Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम

प्रश्न 6.1.
कॉपर का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा किया जाता है, परन्तु जिंक का नहीं । व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
कॉपर का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा किया जा सकता है। क्योंकि कॉपर कम क्रियाशील धातु (विद्युत रासायनिक श्रेणी में नीचे ) है, जबकि Zn ( जिंक) अत्यधिक क्रियाशील (विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर) धातु है अतः इसको ZnSO4 विलयन से आसानी से प्रतिस्थापित करना संभव नहीं है इसलिए जिंक का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6.2.
फेन प्लवन विधि में अवनमक की क्या भूमिका है?
उत्तर:
फेन प्लवन विधि में अवनमक एक घटक (अशुद्धि) के साथ संकुल बना लेता है एवं इसे झाग में आने से रोकता है। उदाहरण- NaCN, ZnS के लिए अवनमक का कार्य करता है। PbS के लिए नहीं। अतः किसी अयस्क में PbS तथा ZnS दोनों उपस्थित हैं केवल PbS ही फेन बनाता है अतः इस विधि से PbS को ZnS से पृथक् किया जा सकता है।

प्रश्न 6.3.
अपचयन द्वारा ऑक्साइड अयस्कों की अपेक्षा पाइराइट से ताँबे का निष्कर्षण अधिक कठिन क्यों है?
उत्तर:
कार्बन, सल्फाइड अयस्कों के लिए अच्छा अपचायक नहीं है। जबकि यह ऑक्साइड अयस्कों के लिए अच्छा अपचायक है। अतः अपचयन द्वारा ऑक्साइड अयस्कों की अपेक्षा पाइराइट (सल्फाइड अयस्क) से ताँबे का निष्कर्षण अधिक मुश्किल है तथा अधिकांश सल्फाइडों के विरचन की गिब्ज़ ऊर्जा CS2 के विरचन की गिब्ज ऊर्जा से अधिक होती है। वास्तव में CS2 एक ऊष्माशोषी यौगिक है अतः अपचयन से पहले सल्फाइड अयस्कों का संगत ऑक्साइडों में भर्जन करना उचित रहता है।

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प्रश्न 6.4.
व्याख्या कीजिए-
(1) मंडल परिष्करण
(2) स्तंभ वर्णलेखिकी।
उत्तर:
1. मंडल परिष्करण या जोन परिष्करण – मंडल परिष्करण द्वारा अतिशुद्ध धातु प्राप्त होती है। यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि अशुद्धियों की विलेयता धातु की ठोस अवस्था की अपेक्षा गलित अवस्था में अधिक होती है। इस विधि में अशुद्ध धातु की छड़ के एक किनारे पर एक वृत्ताकार गतिशील हीटर (तापक) लगा होता है। जो छड़ को हर तरफ से घेरे रहता है। हीटर जैसे ही आगे बढ़ता है, गलित मण्डल भी आगे बढ़ता जाता है और गलित से शुद्ध धातु क्रिस्टलित हो जाती है तथा अशुद्धियाँ पास वाले गलित जोन में चली जाती हैं।

इस प्रक्रिया को कई बार दोहराते हैं तथा हीटर को एक ही दिशा में बार-बार चलाते जाते हैं। अशुद्धियाँ छड़ के एक किनारे पर एकत्रित हो जाती हैं, जिसे काटकर अलग कर लेते हैं। इस विधि से अति शुद्ध अर्धचालकों तथा अन्य शुद्ध धातुओं; जैसे – जर्मेनियम, सिलिकॉन, बोरॉन, गैलियम तथा इंडियम को प्राप्त किया जाता है।
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2. वर्णलेखिकी या क्रोमेटोग्रैफी विधि – वर्णलेखिकी (क्रोमेटोग्रफी) किसी मिश्रण के विभिन्न घटकों को पृथक् करने की विधि होती है । वर्णलेखिकी पद ग्रीक भाषा के शब्द क्रोमा अर्थात् रंग से लिया गया है क्योंकि प्रारम्भ में इसे रंगीन पदार्थों को पृथक् करने में प्रयुक्त किया गया था। वर्णलेखिकी, अधिशोषण तथा विभेदी अभिगमन के सिद्धान्त पर आधारित होती है, अर्थात् अधिशोषक पर मिश्रण के विभिन्न घटकों का अधिशोषण भिन्न-भिन्न होता है। मिश्रण को द्रव या गैसीय माध्यम में रखा जाता है जो कि अधिशोषक में से गुजरता है।

स्तम्भ में विभिन्न घटक भिन्न- भिन्न स्तरों पर अधिशोषित हो जाते हैं। इसके पश्चात् अधिशोषित घटक उपयुक्त विलायक (निक्षालक) द्वारा निक्षालित किए जाते हैं। गतिशील माध्यम की भौतिक अवस्था, अधिशोष्य पदार्थ की प्रकृति तथा गतिशील माध्यम के गमन की प्रक्रिया पर निर्भर करती है। वर्णलेखिकी कई प्रकार की होती है- पेपर वर्णलेखिकी, स्तम्भ वर्णलेखिकी, पतली परत वर्णलेखिकी तथा गैस वर्णलेखिकी। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण वर्णलेखिकी स्तम्भ वर्णलेखिकी है।

प्रश्न 6.5.
673K ताप पर C तथा CO में से कौनसा अच्छा अपचायक है ?
उत्तर:
कम ताप जैसे 673K पर △G°( CO, CO2) रेखा, △G°(C, CO2) रेखा के नीचे है, अतः 673K पर C तथा CO में से CO अच्छा अपचायक है।

प्रश्न 6.6.
कॉपर के वैद्युत अपघटनी शोधन में ऐनोड पंक में उपस्थित सामान्य तत्वों के नाम दीजिए। ये वहाँ कैसे उपस्थित होते हैं?
उत्तर:
कॉपर के वैद्युत अपघटनी शोधन में ऐनोड पंक में एन्टीमनी सेलेनियम, टेल्यूरियम, चाँदी, सोना तथा प्लेटिनम इत्यादि धातुएँ उपस्थित होती हैं क्योंकि ये कॉपर की तुलना में कम विद्युत धनी (कम क्रियाशील ) होती हैं अतः इनका ऐनोड पर ऑक्सीकरण नहीं होता तथा ये ऐनोड के नीचे ऐनोड पंक के रूप में जमा हो जाती हैं।

प्रश्न 6.7.
आयरन (लोहे) के निष्कर्षण के दौरान वात्या भट्टी के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली अभिक्रियाओं को लिखिए।
उत्तर:
(i) वात्या भट्टी के ऊपरी भाग में जहाँ ताप परिसर 500- 800K होता है, निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं-
3Fe2O3 + CO → 2Fe3O4 + CO2
Fe3O4 + 4CO → 3FeO + CO2
Fe2O3 + CO → 2FeO + CO2

(ii) वात्या भट्टी के मध्य भाग में जहाँ ताप परिसर 900-1500K होता है, निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं-
C + CO2 → 2CO
FeO + CO → Fe + CO2
CaCO3 → CaO + CO2
CaO + SiO2 → CaSiO3

(iii) वात्या भट्टी के नीचे के भाग में जहाँ उच्च ताप होता है, कोक जलकर CO2 बनाता है जो कोक से अपचयित होकर CO बनाता है।
C + O2 → CO2
CO2 + C → 2CO
FeO + C → Fe + CO

प्रश्न 6.8.
जिंक ब्लेंड से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं को लिखिए।
उत्तर:
जिंक ब्लेंड (ZnS) से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
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प्रश्न 6.9.
कॉपर के धातुकर्म में सिलिका की भूमिका समझाइए ।
उत्तर:
कॉपर के धातुकर्म में सिलिका (SiO2), गालक (Flux ) की तरह कार्य करता है जो कि कॉपर के साथ उपस्थित FeO की अशुद्धि से क्रिया करके उसे स्लेग (कीट) के रूप में पृथक् कर देता है।
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प्रश्न 6.10.
यदि तत्व सूक्ष्म मात्रा में प्राप्त हुआ हो तो शोधन की कौन-सी तकनीक अधिक उपयोगी होगी?
उत्तर:
जब कोई तत्व सूक्ष्म मात्रा में प्राप्त हुआ है तो शोधन की स्तम्भ वर्णलेखिकी विधि अधिक उपयोगी होगी।

प्रश्न 6.11.
यदि किसी तत्व में उपस्थित अशुद्धियों के गुण तत्व से मिलते जुलते हों तो आय शोधन के लिए किस विधि का सुझाव देंगे ?
उत्तर:
जब किसी तत्व में उपस्थित अशुद्धियों के गुण तत्व से मिलते हों तो शोधन के लिए स्तम्भ वर्ण लेखिकी (कॉलम क्रोमेटोग्राफी) विधि का ही प्रयोग करेंगे।

प्रश्न 6.12.
निकल के शोधन की विधि समझाइए |
उत्तर:
निकल (Ni) का शोधन मॉन्ड की विधि द्वारा किया जाता है। इस विधि में निकल को कार्बन मोनोक्साइड के साथ गरम करने से वाष्पशील निकल टेट्राकार्बोनिल संकुल बन जाता है-
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इस संकुल को और अधिक ताप पर गरम करते हैं, तो यह विघटित होकर शुद्ध Ni दे देता है तथा CO पृथक् हो जाती है।
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प्रश्न 6.13.
उदाहरण देते हुए भर्जन व निस्तापन में अंतर बताइए ।
उत्तर:
निस्तापन प्रक्रम में अयस्क ( जलयोजित ऑक्साइड, कार्बोनेट, हाइड्रॉक्साइड आदि) को धातु के गलनांक से नीचे के ताप पर धीरे- धीरे गर्म करते हैं, जिससे वाष्पशील पदार्थ (CO2, H2O) निकल जाते हैं तथा धातु ऑक्साइड बच जाता है। परन्तु भर्जन में सल्फाइड अयस्कों को वायु (O2) की उपस्थिति में धातु के गलनांक से नीचे के ताप पर परावर्तनी भट्टी में तेजी से गर्म करते हैं जिससे सल्फाइड अयस्क ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाते हैं तथा SO2 गैस निकल जाता है।
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प्रश्न 6.14.
ढलवाँ लोहा ( Cast Iron) कच्चे लोहे (Pig Iron) से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर:
ढलवाँ लोहे में लगभग 3% कार्बन होता है जबकि कच्चे लोहे में लगभग 4% कार्बन होता है। कच्चे लोहे के साथ रद्दी लोहा तथा कोक को गलाकर ढलवाँ लोहा बनाया जाता है।

प्रश्न 6.15.
अयस्कों तथा खनिजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
अयस्क ( Ores) – वे खनिज जिनसे धातु का निष्कर्षण आसानी से हो सके तथा आर्थिक रूप से लाभदायक हों उन्हें अयस्क कहते हैं। जैसे कॉपर ग्लांस (Cu2S), क्युपराइट (Cu2O) तथा कॉपर पाइराइटीज (CuFeS2) कॉपर के अयस्क हैं, लेकिन इनमें से कॉपर पाइराइटीज ही कॉपर का अयस्क है।
खनिज (Minerals) – भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक पदार्थ ( यौगिक ) जिन्हें खनन द्वारा प्राप्त किया जाता है उन्हें खनिज कहते हैं।

प्रश्न 6.16.
कॉपर मेट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तक में क्यों रखा जाता है?
उत्तर:
कॉपर मेट में Cu2S तथा FeS उपस्थित होते हैं। परिवर्तक में FeS, FeO में बदल जाता है। इसे दूर करने में सिलिका सहायक होता है क्योंकि FeO सिलिका से क्रिया द्वारा आयरन सिलिकेट (कीट) बनकर पृथक् हो जाता है, अतः परिवर्तक पर सिलिका की परत चढ़ाते हैं।
2FeS + 3O2 → 2FeO + 2SO2
FeO + SiO2 → FeSiO3 आयरन सिलिकेट (कीट)

प्रश्न 6.17.
ऐलुमिनियम के धातु कर्म में क्रायोलाइट की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के धातु कर्म में क्रायोलाइट इसलिए मिलाया जाता है क्योंकि इससे मिश्रण का गलनांक कम हो जाता है तथा विलयन की चालकता बढ़ जाती है।

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प्रश्न 6.18.
निम्न कोटि के कॉपर अयस्कों के लिए निक्षालन क्रिया को कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
कॉपर का निक्षालन अम्ल या बैक्टिरिया ( जीवाणु) द्वारा किया जाता है। विलयन में उपस्थित Cu+2 को आयरन या H2 गैस से क्रिया करवाकर पृथक् किया जाता है।
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प्रश्न 6.19.
CO का उपयोग करते हुए अपचयन द्वारा जिंक ऑक्साइड से जिंक का निष्कर्षण क्यों नहीं किया जाता ?
उत्तर:
Zn के अपचयन के लिए आवश्यक ताप ( 1673K) पर एलिंघम आलेख में \(\Delta_r G^{\ominus}\)(CO, CO2) रेखा, \(\Delta_r G^{\ominus}\)(Zn, ZnO) की रेखा से ऊपर है। अतः इस अभिक्रिया के लिए \(\Delta_r G^{\ominus}\) का मान धनात्मक होगा।
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इसलिए 1673K ताप पर ZnO के लिए CO को अपचायक के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसके लिए अत्यधिक उच्च ताप की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 6.20.
Cr2O3 के विरचन के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान – 540 kJmol-1 है तथा Al2O3 के लिए – 827kJ mol-1 है। क्या Cr2 O3 का अपचयन Al से संभव है?
उत्तर:
Al द्वारा Cr2O3 के अपचयन के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होता है अतः Cr2O3 का अपचयन Al द्वारा संभव है।
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समीकरण ( 2 ) में से समीकरण (1) को घटाने पर,
\(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = 827 – (-540)
= – 287 kJ mol-1

प्रश्न 6.21.
C व CO में से ZnO के लिए कौन-स अपचायक अच्छा है?
उत्तर:
ZnO के अपचयन के लिए C व CO में से C (कार्बन) अच्छा अपचायक है, क्योंकि एलिंघम आलेख में \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) ( C. CO) रेखा, \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\)(Zn, ZnO) की रेखा से नीचे है अतः इस अभिक्रिया के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होगा।
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प्रश्न 6.22.
किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? अपने मत के समर्थन में दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है, यह कथन सत्य है। किसी अपचायक तथा धातु ऑक्साइड के मध्य अभिक्रिया होने के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होना चाहिए। अतः जिस अपचायक से होने वाली अपचयन अभिक्रिया का \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) ऋणात्मक होगा वह अपचायक उस अभिक्रिया के लिए उपयुक्त होगा।
उदाहरण- (i) 1000K पर Al, Cr2O3 का अपचयन कर सकता है लेकिन MgO का नहीं।
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अतः यह अभिक्रिया संभव है।
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अतः यह अभिक्रिया संभव नहीं है।

(ii) 1500K ताप पर कोक (C), ZnO का अपचयन कर सकता है लेकिन CO नहीं ।
ZnO + C → Zn + CO; \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = -Ve
ZnO + CO → Zn + CO2; \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = +Ve

प्रश्न 6.23.
उस विधि का नाम लिखिए जिसमें क्लोरीन सहउत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। क्या होगा यदि NaCl के जलीय विलयन का वैद्युत अपघटन किया जाए?
उत्तर:
निम्नलिखित विधियों में क्लोरीन सहउत्पाद के रूप में प्राप्त होती है-
(i) गलित NaCl का वैद्युत अपघटन (डॉऊ की विधि)
(ii) जलीय NaCl का वैद्युत अपघटन (कॉसनर केलनर विधि)
NaCl के जलीय विलयन का वैद्युत अपघटन करने पर कैथोड पर H2 गैस तथा ऐनोड पर Cl2 गैस प्राप्त होती है तथा विलयन में NaOH (सोडियम हाइड्रॉक्साइड) बनता है।
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प्रश्न 6.24.
ऐलुमिनियम के वैद्युत धातु कर्म में ग्रैफाइट छड़ की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के वैद्युत धातु कर्म में ग्रेफाइट की छड़ ऐनोड की भांति कार्य करती है तथा यह Al2O3 के अपचयन से Al बनाने में सहायक होती है। ग्रेफाइट में उपस्थित कार्बन ऐनोड पर उत्सर्जित O2 से क्रिया द्वारा CO तथा CO2 बनाता है।

प्रश्न 6.25.
उन परिस्थितियों का अनुमान लगाइए जिनमें Al, MgO को अपचयित कर सकता है।
उत्तर:
1350°C (1623K ) से अधिक ताप पर Al, MgO को अपचयित कर सकता है। यह अनुमान \(\Delta \mathrm{rG}^{\Theta}\) तथा T के मध्य आरेख से लगाया जाता है। (पाठ्यनिहित प्रश्न 6.4 का उत्तर भी देखिए )

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प्रश्न 6.1.
सारणी 6.1 में दर्शाए गए अयस्कों में से कौन-से चुंबकीय पृथक्करण विधि द्वारा सांद्रित किए जा सकते हैं।
उत्तर:
वे अयस्क जिनमें एक घटक चुंबकीय (अशुद्धि या अयस्क) होता है, उन्हें इस विधि से सांद्रित किया जा सकता है। जैसे लोहयुक्त अयस्क हेमेटाइट (Fe2O3), मैग्नेटाइट (Fe2O3), सिडेराइट (FeCO3) तथा आयरन पाइराइट (FeS2) |

प्रश्न 6.2.
ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन (leaching) का क्या महत्व है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन द्वारा बॉक्साइट अयस्क में उपस्थित SiO2, Fe2O3 आदि की अशुद्धियों को निष्कासित किया जाता है।

प्रश्न 6.3.
अभिक्रिया
Cr2O3 + 2 Al → Al2 O3 + 2 Cr (△G° = – 421 kJ)
के गिब्ज़ ऊर्जा मान से लगता है कि अभिक्रिया ऊष्मागतिकी के अनुसार संभव है, पर यह कक्ष ताप पर संपन्न क्यों नहीं होती?
उत्तर:
अभिक्रिया Cr2O3 + 2 Al → Al2 O3 + 2 Cr के लिए मानक गिब्ज़ मुक्त ऊर्जा परिवर्तन ऋणात्मक है अतः यह लगता है कि यह अभिक्रिया ऊष्मागतिकी के अनुसार संभव है लेकिन कमरे के ताप पर यह अभिक्रिया नहीं होती क्योंकि इसमें सभी अभिकारक ठोस हैं। अतः इस अभिक्रिया को सम्पन्न होने के लिए निश्चित मात्रा में सक्रियण ऊर्जा की आवश्यकता होती है इसलिए गर्म करना आवश्यक है जिससे अभिकारक पिघल जाते हैं।

प्रश्न 6.4.
क्या यह सत्य है कि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में मैग्नीशियम, Al2 O3 को अपचित कर सकता है और Al, MgO को भी। वे परिस्थितियाँ कौनसी हैं?
उत्तर:
हाँ यह सत्य है कि विशिष्ट परिस्थितियों में मैग्नीशियम Al2 O3 को अपचित कर सकता है और Al, MgO को भी। △G° के T के मध्य आलेख (एलिंघम आलेख) से ज्ञात होता है कि 1623K से कम ताप पर Mg, Al2 O3 को अपचित कर सकता है तथा 1623K से अधिक ताप पर Al, MgO का अपचयन कर सकता है क्योंकि Al तथा Mg के वक्र 1623K पर एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित कर रहे हैं।

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 5 पृष्ठ रसायन

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 5 पृष्ठ रसायन Textbook Exercise Questions and Answers.

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प्रश्न 5.1.
अधिशोषण एवं अवशोषण शब्दों (पदों) के तात्पर्य में विभेद कीजिए । प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए ।
उत्तर:
अधिशोषण – किसी ठोस या द्रव द्वारा किसी पदार्थ के अणुओं को आकर्षित करके उन्हें पृष्ठ पर धारण करने को अधिशोषण कहते हैं।
अवशोषण – किसी पदार्थ का दूसरे पदार्थ में समान वितरण अवशोषण कहलाता है।
अधिशोषण में पदार्थ केवल पृष्ठ पर सांद्रित होता है जबकि अवशोषण में पदार्थ, दूसरे पदार्थ में समान रूप से वितरित हो जाता है। सिलिका जेल पर जल वाष्प का अधिशोषण होता है जबकि शुष्क CaCl2 पर जल वाष्प का अवशोषण होता है।

प्रश्न 5.2.
भौतिक अधिशोषण एवं रासायनिक अधिशोषण में क्या अंतर है?
उत्तर:
अधिशोषण के प्रकार:
ठोसों पर गैसों के अधिशोषण को अधिशोष्य तथा अधिशोषक के अणुओं के मध्य आकर्षण बलों के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-
(a) भौतिक अधिशोषण
(b) रासायनिक अधिशोषण या रसोवशोषण

(a) भौतिक अधिशोषण – या वान्डरवाल अधिशोषण – किसी ठोस की सतह पर जब गैस का अधिशोषण वान्डरवाल बलों के कारण होता है तो इसे भौतिक अधिशोषण कहते हैं। दुर्बल वान्डरवाल बलों के कारण ताप बढ़ाने से या दाब कम करने से इसे आसानी से कम किया जा सकता है। भौतिक अधिशोषण में अधिशोष्य तथा अधिशोषक के मध्य किसी प्रकार के रासायनिक बन्ध का निर्माण नहीं होता ।

(b) रासायनिक अधिशोषण या लैंग्म्यूर अधिशोषण – जब किसी ठोस की सतह पर गैस के अधिशोषण में रासायनिक बन्ध बनते हैं तो इसे रासायनिक अधिशोषण कहते हैं। ये रासायनिक बन्ध आयनिक या सहसंयोजक हो सकते हैं, लेकिन प्रायः यह बन्ध सहसंयोजक होता है। रासायनिक अधिशोषण की सक्रियण ऊर्जा उच्च होती है अतः इसे सक्रियत अधिशोषण (activated adsorption) भी कहते हैं। भौतिक एवं रासायनिक अधिशोषण साथ-साथ भी हो सकते हैं। तब निम्न ताप पर होने वाला भौतिक अधिशोषण, ताप बढ़ाने पर रासायनिक अधिशोषण में परिवर्तित हो जाता है।

उदाहरण, H2 गैस पहले Ni की सतह पर वान्डरवाल बलों के द्वारा अधिशोषित होती है। उसके बाद हाइड्रोजन के अणु, परमाणुओं में वियोजित होकर रासायनिक अधिशोषण द्वारा निकल की सतह पर बंध जाते हैं, क्योंकि उच्च ताप पर अभिकारकों को सक्रियण ऊर्जा प्राप्त हो जाती है। रासायनिक अधिशोषण में अधिशोषक की सतह पर उत्पाद बनता है, अतः विशोषण के समय उत्पाद का ही विशोषण होता है। जैसे कार्बन की सतह पर O2 के अधिशोषण से CO तथा CO2 बनती है तथा इन्हीं CO तथा CO2 का विशोषण होता है।

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प्रश्न 5.3.
कारण बताइए कि सूक्ष्म विभाजित पदार्थ अधिक प्रभावी अधिशोषक क्यों होता है?
उत्तर:
सूक्ष्म विभाजित पदार्थ का पृष्ठ क्षेत्रफल तथा सक्रिय केन्द्र अधिक होते हैं। अधिशोषक का पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं सक्रिय केन्द्र बढ़ने पर अधिशोषण की मात्रा बढ़ती है अतः सूक्ष्म विभाजित पदार्थ अधिक प्रभावी अधिशोषक होता है।

प्रश्न 5.4.
किसी ठोस पर गैस के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक कौनसे हैं ?
उत्तर:
भौतिक अधिशोषण के अभिलक्षण – या भौतिक अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक – भौतिक अधिशोषण के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

(i) अधिशोष्य की प्रकृति किसी ठोस द्वारा अधिशोषित गैस की मात्रा गैस की प्रकृति पर निर्भर करती है। सामान्यतया, आसानी से द्रवित होने वाली गैसें, जैसे – SO2, CO2, HCl, NH2 ( उच्च क्रांतिक तापयुक्त) शीघ्रता से अधिशोषित हो जाती हैं, जबकि हल्की गैसें जो आसानी से द्रवित नहीं होतीं, जैसे- H2, N2, O2, का अधिशोषण मुश्किल से होता है क्योंकि वान्डरवाल बल क्रांतिक तापों के निकट अधिक प्रबल होते हैं। इसीलिए 1g सक्रियत चारकोल, मेथेन ( क्रांतिक ताप 190K) की अपेक्षा अधिक सल्फर डाइऑक्साइड (क्रांतिक ताप 630K) अधिशोषित करता है।

(ii) अधिशोषक की प्रकृति तथा उसका पृष्ठीय क्षेत्रफल – अधिशोषक का पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ने पर अधिशोषण की मात्रा बढ़ती है तथा रन्ध्रहीन एवं कठोर पदार्थों की तुलना में सरन्ध्र व महीन चूर्णित धातुओं पर अधिशोषण अधिक मात्रा में होता है क्योंकि इनका पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होता है जैसे H2 गैस Ni पर सतह पर आसानी से अधिशोषित हो जाती है। विभिन्न धातुओं की अधिशोषण क्षमता का क्रम निम्न प्रकार होता है-
कोलाइडी Pd > सामान्य Pd Pt Au > Ni
विशिष्ट क्षेत्रफल – किसी अधिशोषक के प्रति ग्राम पृष्ठ क्षेत्रफल को उसका विशिष्ट क्षेत्रफल कहते हैं ।

(iii) विशिष्टता की कमी- भौतिक अधिशोषण की प्रकृति विशिष्ट नहीं होती क्योंकि वान्डरवाल बल व्यापक होते हैं अतः किसी भी गैस का किसी भी अधिशोषक की सतह पर अधिशोषण हो सकता है।

(iv) अधिशोषण की एन्थेल्पी – भौतिक अधिशोषण में ऊष्मा उत्सर्जित होती है अर्थात् यह एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रिया है लेकिन अधिशोष्य (गैस) तथा अधिशोषक (ठोस) के मध्य दुर्बल वान्डरवाल बल होने के कारण अधिशोषण एन्थैल्पी का मान कम (20-40 kJ mol-1 ) होता है। किसी धातु की सतह पर एक मोल गैस के अधिशोषण से परिवर्तन को अधिशोषण की एन्थैल्पी कहते हैं।

(v) उत्क्रमणीय प्रकृति ठोस की सतह पर गैस का अधिशोषण उत्क्रमणीय प्रकृति का होता है।
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(vi) अधिशोषक सक्रियण-
(i) अधिशोषक को रासायनिक तथा यांत्रिक विधियों द्वारा खुरदरा बनाकर इसका सक्रियण किया जाता है, इससे इसका पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ जाता है अतः अधिशोषण बढ़ जाता है।
(ii) ठोसों को सूक्ष्म विभाजित करने पर उनकी मुक्त संयोजकता तथा पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ जाता है।
(iii) अधिशोषक की सतह पर पहले से उपस्थित गैसों को हटाने के लिए उसे निर्वात में अतितप्त भाप के साथ गर्म करते हैं इससे प्राप्त अधिशोषक की अधिशोषण क्षमता अधिक होती है जैसे चारकोल का सक्रियण।

(vii) ताप तथा दाब का प्रभाव – दाब बढ़ाने पर किसी गैस का अधिशोषण अधिक मात्रा में होता है क्योंकि इससे गैस का आयतन कम होता है । (ले- शातैलिए का नियम) तथा ताप कम करने पर अधिशोषण अधिक होता है क्योंकि अधिशोषण एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रम है। अतः ताप बढ़ाकर तथा दाब कम करके अधिशोषित गैस को बाहर निकाला जा सकता है।

(viii) आण्विक परत की प्रकृति – भौतिक अधिशोषण में बहु आण्विक परत बनती है क्योंकि इसमें अधिशोषक तथा अधिशोष्य के मध्य वान्डरवाल बल होता है अतः थोड़े से अधिक दाब से ही अधिशोषित गैस की मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.5.
अधिशोषण समतापी वक्र क्या है? फ्रॉयन्डलिक अधिशोषण समतापी वक्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिशोषण समतापी वक्र – अधिशोषण की मात्रा दाब पर निर्भर करती है अतः निश्चित ताप पर अधिशोषित गैस की मात्रा का दाब के साथ सम्बन्ध अधिशोषण समतापी वक्र कहलाता है।
प्रतिग्राम अधिशोषक द्वारा अधिशोषित गैस की मात्रा तथा दाब के मध्य ग्राफ बनाने पर जो वक्र प्राप्त होते हैं, उन्हें वैज्ञानिक के नाम के आधार पर फ्रायन्डलिक समतापी वक्र कहते हैं।
फ्रायन्डलिक अधिशोषण समतापी वक्र – प्रयोगों के आधार पर यह पाया गया कि अधिशोषित गैस की मात्रा \(\left(\frac{x}{\mathrm{~m}}\right)\), दाब (p) बढ़ाने पर बढ़ती है। गणितीय रूप में-
\(\frac { x }{ m }\) = k.p1/n (n>1) ….(1)
यहाँ x अधिशोषक के m द्रव्यमान द्वारा p दाब पर अधिशोषित गैस का द्रव्यमान है। k तथा n स्थिरांक हैं जो अधिशोषक एवं गैस की प्रकृति पर निर्भर करते हैं।
समीकरण (1) का लघुगणक लेने पर
log \(\frac { x }{ m }\) = log k + \(\frac { 1 }{ n }\) log p …..(2)
यह समीकरण y = mx + c ( सरल रेखा का समीकरण) के समतुल्य है अतः log\(\frac { x }{ m }\) तथा log P के मध्य ग्राफ एक सरल रेखा होती है जिसका ढाल = \(\frac { 1 }{ n }\) तथा अन्तःखण्ड log k (y अक्ष पर ) के बराबर होगा। इससे समतापी वक्रों की वैधता की पुष्टि हो जाती है लेकिन समीकरण (2) दाब के निश्चित परिसर तक ही लागू होता है।

प्रश्न 5.6.
अधिशोषक के सक्रियण से आप क्या समझते हैं? यह कैसे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:
अधिशोषक के सक्रियण का अर्थ है उसकी अधिशोषण क्षमता बढ़ाना। इसे निम्न प्रकार प्राप्त किया जाता है-
(i) रासायनिक या यांत्रिक विधि से अधिशोषक की सतह को खुरदरा बनाना ।
(ii) अधिशोषण को चूर्णित ( Powdered ) या सूक्ष्म विभाजित अवस्था में परिवर्तित करना ।
(iii) ठोस पर पहले से अधिशोषित गैसों को हटाना ।

प्रश्न 5.7.
विषमांगी उत्प्रेरण में अधिशोषण की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विषमांगी उत्प्रेरण में गैसीय अवस्था या विलयन में अभिकारक, ठोस उत्प्रेरक की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं । पृष्ठ पर अभिकारकों की सांद्रता में वृद्धि होने से अभिक्रिया की दर बढ़ जाती है तथा उत्पाद बनकर, उत्प्रेरक की सतह से पृथक् हो जाते हैं एवं उत्प्रेरक की सतह पुनः अभिक्रिया के लिए उपलब्ध हो जाती है।

प्रश्न 5.8.
अधिशोषण हमेशा ऊष्माक्षेपी क्यों होता है?
उत्तर:
भौतिक अधिशोषण हमेशा ऊष्माक्षेपी होता है क्योंकि गैसीय अणुओं एवं ठोस सतह के मध्य आकर्षण ( वान्डरवाल बल) होता है। यह आकर्षण बल दुर्बल होता है अतः अधिशोषण की एन्थैल्पी कम (20-40 kJ mol-1 ) होती है।

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प्रश्न 5.9.
कोलॉइडी विलयनों को परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्थाओं के आधार पर कैसे वर्गीकृत किया जाता है ?
उत्तर:
परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्था के आधार पर आठ प्रकार के कोलाइडी तंत्र हो सकते हैं, क्योंकि परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम ठोस, द्रव अथवा गैस होते हैं। लेकिन किसी गैस का किसी अन्य गैस में मिश्रण हमेशा समांगी होता है अतः वह कोलॉइड नहीं होता । विभिन्न प्रकार के कोलॉइडों के उदाहरण तथा उनके विशिष्ट नामों के लिए भाग 5.4 में सारणी (कोलॉइडी तंत्रों के प्रकार) देखें ।

प्रश्न 5.10.
ठोसों द्वारा गैसों के अधिशोषण पर दाब एवं ताप के प्रभाव की विवेचना कीजिए ।
उत्तर:
ठोसों द्वारा गैसों के अधिशोषण पर दाब का प्रभाव- दाब बढ़ाने पर ठोस की सतह पर गैसों का अधिशोषण अधिक मात्रा में होता है। क्योंकि दाब बढ़ाने पर गैस का आयतन कम होता है। (ला शातैलिए का नियम )
ताप का प्रभाव – अधिशोषण, ऊष्माक्षेपी प्रक्रम है अतः निम्न ताप पर अधिशोषण अधिक मात्रा में होता है तथा ताप बढ़ाने पर गैस का ठोस की सतह पर अधिशोषण कम होगा।

प्रश्न 5.11.
द्रवरागी एवं द्रवविरागी सॉल क्या होते हैं? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। द्रवविरोधी सॉल आसानी से स्कंदित क्यों हो जाते हैं?
उत्तर:
परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम के मध्य अन्योन्य क्रिया के आधार पर कोलॉइडी सॉल को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है- द्रवरागी (द्रवस्नेही) अर्थात् विलायक को आकर्षित करने वाले तथा द्रवविरागी (द्रवविरोधी) अर्थात् विलायक को प्रतिकर्षित करने वाले । परिक्षेपण माध्यम जल होने पर जलस्नेही तथा जलविरोधी शब्द प्रयुक्त किया जाता है। गोंद द्रव कोलॉइड है जबकि धातुएँ एवं उनके सल्फाइडों के सॉल द्रवविरागी कोलॉइड के उदाहरण हैं। द्रवविरोधी सॉल आसानी से स्कंदित हो जाते हैं क्योंकि ये अस्थायी होते हैं एवं इनमें परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।

प्रश्न 5.12.
बहुञ्यणुक एवं वृहदाणुक कोलॉइड में क्या अंतर है ? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए । सहचारी कोलॉइड इन दोनों प्रकार के कोलॉइडों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर:
परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों के प्रकार के आधार पर कोलॉइड तीन प्रकार के होते हैं-
(i) बहुआण्विक कोलॉइड
(ii) वृहदाण्विक कोलॉइड तथा
(iii) सहचारी कोलॉइड (मिसेल)।

(i) बहुआण्विक कोलॉइड – किसी पदार्थ के घोलने पर उसके बहुत सारे परमाणु या अणु एकत्रित होकर ऐसी स्पीशीज बनाते हैं जिनका आकार कोलॉइडी सीमा (व्यास < 1nm ) में होता है, तो इन्हें बहुआण्विक कोलॉइड कहते हैं। उदाहरण, एक गोल्ड सॉल में अनेक परमाणु युक्त भिन्न-भिन्न आकारों के कण होते हैं। सल्फर सॉल में एक हजार या उससे अधिक S8 (सल्फर अणु) के कण उपस्थित होते हैं। इनमें कोलॉइडी कण वान्डरवाल बल से जुड़े होते हैं।

(ii) वृहदाण्विक कोलॉइड – वृहदाणु उपयुक्त विलायकों में ऐसे विलयन बनाते हैं जिनमें वृहदाणुओं का आकार कोलॉइडी कणों के समान होता है तो ऐसे निकाय को वृहदाण्विक कोलॉइड कहते हैं। ये कोलॉइड बहुत स्थायी होते हैं तथा कभी-कभी ये वास्तविक विलयनों के समान होते हैं। प्राकृतिक वृहदाण्विक कोलाइडों के उदाहरण हैं- स्टार्च, सेलुलोज प्रोटीन तथा एन्जाइम एवं मानव निर्मित उदाहरण हैं- पॉलीथीन, नायलोन, पॉलीस्टायरीन, संश्लेषित रबर आदि ।

(iii) सहचारी कोलॉइड (मिसेल) – कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो कम सांद्रता पर प्रबल वैद्युत अपघट्य के समान व्यवहार करते हैं परन्तु उच्च सांद्रता पर कणों का समूह बनने के कारण कोलॉइड की भाँति व्यवहार करते हैं, इन्हें सहचारी कोलॉइड या मिसेल कहते हैं। तनु करने पर ये कोलॉइड पुनः आयनों में टूट जाते हैं। उदाहरण – साबुन तथा अपमार्जक (पृष्ठ सक्रिय पदार्थ ) । मिसेल का निर्माण एक निश्चित ताप से अधिक ताप पर ही होता है जिसे क्राफ्ट ताप कहते हैं तथा जिस सान्द्रता के ऊपर मिसेल बनता है उसे क्रान्तिक मिसेल सान्द्रता कहते हैं। मिसेल में 100 या अधिक अणु हो सकते हैं।

प्रश्न 5.13.
एन्जाइम क्या होते हैं? एन्जाइम उत्प्रेरण की क्रियाविधि को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
एन्जाइम सजीव उत्प्रेरक (Biocatalyst) होते हैं जो जटिल नाइट्रोजनी कार्बनिक यौगिक हैं तथा ये जीवित पौधों एवं जन्तुओं द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं। इन्हें जैव-रासायनिक उत्प्रेरक (Bio chemical catalyst) भी कहते हैं तथा उत्प्रेरण की इस क्रिया को जैव-रासायनिक उत्प्रेरण कहते हैं।

एन्जाइम – एन्जाइम नाइट्रोजनयुक्त जटिल कार्बनिक यौगिक होते हैं जो पौधों तथा जन्तुओं द्वारा प्राप्त होते हैं। एन्जाइम उच्च अणुभार वाले प्रोटीन होते हैं जो कोलॉइडी अवस्था में होते हैं। जन्तुओं एवं पौधों में जीवन को व्यवस्थित रखने हेतु आवश्यक शारीरिक क्रियाएँ एन्जाइमों द्वारा ही उत्प्रेरित होती हैं, अतः एन्जाइमों को जैव-रासायनिक उत्प्रेरक भी कहते हैं। एन्जाइम बहुत प्रभावी उत्प्रेरक होते हैं, जो अनेक प्राकृतिक प्रक्रियाओं से सम्बन्धित अभिक्रियाओं का उत्प्रेरण करते हैं। सर्वप्रथम प्रयोगशाला में 1969 में एन्जाइम का संश्लेषण किया गया था।

एन्जाइम उत्प्रेरण – एन्जाइमों द्वारा विभिन्न अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने की प्रक्रिया को एन्जाइम उत्प्रेरण या जैव-रासायनिक उत्प्रेरण कहते हैं। ये विषमांगी उत्प्रेरण के उदाहरण हैं।
एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं के उदाहरण-
(i) स्टार्च का माल्टोस में परिवर्तन – डायस्टेज एन्जाइम स्टार्च को माल्टोस में परिवर्तित कर देता है।
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प्रश्न 5.14.
कोलॉइडों को निम्न आधार पर कैसे वर्गीकृत किया गया है ?
(क) घटकों की भौतिक अवस्था
(ख) परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति
(ग) परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के मध्य अन्योन्य क्रिया ।
उत्तर:
कोलॉइडों का वर्गीकरण
(क) घटकों की भौतिक अवस्था के आधार पर – घटकों की भौतिक अवस्था के आधार पर कोलॉइडों को आठ प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है । इसके विस्तृत विवेचन के लिए भाग 5.4 में सारणी देखें ।

(ख) परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति के आधार पर – परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति के आधार पर कोलॉइड निम्न प्रकार के होते हैं – (1) सॉल (द्रवों में ठेस) (2) जेल (ठोसों में द्रव) (3) इमल्शन (द्रव में द्रव ) । विभिन्न प्रकार के द्रवों के आधार पर सॉलों का विशिष्ट नाम दिया जाता है-
(i) एक्वासॉल या हाइड्रोसॉल (परिक्षेपण माध्यम – जल)
(ii) ऐल्कोसॉल (परिक्षेपण माध्यम – ऐल्कोहॉल)
(iii) बेन्जोसॉल) परिक्षेपण माध्यम – बेन्जीन ) ।
(ग) परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के मध्य अन्योन्य क्रिया के आधार पर – कोलॉइडी सॉल दो प्रकार के होते हैं- (1) द्रवरागी या द्रवस्नेह विलायक को आकर्षित करने वाले, (2) द्रवविरागी या द्रवविरोधी विलयक को प्रतिकर्षित करने वाले ।

प्रश्न 5.15.
निम्नलिखित परिस्थितियों में क्या प्रेक्षण होंगे?
(i) जब प्रकाश किरण पु. कोलॉइडी सॉल में से गमन करता है ।
(ii) जलयोजित फेरिक ऑक्साइड सॉल में NaCl वैद्युत अपघट्य मिलाया जाता है।
(iii) कोलॉइडी सॉल में से विद्युतधारा प्रवाहित की जाती है।
उत्तर:
(i) जब प्रकाश किरण पुंज, कोलॉ: डी सॉल में से गमन करता है तथा उसे प्रकाश के पथ की दिशा के लम्बवत् देखने पर वह मंद से प्रबल दूधियापन दर्शाता है, अर्थात् प्रकाश किरण पुंज का पागमन पथ नीले प्रकाश से प्रदीप्त हो जाता है, इसे टिन्डल प्रभाव कहते हैं । यह कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।
(ii) जलयोजित फेरिक ऑक्साइड Fe (OH), सॉल में NaCl वैद्युत अपघट्य मिलाया जाता है तो इस सॉल पर स्थित धनावेश, Cl के ऋणावेश द्वारा उदासीन हो जाता है जिससे कोलॉइडी कण पास-पास आकर अवक्षेपित हो जाते हैं।
(iii) कोलॉइडी सॉल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर कोलॉइडी कण विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर गमन कसं हैं एवं इलेक्ट्रॉड पर आवेश विसर्जित करके अवक्षेपित हो जाते हैं।

प्रश्न 5.16.
इमल्शन क्या है? इनके विभिन्न प्रकार क्या हैं? प्रत्येक प्रकार का उदाहरण दी जाए।
उत्तर:
इमल्शन (पस) – इमल्शन वे कोलॉइड हैं जिनमें सूक्ष्म विभाजित द्रव की बूँदों का दूसरे द्रव में परिक्षेपण होता है, अर्थात् परिक्षेपण माध्यम तथा परिक्षिप्त प्रावस्था दोनों ही द्रव होते हैं।
जब दो अमिश्रणीय या आंशिक मिश्रणीय द्रवों को मिलाकर तेजी से हिलाया जाता है, तो एक द्रव में दूसरे द्रव का परिक्षेपण प्राप्त होता है जिसे इमल्शन कहते हैं। सामान्यतया दो द्रवों में से एक जल होता है। इमल्शन दो प्रकार के होते हैं-
(i) तेल का जल में परिक्षेपण (o/w प्रकार) (जलीय इमल्शन) एवं
(ii) जल का तेल में परिक्षेपण (w/o प्रकार) (तेलीय इमल्शन)
प्रथम प्रकार में जल परिक्षेपण माध्यम का कार्य करता है। उदाहरण-
दूध एवं वेनीशिंग क्रीम दूध में, द्रव वसा जल में परिक्षिप्त होती है। दूसरे प्रकार में, तेल परिक्षेपण माध्यम का कार्य करता है। उदाहरण- मक्खन एवं क्रीम ।

प्रश्न 5.17.
पायसीकारक पायस को स्थायित्व कैसे देते हैं? दो पायसीकारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पायस अस्थायी होते हैं और पड़े रखने पर दो परतों में विभक्त हो जाते हैं अतः इनके स्थायित्व के लिए इनमें एक पदार्थ मिलाया जाता है, जिसे पायसीकारक कहते हैं । पायसीकारक माध्यम एवं निलंबित कणों के मध्य एक फिल्म बनाता है जिससे वे एक-दूसरे के साथ मिलकर द्रव की सतह के रूप में पृथक् न हो सकें। प्रोटीन तथा वसीय अम्लों के भारी धातुओं के लवण पायसीकारकों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 5.18.
“साबुन की क्रिया पायसीकरण एवं मिसेल बनने के कारण होती है ।” इस पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर:
मिसेल निर्माण की क्रियाविधि – मिसेल बनने की क्रियाविधि को साबुन के उदाहरण से समझा जा सकता है। पानी में विलेय साबुन उच्च वसा अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण होते हैं। उदाहरण सोडियम स्टिऐरेट (C17H35COONa) जिसे सामान्य सूत्र RCOONa से व्यक्त करते हैं। साबुन को जल में घोलने पर यह RCOO तथा Na+ आयन बनाता है।

RCOO आयन दो भागों से मिलकर बना है, एक लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला (R) जो कि अध्रुवीय पूँछ या पुच्छ (Tail) कहलाती है तथा COO को ध्रुवीय आयनिक शीर्ष या सिर (Head) कहते हैं। पूँछ वाला भाग जल प्रतिकर्षी होता है जबकि सिर वाला भाग आयनिक होने के कारण जल – आकर्षी या जलस्नेही होता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 5 Img 3

प्रश्न 5.19.
विषमांगी उत्प्रेरण के चार उदाहरण दीजिए ।
उत्तर:
विषमांगी उत्प्रेरण – किसी अभिक्रिया में जब अभिकारक एवं उत्प्रेरक भिन्न-भिन्न भौतिक अवस्था में होते हैं तो इसे विषमांगी उत्प्रेरण कहते हैं।
(i) प्लैटिनम की उपस्थिति में सल्फर डाइऑक्साइड का सल्फर ट्राइऑक्साइड में ऑक्सीकरण-
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यहाँ अभिकारक गैसीय प्रावस्था में हैं जबकि उत्प्रेरक ठोस अवस्था में हैं |

(ii) सूक्ष्म विभाजित Ni की उपस्थिति में वनस्पति तेलों का हाइड्रोजनीकरण
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इस अभिक्रिया में अभिकारक द्रव तथा गैस है जबकि उत्प्रेरक ठोस है।
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(v) ओस्टवाल्ड प्रक्रम में, प्लैटिनम की जाली पर अमोनिया का नाइट्रिक ऑक्साइड में ऑक्सीकरण-
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यहाँ अभिकारक गैस हैं जबकि उत्प्रेरक ठोस हैं।
(vi) ऐल्कीनों का बहुलकीकरण में जिग्लर नट्टा उत्प्रेरक (R3Al + TiCl4) प्रयुक्त किया जाता है। यहाँ ऐल्कीन गैस तथा जिग्लर नट्टा उत्प्रेरक ठोस है।
(vii) हाबर प्रक्रम में सूक्ष्म विभाजित आयरन की उपस्थिति में अमोनिया का बनना
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 5 Img 8
यहाँ अभिकारक गैसीय प्रावस्था में हैं जबकि उत्प्रेरक ठोस हैं।

प्रश्न 5.20.
उत्प्रेरक की सक्रियता एवं वरण क्षमता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
(a) उत्प्रेरक की सक्रियता – उत्प्रेरक की किसी रासायनिक अभिक्रिया के वेग को बढ़ाने की क्षमता को ही उसकी सक्रियता कहते हैं।
(b) उत्प्रेरक की वरण क्षमता (वरणात्मकता) – उत्प्रेरक द्वारा किसी अभिक्रिया द्वारा विशिष्ट उत्पाद बनाने की क्षमता को उसकी वरण क्षमता कहते हैं।
उदाहरण – H2 तथा CO से भिन्न-भिन्न उत्प्रेरकों द्वारा भिन्न-भिन्न उत्पाद प्राप्त होते हैं।
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प्रश्न 5.21.
जिओलाइटों द्वारा उत्प्रेरण के कुछ लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(i) जिओलाइटों द्वारा उत्प्रेरण में उत्प्रेरकी अभिक्रिया उत्प्रेरक की रंध्र संरचना तथा अभिकारक एवं उत्पाद के अणुओं के आकार पर निर्भर करती है, अतः जिओलाइट आकार वरणात्मक उत्प्रेरक कहलाते हैं।
(ii) जिओलाइटों द्वारा उत्प्रेरण, जिओलाइटों के संरंध्रों तथा कोटरों (cavities) पर भी निर्भर करता है।

प्रश्न 5.22.
आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण क्या है?
उत्तर:
आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण – वह उत्प्रेरकी अभिक्रिया जो उत्प्रेरक की रंध्र संरचना एवं अभिकारक एवं उत्पाद अणुओं के आकार पर निर्भर करती है उसे आकार वरणात्मक उत्प्रेरण कहते हैं । मधुमक्खी के छत्ते जैसी संरचना के कारण जिओलाइट अच्छे आकृति वरणात्मक उत्प्रेरक होते हैं। ये सिलिकेट्स के त्रिविमीय नेटवर्क वाले सूक्ष्मरंध्री ऐलुमिनो सिलीकेट होते हैं, जिनमें कुछ सिलिकन परमाणु ऐलुमिनियम के परमाणुओं द्वारा प्रतिस्थापित होकर Al-O-Si ढाँचा बनाते हैं। जिओलाइटों में होने वाली अभिक्रियाएँ जिओलाइटों के संरंध्रों एवं कोटरों (cavities) पर भी निर्भर करती हैं। जिओलाइट प्रकृति में पाए जाते हैं तथा उत्प्रेरक वरणात्मकता के लिए इनका संश्लेषण भी किया जाता है।

प्रश्न 5.23.
निम्न पदों (शब्दों) को समझाइए –
(i) वैद्युतकणसंचलन,
(ii) स्कंदन,
(iii) अपोहन,
(iv) टिन्डल प्रभाव |
उत्तर:
(i) वैद्युत कण संचलन (Electrophoresis) – कोलॉइडी विलयन में कणों पर धनावेश या ऋणावेश होता है। जब एक कोलॉइडी विलयन में डूबे हुये दो प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों पर विद्युत विभव लगाया जाता है तो कोलॉइडी कण विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर गमन करते हैं। इसे वैद्युतकणसंचलन कहते हैं। धनात्मक आवेशित कण कैथोड की ओर तथा ऋणात्मक आवेशित कण ऐनोड की ओर गति करते हैं।

(ii) स्कंदन (Coagulation) – द्रवविरागी (द्रवविरोधी) सॉल का स्थायित्व कोलॉइडी कणों पर आवेश के कारण होता है। यदि किसी प्रकार से इनका आवेश हटा दिया जाये तो कोलॉइडी कण एक-दूसरे के समीप आकर कंदित हो जाते हैं एवं गुरुत्व बल के कारण नीचे बैठ जाते हैं। कोलॉइडी कणों के स्कंदित होकर नीचे बैठने के प्रक्रम को प्रक्रम स्कंदन या अवक्षेपण कहते हैं।

(iii) अपोहन (Dialysis) – कोलॉइडी विलयन में घुले हुए विद्युत अपघट्य या अन्य विलेय पदार्थों को जांतव झिल्ली द्वारा पृथक् करने की प्रक्रिया को अपोहन कहते हैं।

(iv) टिन्डल प्रभाव (Tyndal effect ) – कोलॉइडी विलयन में प्रकाशकिरण पुंज गुजारकर उन्हें प्रकाश के पथ की दिशा के लम्बवत् देखने पर ये मंद से प्रबल दूधियापन दर्शाता है अर्थात् प्रकाश किरण पुंज का पारगमन पथ नीले प्रकाश से प्रदीप्त हो जाता है। इसे टिण्डल प्रभाव कहते हैं। यह कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है।

प्रश्न 5.24.
इमल्शनों (पायस) के चार उपयोग लिखिये ।
उत्तर:
इमल्शनों के उपयोग निम्नलिखित हैं-
(i) दूधिया मैग्नीशिया जो कि एक इमल्शन है, का उपयोग पेट की गड़बड़ दूर करने में किया जाता है। मैग्नीशिया Mg(OH)2 का पायस होता है।
(ii) साबुन एवं अपमार्जकों की शोधन क्रिया में इमल्शन ( पायस) बनता है।
(iii) दूध जो कि हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है, भी इमल्शन है जिसमें जल में वसा परिक्षिप्त रहती है।
(iv) धातुकर्म में अयस्क के सान्द्रण की झाग प्लवन विधि में भी पायस का योगदान होता है।

प्रश्न 5.25.
मिसेल क्या है? मिसेल निकाय का एक उदाहरण दीजिए ।
उत्तर:
मिसेल – कुछ पदार्थ विलयन में उच्च सान्द्रताओं पर कणों का एक पुंज बनाते हैं जिसे मिसेल कहते हैं। यह कोलॉइड के समान व्यवहार करता है। मिसेल सहचारी ( associated colloid) कोलॉइड द्वारा बनता है । अतः इन्हें सहचारी कोलॉइड भी कहते हैं।
मिसेल सामान्यतया पृष्ठ सक्रिय पदार्थों द्वारा बनते हैं जो कि विशिष्ट प्रकार के अणु होते हैं जिनमें द्रव – विरोधी तथा द्रवस्नेही सिरा होता है। साबुन, मिसेल बनाते हैं जैसे सोडियम ऑलिएट (C17H33 COONa+), इसमें हाइड्रोकार्बन भाग C17H33 – जलविरोधी सिरा है तथा COONa+ स्नेही सिरा है।

प्रश्न 5.26.
निम्न पदों को उचित उदाहरण सहित समझाइए –
(i) ऐल्कोसॉल,
(ii) ऐरोसॉल,
(iii) हाइड्रोसॉल।
उत्तर:
(i) ऐल्कोसॉल-वे कोलॉइडी सॉल जिनमें परिक्षेपण माध्यम ऐल्कोहॉल होता है, उन्हें एल्कोसॉल कहते हैं। उदाहरण – कोलोडियन।
(ii) ऐरोसॉल-वे कोलॉइड जिनमें द्रव, गैसीय अवस्था में परिक्षिप्त रहता है, उन्हें ऐरोसॉल कहते हैं। उदाहरण – कोहरा ।
(iii) हाइड्रोसॉल -वे कोलॉइडी सॉल जिनमें परिक्षेपण माध्यम जल होता है जिसमें ठोस के कण परिक्षिप्त रहते हैं, उन्हें हाइड्रोसॉल कहते हैं । उदाहरण – स्टार्च सॉल।

प्रश्न 5.27.
“कोलॉइड एक पदार्थ नहीं, पदार्थ की एक अवस्था है ।” इस कथन पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर:
“कोलॉइड एक पदार्थ नहीं, पदार्थ की एक अवस्था है।” यह कथन सत्य है क्योंकि एक ही पदार्थ भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में कोलॉइड तथा क्रिस्टलाभ की तरह व्यवहार दर्शाता है, अर्थात् एक परिस्थिति में वह कोलॉइड है तो दूसरी परिस्थिति में वह क्रिस्टलाभ होगा। जैसे NaCl जल में क्रिस्टलाभ (Crystalloid) की भांति व्यवहार करता है जबकि बेन्जीन में यह कोलॉइड की भांति व्यवहार करता है।

इसी प्रकार साबुन का तनु विलयन, क्रिस्टलाभ के गुण दर्शाता है। जबकि इसी का सांद्र विलयन, कोलॉइड के गुण दर्शाता है। अतः किसी पदार्थ का कोलॉइडी व्यवहार कणों के आकार पर निर्भर करता है। जब कणों का आकार 1 nm से 1000 nm की परास में होता है तो पदार्थ कोलॉइड की भांति व्यवहार करता है।

HBSE 12th Class Chemistry पृष्ठ रसायन Intext Questions

प्रश्न 5.1.
रसोवशोषण के दो अभिलक्षण दीजिए।
उत्तर:
(i) रसोवशोषण अतिविशिष्ट होता है।
(ii) रसोवशोषण अनुत्क्रमणीय होता है।

प्रश्न 5.2.
ताप बढ़ने पर भौतिक अधिशोषण क्यों घटता है?
उत्तर:
भौतिक अधिशोषण ऊष्माक्षेपी प्रक्रम होता है (△H =-ve)
अतः ली शातेलिए के नियम से ताप बढ़ाने पर साम्य पश्च दिशा में जाता है अर्थात् अधिशोषण घटता है। निम्न ताप पर भौतिक अधिशोषण आसानी सेहोता है।

प्रश्न 5.3.
अपने क्रिस्टलीय रूपों की तुलना में चूर्णित पदार्थ, अधिक प्रभावी अधिशोषक क्यों होते हैं?
उत्तर:
अधिशोषक का पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ने पर अधिशोषण की मात्रा बढ़ती है। क्रिस्टलीय रूपों की तुलना में चूर्णित एवं सरन्थ्र पदार्थों का पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होता है अतः ये अपने क्रिस्टलीय रूपों की तुलना में अधिक प्रभावी अधिशोषक होते हैं।

प्रश्न 5.4.
हॉबर प्रक्रम में हाइड्रोजन को NiO उत्प्रेरक की उपस्थिति में मेथेन के साथ भाप की अभिक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। प्रक्रम को भाप-पुन: संभवन कहते हैं। अमोनिया प्राप्त करने के लिए हॉबर प्रक्रम में CO को हटाना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
हॉबर प्रक्रम में प्रयुक्त हाइड्रोजन को निम्नलिखित अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 5 Img 10
इस अभिक्रिया में CO भी सहउत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। इस CO को अभिक्रिया माध्यम से हटाना आवश्यक है क्योंकि यह हॉबर प्रक्रम में प्रयुक्त Fe (उत्प्रेरक) से क्रिया करके [Fe(CO)5] बनाता है जो कि कमरे के ताप पर द्रव होता है अतः यह NH3 के बनने में बाधा उत्पन्न करता है तथा उच्च ताप पर CO, H2 से भी क्रिया करती है इसलिए CO उत्प्रेरक विष है तथा उत्प्रेरक की सक्रियता को कम कर देती है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 5 पृष्ठ रसायन

प्रश्न 5.5.
एस्टर का जल अपघटन प्रारंभ में धीमा एवं कुछ समय पश्चात् तीव्र क्यों हो जाता है?
उत्तर:
एस्टर के जल अपघटन की अभिक्रिया निम्नलिखित है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 5 Img 11
इस अभिक्रिया में उत्पन्न कार्बनिक अम्ल, उत्प्रेरक (स्वउत्प्रेरक) का कार्य करता है अतः एस्टर का जल अपघटन प्रारंभ में धीमा तथा कुछ समय पश्चात् तीव्र हो जाता है।

प्रश्न 5.6.
उत्त्रेरण के प्रक्रम में विशोषण की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ठोस उत्प्रेरक की सतह पर गैसीय अभिकारकों के अधिशोषण से मध्यवर्ती बनता है जिसके पश्चात् बने उत्पादों का उत्प्रेरक की सतह से विशोषण हो जाता है जिससे ठोस उत्प्रेरक की सतह पुन अभिक्रिया के लिए उपलब्ध हो जाती है। यदि विशोषण नहीं होगा तो आगे अभिक्रिया नहीं होगी अर्थात् अभिक्रिया रुक जाएगी। अतः उत्प्रेरण के प्रक्रम में विशोषण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 5.7.
आप हार्डी-शूल्से नियम में संशोधन के लिए क्या सुझाव दे सकते हैं?
उत्तर:
हार्डी-शूल्से नियम में निम्नलिखित संशोधन किया जा सकता है अर्थात् इसे इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
किसी विद्युत अपघट्य की स्कंदन शक्ति उसके स्कंदन मान के व्युत्क्रमानुपाती होती है, अर्थात् जिस विद्युत अपघट्य का स्कंदन मान कम होगा उसकी स्कंदन शक्ति अधिक होगी। दो विद्युत अपघट्यों के लिए इसकी तुलना इस प्रकार की जा सकती है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 5 Img 12
किसी विद्युत अपघट्य पर जितना अधिक आवेश होता है कोलाइड के अवक्षेपण के लिए उसकी उतनी ही कम मात्रा की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 5.8.
अवक्षेप का मात्रात्मक आकलन करने से पूर्व उसे जल से धोना आवश्यक क्यों है?
उत्तर:
अवक्षेप के मात्रात्मक आकलन करने से पूर्व उसे जल से धोना आवश्यक है क्योंकि अवक्षेप की सतह पर विद्युत अपघट्य के कुछ कण अधिशोषित होते हैं जो अवक्षेप को कोलाइडी अवस्था में परिवर्तित कर सकते हैं तथा अवक्षेप का द्रव्यमान भी बढ़ सकता है, जिससे अवक्षेप का मात्रात्मक आकलन सही नहीं होगा। अतः जल से धोने से विद्युत अपघट्य के कण फिल्टर पत्र द्वारा छनित में चले जाते हैं।

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी

प्रश्न 4.1.
निम्न अभिक्रियाओं के वेग व्यंजकों से इनकी अभिक्रिया कोटि तथा वेग स्थिरांकों की इकाइयाँ ज्ञात कीजिए-
(i) 3NO (g) → N2O(g); वेग = k[NO]2
(ii) H2O2 (aq) + 3I (aq) + 2H+ → 2H2O(I) + I3; वेग = k[H2O2][I]
(iii) CH3CHO (g) → CH4 (g) + CO(g); वेग = k[H2CHO]3/2
(iv) C2H5Cl (g) → C2H4 (g) + HCl(g); वेग = k[C2H5Cl]
उत्तर:
(i) वेग = k[NO]2
अतः अभिक्रिया की कोटि = 2
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 1
अतः k की इकाई = L mol-1 s-1

(ii) वेग = k[H2O2][I]
अभिक्रिया की कोटि = 1 + 1 = 2
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 2
अतः K की इकाई = L mol-1 s-1

(iii) वेग = k [CH3CHO]3/2
अभिक्रिया की कोटि = 1.5
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(iv) अभिक्रिया की कोटि = 1
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 4

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प्रश्न 4.2.
अभिक्रिया 2A + B → A2B के लिए वेग = k[A][B]2 यहाँ k का मान 2.0 × 10-6 mol-2 L2s-1 है। प्रारंभिक वेग की गणना कीजिए; जब [A] = 0.1 mol L-1 एवं [B] = 0.2 mol L-1 हो तथा अभिक्रिया वेग की गणना कीजिए; जब [A] घटकर 0.06mol L -1 रह जाए।
उत्तर:
अभिक्रिया 2A + B A2B के लिए प्रारंभिक वेग = k[A][B]2
k = 2.0 × 10-6 mol-2L2s-1,
दिया है – [A] = 0.1 mol L-1 तथा [B] = 0.2 mol L-1
अतः प्रारंभिक वेग = 2.0 × 10-6 × 0.1 × (0.2)2
= 2 × 10-6 × 0.1 × 0.04
= 8 × 10-9 mol L-1s-1
जब A की सांद्रता घटकर 0.06 mol L-1 रह जाती है अर्थात् 0.1 मोल A में से 0.04 मोल क्रिया करता है तो अभिक्रिया की रससमीकरणमिति के अनुसार, 2A + B → A2B
प्रारम्भिक सांद्रता 0.1 0.2
t समय पर सांद्रता (0.1 0.04) (0.2 – 9.02)
अतः [A] = 0.06M तथा [B] = 0.18 M
इस स्थिति में अभिक्रिया का वेग = k[A] [B]2
= 2 × 10-6 × 0.06 × (0.18)2
वेग = 3.888 × 109 = 3.89 × 10-9 mol L-1s-1

प्रश्न 4.3.
प्लैटिनम सतह पर NH3 का अपघटन शून्य कोटि की अभिक्रिया है । N2 एवं H2 के उत्पादन की दर क्या होगी जब k का मान 2.5 × 10-4 mol L-1s-1 हो?
उत्तर:
अमोनिया के विघटन की अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है- 2NH3 → N2 + 3H2
अभिक्रिया का वेग = \(\frac{\mathrm{d}\left[\mathrm{N}_2\right]}{\mathrm{dt}}\) = k [सांद्रता]°
क्योंकि अभिक्रिया की कोटि = शून्य
अतः = \(\frac{\mathrm{d}\left[\mathrm{N}_2\right]}{\mathrm{dt}}\) = 2.5 × 10-4 mol L-1s-1 × 1
अतः N2 के बनने की दर
= \(\frac{\mathrm{d}\left[\mathrm{N}_2\right]}{\mathrm{dt}}\) = 2.5 × 10-4 mol L-1s-1
तथा H2 के बनने की दर
= \(\frac{\mathrm{d}\left[\mathrm{H}_2\right]}{\mathrm{dt}}\) = 3 × \(\frac{\mathrm{d}\left[\mathrm{N}_2\right]}{\mathrm{dt}}\)
=3 × 2.5 × 10-4 mol L-1s-1
= 7.5 × 10-4 mol L-1s-1

