Author name: Prasanna

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. मौसम की प्रमुख दशा है-
(A) मेघाच्छन्न
(B) आर्द्र
(C) तूफानी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. मौसम संबंधी प्रेक्षणों को कितने स्तरों पर रिकॉर्ड किया जा सकता है?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(B) तीन

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3. फारेनहाइट थर्मामीटर में हिमांक तथा क्वथनांक के बीच कितने का अन्तर होता है?
(A) 90°
(B) 120°
(C) 180°
(D) 320°
उत्तर:
(C) 180°

4. एल्कोहल कितने डिग्री सेण्टीग्रेड पर जमता है?
(A) -115°C
(B) -90°C
(C) -50°C
(D) -10°C
उत्तर:
(A) -115°C

5. आर्द्रता कितने प्रकार की होती है?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौसम किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान की थोड़े समय की वायुमंडलीय दशाओं को वहाँ का मौसम कहते हैं।

प्रश्न 2.
मौसम के आधारभूत या महत्त्वपूर्ण या प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
तापमान, वर्षा, वायुदाब, वायु की गति व दिशा, मेघाच्छन्नता तथा आर्द्रता आदि मौसम के आधारभूत तत्त्व हैं।

प्रश्न 3.
मौसम की प्रमुख दशाएं कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
मेधाच्छन्न (Cloudy), आर्द्र (Humid), उमसवाला (Sultry), तूफानी (Stormy) तथा खिला मौसम (Sunny) इत्यादि।

प्रश्न 4.
मौसम के पूर्वानुमान से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
आने वाले मौसम के अनुसार हम अपने कार्यक्रम निश्चित या स्थगित कर सकते हैं। फसलों को बचाया जा सकता है। तटीय क्षेत्र के लोगों और मछुआरों को सचेत किया जा सकता है। वायुयान व जलयान के चालकों के लिए भी यह पूर्वानुमान लाभदायक सिद्ध होता है।

प्रश्न 5.
साधारण थर्मामीटर कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
मुख्यतः साधारण थर्मामीटर दो प्रकार के होते हैं-

  1. सेल्सियस थर्मामीटर
  2. फारेनहाइट थर्मामीटर। एक तीसरा कम प्रचलित रियूमर थर्मामीटर भी होता है।

प्रश्न 6.
सिक्स के अधिकतम व न्यूनतम थर्मामीटर में कौन-कौन से दो द्रव प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर:
पारा और एल्कोहल।

प्रश्न 7.
आर्द्रता को मापने वाले यंत्र को क्या कहते हैं?
उत्तर:
आर्द्र एवं शुष्क बल्ब थर्मामीटर।

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प्रश्न 8.
सेल्सियस और फारेनहाइट थर्मामीटरों में हिमांक बिंदु तथा क्वथनांक बिंदु कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
सेल्सियस थर्मामीटर में हिमांक 0°C तथा क्वथनांक 100°C होता है। फारेनहाइट थर्मामीटर में हिमांक 32°F तथा क्वथनांक 212°F होता है।

प्रश्न 9.
निर्द्रव और पारद बैरोमीटरों में अंतर बताओ।
उत्तर:
पारद बैरोमीटर में पारे (Mercury) का प्रयोग किया जाता है, जबकि निर्द्रव बैरोमीटर में किसी भी द्रव का प्रयोग नहीं किया जाता।

प्रश्न 10.
सेल्सियस तापमान को फारेनहाइट तापमान में बदलने का क्या सूत्र है?
उत्तर:
°F = (°C x \(\frac { 9 }{ 5 }\)) + 32

प्रश्न 11.
स्टीवेंसन स्क्रीन का क्या उपयोग होता है?
उत्तर:
इसमें रखे थर्मामीटरों को ऊष्मा, धूप व विकिरण से बचाया जा सके तथा केवल वायु ही स्वतंत्र रूप से इसमें से आ-जा सके ताकि वायु का तापमान ठीक-ठीक मापा जा सके।

प्रश्न 12.
वायु की गति और दिशा बताने वाले यंत्रों के नाम बताएँ।
उत्तर:
वायु की गति को वेगमापी (Anemometer) द्वारा तथा वायु की दिशा को वादिक-सूचक (Wind Vane) द्वारा मापा जाता है।

प्रश्न 13.
वायुदाब किन इकाइयों में मापा जाता है?
उत्तर:
इंच, सेंटीमीटर और मिलीबार में।

प्रश्न 14.
भारत में मौसम विज्ञान सेवा का आरंभ कब और कहाँ पर हुआ?
उत्तर:
सन् 1864 में, शिमला में।

प्रश्न 15.
भारत में मौसम विभाग का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
दिल्ली में।

प्रश्न 16.
भारतीय दैनिक मौसम सूचक मानचित्र कहाँ से प्रकाशित किया जाता है?
उत्तर:
पुणे से।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौसम क्या होता है और इसकी रचना किन तत्त्वों के द्वारा होती है?
उत्तर:
किसी स्थान पर थोड़ी अवधि की; जैसे कुछ घण्टों, एक दिन या एक-दो सप्ताह की वायुमण्डलीय अवस्थाओं को वहाँ का मौसम कहते हैं। तापमान, वर्षा, वायुदाब, पवनें, आर्द्रता तथा मेघ आदि मौसम के प्रमुख तत्त्व माने जाते हैं।

प्रश्न 2.
मौसम की प्रमुख दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौसम की प्रमुख दशाएँ निम्नलिखित होती हैं-

  • मेघाच्छन्न (Cloudy)-जब किसी दिन आकाश में बादल छाए हुए हों और सूर्य दिखाई न दे रहा हो तो कहा जाता है कि मौसम मेघाच्छन्न है।
  • आर्द्र (Humid)-वर्षा वाले दिन जब वायु में आर्द्रता सामान्य से अधिक होती है तो कहा जाता है कि मौसम आर्द्र है।
  • उमसवाला (Sultry)-जब वायु में आर्द्रता सामान्य से अधिक हो और सूर्य भी तेजी से चमक रहा हो तो कहा जाता है कि मौसम उमसवाला है।
  • तूफानी (Stormy)-जिस दिन तेज वायु चल रही हो तो कहा जाता है कि मौसम तूफानी है।
  • खिला मौसम (Sunny)-जब आकाश में बादल न हों और धूप खिली हुई हो तो कहा जाता है कि मौसम धूपयुक्त या खिला हुआ है।

प्रश्न 3.
मौसम के पूर्वानुमान से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
मौसम का पूर्वानुमान हो जाने से हम मूसलाधार बारिश, हिमपात, तड़ितझंझा व आंधी-तूफानों से बच सकते हैं तथा तदानुकूल अपने कार्यक्रम बना सकते हैं। मौसम का कुछ दिन पहले पता चल जाने से किसान अपनी फसलों की रक्षा कर सकते हैं, तटवर्ती क्षेत्रों में लोगों की जान बचाई जा सकती है, मछुआरों को समुद्र में जाने से सचेत किया जा सकता है और जलयान चालक अपने जहाज़, माल व सवारियों को सुरक्षित रख सकते हैं। वायुयानों की सफल उड़ान मौसम के पूर्वानुमान पर ही निर्भर करती है। मौसम की पूर्व जानकारी से अकाल और बाढ़ से बचाव किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
मौसम चार्ट क्या है?
उत्तर:
विभिन्न मौसम वेधशालाओं से प्राप्त आंकड़े पर्याप्त एवं विस्तृत होते हैं। अतः ये एक चार्ट पर बिना कोडिंग के नहीं दिखाए जा सकते। कोडिंग के द्वारा कम स्थान में सूचनाएं देकर चार्ट की उपयोगिता बढ़ जाती है। इन्हें सिनाप्टिक मौसम चार्ट कहते हैं तथा जो कोड प्रयोग में लाए जाते हैं, उसे मौसम विज्ञान प्रतीक कहते हैं। मौसम पूर्वानुमान के लिए मौसम चार्ट प्राथमिक यंत्र हैं। ये विभिन्न वायुराशियों, वायुदाब यंत्रों, वातारों तथा वर्षण के क्षेत्रों की अवस्थिति जानने एवं पहचानने में सहयोग करते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौसम मानचित्र क्या है? इसका महत्त्व बताते हुए इसकी रचना कीजिए।
उत्तर:
मौसम मानचित्र (Weather Maps)-आज के वैज्ञानिक युग में मौसम के विभिन्न तत्त्वों को मानचित्र पर अंकित करना सम्भव हो गया है। प्रतिदिन किसी विशेष समय का मौसमी विवरण मौसम मानचित्र पर अंकित किया जाता समय पर अल्पकालीन मौसम की दशाओं को दर्शाने वाले मानचित्र को मौसम मानचित्र कहते हैं।” मौसम के तत्त्वों को दर्शाने के लिए समान रेखाओं, प्रतीकों तथा संकेतदारों की सहायता ली जाती है। अभ्यास हो जाने पर उनके द्वारा मौसम मानचित्र का अध्ययन करके मौसम के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है।

मौसम मानचित्र का महत्त्व (Importance of Weather Maps)-प्रतिदिन के मौसम मानचित्रों के अध्ययन से हम आने वाले दिन के मौसम की कल्पना कर सकते हैं। मौसम वेधशालाएँ प्रतिदिन के मौसम मानचित्रों के अध्ययन के पश्चात् भविष्य के मौसम के विषय में अपने विचार जनता तक पहुँचाती हैं। इस ज्ञान से जलयान अथवा वायुयान द्वारा यात्रा के विषय में ज्ञात हो जाता है और वे अपने प्रोग्राम को उचित प्रकार से निश्चित कर सकते हैं। वायुयान चालक तथा जलयान चलाने वाले खराब मौसम का पता लग जाने पर सावधान हो जाते हैं, जिनसे बहुत-सी दुर्घटनाओं से रक्षा हो जाती है। मौसम ज्ञात हो जाने पर अकाल एवं बाढ़ से रक्षा के लिए पहले से ही बहुत कुछ तैयारी कर ली जाती है। मौसम के विवरण का कृषकों के लिए विशेष महत्त्व है। वे कृषि योजनाओं को मौसम के अनुसार सुचारु रूप से चला सकते हैं।

मौसम मानचित्रों की रचना भारत में मौसम मानचित्र दिन में दो बार बनाए जाते हैं जिनमें से एक प्रातः 8.30 बजे तथा जे बनाया जाता है। मौसम मानचित्रों की रचना भारत के विभिन्न भागों में स्थापित की गई मौसम प्रेक्षणशालाओं से प्राप्त की गई सचनाओं के आधार पर की जाती है। ये भारत के मौसम विभाग के अधीन कार्य करती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-

भारत में मौसम सम्बन्धी सेवा-भारत में मौसम सम्बन्धी सेवा सन् 1875 में आरम्भ की गई। तब इसका मुख्यालय शिमला में था। प्रथम विश्व-युद्ध के पश्चात् इसका मुख्यालय पुणे ले जाया गया। अब भारत के मौसम सम्बन्धी मानचित्र वहीं से प्रकाशित होते हैं।

भारत के दैनिक मौसम मानचित्र पर वायुदाब का वितरण, वायु की दिशा एवं गति, वर्षा, आकाश की दशा तथा दृश्यता आदि प्रदर्शित किए जाते हैं। इसके साथ एक रिपोर्ट संलग्न होती है जो पिछले दिन का मौसम तथा आने वाले 24 घण्टों के लिए मौसम . का पूर्वानुमान बताती है। इस पर भारत के सभी महत्त्वपूर्ण स्थानों के मौसम सम्बन्धी आँकड़े अंकित किए जाते हैं।

ये आँकड़े बेतार के तार (Wireless) की सहायता से एकत्रित किए जाते हैं। इन आँकड़ों के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की जाती है। आजकल कृत्रिम उपग्रह इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। INSAT I-B की सहायता से हम दूरदर्शन पर हर रोज भारतीय मौसम की जानकारी लेते हैं। INSAT I-C भी अन्तरिक्ष में छोड़ा गया है। मौसम का अध्ययन करने के लिए Air Photographs का भी प्रयोग किया जाता है।

भारतीय मौसम प्रेक्षणशालाएँ इस समय भारत में लगभग 350 प्रेक्षणशालाएँ हैं। इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है। प्रथम श्रेणी की प्रेक्षणशालाओं में स्वतः अभिलेखी (Self-recording) मौसम विज्ञान यन्त्रों; जैसे तापलेखी (Thermograph), वायुदाबलेखी (Barograph), आर्द्रतालेखी (Hygrograph), पवनवेग-लेखी (Anemograph) आदि प्रयोग किए जाते हैं। ये दिन में दो बार पुणे में स्थित केन्द्रीय प्रेक्षणशाला को मौसम सम्बन्धी सूचनाएँ भेजती है।

द्वितीय श्रेणी की प्रेक्षणशालाओं में सामान्य नेत्र-अभिलेखी (Eye-recording) मौसम विज्ञान यन्त्रों, जैसे अधिकतम व न्यूनतम तापमापी, वायुदाबमापी, शुष्क तथा आर्द्र बल्ब तापमापी, पवन वेगमापी, वायुदिक्-सूचक, वर्षामापक यन्त्र आदि का प्रयोग होता है। ये प्रेक्षणशालाएँ भी दिन में दो बार मुख्य कार्यालय को सूचना भेजती हैं।

तृतीय श्रेणी की प्रेक्षणशालाओं में भी नेत्र-अभिलेखी यन्त्रों का ही प्रयोग होता है। अन्तर केवल यह है कि ये दिन में केवल एक ही बार मुख्य कार्यालय को सूचना भेजती हैं। चतुर्थ श्रेणी की प्रेक्षणशालाओं में केवल तापमान एवं वर्षा सम्बन्धी आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। पंचम श्रेणी की प्रेक्षणशालाएँ प्रतिदिन प्रातः 8 बजे तार द्वारा पिछले 24 घण्टों में हुई वर्षा की सूचना केन्द्रीय प्रेक्षणशाला को भेजती हैं।

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प्रश्न 2.
मौसम के कुछ प्रमुख तत्त्वों को मापने वाले यन्त्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वायुमण्डल का तापमान, दाब, वर्षा तथा वायु की दिशा एवं गति मौसम के प्रमुख तत्त्व हैं। इन्हें मापने के लिए प्रायः निम्नलिखित यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है-
1. तापमान को मापना-सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करके वायुमण्डल का तापमान बढ़ता है जिसे तापमापी (Thermometer) द्वारा मापा जाता है। तापमापी कई प्रकार के होते हैं, परन्तु यहाँ पर सिक्स का अधिकतम तथा न्यूनतम तापमापी का ही विवरण दिया जा रहा है-

सिक्स का अधिकतम व न्यूनतम तापमापी-दिन का अधिकतम तथा रात्रि का न्यूनतम तापमान मापने के लिए एक विशेष प्रकार का तापमापी प्रयोग किया जाता है। इसका आविष्कार जे० सिक्स (J.Six) नामक विद्वान ने किया था इसलिए इसे सिक्स का अधिकतम तथा न्यूनतम तापमापी (Six’s Maximum and Minimum Thermometer) कहते हैं। यह शीशे की एक ‘U’ आकार की नली का बना होता है जिसके दोनों सिरों पर एक-एक बल्ब लगा हुआ होता है।

नली की बाईं ओर के बल्ब ‘A’ के पूरे भाग में एल्कोहल भरा होता है जबकि दाईं ओर के बल्ब ‘D’ के निचले भाग में ही एल्कोहल होता है और ऊपरी भाग खाली होता है। नली के निचले भाग में पारा भरा होता है। पारे के ऊपर इस्पात के दो सूचक (Steel Index) E तथा F लगे होते… हैं। इन सूचकों के साथ स्प्रिंग लगे हुए होते हैं जिनकी सहायता से ये अपने स्थान पर तब तक बने रहते हैं जब तक पारा उन्हें धकेल न दे।

पारे की गति एल्कोहल के फैलने और सिकुड़ने पर निर्भर करती है क्योंकि एल्कोहल पारे से छः गुना अधिक फैलता है। जब तापमान बढ़ता है तो बल्ब A का एल्कोहल फैलता है। पतला तरल होने के कारण यह सूचक को पार कर जाता है और नली के AB भाग में पारे को नीचे धकेलता है।
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इससे नली के CD भाग में पारा ऊपर को उठता है। ऊपर उठता हुआ पारा सूचक F को ऊपर की ओर धकेलेगा। यह तब तक धकेलता रहेगा जब तक तापमान बढ़ना बन्द नहीं हो जाता। सूचक F का निचला सिरा अधिकतम तापमान दर्शाता है। जब तापमान कम होना आरम्भ होता है तब बल्ब A का एल्कोहल सिकुड़ना शुरू कर देता है और नली के AB भाग में पारा ऊपर चढ़ना शुरू कर देता है। ऊपर चढ़ता हुआ पारा सूचक E को ऊपर की ओर धकेलता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक तापमान गिरना बन्द नहीं हो जाता। सूचक E का निचला सिरा न्यूनतम तापमान को दर्शाता है। इस प्रकार न्यूनतम तापमान वाली भुजा पर ऊपर से नीचे की ओर तथा अधिकतम तापमान वाली भुजा पर नीचे से ऊपर की ओर तापमान पढ़े जाते हैं।

इस थर्मामीटर के साथ घोड़े के खुर के आकार का चुम्बक (Horse Shoe Magnet) होता है। इस चुम्बक की सहायता से इस्पात के सूचक पारे के तल तक लाए जाते हैं जिससे अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान का पता लगाने में सहायता मिलती है।

आर्द्र एवं शुष्क बल्ब थर्मामीटर-इसमें एक ही आकार के दो थर्मामीटर T1 तथा T2 होते हैं जिन्हें लकड़ी के एक फ्रेम पर लगाया जाता है। इनमें T1 शुष्क थर्मामीटर है जबकि T2 आर्द्र थर्मामीटर है। T2 के बल्ब को मलमल के कपड़े से ढक दिया जाता है। इस कपड़े के निचले सिरे को नीचे रखी जल से भरी शीशी में डाल दिया जाता है (चित्र 9.2)। जब इस यन्त्र के पास वायु चलती है तो शीशी में पड़े जल का वाष्पीकरण होता है जिससे इस थर्मामीटर का तापमान कम हो जाता है।

परन्तु T1 का तापमान वायु के सामान्य तापमान को ही दर्शाता है। इस प्रकार शुष्क एवं आर्द्र थर्मामीटर द्वारा दर्शाए गए ताप में अन्तर आ जाता है। यह अन्तर वायुमण्डल में उपस्थित आर्द्रता का सूचक है। इन दोनों के तापमान में अन्तर जितना अधिक होगा, वायुमण्डल में आर्द्रता उतनी ही कम होगी। इसके विपरीत यदि दोनों थर्मामीटरों के तापमान में अन्तर कम होगा तो वायु में आर्द्रता अधिक होगी। आर्द्रता को शुद्धता से मापने के लिए विशेष तौर पर तैयार की गई तालिका का प्रयोग करना पड़ता है।

2. वायुमण्डलीय दाब का मापना-वायुमण्डलीय दाब को मापने के लिए फोर्टिन का वायुदाबमापी तथा निर्द्रव वायुदाबमापी-प्रयोग किए जाते हैं।

फोर्टिन का वायुदाबमापी (Fortin’s Barometer)-यह साधारण पारद वायुदाबामापी का ही परिष्कृत रूप है। इस यन्त्र का आविष्कार फोर्टिन महोदय ने किया था इसलिए इसका नाम ‘फोर्टिन का वायुदाबमापी’ रखा गया है। यह लगभग एक मीटर लम्बी काँच पारद स्तम्भ की नली होती है जिसका ऊपरी सिरा बन्द तथा निचला सिरा खुला होता है। इस नली में (Mercury Column) रहता है। नली के नीचे की ओर पारे की एक हौज (Cistern) होती है जिसमें नली का खुशक हुआ निचला सिरा डूबा रहता है। इस हौज में चमड़े की एक थैली होती है जिसमें पारा होता है। इस थैली की तली लचीली (Flexible) होती है।

इसके नीचे एक समंजन पेच (Adjusting Screw) होता है जिसकी सहायता से लचीली थैली की तली को ऊपर-नीचे करके थैली में पारे की सतह को ऊपर-नीचे किया जा सकता है। थैली के पारे की सतह के थोड़ा ऊपर हाथी-दाँत का बना एक नुकीला सूचक (Ivory Index) लगा होता है। इस सूचक की नोक वायुदाबमापी पर बनी मापनी के शून्य मान लेने वाले बिन्दु को प्रकट करती है। वायुदाबमापी की काँच की नली का केवल थोड़ा-सा भाग ही दिखाई देता है, शेष भाग सुरक्षा के लिए पीतल की बनी एक नली में ढका रहता है।

नली के दिखाई देने वाले भाग पर वायुमण्डलीय दाब की मिलीबार में मापनी अंकित की जाती है। इस मापनी पर एक वर्नियर मापनी (Vernier Scale) लगी होती है। इसे वर्नियर पेंच की सहायता से ऊपर या नीचे किया जाता है। इस वर्नियर का सम्बन्ध काँच की नली के पीछे की ओर स्थित पीतल की एक प्लेट से होता है। इस प्लेट का निचला सिरा तथा वर्नियर मापनी का शून्य बिन्दु पर क्षैतिज रेखा में होते हैं। वर्नियर पेच घुमाने पर यह प्लेट तथा वर्नियर मापनी इकट्ठे ही खिसकते हैं।
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फोर्टिन के वायुदाबमापी पर एक साधारण थर्मामीटर लगा होता है जिससे वायुदाब के समय वायु का तापमान पढ़ा जा सके (देखें चित्र 9.3)।

वायुदाब पढ़ने से पहले दो काम करने होते हैं-(1) समंजन पेंच की सहायता से हौज से पारे को इतना ऊँचा कीजिए कि पारे की ऊपरी सतह हाथी-दाँत के सूचक की नोक को स्पर्श करने लगे। (2) नली के दिखाई देने वाले भाग में, जहाँ मापनी बनी है, पारद स्तम्भ की ऊपरी सतह देखिए। अब वर्नियर पेंच की सहायता से वर्नियर को इतना खिसकाइए कि वर्नियर का शून्य पारद स्तम्भ की ऊपरी सतह तथा वर्नियर से जुड़ी प्लेट का निचला सिरा, तीनों एक क्षैतिज रेखा में दिखाई दें। इसके बाद वर्नियर मापनी की सहायता से वायुदाब पढ़ लीजिए।

निर्द्रव वायुदाबमापी (Aneroid Barometer)-जैसा कि इसके नाम से ही विदित है, इसमें कोई द्रव प्रयोग नहीं होता। यह एक गोल घड़ी के समान होता है जिसके डायल पर वायुदाब का मान लिखा हुआ होता है। यन्त्र के भीतर एक धात्विक बॉक्स होता है जिसमें से हवा निकालकर आंशिक शून्य पैदा किया जाता है। इसकी सतह को लहरदार बनाया जाता है ताकि वायुदाब में थोड़ा-सा परिवर्तन होने पर भी इस पर अधिक प्रभाव पड़ सके।

वायुदाब में वृद्धि होने पर यह लहरदार ढक्कन नीचे की ओर दबता है और दाब में कमी होने पर ऊपर को उठता है। इसका प्रभाव स्प्रिंग (Spring) पर पड़ता है जिसकी प्रगति को उत्तोलकों (Levers की सहायता से बढ़ाया जाता है। ये उत्तोलक एक छोटी-सी जंजीर (Chain) से जुड़े हुए होते हैं जो डायल के केन्द्र पर लगी हुई सुई (Moovable Needle) को घुमाते हैं। इस सुई को पढ़कर वायुमण्डलीय दबाव का पता लगाया जाता है।

डायल पर एक अन्य सुई भी होती है जिसे यन्त्र के ऊपर लगे धात्विक स्टैंड द्वारा घुमाया जा सकता है। इस सुई का प्रयोग किसी निश्चित अवधि में दाब में हुए परिवर्तन का पता लगाने के लिए किया जाता है। यन्त्र के डायल पर आँधी (Stormy), वर्षा (Rainy), परिवर्तन (Change), सुहाना (Fair) तथा बहुत शुष्क (Very Dry) मौसम सम्बन्धी दशाओं के नाम अंकित होते हैं जिससे मौसम सम्बन्धी पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिलती है। निर्द्रव बैरोमीटर की रचना (चित्र 9.4) में दर्शाई गई है।
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3. वर्षा का मापना- वर्षा को वर्षामापी यन्त्र (Rain Gauge) द्वारा मापा जाता है। वर्षामापी यन्त्र धातु का एक खोखला बेलनाकार (सिलेण्डर) बर्तन होता है जिसमें एक कीप अच्छी प्रकार से बिठाई गई बाह्यपात्र होती है और उसमें से होकर वर्षा का जल नीचे बर्तन में पहुँचता है। कीप के मुँह की परिधि, ग्राह्य बर्तन के आधार की परिधि के बराबर होती है। सिलेण्डर का मुँह कीप के मुँह से 12.5 सेंटीमीटर ऊपर रहता है, जिससे गिरती हुई वर्षा के जल का कोई भाग निकलकर बाहर न भीतरी सिलेंडर चला जाए। इस प्रकार से अपने-आप ही सारा वर्षा का जल जो भूमि तल कीप के मुँह की सतह पर गिरता है, ग्राह्य बर्तन में चला जाता है
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इस प्रकार से एकत्रित जल एक मापक जार द्वारा मापा जाता है जिस पर मिलीमीटर या इन्चों में निशान लगे होते हैं। मापक जार के आधार का क्षेत्रफल तथा कीप के क्षेत्रफल में एक विशेष सम्बन्ध होता है। भारत में हम लोग वर्षा को मिलीमीटर या सेंटीमीटर की इकाई में नापते हैं। दिन में किसी निश्चित समय पर 24 घण्टे में एक बार पाठ्यांक लिया जाता है। सामान्यतः यह समय 8 बजे प्रातःकाल होता है और यह पिछले 24 घण्टे या पूरे दिन की सारी वर्षा की मात्रा को प्रकट करता है।

यथार्थ पाठ्यांकों के लिए यन्त्र को खुले और समतल क्षेत्र में भूमि से 30 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर रखना चाहिए, जिससे उसमें पानी छिटककर या बहकर न जा सके। वर्षामापी में वर्षा के जल को निर्विघ्न गिरने के लिए उसे किसी वृक्ष, मकान या किसी ऊँची वस्तु से दूर रखना चाहिए। साथ ही उसे जानवरों से भी सुरक्षित रखना चाहिए क्योंकि उनसे वर्षामापी के उलट जाने का भय हो सकता है।

4. वायु की दिशा तथा गति-वायु की दिशा तथा गति को क्रमशः वायुदिक्-सूचक तथा पवन-वेगमापी से मापा जाता है।
1. वायुदिक् (वातदिक्)-सूचक-यह एक लम्बा तीर-सा होता है जिसके पीछे धातु की चादर का टुकड़ा लगा हुआ होता है। इसे एक लोहे के डण्डे पर बाल बियरिंग की सहायता से इस प्रकार लगाया जाता है कि थोड़ी-सी हवा चलने पर भी यह घूम जाता है। तीर के नीचे चार मुख्य दिशाएँ, North (N), South (S), East (E), West (W) लगा दी जाती हैं। तीर का मुँह पवन के चलने की दिशा का सूचक होता है (चित्र 9.6)।
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2. पवन-वेगमापी-पवन-वेगमापी एक प्रकार का यन्त्र होता है जो पवन की गति को मापने के लिए प्रयुक्त होता है। इस पवन-वेगमापी में तीन या कभी-कभी चार अर्द्धगोलाकार प्यालियाँ लगी रहती हैं जो क्षैतिज भुजाओं द्वारा एक ऊर्ध्वाधर त’ से सम्बन्धित होती हैं (चित्र 9.7)। –
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जब पवन चलती है तो प्याले घूमते हैं और इससे क्षैतिज भुजाएँ भी घूमने लगती हैं। इन भुजाओं के घूमने से ऊर्ध्वाधर त’ भी घूमने लगता है। पवन जितने ही अधिक वेग से चलती है, उतनी ही अधिक वेग से तर्कु घूमता है। तर्कु के आधार पर एक यन्त्र लगा होता है जो निश्चित अवधि में तर्कु के चक्करों अर्थात् पवन की गति को अंकित करता रहता है। कभी-कभी पवन-वेगमापी बिजली के तारों द्वारा मौसम केन्द्र के अन्दर एक डायल से लगा दिया जाता है। यह डायल हवा की चाल को प्रति घण्टा किलोमीटर या मील या ‘नाट’ में प्रदर्शित करता है।

वात यन्त्रों को ऐसे खुले स्थान पर रखना चाहिए जहाँ स्थानीय बाधाएँ न हों। इन्हें बहुत दूर तथा आस-पास की ऊँची वस्तुओं से अधिक ऊँचाई पर रखना चाहिए। सामान्यतया वात यन्त्रों को ऊँचे टावर पर खुली जगह पर लगाया जाता है।

प्रश्न 3.
मौसम मानचित्र में प्रयोग होने वाले मौसम-चिह्नों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मौसम मानचित्र पर वायु की गति, मेघाच्छादन, वर्षा, समुद्र की दशा तथा अन्य कई प्रकार के मौसम तत्त्वों को विभिन्न चिहनों की सहायता से दर्शाया जाता है।
1. वायु की गति तथा दिशा-वायु की गति तथा उसकी दिशा एक छोटे से वृत्त के किनारे पर खींचे गए तीर द्वारा दर्शाई जाती है। तीर पवनों की दिशा से वृत्त की ओर खींचा जाता है। तीर पर छोटी रेखाएँ या त्रिभुजाएँ होती हैं जो वायु की गति को प्रस्तुत करती हैं (चित्र 9.8)।
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2. मेघाच्छादन-आकाश पर मेघों के आवरण को एक छोटे-से वृत्त द्वारा दर्शाया जाता है। बिल्कुल स्वच्छ आकाश को खाली वृत्त द्वारा तथा पूर्ण मेघाच्छादन को पूर्णतः काले वृत्त द्वारा दर्शाया जाता है। चित्र 9.9 में आकाश में मेघाच्छादन की विभिन्न दशाओं को दर्शाया गया है।

3. अन्य चिह्न-धुन्ध कोहरा, झंझावात, हिमपात, बौछार, ओला आदि मौसमी तत्त्वों विभिन्न चिह्नों द्वारा दर्शाया जाता है। जिनकी सूची चित्र 9.9 में दी गई है।
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4. समुद्र की दशाएँ समुद्र की दशाओं को संकेताक्षरों द्वारा दर्शाया जाता है। इनका विवरण इस प्रकार है-

संकेताक्षरपूर्ण शब्दअर्थ
WWave directionतरंग की दिशा
CmCalmशान्त सागर
SmSmoothअत्यल्प तरंगित सागर
SISlightअल्प तरंगित सागर
ModModerateसामान्य तरंगित सागर
RoRoughप्रक्षुब्ध सागर
V.RoVery Roughअति प्रक्षुब्ध सागर
HiHighउच्च तरंगित सागर
V.HiVery Highअत्युच्च तरंगित सागर
PhPhenomenalप्रलयकारी सागर

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट

प्रश्न 4.
भारतीय दैनिक मौसम मानचित्र के वर्णन के शीर्षकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दैनिक मौसम मानचित्र का वर्णन करने की विधि के अनुसार इन मानचित्रों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जाता है-
1. प्रारम्भिक सूचना (Preliminary Introduction)

2. वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure)

  • उच्च दाब के क्षेत्र (Location of bar high)
  • निम्न दाब के क्षेत्र (Location of bar low)
  • समदाब रेखाओं की प्रवृत्ति (Trend of isobars)
  • दाब प्रवणता (Pressure gradient)

3. पवनें (Winds)

  • पवनों की दिशा (Direction of winds)
  • पवनों का वेग (Velocity of winds)

4. आकाश की दशा (Sky condition)

  • मेघावरण (Cloud cover) की मात्रा
  • मेघों की प्रकृति (Nature of the clouds)
  • अन्य वायुमण्डलीय परिघटनाएँ (Other atmospheric Phenomena)

5. वृष्टि (Precipitation)

  • वर्षण का सामान्य वितरण (General distribution of rainfall),
  • भारी वर्षण के क्षेत्र (Areas of heavy precipitation)

6. समुद्र की दशा (Sea condition)

7. न्यूनतम तापमान का प्रसामान्य से विचरण
(Departure of minimum temperature from normal)

8. वायुदाब का प्रसामान्य से विचलन
(Departure of Pressure from normal)

सायः 5.30 बजे (17.30 hours) के मौसम मानचित्र में न्यूनतम तापमान के प्रसामान्य से विचलन के स्थान पर अधिकतम तापमान का प्रसामान्य से विचलन (Departure of maximum temperature from normal) दिखाया जाता है। इसके साथ ही समुद्र-तल से 1.5 कि०मी० की ऊँचाई पर पवनों (Winds at 1.5 km above mean sea level) को भी दिखाया जाता है।

प्रश्न 5.
दिए गए भारतीय मौसम मानचित्र का विस्तृत अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
1. प्रारम्भिक सूचना (Preliminary Introduction)-दिया गया मौसम मानचित्र 15 अगस्त, 1969 को भारतीय समय के अनुसार प्रातः 8.30 बजे की मौसमी दशाओं को प्रदर्शित करता है (चित्र 9.10)।

2. वायुमण्डलीय दाब-
(1) सामान्य (General) सामान्य रूप से वायुदाब दक्षिण से उत्तर की ओर कम होता है। दक्षिण में अधिकतम वायुदाब 1012 मिलीबार तथा उत्तर में न्यूनतम वायुदाब 994 मिलीबार है।

(2) उच्च वायुमण्डलीय दाब-क्षेत्र अरब सागर में लक्षद्वीप के दक्षिण-पश्चिम में उच्च वायुदाब की समभार रेखा स्थित है जिसका मान 1012 मिलीबार है। उत्तर में एक अन्य 1006 मिलीबार का उच्च भार क्षेत्र भूटान के निकट स्थित है।

(3) निम्न वायुमण्डलीय दाब-क्षेत्र भारत के मानचित्र पर निम्न वायुमण्डलीय दाब-क्षेत्र उपस्थित हैं
(क) एक निम्न भार क्षेत्र भारतीय सीमा के निकट पाकिस्तान के उत्तरी-पूर्वी सीमान्त पर स्थित है। यह 994 मिलीबार की समभार रेखा द्वारा घिरा हुआ है।

(ख) दूसरा निम्न भार क्षेत्र उत्तरी-पूर्वी राज्यों पर स्थित है जो 1004 मिलीबार की समभार रेखा द्वारा घिरा हुआ है।

(ग) तीसरा महत्त्वपूर्ण निम्न वायुदाब क्षेत्र उड़ीसा के तट पर स्थित है। यह 996 मिलीबार की समभार रेखा द्वारा घिरा हुआ है। यह रेखा लगभग वृत्ताकार है और यहाँ पर विकसित हुए चक्रवात का केन्द्रीय भाग है।

(4) समभार रेखाओं की प्रवृत्ति-सामान्यतः समभार रेखाएँ पश्चिम से पूर्व दिशा में जाती हैं। परन्तु कई स्थानों पर स्थानीय रूप से इस प्रवृत्ति में विकार आ रहा है। उदाहरणतः ओडिशा के तट पर चक्रवात विकसित होने के कारण समभार रेखाएँ – वृत्ताकार हैं। दक्षिणी पठार पर स्कान (Wedge) बनता है। उत्तर-पश्चिमी भाग में समभार रेखाएँ दक्षिण-पश्चिम से उत्तर:पूर्व की ओर
जाती हैं।

(5) दाब प्रवणता-बंगाल की खाड़ी तथा निकटवर्ती ओडिशा एवं पश्चिमी बंगाल में समभार रेखाएँ एक-दूसरे के बहुत निकट हैं जिस कारण यहाँ पर दाब प्रवणता अधिक है। देश के अन्य भागों में समभार रेखाएँ दूर-दूर हैं जिस कारण वहाँ पर दाब प्रवणता कम है।

3. पवनें पवनों की दिशा तथा उनका वेग उच्च व निम्न वायुदाब की स्थिति तथा दाब की प्रवणता पर निर्भर करते हैं।
(1) पवनों की दिशा लगभग सारे प्रायद्वीपीय भारत में पवनें पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं। बंगाल की खाड़ी के चक्रवातीय क्षेत्र में पवनें वामावर्त हैं। उत्तरी भारत के अधिकांश भागों में पवनें पूर्व से पश्चिम दिशा में चल रही हैं।

(2) पवनों का वेग पवनों का वेग दाब प्रवणता पर निर्भर करता है। अधिक दाब प्रवणता होने पर पवनों का वेग अधिक होता है जबकि कम दाब प्रवणता होने पर पवनों का वेग कम होता है। दक्षिणी भारत में उत्तरी भारत की अपेक्षा पवनों का वेग अधिक है। उत्तरी भारत में पवन वेग 1-10 नॉट है जबकि दक्षिणी भारत में 10-15 नॉट प्रति घण्टा है। पूर्वी तट पर चक्रवात उत्पन्न होने के कारण पवनों का वेग कई स्थानों पर 15-20 नॉट है।

4. आकाश की दशाएँ-(1) मेघावरण की मात्रा (Cloud cover)-वर्षा ऋतु के कारण देश के अधिकांश भाग मेघाच्छादित हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, गंगा का मैदान तथा पर्वतीय भाग पूर्ण रूप से मेघों से ढके हुए हैं। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु मेघारहित हैं।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट 9

(2) मेघों की प्रकृति देश में अधिकतर निम्न ऊँचाई (Low Clouds) वाले मेघ छाए हुए हैं। पूर्वी तट पर ऊँचे मेघ मिलते हैं।

(3) अन्य वायुमण्डलीय घटनाएँ कई स्थानों पर झंझा, ओला तथा तूफान की घटनाएँ दिखाई गई हैं।

5. वृष्टि-वर्षा ऋतु के कारण देश के सभी भागों में कुछ-न-कुछ वर्षा आवश्यक है। अधिक वर्षा के क्षेत्र पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश हैं जहाँ पिछले 24 घण्टों में 3 से 17 मिलीमीटर वर्षा अंकित की गई है, उड़ीसा तट पर चक्रवात के कारण कई स्थानों पर 3 से 8 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई। मध्य प्रदेश, बिहार, मेघालय में 2 से 6 मिलीमीटर वर्षा हुई। दक्षिणी पठार तथा राजस्थान वर्षारहित प्रदेश हैं।

6. समुद्र की दशा-पूर्वी तट पर तेज पवनों के कारण सागर की लहरें मन्द (Moderate) हैं। पश्चिमी तट पर सागरीय लहरें विनित (Smooth) हैं।

7. अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान का सामान्य से विचलन-राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा पूर्वी तट पर दिन का तापमान सामान्य से 4° अधिक है। शेष भागों में रात्रि का तापमान सामान्य से विचलन कम है।

8. वायुदाब का सामान्य से विचलन लगभग सारे देश में वायुदाब सामान्य से कम है। यह विचलन दक्षिण भारत में 4 से 8 मिलीबार तक है। अन्य भागों में वायुदाब सामान्य है।

मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट HBSE 11th Class Geography Notes

→ मौसम (Weather) : किसी स्थान तथा विशेष समय के मौसम संबंधी वायुमण्डलीय दिशाओं को ‘मौसम’ कहते हैं।

→ वायुदाब (Air Pressure) : अन्य पदार्थों की भाँति वायु में भी भार होता है जिस कारण वह भूतल पर दबाव डालती है। वायु के इस दबाव को ‘वायुदाब’ कहते हैं।

→ वास्तविक आर्द्रता (Absolute Humidity) : किसी निश्चित तापमान पर वायु में उपस्थित जलवाष्प की वास्तविक मात्रा को उस वायु की वास्तविक आर्द्रता कहा जाता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट

→ समदाब रेखाएँ (Isobars) : समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ होती हैं जो मानचित्र पर समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हुई खींची जाती हैं।

→ समताप रेखाएँ (Isotherms) : समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ।

→ समवर्षा रेखाएँ (Isotherms) : दिए गए समय में समान औसत वार्षिक वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ।

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Exercise 2.5

प्रश्न 1.
उपयुक्त सर्वसमिकाओं को प्रयोग करके निम्नलिखित गुणनफल ज्ञात कीजिए
(i) (x + 4) (x + 10)
(ii) (x + 8) (x – 10)
(iii) (3x + 4) (3x – 5)
(iv) (3 – 2x) (3 + 2x)
हल :
(i) (x + 4) (x + 10) = x2 + (4 + 10)x + 4 × 10
= x2 + 14x + 40 उत्तर
(ii) (x + 8 ) (x – 10) = x2 + (8 – 10)x + 8 × (-10)
= x2 – 2x – 80 उत्तर
(iii) (3x + 4) (3x – 5) = (3x)2 + (4 – 5) × 3x + 4 × (-5)
= 9x2 + (-1) × 3x – 20
= 9x2 – 3x – 20 उत्तर

(iv) (y2 + \(\frac {3}{2}\)) (y2 – \(\frac {3}{2}\))
= (y2)2 – (\(\frac {3}{2}\))2
= y4 – \(\frac {9}{4}\) उत्तर

(v) (3 – 2x) (3 + 2x) = (3)2 – (2x)2
= 9 – 4x2 उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5

प्रश्न 2.
सीधे गुणा किए बिना निम्नलिखित गुणनफलों के मान ज्ञात कीजिए [March, 2020]
(i) 103 × 107
(ii) 95 × 96
(iii) 104 × 96
हल :
(i) 103 × 107 = (100 + 3) (100 + 7)
= (100)2 + (3 + 7) × 100 + 3 × 7
= 10000 + 10 × 100 + 21
= 10000 + 1000 + 21 = 11021 उत्तर

(ii) 95 × 96 = (100 – 5)(100 – 4)
= (100)2 + (-5 – 4) × 100 + (-5)(-4)
= 10000 – 900 + 20
= 10020 – 900 = 9120 उत्तर

(iii) 104 × 96 = (100 + 4) (100 – 4)
= (100)2 – (4)2
= 10000 – 16 = 9984 उत्तर

प्रश्न 3.
उपयुक्त सर्वसमिकाएँ प्रयोग करके निम्नलिखित का गुणनखंडन कीजिए
(i) 9x2 + 6xy + y2
(ii) 4y2 – 4y + 1
(iii) x2 – \(\frac{y^2}{100}\) [B.S.E.H. 2019]
हल :
(i) 9x2 + 6xy + y2 = (3x)2 +2 (3x) (y) + (y)2
= (3x + y)2 = (3x + y) (3x + y) उत्तर
(ii) 4y2 – 4y + 1 = (2y)2 – 2 (2y)(1) + (1)2
= (2y – 1)2 = (2y – 1) (2y- 1) उत्तर
(iii) x2 – \(\frac{y^2}{100}\) = (x)2 – (\(\frac {y}{10}\))2
= (x – \(\frac {y}{10}\)) (x + \(\frac {y}{10}\)) उत्तर

प्रश्न 4.
उपयुक्त सर्वसमिकाओं का प्रयोग करके निम्नलिखित में से प्रत्येक का प्रसार कीजिए
(i) (x + 2y + 4z)2
(ii) (2x – y + z)2
(iii) (-2x + 3y + 2z)2
(iv) (3a – 7b – c)2
(v) (-2x + 5y – 3z)2
(vi) [\(\frac {1}{4}\)a – \(\frac {1}{2}\)b + 1]2
हल :
(i) (x + 2y + 4z)2 = x2 + (2y)2 + (4z)2 + 2(x)(2y) + 2(2y)(4z) + 2 (4z)(x)
= x2 + 4y2 + 16z2 + 4xy + 16yz + 8zx उत्तर

(ii) (2x – y + z)2 = [2x + (-y) + z]2
= (2x)2 + (-y)2 + z2 + 2(2x)(-y) + 2(-y)(z) + 2(z)(2x)
= 4x2 + y2 + z2 – 4xy – 2yz + 4zx उत्तर

(iii) (-2x + 3y + 2z) = [(-2x) + 3y + 2z2]
= (-2x)2 + (3y)2 + (2z)2 + 2(-2x)(3y) + 2(3y)(2z) + 2(2z)(-2x)
= 4x2 + 9y2 + 4z2 – 12xy + 12yz – 8zx उत्तर

(iv) (3a – 7b – c)2 = [3a + (-7b) + (-c)]2 = (3a)2 + (-7b)2 + (-c)2 + 2(3a)(-7b) + 2(-7b)(-c) + 2 (-c)(3a)
= 9a2 + 49b2 + c2 – 42ab + 14bc – 6ac उत्तर

(v) (-2x + 5y -3z)2 = [(-2x) + 5y + (-3z)]2 = (-2x)2 + (5y)2 + (-3z)2 + 2(-2x)
= 4x2 + 25y2 + 9z2 – 20xy – 30yz + 12zx उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5 - 1

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5

प्रश्न 5.
गुणनखंडन कीजिए –
(i) 4x2 + 9y2 + 16z2 + 12xy – 24yz – 16xz
(ii) 2x2 + y2 + 8z2 – 2\(\sqrt{2}\)xy + 4\(\sqrt{2}\)yz – 8xz
हल:
(i) 4x2 + 9y2 + 16z2 + 12xy – 24yz – 16xz = (2x)2 + (3y)2 + (-4z)2 + 2(-4z)(2x)
= (2x + 3y – 4z)2
= (2x + 3y – 4z) (2x + 3y – 4z) उत्तर

(ii) 2x2 + y2 + 8z2 – 2\(\sqrt{2}\)xy + 4\(\sqrt{2}\)yz – 8xz = (-\(\sqrt{2}\)x)2 + (y)2 + (2\(\sqrt{2}\)z)2 + 2(\(\sqrt{2}\)z) (-\(\sqrt{2}\)x)
= (-\(\sqrt{2}\)x + y + 2\(\sqrt{2}\)z)\(\sqrt{2}\)
= (-\(\sqrt{2}\)x + y + 2\(\sqrt{2}\)z) (-\(\sqrt{2}\)x + y + 2\(\sqrt{2}\)z) उत्तर

प्रश्न 6.
निम्नलिखित घनों को प्रसारित रूप में लिखिए
(i) (2x + 1)3
(ii) (2a – 3b)3
(iii) [\(\frac {3}{2}\)x + 1]3
(iv) [x – \(\frac {2}{3}\)y]3 [B.S.E.H. March, 2018]
हल :
(i) (2x + 1)3 = (2x)3 + (1)3 + 3 × 2x × 1 (2x + 1)
[∵ (a + b)3 = a3 + b3 + 3ab(a + b)]
= 8x3 + 1 + 6x (2x + 1)
= 8x3 + 1 + 12x2 + 6x
= 8x3 + 12x2 + 6x + 1 उत्तर

(ii) (2a – 3b)3 = (2a)3 – (3b)3 – 3 (2a) (3b)(2a – 3b)
[∵ (a – b)3 = a3 – b3 – 3ab(a – b)]
= 8a3 – 27b3 – 18ab (2a – 3b)
= 8a3 – 27b3 – 36a2b + 54ab2 उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5 - 2

प्रश्न 7.
उपयुक्त सर्वसमिकाएँ प्रयोग करके निम्नलिखित के मान ज्ञात कीजिए
(i) (99)3 (ii) (102)3 (iii) (998)3
हल :
(i) (99)3 = (100 – 1)3
= (100)3 – (1)3 – 3 × 100 × 1 (100 – 1)
= 1000000 – 1 – 30000 + 300
= 1000300 – 30001 = 970299 उत्तर

(ii) (102)3 = (100 + 2)3
= (100)3 + (2)3 + 3 × 100 × 2(100 + 2)
= 1000000 + 8 + 600 (100 + 2)
= 1000000 + 8 + 60000 + 1200 = 1061208 उत्तर

(iii) (998)3 = (1000 – 2)3
= (1000)3 – (2)3 – 3 × 1000 × 2(1000 – 2)
= 1000000000 – 8 – 6000 × (1000 – 2)
= 1000000000 – 8 – 6000000 + 12000
= 1000012000 – 6000008
= 994011992 उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से प्रत्येक का गुणनखंडन कीजिए
(i) 8a3 + b3 + 12a2b + 6ab2
(ii) 8a3 – b3 – 12a2b + 6ab2
(iii) 27 – 125a3 – 135a + 225a2
(iv) 64a3 – 27b3 – 144a2b + 108ab2
(v) 27p3 – \(\frac{1}{216}-\frac{9}{2}\)p2 + \(\frac {1}{4}\)p [March 2020]
हल :
(i) 8a3 + b3 + 12a2b + 6ab2
= (2a)3 + (b)3 + 3 (2a) (b) (2a + b)
= (2a + b)3
= (2a + b)(2a + b)(2a + b) उत्तर

(ii) 8a3 – b3 – 12a2b + 6ab2
= (2a)3 – (b)3 – 3 (2a)(b)(2a – b)
= (2a – b)3
= (2a – b)(2a – b)(2a – b) उत्तर

(iii) 27 – 125a3 – 135a + 225a2
= (3)3 – (5a)3 – 3(3)(5a) (3 – 5a)
= (3 – 5a)3 = (3 – 5a) (3 – 5a) (3 – 5a) उत्तर

(iv) 64a3 – 27b3 – 144a2b + 108aba2
= (4a)3 – (3b)3 – 3 (4a) (3b) (4a – 3b)
= (4a – 3b)3
= (4a – 3b) (4a – 3b) (4a – 3b) उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5 - 3

प्रश्न 9.
सत्यापित कीजिए
(i) x3 + y3 = (x + y) (x2 – xy + y2)
(ii) x3 – y3 = (x – y) (x2 + xy + y2)
हल:
(i) R.H.S. = (x + y) (x2 – xy + y2)
= (x) (x2 – xy + y2) + y (x2 – xy + y2)
= x3 – x2y + xy2 + x2y – xy2 + y3
= x3 + y3
= L.H.S.
अतः सत्यापित हुआ।

(ii) R.H.S. = (x – y) (x2 + xy + y2)
= x (x2 + xy + y2) – y (x2 + xy + y2)
= x3 + x2y + xy2 – x2y – xy2 – y3
= x3 – y3
= L.H.S.
अतः सत्यापित हुआ।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से प्रत्येक का गुणनखंडन कीजिए
(i) 27y3 + 125z3 [B.S.E.H. 2019]
(ii) 64m3 – 343n3
हल :
(i) 27y3 + 125z3 = (3y)3 + (5z)3
= (3y + 5z) [(3y)2 – 3y × 5z + (5z)2]
= (3y + 5z) [9y2 – 15yz + 25z2] उत्तर

(ii) 64m3 – 343n3 = (4m)3 – (7n)3
= (4m – 7n) [(4m)2 + 4m × 7n + (7n)2]
= (4m – 7n) [16m2 + 28mn + 49n2] उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5

प्रश्न 11.
गुणनखंडन कीजिए
27x3 + y3 + z3 – 9xyz [B.S.E.H. March, 2017, 2018]
हल :
हम जानते हैं कि a3 + b3 + c3 – 3abc = (a + b + c)(a2 + b2 + c2 – ab – bc – ca)
अब 27x3 + y3 +z3 – 9xyz
= (3x)3 + (y)3 + (z)3 -3 (3x) (y) (z)
= (3x + y + z) [(3x)2 + (y)2 + (z)2 – (3x)(y) – (y)(z) – (z)(3x)]
= (3x + y + z) (9x2 + y2 + z2 – 3xy – yz – 3zx) उत्तर

प्रश्न 12.
सत्यापित कीजिए
x3 + y3 + z3 – 3xyz = \(\frac {1}{2}\)(x + y + z) [(x – y)2 + (y – z)2 + (z – x)2]
हल :
यहाँ पर (x – y)2 + (y – z)2 + (z – x)2 = (x2 + y2 – 2xy) + (y2 + z2 – 2yz) + (z2 + x2 – 2zx)
= 2x2 + 2y2 + 2z2 – 2xy – 2yz – 2zx
= 2 (x2 + y2 + z2 – xy – yz – zx)
दोनों पक्षों को \(\frac {1}{2}\)(x + y + z) से गुणा करने पर,
\(\frac {1}{2}\)(x + y + z) [(x – y)2 + (y – z)2 + (z – x)2]
= \(\frac {1}{2}\)(x + y + z) × 2 (x2 + y2 + z2 – xy – yz – zx)
= (x + y + z) (x2 + y2 + z2 – xy – yz – zx) (i)
हम जानते हैं कि
x3 + y3 + z3 – 3xyz = (x + y + z) (x2 + y2 + z2 – xy – yz – zx) (ii)
समीकरण (i) व (ii) से
x3 + y3 + z3 – 3xyz = \(\frac {1}{2}\)(x + y + z) [(x – y)2 + (y – z)2 + (z – x)2] |इति सिद्धम]

प्रश्न 13.
यदि x + y + z = 0 हो, तो दिखाइए कि x3 + y3 + z3 = 3xyz है।
हल :
यहाँ पर
x + y + z = 0
⇒ x + y = – z
दोनों पक्षों को घन करने पर
(x + y)3 = (-z)3
या x3 + y3 + 3xy (x + y) = – z3
या x3 + y3 – 3xyz = – z3 [∵ x + y = – z]
या x3 + y3 + z3 = 3xyz [इति सिद्धम]

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5

प्रश्न 14.
वास्तव में पनों का परिकलन किए बिना निम्नलिखित में से प्रत्येक का मान ज्ञात कीजिए –
(i) (-12)3 + (7)3 + (5)3
(ii) (28)3 + (-15)3 + (-13)3 [B.S.E.H. March, 2020]
हल:
(i) माना x = – 12, y = 7 और z = 5
यहाँ पर
x + y + z = – 12 + 7 + 5 = 0
यदि x + y + z = 0 हो तो
x3 + y3 + z3 = 3xyz
अतः
(-12)3 + (7)3 + (5)3 = 3 × (-12) × 7 × 5 उत्तर
= – 1260 उत्तर

(ii) माना x = 28, y = – 15 और z = – 13
यहाँ पर
x + y + z = 28 – 15 – 13 = 0
यदि x + y + z = 0 हो तो
x3 + y3 + z3 = 3xyz
(28)3 + (-15)3 + (-13)3 = 3 × (28) × (-15) × (-13)
= 16380 उत्तर

प्रश्न 15.
नीचे दिए गए आयतों, जिनमें उनके क्षेत्रफल दिए गए हैं, में से प्रत्येक की लंबाई और चौड़ाई के लिए संभव व्यंजक दीजिए
(i) क्षेत्रफल : 25a2 – 35a +12
(ii) क्षेत्रफल : 35y2 + 13y – 12
हल :
(i) 25a2 – 35a + 12 = 25a2 – 20a – 15a + 12
= 5a (5a – 4) – 3 (5a – 4)
= (5a – 4) (5a – 3)
हम जानते हैं कि
आयत का क्षेत्रफल = लंबाई × चौड़ाई
⇒ 25a2 – 35a + 12 = (5a – 3) × (5a – 4)
अतः आयत की लंबाई 5a-3 तथा चौड़ाई 5a-4 उत्तर

(ii) 35y2 + 13y – 12 = 35y2 + 28y – 15y – 12
= 7y (5y + 4) – 3 (5y + 4)
= (5y + 4)(7y – 3)
हम जानते हैं कि
आयत का क्षेत्रफल = लंबाई × चौड़ाई
⇒ 35y2 + 13y – 12 = (7y – 3) × (5y + 4)
अतः आयत की लंबाई 7y – 3 तथा चौड़ाई 5y + 4 उत्तर

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.5

प्रश्न 16.
बनाभों (cuboids), जिनके आयतन नीचे दिए गए हैं, की विमाओं के लिए संभव व्यंजक क्या हैं ?
(i) आयतन : 3x2 – 12x
(ii) आयतन : 12ky2 + 8ky – 20k
हल :
(i) 3x2 – 12x = 3x(x – 4)
= 3 × x × (x – 4)
हम जानते हैं कि
घनाभ का आयतन = लंबाई × चौड़ाई × ऊँचाई
अतः दिए गए व्यंजक की लंबाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई क्रमशः 3, x तथा (x – 4) है। उत्तर

(ii) 12ky2 + 8ky – 20k = 4k [3y2 + 2y – 5]
= 4k [3y2 + 5y – 3y – 5]
= 4k [y(3y + 5) – 1(3y + 5)]
= 4k (3y + 5)(y – 1)
हम जानते हैं कि
घनाभ का आयतन = लंबाई × चौड़ाई × ऊँचाई
अतः दिए गए व्यंजक की लंबाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई क्रमशः 4k, (3y + 5) तया (y – 1) है। उत्तर

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class Sociology Solutions

HBSE 12th Class Sociology Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Sociology Part 1 Indian Society (भारतीय समाज भाग-1)

HBSE 12th Class Sociology Part 2 Social Change and Development in India (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास भाग-2)

HBSE 12th Class Sociology Solutions in English Medium

HBSE 12th Class Sociology Part 1 Indian Society

  • Chapter 1 Introducing Indian Society
  • Chapter 2 The Demographic Structure of the Indian Society
  • Chapter 3 Social Institutions: Continuity and Change
  • Chapter 4 The Market as a Social Institution
  • Chapter 5 Patterns of Social Inequality and Exclusion
  • Chapter 6 The Challenges of Cultural Diversity
  • Chapter 7 Suggestions for Project Work

HBSE 12th Class Sociology Part 2 Social Change and Development in India

  • Chapter 1 Structural Change
  • Chapter 2 Cultural Change
  • Chapter 3 The Story of Indian Democracy
  • Chapter 4 Change and Development in Rural Society
  • Chapter 5 Change and Development in Industrial Society
  • Chapter 6 Globalisation and Social Change
  • Chapter 7 Mass Media and Communications
  • Chapter 8 Social Movements

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन-सा कथन असत्य है?
(A) वर्ग का मुख्य आधार आर्थिक है
(B) वर्ग में स्थिति अर्जित की जाती है
(C) वर्ग परिवर्तन असंभव नहीं है
(D) उपर्युक्त सभी कथन असत्य है।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी कथन असत्य है।

प्रश्न 2.
पूँजीपति और सर्वहारा वर्ग विभाजन किसकी देन है?
(A) मैक्स वैबर
(B) इमाइल दुर्थीम
(C) कार्ल मार्क्स
(D) स्वामी दयानंद।
उत्तर:
कार्ल मार्क्स।

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सी विशेषता जनजाति की नहीं है?
(A) सामान्य नाम
(B) सामान्य क्षेत्र
(C) सामान्य बोली
(D) बहिर्विवाह।
उत्तर:
बहिर्विवाह।

प्रश्न 4.
कौन-सा कथन असत्य है?
(A) जाति में सामाजिक परिस्थिति अर्जित की जाती है
(B) वर्ग में सामाजिक स्थिति प्रदत्त होती है
(C) जनजाति एक अर्जित समूह है
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 5.
जाति को बनाए रखने में कौन-सी विशेषता सर्वाधिक अनिवार्य है?
(A) अंतर्विवाह वंशानुगत सदस्यता
(B) जातिगत व्यवसाय
(C) जातिगत विशेषधिकार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 6.
किस वेद में पुरुष सूक्त में जाति की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है?
(A) ऋग्वेद
(B) यजुर्वेद
(C) अथर्ववेद
(D) सामवेद।
उत्तर:
ऋग्वेद।

प्रश्न 7.
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम कब पास हुआ था?
(A) 1956
(B) 1954
(C) 1955
(D) 1957
उत्तर:
1955

प्रश्न 8.
भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है?
(A) संथाल
(B) मुंडा
(C) टोडा
(D) हो।
उत्तर:
मुंडा।

प्रश्न 9.
किस संस्था ने भारतीय समाज को बुरी तरह विघटित किया है?
(A) जाति व्यवस्था
(B) वर्ग व्यवस्था
(C) संयुक्त परिवार
(D) दहेज प्रथा।
उत्तर:
जाति व्यवस्था।

प्रश्न 10.
इनमें से कौन-सा वर्ग का आधार है?
(A) पैसा
(B) पेशा
(C) जन्म
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 11.
जाति व्यवस्था का एक प्रकार्य बताइए।
(A) सामाजिक स्थिति को निश्चित करना
(B) अपनी योग्यताओं व क्षमताओं से प्राप्त करना
(C) सामाजिक संबंध स्वतंत्र रूप से रखना
(D) व्यवस्था को इच्छानुसार चुनना।
उत्तर:
सामाजिक स्थिति को निश्चित करना।

प्रश्न 12.
नातेदारी संगठन व्यक्तियों के उस समूह को कहते हैं, जो परस्पर-
(A) रक्त संबंधी होते हैं
(B) वैवाहिक संबंधी होते हैं
(C) रक्त और वैवाहिक संबंधी होते हैं
(D) रक्त या वैवाहिक संबंधी होते हैं
उत्तर:
रक्त संबंधी होते हैं।

प्रश्न 13.
सभी सगोत्रीय व्यक्ति रक्त संबंधी होने के कारण
(A) बहिर्विवाही होते हैं
(B) अंतर्विवाही होते हैं
(C) एकविवाही होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी होते हैं।
उत्तर:
बहिर्विवाही होते हैं।

प्रश्न 14.
निम्न में से कौन-सा धर्म विधवा व तलाकशुदा स्त्री से विवाह को प्रोत्साहन देता है?
(A) ईसाई
(B) मुस्लिम
(C) हिंदू
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
ईसाई।

प्रश्न 15.
निम्न में से कौन-सा कार्य परिवार से संबंधित नहीं है?
(A) वैध यौन संबंध
(B) समाज स्वीकृत संतोनत्पत्ति
(C) नातेदारी समूह निर्माण
(D) औपचारिक शिक्षा देना।
उत्तर:
वैध यौन संबंध।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 16.
हिंदू विवाह के उद्देश्यों का सही क्रम क्या है?
(A) धर्म, प्रजनन, रीत
(B) प्रजनन, धर्म, रीत
(C) रीत, प्रजनन, धर्म
(D) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर:
धर्म, प्रजनन, रीत।

प्रश्न 17.
अपने ही समूह में विवाह को क्या कहते हैं?
(A) समूह विवाह
(B) एक विवाह
(C) अंतर्विवाह
(D) बहिर्विवाह।
उत्तर:
अंतर्विवाह।

प्रश्न 18.
परिवार के स्वरूप में परिवर्तन क्यों आ रहा है?
(A) नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण
(B) स्त्रियों के घर से बाहर निकलने के कारण
(C) स्त्रियों की शिक्षा बढ़ने के कारण
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 19.
बच्चे का समाजीकरण सबसे पहले कहाँ शुरू होता है?
(A) परिवार में
(B) स्कूल में
(C) पड़ोस में
(D) खेल समूह में।
उत्तर:
परिवार में।

प्रश्न 20.
हिंदू विवाह को क्या समझा जाता है?
(A) समझौता
(B) धार्मिक संस्कार
(C) मित्रता
(D) सहयोग की प्रक्रिया।
उत्तर:
धार्मिक संस्कार।

प्रश्न 21.
हिंदू विवाह अधिनियम कब लागू हुआ?
(A) 1950
(B) 1952
(C) 1955
(D) 1953
उत्तर:
1955

प्रश्न 22.
एक व्यक्ति के जीवन में परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण समूह है क्योंकि-
(A) सदस्यों का एक-दूसरे के प्रति निःस्वार्थ समर्पण होता है।
(B) सदस्य रक्त, विवाह तथा दत्तक ग्रहण द्वारा संबंधित होते हैं।
(C) परिवार अपने सदस्यों को आर्थिक तथा सामाजिक समर्थन प्रदान करता है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 23.
वह नातेदारी व्यवहार जिसमें मामा महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
(A) साहप्रसीवता
(B) परिहार
(C) मातुलेय
(D) परिहास संबंध।
उत्तर:
मातुलेय।

प्रश्न 24.
दहेज निषेध कानून प्रथम बार कब लागू हुआ?
(A) 1960
(B) 1959
(C) 1958
(D) 1961
उत्तर:
1961

प्रश्न 25.
परिवार का महत्त्वपूर्ण प्रकार्य है
(A) भौतिक सुरक्षा प्रदान करना
(B) आर्थिक समर्थन प्रदान करना
(C) सामाजिक मानदंडों के अनुसार बच्चे का समाजीकरण करना।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 26.
एक गोत्र ऐसा नातेदारी (स्वजन) समूह होता है-
(A) जिसके सदस्य अपने आपको किसी ज्ञात पूर्वज के वंशज मानते हैं।
(B) जिसके सदस्यों का विश्वास होता है कि वे एक ही मिथकीय पूर्वज के वंशज हैं।
(C) जिसके उदाहरण हैं माता-पिता तथा बच्चे
(D) उपरोक्त कोई नहीं।
उत्तर:
जिसके सदस्य अपने आपको किसी ज्ञात पूर्वज के वंशज मानते हैं।

प्रश्न 27.
संयुक्त परिवार में-
(A) परिवार में मुखिया के आदेशों का पालन करना होता है।
(B) सदस्यों की प्रस्थिति उनकी आय या व्यावसायिक उपलब्धि पर आधारित नहीं होती।
(C) प्रत्येक सदस्य, दूसरे सदस्य के सुख-दुःख को बाँटता है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 28.
नातेदारी व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि-
(A) यह उसे स्थिति एवं पहचान प्रदान करती है
(B) यह मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करती है
(C) यह उसके व्यवहार तथा भूमिका को परिभाषित सुनिश्चित करती है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 29.
भारत में लिंग निर्धारण परीक्षणों को एक अधिनियम द्वारा कब निषिद्ध किया गया?
(A) 1990
(B) 1993
(C) 1994
(D) 1991
उत्तर:
1990

प्रश्न 30.
निम्न में से कौन-सा मानव समाज की मूल संस्थाओं में से नहीं है?
(A) नातेदारी
(B) आर्थिक
(C) राजनीति
(D) खेलकूद।
उत्तर:
खेलकूद।

प्रश्न 31.
निम्नलिखित में से कौन केंद्रक (एकांकी) परिवार का सदस्य नहीं है?
(A) माता
(B) पिता
(C) नाना
(D) भाई।
उत्तर:
नाना।

प्रश्न 32.
जनजाति निम्नोकत में से कौन-सा समूह है?
(A) भौगोलिक
(B) भाषाई
(C) संजातीय
(D) इनमें से सभी।
उत्तर:
इनमें से सभी।

प्रश्न 33.
पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे कैसे परिवार का निर्माण करते हैं?
(A) केंद्रक परिवार
(B) नगरीय परिवार
(C) संयुक्त परिवार
(D) ग्रामीण परिवार।
उत्तर:
केंद्रक परिवार।

प्रश्न 34.
विधवा पुनर्विवाह अधिनियम कब पास किया गया?
(A) 1852 में
(B) 1856 में
(C) 1860 में
(D) 1864 में
उत्तर:
1856 में।

प्रश्न 35.
निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता संयुक्त परिवार की नहीं है?
(A) बड़ा आकार
(B) छोटा आकार
(C) सामान्य रसोई
(D) मुखिया की भूमिका।
उत्तर:
छोटा आकार।

प्रश्न 36.
निम्न में से वर्ग एक क्या है?
(A) समाज
(B) समिति
(C) खुली व्यवस्था
(D) बंद व्यवस्था।
उत्तर:
खुली व्यवस्था।

प्रश्न 37.
मातृ-वंशीय परिवार प्रथा प्रचलित है :
(A) खासी परिवारों में
(B) भील
(C) संथाल
(D) ओरांव।
उत्तर:
खासी परिवारों में।

प्रश्न 38.
जब कोई वंश पूर्णतः वंशानुक्रम पर आधारित होता है तो कहलाता है:
(A) वर्ण
(B) वर्ग
(C) समूह
(D) जाति।
उत्तर:
जाति।

प्रश्न 39.
निम्न में से कम-से-कम किस आयु का बच्चा सामाजिक संबंधों के बारे में जानता है?
(A) 6 वर्ष का
(B) 10 वर्ष का
(C) 18 वर्ष का
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
……………… व्यवस्था ने हमारे समाज को बाँट दिया है।
उत्तर:
जाति व्यवस्था ने हमारे समाज को बाँट दिया है।

प्रश्न 2.
शब्द Caste किस भाषा के शब्द से निकला है?
उत्तर:
शब्द Caste पुर्तगाली भाषा के शब्द से निकला है।

प्रश्न 3.
जाति किस प्रकार का वर्ग है?
उत्तर:
बंद वर्ग।

प्रश्न 4.
जाति प्रथा में किसे अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी?
उत्तर:
जाति प्रथा में ब्राह्मणों को अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी।

प्रश्न 5.
अंतर्विवाह का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करवाना पड़ता है तो उसे अंतर्विवाह कहते हैं।

प्रश्न 6.
जाति में व्यक्ति का पेशा किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
जाति में व्यक्ति का पेशा जन्म पर आधारित होता है अर्थात् व्यक्ति को अपने परिवार का परंपरागत पेशा अपनाना पड़ता है।

प्रश्न 7.
जाति में आपसी संबंध किस पर आधारित होते हैं?
उत्तर:
जाति में आपसी संबंध उच्चता तथा निम्नता पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 8.
अगर जाति आवृत्त है तो वर्ग ………………. है।
उत्तर:
अगर जाति आवृत्त है तो वर्ग अनावृत्त है।

प्रश्न 9.
आवृत्त जाति व्यवस्था का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जो वर्ग बदला नहीं जा सकता उसे आवृत्त जाति व्यवस्था कहते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 10.
कच्चा भोजन तथा पक्का भोजन बनाने के लिए क्या प्रयोग होता है?
उत्तर:
कच्चा भोजन बनाने के लिए पानी तथा पक्का भोजन बनाने के लिए घी का प्रयोग होता है।

प्रश्न 11.
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम तथा नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम कब पास हुए थे?
उत्तर:
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 में तथा नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 में पास हुआ था।

प्रश्न 12.
हिंदू विवाह अधिनियम …………….. में पास हुआ था।
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में पास हुआ था।

प्रश्न 13.
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम, 1955 में किस बात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था?
उत्तर:
इस अधिनियम में किसी भी व्यक्ति को अस्पृश्य कहने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

प्रश्न 14.
सामाजिक स्तरीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
समाज को उच्च तथा निम्न वर्गों में विभाजित करने की प्रक्रिया को सामाजिक स्तरीकरण कहते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में लगभग कितनी जातियाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में लगभग 3000 जातियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 16.
जनजातियों के व्यवसाय किस पर आधारित होते हैं?
उत्तर:
जनजातियों के व्यवसाय जंगलों पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 17.
जाति किस प्रकार के विवाह की अनुमति देती है?
उत्तर:
जाति अंतर्विवाह की अनुमति देती है।

प्रश्न 18.
जनजातीय समाज का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
जनजातीय समाज छोटे आकार के होते हैं।

प्रश्न 19.
जो लोग आम जीवन से दूर जंगलों पहाड़ों में रहते हैं उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर:
जो लोग आम जीवन से दूर जंगलों पहाड़ों में रहते हैं उन्हें जनजाति अथवा कबीला कहते हैं।

प्रश्न 20.
प्राचीन भारतीय समाज कितने भागों में विभाजित था?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय समाज चार भागों में विभाजित था।

प्रश्न 21.
जाति व्यवस्था का क्या लाभ था?
उत्तर:
इसने हिंदू समाज का बचाव किया, समाज को स्थिरता प्रदान की तथा लोगों को एक निश्चित व्यवसाय प्रदान किया था।

प्रश्न 22.
परंपरागत तथा आदिम समाजों में वर्ग स्थिति में महत्त्वपूर्ण कारक कौन-सा था?
उत्तर:
परंपरागत तथा आदिम समाजों में वर्ग स्थिति में महत्त्वपूर्ण कारक धर्म था।

प्रश्न 23.
जनजातियों में किस चीज़ का अधिक महत्त्व होता है?
उत्तर:
जनजातियों में टोटम का अधिक महत्त्व होता है।

प्रश्न 24.
मजूमदार ने जनजातियों को कितने वर्गों में बांटा है?
उत्तर:
मजूमदार ने जनजातियों को तीन वर्गों में बांटा है।

प्रश्न 25.
नीलगिरी पहाड़ियों में कौन-सी जनजाति रहती है?
उत्तर:
नीलगिरी पहाड़ियों में टोडा जनजाति रहती है।

प्रश्न 26.
भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है?
उत्तर:
मुंडा भारत की सबसे बड़ी जनजाति है।

प्रश्न 27.
खासी जनजाति किस राज्य में पाई जाती है?
उत्तर:
असम में।

प्रश्न 28.
जनजातीय समाज आकार में कैसा होता है?
उत्तर:
जनजातीय समाज आकार में छोटा होता है।

प्रश्न 29.
जनजातीय जीवन किस पर आधारित होती है?
उत्तर:
जनजातीय जीवन बंधुता पर आधारित है।

प्रश्न 30.
भारत में आजकल कितनी जनजातियाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
आजकल भारत में 425 के लगभग जनजातियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 31.
जनजातीय भाषाएं किस से संबंधित हैं?
उत्तर:
जनजातियों की भाषाएं आस्ट्रिक, द्रविड़ियन तथा तिब्बती चीनी से संबंधित हैं।

प्रश्न 32.
सजातीय विवाह क्या होता है?
उत्तर:
अपनी ही जाति, उपजाति या समूह में विवाह करना सजातीय विवाह होता है।

प्रश्न 33.
घुमंतू जनजाति क्या होती है?
उत्तर:
यह शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने वाली जनजाति होती है जो कि घने जंगलों में घूमती है। यह अपना भोजन इकट्ठा करने के लिए घूमते रहते हैं। कुछ नागा जनजातियाँ इसी श्रेणी में आती हैं।

प्रश्न 34.
झूम खेती कौन करता है?
उत्तर:
झूम खेती जनजातीय समूह करते हैं।

प्रश्न 35.
झारखंड में कौन-सी जनजातियाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
मुंडा, उराव, संथाल इत्यादि जनजातियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 36.
अंग्रेज़ों ने जनजातियों को किस आधार पर अलग किया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने जनजातियों को धार्मिक तथा स्थानीय आधारों पर अलग किया।

प्रश्न 37.
नीलगिरी पहाड़ियों में कौन-सी जनजाति रहती है?
उत्तर:
टोडा जनजाति नीलगिरी पहाड़ियों में रहती है।

प्रश्न 38.
सबसे अधिक जनजातियाँ किस राज्य में पायी जाती हैं?
उत्तर:
सबसे अधिक जनजातियाँ मध्य प्रदेश में पायी जाती हैं।

प्रश्न 39.
एक विवाह का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब एक पुरुष एक स्त्री से विवाह करता है तो उसे एक विवाह कहते हैं।

प्रश्न 40.
बहुविवाह के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
बहुविवाह के तीन प्रकार हैं।

प्रश्न 41.
विविवाह में एक पुरुष की कितनी पत्नियां होती हैं?
उत्तर:
द्विविवाह में एक पुरुष की दो पत्नियां होती हैं।

प्रश्न 42.
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कितने पति हो सकते हैं?
उत्तर:
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कई पति हो सकते हैं।

प्रश्न 43.
पितृ सत्तात्मक परिवार में …………………. की शक्ति अधिक होती है।
उत्तर:
पितृ सत्तात्मक परिवार में पिता की शक्ति अधिक होती है।

प्रश्न 44.
मातृ सत्तात्मक परिवार में ………………. की सत्ता चलती है।
उत्तर:
मात सत्तात्मक परिवार में माता की सत्ता चलती है।

प्रश्न 45.
किस परिवार में वंश का नाम पिता के नाम से चलता है?
उत्तर:
पितृवंशी परिवार में वंश का नाम पिता के नाम से चलता है।

प्रश्न 46.
रक्त संबंधी परिवार में कौन-से संबंध पाए जाते हैं?
उत्तर:
रक्त संबंधी परिवार में रक्त संबंध पाए जाते हैं।

प्रश्न 47.
आगमन परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
जिस परिवार में व्यक्ति जन्म लेता तथा बड़ा होता है उसे आगमन परिवार कहते हैं।

प्रश्न 48.
कौन-से परिवार को संतान पैदा करने वाला परिवार कहा जाता है?
उत्तर:
जन्म परिवार को।

प्रश्न 49.
नातेदारी कितने प्रकारों में बांटी जा सकती है?
उत्तर:
नातेदारी तीन प्रकारों में बांटी जा सकती है।

प्रश्न 50.
रक्त संबंधी किस नातेदारी के भाग होते हैं?
उत्तर:
रक्त संबंधी सगोत्र नातेदारी के भाग होते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 51.
सिबलिंग (Sibling) का अर्थ बताएं।
उत्तर:
सगे भाई बहन को सिबलिंग कहा जाता है।

प्रश्न 52.
हाफ सिबलिंग (Half Sibling) का अर्थ बताएं।
उत्तर:
सौतेले भाई-बहन को हाफ सिबलिंग कहा जाता है।

प्रश्न 53.
एक रेखीय संबंधी कौन-से होते हैं?
उत्तर:
वंशक्रम की सीधी रेखा के साथ संबंधित रिश्तेदारों को एक रेखीय संबंधी कहते हैं।

प्रश्न 54.
वंश समूह का अर्थ बताएं।
उत्तर:
माता अथवा पिता के रक्त संबंधियों को मिलाकर वंश समूह बनता है।

प्रश्न 55.
गोत्र ………………… का विस्तृत रूप है।
उत्तर:
गोत्र वंश समूह का विस्तृत रूप है।

प्रश्न 56.
सदस्यों के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं?
उत्तर:
सदस्यों के आधार पर परिवार के तीन प्रकार केंद्रीय परिवार, संयुक्त परिवार तथा विस्तृत परिवार होते हैं।

प्रश्न 57.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं?
उत्तर:
विवाह के आधार पर परिवार के दो प्रकार-एक विवाही परिवार तथ होते हैं।

प्रश्न 58.
वंश के आधार पर कितने प्रकार के परिवार होते हैं?
उत्तर:
चार प्रकार के परिवार।

प्रश्न 59.
अंतर्विवाह क्या है?
उत्तर:
जब व्यक्ति केवल अपनी ही जाति में विवाह करवा सकता हो उसे अंतर्विवाह कहा जाता है।

प्रश्न 60.
बर्हिविवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर:
जब व्यक्ति को अपनी गोत्र के बाहर परंतु अपनी जाति के अंदर विवाह करवाना पड़े तो उसे बर्हिविवाह कहते हैं।

प्रश्न 61.
केंद्रीय परिवार का अर्थ बताएं।
अथवा
मूल परिवार क्या है?
उत्तर:
वह परिवार जिसमें पति पत्नी तथा उनके बिनब्याहे बच्चे रहते हों उसे केंद्रीय परिवार अथवा मूल परिवार कहा जाता है।

प्रश्न 62.
मुस्लिम तलाक कानून कंब पास हुआ था?
उत्तर:
मुस्लिम तलाक कानून, 1954 में पास हुआ था।

प्रश्न 63.
ईसाइयों का तलाक कानून …………………. में पास हुआ था।
उत्तर:
ईसाइयों का तलाक कानून 1869 में पास हुआ था।

प्रश्न 64.
हिंदू विधवा पुनर्विवाह कब पास हुआ था?
उत्तर:
सन् 1856 में।

प्रश्न 65.
किस समुदाय में मेहर की प्रथा प्रचलित है?
उत्तर:
मुस्लिम समुदाय में।

प्रश्न 66.
विशेष विवाह अधिनियम कब पास हुआ था?
उत्तर:
विशेष विवाह अधिनियम 1954 में पास हुआ था।

प्रश्न 67.
संयुक्त परिवार के विघटित होने का क्या कारण है?
उत्तर:
पश्चिमीकरण, औद्योगिकीकरण, आधुनिक शिक्षा, यातायात के साधनों का विकास इत्यादि के कारण संयुक्त परिवार विघटित हो रहे हैं।

प्रश्न 68.
संयुक्त परिवार में संपत्ति पर किसका अधिकार होता है?
उत्तर:
संयुक्त परिवार में संपत्ति पर परिवार के सभी सदस्यों का अधिकार होता है।

प्रश्न 69.
टेलर के अनुसार परिवार की प्रकृति क्या थी?
उत्तर:
टेलर के अनुसार आदिम परिवार मातृ प्रधान थे।

प्रश्न 70.
केंद्रीय परिवार की एक विशेषता बताएं।
उत्तर:
केंद्रीय परिवार में पति पत्नी तथा उनके बिन-ब्याहे बच्चे रहते हैं तथा परिवार के सभी सदस्यों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 71.
परिवार के आरंभिक कार्य क्या हैं?
उत्तर:
परिवार के आरंभिक कार्य हैं लैंगिक संबंधों की पूर्ति, बच्चे पैदा करना तथा बच्चों का पालन-पोषण करना।

प्रश्न 72.
गारो जनजाति में वंश परंपरा किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
गारो जनजाति में वंश परंपरा पितृस्थानीय प्रकार की होती है।

प्रश्न 73.
माता-पिता, भाई-बहन, माँ-बेटा, पिता-पुत्री का संबंध कैसा होता है?
उत्तर:
इन सब का संबंध रक्त का होता है।

प्रश्न 74.
मातृवंशी परिवार में संपत्ति किसको मिलती है?
उत्तर:
मातृवंशी परिवार में संपत्ति पुत्री को प्राप्त होती है।

प्रश्न 75.
पति-पत्नी, जमाई-ससुर, जीजा-साला इत्यादि किस प्रकार के संबंध हैं?
उत्तर:
विवाह संबंधी हैं।

प्रश्न 76.
नातेदारी की …………………. श्रेणियां हैं।
उत्तर:
नातेदारी की तीन श्रेणियां हैं।

प्रश्न 77.
नातेदारी की प्राथमिक श्रेणी में कितने प्रकार के संबंध होते हैं?
उत्तर:
नातेदारी की प्राथमिक श्रेणी में 8 प्रकार के संबंध होते हैं।

प्रश्न 78.
माता-पिता व बच्चों का संबंध नातेदारी की कौन-सी श्रेणी में आता है?
उत्तर:
प्राथमिक श्रेणी में।

प्रश्न 79.
जिसके सदस्य अपने आपको किसी जात पूर्वज के वंशज मानते हैं ऐसा समूह ……………. कहलाता
उत्तर:
गोत्र।

प्रश्न 80.
किसी एक ऐसी मुख्य जनजाति का नाम बताइये जिसकी भाषा द्रविड़ भाषा परिवार की हो।
उत्तर:
इरूला, कुर्ग।

प्रश्न 81.
जनजातीय लोग कौन-से इलाके में अधिक रहते हैं?
उत्तर:
जनजातीय लोग मुख्यता पहाड़ियों, वनों, ग्रामीण मैदान और नगरीय औद्योगिक इलाकों में रहते हैं।

प्रश्न 82.
एक ऐसा परिवार जिसमें नवविवाहिता दंपत्ति वर के मामा के निवास स्थान पर रहते हैं, कहलाता है …………….।
उत्तर:
मातृवंशीय परिवार।

प्रश्न 83.
वह परिवार जिसमें एक व्यक्ति का जन्म होता है ……………… कहलाता है।
उत्तर:
जनन परिवार।

प्रश्न 84.
एक व्यक्ति का जीजा किस श्रेणी की नातेदारी का होगा?
उत्तर:
द्वितीय श्रेणी की नातेदारी।

प्रश्न 85.
जनजाति में बंधुआ मज़दूरी का कारण क्या है?
उत्तर:
इसका कारण उनके ऊपर चढ़ा कर्ज है। वह कर्ज चुका नहीं पाते हैं जिस कारण उन्हें बंधुआ मजदूरी करनी पड़ती है।

प्रश्न 86.
जाति का अर्थ बताएँ।
अथवा
जाति क्या है?
अथवा
जाति का अर्थ लिखें।
उत्तर:
हिंदू सामाजिक प्रणाली में एक उलझी हुई एवं दिलचस्प संस्था है जिसका नाम ‘जाति व्यवस्था’ है। यह शब्द पुर्तगाली शब्द ‘Casta’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘जन्म’। इस प्रकार यह एक अंत-वैवाहिक जिसकी सदस्यता जन्म के ऊपर आधारित है। इसमें कार्य (धंधा) पैतृक एवं परंपरागत होता है।

प्रश्न 87.
जाति व्यवस्था की कोई तीन विशेषताएं बतायें।
अथवा
जाति की एक विशेषता लिखिए।
अथवा
जाति की कोई दो सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. जाति की सदस्यता जन्म के आधार द्वारा होती है।
  2. जाति में सामाजिक संबंधों पर प्रतिबंध होते थे।
  3. जाति में खाने-पीने के बारे में प्रतिबंध होते थे।

प्रश्न 88.
पुरातन भारतीय समाज कितने भागों में विभाजित था?
उत्तर:
चार भागों में-

  1. ब्राह्मण-जो शिक्षा देने का काम किया करते थे।
  2. क्षत्रिय-जो देश की रक्षा करते थे तथा राज्य चलाते थे।
  3. वैश्य-जो व्यापार या खेती करते थे।
  4. चौथा वर्ण-जो अन्य तीन वर्गों की सेवा किया करते थे।

प्रश्न 89.
संस्कृति में हस्तांतरण में जाति की क्या भूमिका है?
उत्तर:
प्रत्येक जाति की अपनी संस्कृति, रहन-सहन, खाने-पीने, काम करने के ढंग तथा कुछ खास गुर होते हैं। व्यक्ति जब बचपन से ही इन सब को देखता है तो धीरे-धीरे वह इन सब को सीख जाता है। इस तरह जाति संस्कृति के हस्तांतरण में विशेष भूमिका निभाती है।

