HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. हमारे शरीर में प्रदत्त सुदूर-संवेदन के प्राकृतिक उपकरण हैं-
(A) आँख
(B) कान
(C) नाक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. यांत्रिक सुदूर-संवेदन मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(C) चार

3. सुदूर-संवेदन में प्रयुक्त होने वाली ऊर्जा के कितने स्रोत हो सकते हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

4. सुदूर-संवेदन का प्रकार है-
(A) धरातलीय विभेदन
(B) वर्णक्रमीय विभेदन
(C) रेडियोमीट्रिक विभेदन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. वायुयान द्वारा सुदूर-संवेदन का लक्षण है-
(A) प्लेटफॉर्म कम स्थायी
(B) बृहत् मापक
(C) उच्च क्षेत्रीय विभेदन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी वस्तु को छुए बिना उसका बोध या संवेद होना सुदूर-संवेदन कहलाता है।

प्रश्न 2.
तरंगदैर्ध्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
दो निकटवर्ती तरंग श्शृंगों (Wave Crests)अथवा तरंग गर्तों (Wave Troughs) के बीच की लम्बाई को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।

प्रश्न 3.
सदूर-संवेदक कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सुदूर-संवेदक दो प्रकार के होते हैं-

  • प्राकृतिक सुदूर-संवेदक एवं
  • कृत्रिम सुदूर-संवेदक।

प्रश्न 4.
विद्युत-चुम्बकीय विकिरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश की गति से ऊर्जा का किसी दिकस्थान अथवा माध्यम से होने वाला प्रवर्धन विद्युत-चुम्बकीय विकिरण कहलाता है।

प्रश्न 5.
संवेदक किसे कहते हैं?
उत्तर:
कोई भी प्रतिबिम्बन अथवा अप्रतिबिम्बन साधन, जो विद्युत चुम्बकीय विकिरण को प्राप्त करने एवं उसे ऐसे संकेतों में परावर्तित करता हो, जिनसे फोटोग्राफीय अथवा अंकिक प्रतिबिम्बों को अभिलेखित तथा प्रदर्शित किया जा सकता हो।

प्रश्न 6.
राडार व फ्लैशगन में किस प्रकार की ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
राडार व फ्लैशगन में कृत्रिम ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 7.
भू-स्थैतिक उपग्रह की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर:
36,000 कि०मी०।

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प्रश्न 8.
त्रियक रंग मिश्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कृत्रिम रूप से उत्पादित रंगीन बिम्ब जिसमें नीला, हरा और लाल रंग उन तरंग क्षेत्रों को निर्दिष्ट किया जाता है जो प्राकृतिक रूप से अलग होते हैं। उदाहरण के तौर पर एक मानक त्रियक रंगी मिश्र में नीला रंग हरे विकिरण क्षेत्र (0.5 से 0.6 माइक्रोमीटर) को, हरा रंग लाल विकिरण क्षेत्र (0.6 से 0.7 माइक्रोमीटर) और अन्ततः लाल रंग अवरक्त क्षेत्र (0.7 से 0.8 माइक्रोमीटर) वाले विकिरण क्षेत्रों को निर्दिष्ट किए जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन क्या है? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सुदूर-संवेदन (Remote Sensing)-दूरस्थ संवेदन सूचनाएँ एकत्रित करने की आधुनिक तकनीक है जिसके अन्तर्गत किसी वस्तु के बिना सम्पर्क में आए उसके बारे में दूर से ही सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं। पृथ्वी के सभी पदार्थ ऊर्जा का विकिरण, अवशोषण तथा परावर्तन करते हैं। अतः धरातलीय तत्त्वों की विशिष्टता के आधार पर सुदूर अन्तरिक्ष में सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं और वहाँ से निश्चित भू-केन्द्रों तक प्रेषित की जाती है। सुदूर-संवेदन तकनीक विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक तत्त्वों के मानचित्रण में अत्यन्त लाभदायक है। आधुनिक युग में कम्प्यूटर विधि द्वारा सुदूर-संवेदन से प्राप्त सूचनाओं को बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। अतः प्राकृतिक संसाधनों के विश्लेषण में सुदूर-संवेदन विधि का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक और कृत्रिम सुदूर-संवेदकों में अन्तर स्पष्ट करते हुए चार मुख्य प्रकार के यान्त्रिक सुदूर-संवेदकों के नाम बताइए।
उत्तर:
आँख, नाक, कान व त्वचा सुदूर-संवेदन के प्राकृतिक उपकरण हैं। कृत्रिम सुदूर-संवेदी उपकरणों का आविष्कार किया जाता है। रेडियोमीटर, ऑडियोमीटर, मैग्नेटोमीटर, ग्रेवीमीटर तथा साधारण कैमरा कृत्रिम सुदूर-संवेदी यन्त्र हैं।

