Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 10 हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन
प्रश्न 10.1
निम्नलिखित हैलाइडों के नाम आईयूपीएसी ( IUPAC ) पद्धति से लिखिए तथा उनका वर्गीकरण ऐल्किल, ऐलिलिक, बेन्ज़िलिक (प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक) वाइनिल अथवा ऐरिल हैलाइड के रूप में कीजिए –
(i) (CH3)2CHCH(Cl)CH3
(ii) CH3CH2CH(CH3)CH(C2H5)Cl
(iii) CH3CH2C(CH3)2CH2I
(iv) (CH3)3CCH2CH(Br)C6H5
(v) CH3CH(CH3)CH(Br)CH3
(vi) CH3C(C2H5)CH2Br
(vii) CH3C(Cl)(C2H5)CH2CH3
(viii) CH3CH = C(Cl)CH2CH(CH3)2
(ix) CH3CH = CHC(Br)(CH3)2
(x) p-ClCH6CH4CH(CH3)2
(xi) m-ClCH2C6H4CH2C(CH3)3
(xii) o-Br-C6H4CH(CH3)CH2CH3
उत्तर:
प्रश्न 10.2
निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम दीजिए –
(i) CH3CH(Cl) CH(Br)CH3
(ii) CHF2CBrClF
(iii) ClCH2C≡CCH2Br
(iv) (CCl3)3CCl
(v) CH3C(p-ClC6H4)2CH(Br)CH3
(vi) (CH3)3CCH=CClC6H4I-P
उत्तर:
प्रश्न 10.3
निम्नलिखित कार्बनिक हैलोजन यौगिकों की संरचना दीजिए-
(i) 2 – क्लोरो – 3 – मेथिलपेन्टेन
(ii) p-ब्रोमोक्लोरो बेन्जीन
(iii) 1 – क्लोरो-4 – एथिलसाइक्लोहेक्सेन
(iv) 2 – ( 2 – क्लोरोफेनिल) – 1 – आयोडोऑक्टेन
(v) 2 – ब्रोमोब्यूटेन
(vi) 4 – तृतीयक – ब्यूटिल – 3 – आयोडोहेप्टेन
(vii) 1- ब्रोमो – 4 – द्वितीयक ब्यूटिल – 2- मेथिल बेन्जीन
(viii) 1, 4-डाइब्रोमोब्यूट – 2 – ईन।
उत्तर:
उपरोक्त यौगिकों की संरचना निम्न प्रकार है-
प्रश्न 10.4
निम्नलिखित में से किसका द्विध्रुव आघूर्ण सर्वाधिक
(i) CH2Cl2
(ii) CHCl3
(iii) CCl4
उत्तर:
CH2Cl2, CHCl3 तथा CCl4 में से CH2Cl2 का द्विध्रुव आघूर्ण सर्वाधिक होगा क्योंकि CCl4 की चतुष्फलकीय ज्यामिति होने के कारण इसका द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है तथा CHCl3, का द्विध्रुव आघूर्ण CH2Cl2 से कम है क्योंकि इसमें तीसरे C-Cl बन्ध का बन्ध आघूर्ण, शेष दो C-Cl बन्धों के परिणामी बन्ध आघूर्ण के विपरीत होता है। अतः उसे कुछ मात्रा में निरस्त कर देता है।
प्रश्न 10.5
एक हाइड्रोकार्बन C5H10 अंधेरे में क्लोरीन के साथ अभिक्रिया नहीं करता परन्तु सूर्य के तीव्र प्रकाश में केवल एक मोनोक्लोरो यौगिक C,H,CI देता है। हाइड्रोकार्बन की संरचना क्या है?
