HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

HBSE 12th Class Sociology सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सांस्कृतिक विविधता का क्या अर्थ है? भारत को एक अत्यंत विविधतापूर्ण देश क्यों माना जाता है?
अथवा
सांस्कृतिक विविधता के दो कारकों (कारणों) की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में सांस्कृतिक विविधता की झलक का परिचय दें।
उत्तर:
शब्द विविधता में असमानताओं के स्थान पर अंतरों पर जोर दिया जाता है। जब हम यह कहते हैं कि हमारा देश भारत एक महान् सांस्कृतिक विविधताओं से भरपूर राष्ट्र है तो इसका अर्थ यह होता है कि यहाँ बहुत से सामाजिक समूह तथा समुदाय रहते हैं। इन समुदायों को सांस्कृतिक चिह्नों जैसे कि भाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति या जाति के द्वारा परिभाषित किया जाता है।

भारत में कई प्रकार की जातियों व धर्मों के लोग रहते हैं जिस कारण उनकी भाषा, खान-पान, रहन-सहन, परंपराएं, रीति-रिवाज़ इत्यादि अलग-अलग हैं। हरेक समूह के विवाह के ढंग, जीवन प्रणाली इत्यादि भी अलग अलग हैं। प्रत्येक धर्म के धार्मिक ग्रंथ अलग-अलग हैं तथा उनको सभी अपने माथे से लगाते हैं। यहां नृत्य, वास्तुकला, चित्रकला, त्योहार, मेले इत्यादि अलग-अलग हैं। इस कारण ही भारत को अत्यंत विविधतापूर्ण देश माना जाता है।

प्रश्न 2.
सामुदायिक पहचान क्या होती है और वह कैसे बनती है?
उत्तर:
सामुदायिक पहचान जन्म तथा संबंधों पर आधारित होती है न कि किसी की अर्जित योग्यता अथवा उपलब्धि के आधार पर। यह इस बात का सूचक है कि ‘हम क्या हैं न कि हम क्या बन गए हैं। किस समुदाय में हमने जन्म लेना है यह हमारे हाथ में नहीं होता है। असल में यह हमारे वश में नहीं है कि हमारा जन्म किस परिवार, समुदाय या देश में होता है। इस प्रकार सामुदायिक पहचान प्रदत्त होती है अर्थात् यह जन्म के अनुसार निर्धारित होती है तथा संबंधित लोगों की पसंद या ना पसंद इसमें शामिल नहीं होती।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

प्रश्न 3.
राष्ट्र को परिभाषित करना क्यों कठिन है? आधुनिक समाज में राष्ट्र और राष्ट्र कैसे संबंधित हैं?
उत्तर:
आज के समय में राष्ट्र को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है तथा इसके संबंध में यही कहा जा सकता है कि राष्ट्र एक ऐसा समुदाय होता है जिसने अपना राज्य बना लिया है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसके विपरीत रूप भी अधिक मात्रा में सच हो गए हैं। जिस प्रकार आज भावी राष्ट्रीयताएँ अपना राज्य बनाने के प्रयास कर रही हैं वैसे ही मौजदा राज्य यह दावा कर रहे हैं कि वे एक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

आप महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें राजनीतिक वैधता के प्रमुख स्रोतों के रूप में लोकतंत्र तथा राष्ट्रवाद स्थापित हुए हैं। इसका अर्थ यह है कि आज एक राज्य के लिए राष्ट्र एक सबसे अधिक स्वीकृत आवश्यकता है। जबकि लोग राष्ट्र की वैधता के सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो राज्यों को राष्ट्र की उतनी ही आवश्यकता होती है जितनी राष्ट्रों को राज्य की।

प्रश्न 4.
राज्य अक्सर सांस्कृतिक विविधता के बारे में शंकालु क्यों होते हैं?
उत्तर:
सांस्कृतिक विविधता का अर्थ है देश में अलग-अलग धर्मों, समुदायों, प्रजातियों, संस्कृतियों, परंपराओं, रीति-रिवाज़ों का मौजूद होना। परंतु सांस्कृतिक विविधता के कारण देश में बहुत-सी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं जैसे कि जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद, जातीय दंगे इत्यादि। इससे देश का माहौल काफ़ी खराब हो जाता है। इस कारण ही राज्य अक्सर सांस्कृतिक विविधता के बारे में शंकालु होते हैं।

