HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

HBSE 12th Class Sociology सांस्कृतिक परिवर्तन Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण पर एक आलोचनात्मक लेख लिखें।
अथवा
भारतीय समाज में संस्कृतिकरण की अवधारणा की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें निम्न जाति का व्यक्ति सांस्कृतिक रूप से प्रसिद्ध समूहों के रीति रिवाजों तथा नाम का अनुकरण करके अपनी स्थिति ऊँची करता है। जिनका अनुकरण किया जा रहा होता है वह आर्थिक रूप से बेहतर होते हैं। जब अनुकरण करने वाले व्यक्ति या समूह की आर्थिक स्थित अच्छी होने लग जाए तो उसे भी प्रतिष्ठित समूह का दर्जा प्राप्त हो जाता है।

आलोचना-
(i) सबसे पहले तो इसमें कहा जाता है कि इसमें सामाजिक गतिशीलता निम्न जाति का सामाजिक स्तरीकरण में उर्ध्वगामी परिवर्तन करती है, इस बात को काफ़ी बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है। इस प्रक्रिया से केवल कुछ व्यक्तियों की स्थिति परिवर्तित होती है संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता है। इससे कुछ व्यक्ति तो असमानता वाली संरचना में अपनी स्थिति सुधार लेते हैं परंतु समाज में से भेदभाव तथा असमानता खत्म नहीं होते।

(ii) इस प्रक्रिया की आलोचना का दूसरा तथ्य यह है कि इस प्रक्रिया में उच्च जाति की जीवन शैली ऊँची तथा निम्न जाति की जीवन शैली निम्न होती है। इसलिए उच्च जाति के लोगों की जीवन शैली अपनाने की इच्छा को प्राकृतिक ही मान लिया जाता है जो सभी में होती है।

(iii) तीसरी आलोचना यह है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया ऐसी व्यवस्था को ठीक मानती है जो असमानता तथा भेदभाव पर आधारित है। इससे यह संकेत मिलता है कि पवित्रता तथा अपवित्रता के पक्षों को ठीक मान लिया जाए तथा उच्च जातियों द्वारा निम्नजातियों के प्रति भेदभाव उनका विशेषाधिकार है। इस प्रकार के दृष्टिकोण वाले समाज में समानता की कल्पना तो की ही नहीं जा सकती है। इस प्रकार असमानता पर आधारित समाज लोकतंत्र विरोधी ही है।

(iv) चौथी आलोचना में कहा गया है कि इस प्रक्रिया से उच्च जातियों के रिवाजों, अनुष्ठानों तथा व्यवहार को स्वीकृति मिल जाती है तथा लड़कियों, महिलाओं की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। इस कारण ही कन्या मूल्य की जगह दहेज प्रथा तथा और समूहों के साथ जातिगत भेदभाव बढ़ गए है।

(V) इस प्रक्रिया के कारण निम्न जातियों की संस्कृति तथा समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ा हुआ मान लिया जाता था। जैसे कि उन द्वारा किए जाने वाले कार्यों को निम्न, शर्मनाक माना जाता था तथा सभ्य नहीं माना जाता था। उनसे जुड़े सभी कार्यों जैसे कि शिल्प तकनीकी योग्यता, अलग-अलग दवाओं की जानकारी, पर्यावरण तथा कृषिका ज्ञान इत्यादि को औद्योगिक युग में उपयोगी नहीं माना जाता।

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प्रश्न 2.
पश्चिमीकरण का साधारणतः मतलब होता है पश्चिमी पोशाकों व जीवन शैली का अनुकरण। क्या पश्चिमीकरण के दूसरे पक्ष भी हैं? क्या पश्चिमीकरण का मतलब आधुनिकीकरण है? चर्चा करें।
उत्तर:
भारत के प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण का संकल्प दिया है। उनके अनुसार, “पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में भारतीय समाज तथा संस्कृति में लगभग 150 वर्षों के अंग्रेज़ी शासन के परिणाम स्वरूप आए परिवर्तन है जिसमें विभिन्न पहलू आते हैं …………….. जैसे कि प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा तथा मूल्य।”