उत्तर:
यह हाइड्रोकार्बन केवल एक मोनो क्लोरो यौगिक C5H9Cl बनाता है। अतः इसके सभी हाइड्रोजन परमाणु समान हैं। इसलिए यह हाइड्रोकार्बन साइक्लोपेन्टेन है।
प्रश्न 10.6
C4H9Br सूत्र वाले यौगिक के सभी समावयवी लिखिए।
उत्तर:
C4H9Br, ब्यूटेन का मोनोब्रोमो व्युत्पन्न है। अतः इसके चार समावयवी होंगे क्योंकि ब्यूटेन के एक संयोजी मूलकों की संख्या चार होती
है। ये समावयवी निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 10.7
निम्नलिखित से 1- आयोडोब्यूटेन प्राप्त करने के लिए समीकरण दीजिए-
(i) 1- ब्यूटेनॉल
(ii) 1 – क्लोरोब्यूटेन
(iii) ब्यूट – 1- ईन
उत्तर:
प्रश्न 10.8
उभयदंती नाभिकरागी ( नाभिकस्नेही ) क्या होते हैं? एक उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
सायनाइड (:\(\overline{C}\)≡N) तथा नाइट्राइट (NO2–) जैसे आयनों में दो नाभिकस्नेही केन्द्र होते हैं अतः इन्हें उभयदंती नाभिकस्नेही कहा जाता है | सायनाइड समूह दो अनुनादी संरचनाओं का संकर होता है। अतः यह दो भिन्न प्रकार के नाभिकरागी के रूप में कार्य करता है। अर्थात् कार्बन परमाणु से जुड़ने पर यह ऐल्किल सायनाइड तथा नाइट्रोजन परमाणु से जुड़ने पर आइसोसायनाइड देता है। इसी प्रकार नाइट्राइट आयन भी उभयदंती नाभिकरागी होता है। ऑक्सीजन के द्वारा जुड़ने पर यह ऐल्किल नाइट्राइट तथा नाइट्रोजन के द्वारा जुड़ने से नाइट्रोऐल्केन देता है।
इस प्रकार -CN तथा – NO2 उभयदंती नाभिकस्नेही होते हैं।
प्रश्न 10.9
निम्नलिखित प्रत्येक युगलों (युग्मों) में से कौनसा यौगिक OH- के साथ SN2 अभिक्रिया में अधिक तीव्रता से अभिक्रिया करेगा?
(i) CH3Br अथवा CH3I
(ii) (CH3)3CCI अथवा CH3Cl
उत्तर:
(i) CH3I, CH3Br की तुलना में OH– के साथ SN2 अभिक्रिया अधिक तीव्रता से करेगा क्योंकि C – I बन्ध में I के बड़े आकार के कारण C – Br बन्ध की तुलना में यह जल्दी टूट जाता है।
(ii) (CH3)3C-Cl की तुलना में CH3-Cl में OH के साथ SN2 अभिक्रिया अधिक तीव्रता से होगी क्योंकि इसमें हैलोजन से जुड़े कार्बन परमाणु पर त्रिविम विन्यासी बाधा नहीं है।
प्रश्न 10.10
निम्नलिखित हैलाइडों के एथेनॉल में सोडियम हाइड्रॉक्साइड द्वारा विहाइड्रोहैलोजनन (विहाइड्रोहैलोजेनीकरण) के फलस्वरूप बनने वाली सभी ऐल्कीनों की संरचना लिखिए। इसमें से मुख्य ऐल्कीन कौनसी होगी ?
(i) 1- ब्रोमो -1 – मेथिलसाइक्लोहेक्सेन
(ii) 2 – क्लोरो-2 – मेथिलब्यूटेन
(iii) 2,2,3 – ट्राइमेथिल – 3 – ब्रोमोपेन्टेन।
उत्तर:
(i)
इनमें मुख्य उत्पाद (b) है क्योंकि 1°H की तुलना में 2°H का निकलना आसान है इसका कारण हाइड्रोजन की क्रियाशीलता है जिसका क्रम निम्न प्रकार होता है – 1° < 2° < 3°
प्रश्न 10.11
निम्नलिखित परिवर्तन आप कैसे करेंगे?