प्रश्न 90.
जाति प्रथा दैवी शक्ति से भी मज़बूत कैसे हैं?
उत्तर:
सदियों से जाति प्रथा हमारे समाज के राजनीतिक तथा सामाजिक संगठन का आधार थी। हर किसी को जाति प्रथा के नियम मानने ही पड़ते थे। व्यक्ति भगवान का आदेश तो ठुकरा सकता था, परंतु अपनी जाति के आदेश उसे मानने ही पड़ते थे। इसलिए हम कह सकते हैं कि जाति प्रथा देवी शक्ति से भी ज्यादा मज़बूत थी।

प्रश्न 91.
जाति व्यवस्था के कोई तीन प्रभाव बताओ।
उत्तर:

  1. जाति व्यवस्था से समाज में श्रम विभाजन होता था।
  2. जाति व्यवस्था से सामाजिक संगठन बना रहता था।
  3. जाति व्यवस्था से राजनीतिक स्थिरता बनी रहती थी।
  4. जाति व्यवस्था बेरोज़गारी को कम करती थी।

प्रश्न 92.
जाति व्यवस्था के कोई तीन लाभ बताओ।
उत्तर:

  1. जाति से व्यवसाय निश्चित हो जाता था।
  2. जाति व्यवस्था समाज को स्थिरता प्रदान करती थी।
  3. जाति व्यवस्था में विवाह करने में परेशानी नहीं होती थी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 93.
जाति की दो परिभाषाएं दीजिए।
अथवा
जाति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:

  1. होकार्ट के अनुसार, “जाति तो केवल कुछ ऐसे परिवारों का इकठ्ठ होती है जिन्हें जन्म से ही धार्मिक संस्कारों के आधार पर अलग-अलग प्रकार के कार्य सौंपे जाते हैं।”
  2. कूले के अनुसार, “जब एक वर्ग पूर्णतया वंशानुक्रमण पर आधारित होता है, तो हम उसे जाति कहते हैं।”

प्रश्न 94.
जाति व्यवस्था के तीन दोष अथवा हानियां बताएं।
उत्तर:

  1. जाति व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह था कि इस व्यवस्था में निम्न जातियों का शोषण होता था।
  2. जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज में अस्पृश्यता की प्रथा को जन्म दिया था।
  3. जाति व्यवस्था व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक होती है।

प्रश्न 95.
जाति व्यवस्था में कौन-से परिवर्तन आ रहे हैं?
अथवा
जाति व्यवस्था में किसी एक परिवर्तन को बताइए।
अथवा
जाति प्रथा में कोई दो परिवर्तन बताएं।
उत्तर:
आधुनिक समय में शिक्षा के बढ़ने से, औद्योगिकीकरण के आने से, संचार के साधनों, नगरीकरण इत्यादि के कारण बहुत से परिवर्तन जाति व्यवस्था में आए हैं। जाति व्यवस्था के प्रत्येक प्रकार के प्रतिबंध समाप्त हो रहे हैं, अंतर्जातीय विवाह बढ़ रहे हैं, निम्न जातियों का प्रभुत्व बढ़ रहा है, प्रत्येक प्रकार का भेदभाव खत्म हो रहा है तथा व्यवसाय की विशेषता खत्म हो गई है।

प्रश्न 96.
अनुसूचित जनजाति किसे कहते हैं?
अथवा
जनजाति का अर्थ लिखें।
अथवा
जनजाति से आप क्या समझते हैं?
अथवा
अनुसूचित जनजाति के बारे में बताइए।
अथवा
जनजाति क्या होती है?
उत्तर:
जनजाति एक ऐसा समुदाय होता है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, वनों तथा जंगलों में रहता है। इन समुदायों की अपनी ही अलग संस्कृति, अलग भाषा, अलग धर्म तथा खाने-पीने और रहने के अलग ही ढंग होते हैं। ये न तो किसी के कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं तथा न ही किसी को अपने कार्यों में हस्तक्षेप करने की आज्ञा देते हैं। जिस जनजाति का नाम संविधान में दर्ज है उसे अनुसूचित जनजाति कहते हैं।

प्रश्न 97.
जनजाति की एक परिभाषा दीजिए।
अथवा
जनजाति को परिभाषित करें।
अथवा
जनजाति क्या है?
उत्तर:
भारत में इंपीरियल गजेटियर के अनुसार, “जनजाति परिवारों का ऐसा समूह है जिसका एक सामान्य नाम होता है, जो एक सामान्य भाषा का प्रयोग करता है, एक सामान्य प्रदेश में रहता है अथवा रहने का दावा करता है और प्रायः अंतर्विवाह करने वाला नहीं होता, चाहे शुरू में उसमें अंतर्विवाह करने की रीति रही हो।”

प्रश्न 98.
जनजाति की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  1. कबीला बहुत-से परिवारों का समूह होता है जिसमें साझा उत्पादन होता है तथा उस उत्पादन से वह अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं।
  2. कबीलों के लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं तथा एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह शेष समाज से अलग होते तथा रहते हैं।

प्रश्न 99.
टोटम का अर्थ बताएं।
उत्तर:
जनजातियों में टोटम के प्रति बहुत श्रद्धा होती है। यह टोटम एक काल्पनिक पूर्वज, पेड़, फल, पशु, पत्थर इत्यादि कुछ भी हो सकता है। जनजाति के सदस्य टोटम को पवित्र मानते हैं। उसे वह खाते या नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। फल व पौधे के रूप में टोटम में दैवी शक्ति है वे ऐसा विश्वास करते हैं।

प्रश्न 100.
परिवार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
परिवार उस समूह को कहते हैं जो यौन संबंधों पर आधारित है तथा जो इतना छोटा व स्थायी है कि उससे बच्चों की उत्पत्ति तथा पालन-पोषण हो सके। इस प्रकार परिवार पति-पत्नी व उनके बच्चों से मिलकर बनता है। पति-पत्नी के बीच किसी न किसी प्रकार के स्थायी संबंध परिवार की मुख्य विशेषता है।

प्रश्न 101.
संयुक्त परिवार को परिभाषित करें।
अथवा
ग्रामीण भारतीय परिवार की परिभाषा दीजिए।
अथवा
संयुक्त परिवार क्या है?
अथवा
संयुक्त परिवार का अर्थ बताएँ।
अथवा
संयुक्त परिवार किसे कहते हैं?
उत्तर:
ग्रामीण भारतीय परिवार मुख्यतः संयुक्त परिवार होते हैं। इसलिए इरावती कार्वे के अनुसार, “एक संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो सामान्यतया एक मकान में रहते हैं, जो एक ही रसोई में पका भोजन करते हैं, जो सामान्य संपत्ति के भागी होते हैं, जो सामान्य रूप से पूजा में भाग लेते हैं तथा जो किसी न किसी प्रकार से एक-दूसरे के रक्त संबंधी होते हैं।”

प्रश्न 102.
परिवार की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  1. परिवार पति-पत्नी तथा उनके बच्चों से मिलकर बनता है। इस प्रकार पति-पत्नी के बीच किसी न किसी प्रकार के स्थायी संबंध परिवार की मुख्य विशेषता है। प्रत्येक संस्कृति में यह संबंध स्थायी होते हैं।
  2. वैवाहिक संबंध के आधार पर परिवार का जन्म होता है। यह संबंध समाज द्वारा स्वीकृत होते हैं। इन संबंधों के आधार पर पति-पत्नी में लिंग संबंध से संतान उत्पन्न होती है जिन्हें मान्यता प्राप्त होती है।

प्रश्न 103.
परिवार के दो आर्थिक कार्य बताएं।
अथवा
परिवार का एक प्रकार्य लिखें।
उत्तर:

  1. परिवार में व्यक्ति की संपत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। परिवार अपने सदस्यों में समान रूप से सम्पत्ति विभाजित करता है।
  2. प्रत्येक आवश्यकता पूर्ण करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। परिवार की हरेक प्रकार की आवश्यकता, खाने-पीने, रहने तथा पहनने की व्यवस्था परिवार द्वारा ही पूर्ण की जाती है।

प्रश्न 104.
परिवार के दो सामाजिक कार्य बताएं।
उत्तर:

  1. बच्चों का समाजीकरण करने में परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। परिवार में रहकर ही बच्चा अच्छी आदतें सीखता है तथा समाज का एक अच्छा नागरिक बनता है।
  2. यदि हम सामाजिक नियंत्रण के साधनों की तरफ देखें तो परिवार की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है क्योंकि परिवार ही व्यक्ति को नियंत्रण में रहना सिखाता है।

प्रश्न 105.
संयुक्त परिवार को बनाकर रखने वाले दो कारक बताएं।
उत्तर:

  1. धर्म ने संयुक्त परिवार को बनाकर रखा है। धर्म भारतीय सामाजिक संगठन का मूल आधार है। अनेक प्रकार के धार्मिक कार्य संयुक्त रूप से करने होते हैं जिस कारण संयुक्त परिवार बना रह पाया है।
  2. हमारा देश कृषि प्रधान देश है। जहाँ पर कृषि करने के लिए बहुत से व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। इस कारण भी संयुक्त परिवार बने रहे।

प्रश्न 106.
परिवार के मनोरंजनात्मक कार्य के बारे में बताएँ।
उत्तर:
परिवार अपने सदस्यों को मनोरंजन के लिए भी सुविधाएं प्रदान करता है। रात के समय परिवार के सभी सदस्य इकट्ठे मिलकर खाना खाते हैं और अपने विचारों व मुश्किलों को एक-दूसरे के सामने प्रकट करते हैं। परिवार के वृद्ध सदस्य बच्चों को दिलचस्प कथा-कहानियां सुनाकर उनका मनोरंजन करते हैं। त्योहारों के समय या किसी अन्य जश्न (खुशी) के समय परिवार के सारे सदस्य नाचते व गाते हैं।

प्रश्न 107.
केंद्रीय परिवार क्या है?
अथवा
एकाकी (मूल) परिवार किसे कहते हैं?
अथवा
केंद्रक परिवार को पारिभाषित करें।
उत्तर:
केंद्रीय परिवार वह परिवार है जिसमें पति-पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। विवाह के बाद बच्चे अपना अलग घर कायम कर लेते हैं। यह सबसे छोटे परिवार होते हैं। यह परिवार अधिक प्रगतिशील होते हैं व उनके निर्णय तर्क के आधार पर होते हैं। इसमें पति-पत्नी को बराबर का दर्जा हासिल होता है।

प्रश्न 108.
केंद्रीय परिवार की विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  1. केंद्रीय परिवार या इकाई परिवार आकार में छोटा होता है।
  2. केंद्रीय परिवार में संबंध सीमित होते हैं।
  3. परिवार के प्रत्येक सदस्य को महत्ता मिलती है।

प्रश्न 109.
केंद्रीय परिवार के तीन गुण बताएं।
उत्तर:

  1. केंद्रीय परिवारों में स्त्रियों की स्थिति ऊँची होती है।
  2. इसमें रहन-सहन का दर्जा उच्च वर्ग का होता है।
  3. व्यक्ति को मानसिक संतुष्टि मिलती है।

प्रश्न 110.
केंद्रीय परिवार के अवगुण बताएं।
उत्तर:

  1. यदि माता या पिता में से कोई बीमार पड़ जाए तो घर के कामों में रुकावट आ जाती है।
  2. इसमें बेरोज़गार व्यक्ति का गुजारा मुश्किल से होता है।
  3. पति की मौत के पश्चात यदि स्त्री अशिक्षित हो तो परिवार की पालना कठिन हो जाती है।

प्रश्न 111.
विस्तृत परिवार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इस प्रकार के परिवार संयुक्त परिवार से ही बनते हैं। जब संयुक्त परिवार आगे बढ़ जाते हैं तो वह विस्तृत परिवार कहलाते हैं। इसमें माता-पिता, उनके भाई-बहन, बेटे-बेटियां व पोते-पोतियां आदि इकट्ठे रहते हैं। बच्चों के दादा-दादी भी इसमें रहते हैं। इस प्रकार इसमें कम से कम तीन पीढ़ियां रहती हैं।

प्रश्न 112.
संयुक्त परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
संयुक्त परिवार एक मुखिया की ओर से शासित अनेकों पीढ़ियों के रक्त संबंधियों का एक ऐसा समूह है जिनका निवास, चूल्हा व संपत्ति संयुक्त होते हैं। वह सब कर्तव्यों व बंधनों में बंधे रहते हैं। संयुक्त परिवार की विशेषताएं हैं-

  • साँझा चूल्हा
  • साँझा निवास
  • साँझी संपत्ति
  • मुखिया का शासन
  • बड़ा आकार।

आजकल इस प्रकार के परिवारों की अपेक्षा केंद्रीय परविार चलन में आ गए हैं।

प्रश्न 113.
पितृ-मुखी परिवार क्या है?
अथवा
पितृवंशी परिवार क्या है?
अथवा
पितृसत्तात्मक परिवार क्या है?
उत्तर:
जैसे कि नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के परिवारों की सत्ता या शक्ति पूरी तरह से पिता के हाथ में होती है। परिवार के संपूर्ण कार्य पिता के हाथ में होते हैं। वह ही परिवार का कर्ता होता है। परिवार के सभी छोटे या बड़े कार्यों में पिता का ही कहना माना जाता है। परिवार के सभी सदस्यों पर पिता का ही नियंत्रण होता है। इस तरह का परिवार पिता के नाम पर ही चलता है। पिता के वंश का नाम पुत्र को मिलता है।

प्रश्न 114.
मात-वंशी परिवार क्या है?
अथवा
मातृसत्तात्मक परिवार क्या है?
अथवा
मातृ-वंशी परिवार की परिभाषा दो।
उत्तर:
जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि परिवार में सत्ता या शक्ति माता के हाथ ही होती है। बच्चों पर माता के रिश्तेदारों का अधिकार अधिक होता है न कि पिता के रिश्तेदारों का। स्त्री ही मूल पूर्वज मानी जाती है। संपत्ति का वारिस पत्र नहीं बल्कि माँ का भाई या भांजा होता है। परिवार माँ के नाम से चलता है। इस प्रकार के परिवार भारत में कुछ कबीलों में जैसे गारो, खासी आदि में मिल जाता है।

प्रश्न 115.
प्रतिबंधित बहु-पत्नी विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर:
इस प्रकार के विवाह में पत्नियों की संख्या सीमित कर दी जाती है। वह एक बंधित सीमा से अधिक पत्नियां नहीं रख सकता। मुसलमानों में प्रतिबंधित बहु-पत्नी विवाह आज भी प्रचलित है जिसके अनुसार एक व्यक्ति के लिए पत्नियों की संख्या ‘चार’ तक निश्चित कर दी गई है।

प्रश्न 116.
अप्रतिबंधित बहु-पत्नी विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर:
इस प्रकार के विवाह में पत्नियों की संख्या की कोई सीमा नहीं होती जितनी मर्जी चाहे पत्नियां रख सकता है। भारत में प्राचीन समय में इस प्रकार का विवाह प्रचलित था। जब राजा महाराजा बिना गिनती के पत्नियां या रानियां रख सकते थे।

प्रश्न 117.
मातृ-सत्तात्मक परिवार कौन-सा होता है?
उत्तर:
वह परिवार जहां सारे अधिकार माता के हाथ में होते हैं, परिवार माता के नाम पर चलता है तथा परिवार पर माता का नियंत्रण होता है, उसे मात-सत्तात्मक परिवार कहते हैं।

प्रश्न 118.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
विवाह के आधार पर परिवार तीन प्रकार के होते हैं-

  • एक विवाही परिवार
  • बहु विवाही परिवार
  • समूह विवाही परिवार।

प्रश्न 119.
बहु विवाही परिवार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
बहु विवाही परिवार दो प्रकार के होते हैं-

  • बहु पत्नी विवाही परिवार
  • बहु पति विवाही परिवार।

प्रश्न 120.
नातेदारी क्या होती है?
अथवा
नातेदारी क्या है?
अथवा
नातेदारी किसे कहते हैं?
उत्तर:
नातेदारी समाज से मान्यता प्राप्त संबंध है जो अनुमानित या वास्तविक वंशावली संबंधों पर आधारित है। नातेदारी का दूसरा नाम रिश्तेदारी भी है।

प्रश्न 121.
नातेदारी कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
नातेदारी दो प्रकार की होती है-

  • रक्त मूलक या रक्त संबंधी नातेदारी।
  • विवाह मूलक या विवाह से बनी नातेदारी।

प्रश्न 122.
संयुक्त परिवार के लाभों का वर्णन करो।
उत्तर:

  1. संयुक्त परिवार भूमि बंटने से बचाता है।
  2. संयुक्त परिवार श्रम विभाजन करता है।
  3. संयुक्त परिवार में खर्च में बचत हो जाती है।

प्रश्न 123.
संयुक्त परिवार के दोषों का वर्णन करो।
उत्तर:

  1. संयुक्त परिवार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक है।
  2. संयुक्त परिवार में स्त्रियों की दुर्दशा हो जाती है।
  3. संयुक्त परिवार में पारिवारिक कलह आम रहती है।

प्रश्न 124.
संयुक्त परिवार की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:

  1. संयुक्त परिवार का आकार बड़ा होता है।
  2. संयुक्त परिवार के कर्ता अर्थात् पिता की प्रधानता होती है।
  3. संयुक्त परिवार में संपत्ति, निवास तथा रसोई संयुक्त होती है।

प्रश्न 125.
एकाकी अथवा केंद्रीय परिवार के दो कार्य बताएं।
उत्तर:

  1. घर एक ऐसा स्थान है जहाँ पर व्यक्ति आकर अपनी थकावट दूर कर सकता है। विवाह के बाद अपना घर बनाना तथा उसकी व्यवस्था करना केंद्रीय परिवार का मुख्य कार्य है।
  2. केंद्रीय परिवार अपने सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं तथा रहन-सहन के ढंगों को अपनी नई पीढ़ी को ठीक तरह से बताता है तथा सिखाता है।

प्रश्न 126.
केंद्रीय परिवार तथा संयुक्त परिवार में दो मुख्य अंतर बताएं।
अथवा
एकल परिवार और संयुक्त परिवार की तुलना करें।
उत्तर:

संयुक्त परिवारकेंद्रीय परिवार
(1) संयुक्त परिवार में स्त्रियों की स्थिति निम्न स्तर की होती है । वे पूर्ण रूप से आदमियों के अधीन होती हैं।(1) केंद्रीय परिवार में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान होती है। परिवार में प्यार व समानता और मित्रता वाले संबंध मिलते हैं।
(2) संयुक्त परिवार में कर्त्ता का निरंकुश शासन चलता है। प्रत्येक निर्णय वही लेता है और शेष सदस्य उसका पालन करते हैं।(2) केंद्रीय परिवार में महत्त्वपूर्ण पारिवारिक निर्णय में सभी की राय ली जाती है। सभी को अपना जीवन अपनी इच्छा अनुसार जीने का अधिकार होता है।

प्रश्न 127.
वर्ग निर्धारण के कौन-से आधार हैं?
उत्तर:
वर्ग निर्धारण के बहुत से आधार हैं जैसे कि पैसा, संपत्ति, शिक्षा, रहने का स्थान, पेशा, निवास स्थान की अवधि, व्यवसाय की प्रकृति, धर्म, परिवार तथा नातेदारी।

प्रश्न 128.
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु – – – वर्ष है?
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है।

प्रश्न 129.
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार लड़के के विवाह की न्यूनतम आयु – – – – वर्ष है।
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार लड़के के विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है।

प्रश्न 130.
सामान्यतः संयुक्त तथा केंद्रक में से कौन-से परिवार की सदस्य संख्या अधिक होती है?
उत्तर:
सामान्यतः संयुक्त परिवार की सदस्य संख्या अधिक होती है।

प्रश्न 131.
………………… देश में विश्व की सबसे जटिल जाति व्यवस्था पाई जाती है।
उत्तर:
भारत देश में विश्व की सबसे जटिल जाति व्यवस्था पाई जाती है।

प्रश्न 132.
परिवार तथा नातेदारी में से कौन-सी वृहद (बड़ी) है?
उत्तर:
परिवार तथा नातेदारी में से नातेदारी बड़ी है।

प्रश्न 133.
किसी एक सामाजिक संस्था का नाम बताएँ।
उत्तर:
परिवार एक सामाजिक संस्था है।

प्रश्न 134.
विशेष विवाह अधिनियम कब पास हुआ?
उत्तर:
विशेष विवाह अधिनियम 1954 में पास हुआ था।

प्रश्न 135.
किसी एक सामाजिक संस्था का नाम लिखें।
उत्तर:
विवाह, परिवार सामाजिक संस्थाएं हैं।

प्रश्न 136.
सामान्य संपत्ति किस परिवार की विशेषता है?
उत्तर:
सामान्य संपत्ति संयुक्त परिवार की विशेषता है।

प्रश्न 137.
जाति एक बंद ……………….. है।
उत्तर:
जाति एक बंद वर्ग है।

प्रश्न 138.
जाति व्यवस्था ……………….. पर आधारित है।
उत्तर:
जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 139.
जाति एक नवीनतम सांस्कृतिक संस्थान है। (हां/नहीं)।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 140.
जाति व्यवस्था व्यक्तियों को किस आधार पर वर्गीकृत करती है?
उत्तर:
जाति व्यवस्था व्यक्तियों को पेशे व जन्म के आधार पर वर्गीकृत करती है।

प्रश्न 141.
खंडात्मक संगठन क्या है?
उत्तर:
जो संगठन अलग-अलग खंडों या टुकड़ों में किसी आधार पर विभाजित हों उन्हें खंडात्मक संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 142.
वर्गों को क्रम से लिखिए।
उत्तर:

  1. ब्राह्मण
  2. क्षत्रिय
  3. वैश्य, तथा
  4. शुद्र।

प्रश्न 143.
जनजातियों को कितने भाषायी परिवारों में बाँटा गया है?
उत्तर:
दो आधारों पर-स्थायी विशेषक तथा अर्जित विशेषक।

प्रश्न 144.
जाति भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ा अनूठा संस्थान है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य।

प्रश्न 145.
शारीरिक प्रजातीय दृष्टि से जनजातियों का वर्गीकरण किन-किन श्रेणियों में किया गया है?
उत्तर:
शारीरिक प्रजातीय दृष्टि से जनजातियों के लोगों को नीग्रिटो, आर्टेलॉयड, द्रविड तथा आर्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

प्रश्न 146.
पत्नी स्थानिक परिवार कौन-सा है?
उत्तर:
जब विवाह के पश्चात पति-पत्नी के घर रहने के लिए चला जाता है तो इसे पत्नी स्थानिक परिवार कहते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पदक्रम क्या होता था?
उत्तर:
जाति प्रणाली में एक निश्चित पदक्रम होता था। भारत वर्ष में ज्यादातर भागों में ब्राह्मण वर्ण की जातियों को समाज में ऊँचा स्थान प्राप्त था, इसी प्रकार दूसरे क्रम में क्षत्रिय आते थे। वर्ण व्यवस्था के अनुसार जैसा तीसरा स्थान ‘वैश्यों’ का था। इसी क्रम के अनुसार सबसे बाद वाले क्रम में चौथा निम्न जातियों का था। समाज में किसी भी व्यक्ति की स्थिति भारत के ज्यादा भागों में उसी प्रकार से ही निश्चित की जाती थी। ब्राह्मणों को ज़्यादा आदर व सत्कार दिया जाता था और निम्न वर्ग भाव व्यक्तियों से दुर्व्यवहार होता है।

प्रश्न 2.
जाति का अलग-अलग हिस्सों में विभाजन होता था। व्याख्या करें।
अथवा
खंडात्मक संगठन क्या है?
उत्तर:
जाति प्रथा ने भारतीय सामाजिक ढांचे को अथवा भारतीय समाज को कई हिस्सों में बांट दिया है, सामान्यतः इसके चार भाग ही माने जाते हैं। इस प्रकार से इन चारों भागों में सबसे पहले भाग में ‘ब्राह्मण’ आते थे। दूसरे भाग में क्षत्रिय आते थे। इसके बाद वाला भाग वैश्यों को मिला था और आखिर वाला तथा चौथा भाग निम्न जातियों का माना गया था। इस तरह से हर खंड अथवा हिस्से का समाज में अपना-अपना दर्जा था। उसी प्रकार समाज में उनका स्थान, स्थिति अथवा कार्य प्रणाली थी, जिसमें उनको अपने रीति-रिवाजों के अनुसार चलना था। इसके अनुसार जाति के सदस्यों को अपने संबंधों का दायरा भी अपनी जाति तक ही सीमित रखना होता था। इस व्यवस्था में हर जाति अपने आप में एक संपूर्ण जीवन बिताने की एक ‘सामाजिक इकाई’ मानी जाती थी।

प्रश्न 3.
जाति के कार्यों का वर्णन करें।
अथवा
जाति का एक प्रकार्य बताइए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था की प्रथा में जाति भिन्न तरह से अपने सदस्यों की सहायता करती है, उसमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  • जाति व्यक्ति के व्यवसाय का निर्धारण करती है।
  • व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक सुरक्षा प्रदान करती है।
  • व्यक्ति एवं जाति के रक्त की शुद्धता बरकरार रखती है।
  • जाति राजनीतिक स्थिरता प्रदान करती है।
  • जाति अपने तकनीकी रहस्यों को गुप्त रखती है।

प्रश्न 4.
जाति सामाजिक एकता में रुकावट थी। कैसे?
उत्तर:
इस व्यवस्था से क्योंकि समाज का विभाजन कई भागों में हो जाता है, इसलिए सामाजिक संतुलन बिगड़ जाता है। इस व्यवस्था में प्रत्येक जाति के अपने नियम एवं प्रतिबंध होते थे। इस तरह से अपनी जाति के अतिरिक्त दूसरी जाति से कोई ज्यादा लगाव नहीं होता क्योंकि उन्हें पता होता था कि उन्हें नियमों के अनुसार आचरण करना होता था।

इस प्रथा में हमेशा उच्च वर्ग, निम्न वर्ग के लोगों का शोषण करते थे। जाति भेद होने के कारण एक-दूसरे के प्रति नफरत की भावना भी उजागर हो जाती थी। यह भेदभाव समाज की एकता में बाधक बन जाता था। और इस व्यवस्था की यह कमी थी, कोई व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर भी अपनी जाति को बदल नहीं सकता था। यह सामाजिक ढांचे का संतुलन बिगाड़ देती है और यह समाज की उन्नति में बाधक बन जाती थी।

प्रश्न 5.
जाति व्यवस्था के लाभों के बारे में बताएं।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के लाभ निम्नलिखित हैं-
(i) हिंदू समाज का बचाव-जाति व्यवस्था ने मध्यकाल में मुसलमानों के आक्रमणों के समय हिंदू समाज की रक्षा की थी। यदि जाति व्यवस्था में विवाह, खाने-पीने तथा अन्य प्रतिबंध न होते तो हिंदू समाज मुसलमानों में मिल गया होता।

(ii) व्यवसाय निश्चित करना-जाति व्यवस्था ने हमेशा से ही हर जाति के व्यवसाय निश्चित किए हैं। ब्राहमण. क्षत्रिय, वैश्यों तथा निम्न जातियों के काम हमेशा उनकी जाति जन्म से ही निश्चित हो जाते थे। इससे हर किसी को काम मिल जाता था।

(iii) धार्मिक आधार बनाना-जाति व्यवस्था ने हमेशा समाज को धार्मिक आधार भी दिया है। प्रत्येक जाति के धार्मिक कर्तव्य निश्चित होते थे कि किस जाति ने किस प्रकार के धार्मिक संस्कारों का पालन करना है।

(iv) सामाजिक स्थिरता प्रदान करना-जाति व्यवस्था ने समाज को स्थिरता भी प्रदान की है। प्रत्येक जाति के काम, उसकी स्थिति, रुतबा निश्चित हुआ करता था। उच्च तथा निम्न जाति के बीच एक प्रकार का संबंध बना रहता था जिससे उनके संबंध स्थिर रहते थे तथा समाज में भी स्थिरता रहती थी।

प्रश्न 6.
जाति प्रथा की हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
जाति प्रथा की हानियों का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) समाज को बांट देना-जाति प्रथा ने समाज को कई भागों में बांट दिया है। इस कारण इन जातियों में एक दूसरे के प्रति नफरत पैदा हो गई तथा उनमें दुश्मनी भी हो गई। इस तरह समाज में नफरत फैलाने में जाति व्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ है।

(ii) व्यक्तिगत विकास में बाधा-जाति व्यवस्था हर किसी का पेशा निश्चित कर देती है। चाहे कोई व्यक्ति अपनी जाति का काम करना चाहता हो या न उसे वह काम करना ही पड़ता था। जाति व्यवस्था व्यक्तिगत योग्यता में बहुत बड़ी बाधक है।

(iii) समाज के विकास में रुकावट-जाति प्रथा समाज के विकास में रुकावट है। हर कोई अपनी जाति, अपने लोगों के उत्थान के बारे में सोचता है। कोई समाज के विकास में ध्यान नहीं देता। इस तरह जाति समाज के विकास में बहुत बड़ी बाधक है।

(iv) समाज सुधार में बाधक-जाति प्रथा के कारण निम्न जाति, शूद्र, अस्पृश्यता इत्यादि संकल्प हमारे सामने आए हैं। इसने निम्न जातियों के लोगों को नीचा ही रखा, उनको ऊपर नहीं आने दिया। इस तरह समाज सुधार में जाति प्रथा एक बाधक है।

(v) लोकतंत्र की विरोधी-जाति प्रथा लोकतंत्र की विरोधी है। लोकतंत्र समानता, भाईचारे तथा स्वाधीनता के विचारों का समर्थक है बल्कि जाति प्रथा में इन सब चीज़ों की कोई परवाह नहीं है।

प्रश्न 7.
जाति प्रथा ने हमारे समाज को किस तरह प्रभावित किया है?
उत्तर:

  • जाति प्रथा ने सामाजिक गतिशीलता को चोट पहुँचायी है। व्यक्ति अपने पेशे के कारण से अपनी जगह छोड़कर कहीं और नहीं जा सकता।
  • जाति प्रथा ने समाज तथा व्यक्ति के आर्थिक विकास में भी रुकावट डाली है क्योंकि ऊँची जाति के व्यक्ति निम्न जाति के व्यक्तियों के साथ काम करना पसंद नहीं करते।
  • जाति प्रथा व्यक्तिगत कुशलताओं को बाहर नहीं आने देती।।
  • आजकल राजनीति में जातिगत वोटों का बोलबाला है क्योंकि सभी अपनी ही जाति के लोगों से वोट मांगते हैं।
  • जाति के राजनीति में आने से विभिन्न जातियों में दुश्मनी बढ़ी है।
  • जाति प्रथा सांप्रदायिक दंगों के लिए भी कई बार कारण बन जाती है।

प्रश्न 8.
औद्योगीकरण ने जाति प्रथा को किस तरह प्रभावित किया है?
उत्तर:

  • औद्योगीकरण के कारण बड़े-बड़े नगर बस गए जहां लोग बिना किसी भेदभाव के रहने लगे।
  • औद्योगीकरण से पैसा बढ़ा जिससे जाति व्यवस्था के स्थान वर्ग व्यवस्था सामने आयी है।
  • औद्योगीकरण से देशों के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बढ़ोत्तरी हुई जिससे लोग, जाति तथा देश छोड़कर अन्य देशों में बसना शुरू हो गए।
  • औद्योगीकरण के कारण लोग फैक्टरियों में मिलकर काम करने लगे जिससे अस्पृश्यता की भावना को धक्का लगा।
  • इसके कारण से लोगों ने शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की जिससे उनके विचार उदारवादी हो गए।

प्रश्न 9.
जाति प्रथा में कौन-कौन से परिवर्तन आ रहे हैं?
अथवा
जाति प्रथा में क्या-क्या परिवर्तन हो रहे हैं?
उत्तर:
पुराने समय में जो कुछ भी जाति प्रथा का आधार था उन सभी में आजकल परिवर्तन आ रहे हैं, जैसे कि-

  • आजकल लोग जाति से बाहर विवाह कर रहे हैं।
  • आजकल खाने-पीने के प्रतिबंध कोई नहीं मानता।
  • ब्राह्मणों की प्रभुता काफी सीमा तक खत्म हो गई है।
  • आजकल व्यक्ति कोई भी व्यवसाय अपना सकता है।
  • अस्पृश्यता को कानून की सहायता से खत्म कर दिया गया है।

प्रश्न 10.
विवाह की कोई चार विशेषताओं के बारे में बताओ।
उत्तर:
विवाह की चार विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. यौन संबंधों को नियमित करना-विवाह की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह स्त्री-पुरुष के यौन संबंधों को नियमित करता है। विवाह के बाहर यौन संबंधों को गैर-कानूनी करार दिया जाता है। इसलिए यौन संबंध निश्चित तथा नियमित करना विवाह का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।

2. संतान पैदा करना-विवाह की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि इससे संतान पैदा होती है। समाज की नियमितता तथा समाज के चलते रहने के लिए यह ज़रूरी है कि पीढ़ी आगे बढ़े। अगर पीढ़ी आगे बढ़ेगी तभी समाज आगे बढ़ेगा। इसलिए संतान पैदा करना विवाह का एक और उद्देश्य है।

3. परिवार की स्थापना-समाज बहुत सारे परिवारों का एक समूह है। विवाह के बाद पति-पत्नी परिवार का निर्माण पूरा करते हैं। बच्चे पैदा होने के बाद परिवार पूरा हो जाता है। इस तरह विवाह के बाद ही परिवार का निर्माण हो पाता है जोकि समाज के बनने के लिए बहुत ज़रूरी है।

4. बच्चों का पालन-पोषण-विवाह के बाद ही परिवार का निर्माण होता है जहां बच्चे पैदा होते हैं तथा उनका पालन-पोषण होता है। विवाह के बाहर पैदा हुए बच्चों का पालन-पोषण न तो अच्छी तरह हो पाता है तथा न ही उन्हें पिता तथा परिवार का नाम मिल पाता है। इस तरह विवाह से पैदा हुए बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह हो जाता है।

प्रश्न 11.
परिवार की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
1. पति-पत्नी में संबंध-परिवार पति-पत्नी तथा उनके बच्चों से मिलकर बनता है। इस तरह पति-पत्नी के बीच किसी न किसी प्रकार के स्थायी संबंध परिवार की मुख्य विशेषता है। प्रत्येक संस्कृति में यह संबंध स्थायी होते हैं।

2. स्थायी लिंग संबंध-वैवाहिक संबंध के आधार पर परिवार का जन्म होता है। ये संबंध समाज द्वारा स्वीकृत होते हैं। इन संबंधों के आधार पर पति-पत्नी में लिंग संबंध से संतान उत्पन्न होती है जिनको मान्यता प्राप्त होती है।

3. रक्त संबंधों का बंधन-परिवार की एक और विशेषता यह है कि परिवार के सदस्यों में रक्त संबंधों का होना है। ये रक्त संबंध वास्तविक भी हो सकते हैं तथा काल्पनिक भी। परिवार के सदस्य समान पूर्वज की संतान होते हैं।

4. सदस्यों के पालन-पोषण की आर्थिक अवस्था-परिवार में उसके सदस्य. बच्चों. बढों. स्त्रियों आदि के पालन पोषण की आर्थिक अवस्था होती है। परिवार के कमाने वाले सदस्य अन्य सदस्यों के पालन-पोषण का ज़रूरी प्रबंध करते हैं। इस तरह परिवार के सदस्य अधिकार तथा कर्तव्य के बंधनों में बंधे हए होते हैं।

प्रश्न 12.
परिवार के कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर:
1. जैविक कार्य-

  • संतान की उत्पत्ति
  • सदस्यों की सुरक्षा
  • भोजन, आवास तथा कपड़े की व्यवस्था
  • बच्चों की सुरक्षा तथा देखभाल।

2. आर्थिक कार्य-

  • श्रम विभाजन
  • आय का प्रबंध
  • संपत्ति की देखभाल।

3. सामाजिक कार्य-

  • स्थिति को निश्चित करना
  • समाजीकरण
  • सामाजिक नियंत्रण
  • सामाजिक विरासत का संग्रह तथा विस्तार।

4. धार्मिक शिक्षा प्रदान करना।

5. बच्चों के मनोरंजन संबंधी कार्य।

6. राजनीतिक कार्य-बच्चों को अधिकारों तथा कर्तव्यों का पाठ पढ़ाना।

प्रश्न 13.
निवास के आधार पर परिवार कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
निवास के आधार पर परिवार तीन प्रकार के होते है-
1. पितृ स्थानीय परिवार-जब विवाह के बाद पत्नी अपने पति के घर जाकर रहने लग जाती है तो उसे पितृ स्थानीय परिवार कहते हैं।

2. मातृ स्थानीय परिवार-जब विवाह के बाद पति अपनी पत्नी के घर जाकर रहने लग जाए तो उसे मातृ स्थानीय परिवार कहते हैं। यह पितृ स्थानीय परिवार के बिल्कुल उलट है।

3. नवस्थानीय परिवार-जब विवाह के पश्चात् पति-पत्नी किसी के घर न जाकर अपना नया घर बसाते हैं तो उसे नवस्थानीय परिवार कहते हैं।

प्रश्न 14.
नातेदारी के कितने प्रकार पाए जाते हैं?
अथवा
रक्तमूलक नातेदारी क्या है?
अथवा
रक्तमूलक नातेदारी किसे कहते हैं?
उत्तर:
नातेदारी के दो प्रकार पाए जाते हैं-
1. समरक्त संबंधी-रक्त या प्रजनन के आधार पर जो संबंधी पाए जाएं, उन्हें समरक्त संबंधी कहते हैं, जैसे माता-पिता का अपने बच्चों के साथ संबंध। माता, पिता, भाई, बहन के साथ संबंध इसी श्रेणी में आता है। यह संबंध सामाजिक मान्यताओं तथा जैविक तथ्यों पर आधारित होते हैं।

2. विवाह संबंधी नातेदारी-वह संबंध जोकि विवाह होने के पश्चात् बनते हैं, वह विवाह संबंधी नातेदारी होती है। यहां एक बात ध्यान रखने योग्य है कि केवल पति-पत्नी ही इस श्रेणी में नहीं आते बल्कि लड़का-लड़की के रिश्तेदारों के जो संबंध बनते हैं, वह भी इसी श्रेणी में आते हैं, जैसे कि दामाद, जीजा, साला, साली, ननद, बहू इत्यादि।

प्रश्न 15.
नातेदारी संबंधों का क्या महत्त्व होता है?
अथवा
नातेदारी का समाज में क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. नातेदारी संबंधों से परिवार में सत्ता का निर्धारण होता है।
  2. नातेदारी संबंधों से विवाह के समय काफी मदद मिलती है। कौन किस खानदान से है, कौन उसका रिश्तेदार है, यह काफ़ी महत्त्वपूर्ण होता है।
  3. हिंदू जीवन के धार्मिक संस्कारों तथा कर्मकांडों को पूरा करने के लिए नातेदारों, रिश्तेदारों की बहुत जरूरत होती है।
  4. व्यक्ति के जीवन में बहुत से सुख-दुःख आते हैं। उस समय सबसे ज्यादा ज़रूरत नातेदारों की पड़ती है।

प्रश्न 16.
कबीला अथवा जनजाति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कबीला अथवा जनजाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहता है। यह समूह एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहता है जिसकी अपनी ही अलग भाषा, अपनी संस्कृति, अपना ही धर्म होता है। ये समूह अंतर्वैवाहिक समूह होते हैं तथा प्यार, पेशे तथा उद्योगों के विषय में कुछ नियमों की पालना करते हैं। ये लोग हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा समाज से बिल्कुल ही अलग होते हैं। अलग-अलग कबीले अपनी सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति इत्यादि जैसे कई पक्षों के आधार पर एक-दूसरे से अलग होते हैं।

प्रश्न 17.
कबाइली समाज किसे कहते हैं?
उत्तर:
कबीला एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता, संस्कृति से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहता है। इन कबीलों में पाए जाने वाले समाज को कबाइली समाज कहा जाता है। कबाइली समाज वर्गहीन समाज होता है। इसमें किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। प्राचीन समाजों में कबीले को बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक समूह माना जाता था।

कबाइली समाज की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों अथवा जंगली इलाकों में पाई जाती है। यह समाज साधारणतया स्वःनिर्भर होते हैं जिनका अपने ऊपर नियंत्रण होता है तथा यह किसी के भी नियंत्रण से दूर होते हैं। कबाइली समाज, शहरी समाजों तथा ग्रामीण समाजों की संरचना तथा संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होते हैं।

प्रश्न 18.
सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार के रूप में वर्ग तथा जाति में चार अंतर बताएं।
अथवा
जाति तथा वर्ग में दो अंतर बताइए।
अथवा
वर्ग और जाति में अंतर करें।
उत्तर:

वर्गजाति
(i) वर्ग की सदस्यता व्यक्तिगत योग्यता पर निर्भर होती है।(i) जाति की सदस्यता जन्म पर निर्भर होती है।
(ii) वर्ग में हम एक-दूसरे के वर्ग में विवाह कर सकते हैं।(ii) जाति में हम दूसरी जाति में विवाह नहीं कर सकते।
(iii) वर्ग में सामाजिक संबंधों तथा खाने-पीने पर कोई प्रतिबंध नहीं होता।(iii) जाति में जातियों में संबंधों तथा खाने-पीने संबंधी पाबंदियां होती हैं।
(iv) व्यक्ति कोई भी व्यवसाय अपना सकता है।(iv) व्यक्ति का पेशा उसके वंश या जाति के अनुसार होता है।
(v) व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत योग्यता से अपना वर्ग बदल सकता है।(v) व्यक्ति चाह कर भी या योग्यता रखते हुए भी अपनी जाति नहीं बदल सकता।
(vi) वर्ग के कई आधार जैसे कि धन, शिक्षा, व्यवसाय इत्यादि होते हैं।(vi) जाति का आधार केवल जन्म होता है।
(vii) वर्ग की कोई पंचायत नहीं होती।(vii) जाति की अपनी जाति पंचायत होती है।
(viii) वर्ग में व्यक्तिगत योग्यता की प्रधानता होती है।(viii) जाति में व्यक्तिगत योग्यता का कोई मूल्य नहीं होता केवल आपके परिवार तथा जाति का महत्त्व होता है।

प्रश्न 19.
आज के समय में जाति व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर:
अगर आज के सामाजिक परिदृश्य को ध्यान से देखा जाए तो हमारे देश में जाति व्यवस्था कमजोर हो रही है। अब इस बात का कोई महत्त्व नहीं रह गया है कि वह किस समूह से संबंध रखता है। जाति व्यवस्था की संरचनात्मक व्यवस्था भी कमजोर हो रही है। जातीय भेदभाव, धार्मिक निषेध, जातीय मेल-जोल की पांबदियां खत्म हो रही हैं। अब जाति का व्यवसाय के साथ कोई संबंध नहीं रह गया है।

गांवों की जजमानी व्यवस्था भी खत्म हो रही है। आजकल ग्रामीण क्षेत्रों में बहुसंख्यक समूहों का दबदबा है न कि जातीय समूहों का। चाहे वैवाहिक क्षेत्र में जाति व्यवस्था का कुछ प्रभाव देखने को मिल जाता है, परंतु फिर भी प्राचीन समय वाला प्रभाव खत्म हो गया है। औद्योगीकरण, नगरीकरण, संस्कृतिकरण, पश्चिमीकरण जैसी प्रक्रियाओं ने इसे काफ़ी सीमा तक प्रभावित किया है।

प्रश्न 20.
जनजातीय पहचान (Tribal Identity) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जनजातीय पहचान का अर्थ है जनजातियों की सामाजिक तथा सांस्कृतिक धरोहर को संभाल कर रखना ताकि बाहरी संस्कृतियों के संपर्क में आने से उनकी संस्कृति का अस्तित्व खत्म न हो जाए। आजकल जनजातियां अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रही हैं जिस कारण ही जनजातीय पहचान का मुद्दा सामने आया है।

जनजातीय समाज में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव, शिक्षा के प्रसार के कारण लोग अपना धर्म बदल रहे हैं, संस्कृति को भूल रहे हैं, लोग आधुनिक बन रहे हैं। इससे उनकी मूल संस्कृति नष्ट हो रही है। इस कारण ही उनमें जनजातीय पहचान की चेतना उत्पन्न हो रही है ताकि उनकी विशेष संस्कृति, धर्म, भाषा इत्यादि को बचा कर रखा जा सके।

प्रश्न 21.
नातेदारी की श्रेणियों के बारे में बताएं।
अथवा
नातेदारी के दो प्रकार बताइये।
उत्तर:
नातेदारी की श्रेणियों को निकटता की मात्रा के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है-
(i) प्राथमिक नातेदारी-आमने-सामने की प्रत्यक्ष नातेदारी को प्राथमिक नातेदारी कहते हैं। यह 8 प्रकार की होती हैं जैसे कि पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहन, माता-पुत्र इत्यादि।

(ii) द्वितीयक नातेदारी-जो नातेदारी प्राथमिक नातेदारों के द्वारा बने उसे द्वितीयक नातेदारी कहते हैं। जैसे कि पिता का भाई चाचा, माता का भाई मामा इत्यादि। इनके साथ हमारा संबंध प्राथमिक नातेदारों द्वारा बनता है। यह 33 प्रकार के होते हैं।

(iii) तृतीयक नातेदारी-जो नातेदारी द्वितीयक नातेदारों द्वारा बनती है उसे तृतीयक नातेदारी कहते हैं। जैसे कि पिता के भाई की पत्नी चाची, माता के भाई की पत्नी मामी इत्यादि। यह 151 प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 22.
परिहास प्रथा क्या है?
उत्तर:
परिहास या हँसी मज़ाक के संबंधों में हँसी मज़ाक, यौन संबंधी अश्लील कथन, गाली गलौच इत्यादि का समावेश होता है। इस प्रकार के संबंधों में स्वतंत्रता पाई जाती है। इस प्रकार का व्यवहार आमतौर पर विवाह संबंधियों में मिलता है जैसे कि देवर-भावी, ननद-भाभी, जीजा-साली इत्यादि कई बार तो इस प्रकार के संबंधों में यौन संबंध तक स्थापित हो जाते हैं। एक विद्वान् के अनुसार कई बार तो इस प्रकार के संबंधों में इतनी घनिष्ठता आ जाती है कि वह विवाह तक कर लेते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जाति व्यवस्था का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताएं बताएं।
अथवा
जाति व्यवस्था की परिभाषा दीजिए।
अथवा
जाति व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
अथवा
जाति की विशेषताएँ लिखें।
अथवा
जाति की परिभाषा देकर अर्थ बताएँ।
अथवा
जाति प्रथा व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? विस्तार कीजिये।
अथवा
जाति व्यवस्था क्या है? जाति की सबसे सामान्य निर्धारित विशेषताएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
जाति का अर्थ (Meaning of Caste System)-जाति शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द CASTE का हिंदी रूपांतर है, जो कि पुर्तगाली शब्द CASTA से लिया गया है। CASTA एक पुर्तगाली शब्द है, जिसका अर्थ है नस्ल। इसी प्रकार शब्द CASTE का लातीनी भाषा के शब्द CASTUS से भी गहरा संबंध है, जिसका अर्थ शुद्ध नस्ल होता है। जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित होती थी। व्यक्ति को तमाम आयु उस जाति से संबंधित रहना पड़ता था जिस जाति में उसने जन्म लिया है। जब व्यक्ति जन्म लेता था उसी समय ही उसके जीवन जीने के ढंग निश्चित कर दिए जाते थे तथा उस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए जाते थे। व्यक्ति पर जो भी प्रतिबंध जाति व्यवस्था द्वारा लगा दिए जाते हैं, उसके लिए उन्हें मानना आवश्यक होता था।

यह जाति व्यवस्था भारतीय सामाजिक व्यवस्था के मूल आधारों में से एक है तथा हिंदू सामाजिक जीवन के लगभग सभी पहलू इससे प्रभावित हुए हैं। इसका प्रभाव इतना शक्तिशाली रहा है कि भारत में बसने वाले प्रत्येक समूह तथा समुदाय को इसने प्रभावित किया है।

जाति शब्द संस्कृत के शब्द ‘जन’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘जन्म’। जाति शब्द अंग्रेजी के शब्द CASTE (कास्ट) का हिंदी रूपांतर है जो कि पुर्तगाली शब्द Casta से लिया गया है। चाहे ये और भी सामाजिक व्यवस्थाओं में भी पाया जाता है, परंतु भारत में इसका विकसित रूप ही नज़र आता है।

परिभाषाएं-जाति व्यवस्था की कई प्रमुख समाज शात्रिस्यों ने निम्नलिखित ढंग से परिभाषाएं दी हैं-
(1) रिज़ले (Risley) के अनुसार, “जाति परिवारों और परिवारों के समूह का संकल्प है’ जिसका इसके अनुरूप नाम होता है और वो काल्पनिक पूर्वज मनुष्य या दैवी के वंशज होने का दावा करते हैं जो समान पैतृक कार्य अपनाते हैं और वे विचारक जो इस विषय को ‘देव योग’ मानते हैं इसे ‘समजाति-समुदाय’ मानते हैं।”

(2) राबर्ट बीयरस्टेड (Robert Bierstdt) के अनुसार, “जब वर्ग प्रथा का ढांचा एक या अधिक विषयों पर पूरी तरह बंद होता है तो उसको ‘जाति प्रथा’ कहा जाता है।”

(3) बलंट (Blunt) के अनुसार, “जाति एक अंतर वैवाहिक समूह या अंतर वैवाहिक समूहों का इकट्ठ है जिसका एक नाम है, जिसकी सदस्यता वंशानुगत है जोकि अपने सदस्यों के ऊपर सामाजिक सहवास के संबंध में कुछ प्रतिबंध लगाती है, एक सामान्य परंपरागत पेशे को करती है या एक सामान्य उत्पत्ति का दावा करती है और आमतौर पर एक समरूप समुदाय को बनाने वाली समझी जाती है।’

(4) मैकाइवर तथा पेज (Maclver and Page) के अनुसार, “जब स्थिति पूरी तरह पूर्व निश्चित होती हो व्यक्ति बिना किसी आशा को लेकर पैदा होते हों तो वर्ग जाति का रूप धारण कर लेती है।’

(5) जे० एच० हट्टन (J.H. Hutton) के अनुसार, “जाति एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक समाज एक आत्म केंद्रित तथा एक-दूसरे से पूर्ण रूप से अलग इकाइयों में बंटा रहता है। इन विभिन्न इकाइयों में परस्पर संबंध उच्च निम्न के आधार पर तथा संस्कारों के आधार पर निर्धारित होते हैं।”

इस तरह इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि जाति एक अन्तर्विवाहित समूह होता है। इस की सदस्यता जन्म पर आधारित होती है। पेशा परंपरागत होता है और जातियों के खाने-पीने तथा रहन-सहन की पाबंदी होती है तथा विवाह संबंधी कठोर पाबंदियां होती हैं।

जाति व्यवस्था की विशेषताएँ
1. सदस्यता जन्म के ऊपर आधारित है (Membership is based upon Birth) इस प्रथा के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी जाति का निर्धारण स्वयं नहीं कर सकता, किसी की भी जाति उसके जन्म के आधार पर ही निश्चित की जाती है। जिस भी जाति में वह व्यक्ति जन्म लेता था उसी के अनुसार, उसकी जाति निश्चित हो जाती थी।

2. सामाजिक-संबंधों के ऊपर प्रतिबंध (Restrictions upon Social Relations) समाज को अलग-अलग जातियों में विभाजित किया गया था। कोई उच्च जाति से संबंध रखता था तो कोई निम्न जाति से। जाति प्रथा में इस भावना को तो पाया ही जाता था। उच्च जाति वाले हमेशा शहरों एवं गाँवों में रहते थे और निम्न जाति वालों को बाहर रहना पड़ता था। इस तरह निम्न जाति वाले अपने आपको ऊँची जाति वालों से दूर रखना या रहना ही ठीक समझते थे।

3. खाने-पीने पर प्रतिबंध (Restrictions upon Eatables}-जाति प्रणाली में यह बात स्पष्ट रूप से बतायी जाती थी कि व्यक्तियों को किन-किन वर्गों के लोगों के साथ उठना-बैठना होता था और किन-किन लोगों के साथ खाने-पीने पर प्रतिबंध था। इस प्रकार से भोजन को भी दो श्रेणियों में बांटा गया था जोकि दो तरह से तैयार होता था। नं० 1 भोजन जो कि घी द्वारा तैयार किया जाता था एवं पकाया जाता था, उसे पक्का भोजन कहा गया है और उसे ब्राह्मणों द्वारा तैयार किया जाता या उसके गुरु द्वारा तैयार किया जाता था।

इसी प्रकार कच्चा भोजन, जोकि पानी द्वारा तैयार किया जाता था। इस प्रकार यदि ब्राह्मण वर्ग द्वारा कच्चा भोजन भी तैयार किया जाता था, तो दूसरी जाति के लोग उसे ग्रहण कर लेते थे परंतु दूसरी जातियों द्वारा तैयार कच्चा भोजन ब्राह्मण कभी भी ग्रहण नहीं करते थे। ब्राह्मण लोग, क्षत्रियों एवं वैश्यों द्वारा पकाया हुआ भोजन स्वीकार कर लेते थे।

4. व्यवसाय अपनाने हेतु पाबंदियां (Restrictions upon Occupation)-जाति प्रथा में विशेष, परंपरागत धंधों को अपनाया जाता था। यदि किसी जाति का कोई विशेष व्यवसाय होता था तो उसे वही पेशा ही अपनाना पड़ता था। इस प्रकार व्यक्ति के पास कोई पसंद या पहल यानि की कोई Choice नहीं होती थी अर्थात् वह अपनी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं कर सकता था।

परंतु इसमें कुछ धंधों में जैसे कि व्यापार, खेतीबाड़ी और सुरक्षा के मामलों में, नौकरी संबंधी कई विभागों में वह अपनी योग्यता के आधार पर कार्य करने के भी प्रावधान थे। कई समूहों को कोई भी पेशा अपनाने की छूट थी। परंतु कई जाति-समूहों जैसे की लोहारों, बढ़ई, बारबर, कुम्हार इत्यादि को अपने परंपरागत कार्यों को ज्यादातर अपनाना पड़ता था।

इस प्रणाली में ब्राह्मणों को विशेष कार्य अर्थात् शिक्षा प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण कार्य मिला हुआ था। क्षत्रियों को सुरक्षा का जिम्मा मिला हुआ था। वैश्यों को खेतीबाड़ी, पशुपालन एवं व्यापार के लिए विकल्प खुले थे।

5. विवाह संबंधी पाबंदियां (Restrictions for Marriages)-जाति प्रथा में जातियों को इस तरह से विभाजित किया जाता था कि आगे उनकी उपजातियां भी बनाई गई थीं। इन उपजातियों में यह बंधन था कि अपने सदस्यों को दूसरी जाति में विवाह करने से रोकते थे। अपनी जाति के अंदर ही विवाह करने की प्रथा को जाति विशेष की विशेषता माना जाता था। इस प्रणाली में कुछ उपजातियों को दूसरी जातियों में भी विवाह का कुछ हालातों में किसी लड़की से विवाह कर सकते थे। परंतु यह आम नियम था कि एक व्यक्ति अपनी ही उपजाति में विवाह कर सकता था। इस प्रकार यदि वह नियमों का उल्लंघन करता था तो उसे अपनी उपजाति में से बाहर निकाल दिया जाता था।

6. समाज का अलग-अलग हिस्सों में विभाजन (Segmantal Division of Society)-जाति प्रथा के अनुसार समाज को कई भागों में बांटा गया था और हर हिस्से के सदस्यों का दर्जा, स्थान और कार्य निश्चित कर दिये गये थे। इसलिए सदस्यों में अपने समूह का एक हिस्सा होने की चेतना पैदा होती थी अर्थात् वह अपने समूह का एक अटूट अंग बन जाते थे। समाज का इस तरह हिस्सों में बंट जाने के कारण एक जाति के सदस्यों का सामाजिक अंतर, कार्य का दायरा ज्यादातर अपनी जाति तक ही सीमित हो जाता था।

जाति के नियमों की पालना न करने वालों को जाति की पंचायत दंड भी दे सकती थी। भिन्न-भिन्न जातियों के रहन-सहन के ढंग और रस्मों-रिवाजों में भी अंतर होता था। एक ही जाति के लोग प्रायः अपनी ही जाति के लोगों से अंतर कार्य करते थे। हर जाति अपने आप में एक-एक संपूर्ण सामाजिक जीवन जीने वाली सामाजिक इकाई होती थी।

7. पदक्रम (Hierarchy)-जाति प्रथा में एक निश्चित पदक्रम होता था। भारत में ज़्यादातर सभी भागों में सबसे ऊपर का दर्जा ब्राह्मणों को दिया गया था। इसी क्रम में दूसरे स्थान पर क्षत्रियों को रखा गया था। तीसरे स्थान पर वैश्यों को और इसी सामाजिक पदक्रम में सबसे बाद में यानि कि चौथे स्थान पर निम्न जातियों को रखा गया था। इस तरह से समाज में सभी व्यक्तियों की स्थिति को पदक्रम के आधार पर निश्चित किया गया था।

8. प्रत्येक जाति कई उपजातियों में बंटी होती है (Every caste is divided into many sub-castes) हमारे देश में तीन हज़ार के लगभग जातियां पाई जाती हैं तथा यह सभी जातियां आगे बहुत-सी उपजातियों में बंटी हुई थीं। व्यक्ति को अपना जीवन इन उपजातियों के नियमों के अनुसार व्यतीत करना पड़ता था तथा व्यक्ति को केवल अपनी ही उपजाति में विवाह करवाना पड़ता था।

9. अंतर्वैवाहिक (Endogamous)-जाति प्रथा में विवाह से संबंधित बहुत-सी पाबंदियां थीं। व्यक्ति के ऊपर अपनी जाति से बाहर विवाह करवाने की पाबंदी थी। यही नहीं व्यक्ति को केवल अपनी ही उपजाति में विवाह करवाना पड़ता था। जो व्यक्ति जाति प्रथा के नियमों को तोड़ता था उसे साधारणतया जाति से बाहर ही निकाल दिया मजूमदार के अनुसार संस्कृति के संघर्ष तथा नस्ली मेल-मिलाप ने भारत में उच्च तथा निम्न दर्जे के समूहों की रचना की।

नस्ली मिश्रण के कई कारण थे जैसे आर्यों में स्त्रियों की कमी, उन्नत द्राविड़ संस्कृति, उनकी मात प्रधान व्यवस्था, देवी-देवताओं की पूजा, एक जगह पर जीवन व्यतीत करने की इच्छा, अलग-अलग रीति-रिवाज इत्यादि। आर्य लोगों द्वारा द्राविड़ लोगों को जीतने के पश्चात् उनमें आपसी मेल-मिलाप तथा सांस्कृतिक संघर्ष चलता रहा। इस कारण कई सामाजिक समहों का निर्माण हआ जो अंतर्विवाहित बन गए। यहां से प्रत्येक समह या जाति का दर्जा इस समूह की रक्त शुद्धता तथा दूसरे समूहों से अलग रहने के आधार पर निर्धारित हो गया।

नस्ली सिद्धांत की आलोचना होती है क्योंकि इस सिद्धांत ने वैवाहिक संबंधों पर रोक के बारे में तो बताया है परंतु खाने-पीने के नियमों का कोई वर्णन नहीं किया है। मुसलमान तथा ईसाई सांस्कृतिक भिन्नता होने के बावजूद भी जाति का रूप धारण नहीं कर सके हैं। इस तरह जाति प्रथा की उत्पत्ति कई कारणों के कारण हुई है केवल एक कारण की वजह से नहीं।

3. भौगोलिक सिद्धांत (Geographical Theory)-जाति प्रथा की उत्पत्ति के संबंध में भौगोलिक सिद्धांत गिलबर्ट (Gilbert) ने दिया है। उसके अनुसार जातियों का निर्माण अलग-अलग समूहों के देश के अलग-अलग भागों में बसने के कारण हुआ है। यह विचार तमिल साहित्य में भी दिया गया है। इस विचार की पुष्टि कई उदाहरणों के कारण होती है।

जैसे सरस्वती नदी के किनारे रहने वाले ब्राह्मण सारस्वत ब्राह्मण कहलाए तथा कन्नौज में रहने वाले कनौजिए हो गए। इस तरह कई और जातियों के नाम भी उनके निवास स्थान के आधार पर पड़ गए। परंतु इस सिद्धांत को ज्यादातर विद्वानों ने नकार दिया है क्योंकि किसी भी एक भौगोलिक क्षेत्र में कई जातियां मिलती हैं परंतु उनमें से सभी के नाम उस क्षेत्र से संबंधित नहीं होते।

4. व्यावसायिक या पेशे से संबंधित सिद्धांत (Occupational Theory)-व्यवसाय के आधार पर जाति प्रथा की उत्पत्ति का सिद्धांत नेसफील्ड तथा डाहलमैन (Nesfield and Dahlman) ने दिया है। नेसफील्ड के अनुसार जातियों की उत्पत्ति अलग-अलग व्यवसायों के आधार पर हुई है तथा उसने नस्ली कारकों को नकार दिया है। जाति व्यवस्था के अस्तित्व में आने से बहुत पहले ही नस्ली मिश्रण बढ़ चुका था। उसके अनुसार जाति प्रथा की उत्पत्ति धर्म के कारण भी नहीं हुई है क्योंकि धर्म वह कट्टर आधार नहीं दे सकता जो जाति व्यवस्था के लिए ज़रूरी है। इस तरह नेसफील्ड के अनुसार केवल व्यवसाय ही जाति प्रथा की उत्पत्ति के लिए ज़िम्मेदार है।

डाहलमैन के अनुसार शुरू में भारतीय समाज तीन भागों में बँटा हुआ था तथा वह थे-रोहित, शासक तथा बुर्जुआ। इन तीनों वर्गों के व्यवसाय धार्मिक, राजनीतिक तथा आर्थिक क्रियाओं से संबंधित थे। इनके समूह व्यवसाय तथा रिश्तों के आधार पर छोटे-छोटे समूहों में बंट गए। यह पहले व्यावसायिक निगमों तथा धीरे-धीरे बड़े व्यावसायिक संघों का रूप धारण कर गए। आगे चल कर संघ जाति के रूप में विकसित हो गए।

की भी आलोचना हई है। जाति प्रथा का धर्म से कोई सीधा संबंध न बताना उचित नहीं है। यह सिद्धांत नस्ली सिद्धांतों से दूर है क्योंकि उच्च तथा निम्न सामाजिक समूहों में कुछ-न-कुछ नस्ली अंतर ज़रूर है। इसके साथ ही यदि जाति प्रथा की उत्पत्ति व्यावसायिक संघों के कारण ही हुई तो यह केवल भारत में ही क्यों आगे आई और देशों में क्यों नहीं। इस तरह इस सिद्धांत में इन प्रश्नों का उत्तर नहीं है।

5. विकासवादी सिद्धांत (Evolutionary Theory)-इस सिद्धांत को डैनज़िल इबैटस्न (Denzil Ibbetson) ने दिया है। उसके अनुसार जाति व्यवस्था की उत्पत्ति चार वर्णों के आधार पर न होकर आर्थिक आधार पर बने संघों द्वारा हुई है। उसके अनुसार पहले लोग खानाबदोशों की तरह रहते थे तथा जाति व्यवस्था अस्तित्व में नहीं आई थी। लोगों में खून का रिश्ता होता था तथा उच्च-निम्न की भावना नहीं थी।

परंतु धीरे-धीरे इकठे रहने से आर्थिक विकास शुरू हुआ तथा लोग कृषि कार्य करने लगे। समय के साथ-साथ आर्थिक जीवन के जटिल होने के कारण श्रम विभाजन की आवश्यकता महसूस हुई। राजाओं का यह कर्तव्य बन गया कि वह ऐसी आर्थिक नीति का निर्माण करें जोकि श्रम विभाजन तथा व्यावसायिक भिन्नता पर आधारित हो।

इस कारण कई नए वर्ग अस्तित्व में आए। एक जैसा कार्य करने के कारण सामुदायिक भावना का विकास हुआ। समय के साथ-साथ इन वर्गों ने अपने हितों की रक्षा के लिए संघ बना लिए। प्रत्येक संघ ने अपने भेदों को गुप्त रखने के लिए अंतर्विवाह की नीति अपनायी। इस तरह जाति वैवाहिक होने के कारण जाति प्रथा उत्पन्न हई। धीरे-धीरे इन समहों ने सामाजिक सामाजिक पदक्रम में अपना स्थान बना लिया।

इस सिद्धांत की भी आलोचना हुई है क्योंकि व्यवसाय के आधार पर संघ तो सभी समाजों में मिलते हैं पर केवल भारत में ही जाति प्रथा क्यों विकसित हुई। आर्थिक कारक को बहुत-से कारकों में से एक कारक तो माना जा सकता है पर केवल एक ही कारक नहीं।

6. धार्मिक सिद्धांत (Religious Theory)-इस सिद्धांत को होकार्ट तथा सेनार्ट ने दिया है। होकार्ट के अनुसार जाति व्यवस्था की उत्पत्ति तथा भारतीय समाज का विभाजन धार्मिक कर्मकांडों तथा सिद्धांतों के कारण हुआ है। प्राचीन भारतीय समाज में धर्म बहुत महत्त्वपूर्ण था जिस में देवताओं को बलि भी दी जाती थी। बलि की प्रथा में पूजा पाठ तथा मंत्र पढ़ना शामिल था जिसमें कई व्यक्तियों की ज़रूरत पड़ती थी। धीरे-धीरे धार्मिक कार्य करने वाले लोग संगठित हो गए तथा उन्होंने अलग-अलग जातियों का रूप धारण कर लिया। होकार्ट के अनुसार प्रत्येक जाति का व्यवसाय पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है तथा व्यवसाय का मूल आधार धार्मिक है न कि आर्थिक।

सेनार्ट के अनुसार भोजन संबंधी प्रतिबंध धार्मिक कारणों के कारण पैदा हुए तथा लोग जातियों तथा उपजातियों में विभाजित हो गए। परंतु कई समाजशास्त्रियों के अनुसार जाति व्यवस्था एक सामाजिक संस्था है न कि धार्मिक। इसलिए यह सिद्धांत ठीक नहीं प्रतीत होता है। जाति व्यवस्था बहुत ही जटिल है परंतु इसकी उत्पत्ति का बहुत ही सरल वर्णन किया गया है जोकि ठीक नहीं है।

7. माना सिद्धांत (Mana Theory) हट्टन का कहना है कि आर्य लोगों के भारत आने से पहले भी जाति व्यवस्था के तत्त्व भारत में मौजूद थे। जब आर्य लोग भारत में आए तो उन्होंने इन तत्त्वों को अपने हितों की रक्षा के लिए दृढ किया। उनसे पहले भारत में सामाजिक विभाजन ज्यादा स्पष्ट नहीं था परंतु आर्यों ने इसे अलग किया तथा अपने आपको इस व्यवस्था में सब से ऊपर रखा।

हट्टन का कहना था कि यह प्रारंभिक अवस्था थी। जाति व्यवस्था के प्रतिबंधों को उसने माना तथा टैबु की मदद से स्पष्ट किया है। प्राचीन समाजों में माना को अदृश्य आलौकिक शक्ति समझा जाता था जो कि प्रत्येक प्राणी में होती है तथा छूने से एक-दूसरे में भी आ सकती है।

कबीलों के लोग यह मानते हैं कि माना शक्ति के कारण ही लोगों में भिन्नता होती थी। माना के डर से ही यह लोग बाहर के व्यक्तियों से दूर रहते हैं। अपने समूहों में भी वह उन लोगों को नहीं छूते थे जिनको दुष्ट समझा जाता था। इस तरह कबीले के लोगों के बीच कुछ चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है जिनको टैबु कहते हैं। लोगों में यह डर होता था कि टैबु को न मानने वालों के ऊपर दैवी प्रकोप हो जाएगा।

हट्टन के अनुसार माना तथा टैबु को मानने वाले हिंदू, इस्लाम, पारसी तथ बुद्ध धर्म को मानने वालों में भी मिलते हैं। आर्य लोगों के आने से पहले भी भारत में माना तथा टैबु से संबंधित भेदभाव मिलते थे। इस कारण विवाह, खाने-पीने, कार्यों इत्यादि से संबंधित प्रतिबंध अलग-अलग समूहों में मिलते थे। इस कारण जब जाति व्यवस्था शुरू हुई तो उसमें कई प्रकार की पाबंदियां लगा दी गईं।

कई विद्वानों ने इस बात की आलोचना की है तथा कहा है कि चाहे माना, टैबु संसार के अन्य कबीलों में भी मिलते हैं परंतु हमें जाति व्यवस्था कहीं भी नहीं मिलती है। इसके साथ कबीलों की संस्कृति संपूर्ण भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती। हट्टन ने कोई ऐसे तथ्य भी पेश नहीं किए जिस के आधार पर माना जा सके कि आर्य लोगों से पहले भी भारत में मूल निवासी माना तथा टैबु के आधार पर बँटे हुए थे।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 3.
जाति प्रथा के लाभों तथा हानियों का वर्णन करो।
अथवा
जाति व्यवस्था के कार्य अथवा लाभ स्पष्ट करें।
उत्तर:
जाति व्यक्ति, समुदाय तथा समाज के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है इसलिए यह संस्था सैंकड़ों वर्षों से भारतीय समाज का आधार रही है। जाति प्रथा के बहुत से लाभ तथा हानियां हैं जिन का वर्णन निम्नलिखित है

जाति प्रथा के लाभ (Advantages of Caste System)-
(i) सामाजिक स्थिति निर्धारित करना (Determining Social Status)-जाति अपने सदस्यों को जन्म से ही निश्चित स्थिति प्रदान करती थी। व्यक्ति शिक्षा. गरीबी-अमीरी, आय तथा लिंग या व्यक्तिगत योग्यता से अपनी जाति परिवर्तित नहीं कर सकता था। जाति के आधार पर ब्राह्मणों की स्थिति सबसे ऊपर तथा शेष की इनसे निम्न होती थी।

(ii) सरल श्रम विभाजन (Simple Division of Labour)-जाति प्रथा में श्रम विभाजन हुआ करता था। हर किसी को एक काम उसके परिवार तथा जाति के अनुसार मिल जाता था। विभिन्न जातियों द्वारा निश्चित कार्य करना समाज में श्रम विभाजन का अच्छा उदाहरण है। हर किसी को निश्चित कार्य देने के कारण समाज में श्रम विभाजन हो जाता था।

(iii) जीवन साथी चुनने में सहायक (Helpful in choosing Life Male)-जाति अंतर्विवाही होती है। इसलिए व्यक्ति के लिए यह ज़रूरी है कि वह अपनी जाति में ही विवाह करे। इससे जीवन साथी चुनने में सरलता हो जाती है।

(iv) व्यवसाय निर्धारित करना (To determine Occupation)-जातियों का अपना-अपना व्यवसाय होता है। इसके सदस्य अपनी जाति के अनुरूप व्यवसाय करते हैं। व्यवसाय पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है।

(v) रक्त की शुद्धता (Purity of Blood)-जाति अंतर्विवाह तथा बहिर्विवाह में नियमों पर आधारित है। अपनी जाति के अंदर विवाह करवाना तथा बहिर्विवाह का मतलब अपने सपिंड, सप्रवर तथा सगोत्र से बाहर विवाह करवाना होता है। इससे रक्त की शुद्धता बनी रहती है।

(vi) व्यवहारों पर नियंत्रण (Control on Behaviour)-प्रत्येक जाति के अपने मूल्य, प्रतिमान तथा नियम होते हैं। जाति नियम यह तय करते हैं कि किस जाति के साथ किस प्रकार के संबंध रखे जाएं। छूतछात, धर्म, खानपान, व्यवसाय इत्यादि संबंधी नियमों के द्वारा जाति अपने सदस्यों के व्यवहारों को नियंत्रित तथा निर्देशित करती है।

(vii) सामाजिक सुरक्षा (Social Security)-जाति अपने सदस्यों की स्थिति का निर्धारण करती है। जाति के सदस्य ज़रूरत पड़ने पर गरीबों, अनाथों, बच्चों तथा विधवाओं की सहायता करके उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

(viii) मानसिक सुरक्षा (Psychological Security)-जाति व्यवस्था में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति जन्म से ही निर्धारित हो जाती है। कई प्रकार के नियम जाति तय करती है। जातीय लोक रीतियां तथा प्रथाएं भी स्पष्ट होती हैं जिनके कारण व्यक्ति को मानसिक शांति व सुरक्षा का अहसास होता है।

(ix) सामाजिक स्थिरता (Social Stability)-भारत पर बहुतों ने आक्रमण किए। सैंकड़ों वर्ष विदेशियों ने यहां पर राज किया। इस विदेशी शासन के दौरान भी जाति प्रथा ने अपनी संस्कृति को बचा कर रखा तथा सामाजिक स्थिरता प्रदान की।

जाति प्रथा की हानियां (Disadvantages of Caste System):
(i) निम्न जातियों का शोषण (Exploitation of Low Castes)-जाति प्रथा में निम्न जातियों का शोषण होता था। उनसे कठोर परिश्रम करवाया जाता था जिसके बदले में पूरी मजदूरी भी नहीं दी जाती थी। उनसे निम्न स्तर के घृणित कार्य करवाये जाते थे। उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध हुआ करते थे। इस तरह उनका शोषण हुआ करता था।

(ii) अस्पृश्यता (Untouchability)- जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज में अस्पृश्यता या छूतछात को जन्म दिया। कई क्षेत्रों में तो जाति का उग्र रूप भी देखने को मिलता था कि कुछेक निम्न जाति के लोगों की परछाईं मात्र से अन्य जाति के लोग अपने आप को दूषित समझते थे।

(iii) धर्म परिवर्तन (Religion Conversion)-निम्न जातियों को उनकी निम्न स्थिति का अहसास करवा कर मिशनरी धर्म प्रचारक उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए उत्साहित करते हैं। समाज में उचित स्थान न मिलने के कारण निम्न जाति के सदस्य धर्म परिवर्तन कर लेते थे ताकि जाति व्यवस्था से छुटकारा मिल सके।

(iv) व्यक्तित्व विकास में बाधक (Hindrance in Personality Development)-जाति व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक होती है। व्यक्ति योग्यता होते हुए भी अपना विकास नहीं कर सकते थे। व्यक्ति उच्चता तथा निम्नता की भावना से ग्रसत रहते हैं जिस के कारण व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता है।

(v) राष्ट्रीय एकता में बाधक (Hindrance in National Unity)-जाति के आधार पर समाज तथा समुदाय छोटे-छोटे भागों में विभाजित हो जाता है। व्यक्ति की निष्ठा जाति के प्रति अधिक तथा राष्ट्र के प्रति कम हो जाती है। अपनी जाति के सदस्यों में हम की भावना रहती है जबकि अन्य जातियों के प्रति घृणा की भावना विकसित हो जाती है जिससे सांप्रदायिक दंगे हो जाते हैं। इस तरह यह राष्ट्रीय एकता में बाधक है।

(vi) स्त्रियों की निम्न स्थिति (Low Status of Women)-जाति प्रथा द्वारा बाल विवाह का प्रचलन, विधवा विवाह की मनाही तथा स्त्रियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। जाति व्यवस्था में स्त्री की कोई जाति नहीं होती। वह जिस जाति के पुरुष से विवाह करती है उसी की जाति उसकी जाति बन जाती है। इन सबसे स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

प्रश्न 4.
जाति प्रथा में आ रहे परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
जाति व्यवस्था में आये आधुनिक परिवर्तन स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय जाति व्यवस्था में लगातार संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक परिवर्तन होते रहे हैं। इन परिवर्तनों की गति स्थान तथा हालातों के अनुसार भिन्न-भिन्न रही है। आजादी के बाद जाति प्रथा में काफी तेज़ी से परिवर्तन आए हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है:
(i) उच्च जातियों की स्थिति में गिरावट (Decline in status of Brahmins)-जाति व्यवस्था की शुरुआत से ही उच्च जातियों का प्रत्येक क्षेत्र में विशेष महत्त्व रहा है। परी जाति व्यवस्था उनके इर्द-गिर्द घमती थी। जाति के संस्तंरण में उनका सर्वोच्च स्थान रहा है। परंतु शिक्षा के प्रसार, विज्ञान के विकास, नए पदों का सृजन, पश्चिमीकरण, संस्कतिकरण, आधनिकीकरण, नगरीकरण इत्यादि के कारण उनकी स्थिति में गिरावट आई है। आजकल गैर-ब्राहमणों की स्थिति उनकी शिक्षा, पैसे या सत्ता के कारण उच्च है। इस तरह उच्च जातियों की स्थिति में काफ़ी गिरावट आई है।

(ii) अंतर्जातीय संबंधों में परिवर्तन (Change in Inter Caste Relations)-प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में जजमानी व्यवस्था प्रचलित रही है जिसके चलते विभिन्न जातियों में अंतर्निर्भरता बनी रहती थी। परंतु अंतर्जातीय संबंधों में अब काफी परिवर्तन हुए हैं। पैसे के प्रचलन, उद्योगों के विकास तथा शिक्षा के प्रचार तथा प्रसार के कारण विभिन्न जातियों ने अपने परंपरागत व्यवसाय छोड़ने शुरू कर दिए हैं। सेवाओं के आदान-प्रदान में भी काफ़ी परिवर्तन हुए हैं। लोग पैसे देकर चमड़े, बांस, मिट्टी इत्यादि की चीजें खरीदने लग गए हैं। अच्छी चीजें उपलब्ध होने के कारण लोग बाज़ार जाने लग गए हैं। पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा भी परंपरागत काम छोड़ने के कारण अंतर्जातीय संबंधों का स्वरूप बदला है।

(iii) अस्पृश्यता में कमी (Decline in Untouchability)-जाति प्रथा में अस्पृश्यता का बोलबाला था। पर आज़ादी के बाद इसमें कमी आयी है। औद्योगीकरण के कारण सभी जातियों के लोग मिल कर काम करते हैं। 1955 में अस्पृश्यता कानून भी पास हो गया जिसके अनुसार अस्पृश्यता को मानना गैर कानूनी है। होटलों, क्लबों में सभी को प्रवेश मिलने से अस्पृश्यता में काफी कमी आयी है। कानून की वजह से भी इसमें काफ़ी कमी आई है।

(iv) वैवाहिक परिवर्तन (Matrimonial Changes)-हिंदू विवाह कानून 1955 द्वारा अंतर्जातीय विवाह की अनुमति प्रदान की गई है। अंतर्विवाह जाति प्रथा का सार रहा है। समाचार पत्रों में प्रकाशित वैवाहिक विज्ञापनों में Caste No bar का लिखा होना इस बात का प्रमाण है कि अब लोगों में जाति में विवाह करवाना ज़रूरी नहीं रह गया है। अब प्रेम विवाह बढ़ रहे हैं जिससे पता चलता है कि वैवाहिक प्रतिबंध ढीले हो रहे हैं।

(v) जन्म के महत्त्व में कमी (Importance of Birth is Declining)-भारतीय समाज में पारंपरिक दृष्टि से व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है उसकी सामाजिक स्थिति उसी जाति के अनुसार ही हो जाती है। लेकिन आजकल व्यक्ति के जन्म के आधार पर स्थिति का महत्त्व कम होता जा रहा है। उसकी व्यक्तिगत योग्यता तथा कुशलता का महत्त्व बढ़ रहा है। आजकल व्यक्ति की सामाजिक स्थिति समाज में जन्म से नहीं बल्कि गुणों तथा कर्मों तथा उपलब्धियों के कारण है। व्यक्ति को जाति की सदस्यता जन्म से प्राप्त होती है। जन्म के महत्त्व में कमी आने से जातीय आधार पर सामाजिक स्थिति के निर्धारण में परिवर्तन हुआ है।

(vi) व्यावसायिक गतिशीलता में वृद्धि (Increase in Occupational Mobility)-भारतीय समाज में जातिगत व्यवसायों में काफ़ी गतिशीलता आई है। बहुत सारे नए व्यवसायों का विकास हुआ है। लाखों नए पदों का विकास हुआ है। विभिन्न पदों के लिए शैक्षिक योग्यता ज़रूरी है इसलिए सभी ने शिक्षा लेनी शुरू की। शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्राप्त करके कोई भी किसी भी पद का पात्र बन सकता है। निम्न जाति का सदस्य संस्कृत तथा वेदों का विशेष ज्ञान प्राप्त करके यज्ञ भी करवा सकता है। आजकल कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यवसाय को अपना सकता है। इससे व्यावसायिक गतिशीलता का पता चलता है।

(vii) भोजन प्रतिबंधों में कमी (Decline in Food Restrictions)-जातीय आधार पर भोजन संबंधी नियम काफी शिथिल हुए हैं। पढ़ी-लिखी नई पीढ़ियों में कच्चे तथा पक्के भोजन की अवधारणा खत्म होती जा रही है। होटलों, ढाबों, लंगरों, मंदिरों में किस जाति का व्यक्ति भोजन बांट रहा है इसके बारे में कोई पता नहीं चलता है। होटल, क्लब में जाकर व्यक्ति यह नहीं पूछता है कि किस ने खाना बनाया या परोसा है। इस तरह भोजन प्रतिबंधों में काफी हद तक कमी आई है।

प्रश्न 5.
कबीला अथवा जनजाति क्या होती है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
अथवा
जनजातीय समुदाय क्या है?
उत्तर:
हमारे देश में एक सभ्यता ऐसी होती है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहती है। इस सभ्यता को कबीला, आदिवासी, जनजाति इत्यादि जैसे नामों से पुकारा जाता है। भारतीय संविधान में इन्हें पट्टीदर जनजाति भी कहा गया है। कबाइली समाज वर्गहीन समाज होता है। इसमें किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। प्राचीन समाजों में कबीले को बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक समूह माना जाता था।

कबाइली समाज की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों अथवा जंगली इलाकों में पाई जाती है। यह लोग संपूर्ण भारत में पाए जाते हैं। – यह समाज आमतौर पर स्वः निर्भर होते हैं जिनका अपने ऊपर नियंत्रण होता है तथा यह किसी के भी नियंत्रण से दूर होते हैं। कबाइली समाज शहरी समाजों तथा ग्रामीण समाजों की संरचना तथा संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होते हैं। इनको हम तीन श्रेणियों में बांट देते हैं-शिकार करने वाले तथा मछली पकड़ने वाले और कंदमूल इकट्ठा करने वाले, स्थानांतरित तथा झूम कृषि करने वाले तथा स्थानीय रूप से कृषि करने वाले। यह लोग हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा समाज से बिल्कुल ही अलग होते हैं।

जनजाति की परिभाषाएँ
(Definitions of Tribe)
(1) इंपीरियल गजेटियर आफ इंडिया (Imperial Gazetear of India) के अनुसार, “कबीला परिवारों का एक ऐसा समूह होता है जिसका एक नाम होता है, इसके सदस्य एक ही भाषा बोलते हैं तथा एक ही भू-भाग में रहते हैं तथा अधिकार रखते हैं अथवा अधिकार रखने का दावा करते हैं तथा जो अंतर्वैवाहिक हों चाहे अब न हों।”

(2) गिलिन तथा गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “कबीला स्थानीय कुलों तथा वंशों की एक व्यवस्था है जो एक समान भू-भाग में रहते हैं, समान भाषा बोलते हैं तथा एक जैसी ही संस्कृति का अनुसरण करते हैं।’

इस तरह इन अलग-अलग परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कबीले छोटे समाजों के रूप में एक सीमित क्षेत्र में पाए जाते हैं। कबीले अपनी सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति जैसे कई पक्षों के आधार पर एक दूसरे से अलग-अलग तथा स्वतंत्र होते हैं। हरेक जनजाति की अलग ही भाषा, संस्कृति, परंपराएं, खाने-पीने इत्यादि के ढंग होते हैं।

इनमें एकता की भावना होती है क्योंकि यह एक निश्चित भू-भाग में मिलजुल कर रहते हैं। यह बहुत से परिवारों का एकत्र समूह होता है जिस में काफ़ी पहले अंतर्विवाह भी होता था। आजकल इन कबाइली लोगों को भारत सरकार तथा संविधान ने सुरक्षा तथा विकास के लिए बहुत सी सुविधाएं जैसे कि आरक्षण इत्यादि दिए हैं तथा धीरे-धीरे यह लोग मुख्य धारा में आ रहे हैं।

जनजाति की विशेषताएँ
(Characteristics of a Tribe)
1. परिवारों का समूह (Collection of Families)-जनजाति बहुत-से परिवारों का समूह होता है जिन में साझा उत्पादन होता है। वह जितना भी उत्पादन करते हैं उससे अपनी ज़रूरतें पूर्ण कर लेते हैं। वह कुछ भी इकट्ठा नहीं करते हैं जिस कारण उनमें संपत्ति की भावना नहीं होती है। इस कारण ही इन परिवारों में एकता बनी रहती है।

2. साझा भौगोलिक क्षेत्र (Common Territory) कबीलों में लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं। एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह बाकी समाज से अलग होते हैं तथा रहते हैं। यह और समाज की पहुँच से बाहर होते हैं क्योंकि इन की अपनी ही अलग संस्कृति होती है तथा यह किसी बाहर वाले का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते इसलिए यह बाकी समाज से कोई रिश्ता नहीं रखते। इनका अपना अलग ही एक संसार होता है। इनमें सामुदायिक भावना पायी जाती है क्योंकि यह साझे भू-भाग में रहते हैं।

3. साझी भाषा तथा साझा नाम (Common Language and Common Name)-प्रत्येक कबीले की एक अलग ही भाषा होती है जिस कारण यह एक-दूसरे से अलग होते हैं। हमारे देश में कबीलों की संख्या के अनुसार ही उनकी भाषाएं पायी जाती हैं। हरेक जनजाति का अपना एक अलग नाम होता है तथा उस नाम से ही यह कबीला जाना जाता है।

