HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. प्लाज्मा झिल्ली (जीवद्रव्य कला) मुख्यतः निर्मित होता है-
(A) फॉस्फोलिपिड्स प्रोटीन द्विस्तर में धंसे रहते हैं
(B) प्रोटीन फॉस्फोलिपिड द्विस्तर में धंसी रहती है।
(C) प्रोटीन ग्लूकोस अणुओं के बहुलक में धंसे रहते है।
(D) प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट परत में धँसी रहती है।
उत्तर:
(B) प्रोटीन फॉस्फोलिपिड द्विस्तर में धंसी रहती है।

2. निम्न में से कौन-सी संरचना दो परिवहन मार्ग है ?
(A) प्लाज्मोडेमेटा समीपस्थ कोशिकाओं के मध्य प्रभावी
(B) प्लास्टोक्विनोन
(C) इण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम
(D) प्लाज्मालेमा
उत्तर:
(A) प्लाज्मोडेमेटा समीपस्थ कोशिकाओं के मध्य प्रभावी

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3. कोशिका में विभिन्न गतिविधियों का केन्द्र है ?
(A) प्लाज्मा झिल्ली
(B) माइटोकॉण्ड्रिया
(C) कोशिका द्रव्य
(D) नाभिक
उत्तर:
(C) कोशिका द्रव्य

4. निम्न में से किसमें स्वयं का DNA होता है ?
(A) माइटोकॉण्ड्रिया
(B) डिक्टियोसोम
(C) लाइसोसोम
(D) परऑक्सीसोम
उत्तर:
(A) माइटोकॉण्ड्रिया

5. कोशिका के अन्दर पेप्टाइड संश्लेषण किसमें होता है ?
(A) माइटोकॉण्ड्यिा
(B) वर्गीलवक
(C) राइबोसोम
(D) हरित लवक
उत्तर:
(C) राइबोसोम

6. निम्न में से कौन जीवाणु कोशिका में उत्प्रेरक का कार्य भी करता है ?
(A) sn-RNA
(C) 23 s-r RNA
(B) hn-RNA
(D) 5 sr RNA
उत्तर:
(C) 23 s-r RNA

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7. ग्लाकोप्रोटीन तथा ग्लाकोलिपिड के निर्माण का प्रमुख स्थल है-
(A) गॉल्जी उपकरण
(C) लाइसोसोम
(B) लवक
(D) रिक्तका
उत्तर:
(A) गॉल्जी उपकरण

8. निम्न में से कौन-सा जीवधारी यूकोरियोटिक कोशिका का उदाहरण नहीं है ?
(A) ईश्चेरिथिया कोलाई
(C) प्लाज्मोडियम बाइवैक्स
(B) युग्लीना विडिस
(D) पैरामीशियम कॉडेटम
उत्तर:
(A) ईश्चेरिथिया कोलाई

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9. कोशिका कला का मॉडल किस में दिया जाता है ?
(A) NOT तथा K+ आयन सक्रिय परिवहन द्वारा
(B) प्रोटीन कोशिका कला का 60 से 70% भाग बनाते हैं।
(C) कोशिका कला में लिपिड द्विस्तर के रूप में व्यवस्थित रहते हैं जिसमें ध्रुवीय शीर्ष अन्दर की ओर होते हैं।
(D) कोशिका कला का तरल मोजेक मॉडल सिंगर तथा निकोलसन ने दिया था।
उत्तर:
(D) कोशिका कला का तरल मोजेक मॉडल सिंगर तथा निकोलसन ने दिया था।

10. राइबोसोम के बारे में क्या सत्य है ?
(A) प्रोकैरियोटिक राइबोसोम 80s होते हैं जहाँ s अवसादन गुणांक है।
(B) ये RNA तथा प्रोटीन्स से बने होते हैं।
(C) ये केवल यूकॉरियोटिक कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
(D) ये कुछ RNA के स्वप्रतिकृत इन्ट्रान्स होते हैं।
उत्तर:
(B) ये RNA तथा प्रोटीन्स से बने होते हैं।

11. राइबोसोमल RNA सहियतः किसमें संश्लेषित होता है ?
(A) लाइसोसोम
(B) केन्द्रिक
(C) न्यूक्लियोप्लाका
(D) राइबोसोम
उत्तर:
(B) केन्द्रिक

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12. लिपिड्स के संश्लेषण का मुख्य स्थल है-
(A) RER
(B) SER
(C) सिमलास्ट
(D) न्यूक्लियोप्लाज्म
उत्तर:
(B) SER

13. निम्न का मिलान करके सही उत्तर का चयन कीजिए-

स्तंभ I स्तंभ II
1. माइटोकॉडिया के अन्तर्बलन (A) तारककेन्द्र
2. थायलेकॉइड (B) क्लोरोफिल
3. केन्द्रकीय अम्ल (C) क्रिस्वी
4. पक्ष्माभ या कशाभ के आधार काय (D) राइबोजाइम

कूट-

a b c d
(A) 4 2 1 3
(B) 1 2 4 3
(C) 1 3 2 4
(D) 4 3 1 2

उत्तर:
(C) 1 3 2 4

14. ठोस रेखित कोशिका कंकाल तन्त्र जिसका व्यास 5 mm होता है-
(A) सूक्ष्मनलिकाएँ
(B) सूक्ष्मतंतुक
(C) मध्यवर्ती तन्तु
(D) सैमिन्ली
उत्तर:
(B) सूक्ष्मतंतुक

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15. कलाओं युक्त कोशिकीय अवयव है-
(A) केन्द्रक, राइबोसोम तथा माइटोकॉन्ड्रिया
(B) गुणसूत्र, राइबोसोम तथा एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम
(C) एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम, राइबोसोम, केन्द्रक
(D) लाइसोसोम, गॉल्जीकाय तथा माइटोकॉन्ड्रिया
उत्तर:
(D) लाइसोसोम, गॉल्जीकाय तथा माइटोकॉन्ड्रिया

16. निम्न में से कौन कलाबद्ध नहीं होता है ?
(A) रिक्तकाएँ
(B) राइबोसोम
(C) लाइसोसोम
(D) मीसोसोम
उत्तर:
(B) राइबोसोम

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17. स्तंभों का मिलान कर सही विकल्प का चयन कीजिए-

स्तंभ I स्तंभ II
a. थाइलेकॉयड 1. गॉल्जी उपकरण में डिस्क के समान कोश
b. क्रिस्टी 2. DNA की संघनित संरचना
c. सिस्टर्नी 3. स्ट्रोमा के समान झिल्लीमय चपटे आशय
d. क्रोमेटिन 4. माइटोकॉण्ड्रिया अन्तर्वलन

कूट:

a b c d
(A) 4 3 1 2
(B) 3 4 1 2
(C) 3 4 1 2
(D) 3 4 2 1

उत्तर:
(B) 3 4 1 2

18. निम्न में से कौन-सी संरचना प्रोकॉरियोटिक कोशिका में नहीं पायी जाती है?
(A) नाभिकीय आवरण
(C) मीसोसोम
(B) राइबोसोम
(D) जीवद्रव्य कला
उत्तर:
(A) नाभिकीय आवरण

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19. गक्त सुमेलित का चयन कीजिए-
(A) गैस रिक्तिकाएँ-हरी जीवाणु कोशिकाएँ
(B) बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका-जन्तु कोशिकाएँ
(C) प्रोटिस्ट-यूकैरियोट
(D) मेथेनोजन्स-प्रोकैरियोट्स
उत्तर:
(B) बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका-जन्तु कोशिकाएँ

20. गलत कथन का चयन कीजिए-
(A) जीवाणु कोशिका पेप्टिडोग्लाइकन की बनी होती है।
(B) पिलाई तथा फिम्बी मुख्यतः जीवाणु कोशिका की गतिशीलता में भाग लेते हैं।
(C) सायनोबैक्टीरिया में कशाभयुक्त कोशिकाएँ नहीं पायी जाती है।
(D) माइकोप्लाज्मा भित्ति रहित शुक्ष्मजीव है।
उत्तर:
(B) पिलाई तथा फिम्बी मुख्यतः जीवाणु कोशिका की गतिशीलता में भाग लेते हैं।

21. निम्न में से कौन-सा कोशिकांग एकल कला द्वारा घिरा रहता है ?
(A) हरितलवक
(C) केन्द्रक
(B) लाइसोसोम
(D) माइटोकॉण्ड्यिा
उत्तर:
(A) हरितलवक

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22. पादप कोशिका रिक्तकाओं में पाया जाने वाला जल में विलेय वर्णक
(A) क्लोरोफिल
(C) एन्थोसायनिन
(B) माइटोकॉण्ड्यिा
(D) जैन्योफिल
उत्तर:
(C) एन्थोसायनिन

23. निम्न में कौन-सा कोशिकांग कार्बोहाइड्रेट्स से ऊर्जा निष्कासित करके ATP निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है ?
(A) लाइसोसोम
(C) क्लोरोप्लास्ट
(B) राइबोसोम
(D) माइटोकॉण्ड्रिया
उत्तर:
(D) माइटोकॉण्ड्रिया

24. निम्न में से कौन-सा अवयव जीवाणु कोशिका को चिपकने वाला लक्षण प्रदान करता है ?
(A) कोशिका मिति
(C) जीवद्रव्य कला
(B) केन्द्रक कला
(D) ग्लाइकोकैलिक्स
उत्तर:
(D) ग्लाइकोकैलिक्स

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25. निम्न कोशिकागों के युग्म में किसमें DNA नहीं होता ?
(A) लयनकाय एवं रसधानियाँ
(B) केन्द्रक आवरण एवं सूत्रकणिका
(C) सूत्रकणिका एवं लयनकाय
(D) क्लोरोप्लास्ट एवं रसधानियाँ
उत्तर:
(A) लयनकाय एवं रसधानियाँ

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सबसे छोटी कोशिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
माइकोप्लाज्मा गैलीसेप्टिकम (Mycoplasma gallisepticum; 0.1μ)

प्रश्न 2.
कोशिका सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर:
श्लाइडेन तथा श्वान ने।

प्रश्न 3.
सबसे बड़े एक कोशिकीय पादप का नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) नामक शैवाल

प्रश्न 4.
सबसे बड़ी जन्तु कोशिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
शुतुर्मुर्ग ( Osrich ) का अण्डा ।

प्रश्न 5.
थाइलेकॉइड कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
हरित लवक (chloroplast) के प्रेना. (granna) में।

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प्रश्न 6.
गुणसूत्र को सर्वप्रथम किसने देखा ?
उत्तर:
स्ट्रासबर्गर (Strasburger; 1875 ) ने।

प्रश्न 7.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में एक अन्तर बताइए ।
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell) में केन्द्रक कला का अभाव होता है; जबकि यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell) में केन्द्रक कला उपस्थित होती है।

प्रश्न 8.
दो प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
जीवाणु कोशिका तथा सायनोबैक्टीरिया ।

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प्रश्न 9.
किसी एककोशिकीय यूकैरियोटिक पादप का नाम लिखिए।
उत्तर:
क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas )।

प्रश्न 10.
ऑक्सीसोम्स कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
माइटोकॉण्ड्रिया की क्रिस्टी (cristae) पर।

प्रश्न 11.
फ्रेस्ट क्या होते हैं ?
उत्तर:
दो मेना को जोड़ने वाली लैमेली को फ्रेस्ट (freste) कहते हैं।

प्रश्न 12.
प्लाज्मोडेस्मेटा क्या है ?
उत्तर:
दो संलग्न कोशिकाओं के बीच स्थित जीवद्रव्य तन्तु (protoplasmic fibre) ।

प्रश्न 13.
प्लाज्मोडेस्मेटा क्या कार्य करते हैं ?
उत्तर:
दो संलग्न कोशिकाओं के बीच पदार्थों का आदान-प्रदान ।

प्रश्न 14.
दो ऐसे कोशिकांगों के नाम लिखिए जिनमें 70 S राइबोसोम्स पाये जाते हैं ?
उत्तर:
(i) माइटोकॉण्ड्रिया
(ii) हरित लवक।

प्रश्न 15.
कोशिका के दो अर्द्धस्वायत्त संस्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
माइटोकॉण्ड्रिया तथा हरित लवक।

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प्रश्न 16.
प्रोटीनोप्लास्ट क्या है तथा ये कहाँ अधिक पाये जाते हैं ?
उत्तर:
प्रोटीन संचय करने वाले ल्यूकोप्लास्ट। ये दलहनी बीजों में अधिकता में पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
एमाइलोप्लास्ट क्या हैं ? ये कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर:
मण्ड का संचय करने वाले ल्यूकोप्लास्ट (leucoplast)। ये आलू कन्द, अन्न वाले बीजों आदि में अधिकता में पाये जाते हैं।

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प्रश्न 18.
खुरदरी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका खुरदरी क्यों प्रतीत होती है ?
उत्तर:
इसकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes ) उपस्थित होने के कारण ।

प्रश्न 19.
जीन्स कहाँ स्थित होते हैं ?
उत्तर:
गुणसूत्रों (chromosomes) पर।

प्रश्न 20.
यूक्रोमेटिन क्या होता है ?
उत्तर:
केन्द्रक के अन्दर क्रोमेटिन जाल जो हल्का स्टेन ( light stain ) लेता है यूक्रोमेटिन कहलाता है।

प्रश्न 21.
हिटरोक्रोमेटिन क्या होता है ?
उत्तर:
केन्द्रक के अन्दर क्रोमेटिन जाल (chromatin net) जो गहरा स्टेन लेता है हिटरोक्रोमेटिन ( heterochromatin) कहलाता है।

प्रश्न 22.
केन्द्रिका ( neucleolus) का क्या कार्य है ?
उत्तर:
RNA का संश्लेषण तथा राइबोसोम्स का निर्माण करना ।

प्रश्न 23.
एकक कला की विचारधारा किसने और कब प्रस्तुत की थी ?
उत्तर:
जे. डेविड रॉबर्टसन (J. David Robertson) ने 1959 में ।

प्रश्न 24.
प्लाज्मा झिल्ली की मोटाई कितनी होती है ?
उत्तर:
75 A ।

प्रश्न 25.
स्पाइरोगाइरा में किस प्रकार का क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है ?
उत्तर:
फीते के आकर का ( ribbon shaped )।

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प्रश्न 26.
क्लोरोफिल में कौन-सी धातु उपस्थित होती है ?
उत्तर:
मैग्नीशियम (magnesium)।

प्रश्न 27.
पॉलीराइबोसोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
लड़ी के रूप में व्यवस्थित राइबोसोम्स

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प्रश्न 28.
कोशिका की ऊर्जा मुद्रा का नाम लिखिए।
उत्तर:
एडिनोसिन ट्राइफास्फेट ( ATP)।

प्रश्न 29.
गुणसूत्र किन पदार्थों के बने होते हैं ?
उत्तर:
DNA, RNA तथा प्रोटीन्स के।

प्रश्न 30.
कौन-सा नाइट्रोजनी क्षार है जो DNA में पाया जाता है किन्तु RNA में नहीं पाया जाता है ?
उत्तर:
थायमीन (T)

