Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक
प्रश्न 9.1.
वर्नर की अभिधारणाओं के आधार पर उपसहसंयोजन यौगिकों में आबंधन (bonding) को समझाइए।
उत्तर:
सर्वप्रथम वर्नर नामक वैज्ञानिक ने उपसहसंयोजन यौगिकों की संरचना की व्याख्या की। उन्होंने बहुत से उपसहसंयोजन यौगिक बनाकर प्रयोगों द्वारा उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन किया तथा इन यौगिकों की विशेषताओं को बताया। वर्नर के अनुसार धातु आयन की दो प्रकार की संयोजकता
एँ होती हैं प्राथमिक संयोजकता तथा द्वितीयक संयोजकता साधारण यौगिक जैसे PdCl2 तथा CrCl3 में Pd तथा Cr की प्राथमिक संयोजकता क्रमशः 2 तथा 3 है।
वर्नर ने CoCl3 तथा NH3 की क्रिया से विभिन्न यौगिक बनाकर उनका अध्ययन किया तथा यह देखा कि सामान्य ताप पर इनके जलीय विलयन के आधिक्य में AgNO3 विलयन डालने पर कुछ क्लोराइड आयन ही AgCl के रूप में अवक्षेपित होते हैं तथा कुछ क्लोराइड आयन विलयन में ही रहते हैं। सभी यौगिकों के एक-एक मोल लेने पर CoCl3.6NH3(पीला) से 3 मोल AgCl, CoCl3.5NH3 [नीललोहित (बैंगनी)) से 2 मोल AgCl, CoCl3. 4NH3 (हरा) से 1 मोल AgCl तथा CoCl3.4NH3 (बैंगनी ) से 1 मोल AgCl बनता है।
इन प्रेक्षणों से ज्ञात होता है कि ये यौगिक संकुल के रूप में पाए जाते हैं जिनके सूत्र निम्नलिखित प्रकार से लिखे जाते हैं जो कि विलयनों में चालकता मापन के परिणामों से सिद्ध हो जाते हैं। इन संकुलों में बड़े कोष्ठक में उपस्थित परमाणु एकल सत्ता (single entity) के रूप में रहते हैं जिनका वियोजन नहीं होता तथा इनमें कोबाल्ट की द्वितीयक संयोजकता 6 है जो NH3 या Cl– या दोनों द्वारा संतुष्ट होती है।
क्र.सं. | रंग | सूत्र | विलयन चालकता संबंध |
1. | पीला | [Co(NH3)6]3+3Cl– | 1: 3 विद्युत अपघट्य |
2. | बैंगनी | [CoCl(NH3)5]2+2Cl– | 1: 2 विद्युत अपघट्य |
3. | हरा | [CoCl2(NH3)4]+Cl– | 1: 1 विद्युत अपघट्य |
4. | बैंगनी | [CoCl2(NH3)4]+Cl– | 1: 1 विद्युत अपघट्य |
उपर्युक्त सारणी में यौगिक 3 तथा 4 के मूलानुपाती सूत्र समान होते. हुए भी इनके गुणों में भिन्नता होती है अतः इन्हें एक-दूसरे के समावयवी (Isomers) कहते हैं।
इन प्रेक्षणों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर वर्नर (1898) ने उपसहसंयोजन यौगिकों का सिद्धान्त दिया जिसकी मुख्य अभिधारणाएँ निम्नलिखित हैं-
(i) उपसहसंयोन यौगिकों में धातुएँ दो प्रकार की संयोजकताएं दर्शाती हैं – प्राथमिक तथा द्वितीयक । प्राथमिक संयोजकता धातु के ऑक्सीकरण अंक के बराबर होती है। इसे मुख्य या आयनिक संयोजकता भी कहते हैं।
(ii) प्राथमिक संयोजकताएँ सामान्यतः आयननीय (lonisable) होती हैं तथा ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती हैं।
(iii) द्वितीयक संयोजकताएँ अन आयननीय (Non-ionisable) होती हैं। ये उदासीन अणुओं या ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती हैं। द्वितीयक संयोजकता धातु की उपसहसंयोजन संख्या (Coordination number) के बराबर होती है। इसे कक्षीय संयोजकता (orbital valance) भी कहते हैं तथा इसका मान किसी धातु के लिए सामान्यतः निश्चित होता है।
(iv) धातु के साथ द्वितीयक संयोजकता से बंधित आयन या समूह विभिन्न उपसहसंयोजन संख्या के अनुसार अन्तराल में (space) विशिष्ट रूप से व्यवस्थित होते हैं।
(v) उपसहसंयोजन यौगिकों में आयनों या समूहों की अन्तराल (त्रिविम) में व्यवस्था को समन्वय बहुफलक (Coordination Polyhedra) कहते हैं।
(vi) बड़े कोष्ठक में लिखी स्पीशीज को संकुल तथा बाहर लिखे आयन को प्रति आयन ( Counter lons) कहते हैं।
(vii) संक्रमण तत्वों के उपसहसंयोजन यौगिकों (Coordination Compounds) में सामान्यतः अष्टफलकीय, चतुष्फलकीय तथा वर्ग समतलीय ज्यामितियाँ पाई जाती हैं। उदाहरण [Co(NH3)6]3+, [CoCI(NH3)5]2+ तथा (CoCl2(NH3)4]+ की ज्यामिति अष्टफलकीय हैं, जबकि [Ni(CO)4] तथा [PtCl4]2- की ज्यामिति क्रमशः चतुष्फलकीय तथा वर्ग समतली होती हैं।
वर्नर के सिद्धान्त की कमियाँ-वर्नर सिद्धान्त की सहायता से संकुल यौगिकों के कण संख्यक गुण तथा चालकता की व्याख्या कर सकते हैं लेकिन वर्नर का सिद्धान्त निम्नलिखित तथ्यों को नहीं समझा सका-
- कुछ ही तत्वों में उपसहसंयोजन यौगिक बनाने का विशिष्ट गुण क्यों होता है?
- उपसहसंयोजन यौगिकों में उपस्थित बंधों में दिशात्मक गुण क्यों पाए जाते हैं?
- उपसहसंयोजन यौगिकों में विशिष्ट चुंबकीय तथा ध्रुवण घूर्ण गुण क्यों पाए जाते हैं?
- इन यौगिकों की ज्यामिति की व्याख्या नहीं की जा सकती है।
प्रश्न 9.2.
FeSO4 विलयन तथा (NH4)2SO4 विलयन का 1: 1 मोलर अनुपात में मिश्रण Fe2+ आयन का परीक्षण देता है परन्तु CuSO4 व जलीय अमोनिया का 1 : 4 मोलर अनुपात में मिश्रण Cu2+ आयनों का परीक्षण नहीं देता। समझाइए क्यों?
उत्तर:
FeSO4 तथा (NH4)2SO4 विलयन के 11 मोलर अनुपात में मिश्रण से द्विक लवण FeSO4(NH4)2SO4.6H2O (मोर लवण) बनता है जो विलयन आयनित होकर Fe2+ आयन देता है अतः यह Fe2+ आयन का परीक्षण देता है लेकिन CuSO4 व जलीय NH3 का 1 : 4 मोलर अनुपात में मिश्रण संकुल लवण [Cu(NH3)4]SO4 बनाता है। इसमें स्थित संकुल आयन [Cu(NH3)4]2+ का आयनन नहीं होता अतः इसमें स्वतंत्र Cu2+ आयन नहीं होते इस कारण यह Cu2+ आयन का परीक्षण नहीं देता।
प्रश्न 9.3.
