HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

HBSE 12th Class Sociology सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक विषमता व्यक्तियों की विषमताओं से कैसे भिन्न है?
अथवा
सामाजिक असमानता व्यक्तिगत असमानता से भिन्न होती है। व्याख्या कीजिए।
अथवा
सामाजिक विषमता सामाजिक क्यों है? विस्तृत चर्चा करें।
उत्तर:सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति को सामाजिक विषमता कहा जाता है। कुछ सामाजिक विषमताएँ व्यक्तियों के बीच स्वाभाविक भिन्नता को दर्शाती हैं जैसे कि उनकी योग्यता तथा प्रयासों में अंतर। कोई व्यक्ति असाधारण प्रतिभा का भी हो सकता है तथा कोई अधिक बुद्धिमान भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि उस व्यक्ति ने अच्छी स्थिति प्राप्त करने के लिए अधिक परिश्रम किया हो। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक विषमता व्यक्तियों के बीच प्राकृतिक अंतरों के कारण नहीं बल्कि उस समाज द्वारा उत्पन्न होती है जिसमें वह रहते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक स्तरीकरण की कुछ विशेषताएं बतलाइए।
अथवा
सामाजिक स्तरीकरण की चार प्रमुख विशेषताएं बताइए।
अथवा
सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएं बताइए।
उत्तर:

  • सामाजिक स्तरीकरण में समाज को अलग-अलग भागों अथवा स्तरों में विभाजित किया जाता है जिसमें समाज के व्यक्तियों का आपसी संबंध उच्चता निम्नता पर आधारित होता है।
  • सामाजिक स्तरीकरण में अलग-अलग वर्गों की असमान स्थिति होती है। किसी की सबसे उच्च, किसी की उससे कम तथा किसी की बहुत निम्न स्थिति होती है।
  • स्तरीकरण में अंतक्रियाएं विशेष स्तर तक ही सीमित होती हैं। हरेक व्यक्ति अपने स्तर के व्यक्ति से संबंध स्थापित करता है।
  • सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है। यह परिवार और सामाजिक संसाधनों के एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में उत्तराधिकार के रूप में घनिष्ठता से जुड़ा है।
  • सामाजिक स्तरीकरण को विश्वास व विचारधारा द्वारा समर्थन मिलता है।

प्रश्न 3.
आप पूर्वाग्रह और अन्य किस्म की राय अपना विश्वास के बीच कैसे भेद करेंगे?
अथवा
पूर्वग्रह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पूर्वाग्रह एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे के बारे में पूर्वकल्पित विचार अथवा व्यवहार होता है। पूर्वाग्रह शब्द के शाब्दिक अर्थ हैं पूर्व निर्णय अर्थात् किसी के बारे वह धारणा जो उसे जाने बिना तथा उसके तथ्यों को परखे बिना शुरू में ही स्थापित कर ली जाती है। एक पूर्वाग्रहित व्यक्ति के पूर्वकल्पित विचार तथ्यों के विपरीत सुनी सुनाई बातों पर ही आधारित होते हैं। चाहे इनके बारे में बाद में नई जानकारी प्राप्त हो जाती है, परंतु फिर भी यह बदलने से मना कर देते हैं।

पर्वाग्रह सकारात्मक भी होता है तथा नकारात्मक भी। वैसे मख्यता इस शब्द को नकारात्मक रूप से लिए गए पूर्वनिर्णयों के लिए ही प्रयोग किया जाता है परंतु इसे स्वीकारात्मक पूर्वनिर्णयों पर भी प्रयोग किया जाता है। जैसे कि कोई व्यक्ति अपने समूह के सदस्यों या जाति के पक्ष में पूर्वाग्रहित हो सकती है तथा उन्हें दूसरी जाति या समूह के सदस्य श्रेष्ठ मान सकता है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

