Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 8 d- एवं f-ब्लॉक के तत्व
प्रश्न 8.1.
निम्नलिखित के इलेक्ट्रानिक विन्यास लिखिए –
(i) Cr3+
(ii) Pm3+
(iii) Cu+
(iv) Ce4+
(v) Co2+
(vi) Lu2+
(vii) Mn2+
(viii) Th4+
उत्तर:
इन आयनों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित हैं-
परमाणु क्रमाक Cr= 24, Pm = = 61, Cu 29, Ce = 58, Co 27, Lu = 71, Mn = 25, Th = 90
प्रश्न 8.2.
+3 ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत होने के संदर्भ में Mn2+ के यौगिक Fe2+ के यौगिकों की तुलना में अधिक स्थायी क्यों हैं ?
उत्तर:
Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d5 होता है जो कि अर्धपूरित उपकोश के कारण अधिक स्थायी होता है अतः Mn+2 आसानी से इलेक्ट्रॉन नहीं देता, अर्थात् इसकी ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति कम होती है। लेकिन Fe+2 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d6 होता है अतः यह एक इलेक्ट्रॉन देकर 3d5 स्थायी विन्यास बनाता है इसलिए यह आसानी से ऑक्सीकृत हो जाता है।
प्रश्न 8.3.
संक्षेप में स्पष्ट कीजिए कि प्रथम संक्रमण श्रेणी के प्रथम अर्धभाग में बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के साथ +2 ऑक्सीकरण अवस्था कैसे अधिक स्थायी होती जाती है ?
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी की (Sc के अलावा) सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था +2 है जो कि 4s में से दो इलेक्ट्रॉन निकलने के कारण बनती है। प्रथम संक्रमण श्रेणी के प्रथम अर्धभाग में परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ +2 ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थायी होती जाती है क्योंकि 3d कक्षकों में प्रत्येक में एक इलेक्ट्रॉन होता है अतः प्रत्येक कक्षक अर्धपूरित है जिनमें अन्तर इलेक्ट्रॉनिक प्रतिकर्षण न्यूनतम होता है तथा नाभिकीय आवेश बढ़ता है। लेकिन श्रेणी के द्वितीय अर्धभाग में 3d कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन प्रारम्भ हो जाता है।
प्रश्न 8.4.
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास किस सीमा तक ऑक्सीकरण अवस्थाओं को निर्धारित करते हैं ? उत्तर को उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व काफी सीमा तक इलेक्ट्रॉनिक विन्यास पर निर्भर करता है। वे ऑक्सीकरण अवस्थाएँ जिनमें उत्कृष्ट गैस विन्यास होता है या अर्धपूरित (d5) तथा पूर्ण पूरित स्थायी विन्यास (d10) होता है वे अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होती हैं।
प्रश्न 8.5.
संक्रमण तत्वों की मूल अवस्था में नीचे दिए गए d इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों में कौन-सी ऑक्सीकरण अवस्था स्थायी होगी ?
3d3, 3d5, 3d8 तथा 3d4
उत्तर:
संक्रमण तत्वों की मूल अवस्था में इन d इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों के लिए स्थायी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ निम्न प्रकार होंगी-
3d3 (वैनेडियम) (+ 2), + 3, + 4, + 5, ( + 5 सर्वाधिक स्थायी )
3d5 (क्रोमियम) + 3, 4, + 6, (+3 सर्वाधिक स्थायी )
3d5 (मैंगनीज़) +2, +4, +6, +7, ( + 2 सर्वाधिक स्थायी )
3d8 ( कोबाल्ट ) + 2 + 3 (संकुलों में )
3d4 मूल अवस्था में कोई d4 विन्यास नहीं होता।
प्रश्न 8.6.
प्रथम संक्रमण श्रेणी के ऑक्सो-धातुऋणायनों का नाम लिखिए; जिसमें धातु संक्रमण श्रेणी की वर्ग संख्या के बराबर ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करती है।
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी के ऑक्सो धातुऋणायन निम्नलिखित हैं जिनमें धातु संक्रमण श्रेणी की वर्ग संख्या के बराबर ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करती है।
प्रश्न 8.7.
लैन्थेनॉयड आकुंचन ( संकुचन ) क्या है ? लैन्थेनॉयड आकुंचन के परिणाम क्या हैं?
उत्तर:
लैन्थेनॉयड संकुचन – लैन्थेनॉयडों में परमाणु क्रमांक बढ़ने पर La से Lu (लैन्थेनम से ल्यूटीशियम) तक परमाणु तथा आयनिक त्रिज्याओं में समग्र (over all) कमी होती है, इसे लैन्थेनॉयड संकुचन कहते हैं। परमाणु त्रिज्याओं के मानों में यह कमी नियमित नहीं होती है जैसा कि M+3 आयनों में नियमित रूप से कमी होती है। यह संकुचन भी सामान्य संक्रमण श्रेणियों के समान ही है तथा इसका कारण भी समान है अर्थात् एक ही उपकोश में एक इलेक्ट्रॉन का दूसरे इलेक्ट्रॉन द्वारा परिरक्षण प्रभाव अपूर्ण. होता है।
फिर भी श्रेणी में नाभिकीय आवेश बढ़ने पर एक d- इलेक्ट्रॉन पर दूसरे d- इलेक्ट्रॉन के परिरक्षण प्रभाव की तुलना में, एक 4f इलेक्ट्रॉन का दूसरे 41 इलेक्ट्रॉन पर परिरक्षण प्रभाव कम होता है तथा 1-कक्षकों की आकृति भी इसके लिए अनुकूल नहीं है। अतः श्रेणी में बढ़ते हुए नाभिकीय आवेश के कारण परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ परमाणु आकार में एक नियमित कमी पायी जाती है, लेकिन Eu की परमाणु त्रिज्या अधिक होती है।
लैन्थेनॉयड संकुचन के प्रभाव-
(i) द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों के परमाणु आकार में समानता ( Similarities in the Atomic Size of Second and Third Transition Series Elements) – लैन्धेनॉयड संकुचन का तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके कारण तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों के परमाणु आकार दूसरी संक्रमण श्रेणी के संगत तत्वों के परमाणु आकार के लगभग समान होते हैं। Zr (160 pm) तथा Hf ( 159 pm ) के परमाणु आकार का लगभग समान मान लैन्धेनॉयड संकुचन का ही परिणाम है, लेकिन वर्ग 3 में ऐसा नहीं होता।
(ii) लैन्थेनॉयडों का पृथक्करण (Separation of Lanthanoids) – लैन्थेनॉयडों की आयनिक त्रिज्या में अन्तर बहुत कम होता है इसलिए इनके रासायनिक गुणों में काफी समानता होती है, अतः इन तत्वों का पृथक्करण मुश्किल से होता है। लेकिन इनके आकार में कुछ अन्तर होता है जिसके कारण इनकी विलेयता तथा संकुल बनाने की प्रवृत्ति में भिन्नता आ जाती है अतः इनका पृथक्करण आयन विनिमय विधि द्वारा सम्भव हो पाता है।
(iii) हाइड्रॉक्साइडों की क्षरीय प्रबलता (Basic Strength of Hydroxides) – 12 से 1.1 तक इनके हाइड्रॉक्साइडों की क्षारीय प्रबलता कम होती है क्योंकि इनकी आयनिक त्रिज्याओं में कमी होती है। इसलिए La(OH)2 का क्षारीय गुण अधिकतम तथा Lu (OH)2 का क्षारीय गुण न्यूनतम होता है।
प्रश्न 8.8.
