HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन

प्रश्न 16.1.
हमें औषधों को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत करने की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
औषधों (Drugs) का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से किया जाता है क्योंकि औषधों से सम्बन्धित विभिन्न व्यक्तियों के लिए यह उपयोगी होता. है। जैसे भेषजगुणविज्ञानीय (फार्माकोलोजिकल) प्रभाव के आधार पर वर्गीकरण डॉक्टरों के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इससे इन्हें किसी बीमारी से सम्बन्धित सभी औषधों की जानकारी हो जाती है। इसी प्रकार रासायनिक संरचना या लक्ष्य अणुओं (Molecular targets) पर आधारित वर्गीकरण एक केमिस्ट (रसायनज्ञ ) के लिए उपयोगी होता है जो औषध का संश्लेषण करता है।

प्रश्न 16.2.
औषध रसायन के पारिभाषिक शब्द, लक्ष्य- अणु अथवा औषध – लक्ष्य को समझाइए ।
उत्तर:
औषध रसायन में लक्ष्य- अणु या औषध – लक्ष्य (Target Molecule) वे वृहद् अणु (जैव अणु) होते हैं जिनसे औषधि क्रिया करके चिकित्सीय प्रभाव ( therapeutic effect) दर्शाती है, जैसे- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड तथा न्यूक्लीक अम्ल ।

प्रश्न 16.3.
उन वृहद अणुओं के नाम लिखिए जिन्हें औषध- लक्ष्य चुना जाता है।
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड तथा न्यूक्लीक अम्ल वे वृहद् अणु हैं जिन्हें औषध-लक्ष्य चुना जाता है।

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प्रश्न 16.4.
बिना डॉक्टर से परामर्श लिए दवाइयाँ क्यों नहीं लेनी चाहिए?
उत्तर:
बिना डॉक्टर से परामर्श लिए दवाइयाँ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि अनुशंसित (Recommended ) मात्रा से अधिक मात्रा का उपयोग करने पर अधिकांश दवाइयाँ विष की भांति कार्य करती हैं। केवल डॉक्टर ही बीमारी का सही निदान (Diagnosis) करके सही दवा की उचित मात्रा बता सकता है।

प्रश्न 16.5.
‘रसायन चिकित्सा’ शब्द की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
रसायन चिकित्सा वह चिकित्सा है जिसमें रसायनों द्वारा रोगों का इलाज किया जाता है।

प्रश्न 16.6.
एन्जाइम की सतह पर औषध (Drugs) को थामने के लिए कौन से बल कार्य करते हैं?
उत्तर:
एन्जाइम की सतह पर औषध को थामने के लिए आयनिक बंध, हाइड्रोजन बंध, वान्डरवालस बल या द्विध्रुव-द्विध्रुव आकर्षण बल कार्य करते हैं।

प्रश्न 16.7
प्रतिअम्ल एवं प्रति एलर्जी औषध हिस्टैमिन के कार्य में बाधा डालती हैं परंतु ये एक-दूसरे के कार्य में बाधक क्यों नहीं होतीं?
उत्तर:
प्रतिअम्ल (antacids) तथा प्रतिएलर्जी औषध (antiallergic drugs) एक-दूसरे के कार्य में बाधक नहीं होतीं क्योंकि ये अलग-अलग ग्राहियों (Receptors) पर कार्य करती हैं। अतः प्रतिहिस्टैमिन (antihistamines) आमाशय के अम्ल स्रवण पर प्रभाव नहीं डालती क्योंकि यह आमाशय की दीवारों में स्थित ग्राहियों से क्रिया नहीं करती।

प्रश्न 16.8.
नॉरऍड्रिनेलिन का कम स्तर अवसाद का कारण होता है। इस समस्या के निदान के लिए किस प्रकार की औषध की आवश्यकता होती है? दो औषधों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नॉरऍड्रिनेलिन का कम स्तर अवसाद का कारण होता है। इस समस्या के निदान के लिए वे औषध लेते हैं जो उस एन्जाइम को संदमित (Inhibit) करती हैं जो नारएड्रिनेलिन के विघटन ( निम्ननीकरण) को उत्प्रेरित करता है। जब यह एन्जाइम संदमित हो जाता है तो इस महत्वपूर्ण तंत्रकीय संचारक (Neurotransmitter) का उपापचयन (Metabolism) धीरे होता है तथा यह अपने ग्राही को लम्बे समय तक सक्रिय रख सकता है। इससे अवसाद (Depression) का असर कम हो जाता है।