प्रश्न 4.
सामाजिक अपवर्जन या बहिष्कार क्या है?
अथवा
सामाजिक बहिष्कार सामाजिक क्यों है? विस्तृत चर्चा करें।
अथवा
सामाजिक अपवर्जन से आप क्या समझते हैं?
अथवा
सामाजिक बहिष्कार क्या है?
अथवा
सामाजिक अपवर्जन (बहिष्कार) क्या है?
उत्तर:
सामाजिक अपवर्जन अथवा बहिष्कार वह ढंग हैं जिनकी सहायता से एक व्यक्ति अथवा समूह को समाज में पूर्णतया घुलने मिलने से रोका जाता है तथा पृथक् रखा जाता है। बहिष्कार उन सभी कारकों की तरफ ध्यान दिलाता है जिनसे उस व्यक्ति या समूह को उन मौकों से वंचित किया जाता है जो और जनसंख्या के लिए खुले होते हैं। व्यक्ति को क्रियाशील तथा भरपूर जीवन जीने के लिए मूलभूत ज़रूरतों जैसे कि रोटी, कपड़ा तथा मकान के साथ-साथ अन्य ज़रूरी चीज़ों तथा सेवाओं जैसे कि बैंक, यातायात के साधन, शिक्षा इत्यादि की भी आवश्यकता होती है। सामाजिक भेदभाव अचानक नहीं बल्कि व्यवस्थित ढंग से होता है। यह समाज की संरचनात्मक विशेषताओं का नतीजा है।

परंतु एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सामाजिक बहिष्कार हमेशा अनैच्छिक होता है अर्थात् बहिष्कार उन लोगों की इच्छा के विरुद्ध होता है जिनका बहिष्कार किया जा रहा हो। उदाहरण के लिए शहरों में हजारों बेघर लोग फुटपाथ या पुलों के नीचे सोते हैं, धनी व्यक्ति नहीं। इसका अर्थ यह नहीं है कि धनी व्यक्ति फुटपाथ का प्रयोग करने से बहिष्कृत हैं। अगर वह चाहें तो वह इनका प्रयोग कर सकते हैं, परंतु वह ऐसा नहीं करते । सामाजिक भेदभाव को कभी-कभी गलत तर्क से ठीक कहा जाता है कि बहिष्कृत समूह स्वयं समाज में शामिल होने के इच्छुक नहीं हैं। इस प्रकार का तर्क इच्छित चीज़ों के लिए बिल्कुल ही गलत है।

प्रश्न 5.
आज जाति और आर्थिक असमानता के बीच क्या संबंध है?
उत्तर:
प्राचीन समय में जाति और आर्थिक असमानता एक-दसरे से गहरे रूप से संबंधित थे। व्यक्ति की सामाजिक स्थिति तथा आर्थिक स्थिति एक-दूसरे के अनुरूप होती थी। उच्च जातियों के लोगों की आर्थिक स्थिति प्रायः अच्छी होती थी जबकि निम्न जातियों के लोगों की आर्थिक स्थिति काफ़ी निम्न होती थी। परंतु आधुनिक समय अर्थातु 19वीं शताब्दी के बाद से जाति तथा व्यवसाय के संबंधों में काफ़ी परिवर्तन आए हैं।

आज के समय में जाति के व्यवसाय तथा धर्म संबंधी प्रतिबंध लागू नहीं होते। अब व्यवसाय अपनाना पहले की अपेक्षाकृत आसान हो गया है। अब व्यक्ति कोई भी व्यवसाय अपना सकता है। पिछले 100 वर्षों की तुलना में आज जाति तथा आर्थिक स्थिति का संबंध काफ़ी कमज़ोर हो गया है। आजकल में अमीर तथा निर्धन लोग हरेक जाति में मिल जाएंगे। परंतु मुख्य बात यह है कि जाति-वर्ग परस्पर संबंध वृहत स्तर पर अभी भी पूर्णतया कायम है। जाति व्यवस्था के कमजोर होने से सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति वाली जातियों के बीच अंतर कम हो गया है। परंतु अलग-अलग सामाजिक आर्थिक समूहों के बीच जातीय अंतर अभी भी मौजूद है।