(i) एथेनॉल से ब्यूट- 1 – आइन
(ii) एथीन से ब्रोमोएथेन
(iii) प्रोपीन से 1- नाइट्रोप्रोपेन
(iv) टॉलूईन से बेन्जिल ऐल्कोहॉल
(v) प्रोपीन से प्रोपाइन
(vi) एथेनॉल से एथिल फ्लुओराइड
(vii) ब्रोमोमेथेन से प्रोपेनोन
(viii) ब्यूट-1-ईन से ब्यूट – 2 – ईन
(ix) 1- क्लोरोब्यूटेन से n – ऑक्टेन
(x) बेन्जीन से बाइफेनिल
उत्तर:
(i) एथेनॉल से ब्यूट- 1 – आइन
(ii) एथीन से ब्रोमोएथेन
(iii) प्रोपीन से 1- नाइट्रोप्रोपेन
(iv) टॉलूईन से बेन्जिल ऐल्कोहॉल
(v) प्रोपीन से प्रोपाइन
(vi) एथेनॉल से एथिल फ्लुओराइड
(vii) ब्रोमोमेथेन से प्रोपेनोन
(viii) ब्यूट-1-ईन से ब्यूट – 2 – ईन
(ix) 1- क्लोरोब्यूटेन से n – ऑक्टेन
(x) बेन्जीन से बाइफेनिल
प्रश्न 10.12
समझाइए क्यों –
(i) क्लोरोबेन्जीन का द्विध्रुव आघूर्ण साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड तुलना में कम होता है?
(ii) ऐल्किल हैलाइड ध्रुवीय होते हुए भी जल में अमिश्रणीय हैं?
(iii) ग्रीन्यार अभिकर्मक का विरचन निर्जलीय अवस्थाओं में करना चाहिए ?
उत्तर:
(i) क्लोरोबेन्जीन में क्लोरीन का – I प्रभाव (इलेक्ट्रॉन आकर्षी प्रभाव) बेन्जीन वलय की तरफ अनुनाद (+ M प्रभाव) (इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षी प्रभाव) के द्वारा कुछ मात्रा में संतुलित हो जाता है। जबकि साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड में केवल – I प्रभाव है अतः क्लोरोबेन्जीन का C-CI बन्ध साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड के – C-CI बन्ध की तुलना में कम ध्रुवीय है। इसी कारण क्लोरोबेन्जीन का द्विध्रुव आघूर्ण, साइक्लोहेक्सिल क्लोराइड की तुलना में कम होता है।
(ii) ऐल्किल हैलाइड (हैलोऐल्केन) ध्रुवीय होते हुए भी जल में अमिश्रणीय (लगभग अविलेय) होते हैं, क्योंकि हैलोऐल्केन को जल में घोलने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिससे कि हैलोऐल्केन के अणुओं के मध्य आकर्षण बल को तथा जल के अणुओं के मध्य हाइड्रोजन आबंध को तोड़ा जा सके। लेकिन हैलोऐल्केन तथा जल के अणुओं के मध्य नए आकर्षण बल के कारण उत्सर्जित ऊर्जा कम होती है, क्योंकि ये आकर्षण बल जल के उपस्थित हाइड्रोजन आबंधों की तुलना में दुर्बल होते हैं अतः हैलोऐल्केन की जल में विलेयता नगण्य होती है अर्थात् ये जल में अमिश्रणीय हैं।
(iii) ग्रीन्यार अभिकर्मक जल से क्रिया करके विघटित हो जाता है तथा हाइड्रोकार्बन बनाता है अतः ग्रीन्यार अभिकर्मक का निर्माण निर्जलीय अवस्था में ही करना चाहिए।
प्रश्न 10.13
फ्रेओन – 12, DDT, कार्बनटेट्राक्लोराइड तथा आयोडोफॉर्म के उपयोग दीजिए।
उत्तर:
फ्रेऑन (Freons) या CFC (क्लोरोफ्लुओरोकार्बन) (Chlorofluorocarbon) – फ्रेऑन ऐल्केन के क्लोरोफ्लुओरो व्युत्पन्न होते हैं।
विरचन-SbCl5 की उपस्थिति में CCl4 तथा C2Cl6 की क्रिया HF से कराने पर विभिन्न प्रकार के फ्रेऑन प्राप्त होते हैं।