संक्रमण धातुओं के अभिलक्षण क्या हैं? ये संक्रमण धातु क्यों कहलाती हैं ? d-ब्लॉक के तत्वों में कौनसे तत्व संक्रमण श्रेणी के तत्व नहीं कहे जा सकते ?
उत्तर:
संक्रमण धातुओं के सामान्य अभिलक्षण निम्नलिखित हैं-
संक्रमण तत्व प्रारूपिक धात्विक गुण, जैसे- उच्च तनन सामर्थ्य, तन्यता, आघातवर्धनीयता, उच्च तापीय तथा विद्युत् चालकता व धात्विक चमक दर्शाते हैं। Zn, Cd, Hg तथा Mn जैसे अपवादों को छोड़कर सामान्य ताप पर इनकी एक या अधिक प्रारूपिक धात्विक संरचनाएँ होती हैं।
संक्रमण तत्व वे d-ब्लॉक के तत्व होते हैं जिनकी परमाणु या किसी ऑक्सीकरण अवस्था में अपूर्ण d कक्षक होते हैं। वर्ग 12 के तत्व जिंक, कैडमियम तथा मर्क्युरी (Zn, Cd तथा Hg ) में उनकी मूल अवस्था तथा सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था में पूर्ण पूरित (d10) विन्यास है अतः इन्हें संक्रमण तत्व नहीं माना जाता।
प्रश्न 8.9.
संक्रमण धातुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास किस प्रकार असंक्रमण तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से भिन्न हैं?
उत्तर:
संक्रमण तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में उपान्त्य कोश में आंशिक भरे d उपकोश होते हैं जबकि असंक्रमण तत्वों में आंशिक भरे d उपकोश नहीं होते, लेकिन इनके आन्तरिक विन्यास में पूर्ण भरे d उपकोश होते हैं। संक्रमण तत्वों में अन्तिम इलेक्ट्रॉन उपान्त्य कोश के d उपकोश में भरा जाता है जबकि असंक्रमण तत्वों में अन्तिम इलेक्ट्रॉन s या p उपकोश में भरा जाता है।
प्रश्न 8.10.
लैन्थेनॉयडों द्वारा कौन-कौनसी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित की जाती हैं ?
उत्तर:
लैन्थेनॉयडों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था +3 है लेकिन कुछ लैन्थेनॉयड +2 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी प्रदर्शित करते हैं। जैसे – Eu2+ तथा Ce+4
प्रश्न 8.11.
कारण देते हुए स्पष्ट कीजिए-
(i) संक्रमण धातुएँ तथा उनके अधिकांश यौगिक अनुचुंबकीय हैं।
(ii) संक्रमण धातुओं की कणन एन्थैल्पी (Enthalpy of atomisation) के मान उच्च होते हैं।
(iii) संक्रमण धातुएँ सामान्यतः रंगीन यौगिक बनाती हैं।
(iv) संक्रमण धातुएँ तथा इनके अनेक यौगिक उत्तम उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।
उत्तर:
(i) संक्रमण धातुएँ तथा उनके अधिकांश यौगिक अनुचुंबकीय होते हैं, क्योंकि इनमें धातु के पास अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं तथा वे तत्व या यौगिक अनुचुम्बकीय होते हैं जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। जैसे Sc = [Ar] 3d1 4s2, इसके पास एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है अतः यह अनुचुम्बकीय है, इसी प्रकार FeSO4 में Fe+2 के पास चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होने के कारण यह भी अनुचुम्बकीय है।
(ii) इस प्रश्न के उत्तर के लिए पाठ्यपुस्तक का उदाहरण 8.2 देखें ।
(iii) संक्रमण धातुओं के यौगिक सामान्यतः रंगीन होते हैं क्योंकि इनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं जिससे दृश्य प्रकाश द्वारा d-d संक्रमण (t2g से eg) आसानी से हो जाता है। लिगन्ड (जल इत्यादि) की उपस्थिति में d कक्षक दो भागों में विभाजित हो जाते हैं. – t2g तथा eg | इसी कारण इनका रंग जलीय विलयन या जलयोजित अवस्था में ही प्रेक्षित होता है।
(iv) संक्रमण धातुएँ तथा इनके अनेक यौगिक अच्छे उत्प्रेरक होते हैं क्योंकि इनमें परिवर्तनशील संयोजकता ( ऑक्सीकरण अंक) तथा संकुल यौगिक बनाने का गुण पाया जाता है जिसमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन प्रयुक्त होते हैं।
प्रश्न 8.12.
अंतराकाशी यौगिक क्या हैं? इस प्रकार के यौगिक संक्रमण धातुओं के लिए भली प्रकार से ज्ञात क्यों हैं ?
उत्तर:
संक्रमण धातुओं के क्रिस्टल जालक में परमाणुओं के मध्य बचे रिक्त स्थान (अन्तराकाश) में छोटे आकार वाले परमाणु जैसे H, N, B या C व्यवस्थित हो जाते हैं तो बने यौगिकों को अन्तराकाशी यौगिक कहते हैं। उदाहरण-TiC, Mn4N, Fe3H, VH0.56 तथा TiH1.7 इत्यादि। इन यौगिकों में धातुओं की कोई सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था नहीं होती । संक्रमण तत्वों में रिक्त d कक्षक होते हैं अतः ये अंतराकाशी यौगिक आसानी से बनाते हैं।
प्रश्न 8.13.