प्रश्न 6.
अस्पृश्यता क्या है?
अथवा
अस्पृश्यता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारतीय समाज में जाति प्रथा का काफ़ी महत्त्व था। उच्च तथा निम्न जातियों को अस्पश्यता की सहायता से अलग किया जाता था। अस्पृश्यता की धारणा यह थी कि निश्चित निम्न जातियों के लोगों के छूने अथवा परछाईं से उच्च जातियों के लोग अपवित्र हो जाएंगे। इसका अर्थ यह है कि यदि उच्च जाति के लोग अछूत जाति के लोगों के नज़दीक भी आ जाएंगे अथवा उनकी छाया भी यदि उन पर पड़ गई तो वह अपवित्र हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में उन्हें दोबारा पवित्र होने के लिए या तो गंगाजल से नहाना पड़ेगा या विशेष धार्मिक कर्मकांड करने पड़ेंगे। 1955 के अस्पृश्यता अपराध कानून से इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था।

प्रश्न 7.
जातीय विषमता को दूर करने के लिए अपनाई गई कुछ नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर:
जातीय विषमता को दूर करने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों ने कुछ नीतियां अपनाई हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  • केंद्र सरकार ने कई प्रकार के कानून बनाए हैं जिनसे जातीय निर्योग्यताएं खत्म कर दी गई हैं। इससे जातीय अंतर कम हुआ है।
  • निम्न जातियों के लोगों को गांवों में भूमि वितरित की गई है ताकि वह अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठा सके।
  • निम्न जातियों के लोगों को कम ब्याज पर तथा आसान किश्तों पर अपना धंधा शुरू करने के लिए ऋण उपलब्ध करवाए जा रहे हैं।
  • उनकी बस्तियों में सुधार करने के लिए सरकारें विशेष प्रबंध कर रही हैं तथा उन्हें कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
  • निम्न जातियों के लोगों को कृषि उत्पादन के लिए अच्छे बीज, उवर्रक तथा मशीनें उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
  • सरकार ने 20 सूत्री आर्थिक कार्यक्रम चलाए हैं जिसमें उन्हें रोज़गार दिलाने की तरफ विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

इन सब कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य जातीय विषमता को दूर करके निम्न जातियों की सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाना है।

प्रश्न 8.
अन्य पिछड़े वर्ग, दलितों (या अनुसूचित जातियों) से भिन्न कैसे हैं?
उत्तर:
भारतीय समाज में या तो उच्च जातियों की उच्चता या फिर अनुसूचित जातियों के शोषण को महत्व दिया गया है। परंतु उच्च जातियों तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के अतिरिक्त भी भारतीय समाज में एक ऐसा बड़ा वर्ग रहा है जो सैंकड़ों वर्षों से उपेक्षित रहा है। अगड़ी जातियों, समुदायों से नीचे तथा अनुसूचित जातियों से ऊपर समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो विभिन्न कारणों से उपेक्षित रहा है तथा भारतीय समाज की विकास यात्रा में निरंतर पिछड़ता गया। इसी वर्ग को अन्य पिछड़ा वर्ग कहते हैं।

इसी प्रकार अन्य पिछड़ा वर्ग अनुसूचित जातियों से ऊपर भारतीय समाज में बहुसंख्यक ऐसा वर्ग है जो सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा भौगोलिक कारणों से कमजोर रह गया है। स्वतंत्रता के बाद इसके लिए अन्य पिछड़ा वर्ग शब्द का प्रयोग किया गया। यह हिंदुओं के दविजों तथा हरिजनों के बीच की जातियों का समूह है । इसके अतिरिक्त इसमें गैर-हिंदुओं, अनुसूचित जातियों व जनजातियों को छोड़कर अन्य निम्न वर्गों को शामिल किया जाता है।

सुभाष तथा बी०पी० गुप्ता द्वारा तैयार किए गए राजनीति कोष में अन्य पिछड़े वर्ग की परिभाषा दी गई है। उनके अनुसार, “अन्य पिछड़े हुए वर्ग का अर्थ समाज के उस वर्ग से है जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक निर्योग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में निम्न स्तर पर हों।’

1953 में काका कालेलकर आयोग गठित किया गया जिसने पिछड़ेपन की चार कसौटियों पर पिछड़ी जातियों की सूची तैयारी की। यह मानदंड थे-जातीय संस्तरण में निम्न स्थान, शिक्षा का अभाव, सरकारी नौकरियों में कम पार व उदयोगों में कम प्रतिनिधित्व। 1978 में मंडल आयोग गठित किया गया जिसने पिछडे वर्ग निर्धारण के लिए तीन मानदंडों का चयन किया था वह थे सामाजिक, शैक्षणिक तथा आरि में विभाजित किया तथा प्रत्येक मानदंड के लिए महत्त्व अलग-अलग दिया गया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