प्रत्येक के दो उदाहरण देते हुए निम्नलिखित को समझाइए – उपसहसंयोजन सत्ता ( समन्वय सत्ता ), लिगन्ड, उपसहसंयोजन संख्या, उपसहसंयोजन बहुफलक, होमोलेप्टिक तथा हेट्रोलेप्टिक संकुल ।
उत्तर:
(i) उपसहसंयोजन सत्ता या समन्वय सत्ता (Coordination Entity ) – वह स्पीशीज जिसमें केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन से एक निश्चित संख्या में आयन अथवा अणु उपसहसंयोजी बन्ध बनाकर जुड़े होते हैं उसे उपसहसंयोजन सत्ता कहते हैं। जैसे [CoCl3(NH3)3] में कोबाल्ट आयन तीन NH3 अणुओं तथा तीन क्लोराइड आयनों से घिरा है। अन्य उदाहरण – [Ni(CO)4) तथा [Co(NH3)6]3+
(ii) लिगन्ड (Ligand)- उपसहसंयोजन सत्ता (संकुल स्पीशीज) में केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन से जुड़े अणुओं या आयनों को लिगेन्ड कहते हैं। ये धातु को इलेक्ट्रॉन युग्म का दान करके उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। उदाहरण – Cl, H2O तथा NH3
(iii) उपसहसंयोजन संख्या (Coordination Number) (CN)- किसी संकुल स्पीशीज में धातु से बंधित लिगेन्डों के उन दाता परमाणुओं की संख्या को जो सीधे उससे जुड़े होते हैं, उसे धातु की उपसहसंयोजन संख्या या समन्वयी संख्या कहते हैं। उदाहरण-संकुल आयन [PtCl6]2- में Pt की उपसहसंयोजन संख्या 6 है तथा [Ni(NH3)4]2+ में Ni की उपसहसंयोजन संख्या 4 है।
(iv) उपसहसंयोजन बहुफलक या समन्वयी बहुफलक (Coordination Polyhedra) – किसी संकुल स्पीशीज में केन्द्रीय धातु परमाणु से सीधे जुड़े लिगेन्डों की अन्तराल (space) में विशिष्ट व्यवस्था को उपसहसंयोजन बहुफलक कहते हैं। उदाहरण – [Co(NH3)6]3+ अष्टफलकीय तथा [Ni(CO)4] चतुष्फलकीय है।
(v) होमोलेप्टिक तथा हेट्रोलेप्टिक संकुल संकुल जिनमें धातु परमाणु केवल एक ही प्रकार के दाता समूहों से जुड़ा होता है उन्हें होमोलेप्टिक संकुल कहते हैं। जैसे- [Co(NH3)6]3+ तथा वे संकुल जिनमें धातु परमाणु एक से अधिक प्रकार के दाता समूहों से जुड़ा होता है उन्हें हेट्रोलेप्टिक संकुल कहते हैं। उदाहरण- [Co(NH3)4Cl2]+
प्रश्न 9.4.
एकदंतुर (Unidentate), द्विदंतुर तथा उभयदंतुर लिगेन्ड से क्या तात्पर्य है? प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
एकदंतुर लिगेन्ड (Unidentate Ligand)-वह लिगेन्ड जो धातु आयन से एक दाता परमाणु द्वारा जुड़ा होता है उसे एकदंतुर लिगन्ड कहते हैं। जैसे-Cl– H2O तथा NH3
द्विदंतुर लिन्ड (Didentate Ligand) – वह लिगेन्ड जो धातु आयन से दो दाता परमाणुओं द्वारा जुड़ा होता है उसे द्विदंतुर लिगेन्ड कहते हैं। जैसे- C2O2-4 (ऑक्सेलेट) तथा H2N – CH2 – CH2 – NH2 (एथेन-1,2-डाइऐमीन)
उभयदंतुर लिगेन्ड (Ambidentate Ligand) – वह लिगेन्ड जो दो भिन्न-भिन्न परमाणुओं द्वारा धातु से जुड़ सकता है उसे उभयदंतुर लिगेन्ड कहते हैं।
उदाहरण – NO2 तथा SCN– आयन। NO–2 आयन केन्द्रीय धातु परमाणु से नाइट्रोजन अथवा ऑक्सीजन द्वारा जुड़ सकता है। इसी प्रकार, SCN– आयन सल्फर अथवा नाइट्रोजन परमाणु द्वारा जुड़ सकता है।
प्रश्न 9.5.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में धातुओं के ऑक्सीकरण संख्या का उल्लेख कीजिए-
(i) (Co(H2O)(CN)(en)2]2+
(ii) [CoBr2(en)2]+
(iii) [PtCl4]2-
(iv) K3[Fe(CN)6]
(v) [Cr(NH3)3Cl3]
उत्तर:
(i) [Co(H2O)(CN)(en)2]2+
x + 0 + (- 1) + 0 = + 2
x = + 3 अतः Co की ऑक्सीकरण संख्या = + 3
(ii) [CoBr2(en)2]+
x – 2 + 0 = + 1
x = + 3 अतः Co की ऑक्सीकरण संख्या +3
(iii) [PtCl4]2-
x – 4 = – 2
x = + 2 अतः Pt की ऑक्सीकरण संख्या = + 2
(iv) K3[Fe(CN)6]
+ 3 + x – 6 = 0
x = + 3 अतः Fe की ऑक्सीकरण संख्या +3
(v) [Cr(NH3)3Cl3]
x + 0 – 3 = 0
x = + 3 अतः Cr की ऑक्सीकरण संख्या +3
प्रश्न 9.6.
IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के लिये सूत्र लिखिए-
(i) टेट्राहॉइड्राक्सोजिंकेट (II) आयन
(ii) पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II)
(iii) डाइऐम्मीनडाइक्लोरिडोप्लेटिनम (II)
(iv) पोटैशियम टेट्रासायनोनिकैलेट (II)
(v) पेन्टाऐम्मीननाइट्रिटो -O- कोबाल्ट (III) आयन
(vi) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) सल्फेट
(vii) पोटैशियम ट्राइ (आक्सेलेटो) क्रोमेट (III)
(viii) हेक्साऐम्मीन प्लैटिनम (IV) आयन
(ix) टेट्राब्रोमिडोक्यूपेट (II) आयन
(x) पेन्टाऐम्मीननाइट्रिटो – N – कोबाल्ट (III) आयन
उत्तर:
(i) [Zn(OH)4]2-
(ii) K2[PdCl4]
(iii) [Pt(NH3)2Cl2]
(iv) K2[Ni(CN)4]
(v) [Co(NH3)5(ONO)]2+
(vi) [Co(NH3)6](SO4)3]
(vii) K3[Cr(C2O4)3]
(viii) [Pt(NH3)6]4+
(ix) [CuBr4]2-
(x) [Co(NH3)5(NO2)2+
प्रश्न 9.7.
IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के सुव्यवस्थित नाम लिखिए-
(i) [Co(NH3)6]Cl3
(ii) [Pt(NH3)2CI(NH2CH3)]Cl
(iii) [Ti(H2O)6]3+
(iv) [Co(NH3)4Cl(NO2)]Cl
(v) [Mn(H2O)6]2+
(vi) [NiCl4]2-
(vii) [Ni(NH3)6]Cl2
(viii) [Co(en)3]3+
(ix) [Ni(CO)4]
उत्तर:
(i) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) डाइऐम्मीनक्लोरिडो (मेथेन एमीन) प्लेटिनम (II) क्लोराइड
(iii) हेक्साएक्वाटाइटेनियम (III) आयन
(iv) टेट्राऐम्मीनक्लोरिडोनाइट्रिटो-N-कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(v) हेक्साऐक्वामैंगनीज (II) आयन
(vi) टेट्राक्लोरिडोनिकैलेट (II) आयन
(vii) हेक्साऐम्मीननिकैल (II) क्लोराइड
(viii) ट्रिस (एथेन 1, 2 डाइएमीन) कोबाल्ट (III) आयन
(ix) टेट्राकार्बोनिल निकल (O)।
प्रश्न 9.8.