संक्रमण धातुओं की ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तनशीलता असंक्रमण धातुओं में ऑक्सीकरण अवस्थाओं में परिवर्तनशीलता से किस प्रकार भिन्न है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरसंक्रमण तत्वों में ऑक्सीकरण अवस्थाओं में एक का अंतर होता है। जैसे- मैंगनीज, +2, +3, 4, +5, +6, +7 अवस्था दर्शाता है जबकि असंक्रमण तत्वों जैसे p-ब्लॉक के तत्वों में सदैव दो का अंतर होता है, जैसे +2, +4 या +3, +5 या +4, +6 आदि ।
प्रश्न 8.14.
आयरनक्रोमाइट अयस्क से पोटैशियम डाइक्रोमेट बनाने की विधि का वर्णन कीजिए । पोटैशियम डाइक्रोमेट विलयन पर pH बढ़ाने से क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
आयरन क्रोमाइट अयस्क से पोटैशियम डाइक्रोमेट बनाना – आयरन क्रोमाइट [ क्रोमाइट अयस्क (FeCr2O4)] को जब वायु की उपस्थिति में सोडियम कार्बोनेट के साथ संगलित किया जाता है तो सोडियम क्रोमेट प्राप्त होता है। क्रोमाइट की सोडियम कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है-
4FeCr2O4 + 8Na2CO3 + 7O2 → 8Na2CrO4 + 2Fe2O3 + 8CO2
सोडियम क्रोमेट के विलयन को छानकर इसे सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा अम्लीय बना लेते हैं जिसमें से नारंगी सोडियम डाइक्रोमेट, (Na2Cr2O72H2O) को क्रिस्टलित कर लिया जाता है।
2Na2CrO2 + 2H+ → Na2Cr2O7 + 2Na+ + H2O
सोडियम डाइक्रोमेट की विलेयता, पोटैशियम डाइक्रोमेट से अधिक होती है। अतः सोडियम डाइक्रोमेट के विलयन में पोटैशियम क्लोराइड डालने पर पोटैशियम डाइक्रोमेट प्राप्त होता है।
Na2Cr2O7 + 2KCl → K2Cr2O7 + 2NaCl
विलयन से नारंगी रंग के क्रिस्टल, क्रिस्टलीकृत हो जाते हैं। पोटैशियम डाइक्रोमेट विलयन का pH बढ़ाने पर अर्थात् क्षारीय माध्यम करने पर यह क्रोमेट में बदल जाता है।
प्रश्न 8.15.
पोटैशियम डाइक्रोमेट की ऑक्सीकरण क्रिया का उल्लेख कीजिए तथा निम्नलिखित के साथ आयनिक समीकरण लिखिए-
(i) आयोडाइड आयन
(ii) आयरन (II) विलयन
(iii) H2S
उत्तर:
पोटैशियम डाइक्रोमेट प्रबल ऑक्सीकारक होता है। अम्लीय माध्यम में डाइक्रोमेट आयन की ऑक्सीकरण क्रिया को निम्न प्रकार दर्शाया जाता है, इसमें Cr+6, Cr+3 में बदलता है।
(i) आयोडाइड आयन – K2Cr2O7, आयोडाइड आयन को आयोडीन में ऑक्सीकृत करता है।
(ii) आयरन (II) विलयन – K2Cr2O7, Fe2+ को Fe+3 में ऑक्सीकृत कर देता है।
(iii) H2S – डाइक्रोमेट, H2S को सल्फर में ऑक्सीकृत करता है।
प्रश्न 8.16.
पोटैशियम परमैंगनेट को बनाने की विधि का वर्णन कीजिए । अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट किस प्रकार – (i) आयरन (II) आयन (ii) SO2 तथा (iii) ऑक्सैलिक अम्ल से अभिक्रिया करता है? अभिक्रियाओं के लिए आयनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर:
पोटैशियम परमैंगनेट बनाने के लिए MnO2 को KOH या KNO3 जैसे ऑक्सीकारक के साथ संगलित किया जाता है, इससे गाढ़े हरे रंग का पोटैशियम मैंगनेट (K2MnO4) बनता है जो उदासीन या अम्लीय माध्यम में असमानुपातित होकर पोटैशियम परमैंगनेट बनाता है।
प्रयोगशाला में Mn (II) आयन के लवणों को परऑक्सोडाइसल्फेट द्वारा ऑक्सीकृत कराने पर भी परमैंगनेट बनता है।
अम्लीय माध्यम में KMnO, की अभिक्रियाएँ —
(i) आयरन (II) आयन से यह आयरन (II) को आयरन (III) में ऑक्सीकृत कर देता है।
(ii) SO2 से – यह जलीय SO2 को H2SO4 में ऑक्सीकृत करता है।
(iii) ऑक्सैलिक अम्ल से – KMnO4 , के साथ अभिक्रिया से ऑक्सैलिक अम्ल, CO2 में ऑक्सीकृत हो जाता है।
प्रश्न 8.17.
M2+ / M तथा M3+ / M2+ निकाय के संदर्भ में कुछ धातुओं के E° के मान नीचे दिए गए हैं-
उपर्युक्त आँकड़ों के आधार पर निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए-
(i) अम्लीय माध्यम में Cr3+ या Mn3+ की तुलना Fe3+ का स्थायित्व |
(ii) समान प्रक्रिया के लिए क्रोमियम अथवा मैंगनीज धातुओं की तुलना में आयरन के ऑक्सीकरण में सुगमता ।
उत्तर:
(i) जब किसी स्पीशीज का अपचयन विभव (इलेक्ट्रोड विभव) अधिक होता है तो इसके अपचयित होने की प्रवृत्ति अधिक होती है। Mn+3 का अपचयन विभव अधिकतम है इसलिए यह आसानी से Mn2+ में अपचयित हो जाता है अतः Mn+3, Fe+3 से कम स्थायी होता है। लेकिन Cr+3, Fe+3 की तुलना में अधिक स्थायी है क्योंकि Cr+3 का अपचयन विभव, Fe+3 के अपचयन विभव से बहुत कम है।
(ii) जब किसी धातु आयन के इलेक्ट्रोड विभव (अपचयन विभव) का मान कम होता है तो उस धातु परमाणु की ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति अधिक होगी, अतः Mn की Mn+2 में ऑक्सीकृत होने की प्रवृत्ति सर्वाधिक होगी तथा Fe की Fe+2 मैं ऑक्सीकरण की प्रवृत्ति न्यूनतम होगी। इसलिए इनके ऑक्सीकृत होने का क्रम निम्न प्रकार होगा -Mn > Cr > Fe
प्रश्न 8.18.