4. खंडात्मक समाज (Segmentary Society)-प्रत्येक जनजातीय समाज दूसरे जनजातीय समाज से कई आधारों जैसे कि खाने-पीने के ढंगों, भाषा, भौगोलिक क्षेत्र इत्यादि के आधार पर अलग होता है। यह कई आधारों पर अलग होने के कारण एक-दूसरे से अलग होते हैं तथा एक-दूसरे का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते। इनमें किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं पाया जाता। इस कारण इनको खंडात्मक समूह भी कहते हैं।

5. साझी संस्कृति (Common Culture)-प्रत्येक जनजाति के रहन-सहन के ढंग, धर्म, भाषा, टैबु इत्यादि एक-दूसरे से अलग होते हैं। परंतु यह सभी एक ही कबीले में समान होते हैं। इस तरह सभी कुछ अलग होने के कारण एक ही कबीले के अंदर सभी कबीले के अंदर सभी व्यक्तियों की संस्कृति भी समान ही होती है।

6. आर्थिक संरचना (Economic Structure)-प्रत्येक जनजाति के पास अपनी ही भूमि होती है जिस पर वह अधिकतर स्थानांतरित कृषि ही करते हैं। वह केवल अपनी ज़रूरतों को पूर्ण करना चाहते हैं जिस कारण उनका उत्पादन भी सीमित होता है। वह चीज़ों को एकत्र नहीं करते जिस कारण उनमें संपत्ति को एकत्र करने की भावना कारण ही जनजातीय समाज में वर्ग नहीं होते। प्रत्येक चीज़ पर सभी का समान अधिकार होता है तथा इन समाजों में कोई भी उच्च अथवा निम्न नहीं होता है।

7. आपसी सहयोग (Mutual Cooperation)-कबीले का प्रत्येक सदस्य कबीले के और सदस्यों को अप सहयोग देता है ताकि कबीले की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सके। कबीले में प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा भी प्राप्त होती है। अगर कबीले के किसी सदस्य के साथ किसी अन्य कबीले के सदस्य लड़ाई करते हैं तो पहले कबीले के अन्य सदस्य अपने साथी से मिलकर दूसरे कबीले से संघर्ष करने के लिए तैयार रहते हैं। प्रत्येक जनजाति के मुखिया का यह फर्ज होता है कि वह अपने कबीले का मान सम्मान रखे। कबीले के मुखिया के निर्णय को संपूर्ण कबीले द्वारा मानना ही पड़ता है तथा वह मुखिया के निर्णय की इज्जत भी इसी कारण ही करते हैं। कबीले के सभी सदस्य कबीले के प्रति वफ़ादार रहते हैं।

8. राजनीतिक संगठन (Political Organization)-कबीलों में गांव एक महत्त्वपूर्ण इकाई होता है तथा 10-12 गांव मिलकर एक राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं। यह बहुत सारे संगठन अपनी एक कौंसिल बना लेते हैं तथा प्रत्येक कौंसिल का एक मुखिया होता है। प्रत्येक कबाइली समाज इस कौंसिल के अंदर ही कार्य करता है। कौंसिल का वातावरण लोकतांत्रिक होता है। कबीले का प्रत्येक सदस्य कबीले के प्रति वफ़ादार होता है।

9. कार्यों की भिन्नता (Division of Labour)-कबाइली समाज में बहुत ही सीमित श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण पाया जाता है। लोगों में भिन्नता के कई आधार होते हैं जैसे कि उम्र, लिंग, रिश्तेदारी इत्यादि। इनके अतिरिक्त कुछ कार्य अथवा भूमिकाएं विशेष भी होती हैं जैसे कि एक मुखिया तथा एक पुजारी होता है। साथ में एक वैद्य भी होता है जो बीमारी के समय दवा देने का कार्य भी करता है।

10. स्तरीकरण (Stratification)-कबाइली समाजों में वैसे तो स्तरीकरण होता ही नहीं है, अगर होता भी है तो वह भी सीमित ही होता है क्योंकि इन समाजों में न तो कोई वर्ग होता है तथा न ही कोई जाति व्यवस्था होती है। केवल लिंग अथवा रिश्तेदारी के आधार पर ही थोड़ा-बहुत स्तरीकरण पाया जाता है।

प्रश्न 6.
भारत में मिलने वाले अलग-अलग कबीलों के राजनीतिक संगठनों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में मिलने वाले कबीलों को हम तीन भागों में बांट सकते हैं-

  • उत्तर पूर्वी कबीले (North Eastern Tribes)
  • मध्य भारतीय कबीले (Central Indian Tribes)
  • दक्षिण भारतीय कबीले (South Indian Tribes)

अब हम इनका वर्णन विस्तार से करेंगे।
1. उत्तर पूर्वी कबीलों के राजनीतिक संगठन (Political Organization of North Eastern Tribes)-उत्तर पूर्वी क्षेत्र में हम त्रिपुरा, मिज़ोरम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, असम, अरुणाचल प्रदेश इत्यादि जैसे प्रदेश ले सकते हैं। इन प्रदेशों के प्रमुख कबीले नागा, मिज़ो, अपातनी (Apatani), लुशाई, जंतिया, गारो, खासी इत्यादि आते हैं।

असम में मिलने वाले कबीलों में लोकतांत्रिक राजनीतिक संगठन पाए जाते हैं। इनमें अधिकतर कबीलों में भूमि के सामूहिक स्वामित्व को मान्यता प्राप्त है तथा साथ ही साथ भूमि पर व्यक्तिगत अधिकारों को भी मान्यता प्राप्त है। एक गांव के लोग कहीं पर भी कृषि करने को स्वतंत्र हैं। चाहे गांव के अलग-अलग परिवारों की आर्थिक स्थिति अलग होती है। परंतु इस अंतर से इनके समाज में कठोर सामाजिक स्तरीकरण उत्पन्न नहीं हुआ है। इनमें से अधिकतर कबीले बहिर्वैवाहिक गोत्रों में बंटे होते हैं, बाकी बचे कबीले गांव के समुदायों में गोत्र व्यवस्था के बिना रहते हैं। यह अलग अलग गोत्र अपने मुखिया के अंतर्गत कार्य करते हैं।

खासी कबीले में मुखिया की मृत्यु के बाद उसकी पदवी बड़ी बहन के बड़े पुत्र को प्राप्त होती है। अगर कोई आदमी मौजूद नहीं है तो बड़ी बहन की बड़ी बेटी को मुखिया बनाया जाता है। प्राचीन समय में खासी कबीला 25 खासी प्रदेशों में बँटा हुआ था जो कि एक-दूसरे से स्वतंत्र थे।

इन कबीलों में प्रशासन लोकतांत्रिक होता था जिसका कि एक मुखिया भी होता था। खासी कबीले में मुखिया न तो लोगों पर कोई कर लगा सकता था, न ही वह स्वतंत्र तौर पर कोई नीति बना सकता था तथा न ही उसको भूमि या जंगल से संबंधित कोई अधिकार था। जनता की राय के अनुसार निर्णय लिए जाते थे। निर्णय लेने के लिए कबीले के सभी बालिगों की सभा बुलाई जाती थी तथा लोगों को इसमें भाग लेना ही पड़ता था। लुशाई कबीले में चाहे मुखिया के पास अधिक अधिकार थे परंतु, यहां भी उसके लिए गांव के बुजुर्गों या सभा के निर्णय के विरुद्ध जाना मुमकिन नहीं था। चाहे मुखिया या और पद पैतृक थे परंतु प्रशासन लोकतांत्रिक होता था।

गारो कबीले में राजनीतिक प्रशासन लोकतान्त्रिक रूप से ही चलता था। गारो कबीले में कोई मुखिया (Chiefs) नहीं होते केवल एक Headman होता है जो कि कबीले का नाममात्र का मुखिया होता है। गांव या कबीले में सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय गांव की कौंसिल अथवा सभा द्वारा लिए जाते हैं जिसमें परिवारों के बुजुर्ग सदस्य होते हैं। नागा कबीले के राजनीतिक संगठन में बहुत अधिक विविधता (Diversity) देखने को मिल जाती है। कुछ नागा कबीले मुखिया की निरंकुश (Autocratic) मर्जी पर चलते हैं जबकि कुछ नागा कबीलों में लोकतांत्रिक गांव की सभा होती है जिस में Headman को बहुत ही कम अधिकार होते हैं।

अधिकतर नागा कबीलों को अत्याचारी, हिंसक, रक्त के प्यासे समझा जाता है परंतु इस तरह के विचार बनाना ठीक नहीं है। चाहे अधिकतर नागा कबीलों को लड़ाई के मैदान में देखा जा सकता है परंतु इस को सामाजिक ऐतिहासिक दृष्टि से देखना चाहिए। बहुत-से लोग यह देखकर हैरान होते हैं कि इस तरह की अव्यवस्था में स्थिर प्रशासन कैसे स्थापित हो सकता है जहां प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में एक कानून है। परंतु इन हालातों में भी लचकीले प्रकार का राजनीतिक संगठन देखने को मिल जाता है। कोनयाक (Konyak) कबीले में तो मुखिया को बहुत अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं। नागा कबीले में तो प्राकृतिक आपदाओं तथा प्राकृतिक शक्तियों के विरुद्ध सुरक्षा के लिए राजनीतिक संगठन तो हमेशा प्रयास करते रहते हैं।

2. मध्य भारत के कबीले (Central Indian Tribes)-भारत में सबसे अधिक कबीले मध्य प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा के इस क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। इन कबीलों में गोत्रों की एकता के आधार पर राजनीतिक संगठन के कुछ तत्त्व एक जैसे हैं। गांव के मुखिया की सहायता के लिए बुजुर्गों की एक सभा होती है जो गांव के प्रशासन की देख-रेख करती है। इस सभा में निर्णय या तो आम राय से लिए जाते हैं अथवा बहुमत से लिए जाते हैं तथा मुखिया के लिए सभा के निर्णय के विरुद्ध जाना मुश्किल नहीं होता है।

इस क्षेत्र के बहुसंख्यक कबीले भील, गौंड तथा ऊराओं लोग हैं। ऊराओं लोगों ने ‘Parha’ संगठन का निर्माण किया है जो कि बहुत-से पड़ोसी गांवों का संगठन होता है जिस में एक केंद्रीय संगठन ‘परहा पंच’ होता है। प्रत्येक ऊराओं परहा में कई गांव होते हैं। इनमें से एक गांव को रहा (राजा) गांव कहते हैं, दूसरे गांव को दीवान कहते हैं, तीसरे को पनरी (राजा का क्लर्क) कहते हैं, चौथे को कोतवाल गांव कहते हैं और सभी गांवों में से किसी को भी अधिक सत्ता प्राप्त नहीं है तथा उन्हें प्रजा कहा जाता है। राजा गांव को परहा का मुखिया गांव कहा जाता है। परहा के प्रत्येक गांव का अपना एक झंडा होता है तथा बैज (Badge) होता है जो किसी और गांव का नहीं होता है। परहा कौंसिल का मुख्य कार्य अलग अलग गांवों के बीच झगड़े निपटाना है।

संथाल लोगों में सब से निम्न राजनीतिक सत्ता गांव के मुखिया के पास होती है जिसे मंझी (Manjhi) कहा जाता है। मंझी तथा गांव के अन्य बुजुर्ग एक-दूसरे से मिलते हैं तथा गांव के मसलों के बारे में चर्चा करते हैं। मुखिया को विवाह के समय कुछ उपहार भी मिलते हैं तथा उसके पास बिना किराए की ज़मीन भी होती है। मंझी के पास सिविल तथा नैतिक सत्ता भी होती है। अपने दैनिक कार्यों के लिए उप-मुखिया उसकी मदद करता है।

मुंडा लोगों में गांव के मुखिया को मुंडा ही कहा जाता है परंतु धार्मिक मुखिया को ‘पहां’ (Pahan) कहा जाता है। 12 गांवों को मिला कर एक पट्टी अथवा परहा का निर्माण होता है जिसके मुखिया को ‘मनकी’ (Manki) कहा जाता है। गांवों के मुखिया एक समूह का निर्माण करते हैं जिनमें मनकी सबसे प्रभावशाली होता है। गौंड लोगों में मूल राजनीतिक इकाई गांव होता है। गांव के मुखिया को पटेल अथवा मंडल कहा जाता है। गांव के कुछ बुजुर्ग उसकी गांव के कार्य करने लोग बिहार के बस्तर जिले में पाए जाते हैं। चाहे बस्तर के हिंदू राजा की इन लोगों पर कोई प्रभुता नहीं होती है परंतु फिर भी उस को सभी गौंड समूहों का आध्यात्मिक मुखिया माना जाता है।

3. दक्षिण भारतीय कबीले (South Indian Tribes) यह कबाइली क्षेत्र एक तथ्य से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा वह तथ्य यह है कि इस क्षेत्र में तकनीकी तथा आर्थिक रूप से संसार के सबसे पिछड़े हुए कबीले रहते हैं। इस क्षेत्र के अधिकतर कबीले छोटे-छोटे समूह बना कर रहते हैं तथा वह या तो जंगलों में फैले (dispersed) हुए होते हैं या फिर गांवों के किसानों के पास कार्य करते हैं। आम तौर पर यह लोग अपने अनुसार ही जीवन जीते हैं तथा यह किसी बाहरी शक्ति के साथ संपर्क तथा हस्तक्षेप से दूर रहना ही पसंद करते हैं।

अंडेमान तथा निकोबार द्वीप समूहों के कबीले अभी भी आर्थिक विकास की शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने वाली अवस्था में जी रहे हैं। इनमें से बहुत से घुमन्तू समूह होते हैं परंतु फिर भी यह एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में ही घूमते रहते हैं। प्रत्येक स्थानीय समूह में 5-10 परिवार होते हैं तथा हरेक समूह का अपना ही मुखिया होता है। यह स्थानीय समूह अलग ही रहते तथा कार्य करते हैं। चाहे विशेष शिकार करने के समय अथवा कुछ उत्सवों के समय यह अस्थायी तौर पर एक-दूसरे से मिल जाते हैं। इन स्थानीय समूहों के मुखिया ही इनके अंदरूनी मामलों की देख-रेख करते हैं।

कई और घुमंतु कबीलों में समूह के मुखिया नाम की कोई पदवी नहीं है। परिवारों के मुखिया इकट्ठे बैठते हैं तथा जब भी कोई समस्या सामने आती है तथा निर्णय लेने होते हैं तो वह सभी इकट्ठे होकर मसले का निपटारा करते हैं। अलार (Allar) तथा अरंडर (Arandar) लोगों में कोई मुखिया नहीं होता है। समूह के बुजुर्गों में एक जगह एकत्र होने के समय पर समुदाय के मसलों पर चर्चा होती है तथा इनका निर्णय सभी को मानना ही पड़ता है। जो लोग निर्णय को नहीं मानते हैं वह समूह को छोड़ कर चले जाते हैं तथा दूसरे समूह का हिस्सा बन जाते हैं। कदार (Kadar) लोगों में मुखिया की संस्था अब खत्म हो गई है।

केरल के अदियार (Adiyar) कबीले में मुखिया का पद पैतृक होता है। यदि पद के लिए पुत्र ठीक नहीं है तो भतीजे को पद प्राप्त हो जाता है। मुखिया एक विशेष पद है परंतु वह एक निरंकुश
(Autocratic) शासक नहीं होता है। वह केवल बुजुर्गों की मीटिंग की प्रधानता करता है जिसमें समुदाय के मामलों की चर्चा होती है।

प्रश्न 7.
जनजातीय विवाह क्या होता है? जनजातियों में जीवन साथी चुनने के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर:
भारत में जनजातीय विवाह (Tribal Marriage in India)-भारत में सैंकड़ों जनजातीय समूह निवास करते हैं। प्रत्येक जनजाति में अपनी अलग संस्कृति, रीति-रिवाज, विश्वास एवं धर्म होता है। अलग संस्कृति होने के कारण इनकी अलग पहचान भी होती है। भारत में कुछ जनजातियां त्योहारों या उत्सवों के अवसर पर विवाह पूर्व या विवाहेत्तर यौन संबंध स्थापित करने की अनुमति प्रदान करती हैं। परंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि इन समाजों में विवाह संबंधी कोई नियम ही नहीं है।

विवाह संबंधी अनेक नियम भी जनजाति की अपनी अलग पहचान बनाते हैं। जनजातियों में आमतौर पर एक विवाह की प्रथा पाई जाती है। विभिन्न जनजातियों थेडा, अंडमानी, चेंचू, कादर इत्यादि सबसे कम विकसित जनजातियां हैं। जीवन साथी के चुनाव में भी जनजातीय समाजों में अनेक नियम व निषेधों की पालना की जाती है।

जनजाति में विवाह के प्रकार (Types of Marriage in Tribes) भारतवर्ष में भारतीय जनजातियों में पाए जाने वाले विवाह के प्रमुख स्वरूपों का वर्णन निम्नलिखित है:
1. एक विवाही प्रथा (Monogamy)-भारत की अधिकतर जनजातियों में एक विवाह की प्रथा का प्रचलन है। एक विवाह प्रथा के अंतर्गत एक व्यक्ति, एक समय में केवल एक ही विवाह कर सकता है। भारतीय मुख्यः जनजातियों, जैसे संथाल, मुंडा, ओकाओ, हो, गोंड, भील, कोर्वा, जुआंगा, लीठा, बिरहोल, भोत, मिना, कादर, मीजो इत्यादि में एक विवाही प्रथा ही प्रचलित है।

2. बहु विवाह प्रथा (Polygamy) बहु विवाह प्रथा के अंतर्गत व्यक्ति एक समय में एक से अधिक स्त्री/पुरुषों के साथ विवाह कर सकता है। भारत की अनेक जनजातियों में बहु विवाह प्रचलित है।

बहु विवाह दो प्रकार का है।

  • बहु पति विवाह (Polyandry)
  • बहु पत्नी विवाह Polygany)।

1. बहु पति विवाह (Polyandry)-बहु पति विवाह प्रथा के अंतर्गत एक स्त्री के एक समय में अनेक पति होते हैं अर्थात अनेक पति एक पत्नी। भारत की कई जनजातियों में यह प्रथा पाई जाती है। भारत आर्य तथा मंगोल जनजातियों, थेडा, कोटा, खासा तिब्बत के लोगों में भी सामान्यतया इसी प्रथा का पालन होता है। बहु पति विवाह के भी आगे दो रूप हैं।

भ्रातृत्व बहु पति और अभ्रातृत्व बहु पति विवाह-भ्रातृत्व बहु पति विवाह में कई सगे भाइयों की एक ही समय में एक ही पत्नी होती है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में भ्रातृत्व बहुपति प्रथा पाई जाती है। अभ्रातृत्व बहुपति प्रथा के अंतर्गत अनेक पति आपस में सगे भाई नहीं होते। अनेक विभिन्न व्यक्ति एक स्त्री से विवाह करते हैं तथा उनकी पत्नी थोड़े-थोड़े समय के लिए बारी-बारी सबके पास जाती है। टोडा, नापर, कोटा, मन्ना आदि जनजातियों में यही प्रथा प्रचलित है।

2. बह पत्नी विवाह (Polygany)-इस प्रथा के अंतर्गत एक समय में एक पुरुष की एक से अधिक पत्नियां होती हैं। बहू पत्नी विवाह का यह रूप अनेक भारतीय जनजातियों में पाया जाता है। इन जनजातियों के समाज में इस प्रथा का पालन करना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। नागा, गोंड, थेडा, लोशाई, पालियन, पुलामो इत्यादि जनजातियों में बहु पत्नी विवाह प्रथा ही पाई जाती है।

भारतीय जनजातियों में उपर्युक्त विवाह के स्वरूपों के अतिरिक्त कुछ विवाह अधिमानिक अर्थात् आदेशात्मक भी होते हैं। अधिमानक (Preferential) विवाहों के अंतर्गत चचेरे, ममेरे, भाई-बहनों का विवाह (Cross Cousin Marriage) नियोग एवं भगिनीयता (Levirate & Sorarate) विवाह आते हैं। चचेरे, ममेरे, भाई-बहिन किसी व्यक्ति के परिवार के दोनों ओर से भी हो सकते हैं अर्थात् पिता की बहन या माता के भाई या पिता के भाई के बच्चे भी हो सकते हैं।

ये विवाह अपने चाचा, मामा इत्यादि के बच्चों में किया जाता है। इस तरह नियोग तथा भगिनीयता विवाह भी इसी समाज में पाया जाता है। नियोग (Levirate) विवाह में एक व्यक्ति अपने मृत भाई की विधवा पत्नी से विवाह कर सकता है। भगिनीयता विवाह में व्यक्ति का विवाह साली (Sister in Law) से किया जाता है। नियोग और भगिनीयता विवाह विशेष रूप से अंतर पारिवारिक दायित्वों की स्वीकृति पर बल देते हैं। इन प्रथाओं में विवाह के दो व्यक्तियों की अपेक्षा दो परिवारों के बीच संबंध को अधिक मान्यता दी जाती है।

जनजातियों में जीवन साथी चुनने के तरीके – (Tribal ways of Choosing & Life-Mate):
जनजातियों में विवाह यौन सुख, संतान उत्पत्ति व आपसी सहयोग के विकास के लिए किया जाता है। हिंदू समाज की तरह जनजातियों में विवाह एक धार्मिक संस्कार नहीं माना जाता बल्कि इसमें विवाह को एक सामाजिक समझौते के रूप में देखा जाता है। जनजातियों में मुख्यतः निम्न प्रकार के विवाह संबंध विकसित किये जाते हैं-

1. सह-पलायन विवाह (Elopment Marriage)-विवाह योग्य लड़का-लड़की दोनों घर से भाग जाते हैं तथा विवाह कर लेते हैं। उसे सह-पलायन कहते हैं। इसके बाद बड़े-बूढ़े व्यक्ति इनकी जोड़ी को स्वीकार कर लेते हैं। यह विवाह पद्धति मुख्यतः वधू की ऊंची कीमत के कारण विकसित हुई मानी जाती है। सह-पलायन या घर से भाग कर विवाह का प्रचलन मुख्यतः किन्नौर, लाहौल स्पीति, छोटा नागपुर एवं झारखंड की जनजाति में है। झारखंड राज्य में ‘हो’ जनजाति में इस विवाह को राजी-खुशी विवाह कहा जाता है।

2. विनिमय विवाह (Marriage by Exchange)-इस प्रकार की विवाह प्रथा में दो परिवार स्त्रियों का आपस में आदान-प्रदान करते हैं। यह विवाह की विधि वधू की ऊंची कीमत के भुगतान से बचने के लिए विकसित की गई है। ये विवाह प्रथा संपूर्ण भारतवर्ष में किसी न किसी रूप में देखी जा सकती है। इस प्रथा के अंतर्गत एक व्यक्ति अपनी पत्नी प्राप्त करने के लिए उसके बदले में अपनी बहिन या परिवार की कोई स्त्री देता है। ये विधि खासी जनजाति की विशेषता है।

3. खरीद विवाह (Marriage by Purchase)-इस विवाह का रूप प्रारंभिक जनजातियों समाजों में अत्यधिक प्रचलित था। इस विवाह में वधू का मूल्य चुकाया जाता है। वधू के मूल्य का भुगतान नगद या फिर वस्तु के रूप में किया जाता है। मुख्य जनजातियां मुंडा, ओराओ, हो, संथाल, नागा, रेग्मां आदि में खरीद विवाह ही प्रचलित है। खरीद विवाह को क्रय विवाह भी कहा जाता है।

4. लूट विवाह (Marriage by Capture)-भारतीय जनजातियों में वधू प्राप्त करने का तरीका लूटकर विवाह करना है। यह प्रथा जनजातियों में वधू का अत्यधिक मूल्य का होने के कारण प्रचलित है। स्त्रियां लूटकर विवाह करने की प्रथा उत्तर:पूर्वीय क्षेत्र की नागा जनजातियों में अधिक प्रचलित है। इस प्रथा में एक जनजाति के लोग अपनी शत्रु जनजाति पर हमला करते हैं तथा लड़कियों को उठाकर ले जाते हैं। विवाह की ये प्रथा नागा, संथाल, मुंडा, गौंड, भील तथा पाई आदि जनजातियों में पायी जाती है।

5. सेवा विवाह (Marriage by Service)-इस विवाह प्रथा में लड़का अपने ससर के घर विवाह पूर्व एक निश्चित समय तक उसकी सेवा करता है। इस अवधि के पश्चात् यदि वधू का पिता उसकी सेवा से संतुष्ट होता है तो अपनी बेटी का हाथ उसे देता है। यदि वह उसके कार्य से असंतुष्ट होता है तो वर को घर से निकाल दिया जाता है। सेवा अवधि व सेवा स्वरूप भिन्न-भिन्न जातियों में भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। गौंड, बैगा आदि जनजातियों में ये प्रथा पाई जाती है।

6. हठ विवाह (Marriage by Intrusion) हठ विवाह के अंतर्गत एक व्यक्ति किसी स्त्री के साथ आत्मीयता के संबंध बनाता है। परंतु किसी न किसी बहाने से विवाह करने से हट जाता है तो वह स्त्री अपने-आप पहल करके उस व्यक्ति के घर में घुस जाती है। व्यक्ति के माता-पिता उसको मारते-पीटते हैं और प्रताड़ित करते हैं। यदि कन्या यह सह लेती है तो पड़ोस के लोग उस युवक को उस कन्या से विवाह के लिए बाध्य कर देते हैं। कई जनजातियों में इस विवाह को अनादर विवाह कहा जाता है।

7. परीवीक्षा विवाह (Probationary Marriage)-इस विवाह के फलस्वरूप एक युवक निश्चित समय के लिए युवती के घर उसके पिता के साथ रहता है। इस परीवीक्षा काल में युवक व युवती यदि दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं तो उनका विवाह कर दिया जाता है अन्यथा दोनों अलग-अलग हो जाते हैं। इसमें क्षतिपूर्ति के रूप में युवक, युवती को कुछ दान देता है। इस परीवीक्षा अवधि में यदि युवती गर्भवती हो जाए तो युवक को उससे विवाह करना ही पड़ता है। मणिपुर की कूकी जनजाति में यह विवाह प्रथा प्रचलित है।

8. परीक्षा विवाह (Marriage by Test)-इस परीक्षा विवाह के अंतर्गत व्यक्ति तभी विवाह कर सकता है जब वह अपने आपको इसके लिए प्रमाणित कर लेता है। इस प्रथा में होली के अवसर पर सभी विवाह के इच्छुक नौजवान लड़के तथा लड़कियां एक पेड़ के नीचे या खंबे के पास इकट्ठे होकर (वृत्त बनाकर) नृत्य करते हैं। उस पेड़ या खंबे की चोटी पर नारियल और गुड़ बांधा जाता है। युवतियां पेड़ या खंबे के चारों ओर वृत्त बनाकर नृत्य करती हैं तथा युवक युवतियों के वृत्त के चारों और वृत्त बनाकर नाचते हैं।

हर युवक पेड़ या खंबे के नज़दीक पहुंचने की कोशिश करता है। युवतियां इन्हें रोकने का पूरा प्रयास करती हैं। यहां तक कि युवक को रोकने के लिए उसे डंडे तक से भी पीटा जाता है। इस सबके बावजूद भी यदि युवक पेड़ या खंबे तक पहुंचने में कामयाब हो जाता है और नारियल व गुड़ प्राप्त कर लेता है तो उसे नृत्य करती हुई किसी भी युवती के साथ विवाह करने की अनुमति मिल जाती है। उपर्युक्त स्वरूपों के आधार पर कहा जा सकता है कि अनेक जनजातियां अपने-अपने आधार पर विवाह के अनेक स्वरूपों को अपनाए हुए हैं।

प्रश्न 8.
परिवार का क्या अर्थ है? इसकी परिभाषाओं तथा विशेषताओं की व्याख्या करें।
उत्तर:
परिवार का अर्थ (Meaning of Family)-परिवार शब्द अंग्रेजी के शब्द ‘Family’ का हिंदी रूपांतर है। Family शब्द रोमन शब्द (Famulous) ‘फैमलयस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नौकर’ या ‘दास’.। इस तरह से रोमन कानून में परिवार से अभिप्राय है एक ऐसा समूह जिसमें नौकर या दास, मालिक या सदस्य शामिल हैं जो कि रक्त संबंधों के आधार पर एक-दूसरे से संबंधित हों। इससे स्पष्ट है कि परिवार कुछ लोगों का इकट्ठा होना नहीं, बल्कि उनमें संबंधों की व्यवस्था है।

यह एक ऐसी संस्था है, जिसमें औरत और आदमी का समाज से मान्यता प्राप्त लिंग संबंधों (Sex Relations) को स्थापित करता है। संक्षेप में, परिवार व्यक्तियों का वह समूह है, जो कि विशेष “नाम” से पहचाना जाता है जिसमें स्त्री एवं पुरुष का स्थायी लिंग संबंध हो, और इसी प्रक्रिया में सदस्यों के पालन-पोषण की व्यवस्था हो तथा उनमें रक्त के संबंध हों और वे एक विशेष निवास स्थान पर रहते हों।

परिवार ‘शब्द’ का सही अर्थ जानने के लिए यह आवश्यक है कि समाज शास्त्रियों की ओर से दी गई सभी परिभाषाओं को ठीक तरह से देख लें। इन सभी में थोड़ा-बहुत अन्तर तो है ही क्योंकि हर विद्वान् ने अपने दृष्टिकोण से और अपने-अपने हालातों के अनुसार परिभाषा दी है। इन सभी का वर्णन निम्न प्रकार से है-
(1) आगबर्न और निमकॉफ (Ogburn and Nimcoff) के अनुसार, “परिवार बच्चों सहित या बच्चों रहित, पति-पत्नी या अकेला एक आदमी या औरत और बच्चों की एक स्थाई सभा है।”

(2) मैकाइवर और पेज़ (Maclver and Page) के अनुसार, “परिवार एक ऐसा समूह है जो कि निश्चित एवं स्थायी लिंग संबंधों द्वारा परिभाषित किया जाता है, जो बच्चों को पैदा करने एवं पालन-पोषण के अवसर प्रदान करता है।”

(3) मर्डोक (Mardock) के अनुसार, “परिवार एक ऐसा समूह है जिसकी विशेषताएं हमारा निवास स्थान, आर्थिक सहयोग और संतान की उत्पत्ति या प्रजनन हैं, इसमें दोनों लिंगों के बालिग शामिल होते हैं और इसमें कम से-कम दो के मध्य सामाजिक दृष्टि से स्वीकृत लिंग संबंध होता है और लिंग संबंधों से बने इन बालिगों के अपने या गोद लिए हुए एक या इससे ज्यादा बच्चे होते हैं।” इस तरह उपरोक्त सभी समाज शास्त्रियों द्वारा दी गई परिवार की परिभाषाएं देखते हुए, हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि परिवार एक ऐसा समूह है, जिसमें आदमी एवं औरत के लैंगिक संबंधों को समाज की तरफ से मान्यता प्राप्त होती है।

इस तरह से यह एक जैविक इकाई है जिसमें लैंगिक संबंधों की पूर्ति एवं संतुष्टि होती है और उससे बच्चे पैदा किए जाते हैं, बच्चों का पालन-पोषण किया जाता है और उन्हें बड़ा किया जाता है। इस तरह यहां पर लिंग संबंधों को विधिपूर्वक स्वीकार किया जाता है और यह आर्थिक आधार पर भी टिका है। इसमें बच्चों की ज़िम्मेदारी भी शामिल है।

इस प्रकार परिवार व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक आवश्यकता है। चाहे इसके अर्थों के बारे में अलग-अलग समाजशास्त्रियों के विचारों में भिन्नता पाई जाती है, परंतु सभी इस बात पर सहमत हैं कि परिवार ही एक ऐसा समूह है जिसमें मर्द तथा स्त्री के लैंगिक संबंधों को मान्यता प्रदान की जाती है तथा यह एक सर्वव्यापक समूह है जो प्रत्येक समाज में पाया जाता है। परिवार को एक जैविक इकाई के रूप में भी माना जा सकता है।

परिवार की विशेषताएँ
(Characteristics of Family)
1. परिवार एक सर्वव्यापक समूह है (Family is a universal group)-परिवार को एक सर्वव्यापक समूह माना जाता है क्योंकि यह प्रत्येक समाज तथा प्रत्येक काल में पाया जाता रहा है। अगर इसे मनुष्यों के इतिहास के पहले समूह या संस्था के रूप में माने तो ग़लत नहीं होगा। व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार में ही जन्म लेता है तथा वह तमाम उम्र उस परिवार का सदस्य बनकर ही रहता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी परिवार का सदस्य हमेशा ही होता है। इस कारण ही इसे सर्वव्यापक समूह माना जाता है। यहां तक कि व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी परिवार में ही होती है।

2. परिवार छोटे आकार का होता है (Family is of small size)-प्रत्येक परिवार छोटे तथा सीमित आकार का होता है। इसका कारण यह है कि व्यक्ति का जिस समूह अथवा परिवार में जन्म होता है उसमें या तो रक्त संबंधी या वैवाहिक संबंधी ही शामिल किए जाते हैं। प्राचीन समय में तो संयुक्त परिवार होते थे जिनमें बहुत से रिश्तेदार जैसे कि दादा-दादी, ताया-तायी, चाचा-चाची, उनके बच्चे इत्यादि शामिल होते थे। परंतु समय के साथ साथ बहत से कारणों के कारण समाज में परिवर्तन आए तथा संयुक्त परिवारों की जगह मूल परिवार सामने आए जिनमें केवल माता-पिता तथा उनके बिन विवाहित बच्चे रहते हैं। विवाह के बाद बच्चे अपना अलग मूल परिवार बना लेते हैं। इस प्रकार परिवार छोटे तथा सीमित आकार का होता है जिसमें रक्त संबंधी अथवा वैवाहिक संबंधी ही शामिल होते हैं।

3. परिवार का भावात्मक आधार होता है (Family has emotional base)-प्रत्येक परिवार का भावात्मक आधार होता है क्योंकि परिवार में रहकर ही व्यक्ति में बहुत-सी भावनाओं का विकास होता है। परिवार को समाज का आधार माना जाता है तथा व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियां परिवार पर ही निर्भर होती हैं। बहुत-सी भावनाएं तथा क्रियाएं इसमें शामिल होती हैं जैसे कि पति-पत्नी के बीच संबंध, बच्चों का पैदा होना, वंश को आगे बढ़ाना, परिवार को आगे बढ़ाना, परिवार की संपत्ति को सुरक्षित रखना। परिवार में रहकर ही व्यक्ति में बहुत-सी भावनाओं का विकास होता है जैसे कि प्यार, सहयोग, हमदर्दी इत्यादि। इन सबके कारण ही परिवार समाज की प्रगति में अपना योगदान देता है।

4. परिवार का सामाजिक संरचना में केंद्रीय स्थान होता है (Family has a central position in Social Structure)-परिवार एक सर्वव्यापक समूह है तथा यह प्रत्येक समाज में पाया जाता है। इसे समाज का पहला समूह भी कहा जाता है जिस कारण समाज का संपूर्ण ढांचा ही परिवार पर निर्भर करता है। समाज में अलग-अलग सभाएं भी परिवार के कारण ही निर्मित होती हैं तथा इस वजह से ही परिवार को सामाजिक संरचना में केंद्रीय स्थान प्राप्त है।

प्राचीन समय में तो परिवार के ऊपर ही सामाजिक संगठन निर्भर करता था। व्यक्ति के लगभग सभी प्रकार के कार्य परिवार में ही पूर्ण हो जाया करते थे। चाहे आधुनिक समाज में बहुत-सी और संस्थाएं सामने आ गई हैं तथा परिवार के कार्य इन संस्थाओं द्वारा ले लिए गए हैं, परंतु फिर भी व्यक्ति से संबंधित बहुत से ऐसे कार्य हैं जो केवल परिवार ही कर सकता है और कोई संस्था नहीं कर सकती है।

5. परिवार का रचनात्मक प्रभाव होता है (Family has a formative influence)-परिवार नाम की संस्था ऐसी संस्था है जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास पर एक रचनात्मक प्रभाव पड़ता है तथा इस कारण ही सामाजिक संरचना में परिवार को सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अगर बच्चे का सर्वपक्षीय विकास करना है तो वह केवल परिवार में रहकर ही हो सकता है। परिवार में ही बच्चे को समाज में रहन-सहन, व्यवहार करने के ढंगों का पता चलता है।

बहुत से मनोवैज्ञानिक तो यहां तक कहते हैं कि शुरू के सालों में ही बच्चे ने जो कुछ बनना होता है वह बन जाता है। बाद की उम्र में तो उसमें केवल अच्छाई तथा बुराई जैसी चीजें ही विकसित होती हैं। बच्चा परिवार में जो कुछ होते हुए देखता है वह उसके अनुसार ही सीखता है तथा वैसा ही बन जाता है। इस प्रकार परिवार या व्यक्ति के व्यक्तित्व पर एक रचनात्मक प्रभाव पड़ता है।

6. यौन संबंधों को मान्यता (Sanction of Sexual relations)-व्यक्ति जब विवाह करता है तथा परिवार का निर्माण करता है तो ही उसके तथा उसकी पत्नी के लैंगिक अथवा यौन संबंधों को समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। परिवार के साथ ही मर्द तथा स्त्री एक-दूसरे से यौन संबंध स्थापित करते हैं। प्राचीन समाजों में यौन संबंध स्थापित करने के लिए कोई नियम नहीं थे तथा कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री से यौन संबंध स्थापित कर सकता था। इस कारण ही परिवार का कोई भी रूप हमारे सामने नहीं आया था तथा समाज साधारणतया विघटित रहते थे। इस प्रकार परिवार के कारण ही मर्द तथा स्त्री के संबंधों को मान्यता प्राप्त होती है।

प्रश्न 9.
परिवार के भिन्न-भिन्न प्रकारों की व्याख्या करें।
अथवा
परिवार के विभिन्न प्रकारों या स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यह संसार बहुत ही बड़ा है। इसमें कई प्रकार के समाज एवं सामाजिक इकाइयां पाई जाती हैं। हरेक समाज की अपनी उसकी भौगोलिक स्थिति के अनुसार, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताएं होती हैं। इसी कारण उन समाजों में अलग-अलग तरह के परिवार पाए जाते हैं। यह इस तरह होता है कि हर समाज के अलग-अलग रीति रिवाज, आदर्श विश्वास एवं संस्कृति होती है। एक ही देश, जैसे भारत में कई तरह के समाज पाए जाते हैं।

उदाहरण के तौर पर, पितृ सत्तात्मक, मातृ सत्तात्मक समाज। इसी तरह से परिवारों के भी अनेक रूप हैं। इन्हीं रूपों को संख्या के आधार पर, विवाह के आधार पर, सत्ता के आधार पर एवं वंश के आधार पर तथा रहने के आधार पर विभाजित किया जा सकता है। हम अभी इनको अलग-अलग तरीके से देखने की कोशिश करेंगे।

1. विवाह के आधार पर परिवार की किस्म (On the basis of marriage)-
A. एक-विवाही परिवार (Monogamous Family)-इस तरह के परिवार में व्यक्ति एक ही औरत के साथ विवाह कर सकता है और उसी के साथ रहता हुआ सन्तान की उत्पत्ति करता है। आजकल इसी विवाह को आदर्श विवाह एवं ऐसे परिवार को सही परिवार माना जाता है।

B. बहु-विवाही परिवार (Polygamous Family)-इस तरह के परिवार में, जब एक आदमी एक से ज्यादा औरतों के साथ विवाह कर सकता है या फिर एक औरत, एक से ज्यादा पतियों से विवाह करती है तो इस प्रकार के विवाह को बहु-विवाही कहते हैं। यह भी आगे दो प्रकार का होता है-
(i) बहु-पति विवाह (Polyandrous Family)-जब कोई औरत एक से ज्यादा पतियों के साथ विवाह करवाती है, तो बहु-पति विवाह होता है। इस विवाह की विशेषता यह होती है कि एक औरत के कई पति होते हैं। इनमें यह भी दो प्रकार के होते हैं

  • इसमें औरत के सभी पति सगे भाई होते हैं।
  • दूसरी अवस्था में यह आवश्यक नहीं कि वे सभी सगे भाई हों।

(ii) बहु-पत्नी विवाह (Polygamous Family) इस प्रकार के विवाहों में, पति यानि कि आदमी एक से ज्यादा औरतों से विवाह करवाता है। इस प्रकार के परिवारों में एक आदमी की कई पत्नियां होती हैं। इस प्रकार के विवाह मुसलमानों में आमतौर पर मिल जाते हैं। इस तरह से मुस्लिम समुदाय में चार पलियां रखने की आज्ञा दी गई है। पुराने जमाने में हिंदू राजे-महाराजे भी कई पत्नियां रखते थे। सन् 1955 में हिंदू विवाह कानून के आधार पर हिंदुओं को एक से ज्यादा पत्नियां रखने का अधिकार नहीं है। परंतु भारत में अभी कई कबीलों में वही पुरानी परंपरा कायम है, जैसे नागा, गोण्ड, जिनमें इस तरह के परिवार अभी भी पाए जाते हैं।

2. सदस्यों के आधार पर परिवार की किस्में (Family on the basis of members)-सदस्यों के आधार पर परिवार के तीन प्रकार हैं-
A. केन्द्रीय परिवार (Nuclear Family)-यह एक छोटा परिवार होता है, जिसमें एक पति एवं पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं। इस परिवार में बाकी कोई भी रिश्तेदार या सदस्य नहीं होता। आजकल समाज में इन्हीं परिवारों की अधिकता है। इन परिवारों के सदस्य आमतौर पर शहरों में नौकरी करते हैं और जब उनके बच्चे विवाह करवा लेते हैं, तो वे भी एक केंद्रीय परिवार को जन्म दे देते हैं।

B. संयुक्त परिवार (Joint Family)-इस तरह के परिवार में बहुत सारे सदस्य होते हैं, जिसमें दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-भौजाई एवं ताया-तायी, उनके बच्चे, भाई-बहन आदि सभी इस प्रकार से शामिल होते हैं। इस प्रकार के परिवार अभी भी गाँवों में पाये जाते हैं।

C. विस्तृत परिवार (Extended Family) इस तरह के परिवार, संयुक्त परिवारों से ही बनते हैं। जब संयुक्त परिवार आगे बड़े हो जाते हैं, तो वे “विस्तृत परिवार’ कहलाते हैं। इनमें सभी भाई, उनके बच्चे विवाह के उपरांत भी साथ में रहते हैं चाहे उनके भी आगे बच्चे हो जायें। आजकल के समाजों में, इस तरह के परिवार मुमकिन नहीं हैं। प्राचीन काल में ऐसा हो जाता था, क्योंकि उनके काम-धंधे एक ही हुआ करते थे।

3. वंश नाम के आधार पर परिवार के प्रकार (On the basis of Nomenclature) इस आधार पर परिवार की चार तरह की किस्में मिलती हैं-
(i) पितृ-वंशी परिवार (Patrilineal Family) इस तरह का परिवार पिता के नाम से ही चलता है। इसका अर्थ ता का नाम उसके पुत्र को मिलता है और पिता के वंश का महत्त्व होता है। आजकल इस तरह के परिवार मिल जाते हैं।

(ii) मातृ-वंशी परिवार (Matrilineal Family)-इस तरह के परिवार माँ के नाम के साथ चलते हैं, जिसका अर्थ है कि बच्चे के नाम के साथ माता के वंश का नाम आएगा। माता के वंश का नाम बच्चों को प्राप्त होगा। इस प्रकार के परिवार भारत के कुछ कबीलों में भी मिल जाते हैं।

(iii) दो वंश नामी परिवार (Bilinear Family)-इस प्रकार के परिवारों में बच्चे को दोनों वंशों के नाम प्राप्त होते हैं और दोनों वंशों के नाम साथ-साथ में व्यक्ति के साथ चलते हैं।

(iv) अरेखकी परिवार (Non-Unilinear Family)-इस प्रकार के परिवारों में वंश के नाम का निर्धारण सभी नज़दीक के रिश्तेदारों के आधार पर होता है। इसको अरेखकी परिवार कहते हैं।

4. रिश्तेदारों के प्रकार के आधार पर परिवारों की किस्म (On the basis of types of Relatives)-इस प्रकार के परिवार भी दो प्रकार के होते हैं-
(i) रक्त संबंधी परिवार (Consanguine Family)-इस प्रकार के परिवारों में रक्त संबंधों का स्थान सबसे ऊपर होता है और इनमें किसी भी प्रकार के लिंग संबंध नहीं होते। इस परिवार में पति-पत्नी भी होते हैं, परंतु यह परिवार के आधार नहीं होते। इस परिवार में सदस्यता जन्म के आधार के कारण प्राप्त होती है। ये स्थायी होते हैं। तलाक भी इन परिवारों के अस्तित्व को समाप्त नहीं कर सकता।

(ii) विवाह संबंधियों का परिवार (Conjugal Family)-इस प्रकार के परिवारों में पति-पत्नी और उनके बिन ब्याहे बच्चे होते हैं अर्थात् जिनका विवाह अभी नहीं हुआ होता। इसमें पति-पत्नी और उनके रिश्तेदार भी शामिल होते हैं। यह परिवार किसी की मौत के बाद या फिर तलाक के बाद भी भंग हो सकता है।

5. रहने के स्थान के आधार पर आधारित परिवार (Family on the basis of Residence)-इस प्रकार के परिवार तीन तरह के होते हैं-
(i) पितृ-स्थानी परिवार (Patrilocal Family)-इस प्रकार के विवाह के बाद, लड़की अपने परिवार को छोड़कर अपने पति के घर रहने लग जाती है और इस तरह अपना परिवार बसाती है। इस तरह के परिवार आमतौर पर मिल जाते हैं।

(ii) मातृ-स्थानी परिवार (Matrilocal Family)-इस प्रकार के परिवार उपरोक्त परिवार से बिल्कुल विपरीत होते हैं। इनमें लड़की अपने पिता का घर छोड़कर नहीं जाती, वह उसी घर में ही रहती है। इसमें पति अपने पिता का घर छोड़कर, पत्नी के घर आकर रहने लग जाता है। इसको मातृ-स्थानी परिवार कहते हैं। ‘गारो’, खासी इत्यादि कबीलों में इस प्रकार के विवाह पाए जाते हैं।

(iii) नव-स्थानी-परिवार (Neo-Local-Family)-इस प्रकार के परिवार दोनों तरह की किस्मों से अलग हैं। इस तरह के विवाह के पश्चात् पति-पत्नी कोई भी एक-दूसरे के माता-पिता के घर नहीं जाते और न ही वहां रहते हैं। इसके विपरीत वे अपना और घर बनाते हैं और वहां पर जाकर रहते हैं। इस परिवार को नव-स्थानी परिवार कहा जाता है। आजकल के औद्योगीकरण के युग में बड़े-बड़े शहरों में, इस तरह के परिवार आम देखने में मिलते हैं।

6. सत्ता के आधार पर परिवार के प्रकार (On the basis of Authority)-इस तरह के परिवार भी दो तरह के होते हैं-
(i) पितृ सत्तात्मक परिवार (Patriarchal Family)-जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है, कि इस तरह के परिवार में शक्ति पिता के हाथों में होती है। परिवार के सभी कार्य पिता की मर्जी के अनुसार होते हैं। वह ही परिवार का कर्ता होता है। इस तरह से परिवार के सारे छोटे-बड़े कार्य का फैसला वह स्वयं ही करता है। भारत में इस तरह के परिवार ज्यादातर पाए जाते हैं।

(ii) मातृ-सत्तात्मक परिवार (Matriarchal Family)-इस तरह से यह भी नाम से ही प्रतीत होता कि इस तरह के परिवार में शक्ति माता के हाथ में होती है। मातृ सत्तात्मक परिवार में सभी फैसले एवं कर्ता माता होती है। बच्चों के ऊपर ज्यादा अधिकार माता का होता है। स्त्री ही इसमें मूल पूर्वज मानी जाती है। इसमें संपत्ति का वारिस माता का पुत्र नहीं होता, बल्कि उसका भाई अथवा ‘भांजा’ होता है। कई तरह के कबीलों जैसे गारो, खासी आदि में ऐसा आमतौर पर देखने को मिलता है।

प्रश्न 10.
एकाकी अथवा केंद्रीय परिवार का क्या अर्थ है? विशेषताओं सहित व्याख्या करें।
उत्तर:
केंद्रीय परिवार के अर्थ एवं परिभाषाएं-परिवार को संख्या के आधार पर दो भागों में बांटा जा सकता है, केंद्रीय एवं संयुक्त परिवार। इसमें केंद्रीय परिवार छोटा परिवार माना जाता है, इसमें माता-पिता तथा उनके कुंवारे बच्चे ही रहते हैं। संयुक्त परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, ताया-तायी और उनके सभी बच्चे साथ में ही रहते हैं। इस प्रकार से केंद्रीय परिवारों की परिभाषा भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अपने तरीके से की है। इनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं-
(1) मर्डोक के अनुसार- केंद्रीय परिवार एक शादीशुदा आदमी और उसकी औरत और उनके बच्चों को मिलाकर बनता है, जबकि यह हो सकता है कि और व्यक्ति भी उनके साथ एक परिवार बना कहै।”

(2) इसी प्रकार से विदवान आर०पी० देसाई ने अपने शब्दों में इसकी परिभाषा इस प्रकार से दी है- ”केंद्रीय परिवार वह है, जिसके सदस्य, अपने दूसरे रिश्तेदारों के साथ संपत्ति, आमदनी, अधिकार एवं कर्तव्यों द्वारा संबंधित न हों, जैसे कि रिश्तेदार से रिश्तेदारी की उम्मीद की जाती है।”

इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि इकाई परिवार में केवल माता-पिता, उनके कुंवारे बच्चे ही रहते हैं और फिर जब उनका विवाह हो जाता है तो वे अपना अलग घर बना कर चले जाते हैं अर्थात् अपने अलग घर में रहते हैं। इस तरह से यह परिवार विवाह के आधार पर ही जुड़े होते हैं। इनका आकार भी छोटा ही होता है। इसमें नया जोड़ा अपना अलग घर बना कर रहता है। इसलिए इसको प्रजनन परिवार भी कहा गया है।

केंद्रीय अथवा इकाई परिवार की विशेषताएँ
(Characteristics of Nuclear Family)
1. छोटा आकार (Small Size)-इस तरह के परिवारों की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि इनका आकार बहुत छोटा होता है, क्योंकि इसमें केवल माता-पिता और उनके कुंवारे बच्चे ही रहते हैं। इनमें सदस्यों की संख्या सीमित होती है, जैसे कि आजकल दो या तीन बच्चों का चलन है। इस तरह से जब यह बच्चे विवाह करते हैं तो यह अपने नए घर में जाकर रहते हैं।

2. सीमित संबंध (Limited Relations) केंद्रीय परिवार में ज़्यादा से ज्यादा आठ रिश्तों को माना गया है अथवा शामिल किया गया है, जैसे कि पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, पिता-पुत्री, माता-पुत्री, बहन-भाई, भाई भाई, बहन-बहन। इनमें द्वितीय रक्त के संबंधों का महत्त्व कम माना गया है। उन सदस्यों के साथ संबंध भी रस्मी तौर पर ही होते हैं। केंद्रीय परिवारों में व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अपने परिवार द्वारा ही करता है।

3. प्रत्येक सदस्य का महत्त्व (Importance of every member) केंद्रीय परिवार में पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे ही रहते हैं तथा यह समानता पर आधारित होते हैं। इस प्रकार के परिवार में दो पीढ़ियों के लोग ही रहते हैं तथा सभी को समान स्थिति ही प्राप्त होती है। पत्नी तथा बच्चों की स्थिति भी इसमें समान ही होती है। घर के सभी सदस्यों में कार्य बँटे हुए होते हैं। माता-पिता अपने बच्चों का अच्छे ढंग से पालन-पोषण करते हैं, उन्हें अच्छी शिक्षा देते हैं ताकि वह अपना भविष्य बना सकें। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य को परिवार में समान महत्त्व प्राप्त होता है।

4. बराबर सत्ता (Common authority) संयुक्त परिवारों में घर की सत्ता परिवार के बड़े बुजुर्गों के हाथ में ही होती है तथा पत्नी और बच्चों का कोई महत्त्व नहीं होता है। परंतु केंद्रीय परिवार इसके बिल्कुल विपरीत होते हैं जिनमें घर की सत्ता सभी के हाथ में समान रूप से होती है। घर में केवल पति या पिता की ही सत्ता नहीं चलती है बल्कि पत्नी तथा बच्चों की भी सत्ता चलती है।

घर की प्रत्येक छोटी-बड़ी समस्या को हल करने के लिए उनकी सलाह ली जाती है। इसमें सभी की व्यक्तिगत योग्यता को महत्त्व प्राप्त होता है। यह परिवार परंपरागत परिवारों से अलग होते हैं तथा आधुनिक समाजों में चलते हैं।

5. वैवाहिक व्यवस्था (Marital System) केंद्रीय परिवार विवाह होने के बाद ही सामने आते हैं। अगर देखा जाए तो विवाह के बाद ही केंद्रीय परिवार निर्मित होते हैं। इस प्रकार के परिवार में पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। विवाह होने के बाद बच्चे अपना अलग घर बसाते हैं। प्राचीन समाजों में अधिक बच्चे हुआ करते थे परंतु आजकल के समय में केवल एक या दो बच्चे ही होते हैं। इस प्रकार के परिवार का आधार ही विवाह है तथा इस प्रकार के परिवार में बच्चे अपनी इच्छा से विवाह करवाते हैं।

6. व्यक्तिवादी दृष्टिकोण (Individualistic Outlook) संयुक्त परिवारों में परिवार के सभी सदस्य परिवार के हितों के लिए कार्य करते हैं तथा अपने हितों की तिलांजलि दे देते हैं। परंतु केंद्रीय परिवारों में ऐसा नहीं होता है। केंद्रीय परिवारों में लोग केवल अपने हितों को ही देखते हैं। उन्हें परिवार के हितों से कुछ लेना देना नहीं होता है। अगर परिवार पर कोई समस्या आती है तो यह घर छोड़ कर ही चले जाते हैं। उनका दृष्टिकोण सामूहिक नहीं बल्कि व्यक्तिवादी होता है।

प्रश्न 11.
संयुक्त परिवार क्या होता है? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। जहां पर 70% के करीब जनसंख्या कृषि अथवा उससे संबंधित कार्यों पर निर्भर करती है। कृषि के कार्य में बहुत से व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है जिस कारण यहां पर संयुक्त परिवार प्रथा पाई जाती है। यही प्रथा परंपरागत भारतीय समाज की विशेषता भी है। ग्रामीण समाजों में गतिशीलता कम होती है जिस कारण भी लोग अपने घर छोड़ कर केंद्रीय परिवार बसाना पसंद नहीं करते।

जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है संयुक्त परिवार में एक दो नहीं बल्कि तीन अथवा चार पीढ़ियों के लोग इकट्ठे मिल कर रहते हैं। इस प्रकार संयुक्त परिवार में पड़दादा, पड़दादी, दादा-दादी, माता-पिता, ताया-तायी, चाचा-चाची तथा उनके बच्चे सभी शामिल होते हैं तथा इकठे मिल कर रहते हैं। संयुक्त परिवार में चाहे परिवार की संपत्ति घर के मुखिया के हाथों में होती है परंतु सभी का उस पर बराबर का अधिकार होता है।

परिभाषाएँ (Definitions) संयुक्त परिवार प्रणाली की सत्ता पिता के हाथ में होती थी। इस प्रणाली में पिता का कहना माना जाता था। इसमें पिता का कहना पत्थर के ऊपर लकीर वाला कार्य था। इसमें पिता की भूमिका एक निरंकुश शासक की तरह होती थी। इस प्रणाली में लड़के विवाह के पश्चात् भी उसी परिवार में ही रहते थे। अब भी अगर कई जगहों पर यदि संयुक्त प्रणाली है, तो उसमें विवाह के उपरांत सभी बच्चों को साथ में रहना होता है। इसी तरह उनकी आने वाली संतानें भी इकट्ठी रहती हैं।

(1) किंगस्ले डेविस (Kingslay Davis) के अनुसार, “संयुक्त परिवार में वे आदमी होते हैं, जिनके पूर्वज भी इकट्ठे हों, औरतों का विवाह न हुआ हो और अगर हुआ हो तो उनको समूह में शामिल किया जाए। ये सभी सदस्य एक ही निवास स्थान पर रहते हों या इनके मकान एक-दूसरे के निकट होते हैं। किसी भी हालत में, जब तक संयुक्त परिवार इकट्ठा है, इसके सदस्य इसी के लिए मेहनत करते हैं और कुल संपत्ति का बराबर का हिस्सा प्राप्त करते हैं।”

(2) कार्वे (Karve) के अनुसार, “संयुक्त परिवार, उन आदमियों का समूह है, जोकि एक ही घर में रहते हैं और वे सभी एक ही रसोई में खाना बनाते हैं और वे सभी संयुक्त जायदाद के मालिक होते हैं। इस तरह वे सभी किसी न-किसी रक्त संबंधों से संबंधित होते हैं।”

इस प्रकार इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि संयुक्त परिवार में कई पीढ़ियों के लोग रहते हैं। यह सभी लोग एक साझे निवास स्थान पर रहते हैं तथा एक ही रसोई में पका हुआ भोजन खाते हैं।

संयुक्त परिवार में घर की सत्ता घर के मर्दो के हाथों में होती है जिस कारण घर की स्त्रियों की स्थिति भी निम्न होती है। घर की संपत्ति चाहे बड़े बुजुर्गों के हाथों में होती है परंतु सभी सदस्यों का इसमें समान अधिकार होता है। प्रत्येक सदस्य को उसके सामर्थ्य के अनुसार कार्य दिया जाता है तथा वह अपना कार्य अपना उत्तरदायित्व समझ कर पूर्ण करते हैं।

संयुक्त परिवार की विशेषताएँ
(Characteristics of Joint Family)
1. बड़ा आकार (Large in Size)-संयुक्त परिवार आकार में बहुत बड़ा होता है। इसमें माता-पिता के अतिरिक्त, उनके भाई-बहन, भाई, पुत्र, पुत्रियां एवं पौत्र इत्यादि सभी एक जगह इकट्ठे रहते हैं। इन सभी के अतिरिक्त इनके दादा-दादी भी मिलकर सभी के साथ रहते हैं। इस तरह से संयुक्त परिवार में कम-से-कम तीन पीढ़ियों के सदस्य शामिल होते हैं। संयुक्त परिवार में पिता के वंश से संबंधित कई पीढ़ियां इसमें रहती हैं। वे सभी मिलकर एक ही चारदीवारी के अंदर रहते हैं अर्थात् एक ही घर में रहते हैं। इस तरह से ये परिवार संख्या की दृष्टि से आकार में बड़े माने गए हैं।

2. संयुक्त संपत्ति (Joint or Common Property) संयुक्त परिवारों में सारी संपत्ति पर सभी का बराबर का अधिकार होता है। हर सदस्य इसमें अपनी योग्यता के आधार पर अपना योगदान डालता है। इसमें से जिस सदस्य को जितनी ज़रूरत होती है, वह खर्च कर लेता है। इस तरह परिवार का कर्ता जोकि प्रायः परिवार का बड़ा सदस्य होता है, सारी संपत्ति की देखभाल करता है। इस प्रकार से सारी संपत्ति के सभी. बराबर के मालिक होते हैं, परंतु परिवार का मुखिया इसको संभाल कर रखता है।

3. सहयोग की भावना (Feeling of Cooperation)-इस तरह के परिवारों में, सभी सदस्य एक-दूसरे की सहायता करते हैं। इसमें कोई सदस्य ज्यादा काम करता है या कोई सदस्य कम कार्य करता है, उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इस मुद्दे पर कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं होता। ऐसे परिवारों के सभी सदस्य एक निश्चित लक्ष्य के लिए कार्य करते हैं और वही उद्देश्य ही उन परिवारों के अस्तित्व को बचा कर रखता है।

4. संयुक्त रसोई (Common Kitchen)-संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सभी का खाना एक ही रसोई में तैयार होता है और सभी मिल-जुल कर उसे बनाते हैं। इस प्रक्रिया में इकट्ठे मिल-जुल कर खाते हैं और अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, ताकि उनका आपसी प्यार बना रहे।

5. संयुक्त निवास स्थान (Common Residence) संयुक्त परिवार की विशेषताओं में यह भी एक प्रमुख विशेषता है कि उसके सभी सदस्य एक ही जगह पर अर्थात् एक ही मकान में रहते हैं। अगर उनकी रिहाइश को अलग-अलग कर दिया जाए, तो वह संयुक्त परिवार न होकर केंद्रीय परिवार हो जाएगा।

6. सदस्यों की सुरक्षा (Security of all Members) संयुक्त परिवार की यह भी एक मुख्य विशेषता है कि यह परिवार अपने सभी सदस्यों की हर तरह से सुरक्षा करते हैं। इन परिवारों में उन सभी का संपत्ति पर अधिकार होता है। यदि कोई सदस्य बीमार हो जाये या उसके साथ कोई सुख-दुःख हो, परिवार के सभी सदस्य, उसकी देखभाल करते हैं।

उसके दुःख अथवा बीमारी पर जो भी खर्च आए, परिवार उसको सहन करता है। यदि किसी मर्द की अचानक मृत्यु हो जाए तो उसके बाद उसकी पत्नी की ज़िम्मेदारी पूरा परिवार मिलकर संभालता है। उसके बच्चों की देख-रेख भी यही परिवार करता है। इस तरह से इस तरह के परिवारों के सभी सदस्य, उनकी संतानें अथवा स्त्रियां पूरी तरह से सुरक्षित होती हैं।

7. संस्कृति की निरंतरता (Continuity of Culture) संयुक्त परिवार का यह मख्य लक्षण है कि उसका कर्ता या परिवार का मुखिया अपने परिवार के सदस्यों पर पूरा अधिकार रखता है और इन परिवारों में पीढ़ियों से इकट्ठे रह रहे होते हैं और अगर यह परंपरा चलती रहे तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी ऐसा ही रहता है और उनके प्रेम प्यार में कोई कमी नहीं आती। यदि पिता ने अपने संस्कार पुत्र को दे दिए, वही आगे पुत्र ने अपने पुत्र को दे दिए, इस तरह से उनकी सभ्यता की धरोहर अर्थात् संस्कृति पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक चलती रहती है और उसकी निरंतरता बरकरार रहती है।

8. श्रम विभाजन (Division of Labour)-संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों के कामों को बांट दिया जाता है। जिसको जो कार्य सौंप दिया जाता है, वह उसे अपना धर्म समझ कर निभाता है। कोई भी सदस्य अपनी मर्जी के अनुसार कार्य को बदल नहीं सकता। औरतें आमतौर पर घर पर रहकर, घर के काम करती हैं और घर के मर्द, बाहर जाकर रोटी-रोज़ी की समस्या का हल करते हैं अर्थात् कमाने की ज़िम्मेदारी आदमियों के ऊपर होती है।

इन परिवारों में कर्ता के स्थान को सबसे ऊपर माना गया है। इसके पश्चात् उसकी पत्नी का दूसरा नंबर होता है अर्थात् स्त्रियों में सबसे ज्यादा आदर कर्ता की पत्नी का होता है। इन परिवारों में विधवा स्त्री को ज़्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता। इस तरह से सदस्यों की स्थिति भी उनके कार्य के अनुसार देखी जाती है। उसे उसकी स्थिति के अनुसार ही काम दिया जाता है।

9. संयुक्त परिवार में कर्ता की भूमिका (Role of Karta in Joint Family)-संयुक्त परिवार में कर्ता की भूमिका सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण होती है। इसमें प्रायः परिवार का सबसे ज़्यादा आयु का व्यक्ति अर्थात् कोई बुजुर्ग ही उसका कर्ता होता है। परिवार के सभी महत्त्वपूर्ण फैसले लेने का अधिकार उसे ही होता है और उसी तरह ही वह फैसला लेता भी है।

सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात कि वह उस परिवार की संपत्ति की चाहे वह चल हो या अचल, उसकी देखभाल उसे ही करनी पड़ती है। इन सारे कार्यों में बाकी परिवार के सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते हैं। इन परिवारों में यदि कर्ता की मृत्यु हो जाती है, तो उस परिवार का बड़ा लड़का फिर देखभाल करता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 12.
संयुक्त परिवार में लाभों तथा हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
संयुक्त परिवार के लाभ
(Merits of Joint Family)
1. सांस्कृतिक सुरक्षा (Cultural Security)-संयुक्त परिवारों के लाभों को देखने के लिए सबसे पहला पक्ष जो हमें नज़र आता है वह है उसका सामाजिक पक्ष। उसमें हम देख सकते हैं कि ये परिवार हमें सामाजिक सुरक्षा, सांस्कृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। बच्चों की देखभाल एवं पालन-पोषण मिल कर करते हैं।

इनमें सबसे पहले हम देखते हैं कि यह परिवार हमारी सांस्कृतिक धरोहर को बचा कर रखते हैं; जैसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने से बड़ों का सम्मान करना, सभी के साथ मिलकर धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा करना और अपने कार्यों को अपना धर्म समझ कर पूरा करना। क्योंकि जो तीन पीढ़ियों के सदस्य इसमें रहते हैं, उनमें एक-दूसरे से मिलकर रहने की भावना रहती है। यह सभी तो इसकी संस्कृति होती है और यह व्यवस्था इसको स्थायी रूप से संभाल कर रखती है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरित करती चली जाती है।

2. सामाजिक सुरक्षा (Social Security)-संयुक्त प्रणाली अपने सदस्यों की, दुर्घटना, बीमारी एवं बेरोज़गारी अथवा अचानक किसी की मृत्यु हो जाये तो उन हालातों में रक्षा करती है अर्थात् देखभाल करती है। इस प्रकार यह अपने सदस्यों के लिए एक प्रकार की ‘बीमा कंपनी’ जैसा कार्य करती है। यह परिवार अपने बूढ़ों अथवा विधवा औरतों को भी सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

इन परिवारों में बच्चों की देखभाल भी अपने से बड़े सदस्यों द्वारा अपना समझ कर होती है। यदि कोई सदस्य मानसिक एवं शारीरिक तौर पर किसी भी पक्ष से कमज़ोर है, ये सदस्य उनकी देखभाल एवं रक्षा मिलजुल कर करते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार की असुरक्षा महसूस नहीं होने देते। उन्हें भी बराबरी का दर्जा एवं संपत्ति में बराबरी का अधिकार होता है।

3. बच्चों का पालन-पोषण (Taking Care of Children) संयुक्त परिवार में बच्चों के विकास की तरफ पूरा ध्यान दिया जाता है। इन परिवारों में बच्चों में नैतिक नियमों का विकास बहुत ही अच्छा होता है। इन परिवारों में रहते हुए उदारता, सहयोग, प्यार, बड़ों की आज्ञा मानना एवं समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाने की कला, तो इन परिवारों का प्रमुख लक्षण है।

इन गुणों में सबसे प्रमुख है, दूसरों के लिए जीने की कला, जो इन परिवारों में सबसे पहले सीखने को मिलती है। संयुक्त परिवार में सभी बच्चों के ऊपर नियंत्रण भी, उनको अनुशासन में रहने की आदत डालनी होती है। इसी तरह ही यह परिवार अपने बच्चों का पालन-पोषण करता है और परिवार का हर सदस्य उसमें बराबर की रुचि लेता है।

4. सामाजिक नियंत्रण (Social Control)-बगैर किसी ज़बरदस्ती के इस परिवार के सदस्यों को नियंत्रण में रहने की आदत पड़ जाती है। वे सभी स्वयं ही इस नियंत्रण को मान लेते हैं क्योंकि उन्हें इसमें सभी की भलाई नज़र आती है। सदस्यों के आपसी संबंध एवं स्नेह प्यार के सामने यह नियंत्रण गौण नज़र आता है।

संयुक्त परिवार में कर्ता को सभी अधिकार दिए गए हैं, और वही अपने इस अधिकार को अपने परिवार की भलाई के लिए ही इस्तेमाल करता है। यदि कोई सदस्य कोई ग़लत काम करता है तो वह अपने अधिकार का इस्तेमाल कर उसे डांट-फटकार भी सकता है। परंतु कोई भी सदस्य उसकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता। इस तरह से यह परिवार अपने सदस्यों की सभी सामाजिक क्रियाओं पर पैनी नज़र रखते हैं और यही नियंत्रण ही उनको समाज में प्रतिष्ठा दिलाता है।

5. मनोरंजन का केंद्र (Centre of Recreation) संयुक्त परिवार अपने सभी सदस्यों को सही दिशा प्रदान करते हुए हर सुखद मौके का इंतज़ार करते रहते हैं। त्योहार इत्यादि, विवाह शादी का अवसर हो अथवा कोई धार्मिक कार्य या कोई और कोई भी सुखद मौका, उसे सभी सदस्य मिलजुल कर, हंसी-खेल करते हुए मनाते हैं।

बच्चे-बूढ़े, जवान और स्त्रियां इन्हीं अवसरों पर खूब मनोरंजन करते हैं और लोक गीतों, कहावतों, गानों और खेलों का आनंद मिलजुल कर लेते हैं और इन्हीं खेलों अथवा बातों-बातों में कई बार अपने तजुर्षों की बातें भी बच्चों को सिखा देते हैं। इस तरह से वे अपना मनोरंजन भी करते रहते हैं।

6. चिंताओं से मुक्ति (Least Tensions of Life)-संयुक्त परिवार में बड़ी से बड़ी समस्या का हल आसानी से मिल जाता है। यदि कोई समस्या आ भी जाए, तो उसे सभी मिलजुल कर सुलझाते हैं। इन परिवारों में जो सहयोग की भावना होती है, उसका यही लाभ होता है कि सदस्यों के दिमाग पर कोई बोझ नहीं पड़ता और सभी आराम से खुशी-खुशी जीवन को जीते हैं।

संयुक्त परिवार की हानियाँ
(Demerits of Joint Family)
1. व्यक्तित्व के विकास में कमी (Lack of Personality Development) संयुक्त परिवार प्रणाली में यह कमी है कि इसमें व्यक्ति की अपनी योग्यता सही रूप में उभर कर सामने नहीं आ पाती क्योंकि उनके कार्यों का विभाजन इस तरीके से हो जाता है कि व्यक्ति अपनी योग्यता का इस्तेमाल ही नहीं कर पाता।

व्यक्ति को अपने बड़ों के कहने पर अर्थात् कर्ता की इच्छानुसार कार्य करना होता है, वह सदस्य अपनी इच्छानुसार अपने बच्चों एवं पत्नी के साथ स्वतंत्रता के साथ समय नहीं बिता पाता। वह कई बार चाहते हुए भी अपनी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं कर पाता, वह कोई भी कार्य अपने बड़ों की पसंद के बगैर नहीं कर सकता। इस प्रणाली में यह बहुत कमी है कि व्यक्ति अपनी प्रतिभा को सही तरह से दिखा नहीं पाता, क्योंकि उसके ऊपर पारिवारिक नियंत्रण होते हैं।

2. औरतों की निम्न दशा (Low Status of Women) संयुक्त परिवार आमतौर पर पित-प्रधान होता है, अर्थात् इन परिवारों में पुरुषों का ज्यादा दबदबा होता है। इन परिवारों में पुरुषों की बात को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है, औरतों को परिवारों में ज्यादा अधिकार नहीं दिए जाते। उनकी ज़िम्मेदारी केवल रसोई और बच्चों की देखभाल की है।

संयुक्त परिवार में औरत की हैसियत सिर्फ बच्चों को पैदा करना और घर की चारदीवारी के अंदर ज़िन्दगी को जीना मात्र होता है। इस तरह की व्यवस्था में हमेशा आदमी और औरतों में तकरार अथवा लड़ाई-झगड़ा रहता है। इन परिवारों में औरत आर्थिक तौर पर पुरुष के ऊपर निर्भर होती है, इसलिए उनकी सामाजिक स्थिति दयनीय ही होती है।

3. खालीपन की प्रवृत्ति (Carelessness) संयुक्त परिवार प्रणाली में यह सबसे ज्यादा कमी पाई जाती है आदमी में निकम्मापन आ जाता है अर्थात् उनको रोजी-रोटी की कोई समस्या तो होती नहीं, इस कारण उनमें खाली रहने अथवा आलस्य की प्रवृत्ति का जन्म हो जाता है और वह काम ही नहीं करना चाहते। इस समस्या के होते हुए कुछ सदस्यों को उन खाली सदस्यों का भी बोझ उन्हें ही उठाना पड़ता है और उनका काफ़ी समय उनको समझाने बुझाने एवं उनके हिस्से के कार्यों को करने में जाता है। इस तरह से ये प्रणाली व्यक्ति के निकम्मेपन को एक तरह से बढ़ाती है।

4. संघर्षपूर्ण स्थिति (Conflicts) संयुक्त परिवारों में आपसी लड़ाई-झगड़े बहुत होते हैं। इन परिवारों में कई बार एक भाई दूसरे भाई का दुश्मन बन जाता है। इस बात की चरम सीमा इतनी हो जाती है कि वह अपने भाई को मारने में भी संकोच नहीं करता। इस तरह से घर की शांति नष्ट हो जाती है।

इन परिवारों में कई बार स्त्रियों के कारण तनाव की स्थिति बन जाती है। कई बार ननद और भाभी की नहीं बनती। किसी जगह सास और बहु में क्लेश रहता है। कई बार व्यक्ति समझता है कि उसे अपनी योग्यता के अनुसार कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं, ऐसी स्थिति में आपसी संघर्ष अपने आप जगह बना लेता है और कई बार ऐसी स्थितियों के कारण पूरा परिवार नष्ट हो जाता है।

5. ज़्यादा संतानोत्पत्ति (More Children)-संयुक्त परिवारों में क्योंकि सभी बच्चों के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी होती है कि कोई भी आदमी इस बात के ऊपर नियंत्रण नहीं रखता कि उसको कितने बच्चों को पैदा करना है। संयुक्त परिवार में उनकी शिक्षा एवं पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी सभी की होने के कारण से कोई भी परिवार नियोजन की तरफ ध्यान ही नहीं देता। जिनके ज़्यादा बच्चे होते हैं या कम बच्चे होते हैं, उन सभी की तरह होने के कारण, और यदि किसी के बच्चे कम होंगे और उसे कोई सीधा लाभ मिलेगा, इस कारण सभी ज़्यादा बच्चों को जन्म देते जाते हैं।

6. ग़रीबी को जन्म (Leads to Poverty) हर रोज की कलह-क्लेश, औरतों की निम्न स्थिति, निरंकुश विचारधारा का समाज, कर्तव्यों की तरफ विमुखता और ज़्यादा संतान की उत्पत्ति; यह सभी कारण, परिवार की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर देते हैं और फिर समय के साथ-साथ इन परिवारों में अपनी नैतिक जिम्मेदारी को न समझना, यह सब परिवार को गरीब बना देता है।

परिवार का बढ़ते जाना और जमीन का न बढना और संपत्ति का स्थिर रहना, गरीबी का कारण बन जाता है। इसमें संपत्ति क्योंकि सभी की इकट्ठी होती है, उसकी सही ढंग से कोई भी देखभाल नहीं करता, इस कारण से बाद में उन्हें ही बदहाली झेलनी पड़ती है।

7. अन्य मिश्रित समस्याएँ (Other Mixed Problems)-उपरोक्त समस्याओं के अलावा कई मनोवैज्ञानिक एवं कानूनी समस्याएं, मुकद्दमेबाजी इत्यादि, किसी को उसकी योग्यताओं अथवा क्षमताओं के आधार पर अधिकार न मिलना, यह सभी वस्तुएं. या कारण, आदमी को मनोवैज्ञानिक आधार पर तोड़ देती है।

प्रश्न 13.
संयुक्त परिवारों के विघटित होने के क्या कारण हैं? व्याख्या करें।
अथवा
क्या आपके विचार में संयुक्त परिवार प्रणाली टूट रही है? व्याख्या करें।
अथवा
संयुक्त परिवार में परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
क्या संयुक्त परिवार परिवर्तित/विघटित हो रहे हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
इस प्रश्न का उत्तर हां में ही है। जी हां, आजकल हमारे विचार से संयुक्त परिवार प्रणाली टूट रही है। ये टूटने का जो सिलसिला है, एक-दो वर्षों में नहीं हुआ, बल्कि यह बदलाव कई वर्षों के परिवर्तन का परिणाम है। यह सभी परिवर्तन कई भिन्न-भिन्न कारणों से आए, जिसके परिणामस्वरूप परिवारों की बनावट और उसके रूप में अद्भुत बदलाव देखने को मिलते हैं, उनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं, जिनको हम विस्तारपूर्वक इस संदर्भ में देखेंगे-

1. पैसों का महत्त्व (Importance of Money)-आधुनिक समाज में व्यक्ति ने पैसा कमाकर अपनी जीवन शैली में कई तरह के परिवर्तन ला दिए हैं और इस शैली को कायम रखने के लिए उसे हमेशा ज्यादा से ज़्यादा पैसों की ज़रूरत पड़ती है। इस प्रक्रिया में वह अपनी योग्यता के अनुसार अपनी कमाई में बढ़ौतरी करने की कोशिश में लगा रहता है। उसके रहने-सहने का तरीका बदलता जा रहा है और ऐश्वर्य की सभी वस्तुएं आज उसके जीवन के लिए सामान्य और आवश्यकता की वस्तुएं बनती जा रही हैं और इन सभी को पूरा करने के लिए पैसा अति आवश्यक है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि वह उन सीमित साधनों से ज़्यादा सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता। इस कारण संयुक्त परिवारों का महत्त्व कम हो रहा है और आदमी अपने परिवारों से अलग रहना पसंद करता है। यह उसकी ज़रूरत भी है और मजबूरी भी, इस कारण वह अपने परिवारों से अलग रहने लग गया है।

2. पश्चिमी प्रभाव (Impact of Westernization)-भारत में अंग्रेजों के शासनकाल और उसके बाद भारतीय समाज में कई तरह से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए, जिससे कि हमारी संस्कृति और व्यवहार इत्यादि में कई जिनके कारण व्यक्तिवाद का जन्म होने लगा। आधनिक शिक्षा प्रणाली ने लोगों के जीवन को से रहने के तरीके सिखाए।

इस तरह से भौतिकतावादी सोच के कारण, आधनिकता की चकाचौंध से लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन शुरू हो गया और लोगों में संयुक्त परिवार से लगाव कम होना शुरू हो गया। इसका अंत में परिणाम यह निकला कि संयुक्त परिवार प्रणाली टूटने लगी और इकाई अथवा केंद्रीय परिवार का उद्भव शुरू हो गया। लोगों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली और औरतों की स्वतंत्रता के कारण, नौकरी करने वालों का शहरों में पलायन ने संयुक्त परिवारों का अस्तित्व समाप्त करना शुरू कर दिया और टूटना दिन-प्रतिदिन जारी है।

3. औद्योगीकरण (Industrialization) आधुनिक समाज को आज औद्योगिक समाज की संज्ञा दी जाती है। जगह-जगह पर कारखानों और नये-नये तरीकों से समाज में तबदीलियां नज़र आती हैं। हर रोज़ नये-नये आविष्कारों के कारण समाज में कार्य करने के तरीकों एवं मशीनीकरण का चलन बढ़ता जा रहा है। घरों में कार्य करने वाले लोग अब कारखानों में काम करने लगे हैं। लोग अब अपने पैतृक कार्यों को छोड़कर उद्योगों में जा रहे हैं।

लोगों ने महसूस करना शुरू कर दिया है कि इस दौड़ में अगर रहना है तो मशीनों का सहारा लेना ही पड़ेगा और इस बदलाव के कारण, शहरीकरण और भौगोलिक दृष्टि से कारखानों का बढ़ना इत्यादि लोगों को पलायन करवाता है। इस कारण लोगों ने संयुक्त परिवारों को छोड़कर, जहां पर उन्हें रोटी-रोज़ी मिली, वे उधर चल पड़े और यह सभी कुछ हुआ, उद्योगों के लगने की वजह से। इस तरह औद्योगीकरण के कारण संयुक्त परिवार प्रणाली में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं, जिससे यह बात साफ हो जाती है कि इकाई परिवारों का चलन या अस्तित्व, उद्योगों की वजह से बढ़ रहा है।

4. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) आधनिक समाज में व्यक्ति की स्थिति. उसकी योग्यता के आधार पर आंकी जाती है। इसलिए उसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और ज्यादा धन कमाना पड़ता है। हर व्यक्ति समाज में ऊपर उठना चाहता है। संयुक्त परिवार में व्यक्ति की स्थिति उसकी योग्यता के आधार पर न होकर अपने परिवार की हैसियत के अनुसार आंकी जाती है। इस प्रकार वह परिश्रम ही नहीं करता। औद्योगीकरण और शिक्षा के प्रसार ने व्यक्ति को गतिशील कर दिया है।

यातायात के साधनों और संचार के माध्यम से आदमी के लिए दूरियां कम हो गई हैं। उसका सोचने का तरीका बदलता जा रहा है। इस नए समाज में उसके जिंदगी के मूल्य भी बदल गए और वह भौतिकवाद की ओर अग्रसर है और उसी प्रक्रिया में उसमें भी तेजी आनी स्वाभाविक है और इस कारण वह संयुक्त परिवार के बंधनों से मुक्त होना चाहता है। इसी कारण से भी संयुक्त परिवारों का टूटना निरंतर जारी है।

5. यातायात के साधनों का विकास (Development of means of Communication and Transport) यहीं पर बस नहीं आधुनिक यातायात के साधनों में आया बदलाव भी अपने आप में इस सोच का कारण बना है। व्यक्ति को इन्हीं सुविधाओं के कारण ही नई राहों पर चलना आसान हो गया है। हर क्षेत्र में काम करने की संभावनाओं को इन्हीं साधनों ने बढ़ा दिया है, आज कोई भी व्यक्ति पचास-सौ किलोमीटर को कुछ भी नहीं समझता।

प्राचीन काल में यह सुविधाएं नहीं थीं या बहुत ही कम थीं, इस कारण से लोग एक ही जगह पर रहना पसंद करते थे। आज के युग में इन साधनों ने व्यक्ति की दूरियों को कम कर दिया है। इनकी वजह से भी आदमी बाहर अपने काम-धंधों को आसानी से कर पाता है और संयुक्त परिवार का मोह छोड़कर केंद्रीय परिवार की सभ्यता को अपना रहा है।

6. जनसंख्या में बढ़ोत्तरी (Increase in Population)-भारत में जनसंख्या बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है। इससे कुछ ही समय में ही प्रत्येक परिवार में ऐसी स्थिति आ जाती है कि परिवार की भूमि या जायदाद सारे सदस्यों के पालन पोषण के लिए काफ़ी नहीं होती और नौकरी या व्यवसाय की खोज में सदस्यों को परिवार छोड़ना पड़ता है। इसलिए भी संयुक्त परिवारों में विघटन हो रहा है।

7. शहरीकरण और आवास की समस्या (Problem of Urbanization and Immigration) संयुक्त परिवारों के टूटने का एक और महत्त्वपूर्ण कारण देश का तेजी से बढ़ता शहरीकरण है, जिससे लोग गांव छोड़कर शहरों में आ रहे हैं। जबकि शहरों में मकानों की भारी कमी है। शहरों में मकान कम ही नहीं छोटे भी होते हैं। इसलिए मकानों की समस्या के कारण ही शहरों में संयुक्त परिवारों में विघटन हो रहा है।

8. स्वतंत्रता और समानता के आदर्श (Ideals of Independence and Equality) संयुक्त परिवार एक तरह से तानाशाही राजतंत्र है जिसमें परिवार के मुखिया का निर्देश शामिल होता है। इसका कहना सबको मानना पड़ता है व कोई उसके विरुद्ध बोल नहीं सकता। इसलिए यह आधुनिक विचारधारा के विरुद्ध है। आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से नए नौजवान लड़के और लड़कियों में समानता और स्वतंत्रता की भावना से संयुक्त परिवार टूट रहे हैं।

प्रश्न 14.
परिवार की संस्था में किस प्रकार के परिवर्तन आ रहे हैं? उनका वर्णन करें।
अथवा
परिवार के ढांचे तथा कार्यों में आ रहे परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
परिवार की संरचना के बदलते आयाम की व्याख्या कीजिए।
अथवा
संयुक्त परिवार में प्रमुख परिवर्तन क्या-क्या हुए हैं?
अथवा
परिवार में हुए किन्हीं दो परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
परिवार का अर्थ बताते हुए परिवार की संरचना में हुए नवीन परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस संसार में कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसमें उसके उत्पन्न होने से लेकर खत्म होने तक कोई परिवर्तन न आया हो। इस प्रकार समाज में सामाजिक संस्थाएं भी, जो हमारी सहायता के लिए बनाई गई थीं, इन सामाजिक संस्थाओं में भी समय के साथ-साथ परिवर्तन आ रहे हैं। इसी प्रकार परिवार नाम की संस्था शरू हई थीं उस समय से लेकर आज तक इसमें बहत परिवर्तन आ चके हैं।