प्रश्न 31.
डिक्टियोसोम्स क्या है ?
उत्तर:
पादप कोशिकाओं में गॉल्जीकाय को डिक्टियोसोम कहते हैं।

प्रश्न 32.
कौन-सा कोशिकांग ऐसा है जो बहुरूपता प्रदर्शित करता है ?
उत्तर:
लाइसोसोम (lysosome)।

प्रश्न 33.
पायरीनॉइड क्या होता है ?
उत्तर:
शैवालों में पायी जाने वाली रचना जिसमें प्रोटीन के चारों ओर मण्ड कण (starch grain) पाए जाते हैं।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न – I

प्रश्न 1.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रोकैरियोटिक कोशिका में हिस्टोन का अभाव होता है, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में उपस्थित होता है ।
(ii) प्रोकैरियोटिक कोशिका में कलाबद्ध कोशिकांग अनुपस्थित होते हैं, जबकि यूकैरियोटिक कोशिका में उपस्थित होते हैं।

प्रश्न 2.
कोशिका के किन्हीं चार जीवित अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) केन्द्रक
(ii) माइटोकॉन्ड्रिया
(iii) लवक
(iv) गॉल्जीकाय।

प्रश्न 3.
पादप कोशिका में दो संचित तथा दो स्रावी पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
संचित पदार्थ –
(i) कार्बोहाइड्रेट
(ii) वसा ।

स्त्रावी पदार्थ –
(i) एन्जाइम
(ii) मकरन्द।

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प्रश्न 4.
पादप कोशिका के किन्हीं चार उत्सर्जी पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) एल्केलॉइड (Alkaloids)
(ii) टेनिन्स (Tannins)
(iii) रेजिन्स (Rasins)
(iv) गोंद (Gum )।

प्रश्न 5.
माइक्रोसोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
माइक्रोसोम (Microsome ) – सेन्ट्रीफ्यूज द्वारा अलग किया हुआ कोशा का वह भाग जिसमें कुछ कलाएँ (विशेष रूप से ER के टूटे भाग) और राइबोसोम होते हैं, माइक्रोसोम (microsome) कहलाता है । पूर्ण कोशा के किसी भाग अथवा अंग के लिए यह शब्द प्रयोग नहीं किया जाता है

प्रश्न 6.
लोमासोम क्या होते हैं ?
उत्तर:
लोमासोम (Lomasome) – ये छोटी थैली के आकार की रचनाएँ हैं जो पादप कोशिकाओं में प्लाज्मालेमा (plasmalemma) तथा कोशिकाभित्ति के बीच पायी जाती है। ये सम्भवतः कोशिका भित्ति के विस्तार में सहायता करती हैं।

प्रश्न 7.
पिनोसाइटोसिस तथा फेगोसाइटोसिस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कोशिका, कोशिका कला से होकर अपने बाहरी वातावरण से भोजन ग्रहण करती है। ये भोज्य पदार्थ ठोस या तरल रूप में होते हैं। जब कोशिका कला द्वारा तरल पदार्थों को ग्रहण किया जाता है तो इसे पिनोसाइटोसिस (pinocytosis) कहते हैं तथा जब कोशिका कला द्वारा ठोस कणों को ग्रहण किया जाता है तो इसे फैगोसाइटोसिस (phagocytosis) कहते हैं।

प्रश्न 8.
स्रावी पदार्थ क्या होते हैं ?
उत्तर:
स्त्रावी पदार्थ (Secretory Substances ) – पादपों में कुछ उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ ऐसे पदार्थ बनते हैं जिनका पोषण एवं वृद्धि से सम्बन्ध नहीं होता है। ये स्रावी पदार्थ ( secretory substances) कहलाते हैं। ये पदार्थ कुछ आशयों या ग्रन्थियों में पाये जाते हैं। जैसे-मकरन्द, एन्जाइम, गोंद आदि ।

प्रश्न 9.
संरचनात्मक कार्बोहाइड्रेट्स कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
संरचनात्मक कार्बोहाइड्रेट्स तीन प्रकार के होते हैं –

  • मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides )-जैसे-ट्रायोजेस, टेट्रोजेस, पेंटोजेस, हेक्सोजेस आदि।
  • औलिगोसैकेराइड्स माल्टोस, लैक्टोस, रेफिनोसे आदि (Oligosaccharides )-जैसे-सुक्रोस,
  • पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides )-जैसे-सेल्युलोस, स्टार्च, ग्लाइकोजन आदि।

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प्रश्न 10.
सैट गुणसूत्र क्या होते हैं ?
उत्तर:
सैट गुणसूत्र ( Sat chromosome) : कुछ विशेष गुणसूत्रों पर एक द्वितीय संकीर्णन (secondary constriction) भी होता है। इसके ऊपर का घुण्डीनुमा भाग सैटेलाइट कहलाता है और सैटेलाइट युक्त गुणसूत्र को सैट गुणसूत्र (Sat-chromosome) कहते हैं ।

प्रश्न 11.
विषम पिक्नोसिस किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विषम पिक्नोसिस (Heteropycnosis) – क्षारीय अभिरंजन से क्रोमेटिन पदार्थ के दो स्पष्ट क्षेत्र होने की घटना को विषम पिक्नोसिस कहते हैं। कोशिका विभाजन की अन्तरावस्था (interphase) में हल्के अभिरंजित क्षेत्र यूक्रोमेटिन (euchromatin) तथा गहरे अभिरंजित क्षेत्र हिटरोक्रोमेटिन (heterochromatin) बनते हैं।

प्रश्न 12.
न्यूक्लियो प्लाज्मिक इण्डेक्स किसे कहते हैं ?
उत्तर:
केन्द्रक एवं कोशिका द्रव्य के आयतन में एक निश्चित अनुपात होता है, जिसे न्यूक्लियोप्लाज्मिक इण्डैक्स ( neucleoplasmic index) कहते हैं।
हर्टविग ने इसे निम्न सूत्र से प्रदर्शित किया-
\(N P=\frac{V n}{V c-V n}\)
यहाँ NP = केन्द्रकद्रव्यी सूचकांक
Vn = केन्द्रक का आयतन
Vc कोशिका द्रव्य का आयतन

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न – II

प्रश्न 1.
कोशिका सिद्धान्त क्या है तथा इसे किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर:
कोशिका सिद्धान्त (Cell theory):
श्लाइडेन तथा श्वान नामक वैज्ञानिकों ने कोशिका की संरचना तथा उत्पत्ति के सम्बन्ध में अपने कुछ तथ्य प्रस्तुत किए जिन्हें कोशिका सिद्धान्त कहते हैं इनके अनुसार –

  • सभी जीवधारियों के शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है।
  • कोशिका शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
  • नयी कोशिकाओं की उत्पत्ति पूर्ववर्ती जीवित कोशिकाओं से होती है प्रत्येक जीवधारी प्रारम्भ में एक कोशिकीय होता है (जैसे-युग्मनज ) परन्तु इसके विकास से जीवधारी बहुकोशिकीय हो जाता है।

प्रश्न 2.
रॉबर्टसन द्वारा प्रस्तुत कोशिका झिल्ली का एकक कला (Unit membrane) मत पर सचित्र टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
एकक कला मत (Unit membrane theory): कोशिका कला की संरचना के इस मत को रॉबर्टसन ( roberson) ने सन् 1959 में प्रस्तुत चित्र – कोशिका कला – एकक कला (Unit membrane) रॉबर्टसन का मॉडल किया। इस मत के अनुसार कला की मोटाई 75 Å होती है, जो तीन परतों की बनी होती है। बाहरी दोनों परतें प्रोटीन (protein) की तथा प्रत्येक की मोटाई 20 A होती है। मध्य परत लिपिड (lipids ) की बनी होती है जिसकी मोटाई 35 A होती है। यह एकक कला सभी कोशिकांगों में समान रूप से पायी जाती है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 31

प्रश्न 3.
कोशिका कला की संरचना के तरल मोजेक मॉडल का संक्षेप में सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तरल मोजेक मॉडल (Fluid mosaic model ) – यह मॉडल सिंगर तथा निकोल्सन (Singer and Nicolson) ने सन् 1974 में प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला लिपिड की बनी द्विआण्विक परत (bimolecular layer) होती है। लिपिड की दोनों परतों के बाहर की ओर बाह्य प्रोटीन की एक-एक परत पायी जाती है जिसे बाह्य प्रोटीन (extrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में कुछ प्रोटीन अन्दर तक धँसी रहती है। इन्हें अन्त: प्रोटीन (intrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में स्थित फॉस्फोलिपिड अणुओं के दो छोर होते हैं-
(I) जल रागी शीर्ष (hydrophilic head) जो प्रोटीन परत की ओर होता है।

(ii) जल विरागी पुच्छ (hydrophobic tail) जो कला के केन्द्र की ओर होता है।
दोनों प्रोटीन परतों की मोटाई 20-20 Å तथा फॉस्फोलिपिड द्विपरत (phospholipid bilayer) की मोटाई 35 होती है। इस प्रकार प्रोटीन लिपिड द्विपरत-प्रोटीन संरचना प्रदर्शित करती है। आन्तरिक प्रोटीन लिपिड परत में हिलडुल सकते हैं इसलिए इसे तरल मोजेक मॉडल (fluid mosaic model) कहते हैं।
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प्रश्न 4.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर
(Differences between Prokaryotic and Eukaryotic cells)

पूर्वकेन्द्रीय कोशिका (Prokaryotic cells) सुकेन्द्रकीय कोशिका (Eukaryotic cells)
1. केन्द्रक कला, अनुपस्थित होने के कारण आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कोशा द्रव्य में नग्न पड़ा रहता है। इसे असत्य केन्द्रक कहते हैं। केन्द्रक कला उपस्थित होने से आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कला के अन्दर व्यवस्थित होता है। इसे सत्य केन्द्रक कहते हैं।
2. आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) हिस्टोन रहित होता है। आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) हिस्टोन युक्त होता है।
3. केवल एक गुणसूत्र (chromosome) पाया जाता है। एक अधिक गुणसूत्र (chromosomes) पाए जाते हैं। कलाबद्ध कोशिकांग उपस्थित होते हैं।
4. कलाबद्ध कोशिकांग जैसे लवक, माइटोकॉन्ड्रिया ER आदि अनुपस्थित होते हैं। इनमें 80 S राइबोसोम्स (ribosomes) पाए जाते हैं मीसोसोम्स (mesosomes ) नहीं पाए जाते है।
5. इसमें 70 S (ribosomes) पाए जाते हैं। अपेक्षाकृत बड़े आकार की होती है।
6. कला के वलनों में मीसोसोम (mesosomes ) पाए जाते हैं। सुकेन्द्रकीय कोशिका (Eukaryotic cells)
7. आकार में अपेक्षाकृत छोटे आकार की होती है। केन्द्रक कला उपस्थित होने से आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) कला के अन्दर व्यवस्थित होता है। इसे सत्य केन्द्रक कहते हैं।

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प्रश्न 5.
पादप कोशिका भित्तियों में विभिन्न प्रकार के स्थूलनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कोशिका भित्ति के विभिन्न प्रकार के स्थूलन:
(Various types of Thickening of cell wall)
पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति पायी जाती है जो मुख्य रूप से सैलुलोस की बनी होती है। इसका प्रमुख कार्य कोशिका को निश्चित आकार तथा दृढ़ता प्रदान करना होता है। यह कोशिका की सुरक्षा तथा जल अवशोषण भी करती है। कोशिका भित्ति पर जीवद्रव्य से स्रावित विभिन्न पदार्थों जैसे- लिग्निन, क्यूटिन, सुबेरिन आदि का जमाव होता रहता है।

जिसके कारण कोशिका भित्ति अनेक स्थानों पर स्थूलित हो जाती है। ये स्थूलन कोनों पर अधिक होते हैं। जाइलम वाहिनिकाओं (xylem tracheids) में लिग्निन के एकत्र होने से स्थूलन होता है। स्थूलन विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे– छल्लेदार (Annular), सीढ़ीनुमा ( Sclariform ), जालिकावत (Raticulate), सर्पिल (Spiral), गर्तमय (Pitted) इत्यादि। मरुद्भिदी पादपों की बाह्य त्वचा कोशिकाओं पर क्यूटिन का स्थूलन, कार्क कोशिकाओं की भित्तियों पर सुबेरिन का स्थूलन पाया जाता है। इसके कारण कोशिकाएँ जल के लिए अपारगम्य हो जाती हैं।

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प्रश्न 6.
पादप तथा जन्तु कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पादप कोशिका एवं जन्तु कोशिका में अन्तर
(Differences between Plant cell and Animal cell)

पादप कोशिका (Plant cell ) जन्तु कोशिका (Animal cell)
1. दृढ़ कोशिका (rigid cell wall) भित्ति उपस्थित होती है । कोशिका भित्ति (cell wall) का अभाव होता है।
2. कोशिका भित्ति के अन्दर तथा जीवद्रव्य के बाहर की ओर प्लाज्मा कला होती है। प्लाज्मा कला जीवद्रव्य के ऊपर सबसे बाहरी आवरण बनाती है।
3. लवक (plastids ) पाए जाते हैं। लवकों (plastids ) का अभाव होता है।
4. बड़ी-बड़ी रिक्तिकाएँ (vacuoles) पायी जाती हैं। रिक्तिकाएँ ( vacuoles) या तो बहुत छोटी या अनुपस्थित होती हैं ।
5. इनमें तारक काय का अभाव होता है। इनमें केन्द्रक के समीप तारक काय पाया जाता है।
6. इनमें डिक्टियोसोम मिलते हैं। इनमें गॉल्जीकाय मिलते हैं।
7. कोशिका विभाजन मध्य पट्ट होता है। कोशिका विभाजन खाँच विधि से होता है।

प्रश्न 7.
केन्द्रक के महत्व को बताने के लिए हेमरलिंग के प्रयोग को समझाइए ।
उत्तर:
केन्द्रक के महत्व के लिए हेमरलिग का प्रयोग (Experiment of Hammerling for importance of necleus):
जे. हेमरलिंग (J. Hammerling) ने 1953 में केन्द्रक के महत्व को समझाने के लिए ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) नामक एककोशिकीय शैवाल (unicellular algae) पर अपने प्रयोग किये। ऐसीटाुलेरिया पौधे को तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है-टोपी (cap), वृन्त तथा शाखित पाद (stalk)। ऐसीटाबुलुलेरिया क्रनुलेटी (A. cranulate) में टोपी का आकार छाताकार होता है तथा ए. मेडीटेरेनिया (A. mediterranea) में टोपी का आकार गुच्छित होता है।