प्रश्न 4.4.
डाइमेथिल ईथर के अपघटन से CH4, H2 तथा CO बनते हैं। इस अभिक्रिया का वेग निम्न समीकरण द्वारा दिया जाता है-
वेग= k[CH3OCH3]3/2
अभिक्रिया के वेग का अनुगमन बंद पात्र से बढ़ते दाब द्वारा किया जाता है, अतः वेग समीकरण को डाइमेथिल ईथर के आंशिक दाब के पद में भी दिया जा सकता है। अतः
वेग = \(\left(\mathrm{p}_{\mathrm{CH}_3 \mathrm{OCH}_3}\right)^{3 / 2}\) यदि दाब को bar में तथा समय को मिनट में मापा जाये तो अभिक्रिया के वेग एवं वेग स्थिरांक की इकाइयाँ क्या होंगी?
उत्तर:
डाइमेथिल ईथर के अपघटन की अभिक्रिया निम्न प्रकार होगी-
CH3 – O – CH3 → CH4 + H2 + CO
अभिक्रिया का वेग k = \(\left(\mathrm{p}_{\mathrm{CH}_3 \mathrm{O}-\mathrm{CH}_3}\right)^{3 / 2}\)
अतः वेग की इकाई = bar min-1 या = bar s-1
वेग स्थिरांक, HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 5
अतः वेग स्थिरांक की इकाई bar-1/2 s-1 होगी।

प्रश्न 4.5.
रासायनिक अभिक्रिया के वेग पर प्रभाव डालने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रासायनिक अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं-
(i) अभिकारकों की प्रकृति
(ii) अभिकारकों की सांद्रता (गैसों के संदर्भ में दाब )
(iii) ताप
(iv) उत्प्रेरक ।

(i) अभिकारकों की सान्द्रता – द्रव्यअनुपाती क्रिया के नियम के अनुसार अभिकारकों की सान्द्रता बढ़ाने पर अभिक्रिया का वेग बढ़ता है। अभिक्रिया वेग को अभिकारकों की सान्द्रता के पदों में व्यक्त करना वेग नियम (Rate Law) या वेग व्यंजक या वेग समीकरण कहलाता है। गैसीय अभिक्रियाओं में दाब बढ़ाने पर अभिक्रिया का वेग उस दिशा में बढ़ता है जिस तरफ गैसीय अणुओं की संख्या कम होती है।

(ii) अभिकारकों की सांद्रता – अभिक्रिया मिश्रण का विलोडन करने पर अणुओं के मध्य समागम बढ़ता है जिससे अभिक्रिया का वेग बढ़ता है।

(iii) ताप – सामान्यतः ताप बढ़ाने पर अभिक्रिया का वेग बढ़ता है क्योंकि ताप बढ़ाने पर क्रियाकारकों की गतिज ऊर्जा बढ़ती है जिसके कारण ऊर्जित अणुओं की सान्द्रता बढ़ती है अतः प्रति सेकण्ड प्रभावी टक्करों की संख्या बढ़ती है। प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि 10°C ताप बढ़ाने पर अभिक्रिया का वेग 2 से 3 गुना हो जाता है। अभिक्रिया वेग पर ताप के प्रभाव की व्याख्या आरेनियस के सिद्धान्त से की जाती है, जिसका विस्तृत अध्ययन आगे खण्ड 4.5 में करेंगे।

(iv) उत्प्रेरक – उत्प्रेरक वे पदार्थ होते हैं जिनमें स्वयं में कोई स्थायी रासायनिक परिवर्तन के बिना, अभिक्रिया वेग को बढ़ाते हैं । वह पदार्थ जो अभिक्रिया के वेग को बढ़ा देता है लेकिन वह स्वतः रासायनिक रूप से अपरिवर्तित रहता है उसे उत्प्रेरक कहते हैं तथा इस क्रिया को उत्प्रेरण कहते हैं ।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 30
वे पदार्थ जो अभिक्रिया के वेग को कम करते हैं उन्हें निरोधक (Inhibitor) कहते हैं।

प्रश्न 4.6
किसी अभिक्रियक के लिए एक अभिक्रिया द्वितीय कोटि की है। अभिक्रिया का वेग कैसे प्रभावित होगा; यदि अभिक्रियक की सांद्रता-
(i) दुगुनी कर दी जाए
(ii) आधी कर दी जाए।
उत्तर:
किसी अभिक्रिया के लिए कोटि 2 है अतः अभिक्रिया का वेग = k [सांद्रता]2
(i) अभिक्रियक की सांद्रता दुगुनी करने पर,
वेग = k [2 सांद्रता]2
वेग = 4k [सांद्रता]2
अतः अभिक्रिया का वेग चार गुना हो जाता है।

(ii) अभिक्रियक (Reactant) की सांद्रता आधी कर दी जाए तो
वेग = k[\(\frac { 1 }{ 2 }\) – सांद्रता]2
वेग = \(\frac { 1 }{ 4 }\) [सांद्रता]2
अतः अभिक्रिया का वेग एक चौथाई अर्थात् \(\frac { 1 }{ 4 }\) गुना हो जाता है।

प्रश्न 4.7.
वेग स्थिरांक पर ताप का क्या प्रभाव पड़ता है? ताप के इस प्रभाव को मात्रात्मक रूप से कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं?
उत्तर:
सामान्यतः ताप बढ़ाने पर अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है। अभिक्रिया का वेग, वेग स्थिरांक के रूप में व्यक्त किया जाता है। अतः ताप बढ़ाने पर वेग स्थिरांक का मान बढ़ जाता है।
किसी रासायनिक अभिक्रिया के ताप में 10°C की वृद्धि करने पर वेग स्थिरांक लगभग दुगुना हो जाता है।
अतः ताप गुणांक = \(\frac{k_{(t+10)}}{k_t} \approx 2\)
अभिक्रिया के वेग की ताप पर निर्भरता को आर्रेनिअस समीकरण से समझा सकते हैं।
k = Ae-Ea/RT
यहाँ A आर्रेनिअस गुणक अथवा आवृत्ति गुणक है, इसे पूर्व – चरघातांकी गुणक भी कहते हैं। यह किसी विशिष्ट अभिक्रिया के लिए स्थिरांक होता है। यहाँ R गैस स्थिरांक है तथा Ea सक्रियण ऊर्जा है जिसे J mol-1 में व्यक्त करते हैं।
अभिकारक तथा उत्पाद के मध्य सक्रियित संकुल बनता है जिसके बनने के लिए आवश्यक ऊर्जा को सक्रियण ऊर्जा (Ea) कहते हैं।

प्रश्न 4.8.
एक प्रथम कोटि की अभिक्रिया के निम्नलिखित आँकड़े प्राप्त हुए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 6
30 से 60 सेकंड समय अंतराल में औसत वेग की गणना कीजिए ।
उत्तर:
औसत वेग = (rav) = – \(\frac{\Delta[\mathrm{R}]}{\Delta \mathrm{t}}\) = \(\frac{c_2-c_1}{\Delta t}\)
= – \(\frac{(0.17-0.31)}{60-30}\) = – \(\frac{(-0.14)}{30}\)
= 4.666 × 10-3
= 4.67 × 10-3 mol L-1 s-1

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प्रश्न 4.9.
एक अभिक्रिया A के प्रति प्रथम तथा B के प्रति द्वितीय कोटि की है
(i) अवकल वेग समीकरण लिखिए।
(ii) B की सांद्रता तीन गुनी करने से वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(iii) A तथा B दोनों की सांद्रता दुगुनी करने से वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यह अभिक्रिया A के प्रति प्रथम तथा B के प्रति द्वितीय कोटि की है अतः
(i) अवकल वेग समीकरण-
वेग = k [A]1 [B]2
अतः अभिक्रिया की कुल कोटि = 1 + 2 = 3

(ii) B की सांद्रता तीन गुनी करने पर –
वेग = k[A]1 [3B]2
|वेग = 9k[A]1 [B]2
अतः अभिक्रिया का वेग 9 गुना हो जाता है।

(iii) A तथा B दोनों की सांद्रता दुगुनी करने पर –
वेग = k[A]1 [B]2
वेग = k[2A]1 [2B]2
वेग = 8k [A]1 [B]2
अतः अभिक्रिया का वेग 8 गुना हो जाता है।

प्रश्न 4.10.
A और B के मध्य अभिक्रिया में A और B की विभिन्न प्रारंभिक सांद्रताओं के लिए प्रारंभिक वेग (r0) नीचे दिए गए हैं।
A और B के प्रति अभिक्रिया की कोटि क्या है?
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 7
उत्तर:
माना कि A के संदर्भ में अभिक्रिया की कोटि = a तथा B के संदर्भ में अभिक्रिया की कोटि = b
अतः वेग = k[A]a[B]b
पाठ्यांक (Reading) (1) तथा (2) से
5.07 × 10-5 = k [0.20]a [0.30]b …..(1)
5.07 × 10-5 = k [0.20]a [0.10]b …..(2)
समीकरण (2) में समीकरण (1) का भाग देने पर,
\(\frac{5.07 \times 10^{-5}}{5.07 \times 10^{-5}}\) = \(\frac{\mathrm{k}[0.20]^a[0.10]^b}{\mathrm{k}[0.20]^{\mathrm{a}}[0.30]^{\mathrm{b}}}\)
या 1 = \(\left(\frac{0.10}{0.30}\right)^b\) या b = 0

पाठ्यांक (2) से,
वेग = 5.07 × 10-5 = k [0.20]a [0.10]b
5.07 × 10-5 = k [0.20]a × 1 ….(3)
(∵ b = 0)

पाठ्यांक (3) से,
वेग = 1.43 × 10-4 = k[0.40]a [0.05]b ….(4)
= k[0.40]a × 1

समीकरण (4) को समीकरण (3) से भाग देने पर,
\(\frac{1.43 \times 10^{-4}}{5.07 \times 10^{-5}}\) = \(\frac{k[0.40]^a}{k[0.20]^a}\) = \(\left[\frac{0.4}{0.2}\right]^{\mathrm{a}}\) = (2)a
(2)a = 2.820
a log 2 = log 2.820
a = \(\frac{\log 2.820}{\log 2}\) = \(\frac{0.4490}{0.3010}\)
a = 1.49 = 1.5
अतः A के लिए अभिक्रिया की कोटि, 1.5 तथा B के लिए अभिक्रिया की कोटि शून्य है।

प्रश्न 4.11.
2A + B → C + D अभिक्रिया की बलगतिकी अध्ययन करने पर निम्नलिखित परिणाम प्राप्त हुए। अभिक्रिया के लिए वेग नियम तथा वेग स्थिरांक ज्ञात कीजिए ।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 8
उत्तर:
अभिक्रिया 2A + B → C + D के लिए वेग व्यंजक-
वेग k[A]a[B]b
यहाँ a तथा b, A व B के संदर्भ में अभिक्रिया की कोटि है।
प्रयोग I तथा IV से-
वेग = 6.0 × 10-3 = k[0.1]a [0.1]b ….(1)
2.4 × 10-2 = k[0.4]a [0.1]b ….(2)
समीकरण ( 2 ) में समीकरण (1) का भाग देने पर,

\(\frac{2.4 \times 10^{-2}}{6.0 \times 10^{-3}}\) = \(\left(\frac{0.4}{0.1}\right)^{\mathrm{a}}\)
4 = 4a अतः a = 1
प्रयोग II तथा III से-
वेग 7.2 × 10-2 = k(0.3)a (0.2)b ….(3)
2.88 × 10-1 = k(0.3)a (0.4)b ….(4)

समीकरण (4) में समीकरण (3) का भाग देने पर,
\(\frac{2.88 \times 10^{-1}}{7.2 \times 10^{-2}}\) = \(\frac{k(0.3)^l(0.4)^b}{k(0.3)^l(0.2)^b}\)
4 = (2)b अतः b = 2
अतः a तथा b के मान से इस अभिक्रिया के लिए वेग नियम इस प्रकार लिखा जा सकता है-
a = 1 तथा b = 2

वेग नियम = k[A]1[B]2
अतः अभिक्रिया की कोटि = 1 + 2 = 3
प्रयोग I के अनुसार,
वेग = 6 × 10-3 = k[0.1]a[0.1]b, (a = 1, b = 2)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 9
अतः वेग स्थिरांक k = 6.0 M-2 min-1

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प्रश्न 4.12.
A तथा B के मध्य अभिक्रिया A के प्रति प्रथम तथा B के प्रति शून्य कोटि की है निम्न तालिका में रिक्त स्थान भरिए ।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 10
उत्तर:
A तथा B के मध्य अभिक्रिया में A के संदर्भ में अभिक्रिया प्रथम कोटि तथा B के संदर्भ में अभिक्रिया शून्य कोटि की है।
अतः इसके लिए वेग समीकरण
= k[A]1 [B]0
= k[A]
(i) प्रयोग से.
वेग = 2.0 × 10-2 = k[0.1]
अतः वेग नियतांक, k = \(\frac{2.0 \times 10^{-2}}{0.1}\) = 0.2 min-1

(ii) प्रयोग II से,
वेग = k[A]
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 11

(iii) प्रयोग III से,
वेग = k[A]
= 0.2 × 0.4
= 0.08 M min-1
= 8.0 × 10-2 2M min-1

(iv) प्रयोग IV से,
वेग = K[A]
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 12

अतः रिक्त स्थानों की पूर्ति के पश्चात् सम्पूर्ण तालिका निम्न प्रकार होगी-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 13

प्रश्न 4.13.
नीचे दी गई प्रथम कोटि की अभिक्रियाओं के ar स्थिरांक से अर्धायु की गणना कीजिए-
(i) 200 s-1
(ii) 2 min-1
(iii) 4 year-1
उत्तर:
प्रथम कोटि अभिक्रिया के लिए-
अर्धायु, t1/2 = \(\frac { 0.693 }{ k }\)

(i) वेग नियतांक, k = 200s-1
अतः t1/2 = \(\frac { 0.693 }{ 200 }\) = 0.003465
= 3.465 × 10-3 s
= 3.47 × 10-3 s

(ii) k = 2 min-1 तो t1/2 = \(\frac { 0.693 }{ 2 }\)
= 0.3465 min
= 0.35 min

(iii) k = 4 year-1 तो t1/2 = \(\frac { 0.693 }{ 4 }\) = 0.1732 year
t1/2 = 0.173 year

प्रश्न 4.14.
14C रेडियोएक्टिव क्षय की अर्धायु 5730 वर्ष है। एक पुरातत्व कलाकृति की लकड़ी में, जीवित वृक्ष की लकड़ी की तुलना में 80% 14C की मात्रा है। नमूने की आयु का परिकलन कीजिए ।
उत्तर:
अर्धायु, t1/2 = 5730 वर्ष
अतः वेग नियतांक (क्षयांक), k या λ = \(\frac{0.693}{t_{1 / 2}}\)
k = \(\frac{0.693}{5730}\)
k = 1.209 × 10-4 वर्ष-1
चूँकि रेडियोएक्टिव विघटन की अभिक्रिया प्रथम कोटि की होती है
अतः वेग नियतांक या क्षयांक
k = \(\frac{2.303}{t}\) log \(\frac{\left[R_0\right]}{[R]}\)
चूँकि 20% विघटन हो रहा है अतः t पर 14C है = 80%
[R0] = 100 तथा [R] = 80
अतः t = \(\frac{2.303}{k}\) log \(\frac { 100 }{ 80 }\)
t = \(\frac{2.303}{1.209 \times 10^{-4}}\) log 1.25
t = \(\frac{2.303}{1.209 \times 10^{-4}}\) × (0.0969)
= 0.1845 × 104 = 1845 वर्ष

प्रश्न 4.15.
गैस प्रावस्था में 318K पर N2O5 के अपघटन की [2N2O5 → 4NO2+O2] अभिक्रिया के आँकड़े आगे दिए गए हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 14
(i) [N2O5] एवं t के मध्य आलेख खींचिए ।
(ii) अभिक्रिया के लिए अर्धायु की गणना कीजिए ।
(iii) log [N2O5] एवं t के मध्य ग्राफ खींचिए ।
(iv) अभिक्रिया के लिए वेग नियम क्या है?
(v) वेग स्थिरांक की गणना कीजिए।
(vi) k की सहायता से अर्धायु की गणना कीजिए तथा इसकी तुलना (ii) से कीजिए ।
उत्तर:
(i) N2O5 की सांद्रता [N2O5] तथा t के मध्य ग्राफ खींचने पर निम्न प्रकार का ग्राफ प्राप्त होता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 15
(ii) इस अभिक्रिया के लिए अर्धायु वह समय है जब N2O5 की सांद्रता 1.63 × 10-2 M से आधी अर्थात् 0.815 × 10-2 M हो जाए ग्राफ से 1420 वर्ष आता है अतः इस अभिक्रिया की अर्धायु 1420 वर्ष है।

(iii) log[N2O5] तथा t के मध्य ग्राफ खींचने के लिए पहले N2O5 के विभिन्न मानों का log लेते हैं जो निम्न प्रकार हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 16
फिर, समय (t) तथा log [N2O5] के मध्य ग्राफ खींचते हैं जो निम्न प्रकार है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 17

(iv) log [N2O5] तथा t के मध्य ग्राफ एक सीधी रेखा है अतः अभिक्रिया प्रथम कोटि की है इसलिए वेग नियम K[N2O5]

(v) ढाल = – \(\frac { k }{ 2.303 }\) = \(\frac { -0.295 }{ 1420s }\)
अतः वेग स्थिरांक, k = \(\frac{0.295 \times 2.303}{1420 \mathrm{~s}}\)
k = 4.784 × 10-4s-1
k =4.8×10-4s-1

(vi) अर्धायु, t1/2 = \(\frac { 0.693 }{ k }\) = \(\frac{0.693}{4.8 \times 10^{-4}}\)
t1/2 = 0.1443 x 104 = 1443 s
यह अर्धायु, (ii) से प्राप्त अर्धायु के लगभग समान है।

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प्रश्न 4.16.
प्रथम कोटि की अभिक्रिया के लिए वेग स्थिरांक 60 s-1 है। अभिक्रियक को अपनी प्रारंभिक सांद्रता से 1/16 वाँ भाग रह जाने में कितना समय लगेगा?
उत्तर:
अभिक्रिया का वेग स्थिरांक = 60 s-1
अभिकारक प्रारंभिक सांद्रता का 1/16 वाँ भाग रह रहा है अर्थात् इसका 5/16 भाग क्रिया कर रहा है।
प्रथम कोटि अभिक्रिया का वेग स्थिरांक,
k = \(\frac { 2.303 }{ t }\) log \(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\)
माना, [R0] = 1 तो [R] = \(\frac { 1 }{ 16 }\)
अतः t = \(\frac { 2.303 }{ 60 }\) log\(\frac { 1 }{ 1/16 }\)
t = \(\frac { 2.303 }{ 60 }\) log\(\frac { 16 }{ 1 }\)
t = 0.03838 (1.2041)
t = 0.046s = 4.6 × 10-2 सेकंड

प्रश्न 4.17.
नाभिकीय विस्फोट का 28.1 वर्ष अर्धायु वाला एक उत्पाद 90Sr होता है। यदि कैल्सियम के स्थान पर 1 pg. Sr नवजात शिशु की अस्थियों में अवशोषित हो जाए और उपापचयन से ह्रास न हो तो इसकी 10 वर्ष एवं 60 वर्ष पश्चात् कितनी मात्रा रह जाएगी ?
उत्तर:
यहाँ नाभिकीय विखण्डन हो रहा है तथा नाभिकीय विखण्डन की सभी अभिक्रियाएँ प्रथम कोटि की होती हैं अतः
क्षयांक या वेग स्थिरांक, λ या k = \(\frac{0.693}{t_{1 / 2}}\)
k = \(\frac { 0.693 }{ 28.1 }\) = 0.02466 = 0.02467 वर्ष-1

(i) 10 वर्ष बाद 90Sr की बची हुई मात्रा –
k = \(\frac { 2.303 }{ t }\) log \(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\)
दिया गया है – [R]0 = प्रारंभिक पदार्थ है- 1 μg = 1 × 10-6 g
0.02467 = \(\frac { 2.303 }{ 10 }\) log\(\frac{\left[1 \times 10^{-6}\right]}{[\mathrm{R}]}\)
log \(\frac{1 \times 10^{-6}}{[\mathrm{R}]}\) = \(\frac{10 \times 0.02467}{2.303}\)
log \(\frac{1 \times 10^{-6}}{[\mathrm{R}]}\) = \(\frac{0.2467}{2.303}\) = 0.10707 = 0.1071
\(\frac{1 \times 10^{-6}}{[\mathrm{R}]}\) = Antilog 0.1071 = 1.279
\(\frac{1 \times 10^{-6}}{[R]}\) = 1.279
अतः [R] = \(\frac{1 \times 10^{-6}}{1.279}\) = 0.7818 × 10-6 g
[R] = 0.7818 μg

(ii) 60 वर्ष पश्चात् 90Sr की बची हुई मात्रा
k = \(\frac { 2.303 }{ t }\) log \(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\)
0.02467 = \(\frac { 2.303 }{ 60 }\) log\(\frac{1 \times 10^{-6}}{[\mathrm{R}]}\)
log\(\frac{1 \times 10^{-6}}{[\mathrm{R}]}\) = \(\frac{0.02467 \times 60}{2.303}\) = 0.6427
\(\frac{1 \times 10^{-6}}{[\mathrm{R}]}\) = Antilog 0.6427
\(\frac{1 \times 10^{-6}}{[\mathrm{R}]}\) = 4.392
[R] = \(\frac{1 \times 10^{-6}}{4.392}\) = 0.227 × 10-6 g = 0.227 μg
अतः 10 वर्ष के बाद 90Sr, 0.7818 μg बचेगा तथा 60 वर्ष के 0.227 μg बचेगा।

प्रश्न 4.18.
दर्शाइए कि प्रथम कोटि की अभिक्रिया में 99% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगा समय 90% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगने वाले समय से दुगुना होता है।
उत्तर:
किसी प्रथम कोटि अभिक्रिया के लिए समय,
t = \(\frac { 2.303 }{ 2 }\) log\(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\)
t समय बाद, R = 0.01 [R0] क्योंकि 99% अभिक्रिया हो रही है। 99% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगा समय-
t0.99 = \(\frac { 2.303 }{ k }\) = log \(\frac{[\mathrm{R}]_0}{0.01[\mathrm{R}]_0}\) = \(\frac { 2.303 }{ k }\) log 102
90% अभिक्रिया पूर्ण होने पर, [R] = 0.1 [R0]
अतः 90% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगा समय
t0.90 = \(\frac { 2.303 }{ k }\) log \(\frac{[\mathrm{R}]_0}{0.1[\mathrm{R}]_0}\) = \(\frac { 2.303 }{ k }\) log 10
अतः \(\frac{\mathrm{t}_{0.99}}{\mathrm{t}_{0.90}}\) = \(\frac { 2.303 }{ k }\) log 102 × \(\frac { k }{ 2.303 }\) × \(\frac { l }{ log 10 }\)
\(\frac{\mathrm{t}_{0.99}}{\mathrm{t}_{0.90}}\) = \(\frac{\log 10^2}{\log 10}\) = \(\frac { 2 }{ 1 }\)
\(\frac{\mathrm{t}_{0.99}}{\mathrm{t}_{0.90}}\) = \(\frac { 2 }{ 1 }\)
इससे सिद्ध होता है कि प्रथम कोटि की अभिक्रिया में 99% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगा समय, 90% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगने वाले समय से दुगुना होता है।

प्रश्न 4.19.
एक प्रथम कोटि की अभिक्रिया 30% में वियोजन होने में 40 मिनट लगते हैं। t1/2 की गणना कीजिए ।
उत्तर:
अभिक्रिया 30% हो रही है। अतः [R]0 = 1 मानने पर,
[R] = 1 – 0.3 = 0.7 तथा t = 40 मिनट
अतः वेग स्थिरांक, k = \(\frac { 2.303 }{ t }\) log\(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\)
k = \(\frac { 2.303 }{ 40 }\) log\(\frac { 1 }{ 0.7 }\)
k = 0.05757 log\(\frac { 10 }{ 7 }\)
k = 0.05757 (log 10 – log 7)
k = 0.05757 (1 – 0.8451)
k = 0.05757 × (0.1549)
k = 8.917 × 10-3 मिनट-1
k = 8.92 × 10-3 मिनट-1
t1/2 = \(\frac { 0.693 }{ k }\) = \(\frac{0.693}{8.92 \times 10^{-3}}\)
t1/2 = 07769 × 103 मिनट
t1/2 = 77.7 मिनट

प्रश्न 4.20.
543K ताप पर एजो आइसोप्रोपेन के हेक्सेन तथा नाइट्रोजन में विघटन के निम्न आँकड़े प्राप्त हुए। वेग स्थिरांक की गणना कीजिए।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 18
उत्तर:
एजोआइसोप्रोपेन का विघटन निम्न प्रकार होता है-
A → B + C
(CH3)2 CH – N = N – CH (CH3)2 N2 + C6H14
माना t = 0 पर प्रारंभिक दाब = Pi
तथा t समय पर दाब में कमी = x atm
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 19
कुल दाब = Pt
अतः t समय पर कुल दाब Pt = ( Pi – x) + x + x
Pt = Pi + x या x = Pt – Pi
यह एक प्रथम कोटि अभिक्रिया है अतः
वेग स्थिरांक, k = \(\frac { 2.303 }{ t }\) log \(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\)
k = \(\frac{2.303}{t}\) log\(\frac{P_i}{P_i-x}\)
k = \(\frac{2.303}{t}\) log\(\frac{P_i}{P_i-\left(P_t-P_i\right)}\)
k = \(\frac{2.303}{t}\) log\(\frac{P_i}{2 P_i-P_t}\)
Pi = 35 mm Hg Pt = 54.0 mm Hg (t = 360 s पर)

मान रखने पर,
k = \(\frac { 2.303 }{ 100 }\) log\(\frac { 0.5 }{ 0.4 }\)
k = \(\frac { 2.303 }{ 100 }\) log\(\frac { 35 }{ 16 }\)
k = 0.006397 (log 2.1875)
k = 0.006397 × 0.3399
k = 2.17 × 10-3 = 2.20 × 10-3 s-1

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी

प्रश्न 4.21.
स्थिर आयतन पर SO2Cl2 के प्रथम कोटि के ताप अपघटन पर निम्न आँकड़े प्राप्त हुए-
SO2Cl2(g) → SO2(g) + Cl2(g)
अभिक्रिया वेग की गणना कीजिए जब कुल दाब 0.65 atm हो ।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 20
उत्तर:
अभिक्रिया SO2Cl2(g) → SO2(g) + Cl(g) माना प्रारंभिक दाब = Pi तथा t समय पर दाब में कमी x atm प्रश्नानुसार-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 21
कुल दाब, Pt = 0.5 – x + x + x = 0.5 + x atm
t समय पर कुल दाब = 0.6 atm.
अतः 0.6 = 0.5 + x, x = 0.1 atm
इसलिए t समय (100 s) पर, SO2Cl2 का दाब
= 0.5 – x = 0.5 – 0.1 = 0.4 atm
यह एक प्रथम कोटि अभिक्रिया है अतः
k = \(\frac { 2.303 }{ t }\) log\(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\) के अनुसार
वेग स्थिरांक, HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 22
मान रखने पर,
k = \(\frac { 2.303 }{ 100 }\) log\(\frac { 0.5 }{ 0.4 }\)
k = 0.02303 log 1.25
k = 0.02303 × 0.0969
k = 2.23 × 10-3 s-1
कुल दाब = 0.65 atm पर अभिक्रिया का वेग-
कुल दाब 0.65 atm पर SO2Cl2 का आंशिक दाब, = 0.5 – x
चूँकि कुल दाब = 0.5 + x
अतः 0.65 = 0.5 + x
x = 0.65 – 0.5 = 0.15
अतः 0.5 – x 0.5 – 0.15 = 0.35
वेग = k (PSO2Cl2)
वेग = 2.23 × 10-3 × 0.35
वेग = 7.8 × 10-4 atm s-1

प्रश्न 4.22.
विभिन्न तापों पर N2O5 के अपघटन के लिए वेग स्थिरांक नीचे दिए गये हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 23
In k एवं 1/T के मध्य ग्राफ खींचिए तथा A एवं Ea की गणना कीजिए। 30°C तथा 50°C पर वेग स्थिरांक को प्रागुक्त (Predict) कीजिए।
उत्तर:
ln k तथा 1/T के मध्य ग्राफ बनाने के लिए सर्वप्रथम दिए गए मानों से निम्न प्रकार सारणी तैयार करते हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 24
फिर log k तथा 1/T के मध्य ग्राफ खींचने पर निम्नलिखित प्रकार का ग्राफ प्राप्त होता है जो कि एक सीधी रेखा है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 25
समीकरण, In k = – \(\frac{E_a}{\mathrm{RT}}\) + In A
या log k = – \(\frac{E_a}{\mathrm{2.303RT}}\) + log A के अनुसार इस ग्राफ काढाल
= – \(\frac{E_a}{\mathrm{2.303R}}\) होगा तथा अन्तःखण्ड = log A होगा।
ग्राफ से ढाल = –\(\frac { 2.4 }{ 0.00047 }\) = –\(\frac{\mathrm{E}_{\mathrm{a}}}{2.303 \mathrm{R}}\)
अतः सक्रियण ऊर्जा, Ea = \(\frac{2.4 \times 2.303 \times R}{0.00047}\)
Ea = \(\frac{2.4 \times 2.303 \times 8.314}{0.00047}\)
= 97772.64 J mol-1
Ea = 97.772 kJ mol-1
ग्राफ से अंतःखण्ड ज्ञात करके log A ज्ञात कर लेते हैं जिसका Antilog लेने पर A प्राप्त हो जाएगा जो कि लगभग 1.585 × 106 टक्कर आता है।

ग्राफ से 30°C (303K) तथा 50°C (323K ) पर log K पर ज्ञात करके, Antilog लेने पर K के मान प्राप्त हो जाते हैं जो कि लगभग 6.31 × 10-5 s-1 (303K पर ) तथा 1.585 x 10-3 s-1 (323K पर) है।

प्रश्न 4.23
546 K ताप पर हाइड्रोकार्बन के अपघटन में वेग स्थिरांक 2.418 × 10-5 s-1 है। यदि सक्रियण ऊर्जा 179.9 kJ/mol हो तो पूर्व- घातांकी गुणन का मान क्या होगा?
उत्तर:
In k = –\(\frac{E_a}{R T}\) + In A
In A = In k + \(\frac{E_a}{R T}\)
दिया है : log A = log k + \(\frac{E_a}{2.303 \mathrm{RT}}\)
Ea = 179.9 kj/mol
= 179900 J mol-1
k = 2.418 × 10-5 s-1
R = 8.314 Jk-1 तथा T = 546k
मान रखने पर,
log A = log 2.418 × 10-5 + \(\frac{179900}{2.303 \times 8.314 \times 546}\)
log A = log 10-5 + log 2.418 + \(\frac { 179900 }{ 10,454.339 }\)
log A = – 5 log10 + 0.3834) + 17.208
log A = – 5 + 0.3834 + 17.21
log A = – 4.6166 + 17.21
log A = 12.5934
A = Antilog 12.5934
A = 3.921 × 1012
अतः पूर्व घातांकी गुणन, A = 3.9 × 1012 s-1

प्रश्न 4.24.
किसी अभिक्रिया A → उत्पाद के लिए k = 2.0 × 10-2 s-1 है। यदि A की प्रारंभिक सांद्रता 1.0 mol L-1 हो तो 100s के पश्चात् इसकी सांद्रता क्या रह जाएगी ?
उत्तर:
दिए गए समीकरण के अनुसार अभिक्रिया प्रथम कोटि की है
अतः k = \(\frac { 2.303 }{ t }\) log\(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\)
k = 2.0 × 10-2 s-1, t = 100s,
[R]0 = 1.0 mol L-1, [R] = ?
मान रखने पर,
2.0 × 10-2 = \(\frac { 2.303 }{ 100 }\) log\(\frac { 1 }{ [R] }\)
log\(\frac { 1 }{ [R] }\) = \(\frac{2 \times 10^{-2} \times 100}{2.303}\)
log\(\frac { 1 }{ [R] }\) = \(\frac { 2 }{ 2.303 }\) = 0.8684
\(\frac { 1 }{ [R] }\) = Antilog 0.8684
\(\frac { 1 }{ [R] }\) = 7.386
[R] = 7.386
[R] = \(\frac { 1 }{ 7.386 }\) = 0.135 M
अतः 100s के पश्चात् A की सांद्रता, 0.135M रह जायेगी ।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी

प्रश्न 4.25.
अम्लीय माध्यम में सूक्रोस का ग्लूकोस एवं फ्रक्टोज़ में विघटन प्रथम कोटि की अभिक्रिया है । इस अभिक्रिया की अर्धायु 3.0 घंटे है। 8 घंटे बाद नमूने में सूक्रोस का कितना अंश बचेगा ?
उत्तर:
C12H12O11 + H2O → C6H12O6 + C6H12O6
सूक्रोस (आधिक्य में) ग्लूकोस फ्रक्टोस
यह प्रथम कोटि अभिक्रिया है अतः इसके लिए अर्धायु
t1/2 = \(\frac { 0.693 }{ k }\)
k = \(\frac{0.693}{t_{1 / 2}}\) = \(\frac{0.693}{3.0 \mathrm{hr}}\)
k = 0.231 hr-1
माना सूक्रोस की प्रारंभिक सांद्रता [R]0 = 1 mol
t = 8hr तथा k = 0.231 hr-1
k = \(\frac { 2.303 }{ t }\) log\(\frac{[\mathrm{R}]_0}{[\mathrm{R}]}\)
0.231 = \(\frac { 2.303 }{ 8 }\) log\(\frac { 1}{ [R] }\)
log\(\frac { 1}{ [R] }\) = \(\frac{0.231 \times 8}{2.303}\) = \(\frac { 1.848 }{ 2.303 }\)
log\(\frac { 1}{ [R] }\) = 0.8024
log\(\frac { 1}{ [R] }\) = Antilog 0.8024
\(\frac { 1}{ [R] }\) = 6.345
R = \(\frac { 1}{ 6.345 }\) = 0.1576M
अतः 8 घंटे के बाद सूक्रोस का बचा अंश = 0.158 M

प्रश्न 4.26.
हाइड्रोकार्बन का विघटन निम्न समीकरण के अनुसार होता है। Ea की गणना कीजिए ।
k = (4.5 × 1011 s-1)e-28000K/T
उत्तर:
आर्रेनिअस समीकरण के अनुसार
k = A·e ̄Ea / RT ….(1)
दिया गया है, k = (4.5 × 10-11s-1)e-28000K/T ….(2)
समीकरण (1) तथा (2) की तुलना करने पर,
– \(\frac{E_a}{R T}\) = \(\frac{-28000 K}{T}\)
या \(\frac{E_a}{R}\) = 28000K
Ea = R × 28000 K
Ea = 8.314 JK-1 mol-1 × 28,000 K
Ea = 232792 J mol-1
अतः सक्रियण ऊर्जा Ea = 232.79 kJ mol-1

प्रश्न 4.27.
H2O2 के प्रथम कोटि के विघटन को निम्न समीकरण द्वारा लिख सकते हैं-
log k = 14.34 – 1.25 × 104 K/T
इस अभिक्रिया के लिए Ea की गणना कीजिए कितने ताप पर इस अभिक्रिया की अर्धायु 256 मिनट होगी?
उत्तर:
आरेंनिअस समीकरण के अनुसार-
k = Ae -Ea/RT
log लेने पर, log k = log A – \(\frac{E_a}{2.303 R T}\) ….(1)
दिया गया है- log k = 14.34 – 1.25 × 104 K/T ….(2)
समीकरण (1) व (2) की तुलना करने पर,
\(\frac{E_a}{2.303 R}\) = 1.25 × 104

Ea = 2.303 × R × 1.25 × 104
Ea = 2.303 × 8.314 × 1.25 × 104
Ea = 23.9339 × 104 J mol-1
Ea = 23.9339 J mol-1
अतः सक्रियण ऊर्जा, Ea = 23.9339 kJ mol-1
H2O2 का विघटन प्रथम कोटि अभिक्रिया है अतः
अर्घायु, t1/2 = \(\frac{0.693}{k}\)
t1/2 = 256 min = 256 × 60 s
k = \(\frac{0.693}{t_{1 / 2}}\) = \(\frac{0.693}{256 \times 60}\)
वेग स्थिरांक k = 4.51 × 10-5 s-1
दिया गया है : log k = 14.34 – 1.25 × 104 K/T
मान रखने पर,
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 26
अतः 668.8K ताप पर अभिक्रिया की अर्धायु 256 मिनट होगी ।

प्रश्न 4.28.
10°C ताप पर A के उत्पाद में विघटन के लिए k का मान 4.5 × 103s-1 तथा सक्रियण ऊर्जा 60kJ mol-1 है, किस ताप पर k का मान 1.5 × 104s-1 होगा?
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 27

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी

प्रश्न 4.29.
298K ताप पर प्रथम कोटि की अभिक्रिया के 10% पूर्ण होने का समय 308K ताप पर 25% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगे समय के बराबर है। यदि A का मान 4 × 1010 s-1 हो तो 318K ताप पर k तथा Ea की गणना कीजिए ।
उत्तर:
प्रथम कोटि अभिक्रिया के लिए
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 28

प्रश्न 4.30.
ताप में 293K से 313K तक वृद्धि करने पर किसी अभिक्रिया का वेग चार गुना हो जाता है । इस अभिक्रिया के लिए सक्रियण ऊर्जा की गणना यह मानते हुए कीजिए कि इसका मान ताप के साथ परिवर्तित नहीं होता ।
उत्तर:
आर्रेनिअस समीकरण से,
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 Img 29

HBSE 12th Class Chemistry रासायनिक बलगतिकी Intext Questions

प्रश्न 4.1.
R → P, अभिक्रिया के लिए अभिकारक की सांद्रता 0.03M से 25 मिनट में परिवर्तित होकर 0.02M हो जाती है। औसत वेग की गणना सेकण्ड तथा मिनट दोनों इकाइयों में कीजिए।
उत्तर:
अभिक्रिया का औसत वेग = \(\frac{-\Delta[\mathrm{R}]}{\Delta \mathrm{t}}\)
∆R = [R2] – [R1] = 0.02M – 0.03M – 0.01M (a) ∆t = 25 मिनट
अतः औसत वेग = \(\frac{-(-0.01)}{25}=\frac{0.01}{25}\)
= 0.0004 M min-1

(b) ∆t = 25 x 60 = 1500 सेकण्ड
अतः औसत वेग = \(\frac { 0.01 }{ 1500 }\) = 6.66 x 10-6 ms-1
= 6.66 x 10-6 mol L-1 s-1

प्रश्न 4.2.
2A → उत्पाद, अभिक्रिया में A की सांद्रता 10 मिनट में 0.5mol L-1 से घट कर 0.4mol L-1 रह जाती है। इस समयांतराल के लिए अभिक्रिया वेग की गणना कीजिए।
उत्तर:
2A → उत्पाद के लिए
अभिक्रिया का वेग = – \(\frac{\mathrm{d}[\mathrm{A}]}{2 \mathrm{dt}}\)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी 1
A की सांद्रता में परिवर्तन = 0.4 – 0.5mol L-1
d[A] = – 0.1mol L -1
dt = 10 मिनट
अतः अभिक्रिया का वेग = \(\frac{-(-0.1)}{2 \times 10}=\frac{0.1}{20}\)
अभिक्रिया का वेग = A के विलुप्त होने की दर
= 0.005 mol L-1 min-1

प्रश्न 4.3.
एक अभिक्रिया A + B → उत्पाद, के लिए वेग नियम r = k[A]1/2[B]² से दिया गया है। अभिक्रिया की कोटि क्या है?
उत्तर:
वेग नियम r = k[A]1/2[B]² के अनुसार अभिक्रिया की कोटि 2.5 है, क्योंकि अभिक्रिया के वेग नियम व्यंजक में सांद्रता के घातांकों का योग 2.5 है जो कि अभिक्रिया की कोटि होती है।

प्रश्न 4.4.
अणु X का Y में रूपांतरण द्वितीय कोटि की बलगतिकी के अनुरूप होता है। यदि X की सांद्रता तीन गुनी कर दी जाए तो Y के निर्माण होने के वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
प्रश्नानुसार अभिक्रिया X → Y के लिए
अभिक्रिया का वेग = k [X]² … (1)
अतः अभिक्रिया की कोटि = 2
X की सांद्रता को तीन गुनी कर देने पर
अभिक्रिया का वेग = k [3X] ²
= k = 9[X]² … (2)
अतः अभिक्रिया का वेग 9 गुना हो जाता है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी

प्रश्न 4.5.
एक प्रथम कोटि की अभिक्रिया का वेग स्थिरांक 1.15 x 10-3s-1 है। इस अभिक्रिया में अभिकारक की 5g मात्रा को घटकर 3g होने में कितना समय लगेगा?
उत्तर:
प्रथम कोटि अभिक्रिया के लिए
वेग स्थिरांक k = \(\frac{2.303}{\mathrm{t}} \log \frac{\left[\mathrm{R}_0\right]}{[\mathrm{R}]}\)
t = \(\frac{2.303}{k} \log \frac{\left[R_0\right]}{[\mathrm{R}]}\)
t = समय, k = वेग स्थिरांक = 1.15 x 10-3s-1
[Ro] = अभिकारक की प्रारंभिक सान्द्रता = 5 g
[R] = अभिकारक की t समय पर सांद्रता = 3 g
अतः t = \(\frac{2.303}{1.15 \times 10^{-3}} \log \frac{5}{3}\)
t = 2 × 10³ (log 5 – log 3 )
t = 2 × 10³ (0.6990 – 0.4771)
t = 2 × 10³ (0.2219)
t = 443.8
t = 444 s

प्रश्न 4.6.
SO2Cl2 को अपनी प्रारंभिक मात्रा से मात्रा में वियोजित होने में 60 मिनट का समय लगता है। यदि अभिक्रिया प्रथम कोटि की हो तो वेग स्थिरांक की गणना कीजिए।
उत्तर:
अभिक्रिया में प्रारंभिक मात्रा से आधी मात्रा वियोजित हो रही है-
अतः t = 60 मिनट = अर्ध आयुकाल
t1/2 = \(\frac { 0.693 }{ k }\)
वेग स्थिरांक,
K = \(\frac{0.693}{\mathrm{t}_{1 / 2}}\)
t1/2 = 60 x 60 = 3600 s
k = \(\frac { 0.693 }{ 3600 }\)
= 1.925 x 10-4 s-1

प्रश्न 4.7.
ताप का वेग स्थिरांक पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
सामान्यतः ताप बढ़ाने पर वेग स्थिरांक का मान बढ़ता है। यह पाया गया है कि किसी रासायनिक अभिक्रिया में 10°C ताप वृद्धि से वेग स्थिरांक लगभग दुगुना हो जाता है। लेकिन ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाओं में ताप बढ़ाने पर वेग स्थिरांक का मान कम हो जाता है। ताप बढ़ाने पर अणुओं के मध्य प्रभावी टक्करें बढ़ती हैं जिससे अभिक्रिया का वेग भी बढ़ जाता है।

प्रश्न 4.8.
परमताप, 298 K में 10 K की वृद्धि होने पर रासायनिक अभिक्रिया का वेग दुगुना हो जाता है। इस अभिक्रिया के लिए Ea की गणना कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी 2

प्रश्न 4.9.
581K ताप पर अभिक्रिया 2HI(g) → H2(g) + I2(g) के लिए सक्रियण ऊर्जा का मान 209.5 kJ mol-1 है। अणुओं के उस अंश की गणना कीजिए जिसकी ऊर्जा सक्रियण ऊर्जा के बराबर अथवा इससे अधिक है।
उत्तर:
अणुओं का वह अंश (x) जिसकी ऊर्जा सक्रियण ऊर्जा के बराबर अथवा इससे अधिक है = \(\mathrm{e}^{-\mathrm{E}_2 / R T}\) लोग (लघुगणक) लेने पर,
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी 3

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युत रसायन

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युत रसायन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युत रसायन

प्रश्न 3.1.
निम्नलिखित धातुओं को उस क्रम में व्यवस्थित कीजिए जिसमें वे एक-दूसरे को उनके लवणों के विलयनों में से प्रतिस्थापित करती हैं-
Al, Cu, Fe, Mg एवं Zn.
उत्तर:
दी गई धातुओं का एक-दूसरे को उनके लवणों के विलयनों में प्रतिस्थापित करने का क्रम निम्नलिखित है। यह इनकी क्रियाशीलता का घटता क्रम है-
Mg Al Zn Fe Cu

प्रश्न 3.2.
नीचे दिए गए मानक इलेक्ट्रॉड विभवों के आधार पर धातुओं को उनकी बढ़ती हुई अपचायक क्षमता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए –
K+/K = – 2.93 V, Ag+/Ag = 0.80 V.
Hg2+/Hg = 0.79 V
Mg2+/Mg = – 2.37 V, Cr3+/Cr = – 0.74 V
उत्तर:
जब धातु का ऑक्सीकरण विभव उच्च होता है अर्थात् धातु आयन का अपचयन विभव निम्न (Low) होता है तो उस धातु की इलेक्ट्रॉन देने की प्रवृत्ति अधिक होती है तथा वह प्रबल अपचायक होता है। अतः दिए गए मानक इलेक्ट्रॉड विभव (अपचयन विभव) मानों के आधार पर इन धातुओं की अपचायक क्षमता का बढ़ता क्रम निम्न प्रकार होगा-
Ag < Hg < Cr < Mg < K

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प्रश्न 3.3.
उस गैल्वैनी सेल को दर्शाइए जिसमें निम्नलिखित अभिक्रिया होती है—
Zn(s) + 2Ag+(aq) → Zn2+(aq) + 2Ag(s),
अब बताइए-
(i) कौन-सा इलेक्ट्रॉड ऋणात्मक आवेशित है?
(ii) सेल में विद्युत धारा के वाहक कौन से हैं?
(iii) प्रत्येक इलेक्ट्रॉड पर होने वाली अभिक्रिया क्या है?
उत्तर:
दी गयी अभिक्रिया के आधार पर गैल्वेनी सेल (विद्युत रासायनिक सेल) को निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 1
(i) इस सेल में Zn | Zn+2 इलेक्ट्रॉड ऋणात्मक आवेशित है अतः यह ऐनोड होगा।
(ii) सेल में विद्युत धारा के वाहक इलेक्ट्रॉन हैं तथा धारा का प्रवाह. सिल्वर इलेक्ट्रॉड से जिंक इलेक्ट्रॉड की ओर होता है क्योंकि विद्युत धारा का प्रवाह, इलेक्ट्रॉन के प्रवाह की विपरीत दिशा में होता है।
(iii) कैथोड पर होने वाली अभिक्रिया निम्नलिखित है-
2Ag+ +2e → 2Ag
तथा ऐनोड पर होने वाली अभिक्रिया निम्नलिखित है-
Zn → Zn2+ +2e

प्रश्न 3.4.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं वाले गैल्वेनी सेल का मानक सेल विभव परिकलित कीजिए-
(i) 2Cr(s) + 3Cd2+(aq) → 2Cr3+(aq) + 3Cds
(ii) Fe2+ (aq) + Ag+ (aq) → Fe3+(aq) + Ag(s)
उपरोक्त अभिक्रियाओं के लिए △rG एवं साम्य स्थिरांकों की भी गणना कीजिए ।
उत्तर:
सक्रियता श्रेणी से –
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 2

प्रश्न 3.5.
निम्नलिखित सेलों की 298 K पर नेस्ट समीकरण एवं emf लिखिए-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 3
उत्तर:
सक्रियता श्रेणी से –
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 4
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 5
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 30

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युत रसायन

प्रश्न 3.6.
घड़ियों एवं अन्य युक्तियों में अत्यधिक उपयोग में आने वाली बटन सेलों में निम्नलिखित अभिक्रिया होती है-
उत्तर:
Zn(s) + Ag2O(s) + H2O(1) Zn2+(aq) + 2Ag(s) + 2OH(aq)
सक्रियता श्रेणी से –
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 6

प्रश्न 3.7.
किसी वैद्युत अपघट्य के विलयन की चालकता एवं मोलर चालकता की परिभाषा दीजिये। सांद्रता के साथ इनके परिवर्तन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
चालकता (k) – प्रतिरोधकता ( या विशिष्ट प्रतिरोध) के व्युत्क्रम (विपरीत) को चालकता कहते हैं। चालकता को विशिष्ट चालकत्व भी कहते हैं। इसका प्रतीक K है तथा K = \(\frac { 1 }{ p }\)

अथवा किसी सान्द्रता पर विलयन की चालकता उसके इकाई आयतन का चालकत्व होता है जिसे इकाई दूरी पर स्थित इकाई अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले दो इलेक्ट्रॉडों के मध्य रखा गया हो ।

मोलर चालकता (∧m) – किसी दी गई सांद्रता पर एक विलयन की मोलर चालकता उस विलयन के आयतन का चालकत्व है, जिसमें वैद्युत अपघट्य का एक मोल घुला हो तथा जो एक-दूसरे से इकाई दूरी पर स्थित, A अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले दो इलेक्ट्रॉडों के मध्य रखा गया हो।
अथवा
मोलर चालकता किसी वैद्युत अपघट्य के विलयन के उस आयतन का चालकत्व है जिसे चालकता सेल के इकाई दूरी पर स्थित इलेक्ट्रॉडों के मध्य रखा गया है एवं जिनका अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल इतना है कि वह विलयन के उस आयतन (V) को रख सकें, जिसमें वैद्युत अपघट्य का एक मोल घुला हो । अतः एक मोल विद्युत अपघट्य को विलयन में घोलने पर प्राप्त आयनों की चालकता को मोलर चालकता कहते हैं।

वैद्युत अपघट्य की सांद्रता में परिवर्तन से चालकता तथा मोलर चालकता दोनों परिवर्तित होती हैं। प्रबल तथा दुर्बल दोनों प्रकार के वैद्युत अपघट्यों की सांद्रता कम करने पर चालकता हमेशा कम होती है क्योंकि तनुता बढ़ाने पर प्रति इकाई आयतन में विद्युतधारा ले जाने वाले आयनों की संख्या कम हो जाती है।
सान्द्रता कम होने पर मोलर चालकता बढ़ती है क्योंकि वह कुल आयतन (V) बढ़ जाता है जिसमें एक मोल वैद्युत अपघट्य उपस्थित हो। (∧m = kV) तथा आयतन में वृद्धि k में कमी की तुलना में अधिक होती है।

प्रश्न 3.8.
298 K पर 0.20M KCl विलयन की चालकता 0.0248 S cm-1 है। इसकी मोलर चालकता का परिकलन कीजिए ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 7

प्रश्न 3.9
298 K पर एक चालकता सेल जिसमें 0.001 M KCl विलयन है, का प्रतिरोध 1500Ω है। यदि 0.001 M KCl विलयन की चालकता 298 K पर 0.146 × 10-3 S cm-1 हो तो सेल स्थिरांक क्या है ?
उत्तर:
सेल स्थिरांक (G*) = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 8 = \(\frac { K }{ G }\)
प्रतिरोध R = \(\frac { 1 }{ G }\)
अतः सेल स्थिरांक = चालकता × प्रतिरोध
चालकता (k) = 0.146 × 10-3S cm-1
प्रतिरोध R = 1500Ω
अतः सेल स्थिरांक = 0.146 × 10-3 × 1500
सेल स्थिरांक = 0.219 cm cm-1

प्रश्न 3.10
298K पर सोडियम क्लोराइड की विभिन्न सांद्रताओं पर चालकता का मापन किया गया जिसके आँकड़े निम्नलिखित हैं-
सांद्रता/M 0.001 0.010 0.020 0.050 0.100 102 × k/S m1 1.237 11.85 23.15 55.53106.74 सभी सांद्रताओं के लिए ∧m का परिकलन कीजिए एवं ∧m तथा C1/2 के मध्य एक आलेख खींचिए । ∧om का मान ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 9
m C1/2 के मध्य आलेखित करने पर एक सीधी रेखा प्राप्त होती है जिसमें ∧m का मान C1/2 के साथ कम होता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 10
ग्राफ का शून्य सान्द्रता तक बहिर्वेशन करके ∧0m का मान ज्ञात किया जाता है जो कि लगभग 1.255 × 102 m2 mol-1 आता है।
अतः ∧0m = 1.255 × 102 m2 mol-1

प्रश्न 3.11
0.00241 M ऐसीटिक अम्ल की चालकता 7.896 × 10-5S cm-1 है। इसकी मोलर चालकता को परिकलित कीजिए। यदि ऐसीटिक अम्ल के लिए ∧0m का मान 390.5 S cm2 mol-1 हो तो इसका वियोजन स्थिरांक क्या है?
उत्तर:
मोलर चालकता (∧m) = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 12
चालकता (k) = 7.896 × 10-5S cm-1,
मोलरता = 0.00241M
अतः ∧m = \(\frac{7.896 \times 10^{-5} \times 1000}{0.00241}\)
m = 32.76 S cm2 mol-1

वियोजन की मात्रा,
α = \(\frac{\Lambda_{\mathrm{m}}}{\Lambda_{\mathrm{m}}^{\circ}}\)
\(\Lambda_{\mathrm{m}}^0\) = 390.5 S cm2 mol-1
अतः α = \(\frac { 32.76 }{ 390.5 }\) = 8.4 × 10-2
वियोजन स्थिरांक (Ka) = \(\frac{c \alpha^2}{1-\alpha}\)
α = 8.4 × 10-2
अतः Ka = \(\frac{0.00241 \times\left(8.4 \times 10^{-2}\right)^2}{1-8.4 \times 10^{-2}}\)
Ka = \(\frac{0.00241 \times 70.56 \times 10^{-4}}{1-0.084}\)
Ka = \(\frac{0.1700 \times 10^{-4}}{0.916}\)
Ka = 0.1855 × 10-4
Ka = 1.85 × 10-5

प्रश्न 3.12.
निम्नलिखित के अपचयन के लिए कितने आवेश की आवश्यकता होगी ?
(i) 1 मोल Al3+ को Al में
(ii) 1 मोल Cu2+ को Cu में
(iii) 1 मोल \(\mathrm{MnO}_4^{-}\) को Mn2+ में ।
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉड अभिक्रिया है – Al3+ + 3e → Al
अतः 1 मोल Al3+ के अपचयन के लिए 3F आवेश की आवश्यकता होगी क्योंकि इस अभिक्रिया में 3 मोल इलेक्ट्रॉन प्रयुक्त हो रहे हैं तथा 3 फैराडे = 3 × 96500 कूलॉम (C) = 289500 C

(ii) अभिक्रिया – Cu2+ +2e → Cu
1 मोल Cu2+ के अपचयन के लिए 2F आवेश की आवश्यकता होगी तथा 2 फैराडे
= 2 × 96500 C = 193000 C

(iii) अभिक्रिया – MnO4 → Mn2+
MnO4 में Mn का ऑक्सीकरण अंक +7 है तथा यह Mn2+ बना रहा है अतः इसमें 5 इलेक्ट्रॉन प्रयुक्त हो रहे हैं। इसलिए 1 मोल MnO4 के Mn2+ में अपचयन के लिए 5F आवेश की आवश्यकता होगी तथा
5F = 5 × 96500 C = 482500 C

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युत रसायन

प्रश्न 3.13.
निम्नलिखित को प्राप्त करने में कितने फैराडे विद्युत की आवश्यकता होगी ?
(i) गलित CaCl2 से 20.0g Ca
(ii) गलित Al2O3 से 40.0 g Al
उत्तर:
(i) गलित CaCl2 से Ca प्राप्त करने में कैथोड पर निम्न अभिक्रिया होगी-
Ca2+ + 2e → Ca
Ca का 1 मोल = 40g (परमाणु द्रव्यमान)
अतः अभिक्रिया के अनुसार 40g Ca प्राप्त करने के लिए आवश्यक विद्युत की मात्रा : = 2 F
तो 20 g Ca प्राप्त करने के लिए 1 F विद्युत की आवश्यकता होगी।

(ii) गलित Al2O3 से Al प्राप्त करने के लिए कै थोड पर अभिक्रिया – Al3+ +3e → Al
Al का परमाणु द्रव्यमान = 27 g = 1 मोल
अतः अभिक्रिया के अनुसार 27 g Al प्राप्त करने के लिए आवश्यक विद्युत = 3 F
तो 40 g Al के लिए = \(\frac{3 F \times 40}{27}\) = 4.44F विद्युत आवश्यक होगी।

प्रश्न 3.14.
निम्नलिखित को ऑक्सीकृत करने के लिए कितने कूलॉम विद्युत आवश्यक है ?
(i) 1 मोल H2O को O2 में ।
(ii) 1 मोल FeO को Fe2O3 में ।
उत्तर:
(i) H2O से 02 बनने की अभिक्रिया निम्नलिखित है-
2H2O → O2 + 4H+ + 4e
यहाँ 2 मोल H2O से 4 मोल इलेक्ट्रॉन निकल रहे हैं अतः 1 मोल H2O से 2 मोल इलेक्ट्रान निकलेंगे इसलिए 1 मोल H2O के ऑक्सीकरण के लिए आवश्यक विद्युत की मात्रा = 2F = 2 × 96,500 कूलॉम
विद्युत की मात्रा = 1,93,000 कूलॉम

(ii) FeO से Fe2O3 का बनना निम्नलिखित अभिक्रिया के अनुसार होता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 11
यहाँ Fe2+ से Fe3+ बन रहा है अतः 1 मोल FeO को Fe2O3 में आक्सीकृत करने के लिए आवश्यक विद्युत की मात्रा = 1F = 96,500 कूलॉम।

प्रश्न 3.15.
Ni(NO3)2 के एक विलयन का प्लैटिनम इलेक्ट्रॉडों के बीच 5 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करते हुए 20 मिनट विद्युत अपघटन किया गया। Ni की कितनी मात्रा कैथोड पर निक्षेपित होगी?
उत्तर:
प्रवाहित की गई विद्युत की मात्रा – Q = I t
I = 5 ऐम्पियर, t = समय सेकण्ड = 20 × 60s
Q = 5 × 20 × 60 = 6000C

कैथोड पर निम्नलिखित अभिक्रिया होगी-
Ni2+ + 2e → Ni

Ni का परमाणु द्रव्यमान = 58.7 (1 मोल)
अभिक्रिया के अनुसार 2F या 2 × 96500C विद्युत प्रवाहित करने पर प्राप्त Ni की मात्रा = 58.7g
अतः 6000C विद्युत प्रवाहित करने पर प्राप्त Ni-
= \(\frac{58.7 \times 6000}{2 \times 96500}\) = 1.824 g
अतः Ni की कैथोड पर निक्षेपित मात्रा = 1.8248 g

प्रश्न 3.16.
ZnSO4, AgNO3 एवं CuSO4 विलयन वाले तीन वैद्युत अपघटनी सेलों A,B,C को श्रेणीबद्ध किया गया एवं 1.5 ऐम्पियर की विद्युतधारा, सेल B के कैथोड पर 1.45 g सिल्वर निपेक्षित होने तक लगातार प्रवाहित की गई। विद्युतधारा कितने समय तक प्रवाहित हुई? निपेक्षित कॉपर एवं जिंक का द्रव्यमान क्या होगा?
उत्तर:
सेल B के कैथोड पर सिल्वर के निक्षेपित होने में निम्नलिखित अभिक्रिया प्रयुक्त होती है-
Ag+ +e → Ag
Ag का परमाणु द्रव्यमान = 108g (1 मोल)
108 g Ag के निक्षेपण के लिए आवश्यक विद्युत की मात्रा = 96500 C
अतः 1.45 g सिल्वर के निक्षेपण के लिए
= \(\frac{96500}{108}\) × 1.45
= 1295.6 C विद्युत आवश्यक होगी।
आवेश Q = I t, t = \(\frac { Q }{ I }\) = \(\frac{1295.6}{1.5}\) = 863.73 सेकंड
अतः मिनट में समय = \(\frac{863.73}{60}\) = 14.39 = 14.40 मिनट
अतः विद्युत धारा 14.40 मिनट तक प्रवाहित हुई।
Cu के निक्षेपण के लिए आवश्यक अभिक्रिया
Cu2+ + 2e → Cu
Cu का परमाणु द्रव्यमान = 63.5g (1 मोल)
अतः 2 × 96500 C विद्युत से प्राप्त कॉपर 63.5 g
1295.6C विद्युत से प्राप्त कॉपर = \(\frac{63.5 \times 1295.6}{2 \times 96500}\) = 0.426 g
अतः निक्षेपित कॉपर का द्रव्यमान = 0.426 g
Zn के निक्षेपण के लिए आवश्यक अभिक्रिया-
Zn2+ +2e → Zn
Zn का परमाणु द्रव्यमान = 65 g (1 मोल)
2 × 96500 C विद्युत से प्राप्त जिंक = 65g
अतः 1295.6 C विद्युत से प्राप्त जिंक
= \(\frac{65 \times 1295.6}{2 \times 96500}\) = 0.436 g
अतः निक्षेपित जिंक का द्रव्यमान = 0.436 g

प्रश्न 3.17.
सारणी 3.1 में दिए गए मानक इलेक्ट्रॉड विभवों की सहायता से अनुमान लगाइए कि क्या निम्नलिखित अभिकर्मकों के बीच अभिक्रिया संभव है?
(i) Fe3+ (aq) और I(aq)
(ii) Ag+ (aq) और Cu(s)
(iii) Fe3+(aq) और Br (aq)
(iv) Ag(s) और Fe3+(aq)
(v) Br2(aq) और Fe2+(aq)
उत्तर:
(i) Fe3+(aq) और I (aq) के बीच अभिक्रिया संभव है
क्योंकि HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 13 का मान HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 14 मान से अधिक है तथा इसके लिए HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 15 है। यह अभिक्रिया निम्न प्रकार होगी-
Fe3+ + I (aq) → Fe2+ (aq) + \(\frac { 1 }{ 2 }\) I2

(ii) Ag+(aq) तथा Cu(s) के मध्य अभिक्रिया भी संभव है।
क्योंकि HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 16 का मान HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 17 मान से अधिक है तथा इसके लिए HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 18 एवं यह अभिक्रिया निम्न प्रकार होगी-
2Ag+ (aq) + Cu(s) → Cu2+ (aq) + 2Ag(s)

(iii) Fe3+ (aq) तथा Br (aq) के बीच अभिक्रिया संभव नहीं है क्योंकि HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 19 का मान HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 20 मान से कम है तथा इसके लिए सैल HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 21 अतः Br आयन Fe3+ आयनों का अपचयन नहीं कर सकते।

(iv) Ag(s) तथा Fe3+ (aq) के बीच भी अभिक्रिया संभव नहीं है क्योंकि HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 22 का मान HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 23 मान से कम है तथा इसके लिए HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 24 अतः Ag, Fe+3 का अपचयन नहीं कर सकता ।

(v) Br2(aq) तथा Fe2+ (aq) के बीच अभिक्रिया होगी क्योंकि HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 25 का मान, HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 26 मान से अधिक है तथा इसके लिए HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 27 अतः Fe2+, Br2 का अपचयन कर सकता है। यह अभिक्रिया निम्न प्रकार होगी-
Fe2+ (aq) + Br2 (aq) → Fe3+ (aq) + 2Br (aq)

प्रश्न 3.18.
निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए वैद्युत अपघटन से प्राप्त उत्पाद बताइए-
(i) सिल्वर इलेक्ट्रॉडों के साथ AgNO3 का जलीय विलयन
(ii) प्लैटिनम इलेक्ट्रॉडों के साथ AgNO3 का जलीय विलयन
(iii) प्लैटिनम इलेक्ट्रॉडों के साथ H2SO4 का तनु विलयन
(iv) प्लैटिनम इलेक्ट्रॉडों के साथ CuCl2 का जलीय विलयन |
उत्तर:
(i) सिल्वर इलेक्ट्रॉडों के साथ AgNO3 के जलीय विलयन का वैद्युत अपघटन करने पर ऐनोड पर सिल्वर इलेक्ट्रॉड अभिक्रिया में भाग लेगा क्योंकि यह क्रियाशील इलेक्ट्रॉड है अतः
कैथोड पर – Ag+ से Ag बनेगा (अपचयन)
Ag+ (aq) + e → Ag(s) तथा
ऐनोड पर – Ag का Ag+ में ऑक्सीकरण होगा
Ag(s)→ Ag (aq) + e ̄
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 28