उपसहसंयोजन यौगिकों के लिए संभावित विभिन्न प्रकार की समावयवताओं को सूचीबद्ध कीजिए तथा प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
समावयवता (Isomerism)-ऐसे दो या दो से अधिक यौगिक जिनके रासायनिक सूत्र (अणु सूत्र) समान होते हैं परन्तु उनमें परमाणुओं की व्यवस्था भिन्न होती है, उन्हें एक-दूसरे के समावयवी कहते हैं तथा इस गुण को समावयवता कहते हैं। परमाणुओं की भिन्न व्यवस्थाओं के कारण इनके एक या अधिक भौतिक या रासायनिक गुणों में भिन्नता पाई जाती है। उपसहसंयोजन यौगिकों में दो प्रमुख प्रकार की समावयवताएँ होती हैं जिनको पुनः कई भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
- संरचनात्मक समावयवता
- त्रिविम समावयवता
(a) संरचनात्मक समावयवता (Structural Isomerism)संरचनात्मक समावयवता में यौगिकों में स्थित बन्धों में भिन्नता पाई जाती है अर्थात् इनके संरचनात्मक सूत्र भिन्न होते हैं। संरचनात्मक समावयवता को पुनः सात प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- बंधनी समावयवता
- उपसहसंयोजन या समन्वयी समावयवता
- आयनन समावयवता
- विलायकयोजन समावयवता या हाइड्रेट समावयवता
- लिगेन्ड समावयवता
- बहुलकीकरण समावयवता
- उपसहसंयोजन स्थिति समावयवता।
प्रश्न 9.9.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में कितने ज्यामितीय समावयव संभव हैं?
(क) [Cr(C2O4)3]3-
(ख) [Co(NH3)3Cl3]
उत्तर:
(क) [Cr(C2O4)3]3- में ज्यामितीय समावयवता संभव नहीं है क्योंकि इसकी केवल एक ही प्रकार की व्यवस्था संभव है।
(ख) (Co(NH3)3Cl3] के दो विशेष प्रकार के ज्यामितीय समावयवी संभव हैं- (1) फलकीय (Facial) (Fac) तथा (ii) रेखांशिक (Meridional) (Mer)।
प्रश्न 9.10.
निम्न के प्रकाशिक समावयवों की संरचनाएँ बनाइए-
(i) [Cr(C2O4)3]3-
(ii) [PtCl2(en)2]2+
(iii) [Cr (NH3)2Cl2(en)] +
उत्तर:
(i) [Cr(C2O4)3]3- में C2O2-4 ( ऑक्सेलेट) आयन है जिसका संकेत ox प्रयुक्त किया जाता है। इस संकुल आयन के दो प्रकाशिक समावयवियों की संरचना निम्न प्रकार है-
(ii) [PtCl2(en)2]2+ संकुल आयन के प्रकाशिक समावयवी निम्नलिखित हैं-
(iii) [Cr(NH3)2Cl2(en)]+ के समपक्ष तथा विपक्ष दोनों समावयवी प्रकाशिक समावयवता दर्शाते हैं।
(a) समपक्ष रूप के प्रकाशिक समावयवियों को निम्न प्रकार दर्शाते हैं-
(b) विपक्ष रूप के प्रकाशिक समावयवियों को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-
प्रश्न 9.11.
निम्नलिखित के सभी समावयवियों (ज्यामितीय व ध्रुवण) की संरचनाएँ बनाइए-
(i) [CoCl2(en)2]+
(ii) [Co(NH3)Cl(en)2]2+
(iii) [Co(NH3)2Cl2(en)]+
उत्तर:
(i) [CoCl2(en)2]+ यह संकुल आयन ज्यामितीय समावयवता दर्शाता है अतः इसके समपक्ष तथा विपक्ष रूप होते हैं। इनमें से समपक्ष रूप असममित है अतः यह प्रकाशिक समावयवता दर्शाता है।
(ii) [Co(NH3)Cl(en)2]2+ – इस संकुल आयन में ज्यामितीय समावयवता होती है जिसके समपक्ष तथा विपक्ष रूप निम्न प्रकार होते हैं-
इसका समपक्ष रूप प्रकाशिक समावयवता भी दर्शाता है।
(iii) [Co(NH3)2Cl2(en)]+ – इस संकुल आयन में ज्यामितीय समावयवता होती है जिसके समपक्ष तथा विपक्ष समावयवी निम्नलिखित हैं-
इसके समपक्ष तथा विपक्ष दोनों ही समावयवी प्रकाशिक समावयवता दर्शाते हैं जिनकी संरचनाएँ (i) तथा (ii) की तरह ही बना सकते हैं।
प्रश्न 9.12.
[Pt(NH3)(Br)(Cl)(Py)] के सभी ज्यामितीय समावयवी लिखिए। इनमें से कितने ध्रुवण समावयवता दर्शाएंगे?
उत्तर:
संकुल [PI(NH3)(Br)(CI) (Py)] के तीन ज्यामितीय समावयवी संभव हैं जिनमें से दो समपश्च तथा एक विपक्ष समावयवी माना जाता है। इनकी संरचनाएँ निम्नलिखित हैं-
इस संकुल की वर्गाकार समतलीय ज्यामिति होती है अतः इसमें प्रकाशिक समावयवता (ध्रुवण समावयवता) नहीं होती।
प्रश्न 9.13.
जलीय कॉपर सल्फेट विलयन (नीले रंग का), निम्नलिखित प्रेक्षण दर्शाता है-
(i) जलीय पोटैशियम फ्लुओराइड (KF) के साथ हरा रंग
(ii) जलीय पोटैशियम क्लोराइड (KCI) के साथ चमकीला हरा रंग
उपर्युक्त प्रायोगिक परिणामों को समझाइए।
उत्तर:
जलीय विलयन में CuSO4,[Cu(H2O)4]SO4 के रूप में पाया जाता है, जिसका नीला रंग (Cu(H2O)4]2+ आयनों के कारण होता है।
(i) इसमें जलीय KF मिलाने पर दुर्बल लिगन्ड H2O F– द्वारा प्रतिस्थापित हो जाते हैं तथा [CuF4]2+ आयन बनता है जो हरा अवक्षेप देता है।
(ii) [Cu(H2O)4]2+ में जलीय KCI मिलाया जाता है, तो Cl– लिगेन्ड H2O (दुर्बल लिगन्ड) को प्रतिस्थापित कर [CuCl4]2- आयन बनाता है जिसका रंग चमकीला हरा होता है।
प्रश्न 9.14.
कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन में जलीय KCN को आधिक्य में मिलाने पर बनने वाली उपसहसंयोजन सत्ता क्या होगी ? इस विलयन में जब HS गैस प्रवाहित की जाती है तो कॉपर सल्फाइड का अवक्षेप क्यों नहीं प्राप्त होता ?