इप्रोनाइजिड तथा फिनल्जिन (नारडिल) ऐसी दो औषध हैं।

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प्रश्न 16.9.
वृहद् – स्पेक्ट्रम जीवाणुनाशी शब्द से आप क्या समझते हैं? समझाइए।
उत्तर:
जीवाणु अथवा अन्य सूक्ष्मजीवियों का वह परास (range). जिस पर प्रतिजैविक (Antibiotic) का प्रभाव होता है उसे प्रतिजीवाणु (प्रतिजैविक) का स्पेक्ट्रम कहते हैं। जो प्रतिजीवाणु ग्रैम-ग्राही (ग्रैम पॉजिटिव ) तथा ग्रैम-अग्राही (ग्रैम नेगेटिव) दोनों प्रकार के जीवाणुओं के विस्तृत प का विनाश या निरोध (Inhibition) करके बहुत से संक्रमणों को ठीक कर देते हैं इन्हें वृहद् या विस्तृत स्पेक्ट्रम (ब्रॉड स्पेक्ट्रम) जीवाणुनाशी (प्रतिजीवाणु) कहते हैं। उदाहरण- क्लोरैम्फेनिकॉल, इसे न्यूमोनिया, टाइफाइड, पेचिश, मूत्र. संक्रमण, मेनिनजाइटिस ( मस्तिष्क ज्वर) में प्रयुक्त करते हैं।

प्रश्न 16.10.
पूतिरोधी तथा संक्रमणहारी (रोगाणुनाशी) किस प्रकार से भिन्न हैं? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पूतिरोधी तथा विसंक्रामी (संक्रमणहारी) ऐसे रसायन होते हैं जो या तो सूक्ष्मजीवियों को मार देते हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोकते हैं।

पूतिरोधियों (Antiseptic) को सजीव ऊतकों, जैसे घाव, चोट तथा अल्सर पर लगाया जाता है। फ़्यूरासिन तथा सोफ्रामाइसिन इसके मुख्य उदाहरण हैं।

संक्रमणहारी (रोगाणुनाशी) ( Disinfectant) भी सूक्ष्मजीवियों को नष्ट करते हैं तथा इनका प्रयोग निर्जीव वस्तुओं जैसे- फ़र्श, नालियाँ तथा यंत्रों को रोगाणुमुक्त करने में प्रयुक्त किया जाता है। उदाहरण- फ़ीनॉल का एक प्रतिशत विलयन।

प्रश्न 16.11.
सिमेटिडीन तथा रैनिटिडीन सोडियम हाइड्रोजन- कार्बोनेट अथवा मैग्नीशियम या ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड की तुलना में श्रेष्ठ प्रतिअम्ल क्यों हैं?
उत्तर:
सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट के कारण आमाशय क्षारीय हो जाता है जिसके कारण अम्ल का उत्पादन अधिक होता है तथा मैग्नीशियम या ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड जैसे प्रतिअम्लों से केवल रोग के लक्षण कम होते हैं, कारण नहीं इसलिए सिमेटिडीन तथा रैनिटिडीन को प्रति अम्ल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि ये हिस्टैमिन की क्रिया को रोककर अम्ल के उत्पादन को ही रोक देते हैं। अतः ये श्रेष्ठ प्रतिअम्ल हैं।

प्रश्न 16.12.
एक ऐसे पदार्थ का उदाहरण दीजिए जिसे पूतिरोधी तथा संक्रमणहारी, दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है।
उत्तर:
फीनॉल एक ऐसा पदार्थ है जिसे पूतिरोधी तथा संक्रमणहारी, दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। सांद्रता में परिवर्तन से वही पदार्थ पूतिरोधी अथवा विसंक्रामी (संक्रमणहारी) का कार्य कर सकता है। फीनॉल का 0.2 प्रतिशत विलयन पूतिरोधी होता है जबकि इसका एक प्रतिशत विलयन विसंक्रामी ( रोगाणुनाशी) होता है।