प्रश्न 5.
क्षेत्रवाद क्या होता है? आमतौर पर यह किन कारकों पर आधारित होता है?
अथवा
क्षेत्रवाद की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
क्षेत्रवाद के कोई दो कारण बताइए।
अथवा
भारतीय समाज में संदर्भ में क्षेत्रवाद पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
जब कोई अपने क्षेत्र को प्यार करने लगे तथा दूसरे क्षेत्रों से नफरत करने लगे तो उसे क्षेत्रवाद कहते हैं। अपने क्षेत्र के लोगों को बढ़ावा देना भी क्षेत्रवाद का एक रूप है। इसमें दूसरे क्षेत्र के लोगों को विदेशी समझा जाता है। उदाहरण के लिए पंजाब में बिहारी को विदेशी समझा जाता है। इस प्रकार अपने ही क्षेत्र के हितों की माँग करने को क्षेत्रवाद कहते हैं। क्षेत्रवाद का संकल्प स्वतंत्रता के पश्चात् सामने आया। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने राज्यों को अंग्रेजों द्वारा स्थापित स्थिति के अनुसार बना कर रखा।

इससे देश के अलग-अलग भागों से भाषायी आधार पर अलग अलग राज्य बनाने की माँग उठने लगी। मद्रास राज्य में कई भाषाएं बोलने वाले लोग रहते थे जिस कारण उनमें काफ़ी समस्याएँ उत्पन्न होती थीं इसलिए ही भारत सरकार ने 1956 में राज्यों का भाषायी आधार पर पुनर्गठन किया तथा भाषा के आधार पर 19 राज्यों का गठन किया। इसके बाद भी भाषा के आधार पर अथवा क्षेत्र के आधार पर राज्यों का गठन किया गया। यहीं से क्षेत्रवाद की भावना उत्पन्न हुई।

क्षेत्रवाद के कारक-अलग-अलग क्षेत्रों में मौजूद असंतुलन क्षेत्रवाद का प्रमुख कारण है। किसी क्षेत्र को केंद्र की अधिक सहायता प्राप्त होती है तथा किसी को कम, किसी क्षेत्र के स्वयं के संसाधन अधिक हैं किसी में कम।। अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं इत्यादि ऐसे कारण हैं जो क्षेत्रवाद को जन्म देते हैं। इस कारण राजनीतिक दल सामने आते हैं तथा वह क्षेत्रवाद की भावनाओं को भड़काते हैं जिससे क्षेत्रवाद को प्रोत्साहन मिलता है। इस प्रकार क्षेत्रीय असंतुलन के कारण क्षेत्रवाद उत्पन्न होता है।

प्रश्न 6.
आपकी राय में, राज्यों के भाषायी, पुनर्गठन ने भारत का हित या अहित किया है?
उत्तर:
1956 में भारत सरकार ने राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया था। इससे सरकार को प्रशासन चलाने में काफ़ी सुविधा हुई तथा उसने अलग-अलग क्षेत्रों की भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की बात भी मान ली थी। परंतु उसने इसके नकारात्मक प्रभाव के बारे में नहीं सोचा। राज्यों के भाषाई पुनर्गठन ने देश का अहित ही किया है। इससे क्षेत्रवाद की भावना उत्पन्न हुई। अलगाववाद की भावना को बल मिली, भाषा के आधार पर और राज्यों के गठन की मांग शुरू हुई। दक्षिण भारत के लोग तो आज भी हिंदी को अपनी भाषा नहीं मानते हैं। वह अपनी मातृ भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना ही पसंद करते हैं।

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प्रश्न 7.
‘अल्पसंख्यक’ (वर्ग) क्या होता है? अल्पसंख्यक वर्गों को राज्य से संरक्षण की क्यों ज़रूरत होती है?
अथवा
अल्पसंख्यकों को परिभाषित करें।
उत्तर:
किसी समाज में जब जनसंख्या में कुछ लोगों का कम प्रतिनिधित्व होता है उन्हें अल्पसंख्यक कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि कुल जनसंख्या में से कोई समूह जो धर्म, जाति या किसी और आधार पर कम संख्या में होते हैं वे अल्पसंख्यक होते हैं। भारत में मुसलमान, सिक्ख, बौद्ध, ईसाई, जैन धर्मों के लोग अल्पसंख्यक समूह हैं।

अल्पसंख्यक वर्गों को राज्य से संरक्षण की ज़रूरत काफ़ी अधिक होती है क्योंकि वह कम संख्या में होते हैं। अगर उन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्त न हो तो हो सकता है कि उन्हें बहुसंख्यक वर्ग द्वारा तंग किया जाए तथा उनका हरेक प्रकार से शोषण किया जाए। यह भी हो सकता है कि उनमें श्रीलंका की तरह जातीय संघर्ष उत्पन्न ह्ये जाए। इसलिए ही भारत में अल्पसंख्यकों को राज्य द्वारा हरेक प्रकार का संरक्षण दिया जाता है।

प्रश्न 8.
सांप्रदायवाद या सांप्रदायिकता क्या है?
अथवा
सांप्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सांप्रदायवाद अथवा सांप्रदायिकता का अर्थ है धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद। उग्रवाद, अपने आप में एक ऐसी अभिवृत्ति है जो अपने समूह को ही वैध या श्रेष्ठ समूह मानती है और अन्य समूहों को निम्न, अवैध अथवा विरोधी समझती हैं। सरल शब्दों में सांप्रदायिकता एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म स प्रकार हम कह सकते हैं कि सांप्रदायिकता और कुछ नहीं बल्कि एक विचारधारा है जो जनता में एक धर्म के धार्मिक विचारों का प्रचार करने का प्रयास करता है तथा यह धार्मिक विचार और धार्मिक स विचारों से बिल्कुल ही विपरीत होते हैं। सांप्रदायिकता का मूल विचार है कि एक विशेष धर्म का और धर्मों की कीमत पर उत्थान। यह एक विचारधारा है जो यह कहती है कि एक धर्म के सदस्य एक समुदाय के सदस्य हैं तथा अलग-अलग धर्मों के सदस्य एक समुदाय का निर्माण नहीं करते हैं।

प्रश्न 9.
भारत में वह विभिन्न भाव (अर्थ) कौन-से हैं जिनमें धर्म निरपेक्षता या धर्म निरपेक्षतावाद को समझा जाता है?
उत्तर:
भारतीय समाज 20 वीं शताब्दी से ही पवित्र समाज से एक धर्म-निरपेक्ष समाज में परिवर्तित हो रहा है। इस शताब्दी के अनेक विद्वानों ने यह देश महसूस किया कि धर्म-निरपेक्षता के आधार पर ही विभिन्न धर्मों का देश भारत संगठित रह पाया है। धर्म-निरपेक्षता के आधार पर राज्य के सभी धार्मिक समूहों एवं धार्मिक विश्वासों को एक समान माना जाता है।

निरपेक्षता का अर्थ समानता या तटस्थता से है। राज्य सभी धर्मों को समानता की नज़र से देखता है तथा किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। धर्म-निरपेक्षता ऐसी नीति या सिद्धांत है जिसके अंतर्गत लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने या पालन के लिए बाध्य नहीं किया जाता है।

प्रश्न 10.
आज नागरिक समाज संगठनों की क्या प्रासंगिकता है?
उत्तर:
नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो परिवार के निजी क्षेत्र से दूर होता है, परंतु राज्य और बाज़ार दोनों के क्षेत्र से बाहर होता है। नागरिक समाज सार्वजनिक अधिकार का गैर-राजकीय तथा गैर बाजारी भाग होता है जिसमें अलग-अलग व्यक्ति संस्थाओं और संगठनों का निर्माण करने के लिए स्वेच्छा से परस्पर आ जुड़ते हैं।

यह सक्रिय नागरिकता का क्षेत्र है जहाँ व्यक्ति मिलकर सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं, राज्य को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं अथवा उसके समक्ष अपनी माँगें रखते हैं, अपने सामूहिक हितों को पूर्ण करने की कोशिश करते हैं या अलग-अलग कार्यों के लिए समर्थन चाहते हैं। इस क्षेत्र में नागरिकों के समूहों द्वारा बनाए गए स्वैच्छिक संघ, संगठन अथवा संस्थाएँ सम्मिलित होते हैं। इसमें राजनीतिक दल, जनसंचार की संस्थाएँ, मजदूर संघ, गैर-सरकारी संगठन, धार्मिक संगठन और अन्य प्रकार के सामूहिक तत्त्व सम्मिलित होते हैं।

नागरिक समाज में शामिल मुख्य कसौटियाँ यह हैं कि संगठन पर राज्य का नियंत्रण नहीं होना चाहिए तथा यह विशुद्ध रूप से मुनाफ़ा कमाने वाले तत्त्व न हों। उदाहरण के लिए दूरदर्शन नागरिक समाज का हिस्सा नहीं हैं जबकि निजी टी०वी० चैनल है। इसी प्रकार कार निर्माता कंपनी नागरिक समाज का अंग नहीं है, परंतु उसके मजदूरों के मज़दूर संघ इसका हिस्सा हैं। असल में यह कसौटियां बहुत सारे क्षेत्रों को स्पष्ट नहीं कर पाती हैं। जैसे एक समाचार पत्र को विशुद्ध रूप से एक वाणिज्यिक उद्यम के रूप में चलाया जा सकता है अथवा एक गैर-सरकारी संगठन को सरकारी खजाने में से मदद की जा सकती है।

सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ HBSE 12th Class Sociology Notes

→ हमारा देश भारत एक सांस्कृतिक विविधताओं से भरपूर देश है जहां पर समुदायों को सांस्कृतिक चिह्नों जैसे कि भाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति या जाति द्वारा परिभाषित किया जाता है। इसी कारण ही देश में सांस्कृतिक विविधता कठोर चुनौतियां पेश करती है।

→ सामुदायिक पहचान जन्म तथा संबंध पर आधारित होती है न कि किसी अर्जित उपलब्धि पर। इसका अर्थ है कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति मुख्यतः उसके परिवार पर आधारित प्रदत्त होती है न कि उसके द्वारा अर्जित की होती है।

→ प्रत्येक व्यक्ति में अपने समुदाय के प्रति एक भावना अर्थात् सामुदायिक भावना होती है तथा यह सामुदायिक भावना सर्वव्यापक होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामुदायिक पहचान तथा सामुदायिक भावना के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ होता है।

→ राष्ट्र एक प्रकार का बड़े स्तर का समुदाय होता है जो कई समुदायों से मिलकर बनता है। राष्ट्र के सदस्य एक ही राजनीतिक सामूहिकता का हिस्सा बनने की इच्छा रखते हैं। राजनीतिक एकता की यह इच्छा स्वयं को एक राज्य बनाने की आकांक्षा के रूप में अभिव्यक्त करती है।

→ राज्य एक ऐसा अमूर्त सत्य है जिसका अपना ही एक भौगोलिक क्षेत्र होता है, अपनी प्रभुसत्ता होती है, अपनी ही जनसंख्या होती है तथा प्रशासन चलाने के लिए सरकार होती है। इन चारों तत्त्वों में से किसी एक के न होने की स्थिति में राष्ट्र स्थापित नहीं हो पाएगा। इस प्रकार राष्ट्र तथा राज्य दो अलग-अलग संकल्प हैं।

→ भारत एक ऐसा राष्ट्र राज्य है जहां पर सांस्कृतिक विविधता मौजूद है। यहां 1632 अलग-अलग भाषाएं हैं, कई प्रकार के धर्म हैं, बहुसंख्यक तथा अल्पसंख्यक लोग रहते हैं। अलग-अलग धर्मों के मौजूद होने के कारण भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया हुआ है।

→ भारत में क्षेत्रवाद भारत की भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों तथा धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है। क्षेत्रवाद का अर्थ है अपने क्षेत्र के हितों के सामने अन्य क्षेत्रों को तुच्छ समझना तथा उन हितों को प्राप्त करने के लिए लड़ना।

→ हमारा देश भारत एक संघ है जिसमें एक संघीय सरकार तथा अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग सरकारें होती हैं। संविधान ने संघीय सरकार तथा राज्य सरकारों के बीच शक्तियों तथा वित्तीय साधनों का साफ़ तौर पर बँटवारा किया हुआ है ताकि उनमें कोई समस्या उत्पन्न न हो सके।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

→ धर्म-निरपेक्षता का अर्थ है किसी विशेष धर्म को न मानकर सभी धर्मों को समान महत्त्व देना। अगर किसी विशेष धर्म को अधिक महत्त्व दिया जाएगा तो सांप्रदायिकता के बढ़ने का ख़तरा उत्पन्न हो जाता है।

→ हमारे देश में कई धर्मों के लोग रहते हैं। इनमें से कई तो बहुसंख्या में हैं तथा कई अल्पसंख्यक हैं। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए संविधान में प्रावधान रखे गए हैं तथा सभी को कानून की दृष्टि में समान माना गया है। अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति का प्रचार करने की आज्ञा भी दी गई है।

→ सांप्रदायिकता का अर्थ है धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद। उग्रवाद अपने आप में एक ऐसी अभिवृत्ति है जो अपने समूह को ही वैध या श्रेष्ठ समूह मानती है तथा अन्य समूहों को निम्न, अवैध या विरोधी समझती है। यह एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म से जुड़ी होती है।

→ सांप्रदायिकता की एक प्रमुख विशेषता उसका यह दावा है कि धार्मिक पहचान अन्य सभी की तुलना में उच्च होती है। चाहे व्यक्ति अमीर हो या निर्धन, किसी भी व्यवसाय, जाति या राजनीतिक विश्वास का हो, धर्म ही सब कुछ होता है, उसी के आधार पर उसकी पहचान है।

→ नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो पारिवारिक क्षेत्र से दूर होता है, परंतु राज्य और बाज़ार दोनों क्षेत्रों से बाहर होता है। ছাত্রাবলী

→ सांस्कृतिक विविधता-देश में अलग-अलग समूहों की संस्कृति में अंतर होना सांस्कृतिक विविधता है।

→ सांस्कृतिक समुदाय-वह समुदाय जो जाति, नृजातीय समूह, क्षेत्र अथवा धर्म जैसी सांस्कृतिक पहचानों पर आधारित होते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

→ नागरिक समाज-वह व्यापक कार्यक्षेत्र जो परिवार के निजी क्षेत्र से परे होता है, परन्तु राज्य और बाजार दोनों क्षेत्र से बाहर होता है।

→ सांप्रदायिकता-धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद।

→ अल्पसंख्यक-वह समुदाय जो राष्ट्र में कम संख्या में होता है।

→ बहुसंख्यक-वह समुदाय जो राष्ट्र में अधिक संख्या में होता है।

→ संघवाद-वह प्रक्रिया जिसमें कई छोटे-छोटे राज्य इकट्ठे मिलकर एक बड़े संघ का निर्माण करते हैं।

→ राष्ट्र-एक प्रकार का बड़े स्तर का समुदाय जो कई समुदायों से मिलकर बना एक समुदाय है।

→ प्रदत्त पहचान-वह पहचान जो व्यक्ति को जन्म के अनुसार प्राप्त होती है।

→ अर्जित पहचान-वह पहचान जो व्यक्ति अपनी योग्यता तथा उपलब्धि के आधार पर प्राप्त करता है।

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