उत्तर:
कॉपर सल्फेट का जलीय विलयन [Cu(H2O)4]2+ के रूप में पाया जाता है तथा इसमें जलीय KCN का आधिक्य मिलाने पर निम्नलिखित संकुल आयन बनता है-
चूँकि CN– एक प्रबल लिगन्ड है, अतः यह Cu2+ आयन के साथ स्थायी संकुल बनाता है। इसमें Cu2+ आयन स्वतंत्र नहीं है। अतः इसमें H2S गैस प्रवाहित करने पर Cus का अवक्षेप नहीं बनता।
प्रश्न 9.15
संयोजकता आबंध सिद्धान्त के आधार पर निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में आबंध की प्रकृति की विवेचना कीजिए-
(क) [Fe(CN)6]4-
(ख) [FeF6]3-
(ग) [Co(C2O43]3-
(घ) [CoF6]3-
उत्तर:
(क) [Fe(CN)6]4- : [Fe(CN)6]4- में Fe की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d6
CN– प्रबल लिगन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में 3d में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है।
इस प्रकार दो d कक्षक रिक्त हो जाने के कारण इसमें d²sp³ संकरण होता है। इन d²sp³ संकरित कक्षकों में 6CN– इलेक्ट्रॉन युग्मों का दान करके 6 उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं।
इस संकुल की ज्यामिति अष्टफलकीय है तथा सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होने के कारण यह प्रतिचुम्बकीय है। इसे आंतरिक कक्षक संकुल या निम्न चक्रण (Low spin) संकुल या चक्रण युग्मित (Spin paired ) संकुल कहते हैं।
(ख) [FeF6]3- : [FeF6]3- में Fe की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Fe+3 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d5
F– दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता।
अतः इसमें sp³d² संकरण होता है। इन sp³d² संकरित कक्षकों में 6F–, इलेक्ट्रॉन युग्मों का दान करके 6 उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। यह अष्टफलकीय संकुल है तथा अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण यह अनुचुंबकीय है। इसे बाह्य कथक संकुल या उच्च चक्रण (High spin) या चक्रण मुक्त (Spin free) संकुल कहते हैं।
(ग) [Co(C2O4)3]3- – [Co(C2O4)3]3- में Co की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d6
C2O2-4] – (ऑक्सेलेट) प्रबल लिगन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में 3d कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है।
दो d कक्षक रिक्त हो जाने के कारण इसमें d²sp³ संकरण होता है। इन संकरित कक्षकों में 3C2O-24इलेक्ट्रॉन युग्मों का दान करके 6 उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। इस अष्टफलकीय संकुल में सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होने के कारण यह प्रतिचुंबकीय होता है। इसे आंतरिक कक्षक संकुल कहते हैं।
(घ) [CoF6]3- : [CoF6]3- में Co की ऑक्सीकरण संख्या +3 तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d6
F– दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता।
अतः इसमें sp³d² संकरण होता है। इन संकरित कक्षकों में 6F– इलेक्ट्रॉन युग्मों का दान करके 6 उपसहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। यह अष्टफलकीय संकुल अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण अनुचुंबकीय होता है तथा इसे बाह्य कक्षक संकुल कहते हैं।
प्रश्न 9.16.
अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d कक्षकों के विपाटन को दर्शाने के लिए चित्र बनाइए।
उत्तर:
अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d कक्षकों ‘विपाटन को निम्न प्रकार दर्शाया जाता है-
प्रश्न 9.17.
स्पेक्ट्रम रासायनिक श्रेणी क्या है? दुर्बल क्षेत्र लिगेन्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत के अनुसार अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन, ∆0 लिंगन्ड तथा धातु आयन पर स्थित आवेश से उत्पन्न क्षेत्र पर निर्भर करता है। कुछ लिगेन्ड प्रबल क्षेत्र उत्पन्न करते हैं तथा इस स्थिति में विपाटन अधिक होता है, इन्हें प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड कहते हैं। अन्य लिगड दुर्बल क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जिसके कारण कक्षकों का विपाटन कम होता है, इन्हें दुर्बल क्षेत्र लिगन्ड कहते हैं। लिगेन्डों को उनके बढ़ती हुई क्षेत्र प्रबलता के क्रम में एक श्रेणी में निम्नानुसार व्यवस्थित किया जाता है-
I– < Br– < SCN– < Cl– <S2- <F– < OH– <C2O2-4 < H2O < NCS– < edta4- < NH3 < en < CN– < CO
इस श्रेणी को स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी (spectrochemical series) कहते हैं तथा यह विभिन्न लिगन्डों के साथ बने संकुलों द्वारा प्रकाश के अवशोषण के प्रायोगिक मापन से प्राप्त तथ्यों के आधार पर प्राप्त की जाती है
प्रश्न 9.18.
क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा क्या है? उपसहसंयोजन सत्ता में d कक्षकों का वास्तविक विन्यास ∆0 के मान के आधार पर कैसे निर्धारित किया जाता है?
उत्तर:
अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन- एक अष्टफलकीय संकुल में धातु परमाणु छः लिगेन्डों द्वारा घिरा होता है। इसमें ad कक्षकों के इलेक्ट्रॉनों तथा लिगेन्डों के इलेक्ट्रॉनों के मध्य प्रतिकर्षण होता है। जब धातु होते हैं तो प्रतिकर्षण अधिक होता है। dx² – y² तथा d² कक्षक लिगेन्ड की ओर सीधे निर्दिष्ट (directed) की दिशा वाले अक्षों पर होते हैं, अतः इन पर प्रतिकर्षण अधिक होता है जिससे इनकी ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है जबकि dxy, dyz और dxz कक्षक, अक्षों के बीच में स्थित होते हैं, अतः इनकी ऊर्जा गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र की औसत ऊर्जा की तुलना में कम हो जाती है।
इस प्रकार अष्टफलकीय संकुल में लिगन्ड इलेक्ट्रॉन – धातु इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण के कारण d कक्षकों की समभ्रंशता समाप्त हो जाती है तथा ये तीन निम्न ऊर्जा वाले, t2g कक्षकों तथा दो उच्च ऊर्जा वाले, eg कक्षकों में विभाजित हो जाते हैं। इस प्रकार समान ऊर्जा वाले कक्षकों का, लिगेन्डों की निश्चित ज्यामिति में उपस्थिति से दो भागों में विपाटन क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहलाता है तथा इस ऊर्जा अंतर को ∆0 [यहाँ O = अष्टफलकीय (octahedral)] से दर्शाते हैं। eg कक्षकों की ऊर्जा में (3/5) ∆0 के बराबर वृद्धि होती है तथा t2g कक्षकों की ऊर्जा में (2/5) ∆0 के बराबर कमी होती है। प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड की उपस्थिति में ∆0 का मान अधिक होता है जबकि दुर्बल क्षेत्र लिगेन्ड की उपस्थिति में यह मान कम होता है।
∆ को प्रभावित करने वाले कारक – क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (∆) निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-
- धातु की प्रकृति
- धातु आयन पर आवेश
- लिगेन्ड की प्रकृति
- संकुल की ज्यामिति
- d- इलेक्ट्रॉनों की संख्या
कारक संकुल आयन के रंग को भी प्रभावित करते हैं। धातु आयन पर आवेश बढ़ने से तथा प्रबल क्षेत्र लिगेन्डों की उपस्थिति में विपाटन अधिक होता है।
स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी (Spectrochemical Series) – जब विभिन्न लिगेन्डों को उनकी बढ़ती हुई क्षेत्र प्रबलता के क्रम में रखा जाता है तो प्राप्त श्रेणी को स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी कहते हैं। यह श्रेणी विभिन्न लिडों के साथ बने संकुल यौगिकों द्वारा प्रकाश के अवशोषण के प्रायोगिक मापन से प्राप्त तथ्यों के आधार पर प्राप्त की जाती है। प्रमुख लिगेन्डों के लिए यह श्रेणी निम्नलिखित है-
I– < Br– < SCN– < Cl– < S2- < F– < OH– < C2O42- < H2O < NCS– < EDTA4- + < NH3 < en < NO–2 < CN– < CO
इस श्रेणी में H2O तक के लिगेन्ड दुर्बल क्षेत्र लिगेन्ड (WFL) तथा इससे आगे के लिगेन्ड प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड (SFL) होते हैं।
प्रश्न 9.19.