गुण- फ्रेऑन अत्यधिक स्थायी, निष्क्रिय तथा निर्विष (नॉन-टॉक्सिक) असंक्षारक (नॉन-कोरोसिव) गैस होते हैं तथा ये आसानी से द्रवित हो जाते हैं। ये रंगहीन व गंधहीन होते हैं तथा इनका क्वथनांक बहुत कम होता है।
उपयोग – फ्रेऑन ऐरोसोल प्रणोदक, प्रशीतक तथा वायु के शीतलन में प्रयुक्त किए जाते हैं। फ्रेऑन वायुमण्डल से होते हुए क्षोभमण्डल में विसरित हो जाते हैं, जहाँ पर ये मूलक श्रृंखला अभिक्रिया प्रारम्भ करके प्राकृतिक ओजोन संतुलन को अनियन्त्रित कर देते हैं।
फ्रेऑन अक्रिय विलायक के रूप में उपयोग में लिए जाते हैं। फ्रेऑन- 12(CF2Cl2) उद्योगों में सबसे अधिक मात्रा में प्रयुक्त किया जाता है।
p, p1-डाइक्लोरो डाइफेनिल ट्राइक्लोरोएथेन (p, p1-Dichloro Diphenyl Trichloroethane) (DDT)- विरचन – क्लोरोबेन्जीन तथा क्लोरैल के मिश्रण को सान्द्र H2SO4 की अल्प मात्रा के साथ गर्म करने पर DDT प्राप्त होता है।
उपयोग – DDT एक प्रथम क्लोरीनीकृत कार्बनिक कीटनाशी है अतः इसे मुख्यतः मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों तथा टाइफस वाहक जुओं को समाप्त करने में प्रयुक्त किया जाता था। लेकिन DDT के अत्यधिक स्थायित्व, वसा में विलेयता तथा शीघ्र उपापचयन नहीं होने के कारण यह वसीय ऊतकों में एकत्रित तथा संग्रहित हो जाती है। कीटों की अनेक प्रजातियों में DDT के प्रति-प्रतिरोधकता विकसित हो गयी है तथा यह मछलियों के लिए अत्यधिक विषैली है । अतः इसके उपयोग को आजकल प्रतिबन्धित कर दिया गया है । लेकिन विश्व में अनेक स्थानों पर आज भी इसका उपयोग हो रहा है।
कार्बन टेट्राक्लोराइड (टेट्राक्लोरोमेथेन) (Carbon tetrachloride (Tetrachloromethane) (CCl4) –
(i) कार्बन टेट्राक्लोराइड को मुख्यतः प्रोपेन के क्लोरीनी अपघटन से बनाया जाता है।
(ii) CCl4 एक रंगहीन, रुचिकर गंधयुक्त, अज्वलनशील तथा भारी द्रव है। यह जल में अविलेय तथा कार्बनिक विलायकों में विलेय होता है।
(iii) CCl4 के भापीय जल अपघटन से फॉस्जीन बनती है।
(iv) जलीय KOH से जल अपघटन कराने पर यह पोटेशियम कार्बोनेट देता है।
(v) राइमर टीमान कार्बोक्सिलीकरण – CCl4 की क्रिया फीनॉल तथा क्षार के साथ करवाने पर सैलिसिलिक अम्ल प्राप्त होता है।
(vi) उपयोग – कार्बन टेट्राक्लोराइड को प्रशीतक तथा ऐरोसॉल प्रणोदक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। यह एक अच्छा विलायक है अतः यह उद्योगों में ग्रीस को साफ करने तथा घरों में दाग-धब्बे हटाने में भी प्रयुक्त होता है। यह औषधि तथा फ्रेऑन के निर्माण में भी काम में आता है। CCl4 एक अग्निशामक भी होता है।
(vii) CCl4 के दुष्प्रभाव – CCl4 के सम्पर्क से तंत्रिका तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसके कारण चक्कर आना, उल्टी आना आदि प्रभाव होते हैं। इसकी अधिक मात्रा के कारण मनुष्य बेहोश हो जाता है, तथा मृत्यु हो सकती है। CCl4 के उद्भासन से हृदयगति अनियमित हो सकती है अथवा रुक जाती है। इसकी वाष्प के सम्पर्क के कारण आँखों में जलन उत्पन्न होती है। CCl4, यकृत का कैंसर भी उत्पन्न करता है।
