत्र में समान वितरण है। कई बार कई आँकड़े छोटी इकाइयों के आधार पर उपलब्ध नहीं होते, इसलिए उस दशा में बड़ी इकाइयां चुनी जाती हैं।

2. अंतराल का चुनाव (Choice of Intervals) –
घनता के अनुसार शेडिंग में अंतर रखा जाता है। इसी अंतर के अनुसार Scheme of Shading या Scale of Densities या सूचक बनाया जाता है। इस उद्देश्य के लिए सारे आँकड़ों को कुछ वर्गों में बांटा जाता है। यह वर्ग बनाते समय इन आँकड़ों की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

  • अधिकतम संख्या (Maximum figures)
  • निम्नतम संख्या (Minimum figures)
  • दरमियानी संख्या (Intermediate figures)

श्रेणियों की संख्या काफ़ी होनी चाहिए ताकि प्रत्येक इकाई का सापेक्षिक महत्त्व (Comparative importance) स्पष्ट रूप से दिखाई दे बहुत अधिक श्रेणियां नक्शे पर गड़बड़ कर देती हैं और बहुत कम श्रेणियों के कारण वितरण की विभिन्नता प्रकट नहीं होती। (Too many categories can be confusing and too few categories can result in little differentiation) प्रायः अंतराल नियमित (Regular) होता है परंतु यह आवश्यक नहीं है कि हर श्रेणी में अंतर समान हो।

गुण (Merits)
(1) इस विधि के द्वारा किसी वस्तु के क्षेत्रीय घनत्व (Areal density) के औसत वितरण को प्रकट किया जा सकता है। (It is useful for showing average figures or percentage or ratios.)

(2) यह विधि अधिकतर फसलें, पशु, भू-उपयोग और जनसंख्या घनत्व को प्रकट करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसके लिए क्षेत्रफल की प्रत्येक इकाई (Per unit area) के औसत आँकड़े दिए जाते हैं; जैसे-Numbers of persons per sq. km. या Number of livestock per sq. km. Yield of a crop per hectare.
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(3) एक जैसे प्रभाव के कारण यह रंग-विधि से मिलता-जुलता है। (This method is somewhat similar to colour method.)
(4) विभिन्न रंग प्रयोग करने से यह मानचित्र मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं। (It gives visual impression on the mind.)
(5) यह मानचित्र गुणात्मक होते हैं जिनमें केवल क्षेत्रफल के साथ-साथ आँकड़ों का ज्ञान हो जाता है।
(6) इस विधि से विभिन्न प्रकार के अन्य मानचित्र भी बनाए जा सकते हैं।
(7) जनसंख्या के घनत्व को प्रकट करने के कारण इसे मानवीय भूगोल का मुख्य उपकरण कहा जाता है। (Choropleth map is the chief tool of human Geographer.)

दोष (Demerits)

  1. ऐसे मानचित्रों के लिए आँकड़े इकट्ठे करना कठिन होता है।
  2. इन मानचित्रों से केवल औसत का ही पता चलता है तथा कुल उत्पादन का अनुमान लगाना कठिन होता है।
  3. इस विधि द्वारा किसी क्षेत्र में समान वितरण (Uniform distribution) प्रकट किया जाता है जो भौगोलिक नियम के अनुसार नहीं है। किसी क्षेत्र के विभिन्न भागों में उत्पादन विभिन्न होता है।
  4. प्राय: अधिक घनत्व वाले छोटे क्षेत्र अधिक महत्त्वपूर्ण दिखाई देते हैं जबकि किसी बड़े क्षेत्र में बहुत अधिक उत्पादन है परंतु औसत घनत्व कम है। ऐसा क्षेत्र अधिक उत्पादन होते हुए भी कम महत्त्वपूर्ण दिखाई देगा।
  5. इस विधि द्वारा ऋणात्मक प्रदेश में भी उत्पादन प्रकट किया जाता है जैसे मरुस्थल, दलदल, झील आदि ऐसे क्षेत्रों में 1 उत्पन्न नहीं होता परंतु वहां उत्पादन अंकित होता है।