[Cr(NH3)6)]3+ अनुचुंबकीय है जबकि [Ni(CN)4]2- प्रतिचुंबकीय, समझाइए क्यों?
उत्तर:
[Cr(NH3)6)]3+ में Cr, + 3 ऑक्सीकरण अवस्था में है जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d³ है, जिसमें तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं।
संकरण (d²sp) के पश्चात् भी ये अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित रहते हैं क्योंकि रिक्त d कक्षक ही संकरण में प्रयुक्त होते हैं अतः [Cr(NH3)6]3+ अनुचुंबकीय है लेकिन (Ni(CN)4]2- में Ni, Ni2+ अवस्था में है जिसका विन्यास 3d<sup<>8 है। प्रबल लिगेन्ड (\(\overline{C}\)N) के कारण इसके अयुग्मित इलेक्ट्रॉन संकरण के समय युग्मित हो जाते हैं अतः यह प्रतिचुंबकीय है।
प्रश्न 9.20
[Ni(H2O)6]2+ का विलयन हरा है परन्तु [NI(CN)4]2- का विलयन रंगहीन है। समझाइए।
उत्तर:
[Ni(H2O)6]2+ में उपस्थित Ni2+ के 3d8 विन्यास में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित हैं। H2O दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसके कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता तथा इसमें sp³d² संकरण है।
अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण इस संकुल में dd संक्रमण आसानी से हो जाता है जिसके कारण यह रंगीन (हरा) है परन्तु [Ni (CN)4]2- में CN– प्रबल लिगेन्ड है जिसके कारण Ni2+ के 3d8 विन्यास में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो है अतः इस संकुल में dsp² संकरण के कारण कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है इसलि d – d संक्रमण संभव नहीं है। इस कारण यह रंगहीन है।
प्रश्न 9.21.
[Fe(CN)6]4- तथा [Fe(H2O)6]2+ के तनु विलयनों के रंग भिन्न होते हैं। क्यों?
उत्तर:
Fe (CN)6]4- में CN– प्रबल लिगन्ड है तथा इसमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित हैं (d²sp³ संकरण) अतः इसमें d – d संक्रमण नहीं होता है, इस कारण यह संकुल रंगहीन होता है जबकि [Fe(H2O)6]2+ में H2O दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसमें sp³d² संकरण के पश्चात् भी चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन रहते हैं, जिनके कारण d – d संक्रमण आसानी से हो जाता है। इस कारण यह संकुल रंगीन होता है।
भिन्न-भिन्न लिगेन्ड के कारण क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा भी भिन्न- भिन्न होती है जिसके कारण समान धातु आयन होते हुए भी रंगों में भिन्नता होती है।
प्रश्न 9.22.
धातु कार्बोनिलों में आबंध की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
धातु कार्बोनिलों में बंध की प्रकृति को निम्न प्रकार समझा सकते हैं-होमोलेप्टिक कार्बोनिल यौगिक (जिनमें केवल कार्बोनिल लिगेन्ड हों) सामान्यतः संक्रमण धातुओं द्वारा बनाए जाते हैं। इन धातु कार्बोनिलों की संरचनाएँ सरल होती हैं। टेट्राकार्बोनिलनिकल (0), [Ni(CO)4] चतुष्फलकीय (sp³ संकरण), पेन्टाकार्बोनिल आयरन (O), (Fe(CO)5] त्रिकोणीय द्विपिरैमिडी (sp³d संकरण) तथा हेक्साकार्बोनिलक्रोमियम (0), [Cr(CO)6] अष्टफलकीय (d²sp³ संकरण ) होता है।
कार्बोनिलडाइ मैंगनीज (0), [Mn2(CO)10] में दो वर्ग पिरैमिडी Mn(CO)5 इकाइयां Mn – Mn बंध द्वारा जुड़ी होती हैं। ऑक्टाकार्बोनिलडाइकोबाल्ट (0), [Co2(CO)8] में Co – Co बन्ध के मध्य दो CO समूह सेतु के रूप में पाए जाते हैं।
इनकी संरचनाएँ निम्न प्रकार दर्शाई जा सकती हैं-
धातु कार्बोनिलों में पश्च बन्धन या सहक्रियाशीलता बन्ध (Back Bonding or Synergic Bond in Metal Carbonyls) – धातु कार्बोनिलों के धातु- कार्बन बंध में s तथा p दोनों गुण होते हैं। M-C σ बंध कार्बोनिल (CO) समूह के कार्बन पर उपस्थित एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म धातु के रिक्त कक्षक में दान करने से बनता है तथा M-C π बंध धातु के पूर्ण भरे असंकरित कक्षकों में से एक इलेक्ट्रॉन युग्म को CO के रिक्त विपरीत बन्धी अणुकक्षक (Antibonding M.O) (π*) में दान करने से बनता है।
धातु से लिगेन्ड का बंध एक सहक्रियाशीलता प्रभाव (Synergic effect) उत्पन्न करता है जिसे पश्च बन्धन कहते हैं। इसके कारण धातु पर उपस्थित इलेक्ट्रॉन घनत्व कम हो जाता है, जो धातु तथा CO के मध्य उपस्थित बन्ध की प्रबलता को बढ़ाता है, जिससे धातु कार्बोनिल का स्थायित्व बढ़ जाता है। यहाँ C= O (कार्बोनिल) को π एसिड लिगेन्ड कहते हैं क्योंकि इसके π या π* अणुकक्षक में धातु से इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति होती है।
प्रश्न 9.23.
निम्न संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था, d कक्षकों का अधिग्रहण (Occupation) एवं उपसहसंयोजन संख्या बतलाइए-
(i) K3[Co(C2O4)3]
(ii) cis – [Cr(en)2Cl2]Cl
(iii) (NH4)2[C0F4]
(iv) [Mn(H2O)6]SO4
उत्तर:
(i) K3[Co(C2O4)3] में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है क्योंकि C2O42- (ऑक्सेलेट) द्विदन्तुर (didentate) प्रबल लिगेन्ड है अतः Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t2g6 e0g होगा (Co+3 = 3d6)
(ii) cis – [Cr(en)2Cl2]Cl में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है। इसमें धातु आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 12 है। (Cr+3 = 3d³)
(iii) (NH4)2[CoF] में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 4 है। इसमें धातु आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t³2g e²g है। (Co+2 = 3d7)
(iv) [ Mn (H2O)6]SO4 में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है तथा उपसहसंयोजन संख्या 6 है। इसमें धातु आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t³2g e²g होगा। (Mn3+ = 3d5)
प्रश्न 9.24.
निम्न संकुलों के IUPAC नाम लिखिए तथा ऑक्सीकरण अवस्था, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और उपसहसंयोजन संख्या दर्शाइए। संकुल का त्रिविम रसायन तथा चुंबकीय आघूर्ण भी बतलाइए-
(i) K [Cr(H2O)2 (C2O4)2].3H2O
(ii) [CrCl3(py)3]
(iii) [Co(NH3)5Cl]Cl2
(iv) Cs[FeCl4]
(v) K4[Mn(CN)6]
उत्तर:
(i) K [Cr(H2O)2 (C2O4)2].3H2O : संकुल का IUPAC नाम पोटेशियमडाएएक्वाडाइ – ऑक्सेलेटो क्रोमेट (III) ट्राइहाइड्रेट
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था + 3(3d³)
Cr3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t³2g e0g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 6
संकुल की ज्यामिति = अष्टफलकीय इस संकुल में ज्यामितीय तथा प्रकाशिक समावयवता होती है।
चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) B.M.
Cr3+ = 3d³, अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 3
H = \(\sqrt{3(3+2)}\) = \(\sqrt{15}\) B.M. 3.87B.M.