यदि इस शैवाल के तीनों भागों को काटकर अलग कर दिया जाय तथा पहली जाति के वृन्त को दूसरी जाति के पाद पर तथा दूसरी जाति के वृन्त को पहली जाति के पाद पर खखा जाए तो दोनों जातियों में पुनर्निर्मित टोपियाँ एक दूसरी में उलर-पुलट जाती हैं अर्थात् पहली जाति में छाताकार टोपी तथा दूसरी जाति में गच्छित टोपी उत्पन्न होती है। इससे सिद्ध होता है कि टोपी के आकार का नियंत्रण पाद में स्थित केन्द्रक (nucleus) द्वारा किया जाता है।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(क) परऑक्सीसोम
(ख) स्फीरोसोम ।
उत्तर:
पर ऑक्सीसोम (Peroxysome ) – ये सूक्ष्म गोलाकार कण हैं जो एक परत वाली झिल्ली से ढंके होते हैं। ये उन पौधों में पाये जाते हैं जिनमें प्रकाश श्वसन की क्रिया होती है। जन्तु कोशिओं में ये जिगर एवं गुरदे में तथा प्रोटोजोन्स (protozoans) में पाये जाते हैं। इनमें सूक्ष्म कणिकाओं वाली आधात्री ( matrix ) होती है जिसके केन्द्र में एक समांग तथा अपारदर्शी कोर होती है। सम्भवतः इनका निर्माण अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (ER ) से होता है। इनमें ग्लाइकोलिक अम्ल, ऑक्सीडेज, परऑक्सीडेज केटालेज, डी अमीनो अम्ल ऑक्सीडेज अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनकी खोज टोलबर्ट (Tolbert ) ने की थी।

(ख) स्फीरोसोम (Spherosome ) – ये सूक्ष्म गोलाकार कण हैं जिनका व्यास 0.244 तक होता है। सम्भवतः इनका निर्माण अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के टूटने से होता है। इनमें हाइड्रोलेज, प्रोटीएज, रिबोन्यूक्लिएज, फास्फोटेज एवं ईस्टरेज विकर पाये जाते हैं। ये केवल पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं और जन्तु कोशिकाओं के लाइसोसोम (lysosome) की तरह होते हैं। डेनजियर्ड ने इन्हें स्फीरोसोम नाम दिया।

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प्रश्न 9.
प्लाज्मोडेमेटा पर सचित्र टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्लाज्मोडेस्पेटा (Plasmodesmata) – पादप कोशिकाओं में मध्य पटलिका (middle lamella) तथा कोशिका भित्तियों के बीच छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से होकर कोशिका का जीवद्रव्य समीपवर्ती कोशिकाओं में जीवद्रव्य से निरंतरता बनाए रखता है। इस संरचना को प्लाज्मोडेस्मेटा (plasmodemata) कहते हैं। इनके बारे में स्ट्रास वर्गर ने सर्वप्रथम बताया था। ये एक कोशिका के पदार्थों का दूसरी कोशिका में आवागमन का कार्य करते हैं।
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प्रश्न 10.
विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
कोशिकाएँ (Cells) आमाप, आकृति एवं कार्य की दृष्टि से अत्यधिक विभिन्नता प्रदर्शित करती हैं। माइकोप्लाज्मा (PPLO) की कोशिकाएँ आकार में सबसे छोटी (0-14m से 0.3m) होती हैं। जीवाणु कोशिकाएँ सामान्यतया 3 से 5m आकार की होती हैं। ऐसीटाबुलेरिया नामक शैवाल सबसे बड़ा एक कोशिकीय शैवाल है। शतुर्मुर्ग ( Ostrich ) का अण्डा सबसे बड़ी जन्तु कोशिका है, जबकि तंत्रिका कोशिका सबसे लम्बी जन्तु कोशिका है। कोशिकाएँ गोलाकार, अण्डाकार, चपटी, बहुभुजीय, बिम्बाकार, घनाकार आदि आकार की हो सकती हैं।
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प्रश्न 11.
सिस्टोलिथ क्या होते हैं ? समझाइए।
उत्तर:
सिस्टोलिथ (Cystolith) – कुछ पौधों जैसे – बरगद, रबर, कनेर आदि की बहुस्तरीय बाह्य त्वचा की कोशिकाएँ आकार में बड़ी हो जाती हैं। जिनमें कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO) के कण क्रिस्टल या गुच्छों के रूप में पाए जाते हैं। ऐसी कोशिका की कोशिका भित्ति में सेलुलोस का एक वृन्त होता है जिस पर ये क्रिस्टल अंगूर के गुच्छे की भाँति लगे होते हैं। सिस्टोलिथ इन्हें (cystolith) कहते सिस्टोलिथ हैं । जिस HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 35

प्रश्न 12.
रेफाइड्स तथा इन्युलिनं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेफाइड्स (Raphides ) – ये अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ हैं, जो कैल्शियम ऑक्सेलेट (calcium oxalate) के क्रिस्टलों के रूप में कुछ पौधों की पत्तियों में पाए जाते हैं; जैसे- समुद्रसोख (Echomnia), अरबी, गुलमेंहदी आदि में। अरबी / नागफनी (Opuntia) आदि में रेफाइड्स समूह में न होकर सितारे के आकार की संरचना बनाते हैं जो स्फिरेफाइड्स कहलाते हैं।
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इन्युलिन ( Inulin) – यह घुलनशील पॉलीसेकेराइड्स है। डहेलिया (Dahelia) की कन्दिल जड़ों में इन्युलिन (insulin crystal) भोज्य पदार्थ के रूप में संचित रहता है । इन्युलिन एल्कोहॉल या ग्लिसरीन में अघुलनशील है। ऐसे पौधों की जड़ों को काटकर एल्कोहॉल या ग्लिसरीन में रखने से ये अवक्षेपित होकर पंखनुमा क्रिस्टल बना लेता है। यह मण्ड के समान पदार्थ होता है।
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प्रश्न 13.
सक्रिय परिवहन से आप क्या समझते हैं ? सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सक्रिय परिवहन ( Active transport ) – सक्रिय परिवहन में आयन या अणुओं का परिवहन कोशिका कला से होकर सान्द्रता प्रवणता के विपरीत होता है अर्थात् निम्न सान्द्रता वाले स्थान से उच्च सान्द्रता वाले स्थान की ओर होता है। यह ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया है जो वाहक प्रोटीन (carrier protein) द्वारा सम्पन्न होती है। ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया में कोशिका में कोशिका कला से अणुओं या आयन्स को ले जाने के लिए आयन्स या अणुवाहक (carriers ) ऊर्जा का व्यय करते हैं। यह क्रिया एन्ज़ाइम की उपस्थिति में होती है तथा ATP ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं।
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प्रश्न 14.
मीसोसोम्स क्या है ? ये कहाँ मिलते हैं ? मीसोसोम की संरचना का चित्र बनाकर इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
मीसोसोम्स (Mesosomes ) – मीसोसोम जीवाणु कोशिका (barcterial cell) में कोशिका कला के अन्तर्वलन (infold) से बनी नालवत (tubular) या थैली (vesicular) संरचनाएँ हैं। ये अधिकांशतः ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में पायी जाती हैं। इनमें श्वसन के विकर पाए जाते हैं और सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रिया के समरूप हैं अर्थात् श्वसन क्रिया में भाग लेते हैं। कोशिका विभाजन एवं एण्डोस्पोर (endospore) बनते समय कोशिका भित्ति के बनने में भी सहायता करते हैं।
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प्रश्न 15.
न्यूक्लिओसोम पर सचित्र टिपणी लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लिओसोम (Neucleosome)-वुङकोक (Woodcock) नामक वैज्ञानिक ने सन् 1973 में क्रोमेटिन (chromatin) की संरचना का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्र्शी की सहायता से विश्लेषण किया तथा बताया कि प्रत्येक क्रोमेटिन पर मोतीनुमा क्रोमेटिन पर मोतीनुमा (beaded) रचनाएँ होती है जिन्हं न्यूक्सियोसोम (nucleosome) कहते हैं। प्रत्येक न्यूक्लियोसोम हिस्टोन प्रोटीन्स तथा DNA की बनी अर्द्ध-बेलनाकार संरचना है। इसके मध्य का भाग हिस्टोन से बना कोर (core) होता है। कोर में हिस्टोनप्रोटीन H2 A, H2 B, H3 तथा H4 के दो-दो अणु होते हैं इसे अष्टक दो-दो अणु होते हैं इसे अष्टक कहते हैं। इस कोर के चारों ओर DNA की कुण्डली मिलती है। इसमें लगभग 166 पॉली न्यूक्लिओटाइड (nucleotides) मिलते हैं। दो न्यूक्लिओसोम (nucleosome) को जोड़ने वाले DNA को लिंकर DNA कहते हैं।
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H1 प्रोटीन न्यूक्लिओटाइड को कसने का कार्य करती हैं। छ: न्यूक्लिओसोम पुन: कुण्डलित होकर एक सोलेनाइड (solenoid) बनाते हैं। बहुत से सोलेनाइड कुण्डलित होकर एक क्रोमेटिन तन्तु बनाते हैं। क्लुग (Klug 1982) को सोलेनॉइड की संरचना बताने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

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प्रश्न 16.
पक्ष्पाभिका तथा कशाभिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पक्ष्माभिका एवं कशाभिका में अन्तर (Differences between Cilia and Flagella)

पक्ष्माभिका (Cilia) कशाभिका (Flagella)
ये संख्या में अधिक होते हैं। इनकी संख्या कम होती है।
(ii) ये कम लम्बे 0.5-1.0μ होते हैं। ये अधिक लम्बे (1μ-4μ) होते हैं।
(iii) पक्ष्माभिकाएँ समूह में गति करती है । कशाभिका एकल तथा स्वतंत्र रूप से गति कर सकती है।
(iv) इनकी गति घड़ी के पेण्डुलम की भाँति होती है। इसकी गति लहरदार होती हैं।
(v) ये कोशिका के चारों ओर पाये जाते हैं। ये प्रायः कोशिका में एक या दो ओर पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिये-
(अ) क्वाण्टासोम
(ब) जीन।
उत्तर:
(अ) क्वाण्टासोम (Quantasome)-पादप कोशिकाओं में हरित लवक (plastid) के स्ट्रोमा में पटलिकाएँ (lamellae) पायी जाती हैं। ये पटलिकाएँ सिक्कों के ढेर के समान व्यवस्थित होती हैं, इस ढेर को प्रेनम (granum) कहते हैं। पटलिकाओं पर असंख्य सूक्ष्म कण पाये जाते हैं। इन कणों को पार्क एवं पॉन (Park and Pon, 1961) ने क्वाण्टासोम (quantasome) नाम दिया। प्रत्येक क्वांटासोम लगभग 230 पर्णहरित अणु (chlorophyll molecules) धारण करता है। क्वांण्टासोम (Quantasomes) को प्रकाश संश्लेषण के केन्द्र कहते हैं।

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(ब) जीन (Gene)-जीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जोहान्सन (Johanson) ने किया। जीन किसी लक्षण (Character) की आनुवंशिकी को नियंत्रित करने वाली इकाई होते हैं। विषाणुओं को छोड़कर सभी जीवों में जीन DNA का एक विशेष खण्ड होता है। जीन्स के विषय में अनेक धारणाएँ हैं। गुणसूत्र के क्रोमोमीयर्स (chromomeres) पर इनकी उपस्थिति समूह अथवा एकल रूप में सर्वमान्य है। लैम्पबुश गुणसूत्रों (lampbrush chromsome) में लूप तथा अक्ष दोनों में इनकी उपस्थिति स्पष्ट है।

आधुनिक विचारधारा के अनुसार जीन को कार्यात्मक इकाई सिस्ट्रॉन (cistron), उत्परिवर्तनात्मक इकाई म्यूटॉन (muton) तथा पुनर्सयोजन की इकाई रीकोन (recon) का समूह माना जाता है। जीन प्रोटीन संश्लेषण द्वारा लक्षणों का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 18.
विभिन्न प्रकार के मण्ड कणों पर सचित्र टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
मण्ड कण (Starch grains) – हरे पादपों में भोज्य पदार्थ प्रायः मण्ड (starch) के रूप में संचित होता है। संचित मण्ड अवर्णी लवकों (leucoplasts) में मिलते हैं और इन्हें एमाइलोप्लास्ट (amyloplast) कहते हैं। मण्ड कण विभिन्न प्रकार के जैसे-अण्डाकार (आलू), गोलाकार (मटर), चपटे (गेहुँ), अथवा मुग्दाकार (club shaped)-एवं बहुभुजी (polygonal) होते हैं। कैना (Canna) के मण्ड कण बड़े जबकि चावल के मण्ड कण लम्बे व छोटे होते हैं। मण्ड कण की उत्पत्ति का केन्द्र नाभिक (hilum) कहलाता है, जिसके ऊपर मण्ड परतें बनाता हुआ होता है।

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नाभिक की स्थिति के अनुसार मण्ड कण दो प्रकार के होते हैं –
1. संकेन्द्री (Concentric)-इसमें नाभिक केन्द्र में स्थित होता है। जैसे-गेहूँ, मटर, सेम आदि में।

2. उाकेन्द्री (Ecentric)-इसमें नाभिक एक ओर स्थित होता है, जैसे-आलू, चावल आदि में।

कभी-कभी मण्ड कणों में एक से अधिक नाभिक मिलते हैं ये संयुक्त मण्ड कण कहलाते हैं, जैसे चावल एवं शकरकन्द। मण्ड जल एवं एल्कोहॉल में अघुलनशील हैं। चावल में 70-80 गेहूँ में 70 मक्का में 68 तथा आलू में 20 मण्ड मिलता है।

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प्रश्न 19.
परासरण से आप क्या समझते हैं ? अन्त: परासरण एवं बाहा परासरण में अन्तर लिखिये।
उत्तर:
परासरण (Osmosis) – किसी अर्द्धपारगम्य कला से होकर विलायक के अणुओं का उनकी अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर विसरण की क्रिया परासरण (osmosis) कहलाती है। यह क्रिया तब तक चलती है जब तक कि कला के दोनों ओर साम्यावस्था स्थापित नहीं हो जाती।

अन्त: परासरण तथा बाउ परासरण में अन्तर (Differences between endosmosis and exoemosis) –

अन्त: परासरण (Endosmosis) बंड परासरण (Exosmosis)
इसमें परासरण बाह्य माध्यम से अन्दर की ओर होता है। इसमें परासरण अन्दर से बाह्य माध्यम की ओर होता है।
इसमें विलायक अणु सान्द्र घोल की ओर गति करते हैं। इसमें तनु घोल अन्दर होता है जिसमें विलायक (solvent) अणु बाहर की ओर गति करते हैं।

प्रश्न 20.
परासरण एवं विसरण में अन्तर लिखिये।
उत्तर:
परासरण एवं विसरण में अन्तर (Differences between osmosis and diffusion)

परासरण (Osmosis) विसरण (Diffusion)
इसमें विलायक के अणु अर्द्धपारगम्य (semipermeable membrane) से होकर विसरित होते हैं । इसमें अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semipermeable) आवश्यकता नहीं होती। अणु स्वतंत्र रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करते हैं।
इसमें विलायक के अणुओं का प्रवाह परासरण दाब (OP) पर निर्भर करता है । इसमें अणुओं का प्रवाह विसरण दाब (diffusion pressure) पर निर्भर करता है।
विलायक के प्रवाह की दर घोल की सान्द्रता पर निर्भर करती है। विसरण की दर पदार्थ के वाष्प घनत्व पर निर्भर करती है।

