Haryana State Board HBSE 12th Class Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु
प्रश्न 14.1.
मोनोसैकैराइड क्या होते हैं?
उत्तर:
वे कार्बोहाइड्रेट जिनको पॉलिहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड अथवा टोन के और अधिक सरल यौगिकों में जल अपघटित नहीं कर सकते, उन्हें मोनोसैकैराइड कहते हैं। लगभग 20 मोनोसैकैराइड प्रकृति में ज्ञात हैं। जैसे- ग्लूकोस, फ्रक्टोस, राइबोस आदि ।
प्रश्न 14.2.
अपचायी शर्करा क्या होती है?
उत्तर:
वे कार्बोहाइड्रेट जो टॉलेन अभिकर्मक या फेलिंग विलयन को अपचयित करते हैं उन्हें अपचायी शर्करा कहते हैं। इनमें स्वतंत्र ऐल्डिहाइड या समूह होता है। जैसे-ग्लूकोस, फ्रक्टोस, माल्टोस तथा लैक्टोस ।
प्रश्न 14.3.
पौधों में कार्बोहाइड्रेटों के दो, मुख्य कार्यों को कीटोन लिखिए।
उत्तर:
- कार्बोहाइड्रेट, वनस्पतियों में स्टार्च के रूप में पाए जाते हैं।
- पौधों की कोशिका भित्ति सेलुलोस से बनी होती है जो कि एक कार्बोहाइड्रेट है।
प्रश्न 14.4.
निम्नलिखित को मोनोसैकैराइड तथा डाइसैकैराइड में वर्गीकृत कीजिए – राइबोस, 2 – डीऑक्सीराइबोस, माल्टोस, गैलैक्टोस, फ्रक्टोस तथा लैक्टोस ।
उत्तर:
मोनोसैकैराइड – राइबोस, 2 – डीऑक्सीराइबोस, गैलैक्टोस तथा फ्रक्टोस ।
डाइसैकैराइड – माल्टोस तथा लैक्टोस।
प्रश्न 14.5.
ग्लाइकोसाइडी बंध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ओलिगोसैकैराइडों तथा पॉलिसैकैराइडों में दो मोनोसैकैराइड इकाई ऑक्साइड या ईथर बंध द्वारा जुड़ी होती हैं जो कि जल के एक अणु के निष्कासन से बनता है, इसे ग्लाइकोसाइडी बंध कहते हैं। इस प्रकार दो मोनोसैकैराइडों के मध्य ऑक्सीजन परमाणु से बने बन्ध को ग्लाइकोसाइडी बंध कहते हैं।
प्रश्न 14.6.
ग्लाइकोजन क्या होता है तथा यह स्टार्च से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
प्राणियों के शरीर में कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित रहता है। इसकी संरचना ऐमिलोपेक्टिन के समान होती है, अतः इसे प्राणी स्टार्च भी कहते हैं लेकिन यह ऐमिलोपेक्टिन से अधिक शाखित होता है। यह यकृत, मांसपेशियों तथा मस्तिष्क में उपस्थित होता है। जब शरीर को ग्लूकोस की आवश्यकता होती है, एन्जाइम, ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में तोड़ देते हैं। ग्लाइकोजन यीस्ट तथा कवक में भी मिलता है।
स्टार्च के दो घटक होते हैं – एमिलोस तथा ऐमिलोपेक्टिन । एमिलोस, α-D- ग्लूकोस का रेखीय बहुलक है जबकि ऐमिलोपेक्टिन α-D-ग्लूकोस का शाखित बहुलक है।
प्रश्न 14.7.
(अ) सूक्रोस तथा (ब) लैक्टोस के जल अपघटन से कौनसे उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
(अ) सूक्रोस के जल अपघटन से α-D- ग्लूकोस तथा ß-D- फ्रक्टोस बनते हैं।
(ब) लैक्टोस के जल अपघटन से ß-D-ग्लूकोस तथा ß-D-गैलैक्टोस प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 14.8.
स्टार्च तथा सेलुलोस में मुख्य संरचनात्मक अंतर क्या है?