(ii) प्लैटिनम इलेक्ट्रॉडों के साथ AgNO3 के जलीय विलयन का विद्युत अपघटन करने पर Pt अभिक्रिया में भाग नहीं लेगा क्योंकि यह अक्रिय इलेक्ट्रॉड है अतः कैथोड पर अभिक्रिया IMG होगी तथा ऐनोड पर अभिक्रिया
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 IMG 29

(iii) प्लैटिनम इलेक्ट्रॉडों के साथ H2SO4 के तनु विलयन का विद्युत अपघटन करने पर निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होंगी क्योंकि SO- आयन H2O की तुलना में कम क्रियाशील है।
कैथोड पर 2H+ + 2e → H2 (अपचयन)
एनोड पर_H2O → 2H+ + \(\frac { 1 }{ 2 }\)O2 + 2e (ऑक्सीकरण)

(iv) प्लैटिनम इलेक्ट्रॉडों के साथ CuCl2 के जलीय विलयन का विद्युत अपघटन करने पर निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होंगी-
कैथोड पर – Cu2+ + 2e → Cu
Cu2+, H2O (H+) से अधिक क्रियाशील है।
ऐनोड पर – 2Cl – 2e → Cl2
Cl,H2O(ŌH) से अधिक क्रियाशील है।

HBSE 12th Class Chemistry वैद्युत रसायन Intext Questions

प्रश्न 3.1.
निकाय Mg2+| Mg का मानक इलेक्ट्रॉड विभव आप किस प्रकार ज्ञात करेंगे?
उत्तर:
निकाय Mg2+| Mg का मानक इलेक्ट्रॉड विभव ज्ञात करने के लिए इसे मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉड (SHE) से जोड़कर सेल का विद्युत वाहक बल ज्ञात करते हैं। विद्युत वाहक बल ज्ञात करने के लिए वोल्टमीटर या पोटेन्शियोमीटर (विभवमापी) प्रयुक्त किया जाता है। मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉंड एक संदर्भ इलेक्ट्रॉड है जिसका इलेक्ट्रॉड विभव शून्य होता है। अतः सेल का विद्युत वाहक बल (emf) दूसरी अर्ध सेल (Mg2+| Mg) के मानक इलेक्ट्रॉड विभव (अपचयन विभव) के बराबर होगा। यहाँ Mg2+| Mg कैथोड के रूप में लिया जाता है।

प्रश्न 3.2.
क्या आप एक जिंक के पात्र में कॉपर सल्फेट का विलयन रख सकते हैं?
उत्तर:
जिंक के पात्र में कॉपर सल्फेट (CuSO4) का विलयन नहीं रखा जा सकता क्योंकि Zn, Cu से अधिक क्रियाशील धातु है अर्थात् Cu से Zn अधिक अपचायक है। अतः यह कॉपर सल्फेट के विलयन से क्रिया करके ZnSO4 बना देता है तथा Cu धातु अवक्षेपित हो जाती है।
\(\mathrm{Zn}_{(\mathrm{s})}+\mathrm{Cu}^{+2} \mathrm{SO}_{4(\mathrm{aq})}^{-2} \rightarrow \mathrm{Zn}^{+2} \mathrm{SO}_{4(\mathrm{aq})}^{-2}+\mathrm{Cu}_{(\mathrm{s})}\)

प्रश्न 3.3.
मानक इलेक्ट्रॉड विभव की तालिका का निरीक्षण कर तीन ऐसे पदार्थ बताइए जो अनुकूल परिस्थितियों में फेरस आयनों को ऑक्सीकृत कर सकते हैं।
उत्तर:
Fe+3/Fe+2 के लिए E° का मान 0.77 V है अतः वे पदार्थ जिनके लिए E° का मान इससे अधिक होता है वे Fe+2 को Fe+3 में ऑक्सीकृत कर सकते हैं। मानक इलेक्ट्रॉड विभव की तालिका के आधार पर ये पदार्थ हैं-
(i) \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}\) (अम्लीय माध्यम में ),
(ii) जलीय Br2 या Cl2 तथा
(iii) जलीय Ag+

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युत रसायन

प्रश्न 3.4.
pH = 10 के विलयन के संपर्क वाले हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉड के विभव का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
विलयन का pH = 10 है अतः [H+] = 10-10 mol L-1 हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉड के लिए-
नेर्न्स्ट समीकरण निम्न प्रकार होगा-
\(\mathrm{E}_{\mathrm{H}^{+} / \mathrm{H}}=\mathrm{E}_{\mathrm{H}^{+} / \mathrm{H}}^{\circ}-\frac{\mathrm{RT}}{\mathrm{nF}} \ln \frac{1}{\left[\mathrm{H}^{+}\right]}\)
अतः हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉडड का विभव = – 0.59 V

प्रश्न 3.5.
एक सेल के emf का परिकलन कीजिए, जिसमे निम्नलिखित अभिक्रिया होती है। दिया गया है E°(सेल) =1.05 V
Ni(s) + 2Ag+(0.002M) → Ni2+(0.160M)+2Ag(s)
उत्तर:
किसी सेल का emf
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 58

प्रश्न 3.6.
एक सेल जिसमें निम्नलिखित अभिक्रिया होती है- 2Fe3+(aq) + 21(aq) → 2Fe2+(aq) + I2(S) का 298 K ताप पर E° सेल = 0.236 V है। सेल अभिक्रिया की मानक गिब्ज ऊर्जा एवं साम्य स्थिरांक का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
(a) मानक गिब्ज ऊर्जा △G° = -nFE° सेल
n = 2 (सम्पूर्ण अभिक्रिया के लिए)
F = 96500C, E° सेल = 0.236 V
मान रखने पर,
△G° = – 2 × 96500 × 0.236
△G° = – 45548 J mol-1
या △G° = – 45548 KJ mol-1

(b) साम्य स्थिरांक का परिकलन निम्नलिखित सूत्र से किया जाता है-
△G° = – 2.303RT log KC
log KC = – \(\frac{\Delta \mathrm{G}^{\circ}}{2.303 \mathrm{RT}}\)
△G° = – 45.548 J mol-1
R = 8.314J, T = 298 K
मान रखने पर,
log KC = – \(\frac{-45548}{2.303 \times 8.314 \times 298}\)
log KC = \(\frac { 45548 }{ 5705.848 }\)
log KC = 7.9826
KC = Antilog (7.9826)
KC = 9.6 × 107

प्रश्न 3.7.
किसी विलयन की चालकता तनुता के साथ क्यों घटती है?
उत्तर:
किसी विलयन की तनुता बढ़ाने पर प्रति इकाई आयतन में विद्युत धारा ले जाने वाले आयनों की संख्या कम हो जाती है अतः विलयन की चालकता घट जाती है।

प्रश्न 3.8.
जल की \(\Lambda_m^o\) ज्ञात करने का एक तरीका बताइए।
उत्तर:
जल एक बहुत दुर्बल विद्युत अपघट्य माना जाता है अतः कोलराउश के नियम से जल के लिए \(\Lambda_m^o\) ज्ञात कर सकते हैं क्योंक HCl, NaOH तथा NaCl प्रबल विद्युत अपघट्य हैं जिनके लिए \(\Lambda_m^o\) के मान \(\Lambda_m\) तथा c1/2 के मध्य ग्राफ़ के बहिर्वेशन से प्राप्त कर सकते हैं। अतः \(\Lambda_m^o\) के मानों का प्रयोग कर निम्नलिखित समीकरण द्वारा जल के लिए \(\Lambda_m^o\) ज्ञात किया जा सकता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 57

प्रश्न 3.9.
0.025 mol L-1 मेथेनॉइक अम्ल की मोलर चालकता 46.1 S cm2 mol-1 है। इसकी वियोजन की मात्रा एवं वियोजन स्थिरांक का पस्किलन कीजिए। दिया गया है-
λ ° (H+) = 349.6 S cm2 mol-1 एवं λ ° (HCOO) = 546. S cm2 mol-1
उत्तर:
दिया गया है-सान्द्रता c = 0.025 molL-1, मोलर चालकता (\(\Lambda_{\mathrm{m}}\)) = 46.1 Scm2 mol-1 HCl के लिए सीमान्त मोलर चालकता
\(\Lambda_{\mathrm{HCl}}^{\circ}=\lambda_{\mathrm{H}^{+}}^{\circ}+\lambda_{\mathrm{Cl}^{-}}^0\)
\(\Lambda_{\mathrm{HCl}}^{\circ}\) = 349.6 + 54.6 = 404.2S cm2 mol-1
वियोजन की मात्रा (α) = \(\frac{\Lambda_{\mathrm{m}}}{\Lambda_{\mathrm{m}}^{\mathrm{o}}}\) = \(\) = 0.114
वियोजन स्थिरांक, K = \(\frac{c \alpha^2}{(1-\alpha)}\)
K = \(\frac{0.025 \times(0.114)^2}{(1-0.114)}\)
K = \(\frac{0.025 \times 0.012996}{0.886}\)
K = \(\frac{3.249 \times 10^{-4}}{0.886}\)
K = 3.667 × 10-4
= 3.67 × 10-4 mol L-1
अतः वियोजन स्थिरांक (K) = 3.67 × 10-4 mol L-1

प्रश्न 3.10.
यदि एक धात्विक तार में 0.5 ऐम्पियर की धारा 2 घंटों के लिए प्रवाहित होती है तो तार में से कितने इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होंगे?
उत्तर:
आवेश (Q) = धारा × समय
Q = 0.5 × 2 × 60 × 60 = 3600 कूलम्ब
एक इलेक्ट्रॉन का आवेश = 1.6 × 10-19 कूलम्ब
अतः 3600 कूलम्ब में इलेक्ट्रॉनों की संख्या
= \(\frac{3600}{1.6 \times 10^{-19}}\) = 2.25 × 1022 इलेक्ट्रॉन
अतः धात्विक तार में से 2.5 × 1022 इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होंगे।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युत रसायन

प्रश्न 3.11.
उन धातुओं की एक सूची बनाइए जिनका वैद्युत अपघटनी निष्कर्षण होता है।
उत्तर:
ऐलुमिनियम (Al), सोडियम (Na) तथां मैग्नीशियम (Mg) ऐसी धातुएँ हैं जिनका वैद्युत अपघटनी निष्कर्षण होता है। ये अधिक क्रियाशील धातुएँ हैं क्योंकि इनके E° के मान अधिक ऋणात्मक होते हैं। अतः इनके लिए उपयुक्त रासायनिक अपचायक उपलब्ध नहीं है तथा ये स्वयं प्रबल अपचायक हैं।

प्रश्न 3.12.
निम्नलिखित अभिक्रिया में \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}\) आयनों के एक मोल के अपचयन के लिए कूलॉम में विद्युत की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी?
\(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}+14 \mathrm{H}^{+}+6 \mathrm{e}^{-} \rightarrow 2 \mathrm{Cr}^{3+}+7 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}\)
उत्तर:
दी गई अभिक्रिया में 1 मोल \(\mathrm{Cr}_2 \mathrm{O}_7^{2-}\) आयनों के अपचयन के लिए 6 मोल इलेक्ट्रॉन प्रयुक्त हो रहे हैं। 1 मोल इलेक्ट्रॉन प्रयुक्त होने के लिए आवश्यक विद्युत की मात्रा, 1 फैराडे ( 96500 कूलॉम) होती है। अतः 6 मोल इलेक्ट्रॉन प्रयुक्त होने पर आवश्यक विद्युत की मात्रा = 6 फैराडे = 96500 × 6 = 579000 कूलॉम = 5.79 × 105 कूलॉम।

प्रश्न 3.13.
चार्जिंग के दौरान प्रयुक्त पदार्थों का विशेष उल्लेख करते हुए लेड संचायक सेल की चार्जिंग क्रियाविधि का वर्णन रासायनिक अभिक्रियाओं की सहायता से कीजिए।
उत्तर:
एक संचायक सेल को उपयोग में लेने के बाद विपरीत दिशा में विद्युत धारा के प्रवाह से पुनः आवेशित कर पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। लेड संचायक सेल में ऐनोड लैड का तथा कैथोड लैड डाइऑक्साइड (PbO2) से भरे हुए लैड ग्रिड का होता है। 38% सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) का विलयन वैद्युतअपघट्य के रूप में कार्य करता है। जब बैटरी उपयोग में आती है तो निम्नलिखित अभिक्रियाएँ सम्पन्न होती हैं-
ऐनोड – \(\mathrm{Pb}(\mathrm{s})+\mathrm{SO}_4^{2-}(\mathrm{aq}) \rightarrow \mathrm{PbSO}_4(\mathrm{~s})+2 \mathrm{e}^{-}\)
कैथोड – \(\begin{aligned}
\mathrm{PbO}_2(\mathrm{~s})+ & \mathrm{SO}_4{ }^{2-}(\mathrm{aq})+4 \mathrm{H}^{+}(\mathrm{aq})+2 \mathrm{e}^{-} \\
\rightarrow & \mathrm{PbSO}_4(\mathrm{~s})+2 \mathrm{H}_2 \mathrm{O}(\mathrm{l})
\end{aligned}\)
कैथोड एवं ऐनोड दोनों अभिक्रियाओं को मिलाकर नेट सेल अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है-
Pb(s) + pbO2(s) + 2H2SO4(aq) → 2pbSO4(s) + 2H2O(l)

बैटरी को चार्ज (आवेशित) करने पर अभिक्रिया एकदम विपरीत हो जाती है तथा कैथोड एवं ऐनोड भी बदल जाते हैं।
कैथोड – PbO2, ऐनोड – PbSO4(s), Pb तथा चार्जिंग अभिक्रिया निम्न प्रकार होगी-
2PbSO4(s) + 2H2O → Pb(s) + PbO2(s) + 2H2SO4(aq)

प्रश्न 3.14.
हाइड्रोजन को छोड़कर ईंधन सेलों में प्रयुक्त किये जा सकने वाले दो अन्य पदार्थ सुझाइए।
उत्तर:
हाइड्रोजन के अलावा CO (कार्बन मोनो ऑक्साइड) तथा मेथेन (CH4) को भी ईंधन सेलों में प्रयुक्त किया जा सकता है।

प्रश्न 3.15.
समझाइए कि कैसे लोहे पर जंग लगने का कारण एक वैद्युत रासायनिक सेल बनना माना जाता है।
उत्तर:
लोहे पर जंग लगने को वैद्युत रासायनिक घटना माना जाता है क्योंकि इसमें निम्न प्रकार से वैद्युत रासायनिक सेल का निर्माण होता है जिसमें कैथोड तथा ऐनोड बनकर उन पर अपचयन एवं ऑक्सीकरण का प्रक्रम होता है। लोहे से बनी हुई किसी वस्तु के किसी निश्चित स्थान पर जब ऑक्सीकरण की प्रक्रिया होती है तो वह स्थान ऐनोड का कार्य करता है तथा इसे हम निम्नलिखित अभिक्रिया से दर्शा सकते हैं-
ऐनोड – 2Fe(s) → 2Fe2+ + 4e

ऐनोड से प्राप्त इलेक्ट्रॉन, धातु के द्वारा प्रवाहित होकर इसके दूसरे स्थान पर पहुँच जाते हैं तथा वहाँ H+ की उपस्थिति में ऑक्सीजन क अपचयन करते हैं (माना जाता है कि H+ आयन CO2 के जल में घुलने से बने H2CO3 से प्राप्त होते हैं। वायुमंडल में उपस्थित अन्य अम्लीय ऑक्साइडों के जल में घुलने से भी H+ उपलब्ध हो सकते हैं)। यह स्थान कैथोड की तरह व्यवहार करता है तथा यहाँ पर होने वाली अभिक्रिया निम्नलिखित है-

O2(g) + 4H+(aq) + 4e → 2H2O(l);
2Fe(s) + O2(g) + 4H+(aq) → 2Fe2+(aq) + 2H2O(l);

इसके पश्चात् वायुमंडलीय ऑक्सीजन के द्वारा फेरस आयन (Fe2+) और अधिक ऑक्सीकृत होकर फेरिक आयनों (Fe3+) में परिवर्तित हैं जो जलयोजित फेरिक ऑक्साइड (Fe2O3. × H2O ) बना लेते हैं तथा यही जंग का रासायनिक संघटन है तथा इसके साथ ही हाइड्रोजन आयन पुनः उत्पन्न हो जाते हैं।

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन

प्रश्न 2.1.
विलयन को परिभाषित कीजिए। कितने प्रकार के विभिन्न विलयन संभव हैं? प्रत्येक प्रकार के विलयन के संबंध में एक उदाहरण देकर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
विलयन (Solution) – दो या दो से अधिक पदार्थों (अवयवों) का समांगी मिश्रण विलयन कहलाता है।
समांगी मिश्रण का अर्थ है कि मिश्रण के सभी भागों का संघटन (composition) तथा गुण समान हैं। विलायक की भौतिक अवस्था के आधार पर विलयन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
(1) गैसीय विलयन
(2) द्रव विलयन
(3) ठोस विलयन |
इन्हें पुनः वर्गीकृत किया जा सकता है जो कि विलेय की भौतिक अवस्था के आधार पर होता है। अतः विलयन वास्तव में 9 प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 1

प्रश्न 2.2.
एक ऐसे ठोस विलयन का उदाहरण दीजिए जिसमें विलेय कोई गैस हो ।
उत्तर:
हाइड्रोजन का पैलेडियम में विलयन ।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन

प्रश्न 2.3.
निम्न पदों को परिभाषित कीजिए-
(i) मोल – अंश
(ii) मोललता
(iii) मोलरता
(iv) द्रव्यमान प्रतिशत ।
उत्तर:
(i) मोल अंश (Mole fraction ) (x) – एक मिश्रण में उपस्थित किसी अवयव का मोल अंश उस अवयव के मोल तथा मिश्रण में उपस्थित सभी अवयवों के कुल मोलों का अनुपात होता है।
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(ii) मोललता (Molality) (m) – 1000 g (1 kg) विलायक में घुले हुए विलेय के मोलों की संख्या को उस विलयन की मोललता कहते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 3

(iii) मोलरता (Molarity) (M) – एक लीटर (1 क्यूबिक डेसीमीटर) विलयन में घुले हुए विलेय के मोलों की संख्या को उस विलयन की मोलरता कहते हैं।

(iv) द्रव्यमान प्रतिशत ( Mass Percentage ) – किसी विलेय के भार भागों की वह संख्या जो विलयन के 100 भार भागों में उपस्थित होती है, उसे द्रव्यमान प्रतिशत कहते हैं।
विलयन में किसी अवयव का द्रव्यमान %

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 4

प्रश्न 2.4.
प्रयोगशाला कार्य के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला सांद्र नाइट्रिक अम्ल द्रव्यमान की दृष्टि से नाइट्रिक अम्ल का 68% जलीय विलयन है। यदि इस विलयन का घनत्व 1.504 gmL-1 हो तो अम्ल के इस नमूने की मोलरता क्या होगी ?
उत्तर:
68% (द्रव्यमान) HNO3 का अर्थ है 68g HNO3, 100 g विलयन में उपस्थित है।
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विलेय ( HNO3) का भार = 68g HNO3, विलेय का मोलर द्रव्यमान = 1 + 14 + 48 = 63
विलयन का आयतन = 66.49 ml
∴ M = \(\frac{68 \times 1000}{63 \times 66.49}\)
M = 16.23
अतः HNO3 के इस नमूने की मोलरता = 16.23 M इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा भी ज्ञात किया जा सकता है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 7

प्रश्न 2.5.
ग्लूकोस का एक जलीय विलयन 10% (w/w) है । विलयन की मोललता तथा विलयन में प्रत्येक घटक का मोल- अंश क्या है? यदि विलयन का घनत्व 1.2 gmL-1 हो तो विलयन की मोलरता क्या होगी ?
उत्तर:
10% (w/ w) ग्लूकोस विलयन का अर्थ है कि 10g ग्लूकोस 100g विलयन में उपस्थित है जिसमें 90 ग्राम जल है।
(1) अतः विलयन की मोललता (m)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 8
m = \(\frac{10}{180 \times 90 \times 10^{-3}}\)
मोललता: = 0.617m
यहाँ ग्लूकोस का मोलर द्रव्यमान ( C6H12O6) = 180
विलायक की द्रव्यमान = 90g = 90 × 10-3 kg

(2) ग्लूकोस के मोल = 10/180
जल के मोल = \(\frac { 90 }{ 18 }\) = 5
अतः ग्लूकोस का मोल अंश = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 9
ग्लूकोस का मोल अंश = \(\frac { 0.055 }{ 5.055 }\) = 0.01
अतः जल का मोल अंश = 1 – 0.01 = 0.99
(3) HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 10

प्रश्न 2.6.
यदि 1 g मिश्रण में Na2CO3 एवं NaHCO3 के मोलों की संख्या समान हो तो इस मिश्रण से पूर्णतः क्रिया करने के लिए 0.1 M HCl के कितने mL की आवश्यकता होगी ?
उत्तर:
माना 1 g मिश्रण में Na2CO3 का द्रव्यमान = x g
Na2CO3 का मोलर द्रव्यमान = (2 × 23 ) + 12 + (3 × 16 ) = 106
अतः Na2CO3 के मोल (n1) = \(\frac { x }{ 106 }\) mol
अतः मिश्रण में NaHCO3 का द्रव्यमान = (1 – x)g
NaHCO3 का मोलर द्रव्यमान = 23 + 1 + 12 + 48 = 84
अतः NaHCO3 के मोल (n2) = \(\frac{1-x}{84}\) mol
Na2CO3 तथा NaHCO3 की HCl से क्रिया के संतुलित समीकरण निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 15
चूंकि दिए गए मिश्रण में Na2CO3 तथा NaHCO3 के मोलों की संख्या समान है अतः
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 16
Na2CO3 तथा NaHCO3 दोनों से क्रिया के लिए आवश्यक HCl के मोल
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 17
यदि आवश्यक HCl का आयतन V है तो
मोलरता × आयतन (L) = मोल
0.1 × V(L) = 0.01578
V (लीटर) = 0.1578 L
अतः HCl का आवश्यक आयतन = 157.8mL

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन

प्रश्न 2.7.
द्रव्यमान की दृष्टि से 25% विलयन के 300g एवं 40% के 400g को आपस में मिलाने पर प्राप्त मिश्रण का द्रव्यमान प्रतिशत सांद्रण निकालिए ।
उत्तर:
25% (w/w), 300 g विलयन में विलेय का भार = (25 × 3) 75g
40% (w/w), 400g विलयन में विलेय का भार = (40 × 4) = 160 g
दोनों विलयनों को मिलाने पर विलेय का कुल भार = 75 + 160 = 235 g
तथा विलयन का कुल भार= 300 + 400 = 700 g
अतः मिश्रण में विलेय का द्रव्यमान
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 18

प्रश्न 2.8.
222.6g एथिलीन ग्लाइकॉल, C2H4(OH)2 तथा 200g जल को मिलाकर प्रतिहिम मिश्रण बनाया गया । विलयन की मोललता की गणना कीजिए। यदि विलयन का घनत्व 1.072 g mL-1 हो तो विलयन की मोलरता निकालिए।
उत्तर:
(i) मोललता (m) =HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 19
एथिलीन ग्लाइकॉल (विलेय) का द्रव्यमान = 222.6 g
एथिलीन ग्लाइकॉल [C2H4(OH)2] का मोलर द्रव्यमान = 62
विलायक (जल) का द्रव्यमान = 200g = 0.2 kg
अतः m = \(\frac{222.6}{62 \times 0.2}\) = 17.95 mol Kg-1

(ii) विलयन की मोलरता
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 11
विलयन का कुल द्रव्यमान = 200 + 222.6 = 422.6
विलयन का घनत्व = 1.072 g mL-1
अतः विलयन का आयतन (V) = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 12
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 20

प्रश्न 2.9.
एक पेय जल (drinking water) का नमूना क्लोरोफॉर्म (CHCl3) से, कैंसरजन्य समझे जाने की सीमा तक बहुत अधिक संदूषित (Contaminated) है। इसमें संदूषण की सीमा 15 ppm (द्रव्यमान में ) है –
(i) इसे द्रव्यमान प्रतिशत में व्यक्त कीजिए ।
(ii) जल के नमूने में क्लोरोफॉर्म की मोललता ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
(i) 15 ppm CHCl3 का अर्थ है कि 106 भाग विलयन में 15 भाग CHCl3 है।
अतः विलेय का द्रव्यमान (भार) = 15 g
विलयन का द्रव्यमान = 106 g
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 21
द्रव्यमान % = \(\frac{15 \times 100}{10^6}\) = 15 × 10-4 = 1.5 × 10-3%

(ii) विलायक का द्रव्यमान = विलयन का द्रव्यमान – विलेय का द्रव्यमान
= 106 – 15 = 999985g
= 9.99985 × 105
विलयन की मोललता (m)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 23
CHCl3 का मोलर द्रव्यमान = 12 + 1 + (3 × 35.5)
= 119.5 g mol-1
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 24
m = 0.0125 × 10-2
m = 1.25 x 10-4
अतः जल के नमूने में CHCl3 की मोललता = 1.25 x 10-4 m

प्रश्न 2.10.
ऐल्कोहॉल एवं जल के एक विलयन में आण्विक अन्योन्य क्रिया (Molecular Interaction) की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ऐल्कोहॉल एवं जल का विलयन धनात्मक विचलन दर्शाता है। क्योंकि ऐल्कोहॉल तथा जल दोनों में अन्तराअणुक हाइड्रोजन बन्ध होते हैं। लेकिन दोनों को मिलाने पर ऐल्कोहॉल तथा जल के मध्य बना हाइड्रोजन बन्ध, शुद्ध जल के हाइड्रोजन बन्ध की तुलना में दुर्बल होता है।
अतः इस विलयन के लिए △H(मिश्रण) = +ve तथा △V (मिश्रण) = +ve होंगे। अतः मिश्रण का वाष्प दाब अधिक होगा तथा क्वथनांक कम होगा। इसलिए यह राउल्ट के नियम से धनात्मक विचलन का उदाहरण है।

प्रश्न 2.11.
ताप बढ़ाने पर गैसों की द्रवों में विलेयता में, हमेशा कमी आने की प्रवृत्ति क्यों होती है ?
उत्तर:
ताप बढ़ाने पर गैसों की द्रवों में विलेयता कम होती है क्योंकि घोले जाने पर गैसों के अणु द्रव प्रावस्था में विलीन होकर उसमें उपस्थित होते हैं अतः यह संघनन अभिक्रिया के समान है तथा इस प्रकिया में ऊष्मा उत्सर्जित (ऊष्माक्षेपी प्रक्रम) होती है। गैसों की द्रव में विलेयता गतिक साम्य है अतः ले – शातैलिए के नियम के अनुसार ताप बढ़ने पर विलेयता घटेगी अर्थात् साम्य पश्च दिशा में जाएगा।

प्रश्न 2.12.
हेनरी का नियम तथा इसके कुछ महत्वपूर्ण अनुप्रयोग लिखिए।
उत्तर:
हेनरी का नियम-
(i) स्थिर ताप पर किसी गैस की द्रव में विलेयता, उस गैस के दाब के समानुपाती होती है। किसी द्रवीय विलयन में गैस की विलेयता गैस के आंशिक द पर निर्भर करती है तथा विलयन में गैस की विलेयता को मोल अंश में व्यक्त किया जाता है।

(ii) किसी विलयन में गैस का मोल अंश, उस विलयन के ऊपर उपस्थित गैस के आंशिक दाब के समानुपाती होता है ।

(iii) किसी गैस का वाष्प अवस्था में आंशिक दाब (p), उस विलयन में गैस के मोल अंश (x) के समानुपाती होता है।
p = KHX जहाँ KH = हेनरी स्थिरांक
हेनरी के नियम के महत्वपूर्ण अनुप्रयोग — इसके लिए पाठ्यपुस्तक का भाग संख्या 2.3.2 देखें।

प्रश्न 2.13.
6.56 × 10-3 g एथेन युक्त एक संतृप्त विलयन में एथेन का आंशिक दाब 1 bar है। यदि विलयन में 5.00 × 10-2 g एथेन हो तो गैस का आंशिक दाब क्या होगा ?
उत्तर:
हेनरी के नियम के अनुसार p = KH x
गैस का मोल अंश उसके द्रव्यमान (m) के समानुपाती होता है।
अतः m ∝ x
अतः हेनरी के नियम का वैकल्पिक रूप
m = KHP
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 25

प्रश्न 2.14.
राउल्ट के नियम से धनात्मक एवं ऋणात्मक विचलन का क्या अर्थ है तथा △मिश्रण H के चिह्न इन विचलनों से कैसे सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
जब कोई विलयन सभी सांद्रताओं पर राउल्ट के नियम का पालन नहीं करता तो वह अनादर्श विलयन (Non Ideal Solution) कहलाता है। इन विलयनों का वाष्पदाब राउल्ट के नियम द्वारा परिकलित किए गए वाष्प दाब से या तो अधिक होता है या कम । यदि यह अधिक होता है तो राउल्ट नियम से धनात्मक विचलन प्रदर्शित करता है और यदि यह कम होता है तो ऋणात्मक विचलन प्रदर्शित करता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 26

प्रश्न 2.15.
विलायक के सामान्य क्वथनांक पर एक अवाष्पशील विलेय के 2% जलीय विलयन का 1.004 bar वाष्प है । विलेय का मोलर द्रव्यमान क्या है?
उत्तर:
शुद्ध जल का वाष्प दाब (p10) = 1.013 bar होता है।
विलयन का वाष्प दाब (p1) = 1.004 bar
विलेय का 2% जलीय विलयन है अतः
W2 = 2 gm तथा (W1+ W2) = 100g.
W1 = 98g
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 27

प्रश्न 2.16.
हेप्टेन एवं ऑक्टेन एक आदर्श विलयन बनाते हैं। 373 K पर दोनों द्रव घटकों के वाष्प दाब क्रमश: 105.2 kPa तथा 46.8 kPa हैं। 26.0g हेप्टेन एवं 35.0g ऑक्टेन के मिश्रण का वाष्प दाब क्या होगा ?
उत्तर:
हेप्टेन (C7H16) का मोलर द्रव्यमान = (7 × 12) + 16 = 100
ऑक्टेन का मोलर द्रव्यमान ( C8H18 ) = (8 × 12 ) +18 = 114
हेप्टेन के मोल (n1) = \(\frac { 26 }{ 100 }\) = 0.26
ऑक्टेन के मोल (n2) = \(\frac { 35 }{ 114 }\) = 0.307
हेप्टेन की मोल भिन्न (x1) = \(\frac{0.26}{0.26+0.307}\)
x1 = \(\frac{0.26}{0.567}\) = 0.458

ऑक्टेन की मोल भिन्न (x2) = 1 – x1
= 1 – 458 = 0.542
विलयन में हेप्टेन का वाष्प दाब (P1) = P10x1
= 105.2 × 0.458 (P10 = 105.2k Pa) = 48.18 kPa

विलयन में ऑक्टेन का वाष्प दाब (P2) = P20x2
P2 = 46.8 × 0.542 = 25.36kPa (p) (P02 = 46.8k Pa)

मिश्रण का कुल वाष्प दाब (p) = P1 + P2
p = 48.18 + 25.36
p = 73.54 kPa

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प्रश्न 2.17.
300K पर जल का वाष्प दाब 12.3 kPa है। इसमें बने अवाष्पशील विलेय के एक मोलल विलयन का वाष्प दाब ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
शुद्ध जल का वाष्प दाब p10 (H2O) = 12.3kPa
चूंकि 1 मोलल विलयन है अतः विलेय के मोल (n2) = 1 मोल
विलायक (H2O) के मोल (n1) = \(\frac { 1000 }{ 18 }\) = 55.5
जल की मोल भिन्न (x1) = \(\frac { 55.5 }{ 55.5 + 1 }\) = 0.982
विलयन का वाष्प दाब (P1) = x1 × P10
P1 = 0.982 × 12.3
P1 = 12.08 k Pa
अतः विलयन का वाष्प दाब = 12.08 pk Pa

प्रश्न 2.18
114 g ऑक्टेन में किसी अवाष्पशील विलेय (मोलर द्रव्यमान 40 g mol-1) की कितनी मात्रा घोली जाए कि ऑक्टेन का वाष्प दाब घट कर मूल का 80% रह जाए ?
उत्तर:
विलयन का वाष्प दाब (P1) = P10 का 80% है।
अतः P1 = P10 × 0.8
माना विलेय का द्रव्यमान = w g,
मोलर द्रव्यमान = 40g mol-1
विलेय के मोल = \(\frac { w }{ 40 }\)
ऑक्टेन (C8H18) का मोलर द्रव्यमान = 114 g mol-1
विलेय का द्रव्यमान = 114 g
ऑक्टेन (विलायक) के मोल = \(\frac { 114 }{ 114 }\) = 1 mol
विलेय की मोल भिन्न (x2)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 28

प्रश्न 2.19.
एक विलयन जिसे एक अवाष्पशील ठोस के 30g को 90g जल में विलीन करके बनाया गया है। उसका 298K पर वाष्प दाब 2.8 kPa है । विलयन में 18 g जल और मिलाया जाता है जिससे नया वाष्प दाब 298K पर 2.9 kPa हो जाता है। निम्नलिखित की गणना कीजिए-
(i) विलेय का मोलर द्रव्यमान
(ii) 298 K पर जल का वाष्प दाब।
उत्तर:
(i) विलेय का द्रव्यमान = 30g तथा माना विलेय का मोलर द्रव्यमान = M
अतः विलेय के मोल (n2) = \(\frac { 30 }{ M }\)
विलायक (H2O) का द्रव्यमान = 90 g,
मोलर द्रव्यमान: = 18 g mol-1
अतः विलायक के मोल = \(\frac { 90 }{ 18 }\) = 5
\(\frac{5}{5+(\tilde{3} 0 / \mathrm{M})}\) = \(\frac{5 \mathrm{M}}{5 \mathrm{M}+30}\)
x1 = \(\frac{M}{6+M}\)
विलयन का आंशिक दाब, P1 = P10x1
2.8 = P10 × \(\frac{M}{6+M}\) …..(1)

विलयन में 18 g (1 मोल) जल और मिलाया जाता है
तब जल के मोल = 5 + 1 = 6
इस स्थिति में विलायक (H2O) की मोल भिन्न
x1 = \(\frac{6}{6+(30 / \mathrm{M})}\) = \(\frac{M}{5+M}\)
विलयन का आंशिक दाब, (P11) = P01x11
2.9 = P10 × \(\frac{M}{5+M}\) …..(2)
समीकरण (2) में समीकरण (1) का भाग देने पर,
\(\frac { 2.8 }{ 2.9 }\) = \(\frac { 5 + M }{ 6 + M }\)
2.8 (6 + M) = 2.9 (5 + M)
16.8 + 2.8 M = 14.5 + 2.9 M
0.1M = 2.3
M = 23 g mol-1
अतः विलेय का मोलर द्रव्यमान = 23g mol-1

(ii) समीकरण (2) में M का मान रखने पर
2.9 = P10 × \(\frac { 23 }{ 5 + 23 }\)
2.9 = \(\frac{p_1^0 \times 23}{28}\)
23P10 = 2.9 × 28
23P10 = 81.2
P10 = 81.2/23 = 3.53KPa
अतः 298 K पर जल का वाष्प दाब = 3.53 kPa

प्रश्न 2.20
शक्कर के 5% (द्रव्यमान) जलीय विलयन का हिमांक 271K है। यदि शुद्ध जल का हिमांक 273.15K है तो ग्लूकोस के 5% जलीय विलयन के हिमांक की गणना कीजिए ।
उत्तर:
हिमांक अवनमन (△Tf) = \(\frac{\mathrm{K}_{\mathrm{f}} \times \mathrm{w}_2 \times 1000}{\mathrm{M}_2 \times \mathrm{w}_1}\)
शक्कर के 5% (द्रव्यमान) विलयन का अर्थ है 5 g शक्कर + 95g H2O
△Tf = 273.15 – 271 = 2.15
शक्कर का द्रव्यमान (W2) =5g
W1 = 95 g.
M2 = शक्कर का (C12H22O11) मोलर द्रव्यमान = 342
Kf = ?
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 29

प्रश्न 2.21.
दो तत्व A एवं B मिलकर AB2 एवं AB4 सूत्र वाले दो यौगिक बनाते हैं। 20g बेन्जीन में घोलने पर 1 g AB2 हिमांक को 2.3K अवनमित ( कम ) करता है। जबकि 1.0g AB4 से 1.3K का अवनमन होता है। बेन्जीन के लिए मोलर अवनमन स्थिरांक 5.1 K kg mol-1 है । A एवं B के परमाण्वीय द्रव्यमान की गणना कीजिए ।
उत्तर:
हिमांक अवनमन-
△Tf = \(\frac{\mathrm{K}_{\mathrm{f}} \times \mathrm{w}_2 \times 1000}{\mathrm{M}_2 \times \mathrm{w}_1}\)
मोलर द्रव्यमान, M2 = \(\frac{\mathrm{K}_{\mathrm{f}} \times \mathrm{w}_2 \times 1000}{\Delta \mathrm{T}_{\mathrm{f}} \times \mathrm{w}_1}\)
M2 = MAB2 = AB2 का मोलर द्रव्यमान = ?
Kf = 5.1 K kg mol-1
w2 = 1g, w1 = 20g, △Tf = 2.3K
MAB2 = \(\frac{5.1 \times 1 \times 1000}{2.3 \times 20}\) = 110.869
MAB2 = 110.87g mol-1
इसी प्रकार AB4 का मोलर द्रव्यमान –
MAB4 = \(\frac{\mathrm{K}_{\mathrm{f}} \times \mathrm{w}_2 \times 1000}{\Delta \mathrm{T}_{\mathrm{f}} \times \mathrm{w}_1}\)
△Tf = 1.3K
MAB4 = \(\frac{5.1 \times 1 \times 1000}{1.3 \times 20}\) = 196.15
MAB4 = 196.15 g mol-1
माना x तथा y, A तथा B के परमाणु द्रव्यमान हैं।
तो MAB2 = x + 2y
110.87 = x +2y …………..(1)
MAB4 = x + 4y
196.15 = x + 4y
समीकरण ( 2 ) में से समीकरण (1) घटाने पर,
196.15 – 110.87 = 2y
85.28 = 2y
У = 42.64 u

y का मान समीकरण (1) में रखने पर,
110.87 = x + 2 × 42.64
110.87 = x + 85.28
x = 110.87 – 85.28
x = 25.59 u
अतः A का परमाणु द्रव्यमान = 25.59 u तथा
B का परमाणु द्रव्यमान = 42.64 u

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन

प्रश्न 2.22.
300K पर 36 g प्रति लीटर सांद्रता वाले ग्लूकोस के विलयन का परासरण दाब 4.98 bar है। यदि इसी ताप पर विलयन का परासरण दाब 1.52 bar हो तो उसकी सांद्रता क्या होगी ?
उत्तर:
परासरण दाब (Π) = CRT
चूंकि R तथा T नियत हैं अतः
Π ∝ C
अतः किसी पदार्थ के दो विभिन्न सान्द्रता वाले विलयनों के लिए
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 30

ग्लूकोस (C6H12O6) का मोलर द्रव्यमान = 180
C1 = \(\frac{36}{180 \times 1}\) = 0.2mol L-1
अब Π1 = 4.98bar, Π2 = 1.52bar
C1 = 0.2 mol L-1, C2 = ?

उपर्युक्त सूत्र में Π1, Π2 तथा C2 का मान रखने पर
\(\frac{4.98}{1.52}\) = \(\frac{0.2}{C_2}\)
C2 = \(\frac{1.52 \times 0.2}{4.98}\) = 0.061mol L-1
अतः द्वितीय स्थिति में विलयन की सान्द्रता = 0.061 mol L-1

प्रश्न 2.23.
निम्नलिखित युग्मों में उपस्थित सबसे महत्वपूर्ण अतंरआण्विक आकर्षण बलों का सुझाव दीजिए-
(i) n – हेक्सेन तथा n – ऑक्टेन
(ii) I2 तथा CCl4
(iii) NaClO4 तथा H2O
(iv) मेथेनॉल तथा ऐसीटोन
(v) ऐसीटोनाइट्राइल (CH3CN) तथा ऐसीटोन (C3H6O)
उत्तर:
(i) n – हेक्सेन व n ऑक्टेन- ये दोनों ही अध्रुवीय अणु हैं। अतः इनके मध्य वान्डरवाल बल होता है जो कि प्रकीर्णन बल (Dispersion force) या लण्डन बल है। इसे तात्कालिक द्विध्रुव-प्रेरित द्विध्रुव आकर्षण बल भी कहते हैं।

(ii) I2 तथा CCl4 के मध्य भी उपर्युक्त प्रकार का वान्डरवाल बल ही पाया जाता है।

(iii) NaClO4 तथा H2O के मध्य आयन- द्विध्रुव आकर्षण बल होता है। क्योंकि NaClO4, Na+ तथा CIO4 में वियोजित हो जाता है।

(iv) मेथेनॉल तथा ऐसीटोन के मध्य द्विध्रुव- द्विध्रुव आकर्षण बल पाया जाता है तथा इनमें कुछ मात्रा में हाइड्रोजन बन्ध भी होता है।

(v) ऐसीटोनाइट्राइल (CH3CN) तथा ऐसीटोन (CH3COCH3) के मध्य भी द्विध्रुव-द्विध्रुव आकर्षण बल होता है।

प्रश्न 2.24.
विलेय-विलायक आकर्षण के आधार पर निम्नलिखित को n ऑक्टेन में विलेयता के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए – KCI, CH3OH, CH3CN, साइक्लोहेक्सेन ।
उत्तर:
n- ऑक्टेन, अध्रुवीय विलायक है अतः विलेयता के सामान्य सिद्धान्त “समान, समान को घोलता है,” के अनुसार जब विलेय की ध्रुवता कम होगी तो n – ऑक्टेन में उसकी विलेयता बढ़ेगी। अतः उपर्युक्त यौगिकों की n – ऑक्टेन में विलेयता का बढ़ता क्रम निम्न प्रकार होगा-
KCI < CH3OH < CH3CN < साइक्लोहेक्सेन

प्रश्न 2.25.
पहचानिए कि निम्नलिखित यौगिकों में से कौनसे जल में अत्यधिक विलेय, आंशिक रूप से विलेय तथा अविलेय हैं-
(i) फीनॉल
(ii) टॉलूईन
(iii) फार्मिक अम्ल
(iv) एथिलीन ग्लाइकॉल
(v) क्लोरोफॉर्म
(vi) पेन्टेनॉल
उत्तर:
जल, एक ध्रुवीय विलायक है जिसमें अणुओं के मध्य हाइड्रोजन बन्ध पाया जाता है।
(a) (ii) टॉलूईन तथा (v) क्लोरोफॉर्म जल में अविलेय हैं क्योंकि ये. सहसंयोजी यौगिक हैं, अतः ये जल के साथ हाइड्रोजन बन्ध नहीं बनाते।

(b) (i) फीनॉल तथा (vi) पेन्टेनॉल जल में आंशिक रूप से विलेय हैं क्योंकि इन यौगिकों में ध्रुवता होती है लेकिन इनका अध्रुवीय भाग बड़ा है। अतः ये जल के साथ बहुत दुर्बल हाइड्रोजन बन्ध बनाते हैं।

(c) (iii) फार्मिक अम्ल तथा (iv) एथिलीन ग्लाइकॉल जल में अत्यधिक विलेय हैं क्योंकि ये जल के साथ प्रबल हाइड्रोजन बन्ध बनाते हैं।

प्रश्न 2.26.
यदि किसी झील के जल का घनत्व 1.25 g mL-1 है तथा उसमें 92 g Na+ आयन प्रति किलोग्राम जल में उपस्थित हैं, तो झील में Na+ आयन की मोललता ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 31
= \(\frac { 92 }{ 23 }\) = 4
अतः m = \(\frac { 4 }{ 1 }\) = 4
अतः Na+ आयन की मोललता = 4 m.

प्रश्न 2.27.
अगर CuS का विलेयता गुणनफल 6 × 10-16 है तो जलीय विलयन में उसकी अधिकतम मोलरता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
CuS का विलेयता गुणनफल (ksp) = [Cu2+][s2-] Cus की अधिकतम मोलरता = CuS की विलेयता
CuS का ksp = 6 × 10-16
तथा इसके लिए (Ksp) = S2
S = mol L-1 में विलेयता
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 32
अतः जलीय विलयन में CuS की अधिकतम विलेयता = 2.45 × 10-8 M

प्रश्न 2.28.
जब 6.5g, ऐस्पिरीन (C9H8O4) को 450 g ऐसिटोनाइट्राइल (CH3CN) में घोला जाए तो ऐस्पिरीन का ऐसीटोनाइट्राल में भार प्रतिशत (द्रव्यमान प्रतिशत) ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
भार प्रतिशत = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 33 × 100
अवयव (ऐस्पिरीन) का भार = 6.5 g
विलायक का भार = 450 g
विलयन का कुल भार = 450 + 6.5 g = 456.5 g
अतः ऐस्पिरीन का भार % = \(\frac { 6.5 }{ 456.5 }\) × 100 = 1.4238 = 1.424%

प्रश्न 2.29.
नैलॉफ़न (C19H21NO3) जो कि मॉर्फीन जैसी होती है, का उपयोग स्वापक उपभोक्ताओं (narcotic users) द्वारा स्वापक छोड़ने से उत्पन्न लक्षणों को दूर करने में किया जाता है। सामान्यतया नैलॉफ़न की 1.5 mg खुराक दी जाती है। उपर्युक्त खुराक के लिए 1.5 × 10-3 m जलीय विलयन का कितना द्रव्यमान आवश्यक होगा?
उत्तर:
मोललता (m)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 34
विलेय का भार = 1.5 mg =1.5 × 10-3(g)
विलेय (C19H21NO3) का मोलर द्रव्यमान
=(12×19)+(1×21) +14+ (3×16) =228 +21+14 + 48 =311
m = 1.5 × 10-3, विलायक का द्रव्यमान = ?
मान रखने पर,
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 35
विलायक का द्रव्यमान = 3.215 g
विलयन का द्रव्यमान = 3.215(g) + 1.5 × 10-3 (g)
= 3.215 + 0.0015
= 3.2165 = 3.217(g)

प्रश्न 2.30.
बेन्जोइक अम्ल का मेथेनॉल में 250 mL, 0.15 M विलयन बनाने के लिए आवश्यक मात्रा की गणना कीजिए।
उत्तर:
मोलरता (M) = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 36
विलेय का द्रव्यमान = ?
विलेय [बेन्जोइक अम्ल (C6H5COOH)] का मोलर द्रव्यमान
=(6 × 12) + 5 + 12 + 16 + 16 + 1 = 122
M = 0.15
अतः 1.15 = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 37
विलेय का द्रव्यमान = \(\frac{0.15 \times 250 \times 122}{1000}\)
विलेय का द्रव्यमान = 4.575 g

प्रश्न 2.31.
ऐसीटिक अम्ल, ट्राइक्लोरोऐसीटिक अम्ल एवं ट्राइफ्लुओरो ऐसीटिक अम्ल की समान मात्रा से जल के हिमांक में अवनमन इनके उपर्युक्त दिए गए क्रम में बढ़ता है। संक्षेप में समझाइए |
उत्तर:
हिमांक अवनमन कणसंख्यक अणुसंख्यक गुण है अर्थात् कणों की संख्या बढ़ने पर हिमांक अवनमन भी बढ़ेगा।

ऐसीटिक अम्ल (CH3COOH), ट्राइक्लो रो ऐसीटिक अम्ल (CCl3COOH) एवं ट्राइफ्लुओरो ऐसीटिक अम्ल (CF3COOH) का यह क्रम अम्लीय गुण का बढ़ता क्रम है अर्थात् वियोजन का भी बढ़ता क्रम है अतः कणों की संख्या बढ़ेगी। इसलिए उपर्युक्त क्रम ही हिमांक में अवनमन का बढ़ता क्रम है।

प्रश्न 2.32.
CH3 – CH2 – CHCl – COOH के 10g को 250 g जल में मिलाने से होने वाले हिमांक का अवनमन परिकलित कीजिए। ( Ka = 1.4 × 10-3, Kf = 1.86K kg mol-1 तथा विलयन का घनत्व = 0.904g mL-1 )
उत्तर:
विलयन की मोलरता
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 38
विलयन का द्रव्यमान = 250 + 10 = 260 g

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 39
(V) = 287.6 mL
CH3 – CH2 – CHCl – COOH (C4H7O2Cl) का मोलर
द्रव्यमान = 36 +7 32 + 35.5 = 122.5
∴ M = \(\frac{10 \times 1000}{122.5 \times 287.6 \mathrm{~mL}}\)
M = 0.2838 = 0.284mol L-1
वान्ट हॉफ गुणांक (i) ज्ञात करना-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 40

प्रश्न 2.33.
CH2FCOOH के 19.5 g को 500g H2O में घोलने पर जल के हिमांक में 1.0°C का अवनमन देखा गया। फ्लुओरोऐसीटिक अम्ल का वान्ट हॉफ गुणक तथा वियोजन स्थिरांक परिकलित कीजिए, यदि Kf = 1.86 K kg mol-1 तथा विलयन का घनत्व = 1.124 g mL-1
उत्तर:
(i) विलयन की मोललता = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 41
विलेय का भार = 19.5g
CH2FCOOH का मोलर द्रव्यमान = 12 + 2 + 19 + 12 + 16 + 16 + 1 = 78
विलायक का द्रव्यमान = 500 g
अतः m = \(\frac{19.5 \times 1000}{78 \times 500}\) = 0.5
हिमांक अवनमन △Tf = 1.0°

(ii) △Tf = i × Kf × m
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 42
वान्ट हॉफ गुणक (i) = 1.0753

(iii) अम्ल की वियोजन की मात्रा α = \(\frac{i-1}{n-1}\)
α = \(\frac{1.0753 – 1}{2 – 1}\) = 0.0753

(iv) वियोजन की मात्रा (α) = \(\sqrt{\frac{\mathrm{K}_{\mathrm{a}}}{\mathrm{C}}}\)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 43

प्रश्न 2.34.
293 K पर जल का वाष्प दाब 17.535 mm Hg है। यदि 25 g ग्लूकोस को 450 g जल में घोलें तो 293 K पर जल का वाष्प दाब परिकलित कीजिए।
उत्तर:
जल का वाष्प दाब p10 = 17.535mm Hg
माना विलयन का वाष्प दाब = P1
वाष्प दाब में आपेक्षिक अवनमन = \(\frac{p_1^0-p_1}{p_1^0}\) = x2
n1 = विलायक (जल) के मोल = \(\frac{450}{18}\)
ग्लूकोस (C6H12O6) का मोलर द्रव्यमान = 180
n2 = विलेय के मोल = \(\frac{25}{180}\)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 44

प्रश्न 2.35.
298K पर मेथेन की बेन्जीन में मोललता का हेनरी स्थिरांक 4.27 × 105 mm Hg है । 298K तथा 760 mm Hg दाब पर मेथेन की बेन्जीन में विलेयता परिकलित कीजिए।
उत्तर:
दिया हुआ है KH = 4.27 × 105 mm Hg,
p = 760mm Hg
हेनरी के नियम के अनुसार p = KH.x
मेथेन की मोल भिन्न (x) = \(\frac{\mathrm{p}}{\mathrm{K}_{\mathrm{H}}}\)
x = \(\frac{760}{4.27 \times 10^5}\)
x = 177.9 × 10-5
x = 178 × 10-5
अतः मेथेन की बेन्जीन में विलेयता (मोल भिन्न के रूप में) = 178 × 10-5

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन

प्रश्न 2.36.
100g द्रव A (मोलर द्रव्यमान 140 gmol-1) को 1000 g द्रव B ( मोलर द्रव्यमान 180gmol- 1 ) में घोला गया। शुद्ध द्रव B का वाष्प दाब 500 Torr पाया गया। शुद्ध द्रव A का वाष्प दाब तथा विलयन में उसका वाष्प दाब परिकलित कीजिए यदि विलयन का कुल वाष्प दाब 475 Torr हो ।
उत्तर:
माना द्रव A का शुद्ध अवस्था में वाष्प दाब = PA0 तथा शुद्ध
अवस्था में द्रव B का वाष्प दाब PB0 = 500 Torr
द्रव A के मोल
(nA) = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 45 = \(\frac { 100 }{ 140 }\) = 0.714
द्रव B के मोल
(nB) = \(\frac { 1000 }{ 180 }\) = 5.55
द्रव A की मोल भिन्न
(xA) = \(\frac{\mathrm{n}_{\mathrm{A}}}{\mathrm{n}_{\mathrm{A}}+\mathrm{n}_{\mathrm{B}}}\)
xA = \(\frac{0.714}{0.714+5.55}\)
xA = \(\frac { 0.714 }{ 6.264 }\) = 0.1139 = 0.114

द्रव B की मोल भिन्न
(XB) = (1 − xA) = (1 − 0.114) = 0.886
डाल्टन के आंशिक दाब के नियम से
कुल दाब (p) = PA + PB
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 46

प्रश्न 2.37.
328 K पर शुद्ध ऐसीटोन एवं क्लोरोफॉर्म के वाष्प दाब क्रमशः 741.8 mm Hg तथा 632.8 mm Hg हैं। यह मानते हुए कि संघटन के सम्पूर्ण परास में ये आदर्श विलयन बनाते Pकुल’ Pक्लोरोफॉर्म, तथा Pऐसीटोन को X ऐसीटोन के फलन के रूप में
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 47
उपर्युक्त आंकड़ों को भी उसी ग्राफ में आलेखित कीजिए और इंगित कीजिए कि क्या इसमें आदर्श विलयन से धनात्मक अथवा ऋणात्मक विचलन है?
उत्तर:
दिए गए आंकड़ों से कुल दाब ज्ञात करके विभिन्न आंकड़ों के लिए प्राप्त सारणी निम्न प्रकार है-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 48
यहाँ कुल दाब (Pकुल) = Pऐसीटो + PCHCl3
इन आंकड़ों से xऐसीटोन के फलन के रूप में (x अक्ष पर), Pकुल, Pक्लोरोफॉर्म तथा Pऐसीटोन (y अक्ष पर) को आलेखित करने पर प्राप्त ग्राफ निम्नलिखित प्रकार का होता है। (ग्राफ बनाते समय, दोनों अक्षों के लिए भिन्न-भिन्न पैमाना माना जाता है)-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 49
ग्राफ से यह ज्ञात होता है कि सभी संघटनों पर विलयन का कुल दाब, आदर्श विलयन के वाष्प दाब से कम है अतः इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि विलयन ऋणात्मक विचलन दर्शाता है। जिसके लिए
ΔΗमिश्रण = -ve तथा △Vमिश्रण = -ve

प्रश्न 2.38.
संघटनों के सम्पूर्ण परास (Range) में बेन्जीन तथा टॉलूईन आदर्श विलयन बनाते हैं। 300 K पर शुद्ध बेन्जीन तथा टॉलूईन का वाष्प दाब क्रमश: 50.71 mm Hg तथा 32.06 mm Hg है। यदि 80g बेन्जीन को 100g टॉलूईन में मिलाया जाये तो वाष्प अवस्था में उपस्थित बेन्जीन के मोल-अंश परिकलित कीजिए ।
उत्तर:
माना वाष्प अवस्था में बेन्जीन का मोल अंश = Y2 तो
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 50
टॉलूईन (C7H8) का मोलर द्रव्यमान = 92
अतः टॉलूईन के मोल (n1) = \(\frac { 100 }{ 92 }\) = 1.086
विलयन में बेन्जीन का मोल अंश
x2 = \(\frac{n_2}{n_1+n_2}\) = \(\frac{1.025}{1.086+1.025}\)
x2 = \(\frac{1.025}{2.111}\) = 0.485
टॉलूईन का मोल अंश (x1) = 1 – x2
x1 = 1 – 0.485
x1 = 0.515
वाष्प अवस्था में बेन्जीन का मोल अंश
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 51
अतः वाष्प अवस्था में बेन्जीन का मोल अंश
(y2) = 0.60
तथा वाष्प अवस्था में टॉलूईन का मोल अंश
(y1) = 1 – y2 = 1 – 0.60 = 0.40

प्रश्न 2.39.
वायु अनेक गैसों की मिश्रण है। 298 K पर आयतन में मुख्य घटक ऑक्सीजन और नाइट्रोजन लगभग 20% एवं 79% के अनुपात में हैं। 10 वायुमंडल दाब पर जल वायु के साथ साम्य में है। 298 K पर यदि ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के हेनरी स्थिरांक क्रमश: 3.30 × 107 mm तथा 6.51 × 107 mm है, तो जल में इन गैसों का संघटन ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
माना 1 मोल वायु का 10 वायुमण्डल दाब ( atm P) पर आयतन = V
वायु में 20% O2 (आयतन से) है,
अतः O2 का आयतन = \(\frac{V \times 20}{100}\) = 0.2V
N2 का वायु में प्रतिशत (आयतन से) = 79%
अतः N2 का आयतन = \(\frac{\mathrm{V} \times 79}{100}\) = 0.79V
किसी गैस का आंशिक दाब = HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 52 × कुल दाब
O2 का आंशिक दाब, PO2 = \(\frac{0.2 \mathrm{~V}}{\mathrm{~V}}\) × 10 = 2atm
N2 का आंशिक दाब, PN2 = \(\frac{0.79 \mathrm{~V}}{\mathrm{~V}}\) × 10 = 7.9atm
अतः विलयन में O2 की विलेयता (मोल अंश के रूप में)
हेनरी के नियम से :
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 53
अतः जल में O2 की विलेयता ( मोल भिन्न) = 4.606 × 10-5
तथा N2 की विलेयता (मोल भिन्न) = 9.22 × 10-5

प्रश्न 2.40.
यदि जल का परासरण दाब 27° C पर 0.75 वायुमण्डल हो तो 2.5 लीटर जल में घुले CaCl2 (i= 2.47 ) की मात्रा परिकलित कीजिए।
उत्तर:
परासरण दाब (Π) = iCRT
Π = 0.75atm. i = 2.47
C=?, R = 0.0821 L atm mol-1 K-1
T = 27°C = 27°C + 273.15 = 300.15K
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 54
विलेय के मोल = मोलरता (सान्द्रता ) × आयतन (L)
= 0.0123 × 2.5L = 0.030
अतः 2.5 लीटर जल में घुले CaCl2 की मात्रा = 0.030 मोल

प्रश्न 2.41.
2 लीटर जल में 25°C पर K2SO4 के 25 mg, को घोलने पर बनने वाले विलयन का परासरण दाब, यह मानते हुए ज्ञात कीजिए कि K2SO4 पूर्णतः वियोजित हो गया है।
उत्तर:
K2SO4 का पूर्ण वियोजन माना गया है अतः
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 55
अतः आयनन से प्राप्त आयनों की संख्या (i) = 3
परासरण दाब (π) = iCRT
R = 0.0821 L atm mol-1 K-1
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 Img 56

HBSE 12th Class Chemistry विलयन Intext Questions

प्रश्न 2.1.
यदि 22 g बेन्जीन 122g कार्बनटेट्राक्लोराइड में घुली हो तो बेन्जीन एवं कार्बन टेट्राक्लोराइड के द्रव्यमान प्रतिशत की गणना कीजिए।
उत्तर:
किसी अवयव का द्रव्यमान
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 57
विलयन में बेन्जीन का द्रव्यमान = 22 g
कार्बन टेट्राक्लोराइड का द्रव्यमान = 122 g
(i) अतः बेन्जीन का द्रव्यमान प्रतिशत = \(\frac { 22 }{ 122+22 }\) x 100
= \(\frac { 22 }{ 144 }\) × 100
= 15.277%
= 15.28%

(ii) कार्बनटेट्राक्लोराइड का द्रव्यमान प्रतिशत = \(\frac { 122 }{ 144 }\) x 100
= 84.72%
अतः बेन्जीन का द्रव्यमान %= 15.28% तथा कार्बनटेट्राक्लोराइड का द्रव्यमान % = 84.72% है।

प्रश्न 2.2.
एक विलयन में बेन्जीन का 30% द्रव्यमान कार्बन टेट्राक्लोराइड में घुला हुआ हो तो बेन्जीन के मोल- अंश की गणना कीजिए।
उत्तर:
विलयन में किसी अवयव का मोल अंश (Mole fraction) (x)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 58
बेन्जीन का 30% द्रव्यमान कार्बन टेट्राक्लोराइड में घुला हुआ है। जिसका अर्थ है कि 30 g बेन्जीन (C6H6), 70g कार्बनटेट्राक्लोराइड (CC14) में घुली हुई है।
किसी पदार्थ के मोलों की संख्या
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 59
(i) C6H6 का मोलर द्रव्यमान
= 78gmol-1 (C = 12,H = 1)
CCl4 का मोलर द्रव्यमान
= 154 g mol<sup<-1 (Cl = 35.5)
C6H6 के मोल (nb = \(\frac { 30 }{ 78 }\) = 0.3846 mol
C4H4 के मोल (nc = \(\frac { 70 }{ 154 }\) = 0.4545 mol
कुल मोल = nb + nc = 0.3846 + 0.4545 = 0.8391

(ii) बेन्जीन का मोल अंश (xb) = \(\frac{n_b}{n_b+n_c}\)
xb = \(\frac{0.3846}{0.8391}\) = 0.459
कार्बनटेट्राक्लोराइड का मोल अंश
(xc) = \(\frac{0.4545}{0.8391}\)
= 0.54165
= 0.541
अतः C6H6 का मोल अंश = 0.459
CCl4 का मोल अंश = 0.541

प्रश्न 2.3.
निम्नलिखित प्रत्येक विलयन की मोलरता की गणना कीजिए-
(क) 30 g, Co (NO3)2.6H2O 4.3 लीटर विलयन में घुला हुआ हो
(ख) 30mL 0.5M H2SO4 को 500 ml तक तनु करने पर।
उत्तर:
(क) किसी विलयन की मोलरता
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 60
Co(NO3)2.6H2O का द्रव्यमान 30 g
तथा इसका मोलर द्रव्यमान = 297 g mol-1 होता है।
अतः Co(NO3)2.6H2O के मोल = \(\frac{30 \mathrm{~g}}{297 \mathrm{~g} \mathrm{~mol}^{-1}}\)
विलयन का आयतन = 4.3 लीटर
अतः Co(NO3)2.6H2O की मोलरत
(M) = \(\frac{30 \mathrm{~g}}{297 \mathrm{~g} \mathrm{~mol}^{-1} \times 4.3 \mathrm{~L}}\)
M = 0.02349 = 0.0235 = 0.024
अतः विलयन की मोलरता = 0.024 M.