निम्नलिखित में कौनसे आयन जलीय विलयन में रंगीन होंगे ?
Ti3+, V3+,Cu+,Sc3+, Mn2+, Fe3+ तथा Co2+ प्रत्येक के लिए कारण बताइए ।
उत्तर:
Sc3+ के अतिरिक्त सभी आयन जलीय विलयन में रंगीन होते हैं क्योंकि इनमें d कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं अतः इनमें d-d संक्रमण आसानी से हो जाता है जो इनके रंग के लिए जिम्मेदार होता है।
प्रश्न 8.19.
प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुओं की +2 ऑक्सीकरण अवस्थाओं के स्थायित्व की तुलना कीजिए ।
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी की धातुओं में बाएँ से दाएँ जाने पर +2 ऑक्सीकरण अवस्थाओं का स्थायित्व बढ़ता है तथा बीच में अधिकतम होने के बाद कम होता जाता है क्योंकि प्रारम्भ में d कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं जिससे अन्तर इलेक्ट्रॉनिक प्रतिकर्षण न्यूनतम होता है। उसके पश्चात् d कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन प्रारम्भ हो जाता है। Zn+2 अपवाद है क्योंकि इसमें पूर्णपूरित (3d10) स्थायी विन्यास होता है।
प्रश्न 8.20.
निम्नलिखित के संदर्भ में, लैन्थेनॉयड एवं ऐक्टिनॉयड के रसायन की तुलना कीजिए-
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
(ii) परमाण्वीय एवं आयनिक आकार
(iii) ऑक्सीकरण अवस्था
(iv) रासायनिक अभिक्रियाशीलता ।
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – लैन्थेनॉयडों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में सभी तत्वों में 6s2 होता है तथा 4f में इलेक्ट्रॉन भरता जाता है अर्थात् यह परिवर्तनशील है, लेकिन Ln3+ में 4f1 से 4f14 तक विन्यास पाया जाता है। सभी ऐक्टिनॉयडों में 7s2 विन्यास होता है तथा 5f एवं 6d उपकोशों में परिवर्तनशील विन्यास होता है। 5f उपकोश में 14 इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं। Th तक 5f नहीं होता । Pa से प्रारम्भ होकर Lr तक 5f पूर्णरूप से भर जाता है। लैन्थेनॉयडों के समान ऐक्टिनॉयडों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में अनियमितताएँ, 5f उपकोश में उपस्थित f0, f7 तथा f14 स्थायी विन्यासों के कारण होती हैं।
(ii) परमाण्वीय एवं आयनिक आकार – लैन्थेनॉयडों में La से Lu तक तत्वों की परमाणु एवं आयनिक त्रिज्या में कमी होती है लेकिन परमाणु त्रिज्या में कमी नियमित नहीं होती। ऐक्टिनॉयडों में भी लैन्थेनॉयडों के समान परमाणु या M3+ आयनों के आकार में क्रमिक कमी होती है, इसे ऐक्टिनॉयड संकुचन कहते हैं। लेकिन आकार में यह कमी एक तत्व से दूसरे तत्व में उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है जो कि 51 इलेक्ट्रॉनों के दुर्बल परिरक्षण प्रभाव के कारण है।
(iii) ऑक्सीकरण अवस्था – लैन्थेनॉयडों में मुख्य रूप से +3 ऑक्सीकरण अवस्था पायी जाती है लेकिन कुछ तत्व +2 तथा +4 अवस्था भी दर्शाते हैं।
लैन्थेनॉयडों के समान ऐक्टिनॉयड भी +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं, लेकिन इनमें अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (+3 से +7 ) भी पायी जाती हैं।
लैन्थेनॉयड तथा ऐक्टिनॉयड दोनों में ही +4 की अपेक्षा +3 अवस्था में अधिक यौगिक बनते हैं तथा + 3 एवं +4 अवस्था वाले आयनों की जल अपघटित होने की प्रवृत्ति होती है।
(iv) रासायनिक अभिक्रियाशीलता (Chemical reactivity)-लैन्थेनॉयडों तथा ऐक्टिनॉयडों में कुछ समानता लेकिन कुछ भिन्नता भी होती है।
- लैन्थेनॉयडों में लैन्थेनॉयड संकुचन होता है उसी प्रकार ऐक्टिनॉयडों में ऐक्टिनॉयड संकुचन पाया जाता है।
- लैन्थेनॉयडों के कुछ आयन रंगहीन होते हैं जबकि ऐक्टिनॉयडों के आयन रंगीन होते हैं।
- लैन्थेनॉयड आसानी से संकुल नहीं बनाते लेकिन ऐक्टिनॉयडों में संकुल बनाने की प्रवृत्ति अधिक होती है।
- लैन्थेनॉयड ऑक्सो धनायन नहीं बनाते जबकि ऐक्टिनॉयड \(\mathrm{UO}_2^{2+}, \mathrm{PuO}_2^{2+}\) तथा UO+ जैसे ऑक्सो धनायन बनाते हैं।
- लैन्थेनॉयडों में केवल Pm रेडियोधर्मी है जबकि सभी ऐक्टिनॉयड रेडियोधर्मी होते हैं।
- लैन्थेनॉयडों के चुंबकीय गुणों की व्याख्या आसान है जबकि ऐक्टिनॉयडों के चुंबकीय गुण इनकी तुलना में जटिल होते हैं।
प्रश्न 8.21.