प्रश्न 21.
कोशिका के दो अर्द्धस्वायत्त संस्थानों के नाम लिखिये। इन्हें यह नाम क्यों दिया गया है ? संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
माइटोकॉष्ट्रिया (Mitochondria) तथा हरित लवक (Chborophylc) को कोशिका के अर्ध्ध स्वायत्त संस्थान (autonomous body) कहा जाता है। माइटोकॉण्डिया तथा हरित लवक दोनों में ही DNA की थोड़ी-सी मात्रा उपस्थित होती है। इसकी उपस्थिति के कारण ये दोनों कोशिकांग स्वतंत्र रूप से विभाजन करके अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं। इन दोनों कोशिकांगों में 70 S प्रकार के राइबोसोम्स भी होते हैं। जिनकी सहायता से ये आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण DNA के नियंत्रण द्वारा कर सकते हैं। इसीलिए इन्हें अर्द्ध-स्वायत्त संस्थान कहते हैं।

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प्रश्न 22.
अवर्णी लवक तथा वर्णी लवक में अन्तर लिखिये। उत्तर-अवर्णी लवक तथा वर्णी लवक में अन्तर (Differences between Leucoplants and Chromoplasts)

अवर्णी लवक (Leucoplast) वर्णी लवक (Chromoplast)
ये प्राय: पौधे के भूमिगत भागों जैसे-प्रकन्द (rhizome), घनकन्द (corn) शल्क कन्द (bulb) तथा-अन्य संचयी भागों में पाया जाता है। ये पौधे के वायवीय भागों जैसे-पुष्प की पंखुड़ियाँ, फलों के छिलके आदि में पाये जाते हैं।
यह रंगहीन होता है परन्तु प्रकाश मिलने पर हरे या रंगीन हो सकते हैं। ये विभिन्न रंगों के होते हैं और अन्य लवकों (plasticls) में परिवर्तित हो सकते हैं।
ये भोज्य पदार्थों का संचय करते हैं। ये भोज्य पदार्थों का संचय नहीं करते। परन्तु पौधों के विभिन्न भागों को विशिष्ट रंग प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 23.
साइटोपंजर क्या होता है ? समझाइये।
उत्तर:
साइटोपंजर (Cytoskeletal Structure) – प्रोटीनयुक्त जालिकावत् तन्तु जो कोशिका द्रव्य में मिलते हैं साइटोपंजर कहलाते हैं। इनमें तीन प्रकार के तन्तु होते हैं –
(i) सूक्ष्म तन्तुक (microfilaments)
(ii) सूक्ष्मनलिका (microtubules) तथा
(iii) मध्यस्थ तन्तु (intermediate filaments) I
माइक्रोफिलामेण्ट लगभग 8 nmव्यास के होते हैं। जो बिखरे हुए या समान्तर समूहों में व्यवस्थित होकर कोशिका की अधात्री (matrix) में पड़े रहते हैं। इनका निर्माण एक्टिन सदृश प्रोटीन्स से होता है। साइटोपंजर (cytoskeleton) कोशिका को यांत्रिक दृढ़ता तथा कोशिका के आकार तथा गति को बनाये रखता है।

प्रश्न 24.
खुदरी तथा चिकनी अन्त: प्रद्रव्यी जालिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
खुरदरी अन्त:प्रद्रष्यी जालिका तथा चिकनी अन्त: प्रद्रव्यमी जालिका (Differences between rough endoplasmic reticulum and smooth endoplasmic reticulum)

खुरदरी अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Rough Endoplasmic Reticulum) चिकनी अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Smooth Endoplasmic Reticulum)
इनकी सतह पर राइबोसोम (ribosomes) होते हैं जिनके कारण यह खुरदरी (rough) प्रतीत होती हैं। इनकी सतह पर राइबोसोम्स का अभाव होता है।
ये प्रोटीन्स, एन्जाइम के संश्लेषण में भाग लेती है। ये लिपोप्रोटीन्स, ग्लाइकोजन्स, ग्लिसराइड्स, स्टीरॉइड्स, हार्मोन्स आदि के संश्लेषण में भाग लेती है।

प्रश्न 25.
प्राम धनात्मक तथा ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
भाम धनात्मक तथा ग्राम ऋणात्मक जीवाणुओं में अन्तर (Differences between Gram positive and Gram negative Bacteria)-
प्राम धनात्पक जीवाणु (Gram + ve Bacteria)

प्राम धनात्पक जीवाणु (Gram + ve Bacteria) ग्राम ऋणात्मक जीवाणु (Gram -ve Bacteria)
1. कोशिका भित्ति पतली 100-200 होती हैं। कोशिका भित्ति मोटी 70-120  होती है।
2. इनमें मीसोसोम्स (mesosomes) पाए जाते हैं। इनमें मीसोसोम्स अनुपस्थित या अल्पविकसित होते हैं।
3. इनमें रोम या पिलाई (pili) अनुपस्थित होते हैं। इनमें रोम या पिलाई उपस्थित होते हैं।
4. ये प्रति जैविकों के लिए कम प्रतिरोधी होते हैं। ये प्रतिजैविकों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं।
5. क्रिस्टल वायलेट तथा आयोडीन का स्टेन एथिल ऐल्कोहॉल से धोने के बाद भी बैंगनी रह जाता है। क्रिस्टल वायलेट (crystgal violet) स्टेन एथिल ऐल्कोहॉल से धोने से धुलकर रंगहीन हो जाते हैं।

प्रश्न 25.
जन्तु कोशिका का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
कोशिका का समग्र अवलोकन (Overall review of Cell)
प्याज की झिल्ली में देखी गयी कोशिका जो एक प्रारूपी पादप कोशिका है, जिसकी बाहरी सतह पर एक स्पष्ट कोशिका भित्ति व इसके ठीक नीचे कोशिका कला होती है। मनुष्य के गाल की कोशिका के संगठन में बाहर की ओर केवल एक कलावत् संरचना दिखाई देती है। दोनों ही कोशिकाओं के अन्दर दोहरी कला से घिरी एक संरचना होती है जिसे केन्द्रक (nucleus) कहते हैं। केन्द्रक के अन्दर गुणसूत्र होते हैं जिनमें आनुवंशिक पदार्थ डी. एन. ए. होता है। ऐसी कोशिकाएँ जिनमें कलायुक्त केन्द्रक होतां है। यूकरियोटिक कोशिकाएँ (eukaryotic cells) कहलाती हैं। ऐसी कोशिकाएँ जिनमें कलाबद्ध केन्द्रक नहीं मिलता है उन्हें प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ (prokaryotic cell) कहते हैं।

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प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिकाओं में इसके आयतन को घेरे हुए एक अर्द्धतरल द्रव मिलता है जिसे कोशिका द्रव्य कहते हैं। पादप एवं जन्तु कोशिकाओं दोनों में कोशिकीय क्रियाओं के लिए कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) एक प्रमुख स्थल होता है। कोशिका की जैविक अवस्था सम्बन्धी विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाएँ यहीं सम्पन्न होती हैं।

कोशिका-आकृति माप एवं आयतन (Cell : Shape, Size and Volume) आकृति (Shape)-जीवधारियों की कोशिकाएँ आकृति में अत्यधिक विविधता दर्शाती हैं। कोशिकाएँ गोल (Spherical), चपटी, (flat) अण्डाकार (ovate), नलिकाकार (tubular), ताराकृत (starshaped), तर्कुआकार (spindle shaped) अथवा अनियमित आकार की हो सकती हैं। इनकी आकृति स्थाई होती है।
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माप (Size) -कोशिका सामान्यतः 1-2 mu m से 100 mके व्यास की होती हैं। माइकोप्लाज्मा गैलीसैप्टिकम (Mycoplasma gallisepticum = Pleuro Pneumania Like Organism – PPLO) अब तक देखी गयी सबसे छोटी कोशिका है 1.0 एक जीवाणु का 10 भाग)। प्राणियों में सबसे लम्बी कोशिका, तंत्रिका कोशिका (लम्बाई 90 सेमी) तथा प्राणियों की सबसे बड़ी व्यास वाली कोशिका शुतुरमुर्ग (Ostrich) का अण्डा 170 155 mm है। ऐसीटाबुलेरिया (Acetabularia) जो एक कोशिकीय शैवाल है, की लम्बाई 10 सेमी. तक होती है तथा दूसरे एक कोशिकीय शैवाल कौलर्पा (Caulerpa) की कुछ जातियों की लम्बाई एक मीटर तक होती है। बोहमेरिया निविया (Bochmeria nivia) पौधे की कोशिकाओं में रेमी (Rami) के रेशों की लम्बाई 55 सेमी तक होती है। राइजोपस (Rhizopus) नामक कवक बहुकेन्द्री परन्तु एक कोशिकीय होता है। इनकी लम्बाई 90 सेमी तक होती है।

आयतन (Volume) -एक कोशिकीय जीव को सभी क्रियाएँ जैसे गैस विनिमय, पोषण, अवशोषण तथा उपापचयी क्रियाएँ (metabolic activities) आदि एक ही कोशिका में सम्पन्न करने होते हैं। इन सभी कार्यों के लिए अधिक स्थान (space) की आवश्यकता होती है। यदि सतही क्षेत्र (surface area) में वृद्धि होती है तो साथ-साथ आयतन (volume) भी बढ़ता है परन्तु समान अनुपात में नहीं। जैविक क्रियाओं के लिए यह अति आवश्यक है। आयतन के अनुसार ही कोशिका की रासायनिक क्रिया इकाई समय में तय होती है तथा सतही क्षेत्र के अनुसार कोशिका द्वारा पदार्थों का अवशोषण व उत्सर्जन तय होता है।

कोशिकाओं के प्रकार (Types of Cells)
समस्त जीवधारियों में दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं –

  • प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ (Prokaryotic cells)
  • यूकैरियोटिक कोशिकाएँ (Eukaryotic cells)

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प्रश्न 26.
कशाभिका की संरचना को चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
कशाभिका (Flagella) – ये जीवाणुओं, कुछ जन्तुओं तथा कुछ पादपों की कोशिकाओं या युग्मकों (gametes) में पायी जाने वाली चाबुकनुमा संरचना है। ये फ्लैजिन नामक प्रोटीन के बने होते हैं। इनका निर्माण अनेक तंतुओं के सर्पिलाकार क्रम (spirally) में व्यवस्थित होने से होता है। इनमें मिलने वाली छोटी-छोटी उप-इकाइयों का व्यास 40-50 होता है। यूकैरियोटिक फ्लैजिला में तन्तुओं का विन्यास 9+2 होता है, जबकि जीवाणु फ्लैजिला में ऐसा विन्यास नहीं होता है। फ्लैजिला के तीन भाग होते हैं –
(i) आधार कण (basal granule)
(ii) अंकुश (hook) तथा
(iii) मुख्य तन्तु (main filament)।
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(E) निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पादप कोशिका का इलेक्टॉन सूक्षमदर्शीय चित्र बनाकर संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पादप कोशिका (Plant cell) – पादप कोशिका जन्तुओं से मुख्यतया कोशिका भित्ति, लवक (Plastids) तथा बड़ी-बड़ी रिक्तिकाओं (vacuoles) की उपस्थिति के कारण तथा जीवाणुओं से कलाबद्ध कोशिकांगों (membrane bound cell organells) एवं केन्द्रक की संरचना के कारण भिन्न होती है। एक प्रारूपिक पादप कोशिका के निम्नलिखित भाग होते हैं –
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका जीवन की इकाई - 29
कोशिका भिति एवं कलाएँ (Cell Wall and Membranes) – कोशिका भित्ति (cell wall) पादप कोशिका की बाह्म चार दीवारी है जो प्राय: त्रिस्तरीय होती है। यह मुख्यतया सेलुलोस की बनी होती है। कोशिका भित्ति के ठीक अन्दर लाइपोप्रोटीन की बनी कोशिका कला (plasma membrane) होती हैं। रिक्तिका (vacuole) को घेरने वाली झिल्ली टोनोप्लास्ट (tonoplast) कहलाती हैं जो जीवद्रव्य को रिक्तिका रस से. पृथक् करती है। कोशिका भित्ति कोशिका को सुरक्षा व आकृति प्रदान करती हैं, जबकि कलाएँ पदार्थों के आवागम्न पर नियंत्रण करती हैं।

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कोशा द्रव्य (Cytoplasm) – कोशिका द्रव्य एक कोलाइडी तंत्र (colloidal system) होता है। इसमें जीवित कोशिकांग; जैसेमाइटोकॉन्ड्रिया, अन्तं्रद्रव्यी जालिका, लवक, गॉल्जीकाय, राइबोसोम्स, लाइसोसोम्स तारककाय एवं अन्य सूक्ष्मकाय निलम्बित रहते हैं। इसमें, प्रोटीन्स, वसा, कार्बोहाइड्रेट आदि कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ पाए जाते हैं अतः कोशिका द्रव्य एक जटिल मिश्रण होता है। कोशिका द्रव्य में विभिन्न प्रकार के उपापचयी निफ्क्रिय पदार्थ भी मिलते हैं। संचित फदार्थ जैसे-वसा, तेल, शर्कराएँ, प्रोटीन्स आदि स्रावी पदार्थ जैसे-मकरन्द, वर्णक, एन्जाइम आदि तथा उत्सर्जी पदार्थ जैसे-लैटेक्स, गोंद, टैनिन्स, एल्केलॉइड आदि।
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केन्द्रक (Nucleus) – यह कोशिका का प्रमुख भाग है। यह दोहरी कला से घिरा होता है जिसके अन्दर केन्द्रक द्रव्य एवं इसमें केन्द्रिका तथा क्रोमेटिन निलंबित रहता है। केन्द्रक कोशिका की समस्त क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय करता है। विभाजन के समय केन्द्रक में स्थित क्रोमेटिन टूटकर गुणसूत्र बनाता है जो आनुवंशिक लक्षणों नयी कोशिका या नई पीढ़ी में पहुँचाने का कार्य करते हैं। जन्तु एवं पादप कोशिकाओं में कुछ भिन्नता पायी जाती है। जन्तु कोशिका में कोशिका भित्ति का अभाव होता है। केवल प्लाज्मामेम्ब्रेन कोशिका का बाह्य आवरण बनाती है। इनमें बड़ी-बड़ी रिक्तिकाओं तथा लवकों का भी अभाव होता है। जन्तु कोशिकाओं में तारक काय पाए जाते हैं। जिनका पादप कोशिका में अभाव होता है। विभिन्न जीवों या ऊतकों में कोशिकाओं का आकार एवं आकृति भिन्न-भिन्न हो सकती हैं।