उसके ढांचे के साथ-साथ कार्यों में भी बहुत से परिवर्तन आए हैं। ढांचा पक्ष से पहले संयुक्त परिवार होते थे अब वह केंद्रीय परिवारों में बदल रहे हैं। कार्यात्मक पक्ष से भी बहुत परिवर्तन आए हैं तथा इसके बहुत से कार्य और संस्थाओं के पास चले गए हैं। परिवार में आए परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार है-
1. केंद्रीय परिवारों का बढ़ना (Increasing Nuclear Families)-भारतीय समाज का एक परंपरागत ग्रामीण समाज है जहां पर प्राचीन समय में संयुक्त परिवार पाए जाते थे। मुख्य पेशा कृषि होने के कारण परिवार में अधिक सदस्यों की आवश्यकता पड़ती थी। इसलिए संयुक्त परिवार हमारे समाज में पाए जाते थे। परंतु समय के साथ-साथ शिक्षा के बढ़ने से तथा सामाजिक गतिशीलता के बढ़ने से लोग शहरों की तरफ जाने लगे। लोग संयुक्त परिवारों को छोड़कर शहरों में जाकर केंद्रीय परिवार बसाने लगे। इस प्रकार परिवार के ढांचे पक्ष में परिवर्तन आने लग गए तथा संयुक्त परिवारों की जगह केंद्रीय परिवार सामने आने लग गए।

2. आर्थिक कार्यों में परिवर्तन (Change in Economic Functions)-परिवार के आर्थिक कार्यों में भी बहुत से परिवर्तन आए हैं। प्राचीन समय में तो व्यक्ति की आर्थिक क्रियाएं परिवार के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रहती थीं। कार्य परिवार दवारा ही होता था तथा रोटी बनाने या कमाने के कार्य परिवार में ही होते थे जैसे कि गेहूँ उगाने का कार्य या आटा पीसने का कार्य। परिवार में ही जीवन जीने के सभी साधन मौजूद थे।

परंतु समय के साथ-साथ समाज में परिवर्तन आए तथा हमारे समाजों में औद्योगिकीकरण शुरू हुआ। परिवार के आर्थिक कार्य उद्योगों के पास चले गए हैं जैसे कि आटा अब चक्कियों पर पिसता है अथवा कपड़ा बड़ी-बड़ी मिलों में बनता है। इस प्रकार परिवार के आर्थिक उत्पादन के कार्य धीरे-धीरे खत्म हो गए तथा परिवार के आर्थिक कार्य और संस्थाओं के पास चले गए।

3. शैक्षिक कार्यों का परिवर्तित होना (Changes in Educational Functions)-प्राचीन समय में बच्चों को शिक्षा देने का कार्य या तो गुरुकुल में होता था या फिर घर में। बच्चा अगर गुरु के पास शिक्षा लेने जाता भी था तो उसे केवल वेदों, पुराणों इत्यादि की शिक्षा ही दी जाती थी। उसे पेशे अथवा कार्य से संबंधित कोई शिक्षा नहीं दी जा थी तथा यह कार्य परिवार द्वारा ही किया जाता था।

प्रत्येक जाति अथवा परिवार का एक परंपरागत पेशा होता था तथा उस पेशे से संबंधित गुर भी उस परिवार को पता होते थे। वह परिवार अपने बच्चों को धीरे-धीरे पेशे से संबंधित शिक्षा देता जाता था तथा बच्चों की शिक्षा पूर्ण हो जाती थी। परंतु समय के साथ-साथ परिवार के इस कार्य में परिवर्तन आया है।

अब पेशों से संबंधित शिक्षा देने का कार्य परिवार नहीं बल्कि सरकार द्वारा खोले गए Professional Colleges, Medical Colleges, Engineering Colleges, I.I.M.’s, I.I.T.’s, I.T.I.’s Fruit करते हैं। बच्चा इनमें से पेशे से संबंधित शिक्षा ग्रहण करके अपना स्वयं का पेशा अपनाता है तथा परिवार का परंपरागत पेशा छोड़ देता है। इस प्रकार परिवार का शिक्षा देने का परंपरागत कार्य और संस्थाओं के पास चला गया है।

4. पारिवारिक एकता का कम होना (Decreasing Unity of Family)-प्राचीन समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे तथा परिवार के सभी सदस्य परिवार के हितों के लिए कार्य करते थे। वह अपने हितों को परिवार के हितों पर त्याग देते थे। परिवार के सदस्यों में पूर्ण एकता होती थी। सभी सदस्य परिवार के बुजुर्ग की बात माना करते थे तथा अपने फर्ज़ अच्छे ढंग से पूर्ण किया करते थे। परंतु समय के साथ-साथ पारिवारिक एकता में कमी आई।

संयुक्त परिवार खत्म होने शुरू हो गए तथा केंद्रीय परिवार सामने आने लग गए। परिवार के सभी सदस्यों के अपने अपने हित होते हैं तथा कोई भी परिवार के हितों पर अपने हितों का त्याग नहीं करता है। सभी के अपने-अपने आदर्श होते हैं जिस कारण कई बार तो वह घर ही छोड़ देते हैं। इस प्रकार समय के साथ-साथ पारिवारिक एकता में कमी आई है।

5. सामाजिक कार्यों में परिवर्तन (Change in Social Functions)-परिवार के सामाजिक कार्य भी काफी बदल गए हैं। प्राचीन समय में परिवार सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में काफी महत्त्वपूर्ण कार्य करता था। परिवार दस्यों पर पर्ण नियंत्रण रखता था। उसकी अच्छी-बरी आदतों पर नज़र रखता था तथा उसे समय-समय पर ग़लत कार्य न करने की चेतावनी देता था। सदस्य भी परिवार के बुजुर्गों से डरते थे, जिस कारण वह नियंत्रण में रहते थे। परंतु समय के साथ-साथ व्यक्ति पर पारिवारिक नियंत्रण कम होने लग गया तथा नियंत्रण के औपचारिक साधन सामने आने लग गए जैसे कि पुलिस, सेना, न्यायालय, जेल इत्यादि।

इसके साथ प्राचीन समय में स्त्री अपने पति को परमेश्वर समझती थी तथा उसे भगवान् का दर्जा देती थी। पति की इच्छा के सामने वह अपनी इच्छा का त्याग कर देती थी। परंतु अब यह धारणा बदल गई है। अब पत्नी पति को परमेश्वर नहीं बल्कि अपना साथी अथवा दोस्त समझती है जिससे कि वह अपनी समस्याएं साझी कर सके।

पहले परिवार बच्चों का पालन-पोषण करते थे तथा बच्चों के बड़ा होने तक उनका उत्तरदायित्व निभाते थे। परंतु आजकल के समय में केंद्रीय परिवार होते हैं तथा स्त्रियां नौकरी करती हैं जिस कारण बच्चा परिवार में नहीं पलता बल्कि क्रेचों में पलता है। इस प्रकार परिवार के बहुत से सामाजिक कार्य बदल कर और संस्थाओं के पास चले गए हैं।

6. धार्मिक कार्यों में परिवर्तन (Change in Religious Functions)-प्राचीन समय में चाहे बच्चों को गुरु के आश्रम में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी तथा उसे वहीं पर वेदों, पुराणों इत्यादि की शिक्षा दी जाती थी परंतु फिर भी परिवार उसे धार्मिक शिक्षा भी देता था। उसे धर्म तथा नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाता था। समय-समय पर परिवार में धार्मिक संस्कार, यज्ञ तथा अनुष्ठान होते रहते थे जिससे बच्चों को धर्म के बारे में काफी कुछ पता चलता रहता था। इस प्रकार परिवार में ही बच्चों की धार्मिक शिक्षा हो जाती थी। परंतु समय के साथ बहुत से आविष्कार हुए, की तथा विज्ञान प्रत्येक बात को तर्क पर तोलता है।

लोग विज्ञान की शिक्षा लेकर धर्म को भूलने लग गए। अब लोग प्रत्येक धार्मिक संस्कार को तर्क की कसौटी पर तोलने लग गए हैं कि यह क्यों और कैसे है। अब लोगों के पास धार्मिक अनुष्ठानों के लिए समय नहीं है। अब लोग धार्मिक कार्यों के लिए थोड़ा-सा ही समय निकाल पाते हैं तथा वह भी अपने समय की उपलब्धता के अनुसार। अब लोग विवाह जैसे धार्मिक संस्कार को सामाजिक उत्सव की तरह मनाते हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों को बुलाया जा सके। लोग इनमें अधिक से अधिक पैसा खर्च जिस कारण धार्मिक क्रियाओं का महत्त्व कम हो गया है। इस प्रकार परिवार में धार्मिक कार्य कम हो गए हैं।

इस प्रकार इस व्याख्या को देखकर हम कह सकते हैं कि परिवार के कार्यों तथा ढांचे में बहुत परिवर्तन आ गए हैं। परिवार के बहुत से कार्य और संस्थाओं के पास चले गए। चाहे यह परिवर्तन समय के साथ-साथ आए हैं परंतु फिर भी हम कह सकते हैं कि परिवार का व्यक्ति के जीवन में जो महत्त्व है उसका स्थान कोई और संस्था नहीं ले सकती है।

प्रश्न 15.
परिवार से सामाजिक कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर:
(i) बच्चों का समाजीकरण (Socialization of Children) बच्चों का समाजीकरण करने में परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। अगर बच्चा परिवार में रहकर अच्छी आदतें सीखता है तो उससे वह समाज का एक अच्छा नागरिक बनता है। बच्चे का समाज के साथ संपर्क भी परिवार के कारण ही स्थापित होता है। बच्चा जब पैदा होता है तो वह सबसे पहले अपने माता-पिता पर निर्भर होता है क्योंकि उसकी भूख-प्यास जैसी ज़रूरतें परिवार ही पूर्ण करता है। व्यक्ति को परिवार से ही समाज स्थिति तथा भूमिका भी प्राप्त होती है। व्यक्ति को अगर कोई पद प्रदान किया जाता है तो वह भी परिवार के कारण ही किया जाता है। इस प्रकार परिवार व्यक्ति के समाजीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(ii) संस्कृति की सुरक्षा तथा हस्तांतरण (Protection and transmission of culture)-जो कुछ भी आज तक मनुष्य ने प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है तथा यह संस्कृति परिवार के कारण ही सुरक्षित रहती है तथा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित की जाती है। यह प्रत्येक परिवार का उत्तरदायित्व होता है कि वह अपनी आने वाली पीढ़ी को अच्छी-अच्छी आदतें, रीति-रिवाज, परंपराएं, मूल्य, आदर्श इत्यादि सिखाए। बच्चे चेतन या अचेतन मन से यह सब धीरे-धीरे ग्रहण करते हैं।

वह वही सब कुछ सीखते तथा ग्रहण करते हैं जो वह अपने माता-पिता को करते हुए देखते हैं। प्रत्येक परिवार के कुछ आदर्श, परंपराएं तथा रीति-रिवाज होते हैं तथा परिवार इन सभी चीज़ों को धीरे-धीरे बच्चों को प्रदान करता जाता है। इस प्रकार बच्चा इन सभी को ग्रहण करता है तथा परिवार के आदर्शों के अनुसार जीवन व्यतीत करता है। इस प्रकार परिवार समाज की संस्कति को सरक्षित रखता है तथा उसे एक पीढी से दसरी पीढ़ी की तरफ हस्तांतरित करती है।।

(iii) व्यक्तित्व का विकास (Development of personality) परिवार में रहकर बच्चा बहुत सी नई आदतें सीखता है, बहुत-से नए आदर्श, मूल्य इत्यादि ग्रहण करता है जिससे उसका समाजीकरण होता रहता है। परिवार व्यक्ति की ग़लत प्रवृत्तियों को नियंत्रित करता है, उसे कई प्रकार के उत्तरदायित्व सौंपता है, उसमें अच्छी आदतें डालता है तथा उसमें स्वः का विकास करने में सहायता करता है।

परिवार में रहकर ही बच्चे में बहुत-से गुणों का विकास होता है जैसे कि प्यार, सहयोग, अनुशासन, हमदर्दी इत्यादि तथा यह सब कुछ उसके व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चे को परिवार में रहकर कई प्रकार की शिक्षा प्राप्त होती है जिससे उसका व्यक्तित्व और विकसित हो जाता है तथा वह समाज में रहने के तौर-तरीके सीखता जाता है।

(iv) व्यक्ति को स्थिति प्रदान करना (To provide status to individual)-परिवार में बच्चे को यह पता चल जाता है कि परिवार में और समाज में उसकी स्थिति क्या है तथा उसे कौन-सी भूमिका निभानी है। प्राचीन समाजों में तो बच्चे को प्रदत्त स्थिति प्राप्त हो जाती थी अर्थात् जिस प्रकार के परिवार में वह जन्म लेता था उसे उसकी ही स्थिति प्राप्त हो जाती थी।

उदाहरण के तौर पर राजा के परिवार में पैदा हुए बच्चे को राजा जैसा सम्मान प्राप्त हो जाता था तथा निर्धन के घर पैदा हुए बच्चे को न के बराबर सम्मान प्राप्त होता था। निर्धन व्यक्ति के बच्चों की स्थिति हमेशा निम्न होती थी। इस प्रकार परिवार के कारण ही व्यक्ति को समाज में स्थिति प्राप्त होती थी। चाहे आधुनिक समय में व्यक्ति स्थिति को अर्जित करने में लग गए हैं परंतु फिर भी परंपरागत समाजों में आज भी व्यक्ति को प्रदत्त स्थिति प्राप्त होती है। इस प्रकार परिवार व्यक्ति को स्थिति प्रदान करता है।

(v) व्यक्ति पर नियंत्रण रखना (To keep control on individual)-अगर हम सामाजिक नियंत्रण के साधनों की तरफ देखें तो परिवार की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है क्योंकि परिवार ही व्यक्ति को नियंत्रण में रहना सिखाता है। परिवार बच्चे में अच्छी-अच्छी आदतें डालता है ताकि उसमें ग़लत आदतों का विकास न हो सके। बच्चे पर माता पिता नियंत्रण रखते हैं, उस के झूठ बोलने पर उसे डाँटते हैं, उसे बड़ों के साथ सही प्रकार से बोलने के लिए कहते हैं, उसे समाज द्वारा बनाए गए नियमों के बारे में बताते हैं ताकि वह समाज का ज़िम्मेदार नागरिक बन सके तथा समाज में उनके परिवार का सम्मान और बढ़ जाए। परिवार में रहकर बच्चा अनुशासन में रहना सीखता है तथा अपने व्यवहार और क्रियाओं पर नियंत्रण रखना सीखता है।

अगर बच्चा परिवार के सदस्यों के साथ ही ठीक ढंग से व्यवहार नहीं करेगा तो वह समाज के और सदस्यों के साथ ठीक ढंग से कैसे व्यवहार करेगा। बच्चा परिवार के दूसरे सदस्यों को कार्य करता देखकर बहुत-सी बातें सीखता है। अगर परिवार के सदस्य ग़लत कार्य करेंगे तो बच्चा भी वह सब कुछ ग्रहण करेगा परंतु अगर परिवार के सदस्य ग़लत कार्य न करके अच्छी बातें करेंगे तो बच्चे भी अच्छी बातें करेंगे तथा वे नियंत्रण में रहेंगे। इस प्रकार परिवार सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।

(vi) विवाह करने में सहायता प्रदान करना (To give help in settling marriage) अगर कोई व्यक्ति विवाह करना चाहे तो सबसे पहले उससे परिवार, खानदान या वंश के बारे में पूछा जाता है ताकि उसकी पृष्ठभूमि के बारे में पता चल सके। अगर वह अच्छे परिवार से संबंध रखता है तो विवाह करने में कोई परेशानी नहीं होती परंतु अगर वह किसी निम्न श्रेणी के परिवार से संबंध रखता है तो विवाह करने में काफ़ी समस्या आती है। परिवार अपने बच्चों का विवाह करवाना अपना कर्तव्य समझता है ताकि वंश आगे बढ़ सके। अगर परिवार यह कर्तव्य पूर्ण नहीं करता तो उसे समाज में अच्छी स्थिति प्राप्त नहीं होती। इसलिए परिवार व्यक्ति का विवाह करने में सहायता प्रदान करता है।

(vii) पेशा प्रदान करना (To provide occupation)-चाहे आजकल के समय में तो परिवार का यह कार्य काफ़ी कम हो गया है परंतु प्राचीन समाजों में तथा परंपरागत समाजों में भी यह कार्य काफ़ी महत्त्वपूर्ण होता है। भारतीय समाज में प्राचीन समय में जाति प्रथा प्रचलित थी जिसमें चार महत्त्वपूर्ण वर्ण हुआ करते थे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र।

प्रत्येक वर्ग में पैदा हुआ बच्चा केवल अपने ही वर्ण का पेशा अपना सकता था अर्थात् ब्रा परिवार में पैदा हुआ बच्चा केवल ब्राह्मण का ही कार्य कर सकता था तथा शूद्र परिवार में घर पैदा हुआ बच्चा केवल उस परिवार का ही कार्य अपना सकता था। चाहे आधुनिक समय में यह कार्य कम हो गया है तथा लोक परिश्रम करके अपनी मर्जी का पेशा अपना रहे हैं परंतु फिर भी व्यापारियों, दुकानदारों के बच्चे अपने परिवार का पेशा ही अपनाते बाह्मण हैं।

(viii) शिक्षा देना (To give education)-जब बच्चा पैदा होता है तो उसे समाज में रहने के नियम पता नहीं होते हैं। उसमें पशु प्रवृत्ति होती है तथा वह प्रत्येक चीज़ को अपना समझता है। परिवार ही उस की पशु प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखता है तथा उसे समाज में रहने के नियम सिखाता है। इस प्रकार बच्चे को सबसे पहली शिक्षा परिवार में ही प्राप्त होती है। धर्म की शिक्षा, पेशे की शिक्षा, नियम सीखने की शिक्षा इत्यादि जैसी शिक्षा बच्चे को परिवार में ही मिलती है। चाहे आजकल के समय में औपचारिक शिक्षा देने का कार्य और संस्थाओं के पास चला गया है, परंतु फिर भी बच्चे को शिक्षा देने का कार्य परिवार ही करता है।

प्रश्न 16.
नातेदारी क्या होती है? इसके प्रकार बताओ।
उत्तर:
मानव इतिहास के आरंभिक चरणों से ही अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये मनुष्यों ने समूहों एवं झुंडों में रहना आरंभ किया। उसके द्वारा निर्मित समूह ही नातेदारी व्यवस्था के उद्विकास का प्रथम चरण था। उद्विकास की लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह वर्तमान स्वरूप में विकसित हुई।

समाजों की पृष्ठभूमि, सामाजिक संस्कृति, आर्थिक दशाओं द्वारा नातेदारी का स्वरूप एवं आकार निर्धारित किया जाता है। नातेदारी सर्वव्यापी संस्था है। लेकिन सभी समाजों में इसका स्वरूप, रीतियां, संबंधों की घनिष्ठता तथा घनिष्ठ संबंधियों की संख्या में अंतर पाया जाता है। नातेदारी के लिये बंधुत्व, संगोत्रता एवं स्वजनता आदि संज्ञाओं का प्रयोग किया जाता है।

नातेदारी व्यवस्था का अर्थ (Meaning of Kinship System) रैडक्लिफ ब्राऊन के शब्दों में, “नातेदारी सामाजिक उद्देश्यों के लिये स्वीकृत वंश संबंध है जो कि सामाजिक संबंधों के परंपरात्मक संबंधों का आधार है।”

लैवी स्ट्रास के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था विचारों की एक निरंकुश व्यवस्था है। नातेदारी व्यवस्था में समाज द्वारा मान्यता प्राप्त वे संबंध आते हैं जो कि अनुमानित और वास्तविक संबंधों पर आधारित हों। नातेदारी की यह परिभाषा ‘तिनिक’ ने मानव शास्त्र के शब्द कोष में दी है।” ‘फ़ॉक्स’ ने अपनी कृति ‘नातेदारी एवं विवाह’ में लिखा है “नातेदारी केवल मात्र स्वजन अर्थात् वास्तविक, ख्यात अथवा कल्पित समरक्तता वाले व्यक्तियों के मध्य संबंध है।”

डॉ० रिवर्स ने अपनी पुस्तक ‘सामाजिक संगठन’ में लिखा है संगोत्रता (बंधुत्व) की मेरी परिभाषा उस संबंध से है जो वंशावलियों के माध्यम से निर्धारित एवं वर्णित की जा सकती है। अतः स्पष्ट है कि नातेदारी ऐसे संबंधियों के बीच संबंधों की व्यवस्था होती है जिनसे हमारा संबंध वंशावली के आधार पर होता है। वंशावली संबंध परिवार के द्वारा विकसित होते हैं।

नातेदारी व्यवस्था के प्रकार/आधार
(Types/Bases of Kinship)
नातेदारी व्यवस्था समाज में दो आधारों पर विकसित होती है-

  • रक्तमूलक नातेदारी (Consenguineous Kinship)
  • विवाहमूलक नातेदारी (Affinal Kinship)

1. रक्तमूलक नातेदारी (Consenguineous Kinship)-रक्तमूलक नातेदारी वह होती है, जिसमें केवल उन्हीं व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है, जो आपस में रक्त द्वारा संबंधित होते हैं। जैसे माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-ताया-दादा-पिता, पुत्र-पौत्र इत्यादि सब एक-दूसरे से रक्त संबंधी होते हैं। रक्त संबंध के भी दो मूलाधार होते हैं-

  • मातृवंश
  • पितृवंश।

माता के वंश के सभी सदस्य व्यक्ति के रक्त संबंधी होते हैं। इसी प्रकार पिता के रिश्तेदार भी आपस में रक्त संबंधी होते हैं। चाचा, ताया, दादा आदि पिता के वंश तथा मामा, नाना, नानी आदि माता के वंश के रक्त संबंधी हैं।

रक्त संबंधी दो प्रकार के होते हैं-

  • रेखीय नातेदारी (Lineal Kinship)
  • क्षैतिज नातेदारी (Collateral Kinship)।

1. रेखीय नातेदारी में संबंधियों के बीच रक्त संबंध एक रेखा के रूप में होता है, जैसे-परदादा, दादी, पिता, पुत्र, पौत्र इत्यादि। क्षैतिज संबंधी वे होते हैं, जिनका सीधा रक्त संबंध नहीं होता। फिर भी एक ही पूर्वज के साथ संबंधित होने के कारण आपस में रक्त संबंधी होते हैं; जैसे चाचा, ताया, भतीजी इत्यादि। रक्त संबंध वास्तविक के अतिरिक्त काल्पनिक भी होता है। जैसे कई जनजातियों में बहुपति विवाह प्रथा पाई जाती है।

वहां जो भाई पत्नी के गर्भवती होने पर तीर-कमान का संस्कार पूरा करता है, वही होने वाली संतान का पिता माना जाता है। इसी तरह किसी व्यक्ति के द्वारा गोद ली गई संतान भी उसकी अपनी संतान मानी जाती है। अतः यह आवश्यक नहीं कि पिता व संतान का आपस में जैवकीय संबंध (Biological relationship) हो। फिर भी वह रक्त संबंधी माने जाते हैं।

2. विवाहमूलक नातेदारी (Affinal Kinship)-विवाहमूलक नातेदारी ऐसी नातेदारी है जो दो विषम लिंगियों के बीच समाज की स्वीकृति द्वारा स्थापित की जाती है। विवाह के द्वारा पति-पत्नी ही विवाह संबंधी नहीं बनते बल्कि पत्नी के सब रिश्तेदार पति के लिये और पति के सब नातेदार पत्नी के लिये विवाह संबंधी होते हैं। अतः विवाह द्वारा नातेदारी में लगभग दुगुणी वृद्धि हो जाती है। विवाहमूलक नातेदारी में सास, ससुर, जीजा, ननद, साला, साली, बहनोई, ज्येष्ठ, बहु, देवर आदि रिश्तेदार सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 17.
आज के समय में नातेदारी का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नातेदारी की भूमिका एवं महत्त्व (Role and Importance of Kinship)-नेलसन ग्रेबन ने अपनी कृति “Reading in Kinship’ में लिखा है, “नातेदारी व्यवस्था सर्वव्यापी है। सामाजिक संगठन को समझने के लिये नातेदारी संस्थाओं का ज्ञान महत्त्वपूर्ण है।” डॉ० रिवर्स कहते हैं, “अनेक भारतीय मानव शास्त्रियों (Anthropologists) ने नातेदारी के विभिन्न पक्षों का अध्ययन कर मानव शास्त्रीय ज्ञान को समृद्ध बनाया है।” उन्होंने नातेदारी के मानवशास्त्र के अंतर्गत विकसित किये माडलों (Models) को नातेदारी के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिये प्रयोग किया। नातेदारी को भूमिका एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत अधोलिखित है

1. परिस्थति निर्धारण (Determination of Status)-नातेदारी व्यक्ति की जन्म से सामाजिक प्रस्थिति को निर्धारित करती है। उच्च परिवार एवं नातेदारी से संबंधित व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति उच्च होती है। उदाहरणार्थ राजनीति में मंत्री, एम० एल० ए०, एम० पी० नौकरी में उच्च पद पर कार्यरत तथा उच्च स्तर के वाणिज्य व्यापार करने वालों के परिवार जनों एवं रिश्तेदारों को उच्च प्रस्थिति प्राप्त होती है। चाहे व्यक्ति की निजी उपलब्धियां भी कम हों।

2. वंश एवं उत्तराधिकार का निर्धारण (Determination of Descent and Inheritance)-वंश व्यक्ति का मूल (Root) होता है। परिवार, वंश, गोत्र, मातदल नातेदारी के ही अंग हैं। किस व्यक्ति को अपने पूर्वजों की संपत्ति, चल-अचल, भौतिक-अभौतिक का हस्तांतरण होगा। कौन व्यक्ति उत्तराधिकारी होगा तथा उत्तराधिकार के कितने भाग का उसे अधिकार होगा, ये सब बातें नातेदारी के सदस्यों में विभिन्न नियमों द्वारा तय की जाती हैं।

लूसी मेयर ने अपनी कृति ‘सामाजिक विज्ञान की भूमिका’ में इस संबंध में लिखा है, “किसी व्यक्ति का समाज में स्थान, उसके अधिकार और कर्तव्य, संपत्ति पर उसका दावा अधिकतर दूसरे सदस्यों के साथ, उसके जन्मजात संबंधों पर निर्भर करते हैं। ऐसे समाज में संगठन के चाहे जो भी सिद्धांत हों प्राथमिक समूह व तथा उत्तराधिकार निर्धारित किया जाता है।”

3. समाजीकरण (Socialization)-परिवार एवं परिवारों की समूह नातेदारी व्यक्ति के समाजीकरण की प्राथमिक एजेंसियां (Agencies) हैं। नवजात शिशु सर्वप्रथम अपनी नातेदारी माता-पिता इत्यादि के संपर्क में आता है। वहीं से वह जैविकीय प्राणी (Biological Being) से सामाजिक प्राणी बनना प्रारंभ करता है। संबंधी उसे चलना, बोलना, भाषा, सामाजिक मूल्य तथा व्यवहार के तरीके सिखाते हैं।

4. सामाजिक सुरक्षा (Social Security)-अपने सदस्यों को नातेदारी द्वारा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया जाता है। व्यक्ति को जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई बार वह समस्याओं को सफलतापूर्वक सुलझा लेता है। लेकिन कई बार असफलता ही उसके हाथ लगती है। ऐसी स्थिति में परिवार के अन्य संबंधी ही उसे ढांढस बंधवाते हैं। आकस्मिक मृत्यु, आपदा, विपत्ति दुःख, असफलता आदि प्रतिकूल परिस्थितियों में नातेदारी व्यक्ति को उभारने में सहायता करता है। विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसको सहयोग भी देती है।

5. आर्थिक हितों की सुरक्षा (Safeguard of Economic Interests)-नातेदार व्यक्ति के आर्थिक हितों की रक्षा करते हैं। भारतीय समाज में तो इस क्षेत्र में नातेदारी का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि नातेदारी व्यक्ति को जातिगत व्यवसाय सीखने तथा अपनाने में सहायता करती है। लूसी मेयर द्वारा नातेदारी व्यक्ति के आर्थिक हितों की सुरक्षा प्रदान करने के संबंध में लिखती है, “विभिन्न समाजों में स्वीकृत बंधुत्व के बंधन लोगों को खेती तथा जायदाद पर अधिकार, समान हितों की पूर्ति में परस्पर सहायता तथा दूसरों पर आधिपत्य प्रदान करते हैं। प्रभुता प्राप्त लोगों पर यह दायित्व रहता है कि वे आश्रितों का कल्याण करें। आश्रितों का धर्म आज्ञा पालन है। सभी लोगों का कर्तव्य है कि ऐसे अवसरों पर जहां बंधुत्व (नातेदारी) की मान्यता का प्रश्न है परस्पर सहयोग करें।”

6. मानव शास्त्रीय ज्ञान का आधार (Basis of Anthropological Knowledge)-विश्वभर के प्रमुख मानव शास्त्रियों के प्रारंभिक अध्ययन नातेदारी से ही संबंधित थे। उन्होंने सामाजिक संरचना की इस आधारभूत इकाई का पर्याप्त ज्ञान एकत्रित किया। मैलीनोवस्की, ब्राऊन, मार्गन, लौवी तथा हैनरीमैन आदि मानव शास्त्री उनमें से प्रमुख हैं। इन समाज शास्त्रियों के अध्ययनों से विवाह, परिवार एवं नातेदारी के उदविकास के विभिन्न चरणों का ज्ञान होना प्राप्त होता है।

7. सामाजिक संरचना को समझने में सहायक (Helpful in Understanding Social Structure) सामाजिक संरचना विशेषतः भारतीय सामाजिक संरचना को समझने के लिए नातेदारी के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान आवश्यक है। विभिन्न रिश्तेदार आपस में विशेष प्रकार से व्यवहार करते हैं। इसके लिए नातेदारी की रीतियों को समझने की आवश्यकता है। ससुर के समक्ष आने पर बहू द्वारा एकदम चूंघट डाल लेना, पत्नी द्वारा पति के निकटतम संबंधी का नाम न लेना इत्यादि सामाजिक वास्तविकताओं को तभी समझा जा सकता है, यदि नातेदारी व्यवस्था का ज्ञान हो।

8. सामाजिक नियंत्रण (Social Control) नातेदारी सामाजिक नियंत्रण में महत्त्वपर्ण भमिका अभिनीत करती है। विभिन्न रिश्तेदारों को कैसे संबोधित किया जाए, उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाए, बड़ों का आदर, छोटों से प्यार, आदि मूल्यों को नातेदारी अनुपालना सुनिश्चित करवाती है। नातेदारी होने के अहसास मात्र से व्यक्ति कई अवांछनीय कार्य नहीं करते हैं।

प्रत्येक समाज में नातेदारी व्यवस्था पायी जाती है। लेकिन किन तथा कितने व्यक्तियों के बीच घनिष्ठ संबंध पाए जाते हैं, ये प्रत्येक समाज में प्रचलित मूल्यों पर निर्भर करता है। भारतीय समाज में साधारणतया नातेदारी व्यवस्था के अंतर्गत पश्चिमी समाज की अपेक्षा कहीं अधिक संबंधी आते हैं। संबंधी का स्वरूप एवं क्षेत्र सामाजिक मूल्य तय करते हैं। नातेदारी व्यवस्था निश्चित रूप से व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रित करती है तथा समाज में संगठन, संतुलन, भाईचारे आदि को बढ़ावा देती है।

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HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Exercise 5.1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों में से कौन-से कथन सत्य हैं और कौन-से कथन असत्य हैं ? अपने उत्तरों के लिए कारण दीजिए
(i) एक बिंदु से होकर केवल एक ही रेखा खींची जा सकती है।
(ii) दो भिन्न बिंदुओं से होकर जाने वाली असंख्य रेखाएँ हैं।
(iii) एक सांत रेखा दोनों ओर अनिश्चित रूप से बढ़ाई जा सकती है।
(iv) यदि दो वृत्त बराबर हैं, तो उनकी त्रिज्याएँ बराबर होती हैं।
(v) आकृति में, यदि AB = PQ और PQ = XY है, तो AB = XY होगा।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 1
हल :
(i) यह कथन असत्य है, क्योंकि एक बिंद से होकर एक नहीं, बल्कि अनेक रेखाएँ खींची जा सकती हैं। जैसे बिंद O से दर्शाई गई हैं।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 2
(ii) यह कथन असत्य है, क्योंकि दो बिंदुओं से होकर एक ओर केवल एक ही रेखा खींची जा सकती है, जैसे बिंदु X और Y से होती हुई केवल एक ही रेखा खींची जा सकती है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 3
(iii) यह कथन सत्य है, क्योंकि अभिगृहीत 2 अनुसार एक सांत रेखा (Terminated Line) को अनिश्चित रूप से बढ़ाया जा सकता है। जैसे AB को बढ़ाया हुआ दिखाया गया है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 4
(iv) यह कथन सत्य है, क्योंकि यदि एक वृत्त द्वारा घेरे गए क्षेत्र को दूसरे वृत्त पर अध्यारोपित किया जाए तो वे संपाती होंगे। अतः इनके केंद्र और परिसीमाएँ संपाती होंगी। इस कारण इनकी त्रिज्याएँ संपाती होंगी।
(v) यह कथन सत्य है, क्योंकि यूक्लिड के प्रथम अभिगृहीत अनुसार वे बस्तुएँ जो एक ही वस्तु के बराबर हों एक-दूसरे के बराबर होती हैं।

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों में से प्रत्येक की परिभाषा दीजिए। क्या इनके लिए कुछ ऐसे पद हैं, जिन्हें परिभाषित करने की आवश्यकता है? वे क्या हैं और आप इन्हें कैसे परिभाषित कर पाएँगे ?
(i) समांतर रेखाएँ[B.S.E.H, 2018]
(ii) लंब रेखाएँ
(iii) रेखाखंड [B.S.E.H. 2018]
(iv) वृत्त की त्रिज्या
(v) वर्ग
हल :
उपरोक्त पदों को परिभाषित करने के लिए हमें निम्नलिखित पदों की आवश्यकता पड़ेगी
(a) बिंदु – एक बिंदु केवल कल्पना है जिसकी न कोई लंबाई, न कोई चौड़ाई और न कोई मोटाई होती है अर्थात एक बिंदु वह है जिसका कोई भाग नहीं होता।
(b) रेखा – एक रेखा चौड़ाई रहित लंबाई होती है। इसे दोनों ओर अनिश्चित रूप से बढ़ाया जा सकता है।
(c) तल – तल की लंबाई तथा चौड़ाई होती है। इसकी कोई मोटाई नहीं होती; जैसे कागज।
(d) किरण – एक निश्चित बिंदु से चलकर अंत तक जाने वाली रेखा किरण कहलाती है अर्थात इसका आरंभिक बिंदु होता है। परंतु अंत बिंदु नहीं होता; जैसे किरण AB दशाई गई है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 5
(e) कोण – एक उभयनिष्ठ बिंदु वाली दो किरणों का सम्मिलन कोण कहलाता है; जैसे \(\overline{AB}\) और \(\overline{AC}\) के बीच का क्षेत्र ∠BAC कहलाता है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 6
(f) वृत्त – किसी तल में किसी निश्चित बिंदु से उसी तल में दी गई समान अचर दूरी पर स्थित बिंदुओं का समुच्चय वृत्त कहलाता है। निश्चित बिंदु को वृत्त का केंद्र तथा निश्चित दूरी को वृत्त की त्रिज्या कहते हैं।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 7

(i) समांतर रेखाएँ-वे दो रेखाएँ समांतर रेखाएँ कहलाती हैं, जब (a) वे प्रतिच्छेद न करें, (b) जब वे समतलीय हों।
आकृति में l1 तथा l2 दो समांतर रेखाएँ दर्शाई गई हैं।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 8

(ii) लंब रेखाएँ – दो रेखाएँ AB तथा CD जो एक ही तल में स्थित हों, लंब रेखाएँ कहलाती हैं, यदि वे समकोण बनाएँ; जैसे AB ⊥ CD.
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 9

(iii) रेखाखंड – एक रेखाखंड रेखा का वह भाग होता है, जब दो विभिन्न बिंदु A तथा B एक रेखा पर दिए गए हैं, तब रेखा का भाग जिसके अंतःबिंदु A तथा B हों रेखाखंड कहलाती है।
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 10
इसे AB कहा जाता है। AB तथा BA एक ही रेखाखंड को दर्शाते हैं।

(iv) वृत्त की त्रिज्या – केंद्र से वृत्त की परिधि पर एक बिंदु की दूरी वृत्त की त्रिज्या कहलाती है।

(v) वर्ग-वह चतुर्भुज जिसकी चारों भुजाएँ बराबर हों तथा प्रत्येक कोण समकोण हो, वर्ग कहलाता है।

प्रश्न 3.
नीचे दी हुई दो अभिधारणाओं पर विचार कीजिए
(i) दो भिन्न बिंदु A और B दिए रहने पर, एक तीसरा बिंदु C ऐसा विद्यमान है, जो A और B के बीच स्थित होता है।
(ii) यहाँ कम-से-कम ऐसे तीन बिंदु विद्यमान हैं कि वे एक रेखा पर स्थित नहीं हैं।
क्या इन अभिधारणाओं में कोई अपरिभाषित शब्द हैं ? क्या ये अभिधारणाएँ अविरोधी हैं ? क्या ये यूक्लिड की अभिधारणाओं से प्राप्त होती हैं ? स्पष्ट कीजिए।
हल :
ऐसे अनेक अपरिभाषित शब्द हैं जिनकी जानकारी छात्र को होनी चाहिए। ये संगत होते हैं, क्योंकि इनमें दो अलग-अलग स्थितियों का अध्ययन किया जाता है अर्थात
(i) यदि दो बिंदु A और B दिए हुए हों, तो उनके बीच में स्थित एक बिंद होता है।
(ii) यदि A और B दिए हुए हों, तो आप एक ऐसा बिंद ले सकते हैं जो A और B से होकर जाने वाली रेखा पर स्थित नहीं होता।
ये अभिगृहीत यूक्लिड की अभिगृहीतों का अनुसरण नहीं करते। फिर भी ये अभिगृहीत 5.1 का अनुसरण करते हैं क्योंकि दो दिए विभिन्न बिंदुओं से केवल एक रेखा ही गुजर सकती है।

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1

प्रश्न 4.
यदि दो बिंदुओं A और B के बीच एक बिंदु C ऐसा स्थित है कि AC = BC है, तो सिद्ध कीजिए कि AC = \(\frac {1}{2}\) AB है। एक आकृति खींचकर इसे स्पष्ट कीजिए। [B.S.E.H. March 2017, 2019]
हल :
यहाँ पर एक बिंदु C है जोकि दो बिंदुओं A तथा B के बीच में इस प्रकार स्थित है कि AC = BC. दोनों ओर AC जोड़ने पर,
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 11
AC + AC = AC + BC
⇒ 2AC = AB [∵ AC + CB, AB के संपाती है।]
या AC = \(\frac {1}{2}\)AB
इति सिद्धम

प्रश्न 5.
प्रश्न 4 में, C रेखाखंड AB का एक मध्य-बिंदु कहलाता है। सिद्ध कीजिए कि एक रेखाखंड का एक और केवल एक ही मध्य-बिंदु होता है।
हल :
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 12
माना AB का अन्य मध्य-बिंदु D है.
AD = DB ……..(i)
लेकिन दिया गया है C, AB का मध्य-बिंदु है।
⇒ AC = CB ……..(ii)
समीकरण (ii) में से समीकरण (i) को घटाने पर
AC – AD = CB – DB
या DC = – DC
या DC + DC = 0
या 2DC = 0
या DC = \(\frac {0}{2}\) = 0
इस प्रकार C और D संपाती बिंदु हैं।
अतः प्रत्येक रेखाखंड का एक और केवल एक ही मध्य-बिंदु होता है।

HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1

प्रश्न 6.
आकृति में, यदि AC = BD है, तो सिद्ध कीजिए कि AB = CD है। [B.S.E.H. March, 2020]
HBSE 9th Class Maths Solutions Chapter 5 युक्लिड के ज्यामिति का परिचय Ex 5.1 - 13
हल :
यहाँ पर दिया है
AC = BD
आकृति अनुसार
AB + BC = BC + CD
[∵ AC = AB + BC तथा BD = BC + CD]
या AB + BC – BC = CD
या AB = CD [इति सिद्धम]

प्रश्न 7.
यूक्लिड की अभिगृहीतों की सूची में दिया हुआ अभिगृहीत 5 एक सर्वव्यापी सत्य क्यों माना जाता है ? (ध्यान दीजिए कि यह प्रश्न पाँचवीं अभिधारणा से संबंधित नहीं है।)
हल :
क्योंकि यूक्लिड की अभिगृहीतों की सूची में दिया हुआ अभिगृहीत 5 ब्रह्मांड की प्रत्येक चीज के लिए सत्य है। इसलिए यह सदैव सत्य है।

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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. हमारे शरीर में प्रदत्त सुदूर-संवेदन के प्राकृतिक उपकरण हैं-
(A) आँख
(B) कान
(C) नाक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. यांत्रिक सुदूर-संवेदन मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(C) चार

3. सुदूर-संवेदन में प्रयुक्त होने वाली ऊर्जा के कितने स्रोत हो सकते हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

4. सुदूर-संवेदन का प्रकार है-
(A) धरातलीय विभेदन
(B) वर्णक्रमीय विभेदन
(C) रेडियोमीट्रिक विभेदन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. वायुयान द्वारा सुदूर-संवेदन का लक्षण है-
(A) प्लेटफॉर्म कम स्थायी
(B) बृहत् मापक
(C) उच्च क्षेत्रीय विभेदन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी वस्तु को छुए बिना उसका बोध या संवेद होना सुदूर-संवेदन कहलाता है।

प्रश्न 2.
तरंगदैर्ध्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
दो निकटवर्ती तरंग श्शृंगों (Wave Crests)अथवा तरंग गर्तों (Wave Troughs) के बीच की लम्बाई को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।

प्रश्न 3.
सदूर-संवेदक कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सुदूर-संवेदक दो प्रकार के होते हैं-

  • प्राकृतिक सुदूर-संवेदक एवं
  • कृत्रिम सुदूर-संवेदक।

प्रश्न 4.
विद्युत-चुम्बकीय विकिरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश की गति से ऊर्जा का किसी दिकस्थान अथवा माध्यम से होने वाला प्रवर्धन विद्युत-चुम्बकीय विकिरण कहलाता है।

प्रश्न 5.
संवेदक किसे कहते हैं?
उत्तर:
कोई भी प्रतिबिम्बन अथवा अप्रतिबिम्बन साधन, जो विद्युत चुम्बकीय विकिरण को प्राप्त करने एवं उसे ऐसे संकेतों में परावर्तित करता हो, जिनसे फोटोग्राफीय अथवा अंकिक प्रतिबिम्बों को अभिलेखित तथा प्रदर्शित किया जा सकता हो।

प्रश्न 6.
राडार व फ्लैशगन में किस प्रकार की ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
राडार व फ्लैशगन में कृत्रिम ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 7.
भू-स्थैतिक उपग्रह की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर:
36,000 कि०मी०।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

प्रश्न 8.
त्रियक रंग मिश्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कृत्रिम रूप से उत्पादित रंगीन बिम्ब जिसमें नीला, हरा और लाल रंग उन तरंग क्षेत्रों को निर्दिष्ट किया जाता है जो प्राकृतिक रूप से अलग होते हैं। उदाहरण के तौर पर एक मानक त्रियक रंगी मिश्र में नीला रंग हरे विकिरण क्षेत्र (0.5 से 0.6 माइक्रोमीटर) को, हरा रंग लाल विकिरण क्षेत्र (0.6 से 0.7 माइक्रोमीटर) और अन्ततः लाल रंग अवरक्त क्षेत्र (0.7 से 0.8 माइक्रोमीटर) वाले विकिरण क्षेत्रों को निर्दिष्ट किए जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन क्या है? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सुदूर-संवेदन (Remote Sensing)-दूरस्थ संवेदन सूचनाएँ एकत्रित करने की आधुनिक तकनीक है जिसके अन्तर्गत किसी वस्तु के बिना सम्पर्क में आए उसके बारे में दूर से ही सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं। पृथ्वी के सभी पदार्थ ऊर्जा का विकिरण, अवशोषण तथा परावर्तन करते हैं। अतः धरातलीय तत्त्वों की विशिष्टता के आधार पर सुदूर अन्तरिक्ष में सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं और वहाँ से निश्चित भू-केन्द्रों तक प्रेषित की जाती है। सुदूर-संवेदन तकनीक विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक तत्त्वों के मानचित्रण में अत्यन्त लाभदायक है। आधुनिक युग में कम्प्यूटर विधि द्वारा सुदूर-संवेदन से प्राप्त सूचनाओं को बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। अतः प्राकृतिक संसाधनों के विश्लेषण में सुदूर-संवेदन विधि का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक और कृत्रिम सुदूर-संवेदकों में अन्तर स्पष्ट करते हुए चार मुख्य प्रकार के यान्त्रिक सुदूर-संवेदकों के नाम बताइए।
उत्तर:
आँख, नाक, कान व त्वचा सुदूर-संवेदन के प्राकृतिक उपकरण हैं। कृत्रिम सुदूर-संवेदी उपकरणों का आविष्कार किया जाता है। रेडियोमीटर, ऑडियोमीटर, मैग्नेटोमीटर, ग्रेवीमीटर तथा साधारण कैमरा कृत्रिम सुदूर-संवेदी यन्त्र हैं।

प्रश्न 3.
उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन के क्या-क्या गुण हैं?
उत्तर:
उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन ने वर्षों और महीनों में एकत्रित होने वाली ‘सूचनाओं को क्षणों में उपलब्ध करवाकर ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं में सूचना क्रान्ति ला दी है। उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन में दृश्य का चित्र विस्तृत तथा सार रूप में खींचा जा सकता है।

प्रश्न 4.
सुदूर-संवेदन की सक्रिय प्रणाली क्या है?
उत्तर:
सक्रिय संवेदन प्रणाली वह प्रणाली होती है जिसमें मानव द्वारा उत्पादित ऊर्जा का प्रयोग होता है। इसमें ऊर्जा अपने स्रोत से वस्तु तक जाती है और उसका कुछ भाग परावर्तित होकर पुनः स्रोत तक पहुँचता है। वहाँ पर इसे डिक्टेटर द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है। राडार सक्रिय संवेदन प्रणाली का प्रमुख उदाहरण है।

प्रश्न 5.
भूगोल में सुदूर-संवेदन के प्रयोग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूगो सुदूर-संवेदन तकनीक का निम्नलिखित विषयों के अध्ययन में प्रयोग किया जाता है-

  • समुद्र विज्ञान तथा सागरीय सम्पदा।
  • कृषि, वन सम्पदा तथा मिट्टी।
  • भू-गर्भ विज्ञान।
  • जल विज्ञान।
  • मौसम विज्ञान।
  • भूमि-उपयोग विश्लेषण।
  • मानचित्र विज्ञान।

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निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन विधि के क्या उपयोग हैं? इस विधि में आधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दूरस्थ संवेदन प्रणाली का उपयोग-वर्तमान समय में सामान्य, रंगीन, इन्फ्रारेड एवं त्रिआयामी (Three dimensional) फोटोग्राफी द्वारा, लेज़र किरणों की पद्धति के उपयोग द्वारा तथा कम्प्यूटर एवं रेडार के उपयोग द्वारा कुछ विकासशील देशों की . दृश्य-भूमि (Landscape) का प्रमाणिक ज्ञान ऐसे साधनों द्वारा होने लगा है। इससे मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार की सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं

  • भतल पर विकसित दृश्यावली एवं दृश्यभूमि (An Areal Mosaic and Landscapes)
  • प्राकृतिक प्रदेश एवं पृष्ठभूमि (Natural regions and its background)
  • भूशैल एवं भू-विज्ञान अध्ययन तकनीकी-रडार इन्फ्रारेड एवं विविध बैण्डों की रंगीन फोटोग्राफी से विभिन्न प्रकार की शैलों, मिट्टियों एवं खनिजों का प्रारम्भिक अध्ययन किया जाता है
  • प्रादेशिक यातायात विकास हेतु नीति निर्धारण इससे सम्भावित मार्ग-निर्माण का स्वरूप एवं उसकी दिशा आदि का ज्ञान निरन्तर प्राप्त इमेजियरी चित्रों से होता है।

सुदूर-संवेदन विधि (Remote Sensing) द्वारा अर्द्धविकसित प्रदेशों का एवं ऐसे क्षेत्रों का, जिनका कि एकाधिक कारणों से स्थलाकृति मानचित्र उपलब्ध नहीं है, का सम्पूर्ण सर्वेक्षण कार्य अल्प समय में ही पूरा किया जा सकता है। लेण्डसेट उपग्रह शृंखला, इण्टलसेट, रोहिणी, इनसेट I-B से प्राप्त अनेक प्रकार की वेवलेन्थ (Wave length) वाली अलग-अलग बैण्ड (Band) से प्राप्त इमेजरी से संसाधनों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई है। इस दृष्टि से बेण्ड 5 से 7 के बीच विभिन्न स्तरों व बेण्डों के इमेजरी (Imagery) का ज्ञान मानचित्र एवं परिणाम अलग-अलग आभाओं की सघनता एवं विरलता से लगता है।

इससे सरलता से वनों के प्रकार, उनके विकास की अवस्था, फसलों के प्रकार एवं अवस्था, उनके रोग एवं प्रकोप, वनों के विदोहन की सम्भावनाएँ, चट्टानों एवं मिट्टियों का विशिष्ट वितरण, किसी क्षेत्र की पहुँच आदि बातों का पता लगाया जा सकता है। इन्फ्रारेड इमेजरी (Infra-red Imagery) के द्वारा इन सबकी सघनता एवं विरलता का ज्ञान होता है। इसी कारण अब वायु फोटो व्याख्या एवं दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) अपने-आप में एक महत्त्वपूर्ण स्वतन्त्र विज्ञान बनता जा रहा है। इसकी विधियों में तीव्र गति से विकास हो रहा है। इसके साथ ही अब इसमें लेजर किरणों का प्रयोग कर साधारण फोटो या त्रिविमीय (Third Dimensional)

फोटोग्राफी करने के लिए होलोग्राफी (Holography) का भी प्रयोग किया जाने लगा है। इस तकनीक द्वारा वायुफोटो एवं इमेजरी एवं दूरस्थ संवेदन तन्त्र को सीखने हेतु विशिष्ट प्रशिक्षण अनुसन्धान केन्द्र भी स्थापित किए जा चुके हैं। भारत में ऐसे केन्द्र हासन, हैदराबाद, देहरादून तथा अहमदाबाद में स्थापित किए गए हैं। कुछ अन्य केन्द्रों, जिनमें हरिकोटा, कोलकाता एवं दिल्ली मुख्य हैं, में ऐसी सुविधाएँ विकसित की जा चुकी हैं।

भूगोल में इस तकनीक का प्रयोग न सिर्फ विषय के विकास के लिए वांछनीय है, बल्कि यह एक अनिवार्य तत्त्व बनकर स्थान (Locality), क्षेत्र (Area) अनेक प्रकार के प्रदेशों (Various types of regions e.g., Macro, Meso, Mico) की तुलनात्मक व्याख्या, विश्लेषण एवं नियोजन के लिए भी किया जाता है।

नवीन परिवेश से भूतल की क्रियाओं से प्रभावित आँकड़े फोटो एवं इमेजरी सूचनाएँ एवं पृष्ठभूमि के द्वारा जो सम्पूर्ण सूचना संग्रह प्राप्त होता है, उसके परिष्करण, विश्लेषण एवं परिणाम की प्रक्रिया में भी निश्चित रूप से गतिशीलता एवं तेजी बनी रहनी चाहिए। इसी कारण वर्तमान समय में दूरस्थ संवेदन विधियों का प्रयोग बढ़ रहा है। दूरस्थ संवेदन में व्याख्या करने के लिए निम्नलिखित आधारों का सहारा लेना पड़ता है
1. आकार-अधिकांश दूरस्थ संवेदन चित्रों को अनेक आकार के आधार पर पहचाना जा सकता है; जैसे पहाड़ी क्षेत्रों का उच्चावच मैदानी क्षेत्रों की तुलना में छोटा व विरल होता है। मैदान के आकार को देखकर कृषि की सघनता देखी जाती है। अधिकतर वस्तुओं को मानक के आधार पर पहचाना जाता है।

2. आकृति-आकाशीय छायाचित्रों के विश्लेषण के लिए यह जरूरी है कि वस्तुओं की आकृति का ज्ञान हो, भवन व कारखाने, खेत, सड़कें, रेलमार्ग, नहरें, रजवाहे, खेल के मैदान तथा बाग-बगीचे आदि नियमित ज्यामितीय आकृति के होते हैं, जबकि नदी, झीलें, मरुस्थल, तालाब एवं वन आदि अनियमित आकृति के होते हैं।

3. आभा आकाशीय छायाचित्रों में धूसर रंग की विभिन्न प्रकार की आभाएँ होती हैं, इन आभाओं का गहरापन इस बात पर आधारित है कि धरातल से प्रकाश की कितनी मात्रा परावर्तित होती है। यदि सतह पर प्रकाश का परावर्तन अधिक होता है तो आभाएँ पतली होती हैं तथा प्रकाश के कम परावर्तन में आभाएँ गहरी होती हैं।

इन आभाओं के आधार पर छायाचित्रों को पहचाना. जाता है; जैसे स्वच्छ पानी, गहरा धूसर या काला दिखाई देता है, जबकि गन्दा पानी हल्का भूरा दिखाई देता है। ऊर्ध्वाधर छायाचित्रों में सड़कों की आभा रेलमार्गों से कम होती है, क्योंकि सड़कों से प्रकाश का परावर्तन अधिक होता है। इसी तरह शुष्क भू-भाग की अपेक्षातर भू-भाग की आभा हल्के रंग की दिखाई देती है। रेत का रंग सफेद दिखता है। लम्बी फसल वाले क्षेत्र की आभा गहरी दिखती है। पके गेहूँ की कृषि की आभा हल्के रंग की दिखाई देती है।

4. गठन गठन अनेक तरह का होता है; जैसे चिकना, चितकबरा एवं धारीदार आदि। आकाशीय छायाचित्रों के गठन द्वारा भी क्षेत्रों की पहचान अच्छे ढंग से की जा सकती है। सामान्यतः जुते हुए खेतों का गठन धारीदार, झाड़ियों का गठन महीन चितकबरा एवं वनों का गठन मोटा चितकबरा होता है।

5. परछाई परछाई से हमें पता चलता है कि सम्बन्धित विवरण सामान्य धरातल से नीचा है या ऊँचा है। परछाई विवरण के बाहर ता है, जबकि परछाई विवरण अन्दर होने पर धरातल नीचा होगा। परछाई से ऊँचाई भी ठीक ज्ञात की जा सकती है। यदि हवाई चित्रों में अक्षांशीय विस्तार दिया हो तो परछाई से दिशाएँ भी ज्ञात की जा सकती हैं।

6. पहुँच मार्ग-पहुँच मार्गों के द्वारा भी छायाचित्रों को पहचाना जा सकता है, जैसे किसी आवास तक कोई मार्ग अवश्य होगा, . यदि वह मार्ग चित्र में समाप्त होता दिखाई दे तो स्पष्ट होता है कि यहाँ आवास गृह अवश्य होंगे, चाहे वे दिखाई न देते हों।

लक्ष्यों की पहचान तथा उनके महत्त्व को जानने के लिए प्रतिबिम्बों के परीक्षण करने का कार्य प्रतिबिम्ब व्याख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। व्याख्याकार दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) के आँकड़ों का अध्ययन करता है। वायु फोटोग्राफी विधि में निम्नलिखित नौ तत्त्व महत्त्वपूर्ण माने गए हैं-

  • आकृति
  • आकार
  • आभा
  • छाया
  • गठन
  • पैटर्न
  • स्थान
  • प्रस्ताव
  • स्टीरियोस्कोपिक आकृति।

आकाशीय फोटोचित्रों का मापक भारतीय सर्वेक्षण विभाग की तरह निश्चित एवं समान नहीं होता। आकाशीय फोटोचित्रों में । किन्हीं दो या अधिक स्थानों का मापक भारतीय सर्वेक्षण विभाग के उन्हीं स्थानों को सन्दर्भ बिन्दु मानकर मापक का पता लगाया जाए तो कभी भी समान नहीं होगा। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है-
मापक = \(\frac { f }{ H’ }\)
यहाँ f = कैमरा (लैन्स) की फोकस दूरी।
H = माध्य, H = H-h (H = M.S.L. से ऊँचाई, h = सामान्य ऊँचाई)
भारतीय दूरस्थ संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई०आर०एस०) राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रणाली का मुख्य भाग है एवं अन्तरिक्ष . विभाग दूरस्थ संवेदन आँकड़े उपलब्ध कराने वाली मुख्य संस्था है। इस संस्था का पहला उपग्रह आई०आर०एस० -ए मार्च, 1988 में अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था। पहले की तरह दूसरा भारतीय दूर-संवेदी उपग्रह आई०आर०एस० I-बी अगस्त, 1991 में छोड़ा गया था। भारतीय दूरस्थ संवेदन प्रणाली आई०आर०एस० I-सी, आई०आर०एस०पी०-3, आई०आर०एस० -डी तथा आई०आर०एस०पी०-4 के प्रक्षेपण से बहुत सुदृढ़ हुई है। इनमें अन्तिम तीन उपग्रहों का प्रक्षेपण भारतीय प्रक्षेपण यान पी०एस०एल०वी० द्वारा किया गया। आई०आर०एस० -सी को 28 दिसम्बर 1995 में एक रूसी रॉकेट से तथा आई०आर०एस०डी० को पी०एस०एल०वी० से 29 दिसम्बर, 1997 को अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था।

इन अन्तरिक्ष यानों में पहले अन्तरिक्ष यानों की तुलना में बेहतर वर्णक्रमीय और स्थानिक विभेदन, अधिक तेजी से चक्कर लगाने, स्टीरियो (त्रिविमीय) निरीक्षण और रिकॉर्डिंग क्षमता अधिक होती है। इनमें रखे टेप-रिकॉर्ड आँकड़ों को दर्ज करते हैं। आई०आर०एस०पी०-3 को 21 मार्च, 1996 में छोड़ा गया था। इसमें डी०एल०आर० जर्मनी द्वारा परिकल्पित आप्टो इलैक्ट्रानिक स्केनर है। इसमें वनस्पति विज्ञान के अध्ययन के लिए आई०आर०एस० I-सी की तरह ही एक अतिरिक्त शार्ट वेव बैण्ड है तथा एक्स-रे खगोल-विज्ञान पर लोड भी है जो अन्तरिक्ष के एक्सरे-स्रोतों के स्पेक्ट्रम की विशेषताएँ एवं उनमें परिवर्तन की जानकारी देता है। पी०एस०एल०वी० से आई०आर०एस०पी० को 26 मई, 1999 को अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था। भारत में दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) विधि का प्रयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जा रहा है

  • विभिन्न फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन का आकलन
  • बंजर भूमि प्रबन्धन
  • शहरी विकास
  • बाढ़ नियन्त्रण और क्षति का आकलन
  • भूमि उपयोग
  • जलवायु के अनुसार कृषि की योजना बनाना
  • मौसम सम्बन्धी जानकारी के लिए
  • जल संसाधन का प्रबन्धन
  • भूमिगत पानी की खोज
  • मत्स्य पालन विकास
  • खनिजों का पता लगाना
  • वन-संसाधनों के सर्वेक्षण आदि।

सुदूर संवेदन का परिचय HBSE 11th Class Geography Notes

→ सुदूर-संवेदन (Remote Sensing) : किसी वस्तु को छुए बिना उसका बोध या संवेद होना सुदूर-संवेदन कहलाता है।

→ मैग्नेटोमीटर (Magnetometre) : यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों को मापता है।

→ ग्रेवीमीटर (Gravimetre) : यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में होने वाले परिवर्तनों को मापता है।

→ संवेदक (Sensors) : संवेदक एक प्रकार की मशीनें युक्ति या उपकरण होते हैं जो विद्युत चुंबकीय विकिरण ऊर्जा को एकत्रित करते हैं और उन्हें संकेतकों में बदलकर अन्वेषण लक्ष्यों के विषय में सूचना प्रदान करते हैं।

→ वर्णक्रमीय विभेदन (Spectral Resolution) : यह विभेदन विद्युत-चुंबकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न ऊर्जा क्षेत्रों में संवेदक के अभिलेखन की क्षमता से संबंधित है।

→ प्रतिबिम्ब (Image) : प्रतिबिम्ब किसी क्षेत्र विशेष को संसूचित व अभिलेखित की गई ऊर्जा का चित्र रूप में प्रदर्शन करता है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class Political Science Solutions

HBSE 12th Class Political Science Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Political Science Part 1 Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति भाग-1)

HBSE 12th Class Political Science Part 2 Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति भाग-2)

HBSE 12th Class Political Science Solutions in English Medium

HBSE 12th Class Political Science Part 1 Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era
  • Chapter 2 The End of Bipolarity
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power
  • Chapter 5 Contemporary South Asia
  • Chapter 6 International Organisations
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources
  • Chapter 9 Globalisation

HBSE 12th Class Political Science Part 2 Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance
  • Chapter 3 Politics of Planned Development
  • Chapter 4 India’s External Relations
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements
  • Chapter 8 Regional Aspirations
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics

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HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जापान में शोगुनों के उत्थान एवं पतन के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जापान के इतिहास में शोगुनों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। जापान का सम्राट मिकाडो (mikado) सर्वोच्च होता था। उसके मुख से निकला प्रत्येक शब्द कानून समझा जाता था। वह क्योतो (Kyoto) से शासन करता था। सम्राट का प्रधान सेनापति शोगन कहलाता था। जापान के राजनीतिक इतिहास में एक नए चरण का आरंभ तब हुआ जब 1603 ई० में तोकुगावा (Tokugawa) वंश के लोगों ने शोगुन पद पर अधिकार कर लिया। इस वंश के लोग इस पद पर 1867 ई० तक कायम रहे।

तोकुगावा शोगुनों ने अपनी शक्ति में काफी वृद्धि कर ली थी। उनके शासनकाल में सम्राट् बिल्कुल महत्त्वहीन हो गया था। कोई भी व्यक्ति शोगुन की अनुमति के बिना सम्राट से नहीं मिल सकता था। सम्राट को प्रशासन में किसी प्रकार की कोई भूमिका नहीं दी गई थी। तोकुगावा शोगुनों ने एदो (Edo) को जिसे अब तोक्यो (Tokyo) के नाम से जाना जाता है अपनी राजधानी घोषित किया। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान अपने विरोधियों को पराजित कर जापान में कानून व्यवस्था को लागू किया।

उन्होंने एदो में एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया जहाँ बड़ी संख्या में सैनिकों को रखा जाता था। वे दैम्यो, प्रमुख शहरों एवं खदानों (mines) पर भी नियंत्रण रखते थे। उन्होंने जापान को 250 क्षेत्रों (domains) में बाँटा था। प्रत्येक क्षेत्र को एक दैम्यो (daimyo) के अधीन रखा गया था। दैम्यो अपने अधीन क्षेत्र में लगभग स्वतंत्र होता था। उसे अपने अधीन क्षेत्र के लोगों को मृत्यु दंड देने का अधिकार था।

शोगुन दैम्यो पर कड़ा नियंत्रण रखते थे ताकि वे शक्तिशाली न हो जाएँ। उन्हें सैनिक सेवा करने एवं जन-कल्याण के कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता था। शोगुन के जासूस उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखते थे। प्रत्येक दैम्यो के लिए यह आवश्यक था कि वह वर्ष के चार माह राजधानी एदो में रहे।

जापान के प्रशासन में सामुराई (samurai) की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। सामुराई योद्धा वर्ग (warrior class) से संबंधित थे। वे शोगुन एवं दैम्यो को प्रशासन चलाने में प्रशंसनीय योगदान देते थे। वे अपनी वफ़ादारी, वीरता एवं सख्त जीवन के लिए प्रसिद्ध थे। केवल उन्हें तलवार धारण करने का अधिकार था। वे रणभूमि में वीरगति पाने को एक भारी सम्मान समझते थे। पराजित होने पर वे आत्महत्या कर लेते थे। आत्महत्या के लिए वे दूसरे समुदाय की तलवार से अपना पेट चीर लेते थे। इसे हरकारा (Harkara) पद्धति कहा जाता था।

उन्हें समाज का विशिष्ट वर्ग माना जाता था। अत: उन्हें अनेक सुविधाएँ प्रदान की गई थीं। तोकुगावा शासनकाल (1603-1867 ई०) में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं बौद्धिक स्तर पर अनेक उल्लेखनीय परिवर्तन हुए जिनके दूरगामी प्रभाव पड़े। 17वीं शताब्दी के अंत में तीन महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए जिन्होंने आधुनिक जापान के विकास की आधारशिला रखी। प्रथम, किसानों से हथियार वापस ले लिए गए। केवल सामुराई तलवार रख सकते थे। इसके परिणामस्वरूप जापान में एक लंबे समय के पश्चात् शाँति स्थापित हुई।

दूसरा, दैम्यों को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए तथा उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने दिया गया। इससे जापान के विकास को बल मिला। तीसरा, जापान की भूमि का सर्वेक्षण किया गया। इसका उद्देश्य भूमि के मालिकों तथा करदाताओं का निर्धारण करना था। कर निर्धारण भूमि की उत्पादन शक्ति के आधार पर किया जाता था। 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान का शहर एदो (Edo) विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया। उस समय एदो में 10 लाख से अधिक लोग रहते थे।

इसके अतिरिक्त ओसाका (Osaka), क्योतो (Kyoto) एवं नागासाकी (Nagasaki) जापान के अन्य बड़े शहरों के रूप में उभरे। जापान में उस समय कम-से-कम 6 ऐसे शहर थे जिनकी जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। उस समय अधिकाँश यूरोपीय देशों में एक बड़ा शहर होता था। जापान में शहरों के तीव्र विकास से व्यापार एवं वाणिज्य को बहुत बल मिला। इससे व्यापारी वर्ग बहुत धनी हुआ। इस वर्ग ने जापानी कला एवं साहित्य को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

तोकुगावा काल में जापान के लोगों में शिक्षा का काफी प्रचलन था। अनेक लोग केवल लेखन द्वारा ही अपनी जीविका चलाते थे। पुस्तकों का प्रकाशन बड़े स्तर पर किया जाता था। जापानी लोग यूरोपीय छपाई को पसंद नहीं करते थे। वे किताबों की छपाई के लिए लकड़ी के ब्लॉकों का प्रयोग करते थे। लोगों में पढ़ाई का इतना शौक था कि वे पुस्तकों को किराए पर लेकर भी पढ़ते थे। 18वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों की अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का जापानी में अनुवाद किया गया। इससे जापान के लोगों को पश्चिम के ज्ञान के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त हुई।

तोकुगावा काल में जापान एक धनी देश था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जापान चीन से रेशम तथा भारत से वस्त्र आदि विलासी वस्तुओं का आयात करता था। इसके बदले वह सोना एवं चाँदी देता था। इसका जापानी अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। इस कारण तोकुगावा को इन कीमती वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। उन्होंने रेशम के आयात को कम करने के उद्देश्य से 16वीं शताब्दी में निशिजन (Nishijin) में रेशम उद्योग की स्थापना की। आरंभ में केवल 31 परिवारों का एक संघ इस उद्योग से संबंधित था।

17वीं शताब्दी के अंत में इस संघ में 70,000 लोग सम्मिलित हो गए थे। इससे रेशम उद्योग को प्रोत्साहन मिला। 1713 ई० में केवल घरेलू धागे का प्रयोग करने संबंधी आदेश से इस उद्योग को अधिक बल मिला। 1859 ई० में जापान द्वारा विदेशी व्यापार आरंभ किए जाने से रेशम के व्यापार को सर्वाधिक मुनाफा मिलने लगा। इसका कारण यह था कि निशिजन का रेशम दुनिया में सबसे बेहतरीन माना जाता था। मुद्रा का बढ़ता हुआ प्रयोग तथा चावल का शेयर बाज़ार इस बात का संकेत था कि जापानी अर्थतंत्र नयी दिशाओं में विकसित हो रहा था।

1867 ई० में शोगुन पद की समाप्ति के साथ ही जापान के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। शोगुनों का पतन किसी अचानक घटना का परिणाम नहीं था। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. शोगुनों की पक्षपातपूर्ण नीति:
शोगुनों की नीति बहुत पक्षपातपूर्ण थी। उन्होंने राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर केवल तोकुगावा वंश के लोगों को ही नियुक्त किया। इसके चलते अन्य सामंती वंशों में निराशा फैली तथा उन्होंने शोगनों का अंत करने का प्रण किया।

2. गलत आर्थिक नीति :
शोगनों के शासनकाल में उनकी गलत नीतियों के चलते जापान की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई थी। विवश होकर उन्हें अपने व्यय में कटौती करनी पड़ी। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी सेना की संख्या में कुछ कमी कर दी। किंतु नौकरी से निकाले गए सैनिक इसे सहन करने को तैयार नहीं थे। अतः उन्होंने शोगुनों को एक सबक सिखाने का निर्णय किया।

3. किसानों की दयनीय स्थिति:
शोगुन शासनकाल में किसानों की स्थिति बहुत दयनीय थी। उन पर अनेक प्रकार के कर लगाए गए थे। इन करों को बलपूर्वक वसूल किया जाता था। विवश होकर उन्होंने विद्रोहों का दामन थामा। इन विद्रोहों के चलते जापान में अराजकता फैल गयी थी।

4. व्यापारिक वर्ग का उदय:
19वीं शताब्दी जापान के समाज में एक नवीन व्यापारिक वर्ग का उत्थान हुआ। उन्नत व्यापार के चलते इनके पास काफी धन था। इसके बावजूद सामंत वर्ग उनसे ईर्ष्या करता था। अत: व्यापारी वर्ग अपनी हीन स्थिति को समाप्त करने के लिए जापान में शोगुन व्यवस्था का अंत करना चाहता था।

5. कॉमोडोर मैथ्यू पेरी का आगमन:
अमरीका ने 24 नवंबर, 1852 ई० को कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापान की सरकार के साथ एक समझौता करने के लिए भेजा। वह 3 जुलाई, 1853 ई० को जापान की बंदरगाह योकोहामा में पहुँचा। इसका उद्देश्य अमरीका एवं जापान के मध्य राजनीतिक एवं व्यापारिक संबंध स्थापित करना था। पेरी जापान की सरकार के साथ 31 मार्च, 1854 ई० को कानागावा की संधि करने में सफल हो गया।

इस संधि के अनुसार जापान की दो बंदरगाहों शीमोदा (Shimoda) एवं हाकोदाटे (Hakodate) को अमरीका के लिए खोल दिया गया। शीमोदा में अमरीका के वाणिज्य दूत को रहने की अनुमति दी गई। जापान ने अमरीका के साथ बहुत अच्छे राष्ट्र (most favoured nation) जैसा व्यवहार करने का वचन दिया। विदेशियों के प्रवेश से जापान में स्थिति ने विस्फोटक रूप धारण कर लिया। शोगुन इस स्थिति को अपने नियंत्रण में लाने में विफल रहे। अतः उन्हें अपने पद को त्यागना पड़ा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 2.
मेज़ी काल के दौरान जापान का आधुनिकीकरण किस प्रकार हुआ ? वर्णन करें।
अथवा
मेज़ी काल के दौरान जापान के आधुनिकीकरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेज़ी पुनर्स्थापना को जापान के इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता है। 1868 ई० में मुत्सुहितो (Mutsohito) जापान का नया सम्राट बना। वह तोक्यो (Tokyo) में सिंहासनारूढ़ हुआ। मुत्सुहितो ने 1912 ई० तक शासन किया। उसने सिंहासन पर बैठते समय ‘मेज़ी’ की उपाधि धारण की थी। मेज़ी से अभिप्राय था प्रबुद्ध सरकार (Enlightened Government)। मेजी शासनकाल के दौरान जापान में अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार किए गए।

इन सुधारों के चलते जापान की काया पलट हो गयी तथा वह एक शक्तिशाली एवं आधुनिक देश बन गया। वास्तव में मेज़ी पुनर्स्थापना के साथ जापान ने एक नए युग में प्रवेश किया। प्रसिद्ध इतिहासकार केनेथ बी० पायली के अनुसार, “मेज़ी काल (1868-1912) में जापान का पश्चिमीकरण अब तक का इतने कम समय हुआ किसी भी लोगों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन माना जाता है।”

1. सामंती प्रथा का अंत:
मेज़ी सरकार की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता जापान में सामंती प्रथा का अंत करना था । इससे पर्व संपर्ण जापान में सामंतों का बोलबाला था। वे अपने अधीन क्षेत्रों का शासन प्रबंध चलाते थे। इस संबंध में उन्हें व्यापक अधिकार प्राप्त थे। वे अपने अधीन क्षेत्रों के लोगों को मत्य दंड तक दे सकते थे। सेना में केवल सामुराई सामंतों को भर्ती किया जाता था। सामंतों के शक्तिशाली होने के कारण सम्राट् केवल नाममात्र का शासक रह गया था। सामंती प्रथा जापान के एकीकरण के मार्ग में सबसे प्रमुख बाधा थी।

सामंती प्रथा के चलते किसानों की स्थिति बहुत दयनीय हो गई थी। सामंत उन पर घोर अत्याचार एवं भारी शोषण करते थे। मेज़ी सरकार ने 1871 ई० में जापान में सामंती प्रथा के अंत की घोषणा की। इसके अधीन सामंतों के सभी प्रकार के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए। ऐसा करते समय सामंतों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया। उनके लिए वार्षिक पेंशन की व्यवस्था की गई।

कुछ सामंतों को राष्ट्रीय सेना में भर्ती कर लिया गया। इस प्रकार जापान में सामंती प्रथा का अंत बिना किसी खून खराबे के हो गया। निस्संदेह इस प्रथा के अंत से जापान आधुनिकीकरण की दिशा की ओर अग्रसर हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० ए० बस के अनुसार, “सामंतवाद के अंत ने एक ऐसी व्यवस्था को खत्म किया जो पिछले एक हजार वर्ष या इससे कुछ अधिक समय से जारी थी।”2

2. शिक्षा सुधार:
मेज़ी पुनर्स्थापना के पश्चात् जापान में उल्लेखनीय शिक्षा सुधार किए गए। इससे पूर्व शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार केवल समाज के उच्च वर्ग को ही प्राप्त था। स्त्रियों की शिक्षा की ओर तो बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया था। जापान में 1871 ई० में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इसके पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तीव्रता से प्रगति हुई। संपूर्ण जापान में अनेक स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना की गई। 6 वर्ष के सभी बालक-बालिकाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया।

विद्यार्थियों को अच्छे नागरिक बनने एवं राष्ट्र के प्रति वफ़ादार रहने की प्रेरणा दी जाती थी। 1877 ई० में जापान में तोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। तकनीकी शिक्षा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। पश्चिम की प्रसिद्ध पुस्तकों का जापानी भाषा में अनुवाद किया गया । स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित किया गया। 1901 ई० में जापानी महिला विश्वविद्यालय की स्थापना इस दिशा में एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

3. सैनिक सुधार:
मेज़ी काल में सेना को शक्तिशाली बनाने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए अब तक जापान में कोई राष्ट्रीय सेना नहीं थी। सम्राट् केवल सामंतों की सेना पर निर्भर करता था। इस सेना में कोई आपसी तालमेल नहीं था। इस सेना में केवल सामुराई वर्ग का प्रभुत्व था। 1853 ई० में कॉमोडोर मैथ्यू पेरी के जापान आगमन के समय जापानी सेना की कमज़ोर स्थिति स्पष्ट हो गई थी। अतः जापान की सुरक्षा के लिए इसकी सेना का पुनगर्छन करना अत्यंत आवश्यक था।

इस उद्देश्य से जापानी राष्ट्रीय सेना का गठन किया गया । इसमें सभी वर्ग के लोगों को योग्यता के आधार पर भर्ती किया गया। 1872 ई० में 20 वर्ष से अधिक नौजवानों के लिए सैनिक सेवा को अनिवार्य कर दिया गया। नौसेना (navy) को भी अधिक शक्तिशाली बनाया गया। सेना को आधुनिक शस्त्रों से लैस किया गया।

4. आर्थिक सुधार:
मेज़ी काल में जापानी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक प्रशंसनीय पग उठाए गए। सरकार ने फुकोकु क्योहे (Fukoku Kyohei) का नारा दिया। इससे अभिप्राय था समृद्ध देश एवं मज़बूत सेना।।

(1) औद्योगिक विकास:
जापान में उद्योगों के विस्तार की ओर सरकार ने अपना विशेष ध्यान दिया। इस उद्देश्य से 1870 ई० में जापान में उद्योग मंत्रालय की स्थापना की गई। इस मंत्रालय की स्थापना जापानी उद्योगों के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हआ। सरकार ने भारी उद्योगों के विकास के लिए पूँजीपतियों को प्रोत्साहित किया। अत: जापान में शीघ्र ही अनेक नए कारखाने स्थापित हुए।

इनमें लोहा-इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, रेशम उद्योग, जहाज़ उद्योग एवं शस्त्र उद्योग प्रसिद्ध थे। मित्सुबिशी (Mitsubishi) एवं सुमितोमो (Sumitomo) नामक कंपनियों को जहाज़ निर्माण के लिए विशेष सुविधाएँ प्रदान की गईं। इन उद्योगों में यूरोप से मँगवाई गई मशीनों को लगाया गया। मजदूरों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया।

(2) कृषि सुधार:
मेज़ी काल में कृषि क्षेत्र में भी प्रशंसनीय सुधार किए गए। सामंती प्रथा का अंत हो जाने से किसानों की स्थिति पहले की अपेक्षा अच्छी हो गई। 1872 ई० में सरकार के एक आदेश द्वारा किसानों को उस भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया। किसानों से बेगार लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। किसानों को कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ प्रदान की गईं।

उन्हें उत्तम किस्म के बीज दिए गए। पशओं की उत्तम नस्ल का प्रबंध किया गया। किसानों से अब अनाज की अपेक्षा नकद भू-राजस्व लिया जाने लगा। उन्हें कृषि के पुराने ढंगों की अपेक्षा आधुनिक ढंग अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। पश्चिमी देशों से अनेक कृषि विशेषज्ञों को जापान बुलाया गया। जापान में अनेक कृषि विद्यालयों की स्थापना की गई। उन प्रयासों के परिणामस्वरूप जापान के कृषि क्षेत्र में एक क्राँति आ गई। निस्संदेह इसे मेज़ी काल की एक महान् सफलता माना जा सकता है।

(3) कुछ अन्य सुधार:
जापान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से मेज़ी काल में कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। सर्वप्रथम यातायात के साधनों का विकास किया गया। 1870-72 ई० में जापान में तोक्यो (Tokyo) एवं योकोहामा (Yokohama) के मध्य प्रथम रेल लाइन बिछाई गई। 1894-95 ई० में जापान में 2 हज़ार मील लंबी रेल लाइन बिछाने का कार्य पूरा हो चुका था। जहाज़ निर्माण के कार्य में भी उल्लेखनीय प्रगति की गई। द्वितीय, मुद्रा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। तीसरा, 1872 ई० में जापान में बैंकिंग प्रणाली को आरंभ किया गया। 1882 ई० में बैंक ऑफ जापान (Bank of Japan) की स्थापना की गई। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० यनागा के शब्दों में, “मेज़ी पुनर्स्थापना एक आर्थिक क्राँति थी।”

5. मेज़ी संविधान:
मेज़ी काल की एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि 1889 ई० में एक नए संविधान को लागू करना था। इस संविधान के अनुसार सम्राट् को सर्वोच्च सत्ता सौंपी गई। उसे कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। संपूर्ण सेना उसके अधीन थी। उसे किसी भी देश से युद्ध अथवा संधि करने का अधिकार दिया गया था। वह डायट (संसद्) के अधिवेशन को बुला सकता था तथा उसे भंग भी कर सकता था।

वह सभी मंत्रियों की नियुक्ति करता था तथा वे अपने कार्यों के लिए उसके प्रति उत्तरदायी होते थे। केवल सम्राट ही मंत्रियों को बर्खास्त कर सकता था। डायट का अधिवेशन प्रत्येक वर्ष तीन माह के लिए बुलाया जाता था। इसमें सदस्यों को बहस करने का अधिकार प्राप्त था। सम्राट् डायट की अनुमति के बिना लोगों पर नए कर नहीं लगा सकता था। नए संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए थे।

6. न्यायिक सुधार:
मेज़ी काल में अनेक न्यायिक सुधार भी किए गए। जापान में 1882 ई० में एक नई दंड संहिता को लागू किया गया। इसके अनुसार अपराधियों को क्रूर सजाएँ देना बंद कर दिया गया। न्यायालयों के अधिकार निश्चित कर दिए गए। दीवानी एवं फ़ौजदारी कानूनों को अलग-अलग परिभाषित किया गया। केवल ईमानदार एवं उच्च चरित्र के व्यक्तियों को न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया। अपराधियों की दशा को सुधारने के उद्देश्य से नई जेलों का निर्माण किया गया। इस प्रकार जापान न्यायिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण के पथ पर आगे अग्रसर हुआ।

7. रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव:
मेज़ी काल में जापानियों की रोज़मर्रा की जिंदगी में अनेक महत्त्वपूर्ण बदलाव आए। इसमें जापान में हुए तीव्रता से शिक्षा के प्रसार, जापानियों की पश्चिमीकरण में दिलचस्पी एवं पत्रकारिता के प्रचार ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। मेज़ी काल से पूर्व जापान में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन था।

इसके अधीन परिवार की कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियंत्रण में रहती थीं, मेजी में परिवार के बारे में लोगों के दृष्टिकोण में तीव्रता से परिवर्तन आने लगा। अब एकल परिवार का प्रचलन बढ़ने लगा। इसमें पति, पत्नी एवं उनके बच्चे रहते थे। अतः वे नए घरों जिसे जापानी में होमु (homu) कहते थे में रहने लगे।

वे घरेलू उत्पादों के लिए बिजली से चलने वाले कुकर, माँस एवं मछली भूनने के लिए अमरीकी भूनक (American grill) तथा ब्रेड सेंकने के लिए टोस्टर का प्रयोग करने लगे। जापानियों में अब पश्चिमी वेशभूषा का प्रचलन बढ़ गया। वे अब सूट एवं हैट डालने लगे। औरतों के लिबास में भी परिवर्तन आ गया। वे यूरोपीय ढंग से अपने बालों को सजाने लगीं।

वे अब सौंदर्य वृद्धि की ओर विशेष ध्यान देने लगीं। दाँतों की चमक-दमक के लिए टूथब्रश एवं ट्थपेस्ट का प्रचलन बढ़ गया। परस्पर अभिवादन के लिए हाथ मिलाने का प्रचलन लोकप्रिय हो गया। मनोरंजन के नए साधनों का विकास हुआ। लोग ट्रामों एवं मोटरगाड़ियों द्वारा सैर-सपाटों पर जाने लगे।

1878 ई० में जापान में लोगों के लिए भव्य बागों का निर्माण किया गया। लोगों की सुविधा के लिए विशाल डिपार्टमैंट स्टोर बनने लगे। 1899 ई० में जापान में सिनेमा का प्रचलन आरंभ हुआ। संक्षेप में मेज़ी काल में लोगों के रोज़मर्रा के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आए। प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० लाटूरेट का यह कहना ठीक है कि, “19वीं शताब्दी के दूसरे मध्य में जापान ने उल्लेखीय परिवर्तन देखे।”

प्रश्न 3.
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध के क्या कारण थे? इसके क्या परिणाम निकले?
अथवा
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं ? चर्चा कीजिए।
अथवा
शिमोनोस्की की संधि क्यों व कब हुई ? इसके क्या परिणाम निकले? इसके क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
1894-95 ई० में जापान तथा चीन के मध्य एक युद्ध हुआ। इस युद्ध का मूल कारण कोरिया था। इस युद्ध में जापान ने चीन को बहुत शर्मनाक पराजय दी। परिणामस्वरूप चीन के सम्मान को भारी आघात पहुँचा और जापान विश्व के शक्तिशाली देशों की पंक्ति में आ खड़ा हुआ।

चीन-जापान युद्ध के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. रूस की कोरिया में रुचि:
रूस की दक्षिणी पूर्वी सीमा कोरिया के साथ लगती थी। अत: उसने कोरिया पर अपना अधिकार करने की योजना बनाई। रूस ने कोरिया की सेना को पुनर्गठित करने के उद्देश्य से अपने सैनिक अधिकारियों को वहाँ भेजा। इसके बदले में कोरिया ने लजरफ की बंदरगाह रूस को दे दी। अब रूस के जहाज़ बिना किसी बाधा के इस बंदरगाह पर आ-जा सकते थे। इस प्रकार कोरिया में रूस का प्रभाव बढ़ने लगा। रूस के कोरिया में बढ़ते हुए प्रभाव को जापान सहन करने को तैयार नहीं था।

2. कोरिया की आंतरिक दशा शोचनीय:
कोरिया की आंतरिक स्थिति बड़ी दयनीय थी। वह एक निर्बल देश था। उस समय कोरिया में अशांति फैली हुई थी तथा अव्यवस्था व्याप्त थी। वहाँ जापान यह अनुभव करता था कि कोरिया की यह आंतरिक स्थिति अन्य देशों के लिए एक नियंत्रण का कार्य कर सकती है। उसे सदैव यह भय लगा रहता था कि कोई अन्य देश कोरिया पर अपना अधिकार न कर ले। चीन भी अपने वंशानुगत अधिकार के कारण किसी अन्य देश के कोरिया में हस्तक्षेप को सहन नहीं कर सकता था। इन परिस्थितियों में चीन तथा जापान में युद्ध होना अनिवार्य था।

3. कोरिया में विदेशी शक्तियों का आगमन:
कोरिया में जापान के बढ़ रहे प्रभाव को देख कर चीन बहुत चिंतित हो गया। जापान के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से उसने विदेशी शक्तियों को कोरिया में व्यापार करने के प्रयासों में अपना समर्थन दिया। परिणामस्वरूप अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली, रूस तथा फ्राँस आदि देशों ने कोरिया से संधियाँ की तथा अपने लिए अनेक सुविधाएँ प्राप्त की।

विदेशी शक्तियों के बढ़ते हुए प्रभाव से जापान घबरा उठा। अतः जापान कोरिया को विदेशी शक्तियों के प्रभाव से मुक्त करवाना चाहता था ताकि उसकी स्वयं की स्वतंत्रता कायम रहे। इन परिस्थितियों में उसका चीन के साथ युद्ध अनिवार्य था।

4. 1885 ई० की संधि:
1885 ई० में जापान ने चीन के साथ एक संधि की। संधि के अनुसार दोनों देश इस बात पर सहमत हो गए कि वे दोनों ही कोरिया से अपनी सेनाएँ वापस बुला लेंगे। इस संधि से चीन के कई राजनीतिज्ञ असंतुष्ट हो गए। चीनी राजनीतिज्ञों का विचार था कि कोरिया चीन का ही एक अंग है तथा चीन को कोरिया में अपनी सेनाएँ रखने का पूर्ण अधिकार है। चीन के इस विचार को जापान सहन करने को तैयार नहीं था। अतः चीन-जापान के मध्य युद्ध अनिवार्य था।

5. जापान के आर्थिक हित:
चीन-जापान यद्ध के कारणों में एक कारण कोरिया में जापान के आर्थिक हित भी थे। अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए वह कोरिया की ओर ललचाई नज़रों से देख रहा था । जापान में औद्योगिक विकास आश्चर्यजनक गति से हुआ था। अब उसे अपने तैयार माल तथा कच्चे माल के लिए मंडियों की आवश्यकता थी। अपने इस उद्देश्य के लिए जापान कोरिया को उपयुक्त स्थान समझता था। इसे चीन बिल्कुल भी सहन करने को तैयार नहीं था।

6. तात्कालिक कारण:
कोरिया में ‘तोंगहाक’ (Tonghak) संप्रदाय द्वारा किया गया विद्रोह चीन-जापान युद्ध का तात्कालिक कारण बना। इस संप्रदाय के लोग विदेशियों को पसंद नहीं करते थे। कोरिया सरकार इस संप्रदाय के विरुद्ध थी तथा उसने एक अध्यादेश द्वारा इसकी सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया। 1883 ई० में इस संप्रदाय के नेताओं ने उन पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की माँग की।

परंतु सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया। कोरिया में प्रत्येक स्थान पर विद्रोह होने लगे। आरंभ में सरकार ने इस विद्रोह का दमन कर दिया किंतु 1894 ई० में इसने भीषण रूप धारण कर लिया। विवश होकर कोरिया की सरकार ने चीन एवं जापान से सैनिक सहायता माँगी।

परंतु इन सेनाओं के पहुंचने से पहले ही विद्रोह का दमन कर दिया गया था। कोरिया सरकार ने दोनों सरकारों को अपनी-अपनी सेनाएँ वापस बुलाने की प्रार्थना की। परंतु दोनों देशों ने अपनी सेनाएँ वहाँ से न निकाली। जापानी सेनाओं ने कोरिया के राजा को बंदी बना लिया और वहाँ की सरकार का पुनर्गठन किया। पुनर्गठित सरकार ने जापान से आग्रह किया कि वह चीन की सेनाओं को कोरिया से मार भगाए। इस प्रकार 1 अगस्त, 1894 ई० को यह युद्ध आरंभ हो गया।

युद्ध से पूर्व ही जापान ने अपनी सेना का आधुनिक ढंग से पुनर्गठन कर लिया था। परंतु चीन की सेना इतनी कुशल नहीं थी तथा उसका लड़ने का ढंग भी प्राचीन ही था। यह युद्ध 9 मास तक चला। इस युद्ध में जापान को शानदार विजय प्राप्त हुई। 16-17 सितंबर, 1894 ई० को जापान ने पिंगयांग तथा यालू के युद्धों में चीन की सेनाओं को पराजित कर दिया तथा चीन की सेनाओं को कोरिया से खदेड़ दिया। फिर उसने मंचूरिया पर आक्रमण किया तथा लिआयोतुंग प्रायद्वीप की ओर चल पड़ा। जापानी सेनाओं ने तेलियनवैन तथा पोर्ट आर्थर पर अधिकार कर लिया।

जापानी सेनाओं ने फ़रवरी 1895 ई० तक शातुंग तथा वी-हाई-वी पर भी अधिकार कर लिया। परिस्थितिवश चीन जापान के साथ समझौता करने के लिए विवश हुआ। अत: 17 अप्रैल, 1895 ई० को दोनों पक्षों में शिमोनोसेकी की संधि हुई जिसके परिणामस्वरूप युद्ध का अंत हुआ। युद्ध में पराजित होने के पश्चात् माँचू सरकार ने ली-हुंग-चांग को संधि के लिए जापान भेजा। ली-हुंग-चांग ने 17 अप्रैल, 1895 ई० को जापानी अधिकारियों के साथ शिमोनोसेकी की संधि की। इस संधि की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित अनुसार थीं-.

