HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

HBSE 12th Class Sociology जनसंपर्क साधन और जनसंचार Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
समाचार-पत्र उद्योग में जो परिवर्तन हो रहे हैं, उनकी रूपरेखा प्रस्तुत करें। इन परिवर्तनों के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर:
हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं ने काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। अकसर ऐसा कहा जाता है कि टेलीविज़न तथा इंटरनेट के विकास से प्रिंट मीडिया का महत्त्व कम हो जाएगा परंतु हमने यह देखा है कि भारत में समाचार-पत्रों का प्रसार बढ़ रहा है। नयी प्रौद्योगिकी के विकास से समाचार-पत्रों के उत्पादन तथा प्रसार को काफ़ी सहायता मिली है। इस कारण ही बहुत-सी चमकदार पत्रिकाएं बाज़ार में रोज़ आ रही हैं।

असल में भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों की इस अचानक वृद्धि के बहुत-से कारण हैं। पहला तो यह कि बहुत-से पढ़े-लिखे लोग शहरों की ओर प्रवास कर रहे हैं। सन् 2003 में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के दिल्ली में 64,000 प्रतियां छपती थीं जो 2005 में बढ़कर 4,25,000 हो गई थी। इसका कारण यह है कि दिल्ली के डेढ़ करोड़ की जनसंख्या में से आधे से अधिक लोग उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रों से आए हैं। इनमें से 47% लोग ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं तथा उनमें से 60% लोग 40 वर्ष से कम उम्र के हैं।

दूसरा कारण यह है कि गाँवों तथा कस्बों के पढ़ने वालों की ज़रूरतें शहरी पढ़ने वालों से अलग होती हैं। अलग अलग भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्र उन ज़रूरतों को पूर्ण करते हैं। मलयाली मनोरमा तथा ईनाडु जैसे भारतीय भाषाओं के प्रमुख पत्रों ने स्थानीय समाचारों की संकल्पना को एक महत्त्वपूर्ण रीति से जिला संस्करणों तथा आवश्यकता के अनुसार ब्लाक संस्करणों की सहायता से शुरू किया। एक और तमिल ‘दिन तंती’ ने हमेशा तथा लोगों की बोल-चाल की भाषा का प्रयोग किया है। भारतीय समाचार-पत्रों ने उन्नत प्रौद्योगिकी को अपना कर पाठकों को अलग-अलग अंक देने के प्रयास किए हैं।

समाचार-पत्रों ने कई प्रकार की रणनीतियाँ अपनायी हैं ताकि अधिक-से-अधिक पाठकों तक पहुँचा जा सके। अंग्रेजी भाषा के समाचार-पत्रों को राष्ट्रीय दैनिक कहा जाता है तथा यह सभी क्षेत्रों में पढ़े जाते हैं। भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों का प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों में काफ़ी अधिक बढ़ गया है। समाचार-पत्रों, विशेष तथा अंग्रेजी तथा हिंदी, ने अपनी न केवल कीमतें घटा दी हैं बल्कि यह तो कई केंद्रों से अलग-अलग संस्करण निकालने शुरू कर दिए हैं।

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प्रश्न 2.
क्या एक जनसंचार के माध्यम के रूप में रेडियो ख़त्म हो रहा है? उदारीकरण के बाद भी भारत में एफ० एम० स्टेशनों के सामर्थ्य की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में सबसे पहला रेडियो प्रसारण का कार्यक्रम 1925 में शरू हआ था जब रेडियो क्लब ऑफ़ बंबई द्वारा एक कार्यक्रम पेश किया गया था। उसके बाद से लेकर अब तक रेडियो अमीरों तथा निर्धन लोगों के मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन रहा है। समाचार-पत्रों के बाद रेडियो ही एक ऐसा साधन है जो हरेक व्यक्ति की पहुँच में है।

यहाँ तक कि निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी ₹ 100-150 में रेडियो खरीद कर अपना मनोरंजन कर सकता है। चाहे टी० वी० चैनलों की बाढ़ आने से रेडियो का प्रभाव थोड़ा-सा कम हो गया था परंतु एफ० एम० स्टेशनों के चलने से रेडियो का क्रेज फिर बढ़ गया है। देश के दूर-दूर से इलाकों में जहां मनोरंजन का कोई और साधन नहीं पहुँच सकता वहां रेडियो पहुँच सकता है।