प्रश्न 2.
पदिप कोशिका भिति की संरचना एवं कार्य लिखिए।
उत्तर:
कोशिका भित्ति (Cell wall):
पादप कोशिकाओं में प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasmamembrane) के बाहर एक कठोर एवं दृढ़ भित्ति (rigid wall) होती है। जन्तुओं में कोशिका भित्ति (cell wall) का अभाव होता है। इसकी उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर पादप एवं जन्तु कोशिकाओं में अन्तर किया जाता है। राबर्ट हुक (Robert Hooke, 1665) ने प्रथम बार कार्क कोशिका का निरीक्षण किया था वास्तव में वे केवल कोशिका भित्तियों के कोष्ठक ही थे। नेशिका भित्ति (cellwall) मुख्यतः सेल्युलोस की बनी होती है परन्तु इसमें हेमीसेलुलोस (hemicelluase) तथा कभी-कभी लिगिनन आदि पदार्थ भी उपस्थित होते हैं। कोशिका भित्ति के निर्माण के समय सबसे पहले मध्य-पटलिका (middle lamella) का निर्माण होता है। इसके बाद इस पर क्रमश: प्राथमिक, द्वितीयक एवं ततीयक भित्तियों का निर्माण होता है।
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मध्य पटलिका (Middle lamellae):
मध्य पटलिका दो संलग्न कोशिकाओं के बीच सीमेण्ट का कार्य करती है और इसका निर्माण कोशिका विभाजन के पश्चात् दो पुत्री कोशिकाओं के बनते समय होता है। यह मुख्यतः कैल्शियम पेक्टेट तथा कुछ मात्रा में मैग्नीशियम पैक्टेट की बनी होती है। फलों के पकने पर यह घुलनशील अवस्था में आ जाती है। मध्यपटलिका (middle lamellae) के दोनों ओर ही प्राथमिक एवं द्वितीय भित्तियों का निर्माण होता है।

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प्राथमिक भित्ति (Primary wall):
मध्य पटलिका के ऊपर जीवद्रव्य अनेक पदार्थ जमा करता है जिससे एक कोमल, पतली, सुघट्य भित्ति बनती है जिसे प्राथमिक कोशिका भित्ति कहते हैं। इसमें पैक्टिक पदार्थ (गैलेक्टोस, अरेबिनोस व गैलेक्टूरोनिक अम्ल का मिश्रण), हेमीसेलुलोस (मेनोज, ग्लूकोनिक अम्ल का मिश्रण) तथा सेलूलोज सूक्ष्म तन्तुक (cellulose microfibrils) होते हैं।
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द्वितीयक भित्ति (Secondary wall):
कोशिका वृद्धि के समय प्राथमिक कोशिकाभित्ति अधिक से अधिक खिंच जाती है। समय के साथ-साथ प्राथमिक भित्ति पर लिग्निन क्यूटिन एवं सुबेरिन आदि जमा होने लगते हैं जिससे द्वितीयक कोशिका भित्ति (secondary cell wall) बनती है। यद्यपि आरम्भ में बनी द्वितीयक कोशिका में कुछ पेक्टोज भी होता है परन्तु मुख्य रूप से हैमीसेल्युलोस और सेलुलोस की बनी होती हैं।

तृतीयक कोशिका भित्ति (Tertiary cell wall):
अधिकांश कोशिकाओं में द्वितीयक कोशिका भित्ति तीन परत की बनी होती हैं। इसमें बीच की परत सबसे मोटी होती है। कुछ बाद में बनी कोशा भित्ति जो आरम्भ में बनी तृतीयक कोशा भित्ति के ऊपर बनती हैं केवल सेलुलोस की बनती है। कुछ वैज्ञानिक बाद में बनी इस द्वितीयक भित्ति को तृतीयक भित्ति कहते हैं। प्रायः द्वितीयक और तृतीयक भित्तियों को मिलाकर द्वितीय स्थूलन (secondary thicking) भी कहा जाता है।

कोशिका भित्ति की परा संरचना (Ultrastructure of cell wall):
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक अध्ययन से ज्ञात होता है कि पादप कोशिका भित्ति सूक्ष्म तन्तुओं (microfibrils) की बनी होती है जो विभिन्न लम्बाई व व्यास के होते हैं। इनका व्यास $100-200 होता है। एक तन्तुक (fibril) 250 सूक्ष्म तन्तुओं (microfibrils) से बनता है। प्रत्येक सूक्ष्म तन्तुक 20 मिसेल (micelle) का बनता है तथा प्रत्येक मिसेल में सेलुलोस अणुओं की 100 भृृंखलाएँ होती हैं।

सेल्युलोस के साथ कुछ पेक्टिक पदार्थ-हेमी सेल्यूलोज और दूसरे पालीसैकेराइड उपस्थित होते हैं। मध्य पटलिका (middle lamellae) मुख्य रूप से कैल्शियम पेक्टेट या मैग्नीशियम पैक्टेट की बनती है। प्राथमिक और द्वितीयक भित्तियाँ मुख्य रूप से सेल्युलोस की बनी होती हैं। कोशिका भित्ति का निरीक्षण यदि इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (electron microscope) से किया जाए तो इसमें पेक्टिन एवं हेमीसेल्यूलोस की अधात्रि में अनेक सूक्ष्म तन्तु पाए जाते हैं ।ये सूक्ष्म तन्तु सेल्यूलोस के बने होते हैं और अधात्री में लिग्निन, क्यूटिन, सुबेरिन, गोंद, टेनिन तथा अल्प मात्रा में खनिज पदार्थ जैसे-सिलिका, कैल्शियम ऑक्सलेट, कैल्शियम कार्बोनेट इत्यादि पाए जाते हैं।

कोशिका भित्ति की उत्पत्ति (Origin of cell wall):
कोशिका भित्ति के निर्माण की शुरूआत कोशिका विभाजन की अन्त्यावस्था (telophase) में ही हो जाती है। इस अवस्था में ही फ्रेम्मोप्लास्ट के द्वारा कोशिका प्लेट का निर्माण होता है जिससे मध्य पटलिका बनती है। मध्य पटलिका पर धीरे-धीरे प्राथमिक भित्ति एवं द्वितीयक भित्रियों का निक्षेपण होता है।

कोशिका भित्ति के कार्य-कोशिका भित्ति के निम्नलिखित कार्य हैं –

  • यह कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार प्रदान करती है।
  • यह पौधों को दृढ़ता प्रदान करती है।
  • यह कोशिका से विभिन्न पदार्थों के आवागमन में सहायक है।
  • यह बाहरी वातावरण से एवं रोगाणुओं (pathogens) से कोशिका की रक्षा करती है।

प्रश्न 3.
अन्तर्रम्रक्यी जालिका की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
अंतःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum = ER)
पोर्टर एवं सहयोगियों (Porter et. al.) ने सन् 1945 में कोशिका द्रव्य में महीन एवं शाखित, दोहरी झिल्लीदार नलिकाओं का एक अनियमित जाल देखा जिसमें थैलेनुमा रचनाएँ भी थीं। ये रचनाएँ केन्द्रक कला से लेकर कोशिका कला तक फैलकर एक जटिल जाल बनाती हैं। पोर्टर ने इनकी स्थिति अन्तंप्रद्रव्यी होने के कारण इन्हें अंत: प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) कहा। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं (prokaryotic cells) में तथा स्तनियों (mammals) की लाल रुधिर कणिकाओं में अन्तप्रद्रव्यी जालिका (ER) का अभाव होता है।

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परासंरचना (Ultrastructure):
यह कोशिका कला से केन्द्रक कला तक फैला हुआ नलिकाओं का जाल है। इसकी नलिकाओं की चौड़ाई $50-60 तक होती है। नलिकाएँ एकक कला (unit membrane) की बनी होती हैं।

कभी-कभी ये नलिकाएँ अधिक चौड़ी होकर टूट जाती हैं जिससे आशय (vescicles) बनते हैं। आकृति के आधार पर यह तीन प्रकार की रचनाओं से मिलकर बनती हैं –

  • सिस्टर्नी (Cisternae)
  • थैलियाँ (Vescicles)
  • नलिकाएँ (Tubules)

(i) सिस्टर्नी (Cisternae):
ये 40-50 लम्बी व चपटी नलिकाएँ हैं जो कि केन्द्रक (nucleus) के चारों ओर समानान्तर पट्टियों के रूप में व्यवस्थित होती हैं। इनकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes) पाए जाते हैं।

(ii) थैलियाँ या आशय (Vescicles):
ये 20-500 व्यास की गोलाकार या अण्डाकार संरचनाएँ हैं।

(iii) नलिकाएँ (Tubules) इनकी आकृति एवं व्यवस्था अनियमित होती है। इनका व्यास 50-100 होता है। ये चिकनी सतह युक्त शाखित होती हैं। ये अन्तः स्रावी कोशिकाओं में अधिकता से पायी जाती हैं।
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अन्त:्रद्रव्यी जालिका (ER) दो प्रकार की होती हैं –
1. चिकनी भित्ति वाली अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Smooth walled Endoplasmic Reiticulum or SER):
इनकी सतह सपाट या चिकनी (smooth) होती है। ये उन कोशिकाओं में अधिकता से पायी जमती है जिनमें स्टीराइड एवं वसा का संश्लेषण होता है। जैसे-वृक्क (kidney) की नलिका कोशिकाएँ, आंत्र कोशिकाएँ, ग्लाइकोजन संग्रह कोशिकाएँ आदि।

2. खुरदरी भित्ति वाली अन्त:प्रद्रव्यी जालिका (Rough walled Endoplasmic Reticulum or RER):
इनकी सतह पर राइबोसोम्स (ribosomes) लगे रहने के कारण, खुरदरी प्रतीत होती हैं। ये प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) करने वाली कोशिकाओं में अध्धिकता से पायी जाती हैं। कोशिका की उपापचयी क्रियाओं के अनुसार SER, RER में बदल सकती हैं। क्योंकि प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) के समय राइबोफोरिन (ribophorin) प्रोटीन की उपस्थिति में राइबोसोम SER से जुड़कर RER बनाते हैं तथा इस कार्य के समाप्त होने पर पुनः अलग होकर फिर से SER बन जाती हैं। रासायनिक संगठन (Chemical Composition)-अन्त्रप्रव्यव्यी जालिका (ER) मुख्यतः फॉस्फोलिपिड की बनी होती है। इसमें $70 \%$ तक फास्फोलिपिड होते हैं जिसमें 30-50\% तक लिपिड होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें लेसिथिन (lecithin), सिफेलिन (cephalin), नॉसिटाल (nosital) आदि भी होते हैं। कार्य (Functions)

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1. प्रोटीन संश्लेषण (Protein Synthesis): RER की सतह पर प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया होती है। प्रोटीन संश्लेषण राइबोसोम्स द्वारा सम्पन्न होता है और बनने वाली प्रोटीन ER में चली जाती है। इसके बाद प्रोटीन नलिकाओं से होकर गाल्जी तंत्र में चली जाती है जहाँ से आशय तथा रिक्तिका (vacuole) के रूप में यह कोशिका रस में स्रावित कर दिए जाते हैं। फाइब्रोल्लास्ट कोशिकाओं में कौलेजन RER से सीधे ही व आशयों से होकर कोशिका से बाहर स्रावित होते हैं इसमें गॉल्जी तंत्र (golgi system) की भागीदारी नहीं होती है।

2. ग्लाइकोजन संश्लेषण तथा संचयन (Glycogen Synthesis and Storage) -चहे की यकृत कोशिकाओं की SER में ग्लूकोज 6-फॉस्फेट मिलता है। ऐसा माना जाता है कि ER में ग्लाइकोजिनोलाइसिस (glycogenolysis) की क्रिया होती है। यह ग्लाइकोजन का संय्रह भी करती है।

3. अंन्तः प्रद्रव्यी (ER) जाल द्वारा कोशिका के कोलाइडी तंत्र को अधिक शक्ति मिलती है।

4. यह अभिगमन तंत्र (transport system) का कार्य भी करती है। इसी के द्वारा अनेक पदार्थों एवं संदेश वाहक आर. एन. ए. (m RNA) केन्द्रक से कोशिका द्रव्य में पहुँचते हैं।

5. इनकी उपस्थिति के कारण कोशिका को आन्तरिक शक्ति प्रदान होती है जिससे कोशिका (Cell) पिचकती नहीं है

6. यह ग्लिसरॉल, कोलेस्ट्रॉल आदि पदार्थों के संश्लेषण के लिए स्थान प्रदान करती है।

7. यह अन्य कलाओं के निर्माण में भी सहायक है।

8. यह कोशिका विभाजन के दौरान केन्द्रक आवरण बनाने में सहायक होती है।

प्रश्न 4.
गॉल्जीकाय संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा इसके कार्य लिखाए।
उत्तर:
गॉल्जीकाय (Golgi Body):
पादप कोशिकाओं में इन्हें डिक्टियोसोम (Dictyosomes) या लाइपोकॉन्ड्रिया (Lipochondria) कहते हैं। इनकी खोज सर्वप्रथम कैमीलियो गॉल्जी (Camilio Golgi) ने 1898 में की थी। यह विभिन्न प्रकार की चपटी तथा कुछ मुढ़ी हुई थैलियों का समूह होता है। प्रत्येक समूह में 4-10 थैलियाँ होती हैं जो कहीं-कहीं एण्डोप्लाज्मिक जालिका (ER) से जुड़ी होती हैं इन थैलियों की झिल्ली दोहरी परत वाली होती है। प्रत्येक चपटी थैली (cisternae) किनारे पर कुछ मुड़ी हुई होती है जिसके कारण यह उत्तलोअवतल (biconcave) दिखाई देती है।

उत्तल (convex) सतह को फॉर्मिंग या सिस फेस (forming or cis face) कहते हैं तथा अवतल (concave) सतह को मेचुरिंग फेस अथवा ट्रांस फेस (maturing or trans face) कहते हैं। फॉर्मिंग फेस सदैव केन्द्रक और ER की ओर होता है। मेचुरिंग फेस (maturing face) प्लाज्मा कला की ओर होता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि केन्द्रक कला एवं ER से छोटी थैलियों (vesicles) का निर्माण होता है जो गॉल्जीतंत्र के फार्मिग फेस (forming face) से जुड़ती है। मेचुरिंग फेस की ओर स्थित बड़ी थैलियाँ अन्त में प्लाज्मा कला से जुड़ जाती हैं। तरुण कोशिकाओं में गॉल्जीकाय की छोटी गोलाकार थैलियों की संख्या कम होती है परन्तु वृद्धि और विकास की अवस्था में इनकी संख्या बढ़ जाती है।

रासायनिक संगठन (Chemical composition):
इनमें लिपोप्रोटीन, लैसीथिन, कैरोटीन, सिफेलिन, RNA, विकर तथा विटामिन E आदि मुख्य रूप से मिलते हैं। कार्य (Functions)-इनका कार्य अभी ठीक से ज्ञात नहीं है परन्तु ऐसा माना जाता है कि कोशा में किसी प्रकार के संश्लेषण से सम्बन्धित होते हैं।
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1. स्रावण (Secretion) – इनकी गुहाओं में पॉलीसैकेराइड सल्फोसायलो म्यूसिन और म्यूकोपॉलीसैकेराइड पायी जाती है। बहुत से विकर (enzymes), न्यूक्लियोसाइड्स फास्फोटेज, थायमीन पाइरो फास्फेट, एसिड फॉस्फेटेज और परऑक्सीडेज भी इनमें पाए जाते हैं। कुछ विभिन्न प्रकार के प्रोटीन्स भी इनमें संचित होते हैं इन प्रोटीन्स का निर्माण ER पर स्थित राइबोसोम्स (ribosomes) में होता है। ये प्रोटीन्स ER से बहुत-सी ट्रॉजीशन थैलियों के द्वारा गॉल्जीकाय में प्रवेश करती हैं गॉल्जीकाय के आशयों (vescules) से छोटी मुकुलों (buds) के रूप में सावी कण उत्पन्न होकर कोशिका की सतह पर बाहर निकलते रहते हैं।