कार्बनटेट्राक्लोराइड वायु में जाने पर ऊपरी वायुमण्डल में पहुँच कर ओजोन परत को विरल बना देती है। ओजोन परत के विरलीकरण से मनुष्यों का पराबैंगनी किरणों से उद्भासन बढ़ जाता है जिससे त्वचा का कैंसर, आँखों की बीमारियाँ तथा विकार उत्पन्न होते हैं। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली भी कमजोर हो जाती है।
आयोडोफॉर्म (ट्राइआयोडो मेथेन) Iodoform (Trilodo-methane) CHl3
आयोडोफॉर्म का विरचन – एथेनॉल या एसीटोन की क्रिया आयोडीन तथा क्षार से करवाने पर पीले रंग का आयोडोफॉर्म प्राप्त होता है। इसे आयोडोफार्म परीक्षण कहते हैं।
गुण- यह एक विशिष्ट गन्धयुक्त पीला क्रिस्टलीय ठोस है। यह जल अविलेय तथा कार्बनिक विलायकों में विलेय होता है। अन्य हैलोफॉर्म (CHCl3, CHBr3) से कम स्थायी होता है। इसका कारण आयोडीन का बड़ा आकार है।
इसी कारण आयोडोफॉर्म, AgNO3 विलयन के साथ, AgI का पीला अवक्षेप देता है जबकि शुद्ध अवस्था में CHCl3 की AgNO3 विलयन के साथ कोई क्रिया नहीं होती ।
उपयोग – CHI3 का उपयोग पूतिरोधी (एन्टीसेप्टिक) के रूप में किया जाता है। इसका यह गुण वास्तव में इसके विघटन से मुक्त आयोडीन के कारण ही होता है। आयोडोफॉर्म की अरुचिकर गंध के कारण अब इसके स्थान पर आयोडीन युक्त अन्य दवाओं का उपयोग किया जाने लगा है।
प्रश्न 10.14
निम्नलिखित प्रत्येक अभिक्रिया में बनने वाले मुख्य कार्बनिक उत्पाद की संरचना लिखिए-
उत्तर:
प्रश्न 10.15
निम्नलिखित अभिक्रिया की क्रियाविधि लिखिए-
उत्तर:
यह एक नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया है। n-BuBr-(n-ब्यूटिल ब्रोमाइड) प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड है अतः यह अभिक्रिया SN² क्रियाविधि से होगी तथा यह एक पद में ही सम्पन्न होती है एवं इसमें काल्पनिक संक्रमण अवस्था मानी जाती है।
प्रश्न 10.16.
SN² प्रतिस्थापन के प्रति अभिक्रियाशीलता के आधार पर इन यौगिकों के समूहों को क्रमबद्ध कीजिए-
(i) 2 – ब्रोमो – 2 – मेथिलब्यूटेन, 1- ब्रोमोपेन्टेन, 2 – ब्रोमोपेन्टेन
(ii) 1-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूटेन, 2 – ब्रोमो – 2 – मेथिलब्यूटेन, 2- ब्रोमो – 3 – मेथिलब्यूटेन
(iii) 1- ब्रोमोब्यूटेन, 1- ब्रोमो-2, 2 – डाइमेथिलप्रोपेन, 1- ब्रोमो- 2- मेथिलब्यूटेन, 1- ब्रोमो – 3 – मेथिलब्यूटेन
उत्तर:
विभिन्न ऐल्किल हैलाइडों में SN² अभिक्रिया के लिए क्रियाशीलता का क्रम निम्न प्रकार होता है- \(\stackrel{\circ}{1}>\stackrel{\circ}{2}>\stackrel{\circ}{3}\) तथा जब ऐल्किल हैलाइड समान प्रकार के होते हैं तो वह ऐल्किल हैलाइड जिसमें हैलोजनयुक्त कार्बन पर बड़ा समूह जुड़ा होता है तो वह त्रिविम विन्यासी बाधा उत्पन्न करता है जिससे उसकी क्रियाशीलता कम हो जाती है। क्योंकि स्थूल (बड़ा) समूह आक्रमणकारी नाभिकरागी के लिए अवरोध उत्पन्न करता है।
प्रश्न 10.17.
C6H5CH2Cl तथा IMG में से कौनसा यौगिक जलीय KOH से शीघ्रता से जल अपघटित होगा?