प्रश्न 9.
आज आदिवासियों से संबंधित बड़े मुद्दे कौन-से हैं?
उत्तर:
जनजातियां हमारे समाज, सभ्यता तथा संस्कृति से बहुत ही दूर रहती हैं जिस कारण यह कुछ समय पहले ही हमारे समाज के संपर्क में आई हैं। इसलिए ही हमारे समाज की अनुसूचित जातियों को जिन निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ा है, उन निर्योग्यताओं का सामना जनजातियों को नहीं करना पड़ा है। उनसे संबंधित बड़े मुद्दे अलग ही प्रकृति के हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(i) जनजातियों का शोषण-अंग्रेज़ों के शासन के समय कबायली लोग हमारे समाज के संपर्क में आना शुरू हुए। असल में कबायली लोग न तो किसी के मामले में हस्तक्षेप करते हैं तथा न ही किसी को अपने मामलों में हस्तक्षेप करने देते हैं। जब अंग्रेजों ने भारत में अपनी शासन व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए यहां डाक-तार की तारें बिछाने का कार्य शुरू किया तो उन्हें कबायली इलाकों में से अपनी तारें बिछानी पड़ी। इस बात का कबायली लोगों ने हिंसात्मक विरोध किया।

इससे नाराज़ होकर अंग्रेजों ने अपने ज़मींदारों, व्यापारियों तथा सूद पर पैसा देने वाले साहूकारों को कबायली लोगों को शोषित करने के लिए प्रेरित किया। साहूकारों तथा ज़मींदारों ने धीरे-धीरे इनका शोषण करना शुरू किया तथा इनका जम कर शोषण किया। इससे इन लोगों का जीवन स्तर इतना निम्न हो गया कि यह अच्छा जीने के काबिल ही न रहे। इस प्रकार इनमें यह निर्योग्यता आ गई।

(ii) निर्धनता-कबायली लोग हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में रहते हैं। इन लोगों का समाज में कोई वर्ग नहीं पाया जाता है तथा यह बहुत ही साधारण जीवन जीते हैं। इनकी आवश्यकताएं काफ़ी सीमित हैं जिस कारण इन्हें अधिक चीजों की आवश्यकता नहीं होती है।

परंतु धीरे-धीरे यह हमारे समाज के संपर्क में आए जिस कारण इनकी आवश्यकताएं बढ़ती गईं। परंतु काफ़ी समय से कबायली लोगों का साहूकारों तथा जमींदारों से शोषण होता रहा है। इस शोषण के कारण यह निर्धन से और निर्धन हो गए। इस प्रकार निर्धनता के कारण उन्नति न कर पाए तथा पिछड़ते चले गए।

(iii) अलग-थलग करने की नीति-जब अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन का विस्तार करना शुरू किया तो उनके रास्ते में कबायली लोग आ गए। कबायली लोग न तो किसी के मामले में हस्तक्षेप करते हैं तथा न ही किसी को हस्तक्षेप करने की आज्ञा देते हैं। परंतु जब अंग्रेजों ने अपने शासन का विस्तार करना शुरू किया तो कबायली लोगों ने इसका हिंसात्मक विरोध किया। इस विरोध के कारण अंग्रेजों को अपने इलाकों में विस्तार का कार्य छोड़ना पड़ा।

इसके बाद अंग्रेज़ों ने इन लोगों को अलग-थलग करने की नीति को अपनाया। इसलिए उनके क्षेत्रों को अलग-थलग किया गया ताकि उनके हितों की रक्षा हो सके तथा उनके हिंसात्मक विरोध को भी रोका जा सके। इस प्रकार चाहे अंग्रेजों ने प्रशासनिक कारणों से उन्हें अलग-थलग करने की नीति अपनाई जिससे वह समाज में पिछड़ते ही चले गए तथा निर्धन से और निर्धन हो गए।