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2. कोशापट्ट निर्माण (Cell plate farmation) – कोशा विभाजन के समय गॉल्जी तंत्र के आशय कटकर नये कोशा पटट का निर्माण करते हैं।

3. कोशा भित्ति का निर्माण (Formation of cell wall) – गॉल्जी तंत्र ऐसे पदार्थों का स्रावण करता है जो कोशा भित्ति (cell wall) का निर्माण करते हैं। सम्भवतः यह पदार्थ हेमी सेल्युलोस है।

4. शुक्र जनन के अन्तर्गत अग्रपिण्डक का निर्माण (Formation of Acrosome) – जिस समय जन्तुओं में शुक्राणु परिपक्व होता है तो गॉल्जी तंत्र उसमें अग्रपिण्ड (acrosome) बनाता है।

5. हॉर्मोन का उत्पाद (production of hormose) – जन्तुओं की अन्त:स्रावी कोशाओं में गॉल्जी तंत्र हारमोन के स्रावण में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
गुणसूत्र क्या है ? इसकी जैव-रसायनिक संरचना का वर्णन चित्र द्वारा कीजिए।
उत्तर:
गुणसूत्र (Chromosome) गुणसूत्र क्रोमेटिन जाल (chromatin network) से बने छोटे एवं संघनित टुकड़े होते हैं और कोशिका विभाजन की मध्यावस्था (metaphase) में स्पष्ट दिखाई देते हैं। किसी की जाति में गुणसूत्रों (chromosomes) की संख्या निश्चित होती है। क्रोमेटिन (chromatin) के कुछ भाग विभाजनान्तराल अवस्था के समय केन्द्रक के अन्दर गहरा स्टेन लेते हैं और विभाजन के समय हल्का स्टेन (stain) लेते हैं। कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटिन जाल (chromatin network) के ये धागे छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में स्पष्ट हो जाते हैं।

इन टुकड़ों को ही गुणसूत्र (chromosomes) कहते हैं। क्रोमोसोम (chromosomes) की खोज स्ट्रासबर्गर (Strasburger) ने की तथा वाल्डेयर (Waldeyer) ने इन्हें क्रोमोसोम (chromosome) नाम दिया। सटन तथा वाबेरी (Sutton and Wobery) ने इनके महत्व को समझाया। गुणसूत्र छड़ाकार धागेनुमा पतली, कुण्डलित रचनाएँ होती हैं। इनकी लम्बाई 0.1-30 तथा व्यास 0.2 से 2 तक होता है। मक्का (maize) के गुणसूत्र की लम्बाई 12 तक होती है।

गुणसूत्र के निम्नलिखित भाग होते हैं –
1. पेलिकल (Pelicle) – यह कणिका विहीन पतला बाह्य आवरण होता है जो गुणसूत्र (chromosome) पर एक पतला आवरण बनाता है।

2. क्रोमोनिमेटा (Chromonemata) – प्रत्येक गुणसूत्र (chromosome) में दो समान गुणों वाली धागेनुमा रचनाएँ होती हैं, इन्हें अर्द्धगुण सूत्र (chromatids) कहते हैं। प्रत्येक क्रोमेटिड में अनेक धागे समान पतले क्रोमोनिमेटा पाए जाते हैं। ये संघनित होकर क्रोमेटिड कहलाते हैं। क्रोमोनीमा (chromenema) कुण्डलित होते हैं। कुण्डलन पैरानेमिक या प्लेक्टोनेमिक हो सकती है।

3. अधात्री (Matrix) – पेलिकल (pelicle) के अन्दर का समांगी पदार्थ जिसमें क्रोमोनिमेटा निलम्बित रहते हैं, आधात्री कहलाता है।

4. गुणसूत्र बिन्दु (Centromere) – यह गुणसूत्र का महत्वपूर्ण भाग होता है जिस पर गुणसूत्र (Chromosome) के दो अर्द्धगुण सूत्र (chromatids) आपस में जुड़े होते हैं। इसे प्राथमिक संकीर्णन कहते है। प्रायः एक गुणसूत्र पर एक ही गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु होता है और यह मोनोसेन्ट्रिक (monocentric) कहलाता है। कभी-कभी एक गुणसूत्र पर द्वो केन्द्र बिन्दु (Dicentric) या तीन केन्द्र बिन्दु (tricentric) भी पाए जाते हैं।
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गुणसूत्र पर केन्द्र बिन्दुओं की स्थिति के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं –
(i) अन्त:केन्द्री (Telocentric) – जब गुणसूत्र बिन्दु (chromosome) गुणसूत्र के एक छोर पर स्थित होता है। ऐसा गुणसूत्र एक भुजीय होता है।

(ii) अम्रकेन्द्री (Acrocentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के एक छोर से कुछ हटकर होता है। इसमें गुणसूत्र की एक भुजा बहुत बड़ी तथा दूसरी बहुत छोटी होती है।

(iii) उपमध्यकेन्द्री (Submetacentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के मध्य भाग से कुछ हटकर होता है। इस स्थिति में गुणसूत्र V के आकार का होता है।

(iv) मध्य केन्द्री (Metacentric) – जब गुणसूत्र (chromosome) बिन्दु गुणसूत्र के ठीक मध्य में स्थित होता है। ऐसी स्थिति में गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ बराबर होती हैं। कभी-कभी गुणसूत्र केन्द्र-बिन्दु रहित होता है इसे ऐसेन्ट्रिक (acentric) कहते हैं और यह कुछ समय में ही नष्ट हो जाता है।

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5. क्रोमोमीयर अथवा जीन्स (Chromomeres or genes) गुणसूत्र के क्रोमोनिमेटा (chromonemata) पर उभरे हुए मोती की माला के समान दाने क्रोमोमीयर या जीन्स (genes) कहलाते हैं। जोहन्सन ने इन दानों के लिए सर्वप्रथम जीन (Genes) शब्द का प्रयोग किया। ये जीवधारियों के लक्षणों का निर्धारण करते हैं।

6. टीलोमीयर (Telomere) – गुणसूत्र के छोरो को टीलोमीयर (telomeres) जुड़ने से रोकते हैं।
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7. सैटेलाइट (Satellite) – गुणसूत्र पर कभी-कभी द्वितीय संकीर्णन (secondary constriction) बनने से एक घुण्डीनुमा संरचना बनती है जिसे सैटेलाडट कहते हैं और ऐसे गुणस्त्र सैट-क्रोमोसोम (sat-chromo-somes) कहलाते हैं। रासायनिक सघटन (Chemical composition) – गुणसूत्र मुख्यतया न्यूक्लियो प्रोटीन के बने होते हैं। इसमें हिस्टोन प्रोटीन लगभग 11 सरल प्रोटीन, लगभग 14 अम्लीय प्रोटीन लगभग65 DNA 10 तथा RNA 2-3 होता है।
कार्य (Functions) – गुणसूत्र के निम्नलिखित कार्य हैं –
1. गुणस्त्र पर जीन्स पाए जाते हैं जो किसी भी जीवधारी के लक्षणों का निर्धारण करते हैं।
2. प्रजनन के समय गुणसूत्र ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जीन्स का वहन करते हैं।
3. गुणसूत्र का DNA जीवों में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं (metabolic reactions) का नियंत्रण करता है।
4. गुणसूत्रों की संख्या एवं संरचना में परिवर्तन से उत्परिवर्तन (mutations) उत्पन्न होते हैं जो वंशागत होते हैं।
5. गुणसूत्रों के हिटरोक्रोमेटिन (heterocheromatin) भाग केन्द्रिका के निर्माण में भाग लेते हैं।
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्रणी लिखिए-
(अ) केन्द्रिका
(ब) लैम्पबुश गुणसूत्र
(स) पॉलीटीन गुणसूत्र
उत्तर:
(अ)  केन्द्रक के चारों ओर 10-50 मोटी दोहरी झिल्ली की बनी केन्द्रक कला (nuclear membrane) होती है। केन्द्रक कला पर असंख्य सुक्ष्म छिद्र होते हैं, इन्हें केन्द्रक छिद्र (nuclear pore) कहते हैं। प्रत्येक छिद्र का व्यास लगभग 400-500 होता है। प्रत्येक छिद्र की संरचना जटिल होती है जो अष्टकोणीय सममिति दर्शाता है। दोनों कलाओं के बीच एक केन्द्रीय छिद्र (nuclear pore) होता है जो 8 गोलाभ कणों से घिरा होता है। केन्द्रीय छिद्र तथा कणों के बीच के स्थान को एन्युली (annuli) कहते हैं।
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कार्य (Functions) – केन्द्रक के अन्दर निर्मित mRNA इन्हीं छिद्रों से होकर कोशिका द्रव्य में पहुँचता है। इसके अतिरिक्त केन्द्रिका में निर्मित राइबोसोम की सब-यूनिटें केन्द्रक छिद्रों से होकर कोशिका द्रव्य में आती हैं।

केन्द्रिका (Nucleolus) – केन्द्रक में एक छोटा गोल भाग होता है जिसे केन्द्रिका कहते हैं। कभी-कभी एक केन्द्रक में दो या इससे अधिक केन्द्रिकाएँ (nucleoli) भी पायी जाती हैं। केन्द्रिका में 10 RNA, 85 प्रोटीन एवं 5 DNA होता है। केन्द्रिका के चारों ओर कोई कला नहीं होती हैं।

एक केन्द्रिका के चार भाग होते हैं –
(a) एमोरफस मैट्टिक्स (Amorphous matrix)-एक समांगी भाग जिसमें प्रोटीन कण एवं धागे बिखरे रहते हैं। इसे पार्स एमोर्फा (pars amorpha) कहते हैं।
(b) दानेदार भाग (Granular portion) – यह प्रोटीन एवं RNA का बना होता है। इन्हें न्यूक्लियोलर राइबोसोम भी कहते हैं।
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(d) क्रोमेटिन (Chromatin)- यह फ्यूल्जिन पॉजीटिव (fulgin positive) होता है। ये दो प्रकार के होते हैं-केन्द्रिका को घेरने वाला भाग पेरीन्यूक्लिओलर क्रोमेटिन (perinucleolar chromatin) तथा नलिकाएँ जो केन्द्रिका के अन्दर की ओर जाती है, इड्टान्यूक्लिओलर क्रोमेटिन (intranuclear chromation)। कार्य (Function)-केन्द्रिका राइबोसोम्स की विभिन्न उपइकाइयों का निर्माण करती हैं।

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(ब) विशेष प्रकार के गुणसूत्र (Special Type of Chromosomes)
1. लेम्पबुश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosomes) – इनकी खोज रुकर्ट (Ruckert) ने 1882 में की थी। लैम्पबुश गुणसूत्र (lampbrush chromosome) कशेरकियों (vertibrates) के ऊसाइट (oocyte) में पाए जाते हैं। ये आकार में अत्यधिक बड़े होते हैं। इन गुणसूत्रों में एक मुख्य धागे जैसी रचना मुख्य अक्ष (main axis) होती है। यह RNA की बनी होती है जिससे अनेक स्थानों पर बहुत से गोलाकार लूप (Loops) निकलते हैं। लूप्स के मध्य DNA तथा अधात्रि के रूप में RNA एवं प्रोटीन्स होते हैं। लूप्स की संख्या के कारण ही ये गुणसूत्र बोतल साफ करने वाले बुश जैसे दिखाई देते हैं। कार्य (Functions) -इनका प्रमुख कार्य RNA संश्लेषण प्रोटीन संश्लेषण तथा पीतक (yolk) का निर्माण करना है।
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2. लार ग्रन्थि या पॉलीटीन गुणसूत्र (Salivary gland or Polytene chromosome)- इनकी खोज बालबियानी ने काइरोनोमस (Chironomus) कीट की लार ग्रन्थियों में की थी। फलमक्खी एवं अन्य डिप्टेरन के लार्वा की लार ग्रन्थियों (Salivary gland) में अत्यधिक लम्बे व चौड़े दैत्याकार गुणसूत्र पाए जाते हैं इन्हें पालीटीन गुणसूत्र (polytene chromosome) कहते हैं। इन गुणसूत्रों पर गहरी काली एवं हल्की पट्टी पायी जाती हैं। काली पट्टियों पर यूक्रोमेटिन होता है तथा हल्के रंग की पट्टियों में हिटरोक्रोमेटिन होता है। ये गुणसूत्र

कुछ स्थानों पर अधिक फूले हुए दिखाई देते हैं जिन्हें पफ्स (puffs) कहते हैं। काली पह्टियों से कुछ loops बन जाते है जिन्हे बाल्वीनी छत्ले (balbini rings) कहते हैं। इन स्थानों पर m-RNA बनता है।

कार्य (Functions) – सम्भवतः ये प्रोटीन संश्लेषण से सम्बन्धित होते हैं।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(अ) राइपोसोम
(ब) लाइसोसोम
उत्तर:
(अ) गाबलोसोम (Ribosomes) – क्लाउड (Clowd; 1943) ने कोशिका के समांगी मिश्रण का परानिश्यन्दन (ultra filtration) करके कुछ क्षाररागी (basophilic) कण प्राप्त किए और इन्हें माइक्रोप्रभाज नाम दिया। पैलाडे (Palade, 1955) ने जन्तु कोशिकाओं में इनकी खोज की और राइबोसोम (ribsomes) कहा। इनमें RNA की अत्यधिक मात्रा होती है।
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संरचना (Structure) – राइबोसोम (ribosome) मुख्यतया RNA तथा प्रोटीन के बने होते हैं। इनका व्यास लगभग 150 होता है। प्रत्येक राइबोसोम दो उपइकाइयों से मिलकर बनता है। एक बड़ी तथा दूसरी छोटी उप-इकाई, बड़ी उप-इकाई में वृन्त केन्द्रीय उभार, खांच या धारी तथा परिधीय उभार भाग होते हैं। छोटी उपइकाई में आधार, शीर्ष, क्लैफ्ट तथा प्लेटफार्म भाग होते हैं। प्रौकेरियोटिक कोशाओं तथा यूकैरियोटिक कोशाओं के माइटोकॉन्डिया एवं प्लास्टिडडस में 70 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते यूकैरियोटिक कोशिकाओं में 80 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते हैं। 70 s राइबोसोम की दो उपइकाइयों में बड़ी उपइकाई 50 की तथा छोटी उपडकाई 30s की होती है। 80 s राइबोसोम की दोनों उप इकाइयों में बड़ी 60 s यूकैरियोटिक कोशिकाओं में 80 s प्रकार के राइबोसोम्स पाए जाते हैं।
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70s राइबोसोम की दो उपइकाइयों में बड़ी उपइकाई 50 s की तथा छोटी उपइकाई 30 s की होती है। 80 s राइबोसोम की दोनों उप इकाइयों में बड़ी 60 s की तथा छोटी 40 s की होती है। Mg++ की सान्द्रता बढ़ने पर दो राइबोसोम जुड़कर डायमर बनाते हैं तथा और अधिक सान्द्रता पर पॉली राइब्रोसोम (polyribosome) बनाते हैं। Mg++ की सान्द्रता में अत्यधिक कमी होने से दोनों उपइकाइयाँ पृथक् हो जाती है।
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की तथा छोटी 40 s की होती है। Mg ++ की सान्द्रता बढ़ने पर दो राइबोसोम जुड़कर डायमर बनाते हैं तथा और अधिक सान्द्रता पर पॉली राइबोसोम (polyribosome) बनाते हैं। Mg ++ की सान्द्रता में अत्यधिक कमी होने से दोनों उपइकाइयाँ पृथक् हो जाती है। अवसादन गणांक (Sedimentation coefficient = Svedberg unit)-राइबोसोम के अध्ययन के लिये एक यन्त्र प्रयोग किया जाता है जिसे अल्ट्रासेण्ट्रीफ्यूज (ultracentrifuge): कहते हैं। इसमें कुछ विशष प्रकार का नालकाय लगा होती हैं जिनमें हम राइबोसोम को एक विशेष प्रकार के घोल में लेकर रख लेते हैं। इस यन्त्र को विद्युत द्वारा एक निश्चित तेज रफ्तार से घुमाने पर एक विशेष प्रकार के राइबोसोम्स नलिका की तली पर बैठ (sediment) जाते हैं, जबकि दूसरे प्रकार के राइबोसोम्स एक-दूसरी निश्चित रफ्तार पर बैठते हैं। इस निश्चित रफ्तार को अवसादन गुणांक (sedimentation coefficient) कहते हैं। अवसादन गुणांक (sedimentation coefficient) को Svedberg unit S में मापा जाता है। उदाहरण के लिए, जो राइबोसोम्स 80 Sपर बैठते हैं। उन्हे 80 S राइबोसोम्स कहा जाता है।