उत्तर:
C6H5CH2Cl तथा में से का जलीय KOH से शीघ्रता से जल अपघटन होगा क्योंकि इसके जल अपघटन में बनने वाला मध्यवर्ती कार्बधनायन अधिक स्थायी होता है, क्योंकि इसमें दो बेन्जीन वलय के कारण अनुनाद अधिक होगा जबकि C6H5CH2Cl से बने कार्बधनायन में केवल एक बेन्जीनवलय ही अनुनाद में भाग लेती है।
प्रश्न 10.18.
o- तथा m- समावयवियों की तुलना में p – डाइक्लोरोबेन्जीन का गलनांक उच्च होता है। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
p- डाइक्लोरोबेन्जीन की सममित संरचना के कारण इसके क्रिस्टल जालक में अणुओं का संकुलन सघन होता है अर्थात् इसमें अन्तराअणुक आकर्षण प्रबल होता है। अतः p-डाइक्लोरोबेन्जीन का गलनांक o- तथा m- समावयवियों की तुलना में उच्च होता है।
प्रश्न 10.19.
निम्नलिखित परिवर्तन कैसे सम्पन्न किए जा सकते हैं?
(1) प्रोपीन से प्रोपेन- 1- ऑल
(2) एथेनॉल से ब्यूट- 1 – आइन
(3) 1- ब्रोमोप्रोपेन से 2 – ब्रोमोप्रोपेन
(4) टॉलूईन से बेन्जिल ऐल्कोहॉल
(5) बेन्जीन से 4 – ब्रोमोनाइट्रोबेन्जीन
(6) बेन्जिल ऐल्कोहॉल से 2 – फेनिल एथेनॉइक अम्ल
(7) एथेनॉल से प्रोपेन नाइट्राइल
(8) ऐनिलीन से क्लोरोबेन्जीन
(9) 2 – क्लोरोब्यूटेन से 3, 4 – डाइमेथिलहेक्सेन
(10) 2 – मेथिल – 1- प्रोपीन से 2- क्लोरो-2 – मेथिलप्रोपेन
(11) एथिल क्लोराइड से प्रोपेनॉइक अम्ल
(12) ब्यूट – 1 – ईन से n – ब्यूटिल आयोडाइड
(13) 2 – क्लोरोप्रोपेन से 1- प्रोपेनॉल
(14) आइसोप्रोपिल ऐल्कोहॉल से आयोडोफार्म
(15) क्लोरोबेन्जीन से p- नाइट्रोफीनॉल
(16) 2 – ब्रोमोप्रोपेन से 1- ब्रोमोप्रोपेन
(17) क्लोरोएथेन से ब्यूटेन
(18) बेन्जीन से डाइफेनिल
(19) तृतीयक – ब्यूटिल ब्रोमाइड से आइसो- ब्यूटिल ब्रोमाइड
(20) ऐनिलीन से फेनिल आइसोसायनाइड।
उत्तर:
उपर्युक्त परिवर्तन निम्न प्रकार सम्पन्न किए जाते हैं-
प्रश्न 10.20
ऐल्किल क्लोराइड की जलीय KOH से अभिक्रिया द्वारा ऐल्कोहॉल बनती है लेकिन ऐल्कोहॉलिक KOH की उपस्थिति में ऐल्कीन मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। समझाइए |
उत्तर:
जब किसी ऐल्किल हैलाइड की क्रिया किसी नाभिकस्नेही या क्षार से करवाते हैं तो प्रतिस्थापन तथा विलोपन अभिक्रिया में प्रतिस्पर्धा होती है। इसमें कम ध्रुवीय विलायक जैसे ऐल्कोहॉल की उपस्थिति में विलोपन अभिक्रिया होकर मुख्य उत्पाद ऐल्कीन प्राप्त होती है क्योंकि ऐल्कोहॉल की कम ध्रुवता के कारण नाभिकस्नेही की सान्द्रता कम होगी। अतः ऐल्किल क्लोराइड से प्रोटोन (H+) तथा हैलोजन का विलोपन होकर ऐल्कीन बनती है जबकि अधिक ध्रुवीय विलायक जैसे जल में नाभिकस्नेही (\(\overline{O}\)H) की सान्द्रता अधिक होगी। अतः मुख्यतः प्रतिस्थापन होकर मुख्य उत्पाद ऐल्कोहॉल बनता है।
विलोपन अभिक्रिया-
प्रतिस्थापन अभिक्रिया-
प्रश्न 10.21.