उत्तर:
स्टार्च -ग्लूकोस का बहुलक है तथा इसमें दो घटक ऐमिलोस तथा ऐमिलोपेक्टिन होते हैं । ऐमिलोस 200-1000 α-D (+) – ग्लूकोस इकाइयों की अशाखित श्रृंखला होती है जो कि C1 – C4 ग्लाइकोसाइडी बंध द्वारा जुड़ी होती हैं।
ऐलोपेक्टिन में α-D-ग्लूकोस इकाइयों से बनी शाखित श्रृंखला होती है, जिसमें C1-C4 ग्लाइकोसाइडी बंध होते हैं तथा शाखन C1 – C6 ग्लाइकोसाइडी बंध द्वारा होता है जबकि सेलुलोस, ß-D-ग्लूकोस से बना रेखीय शृंखलायुक्त पॉलिसैकैराइड है जिसमें एक ग्लूकोस इकाई के C1 तथा दूसरी ग्लूकोस इकाई के C4 के मध्य ग्लाइकोसाइडी बंध बनता है।
प्रश्न 14.9.
क्या होता है जब D – ग्लूकोस की अभिक्रिया निम्नलिखित अभिकर्मकों से करते हैं?
(i) HI
(ii) ब्रोमीन जल
(iii) HNO3
उत्तर:
(i) HI से अभिक्रिया – ग्लूकोस को HI के साथ लंबे समय तक गरम करने पर यह अपचयित होकर n – हैक्सेन देता है। इससे सिद्ध होता है कि इसमें सभी छः कार्बन परमाणु एक सीधी श्रृंखला में होते हैं।
(ii) ब्रोमीन जल से अभिक्रिया – ग्लूकोस ब्रोमीन जल द्वारा ऑक्सीकृत होकर ग्लूकोनिक अम्ल बनाता है। इससे सिद्ध होता है कि ग्लूकोस का कार्बोनिल समूह ऐल्डिहाइड समूह के रूप में होता है ।
(iii) HNO3 से अभिक्रिया – ग्लूकोस का नाइट्रिक अम्ल द्वारा ऑक्सीकरण कराने पर एक डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल, सैकैरिक अम्ल बनता है। इससे ग्लूकोस में प्राथमिक ऐल्कोहॉलिक समूह की उपस्थिति की पुष्टि होती है ।
प्रश्न 14.10.
ग्लूकोस की उन अभिक्रियाओं का वर्णन कीजिए जो इसकी विवृत श्रृंखला ( खुली श्रृंखला) संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकतीं।
उत्तर:
ग्लूकोस की निम्नलिखित अभिक्रियाएँ इसकी विवृत श्रृंखला संरचना द्वारा नहीं समझाई जा सकती-
- ऐल्डिहाइड समूह उपस्थित होते हुए भी ग्लूकोस 2,4-DNP परीक्षण तथा शिफ परीक्षण नहीं देता। यह NaHSO के साथ भी क्रिया नहीं करता।
- ग्लूकोस पेन्टाऐसीटेट, हाइड्रॉक्सिलऐमीन के साथ अभिक्रिया नहीं करता जो मुक्त -CHO समूह की अनुपस्थिति को दर्शाता है।
- ग्लूकोस दो भिन्न क्रिस्टलीय रूपों में पाया जाता है जिन्हें o तथा B ग्लूकोस कहते हैं।
प्रश्न 14.11.
आवश्यक तथा अनावश्यक ऐमीनो अम्ल क्या होते हैं? प्रत्येक प्रकार के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे ऐमीनो अम्ल जो हमारे शरीर में संश्लेषित हो जाते हैं, उन्हें अनावश्यक ऐमीनो अम्ल कहते हैं; जैसे-ग्लाइसीन तथा ऐलानिन एवं वे ऐमीनो अम्ल जो हमारे शरीर में संश्लेषित नहीं होते तथा जिनको भोजन में लेना आवश्यक होता है, उन्हें आवश्यक ऐमीनो अम्ल कहते हैं; जैसे-वैलीन तथा ल्यूसीन आवश्यक ऐमीनो अम्लों की संख्या दस होती है।
प्रश्न 14.12.