राइबोसोम्स (Ribosomes) के दो भाग होते हैं जिन्हें Mg 2+ आयन की सान्द्रता घटाने पर दो छोटे भागों (subunits) में विभक्त किया जा सकता है। यदि इन दो भागों वाले मिश्रण को फिर से यन्त में रखकर घुमाया जाये तो 80 S राइबोसोम्स का एक भाग 60 S पर बैठता है तथा दूसरा भाग 40 S पर जिन्हें क्रमशः 60 S व 40 S राइबोसोम्स कहते हैं। (इन संख्याओं को 60 S 40 S 100 S वाली गणित की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।) कार्य (Function) राइबोसोम का निर्माण केन्द्रिका (Nuclealus) में होता है तथा इनका क्रिया-स्थल कोशिका द्रव्य है। राइबोसोम विभिन्न प्रकार के RNA की सहायता से प्रोटीन निर्माण में भाग लेते हैं।

राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषण की क्रियाविधि (Mechanism of protein synthesis at ribosomes):
(i) गुणसूत्र के DNA में न्यूक्लियोटाइड्स (nucleotides) के क्षारों की व्यवस्था प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) का संकेत देती है।

(ii) DNA कोड की नकल mRNA के निर्माण द्वारा प्रदान की जाती है जिसमें थायमीन के स्थान पर यूरसिल (uresil) आ जाती है।

(iii) mRNA केन्द्रक से निकलकर कोशाद्रव्य में राइबोसोम पर स्थित होकर सांचा बनाती है। m RNA पर तीन न्यूक्लियोहाइड्स एक विशेष अमीनो अम्ल के लिए संकेत देते हैं। इसे त्रिक संकेत कहते हैं।

(iv) विशेष प्रकार की अमीनो अम्ल, ATP द्वारा सक्रिय अवस्था में आकर एक विशेष प्रकार के sRNA (t RNA) से प्रक्रिया करते हैं।

(v) s RNA + अमीनो अम्ल पर अपना प्रतिकूट होता है जो m -RNA पर स्थित प्रकूट (codon) पर आकर मिलता है।

(vi) एमीनो अम्ल एक-दूसरे से पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़कर पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ (uresil) बनाते हैं।

(vii) एमीनो अम्लों की इस प्रकार की श्रृंखला अलग होकर प्रोटीन अणु का निर्माण करती है। इस सम्पूर्ण क्रिया को प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis)
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(ब) लाइसोसोम (Lysosome):
लयनकाय या लाइसोसोम (Lysosome) की खोज सर्वप्रथम क्रिश्चियन डी. डबे (C. de Duve) ने 1949 में की थी। ये केवल जन्तु कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ये अनेक प्रकार के जल अपघटनीय (hydrolytic) विकरों से भरी थैलियाँ हैं। इनके फटने पर कोशिका में ये विकर मुक्त होकर कोशिकांगों का पाचन कर लेते हैं। अतः इन्हें पाचक थैलियाँ (digestive vesicle) या कोशिका की आत्पघाती थैलियाँ (suicidal bags) कहते हैं। ये जन्तुओं के अग्न्याशय (pancreas), यकृत (liver) प्लीहा, मस्तिष्क तथा गुर्दे (kidney) की कोशिकाओं में पाए जाते हैं। लाइसोसोम गोल या अनियमित आकार की रचनाएँ हैं जिनका व्यास 0.6 होता है। इसके ऊपर इकहरी एकक कला पायी जाती है। लाइसोसोम बहुरूपता (polymorphism) प्रदर्शित करते हैं।
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लाइसोसोम चार प्रकार के होते हैं –
(a) प्राथमिक लाइसोसोम (Primary Lysosome) – ये गॉल्जी काय से उत्पन्न संचय कण एवं स्रावी पुटिकाएँ हैं।
(b) द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosome) – इनमें पाचक विकर भरे होते हैं और प्राथमिक लाइसोसोम्स (primary lysosomes) से बनते हैं
(c) अवशिष्ट काय (Residual bodies) – द्वितीयक लाइसोसोम जब बाह्य पदार्थों का अपूर्ण पाचन करता है तब इन्हें अवशिष्ट काय (residual body) कहते हैं।
(d) ऑटोफैजिक रिक्तिकाएँ (Autophagic vacuoles)-इन्हें साइटोलाइसोसोम या ऑटोफेगोसोम (autophagosome) कहते हैं। इनमें लयनकारी विकर (lytic enzyme) होते हैं।

कार्य (Functions):
(i) कोशिका में आये बाहरी पदार्थों का पाचन करके कोशिका की सुरक्षा।
(ii) क्षतिप्रस्त कोशिकांगों का पाचन।
(iii) मृत कोशिकाओं या निक्रिय कोशिकाओं का पाचन।

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प्रश्न 8.
प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:

सक्षण (Characters) श्रोकैजियोटिक कोशिका (Prokaryotic Cell) यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic Cell)
1. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) पूर्ण कोरिका में क्षिता रहत्ता है। केन्द्रक एवं कोशिका कला के बीच सीमित रहता है।
2. केन्ट्रक (Nucleus) आद्ध (incipient) अविकसित केन्द्रक होता है जिसे केन्द्रकाभ (nucleoid) कहते हैं। इसमें –
(i) केन्द्रक कत्ता अनुपस्थित होती है।
(ii) केन्रिका (nucleolus) अनुपस्थित होती है।
(iii) DNA के तन्तुओं (जो सभी एक प्रकार के होते है) के साय ग्रोटीन (हिस्टोन) नहीं जुड़ी रहती हैं।
पूर्ण विकसित सत्य (true) केन्द्रक होता है। इसमें-

(i) केन्द्रक कला उपस्थित होती है।

(ii) केन्द्रिका (nucleolus) उपस्थित होती है।

(iii) DNA के बहुत से सूत्रों के साथ हिस्टोन प्रोटीन जुड़ी रहती हैं। इन्हें गुणसूत्र (chromosomes) कहते हैं।

3. गाल्जीकास, अन्त क्रद्रव्यी जालिका, लवक तथा माइडोकींच्द्रिया अनुपस्थित होते हैं। उपस्थित होते हैं।
4. माइट्टोसिस तथा मीओसिस कोशिका विभाजन (Cell divisions) नहीं होता है। होता है।
5. श्वसन तन्त (Respiralory system) जीचद्धव्य कला में उपस्थित होता है। माइटोकॉण्ड्रया में उपस्थित होता है।
6. श्रक्ारा संश्लेषी तंत्र (Photosynthetic sysiem) आन्तरिक द्विल्लियों में होता है, हरित शवक अनुषस्थित होते हैं। हरित लवकों में होता है। जन्तुओं में अनुपस्थित
7. कोशिका भिति (Cell wall) पतली होती है। मोटी होती है।
8. कोशिकाइव्यी गति (Cytoplasmic movement) स्पष्ट नहीं होती है। स्पष्ट होती है।
9. राइबोसोम (Ribosome) 70 s प्रकार के होते हैं। 80 S प्रकार के होते हैं।
10. कराभिका (Flagellum) कशाभिका में सूक्ष्म तन्तु होते हैं परन्तु (9 + 2) व्यवस्था नहीं होती है। कशाभाकाओं में सूक्ष्म नलिकाओं की $(9+2)$ व्यवस्था स्पष्ट होती है।
11. रिक्तिका (Vacuole) अनुपस्यित होती हैं। पादपों में उपस्थित जन्तुओं में अल्पर्वर्धित या अनुपस्थित
12. लाइसोसोम (Lysosome) अनुपस्यित होती हैं। जन्तु कोशिका में उपस्थित किन्तु पादप कोशिका में अनुपस्थित।
13. नारककाय (Centrosome) अनुपस्यित होती हैं। पादप कोशिका में अनुपस्थित, जन्तु कोशिका में उपस्थित
14. सम्मुट (Capsule) हो सक्ता है। नहीं होता ।
15. प्लाबिम्ड (Plasmid) उपस्थित हो सकते हैं। अनुपस्थित होते हैं।
16. लिगी बनन (Sexual Reprodction) उदाहाण (Examples) अनुपस्थित वा कम विकसित जीवाणु, नीली हरी शैवास, माइकोप्ताज्मा। पूर्ण विकसित शैवाल, कवक, ब्रायोफाइटा एवं उच्च पौधे एवं प्रोटोजोआ से कॉर्डेटा तक के सभी प्राणी।

प्रश्न 9.
पादप कोशिका एवं जन्तु कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
पादप एवं प्राणी कोशिका-सभी यूकैरियोटिक कोशिकाएँ भी समान प्रकार की नहीं होती हैं। पादप एवं प्राणी कोशिकाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति, लवण एवं बड़ी-बड़ी एक या अधिक रिक्तिकाएँ (vacuoles) उपस्थित होती हैं। प्राणी कोशिकाओं में ये अनुपस्थित होते हैं। इसके अलावा जहाँ प्राणी कोशिकाओं में तारककाय (Centrosome) एवं लयनकाय (lysosome) उपस्थित होते हैं जो पादप कोशिकाओं में नहीं पाए जाते हैं। यद्यपि अन्य कोशिकाओं की संरचना एवं कार्धिकी में दोनों प्रकार की कोशिकाएँ समानताः प्रदर्शित करती हैं।
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लक्षण पादप कोशिका जन्तु कोशिका
1. कोशिका भित्ति (Cell wall) उपस्थित, सेल्युलोस मुख्यतः (cellulose) की बनी होती है। अनुपस्थित।
2. लवक (Plastids) कोशिका द्रव्य में तीन प्रकार के लवक पाए जाते हैं-अवर्णी लवक, वर्णी लवक व हरित लवक (Leucoplast, chromoplast and chloroplast) 1 लवक (plastids) अनुपस्थित होते हैं।
3. रिक्तिका (Vacuoles) प्रारम्भ में छोटी किन्तु प्रौढ़ कोशिका में एक बड़ी रिक्तिका उपस्थित। इसमें कोशिका रस भरा रहता है। रिक्तिकाएँ अनुपस्थित होती हैं।
4. तारककाय (Centrosome) कुछ शैवालों एवं कवकों को छोड़कर पादप कोशिकाओं में तारककाय अनुपस्थित होते हैं। लगभग सभी प्राणी कोशिकाओं में तारककाय (centrosome). उपस्थित होते हैं।
5. लयनकाय (Lysosome) कुछ पौधों को छोड़कर अधिकांश पादप कोशिकाओं में अनुपस्थित। सामान्यतया उपस्थित।
6. सूक्ष्म रसांकुर (Microvilli) अनुपस्थित। उपस्थित।
7. कोशिकाद्रव्य विभाजन (division of cytoplasm) कोशिका विभाजन के समय दो संतति कोशिकाओं के बीच कोशिका की मध्य प्लेट पर नई मध्य पटलिका का निर्माण प्रारम्भ होकर किनारों की ओर बढ़ता है। संतति कोशिकाओं के बीच बाहर से एक खांच बनती है जो अन्दर की ओर बढ़ती हुई दोनों संतति कोशिकाओं को पृथक् कर देती हैं।
8. संचित खाद्य पदार्थ (Reserved Food Material) कार्बोहाइड्रेट, सेल्यूलोस, व मण्ड के रूप में संचित होता हैं। कार्बोहाइड्रेट अधिकतर ग्लाइकोजन, तथा वसा के रूप में संचित होता है।

प्रश्न 10.
हृरित लवक का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरित लवक (Chloroplasts)-ये हरे रंग के लवक होते हैं। इनकी खोज शिम्पर (1885) ने की थी। इ्रनमें हरे रंग का वर्णक पर्णहरिम (chlorophyll) होता है जिसके कारण पत्तियाँ एवं कुछ अन्य भाग हर दिखाई देते हैं। उच्च श्रेणी के पौधों में विशेषकर उनकी पत्तियों की पर्णमध्योतक कोशिकाओं (mesophyll cells) में तथा तनों के हरित ऊतकों में हरित लवक पाए जाते हैं।
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बहुत सी शैवाल कोशिकाओं में केवल एक हरितलवक (Chloraplasts) होता है, परन्तु अधिक विकसित पौधों की एक कोशिका में 20 से 50 तक हरित लवक (chloraplast) हो सकते हैं। विभिन्न वर्ग के पौधों में इनकी रचना और आकार भिन्न होते हैं। शैवालों की कोशिकाओं में मेखलाकार (girdle shaped-यूलोध्रिक्स में), टिकियाकार (disc like – प्लूरोसिग्मा में) प्यालाकार (cup shaped-क्लैमाइडोमोनस में), पद्टीकार (ribon shaped-स्पाइोगाइा में), ताऱाकार (stellate- जिगिनया में) अथवा जालिकामय (reticulate- ऊडोगोनियम में) पाए जाते हैं। आमाप, परिमाप एवं संख्या-उच्च पादपों के लवक (chloraplasts) गोल, अण्डाकार या चपटे व दीर्घ वृत्ताकार होते हैं। सामान्यतः इनकी लम्बाई 2.5 तथा चौड़ाई 3-4 तक होती है। प्रतिकोशिका इनकी संख्या 20-40 तक हो सकती है।