प्रश्न 16.13.
डेटॉल के प्रमुख संघटक कौनसे हैं ?
उत्तर:
डेटॉल के प्रमुख संघटक क्लोरोज़ाइलिनॉल तथा टपनिऑल होता है।

प्रश्न 16.14.
आयोडीन का टिंक्चर क्या होता है? इसके क्या उपयोग हैं?
उत्तर:
आयोडीन का ऐल्कोहॉल-जल मिश्रण में 2.3 प्रतिशत विलयन आयोडीन का टिंक्चर कहलाता है। इसे घाव पर लगाते हैं तथा यह पूतिरोधी होता है।

प्रश्न 16.15.
खाद्य पदार्थ परिरक्षक क्या होते हैं?
उत्तर:
खाद्य पदार्थों को पड़ा रखने पर उनमें सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते हैं जिसके कारण ये खराब हो जाते हैं। अतः वे पदार्थ जिन्हें खाद्य पदार्थों को खराब होने से बचाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। उन्हें खाद्य परिरक्षक कहते हैं।

कुछ सामान्य परिरक्षक निम्नलिखित हैं- साधारण नमक, चीनी, वनस्पति तेल, सोडियम बेन्जोएट (C6H5COONa), सॉर्बिक अम्ल तथा प्रोपेनॉइक अम्ल के लवण |

सोडियम बेन्जोएट का प्रयोग सीमित मात्रा में किया जाता है क्योंकि यह शरीर द्वारा उपापचयित हो जाता है।

एक अच्छे खाद्य परिरक्षक में निम्नलिखित गुण होने चाहिये-

  • खाद्य पदार्थों पर इनका लम्बे समय तक असर रहना चाहिए ।
  • ये स्वादहीन होने चाहिए।
  • इन्हें अल्प मात्रा में ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए।
  • इनकी खाद्य पदार्थों से कोई क्रिया नहीं होनी चाहिए ।
  • इनके प्रयोग से जलन, अम्लता, एलर्जी, गैस तथा पित्त नहीं होनी चाहिए।

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प्रश्न 16.16.
ऐस्पार्टेम का प्रयोग केवल ठंडे खाद्य एवं पेय पदार्थों तक सीमित क्यों है?
उत्तर:
ऐस्पार्टेम एक कृत्रिम मधुरक है जिसका प्रयोग केवल ठंडे खाद्य एवं पेय पदार्थों तक ही सीमित है, क्योंकि इसे खाना बनाने के ताप तक गर्म करने पर यह विघटित हो जाता है।

प्रश्न 16.17.
कृत्रिम मधुरक क्या हैं? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे पदार्थ जो शर्करा (Sugar) के स्थान पर मधुरक (Sweet- ening agent) के रूप में प्रयोग में लिए जाते हैं लेकिन उनका कोई पोषण मान नहीं होता, उन्हें कृत्रिम मधुरक कहते हैं। सैकरीन (ऑर्थोसल्फोबेन्जीनीमाइड) तथा ऐस्पार्टेम कृत्रिम मधुरकों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 16.18.
मधुमेह के रोगियों के लिए मिठाई बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले मधुरकों के नाम क्या हैं?
उत्तर:
मधुमेह के रोगियों के लिए मिठाई बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला मुख्य मधुरक सैकरीन (ऑर्थोसल्फोबेन्जीनीमाइड) है क्योंकि इसका कोई पोषण मान नहीं होता तथा यह शरीर से अपरिवर्तित रूप में ही मूत्र द्वारा उत्सर्जित हो जाता है। यह पूर्णतः अक्रिय तथा अहानिकारक होता है। इसके अतिरिक्त सुक्रालोस को भी इसके लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।

प्रश्न 16.19.
ऐलिटेम को कृत्रिम मधुरक की तरह उपयोग में लाने पर क्या समस्याएँ होती हैं?
उत्तर:
ऐलिटेम एक अधिक प्रबल कृत्रिम मधुरक है जो कि सूक्रोस से 2000 गुना अधिक मीठा होता है। यह स्थायी होता है लेकिन इसके द्वारा- उत्पन्न मिठास को नियंत्रित करना कठिन होता है।

प्रश्न 16.20.
साबुनों की अपेक्षा संश्लेषित अपमार्जक किस प्रकार से श्रेष्ठ हैं?
उत्तर:
साबुनों की अपेक्षा संश्लेषित अपमार्जक श्रेष्ठ होते हैं क्योंकि ये मृदु एवं कठोर दोनों प्रकार के जल में उपयोग किए जा सकते हैं। अपमार्जक कठोर जल में भी झाग बनाते हैं क्योंकि इनके कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवण जल में विलेय होते हैं अतः ये अवशेष नहीं बनाते। अपमार्जकों को अम्लीय माध्यम में भी प्रयुक्त किया जा सकता है। साबुनों का विलयन क्षारीय होता है जबकि अपमार्जकों का विलयन उदासीन होता है अतः इन्हें ऊनी, रेशमी जैसे कोमल वस्त्रों को धोने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है।

प्रश्न 16.21.
निम्नलिखित शब्दों को उपयुक्त उदाहरणों द्वारा समझाइए-
(क) धनात्मक अपमार्जक
(ख) ऋणात्मक अपमार्जक
(ग) अनआयनिक अपमार्जक ।
उत्तर:
संश्लिष्ट अपमार्जक वे शोधन अभिकर्मक (Cleansing Agents ) होते हैं जिनमें साबुन के सभी गुण पाए जाते हैं लेकिन रासायनिक दृष्टि से ये साबुन नहीं होते हैं। अतः इन्हें साबुन रहित साबुन या सिन्डेट्स भी कहा जाता है।

अपमार्जक कठोर जल में भी झाग बनाते हैं अतः इन्हें कठोर तथा मृदु दोनों प्रकार के जल में उपयोग में लिया जा सकता है।

संश्लिष्ट अपमार्जक तीन प्रकार के होते हैं-
(a) धनायनी अपमार्जक
(b) ऋणायनी अपमार्जक
(c) अनआयनिक अपमार्जक ।
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(a) धनायनी अपमार्जक ( Cationic Detergents ) – धनायनी अपमार्जक एमीनों के ऐसीटेट, क्लोराइड या ब्रोमाइड आयनों के साथ बने चतुष्क अमोनियम लवण होते हैं। इनमें धनात्मक भाग में लंबी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला तथा नाइट्रोजन परमाणु पर धन आवेश होता है। अतः इन्हें धनायनी अपमार्जक कहते हैं। उदाहरण – सेटिलट्राइमेथिल अमोनियम ब्रोमाइड ।

धनायनी अपमार्जकों को बालों के कन्डीशनरों में प्रयुक्त किया जाता है तथा इनमें जीवाणुनाशक गुण पाया जाता है। महंगे होने के कारण इनका उपयोग सीमित मात्रा में होता है।

(b) ऋणायनी अपमार्जक (Anionic Detergents ) – ऋणायनी अपमार्जक लम्बी श्रृंखलायुक्त सल्फोनीकृत ऐल्कोहॉलों अथवा हाइड्रोकार्बनों के सोडियम लवण होते हैं। जैसे- सोडियम p-ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनेट तथा सोडियम लॉरिल सल्फोनेट या सल्फेट । दीर्घ श्रृंखला वाले ऐल्कोहॉलों की सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) के साथ अभिक्रिया कराने पर पहले ऐल्किल हाइड्रोजन सल्फेट बनते हैं जिनकी क्रिया क्षार से कराने पर ऋणायनी अपमार्जक बनते हैं। इसी प्रकार ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनेट, ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनिक अम्लों की क्षार के साथ क्रिया से प्राप्त होते हैं।
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ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनेटों के सोडियम लवण महत्त्वपूर्ण ऋणायनी अपमार्जक होते हैं। ऋणायनी अपमार्जकों में इनका ऋणात्मक भाग शोधन (Cleansing) क्रिया में भाग लेता है। ये सामान्यतः घरेलू उपयोग में आते हैं। ऋणायनी अपमार्जक दंतमंजन में भी प्रयुक्त किए जाते हैं।