(ख) किसी विलयन को तनु करने पर उसकी परिणामी मोलरता निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात कर सकते हैं-
M1V1 = M2V2
30ml 0.5 H2SO को 500ml तक त किया गया है अतः
M1 = 0.5. V1 = 30ml, V2 = 500mL, M2 = ?
\(\frac{\mathrm{M}_1 \mathrm{~V}_1}{\mathrm{~V}_2}=\frac{0.5 \times 30}{500}\) = 0.03
अतः H2SO4 के विलयन की परिणामी मोलरता 0.03M

प्रश्न 2.4
यूरिया (NH2CONH2) के 0.25 मोलर, 2.5 kg जलीय विलयन को बनाने के लिए आवश्यक यूरिया के द्रव्यमान की गणना कीजिए।
उत्तर:
जल का घनत्व \(\simeq\) 1 g cm-3
अतः 2.5 kg जलीय विलयन = 2500 g विलयन
= 2500 mL विलयन = 2.5 L विलयन
चूंकि विलयन अति है (0.25) अतः विलयन का घनत्व, जल के घनत्व के समान मान सकते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 60a

प्रश्न 2.5.
20% ( w / w ) जलीय KI का घनत्व 1202 gm-1 हो तो KI विलयन की (क) मोललता, (ख) मोलरता, (ग) मोल अंश की गणना कीजिए।
उत्तर:
(क) विलयन की मोललता
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 61
20% w/w जलीय KI विलयन का अर्थ है कि 20 g KI, 80 g जल में विलेय है
KI का मोलर द्रव्यमान = 39 + 127 = 166
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 62
20% w/w जलीय KI विलयन का अर्थ है कि 20 g KI, 80 g जल में विलेय है
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 63

प्रश्न 2.6.
सड़े हुए अंडे जैसी गंध वाली विषैली गैस H2 गुणात्मक विश्लेषण में उपयोग की जाती है। यदि H2S गैस की जल में STP पर विलेयता 0.195 M हो तो हेनरी स्थिरांक की गणना कीजिए।
उत्तर:
हेनरी के नियमानुसार p = KH.x
KH = हेनरी स्थिरांक
p = दाब = 1bar (STP)
x = विलेय की मोल भिन्न
H2S के मोल = 0.195M
तथा जल का मोल = 55.5 होता है।
अतः
xH2s = \(\frac{0.195}{0.195+55.5}\)
= \(\frac{0.195}{55.695}\) = 0.0035 = 3.5 x 10-3
हेनरी स्थिरांक KH = \(\frac { P }{ x }\)
= \(\frac{1 \text { bar }}{3.5 \times 10^{-3}}\) = 285.7 bar
अतः H2S के लिए हेनरी स्थिरांक (KH) = 285.7 bar

प्रश्न 2.7.
298K पर CO2 गैस की जल में विलेयता के लिए हेनरी स्थिरांक का मान 1.67 x 108 Pa है। 500mL सोडा जल 2.5 atm दाब पर बंद किया गया। 298K ताप पर घुली हुई CO2 की मात्रा की गणना कीजिए।
उत्तर:
हेनरी के नियम के अनुसार
X = \(\frac{\mathrm{p}}{\mathrm{K}_{\mathrm{H}}}\)
p = 2.5 atm, KH = 1.67 × 108 Pa
CO2 की मोल भिन्न (x) = \(\frac{2.5 \mathrm{~atm}}{1.67 \times 10^8 \mathrm{~Pa}}\)
चूंकि 1 atm = 101325 Pa
अतः XCO2 = \(\frac{2.5 \times 101325 \mathrm{~Pa}}{1.67 \times 10^8 \mathrm{~Pa}}\)
= 1.516 x 10-3
XCO2= 1.516 x 10-3
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 65
हेनरी का नियम अति तनु विलयन पर ही लागू होता है अतः nCO2 << nH2O
इस प्रकार
XCO2 = \(\frac{\mathrm{n}_{\mathrm{CO}_2}}{\mathrm{n}_{\mathrm{H}_2 \mathrm{O}}}\)
चूंकि जल का मोल = 55.5 होता है
तथा XCO2 = 1.516 × 10-3
1.516 × 10-3 = \(\frac{\mathrm{n}_{\mathrm{CO}_2}}{55.5}\)
nCO2 = 1.516 x 10-3 x 55.5
= 84.13 x 10-3 L-1
चूंकि विलयन का आयतन = 500mL
अतः CO2 के 500mL विलयन (0.5L) में उपस्थित मोल = \(\frac{84.13 \times 10^{-3}}{2}\)
= 42.06 x 10-3
CO2 का द्रव्यमान = मोल x मोलर द्रव्यमान
CO2 का मोलर द्रव्यमान 12 + (2 x 16) = 44
अतः CO2 का द्रव्यमान = 42.06 x 10-3 x 44
CO2 का द्रव्यमान = 1.85 g

प्रश्न 2.8.
350 K पर शुद्ध द्रवों A एवं B के वाष्पदाब क्रमश: 450 एवं 750mm Hg हैं। यदि कुल वाष्पदाब 600 mm Hg हो तो द्रव मिश्रण का संघटन ज्ञात कीजिए। साथ ही वाष्प प्रावस्था का संघटन भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
मिश्रण का कुल वाष्प दाब = Pकुल = PA + PB
PA = xAA, PB = xBB
अतः Pकुल = xAA + xBB
Pकुल = 600mm Hg, p°A = 450mm Hg
तथा p°B = 750 mm Hg.
अतः Pकुल= 450xA + 700xB (xB =1 – xA)
600 = 450xA + 700 (1 – xA)
600 = 450xA + 700 – 700xA
200xA= 100
xA = \(\frac { 100 }{ 250 }\) = 0.4
xA + xB = 1
अतः xB = 1 – 0.4 = 0.6
अतः द्रव मिश्रण का संघटन = xA = 0.4, xB = 0.6
वाष्प अवस्था में
PA = yAPकुल
yA = \(\frac{\mathrm{p}_{\mathrm{A}}}{\mathrm{y}_{\text {कुल }}}=\frac{\mathrm{x}_{\mathrm{A}} \mathrm{p}_{\mathrm{A}}^{\mathrm{o}}}{\mathrm{p}_{\text {कुल }}}=\frac{450 \times 0.4}{600}\)
yA = 0.3
yB = 1 – yA = 1 – 0.3 = 0.7
अतः वाष्प अवस्था में मिश्रण का संघटन
= YA = 0.3, yB = 0.7

प्रश्न 2.9.
298 K पर शुद्ध जल का वाष्पदाब 23.8 mm H है। 850g जल में 50g यूरिया (NH2CONH2) घोला जाता है। इस विलयन के लिए जल के वाष्पदाब एवं इसके आपेक्षिक अवनमन का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
वाष्प दाब में आपेक्षिक अवनमन विलेय की मोल अंश के बराबर होता है।
\(\frac{\mathrm{p}_1^0-\mathrm{p}_1}{\mathrm{p}_1^0}=\frac{\mathrm{n}_2}{\mathrm{n}_1+\mathrm{n}_2}\)
n2 = विलेय के मोल
= \(\frac { 50g }{ 60 }\)(यूरिया का मोलर द्रव्यमान = 60)
n1 = विलायक के मोल = \(\frac { 850 g }{ 18 }\)
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन 66
शुद्ध जल का वाष्प दाब p°1 = 23.8mm Hg
अतः p1 = 23.8 x 0.983 = 23.39mm Hg
अतः
इस विलयन के लिए जल का वाष्प दाब
= 23.39 mm Hg
= 23.4 mm Hg
तथा वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन = 0.017

प्रश्न 2.10
750 mm Hg दाब पर जल का क्वथनांक 99.63°C है। 500 g जल में कितना सुक्रोस मिलाया जाए कि इसका 100° C पर क्वथन हो जाए।
उत्तर:
क्वथनांक उन्नयन ∆Tb = 100 – 99.63 = 0.37°
क्वथनांक उन्नयन ∆Tb = \(\frac{\mathrm{K}_{\mathrm{b}} \times 1000 \times \mathrm{w}_2}{\mathrm{M}_2 \times \mathrm{w}_1}\)
Kb = क्वथनांक उन्नयन स्थिरांक ( मोलल उन्नयन स्थिरांक)
= 0.52 kg mol-1
M2 = विलेय का मोलर द्रव्यमान = 342 (सुक्रोस) C12H22O11
w2 = विलेय का भार = ?
w1 = विलायक का भार = 5000 g
∆Tb = 0.37 = \(\frac{0.52 \times 1000 \times \mathrm{w}_2}{342 \times 500}\)
w2 = \(\frac{0.37 \times 342 \times 500}{0.52 \times 1000}\)
w2 = 121.67 g
अतः 121.67g सुक्रोस मिलाना पड़ेगा।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 2 विलयन

प्रश्न 2.11.
ऐस्कार्बिक अम्ल (विटामिन C, C6H8O6) के उस द्रव्यमान का परिकलन कीजिए, जिसे 75g ऐसीटिक अम्ल में घोलने पर उसके हिमांक में 1.5°C की कमी हो जाए। Kf = 3.9 K kg mol-1
उत्तर:
हिमांक अवनमन, ∆Tf = \(\frac{\mathrm{K}_{\mathrm{f}} \times \mathrm{w}_2 \times 100}{\mathrm{M}_2 \times \mathrm{w}_1}\)
∆Tf = 1.5°C, Kf = 3.9 K kg mol-1 w2 = ?
w1 = 75g, M2 = 176 (C6H8O6)
1.5 = \(\frac{3.9 \times w_2 \times 1000}{176 \times 75}\)
w2 = \(\frac{1.5 \times 176 \times 75}{3.9 \times 1000}\)
w2 = 5.0769 g
अतः ऐस्कॉर्बिक अम्ल का द्रव्यमान 5.077g

प्रश्न 2.12.
185,000 मोलर द्रव्यमान वाले एक बहुलक के 1.0 g को 37°C पर 450 mL जल में घोलने से उत्पन्न विलयन के परासरण दाब का पास्कल में परिकलन कीजिए।
उत्तर:
परासरण दाब II = CRT
II = \(\frac{\mathbf{n}_2}{\mathrm{~V}}\)RT
II = परासरण दाब
n2 = पदार्थ के मोल = 1.0 g/185000
R = 0.083 L bar mol-1K-1
T = 37°C + 273.15 = 310.15
V = 450mL = 0.45L
परासरण दाब (II) = \(\frac{1.0 \times 0.083 \times 310.15}{0.450 \times 185,000}\) = 3.09 x 10-4
= 3.09 × 10-4 x 101325 Pa
= 31.309 Pa

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था

प्रश्न 1.1.
‘अक्रिस्टलीय’ पद को परिभाषित कीजिए। अक्रिस्टलीय ठोसों के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे ठोस जिनमें अवयवी कणों (परमाणुओं, अणुओं या आयनों) की व्यवस्था केवल लघु परासी (short range) होती है तथा इनमें केवल कुछ दूरी तक ही नियमित एवं पुनरावृत्त पैटर्न (Repeating Pattern) होता है, उन्हें अक्रिस्टलीय ठोस कहते हैं। काँच, रबर तथा प्लास्टिक अक्रिस्टलीय ठोसों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 1.2.
काँच, क्वार्ट्ज जैसे ठोस से किस प्रकार भिन्न है? किन परिस्थितियों में क्वार्ट्ज को काँच में रूपांतरित किया जा सकता है?
उत्तर:
काँच, सिलिका का अक्रिस्टलीय रूप है। इसका गलनांक निश्चित नहीं होता क्योंकि इसमें दीर्घ परासी नियमित संरचना नहीं होती। गर्म करने पर यह मुलायम हो जाता है। क्वार्ट्ज सिलिका (SiO2) का क्रिस्टलीय रूप है। इसका गलनांक निश्चित होता है तथा इसमें दीर्घ परासी नियमित व्यवस्था होती है। जब क्वार्ट्ज को गर्म करते हैं तथा गलित अवस्था में इसको तेजी से ठंडा किया जाता है तो यह काँच में रूपान्तरित हो जाता है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था

प्रश्न 1.3.
निम्नलिखित ठोसों का वर्गीकरण आयनिक, धात्विक, आण्विक, सहसंयोजक या अक्रिस्टलीय में कीजिए:
(i) टेट्राफॉस्फोरस डेकॉक्साइड (P4O10)
(ii) अमोनियम फॉस्फेट, (NH4)3PO4
(iii) SiC
(iv) I2
(v) P4
(vi) प्लास्टिक
(vii) ग्रेफाइट
(viii) पीतल
(ix) Rb
(x) LiBr
(xi) Si
उत्तर:
(i) टेट्राफॉस्फोरस डेकॉक्साइड (P4O10) – आण्विक ठोस
(ii) अमोनियम फॉस्फेट, (NH4)3 PO4 – आयनिक ठोस
(iii) SiC (सिलिकन कार्बाइड) – सहसंयोजी ठोस (नेटवर्क ठोस)
(iv) I2 ( आयोडीन ) – आण्विक ठोस
(v) P4 (फॉस्फोरस) – आण्विक ठोस
(vi) प्लास्टिक – अक्रिस्टलीय
(vii) ग्रेफाइट – सहसंयोजी ठोस (नेटवर्क ठोस)
(viii) पीतल – धात्विक ठोस
(ix) Rb (रूबिडियम ) – धात्विक ठोस
(x) LiBr ( लीथियम ब्रोमाइड) – आयनिक ठोस
(xi) Si ( सिलिकन) – सहसंयोजी ठोस ( नेटवर्क ठोस )।

प्रश्न 1.4.
(i) उपसहसंयोजन संख्या का क्या अर्थ है ?
(ii) निम्नलिखित परमाणुओं की उपसहसंयोजन संख्या क्या होती है?
(क) एक घनीय निविड संकुलित संरचना
(ख) एक अंत: केंद्रित घनीय संरचना।
उत्तर:
(i) किसी ठोस संरचना में एक कण (परमाणु, अणु या आयन) के निकटतम कणों (गोलों) की संख्या को उपसहसंयोजन संख्या कहते हैं।
(ii) (क) एक घनीय निविड संकुलित संरचना में उपसहसंयोजन संख्या 12 होती है।
(ख) एक अंत: केंद्रित घनीय संरचना में उपसहसंयोजन संख्या 8 होती है।

प्रश्न 1.5.
यदि आपको किसी अज्ञात धातु का घनत्व एवं एकक कोष्ठिका की विमाएं ज्ञात हैं तो क्या आप उसके परमाण्विक द्रव्यमान की गणना कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
जब किसी अज्ञात धातु का घनत्व एवं एकक कोष्ठिका की विमाएं (dimension) ज्ञात हैं तो उसके परमाणु द्रव्यमान की गणना निम्नलिखित सूत्र से कर सकते हैं-
घनत्व (d) = \(\frac{\mathrm{z} \times \mathrm{M}}{\mathrm{a}^3 \times \mathrm{N}_{\mathrm{A}}}\)
यहाँ z = एक एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की संख्या
M = परमाणु द्रव्यमान a= एकक कोष्ठिका के कोर की लम्बाई
NA = आवोगाद्रो संख्या
M के अलावा अन्य, मान सूत्र में रखकर, परमाणु द्रव्यमान (M) ज्ञात किया जा सकता है।

प्रश्न 1.6.
किसी क्रिस्टल की स्थिरता उसके गलनांक के परिमाण (magnitude) द्वारा प्रकट होती है’, टिप्पणी कीजिए। किसी आँकड़ा पुस्तक (data book) से जल, एथिल ऐल्कोहॉल, इथिल ईथर तथा मेथेन के गलनांक एकत्र करें। इन अणुओं के मध्य अंतराआण्विक बलों के बारे में आप क्या कह सकते हैं?
उत्तर:
किसी ठोस में कणों के मध्य आकर्षण बल अधिक होगा तो उसका गलनांक भी उच्च होगा तथा वह अधिक स्थायी होगा। इस प्रकार हम क्रिस्टल के स्थायित्व को गलनांक के परिमाण से समझा सकते हैं। अत: क्रिस्टलों का स्थायित्व, उसके गलनांक के समानुपाती होता है।

जल, एथिल ऐल्कोहॉल, डाइएथिल ईथर तथा मेथेन के गलनांक का क्रम निम्न प्रकार होता है:
मेथेन < डाइएथिल ईथर < एथिल ऐल्कोहॉल < जल।
अतः इन यौगिकों में अन्तराआण्विक आकर्षण बल का क्रम भी गलनांक जैसा ही होगा। जल में प्रबलतम अन्तराअणुक आकर्षण बल हाइड्रोजन बन्ध है अतः इसका गलनांक उच्चतम है, जबकि मेथेन में अन्तराअणुक आकर्षण बल सबसे दुर्बल है अतः इसका गलनांक न्यूनतम है।

प्रश्न 1.7.
निम्नलिखित युग्मों के पदों में कैसे विभेद करोगे?
(i) षट्कोणीय निविड संकुलन एवं घनीय निविड संकुलन
(ii) क्रिस्टल जालक एवं एकक कोष्ठिका
(iii) चतुष्फलकीय रिक्ति एवं अष्टफलकीय रिक्ति।
उत्तर:
(i) षट्कोणीय निविड संकुलन ( hexagonal close. packing) में प्रत्येक तीसरी परत, पहली परत के समान होती है अतः इसे AB, AB….. संरचना भी कहते हैं। इसमें एक गोला, 6 गोलों से घिरा होता है जिनके केन्द्रों को मिलाने पर षट्कोण बनता है, अतः इसे षट्कोणीय निविड संकुलन कहते हैं; जबकि घनीय निविड संकुलन (cubic close packing) में प्रत्येक चौथी परत, पहली परत के समान होती है अत: इसे ABC, ABC….. संरचना कहते हैं।

(ii) जब क्रिस्टल में प्रत्येक कण को बिन्दु द्वारा दर्शाया जाए तब इन अवयवी कणों की त्रिविमीय व्यवस्था के आरेख को क्रिस्टल जालक कहते हैं अर्थात् अन्तराल या दिक् स्थान (space) में कणों (बिन्दुओं) की नियमित त्रिविमीय व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते हैं जबकि एकक कोष्ठिका (unit cell) किसी क्रिस्टल जालक का वह सबसे छोटा भाग है जिसकी विभिन्न दिशाओं में पुनरावृत्ति से पूर्ण जालक का निर्माण होता है।

(iii) चार गोलों से बनी रिक्ति को चतुष्फलकीय रिक्ति कहते हैं। इन चार गोलों के केन्द्र को मिलाने पर एक चतुष्फलक बनता है। दो त्रिकोणीय रिक्तियों से बनी रिक्ति को अष्टफलकीय रिक्ति कहते हैं । यह रिक्ति छः गोलों से घिरी होती है लेकिन इसमें दो त्रिकोणीय रिक्तियों का अतिव्यापन नहीं होता।

प्रश्न 1.8.
निम्नलिखित जालकों में से प्रत्येक की एकक कोष्ठिका में कितने जालक बिंदु होते हैं?
(i) फलक-केंद्रित घनीय,
(ii) फलक – केंद्रित चतुष्कोणीय,
(iii) अंतःकेन्द्रित।
उत्तर:
(i) फलक- केन्द्रित घनीय तथा
(ii) फलक – केन्द्रित चतुष्कोणीय दोनों जालकों की एकक कोष्ठिका में चार जालक बिन्दु (परमाणु) होते हैं लेकिन
(iii) अन्तः केन्द्रित जालक की एकक कोष्ठिका में दो जालक बिन्दु होते हैं ।

अंतः केन्द्रित घनीय एकक कोष्ठिका (Body Centred Cubic Unit Cell):
अंतः केन्द्रित घनीय जालक की एकक कोष्ठिका में कुल दो परमाणु होते हैं जिसको निम्न प्रकार समझा सकते हैं

एक अंत: केंद्रित घनीय (bcc) एकक कोष्ठिका में एक परमाणु उसके प्रत्येक कोने पर और इनके अतिरिक्त एक परमाणु उसके अंत: केंद्र में होता है। इसमें अंत: केंद्र का परमाणु पूर्णतया उस एकक कोष्ठिका से ही सम्बन्धित होता है तथा कोने के परमाणु एकक कोष्ठिकाओं के मध्य सहभाजित होते हैं अतः

(a) 8 कोने के परमाणु × \(\frac { 1 }{ 8 }\) परमाणु प्रति एकक कोष्ठिका = 8 × \(\frac { 1 }{ 8 }\) = 1 परमाणु
(b) 1 अंत: केंद्र परमाणु = 1 × 1 = 1 परमाणु
अतः एक एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की कुल संख्या = 2 परमाणु
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 1

फलक- केन्द्रित घनीय एकक कोष्ठिका (Face Centred Cubic Unit Cell):
फलक – केन्द्रित घनीय जालक की एकक कोष्ठिका में कुल चार परमाणु होते हैं जिसे निम्न प्रकार समझा सकते हैं।
फलक- केंद्रित घनीय (fcc) एकक कोष्ठिका में एक-एक परमाणु- सभी कोनों पर और घन के सभी फलकों के केंद्रों पर पाए जाते हैं। फलक के केंद्र पर उपस्थित प्रत्येक परमाणु दो निकटवर्ती एकक कोष्ठिकाओं के मध्य सहभाजित होता है अतः प्रत्येक परमाणु का केवल 1/2 भाग एक एकक कोष्ठिका में सम्मिलित होता है तथा कोने के परमाणु 8 एकक कोष्ठिकाओं के मध्य सहभाजित होते हैं अतः

(a) 8 कोने के परमाणु × \(\frac { 1 }{ 8 }\) परमाणु प्रति एकक कोष्ठिका = 8 × \(\frac { 1 }{ 8 }\) = 1 परमाणु
(b) 6 फलक-केंद्रित परमाणु × \(\frac { 1 }{ 2 }\) परमाणु प्रति एकक कोष्ठिका = 6 × \(\frac { 1 }{ 2 }\) = 3 परमाणु
अतः एक एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की कुल संख्या = 1 + 3 = 4 परमाणु
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 2

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था

प्रश्न 1.9.
समझाइए:
(i) धात्विक एवं आयनिक क्रिस्टलों में समानता एवं विभेद का आधार।
(ii) आयनिक ठोस कठोर एवं भंगुर होते हैं।
उत्तर:
(i) धात्विक एवं आयनिक क्रिस्टलों में समानता एवं विभेद निम्नलिखित हैं।
समानताएँ:
(1) धात्विक ठोस तथा आयनिक ठोस दोनों ही कठोर होते हैं।
(2) धात्विक ठोस तथा आयनिक ठोस दोनों के गलनांक उच्च होते हैं।
(3) धात्विक ठोस तथा आयनिक ठोस दोनों ही गलित अवस्था में विद्युत के चालक होते हैं।

विभेद:
(1) धात्विक क्रिस्टल में अवयवी कण धनायन होते हैं जो मुक्त तथा गतिशील इलेक्ट्रॉनों के समुद्र में डूबे रहते हैं। जबकि आयनिक ठोस में अवयवी कण धनायन तथा ऋणायन होते हैं।
(2) धात्विक ठोस में धात्विक बन्ध होता है जबकि आयनिक ठोस में आयनिक बन्ध होता है।
(3) धात्विक ठोस आघातवर्धनीय एवं तन्य होते हैं जबकि आयनिक ठोस भंगुर होते हैं।
(4) धात्विक ठोस विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि आयनिक ठोस कुचालक होते हैं, क्योंकि आयन गतिशील नहीं होते।

(ii) आयनिक ठोस कठोर तथा भंगुर होते हैं क्योंकि इनमें आयनों के मध्य प्रबल स्थिर विद्युत आकर्षण बल होता है तथा बल लगाने पर समान आवेश की पर्तें एक-दूसरे के सामने आ जाती हैं जिससे प्रतिकर्षण होता है तथा यौगिक टुकड़े-टुकड़े हो जाता है अर्थात् भंगुर होता है।

प्रश्न 1.10.
निम्नलिखित के लिए धातु के क्रिस्टल में संकुलन क्षमता की गणना कीजिए:
(i) सरल घनीय,
(ii) अंत: केंद्रित घनीय,
(iii) फलक के न्द्रित घनीय।
( यह मानते हुए कि परमाणु एक-दूसरे के संपर्क में हैं ।)
उत्तर:
(i) सरल घनीय धातु क्रिस्टल की संकुलन क्षमता 52.4%,
(ii) अन्तः केन्द्रित घनीय धातु क्रिस्टल की संकुलन क्षमता 68% तथा
(iii) फलक- केन्द्रित घनीय धातु क्रिस्टल की संकुलन क्षमता 74% होती है।

षट्कोणीय निविड संकुलन (hcp) तथा घनीय निवि संकुलन (ccp या fcc) संरचनाओं में संकुलन क्षमता:
घनीय निविड संकुलन (ccp) क्रिस्टल की संकुलन क्षमता 74% होती है जिसकी गणना निम्न प्रकार की जाती है
hcp तथा fcc (ccp) की संकुलन क्षमता समान होती है। चित्र के अनुसार एकक कोष्ठिका के कोर (Edge) या किनारे की लम्बाई ‘a’ हो तथा फलक विकर्ण AC = b हो, तो
△ABC में,
AC2 = b2 = BC2 + AB2
= a2 + a2 = 2a2
या b = √2 a
यदि गोले का अर्धव्यास (त्रिज्या ) r हो, तो
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 3
b = 4r = √2 a
या a = \(\frac { 4r }{ √2 }\) = 2√2r
या r = \(\frac { a }{ 2√2 }\)
ccp संरचना में प्रति एकक कोष्ठिका 4 गोले होते हैं । अतः चार गोलों का कुल आयतन 4 × (4/3) πr3 के बराबर होगा और घन का आयतन a3 या (2√2r)3 होता है । अतः
संरचना की संकुलन क्षमता
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 4

अन्तःकेन्द्रित ( काय- केन्द्रित ) (bec) घनीय संरचनाओं की संकुलन क्षमता (Packing Efficiency of Body- centred Cubic Structure):
अंत: केंद्रित घनीय क्रिस्टल की संकुलन क्षमता 68% होती है जिसकी गणना निम्न प्रकार की जाती है
चित्र से स्पष्ट है कि केंद्र में स्थित परमाणु विकर्ण पर स्थित अन्य दो परमाणुओं के संपर्क में हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 5
△EFD में,
b2 = a2 + a2 = 2a2
b = √2 a
अब △AFD में,
c2 = a2 + b2 = a2 + 2a2 = 3a2
c=√3a
काय विकर्ण (Body diagonal) ‘c’ की लंबाई 4r के बराबर है, जहाँ गोले का अर्धव्यास (त्रिज्या) है, क्योंकि विकर्ण पर स्थित तीनों गोले एक-दूसरे के संपर्क में हैं । अतः
√3a = 4r
a = \(\frac { 4r }{ √3 }\)
अतः r = \(\frac { √3 }{ 4 }\)a
इस संरचना में परमाणुओं की कुल संख्या 2 है अतः उनका आयतन
2 × (4/3)πr3 होगा तथा घन का आयतन a3 = \(\left(\frac{4}{\sqrt{3}} \mathrm{r}\right)^3\) है।
अतः, संरचना की संकुलन क्षमता
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 6

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था

सरल घनीय संरचना की संकुलन क्षमता (Packing Efficiency of Simple Cubic Structure):
सरल घनीय क्रिस्टल की संकुलन क्षमता 52.4 प्रतिशत होती है जिसकी गणना निम्नलिखित है।
एक सरल घनीय जालक में परमाणु केवल घन के कोनों पर स्थित होते हैं। घन के किनारों पर स्थित कण एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 7

इसलिए घन की भुजा की लंबाई ‘a’ और प्रत्येक कण की त्रिज्या, r में निम्न संबंध है।
a = 2r
अतः घनीय एकक कोष्ठिका का आयतन = a3 = (2r)3 = 8r3 चूँकि सरल घनीय एकक कोष्ठिका में केवल 1 परमाणु उपस्थित व्होता है।
इसलिए घेरे गए त्रिविमीय स्थान का आयतन = \(\frac { 4 }{ 3 }\)πr3
अतः, संरचना की संकुलन क्षमता
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 8

प्रश्न 1.11.
चाँदी का क्रिस्टलीकरण fice जालक में होता है। यदि इसकी कोष्ठिका के कोरों की लंबाई 4.07 × 10-8cm तथा घनत्व 10.5 g cm-3 हो तो चाँदी का परमाण्विक द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नानुसार, एकक कोष्ठिका के कोर (edge) की लम्बाई a = 4.07 × 10-8 cm तथा घनत्व (d) = 10.5 g cm-3
z = 4 क्योंकि fcc की एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की संख्या 4 होती है। NA = आवोगाद्रो संख्या = 6.022 × 10-23
घनत्व (d) = \(\frac{\mathrm{zM}}{\mathrm{a}^3 \mathrm{~N}_{\mathrm{A}}}\)
परमाणु द्रव्यमान ज्ञात करना है अतः 10-23
M = \(\frac{\mathrm{d} \times \mathrm{a}^3 \times \mathrm{N}_{\mathrm{A}}}{\mathrm{z}}\) = \(\frac{10.5 \times\left(4.07 \times 10^{-8}\right)^3 \times 6.022 \times 10^{23}}{4}\) = 106.57
अतः चाँदी का परमाणु द्रव्यमान = 106.57

प्रश्न 1.12.
एक घनीय ठोस दो तत्वों P एवं Q से बना है। घन के कोनों पर Q परमाणु एवं अंत:- केंद्र पर P परमाणु स्थित हैं । इस यौगिक का सूत्र क्या है? P एवं Q की उपसहसंयोजन संख्या क्या है?
उत्तर:
एकक कोष्ठिका में घन के कोनों पर स्थित परमाणु का योगदान \(\frac { 1 }{ 8 }\) होता है जबकि अंत: केन्द्र पर स्थित परमाणु का योगदान 1 होता है।
अतः एक एकक कोष्ठिका में:
Q परमाणुओं की संख्या = 8 ( कोनों पर ) × \(\frac { 1 }{ 8 }\) = 1
P परमाणुओं की संख्या = 1 ( कायकेन्द्रित या अन्तः केन्द्रित ) × 1 = 1
अतः यौगिक का सूत्र PQ होगा।
अंत:केन्द्र (कायकेन्द्रित) पर स्थित परमाणु, कोनों पर स्थित सभी परमाणुओं के सम्पर्क में रहता है अतः P की उपसहसंयोजन संख्या 8 होगी। इसी प्रकार Q की उपसहसंयोजन संख्या भी 8 होगी।

प्रश्न 1.13.
नायोबियम का क्रिस्टलीकरण अंतःकेन्द्रित घनीय संरचना में होता है । यदि इसका घनत्व 8.55 g cm-3 हो तो इसके परमाण्विक द्रव्यमान 93 u का प्रयोग करके परमाणु त्रिज्या की गणना कीजिए।
उत्तर:
अंतःकेंद्रित घनीय संरचना ( bcc) में एक एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की संख्या 2 होती है।
अतः
z = 2, M = 93 u, NA = 6.022 × 1023
d = 8.55 g cm-3
घनत्व (d) = \(\frac{z \times M}{a^3 \times N_A}\)
चूंकि परमाणु त्रिज्या ज्ञात करनी है अतः
a3 = \(\frac{\mathrm{z} \times \mathrm{M}}{\mathrm{d} \times \mathrm{N}_{\mathrm{A}}}\)
a3 = \(\frac{2 \times 93}{8.55 \times 6.022 \times 10^{23}}\)
a3 = 3.61 × 10-23 cm3
a = 3.305 × 10-8 cm = 3.305 × 10-10 m
a = 3.305 × 102 pm (पिकोमीटर) = 330.5 pm
लेकिन bcc की एकक कोष्ठिका में विकर्ण, परमाणु की त्रिज्या का चार गुना होता है।
अतः
4r = √3a
4r = √3 × 330.5
r = \(\frac{\sqrt{3} \times 330.5}{4}\) = 143.1 pm.
अतः नायोबियम की परमाणु त्रिज्या = 143.1pm

प्रश्न 1.14.
यदि अष्टफलकीय रिक्ति की त्रिज्या हो तथा निविड संकुलन में परमाणुओं की त्रिज्या R हो, तो r एवं R में संबंध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
संलग्न चित्र में एक अष्टफलकीय रिक्ति को दिखाया गया है। सुविधा के लिए 6 में से केवल 4 गोलों को ही दिखाया गया है। रिक्ति के ऊपर व नीचे के गोलों को नहीं दर्शाया गया है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 9
माना कि वर्ग ABCD की प्रत्येक भुजा की लम्बाई = a cm समकोण त्रिभुज ABC में, विकर्ण AC है तो-
AC = \(\sqrt{A B^2+B C^2}\) = \(\sqrt{a^2+a^2}\) = √2.a.
लेकिन AC = 2R + 2r
∴ 2R + 2r = √2a
लेकिन a = 2R
∴ 2R + 2r = √2.2R
इस समीकरण को 2R से भाग देने पर,
1 + \(\frac { r }{ R }\) = √2
\(\frac { r }{ R }\) = √2 – 1 = 1.414 – 1 = 0.414
अतः = \(\frac { r }{ R }\) = 0.414
r = अष्टफलकीय रिक्ति की त्रिज्या
R = परमाणु (गोले ) की त्रिज्या

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था

प्रश्न 1.15.
कॉपर fcc जालक के रूप में क्रिस्टलीकृत होता है जिसके कोर की लंबाई 3.61 × 10-8 cm है। यह दर्शाइए कि गणना किए गए घनत्व के मान तथा मापे गए घनत्व 8.92 g cm-3 में समानता है।
उत्तर:
fcc संरचना में z = 4 (एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की संख्या)
Cu का परमाणु द्रव्यमान (M) = 63.5 होता है।
कोर की लम्बाई a = 3.61 × 10-8 cm
घनत्व (d) = \(\frac{M \times z}{N_A \times a^3}\)
d = \(\frac{63.5 \times 4}{\left(6.022 \times 10^{23}\right) \times\left(3.61 \times 10^{-8}\right)^3}\)
d = \(\frac{63.5 \times 4}{6.022 \times 10^{23} \times 47.04 \times 10^{-24}},\)
d = 8.966 = 8.97 g cm-3
चूंकि मापा गया घनत्व 8.92 g cm-3 है। अतः गणना किए गए घनत्व तथा मापे गए घनत्व में समानता है।

प्रश्न 1.16.
विश्लेषण द्वारा ज्ञात हुआ कि निकैल ऑक्साइड का सूत्र Ni0.98O1.00 है । निकैल आयनों का कितना अंश Ni2+ और Ni-3+ के रूप में विद्यमान है?
उत्तर:
निकल ऑक्साइड का सूत्र Ni0.98O1.00 है जिसमें Ni2+ तथा Ni3+ दोनों आयन उपस्थित हैं।
सूत्रानुसार Ni = 98 तथा O-2 = 100 है।
माना Ni2+ आयन = x
अतः Ni3+ आयन = 98 – x
अतः कुल धनावेश = (x × 2) + [(98 – x) × 3]
तथा कुल ऋणावेश = 100 × 2
यौगिक उदासीन होता है अतः कुल धनावेश = कुल ऋणावेश होगा
(x × 2) + [(98 – x) × 3] = 100 × 2
(2x) + (294 – 3x) = 200
– x = – 94
x = 94
अतः Ni2+ आयनों का अंश (प्रतिशत)
\(\frac { 94 }{ 98 }\) × 100 = 95.9 = 96%
Ni3+ आयनों का अंश (प्रतिशत) = 100 – 96 = 4%

प्रश्न 1.17.
अर्धचालक क्या होते हैं? दो मुख्य अर्धचालकों का वर्णन कीजिए एवं उनकी चालकता – क्रियाविधि में विभेद कीजिए।
उत्तर:
अर्धचालक (Semiconductors) – अर्धचालक वे ठोस होते हैं जिनकी चालकता 10-6 से 104 ohm m-1 के बीच की होती है अर्थात् इनकी चालकता चालकों से कम तथा विद्युतरोधी से अधिक होती है। अर्धचालकों में संयोजक बैंड एवं चालक बैंड के मध्य ऊर्जा अंतराल कम होता है। अतः कुछ इलेक्ट्रॉन चालक बैंड में जा सकते हैं अतः ये अल्प चालकता दर्शा सकते हैं। ताप बढ़ने के साथ अर्धचालकों की विद्युत चालकता बढ़ती है, क्योंकि अधिक संख्या में इलेक्ट्रॉन चालक बैंड में चले जाते हैं। उदाहरण-सिलिकन एवं जरमेनियम, इन्हें आंतर या नैज अर्धचालक (Intrinsic semiconductors) कहते हैं। नैज-अर्धचालकों की चालकता व्यवहारिक उपयोग की दृष्टि से बहुत कम होती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 17

प्रश्न 1.18.
नानस्टॉइ कियोमीट्री क्यूप्रस ऑक्साइड, (Cu2O) प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है। इसमें कॉपर तथा ऑक्सीजन का अनुपात 2 : 1 से कुछ कम है। क्या आप इस तथ्य की व्याख्या कर सकते हैं कि यह पदार्थ p- प्रकार का अर्धचालक है?
उत्तर:
नॉनस्टॉइकियोमीट्री क्यूप्रस ऑक्साइड (Cu2O) में कॉपर तथा ऑक्सीजन का अनुपात 2:1 से कुछ कम है। अतः कुछ क्यूप्रस आयन (Cu+) अपने स्थान से गायब होकर पीछे धनात्मक छिद्र छोड़ देते हैं, लेकिन विद्युत उदासीनता को बनाए रखने के लिए कुछ Cu+1 आयन, Cu+2 में परिवर्तित हो जाते हैं। (Cu, Cu+ तथा Cu+2 दोनों ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है।) इसमें धनात्मक छिद्र होते हैं अतः यह p-प्रकार का चालक है।

प्रश्न 1.19.
फेरिक ऑक्साइड, ऑक्साइड आयन के षट्कोणीय निविड संकुलन में क्रिस्टलीकृत होता है जिसकी तीन अष्टफलकीय रिक्तियों में से दो पर फेरिक आयन होते हैं । फेरिक ऑक्साइड का सूत्र ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
फेरिक ऑक्साइड में ऑक्साइड आयन षट्कोणीय निविड संकुलन व्यवस्था में है जिसमें प्रत्येक ऑक्साइड आयन के लिए एक अष्टफलकीय रिक्ति होती है जिनमें तीन में से दो रिक्तियाँ Fe+3 आयन द्वारा भरी होती हैं । अतः प्रत्येक O2- आयन के लिए Fe+3 आयनों की संख्या =2/3
अतः Fe+3 तथा O-2 का अनुपात = \(\frac { 2 }{ 3 }\):1 (Fe: O)
अतः फेरिक ऑक्साइड का सूत्र Fe2O3 होगा।

प्रश्न 1.20.
निम्नलिखित को p- प्रकार या n – प्रकार के अर्धचालकों में वर्गीकृत कीजिए।
(i) In से डोपित Ge
(ii) B से डोपित Si
उत्तर:
(i) In से डोपित Ge, p-प्रकार का अर्धचालक होता है क्योंकि Ge के संयोजी कोश में चार इलेक्ट्रॉन हैं (14वां वर्ग)। जब इसको In (13वें वर्ग) से डोपित करते हैं जिसके बाह्यतम कोश में तीन इलेक्ट्रॉन हैं, तो Ge केवल तीन बन्ध ही बनाता है अतः बन्ध बनाने के लिए एक इलेक्ट्रॉन की कमी है इसलिए यह इलेक्ट्रॉन न्यून (धनात्मक) छिद्र होगा, अतः यह p – प्रकार का अर्धचालक होगा।

(ii) यह भी (i) के समान p-प्रकार का अर्धचालक ही होगा क्योंकि B 13वें वर्ग का तथा Si. 14वें वर्ग का तत्व है।

प्रश्न 1.21.
सोना (परमाणु त्रिज्या = 0.144 nm ) फलक- केंद्रित एकक कोष्ठिका में क्रिस्टलीकृत होता है। इसकी कोष्ठिका के कोर की लंबाई ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नानुसार सोने (Au) की परमाणु त्रिज्या r = 0.144 nm. फलक – केन्द्रित एकक कोष्ठिका में, फलक विकर्ण =4r=√2a
अतः a = \(\frac { 4r }{ √2 }\) = 2√2 r
= 2 × 1.414 × 0.144 nm = 0.407 nm
अतः एकक कोष्ठिका के कोर (Edge) की लम्बाई = 0.407

प्रश्न 1.22.
बैंड सिद्धांत के आधार पर (i) चालक एवं रोधी (ii) चालक एवं अर्धचालक में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
(i) चालक वे ठोस होते हैं जिनकी चालकता 104 से 107 ohm-1 m-1 के मध्य होती है तथा रोधी (विद्युतरोधी) वे ठोस होते हैं जिनकी चालकता बहुत ही कम 10-20 से 10-10 ohm-1 m-1 की परास में होती है।

चालकों में बैंड आंशिक रूप से भरा होता है या यह एक उच्च ऊर्जा वाले रिक्त चालकता बैंड के साथ अतिव्यापन करता है अतः विद्युत क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन आसानी से प्रवाहित हो जाते हैं जिससे धातु (चालक) चालकता दर्शाती हैं। जबकि विद्युतरोधी में पूर्ण पूरित संयोजी बैंड एवं उच्च रिक्त बैंड (चालकता बैंड) में ऊर्जा अन्तराल अधिक होता है जिससे इलेक्ट्रॉन चालकता बैंड में नहीं जा सकते, अतः इनकी चालकता नगण्य होती है।

(ii) चालक में आंशिक भरे बैंड होते हैं या अतिव्यापित बैंड होते हैं जिनमें इलेक्ट्रॉन का प्रवाह आसानी से हो जाता है जबकि अर्धचालकों में संयोजी बैंड तथा चालन बैंड के मध्य अंतराल कम होता है अतः कुछ इलेक्ट्रॉन चालन बैंड में चले जाते हैं, अतः इनकी चालकता कम होती है।

प्रश्न 1.23.
उचित उदाहरणों द्वारा निम्नलिखित पदों को परिभाषित कीजिए:
(i) शॉट्की दोष,
(ii) फ्रेंकेल दोष,
(iii) अंतराकाशी दोष,
(iv) F-केंद्र।
उत्तर:
(b) शॉट्की दोष या शॉट्की त्रुटि (Schottky defect) – यह मुख्य रूप से आयनिक ठोसों का रिक्तिका दोष (vacancy defect) है। विद्युत उदासीनता को बनाए रखने के लिए क्रिस्टल से गायब होने वाले धनायनों और ऋणायनों की संख्या बराबर होती है अर्थात् धनायन तथा ऋणायन दोनों ही अपने स्थान से गायब हो जाते हैं। सरल रिक्तिका दोष की भाँति, शॉट्की दोष से भी पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है। आयनिक ठोसों के ऐसे दोषों में संख्या महत्वपूर्ण हो ती है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 18
जैसे NaCl में कमरे के ताप पर लगभग 106 शॉट्की युगल प्रति cm3 होते हैं। एक cm3 में करीब 1022 आयन होते हैं। इस प्रकार प्रति 1016 आयनों में एक शॉट्की दोष होता है। शॉट्की दोष उन आयनिक पदार्थों में होता है जिनमें धनायन और ऋणायन लगभग समान आकार के होते हैं तथा जिनकी समन्वयी संख्या उच्च होती है। उदाहरण NaCl, KCl, CsCl | AgBr में फ्रेंकेल तथा शॉट्की दोनों ही प्रकार के दोष होते हैं।

(ii) किसी क्रिस्टल जालक में जब कुछ अवयवी कण अंतरांकाशी स्थल पर उपस्थित होते हैं तो इसे अंतराकाशी दोष कहते हैं। इससे पदार्थ का घनत्व बढ़ जाता है। रिक्तिका दोष तथा अंतराकाशी दोष अनआयनिक ठोसों में पाए जाते हैं। आयनिक ठोसों में विद्युत उदासीनता रहना आवश्यक है। अतः इन दोषों को फ्रेंकेल तथा शॉट्की दोषों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 12

(iii) अन्तराकाशी दोष (Interstitial defect ) – किसी क्रिस्टल जालक में जब कुछ अवयवी कण अंतरांकाशी स्थल पर उपस्थित होते हैं तो इसे अंतराकाशी दोष कहते हैं। इससे पदार्थ का घनत्व बढ़ जाता है। रिक्तिका दोष तथा अंतराकाशी दोष अनआयनिक ठोसों में पाए जाते हैं। आयनिक ठोसों में विद्युत उदासीनता रहना आवश्यक है। अतः इन दोषों को फ्रेंकेल तथा शॉट्की दोषों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

(iv) F- केन्द्र–नानस्टॉइकियोमीट्री दोष में धातु का आधिक्य हो F-केन्द्र उत्पन्न होता है, जैसे NaCl के क्रिस्टल को सोडियम वाष्प के साथ गर्म करते हैं तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं। Cl आयन क्रिस्टल की सतह में विसरित हो जाते हैं तथा Na के साथ मिलकर NaCl बनाते हैं, ऐसा होने पर Na, इलेक्ट्रॉन देकर Na+ बनाता है। यह निकला हुआ इलेक्ट्रॉन विसरण द्वारा क्रिस्टल के ऋणायनिक स्थान (CI के कारण रिक्त) में चला जाता है। इस अयुग्मित इलेक्ट्रॉनयुक्त ऋणायनिक रिक्तिका को F-केन्द्र कहते हैं। (यह रंग केंद्र के लिए जर्मन शब्द फारबेनजेनटर से आया है) इससे NaCl के क्रिस्टलों का रंग पीला हो जाता है।

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प्रश्न 1.24.
ऐलुमिनियम घनीय निविड संकुलित संरचना में क्रिस्टलीकृत होता है। इसका धात्विक अर्धव्यास 125 pm है।
(i) एकक कोष्ठिका के कोर की लंबाई ज्ञात कीजिए ।
(ii) 1.0 cm3 ऐलुमिनियम में कितनी एकक कोष्ठिकाएं होंगी?
उत्तर:
(i) घनीय निविड संकुलित संरचना में एकक कोष्ठिका का फलक विकर्ण (Face diagonal) परमाणु त्रिज्या (अर्धव्यास) का चार गुना होता है।
लेकिन, फलक विकर्ण = √2 × कोर की लम्बाई
कोर की लम्बाई = \(\frac { फलक विकर्ण }{ √2 }\)
फलक विकर्ण = 4 × 125 pm = 500 pm
अतः एकक कोष्ठिका के कोर की लम्बाई
= \(\frac { 500 }{ √2 }\) = 353.6 = 354 pm = a

(ii) एक एकक कोष्ठिका का आयतन = a3
a = 354 pm = 354 × 10-8 m
= 3.54 × 10-8 cm
अत: a3 = (3.54 × 10-8 cm)3

अत: 1cm3 ऐलुमिनियम में एकक कोष्ठिकाओं की संख्या
= \(\frac{1.00}{\left(3.54 \times 10^{-8}\right)^3}\) = 2.25 × 1022

प्रश्न 1.25.
यदि NaCl को SrCl2 के 103 मोल % से डोपित किया जाए तो धनायनों की रिक्तियों का सांद्रण क्या होगा?
उत्तर:
Na का आवेश +1 है जबकि Sr का आवेश +2 है अतः NaCl में SrCl2 मिलाने पर प्रति Sr2+ एक धनायन रिक्ति होगी क्योंकि 2Na+ के स्थान पर एक Sr2+ आएगा।
अतः 100 मोल NaCl में 10-3 मोल SrCh मिलाने पर 10-3 मोल धनायन रिक्ति उत्पन्न होगी। ( SrCl2 10-3 मोल % मिलाया गया है।) अतः NaCl के एक मोल में धनायन रिक्तियों की संख्या
= \(\frac{10^{-3}}{100}\) × 6.022 × 1023 ( आवोगाद्रो संख्या )
= 6.022 × 1018 धनायन रिक्ति प्रति मोल

प्रश्न 1.26.
निम्नलिखित को उचित उदाहरणों से समझाइए:
(i) लोहचुंबकत्व
(iii) फेरीचुंबकत्व
(ii) अनुचुंबकत्व
(iv) प्रतिलोहचुंबकत्व
(v) 12-16 और 13-15 वर्गों के यौगिक।
उत्तर:
(i) अनुचुम्बकीय (Paramagnetic): वे पदार्थ जो चुंबकीय क्षेत्र की ओर दुर्बलता से आकर्षित होते हैं उन्हें अनुचुंबकीय पदार्थ कहते हैं। ये चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में ही चुम्बकित हो जाते हैं। ये चुंबकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में अपना चुंबकत्व खो देते हैं अतः इनका चुम्बकीय गुण अस्थायी होता है, इस गुण को अनुचुम्बकत्व कहते है । अनुचुंबकत्व गुण के लिए पदार्थ में एक अथवा अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति आवश्यक है। जो कि चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं। उदाहरण – O2, TiO, CuO, Cu2+, Fe3+, VO2, TiO2, Cr3+ आदि।

(ii) प्रतिचुंबकीय (Dimagnetic ): प्रतिचुंबकीय पदार्थ वे होते हैं जो चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर दुर्बल रूप से प्रतिकर्षित होते हैं। ये चुंबकीय क्षेत्र की विपरीत दिशा में दुर्बल रूप से चुंबकित होते हैं। प्रतिचुंबकत्व उन पदार्थों में होता है जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं। इलेक्ट्रॉनों के युग्मन के कारण इनके चुंबकीय आघूर्ण आपस में निरस्त हो जाते हैं क्योंकि इलेक्ट्रॉनों का चक्रण विपरीत होता है, अतः इनका चुंबकीय गुण नष्ट हो जाता है । उदाहरण – V2O5, TiO2, Zn+2, Na+, K+, Mg2+, बेन्जीन (C6H6), सोडियम क्लोराइड (NaCl) तथा जल (H2O) आदि।

(iii) लोहचुम्बकीय (Ferromagnetic ): वे पदार्थ जिन्हें चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर उसकी ओर बहुत प्रबलता से आकर्षित होते हैं, उन्हें लोहचुम्बकीय पदार्थ तथा पदार्थों के इस गुण को लोहचुम्बकत्व कहते हैं। प्रबल आकर्षणों के अतिरिक्त ये स्थायी रूप से चुम्बकित किए जा सकते हैं। इनमें भी अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं। ठोस अवस्था में, लोहचुम्बकीय पदार्थों के धातु आयन छोटे खण्डों के रूप में एक साथ समूह बना लेते हैं, इन्हें डोमेन कहते हैं।

प्रत्येक डोमेन छोटे चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है। लोहचुम्बकीय पदार्थ के अचुम्बकीय भाग में डोमेन अनियमित रूप से व्यवस्थित होते हैं और उनका चुम्बकीय आघूर्ण निरस्त हो जाता है। पदार्थ को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर सभी डोमेन चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में अभिविन्यासित ( Oriented) हो जाते हैं और प्रबल चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं । चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी डोमेनों का क्रम वही रहता है और लोहचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बक बन जाते हैं। उदाहरण– Fe, Co, Ni, Gd तथा CrO2 आदि। लोहचुम्बकीय गुण के कारण ही CrO2 को कैसेट की टेप बनाने में प्रयुक्त करते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 10

(iv) प्रतिलोहचुम्बकीय (Antiferromagnetic): ये पदार्थ भी डोमेन संरचना में लोहचुम्बकीय पदार्थों के ही समान होते हैं लेकिन इनके डोमेन एक-दूसरे की विपरीत दिशाओं में अभिविन्यासित होने के कारण इनका चुम्बकीय आघूर्ण नष्ट हो जाता है। इस गुण को प्रति लोहचुम्बकत्व कहा जाता है।
उदाहरण – V2O3, Cr2O3, Fe2O3, FeO, Col, NiO, MnO, Mn2O2, Mn2O3 आदि।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 11

(v) 12-16 और 13-15 वर्गों के यौगिक- वर्ग 13 तथा 15 एवं वर्ग 12 तथा 16 के तत्वों के मिश्रण से अनेक प्रकार के ठोस पदार्थ बनाए गए हैं। वर्ग 13-15 के यौगिक InSb, AlP तथा GaAs हैं। गैलियम आर्सेनाइड (GaAs) तथा त्वरित प्रतिसंवेदी (Fast response) अर्धचालक होते हैं; ZnS, Cas, Case तथा HgTe, वर्ग 12-16 के यौगिकों के उदाहरण हैं।  इन यौगिकों में बंध पूर्णतया सहसंयोजक नहीं होते तथा इनके आयनिक गुण दोनों तत्वों की विद्युत ऋणता पर निर्भर करते हैं। ये भी अर्धचालक होते हैं।

HBSE 12th Class Chemistry ठोस अवस्था Intext Questions

प्रश्न 1.1.
ठोस कठोर क्यों होते हैं?
उत्तर:
ठोसों में उपस्थित अवयवी कणों का निविड संकुलन (Close packing) होता है जिसके कारण इनमें कण पास-पास होते हैं तथा ये कण गति नहीं करते, केवल अपनी माध्य स्थिति के दोनों ओर कम्पन करते हैं; अतः ठोस कठोर होते हैं।

प्रश्न 1.2.
ठोसों का आयतन निश्चित क्यों होता है?
उत्तर:
ठोसों में कणों की व्यवस्था निश्चित दूरी पर होती है तथा इनके कणों में कोई गति नहीं होती एवं कणों के मध्य रिक्त स्थान बहुत ही कम होता है। इन पर दाब का भी कोई प्रभाव नहीं होता, अतः इनका आयतन निश्चित होता है।

प्रश्न 1.3.
निम्नलिखित को अक्रिस्टलीय तथा क्रिस्टलीय ठोसों में वर्गीकृत कीजिए।
पॉलियूरिथेन, नैफ्थैलीन, बेन्जोइक अम्ल, टेफ्लॉन, पोटैशियम नाइट्रेट, सेलोफेन, पॉलिवाइनिल क्लोराइड, रेशा काँच, ताँबा।
उत्तर:
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 13

प्रश्न 1.4.
एक ठोस के अपवर्तनांक का सभी दिशाओं में समान मान प्रेक्षित होता है। इस ठोस की प्रकृति पर टिप्पणी कीजिए। क्या यह विदलन गुण प्रदर्शित करेगा?
उत्तर:
ठोस के अप्रवर्तनांक (भौतिक गुण) का मान सभी दिशाओं में समान प्रेक्षित हो रहा है, अतः यह ठोस समदैशिक (Isotropic) है इसी कारण यह अक्रिस्टलीय ठोस है। यह विदलन का गुण प्रदर्शित नहीं करेगा।

प्रश्न 1.5.
उपस्थित अंतराआण्विक बलों की प्रकृति के आधार पर निम्नलिखित ठोसों को विभिन्न संवर्गों में वर्गीकृत कीजिए-
पोटैशियम सल्फेट, टिन, बेन्जीन, यूरिया, अमोनिया, जल, जिंक सल्फाइड, ग्रेफाइट, रूबिडियम, ऑर्गन, सिलिकन कार्बाइड।
उत्तर:
अंतराआण्विक बलों की प्रकृति के आधार पर उपर्युक्त ठोसों के विभिन्न संवर्ग निम्न प्रकार होंगे-
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 14

प्रश्न 1.6.
ठोस A, अत्यधिक कठोर तथा ठोस एवं गलित दोनों अवस्थाओं में विद्युतरोधी है और अत्यंत उच्च ताप पर पिघलता है। यह किस प्रकार का ठोस है?
उत्तर:
ठोस A, सहसंयोजक ठोस है तथा इसका उदाहरण हीरा है जो कि अत्यधिक कठोर है। यह ठोस एवं गलित दोनों ही अवस्थाओं में विद्युतरोधी है अर्थात् विद्युत का चालन नहीं करता और अत्यंत उच्च ताप पर पिघलता है क्योंकि इसका गलनांक उच्च होता है।

प्रश्न 1.7.
आयनिक ठोस गलित अवस्था में विद्युत चालक होते हैं परंतु ठोस अवस्था में नहीं, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आयनिक ठोस में, ठोस अवस्था में भी आयन तो होते हैं लेकिन ये आयन स्वतंत्र नहीं होते हैं, अत: ठोस अवस्था में ये विद्युत का चालन नहीं करते। गलित अवस्था में आयन स्वतंत्र हो जाते हैं, अत: इस अवस्था में इन स्वतंत्र आयनों के कारण ही विद्युत का चालन होता है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था

प्रश्न 1.8.
किस प्रकार के ठोस विद्युत चालक, आघातवध्र्य और तन्य होते हैं?
उत्तर:
धात्विक ठोस विद्युत चालक, आघातवर्ध्य तथा तन्य होते हैं क्योंकि धात्विक ठोस के उदाहरण धातुएँ हैं तथा धातुओं में ये सभी गुण पाए जाते हैं।

प्रश्न 1.9.
‘जालक बिन्दु’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी क्रिस्टल में अवयवी कणों (परमाणु, अणु या आयन) की त्रिविमीय व्यवस्था में प्रत्येक कण को एक बिंदु (point) द्वारा दर्शाया जाता है। इसे जालक बिन्दु कहते हैं।

प्रश्न 1.10.
एकक कोष्ठिका (unit cell) को अभिलक्षणित (characterise) करने वाले पैरामीटरों के नाम बताइए।
उत्तर:
एकक कोष्ठिका को अभिलक्षणित करने के लिए निम्नलिखित पैरामीटर आवश्यक होते हैं-

  • एकक कोष्ठिका में अवयवी कणों की संख्या
  • संकुलन क्षमता (packing efficiency)
  • उपसहसंयोजन संख्या (coordination number)
  • किनारे की लम्बाई या अक्षीय दूरी a,b तथा c.
  • अक्ष्षीय कोण α, β तथा γ ।

प्रश्न 1.11.
निम्नलिखित में विभेद कीजिए-
(i) षट्कोणीय और एकनताक्ष एकक कोष्ठिका
(ii) फलक-केंद्रित और अंत्य-कें द्रित एकक कोष्ठिका।
उत्तर:
(i) षट्कोणीय एकक कोष्ठिका केवल आद्य (primitive) प्रकार की होती है। इसमें एक भुजा की लंबाई दो अन्य भुजाओं से भिन्न होती है (a = b ≠ c) । इसमें अक्षीय कोण α = β = 90° तथा γ = 120° होता है। इसके फलकों पर चिह्नित कोण 60° हैं। एकनताक्ष कोष्ठिका में आद्य तथा अंत्य-केन्द्रित (end centred) विविधताएं होती हैं। इसमें भी एक भुजा की लंबाई, दो अन्य भुजाओं से भिन्न होती है (a = b ≠ c) । अक्षीय कोण α = β = 90° तथा β ≠ 120° होता है। इसमें असमान भुजाएँ दो फलकों के मध्य 90° से भिन्न हैं।

(ii) फलक-केन्द्रित एकक कोष्ठिका में अवयवी परमाणु सभी कोनों पर और घन के सभी फलकों के केंद्रों पर पाए जाते हैं जबकि अन्त्य-केन्द्रित एकक कोष्ठिका में अवयवी परमाणु सभी कोनों पर और घन के केवल दो समानान्तर फलकों के केंद्रों पर पाए जाते हैं। अतः फलक-केन्द्रित एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की कुल संख्या 4 होती है जबकि अंत्य-केन्द्रित एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की कुल संख्या 2 होती है।

प्रश्न 1.12.
स्पष्ट कीजिए कि एक घनीय एकक कोष्ठिका के-
(i) कोने और
(ii) अंतःकेन्द्र पर उपस्थित परमाणु का कितना भाग सन्निकट कोष्ठिका से सहभाजित होता है।
उत्तर:
एक घनीय एकक कोष्ठिका के कोने पर स्थित परमाणु आठ एकक कोष्ठिका से सम्पर्क में रहता है। अत: उसका एक एकक कोष्ठिका में योगदान \(\frac { 1 }{ 8 }\) होता है। अत: कोने वाले परमाणुओं का कुल योगदान
(i) 8 कोने × \(\frac { 1 }{ 8 }\) प्रति कोना परमाणु = 8 × \(\frac { 1 }{ 8 }\) = 1 परमाणु

(ii) अंतः केंद्र का परमाणु पूर्णतया उसी एकक कोष्ठिका से संबंधित होता है जिसमें वह उपस्थित होता है।
अत: 1 अंत:केन्द्र परमाणु = 1 × 1 = 1 परमाणु

प्रश्न 1.13.
एक अणु (परमाणु) की वर्ग निविड संकुलित परत में द्विविमीय उपसहसंयोजन संख्या क्या है?
उत्तर:
एक अणु की वर्ग निविड संकुलित (square close packing) परत में द्विविमीय उपसहसंयोजन संख्या 4 होती है क्योंक इसमें प्रत्येक गोला चार निकटवर्ती गोलों के सम्पर्क में रहता है।

प्रश्न 1.14.
एक यौगिक षट्कोणीय निविड संकुलित संरचना बनाता है। इसके 0.5 मोल में कुल रिक्तियों की संख्या कितनी है? उनमें से कितनी रिक्तियाँ चतुष्फलकीय हैं?
उत्तर:
षट्कोणीय निविड संकुलित संरचना (Hexagonal close packed structure) में प्रत्येक कण के लिए 2 चतुष्फलकीय रिक्तियाँ तथा एक अष्टफलकीय रिक्ति होती है। अत: इसके 0.5 मोल में-
रिक्तियों की कुल संख्या
= 0.5 × NA × 3, (NA = आवोगाद्रो संख्या)
= 1.5 × 6.022 × 1023
≈ 9.033 × 1023
तथा इनमें से चतुष्फलकीय रिक्तियाँ
= 0.5 × NA × 2
= 1 NA = 1 × 6.022 × 1023
≈ 6.022 × 1023

प्रश्न 1.15.
एक यौगिक, दो तत्वों M और N से बना है। तत्व N, ccp संरचना बनाता है और M के परमाणु चतुष्फलकीय रिक्तियों के 1/3 भाग को अध्यासित (ग्रहण) करते हैं। यौगिक का सूत्र क्या है?
उत्तर:
ccp संरचना में एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की कुल संख्या 4 होती है। परमाणु N,ccp संरचना बना रहा है। अत: परमाणु N की संख्या = 4
चतुष्फलकीय रिक्तियों की कुल संख्या = 2 × 4 = 8
(क्योंक चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्या, परमाणुओं की संख्या की दुगुनी होती है।)
चूंकि चतुष्फलकीय रिक्तियों के \(\frac { 1 }{ 3 }\) भाग को परमाणु M अध्यासित कर रहा है अत: परमाणु M की संख्या = 8 × \(\frac { 1 }{ 3 }\)
इसलिए N : M
4 : \(\frac { 8 }{ 3 }\) = 12 : 8 = 3 : 2
अत: यौगिक का सूत्र N3M2 या M2N3 होगा।

प्रश्न 1.16.
निम्नलिखित में से किस जालक में उच्यतम संकुलन क्षमता है?
(i) सरल घनीय,
(ii) अंतःकेन्द्रित घन और
(iii) षट्कोणीय निविड संकुलित जालक।
उत्तर:
उपर्युक्त में से षट्कोणीय निविड संकुलित जालक की संकुलन क्षमता उच्चतम (74%) होती है। सरल घन की संकुलन क्षमता 52.4% तथा अन्तःकेन्द्रित घन की संकुलन क्षमता 68% होती है।

HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 ठोस अवस्था

प्रश्न 1.17.
एक तत्व का मोलर द्रव्यमान 2.7 × 10-2kg mol-1 है, यह 405 pm लंबाई की भुजा वाली घनीय एकक कोष्ठिका बनाता है। यदि उसका घनत्व 2.7 × 10-3 kg m-3 है तो घनीय एकक कोष्ठिका की प्रकृति क्या है?
उत्तर:
घनत्व, d = \(\frac{\mathrm{zM}}{\mathrm{a}^3 \cdot \mathrm{N}_{\mathrm{A}}}\)
घनत्व, d = 2.7 × 103 kg m-3
z = एक एकक कोष्ठिका में उपस्थित परमाणुओं की संख्यां
a3 = एकक कोष्ठिका का आयतन
a = एकक कोष्ठिका के कोर की लम्बाई = 405 pm
= 405 × 10-12m
NA = आवोगाद्रो संख्या = 6.022 × 1023
M = मोलर द्रव्यमान = 2.7 × 10-2 kg mol-1 मान रखने पर
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 15
चूंकि एक एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की संख्या 4 है अतः एकक कोष्ठिका ccp या fcc होगी।

प्रश्न 1.18.
जब एक ठोस को गरम किया जाता है तो किस प्रकार का दोष उत्पन्न हो सकता है ? इससे कौनसे भौतिक गुण प्रभावित होते हैं और किस प्रकार?
उत्तर:
जब एक ठोस को गर्म किया जाता है तो रिक्तिका दोष (vacancy defect) या शॉट्की दोष उत्पन्न हो सकता है। इससे कुछ जालक स्थल (lattice site) रिक्त हो जाते हैं इसलिए ठोस का घनत्व कम हो जाता हैं क्योंकि द्रव्यमान की तुलना में आयतन अधिक हो जाता है।