प्रोटीन के संदर्भ में निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए-
(i) पेप्टाइड बंध
(ii) प्राथमिक संरचना
(iii) विकृतीकरण
उत्तर:
(i) पेप्टाइड बंध- वह बन्ध जिसके द्वारा विभिन्न – ऐमीनो अम्ल आपस में जुड़कर प्रोटीन बनाते हैं, उसे पेप्टाइड बंध कहते हैं। पेप्टाइड बंध को – CONH से दर्शाते हैं जो कि – ऐमीनो अम्ल के एक अणु के – COOH समूह तथा दूसरे अणु के – NH2 समूह से जल के निकलने से बनता है।
(ii) प्रोटीन की प्राथमिक संरचना- प्रोटीनों में एक या अधिक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं उपस्थित होती हैं किसी प्रोटीन के प्रत्येक पॉलिपेप्टाइड में ऐमीनो अम्ल एक विशिष्ट तथा निश्चित क्रम में जुड़े होते हैं। ऐमीनो अम्लों के इस विशिष्ट क्रम को ही प्रोटीनों की प्राथमिक संरचना कहते हैं। प्राथमिक संरचना में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होने पर अर्थात् ऐमीनो अम्लों के क्रम में परिवर्तन से भिन्न प्रोटीन बनते हैं।
(iii) प्रोटीन का विकृतीकरण – जैविक तंत्र में पायी जाने वाली विशिष्ट त्रिविम संरचना तथा जैविक सक्रियता वाले प्रोटीन, प्राकृतिक प्रोटीन कहलाते हैं। जब प्राकृतिक प्रोटीन के ताप तथा pH में परिवर्तन (भौतिक या रासायनिक परिवर्तन) किया जाता है तो हाइड्रोजन बन्धों की व्यवस्था बिगड़ जाती है जिसके कारण प्रोटीन की गोलिका (ग्लोब्यूल) खुल जाती है तथा हैलिक्स अकुंडलित हो जाती है इससे प्रोटीन अपनी जैविक सक्रियता को खो देता है, इसे प्रोटीन का विकृतीकरण कहते हैं उबालने पर अंडे की सफेदी का स्कंदन विकृतीकरण का एक उदाहरण है तथा दूध का जमकर दही बनना भी विकृतीकरण है जो कि दूध में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा लैक्टिक अम्ल उत्पन्न होने के कारण होता है।
प्रश्न 14.13.
प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या हैं?
उत्तर:
प्रोटीन की द्वितीयक संरचना इनकी आकृति से सम्बन्धित होती है जिसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं उपस्थित होती हैं ये दो प्रकार की संरचनाओं में पायी जाती है-
(i) α-हैलिक्स तथा
(ii) प्रोटिन α-ऐमीनो अम्लों के बहुलक होते हैं जो आपस में पेप्यइड बंध द्वारा जुड़े ह्रेते हैं। ऐमीनो अम्लों के एक अणु के -COOH तथा दूसरे अणु के NH2 समूह के मध्य अभिक्रिया होकर जल के अणु से निकलने से बने बन्ध को पेप्टाइड बन्ध कहते हैं जिसे -CONH- द्वार दर्शाया जाता है।
प्रोटीनों में α-ऐमीनो अम्ल समान तथा भिन्न भी हो सकते हैं। जब बनने वाला उत्पाद दो ऐमीनो अम्लों से बनता है तो इसे डाइपेप्टाइड कहते हैं। उदाहरण, ग्लाइसीन का कार्बोक्सिल समूह, ऐलानीन के ऐमीनो समूह के साथ क्रिया करता है तो एक डाइपेप्टाइड, ग्लाइसिलऐलानिन बनता है। अतः डाइपेप्टइड में एक पेप्यइड बन्ध होता है।