आज के उदारीकरण के समय में एफ०एम० स्टेशनों का सामर्थ्य काफ़ी बढ़ गया है। रेडियो स्टेशनों के अधिक निजीकरण तथा समुदाय के स्वामित्व वाले रेडियो स्टेशनों के सामने आने से रेडियो स्टेशनों का अधिक विकास हो रहा है। लोग स्थानीय समाचारों को सुनना पसंद करते हैं।

देश में एफ० एम० चैनलों को सुनने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है क्योंकि यह चैनल जनता के मनोरंजन के नए-नए कार्यक्रम पेश करते हैं। इसके साथ ही यह जनता को कार्यक्रम के दौरान प्रश्न पूछ कर उपहार भी देते हैं। इस प्रकार एफ० एम० रेडियो चैनल देश भर में प्रसिद्ध हो रहे हैं। 92.7 एफ० एम० रेडियो स्टेशन ने तो सारे देश में अपनी शाखाएं खोली हुई हैं।

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प्रश्न 3.
टेलीविज़न के माध्यम में जो परिवर्तन होते रहे हैं, उनकी रूपरेखा प्रस्तुत करें। चर्चा करें।
उत्तर:
देश में सबसे पहले 1959 में दिल्ली के आकाशवाणी भवन में टेलीविज़न को प्रयोग के तौर पर चलाया गया। भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे दूरदर्शन की सेवा विश्व की संचार की सेवाओं में सबसे बड़ी सेवाओं में से एक है। सबसे पहले दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में तीन दिन होता था। फिर धीरे-धीरे रोजाना समाचार प्रणाली शुरू हुई। 1975-76 में भारत में उपग्रह से संबंधित पहला प्रयोग साईट के द्वारा किया गया।

लोगों को सामाजिक शिक्षा देने के लिए तकनीकी सहायता से यह पहला प्रयास था। देश में दूसरा टी०वी० केंद्र 1972 में खोला गया। 1973 में तो कई स्थानों पर ऐसे केंद्र खोले गए। 1976 में दूरदर्शन को ऑल इंडिया रेडियो से अलग करके अलग विभाग बना दिया गया। रंगीन टी० वी० की शुरुआत सबसे पहले 1982 के एशियाई खेलों के दौरान हुई।

1984 में दिल्ली दूरदर्शन के साथ डी० डी० मैट्रो को जोड़ दिया गया। पहले तो मैट्रो केवल दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा चेन्नई में ही दिखाया जाता था परंतु कुछ समय पश्चात् यह संपूर्ण भारत में दिखाया जाने लगा। 1999 में खेलों के लिए डी०डी० स्पोर्टस नामक खेल चैनल भी शुरू किया गया ताकि दुनिया भर में चल रही खेलों को दिखाया जा सके।

आज भारत के 9 करोड़ से भी अधिक लोगों के साथ टेलीविज़न उपलब्ध है। इस समय दूरदर्शन देश की 87% आबादी तथा 70% भौगोलिक क्षेत्र तक अपने चैनलों को पहुँचा चुका है। देश के 49 शहरों में तो दूरदर्शन के प्रोडक्शन स्टूडियो हैं। दूरदर्शन से शिक्षा संबंधी कई कार्यक्रम प्रस्तुत होते हैं। IGNOU के माध्यम से तथा U.G.C. के माध्यम से उच्च शिक्षा के लिए कई कार्यक्रम दूरदर्शन पर चलाए जा रहे हैं।

1995 में दूरदर्शन ने डी०डी० वर्ल्ड नामक एक चैनल चलाया था पर 2002 में इसे डी० डी० इंडिया का नाम दिया गया। 1991 में उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद देश में प्राईवेट चैनलों की तो बाढ़ सी आ गई है। दूरदर्शन के अतिरिक्त सोनी, जी, मैक्स, स्टार, ई०एस०पी०एन०, न्यूज़ चैनल, खेलों के चैनल, व्यापार के चैनल, संगीत के चैनल इत्यादि से संबंधित सैंकड़ों ऐसे चैनल चल रहे हैं जो दिन-रात चल रहे हैं तथा लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। अब तो D.T.H. (Direct to Home) सेवा शुरू हो गई है जिसने तो इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 1959 से लेकर अब तक टेलीविज़न के माध्यम में ज़मीन आसमान का अंतर आ चुका है तथा हम घर पर बैठ कर संसार भर के समाचार तथा हरेक प्रकार के कार्यक्रम देख सकते हैं।