(iv) मध्यस्त रास्ता-स्वतंत्रता के बाद संविधान ने देश के सभी नागरिकों तथा समूहों की प्रगति करने का निर्देश सरकार को दिया। इसलिए भारत ने अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए बीच का रास्ता अपनाया। इसके अनुसार उनके क्षेत्र में न केवल प्रगति के अवसर उत्पन्न किए गए बल्कि उनकी संस्कृति का ध्यान भी रखा गया।

इससे कबायली लोग धीरे-धीरे प्रगति करने लगे। चाहे इस नीति से वह प्रगति करने लगे, परंतु इसका उन्हें नुकसान भी हुआ। चाहे कुछ शिक्षा प्राप्त की गई, परंतु वह नौकरी लेने लायक न थी तथा साथ ही वह अपने परंपरागत कार्यों से भी दूर होते चले गए। इस प्रकार वह सामाजिक क्षेत्र में भी पिछड़ते चले गए।

प्रश्न 10.
नारी आंदोलन ने अपने इतिहास के दौरान कौन-कौन से मुद्दे उठाए हैं?
अथवा
महिलाओं की समानता के लिए संघर्षों पर अपने विचार दें।
अथवा
स्त्रियों की समानता और अधिकारों के लिए किए संघर्षों की जानकारी दीजिए।
अथवा स्त्रियों द्वारा समानता के लिए किए गए संघर्षों का वर्णन करें।
उत्तर:
वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी उच्च थी क्योंकि उस समय नारी को देवी समझा जाता था। परंतु समय के साथ-साथ अलग-अलग कालों अथवा युगों में उनकी स्थिति में काफ़ी गिरावट आई। मध्य काल को तो स्त्रियों के लिए काला यग कहा जाता है। चाहे मध्य काल में बहुत से संत महात्माओं ने उनकी सामाजिक स्थिति सधारने का प्रयास किया. परंतु वह अधिक सफल न हो पाए।

मध्य काल के अंत तथा आधुनिक काल की शुरुआत में समाज में महिलाओं से संबंधित बहुत सी बुराइयां व्याप्त थीं जैसे कि बहुविवाह, बाल विवाह, दहेज प्रथा, सती प्रथा, पर्दा प्रथा इत्यादि। आधुनिक समाज सुधारकों ने इन बुराइयों के विरुद्ध आवाज़ उठाई तथा महिला आंदोलन को सुदृढ़ता प्रदान की।

कुछ सुधारकों अंग्रेजों की सहायता से कानून भी पास करवाए ताकि इन बुराइयों को खत्म किया जा सके। इसके बाद गाँधी जी ने महिलाओं को घरों से बाहर निकल कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उनका कहना था कि अगर महिलाएं घरों से बाहर निकल आईं तो उनकी निर्योग्यताओं का खात्मा हो जाएगा। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा पर भी काफ़ी बल दिया। इस कारण ही हजारों लाखों महिलाएं घरों से बाहर निकल आई।

स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं के उत्थान से संबंधित कई प्रकार के कानून बनाए गए ताकि उन्हें शिक्षा, मातृत्व लाभ, जायदाद संबंधी अधिकार, अच्छा स्वास्थ्य तथा बुराइयों के विरुद्ध अधिकार प्रदान किया जा सके। समय समय पर महिला आंदोलन चले जिन्होंने समाज का ध्यान उनके कल्याण की तरफ खींचा। महिलाओं के शोषण, बलात्कार, छेड़छाड़, वैवाहिक हिंसा, गर्भपात, प्रतिकुल लिंग अनुपात, दहेज के कारण हत्या इत्यादि जैसे कई मुद्दे हैं जिन्हें आधुनिक समय में उठाया जा रहा है ताकि महिलाओं को इन सबसे मुक्ति दिलाई जा सके।