जब तीसरा ऐमीनो अम्ल, डाइपेप्टाइड के साथ क्रिया करता है तो बने उत्पाद को ट्राइपेप्टाइड कहते हैं। अतः एक ट्राइपेप्टाइड में तीन ऐमीनो अम्ल दो पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़े होते हैं। इसी प्रकार चार, पाँच तथा छः ऐमीनो अम्लों के आपस में जुड़ने से बने उत्पादों को टेट्रापेप्टाइड पेन्टापेप्टाइड तथा हेक्सापेप्टाइड कहते हैं। बहुत से ऐमीनो अम्लों ( 10 से अधिक) के आपस में संघनन द्वारा बने पेप्टाइडों को पॉलिपेप्टाइड कहते हैं।
वे पॉलिपेप्टाइड जिनमें असंख्य ( 100 से अधिक) भिन्न-भिन्न ऐमीनो अम्ल होते हैं तथा जिनका आण्विक द्रव्यमान 10,000 µ से अधिक होता है, उन्हें प्रोटीन कहते हैं। यद्यपि पॉलिपेप्टाइड तथा प्रोटीन में विभेद अधिक स्पष्ट नहीं है। 100 से कम ऐमीनो अम्लों वाले पॉलिपेप्यइडों को भी प्रोटीन कहा जाता है यदि उनमें प्रोटीन जैसा स्पष्ट संरूपण (conformation) हो। उदाहरण-इन्सुलिन 51 ऐमीनो अम्लों से मिलकर बना होता है।
प्रोटीनों के सामान्य गुण:
- प्रोटीन रंगहीन तथा अक्रिस्टलीय होते हैं लेकिन इन्सुलिन क्रिस्टलीय होती है।
- प्रोटीन के गंलनांक तथा क्वथनांक अनिश्चित होते हैं।
- प्रोटीन सामान्यतः जल, ऐल्कोहॉल तथा ईथर इत्यादि में अविलेय होते हैं।
- प्रोटीन, बहुलक होते हैं जिनका आण्विक द्रव्यमान अधिक होता है, अतः ये जल में कोलाइडों के रूप में पाए जाते हैं।
- प्रोटीन उभयधर्मी होते हैं जिनके समविभव बिन्दु निश्चित होते हैं।
प्रश्न 14.14.
प्रोटीन की α-हैलिक्स संरचना के स्थायीकरण में कौनसे आबंध सहायक होते हैं?
उत्तर:
प्रोटीन की α-हैलिक्स संरचना में प्रत्येक ऐमीनो अम्ल का – NH समूह, कुंडली के अगले मोड़ पर स्थित समूह के साथ हाइड्रोजन बंध बनाता है जो इनके स्थायीकरण में सहायक होता है।
प्रश्न 14.15.
रेशेदार तथा गोलिकाकार (Globular) प्रोटीन को विभेदित कीजिए।
उत्तर:
- रेशेदार प्रोटीन में पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं समानांतर होती हैं तथा हाइड्रोजन एवं डाइसल्फाइड बंधों द्वारा जुड़कर रेशों जैसी संरचना बनाती हैं जबकि गोलिकाकार प्रोटीन में पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं कुंडली बनाकर गोलाकार आकृति बना लेती हैं।
- रेशेदार प्रोटीन जल में अविलेय होते हैं जबकि गोलिकाकार प्रोटीन जल में विलेय होते हैं।
- रेशेदार प्रोटीन के उदाहरण किरेटिन (बाल, ऊन तथा रेशम में उपस्थित) तथा मायोसिन (मांसपेशियों में उपस्थित) हैं तथा गोलिकाकार प्रोटीन के उदाहरण इन्सुलिन व ऐल्यूमिन हैं।
प्रश्न 14.16.
ऐमीनो अम्लों की उभयधर्मी प्रकृति को आप कैसे समझाएंगे ?
उत्तर:
ऐमीनो अम्ल लवण के समान व्यवहार करते हैं क्योंकि इनके एक ही अणु में अम्लीय (कार्बोक्सिल समूह) तथा क्षारकीय ( ऐमीनो समूह ) समूह होते हैं। जलीय विलयन में कार्बोक्सिल समूह एक प्रोटॉन दान कर सकता है जबकि ऐमीनो समूह एक प्रोटॉन ग्रहण कर सकता है जिसके कारण एक द्विध्रुवीय आयन बनता है जिसे ज्विटर आयन अथवा उभयाविष्ट आयन या आन्तरिक लवण कहते हैं। यह उदासीन होता है लेकिन इसमें धनावेश तथा ऋणावेश दोनों ही उपस्थित होते हैं।
उभयाविष्ट आयन के रूप में ऐमीनो अम्ल उभयधर्मी प्रकृति दर्शाते हैं क्योंकि ये अम्लों तथा धारकों दोनों के साथ अभिक्रिया करते हैं।
प्रश्न 14.17.