(ii) [CrCl3(py)3]
ट्राइक्लोरिडोट्रिसपिरी डीनक्रोमियम (III)
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था + 3(3d³)
Cr3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास t³2g e0g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 6
संकुल की ज्यामिति = अष्टफलकीय इस संकुल में ज्यामितीय तथा प्रकाशिक समावयवता होती है।
चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = \(\sqrt{3(3+2)}\) = \(\sqrt{15}\) B.M. 3.87 B.M. (n = 3)
(iii) [Co(NH3)5Cl]Cl2 : संकुल का IUPAC नाम- पेन्टाऐम्मीनक्लोरिडोकोबाल्ट (III) क्लोराइड
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था = + 3(3d6)
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = t62g e0g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 6
संकुल की ज्यामिति = अष्टफलकीय
चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = शून्य, क्योंकि इसमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित हैं।
(iv) Cs[FeCl4] : संकुल का IUPAC नाम- सिजियमटेट्राक्लोरिडोफेरेट (III)
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था = +3 (3d5)
Fe3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = e²g t32g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 4
संकुल की ज्यामिति चतुष्फलकीय
चुम्बकीय आघूर्ण (μ) = \(\sqrt{5(5+2)}\)
= \(\sqrt{35}\) = 5.91B.M. (n = 5)
(v) K4 [Mn (CN)6] : संकुल का IUPAC नाम- पोटैशियमहेक्सासायनोमैंगनेट (II)
धातु की ऑक्सीकरण अवस्था = +2 (3d5)
Mn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = t52g e0g
धातु की उपसहसंयोजन संख्या = 6
संकुल की ज्यामिति = अष्टफलकीय
चुंबकीय आघूर्ण (i) (μ) = \(\sqrt{1(1+2)}\)
= \(\sqrt{3}\) = 1.73 BM (n = 1)
प्रश्न 9.25
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के आधार पर संकुल [Ti(H2O)6]3+ के बैंगनी रंग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
[Ti(H2O)6]3+ एक अष्टफलकीय संकुल है जिसमें धातु के d कक्षक का इलेक्ट्रॉन संकुल की निम्नतम ऊर्जा अवस्था में t2g कक्षक में है। इस इलेक्ट्रॉन के लिए उपलब्ध इससे अगली उच्च अवस्था eg कक्षक रिक्त संगत प्रकाश का अवशोषण करता
है। यह संकुल पीले हरे क्षेत्र की है जिससे इलेक्ट्रॉन t2g स्तर से eg स्तर में उत्तेजित हो जाता है (t2g1 eg0 → t2g0 eg1) जिसके कारण संकुल बैंगनी रंग का दिखाई देता है। क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के अनुसार यह इलेक्ट्रॉन का ded संक्रमण है। लिगेन्ड की अनुपस्थिति में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन नहीं होता है अतः [Ti(H2O)6]3+ को गरम करने पर इसमें से जल निकल जाने के कारण यह रंगहीन हो जाता है।
प्रश्न 9.26.
कीलेट प्रभाव से क्या तात्पर्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कीलेट प्रभाव – किसी संकुल में जब एक द्विदंतुर अथवा बहुदंतुर लिगेन्ड अपने दो या दो से अधिक दाता परमाणुओं द्वारा एक ही धातु आयन से बन्ध बनाता है, तो इसे कीलेट (chelate) लिगेन्ड कहते हैं तथा बन्ध बनाने वाले परमाणुओं की संख्या को लिगेन्ड की दंतुरता या डेन्टिसिटी (denticity) कहते हैं। बन्ध बनाने की इस प्रक्रिया को कीलेटन कहते हैं तथा ऐसे संकुल, कीलेट संकुल (chelate complexes) कहलाते हैं, ऐसे संकुलों का स्थायित्व अपेक्षाकृत अधिक होता है। कोलेटन (chelaton) द्वारा किसी संकुल ( उपसहसंयोजन यौगिक) के स्थायीकरण को कीलेट प्रभाव कहते हैं। कीलेट संकुल बनते समय एक वलय बनती है, इसे कीलेट वलय कहते हैं तथा इस वलय के बनने के कारण ही संकुल का स्थायित्व बढ़ता है।
उदाहरण-
प्रश्न 9.27.
प्रत्येक का एक उदाहरण देते हुए निम्नलिखित में उपसहसंयोजन यौगिकों की भूमिका की संक्षिप्त विवेचना कीजिए-
(i) जैव प्रणालियाँ
(ii) औषध रसायन
(iii) विश्लेषणात्मक रसायन
(iv) धातुओं का निष्कर्षण / धातु कर्म ।
उत्तर:
(i) जैव प्रणालियाँ-उपसहसंयोजन यौगिक जैव तंत्र में भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक हरा वर्णक क्लोरोफिल, मैग्नीशियम का उपसहसंयोजन यौगिक है, रक्त का लाल वर्णक (pigment) हीमोग्लोबिन, आयरन का एक उपसहसंयोजन यौगिक है, जो कि ऑक्सीजन वाहक होता है। विटामिन B12 (सायनाकोबालेमीन), कोबाल्ट का एक उपसहसंयोजन यौगिक है, जो कि एनिमिया के उपचार में प्रयुक्त होता है। जैविक महत्व के अन्य धातु आयन युक्त उपसहसंयोजन यौगिक कार्बोक्सीपेप्टिडेज-A, कार्बोनिक एनहाइड्रेज एन्जाइम (जैव उत्प्रेरक) तथा साइटोक्रोम-C (Fe2+ का संकुल) है।
(ii) औषध रसायन-में-औषध रसायन में कीलेट चिकित्सा का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। उदाहरण-पौधे/जीव-जंतुओं में विषैले अनुपात में उपस्थित धातुओं के द्वारा उत्पन्न समस्याओं का उपचार। इस प्रकार कॉपर तथा आयरन की अधिकता को D-पेनिसिलऐमीन तथा डेसफेरीऑक्सिम B लिगन्डों के साथ उपसहसंयोजन यौगिक बनाकर दूर किया जाता है। EDTA को लेड की विषाक्तता के उपचार हेतु प्रयुक्त किया जाता है। प्लैटिनम के कुछ उपसहसंयोजक यौगिक ट्यूमर की वृद्धि को रोकते हैं। उदाहरण-समपक्ष-प्लेटिन (cis-platin), cis [Pt(NH3)2Cl2] कैंसररोधी (Anticancer) होता है।
(iii) विश्लेषणात्मक रसायन-
(a) गुणात्मक ( qualitative) तथा मात्रात्मक (quantitative) रासायनिक विश्लेषणों में उपसहसंयोजन यौगिक बहुत उपयोगी होते हैं। अनेक रंगीन अभिक्रियाएँ जिनमें धातु आयनों की विभिन्न लिगेन्डों के साथ क्रिया से (विशेषतः कीलेट लिगन्ड) उपसहसंयोजन यौगिक बनते हैं जिनके कारण रंग उत्पन्न होता है। विभिन्न विधियों से धातु आयनों की पहचान व उनका मात्रात्मक आकलन इसी आधार पर किया जाता है। ये अभिकर्मक EDTA, DMG (डाइमेथिल ग्लाई ऑक्सिम ), α – नाइट्रोसो – ß – नेफ्थॉल, क्यूपफेरॉन आदि हैं।
(b) क्षारीय मूलकों का परीक्षण – प्रथम समूह में Ag+ तथा Hg2+2 का पृथक्करण-लवण के मूल विलयन में जब HCI डालते हैं तो पहले AgCl तथा Hg2Cl2 का अवक्षेप बनता है जिसकी NH4OH के साथ क्रिया कराने पर AgCl, विलेय संकुल बनता है जबकि Hg2Cl2 से Hg(NH2)Cl का काला अवक्षेप बनता है।
द्वितीय समूह में IIA तथा IIB का पृथक्करण-IIB समूह के धातु सल्फाइड पीले अमोनियम सल्फाइड से क्रिया करके विलेय संकुल बनाते हैं जबकि IIA समूह के सल्फाइड अविलेय रहते हैं।
Cu2+ का परीक्षण – Cu+2 का परीक्षण NH3 विलयन तथा पोटैशियम फेरोसायनाइड से क्रिया द्वारा किया जाता है-
III समूह में Fe3+ का परीक्षण-III समूह में Fe3+ का परीक्षण पोटैशियम फेरोसायनाइड तथा पोटैशियम थायोसायनेट विलयन द्वारा किया जाता है।
IV समूह में Ni2+ का परीक्षण-यह परीक्षण डाइमेथिल ग्लाइऑक्सिम (DMG) द्वारा किया जाता है-
प्राच्छादक के रूप में (Masking agent)- Cu2+ की उपस्थिति में Cd2+ का आकलन करने के लिए \(\overline{C}\)N आयन मिलाकर Cu2+ का संकुल बना लेते हैं जो कि स्थायी होता है लेकिन Cd2+ का संकुल अस्थायी होता है अतः वियोजित होकर Cd2+ दे देता है जिसकी H2 के साथ क्रिया से Cds का पीला अवक्षेप प्राप्त होता है।
(iv) धातुओं का निष्कर्षण / धातु कर्म – धातुओं का निष्कर्षण-धातुओं की कुछ प्रमुख निष्कर्षण विधियों में जैसे सिल्वर तथा गोल्ड के निष्कर्षण में संकुल के विरचन का उपयोग किया जाता है। उदाहरण-ऑक्सीजन तथा जल की उपस्थिति में Au3+, सायनाइड आयन से संयोजित होकर उपसहसंयोजन आयन, [Au(Ch2)]– बनाता है। इस विलयन में जिंक मिलाकर गोल्ड को पृथक् कर लिया जाता है (एकक 6)।
प्रश्न 9.28.