  • चीन ने कोरिया को एक पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
  • चीन ने पोर्ट आर्थर, फारमोसा, पेस्काडोरस तथा लियाओतुंग जापान को दे दिए।
  • चीन ने माना कि वह युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में जापान को 2 करोड़ तायल देगा।
  • चीन जापान को सर्वाधिक प्रिय देश स्वीकार करेगा।
  • चीन जापान के व्यापार के लिए अपनी चार बंदरगाहें शांसी, सो चाऊ, चुंग-किंग तथा हंग चाओ खोलेगा।
  • जब तक चीन युद्ध की क्षतिपूर्ति की राशि जापान को नहीं चुकाएगा उसकी वी-हाई-वी नामक बंदरगाह जापान के पास रहेगी।

शिमोनोसेकी की संधि के कागजों पर अभी स्याही भी नहीं सूखी थी कि उसके 6 दिन पश्चात् ही फ्राँस, रूस तथा जर्मनी ने जापान को कहा कि वह लियाओतुंग प्रायद्वीप चीन को लौटा दे। क्योंकि उन्हें भय था कि यदि लियाओतुंग पर जापान का अधिकार हो गया तो इससे चीन को निरंतर खतरा रहेगा तथा कोरिया की स्वतंत्रता भी स्थायी नहीं रह पाएगी। विवश होकर जापान ने शिमोनोसेकी की संधि में संशोधन करना मान लिया। उसने लियाओतुंग प्रायद्वीप चीन को वापस कर दिया तथा इसके बदले चीन से 3 करोड तायल की अतिरिक्त धन-राशि ले ली।

चीन-जापान युद्ध में जापान ने शानदार विजय प्राप्त की तथा चीन की शर्मनाक पराजय हुई। इस युद्ध में एक छोटे से बौने (जापान) ने एक दैत्य (चीन) को पराजित किया था। इस युद्ध से दोनों देश बहुत प्रभावित हुए। प्रसिद्ध इतिहासकार एच० एफ० मैकनैर के अनुसार, “यह वास्तव में जापान को प्रथम चुनौती थी।”5 संक्षेप में इन प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. जापान की प्रतिष्ठा में वृद्धि:
जापान एशिया का एक छोटा सा देश था तथा चीन सबसे बड़ा देश था। फिर भी जापान ने चीन को पराजित कर दिया। इस युद्ध में विजय से जापान की प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए। सभी यूरोपीय शक्तियों को विश्वास था कि जापान पराजित होगा। परंतु उसकी विजय ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। परिणामस्वरूप उसकी शक्ति की धाक् सारे विश्व में बैठ गई। प्रसिद्ध इतिहासकार एम०ई० कैमरन के अनुसार, “जापान के हाथों चीन की पराजय के महान् एवं दूरगामी प्रभाव पड़े।”

2. चीन की प्रतिष्ठा को गहरा आघात:
जापान ने जो कि एशिया का एक छोटा सा देश था, चीन जैसे बड़े देश को पराजित कर संपूर्ण विश्व को चकित कर दिया था। चीन की इस घोर पराजय से उसकी प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० वी० राव का यह कहना ठीक है कि, “चीन के लिए पराजय एवं अपमानजनक संधि ने माँचू वंश के पतन का डंका बजा दिया।”

3. चीन की लूट आरंभ:
जापान के हाथों पराजित होने से चीन की दुर्बलता सारे विश्व के आगे प्रदर्शित हो गई। इस कारण यूरोपीय शक्तियों की मनोवृत्ति में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। पहले पश्चिमी देशों ने चीन से कई प्रकार की रियायतें प्राप्त की हुई थीं। परंतु अब वे उसके साम्राज्य का विभाजन चाहने लगीं। अतः ये सभी देश चीन की लूट में जापान के भागीदार बनने के लिए तैयार हो गए। प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० लाटूरेट के अनुसार, “जापान द्वारा चीनी साम्राज्य के हिस्से को हड़पने की कार्यवाही से लूट की प्रक्रिया तीव्र हो गई।”

4. चीन में सुधार आंदोलन:
चीन की अपमानजनक पराजय से चीन के देशभक्त बड़े दुःखी हुए। वे अनुभव करने लगे कि चीन को भी जापान की भाँति आधुनिक ढंग के सुधार करने चाहिएँ। परंतु उस समय के माँचू शासक बड़े रूढ़िवादी थे। अतः वे इन सुधारों के पक्ष में नहीं थे। परिणामस्वरूप चीन में माँचू विरोधी सुधार आंदोलन चल पड़ा।

5. आंग्ल-जापानी समझौते की आधारशिला:
चीन जापान युद्ध के परिणामस्वरूप आंग्ल-जापानी समझौते की नींव रखी गई। जब जापान इस युद्ध में विजयी हो रहा था तो इंग्लैंड के समाचार-पत्रों ने इसकी बहुत प्रशंसा की। उनके अनुसार इंग्लैंड और जापान के हित सामान्य थे। अतः वे जापान को भविष्य का उपयोगी मित्र मानने लगे। जापान भी इंग्लैंड से मित्रता करना चाहता था। इस प्रकार ये दोनों देश एक-दूसरे के निकट आए तथा 1902 ई० में एक समझौता किया।

6. जापान-रूस शत्रुता:
शिमोनोसेकी की संधि के पश्चात् रूस जापान के विरुद्ध हो गया। उसने फ्राँस तथा जर्मनी के साथ मिल कर जापान पर दबाव डाला कि वह लियाओतुंग प्रायद्वीय चीन को वापस कर दे। इससे जापान रूस से नाराज़ हो गया। इसके अतिरिक्त चीन-जापान युद्ध के पश्चात् जापान भी रूस के समान दूर-पूर्व में एक शक्ति के रूप में उभरा। दोनों देश महत्त्वाकांक्षी थे और यही महत्त्वाकांक्षा उन्हें 1904-05 के युद्ध की ओर ले गई।

प्रश्न 4.
रूस-जापान युद्ध 1904-05 के क्या कारण थे? इस युद्ध के क्या प्रभाव पड़े?
अथवा
रूस-जापान युद्ध 1904-05 के बारे में आप क्या जानते हैं ? इस युद्ध में जापान की सफलता के क्या कारण थे?
अथवा
रूस-जापान युद्ध के कारणों का वर्णन करो।
उत्तर:
सुदूर पूर्व में रूस तथा जापान दो महान् शक्तियाँ थीं। ये दोनों शक्तियों महत्त्वाकांक्षी थीं। ये दोनों शक्तियाँ साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण करती थीं तथा इस नीति पर चलते हुए अपने-अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहती थीं। इसी कारण उनमें 1904-05 ई० में एक युद्ध हुआ जिसमें रूस पराजित हुआ और जापान को गौरवपूर्ण सफलता प्राप्त हुई।

I. रूस-जापान युद्ध के कारण

रूस-जापान युद्ध के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. जापान के विरुद्ध रूस का हस्तक्षेप:
1894-95 ई० में हुए चीन-जापान युद्ध में जापान ने चीन को पराजित करके एक शानदार विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध के पश्चात् हुई शिमोनोसेकी की संधि के अनुसार चीन ने अपने कुछ क्षेत्र जापान को दे दिए थे। इन प्रदेशों में एक लियाओतुंग प्रदेश भी था। उधर रूस भी अपने स्वार्थी हितों के कारण इन प्रदेशों पर नजर लगाए बैठा था।

इस कारण इस संधि के कुछ दिन पश्चात् ही उसने जापान पर दबाव डाला कि वह लियाओतुंग प्रदेश चीन को वापस कर दे। फ्राँस तथा जर्मनी ने भी रूस का समर्थन किया। अतः जापान को बाध्य होकर लियाओतुंग का प्रदेश चीन को वापस करना पड़ा। जापान रूस से अपने इस अपमान का बदला लेना चाहता था।

2. रूस-चीन गठबंधन:
लियाओतुंग का प्रदेश वापस मिलने पर चीन और रूस के संबंध मैत्रीपूर्ण हो गए। रूस ने फ्रांस के साथ मिल कर एक बड़ी राशि चीन को ऋण स्वरूप दी। 1896 ई० में उसने चीन के साथ एक रक्षात्मक गठबंधन बनाया। इस गठबंधन के अनुसार उन्होंने यह निश्चित किया कि यदि जापान रूसी प्रदेशों अथवा चीन और कोरिया पर आक्रमण करता है तो वे सम्मिलित रूप से उसका सामना करेंगे। चीन तो जापान का शत्रु था ही, अपितु यह गठबंधन बन जाने से जापान का रूस के विरुद्ध होना स्वाभाविक था।

3. लियाओतुंग पर रूस का कब्जा:
चीन में हुए ‘रियायतों के लिए संघर्ष’ (scramble for concessions) में रूस सबसे महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ प्राप्त करने में सफल रहा था। अन्य रियायतों के साथ-साथ उसने 1898 ई० में लियाओतुंग का प्रदेश भी चीन से पट्टे पर ले लिया था। रूस की इस कार्यवाही से जापान भड़क उठा था क्योंकि यही प्रदेश उसने जापान से चीन को वापस दिलवाया था और अब उस पर कब्जा कर बैठा था। निस्संदेह इसने आग में घी डालने का कार्य किया।

4. मंचूरिया की समस्या:
मंचूरिया भी रूस-जापान युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना। मंचूरिया चीन के उत्तरी भाग में स्थित था तथा ये दोनों देश उसमें रुचि रखते थे। लियाओतुंग पर कब्जा करने के पश्चात् रूस ने पोर्ट आर्थर को अपना शक्तिशाली समुद्री अड्डा बनाने का प्रयास किया। उसने मंचूरिया में रेलवे लाइनें भी बिछाई। मंचूरिया में जापान के भी आर्थिक हित थे। रूस के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण उसके हितों को खतरा पैदा हो गया।

बॉक्सर विद्रोह के बाद भी रूसी सेनाएँ मंचूरिया में ही थीं। वहाँ से सेना हटाने की अपेक्षा उसने चीनी सरकार से और रियायतें प्राप्त करनी चाहीं परंतु जापान तथा इंग्लैंड ने इसका विरोध किया। 1902 ई० में रूस ने वचन दिया कि वह 18 मास में अपनी सेनाएँ चीन से निकाल लेगा परंतु उसने ऐसा न किया। अतः जापान ने रूस को एक सबक सिखाने का निर्णय किया।

5. कोरिया की समस्या:
1894-95 ई० में हुए चीन-जापान युद्ध का मुख्य कारण कोरिया ही था। जापान ने इस यद्ध द्वारा कोरिया में चीन की प्रभसत्ता समाप्त कर दी थी। इस यद्ध के पश्चात रूस ने कोरिया पर जापान के अधिकार को स्वीकार कर लिया था। परंतु रूस ने उत्तरी कोरिया के जंगलों से लकड़ी काटने का सिलसिला बंद न किया। इस के अतिरिक्त उसने इस क्षेत्र में सेना भी भेजनी आरंभ कर दी थी। जापान की सरकार ने इस का विरोध दर्शाते हुए एक पत्र रूसी सरकार के पास भेजा। परंतु रूसी सरकार ने इसकी कोई परवाह न की। परिणामस्वरूप इसने स्थिति को विस्फोटक बना दिया।

6. इंग्लैंड-जापान गठबंधन :
1902 ई० में जापान तथा इंग्लैंड ने एक गठबंधन किया। इसके अधीन दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि चीन और कोरिया में अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए एक-दूसरे को सहायता देंगे। संधि के अनुसार इंग्लैंड ने यह भी वचन दिया कि यदि रूस और जापान में युद्ध होता है तो वह निष्पक्ष रहेगा। परंतु यदि इस युद्ध में फ्राँस रूस की सहायता करेगा तो वह जापान का साथ देगा। इंग्लैंड के इस आश्वासन से जापान को प्रोत्साहन मिला और उसने रूस के प्रति कठोर नीति अपनानी आरंभ कर दी। जापान का यह व्यवहार भी इस युद्ध का कारण बना।

7. जापान द्वारा संधि के प्रयास:
जापान रूस की विस्तारवादी नीति से बड़ा चिंतित था। वह कोरिया तथा मंचूरिया के प्रश्न पर रूस से कोई समझौता करना चाहता था। अतः इन देशों के मध्य 1903 ई० में बातचीत आरंभ हुई जो कि फ़रवरी, 1904 ई० तक चली। जापान चाहता था कि यदि रूस कोरिया पर जापान का आधिपत्य स्वीकार कर ले तो वह मंचूरिया पर रूस का आधिपत्य स्वीकार कर लेगा। परंतु यह बातचीत किसी निष्कर्ष पर न पहुँच सकी। अंततः दोनों के मध्य 10 फ़रवरी, 1904 ई० को युद्ध आरंभ हो गया।

II. युद्ध की घटनाएँ

रूस-जापान युद्ध स्थल तथा समुद्र दोनों में लड़ा गया था। जापान के एडमिरल तोजो ने युद्ध का आरंभ करते हुए सबसे पहले पोर्ट आर्थर को चारों ओर से घेरा डाला। इसी समय जापानी सेनाओं ने रूस के स्थल मार्ग से आक्रमण किया। इस प्रकार जापानी सेनाओं ने पोर्ट आर्थर को स्थल तथा जल दोनों मार्गों द्वारा घेर लिया। रूस इस घेरे को तोड़ न सका। 10 महीनों के घेराव के बाद जापानी सेनाओं ने पोर्ट आर्थर पर कब्जा कर लिया।

यहाँ से जापानी सेनाएँ लियाओतुंग (Liaotung) की ओर बढ़ी तथा उसे भी विजय कर लिया। फ़रवरी, 1905 ई० को जापानी सेनाओं ने मंचूरिया की राजधानी मुकदेन (Mukaden) पर धावा बोल दिया। एक भयंकर युद्ध के पश्चात् रूसी सेनाएँ पराजित हुईं। रूसी सेनाएँ मुकदेन छोड़ कर भाग गईं तथा उन्होंने मंचूरिया में जापान का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। रूस के ज़ार ने अब समुद्री युद्ध में अपने हाथ आजमाने चाहे।

उसने अपनी नौसेना को बाल्टिक सागर से प्रशाँत सागर में भेजा ताकि पोर्ट आर्थर पर फिर से अधिकार किया जा सके। जब यह सेना तुशिमा (Tsushima) पहुँची तो जापानी एडमिरल तोजो (Admiral Tojo) ने इसे तहस-नहस कर दिया। इस निर्णायक लड़ाई में जापान विजयी रहा। अब तक रूस तथा जापान दोनों ही इस लड़ाई से तंग आ चुके थे। इस युद्ध के कारण जापान पर अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ रहा था तथा रूस की कठिनाइयाँ भी बहुत बढ़ गई थीं।

अब वे किसी संधि के लिए सोचने लगे थे। इस कार्य में संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट (Theodore Roosevelt) ने मध्यस्थता की। दोनों देशों के प्रतिनिधियों को शाँति संधि की शर्ते निर्धारित करने के लिए पोर्टसमाउथ बुलाया गया। काफी वाद-विवाद के पश्चात् । सितंबर, 1905 ई० को दोनों पक्षों में पोर्टसमाउथ की संधि हुई और युद्ध समाप्त हो गया।

पोर्टसमाउथ की संधि (Treaty of Portsmouth) संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट के प्रयत्नों के फलस्वरूप रूस तथा जापान के मध्य 5 सितंबर, 1905 ई० को एक संधि हुई। इसे पोर्टसमाउथ की संधि कहा जाता है। इस संधि की शर्ते निम्नलिखित थीं

(1) कोरिया में जापान के राजनीतिक, सैनिक तथा आर्थिक हितों को रूस ने स्वीकार कर लिया।

(2) पोर्ट आर्थर तथा लियाओतुंग के प्रायद्वीप जापान को मिल गए।

(3) इस संधि में यह भी कहा गया कि रूस तथा जापान दोनों ही मंचूरिया से अपनी सेनाएं वापस बुला लेंगे। केवल रेलों की रक्षा के लिए ही कुछ सैनिक वहाँ रहेंगे।

(4) दोनों ने माना कि मंचूरिया में रेलों का उपयोग केवल व्यापारिक एवं औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।

(5) आपान को स्खालिन द्वीप का दक्षिण भाग प्राप्त हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकारों एफ० एच० माइकल एवं जी०ई० टेलर के शब्दों में, “पोर्टसमाउथ की संधि ने जापान को एशिया में एक महाद्वीपीय शक्ति के रूप में स्थापित किया।

III. जापान की सफलता के कारण

रूस-जापान युद्ध में जापान की सफलता के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(1) जापानी सैनिक तथा जनता दोनों ही देश-भक्ति की भावना से ओतप्रोत थे। सारा राष्ट्र जापान की सरकार के साथ था तथा देश के लिए मर मिटने को तैयार था। उन्होंने शत्रु को हराने के लिए तन, मन तथा धन से सरकार की सहायता की। यही राष्ट्र-भक्ति की भावना जापानियों की विजय का मूल कारण थी।

(2) जापान ने अपनी सेना का आधुनिक ढंग से पुनर्गठन कर इसे काफी शक्तिशाली. बना लिया था। इस शक्तिशाली सेना के आगे रूसी सेनाएँ टिक न सकीं।

(3) जापान ने युद्ध के आरंभ होने से पूर्व ही अपनी पूरी तैयारी कर ली थी। उसने अपने यातायात के साधनों तथा स्वास्थ्य सेवाओं का भी उचित प्रबंध किया जो उसकी विजय में सहायक सिद्ध हुईं।

(4) तोजो, आयोमा तथा नोगी आदि जापानी सेनापतियों को युद्धों का बहुत अनुभव था। अत: उन्होंने जापानी सेना का कुशल नेतृत्व किया। परिणामस्वरूप रूसी सेना जापानी सेना का मुकाबला न कर सकी एवं उसे पराजय का सामना करना पड़ा।

(5) रूस का ज़ार जापान की सैन्य शक्ति का ठीक अनुमान न लगा सका। वह यह ही समझता रहा कि युद्ध अथवा शांति का निर्णय उसी के हाथ में है। यह भ्रम ही रूस की पराजय तथा जापान की विजय का कारण बना।

(6) जापान की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति सदढ थी। वह इंग्लैंड की मित्रता पर भरोसा कर सकता था। परंत फ्राँस 1904 ई० के समझौते के कारण इंग्लैंड के विरुद्ध नहीं लड़ सकता था। अतः रूस मित्रहीन था। अतः जापान ने आसानी से उसे पराजित कर दिया।

IV. रूस-जापान युद्ध के प्रभाव

रूस-जापान युद्ध के दूरगामी प्रभाव पड़े। संक्षेप में इसके प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. रूस पर प्रभाव (Effects on Russia)-रूस-जापान युद्ध से रूस की प्रतिष्ठा को गहरी चोट लगी। ज़ार शासकों के विरुद्ध पहले ही रूसी जनता में असंतोष व्याप्त था। ऊपर से जापान जैसे छोटे-से देश से पराजित होने पर लोग उनसे और नाराज हो गए। इस पराजय से जार शासकों की शक्ति का खोखलापन सारे विश्व के सामने आ गया तथा यूरोप के लोग इसकी आलोचना करने लगे।

2. जापान पर प्रभाव (Effects on Japan)-रूस-जापान युद्ध के जापान पर भी प्रभाव पड़े। इस युद्ध में विजय के कारण अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जापान का बहुत सम्मान बढ़ा। जापान एक छोटा-सा देश था फिर भी वह विशालकाय रूस पर विजय पाने में सफल रहा। इस विजय के कारण उसकी प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए तथा दूर-पूर्व में उसका प्रभाव बढ़ गया।

इस विजय से जापान बहुत प्रोत्साहित हुआ। इस विजय ने यह सिद्ध कर दिया कि जापान एक शक्तिशाली राष्ट्र है। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० यनागा के अनुसार,”इस प्रकार सुदूर पूर्व में एक नई शक्ति का उदय हुआ, एक छोटी पूर्वी शक्ति ने न केवल एक शक्तिशाली राष्ट्र को चुनौती प्रस्तुत की अपितु उसे कड़ी पराजय देने में भी सफलता प्राप्त की।

3. चीन पर प्रभाव (Effects on China)-रूस-जापान युद्ध के प्रभावों से चीन भी अछूता नहीं रहा। इस युद्ध के पश्चात् चीन के लोगों के मन में यह धारणा घर कर गई कि यदि उन्होंने पश्चिमी देशों के साम्राज्यवाद से छुटकारा
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 11 iMG 1
पाना है तो उन्हें अपनी शक्ति का पुनर्गठन करना होगा। अतः चीन ने अपनी सेना को पुनर्गठित करने के लिए पश्चिमी युद्ध कला को अपनाया। पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान से परिचित होने के लिए अनेक चीनी विदेशों में गए। अत: चीन के लोगों में एक नई जागृति का उत्थान हुआ। इसी राष्ट्रीय जागरण के परिणामस्वरूप चीन में 1911 ई० की क्रांति हुई और चीनी सम्राट् गद्दी छोड़ने पर विवश हुआ। इस प्रकार मांचू वंश का पतन हुआ तथा चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई।

4. यूरोप पर प्रभाव (Effects on Europe)-इस युद्ध के यूरोप की राजनीति पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। युद्ध के समय जर्मनी ने रूस तथा फ्रॉस से मिल कर इंग्लैंड के विरुद्ध एक संगठन बनाने का प्रयास किया, परंतु इसमें वह सफल न हो सका। इसके विपरीत फ्रांस के प्रयत्नों से रूस और इंग्लैंड एक-दूसरे के निकट आए। इस युद्ध में रूस की पराजय से इंग्लैंड को रूस की ओर से कोई भय न रहा। इस कारण इंग्लैंड ने रूस की ओर मैत्री का हाथ बढ़ाया जिससे इंग्लैंड को बहुत लाभ हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार एम० ई० कैमरन के अनुसार, “युद्ध में जापान की विजय के विश्व मामलों में गहन प्रभाव पड़े।”

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 5.
जापान में सैन्यवाद के उदय के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जापान में सैन्यवाद के उदय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनमें से मुख्य कारणों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

1. सैन्यवादियों की महत्त्वाकांक्षा:
जापान में सैन्यवादियों के उत्थान का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे जापान में फैली अशांति पर नियंत्रण पाने में सफल रहे। 1894-95 में चीन-जापान युद्ध में तथा 1904-05 ई० में रूस-जापान युद्ध में जापान की सफलता ने विश्व को चकित कर दिया। 1902 ई० में जापान इंग्लैंड के साथ एक समझौता करने में सफल रहा। इन कारणों से जापान की सेना की महत्त्वाकांक्षा बढ़ गई। 1931 ई० में जापानी सेना ने सरकार से परामर्श किए बिना ही मंचूरिया पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया।

2. उदारवादियों की मृत्यु :
बहुत-से पुराने नेता सैन्यवादियों की गतिविधियों को पसंद . नहीं करते थे। वास्तव में वे सैन्यवादियों पर अंकुश रखते थे। परंतु ज्यों-ज्यों समय गुजरता गया वे बूढ़े हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कारण सैन्यवादियों पर जो उनका अंकुश था वह समाप्त हो गया और वे अब अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हो गये। दूसरे क्षेत्रों को विजय करने की उनकी इच्छा को अब कोई नहीं दबा सकता था।

3. नवयुवक अधिकारियों की श्रेणी का उदय:
जापान में नवयुवक अधिकारियों की एक नई श्रेणी का उदय हुआ। इन लोगों का संबंध जापान की कुलीन श्रेणी से नहीं था। यहाँ यह बात याद रखने योग्य है कि कुलीन श्रेणी के लोग इन नवयुवक लोगों को केवल पसंद ही नहीं करते थे बल्कि घृणा भी करते थे। उधर ये नवयुवक अधिकारी अपनी शानदार विजयों द्वारा समाज में अपना स्थान बनाना चाहते थे। उन्हें सैनिक नेताओं का समर्थन प्राप्त था। वे जापानी सैनिकवाद में विश्वास करते थे और शक्ति का प्रयोग करना अपना अधिकार समझते थे।

4. नाजीवाद तथा फासिस्टवाद का प्रभाव:
हिटलर तथा मुसोलिनी की सफलताओं का जापानियों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। अत: जापानी भी हिटलर तथा मुसोलिनी की भाँति विजयें प्राप्त करना चाहते थे। वे उनके विचारों तथा तरीकों से बहुत प्रभावित थे। विजयों की आकांक्षा रखने वाले जापानी नवयवक नाजी एवं फासिस्ट लोगों की तरह अपनी दशा को सधारना चाहते थे।

5. विरोधी नेता:
जापानी संसद् के सदस्य, उच्च अधिकारी तथा मंत्रिपरिषद् के सदस्य सैन्यवादियों के घोर विरोधी थे। अपने इस विरोध के कारण ही वे सैन्यवादियों के आतंक का निशाना बने। जापान में सैन्यवादियों का विरोध करने वालों में शिक्षक तथा पत्रकार भी शामिल थे। वे भली-भाँति समझते थे कि सैनिक खर्च में वद्धि का क्या परिणाम होगा। जापान में उस समय सरकारी आमदनी सीमित तथा खर्चे असीमित थे।

देश पर पहले ही ऋण का भारी बोझ था। अतः एक के बाद एक वित्तमंत्री ने सैनिक खर्चों में कटौती करने के सझाव रखे। जापानी सेना इसलिए तैयार नहीं थी। अतः उसने विरोधियों को अपना निशाना बनाया।

6. उच्च-पदाधिकारियों का वध:
1937 ई० तक जापान में उग्र राष्ट्रवाद का प्रसार हो चुका था। सैन्यवादियों ने उग्र-राष्ट्रवाद का प्रयोग एक हथियार के रूप में किया। पहले उन्होंने लोगों को डराया धमकाया और जब इससे काम न चला तो सैन्यवादियों ने उनका वध कर दिया। मंत्री, उच्च-पदाधिकारी, संसद् के सदस्य, पत्रकार तथा शिक्षक जो सैन्यवादियों के विरोधी थे, उन्हें पहले धमकी दी गई और जब उन्होंने इस पर भी सैन्यवादियों का विरोध करना न छोड़ा तो उनका वध कर दिया गया। इसने स्थिति को विस्फोटक बना दिया।

प्रश्न 6.
जापान पर अमरीका के कब्जे (1945-51 ई० ) के दौरान वहाँ क्या प्रगति हुई ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जापान पर 1945 ई० से लेकर 1952 ई० तक अमरीका के जनरल दगलस मेकार्थर (General Douglas Mac Arthur) का शासन रहा। इसका उद्देश्य जापान का निशस्त्रीकरण करना, युद्ध अपराधियों पर अभियोग चलाना, जापान में एक लोकतांत्रिक शासन की स्थापना करना, जापान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना एवं शिक्षा को एक नई दिशा देना था।

वह अपने उद्देश्य में काफी सीमा तक सफल रहा। इसके परिणामस्वरूप जापान पुनः एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरा। आज जापान की गणना विश्व के प्रसिद्ध देशों में की जाती है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० वी० राव के शब्दों में, “विश्व युद्ध के पश्चात् मित्र राष्ट्रों ने जापान पर कब्जे के पश्चात् महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए। ये मेज़ी काल से कहीं अधिक क्रांतिकारी थे।”

1. जापान का निरस्त्रीकरण करना :
जनरल दगलस मेकार्थर ने सर्वप्रथम अपना ध्यान जापान को निरस्त्रीकरण करने की ओर दिया। इस कार्य के लिए उसने बहुत साहस से कार्य किया। उसने जापान की थल सेना एवं नौसेना को भंग कर दिया। उनके सभी हथियारों को नष्ट कर दिया। जापान में अनिवार्य सैनिक शिक्षा एवं सेवा को बंद कर दिया गया।

युद्ध सामग्री बनाने वाले सभी उद्योगों को बंद कर दिया गया। उन्हें असैनिक सामान का उत्पादन करने का आदेश दिया गया। वैज्ञानिकों द्वारा युद्ध सामग्री की नई खोजों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। जिन जापानी अधिकारियों ने जापान के विस्तार में उल्लेखनीय योगदान दिया था उन्हें उनके पदों से हटा दिया गया। इस प्रकार जापान का निरस्त्रीकरण जापान में एक लंबे समय के पश्चात् एक स्थायी शांति स्थापित करने में सहायक सिद्ध हुआ।

2. युद्ध अपराधियों पर अभियोग :
जापान के जो अधिकारी युद्ध के लिए जिम्मेवार थे उन पर मुकद्दमा चलाया गया। इसके लिए तोक्यो में 1946 ई० में एक अंतर्राष्ट्रीय सैनिक अदालत का गठन किया गया। इसने जापान के जनरल तोजो एवं कुछ अन्य अधिकारियों को मृत्यु दंड दिया। अनेक सैनिकों को आजीवन कारावास का दंड दिया गया। जापान की पिछली सरकार द्वारा जितने उदार राजनीतिज्ञों को कारावास में डाल दिया गया था उन्हें रिहा कर दिया गया।

उग्र राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने वाले व्यक्तियों को सरकारी पदों से हटा दिया गया। इसी प्रकार उग्र राष्टीय विचारधारा वाले अध्यापकों को भी हटा दिया गया। इस विचारधारा का समर्थन करने वाली समितियों को भंग कर दिया गया एवं पाठ्यक्रम से ऐसी पुस्तकों को हटा दिया गया।

3. जापान का नया संविधान :
जापान में 1947 ई० में एक नया विधान लाग किया गया। इसने 1889 ई० के मेज़ी काल में प्रचलित संविधान का स्थान ले लिया। इस संविधान के अनुसार सम्राट् से उसकी अनेक शक्तियाँ छीन ली गईं। उसे अब देवता नहीं माना जाता था। अब जापान की डायट के अधिकार बढ़ा दिए गए। इसे अब देश के कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो गया। न्यायपालिका को पूर्ण स्वतंत्र कर दिया गया।

नागरिक के अधिकारों में वृद्धि की गई। जापान को एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया। महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया गया। स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहित किया गया। निस्संदेह जापान का नया संविधान लोकतंत्र स्थापित करने की दिशा में एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

4. आर्थिक सुधार :
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जापान की अर्थव्यवस्था को भारी आघात लगा था। अत: जनरल दगलस मेकार्थर ने इस दिशा की ओर अपना विशेष ध्यान दिया। 1946 ई० में जापान की डायट द्वारा एक कानून पारित किया गया जिसके अनुसार अनुपस्थित ज़मींदारों (absentee landlords) को अपनी भूमि सरकार को बेचने के लिए बाध्य किया गया। सरकार ने इन जमीनों को किसानों में बाँट दिया। इससे उनकी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। 1946 ई० में मजदूरों को श्रमिक संगठन बनाने का अधिकार दिया गया।

उनकी दशा सुधारने के उद्देश्य से उनके वेतन, कार्य के समय, बेकारी भत्ते एवं बुढ़ापे के बीमे आदि की व्यवस्था की गई। जायबात्सु पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसका कारण यह था कि देश की लगभग समस्त संपत्ति उनके हाथों में एकत्र हो गई थी। सरकार ने उन्हें उनके विशेषाधिकारों से वंचित कर दिया। अमरीका ने जापान में भारी उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष कदम उठाए। इन सुधारों के चलते जापान की अर्थव्यवस्था पुनः पटड़ी पर आ गई।

5. शिक्षा सुधार :
आधिपत्यकाल में जापान में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार किए गए। जापान की परंपरावादी (traditional) शिक्षा को परिवर्तित कर दिया गया। जापान में पश्चिम में प्रचलित आधुनिक शिक्षा को लागू किया गया। पाठ्य पुस्तकों को नए ढंग से लिखा गया। इसमें सम्राट् की उपासना, नैतिक एवं सैनिक शिक्षा की अपेक्षा लोकतंत्र पर अधिक बल दिया गया था।

शिक्षण संस्थाओं में जापान में प्रचलित शिंटो धर्म के पढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 9 वर्ष तक शिक्षा अनिवार्य एवं निःशुल्क कर दी गई। इसके बाद विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा दी जाती थी। अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए विशेष प्रबंध किया गया। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् जापान ने विभिन्न क्षेत्रों में आश्चर्यजनक प्रगति की।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर एस० एन० सेन का यह कहना ठीक है कि, “जापान पर (अमरीका का) आधिपत्य यद्यपि 7 वर्ष तक रहा किंतु यह जापान के भावी विकास के लिए निर्णायक था।

प्रश्न 7.
1839-42 ई० के प्रथम अफ़ीम युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
प्रथम अफ़ीम युद्ध के कारणों एवं प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1839-42 ई० में इंग्लैंड एवं चीन के मध्य प्रथम अफ़ीम युद्ध हुआ। इस युद्ध के लिए उत्तरदायी कारणों, घटनाओं एवं प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
I. प्रथम अफ़ीम युद्ध के कारण
(Causes of the First Opium War) चीन तथा ब्रिटेन के मध्य प्रथम अफ़ीम युद्ध नवंबर, 1839 ई० में आरंभ हुआ था। यह युद्ध 1842 ई० तक चला। निस्संदेह अफ़ीम का व्यापार ही इस युद्ध का मुख्य कारण था परंतु इसके अन्य भी अनेक कारण थे । इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. चीन एवं ब्रिटेन के तनावपूर्ण संबंध:
विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक होने के कारण चीन निवासी अपनी उच्च सभ्यता पर बहुत गर्व करते थे। वहाँ के लोग पश्चिमी देशों के लोगों को निम्न मानते थे तथा उनके साथ कोई संबंध स्थापित नहीं करना चाहते थे। चीन सरकार के अफसर तथा कर्मचारी यरोपीय व्यापारियों के साथ बहत अभद्र व्यवहार करते थे तथा उन्हें अपमानजनक चीनी कों का पालन करने के लिए विवश किया जाता था। अंग्रेज़ इन अपमानजनक एवं घटिया नियमों को को तैयार नहीं थे। अत: चीन तथा ब्रिटेन के मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गए। इसने चीन एवं ब्रिटेन के मध्य होने वाले प्रथम अफ़ीम युद्ध को अनिवार्य बना दिया।

2. चीन में यूरोपीय व्यापारियों का शोषण:
यूरोपीय व्यापारी चीन से जो भी माल खरीदते थे उस पर लिए जाने वाले कर की दर सरकार द्वारा निश्चित नहीं की गई थी। चीनी सरकार के भ्रष्ट अधिकारी उनसे मनमाने ढंग से कर वसूल करते थे जिस कारण यूरोपीय व्यापारी बहुत परेशान थे। चीन सरकार द्वारा स्थापित को-होंग (Co-Hong) नामक संस्था भी प्रायः विदेशी व्यापारियों का शोषण करती थी। चीन का सारा व्यापार को-होंग के माध्यम से ही होता था। चीन में यूरोपीय व्यापारियों का यह शोषण भी अफ़ीम युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना।

3. विदेशियों पर कठोर प्रतिबंध:
चीनी सरकार ने विदेशियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध भी लगा रखे थे। विदेशी चीनी भाषा नहीं सीख सकते थे, चीनी नागरिक को दास नहीं रख सकते थे तथा न ही किसी चीनी नागरिक को अपने धर्म में दीक्षित कर सकते थे। विदेशी व्यापारी केवल व्यापार के लिए ही कैंटन में निवास कर सकते थे। इसके पश्चात् उन्हें मकाओ वापस जाना पड़ता था। वे कैंटन में अपने परिवार भी साथ नहीं ला सकते थे।

विदेशी अपनी फैक्टरियों में केवल निश्चित संख्या में ही चीनी नौकर रख सकते थे। वे चीन के आंतरिक भागों में नहीं जा सकते थे। इस कारण अंग्रेज़ चीन से अपमानजनक व्यवहार का बदला लेना चाहते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० ए० बस के अनुसार, “कैंटन में पूर्व एवं पश्चिम के मिलन ने गहरे मतभेदों को जन्म दिया जो कि युद्ध की ओर ले गए।”

4. अफ़ीम व्यापार (The Opium Trade)-अंग्रेज़ों ने 1767 ई० में चीन के साथ अफ़ीम का व्यापार आरंभ किया था। शीघ्र ही चीन में इसकी माँग बहुत बढ़ गई। चीन की सरकार ने अफ़ीम के व्यापार पर कई प्रतिबंध लगाए परंतु इसका कोई परिणाम न निकला। अब तक चीन के लोग अफ़ीम के आदी हो चुके थे तथा अंग्रेजों को इसका बहुत लाभ पहुँच रहा था।

चीन सरकार के भ्रष्ट अधिकारी भी भारी घूस लेकर इस व्यापार को प्रोत्साहन दे रहे थे। परिणामस्वरूप चीन में अफ़ीम की तस्करी में भारी वृद्धि हुई। एक अनुमान के अनुसार 1837 ई० तक चीन के व्यापार में केवल अफ़ीम का आयात ही 57% तक हो गया था। चीन की सरकार इसे सहन करने को तैयार नहीं थी। अतः युद्ध के लिए विस्फोट तैयार था।

5. तात्कालिक कारण:
7 जुलाई, 1839 ई० को एक ऐसी घटना घटी जो प्रथम अफ़ीम युद्ध का तात्कालिक कारण सिद्ध हुई। कुछ शराबी अंग्रेज़ नाविकों ने एक चीनी नाविक की हत्या कर दी। कैप्टन इलियट (Capt. Elliot) ने इन अंग्रेज़ नाविकों पर मुकद्दमा चलाकर उन्हें सजा दे दी तथा इस संबंधी चीनी सरकार को सूचित कर दिया। चीन की सरकार ने अपराधियों को उसे सौंपने के लिए कहा।

वह उन्हें अपने देश के कानूनों के अनुसार दंड देना चाहती थी। कैप्टन इलियट ने अपराधियों को सौंपने से इंकार कर दिया। इस बात पर कमिश्नर लिन ने अंग्रेजों को भेजी जाने वाली भोजन सामग्री तथा तेल की सप्लाई बंद कर दी। इसने प्रथम अफ़ीम युद्ध का बिगुल बजा दिया।

II. प्रथम अफ़ीम युद्ध की घटनाएँ

अंग्रेज़ सैनिकों तथा चीनी सैनिकों के मध्य प्रथम मुठभेड़ 3 नवंबर, 1839 ई० को हुई जिसमें ब्रिटिश सेनाओं ने चीन के तीन युद्धपोत नष्ट कर दिए। चीन की सरकार ने जनवरी, 1840 ई० को ब्रिटेन के विरुद्ध औपचारिक युद्ध की घोषणा कर दी। उधर ब्रिटेन का प्रधानमंत्री पामर्स्टन (Palmerston) भी चीन में अंग्रेज़ व्यापारियों के हितों की सुरक्षा करने के पक्ष में था। इसी उद्देश्य से उसने अप्रैल, 1840 ई० में ब्रिटेन की संसद् में चीन के विरुद्ध युद्ध का प्रस्ताव पास करवा लिया। यह युद्ध लगभग दो वर्ष (1840-42 ई०) तक चला।

अंग्रेजों की संगठित तथा श्रेष्ठ सेना का मुकाबला चीनी सैनिक न कर सके। अंग्रेजों ने सर्वप्रथम कैंटन (Canton), निंगपो (Ningpo), अमोय (Amoy) तथा हांगकांग (Hong Kong) पर अधिकार कर लिया। 1842 ई० में अंग्रेजों ने शंघाई (Shangai) पर भी अधिकार कर लिया तथा नानकिंग की ओर बढ़ने लगे। विवश होकर चीनी सम्राट ने अंग्रेजों के साथ बातचीत करने का आदेश दिया। इस बातचीत के परिणामस्वरूप 29 अगस्त, 1842 ई० को दोनों देशों के मध्य नानकिंग की संधि हुई और यह युद्ध समाप्त हो गया।

1. नानकिंग की संधि (Treaty of Nanking)-29 अगस्त, 1842 ई० को अंग्रेजों तथा चीनियों के बीच एक संधि हुई जो नानकिंग की संधि के नाम से प्रसिद्ध है। इस संधि की शर्ते निम्नलिखित थी

(1) हांगकांग का द्वीप सदा के लिए ब्रिटेन को सौंप दिया गया।

(2) ब्रिटिश लोगों को पाँच बंदरगाहों-कैंटन, अमोय, फूचाओ (Foochow), निंगपो और शंघाई में बसने तथा व्यापार करने का अधिकार दे दिया गया।

(3) क्षतिपूर्ति के रूप में चीन ने दो करोड़ दस लाख डालर अंग्रेजों को देना स्वीकार किया।

(4) को-होंग को भंग कर दिया गया। परिणामस्वरूप अब ब्रिटिश व्यापारी किसी भी चीनी व्यापारी के साथ स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकता था।

(5) आयात और निर्यात पर एक समान तथा उदार दर स्वीकार कर ली गई। (vi) चीनियों ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि अंग्रेजों के मुकद्दमे अंग्रेज़ी कानून के अनुसार तथा उन्हीं की अदालतों में चलेंगे।

(6) यह भी शर्त रखी गई कि चीन अन्य देशों के लोगों को जो भी सुविधाएँ देगा वे अंग्रेजों को भी प्राप्त होंगी। एक अन्य इतिहासकार सी० ए० बस के शब्दों में, “यह एक युग का अंत एवं दूसरे युग का आगमन था।”

III. प्रथम अफ़ीम युद्ध के प्रभाव

प्रथम अफ़ीम युद्ध के परिणाम चीन के लिए बहुत ही विनाशकारी प्रमाणित हुए। इस युद्ध के परिणामों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. चीन की आर्थिक समस्याओं का बढ़ना:
प्रथम अफ़ीम युद्ध का सर्वप्रथम परिणाम यह हुआ कि चीन का आर्थिक शोषण आरंभ हो गया। अंग्रेज़ अब स्वतंत्रतापूर्वक अफ़ीम का व्यापार करने लगे। इस व्यापार के कारण चीन के धन का निकास होने लगा तथा चीन की आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ गईं।

2. चीन के सम्मान को धक्का:
प्रथम अफ़ीम युद्ध के पश्चात् हुई नानकिंग की संधि के कारण चीन के सम्मान में लगातार कमी होने लगी। उसकी व्यापारिक श्रेष्ठता तथ का महत्त्व कम होने के कारण विदेशियों ने चीनी सरकार पर अपना दबाव बढाना आरंभ कर दिया। परिणामस्वरूप उन्होंने चीन से अनेक सुविधाएँ प्राप्त की। इससे चीन के सम्मान को गहरा आघात लगा।

3. खुले द्वार की नीति :
एक लंबे समय से चीन के द्वार विदेशी व्यापारियों के लिए बंद थे। विदेशी व्यापारियों को कैंटन के अतिरिक्त किसी और नगर में व्यापार करने की अनुमति नहीं थी। विदेशी व्यापारी सीधे चीनी व्यापारियों के साथ व्यापार नहीं कर सकते थे। वे केवल को-होंग के माध्यम से ही अपना व्यापार कर सकते थे। परंतु इस युद्ध के पश्चात् चीन की सरकार को खुले द्वार की नीति अपनानी पड़ी। इस नीति के कारण चीन की बहुत आर्थिक हानि हुई।

4. साम्राज्यवाद का युग :
चीनी लोग यूरोपीयों से बहुत पिछड़े थे। उनकी सैनिक शक्ति भी संगठित नहीं थी। इस स्थिति का लाभ उठा कर यूरोपीयों ने चीन की सरकार पर दबाव डाला तथा अपने लिए अनेक सुविधाएँ प्राप्त कर ली। धीरे-धीरे यूरोपियों ने चीन के तटवर्ती नगरों में अपने कारखाने स्थापित कर लिए और सेना भी रखनी आरंभ कर दी। उन्होंने कुछ नगरों पर अपना शासन भी स्थापित कर लिया। इससे साम्राज्यवाद का उदय हुआ तथा चीन पराधीन होने लगा।

5. ताइपिंग विद्रोह :
प्रथम अफ़ीम युद्ध में हुई चीन की पराजय तथा नानकिंग की संधि से माँचू शासन की दुर्बलता प्रकट हो गई। इस कारण चीन के विभिन्न भागों के लोग माँचू शासन के विरुद्ध हो गए। उन्होंने समय-समय पर कई विद्रोह कर दिए। इन विद्रोहों में से ताइपिंग विद्रोह सबसे प्रसिद्ध था। इस विद्रोह ने 1850 ई० से 1864 ई० के समय के दौरान चीन के कई भागों को अपनी चपेट में ले लिया। विद्रोहियों का उद्देश्य माँचू शासन को समाप्त करके मिंग वंश का शासन पुनः स्थापित करना था। यद्यपि इस विद्रोह का दमन कर दिया गया तथापि चीन के इतिहास में यह एक महत्त्वपूर्ण घटना है।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 8.
द्वितीय अफ़ीम युद्ध का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
द्वितीय अफ़ीम युद्ध के कारणों का वर्णन कीजिए। इस युद्ध के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:

I. द्वितीय अफ़ीम युद्ध के कारण
द्वितीय अफ़ीम युद्ध चीन तथा ब्रिटेन के मध्य 1856-60 ई० में लड़ा गया। इस युद्ध के लिए जिम्मेदार कारकों का वर्णन अग्रलिखित अनुसार है

1. अफ़ीम के व्यापार में वृद्धि :
प्रथम अफ़ीम युद्ध का मुख्य कारण अफ़ीम का अवैध व्यापार था परंतु इस युद्ध के पश्चात् हुई संधियों में इसके व्यापार संबंधी कोई निश्चित निर्णय नहीं हुआ था। अंग्रेज़ अब भी धड़ल्ले से इसका व्यापार कर रहे थे। वे अफ़ीम के व्यापार से काफी लाभ कमा रहे थे। परिणामस्वरूप भारी मात्रा में अफ़ीम चीन में आने लगी।

1842 ई० में चीन में आने वाली पेटियों की संख्या 38,000 थी जोकि 1850 ई० तक 52,000 हो गई थी। चीन की सरकार इस अवैध व्यापार से बहुत चिंतित थी परंतु इस मामले में विदेशियों पर कोई ठोस प्रतिबंध लगाने में असमर्थ थी। इस प्रकार अफ़ीम का व्यापार द्वितीय अफ़ीम युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना।

2. चीनियों के साथ विदेशों में दुर्व्यवहार:
नानकिंग की संधि के पश्चात् विदेशियों ने अपने व्यापार का विस्तार करना आरंभ कर दिया। उन्हें यूरोप में कुलियों की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने चीन के निर्धन युवकों को धन का लालच देकर यूरोप के देशों तथा संयुक्त राज्य अमरीका आदि में भेजना आरंभ कर दिया। विदेशों में इन चीनियों से दासों जैसा व्यवहार किया जाता था। चीन की सरकार विदेशों में चीनियों के साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार को सहन करने को तैयार नहीं थी। इस कारण चीन तथा यूरोपियों के संबंध तनावपूर्ण हो गए।

3. अधिकारों का दुरुपयोग:
प्रथम अफ़ीम युद्ध के पश्चात् 8 अक्तूबर, 1843 ई० को हुई बोग की संधि (Treaty of Bogue) के अनुसार अंग्रेजों ने चीन में अपने देश के कानून लागू करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था। परंतु चीन की सरकार की दुर्बलता का लाभ उठा कर वे अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगे थे। चीन की सरकार इसे सहन करने को तैयार नहीं थी।

4. कैथोलिक प्रचारक की हत्या :
आगस्ते चैप्डेलेन (Auguste Chapdelaine) नामक कैथोलिक प्रचारक की हत्या भी द्वितीय अफ़ीम युद्ध का एक मुख्य कारण सिद्ध हुई। चैप्डेलेन फ्राँस का निवासी था। वह ईसाई धर्म के प्रचार के लिए चीन में आया था। वह अपने धर्म-प्रचार के प्रयास में चीन के आंतरिक भागों में काफी दूर तक चला गया। चीन के अधिकारियों ने इसे संधि की शर्तों का उल्लंघन माना तथा उसे बंदी बना लिया।

उस पर चीनी सरकार के विरुद्ध लोगों को भड़काने का आरोप लगाया गया। क्वांगसी की स्थानीय अदालत ने फरवरी 1856 ई० में उसे मृत्यु दंड दे दिया। चीनी सरकार के इस व्यवहार से क्षुब्ध होकर नेपोलियन तृतीय ने चीन के विरुद्ध युद्ध में इंग्लैंड को साथ देने का मन बना लिया।

5. तात्कालिक कारण :
1856 ई० में घटने वाली लोर्चा ऐरो घटना (Lorcha Arrow Incident) द्वितीय अफ़ीम युद्ध का तात्कालिक कारण बनी। 8 अक्तूबर, 1856 ई० को चीनी अधिकारियों ने लोर्चा ऐरो नामक जहाज़ को पकड़ लिया तथा उसके 14 में से 12 नाविकों को बंदी बना लिया। इन पर यह इल्जाम लगाया कि वे प्रतिबंधित अफ़ीम का व्यापार कर रहे हैं। यह जहाज़ एक चीनी व्यापारी का था किंतु इसका कप्तान एक अंग्रेज़ था।

इस जहाज़ पर ब्रिटिश झंडा लगा हुआ था। अंग्रेजों ने चीन की इस कार्यवाही की निंदा की तथा बंदी बनाए गए व्यक्तियों को छोड़ने तथा उचित मुआवजा देने के लिए कहा। चीनी अधिकारियों ने अपनी कार्यवाही को उचित ठहराया तथा अंग्रेजों की माँग मानने से इंकार कर दिया। चीनियों के इस व्यवहार से अंग्रेज रुष्ट हो गए तथा उन्होंने युद्ध का बिगुल बजा दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार इमानूएल सी० वाई० सू के शब्दों में, “1856 ई० की लोर्चा ऐरो घटना ने ब्रिटेन को अपना गुस्सा निकालने का मौका दिया।”

II. द्वितीय अफ़ीम युद्ध की घटनाएँ

1856 ई० में अंग्रेज सेनाओं ने कैंटन पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् फ्रांसीसी सेनाएँ भी ब्रिटिश सेनाओं की सहायता के लिए पहुंच गई । शीघ्र ही दोनों सेनाएँ तीनस्तीन पहुँच गईं। चीनी सरकार इस संयुक्त सेना का सामना करने में असमर्थ थी। अतः परिणामस्वरूप चीनियों ने बाध्य होकर इन देशों के साथ 26 जून, 1858 ई० को तीनस्तीन की संधि कर ली।

1. तीनस्तीन की संधि 1858 ई० (Treaty of Tientsin 1858 CE)-तीनस्तीन की संधि पर 26 जून, 1858 ई० को चीन, इंग्लैंड तथा फ्राँस की सरकारों ने हस्ताक्षर किए। इस संधि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

(1) चीन की 11 नई बंदरगाहों को विदेशी देशों के साथ व्यापार तथा निवास के लिए खोल दिया गया।

(2) चीनी सरकार ने पश्चिमी देशों को अफ़ीम के व्यापार की अनुमति प्रदान कर दी तथा अफ़ीम के व्यापार को वैध घोषित कर दिया।

(3) चीन की ‘यांगत्सी’ नदी में पश्चिमी देशों के जहाजों को आने-जाने की अनुमति दे दी गई।

(4) चीन की सरकार ने यह भी स्वीकार कर लिया कि पश्चिमी देश चीन में अपने राजदूत नियुक्त कर सकेंगे।

(5) चीन की सरकार ने फ्रांस के रोमन कैथोलिक पादरियों को यह सुविधा प्रदान कर दी कि वे उपर्युक्त सोलह बंदरगाहों को छोड़कर कहीं भी आ-जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त वे किसी भी स्थान पर भूमि खरीद सकते हैं अथवा किराये पर भूमि लेकर गिरजाघरों का निर्माण कर सकते हैं।

(6) ईसाई धर्म के प्रचारकों को यह अधिकार दे दिया गया कि वे चीन में स्वतंत्रतापूर्वक घूम-फ़िर कर अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं और किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुकूल ईसाई बना सकते हैं।

(7) पश्चिमी शक्तियों के राज्य-क्षेत्रातीत अधिकारों (Extra Territorial Rights) को अधिक विस्तृत और व्यापक कर दिया गया। इसके अनुसार उन्हें चीन में निवास करने और व्यापार करने की सुविधा दी गई।

(8) चीन ने अंग्रेज़ व्यापारियों को युद्ध के हर्जाने के रूप में एक भारी धन-राशि देना स्वीकार कर लिया।

(9) इस संधि ने उन विदेशियों को जिनके पास वैध प्रवेश पत्र (legal passport) हों, चीन के किसी स्थान पर स्वतंत्रतापूर्वक घूमने-फिरने की अनुमति प्रदान कर दी।

2. युद्ध का दूसरा चरण:
26 जून, 1858 ई० को तीनस्तीन की संधि हो गई थी प चीन की सरकार ने इसे मान्यता देने से इंकार कर दिया था। चीन की इस कार्यवाही से पश्चिमी शक्तियों को बहुत आघात पहुँचा। उन्होंने चीनी सरकार पर दबाव डालने के लिए पुनः युद्ध आरंभ कर दिया। इंग्लैंड तथा फ्रांस की संयुक्त सेनाओं ने शीघ्र ही पीकिंग पर आक्रमण कर दिया।

चीन की निर्बल सेना इस आक्रमण का मुकाबला करने में नाकाम रही। संयुक्त सेनाओं ने पीकिंग पर अधिकार कर लिया तथा माँचू सम्राट् पीकिंग छोड़ कर भाग गया। विजयी सेनाओं ने नगर में भारी लूट-मार की तथा राजमहल को अग्नि भेंट कर दिया। विवश होकर चीन की सरकार को पीकिंग की संधि की शर्तों को स्वीकार करना पड़ा। पीकिंग की संधि 1860 ई० (Treaty of Peking 1860 CE)-अक्तूबर, 1860 ई० में चीन, फ्राँस तथा इंग्लैंड के मध्य की गई पीकिंग संधि की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित थीं

(1) अफ़ीम के व्यापार को वैध मान लिया गया।

(2) चीन सरकार ने पहले केवल 5 बंदरगाहें ही विदेशी व्यापार के लिए खोली थीं। अब 11 अन्य बंदरगाहें भी खोल दी जिससे बंदरगाहों की कुल संख्या 16 हो गई।

(3) चीन की सरकार पीकिंग में अंग्रेज़ राजदूत रखने के लिए मान गई।

(4) कौलून का प्रायद्वीप इंग्लैंड को दिया गया।

(5) चीन की सरकार को युद्ध के हर्जाने के रूप में आठ-आठ मिलियन डालर इंग्लैंड तथा फ्रांस को देने पड़े।

(6) चीन ने यह भी माना कि कैथोलिक पादरियों को 16 बंदरगाहों के अतिरिक्त चीन के किसी भी भाग में जाने की अनुमति होगी। उन्हें वहाँ धर्म प्रचार करने, भूमि खरीदने तथा गिरजाघर बनाने का अधिकार होगा।

II. द्वितीय अफ़ीम युद्ध के प्रभाव

द्वितीय अफ़ीम युद्ध के पश्चात् पूर्व के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इस युद्ध के प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. चीन के सम्मान को धक्का :
चीन निवासी सदियों से स्वयं को पश्चिमी लोगों से सभ्य मानते थे। उन्हें अपनी सभ्यता पर बहुत गर्व था। द्वितीय अफ़ीम युद्ध में पराजित होने के कारण चीनियों को अपमानजनक संधियों पर हस्ताक्षर करने पड़े तथा विदेशियों को अपने से श्रेष्ठ मानना पड़ा। इस प्रकार उनके सम्मान को गहरा धक्का लगा।

2. चीन को आर्थिक हानि :
चीन लगभग चार वर्ष तक युद्धों में उलझा रहा। इन युद्धों में उसे भारी धन राशि खर्च करनी पड़ी। द्वितीय अफ़ीम युद्ध के दौरान इंग्लैंड तथा फ्रांस की सेनाओं ने चीन की राजधानी पीकिंग तथा अन्य नगरों में सरकारी संपत्ति को बहुत हानि पहुँचाई। इस युद्ध के पश्चात् हुई संधियों के अनुसार चीन को भारी धन राशि विजयी देशों को देनी पड़ी। इससे चीन की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई।

3. ईसाई मत का प्रसार :
द्वितीय अफ़ीम युद्ध के पश्चात् हुई पीकिंग की संधि के अनुसार अब कैथोलिक पादरियों को 16 बंदरगाहों के साथ-साथ चीन के आंतरिक भागों में जाने तथा प्रचार करने की अनुमति मिल गई। परिणामस्वरूप ये पादरी चीन के विभिन्न भागों में बेरोक-टोक ईसाई मत का प्रचार करने लगे। उनके प्रचार से प्रभावित होकर अनेक चीनी नागरिकों ने ईसाई मत ग्रहण कर लिया।

इस कारण उनके धार्मिक तथा सामाजिक जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इन ईसाइयों की गतिविधियाँ ही चीन में 1899-1900 ई० में हुए बॉक्सर विद्रोह का कारण बनीं।

4. साम्राज्यवाद को प्रोत्साहन :
द्वितीय अफ़ीम युद्ध से पूर्व यूरोपीय शक्तियों का उद्देश्य केवल चीन की बंदरगाहों पर अधिकार जमाना तथा व्यापार को संचालित करना था। इस युद्ध में विजयी रहने पर उन्हें 16 बंदरगाहों पर व्यापारिक अधिकार प्राप्त हो गए। अब उन्होंने चीन में राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के प्रयास आरंभ कर दिए। अब इन शक्तियों ने अपनी बस्तियाँ बसानी आरंभ कर दी तथा कई नगरों में अपना शासन भी स्थापित कर लिया। इस प्रकार उन्होंने साम्राज्यवाद को प्रोत्साहन दिया।

प्रश्न 9.
चीन के इतिहास में डॉक्टर सन-यात-सेन की भूमिका का वर्णन कीजिए। उत्तर-चीन के इतिहास में डॉ० सन-यात-सेन (1866-1925 ई०) का एक विशेष स्थान है। उन्हें आधुनिक न का निर्माता कहा जाता है। वह चीन में राष्ट्रीय एकता स्थापित करना चाहते थे। व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा गणतंत्र की स्थापना उनके जीवन का परम लक्ष्य था।

1. प्रारंभिकजीवन :
डॉ० सन-यात-सेन का जन्म 2 नवंबर, 1866 ई० को कुआंगतुंग (Kwangtung) प्रदेश के चोय-हंग (Choy-Hung) नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। यह गाँव कैंटन (Canton) नगर से 40 मील की दूरी पर स्थित है। इनके पिता का नाम सन-टैट-सुंग (Sun-Tat-Sung) था। डॉ० सन-यात-सेन को शिक्षा प्राप्त करने के लिए हवाई द्वीप (Hawaii Islands) में भेजा गया। उनके भाई ने डॉ० सन-यात-सेन को एंगलीकन चर्च के एक प्रसिद्ध स्कूल में भर्ती करा दिया।

इस स्कूल में उन्होंने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। डॉ० सन-यात सेन ने लंदन में 1887 ई० में एक मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। 1892 ई० में उन्होंने डॉक्टरी की परीक्षा पास की और मैकाय (Macoy) नामक स्थान पर डॉक्टरी की प्रैक्टिस आरंभ कर दी। उस समय उनके ऊपर क्रांतिकारी भावनाओं का गहरा प्रभाव पड़ चुका था। वह देश की शिक्षा-प्रणाली में सुधार करना चाहते थे। उनका विचार था कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार होने के पश्चात् ही देश उन्नति कर सकता है। वह चाहते थे कि माँचू सरकार शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करे।

2. रिवाइव चाइना सोसाइटी की स्थापना :
डॉ० सन यात-सेन ने 24 नवंबर, 1894 ई० को होनोलल (Honolulu) में रिवाइव चाइना सोसाइटी की स्थापना की। वह स्वयं इस संस्था के चेयरमैन बने। इसे शिंग चुंग हुई (Hsing Chung Hui) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गुप्तचर संगठन था। आरंभ में इसके 112 सदस्य थे। 21 फरवरी, 1895 ई० को इसका मुख्यालय हांगकांग (Hong Kong) में खोला गया।

इसकी अनेक शाखाएँ चीन के विभिन्न प्रांतों में खोली गई। इसका प्रमुख उद्देश्य चीन में से माँचू शासन का अंत करना, चीनी समाज का पुनः निर्माण करना, प्रेस तथा शिक्षा के माध्यम से चीनियों में एक नवचेतना का संचार करना तथा चीन में गणतंत्र की स्थापना करना था।

3. तुंग मिंग हुई की स्थापना :
डॉ० सन-यात-सेन द्वारा 20 अगस्त, 1905 ई० को जापान की राजधानी तोक्यो (Tokyo) में तुंग मिंग हुई की स्थापना करना एक प्रशंसनीय कदम था। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य चीन में माँचू वंश का अंत करना, चीन को पश्चिमी देशों के शासन से मुक्त करना, चीन में लोकतंत्रीय गणतंत्र की स्थापना करना तथा भूमि का राष्ट्रीयकरण करना था। तुंग मिंग हुई की स्थापना वास्तव में चीन के इतिहास में एक मील पत्थर सिद्ध हुई।

4. डॉ० सन-यात-सेन के तीन सिद्धांत :
डॉ० सन-यात-सेन आरंभ से ही क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। वह लोकतंत्र में विश्वास रखते थे। उन्होंने ही माँचू सरकार को हटा कर चीन में गणराज्य की स्थापना की थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि वह रूसी साम्यवाद से बहुत प्रभावित थे, फिर भी वह रूसी विचारों का अंधा-धुंध अनुसरण नहीं करना चाहते थे। वह इस बात को भली-भाँति समझते थे कि रूस श्रमिकों का देश है और चीन किसानों का।

अत: उन्होंने अपनी विचारधारा को अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल बनाया। डॉ० सन-यात-सेन के राजनीतिक विचार तीन सिद्धांतों पर आधारित थे। ये सिद्धांत सन-मिन-चुई (San-min Chui) के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(1) राष्ट्रीयता:
डॉ० सन-यात-सेन राष्ट्रीयता के महत्त्व को भली-भाँति समझते थे। उनके विचारानुसार चीन को जिन वर्तमान समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उसका मूल कारण चीनी लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का अभाव है।

इसी कारण पश्चिमी देश चीन का घोर शोषण कर रहे हैं तथा जिस कारण वह विश्व का अग्रणी देश होने की अपेक्षा एक गरीब एवं कमज़ोर राष्ट्र बनकर रह गया है। अतः चीन की खुशहाली के लिए यह आवश्यक है कि चीनी लोगों में राष्ट्रवाद एवं देश-प्रेम की भावना का विकास हो। इसके लिए निम्नलिखित शर्ते आवश्यक थीं

  • चीन से माँचू वंश का अंत करना।
  • चीन को पश्चिमी राष्ट्रों के प्रभाव से मुक्त करना।
  • चीनियों में राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करना।
  • विभिन्न समुदायों के लोगों में प्रचलित मतभेदों को दूर करना।
  • चीन की स्वतंत्रता के लिए विदेशी राष्ट्रों से सहयोग प्राप्त करना।

(2) राजनीतिक लोकतंत्र (Political Democracy)-डॉ० सन-यात-सेन राजनीतिक लोकतंत्र को बहुमूल्य मानते थे। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन विदेशों में व्यतीत किया था। अतः वह लोकतंत्र के महत्त्व से अच्छी तरह परिचित थे। यही कारण था कि वह चीन में गणतंत्रीय सरकार की स्थापना के पक्ष में थे।

वह चाहते थे कि चीन में एक शक्तिशाली सरकार की स्थापना हो किंतु यह सरकार अपने कार्यों के लिए लोगों के प्रति उत्तरदायी हो। ऐसी सरकार कभी भी निरंकुश नहीं हो सकती। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को बिना किसी मतभेद के वोट डालने का अधिकार हो तथा वे अपनी सरकार को वापस बुलाने (recall) का अधिकार रखते हों।

(3) लोगों की आजीविका:
डॉ० सन-यात-सेन लोगों की आजीविका के महत्त्व को भली-भाँति समझते थे। यदि किसी देश के लोग भूखे हों तो उस देश का विकास किसी भी सूरत में संभव नहीं है। क्योंकि अधिकाँश चीनी कृषि, कार्य करते थे इसलिए उन्होंने इस ओर अपना विशेष ध्यान दिया। उन्होंने ‘जोतने वाले को जमीन दो’ (land to the tiller) का नारा दिया।

चीन की आर्थिक खुशहाली के लिए उसके यातायात के साधनों, उद्योगों एवं खानों का विकास किया जाना चाहिए। इसके चलते मजदूरों को संपूर्ण रोजगार प्राप्त होगा तथा वे देश के विकास के लिए कड़ी मेहनत करेंगे। इसके अतिरिक्त वह जमींदारों, व्यापारियों एवं पूँजीवादियों के हाथों में धन के केंद्रीयकरण (concentration of wealth) के विरुद्ध थे। वह सभी विशाल प्राइवेट उद्यमों (enterprises) का सरकार द्वारा राष्ट्रीयकरण (nationalisation) के पक्ष में थे।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि डॉ० सन-यात-सेन न केवल एक महान क्रांतिकारी थे अपितु आधुनिक चीन के निर्माता थे। उन्होंने अपने अथक प्रयासों से चीनी समाज को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की। प्रसिद्ध इतिहासकार जी० डब्ल्यू० कीटन का यह कहना ठीक है कि,”डॉक्टर सन-यात-सेन ने 40 करोड़ चीनियों के लिए वही किया जो कमाल अतातुर्क ने तुर्की के लिए किया, जो लेनिन एवं स्टालिन ने रूस के लिए किया।”

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 10.
1911 ई० की चीनी क्रांति के कारणों और उसके परिणामों का वर्णन कीजिएं।
अथवा
1911 ई० की चीनी क्रांति के क्या कारण थे?
उत्तर:
1. 1911 ई० की चीनी क्रांति के कारण थे

1. माँचुओं का पतन:
माँचू शासक मंचूरिया के रहने वाले थे। उन्होंने 1644 ई० में चीन में मिंग (Ming) वंश का अंत करके छींग (Qing) अथवा मांचू वंश की स्थापना की थी। 18वीं शताब्दी के अंत में इस वंश की शान एवं शक्ति कम होने लगी। इसका कारण यह था कि माँचू शासक अब बहुत विलासी एवं भ्रष्ट हो चुके थे।

वे अब अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करने लगे थे। अतः उन्होंने प्रशासन की ओर अपना कोई ध्यान नहीं दिया। अतः प्रजा में बहुत असंतोष फैल गया था। मांचू शासकों द्वारा विदेशियों के साथ की जाने वाली अपमानजनक संधियों ने माँचू शासकों की निर्बलता को प्रकट कर दिया था। निस्संदेह चीनी इस अपमान को सहन करने को तैयार नहीं थे।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर के० टी० एस० सराओ का यह कहना ठीक है कि, “माँचू वंश के चक्र ने जिन्हें उन्हें अपनी गौरवता के शिखर पर पहुँचाया था वह अब उन्हें तीव्रता से उनके विनाश की ओर ले जा रहा था।”

2. चीन में सुधार आंदोलन :
1894-95 ई० में जापान ने चीन को पराजित कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया था। एशिया के एक छोटे-से देश से पराजित होना चीन के लिए एक घोर अपमान की बात थी। इसके पश्चात् चीन में रियायतों के लिए संघर्ष (Battle of Concessions) आरंभ हो गया था। इसने चीन की स्थिति को अधिक दयनीय बना दिया था।

चीन को इस घोर संकट से बाहर निकालने के लिए दो छींग सुधारकों कांग यूवेई (Kang Youwei) तथा लियांग किचाउ (Liang Qichao) ने चीनी सम्राट कुआंग शू (Kuang Hsu) को कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार लागू करने का सुझाव दिया। सम्राट् ने उनके सुझावों को मानते हुए 1898 ई० में सौ दिनों तक अनेक अध्यादेश जारी किए।

इन्हें चीनी इतिहास में सुधारों के सौ दिन (Hundred Days of Reforms) कहा जाता है। इनके अधीन चीन में एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, कृषि, उद्योग, व्यापार, कानून व्यवस्था, राजस्व, रेलवे, डाक व्यवस्था, सेना एवं नौसेना, यातायात के साधनों के विकास, सिविल सर्विस में सुधार तथा संवैधानिक सरकार के गठन के बारे में उल्लेख किया गया।

यद्यपि ये सुधार बहुत प्रशंसनीय थे, किंतु इनको महारानी त्जु शी (Tzu Hsi) के विरोध के चलते लागू न किया जा सका। उसने बड़ी संख्या में सुधारकों को बंदी बना कर मौत के घाट उतार दिया। इससे चीनियों में व्यापक असंतोष फैला तथा उन्होंने ऐसे निकम्मे शासन का अंत करने का निर्णय किया। प्रसिद्ध इतिहासकार जीन चैसनिआक्स का यह कहना ठीक है कि, “वे सुधार जो कि माँचू वंश द्वारा मुक्ति के साधन के तौर पर अपनाए गए थे उनके पतन का कारण बने थे।

3. त्जु शी की मृत्यु :
त्जु शी चीन की राजनीति में सबसे प्रभावशाली महारानी थी। उसने 1861 ई० से लेकर 1908 ई० तक चीन की राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी। वह बहुत रूढ़िवादी, अहंकारी एवं षड्यंत्रकारी महिला थी। उसने अपनी चतुर कूटनीति द्वारा माँचू वंश के पतन को रोके रखा। उसने 1898 ई० में सम्राट् कुआंग शू के सुधारों को रद्द कर दिया। उसने चीनी सुधारकों का निर्ममता से दमन कर दिया। 1908 ई० में त्जु शी की मृत्यु से माँचू वंश को एक गहरा आघात लगा।

4. शिक्षा का प्रसार :
शिक्षा के प्रसार ने चीन में 1911 ई० की क्रांति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। चीन में शताब्दियों से प्राचीन शिक्षा प्रणाली प्रचलित थी। इस प्रणाली में केवल धर्मशास्त्रों के अध्ययन पर बल दिया जाता था। 1902 ई० में चीन में पीकिंग विश्वविद्यालय (Peking University) स्थापित किया गया।

1905 ई० में चीन में प्राचीन शिक्षा के अंत एवं आधुनिक शिक्षा को लागू करने की घोषणा की गई। निस्संदेह यह एक उल्लेखनीय कदम था। शिक्षा के प्रसार के कारण चीनी लोगों में एक नवचेतना का संचार, हुआ। अनेक चीनी विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से विदेशों में गए। ये विद्यार्थी पश्चिम में हुए विकास को देख कर चकित रह गए। जब ये विद्यार्थी चीन वापस लौटे तो चीन की सरकार उन्हें योग्य नौकरियाँ देने में विफल रही। इस कारण इन विद्यार्थियों में चीनी सरकार के विरुद्ध घोर निराशा फैली। अत: उन्होंने ऐसी सरकार का अंत करने का निर्णय किया।

5. आर्थिक निराशा:
चीन की दयनीय आर्थिक दशा 1911 ई० की क्रांति का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। प्रथम अफ़ीम युद्ध (1839-42 ई०) के पश्चात् यूरोपीय लुटेरों ने चीन का दरवाजा बलपूर्वक खोल दिया। उन्होंने चीन में लूट-खसूट का एक ऐसा दौर आरंभ किया जिस कारण वह कंगाली के कगार पर जा पहुँचा।

चीन की तीव्रता से बढ़ती हुई जनसंख्या ने इस स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया। खाद्यान्न की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोग भुखमरी का शिकार हो गए। इस घोर संकट के समय प्रकृति ने भी चीन में अपना कहर ढाया। 1910-11 ई० में चीन भयंकर बाढ़ की चपेट में आ गया। इस कारण जन-धन की अपार हानि हुई।

इससे चीन की अर्थव्यवस्था को एक गहरा आघात लगा। ऐसे समय में चीन की सरकार ने लोगों पर भारी कर लगा कर एक भयंकर भूल की। अतः चीन के लोगों ने माँचू सरकार को एक सबक सिखाने का निर्णय लिया। एच० एम० विनायके के शब्दों में, “इसने लोगों में माँचू वंश के विरुद्ध बेचैनी एवं असंतुष्टता को और बढ़ा दिया। 120

6. प्रेस की भूमिका:
1911 ई० की चीनी क्रांति लाने में प्रेस ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। चीन में समाचार-पत्रों का प्रकाशन 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आरंभ हुआ था। चीन में प्रकाशित होने वाले प्रारंभिक समाचार-पत्र अंग्रेजी भाषा में थे। 1870 ई० में चीनी भाषा में प्रथम समाचार-पत्र प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात् इन समाचार-पत्रों की संख्या तीव्रता से बढ़ने लगी। इन समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं ने माँचू सरकार के विरुद्ध लोगों में एक नवचेतना का संचार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

7. डॉ० सन-यात-सेन का योगदान:
डॉ० सन-यात-सेन ने 1911 ई० की चीनी क्रांति में उल्लेखनीय योगदान दिया। इस कारण उन्हें चीनी क्रांति का पिता कहा जाता है। वह इंग्लैंड, फ्राँस, अमरीका एवं जापान के हाथों से चीन की लगातार पराजयों से बहुत निराश हुए। इन पराजयों से चीन को घोर अपमान को सहन करना पड़ा। अत: डॉ० सन-यात-सेन ने चीन से अयोग्य माँचू सरकार का अंत करने का निर्णय लिया।

इस उद्देश्य से उन्होंने 1894 ई० में होनोलूलू में रिवाइव चाइना सोसायटी (Revive China Society) तथा 1905 ई० में तोक्यो में तुंग मिंग हुई (Tung Meng Hui) की स्थापना की। प्रसिद्ध इतिहासकार इमानुएल सी० वाई० सू का यह कहना ठीक है कि, “तुंग मिंग हुई की स्थापना चीनी क्रांति के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुई क्योंकि इसने क्रांति के स्वरूप एवं दिशा को परिवर्तित कर दिया था।”

वास्तव में डॉ० सन-यात-सेन ने चीनियों में एक नई जागृति लाने एवं उनमें एकता स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किए। इस दिशा में उसके समाचार-पत्र मिन पाओ (Min Pao) ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई। निस्संदेह 1911 ई० की चीनी क्रांति में डॉ० सन-यात-सेन ने जो प्रशंसनीय भूमिका निभाई उसके लिए उनका नाम चीनी इतिहास में सदैव स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।

8. तात्कालिक कारण :
चीन की सरकार द्वारा रेलों का राष्ट्रीयकरण करना 1911 ई० की चीनी क्रांति का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ। 1909 ई० में चीन की सरकार ने रेलमार्गों के निर्माण की एक विशाल योजना बनाई। यह कार्य प्रांतीय सरकारों को सौंपा गया। किंतु प्रांतीय सरकारें धन की कमी के कारण इन योजनाओं को संपूर्ण करने में विफल रहीं।

अतः मई 1911 ई० में चीनी सरकार ने रेलों का राष्ट्रीयकरण करने की घोषणा की। अत: रेलमार्गों के निर्माण का कार्य केंद्रीय सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। ऐसा होने से प्रांतीय गवर्नर केंद्रीय सरकार के विरुद्ध हो गए। वे क्रांतिकारयिों से मिल गए। उन्होंने 1911 ई० की चीनी क्रांति का बिगुल बजा दिया।

II. 1911 ई० की चीनी क्राँति की घटनाएँ।

10 अक्तूबर, 1911 ई० को हैंको में एक ऐसी घटना घटी जिसने क्राँति को तीव्र गति प्रदान कर दी। उस दिन हैंको में एक रूसी परिवार के घर एक बम-विस्फोट हुआ। यह घर क्रांतिकारियों का अड्डा था तथा वहाँ बमों का निर्माण किया जाता था। इस घटना के पश्चात् कई क्रांतिकारियों को बंदी बना लिया गया तथा चीनी सरकार के हवाले कर दिया गया।

चीन की सरकार ने कुछ क्रांतिकारियों को मृत्यु दंड दे दिया। सरकार की इस दमन नीति से उत्तेजित होकर वूचांग के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। शीघ्र ही बहुत से ग्रामीण विद्रोही भी उनसे आ मिले। इन क्रांतिकारियों नेवू-तिंग-फंग के नेतृत्व में एक सैनिक सरकार का गठन किया तथा नानकिंग को अपनी राजधानी घोषित किया। उस समय डॉ० सन-यात-सेन अमरीका में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा था।

वह 24 दिसंबर, 1910 ई० को शंघाई पहुँचा और सभी क्रांतिकारियों ने उसे अपना नेता मान लिया। डॉ० सन-यात-सेन ने सुझाव दिया कि माँचू वंश का अंत कर गणतंत्र की स्थापना की जाए। उसने गणतंत्र का राष्ट्रपति युआन-शी-काई को बनाने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे युआन-शी-काई ने स्वीकार कर लिया। डॉ० सन-यात-सेन ने राजनीतिक संन्यास लेने का मन बना लिया।

परिणामस्वरूप 12 फ़रवरी, 1912 ई० को एक शाही घोषणा की गई जिसके अनुसार सारी राजनीतिक शक्ति युआन शी-काई को सौंप दी गई। 13 फ़रवरी को वह प्रथम राष्ट्रपति नियुक्त हुआ और माँचू वंश का सदा के लिए अंत हो गया।

III.1911 ई० की चीनी क्रांति का महत्त्व

1911 ई० की क्रांति चीन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस क्रांति से चीन में तानाशाही का अंत हुआ तथा गणतंत्र स्थापित हुआ। इस क्रांति के अनेक दूरगामी परिणाम निकले। प्रसिद्ध इतिहासकार के० टी० एस० सराओ ने ठीक लिखा है कि, “1911 ई० की चीन की क्रांति आधुनिक विश्व के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। इस क्रांति ने एक युग का अंत किया एवं एक नए युग का सूत्रपात किया। 22

1. माँचू वंश का अंत :
1911 ई० की क्रांति का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि लगभग तीन सौ वर्षों से स्थापित माँचू शासन का अंत हो गया। माँचू शासक अयोग्य, भ्रष्ट तथा विलासी थे। न तो वे कुशल शासन प्रबंध दे सके तथा न ही विदेशी शक्तियों का सामना कर सके। वे अत्यंत रूढ़िवादी थे। चीन के लोग ऐसे शासन से छुटकारा पाना चाहते थे। 1911-12 ई० में चीन के लोगों ने बिना कठिनाई तथा किसी का खून बहाए इस राजवंश का अंत कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार जॉन सेल्बी के अनुसार, “1912 ई० में कागजी ड्रेगन का अंत हो गया।”

2. राजतंत्र का अंत :
1911 ई० की क्रांति ने चीन में राजतंत्र का अंत कर दिया था। 1912 ई० में युआन-शी-काई (Yuan-Shih-Kai) चीन का प्रथम राष्ट्रपति बना था। वह गणतंत्र में विश्वास नहीं रखता था। वह राजतंत्र के पक्ष में था। 1915 ई० में उसने चीन में राजतंत्र स्थापित करने का प्रयास किया किन्तु विफल रहा। 1916 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। इसके साथ ही चीन में राजतंत्रीय विचारधारा का भी अंत हो गया।

3. नए विचार:
1911 ई० की क्रांति के कारण चीन के शिक्षित नवयुवकों में नवीन विचारों का संचार हुआ। जो युवक पश्चिमी देशों से शिक्षा प्राप्त कर के आए वे नवीन विचारों से ओत-प्रोत थे । उन्होंने अपने देश में रूढ़िवादी सामाजिक ढाँचे को बदलने के प्रयास आरंभ कर दिए। अनेकों प्रसिद्ध पश्चिमी लेखकों के ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया। पश्चिमी विचारकों से प्रेरित होकर चीनी लोगों का दृष्टिकोण बदल गया।

4. माओ-त्सेतुंग का उत्थान:
1911 ई० की क्रांति के पश्चात् युआन शी-काई की गणतंत्रीय तथा चियांग-काई-शेक (Chiang-Kai-Shek) की राष्ट्रीय सरकारें बनीं। परंतु ये सरकारें भी देश को कठिनाइयों के भंवर से बाहर न निकाल सकीं। तब 1921 ई० में साम्यवादी दल की स्थापना हुई। चियांग काई-शेक की सरकार साम्यवादी दल को समाप्त करना चाहती थी।

परंतु वह असफल रही। शनैः-शनैः साम्यवादी दल का प्रभाव गाँवों में भी बढ़ने लगा। साम्यवादियों ने चीन में 1934 ई० में एक लाँग मार्च (Long March) का आयोजन किया। इस मार्च में लगभग एक लाख लोगों ने भाग लिया। इसी मार्च के दौरान प्रसिद्ध नेता माओ-त्सेतुंग का उत्थान हुआ।