प्रश्न 1.19.
निम्नलिखित किस प्रकार का स्टॉइकियोमीट्री दोष दर्शाते हैं?
(i) ZnS
(ii) AgBr
उत्तर:
(i) ZnS में फ्रेंकेल दोष पाया जाता है क्योंकि धनायन तथा ऋणायन के आकार में अन्तर अधिक है।
(ii) AgBr फ्रेंकेल तथा शॉट्की दोनों प्रकार के दोष दर्शाता है।

प्रश्न 1.20.
समझाइए कि एक उच्च संयोजी धनायन को अशुद्धि की तरह मिलाने पर आयनिक ठोस में रिक्तिकाएं किस प्रकार प्रविष्ट होती हैं?
उत्तर:
एक उच्च संयोजी धनायन को अशुद्धि की तरह मिलाने पर आयनिक ठोस में रिक्तिकाएं प्रविष्ट हो जाती हैं क्योंक उच्च संयोजी धनायन मिलाने पर वह निम्न संयोजी धनायन की अधिक संख्या को विस्थापित करता है। जैसे NaCl में SrCl2 मिलाने पर एक Sr2+ दो Na+ को विस्थापित करता है जिसमें से एक Na+ के स्थान पर तो एक Sr2+ आ जाता है लेकिन एक रिक्तिका उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 1.21.
जिन आयनिक ठोसों में धातु आधिक्य दो के कारण ऋणायनिक रिक्तिका होती हैं, वे रंगीन होते हैं। इं उपयुक्त उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
जिन आयनिक ठोसों में धातु आधिक्य दोष के कार ऋणायनिक रिक्तिका होती हैं, वे रंगीन होते हैं। इसे निम्नलिखि उदाहरण द्वारा समझा सकते हैं-
जब NaCl के क्रिस्टल को सोडियम वाष्प के साथ किया जाता है, तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जा हैं। Cl आयन क्रिस्टल की सतह में विसरित हो जाते हैं और Na परमाणुओं के साथ मिलकर NaCl बना देते हैं। Na+ आयन बनाने लिए Na से एक इलेक्ट्रॉन निकलकर क्रिस्टल के ऋणायनिक स्था को ग्रहण करता है ।

जिससे क्रिस्टल में सोडियम का आधिक्य होता है अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों युक्त ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F- केन्द्र कह हैं। ये NaCl के क्रिस्टलों को पीला रंग प्रदान करते हैं क्यों क्रिस्टल पर पड़ने वाले प्रकाश से ये इलेक्ट्रॉन ऊर्जा को अवशोष्षि करके उत्तेजित हो जाते हैं। इसी प्रकार लीथियम का आधिक्य LiCl क्रिस्टल को गुलाबी रंग देता है और पोटैशियम का आधिक्य KCl क्रिस्टल को बैंगनी बनाता है।

प्रश्न 1.22.
वर्ग 14 के तत्व को n – प्रकार के अर्धचालक में उपयुक्त अशुद्धि द्वारा अपमिश्रित (doping) करके रूपान्तरित करना है। यह अशुद्धि किस वर्ग से संबंधित होनी चाहिए?
उत्तर:
वर्ग 14 के तत्व को n- प्रकार के अर्धचालक में रूपान्तरित करने के लिए 15 वें वर्ग के तत्व के साथ अपमिश्रित करना होगा। जैसे Si के साथ P (फॉस्फोरस) मिलाते हैं क्योंक 15 वें वर्ग के बाह्यतम कोश में 5 इलेक्ट्रॉन होते हैं, उनमें से 4 इलेक्ट्रॉन तो बन्ध बनाने में प्रयुक्त हो जाते हैं तथा बचा हुआ पांचवाँ इलेक्ट्रॉन विस्थापित होता है। यहाँ चालकता में वृद्धि ऋणावेशित (Negative) इलेक्ट्रॉन के कारण होती है। अत: इसे n- प्रकार का अर्धचालक कहते हैं।

प्रश्न 1.23.
किस प्रकार के पदार्थों से अच्छे स्थायी चुंबक बनाए जा सकते हैं, लोह चुम्बकीय अथवा फेरीचुम्बकीय? अपने उत्तर का औचित्य बताइए।
उत्तर:
लौहचुंबकीय पदार्थों से अच्छे स्थायी चुंबक बनाए जाते हैं क्योंक ये चुंबकीय क्षेत्र की ओर प्रबलता से आकर्षित होते हैं। ठोस अवस्था में, लोहचुंबकीय पदार्थों के धातु आयन छोटे खंडों में एक साथ समूहित हो जाते हैं, इन्हें डोमेन कहते हैं।

प्रत्येक डोमेन एक छोटे चुंबक की तरह व्यवहार करता है। लोहचुंबकीय पदार्थ के अचुंबकीय टुकड़े में डोमेन अनियमित रूप से अभिविन्यासित (oriented) होते हैं अत: उनका चुंबकीय आघूर्ण निरस्त हो जाता है। इस पदार्थ को चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर सभी डोमेन चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में अभिविन्यासित हो जाते हैं जिससे प्रबल चुंबकीय प्रभाव उत्पन्न होता है तथा चुंबकीय क्षेत्र को हटा लेने पर भी डोमेनों का क्रम बना रहता है अतः लोहचुंबकीय पदार्थ (ferromagnetic substance) स्थायी चुंबक बन जाते हैं।
HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 1 Img 16

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HBSE 12th Class Chemistry Solutions Haryana Board

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. प्लाज्मा झिल्ली (जीवद्रव्य कला) मुख्यतः निर्मित होता है-
(A) फॉस्फोलिपिड्स प्रोटीन द्विस्तर में धंसे रहते हैं
(B) प्रोटीन फॉस्फोलिपिड द्विस्तर में धंसी रहती है।
(C) प्रोटीन ग्लूकोस अणुओं के बहुलक में धंसे रहते है।
(D) प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट परत में धँसी रहती है।
उत्तर:
(B) प्रोटीन फॉस्फोलिपिड द्विस्तर में धंसी रहती है।

2. निम्न में से कौन-सी संरचना दो परिवहन मार्ग है ?
(A) प्लाज्मोडेमेटा समीपस्थ कोशिकाओं के मध्य प्रभावी
(B) प्लास्टोक्विनोन
(C) इण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम
(D) प्लाज्मालेमा
उत्तर:
(A) प्लाज्मोडेमेटा समीपस्थ कोशिकाओं के मध्य प्रभावी

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

3. कोशिका में विभिन्न गतिविधियों का केन्द्र है ?
(A) प्लाज्मा झिल्ली
(B) माइटोकॉण्ड्रिया
(C) कोशिका द्रव्य
(D) नाभिक
उत्तर:
(C) कोशिका द्रव्य

4. निम्न में से किसमें स्वयं का DNA होता है ?
(A) माइटोकॉण्ड्रिया
(B) डिक्टियोसोम
(C) लाइसोसोम
(D) परऑक्सीसोम
उत्तर:
(A) माइटोकॉण्ड्रिया

5. कोशिका के अन्दर पेप्टाइड संश्लेषण किसमें होता है ?
(A) माइटोकॉण्ड्यिा
(B) वर्गीलवक
(C) राइबोसोम
(D) हरित लवक
उत्तर:
(C) राइबोसोम

6. निम्न में से कौन जीवाणु कोशिका में उत्प्रेरक का कार्य भी करता है ?
(A) sn-RNA
(C) 23 s-r RNA
(B) hn-RNA
(D) 5 sr RNA
उत्तर:
(C) 23 s-r RNA

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

7. ग्लाकोप्रोटीन तथा ग्लाकोलिपिड के निर्माण का प्रमुख स्थल है-
(A) गॉल्जी उपकरण
(C) लाइसोसोम
(B) लवक
(D) रिक्तका
उत्तर:
(A) गॉल्जी उपकरण

8. निम्न में से कौन-सा जीवधारी यूकोरियोटिक कोशिका का उदाहरण नहीं है ?
(A) ईश्चेरिथिया कोलाई
(C) प्लाज्मोडियम बाइवैक्स
(B) युग्लीना विडिस
(D) पैरामीशियम कॉडेटम
उत्तर:
(A) ईश्चेरिथिया कोलाई

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9. कोशिका कला का मॉडल किस में दिया जाता है ?
(A) NOT तथा K+ आयन सक्रिय परिवहन द्वारा
(B) प्रोटीन कोशिका कला का 60 से 70% भाग बनाते हैं।
(C) कोशिका कला में लिपिड द्विस्तर के रूप में व्यवस्थित रहते हैं जिसमें ध्रुवीय शीर्ष अन्दर की ओर होते हैं।
(D) कोशिका कला का तरल मोजेक मॉडल सिंगर तथा निकोलसन ने दिया था।
उत्तर:
(D) कोशिका कला का तरल मोजेक मॉडल सिंगर तथा निकोलसन ने दिया था।

10. राइबोसोम के बारे में क्या सत्य है ?
(A) प्रोकैरियोटिक राइबोसोम 80s होते हैं जहाँ s अवसादन गुणांक है।
(B) ये RNA तथा प्रोटीन्स से बने होते हैं।
(C) ये केवल यूकॉरियोटिक कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
(D) ये कुछ RNA के स्वप्रतिकृत इन्ट्रान्स होते हैं।
उत्तर:
(B) ये RNA तथा प्रोटीन्स से बने होते हैं।

11. राइबोसोमल RNA सहियतः किसमें संश्लेषित होता है ?
(A) लाइसोसोम
(B) केन्द्रिक
(C) न्यूक्लियोप्लाका
(D) राइबोसोम
उत्तर:
(B) केन्द्रिक

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12. लिपिड्स के संश्लेषण का मुख्य स्थल है-
(A) RER
(B) SER
(C) सिमलास्ट
(D) न्यूक्लियोप्लाज्म
उत्तर:
(B) SER

13. निम्न का मिलान करके सही उत्तर का चयन कीजिए-

स्तंभ Iस्तंभ II
1. माइटोकॉडिया के अन्तर्बलन(A) तारककेन्द्र
2. थायलेकॉइड(B) क्लोरोफिल
3. केन्द्रकीय अम्ल(C) क्रिस्वी
4. पक्ष्माभ या कशाभ के आधार काय(D) राइबोजाइम

कूट-

abcd
(A)4213
(B)1243
(C)1324
(D)4312

उत्तर:
(C) 1 3 2 4

14. ठोस रेखित कोशिका कंकाल तन्त्र जिसका व्यास 5 mm होता है-
(A) सूक्ष्मनलिकाएँ
(B) सूक्ष्मतंतुक
(C) मध्यवर्ती तन्तु
(D) सैमिन्ली
उत्तर:
(B) सूक्ष्मतंतुक

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15. कलाओं युक्त कोशिकीय अवयव है-
(A) केन्द्रक, राइबोसोम तथा माइटोकॉन्ड्रिया
(B) गुणसूत्र, राइबोसोम तथा एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम
(C) एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम, राइबोसोम, केन्द्रक
(D) लाइसोसोम, गॉल्जीकाय तथा माइटोकॉन्ड्रिया
उत्तर:
(D) लाइसोसोम, गॉल्जीकाय तथा माइटोकॉन्ड्रिया

16. निम्न में से कौन कलाबद्ध नहीं होता है ?
(A) रिक्तकाएँ
(B) राइबोसोम
(C) लाइसोसोम
(D) मीसोसोम
उत्तर:
(B) राइबोसोम

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17. स्तंभों का मिलान कर सही विकल्प का चयन कीजिए-

स्तंभ Iस्तंभ II
a. थाइलेकॉयड1. गॉल्जी उपकरण में डिस्क के समान कोश
b. क्रिस्टी2. DNA की संघनित संरचना
c. सिस्टर्नी3. स्ट्रोमा के समान झिल्लीमय चपटे आशय
d. क्रोमेटिन4. माइटोकॉण्ड्रिया अन्तर्वलन

कूट:

abcd
(A)4312
(B)3412
(C)3412
(D)3421

उत्तर:
(B) 3 4 1 2

18. निम्न में से कौन-सी संरचना प्रोकॉरियोटिक कोशिका में नहीं पायी जाती है?
(A) नाभिकीय आवरण
(C) मीसोसोम
(B) राइबोसोम
(D) जीवद्रव्य कला
उत्तर:
(A) नाभिकीय आवरण

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19. गक्त सुमेलित का चयन कीजिए-
(A) गैस रिक्तिकाएँ-हरी जीवाणु कोशिकाएँ
(B) बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका-जन्तु कोशिकाएँ
(C) प्रोटिस्ट-यूकैरियोट
(D) मेथेनोजन्स-प्रोकैरियोट्स
उत्तर:
(B) बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका-जन्तु कोशिकाएँ

20. गलत कथन का चयन कीजिए-
(A) जीवाणु कोशिका पेप्टिडोग्लाइकन की बनी होती है।
(B) पिलाई तथा फिम्बी मुख्यतः जीवाणु कोशिका की गतिशीलता में भाग लेते हैं।
(C) सायनोबैक्टीरिया में कशाभयुक्त कोशिकाएँ नहीं पायी जाती है।
(D) माइकोप्लाज्मा भित्ति रहित शुक्ष्मजीव है।
उत्तर:
(B) पिलाई तथा फिम्बी मुख्यतः जीवाणु कोशिका की गतिशीलता में भाग लेते हैं।

21. निम्न में से कौन-सा कोशिकांग एकल कला द्वारा घिरा रहता है ?
(A) हरितलवक
(C) केन्द्रक
(B) लाइसोसोम
(D) माइटोकॉण्ड्यिा
उत्तर:
(A) हरितलवक

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22. पादप कोशिका रिक्तकाओं में पाया जाने वाला जल में विलेय वर्णक
(A) क्लोरोफिल
(C) एन्थोसायनिन
(B) माइटोकॉण्ड्यिा
(D) जैन्योफिल
उत्तर:
(C) एन्थोसायनिन

23. निम्न में कौन-सा कोशिकांग कार्बोहाइड्रेट्स से ऊर्जा निष्कासित करके ATP निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है ?
(A) लाइसोसोम
(C) क्लोरोप्लास्ट
(B) राइबोसोम
(D) माइटोकॉण्ड्रिया
उत्तर:
(D) माइटोकॉण्ड्रिया

24. निम्न में से कौन-सा अवयव जीवाणु कोशिका को चिपकने वाला लक्षण प्रदान करता है ?
(A) कोशिका मिति
(C) जीवद्रव्य कला
(B) केन्द्रक कला
(D) ग्लाइकोकैलिक्स
उत्तर:
(D) ग्लाइकोकैलिक्स

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25. निम्न कोशिकागों के युग्म में किसमें DNA नहीं होता ?
(A) लयनकाय एवं रसधानियाँ
(B) केन्द्रक आवरण एवं सूत्रकणिका
(C) सूत्रकणिका एवं लयनकाय
(D) क्लोरोप्लास्ट एवं रसधानियाँ
उत्तर:
(A) लयनकाय एवं रसधानियाँ

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सबसे छोटी कोशिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
माइकोप्लाज्मा गैलीसेप्टिकम (Mycoplasma gallisepticum; 0.1μ)

प्रश्न 2.
कोशिका सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर:
श्लाइडेन तथा श्वान ने।

प्रश्न 3.
सबसे बड़े एक कोशिकीय पादप का नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) नामक शैवाल

प्रश्न 4.
सबसे बड़ी जन्तु कोशिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
शुतुर्मुर्ग ( Osrich ) का अण्डा ।

प्रश्न 5.
थाइलेकॉइड कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
हरित लवक (chloroplast) के प्रेना. (granna) में।

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प्रश्न 6.
गुणसूत्र को सर्वप्रथम किसने देखा ?
उत्तर:
स्ट्रासबर्गर (Strasburger; 1875 ) ने।

प्रश्न 7.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में एक अन्तर बताइए ।
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell) में केन्द्रक कला का अभाव होता है; जबकि यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell) में केन्द्रक कला उपस्थित होती है।

प्रश्न 8.
दो प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
जीवाणु कोशिका तथा सायनोबैक्टीरिया ।

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प्रश्न 9.
किसी एककोशिकीय यूकैरियोटिक पादप का नाम लिखिए।
उत्तर:
क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas )।

प्रश्न 10.
ऑक्सीसोम्स कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
माइटोकॉण्ड्रिया की क्रिस्टी (cristae) पर।

प्रश्न 11.
फ्रेस्ट क्या होते हैं ?
उत्तर:
दो मेना को जोड़ने वाली लैमेली को फ्रेस्ट (freste) कहते हैं।

प्रश्न 12.
प्लाज्मोडेस्मेटा क्या है ?
उत्तर:
दो संलग्न कोशिकाओं के बीच स्थित जीवद्रव्य तन्तु (protoplasmic fibre) ।

प्रश्न 13.
प्लाज्मोडेस्मेटा क्या कार्य करते हैं ?
उत्तर:
दो संलग्न कोशिकाओं के बीच पदार्थों का आदान-प्रदान ।

प्रश्न 14.
दो ऐसे कोशिकांगों के नाम लिखिए जिनमें 70 S राइबोसोम्स पाये जाते हैं ?
उत्तर:
(i) माइटोकॉण्ड्रिया
(ii) हरित लवक।

प्रश्न 15.
कोशिका के दो अर्द्धस्वायत्त संस्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
माइटोकॉण्ड्रिया तथा हरित लवक।

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प्रश्न 16.
प्रोटीनोप्लास्ट क्या है तथा ये कहाँ अधिक पाये जाते हैं ?
उत्तर:
प्रोटीन संचय करने वाले ल्यूकोप्लास्ट। ये दलहनी बीजों में अधिकता में पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
एमाइलोप्लास्ट क्या हैं ? ये कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
मण्ड का संचय करने वाले ल्यूकोप्लास्ट (leucoplast)। ये आलू कन्द, अन्न वाले बीजों आदि में अधिकता में पाये जाते हैं।

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प्रश्न 18.
खुरदरी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका खुरदरी क्यों प्रतीत होती है ?
उत्तर:
इसकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes ) उपस्थित होने के कारण ।

प्रश्न 19.
जीन्स कहाँ स्थित होते हैं ?
उत्तर:
गुणसूत्रों (chromosomes) पर।

प्रश्न 20.
यूक्रोमेटिन क्या होता है ?
उत्तर:
केन्द्रक के अन्दर क्रोमेटिन जाल जो हल्का स्टेन ( light stain ) लेता है यूक्रोमेटिन कहलाता है।

प्रश्न 21.
हिटरोक्रोमेटिन क्या होता है ?
उत्तर:
केन्द्रक के अन्दर क्रोमेटिन जाल (chromatin net) जो गहरा स्टेन लेता है हिटरोक्रोमेटिन ( heterochromatin) कहलाता है।

प्रश्न 22.
केन्द्रिका ( neucleolus) का क्या कार्य है ?
उत्तर:
RNA का संश्लेषण तथा राइबोसोम्स का निर्माण करना ।

प्रश्न 23.
एकक कला की विचारधारा किसने और कब प्रस्तुत की थी ?
उत्तर:
जे. डेविड रॉबर्टसन (J. David Robertson) ने 1959 में ।

प्रश्न 24.
प्लाज्मा झिल्ली की मोटाई कितनी होती है ?
उत्तर:
75 A ।

प्रश्न 25.
स्पाइरोगाइरा में किस प्रकार का क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है ?
उत्तर:
फीते के आकर का ( ribbon shaped )।

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प्रश्न 26.
क्लोरोफिल में कौन-सी धातु उपस्थित होती है ?
उत्तर:
मैग्नीशियम (magnesium)।

प्रश्न 27.
पॉलीराइबोसोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
लड़ी के रूप में व्यवस्थित राइबोसोम्स

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प्रश्न 28.
कोशिका की ऊर्जा मुद्रा का नाम लिखिए।
उत्तर:
एडिनोसिन ट्राइफास्फेट ( ATP)।

प्रश्न 29.
गुणसूत्र किन पदार्थों के बने होते हैं ?
उत्तर:
DNA, RNA तथा प्रोटीन्स के।

प्रश्न 30.
कौन-सा नाइट्रोजनी क्षार है जो DNA में पाया जाता है किन्तु RNA में नहीं पाया जाता है ?
उत्तर:
थायमीन (T)

प्रश्न 31.
डिक्टियोसोम्स क्या है ?
उत्तर:
पादप कोशिकाओं में गॉल्जीकाय को डिक्टियोसोम कहते हैं।

प्रश्न 32.
कौन-सा कोशिकांग ऐसा है जो बहुरूपता प्रदर्शित करता है ?
उत्तर:
लाइसोसोम (lysosome)।

प्रश्न 33.
पायरीनॉइड क्या होता है ?
उत्तर:
शैवालों में पायी जाने वाली रचना जिसमें प्रोटीन के चारों ओर मण्ड कण (starch grain) पाए जाते हैं।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न – I

प्रश्न 1.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रोकैरियोटिक कोशिका में हिस्टोन का अभाव होता है, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में उपस्थित होता है ।
(ii) प्रोकैरियोटिक कोशिका में कलाबद्ध कोशिकांग अनुपस्थित होते हैं, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में उपस्थित होते हैं।

प्रश्न 2.
कोशिका के किन्हीं चार जीवित अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) केन्द्रक
(ii) माइटोकॉन्ड्रिया
(iii) लवक
(iv) गॉल्जीकाय।

प्रश्न 3.
पादप कोशिका में दो संचित तथा दो स्रावी पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
संचित पदार्थ –
(i) कार्बोहाइड्रेट
(ii) वसा ।

स्त्रावी पदार्थ –
(i) एन्जाइम
(ii) मकरन्द।

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प्रश्न 4.
पादप कोशिका के किन्हीं चार उत्सर्जी पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) एल्केलॉइड (Alkaloids)
(ii) टेनिन्स (Tannins)
(iii) रेजिन्स (Rasins)
(iv) गोंद (Gum )।

प्रश्न 5.
माइक्रोसोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
माइक्रोसोम (Microsome ) – सेन्ट्रीफ्यूज द्वारा अलग किया हुआ कोशा का वह भाग जिसमें कुछ कलाएँ (विशेष रूप से ER के टूटे भाग) और राइबोसोम होते हैं, माइक्रोसोम (microsome) कहलाता है । पूर्ण कोशा के किसी भाग अथवा अंग के लिए यह शब्द प्रयोग नहीं किया जाता है

प्रश्न 6.
लोमासोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
लोमासोम (Lomasome) – ये छोटी थैली के आकार की रचनाएँ हैं जो पादप कोशिकाओं में प्लाज्मालेमा (plasmalemma) तथा कोशिकाभित्ति के बीच पायी जाती है। ये सम्भवतः कोशिका भित्ति के विस्तार में सहायता करती हैं।

प्रश्न 7.
पिनोसाइटोसिस तथा फेगोसाइटोसिस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कोशिका, कोशिका कला से होकर अपने बाहरी वातावरण से भोजन ग्रहण करती है। ये भोज्य पदार्थ ठोस या तरल रूप में होते हैं। जब कोशिका कला द्वारा तरल पदार्थों को ग्रहण किया जाता है तो इसे पिनोसाइटोसिस (pinocytosis) कहते हैं तथा जब कोशिका कला द्वारा ठोस कणों को ग्रहण किया जाता है तो इसे फैगोसाइटोसिस (phagocytosis) कहते हैं।

प्रश्न 8.
स्रावी पदार्थ क्या होते हैं ?
उत्तर:
स्त्रावी पदार्थ (Secretory Substances ) – पादपों में कुछ उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ ऐसे पदार्थ बनते हैं जिनका पोषण एवं वृद्धि से सम्बन्ध नहीं होता है। ये स्रावी पदार्थ ( secretory substances) कहलाते हैं। ये पदार्थ कुछ आशयों या ग्रन्थियों में पाये जाते हैं। जैसे-मकरन्द, एन्जाइम, गोंद आदि ।

प्रश्न 9.
संरचनात्मक कार्बोहाइड्रेट्स कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
संरचनात्मक कार्बोहाइड्रेट्स तीन प्रकार के होते हैं –

  • मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides )-जैसे-ट्रायोजेस, टेट्रोजेस, पेंटोजेस, हेक्सोजेस आदि।
  • औलिगोसैकेराइड्स माल्टोस, लैक्टोस, रेफिनोसे आदि (Oligosaccharides )-जैसे-सुक्रोस,
  • पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides )-जैसे-सेल्युलोस, स्टार्च, ग्लाइकोजन आदि।

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प्रश्न 10.
सैट गुणसूत्र क्या होते हैं ?
उत्तर:
सैट गुणसूत्र ( Sat chromosome) : कुछ विशेष गुणसूत्रों पर एक द्वितीय संकीर्णन (secondary constriction) भी होता है। इसके ऊपर का घुण्डीनुमा भाग सैटेलाइट कहलाता है और सैटेलाइट युक्त गुणसूत्र को सैट गुणसूत्र (Sat-chromosome) कहते हैं ।

प्रश्न 11.
विषम पिक्नोसिस किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विषम पिक्नोसिस (Heteropycnosis) – क्षारीय अभिरंजन से क्रोमेटिन पदार्थ के दो स्पष्ट क्षेत्र होने की घटना को विषम पिक्नोसिस कहते हैं। कोशिका विभाजन की अन्तरावस्था (interphase) में हल्के अभिरंजित क्षेत्र यूक्रोमेटिन (euchromatin) तथा गहरे अभिरंजित क्षेत्र हिटरोक्रोमेटिन (heterochromatin) बनते हैं।

प्रश्न 12.
न्यूक्लियो प्लाज्मिक इण्डेक्स किसे कहते हैं ?
उत्तर:
केन्द्रक एवं कोशिका द्रव्य के आयतन में एक निश्चित अनुपात होता है, जिसे न्यूक्लियोप्लाज्मिक इण्डैक्स ( neucleoplasmic index) कहते हैं।
हर्टविग ने इसे निम्न सूत्र से प्रदर्शित किया-
\(N P=\frac{V n}{V c-V n}\)
यहाँ NP = केन्द्रकद्रव्यी सूचकांक
Vn = केन्द्रक का आयतन
Vc कोशिका द्रव्य का आयतन

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न – II

प्रश्न 1.
कोशिका सिद्धान्त क्या है तथा इसे किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर:
कोशिका सिद्धान्त (Cell theory):
श्लाइडेन तथा श्वान नामक वैज्ञानिकों ने कोशिका की संरचना तथा उत्पत्ति के सम्बन्ध में अपने कुछ तथ्य प्रस्तुत किए जिन्हें कोशिका सिद्धान्त कहते हैं इनके अनुसार –

  • सभी जीवधारियों के शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है।
  • कोशिका शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
  • नयी कोशिकाओं की उत्पत्ति पूर्ववर्ती जीवित कोशिकाओं से होती है प्रत्येक जीवधारी प्रारम्भ में एक कोशिकीय होता है (जैसे-युग्मनज ) परन्तु इसके विकास से जीवधारी बहुकोशिकीय हो जाता है।

प्रश्न 2.
रॉबर्टसन द्वारा प्रस्तुत कोशिका झिल्ली का एकक कला (Unit membrane) मत पर सचित्र टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
एकक कला मत (Unit membrane theory): कोशिका कला की संरचना के इस मत को रॉबर्टसन ( roberson) ने सन् 1959 में प्रस्तुत चित्र – कोशिका कला – एकक कला (Unit membrane) रॉबर्टसन का मॉडल किया। इस मत के अनुसार कला की मोटाई 75 Å होती है, जो तीन परतों की बनी होती है। बाहरी दोनों परतें प्रोटीन (protein) की तथा प्रत्येक की मोटाई 20 A होती है। मध्य परत लिपिड (lipids ) की बनी होती है जिसकी मोटाई 35 A होती है। यह एकक कला सभी कोशिकांगों में समान रूप से पायी जाती है।
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प्रश्न 3.
कोशिका कला की संरचना के तरल मोजेक मॉडल का संक्षेप में सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तरल मोजेक मॉडल (Fluid mosaic model ) – यह मॉडल सिंगर तथा निकोल्सन (Singer and Nicolson) ने सन् 1974 में प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला लिपिड की बनी द्विआण्विक परत (bimolecular layer) होती है। लिपिड की दोनों परतों के बाहर की ओर बाह्य प्रोटीन की एक-एक परत पायी जाती है जिसे बाह्य प्रोटीन (extrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में कुछ प्रोटीन अन्दर तक धँसी रहती है। इन्हें अन्त: प्रोटीन (intrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में स्थित फॉस्फोलिपिड अणुओं के दो छोर होते हैं-
(I) जल रागी शीर्ष (hydrophilic head) जो प्रोटीन परत की ओर होता है।

(ii) जल विरागी पुच्छ (hydrophobic tail) जो कला के केन्द्र की ओर होता है।
दोनों प्रोटीन परतों की मोटाई 20-20 Å तथा फॉस्फोलिपिड द्विपरत (phospholipid bilayer) की मोटाई 35 होती है। इस प्रकार प्रोटीन लिपिड द्विपरत-प्रोटीन संरचना प्रदर्शित करती है। आन्तरिक प्रोटीन लिपिड परत में हिलडुल सकते हैं इसलिए इसे तरल मोजेक मॉडल (fluid mosaic model) कहते हैं।
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प्रश्न 4.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर
(Differences between Prokaryotic and Eukaryotic cells)

पूर्वकेन्द्रीय कोशिका (Prokaryotic cells)सुकेन्द्रकीय कोशिका (Eukaryotic cells)
1. केन्द्रक कला, अनुपस्थित होने के कारण आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कोशा द्रव्य में नग्न पड़ा रहता है। इसे असत्य केन्द्रक कहते हैं।केन्द्रक कला उपस्थित होने से आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कला के अन्दर व्यवस्थित होता है। इसे सत्य केन्द्रक कहते हैं।
2. आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) हिस्टोन रहित होता है।आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) हिस्टोन युक्त होता है।
3. केवल एक गुणसूत्र (chromosome) पाया जाता है।एक अधिक गुणसूत्र (chromosomes) पाए जाते हैं। कलाबद्ध कोशिकांग उपस्थित होते हैं।
4. कलाबद्ध कोशिकांग जैसे लवक, माइटोकॉन्ड्रिया ER आदि अनुपस्थित होते हैं।इनमें 80 S राइबोसोम्स (ribosomes) पाए जाते हैं मीसोसोम्स (mesosomes ) नहीं पाए जाते है।
5. इसमें 70 S (ribosomes) पाए जाते हैं।अपेक्षाकृत बड़े आकार की होती है।
6. कला के वलनों में मीसोसोम (mesosomes ) पाए जाते हैं।सुकेन्द्रकीय कोशिका (Eukaryotic cells)
7. आकार में अपेक्षाकृत छोटे आकार की होती है।केन्द्रक कला उपस्थित होने से आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कला के अन्दर व्यवस्थित होता है। इसे सत्य केन्द्रक कहते हैं।

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प्रश्न 5.
पादप कोशिका भित्तियों में विभिन्न प्रकार के स्थूलनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कोशिका भित्ति के विभिन्न प्रकार के स्थूलन:
(Various types of Thickening of cell wall)
पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति पायी जाती है जो मुख्य रूप से सैलुलोस की बनी होती है। इसका प्रमुख कार्य कोशिका को निश्चित आकार तथा दृढ़ता प्रदान करना होता है। यह कोशिका की सुरक्षा तथा जल अवशोषण भी करती है। कोशिका भित्ति पर जीवद्रव्य से स्रावित विभिन्न पदार्थों जैसे- लिग्निन, क्यूटिन, सुबेरिन आदि का जमाव होता रहता है।

जिसके कारण कोशिका भित्ति अनेक स्थानों पर स्थूलित हो जाती है। ये स्थूलन कोनों पर अधिक होते हैं। जाइलम वाहिनिकाओं (xylem tracheids) में लिग्निन के एकत्र होने से स्थूलन होता है। स्थूलन विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे– छल्लेदार (Annular), सीढ़ीनुमा ( Sclariform ), जालिकावत (Raticulate), सर्पिल (Spiral), गर्तमय (Pitted) इत्यादि। मरुद्भिदी पादपों की बाह्य त्वचा कोशिकाओं पर क्यूटिन का स्थूलन, कार्क कोशिकाओं की भित्तियों पर सुबेरिन का स्थूलन पाया जाता है। इसके कारण कोशिकाएँ जल के लिए अपारगम्य हो जाती हैं।

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प्रश्न 6.
पादप तथा जन्तु कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पादप कोशिका एवं जन्तु कोशिका में अन्तर
(Differences between Plant cell and Animal cell)

पादप कोशिका (Plant cell )जन्तु कोशिका (Animal cell)
1. दृढ़ कोशिका (rigid cell wall) भित्ति उपस्थित होती है ।कोशिका भित्ति (cell wall) का अभाव होता है।
2. कोशिका भित्ति के अन्दर तथा जीवद्रव्य के बाहर की ओर प्लाज्मा कला होती है।प्लाज्मा कला जीवद्रव्य के ऊपर सबसे बाहरी आवरण बनाती है।
3. लवक (plastids ) पाए जाते हैं।लवकों (plastids ) का अभाव होता है।
4. बड़ी-बड़ी रिक्तिकाएँ (vacuoles) पायी जाती हैं।रिक्तिकाएँ ( vacuoles) या तो बहुत छोटी या अनुपस्थित होती हैं ।
5. इनमें तारक काय का अभाव होता है।इनमें केन्द्रक के समीप तारक काय पाया जाता है।
6. इनमें डिक्टियोसोम मिलते हैं।इनमें गॉल्जीकाय मिलते हैं।
7. कोशिका विभाजन मध्य पट्ट होता है।कोशिका विभाजन खाँच विधि से होता है।

प्रश्न 7.
केन्द्रक के महत्व को बताने के लिए हेमरलिंग के प्रयोग को समझाइए ।
उत्तर:
केन्द्रक के महत्व के लिए हेमरलिग का प्रयोग (Experiment of Hammerling for importance of necleus):
जे. हेमरलिंग (J. Hammerling) ने 1953 में केन्द्रक के महत्व को समझाने के लिए ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) नामक एककोशिकीय शैवाल (unicellular algae) पर अपने प्रयोग किये। ऐसीटाुलेरिया पौधे को तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है-टोपी (cap), वृन्त तथा शाखित पाद (stalk)। ऐसीटाबुलुलेरिया क्रनुलेटी (A. cranulate) में टोपी का आकार छाताकार होता है तथा ए. मेडीटेरेनिया (A. mediterranea) में टोपी का आकार गुच्छित होता है।

यदि इस शैवाल के तीनों भागों को काटकर अलग कर दिया जाय तथा पहली जाति के वृन्त को दूसरी जाति के पाद पर तथा दूसरी जाति के वृन्त को पहली जाति के पाद पर खखा जाए तो दोनों जातियों में पुनर्निर्मित टोपियाँ एक दूसरी में उलर-पुलट जाती हैं अर्थात् पहली जाति में छाताकार टोपी तथा दूसरी जाति में गच्छित टोपी उत्पन्न होती है। इससे सिद्ध होता है कि टोपी के आकार का नियंत्रण पाद में स्थित केन्द्रक (nucleus) द्वारा किया जाता है।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(क) परऑक्सीसोम
(ख) स्फीरोसोम ।
उत्तर:
पर ऑक्सीसोम (Peroxysome ) – ये सूक्ष्म गोलाकार कण हैं जो एक परत वाली झिल्ली से ढंके होते हैं। ये उन पौधों में पाये जाते हैं जिनमें प्रकाश श्वसन की क्रिया होती है। जन्तु कोशिओं में ये जिगर एवं गुरदे में तथा प्रोटोजोन्स (protozoans) में पाये जाते हैं। इनमें सूक्ष्म कणिकाओं वाली आधात्री ( matrix ) होती है जिसके केन्द्र में एक समांग तथा अपारदर्शी कोर होती है। सम्भवतः इनका निर्माण अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (ER ) से होता है। इनमें ग्लाइकोलिक अम्ल, ऑक्सीडेज, परऑक्सीडेज केटालेज, डी अमीनो अम्ल ऑक्सीडेज अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनकी खोज टोलबर्ट (Tolbert ) ने की थी।

(ख) स्फीरोसोम (Spherosome ) – ये सूक्ष्म गोलाकार कण हैं जिनका व्यास 0.244 तक होता है। सम्भवतः इनका निर्माण अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के टूटने से होता है। इनमें हाइड्रोलेज, प्रोटीएज, रिबोन्यूक्लिएज, फास्फोटेज एवं ईस्टरेज विकर पाये जाते हैं। ये केवल पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं और जन्तु कोशिकाओं के लाइसोसोम (lysosome) की तरह होते हैं। डेनजियर्ड ने इन्हें स्फीरोसोम नाम दिया।

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प्रश्न 9.
प्लाज्मोडेमेटा पर सचित्र टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्लाज्मोडेस्पेटा (Plasmodesmata) – पादप कोशिकाओं में मध्य पटलिका (middle lamella) तथा कोशिका भित्तियों के बीच छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से होकर कोशिका का जीवद्रव्य समीपवर्ती कोशिकाओं में जीवद्रव्य से निरंतरता बनाए रखता है। इस संरचना को प्लाज्मोडेस्मेटा (plasmodemata) कहते हैं। इनके बारे में स्ट्रास वर्गर ने सर्वप्रथम बताया था। ये एक कोशिका के पदार्थों का दूसरी कोशिका में आवागमन का कार्य करते हैं।
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प्रश्न 10.
विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
कोशिकाएँ (Cells) आमाप, आकृति एवं कार्य की दृष्टि से अत्यधिक विभिन्नता प्रदर्शित करती हैं। माइकोप्लाज्मा (PPLO) की कोशिकाएँ आकार में सबसे छोटी (0-14m से 0.3m) होती हैं। जीवाणु कोशिकाएँ सामान्यतया 3 से 5m आकार की होती हैं। ऐसीटाबुलेरिया नामक शैवाल सबसे बड़ा एक कोशिकीय शैवाल है। शतुर्मुर्ग ( Ostrich ) का अण्डा सबसे बड़ी जन्तु कोशिका है, जबकि तंत्रिका कोशिका सबसे लम्बी जन्तु कोशिका है। कोशिकाएँ गोलाकार, अण्डाकार, चपटी, बहुभुजीय, बिम्बाकार, घनाकार आदि आकार की हो सकती हैं।
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प्रश्न 11.
सिस्टोलिथ क्या होते हैं ? समझाइए।
उत्तर:
सिस्टोलिथ (Cystolith) – कुछ पौधों जैसे – बरगद, रबर, कनेर आदि की बहुस्तरीय बाह्य त्वचा की कोशिकाएँ आकार में बड़ी हो जाती हैं। जिनमें कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO) के कण क्रिस्टल या गुच्छों के रूप में पाए जाते हैं। ऐसी कोशिका की कोशिका भित्ति में सेलुलोस का एक वृन्त होता है जिस पर ये क्रिस्टल अंगूर के गुच्छे की भाँति लगे होते हैं। सिस्टोलिथ इन्हें (cystolith) कहते सिस्टोलिथ हैं । जिस HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 35

प्रश्न 12.
रेफाइड्स तथा इन्युलिनं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेफाइड्स (Raphides ) – ये अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ हैं, जो कैल्शियम ऑक्सेलेट (calcium oxalate) के क्रिस्टलों के रूप में कुछ पौधों की पत्तियों में पाए जाते हैं; जैसे- समुद्रसोख (Echomnia), अरबी, गुलमेंहदी आदि में। अरबी / नागफनी (Opuntia) आदि में रेफाइड्स समूह में न होकर सितारे के आकार की संरचना बनाते हैं जो स्फिरेफाइड्स कहलाते हैं।
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इन्युलिन ( Inulin) – यह घुलनशील पॉलीसेकेराइड्स है। डहेलिया (Dahelia) की कन्दिल जड़ों में इन्युलिन (insulin crystal) भोज्य पदार्थ के रूप में संचित रहता है । इन्युलिन एल्कोहॉल या ग्लिसरीन में अघुलनशील है। ऐसे पौधों की जड़ों को काटकर एल्कोहॉल या ग्लिसरीन में रखने से ये अवक्षेपित होकर पंखनुमा क्रिस्टल बना लेता है। यह मण्ड के समान पदार्थ होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 37

प्रश्न 13.
सक्रिय परिवहन से आप क्या समझते हैं ? सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सक्रिय परिवहन ( Active transport ) – सक्रिय परिवहन में आयन या अणुओं का परिवहन कोशिका कला से होकर सान्द्रता प्रवणता के विपरीत होता है अर्थात् निम्न सान्द्रता वाले स्थान से उच्च सान्द्रता वाले स्थान की ओर होता है। यह ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया है जो वाहक प्रोटीन (carrier protein) द्वारा सम्पन्न होती है। ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया में कोशिका में कोशिका कला से अणुओं या आयन्स को ले जाने के लिए आयन्स या अणुवाहक (carriers ) ऊर्जा का व्यय करते हैं। यह क्रिया एन्ज़ाइम की उपस्थिति में होती है तथा ATP ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 38

प्रश्न 14.
मीसोसोम्स क्या है ? ये कहाँ मिलते हैं ? मीसोसोम की संरचना का चित्र बनाकर इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
मीसोसोम्स (Mesosomes ) – मीसोसोम जीवाणु कोशिका (barcterial cell) में कोशिका कला के अन्तर्वलन (infold) से बनी नालवत (tubular) या थैली (vesicular) संरचनाएँ हैं। ये अधिकांशतः ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में पायी जाती हैं। इनमें श्वसन के विकर पाए जाते हैं और सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रिया के समरूप हैं अर्थात् श्वसन क्रिया में भाग लेते हैं। कोशिका विभाजन एवं एण्डोस्पोर (endospore) बनते समय कोशिका भित्ति के बनने में भी सहायता करते हैं।
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प्रश्न 15.
न्यूक्लिओसोम पर सचित्र टिपणी लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लिओसोम (Neucleosome)-वुङकोक (Woodcock) नामक वैज्ञानिक ने सन् 1973 में क्रोमेटिन (chromatin) की संरचना का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्र्शी की सहायता से विश्लेषण किया तथा बताया कि प्रत्येक क्रोमेटिन पर मोतीनुमा क्रोमेटिन पर मोतीनुमा (beaded) रचनाएँ होती है जिन्हं न्यूक्सियोसोम (nucleosome) कहते हैं। प्रत्येक न्यूक्लियोसोम हिस्टोन प्रोटीन्स तथा DNA की बनी अर्द्ध-बेलनाकार संरचना है। इसके मध्य का भाग हिस्टोन से बना कोर (core) होता है। कोर में हिस्टोनप्रोटीन H2 A, H2 B, H3 तथा H4 के दो-दो अणु होते हैं इसे अष्टक दो-दो अणु होते हैं इसे अष्टक कहते हैं। इस कोर के चारों ओर DNA की कुण्डली मिलती है। इसमें लगभग 166 पॉली न्यूक्लिओटाइड (nucleotides) मिलते हैं। दो न्यूक्लिओसोम (nucleosome) को जोड़ने वाले DNA को लिंकर DNA कहते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 40
H1 प्रोटीन न्यूक्लिओटाइड को कसने का कार्य करती हैं। छ: न्यूक्लिओसोम पुन: कुण्डलित होकर एक सोलेनाइड (solenoid) बनाते हैं। बहुत से सोलेनाइड कुण्डलित होकर एक क्रोमेटिन तन्तु बनाते हैं। क्लुग (Klug 1982) को सोलेनॉइड की संरचना बताने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

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प्रश्न 16.
पक्ष्पाभिका तथा कशाभिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पक्ष्माभिका एवं कशाभिका में अन्तर (Differences between Cilia and Flagella)

पक्ष्माभिका (Cilia)कशाभिका (Flagella)
ये संख्या में अधिक होते हैं।इनकी संख्या कम होती है।
(ii) ये कम लम्बे 0.5-1.0μ होते हैं।ये अधिक लम्बे (1μ-4μ) होते हैं।
(iii) पक्ष्माभिकाएँ समूह में गति करती है ।कशाभिका एकल तथा स्वतंत्र रूप से गति कर सकती है।
(iv) इनकी गति घड़ी के पेण्डुलम की भाँति होती है।इसकी गति लहरदार होती हैं।
(v) ये कोशिका के चारों ओर पाये जाते हैं।ये प्रायः कोशिका में एक या दो ओर पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिये-
(अ) क्वाण्टासोम
(ब) जीन।
उत्तर:
(अ) क्वाण्टासोम (Quantasome)-पादप कोशिकाओं में हरित लवक (plastid) के स्ट्रोमा में पटलिकाएँ (lamellae) पायी जाती हैं। ये पटलिकाएँ सिक्कों के ढेर के समान व्यवस्थित होती हैं, इस ढेर को प्रेनम (granum) कहते हैं। पटलिकाओं पर असंख्य सूक्ष्म कण पाये जाते हैं। इन कणों को पार्क एवं पॉन (Park and Pon, 1961) ने क्वाण्टासोम (quantasome) नाम दिया। प्रत्येक क्वांटासोम लगभग 230 पर्णहरित अणु (chlorophyll molecules) धारण करता है। क्वांण्टासोम (Quantasomes) को प्रकाश संश्लेषण के केन्द्र कहते हैं।

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(ब) जीन (Gene)-जीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जोहान्सन (Johanson) ने किया। जीन किसी लक्षण (Character) की आनुवंशिकी को नियंत्रित करने वाली इकाई होते हैं। विषाणुओं को छोड़कर सभी जीवों में जीन DNA का एक विशेष खण्ड होता है। जीन्स के विषय में अनेक धारणाएँ हैं। गुणसूत्र के क्रोमोमीयर्स (chromomeres) पर इनकी उपस्थिति समूह अथवा एकल रूप में सर्वमान्य है। लैम्पबुश गुणसूत्रों (lampbrush chromsome) में लूप तथा अक्ष दोनों में इनकी उपस्थिति स्पष्ट है।

आधुनिक विचारधारा के अनुसार जीन को कार्यात्मक इकाई सिस्ट्रॉन (cistron), उत्परिवर्तनात्मक इकाई म्यूटॉन (muton) तथा पुनर्सयोजन की इकाई रीकोन (recon) का समूह माना जाता है। जीन प्रोटीन संश्लेषण द्वारा लक्षणों का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 18.
विभिन्न प्रकार के मण्ड कणों पर सचित्र टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
मण्ड कण (Starch grains) – हरे पादपों में भोज्य पदार्थ प्रायः मण्ड (starch) के रूप में संचित होता है। संचित मण्ड अवर्णी लवकों (leucoplasts) में मिलते हैं और इन्हें एमाइलोप्लास्ट (amyloplast) कहते हैं। मण्ड कण विभिन्न प्रकार के जैसे-अण्डाकार (आलू), गोलाकार (मटर), चपटे (गेहुँ), अथवा मुग्दाकार (club shaped)-एवं बहुभुजी (polygonal) होते हैं। कैना (Canna) के मण्ड कण बड़े जबकि चावल के मण्ड कण लम्बे व छोटे होते हैं। मण्ड कण की उत्पत्ति का केन्द्र नाभिक (hilum) कहलाता है, जिसके ऊपर मण्ड परतें बनाता हुआ होता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 42

नाभिक की स्थिति के अनुसार मण्ड कण दो प्रकार के होते हैं –
1. संकेन्द्री (Concentric)-इसमें नाभिक केन्द्र में स्थित होता है। जैसे-गेहूँ, मटर, सेम आदि में।

2. उाकेन्द्री (Ecentric)-इसमें नाभिक एक ओर स्थित होता है, जैसे-आलू, चावल आदि में।

कभी-कभी मण्ड कणों में एक से अधिक नाभिक मिलते हैं ये संयुक्त मण्ड कण कहलाते हैं, जैसे चावल एवं शकरकन्द। मण्ड जल एवं एल्कोहॉल में अघुलनशील हैं। चावल में 70-80 गेहूँ में 70 मक्का में 68 तथा आलू में 20 मण्ड मिलता है।

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प्रश्न 19.
परासरण से आप क्या समझते हैं ? अन्त: परासरण एवं बाहा परासरण में अन्तर लिखिये।
उत्तर:
परासरण (Osmosis) – किसी अर्द्धपारगम्य कला से होकर विलायक के अणुओं का उनकी अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर विसरण की क्रिया परासरण (osmosis) कहलाती है। यह क्रिया तब तक चलती है जब तक कि कला के दोनों ओर साम्यावस्था स्थापित नहीं हो जाती।

अन्त: परासरण तथा बाउ परासरण में अन्तर (Differences between endosmosis and exoemosis) –

अन्त: परासरण (Endosmosis)बंड परासरण (Exosmosis)
इसमें परासरण बाह्य माध्यम से अन्दर की ओर होता है।इसमें परासरण अन्दर से बाह्य माध्यम की ओर होता है।
इसमें विलायक अणु सान्द्र घोल की ओर गति करते हैं।इसमें तनु घोल अन्दर होता है जिसमें विलायक (solvent) अणु बाहर की ओर गति करते हैं।

प्रश्न 20.
परासरण एवं विसरण में अन्तर लिखिये।
उत्तर:
परासरण एवं विसरण में अन्तर (Differences between osmosis and diffusion)

परासरण (Osmosis)विसरण (Diffusion)
इसमें विलायक के अणु अर्द्धपारगम्य (semipermeable membrane) से होकर विसरित होते हैं ।इसमें अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semipermeable) आवश्यकता नहीं होती। अणु स्वतंत्र रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करते हैं।
इसमें विलायक के अणुओं का प्रवाह परासरण दाब (OP) पर निर्भर करता है ।इसमें अणुओं का प्रवाह विसरण दाब (diffusion pressure) पर निर्भर करता है।
विलायक के प्रवाह की दर घोल की सान्द्रता पर निर्भर करती है।विसरण की दर पदार्थ के वाष्प घनत्व पर निर्भर करती है।

प्रश्न 21.
कोशिका के दो अर्द्धस्वायत्त संस्थानों के नाम लिखिये। इन्हें यह नाम क्यों दिया गया है ? संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
माइटोकॉष्ट्रिया (Mitochondria) तथा हरित लवक (Chborophylc) को कोशिका के अर्ध्ध स्वायत्त संस्थान (autonomous body) कहा जाता है। माइटोकॉण्डिया तथा हरित लवक दोनों में ही DNA की थोड़ी-सी मात्रा उपस्थित होती है। इसकी उपस्थिति के कारण ये दोनों कोशिकांग स्वतंत्र रूप से विभाजन करके अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं। इन दोनों कोशिकांगों में 70 S प्रकार के राइबोसोम्स भी होते हैं। जिनकी सहायता से ये आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण DNA के नियंत्रण द्वारा कर सकते हैं। इसीलिए इन्हें अर्द्ध-स्वायत्त संस्थान कहते हैं।

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प्रश्न 22.
अवर्णी लवक तथा वर्णी लवक में अन्तर लिखिये। उत्तर-अवर्णी लवक तथा वर्णी लवक में अन्तर (Differences between Leucoplants and Chromoplasts)

अवर्णी लवक (Leucoplast)वर्णी लवक (Chromoplast)
ये प्राय: पौधे के भूमिगत भागों जैसे-प्रकन्द (rhizome), घनकन्द (corn) शल्क कन्द (bulb) तथा-अन्य संचयी भागों में पाया जाता है।ये पौधे के वायवीय भागों जैसे-पुष्प की पंखुड़ियाँ, फलों के छिलके आदि में पाये जाते हैं।
यह रंगहीन होता है परन्तु प्रकाश मिलने पर हरे या रंगीन हो सकते हैं।ये विभिन्न रंगों के होते हैं और अन्य लवकों (plasticls) में परिवर्तित हो सकते हैं।
ये भोज्य पदार्थों का संचय करते हैं।ये भोज्य पदार्थों का संचय नहीं करते। परन्तु पौधों के विभिन्न भागों को विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 23.
साइटोपंजर क्या होता है ? समझाइये।
उत्तर:
साइटोपंजर (Cytoskeletal Structure) – प्रोटीनयुक्त जालिकावत् तन्तु जो कोशिका द्रव्य में मिलते हैं साइटोपंजर कहलाते हैं। इनमें तीन प्रकार के तन्तु होते हैं –
(i) सूक्ष्म तन्तुक (microfilaments)
(ii) सूक्ष्मनलिका (microtubules) तथा
(iii) मध्यस्थ तन्तु (intermediate filaments) I
माइक्रोफिलामेण्ट लगभग 8 nmव्यास के होते हैं। जो बिखरे हुए या समान्तर समूहों में व्यवस्थित होकर कोशिका की अधात्री (matrix) में पड़े रहते हैं। इनका निर्माण एक्टिन सदृश प्रोटीन्स से होता है। साइटोपंजर (cytoskeleton) कोशिका को यांत्रिक दृढ़ता तथा कोशिका के आकार तथा गति को बनाये रखता है।

प्रश्न 24.
खुदरी तथा चिकनी अन्त: प्रद्रव्यी जालिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
खुरदरी अन्त:प्रद्रष्यी जालिका तथा चिकनी अन्त: प्रद्रव्यमी जालिका (Differences between rough endoplasmic reticulum and smooth endoplasmic reticulum)

खुरदरी अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Rough Endoplasmic Reticulum)चिकनी अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Smooth Endoplasmic Reticulum)
इनकी सतह पर राइबोसोम (ribosomes) होते हैं जिनके कारण यह खुरदरी (rough) प्रतीत होती हैं।इनकी सतह पर राइबोसोम्स का अभाव होता है।
ये प्रोटीन्स, एन्जाइम के संश्लेषण में भाग लेती है।ये लिपोप्रोटीन्स, ग्लाइकोजन्स, ग्लिसराइड्स, स्टीरॉइड्स, हार्मोन्स आदि के संश्लेषण में भाग लेती है।

प्रश्न 25.
प्राम धनात्मक तथा ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
भाम धनात्मक तथा ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में अन्तर (Differences between Gram positive and Gram negative Bacteria)-
प्राम धनात्पक जीवाणु (Gram + ve Bacteria)

प्राम धनात्पक जीवाणु (Gram + ve Bacteria)ग्राम ऋणात्मक जीवाणु (Gram -ve Bacteria)
1. कोशिका भित्ति पतली 100-200 होती हैं।कोशिका भित्ति मोटी 70-120  होती है।
2. इनमें मीसोसोम्स (mesosomes) पाए जाते हैं।इनमें मीसोसोम्स अनुपस्थित या अल्पविकसित होते हैं।
3. इनमें रोम या पिलाई (pili) अनुपस्थित होते हैं।इनमें रोम या पिलाई उपस्थित होते हैं।
4. ये प्रति जैविकों के लिए कम प्रतिरोधी होते हैं।ये प्रतिजैविकों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं।
5. क्रिस्टल वायलेट तथा आयोडीन का स्टेन एथिल ऐल्कोहॉल से धोने के बाद भी बैंगनी रह जाता है।क्रिस्टल वायलेट (crystgal violet) स्टेन एथिल ऐल्कोहॉल से धोने से धुलकर रंगहीन हो जाते हैं।

प्रश्न 25.
जन्तु कोशिका का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
कोशिका का समग्र अवलोकन (Overall review of Cell)
प्याज की झिल्ली में देखी गयी कोशिका जो एक प्रारूपी पादप कोशिका है, जिसकी बाहरी सतह पर एक स्पष्ट कोशिका भित्ति व इसके ठीक नीचे कोशिका कला होती है। मनुष्य के गाल की कोशिका के संगठन में बाहर की ओर केवल एक कलावत् संरचना दिखाई देती है। दोनों ही कोशिकाओं के अन्दर दोहरी कला से घिरी एक संरचना होती है जिसे केन्द्रक (nucleus) कहते हैं। केन्द्रक के अन्दर गुणसूत्र होते हैं जिनमें आनुवंशिक पदार्थ डी. एन. ए. होता है। ऐसी कोशिकाएँ जिनमें कलायुक्त केन्द्रक होतां है। यूकरियोटिक कोशिकाएँ (eukaryotic cells) कहलाती हैं। ऐसी कोशिकाएँ जिनमें कलाबद्ध केन्द्रक नहीं मिलता है उन्हें प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ (prokaryotic cell) कहते हैं।

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प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिकाओं में इसके आयतन को घेरे हुए एक अर्द्धतरल द्रव मिलता है जिसे कोशिका द्रव्य कहते हैं। पादप एवं जन्तु कोशिकाओं दोनों में कोशिकीय क्रियाओं के लिए कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) एक प्रमुख स्थल होता है। कोशिका की जैविक अवस्था सम्बन्धी विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाएँ यहीं सम्पन्न होती हैं।

कोशिका-आकृति माप एवं आयतन (Cell : Shape, Size and Volume) आकृति (Shape)-जीवधारियों की कोशिकाएँ आकृति में अत्यधिक विविधता दर्शाती हैं। कोशिकाएँ गोल (Spherical), चपटी, (flat) अण्डाकार (ovate), नलिकाकार (tubular), ताराकृत (starshaped), तर्कुआकार (spindle shaped) अथवा अनियमित आकार की हो सकती हैं। इनकी आकृति स्थाई होती है।
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माप (Size) -कोशिका सामान्यतः 1-2 mu m से 100 mके व्यास की होती हैं। माइकोप्लाज्मा गैलीसैप्टिकम (Mycoplasma gallisepticum = Pleuro Pneumania Like Organism – PPLO) अब तक देखी गयी सबसे छोटी कोशिका है 1.0 एक जीवाणु का 10 भाग)। प्राणियों में सबसे लम्बी कोशिका, तंत्रिका कोशिका (लम्बाई 90 सेमी) तथा प्राणियों की सबसे बड़ी व्यास वाली कोशिका शुतुरमुर्ग (Ostrich) का अण्डा 170 155 mm है। ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) जो एक कोशिकीय शैवाल है, की लम्बाई 10 सेमी. तक होती है तथा दूसरे एक कोशिकीय शैवाल कौलर्पा (Caulerpa) की कुछ जातियों की लम्बाई एक मीटर तक होती है। बोहमेरिया निविया (Bochmeria nivia) पौधे की कोशिकाओं में रेमी (Rami) के रेशों की लम्बाई 55 सेमी तक होती है। राइजोपस (Rhizopus) नामक कवक बहुकेन्द्री परन्तु एक कोशिकीय होता है। इनकी लम्बाई 90 सेमी तक होती है।

आयतन (Volume) -एक कोशिकीय जीव को सभी क्रियाएँ जैसे गैस विनिमय, पोषण, अवशोषण तथा उपापचयी क्रियाएँ (metabolic activities) आदि एक ही कोशिका में सम्पन्न करने होते हैं। इन सभी कार्यों के लिए अधिक स्थान (space) की आवश्यकता होती है। यदि सतही क्षेत्र (surface area) में वृद्धि होती है तो साथ-साथ आयतन (volume) भी बढ़ता है परन्तु समान अनुपात में नहीं। जैविक क्रियाओं के लिए यह अति आवश्यक है। आयतन के अनुसार ही कोशिका की रासायनिक क्रिया इकाई समय में तय होती है तथा सतही क्षेत्र के अनुसार कोशिका द्वारा पदार्थों का अवशोषण व उत्सर्जन तय होता है।

कोशिकाओं के प्रकार (Types of Cells)
समस्त जीवधारियों में दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं –

  • प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ (Prokaryotic cells)
  • यूकैरियोटिक कोशिकाएँ (Eukaryotic cells)

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प्रश्न 26.
कशाभिका की संरचना को चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
कशाभिका (Flagella) – ये जीवाणुओं, कुछ जन्तुओं तथा कुछ पादपों की कोशिकाओं या युग्मकों (gametes) में पायी जाने वाली चाबुकनुमा संरचना है। ये फ्लैजिन नामक प्रोटीन के बने होते हैं। इनका निर्माण अनेक तंतुओं के सर्पिलाकार क्रम (spirally) में व्यवस्थित होने से होता है। इनमें मिलने वाली छोटी-छोटी उप-इकाइयों का व्यास 40-50 होता है। यूकैरियोटिक फ्लैजिला में तन्तुओं का विन्यास 9+2 होता है, जबकि जीवाणु फ्लैजिला में ऐसा विन्यास नहीं होता है। फ्लैजिला के तीन भाग होते हैं –
(i) आधार कण (basal granule)
(ii) अंकुश (hook) तथा
(iii) मुख्य तन्तु (main filament)।
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(E) निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पादप कोशिका का इलेक्टॉन सूक्षमदर्शीय चित्र बनाकर संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पादप कोशिका (Plant cell) – पादप कोशिका जन्तुओं से मुख्यतया कोशिका भित्ति, लवक (Plastids) तथा बड़ी-बड़ी रिक्तिकाओं (vacuoles) की उपस्थिति के कारण तथा जीवाणुओं से कलाबद्ध कोशिकांगों (membrane bound cell organells) एवं केन्द्रक की संरचना के कारण भिन्न होती है। एक प्रारूपिक पादप कोशिका के निम्नलिखित भाग होते हैं –
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 29
कोशिका भिति एवं कलाएँ (Cell Wall and Membranes) – कोशिका भित्ति (cell wall) पादप कोशिका की बाह्म चार दीवारी है जो प्राय: त्रिस्तरीय होती है। यह मुख्यतया सेलुलोस की बनी होती है। कोशिका भित्ति के ठीक अन्दर लाइपोप्रोटीन की बनी कोशिका कला (plasma membrane) होती हैं। रिक्तिका (vacuole) को घेरने वाली झिल्ली टोनोप्लास्ट (tonoplast) कहलाती हैं जो जीवद्रव्य को रिक्तिका रस से. पृथक् करती है। कोशिका भित्ति कोशिका को सुरक्षा व आकृति प्रदान करती हैं, जबकि कलाएँ पदार्थों के आवागम्न पर नियंत्रण करती हैं।

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कोशा द्रव्य (Cytoplasm) – कोशिका द्रव्य एक कोलाइडी तंत्र (colloidal system) होता है। इसमें जीवित कोशिकांग; जैसेमाइटोकॉन्ड्रिया, अन्तं्रद्रव्यी जालिका, लवक, गॉल्जीकाय, राइबोसोम्स, लाइसोसोम्स तारककाय एवं अन्य सूक्ष्मकाय निलम्बित रहते हैं। इसमें, प्रोटीन्स, वसा, कार्बोहाइड्रेट आदि कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ पाए जाते हैं अतः कोशिका द्रव्य एक जटिल मिश्रण होता है। कोशिका द्रव्य में विभिन्न प्रकार के उपापचयी निफ्क्रिय पदार्थ भी मिलते हैं। संचित फदार्थ जैसे-वसा, तेल, शर्कराएँ, प्रोटीन्स आदि स्रावी पदार्थ जैसे-मकरन्द, वर्णक, एन्जाइम आदि तथा उत्सर्जी पदार्थ जैसे-लैटेक्स, गोंद, टैनिन्स, एल्केलॉइड आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 43

केन्द्रक (Nucleus) – यह कोशिका का प्रमुख भाग है। यह दोहरी कला से घिरा होता है जिसके अन्दर केन्द्रक द्रव्य एवं इसमें केन्द्रिका तथा क्रोमेटिन निलंबित रहता है। केन्द्रक कोशिका की समस्त क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय करता है। विभाजन के समय केन्द्रक में स्थित क्रोमेटिन टूटकर गुणसूत्र बनाता है जो आनुवंशिक लक्षणों नयी कोशिका या नई पीढ़ी में पहुँचाने का कार्य करते हैं। जन्तु एवं पादप कोशिकाओं में कुछ भिन्नता पायी जाती है। जन्तु कोशिका में कोशिका भित्ति का अभाव होता है। केवल प्लाज्मामेम्ब्रेन कोशिका का बाह्य आवरण बनाती है। इनमें बड़ी-बड़ी रिक्तिकाओं तथा लवकों का भी अभाव होता है। जन्तु कोशिकाओं में तारक काय पाए जाते हैं। जिनका पादप कोशिका में अभाव होता है। विभिन्न जीवों या ऊतकों में कोशिकाओं का आकार एवं आकृति भिन्न-भिन्न हो सकती हैं।