संकुल [Co(NH3)6]Cl2 से विलयन में कितने आयन उत्पन्न होंगे-
(i) 6
(ii) 4
(iii) 3
(ii) 4
(iv) 2
उत्तर:
(iii) इस संकुल का आयनन निम्न प्रकार होता है अतः इसके विलयन में तीन आयन उत्पन्न होंगे।
[Co(NH3)6]Cl2 → [Co(NH3)6]2+ + 2Cl–
प्रश्न 9.29.
निम्नलिखित आयनों में से किसके चुंबकीय आघूर्ण का मान सर्वाधिक होगा?
(i) [Cr(H2O)6]3+
(ii) [Fe(H2O)6]2+
(iii) [Zn(H2O)6]2+
उत्तर:
(ii) इन संकुल आयनों में Zn2+, Cr3+ तथा Fe2+ में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या क्रमशः 0 3 एवं 4 है अतः संकुल आयन [Fe (H2O)6]2+ का चुम्बकीय आघूर्ण सर्वाधिक होगा।
प्रश्न 9.30.
K[Co(CO)4] में कोबाल्ट की ऑक्सीकरण संख्या है-
(i) +1
(iii) -1
(ii) +3
(iv) -3
उत्तर:
(iii) K [Co(CO)4]
+ 1 + x + = 0
x = – 1
प्रश्न 9.31.
निम्न में सर्वाधिक स्थायी संकुल है-
(i) [Fe(H2O)6]3+
(ii) [Fe(NH3)6]3+
(iii) Fe(C2O4)3]3-
(iv) [FeCl6]3-
उत्तर:
(iii) क्योंकि इसमें C2O2-3 ( ऑक्सेलेट) लिगेन्ड कीटकारी है, जिससे स्थायित्व बढ़ता है।
प्रश्न 9.32.
निम्नलिखित के लिए दृश्य प्रकाश में अवशोषण की तरंगदैर्घ्य का सही क्रम क्या होगा?
[Ni(NO2)6]4-, [Ni(NH3)6]2+, [Ni(H2O)6]2+
उत्तर:
दिए गए संकुलों में प्रयुक्त लिगेन्डों के लिए स्पेक्ट्रमी- रासायनिक श्रेणी में प्रबलता का क्रम निम्न प्रकार होता है-
H2O < NH3 < NO–2
अतः उत्तेजन हेतु अवशोषित प्रकाश (ऊर्जा) का क्रम निम्न होगा-
[Ni(H2O)6]2+ <[Ni(NH3)6]2+ <[Ni (NO2)6]4+
इसलिए अवशोषित तरंगदैर्घ्य का क्रम इसके विपरीत होगा क्योंकि (E = hc/λ)
[Ni(NO2)6]4- < [Ni(NH3)6]2+ < [Ni(H2O)6]2+
HBSE 12th Class Chemistry उपसहसंयोजन यौगिक Intext Questions
प्रश्न 9.1.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन यौगिकों के सूत्र लिखिए-
(i) टेट्राऐम्मीनडाइएक्वाकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) पोटैशियम टेट्रासायनोनिकैलेद (II)
(iii) ट्रिस (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) क्रोमियम (III) क्लोराइड
(iv) ऐम्मीनब्रोमिडोक्लोरिडोनाइट्रिटो-N-प्लैटिनेट (II)
आयन
(v) डाइक्लोरोबिस (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) प्लैटिनम (IV) नाइट्रेट
(vi) आयरन (III) हेक्सासायनोफेरेट (II)।
उत्तर:
(i) [Co(NH3)4(H2O)2]Cl3
(ii) K2[Ni(CN)4]
(iii) [Cr(en3]Cl3
(iv) [Pt(NH3)BrCl}\left(NO2)]–
(v) [PtCl2(en)2] (NO3)2
(vi) Fe4[Fe(CN)6]3
प्रश्न 9.2.
निम्नलिखित उपसहसंयोजन यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए-
(i) [Co(NH3)6]Cl3
(ii) [Co(NH3)5Cl]Cl2
(iii) K3[Fe}(CN)6]
(iv) K3[Fe(C2O4)3]
(v) K2[PdCl4]
(vi) [Pt(NH3)2Cl(NH2CH3)]Cl
उत्तर:
(i) हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) पेन्टाऐम्मीनक्लोरिडोकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(iii) पोटैशियम हेक्सासायनोफेरेट (III)
(iv) पोटैशियम ट्राइआक्सैलेटोफेरेट (III)
(v) पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II)
(vi) डाइऐम्मीनक्लोरिडो ( मेथेनेमीन ) प्लैटिनम (II) क्लोराइड।
प्रश्न 9.3.
निम्नलिखित संकुलों द्वारा प्रदर्शित समावयवता का प्रकार बतलाइए तथा इन समावयवों की संरचनाएं बनाइए-
(i) K[Cr(H2O)2(C2O4)2]
(ii) [Co(en)3]Cl3
(iii) [Co(NH3)5(NO2)](NO3)2
(iv) [Pt(NH3)(H2O)Cl2]
उत्तर:
(i) संकुल K[Cr(H2O)2(C2O4)2] ज्यामितीय समावयवता दर्शाता है अतः इसके दो रूप होते हैं-समपक्ष तथा विपक्ष। समपक्ष समावयवी, प्रकाशिक समावयवता भी दर्शाता है अतः इसके दो ध्रुवण समावयवी ( d तथा l रूप) होंगे। यहाँ C2O4 (ऑक्सेलेट) का संकेत ox दिया गया है। इस संकुल के समपक्ष, विपक्ष तथा प्रकाशिक समावयवियों की संरचना निम्न प्रकार होती है-
(ii) संकुल [Co(en)3]Cl3 प्रकाशिक समावयवता दर्शाता है। अतः इसके दो रूप (d तथा l) होते हैं।
(iii) संकुल [Co(NH3)5(NO2)](NO3)2 के कुल संभावित समावयवी दस होंगे तथा यह संकुल निम्न प्रकार की समावयवता दर्शाता है-ज्यामितीय, आयनन तथा बंधनी समावयवता।
आयनन समावयवी-
[Co(NH3)5(NO)2] (NO3)2 तथा [Co(NH3)5(NO3)] (NO2) (NO3)
बन्धनी समावयवी-
[Co(NH3)5(NO2)](NO3)2 तथा [Co(NH3)5(ONO)](NO3)2
(iv) संकुल [Pt(NH3)(H2O)Cl2] ज्यामितीय समावयवता दर्शाता है।
प्रश्न 9.4.