5. चीन का आधुनिकीकरण :
राष्ट्रीय सरकार स्थापित करने के पश्चात् चीन धीरे-धीरे आधुनिकीकरण की ओर अग्रसर हुआ। देश में एक अस्थायी संविधान लागू किया गया। स्वास्थ्य, उद्योग, सिंचाई, संचार आदि से संबंधित कई सुधार किए गए। शिक्षा क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण सुधार हुए। मुद्रा संबंधी किए गए सुधारों से चीन में आर्थिक तथा व्यापारिक स्थिरता आई। राष्ट्रीय सरकार की विदेश नीति भी आर्थिक उत्थान में बड़ी सहायक सिद्ध हुई। निस्संदेह यह क्रांति चीन के इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 11.
कुओमीनतांग के उत्थान एवं सिद्धांतों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कुओमीनतांग चीन का एक महत्त्वपूर्ण दल था। इस दल ने चीन में राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के लिए बड़ा सराहनीय काम किया। इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस दल को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, फिर भी इस दल ने देश में राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के लिये काफी कुछ किया। सच तो यह है कि इस दल का उत्थान चीन के इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी।

1. कुओमीनतांग की स्थापना :
1905 ई० में डॉ० सन-यात-सेन ने जापान में तुंग-मिंग-हुई नामक दल की स्थापना की थी। आरंभ में यह संस्था एक गुप्त समिति के रूप में कार्य करती थी, परंतु 1911 ई० की चीनी क्रांति के समय यह दल काफी शक्तिशाली हो गया था। 1912 ई० में तुंग-मिंग-हुई तथा चीन के अन्य दलों को मिला कर एक नये राष्ट्रीय दल की स्थापना की गई। इस दल का नाम कुओमीनतांग रखा गया।

जब 1913 ई० में संसद् के चुनाव हुए तो इस दल को काफी सफलता प्राप्त हुई। यह दल युआन-शी-काई के निरंकुश शासन के विरुद्ध था। परिणामस्वरूप युआन-शी-काई से इस दल का संघर्ष आरंभ हो गया। 1921 ई० में कुओमीनतांग दल ने दक्षिणी चीन में कैंटन (Canton) सरकार की स्थापना की और डॉ० सन-यात-सेन को इस प्रकार का अध्यक्ष बनाया गया।

इसी समय इस दल के पुनर्गठन की फिर से आवश्यकता अनुभव की गई। अतः डॉ० सन-यात-सेन के प्रति निष्ठा आदि की शर्तों को हटा दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि इस दल की सदस्य संख्या में काफी वृद्धि हुई।

2. कुओमीनतांग दल के सिद्धांत :
कुओमीनतांग दल के सिद्धांतों की व्याख्या अनेक अवसरों पर भाषणों. लेखों तथा दल के घोषणा-पत्र द्वारा की गई थी। 1924 ई० में द सम्मेलन बुलाया गया था। इससे पहले दल के सिद्धांतों पर प्रकाश डालने के लिए घोषणा-पत्र प्रकाशित किया गया। दल के सिद्धांत डॉ० सन-यात-सेन के, जनता के तीन सिद्धांतों (Three Principles of the People) पर आधारित थे। इन तीन सिद्धांतों का वर्णन इस प्रकार है

(1) राष्ट्रीयता :
डॉ० सन-यात-सेन के तीन सिद्धांतों में पहला सिद्धाँत राष्ट्रीयता का था। डॉ० सन-यात-सेन का यह विश्वास था कि जनता में राष्ट्रवाद का विकास होना बहुत आवश्यक है। वह प्रायः चीनी जनता की तुलना रेत के ढेर से करते थे, जिसके प्रत्येक कण में आपसी समानता तो विद्यमान है परंतु मज़बूती का पूर्ण अभाव है।

राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करने के लिए वह साम्राज्यवाद का विरोध तथा राष्ट्रीय मोर्चों का निर्माण आवश्यक समझते थे। यह बात याद रखने योग्य है कि डॉ० सन-यात-सेन विदेश विरोधी नहीं थे। वह तो केवल विदेशी शक्तियों की साम्राज्यवादी तथा विस्तारवादी नीतियों को सहन करने के लिए तैयार नहीं थे।

(2) राजनीतिक लोकतंत्र :
डॉ० सन-यात-सेन का दूसरा सिद्धांत राजनीतिक लोकतंत्र था। वास्तव में 1911 ई० में चीन में अकस्मात् ही राज्य क्राँति हो गई थी और इस समय देश लोकतंत्र के लिए तैयार नहीं था। चीन के लोग भी लोकतंत्र को चलाने की योग्यता नहीं रखते थे, परंतु क्रांतिकारी नेता इस बात को समझ नहीं पाए थे। अतः जब वे इस बात को भली-भाँति समझ गए थे, उन्होंने लोकतंत्र की स्थापना के लिए तीन बातों का सहारा लिया।

डॉ० सन-यात-सेन चाहते थे कि देश का शासन सेना के हाथ में रहे। दूसरे स्थान पर देश में राजनीतिक चेतना जागृत करना था। तीसरी बात संवैधानिक सरकार की थी। देश का संविधान जनता द्वारा चुनी गई सभा के द्वारा तैयार किया जायेगा।

(3) जनता की जीविका :
डॉ० सन-यात-सेन का तीसरा सिद्धांत जनता की जीविका का था। डॉ० सन-यात-सेन चाहते थे कि चीन की जनता की भौतिक उन्नति हो। चीन की अधिकाँश जनता गाँवों में रहती थी और मुख्यतया कृषि पर निर्भर थी। चीन के ज़मींदारों और किसानों के बीच एक गहरी आर्थिक विषमता थी। वास्तव में देश की भौतिक उन्नति के लिए इस विषमता को दूर करना बहुत आवश्यक था।

अत: दल के कार्यक्रम में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि भूमि का समान वितरण करके किसानों की दशा सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त बड़े उद्योगों का विकास करके उनकी पूँजी पर राज्य द्वारा नियंत्रण रखा जाए। ऐसा करना इसलिए आवश्यक था ताकि विदेशी शक्तियों के द्वारा आर्थिक शोषण को रोका जा सके।

3. कुओमीनतांग में फूट:
1925 ई० में डॉ० सन-यात-सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओमीनतांग के सदस्यों में मतभेद उत्पन्न होने आरंभ हो गये। इस समय चियांग-काई-शेक (Chiang-Kai-Shek) ने सेना पर बहुत प्रभाव स्थापित कर लिया था। वह वाहम्पिया सैनिक अकादमी का डायरेक्टर (Director of Whampia Military Academy) था। सेना पर प्रभाव रखने के कारण उसका कैंटन पर काफी नियंत्रण था।

चियांग-काई-शेक ने मार्च, 1925 ई० में कैंटन में फ़ौजी कानून की घोषणा कर दी और उसने रूसी सलाहकारों को वापस लौट जाने का आदेश दे दिया। वह स्वयं कैंटन सरकार का मुखिया बन गया। अनेक कारणों से साम्यवादियों तथा चियांग-काई-शेक के अनुयायियों में विरोध उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप कुओमीनतांग दल के प्रभाव में कुछ कमी आई।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 12.
1949 ई० की चीनी क्रांति के कारण तथा परिणाम बताएँ।
अथवा
1949 ई० की चीन की क्रांति के क्या कारण थे?
अथवा
1949 ई० की चीन की क्रांति के प्रभावों का वर्णन कीजिए। उत्तर

I. क्रांति के लिए उत्तरदायी कारण

1949 ई० की क्राँति अकस्मात् ही नहीं आ गई थी। इस क्रांति के बीज 1911 ई० की क्रांति के समय ही बो दिए गए थे। 1911 ई० की क्रांति के पश्चात् चीन में ऐसा घटनाक्रम चला जो इसे 1949 ई० की ओर ले गया। इन घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. 1911 ई० की क्रांति :
1949 ई० की क्रांति के मूल कारण 1911 ई० की क्रांति में ही छुपे हुए थे। 1911 ई० की क्रांति के परिणामस्वरूप चीन में माँचू वंश का अंत हुआ तथा गणतंत्र की स्थापना हुई। परंतु फिर भी राजसत्ता के लिए लगातार संघर्ष होता रहा। कई राजनीतिक दल अस्तित्व में आए। इनमें से कुओमीनतांग नामक साम्यवादी दल सब से महत्त्वपूर्ण दल के रूप में उभरा। कई विदेशी शक्तियाँ जैसे रूस और जापान भी किसी-न-किसी रूप में चीन की राजनीति को प्रभावित करती रहीं। ये सभी घटनाएँ 1949 ई० की क्रांति की आधारशिला बनीं।

2. चार मई का आंदोलन :
1919 ई० में वर्साय (Versailles) पेरिस में हुए शांति सम्मेलन में चीन को भारी निराशा हाथ लगी। शांति सम्मेलन के निर्णयों के परिणामस्वरूप चीनी लोगों में राष्ट्रीय भावना जागृत हुई। इस सम्मेलन में मित्र राष्ट्र चीन में जापान के प्रभाव को कम करने में असफल रहे थे। इस कारण चीन के लोग जापान के विरुद्ध हो गए। इस कारण 4 मई, 1919 ई० में 3000 से अधिक विद्यार्थियों तथा अध्यापकों ने पीकिंग (बीजिंग) के तियानमेन चौक (Tiananmen square) में एक भारी प्रदर्शन किया।

उन्होंने में शातंग (Shantang) पर दिए गए निर्णय की घोर आलोचना की। सरकार ने इस भीड पर नियंत्रण पाने के लिए बल प्रयोग से काम लिया। इतिहास में यह घटना ‘चार मई दिवस’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना से चीनी लोगों में एक नई चेतना का संचार हुआ तथा 1949 ई० की क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।

3. वाशिंगटन सम्मेलन :
अमरीका के प्रयासों से एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 1921-22 ई० में वाशिंगटन में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में नौ देशों ने भाग लिया। इन नौ देशों ने वचन दिया कि चीन की एकता, अखंडता तथा स्वतंत्रता बनाए रखी जाएगी। यह भी कहा गया कि चीन में सभी देशों को समान रूप से व्यापारिक सुविधाएँ दी जाएँगी तथा 1 जनवरी, 1923 ई० तक सभी विदेशी डाक एजेंसियाँ समाप्त कर दी जाएँगी।

एक संधि के अनुसार जापान ने शातुंग प्रांत में अपनी सभी रियायतें त्याग दी तथा सभी विदेशी शक्तियों ने अपनी सेनाएँ चीन से निकाल लीं। इस सम्मेलन से चीन को एक नया जीवन मिला। इस सम्मेलन के पश्चात् विदेशी शक्तियों का चीन में प्रभाव कम हो गया तथा चीन को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। परंतु फिर भी चीन की सरकार जापान की साम्राज्यवादी गतिविधियों को कम न कर सकी। चीन सरकार की यही असमर्थता 1949 ई० की क्रांति का कारण सिद्ध हुई।

4. जापान द्वारा चीन पर आक्रमण :
1 जुलाई, 1937 ई० को जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया। यह युद्ध 1945 ई० तक चला। इस आक्रमण के समय नानकिंग की सरकार तथा साम्यवादियों में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार उन्होंने मिल कर संयुक्त रूप से जापान का सामना करने का निर्णय लिया। यद्यपि इस युद्ध के दौरान चियांग-काई-शेक एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर कर सामने आया परंतु आठ वर्षों के इस लंबे युद्ध में चीन की पराजय से उसके समर्थक भी उसके शत्रु बन गए।

दूसरी ओर चियांग-काई-शेक भी साम्यवादियों को अपना शत्रु ही मानता रहा। फिर भी जापान के साथ युद्ध तथा द्वितीय महायुद्ध के दौरान साम्यवादियों का प्रभुत्व बना रहा। साम्यवादियों ने जापान द्वारा छोड़े गए क्षेत्रों पर मार्च, 1945 ई० में अपना अधिकार कर लिया।

5. चीन में गृहयुद्ध :
1945 ई० में जापान के पतन के पश्चात् जापान द्वारा छोड़े गए क्षेत्रों पर अधिकार जमाने के प्रश्न पर साम्यवादियों तथा कुओमीनतांग में आपसी होड़-सी लग गई। परिणामस्वरूप चीन में गृहयुद्ध छिड़ गया। तभी अमरीका के प्रयासों से माओ-त्सेतुंग तथा चियांग-काई-शेक आपसी बातचीत करने के लिए सहमत हो गए। अमरीका के राष्ट्रपति ने राष्ट्रवादियों तथा साम्यवादियों में समझौता करवाने के लिए अपने विशेष दूत जॉर्ज मार्शल को भेजा। उसके प्रयासों से जनवरी 1946 ई० को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

समझौते को लागू करने के लिए एक समिति का गठन किया गया जिसमें राष्ट्रीय सरकार, साम्यवादियों तथा अमरीका के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। फ़रवरी, 1946 ई० में हुए एक समझौते के अनुसार राष्ट्रीय सरकार तथा साम्यवादियों ने अपनी सेनाओं में कमी कर दी। यह निर्णय भी किया गया कि दोनों सेनाएँ संयुक्त कर दी जाएँ और प्रत्येक प्रदेश में साम्यवादियों की सेना को अल्पमत में रखा जाए। परंतु दोनों दलों में सरकार के स्वरूप के प्रश्न पर दरार पड़ गई। राष्ट्रवादी शक्तिशाली केंद्रीय सरकार के पक्ष में थे और साम्यवादी विकेंद्रीकरण के पक्ष में थे। इस प्रकार इस समस्या को न सुलझाया जा सका।

II. घटनाएँ

धीरे-धीरे साम्यवादी राष्ट्रवादियों पर हावी हो गए। 1946 ई० में राष्ट्रवादियों ने साम्यवादियों को उत्तर से खदेड़ दिया तथा वहाँ के मुख्य नगरों तथा रेलवे लाइनों पर अपना अधिकार जमा लिया। परंतु 1947 ई० में परिस्थितियाँ राष्ट्रवादियों के विरुद्ध हो गईं और साम्यवादियों ने उन्हें मंचूरिया के अधिकतर भागों से निकाल बाहर किया।

उन्होंने 1948 ई० में मुकदेन तथा 1949 ई० में तीनस्तीन और पीकिंग पर अपना अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे उनका शंघाई, तथा हैंको आदि प्रदेशों पर भी अधिकार हो गया। उन्होंने 1 अक्तूबर, 1949 ई० में कैंटन पर अधिकार कर लिया जो कि राष्ट्रीय सरकार की राजधानी थी। इस प्रकार फारमोसा और कुछ द्वीपों को छोड़ कर सारे चीन पर साम्यवादियों का अधिकार हो गया।

III. 1949 ई० की चीन की क्रांति के प्रभाव

1949 ई० की क्रांति को न केवल चीन बल्कि विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता है। इस क्राँति ने जहाँ चीन के समाज को प्रभावित किया वहाँ विश्व भी इसके प्रभावों से अछूता न रहा। इस क्राँति के महत्त्वपूर्ण प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. शक्तिशाली केंद्रीय सरकार :
1949 ई० की क्राँति से चीन में एकता स्थापित हुई। केवल फारमोसा को छोड़ कर शेष सारा देश एक केंद्रीय सरकार के अधीन लाया गया। राजनीतिक एकता के साथ-साथ सारे देश में एक प्रकार का ही शासन स्थापित किया गया। अब चीन अयोग्य तथा भ्रष्ट शासन से मुक्त हो चुका था । चीन वासी अब अपने पर गर्व कर सकते थे।

2. शाँति एवं सुरक्षा:
साम्यवादी सरकार की स्थापना से चीन में काफी समय से व्याप्त अराजकता एवं अव्यवस्था का अंत हुआ तथा पूर्ण स्थायी शाँति की स्थापना हुई। साम्यवादियों ने अपनी कुशल पुलिस व्यवस्था तथा गुप्तचर व्यवस्था से क्रांति का विरोध करने वालों तथा समाज विरोधी तत्त्वों का अंत कर दिया। इससे स्थायी शाँति की स्थापना हुई तथा लोग अपने-आप को सुरक्षित अनुभव करने लगे।

3. सामाजिक सुधार:
साम्यवादी सरकार ने अनेकों सामाजिक सुधार भी किए। उन्होंने समाज में प्रचलित कई सामाजिक बुराइयों का अंत करके महान् कार्य किया। साम्यवादी सरकार ने चीन में अफ़ीम के प्रयोग पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी। मदिरापान, वेश्यावृत्ति, जुआबाजी आदि के विरुद्ध भी कानून बनाए गए। सरकार ने स्त्रियों के उत्थान की ओर भी विशेष ध्यान दिया। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किए गए। फलस्वरूप उन्हें सदियों पश्चात् चीनी समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त हुआ।

4. ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव :
1949 ई० की चीनी क्राँति से वहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बहुत परिवर्तन आया। इस क्राँति से पूर्व छोटे किसानों की दशा बड़ी दयनीय थी तथा उनकी समस्याओं के प्रति सरकार उदासीन रहती थी। दिन भर की कड़ी मेहनत के पश्चात् भी उन्हें भर–पेट भोजन नसीब नहीं ता था। इसके विपरीत बडे-बडे जमींदार विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। 1949 ई० की क्रांति के पश्चात भमि का पुनर्विभाजन किया गया। बड़े ज़मींदारों से फालतू भूमि ले कर छोटे किसानों में बाँट दी गई। किसानों की दशा सुधारने के लिए सहकारी समितियाँ भी बनाई गईं।

प्रश्न 13.
माओ-त्सेतुंग के आरंभिक जीवन एवं सफलताओं के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग की गणना न केवल चीन अपितु विश्व के महान् व्यक्तित्वों में की जाती है। उसके आरंभिक जीवन एवं सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

I. आरंभिक जीवन

1. आरंभिक जीवन:
माओ-त्सेतुंग का जन्म 26 दिसंबर, 1893 ई० को चीन के हूनान (Hunan) प्रांत में स्थित एक छोटे से गाँव शाओ शां (Shao Shan) में हुआ था। उनके पिता का नाम माओ जेने-शुंग (Mao-Jane-Shung) था। वह एक गरीब किसान था। अतः उसे अपने जीवनयापन के लिए बहुत कठोर परिश्रम करना पड़ता था। 15 वर्ष की आयु में माओ-त्सेतुंग ने अपना घर छोड़ दिया एवं एक स्कूल में प्रवेश ले लिया।

माओ के जीवन पर कांग यूवेई एवं लियांग किचाउ नामक प्रसिद्ध चीनी सुधारकों, वाशिंगटन, रूसो, नेपोलियन, पीटर महान्, अब्राहिम लिंकन आदि के जीवन का बहुत प्रभाव पड़ा। 1911 ई० की चीनी क्राँति के समय माओ-त्सेतुंग डॉक्टर सन-यात-सेन की क्रांतिकारी सेना में सम्मिलित हुआ था। उसने माँचू वंश का पतन होते हुए अपनी आँखों से देखा था।

माओ-त्सेतुंग 1917 ई० में हुई रूसी क्राँति से भी बहुत प्रभावित हुआ था। उसे पढाई से विशेष लगाव था इसलिए उसने पीकिंग विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में नौकरी कर ली। यहाँ उसने समाजवाद से संबंधित अनेक पुस्तकों को पढ़ा। 1921 ई० में चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना हुई थी। इस समय माओ-त्सेतुंग इसका सदस्य बन गया था। शीघ्र ही वह इसके एक प्रमुख नेता बन गए।

2. लाँग मार्च 1934-35 ई०:
लाँग मार्च (लंबी यात्रा) चीन के इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। 1934 ई० में चियांग-काई-शेक जो कि साम्यवादियों को अपना कट्टर दुश्मन मानता था का विनाश करने के उद्देश्य से कियांग्सी (Kiangsi) का घेराव कर लिया। कियांग्सी उस समय साम्यवादियों का एक प्रमुख केंद्र था। इस घोर संकट के समय में माओ-त्सेतुंग ने बहुत साहस से कार्य लिया।

उसने अपने अधीन एक लाख लाल सेना (Red Army) एकत्रित की तथा वह चियांग-काई-शेक के घेराव को तोड़ते हुए लंबी यात्रा पर निकल पड़ा। यह यात्रा 16 अक्तूबर, 1934 ई० को आरंभ की गई थी। उसने शांग्सी (Shanxi) तक का 6,000 मील का कठिन सफर तय किया। यह एक बहुत ज़ोखिम भरी यात्रा थी। रास्ते में उन्हें चियांग-काई-शेक की सेना का अनेक बार सामना करना पड़ा।

उन्हें भूखे-प्यासे अनेक वनों, नदियों एवं कठिन पर्वतों को पार करना पड़ा। इनके चलते करीब 80 हज़ार माओ के सैनिक रास्ते में मृत्यु का ग्रास बन गए। 370 दिनों की लंबी यात्रा के पश्चात् 20 अक्तूबर, 1935 ई० को माओ-त्सेतुंग अपने 20 हजार सैनिकों के साथ शांग्सी पहुँचने में सफल हुआ। निस्संदेह विश्व इतिहास में इस घटना की कोई उदाहरण नहीं मिलती। प्रसिद्ध इतिहासकार इमानूएल सी० वाई० सू के अनुसार, “यह साम्यवादी पार्टी के इतिहास की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी तथा माओ की शक्ति को शिखर तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध हुई।”
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 11 iMG 2

II. माओ-त्सेतुंग की सफलताएँ

माओ-त्सेतुंग एवं साम्यवादी दल के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन में अंतत: 1 अक्तूबर, 1949 ई० को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (People’s Republic of China) की स्थापना हुई। निस्संदेह इससे चीनी इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। चीनी लोगों को एक शताब्दी के पश्चात् विदेशी शक्तियों के शोषण से मुक्ति मिली। इस अवसर पर माओ-त्सेतुंग को चीनी गणराज्य का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उसने अपने शासनकाल (1949-76 ई०) के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. राजनीतिक एकता की स्थापना:
माओ-त्सेतुंग ने सत्ता संभालने के पश्चात् अपना सर्वप्रथम विशेष ध्यान चीन में राजनीतिक एकता स्थापित करने की ओर दिया। चीन जैसे विशाल देश को एकता के सूत्र में बाँधना कोई साधारण बात नहीं थी। इसके लिए माओ-त्सेतुंग ने बल एवं कूटनीति दोनों का प्रयोग किया। इस उद्देश्य में वह काफ़ी सीमा तक सफल रहा।

2.1954ई० का संविधान:
चीन में 20 सितंबर, 1954 ई० को एक नया संविधान लागू किया गया। इसमें राष्ट्रीय जन कांग्रेस (National People’s Congress) को राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था घोषित किया गया। इसके सदस्यों की संख्या 1200 रखी गई। इनका चुनाव 4 वर्ष के लिए किया जाता था। इसका अधिवेशन प्रतिवर्ष बुलाया जाता था। अध्यक्ष को देश का राष्ट्राध्यक्ष (Head of the State) घोषित किया गया। इस पद पर माओ-त्सेतुंग नियुक्त हुए।

उन्हें विशाल अधिकार दिए गए। संविधान द्वारा साम्यवादी दल को सर्वोच्च स्थान दिया गया। राज्य के सभी प्रमुख पद साम्यवादी दल के नेताओं को दिए गए। चाऊ एनलाई (Zhou Enlai) को देश का प्रथम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। संविधान में नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों एवं न्याय व्यवस्था पर भी विस्तृत प्रकाश डाला गया है।

3. आर्थिक प्रगति:
माओ-त्सेतुंग ने चीन की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाए। उसने विदेशी पूँजी एवं उनके द्वारा स्थापित कारखानों को अपने नियंत्रण में ले लिया। दसरा सरकार ने छोटे उद्योगों को संरक्षण प्रदान करके उन्हें प्रोत्साहित किया। उसने श्रमिकों की दशा सुधारने के उद्देश्य से उनकी मजदूरी बढ़ा दी।

उसने मुद्रा संबंधी कार्यों तथा ऋण के संचालन के लिए 1950 ई० बैंक ऑफ़ चाइना (People’s Bank of China) की स्थापना की उसने चीन में आर्थिक विकास के उद्देश्य से चीन की सरकार ने रूस की सरकार से सहायता प्राप्त की। उसने चीन में विशाल उद्योगों की स्थापना के उद्देश्य से 1953 ई० में प्रथम पँचवर्षीय योजना आरंभ की।

4. लंबी छलाँग वाला आंदोलन :
1958 ई० में चीन में लंबी छलाँग वाला आंदोलन चलाया गया। इसका उद्देश्य चीन में औद्योगीकरण की प्रक्रिया में तीव्रता लाना था। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चीन में कम्यून्स (Communes) की स्थापना की गई। 1958 ई० के अंत तक चीन में ऐसे 26,000 कम्यून्स की स्थापना की जा चुकी थी। प्रत्येक कम्यून में लगभग 5,000 परिवार होते थे। इनके अपने खेत एवं कारखाने आदि होते थे।

प्रत्येक कम्यून उत्पादन, वितरण एवं खपत आदि पर नज़र रखता था। यद्यपि सरकार द्वारा लगातार इस आंदोलन की सफलता की घोषणा की गई किंतु वास्तविकता यह थी कि यह विफल रहा। लीऊ शाओछी (Liu Shaochi) एवं तंग शीयाओफींग (Deng Xiaoping) नामक नेताओं ने कम्यून प्रथा को बदलने का प्रयास किया क्योंकि ये कुशलता से काम नहीं कर रही थीं।

अत: 1959 ई० में इस आंदोलन को वापस ले लिया गया। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० डब्ल्यूक हाल का यह कहना ठीक है कि, “लंबी छलाँग वाला आंदोलन विफल रहा तथा इसने अपने पीछे आर्थिक महामंदी तथा भारी मानव दुःखों को छोड़ा।”

5. शिक्षा का प्रसार :
माओ-त्सेतुंग शिक्षा के महत्त्व को अच्छी प्रकार से जानता था। अतः उसने शिक्षा के प्रसार के लिए उल्लेखनीय कार्य किए। इस उद्देश्य से उसने संपूर्ण चीन में अनेक स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों की स्थापना की। प्रारंभिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया। किसानों एवं मजदूरों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया।

चीन में तकनीकी शिक्षा पर अधिक बल दिया गया ताकि विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् बेरोज़गार न रहें। इसलिए पाठ्यक्रम एवं पुस्तकों में आवश्यक परिवर्तन किए गए।

6. स्त्रियों की स्थिति में सुधार:
1949 ई० से पूर्व चीन में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित किया गया था। माओ-त्सेतुंग के शासनकाल में स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए गए। प्रथम, उन्हें भूमि की स्वामिनी बना दिया गया। अतः उन्हें अपनी जीविका के लिए पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था।

दूसरा, चीन के संविधान के अनुसार स्त्रियों को पुरुषों के बराबर सभी प्रकार के अधिकार दिए गए। तीसरा, 1950 ई० के विवाह कानून के अनुसार एक विवाह की प्रथा प्रचलित की गई। तलाक का अधिकार दोनों पति एवं पत्नी को समान रूप से दिया गया। चीन में वेश्यावृत्ति का उन्मूलन कर दिया गया। राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर स्त्रियों को नियुक्त किया गया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन की स्त्रियों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ।

7. महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति :
माओ-त्सेतुंग चीन में एक वर्गहीन समाज की स्थापना करने में विफल रहा। अतः सरकार के विरोधियों ने उसकी आलोचना करनी आरंभ कर दी। माओ इसे सहन करने को तैयार नहीं था। अतः उसने अपने विरोधियों का सफाया करने के उद्देश्य से 1966 ई० में महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्राँति को आरंभ किया।

इसके अधीन रेड गाईस (लाल रक्षक) का गठन किया गया। इसमें छात्रों एवं सैनिकों को भर्ती किया गया। उन्होंने पुरानी संस्कृति, पुराने रिवाजों एवं पुरानी आदतों के खिलाफ एक ज़ोरदार आंदोलन आरंभ किया। सभी माओ विरोधियों का निर्ममतापूर्वक दमन किया गया। उन्हें उनके पदों से हटा दिया गया। शीघ्र ही सांस्कृतिक क्राँति ने एक उग्र रूप धारण कर लिया। इससे संपूर्ण चीन में अराजकता फैल गई। इसके बावजूद इसे 1976 ई० में माओ-त्सेतुंग की मृत्यु तक जारी रखा गया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 14.
जापान एवं चीन में आधुनिकता के अपनाए गए मार्गों का संक्षिप्त वर्णन करें। क्या इनमें कोई अंतर है?
उत्तर:
जापान एवं चीन ने आधुनिकता के अलग-अलग मार्ग अपनाए। इन मार्गों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. जापान द्वारा अपनाया गया मार्ग:
जापान ने 19वीं शताब्दी तक चीन की तरह पश्चिमी देशों के प्रति तटस्थता की नीति अपनाई थी। उसने विदेशियों के साथ कोई संपर्क नहीं रखा था। 1853 ई० में अमरीका के कॉमोडोर मैथ्यू पेरी के जापान आगमन से जापान के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इस समय जापान ने अमरीका के साथ राजनीतिक एवं व्यापारिक संबंध स्थापित करने का निर्णय किया। अतः 1854 ई० में कॉमोडोर मैथ्यू पेरी एवं जापान की सरकार के मध्य कानागावा की संधि हो गई।

इस संधि के अनुसार जापान ने शीमोदा (Shimoda) एवं हाकोदाते (Hakodate) नामक दो बंदरगाहों को अमरीका के जहाजों के लिए खोल दिया। शीमोदा में अमरीका के वाणिज्य दूत को रहने की अनुमति दे दी गई। जापान ने अमरीका के साथ सबसे अच्छे राष्ट्र जैसा व्यवहार करने का वचन दिया।

अमरीका के पदचिन्हों पर चलते हुए हालैंड, ब्रिटेन, रूस एवं फ्राँस ने भी जापान के साथ संधियाँ कर ली तथा वे सभी विशेषाधिकार प्राप्त कर लिए जो जापान ने अमरीका को दिए थे। जापान ने इन पश्चिमी देशों के साथ ये संधियाँ अपनी इच्छा एवं बराबरी के आधार पर की थीं। इन संधियों द्वारा जापान पश्चिमी देशों का ज्ञान प्राप्त कर विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहता था।

जापान में आधुनिकीकरण का नेतृत्व कुलीन वर्ग ने किया। इनके अधीन जापान ने एक उग्र राष्ट्रवाद (aggressive nationalism) को जन्म दिया। उन्होंने शोषणकारी सत्ता (repressive regime) को जारी रखा। उन्होंने लोकतंत्र की माँग को कुचल दिया तथा विरोध के स्वर को उठने नहीं दिया। जापान ने सैन्यवादियों के प्रभाव के चलते एक औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की। इस कारण उसे अनेक युद्धों का सामना करना पड़ा। इसके चलते उसके विकास में बाधा आई।

जापान के आधुनिकीकरण में उसकी सांस्कृतिक परंपराओं ने उल्लेखनीय योगदान दिया। इनका उपयोग नए रचनात्मक ढंग से किया गया। मेज़ी काल में विद्यार्थियों को यूरोपीय एवं अमरीकी प्रथाओं के अनुरूप नए विषयों को पढ़ाया जाने लगा। किंतु इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि जापानी निष्ठावान नागरिक बनें। अत: जापान में नैतिक शास्त्र को पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया।

इसमें सम्राट् के प्रति वफ़ादारी पर विशेष बल दिया जाता था। जापान के लोगों ने रोज़मर्रा की जिंदगी में भी केवल पश्चिमी समाजों की अंधाधुंध नकल नहीं की अपितु उन्होंने देशी एवं विदेशी को मिलाया। इसका उदाहरण जापानी लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी में आए बदलावों से लगाया जा सकता है।

2. चीन द्वारा अपनाया गया मार्ग:
चीन का आधुनिकीकरण का सफर जापान से काफी भिन्न था। चीन ने पश्चिमी देशों से अपनी दूरी बनाए रखी। परिणामस्वरूप पश्चिमी देशों को जब अफ़ीम के युद्धों के पश्चात् चीन की वास्तविक कमजोरी का ज्ञान हुआ तो अनेक देश लूट की होड़ में सम्मिलित हो गए। इसके चलते चीनी लोगों को अनेक कष्टों को सहन करना पड़ा। प्राकृतिक त्रासदियों ने लोगों के दुःखों को और बढ़ा दिया।

1949 ई० में चीन में साम्यवादी दल के सत्ता में आने से वहाँ एक नए युग का श्रीगणेश हुआ। इसने चीन में राजनीतिक एकता स्थापित की। चीनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से विशेष पग उठाए गए। साम्यवादी दल एवं उसके समर्थकों ने परंपरा का अंत करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी। उनका विश्वास था कि परंपरा के कारण ही जनसाधारण गरीबी में जकड़ा हुआ है एवं देश अविकसित है। इस कारण ही स्त्रियों की दशा दयनीय है। अतः साम्यवादी दल ने शिक्षा में अनिवार्य बदलाव किए ताकि लोगों के दृष्टिकोण में आवश्यक परिवर्तन आए।

उन्होंने स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से उन्हें अनेक अधिकार दिए। चीन में वेश्यावृति का उन्मूलन कर दिया गया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन में आज स्त्रियाँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। आज चीनी समाज में पुनः असमानताएँ उभर रही हैं तथा परंपराएँ पुनर्जीवित होने लगी हैं। अतः चीन की आज सबसे बड़ी चुनौती इन समस्याओं से निपटने की है।

क्रम संख्या
Table

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जापान की भौगोलिक विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
जापान प्रशांत महासागर की गोद में बसा हुआ पूर्वी एशिया का एक महान् देश है। इसे विश्व का एक अत्यंत सुंदर एवं रमणीय देश माना जाता है। इसका कारण यह है यहाँ की जलवायु बहुत स्वच्छ है। यहाँ वर्षा काफी होती है। यहाँ जंगलों, नदियों, झीलों एवं पर्वतों की बहुतायत है। जापान 3000 से अधिक द्वीपों से मिलकर बना है। इनमें से अधिकांश द्वीप छोटे हैं।

जापान के चार द्वीप होश, क्यूश, शिकोकू तथा होकाइदो प्रमुख हैं। इन द्वीपों में होंशू सबसे बड़ा है तथा जापान का केंद्र है। यहाँ जापान की राजधानी एदो (आधुनिक तोक्यो) सहित कुछ अन्य प्रसिद्ध नगर स्थित हैं। क्यूशू द्वीप चीन के निकट स्थित होने के कारण यह सर्वप्रथम यूरोप के संपर्क में आया।

प्रश्न 2.
शोगुन कौन थे ? उनकी सफलताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शोगुन जापान के सम्राट् के प्रधान सेनापति थे। 1603 ई० में तोकुगावा वंश के लोगों ने शोगुन पद पर अधिकार कर लिया था। वह इस पद पर 1867 ई० तक कायम रहे। इस समय के दौरान उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। उन्होंने अपने विरोधियों को पराजित कर जापान में कानून व्यवस्था को लागू किया। उन्हेंने दैम्यों पर कड़ा नियंत्रण रखा तथा उन्हें शक्तिशाली न होने दिया।

उन्होंने प्रमुख शहरों एवं खादानों पर भी नियंत्रण बनाए रखा। उन्होंने योद्धा वर्ग जिसे समुराई कहा जाता था को विशेष सुविधाएँ प्रदान की। उन्होंने कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किसानों से हथियार वापस ले लिये। उन्होंने भूमि की उत्पादन शक्ति के आधार पर भू-राजस्व निर्धारित किया।

प्रश्न 3.
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी कौन था ? उसके जापान आगमन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
1852 ई० में अमरीका ने कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापान की सरकार के साथ एक समझौता करने के लिए भेजा। इसका उद्देश्य अमरीका एवं जापान के मध्य राजनीतिक एवं व्यापारिक संबंध स्थापित करना था। पेरी जापान की सरकार के साथ 31 मार्च, 1854 ई० को कानागावा की संधि करने में सफल हो गया। इस संधि के अनुसार जापान की दो बंदरगाहों शीमोदा एवं हाकोदाटे को अमरीका के लिए खोल दिया गया।

शीमोदा में ” अमरीका के वाणिज्य दूत को रहने की अनुमति दी गई। जापान ने अमरीका के साथ बहुत अच्छे राष्ट्र जैसा व्यवहार करने का वचन दिया। विदेशियों के प्रवेश से जापान में स्थिति ने विस्फोटक रूप धारण कर लिया। शोगुन इस स्थिति को अपने नियंत्रण में लाने में विफल रहे। अत: उन्हें अपने पद को त्यागना पड़ा।

प्रश्न 4.
मेजी पुनर्स्थापना से पहले की वे अहम घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को संभव किया ?
उत्तर:
(1) 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में शहरों के तीव्र विकास से व्यापार एवं वाणिज्य को बहत बल मिला। इससे व्यापारी वर्ग बहुत धनी हुआ। इस वर्ग ने जापानी कला एवं साहित्य को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

(2) तोकुगावा काल में जापान के लोगों में शिक्षा का काफी प्रचलन था। अनेक लोग केवल लेखन द्वारा ही अपनी जीविका चलाते थे। पुस्तकों का प्रकाशन बड़े स्तर पर किया जाता था। 18वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों की अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का जापानी में अनुवाद किया गया। इससे जापान के लोगों को पश्चिम के ज्ञान के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त हुई।

(3) तोकुगावा काल में जापान एक धनी देश था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जापान चीन से रेशम तथा भारत से वस्त्र आदि विलासी वस्तुओं का आयात करता था। इसके बदले वह सोना एवं चाँदी देता था। इसका जापानी अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। इस कारण तोकुगावा को इन कीमती वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। उन्होंने रेशम के आयात को कम करने के उद्देश्य से 16वीं शताब्दी में निशिजन में रेशम उद्योग की स्थापना की।

प्रश्न 5.
मेजी शासनकाल की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी ?
उत्तर:
(1) मेजी सरकार की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता जापान में सामंती प्रथा का अंत करना था। मेजी, सरकार ने 1871 ई० में जापान में सामंती प्रथा के अंत की घोषणा की। इस प्रथा के अंत से जापान आधुनिकीकरण की दिशा की ओर अग्रसर हुआ।

(2) मेजी पुनर्स्थापना के पश्चात् जापान में उल्लेखनीय शिक्षा सुधार किए गए। इससे पूर्व शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार केवल समाज के उच्च वर्ग को ही प्राप्त था। जापान में 1871 ई० में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इसके पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तीव्रता से प्रगति हुई।

(3) मेजी काल में सेना को शक्तिशाली बनाने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। 1872 ई. में 20 वर्ष से अधिक नौजवानों के लिए सैनिक सेवा को अनिवार्य कर दिया गया। नौसेना को भी अधिक शक्तिशाली बनाया गया।

(4) जापान में उद्योगों के विस्तार की ओर सरकार ने अपना विशेष ध्यान दिया। इस उद्देश्य से 1870 ई० में जापान में उद्योग मंत्रालय की स्थापना की गई। इस मंत्रालय की स्थापना जापानी उद्योगों के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

(5) मेज़ी काल में कृषि क्षेत्र में भी प्रशंसनीय सुधार किए गए। सामंती प्रथा का अंत हो जाने से किसानों की स्थिति पहले की अपेक्षा अच्छी हो गई।

(6) मेज़ी काल की एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि 1889 ई० में एक नए संविधान को लागू करना था। इस संविधान के अनुसार सम्राट् को सर्वोच्च सत्ता सौंपी गई। उसे कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे।

प्रश्न 6.
मेज़ी शासनकाल में शिक्षा के क्षेत्र में हुए उल्लेखनीय सुधार बताएँ।
उत्तर:
मेजी पुनर्स्थापना के पश्चात् जापान में उल्लेखनीय शिक्षा सुधार किए गए। जापान में 1871 ई० में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इसके पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तीव्रता से प्रगति हुई। संपूर्ण जापान में अनेक स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना की गई। 6 वर्ष के सभी बालक-बालिकाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया। 1877 ई० में जापान में तोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। तकनीकी शिक्षा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। पश्चिम की प्रसिद्ध पुस्तकों का जापानी भाषा में अनुवाद किया गया । स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित किया गया। 1901 ई० में जापानी महिला विश्वविद्यालय की स्थापना इस दिशा में एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

प्रश्न 7.
मेज़ी काल के मुख्य आर्थिक सुधारों पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
(1) औद्योगिक विकास-जापान में उद्योगों के विस्तार की ओर सरकार ने अपना विशेष ध्यान दिया। इस उद्देश्य से 1870 ई० में जापान में उद्योग मंत्रालय की स्थापना की गई। इस मंत्रालय की स्थापना जापानी उद्योगों के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुई। सरकार ने भारी उद्योगों के विकास के लिए पूँजीपतियों को प्रोत्साहित किया। अतः जापान में शीघ्र ही अनेक नए कारखाने स्थापित हुए। इनमें लोहा-इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, रेशम उद्योग, जहाज़ उद्योग एवं शस्त्र उद्योग प्रसिद्ध थे।

(2) कृषि सुधार-मेज़ी काल में कृषि क्षेत्र में भी प्रशंसनीय सुधार किए गए। सामंती प्रथा का अंत हो जाने से किसानों की स्थिति पहले की अपेक्षा अच्छी हो गई। 1872 ई० में सरकार के एक आदेश द्वारा किसानों को उस भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया। किसानों से बेगार लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। किसानों को कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ प्रदान की गई। उन्हें उत्तम किस्म के बीज दिए गए। पशुओं की उत्तम नस्ल का प्रबंध किया गया। किसानों से अब अनाज की अपेक्षा नकद भू-राजस्व लिया जाने लगा। उन्हें कृषि के पुराने ढंगों की अपेक्षा आधुनिक ढंग अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।

(3) कुछ अन्य सुधार-जापान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से मेज़ी काल में कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। सर्वप्रथम यातायात के साधनों का विकास किया गया। 1870-72 ई० में जापान में तोक्यो एवं योकोहामा के मध्य प्रथम रेल लाइन बिछाई गई। जहाज़ निर्माण के कार्य में भी उल्लेखनीय प्रगति की गई। द्वितीय, मुद्रा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। तीसरा, 1872 ई० में जापान में बैंकिंग प्रणाली को आरंभ किया गया। 1882 ई० में बैंक ऑफ जापान की स्थापना की गई।

प्रश्न 8.
मेज़ी संविधान की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
मेज़ी काल की एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि 1889 ई० में एक नए संविधान को लागू करना था। इस संविधान के अनुसार सम्राट को सर्वोच्च सत्ता सौंपी गई। उसे कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। संपूर्ण सेना उसके अधीन थी। उसे किसी भी देश से युद्ध अथवा संधि करने का अधिकार दिया गया था। वह डायट (संसद्) के अधिवेशन को बुला सकता था तथा उसे भंग भी कर सकता था। वह सभी मंत्रियों की नियुक्ति करता था तथा वे अपने कार्यों के लिए उसके प्रति उत्तरदायी होते थे।

केवल सम्राट् ही मंत्रियों को बर्खास्त कर सकता था। डायट का अधिवेशन प्रत्येक वर्ष तीन माह के लिए बुलाया जाता था। इसमें सदस्यों को बहस करने का अधिकार प्राप्त था। सम्राट् डायट की अनुमति के बिना लोगों पर नए कर नहीं लगा सकता था। नए संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए थे। इसके अनुसार उन्हें भाषण देने, लिखने, एकत्र होने, संगठन बनाने एवं किसी भी धर्म को अपनाने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। सभी नागरिकों को कानून के सामने बराबर माना जाता था।

प्रश्न 9.
जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोज़मर्रा की जिंदगी में किस तरह बदलाव आए ? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मेज़ी शासनकाल में जापानियों की रोज़मर्रा की जिंदगी में अनेक महत्त्वपूर्ण बदलाव आए। मेज़ी काल से पूर्व जापान में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन था। मेज़ी काल में एकल परिवार का प्रचलन बढ़ने लगा। इसमें पति, पत्नी एवं उनके बच्चे रहते थे। अतः वे नए घरों जिसे जापानी में होमु कहते थे में रहने लगे।

वे घरेलू उत्पादों के लिए बिजली से चलने वाले कुकर, माँस एवं मछली भूनने के लिए अमरीकी भूनक तथा ब्रेड सेंकने के लिए टोस्टर का प्रयोग करने लगे। जापानियों में अब पश्चिमी वेशभूषा का प्रचलन बढ़ गया। वे अब सूट एवं हैट डालने लगे। औरतों के लिबास में भी परिवर्तन आ गया। वे अब सौंदर्य वृद्धि की ओर विशेष ध्यान देने लगीं। परस्पर अभिवादन के लिए हाथ मिलाने का प्रचलन लोकप्रिय हो गया। मनोरंजन के नए साधनों का विकास हुआ। लोगों की सुविधा के लिए विशाल डिपार्टमैंट स्टोर बनने लगे। 1899 ई० में जापान में सिनेमा का प्रचलन आरंभ हुआ।

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प्रश्न 10.
1894-95 ई० के चीन-जापान के युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे ?
उत्तर:
(1) रूस के कोरिया में बढ़ते हुए प्रभाव के कारण जापान को चिंता हुई। जापान ने स्वयं वहाँ अपना आधिपत्य स्थापित करने के प्रयास तीव्र कर दिए।

(2) कोरिया की आंतरिक स्थिति बड़ी दयनीय थी। वह एक निर्बल देश था। उस समय कोरिया में अशांति फैली हुई थी तथा अव्यवस्था व्याप्त थी। जापान को हर समय भय लगा रहता था कि कोई अन्य देश कोरिया पर अपना अधिकार न कर ले। चीन भी अपने वंशानुगत अधिकार के कारण किसी अन्य देश के कोरिया में हस्तक्षेप को सहन नहीं कर सकता था।

(3) कोरिया में जापान के बढ़ रहे प्रभाव को देखकर चीन बहुत चिंतित हो गया। जापान के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से उसने विदेशी शक्तियों को कोरिया में व्यापार करने के प्रयासों में अपना समर्थन दिया।

(4) चीन-जापान यद्ध के कारणों में एक कारण कोरिया में जापान के आर्थिक हित भी थे। अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए वह कोरिया की ओर ललचाई दृष्टि से देख रहा था।

(5) कोरिया में ‘तोंगहाक’ संप्रदाय द्वारा किया गया विद्रोह चीन-जापान युद्ध का तत्कालीन कारण बना। इस संप्रदाय के लोग विदेशियों को पसंद नहीं करते थे। कोरिया सरकार इस संप्रदाय के विरुद्ध थी तथा उसने एक, अध्यादेश द्वारा उसकी सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया। जापानी सेनाओं ने कोरिया के राजा को बंदी बना लिया। इस प्रकार 1 अगस्त, 1894 ई० को यह युद्ध आरंभ हुआ।

प्रश्न 11.
शिमोनोसेकी की संधि क्यों व कब हुई ? इसके क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:
शिमोनोसेकी की संधि 17 अप्रैल, 1895 ई० को चीन एवं जापान के मध्य हुई। इस संधि की मुख्य धाराएँ अग्रलिखित अनुसार थीं

  • चीन ने कोरिया को एक पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
  • चीन ने पोर्ट आर्थर, फारमोसा, पेस्काडोरस तथा लियाओतुंग जापान को दे दिए।
  • चीन ने माना कि वह युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में जापान को 2 करोड़ तायल देगा।
  • चीन जापान को सर्वाधिक प्रिय देश स्वीकार करेगा।
  • चीन जापान के व्यापार के लिए अपनी चार बंदरगाहें शांसी, सो चाऊ, चुंग-किंग तथा हंग चाओ खोलेगा।
  • जब तक चीन युद्ध की क्षतिपूर्ति की राशि जापान को नहीं चुकाएगा उसकी वी-हाई-वी नामक बंदरगाह जापान के पास रहेगी।

शिमोनोसेकी की संधि के कागजों पर अभी स्याही भी नहीं सूखी थी कि उसके 6 दिन पश्चात् ही फ्राँस, रूस तथा जर्मनी ने जापान को कहा कि वह लियाओतुंग प्रायद्वीप चीन को लौटा दे। विवश होकर जापान ने शिमोनोसेकी की संधि में संशोधन करना मान लिया। उसने लियाओतुंग प्रायद्वीप चीन को वापस कर दिया।

प्रश्न 12.
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध के कोई चार प्रमुख प्रभाव बताएँ।
उत्तर:
(1) जापान की प्रतिष्ठा में वृद्धि-जापान एशिया का एक छोटा सा देश था तथा चीन सबसे बड़ा देश था। फिर भी जापान ने चीन को पराजित कर दिया। इस युद्ध में विजय से जापान की प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए। सभी यूरोपीय शक्तियों को विश्वास था कि जापान पराजित होगा। परंतु उसकी विजय ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। परिणामस्वरूप उसकी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई।

(2) चीन की लूट आरंभ-जापान के हाथों पराजित होने से चीन की दुर्बलता सारे विश्व के आगे प्रदर्शित हो गई। इस कारण यूरोपीय शक्तियों की मनोवृत्ति में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। पहले पश्चिमी देशों ने चीन से कई प्रकार की रियायतें प्राप्त की हुई थीं। परंतु अब वे उसके साम्राज्य का विभाजन चाहने लगीं। अतः ये सभी देश चीन की लूट में जापान के भागीदार बनने के लिए तैयार हो गए।

(3) आंग्ल-जापानी समझौते की आधारशिला-चीन-जापान युद्ध के परिणामस्वरूप आंग्ल-जापानी समझौत (1902 ई०) की नींव रखी गई। जब जापान इस युद्ध में विजयी हो रहा था तो इंग्लैंड के समाचार-पत्रों ने इसकी बहुत प्रशंसा की। उनके अनुसार इंग्लैंड और जापान के हित सामान्य थे। अतः वे जापान को भविष्य का उपयोगी मित्र मानने लरो । जापान भी इंग्लैंड से मित्रता करना चाहता था। इस प्रकार ये दोनों देश एक-दूसरे के निकट आए तथा 1902 ई० में एक समझौता किया।

(4) जापान-रूस शत्रता-शिमोनोसेकी की संधि के पश्चात रूस जापान के विरुद्ध हो गया। उसने फ्राँस तथा जर्मनी के साथ मिल कर जापान पर दबाव डाला कि वह लियाओतुंग प्रायद्वीय चीन को वापस कर दे। इससे जापान रूस से नाराज़ हो गया। इसके अतिरिक्त चीन-जापान युद्ध के पश्चात् जापान भी रूस के समान दूर-पूर्व में एक शक्ति के रूप में उभरा। दोनों देश महत्त्वाकांक्षी थे और यही महत्त्वाकांक्षा उन्हें 1904-05 के युद्ध की ओर ले गई।

प्रश्न 13.
रूस-जापान युद्ध 1904-1905 के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(1) 1894-95 ई० में हुए चीन-जापान युद्ध में जापान ने चीन को पराजित करके एक शानदार विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध के पश्चात् हुई शिमोनोसेकी की संधि के अनुसार चीन ने अपने कुछ क्षेत्र जापान को दिए थे। इन प्रदेशों में एक लियाओतुंग प्रदेश भी था। उस संधि के कुछ दिनों पश्चात् ही रूस ने जापान पर दबाव डाला कि वह लियाओतुंग का प्रदेश चीन को वापस कर दे।

(2) चीन में हुए रियायतों के लिए संघर्ष में रूस सब से महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ प्राप्त करने में सफल रहा था। उसने 1898 ई० में लियाओतुंग का प्रदेश भी चीन से पट्टे पर ले लिया था। रूस की इस कार्यवाही से जापान भड़क उठा था।

(3) मंचूरिया भी रूस-जापान युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना। मंचूरिया चीन के उत्तरी भाग में स्थित था तथा ये दोनों देश उसमें रुचि रखते थे। उसने मंचूरिया में रेलवे लाइनें बिछाईं। अत: जापान ने रूस को एक सबक सिखाने का निर्णय किया।

(4) 1902 ई० में जापान तथा इंग्लैंड ने एक गठबंधन किया। इसके अधीन दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि चीन और कोरिया में अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए एक-दूसरे को सहयोग देंगे। इंग्लैंड का इस आश्वासन से जापान को प्रोत्साहन मिला और उसने रूस के प्रति कठोर नीति अपनानी आरंभ कर दी।

(5) जापान रूस की विस्तारवादी नीति से बड़ा चिंतित था। वह कोरिया तथा मंचूरिया के प्रश्न पर रूस से कोई समझौता करना चाहता था। अंततः दोनों के मध्य 10 फरवरी, 1904 ई० को युद्ध आरंभ हो गया।

प्रश्न 14.
जापान में सैन्यवाद के उत्थान के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(1) जापान में सैन्यवादियों को एक के बाद एक सफलता प्राप्त होती गई जिसके कारण वे महत्त्वाकांक्षी हो गए। वे पूरे महाद्वीप पर नियंत्रण करना चाहते थे।

(2) बहुत-से पुराने नेता सैन्यवादियों की गतिविधियों को पसंद नहीं करते थे। वास्तव में वे सैन्यवादियों पर अंकुश रखते थे। परंतु ज्यों-ज्यों समय गुज़रता गया वे बूढ़े हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कारण सैन्यवादियों पर जो उनका अंकुश था वह समाप्त हो गया और वे अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हो गये।

(3) जापान में नवयुवक अधिकारियों की एक नई श्रेणी का उदय हुआ। ये नवयुवक अधिकारी अपनी शानदार विजयों द्वारा समाज में अपना स्थान बनाना चाहते थे। वे जापानी सैन्यवाद में विश्वास करते थे और शक्ति का प्रयोग करना अपना अधिकार समझते थे।

(4) सैन्यवादियों के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जापान में बहुत-सी गुप्त समितियों की स्थापना की गई थी। इनके उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार है-

(5) ये समितियाँ चाहती थीं कि जापान सारी दुनिया पर शासन करे। यदि ऐसा न हो सका तो जापान को समस्त देशों को विजय करना चाहिए।

(6) ये समितियाँ उदारवाद तथा प्रजातंत्र के विरुद्ध थीं। अतः इनका एक अन्य उद्देश्य पाश्चात्य देशों के सिद्धांतों का विरोध करना था।

(7) इन समितियों के सदस्य नाजीवाद तथा फासिस्टवाद में विश्वास रखते थे। वे फासिस्ट लोगों तथा नाजियों की भाँति राज्य को व्यक्ति से ऊपर मानते थे।

प्रश्न 15.
द्वितीय विश्व युद्ध का जापान पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
दूसरे विश्व युद्ध के अंत में जापान की पराजय हुई। इस पराजय के परिणामस्वरूप जापान पूर्व का अधिपति बनने के प्रयत्न में असफल रहा। युद्ध में पराजित होकर जापान का प्रदेश संकुचित होकर 1894-95 ई० की स्थिति में आ गया अर्थात् जितना कि यह चीन और जापान के युद्ध के पश्चात् बना था। जापान के पास केवल चार मुख्य द्वीप तथा कुछ छोटे द्वीप रह गए।

कोरिया को अस्थायी तौर पर रूस तथा अमरीका ने बाँट लिया। फार्मोसा चीन को लौटा दिया गया। मित्र देशों की सेना ने जनरल मेकार्थर के अधीन जापान पर अधिकार कर लिया। जापान में शासन प्रबंध के लिए एक नई सरकार स्थापित की गई, परंतु वास्तविक सत्ता मेकार्थर के हाथ में थी, क्योंकि वह मित्र शक्तियों की ओर से सर्वोच्च कमांडर था। जापानी सरकार भी साथ चलती रही तथा इसी सरकार की सहायता से जनरल मेकार्थर अपनी नीति चलाता था। वास्तव में जापान अपनी आंतरिक तथा बाह्य स्वतंत्रता का बहुत बड़ा भाग खो चुका था।

प्रश्न 16.
1960 ई० के पश्चात् जापान की प्रगति के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1960 ई० के दशक से जापान प्रगति के पथ पर लगातार आगे बढ़ता रहा। 1964 ई० में जापान की राजधानी तोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया। इन खेलों के आयोजन में जापान ने 3 करोड़ डालर खर्च किए। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस समय तक जापान की अर्थव्यवस्था काफी सुदृढ़ हो चुकी थी।

इसी वर्ष जापान में शिंकासेन नामक 200 मील प्रति घंटे की रफ़तार वाली रेलगाड़ी आरंभ हुई। इसे बुलेट ट्रेन के नाम से भी जाना जाता है। इससे जापान की नयी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए विकास की जानकारी प्राप्त होती है। 1960 ई० के दशक में जापान में नागरिक समाज आंदोलन आरंभ हुआ। इस आंदोलन के आरंभ होने का कारण यह था कि औद्योगीकरण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण पर काफी हानिकारक प्रभाव पड़ रहे थे।

1960 ई० के दशक में मिनामाता में पारे के जहर के फैलने तथा 1970 ई० के दशक में हवा के प्रदूषण से नयी समस्याएँ उत्पन्न हुईं। इन समस्याओं से निपटने के लिए जापान की सरकार ने 1990 ई० के दशक में कछ कठोर पग उठाए।

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प्रश्न 17.
प्रथम अफ़ीम युद्ध पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
प्रथम अफ़ीम युद्ध चीन तथा ब्रिटेन के मध्य लड़ा गया था। यह युद्ध 1839 ई० से लेकर 1842 ई० तक चला। ब्रिटेन यूरोप की एक प्रमुख साम्राज्यवादी शक्ति था तथा वह चीन में अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। 1800 ई० में उसने चीन में भारत से लाकर अफ़ीम बेचनी आरंभ कर दी थी। 1839 ई० तक उसका अफ़ीम का व्यापार बहुत बढ़ गया था।

अफ़ीम के इस व्यापार के कारण चीनियों का नैतिक पतन होने लगा तथा उसकी सैनिक शक्ति शिथिल पड़ने लगी। इससे चिंतित होकर चीन के शासकों ने अफ़ीम के व्यापार पर अंकुश लगाने के लिए आदेश जारी किए। परंतु ब्रिटेन ने अपना व्यापार जारी रखा। 1839 ई० में चीनियों ने ब्रिटेन के अफ़ीम से भरे जहाजों को समुद्र में डुबो दिया। परिणामस्वरूप चीन तथा ब्रिटेन में प्रथम अफ़ीम युद्ध आरंभ हो गया। यह युद्ध 29 अगस्त, 1842 ई० को हुई नानकिंग की संधि के साथ समाप्त हुआ। इस संधि के अनुसार

  • चीन को युद्ध हर्जाने के रूप में 21 मिलियन डालर की राशि ब्रिटेन को देनी पड़ी।
  • हांगकांग का द्वीप सदा के लिए ब्रिटेन को मिल गया।
  • कैंटन के अतिरिक्त फूचाओ, अमोय, निंगपो तथा शंघाई नामक बंदरगाहें भी ब्रिटेन के लिए खोल दी गईं।

प्रश्न 18.
नानकिंग की संधि कब हुई ? इसकी प्रमुख धाराएँ क्या थी ?
उत्तर:
अंग्रेजों तथा चीनियों के बीच नानकिंग की संधि 29 अगस्त, 1842 ई० को हुई। इस संधि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • हांगकांग का द्वीप सदा के लिए ब्रिटेन को सौंप दिया गया।
  • ब्रिटिश लोगों को पाँच बंदरगाहों-कैंटन, अमोय, फूचाओ, निंगपो और शंघाई में बसने तथा व्यापार करने का अधिकार दे दिया गया।
  • क्षतिपूर्ति के रूप में चीन ने दो करोड़ दस लाख डालर अंग्रेजों को देना स्वीकार किया।
  • को-होंग को भंग कर दिया गया। परिणामस्वरूप अब ब्रिटिश व्यापारी किसी भी चीनी व्यापारी के साथ स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकता था।
  • आयात और निर्यात पर एक समान तथा उदार दर स्वीकार कर ली गई।
  • चीनियों ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि अंग्रेज़ों के मुकद्दमे अंग्रेज़ी कानून के अनुसार तथा उन्हीं की अदालतों में चलेंगे।
  • यह भी शर्त रखी गई कि चीन अन्य देशों के लोगों को जो भी सुविधाएँ देगा वे अंग्रेजों को भी प्राप्त होंगी।

प्रश्न 19.
द्वितीय अफ़ीम युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:
1856 ई० में घटने वाली लोर्चा ऐरो घटना द्वितीय अफ़ीम युद्ध का तात्कालिक कारण बनी। 8 अक्तूबर, 1856 ई० में चीनी अधिकारियों ने लोर्चा ऐरो नामक जहाज़ को पकड़ लिया तथा उसके 14 नाविकों में से 12 को बंदी बना लिया। यह जहाज एक चीनी व्यापारी का था तथा हांगकांग में पंजीकृत हुआ था। इस जहाज़ पर ब्रिटिश झंडा लगा हुआ था।

हैरी पार्कस नामक अंग्रेज़ अधिकारी ने चीन की इस कार्यवाही की निंदा की तथा बंदी बनाए गए व्यक्तियों को छोड़ने के लिए कहा। उसने यह भी कहा कि चीनी अधिकारी इस घटना के लिए माफी माँगें तथा भविष्य में ऐसी घटना न होने का आश्वासन दें। चीनी अधिकारियों ने अपनी कार्यवाही को उचित ठहराया तथा अंग्रेजों की माँग मानने से इंकार कर दिया।

इसके पश्चात् अंग्रेज़ अधिकारियों ने अपनी मांगों के लिए 48 घंटे का समय दिया। चीनी अधिकारियों ने बंदी बनाए गए सभी 12 नाविकों को छोड़ दिया परंतु बाकी माँगें मानने से इंकार कर दिया। चीनियों के इस व्यवहार से अंग्रेज़ रुष्ट हो गए तथा उन्होंने युद्ध का बिगुल बजा दिया।

प्रश्न 20.
तीनस्तीन की संधि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
तीनस्तीन की संधि पर 26 जून, 1858 ई० को चीन, इंग्लैंड तथा फ्रांस की सरकारों ने हस्ताक्षर किए। इस संधि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • चीन की 11 नई बंदरगाहों को विदेशी देशों के साथ व्यापार तथा निवास के लिए खोल दिया गया।
  • चीनी सरकार ने पश्चिमी देशों को अफ़ीम के व्यापार की अनुमति प्रदान कर दी तथा अफ़ीम के व्यापार को वैध घोषित कर दिया।
  • चीन की ‘यांगत्सी’ नदी में पश्चिमी देशों के जहाजों को आने-जाने की अनुमति दे दी गई।
  • चीन की सरकार ने यह भी स्वीकार कर लिया कि पश्चिमी देश चीन में अपने राजदूत नियुक्त कर सकेंगे।
  • ईसाई धर्म के प्रचारकों को यह अधिकार दे दिया गया कि वे चीन में स्वतंत्रतापूर्वक घम-फिर कर अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं और किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुकूल ईसाई बना सकते हैं।
  • पश्चिमी शक्तियों के राज्य-क्षेत्रातीत अधिकारों को अधिक विस्तृत और व्यापक कर दिया गया। इसके अनुसार उन्हें चीन में निवास करने और व्यापार करने की सुविधा दी गई।

प्रश्न 21.
आधुनिक चीन का संस्थापक किसे माना जाता है ? उसके सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
डॉ० सन-यात-सेन के तीन सिद्धांत क्या थे ?
उत्तर:
डॉ० सन-यात-सेन को आधुनिक चीन का संस्थापक माना जाता है। उसके राजनीतिक विचार तीन सिद्धांतों पर आधारित थे। उनका पहला सिद्धांत ‘राष्ट्रीयता’ का था। डॉ० सन-यात-सेन जानते थे कि चीन में राजनीतिक एकता का पूरी तरह अभाव है। जनता में स्थानीय तथा प्रांतीय भावनाएँ बड़ी प्रबल थीं।

इसी कारण साम्राज्यवादी शक्तियाँ चीन में अपना प्रभाव स्थापित कर रही थीं। अतः डॉ० सन-यात-सेन ने चीन में राष्ट्रीय भावनाएँ जगाने का प्रयत्न किया। राजनीतिक लोकतंत्र’ उनका दूसरा सिद्धांत था। वह चीन में लोकतंत्र स्थापित करना चाहते थे। लोकतंत्र की सफलता के लिये वह देश की सैनिक शक्ति को दृढ़ बनाना आवश्यक समझते थे।

इसके पश्चात् वह राजनीतिक चेतना का प्रसार करना चाहते थे। अंत में वह लोकतंत्रीय सरकार का निर्माण करना चाहते थे। उनका तीसरा सिद्धांत ‘जनता की आजीविका’ था। आजीविका के प्रश्न को हल करने के लिए वह चीन में भूमि का समान वितरण चाहते थे।

प्रश्न 22.
‘कुओमीनतांग’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
1905 ई० में डॉ० सन-यात-सेन ने तुंग-मिंग-हुई नामक दल की स्थापना की थी। इस दल की स्थापना जापान में की गई थी। 1911 ई० में चीनी क्रांति के समय यह दल काफी शक्तिशाली हो गया था। वास्तव में मांचू वंश के साथ जो समझौता किया गया था, उसकी शर्ते भी इस दल के द्वारा तय की गई थीं।

परंतु गणतंत्र की स्थापना के पश्चात् जब युआन शी-काई ने निरंकुश शासन स्थापित करने का प्रयत्न किया तो डॉ० सन-यात-सेन ने छोटे-छोटे दलों को मिला कर एक नया राष्ट्रीय दल बनाने का निर्णय किया। अत: 1912 ई० में तुंग-मेंग हुई तथा चीन के अन्य दलों को मिलाकर एक नये राष्ट्रीय दल की स्थापना की गई।

इस दल का नाम कुओमीनतांग रखा गया। जब 1913 ई० में संसद् के चुनाव हुए तो इस दल को काफी सफलता प्राप्त हुई। यह दल युआन-शी-काई के निरंकुश शासन के विरुद्ध था। परिणामस्वरूप युआन-शी-काई से इस दल का संघर्ष आरंभ हो गया।

प्रश्न 23.
1911 ई० की चीनी क्रांति के कारणों का संक्षिप्त वर्णन करो। .
उत्तर:
1911 ई० की चीनी क्रांति का महत्त्वपूर्ण कारण उसकी बढ़ती हुई जनसंख्या थी। इससे भोजन की समस्या गंभीर होती जा रही थी। इसके अतिरिक्त 1910-1911 ई० में भयंकर बाढ़ों के कारण लाखों लोगों की जानें गईं तथा देश में भुखमरी फैल गई। इससे लोगों में असंतोष बढ़ गया जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह की आग भड़क उठी।

क्राँति का दूसरा कारण ‘प्रवासी चीनियों का योगदान’ था। विदेशों में रहने वाले चीनी लोग काफी धनी हो गए थे। वे चीन में सत्ता परिवर्तन के पक्ष में थे। अत: उन्होंने क्रांतिकारी संस्थाओं की खूब सहायता की। माँचू सरकार के नये कर भी क्रांति लाने में सहायक सिद्ध हुए। इन करों के लगने से चीन में क्रांति की भावनाएँ भड़क उठीं।

जापान की उन्नति भी चीनी क्रांति का एक कारण था। चीन के लोग माँचू सरकार को समाप्त करके जापान की भाँति उन्नति करना चाहते थे। चीन में यातायात के साधनों का सुधार होने के कारण चीनी क्रांति के विचारों के प्रसार को काफी बल मिला। अतः यह भी क्रांति का एक अन्य कारण था।

प्रश्न 24.
1911 ई० की चीनी क्रांति का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
(1) 1911 ई० की क्रांति का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि लगभग तीन सौ वर्षों से स्थापित माँचू शासन का अंत हो गया।

(2) माँचू शासन के अंत के पश्चात् युआन-शी-काई चीन का प्रथम राष्ट्रपति बना।

(3) 1911 ई० की क्रांति के कारण चीन के शिक्षित नवयुवकों में नवीन विचारों का संचार हुआ। पश्चिमी विचारकों से प्रेरित होकर चीनी लोगों का दृष्टिकोण बदल गया।

(4) राष्ट्रीय सरकार स्थापित करने के पश्चात् चीन धीरे-धीरे आधुनिकीकरण की ओर अग्रसर हुआ।

(5) चीन के लोगों को शताब्दियों से हो रहे शोषण तथा दुर्व्यवहार से छुटकारा मिला तथा आत्म-सम्मान की प्राप्ति हुई। निस्संदेह यह क्राँति चीन के इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 25.
चार मई आंदोलन क्या था ?
उत्तर:
1919 ई० में वर्साय पेरिस में हुए शाँति सम्मेलन में चीन को भारी निराशा हाथ लगी। शाँति सम्मेलन के निर्णयों के परिणामस्वरूप चीनी लोगों में राष्ट्रीय भावना जागृत हुई। इस सम्मेलन में मित्र राष्ट्र चीन में जापान के प्रभाव को कम करने में असफल रहे थे। इस कारण चीन के लोग जापान के विरुद्ध हो गए।

इस कारण 4 मई, 1919 ई० में 3000 से अधिक विद्यार्थियों तथा अध्यापकों ने पीकिंग (बीजिंग) के तियानमेन चौक में एक भारी प्रदर्शन किया। उन्होंने वर्साय में शातुंग पर दिए गए निर्णय की घोर आलोचना की। सरकार ने इस भीड़ पर नियंत्रण पाने के लिए बल प्रयोग से काम लिया। इतिहास में यह घटना ‘चार मई दिवस’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना से चीनी लोगों में एक नई चेतना का संचार हुआ तथा 1949 ई० की क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 26.
1949 ई० की चीनी क्रांति के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1949 ई० की चीनी क्रांति के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित थे

(1) शक्तिशाली केंद्रीय सरकार-1949 ई० की क्राँति से चीन में एकता स्थापित हुई। केवल फारमोसा को छोड़ कर शेष सारा देश एक केंद्रीय सरकार के अधीन लाया गया। राजनीतिक एकता के साथ-साथ सारे देश में एक प्रकार का ही शासन स्थापित किया गया। अब चीन अयोग्य तथा भ्रष्ट शासन से मुक्त हो चुका था । चीन वासी अब अपने पर गर्व कर सकते थे। इस प्रकार माँचू शासन के अंत के पश्चात् प्रथम बार चीनी लोगों को शक्तिशाली केंद्रीय सरकार मिली।

(2) शाँति एवं सुरक्षा–साम्यवादी सरकार की स्थापना से चीन में काफी समय से व्याप्त अराजकता एवं अव्यवस्था का अंत हुआ तथा पूर्ण स्थायी शाँति की स्थापना हुई। साम्यवादियों ने अपनी कुशल पुलिस व्यवस्था तथा गुप्तचर व्यवस्था से क्राँति का विरोध करने वालों तथा समाज विरोधी तत्त्वों का अंत कर दिया। इससे स्थायी शाँति की स्थापना हुई तथा लोग अपने-आप को सुरक्षित अनुभव करने लगे।

(3) सामाजिक सुधार-साम्यवादी सरकार ने अनेकों सामाजिक सुधार भी किए। उन्होंने समाज में प्रचलित कई सामाजिक बुराइयों का अंत करके महान् कार्य किया। साम्यवादी सरकार ने चीन में अफ़ीम के प्रयोग पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी। मदिरापान, वेश्यावृत्ति, जुआबाज़ी आदि के विरुद्ध भी कानून बनाए गए। सरकार ने स्त्रियों के उत्थान की ओर भी ध्यान दिया। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किए गए। फलस्वरूप उन्हें सदियों पश्चात् चीनी समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त हुआ।

(4) ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव-1949 ई० की चीनी क्राँति से वहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बहुत परिवर्तन आया। इस क्राँति से पूर्व छोटे किसानों की दशा बड़ी दयनीय थी। दिन भर की कड़ी मेहनत के पश्चात् भी उन्हें भर-पेट भोजन नसीब नहीं होता था। इसके विपरीत बड़े-बड़े ज़मींदार विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। 1949 ई० की क्रांति के पश्चात् भूमि का पुनर्विभाजन किया गया। बड़े ज़मींदारों से फालतू भूमि ले कर छोटे किसानों में बाँट दी गई। किसानों की दशा सुधारने के लिए सहकारी समितियाँ भी बनाई गईं।

प्रश्न 27.
माओ-त्सेतुंग के जीवन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग को आधुनिक चीन का निर्माता स्वीकार किया गया है। वह किसानों और श्रमिकों का प्रबल समर्थक था। साम्यवाद में उसका दृढ़ विश्वास था। माओ का जन्म 1893 ई० में हूनान प्रांत में स्थित शाओ-शां नामक गाँव में हुआ। उसके पिता का नाम माओ-जेने-शुंग था।माओ को वाशिंगटन, रूसो और नेपोलियन की जीवन गाथाओं ने बहुत प्रभावित किया था।

उसकी सहानुभूति किसानों के साथ थी और उसने उनके लिए काम करने का निश्चय किया। उसने अकाल से भूखी मर रही जनता पर शासकों द्वारा अत्याचार को देखा। 1917 ई० की रूसी क्रांति का युवा माओ पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह उग्र क्रांतिकारी बन गया। उसने लाल सेना का गठन किया। 1930 ई० में वह किसानों और मजदूरों की सभा का सभापति बन गया और भूमिगत होकर काम करने लगा।

उसके सिर पर 25 लाख डालर का ईनाम था। उसने 1934 ई० में लाल सेना की सहायता से च्यांग-काई-शेक की विशाल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध आरंभ कर दिया। पाँचवें आक्रमण में उस पर इतना दबाव पड़ा कि उसने ‘महाप्रस्थान’ की योजना बनाई। माओ ने अपना संघर्ष जारी रखा। आखिर 1949 ई० में च्यांग-काई-शेक को चीन से भाग कर फारमोसा में शरण लेनी पड़ी। माओ-त्से-तुंग को चीन की सरकार का अध्यक्ष चुना गया। 1976 ई० में अपनी मृत्यु तक वह इसी पद पर बना रहा।

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प्रश्न 28.
लाँग मार्च पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
लाँग मार्च (लंबी यात्रा) चीन के इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। 1934 ई० में चियांग-काई-शेक जो कि साम्यवादियों को अपना कट्टर दुश्मन मानता था का विनाश करने के उद्देश्य से कियांग्सी का घेराव कर लिया। राष्ट्रवादी सेना के घेराव के कारण साम्यवादी एक गहन संकट में फंस गए। उन्हें घोर कष्टों को सहन करना पड़ा।

इस घोर संकट के समय में माओ-त्सेतुंग ने बहुत साहस से कार्य लिया। उसने अपने अधीन एक लाख लाल सेना एकत्रित की तथा वह चियांग-काई-शेक के घेराव को तोड़ते हुए लंबी यात्रा पर निकल पड़ा। यह यात्रा 16 अक्तूबर, 1934 ई० को आरंभ की गई थी। उसने शांग्सी तक का 6,000 मील का कठिन सफर तय किया। यह एक बहुत जोखिम भरी यात्रा थी।

रास्ते में उन्हें चियांग-काई-शेक की सेना का अनेक बार सामना करना पड़ा। उन्हें भूखे-प्यासे अनेक वनों, नदियों एवं कठिन पर्वतों को पार करना पड़ा। इनके चलते करीब 80 हज़ार माओ के सैनिक रास्ते में मृत्यु का ग्रास बन गए। 370 दिनों की लंबी यात्रा के पश्चात् 20 अक्तूबर, 1935 ई० को माओ-त्सेतुंग अपने 20 हजार सैनिकों के साथ शांग्सी पहुँचने में सफल हुआ। निस्संदेह विश्व इतिहास में इस घटना की कोई उदाहरण नहीं मिलती।

प्रश्न 29.
‘लंबी छलाँग वाला आंदोलन’ से क्या अभिप्राय है ? क्या यह सफल रहा ?
उत्तर:
चीन में लंबी छलाँग वाला आंदोलन 1958 ई० में चलाया गया। इसका उद्देश्य चीन में औद्योगीकरण की प्रक्रिया में तीव्रता लाना था। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चीन में कम्यून्स की स्थापना की गई। इनके अपने खेत एवं कारखाने आदि होते थे। प्रत्येक कम्यून उत्पादन, वितरण एवं खपत आदि पर नज़र रखता था।

यद्यपि सरकार द्वारा लगातार इस आंदोलन की सफलता की घोषणा की गई किंतु वास्तविकता यह थी कि यह विफल रहा। लीऊ शाओछी एवं तंग शीयाओफींग नामक नेताओं ने कम्यून प्रथा को बदलने का प्रयास किया क्योंकि ये कुशलता से काम नहीं कर रही थीं। इसके अनेक कारण थे। प्रथम, इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था नहीं की गई थी। दूसरा, कम्यून्स द्वारा तैयार किया गया इस्पात निम्नकोटि का था। तीसरा, रूस से मतभेदों के चलते उसने चीन को आर्थिक सहायता देनी बंद कर दी थी। अतः 1959 ई० में इस आंदोलन को वापस ले लिया गया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन चीन का सबसे महानतम इतिहासकार कौन था ?
उत्तर:
प्राचीन चीन का सबसे महानतम इतिहासकार सिमा छियन था।

प्रश्न 2.
नाइतो कोनन कौन था ?
उत्तर:
नाइतो कोनन चीनी इतिहास पर काम करने वाला एक प्रमुख जापानी विद्वान् था। उसने अपने काम में पश्चिमी इतिहास लेखन की नई तकनीकों एवं अपने पत्रकारिता के अनुभवों का प्रयोग किया। उसने 1907 ई० में क्योतो विश्वविद्यालय में प्राच्य अध्ययन का विभाग बनाने में सहायता की।

प्रश्न 3.
उगते हुए सूर्य का देश किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
उगते हुए सूर्य का देश जापान को कहा जाता है।

प्रश्न 4.
जापानी लोगों का मुख्य भोजन क्या है ?
उत्तर:
जापानी लोगों का मुख्य भोजन चावल एवं मछली है।

प्रश्न 5.2,228 Comments in moderation
चीन एवं जापान के कोई दो भौतिक अंतर बताएँ।
उत्तर:

  • चीन एक विशाल महाद्वीप है जबकि जापान एक छोटा द्वीप है।
  • चीन भूकंप क्षेत्र में नहीं आता जबकि जापान में अक्सर भूकंप आते रहते हैं।

प्रश्न 6.
शोगन कौन थे ?
उत्तर:
शोगुन जापान में सैद्धांतिक रूप से राजा के नाम पर शासन चलाते थे। वे दैम्यों पर, प्रमुख शहरों एवं खाद्यानों पर नियंत्रण रखते थे। कोई भी व्यक्ति शोगुन की अनुमति के बिना सम्राट से नहीं मिल सकता था। उनके अधीन बड़ी संख्या में सैनिक होते थे।

प्रश्न 7.
सामुराई कौन थे ?
उत्तर:
सामुराई जापान के यौद्धा वर्ग से संबंधित थे। वे शोगुन एवं दैम्यों को प्रशासन चलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते थे। वे अपनी वफ़ादारी, वीरता एवं सख्त जीवन के लिए प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 8.
दैम्यो कौन थे ?
उत्तर:
दैम्यो जापान में अपने अधीन क्षेत्र के मुखिया होते थे। वे अपने क्षेत्र में लगभग स्वतंत्र होते थे। उन्हें अपने अधीन क्षेत्र के लोगों को मृत्यु दंड देने का अधिकार था। वे सैनिक सेवा करते थे। वे लोक भलाई के कार्य भी करते थे।

प्रश्न 9.
16वीं एवं 17वीं शताब्दी में जापान को एक धनी देश क्यों समझा जाता था ?
उत्तर:
16वीं एवं 17वीं शताब्दी में जापान को एक धनी देश इसलिए समझा जाता था क्योंकि वह चीन से रेशम और भारत से कपड़े का आयात करता था। जापान इसका मूल्य सोने में चुकाता था। अत: जापान को एक धनी देश समझा जाता था।

प्रश्न 10.
जापान का कौन-सा रेशम दुनिया भर में बेहतरीन रेशम माना जाता था ?
उत्तर:
जापान का निशिजन रेशम दुनिया भर में बेहतरीन रेशम माना जाता था।

प्रश्न 11.
जापान में शोगुनों के पतन के लिए उत्तरदायी कोई दो महत्त्वपूर्ण कारण लिखें।
उत्तर:

  • शोगुनों की पक्षपातपूर्ण नीति।
  • किसानों की दयनीय स्थिति।

प्रश्न 12.
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी कौन था ?
उत्तर:
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी एक अमरीकी नाविक था। उसे अमरीकी सरकार ने 24 नवंबर, 1852 ई० को जापानी सरकार से बातचीत के लिए भेजा था। वह 3 जुलाई, 1853 ई० को जापान की बंदरगाह योकोहामा पहुँचने में सफल रहा। वह 1854 ई० में जापान सरकार के साथ एक संधि करने में सफल हुआ।

प्रश्न 13.
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी की जापान के साथ 1854 ई० में हुई कानागावा संधि की कोई दो शर्ते लिखें।
उत्तर:

  • जापान की दो बंदरगाहों शीमोदा एवं हाकोदाटे को अमरीका के जहाजों के लिए खोल दिया गया।
  • शीमोदा में अमरीका के वाणिज्य दूत को रहने की अनुमति मिल गई।

प्रश्न 14.
मेज़ी पुनर्स्थापना से क्या भाव है ?
अथवा
मेज़ी पुनर्स्थापना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1868 ई० में जापान में तोकुगावा वंश के शासन का अंत कर दिया गया एवं मुत्सुहितो जापान का नया सम्राट् बना। मुत्सुहितो ने मेज़ी नामक उपाधि को धारण किया। मेज़ी का अर्थ है प्रबुद्ध शासन। जापान के इतिहास में इस घटना को मेज़ी पुनर्स्थापना कहा जाता है।

प्रश्न 15.
मुत्सुहितो जापान का सम्राट् कब बना ? वह इस पद पर कब तक रहा ?
उत्तर:

  • मुत्सुहितो जापान का सम्राट् 1868 ई० में बना।
  • वह इस पद पर 1912 ई० तक रहा।

प्रश्न 16.
फुकोकु क्योहे से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जापान में मेज़ी काल में सरकार ने फुकोकु क्योहे का नारा दिया। इससे अभिप्राय था समृद्ध देश एवं मज़बूत सेना।

प्रश्न 17.
मेज़ी काल में शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कोई दो सुधार बताएँ।
उत्तर:

  • शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए एक अलग शिक्षा विभाग की स्थापना की गई।
  • प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया।

प्रश्न 18.
मेजी काल के कोई दो सैनिक सुधार लिखें।
उत्तर:

  • सेना को अधिक शक्तिशाली बनाया गया।
  • 20 वर्ष से अधिक आयु वाले नौजवानों के लिए सेना में कार्य करना अनिवार्य कर दिया गया।

प्रश्न 19.
मेजी काल में अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण करने के उद्देश्य से कौन-से दो पग उठाए गए ?
उत्तर:

  • उद्योगों के विकास के लिए यूरोप से मशीनों का आयात किया गया।
  • मजदूरों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया।

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प्रश्न 20.
जायबात्सु से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जायबात्सु जापान की बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ थीं। इन पर जापान के विशिष्ट परिवारों का नियंत्रण था। इनका प्रभुत्व दूसरे विश्व युद्ध के बाद तक अर्थव्यवस्था पर बना रहा।

प्रश्न 21.
मेज़ी संविधान को कब लागू किया गया था ? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • मेज़ी संविधान को 1889 ई० में लागू किया गया था।
  • इसमें सम्राट् के अधिकारों की बढ़ौतरी की गई।
  • सम्राट् डायट के अधिवेशन को बुला सकता था एवं उसे भंग कर सकता था।

प्रश्न 22.
जापान की प्रथम रेलवे लाइन कब तथा कहाँ बिछाई गई थी ?
उत्तर:
जापान की प्रथम रेलवे लाइन 1870 ई. से 1872 ई० के मध्य तोक्यो एवं योकोहामा के मध्य बिछाई गई थी।

प्रश्न 23.
तनाका शोज़ो कौन था ?
उत्तर:
वह जापान की प्रथम संसद् जिसे डायट कहा जाता था का सदस्य था। उसने 1897 ई० में जापान में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ प्रथम आंदोलन आरंभ किया। उसका कथन था कि औद्योगिक प्रगति के लिए आम लोगों की बलि नहीं दी जानी चाहिए।

प्रश्न 24.
मेजी काल में जापानियों की रोजमर्रा जिंदगी में आए महत्त्वपूर्ण बदलाव क्या थे ?
उत्तर:

  • इस काल में एकल परिवार का प्रचलन बढ़ा।
  • त्पादों के लिए बिजली का प्रचलन बढ़ गया।
  • जापानी अब पश्चिमी वेशभूषा पहनने लगे।

प्रश्न 25.
फुकुजावा यूकिची कौन था ?
अथवा
फुकुजावा यूकिची के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
वह मेज़ी काल का एक प्रमुख बुद्धिजीवी था। उसने ‘ज्ञान के लिए प्रोत्साहन’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। उसने जापानी ज्ञान की कड़ी आलोचना की। उसका कथन था कि जापान को अपने में से एशिया को निकाल फेंकना चाहिए। इससे अभिप्राय था कि जापान को अपने एशियाई लक्षणों को छोड़ कर पश्चिमी लक्षणों को अपनाना चाहिए।

प्रश्न 26.
मियाके सेत्सुरे कौन था ?
उत्तर:
मियाके सेत्सुरे जापान का एक प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री था। उसका कथन था कि विश्व सभ्यता के हित में प्रत्येक राष्ट्र को अपने विशेष हुनर का विकास करना चाहिए। अपने को अपने देश के लिए समर्पित करना अपने को विश्व को समर्पित करने के समान है।