प्रश्न 3.
उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन के क्या-क्या गुण हैं?
उत्तर:
उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन ने वर्षों और महीनों में एकत्रित होने वाली ‘सूचनाओं को क्षणों में उपलब्ध करवाकर ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं में सूचना क्रान्ति ला दी है। उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन में दृश्य का चित्र विस्तृत तथा सार रूप में खींचा जा सकता है।

प्रश्न 4.
सुदूर-संवेदन की सक्रिय प्रणाली क्या है?
उत्तर:
सक्रिय संवेदन प्रणाली वह प्रणाली होती है जिसमें मानव द्वारा उत्पादित ऊर्जा का प्रयोग होता है। इसमें ऊर्जा अपने स्रोत से वस्तु तक जाती है और उसका कुछ भाग परावर्तित होकर पुनः स्रोत तक पहुँचता है। वहाँ पर इसे डिक्टेटर द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है। राडार सक्रिय संवेदन प्रणाली का प्रमुख उदाहरण है।

प्रश्न 5.
भूगोल में सुदूर-संवेदन के प्रयोग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूगो सुदूर-संवेदन तकनीक का निम्नलिखित विषयों के अध्ययन में प्रयोग किया जाता है-

  • समुद्र विज्ञान तथा सागरीय सम्पदा।
  • कृषि, वन सम्पदा तथा मिट्टी।
  • भू-गर्भ विज्ञान।
  • जल विज्ञान।
  • मौसम विज्ञान।
  • भूमि-उपयोग विश्लेषण।
  • मानचित्र विज्ञान।

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निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन विधि के क्या उपयोग हैं? इस विधि में आधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दूरस्थ संवेदन प्रणाली का उपयोग-वर्तमान समय में सामान्य, रंगीन, इन्फ्रारेड एवं त्रिआयामी (Three dimensional) फोटोग्राफी द्वारा, लेज़र किरणों की पद्धति के उपयोग द्वारा तथा कम्प्यूटर एवं रेडार के उपयोग द्वारा कुछ विकासशील देशों की . दृश्य-भूमि (Landscape) का प्रमाणिक ज्ञान ऐसे साधनों द्वारा होने लगा है। इससे मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार की सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं

  • भतल पर विकसित दृश्यावली एवं दृश्यभूमि (An Areal Mosaic and Landscapes)
  • प्राकृतिक प्रदेश एवं पृष्ठभूमि (Natural regions and its background)
  • भूशैल एवं भू-विज्ञान अध्ययन तकनीकी-रडार इन्फ्रारेड एवं विविध बैण्डों की रंगीन फोटोग्राफी से विभिन्न प्रकार की शैलों, मिट्टियों एवं खनिजों का प्रारम्भिक अध्ययन किया जाता है
  • प्रादेशिक यातायात विकास हेतु नीति निर्धारण इससे सम्भावित मार्ग-निर्माण का स्वरूप एवं उसकी दिशा आदि का ज्ञान निरन्तर प्राप्त इमेजियरी चित्रों से होता है।