इसका प्रमाण दीजिए कि [Co(NH3)5Cl] SO4 तथा [Co(NH3)5SO4]Cl आयनन समावयवी हैं।
उत्तर:
आयनन समावयवी जल में विलेय होकर भिन्न-भिन्न आयन देते हैं अतः इनकी विभिन्न अभिकर्मकों से अभिक्रिया का प्रकार भिन्न-भिन्न होगा-
[Co(NH3)5Cl]SO4 +BaCl2 विलयन → BaSO4(s) श्वेत अवक्षेप
[Co(NH3)5SO4]Cl + BaCl2 विलयन → कोई अभिक्रिया नहीं
[Co(NH3)5Cl]SO4 + AgNO3 विलयन → कोई अभिक्रिया नहीं
[Co(NH3)5SO4]Cl + AgNO3 विलयन → AgCl श्वेत अवक्षेप
प्रश्न 9.5.
संयोजकता आबंध सिद्धान्त के आधार पर समझाइए कि वर्ग समतलीय संरचना वाला [Ni(CN)4]2- आयन प्रतिचुंबकीय है तथा चतुष्फलकीय ज्यामिति वाला [NiCl4]2- आयन अनुचुंबकीय है।
उत्तर:
वर्ग समतलीय आयन [Ni(CN)4]2- में Ni पर dsp2 संकरण पाया जाता है। इसमें Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है। इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
प्रत्येक संकरित कक्षक एक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म प्राप्त करता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉन अनुपस्थित होने के कारण यह संकुल प्रतिचुंबकीय है। [NiCl4]2- आयन में Ni पर sp3 संकरण पाया जाता है तथा इसकी ज्यामिति चतुष्फलकीय होती है।
इसमें एक s तथा तीन p कक्षकों के संकरण से चार समान sp3 संकर कक्षक बनते हैं। यहाँ निकल +2 ऑक्सीकरण अवस्था में है तथा इस आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है अतः इसमें संकरण निम्न प्रकार होता है-
संकरण के पश्चात् भी 3d कक्षकों में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं जिनके कारण यह संकुल आयन अनुचुंबकीय होता है।
प्रश्न 9.6.
[NiCl4]2- अनुचुंबकीय है जबकि [Ni(CO)4] प्रतिचुंबकीय है यद्यपि दोनों चतुष्फलकीय हैं। क्यों?
उत्तर:
[Ni(CO)4] में, Ni की ऑक्सीकरण अवस्था शून्य है जबकि [NiCl4]2- में Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है। CO की उपस्थिति में, Ni के 3d तथा 4s कक्षकों के इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं क्योंकि CO प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड है परन्तु Cl– एक दुर्बल क्षेत्र लिगन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं हो पाता है। इसलिए [NiCl4]2- अनुचुंबकीय है जबकि [Ni(CO)4] प्रतिचुंबकीय है यद्यपि दोनों चतुष्फलकीय हैं तथा दोमों में sp3 संकरण है।
प्रश्न 9.7.
[Fe(H2O)6]3+ प्रबल अनुचुंबकीय है जबकि [Fe(CN)6]3- दुर्बल अनुचुंबकीय। समझाइए।
उत्तर:
[Fe(CN)6]3- में CN– (प्रबल क्षेत्र लिगेन्ड) की उपस्थिति में, 3d इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं तथा केवल एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन बचता है। इसमें d2sp3 संकरण होता है तथा यह आंतरिक कक्षक संकुल बनाता है अतः यह दुर्बल अनुचुंबकीय है जबकि [Fe(H2O)6]3+ में H2O (दुर्बल लिगेन्ड) की उपस्थिति में, 3d इलेक्ट्रॉन युग्मित नहीं होते अतः इसमें sp3d2 संकरण है तथा यह बाह्यकक्षक संकुल बनाता है जिसमें पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं अतः यह प्रबल अनुचुंबकीय है।
प्रश्न 9.8.
समझाइए कि [Co(NH3)6]3+ एक आंतरिक कक्षक संकुल है जबकि [Ni(NH3)6]2+ एक बाह्य कक्षक संकुल है।
उत्तर:
कुल Co(NH3)6]3+ में NH3 प्रबल लिगेन्ड है जिससे इसमें d2sp संकरण होता है। Co+3 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d6 होता है तथा NH3 की उपस्थिति में ये इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं एवं शेष बचे दो रिक्त d कक्षक d2sp3 संकरण द्वारा आंतरिक कक्षक संकुल बनाते हैं जबकि [Ni(NH3)6]2+ में Ni+2 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 होने के कारण NH3 जैसे प्रबल लिगेन्ड की उपस्थिति में भी इलेक्ट्रॉनों के युग्मन से दो आन्तरिक d कक्षक रिक्त नहीं हो सकते। अतः इसमें sp3d2 संकरण होता है तथा यह बाह्य कक्षक संकुल बनाता है।
प्रश्न 9.9.
वर्ग समतली [Pt(CN)4]2- आयन में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बताइए।
उत्तर:
[Pt(CN)4]2- की वर्ग समतली आकृति के कारण इसमें dsp2 संकरण होता है तथा इस संकुल आयन में Pt,+2 अवस्था में है जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 5d8 है तथा प्रबल लिगेन्ड (CN–) की उपस्थिति में इन 5d इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है तथा शेष बचा एक रिक्त d कक्षक संकरण में भाग लेता है। (dsp2 संकरण ) अतः इसमें एक भी अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है।
प्रश्न 9.10.
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त को प्रयुक्त करते हुए समझाइए कि कैसे हेक्साएक्वा मैंगनीज (II) आयन में पांच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं जबकि हेक्सासायनो मैंगनीज (II) आयन में केवल एक ही अयुगलित (अयुग्मित) इलेक्ट्रॉन है।
उत्तर:
हेक्साएक्वा मैंगनीज (II) आयन, [Mn(H2O6]2+ में Mn+2 का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d5 है तथा इसमें H2O दुर्बल लिगेन्ड है अतः इसकी उपस्थिति में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा का मान कम होता है। इसलिए इलेक्ट्रॉनिक विन्यास \(\mathrm{t}_{2 \mathrm{~g}}^3 \mathrm{e}_{\mathrm{g}}^2\) होगा तथा sp3d2 संकरण होने के कारण इसमें पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता। जबकि हेक्सासायनो मैंगनीज (II) आयन, [Mn(CN)6]-4 में CN– प्रबल लिगेन्ड है जिसकी उपस्थित में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा का मान अधिक होने के कारण Mn2+ का इलेक्ट्रॉंनिक विन्यास \(t_{2 \mathrm{~g}}^5 \mathrm{e}_{\mathrm{g}}^0\) (दो रिक्त d कक्षक) होगा जिसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है तथा इसमें sp3d2 संकरण होगा।