Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 जन आंदोलनों का उदय
HBSE 12th Class Political Science जन आंदोलनों का उदय Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
चिपको आन्दोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन सा कथन गलत है
(क) यह पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आन्दोलन था।
(ख) इस आन्दोलन ने पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के मामले उठाए।
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आन्दोलन था।
(घ) इस आन्दोलन की मांग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण होना चाहिए।
उत्तर:
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आन्दोलन था।
प्रश्न 2.
नीचे लिखे कुछ कथन गलत हैं। इनकी पहचान करें और ज़रूरी सुधार के साथ उन्हें दुरुस्त करके दोबारा लिखें
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतन्त्र को हानि पहुंचा रहे हैं।
(ख) सामाजिक आन्दोलनों की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(ग) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आन्दोलनों का उदय हुआ।
उत्तर:
(क) सामाजिक आन्दोलन भारत के लोकतन्त्र को बढ़ावा दे रहे हैं।
(ख) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।
(ग) यह कथन पूर्ण रूप से सही है।
प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में (अब उत्तराखण्ड) 1970 के दशक में किन कारणों से चिपको आन्दोलन का जन्म हुआ ? इस आन्दोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
भारत में पर्यावरण से सम्बन्धित सर्वप्रथम आन्दोलन चिपको आन्दोलन के रूप में जाना जाता है। चिपको आन्दोलन 1972 में हिमालय क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। चिपको आन्दोलन का अर्थ है-पेड़ से चिपक जाना अर्थात् पेड़ को आलिंग्न बद्ध कर लेना। चिपको आन्दोलन की शुरुआत उस समय हुई जब एक ठेकेदार ने गांव के समीप पड़ने वाले जंगल के पेड़ों को कटाने का फैसला किया। लेकिन गांव वालों ने इसका विरोध किया। परन्तु जब एक दिन गांव के सभी पुरुष गांव के बाहर गए हुए थे, तब ठेकेदार ने पेड़ों को काटने के लिए अपने कर्मचारियों को भेजा।
इसकी जानकारी जब गांव की महिलाओं को मिली, तब वे एकत्र होकर जंगल पहुंच गईं तथा पेड़ों से चिपक गईं। इस कारण ठेकेदार के कर्मचारी पेड़ों को काट न सके। इस घटना की जानकारी पूरे देश में समाचार-पत्रों के द्वारा फैल गई। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित इस आन्दोलन को भारत में विशेष स्थान प्राप्त है। इस आन्दोलन की सफलता ने भारत में चलाए गए अन्य आन्दोलनों को भी प्रभावित किया। इस आन्दोलन से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक जागरूकता के आन्दोलन चलाए गए।
प्रश्न 4.
भारतीय किसान यूनियन किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहां तक सफलता मिली ?
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूं के सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोत्तरी, कृषि उत्पादों के अन्तर्राष्ट्रीय आवाजाही पर लगी रोक को हटाने, समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने, किसानों के बकाया कर्ज माफ करने तथा किसानों के लिए पेन्शन आदि जैसे मुद्दों को उठाया। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर अपनी कुछ मांगों को मनवाने में सफलता प्राप्त की।
प्रश्न 5.
आन्ध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आन्दोलन ने देश का ध्यान कुछ गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे ?
उत्तर:
आन्ध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आन्दोलन में निम्नलिखित मुद्दे उभरे
- शराब पीने से पुरुषों का शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होना।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रभावित होना।
- शराबखोरी के कारण ग्रामीणों पर कर्ज का बोझ बढ़ना।
- पुरुषों द्वारा अपने काम से गैर-हाजिर रहना।
- शराब माफिया के सक्रिय होने से गांवों में अपराधों का बढ़ना।
- शराबखोरी से परिवार की महिलाओं से मारपीट एवं तनाव होना।
प्रश्न 6.
क्या आप शराब विरोधी आन्दोलन को महिला आन्दोलन का दर्जा देंगे ? कारण बताएं।
उत्तर:
शराब विरोधी आन्दोलन को महिला आन्दोलन का दर्जा दिया जा सकता है, क्योंकि अब तक जितने भी शराब विरोधी आन्दोलन हुए हैं, उनमें महिलाओं की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण रही है।
प्रश्न 7.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बांध परियोजनाओं का विरोध क्यों किया ?
उत्तर:
नर्मदा बांध परियोजना के विरुद्ध नर्मदा बचाओ आन्दोलन चलाया गया। आन्दोलन के समर्थकों का यह मत है कि बांध परियोजना के पूर्ण होने पर कई लाख लोग बेघर हो जायेंगे।
प्रश्न 8.