प्रश्न 27.
उएकी एमोरी कौन था ?
उत्तर:
उएकी एमोरी जापान में जनवादी अधिकारों के आंदोलन का नेता था। वह चाहता था कि जापान सैन्यवाद की अपेक्षा लोकतंत्र पर बल दे। वह उदारवादी शिक्षा के पक्ष में था। उसका कथन था, “व्यवस्था से ज़्यादा कीमती चीज़ है, आज़ादी।” वह फ्रांसीसी क्रांति के मानवों के प्राकृतिक अधिकार एवं जन प्रभुसत्ता का प्रशंसक था।

प्रश्न 28.
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • रूस की कोरिया में दिलचस्पी।
  • कोरिया में तोंगहाक संप्रदाय द्वारा किया गया विद्रोह।

प्रश्न 29.
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध का अंत किस संधि के साथ हुआ ? इस संधि की कोई दो धाराएँ लिखो।
उत्तर:

  • 1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध का अंत शिमोनोसेकी की संधि द्वारा हुआ।
  • चीन ने जापान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
  • चीन ने माना कि वह युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में जापान को 2 करोड़ तायल देगा।

प्रश्न 30.
1894-95 ई० के चीन-जापान यद्ध के कोई दो परिणाम लिखें।
उत्तर:

  • इसमें चीन को पराजय का सामना करना पड़ा।
  • इसमें जापान की विजय से उसके सम्मान में बहुत वृद्धि हुई।

प्रश्न 31.
रूस-जापान युद्ध कब हुआ ? इसमें कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • रूस-जापान युद्ध 1904-05 ई० में हुआ।
  • इसमें जापान विजयी रहा।

प्रश्न 32.
1904-05 ई० के रूस-जापान युद्ध के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • लियाओतुंग पर रूस ने कब्जा कर लिया था।
  • मँचूरिया पर रूस एवं जापान कब्जा करना चाहते थे।

प्रश्न 33.
पोर्टसमाउथ की संधि कब हुई ? इस संधि की कोई दो शर्ते लिखें।
उत्तर:

  • पोर्टसमाउथ की संधि 1905 ई० में हुई।
  • पोर्ट आर्थर एवं लियाओतुंग प्रायद्वीप जापान को मिल गए।
  • जापान को स्खालिन द्वीप का दक्षिण भाग प्राप्त हुआ।

प्रश्न 34.
1904-05 ई० के रूस-जापान युद्ध के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इस युद्ध में पराजय के कारण रूस की प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा।
  • इस विजय से जापान को अन्य क्षेत्रों में विजय प्राप्त करने के लिए एक नया प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 35.
जापान में सैन्यवाद के उदय के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • जापान के सैन्यवादी बहुत महत्त्वाकांक्षी हो गए थे।
  • जापानी नवयुवक जापानी सैन्यवाद में विश्वास करते थे।

प्रश्न 36.
जापान में द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमरीका ने कब तथा किन दो शहरों पर एटम बम गिराये थे ?
उत्तर:
जापान में द्वितीय विश्व युद्ध के समय 1945 ई० में अमरीका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा एवं नागासाकी पर बम गिराए थे।

प्रश्न 37:
अमरीका ने जापान पर कब-से-कब तक कब्जा किया ? इस समय दौरान जापान पर किसने शासन किया ?
उत्तर:

  • अमरीका ने जापान पर 1945 ई० से 1952 ई० तक शासन किया।
  • इस समय के दौरान जापान पर जनरल दगलस मेकार्थर ने शासन किया।

प्रश्न 38.
जापान में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहले चुनाव कब हुए ? इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता क्या थी ?
उत्तर:

  • जापान में द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद पहले चुनाव 1947 ई० में हुए।
  • इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें स्त्रियों को प्रथम बार मतदान करने का अधिकार दिया गया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 39.
अमरीका ने जापान में कौन-से चार महत्त्वपूर्ण सुधार किए ?
उत्तर:

  • उसने जापान में 1947 ई० में एक नया संविधान लागू किया।
  • उसने जापान में भारी उद्योगों को प्रोत्साहन दिया।
  • उसने जापान में आधुनिक शिक्षा को लागू किया।
  • उसने जापान का निरस्त्रीकरण किया।

प्रश्न 40.
जापान में कब तथा कहाँ प्रथम ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था.?
उत्तर:
जापान में 1964 ई० में तोक्यो में प्रथम ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था।

प्रश्न 41.
प्रथम अफ़ीम युद्ध कब एवं किनके मध्य हुआ ? इसमें कौन-विजयी रहा ?
उत्तर:

  • प्रथम अफ़ीम युद्ध 1839 ई० से 1842 ई० को इंग्लैंड एवं चीन के मध्य हुआ।
  • इसमें इंग्लैंड की विजय हुई।

प्रश्न 42.
प्रथम अफ़ीम युद्ध के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • चीनियों द्वारा यूरोपियों से किया जाने वाला घृणापूर्ण व्यवहार।
  • चीन के सम्राट् द्वारा कमिश्नर लिन की नियुक्ति।

प्रश्न 43.
प्रथम अफ़ीम युद्ध किस संधि के साथ समाप्त हुआ ? यह संधि कब हुई थी ?
उत्तर:

  • प्रथम अफ़ीम युद्ध नानकिंग की संधि के साथ समाप्त हुआ था।
  • यह संधि 1842 ई० को हुई थी।

प्रश्न 44.
नानकिंग की संधि की कोई दो शर्ते लिखें।
उत्तर:

  • हांगकांग का द्वीप ब्रिटेन को सौंपा गया।
  • ब्रिटेन के लिए पाँच चीनी बंदरगाहें व्यापार के लिए खोल दी गईं।

प्रश्न 45.
प्रथम अफ़ीम युद्ध के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इस युद्ध में पराजय के कारण चीन के सम्मान को गहरा आघात लगा।
  • इससे चीन की आर्थिक समस्याएँ बढ़ गईं।

प्रश्न 46.
चीन में ताइपिंग विद्रोह कब हुआ ? इस विद्रोह का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • चीन में ताइपिंग विद्रोह 1850-1864 ई० में हुआ था।
  • इसका उद्देश्य चीन में मिंग शासन की पुनः स्थापना करना था।

प्रश्न 47.
चीन एवं ब्रिटेन के मध्य द्वितीय अफ़ीम युद्ध कब हुआ ? इसमें कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • चीन एवं ब्रिटेन के मध्य द्वितीय अफ़ीम युद्ध 1856 ई० से 1860 ई० के मध्य लड़ा गया।
  • इसमें ब्रिटेन विजयी रहा।

प्रश्न 48.
चीन एवं ब्रिटेन के मध्य तीनस्तीन की संधि कब हुई ?
उत्तर:
चीन एवं ब्रिटेन के मध्य तीनस्तीन की संधि 1858 ई० में हुई।

प्रश्न 49.
रिवाइव चाइना सोसायटी की स्थापना कब तथा किसने की थी ?
उत्तर:
रिवाइव चाइना सोसायटी की स्थापना 1894 ई० में डॉक्टर सन-यात-सेन ने की थी।

प्रश्न 50.
रिवाइव चाइना सोसायटी के कोई दो प्रमुख उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • चीन से माँचू शासन का अंत करना।
  • चीनी समाज का पुनः निर्माण करना।

प्रश्न 51.
डॉक्टर सन-यात-सेन ने तुंग-मिंग-हुई की स्थापना कब की ? इसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • डॉक्टर सन-यात-सेन ने तुंग-मिंग-हुई की स्थापना 1905 ई० में की।
  • इसका उद्देश्य चीन में क्रांति करना था।

प्रश्न 52.
डॉक्टर सन-यात-सेन ने किन तीन सिद्धांतों का प्रचलन किया था ?
उत्तर:
डॉक्टर सन-यात-सेन ने राष्ट्रवाद, गणतंत्र एवं समाजवाद नामक तीन सिद्धांतों का प्रचलन किया।

प्रश्न 53.
1911 ई० की चीनी क्रांति के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • चीन में बढ़ती हुई समस्याएँ।
  • डॉक्टर सन-यात-सेन का योगदान।

प्रश्न 54.
1911 ई० की चीनी क्रांति के कोई दो परिणाम बताएँ ।
उत्तर:

  • इसने चीन में माँचू वंश का अंत कर दिया।
  • चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई।

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प्रश्न 55.
चीन में माँचू वंश का अंत कब हुआ एवं गणतंत्र की स्थापना किसके नेतृत्व में की गई ?
उत्तर:

  • चीन में माँचू वंश का अंत 1917 ई० में हुआ।
  • चीन में गणतंत्र की स्थापना डॉक्टर सन-यात-सेन के नेतृत्व में हुई।

प्रश्न 56.
चीन में कुओमीनतांग की स्थापना किसने तथा कब की ?
उत्तर:
चीन में कुओमीनतांग की स्थापना डॉक्टर सन-यात-सेन ने 1912 ई० में की।

प्रश्न 57.
चीन में कुओमीनतांग दल के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • चीन में शाँति स्थापित करना।
  • चीनी सेना में कड़ा अनुशासन लागू करना।

प्रश्न 58.
4 मई आंदोलन कब तथा कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
4 मई आंदोलन 1919 ई० में बीजिंग में हुआ था।

प्रश्न 59.
माओ-त्सेतुंग के जीवन पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग का जन्म 1893 ई० में चीन के हूनान प्रांत में स्थित शाओ-शां नामक गाँव में हुआ। उसने 1934-35 ई० में लाँग मार्च का नेतृत्व किया। माओ-त्सेतुंग ने नया लोकतंत्र नामक पुस्तक 1940 ई० में लिखी। उसके नेतृत्व में 1949 ई० की क्राँति हुई।

प्रश्न 60.
माओ-त्सेतुंग ने कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक तथा कब लिखी ?
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग ने नया लोकतंत्र नामक पुस्तक 1940 ई० में लिखी।

प्रश्न 61.
लाँग मार्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
साम्यवादियों द्वारा की गई नाकेबंदी के कारण माओ-त्सेतुंग ने 1934-35 ई० में लाँग मार्च का नेतृत्व किया। यह 6000 मील का लंबा सफर था। इस सफर के दौरान लोगों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 62.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार कब तथा किसके नेतृत्व में स्थापित हुई ?
उत्तर:
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार 1949 ई० में माओ-त्सेतुंग के नेतृत्व में स्थापित हुई।

प्रश्न 63.
चीन में लंबी छलाँग की घोषणा कब की गई थी ? इसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • चीन में लंबी छलाँग की घोषणा 1958 ई० में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य चीन के उद्योगों को प्रोत्साहन देना था।

प्रश्न 64.
महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्राँति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्राँति को चीन में माओ-त्सेतुंग द्वारा 1966 ई० में आरंभ किया गया था। इसका उद्देश्य चीन में प्राचीन संस्कृति को पुनः स्थापित करना एवं माओ-त्सेतुंग के विरोधियों के विरुद्ध अभियान छेड़ना था।

प्रश्न 65.
चीन में आधुनिकीकरण के लिए कब तथा किसने चार सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की ? ये चार सूत्र कौन-से थे ?
उत्तर:

  • चीन में आधुनिकीकरण के लिए 1978 ई० में तंग शीयाओफींग ने चार सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की।
  • ये चार सूत्र थे-विज्ञान, उद्योग, कृषि एवं रक्षा।

प्रश्न 66.
चियांग-काई-शेक ने ताइवान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से कौन-से दो मुख्य सुधार किए ?
उत्तर:

  • उसने कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की।
  • उसने उद्योगों के विकास पर बल दिया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन चीन का सबसे महान् इतिहासकार किसे माना जाता है ?
उत्तर:
सिमा छियन को।

प्रश्न 2.
मैटियो रिक्की कौन थे ?
उत्तर:
चीन में एक जेसूइट पादरी।

प्रश्न 3.
नाइतो कोनन कौन थे ?
उत्तर:
एक प्रसिद्ध जापानी विद्वान्।

प्रश्न 4.
जापान का सबसे बड़ा द्वीप कौन-सा है ?
उत्तर:
होशू।

प्रश्न 5.
जापान की राजधानी तोक्यो को पहले किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
एदो।

प्रश्न 6.
जापान का प्रथम सम्राट् किसे माना जाता है ?
उत्तर:
जिम्मू।

प्रश्न 7.
उगते हुए सूर्य का देश किसे माना जाता है ?
उत्तर:
जापान को।

प्रश्न 8.
जापान की प्रसिद्ध मछली कौन-सी है ?
उत्तर:
साशिमी।

प्रश्न 9.
जापान में सम्राट् किस नाम से जाने जाते थे ?
उत्तर:
मिकाडो।

प्रश्न 10.
शोगुनों के उत्थान से पूर्व जापानी सम्राट् कहाँ से शासन करते थे ?
उत्तर:
क्योतो।

प्रश्न 11.
जापान में तोकुगावा कब सत्ता में आए ?
उत्तर:
1603 ई० में।

प्रश्न 12.
सामुराई कौन थे ?
उत्तर:
योद्धा वर्ग।

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प्रश्न 13.
17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में दुनिया में सबगे अधिक जनसंख्या वाला शहर कौन सा था।
उत्तर:
एदो।

प्रश्न 14.
16वीं शताब्दी में निशिजन किस उद्योग के लिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
रेशम।

प्रश्न 15.
जापान में शोगुन पद का अं का हुआ ?
उत्तर:
1867 ई० में।

प्रश्न 16.
अमरीका का कॉमोडोर मैथ्यू पेरी जापान कब पहुँचा ?
उत्तर:
1853 ई० में।

प्रश्न 17.
जापान एवं अमरीका के मध्य कानागावा की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1854 ई० में।

प्रश्न 18.
मुत्सुहितो जापान का सम्राट् कब बना ?
उत्तर:
1868 ई० में।

प्रश्न 19.
मुत्सुहितो ने किसे जापान की राजधानी बनाया ?
उत्तर:
तोक्यो।

प्रश्न 20.
जापान में सामंती प्रथा के अंत की घोषणा कब की गई ?
उत्तर:
1871 ई० में।

प्रश्न 21.
जापान में तोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
1877 ई० में।

प्रश्न 22.
दि टेल ऑफ़ दि गेंजी का लेखक कौन था ?
उत्तर:
मुरासाकी शिकिबु।

प्रश्न 23.
फुकोकु क्योहे से क्या अभिप्राय था ?
उत्तर:
समूह देश एवं मज़बूत सेना।

प्रश्न 24.
जापान में विशिष्ट एवं धनी परिवार क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
जायबात्सु।

प्रश्न 25.
1897 ई० में जापान में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध किसने प्रथम जन आंदोलन का नेतृत्व किया था ?
उत्तर:
तनाका शोज़ो ने।

प्रश्न 26.
जापान में प्रथम आधुनिक हड़ताल कब हुई ?
उत्तर:
1886 ई० में।

प्रश्न 27.
जापान में प्रथम रेल लाइन कहाँ से कहाँ तक बिछाई गई ?
उत्तर:
तोक्यो एवं योकोहामा।

प्रश्न 28.
बैंक ऑफ़ जापान को कब खोला गया था ?
उत्तर:
1882 ई० में।

प्रश्न 29.
मेज़ी संविधान को कब लागू किया गया था ?
उत्तर:
1889 ई० में।

प्रश्न 30.
जापान में प्रथम रेडियो स्टेशन कब खुला ?
उत्तर:
1925 ई० में।

प्रश्न 31.
जापान में जनवादी अधिकारों के आंदोलन का नेता कौन था ?
उत्तर:
उएकी एमोरी।

प्रश्न 32.
‘एक गुड़िया का घर’ नामक प्रसिद्ध नाटक का लेखक कौन था ?
उत्तर:
इब्सन।

प्रश्न 33.
चीन-जापान युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1894-95 ई० में।

प्रश्न 34.
चीन-जापान के मध्य शिमोनोसेकी की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1895 ई० में।

प्रश्न 35.
रूस एवं जापान के मध्य युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1904-05 ई० में।

प्रश्न 36.
संयुक्त राज्य अमरीका ने जापान के किस शहर पर 6 अगस्त, 1945 ई० को प्रथम परमाणु बम गिराया ?
उत्तर:
हिरोशिमा पर।

प्रश्न 37.
जापान पर अमरीका का कब्जा कब से लेकर कब तक रहा ?
उत्तर:
1945 ई० से लेकर 1952 ई० तक।

प्रश्न 38.
तोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन कब किया गया ?
उत्तर:
1964 ई० में।

प्रश्न 39.
जापान में बुलेट ट्रेन को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
शिंकासेन।

प्रश्न 40.
जापान में नागरिक समाज आंदोलन का विकास कब हुआ ?
उत्तर:
1960 के दशक में।

प्रश्न 41.
चीन में पीली नदीको किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
हवांग हो।

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प्रश्न 42.
चीन की सबसे बड़ी नदी कौन-सी है ?
उत्तर:
यांग्त्सी नदी।

प्रश्न 43.
चीन के सबसे प्रमुख जातीय समूह का नाम क्या है ?
उत्तर:
हान।

प्रश्न 44.
चीन का सबसे प्रसिद्ध खाना क्या कहलाता है ?
उत्तर:
डिम सम।

प्रश्न 45.
पहला अफ़ीम युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1839-1842 ई०

प्रश्न 46.
पहला अफ़ीम युद्ध किनके मध्य हुआ ?
उत्तर:
इंग्लैंड एवं चीन।

प्रश्न 47.
नानकिंग की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1842 ई० में।

प्रश्न 48.
द्वितीय अफीम युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1856-60 ई०।

प्रश्न 49.
तीनस्तीन की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1858 ई० में।

प्रश्न 50.
आधुनिक चीन का संस्थापक किसे माना जाता है ?
उत्तर:
डॉ० सन-यात-सेन को।

प्रश्न 51.
डॉ० सन-यात-सेन ने कितने सिद्धांतों का प्रचलन किया ?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 52.
डॉ० सन-यात-सेन ने तुंग मिंग हुई की स्थापना कब की ?
उत्तर:
1905 ई० में।

प्रश्न 53.
सन-यात-सेन की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
1925 ई० में।

प्रश्न 54.
पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर:
1902 ई० में।

प्रश्न 55.
चीनी क्रांति कब हुई ?
उत्तर:
1911 ई० में।

प्रश्न 56.
चीन का प्रथम राष्ट्रपति कौन बना ?
उत्तर:
युआन-शी-काई।

प्रश्न 57.
चीन में कुओमीनतांग दल की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1921 ई० में।

प्रश्न 58.
4 मई, 1919 ई० का आंदोलन कहाँ आरंभ हुआ ?
उत्तर:
पीकिंग।

प्रश्न 59.
जापान ने चीन पर आक्रमण कब किया ?
उत्तर:
1 जुलाई, 1937 ई०।

प्रश्न 60.
चीन में लांग मार्च का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग।

प्रश्न 61.
‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1 अक्तूबर, 1919 ई०।

प्रश्न 62.
गणराज्यी चीन का प्रथम अध्यक्ष किसे नियुक्त किया गया ?
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग को।

प्रश्न 63.
गणराज्यी चीन का प्रथम प्रधानमंत्री किसे नियुक्त किया गया ?
उत्तर:
चाऊ एनलाई को।

प्रश्न 64.
पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना की स्थापना कब की गई ?
उत्तर:
1950 ई० में।

प्रश्न 65.
1958 ई० में चीन में कौन-सा आंदोलन चलाया गया ?
उत्तर:
लंबी छलाँग वाला आंदोलन।

प्रश्न 66.
तंग शीयाओफींग चीन में कब सत्ता में आया ?
उत्तर:
1976 ई० में।

प्रश्न 67.
चीन में चार आधुनिकीकरणों की घोषणा कब की गई थी ?
उत्तर:
1978 ई० में।

प्रश्न 68.
ताइवान को पहले किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
फारमोसा।

प्रश्न 69.
ताइवान की राजधानी किसे घोषित किया गया ?
उत्तर:
ताइपेइ को।

प्रश्न 70.
चियांग-काई-शेक की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
1975 ई० में।

प्रश्न 71.
ताइवान में मार्शल लॉ के अंत की घोषणा कब की गई ?
उत्तर:
1987 ई० में।

रिक्त स्थान भरिए

1. 1603 ई० में जापान में ……………… वंश की स्थापना हुई।
उत्तर:
तोकुगावा

2. मेजी पुनर्स्थापना ……………….. ई० में हुई।
उत्तर:
1868

3. ……………….. ई० में शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य किया गया।
उत्तर:
1870

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4. जापान की पहली रेल लाइन ……………….. ई० में बिछाई गई।
उत्तर:
1870

5. जापान में ……………….. ई० में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारंभ हुआ था।
उत्तर:
1872

6. जापान में सर्वप्रथम महिलाओं द्वारा आधुनिक हड़तालों का आयोजन ……………….. ई० में हुआ था।
उत्तर:
1886

7. जापान में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आंदोलन ………………. ई० में आरंभ किया गया।
उत्तर:
1897

8. जापान में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ़ प्रथम आंदोलन …………… द्वारा आरंभ किया गया।
उत्तर:
तनाको शोज़ो

9. ‘ज्ञान के लिए प्रोत्साहन’ नामक पुस्तक की रचना जापान के महान् बुद्धिजीवी ……………… द्वारा की गई __ थी।
उत्तर:
फुकुज़ावा यूकिची

10. ‘एक गुड़िया का घर’ नामक नाटक की रचना ……………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
इबसन

11. जापान में प्रथम बार ……………….. ई० में चुनाव हुए। .
उत्तर:
1946

12. जापान में ……………….. ई० में बुलेट ट्रेन चलाई गई।
उत्तर:
1964

13. जापान में प्रथम अफ़ीम युद्ध ……………….. ई० में हुआ।
उत्तर:
1839

14. दूसरा अफ़ीम युद्ध ……………… ई० में हुआ।
उत्तर:
1856

15. मांचू साम्राज्य का अंत ………………. ई० में किया गया।
उत्तर:
1911

16. आधुनिक चीन का संस्थापक ………………. को माना जाता है।
उत्तर:
सन-यात-सेन

17. कुओमिनतांग का नेता ……………….. था।
उत्तर:
चियांग काइशेक

18. पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना ……………….. ई० में की गई।
उत्तर:
1902

19. 1945 ई० में ……………….. तथा ……………….. पर बम फेंके गए।
उत्तर:
नागासाकी, हिरोशिमा

20. चीन में साम्यवादी की स्थापना ……………… ई० में हुई।
उत्तर:
1921

21. ……………… ई० में चीनी साम्यवादी पार्टी ने गृहयुद्ध में विजय प्राप्त की।
उत्तर:
1949

22. जापान व आंग्ल अमेरिका में ……………….. ई० में भयंकर युद्ध हुआ।
उत्तर:
1945

23. जापान का आधुनिकीकरण का सफर ……………… के सिद्धान्तों पर आधारित था।
उत्तर:
पूँजीवाद

24. ……………….. को प्राचीन चीन का महानतम इतिहासकार माना जाता है।
उत्तर:
सिमा छियन

25. 1907 ई० में जापान में क्योतो विश्वविद्यालय में प्राच्य अध्ययन का विभाग बनाने में ……………….. ने सर्वाधिक सहायता की।
उत्तर:
नाइतो कोनन

26. जापान द्वारा चीन से ……………… का आयात किया जाता था
उत्तर:
रेशम

27. जापान द्वारा भारत से ……………….. का आयात किया जाता था।
उत्तर:
कपड़ा

28. ……………… ई० में विदेशी व्यापार होना आरंभ हुआ था।
उत्तर:
1859

29. ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की सरकार ……………….. में कायम हुई।
उत्तर:
1949 ई०

30. चीन की पोट्सडैम उद्घोषणा ………….. ई० में की गई।
उत्तर:
1949

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. ‘नाइतो कोनन’ किस देश के रहने वाले थे ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) कनाडा
(घ) ऑस्ट्रेलिया।
उत्तर:
(ख) जापान

2. निम्नलिखित में से कौन-सा द्वीप जापान का सबसे बड़ा द्वीप है ?
(क) होंशू
(ख) क्यूशू
(ग) शिकोकू
(घ) होकाइदो।
उत्तर:
(क) होंशू

3. ‘उगते हुए सूर्य का देश’ किसे कहा जाता है ?
(क) इंडोनेशिया
(ख) जापान
(ग) कनाडा
(घ) इंग्लैंड।
उत्तर:
(ख) जापान

4. कुमे कुनीताके किस देश के रहने वाले थे ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) इंग्लैंड
(घ) फ्राँस।
उत्तर:
(ख) जापान

5. एदो किस शहर का पुराना नाम है ?
(क) पेरिस
(ख) टोकियो
(ग) सिडनी
(घ) लंदन।
उत्तर:
(ख) टोकियो

6. जापान में शोगुनों ने सत्ता को कब हथिया लिया था ?
(क) 1192 ई०
(ख) 1503 ई०
(ग) 1603 ई०
(घ) 1867 ई०।
उत्तर:
(क) 1192 ई०

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7. जापान में तोकगावा कब से लेकर कब तक सत्ता में रहे ?
(क) 1192 ई० से 1203 ई० तक
(ख) 1203 ई० से 1603 ई० तक
(ग) 1603 ई० से 1867 ई० तक
(घ) 1867 ई० से 1971 ई० तक।
उत्तर:
(ग) 1603 ई० से 1867 ई० तक

8. तोकुगावा शासनकाल में जापान की राजधानी कौन-सी थी ?
(क) ओसाका
(ख) एदो
(ग) क्योतो
(घ) तोक्यो।
उत्तर:
(ख) एदो

9. कॉमोडोर मैथ्यू पेरी जापान कब पहुँचा ?
(क) 1851 ई० में
(ख) 1852 ई० में
(ग) 1853 ई० में
(घ) 1854 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1853 ई० में

10. जापान में मेज़ी पुनस्र्थापना कब हुई ?
(क) 1853 ई० में
(ख) 1854 ई० में
(ग) 1868 ई० में
(घ) 1878 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1868 ई० में

11. जापान में मुत्सुहितो का शासनकाल क्या था ?
(क) 1192 ई० से 1603 ई० तक
(ख) 1603 ई० से 1867 ई० तक
(ग) 1868 ई० से 1902 ई० तक
(घ) 1868 ई० से 1912 ई० तक।
उत्तर:
(घ) 1868 ई० से 1912 ई० तक।

12. मेज़ी शासनकाल में किसे जापान की राजधानी घोषित किया गया ?
(क) एदो
(ख) तोक्यो
(ग) नागासाकी
(घ) क्योतो।
उत्तर:
(ख) तोक्यो

13. जापान में तोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी ?
(क) 1871 ई० में
(ख) 1875 ई० में
(ग) 1877 ई० में
(घ) 1901 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1877 ई० में

14. जापान में सैनिक सेवा को कब अनिवार्य बनाया गया था ? ।
(क) 1872 ई० में
(ख) 1876 ई० में
(ग) 1877 ई० में
(घ) 1879 ई० में।
उत्तर:
(क) 1872 ई० में

15. जापान में किसने औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध प्रथम जन आंदोलन का नेतृत्व किया ?
(क) मुत्सुहितो
(ख) कुमो कुनीताके
(ग) तनाका शोज़ो
(घ) नाइतो कोनन।
उत्तर:
(ग) तनाका शोज़ो

16. जापान की पहली रेल लाइन कब बिछाई गई थी ?
(क) 1707-09
(ख) 1763-65
(ग) 1830-32
(घ) 1870-72
उत्तर:
(घ) 1870-72

17. बैंक ऑफ़ जापान की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1872 ई० में
(ख) 1875 ई० में
(ग) 1879 ई० में
(घ) 1882 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1882 ई० में।

18. मेज़ी संविधान कब लागू किया गया था ?
(क) 1869 ई० में
(ख) 1879 ई० में
(ग) 1889 ई० में
(घ) 1892 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1889 ई० में

19. फुकुज़ावा यूकिची कौन था ?
(क) जापान का एक बुद्धिजीवी
(ख) चीन का एक बुद्धिजीवी
(ग) जापान का एक दर्शनशास्त्री
(घ) जापान का एक अधिकारी।
उत्तर:
(क) जापान का एक बुद्धिजीवी

20. जापान में पहला रेडियो स्टेशन कब खुला ?
(क) 1855 ई० में
(ख) 1885 ई० में
(ग) 1915 ई० में
(घ) 1925 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1925 ई० में।

21. चीन-जापान युद्ध कब आरंभ हुआ ?
(क) 1892 ई० में
(ख) 1893 ई० में
(ग) 1894 ई० में
(घ) 1895 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1894 ई० में

22. 1894-95 ई० का चीन-जापान युद्ध किस संधि के साथ समाप्त हुआ ?
(क) शिमनोसेकी की संधि
(ख) नानकिंग की संधि
(ग) बोग की संधि
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) शिमनोसेकी की संधि

23. रूस-जापान युद्ध कब हुआ था ?
(क) 1905 ई० में
(ख) 1907 ई० में
(ग) 1909 ई० में
(घ) 1911 ई० में।
उत्तर:
(क) 1905 ई० में

24. जापान में ‘बुलेट ट्रेन’ की शुरुआत कब हुई ?
(क) 1954 ई० में
(ख) 1964 ई० में
(ग) 1974 ई० में
(घ) 1984 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1964 ई० में

25. संयुक्त राज्य अमरीका ने 6 अगस्त, 1945 ई० को जापान के किस शहर पर परमाणु बम फेंका ?
(क) नागासाकी
(ख) हिरोशिमा
(ग) तोक्यो
(घ) ओसाका।
उत्तर:
(ख) हिरोशिमा

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

26. तोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन कब किया गया था ?
(क) 1960 ई० में
(ख) 1962 ई० में
(ग) 1964 ई० में
(घ) 1965 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1964 ई० में

27. निम्नलिखित में से किस नदी को चीन का दुःख कहा जाता है ?
(क) पर्ल नदी को
(ख) पीली नदी को
(ग) यांगत्सी नदी को
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) पीली नदी को

28. प्रथम अफ़ीम युद्ध किनके मध्य हुआ ?
(क) चीन एवं जापान
(ख) इंग्लैंड एवं जापान
(ग) जापान एवं रूस
(घ) चीन एवं फ्राँस।
उत्तर:
(ख) इंग्लैंड एवं जापान

29. प्रथम अफ़ीम युद्ध कब लड़ा गया था ?
(क) 1803-05 ई० में
(ख) 1839-42 ई० में
(ग) 1856-59 ई० में
(घ) 1876-79 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1839-42 ई० में

30. नानकिंग की संधि कब हुई ?
(क) 1839 ई० में
(ख) 1842 ई० में
(ग) 1845 ई० में
(घ) 1849 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1842 ई० में

31. द्वितीय अफ़ीम युद्ध कब आरंभ हुआ ?
(क) 1854 ई० में
(ख) 1855 ई० में
(ग) 1856 ई० में
(घ) 1860 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1856 ई० में

32. 1858 ई० को चीन एवं इंग्लैंड के मध्य कौन-सी संधि हुई ?
(क) तीनस्तीन की संधि
(ख) बोग की संधि
(ग) नानकिंग की संधि
(घ) पीकिंग की संधि ।
उत्तर:
(क) तीनस्तीन की संधि

33. बॉक्सर विद्रोह किस देश में हुआ ?
(क) जापान में
(ख) चीन में
(ग) फ्रांस में
(घ) इंग्लैंड में।
उत्तर:
(ख) चीन में

34. चीन में बॉक्सर विद्रोह कब हुआ था ?
(क) 1890 ई० में
(ख) 1895 ई० में
(ग) 1900 ई० में
(घ) 1910 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1900 ई० में

35. ‘सौ दिन के सुधार’ का संबंध किस देश से है ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) अमरीका
(घ) भारत।
उत्तर:
(क) चीन

36. तुंग-मिंग-हुई की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1902 ई० में
(ख) 1905 ई० में
(ग) 1907 ई० में
(घ) 1911 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1905 ई० में

37. सन-यात-सेन ने कितने सिद्धांतों का प्रचलन किया था ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

38. 1911 ई० की चीनी क्रांति का नेता कौन था?
(क) लियांग किचाऊ
(ख) कंफ्यूशियस
(ग) युआन-शि-काई
(घ) डॉ० सन-यात-सेन।
उत्तर:
(घ) डॉ० सन-यात-सेन।

39. चीन में माँच वंश का अंत कब हुआ ?
(क) 1905 ई० में
(ख) 1909 ई० में
(ग) 1911 ई० में
(घ) 1912 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1911 ई० में

40. आधुनिक चीन का संस्थापक किसे माना जाता है ?
(क) कांग यूवेई
(ख) लियांग किचाउ
(ग) सन-यात-सेन
(घ) चियांग-काई-शेक ।
उत्तर:
(ग) सन-यात-सेन

41. पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी?
(क) 1892 ई० में
(ख) 1902 ई० में
(ग) 1906 ई० में
(घ) 1920 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1902 ई० में

42. चीन का प्रथम राष्ट्रपति कौन बना ?
(क) सन-यात-सेन
(ख) माओ-त्सेतुंग
(ग) युआन-शि-काई
(घ) शाओ तोआफ़ेन !
उत्तर:
(ग) युआन-शि-काई

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

43. चीन में कुओमीनतांग दल की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1911 ई० में
(ख) 1912 ई० में
(ग) 1921 ई० में
(घ) 1922 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1912 ई० में

44. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1912 ई० में
(ख) 1920 ई० में
(ग) 1921 ई० में
(घ) 1931 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1921 ई० में

45. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार का गठन कब हुआ ?
(क) 1911 ई० में
(ख) 1945 ई० में
(ग) 1949 ई० में
(घ) 1951 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1949 ई० में

46. चीन में लाँग मार्च कब आरंभ हुआ था ?
(क) 1911 ई० में
(ख) 1924 ई० में
(ग) 1934 ई० में
(घ) 1935 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1934 ई० में

47. माओ-त्सेतुंग ने चीन में नया संविधान कब लागू किया ?
(क) 1949 ई० में
(ख) 1950 ई० में
(ग) 1951 ई० में
(घ) 1954 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1954 ई० में।

48. चीन में लंबी छलाँग वाला आंदोलन कब चलाया गया ?
(क) 1954 ई० में
(ख) 1956 ई० में
(ग) 1958 ई० में
(घ) 1962 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1958 ई० में

49. निम्नलिखित में से किस नेता ने नया लोकतंत्र नामक पुस्तक की रचना की ?
(क) माओ-त्सेतुंग
(ख) चियांग-काई-शेक
(ग) कुमे कुनीताके
(घ) मैटियो रिक्की।
उत्तर:
(क) माओ-त्सेतुंग

50. चीन में महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति का आरंभ कब हुआ ?
(क) 1958 ई० में
(ख) 1962 ई० में
(ग) 1965 ई० में
(घ) 1966 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1966 ई० में।

51. चीन में चार आधुनिकीकरणों की घोषणा कब की गई?
(क) 1968 ई० में
(ख) 1976 ई० में
(ग) 1978 ई० में
(घ) 1928 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1978 ई० में

52. ताइवान का पहला नाम क्या था ?
(क) फारमोसा
(ख) नानकिंग
(ग) शीमोदा
(घ) हाकोदारे।
उत्तर:
(क) फारमोसा

आधुनिकीकरण के रास्ते HBSE 11th Class History Notes

→ 19वीं शताब्दी में दूर पूर्व एशिया के दो देशों जापान एवं चीन ने आधुनिकीकरण के रास्ते को अपनाया। निस्संदेह दोनों देशों के लिए एक नए युग का सूत्रपात था। जापान प्रशांत महासागर में स्थित कई द्वीपों का समूह है। इसमें चार बड़े द्वीप हैं।

→ इनके नाम हैं-होंशू, क्यूशू, शिकोकू एवं होकाइदो। इनमें होंशू सबसे बड़ा है और जापान के केंद्र में है। जापान की 50 प्रतिशत से कुछ अधिक ज़मीन पहाड़ी है। जापान की केवल 17 प्रतिशत भूमि पर ही खेती होती है।

→ जापान के पहाड़ों में अक्सर ज्वालामुखी फूटते रहते हैं। अतः जापान में भूकंप बहुत विनाश करते हैं। प्राचीन काल में जापानी सभ्यता चीनी सभ्यता से बहुत प्रभावित थी। जापान की अधिकाँश जनसंख्या जापानी है।

→ इसके अतिरिक्त यहाँ आयनू और कोरिया के कुछ लोग भी रहते हैं। जापान के लोगों का मुख्य भोजन चावल एवं मछली है। जापान की साशिमी अथवा सूशी नामक मछली दुनिया भर में प्रसिद्ध है। जापान में 1603 ई० से लेकर 1867 ई० तक तोकुगावा परिवार का शासन था। इस परिवार के लोग शोगुन पद पर कायम थे।

→ शोगुन दैम्यो, प्रमुख शहरों एवं खदानों पर नियंत्रण रखते थे। 1853 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका का नाविक कॉमोडोर मैथ्यू पेरी जापान की बंदरगाह योकोहामा पहुँचने में सफल हुआ। 1854 ई० में उसने जापान। सरकार के साथ कानागावा नामक संधि की। इसे जापान का खलना कहा जाता है।

→ इस संधि के पश्चात जापान के दरवाजे पश्चिमी देशों के लिए खुल गए एवं जापान ने आधुनिकीकरण के रास्ते को अपनाया। जापान में सम्राट मत्सहितो ने 1868 ई० से 1912 ई० तक शासन किया। उसने मेज़ी की उपाधि धारण की थी। इसलिए इस काल को मेज़ी पुनर्स्थापना कहते हैं।

→ मेज़ी शासनकाल में जापान में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार किए गए एवं उसकी स्थिति सुदृढ़ हुई। जापान ने 1894-95 ई० में चीन को पराजित कर एवं 1904-05 ई० में रूस को पराजित कर विश्व को चकित कर दिया था।

→ उसने 1910 ई० में कोरिया जो उसके लिए सामरिक महत्त्व का था को भी अपने अधीन कर लिया। जापान में सैन्यवाद के कारण वहाँ सेना बहुत शक्तिशाली हो गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने प्रमुख भूमिका निभाई। उसने अनेक सफलताएँ अर्जित की थीं।

→ 1945 ई० में अमरीका द्वारा हिरोशिमा एवं नागासाकी में गिराए गए दो एटम बमों के कारण उसे पराजय को स्वीकार करना पड़ा था। इस कारण जापान पर अमरीका का कब्जा हो गया था। यह कब्जा 1945 ई० से 1952 ई० तक रहा।

→ अमरीका के जापान से हटने के बाद उसने पुनः अपने गौरव को स्थापित किया। उसने अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया। वह 1956 ई० में संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना। उसने 1964 ई० में अपनी राजधानी तोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया।

→ दूसरी ओर चीन पूर्वी एशिया का एक अत्यंत प्राचीन एवं विशाल देश है। इस विशाल क्षेत्र में अनेक नदियाँ एवं पर्वत हैं। चीन की तीन नदियाँ-पीली नदी, यांग्त्सी नदी एवं पर्ल नदी ने चीनी सभ्यता के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

→ ये नदियाँ यातायात, सिंचाई एवं उर्वरता का प्रमुख साधन हैं। यहाँ लोहे, कोयले एवं ताँबे की प्रचुरता है। यहाँ अनेक जातीय समूह रहते हैं। हान यहाँ का प्रमुख जातीय समूह है। यहाँ की प्रमुख भाषा चीनी है। चीन का सबसे स्वादिष्ट भोजन डिम-सम है। चीनी चावल एवं गेहूँ का खूब प्रयोग करते हैं।

→ चीन शताब्दियों तक विदेशियों के लिए बंद रहा। 1839–42 ई० में ब्रिटेन ने चीन को प्रथम अफ़ीम युद्ध में पराजित कर उसके दरवाज़े पश्चिमी देशों के लिए खोल दिए। चीन आरंभ में जापान की तरह आधुनिकीकरण के रास्ते को सुगमता से अपनाने को तैयार नहीं था।

→ 1856-60 ई० में ब्रिटेन ने चीन को दूसरे अफ़ीम युद्ध में पुनः पराजित किया। इससे चीन की आंतरिक कमजोरी का भेद विश्व के अन्य देशों को पता चल गया। अतः विश्व के अन्य देशों जैसे संयुक्त राज्य अमरीका, फ्राँस, रूस, जापान आदि ने चीन के अनेक प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया।

→ इससे चीन की अखंडता के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो गया। चीन में बढ़ते हुए विदेशी प्रभाव एवं अन्य समस्याओं के चलते 1911 ई० में चीनी क्रांति का विस्फोट हो गया। इस क्राँति के कारण चीन में माँचू वंश का अंत हुआ।

→ इस क्राँति में डॉक्टर सन-यात-सेन ने उल्लेखनीय योगदान दिया। चीन में डॉक्टर सन-यात-सेन के नेतृत्व में 1912 ई० में गणतंत्र की स्थापना हुई। 1925 ई० में डॉक्टर सन-यात-सेन की मृत्यु के पश्चात् चीन में पुनः संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस समय चीन में माओ-त्सेतुंग ने नेतृत्व किया।

→ उसने चीनी लोगों को एकत्र करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। उसके अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन में 1949 ई० में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार अस्तित्व में आई। निस्संदेह यह चीन के इतिहास में एक नए युग का संदेश था।

→ माओ त्सेतुंग जिसे 1949 ई० में चीन का अध्यक्ष बनाया गया था ने 1976 ई० में अपनी मृत्यु तक उल्लेखनीय सुधार किए। परिणामस्वरूप वह चीनी समाज को एक नई दिशा देने में सफल रहा।

→ चियांग-काई-शेक ने 1949 ई० में माओ-त्सेतुंग से पराजित होने के पश्चात् ताइवान (फारमोसा) में चीनी गणतंत्र की स्थापना कर ली थी। वह स्वयं ताइवान का राष्ट्रपति बन गया। उसने बहुत सख्ती से शासन किया एवं मार्शल लॉ को लागू किया। उसने अपने सभी विरोधियों को कठोर दंड दिए।

→ उसने ताइवान की अर्थव्यवस्था को पटड़ी पर लाने के उद्देश्य से अनेक उल्लेखनीय कदम उठाए। वह इस उद्देश्य में काफी सीमा तक सफल रहा। 1975 ई० में चियांग-काई-शेक की मृत्यु हो गई। उसके पश्चात् चीन की राजनीति में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। चीन एवं ताइवान का एकीकरण आज भी एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है।

→ चीन एवं जापान में इतिहास लिखने की एक लंबी परंपरा रही है। इसका कारण यह था कि इसे शासकों के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता था। इसलिए इन देशों के शासकों ने अभिलेखों की देख-रेख एवं राजवंशों का इतिहास लिखने के लिए सरकारी विभागों की स्थापना की।

→ इन्हें सभी प्रकार की सहायता प्रदान की गई। सिमा छियन (Sima Qian) को प्राचीन चीन का सबसे महान् इतिहासकार माना जाता है। आधुनिक इतिहासकारों में चीन के लिआंग छिचाओ (Liang Qichao) एवं जापान के कुमे कुनीताके (Kume Kunitake) के नाम उल्लेखनीय हैं।

→ इटली के यात्री मार्को पोलो (Marco Polo) एवं जैसूइट पादरी मैटियो रिक्की (Mateo Ricci) ने चीन के तथा लुई फ़रॉय ने जापान के इतिहास पर काफी प्रकाश डाला है।

→ चीनी सभ्यता में विज्ञान के इतिहास पर जोजफ नीडहम (Joseph Needham) ने एवं जापानी इतिहास एवं संस्कृति पर जॉर्ज सैन्सम (George Sansom) ने उल्लेखनीय कार्य किया है।

→ नाइतो कोनन (Naito Konan) एक प्रसिद्ध जापानी विद्वान् थे। उन्होंने चीनी इतिहास पर काफी कार्य किया। उन्होंने अपने कार्य में पश्चिमी इतिहास लेखन की नयी तकनीकों तथा पत्रकारिता के अपने अनुभवों का काफी प्रयोग किया है। उन्होंने 1907 ई० में क्योतो विश्वविद्यालय (Kyoto University) में प्राच्य अध्ययन का विभाग (Department of Oriental Studies) को स्थापित किया।

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HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (Very short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जीवों में जनन क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए।

प्रश्न 2.
DNA का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-
डीऑक्सी राइबोन्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribonuclic Acid)।

प्रश्न 3.
जनन की मूल घटना क्या है?
उत्तर-
DNA द्वारा प्रतिकृति बनाना।

प्रश्न 4.
किसी प्रजाति की समष्टि के स्थायित्व का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर-
जनन से।

प्रश्न 5.
गुणसूत्र कहाँ पाये जाते हैं?
उत्तर-
कोशिका में स्थित केन्द्रक में।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

प्रश्न 6.
विभिन्नताएँ क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर-
प्रजाति (Species) की उत्तरजीविता बनाए रखने के लिए।

प्रश्न 7.
एककोशिकीय जीवों में वंश वृद्धि कैसे होती
उत्तर-
कोशिका विभाजन या विखण्डन द्वारा।

प्रश्न 8.
दो ऐसे जीवों के नाम लिखिए जिनमें पुनरुद्भवन द्वारा जनन होता है?
उत्तर-

  1. हाइड्रा,
  2. प्लेनेरिया।

प्रश्न 9.
ऊतक संवर्धन क्या है ?
उत्तर-
पौधे के किसी अंग या ऊतक का संवर्धन कराकर नये पौधे तैयार करना ऊतक संवर्धन कहलाता है।

प्रश्न 10.
मनुष्य में बनने वाली वे संरचनाएँ क्या हैं जिनमें गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है ?
उत्तर-
नर युग्मक तथा मादा युग्मक।

प्रश्न 11.
यौवनारम्भ (Puberty) किसे कहते हैं?
उत्तर-
वह आयु जिससे लड़के एवं लड़कियों में द्वितीयक लक्षण प्रारम्भ होने लगते हैं, यौवनारम्भ कहलाती|

प्रश्न 12.
जनन कोशिकाओं में निषेचन से क्या बनता है?
उत्तर-
युग्मनज (Zygote)।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

प्रश्न 13.
निषेचन के पश्चात् निषेचित अण्ड कहाँ स्थापित होता है ?
उत्तर-
गर्भाशय में।

प्रश्न 14.
लड़कों के किन्हीं दो द्वितीयक लक्षणों को लिखिए।
उत्तर-

  1. कंधे चौड़े होना,
  2. आवाज का भारी होना।

प्रश्न 15.
लड़कियों के कोई दो द्वितीयक लक्षण लिखिए।
उत्तर-

  • स्तनों का विकास,
  • नितम्बों का चौड़ा होना।

प्रश्न 16.
कलम द्वारा उगाये जाने वाले दो पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • गुलाब,
  • गन्ना ।

प्रश्न 17.
दो एकलिंगी पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • पपीता,
  • कद्।

प्रश्न 18.
भ्रूण को पोषण कहाँ से तथा किसके द्वारा प्राप्त होता है?
उत्तर-
भ्रूण को पोषण माँ से तथा अपरा (Placenta) के द्वारा पोषण प्राप्त होता है।

प्रश्न 19.
ऐसे जीव क्या कहलाते हैं जो शिशु को जन्म देते हैं?
उत्तर-
जरायुजी (Viviparous)।

प्रश्न 20.
कृत्रिम प्रवर्धन क्या है?
उत्तर-
वांछित गुणों वाले पौधों से कायिक प्रजनन द्वारा नये पौधे तैयार करना।

प्रश्न 21.
संकर प्रजनन क्या होता है?
उत्तर-
दो विभिन्न प्रजातियों के नर तथा मादा द्वारा लैंगिक जनन संकर प्रजनन कहलाता है।

प्रश्न 22.
बीजाण्ड कहाँ पाये जाते हैं?
उत्तर-
पुष्प में अण्डाशय के अन्दर।

प्रश्न 23.
परागण किसे कहते हैं?
उत्तर-
परागकोष से परागकणों का वर्तिकाग्र (Stigma) तक पहुँचना परागण कहलाता है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

प्रश्न 24.
अण्ड-प्रजकों के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर-

  1. छिपकली,
  2. मुर्गी।

प्रश्न 25.
उभयलिंगी जीव किसे कहते हैं?
उत्तर-
वे जीव जिनमें नर एवं मादा युग्मक एक ही जीव द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं, उभयलिंगी जीव कहलाते हैं।

प्रश्न 26.
पौधे के प्रमुख जननांग क्या हैं?
उत्तर-

  • पुंकेसर (Androecium),
  • स्त्रीकेसर (Gyanoecium)।

प्रश्न 27.
परागण के दो प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • स्व-परागण (SelfPollination),
  • पर-परागण (Cross Pollination)।

प्रश्न 28.
स्त्रीकेसर के कौन-से भाग होते हैं?
उत्तर-

  • अण्डाशय (Ovary),
  • वर्तिका (Style), तथा
  • वर्तिकाग्र (Stigma)।

प्रश्न 29.
अपरा (Placenta) क्या है? (RBSE 2017)
उत्तर-
भ्रूण को गर्भाशय से जोड़ने वाली एक नालवत् संरचना जो भ्रूण को पोषण उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 30.
प्लेसेन्टा के दो कार्य लिखिए। (RBSE 2017)
उत्तर-

  • भ्रूण को पोषण प्राप्त कराना।
  • उत्सर्जी पदार्थों को माँ के रुधिर में पहुँचाना।

प्रश्न 31.
IUCD क्या है ?
उत्तर-
IUCD (Intrauterian contraceptive device) नारी गर्भाशय में लगायी जाने वाली एक युक्ति है जो गर्भनिरोधक का कार्य करती है।

प्रश्न 32.
दो यौन-संचारित रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • गोनोरिया,
  • सिफलिस।

प्रश्न 33.
दो गर्भ निरोधक युक्तियों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • कण्डोम,
  • कॉपर ‘टी’।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जनन की परिभाषा लिखिए। स्पीशीज़ की समष्टि को स्थायित्व प्रदान करने में यह किस प्रकार सहायता करता है? (CBSE 2016)
उत्तर-
जनन-जीवों द्वारा लैंगिक अथवा अलैंगिक प्रजनन विधियों द्वारा अपने ही जैसे जीवों को उत्पन्न करने की प्रक्रिया को जनन कहते हैं। यह पृथ्वी पर जीवन के लिए अति आवश्यक है। जनन प्रक्रिया द्वारा किसी स्पीशीज़ की समष्टि में मृत्यु होने के कारण जीवों की संख्या घटने को पुनः पहले की संख्या के अनुपात के बराबर लाया जा सकता है। इस प्रकार जनन प्रक्रिया किसी भी स्पीशीज़ की समष्टि को एक विशेष स्थान पर स्थायित्व प्रदान करने में सहायक होती है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

प्रश्न 2.
प्रोटीन संश्लेषण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
प्रोटीन संश्लेषण DNA के नियन्त्रण में कोशिका के अन्दर होता है। प्रोटीन्स एन्जाइमों के रूप में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं का संचालन करते हैं। इन क्रियाओं द्वारा जीव में वृद्धि होती है। वृद्धि का अन्तिम परिणाम जनन होता है।

प्रश्न 3.
DNA का प्रतिकृतिकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
एक ही प्रजाति के जीवों में DNA की समान मात्रा पायी जाती है। संतति जीवों में DNA की मात्रा का सन्तुलन बनाए रखने के लिए DNA का प्रतिकृतिकरण होता है। DNA ही पुत्री पीढ़ियों में विभिन्न लक्षणों का नियमन करता है।

प्रश्न 4.
विभिन्नताएँ क्यों आवश्यक हैं ?
उत्तर-
जीवधारियों में अपने जनकों की अपेक्षा कुछ अन्तर उत्पन्न होना विभिन्नताएँ कहलाती हैं। इनके द्वारा जीव स्वयं को बदलते पर्यावरण के अनुरूप अनुकूलित कर लेता है। ऐसे जीव जिनमें लम्बे समय से विभिन्नता उत्पन्न नहीं हुई है, वे पर्यावरण के साथ तालमेल नहीं कर पाते हैं और वे प्रायः विलुप्त होने लगते हैं।

प्रश्न 5.
प्रजनन के विभिन्न प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है 1

प्रश्न 6.
अमीबा में द्विखण्डन को चित्र की सहायता से समझाइए। (CBSE 2018)
उत्तर-
अमीबा एक कोशिकीय जीव है। इसकी कोशिका पहले लम्बी हो जाती है, साथ ही इसका जीवद्रव्य और केन्द्रक भी लम्बाई में फैल जाता है।
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अब इसके बीचों- बीच एक खाँच उत्पन्न होती है जो कोशिकाद्रव्य एवं केन्द्रक को दो भागों में विभाजित कर देती है। इस प्रकार दो सन्तति या पुत्री अमीबा बन जाते हैं।

प्रश्न 7.
उन दो प्रेक्षणों की सूची बनाइए जिनके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि दी गयी स्लाइड अमीबा में द्विखण्डन दर्शाती है। (CBSE 2019)
उत्तर-
स्लाइड अमीबा में द्विखण्डन को दर्शाने वाले दो प्रेक्षण-

  • कोशिका झिल्ली के मध्य भाग में एक खांच बनने लगती है।
  • केन्द्रक लम्बा होने लगता है तथा बीच में से पतला होने लगता है। अगली अवस्था में वह दो भागों में विभाजित होता दिखाई देता है। इन प्रेक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि दी गई स्लाइड अमीबा में द्विखण्डन दर्शाने के लिए तैयार है।

प्रश्न 8.
कोई छात्र यीस्ट में होने वाले अलैंगिक जनन के विभिन्न चरणों को क्रमवार दर्शाने वाली स्थायी स्लाइड का प्रेक्षण कर रहा है। इस प्रक्रिया का नाम लिखिए। जो कुछ वह प्रेक्षण करता है, उसे उचित क्रम में, आरेख खींचकर दर्शाइए। (CBSE 2016)
उत्तर-
इस प्रक्रिया का नाम मुकुलन प्रजनन विधि है।
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प्रश्न 9.
जीवों के जनन के संदर्भ में उपयोग होने वाले पद “पुनरुद्भवन” (पुनर्जनन) की व्याख्या कीजिए। संक्षेप में वर्णन कीजिए कि हाइड्रा जैसे बहुकोशिक जीवों में ‘पुनरुद्भवन’ की, प्रक्रिया किस प्रकार सम्पन्न होती है? (CBSE 2016)
उत्तर-
“पुनरुद्भवन” (पुनर्जनन)-जब किसी छोटे प्राणी का शरीर कुछ विशेष टुकड़ों में बँट जाता है तथा प्रत्येक टुकड़ा एक नये जीव में विकसित हो जाता है तो इसे पुनर्जनन कहते हैं। प्लेनेरिया तथा हाइड्रा जैसे सरल एवं बहुकोशिकीय प्राणी पुनर्जनन दर्शाते हैं।

हाइड्रा में पुनरुद्भवन’-

  • यदि हाइड्रा का शरीर कई टुकड़ों में बंट जाता है तो प्रत्येक टुकड़ा अपने खोए हुए अंगों को पुनर्जीवित करके एक पूर्ण हाइड्रा में विकसित हो जाता है।
  • इन जीवों में अपने शरीर के अंग की कोशिकाओं से शरीर का पुनर्जनन, विकास तथा वृद्धि की प्रक्रिया द्वारा होता
  • हाइड्रा के शरीर की कोशिकाओं का कटा हुआ भाग एक संपूर्ण कोशिका/कोशिकाओं का गोला बनाने के लिए विभाजित होता रहता है।
  • तब कोशिकाएँ विभिन्न प्रकार के विशेष उत्तक बनाने लगती हैं जो फिर से जीव के पूरे शरीर का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 10.
प्लाज्मोडियम में बहुविखण्डन को समझाइए।
उत्तर-
प्लाज्मोडियम (मलेरिया परजीवी) में कोशिका के चारों ओर एक रक्षी आवरण बन जाता है। इस आवरण के अन्दर केन्द्रक अनेक बार विभाजित होता है। प्रत्येक पुत्री केन्द्रक के चारों ओर जीवद्रव्य की थोड़ी-थोड़ी मात्रा भी एकत्र हो जाती है। अनुकूल मौसम में बाह्य आवरण फट जाता है तथा पुत्री केन्द्रक स्वतन्त्र जीव के रूप में बाहर निकल आते हैं।
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प्रश्न 11.
स्पाइरोगाइरा में अलैंगिक जनन किस प्रकार होता है?
उत्तर-
स्पाइरोगाइरा (Spirogyra) में अलैंगिक जनन खण्डन द्वारा होता है। स्पाइरोगाइरा एक तन्तुवत् शैवाल है जिसमें आयताकार कोशिकाएँ एक लड़ी के रूप में व्यवस्थित होती हैं। जब स्पाइरोगाइरा का तन्तु टुकड़ों में टूट जाता है तो प्रत्येक खण्ड नये जीव में विकसित हो जाता है।
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प्रश्न 12.
हाइड्रा में मुकुलन को चित्र द्वारा समझाइए। (CBSE 2019)
उत्तर-
हाइड्रा में कायिक प्रजनन मुकुलन (Budding) द्वारा होता है। हाइड्रा में आधार से कुछ ऊपर की कुछ कोशिकाएँ विभाजित होकर एक बटन जैसी रचना बनाती हैं। इस रचना को कलिका कहते हैं। यह कलिका वृद्धि करती है और इसके अग्र भाग पर छोटे-छोटे स्पर्शक बन जाते हैं। यह अब एक शिशु हाइड्रा का रूप ले लेती है और मातृ जीव से अलग होकर स्वतन्त्र जीवन यापन करती हैं।
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प्रश्न 13.
कायिक प्रवर्धन के लाभ लिखिए।
उत्तर-

  • इससे प्राप्त पौधे जनकों के समान लक्षणों वाले होते हैं अतः कायिक प्रवर्धन से वांछित पौधे तैयार किये जा सकते हैं।
  • वे पौधे जो बीजों द्वारा उत्पन्न नहीं होते हैं उन्हें कायिक प्रवर्धन द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।
  • कम समय में अधिक संख्या में और बड़े पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं।
  • इन्हें प्रयोगशालाओं में तैयार किया जा सकता है।

प्रश्न 14.
ब्रायोफिल्लम् में कायिक जनन किस प्रकार होता है? (CBSE 2019)
उत्तर-
ब्रायोफिल्लम् में पत्तियों द्वारा कायिक प्रजनन होता है | इसमें पत्तियों के / किनारों की खाँचों से पर्णकलिका पर्णकलिकाएँ निकल आती हैं जिनमें जड़ें उत्पन्न हो जाती हैं। ये कलिकाएँ पत्तियों से विलग होकर भूमि पर गिर कर नये पौधे को जन्म देती हैं।
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प्रश्न 15.
राइजोपस में अलैंगिक प्रजनन किस प्रकार होता है ? (CBSE 2020)
उत्तर-
राइजोपस (ब्रेड फर्कंद) का कायिक शरीर कवक जाल होता है। कवक जाल से ऊर्ध्व तन्तुओं का विकास होता है जिनके शीर्ष पर गोलाकार संरचनाएँ बीजाणु-धानी बनाती हैं। इनमें बीजाणुओं का निर्माण (Spore formation) होता है। ये बीजाणु हवा द्वारा प्रकीर्णित होते हैं। प्रत्येक बीजाणु अंकुरण करके नये कवक जाल का निर्माण करता है।
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प्रश्न 16.
लैंगिक जनन में महत्त्वपूर्ण घटना क्या होती है? इसका क्या महत्त्व है? [CBSE 2015, 2017]
उत्तर-
लैंगिक जनन में नर तथा मादा युग्मकों का मिलन होता है। ये युग्मक गुणसूत्रों के अर्धसूत्रण से बनते हैं। युग्मों के संलयन के पश्चात् गुणसूत्रों की संख्या यथावत हो जाती है। ऐसा होने से नये संयोग बनते हैं।

प्रश्न 17.
पुष्प के विभिन्न भागों के नाम तथा कार्य लिखिए।
उत्तर-
एक प्रारूपिक पुष्प में निम्नलिखित भाग पाए जाते हैं

  1. बाह्य दलपुंज (Calyx)-यह पुष्प के सबसे बाहर की ओर स्थित होते हैं। ये कलिका अवस्था में पुष्पीय अंगों की रक्षा करते हैं।
  2. दलपुंज (Corolla)-ये विभिन्न रंगों के होते हैं और परागण के लिए कीटों को आकर्षित करते हैं।
  3. पुंकेसर (Androecium)-ये पुष्प के नर जननांग हैं। पुंकेसर के परागकोष में परागकणों का निर्माण होता है।
  4. स्त्रीकेसर (Gyanoecium)-ये पुष्प के मादा जननांग हैं। इनमें अण्डपों का निर्माण होता है।

प्रश्न 18.
स्व-परागण तथा पर-परागण में क्या अन्तर है? (CBSE 2020)
उत्तर-
स्व-परागण तथा पर-परागण में अन्तर

स्व-परागण (Self-Pollination)पर-परागण (Cross-Pollination)
1. इसमें एक पुष्प के परा गकण उसी पुष्प या उसी पौधे के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकान पर पहुँचते हैं।एक पुष्प के परागकण उसी जाति के किसी अन्य पौधे के पुष्प के वर्तिकान पर पहुँचते हैं।
2. इससे परागकणों के नष्ट होने की सम्भावना कम होती है।इससे परागकणों के नष्ट होने की सम्भावना अधिक होती है।
3. इससे उत्पन्न बीज कम ओजस्वी होते हैं।इससे उत्पन्न बीज अधिक ओजस्वी होते हैं।
4. इस क्रिया से विभिन्न- ताओं की सम्भावना कम होती है।इस क्रिया से विभिन्नताओं की सम्भावना बढ़ जाती है।

प्रश्न 19.
वतिकाग्र पर परागकणों के अंकुरण का नामांकित चित्र बनाइए। (CBSE 2020)
उत्तर-
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प्रश्न 20.
यदि अंड का निषेचन नहीं होता है, तब क्या होगा? समझाइये। (RBSE 2016)
उत्तर-
यदि अंड का निषेचन नहीं होता है तो यह लगभग 1 दिन तक जीवित रहता है। अंडाश्य से प्रत्येक 1 माह एक अंड का मोचन होता है। गर्भाशय की अंदरूनी दीवार मोटी स्पंजी हो जाती है। निषेचन ना हो पाने की स्थिति में इस परत की आवश्यकता नहीं रहती, अत: इसकी परत धीरे-धीरे टूटकर योनि मार्ग से रक्त व म्यूकस के रूप में बाहर निकलती है। यह चक्र लगभग हर माह में होता है।

प्रश्न 21.
लड़कों एवं लड़कियों में उत्पन्न होने वाले तीन-तीन द्वितीयक लक्षणों को बताइए।
उत्तर-
लड़कों में-

  • दाढ़ी एवं मूंछ उगना।
  • जननांगों का विकसित होना ।
  • आवाज भारी होना।

लड़कियों में-

  1. स्तनों का विकास होना।
  2. जननांगों का विकास होना।
  3. आवाज पतली होना।

प्रश्न 22.
मानव में नर तथा मादा जनन तन्त्र क्या हैं? उनके दो-दो कार्य लिखिए।
उत्तर-
मानव में नर तथा मादा जनन तन्त्र क्रमशः वृषण तथा अण्डाशय हैं।
वृषण के कार्य-

  • शुक्राणुओं का निर्माण करना।
  • नर हॉर्मोन्स का स्रावण करना।

अण्डाशय के कार्य-

  • अण्डाणु का निर्माण करना।
  • मादा हॉर्मोन्स का स्रावण करना।

प्रश्न 23.
नर मानव में वृषण शरीर के बाहर क्यों स्थित होते हैं?
उत्तर-
नर मानव में वृषण उदर गुहा के बाहर थैले जैसी रचना वृषण कोष (Scrotum) में पाये जाते हैं। शुक्राणु शरीर के ताप से 3°C कम ताप पर सक्रिय होते हैं। वृषण कोषों का ताप शरीर के ताप से निम्न होता है। इसीलिए वृषण शरीर से बाहर स्थित होते हैं।

प्रश्न 24.
अण्डाणु तथा शुक्राणु में क्या अन्तर है?
उत्तर-
अण्डाणु तथा शुक्राणु में अन्तर-

अण्डाणु (Ovum)शुक्राणु (Sperm)
1. यह मादा जनन कोशिका1. यह नर जनन कोशिका
2. यह आकार में शुक्राणु से बड़ा होता है।2. यह अण्डाणु से छोटा होता है।
3. यह प्रायः गोलाकार होता है।3. यह पुच्छ युक्त होता है।
4. यह अचल होता है।4. यह सचल होता है।

प्रश्न 25.
लैंगिक जनन तथा अलैंगिक जनन में अन्तर लिखिए। [CBSE 2015]
उत्तर-
लैंगिक जनन तथा अलैंगिक जनन में अन्तर

लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)
1. इस प्रकार जनन प्रायः उच्च श्रेणी के जीवों में होता है।1. इस प्रकार का जनन प्रायः निम्न श्रेणी के जीवों में होता है।
2. इसमें नर तथा मादा जीवों की आवश्यकता होती2. इसमें केवल एक जीव की आवश्यकता होती
3. इसमें निषेचन होता है।3. इसमें निषेचन नहीं होता है।
4. इससे उत्पन्न सन्तानों में नये गुण उत्पन्न होते हैं।4. इससे उत्पन्न सन्तानों में नये गुण उत्पन्न नहीं होते है।
5. इस क्रिया में बीजाणु नहीं बनते हैं।5. इस क्रिया में बीजाणु बनते हैं।

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प्रश्न 26.
निम्न रेखाचित्र पर अंकित A, B, C, D तथा E के नाम तथा इनका एक-एक कार्य लिखिए।
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उत्तर-
A. फैलोपियन नलिका-निषेचन क्रिया सम्पन्न करना।
B. अण्डाशय-अण्ड का निर्माण करना।
C. गर्भाशय-गर्भ धारण करना।
D. गर्भाशय मुख-शुक्राणु को ग्रहण करना।
E. योनि-मैथुन क्रिया के लिए स्राव उत्पन्न करना।

प्रश्न 27.
लैंगिक संचारित रोग क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
लैंगिक संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases)- ऐसे रोग जो लैंगिक संसर्ग द्वारा संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में स्थानान्तरित होते हैं, लैंगिक संचारित रोग कहलाते हैं। उदाहरण-एड्स (AIDS), सिफिलिस (Syphilis), गोनोरिया (Gonnorhoea) आदि ।

प्रश्न 28.
(a) मनुष्य में उस अंग का नाम लिखिए जो शुक्राणु बनाता है तथा एक हार्मोन भी उत्पन्न करता है। उस हार्मोन का नाम लिखिए तथा उसका कार्य भी लिखिए।
(b) स्त्री के जनन तंत्र के उस अंग का नाम लिखिए जहाँ निषेचन होता है।
(c) विकसित होता भ्रूण माता के शरीर से किस प्रकार पोषण प्राप्त करता है? इसका वर्णन कीजिए। (CBSE 2017)
उत्तर-
(a) मनुष्य का वह अंग जो शुक्राणु बनाता है तथा एक हॉर्मोन भी उत्पन्न करता है : वृषण जो हार्मोन उत्पन्न हुआ है : टेस्टेस्टेरॉन हॉर्मोन। टेस्टेस्ट्रॉन के कार्य-यह हार्मोन लड़कों में किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों तथा जनन अंगों के परिवर्तनों को नियंत्रित करता है। जैसे-किशोरों में चेहरे पर दाढ़ी-मूछों का विकसित होना आदि।
(b) स्त्री के जनन तंत्र का वह अंग जहाँ निषेचन होता है : अण्डवाहिका
(c) गर्भस्थ भ्रूण माँ के रुधिर से अपना पोषण विशेष उत्तकों द्वारा बनी नलिका से प्राप्त करता है जिसे अपरा (प्लैसेन्टा) कहते हैं। यह एक तश्तरीनुमा संरचना होती है जो गर्भाशय की भित्ति में धंसी होती है। प्लैसेन्टा माँ से भ्रूण को ग्लूकोज़, ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों के स्थानान्तरण हेतु एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करता है। विकासशील भ्रूण द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों को प्लेसेन्टा के माध्यम द्वारा माँ के रुधिर को भेजा जाता है। माँ के रुधिर से ये अपशिष्ट पदार्थ माँ के मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकलते हैं।

प्रश्न 29.
स्त्रियों में गर्भधारण को रोकने की कोई तीन विधियाँ लिखिए? इनमें से कौन-सी विधि पुरुष के लिए उपयोग नहीं की जा सकती? इन विधियों को अपनाने से एक परिवार के स्वास्थ्य तथा उन्नति पर क्या प्रभाव पड़ता है? (CBSE 2017)
उत्तर-
स्त्रियों में गर्भधारण को रोकने की कोई तीन विधियाँ-

  • यांत्रिक अवरोध विधि-इस विधि में पुरुष शिश्न को ढकने वाले कंडोम तथा स्त्रियाँ डायाफ्राम का प्रयोग करती हैं।
  • हार्मोन विधि (रासायनिक विधि)-इस विधि में स्त्रियों को गोलियाँ (मौखिक तथा यौनिक) दी जाती हैं जो उनके हार्मोन संतुलन को नियंत्रित करती हैं ताकि वह गर्भधारण न कर सकें।
  • शल्य विधि-इस विधि में शल्य चिकित्सा द्वारा पुरुषों की शुक्रवाहिकाओं को अवरुद्ध कर दिया जाता है जिससे शुक्राणुओं का स्थानांतरण रूक जाता है तथा स्त्रियों की अण्डवाहिनी को बाधित कर दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप अंड गर्भाशय तक नहीं पहुँच पाता। हार्मोन विधि का प्रयोग पुरुषों द्वारा नहीं किया जा सकता।

इन विधियों को अपनाने से पस्विार के स्वास्थ्य तथा उन्नति पर प्रभाव-गर्भरोधक विधियों को अपना कर एक परिवार बच्चों की संख्या को सीमित कर सकते हैं जिससे उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाएगी। ऐसे परिवारों में कम बच्चे होने से माता-पिता उनको अच्छी शिक्षा तथा अच्छा पोषण दे पायेंगे जिससे बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। यही नहीं इन विधियों को अपनाने से बढ़ती जनसंख्या जैसी भयानक समस्या पर भी नियंत्रण किया जा सकता है।

प्रश्न 30.
अलैंगिक जनन और लैंगिक जनन के बीच एक अन्तर लिखिए। अलैंगिक जनन करने वाली अथवा लैंगिक जनन करने वाली स्पीशीज़ में से किसके द्वारा जनित स्पीशीज़ की उत्तरजीविता के अपेक्षाकृत अधिक संयोग हो सकते हैं? अपने उत्तर की पुष्टि के लिए कारण दीजिए। (CBSE 2018)
उत्तर-
अलैंगिक जनन में केवल एक जनक भाग लेता
लैंगिक जनन में नर तथा मादा दोनों जनक भाग लेते हैं।
लैंगिक जनन करने वाली स्पीशीज़ द्वारा जनित स्पीशीज़ की उत्तरजीविता के अपेक्षाकृत अधिक संयोग होते हैं क्योंकि लैंगिक जनन में दो प्रकार की जनन कोशिकाओं में डी.एन. ए. अणुओं की प्रतिकृति बनने के कारण, नई संतति में अधिक विभिन्नताएँ आती हैं, इसलिए उनमें उत्तरजीविता के अपेक्षाकृत अधिक संयोग होते हैं। नीचे दिए गए अनुच्छेद और पढ़ी गई सम्बन्धित संकल्पनाओं की व्याख्या के आधार पर

(a) लड़कों एवं लड़कियों में लैंगिक परिपक्वता के सामान्य लक्षण निम्न प्रकार हैं

  • लड़कों के वृषण में शुक्राणुओं का बनना शुरु हो जाता है और लड़कियों के अण्डाणु में अण्डों का बनना प्रारम्भ हो जाता है।
  • लड़कों के चेहरों पर मूंछे तथा दाढ़ी आने लगती हैं जबकि लड़कियों का मासिक चक्र आरम्भ हो जाता है एवं जननांगों और बगलों पर बाल उगने लगते हैं।

(b) अविवेचित मादा भ्रूण हत्या के परिणामस्वरूप मादा बच्चों का अनुपात लगातार कम होता जाता है जिससे जनसंख्या में नर व मादा बच्चों का अनुपात असंतुलित हो जाता है।

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प्रश्न 31.
मानव जनसंख्या की वृद्धि सभी मनुष्यों की चिन्ता का विषय है। किसी समष्टि में जीवन दर और मृत्यु दर उसके आकार को निर्धारित करते हैं। जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जीव अपनी समष्टि की वृद्धि करते हैं। जनन के लिए लैंगिक परिपक्वता आनुक्रमिक होती है और यह तब होती है जब सामान्य शरीर में वृद्धि हो रही होती है। किसी सीमा तक लैंगिक परिपक्वता का यह अर्थ नहीं होता कि शरीर अथवा मस्तिष्क लैंगिक क्रिया अथवा बच्चे उत्पन्न करने योग्य हो गया है।

समष्टि के आकार को नियंत्रित करने के लिए मानव द्वारा विभिन्न गर्भनिरोध युक्तियाँ उपयोग की जा रही हैं।
(a) लड़के एवं लड़कियों में लैंगिक परिपक्वता के दो सामान्य लक्षणों की सूची बनाइए।
(b) अविवेचित मादा भ्रूण हत्या का क्या परिणाम होता है?
(c) गर्भ-निरोधन की कौन-सी विधि शरीर का हॉर्मोनी-संतुलन परिवर्तित कर देती है? .
(d) समष्टि (जनसंख्या) के आकार को निर्धारित करने वाले दो कारक लिखिए। (CBSE 2020)
उत्तर-
(a) लड़कों एवं लड़कियों में लैंगिक परिपक्वता के सामान्य लक्षण निम्न प्रकार हैं

  • लड़कों के वृषण में शुक्राणुओं का बनना शुरु हो जाता है और लड़कियों के अण्डाणु में अण्डों का बनना प्रारम्भ हो जाता है।
  • लड़कों के चेहरों पर मूंछे तथा दाढ़ी आने लगती हैं जबकि लड़कियों का मासिक चक्र आरम्भ हो जाता है एवं जननांगों और बगलों पर बाल उगने लगते हैं।

(b) अविवेचित मादा भ्रूण हत्या के परिणामस्वरूप मादा बच्चों का अनुपात लगातार कम होता जाता है जिससे जनसंख्या में नर व मादा बच्चों का अनुपात असंतुलित हो जाता है।
(c) गर्भ-निरोधन की रासायनिक विधि, जिसमें स्त्री गोलियों के रूप में रासायनिक दवाइयाँ मुख द्वारा लेती है, जो हॉर्मोनी-संतुलन परिवर्तित कर देती है।
(d) जीवन दर व मृत्यु दर समष्टि (जनसंख्या) के आकार को निर्धारित करने वाले कारक हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। [राज. 2015]
उत्तर-
अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियाँ निम्न प्रकार हैं-
(i) विखण्डन (Fission)-यह अनेक एककोशिकीय जीवों जैसे प्रोटोजोअन्स (अमीबा, पैरामीशियम, लीशमानिया) तथा जीवाणुओं में होता है। इस प्रक्रिया में एककोशिकीय जीव विभाजित होकर दो नये जीवों को उत्पन्न करता है। उत्पन्न संतति जीव जनक कोशिका के लक्षण वाले होते हैं।

(ii) खण्डन (Fragmentation)- यह कुछ तन्तुवत् शैवालों (जैसे-स्पाइरोगाइरा) तथा कुछ कवकों में होता है। इस प्रक्रिया में जीव का तन्तुवत् शरीर अनेक खण्डों में टूट जाता है तथा प्रत्येक खण्ड नये जीव का निर्माण करता है।

(iii) द्वि-विखण्डन (Binary Fission)-इसमें जीव का शरीर विभाजित होकर दो पुत्री जीवों को जन्म देता है। जैसे पैरामीशियम, अमीबा, लीशमानिया आदि। विखण्डन में यह आवश्यक नहीं है कि समान आनुवंशिक पदार्थ पुत्री कोशिकाओं में पहुँचें, जबकि द्विविखण्डन में आनुवंशिक पदार्थ की समान मात्रा संतति में पहुँचती है।

(iv) बहु विखण्डन (Multiple Fission)-इसमें जनक कोशिका अपने ऊपर एक आवरण बना लेती है। इसके अन्दर केन्द्रक विभाजित होकर अनेक पुत्री केन्द्रक बनाता है। इनके चारों ओर जीवद्रव्य की थोड़ी-थोड़ी मात्रा एकत्र हो जाती है, जिससे छोटी-छोटी असंख्य पुत्री कोशिकाएँ बन जाती हैं। अनुकूल मौसम में आवरण के फटने पर पुत्री कोशिकाएँ स्वतन्त्र हो जाती हैं। इस प्रकार का अलैंगिक जनन अमीबा, प्लाज्मोडियम आदि में पाया जाता है।

(v) मुकुलन (Budding)-इस विधि में जीव से एक छोटी कलिका निकलती है। यह कलिका मातृ जीव से पृथक् होकर संतति जीव में बदल जाती है। इस प्रकार का जनन हाइड्रा, यीस्ट आदि में पाया जाता है।

(vi) बीजाण निर्माण (Spore Formation)-इस प्रकार का अलैंगिक जनन राइजोपस, म्यूकर आदि में पाया जाता है। इसमें कवक जाल से ऊर्ध्व तन्तुओं का निर्माण होता है। इन तन्तुओं के शीर्ष पर गोलाकार बीजाणुधानी बनती है। बीजाणुधानी में सूक्ष्म बीजाणुओं का निर्माण होता है। बीजाणुधानी के फटने पर बीजाणु वायु द्वारा प्रकीर्णित हो जाते हैं। बीजाणु अंकुरण करके नया कवक जाल बनाते हैं।

(vii) पुनरुद्भवन (Regeneration)-कुछ जीवों में जीव का स्वस्थ कोशिका युक्त भाग नये जीव का निर्माण कर लेता है, इसे पुनरुद्भवन कहते हैं। प्लेनेरिया, स्पंजों, हाइड्रा आदि के शरीर को टुकड़ों में काट देने पर प्रत्येक टुकड़ा नये जीव का निर्माण कर लेता है।

(viii) कायिक जनन (Vegetative Propagation)अनेक पौधों में ऐसी संरचनाएँ होती हैं जिनसे नये पौधों का निर्माण हो जाता है। उदाहरण के लिए अदरक के प्रकन्द, आलू के कन्द, अरबी के घनकन्द, ब्रायोफिलम् की पर्ण कलिका इत्यादि। कत्रिम रूप से कायिक प्रजनन कलम. रोपण, कलिकायन, आदि विधियों द्वारा कराया जाता है।

प्रश्न 2.
पुनरुद्भवन क्या है? प्लेनेरिया में पुनरुद्भवन का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पुनरुद्भवन (Regeneration)-कुछ जीवों के शरीर को छोटे-छोटे खण्डों में काट देने पर कटे हुए प्रत्येक खण्ड में नया जीव बनाने की क्षमता होती है। इस क्षमता को पुनरुद्भवन कहते हैं; जैसे-स्पंज, हाइड्रा, प्लेनेरिया आदि। प्लेनेरिया में पुनरुद्भवन अथवा पुनर्जनन विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा सम्पादित होता है। इन कोशिकाओं के क्रम प्रसरण द्वारा अनेक कोशिकाएँ बन जाती हैं। कोशिकाओं के इस समूह में परिवर्तन के दौरान विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ एवं ऊतक बनते हैं। यह परिवर्तन अत्यधिक व्यवस्थित रूप में
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एवं क्रम से होता है जिसे परिवर्धन कहते हैं। परन्तु पुनरुद्भवन जनन के समान नहीं है। इसका मुख्य कारण है कि प्रत्येक जीव के किसी भी भाग को काटकर सामान्यतः नया जीव उत्पन्न नहीं होता है।

प्रश्न 3.
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मानव द्वारा पौधों में कृत्रिम ढंग से कराये जाने वाले कायिक जनन को कृत्रिम कायिक प्रवर्धन कहते हैं। यह निम्न विधियों द्वारा सम्पन्न किया जाता है
(i) कलम लगाना (Cutting)-कुछ पौधों के परिपक्व तने के टुकड़ों (कलम) को भूमि में तिरछा गाड़ दिया जाता है। इससे कुछ दिनों बाद नया पौधा विकसित हो जाता है; जैसे-गुलाब, गन्ना, गुड़हल आदि।

(ii) दाब लगाना (Layering)-कुछ पौधों की नर्म शाखाओं पर छाल हटाकर वलय बनाकर इस स्थान को भूमि में दबा देने से इस स्थान से जड़ें निकल आती हैं और नये पौधे का निर्माण हो जाता है; जैसे- मोगरा, नीबू, बोगेनविलिया आदि।

(iii) गूटी लगाना (Gootee)-इसमें पौधे की एक वर्ष पुरानी शाखा पर एक वलय बनाकर हॉर्मोन युक्त क्ले मृदा को लपेट कर बाँध दिया जाता है। मृदा को नम रखने की भी व्यवस्था कर दी जाती है। वलय के स्थान से इसमें जड़ें उत्पन्न हो जाती हैं। अब इसे मातृ पौधे से काटकर अलग कर लिया जाता है; जैसे-अमरूद. फाइकस आदि।

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(iv) रोपण (Grafting)- इस विधि में वांछित लक्षणों वाले पौधे की शाखा का रोपण अवांछित लक्षण वाले पौधे के ऊपर किया जाता है। इसमें दोनों पौधों की समान शाखाओं को छीलकर आपस में चिपकाकर बाँध देते हैं। कुछ समय बाद ये दोनों शाखाएँ आपस में जुड़ जाती हैं। अब वांछित शाखा के निचले भाग तथा अवांछित शाखा के ऊपरी भाग को काटकर अलग कर देते हैं।

प्रश्न 4.
पौधों में परागण की विभिन्न विधियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पौधों में परागण वायु, जल, कीट तथा पक्षियों द्वारा होता है।
1. वायु द्वारा परागण (Anemophily)-अनेक पौधों में वायु द्वारा परागण होता है। ऐसे पौधों में पुष्प प्रायः छोटे, पूर्ण खुले हुए होते हैं। इनमें सुगंध, मकरंद एवं रंग का अभाव होता है। इन पुष्पों में परागकण हल्के होते हैं।

2. जल द्वारा परागण (Hydrophily)-प्रायः जल में उगने वाले पौधों, जैसे-कमल, हाइड्रिला, वैलिसनेरिया आदि में जल द्वारा परागकण मादा जननांग तक पहुँचते हैं। इन पौधों में परागकण तैरने वाले होते हैं। इनके मादा पुष्प में भी विशिष्ट अनुकूलन पाए जाते हैं।

3. कीटों द्वारा परागण (Entomophily)-अनेक कीट परागकणों के वाहक का कार्य करते हैं; जैसे-मधुमक्खी, बरं, तितली आदि। कीट परागित पुष्प सुगंध एवं मकरंद युक्त तथा चटकीले रंगों के होते हैं जो कीटों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कीट मकरंद (Nectar) प्राप्ति के लिए इन पर बैठते हैं और परागकणों को अपने ऊपर चिपकाकर ले जाते हैं। जब ये दूसरे पुष्प पर जाते हैं, तो कुछ परागकण उस पर गिर जाते हैं और परागण हो जाता है; जैसे-सरसों, अंजीर, गूलर, साल्विया आदि।

4.जन्तु परागण (Zoophily)-अनेक जन्तु, जैसे-पक्षी, चमगादड़, घोंघे आदि भी अनेक पौधों में परागण क्रिया सम्पन्न कराते हैं; जैसे-सेमल, बिगोनिया, कदम्ब एवं अन्य फलदार पौधे।

प्रश्न 5.
निषेचन की परिभाषा देते हुए पौधों में इसकी क्रियाविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
निषेचन (Fertilization)-नर तथा मादा युग्मकों के संलयन (fusion) को निषेचन कहते हैं।
परागण (Pollination) के पश्चात्, परागकण वर्तिकाग्र (Stigma) पर अंकुरण प्रारम्भ कर देते हैं। वर्तिकान से सरल पदार्थ अवशोषित करके परागकण से एक पराग नलिका निकलती है। यह पराग नलिका परागकण में स्थित जनन छिद्र से बाहर निकलती है। परागकण का वर्षी केन्द्रक पराग नलिका के अग्र छोर पर तथा दो नर केन्द्रक (युग्मक) इसके पीछे होते हैं। पराग नलिका वर्तिका (Style) के ऊतकों को भेदती हुई भ्रूण कोष (Embryo sac) में प्रवेश करती है। यह अपने दोनों नर केन्द्रकों को भ्रूण कोष में छोड़ देती है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है 12
परिपक्व भ्रूण कोष में एक अण्डकोशिका, दो सहायक कोशिका, तीन प्रतिव्यासांत (Antipodles) कोशिका तथा एक द्वितीयक केन्द्रक होता है। द्वितीयक केन्द्रक (2n) को छोड़कर अन्य सभी केन्द्रक अगुणित (n) होते हैं। द्वितीयक केन्द्रक का निर्माण दो ध्रुवीय केन्द्रकों के संलयन से होता पराग नलिका द्वारा भ्रूण कोष में छोड़े गये दोनों नर केन्द्रकों में से एक नर केन्द्रक अण्डकोशिका के केन्द्रक से संलयित होकर द्विगुणित युग्मनज (Zygote) बनाता है। दूसरा नर केन्द्रक द्वितीयक केन्द्रक से संलयित होकर त्रिगुणित (3n) भ्रूणपोष केन्द्रक बनाता है। युग्मनज से भ्रूण का तथा भ्रूणकोष केन्द्रक से भ्रूणपोष का विकास होता है।