प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड C4H9Br (क), ऐल्कोहॉलिक KOH में अभिक्रिया द्वारा यौगिक (ख) देता है। यौगिक ‘ख’ HBr के साथ अभिक्रिया से यौगिक ‘ग’ देता है जो कि यौगिक ‘क’ का समावयवी है। जब यौगिक ‘क’ की अभिक्रिया सोडियम धातु से होती है तो यौगिक ‘घ’ C8H18 बनता है, जो n – ब्यूटिल ब्रोमाइड की सोडियम से अभिक्रिया द्वारा बने उत्पाद से भिन्न है । यौगिक ‘क’ का संरचना सूत्र दीजिए तथा सभी अभिक्रियाओं के समीकरण दीजिए।.
उत्तर:
अणुसूत्र C4H9Br से दो प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड संभव हैं।
CH3-CH2-CH2-CH2 – Br (n – ब्यूटिल ब्रोमाइड) तथा (आइसोब्यूटिल ब्रोमाइड)। प्रश्नानुसार, यौगिक ‘क’ n – ब्यूटिल ब्रोमाइड नहीं है अतः यह आइसोब्यूटिल ब्रोमाइड होगा।
अभिक्रियाओं के समीकरण-
प्रश्न 10.22.
तब क्या होता है जब-
(i) n – ब्यूटिल क्लोराइड को ऐल्कोहॉलिक KOH के साथ अभिकृत किया जाता है?
(ii) शुष्क ईथर की उपस्थिति में ब्रोमोबेन्जीन की अभिक्रिया मैग्नीशियम से होती है ?
(iii) क्लोरोबेन्जीन का जलअपघटन किया जाता है ?
(iv) एथिल क्लोराइड की अभिक्रिया जलीय KOH से होती है ?
(v) शुष्क ईथर की उपस्थिति में मेथिल ब्रोमाइड की अभिक्रिया सोडियम से होती है?
(vi) मेथिल क्लोराइड की अभिक्रिया KCN से होती है ?
उत्तर:
(i) n – ब्यूटिल क्लोराइड को ऐल्कोहॉलिक KOH के साथ अभिकृत कराने पर ß – विलोपन द्वारा ब्यूट- 1 – ईन बनती है।
(ii) शुष्क ईथर की उपस्थिति में ब्रोमोबेन्जीन की अभिक्रिया मैग्नीशियम से कराने पर फेनिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड (ग्रीन्यार अभिकर्मक) बनता है।
(iii) क्लोरोबेन्जीन के जलअपघटन से फीनॉल बनता है।
(iv) एथिल क्लोराइड की अभिक्रिया जलीय KOH से होने पर नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया द्वारा एथिलऐल्कोहॉल बनता है।
(v) शुष्क ईथर की उपस्थिति में मेथिल ब्रोमाइड की क्रिया सोडियम से होने पर एथेन बनती है ( वुर्ज अभिक्रिया)।
(vi) मेथिल क्लोराइड की KCN से अभिक्रिया होने पर मेथिल सायनाइड बनाता है (नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन ) ।
HBSE 12th Class Chemistry हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन Intext Questions
प्रश्न 10.1.
निम्नलिखित यौगिकों की संरचनाएँ लिखिए-
(i) 2-क्लोरो-3-मेथिलपेन्टेन
(ii) 1-क्लोरो-4-एथिलसाइक्लोहेक्सेन
(iii) 4-तृतीयक-ब्यूटिल-3-आयोडोहेप्टेन
(iv) 1, 4-डाइब्रोमोब्यूट-2-ईन
(v) 1-ब्रोमो-4-द्वितीयक-ब्यूटिल-2-मेथिलबेन्जीन।
उत्तर:
उपर्युक्त वौगिकों की संरचनाएँ अग्रलिखित हैं-
प्रश्न 10.2.
ऐल्कोहॉल तथा KI की अभिक्रिया में सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग क्यों नहीं करते?
उत्तर:
ऐल्कोहॉल के ऐल्किल आयोडाइड में परिवर्तन के लिए ऐल्कोहॉल तथा KI की अभिक्रिया में H2SO4 का प्रयोग नहीं किया जा सकता, क्योंक पहले यह KI से क्रिया करके उसे HI में परिवर्तित कर देता है, इसके बाद HI को I2 में आक्सीकृत कर देता है क्योंकि यह आक्सीकारक होता है।
प्रश्न 10.3.