पश्चिमीकरण के कई प्रकार रहे हैं। एक प्रकार के पश्चिमीकरण का अर्थ उस पाश्चात्य उप सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीयों के उस छोटे से समूह ने अपनाया जो पहली बार पाश्चात्य संस्कृति के संपर्क में आए हैं। इसमें भारतीय लोगों की उपसंस्कृति भी शामिल थी। इन्होंने पश्चिमी प्रतिमान चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों तथा जीवन शैली को अपनाने के साथ-साथ इनका समर्थन तथा विस्तार भी किया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि कुछेक लोग ही थे जिन्होंने पश्चिमी जीवन शैली को अपनाया तथा पश्चिमी दृष्टिकोण से सोचना शुरू कर दिया। इसके अतिरिक्ति नए उपकरणों का प्रयोग, कपड़ों, खाने पीने की चीज़ों, आदतों तथा तौर तरीकों में भी परिवर्तन थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि संपूर्ण भारत के मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा पश्चिमी चीज़ों का प्रयोग करता है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि पश्चिमीकरण में किसी विशेष संस्कृति के बाहरी तत्त्वों की नकल करने की प्रवृत्ति होती है। परंतु यह आवश्यक नहीं है कि वह प्रजातंत्र तथा सामाजिक समानता जैसे आधुनिक मूल्यों को भी मानते हों।

पश्चिमी संस्कृति का भारतीयों की जीवनशैली तथा चिंतन के अतिरिक्त भारतीय कला तथा साहित्य पर भी प्रभाव पड़ा। बहुत से कलाकार जैसे कि रवि वर्मा, अविंद्रनाथ टैगोर, चंदूमेनन तथा बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने औपनिवेशिक स्थितियों के साथ कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कीं।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि विभिन्न स्तरों पर सांस्कृतिक परिवर्तन हआ तथा औपनिवेशिक काल में हमारा पश्चिम से संपर्क स्थापित हुआ। अगर हम कहें कि आज के समय में दो पीढ़ियों के विचारों में अंतर पाया जाता है तो यह पश्चिमीकरण का ही परिणाम है।पश्चिमीकरण के कारण हमारे जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आया।

पश्चिमीकरण का अर्थ आधुनिकीकरण नहीं है क्योंकि आधुनिकीकरण पूर्व में भी हो सकता है परंतु पश्चिमीकरण का अर्थ केवल पश्चिम के कारण आए परिवर्तनों से है।

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प्रश्न 3.
लघु निबंध लिखें

  • संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण
  • जाति और पंथीनिरपेक्षीकरण।

उत्तर:
(i) संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण-आजकल के आधुनिक समय में हम सामाजिक सांस्कृतिक व्यवहार को आमतौर पर परंपरा तथा आधुनिकता का मिश्रण कह देते हैं परंतु इसके अपने ही निर्धारित तत्त्व है। इस जटिल कार्य को आसान बनाने की आदत ठीक नहीं है।

असल में इससे यह भ्रांति भी पैदा हो जाती है कि भारत में एक ही प्रकार की परंपराएं पाई जाती है या थी। भारत में इन परंपराओं को दो प्रकार के गुणों से पहचाना जाता है-बाहुलता तथा तर्क-वितर्क की परंपरा। भारतीय परंपराओं तथा संस्कारों में लगातार परिवर्तन होते रहते हैं तथा उन्हें बार-बार दोबारा परिभाषित किया जाता है। ऐसा 19वीं सदी के समाज सुधारकों ने किया तथा आज भी यह प्रक्रियाएं मौजूद है।