एन्जाइम क्या होते हैं?
उत्तर:
सजीवों में होने वाली जैव रासायनिक अभिक्रियाओं में प्रयुक्त होने वाले जैव उत्प्रेरकों को एन्जाइम कहते हैं। एन्जाइम प्रोटीनयुक्त पदार्थ होते हैं।
प्रश्न 14.18.
प्रोटीन की संरचना पर विकृतीकरण का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
प्रोटीन के विकृतीकरण से इसकी प्राथमिक संरचना प्रभावित नहीं होती लेकिन द्वितीयक तथा तृतीयक संरचनाएँ नष्ट हो जाती हैं, विकृत प्रोटीन की जैविक सक्रियता नष्ट हो जाती है। जैसे अण्डे को उबालने पर विलेय गोलिकाकार प्रोटीन का स्कंदन होकर वह अविलेय रेशेदार प्रोटीन में परिवर्तित हो जाती है।
प्रश्न 14.19.
विटामिनों को किस प्रकार वर्गीकृत किया गया है? रक्त के थक्के जमने के लिए जिम्मेदार विटामिन का नाम दीजिए।
उत्तर:
विटामिनों का वर्गीकरण- जल तथा वसा में विलेयता के आधार पर विटामिनों को दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है-
- वसा विलेय विटामिन
- जल में विलेय विटामिन
(i) वसा विलेय विटामिन- ये विटामिन वसा तथा तेल में विलेय होते हैं लेकिन जल में अविलेय होते हैं। ये विटामिन A, D, E तथा K हैं। ये यकृत तथा ऐडिपोस (वसा को संग्रहित करने वाला) ऊतक में संग्रहित रहते हैं।
(ii) जल में विलेय विटामिन B वर्ग के विटामिन तथा विटामिन C जल में विलेय होते हैं। जल में विलेय विटामिनों की पूर्ति हमारे आहार में नियमित रूप से तथा पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए क्योंकि ये मूत्र के साथ आसानी से उत्सर्जित हो जाते हैं। इस कारण ये हमारे शरीर में (विटामिन B12 के अतिरिक्त) संचित नहीं हो पाते हैं।
रक्त का थक्का जमने के लिए विटामिन K जिम्मेदार होता है।
प्रश्न 14.20.
विटामिन A व C हमारे लिए आवश्यक क्यों हैं? उनके महत्वपूर्ण स्त्रोत दीजिए।
उत्तर:
विटामिन A की कमी से रतौंधी (रात्रि अंधता) तथा ज़िॲपिथेमिया (आँख के कॉर्निया का कठोर होना) नामक रोग हो जाते हैं। तथा विटामिन C की कमी से स्कर्वी (मसूड़ों से रक्तस्राव) तथा दंत क्षय रोग हो जाता है अतः विटामिन A व C हमारे लिए आवश्यक हैं।
विटामिन A के स्रोत – गाजर, पालक, पपीता, मक्खन, दूध, मछली के यकृत का तेल तथा अंडे की जर्दी।
विटामिन C के स्रोत सिट्रस फल ( नींबू, संतरा, मौसमी), आँवला, हरे पत्तेदार सब्जियाँ, अमरूद, टमाटर तथा बेर।
प्रश्न 14.21.
न्यूक्लिक अम्ल क्या होते हैं? इनके दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर:
न्यूक्लिक अम्ल, न्यूक्लिओटाइडों की लम्बी श्रृंखलायुक्त बहुलक होते हैं जो एक धारक, एक पेन्टोस शर्करा तथा फॉस्फेट से मिलकर बनते हैं। ये वे जैव अणु हैं जो प्रोटीन के साथ मिलकर क्रोमोसोम बनाते हैं। न्यूक्लिक अम्ल, जनक से संतति में गुणों के स्थानान्तरण के लिए जिम्मेदार होते हैं। न्यूक्लिक अम्ल के कार्य न्यूक्लिक अम्ल के दो महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं-
- स्वप्रतिकृति तथा
- प्रोटीन संश्लेषण पर नियंत्रण।
प्रश्न 14.22.