जनसंपर्क साधन और जनसंचार HBSE 12th Class Sociology Notes

→ मास मीडिया का अर्थ है जनसंपर्क के साधन। यह कई प्रकार के होते हैं जैसे कि टी० वी०, समाचार-पत्र, फिल्में, पत्रिकाएँ, रेडियो, विज्ञापन, सीडी इत्यादि। इन्हें मास मीडिया इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह एक साथ बहुत बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचते हैं।

→ मास मीडिया हमारे दैनिक जीवन का एक अंग है। लाखों लोग सुबह उठ कर या तो समाचार-पत्र देखते हैं, या टी० वी० पर ख़बरें देखते हैं या फिर फोन पर मिस्ड कॉल देखते हैं। इस प्रकार मास मीडिया हमारे जीवन में काफ़ी महत्त्वपूर्ण हो गया है।

→ हाल ही के वर्षों में सभी प्रकार के जनसंचार के साधनों का चमत्कारिक रूप से विस्तार हुआ है। टी० वी०, डी० टी० एच०, समाचार-पत्रों की बाढ़, न्यूज़ चैनलों की बाढ़, मनोरंजन के कार्यक्रम इतने अधिक हो गए हैं कि व्यक्ति को समझ ही नहीं आता कि वह क्या देखे तथा क्या न देखे।

→ भारत में मुद्रण की शुरुआत चाहे अंग्रेजों के समय में हुई थी परंतु अंग्रेजों ने समाचार-पत्रों को हमेशा दबा कर रखा। उन्हें डर था कि कहीं समाचार-पत्र लोगों में बग़ावत की भावना न फैला दें। परंतु स्वतंत्रता के बाद इसने अत्यधिक प्रगति की तथा इसे लोकतंत्र का पहरेदार भी कहा गया।

→ रेडियो, टी० वी० तथा प्रिंट मीडिया ऐसे माध्यम हैं जो जनता में किसी मुद्दे पर जागृति उत्पन्न करते हैं तथा यह राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। आजकल तो भूमंडलीकरण के कारण संचार के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति सी आ गई है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

→ भारत में आजकल हज़ारों समाचार-पत्र रोज़ाना छपते हैं तथा इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। बहुत से लोगों को डर था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उत्थान से प्रिंट मीडिया के प्रसार में गिरावट आएगी परंतु ऐसा नहीं हुआ।

→ 1991 में भारत में केवल राज्य नियंत्रित दूरदर्शन चैनल चलता था जो अब बढ़ कर 200-250 के करीब प्राइवेट चैनल हो गए हैं। मनोरंजन के चैनल, समाचार के चैनल, खेलों के चैनल, संगीत के चैनल, फिल्मों के चैनल, शिक्षावर्धक चैनलों की तो बाढ़ सी आ गई है। केबल टी० वी० तथा डी० टी० एच० सेवा ने तो इसमें क्रांति ही ला दी है।

→ रेडियो मनोरंजन का एक ऐसा साधन है जिसे कोई भी कहीं भी सुन सकता है। पहले केवल सरकारी चैनल ही हुआ करते थे परंतु आजकल एफ०एम० चैनल आ गए हैं जो दिन-रात लोगों का मनोरंजन करते हैं। यह एक मनोरंजन का सस्ता साधन भी है जिसको सुनने के लिए केवल रेडियो की कीमत ही अदा करनी पड़ती है।

→ इसमें कोई शक नहीं है कि मास मीडिया आज हमारे व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक जीवन का एक आवश्यक अंग बन गया है। मास मीडिया आजकल अनेकों नए आयाम स्थापित करने में लगा है।

→ जन संचार-जब व्यक्तियों के समूह के साथ आमने-सामने की बातचीत के स्थान पर किसी यांत्रिक माध्यम की सहायता से एक विशाल वर्ग से बातचीत की जाती है तो इसे जनसंचार कहा जाता है।

→ प्रिंट मीडिया-समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं को प्रिंट मीडिया के साधन कहा जाता है।

→ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया-टी० वी० तथा रेडियो को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साधन कहा जाता है।

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