प्रश्न 11.
हम यह किस अर्थ में कह सकते हैं कि ‘असक्षमता जितनी शारीरिक है उतनी ही सामाजिक भी’?
अथवा
अक्षमता के लक्षण बताएं।
उत्तर:
असक्षमता शब्द के लिए मानसिक रूप से चुनौतीग्रस्त (Mentally challenged) दृष्टि बाधित (Visually impaired) और शारीरिक रूप से बाधित (Physically impaired), जैसे शब्दों का प्रयोग अब पुराने घिसे-पिटे नकारात्मक अर्थ बताने वाले शब्दों जैसे मंदबुद्धि, अपंग अथवा लंगड़ा-लूला इत्यादि के स्थान पर किया जाने लगा है। कोई भी विकलांग जैविक असक्षमता के कारण विकलांग नहीं बनता बल्कि उन्हें समाज द्वारा ऐसा बनाया जाता है।

असक्षमता के संबंध में एक सामाजिक विचारधारा भी है। असक्षमता तथा निर्धनता के बीच गहरा संबंध है। कुपोषण, कई बच्चे पैदा करने से कमजोर हुई माताओं की रोग प्रतिरक्षा के कम कार्यक्रम, भीड़-भाड़ भरे घरों में दुर्घटनाएँ इत्यादि सभी बातें इकट्ठे मिलकर निर्धन लोगों में असक्षमता के ऐसे हालात उत्पन्न कर देते हैं जो आसान हालातों में रहने वाले लोगों की तुलना में बहुत गंभीर होते हैं।

इसके अतिरिक्त असक्षमता, व्यक्ति के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण परिवार के लिए अलगपन और आर्थिक दबाव को बढ़ाते हुए निर्धनता की स्थिति उत्पन्न करके उसे और गंभीर बना देती है। इस बात में कोई शक नहीं है कि निर्धन देशों में असक्षम लोग सबसे निर्धन होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि असक्षमता शारीरिक होने के साथ-साथ सामाजिक भी हैं।

सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप HBSE 12th Class Sociology Notes

→ हमारे देश भारत में सामाजिक विषमताओं एवं बहिष्कार के कई स्वरूप देखने को मिल जाएंगे जैसे कि जाति पर आधारित भेदभाव, आदिवासियों तक सुविधाओं का न पहुँच पाना, पिछड़े वर्गों से भेदभाव, स्त्रियों तथा निम्न वर्गों की निर्योग्यताएं तथा अंत में अन्यथा सक्षम व्यक्तियों का संघर्ष।

→ सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति को ही सामाजिक विषमता कहा जाता है। सामाजिक विषमता प्राकृतिक भिन्नता की वजह से नहीं बल्कि यह उस समाज द्वारा उत्पन्न होती है जिसमें हम रहते है।

→ सामाजिक बहिष्कार वह तौर तरीके हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने मिलने से रोका जाता है या अलग रखा जाता है। प्राचीन समय में निम्न तथा अस्पृश्य जातियों के साथ ऐसा ही होता था।

→ जाति व्यवस्था सामाजिक बहिष्कार का ही एक रूप है जिसमें उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों का बहिष्कार करके उन्हें समाज से अलग रखा जाता था। चाहे आजकल यह वैधानिक रूप से प्रतिबंधित है परंतु फिर भी दूरदराज के क्षेत्रों में ऐसा हो रहा है। अस्पृश्यता को छुआछूत भी कहा जाता है। अस्पृश्य जातियों का समाज में कोई स्थान नहीं था। उनके साथ स्पर्श करना पाप समझा जाता था। अस्पृश्यता के तीन आयाम हैं-बहिष्कार, अनादर तथा शोषण। इन लोगों का इतना अधिक शोषण हुआ था कि स्वतंत्रता के 67 वर्षों के बाद भी यह अच्छी तरह प्रगति नहीं कर पाए है।

→ जातियों की तरह जनजातियां भी पिछड़े हुए वर्ग का एक हिस्सा हैं जो सामाजिक प्रगति की दौड़ में काफी पीछे हैं। उन्हें भी बहुत-सी निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ा है।

→ निम्न जातियों तथा जनजातियों के प्रति भेदभाव खत्म करने के लिए राज्य तथा अन्य संगठनों द्वारा बहुत से कदम उठाए गए हैं। उनके शोषण, बहिष्कार को गैर-कानूनी घोषित किया गया है। उनकी स्थिति ऊपर उठाने के लिए संविधान में कई प्रावधान रखे गए हैं तथा उन्हें आरक्षण देकर उन्हें ऊँचा उठाने का प्रयास किया जा रहा है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप

→ निम्न जातियों की तरह अन्य पिछड़े वर्ग भी भारतीय जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा हैं जिन्हें बहुत सी सामाजिक निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ा था। यह न तो उच्च जातियों में आते थे तथा न ही निम्न जातियों में। यह जातियां हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं थे बल्कि सभी प्रमुख भारतीय धर्मों में मौजूद थे।

→ इनके उत्थान के लिए कई कार्यक्रम बनाए गए। पहले काका कालेलकर आयोग बनाया गया फिर मंडल आयोग की सिफारिशों को मानकर उनके लिए आरक्षण लागू कर दिया गया ताकि यह भी सामाजिक सोपान में अपने आपको ऊँचा उठा सकें।

→ आदिवासी लोगों ने अपने आपको बचा कर रखने के लिए काफ़ी संघर्ष किया। पहले उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किए तथा स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया। सरकार ने भी उनके उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चलाए, उन्हें आरक्षण दिया ताकि वह देश की मुख्य धारा में मिलकर अपनी स्थिति सुधार सकें।

→ इन सबके साथ देश का एक और बड़ा वर्ग है जो सदियों से शोषण का शिकार होता रहा है तथा वह है वैदिक काल में उनकी स्थिति बहत अच्छी थी परंत उसके बाद सभी कालों में उनकी स्थिति खराब होती चली गई। मध्य काल तो उनके लिए काला युग था। आधुनिक समय में उनकी स्थिति सुधारने के लिए बहत से समाज सधारकों ने प्रयास किए।

→ सरकार तथा समाज सुधारकों के प्रयासों के फलस्वरूप स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ है। उनसे जुड़ी कुप्रथाएँ खत्म हो रही हैं, उनकी शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है तथा उनकी सामाजिक स्थिति ऊँची हो रही है। उन्हें अब पैर की जूती नहीं बल्कि जीवन साथी समझा जाता है। उन्हें हरेक प्रकार का वह अधिकार प्राप्त है जिससे कि अच्छा जीवन व्यतीत हो सके।

→ अन्यथा सक्षम लोग न केवल शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम होते हैं बल्कि समाज भी कुछ इस रीति से बना है कि वह उनकी ज़रूरतों को पूर्ण नहीं करता। उन्हें भारत में निर्योग्य, बाधित, अक्षम, अपंग, अंधा तथा बहरा भी कहा जाता है।

→ यहां एक बात उल्लेखनीय है कि उनकी स्थिति को सुधारने के प्रयास स्वयं विकलांगों की ओर से ही नहीं किए गए हैं, सरकार को भी अपनी ओर से कार्यवाही करनी पड़ी है। उन्हें शिक्षण संस्थाओं तथा सरकारी नौकरियों में कुछेक प्रतिशत आरक्षण भी दिया गया है ताकि वह किसी पर बोझ न बनकर अपने पैरों पर स्वयं खड़े हो सकें।

→ सामाजिक विषमता-सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति को सामाजिक विषमता कहा जाता है।

→ पूर्वाग्रह-एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूह के बारे में पूर्वकल्पित विचार या व्यवहार।

→ सामाजिक बहिष्कार-वह तौर तरीके जिनके द्वारा किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूर्णतया घुलने मिलने से रोका जाता हो तथा पृथक् रखा जाता हो।

→ अस्पृश्यता-वह प्रक्रिया जिसके द्वारा समाज की कुछ निम्न जातियों को अछुत अथवा अस्पृश्य समझा जाता था।

→ हरिजन-अस्पृश्य जातियों को महात्मा गांधी द्वारा दिया गया नाम जिसका शाब्दिक अर्थ है परमात्मा के बच्चे।

→ आरक्षण-सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पक्षों में विशेष जातियों के लिए कुछ स्थान या सीटें निर्धारित करना।

→ आदिवासी-वह पिछड़े हुए लोग जो हमारी सभ्यता से दूर जंगलों पहाड़ों में रहते हुए अविकसित जीवन व्यतीत करते तथा अपनी ही संस्कृति के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं।

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