आप निम्नलिखित को किस प्रकार से स्पष्ट करेंगे-
(i) d4 स्पीशीज में से Cr2+ प्रबल अपचायक है जबकि मैंगनीज (III) प्रबल ऑक्सीकारक है।
(ii) जलीय विलयन में कोबाल्ट (II) स्थायी है परन्तु संकुलनकारी अभिकर्मकों की उपस्थिति में यह सरलतापूर्वक ऑक्सीकृत हो जाता है।
(iii) आयनों का d1 विन्यास अत्यंत अस्थायी है।
उत्तर:
(i) Cr2+ प्रबल अपचायक है क्योंकि इसमें से एक इलेक्ट्रॉन निकलने पर d4 से d3 में परिवर्तन होता है तथा d3 विन्यास (\(t_{2 g}^3\)) अधिक स्थायी होता है क्योंकि यह अर्धपूरित है। Mn(III) द्वारा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके Mn (II) में परिवर्तित होने पर 3d4 से 3d5 हो जाता है तथा 3d5 एक अर्धपूरित स्थायी विन्यास है । अतः मैंगनीज (III) प्रबल ऑक्सीकारक है।
(ii) संकुलनकारी अभिकर्मक (लिगण्ड) की उपस्थिति में Co(II) आसानी से ऑक्सीकृत होकर Co(III) बनाता है जिसमें 3d6 विन्यास है। इसका कारण यह है कि संकुल बनने पर प्राप्त क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, (CFSE) Co+3 बनने के लिए आवश्यक तृतीय आयनन ऊर्जा की पूर्ति कर देती है तथा +3 अवस्था में स्थायी अष्टफलकीय संकुल बन जाते हैं जो कि सामान्यतः प्रतिचुम्बकीय होते हैं।
(iii) d1 विन्यास के आयन अत्यंत अस्थायी होते हैं क्योंकि d1 विन्यास से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए आवश्यक आयनीकरण ऊर्जा की पूर्ति जलयोजन ऊर्जा या जालक ऊर्जा द्वारा आसानी से हो जाती है तथा d1 विन्यास से इलेक्ट्रॉन निकलने पर प्राप्त विन्यास (d0) स्थायी होता है। कुछ उदाहरणों में असमानुपातन भी होता है।
प्रश्न 8.22.
असमानुपातन से आप क्या समझते हैं ? जलीय विलयन में असमानुपातन अभिक्रियाओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
असमानुपातन (Disproportionation) – किसी स्पीशीज में किसी तत्व के लिए जब एक ऑक्सीकरण अवस्था अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं (कम तथा अधिक) से कम स्थायी होती है तो इस स्पीशीज के एक परमाणु का ऑक्सीकरण तथा दूसरे परमाणु का अपचयन हो जाता है। इस क्रिया को असमानुपातन कहते हैं।
प्रश्न 8.23.
प्रथम संक्रमण श्रेणी में कौनसी धातु बहुधा (frequently) तथा क्यों +1 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाती है?
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी में Cu बहुधा (+1) स्थायी ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाता है, क्योंकि इसके फलस्वरूप 3d10 स्थायी विन्यास प्राप्त होता है। Cu+1 = [Ar] 3d10
प्रश्न 8.24.
निम्नलिखित गैसीय आयनों में अ (अयुग्मित) इलेक्ट्रॉनों की गणना कीजिए ।
Mn3+, Cr3+, V3+ तथा Ti3+ इनमें से कौनसा जलीय विलयन में अतिस्थायी है ?
उत्तर:
इन आयनों में से जलीय विलयन में Cr3+ सबसे अधिक स्थायी होता है। क्योंकि इसमें अर्धपूरित विन्यास (\(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}^3\)) होता है, जो कि स्थायी होता है।
प्रश्न 8.25.
उदाहरण देते हुए संक्रमण धातुओं के रसायन के निम्नलिखित अभिलक्षणों का कारण बताइए –
(i) संक्रमण धातु का निम्नतम ऑक्साइड क्षारकीय है, जबकि उच्चतम ऑक्साइड उभयधर्मी या अम्लीय है।
(ii) संक्रमण धातु की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ऑक्साइडों तथा फ्लुओराइडों में प्रदर्शित होती है।
(iii) धातु के ऑक्सोऋणायनों में उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित होती है।
उत्तर:
(i) संक्रमण धातुओं के ऑक्साइड निम्नतम ऑक्सीकरण अवस्था में क्षारकीय तथा उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था में उभयधर्मी या अम्लीय होते हैं क्योंकि निम्न ऑक्सीकरण अवस्था में बन्ध बनाने में थोड़े से इलेक्ट्रॉन ही प्रयुक्त होते हैं अतः प्रभावी नाभिकीय आवेश कम होता है इस कारण ये आसानी से इलेक्ट्रॉन दे सकते हैं इसलिए ये क्षारीय होते हैं लेकिन उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में प्रभावी नाभिकीय आवेश अधिक होने के कारण इनमें इलेक्ट्रॉन लेने की प्रवृत्ति अधिक होती है अतः ये मुख्यतः अम्लीय तथा कभी-कभी उभयधर्मी होते हैं। उदाहरण-
(ii) ऑक्सीजन तथा फ्लुओरीन की उच्च विद्युतॠणता तथा छोटे आकार के कारण ये धातुओं को उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था तक ऑक्सीकृत कर देते हैं अतः संक्रमण धातुओं की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ऑक्साइडों तथा फ्लुओराइडों में ही प्रदर्शित होती है।
(iii) संक्रमण धातुओं के ऑक्सोऋणायन इनके उच्च ऑक्सीकरण अवस्था युक्त ऑक्साइडों की अम्ल तथा क्षार से क्रिया करवाने पर ही बनते हैं। अतः ऑक्सोऋणायनों में भी धातु की ऑक्सीकरण अवस्था उच्च होगी तथा इन ऑक्सोऋणायनों में धातु के साथ उच्च विद्युतऋणी ऑक्सीजन जुड़ी होती है।
प्रश्न 8.26.
निम्नलिखित को बनाने के लिए विभिन्न पदों का उल्लेख कीजिए-
(i) क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7
(ii) पाइरोलुसाइट से KMnO4
उत्तर:
(i) क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7 बनाना-
क्रोमाइट अयस्क से K2Cr2O7 बनाने में निम्नलिखित तीन पद होते हैं-(a) क्रोमाइट अयस्क को वायु की उपस्थिति में सोडियम कार्बोनेट के साथ संगलित करना-
4FeCr2O4 + 8Na2CO3 + 7O2 → 8Na2 CrO4 + 2Fe2O3 + 8CO2
(b) Na2CrO4 के विलयन को छानकर सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा अम्लीकृत करना तथा सोडियम डाइक्रोमेट के क्रिस्टल प्राप्त करना-
(ii) पाइरोलुसाइट से KMnO4 बनाना – पाइरोलु साइट (MnO2) से KMnO4 बनाने के लिए पाइरोलुसाइट को KOH के साथ संगलित करके वायु या KNO3 द्वारा ऑक्सीकृत करते हैं, तथा प्राप्त \(\mathrm{MnO}_4^{2-}\) आयन का क्षारीय माध्यम में वैद्युत अपघटनी ऑक्सीकरण किया जाता है।
प्रश्न 8.27.