(c) अनआयनिक अपमार्जक (Non-lonic Detergents) अनायनिक अपमार्जकों में कोई आयन नहीं होता है, अतः इसे अनआयनिक अपमार्जक कहते हैं। उदाहरण- (i) स्टीऐरिक अम्ल तथा पॉलीएथिलीन ग्लाइकॉल की अभिक्रिया से बना अपमार्जक ।
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प्रश्न 16.22.
जैव-निम्ननीकृत होने वाले और जैव-निम्ननीकृत न होने वाले अपमार्जक क्या हैं? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जैव निम्ननीकृत तथा जैव अनिम्ननीकृत अपमार्जक (Bio degradable and Non Bio-degradable Detergents) – वे अपमार्जक जो जीवाणुओं द्वारा आसानी से विघटित हो जाते हैं उन्हें जैव निम्ननीकृत अपमार्जक कहते हैं। इनसे प्रदूषण नहीं होता है। उदाहरणअशाखित हाइड्रोकार्बन शृंखलायुक्त अपमार्जक-n-लॉरिल सल्फेट।

वे अपमार्जक जो जीवाणुओं द्वारा आसानी से निम्ननीकृत नहीं होते, उन्हें जैव-अनिम्ननीकृत अपमार्जक कहते हैं। अपमार्जक जिनमें हाइड्रोकार्बन श्रृंखला शाखित होती है, वे जैव अनिम्ननीकृत होते हैं। उदाहरण-
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इसका निम्ननीकरण (Degradation) धीमा होने के कारण ये एकत्र होते जाते हैं तथा जल के साथ तालाब, नदी आदि में पहुँच जाते हैं एवं झाग उत्पन्न करते हैं जिससे पानी प्रदूषित हो जाता है।

आजकल हाइड्रोकार्बन शृंखला में शाखन को नियंत्रित करके इसे न्यूनतम रखा जाता है। अशाखित शृंखलाएँ आसानी से जैव निम्ननीकृत हो जाती हैं, अतः प्रदूषण नहीं होता है।

अपमार्जकों का संश्लेषण (Synthesis of Detergents) अपमार्जकों को निम्नलिखित विधियों द्वारा संश्लेषित किया जाता है-
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(ii) रीड अभिक्रिया द्वारा (By Reed Reaction)
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प्रश्न 16.23.
साबुन कठोर जल में कार्य क्यों नहीं करता?
उत्तर:
दीर्घ शृंखलायुक्त वसा अम्लों के सोडियम तथा पोटैशियम लवणों को साबुन कहते हैं। संतृप्त तथा असंतृप्त मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों को वसा अम्ल (Fatty Acids) कहते हैं। जैसे स्टिऐरिक अम्ल (C17H35COOH), पामिटिक अम्ल (C15H31 COOH ) तथा ओलीक अम्ल (C17H33 COOH)। ये प्रकृति में प्रमुखता से पाये जाते हैं।

वसा अम्लों के सोडियम लवणों को सोडियम साबुन अथवा कठोर साबुन (Hard Soaps) अथवा धावन साबुन (Washing Soaps) कहते हैं, जबकि पोटैशियम साबुन को नहाने के साबुन (Bathing Soaps) अथवा मृदु साबुन (Soft Soaps) कहते हैं।

साबुन बनाना – वसा (वसा अम्लों के ग्लिसरिल एस्टर) को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के जलीय विलयन के साथ गर्म करने पर साबुन प्राप्त होता है तथा साबुन बनाने की इस प्रक्रिया को साबुनीकरण (Saponification) कहते हैं । इस अभिक्रिया में वसा अम्लों के एस्टर का जल अपघटन होता है तथा प्राप्त साबुन कोलॉइडी अवस्था में होता है। इसे विलयन में सोडियम क्लोराइड (NaCl) डालकर अवक्षेपित कर लेते हैं। साबुन को पृथक् कर लेने के बाद बचे हुए विलयन में ग्लिसरॉल रह जाता है जिसे प्रभाजी आसवन के द्वारा प्राप्त किया जाता है।
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आठ से अठारह कार्बन परमाणु युक्त साबुन की ‘गुणवत्ता अच्छी होती है। अठारह से अधिक कार्बन होने पर इनकी जल में विलेयता कम होती है तथा अठारह से कम कार्बन होने पर इनकी शोधन शक्ति (Cleansing Power) कम हो जाती है। सोडियम तथा पोटेशियम साबुन जल में विलेय होते हैं तथा इन्हें सफाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है। पोटेशियम साबुन मृदु होते हैं अतः इस प्रकार के साबुन त्वचा के लिए कोमल होते हैं। पोटेशियम साबुन बनाने के लिए NaOH के विलयन के स्थान पर KOH का विलयन लिया जाता है।

