HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम

Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 6 तत्वों के निष्कर्षण के सिद्धांत एवं प्रक्रम

प्रश्न 6.1.
कॉपर का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा किया जाता है, परन्तु जिंक का नहीं । व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
कॉपर का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा किया जा सकता है। क्योंकि कॉपर कम क्रियाशील धातु (विद्युत रासायनिक श्रेणी में नीचे ) है, जबकि Zn ( जिंक) अत्यधिक क्रियाशील (विद्युत रासायनिक श्रेणी में ऊपर) धातु है अतः इसको ZnSO4 विलयन से आसानी से प्रतिस्थापित करना संभव नहीं है इसलिए जिंक का निष्कर्षण हाइड्रो धातुकर्म द्वारा नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6.2.
फेन प्लवन विधि में अवनमक की क्या भूमिका है?
उत्तर:
फेन प्लवन विधि में अवनमक एक घटक (अशुद्धि) के साथ संकुल बना लेता है एवं इसे झाग में आने से रोकता है। उदाहरण- NaCN, ZnS के लिए अवनमक का कार्य करता है। PbS के लिए नहीं। अतः किसी अयस्क में PbS तथा ZnS दोनों उपस्थित हैं केवल PbS ही फेन बनाता है अतः इस विधि से PbS को ZnS से पृथक् किया जा सकता है।

प्रश्न 6.3.
अपचयन द्वारा ऑक्साइड अयस्कों की अपेक्षा पाइराइट से ताँबे का निष्कर्षण अधिक कठिन क्यों है?
उत्तर:
कार्बन, सल्फाइड अयस्कों के लिए अच्छा अपचायक नहीं है। जबकि यह ऑक्साइड अयस्कों के लिए अच्छा अपचायक है। अतः अपचयन द्वारा ऑक्साइड अयस्कों की अपेक्षा पाइराइट (सल्फाइड अयस्क) से ताँबे का निष्कर्षण अधिक मुश्किल है तथा अधिकांश सल्फाइडों के विरचन की गिब्ज़ ऊर्जा CS2 के विरचन की गिब्ज ऊर्जा से अधिक होती है। वास्तव में CS2 एक ऊष्माशोषी यौगिक है अतः अपचयन से पहले सल्फाइड अयस्कों का संगत ऑक्साइडों में भर्जन करना उचित रहता है।

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प्रश्न 6.4.
व्याख्या कीजिए-
(1) मंडल परिष्करण
(2) स्तंभ वर्णलेखिकी।
उत्तर:
1. मंडल परिष्करण या जोन परिष्करण – मंडल परिष्करण द्वारा अतिशुद्ध धातु प्राप्त होती है। यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि अशुद्धियों की विलेयता धातु की ठोस अवस्था की अपेक्षा गलित अवस्था में अधिक होती है। इस विधि में अशुद्ध धातु की छड़ के एक किनारे पर एक वृत्ताकार गतिशील हीटर (तापक) लगा होता है। जो छड़ को हर तरफ से घेरे रहता है। हीटर जैसे ही आगे बढ़ता है, गलित मण्डल भी आगे बढ़ता जाता है और गलित से शुद्ध धातु क्रिस्टलित हो जाती है तथा अशुद्धियाँ पास वाले गलित जोन में चली जाती हैं।

इस प्रक्रिया को कई बार दोहराते हैं तथा हीटर को एक ही दिशा में बार-बार चलाते जाते हैं। अशुद्धियाँ छड़ के एक किनारे पर एकत्रित हो जाती हैं, जिसे काटकर अलग कर लेते हैं। इस विधि से अति शुद्ध अर्धचालकों तथा अन्य शुद्ध धातुओं; जैसे – जर्मेनियम, सिलिकॉन, बोरॉन, गैलियम तथा इंडियम को प्राप्त किया जाता है।
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2. वर्णलेखिकी या क्रोमेटोग्रैफी विधि – वर्णलेखिकी (क्रोमेटोग्रफी) किसी मिश्रण के विभिन्न घटकों को पृथक् करने की विधि होती है । वर्णलेखिकी पद ग्रीक भाषा के शब्द क्रोमा अर्थात् रंग से लिया गया है क्योंकि प्रारम्भ में इसे रंगीन पदार्थों को पृथक् करने में प्रयुक्त किया गया था। वर्णलेखिकी, अधिशोषण तथा विभेदी अभिगमन के सिद्धान्त पर आधारित होती है, अर्थात् अधिशोषक पर मिश्रण के विभिन्न घटकों का अधिशोषण भिन्न-भिन्न होता है। मिश्रण को द्रव या गैसीय माध्यम में रखा जाता है जो कि अधिशोषक में से गुजरता है।