सुदूर-संवेदन विधि (Remote Sensing) द्वारा अर्द्धविकसित प्रदेशों का एवं ऐसे क्षेत्रों का, जिनका कि एकाधिक कारणों से स्थलाकृति मानचित्र उपलब्ध नहीं है, का सम्पूर्ण सर्वेक्षण कार्य अल्प समय में ही पूरा किया जा सकता है। लेण्डसेट उपग्रह शृंखला, इण्टलसेट, रोहिणी, इनसेट I-B से प्राप्त अनेक प्रकार की वेवलेन्थ (Wave length) वाली अलग-अलग बैण्ड (Band) से प्राप्त इमेजरी से संसाधनों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई है। इस दृष्टि से बेण्ड 5 से 7 के बीच विभिन्न स्तरों व बेण्डों के इमेजरी (Imagery) का ज्ञान मानचित्र एवं परिणाम अलग-अलग आभाओं की सघनता एवं विरलता से लगता है।

इससे सरलता से वनों के प्रकार, उनके विकास की अवस्था, फसलों के प्रकार एवं अवस्था, उनके रोग एवं प्रकोप, वनों के विदोहन की सम्भावनाएँ, चट्टानों एवं मिट्टियों का विशिष्ट वितरण, किसी क्षेत्र की पहुँच आदि बातों का पता लगाया जा सकता है। इन्फ्रारेड इमेजरी (Infra-red Imagery) के द्वारा इन सबकी सघनता एवं विरलता का ज्ञान होता है। इसी कारण अब वायु फोटो व्याख्या एवं दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) अपने-आप में एक महत्त्वपूर्ण स्वतन्त्र विज्ञान बनता जा रहा है। इसकी विधियों में तीव्र गति से विकास हो रहा है। इसके साथ ही अब इसमें लेजर किरणों का प्रयोग कर साधारण फोटो या त्रिविमीय (Third Dimensional)

फोटोग्राफी करने के लिए होलोग्राफी (Holography) का भी प्रयोग किया जाने लगा है। इस तकनीक द्वारा वायुफोटो एवं इमेजरी एवं दूरस्थ संवेदन तन्त्र को सीखने हेतु विशिष्ट प्रशिक्षण अनुसन्धान केन्द्र भी स्थापित किए जा चुके हैं। भारत में ऐसे केन्द्र हासन, हैदराबाद, देहरादून तथा अहमदाबाद में स्थापित किए गए हैं। कुछ अन्य केन्द्रों, जिनमें हरिकोटा, कोलकाता एवं दिल्ली मुख्य हैं, में ऐसी सुविधाएँ विकसित की जा चुकी हैं।

भूगोल में इस तकनीक का प्रयोग न सिर्फ विषय के विकास के लिए वांछनीय है, बल्कि यह एक अनिवार्य तत्त्व बनकर स्थान (Locality), क्षेत्र (Area) अनेक प्रकार के प्रदेशों (Various types of regions e.g., Macro, Meso, Mico) की तुलनात्मक व्याख्या, विश्लेषण एवं नियोजन के लिए भी किया जाता है।

नवीन परिवेश से भूतल की क्रियाओं से प्रभावित आँकड़े फोटो एवं इमेजरी सूचनाएँ एवं पृष्ठभूमि के द्वारा जो सम्पूर्ण सूचना संग्रह प्राप्त होता है, उसके परिष्करण, विश्लेषण एवं परिणाम की प्रक्रिया में भी निश्चित रूप से गतिशीलता एवं तेजी बनी रहनी चाहिए। इसी कारण वर्तमान समय में दूरस्थ संवेदन विधियों का प्रयोग बढ़ रहा है। दूरस्थ संवेदन में व्याख्या करने के लिए निम्नलिखित आधारों का सहारा लेना पड़ता है
1. आकार-अधिकांश दूरस्थ संवेदन चित्रों को अनेक आकार के आधार पर पहचाना जा सकता है; जैसे पहाड़ी क्षेत्रों का उच्चावच मैदानी क्षेत्रों की तुलना में छोटा व विरल होता है। मैदान के आकार को देखकर कृषि की सघनता देखी जाती है। अधिकतर वस्तुओं को मानक के आधार पर पहचाना जाता है।

2. आकृति-आकाशीय छायाचित्रों के विश्लेषण के लिए यह जरूरी है कि वस्तुओं की आकृति का ज्ञान हो, भवन व कारखाने, खेत, सड़कें, रेलमार्ग, नहरें, रजवाहे, खेल के मैदान तथा बाग-बगीचे आदि नियमित ज्यामितीय आकृति के होते हैं, जबकि नदी, झीलें, मरुस्थल, तालाब एवं वन आदि अनियमित आकृति के होते हैं।