आधुनिक समाजों में पश्चिमीकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से ही जिससे धर्म का प्रभाव कम हो जाता है। आधुनिकीकरण में सभी विचारक यह कहते हैं किस आधुनिक समाज अधिक पंथनिरपेक्ष होते है । में धार्मिक विचारों का ह्रास हो जाता है, धार्मिक संस्कारों में कमी आ जाती है तथा भौतिकता का प्रभाव बढ़ जाता है। यह कहा जाता है कि आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों तथा लोगों के बीच दूरी बढ़ रही है।

(ii) जाति और पंथनिरक्षीकरण-अगर ध्यान से देखा जाए तो जाति तथा पंथनिरपेक्षीकरण एक-दूसरे के विरोधी हैं। जाति प्रथा में धार्मिक विचारों को काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। यह कहा जाता है कि धर्म तथा धार्मिक ग्रंथों ने ही व्यक्तियों के कार्यों तथा समूहों को बाँट दिया था जिस कारण जाति प्रथा अस्तित्व में आयी। जाति प्रथा में जो व्यक्ति धार्मिक कार्यों को करता था उसे समाज में सबसे उच्च स्थिति प्राप्त थी तथा निम्न जातियों को धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता था।

इस प्रकार अगर हम कहें कि जाति प्रथा के आधार ही धर्म तथा व्यवसाय थे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। परंतु पंथनिरपेक्षीकरण में धर्म को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है बल्कि धार्मिक संस्कारों में काफ़ी कमी आ जाती है। इसमें लोग धार्मिक कार्यों को समय देने की अपेक्षा अपने कार्य तथा पैसे कमाने को समय देना अधिक पसंद करते हैं।

सांस्कृतिक परिवर्तन HBSE 12th Class Sociology Notes

→ पिछले अध्याय में हमने उपनिवेशवाद के बारे में पढ़ा। उपनिवेशवाद के शुरू होने के बाद से ही भारत में सांस्कृतिक परिवर्तन आने शुरू हो गए। विदेशियों की संस्कृति का हमारी संस्कृति पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि हमारे समाज का सामाजिक परिवर्तन तेज़ी से शुरू हो गया।

→ प्राचीन समय से ही भारतीय समाज में बहुत-सी कुरीतियां चली आ रही थीं जैसे कि सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, जाति प्रथा, बहुविवाह, पर्दा प्रथा, उच्च शिक्षा की कमी, निम्न जातियों का शोषण इत्यादि। इन सबके विरुद्ध देश के अलग-अलग क्षेत्रों से आवाजें उठीं जिन्हें समाज सुधार आंदोलन का नाम दिया गया।

→ भारत में समाज सुधार आंदोलनों की 19वीं शताब्दी में शुरुआत राजा राम मोहन राय ने की जिन्हें ‘आधनिक भारत का पिता’ भी कहा जाता है। उन्हीं के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिंक ने सती प्रथा को समझा तथा इस अमानवीय प्रथा को गैर-कानूनी करार दिया।

→ ज्योतिबा फूले जाति प्रथा के विरुद्ध थे तथा साथ ही साथ स्त्रियों के शोषण के भी विरुद्ध थे। इसलिए ही उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना की तथा कई कन्या विद्यालय खोले।

→ सर सैय्यद अहमद खान मुसलमानों में सुधारों के काफ़ी बड़े पक्षधर थे। वह मुसलमानों में प्रचलित कई बुराइयों जैसे कि बहुविवाह, प्रर्दा प्रथा, स्त्रियों की निम्न स्थिति, अशिक्षा इत्यादि के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने मुस्लिम समाज से इन बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए। उन्होंने तो अलीगढ़ में एक कॉलेज भी स्थापित किया जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया।

→ इन सब के साथ ईश्वर चंद्र विद्यासागर, केशवचंद्र सेन, विरेश लिंगम, स्वामी दयानंद सरस्वती, विवेकानंद इत्यादि ने भारतीय समाज में व्यापत बुराइयों की कड़ी आलोचना की तथा इनके विरुद्ध कार्य करने के लिए कई संगठन बनाए जैसे कि ब्रह्म समाज, आर्य समाज, सत्य शोधक समाज इत्यादि।