स्तम्भ में विभिन्न घटक भिन्न- भिन्न स्तरों पर अधिशोषित हो जाते हैं। इसके पश्चात् अधिशोषित घटक उपयुक्त विलायक (निक्षालक) द्वारा निक्षालित किए जाते हैं। गतिशील माध्यम की भौतिक अवस्था, अधिशोष्य पदार्थ की प्रकृति तथा गतिशील माध्यम के गमन की प्रक्रिया पर निर्भर करती है। वर्णलेखिकी कई प्रकार की होती है- पेपर वर्णलेखिकी, स्तम्भ वर्णलेखिकी, पतली परत वर्णलेखिकी तथा गैस वर्णलेखिकी। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण वर्णलेखिकी स्तम्भ वर्णलेखिकी है।

प्रश्न 6.5.
673K ताप पर C तथा CO में से कौनसा अच्छा अपचायक है ?
उत्तर:
कम ताप जैसे 673K पर △G°( CO, CO2) रेखा, △G°(C, CO2) रेखा के नीचे है, अतः 673K पर C तथा CO में से CO अच्छा अपचायक है।

प्रश्न 6.6.
कॉपर के वैद्युत अपघटनी शोधन में ऐनोड पंक में उपस्थित सामान्य तत्वों के नाम दीजिए। ये वहाँ कैसे उपस्थित होते हैं?
उत्तर:
कॉपर के वैद्युत अपघटनी शोधन में ऐनोड पंक में एन्टीमनी सेलेनियम, टेल्यूरियम, चाँदी, सोना तथा प्लेटिनम इत्यादि धातुएँ उपस्थित होती हैं क्योंकि ये कॉपर की तुलना में कम विद्युत धनी (कम क्रियाशील ) होती हैं अतः इनका ऐनोड पर ऑक्सीकरण नहीं होता तथा ये ऐनोड के नीचे ऐनोड पंक के रूप में जमा हो जाती हैं।

प्रश्न 6.7.
आयरन (लोहे) के निष्कर्षण के दौरान वात्या भट्टी के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली अभिक्रियाओं को लिखिए।
उत्तर:
(i) वात्या भट्टी के ऊपरी भाग में जहाँ ताप परिसर 500- 800K होता है, निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं-
3Fe2O3 + CO → 2Fe3O4 + CO2
Fe3O4 + 4CO → 3FeO + CO2
Fe2O3 + CO → 2FeO + CO2

(ii) वात्या भट्टी के मध्य भाग में जहाँ ताप परिसर 900-1500K होता है, निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं-
C + CO2 → 2CO
FeO + CO → Fe + CO2
CaCO3 → CaO + CO2
CaO + SiO2 → CaSiO3

(iii) वात्या भट्टी के नीचे के भाग में जहाँ उच्च ताप होता है, कोक जलकर CO2 बनाता है जो कोक से अपचयित होकर CO बनाता है।
C + O2 → CO2
CO2 + C → 2CO
FeO + C → Fe + CO