3. आभा आकाशीय छायाचित्रों में धूसर रंग की विभिन्न प्रकार की आभाएँ होती हैं, इन आभाओं का गहरापन इस बात पर आधारित है कि धरातल से प्रकाश की कितनी मात्रा परावर्तित होती है। यदि सतह पर प्रकाश का परावर्तन अधिक होता है तो आभाएँ पतली होती हैं तथा प्रकाश के कम परावर्तन में आभाएँ गहरी होती हैं।

इन आभाओं के आधार पर छायाचित्रों को पहचाना. जाता है; जैसे स्वच्छ पानी, गहरा धूसर या काला दिखाई देता है, जबकि गन्दा पानी हल्का भूरा दिखाई देता है। ऊर्ध्वाधर छायाचित्रों में सड़कों की आभा रेलमार्गों से कम होती है, क्योंकि सड़कों से प्रकाश का परावर्तन अधिक होता है। इसी तरह शुष्क भू-भाग की अपेक्षातर भू-भाग की आभा हल्के रंग की दिखाई देती है। रेत का रंग सफेद दिखता है। लम्बी फसल वाले क्षेत्र की आभा गहरी दिखती है। पके गेहूँ की कृषि की आभा हल्के रंग की दिखाई देती है।

4. गठन गठन अनेक तरह का होता है; जैसे चिकना, चितकबरा एवं धारीदार आदि। आकाशीय छायाचित्रों के गठन द्वारा भी क्षेत्रों की पहचान अच्छे ढंग से की जा सकती है। सामान्यतः जुते हुए खेतों का गठन धारीदार, झाड़ियों का गठन महीन चितकबरा एवं वनों का गठन मोटा चितकबरा होता है।

5. परछाई परछाई से हमें पता चलता है कि सम्बन्धित विवरण सामान्य धरातल से नीचा है या ऊँचा है। परछाई विवरण के बाहर ता है, जबकि परछाई विवरण अन्दर होने पर धरातल नीचा होगा। परछाई से ऊँचाई भी ठीक ज्ञात की जा सकती है। यदि हवाई चित्रों में अक्षांशीय विस्तार दिया हो तो परछाई से दिशाएँ भी ज्ञात की जा सकती हैं।

6. पहुँच मार्ग-पहुँच मार्गों के द्वारा भी छायाचित्रों को पहचाना जा सकता है, जैसे किसी आवास तक कोई मार्ग अवश्य होगा, . यदि वह मार्ग चित्र में समाप्त होता दिखाई दे तो स्पष्ट होता है कि यहाँ आवास गृह अवश्य होंगे, चाहे वे दिखाई न देते हों।

लक्ष्यों की पहचान तथा उनके महत्त्व को जानने के लिए प्रतिबिम्बों के परीक्षण करने का कार्य प्रतिबिम्ब व्याख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। व्याख्याकार दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) के आँकड़ों का अध्ययन करता है। वायु फोटोग्राफी विधि में निम्नलिखित नौ तत्त्व महत्त्वपूर्ण माने गए हैं-

  • आकृति
  • आकार
  • आभा
  • छाया
  • गठन
  • पैटर्न
  • स्थान
  • प्रस्ताव
  • स्टीरियोस्कोपिक आकृति।