न्यूक्लिओसाइड तथा न्यूक्लिओटाइड में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
किसी क्षारक (प्यूरीन या पिरीमिडीन) के पेन्टोस शर्करा की 1′ स्थिति से जुड़ने पर बनी इकाई को न्यूक्लिओसाइड कहते हैं तथा न्यूक्लिओसाइड जब शर्करा की 5′ स्थिति पर फॉस्फोरिक अम्ल से जुड़ता है तो न्यूक्लिओटाइड बनता है। अतः न्यूक्लिओसाइड में केवल पेन्टोस शर्करा तथा क्षारक होता है जबकि न्यूक्लिओटाइड में इनके अतिरिक्त फॉस्फेट समूह भी होता है।
प्रश्न 14.23.
DNA के दो रज्जुक (Strands) समान नहीं होते, अपितु एक-दूसरे के पूरक (Complimentary) होते हैं। समझाइए |
उत्तर:
DNA की द्विकुंडलनी संरचना होती है। इसमें न्यूक्लिक अम्ल की दो श्रृंखलाएं आपस में कुंडलित होती हैं तथा क्षारक युग्मों के मध्य हाइड्रोजन बंध द्वारा आपस में जुड़ी रहती हैं। दोनों रज्जुक श्रृंखलाएं एक-दूसरे की पूरक होती हैं क्योंकि धारकों के विशिष्ट युग्मों के मध्य ही हाइड्रोजन बंध बनते हैं जैसे- ऐडेनीन, थायमीन के साथ तथा साइटोसीन, ग्वानीन के साथ हाइड्रोजन बंध बनाता है। अतः DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते बल्कि एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
प्रश्न 14.24.
DNA तथा RNA में महत्वपूर्ण संरचनात्मक एवं क्रियात्मक अंतर लिखिए।
उत्तर:
DNA तथा RNA में संरचनात्मक अंतर निम्नलिखित हैं-
- DNA कोशिका के नाभिक में स्थित क्रोमोसोम में पाया जाता है जबकि RNA मुख्यतः कोशिका द्रव्य में पाया जाता है।
- DNA में B-D-डीऑक्सीराइबोस शर्करा होती है जबकि RNA में B-D राइबोस शर्करा होती है।
- पिरीमिडीन क्षारक, थायमीन केवल DNA में होता है जबकि यूरेसिल केवल RNA में होता है।
- DNA की द्विकुंडलनी संरचना होती है जबकि RNA की एकल कुंडलनी संरचना होती है।
DNA तथा RNA में क्रियात्मक अन्तर – DNA में स्वप्रतिकरण का गुण होता है तथा यह आनुवांशिक गुणों के स्थानान्तरण को नियंत्रित करता है, जबकि RNA प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करता है।
प्रश्न 14.25.
कोशिका में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के RNA कौनसे हैं ?
उत्तर:
कोशिका में पाए जाने वाले RNA तीन प्रकार के होते हैं जिनके कार्य भिन्न-भिन्न हैं। संदेशवाहक RNA (m-RNA), राइबोसोमल RNA (r-RNA) तथा अंतरण या स्थानान्तरण RNA (t-RNA) हैं।
HBSE 12th Class Chemistry जैव-अणु Intext Questions
प्रश्न 14.1.
ग्लूकोस तथा सूक्रोस जल में विलेय हैं जबकि साइक्लोहैक्सेन अथवा बेन्जीन (सामान्य छः सदस्यीय वलय युक्त यौगिक) जल में अविलेय होते हैं। समझाइए।
उत्तर:
ग्लूकोस तथा सूक्रोस के अणुओं में -OH समूह उपस्थित होने के कारण ये जल के साथ अन्तराअणुक हाइड्रोजन बन्ध बना लेते हैं अतः ये जल में विलेय हैं जबकि साइक्लोहैक्सेन तथा बेन्जीन हाइड्रोकार्बन हैं तथा ये अध्रुवीय यौगिक हैं अतः ये जल के साथ हाइड्रोजन बन्ध नहीं बना सकते इसलिये ये जल में अविलेय होते हैं।
प्रश्न 14.2.