प्रश्न 16.24.
क्या आप साबुन तथा संश्लेषित अपमार्जकों का प्रयोग जल की कठोरता जानने के लिए कर सकते हैं?
उत्तर:
साबुन का प्रयोग जल की कठोरता जानने के लिए किया जा सकता है क्योंकि मृदु जल, साबुन के साथ तुरन्त झाग देता है जबकि कठोर जल में झाग बनने में बहुत समय लगता है तथा इसमें चिपचिपा अवक्षेप भी बनता है तथा अवक्षेप की मात्रा के अनुसार जल की कठोरता भी अधिक होगी लेकिन संश्लेषित अपमार्जकों का प्रयोग जल की कठोरता जानने के लिए नहीं कर सकते क्योंकि ये कठोर तथा मृदु दोनों प्रकार के जल के साथ झाग (Lather) देते हैं।

प्रश्न 16.25.
साबुन की शोधन क्रिया को समझाइए |
उत्तर:
साबुन की शोधन क्रिया (Cleansing Action of Soaps):
साबुन की शोधन क्रिया में पायसीकरण (इमल्सीकरण) होता है। इस प्रक्रिया में साबुन, कपड़े पर लगे ग्रीस तथा मिट्टी के कणों का जल के साथ इमल्सन (पायस) बनाने में मदद करता है।

स्पष्टीकरण (Explanation) – साबुन के अणु में अध्रुवीय जल विरोधी तथा ध्रुवीय जलस्नेही भाग होता है। कपड़े की सतह पर मिट्टी के कण, ग्रीस या तेल द्वारा चिपके रहते हैं। ग्रीस या तेल जल में अविलेय होता है अतः मिट्टी के कणों को केवल जल द्वारा नहीं हटाया जा सकता। जब साबुन का प्रयोग किया जाता है तो इसका अध्रुवीय एल्किल समूह तेल की बूँदों में विलेय होता है जबकि ध्रुवीय -COON+a समूह जल में विलेय होता है अतः तेल की प्रत्येक बूँद के चारों ओर ऋणावेश आ जाता है इससे इमल्सन बन जाता है तथा मिट्टी के कण युक्त तेल की बूँदें जल द्वारा साफ हो जाती हैं।
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साबुन केवल मृदु जल (Soft Water) में ही कार्य करते हैं कठोर जल में नहीं, क्योंकि कठोर जल में Ca2+ तथा Mg2+ आयन होते हैं इसलिए सोडियम अथवा पोटैशियम साबुन को कठोर जल में घोलने पर वह अघुलनशील कैल्सियम तथा मैग्नीशियम साबुन में परिवर्तित हो जाता है।
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ये अघुलनशील साबुन, मलफेन (Scum) की भाँति जल से पृथक् हो जाते हैं तथा शोधन अभिकर्मक के रूप में उपयुक्त नहीं रहते। ये अच्छी धुलाई में रुकावट डालते हैं क्योंकि यह अवक्षेप कपड़ों पर चिपक जाता है। कठोर जल से धुले बाल इसी चिपचिपे पदार्थ के कारण ही चमकदार नहीं होते हैं। कठोर जल और साबुन से धुले कपड़ों में इस चिपचिपे पदार्थ के कारण रंजक भी एकसमान रूप से अवशोषित नहीं होता है।

प्रश्न 16.26.
यदि जल में कैल्सियम हाइड्रोजन कार्बोनेट घुला हो तो आप कपड़े धोने के लिए साबुन एवं संश्लेषित अपमार्जकों में से किसका प्रयोग करेंगे?
उत्तर:
जब जल में कैल्सियम हाइड्रोजन कार्बोनेट Ca(HCO3)2 घुला हो तो कपड़े धोने के लिए साबुन एवं संश्लेषित अपमार्जक में से संश्लेषित अपमार्जक का प्रयोग करेंगे क्योंकि अपमार्जकों के कैल्सियम लवण जल में विलेय होते हैं जबकि साबुन Ca+2 आयनों के साथ अवक्षेप बना देते हैं।