प्रश्न 2.
पदिप कोशिका भिति की संरचना एवं कार्य लिखिए।
उत्तर:
कोशिका भित्ति (Cell wall):
पादप कोशिकाओं में प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasmamembrane) के बाहर एक कठोर एवं दृढ़ भित्ति (rigid wall) होती है। जन्तुओं में कोशिका भित्ति (cell wall) का अभाव होता है। इसकी उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर पादप एवं जन्तु कोशिकाओं में अन्तर किया जाता है। राबर्ट हुक (Robert Hooke, 1665) ने प्रथम बार कार्क कोशिका का निरीक्षण किया था वास्तव में वे केवल कोशिका भित्तियों के कोष्ठक ही थे। नेशिका भित्ति (cellwall) मुख्यतः सेल्युलोस की बनी होती है परन्तु इसमें हेमीसेलुलोस (hemicelluase) तथा कभी-कभी लिगिनन आदि पदार्थ भी उपस्थित होते हैं। कोशिका भित्ति के निर्माण के समय सबसे पहले मध्य-पटलिका (middle lamella) का निर्माण होता है। इसके बाद इस पर क्रमश: प्राथमिक, द्वितीयक एवं ततीयक भित्तियों का निर्माण होता है।
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मध्य पटलिका (Middle lamellae):
मध्य पटलिका दो संलग्न कोशिकाओं के बीच सीमेण्ट का कार्य करती है और इसका निर्माण कोशिका विभाजन के पश्चात् दो पुत्री कोशिकाओं के बनते समय होता है। यह मुख्यतः कैल्शियम पेक्टेट तथा कुछ मात्रा में मैग्नीशियम पैक्टेट की बनी होती है। फलों के पकने पर यह घुलनशील अवस्था में आ जाती है। मध्यपटलिका (middle lamellae) के दोनों ओर ही प्राथमिक एवं द्वितीय भित्तियों का निर्माण होता है।

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प्राथमिक भित्ति (Primary wall):
मध्य पटलिका के ऊपर जीवद्रव्य अनेक पदार्थ जमा करता है जिससे एक कोमल, पतली, सुघट्य भित्ति बनती है जिसे प्राथमिक कोशिका भित्ति कहते हैं। इसमें पैक्टिक पदार्थ (गैलेक्टोस, अरेबिनोस व गैलेक्टूरोनिक अम्ल का मिश्रण), हेमीसेलुलोस (मेनोज, ग्लूकोनिक अम्ल का मिश्रण) तथा सेलूलोज सूक्ष्म तन्तुक (cellulose microfibrils) होते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 2
द्वितीयक भित्ति (Secondary wall):
कोशिका वृद्धि के समय प्राथमिक कोशिकाभित्ति अधिक से अधिक खिंच जाती है। समय के साथ-साथ प्राथमिक भित्ति पर लिग्निन क्यूटिन एवं सुबेरिन आदि जमा होने लगते हैं जिससे द्वितीयक कोशिका भित्ति (secondary cell wall) बनती है। यद्यपि आरम्भ में बनी द्वितीयक कोशिका में कुछ पेक्टोज भी होता है परन्तु मुख्य रूप से हैमीसेल्युलोस और सेलुलोस की बनी होती हैं।

तृतीयक कोशिका भित्ति (Tertiary cell wall):
अधिकांश कोशिकाओं में द्वितीयक कोशिका भित्ति तीन परत की बनी होती हैं। इसमें बीच की परत सबसे मोटी होती है। कुछ बाद में बनी कोशा भित्ति जो आरम्भ में बनी तृतीयक कोशा भित्ति के ऊपर बनती हैं केवल सेलुलोस की बनती है। कुछ वैज्ञानिक बाद में बनी इस द्वितीयक भित्ति को तृतीयक भित्ति कहते हैं। प्रायः द्वितीयक और तृतीयक भित्तियों को मिलाकर द्वितीय स्थूलन (secondary thicking) भी कहा जाता है।

कोशिका भित्ति की परा संरचना (Ultrastructure of cell wall):
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक अध्ययन से ज्ञात होता है कि पादप कोशिका भित्ति सूक्ष्म तन्तुओं (microfibrils) की बनी होती है जो विभिन्न लम्बाई व व्यास के होते हैं। इनका व्यास $100-200 होता है। एक तन्तुक (fibril) 250 सूक्ष्म तन्तुओं (microfibrils) से बनता है। प्रत्येक सूक्ष्म तन्तुक 20 मिसेल (micelle) का बनता है तथा प्रत्येक मिसेल में सेलुलोस अणुओं की 100 भृृंखलाएँ होती हैं।

सेल्युलोस के साथ कुछ पेक्टिक पदार्थ-हेमी सेल्यूलोज और दूसरे पालीसैकेराइड उपस्थित होते हैं। मध्य पटलिका (middle lamellae) मुख्य रूप से कैल्शियम पेक्टेट या मैग्नीशियम पैक्टेट की बनती है। प्राथमिक और द्वितीयक भित्तियाँ मुख्य रूप से सेल्युलोस की बनी होती हैं। कोशिका भित्ति का निरीक्षण यदि इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (electron microscope) से किया जाए तो इसमें पेक्टिन एवं हेमीसेल्यूलोस की अधात्रि में अनेक सूक्ष्म तन्तु पाए जाते हैं ।ये सूक्ष्म तन्तु सेल्यूलोस के बने होते हैं और अधात्री में लिग्निन, क्यूटिन, सुबेरिन, गोंद, टेनिन तथा अल्प मात्रा में खनिज पदार्थ जैसे-सिलिका, कैल्शियम ऑक्सलेट, कैल्शियम कार्बोनेट इत्यादि पाए जाते हैं।

कोशिका भित्ति की उत्पत्ति (Origin of cell wall):
कोशिका भित्ति के निर्माण की शुरूआत कोशिका विभाजन की अन्त्यावस्था (telophase) में ही हो जाती है। इस अवस्था में ही फ्रेम्मोप्लास्ट के द्वारा कोशिका प्लेट का निर्माण होता है जिससे मध्य पटलिका बनती है। मध्य पटलिका पर धीरे-धीरे प्राथमिक भित्ति एवं द्वितीयक भित्रियों का निक्षेपण होता है।

कोशिका भित्ति के कार्य-कोशिका भित्ति के निम्नलिखित कार्य हैं –

  • यह कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार प्रदान करती है।
  • यह पौधों को दृढ़ता प्रदान करती है।
  • यह कोशिका से विभिन्न पदार्थों के आवागमन में सहायक है।
  • यह बाहरी वातावरण से एवं रोगाणुओं (pathogens) से कोशिका की रक्षा करती है।

प्रश्न 3.
अन्तर्रम्रक्यी जालिका की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
अंतःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum = ER)
पोर्टर एवं सहयोगियों (Porter et. al.) ने सन् 1945 में कोशिका द्रव्य में महीन एवं शाखित, दोहरी झिल्लीदार नलिकाओं का एक अनियमित जाल देखा जिसमें थैलेनुमा रचनाएँ भी थीं। ये रचनाएँ केन्द्रक कला से लेकर कोशिका कला तक फैलकर एक जटिल जाल बनाती हैं। पोर्टर ने इनकी स्थिति अन्तंप्रद्रव्यी होने के कारण इन्हें अंत: प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) कहा। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं (prokaryotic cells) में तथा स्तनियों (mammals) की लाल रुधिर कणिकाओं में अन्तप्रद्रव्यी जालिका (ER) का अभाव होता है।

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परासंरचना (Ultrastructure):
यह कोशिका कला से केन्द्रक कला तक फैला हुआ नलिकाओं का जाल है। इसकी नलिकाओं की चौड़ाई $50-60 तक होती है। नलिकाएँ एकक कला (unit membrane) की बनी होती हैं।

कभी-कभी ये नलिकाएँ अधिक चौड़ी होकर टूट जाती हैं जिससे आशय (vescicles) बनते हैं। आकृति के आधार पर यह तीन प्रकार की रचनाओं से मिलकर बनती हैं –

  • सिस्टर्नी (Cisternae)
  • थैलियाँ (Vescicles)
  • नलिकाएँ (Tubules)

(i) सिस्टर्नी (Cisternae):
ये 40-50 लम्बी व चपटी नलिकाएँ हैं जो कि केन्द्रक (nucleus) के चारों ओर समानान्तर पट्टियों के रूप में व्यवस्थित होती हैं। इनकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes) पाए जाते हैं।

(ii) थैलियाँ या आशय (Vescicles):
ये 20-500 व्यास की गोलाकार या अण्डाकार संरचनाएँ हैं।

(iii) नलिकाएँ (Tubules) इनकी आकृति एवं व्यवस्था अनियमित होती है। इनका व्यास 50-100 होता है। ये चिकनी सतह युक्त शाखित होती हैं। ये अन्तः स्रावी कोशिकाओं में अधिकता से पायी जाती हैं।
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अन्त:्रद्रव्यी जालिका (ER) दो प्रकार की होती हैं –
1. चिकनी भित्ति वाली अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Smooth walled Endoplasmic Reiticulum or SER):
इनकी सतह सपाट या चिकनी (smooth) होती है। ये उन कोशिकाओं में अधिकता से पायी जमती है जिनमें स्टीराइड एवं वसा का संश्लेषण होता है। जैसे-वृक्क (kidney) की नलिका कोशिकाएँ, आंत्र कोशिकाएँ, ग्लाइकोजन संग्रह कोशिकाएँ आदि।

2. खुरदरी भित्ति वाली अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Rough walled Endoplasmic Reticulum or RER):
इनकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes) लगे रहने के कारण, खुरदरी प्रतीत होती हैं। ये प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) करने वाली कोशिकाओं में अध्धिकता से पायी जाती हैं। कोशिका की उपापचयी क्रियाओं के अनुसार SER, RER में बदल सकती हैं। क्योंकि प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) के समय राइबोफोरिन (ribophorin) प्रोटीन की उपस्थिति में राइबोसोम SER से जुड़कर RER बनाते हैं तथा इस कार्य के समाप्त होने पर पुनः अलग होकर फिर से SER बन जाती हैं। रासायनिक संगठन (Chemical Composition)-अन्त्रप्रव्यव्यी जालिका (ER) मुख्यतः फॉस्फोलिपिड की बनी होती है। इसमें $70 \%$ तक फास्फोलिपिड होते हैं जिसमें 30-50\% तक लिपिड होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें लेसिथिन (lecithin), सिफेलिन (cephalin), नॉसिटाल (nosital) आदि भी होते हैं। कार्य (Functions)

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1. प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis): RER की सतह पर प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया होती है। प्रोटीन संश्लेषण राइबोसोम्स द्वारा सम्पन्न होता है और बनने वाली प्रोटीन ER में चली जाती है। इसके बाद प्रोटीन नलिकाओं से होकर गाल्जी तंत्र में चली जाती है जहाँ से आशय तथा रिक्तिका (vacuole) के रूप में यह कोशिका रस में स्रावित कर दिए जाते हैं। फाइब्रोल्लास्ट कोशिकाओं में कौलेजन RER से सीधे ही व आशयों से होकर कोशिका से बाहर स्रावित होते हैं इसमें गॉल्जी तंत्र (golgi system) की भागीदारी नहीं होती है।

2. ग्लाइकोजन संश्लेषण तथा संचयन (Glycogen Synthesis and Storage) -चहे की यकृत कोशिकाओं की SER में ग्लूकोज 6-फॉस्फेट मिलता है। ऐसा माना जाता है कि ER में ग्लाइकोजिनोलाइसिस (glycogenolysis) की क्रिया होती है। यह ग्लाइकोजन का संय्रह भी करती है।

3. अंन्तः प्रद्रव्यी (ER) जाल द्वारा कोशिका के कोलाइडी तंत्र को अधिक शक्ति मिलती है।

4. यह अभिगमन तंत्र (transport system) का कार्य भी करती है। इसी के द्वारा अनेक पदार्थों एवं संदेश वाहक आर. एन. ए. (m RNA) केन्द्रक से कोशिका द्रव्य में पहुँचते हैं।

5. इनकी उपस्थिति के कारण कोशिका को आन्तरिक शक्ति प्रदान होती है जिससे कोशिका (Cell) पिचकती नहीं है

6. यह ग्लिसरॉल, कोलेस्ट्रॉल आदि पदार्थों के संश्लेषण के लिए स्थान प्रदान करती है।

7. यह अन्य कलाओं के निर्माण में भी सहायक है।

8. यह कोशिका विभाजन के दौरान केन्द्रक आवरण बनाने में सहायक होती है।

प्रश्न 4.
गॉल्जीकाय संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा इसके कार्य लिखाए।
उत्तर:
गॉल्जीकाय (Golgi Body):
पादप कोशिकाओं में इन्हें डिक्टियोसोम (Dictyosomes) या लाइपोकॉन्ड्रिया (Lipochondria) कहते हैं। इनकी खोज सर्वप्रथम कैमीलियो गॉल्जी (Camilio Golgi) ने 1898 में की थी। यह विभिन्न प्रकार की चपटी तथा कुछ मुढ़ी हुई थैलियों का समूह होता है। प्रत्येक समूह में 4-10 थैलियाँ होती हैं जो कहीं-कहीं एण्डोप्लाज्मिक जालिका (ER) से जुड़ी होती हैं इन थैलियों की झिल्ली दोहरी परत वाली होती है। प्रत्येक चपटी थैली (cisternae) किनारे पर कुछ मुड़ी हुई होती है जिसके कारण यह उत्तलोअवतल (biconcave) दिखाई देती है।

उत्तल (convex) सतह को फॉर्मिंग या सिस फेस (forming or cis face) कहते हैं तथा अवतल (concave) सतह को मेचुरिंग फेस अथवा ट्रांस फेस (maturing or trans face) कहते हैं। फॉर्मिंग फेस सदैव केन्द्रक और ER की ओर होता है। मेचुरिंग फेस (maturing face) प्लाज्मा कला की ओर होता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि केन्द्रक कला एवं ER से छोटी थैलियों (vesicles) का निर्माण होता है जो गॉल्जीतंत्र के फार्मिग फेस (forming face) से जुड़ती है। मेचुरिंग फेस की ओर स्थित बड़ी थैलियाँ अन्त में प्लाज्मा कला से जुड़ जाती हैं। तरुण कोशिकाओं में गॉल्जीकाय की छोटी गोलाकार थैलियों की संख्या कम होती है परन्तु वृद्धि और विकास की अवस्था में इनकी संख्या बढ़ जाती है।

रासायनिक संगठन (Chemical composition):
इनमें लिपोप्रोटीन, लैसीथिन, कैरोटीन, सिफेलिन, RNA, विकर तथा विटामिन E आदि मुख्य रूप से मिलते हैं। कार्य (Functions)-इनका कार्य अभी ठीक से ज्ञात नहीं है परन्तु ऐसा माना जाता है कि कोशा में किसी प्रकार के संश्लेषण से सम्बन्धित होते हैं।
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1. स्रावण (Secretion) – इनकी गुहाओं में पॉलीसैकेराइड सल्फोसायलो म्यूसिन और म्यूकोपॉलीसैकेराइड पायी जाती है। बहुत से विकर (enzymes), न्यूक्लियोसाइड्स फास्फोटेज, थायमीन पाइरो फास्फेट, एसिड फॉस्फेटेज और परऑक्सीडेज भी इनमें पाए जाते हैं। कुछ विभिन्न प्रकार के प्रोटीन्स भी इनमें संचित होते हैं इन प्रोटीन्स का निर्माण ER पर स्थित राइबोसोम्स (ribosomes) में होता है। ये प्रोटीन्स ER से बहुत-सी ट्रॉजीशन थैलियों के द्वारा गॉल्जीकाय में प्रवेश करती हैं गॉल्जीकाय के आशयों (vescules) से छोटी मुकुलों (buds) के रूप में सावी कण उत्पन्न होकर कोशिका की सतह पर बाहर निकलते रहते हैं।

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2. कोशापट्ट निर्माण (Cell plate farmation) – कोशा विभाजन के समय गॉल्जी तंत्र के आशय कटकर नये कोशा पटट का निर्माण करते हैं।

3. कोशा भित्ति का निर्माण (Formation of cell wall) – गॉल्जी तंत्र ऐसे पदार्थों का स्रावण करता है जो कोशा भित्ति (cell wall) का निर्माण करते हैं। सम्भवतः यह पदार्थ हेमी सेल्युलोस है।

4. शुक्र जनन के अन्तर्गत अग्रपिण्डक का निर्माण (Formation of Acrosome) – जिस समय जन्तुओं में शुक्राणु परिपक्व होता है तो गॉल्जी तंत्र उसमें अग्रपिण्ड (acrosome) बनाता है।

5. हॉर्मोन का उत्पाद (production of hormose) – जन्तुओं की अन्त:स्रावी कोशाओं में गॉल्जी तंत्र हारमोन के स्रावण में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
गुणसूत्र क्या है ? इसकी जैव-रसायनिक संरचना का वर्णन चित्र द्वारा कीजिए।
उत्तर:
गुणसूत्र (Chromosome) गुणसूत्र क्रोमेटिन जाल (chromatin network) से बने छोटे एवं संघनित टुकड़े होते हैं और कोशिका विभाजन की मध्यावस्था (metaphase) में स्पष्ट दिखाई देते हैं। किसी की जाति में गुणसूत्रों (chromosomes) की संख्या निश्चित होती है। क्रोमेटिन (chromatin) के कुछ भाग विभाजनान्तराल अवस्था के समय केन्द्रक के अन्दर गहरा स्टेन लेते हैं और विभाजन के समय हल्का स्टेन (stain) लेते हैं। कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटिन जाल (chromatin network) के ये धागे छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में स्पष्ट हो जाते हैं।

इन टुकड़ों को ही गुणसूत्र (chromosomes) कहते हैं। क्रोमोसोम (chromosomes) की खोज स्ट्रासबर्गर (Strasburger) ने की तथा वाल्डेयर (Waldeyer) ने इन्हें क्रोमोसोम (chromosome) नाम दिया। सटन तथा वाबेरी (Sutton and Wobery) ने इनके महत्व को समझाया। गुणसूत्र छड़ाकार धागेनुमा पतली, कुण्डलित रचनाएँ होती हैं। इनकी लम्बाई 0.1-30 तथा व्यास 0.2 से 2 तक होता है। मक्का (maize) के गुणसूत्र की लम्बाई 12 तक होती है।

गुणसूत्र के निम्नलिखित भाग होते हैं –
1. पेलिकल (Pelicle) – यह कणिका विहीन पतला बाह्य आवरण होता है जो गुणसूत्र (chromosome) पर एक पतला आवरण बनाता है।

2. क्रोमोनिमेटा (Chromonemata) – प्रत्येक गुणसूत्र (chromosome) में दो समान गुणों वाली धागेनुमा रचनाएँ होती हैं, इन्हें अर्द्धगुण सूत्र (chromatids) कहते हैं। प्रत्येक क्रोमेटिड में अनेक धागे समान पतले क्रोमोनिमेटा पाए जाते हैं। ये संघनित होकर क्रोमेटिड कहलाते हैं। क्रोमोनीमा (chromenema) कुण्डलित होते हैं। कुण्डलन पैरानेमिक या प्लेक्टोनेमिक हो सकती है।

3. अधात्री (Matrix) – पेलिकल (pelicle) के अन्दर का समांगी पदार्थ जिसमें क्रोमोनिमेटा निलम्बित रहते हैं, आधात्री कहलाता है।

4. गुणसूत्र बिन्दु (Centromere) – यह गुणसूत्र का महत्वपूर्ण भाग होता है जिस पर गुणसूत्र (Chromosome) के दो अर्द्धगुण सूत्र (chromatids) आपस में जुड़े होते हैं। इसे प्राथमिक संकीर्णन कहते है। प्रायः एक गुणसूत्र पर एक ही गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु होता है और यह मोनोसेन्ट्रिक (monocentric) कहलाता है। कभी-कभी एक गुणसूत्र पर द्वो केन्द्र बिन्दु (Dicentric) या तीन केन्द्र बिन्दु (tricentric) भी पाए जाते हैं।
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गुणसूत्र पर केन्द्र बिन्दुओं की स्थिति के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं –
(i) अन्त:केन्द्री (Telocentric) – जब गुणसूत्र बिन्दु (chromosome) गुणसूत्र के एक छोर पर स्थित होता है। ऐसा गुणसूत्र एक भुजीय होता है।

(ii) अम्रकेन्द्री (Acrocentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के एक छोर से कुछ हटकर होता है। इसमें गुणसूत्र की एक भुजा बहुत बड़ी तथा दूसरी बहुत छोटी होती है।

(iii) उपमध्यकेन्द्री (Submetacentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के मध्य भाग से कुछ हटकर होता है। इस स्थिति में गुणसूत्र V के आकार का होता है।

(iv) मध्य केन्द्री (Metacentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के ठीक मध्य में स्थित होता है। ऐसी स्थिति में गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ बराबर होती हैं। कभी-कभी गुणसूत्र केन्द्र-बिन्दु रहित होता है इसे ऐसेन्ट्रिक (acentric) कहते हैं और यह कुछ समय में ही नष्ट हो जाता है।

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5. क्रोमोमीयर अथवा जीन्स (Chromomeres or genes) गुणसूत्र के क्रोमोनिमेटा (chromonemata) पर उभरे हुए मोती की माला के समान दाने क्रोमोमीयर या जीन्स (genes) कहलाते हैं। जोहन्सन ने इन दानों के लिए सर्वप्रथम जीन (Genes) शब्द का प्रयोग किया। ये जीवधारियों के लक्षणों का निर्धारण करते हैं।

6. टीलोमीयर (Telomere) – गुणसूत्र के छोरो को टीलोमीयर (telomeres) जुड़ने से रोकते हैं।
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7. सैटेलाइट (Satellite) – गुणसूत्र पर कभी-कभी द्वितीय संकीर्णन (secondary constriction) बनने से एक घुण्डीनुमा संरचना बनती है जिसे सैटेलाडट कहते हैं और ऐसे गुणस्त्र सैट-क्रोमोसोम (sat-chromo-somes) कहलाते हैं। रासायनिक सघटन (Chemical composition) – गुणसूत्र मुख्यतया न्यूक्लियो प्रोटीन के बने होते हैं। इसमें हिस्टोन प्रोटीन लगभग 11 सरल प्रोटीन, लगभग 14 अम्लीय प्रोटीन लगभग65 DNA 10 तथा RNA 2-3 होता है।
कार्य (Functions) – गुणसूत्र के निम्नलिखित कार्य हैं –
1. गुणस्त्र पर जीन्स पाए जाते हैं जो किसी भी जीवधारी के लक्षणों का निर्धारण करते हैं।
2. प्रजनन के समय गुणसूत्र ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जीन्स का वहन करते हैं।
3. गुणसूत्र का DNA जीवों में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं (metabolic reactions) का नियंत्रण करता है।
4. गुणसूत्रों की संख्या एवं संरचना में परिवर्तन से उत्परिवर्तन (mutations) उत्पन्न होते हैं जो वंशागत होते हैं।
5. गुणसूत्रों के हिटरोक्रोमेटिन (heterocheromatin) भाग केन्द्रिका के निर्माण में भाग लेते हैं।
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्रणी लिखिए-
(अ) केन्द्रिका
(ब) लैम्पबुश गुणसूत्र
(स) पॉलीटीन गुणसूत्र
उत्तर:
(अ)  केन्द्रक के चारों ओर 10-50 मोटी दोहरी झिल्ली की बनी केन्द्रक कला (nuclear membrane) होती है। केन्द्रक कला पर असंख्य सुक्ष्म छिद्र होते हैं, इन्हें केन्द्रक छिद्र (nuclear pore) कहते हैं। प्रत्येक छिद्र का व्यास लगभग 400-500 होता है। प्रत्येक छिद्र की संरचना जटिल होती है जो अष्टकोणीय सममिति दर्शाता है। दोनों कलाओं के बीच एक केन्द्रीय छिद्र (nuclear pore) होता है जो 8 गोलाभ कणों से घिरा होता है। केन्द्रीय छिद्र तथा कणों के बीच के स्थान को एन्युली (annuli) कहते हैं।
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कार्य (Functions) – केन्द्रक के अन्दर निर्मित mRNA इन्हीं छिद्रों से होकर कोशिका द्रव्य में पहुँचता है। इसके अतिरिक्त केन्द्रिका में निर्मित राइबोसोम की सब-यूनिटें केन्द्रक छिद्रों से होकर कोशिका द्रव्य में आती हैं।

केन्द्रिका (Nucleolus) – केन्द्रक में एक छोटा गोल भाग होता है जिसे केन्द्रिका कहते हैं। कभी-कभी एक केन्द्रक में दो या इससे अधिक केन्द्रिकाएँ (nucleoli) भी पायी जाती हैं। केन्द्रिका में 10 RNA, 85 प्रोटीन एवं 5 DNA होता है। केन्द्रिका के चारों ओर कोई कला नहीं होती हैं।

एक केन्द्रिका के चार भाग होते हैं –
(a) एमोरफस मैट्टिक्स (Amorphous matrix)-एक समांगी भाग जिसमें प्रोटीन कण एवं धागे बिखरे रहते हैं। इसे पार्स एमोर्फा (pars amorpha) कहते हैं।
(b) दानेदार भाग (Granular portion) – यह प्रोटीन एवं RNA का बना होता है। इन्हें न्यूक्लियोलर राइबोसोम भी कहते हैं।
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(d) क्रोमेटिन (Chromatin)- यह फ्यूल्जिन पॉजीटिव (fulgin positive) होता है। ये दो प्रकार के होते हैं-केन्द्रिका को घेरने वाला भाग पेरीन्यूक्लिओलर क्रोमेटिन (perinucleolar chromatin) तथा नलिकाएँ जो केन्द्रिका के अन्दर की ओर जाती है, इड्टान्यूक्लिओलर क्रोमेटिन (intranuclear chromation)। कार्य (Function)-केन्द्रिका राइबोसोम्स की विभिन्न उपइकाइयों का निर्माण करती हैं।

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(ब) विशेष प्रकार के गुणसूत्र (Special Type of Chromosomes)
1. लेम्पबुश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosomes) – इनकी खोज रुकर्ट (Ruckert) ने 1882 में की थी। लैम्पबुश गुणसूत्र (lampbrush chromosome) कशेरकियों (vertibrates) के ऊसाइट (oocyte) में पाए जाते हैं। ये आकार में अत्यधिक बड़े होते हैं। इन गुणसूत्रों में एक मुख्य धागे जैसी रचना मुख्य अक्ष (main axis) होती है। यह RNA की बनी होती है जिससे अनेक स्थानों पर बहुत से गोलाकार लूप (Loops) निकलते हैं। लूप्स के मध्य DNA तथा अधात्रि के रूप में RNA एवं प्रोटीन्स होते हैं। लूप्स की संख्या के कारण ही ये गुणसूत्र बोतल साफ करने वाले बुश जैसे दिखाई देते हैं। कार्य (Functions) -इनका प्रमुख कार्य RNA संश्लेषण प्रोटीन संश्लेषण तथा पीतक (yolk) का निर्माण करना है।
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2. लार ग्रन्थि या पॉलीटीन गुणसूत्र (Salivary gland or Polytene chromosome)- इनकी खोज बालबियानी ने काइरोनोमस (Chironomus) कीट की लार ग्रन्थियों में की थी। फलमक्खी एवं अन्य डिप्टेरन के लार्वा की लार ग्रन्थियों (Salivary gland) में अत्यधिक लम्बे व चौड़े दैत्याकार गुणसूत्र पाए जाते हैं इन्हें पालीटीन गुणसूत्र (polytene chromosome) कहते हैं। इन गुणसूत्रों पर गहरी काली एवं हल्की पट्टी पायी जाती हैं। काली पट्टियों पर यूक्रोमेटिन होता है तथा हल्के रंग की पट्टियों में हिटरोक्रोमेटिन होता है। ये गुणसूत्र

कुछ स्थानों पर अधिक फूले हुए दिखाई देते हैं जिन्हें पफ्स (puffs) कहते हैं। काली पह्टियों से कुछ loops बन जाते है जिन्हे बाल्वीनी छत्ले (balbini rings) कहते हैं। इन स्थानों पर m-RNA बनता है।

कार्य (Functions) – सम्भवतः ये प्रोटीन संश्लेषण से सम्बन्धित होते हैं।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(अ) राइपोसोम
(ब) लाइसोसोम
उत्तर:
(अ) गाबलोसोम (Ribosomes) – क्लाउड (Clowd; 1943) ने कोशिका के समांगी मिश्रण का परानिश्यन्दन (ultra filtration) करके कुछ क्षाररागी (basophilic) कण प्राप्त किए और इन्हें माइक्रोप्रभाज नाम दिया। पैलाडे (Palade, 1955) ने जन्तु कोशिकाओं में इनकी खोज की और राइबोसोम (ribsomes) कहा। इनमें RNA की अत्यधिक मात्रा होती है।
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संरचना (Structure) – राइबोसोम (ribosome) मुख्यतया RNA तथा प्रोटीन के बने होते हैं। इनका व्यास लगभग 150 होता है। प्रत्येक राइबोसोम दो उपइकाइयों से मिलकर बनता है। एक बड़ी तथा दूसरी छोटी उप-इकाई, बड़ी उप-इकाई में वृन्त केन्द्रीय उभार, खांच या धारी तथा परिधीय उभार भाग होते हैं। छोटी उपइकाई में आधार, शीर्ष, क्लैफ्ट तथा प्लेटफार्म भाग होते हैं। प्रौकेरियोटिक कोशाओं तथा यूकैरियोटिक कोशाओं के माइटोकॉन्डिया एवं प्लास्टिडडस में 70 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते यूकैरियोटिक कोशिकाओं में 80 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते हैं। 70 s राइबोसोम की दो उपइकाइयों में बड़ी उपइकाई 50 की तथा छोटी उपडकाई 30s की होती है। 80 s राइबोसोम की दोनों उप इकाइयों में बड़ी 60 s यूकैरियोटिक कोशिकाओं में 80 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते हैं।
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70s राइबोसोम की दो उपइकाइयों में बड़ी उपइकाई 50 s की तथा छोटी उपइकाई 30 s की होती है। 80 s राइबोसोम की दोनों उप इकाइयों में बड़ी 60 s की तथा छोटी 40 s की होती है। Mg++ की सान्द्रता बढ़ने पर दो राइबोसोम जुड़कर डायमर बनाते हैं तथा और अधिक सान्द्रता पर पॉली राइब्रोसोम (polyribosome) बनाते हैं। Mg++ की सान्द्रता में अत्यधिक कमी होने से दोनों उपइकाइयाँ पृथक् हो जाती है।
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की तथा छोटी 40 s की होती है। Mg ++ की सान्द्रता बढ़ने पर दो राइबोसोम जुड़कर डायमर बनाते हैं तथा और अधिक सान्द्रता पर पॉली राइबोसोम (polyribosome) बनाते हैं। Mg ++ की सान्द्रता में अत्यधिक कमी होने से दोनों उपइकाइयाँ पृथक् हो जाती है। अवसादन गणांक (Sedimentation coefficient = Svedberg unit)-राइबोसोम के अध्ययन के लिये एक यन्त्र प्रयोग किया जाता है जिसे अल्ट्रासेण्ट्रीफ्यूज (ultracentrifuge): कहते हैं। इसमें कुछ विशष प्रकार का नालकाय लगा होती हैं जिनमें हम राइबोसोम को एक विशेष प्रकार के घोल में लेकर रख लेते हैं। इस यन्त्र को विद्युत द्वारा एक निश्चित तेज रफ्तार से घुमाने पर एक विशेष प्रकार के राइबोसोम्स नलिका की तली पर बैठ (sediment) जाते हैं, जबकि दूसरे प्रकार के राइबोसोम्स एक-दूसरी निश्चित रफ्तार पर बैठते हैं। इस निश्चित रफ्तार को अवसादन गुणांक (sedimentation coefficient) कहते हैं। अवसादन गुणांक (sedimentation coefficient) को Svedberg unit S में मापा जाता है। उदाहरण के लिए, जो राइबोसोम्स 80 Sपर बैठते हैं। उन्हे 80 S राइबोसोम्स कहा जाता है।

राइबोसोम्स (Ribosomes) के दो भाग होते हैं जिन्हें Mg 2+ आयन की सान्द्रता घटाने पर दो छोटे भागों (subunits) में विभक्त किया जा सकता है। यदि इन दो भागों वाले मिश्रण को फिर से यन्त में रखकर घुमाया जाये तो 80 S राइबोसोम्स का एक भाग 60 S पर बैठता है तथा दूसरा भाग 40 S पर जिन्हें क्रमशः 60 S व 40 S राइबोसोम्स कहते हैं। (इन संख्याओं को 60 S 40 S 100 S वाली गणित की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।) कार्य (Function) राइबोसोम का निर्माण केन्द्रिका (Nuclealus) में होता है तथा इनका क्रिया-स्थल कोशिका द्रव्य है। राइबोसोम विभिन्न प्रकार के RNA की सहायता से प्रोटीन निर्माण में भाग लेते हैं।

राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषण की क्रियाविधि (Mechanism of protein synthesis at ribosomes):
(i) गुणसूत्र के DNA में न्यूक्लियोटाइड्स (nucleotides) के क्षारों की व्यवस्था प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) का संकेत देती है।

(ii) DNA कोड की नकल mRNA के निर्माण द्वारा प्रदान की जाती है जिसमें थायमीन के स्थान पर यूरसिल (uresil) आ जाती है।

(iii) mRNA केन्द्रक से निकलकर कोशाद्रव्य में राइबोसोम पर स्थित होकर सांचा बनाती है। m RNA पर तीन न्यूक्लियोहाइड्स एक विशेष अमीनो अम्ल के लिए संकेत देते हैं। इसे त्रिक संकेत कहते हैं।

(iv) विशेष प्रकार की अमीनो अम्ल, ATP द्वारा सक्रिय अवस्था में आकर एक विशेष प्रकार के sRNA (t RNA) से प्रक्रिया करते हैं।

(v) s RNA + अमीनो अम्ल पर अपना प्रतिकूट होता है जो m -RNA पर स्थित प्रकूट (codon) पर आकर मिलता है।

(vi) एमीनो अम्ल एक-दूसरे से पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़कर पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ (uresil) बनाते हैं।

(vii) एमीनो अम्लों की इस प्रकार की श्रृंखला अलग होकर प्रोटीन अणु का निर्माण करती है। इस सम्पूर्ण क्रिया को प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis)
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(ब) लाइसोसोम (Lysosome):
लयनकाय या लाइसोसोम (Lysosome) की खोज सर्वप्रथम क्रिश्चियन डी. डबे (C. de Duve) ने 1949 में की थी। ये केवल जन्तु कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ये अनेक प्रकार के जल अपघटनीय (hydrolytic) विकरों से भरी थैलियाँ हैं। इनके फटने पर कोशिका में ये विकर मुक्त होकर कोशिकांगों का पाचन कर लेते हैं। अतः इन्हें पाचक थैलियाँ (digestive vesicle) या कोशिका की आत्पघाती थैलियाँ (suicidal bags) कहते हैं। ये जन्तुओं के अग्न्याशय (pancreas), यकृत (liver) प्लीहा, मस्तिष्क तथा गुर्दे (kidney) की कोशिकाओं में पाए जाते हैं। लाइसोसोम गोल या अनियमित आकार की रचनाएँ हैं जिनका व्यास 0.6 होता है। इसके ऊपर इकहरी एकक कला पायी जाती है। लाइसोसोम बहुरूपता (polymorphism) प्रदर्शित करते हैं।
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लाइसोसोम चार प्रकार के होते हैं –
(a) प्राथमिक लाइसोसोम (Primary Lysosome) – ये गॉल्जी काय से उत्पन्न संचय कण एवं स्रावी पुटिकाएँ हैं।
(b) द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosome) – इनमें पाचक विकर भरे होते हैं और प्राथमिक लाइसोसोम्स (primary lysosomes) से बनते हैं
(c) अवशिष्ट काय (Residual bodies) – द्वितीयक लाइसोसोम जब बाह्य पदार्थों का अपूर्ण पाचन करता है तब इन्हें अवशिष्ट काय (residual body) कहते हैं।
(d) ऑटोफैजिक रिक्तिकाएँ (Autophagic vacuoles)-इन्हें साइटोलाइसोसोम या ऑटोफेगोसोम (autophagosome) कहते हैं। इनमें लयनकारी विकर (lytic enzyme) होते हैं।

कार्य (Functions):
(i) कोशिका में आये बाहरी पदार्थों का पाचन करके कोशिका की सुरक्षा।
(ii) क्षतिप्रस्त कोशिकांगों का पाचन।
(iii) मृत कोशिकाओं या निक्रिय कोशिकाओं का पाचन।

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प्रश्न 8.
प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:

सक्षण (Characters)श्रोकैजियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cell)यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic Cell)
1. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)पूर्ण कोरिका में क्षिता रहत्ता है।केन्द्रक एवं कोशिका कला के बीच सीमित रहता है।
2. केन्ट्रक (Nucleus)आद्ध (incipient) अविकसित केन्द्रक होता है जिसे केन्द्रकाभ (nucleoid) कहते हैं। इसमें –
(i) केन्द्रक कत्ता अनुपस्थित होती है।
(ii) केन्रिका (nucleolus) अनुपस्थित होती है।
(iii) DNA के तन्तुओं (जो सभी एक प्रकार के होते है) के साय ग्रोटीन (हिस्टोन) नहीं जुड़ी रहती हैं।
पूर्ण विकसित सत्य (true) केन्द्रक होता है। इसमें-

(i) केन्द्रक कला उपस्थित होती है।

(ii) केन्द्रिका (nucleolus) उपस्थित होती है।

(iii) DNA के बहुत से सूत्रों के साथ हिस्टोन प्रोटीन जुड़ी रहती हैं। इन्हें गुणसूत्र (chromosomes) कहते हैं।

3. गाल्जीकास, अन्त क्रद्रव्यी जालिका, लवक तथा माइडोकींच्द्रियाअनुपस्थित होते हैं।उपस्थित होते हैं।
4. माइट्टोसिस तथा मीओसिस कोशिका विभाजन (Cell divisions)नहीं होता है।होता है।
5. श्वसन तन्त (Respiralory system)जीचद्धव्य कला में उपस्थित होता है।माइटोकॉण्ड्रया में उपस्थित होता है।
6. श्रक्ारा संश्लेषी तंत्र (Photosynthetic sysiem)आन्तरिक द्विल्लियों में होता है, हरित शवक अनुषस्थित होते हैं।हरित लवकों में होता है। जन्तुओं में अनुपस्थित
7. कोशिका भिति (Cell wall)पतली होती है।मोटी होती है।
8. कोशिकाइव्यी गति (Cytoplasmic movement)स्पष्ट नहीं होती है।स्पष्ट होती है।
9. राइबोसोम (Ribosome)70 s प्रकार के होते हैं।80 S प्रकार के होते हैं।
10. कराभिका (Flagellum)कशाभिका में सूक्ष्म तन्तु होते हैं परन्तु (9 + 2) व्यवस्था नहीं होती है।कशाभाकाओं में सूक्ष्म नलिकाओं की $(9+2)$ व्यवस्था स्पष्ट होती है।
11. रिक्तिका (Vacuole)अनुपस्यित होती हैं।पादपों में उपस्थित जन्तुओं में अल्पर्वर्धित या अनुपस्थित
12. लाइसोसोम (Lysosome)अनुपस्यित होती हैं।जन्तु कोशिका में उपस्थित किन्तु पादप कोशिका में अनुपस्थित।
13. नारककाय (Centrosome)अनुपस्यित होती हैं।पादप कोशिका में अनुपस्थित, जन्तु कोशिका में उपस्थित
14. सम्मुट (Capsule)हो सक्ता है।नहीं होता ।
15. प्लाबिम्ड (Plasmid)उपस्थित हो सकते हैं।अनुपस्थित होते हैं।
16. लिगी बनन (Sexual Reprodction) उदाहाण (Examples)अनुपस्थित वा कम विकसित जीवाणु, नीली हरी शैवास, माइकोप्ताज्मा।पूर्ण विकसित शैवाल, कवक, ब्रायोफाइटा एवं उच्च पौधे एवं प्रोटोजोआ से कॉर्डेटा तक के सभी प्राणी।

प्रश्न 9.
पादप कोशिका एवं जन्तु कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पादप एवं प्राणी कोशिका-सभी यूकैरियोटिक कोशिकाएँ भी समान प्रकार की नहीं होती हैं। पादप एवं प्राणी कोशिकाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति, लवण एवं बड़ी-बड़ी एक या अधिक रिक्तिकाएँ (vacuoles) उपस्थित होती हैं। प्राणी कोशिकाओं में ये अनुपस्थित होते हैं। इसके अलावा जहाँ प्राणी कोशिकाओं में तारककाय (Centrosome) एवं लयनकाय (lysosome) उपस्थित होते हैं जो पादप कोशिकाओं में नहीं पाए जाते हैं। यद्यपि अन्य कोशिकाओं की संरचना एवं कार्धिकी में दोनों प्रकार की कोशिकाएँ समानताः प्रदर्शित करती हैं।
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लक्षणपादप कोशिकाजन्तु कोशिका
1. कोशिका भित्ति (Cell wall)उपस्थित, सेल्युलोस मुख्यतः (cellulose) की बनी होती है।अनुपस्थित।
2. लवक (Plastids)कोशिका द्रव्य में तीन प्रकार के लवक पाए जाते हैं-अवर्णी लवक, वर्णी लवक व हरित लवक (Leucoplast, chromoplast and chloroplast) 1लवक (plastids) अनुपस्थित होते हैं।
3. रिक्तिका (Vacuoles)प्रारम्भ में छोटी किन्तु प्रौढ़ कोशिका में एक बड़ी रिक्तिका उपस्थित। इसमें कोशिका रस भरा रहता है।रिक्तिकाएँ अनुपस्थित होती हैं।
4. तारककाय (Centrosome)कुछ शैवालों एवं कवकों को छोड़कर पादप कोशिकाओं में तारककाय अनुपस्थित होते हैं।लगभग सभी प्राणी कोशिकाओं में तारककाय (centrosome). उपस्थित होते हैं।
5. लयनकाय (Lysosome)कुछ पौधों को छोड़कर अधिकांश पादप कोशिकाओं में अनुपस्थित।सामान्यतया उपस्थित।
6. सूक्ष्म रसांकुर (Microvilli)अनुपस्थित।उपस्थित।
7. कोशिकाद्रव्य विभाजन (division of cytoplasm)कोशिका विभाजन के समय दो संतति कोशिकाओं के बीच कोशिका की मध्य प्लेट पर नई मध्य पटलिका का निर्माण प्रारम्भ होकर किनारों की ओर बढ़ता है।संतति कोशिकाओं के बीच बाहर से एक खांच बनती है जो अन्दर की ओर बढ़ती हुई दोनों संतति कोशिकाओं को पृथक् कर देती हैं।
8. संचित खाद्य पदार्थ (Reserved Food Material)कार्बोहाइड्रेट, सेल्यूलोस, व मण्ड के रूप में संचित होता हैं।कार्बोहाइड्रेट अधिकतर ग्लाइकोजन, तथा वसा के रूप में संचित होता है।

प्रश्न 10.
हृरित लवक का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरित लवक (Chloroplasts)-ये हरे रंग के लवक होते हैं। इनकी खोज शिम्पर (1885) ने की थी। इ्रनमें हरे रंग का वर्णक पर्णहरिम (chlorophyll) होता है जिसके कारण पत्तियाँ एवं कुछ अन्य भाग हर दिखाई देते हैं। उच्च श्रेणी के पौधों में विशेषकर उनकी पत्तियों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं (mesophyll cells) में तथा तनों के हरित ऊतकों में हरित लवक पाए जाते हैं।
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बहुत सी शैवाल कोशिकाओं में केवल एक हरितलवक (Chloraplasts) होता है, परन्तु अधिक विकसित पौधों की एक कोशिका में 20 से 50 तक हरित लवक (chloraplast) हो सकते हैं। विभिन्न वर्ग के पौधों में इनकी रचना और आकार भिन्न होते हैं। शैवालों की कोशिकाओं में मेखलाकार (girdle shaped-यूलोध्रिक्स में), टिकियाकार (disc like – प्लूरोसिग्मा में) प्यालाकार (cup shaped-क्लैमाइडोमोनस में), पद्टीकार (ribon shaped-स्पाइोगाइा में), ताऱाकार (stellate- जिगिनया में) अथवा जालिकामय (reticulate- ऊडोगोनियम में) पाए जाते हैं। आमाप, परिमाप एवं संख्या-उच्च पादपों के लवक (chloraplasts) गोल, अण्डाकार या चपटे व दीर्घ वृत्ताकार होते हैं। सामान्यतः इनकी लम्बाई 2.5 तथा चौड़ाई 3-4 तक होती है। प्रतिकोशिका इनकी संख्या 20-40 तक हो सकती है।

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परासंरचना (Ultrastructure) – उच्च वर्ग के पादपों के हहरित लवक जटिल संरचना वाले होते हैं। प्रत्येक लवक दोहरी इकाई झिल्ली से घिरा होता है। प्रत्येक झिल्ली (unit membrane) की मोटाई 50 होती है। दोनों झिल्लियों के बीच 10 A-30 चौड़ा पेरीप्लास्टिडल स्थान (periplastidal space) होता है। झिल्लियों के अन्दर एक तरल दानेदार पदार्थ भरा होता है जिसे स्ट्रोमा (stroma) कहते हैं। स्ट्रोमा के अन्दर दोहरी कलाओं की बनी असंख्य संरचनाएँँ पायी जाती हैं जिन्हें थाइलेकॉइड (thylakoid) कहते हैं तथा थाइलेकॉइड के द्वारा बने सिक्कों के समान एक ढेर को प्रेनम (granum) कहते हैं। ऐसे अनेक प्रेनम स्ट्रोमा में पाए जाते हैं। एक प्रेनम दूसरे प्रेनम से स्ट्रोमा लैमेली (stroma lamellae) द्वारा जुड़े रहते हैं।
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थाइलैकाइड को ग्रेना की इकाई कहते हैं। थाइलैकाइड पर क्वांटासोम (quantasomes) पाए जाते हैं और प्रत्येक क्वांटासोम (quantasomes) पर लगभग 230 पर्णहरिम कण (chlorophyll particles) पाए जाते हैं। स्ट्रोमा के अन्दर कुछ मात्रा में DNA, RNA स्टार्च कण (starch grains) आदि भी पाए जाते हैं। रासायनिक संगठन (Chemical Composition) – प्रत्येक हरित लवक में 40-50  प्रोटीन, 23-25 फास्फोलिपिड, 3-10 पर्णहरिम (जिसमें 75 पर्णहरिमम a तथा 25 पर्णहरिम b), 5 RNA, 0.01-0.02 DNA; 1-2 कैरोटिन जैन्थोफिल, विकर, विटामिन तथा धातुएँ जैसे- Mg,Fe,Cu,Zn,Mn आदि होते हैं।

कार्य (Functions) – हरित लवक (choroplast) का प्रमुख कार्य प्रकाश संश्लेषण (nhotosunthesis) क्रिया सम्पन्न करना है। हरित लवक (chloroplast) के ग्रेना में प्रकाशीय अभिक्रिया तथा स्ट्रोमा में अन्धकार अभिक्रिया होती है। प्रकाश अभिक्रिया में जल का प्रकाशीय अपघटन होकर NADP.2H तथा ATP का निर्माण होता है, जिससे O2 उपउत्पाद के रूप में उत्पन्न होती है। अन्धकार अभिक्रिया में ATP तथा NADP. 2 H का प्रयोग करके CO2 का स्थिरीकरण किया जाता है और विभिन्न शर्कराओं का निर्माण होता है। इसलिए हरितलवक को कोशिका का रसोईघर (kitchen) कहते हैं।

प्रश्न 11.
कोशिका कला के तरल मोलेज मॉडल का सचित्र वर्पन
कोशिका झिल्ली (Cell membrane):
कोशिका झिल्ली या कोशिका कला (cell membrane or plasma membrane), एक लचीली, अल्पपारदर्शी तथा चयनात्मक पारगम्यकला (selectively permeamble Membrane) है जो पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति के ठीक नीचे तथा जन्तु कोशिकाओं में सबसे बाहर एक सुरक्षात्मक आवरण बनाती है। यह जीवद्रव्य का ही एक अंश होती है तथा स्तरीय रासायनिक परिवर्तनों के कारण बनती है। जीवद्रव्य की इस बाह्यपरत को कोशिका कला (cell membrane) नाम नगेली एवं क्रेमर (Naggeli and Cremer, 1855) ने दिया। प्लावे (Plowe; 1931) ने इसे प्लाज्मालेमा (Plasmalemma) नाम दिया।

संरचना (Structure) – सभी जन्तु कोशिकाओं में कोशिका कला बाह्य रूप में देखी जा सकती है। पादप कोशिकाओं एवं जीवाणु कोशिकाओं में यह कोशिका भित्ति के ठीक नीचे पायी जाती है। सभी प्राणी एवं पादपों की कोशिका कलाओं की संरचना लगभग समान होती है। यह मुख्य रूप से प्रोटीन तथा फास्फोलिपिड की बनी होती है जिसकी मोटाई 75 होती है। इसमें लगभग 3.5 व्यास के अनेक छिद्र पाए जाते हैं।
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कोशिका कला की संरचना के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय-समय पर अपने मत प्रस्तुत किए हैं जिनमें से कुछ प्रमुख मत निम्न प्रकार हैं –
1. कोशिका कला का सेंडविच या त्रिस्तरीय मॉडल (Sandwitch or trilamella model of plasma membrane): इस मॉडल को डेनियल एवं डॉसन (1935) ने प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला प्रोटीन तथा फास्फोलिपिड के अणुओं की बनी हुई एक त्रिस्तरीय (triple layerd) कला होती है जिसमें 40 प्रोटीन्स तथा 60 फास्फोलिपिड्स पाए जाते हैं। इस मॉडल में फास्फोलिपिड अणु प्रोटीन्स द्वारा ठीक उसी प्रकार आस्तरित होते हैं जैसे सेंडविच में डबल रोटी एवं भरावन की व्यवस्था होती है। अर्थात् फास्फोलिपिड की द्विस्तरीय परत प्रोटीन की दो परतों से घिरी होती है।

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एकक कला मत (Unit membrane theory) – कोशिका कला की संरचना के इस मत को रॉबर्टसन (Robertson) ने सन् 1959 में प्रस्तुत किया। इस मत के अनुसार कला की मोटाई 75 होती है, जो तीन परतों की बनी होती है। बाहरी दोनों परर्ते प्रोटीन की तथा प्रत्येक की मोटाई 20 AA होती है। मध्य परत लिपिड की बनी होती है जिसकी मोटाई 35 होती है। यह एकक कला सभी कोशिकांगों में समान रूप से पायी जाती है।
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तरल मोजेक मॉडल (Fluid mosaic model) – यह मॉडल सिंगर तथा निकोल्सन (Singer and Nicolson) ने सन् 1974 में प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला लिपिड की बनी द्विआण्विक परत (bimolecular layer) होती है। लिपिड की दोनों परतों के बाहर की ओर बाह्य प्रोटीन की एक-एक परत पायी जाती है जिसे बाह्य प्रोटीन (extrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में कुछ प्रोटीन अन्दर तक धँसी रहती है। इन्हें अन्त:प्रोटीन (intrinsic protein) कहते हैं।

लिपिड परत में स्थित फॉस्फोलिपिड अणुओं के दो छोर होते हैं –
(i) जल रागी शीर्ष (Hydrophilic head) जो प्रोटीन परत की ओर होता है।
(ii) जल विरागी पुच्छ (Hydrophobic tail) जो कला के केन्द्र की ओर होता है।

दोनों प्रोटीन परतों की मोटाई 20-20 तथा फॉस्फोलिपिड द्विपरत (phospholipid bilayer) की मोटाई 35 होती है। इस प्रकार प्रोटीन लिपिड द्विपरत-प्रोटीन संरचना प्रदर्शित करती है। आन्तरिक प्रोटीन (intrinsic protein) लिपिड परत में हिलडुल सकते हैं इसलिए इसे तरल मोजेक मॉडल (mosoaic model) कहते हैं।

जैव कला का रासायनिक संगठन (Chemical Composition of Plasma membrane):
प्लाज्मा मेंम्ब्बेन (plasma membrane) या कोशिका कला मुख्यतः प्रोटीन व फास्फोलिपिड्स की बनी होती है यद्यपि इसमें अल्प मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स भी उपस्थित होते हैं। कोशिका कला में कार्बोंहाइड्रेट स्वतन्त्र अवस्था में न रहकर दो संयोजी रूपों में पाया जाता है। यह लिपिड के साथ ग्लाइकोलिपिड तथा प्रोटीन के साथ ग्लाइकोप्रोटीन के रूप में पाया जाता है। ये दोनीं पदार्थ कोशिका को समान कोशिकाओं की पहचान की क्षमता प्रदान करते हैं।
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कोशिका कला में इन पदार्थों का अनुपात निम्न प्रकार है –
प्रोटीन – 60-80 %
लिपिड – 20-40
काबोंहाइड्रेट – लगभग – 5 %
प्राणियों (animals) के यकृत (livar) तथा लाल रुधिराणुओं (RBCs) की जैव-कलाओं में हैक्सोस, हैक्सोस एमीन, फ्रक्टोस, कारोंहाइड्रेट तथा सियालिक अम्ल, प्रोटीन्स के साथ पाए जाते हैं।

प्लाज्मा कला के रूपान्तरण (Modifications of Plasma membrane):
प्लाज्मा कला कभी-कभी कोशिकाओं में कुछ विशेष कार्यों के लिए रूपान्तरित हो जाती है। इसके कुछ रूपान्तरण निम्न प्रकार है –
1. सूक्ष्मांकुर (Microvilli) – प्राणी कोशिकाओं में प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasma membrane) पर कभी-कभी अंगुली के समान उभार निकल आते हैं इन्हें सुक्ष्मांकुर (microvilli) कहते हैं। ये प्लाज्मा मेम्बेने के सतही क्षेत्रफल को बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए आंत्र (intestine) में पायी जाने वाली उपकला कोशिकाएँ।

2. डेस्मोसोम (Desmosomes) – संलग्न कोशिकाओं के आसंजन स्थलों पर प्लाज्मा कला से अनेक पतों वाली धागे जैसी कुछ संरचनाएँ बनती हैं। इस स्थल को डेस्पोसोम (desmosomes) कहते हैं तथा धागे जैसी संरचनाओं को टोनोफाइबिल्स (tonofibrils) कहते हैं। इनका प्रमुख कार्य कोशिका को आन्तरिक रूप से यांत्रिक शक्ति (Mechanical suport) प्रदान करता है साथ ही ये कोशिकाओं को परस्पर जोड़ने का भी कार्य करती हैं।

3. इंटरडिजिटेशन (Interdigitations) – कभी-कभी प्राणी कोशिकाओं में संलग्न स्थलों पर कुछ प्रवर्ध निकलकर कोशिकाओं को बाँधे रखने का कार्य करते हैं। इन्हें इंटरडिजिटेशन (interdigitations) कहते हैं।

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प्लाज्मा कला के कार्य (Functions of Plasma Membrane):
कोशिका कला या प्लाज्मा मैम्बेन (plasma membrane) के निम्नलिखित कार्य हैं-
1. यह कोशिका को एक निश्चित आकार प्रदान करती है।
2. यह विभिन्न पदार्थों के आयनों तथा अणुओं के कोशिका के अन्दर-बाहर आने-जाने का नियंत्रण करती है। अर्थात् यह चयनात्मक पारगम्य (selectively permeable) कला का कार्य करती है।
3. यह रक्षण, अवलम्बन तथा यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।
4. इसके द्वारा विभिन्न पदार्थों का परिवहन होता है। यह दो प्रकार का होता है-
(i) सक्रिय परिवहन (Passive Transport) – प्लाज्मा कला से होकर अनेक प्रकार के आयन्स (ions) अपने अधिक सान्द्रता के क्षेत्र से कम सान्द्रता के क्षेत्र की ओर साधारण रूप से विसरित हो जाते हैं। इसमें किसी प्रकार की ऊर्जा का व्यय नहीं होता है। इसे निक्रिय परिवहन (passive transport) कहते हैं।
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(ii) सक्रिय परिवहन (Active transport) – सक्रिय परिवहन में आयन या अणुओं का परिवहन कोशिका कला से होकर सान्द्रता प्रवणता (concentration gradient) के विपरीत होता है अर्थात निम्न सान्द्रता वाले स्थान से उच्च सान्द्रता वाले स्थान की ओर होता है। यह ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया है जो वाहक प्रोटीन (carrier protein) द्वारा सम्पन्न होती है। ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया में कोशिका में कोशिका कला से अणुओं या आयन्स को ले जाने के लिए आयन्स या अणुवाहक (carriers) ऊर्जा का व्यय करते हैं। यह क्रिया एन्जाइम की उपस्थिति में होती है तथा ATP ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं।
5. कोशिका कला के द्वारा ठोस एवं तरल पदार्थों का अन्तप्रम्णण भी किया जाता है, इस क्रिया को एण्डोसाइटोसिस (endocytosis) भी कहते हैं।
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पदार्थों की प्रकृति के अनुसार यह क्रिया दो प्रकार की होती है –
(i) कोशिका पायन (Pinocytosis) -प्लाज्मा कला से होकर कोशिका द्वारा तरल पदार्थों के अर्न्तग्रहण की क्रिया कोशिकापायन (Pinocytosis) कहलाती है। अधिक आण्विक भार वाले पदार्थ जैसे -प्रोटीन आदि को परासरण (osmosis) द्वारा कोशिका कला से होकर कोशिका में नहीं पहुँचाया जा सकता है। ऐसे पदार्थों को कोशिका पायन (pinocytosis) द्वारा प्रहण किया जाता है। इस क्रिया में प्लाज्मा कला (plasma membrane) में एक आशय बनता है जिसमें द्रव पदार्थों की बूदें बहकर आ जाती हैं। इसके पश्चात् यह आशय पृथक् होकर कोशिका के अन्दर आ जाता है। लाइसोसोम द्वारा इन आशयों का पाचन कर लिया जाता है। ऐसे पदार्थों के निष्षासन के लिए उपरोक्त क्रिया विपरीत हो जाती है। थाइाइड प्रन्थि (thyroid gland) में इस क्रिया को देखा जा सकता है।

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(ii) भक्षकाणु क्रिया (Phagocytosis) – प्लाज्मा-कला से होकर कोशिका द्वारा ठोस पदार्थों के अर्त्तप्रहण की क्रिया भक्षकाणु (phagocytosis) क्रिया कहलाती है। प्रोटोजोआ संघ के अनेक प्राणी इसी विधि द्वारा खाद्य पदार्थों को प्रहण करते हैं। श्वेत रुधिर कणिकाएँ रोगाणओं का इसी प्रकार भक्षण करके रोगों से रक्षा करती हैं। इस विधि में जब कोई ठोस पदार्थ प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasmam embrane) के सम्पर्क में आता है तो प्लाज्मा मेम्बेन अन्तर्वलित होकर इसे अन्दर ले लेती है और पृथक् होकर जीवद्रव्य (protoplasm) में समाहित हो जाती है बाद में लाइसोसोम (lysosome) से मिलकर इसके पदार्थ का पाचन हो जाता है। अपचित पदार्थ पुनः प्लाज्मा मेम्ब्रेन से बाहर कर दिया जाता है। कोशिका पायन (pinocytosis) तथा भक्षकाणु (phagocytosis) क्रिया दोनों ही क्रियाएँ समान होती हैं और दोनों में ही ऊर्जा व्यय होती है।

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर देने के लिए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए –

1. गुडहल में पुष्प के पुंमंग के लिए प्रयुक्त तकनीकी शब्द है-
(A) एक संघी
(B) द्विसंघी
(C) बहुसंघी
(D) बहुपुमंगी
उत्तर:
(C) बहुसंघी

2. एकल अण्डप युक्त एककोष्ठकीय अण्डाशय में बीजाण्डन्यास होता है-
(A) सीमान्त
(B) आधारीय
(C) मुक्त केन्द्रीय
(D) अक्षीय
उत्तर:
(D) अक्षीय

3. किसमें ड्रूप का निर्माण होता है-
(A) गेहूँ
(B) मटर
(C) टमाटर
(D) आम
उत्तर:
(C) टमाटर

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4. मिर्च का सही पुष्प सूत्र है-
(A) K(s) C(s) A5 G(2)
(B) K(5) C(5) A(5) G2
(C) K5 C5 A(5) G2
(D) K(5) C(5) A(5) G(2)
उत्तर:
(C) K5 C5 A(5) G2

5. आलू के कन्द में आँखें होती है-
(A) पुष्प कलिकाएँ
(B) प्ररोह कलिकाएँ
(C) कक्षीय कलिकाएँ
(D) मूल कलिकाएँ
उत्तर:
(A) पुष्प कलिकाएँ

6. ध्वजिक विन्यास किस कुल का अभिलक्षण है-
(A) फेबेसी
(C) सोलेनेसी
(B) ऐस्टरेसी
(D) बेसिकेसी
उत्तर:
(A) फेबेसी

7. निम्नलिखित में से कौन सही सुमेलित है ?
(A) प्याज-कंद
(B) अदरक – सकर
(C) क्लेमाइडोमोनास कोनीडिया
(D) यीस्ट – चल बीजाणु
उत्तर:
(D) यीस्ट – चल बीजाणु

8. टमाटर तथा नींबू में पाया जाने वाला बीजाण्डन्यास है-
(A) भित्तीय
(B) मुक्त केन्द्रीय
(C) सीमान्त
(D) अक्षीय
उत्तर:
(C) सीमान्त

9. किसमें बीजावरण पतला तथा झिल्लीनुमा होता है ?
(A) मक्का
(B) नारियल
(C) मूँगफली
(D) चना
उत्तर:
(B) नारियल

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10. किसमें एक्ल्यूमिनरहित बीज निर्मित होते हैं ?
(A) मक्का
(B) अरण्डी
(C) गेहूँ
(D) मटर।
उत्तर:
(C) गेहूँ

11. खाने योग्य भूमिगत तने का उदाहरण है-
(A) गाजर
(B) मूँगफली
(C) शकरकन्द
(D) आलू।
उत्तर:
(B) मूँगफली

12. किसमें पुष्प एकलिंगी होते हैं ?
(A) गाजर
(B) मूँगफली
(C) शकरकन्द
(D) आलू
उत्तर:
(A) गाजर

13. किसमें पुष्प एकलिंगी होते हैं ?
(A) मटर
(B) खीरा
(C) गुड़हल
(D) प्याज
उत्तर:
(B) खीरा

14. पद बहुसंधी सम्बिन्धित है ?
(A) जायांग से
(B) पुमंग से
(C) दल पुंज से
(D) केलिक्स से
उत्तर:
(D) केलिक्स से

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15. निम्न में से कौन तने का रूपान्तरण नहीं है-
(A) नींबू के कंटक
(B) खीरा के प्रतान
(C) नागफनी की चपटी संरचनाएँ
(D) घटपर्णी का घट
उत्तर:
(C) नागफनी की चपटी संरचनाएँ

16. तना जो चपटी, हरी संरचनाओं में परिवर्तित होता है जो पत्तियों का कार्य करती है कहलाता है-
(A) फिल्लोड
(B) फिल्लोक्लेड
(C) शल्क
(D) क्लेडोड
उत्तर:
(B) फिल्लोक्लेड

17. पेपिलियोनेसी कुल में दल होते है-
(A) पेरीस्पर्म
(B) बीजपत्र
(C) भ्रूणपोष
(D) पेरीकार्प
उत्तर:
(A) पेरीस्पर्म

18. नारियल के खाये जाने वाले भाग की आकारिकीय प्रकृति है-
(A) पेरीस्पर्म
(B) बीजपत्र
(C) भ्रूणपोष
(D) पेरीकार्य
उत्तर:
(C) भ्रूणपोष

19. बन्दगोभी का खाने योग्य भाग है-
(A) अनुपर्ण
(B) अयस्थानिक जड़े
(C)
(D)
उत्तर:
(C)

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सरसों के पौधे का वानस्पतिक नाम लिखिए।
उत्तर:
ब्रेसिका केम्पेस्ट्रिस (Brassica campestris)।

प्रश्न 2.
फैबेसी कुल के दलपुंज की विशेषता लिखिए।
उत्तर:
फैबेसी उपकुल में 5 दल 1 + 2 + (2) बैक्सीलरी क्रम में व्यवस्थित होते हैं। ये पीपैलियोनेसियस कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
गेहूँ एवं चावल के फल को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
कैरिओप्सिस (Caryopsis)।