प्रश्न 6.8.
जिंक ब्लेंड से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं को लिखिए।
उत्तर:
जिंक ब्लेंड (ZnS) से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
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प्रश्न 6.9.
कॉपर के धातुकर्म में सिलिका की भूमिका समझाइए ।
उत्तर:
कॉपर के धातुकर्म में सिलिका (SiO2), गालक (Flux ) की तरह कार्य करता है जो कि कॉपर के साथ उपस्थित FeO की अशुद्धि से क्रिया करके उसे स्लेग (कीट) के रूप में पृथक् कर देता है।
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प्रश्न 6.10.
यदि तत्व सूक्ष्म मात्रा में प्राप्त हुआ हो तो शोधन की कौन-सी तकनीक अधिक उपयोगी होगी?
उत्तर:
जब कोई तत्व सूक्ष्म मात्रा में प्राप्त हुआ है तो शोधन की स्तम्भ वर्णलेखिकी विधि अधिक उपयोगी होगी।

प्रश्न 6.11.
यदि किसी तत्व में उपस्थित अशुद्धियों के गुण तत्व से मिलते जुलते हों तो आय शोधन के लिए किस विधि का सुझाव देंगे ?
उत्तर:
जब किसी तत्व में उपस्थित अशुद्धियों के गुण तत्व से मिलते हों तो शोधन के लिए स्तम्भ वर्ण लेखिकी (कॉलम क्रोमेटोग्राफी) विधि का ही प्रयोग करेंगे।

प्रश्न 6.12.
निकल के शोधन की विधि समझाइए |
उत्तर:
निकल (Ni) का शोधन मॉन्ड की विधि द्वारा किया जाता है। इस विधि में निकल को कार्बन मोनोक्साइड के साथ गरम करने से वाष्पशील निकल टेट्राकार्बोनिल संकुल बन जाता है-
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इस संकुल को और अधिक ताप पर गरम करते हैं, तो यह विघटित होकर शुद्ध Ni दे देता है तथा CO पृथक् हो जाती है।
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प्रश्न 6.13.
उदाहरण देते हुए भर्जन व निस्तापन में अंतर बताइए ।
उत्तर:
निस्तापन प्रक्रम में अयस्क ( जलयोजित ऑक्साइड, कार्बोनेट, हाइड्रॉक्साइड आदि) को धातु के गलनांक से नीचे के ताप पर धीरे- धीरे गर्म करते हैं, जिससे वाष्पशील पदार्थ (CO2, H2O) निकल जाते हैं तथा धातु ऑक्साइड बच जाता है। परन्तु भर्जन में सल्फाइड अयस्कों को वायु (O2) की उपस्थिति में धातु के गलनांक से नीचे के ताप पर परावर्तनी भट्टी में तेजी से गर्म करते हैं जिससे सल्फाइड अयस्क ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाते हैं तथा SO2 गैस निकल जाता है।
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प्रश्न 6.14.
ढलवाँ लोहा ( Cast Iron) कच्चे लोहे (Pig Iron) से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर:
ढलवाँ लोहे में लगभग 3% कार्बन होता है जबकि कच्चे लोहे में लगभग 4% कार्बन होता है। कच्चे लोहे के साथ रद्दी लोहा तथा कोक को गलाकर ढलवाँ लोहा बनाया जाता है।

प्रश्न 6.15.
अयस्कों तथा खनिजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
अयस्क ( Ores) – वे खनिज जिनसे धातु का निष्कर्षण आसानी से हो सके तथा आर्थिक रूप से लाभदायक हों उन्हें अयस्क कहते हैं। जैसे कॉपर ग्लांस (Cu2S), क्युपराइट (Cu2O) तथा कॉपर पाइराइटीज (CuFeS2) कॉपर के अयस्क हैं, लेकिन इनमें से कॉपर पाइराइटीज ही कॉपर का अयस्क है।
खनिज (Minerals) – भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक पदार्थ ( यौगिक ) जिन्हें खनन द्वारा प्राप्त किया जाता है उन्हें खनिज कहते हैं।

प्रश्न 6.16.
कॉपर मेट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तक में क्यों रखा जाता है?
उत्तर:
कॉपर मेट में Cu2S तथा FeS उपस्थित होते हैं। परिवर्तक में FeS, FeO में बदल जाता है। इसे दूर करने में सिलिका सहायक होता है क्योंकि FeO सिलिका से क्रिया द्वारा आयरन सिलिकेट (कीट) बनकर पृथक् हो जाता है, अतः परिवर्तक पर सिलिका की परत चढ़ाते हैं।
2FeS + 3O2 → 2FeO + 2SO2
FeO + SiO2 → FeSiO3 आयरन सिलिकेट (कीट)