प्रश्न 6.
पुरुष के जननांगों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पुरुष के जनन तन्त्र में निम्नलिखित अंग होते हैं-
1. वृषण (Testes)-पुरुष में एक जोड़ी वृषण उदरगुहा से बाहर, थैले जैसी रचना वृषण कोश (Scrotal Sac) में स्थित होते हैं। प्रत्येक वृषण के अन्दर अनेक अत्यधिक पतली तथा कुण्डलित नलिकाएँ, शुक्राणु नलिकाएँ (Seminiferous tubules) होती हैं। इनमें स्थित शुक्रजनन कोशिकाएँ (Spermatocytes) शुक्राणुजनन की क्रिया द्वारा शुक्राणुओं (Sperms) का निर्माण करती हैं।

2. अधिवृषण (Epididymis)-अधिवृषण वृषणों के ऊपर स्थित अति कुण्डलित नलिकाएँ होती हैं। शुक्राणु वृषण से इन नलिकाओं में आते हैं।

3.शुक्रवाहिनी (Vas deferens)-अधिवृषण का अन्तिम छोर एक संकरी नली में खुलता है। इसे शुक्रवाहिनी कहते हैं। दोनों ओर की शुक्रवाहिनी उदर गुहा में प्रवेश करके शुक्राशय से मिल जाती हैं।

4. शुक्राशय (Seminal Vesicle)-यह थैलीनुमा रचना होती है। शुक्रवाहिनी उदरगुहा में पहुँचकर मूत्रनली के साथ लूप बनाती हुई शुक्रवाहिनी में खुलती है। शुक्राशय में शुक्राणु एकत्र होते हैं। शुक्राशय में पोषक तरल स्रावित होता है। शुक्राणुओं सहित इस तरल को वीर्य (semen) कहा जाता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है 13
5. मूत्रमार्ग (Urethra)-शुक्राशय एक संकरी नली के द्वारा, जिसे स्खलन नलिका (ejaculatory duct) कहते हैं, मूत्राशय के संकरे मार्ग में खुलता है। पुरुष में मैथुन क्रिया के लिए मूत्र मार्ग एक मांसल अंग शिश्न (Penis) में स्थित होता है। बाद में यह एक छिद्र द्वारा बाहर खुलता है। इसे मूत्र जनन छिद्र कहते हैं। मैथुन के समय शिश्न भाग के द्वारा मादा की योनि में प्रवेश करके वीर्य को शरीर के अन्दर भेजने का कार्य करता है।

6. सहायक ग्रन्थियाँ (Assessory glands)-उपर्युक्त अंगों के अतिरिक्त पुरुषों में प्रोस्टेट (Prostate), काउपर्स (Cowper’s) तथा पीनियल (Penial) ग्रन्थियाँ उपस्थित होती हैं जो अपने-अपने स्राव वीर्य में स्रावित करती हैं तथा शुक्राणुओं की सुरक्षा करती हैं।

प्रश्न 7.
स्त्री के जनन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए। (CBSE 2017, 2018)
उत्तर-
स्त्री के जनन तन्त्र में निम्नलिखित अंग होते हैं-
1. अण्डाशय (Ovary)-स्त्री में एक जोड़ी अण्डाशय होते हैं। ये अण्डाकार, भूरे रंग की रचनाएँ हैं जो उदर गुहा में, गर्भाशय में दोनों ओर एक-एक करके स्थित होते हैं। अण्डाशय में अण्डजनन की क्रिया द्वारा अगुणित अण्ड (egg) का निर्माण होता है।

2. अण्डवाहिनी (Oviduct)-दोनों अण्डाशयों के समीप स्थित झालरदार मुखिका से एक-एक अण्डवाहिनी निकलती है जो मध्य भाग में फैलोपियन नलिका कहलाती है। दोनों ओर की नलिकाएँ गर्भाशय के ऊपरी भाग में खुलती हैं। अण्डाशय में मुक्त अण्ड अण्डवाहिनी के फैलोपियन भाग में आता है जहाँ अण्ड का निषेचन होता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है 14
3. गर्भाशय (Uterus)-गर्भाशय एक माँसल रचना है, जिसका ऊपरी भाग चौड़ा तथा निचला भाग संकरा होता है। दोनों ओर की अण्डवाहिनियाँ गर्भाशय के चौड़े भाग में ऊपर की ओर खुलती हैं। निषेचित अण्ड गर्भाशय की भीतरी भित्ति में निर्मित सूक्ष्मांकुरों (microvilli) में रोपित होता है तथा शिशु के जन्म तक भ्रूण का विकास इसी में होता है।

4. योनि (Vagina)- गर्भाशय का निचला भाग एक संकरी एवं लचीली माँसल नलिका में खुलता है जिसे योनि कहते हैं। मैथुन के समय पुरुष का वीर्य इसी नलिका में स्खलित होता है और गर्भाशय मुखिका से होते हुए शुक्राणु फैलोपियन नलिका में पहुँचता है।

5. भग (Vulva)-योनि बाहर की ओर एक छिद्र द्वारा खुलती है जिसे भग कहते हैं। इसे सुरक्षित रखने के लिए इसके दोनों ओर दो माँसल ओष्ठ होते हैं। दोनों ओष्ठों के जुड़ने के स्थान पर ऊपर की ओर एक भग शिश्न होता है।

6. बर्थोलिन ग्रन्थि (Bartholin’s gland)-यह एक विशेष प्रकार का तरल पदार्थ स्रावित करती है। यह स्राव मैथुन को सुगम बनाता है तथा शुक्राणुओं की जीवाणुओं से रक्षा करता है।

प्रश्न 8.
जनन स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं? गर्भधारण रोकने के विभिन्न उपाय लिखिए। [CBSE 2015, 2016, 2019]
उत्तर-
जनन स्वास्थ्य (Reproductive Health)- लैंगिक क्रिया द्वारा गर्भधारण की सम्भावना सदैव बनी रहती है। गर्भधारण की अवस्था में स्त्री के शरीर एवं भावनाओं की माँग एवं आपूर्ति बढ़ जाती है और यदि वह गर्भधारण के ‘लिए तैयार नहीं है तो इसका स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

अतः गर्भधारण को रोककर स्वास्थ्य को बनाए रखना जनन स्वास्थ्य कहलाता है। गर्भ धारण रोकने के उपाय-

  1. रोधक विधियाँ (Barrier Methods)-इसमें कंडोम तथा डायफ्राम का प्रयोग किया जाता है। ये युक्तियाँ शुक्राणुओं को अण्डाणु से मिलने में रोधक का कार्य करती हैं जिससे निषेचन नहीं होता है।
  2. रासायनिक विधियाँ (Chemical Methods)सगर्भता को रोकने में महिलाएँ दो प्रकार की गोलियों का उपयोग करती हैं-मुखीय गोलियाँ तथा योनि गोलियाँ। ये गोलियाँ शुक्राणुओं या अण्डाणुओं को निष्क्रिय कर देती हैं।
  3. शल्य विधियाँ (Operation Methods)-इस विधि में पुरुष नसबंदी (Vasectomy) या स्त्री नसबन्दी (Tubectomy) करायी जाती है।
  4. अन्तः गर्भ निरोधक विधियाँ (Intra-uterine Contraceptive Device)-चिकित्सकों द्वारा कॉपर ‘टी’ का रोपण गर्भाशय के अन्दर करने से गर्भधारण क्रिया नहीं होती है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए(i) एड्स, (ii) सुजाक, (iii) आतशक।
उत्तर-
(i) एड्स (AIDS)-यह एक लैंगिक संचारित रोग है। इसे एक्वायर्ड इम्युनो डैफीशिएंसी सिण्ड्रोम (Ac quired Immuno Deficiency Syndrome) कहते हैं। यह एक विषाणु ह्यूमेन-इम्यूनो डैफीशिएंसी वाइरस (HIV) द्वारा होता है। यह विषाणु संक्रमित व्यक्ति की लिम्फोसाइट (lymphocytes) कोशिकाओं को नष्ट करके शरीर की प्रतिरोधकता को समाप्त कर देता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है। यह रोगः असुरक्षित सहवास, संक्रमित सुई का प्रयोग, संक्रमित रुधिर आधान द्वारा संचारित होता है। इस रोग का परीक्षण एलिशा परीक्षण द्वारा किया जाता है। अभी तक इस रोग का इलाज पूर्ण रूप से नहीं किया जा सका है।

(ii) सुजाक (Gonorrhoea)-यह रोग यौन संक्रमित नर या मादा के साथ शारीरिक सम्बन्धों द्वारा संचारित होता है। यह विषाणु द्वारा होता है। रोगाणु कटी हुई त्वचा या घावों द्वारा शरीर में प्रवेश करके यौन अंगों तक पहुँच जाता है। इस रोग के प्रमुख लक्षण लम्बे समय तक बुखार, त्वचा में खुजली, जननांगों पर फुसियाँ निकलना आदि हैं। इसका एंटीबायोटिक दवाओं द्वारा उपचार सम्भव है।

(iii) आतशक (Syphilis)- यह रोग स्पिरोचेट जीवाणु (Spirochete Bacterium) ट्रिपोनीमा पैलीडम (Treponema pallidum) द्वारा फैलता है। इस रोग में जनन तन्त्र, मूत्र नली आदि की झिल्ली प्रभावित होती हैं। इसका निदान किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
(a) “कण्डोम का उपयोग यौन क्रिया में सम्मिलित दोनों लिंगों (पुरुष एवं स्त्री) के लिए लाभकारी होता है।” दो कारण सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए।
(b) गर्भ निरोधक गोलियाँ गर्भधारण को रोकने में किस प्रकार सहायता करती हैं?
(c) लिंग चयनात्मक गर्भपात किसे कहते हैं? किसी स्वस्थ समाज को यह किस प्रकार प्रभावित करता है? (किसी एक परिणाम का उल्लेख कीजिए)। [CBSE 2020]
उत्तर-
(a)

  • कण्डोम के उपयोग से दोनों लिंग यौन संक्रमित रोगों से बच जाते हैं।
  • कण्डोम स्त्री व पुरुष दोनों को अनचाही संतान होने के भय से मुक्ति दिलाता है।

(b) गर्भ निरोधक गोलियाँ, मादा के अण्डाशय के हॉर्मोनों को नियन्त्रित करके अण्डोत्सर्ग क्रिया को रोक देती हैं जिसके कारण अण्डाणु निषेचन के लिए अण्डाशय से बाहर नहीं निकल पाता है।
(c) लिंग चयनात्मक गर्भपात का अर्थ है कि एक विशेष लिंग वाले भ्रूण का गर्भपात करवाना। हमारे देश में अधिकतर मादा भ्रूण का गर्भपात करवाया जाता रहीं है, परन्तु ऐसा करना अब एक कानूनी अपराध बन गया है। .. परन्तु इस प्रकार के गर्भपात यदि निरंतर होते रहे तो समाज में नर तथा मादा मनुष्यों के अनुपात का संतुलन बिगड़ जाएगा जो कि स्वस्थ समाज के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions)

1. अमीबा में जनन की अलैंगिक विधि है-
(a) विखण्डन
(b) बहुविखण्डन
(c) (a) व (b) दोनों
(d) युग्मक लयन ।
उत्तर-
(c) (a) व (b) दोनों।

2. मादा-मानव में निषेचन कहाँ होता है ?
(a) गर्भाशय में
(b) अण्डाशय में
(c) योनि में
(d) फैलोपियन नलिका में।
उत्तर-
(d) फैलोपियन नलिका में।

3. बीजाणुओं द्वारा अलैंगिक जनन होता है-
(a) अमीबा में
(b) मनुष्य में
(c) यीस्ट में
(d) मॉस में।
उत्तर-
(d) मॉस में।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 8 जीव जनन कैसे करते है

4. तने द्वारा कायिक प्रवर्धन होता है-
(a) पोदीने में
(b) हल्दी में
(c) अदरक में
(d) सभी में।
उत्तर-
(d) सभी में।

5. पौधे के जननांग हैं-
(a) पुंकेसर
(b) स्त्रीकेसर
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) बाह्य दल।
उत्तर-
(c) (a) तथा (b) दोनों।

6. मनुष्य में अण्डाशयों की संख्या होती है
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार।
उत्तर-
(b) दो।

7. परागकणों का निर्माण होता है-
(a) परागकोष में
(b) भ्रणकोष में
(c) भ्रूणपोष में
(d) पुष्पासन में।
उत्तर-
(a) परागकोष में।

8. आलू में कायिक जनन होता है-
(a) जड़ से
(b) कन्द से
(c) तने से
(d) पुष्प से।
उत्तर-
(b) कन्द से।।

9. ब्रायोफिल्लम में कायिक जनन होता है
(a) जड़ कलिका से
(b) स्तम्भ कलिका से
(c) पूर्ण कलिका से
(d) शीर्ष कलिका से।
उत्तर-
(c) पूर्ण कलिका से।

10. अण्डाशय से अण्ड उत्सर्जन को कहते हैं-
(a) अण्डोत्सर्ग
(b) अण्डजनन ।
(c) रजोचक्र
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(a) अण्डोत्सर्ग।

11. किस रचना द्वारा गर्भस्थ भ्रूण माता से पोषण प्राप्त करता है-
(a) रुधिर वाहिनी
(b) गर्भनाल
(c) आमाशय
(d) अण्डवाहिनी।
उत्तर-
(b) गर्भनाल।

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12. नर हॉर्मोन है-
(a) टेस्टोस्टेरॉन
(b) प्रोजेस्ट्रॉन
(c) एस्ट्रोजन
(d) ऑक्सीटोसिन।
उत्तर-
(a) टेस्टोस्टेरॉन।

13. नर युग्मक तथा मादा युग्मक के संलयन से बनता-
(a) युग्मनज (Zygote)
(b) भ्रूण (Embryo)
(c) अण्डप (Carpel)
(d) ये सभी।
उत्तर-
(a) युग्मनज (Zygote)

14. द्विनिषेचन पाया जाता है-
(a) आवृत्तबीजी में
(b) अनावृत्तबीजी में
(c) शैवाल में
(d) फर्न में।
उत्तर-
(a) आवृतबीजी में।

15. एकलिंगी पुष्प पाए जाते हैं-
(a) सरसों में
(b) गुड़हल में
(c) तरबूज में
(d) अमरूद में।
उत्तर-
(c) तरबूज में।

16. लैंगिक जनन के लिए आवश्यक है-
(a) DNA का विघटन
(b) DNA का प्रतिलिपिकरण
(c) प्रोटीन का प्रतिकृतिकरण
(d) ये सभी।
उत्तर-
(b) DNA का प्रतिलिपिकरण।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (Fill In the blanks)

1. ………………………. प्रक्रिया स्पंजों, हाइड्रा आदि में मुख्य रूप से पायी जाती हैं।
उत्तर-
पुनरुद्भवन,

2. मनुष्य में गर्भ की अवधि ………………………. है।
उत्तर-
40 सप्ताह,

3. एक ही जीव में नर तथा मादा जननांगों का पाया जाना ………………………. कहलाती है।
उत्तर-
उभयलिंगता,

4. पुष्प में ………………………. तथा ………………………. पाये जाते हैं।
उत्तर-
नर जननांग, मादा जननांग,

5. हाइड्रा जैसे कुछ प्राणी जुनर्जनन की क्षमता वाली कोशिकाओं का उपयोग ………………………. के लिए करते हैं।
उत्तर-
मुकुलन |

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सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न (Matrix Type Questions)

निम्न प्रश्नों में सही मिलान कीजिए|
(a)

सूची Aसूची B
1. अपरा या ऑवल(i) अमीबा
2. द्विखण्डन(ii) स्तनधारी
3. कलम(iii) केंचुआ
4. द्विलिंगी(iv) नर जननांग
5. पुंकेसर(v) गुलाब
6. स्त्रीकेसर(vi) मादा जननांग

उत्तर:-

सूची Aसूची B
1. अपरा या ऑवल(ii) स्तनधारी
2. द्विखण्डन(i) अमीबा
3. कलम(v) गुलाब
4. द्विलिंगी(iii) केंचुआ
5. पुंकेसर(iv) नर जननांग
6. स्त्रीकेसर(vi) मादा जननांग

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(b)

सूची Aसूची B
1. आलू(i) लैंगिक जनन
2. प्याज(ii) कन्द द्वारा कायिक जनन
3. राइजोपस(iii) मुकुलन
4. यीस्ट(iv) पुनर्जनन
5. · हाइड्रा(v) बीजाणु समासंघ
6. मनुष्य(vi) शल्क कन्द द्वारा प्रजनन

उत्तर-

सूची Aसूची B
1. आलू (ii) कन्द द्वारा कायिक जनन
2. प्याज(iv) पुनर्जनन
3. राइजोपस(v) बीजाणु समासंघ
4. यीस्ट(iii) मुकुलन
5. · हाइड्रा(vi) शल्क कन्द द्वारा प्रजनन
6. मनुष्य(i) लैंगिक जनन

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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 6 वायव फोटो का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. पहली बार वायव फोटो खींचने के लिए वायुयान का प्रयोग कब हुआ?
(A) सन् 1902 में
(B) सन् 1905 में
(C) सन् 1907 में
(D) सन् 1909 में
उत्तर:
(D) सन् 1909 में

2. भारत में वायव फोटो चित्र का सर्वप्रथम उपयोग कब हुआ?
(A) सन् 1908 में
(B) सन् 1912 में
(C) सन् 1915 में
(D) सन् 1916 में
उत्तर:
(D) सन् 1916 में

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

3. मापनी के आधार पर वायव फोटो को कितने प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है?
(A) तीन
(B) चार
(C) पाँच
(D) छः
उत्तर:
(A) तीन

4. वायव फोटोग्राफी की कितनी विधियाँ हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

5. भारत में कितनी उड्डयन एजेंसी ही सरकारी अनुमति से वायव फोटो ले सकती हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(B) तीन

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
फोटोग्राममिति किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वायव फोटो चित्रों से धरातलीय एवं अन्य सूचनाओं के मापन और चित्रण की कला और विज्ञान को फोटोग्राममिति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में वायव फोटो चित्र का सर्वप्रथम उपयोग किसने किया था?
उत्तर;
मेजर सी.पी. गुंडुर (1916) ने।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय सुदूर संवेदी संस्था कहाँ स्थित है?
उत्तर:
हैदराबाद में।

प्रश्न 4.
‘नत फोटोग्राफ’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऊर्ध्वाधर अक्ष से प्रकाशीय अक्ष में 3° से अधिक विचलन वाले फोटोग्राफ को ‘नत फोटोग्राफ’ कहा जाता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

प्रश्न 5.
ऊर्ध्वाधर अक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर:
कैमरा लैंस केन्द्र से धरातलीय तल पर बने लंब को ऊर्ध्वाधर अक्ष कहा जाता है।

प्रश्न 6.
बृहत मापनी फोटोग्राफ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब एक वायव फोटो की मापनी 1:15,000 तथा इससे बड़ी होती है, तो इस प्रकार को फोटोग्राफ के बृहत मापनी फोटोग्राफ कहते हैं।

प्रश्न 7.
वायव फोटो चित्रों में दर्ज भौतिक तथा मानवीय लक्षणों की पहचान किस आधार पर की जा सकती है?
उत्तर:
आभा एवं आकृति के आधार पर।

प्रश्न 8.
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण कब और किसने किया था?
उत्तर:
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण सन् 1840 में फ्राँस के ल्यूसिडा (Laussedat) ने किया था।

प्रश्न 9.
उपग्रह द्वारा इमेजरी प्राप्त करने का प्रचलन कब से शुरू हुआ?
उत्तर:
1970 के दशक से।

प्रश्न 10.
स्टीरियोस्कोप कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
दो प्रकार का-

  1. लैंस स्टीरियोस्कोप
  2. दर्पण स्टीरियोस्कोप।

प्रश्न 11.
वाय फोटो चित्रों में स्वच्छ जल कैसा दिखाई देता है?
उत्तर:
काला या धूसर।

प्रश्न 12.
वायु फोटो चित्रों में रेतीले इलाके का रंग कैसा दिखाई देता है?
उत्तर:
सफेद।

प्रश्न 13.
वायव फोटो का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वायुयान में लगे कैमरे द्वारा वायुमण्डल से खींची गई फोटो को वायव फोटो कहा जाता है। वायव फोटो भू-तल का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है जिसकी सहायता से स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने में सहायता मिलती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायव फोटो के महत्त्वपूर्ण उपयोग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वायव फोटो के उपयोग निम्नलिखित हैं-

  1. वायव फोटो हमें बड़े क्षेत्रों का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है जिनसे पृथ्वी की सतह की स्थलाकृतियों को उनके स्थानिक सन्दर्भ में देखा जा सकता है।
  2. वायव फोटो का उपयोग ऐतिहासिक अवलोकन में किया जाता है।
  3. वायव फोटो से पृथ्वी के धरातलीय दृश्यों का त्रिविम स्वरूप प्राप्त किया जा सकता है।
  4. वायुयान की ऊँचाई के आधार पर विभिन्न मापनियों पर आधारित वायुफोटो चित्रों को प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
वायव फोटो के लक्षणों की पहचान किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
वायव फोटो की व्याख्या करने के लिए निम्नलिखित आधारों का सहारा लेना पड़ता है-
1. आभा (Tone) सामान्यतः वायु फोटो में ब्लैक एण्ड व्हाइट चित्र लिए जाते हैं जिनमें धूसर रंग की अनेक आभाएँ होती हैं जो धरातल द्वारा परावर्तित प्रकाश की मात्रा पर निर्भर करती है। धरातल के जिस भाग से प्रकाश का अधिक परावर्तन होता है, वायु फोटो में उस भाग की आभा हल्की होगी और पृथ्वी का जो भाग प्रकाश का कम परावर्तन करेगा उस भाग की आभा वायु फोटो पर गहरी होगी। उदाहरणस्वरूप स्वच्छ जल धूसर या काला दिखाई देगा जबकि सड़कों और रेल मार्गों की आभा हल्की होती है।

2. आकृति (Shape)-सामान्यतः प्राकृतिक लक्षण अनियमित आकार के होते हैं तथा मानवीय लक्षणों का आकार नियमित होता है; जैसे नदियों, तालाबों, पर्वतों तथा मरुस्थलों की आकृति अनियमित होती है जबकि मानवकृत भवन, खेत, सड़कें, रेलें आदि नियमित आकार प्रदर्शित करते हैं।

3. आकार (Size) धरातलीय लक्षणों की पहचान उनके आकार से भी की जा सकती है। उदाहरणतया नहर पतली व सीधी दिखाई देती है तथा नदी बड़ी व टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देती है।

4. त्रिविमीय प्रतिरूप (Stereoscopic Pattern)-अतिव्यापन वाले दो वायव फोटो की सहायता से त्रिविमीय स्वरूप देखकर प्रदर्शित तथ्यों की पहचान आसानी से की जा सकती है।

प्रश्न 3.
फोटोग्राफिक सर्वेक्षण का संक्षिप्त इतिहास बनाते हुए वायु फोटो के उपयोगों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण सन् 1840 में फ्रांस के ल्यूसिडा (Laussedat) ने किया था। वायु फोटोग्राफी का वास्तविक विकास द्वितीय विश्व युद्ध में आरम्भ हुआ। आजकल तो वायु फोटो का उपयोग स्थलाकृतिक सर्वेक्षण (Tapographical Survey), भू-विज्ञान (Geology), जल विज्ञान (Hydrology), वानिकी (Forestry), पुरातत्व विज्ञान (Archeology), मृदा अपरदन के नियन्त्रण, यातायात नियन्त्रण तथा अनेक प्रकार के खोज कार्यों में किया जाने लगा है।

प्रश्न 4.
वायु फोटोग्राफी के तेजी से उभरने के कारण और उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
वायु फोटोग्राफी के तेजी से उभरने के प्रमुख कारण और उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. इनकी सहायता से अगम्य (Inaccessible) क्षेत्रों का चित्रण बहुत ही आसान हो गया है।
  2. जो सर्वेक्षण साधारण विधियों द्वारा कई-कई महीनों में तैयार होता था, वायु फोटो द्वारा वह अत्यन्त थोड़े समय में तैयार हो जाता है और वह भी बिना किसी त्रुटि के।
  3. यद्यपि इस विधि का प्रारम्भिक व्यय अधिक है किन्तु अन्ततः इसका कुल व्यय साधारण विधियों की अपेक्षा कम ही पड़ता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

प्रश्न 5.
उपग्रहीय इमेजरी क्या होती है? इन चित्रों से किस प्रकार की सहायता मिलती है?
उत्तर:
अन्तरिक्ष में उच्च तकनीक से युक्त संवेदनशील उपकरणों से सुसज्जित उपग्रहों को स्थापित करके उनके द्वारा लिए गए चित्रों को उपग्रहीय इमेजरी कहा जाता है। इन चित्रों से दूर संवेदन में सहायता मिलती है। दूर संवेदन के लिए उपग्रह द्वारा इमेजरी प्राप्त करने का प्रचलन 1970 के दशक में आरम्भ हुआ।

प्रश्न 6.
उपग्रहीय इमेजरी वायु फोटोग्राफी से क्यों बेहतर है?
उत्तर:
उपग्रहीय इमेजरी वायु फोटोग्राफी से निम्नलिखित कारणों से बेहतर है-

  1. उपग्रह इमेजरी से अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्रों के भौतिक तथा मानवीय तत्त्वों का अवलोकन किया जा सकता है।
  2. सार अवलोकन (Synoptic Coverage) के लिए उपग्रह द्वारा इमेजरी वायु फोटो की अपेक्षा अधिक सार्थक एवं कारगर है।
  3. उपग्रह द्वारा चित्रण और उनकी पुनरावृत्ति (Repetition) अत्यन्त शीघ्र होती है। इसमें क्षण भर में उतनी जानकारी प्राप्त हो जाती है जितनी रूढ़ चित्रण (Conventional Contact Prints) द्वारा कई घण्टों तक प्राप्त नहीं हो सकती द्वारा इतनी जानकारी जुटाने में अनेक वर्ष लग सकते हैं।
  4. यदि उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थिति हो तो इसमें सम्पूर्ण पृथ्वी का भी चित्रण किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
लैंस स्टीरियोस्कोप पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लैंस स्टीरियोस्कोप-यह एक साधारण-सा उपकरण होता है जिसमें दो जुड़वा टाँगों वाले स्टैण्ड पर एक फ्रेम फिट किया गया होता है। इस क्षैतिज फ्रेम पर निश्चित दूरी के अन्तर पर दो लैंस लगे होते हैं। इन लैंसों के एकदम निकट आँख रखकर स्टीरियोस्कोप के नीचे रखे गए अतिव्यापित (Overlapped) फोटो चित्रों का अध्ययन किया जा सकता है। वायु फोटो के अतिव्यापन का एक तरीका होता है। सबसे पहले मेज पर स्टीरियोस्कोप के नीचे एक फोटो चित्र रखा जाता है। इसके ऊपर दूसरा फोटो चित्र इस प्रकार रखा जाता है कि उनके अतिव्यापित भाग ठीक एक-दूसरे के ऊपर आ जाएँ। अब ऊपर वाले वायु फोटो को दायीं ओर 5 सें०मी० सरकाइए। ऐसा करते समय ध्यान रहे कि निचले वायु फोटो के सन्दर्भ में ऊपरी वायु फोटो का अनुस्थान बिगड़ न जाए। ऐसी स्थिति में जब हम स्टीरियोस्कोप में से देखेंगे तो हमें अतिव्यापित फोटो चित्रों में धरातल का त्रि-विस्तारीय (Three Dimensional) स्वरूप दिखाई देगा।

प्रश्न 8.
सार सर्वेक्षण अथवा अवलोकन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इस सर्वेक्षण में केवल अपेक्षित विषय के बारे में सूचनाएँ एवं चित्र इकट्ठे किए जाते हैं न कि समस्त क्षेत्र के। उदाहरणतया यदि हम भारत के पूर्वी एवं पश्चिमी तटों पर स्थिति लैगून झीलों का सर्वेक्षण करते हैं, सम्पूर्ण तटीय प्रदेश का नहीं, तो इसे सार सर्वेक्षण कहा जाएगा।

प्रश्न 9.
मानचित्र तथा वायव फोटों में अन्तर बताइए।
उत्तर:
मानचित्र तथा वायव फोटो में अन्तर निम्नलिखित है-

मानचित्र फोटोवायव फोटो
1. इनकी रचना लम्बकोणीय प्रक्षेप पर होती है।1. इनकी रचना केन्द्रीय प्रक्षेप पर होती है।
2. इसमें मापनी एक समान होती है।2. इसमें मापनी एकसमान नहीं होती है।
3. अगम्य तथा अवास्य क्षेत्रों में मानचित्र बनाना अत्यधिक कठिन है।3. वायव फोटो अगम्य तथा अवास्य क्षेत्रों के लिए भी उपयोगी है।
4. इसमें दिकमान शुद्ध होता है।4. इसमें दिक्मान अशुद्ध होता है।
5. मानचित्र पर धरातल के लक्षण अदृश्य होते हैं।5. वायव फोटो में धरातलीय लक्षणों को पहचाना जा सकता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायव फोटो के प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायव फोटो का वर्गीकरण-वायव फ़ोटो का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जा सकता है; जैसे कैमरा अक्ष, मापनी, व्याप्ति क्षेत्र के कोणीय विस्तार एवं उसमें उपयोग में लाई फिल्म के आधार पर किया जाता है। लेकिन वायव फोटो का प्रचलित वर्गीकरण, कैमरा अक्ष की स्थिति और मापनी के आधार पर किया जाता है।
1. कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो के प्रकार कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ
  • अल्प तिर्यक फोटोग्राफ
  • अति तिर्यक फोटोग्राफ।

(1) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ (Vertical Photograph)-वायव फोटो को खींचते समय कैमरा लैंस के केंद्र से दो विशिष्ट अक्षों की रचना होती है

  • धरातलीय तल की ओर
  • फोटो के तल की ओर।

कैमरा लैंस केंद्र से धरातलीय तल पर बने लंब को ऊर्ध्वाधर अक्ष (Vertical Axis) कहा जाता है, जबकि लैंस के केंद्र से .. फ़ोटो की सतह पर बनी साहुल रेखा को फोटोग्राफी ऑप्टीकल अक्ष (Optical Axis) कहा जाता है। जब फोटो की सतह को धरातलीय सतह के ऊपर, उसके समांतर रखा जाता है, तब दोनों अक्ष एक-दूसरे से मिल जाते हैं। इस प्रकार, प्राप्त फोटो को ऊर्ध्वाधर वायव फोटो कहते हैं (चित्र 7.1)। यद्यपि, दोनों सतहों के बीच समांतरता प्राप्त करना काफ़ी कठिन होता है, क्योंकि वायुयान पृथ्वी की वक्रीय सतह (Curved surface) पर गति करता है। इसलिए फोटोग्राफ के अक्ष ऊर्ध्वाधर अक्ष से विचल
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 1
(Deviate) हो जाते हैं। यदि इस प्रकार का विचलन धनात्मक या ऋणात्मक 3° के भीतर होता है, तो लगभग ऊर्ध्वाधर वायव फ़ोटो प्राप्त होते हैं। ऊर्ध्वाधर अक्ष से प्रकाशीय अक्ष में 3° से अधिक विचलन वाले फोटोग्राफ को नत फोटोग्राफ कहा जाता है।

(2) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ (Low Oblique Photograph)-ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरा अक्ष में 150 से 30° के अभिकल्पित विचलन (Designed Deviation) के साथ लिए गए वायव फ़ोटो को अल्प तिर्यक फ़ोटोग्राफ़ कहा जाता है (चित्र 7.2)। इस प्रकार के फोटोग्राफ का उपयोग प्रायः प्रारंभिक सर्वेक्षणों में होता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 2

(3) अति तिर्यक फोटोग्राफ़ (High Oblique Photography)-ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरे की धुरी को लगभग 60° झुकाने पर एक अति तिर्यक फोटोग्राफ प्राप्त होता है (चित्र 7.3)। इस प्रकार की फ़ोटोग्राफी भी प्रारंभिक सर्वेक्षण में उपयोगी होती है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 3

2. मापनी के आधार पर वायव फोटो के प्रकार मापनी के आधार पर वायव फ़ोटो को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(1) बृहत मापनी फोटोग्राफ (Large Scale Photograph)-जब एक वायव फोटो की मापनी 1:15,000 तथा इससे बड़ी होती है, तो इस प्रकार को फोटोग्राफ के बृहत मापनी फ़ोटोग्राफ़ कहते हैं (चित्र 7.4)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 4

(2) मध्यम मापनी फोटोग्राफ (Medium Scale Photograph)-ऐसे वायव फोटो की मापनी 1:15,000 से 1:30,000 के बीच होती है (चित्र 7.5)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 5

(3) लघु मापनी फोटोग्राफ़ (Small Scale Photograph)-1:30,000 से लघु मापक वाले फ़ोटोग्राफ़ को लघु मापनी फोटोग्राफ़ कहा जाता है (चित्र 7.6)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 6

प्रश्न 2.
वायव फोटो में लक्षणों की पहचान किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
वायव फ़ोटो पर प्रदर्शित तथ्यों के बारे में विवरण नहीं दिया गया होता और न ही उन पर किसी संकेत या रूढ़ चिह्न का प्रयोग किया जाता है। वायु फ़ोटो में वृत्तों एवं पट्टियों पर कुछ प्रारंभिक सूचनाएँ अंकित होती हैं, जिनसे कुछ सामान्य प्रारंभिक जानकारी ही प्राप्त हो पाती है। अतः वायु फोटो चित्रों पर प्रदर्शित तथ्यों का विश्लेषण करने के लिए निम्नलिखित चीज़ों की आवश्यकता होती है-

  • जिस क्षेत्र के वायव फोटो का विश्लेषण करना है, वहां का मानचित्र और स्थलाकृतिक मानचित्र होना चाहिए ताकि बिंबों (Images) को पहचाना जा सके।
  • वायव चित्र में दिखाए गए क्षेत्र की भौतिक एवं मानवीय विशेषताओं की जानकारी विश्लेषणकर्ता को होनी चाहिए।

किसी क्षेत्र के वायु फोटो चित्रों में दर्ज भौतिक तथा मानवीय लक्षणों की पहचान आभा एवं आकृति के आधार पर की जा सकती है।
1. आभा (Tone)-यूं तो आजकल रंगीन हवाई चित्रों का चलन हो गया है किंतु सामान्यतया वायु फोटोग्राफ़ी में ब्लैक एंड व्हाइट चित्र ही लिए जाते हैं। ब्लैक एंड व्हाइट वायु चित्रों में धूसर रंग की अनेक आभाएं होती हैं जो धरातल द्वारा परावर्तित (Reflected) प्रकाश की मात्रा पर निर्भर करती हैं।

धरातल के जिस भाग से प्रकाश का परावर्तन ज्यादा होता है, वायु फ़ोटो में उस भाग की आभा हल्की (Light) होती है। इसके विपरीत धरती का जो भाग प्रकाश का कम मात्रा में परावर्तन करता है उस भाग की वायु फ़ोटो पर आभा गहरी होती है। अतः स्पष्ट है कि वायु फोटो चित्र पर भिन्न-भिन्न गहराई की आभाएं पाई जाती हैं। इन आभाओं के गहरेपन के आधार पर ही विभिन्न लक्षणों की पहचान की जा सकती है। देखिए कुछ उदाहरण-

  • स्वच्छ जल ऊर्ध्वाधर फ़ोटो (Vertical Photo) में घूसर या काला दिखाई देता है।
  • रेतीले इलाके का रंग सफेद दिखाई देता है।
  • गंदला जल हल्का भूरा दिखाई पड़ता है।
  • नमी वाली भूमि शुष्क भूमि की अपेक्षा गहरे रंग की प्रतीत होती है।
  • खेतों की आभा का गहरापन फसलों की लंबाई पर निर्भर करता है।
  • गेहूं की पकी हुई फसल हल्के रंग की आभा देती है।
  • हरियाली गहरे भूरे से काले रंग के बीच की आभा होती है।
  • सड़कों की आभा रेलमार्गों की आभा से हल्की होती है।

2. आकृति (Shape)-वस्तुओं के आकार की पहचान कर पाना वायु फ़ोटो चित्रों के अध्ययन में सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। आमतौर पर प्राकृतिक लक्षणों की अनियमित(Irregular) तथा मानवीय लक्षणों की आकृति नियमित होती है। उदाहरणतया नदियों, नालों, वनों, तालाबों, झीलों, मरुस्थलों, पर्वतों तथा तट रेखाओं आदि प्राकृतिक लक्षणों की आकृति अनियमित होती है जबकि मानवकृत वस्तुओं; जैसे भवन, खेत, सड़कें, नहरें, खेल के मैदान आदि नियमित आकार के होते हैं लेकिन इसके अपवाद भी हो सकते हैं। उदाहरणतः युद्ध की स्थिति में बैरकों, बंकरों, वाहनों, युद्ध सामग्रियों तथा जवानों को अनियमित रूप दे दिया जाता है जिसे छद्मावरण(Camouflage) कहते हैं ताकि वायुयान में बैठे शत्रु को सैनिक ठिकानों का आभास न हो सके।

3. आकार (Size)-तथ्यों के सापेक्षिक आकार से भी उनकी पहचान की जा सकती है। उदाहरणतः नहर पतली व सीधी दिखाई देती है जबकि नदी अपेक्षाकृत बड़ी और टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देती है। इसी प्रकार कारखाने लंबाकार व आवासीय भवन अपेक्षाकृत छोटे होते हैं।

4. गठन (Texture)-परती एवं बंजर भूमि सपाट व कहीं-कहीं धब्बों ये युक्त भूरे रंग की होती है। कृषि क्षेत्र की पहचान खेतों के आकार, मेढ़ तथा नहरों की स्थिति से की जा सकती है।

5. साहचर्य (Association)-तथ्यों के आस-पास स्थित अन्य तथ्यों से उनके संबंध के आधार पर भी तथ्यों की पहचान की जा सकती है। उदाहरणतः मानव अधिवास के क्षेत्र में सड़कें, गलियां एवं बाहर की ओर कृषि क्षेत्र मिलेगा। कृषि क्षेत्र में नहरों के होने की संभावना हो सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों, वनों व नदियों और झीलों में भी साहचर्य पाया जाता है।

6. त्रिविमीय प्रतिरूप (Stereoscopic Pattern)-अतिव्यापन (Overlapping) वाले दो वायव फ़ोटो की सहायता से त्रिविमीय स्वरूप देखकर प्रदर्शित तथ्यों की पहचान आसानी से की जा सकती है। यह एक महत्त्वपूर्ण पान जाताना स का जा सकती है। यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है, जिससे विवरणों की पहचान और विश्लेषण किया जा सकता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

वायव फोटो का परिचय HBSE 11th Class Geography Notes

→ वायव फोटो (Air Photo) वायुयान अथवा हैलीकॉप्टर में लगे कैमरे द्वारा वायुमण्डल से खींची गई फोटो को वायव फोटो कहा जाता है।

→ फोटोग्राममिति (Photogrammetry)-वायव फोटो चित्रों से धरातलीय एवं अन्य सूचनाओं के मापन और चित्रण की कला और विज्ञान को फोटोग्राममिति कहा जाता है।

→ प्रतिबिंब निर्वचन (Imagery Interpretation) यह वस्तुओं के स्वरूपों को पहचानने तथा उनके सापेक्षिक महत्त्व से निर्णय लेने की प्रक्रिया है।

→ लम्बकोणीय प्रक्षेप (Orthogonal Projection) यह समान्तर प्रक्षेप की विशेष स्थिति है जिसमें मानचित्र, धरातल एवं लम्बकोणीय प्रक्षेप होते हैं।

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HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

Haryana State Board HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Important Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (Veryshort Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले चुम्बकीय सिरे को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
उत्तरी ध्रुव।

प्रश्न 2.
दक्षिण दिशा की ओर संकेत करने वाले चुम्बकीय सिरे को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
दक्षिणी ध्रुव।

प्रश्न 3.
चुम्बकीय क्षेत्र कैसी राशि है ?
उत्तर-
चुम्बकीय क्षेत्र में परिमाण व दिशा दोनों होते हैं।

प्रश्न 4.
चुम्बक के ध्रुवों में आकर्षण व प्रतिकर्षण किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-
चुम्बक के समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित एवं असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।

प्रश्न 5.
चुम्बकीय क्षेत्र से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
किसी चुम्बक के आस-पास के क्षेत्र में चुम्बक के आकर्षण या विकर्षण का प्रभाव जहाँ तक दिखाई दे उसे चुम्बकीय क्षेत्र कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 6.
चुम्बकीय क्षेत्र की आपेक्षिक प्रबलता अधिकतम कहाँ होती है ?
उत्तर-
चुम्बक के ध्रुव पर।

प्रश्न 7.
मुक्त अवस्था में लटकाने पर चुम्बक किस-किस दिशा को प्रदर्शित करता है ?
उत्तर-
उत्तर और दक्षिण दिशा को।

प्रश्न 8.
विद्युत द्वारा बनाए गए चुम्बक को क्या कहते
उत्तर-
विद्युत चुम्बक।

प्रश्न 9.
किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर क्या होता है ?
उत्तर-
तार के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।

प्रश्न 10.
चुम्बकीय बल रेखायें किस ध्रुव से निकलती हुयी प्रतीत होती हैं ?
उत्तर-
उत्तरी ध्रुव (North pole)

प्रश्न 11.
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा किस ओर होती है ?
उत्तर-
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्षेत्र के किसी बिन्दु पर रखी गयी कम्पास सुई के दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर खींची गयी रेखा की दिशा में होती है।

प्रश्न 12.
किसी परिनालिका के बीच सभी बिंदुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र कैसा होता है ?
उत्तर-
सभी बिंदुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र एक समान होता है।

प्रश्न 13.
परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाह बंद करने पर क्या होता है ?
उत्तर-
चुम्बकीय प्रभाव समाप्त हो जाता है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 14.
परिनालिका में धारा की दिशा बदलने पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
ध्रुवों की स्थिति परस्पर बदल जाती है।

प्रश्न 15.
तार के फेरों की संख्या पर चुम्बकीय शक्ति किस प्रकार निर्भर करती है ?
उत्तर-
तारों की संख्या बढ़ाने पर चुम्बकीय क्षेत्र की शक्ति बढ़ जाती है।

प्रश्न 16.
किस क्रोड से अधिक शक्तिशाली चुम्बक बनता है ?
उत्तर-
नर्म लोहे के क्रोड से।

प्रश्न 17.
यदि स्वतन्त्रता पूर्वक लटकी परिनालिका में विद्युत धारा की दिशा बदल दी जाये तो क्या होता है?
उत्तर-
विद्युत धारा की दिशा बदल देने पर परिनालिका 180° से घूम जायेगी।

प्रश्न 18.
धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा किस नियम से निकाली जाती है?
उत्तर-
फ्लेमिंग के वामहस्त नियम से।

प्रश्न 19.
धारावाही चालक की लम्बाई बढ़ाने पर चालक पर लगने वाले बल पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
बल बढ जायेगा।

प्रश्न 20.
चुम्बकीय क्षेत्र में रखे चालक पर लगने वाले बल पर क्या प्रभाव पड़ेगा जब चालक में बहने वाली धारा को बढ़ा दिया जाये? .
उत्तर-
चालक पर बल बढ़ जायेगा।

प्रश्न 21.
विद्युत धारा का मान बढ़ाने पर विद्युत चुम्बकीय शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
विद्युत चुम्बकीय शक्ति अधिक हो जाती है।

प्रश्न 22.
नर्म लौह क्रोड एवं कुंडली को मिलाकर क्या कहते हैं ?
उत्तर-
आर्मेचर।

प्रश्न 23.
गैल्वेनोमीटर किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गैल्वेनोमीटर एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति संसूचित करता है।

प्रश्न 24.
प्रत्यावर्ती धारा (ac) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ऐसी विद्युत धारा जो समान-समान अंतरालों के पश्चात् अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं।

प्रश्न 25.
हमारे देश में धनात्मक और ऋणात्मक तारों के बीच कितना विभव होता है ?
उत्तर-
220VI .

प्रश्न 26.
विद्युत मोटर व विद्युत जनित्र में सिद्धान्ततः क्या अन्तर है ?
उत्तर-
विद्युत मोटर में विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में तथा विद्युत जनित्र में यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है।

प्रश्न 27.
MRI का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
MRI-चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिंबन होता है।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 28.
जनित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जनित्र वह युक्ति है जो यांरिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है।

प्रश्न 29.
विद्युत चुम्बकों का प्रयोग कहाँ-कहाँ किया जाता है?
उत्तर-
रेडियो, स्पीकरों, कम्प्यूटरों आदि में विद्युत चुम्बकों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 30.
विद्युत द्वारा बनाये गये चुम्बक को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
विद्युत चुम्बक।

प्रश्न 31.
किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर पर क्या होता है ?
उत्तर-
तारों के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।

प्रश्न 32.
विद्युत कुचालकों के दो उदाहरण दो। उत्तर-लकड़ी, रबड़।

प्रश्न 33.
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
चुम्बकीय प्रभाव से विद्युत प्रभाव को उत्पन्न करने को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं।

प्रश्न 34.
किन्हीं चार उन यंत्रों के नाम लिखो जिनमें विद्युत चुम्बक प्रयोग होता है ? [RBSE 2015]
उत्तर-

  1. विद्युत स्पीकर
  2. टेलीग्राफ
  3. कम्प्यूटर
  4. रेडियो।

प्रश्न 35.
किसी कुण्डली में चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं में परिवर्तन के कारण उसमें प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है। इस मूल परिघटना का मान लिखिए। (CBSE 2020)
उत्तर-
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण।

प्रश्न 36.
प्रेरित धारा की दिशा किस नियम से निकाली जाती है ?
उत्तर-
फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त नियम से।

प्रश्न 37.
घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिये कौन-सी दो सावधानियाँ बरतनी चाहिए? [राज. 2015]
उत्तर-
फ्यूज तथा M.C.V.।

प्रश्न 38.
शार्ट सर्किट किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
शार्ट सर्किट विद्युन्मय एवं उदासीन तारों के सीधे सम्पर्क में आने के कारण होता है।

प्रश्न 39.
विद्युत धारा कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
विद्युत धारा दो प्रकार की होती है

  • ए. सी. (प्रत्यावर्ती धारा),
  • डी. सी. (दिष्ट धारा)।

प्रश्न 40.
फ्यूज कैरियर क्या होता है ?
उत्तर-
यह चीनी मिट्टी का एक खोल होता है, जिसमें ताँबे के दो प्वाइंट होते हैं। इन दोनों को फ्यूज की तार द्वारा जोड़ देते हैं। इस खोल को फ्यूज कैरियर कहते हैं।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer type Questions)

प्रश्न 1.
पृथ्वी एक बड़े चुम्बक की तरह व्यवहार क्यों करती है ?
उत्तर-
पृथ्वी एक बहुत बड़े छड़ चुम्बक की भाँति व्यवहार करती है। इसके चुम्बकीय क्षेत्र को तल से 3 x 104 किमी ऊँचाई तक अनुभव किया जा सकता है। चुम्बकीय क्षेत्र के निम्नलिखित कारण माने जाते हैं-

  1. पृथ्वी के भीतर पिघली हुई अवस्था में विद्यमान धात्विक द्रव्य लगातार घूमते हुए बड़े चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है।
  2. पृथ्वी के केन्द्र में लोहा व निकिल हैं, पृथ्वी के लगातार घूमने से इनका चुम्बकीय व्यवहार प्रकट होता है।
  3. पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण इसका चुम्बकत्व प्रकट होता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के प्रतिरूप खींचिए
(i) वृत्ताकार कुण्डली में प्रवाहित धारा,
(ii) धारावाही परिनालिका। [RBSE 2015]
उत्तर-
(i)
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 1

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 2

प्रश्न 3.
(a) किसी धारावाही वृत्ताकार पाश (लूप) के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण इस पाश के भीतर और बाहर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पैटर्न खींचिए।
(b) इस पाश के भीतर और बाहर के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के नियम का नाम लिखिए और इस नियम का उल्लेख कीजिए। (CBSE 2020)
उत्तर-
(a)
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 3
(b) दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम (Right Hand Thumb Rule)- के द्वारा पाश के भीतर और बाहर के चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात की जाती है जो इस प्रकार है: यदि दाहिने हाथ में धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आपका अंगूठा विद्युत धारा की ओर संकेत करता है, तो अंगुलियाँ चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की रेखाओं में लिपटी होंगी।
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प्रश्न 4.
चुम्बकीय क्षेत्र में किसी धारावाही विद्युत चालक द्वारा लगने वाले बल की दिशा निर्धारित करने वाला नियम बताइए। यह बल कैसे प्रवाहित होगा यदि
(i) धारा के प्रवाह को दुगुना किया जाए ?
(ii) जब धारा की दिशा विपरीत होती है। (CBSE 2017)
उत्तर-
फ्लेमिंग का वाम-हस्त का नियम। बल F = BIL.
(i) जब धारा का परिमाण दुगुना होता है तो बल का परिमाण भी दुगुना हो जाता है।
(ii) जब बल की दिशा विपरीत होती है तो प्रवाहित धारा की दिशा भी विपरीत हो जाती है।

प्रश्न 5.
चिकित्सा विज्ञान में चुम्बकत्व का क्या महत्व
उत्तर-
मानव शरीर में अत्यन्त कम चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। यह शरीर के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र के विभिन्न भागों के प्रतिबिम्ब प्राप्त करने का आधार बनता है। इसके लिए चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिम्ब (MRI) की सहायता से विशेष प्रतिबिम्ब लिये जाते हैं।

प्रश्न 6.
तार की वृत्तीय कुंडली में विद्युत धारा के प्रवाह द्वारा कुंडली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है। इस क्षेत्र की स्थापना की पहचान कैसे की जा सकती है? इस चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा की पूर्व उक्ति किस नियम से की जा सकती है?
उत्तर-
वृत्तीय कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके केन्द्र बिन्दु पर एक छोटी चुम्बकीय सुई रखने पर यदि यह सुई घूमने लगती है तो पता चलता है कि कुंडली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो चुका है। इस क्षेत्र की दिशा का पता हम मैक्सवेल के दाहिने हाथ के नियम से लगा सकते हैं। इस नियमानुसार, “किसी धारावाही चालक को हम अपने दाएँ हाथ से इस प्रकार पकड़ें कि यदि अंगूठा धारा की दिशा को प्रदर्शित करे तो अंगुलियों की लपेटें चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करेंगी।”

प्रश्न 7.
(a) यदि एक चालक तार जिस पर विद्युतरोधी कवर चढ़ा है, एक कुण्डली के रूप में है तथा यह कुण्डली चालक के तारों द्वारा एक गैल्वेनोमीटर G के साथ जुड़ी हुई है। अब यदि इस कुण्डली में एक छड़ चुंबक का S ध्रुव उसके एक तरफ से:
(i) तेजी से कुण्डली के भीतर डाला जाए
(ii) तेजी से कुण्डली से बाहर निकाला जाए
(iii) उसे कुण्डली के एक तरफ स्थिर रख दिया जाए। प्रत्येक स्थिति में आप क्या देखेंगे? यदि यही क्रियाएँ S ध्रुव के साथ दोहराई जाएँ तो आप क्या प्रेक्षण करेंगे?
(b) इस परिघटना से कौन-सा प्रक्रम जुड़ा है ? उसकी परिभाषा लिखिए।
(c) उस नियम को लिखिए जो इनमें से प्रत्येक स्थिति में विद्युत धारा की दिशा बताता है। (CBSE 2016)
उत्तर-
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(a)
(i) जब छड़ चुम्बक का उत्तरी सिरा कुंडली में डाला जाता है, तब गैल्वेनोमीटर में वामावर्त विक्षेपण होता है।
(ii) जब छड़ चुम्बक को कुंडली को कुंडली में स्थिर रखा जाता है, गैल्वेनोमीटर में कोई विक्षेपण नहीं होता।
(iii) जब छड़ चुम्बक को खींचकर बाहर निकाला जाता है, तो गैल्वेनोमीटर में दक्षिणावर्त विक्षेपण होता है।

परिणामतः यह निष्कर्ष निकलता है कि जब कुंडली में छड़ चुम्बक को गति करायी जाती है तो गैल्वेनोमीटर में विक्षेपण होता है अर्थात् कुंडली में एक प्रकार की विद्युत धारा उत्पन्न होती है, जो गैल्वेनोमीटर में विक्षेपण उत्पन्न करती है।

परिघटना-विद्युत चुम्बकीय प्रेरण।
यदि यही क्रिया S ध्रुव के साथ दोहराई जाएगी तो G में विक्षेप पहले से विपरीत होगा :

  • जब S ध्रुव को कुण्डली के भीतर ले जाते हैं तो G की सुई दक्षिणावर्त (बाईं तरफ) मुड़ जाती है।
  • जब S ध्रुव को कुण्डली से बाहर निकालते हैं तो G की सुई वामावर्त (दाईं तरफ) मुड़ जाती है।
  • जब S ध्रुव को कुण्डली के पास स्थिर रखा जाता है तो G की सुई 0 (शून्य) पर ही रहती है।

(b) इस परिघटना वैद्युत चुंबकीय प्रेरण प्रक्रम से जुड़ा है। इस क्रिया में चालक कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक को परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र में रखने के कारण उस चालक में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, वैद्युत चुंबकीय प्रेरण कहलाता है।

(c) इस नियम का नाम है फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम जो इस प्रकार है :
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 6
फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त नियम के अनुसार, ‘अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत् हो। यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा की ओरर संकेत करती है तथा अँगूठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा दर्शाती है।

प्रश्न 8.
वोल्टमीटर व ऐमीटर से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
वोल्टमीटर-अधिक प्रतिरोध वाले तार से युक्त साधित्र को वोल्टमीटर कहते हैं। यह उन दो बिन्दुओं के बीच जोड़ा जाता है जिनके बीच विभवान्तर ज्ञात करना होता है तथा इसे परिपथ में समान्तर क्रम में जोड़ा जाता है।
ऐमीटर-ऐमीटर, एक परिपथ में बहने वाली धारा को मापने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसे श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है, ऐमीटर का प्रतिरोध बहुत कम होता है। इस कारण से ऐमीटर को बहुत कम प्रतिरोध वाला गैल्वेनोमीटर भी कहते हैं।

प्रश्न 9.
a. c. जनित्र का मूल सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर-
‘किसी जनित्र में तार का एक लूप चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करता है। एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा हुआ तार का एक आयताकार लूप होता है। लूप को जैसे ही क्षैतिज अक्ष के परितः घुमाया जाता है, लूप से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स परिवर्तित होता है तथा प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 10.
विद्युत तारों में आग क्यों लगती है ?
उत्तर-
निम्नलिखित कारणों से तारों में आग लग जाती है-

  • तारों के संयोजन ढीले होने के कारण।
  • स्विच खराब हो।
  • तारों की अधिकतम क्षमता से अधिक वोल्टेज या धारा प्रवाहित हो जाए।
  • तार खराब हो।
  • तार अधिक गर्म हो जाए।

प्रश्न 11.
प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में कौनी-सी धारा अधिक उपयोगी है और क्यों?
उत्तर-
प्रत्यावर्ती धारा दिष्ट धारा की तुलना में अधिक उपयोगी है, इसके निम्नलिखित कारण हैं-

  1. इसे उत्पन्न करना आसान है।
  2. यह सस्ती है।
  3. इसे एक स्थान से दसरे स्थान तक ले जाना आसान होता है।

प्रश्न 12.
दिष्ट धारा मोटर की शक्ति को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है ?
उत्तर-

  • कुंडली पर तारों के फेरों की संख्या को बढ़ाकर।
  • कुंडली के तलीय क्षेत्र को बढ़ाकर ।
  • चुम्बकीय क्षेत्र की शक्ति बढ़ाकर।
  • मृदु लोहे के केन्द्रक का प्रयोग करके।
  • एक ही मृदु लौह केन्द्रक पर कुंडलियाँ लपेट कर।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 13.
दिक् परिवर्तक क्या है? यह दिष्ट धारा कैसे उत्पन्न करता है ?
उत्तर-
विभक्त वलय संचालक दो विभक्त वलयों का समूह है जो चुम्बक अथवा बाह्य प्रतिरोध से सम्पर्क रखने वाले ब्रुश से जोड़ा जाता है। यह प्रत्येक 180° के घूर्णन के बाद धारा की दिशा को उलट देता है। ऐसा विभक्त वलय के आयताकार कुंडली में सिरे के साथ सम्पर्क में परिवर्तन के द्वारा होता है।

प्रश्न 14.
विद्युत चुम्बक के उपयोग लिखिए।
उत्तर-
विद्युत चुम्बक बहुत उपयोगी होता है। इसके कुछ प्रमुख उपयोग निम्न लिखित हैं-

  • विद्युत मोटरों और जनरेटरों के निर्माण में इनका प्रयोग होता है।
  • विद्युत उपकरणों जैसे-विद्युत घण्टी, पंखों, रेडियो, कम्प्यूटरों आदि में इनका प्रयोग किया जाता है।
  • इस्पात की छड़ों का चुम्बक बनाने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
  • चट्टानों को तोड़ने में इनका प्रयोग होता है।
  • अयस्कों में से चुम्बकीय एवं अचुम्बकीय पदार्थों को अलग करने के लिए इनका प्रयोग होता है।

प्रश्न 15.
डायनमो तथा विद्युत मोटर में क्या अन्तर हैं?
उत्तर-
डायनमो तथा विद्युत मोटर में प्रमुख अन्तर निम्न हैं-

जनित्र या डायनमोविद्युत मोटर
1. डायनमो यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊ में परिवर्तित करता है।1. विद्युत मोटर विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
2. डायनमो विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है।2. विद्युत मोटर धारा के चुम्बकीय प्रभाव के आधार पर कार्य करता है जिसके अनुसार चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर एक बल लगता है।
3. इसमें चुम्बकीय क्षेत्र में कुंडली को घुमाकर प्रेरित वि. वा. ब. उत्पन्न किया जाता है।3. इसमें चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित कुंडली में धारा प्रवाहित करते हैं जिससे कुंडली घूमने लगती है।

प्रश्न 16.
विद्युत मोटर के झटकों को किस प्रकार नियन्त्रित किया जाता है?
उत्तर-
विद्युत मोटरों में कुंडली 0° और 180° पर अधिकतम बल प्रकट होता है परन्तु 90° और 270° पर कोई बल प्रकट नहीं हो पाता इसलिए कुंडली में झटके उत्पन्न होते हैं। इस झटकों को नियन्त्रित करने के लिए मृदु लोहे के टुकड़े के कुछ अंश पर तार को कई बार लपेटा जाता है।

प्रश्न 17.
धारामापी (गैल्वेनोमीटर) किसे कहते हैं?
उत्तर-
गैल्वेनोमीटर वह उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति को बताता है। यदि इससे प्रवाहित धारा शून्य हो तो इसका संकेतक शून्य पर रहता है। यह अपने शून्य चिन्ह के बायीं या दायीं तरफ विक्षेपित हो सकता है। यह विक्षेप विद्युत धारा की दिशा पर निर्भर करता है।

प्रश्न 18.
एक घरेलू विद्युत परिपथ में 5 एम्पियर का फ्यूज है। 100 W (220V) के अधिकतम बल्बों की संख्या होगी जिनका इस परिपथ में सुरक्षित उपयोग कर सकें? [RBSE 2015]
उत्तर-
एक बल्ब के लिये उपयोगी धारा-
I1 = \(\frac{P}{V}=\frac{100}{220}=\frac{10}{22} A \)
माना कुल बल्बों की संख्या = N
अतः उपयोगी कुल धारा = NI1
= N\(\frac{10}{22}\) …………………..(1)
विद्युत परिपथ में 5 एम्पियर का फ्यूज है
\(\text { N. } \frac{10}{22}\) = 5
N = \(\frac{5 \times 22}{10}\) = 11 बल्ब .

प्रश्न 19.
ट्रांसफॉर्मर से क्या अभिप्राय है? ट्रांसफॉर्मर किस काम में लाए जाते हैं?
उत्तर-
ट्रांसफॉर्मर एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा प्रत्यावर्ती धारा की वोल्टता को कम या अधिक किया जा सकता है। जो ट्रांसफॉर्मर विद्युत धारा की वोल्टता में वृद्धि करते हैं, उन्हें उच्चायी ट्रांसफॉर्मर तथा जो वोल्टता में कमी करते हैं, उन्हें अपचायी ट्रांसफॉर्मर कहते हैं। पावर स्टेशनों पर उच्चायी ट्रांसफॉर्मर लगे होते हैं जो विद्युत धारा की वोल्टता में वृद्धि करते हैं तथा इस अधिक वोल्टता की विद्युत धारा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। शहरों में उपबिजलीघरों में अपचायी ट्रांसफॉर्मर द्वारा अधिक प्रत्यावर्ती वोल्टता को कम वोल्टता में बदला जाता है तथा घरों में 220 वोल्ट तथा कारखानों में 440 वोल्ट की प्रत्यावर्ती धारा उपयोग में लायी जाती है।

प्रश्न 20.
वे कौन से कारक हैं, जिन पर उत्पन्न विद्युत धारा निर्भर करती है?
उत्तर-

  • कुंडली में लपेटों की संख्या-यदि कुंडली में लपेटों की संख्या बहुत अधिक होगी तो उत्पन्न विद्युत धारा भी अधिक होगी। लपेटों की संख्या कम होने पर इसमें भी कमी हो जाएगी।
  • चुम्बक की शक्ति-बन्द कुंडली की ओर शक्तिशाली चुम्बक बढ़ाने या पीछे हटाने से विद्युत धारा पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चुम्बक की शक्ति अधिक होनी चाहिए।
  • चुम्बक को कुंडली की ओर बढ़ाने की गति-यदि चुम्बक को कुंडली की ओर तेजी से बढ़ाया जाए तो बन्द कुंडली में विद्युत का प्रेरण अधिक होता है।

प्रश्न 21.
शॉर्ट सर्किट क्या होता है? इससे क्या हनियाँ हो सकती हैं?
उत्तर-
शार्ट सर्किट-किसी विद्युत यन्त्र में धारा का कम प्रतिरोध से होकर प्रवाहित हो जाना शॉर्ट सर्किट कहलाता है।
हानियाँ-

  1. प्रतिरोध कम होने के कारण तारें अधिक गर्म हो जाती हैं और उनके ऊपर चढ़ा रोधी पदार्थ जल जाता है।
  2. विद्युत उपकरण बेकार हो सकता है।
  3. इससे घरों, दुकानों में आग लग सकती है।
  4. विद्युत धारा का प्रवाह रुक जाता है।
  5. तारों के ऊपर चढ़े रोधी पदार्थ जल जाने पर तारें नंगी हो जाती हैं, जिससे विद्युत शॉक लग सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
(a) दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को कभी भी प्रतिच्छेदित क्यों नहीं करती ? व्याख्या कीजिए।
(b) किसी धारावाही परिनालिका के भीतर के चुम्बकीय क्षेत्र को एकसमान कहा जाता है। क्यों ?
(c) फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लिखिए।
(d) व्यावसायिक मोटरों की शक्ति में वृद्धि करने वाले दो कारकों की सूची बनाइए। (CBSE 2019)
उत्तर-
(a) दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कहीं भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती। किसी बिन्दु पर प्रतिच्छेद करने का अर्थ है कि दिक्सूचक, यदि किसी बिन्दु पर रखी जाए तो वह दो दिशाओं में एक साथ विक्षेपित हो, जो असंभव है।

(b) चूँकि धारावाही परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। इसलिए धारावाही परिनालिका के भीतर चुम्बकीय एक समान क्षेत्र होता है।

(c) फ्लेमिंग का वामहस्त नियम-इस नियम अनुसार यदि हम अपने बाएं हाथ के अंगूठे, तर्जनी तथा मध्यमा उंगलियों को परस्पर लंबवत फैलाएँ तो तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, मध्यमा विद्युत धारा की दिशा बताए तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।
(d)

  • विद्युत धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या बढ़ाकर,
  • स्थायी चुम्बकों के स्थान पर विद्युत चुम्बक का प्रयोग करके।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 2.
धारावाही परिनालिका में चुम्बकीय बल रेखाएँ खींचिए। [RBSE 2015] (CBSE 2018,19)
उत्तर-
धारावाही परिनालिका में चुम्बकीय बलरेखाएँ (Magnetic Lines of Force of Current Carrying Solenoid) यदि किसी चालकीय तार को बेलननुमा कुंडली के रूप में इस प्रकार लपेटा जाए कि उसका व्यास उसकी लम्बाई की तुलना में बहुत छोटा हो, तो इस प्रकार की व्यवस्था को परिनालिका (solenoid) कहते हैं।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 7
जब परिनालिका में धारा प्रवाहित की जाती है, तो वह दण्ड-चुम्बक की भाँति व्यवहार करने लगती है अर्थात् परिनालिका के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है। बल रेखाओं से स्पष्ट है कि धारावाही परिनालिका की अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र लगभग एक समान होता है। बल रेखाएँ जहाँ पर पास-पास होती हैं वहाँ पर चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होता है। चुम्बकीय बल रेखाएँ परिनालिका के दक्षिणी ध्रुव से अन्दर की ओर जाती हैं और उत्तरी ध्रुव से बाहर की ओर निकलती हैं।

प्रश्न 3.
एक धारावाही परिनालिका छड़ चुम्बक के समान व्यवहार करती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए। (CBSE 2019)
उत्तर-
धारावाही परिनालिका की छड़ चुम्बक से समानता (Resemblance of Current Carrying Solenoid with Magnetic rod) धारावाही परिनालिका एवं छड़ चुम्बक में निम्नलिखित समानताएँ होती हैं-

  1. छड़ चुम्बक एवं धारावाही परिनालिका दोनों को स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाए जाने पर दोनों के अक्ष उत्तर एवं दक्षिण दिशाओं में रुकते हैं।
  2. दोनों ही लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
  3. छड़ चुम्बक एवं धारावाही परिनालिका दोनों के समान ध्रुवों में प्रतिकर्षण एवं असमान ध्रुवों में आकर्षण होता है।
  4. छड़ चुम्बक एवं धारावाही परिनालिका दोनों के निकट कम्पास सुई विक्षेपित हो जाती है।
  5. छड़ चुम्बक एवं स्वतन्त्रतापूर्वक लटकी धारावाही परिनालिका के निकट कोई तार लाने पर दोनों ही विक्षेपित हो जाते हैं।

धारावाही परिनालिका में धारा प्रवाहित करने पर उसका अक्ष सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकता है। यद्यपि धारावाही परिनालिका छड़ चुम्बक की भाँति व्यवहार करती है, लेकिन इन दोनों के चुम्बकीय क्षेत्र में असमानता होती है। छड़ चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता इसके सिरों पर अधिकतम तथा मध्य में शून्य होती है जबकि धारावाही परिनालिका का चुम्बकीय क्षेत्र लगभग एक समान (uniform) होता है। केवल परिनालिका के सिरों पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता थोड़ी कम होती है।

प्रश्न 4.
प्रयोगों के द्वारा विद्युत चुम्बकीय प्रेरण को कैसे प्रदर्शित करते हैं ?
उत्तर-
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) – सन् 1820 में ऑर्टेड ने यह खोज की थी कि विद्युत धारा के साथ चुम्बकीय क्षेत्र सदैव सम्बन्धित रहता है, अर्थात् जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। सन् 1830 में फैराडे ने यह विचार दिया कि जब गतिमान आवेश (अर्थात् विद्युत धारा) से चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है तो गतिमान चुम्बकीय क्षेत्र से विद्युत धारा

उत्पन्न होनी चाहिए। इसके लिए फैराडे ने एक चुम्बक तथा धारामापी जुड़ी हुई एक कुंडली ली तथा उन्होंने चुम्बक को कुंडली के अन्दर गुजारा देखा कि जिस क्षण चुम्बक कुंडली से गुजरा, उसी क्षण धारामापी में विक्षेप उत्पन्न हुआ (जबकि कुंडली के साथ कोई बैटरी नहीं जुड़ी थी)। स्पष्ट था कि कुंडली के अन्दर चुम्बक के गुजरने से कुंडली में क्षण भर के लिए धारा प्रवाहित हुई जिससे धारामापी में विक्षेप उत्पन्न हुआ। इस प्रकार फैराडे ने एक नई घटना की खोज की, जिसे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं।

इस घटना के सम्बन्ध में फैराडे ने अनेक प्रयोग किए जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 8
प्रयोग 1.
चित्र में तार की एक कुंडली के दोनों सिरे एक धारामापी से जुड़े हैं तथा NR S क्रमश: एक दण्ड-चुम्बक के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों को प्रदर्शित करते हैं।

इस प्रयोग के प्रेक्षण निम्न प्रकार हैं-
(i) जब हम एक दण्ड-चुम्बक के उत्तरी ध्रुव N को कुंडली की ओर तेजी से गति कराते हैं, तो धारामापी में क्षणिक विक्षेप उत्पन्न होता है, जो यह बताता है कि चुम्बक की गति के प्रभाव से कंडली में क्षणिक विद्यत धारा प्रवाहित होती है। इस धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि चुम्बक के N ध्रुव के पास वाला कुंडली का तल उत्तरी ध्रुव की भाँति कार्य करता है (चित्र ब)।

जब हम चुम्बक के उत्तरी ध्रुव N को कुंडली से दूर की ओर तेजी से गति कराते हैं, तो धारामापी में पुनः क्षणिक, परन्तु विपरीत दिशा में विक्षेप उत्पन्न होता है जो यह बताता है कि चुम्बक की गति के प्रभाव से कुंडली में क्षणिक, परन्तु पहले की विपरीत दिशा में धारा प्रवाहित होती है। इसका अर्थ यह है कि अब चुम्बक के N ध्रुव के पास वाला कुंडली का तल दक्षिणी ध्रुव की भाँति कार्य करता है (चित्र ब)।

इसी प्रकार यदि हम चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव S को कुण्डली की ओर अथवा कुंडली से दूर की ओर गति कराएँ तो धारामापी में क्षणिक विक्षेप पहले से विपरीत दिशाओं में उत्पन्न होते हैं अर्थात् कुंडली में धारा की दिशा पहले से विपरीत दिशा में होती है। इस प्रकार चुम्बक के S ध्रुव के पास वाला कुंडली का तल क्रमशः दक्षिणी तथा उत्तरी ध्रुव की भाँति कार्य करता है, (चित्र स, द)।

(ii) यदि चुम्बक को कुंडली की ओर अथवा कुंडली से दूर की ओर गति कराते हुए यकायक रोक दिया जाता है, तो धारामापी में विक्षेप तुरन्त ही शून्य हो जाता है अर्थात् कुण्डली में धारा बन्द हो जाती है। स्पष्ट है कि कुंडली में धारा तभी तक बहती है जब तक कि चुम्बक कुंडली के सापेक्ष गति करता रहता है।

(iii) जितनी तेजी से चुम्बक कुंडली के सापेक्ष गति करता है उतनी ही अधिक कुंडली में धारा की प्रबलता होती है अर्थात् उतना ही अधिक धारामापी में विक्षेप होता है।

(iv) कुण्डली में फेरों की संख्या बढ़ाने पर अथवा कुंडली के अन्दर एक नर्म लोहे की क्रोड रखने पर अथवा अधिक शक्तिशाली चुम्बक लेने पर धारामापी में विक्षेप बढ़ जाता है अर्थात् कुंडली में धारा की प्रबलता बढ़ जाती है।

(v) कुंडली के साथ उच्च प्रतिरोध जोड़ने पर कुंडली में प्रवाहित धारा की प्रबलता घट जाती है|

(vi) यदि चुम्बक को स्थिर रखकर कुंडली को चुम्बक के समीप लाएँ अथवा चुम्बक से दूर ले जाएँ तो भी धारामापी में विक्षेप उत्पन्न होता है जो यह बताता है कि कुंडली में विद्युत धारा, कुंडली व चुम्बक के बीच ‘आपेक्षिक गति’ से उत्पन्न होती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि चुम्बक गतिशील है अथवा कुंडली अथवा दोनों।

निष्कर्ष-उपर्युक्त प्रेक्षणों से यह निष्कर्ष निकलता है कि “जब किसी चुम्बक तथा कुंडली के बीच आपेक्षिक गति होती है तब कुंडली में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है, जिसे प्रेरित विद्युत वाहक बल (induced e.m.f.) कहते हैं। यदि कुंडली एक बन्द परिपथ (Closed circuit) में हैं, तो प्रेरित विद्युत वाहक बल के कारण कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, जिसे प्रेरित धारा (induced current) कहते हैं।

इस घटना को विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण (electro-magnetic induction)- कहते हैं।” उल्ले खनीय है कि विद्युत वाहक बल परिपथ के प्रतिरोध पर निर्भर नहीं करता, परन्तु प्रेरित वैद्युत धारा परिपथ के प्रतिरोध पर ओम के नियम के अनुसार निर्भर करती है। यदि कुंडली खुले परिपथ (open circuit) में है तो प्रेरित विद्युत वाहक बल तो होगा, परन्तु विद्युत धारा नहीं (क्योंकि परिपथ का प्रतिरोध अनन्त है) वास्तव में, विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण की घटना में विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है न कि सीधे विद्युत धारा।

प्रश्न 5.
(a) विद्युत्-चुम्बक क्या होता है ? इसके कोई उपयोग लिखिए।
(b) विधुत्-चुम्बक कैसे बनाया जाता है ? इसे दर्शाने के लिए नामांकित आरेख खींचिए।
(c) विधुत-चुम्बक बनाने में नर्म लौह क्रोड का उपयोग किए जाने के उद्देश्य का उल्लेख कीजिए।
(d) यदि किसी विधुत-चुम्बक का पदार्थ निश्चित है तो उस विद्युत-चुम्बक की प्रबलता में वृद्धि करने के दो उपाय लिखिए। (CBSE 2020)
उत्तर-
(a) विद्युत धारावाही परिनालिका के भीतर चुम्बकीय पदार्थ, जैस नर्म लोहा विद्युत चुम्बक की तरह कार्य करता है। विद्युत चुम्बक का प्रयोग विद्युत घंटियों, टेलीफोन रिसिवर, माइक्रोफोन आदि में किया जाता है।
(b) इसके दो उपयोग हैं-

  • विद्युत घंटी में (Electric bell),
  • विद्युत मोटर में।

(c) नर्म लोहे का उपयोग विद्युत चुम्बक द्वारा चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण बनाने के लिए किया जाता है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 9

(d) विद्युत चुम्बक की प्रबलता निम्न प्रकार से बढ़ाई जा सकती है :

  • परिनालिका में कुंडली के फेरों की संख्या बढ़ाकर।
  • परिनालिका में प्रवाहित धारा का मान बढ़ाकर।।

प्रश्न 6.
घरों में विद्युत के क्या-क्या खतरे हैं ? इन खतरों से बचने के लिए क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
उत्तर-
विद्युत से खतरे, बचाव तथा सावधानियाँ (Electrical Hazards, Preventions And Precautions)- विद्युत से खतरे-घरेलू वायरिंग के दोषपूर्ण होने के कारण उससे लगे उपकरण में तथा संयोजक तारों में आग लग सकती है। विद्युत के उपयोग में थोड़ी सी असावधानी होने पर ही दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। विद्युत परिपथ को कहीं से छू जाने पर मनुष्य को तीव्र झटका लगता है। कभी-कभी यह झटका इतना तेज होता है कि छू जाने वाले मनुष्य की मृत्यु भी हो जाती है।

विद्युत से खतरों के कारण-विद्युत से खतरों के कारण निम्नलिखित हैं-

  • यदि स्विच में खराबी है, तो इससे आग लगने तथा विद्युत उपकरणों के जलने की सम्भावना अधिक हो जाती है।
  • यदि संयोजन तारों का सम्बन्ध ठीक से कसा हुआ नहीं है तब तारों में आग लग सकती है।
  • यदि विद्युत परिपथ में लगे उपकरण भूसंपर्कित नहीं हैं, तो उन्हें छू जाने से मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है।

विद्युत खतरों से बचाव एवं सावधानियाँ –

  1. आग लगने पर तुरन्त मेन स्विच को बन्द कर देना चाहिए।
  2. प्रत्येक जोड़ विद्युतरोधी टेप (Insulation tape) से ढका होना चाहिए।
  3. प्लग टॉप, सॉकेट में भली-भाँति कसा होना चाहिए अर्थात् उसे ढीला नहीं छोड़ना चाहिए।
  4. स्विच को कभी भी गीले हाथ से नहीं छूना चाहिए।
  5. फ्यूज तार तथा स्विच को सदैव गर्म तार से श्रेणीक्रम में जोड़ना चाहिए।
  6. पावर विद्युत युक्तियों (जैसे-हीटर, प्रेस आदि) को उपयोग में लाते समय उनके बाहरी आवरण को कभी भी हाथ से नहीं छूना चाहिए।
  7. स्विच, प्लग, सॉकेट तथा जोड़ों पर सभी संयोजन (Combinations) अच्छी तरह कसे होने चाहिए।
  8. विद्युत परिपथ में यदि कोई खराबी ठीक करनी हो, तो रबर के दस्ताने तथा रबर के जूते पहन लेने चाहिए तथा इसके लिए उपयोग में लाए जाने वाले पेंचकस, प्लास, टेस्टर सभी पर रबर चढ़ी होनी चाहिए।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 7.
घरेलू परिपथ का नामांकित चित्र बनाइये तथा विद्युत के संचरण में ट्रॉसफॉर्मर की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिये,
उत्तर-
ट्रांसफॉर्मर एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा प्रत्यावर्ती धारा की वोल्टता को कम या अधिक किया जा सकता है। जो ट्रांसफॉर्मर विद्युत धारा की वोल्टता में वृद्धि करते हैं, उन्हें उच्चायी ट्रांसफॉर्मर तथा जो वोल्टता में कमी करते हैं, उन्हें अपचायी ट्रांसफार्मर कहते हैं। पावर स्टेशनों पर उच्चायी ट्रांसफार्मर लगे होते हैं जो विद्युत धारा की वोल्टता में वृद्धि करते हैं तथा इस अधिक वोल्टता की विद्युत धारा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। शहरों में उपबिजलीघरों में अपचायी ट्रांसफॉर्मर द्वारा अधिक प्रत्यावर्ती वोल्टता को कम वोल्टता में बदला जाता है तथा घरों में 220 वोल्ट तथा कारखानों में440 वोल्ट की प्रत्यावर्ती धारा उपयोग में लायी जाती है।
HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव 10

बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions)

1. किस उपकरण द्वारा किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति संसूचित की जाती है?
(a) वोल्टमीटर
(b) ऐमीटर
(c) गैल्वेनोमीटर
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) गैल्वेनोमीटर।

2. हमारे देश में उत्पन्न प्रत्यावर्ती धारा कितने सेकण्ड पश्चात् अपनी दिशा उत्क्रमित करती है ?
(a) \(\frac{1}{10} \) सेकण्ड में
(b) \(\frac{1}{100} \) सेकण्ड में
(c) \(\frac{1}{1000} \) सेकण्ड में
(d) \(\frac{1}{10000} \) सेकण्ड में
उत्तर-
(b) \(\frac{1}{100} \) सेकण्ड में |

3. उच्च शक्ति के विद्युत साधित्रों के बाहरी आवरण को घरेलू परिपथ की भूतार से जोड़ना कहलाता है –
(a) अतिभार
(b) लघुपथन
(c) भू-संपर्कित
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) भू-संपति ।

4. समान चुम्बकीय ध्रुव क्या करते हैं?
(a) प्रतिकर्षित
(b) आकर्षित
(c) दोनों
(d) इसमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) प्रतिकर्षित।

5. चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ होती हैं
(a) सरल
(b) वक्र
(c) बन्द वक्र
(d) त्रिभुजाकार ।
उत्तर-
(c) बन्द वक्र।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

6. किसी विद्युत धारावाही चालक से सम्बद्ध चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा किस हस्त अंगुष्ठ नियम से जानी जा सकती है?
(a) दक्षिण
(b) वाम
(c) दक्षिण एवं वाम
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) दक्षिण।

7. कुंडली को चुम्बक के साक्षेप स्थिर रखने पर गैल्वेनोमीटर में कितना विक्षेप होता है?
(a) अधिकतम
(b) शून्य
(c) स्थिर
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) शून्य।

8. जेनरेटर कौन-से प्रकार की धारा उत्पन्न करते हैं?
(a) ac
(b) dc
(c) ac तथा dc
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) ac तथा dc.

9. विद्युत धारावाही तार किसकी तरह व्यवहार करती
(a) चुम्बक
(b) विद्युत
(c) लोहे
(d) प्रतिरोध।
उत्तर-
(a) चुम्बक।

10. स्थायी चुम्बक बनाए जाते हैं-
(a) ताँबे के
(b) नर्म लोहे के
(c) इस्पात के
(d) पीतल के।
उत्तर-
(c) इस्पात के।

11. सामान्यतया विद्युन्मय तार (Live wire) प्रयोग करना चाहिए
(a) काले रंग का
(b) हरे रंग का
(c) लाल रंग का
(d) किसी भी रंग का।
उत्तर-
(c) लाल रंग का।

12. विद्युत मोटर में रूपान्तरण होता है-
(a) रासायनिक ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में
(b) विद्युत ऊर्जा का यान्त्रिक ऊर्जा में
(c) विद्युत ऊर्जा का प्रकाश ऊर्जा में
(d) विद्युत ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में
उत्तर-
(b) विद्युत ऊर्जा का यान्त्रिक ऊर्जा में।

13. परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय बल क्षेत्र निर्भर करता है-
(a) परिनालिका के फेरों की संख्या पर
(b) परिनालिका से प्रवाहित धारा पर
(c) परिनालिका के पदार्थ पर
(d) उपर्युक्त सभी पर।
उत्तर-
(d) उपर्युक्त सभी पर।

14. दिक्परिवर्तक विभक्त वलय का उपयोग
(a) प्रत्यावर्ती धारा जनित्र में होता है
(b) दिष्ट धारा जनित्र में होता है
(c) प्रत्यावर्ती धारा मोटर में होता है
(d) उपर्युक्त सभी में।
उत्तर-
(d) उपर्युक्त सभी में।

15. प्रेरित धारा की दिशा निम्न में से किससे प्राप्त होती है
(a) फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त नियम से
(b) फ्लेमिंग के वाम-हस्त नियम से
(c) दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम से
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम से।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

16. फ्यूज के तार का गलनांक
(a) कम होता है
(b) अधिक होता है
(c) न कम न अधिक होता है
(d) कुछ भी हो सकता है।
उत्तर-
(a) कम होता है।

17. घरेलू परिपथ में, फ्यूज को निम्न में से किस तार के साथ लगाया जाता है
(a) भू-सम्पर्क तार
(b) उदासीन तार
(c) विद्युन्मय तार
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) विद्युन्मय तार।।

18. विद्युत उपकरणों को भूसंपर्कित किया जाता है ताकि
(a) तीव्र विद्युत आघात न लगे
(b) विद्युत व्यर्थ न हो।
(c) लघुपथन से बचा जा सके
(d) अतिभारण से बच सकें।
उत्तर-
(a) तीव्र विद्युत आघात न लगे।

19. विद्युन्मय तार और उदासीन तार का आपस में बिना किसी प्रतिरोध से सम्पर्क में आने से –
(a) लघुपथन हो जाता है।
(b) कोई क्षति नहीं होती है
(c) अतिभारण हो जाता है
(d) आग लग जाती है।
उत्तर-
(a) लघुपथन हो जाता है।

20. सी वलय (slip ring) का उपयोग निम्न में से किसमें होता है –
(a) ac जनित्र
(b) dc जनित्र
(c) ac मोटर
(d) dc मोटर।
उत्तर-
(a) ac जनित्र।

रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए

1. विद्युत मोटर के घूमने वाले भाग को ………………………. कहते हैं।
उत्तर-
आर्मेचर।

2. एक विद्युत जनित्र वास्तव में ऊर्जा का …………… करने की युक्ति है।
उत्तर-
रूपान्तरित

3. धारावाही तार के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। यह नियम ………………………. ने प्रतिपादित किया।
उत्तर-
ऑर्टेड।

4. विद्युत चुम्बकीय प्रेरण उत्पन्न करने के लिए किसी चुम्बक तथा कुंडली में परस्पर सापेक्ष गति से ………………………. उत्पन्न करनी पड़ती है।
उत्तर-
धारा।

HBSE 10th Class Science Important Questions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

5. विद्युत फ्यूज विद्युतधारा के ………………………. पर कार्य करता
उत्तर-
ऊष्मीय प्रभाव।

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न (Matrix Type Questions)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को सुमेलित कीजिये

कॉलम-(x)कॉलम-(y)
(i) चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा(A) फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम
(ii) चुम्बकीय बल की दिशा(B) मध्य में चुम्बकीय क्षेत्र शून्य
(iii) चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता(C) विद्युत जनरेटर
(iv) परिनालिका(D) दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम
(v) विद्युत चुम्बकीय प्रेरण(E) काला या हरा
(vi) उदासीन तार(F) विद्युत धारा का अधिकतम होना
(vii) लघुपथन(G) फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम
(viii) प्रेरित धारा की दिशा(H) टेस्ला या ऑस्टेंड

उत्तर-

कॉलम-(x)कॉलम-(y)
(i) चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा(D) दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम
(ii) चुम्बकीय बल की दिशा(A) फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम
(iii) चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता(H) टेस्ला या ऑस्टेंड
(iv) परिनालिका(B) मध्य में चुम्बकीय क्षेत्र शून्य
(v) विद्युत चुम्बकीय प्रेरण(C) विद्युत जनरेटर
(vi) उदासीन तार(E) काला या हरा
(vii) लघुपथन(F) विद्युत धारा का अधिकतम होना
(viii) प्रेरित धारा की दिशा(G) फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम

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