प्रश्न 4.
बहुसंधी पुंकेसर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब पुंकेसरों के पुंतन्तु अनेक समूहों में जुड़े रहते हैं तब इसे बहुसंघी (polyadelphous ) पुंकेसर कहते हैं।

प्रश्न 5.
गुड़हल में पुष्पक्रम का प्रकार क्या है ?
उत्तर:
एकल कक्षस्थ या एकल शीर्षस्थ।

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प्रश्न 6.
जब परागकोष में परागकण नहीं बनते तो ऐसे पुंकेसर क्या कहलाते हैं ?
उत्तर:
स्टैमिनोड (staminode)।

प्रश्न 7.
कनेर में किस प्रकार का पर्ण विन्यास पाया जाता है ?
उत्तर:
चक्राकार (Whorled)

प्रश्न 8.
गुड़हल में किस प्रकार के पुंकेसर होते हैं ?
उत्तर:
एकसंघी (Monoadelphous)।

प्रश्न 9.
अण्डप के तीन भाग कौन से हैं ?
उत्तर:

  1. अण्डाशय
  2. वर्तिका तथा
  3. वर्तिकाम।

प्रश्न 10.
फल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
निषेचन के पश्चात् अण्डाशय से बनने वाली संरचना को फल कहते हैं।

प्रश्न 11.
मूसला जड़ तथा अपस्थानिक जड़ में एक अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मूसला जड़ का निर्माण मूलांकुर (radicle) से होता है जबकि अपस्थानिक जड़ मूलांकुर को छोड़कर किसी अन्य भाग से बनती हैं।

प्रश्न 12.
झकड़ा जड़ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मूसला जड़ के नष्ट होने के बाद धागे के समान बनी जड़ें झकड़ा जड़ कहलाती हैं।

प्रश्न 13.
मूलगोप का क्या कार्य है ?
उत्तर:
मूलगोप मूलशीर्ष में स्थित प्रविभाजी प्रदेश (meristematic Zone) की रक्षा करता है।

प्रश्न 14.
किसी ऐसी जड़ के दो उदाहरण लिखिए जिनमें प्रजनन कलिकाएँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
शकरकन्द (sweet potato) तथा शीशम ( sisoo )।

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प्रश्न 15.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें पत्तियाँ कायिक प्रजनन में भाग लेती हैं ?
उत्तर:
अजूबा (Bryophyllum), बिगोनिया (Bigonia)।

प्रश्न 16.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें श्वसन मूल (pneumatophore) पाये जाते हैं।
उत्तर:
राइजोफोरा ( Rhizophora ), एबीसीनिया (Abiscinia )।

प्रश्न 14.
किसी ऐसी जड़ के दो उदाहरण लिखिए जिनमें प्रजनन कलिकाएँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
शकरकन्द (sweet potato) तथा शीशम ( sisoo )।

प्रश्न 15.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें पत्तियाँ कायिक प्रजनन में भाग लेती हैं ?
उत्तर:
अजूबा (Bryophyllum ), बिगोनिया (Bigonia)।

प्रश्न 16.
ऐसे दो पौधों के नाम लिखिए जिनमें श्वसन मूल (pneumatophore) पाये जाते हैं।
उत्तर
राइजोफोरा (Rhizophora ), एबीसीनिया (Abiscinia)।

प्रश्न 17.
मूसला जड़ तथा अपस्थानिक जड़ का एक-एक उदाहरण लिखिए। है ?
उत्तर:
मूसला जड़-मूली।
अपस्थानिक जड़ – शकरकन्द।

प्रश्न 18.
अंगूर के प्रतान किस संरचना का रूपान्तरण है ?
उत्तर:
तने का रूपान्तरण।

प्रश्न 19.
प्याज शल्ककन्द है इसके किस भाग में भोजन संचित रहता
उत्तर:
माँसल शल्क पत्रों (succulent scaly leaves) में।

प्रश्न 20.
एकल पुष्प तथा पुंजफल में एक प्रमुख अन्तर लिखिए।
उत्तर:
एकल फल एकण्डपी या बहुअण्डपी, युक्ताण्डपी अण्डाशय से बनते हैं, जबकि पुंजफल बहुअण्डपी तथा पृथक्काण्डपी अण्डाशय से बनते हैं।

प्रश्न 21.
संग्रथित फल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब सम्पूर्ण पुष्पक्रम विकसित होकर एक फल बनाता है तो इसे संप्रथित फल कहते हैं।

प्रश्न 22.
कूट फल क्या है ?
उत्तर:
जब बल के निर्माण में सम्पूर्ण पुष्पासन भाग लेता है तो इसे असत्य या कूट फल (false fruit) कहते हैं।

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प्रश्न 23.
बीजाण्डासन क्या है ?
उत्तर:
अण्डाशय में मृदूतकीय संरचना जिस पर बीजाण्ड लगे होते हैं बीजाण्डासन (placenta ) कहलाती हैं।

प्रश्न 24.
आम के फल के खाया जाने वाले भाग का नाम लिखिए।
उत्तर:
मध्यफल भित्ति (mesocarp)।

प्रश्न 25.
रेशेदार अष्ठिफल का एक उदाहरण तथा इसके खाने योग्य भाग का नाम लिखिए। है ?
उत्तर:
नारियल (coconut) भूणपोष ।

प्रश्न 26.
मटर का पुष्प सूत्र लिखिए।
उत्तर:
Br % K(5) C1+2+(2)  A(9)+1  G(1)

प्रश्न 27.
सोलेनेसी कुल के दो पौधों के वानस्पतिक नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. आलू (Solanum tuberosumn)।
  2. बैंगन (Solanum melongina)।

प्रश्न 28.
लीची के फल में खाये जाने वाले भाग का नाम लिखिए।
उत्तर:
मांसल बीज चोल।

प्रश्न 29.
धँसे हुए रन्ध्र (Sunken stomata) किन पौधों की विशेषता
उत्तर:
मरुद्भिदी पादपों (xerophytes ) की।

प्रश्न 30.
लौंग पौधे का कौन-सा भाग है ?
उत्तर:
लौंग बिना खिली कली है।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न – I

प्रश्न 1.
मूसला मूल तन्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अधिकांश द्विबीजपत्री पौधों में मूलांकुर (redicle) के लम्बे होने से प्राथमिक मूल बनती है। इसमें पाश्र्वय मूल होती है जिन्हें द्वितीयक या तृतीयक मूल कहते हैं। प्राथमिक मूल तथा इसकी शाखाएँ मिलकर मूसला मूलतन्त्र (tap root system) कहलाता है। जैसे- सरसों ।

प्रश्न 2.
झकड़ा मूल तत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एकबीजपत्री पौधों में प्राथमिक मूल अल्पकालिक (ephimeral) होती है और इसके स्थान पर अनेक मूल निकल आती हैं। ये मूल तने के आधार से निकलती हैं। इन्हें झकड़ा मूल तन्त्र (fibrous root system) कहते हैं; जैसे— गेहूँ ।

प्रश्न 3.
अपस्थानिक मूल तन्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर:
कुछ पौधों जैसे घास तथा बरगद में मूल मूलांकुर की बजाय पौधे के किसी अन्य भाग से निकलती हैं। इन्हें अपस्थानिक मूल कहते हैं तथा एक स्थान से निकली सभी अपस्थानिक जड़ों को अपस्थानिक मूल तन्त्र (adventitious root system) कहते हैं। जैसे-दूब घास ।

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प्रश्न 4.
मूसला जड़ तन्त्र रेशेदार मूल तन्त्र का केवल नामांकित चित्र
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 32

प्रश्न 5.
वैसीकेसी तथा सोलेनेसी कुल के दो-दो आर्थिक महत्व के पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सोलेनेसी –

  • टमाटर – (Lycopersicum esculentum)
  • बैंगन (Solanum melongina)

ब्रैसिकेसी –

  • सरसों – ( Brassica campestris)
  • मूली – ( Raphanus sativa)

प्रश्न 6.
प्रकृति के आधार पर कलिकाएँ कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तर:
प्रकृति के आधार पर कलिकाएँ तीन प्रकार की होती है-

  • कायिक कलिकाएँ (Vegetative buds) – ये कलिकाएँ पत्र प्ररोह बनाती हैं।
  • पुष्पीय कलिकाएँ (Floral buds) – ये कलिकाएँ पुष्पों को जन्म देती
  • मिश्रित कलिकाएँ (Mixed buds) – ये कायिक भाग व पुष्प बनाती

प्रश्न 7.
भ्रूण तथा बीज में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
भ्रूण तथा बीज में अन्तर (Differences between Embryo and Seed) –

निषेचन से पूर्व बीजाu्ड (Ovule)निषेष्न के पर्जात् बीज (Seed)
बाह्म अध्यावरण (Outer integument)बाद बीजचोल (testa)
अन्त: अध्यावरण (Inner integument)अन्त: बीजचोल (tegmen)
बीजाण्ड वृन्त (Funiculus)नष्ट हो जाता है
बीजाण्डकोष (Nucellus)नष्ट हो जाता है या परिश्रूणपोष (perisperm) बनाता है
अण्डकोशिका (Egg cell)भूण (embryo)

प्रश्न 8.
सत्य फल तथा कूट फल में भेद कीजिए।
उत्तर:

  1. सत्य फल (True Fruits) – जब फल का निर्माण केवल अण्डाशय से निषेचन के पश्चात् होता है तो इसे सत्य फल कहते हैं । जैसे – आम, पपीता।
  2. असत्य फल (False Fruits) – जब पुष्प का निर्माण अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्प के अन्य भागों तथा पुष्पासन से मिलकर होता है तो इसे कूट या असत्य फल कहते हैं। जैसे-सेब, नाशपाती।

प्रश्न 9.
शिराविन्यास किसे कहते हैं ? इसके प्रकार लिखिए।
उत्तर:
शिराविन्यास (Veination ) – पत्ती पर शिरा तथा शिरिकाओं के विन्यास को शिराविन्यास कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है-

  • जालिकावत् शिराविन्यास (Reticulate veination ) – जब सिरिकाएँ पत्ती पर जाल जैसी रचना बनाती है; जैसे- द्विबीजपत्री पौधों में।
  • समान्तर शिरा विन्यास (Parallel veination) – जब सिरिकाएँ पत्ती पर समानान्तर रूप से फैली होती हैं; जैसे-एकबीजपत्री पौधों में।

प्रश्न 10.
स्पैडिक्स तथा कैटकिन पुष्पक्रम में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
स्पैडिक्स तथा कैटकिन पुष्पक्रम में अन्तर (Differences between Spadix and Catkin inflorescence)

भ्रूण (Embryo):बीज (Seed):
(i) यह बीजाण्ड की अण्डकोशिका से बनता है।निषेचनोपरान्त बीजाण्ड बीज बनाता है।
(ii) भ्रूण बीजपत्र या भ्रूणपोष में सुरक्षित रहता है।बीज दो पर्तों से बने बीज कवच में सुरक्षित रहता है।
(iii) भ्रूण बीज में पाया जाता है।बीज फल में पाया जाता है।

प्रश्न 11.
युक्तकोशी तथा संयुक्त पुंकेसरीय पुंकेसरों में अन्तर लिखिए। उत्तर- युक्तकोषी तथा संयुक्त पुंकेसरीय पुंकेसरों में अन्तर (Differences stamens between Syngenesious and Synaondrous)
उत्तर:

स्पैडिक्स (Spadix)कैटकिन (Catkin)
पुष्पावली वृन्त स्थूल एवं माँसल होती है।पुष्पावली वृन्त, मुलायम, कमजोर तथा लटकने वाली होती है।
सम्पूर्ण पुष्पक्रम पर अनेक या एक बड़ी प्राय: रंगीन, आकर्षक सहपत्र होती हैं। इसे स्पैथ कहते हैं।सभी पुष्पों की अपनी-अपनी सहपत्र होती हैं। पुष्प प्रायः एकलिंगी होते हैं।
उदाहरण-केला।उदाहरण-शहतूत।

प्रश्न 12.
श्वसन मूल तथा कवक मूल क्या होती हैं ?
उत्तर:
श्वसन मूल (Respiratory roots Pneumatophore) – दलदली स्थानों में उगने वाले पौधों में कुछ जड़ें वायवीय हो जाती हैं जिन्हें श्वसन मूल कहते हैं। ये जड़ों के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध कराती हैं जैसे- राइजोफोरा। कवक मूल (Mycorrhiza ) कुछ उच्च पौधों की जड़ों तथा कवकों के बीच पारस्परिक सहजीविता को कवक मूल (Mycorrhiza ) कहते हैं। जैसे-चीड़ के पौधे में।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पौधों के प्रमुख संचयी भागों के नाम लिखिए –
(i) आलू
(ii) शकरकन्द
(iii) प्याज
(iv) मटर
(v) अदरक
(vi) मूली
(vii) गन्ना
(viii) शलजम
उत्तर:

(i) आलूभूमिगत कन्द
(ii) शकरकन्दकंदिल अपस्थानिक जड़
(iii) प्याजमाँसल शल्क पत्र
(iv) मटरबीज
(v) अदरकभूमिगत प्रकन्द
(vi) मूलीमूसला जड़
(vii) xन्नातना
(viii) शलजममूसला जड़।

(घ) लघु उत्तरीय प्रश्न-II

प्रश्न 1.
जड़ की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जड़ की विशेषताएँ –

  • जड़ की उत्पत्ति प्रायः भ्रूण के मुलांकुर से होती है।
  • जड़ें धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती तथा ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती होती हैं।
  • जड़ों के शीर्ष पर मूलगोप (root cap) पायी जाती है।
  • जड़ों पर पर्व, पर्वसन्धियों तथा कलिकाओं का अभाव होता है।
  • जड़ों पर एककोशिकीय मूलरोम (root hairs) पाये जाते हैं।
  • जड़ की शाखाएँ अन्तर्जात (endogenous) होती हैं।

प्रश्न 2.
तने की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
तने की विशेषताएँ-

  • तने की उत्पत्ति भ्रूण के प्रांकुर (Plumule) से होती है।
  • तने की शीर्ष पर अमस्थ कलिका (apical bud ) तथा पत्तियों के कक्ष में कक्षस्थ कलिका ( axillary bud) पायी जाती है।
  • तने पर शाखाएँ, पत्तियाँ, पुष्प व फल उत्पन्न होते हैं।
  • तने पर पर्व एवं पर्व सन्धियाँ (nodes and internodes) पाये जाते
  • पर्वसन्धियों पर सामान्य पत्तियाँ या शल्क पत्र पाये जाते हैं।
  • तने पर बहुकोशिकीय रोम पाये जाते हैं।
  • तने की शाखाएँ बहिर्जात (exogenous) होती हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 3.
किसी पुष्पी पादप का उसके विभिन्न भागों को दर्शाते हुए नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 15

प्रश्न 4.
मूसला जड़ तथा अपस्थानिक जड़ में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मूसला जड़ तथा अपस्थानिक जड़ में अन्तर –

मूस्ला मूल (Tap Root)अवस्थानिक्ज मूल (Adventitious Root)
यह मूल भूण के मूलाकुर (Radicle) भाग से निकसित होती है।यह मूल मूलाकुर (radicle) से विकसित न होकर पौधे के दूसरे भाग से विकसित होता है।
इनमें प्राथमिक मूल (Primary root) कभी नह नहीं छोता। यह हमेशा भूमिगत (undegraund) होती है। इनमें मुख्य मूल एक ही होती है।इनमें प्राथमिक मूल बहुत अल्पजीवी (ephimeral) होती है।
यह सामान्यतः भूमि में बहुत गहराई तक जाती हैं।यह भूमिगत तथा वायवीय (aerial) दोनों प्रकार की हो सकती है।
इसमें मुख्य मूल बहुत मोटी होती है बाकी जड़ें उतनी मोटी नहीं होती हैं। इनमें प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक जड़ें निकलती है।इनमें बहुत सारी जड़ें छुष्ड में निकलती हैं। यह भूमि में बहुत गहराई तक नहीं जाती हैं।
यह द्विबीजपत्री पौधों (dicotyledons) में पायी जाती है।सारी जड़ें रेशेदार (fibrous) होती हैं।
यह मूल भूण के मूलाकुर (Radicle) भाग से निकसित होती है।इनकी जड़ों में इस प्रकार का विभेदन नहीं पाया जाता।

प्रश्न 5.
जटामूल तथा स्तम्भ मूल में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
जटामूल तथा स्तम्भमूल में अन्तर (Differences between Stilt root and Prop roots)-

जटामूल (Stilt roots)सतम्भमूल (Prop roots)
ये तने के आधारीय भाग से निकलती हैं।ये तने के ऊपरी भाग से निकलती हैं।
ये छोटी होती हैं।ये लम्बी होती हैं।
ये आर्द्रताप्राही नहीं होती हैं।ये आर्द्रताम्राही होती हैं।
ये अपेक्षाकृत कम मोटी तथा ऊपर से नीचे तक समान होती हैं।ये इतनी मोटी हो जाती हैं कि
ये तिरछी वृद्धि करती हैं।इन्हें जड़ कहना कठिन होता है।
उद्टरण-गन्ना, मक्का।ये ऊपर मोटी तथा नीचे पतली होती हैं।
उदाइरण-बरगद।

प्रश्न 6.
परजीवी मूल तथा वायवीय मूल में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
परजीवी मूल तथा वायवीय मूल में अन्तर (Differences between Parasitic root and Aerial root):

परजीवी मूलवाय्वीय मूल
परजीवी पादपों जैसे- अमरबेल आदि में पायी जाती हैं।उपरिरोही पौधों जैसेआर्किड्स में पायी जाती हैं।
छोटी होती हैं जो पोषक के सम्पर्क में आने पर बनती हैं।लम्बी तथा स्वतः बनती हैं।
पोषक के संवहन ऊतक में प्रवेश कर भोजन अवशोषित करती हैं।वायु में लटककर आर्द्रता ग्रहण करती हैं।

प्रश्न 7.
प्रन्थिमय जड़ें क्या हैं ? ये किन पौधों में पायी जाती हैं ?
उत्तर:
ग्रन्थिमय जड़ें (Nodulated or Tuberculate roots) – इस प्रकार की जड़ें लैग्यूमिनोसी कुल के सदस्यों जैसे—मूंग, मटर, चना आदि में पायी जाती हैं। इन जड़ों पर अनियमित आकार की गुलिकाएँ या मन्थियाँ (nodules) पायी जाती हैं। प्रारम्भ में इनका रंग पीला-गुलाबी होता है बाद में भूरा हो जाता है। इन गुलिकाओं में भारी संख्या में राइजोबियम (Rhizobium) नामक जीवाणु पाये जाते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 1
ये जीवाणु पौधे की जड़ों के साथ सहजीविता प्रदर्शित करते हैं। ये वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को ग्रहण करके इसे यौगिक रूप में बदल देते हैं जिसे पौधे ग्रहण कर लेते हैं। पौधे जीवाणुओं को आश्रय तथा भोजन प्रदान करते हैं।

प्रश्न 8.
पर्णकाय स्तम्भ तथा पर्णाभ वृन्त में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पर्णकाय (पर्णाभ) स्तम्भ तथा पर्णायित (पर्णाभ) वृन्त में अन्तर-

पर्णकाय रतमम्भ (Phylloclade)पर्णाभ ধृत्त (Phyllode)
यह स्तम्भ का रूपान्तरण है।यह पर्णवृन्त का रूपान्तरण है। पर्णफलक (lamina) की भाँति हरा व चपटा होता है जो मुख्यत्याः प्रकाश संश्लेषण करता है।
इसमें स्तम्भ चपटा, हरा, सामान्यतः माँसल होता है अत: प्रकाश संश्लेषण के साथ-साथ भोजन संग्रह भी करता है।इसके कक्ष में कलिका होती है जिससे शाखा बनती है।
यहु स्वयं पत्ती के कक्ष में स्थित होता है।पर्वसन्धियाँ, कलिकाएँ या पुष्प धारण नहीं करता है।
यह पर्वसन्धियाँ, कलिकाएँ, पत्तियौँ तथा पुष्प धारण करता है। पत्तियाँ प्राय: काँटों या शल्कों में बदल जाती हैं।उंसाहरण-ऑस्ट्रेलियन बबूल।

प्रश्न 9.
सिलिकुआ तथा सिलिकुला की तुलना कीजिए ।
उत्तर:
सिलिकुआ तथा सिलिकुला की तुलना (Comparison between Siliqua and Silicula) – दोनों ही फल द्विअण्डपी (Bicarpellary), संयुक्त (Syncarpous ) तथा ऊर्ध्ववर्ती ( Superior) अण्डाशय से विकसित होते हैं। ये प्रारम्भ में एककोष्ठी (unilocular) तथा भित्तिय बीजाण्डन्यास (parietal placentation) वाले होते हैं। बाद में कूटपट (raplum) बन जाने के कारण अण्डाशय द्विवेश्मी हो जाता है। परिपक्व होने पर फल भित्ति आधार से क्रमशः अप्रभाग की ओर स्फुटित होती है। बीज कूटपट (replum) पर ही लगे रह जाते हैं। कूटपट ऐंठकर बीजों को प्रकीर्णित कर देता है। दोनों कुल क्रूसीफेरी (Cruciferae or Brassicaceae) कुल के लाक्षणिक है। इनमें सिलिकुआ अधिक लम्बा तथा संकरा होता है जैसे-सरसों, मूली आदि। सिलिकुला अपेक्षाकृत छोटा होता है इसकी लम्बाई-चौड़ाई लगभग बराबर होती है, जैसे- कैप्सेला ( Capsella), कैण्डीटफट (Iberis sp.) आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 2

प्रश्न 10.
पुष्पीय पौधों की एक सामान्य पत्ती की संरचना समझाइए ।
उत्तर:
पत्ती (Leaf) पत्ती हरी, प्रकाश संश्लेषी उपांग है जो तने की पर्वसन्धियों तथा शाखाओं से बाहर की ओर निकलती है एक प्रारूपिक पत्ती के निम्नलिखित भाग होते हैं-
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 7

1. पर्णाधार (Leaf base ) – यह पत्ती का वह भाग है जो तने के साथ जुड़ता है। कुछ पौधों में पर्णाधार पर विशेष संरचनाएं होती हैं जिन्हें अनुपर्ण ( stipules) कहते हैं। ये छोटी-सी कक्षस्थ कलिका की सुरक्षा करते हैं। जब पर्णाधार पर अनुपर्ण उपस्थित होते हैं तब पत्ती को अनुपर्णी (stipulate) कहते हैं तथा अनुपर्णरहित पत्ती को अननुपर्णी ( exstipulate) कहते हैं।

2. पर्णवृन्त (Petiole ) – यह पत्ती का डण्ठल है। यह पत्ती को पर्णाधार से जोड़कर वायु तथा प्रकाश के लिए साधे रखता है। वृन्त सहित पत्ती को सवृन्त (petiolate) तथा वृन्तरहित पत्ती को अवृन्त (sessile ) कहते हैं।

3. पर्णफलक (Leaf blade or Lamina ) – यह पत्ती का प्रमुख भाग है। यह प्रायः चपटा, तथा हरा भाग है। पर्णफलक की दो सतह अध्यक्ष (adaxial) तथा अपाक्ष (abaxial) होती हैं। प्रायः अलग-अलग पौधों की पत्तियों में आकार आकृति की भिन्नता होती है। पर्णफलक पर शिराओं का विन्यास होता है। फलक एक शीर्ष में समाप्त होता है। पर्णफलक का कार्य प्रकाश संश्लेषण, वाष्पोत्सर्जन तथा श्वसन है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 11.
फैबेसी तथा सोलेनेसी कुल के आर्थिक महत्व के कुछ पौधों तथा उनके आर्थिक महत्व को लिखिए।
उत्तर:
फैबेसी कुल का महत्व –

  • सोयाबीन (Glycine soja) इससे सोया मिल्क प्राप्त किया जाता है।
  • मटर (Pisum sativum) – दाल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • मूँगफली (Arachis hypogea ) – इससे वनस्पति घी बनाया जाता है।

सोलेनेसी कुल का महत्व –

  • एट्रोपा (Atropa belladona) से एट्रोपीन नामक औषधि प्राप्त होती
  • तम्बाकू (Nicotiana tabacum) से निकोटिन प्राप्त होती है।
  • बैंगन (Solanum melongina) सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 12.
जड़ तथा तने में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
जड़ तथा तने में अन्तर (Differences between Root and Stem)

(Root)(Stem)
मूलांकुर (radicle) से विकसित होती है।प्रांकुर (plumule) से विकसित होती है।
धनात्मक गुरुत्वानुवर्ती, तथा ऋणात्मक प्रकाशनुवर्ती होती है।ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्ती तथा धनात्मक प्रकाशानुवर्ती होता है।
इस पर पर्व एवं पर्वसन्धियाँ, पत्तियाँ आदि नहीं पाये जाते हैं।पर्व एवं पर्वसन्धियाँ, पत्तियाँ, फल, पुष्प पाए जाते हैं।
एककोशिकीय मूल रोम पाये जाते हैं।बहुकोशिकीय रोम पाये जाते हैं।
मूलगोप उपस्थित होती है।मूलगोप उपस्थित नहीं होती है।
प्रकाश संश्लेषण नहीं करती।कुछ कोमल तने प्रकाश संश्लेषण करते हैं।

प्रश्न 13.
सरल तथा संयुक्त पत्ती में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
सरल एवं संयुक्त पत्ती में अन्तर (Differences between Simple and Compound Leaf)

सरल प्ती (Simple Leaf)संयुक्त पती (Compound Leaf)
सम्पूर्ण पर्णफलक एक ही होता है ।फलक छोटे-छोटे भागों में विभाजित होकर पर्णक (leaflet) बनाता है।
एक से अधिक सतहों में व्यवस्थित होती हैं।सारे पत्रक एक सतह पर विकसित होते हैं।
पत्तियाँ अम्राभिसारी क्रम में निकलती हैं।पत्ती के सभी पत्रकों का विकास समकालीन होता है।
पत्ती के आधार पर अनुपर्ण होते हैं।पत्रकों के आधार पर अनुपर्ण नहीं होते हैं। वे संयुक्त पत्ती के आधार पर स्थिर होते हैं।
सरल पत्ती के आधार में कलिका होती है।एकक पत्रक के कक्षक में कलिका नहीं होती बल्कि सम्पूर्ण संयुक्त पत्ती के कक्ष में होती है।

प्रश्न 14.
फलों का वर्गीकरण करते हुए विभिन्न प्रकार के फलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 3

प्रश्न 15.
मुण्डक तथा पुष्पछत्र पुष्पक्रमों में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मुण्डक और पुष्प छत्र पुष्पक्रमों में अन्तर (Differences between Capitulum and Umbel inflorescence):

मुण्डक (Capitulum)पुप्षुत्र (Umbel)
यह एक असीमाक्षी (cymose) प्रकार का पुष्पक्रम है जिसमें मातृ अक्ष या पुष्पावली वृन्त प्रायः चपटा होता है।यह एक असीमाक्षी (cymose) प्रकार का पुष्पक्रम है जिसमें पुष्पाक्ष छोटा या संघनित होता है।
इसमें छोटे-छोटे तथा अवृन्त पुष्पक चपटे पुष्पाक्ष पर लगे रहते हैं।पुष्प सवृन्त तथा पुष्पवृन्त लगभग समान लम्बाई के होते हैं।
अनेक सहपत्र मिलकर आशय को बाहर से घेरे होते हैं इनको सहपत्र चक्र कहते हैं।मातु अक्ष पर अनेक सहपत्र चक्र में लगे प्रतीत होते हैं।
पुष्प प्राय: दो प्रकार के होते हैं-रश्मि पुष्पक (ray flarets) तथा विम्ब पुष्पक (dise florete)।सभी पुष्प एक जैसे होते हैं।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 16.
अष्ठिफल तथा पेपो में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अस्फिल तथा पेपों में अन्तर (Differences between Drupe and Pepo)

अष्ठिफल (Drupe)पेपो (Pepo)
यह बहुअण्डपी, संयुक्त एवं ऊर्ध्ववर्ती अण्डाशय से विकसित होता है।यह द्विअण्डपी संयुक्त एवं अधोवर्ती अण्डाशय से विकसित होता है।
यह प्राय: एककोष्ठी तथा एकबीजी होता है।यह प्राय: एककोष्ठी तथा बहुबीजी होता है।
बाह्य फलभित्ति छिलका, मध्य फलभित्ति प्रायः माँसल या रेशेशदार, किन्तु अन्तःफलभित्ति काष्ठीय या कठोर होती है।बाह्य फलभित्ति छिलका बनाती है। मध्य तथा अन्त: फलभित्ति माँसल व सरस होती है।
जैसे-आम, बेर आदि।जैसे-लौकी, खीरा आदि।

प्रश्न 17.
ड्रप तथा बैरी में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अपिठफल तथा बैरी में अन्तर (Differences between Drupe and Berry)

अज्ठिल (Drupe)बैरी (Berry)
यह बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ध्ववर्ती अण्डाशय से विकसित होता है।यह बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊध्ध्ववर्ती या अधोवर्ती अण्डाशय से विकसित होता है।
फल प्राय: एककोष्ठीय तथा एकबीजी होते हैं।फल एककोष्ठी या बहुकोष्ठी तथा प्राय: बहुबीजी होता है।
बाह्य फलभित्ति छिलका, मध्य फलभित्ति गूदेदार (या रेशेदार) तथा अन्त फलभित्ति कठोर या काष्ठीय होती है।बाह़ फलभिति छिलका बनाती है। मध्य तथा अन्तक्फलित्ति माँसल होती है ।अन्त.फलभित्ति झिल्लीनुमा भी हो सकती है।
उदाहरण-आम तथा बेर।उदाहरण-टमाटर, अमरूद, केला आदि।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 18.
बीजों के अंकुरण कितने प्रकार के होते हैं ? समझाइए ।
उत्तर:
बीजों का अंकुरण (Germination of Seeds) – उचित ताप, नमी एवं ऑक्सीजन की उपस्थिति तथा प्रकाश की अनुपस्थिति में बीज अंकुरण करके नवोद्भिद् (seedling) का निर्माण करते हैं जिससे पादप बनता है। बीजों का अंकुरण तीन प्रकार का होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 4
चित्र – सेम में उपरिभूमिक अंकुरण चने में अधोभूमिक अंकुरण
(i) उपरिभूमिक (Epigeal)-sइसमें बीजपत्राधार (hypocotyl) में वृद्धि के कारण बीजपत्र भूमि के ऊपर आ जाते हैं। जैसे- अरण्डी, सेम आदि ।

(ii) अधोभूमिक (Hypogeal) इसमें बीजपत्र अंकुरण के समय भूमि के अन्दर ही रहते हैं। इसमें एपीकोटाइल (epicotyl ) की वृद्धि अधिक होने के कारण प्रांकुर भूमि से बाहर आते हैं जैसे-चना, मटर आदि ।

(iii) सजीव प्रजता (Vivipary) – इसमें बीजों का अंकुरण फल के अन्दर तथा पौधे पर लगी हुई स्थिति में ही हो जाता है। ऐसा लवणोद्भिदों में देखने को मिलता है; जैसे-राइजोफोरा में शिशुपौधा फल से विलग होकर भूमि में गिरकर नये पौधे का निर्माण करता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 5

प्रश्न 19.
मुण्डक अथवा शीर्ष पुष्पक्रम का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुण्डक अथवा शीर्ष (Capitulum or head ) – इसमें मुख्य वृन्त चपटा उत्तल या अवतल डिस्क के आकार का होता है। इसकी ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे अवृन्त पुष्प तथा पुष्पक (florets) लगे होते हैं। युवा पुष्प केन्द्र की ओर तथा पुराने पुष्प परिधि की ओर स्थित होते. हैं। सम्पूर्ण पुष्पक्रम सहपत्र चक्र के एक या एक से अधिक चक्रों से घिरा रहता है। प्रत्येक पुष्प के आधार पर भी सहपत्रों (Bracts) की उपस्थिति सम्भव। है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 6
पुष्पक दो प्रकार के होते हैं नलिकाकार तथा जीभिकाकार। इसमें जिव्हाकार रश्मिपुष्पक परिधि की ओर तथा नलिकाकार बिम्ब पुष्पक केन्द्र की ओर स्थित होते हैं। उदाहरण- गेंदा, सूर्यमुखी, एस्टर आदि।

प्रश्न 20.
पर्णाभ वृन्त तथा पर्णाभ में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
पर्णाभ वृन्त तथा पर्णाभपर्व में अन्तर (Differences between phylloclade and Cladode)

पर्णाभ वृन्तपर्णाभपर्व
यह तने का रूपान्तरण है।यह वृन्त का रूपान्तर है जिसमें प्राक्ष हो भी सकता है और नहीं भी।
वृद्धि अनिश्चित होती है।वृद्धि निश्चित होती है।
पर्वसन्धि तथा पर्व भिन्नित रहते हैं।ये रचनाएँ अनुपस्थित होती हैं।
पर्णाभ वृन्तों पर पत्तियाँ, शाखाएँ, पुष्प तथा फल लगे होते हैं।ये रचनाएँ अनुपस्थित ह़ोती हैं।
यह पत्ती के कक्ष से विकसित होता है ।यह कक्षस्थ रचना नहीं है।
कक्षस्थ कलिका अनुपस्थित होती है जबकि इसका विकास कक्षस्थ कलिका द्वारा होता है।कक्षस्थ कलिका उपस्थित होती है।
इनकी दिशा उर्ध्व या क्षैतिज होती है।इनकी वृद्धि दिशा उर्ध्वाधर होती है।
ये जल, भोजन, श्लेष्म तथा टेटेक्स संग्रहित करते हैं।इनमें संमहण नहीं होता।
कायिक गुणन में सहायक है।इस प्रकार का कार्य नहीं होता।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी

प्रश्न 21.
कुम्भीरूपी तथा तर्कुरूपी जड़ में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
कुम्भीरूप तथा तर्करूप में अन्तर
(Differences between Napiform and Fusiform Roots)

कुम्भीरूप (Napiform)तर्करूप (Fusiform)
यह लट्टू के आकार का दिखता है।इसका आकार तर्कु के समान है।
शीर्ष अचानक पतला हो जाता है।शीर्ष क्रमानुसार पतला होता है।
आधारीय भाग सबसे मोटा होता है।मध्य भाग सबसे मोटा होता है.
संमाहक जड़ का आधे से अधिक भाग बीजपत्राधार से बना होता है।बीजपत्राधार द्वारा संग्राहक जड़ का आधे से कम बाग बनता है।
शलगम में मूसला जड़ पतली किन्तु चुकन्दर में थोड़ी मोटी होती है।मूसला जड़ संम्राहक जड़ का भाग है।
शीर्ष भाग पर पतली धागे सदृश रचनाएँ पायी जाती हैं।पतली द्वितीयक जड़ें निकलती हैं

प्रश्न 22.
पत्र प्रतान तथा स्तम्भ प्रतान में अन्तर लिखिए। पत्र प्रतान तथा स्तम्भ प्रतान में अन्तर
उत्तर:

पत्र प्रतान (Leaf Tendril)संष्य प्रतान (Stem Tendril)
ये प्राय: अशाखित होते हैं।ये शाखित या अशाखित होते हैं।
ये प्राय: हरे होते हैं।ये हरे या भूरे होते हैं।
शल्क पत्र अनुपस्थित होते हैं।शाखाओं के क्षेत्र में शल्क पत्र होते हैं।
कलिकाएँ अनुपस्थित होती हैं।शल्क पत्रों के कक्ष में कक्षस्थ कलिका होती हैं।
सम्पूर्ण पत्ती या पत्ती के किसी भाग से प्रतान बनते हैं।तने की शाखा या कलिका द्वारा प्रतान विकसित होते हैं।

(E) निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पत्तियाँ कितने प्रकार की होती हैं ? संयुक्त पत्ती के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पर्ण के प्रकार (Types of Leaf) – पर्ण दो प्रकार की होती है – सरल (simple) व संयुक्त पर्ण (compaund leaf)।
(1) सरल पर्ण (Simple Leaf) जब पत्ती की पर्ण फलक (lamina) अछिन्न होती है या कटी हुई लेकिन कटाव मध्यशिरा तक नहीं पहुँच पाता तरह की पर्ण को सरल पर्ण या सरल पत्ती कहते हैं। उदाहरण – पीपल की पत्ती के पर्णफलक अछिन्न कोर वाला होता है अर्थात् पर्णफलक में कोई कटाव नहीं होता। मूली व पपीते की पत्तियों के कई कटाव (incisions) पाये जाते हैं पर यह कटाव मध्यशिरा या पर्णवृन्त तक नहीं पहुँच पाते हैं। अतः पर्णफलक (Lamina) अविभाजित होता है व इसे सरल पर्ण कहते हैं।

(2) संयुक्त पर्ण (Compound Leaf) – इस तरह की पत्तियों में पर्णफलक में कटाव मध्य शिरा या पर्णवृन्त तक पहुँच जाते हैं व पर्णफलक कई खण्डों या भागों में बंट जाता है व प्रत्येक खण्ड पर्णफलक का भाग होता है व उसी के समान दिखाई देता है। अतः उसे पर्णक (leaflet) कहते हैं व पर्णकोयुक्त पसी को संयुक्त पर्ण (compound leaf) कहते हैं। संयुक्त पर्ण दो प्रकार के होते हैं –

(i) पिच्छाकार संयुक्त पर्ण (Pinnate Compound Leaf) इस प्रकार के संयुक्त पर्ण में पत्ती की मध्यशिरा को पिच्छाक्ष (rachis) कहते हैं व पिच्छाक्ष (rachis) के दोनों ओर पार्श्व में कई पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरण- इमली, गुलाब, नीम आदि।

यह निम्न प्रकार की होती है –
(अ) एकपिच्छकी संयुक्त पर्ण (Uniptnnate compound leaf)-इसमें पर्णफलक एक ही बार विभाजित होता है व पिच्छाक्ष (rachis) अविभाजित होता है व पर्णक दोनों ओर पार्श्व में लगे रहते हैं। अगर पर्णक सम संख्या में होते हैं तो उसे समपिच्छकी (उदाहरण— अमलतास) और जब पर्णकों की संख्या विषम होती है तो पत्ती को विषमपिच्छकी कहते हैं। उदाहरण – गुलाब।

(ब) द्विपिच्छकी संयुक्त पर्ण (Bipinnate compound leaf) इस तरह की संयुक्त पर्ण में पर्णफलक दो बार विभाजित होता है अर्थात् पर्णक (leaflet) जो पहले पिच्छाक्ष (rachis) पर लगते हैं वह अपनी मध्यशिरा की ओर कटावों द्वारा द्वितीयक पर्णकों में बँट जाता है। ऐसी संयुक्त पत्ती को द्विपिच्छकी कहते हैं। उदाहरण-बबूल और गुलमोह।

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(स) त्रिपिच्छकी संयुक्त पर्ण (Tripinnate compound leaf) – इसमें द्विपिच्छकी पर्ण के फलकों का कटान अपनी मध्यशिरा की ओर हो जाता है व प्रत्येक द्वितीयक पर्णक कई तृतीय (tertiary) पर्णकों में बंट जाता है। पर्णफलक की मध्यशिरा या पिच्छाक्ष (rachis) प्राथमिक अक्ष ( main axis) बनाती है व इस पर द्वितीयक अक्ष लगे रहते हैं व इस पर तृतीयक अक्ष लगे रहते हैं व इसके दोनों ओर पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरण- शहजन (Moringa) ।
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(द) बहुपिच्छकी संयुक्त पर्ण ( Multipinnate compound leaf) – पर्णफलक का कटान क्रमशः तीन से अधिक बार हो जाता है व पर्णफलक अनेक पर्णकों (leaflets) में बँट जाता है। उदाहरण- धनिया, गाजर, कॉसमोस आदि।

(य) हस्ताकार संयुक्त पर्ण (Palmate compound leaf) इस तरह की संयुक्त पर्ण में पर्णफलक के कटान पर्णवृन्त तक पहुँच जाते हैं व पर्णफलक कई पर्णकों (leaflets) में विभक्त हो जाता है व पर्णक पर्णवृन्त (petiole ) के अगले सिरे तक लगे रहते हैं। इसे हस्ताकार संयुक्त पर्व कहते हैं क्योंकि इनका -आकार हथेली की अंगुलियों की तरह होता है।

इस पर्ण में पर्णकों की संख्या के आधार पर निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है –
(i) एक पर्णकी (Unifoliate) – इसमें पर्णवृन्त के अगले सिरे से केवल एक ही पर्णक संचित रहता है। उदाहरण- नींबू नारंगी आदि।

(ii) द्विपर्णकी (Bifoliate) – इसमें दो पर्णक पर्णवृन्त क अगले सिरे से जुड़े रहते हैं। उदाहरण-हार्डविकिया।

(iii) त्रिपर्णकी (Trifoliate) – इस प्रकार के हस्ताकार संयुक्त पर्ण में पर्णवृन्त पर तीन पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरणं—बेलपत्र, खट्टी, बूटी।

(iv) चतुपर्णकी (Quadrifoliate) – इस प्रकार के हस्ताकार संयुक्त पर्ण में पर्णवृन्त के अगले सिरे पर चार पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरण- मार्सिलिया । अगले सिरे पर चार से अधिक पर्णक लगे रहते हैं। उदाहरण- बॉम्बेक्स, क्लिोम आदि।

(v) बहुपर्णकी ( Multifoliate) – इसमें पर्णवृन्त के सरल तथा संयुक्त पत्ती में अन्तर –
(Differences between Simple and Compound Leaf)

सरल प्ती (Simple Leaf)संयुक्त फ्ती (Compound Leaf)
सरल पत्ती में एक ही पर्णक (leaflet) होता है जिस पर शिराएँ फैली रहती हैं।पत्ती का किनारा दो या दो से अधिक पर्णकों (leaflets) में बँटा होता है ।
सरल पत्तियाँ एक से अधिक सतहों में व्यवस्थित होती हैं।संयुक्त पत्तियाँ में सभी पत्रक एक सतह पर विकसित होते हैं।
पत्तियों का विकास अप्राभिसारी क्रम में होता है।संयुक्त पत्ती के सभी पत्रकों का विकास समकालीन होता है।
पत्ती के आधार पर अनुपर्ण (stipules) हो सकते हैं।पत्रकों के आधार पर अनुपर्ण (stipules) नहीं होते हैं। परन्तु वे संयुक्त पत्ती के आधार पर स्थित होते हैं.
पत्ती के कक्ष में कलिका होती है।एकक पत्र के कक्ष में कलिका नहीं होती है बल्कि सम्पूर्ण पत्ती के कक्ष में होती है।
उदाहरण-पीपल, बरगद, गुड़हल, बेंगन।उदाहरण-नीबू, गुलाब, बबूल, धनियाँ।

प्रश्न 2.
शिराविन्यास किसे कहते हैं ? पत्तियों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के शिराविन्यास का सचित्र वर्णन कीजिए। इनका महत्व बताइये।
उत्तर:
शिराविन्यास (Venation) – पर्णफलक में मध्यशिरा, शिराओं व शिरिकाओं (midrib, veins and veinlets) का एक जाल बन जाता है। शिरां व शिरिकाओं से बने इस जाल को शिराविन्यास (venation) कहते हैं।

शिराविन्यास मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
(अ) जालिकारूपी शिराविन्यास (Reticulate venation)
(ब) समान्तर शिराविन्यास (Parallel venation)

(अ) जालिका रूपी शिराविन्यास (Reticulate venation ) – इस प्रकार के शिराविन्यास में शिराएँ कई बार शाखित होकर अनेक शिरिकाएँ बनाती हैं। यह पर्णफलक में विभिन्न दिशाओं में फैली रहती है। यह जालिकारूपी शिराविन्यास अधिकतर द्विबीजपत्री (dicotyledons) पौधों में पाया जाता है। किन्तु ब्रायोफिल्म में समान्तर शिराविन्यास मिलता है।
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जालिकारूपी शिराविन्यास मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
1. एकशिरीय या पिच्छाकार,
2. बहुशिरीय या हस्ताकार।

1. एकशिरीय या पिच्चाकार शिराविन्यास (Pinnate reticulate venation ) – इस प्रकार के शिराविन्यास में पर्णफलक के मध्य शिरा से कई पार्श्व शिराएँ निकलकती हैं जो फलक कोर (Lmina margin) व फलक शिखाम की ओर फैली रहती हैं व पूरे फलक में जाल बन जाता है। इसे पिच्छाकार शिराविन्यास (pinnate venation) कहते हैं। इसमें मध्यशिरा से पार्श्व शिराएँ उसी प्रकार निकलती हैं जैसे चिड़ियाँ के पर के मध्य कठोर भाग में असंख्य कोमल रोम निकले रहते हैं। उदाहरण-आम, अमरूद, पीपल, जामुन आदि।

2. बहुशिरीय या हस्ताकार जालिकारूपी शिराविन्यास (Palmate reticulate venation):
इस शिराविन्यास में पर्णवृन्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं। कक्षीय कालिका जो क्रमशः फलक कोर तथा फलक शिखाम तक चली जाती हैं। यह दो प्रकार का होता है – (Auxillary bud)

(i) बहुशिरीय अभिसारी (Multicostate convergent or polmale venation ) – पूर्णवृत्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं। पर्णफलक के आधार भाग में यह एक-दूसरे के निकट होती है और फलक के मध्य भाग में एक-दूसरे से दूर हो जाती हैं व फलक के शीर्ष भाग में पुनः एक-दूसरे के निकट हो जाती है। इस क्रम को अभिसारी कहते हैं। उदाहरण-कपूर, दाल चीनी, तेजपात बेर आदि।

(ii) बहुशिरीय अपसारी या हस्ताकार (Multicastate divergent ) – पर्णवृन्त के अगले सिरे पर प्रमुख शिराएँ, एक-दूसरे के निकट होती हैं लेकिन जैसे-जैसे यह फलक कोर तथा फलक शिखाम (apex) की ओर बढ़ती जाती है, यह एक-दूसरे से क्रमशः दूर होती चली जाती है। इस क्रम को अपसारी (divergent) कहते हैं। एकबीजपत्री पौधे जैसे कि स्माइलेक्स, डाइओस्कोरिया आदि में अपवाद के रूप में जालिका रूपी शिराविन्यास (reticulatevenation) पाया जाता है।

(ब) समान्तर शिराविन्यास (Parallel Venation) – इस प्रकार के शिराविन्यास में मध्यशिरा या पर्णवृन्त के अगले सिरे से, पर्णफलक (lamina) में कई (divergent) कहत है। शिराएँ एक-दूसरे के लगभग समान्तर फैली रहती हैं। समान्तर शिराविन्यास (venation) अधिकतर एकबीजपत्री पौधों (monocotyledons) में मिलता है। कुछ एकबीजपत्री पौधे जैसे कि स्माइलेक्स, डाइओस्कोरिया आदि में अपवाद के रूप में जालिका रूपी शिराविन्यास (reticulate venation) पाया जाता है।

यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
1. एकशिरीय या पिच्छाकार समान्तर शिराविन्यास (Unicostate parallel venation)-पर्णफलक में एक मध्यशिरा होती है। इस मध्यशिरा से कई पार्श्व शिराएँ एक-दूसरे के समान्तर निकलती हैं जो क्रमशः फलक कोर (leaf margin) और फलक शिखाग्र तक चली जाती है। यह पार्श्व शिराएँ शिरिकाओं में शाखित नहीं होती है अतः शिरिकाओं का जाल नहीं बनता है। उदाहरण-केना, केला, अदरक व हल्दी।
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2. बहुशिरीय समान्तर शिराविन्यासपर्णवृन्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं जो फलक-कोर (Leaf margin) था फलक शिखाम तक चली जाती है। यह दो प्रकार का होता है।

(i) बहुशिरीय अपसारी या हसतकारी अपसारी (Muticostate divergent) पर्णवृन्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं जो फलक कोर तथा फलक शिखाप्र की ओर अपसारित होती जाती हैं। उदाहरण-ताड़, खजूर, नारियल।
(ii) बहुशिरीय अभ्सिरी (Muticostate convergent)-पर्णवृन्त के अगले सिरे से कई प्रमुख शिराएँ निकलती हैं जो पर्णफलक के समान्तर वक्रित रेखाओं के समान फैली रहती हैं और फलक के शीर्ष भाग में एक-दूसरे के निकट आ जाती हैं। उदकरणण-धान, गेहूँ, गन्ना, बाँस व घास आदि।

प्रश्न 3.
जड़ के सामान्य कार्य क्या हैं? जड़ों में पाये जाने वाले विशेष प्रकार के जैविक कार्यों को करने के लिए रूपान्तरणों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मूल के वृद्धि क्षेत्र (Growing Regions of Root) – मूल या जड़ के अन्तिम छोर से कुछ मिमी. से लेकर कुछ सेमी. तक का भाग वृद्धिशील होता है व इसे मूल या जड़ का वृद्धि प्रदेश (growing Region) कहते हैं। मूल का यह भाग मूलगोप (root cap) से ढका रहता है जो टोपीनुमा रचना होती है। यह (मूलगोप), मूल के शीर्ष (root apex ) भाग की भूमि में वृद्धि करते समय नष्ट होने से रक्षा करता है।

मूल के वृद्धि प्रदेश को तीन भागों में विभक्त किया जाता है। यह तीन भाग निम्नलिखित होते हैं –
(i) विभज्योतकी क्षेत्र (Meristematic region)
(ii) दीर्घीकरण क्षेत्र (Region of elongation)
(iii) परिपक्वन क्षेत्र ( Region of maturation )

2. विभज्योतकी क्षेत्र (Meristematic Region ) – यह क्षेत्र मूल के सिरे से ऊपर की ओर एक मिलीमीटर या केवल कुछ ही मिलीमीटर तक होता है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग मूलगोप (root cap) से ढका रहता है। इस क्षेत्र की कोशिकाएँ छोटी ओर पतली कोशिकाभित्ति वाली होती हैं व जीवद्रव्य (protaplam) सघन होता है। यह कोशिकाएँ लगातार विभाजन कर कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाती हैं जिससे मूल की वृद्धि होती है।
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3. दीर्घीकरण क्षेत्र (Region of elongation) – यह क्षेत्र, विभज्योतकी (meristematic) क्षेत्र के ऊपर 1-5 मिमी. तक फैला होता है। विभज्योतक (meristem) क्षेत्र में बनी नई कोशिकाएं इस क्षेत्र की लम्बाई में वृद्धि करती हैं। विभज्योतकी तथा दीर्धीकरण क्षेत्रों में होने वाली इन क्रियाओं के कारण मूल लम्बाई में वृद्धि करती है।

4. परिपक्वम क्षेत्र (Region of maturation ) – दीर्भीकरण क्षेत्र के ऊपर परिपक्वन क्षेत्र होता है। यह कुछ मिमी. से कुछ सेमी. तक हो सकता है। इस क्षेत्र में कोशिकाएं अपना पूर्ण आकार प्राप्त कर विभिन्न प्रकार के ऊतकों में विभेदित होने लगती है। यह क्षेत्र बाहर से आसानी से पहचाना जा सकता है क्योंकि इस क्षेत्र में असंख्य मूलरोम (root hairs) होते हैं। मूलरोम (root hairs) जल अवशोषण क्रिया के मुख्य अंग होते हैं। यह भूमि से जल तथा जल में घुले हुए लवणों का अवशोषण (absorprion) करते हैं। यह मूल के चारों ओर लगभग 2 सेमी. क्षेत्र में मूलरोमों (root hairs) पर चिपके रहते हैं।
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मूल के रूपान्तरण (Modifications of Roots ):
मूसला जड़ के रूपान्तरण (Modificaitons of tap roots) पादपों के रूप तथा शरीर में होने वाले वे विशेष परिवर्तन जिनके द्वारा वे विशिष्ट कार्यों का सम्पादन करते हैं या स्वयं को पर्यावरण के प्रति अनुकूल बनाते हैं, रूपान्तरण कहलाते हैं। मुसला जड़ें (Top roots) भोजन संग्रहण के लिए, जीवाणु सहजीवन (symbiosis) के लिए, धारी तनों को सहारा प्रदान करने के लिए या लवणीय भूमि में गैसों के आदान-प्रदान के लिए विभिन्न रूपों में रूपान्तरित होती हैं।

2. प्रथमय जड़ें (Nodulated or Tuberculated Roots ) – लेग्यूमिनोसी कुल के पौधों, जैसे-चना, मटर, सोयाबीन, अरहर आदि की मूसला जड़ों पर गोल या अनियमित संरचनाएँ बन जाती हैं जिन्हें मूल गुलिकाएँ (root nodules) कहते हैं। इन मन्थियों में राइजोबियम (Rhizobium) नामक सहजीवी जीवाणु पाये जाते हैं। ये जीवाणु मृदा में उपस्थित पुश्ता नाइट्रोजन को इसके यौगिकों में परिवर्तित कर देते हैं। इन नाइट्रोजनी यौगिकों को पौधे की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। ऐसी जड़ें ग्रन्थिमय मूल कहलाती हैं।
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3. पुस्ता जड़ें (Buttress roots) – ये क्षैतिज जड़ें हैं जो तने के आधार पर से विकसित होती हैं। ये पौधे को अतिरिक्त सहारा प्रदान करती हैं। इन्हें प्लैंक जड़ें (plank roots) भी कहा जाता है। कभी-कभी ये पार्श्व से दबी होती हैं। जैसे-बरगद, पीपल, बादाम।
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4. श्वसन मूलें (Respiratory roots or pneumatophores) – इस प्रकार की जड़ें दलदली या अत्यधिक लवणीय मृदा में उगने वाले कुछ पौधों जैसे— राइजोफोरा, सोनेरेशिया, एवीसीनिया, हेरिटिएरा आदि में पायी जाती हैं। इन पौधों को मैंगूव (mangrove) भी कहते हैं। ऐसी भूमि में पौधों की जड़ों को श्वसन के लिए वायु उपलब्ध नहीं होती हैं। अतः मैंप्रूव पादपों की जड़ों से कुछ जड़ें वायवीय होकर भूमि की सतह से ऊपर आ जाती हैं। इन जड़ों श्वसन मूल (pneumetophores) कहते हैं। इन पर सूक्ष्म छिद्र पाये जाते हैं, जो वातावरण से गैसों का आदान-प्रदान करते हैं।
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5. मूसला जनन मूल (Reproductive tap roots ) – कुछ पौधों में मूसला जड़ या इनकी शाखाओं पर अपस्थानिक कलिकाएँ उत्पन्न होती हैं जिमसे नये पौधे का निर्माण होता है। जैसे-शीशम।
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अपस्थानिक जड़ों के रूपान्तरण (Modifications of Adventitious roots):
मूसला जड़ों के समान ही अपस्थानिक जड़ों के भी रूपान्तरण पाये जाते हैं। ये रूपान्तरण, संचयन, आरोहण, सहारे अथवा जनन के लिए होते हैं। अपस्थानिक जड़ों के रूपान्तरण निम्न प्रकार हैं –
1. कन्द गुच्छ (Tuberous or fasciculated) – जड़ों में भोजन संचित होने पर यह फूल जाती है व गुच्छे बना लेती है। उदाहरण-शकरकन्द (Sweet potato) व एस्पेरागस (Asparagus) आदि।

2. रेशेदार (Fibrous ) – जड़ें बहुत पतली व तन्तु के समान होती हैं। जैसे-गेहूँ।

3. ग्रन्थिमय (Nodulated)- इनमें जड़ों के सिरे फूल जाते हैं। उदाहरण-मेलीलोटस ( Melilotus), मटर।

4. मणिरूपाकार (Beaded or Moniliform )-जब जड़ बीच-बीच में से निश्चित अन्तर के पश्चात् मोती के समान फूलती है, उसे मणिरूपाकार कहते हैं। उदाहरण-वाइटिस (Vitius)।

5. जटा मूल (Stilt roots)-जब पर्व सन्धियों (Nodes) पर से जड़ें निकलती हैं और भूमि की ओर बढ़ती हैं व भूमि में घुसकर रस्सीनुमा संरचना बना लेती हैं उसे जटा मूल कहते हैं। जैसे-मक्का (Zea mays)।

6. उपरिरोही जड़ें (Epiphytic roots)-अधिपादपों में वायवीय जड़ें निकलती हैं। इन जड़ों में वेलामन ( velamen) ऊतक पाया जाता है। यह ऊतक हवा से नमी सोख लेता है, जैसे- आर्किड की जड़ें (Orchid roots)

7. पर्णिल जड़ें (Foliar roots )-जब पत्तियों से जड़ें निकलती हैं तो पर्णिल जड़ें कहलाती हैं। जैसे-पत्थर चटा (Bryo- phylumn)।
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8. परजीवी जड़ें (Sucking or haustorial roots ) – परजीवी पौधों में जड़ें पोषक तने में घुसकर भोजन का चूषण करती हैं जैसे— डेन्ड्रोप्थी (Dendrophthoe)

9. स्तम्भ मूल (Prop roots) – जब जड़ें शाखाओं से निकलती हैं और भूमि में चली जाती हैं। पेड़ को स्तम्भ की तरह दृढ़ता प्रदान करती हैं, स्तम्भ मूल कहलाती हैं। उदाहरण- बरगद।

10. आरोही मूल (Climbing roots ) – यह जड़ें पर्व सन्धियों (nodes) पर निकलती हैं और आरोही (climber ) को चढ़ने में मदद करती हैं। उदाहरण – मनीप्लाण्ट, मोन्स्टेरा (Monstera) आदि।

11. वलयाकार (Annulated) – कुछ पौधों की जड़ों में वलयाकार रचनाएँ पायी जाती हैं। जैसे- आर्किड (Orchid)।.