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प्रश्न 18.
सममान रेखा मानचित्र किसे कहते हैं? इसके विभिन्न प्रकार बताओ। इन मानचित्रों की रचना कैसे की जाती है? इनके गुण तथा दोष बताओ।
उत्तर:
सममान रेखाएं (Isopleths )-शब्द Isopleth दो शब्दों के जोड़ से बना (Isos + plethron) है Isos शब्द का अर्थ है समान तथा Plethron शब्द का अर्थ है मान इस प्रकार सममान रेखाएं वे रेखाएं हैं जिनका मूल्य, तीव्रता तथा घनत्व समान हो। ये रेखाएं उन स्थानों को आपस में जोड़ती हैं जिनका मान (value) समान हो। (Isopleths are lines of equal value in the form of quantity, intensity and density.)
सममान रेखाओं के प्रकार (Types of Isopleths) विभिन्न तत्वों को दिखाने वाली सम-रेखाओं को क्रमशः इन नामों से पुकारा जाता है-
1. समदाब रेखाएं (Isobars) समान वायु दाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समदाब रेखा कहते हैं।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 162. समताप रेखाएं (Isotherms)-समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समताप रेखा कहते हैं।
3. समंवृष्टि रेखा (Isohyets) समान वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समवृष्टि रेखा कहते हैं।
4. समोच्य रेखाएं (Contours)-समान ऊंचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समोच्च रेखा कहते हैं।
5. सममेघ रेखा (Iso Npeh) समान मेघावरण वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को सममेघ रेखा कहते हैं।
6. अन्य (Others)-जैसे समगंभीरता रेखा (Isobath), समलवणता रेखा (Iso Haline), समभूकंभ रेखा (Iso Seismal), समधूप रेखा (Isohets) अन्य उदाहरण हैं।

सममान रेखाओं की रचना (Drawing of Isopleths)-
(1) संबंधित क्षेत्र का रूप रेखा मानचित्र (Outline map) की आवश्यकता होती है। इस मानचित्र पर सभी स्थानों की स्थिति अंकित हो।
(2) इस क्षेत्र के अधिक-से-अधिक स्थानों के आँकड़े प्राप्त होने चाहिए।
(3) अधिकतम तथा न्यूनतम आँकड़ों के अनुसार इन रेखाओं के मध्य अंतराल (Interval) चुनना चाहिए। अंतराल या सममान रेखाओं की संख्या न तो कम हो और न ही अधिक हो।
(4) अंतराल का चुनाव किसी तत्व के परिवर्तन की दर पर निर्भर करता है। बड़े क्षेत्र पर दूर-दूर स्थित रेखाएँ मंद परिवर्तन प्रकट करती हैं। यदि परिवर्तन दर तीव्र हो तथा क्षेत्र कम हो तो ये रेखाएं उपयोगी सिद्ध नहीं होतीं।
(5) समान मान वाले स्थानों को मिलाकर सम-मान रेखाएँ खींची जाती हैं। यदि समान मूल्य वाले स्थान प्राप्त न हों तो विभिन्न मूल्य वाले स्थानों के बीच समानुपात दूरी पर इन रेखाओं का अन्तर्वेशन किया जाता है।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 17(6) कई बार विभिन्न मूल्य वाले क्षेत्रों को अलग-अलग स्पष्ट करने के लिए इनके बीच आभाओं (Shades ) या रंगों का प्रयोग भी किया जाता है।

गुण (Merits) –

  • सम-मान रेखाएँ वर्षा, तापमान आदि आँकड़ों के परिवर्तन को शुद्ध रूप से प्रदर्शित करती हैं।
  • ये रेखाएँ किसी स्थान पर उपस्थित मूल्य को प्रकट करती हैं।
  • अन्य विधियों की अपेक्षा यह एक अधिक वैज्ञानिक विधि है।
  • बिंदु मानचित्र तथा वर्णमात्री मानचित्रों को सम-मान रेखा, मानचित्रों में बदला जा सकता है।
  • इन मानचित्रों का प्रशासकीय इकाइयों से कोई संबंध नहीं होता है।