प्रोपेन के विभिन्न डाइहैलोजन व्युत्पन्नों की संरचना लिखिए।
उत्तर:
प्रोपेन के डाइहैलोजन व्युत्पन्न चार होते हैं जिनकी संरचना निम्न प्रकार होती है-
प्रश्न 10.4.
C5H12 अणुसूत्र वाले समावयवी ऐल्केनों में से उसको पहचानिए जो प्रकाश रासायनिक क्लोरीनन (क्लोरीनीकरण) पर देता है-
(i) केवल एक मोनो क्लोराइड
(ii) तीन समावयवी मोनो क्लोराइड
(iii) चार समावयवी मोनो क्लोराइड।
उत्तर:
क्योंकि इसमें सभी हाइड्रोजन परमाणु समान हैं, अतः इसके क्लोरीनीकरण से केवल एक मोनोक्लोराइड बनेगा।
इसमें तीन प्रकार के हाइड्रोजन परमाणु है जिन्हें a, b, c से दर्शाया गया है। अतः इन हाइड्रोजन परमाणुओं के प्रतिस्थापन से तीन समावयवी मोनोक्लोराइड बनेंगे।
इसमें चार प्रकार के हाइड्रोज़न परमाणु हैं जिन्हें a, b, c तथा d से दर्शाया गया है, अतः इसके क्लोरीनीकरण से चार समावयवी मोनोक्लोराइड बनते हैं।
प्रश्न 10.5.
निम्नलिखित प्रत्येक अभिक्रिया के मुख्य मोनोहैलो उत्पाद की संरचना बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 10.6.
निम्नलिखित यौगिकों को क्वथनांकों के बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
(i) ब्रोमोमेथेन, ब्रोमोफॉर्म, क्लोरोमेथेन, डाइब्रोमोमेथेन
(ii) 1-क्लोरोप्रोपेन, आइसोप्रोपिल क्लोराइ ड, 1-क्लोरोक्यूटन।
उत्तर:
उपर्युक्त यौगिकों के क्वथनांक का बढ़ता क्रम निम्न प्रकार है-
(i) क्लोरोमेथेन < ब्रोमोमेथेन < डाइब्रोमोमेथेन < ब्रोमोफार्म
क्योंकि अणुभार बढ़ने पर क्वथनांक बढ़ता है।
(ii) आइसोप्रोपिल क्लोराइड < 1-क्लोरोप्रोपेन < 1-क्लोरोब्यूटेन शाखित होने के कारण आइसोप्रोपिल क्लोराइड का क्वथनांक 1-क्लोरेप्रोपेन से कम होता है।
प्रश्न 10.7.
निम्नलिखित युगलों (युग्मों) में से आप कोनसे ऐल्किल हैलाइड द्वारा SN2 क्रियाविधि से अधिक तीव्रता से अभिक्रिया करने की अपेक्षा करते हैं? अपने उत्तर को समझाइए।
उत्तर:
(i) CH3CH2CH2CH2Br, यह प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड होने के कारण इसमें त्रिविम बाधा नहीं होती।
(ii)
क्योंक द्वितीयक ऐल्किल हैलाइड, तृतीयक ऐल्किल हैलाइड की तुलना में अधिक तीव्रता से SN2 अभिक्रिया करता है।
(iii)
इसमें प्रतिस्थापी मेथिल समूह के हैलाइड से दूर होने के कारण त्रिविम बाधा कम होगी अतः SN2 अभिक्रिया का वेग अधिक होगा।
प्रश्न 10.8.
हैलोजन यौगिकों के निम्नलिखित युगलों में से कौनसा यौगिक तीव्रता से SN1 अभिक्रिया करेगा?
उत्तर:
(i) क्योंक तृतीयक कार्बोकैटायन का स्थायित्व अधिक होने के कारण तृतीयक ऐल्किल हैलाइड की अभिक्रियाशीलता SN1 अभिक्रिया के लिए द्वितीयक ऐल्किल हैलाइड से अधिक होती है।
(ii) क्योंकि प्राथमिक कार्बोकैटायन की तुलना में द्वितीयक कार्बोकैटायन का स्थायित्व अधिक होने के कारण इसमें SN1 अभिक्रिया अधिक तीव्रता से होगी।
प्रश्न 10.9.
निम्नलिखित में A, B, C, D, E, R तथा R1 को पहचानिए-
उत्तर: