HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

HBSE 12th Class Sociology भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसांख्यिकीय संक्रमण के सिद्धांत के बुनियादी तर्क को स्पष्ट कीजिए। संक्रमण अवधि जनसंख्या विस्फोट के साथ क्यों जुड़ी है?
अथवा
जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
जनसांख्यिकीय विषय में एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत है। इसका अर्थ है कि जनसंख्या में वदधि आर्थिक विकास के सभी स्तरों के साथ जडी होती है तथा हरेक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप के अनुसार चलता है। जनसंख्या वृद्धि के तीन मुख्य स्तर होते हैं। पहले स्तर में जनसंख्या वृद्धि कम होती है क्योंकि समाज कम विकसित तथा तकनीकी रूप से पिछड़ा होता है। वृद्धि दर के कम होने का कारण जन्म दर तथा मृत्यु दर काफ़ी ऊँची होने के कारण कम अंतर होता है। तीसरे चरण में भी विकसित समाजों में भी जनसंख्या वृद्धि दर कम होती है क्योंकि जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही कम होते हैं।

इसलिए उनमें अंतर भी काफी कम होता है। इन दोनों स्तरों के बीच एक तीसरी संक्रमणकालीन अवस्था होती है जब समाज पिछड़ी अवस्था से उस अवस्था में पहुँच जाता है जब जनसंख्या वृद्धि की दर काफ़ी अधिक होती है। संक्रमण अवधि जनसंख्या विस्फोट से इसलिए जुड़ी होती है क्योंकि मृत्यु दरों को रोग नियंत्रण, स्वास्थ्य सुविधाओं से तेज़ी से नीचे कर दिया जाता है। परंतु जन्म दर इतनी तेजी से कम नहीं होती तथा जिस कारण वृद्धि दर ऊँची हो जाती है। बहुत से देश जन्म दर घटाने को संघर्ष कर रहे हैं परंतु वह कम नहीं हो पा रही है।

प्रश्न 2.
माल्थस का यह विश्वास क्यों था कि अकाल और महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएँ, जो बड़े पैमाने पर मृत्यु का कारण बनती हैं, अपरिहार्य हैं?
अथवा
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
जनसांख्यिकी के सबसे अधिक प्रसिद्ध सिद्धांतों में से एक सिद्धांत अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस के नाम से जुड़ा है। माल्थस का कहना था कि जनसंख्या उस दर की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ती है जिस दर पर मनुष्य के भरण पोषण के साधन बढ़ सकते हैं। इस कारण ही मनुष्य निर्धनता की स्थिति में रहने को बाध्य होता है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि की दर कृषि उत्पादन की वृद्धि दर से अधिक होती है। क्योंकि जनसंख्या वृद्धि दर कृषि उत्पादन की वृद्धि दर से अधिक होती है इसलिए समाज की समृद्धि को एक ढंग से बढ़ाया जा सकता है तथा वह है जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रण में रखा जाए।

या तो मनुष्य अपनी इच्छा से जनसंख्या को नियंत्रण में रख सकते हैं या फिर प्राकृतिक आपदाओं से। माल्थस का मानना था कि अकाल तथा महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएं जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए अपरिहार्य होती हैं। इन्हें प्राकृतिक निरोध कहा जाता है क्योंकि यह ही बढ़ती जनसंख्या तथा खाद्य आपूर्ति के बीच बढ़ते असंतुलन को रोकने का प्राकृतिक उपाय है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 3.
मृत्यु दर तथा जन्म दर का क्या अर्थ है? कारण स्पष्ट कीजिए कि जन्म दर में गिरावट अपेक्षाकृत धीमी गति से क्यों आती है जबकि मृत्यु दर बहुत तेज़ी से गिरती है।
अथवा
जन्म दर तथा मृत्यु दर से क्या अभिप्राय है? जब मृत्यु दर में कमी आती है तो जन्म दर में अपेक्षाकृत गिरावट क्यों हो जाती है?
अथवा
मृत्यु दर क्या है?
उत्तर:
जन्म दर-किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं, उसे जन्म दर कहते हैं। इसका अर्थ है कि किसी क्षेत्र में एक वर्ष में एक हजार व्यक्तियों के पीछे कितने बच्चों ने जन्म लिया है।

मृत्यु दर-किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं अर्थात् एक वर्ष में एक हजार व्यक्तियों के पीछे कितने व्यक्तियों की मृत्यु हुई।

यह सच है कि जन्म दर में गिरावट मृत्यु दर की तुलना में काफ़ी धीमी गति से आती है। इसका कारण यह है कि मृत्यु दर को तो स्वास्थ्य सुविधाओं की सहायता से तथा अकाल, बीमारियों जैसी आपदाओं पर काबू करके आसानी से कम किया जा सकता है परंतु जन्म दर को उतनी तेजी से कम नहीं किया जा सकता। जन्म दर अधिक प्रजनन क्षमता, धार्मिक विचारों, सामाजिक विचारों, निर्धनता, भाग्यवाद, शारीरिक रोगों से मुक्ति इत्यादि के कारण अधिक होती है तथा लोगों के विचारों को बदलना बेहद मुश्किल होता है। वे सोचते हैं कि बच्चे तो भगवान ने दिए हैं इसलिए वह ही पाल लेगा। इसलिए जन्म दर उतनी तेज़ी से कम नहीं होती जितनी तेज़ी से मृत्यु दर कम होती है।

प्रश्न 4.
भारत में कौन-से राज्य जनसंख्या संवृद्धि के प्रतिस्थापन स्तरों को प्राप्त कर चुके हैं अथवा प्राप्ति के बहुत नज़दीक हैं? कौन-से राज्यों में अब भी जनसंख्या संवृद्धि की दरें बहुत ऊँची हैं? आपकी राय में इन क्षेत्रीय अंतरों के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
प्रतिस्थापन स्तर का अर्थ है हरेक जोड़े अर्थात् पति पत्नी द्वारा दो बच्चों को जन्म देना। जो राज्य प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त कर चुके हैं वे हैं तमिलनाडु, त्रिपुरा, गोवा, पंजाब, केरल, जम्मू कश्मीर, नागालैंड इत्यादि हैं। जिन राज्यों में जनसंख्या संवृद्धि की दरें अभी भी बहुत ऊँची हैं वे बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान इत्यादि हैं। जो राज्य प्रतिस्थापन स्तरों को प्राप्त करने के नज़दीक हैं वे हैं : महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, कर्नाटक, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश इत्यादि।

प्रतिस्थापन स्तरों तथा जनसंख्या संवदधि की दरों में अंतरों के क्षेत्रीय कारण हो सकते हैं जो कि इस प्रकार हैं-
(i) अगर जनता साक्षर है तो उनकी सोच सकारात्मक होगी। परंतु अगर जनसंख्या अनपढ़ है तो उनकी सोच नकारात्मक होगी तथा उनमें अज्ञानता होगी। जो राज्य साक्षर हैं वहां संवृद्धि दर कम हैं तथा जहां अनपढ़ लोग अधिक हैं वहां संवृद्धि दर अधिक है।

(ii) हरेक राज्य की अपनी-अपनी रूढ़ियां तथा संस्कार होते हैं जो इस संवृद्धि दर तथा प्रतिस्थापन दर को प्रभावित करते हैं।

(iii) बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अधिक बच्चे पैदा करने के समर्थक हैं तथा वह किसी विशेष राज्य में पाए जाते हैं। इस कारण भी अलग-अलग क्षेत्रों की दरों में अंतर होता है।

(iv) हरेक क्षेत्र की सामाजिक सांस्कृतिक संरचना तथा साक्षरता की दर अलग-अलग होती है तथा इसका भी संवृद्धि दर पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 5.
जनसंख्या की आयु संरचना का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास और संवृद्धि के लिए उसकी क्या प्रासंगिकता है?
अथवा
जनसंख्या की आयु संरचना पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
जनसंख्या की आयु संरचना का अर्थ है कि कुल जनसंख्या के संदर्भ में विभिन्न आयु वर्गों में व्यक्तियों का अनुपात क्या है। इसमें तीन आयु वर्ग लिए जाते हैं तथा वे हैं-

  • 0-14 वर्ष
  • 1 5-59 वर्ष तथा
  • 60 वर्ष से ऊपर।

पहले वर्ग में बच्चे अर्थात् आश्रित वर्ग होते हैं। दूसरे वर्ग में युवाओं को कार्यशील वर्ग कहते हैं तथा तीसरे वर्ग अर्थात् बुर्जुगों को पराश्रितता जनसंख्या कहते हैं। आगे दी गई सारणी से यह स्पष्ट हो जाएगा-

वर्ष           आयु वर्गजोड़
0-14 वर्ष15-59 वर्ष60 वर्ष से अधिक
1961411006100
1971421005100
1981401006100
1991381007100
2001341007100
201129.71005.5100

इस सारणी से पता चलता है कि हमारे देश में कार्यशील वर्ग के लोग सबसे अधिक हैं। 1961-2001 तक के समय में यह अधिक ही रहे हैं। इसके बाद आश्रित वर्ग अर्थात् बच्चे आते हैं। चाहे इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। सबसे अंत में पराश्रितता वर्ग अर्थात बुजुर्ग लोग आते हैं। हमारे देश में जीवन प्रत्याशा 66 वर्ष के लगभग है जिस कारण इनकी संख्या कम है।

आर्थिक विकास तथा संवृद्धि में जनसंख्या की आयु संरचना की प्रासंगिकता (Importance of Age Structure in Economic Development and Growth) इसका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) ऊपर दी गई सारणी से हमें पता चलता है कि 0-14 वर्ष की आयु वर्ग में 1961 के बाद से लगातार कमी हो रही है। इसका कारण है कि 1976 के बाद से राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को लागू किया गया तथा जनता को कम जनसंख्या के फायदों का पता चल गया है।

(ii) इस सारणी से हमें यह भी पता चलता है कि 60 वर्ष से अधिक आय के लोगों की संख्या बढ़ रही है। इससे हमें यह पता चलता है कि हमारे देश में जीवन प्रत्याशा लगातार बढ़ रही है। इसका कारण यह है कि देश में प्रगति हो रही है तथा स्वास्थ्य सुविधाएं लगातार बढ़ रही हैं जिससे 60 वर्ष से अधिक लोग लंबा जीवन जी रहे हैं।

(iii) इस सारणी से हमें यह भी पता चलता है कि कार्यशील जनसंख्या अर्थात् युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। वे तरक्की करने में लगे हुए हैं जिससे देश की प्रगति हो रही है।

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प्रश्न 6
स्त्री-पुरुष अनुपात का क्या अर्थ है? एक गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के क्या निहितार्थ हैं? क्या आप यह महसूस करते हैं कि माता-पिता आज भी बेटियों की बजाए बेटों को अधिक पसंद करते हैं? आपकी राय में इस पसंद के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
अथवा
भारत में गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के कारण दीजिए।
अथवा
स्त्री-पुरुष अनुपात में गिरावट आने के कारण बताइए।
उत्तर:
किसी विशेष क्षेत्र में एक हजार पुरुषों के पीछे मिलने वाली स्त्रियों की संख्या के अनुपात को स्त्री-पुरुष अनुपात कहते हैं। स्त्री-पुरुष अनुपात जनसंख्या में लिंग संतुलन का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो स्त्री-पुरुष अनुपात स्त्रियों के पक्ष में रहा है परंतु पिछली एक शताब्दी में भारत में यह गिरता चला जा रहा भी की शरुआत में यह कम होकर 1000 : 972 था परंता 21वीं शताब्दी की शरुआत में यह कम होकर 1000 : 933 हो गया है। यह गिरता अनुपात समाज के लिए काफ़ी चिंता का विषय बना हुआ है।

जी हाँ, यह सच है कि आज भी माता-पिता बेटियों के स्थान पर बेटों को अधिक पसंद करते हैं। आज भी भ्रूण हत्या होती है, बेटा प्राप्त करने के लिए बलि दी जाती है, तरह-तरह के प्रयास किए जाते हैं ताकि बेटा प्राप्त किया जा सके। यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस बात का निर्धनता से कम संबंध होता है बल्कि इसका अधिक संबंध तो सामाजिक सांस्कृतिक कारकों के साथ होता है। लड़की की अपेक्षा लड़के को पसंद करने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि-
(i) सबसे पहला कारण तो धर्म ही है। धर्म यह कहता है कि व्यक्ति को मृत्यु के बाद तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता जब तक कि उसकी चिता को उसका बेटा अग्नि न दे। इसके साथ ही धर्म में कुछ संस्कार ऐसे दिए गए हैं जिनमें बेटे की आवश्यकता है। इन सभी के कारण लोग लड़के को अधिक पसंद करते हैं।

(ii) अकसर लोग यह सोचते हैं कि अगर लड़का न हुआ तो उसके साथ ही उसके खानदान का नाम समाप्त हो जाएगा क्योंकि लड़की तो विवाह के बाद अपने पति के घर चली जाएगी। उसके खानदान को आगे बढ़ाने के लिए कोई भी न होगा। इस प्रकार खानदान को आगे बढ़ाने की इच्छा लोगों को लड़का प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।

(iii) कई लोग यह सोचते हैं कि अगर लड़की हुई तो उसे विवाह के समय बहुत सा दहेज देना पड़ेगा तथा विवाह के पश्चात् भी बहुत कुछ देना पड़ेगा। इसमें बहुत सा खर्चा होगा परंतु लड़के के साथ तो दहेज आएगा। इस प्रकार खर्चा बचाने के लिए अथवा निर्धनता के कारण भी लोग लड़की की अपेक्षा लड़के को पसंद करते हैं।

भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना HBSE 12th Class Sociology Notes

→ अगर हम जनसंख्या की दृष्टि से संसार में भारत की स्थिति देखें तो इसमें भारत का स्थान दूसरा है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 121 करोड़ के करीब लोग रहते हैं।

→ जनसंख्या के व्यवस्थित अध्ययन को जनसांख्यिकी कहते हैं। जनसांख्यिकी शब्द का अर्थ है लोगों का वर्णन। जनसांख्यिकी विषय के अंतर्गत जनसंख्या से संबंधित अनेक प्रवृत्तियों तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जैसे जनसंख्या के आकार में परिवर्तन, जन्म, मृत्यु तथा प्रवसन के स्वरूप, तथा जनसंख्या की संरचना और गठन अर्थात् उसमें स्त्रियों, पुरुषों और विभिन्न आयु वर्ग के लोगों का क्या अनुपात है।

→ जनसांख्यिकी कई प्रकार की होती है, जैसे आकारिक जनसांख्यिकी जिसमें जनसंख्या के आकार अर्थात् मात्रा का अध्ययन किया जाता है तथा सामाजिक जनसांख्यिकी जिसमें जनसंख्या के सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक पक्षों पर विचार किया जाता है।

→ जनसांख्यिकी का अध्ययन समाजशास्त्र की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। समाजशास्त्र के उद्भव तथा एक अलग अकादमिक विषय के रूप में इसकी स्थापना का क्षेत्र काफ़ी हद तक जनसांख्यिकी को ही जाता है। वैसे भी जनसांख्यिकीय आँकड़े राज्य की नीतियों, विशेष रूप से आर्थिक विकास और सामान्य जन कल्याण संबंधी नीतियाँ बनाने और कार्यान्वित करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।

→ जनसांख्यिकी के प्रसिद्ध सिद्धांतों में से एक सिद्धांत अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थॉमस रोबर्ट माल्थस ने दिया था। उनका सिद्धांत एक निराशावादी सिद्धांत था। उनके अनुसार समृद्धि को बढ़ाने का एक ढंग यह है कि जनसंख्या की वृद्धि को नियंत्रित किया जाए। उन्होंने दो प्रकार के ढंग दिए हैं जिनसे जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। पहला है कृत्रिम निरोध जिन्हें व्यक्ति स्वयं पर नियंत्रण करके जनसंख्या कम कर सकता है।

→ दूसरा है प्राकृतिक निरोध अर्थात् अकालों तथा बीमारियों से जनसंख्या वृद्धि का रुकना। जनसांख्यिकीय विषय में एक अन्य उल्लेखनीय सिद्धांत है-जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत। इसका अर्थ यह है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास के समग्र स्तरों से जुड़ी होती है तथा प्रत्येक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप का अनुसरण करता है।

→ जनसांख्यिकीय में बहुत सी संकल्पनाओं का प्रयोग किया जाता है जैसे कि प्राकृतिक वृद्धि दर, जनसंख्या वृद्धि दर, प्रजनन दर, जन्म दर, मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, स्त्री पुरुष अनुपात, आयु संरचना, पराश्रितता अनुपात जनसंख्या इत्यादि। इन सभी का वर्णन आगे अध्याय में दिया गया है।

→ भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है। 2011 में इसकी आबादी 121 करोड़ के लगभग थी। भारत में जनसंख्या संवृद्धि दर हमेशा बहुत ऊँची नहीं रही है। अगर हम भारत सरकार द्वारा प्रकाशित चार्ट को देखें तो यह अधिकतम 2.22% रही है। इस चार्ट को देखने से ही स्पष्ट हो जाएगा कि संवदधि दर कितनी है।

वर्षकुल जनसंख्या (लाखों में)औसत वार्षिक संवृद्धि दर
19513611.25
19614391.96
19715482.22
19816832.20
19918462.14
200110281.93
201112101.8

इस चार्ट को देखने से पता चलता है कि 1971 के बाद से यह लगातार कम हो रही है।

→ स्वतंत्रता से पहले हमारे देश में जन्म दर तथा मृत्यु दर में कोई अधिक अंतर नहीं था क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं थीं। अगर जन्म दर अधिक थी तो मृत्यु दर भी अधिक थी। इसलिए अधिक जनसंख्या नहीं बढ़ती थी। परंतु स्वतंत्रता के पश्चात् स्वास्थ्य सेवाओं के बढ़ने से मृत्यु दर तो अप्रत्याशित रूप से कम हो गई परंतु जन्म दर इतनी अधिक कम न हुई। इसलिए दोनों में अंतर बढ़ता जा रहा है।

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→ भारत की जनसंख्या बहुत जवान है अर्थात् अधिकांश भारतीय युवावस्था में हैं तथा यहां की आयु का औसत भी अधिकांश अन्य देशों की तुलना में कम है। निम्न सारणी देखने से यह स्पष्ट हो जाएगा-

वर्ष                      आयु वर्गजोड़
0-14 वर्ष15-59 वर्ष60 वर्ष से अधिक
196141536100
197142535100
198140546100
199138567100
200134597100
201129.764.95.5100

→ इस प्रकार इस सारणी से यह स्पष्ट है कि भारत में 15-59 वर्ष की आयु में सबसे अधिक लोग होते हैं। उससे कम 0-14 वर्ष की आयु के लोग आते हैं तथा 60 वर्ष से अधिक लोग सबसे कम हैं। इसका कारण यह है कि भारत में आयु प्रत्याशा 63 वर्ष के करीब है।

→ स्त्री पुरुष अनुपात जनसंख्या में लैंगिक या लिंग संतुलन का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। स्त्री पुरुष अनुपात का अर्थ है कि किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। सन् 2011 में स्त्री पुरुष अनुपात 1000 : 940 था। स्त्रियों की कम होती संख्या का सबसे बड़ा कारण लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा है।

→ अगर जनता शिक्षित होगी तो उन्हें जनसंख्या के अधिक होने के दुष्परिणामों के बारे में पता होगा तथा वह जनसंख्या को कम रखने का प्रयास करेंगे। इसलिए जनसंख्या कम करने में शिक्षा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सापान बन सकती है।

→ मुख्यतः भारत एक ग्रामीण देश है जहां की लगभग 72% जनसंख्या अभी भी गांवों में रहती है। केवल 28% जनसंख्या ही शहरों में रहती है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह लगभग 11% थी जोकि एक ही शताब्दी में लगभग ढाई गुना बढ़ गई है। नीचे दी गई सारणी से हमें इसका पता चल जाता है-

वर्षजनसंख्या(दस लाख में)कुल जनसंख्या का प्रतिशत
त्रामीणनगरीयग्रामीणनगरीय
19012132689.210.8
19112262689.710.3
19212232888.811.2
19312463388.012.0
19412754486.113.9
19512996282.717.3
19613607982.018.0
197143910980.119.9
198152415976.723.3
199162921874.325.7
200174328672.227.8
201183337768.8431.16

इस सारणी को देखकर पता चलता है कि स्वतंत्रता के पश्चात् नगरीय जनसंख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।

→ जनसंख्या संवृद्धि दर (Growth Rate of Population)-जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच का अंतर। जब यह अंतर शून्य होता है तब हम कह सकते हैं कि जनसंख्या स्थिर हो गई है।

→ प्रजनन दर (Fertility Rate)-बच्चे पैदा करने वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्मे बच्चों की संख्या।

→ शिश मत्य दर (Infant Mortality Rate)-यह उन बच्चों की मत्य की संख्या दर्शाती है जो जीवित पैदा हुए 1000 बच्चों में से एक वर्ष की आयु प्राप्त होने से पहले ही मौत के मुँह में चले जाते हैं।

→ स्त्री-परुष अनपात (Sex Ratio)-यह अनपात यह दर्शाता है कि किसी क्षेत्र विशेष में एक निश्चित अवधि के दौरान 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या क्या है।

→ जनसंख्या की आयु संरचना (Age Structure of Population)-कुल जनसंख्या के संदर्भ में विभिन्न आयु वर्गों में व्यक्तियों का अनुपात। आयु संरचना विकास के स्तरों और औसत आयु संभाविता के स्तरों में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार बदलती रहती है।

→ पराश्रितता अनुपात जनसंख्या (Dependency Ratio)-यह जनसंख्या के पराश्रित और कार्यशील हिस्सों को मापने का साधन है। पराश्रित वर्ग में बुजुर्ग लोग तथा छोटे बच्चे आते हैं। कार्यशील वर्ग में 15-64 वर्ष की आयु के लोग आते हैं।

→ जनसंख्या घनत्व (Population Density)-किसी विशेष क्षेत्र के प्रति वर्ग कि० मी० क्षेत्रफल में रहने वाले लोगों की संख्या।

→ जन्म दर (Birth Rate)-किसी विशेष क्षेत्र में प्रति 1000 जनसंख्या के पीछे जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या।

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→ मृत्यु दर (Death Rate)-किसी विशेष क्षेत्र में प्रति एक हज़ार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले व्यक्तियों की संख्या।

→ जनसंख्या वृद्धि (Population Growth)-जनसंख्या का लगातार बढ़ना जनसंख्या वृद्धि होता है।

→ ग्रामीण समुदाय (Rural Society)-प्रकृति से निकटता वाला समुदाय जिसमें प्राथमिक संबंधों की बहुलता होती है, कम जनसंख्या, सामाजिक एकरूपता, गतिशीलता का अभाव तथा कृषि मुख्य व्यवसाय होता है।

→ नगरीय समुदाय (Urban Society)-वह समुदाय जो प्रकृति से दूर रहता है, जहां अधिक जनसंख्या, पेशों की भरमार, अधिक गतिशीलता, द्वितीय संबंध होते हैं तथा वहां 75% से अधिक लोग गैर-कृषि कार्यों में लगे होते हैं।

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