प्रश्न 6.17.
ऐलुमिनियम के धातु कर्म में क्रायोलाइट की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के धातु कर्म में क्रायोलाइट इसलिए मिलाया जाता है क्योंकि इससे मिश्रण का गलनांक कम हो जाता है तथा विलयन की चालकता बढ़ जाती है।

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प्रश्न 6.18.
निम्न कोटि के कॉपर अयस्कों के लिए निक्षालन क्रिया को कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
कॉपर का निक्षालन अम्ल या बैक्टिरिया ( जीवाणु) द्वारा किया जाता है। विलयन में उपस्थित Cu+2 को आयरन या H2 गैस से क्रिया करवाकर पृथक् किया जाता है।
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प्रश्न 6.19.
CO का उपयोग करते हुए अपचयन द्वारा जिंक ऑक्साइड से जिंक का निष्कर्षण क्यों नहीं किया जाता ?
उत्तर:
Zn के अपचयन के लिए आवश्यक ताप ( 1673K) पर एलिंघम आलेख में \(\Delta_r G^{\ominus}\)(CO, CO2) रेखा, \(\Delta_r G^{\ominus}\)(Zn, ZnO) की रेखा से ऊपर है। अतः इस अभिक्रिया के लिए \(\Delta_r G^{\ominus}\) का मान धनात्मक होगा।
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इसलिए 1673K ताप पर ZnO के लिए CO को अपचायक के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसके लिए अत्यधिक उच्च ताप की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 6.20.
Cr2O3 के विरचन के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान – 540 kJmol-1 है तथा Al2O3 के लिए – 827kJ mol-1 है। क्या Cr2 O3 का अपचयन Al से संभव है?
उत्तर:
Al द्वारा Cr2O3 के अपचयन के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होता है अतः Cr2O3 का अपचयन Al द्वारा संभव है।
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समीकरण ( 2 ) में से समीकरण (1) को घटाने पर,
\(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = 827 – (-540)
= – 287 kJ mol-1

प्रश्न 6.21.
C व CO में से ZnO के लिए कौन-स अपचायक अच्छा है?
उत्तर:
ZnO के अपचयन के लिए C व CO में से C (कार्बन) अच्छा अपचायक है, क्योंकि एलिंघम आलेख में \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) ( C. CO) रेखा, \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\)(Zn, ZnO) की रेखा से नीचे है अतः इस अभिक्रिया के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होगा।
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प्रश्न 6.22.
किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? अपने मत के समर्थन में दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है, यह कथन सत्य है। किसी अपचायक तथा धातु ऑक्साइड के मध्य अभिक्रिया होने के लिए \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) का मान ऋणात्मक होना चाहिए। अतः जिस अपचायक से होने वाली अपचयन अभिक्रिया का \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) ऋणात्मक होगा वह अपचायक उस अभिक्रिया के लिए उपयुक्त होगा।
उदाहरण- (i) 1000K पर Al, Cr2O3 का अपचयन कर सकता है लेकिन MgO का नहीं।
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अतः यह अभिक्रिया संभव है।
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अतः यह अभिक्रिया संभव नहीं है।

(ii) 1500K ताप पर कोक (C), ZnO का अपचयन कर सकता है लेकिन CO नहीं ।
ZnO + C → Zn + CO; \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = -Ve
ZnO + CO → Zn + CO2; \(\Delta_f \mathbf{G}^{\circ}\) = +Ve