प्रश्न 4.
एक प्रारूपिक जड़ के विभिन्न स्रोतों का संक्षिप्त तथा सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मूल या जड़ ( Root):
मूल या जड़ पौधों का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह सूर्य के प्रकाश से दूर तथा पृथ्वी के गुरुत्व केन्द्र की ओर वृद्धि करता है, अतः मूल को धनात्मक गुरुत्वानुर्वी (positive geotropic) एवं ऋणात्मक प्रकाशानुक्ती (negative phototropic) कहा जाता है। मूल सदैव जल स्रोत की ओर भी वृद्धि करती हैं अतः इन्हें धनात्मक उलानुवर्ती (positive hydrotropic) भी कहा जाता है।

मूल को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है –
“मूल पौधे का वह अंग है जो प्रकाश स्वोत के विपरीत एवं भूमि के गुरुत्व केन्द्र व जल स्रोत की ओर वृद्धि करता है।” मूल की उत्पत्ति बीज में उपस्थित भ्रूण के मूलांकुर (radicle) से होती है। द्विबीजपत्री पादपों (dicotyledons) में मूलांकर (radicle) ही वृद्धि करके मुख्य या प्राथमिक मूल (primary root) बनाता है। एकबीजपत्री पादपों में

2. Fंख्रा या रेशेषार मूल तन्त (Fibrous Root System)एकबीजपत्री (monocot) पौर्धों में मूलांकुर से परिवर्धित प्राथमिक मूल अल्पजीवी होती है और शीच्र नष्ट हो जाती है इसके स्थान पर तने के आधार भाग से अनेक पतली रेशे के समान जड़ें उत्पन्न हो जाती हैं जिसे आकाता या रेशेषार (fibrous root system) मूल तन्त्र कहते हैं। उदाहरण-गेहूँ।
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3. अप्त्थानिक मूल (Adventitious Root) – जब मूल या जड़ मूलांकर से विकसित न छोकर पौषे के किसी अन्य भाग से जैसे-स्तम्भ, शाखा तथा पत्ती से परिवर्धित छोती है तो उसे अपस्थानिक मूल (adventitious root) मूल कहते हैं। उदाहरण-घास तथा बरगद। एकबीजपत्री पौधों में मिलने वाला झकड़ा मूल तन्त्र (fibrous root system) अपस्थानिक मूल तन्त्र (adventitious roots system) होता है। प्याज में चपटे तश्तरी के समान स्तम्भ की निचली सतह से झकड़ा जड़ें निकलती हैं।

भूमि की सतह पर वृद्धि करने वाले उपरिभूस्तारी (runner) तनों और शाखाओं की पर्ष सन्धियों (modes) से भूमिगत अपस्थानिक मूलान्त परिवर्धित छोता है। ऐसा मूलतन्त घास की अनेक जातियों में भी पाया जाता है। बाँस, गन्ना, मक्षा एवं अन्य सीधे खड़े स्तम्म वाले एकबीजपत्रियों में भूमि की निकटवर्ती पर्वसन्धियों (node) से अपस्थानिक जड़ें (advantitious roots) निकलती हैं जो भूमि में प्रवेश करके सामान्य जड़ों की भाँति कार्य करती हैं।

प्रश्न 5.
लिलिएसी कुल का अर्द्धतकनीकी भाषा में वर्णन किसी प्रतिनिधि सदस्य द्वारा कीजिए। इस पौधे का पुष्प चित्र बनाइये तथा पुष्प सूत्र लिखिए। इस कुल का आर्थिक महत्व लिखिए।
उत्तर:
लिलिएसी कुल ( Family Liliaceas):
आवास एवं स्वभाव (Habit and Habitat ) – प्रायः बहुवर्षीय शाक (perinnial herbs) कुछ पौधे झाड़ी जैसे-रसकस (Ruscus), आरोही जैसे – स्माइलेक्स (Smilax) या छोटे वृक्ष; जैसे- यक्का (Yucca) होते हैं।
जड़ तन्त्र (Root System) – प्रायः तन्तुरूप झकड़ा, अपस्थानिक (adventitious) जड़ें।
तना (Stem)-वायवीय (aerial), सीधा या आरोही (climber), पुष्पीय शाखा स्केप (scape) के रूप में शाखामय कभी-कभी जैसे – पर्णाभ पर्व (cladode); जैसे- रसकस, सतावर (Asparagus) या शल्क्रकन्द (Bulb); जैसे-प्याज (Allium cepa) में रूपान्तरित हो जाता है। पत्तियाँ (Leaves) मूलीय (radicle) या स्तम्भीय (cauline), अनमुपर्णी ( exstipulate ), सरल, प्रायः समानान्तर शिराविन्यास। स्माइलेक्स में अनुपर्णी ( stipulate) तथा अनुपर्ण प्रतान (Tendril) में रूपान्तरित होते हैं।

पुष्पक्रम (Inflorescence) – असीमाक्षी या ससीमाक्षी मुण्डक (cymose head); कभी-कभी एकल पुष्प। पुष्प (Flower) प्रायः सहपत्री (bracteate ), सवृन्त (pedicellate ), पूर्ण (complete), उभयलिंगी (hermaphrodite ), प्रायः त्रिज्यासममित (actinomorphic), जायांगाधर (hypogynous), त्रितयी (trimerous।

परिदलपुंज (Perianth) – परिदल – पत्र (tepals) 6, तीन-तीन के दो चक्रों में, पृथक् या संयुक्त परिदली (poly or gamophyllous) दोनों चक्र एक-दूसरे से एकान्तरित, कोरस्पर्शी या कोरछादी ( valvate or imbricate), दलाभ ( petalloid), बाह्यदलाभ ( sepalloid) एक-दूसरे से भिन्नित अथवा अभिन्नित। पुमंग (Androecium)-पुंकेसर 6, तीन-तीन के दो चक्रों में, पृथक् पुंकेसर (polyandrous ), परिदललग्न (epiphyllous ), आधारलग्न या मुक्तदोली (basifixed or versatile), परागकोष द्विकोष्ठी (dithecous ), अन्तर्मुखी (introrse), अनुलम्ब स्फुटन (dehiscence longitudinal), पुतन्तु आधार पर चपटे तथा फैले हुए।

जायांग (Gynoecium) – त्रिअण्डपी (tricarpellary), युक्ताण्डपी ( syncarpous ), ऊर्ध्ववर्ती (superior), त्रिकोष्ठीय (trilocular) अण्डाशय, बीजाण्डन्यास (placentation) स्तम्भीय (axile), वर्तिकाम त्रिशाखित (trifid)। फल (Fruit) – बेरी (berry) या सम्पुट (capsule)।
पुष्प सूत्र (Floral formula) –
Br, ⊕, P(3 + 3 ) Or 3 +3 A9 +3 G(3)
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आर्थिक महत्त्व के पौधे (Plants of Economic Importance):
लिलिएसी कुल के कुछ पौधे अत्यन्त उपयोगी हैं। कुछ पौधों के नाम निम्नलिखित हैं-
(1) भोजन के लिए (For Food)
(i) प्याज (Onion = Allium cepa)
(ii) लहसुन (Garlic = Allium sativum)

(2) सजावटी पौधे (Ornamental Plants)
(iii) लिली (Lily = Lilium bulbiferum)
(iv) यक्का (Dragon plant = Yucca aloifolia)।

प्रश्न 6.
सरल या एकल फलों का संक्षिप्त विवरण कीजिए।
उत्तर:
फलों के प्रकार (Types of Fruits) – साधारणतयाः फल तीन प्रकार के होते हैं –
I. एकल फल (Simple Fruits)
II. पुंजफल (Aggregate Fruits)
III. संमथित फल (Composite Fruits) ।

I. सरस या एकल फल (Simple Fruits) – ये फल एकअण्डपी अथवा बहुअण्डपी युक्ताण्डपी अण्डाशय (unicarpalary or multicarpalary syncarpous ovary) से विकसित होते हैं। अण्डाशय मध्यवर्ती या अधोवर्ती (inferior) होता है। ये फल दो प्रकार के होते है-
(अ) शुष्क फल
(ब) सरस फल।

(अ) शुष्ठ का (Dry fruits)-इसकी फलभित्ति (Pericarp) शुक्क, कठोर, चीमड़, काष्ठीय या श्रिल्लीदार होती है। ये फल तीन प्रकार के होते हैं –
1. स्फोटी
2. अस्फोटी तथा
3. भिदुर फल।

1. स्फोटी फल (Dehiscent Fruit)- ये पकने पर फट जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते है –
(i) फली (Legume or pod) – ये एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय (Monocarpalary superiou ovary) से विकसित होते हैं। परिपक्व फल पकने पर दो सीवनी द्वारा फटता है। जैसे-सेम, मटर आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 18
(ii) फालिकल (Follicle)-इनमें केवल एक सीवनी (suture) द्वारा स्फुटन (dehiscence) होता है। शेष गुण फली के समान होते हैं। जैसे-आक, चम्पा आदि।

(iii) सिलिकुआ (Siliqua) – यह फल द्विअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डाशय (bicapalary, compound superior ovary) से विकसित होता है। आरम्भ में अण्डाशय एककोष्ठी किन्तु बाद में कूट पट (replum) बन जाने से द्विकोष्ठी दिखाई देता है, जैसे-सरसों।

(iv) सिलिक्युला (Silicula)- यह पूर्णत: सिलिक्यूआ के समान होता है। परन्तु यह लम्बाई व चौड़ाई में समान होता है। जैसे-कैपसल्ला।

(v) सम्पुट (Capsule)- ये फल बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डाशय तथा कभी-कभी अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। ये विभिन्न विधियों द्वारा स्फुटित होते हैं। जैसे- कपास, पोस्त, भिण्डी आदि।

2. अस्फोटी या एकीनियल (Indihiscent or Achenial)- ये फल पकने पर फटते नहीं। इनके बीज फल के सड़ने पर ही प्रकीर्णित होते हैं। ये फल निम्न प्रकार के होते हैं-
(i) एकीन (Achene)- ये फल एकाण्डपी, ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलधित्ति बीज चोल से अलग होती है। जैसे-क्लीमेटिस, रेनकुलस आदि।

(ii) कैरिऑफिस (Caryopsis) – ये एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलभित्ति बीजचोल से संगलित होते हैं। जैसे-ोोहँ, मक्का।

(iii) सिप्सेला (Cypsella)-ये द्विअण्डपी, संयुक्त, अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें चिरलग्न रोमगुच्छ पाया जाता है। जैसे-सूर्यमुखी, गैंदा आदि।

(iv) नट (Nut)-यह फल एककोष्ठीय, व एकबीजी होते हैं और द्वि या बहुअण्डपी संयुक्त ऊर्ध्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। जैसे—काजू, लीची, सिंघाड़ा।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 19
3. फिद्र फल (Schizocarpic fruit)- ये बहुवीजी होते हैं, परिपक्व होने पर ये छोटे-छोटे फलाशुकों (mericarp) में टूट जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 20

(i) लोमेट् (Lomentum) – ये फल एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इसमें फलभित्ति संकीर्णित होकर फल को एकबीजी फलाशुकों में बाँट देती है। जैसे-इमली, बबूल आदि।

(ii) क्रीमोकार्प (Cremocarp)- ये फल द्विकोष्ठीय तथा द्विबीजी होते हैं। और द्विअण्डपी अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। जैसे-धनिया, जीरा आदि।

(iii) कासेंससस (Carcerulus)-ये फल कर्श्व द्विअण्डपी खीकेसर से विकसित होते हैं। प्रत्येक अण्डाशय एक फलांशक में बैंट जाता है जैसे तुलसी, साल्विया आदि।

(iv) रेग्मा (Regma)- ये फल बहुअण्डपी खीकेसर से विकसित और पकने पर एकबीजी इकाइयों कोकाई में बैंट जाते हैं। जैसे-अरण्ड में।

(ब) सरस फल (Succulent fruits) – ये फल अफुटन शील होते हैं तथा इनकी फलभित्ति गूदेदार होती है। इन फलों की फलभित्ति तीन भागों- बाह्य फल (epicarp) मध्यफलंभित्ति (mesocarp) तथा अन्त: फलभित्ति (endocarp) में बंटी होती हैं। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
1. अस्ठिफल (Drupe)-ये फल एकाण्डपी या बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डा शप से विकसित होते हैं। इनकी बाह्य फल भित्ति पतली होती है जो छिलका बनाती है।मध्य फलभित्ति गूदेदार या रेशेदार तथा अतः फलभित्ति काष्ठीय कठोर होती हैं। औैसे-आम, नारियल।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 21
2. बेरी (Berry)- ये फल एक या बहुअण्डपी, संयुक्त अण्डाशय से विकसित होते हैं। बाह्म फल भित्ति पतली होती है। बीज मध्यफल भित्ति में धंसे
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 22
होते हैं, अन्तः फलभित्ति झिल्लीनुमा या गूदेदार होती है। जैसे-टमाटर, केला, अमरुद आदि।

3. पेपो (Pepo) – ये फल बहुत कुछ बेरी के समान होते हैं। परन्तु ये भित्तिय बीजाण्डन्यास (parietal placentation) युक्त अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। औसे-खीरा, ककड़ी आदि।

4. पोम (Pome)- यह कूट फल (False fruit) है। फल का खाने योग्य भाग माँसल पुस्पासन (thalamus) होता है। यह संयुक्त अधोअण्डाशय (Inferior ovary) के चारों ओर पुस्पासन फैलने से बनता है। औसे-सेब, नाशपाती ।

5. हैस्पीरीडियम (Hesperi- dium)-ये फल बहुअण्डपी, ऊर्ष्व अण्डाशय (superior ovary) से विकसित होते हैं। बाह फलभित्ति चर्मिल व तेल प्रन्थि युक्त, मध्य फलभित्ति रेशेदार व पतली, तथा अत: फलभित्तिनुमा होती है जिससे सरस प्रन्थिल रोम लगे होते हैं जो खाए जाते हैं। औसे-संतरा, नींबू ।

6. बालोस्टा (Balausta)-इन फलों की फलभित्ति कठोर होती है। बीज बीजाण्डासन (placenta) पर अनियमित रूप से लगे रहते हैं। अन्तः फल भिति कठोर व चीमड़ होती हैं। सरस बीज चोलक खाये जाते हैं। जैसे-अनार।

7. ऐम्फीसरका (Amphisarca)-इनकी बाह्य फलभित्ति काष्ठीय (woody) होती है। मध्य तथा अन्त:फलभित्ति तथा बीजाण्डासन (placenta) गूदेदार होता है जो खाया जाता है। औैसे-बेल, कैथ आदि।

II. पुंज फल या समूह फल (Aggregate fruits or Etaerio Fruits) वास्तव में इस प्रकार के फल, फलों के समूह हैं जो बहुअण्डपी पृथक अण्डपी (Multicarpellary appocarpous) अण्डाशय (ovary) से विकसित होते हैं। ये सभी एक साथ पकते हैं इसीलिए इन्हें पुंज फल कहते हैं। ये अनेक लघु फलों से मिलकर बनते हैं। पुंज फल निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. एकीनो का पुंज ( Etaerio of Achenes )-इनमें इकाई फल (fruitlets) एकीन होते हैं। स्ट्रॉबेरी में एकील गूदेदार पुष्पासन (flashy thalamus) पर लगे होते हैं। नारवेलिया, क्लीमेटिस आदि में एकीन में रोमयुक्त (feathery) चिरलग्न (persistent) वर्तिका ( style) होती है
2. फालिकिलों का पुंज (Etaerio of follicles) इनमें लघु इकाई फॉलिकिल होती हैं इसमें दो या अधिक फॉलिकिल जुड़े रहते हैं जैसे—मदार, एकोनाइटम, स्टरक्यूलिया आदि ।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 23
3. बेरी का पुंज (Etaerio of Berries) इनमें लघु इकाई बेरी होती हैं। ये सरस फल आपस में बिना जुड़े पुंजफल बनाते हैं, जैसे कंटीली चम्पा अथवा आपस में जुड़कर एक फल बनाते हैं जैसे शरीफा। शरीफा में एक सामूहिक छिलका बन जाता है।

4. अष्ठिफल का पुंज (Etaerio of Drups) इसमें कुछ लघुफल, डुप (drupe) आपस में मिलकर एक पुंज बनाते हैं। जैसे रसभरी ।

III. संग्रथित फल (Composite or Multiple fruits) संमधित फलों का निर्माण सम्पूर्ण पुष्पक्रम (inflorescence) से होता है। पुष्पक्रम (Inflorescence) के अनेक भाग जैसे- सहपत्र (bracts), पुस्पाक्ष (peduncle) तथा परिदल (tapals) आदि मिलकर फल के भागों में परिवर्तित हो जाते हैं अतः ये कूटफल (false fruits) कहलाते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
1. सोरोसिस (Sorosis)-ये फल मंजरी (catkin), स्थूल मंजरी (spadix) शूकी (spike) आदि पुष्पक्रमों (Inflorescence) से विकसित होते हैं। A जैसे – शहतूत (Mulberry) में वास्तविक फल तो ऐकीन (achene) होती हैं किन्तु इसमें पुष्पक्रम के सभी भाग मिलकर फल को प्रदर्शित करते हैं। कटहल (jack fruit) अनन्नास ( pineap मिलकर छिलका (rind) बनाते हैं जबकि पुष्पक्रम के अन्य भाग सरस एवं मांसल होकर फल के गूदे को प्रदर्शित करते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 24

2. साइकोनस (Syconus)-ये फल हायपैन्थोडियम (hypanthodium) पुष्पक्रम से विकसित होते हैं। इसमें पुष्पक्रम का पुष्पाक्ष ( peduncle) या. पुष्पावलि वृन्त (mother axis) रूपान्तरित होकर एक कप जैसी रचना आशय बना लेता है। आशय (receptacle) परिपक्व होकर मांसल (fleshy) हो जाता है जो फल का खाने योग्य भाग है। आशय के अन्दर असंख्य पुष्पों से अलग-अलग लघु फल बनते हैं, जो एकीन (achene ) होते हैं।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए-
(क) संप्रथिल फल
(ख) पुंज फल।
उत्तर:
II. पुंज फल या समूह फल (Aggregate fruits or Etaerio Fruits) वास्तव में इस प्रकार के फल, फलों के समूह हैं जो बहुअण्डपी पृथक अण्डपी (Multicarpellary appocarpous) अण्डाशय (ovary) से विकसित होते हैं। ये सभी एक साथ पकते हैं इसीलिए इन्हें पुंज फल कहते हैं। ये अनेक लघु फलों से मिलकर बनते हैं। पुंज फल निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. एकीनो का पुंज ( Etaerio of Achenes )-इनमें इकाई फल (fruitlets) एकीन होते हैं। स्ट्रॉबेरी में एकील गूदेदार पुष्पासन (flashy thalamus) पर लगे होते हैं। नारवेलिया, क्लीमेटिस आदि में एकीन में रोमयुक्त (feathery) चिरलग्न (persistent) वर्तिका ( style) होती है
2. फालिकिलों का पुंज (Etaerio of follicles) इनमें लघु इकाई फॉलिकिल होती हैं इसमें दो या अधिक फॉलिकिल जुड़े रहते हैं जैसे—मदार, एकोनाइटम, स्टरक्यूलिया आदि ।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 23
3. बेरी का पुंज (Etaerio of Berries) इनमें लघु इकाई बेरी होती हैं। ये सरस फल आपस में बिना जुड़े पुंजफल बनाते हैं, जैसे कंटीली चम्पा अथवा आपस में जुड़कर एक फल बनाते हैं जैसे शरीफा। शरीफा में एक सामूहिक छिलका बन जाता है।

4. अष्ठिफल का पुंज (Etaerio of Drups) इसमें कुछ लघुफल, डुप (drupe) आपस में मिलकर एक पुंज बनाते हैं। जैसे रसभरी ।

III. संग्रथित फल (Composite or Multiple fruits) संमधित फलों का निर्माण सम्पूर्ण पुष्पक्रम (inflorescence) से होता है। पुष्पक्रम (Inflorescence) के अनेक भाग जैसे- सहपत्र (bracts), पुस्पाक्ष (peduncle) तथा परिदल (tapals) आदि मिलकर फल के भागों में परिवर्तित हो जाते हैं अतः ये कूटफल (false fruits) कहलाते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
1. सोरोसिस (Sorosis)-ये फल मंजरी (catkin), स्थूल मंजरी (spadix) शूकी (spike) आदि पुष्पक्रमों (Inflorescence) से विकसित होते हैं। A जैसे – शहतूत (Mulberry) में वास्तविक फल तो ऐकीन (achene) होती हैं किन्तु इसमें पुष्पक्रम के सभी भाग मिलकर फल को प्रदर्शित करते हैं। कटहल (jack fruit) अनन्नास ( pineap मिलकर छिलका (rind) बनाते हैं जबकि पुष्पक्रम के अन्य भाग सरस एवं मांसल होकर फल के गूदे को प्रदर्शित करते हैं।
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2. साइकोनस (Syconus)-ये फल हायपैन्थोडियम (hypanthodium) पुष्पक्रम से विकसित होते हैं। इसमें पुष्पक्रम का पुष्पाक्ष ( peduncle) या. पुष्पावलि वृन्त (mother axis) रूपान्तरित होकर एक कप जैसी रचना आशय बना लेता है। आशय (receptacle) परिपक्व होकर मांसल (fleshy) हो जाता है जो फल का खाने योग्य भाग है। आशय के अन्दर असंख्य पुष्पों से अलग-अलग लघु फल बनते हैं, जो एकीन (achene ) होते हैं।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में अन्तर लिखिए-
(क) प्रकन्द एवं घनकन्द
(ख) उपरिस्तरी एवं भूस्तारी
(ग) पुंज फल तथा संग्रथित फल।
उत्तर:
तने के रूपान्तरण (Modifications of Stem):
1. अर्धवायवीय रूपान्तरण (Sub-aerial modifications):
(अं) उपरिभूस्तारी (Runner ) – इनका तना कमजोर तथा पतला होता है। यह भूमि की सतह पर फैलकर अनेक शाखाएँ उत्पन्न करता है। इनकी पर्व सन्धियों (nodes) से ऊपर की ओर पत्तियाँ, शाखाएँ व कलिकाएँ (buds) उत्पन्न होती हैं व भूमि की ओर अपस्थानिक जड़ें (advontitious roots) उत्पन्न होती हैं। उदाहरण दूबघास (Cynodon) खट्टी बूटी (Oxalis) आदि।

(ब) भूस्तारी (Stolon ) – इसमें शाखाएँ छोटी एवं तने संघनित होकर सभी दिशाओं में निकलती हैं। इसमें भूमिगत तने की पर्वसन्धि (Node) से कक्षस्थ कलिका (axillary bud) विकसित होकर शाखा बनाती हैं। यह शाखा प्रारम्भ में सीधे ऊपर की ओर वृद्धि करती है परन्तु बाद में झुककर क्षैतिज हो जाती है। इसकी पर्व सन्धियों से कक्षस्य कलिकाएँ तथा अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं उदाहरण – अरबी (Calocacia ), स्ट्रोबेरी आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 29
(स) अन्तः भूस्तारी ( Sucker ) इनमें मुख्य तना भूमि के भीतर रहता है व इनके आधारीय पर्व सन्धियों पर स्थित कक्षस्थ कलिकाएँ वृद्धि करके नये वायवीय भाग का निर्माण करती हैं। प्रारम्भ में यह क्षैतिज वृद्धि करती है, फिर तिरछे होकर भूमि से बाहर आकार वायवीय शाखाओं की भाँति वृद्धि करती है। इनकी पर्व सन्धियों से अपस्तानिक जड़ें निकलकर जमीन में प्रवेश कर जाती हैं। जैसे— पोदीना (Mentha), गुलदाऊदी (Chrysanthemum) आदि।

(द) भूस्तारिका (Offset) – यह जलीय पौधों में पाया जाने वाला उपरिभूस्तारी तरह का रूपान्तरित तना होता है। इसके मुख्य तने से पार्श्व शाखाएँ निकलती हैं जिन पर पर्व सन्धियाँ होती हैं। पर्व सन्धियों से वायवीय पत्तियाँ तथा जलीय अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं। पर्व के रूपान्तरित तना होता है। इसके मुख्य तने से पार्श्व शाखाएँ निकलती हैं जिन पर पर्व सन्धियाँ होती हैं। पर्व सन्धियों से वायवीय पत्तियाँ तथा जलीय अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं। पर्व के टूटने से नये पौधे स्वतन्त्र हो जाते हैं जैसे-जलकुम्भी (Echomnia), पिस्टिया (Pistia ) आदि।

2. भूमिगत रूपान्तरण (Underground modifications):
भूमिगत रूपान्तरण मुख्यतः भोजन संचयन (food storage) या वर्षी प्रजनन (vegetative propagation) के लिए होता है। यह निम्न प्रकार का होता

(अ) तना कन्द (Stem tuber) – यह भूमिगत शाखाओं के अन्तिम शिरों के भोजन संचय के कारण फूलने से बनते हैं। इनका आकार अनियमित होता है। कन्द पर पर्व व पर्व सन्धियाँ (intemnodes and nodes) होती हैं जो अधिक भोजन संचय के कारण स्पष्ट नहीं होती है। इन पर अनेक आँखें (eyes) होती है जिनमें कलिकाएँ तथा शल्क पत्र (scale leave) होते हैं। कलिकाएँ (buds ) वृद्धि करके नये प्ररोह को जन्म देती हैं। उदाहरण-आलू।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 30

(ब) शल्क कन्द (Bulbs ) – यह भूमिगत संघनित प्ररोह (condensed shoot) है। यह शंक्वाकार या गोलाकार होते हैं। इनका तना लेमन्स या डिस्क के आकार का होता है जिस पर अनेक माँसल शल्क पत्र तथा एक शीर्षस्थ कलिका (apical bud) होती है। ह (reduced) तने के नीचे से असंख्य अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं, जैसे- प्याज (Alium), लहसुन (Garlic), लिली (Lily ) आदि।

(स) प्रकन्द (Rhizome ) – यह एक भूमिगत, बहुवर्षीय, मांसल, अनियमित आकार का भूमिगत तना है जो अनुकूल समय में वायवीय प्ररोह (aerial shoot) या पर्ण समूह उत्पन्न करता है व प्रतिकूल मौसम में यह प्रसुप्तावस्था (dormancy) दर्शाता है। इस पर पर्व एवं पर्व सन्धियाँ, शल्क पत्र तथा कक्षस्थ कलिकाएँ (axilary buds) पायी जाती हैं व निचली सतह से अपस्थानिक जड़ें (adventitious roots) निकलती हैं। उदाहरण- अदरक (ginger), केला (banana ), हल्दी (termaric) आदि।

(द) घनकन्द (Corn) – यह लगभग गोलाकार, मोटा फूला हुआ भूमिगत तना है जो जमीन में ऊर्ध्वाधर (Vertical) वृद्धि करता है। यह प्रकन्द का सघनतम रूप माना जाता है। इसके आधार से अनेक अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं तथा शीर्ष पर पर्णयुक्त वायवीय प्ररोह होता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में वायवीय प्ररोह सूख जाता है। इस पर गोलाकार पर्वसन्धियाँ (nodes) होती हैं जिन पर नई कलिकाएँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण- अरबी, क्रोकस (Crocus)

3. वायवीय रूपान्तरण (Aerial Modifications):

(अ) पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade ) – जिन पौधों में तना मांसल पत्ती (Flashy leaf) के रूप में परिवर्तित होकर चपटा, हरा होकर पत्ती की तरह कार्य करता है इस तरह के रूपान्तरित तने को पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade) कहते हैं। इन पौधों में पत्तियाँ सामान्यतः काँटों में परिवर्तित हो जाती हैं। प्रत्येक पर्णाभ में पर्व तथा पर्व सन्धियाँ पायी जाती हैं। प्रत्येक पर्व से पत्तियाँ निकलती हैं जो शीघ्र ही कांटों में बदल जाती हैं। उदाहरण-नागफनी (Opuntia), केक्टस (Cactus), यूफोर्बिया (Euphorbia), कोकोलोबा (Cocoloba) आदि।

(ब) पर्णाभ पर्व (Cladode) इनमें कक्षस्थ कलिका के स्थान पर निश्चित वृद्धि वाली हरी पत्ती के समान रचना पायी जाती है व इनमें शाखा केवल एक पर्व की तरह रह जाती है। पत्ती शल्क पत्र के समान होती है। उदाहरण — एस्पेरागस (Asperagus)।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 31
(स) स्तम्भीय तन्तु या स्तम्भ प्रतान (Stem tendrils) – लम्बी, पतली धागे के समान रचनाएँ प्रतान (tendrils) कहलाती हैं। तने के रूपान्तरण से बनने वाले प्रतान स्तम्भ, प्रतान कहलाते हैं। यह आधार पर मोटे तथा शीर्ष की ओर उत्तरोत्तर (successive) पतले होते जाते हैं। इन पर पर्व व पर्व सन्धियाँ हो सकती हैं। कभी-कभी पुष्प भी उत्पन्न होते हैं। मुख्यतः यह कक्षस्य कलिका से व कभी-कभी अप्रस्थ कलिका से बनते हैं। उदाहरण- अंगूर ( Vitis), झुमकलता (Passiflora) आदि ।

(द) स्तम्भ कंटक (Stem thor) – कक्षस्थ या अग्रस्थ कलिकाओं से बने हुए कांटे स्तम्भ कंटक कहलाते हैं। यह कठोर, नुकीली, आधार पर मोटी तथा शीर्ष पर नुकीली संरचनाएँ होती हैं। यह पौधों की सुरक्षा के साथ-साथ वाष्पोत्सर्जन (transpiration) को कम करते हैं व कभी-कभी पौधे के आरोहण (climbing) में भी सहायता करते है। यह मुख्यतः मरुभिपौधों (Xerophytes) में पाये जाते हैं। उदाहरण- बोगेनविलिया (Baugainvillea ), बेल (Aegle )।

(य) पत्र प्रकलिकाएँ (Bulbils) पत्र प्रकलिकाओं द्वारा भोजन संचय के कारण बनते हैं। इनका प्रमुख कार्य कायिक प्रवर्धन (vegetative propagation) करना है। उदाहरण- रतालू (Dioscoria), केवड़ा (Agave), खट्टी बूटी (Oxalis) आदि।

फलों के प्रकार (Types of Fruits) – साधारणतयाः फल तीन प्रकार के होते हैं –
I. एकल फल (Simple Fruits)
II. पुंजफल (Aggregate Fruits)
III. संमथित फल (Composite Fruits) ।

I. सरस या एकल फल (Simple Fruits) – ये फल एकअण्डपी अथवा बहुअण्डपी युक्ताण्डपी अण्डाशय (unicarpalary or multicarpalary syncarpous ovary) से विकसित होते हैं। अण्डाशय मध्यवर्ती या अधोवर्ती (inferior) होता है। ये फल दो प्रकार के होते है-
(अ) शुष्क फल
(ब) सरस फल।

(अ) शुष्ठ का (Dry fruits)-इसकी फलभित्ति (Pericarp) शुक्क, कठोर, चीमड़, काष्ठीय या श्रिल्लीदार होती है। ये फल तीन प्रकार के होते हैं –
1. स्फोटी
2. अस्फोटी तथा
3. भिदुर फल।

1. स्फोटी फल (Dehiscent Fruit)- ये पकने पर फट जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते है –
(i) फली (Legume or pod) – ये एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय (Monocarpalary superiou ovary) से विकसित होते हैं। परिपक्व फल पकने पर दो सीवनी द्वारा फटता है। जैसे-सेम, मटर आदि।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 18
(ii) फालिकल (Follicle)-इनमें केवल एक सीवनी (suture) द्वारा स्फुटन (dehiscence) होता है। शेष गुण फली के समान होते हैं। जैसे-आक, चम्पा आदि।

(iii) सिलिकुआ (Siliqua) – यह फल द्विअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डाशय (bicapalary, compound superior ovary) से विकसित होता है। आरम्भ में अण्डाशय एककोष्ठी किन्तु बाद में कूट पट (replum) बन जाने से द्विकोष्ठी दिखाई देता है, जैसे-सरसों।

(iv) सिलिक्युला (Silicula)- यह पूर्णत: सिलिक्यूआ के समान होता है। परन्तु यह लम्बाई व चौड़ाई में समान होता है। जैसे-कैपसल्ला।

(v) सम्पुट (Capsule)- ये फल बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डाशय तथा कभी-कभी अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। ये विभिन्न विधियों द्वारा स्फुटित होते हैं। जैसे- कपास, पोस्त, भिण्डी आदि।

2. अस्फोटी या एकीनियल (Indihiscent or Achenial)- ये फल पकने पर फटते नहीं। इनके बीज फल के सड़ने पर ही प्रकीर्णित होते हैं। ये फल निम्न प्रकार के होते हैं-
(i) एकीन (Achene)- ये फल एकाण्डपी, ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलधित्ति बीज चोल से अलग होती है। जैसे-क्लीमेटिस, रेनकुलस आदि।

(ii) कैरिऑफिस (Caryopsis) – ये एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें फलभित्ति बीजचोल से संगलित होते हैं। जैसे-ोोहँ, मक्का।

(iii) सिप्सेला (Cypsella)-ये द्विअण्डपी, संयुक्त, अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। इनमें चिरलग्न रोमगुच्छ पाया जाता है। जैसे-सूर्यमुखी, गैंदा आदि।

(iv) नट (Nut)-यह फल एककोष्ठीय, व एकबीजी होते हैं और द्वि या बहुअण्डपी संयुक्त ऊर्ध्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। जैसे—काजू, लीची, सिंघाड़ा।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 19
3. फिद्र फल (Schizocarpic fruit)- ये बहुवीजी होते हैं, परिपक्व होने पर ये छोटे-छोटे फलाशुकों (mericarp) में टूट जाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 20

(i) लोमेट् (Lomentum) – ये फल एकाण्डपी ऊर्ष्व अण्डाशय से विकसित होते हैं। इसमें फलभित्ति संकीर्णित होकर फल को एकबीजी फलाशुकों में बाँट देती है। जैसे-इमली, बबूल आदि।

(ii) क्रीमोकार्प (Cremocarp)- ये फल द्विकोष्ठीय तथा द्विबीजी होते हैं। और द्विअण्डपी अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। जैसे-धनिया, जीरा आदि।

(iii) कासेंससस (Carcerulus)-ये फल कर्श्व द्विअण्डपी खीकेसर से विकसित होते हैं। प्रत्येक अण्डाशय एक फलांशक में बैंट जाता है जैसे तुलसी, साल्विया आदि।

(iv) रेग्मा (Regma)- ये फल बहुअण्डपी खीकेसर से विकसित और पकने पर एकबीजी इकाइयों कोकाई में बैंट जाते हैं। जैसे-अरण्ड में।

(ब) सरस फल (Succulent fruits) – ये फल अफुटन शील होते हैं तथा इनकी फलभित्ति गूदेदार होती है। इन फलों की फलभित्ति तीन भागों- बाह्य फल (epicarp) मध्यफलंभित्ति (mesocarp) तथा अन्त: फलभित्ति (endocarp) में बंटी होती हैं। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
1. अस्ठिफल (Drupe)-ये फल एकाण्डपी या बहुअण्डपी, संयुक्त, ऊर्ष्व अण्डा शप से विकसित होते हैं। इनकी बाह्य फल भित्ति पतली होती है जो छिलका बनाती है।मध्य फलभित्ति गूदेदार या रेशेदार तथा अतः फलभित्ति काष्ठीय कठोर होती हैं। औैसे-आम, नारियल।
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2. बेरी (Berry)- ये फल एक या बहुअण्डपी, संयुक्त अण्डाशय से विकसित होते हैं। बाह्म फल भित्ति पतली होती है। बीज मध्यफल भित्ति में धंसे
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होते हैं, अन्तः फलभित्ति झिल्लीनुमा या गूदेदार होती है। जैसे-टमाटर, केला, अमरुद आदि।

3. पेपो (Pepo) – ये फल बहुत कुछ बेरी के समान होते हैं। परन्तु ये भित्तिय बीजाण्डन्यास (parietal placentation) युक्त अधो अण्डाशय से विकसित होते हैं। औसे-खीरा, ककड़ी आदि।

4. पोम (Pome)- यह कूट फल (False fruit) है। फल का खाने योग्य भाग माँसल पुस्पासन (thalamus) होता है। यह संयुक्त अधोअण्डाशय (Inferior ovary) के चारों ओर पुस्पासन फैलने से बनता है। औसे-सेब, नाशपाती ।

5. हैस्पीरीडियम (Hesperi- dium)-ये फल बहुअण्डपी, ऊर्ष्व अण्डाशय (superior ovary) से विकसित होते हैं। बाह फलभित्ति चर्मिल व तेल प्रन्थि युक्त, मध्य फलभित्ति रेशेदार व पतली, तथा अत: फलभित्तिनुमा होती है जिससे सरस प्रन्थिल रोम लगे होते हैं जो खाए जाते हैं। औसे-संतरा, नींबू ।

6. बालोस्टा (Balausta)-इन फलों की फलभित्ति कठोर होती है। बीज बीजाण्डासन (placenta) पर अनियमित रूप से लगे रहते हैं। अन्तः फल भिति कठोर व चीमड़ होती हैं। सरस बीज चोलक खाये जाते हैं। जैसे-अनार।

7. ऐम्फीसरका (Amphisarca)-इनकी बाह्य फलभित्ति काष्ठीय (woody) होती है। मध्य तथा अन्त:फलभित्ति तथा बीजाण्डासन (placenta) गूदेदार होता है जो खाया जाता है। औैसे-बेल, कैथ आदि।

II. पुंज फल या समूह फल (Aggregate fruits or Etaerio Fruits) वास्तव में इस प्रकार के फल, फलों के समूह हैं जो बहुअण्डपी पृथक अण्डपी (Multicarpellary appocarpous) अण्डाशय (ovary) से विकसित होते हैं। ये सभी एक साथ पकते हैं इसीलिए इन्हें पुंज फल कहते हैं। ये अनेक लघु फलों से मिलकर बनते हैं। पुंज फल निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. एकीनो का पुंज ( Etaerio of Achenes )-इनमें इकाई फल (fruitlets) एकीन होते हैं। स्ट्रॉबेरी में एकील गूदेदार पुष्पासन (flashy thalamus) पर लगे होते हैं। नारवेलिया, क्लीमेटिस आदि में एकीन में रोमयुक्त (feathery) चिरलग्न (persistent) वर्तिका ( style) होती है

2. फालिकिलों का पुंज (Etaerio of follicles) इनमें लघु इकाई फॉलिकिल होती हैं इसमें दो या अधिक फॉलिकिल जुड़े रहते हैं जैसे—मदार, एकोनाइटम, स्टरक्यूलिया आदि ।
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3. बेरी का पुंज (Etaerio of Berries) इनमें लघु इकाई बेरी होती हैं। ये सरस फल आपस में बिना जुड़े पुंजफल बनाते हैं, जैसे कंटीली चम्पा अथवा आपस में जुड़कर एक फल बनाते हैं जैसे शरीफा। शरीफा में एक सामूहिक छिलका बन जाता है।

4. अष्ठिफल का पुंज (Etaerio of Drups) इसमें कुछ लघुफल, डुप (drupe) आपस में मिलकर एक पुंज बनाते हैं। जैसे रसभरी ।

III. संग्रथित फल (Composite or Multiple fruits) संमधित फलों का निर्माण सम्पूर्ण पुष्पक्रम (inflorescence) से होता है। पुष्पक्रम (Inflorescence) के अनेक भाग जैसे- सहपत्र (bracts), पुस्पाक्ष (peduncle) तथा परिदल (tapals) आदि मिलकर फल के भागों में परिवर्तित हो जाते हैं अतः ये कूटफल (false fruits) कहलाते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –
1. सोरोसिस (Sorosis)-ये फल मंजरी (catkin), स्थूल मंजरी (spadix) शूकी (spike) आदि पुष्पक्रमों (Inflorescence) से विकसित होते हैं। A जैसे – शहतूत (Mulberry) में वास्तविक फल तो ऐकीन (achene) होती हैं किन्तु इसमें पुष्पक्रम के सभी भाग मिलकर फल को प्रदर्शित करते हैं। कटहल (jack fruit) अनन्नास ( pineap मिलकर छिलका (rind) बनाते हैं जबकि पुष्पक्रम के अन्य भाग सरस एवं मांसल होकर फल के गूदे को प्रदर्शित करते हैं।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 24

2. साइकोनस (Syconus)-ये फल हायपैन्थोडियम (hypanthodium) पुष्पक्रम से विकसित होते हैं। इसमें पुष्पक्रम का पुष्पाक्ष ( peduncle) या. पुष्पावलि वृन्त (mother axis) रूपान्तरित होकर एक कप जैसी रचना आशय बना लेता है। आशय (receptacle) परिपक्व होकर मांसल (fleshy) हो जाता है जो फल का खाने योग्य भाग है। आशय के अन्दर असंख्य पुष्पों से अलग-अलग लघु फल बनते हैं, जो एकीन (achene ) होते हैं।

प्रश्न 9.
बीज किसे कहते हैं ? इसकी सामान्य रचना का वर्णन कीजिए। एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री में भेद कीजिए।
उत्तर:
बीच्च (Seed)-निषेचन के पश्चात् बीज्राण्ड (Ovule) एक विशेष संरषना बनाता है जिसे बीज (seed) कहते हैं। जित्र 5.54. कटछल का सोरोसिस बीज में भूण (embryo) पाया जाता है जो अंकुरण (germination) करके नये पौधे को अन्म देता है। बीजाम्ड की ओर (Sorosis of Jack Fruit) के आवरण (integuments) सूख जाते हैं। बाह्य आवरण सख व चपटा होकर बीज के बाह्म कवच (Testa) का निर्माण करता है। अन्तःआवरण अम्तकवच (tegmen) बनाता है। एक स्थान पर जहाँ बीज फल से जुड़ा रहता है, बाह़ कवच पर एक चिद्ध के रूप में वृन्सक होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 5 पुष्पी पादपों की आकारिकी - 25

पष्ष की संरचनाएँ जो बीज बनाती हैं।

निषेचन से पूर्व बीओ ज्ड (Ovule)निषेष्न के पश्वात् बीज (Seed)
बाझ अध्यावरण (Quter integument)बाह बीजचोल (testa)
अन्त: अध्यावरण (Inner integument)अन्त: बीजचोल (tegmen)
बीजाण्ड वृन्त (Funiculus)नष्ट हो जाता है
बीजाण्डकोष (Nucellus)नष्ट हो जाता है या परिश्रूणपोष (perisperm) बनाता है
अण्डकोशिका (Egg cell)भूण (embryo)

बीज के श्रूण में एक मूलांकर (rádicle), एक श्रूणीय तथा एक बीजपत्र (गेहँ, मक्का) या दो बीज पत्र (चना, मटर) होते हैं।

बीजों के प्रकार (Types of Seeds):
प्रूणकोष के आधार पर बीज तीन प्रकार के होते हैं –
1. भ्भूजवोपी बीज (Éndospermic seeds)-जब बीज में भ्रूण (endosperm) परिवर्धन के दोरान भ्रणणयोष (endosperm) का कुछ भाग बचा रहता है तो ऐसे भूणपोष युक्त्र बीजों को भूणपोषी बीज कहते हैं। यह भ्रूणपोष संचित भोजन के रूप में बीज से नवोद्भिद् (seedlings) के विकास में काम आता हैं। जैसे-अरण्डी, नारियल, गेहूँ एवं अन्य एक बीजपत्री पादपों के बीज आदि।

2. अश्रुणोोोी बीज (Non-endospermic seeds)- सामान्यत: द्विबीजपत्री पादपों के बीजों में परिकक्वन क्रिया के दौरान सम्पूर्ण भ्रुणकोष समाप्त हो जाता है। अतः ऐसे बीज अप्रूणपोषी कहलाते हैं। जैसे-चना, मटर, सेम आदि। ऐसे बीजों में बीजपत्र खाद्य संचित कर मोटे एवं मांसल हो जाते हैं।

3 परिणणपोषी बीज (Perispermic seeds)-इस प्रकार के बीजों में बीजाण्ड (ovule) का बीजाण्डकाय (nucellus) पतली झिल्ली के रूप में ऐेष रह जाता है जिसे परिप्रणपोप (perisperm) कहते हैं तथा बीज परिभ्रुणपोषी कहलाते हैं। उदाहरण-कालीमिर्ष ।

बीजपत्रों की उपस्थिति के आधार पर बीज दो प्रकार के होते हैं –

  • द्विबीजपत्री बीज
  • एकबीजपत्री बीज।

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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. मछलियों के हृदय में कोष्ठों की संख्या होती है –
(A) 4
(B) 3
(C) 2
(D) 1
उत्तर:
(C) 2

2. केंकड़ा में कौन-सी सममिति पायी जाती है ?
(A) अरीय सममिति
(B) द्विपार्श्व सममिति
(C) असममिति
(D) गोलीय सममिति
उत्तर:
(B) द्विपार्श्व सममिति

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

3. किस जन्तु में शरीर खण्डीय नहीं होता है ?
(A) ऐस्केरिस व तारा मछली
(B) मिलीपीड
(C) फीताकृमि
(D) केंचुआ
उत्तर:
(A) ऐस्केरिस व तारा मछली

4. अगुहीय प्राणी किस संघ का लक्षण है ?
(A) आर्थोपोडा
(B) प्लेटीहेल्मिन्थीज
(C) ऐनेलिडा
(D) मोलस्का
उत्तर:
(B) प्लेटीहेल्मिन्थीज

5. सतही खण्डीभवन पाया जाता है –
(A) केंचुए में
(B) कॉकरोच में
(C) टीनिया सोलियम में
(D) ऑक्टोपस में
उत्तर:
(C) टीनिया सोलियम में

6. पुर्तगीज मैन ऑफ वार कहा जाने वाला जन्तु किस संघ से सम्बन्धित है –
(A) मौलस्का
(B) आर्थोपोडा
(C) निडेरिया
(D) कार्डेटा
उत्तर:
(A) मौलस्का

7. निम्न में से कौन-सा अण्डे देने वाला जन्तु है –
(A) प्लेटीपस
(B) फ्लाइंग फाक्स (चमगादड़ )
(C) हाथी
(D) व्हेल।
उत्तर:
(A) प्लेटीपस

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

8. पक्षी व स्तनधारी निम्न में से कौन-सा लक्षण साझा करते हैं ?
(A) वर्णकी त्वचा
(B) कुछ रूपान्तरणों वाली आहारनाल
(C) जरायुजता
(D) समतापी।
उत्तर:
(D) समतापी।

9. ज्वाला कोशिकाएँ पायी जाती हैं –
(A) केंचुए में
(B) फीताकृमि में
(C) ऐस्केरिस में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(B) फीताकृमि में

10. रेतीजिल्हा (रेडूला) पाया जाता है –
(A) ऐनेलिडा में
(B) आर्थ्रोपोडा में
(C) मोलस्का में
(D) इकाइनोडर्मेटा में
उत्तर:
(C) मोलस्का में

11. जल- संवहन तन्त्र किस संघ की विशिष्टता है ?
(A) मोलस्का
(B) इकाइनोडर्मेटा
(C) वर्टीब्रेटा
(D) रेप्टीलिया
उत्तर:
(B) इकाइनोडर्मेटा

12. निम्न में जरायुज प्राणी है –
(A) मेंढक
(B) सर्प
(C) कंगारू
(D) बन्दर।
उत्तर:
(C) कंगारू

13. ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में साँस ले सकता है –
(A) अमीबा
(C) यूग्लीना
(B) फीताकृमि
(D) हाइड्रा
उत्तर:
(B) फीताकृमि

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14. निम्न में से कौन-सा एक सीलेण्ट्रेटस है –
(A) समुद्री अनि
(B) समुद्री घोड़ा
(C) समुद्री पेन
(D) समुद्री खीरा।
उत्तर:
(C) समुद्री पेन

15. पैरिप्लेनेटा अमेरिका के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से सही कथन का चुनाव कीजिए-
(A) इसमें पृष्ठीय तंत्रिका तंत्र होता है, जिसमें खण्डीय रूप से व्यवस्थित तंत्रिका गुच्छक लम्बवत् संयोजकों के एक युग्म द्वारा जुड़े होते हैं।
(B) नर में एक जोड़ी छोटे, धागे नुमा गुद शूक पाए जाते हैं
(C) इसमें मध्यांत्र तथा पश्चांत्र के जोड़ पर 16 अत्यधिक लम्बी मैल्पीषियन ट्यूबल्स पायी जाती है।
(D) भोजन को पीसने का कार्य केवल मुखांगों द्वारा ही किया जाता है।
उत्तर:
(B) नर में एक जोड़ी छोटे, धागे नुमा गुद शूक पाए जाते हैं

16. कॉलम 1 में दिए जन्तुओं को कॉलम II में दी गई इनकी विशिष्टताओं और कॉलम III में दिए गए उनके फाइलम / क्लास से सही-सही मिलान कीजिए –

कॉलम Iकॉलम IIकॉलम III
(A)  पेट्रोमाइजॉनबाह्स परजीवीसाइक्लोस्टोमेटा
(B) इथियोफिसस्थलीयरेप्टीलिया
(C) लिमुलसशरीर पर काइटनी बाह्य कंकालपिसीज
(D) एडेक्सिया, अरीय सममितिपॉरीफेरा

उत्तर:

17. निम्नलिखित जन्तुओं में से किस समूह का वर्गीकरण सही है ?
(A) उड़न मछली, कटल फिश, सिल्वर फिश – पिसीज
(B) सेंटीपीड, मिलीपीड, मकड़ी, बिच्छू कीट (इन्सेक्टा)
(C) घरेलू मक्खी, तितली, सेटसी फ्लाई, सिल्वर फिश – कीट ( इन्सेक्टा)
(D) शूली चींटीखोर (स्पाइनी एंटईटर), समुद्री आर्चिन, समुद्री कुकम्बर– इकाइनोडर्मेटा
उत्तर:
(C) घरेलू मक्खी, तितली, सेटसी फ्लाई, सिल्वर फिश – कीट ( इन्सेक्टा)

18. निम्नलिखित जन्तु समूहों में से कौन सा एक ही फाइलम के अन्तर्गत आते हैं ?
(A) मलेरिया, परजीवी, अमीबा, मच्छर
(B) केंचुआ, पिनवर्म, फीताकृमि (टेपवर्म)
(C) झींगा, बिच्छू, लोकस्ट (टिड्डी)
(D) स्पंज, समुद्री एनीमोन, स्टारफिश।
उत्तर:
(C) झींगा, बिच्छू, लोकस्ट (टिड्डी)

19. निम्नलिखित में से कौन सा जन्तु फाइलम आर्थोपोडा के अन्तर्गत आता है ?
(A) कटल फिश
(B) सिल्वर फिश
(C) फर फिश
(D) उड़न मछली।
उत्तर:
(B) सिल्वर फिश

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

20. ???? उच्च क्षमता पायी जाती है। –
(A) कायान्तरण
(B) पुर्नजनन
(C) पीढ़ी एकान्तरण
(D) जैव प्रदीप्तिता
उत्तर:
(B) पुर्नजनन

21. कायान्तरण संदर्भित करता है-
(A) विभिन्न काय रूपों की उपस्थिति
(B) जीव की अलैंगिक तथा लैंगिक प्रावस्थाओं में पीढ़ी एकान्तरण F
(C) पश्च भ्रूणीय विकास में परिवर्तनों की उपस्थिति
(D) खण्डित शरीर तथा जनन की अनिषेक विधि
उत्तर:
(B) जीव की अलैंगिक तथा लैंगिक प्रावस्थाओं में पीढ़ी एकान्तरण F

22. घरेलू मक्खी के वर्गीकरण के लिए स्तंभ I तथा II का मिलान कीजिए तथा नीचे दिए गए कूटों से सही विकल्प का चयन कीजिए –

संभ Iस्तंभ II
(a) फेमिली1. डिपेरा
(b) ऑर्डर2. ऑर्थोपोडा
(c) क्लास3. म्यूसिडी
(d) फाइलम4. इनसेक्टा

उत्तर:

abcd
(a)2314
(b)3241
(c)4321
(d)4213

23. निम्न में से कौन-सा अभिलक्षण ऑर्थोपोडा में नहीं पाया जाता है ?
(A) मेटामोरिक खण्डीभवन
(B) पेरापोडिया
(C) संन्धियुक्त उपांग
(D) काइटिनी बाह्यकंकाल
उत्तर:
(B) पेरापोडिया

24. निम्न में से कौन-सा अभिलक्षण पक्षियों तथा स्तनधारियों द्वारा स्त्रावित नहीं होता है ?
(A) फेफड़ों द्वारा श्वसन
(B) जरायुजता
(C) गर्म रक्त प्रकृति
(D) अश्थिल अन्तःकंकाल
उत्तर:
(B) जरायुजता

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25. पोरोफेरा में स्पंजगुहा कशाभित कोशिकाओं से आस्तरित रहती है उन्हें कहते हैं –
(A) आस्टिया
(B) ऑस्कुलम
(C) कोएनोसाइट्स
(D) मोसेनकाइमा कोशिकाएँ
उत्तर:
(C) कोएनोसाइट्स

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्गीकरण के आधारभूत लक्षण लिखिए।
उत्तर:
वर्गीकरण के आधारभूत लक्षण निम्न हैं – कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, शरीर योजना, प्रगुहा की प्रकृति, पाचन तन्त्र, परिसंचरण तन्त्र, जनन तन्त्र की रचना एवं पृष्ठीय रज्जु की उपस्थिति आदि।

प्रश्न 2.
अरीय सममिति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब किसी भी केन्द्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा प्राणी के शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है तो इसे अरीय सममिति (radial symmetry) कहते हैं।

प्रश्न 3.
खुला रुधिर परिसंचरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
खुले परिसंचरण तन्त्र में रुधिर खुले स्थानों (open spaces a sinuses) में बहता है, रुधिर वाहिकाओं में नहीं। शरीर के अंग व ऊतक रक्त (हीमोलिम्फ) में डूबे रहते हैं। पर्याप्त दाब व बहाव का नियन्त्रण सम्भव नहीं होता।

प्रश्न 4.
बन्द रुधिर परिसंचरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब रुधिर का परिसंचरण बन्द नलिकाओं ( धमनियों, शिराओं व केशिकाओं) में होकर बहता है तो उसे बन्द परिसंचरण (closed circulation) कहते हैं।

प्रश्न 5.
मेटाजेनेसिस का क्या अर्थ है? इसको प्रदर्शित करने वाला एक उदाहरण दीजिए। (Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:
मेटाजेनेसिस ( Metagenesis)-नीडेरियन जन्तुओं का पीढ़ी एकान्तरण ( alternation of generation ) जिसमें पॉलिप अलैंगिक जनन द्वारा मेड्यूला बनाता है तथा मेड्यूला लैंगिक जनन द्वारा पॉलिप उत्पन्न करता है, मेटाजेनेसिस कहलाता है।
उदाहरण – ओबेलिआ (Obelia)।

प्रश्न 6.
मिलान कीजिए –

जन्तुप्रचलन अंग
(a) आक्टोपस(i) पाद
(b) क्रोकोडाइल(ii) काम्ब प्लेट
(c) कटला(iii) रेक्टेकिल
(d) टीनोप्लेना(iv) फिन

उत्तर:

जन्तुप्रचलन अंग
(a) आक्टोपस(iii) रेक्टेकिल
(b) क्रोकोडाइल(i) पाद
(c) कटला(iv) फिन
(d) टीनोप्लेना(ii) काम्ब प्लेट

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प्रश्न 7.
किन प्राणियों में केन्द्रीय जठर संवहनी गुहा पायी जाती है ?
उत्तर:
सीलेन्ट्रेटा (नीडेरिया) संघ के प्राणियों में केन्द्रीय जठर संवहनी गुहा (gastrovascular cavity) पायी जाती है।

प्रश्न 8.
सीलेन्ट्रेटा संघ के किस सदस्य के जीवन में पॉलिप तथा मेड्यूसा दोनों अवस्थाएँ पायी जाती हैं ? इसे क्या कहते हैं ?
उत्तर:
ओबेलिया में पॉलिप तथा मेड्यूसा दोनों अवस्थाएँ पायी जाती हैं। इसे पीढ़ी एकान्तरण (metagenesis) कहते हैं।

प्रश्न 9.
दंश कोशिकाएँ किस संघ के सदस्यों की विशेषता है ?
उत्तर:
देश कोशिकाओं (nemotoblasts) की उपस्थिति सीलेन्ट्रेटा संघ के सदस्यों की विशेषता है।

प्रश्न 10.
जीव संदीप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्राणी के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन करने को जीव संदीप्ति (bioluminiscence) कहते हैं।

प्रश्न 11.
ज्वाला कोशिकाओं की उपस्थिति किस संघ की विशेषता है ?
उत्तर:
ज्वाला कोशिकाओं (Flame cells) की उपस्थिति प्लेटीहेल्मिन्थीज संघ की विशेषता है।

प्रश्न 12.
ऐस्केल्पिन्थी संघ के दो परजीवी जन्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • एस्केरिस
  • बुचेरेरिया (फाइलेरिया कृमि)।

प्रश्न 13.
एनिलिडा संघ के प्राणियों के उत्सर्जी अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
एनिलिडा संघ के प्राणियों के उत्सर्जी अंग वृक्कक (nephridia )

प्रश्न 14.
आर्थोपोड जन्तुओं में किस प्रकार का परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है ?
उत्तर:
आर्थ्रोपोड जन्तुओं में खुले प्रकार का परिसंचरण तन्त्र पाया जाता

प्रश्न 15.
जल-संवहन तन्त्र किस संघ की विशेषता है ? इसका कार्य बताइए।
उत्तर:
जल संवहन तन्त्र इकाइनोडर्मेटा संघ की विशेषता है। यह चलन (गमन), भोजन पकड़ने में तथा श्वसन में सहायक है।

प्रश्न 16.
हेमीकॉर्डेटा संघ के दो प्राणियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बैलेनोग्लॉसस तथा सैकोग्लॉसस।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 17.
कॉर्डेटा (रज्जुकी) संघ की तीन प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • पृष्ठ रज्जु
  • पृष्ठ खोखली तन्त्रिका रज्जु
  • ग्रसनीय क्लोम छिद्र की उपस्थिति।

प्रश्न 18.
कॉईंटा संघ को किन तीन उपसंघों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
कॉर्बेटा संघ को तीन उपसंघों में बाँटा गया है –

  • यूरोकॉर्डेटा
  • सेफैलोकॉर्डेटा तथा
  • वर्टीब्रेटा।

प्रश्न 19.
यूरोकॉडेंटा तथा सेफैलोकडिंटा का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
यूरोकॉर्डेटा – एसिडिया, सैल्फ।
सेफैलोकॉडेंटा- ऐम्फी ऑक्सस।

प्रश्न 20.
साइक्लोस्टोमेटा के दो जन्तुओं के नाम बताइए।
उत्तर:
पेट्रोमाइजोन (लैम्प्रे) तथा मिक्सीन (हैगफिश 1)

प्रश्न 21.
साइक्लोस्टोमेटा वर्ग की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • साइक्लोस्टोमेटा वर्ग के जन्तु समुद्री होते हैं, किन्तु जनन के लिए अलवणीय जल में प्रवास करते हैं।
  • ये प्रायः मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं।

प्रश्न 22.
उपास्थिल मछलियों के वर्ग का नाम बताइए तथा दो मछलियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उपास्थिल मछलियों को कॉन्ड्रिक्थीज वर्ग में रखा गया है। स्कोलियोडोन (डॉगफिश), प्रीस्टिस (सॉनफिश), ट्राइगोन (व्हेलशार्क) इनके उदाहरण हैं।

प्रश्न 23.
समुद्री घोड़ा किस वर्ग का प्राणी है ?
उत्तर:
समुद्री घोड़ा एक प्रकार की मछली है, जो मत्स्य वर्ग का प्राणी है।

प्रश्न 24.
वर्ग ऑस्टिक्थीज की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • चार जोड़ी क्लोम छिद्र दोनों ओर प्रच्छद (आस्कुलम) से ढँके हुए होते हैं
  • अन्त:कंकाल अस्थियों का बना होता है। उदाहरण – रोहू, कतला, मांगुर आदि मछलियाँ।

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प्रश्न 25.
उड़न मछली किस वर्ग की सदस्य है ? उसका वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर:
उड़न मछली ऑस्टिक्थीज वर्ग की सदस्य है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘एक्सोसीटस’ है।

प्रश्न 26.
उभयचर प्राणियों के हृदय में कितने कोष्ठ होते हैं ?
उत्तर:
उभयचर प्राणियों का हृदय त्रिकोष्ठीय होता है।

प्रश्न 27.
सरीसृप वर्ग के किस प्राणी का हृदय चार कोष्ठीय होता है ?
उत्तर:
सरीसृप वर्ग के ‘मगरमच्छ’ का हृदय चार कोष्ठीय होता है।

प्रश्न 28.
पक्षियों की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • मुख के आगे चोंच होती है
  • अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं।

प्रश्न 29.
न उड़ सकने वाले दो पक्षियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐमू, शुतुरमुर्ग तथा पेंग्विन न उड़ सकने वाले पक्षी हैं।

प्रश्न 30.
अण्डे देने वाले स्तनधारी का नाम लिखिए।
उत्तर:
डकबिल्ड प्लेटीपस अण्डे देने वाला स्तनधारी प्राणी है।

प्रश्न 31.
अविकसित शिशु को जन्म देने वाले प्राणी का नाम लिखिए।
उत्तर:
मादा कंगारू अविकसित शिशु को जन्म देती है। यह इसे पूर्ण परिपक्व होने तक ‘मार्सपियम’ नामक पेट के आगे थैली में रखती है जिसमें स्तन होते हैं।

प्रश्न 32.
उड़ने वाले स्तनधारी का नाम लिखिए।
उत्तर:
चमगादड़ एक उड़ने वाला स्तनधारी है।

प्रश्न 33.
पृथ्वी पर सबसे विशालकाय जीवित प्राणी का नाम लिखिए।
उत्तर:
ब्लू ह्वेल (Blue whale) पृथ्वी पर सबसे बड़ा जीवित प्राणी है। इसकी लम्बाई लगभग 32 मीटर तथा वजन 150 टन तक होता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

(C) लघु उत्तरीय एवं निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सममिति किसे कहते हैं ? जन्तुओं में सममिति कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 जीव जगत का वर्गीकरण - 2

प्रश्न 2.
इकाइनोडर्मेटा संघ के कोई चार विशेष लक्षण लिखिये।
उत्तर:
इकाइनोडर्मेटा संघ के चार विशेष लक्षण –

  •  इस संघ के सभी सदस्य समुद्री जल में पाये जाते हैं।
  • इनकी खुरदरी, दृढ़, चीमड़ देहभित्ति में कैल्सियम युक्त कंटक पाये जाते हैं।
  • गमन के लिये विशेष प्रकार के छोटे-छोटे नाल- पाद (tube feets) पाये जाते हैं।
  • विशिष्ट प्रकार का जल परिवहन तन्त्र (water vascular system) पाया जाता है, जो भोजन ग्रहण, संवेदना ग्रहण तथा श्वसन में सहायक होता है। उदाहरण- तारामछली (एस्टेरियस), एकाइनस, एन्टीडोन, सी- कुकम्बर, ओफीयूरा (ब्रिटिल स्टार) आदि।

प्रश्न 3.
कूटगुहीय संघ के चार विशेष लक्षण लिखिये।
उत्तर:
कूटगुहीय संघ – निमेटहेल्मिन्थीज के विशेष लक्षण-

  • इनका शरीर पतला, लम्बा, बेलनाकार तथा कृमि के समान होता है।
  • शरीर खण्डविहीन, द्विपार्श्व सममित तथा त्रिस्तरीय (triploblastic ) होता है।
  • शरीर पर मोटा क्यूटिकल (cuticle) का आवरण पाया जाता है।
  • इनकी देहगुहा, कूटगुहा (pseudocoelom) प्रकार की होती है तथा मीसोडर्म से आस्तरित नहीं रहती है।
    उदाहरण – एस्केरिस, वुचेरेरिया, एनसाइक्लोस्टोमा आदि।

प्रश्न 4.
हेमीकॉर्डेटा के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
हेमीकॉर्डेटा के प्रमुख लक्षण – अनुच्छेद 4.11 संघ हेमीकॉर्डेटा का अवलोकन करें।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 जीव जगत का वर्गीकरण - 3

प्रश्न 5.
अरज्जुकी (नॉन कॉर्बेटा) एवं रज्जुकी (कॉडिंटा) के विशिष्ट लक्षणों की तुलना कीजिए।
उत्तर:

अरज्जुकी (नॉन-कॉर्बेटा)रज्जुकी (कॉर्बेटा)
पृष्ठ रज्जु अनुपस्थित होता है।1. पृष्ठ रज्जु उपस्थित होता है।
केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र अधर तल में, ठोस एवं दोहरा होता है।2. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र पृष्ठीय एवं खोखला तथा एकल होता है।
क्लोम छिद्र अनुपस्थित होते हैं।3. क्लोम छिद्र प्रसनी में पाये जाते हैं।
हृदय पृष्ठ भाग में होता है (यदि उपस्थित है तो)।4. हृदय अधर भाग में होता है।
गुदा-पश्च पुच्छ अनुपस्थित होती है।5. एक गुदा पश्च पुच्छ उपस्थित होती है।

प्रश्न 6.
वर्टीब्रेटा के वर्गीकरण की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 7.
साइक्लोस्टोमेटा के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
साइक्लोस्टोमेटा के प्रमुख लक्षण-

  •  इस वर्ग के प्राणी कुछ मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं।
  • शरीर लम्बा होता है, जिसमें श्वसन के लिए 6-15 जोड़ी क्लोम छिद्र होते हैं।
  • साइक्लोस्टोम में बिना जबड़ों का चूषक ( sucker ) तथा वृत्ताकार मुख होता है।
  • शल्क तथा युग्मित पख का अभाव होता है।
  • कपाल तथा मेरुदण्ड उपस्थित होता है।
  • परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का होता है।
  • साइक्लोस्टोम समुद्री होते हैं, किन्तु प्रजनन के लिए अलवणीय जल में प्रवास करते हैं। जनन के कुछ दिन बाद वे मर जाते हैं।
  • इसके लार्वा कायान्तरण (Metamorphosis) के बाद समुद्र में लौट जाते हैं।
    उदाहरण – पेट्रोमाइजोन (लैम्प्रे), मिक्सीन (हैगफिश)।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 8.
एग्नेथा तथा नैथोस्टोमेटा में चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
एग्नेथा तथा नैथोस्टोमेटा में अन्तर (Differences between Agnatha and Gnathostomato)

ऐमनेथा (Agnatha)नैथोस्टोमेटा (Gnathostomata)
1. मुखगुहा में वास्तविक जबड़े अनुपस्थित होते हैं।वास्तविक जबड़े उपस्थित होते हैं।
2. उपांग तथा जनन वाहिनियाँ अनुपस्थित होती हैं।उपांग तथा जनन वाहिनियाँ उपस्थित होती हैं।
3. अल्पविकसित कशेरुकाएँ पायी जाती हैं।विकसित कशेरुकाएँ पायी जाती हैं।
4. अन्तकर्ण में दो अर्ध्ध वर्तुल्यकुल्याएँ पायी जाती हैं।अन्तकर्ण में तीन अर्द्ध वर्तुल्यकुल्याएँ (Semi-circular canal) पायी जाती हैं।

प्रश्न 9.
उभयचर तथा सरीसृप में अन्तर बताइये।
उत्तर:
उभयचर तथा सरीसृप में अन्तर (Differences between Ambhibia and Reptilia)

उभयचर (Amphibia)सरीसुप (Reptilia)
1. इस वर्ग के प्राणी जल और स्थल दोनों जगह पर रहते हैं।ये प्रायः स्थल पर रहते हैं (कछुआ, मगर, कुछ साँपों को छोड़कर)।
2. बाह्य निषेचन होता है। भूणीय झिल्ली अनुपस्थित होता है।आन्तरिक निषेचन होता है। भूणीय झिल्ली एम्नियान पायी जाती है।
3. मादा सदैव जल में अण्डे देती है।मादा स्थल पर अण्डे देती है।
4. बाह्य कंकाल के रूप में कोई रचना नहीं होती है।शल्कों या प्लेटों के रूप में बाह्य कंकाल पाया जाता है।
5. त्वचा नम लचीली तथा पतली होने से श्वसन में सहायक होती है।त्वचा सदैव शुष्क होती है और इनमें त्वचीय श्वसन नहीं होता है।
6. उत्सर्जी पदार्थ प्रमुखतः यूरिया।उत्सर्जी पदार्थ यूरिया अम्ल। हृदय में दो अलिन्द और निलय अपूर्ण रूप से दो कोष्ठों में विभाजित होते हैं।
7. हृदय में तीन कोष्ठ होते हैं : दो अलिन्द व एक निलय। उदाहरण : मेंढक, टोड।उदाहरण : छिपकली, गिरगिट, कछुआ, सर्प, मगरमच्छ।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 4 प्राणि जगत

प्रश्न 10.
एस्केरिस (गोलकृमि) के परजीवी अनुकूलन लिखिए।
उत्तर:
एस्केरिस के परजीवी अनुकूलन (Parasitic adoptations of Ascaris)

  • इनका शरीर पतला, लम्बा, बेलनाकार तथा दोनों सिरों पर नुकीला होता है।
  • शरीर पर क्यूटीकल (cuticle) का मजबूत मोटा आवरण होता है। इस पर पाचक एन्जाइमों का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए इनका रासायनिक पाचन नहीं होता।
  • अभासी देहगुहा (pseudocoelom) में उपस्थित तरल द्रव स्थैतिक (hydrostatic) कंकाल का कार्य करता है। इससे इनका यान्त्रिक पाचन नहीं हो पाता है
  • शरीर के अग्र सिरे पर अनेक रासायनिक संवेदांग होते हैं।
  • यह पोषक से पचा हुआ भोज्य पदार्थ ग्रहण करता है। इसलिए इसकी आहारनाल सीधी सरल नलिका होती है।
  • इसमें अनॉक्सी श्वसन (anaerobic respiration) होता है।
  • जनन क्षमता अत्यधिक होती है। अण्डे प्रतिकूल परिस्थितियों को लम्बे समय तक सहन करने में समर्थ होते हैं।

प्रश्न 11.
कॉन्ड्रिक्थीज मछलियों के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
कॉन्ड्रिक्थीज मछलियों के प्रमुख लक्षण (Main characteristics of chondrichthese fishes)
1. इस वर्ग के अधिकांश सदस्य समुद्री जल में पाये जाते हैं।
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