लैक्टोस के जल अपघटन से किन उत्पादों के बनने की अपेक्षा करते हैं?
उत्तर:
लैक्टोस के जल अपघटन से D-(+) गेलेक्टेस तथा D-(+) ग्लूकोस बनते हैं। यह जल अपघटन तनु HCl या एन्जाइम की उपस्थिति में किया जात्म है।
प्रश्न 14.3.
D-ग्लूकोस के पेन्टाऐसीटेट में आप ऐल्डिहाइड समूह की अनुपस्थिति को कैसे समझाएँगे?
उत्तर:
D-ग्लूकोस के पेन्ट्राऐसीटेट में ऐल्डिहाइड समूह स्वतंत्र न होकर हेमीऐसिटैल के रूप में होता है। इसी कारण ग्लूकोस पेन्टाऐसीटेट हाइड्रोंक्सिल ऐमीन के साथ क्रिया नहीं करता।
प्रश्न 14.4.
ऐमीनो अम्लों के गलनांक एवं जल में विलेयता सामान्यतः संगत हैलो अम्लों की तुलना में अधिक होती है। समझाइए।
उत्तर:
ऐमीनो अम्लों में एक ही अणु में अम्लीय तथा क्षारीय दोनों समूह उपस्थित होने के कारण ये ज्विटर आयन (NH3CHRCOO–)के रूप में पाए जाते हैं अतः ये क्रिस्टलीय ठोस के समान व्यवहार करते हैं, इसलिए इनका गलनांक उच्च होता है तथा इनकी ध्रुवीय प्रकृति के कारण ये जल के साथ अंतराअणुक हाइड्रोजन बन्ध बना लेते हैं अतः ये जल में अत्यधिक विलेय भी होते हैं जबकि हैलो अम्लों में ज्विटर आयन नहीं बनते इसलिए इनके गलनांक तथा जल में विलेयता ऐमीनो अम्लों से कम होती है।
प्रश्न 14.5.
अंडे को उबालने पर उसमें उपस्थित जल कहाँ चला जाता है?
उत्तर:
अंडे को उबालने पर उसमें उपस्थित गोलाकार प्रोटीन विकृत हो जाती है। इस प्रक्रिया में जल का अवशोषण होता है अतः इसमें उपस्थित जल गायब हो जाता है।
प्रश्न 14.6.
हमारे शरीर में विटामिन C संचित क्यों नहीं होता?
उत्तर:
विटामिन C जल में विलेय होता है। अतः यह जलीय विलयन के रूप में हमारे शरीर से बाहर निकल जाता है। इस कारण यह हमारे शरीर में संचित नहीं होता।
प्रश्न 14.7.
यदि DNA के थायमीन युक्त न्यूक्लिओटाइड का जल अपघटन किया जाए तो कौन-कौनसे उत्पाद बनेंगे?
उत्तर:
DNA के थायमीनयुक्त न्यूक्लिओटाइड का जल अपघटन करने पर पेन्टोस शर्करा (β-D-2 डिऑक्सीराइबोस) फॉस्फोरिक अम्ल तथा थायमीन क्षारक ( नाइट्रोजनयुक्त विषमचक्रीय यौगिक ) प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 14.8.
जब RNA का जल अपघटन किया जाता है तो प्राप्त क्षारकों की मात्राओं के मध्य कोई संबंध नहीं होता। यह तथ्य RNA की संरचना के विषय में क्या संकेत देता है?
उत्तर:
RNA की संरचना में विभिन्न क्षारक युग्मों के मध्य निश्चित हाइड्रोजन बन्ध नहीं होता है तथा RNA की संरचना में कुण्डलनी केवल एक स्ट्रेण्ड से ही बनी होती है। अतः इसके जल अपघटन से प्राप्त क्षारकों की मात्राओं के मध्य कोई संबंध नहीं होता।