→ चाहे सभी समाज सुधारक देश के अलग-अलग हिस्सों से संबंधित थे तथा इन सभी ने अलग-अलग बुराइयों का विरोध किया परंतु इन सभी सुधारकों का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में व्यापत बुराइयों को दूर करना था।

→ अगर हमारे देश में सामाजिक परिवर्तन हुआ है तो इसमें सांस्कृतिकरण, आधुनिकीकरण, पंथनिरपेक्षीकरण अथवा धर्म निष्पक्षता तथा पश्चिमीकरण जैसी प्रक्रियाओं का काफ़ी बड़ा हाथ है। चाहे सांस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय समाज में पहले से ही व्याप्त थी परंतु और प्रक्रियाएं अंग्रेजों के समय में सामने आयी तथा इन्होंने भारतीय समाज का स्वरूप ही परिवर्तित कर दिया।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

→ संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति प्रथा से संबंधित है। जब निम्न जाति के लोग उच्च जाति के रहने सहने के ढंग, उठन बैठने के ढंग तथा उनका नाम अपानाकर अपने आपको उच्च जाति का कहना शुरू कर दें अथवा उच्च जाति की जीवन पद्धति, अनुष्ठान मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं का अनुकरण करना शुरू कर दें तो इसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहा जाता है। यह जाति प्रथा के कारण सामने आयी।

→ पश्चिमीकरण की प्रक्रिया पश्चिमी समाज के अनुकरण से संबंधित है। श्रीनिवास के अनुसार पश्चिमी समाज के साथ लगभग 150 सालों के संपर्क के बाद कई परिवर्तन हमारे सामने आए और जैसे कि प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा, मूल्य इत्यादि। इस परिवर्तन की प्रक्रिया को ही पश्चिमीकरण कहा जाता है।

→ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के दौरान सामने आयी। इसके अनुसार यह विकास का वह ढंग है जो पश्चिमी यूरोप या उत्तरी अमेरिका ने अपनाया। इसके अनुसार व्यक्ति के विचार, व्यवहार के ढंग, जीवन के सभी पहलू बदल जाते हैं तथा व्यक्ति अपने आपको पूर्णतया आधुनिक महसूस करता है।

→ धर्म निष्पक्षता अथवा पंथनिरपेक्षीकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें धर्म के प्रभाव में कमी आती है तथा आधुनिक विचार धार्मिक विचारों को दबा लेते हैं। व्यक्ति का दृष्टिकोण धार्मिक न होकर आधुनिक हो जाता है। वह धार्मिक संस्थाओं से दूर हो जाता है तथा उसके पास धार्मिक कार्यों के लिए समय ही नहीं होता।

→ सांस्कृतिकरण-वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत निम्न समूह उच्च समूहों के विचारों, आदर्शों, जीवन जीने के ढंगों का अनुकरण करके उनका नाम तक अपना लेते हैं।

→ धर्मनिरपेक्षीकरण अथवा पंथनिरपेक्षीकरण-सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया जिसमें सार्वजनिक जीवन में धर्म का प्रभाव कम हो जाता है तथा आधुनिकता का प्रभाव बढ़ जाता है।

→ पश्चिमीकरण-वह प्रक्रिया जिसमें भारतीय समाज के सभी आदर्श विचार, संस्थाएं इत्यादि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के अधीन आ गए।

→ आधुनिकीकरण-सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया जिसमें प्राचीन पंरपराओं का त्याग करके नए तथा आधुनिक विचारों को ग्रहण किया जाता है।

→ सती प्रथा-वह प्रथा जिसमें विधवा स्त्री अपने पति की चिता के साथ जीवित ही जला दी जाती थी।

→ बहुविवाह-विवाह का वह प्रकार जिसमें एक पति की कई पत्नियां अथवा एक पत्नी के कई पति होते हैं।

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