मिश्र धातुएँ क्या हैं? लैन्थेनॉयड धातुओं से युक्त एक प्रमुख मिश्र धातु का उल्लेख कीजिए। इसके उपयोग भी बताइए |
उत्तर:
मिश्र धातु – दो या दो से अधिक धातुओं या धातु तथा अधातु का समांगी मिश्रण मिश्र धातु कहलाता है।
लैन्थेनॉयड धातुओं से युक्त एक प्रमुख मिश्रधातु, मिश धातु है जिसमें ~ 95% एक लैन्थेनॉयड धातु, ~ 5% आयरन तथा थोड़ा-सा S, C, Ca तथा Al होता है। मिश धातु की अत्यधिक मात्रा, मैग्नीशियम आधारित मिश्र धातुओं में प्रयुक्त होती है जिसका उपयोग बंदूक की गोली, कवच या खोल तथा हल्के फ्लिंट के उत्पादन में किया जाता है।
प्रश्न 8.28.
आंतरिक संक्रमण तत्व क्या हैं? बताइए कि निम्नलिखित में कौनसे परमाणु क्रमांक आंतरिक संक्रमण तत्वों के हैं–
29, 59, 74, 95, 102, 104
उत्तर:
आन्तरिक संक्रमण तत्व ( Inner Transition Elements) वे तत्व होते हैं जिनमें परमाणु या किसी ऑक्सीकरण अवस्था में बाह्यतम तीन कोश अपूर्ण होते हैं तथा इनके fकक्षक अपूर्ण होते हैं। ये । खण्ड के तत्व होते हैं। इनकी दो श्रृंखलाएं होती हैं- (i) लैन्थेनॉयड (Z= 58 से 71) तथा (ii) ऐक्टिनॉयड (Z = 90 से 103)। उपर्युक्त में से परमाणु क्रमांक 59, 95 तथा 102 आंतरिक संक्रमण तत्वों के हैं।
प्रश्न 8.29.
ऐक्टिनॉयड तत्वों का रसायन उतना नियमित नहीं है जितना कि लैन्थेनॉयड तत्वों का रसायन । इन तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं के आधार पर इस कथन का आधार प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर:
ऐक्टिनॉयड तत्वों के रसायन में लैन्थेनॉयडों के रसायन की तुलना में कम नियमितता होती है क्योंकि ऐक्टिनॉयड श्रेणी में ऑक्सीकरण अवस्थाओं की परास अधिक है। इसका कारण 5f, 6d तथा 7s स्तरों की लगभग समान ऊर्जा है।
ऐक्टिनॉयड सामान्यतः +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। श्रेणी के प्रारंभिक अर्ध-भाग वाले तत्व सामान्यतः उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं। जैसे Th में +4, Pa, U तथा Np में क्रमश: +5, +6 तथा +7 ऑक्सीकरण अवस्था होती है परन्तु बाद के तत्वों में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ कम होती जाती हैं अतः प्रारम्भ एवं बाद वाले ऐक्टिनॉयडों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं में अधिक अनियमितता होती है।
प्रश्न 8.30.
ऐक्टिनॉयड श्रेणी का अंतिम तत्व कौन-सा है ? इस तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। इस तत्व की संभावित ऑक्सीकरण अवस्थाओं पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर:
ऐक्टिनॉयड श्रेणी का अंतिम तत्व लारेंशियम है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित है-
103Lr = [Rn]5f146d17s2
Lr की संभावित ऑक्सीकरण अवस्था +3 है क्योंकि इसमें पूर्ण पूरित स्थायी विन्यास (4f14) पाया जाता है।
Lr3+ = [Rn]4f14
प्रश्न 8.31.
हुंड – नियम के आधार पर Ce3+ आयन के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को व्युत्पन्न कीजिए तथा ‘प्रचक्रण मात्र सूत्र’ (spin only formula) के आधार पर इसके चुंबकीय आघूर्ण की गणना कीजिए ।
उत्तर:
Ce का परमाणु क्रमांक 58 है तथा इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ! 54Ce = [Xe]4f1 5d1 6s2 होता है अतः Ce3+ आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Xe] 4f1 होगा जिसमें केवल एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित है अतः इसका चुम्बकीय आघूर्ण (µ)
µ = \(\sqrt{n(n+2)}\) B.M.
n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 1
µ = \(\sqrt{1(1+2)}\) = √3 = 1.732 B.M.
अतः Ce3+ का चुम्बकीय आघूर्ण = 1.732 B.M. होगा।
प्रश्न 8.32.
लैन्थेनॉयड श्रेणी के उन सभी तत्वों का उल्लेख कीजिए जो +4 तथा जो +2 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाते हैं। इस प्रकार के व्यवहार तथा उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के बीच संबंध स्थापित कीजिए |
उत्तर:
लैन्थेनॉयड श्रेणी में +4 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाने वाले तत्व निम्नलिखित हैं-
सीरियम (58Ce), प्रैजियोडिमियम (59Pr), नियोडिमियम (60Nd), टर्बियम (65Tb) तथा डिसप्रोसियम (66Dy ) । इसी प्रकार +2 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाने वाले मुख्य लैन्थेनॉयड निम्न हैं- यूरोपियम (63Eu) तथा इटर्बियस (70Yb)।
लैन्थेनॉयडों में +4 तथा +2 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ रिक्त, अर्धपूरित तथा पूर्णपूरितf उपकोशों के अधिक स्थायित्व के कारण होती हैं। जैसे Ce+4 में उत्कृष्ट गैस विन्यास 4f0 है, इसी प्रकार Tb4+ तथा Eu2+ में 4f7 (अर्धपूरित) तथा Yb+2 में 4f14 (पूर्ण पूरित) विन्यास होता है।
प्रश्न 8.33. निम्नलिखित के संदर्भ में ऐक्टिनॉयड श्रेणी के तत्वों तथा लैन्थेनॉयड श्रेणी के तत्वों के रसायन की तुलना कीजिए । (i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (iii) रासायनिक अभिक्रियाशीलता ।
उत्तर:
इसके लिए पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रश्न संख्या 8.20 का उत्तर देखें।
प्रश्न 8.34.
61, 91, 101 तथा 109 परमाणु क्रमांक वाले तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 8.35.