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परासंरचना (Ultrastructure) – उच्च वर्ग के पादपों के हहरित लवक जटिल संरचना वाले होते हैं। प्रत्येक लवक दोहरी इकाई झिल्ली से घिरा होता है। प्रत्येक झिल्ली (unit membrane) की मोटाई 50 होती है। दोनों झिल्लियों के बीच 10 A-30 चौड़ा पेरीप्लास्टिडल स्थान (periplastidal space) होता है। झिल्लियों के अन्दर एक तरल दानेदार पदार्थ भरा होता है जिसे स्ट्रोमा (stroma) कहते हैं। स्ट्रोमा के अन्दर दोहरी कलाओं की बनी असंख्य संरचनाएँँ पायी जाती हैं जिन्हें थाइलेकॉइड (thylakoid) कहते हैं तथा थाइलेकॉइड के द्वारा बने सिक्कों के समान एक ढेर को प्रेनम (granum) कहते हैं। ऐसे अनेक प्रेनम स्ट्रोमा में पाए जाते हैं। एक प्रेनम दूसरे प्रेनम से स्ट्रोमा लैमेली (stroma lamellae) द्वारा जुड़े रहते हैं।
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थाइलैकाइड को ग्रेना की इकाई कहते हैं। थाइलैकाइड पर क्वांटासोम (quantasomes) पाए जाते हैं और प्रत्येक क्वांटासोम (quantasomes) पर लगभग 230 पर्णहरिम कण (chlorophyll particles) पाए जाते हैं। स्ट्रोमा के अन्दर कुछ मात्रा में DNA, RNA स्टार्च कण (starch grains) आदि भी पाए जाते हैं। रासायनिक संगठन (Chemical Composition) – प्रत्येक हरित लवक में 40-50  प्रोटीन, 23-25 फास्फोलिपिड, 3-10 पर्णहरिम (जिसमें 75 पर्णहरिमम a तथा 25 पर्णहरिम b), 5 RNA, 0.01-0.02 DNA; 1-2 कैरोटिन जैन्थोफिल, विकर, विटामिन तथा धातुएँ जैसे- Mg,Fe,Cu,Zn,Mn आदि होते हैं।

कार्य (Functions) – हरित लवक (choroplast) का प्रमुख कार्य प्रकाश संश्लेषण (nhotosunthesis) क्रिया सम्पन्न करना है। हरित लवक (chloroplast) के ग्रेना में प्रकाशीय अभिक्रिया तथा स्ट्रोमा में अन्धकार अभिक्रिया होती है। प्रकाश अभिक्रिया में जल का प्रकाशीय अपघटन होकर NADP.2H तथा ATP का निर्माण होता है, जिससे O2 उपउत्पाद के रूप में उत्पन्न होती है। अन्धकार अभिक्रिया में ATP तथा NADP. 2 H का प्रयोग करके CO2 का स्थिरीकरण किया जाता है और विभिन्न शर्कराओं का निर्माण होता है। इसलिए हरितलवक को कोशिका का रसोईघर (kitchen) कहते हैं।

प्रश्न 11.
कोशिका कला के तरल मोलेज मॉडल का सचित्र वर्पन
कोशिका झिल्ली (Cell membrane):
कोशिका झिल्ली या कोशिका कला (cell membrane or plasma membrane), एक लचीली, अल्पपारदर्शी तथा चयनात्मक पारगम्यकला (selectively permeamble Membrane) है जो पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति के ठीक नीचे तथा जन्तु कोशिकाओं में सबसे बाहर एक सुरक्षात्मक आवरण बनाती है। यह जीवद्रव्य का ही एक अंश होती है तथा स्तरीय रासायनिक परिवर्तनों के कारण बनती है। जीवद्रव्य की इस बाह्यपरत को कोशिका कला (cell membrane) नाम नगेली एवं क्रेमर (Naggeli and Cremer, 1855) ने दिया। प्लावे (Plowe; 1931) ने इसे प्लाज्मालेमा (Plasmalemma) नाम दिया।

संरचना (Structure) – सभी जन्तु कोशिकाओं में कोशिका कला बाह्य रूप में देखी जा सकती है। पादप कोशिकाओं एवं जीवाणु कोशिकाओं में यह कोशिका भित्ति के ठीक नीचे पायी जाती है। सभी प्राणी एवं पादपों की कोशिका कलाओं की संरचना लगभग समान होती है। यह मुख्य रूप से प्रोटीन तथा फास्फोलिपिड की बनी होती है जिसकी मोटाई 75 होती है। इसमें लगभग 3.5 व्यास के अनेक छिद्र पाए जाते हैं।
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कोशिका कला की संरचना के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय-समय पर अपने मत प्रस्तुत किए हैं जिनमें से कुछ प्रमुख मत निम्न प्रकार हैं –
1. कोशिका कला का सेंडविच या त्रिस्तरीय मॉडल (Sandwitch or trilamella model of plasma membrane): इस मॉडल को डेनियल एवं डॉसन (1935) ने प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला प्रोटीन तथा फास्फोलिपिड के अणुओं की बनी हुई एक त्रिस्तरीय (triple layerd) कला होती है जिसमें 40 प्रोटीन्स तथा 60 फास्फोलिपिड्स पाए जाते हैं। इस मॉडल में फास्फोलिपिड अणु प्रोटीन्स द्वारा ठीक उसी प्रकार आस्तरित होते हैं जैसे सेंडविच में डबल रोटी एवं भरावन की व्यवस्था होती है। अर्थात् फास्फोलिपिड की द्विस्तरीय परत प्रोटीन की दो परतों से घिरी होती है।

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एकक कला मत (Unit membrane theory) – कोशिका कला की संरचना के इस मत को रॉबर्टसन (Robertson) ने सन् 1959 में प्रस्तुत किया। इस मत के अनुसार कला की मोटाई 75 होती है, जो तीन परतों की बनी होती है। बाहरी दोनों परर्ते प्रोटीन की तथा प्रत्येक की मोटाई 20 AA होती है। मध्य परत लिपिड की बनी होती है जिसकी मोटाई 35 होती है। यह एकक कला सभी कोशिकांगों में समान रूप से पायी जाती है।
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तरल मोजेक मॉडल (Fluid mosaic model) – यह मॉडल सिंगर तथा निकोल्सन (Singer and Nicolson) ने सन् 1974 में प्रस्तुत किया। इसके अनुसार कोशिका कला लिपिड की बनी द्विआण्विक परत (bimolecular layer) होती है। लिपिड की दोनों परतों के बाहर की ओर बाह्य प्रोटीन की एक-एक परत पायी जाती है जिसे बाह्य प्रोटीन (extrinsic protein) कहते हैं। लिपिड परत में कुछ प्रोटीन अन्दर तक धँसी रहती है। इन्हें अन्त:प्रोटीन (intrinsic protein) कहते हैं।

लिपिड परत में स्थित फॉस्फोलिपिड अणुओं के दो छोर होते हैं –
(i) जल रागी शीर्ष (Hydrophilic head) जो प्रोटीन परत की ओर होता है।
(ii) जल विरागी पुच्छ (Hydrophobic tail) जो कला के केन्द्र की ओर होता है।

दोनों प्रोटीन परतों की मोटाई 20-20 तथा फॉस्फोलिपिड द्विपरत (phospholipid bilayer) की मोटाई 35 होती है। इस प्रकार प्रोटीन लिपिड द्विपरत-प्रोटीन संरचना प्रदर्शित करती है। आन्तरिक प्रोटीन (intrinsic protein) लिपिड परत में हिलडुल सकते हैं इसलिए इसे तरल मोजेक मॉडल (mosoaic model) कहते हैं।

जैव कला का रासायनिक संगठन (Chemical Composition of Plasma membrane):
प्लाज्मा मेंम्ब्बेन (plasma membrane) या कोशिका कला मुख्यतः प्रोटीन व फास्फोलिपिड्स की बनी होती है यद्यपि इसमें अल्प मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स भी उपस्थित होते हैं। कोशिका कला में कार्बोंहाइड्रेट स्वतन्त्र अवस्था में न रहकर दो संयोजी रूपों में पाया जाता है। यह लिपिड के साथ ग्लाइकोलिपिड तथा प्रोटीन के साथ ग्लाइकोप्रोटीन के रूप में पाया जाता है। ये दोनीं पदार्थ कोशिका को समान कोशिकाओं की पहचान की क्षमता प्रदान करते हैं।
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कोशिका कला में इन पदार्थों का अनुपात निम्न प्रकार है –
प्रोटीन – 60-80 %
लिपिड – 20-40
काबोंहाइड्रेट – लगभग – 5 %
प्राणियों (animals) के यकृत (livar) तथा लाल रुधिराणुओं (RBCs) की जैव-कलाओं में हैक्सोस, हैक्सोस एमीन, फ्रक्टोस, कारोंहाइड्रेट तथा सियालिक अम्ल, प्रोटीन्स के साथ पाए जाते हैं।

प्लाज्मा कला के रूपान्तरण (Modifications of Plasma membrane):
प्लाज्मा कला कभी-कभी कोशिकाओं में कुछ विशेष कार्यों के लिए रूपान्तरित हो जाती है। इसके कुछ रूपान्तरण निम्न प्रकार है –
1. सूक्ष्मांकुर (Microvilli) – प्राणी कोशिकाओं में प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasma membrane) पर कभी-कभी अंगुली के समान उभार निकल आते हैं इन्हें सुक्ष्मांकुर (microvilli) कहते हैं। ये प्लाज्मा मेम्बेने के सतही क्षेत्रफल को बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए आंत्र (intestine) में पायी जाने वाली उपकला कोशिकाएँ।

2. डेस्मोसोम (Desmosomes) – संलग्न कोशिकाओं के आसंजन स्थलों पर प्लाज्मा कला से अनेक पतों वाली धागे जैसी कुछ संरचनाएँ बनती हैं। इस स्थल को डेस्पोसोम (desmosomes) कहते हैं तथा धागे जैसी संरचनाओं को टोनोफाइबिल्स (tonofibrils) कहते हैं। इनका प्रमुख कार्य कोशिका को आन्तरिक रूप से यांत्रिक शक्ति (Mechanical suport) प्रदान करता है साथ ही ये कोशिकाओं को परस्पर जोड़ने का भी कार्य करती हैं।

3. इंटरडिजिटेशन (Interdigitations) – कभी-कभी प्राणी कोशिकाओं में संलग्न स्थलों पर कुछ प्रवर्ध निकलकर कोशिकाओं को बाँधे रखने का कार्य करते हैं। इन्हें इंटरडिजिटेशन (interdigitations) कहते हैं।

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प्लाज्मा कला के कार्य (Functions of Plasma Membrane):
कोशिका कला या प्लाज्मा मैम्बेन (plasma membrane) के निम्नलिखित कार्य हैं-
1. यह कोशिका को एक निश्चित आकार प्रदान करती है।
2. यह विभिन्न पदार्थों के आयनों तथा अणुओं के कोशिका के अन्दर-बाहर आने-जाने का नियंत्रण करती है। अर्थात् यह चयनात्मक पारगम्य (selectively permeable) कला का कार्य करती है।
3. यह रक्षण, अवलम्बन तथा यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।
4. इसके द्वारा विभिन्न पदार्थों का परिवहन होता है। यह दो प्रकार का होता है-
(i) सक्रिय परिवहन (Passive Transport) – प्लाज्मा कला से होकर अनेक प्रकार के आयन्स (ions) अपने अधिक सान्द्रता के क्षेत्र से कम सान्द्रता के क्षेत्र की ओर साधारण रूप से विसरित हो जाते हैं। इसमें किसी प्रकार की ऊर्जा का व्यय नहीं होता है। इसे निक्रिय परिवहन (passive transport) कहते हैं।
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(ii) सक्रिय परिवहन (Active transport) – सक्रिय परिवहन में आयन या अणुओं का परिवहन कोशिका कला से होकर सान्द्रता प्रवणता (concentration gradient) के विपरीत होता है अर्थात निम्न सान्द्रता वाले स्थान से उच्च सान्द्रता वाले स्थान की ओर होता है। यह ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया है जो वाहक प्रोटीन (carrier protein) द्वारा सम्पन्न होती है। ऊर्जा निर्भर प्रक्रिया में कोशिका में कोशिका कला से अणुओं या आयन्स को ले जाने के लिए आयन्स या अणुवाहक (carriers) ऊर्जा का व्यय करते हैं। यह क्रिया एन्जाइम की उपस्थिति में होती है तथा ATP ऊर्जा उपलब्ध कराते हैं।
5. कोशिका कला के द्वारा ठोस एवं तरल पदार्थों का अन्तप्रम्णण भी किया जाता है, इस क्रिया को एण्डोसाइटोसिस (endocytosis) भी कहते हैं।
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पदार्थों की प्रकृति के अनुसार यह क्रिया दो प्रकार की होती है –
(i) कोशिका पायन (Pinocytosis) -प्लाज्मा कला से होकर कोशिका द्वारा तरल पदार्थों के अर्न्तग्रहण की क्रिया कोशिकापायन (Pinocytosis) कहलाती है। अधिक आण्विक भार वाले पदार्थ जैसे -प्रोटीन आदि को परासरण (osmosis) द्वारा कोशिका कला से होकर कोशिका में नहीं पहुँचाया जा सकता है। ऐसे पदार्थों को कोशिका पायन (pinocytosis) द्वारा प्रहण किया जाता है। इस क्रिया में प्लाज्मा कला (plasma membrane) में एक आशय बनता है जिसमें द्रव पदार्थों की बूदें बहकर आ जाती हैं। इसके पश्चात् यह आशय पृथक् होकर कोशिका के अन्दर आ जाता है। लाइसोसोम द्वारा इन आशयों का पाचन कर लिया जाता है। ऐसे पदार्थों के निष्षासन के लिए उपरोक्त क्रिया विपरीत हो जाती है। थाइाइड प्रन्थि (thyroid gland) में इस क्रिया को देखा जा सकता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

(ii) भक्षकाणु क्रिया (Phagocytosis) – प्लाज्मा-कला से होकर कोशिका द्वारा ठोस पदार्थों के अर्त्तप्रहण की क्रिया भक्षकाणु (phagocytosis) क्रिया कहलाती है। प्रोटोजोआ संघ के अनेक प्राणी इसी विधि द्वारा खाद्य पदार्थों को प्रहण करते हैं। श्वेत रुधिर कणिकाएँ रोगाणओं का इसी प्रकार भक्षण करके रोगों से रक्षा करती हैं। इस विधि में जब कोई ठोस पदार्थ प्लाज्मा मेम्ब्रेन (plasmam embrane) के सम्पर्क में आता है तो प्लाज्मा मेम्बेन अन्तर्वलित होकर इसे अन्दर ले लेती है और पृथक् होकर जीवद्रव्य (protoplasm) में समाहित हो जाती है बाद में लाइसोसोम (lysosome) से मिलकर इसके पदार्थ का पाचन हो जाता है। अपचित पदार्थ पुनः प्लाज्मा मेम्ब्रेन से बाहर कर दिया जाता है। कोशिका पायन (pinocytosis) तथा भक्षकाणु (phagocytosis) क्रिया दोनों ही क्रियाएँ समान होती हैं और दोनों में ही ऊर्जा व्यय होती है।

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