दोष (Demerits) –

  •  सम-मान रेखाओं का अंतर्वेशन एक कठिन कार्य है।
  • यदि आँकड़े अनेक स्थानों पर प्राप्त न हों तो ये मानचित्र नहीं बनाए जा सकते।
  • घनत्व में अधिक तथा तीव्र परिवर्तन हो तो ये मानचित्र अर्थपूर्ण नहीं रहते।
  • सम- मान रेखा-मानचित्रों पर ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या को एक साथ नहीं दिखाया जा सकता।

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मौखिक परीदा के प्रश्न (Questions For Viva-Voce)

प्रश्न 1.
आँकड़े प्रायः किस रूप में लिखे जाते हैं?
उत्तर:
तालिकाओं के रूप में।

प्रश्न 2.
दंड आरेख के मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. क्षैतिज दंड आरेख
  2. लंबवत् दंड आरेख
  3. संश्लिष्ट दंड आरेख
  4. प्रतिशत दंडारेख।

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प्रश्न 3.
दंडारेख में मापक चुनते समय किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
अधिकतम तथा न्यूनतम आँकड़ों का।

प्रश्न 4.
कौन-से दंडारेख अच्छे माने जाते हैं- क्षैतिज अथवा लंबवत्?
उत्तर:
क्षैतिज दंडारेख इनमें मापक दृष्टि के सामने होने से पढ़ने-लिखने में सुविधा रहती है।

प्रश्न 5.
भारत का विदेशी व्यापार ( आयात-निर्यात ) किस दंड आरेख द्वारा दिखाया जाता है?
उत्तर-:
संश्लिष्ट दंड आरेख

प्रश्न 6.
भारत की जनसंख्या वृद्धि किस रेखाग्राफ से दिखाई जाती है?
उत्तर:
सरल रेखाग्राफ से।

प्रश्न 7.
वृत्त चक्र कितने प्रकार के हैं?
उत्तर:

  1. चक्र चित्र (Pie-graph)
  2. मुद्रिका चित्र ( Ring Diagram)
  3. वृत्त चित्र (Circular Diagram)
  4. अंशंकित वृत्त।

प्रश्न 8.
वृत्त चित्रों का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
वृत्त का क्षेत्रफल मात्रा के अनुपात होता है।

प्रश्न 9.
भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों की संख्या किस दंड आरेख से दिखाई जाती है?
उत्तर:
प्रतिशत दंड आरेख से।

प्रश्न 10.
वितरण मानचित्र के दो मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. गुणात्मक (Qualitative)
  2. मात्रात्मक (Quantitative)

प्रश्न 11.
हरियाणा राज्य की जिलावार कुल जनसंख्या वितरण किस विधि से दिखाई जाती है?
उत्तर:
बिंदु विधि (Dot Method)।

प्रश्न 12.
एक बिंदु का मूल्य चयन किन दो तत्वों पर निर्भर
उत्तर:

  1. अधिकतम न्यूनतम आँकड़े।
  2. मानचित्र का विस्तार।

प्रश्न 13.
नकारात्मक प्रदेश क्या होते हैं?
उत्तर:
मरुस्थल, दलदली प्रदेश यहां कुछ नहीं होता।

प्रश्न 14.
बिंदु विधि से किस प्रकार के मानचित्र बनते हैं?
उत्तर:
गुणात्मक तथा मात्रात्मक।

प्रश्न 15.
वर्णं मात्री मानचित्र किस प्रकार के मानचित्र हैं?
उत्तर:
गुणात्मक।

प्रश्न 16.
हरियाणा राज्य की जिलावार जनसंख्या घनत्व किस विधि से दिखाई जाती है?
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

प्रश्न 17.
वर्णमात्री मानचित्र का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में आभा का गहरापन घनत्व के अनुपात में होता है।

प्रश्न 18.
किसी वर्णमात्री मानचित्र (राज्य के) में प्रशासकीय इकाई क्या होती है?
उत्तर:
जिला या तहसील।

प्रश्न 19.
वर्णमात्री मानचित्र में वर्ग अंतराल क्या समान होता है?
उत्तर:
नहीं।

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