प्रथम श्रेणी के संक्रमण तत्वों के अभिलक्षणों की द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी के वर्गों के संगत तत्वों से ऊर्ध्वाधर वर्गों में तुलना कीजिए । निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष महत्व दीजिए-
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
(ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ
(iii) आयनन एन्थैल्पी तथा
(iv) परमाण्वीय आकार ।
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास – प्रथम संक्रमण श्रेणी में इलेक्ट्रॉन 3d कक्षकों में भरे जाते हैं जबकि द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी में इलेक्ट्रॉन क्रमशः 4d तथा 5d कक्षकों में भरे जाते हैं तथा सामान्यतः किसी वर्ग के सभी तत्वों का विन्यास समान होता है लेकिन इसके अपवाद भी होते हैं. जो कि संक्रमण तत्वों में भी हैं।
(ii) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ — संक्रमण तत्वों के किसी वर्ग के सभी तत्वों द्वारा सामान्यतः समान ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाई जाती हैं। ये श्रेणी के मध्य में अधिकतम तथा अन्त में न्यूनतम होती हैं।
(iii) आयनन एन्थैल्पी – प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों की तुलना में द्वितीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों की आयनन एन्थैल्पी का मान कम होता है लेकिन तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों की आयनन एन्थैल्पी का मान द्वितीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों से अधिक होता है।
(iv) परमाण्वीय आकार — द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों के परमाणु आकार प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों से अधिक होते हैं। लेकिन लैन्थेनॉयड संकुचन के कारण द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों के आकार लगभग समान होते हैं।
प्रश्न 8.36.
निम्नलिखित आयनों में प्रत्येक के लिए 3d इलेक्ट्रॉनों की संख्या लिखिए-
Ti2+, V2+, Cr3+, Mn2+, Fe2+, Fe3+, Co2+, Ni2+, Cu2+
आप इन जलयोजित आयनों (अष्टफलकीय) में पाँच 3d कक्षकों को किस प्रकार अधिग्रहीत ( occupied ) करेंगे? दर्शाइए |
उत्तर:
जलयोजित आयनों में जल (H2O) लिगेण्ड का कार्य करता है जिसके कारण समान ऊर्जा के पाँच 3d कक्षक दो भागों में विभाजित हो जाते हैं- t2g तथा egl t2g कक्षकों की ऊर्जा eg कक्षकों से कम होती है। t2g तथा eg | t2g कक्षकों के मध्य ऊर्जा अन्तर कम होता है क्योंकि H2O एक दुर्बल लिगेण्ड है। विभिन्न आयनों के इलेक्ट्रॉन इन कक्षकों में निम्न प्रकार भरे जाते हैं-
प्रश्न 8.37.
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्व भारी संक्रमण तत्वों के अनेक गुणों से भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर:
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों तथा भारी संक्रमण तत्वों के गुणों में निम्नलिखित भिन्नता होती है-
(i) प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्व सामान्यतया +2 तथा +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं जबकि भारी संक्रमण तत्वों में उच्च ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थायी होती है।
(ii) प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों में धातु- धातु (M-M) बन्ध नहीं होता जो कि भारी संक्रमण तत्वों में सामान्यतः पाया जाता है। इसी कारण भारी संक्रमण तत्वों के गलनांक प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों के गलनांक से अधिक होते हैं।
(iii) प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों में उच्च समन्वयी संख्या वाले संकुल नहीं बनते, जैसे 7 या 8 जबकि भारी संक्रमण तत्व 7 या 8 समन्वयी संख्या वाले संकुल भी बनाते हैं।
(iv) प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों में लिगण्ड की प्रकृति (प्रबलता ) आधार पर निम्न चक्रण संकुल तथा उच्च चक्रण संकुल बनते हैं जबकि भारी संक्रमण तत्व हमेशा निम्न चक्रण संकुल ही बनाते हैं।
प्रश्न 8.38.
निम्नलिखित संकुल स्पीशीज के चुंबकीय आघूर्णी के मान से आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे ?
उत्तर:
(i) K4[Mn(CN)6] का चुम्बकीय आघूर्ण = 2.2 B.M. दिया गया है। सैद्धान्तिक आधार पर सूत्र, µ = \(\sqrt{n(n+2)}\) BM
के अनुसार n = 1 होने पर µ का मान 1.732 BM आता है जो कि 2.2 के लगभग समान है।
अतः इस संकुल में Mn पर d2 sp3 संकरण होगा क्योंकि \(\overline{\mathrm{C}} \mathrm{N}\) प्रबल लिगण्ड है जिसके कारण Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (t2g)5 होगा, जिसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है। अतः यह संकुल अनुचुम्बकीय है।
(ii) [Fe (H2O)6]2+ के लिए µ = 5.3BM दिया गया है।
अतः सूत्रानुसार n = 4 लेने पर µ = 4.89BM आता है जो कि 5.3 के लगभग समान है। अतः इस संकुल में Fe पर sp3d2 संकरण होगा क्योंकि H2O दुर्बल लिगण्ड है जिससे Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (t2g)4 (eg)2 होगा, जिसमें चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं। अतः यह संकुल भी अनुचुम्बकीय है।
(iii) K2[MnCl4] के लिए µ = 5.9BM दिया है।
अतः सूत्रानुसार n = 5 लेने पर µ = 5.91BM आता है जो कि 5.9 के लगभग समान है। अतः इस संकुल में Mn पर sp3 संकरण होगा तथा Cl– दुर्बल लिगण्ड है। जिसकी उपस्थिति में Mn+2 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (eg)2 (t2g)3 होगा, जिसमें 5 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं। अतः यह संकुल भी अनुचुम्बकीय है।
HBSE 12th Class Chemistry d- एवं f-ब्लॉक के तत्व Intext Questions
प्रश्न 8.1.
सिल्वर परमाणु की मूल अवस्था में पूर्ण भरित d कक्षक (4d10) हैं। आप कैसे कह सकते हैं कि यह एक संक्रमण तत्व है?
उत्तर:
सिल्वर (Z=47),+1 के अलावा + 2 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करता है, जिसमें इसके 4d कक्षक अपूर्ण हैं अतः यह संक्रमण तत्व है क्योंकि संक्रमण तत्व वे होते हैं जिनमें परमाणु अवस्था या किसी भी ऑक्सीकृत अवस्था में d- कक्षक अपूर्ण होता है।
प्रश्न 8.2.