क्या आन्दोलन और विरोध की कार्रवाइयों से देश का लोकतन्त्र मज़बूत होता है ? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 11 देखें।
प्रश्न 9.
दलित-पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए ?
उत्तर:
दलित पँथर्स ने दलित समुदाय से सम्बन्धित सामाजिक असमानता, जातिगत आधार पर भेदभाव, दलित महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, दलितों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न तथा दलितों के लिए आरक्षण जैसे मुद्दे उठाए।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें ….लगभग सभी नए सामाजिक आन्दोलन नयी समस्याओं जैसे-पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली, आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवाधिकारों का उल्लंघन….. के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे। इनमें से कोई भी अपने आप में समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था।
इस अर्थ में ये आन्दोलन अतीत की क्रान्तिकारी विचारधाराओं से एकदम अलग हैं। लेकिन, ये आन्दोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमज़ोरी है….सामाजिक आन्दोलनों का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आन्दोलन का रूप नहीं ले पाता और न ही वंचितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो पाता है। ये आन्दोलन बिखरे-बिखरे हैं, प्रतिक्रिया के तत्त्वों से भरे हैं, अनियत हैं और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इनके पास कोई फ्रेमवर्क नहीं है। ‘इस’ या ‘उस’ के विरोध (पश्चिमी-विरोधी, पूंजीवाद विरोधी, विकास-विरोधी, आदि) में चलने के कारण इनमें कोई संगति आती हो अथवा दबे-कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए ये प्रासंगिक हो पाते हों-ऐसी बात नहीं।
(क) नए सामाजिक आन्दोलन और क्रान्तिकारी विचारधाराओं में क्या अन्तर है ?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आन्दोलन की सीमाएं क्या-क्या हैं ?
(ग) यदि सामाजिक आन्दोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें ‘बिखरा’ हुआ कहेंगे या मानेंगे कि वे अपने मुद्दे पर कहीं ज्यादा केन्द्रित हैं। अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
उत्तर:
(क) क्रान्तिकारी विचारधाराएं समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के साथ जुड़ी हुई होर्ती हैं, जबकि नये सामाजिक आन्दोलन समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के साथ जुड़े हुए नहीं हैं।
(ख) सामाजिक आन्दोलन बिखरे हुए हैं तथा उनमें एकजुटता का अभाव है। सामाजिक आन्दोलनों के पास सामाजिक बदलाव के लिए कोई ढांचागत योजना नहीं है।
(ग) सामाजिक आन्दोलन द्वारा उठाए गए विशिष्ट मुद्दों के कारण यह कहा जा सकता है कि ये आन्दोलन अपने मुद्दे पर अधिक केन्द्रित हैं।
जन आंदोलनों का उदय HBSE 12th Class Political Science Notes
→ भारत में स्वतन्त्रता के बाद कई नवीन सामाजिक आन्दोलनों का उदय हुआ है।
→ भारत में किसानों से सम्बन्धित कई आन्दोलन चलाए गए हैं जैसे तिभागा आन्दोलन, तेलंगाना आन्दोलन, नक्सलवाड़ी आन्दोलन इत्यादि।
→ किसान आन्दोलनों पर समय-समय पर राजनीति होती रही है।
→ महिलाओं के अधिकारों के लिए कई महिला आन्दोलन चलाए गये हैं।
→ भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई।
→ स्थानीय स्वः-शासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए 1/3 स्थान आरक्षित किये गए हैं।
→ भारत में 1950 में ही महिलाओं को मताधिकार प्रदान कर दिया गया था।
→ भारत में पर्यावरण एवं विकास से प्रभावित लोगों के लिए आन्दोलन चलाए गए हैं।
→ 1972 में चिपको आन्दोलन चलाया गया।
→ मेधा पाटेकर, बाबा आमटे तथा सुन्दर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आन्दोलन चल रहा है।
→ टिहरी बांध परियोजना एवं शांत घाटी परियोजना से सम्बन्धित भी पर्यावरणीय आन्दोलन चलाए गए।
→ भारत सरकार ने 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ी जाति आयोग की स्थापना की।
→ 1978 में बी० पी० मण्डल की अध्यक्षता में पिछड़ी जाति आयोग की स्थापना की गई।
→ मण्डल आयोग ने 1980 में सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
→ 1990 में वी० पी० सिंह सरकार ने मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की, जिसका व्यापक विरोध हुआ।