आकाशीय फोटोचित्रों का मापक भारतीय सर्वेक्षण विभाग की तरह निश्चित एवं समान नहीं होता। आकाशीय फोटोचित्रों में । किन्हीं दो या अधिक स्थानों का मापक भारतीय सर्वेक्षण विभाग के उन्हीं स्थानों को सन्दर्भ बिन्दु मानकर मापक का पता लगाया जाए तो कभी भी समान नहीं होगा। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है-
मापक = \(\frac { f }{ H’ }\)
यहाँ f = कैमरा (लैन्स) की फोकस दूरी।
H = माध्य, H = H-h (H = M.S.L. से ऊँचाई, h = सामान्य ऊँचाई)
भारतीय दूरस्थ संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई०आर०एस०) राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रणाली का मुख्य भाग है एवं अन्तरिक्ष . विभाग दूरस्थ संवेदन आँकड़े उपलब्ध कराने वाली मुख्य संस्था है। इस संस्था का पहला उपग्रह आई०आर०एस० -ए मार्च, 1988 में अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था। पहले की तरह दूसरा भारतीय दूर-संवेदी उपग्रह आई०आर०एस० I-बी अगस्त, 1991 में छोड़ा गया था। भारतीय दूरस्थ संवेदन प्रणाली आई०आर०एस० I-सी, आई०आर०एस०पी०-3, आई०आर०एस० -डी तथा आई०आर०एस०पी०-4 के प्रक्षेपण से बहुत सुदृढ़ हुई है। इनमें अन्तिम तीन उपग्रहों का प्रक्षेपण भारतीय प्रक्षेपण यान पी०एस०एल०वी० द्वारा किया गया। आई०आर०एस० -सी को 28 दिसम्बर 1995 में एक रूसी रॉकेट से तथा आई०आर०एस०डी० को पी०एस०एल०वी० से 29 दिसम्बर, 1997 को अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था।

इन अन्तरिक्ष यानों में पहले अन्तरिक्ष यानों की तुलना में बेहतर वर्णक्रमीय और स्थानिक विभेदन, अधिक तेजी से चक्कर लगाने, स्टीरियो (त्रिविमीय) निरीक्षण और रिकॉर्डिंग क्षमता अधिक होती है। इनमें रखे टेप-रिकॉर्ड आँकड़ों को दर्ज करते हैं। आई०आर०एस०पी०-3 को 21 मार्च, 1996 में छोड़ा गया था। इसमें डी०एल०आर० जर्मनी द्वारा परिकल्पित आप्टो इलैक्ट्रानिक स्केनर है। इसमें वनस्पति विज्ञान के अध्ययन के लिए आई०आर०एस० I-सी की तरह ही एक अतिरिक्त शार्ट वेव बैण्ड है तथा एक्स-रे खगोल-विज्ञान पर लोड भी है जो अन्तरिक्ष के एक्सरे-स्रोतों के स्पेक्ट्रम की विशेषताएँ एवं उनमें परिवर्तन की जानकारी देता है। पी०एस०एल०वी० से आई०आर०एस०पी० को 26 मई, 1999 को अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था। भारत में दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) विधि का प्रयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जा रहा है

  • विभिन्न फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन का आकलन
  • बंजर भूमि प्रबन्धन
  • शहरी विकास
  • बाढ़ नियन्त्रण और क्षति का आकलन
  • भूमि उपयोग
  • जलवायु के अनुसार कृषि की योजना बनाना
  • मौसम सम्बन्धी जानकारी के लिए
  • जल संसाधन का प्रबन्धन
  • भूमिगत पानी की खोज
  • मत्स्य पालन विकास
  • खनिजों का पता लगाना
  • वन-संसाधनों के सर्वेक्षण आदि।

सुदूर संवेदन का परिचय HBSE 11th Class Geography Notes

→ सुदूर-संवेदन (Remote Sensing) : किसी वस्तु को छुए बिना उसका बोध या संवेद होना सुदूर-संवेदन कहलाता है।

→ मैग्नेटोमीटर (Magnetometre) : यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों को मापता है।

→ ग्रेवीमीटर (Gravimetre) : यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में होने वाले परिवर्तनों को मापता है।

→ संवेदक (Sensors) : संवेदक एक प्रकार की मशीनें युक्ति या उपकरण होते हैं जो विद्युत चुंबकीय विकिरण ऊर्जा को एकत्रित करते हैं और उन्हें संकेतकों में बदलकर अन्वेषण लक्ष्यों के विषय में सूचना प्रदान करते हैं।

→ वर्णक्रमीय विभेदन (Spectral Resolution) : यह विभेदन विद्युत-चुंबकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न ऊर्जा क्षेत्रों में संवेदक के अभिलेखन की क्षमता से संबंधित है।

→ प्रतिबिम्ब (Image) : प्रतिबिम्ब किसी क्षेत्र विशेष को संसूचित व अभिलेखित की गई ऊर्जा का चित्र रूप में प्रदर्शन करता है।

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