प्रश्न 6.23.
उस विधि का नाम लिखिए जिसमें क्लोरीन सहउत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। क्या होगा यदि NaCl के जलीय विलयन का वैद्युत अपघटन किया जाए?
उत्तर:
निम्नलिखित विधियों में क्लोरीन सहउत्पाद के रूप में प्राप्त होती है-
(i) गलित NaCl का वैद्युत अपघटन (डॉऊ की विधि)
(ii) जलीय NaCl का वैद्युत अपघटन (कॉसनर केलनर विधि)
NaCl के जलीय विलयन का वैद्युत अपघटन करने पर कैथोड पर H2 गैस तथा ऐनोड पर Cl2 गैस प्राप्त होती है तथा विलयन में NaOH (सोडियम हाइड्रॉक्साइड) बनता है।
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प्रश्न 6.24.
ऐलुमिनियम के वैद्युत धातु कर्म में ग्रैफाइट छड़ की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के वैद्युत धातु कर्म में ग्रेफाइट की छड़ ऐनोड की भांति कार्य करती है तथा यह Al2O3 के अपचयन से Al बनाने में सहायक होती है। ग्रेफाइट में उपस्थित कार्बन ऐनोड पर उत्सर्जित O2 से क्रिया द्वारा CO तथा CO2 बनाता है।

प्रश्न 6.25.
उन परिस्थितियों का अनुमान लगाइए जिनमें Al, MgO को अपचयित कर सकता है।
उत्तर:
1350°C (1623K ) से अधिक ताप पर Al, MgO को अपचयित कर सकता है। यह अनुमान \(\Delta \mathrm{rG}^{\Theta}\) तथा T के मध्य आरेख से लगाया जाता है। (पाठ्यनिहित प्रश्न 6.4 का उत्तर भी देखिए )

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प्रश्न 6.1.
सारणी 6.1 में दर्शाए गए अयस्कों में से कौन-से चुंबकीय पृथक्करण विधि द्वारा सांद्रित किए जा सकते हैं।
उत्तर:
वे अयस्क जिनमें एक घटक चुंबकीय (अशुद्धि या अयस्क) होता है, उन्हें इस विधि से सांद्रित किया जा सकता है। जैसे लोहयुक्त अयस्क हेमेटाइट (Fe2O3), मैग्नेटाइट (Fe2O3), सिडेराइट (FeCO3) तथा आयरन पाइराइट (FeS2) |

प्रश्न 6.2.
ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन (leaching) का क्या महत्व है?
उत्तर:
ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन द्वारा बॉक्साइट अयस्क में उपस्थित SiO2, Fe2O3 आदि की अशुद्धियों को निष्कासित किया जाता है।

प्रश्न 6.3.
अभिक्रिया
Cr2O3 + 2 Al → Al2 O3 + 2 Cr (△G° = – 421 kJ)
के गिब्ज़ ऊर्जा मान से लगता है कि अभिक्रिया ऊष्मागतिकी के अनुसार संभव है, पर यह कक्ष ताप पर संपन्न क्यों नहीं होती?
उत्तर:
अभिक्रिया Cr2O3 + 2 Al → Al2 O3 + 2 Cr के लिए मानक गिब्ज़ मुक्त ऊर्जा परिवर्तन ऋणात्मक है अतः यह लगता है कि यह अभिक्रिया ऊष्मागतिकी के अनुसार संभव है लेकिन कमरे के ताप पर यह अभिक्रिया नहीं होती क्योंकि इसमें सभी अभिकारक ठोस हैं। अतः इस अभिक्रिया को सम्पन्न होने के लिए निश्चित मात्रा में सक्रियण ऊर्जा की आवश्यकता होती है इसलिए गर्म करना आवश्यक है जिससे अभिकारक पिघल जाते हैं।

प्रश्न 6.4.
क्या यह सत्य है कि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में मैग्नीशियम, Al2 O3 को अपचित कर सकता है और Al, MgO को भी। वे परिस्थितियाँ कौनसी हैं?
उत्तर:
हाँ यह सत्य है कि विशिष्ट परिस्थितियों में मैग्नीशियम Al2 O3 को अपचित कर सकता है और Al, MgO को भी। △G° के T के मध्य आलेख (एलिंघम आलेख) से ज्ञात होता है कि 1623K से कम ताप पर Mg, Al2 O3 को अपचित कर सकता है तथा 1623K से अधिक ताप पर Al, MgO का अपचयन कर सकता है क्योंकि Al तथा Mg के वक्र 1623K पर एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित कर रहे हैं।

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