प्रश्न 16.27.
निम्नलिखित यौगिकों में जलरागी एवं जलविरागी भाग दर्शाइए-
(क) CH3(CH2)10CH2OS\(\overline{\mathbf{O}}\)3, \(\stackrel{+}{\mathbf{N}} \mathbf{a}\)
(ख) CH3(CH2)15N(CH3)3Br
(ग) CH3(CH2)COO(CH2CH2O)nCH2CH2CH
उत्तर:
उपरोक्त यौगिकों में जलरागी तथा जलविरागी भाग निम्नानुसार हैं-
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HBSE 12th Class Chemistry दैनिक जीवन में रसायन Intext Questions

प्रश्न 16.1.
अनिद्राग्रस्त रोगियों को चिकित्सक नींद लाने वाली गोलियाँ लेने का परामर्श देते हैं, परततु बिना चिकित्सक से परामर्श लिए इनकी खुराक लेना उचित क्यों नहीं है?
उत्तर:
नींद की गोलियाँ तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती हैं, परन्तु अधिक मात्रा में या बिना आवश्यकता के लेने पर ये शरीर के अंगों पर विपरीत प्रभाव डालती हैं तथा विष का कार्य करती हैं। अतः ये प्राणघातक भी हो सकती हैं। इसलिए चिकित्सक के परामर्श के बिना इन्हें नहीं लेना चाहिए।

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प्रश्न 16.2.
किस वर्गीकरण के आधार पर वक्तव्य (Statement), रैनिटिडिन प्रतिअम्ल है’, दिया गया है?
उत्तर:
यह वक्तव्य भेषजगुणविज्ञानीय प्रभाव (Pharmacological effect) वर्गीकरण के आधार पर दिया गया है, क्योंकि कोई भी औषध जो अम्ल के आधिक्य (excess) का प्रतिकार (Counteract) करती है उसे प्रतिअम्ल कहते हैं। रैनिटिडीन भी अम्ल के प्रभाव को कम करती है। अतः यह एक प्रतिअम्ल है।

प्रश्न 16.3.
हमें कृत्रिम मधुरकों की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर:
प्राकृतिक मधुरक जैसे सूक्रोस ग्रहण की गई कैलोरी मान बढ़ाते हैं अतः मधुमेह के रोगी तथा वे व्यक्ति जिन्हें कैलोरी ग्रहण करने पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है, उन्हें कृत्रिम मधुरकों की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि कृत्रिम मधुरक अपरिवर्तित रूप में ही मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाते हैं तथा ये पूर्णतः अक्रिय होते हैं तथा इनसे कोई हानि नहीं होती एवं इनसे कैलोरी में भी वृद्धि नहीं होती।

प्रश्न 16.4.
ग्लिसरिल ओलिएट तथा ग्लिसरिल पामिटेट से सोडियम साबुन बनाने के लिए रासायनिक समीकरण लिखिए। इनके संरचनात्मक सूत्र नीचे दिए गए हैं-
(i) (C15H31COO)3C3H5 – ग्लिसरिल पामिटेट
(ii) (C17H33COO)3C3H5 – ग्लिसरिल ओलिएट।
उत्तर:
(i) ग्लिसरिल पामिटेट (C15H31COO)3C3H5 से सोडियम साबुन बनाना-
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(ii) ग्लिसरिल ओलिएट (C17H33COO)3C3H5 से सोडियम साबुन बनाना-
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प्रश्न 16.5.
निम्न प्रकार के अनायनिक अपमार्जक, द्रव अपमार्जकों, इमल्सीकारकों और क्लेदन कारकों (Wetting agents) में उपस्थित होते हैं। अणु में जलरागी (Hydrophilic ) तथा जलविरागी (Hydrophobic) हिस्सों को दर्शाइए। अणु में उपस्थित प्रकार्यात्मक समूह की पहचान करिए।
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उत्तर:
उपरोक्त अपमार्जक में बायीं ओर का हिस्सा जलविरागी (जल प्रतिकर्षी) है जबकि दायों ओर का हिस्सा जलरागी (जलस्नेही) है तथा इस अपमार्जक में ईथर तथा ऐल्कोहॉल प्रकार्यात्मक समूह (Functional Group) उपस्थित है।
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