श्रेणी Sc(Z=21) से Zn(Z=30) में, जिंक की कणन एन्थैल्पी (Enthalpy of atomisation) का मान सबसे कम होता है, अर्थात् 126 kJ mol-1; क्यों?
उत्तर:
जिंक में 3d कक्षकों के इलेक्ट्रॉन धात्विक बन्ध बनाने में प्रयुक्त नहीं होते हैं क्योंकि इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d104s2 होता है जबकि 3d श्रेणी के अन्य सभी धातुओं के d कक्षक अपूर्ण भरे होने के कारण ये इलेक्ट्रॉन धात्विक बनाने में प्रयुक्त होते हैं। अतः Zn में धात्विक बन्ध दुर्बल होता है इसलिए इसकी कणन एन्थैल्पी (परमाणुकरण की एन्थैल्पी) सबसे कम होती है।
प्रश्न 8.3.
संक्रमण तत्वों की 3d श्रेणी का कौन-सा तत्व बड़ी संख्या में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाता है एवं क्यों?
उत्तर:
संक्रमण तत्वों की 3d श्रेणी में Mn सबसे अधिक संख्या में ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (+2 से +7) दर्शाता है क्योंकि इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d54s2 होने के कारण इसमें सर्वाधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं।
प्रश्न 8.4.
कॉपर के लिए E°(M2+/M) का मान धनात्मक (+0.34 V) है। इसके संभावित कारण क्या हैं?
उत्तर:
किसी धातु के लिए E° (M2+/M) (इलेक्ट्रोड विभव) का मान परमाणुकरण की एन्थैल्पी (△aH°), आयनन एन्थैल्पी (△iH) तथा
जलयोजन एन्थैल्पी △hydH° पर निर्भर करता है। Cu(s) से \(\mathrm{Cu}_{(\mathrm{g})}^{+2}\) बनने के लिए आवश्यक उच्च आयनन एन्थैल्पी तथा परमाणुकरण एन्थैल्पी Cu2+ की निम्न जलयोजन एन्थैल्पी द्वारा संतुलित नहीं हो पाती है, अतः Cu2+ के लिए अपचयन विभव का मान धनात्मक होता है।
प्रश्न 8.5.
संक्रमण तत्वों की प्रथम श्रेणी में आयनन एन्थैल्पी (प्रथम और द्वितीय) में अनियमित परिवर्तन को आप कैसे समझायेंगे?
उत्तर:
संक्रमण तत्वों की प्रथम श्रेणी में प्रथम और द्वितीय आयनन एन्थैल्पी में अनियमित परिवर्तन विभिन्न 3d विन्यासों के स्थायित्व की क्षमता में भिन्नता के कारण है। उदाहरण d0, d5, d10 विन्यास असामान्य रूप से स्थायी होते हैं। अतः इनकी आयनन एन्थैल्पी उच्च होती है।
प्रश्न 8.6.
कोई धातु अपनी उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था केवल ऑक्साइड अथवा फ्लुओराइड में ही क्यों प्रदर्शित करती है?
उत्तर:
किसी धातु की उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था ऑक्साइड अथवा फ्लुओराइड में ही होती है क्योंकि छोटे आकार, उच्च विद्युतऋणता तथा उच्च धनात्मक अपचयन विभव के कारण ऑक्सीजन अथवा फ्लुओरीन, धातु को उसकी उच्च ऑक्सीकरण अवस्था तक ऑक्सीकृत कर देती है।
प्रश्न 8.7.
Cr2+ और Fe2+ में से कौन प्रबल अपचायक है और क्यों?
उत्तर:
Fe2+ की तुलना में Cr2+ एक प्रबल अपचायक पदार्थ है, क्योंकि Cr2+ से Cr3+ बनने में d4 का d3 में परिवर्तन होता है किन्तु Fe2+ Fe3+बनने में d6 का d5 में परिवर्तन होता है तथा जल जैसे माध्यम में d5 की तुलना में d3 अधिक स्थायी है। इसका कारण \(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}^3}\) विन्यास का अधिक स्थायी होना है तथा इनके E° मानों से भी यह स्पष्ट हो जाता है।
प्रश्न 8.8.
M2+(aq) आयन (Z=27) के लिए ‘प्रचक्रणमात्र’ (spin only) चुंबकीय आघूर्ण की गणना कीजिए।
उत्तर:
परमाणु क्रमांक Z = 27 के तत्व (M) के लिए इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar]3d74s2
अतः M2+ के लिए इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar]3d7
इसमें तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन (n) हैं-
अतः चुम्बकीय आघूर्ण (µ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) B.M.
µ = \(\sqrt{3(3+2)}\) = √15 = 3.87 B.M.
प्रश्न 8.9.
स्पष्ट कीजिए कि Cu2+ आयन जलीय विलयन में स्थायी नहीं है, क्यों? समझाइए।
उत्तर:
\(\mathrm{Cu}_{\text {(aq) }}^{+}\) की तुलना में \(\mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{+2}\) अधिक स्थायी होता है। Cu के लिए द्वितीय आयनन एन्थैल्पी का मान उच्च होता है लेकिन Cu2+ की \(\Delta_{\text {hyd }} \mathrm{H}^{\ominus}\) का मान Cu+ की तुलना में उच्च ऋणात्मक होने के कारण यह द्वितीय आयनन एन्थैल्पी को संतुलित कर देता है अतः जलीय विलयन में Cu+ अस्थायीं होता है अतः यह असमानुपातित होकर Cu2+ बना देता है। इसके लिए \(\mathrm{E}^{\ominus}\) मान भी अनुकूल है।
\(2 \mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{+} \rightarrow \mathrm{Cu}_{(\mathrm{aq})}^{2+}+\mathrm{Cu}(\mathrm{s})\)
प्रश्न 8.10.
लैन्थेनॉयड आकुंचन (संकुचन contraction) की तुलना में एक तत्व से दूसरे तत्व के बीच ऐक्टिनॉयड आकुंचन अधिक होता है। क्यों?
उत्तर:
लैन्थेनॉयड संकुचन की तुलना में एक तत्व से दूसरे तत्व के बीच ऐक्टिनॉयड संकुचन अधिक होता है, क्योंकि 5f इलेक्ट्रॉन नाभिकीय आवेश से प्रभावी रूप से आकर्षित रहते हैं। अर्थात् श्रेणी में एक तत्व से दूसरे तत्व की ओर जाने पर 5f इलेक्ट्रॉनों का परिरक्षण प्रभाव दुर्बल होता है।